हिंदुस्तान के सभी धर्मों में हज़रत इमाम हुसैन से अकीदत और प्यार की परंपरा रही है .घटना कर्बला के महान त्रासदी ने उदारवादी मानव समाज हर दौर में प्रभावित किया है . यही कारण है कि भारतीय समाज में शहीद मानवता हज़रत इमाम हुसैन की याद न केवल मुस्लिम समाज में रही है बल्कि ग़ैर मुस्लिम समाज में मानवता के उस महान नेता की स्मृति बड़ी श्रद्धा के साथ मनाई जाती है .भारतीय सभ्यता जिसने हमेशा मज़लूमों का साथ दिया है घटना कर्बला के महान त्रासदी सेप्रभावित होए बगीर ना रह सकी भारतीय िज़ादारी एक व्यक्तिगत स्थिति रखता है, जो सांस्कृतिक परंपरा न केवल मुसलमानों में स्थापित है बल्कि हिन्दो हज़रात भी इसमें भाग लेते हैं. भारतीय पूर्व राजवाड़ों में हिन्दो हज़रात यहाँ इमाम हुसैन से अकीदत की ऐतिहासिक परंपरा मिलती हैं जिसमें राजस्थान, ग्वालियर “मध्य प्रदेश”,बंगाल मुख्य है.
हिंदुओं में एक परिवार या समुदाय हुसैनी ब्राह्मण भी कहलाता है. प्रसिद्ध लेखक इंतजार हुसैन अपने अंग्रेजी स्तंभ Brahmans in Karbala में लिखते हैं कि वह पहले हुसैनी ब्राह्मण केवल हिंदू कहानी (Legend) ही समझते थे इसलिए उन्होंने अपने प्रवास दिल्ली में किसी महफ़िल में भाषण करते हुए इस बात को झुठला दिया. वहीं महफ़िल में एक महिला प्रोफेसर नूनीका दत्त उठी और उन्होंने कहा कि वह खुद हुसैनी ब्राह्मण और उनके परिवार से संबंध रखती है. इंतजार हुसैन ने नूनीका दत्त से पूछा कि मानो आप लोग मुसलमान हो गए हैं. उन्होंने कहा कि कभी नहीं. हम हिंदू ब्राह्मण ही हैं मगर हुसैनी होने के नाते हम मंदिरों आदि में नहीं जाते न दूसरी हिन्दवानह संस्कार खेलते हैं और यह कि वह मुहर्रम के दिनों में शहीदों की याद भी मनाते हैं.
प्रसिद्ध ज़माने फिल्म अभिनेता, हर दिल अज़ीज़ सामाजिक सेवक और लोकप्रिय राजनीतिक नेता स्वर्गीय सुनील दत्त अपने हुसैनी ब्राह्मण कहते थे. रसूल छोटे नवासे इमाम हुसैन इतिहास मानवता पहला और शायद आखिरी बच्चा है जो जन्म पर परिवार रोया. रसूल खुद रोए जब जिब्राईल अमीन इमाम हुसैन का जन्म पर बधाई के साथ यह बताया कि उस बच्चे को कर्बला के मैदान में तीन दिन का भूखा प्यासा अपने 71 साथियों के साथ शहीद हो जाएगा और इस परिवार की महिलाएं और बच्चे कैद कर दरबदर फिराए जाएंगे. जैसा कहा गया सुनील दत्त अपने हुसैनी ब्राह्मण कहते थे. उनका कहना था कि हमारे पूर्वजों की संतान नहीं थी. रसूल के समझजज़ों को सुनकर वह उनके पास पहुंचे तो इमाम हुसैन खेल रहे थे. रसूल ने कहा कि आप उनके लिए प्रार्थना करो. हुसैन ने अपने नन्हे हाथ ऊंचा किया और प्रार्थना की और उनके बच्चों हुई. तभी से लोग अपने हुसैनी ब्राह्मण कहने लगे.
