इंटरनेट पर एक फोरम में एक युवा ने पूछा कि वह यह जानना चाहता है कि कन्नड भाषा में “आई लव यू” को क्या कहते हैं? दरअसल उसकी प्रेमिका बंगलूरू की है। वह उससे कन्नड़ में “आई लव यू” कहना चाहता था। फोरम में जवाब देने के बजाय ज्यादातर लोगों ने सवाल कर डाला कि तुम “आई लव यू” ही क्यों नहीं कह देते? यह ज्यादा आसान है। क्यों कन्नड़ के चक्कर में पड़ते हो? प्रश्नकर्ता युवा ने कहा कि बात सरलता की नहीं है। कन्नड़ चूंकि उसकी प्रेमिका की मातृ भाषा है, इसलिए वह उसे उसकी मातृ भाषा में “आई लव यू” कहकर उसका दिल पूरी तरह जीतना चाहता है। अंग्रेजी का “आई लव यू” तो वह उससे रोज कहता ही है।
ग्लोबलाइजेशन के इस दौर में बेशक युवाओं के पास अपने दिल की भावना का इजहार करने के लिए “आई लव यू” के रूप में बहुत ही सरल साधन मौजूद है, लेकिन वास्तव में यदि यही बात सुनने वाले की मातृ भाषा में कही जाए तो संभवतः प्रेम का संदेश कुछ ज्यादा गहराई से महसूस किया जाएगा। वैसे भी आजकल कॅरियर बनाने के लिए युवा देश और विदेश में परवाज भर रहे हैं। अलग-अलग भाषाएं बोलने वाले उनके मित्र या प्रेमी-प्रेमिका बन रहे हैं। कोई यदि दूसरी भाषा बोलने वाले व्यक्ति को प्रेमी या प्रेमिका बना रहा है या बना रही है तो कई बार भाषा की मुश्किल बाधा की तरह बीच में आ जाती है। तब प्रेमी या प्रेमिका की भाषा सीखनी अनिवार्य हो जाती है।
दोनों के हिन्दी या अंग्रेजी जानने की स्थिति में जरूर यह अनिवार्य नहीं है कि प्रेमी या प्रेमिका की मातृ भाषा भी सीखी जाए, लेकिन ऐसी स्थिति में भी उसकी भाषा की थोड़ी बहुत जानकारी हो तो वह प्रेम को बढ़ाने में काम ही आएगी। इस जानकारी में भी “आई लव यू” कहना तो सबसे पहले आना चाहिए। किशोर कुमार और लता मंगेशकर के गाने “अंग्रेजी में कहते हैं आई लव यू” से भी तीन-चार भाषाओं का आई लव यू सीखा जा सकता है, लेकिन सभी प्रमुख भाषाओं के आई लव यू के लिए थोड़ी मेहनत करनी पड़ेगी। तो आइए, यहां हम बताते हैं कि “आई लव यू” प्रमुख भारतीय और विदेशी भाषाओं में किस तरह कहा जाता है।
मराठी : मी तुला प्रेम करतो ¼mī tulā prēma karatō½
पंजाबी : मैं तैनू प्यार करदां, मैं तैनू प्यार करदीं
¼ ‘Mai tainu pyar karda (aan)’ ‘Mai tainu pyar kardi (aan).½
तेलुगु : नेनू निन्नू प्रेमइस्तुन्नानु ¼ nenu ninnu premistunnanu½
तमिल : नान उन्नई कधालिकिरैन ( यह लिखने में ज्यादा इस्तेमाल होता है। बोलने में ज्यादातर लोग “ना उन्नई लव पनरैइं” बोलते हैं।)
¼ naan unnai kadhalikirain½ ¼ naa unnai love panraein ½
मलयालम : निजां निन्ने प्रेमइक्कुन्नू ¼ Njan ninne premikkunnu ½
उड़िया : मू तुमाकू भाला पाइ ¼ mu tumaku bhala pae ½
गुजराती : हूं तने प्रेम करू छूं
¼huun tane prem karuu chuun OR Hu Tane Pyaar Karu chu.½
बंगाली : अमी तोमाय भालो बासी (“अमी तुमाके भालोबाशी” भी प्रयोग होता है।)
¼ Ami Tomay Bhalobasi or Ami tumake bhalobashi ½
कन्नड़ : नानू निन्नान्नू प्रीतइसतिरुवे ¼ Naanu ninnannu pretistiruve ½
हरियाणवी : मा तन्ना प्यार करूं हूं ¼ ma tanna pyaar karun hun)
राजस्थानी : मैं तन्ने प्यार करूं छूं ¼ main tanne pyaar karoon choon½
