21 बरस गुजर गये। देश ने पांच प्रधानमंत्रियों को देख लिया। और इस दौर में कमोवेश देश के हर राजनीतिक दल ने सत्ता का स्वाद चखा। लेकिन कभी किसी ने राष्ट्रीय संपदा कोयला की लूट पर कोई सवाल नहीं उठाया। जिन 214 खादानों के आंवटन को रद्द किया गया है, उनमें से पीवी नरसिंह राव के दौर में 5 खादान का आबंटन हुआ। 4 खादानों का आबंटन देवेगौडा के दौर में हुआ । आईके गुजराल पीएम बने तो उस दौर में कोई खादान आबंटन नहीं हुआ । लेकिन अटल बिहारी वाजपेयी के दौर में 30 खादानो का आबंटन हुआ । और जिस दौर को सीएजी ने एक लाख 86 हजार करोड़ के राजस्व के चूना लगने की बात अपनी रिपोर्ट में कही वह मनमोहन सिंह का दौर था। उस दौर में 1759 खादान आंवटित किये गये । जिनमें से 175 खादानों के आंवटन को सुप्रीम कोर्ट ने रद्द कर दिया है। यानी सरकारें आती रही जाती रही और जैसे ही देश में पावर प्रोजेक्ट सबसे बडे मुनाफे के धंधे में बदला वैसे ही कोयला खादानों की लूट का सिलसिला भी इस तरीके से चल पड़ा कि सरकार के हर करीबी रईस ने अपने नाम कोयला खादान करवाना चाहा। असर इसी का हुआ कि जिन कंपनियो को ना तो
कोयला खदानो का कोई अनुभव था या फिर जिनके पास ना पावर प्लांट था उन्होंने कोयले की भारी मांग को देखते हुये कोयला खादान मुनाफा बनाने- कमाने के लिये अपने नाम करवा लिया। ऐसी 24 कंपनियां हैं, जिनके पास कोई पावर प्रोजेक्ट का नहीं है । लेकिन उन्हे खादान मिल गयी । 42 कंपनिया एसी है जिन्होंने खादानो की तरफ कभी झांका भी नहीं। लेकिन खादान अपने नाम कर खादान बेचने में लग गयी। यानी लूट हुई है इसपर पहली अंगुली सीएजी ने उठायी तो अब फैसला सुप्रीम कोर्ट ने दे दिया। लेकिन असल सवाल यही है कि सरकार की अगर कोई नीति बीस बरस बाद आदालत के निर्देश पर खारिज होती है । या फिर सरकार को बीते 20 बरस के फैसले रद्द करने पड़ते हैं तो फिर जिन निवेशकों ने सरकारी नीति के तहत पूंजी लगायी वह अब क्या करेंगे। जिन बैकों ने पावर प्लांट के लिये कंपनियो को उधारी दी अब उन्हें वापस पैसा कैसे मिलेगा। और जिन्होने कोयला खादान मिलने पर पावर प्लांट लगा लिया उनकी पूंजी का क्या होगा।
यानी मुसीबत दोहरी है। एक तरफ सरकारों की लूट है तो दूसरी तरफ विकास की नीति फेल है । और यह हालात बताते है कि सरकारें यह मान कर चलती है कि कारपोरेट या उङोगपति सरकारी लूट का हिस्सा बनते है तभी उन्हे मुनाफा मिलता है और कौडियों के मोल राष्ट्रीय संपदा की लूट होती है। यानी बनाना रिपब्लिक की तर्ज पर कोयला खादान नीति बीते 21 बरस से देश में चलती रही और हर किसी ने आंखें मूंदी रखी। पूंजीपति उगोगपतियों को सरकार की नीति से लाभ होता है तो ही वह पैसा लगाते हैं और जब नीतियां ही फ्रॉड साबित हो जाये तो फिर विकास की नयी नीति के तहत खड़े होने से नहीं कतराते। इसलिये यह कोई समझ नहीं पा रहा है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद पावर प्रोजेक्ट के लिये दिये गये 3 लाख करोड़ का बैक को चूना लगेगा। पावर कंपनियो को करीब 2.86 लाख करोड़ का नुकसान होगा। तो फिर यह हालात आये कैसे और कैसे विकास की लहर में भारत खुला बाजार बन गया। तो याद कीजिये 1979 में बनी फिल्म कालापत्थर को। जिसमें कोयला खदानो से मुनाफा बनाने के लिये निजी मालिक मजदूरो की जिन्दगी दांव पर लगाता है। असल में यह फिल्म भी झारखंड की उस चासनाला कोयला खादान के हादसे पर बनी थी, जिसमें कोयला निकालते सैकड़ों मजदूरों की मौत खादान में पानी भरने से हुई थी। और जांच रिपोर्ट में यह पाया गया था कि कोयला निकालने का काम खादान में जारी रखने पर पानी भर सकता है, इसकी जानकारी भी पहले से खादान मालिक
