by — संजय तिवारी
देश की राजधानी दिल्ली से मात्र 60 किलोमीटर की दूरी पर है मेवात । गुड़गांव से अलवर के रास्ते आगे बढ़ने पर सोहना के बाद मेवात का इलाका शुरू हो जाता है। मेवात एक मुस्लिम-बहुल इलाका है। यहां मेव मुसलमानों का दबदबा है। मेव पहले हिन्दू ही थे। मेव एक जाति है। अभी भी कुछ मेव हिन्दू हैं। मेवात का इलाका हरियाणा, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में फैला है। 14 वीं शताब्दी में तुगलक वंश के समय मेवात के लोगों को जबरन मुस्लिम बनाया गया। फिर भी ये लोग वर्षों तक अपनी पहचान को बचाने में सफल रहे, किन्तु 1920 के बाद मजहबी संगठनों ने इन लोगों को अपने रंग में रंगना शुरू कर दिया। इसका दुष्परिणाम यह हुआ कि यहां के मुस्लिम पाकिस्तान की मांग का समर्थन करने लगे। पर जब पाकिस्तान बना तो यहां के बहुत कम मुस्लिम पाकिस्तान गए। लेकिन अब लगता है कि ये लोग मेवात को ही ‘पाकिस्तान’ बनाने में लगे हैं। हरियाणा के मेवात क्षेत्र में चल रही गतिविधियों की पड़ताल से यही बात सामने आती है।
हरियाणा के मेवात क्षेत्र को कट्टरवादियों ने बहुत पहले ही ‘बंगलादेश’ बना दिया है। बंगलादेश में करीब 8 प्रतिशत हिन्दू रह गए हैं, यही स्थिति मेवात की भी हो गई है। जबकि 1947 में बंगलादेश में करीब 30 प्रतिशत और मेवात में भी लगभग 30 प्रतिशत हिन्दू थे। अब पूरे मेवात को ‘पाकिस्तान’ की शक्ल देने देने का प्रयास तेजी से हो रहा है। आज हरियाणा के मेवात में हिन्दुओं के साथ वह सब हो रहा है जो बंगलादेश या पाकिस्तान में हिन्दुओं के साथ होता है। हिन्दू लड़कियों और महिलाओं का अपहरण, उनका मतान्तरण और फिर किसी मुस्लिम के साथ जबरन निकाह। हिन्दुओं को जबरदस्ती मुसलमान बनाना। हिन्दू व्यापारियों से जबरन पैसे की वसूली करना। मंदिरों और श्मशान के भूखंडों पर कब्जा करना। बंगलादेशी घुसपैठियों को बसाना। हिन्दुओं को झूठे मुकदमों में फंसाना। हिन्दुओं के यहां डाका डालना। कोढ़ में खाज यह कि प्रशासन द्वारा भी हिन्दुओं की उपेक्षा आम बात हो गयी है। इस कारण मेवात के हिन्दू मेवात से पलायन कर रहे हैं। मेवात के सभी 508 गांव लगभग हिन्दू-विहीन हो चुके हैं। किसी- किसी गांव में हिन्दुओं के दो-चार परिवार ही रह गए हैं। यदि सेकुलर सरकारों का रवैया नहीं बदला तो यहां बचे हिदू भी पलायन कर जाएंगे। फिर इस इलाके को पाकिस्तान बनने से कोई रोक नहीं सकता है।
हिन्दुओं की प्रताड़ना
मेवात पहले गुड़गांव जिले का भाग था । 4 मई 2005 को मेवात को जिला बनाया गया और नूंह को जिला मुख्यालय का दर्जा दिया गया। मेवात जिले का क्षेत्रफल 1784 वर्ग किलोमीटर है। मेवात जिले में कुल छह प्रखंड हैं – पुन्हाना, फिरोजपुर झिरका, नगीना, नूंह, तावडू और हथीन। इन कस्बाई नगरों में ही हिन्दू रह रहे हैं। जो हिन्दू सम्पन्न थे वे गुड़गांव, दिल्ली आदि शहरों में बस चुके हैं। जो बेचारे हिन्दू किसी कस्बे में भी घर नहीं ले सकते वे मजबूरीवश अपने गांवों में ही रह रहे हैं, लेकिन इनकी संख्या बहुत कम है।