इसमें कोई शक नहीं कि माननीय चचा मुलायम सिंह यादव पीएचडी की मानद उपाधि के हकदार हैं। मैं पिछले चार दशकों से उन्हें जानता हूं और मेरा मानना है कि जमीन की जितनी समझ इस अकिंचन नेता को है उतनी शायद बड़े से बड़े विद्वानों को नहीं होगी। समाजवादी लोहिया के शिष्य और किसान नेता चौधरी चरण सिंह की विरासत इस नेता के पास है। मैं माननीय मुलायम सिंह जी यादव को पीएचडी की मानद उपाधि दिए जाने के उत्तर प्रदेश सरकार के फैसले का तहेदिल से स्वागत करता हूं। आज से 12 साल पहले कोलकाता के भारतीय भाषा परिषद में एक पेपर मुझे पढऩा था जिसका विषय था सत्तर के दशक में मध्यवर्ती जातियों का उभार, उसकी कुछ लाइनें मैं यहां पेश कर रहा हूं। इनसे आप लोग मुलायम सिंह जी की जीवटता और उनकी पारखी बुद्घि को समझ पाएंगे।
“उस समय दैनिक जागरण के संयुक्त संपादक श्री हरिनारायण निगम ने मुझसे मध्य उत्तर प्रदेश के मुफस्सिल इलाकों से खूब स्टोरीज कराईं। इसके अलावा हमीरपुर व सुल्तानपुर भी मुझे जाना पड़ता था। तब तक मुफस्सिल इलाकों में अखबारों की पैठ नहीं थी। अखबार ज्यादातर शहरी क्षेत्रों में ही पढ़े जाते थे। यहां तक कि तहसील हेडक्वाटरों में भी अखबार नहीं पहुंचते थे। छोटे शहरों में वहां के कुछ छोटे अखबारों का राज था। मैने निगम साहब को कहा कि अगर वे मुझे मौका दें तो मैं मुफस्सिल इलाकों में जाकर डकैतों की समस्याओं पर लिख सकता हूं। उन दिनों मध्य उत्तर प्रदेश की मध्यवर्ती जातियों के कुछ नए नायक उभर रहे थे। ये नायक उस क्षेत्र के डकैत थे। अगड़ी जातियों के ज्यादातर डकैत आत्म समर्पण कर चुके थे। अब गंगा यमुना के दोआबे में छविराम यादव, अनार सिंह यादव, विक्रम मल्लाह, मलखान सिंह और मुस्तकीम का राज था। महिला डकैतों की एक नई फौज आ रही थी जिसमें कुसुमा नाइन व फूलन प्रमुख थीं। छविराम और अनार सिंह का एटा व मैनपुरी के जंगलों में राज था तो विक्रम, मलखान व फूलन का यमुना व चंबल के बीहड़ों में। मुस्तकीम कानपुर के देहाती क्षेत्रों में सेंगुर के जंगलों में डेरा डाले था। ये सारे डकैत मध्यवर्ती जातियों के थे। और सब के सब गांवों में पुराने जमींदारों खासकर राजपूतों और चौधरी ब्राह्मणों के सताए हुए थे।
उस समय वीपी सिंह यूपी के मुख्यमंत्री थे। यह उनके लिए चुनौती थी। एक तरफ उनके सजातीय लोगों का दबाव और दूसरी तरफ गांवों में इन डाकुओं को उनकी जातियों का मिलता समर्थन। वीपी सिंह तय नहीं कर पा रहे थे। यह मध्य उत्तर प्रदेश में अगड़ी जातियों के पराभव का काल था। गांवों पर राज किसका चलेगा। यादव, कुर्मी और लोध जैसी जातियां गांवों में चले सुधार कार्यक्रमों और सामुदायिक विकास योजनाओं तथा गांंव तक फैलती सड़कों व ट्रांसपोर्ट सुलभ हो जाने के कारण संपन्न हो रही थीं। शहरों में दूध और खोए की बढ़ती मांग ने अहीरों को आर्थिक रूप से मजबूत बना दिया था। यूं भी अहीर ज्यादातर हाई वे या शहर के पास स्थित गांवों में ही बसते थे। लाठी से मजबूत वे थे ही ऐसे में वे गांवों में सामंती जातियों से दबकर क्यों रहें। उनके उभार ने उन्हें कई राजनेता भी दिए। यूपी में चंद्रजीत यादव या रामनरेश यादव इन जातियों से भले रहे हों लेकिन अहीरों को नायक मुलायम सिंह के रूप में मिले। इसी तरह कुर्मी नरेंद्र सिंह के साथ जुड़े व लोधों के नेता स्वामी प्रसाद बने। लेकिन इनमें से मुलायम सिंह के सिवाय किसी में भी न तो ऊर्जा थी और न ही चातुर्य। मुलायम सिंह को अगड़ी जातियों में सबसे ज्यादा घृणा मिली लेकिन उतनी ही उन्हें यादवों व मुसलमानों में प्रतिष्ठा भी।”
Pathetic & shameless article ?? Mr Mulayam Singh Yadav has become Chief Minister of UP for many years but he failed to generate employment, not able to attract industrialists,Poorly performed to provide electricity, water, education, health fronts and have no shame for one of the WORST law & order in the country ??
For your kind information UP is very rich in Tourism (Agra, Mathura,Kashi,Kanpur, Allahabad,Meerut, Saharanpur and many more), Education (Most of the renowned universities of past are in UP), Natural resources, Cheap labor, Plain area and road network (spoiled because of no maintenance) and so many small scale industries (which are fighting for last breath) ?? Where is the Growth ?
Mr Shambhunath Shukla , I don’t expect honesty & morality from a reporter of your repute. I don’t know what is your selfishness to write such article but truth about UP is…. This State is NOT known for prosperity & good governance but earned a bad name by promoting caste-based “Socialism” …..I don’t think Mr Ram Manohar Lohiya has ever followed such Socialism.
Crap article ??