गढ़वाली : मैं त्वाइसी प्यार करदूं ¼ main twaisi pyar kardon½
हिमाचली : मे तुकी प्यार करना ¼ meh tuki pyaar karma½
असमी : मोइ तुमाक भाल पाउ ¼ Moi tumak bhal pau½
भोजपुरी : हमके तोहसे लगाव हो गइलबा (“हम तोसे प्यार करीला” भी इस्तेमाल होता है)
¼ hamke tohse lagav hogailbaa½ ¼hum those pyar karila ½
अवधी : हम तोहका मायाइत हे ¼hum tohka mayaait he½
नेपाली : मा तपैलाई माया गारचू ¼ Ma tapailai maya garchu½
चीनी : वोह अई नी ¼ wǒ ài nǐ½
फ्रेंच: जे तैमी ¼ Je t’aime½
रशियन : या लाइअबल्यू ताईबाइआ ¼ ya lyublyu tyebya ½
जर्मन : इच लिएबे डिच ¼ Ich liebe dich½
जापानी : अईशाइट इमासू ¼ aishite imasu ½
(खास बात यह है कि जापान में युगल “आई लव यू” यानी अईशाइट इमासू बहुत कम बोलते हैं। वहां का चलन है कि प्यार को कहकर नहीं भावनाओं से या व्यवहार से व्यक्त किया जाए।)
कोरियन : सारांघेइ (“सारांघेइयो” का भी इस्तेमाल होता है)।
saranghae or saranghaeyo
स्पेनिश : ते अमो ( “ते क्यूइरो” का भी इस्तेमाल होता है।) ¼ Te Amo or Te Quiero½
bakwaasw 2 kaudi ka article wats aap say copy kar ke paste kar ke apna naam likhwana band karo bahi loog
afzal ji phir say kaho ga landarni band karo miya kuch accha nai likh shaktey tou band kar do khabarkikhabar
jo maan karta hai likh detey ho kisska koi matlab nai sar pair nai .
Gujrti.me.khte.h.premkru.chhu.
Bngali.me.amitmake.ballo.basi.
Pnjabime.o.tebinmrjana
मेरी गलफ़रेंद को नाम सुमन है मुझे i love you कैसे बोलू
Bangla bhasha me-
(Ami tamo ko bhalo bas
ok
संधया नवोदिता की ये लाइने मंत्रमुग्द कर देने वाली हे बार बार पढ़ने को जी चाहता हे—————————- ” Ila Joshiजिसे प्रेम मिलता है वह इस बात को समझ ही नहीं पाता कि सामने वाला उसको कितना प्रेम करता है। वह अपनी ही धुंध और नशे में होता है। वह समझता है यह मेरी खासियत है जिससे मुझे प्रेम मिल रहा है। पर वह सिर्फ उसकी ही खासियत नहीं होती। प्रेम करने वाले की खासियत होती है ।प्रेम करना काबिलियत है। विश्वास देना गुण है। प्रेम ग्रहण करना भी काबिलियत है। जो मिल रहा है उसे श्रद्धा से, आदर से सिर झुका के ग्रहण करना चाहिए तभी वह आपको अपनी पूर्णता में मिलता है। जो डूबना नहीं जानता वह प्रेम की इस अगाध और अबाध वर्षा से भी सूखा निकल आता है।Sandhya Navodita ने ये जो लिख दिया है न ये हम सबके हिस्से का सच है—–Sandhya नवोदिता ”
Sanjay ShramanjotheYesterday at 10:54 · … कोई भी सफल स्त्री चाहकर भी कमजोर, गुमनाम और गरीब आदमी को प्रेम नहीं कर सकती चाहे वो कितना ही अच्छा प्रेमी क्यों ना हो, और कर भी ले तो उससे शादी नहीं कर सकती. यह निजी जीवन में प्रेम के चुनाव के सन्दर्भ में स्त्री की गुलामी का एक अनदेखा पहलू है…
पैसा प्रेम और सफल स्त्री – इन तीनों का रिश्ता बहुत रहस्यमयी है और बहुत निराश करने वाला है. हाल ही में रानी मुखर्जी ने एक सुपर-रिच से विवाह करके प्रेम और पैसे/ सुरक्षा के बीच चुनाव के बारे में अपनी राय जाहिर कर दी. यही अन्य तारिकाये भी करती आयीं हैं.
