दूनिया के टाप 200 विश्वविधालयों में भारत का एक भी विश्वविधालय शामिल नहीं है। दुनियां में जितने भी मौलिक शोध हो रहे हैं, अगर उनको इकट्टा गणना किया जाय तो उसमें भारत का प्रतिशत 0.30 प्रतिशत है।अर्थार्त आधा प्रतिशत भी नहीं है। दुनियां के व्यापार में भारत का प्रतिशत 0.70 प्रतिशत है । इसपर तुर्रा यह की सबसे अधिक सोने की खपत भारतीय स्तिरियों की । पेट्रोल विदेशों से आता है । सेविंग ब्लेड तक हम बाहर से मंगाते हैं । जानते हैं ? ये वही लोग है जो अपने को लायक घोषित करते हैं !!!!! जैसे कुछ बन्दर कहते हैं कि मेरी सबसे ज्यादा लाल है। कुछ बन्दरों की लाल होती है, तो वे कहते हैं कि मेरी लाल है तेरी लाल नहीं हैं। ब्राह्राण अपने को विकसित मानते हैं और जब उनकी योग्यता की तुलना विकसित देशों से करते हैं तो उनकी योग्यता नदारत है। भारत के ब्राह्राण राष्ट्रपति कह रहे है कि भारत के विश्वविधालयों में मौलिक शोध होते ही नहीं हैं जबकि भारत के जितने भी विश्वविधालय हैं उनके सारे वार्इस चांसलर लगभग ब्राह्राण ही हैं। उन विश्वविधालयों के सारे विभाग प्रमुख लगभग ब्राह्राण हैं, विश्वविधालयों में छात्रों के शोध करवाने वाले सारे प्रोफेसर लगभग ब्राह्राण हैं । इससे प्रमाणित होता है कि वे जो कह रहे हैं वो सच्चार्इ पर पर्दा डालने के लिए कह रहे हैं। ब्राह्राणों ने जो नाजायज कब्जा किया। यह लोगों को ऐसा नहीं लगना चाहिए। बलिक लोगों को ऐसा लगना चाहिए कि जो कुछ भी उनका कब्जा है वो जायज है। क्यों जायज है? क्योंकि उन्होंने मेरिट के द्वारा इसे प्राप्त किया है। 15 अगस्त, 1947 को भारत वर्ष में प्रशासन में 3 प्रतिशत ब्राह्राण, 33 प्रतिशत मुसलमान और 30 प्रतिशत कायस्थ थे। जैसे ही ब्राह्राण भारत का शासक बन गया । जो अंग्रेजों की दृषिट से नालायक थे वो भारत के नियंत्रणकर्ता होने के बाद सभी लायक हो गए और बाकी सारे नालायक हो गए । कोलकत्ता होर्इ कोर्ट में प्रीवी काउनिसल हुआ करती थी। अंग्रेजों ने नियम बनाया था कि कोर्इ भी ब्राह्राण प्रीवी काउनिसल का चेयरमैन नहीं हो सकता है। क्यों नहीं होगा? अंग्रेजों ने लिखा है कि ब्राह्राणों में जूडिसियस कैरेक्टर (न्यायिक चरित्र) नहीं होता है। आप लोगों को समझना बहुत जरूरी है कि इसका क्या मतलब होता है? जूडिसियस कैरेक्टर का मतलब होता है कि जब दो वकील बहस कर रहे हैं तो जज पहले वकील का बहस ध्यानपूर्वक सुनता है, फिर दूसरे वकीलें का बहस ध्यानपूर्वक सुनता है। दोनों वकीलों का सुनने बाद वह निर्णय करता है कि सही क्या है ? तब फिर न्यायपूर्वक फैसला देता है। इसे जूडिसियस कैरेक्टर कहते है।सुप्रीम कोर्ट का चीफ जसिटस ए.एस.आनंद तब हुआ करते थे उनके बेंच में तमिलनाडु का एक वकील बहस कर रहा था । जस्टिस ए.एस.आनंद उस वकील की बात सुन ही नहीं रहे थे तो उस वकील ने जूता निकाला और ए.एस.आनंद को फेंक कर मारा । ए.एस.आनंद ने तुरंत आदेश दिया, इसको गिरफ्तार करो। फिर गिरफ्तार करके उस वकील को कटघरे में खड़ा किया गया और पूछा गया कि तुमने जूता क्यों मारा ? उस वकील ने जबाब दिया कि जज का ध्यान मेरे बहस की तरफ नहीं था । इसलिए उसका ध्यान अपनी बहस की तरफ केनिद्रत करने के लिए जूता मारा । यह सुप्रीम कोर्ट के चीफ जसिटस ए.एस. आनंद की बात कर रहा हूँ। अंग्रेज ब्राह्राणों के बारे में जो कहते थे , वो गलत नहीं कहते थे। ये उसका एक उदाहरण है। ब्राह्राणों में जूडिसियस कैरेक्टर नहीं होता है। जूडिसियस कैरेक्टर का मतलब होता है ”निष्पक्षता का भाव अर्थात निष्पक्ष रहकर, दोनों गवाहों और सबुतों को सुनकर तथा दस्तावेजों को देखकर, कानून और न्याय के सिद्धान्त के अनुसार अपनी मनमानी ना करते हुए जो सही है, उसे न्याय दे, उसे ‘जूडिसियस कैरेक्टर कहते हैं। ये ब्राह्राणों के अन्दर नहीं है। यह अंग्रेजों का कहना था । हार्इ कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट पर भी ब्राह्राणों ने कब्जा कर लिया है। हार्इ कोर्ट में 600 के लगभग जज हैं और एस.