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किसी के बाप का हिन्दुस्तान थोड़ी है

Aug 27, 2014 | वीडियो | 13 |183 Views|

किसी के बाप का हिन्दुस्तान थोड़ी है

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13 Comments

  1. pratap singh kosta
    pratap singh kosta on August 28, 2014 at 2:20 pm

    Hindustan kisi ke bap ka to nahi hai . Lakin aap yeh bhul gaye ki hindustan hum bhartvashiyo ka jarur hai

    Reply
  2. सिकंदर हयात
    सिकंदर हयात on August 28, 2014 at 6:33 pm

    राहत इन्दोरी साहब यहाँ शायरी में हिन्दू कटटरपन्तियो से मुखातिब हे सही कहा जो उन्होंने कहा मगर ये बात हमें और लोगो को भी समझानी होगी सिर्फ हिन्दू फ़ण्डामेंटलिस्टो को ही नहीं इन्हे भी– देखिये हिंदी में क्या लिखा हुआ हे http://epaper.azizulhind.com/archive.php?arc=2014-08-17

    Reply
    • सिकंदर हयात
      सिकंदर हयात on August 28, 2014 at 6:51 pm

      दुनिया की सबसे ज़रख़ेज़ जमीं भारत- भारत शायद ही कभी भारत की जनता का रहा हो यहाँ हमेशा थोड़े से विशेष वर्ग का शासन रहा और हमेशा जनता पिसती रही वैसे ही भारत कभी भी भारत की मुस्लिम जनता का नहीं रहा यहाँ कभी भारतीय मुस्लिमो का राज़ नहीं रहा हमेशा विदेशी मुसलमानो का राज़ रहा जिनका प्रशासन अशराफ मुसलमानो और सवर्ण हिन्दुओ का ही रहा https://www.youtube.com/watch?v=w8LYedg3WSo इसलिए य कहना की ”हिंदुस्तान हिन्दुओ से पहले मुसलमानो का रहा ” मुझे सही नहीं लग रहा हे और में कोई भारतीय मूल का मुस्लिम नहीं हु में एक सुन्नी सैय्यद हु

      Reply
  3. सिकंदर हयात
    सिकंदर हयात on August 28, 2014 at 9:31 pm

    सवाल य हे की जिस जोशो खरोश से हम हिन्दू कटटरपन्तियो- खब्तियो के खिलाफ आवाज़ उठा लेते हे वही जोश मुस्लिम कटटरपन्तियो के खिलाफ बोलते हुए कहा गायब सा हो जाता हे – ? वहाँ हमें लकवा क्यों मार जाता हे ?

    Reply
    • afzal khan
      afzal khan on August 28, 2014 at 9:52 pm

      असल मे फत्वा का खौफ होता है.

      Reply
      • सिकंदर हयात
        सिकंदर हयात on August 28, 2014 at 10:22 pm

        अफज़ल भाई इस विषय पर अगस्त 2007 में हिन्दुस्तान अखबार में छपे अपने लेख में सीनियर पत्रकार सुहेल वहीद साहब कहते हे ” दूसरे धर्मो का समाज अपने भरष्ट धर्मगुरुओ को धिकारने में कोताही नहीं करता . साथ ही अपनी जिंदगी में धर्मगुरुओ के सीमित प्रवेश की ही इज़ाज़त देता हे . इसकी सबसे उम्दा मिसाल भारत में राम मंदिर आंदोलन की विफलता हे इसकी विफलता की वजह मुस्लिम विरोध नहीं बल्कि हिन्दुओ को खतरा हो गया था की ये लोग एक दिन उसकी मज़हबी आज़ादी पर भी कब्ज़ा कर लेंगे मुसलमानो के बीच जब जब इस तरह की आवाज़े उठती हे तो उसे’ कुफ्र बक रहा हे ‘ कह कर ख़ारिज कर दिया जाता हे पूरा मुस्लिम समाज उन्हें उपेक्षित कर देता हे