हालाँकि यहाँ कोई दावे से नहीं कह सकता कि ये विवाह प्रेम से प्रेरित है या असुरक्षा से, हो सकता है उनके बीच सच में ही प्रेम रहा हो. लेकिन फिल्मों में प्रेम के लिए कुछ भी निछावर कर जाना एक बात है और असल जिन्दगी में उस कुछ भी और प्रेम के साथ संतुलन बनाना बहुत दूसरी बात है.
पूरा समाज जो धन और प्रतिष्ठा से सम्मोहित है, उस सम्मोहन की मार सबसे ज्यादा स्त्री के जीवन में प्रेम की संभावना पर ही पड़ती है. कोई भी सफल स्त्री चाहकर भी कमजोर, गुमनाम और गरीब आदमी को प्रेम नहीं कर सकती चाहे वो कितना ही अच्छा प्रेमी क्यों ना हो, और कर भी ले तो उससे शादी नहीं कर सकती.
यह निजी जीवन में प्रेम के चुनाव के सन्दर्भ में स्त्री की गुलामी का एक अनदेखा पहलू है. कोई नारीवादी इसकी बात नहीं करता. कोई स्त्री जितनी मजबूत नज़र आती है वो प्रेम के मामले में उतनी ही बदनसीब साबित होती है. बालीवुड की तारिकाओं की शुरूआती मजबूती और बाद में उनकी मजबूरी देखकर डर लगता है.
उनका पूरा चमत्कार उनके शरीर और सौंदर्य पर टिका होता है, यह उन्हें किसी एक दिशा में एक ढंग से मजबूत बनाता है लेकिन बाकी सब दिशाओं में वे भयानक रूप से मजबूर और असुरक्षित हो जाती हैं, हर उद्योगपति, नेता, गुंडा और सारे प्रशंसक उसे नोच डालना चाहते हैं.
अभी चुनाव प्रचार में नगमा की हालत देखकर इसका अंदाज़ा होता है. इस असुरक्षा को तोड़ने के लिए उन्हें अक्सर ही प्रेम की बलि चढ़ानी होती है और प्रेम हीन लौह दुर्गों में शरण लेनी होती है.
प्रेम इत्यादि जिन चीजों का प्रदर्शन करके वे अपना करियर बनाती हैं, उन्ही की बलि चढ़ाकर उन्हें अपना परिवार बसाना होता है. और जो स्त्रियाँ/तारिकायों अंत तक इसके खिलाफ विद्रोह करती हैं उनका अंत शराब, आत्महत्या या अकेलेपन में होता है…
क्या यह भी नारी के शोषण और दमन का ही एक अनछुआ अध्याय नहीं है ?
(एक पुरानी पोस्ट)
Pinky Sarahiya
16 hrs ·
हम बराबरी की चाह वाली लड़कियां,चाहती हैं खुद से बेहतर लड़का.बड़ा हमसे अक्ल में,उम्र में,ताकत में,पैसे में और फिर चाहती है बराबरी!संभव नही
Pinky Sarahiya
17 hrs ·
हम आजकल की लड़कियां,मझधार में झूलती लड़कियां,बराबरी की चाह वाली लड़कियां.हमको सीखना होगा,हमसे कमतर(प्रचलित लिहाज़ में)लड़को से प्यार करना.क्योंकि पुरुष रह पाया है अब तक खुश,क्योंकि किया है उसने,अब तक अपने से कमतर लड़की से प्यार.सो बराबरी की चाह वाली लड़कियों,सब तुम्हे भी नही मिल सकता.अगर चाहती हो कि मिले पुरुषो जैसी बराबरी,तो करना होगा तुम्हे भी,पुरुषो जैसा प्यार,अपने से कमतर लड़के से प्यार.दोनों हाथों में लड्डू तुम्हारे भी नही हो सकते.ये नही हो सकता है तुम्हें बराबरी भी मिलें और चले आ रहे रीतिरिवाजों के हिसाब से खुद से बेहतर लड़का भी.बदलना तो होगी ही अपनी कंडीशनिंग.वरना मारी जाएंगी हम लड़कियां.संक्रमण काल है ये.