को थी। असल में निजी कोयला खादानो में मजदूरों के शोषण को देखकर ही 1972 में इंदिरा गांधी ने कोयला खदानों का राष्ट्रीयकरण किया। और 1973 से लेकर 1993 तक कोई खानाद निजी हाथों में सौपी नहीं गयी । और 1993 तक कोयला निकालने का अधिकार सिर्फ कोल इंडिया को ही था।
लेकिन 1993 में बतौर वित्त मंत्री मनमोहन सिंह ने कोल इंडिया के सामने यह लकीर खींच दी कि सरकार कोल इंडिया को अब मदद नहीं देगी बल्कि वह अपनी कमाई से ही कोल इंडिया चलाये तो 1993 से कोल इंडिया भी ठेकेदारी पर कोयला खादान में काम कराने लगा और मजदूरों के शोषण या ठेकेदारी के मातहत काम करने वाले मजदूरों के हालात कितने बदतर है, यह आज भी झारखंड, बंगाल, उड़ीसा, छत्तीसगढ, मध्यप्रदेश में देखा जा सकता है। यानी आर्थिक सुधार की बयार में यह मान लिया गया कि कोयला खदानों के राष्ट्रीयकरण से सरकार को कोई लाभ मनमोहन की इक्नामिक थ्योरी तले देश को हो नहीं सकता। यानी देश के खदान मजदूरों को लेकर जो भी खाका सरकार ने खींचा, वह खुली अर्थव्यवस्था में फेल मान लिया गया। क्योंकि ठेकेदारी प्रथा ज्यादा मुनाफा देने की स्थिति में है। और यही से शुरु हुआ निजी हाथो में कोयला खादान की बंदरबाट । 10 अगस्त 1993 में बंगाल के सरीसाटोली की खादान आरपीजी इंडस्ट्री और सीईएससी लिमिटेड को साझा तोर पर दी गयी। उसके बाद दूसरी खादान 24 फरवरी 94 को उडीसा के तालाबिरा में हिडाल्को को दी गयी। और उसके बाद सरकारें बदलती रही लेकिन कोयला खादान आवंटन में कोई रोक नहीं लगी। मनमोहन सिंह के पीएम बनने के बाद तो खादान बांटने में गजब की रफ्तार आयी। 342 खदानों के लाइसेंस बांटे गये, जिसमें 101 लाइसेंसधारको ने कोयला का उपयोग पावर प्लांट लगाने के लिये लिया। लेकिन इन दौर में इन्हीं कोयला खादानो के जरीये कोई पावर प्लांट नया नही आ पाया। और इन खदानो से जितना कोयला निकाला जाना था, अगर उसे जोड़ दिया जाये तो देश में कही भी बिजली की कमी होनी नहीं चाहिये। लेकिन ऐसा हुआ नहीं।
देश का हाल समझे तो खादान का लाइसेंस लेने वालों में म्यूजिक कंपनी से लेकर अंडरवियर-जांघिया बेचने वाली कंपनियां भी हैं और अखबार निकालने से लेकर मिनरल वाटर का धंधा करने वाली कंपनी भी। इतना ही
नहीं दो दर्जन से ज्यादा ऐसी कंपनियां हैं, जिन्हें न तो पावर सेक्टर का कोई अनुभव है और न ही कभी खादान से कोयला निकालवाने का कोई अनुभव। कुछ लाइसेंस धारकों ने तो कोयले के दम पर पावर प्लांट का भी लाईसेंस ले लिया और अब वह उन्हें भी बेच रहे हैं। मसलन सिंगरैनी के करीब एस्सार ग्रुप तीन पावर प्लांट को खरीदने के लिये सौदेबाजी कर रही है, जिनके पास खादान और पावरप्लाट का लाइसेंस है, लेकिन वह पावर सेक्टर को व्यापार के जरीये मुनाफा बनाने का खेल समझती है। वहीं बंगाल, महाराष्ट्र,छत्तीसगढ, मध्यप्रदेश, गोवा से लेकर उड़ीसा तक कुल 9 राज्य ऐसे हैं, जिन्होंने कामर्शियल यूज के लिये कोयला खदानों का लाइसेंस लिया है। और हर राज्य खदानों को या फिर कोयले को उन कंपनियों या कारपोरेट घरानों को बेच रहा है, जिन्हें कोयले की जरुरत है। इस पूरी फेहरिस्त में श्री बैघनाथ आयुर्वेद भवन लिं, जय बालाजी इडस्ट्री लिमेटेड, अक्षय इन्वेस्टमेंट लिं, महावीर फेरो, प्रकाश इडस्ट्री समेत 42 कंपनियां ऐसी हैं, जिन्होंने कोयला खादान का लाइसेंस लिया है लेकिन उन्होंने कभी खदानों की तरफ झांका भी नहीं। और इनके पास कोई अनुभव न तो खादानों को चलाने का है और न ही खदानों के नाम पर पावर प्लांट लगाने का। यानी लाइसेंस लेकर अनुभवी कंपनी को लाईसेंस बेचने का यह धंधा भी आर्थिक सुधार का हिस्सा है। ऐसे में मंत्रियों के समूह के जरीये फैसला लेने पर सरकार ने हरी झंडी क्यों दिखायी । और अब जब सुप्रीम कोर्ट ने खादान आवंटन को गलत मान कर हर आवटंन रद्द कर दिया है तो फिर इसके दोषियों को क्या सजा होगी । क्या कोई जेल जायेगा । क्योकि हर निर्णय ग्रूप आफ मिनिस्टर ने लिये । यानी सरकारें की अपराध कर रही थी तो फिर आने वाले वक्त में कौन यह मान कर चले कि अभी जो विकास की चकाचौंध विदेशी-देशी निवेश से दिखायी जा रही है कल वह भी गलत साबित नहीं होगी। यानी मोदी सरकार की नीतिया भी 20135 में गलत साबित हो सकती है ।