        Reply
        • sharad
          sharad on August 28, 2014 at 11:25 pm

          हयात भाई बेहद दुख होता है कि जनाब राहत इन्दौरी साहब जैसा नामचीन शायर भी आज देश मे कट्टरपन की आग से अछूता नही रह पा रहा है (राहत साहब के हम हमेशा ही बहुत बड़े फेन रहे है और कई मौको पर काफी करीब से सुनने का मौका भी मिला है) ….कलाकार कभी किसी जाति मजहब क्षेत्र से बंधा नही होता पर बदलते हालात के असर सुर, ताल, गीत, संगीत पर भी इस हद तक तक जा पहुचेंगे , सोचा नही था….कौन सोच सकता है इन्ही राहत साहब की खुद की शायरी……

          हवा खुद अब के हवा के खिलाफ है, जानी
          दिए जलाओ के मैदान साफ़ है, जानी

          हमे चमकती हुई सर्दियों का खौफ नहीं
          हमारे पास पुराना लिहाफ है, जानी

          वफ़ा का नाम यहाँ हो चूका बहुत बदनाम
          मैं बेवफा हूँ मुझे ऐतराफ है, जानी

          मैं जाहिलों में भी लहजा बदल नहीं सकता
          मेरी असास यही शीन-काफ है, जानी

          Reply
      • sharad
        sharad on August 28, 2014 at 11:35 pm

        यही तो मुस्लिमो का सबसे बड़ा दोहरापन है अफ़ज़ल साहब कि दूसरो की सामाजिक और धार्मिक बातो पर जरूरत से जयदा बोलते है मगर जब बात मुस्लिम समाज की सामाजिक और धार्मिक कुरीतियो की आती है तो खामोश हो जाते है ??…..बात जब किसी मुस्लिम की हो तो किसी मुस्लिम के सोचने समझने की ताकत काम करना बंद कर देती है और इसे राहत साहब के ही शेर से मुस्लिम समाज की एकतरफा सोच कहना चाहेंगे कि

        <>

        यानि जो सारी दुनिया को गलत दिखता है कम से कम उसे तो गलत ही कहिये मगर वहा भी कुछ ओवर स्मार्ट मुस्लिम ब्लॉगर्स क़ुरान हदीस का हवाला देकर बचाव करने की कोशिश करते है जो थोड़ा अजीब लगता है….

        Reply
        • sharad
          sharad on August 28, 2014 at 11:37 pm

          शेर कि जगह लिखा आ रहा हे जबकि शेर कुच यु हे

          ये शहर वो है जहाँ राक्षस भी है “राहत”
          हर एक तराशे हुये बुत को देवता न कहो

          Reply
      • sharad
        sharad on August 28, 2014 at 11:45 pm

        अफ़ज़ल साहब चाहे आप हो या हम अगर ईमानदार डिस्कसन करना चाहेंगे तो हर बार जुबां पर इन्दौरी साहब का यही शेर आयेगा कि

        हमारे ऐब हमें उंगलियों पे गिनवाओ
        हमारी पीठ के पीछे हमें बुरा न कहो

        जितना ओपन डिस्कसन उतना बढिया रिज़ल्ट !! आज की तारीख मे हम अपना ऐब छुपा कर आपका सब ऐब दिखा दे ऐसा संभव ही नही है क्योकि सभी को सभी के बारे मे मालूम है इसलिये जियो और जीने दो की नीति ही सबसे बढिया है !!

        Reply
  4. सिकंदर हयात
    सिकंदर हयात on August 29, 2014 at 10:51 pm

    अफज़ल भाई शरद भाई उपमहादीप में एक बड़ी समस्या और आन पड़ी हे की अब हिन्दू मुस्लिम साम्प्रदायिकता कठमुल्लवाद कटट्रपंथ और इनका प्रचार केवल सनक और खब्त का ही मसला नहीं रह गए हे बल्कि इनसे राज़नीति और सत्ता की लड़ाई ही नहीं बल्कि और भी लाखो लोगो – लाखो हिन्दू मुस्लिम आदि का कॅरियर का मसला हो गया हे इसमें उनका रोज़गार हे हित हे एन आर आई से लेकर अरब देशो से होने वाली उगाही हे बेहद जटिल हालात हे और अपने रोज़गार पर कोई आंच किसी को बर्दाश्त नहीं होती हे सो समझाने बुझाना भी आसान नहीं हे बहुत कठिन हालात