पिंकी सराहिया
#संक्रमणकाल
Pinky Sarahiya
17 May at 15:52 ·
बहुसंख्यक दलित अभी भी हीनता बोध से भरे हुए है इसलिए इस हीनता बोध से निकलने का जब भी कोई तरीका सामने आता है,दलित तुरंत अपनी आइडेंटिटी छोड़कर,जिसको उच्च समझता है,उसकी आइडेंटिटी अपना लेना चाहता है.इसलिए सवर्ण बच्चा चाहे वह “लडक़ी”ही क्यों ना हो,उसके सामने दलित”लड़का” तक समर्पण कर देता है.वह दलित लड़का उस सवर्ण संस्कृति,जिसका वह अभी तक आधा अधूरा आचरण कर रहा था और जो भारत मे शासकों की संस्कृति है,उसे यह मौका अपनी हीनता बोध से मुक्ति का एक बड़ा मौका लगता है जिसे वह लपक लेना चाहता है.यानि हमारे बच्चे,जिस परिवार में पले बढ़े,उस परिवार के प्रति तक उनकी निष्ठा या तो खत्म या कम हो जाती है.यही हीनता बोध से भरे बच्चे जब अलग अलग कार्यक्षेत्रों में जाते हैं तो अपना यह हीनता बोध वहां भी साथ लेकर ही चलते हैं.दलित नेता भी यही हीनता लेकर चलता है,आखिर वह कही अलग से तो नही आता,इसी समाज का हिस्सा वह भी है तो जब यह दलित नेता किसी सवर्ण पार्टी में जाता है तो उसकी निष्ठा समाज के प्रति बचेगी, ऐसा सोचना दिवास्वप्न ही है.अब मामला उलट कर देखिये.सवर्ण चाहे दलितों से दोस्ती करे या शादी,वह अपना धर्म संस्कृति नही छोड़ते.अब इसी सवर्ण समाज से सवर्णो के नेता भी निकलते है,तो वह सवर्ण नेता अब चाहे दलितों की पार्टी में भी क्यों ना चला जाये,वह अपना धर्म,संस्कृति और सवर्ण समाज के प्रति निष्ठा नही छोड़ता.तो निष्कर्ष यह है कि चूंकि दलितों की स्वयं की कोई पहचान नही है,वे सवर्ण की संस्कृति धर्म का फॉलो करते है,जिसमे वह निम्न दर्जे पर आते है,तो यह समस्या इसलिए है.तो इससे बचने का तरीका क्या होगा?तरीका यह है कि दलितों को अब अपनी संस्कृति,अपना धर्म फिर से पुनर्जीवित करना होगा,वह संस्कृति जो इस सनातनी संस्कृति से ज्यादा सभ्य और ज्यादा विकसित थी,उसे स्वयं को और आने वाली पीढ़ी को सिखाना होगा,तभी आप परिवार और समाज के प्रति निष्ठावान लोग पैदा कर पाएंगे.बिना यह सांस्कृतिक परिवर्तन किये राजनीतिक सत्ता भी आप से दूर ही रहेगी औऱ कहीं एकाध बार सरकार बनाने का मौका मिल भी गया तो उस सत्ता के जाते ही उसी दीन हीन स्थिति में लौट जाना ही दलित समाज की नियति होगी.इसलिए अपनी जड़ों की ओर लौटों.
डॉ.पिंकी सराहिया
#जडोंकीओरलौटो
Sushobhit Singh Saktawat
Yesterday at 18:04 ·
प्रेम करते हुए इस बात की सम्भावना ही अधिक है कि हम गहरा ज़ख़्म खा बैठें।
जैसे, पुराने ज़मानों में, किसी को मार गिराने का सबसे अच्छा वक़्त वह माना जाता था, जब वह प्रार्थना में झुका होता था।
जो प्रार्थना में माथा नवाता, उसे पता होता कि ईश्वर के समक्ष वो जिरह-बख़्तर पहनकर नहीं जा सकता है।
और जिसके मन में हत्या का मनसूबा होता, उसे भलीभांति मालूम होता कि प्रार्थना करने वाला निहत्था है।
कि उसकी प्रार्थना की त्वरा ने उसे वेध्य बना दिया है।
कोई दूर से इस दृश्य को देखे तो वो यह भी समझ सकता है कि दुआ करने वाले ने घुटनों के बल झुककर अपनी जान राज़ी-ख़ुशी हत्यारे को सौंप दी है।
प्रेम में ठीक यही दृश्य उपस्थित होता है किंतु संदर्भ उलट जाते हैं।
प्रेम में जिसके हाथ में ख़ंज़र होता है, ज़रूरी नहीं कि उसे मालूम ही हो कि इससे गहरी काट का घाव भी हो सकता है।
और प्रेम में जिसे घाव खाना है, वह यह जानने के बावजूद अपनी जान को दांव पर लगाता है कि वो अब पूरी तरह से निष्कवच है।
जैसे कि प्यार में चोट खाने से कोई बड़ी बरकत मिलती हो।
प्यार घाव से नहीं डरता।
प्यार तो उल्टे इस बात से डरता है कि कहीं ऐसा ना हो, घाव देने वाला एक दिन अपनी इन मेहरबानियों से महरूम हो जाए।
प्यार घाव से नहीं डरता, प्यार केवल भुला दिए जाने से डरता है।
प्यार केवल उस अंगूठी से डरता है, जो राजा दुष्यंत से खो गई थी!