हुसैनी ब्राह्मण दरदना भट्टाचार्य के वंशज थे. उनमें आत्माभिमान, बहादुरी, और रहमत कोट कोट कर भरी थी. कहा जाता है कि कर्बला में हुसैन की शहादत की खबर सुनी तो हुसैनी ब्राह्मण 700 ई. में इराक पहुंचे और इमाम हुसैन का बदला लेकर लौटे. याद रहे कि कर्बला की घटना 680 ई. में हुआ था. इस्लाम का संबंध बहुत पुराना है. रसूल बड़े नवासे इमाम हसन के समय से ही अरब व्यापारी समुद्र के रास्ते केरल की बनदगाह आते. ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती जो ख्वाजा अजमेर के नाम से प्रसिद्ध हैं अजमेर आए. यह इमाम हुसैन के परिवार से थे और हिंदुस्तान आने पर धार्मिक रवादाती लोगो कहलाए. आज भी उनके मजार पर हर धर्म के मानने वाले आते हैं. उनके मंदिर के अध्यक्ष दरवाजे पर फारसी भाषा में लिखे गए उनके चारों मसरावं में इमाम हुसैन की महानता और उनके उद्देश्य की ऊंचाई बड़े आम समझ शब्दों में इस प्रकार समझाया है
झांसी की रानी महारानी लक्ष्मी बाई को इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम से असाधारण आस्था थी. प्रोफेसर रफ़ेिह शबनम ने अपनी पुस्तक ‘भारत में शिया और ताजिया दारी ” मैं झांसी की रानी के संबंध में लिखा है कि” यौमे आशूरा और मुहर्रम के महीने में लक्ष्मी बाई बड़े आस्था के साथ मानती थी और इस महीने में वे कोई भी ख़ुशी वाले काम नहीं करती थी
मुंशी जवालह प्रसाद अख्तर लिखते हैं कि” राज्य अवध में इमाम हुसैन की सेना के सेनापति और वाहक हज़रत अब्बास के नाम का पहला झंडा अवध की धरती से से उठा जिस के उठाने का श्रेय मुगल सेना के एक राजपूत सरदार धरम सिंह को जाता है . .लखनऊ के प्रसिद्ध रौज़ा” काज़मैन” एक ऐसे हिंदू श्रद्धालु जगन्नाथ अग्रवाल ने बनवाया था. इसी तरह राजा झा लाल रौज़ा आज भी लखनऊ के ठाकुर गंज मुहल्ले में स्थित है
समकालीन प्रख्यात पत्रकार जमनादास अख्तर कहते हैं कि” मेरा संबंध मवहयालयों की दत्त जाति से है और हमें हुसैनी ब्राह्मण कहा जाता है. ाशोरह को हम शोक मनाते हैं. कम से कम मेरे परिवार में उस दिन खाना नहीं खाया है. श्रीनगर के इमामबाड़े में हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का मुंए मुबारक मौजूद है जो काबुल से लाया गया है. एक हुसैनी ब्राह्मण उसे सौ साल पहले काबुल से लाया था.”
प्रेमचंद का प्रसिद्ध नाटक ‘कर्बला’ सही और गलत से पर्दा उठाता है. इसी तरह उर्दू साहित्य में ऐसे हिंदू कवियों की संख्या कुछ कम नहीं जो अपनी रचनाओ में कर्बला के बारे में जिक्र न किया हो ऐसे सक्षम ज़करशिरा बीजापुर के रामारा?, बी दास मुंशी चखनो लाल दलगीर, राजा बलवान सिंह, लाला राम परशादबशर, दिया किशन री्षान, राजा उल्फत राय, कंवर धनपत राय, खनोलाल जार, दलोराम कौसर, नानक लखनवी, मिनी लाल जवान, रूप कुमारी, ीोगीनदरपाल साबरजूश मलेशानी, मुंशी गोपीनाथ शांति, चकबसत, बावा कृष्ण मगमोम, कंवर महेंद्र सिंह बेदी सहर, कृष्ण बिहारी, डॉ. धर्मेंद्र नाथ, माथरलिखनवी, महीनदरसनघ अश्क, बाँगेश तिवारी, गुलज़ार देहलवी, भवन मरवहवी आदि ने इमाम हुसैन की अक़ीदत में बहुत से कविताये लिखी है जिस में उन का अक़ीदा झलकता है.