तो फिर इस देश में कौन पैसा लगायेगा या फिर हर कोई पैसा इसीलिये लगायेगा क्योंकि नीतियां चाहे गलत हो। राजस्व की लूट चाहे हुई हो । दोषी कोई होता नहीं। सजा किसी को होती नहीं।
सैफुल्लाह को जवाब )- sikander hayat
September 17,2014 at 09:28 PM IST
मोदी जी को समर्थन केवल बड़े अंबानियो टाटा बिड़लाओ अदानियो ने ही नही दिया बल्कि इनके छोटे संस्करणो ने भी खूब दिया है मोदी सरकार इनके लिये बहुत कुछ करेगी इनकी ही औलादे विदेशो से और भारत के बड़े बड़े महन्गे स्कूलो से पढ कर आ रही है इनमे भी बड़ा बनने की बेहद हवस है य लोग पब्लिक को चूस डालेंगे और चूस भी रहे गौर कर सकते है अगले चुनाव से पूर्व इसी खून चूसने से ध्य्यन हटवाने के लिये मोदी इन बज़रंगियो का उपयोग करेंगे
sikander hayat
September 16,2014 at 11:38 PM IST
मनमोहिनी या मोदीवादी विकास से कुछ हासिल नहीं होने वाला हे आम जनता को . अर्थशास्त्र बहुत ही जटिल विषय हे मुझे नॉलिज नहीं हे मगर फिर भी थोड़ा जनरल सा खुद ही सोचे सरकार की नीतियों से अम्बानियों अडानियों को लाभ हुआ इन्होने नौकरी भी दी ठीक मगर खुद ही सोचिये की फिर इन्होने एंटीलिया जैसे महल खड़े कर लिए जिनमे पांच लोग रहते हे और संसाधन इतने लग गए जितने में दस लाख बेघर को लोगो को छत मिल सकती थी ? सोचिये इस विकास से जनता को क्या हासिल होगा
sikander hayat
September 16,2014 at 06:58 PM IST
मोदी जी हो सकता हे की एक अच्छे प्रशासक हो मगर अब ये साफ़ हो गया हे की वो कोई महान नेता बिलकुल नहीं हे महानता का उनमे कोई लक्षण नहीं हे अर्थवयवस्था सहित किसी भी मोर्चे पर कोई महान कारनामा नहीं होने जा रहा हे मोदी मुक्क़दर के सिकंदर जरूर हे जो उन्होंने गुजरात जैसे राज्य की गद्दी तभी संभाली जब उदारीकरण का दूसरा दौर शरू हो चूका था उसके बाद से ही भारत में अमीरो की गुजरातियो की सम्पत्ति धन दौलत में बेहद इज़ाफ़ा हुआ उसी की सवारी करते हुए इन चुनावो में आरोप हे की कॉर्पोरेट के 15 हज़ार करोड़ की मदद से वो पी एम तो बन गए मगर महानता का उनमे कोई गुण नहीं हे अगर ज़रा भी होता तो जीत के बाद वो विकास की ही राज़नीति करते और हिन्दू कठमुल्लाओं को खुला ना छोड़ते उन्होंने ऐसा ही किया क्योकि विकास पर उन्होंने भरोसा नहीं हे उन्हे पता है की विकास सिर्फ कॉर्पोरेट अम्बानियों अडानियों भिड़ानियो का ही होना हे
(sikander hayat को जवाब )- सैफुल्लाह
September 16,2014 at 11:17 PM IST
मोदी जी ‘हिन्दुत्व संकट’ में पुरी तरह फंस चुके है | एक तरफ ‘मनमोहनी जाल’ वहीं दुसरी तरफ ‘हिन्दुत्व संकट’, कहीं ये बुरे दिन की शुरुआत तो नहीं है?
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(सैफुल्लाह को जवाब )- sikander hayat
September 16,2014 at 11:29 PM IST
अल्लाह ईश्वर करे आएसा ही हो इस सरकार के बुरे दिन मे ही हम सबकी भलाई है हम तो पहले ही कह रहे थे (बल्कि वाजपेई को खूब सपोर्ट भी किया था इतना की मेरा कज़िन मुझे भी मजाक मे अटल जी कहने लगा था ) की भाजपा सरकार बनने से कोई अएतराज़ नही है मगरभाजपा को ही बहुमत का किसी ने सपने मे भी नही सोचा था बहुमत मिलने से हिन्दू कठमुल्ला पगला गये है