नूंह के एक गांव मढ़ी के पूर्व सरपंच रामजी लाल ने बताया ‘उनके गांव में कुछ वर्ष पहले तक 25 घर हिन्दू थे। अब सिर्फ चार घर रह गए हैं। वे लोग दांतों के बीच जीभ की तरह रह रहे हैं। वे लोग निहायत ही गरीब हैं। यदि वे भी कहीं हिन्दू कस्बे में घर खरीद पाते तो गांव में बिलकुल नहीं रहते। मुस्लिमों ने उनके खेतों पर कब्जा कर लिया है। उनकी बहू – बेटियों को उठा ले जाते हैं।’ बता दें कि रामजी लाल भी पिछले चार साल से नूंह में रह रहे हैं । जब वे सरपंच थे तो उन्होंने गांव के मुस्लिमों के दबाव पर कोई गलत काम नहीं किया । इसका खामियाजा उन्हें भुगतना पड़ रहा है। आये दिन उन्हें जान से मारने की धमकी मिलने लगी । मजबूरन उन्हें अपनी जमीन और घर बहुत ही कम कीमत पर बेचकर भागना पड़ा।
अन्तरराष्ट्रीय साजिश
जैन समाज, नूंह के अध्यक्ष और पेशे से वकील विपिन कुमार जैन मेवात में हिन्दुओं की दशा से बहुत दुखी हैं। उन्होंने बताया कि ‘पूरे मेवात से हिन्दुओं को भगाने के लिए मानो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर साजिश रची जा रही है । यहां के हिन्दुओं को आतंकित करने के लिए रोजाना कुछ न कुछ किया जाता है। छोटी-छोटी बात पर आये दिन हिन्दुओं को प्रताड़ित किया जाता है। लव जिहाद के द्वारा हिन्दू लड़कियों को मुस्लिम बनाया जा रहा है। 25 मई 2012 को मेवली गांव के एक अग्रवाल परिवार की लड़की का अपहरण किया गया और उसका निकाह एक मुस्लिम से करा दिया गया, जबकि वह मुस्लिम दो बच्चों का बाप है। हिन्दुओं की कहीं कोई सुनवाई नहीं होती है। मेवात में सरकारी योजनाओं में भी हिन्दुओं के साथ भेदभाव किया जाता है। एक सरकारी संस्था है मेवात विकास एजेंसी (एमडीए)। इसका वार्षिक बजट 70 करोड़ रु. है। इसका इस्तेमाल करीब-करीब मुसलमानों के लिए ही किया जाता है। मेवात में एक जूनियर बेसिक टीचर ट्रेनिंग स्कूल है। कुल 50 सीटें हैं पर 25 सीटें मुसलमानों के लिए सुरक्षित कर दी गयी हैं।’
शर्म की बात
नगीना के रहने वाले वीर सिंह ने अपने समधी ओमवीर (गांव -भिमसिका, तहसील- हथीन) के साथ हो रहे दुर्व्यवहार के बारे में जो बताया वह पूरे हिन्दू समाज के लिए शर्म की बात है। वीर सिंह के अनुसार ‘ओमवीर को कुछ दिन पहले ही तब्लीगी जमात ने बहला-फुसलाकर मुसलमान बना लिया था और बाहर भेज दिया था, किन्तु चार महीने बाद ही उन्हें माजरा समझ में आ गया। वे वापस आ गए और एक हिन्दू के ही रूप में रहने लगे। इसके बाद उन्हें जान से मारने की धमकी मिलने लगी। जान बचाने के लिए वे अभी भी गांव से बाहर छिप कर रहते हैं। इधर गांव में उनकी पत्नी और बच्चों को लगातार प्रताड़ित किया जा रहा है। उनके बेटे पर कुरान फाड़ने का आरोप लगाया गया, जो बाद में गलत निकला। इसी बीच उनकी लड़की के साथ मेरे बेटे की शादी तय हुई और हम लोग 27 जुलाई 2012 को बारात लेकर उनके घर पहुंचे। इतने में वहां उस गांव के मुसलमान पहुंच गये और कहने लगे कि यह शादी नहीं हो सकती है, क्योंकि लड़की के पिता ने इस्लाम कबूल कर लिया है। इसलिए इस लड़की का किसी मुसलमान के साथ ही निकाह होगा । किन्तु लड़की की मां उनकी सारी बातों को नकारती रहीं और अंत में पुलिस की देखरेख में शादी हुई।’