. सरदार धरम सिंह संबंध सिख धर्म था और वे सख्ती से गुरू नानक की शिक्षाओं का पालन करते थे, उन्होंने कई बार हज़रत इमाम हुसैन के हवाले से बात करते हुए गुरू नानक का अपने मुरीद के साथ होने विला संवाद दोहराया जो बाबा गुरु नानक ने मुरीद कहा कि हजरत इमाम हुसैन का गम मनाया करो, जब मुरीद ने अनिच्छा का प्रदर्शन किया तो गुरू नानक ने कहा कि हुसैन मुसलमानों के ही नहीं विवेक वालों के गुरु हैं, इसलिए उनका शोक मनाना हर इंसान पर लाज़िम है. अवध राज्य में लखनऊ की ताजियादारी विशेष महत्व मिली है. मुहर्रम के मजलसों और जलूसों में में हिंदुओं की भागीदारी भारतीय साझा संस्कृति का एक नमूना है और हिन्दू – मुस्लिम एकता को बढ़ावा देने में अहम रोल अदा करता है .
Kuch parivaar hain jo khud ko Hussaini Brahman kahte hain.There were Brahmin scholars in Baghdad at that time.Please note that there was no resistance from Hazrat Imaam Hussain’s side.
अंग्रेजों का लिखा इतिहास अन्य अनेक मामलों में भी इसी तरह का बकवास है। हमें उसके लिखे इतिहास से छुटकारा पाना होगा।
हज़रत हुसैन हो हज़रत ईसा मसीह हो गौतम बुद्ध हो गुरु नानक साहब हो साईं बाबा हो या कोई भी खुद को ही भगवान बताने वाला धर्म गुरु हो कोई भी धर्म हो पंथ हो आस्था हो एकेश्वरवाद हो बहुदेववाद हो त्रिदेववाद हो या फिर नास्तिकता ही हो हिन्दुओ के लिए तो कोई बात ही नहीं हे हिन्दू तो किसी को भी कही भी कभी भी कैसे भी मान सकता हे या सबको खारिज भी कर सकता हे तब भी वो हिन्दू ही रहता हे हिन्दू एक आस्था से अधिक एक संस्कर्ति ही हे आस्था अक़ीदा हिन्दुओ के लिए कोई समस्या नहीं हे कोई मुद्दा नहीं हेइसलिए आप देखे की दुनिया में हिन्दू हर जगह आराम से अड्जस्ट हो जाता हे इस्लाम में ठीक इसका उलट हे आस्था सर्वोच्च हे उसमे भी यहाँ सिर्फ एक सिर्फ एक निराकार ईश्वर की इबादत की जाती हे और उसके साथ किसी को भी शरीक नहीं किया जाता हे यही मेन बिंदु हे इसी कारण सदियों से साथ रह कर भी भारतीय उपमहादीप में हिन्दू मुस्लिम सहअस्तित्व नहीं हो पाया हे और पाकिस्तान टू नेशन थ्योरी कश्मीर अयोध्या दंगो पंगो की समस्या रही हे मेरा कहना ये हे की ना हिन्दू अपनी संस्कर्ति छोड़ेंगे जिसमे न शिर्क ( ईश्वर के साथ शरीक ) कोई मुद्दा हे न नास्तिकता कोई मसला वही मुसलमान शिर्क नहीं कर सकता हे न करेगा ना करना चाहिए तो ये हे . और रहना 90 करोड़ हिन्दुओ को और साठ करोड़ मुस्लिमो को साथ साथ ही हे कुछ कटटरपन्ति लोग भले ही सपना देखे की वो अगले को गायब कर देंगे हरा देंगे बदल देंगे मगर ये सब किसी हालात में पॉसिबल नहीं लगता हे बेहतर यही हे की हम सभी सहअस्तित्व के बिंदु सोचे तलाशे विचार करे
When Muslims in India will change their minds set ( Hindus do believe in One God.. Sanatan dharma
.Aum..nothing but one eternal energy source called as Almighty God), both will not have any problem in cohabitation.
Agar vaakehee huseni brahman k baare me janna hai to history of mewaad or harishchander k bete chander gupt ki history padho