सी., एस.टी., ओबीसी एवं मार्इनोरिटी के सिर्फ 18 के लगभग जज है। ब्राह्राण तथा तत्सम ऊँचे जाति के लोगों के लगभग 582 जज हैं। ब्राह्राणों का न्यायपालिका पर अनियंत्रित नियंत्रण है। इसलिए संविधान द्रोह करनेवाले ऐसे जजों को चौराहे पर लाकर उनका उचित सम्मान करना चाहिए ??। मैं अच्छी तरह जनता हूँ की मेरे ब्राह्मणो का विरोध करना ठीक वही नारा है जो गांधी ने अंग्रेजों भारत छोड़ो वाला नारा था ‘ब्राह्राणों भारत छोड़ो ! इसका विरोध वो कर भी नहीं सकते न । ब्राह्राणों को लगता है कि ऐसा करना खतरा है। वे जानते हैं की जो ब्राह्मणो का विरोध कर रहा है अगर उसका विरोध किया तो उसकी पोल खुल जाएगी इसलिए वो हमारे लोगों को लगातार प्रचार के द्वारा ये मनवाना चाहते है कि उन्होंने योग्यता के आधर पर यह कब्जा किया है। ऐसा प्रचार करने के पीछे दूसरा एक मकसद है। वह दूसरा मकसद है कि वो हमारे लोगों के अंदर में हीन भावना का निर्माण करना चाहते हैं। कोर्इ मनोवैज्ञानिक डाक्टर से पूछो कि ये हीन भावना क्या होती है? तो वह बताएगा कि हीन भावना एक बिमारी होती है। इसका मतलब है कि अगर निरंतर प्रचार करो कि तुम लायक नहीं हो, तुम लायक नहीं हो तो सामने वाले के अंदर हीन भावना धीरे-धीरे पनपने लगती है। अर्थात लगातार प्रचार करना कि तुम लायक नहीं हो इसके पीछे का उनका मकसद यही है कि वे हमारे लोगों के अंदर हीन भावना निर्माण करना चाहते हैं और जब किसी के अंदर हीनता का निर्माण हो जाता है तो वह खुद ही स्वीकार कर लेता है कि मैं नीच हूँ और कमजोर हूँ । मैं इसी के लायक हूँ और मुझे ऐसे ही रहना चाहिए । आप लोगों को मालूम नहीं है कि यह कितनी भयानक बात है। मगर यह भयानक बात लगातार प्रचार करने से लोगों के मन और मसितष्क में पेनिट्रेट (लगातार कोशिश करके बातें दिमाग में घुसाना) की जा सकती है।
यह बहुत भयंकर षडयंत्र का हिस्सा है और इसलिए इस षडयंत्र को समझना जरूरी है। यदि आप इस षडयंत्र के विरोध में कोर्इ आन्दोलन खड़ा करना चाहते हो तो वह आन्दोलन तब तक खड़ा नहीं किया जा सकता है जब तक आप इस षडयंत्र को नहीं जानते हैं। तब तक आप कोर्इ भी प्रतिकार नहीं कर सकते हैं। पहले इस षडयंत्र को जानना होगा, फिर इस षडयंत्र को पहचानना होगा, फिर इसके विरोध में प्रतिरोध एवं विरोध संभव है। इस बात को जानने और समझने के लिए ये बात मैं आपलोगों को बता रहा हूँ।
* भारत को मैंनेज करने का काम ब्राह्राण कर रहें हैं शंकरा चर्या बनकर और 1925 मे आरएसएस की स्थापना कर के । भारत में शासन करने का काम ब्राह्राण कर रहे हैं, भारत का सारा नियंत्रण ब्राह्राण कर रहे हैं, भारत का सारा प्रशासन ब्राह्राण चला रहे हैं, संसद में बहुमत ब्राह्राणों के नियंत्रण में हैं, देश के सारे संसाधन ब्राह्राणों के नियंत्रण में हैं, ब्राह्राण 68 सालों से देश को चला रहे हैं और देश को चलाने वाले ब्राह्राण कह रहे हैं कि ये दलित लोग नालायक हैं। तो ब्राह्राणों तुम इस देश को 68 सालों से चला रहे हो, तो तुम्हारे नियंत्रण में ये लोग नालायक कैसे हो गए ? देश की सारी-की-सारी जिम्मेवारी तो ब्राह्राणों की है और जिम्मेदारी तय की जा सकती है कि वही जिम्मेदार है । अगर वही जिम्मेदार है तो निशिचत रूप से दूसरों को नालायक नहीं कहा जा सकता है। उनके पास मेरिट नहीं है ऐसा नहीं कहा जा सकता है। इसके बावजूद भी ब्राह्राण यह प्रचार कर रहे हैं कि अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, ओबीसी और इनसे धर्म-परिवर्तित अल्पसंख्यक लोग लायक नहीं हैं। तो ब्राह्राण ऐसा प्रचार क्यों कर रहे हैं ? यह सोचने का सवाल है । ब्राह्राण खुद ही इन सारी बातों के लिए जिम्मेदार है और जो लोग जिम्मेदार हैं, वो लोग खुद ही ऐसा प्रचार कर रहे हैं । ऐसा प्रचार करने के पीछे निशिचत