सुशोभित
Aadila Attar
2 hrs ·
क्या प्रेम में मरना वाकई इतना आसान होता है?
कल बिहार में एक IG की डॉक्टर लड़की ने आत्महत्या कर लिया है बताया जा रहा है उसकी शादी उसके मर्जी के खिलाफ हो रही थी ,इसमें कोई दो राय नही आज भी हमारे समाज मे लगभग 98% शादियाँ लड़की के मर्जी के खिलाफ होती होंगी,हमारा समाज लड़की की मर्जी पूछना कभी जरूरी नही समझता ।
अब एक सवाल ये हर कोई उठाता है कि प्रेमी का प्यार माँ बाप के प्यार पर इतना भारी कैसे पड़ जाता है ?
जो इंसान इतना सुदबुध खो देता है कि अपनी जान तक लेता है , ये खुद को नुकसान पहुंचाने की बात अपरिपक्व मानसिक स्थिति में ज्यादा होती है जैसे 10वीं 12वीं तक के बच्चे पहले प्यार में भाग जाया करते थे ,अब ये संख्या कम हुई है लेकिन कभी कभी परिपक्व इंसान भी ऐसे कदम उठाने से नही चुकता ,दरसल माँ बाप का प्यार और प्रेमी के प्यार की तुलना करना ही एक बकवास है ।
उस क्षण जहां माँ बाप के प्यार में सिर्फ भावनात्मक लगाव होता है वही प्रेमी के प्रेम में भावनात्मक और आकर्षण लगाव दोनों ही हावी होता है और ये कही गुना ज्यादा तीव्र होता है,जिस वक्त हम प्रेमी जोड़े को अलग करने का दबाव बना रहे होते है उस वक़्त उनकी मानसकि स्थिति को वही समझ सकता है जो उससे कभी गुजरा हो ,वो ऐसा समय होता है कि इंसान को लगता है कि अब कुछ नही बचा जिंदगी में ।
उस वक़्त को सम्भालना माँ बाप घर वाले के जिम्मे होना चाहिये लेकिन वो ऐसा न करके जोड़ो पे उल्टा दबाव बनाने की कोशिश करता है ,एक साथ ऐसे दबाव को सहने की ताकत हर इंसान में नही होती है जो इससे निकल जाता है वो माँ बाप का अच्छा सन्तान बन जाता है और जो नही निकल पाता वो समाज की नजरों में छि छि का विषय बन जाता है लेकिन आपको ये समझना होगा कि प्रेम को समझना इतना ही आसान होता तो आजतक ये लिखने, पढ़ने,और फिल्मों में दिखाने और शोध का विषय ही नही होता,आखिर हम अपने बच्चों की भावनाओ को कब समझना और महशुश करना शुरू करेंगे?? ….😣😓
-अमृतेश अनिल रंजन
(लेखक : A dead love story Alive on Facebook)
Nitin Thakur
3 hrs ·
नए साल पर विज्ञापननुमा निवेदन-
सुंदर, बढ़िया, समझदार, टिकाऊ (कम से कम एक साल अपेक्षित), खाने-पीने-घूमने का आधा खर्च उठा सकने में सक्षम, सादा जीवन उच्च विचार के प्रति प्रतिबद्ध एक गर्लफ्रेन्ड की आवश्यकता है। बेवकूफियों को नज़रअंदाज़ करते रहने की सहनशक्ति होनी ही चाहिए । ओवर रोमांटिक, ओवर इंटेलेक्चुअल, ओवर स्मार्ट कृपया एप्लाई ना करें। गैर-हिन्दू, गैर-सवर्ण, गैर- भारतीय को प्राथमिकता दी जाएगी। फ्रेशर और अनुभवी दोनों ही आवेदन कर सकते हैं।90 दिनों के प्रोबेशन पीरियड के बाद दोनों पक्षों की सहमति से साहचर्य काल को विस्तार दिया जा सकता है।
(इस पोस्ट पर बौद्धिक चर्चा वर्जित है और गंभीरता से लिए जाने की आशा है। शेयर करने के लिए कहने की ज़रूरत तो है नहीं!! मां कसम है अगर अपने नाम से टाइमलाइन पर चिपकाया तो!!!)