हिन्दुओं का बहिष्कार
एक ओर तो किसी हिन्दू लड़की का जबरन किसी मुस्लिम पुरुष से निकाह करा दिया जाता है, तो दूसरी ओर यदि कोई हिन्दू लड़का किसी मुस्लिम लड़की से प्यार करता है तो उसे मुसलमान बनना पड़ता है। ऐसा न होने पर पूरा मुस्लिम समाज हिन्दुओं पर टूट पड़ता है। अभी पिछले अप्रैल माह की ही बात है। नगीना निवासी भारत भूषण का इकलौता पुत्र विशाल जैन एक मुस्लिम लड़की के चक्कर में आ गया। वसीम अहमद बनकर उसने उस लड़की से निकाह कर लिया और अब वह बल्लभगढ़ में रहता है। विशाल मुस्लिम बन गया फिर भी वहां के मुसलमानों ने विशाल के पिता को धमकाना शुरू कर दिया। जान बचाने के लिए घर – द्वार बेचकर वे अब फरीदाबाद रहते हैं। उसी घटना को लेकर खुलेआम नगीना के शेष हिन्दुओं को भी धमकी दी गयी कि बदले में एक हिन्दू लड़की उठाई जाएगी। इस कारण वहां के हिन्दुओं ने काफी दिनों तक अपनी लड़कियों को पढ़ने के लिए स्कूल-कालेज नहीं भेजा। मुस्लिमों ने यह भी फतवा दिया कि कोई भी मुस्लिम किसी हिन्दू दुकानदार से कोई सामान नहीं खरीदेगा। हिन्दुओं की दुकानों के बाहर मुस्लिम चौकीदार बैठा दिए गए। उनको यह काम दिया दिया गया कि यदि कोई मुस्लिम किसी हिन्दू दुकानदार से सामान खरीदता पाया जाय तो उसे पकड़ा जाय। हिन्दुओं का बहिष्कार काफी दिनों तक चला।
मेवात के हिन्दुओं का कहना है कि हिन्दू दुकानदारों का आये दिन किसी न किसी बहाने बहिष्कार किया जाता है। इसके दो मुख्य उद्देश्य हैं – एक हिन्दुओं को भगाना और दूसरा , उधारी के पैसे की बेमानी करना। मालूम हो कि यहां के मुसलमान हिन्दू दुकानदारों से उधार में सामान खरीदते हैं और जब पैसा अधिक हो जाता है तो उनका बहिष्कार कर देते हैं। हिन्दुओं का कहना था कि उधारी देना उनकी मजबूरी है। यदि उधार में सामान नहीं देंगे तो भी दिक्कत है।
श्मशान भूमि पर कब्जा
मेवात के ग्रामीण क्षेत्रों से हिन्दुओं के पलायन के बाद मंदिरों की जमीन और श्मशान भूमि पर मुसलमानों ने कब्जा कर लिया है। इस कारण जो भी हिन्दू ग्रामीण क्षेत्रों में बचे हैं उन्हें बड़ी दिक्कत होती है। किसी हिन्दू को अपने किसी मृत परिजन का अंतिम संस्कार किसी सड़क के किनारे करना पड़ता है। उस दिन जब हम लोग बड़कली चौक से पिन्हावा जा रहे थे तो सड़क के किनारे कुछ लोग एक शव का अंतिम संस्कार करने की तैयारी कर रहे थे। भीड़ देखकर हम लोग रुके तो कुछ युवक पास आए। उनमें से एक युवक प्रेम ने बताया कि यह शव उनके चाचा बुध सिंह