ही इसका अलग मकसद है। इसका क्या मकसद हो सकता है? पहली बात तो यह है कि जो लोग इसके लिए जिम्मेदार हंै वो अपनी जिम्मेदारी दूसरों के ऊपर थोपना चाहते हैं। यह पहली बात है जो विश्लेषण करके मैं आपको समझा रहा हूँ। बहुसंख्य लोग ये बातें नहीं जानते हैं। मैं विश्लेषण करके एवं सिद्ध करके बता रहा हूँ कि शासक वर्ग (ब्राह्राण) इसके लिए जिम्मेवार है। मगर बहुसंख्य लोग इस बात को नहीं जानते है। अगर उनके सामने यही बातें बार-बार कही जाए तो क्या होगा ? बहुसंख्य लोगों को यह लगने लगेगा की वास्तव में हम लोग नालायक हैं।
एक बार अनुसूचित जाति का एक बडे़ र्इंजिनियर से हमारी चर्चा हो रही थी । हमने उनसे कहा कि ऐसा – ऐसा कर के देश की सारी व्यवस्थाओं पर ब्राह्राणों ने कब्जा कर लिया है। तो उस र्इंजिनियर ने मुझसे कहा कि हाँ ब्राह्राणों के पास मेरिट है इसलिए उन्होंने इतना कब्जा किया हुआ है । हमारा ही आदमी यह बात कह रहा है। उसकी यह राय बनी ब्राह्राणों द्वारा लगातार प्रोपागेण्डा (प्रचार) करने की वजह से हमारे लोगों के मन में ये गलत धारणा धर कर गयी है, ऐसा मनवाने में वे लगातर प्रोपगेण्डा की वजह से सफल हो जाते हैं। हमारे अपने ही लोग इस बात को मानने लग लाते हैं कि हाँ वो लायक हैं और लायक होने की वजह से सारी व्यवस्थाओं पर काबिज हैं ।
ब्राह्राण सारी व्यवस्थाओं पर काबिज है, मगर नाजायज तरीके से काबिज है। लोकतंत्र में अल्पसंख्य लोग बहुसंख्य लोगों पर राज नहीं कर सकते हैं । मगर वो राज कर रहे हैं । बलिक व्यवस्था पर कब्जा उनका है और लोकतंत्र में कब्जा जायज नहीं माना जा सकता है। लोकतंत्र में हर कब्जा नाजायज होता है। इसे जायज नहीं कहा जा सकता है। ऐसे परिसिथति में लोगों में लगातार प्रचार करने से कि वे लायक हैं और हम नालायक हैं, अगर ये कब्जा उन्होंने कर लिया है तो यह कोर्इ जायज तरीके से नहीं किया है। ब्राह्राण तो इस तरीके को जायज बनाने के लिए कि वे जायज हैं, उन्होंने जो किया वह सही है और इसका कारण है कि उनके पास मेरिट है, और वे लायक हैं। ऐसा लगातार प्रचार करने की वजह से हमारे लोग भी यही बात कहने लगते हैं कि हाँ, ब्राह्राणों के पास मेरिट है और इस वजह से वे व्यवस्था पर काबिज हैं। ब्राह्राण हमारे लोगों के दिमाग में ऐसा प्रस्थापित करने में कामयाब हो गए कि वे जायज हैं। इसलिए हमलोग यह प्रचार करें कि उनका यह कब्जा नाजायज है, जायज नहीं है। लोकतंत्र में ये कब्जा जायज नहीं माना जा सकता है। ब्राह्राणों के लगातार प्रचार करने की वजह से वे हमारे लोगों के मन और मसितष्क पर ये छाप छोड़ना चाहते हैं, ये विचार हमारे लोगों के दिमाग में घुसाना चाहते हैं कि व्यवस्था पर उनका जो नियंत्रण है वो उनकी योग्यता की वजह से है और इसके लिए उन्होंने कोर्इ नाजायज तरीके का उपयोग नहीं किया है।
दूसरी बात, ब्राह्राण अपनी तुलना एस.सी., एस.टी, ओबीसी और मार्इनारिटी से करता है और खुद को कहता है कि वह बहुत लायक एवं मेरिटोरियस है। जब ब्राह्राण की तुलना अमेरिका या यूरोप से होती है तो क्या होता है? अमेरिका और यूरोप के लोग ब्राह्राणों को साबित करते हैं कि यह तो सिडयूल्ड कास्ट है। अमेरिका में जो भारतीय लोग हैं उनको एशियन कहते हैं। ब्राह्राणों को भी वे लोग एशियन कहते हैं। गांधीजी हमारे लोगों को हरिजन कहते थे और ऐशियन और हरिजन में कोर्इ अंतर नहीं है। अमेरिका में ब्राह्राण एशियन है और भारत में सिडयूल्ड कास्ट हरिजन है तो ऐशियन और हरिजन दोनाें बराबर हैं। इसका मतलब अमेरिका ब्राह्राणों को हरिजन कह रहा है। ब्राह्राण हमको हरिजन कहता है और अमेरिका ब्राह्राणों को हरिजन कहता है। अमेरिका के लोग ब्राह्राणों को अमेरिका का नागरिक होने के बावजूद भी हरिजन कहते हैं। ये बातें उदाहरण के लिए आपको तुलना करके बता रहा हूँ । सच मे ब्राह्मण के ब्रह्मंवाद का यही खात्मा है ……. ॥
All post is right.