    Reply
  5. सिकंदर हयात
    सिकंदर हयात on September 4, 2014 at 11:48 pm

    सभी गैर मुस्लिमो से हिन्दुओ से एक अपील – पाकिस्तान क्रिकेटर दुआरा दिलशान को कन्वर्ट होने की सलाह पर बहस के दौरान सीनियर एंकर रोमाना खान मुझे ऐसा लगा की वो पाक क्रिकेटर पर बेहद क्रोधित लग रही थी तो जाहिर हे गैर मुस्लिम भी इस पर नाराज़ ही होंगे में गैर मुस्लिमो से अपील करता हु देखिये हम सब भारतीय हे हम सबको साथ साथ ही रहना हे और रहते भी हे तो में हिन्दुओ ईसाइयो सिखो आदि से अपील करता हु की देखिये भारतीय अधिकतर बाल बच्चो वाले धर्म भीरु लोगो होते ही आपने देखा ही होगा की कुछ लोग पर्चे बाटते हे की फला फला भगवान के पर्चे बाटो नहीं बाटोगे तो ऐसा हो जाएगा वैसा हो जाएगा लोग डर भी जाते हे तो य सब हे अब हो ये रहा की में महसूस कर रहा हु की आम मुस्लिम पर भी कुछ कटटरपन्ति दबाव डाल रहे हे की वो अपने बहुदेववादी हिन्दू दोस्तों परिचितों को एकेश्वरवाद यानी इस्लाम की और आने की दावत जरूर दे नहीं दी तो —— ? धर्मांतरण से जुड़े विभिन सवालो पर मेरी और शिराज़ भाई की काफी लम्बी बहस पिछले वर्ष जून में सचिन परदेसी जी के ब्लॉग ( http://readerblogs.navbharattimes.indiatimes.com/pravah/entry/%E0%A4%A7%E0%A4%B0-%E0%A4%AE-%E0%A4%AA%E0%A4%B0-%E0%A4%B5%E0%A4%B0-%E0%A4%A4%E0%A4%95-%E0%A4%95-%E0%A4%96-%E0%A4%B2-%E0%A4%9A-%E0%A4%A8-%E0%A4%A4-%E0%A4%AD-%E0%A4%97-%E0%A5%A9) पर हुई थी जिसमे अक्सर खुद को लिबरल ही प्रोजेक्ट करने वाले शिराज़ भाई ने कहा की चाहे कोई कबूल करे न करे हमें दावत देनी ही चाहिए इसी से जुड़े कुछ केस मेने देखे हे मेरा कहना ये हे की कल को अगर आपका कोई मुस्लिम मित्र परिचित सहकर्मी अगर की आपको दावत देता भी हे तो ज़ाहिर हे आपकी मर्ज़ी हे कबूल करे ना करे बात वही खत्म मगर किसी हालात में भी इस आधार पर अपने सम्बन्ध न बिगाड़े जिसने आपको दावत दी होगी यकीं माने वो आपके लिए उतना ही अच्छा बुरा बईमान ईमानदार वफादार दगाबाज देशभक्त गद्दार होगा जितना की कोई भी और .आस्था अनास्था का इंसान की बहुत सी फ़ितरतो से कोई अनिवार्य लिंक नहीं होता हे तो मेरा कहना ये हे की इन बातो को कतई दिल पर न ले न इन बातों के आधार पर सम्बन्ध ना बिगाड़े बिगाड़ेंगे तो आप कटरपन्तियो की रजा को ही पूरा करेंगे मेरी यही अपील हे

    Reply
    • sharad
      sharad on September 5, 2014 at 6:02 am

      हयात भाई आपके उस लिंक मे आप खुद देख सकते है कि एक दूसरे मुस्लिम पाठक सेराज अकरम जी से हमारे कैसे बढिया ताल्लुकात है क्योकि सेराज साहब भी आप ही की तरह सही को सही और गलत को गलत कहने का जज्बा रखते है और ऐसे इंसानो के लिये हमारी तरफ से हमेशा स्वागत रहेगा (यहा बता दे कि आपकी तरह उनसे भी कभी-2 हमारी सहमति-असहमति के दौर चलते रहे है)…. कट्टर धर्मान्धो को उन्ही की भाषा मे समझना पड़ता है और ये मुस्लिम समाज की बदकिस्मती है कि उनके सरपरस्त वही कट्टर सोच वाले है और समझ नही पा रहे है कि 21 वी सदी मे 14 वी सदी की सोच रख कर वे सारी दुनिया को अपना दुश्मन बना रहे है ??

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