आप सभी लोग मध्य प्रदेश भाजपा के राघव के “पिछाड़ी-२” काम क्रीड़ा की बातों पर भी कुछ गौर फरमाईये जनाब, जब संघ [आर एस एस] के कच्छा बनियान गिरोह के सदस्य अपनी -२ लड़कपन व जवानी गुजारने के बाद से भाजपा में खदेड़े जाते हैं तो “लव जेहाद” के मुद्दे पर कच्छा बनियान गिरोह के सदस्यों के संघ के ट्रेनिंग पीरियड यानी उनके लड़कपन व जवानी रहस्यों पर से भी पर्दा उठाना बेहद जरूरी है. कच्छा बनियान गिरोह[संघ यानी आर एस एस] में ट्रेनिंग के लिए जब ये शामिल कराये जाते हैं / किये जाते हैं तो इनको “शादी” के सूत्र बंधन के ऊपर पूर्णतया प्रतिबंध लगा होता है और जो सदस्य शादी शुदा होते हैं उन्हें बगैर पत्नी के अपने-२ लड़कपन व जवानी को संघ की ट्रेनिंग के समय काटना पड़ता है तो आखिर में उस दौरान कच्छा बनियान गिरोह के ये सभी सदस्य राघव जी के तर्ज पर एक दूसरे के साथ “पिछाड़ी-2” की काम क्रीड़ा करके “लव जेहाद” करते हैं फिर इन हिन्दुओं के क्या कहने अपने -२ लड़कियों को भी खुशी -२ गैर बाभन लोगों ईसाई/ दलित/ मियाँ/ पिछड़ों लोगों से शादी -विवाह -निकाह करके घर जंवाई भी बना लेते हैं फिर ये राघव काम क्रीड़ा गैंग्स “लव जेहाद-२” का बेसुरा राग निकाल रहा है. क्यूंकि यही है “हिंदुत्व”…….. ये तो बात लव की अब ब्राह्मणो की कर ली जाए सिर जी जब ये हारते हैं तो बहाने मे क्या करते हैं ” एक कहावत है इनके लिए ” लाजे बहुरिया कौआ न खाइली कमरी ले पिछवाड़े गाइली ”””
आज जो बात लेखक ने बताई ये शोध का विषय है । इसपर भी समाज चुप रहे तो घोर गुलामी की ही निशानी है ????
सर लग यही रहा हे की ये सब आपके विचार न होकर किन्ही बड़े बड़े दलित विद्वानो के विचार हे ?
म प्र शिवपुरी के एक जाटव परिवार के तुलाराम के विरुद्ध पुलिस द्वारा रिपोर्ट लिखी गयी है क्योकि उसने हिन्दू धर्म की कुरितिओ एव छुआ छूत से परेशान हो कर मुस्लिम धर्म अपना लिआ ,अब उसके परिवार के ९ अन्य सदस्य भी इसी कारण से मुस्लिम धर्म अपनाना चाहते है ,परन्तु जो हिन्दू समाज के ठेकेदारो को ये अच्छा नहीं लग रहा एवं वे सब जाटव परिवार के खिलाफ उठ खड़े हुए है , परेशान हो कर इस परिवार के द्वारा कलेक्टर राजीव दुबे को ज्ञापन दे कर धर्म परिवर्तन की आज्ञा मांगी है। हिन्दू सगठन द्वारा इसके खिलाफ कलक्ट्रोट में हंगामा खड़ा कर दिआ गया है , अब सवाल ये है की , हिन्दू वादी , या स्वर्ण समाज निचली जातिओ के खिलाफ रहता है , मंदिर प्रवेश वंचित है ,एक ही पानी के स्त्रोत का प्रयोग नहीं कर सकते ,शादी में दलित दूल्हा घोड़ी पे नहीं बैठ सकता ,स्वर्ण जाती के घर के सामने से निकलने पर जूते उतारना पड़ता है ,आदि ढेर सारा अपमान दलित बरसो से सेहन करते आ रहे है ,और यदि अब वे हिन्दू धर्म को अस्वीकार करते है और मुस्लिम धर्म अपनाते है तो भी हिन्दू संगठनो को आपत्ति है ? अगर हिन्दू समाज ने अपने आप को नहीं सुधारा और ८०% दलित, मुस्लिम धर्म अपनाले तब क्या होगा ?{दैनिक भास्कर 3-1-2014
जनाब हयात साहब जब आप भी इन तरह के घटनाओ से रूबरू होंगे तो यही आवाज़ आपकी सोच आपकी हो जाएगी ।
बेहतर होगा की जो आप लिख रहे हे वही सब कोई दलित लेखक लिखे तो ही अधिक बेहतर होगा आपके लिखने से साम्प्रदायिकता की भी झलक हो सकती हे और हमें किसी भी हालात में एक इंच भी साम्प्रदायिकता या हिन्दू मुस्लिम क्लेश नहीं चाहिए मेरे पास एक लेख रखा हुआ जनसत्ता का २४ दिसम्बर २०१२ का कमाल अहमद का ” अल्लापुर के मुसलमान ” जिसमे बिहार के एक मुस्लिम बहुल गाव में अशराफ मुसलमानो दुआरा दलित मुसलमानो पर जुलुम का जिक्र हे आप इन विषयो पर कलम चलाय फिलहाल यही बेहतर होगा
I am surprised , how a person can think so irrational to justify a statement given by ‘Invader’ more then 100 years back. We have 50% reservation in UPSC and still author want to prove the Brahamin are more than 90% in government jobs. Today, all most all the states, Chief minister are from backward class still the Brahmin are responsible for the backwardness of the society.
बिल्कुल ठीक कहा जनाब, juidiciary character तो सिर्फ उन लोगों मे होता है जो की कहते हैं की हमारा धर्म सबसे श्रेष्ठ है और इसे नही मानोगे तो हमेशा के लिये दोज़ख की आग मे जलोगे. अगर हमारे से धर्म की बातों के बारे मे कोई बहस की या निन्दा की तो सीधा सर कलम हो जायेगा. अभी कल तक आप सोनिया गाँधी के कसीदे पढ रहे थे, ध्यान रहे सोनिया गाँधी को माई बाप कांग्रेस ने ही बनाया है जो की हिन्दुस्तान मे पिछले 66 मे से 56 साल सत्ता मे रही है, आर एस एस नही! हिन्दुस्तान का सारा कानून ब्रिटेन पर बेस्ड है और सारा का सारा काम अंग्रेज़ी मे ही होता है. ये अंग्रेज़ वोही थे जो की दूसरे देशों को जाकर लूट खसूट करते रहे हैं और दूसरों को juidiciary का पाठ पढ़ा रहे हैं. वैसे ऐसे भी लोग हैं जो की सिर्फ तलवार के जोर पर ही दूसरों से बातें करते हैं और खुद को शान्ती का पुजारी बताते हैं. सीरिया, इराक़, पाकिस्तान इसके अच्छे उदाहरण हैं. वैसे ये तब ही होता है जब की ये लोग बहुसंख्यक हों अन्यथा ये फिर न्याय और शान्ती की बातें करने लग जाते हैं.
में खुद ब्राह्मण परिवार से हूँ, इस्लाम का गहन अध्ययन कर चुका हूँ. इस्लाम का आलोचक हूँ, लेकिन यह भी मानता हूँ की वेदिक धर्म, इस्लाम जितना ही या कहे उससे भी अधिक असहिष्णु रहा है. इस्लाम जहां अपने पैगंबर और उनके सिद्धांतो के प्रति असहिष्णु रवैया रखता है, वैसा हिन्दू धर्म मे नही है. लेकिन सामाजिक व्यवस्था के प्रति असहिणु है, और बहुलतावाद नज़र नही आता. आज भी ये नज़र आता है. आज भले ही हिन्दू धर्म के लोग अपने को सहिष्णु होने का दावा करे, लेकिन हजारो सालो तक विषमता मूलक और क्रूर सामाजिक व्यवस्था हमारे वेदो और स्मृतियो मे दर्ज़ है. आज भी हम हमारे रीति रिवाजो के लिये इन ग्रंथो का सहारा लेते हैं. नतीजा जाहिर है. वैज्ञानिक लेखो मे हिन्दुओं का प्रतिशत मुस्लिमो से कुछ ही बेहतर है, जबकि जनसंख्या कुछ कम, जबकि स्पेन जैसे देशो का योगदान पूरे ओ आई सी मुल्को और भारत से अधिक है. हमारे देश मे बुद्धिज्म इसी वजह से नही फैला, और इस्लाम ने इसी वजह से जगह बनाई. जहां जहाँ बुद्दिज्म गया, गुणवत्ता वाली शिक्षा गयी. नागार्जुन, आर्यभट्ट, वराहमीर जैसे लोग उसी दौर की दें है, उस समय बुद्ध के विचारो का प्रभाव था. ये क्रिटिकल थिंकिंग अरब मे भी गयी, और वहां भी वैज्ञानिक हुये. लेकिन दुर्भाग्यवश हिन्दुत्व प्रेमी, इसका श्रेय वेदो को, और मुस्लिम लोग इस्लाम को देते हैं. जबकि इसका कोई प्रमाण नही है की वो अरब वैज्ञानिक मुस्लिम थे. अपने धार्मिक सिद्धांतो के भीतर आलोचनात्मक रूप से देखिये, दूसरे पे अंगुली उठना आसन है. हिन्दू धर्म मे काली, नर मुंडो का हार गले मे पहनाती है, इससे अधिक वहशी हरकत क्या हो सकती है? आज भी महिसासुर के वंशज दुर्गा पूजा पे घर मे शोक मनाते है
म प्र शिवपुरी के एक जाटव परिवार के तुलाराम के विरुद्ध पुलिस द्वारा रिपोर्ट लिखी गयी है क्योकि उसने हिन्दू धर्म की कुरितिओ एव छुआ छूत से परेशान हो कर मुस्लिम धर्म अपना लिआ ,अब उसके परिवार के ९ अन्य सदस्य भी इसी कारण से मुस्लिम धर्म अपनाना चाहते है ,परन्तु जो हिन्दू समाज के ठेकेदारो को ये अच्छा नहीं लग रहा एवं वे सब जाटव परिवार के खिलाफ उठ खड़े हुए है , परेशान हो कर इस परिवार के द्वारा कलेक्टर राजीव दुबे को ज्ञापन दे कर धर्म परिवर्तन की आज्ञा मांगी है। हिन्दू सगठन द्वारा इसके खिलाफ कलक्ट्रोट में हंगामा खड़ा कर दिआ गया है , अब सवाल ये है की , हिन्दू वादी , या स्वर्ण समाज निचली जातिओ के खिलाफ रहता है , मंदिर प्रवेश वंचित है ,एक ही पानी के स्त्रोत का प्रयोग नहीं कर सकते ,शादी में दलित दूल्हा घोड़ी पे नहीं बैठ सकता ,स्वर्ण जाती के घर के सामने से निकलने पर जूते उतारना पड़ता है ,आदि ढेर सारा अपमान दलित बरसो से सेहन करते आ रहे है ,और यदि अब वे हिन्दू धर्म को अस्वीकार करते है और मुस्लिम धर्म अपनाते है तो भी हिन्दू संगठनो को आपत्ति है ? अगर हिन्दू समाज ने अपने आप को नहीं सुधारा और ८०% दलित, मुस्लिम धर्म अपनाले तब क्या होगा ?{दैनिक भास्कर ३. ९ १४ }
saahi kaha aaapne sachin sir
wastav agar brahman sarv hitay ki sonch rakhe na tabhi vikas hoga jiski mujhe aasar nazar nahi aate
सर जी भारत के मुस्लिम दलित ही हैं । आप दलित नहीं हैं ये विचार अगर पाल लिए हैं तो हटा दीजिये । भारत के मुस्लिम इसी गलतफहमी को पाले हैं जिसकी वजह से उनका ये हाल हुआ है !!!
आप तो ऐसे ना थे| बेवकूफी की भी हद होती है| अगर ब्रहंमन इस देश पर शाशन कर रहे होते तो क्या आरक्षण का जिन्न कभी बोतल से बाहर आता? क्या हरिजन एक्ट जैसा कोई एक्ट बन पाता? क्या मुसलमानों के हज का कोटा बढ़ता? देश पर तो राज अभी तक बहरूपियों ने किया है| ब्रहंमन अगर अक्लमंद नही है तो भी मुसलमानों से तो बेहतर है क्योंकि वह किसी की बहन बेटी को गलत नजर से नही देखता और ना ही किसी को धर्म परिवर्तन के लिये मजबूर करता है और ना ही तुम्हारी तरह जिहाद नाम की गंदी विचारधारा से प्रेरित होकर मासूओमों का कत्ल करता है| आजकल इस्लाम पर लिखने को कुछ नही मिल रहा होगा ना बेटा, इसलिये तुम्हे . के कपड़े फटे दिखी दे रहे है| अपने धर्म की शान्तिप्रियता के बारे में ही लिखो जनाब|
क्या खूब लिखा है अपने ब्राम्हण मे क्या खूबी है , ए तो आप तब जान जायेंगे जब यही टिप्पणी किसी दूसरे जाती विशेष पर करके देखे फिर आपको फर्क समझ मे आ जायेगा
60 सालों से गाँधी परिवार राज़ कर रहा है देश पे…आपकी नज़र में वो पण्डित हैं या मुस्लिम??? कृपया जवाब दे??
गोरे अंग्रेज़ चले गए उरेशियन अंग्रेज़ आज भी हुकूमत मे हैं ।
लेख में ब्राह्मणों पर प्रोपेगैण्डा करने का आरोप लगाया गया है। लेकिन मजेदार बात यह है कि पूरा लेख ही प्रोपेगैण्डा शैली में लिखा गया है। RSS भारत को १९२५ से मैनेज कर रहा है। ये एक नया तथ्य है, RSS भी नहीं जानता होगा। किंतु लेखक जानता है। अंग्रेज न्यायालयों द्वारा भारतीयों को वाकई न्याय देना चाहते थे और क्योंकि ब्राह्मणों का चरित्र न्यायवादी नहीं हुआ करता है, इसलिए प्रिवी काउंसिल का अध्यक्ष पद ब्राह्मणों को देने की मनाही थी। इसके लिए लेखक मनोवैज्ञानिक और मानव विज्ञानी की मानद उपाधि हथियाने की योग्यता रखता है। आगे, शंकराचार्य भारत की जनता को मैनेज कर रहे हैं इस गूढ़ रहस्य का उद्घाटन कर लेखक खोजी पत्रकारिता के आयामों को पराकाष्ठा पर खड़ा कर देता है। मुझे इसका लेखक कोई आम लेखक नहीं लगता। ये जरूर किसी “आसमानी आदमी” ने लिखी है।
1925 से आज तक आरएसएस का हिड्डेन अजेंडा ही तो रहा । 10 करोड़ मेम्बर और प्रचारक ब्राह्मण सेवा के लिए ही तो लगे हैं ना इनको भारत से नहीं 85% जनता पर हुकूमत से मतलब है ।
अफ़ज़ल साहब यह जो कुछ भी आप लेख मे बता रहे है कम से कम हम कायस्थो के लिये तो नया बिल्कुल नही है भारत मे किसी का भी शासन रहा हो फिर चाहे सम्राट हो या बादशाह कायस्थो के प्रशासनिक कोशल के बिना नही चल पाया क्योंकि ज़ुदीशीअस करॅक्टर हममे वंशानुगत है
अमित जी मनुस्मिरीति मे किस पन्ने पर आप कायस्थ का जीकर है । ये अलह बात है की दही जब खूब मथी जाएगी तो क्रीम ही निकलेगा ना ।
बड़ा आसन है किसी को भी रिलिजन से जोड़ के देखना आप इंसान को इंसान की नजर से देखिये आपके सारे गीले शिकवे दूर हो जायेंगे..इन बातों को उठाने से आप अपनी ही कौम की नजरों में गिर सकते हैं…लगता है आपकी तालीम बहोत ज्यादा अधूरी है..और अगर आपकी यही सोच रही तो आप एक दिन आपनी ही नजरों में खुद को गिरा हुआ पायेंगे……आप केजरीवाल जी से जुड़ जाईये …आप अच्छे नेता बन सकते हैं…
जयन्ती एक क्रांतिकारी संत की थी। ऐसे संत की जिसने कहा- खुद सोचो। सत्य के अनेक कोंण होते हैं। हर बात में ‘शायद’ का ध्यान जरूर रखना चाहिए। महावीर और बुद्ध ऐसे संत हुए, जिन्होने कहा- सोचो। शंका करो। प्रश्न करो। तब सत्य को पहचानो। जरूरी नहीं कि वही शाश्वत सत्य है, जो कभी किसी ने लिख दिया था। ये संत वैज्ञानिक दृष्टि संपन्न थे। और जब तक इन संतों के विचारों का प्रभाव रहा तब तक विज्ञान की उन्नति भारत में हुई। भौतिक और रासायनिक विज्ञान की शोध हुई। चिकित्सा विज्ञान की शोध हुई। नागार्जुन हुए, बाणभट्ट हुए। इसके बाद लगभग डेढ़ शताब्दी में भारत के बड़े से बड़े दिमाग ने यही काम किया कि सोचते रहे- ईश्वर एक हैं या दो हैं, या अनेक हैं। हैं तो सूक्ष्म हैं या स्थूल। आत्मा क्या है, परमात्मा क्या है। इसके साथ ही केवल काव्य रचना। विज्ञान नदारद। गल्ला कम तौलेंगे, मगर द्वैतवाद, अद्वैतवाद, विशिष्टाद्वैतवाद, मुक्ति और पुनर्जन्म के बारे में बड़े परेशान रहेंगे। कपड़ा कम नापेंगे, दाम ज्यादा लेंगे, पर पंच आभूषण के बारे में बड़े जाग्रत रहेंगे। झूठे आध्यात्म ने इस देश को दुनिया में तारीफ दिलवायी, पर मनुष्य को मारा और हर डाला हरि शंकर परसाई
अपनी नाकामी का ठीकरा मुग़लो और अंग्रेजो की ग़ुलामी को ना दे. मुग़लो से पहले भी हमारा देश ग़ुलाम था. जिन शुद्रो को अछूत माना जाता था, जिनके पास कोई जमीन नही, शिक्षा का शिकार नही, वो पृथ्वीराज और प्रताप के दौर मे भी ग़ुलाम ही थे. आप इस्लाम की आलोचना करते हैं, पूरी तरह सहमत, लेकिन वेदो और स्मृतियो के बचाव की दलील कमजोर है. इस्लाम मे क़ुरान और मुहमम्द आदर्श है, इसलिये उसमे सुधार नही हो सकता, इसलिये उसे तर्क के आधार पे समाप्त करना है, लेकिन वेद और स्मृतियाँ दूध के धुले नही है. राम और काली अमानवीय अपराधो मे लिप्त रहे हैं, लेकिन आज प्रसंगिक नही है. लें वेदो पे आधारित वर्ण व्यवस्था के शिकार आज भी हम हजारो साल बाद है.
85% मूलनिवासी बहुजन पिछड़ी जातियों (OBC SC ST) को केवल सरकारी छेत्र में मात्र 50% आरक्षण ही मिलता है ,पर विदेशी हरामखोर बाभनो को यह भी बर्दास्त नहीं हो रहा है ,इसलिए हरामखोरो ने सारी सरकारी कंपनियों का ”निजीकरण” (PRIVATISATION) कर डाला है ,ताकि न रहे बॉस न बजे बासुरी ,मतलब न रहेगी सरकारी नौकरी और न होगा आरक्षण !!
FDI भी आरक्षण ख़त्म करने का ही एक तरिका है !!भाई जी अंसारी साहब आप जितना लिखब न इ सब ब्राह्मण लोग के कोई फरक न पदेवला बा
ब्राह्मणों की जो व्यवस्था है उस व्यवस्था को मूलनिवासियों पर थोपने का जो कार्यक्रम है उस कार्यक्रम को मै ब्राह्मणीकरण मानता हूं । क्योंकि ब्राह्मण का जो धर्म है, ब्राह्मण कहते हैं कि वह धर्म है किन्तू हम कहते हैं कि वो एक षड्यंत्र है। ब्राह्मणों ने समाज नहीं बल्कि मूलनिवासियों को विभाजित करने का षड्यंत्र है। वे वर्ण व्यवस्था बनाकर हमें विभाजीत करते हैं फिर वर्ण व्यवस्था का विखंडन होकर जाति व्यवस्था बनती है। समाज चार टुकड़ों में विभाजित होने की बजाय चार हजार टुकड़ों में विभाजित हो जाता है और हमारे जितने टुकड़े होते है उतनी ही प्रभावशाली ढ़ंग से प्रतिकार करने की हमारी जो क्षमता है, वह कमजोर होती है। दुश्मन हमें गुलाम बनाना चाहता है, दबाना चाहता है। दुनिया में प्रत्येक क्रिया की प्रतिक्रिया होती है। यह एक वैज्ञानिक नियम है मगर शासक जाति के लोगों ने योजना बनायी कि हम क्रिया तो करेंगे किन्तू लोगों को प्रतिक्रिया करने लायक नहीं छोड़ेंगे। इसलिए उन्होंने हमें हजारों जाति के टुकड़ों में विभाजित कर, जाति की उपजातियां बनाकर हमें प्रतिकारविहीन बना दिया। जब उपजाति बनाकर प्रतिकार विहीन बनाया जाता है तब कोई भी समूह अपने उपर थोपी जा रही गुलामी का प्रतिकार करनेलायक नहीं रहता। तब थोपी गई गुलामी मानने के अलावा उसके पास दूसरा कोई भी विकल्प शेष नहीं रहता। अंसारी सर जी शत शत नमन ॥ ऐसा लेख आपने दिया । एक सेवक बामसेफ
विवेक के नाम पर पूर्वागृह का प्रयोग होता है।एक रिटायर जज ने कहा “मैं डिक्टेटर होता तो गीता, महाभारत को अनिवार्य कर देता” सोचो न्यायधीश की कुंठा ! क्या नहीं किया होगा ।
हमारे देश में जिस आतंकवाद का, दहशतवाद का प्रचार किया जाता है वह दहशतवाद या आतंकवाद न होकर वह धार्मिक धृवीकरण के के मद्देनजर कार्यक्रम का एक हिस्सा है। मुस्लिम आतंकवाद एवं मुस्लिम विरोध का जितना ज्यादा प्रचार होगा उतना ज्यादा उस प्रचार का धार्मिक धृवीकरण करने के लिए इस्तेमाल किया जाया है। सर मैं एक बात कहने की हिमाकत कर रही हूँ कि भारत मेन हिन्दू मुस्लिम का कोई मुद्दा है ही नहीं !!! असल मुद्दा तो ब्राह्मण और मूलनिवासी ( दलित , हरिजन , एसटीएससी obc ) कि है । मुसलमान आज इन दलितों पर हो रहे अत्याचार को अनदेखा कर दे हिन्दू – मुसलमान कि समस्या समाप्त हो जाएगी ॥ यही बात हो नहीं सकती अब ब्राह्मणो कि मजबूरी है कि तब मुस्लिम मुस्लिम चिल्ला कर दुर्विकरण करके नफरत फैलाने का काम करते हैं बीजेपी और इसकी उग्रवादी संगठन अपनेको स्थापित करने के लिए उरेशियन कार्ड खेल रहे हैं ॥ थैंक्स सर ऐसे गहन लेख के लिए ॥
आपने एक मजेदार जुमला लिखा है – “जैसे कुछ बन्दर कहते हैं कि मेरी सबसे ज्यादा लाल है। कुछ बन्दरों की लाल होती है, तो वे कहते हैं कि मेरी लाल है तेरी लाल नहीं हैं।” इस ब्लॉग में तो आपकी ही सबसे लाल दिख रही है.
गंभीर बीमारी का इलाज अगर कड़वी दवा है तो पीना ही पड़ेगा । चाहे प्यार से चाहे थूथून दबा के !!!!!!!!!!!
वैसे एक बात है जब कोई सही या तथ्य का जवाब न सूझे तो कुछ भी उलजुलूल कमेंट कर दो है ना !!!!!!!!!!!!!!
वाह बहुत ही ग़ज़ब का लेख ॥ धन्यवाद सर