का है। सुबह ही एक सड़क हादसे में उनकी मौत हो गई थी। सड़क के किनारे अंतिम संस्कार क्यों कर रहे हो? यह पूछने पर प्रेम ने बताया कि श्मशान की जमीन पर आसपास के खेत वालों ने कब्जा कर लिया है। इस वजह से हम लोगों को बड़ी दिक्कत हो रही है। जिन लोगों ने कब्जा कर रखा है उनसे कुछ कहते हैं तो वे कहते हैं मुर्दा जलाना है तो कहीं भी जला लो। प्रेम ने यह भी बताया कि अब उसके गांव अटेरना शमशाबाद में हिन्दुओं के सिर्फ तीन घर बचे हैं।
गोवंश की हत्या
स्थानीय लोगों ने बताया कि पूरे मेवात में सूर्योदय से पहले ही सैकड़ों गोवंश की हत्या हो जाती है। फिर उनके मांस को एक किलो, आधा किलो की थैलियों में बंद करके बेचा जाता है। मांस बेचने के लिए लोग गांव-गांव घूमते हैं। उनकी संख्या दूध बेचने वालों से अधिक होती है। यहां तस्करी से गोवंश लाया जाता है। मेवात भाजपा के पूर्व अध्यक्ष एवं भाजपा गो प्रकोष्ठ के प्रदेश अध्यक्ष श्री भानीराम मंगला कहते हैं, ‘गो हत्यारों को मेवात के स्थानीय नेताओं का संरक्षण प्राप्त है। इसलिए उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हो पाती है। वोट की राजनीति ने मेवात की सभ्यता व संस्कृति को बदलकर रख दिया है।’
मस्जिद एवं मदरसों की बाढ़
पूरे मेवात में बड़ी संख्या में मस्जिदों और मदरसों का निर्माण हो रहा है। मुख्य सड़क के किनारे हर मोड़ पर मस्जिदें बन रही हैं और 8-10 गांवों के बीच एक बड़ा मदरसा बन रहा है। कोई भी अपराध करके अपराधी सड़क के किनारे की मस्जिद में छिप जाते हैं। जो अपराधी मस्जिद में छिप जाता है वह पुलिस की पकड़ से बाहर हो जाता है, क्योंकि पुलिस मस्जिद के अंदर तलाशी लेने से बचती है। एकाध बार पुलिस ने ऐसा किया तो पुलिस पर मजहबी ग्रंथों के अपमान का आरोप लगाकर खूब हंगामा मचाया गया।
बसाए जा रहे हैं विदेशी मेवात के कई हिस्सों में बंगलादेशी मुस्लिम घुसपैठियों और म्यांमार से भगाए गए रोहिंग्यायी मुस्लिमों को बसाया जा रहा है। इन्हें बसाने के लिए ग्राम पंचायतों की जमीन उपलब्ध कराई जा रही है। केनाल रेस्ट हाउस (यह एक स्थान का नाम है), पुन्हाना में तम्बू लगाकर इन मुस्लिमों को रखा जाता है। इसके बाद अन्य पंचायतों में उन्हें बसाया जा रहा है। सूत्रों का कहना है कि इन मुस्लिमों की मदद जमीयत उलेमा हिन्द के अलावा मेवात के अनेक मजहबी संगठन, पंचायत प्रतिनिधि और विभिन्न राजनीतिक दलों के मुस्लिम नेता कर रहे हैं। स्थानीय लोगों ने बताया कि करीब 200 विदेशी मुस्लिम परिवारों को नूंह के रेवसन और फिरोजपुर झिरका के पास बसाया गया है। सूत्रों के अनुसार इन दिल्ली जामा मस्जिद के इमाम बुखारी के द्वारा जारी धर्मान्तरण पत्र मुस्लिमों की मदद के लिए स्थानीय मुस्लिमों से पैसा वसूला जा रहा है। यह भी पता चला है कि इन मुस्लिमों के नाम मतदाता सूची में दर्ज कराने की कोशिश की जा रही है।
तब्लीगी जमात
मेवात के मुस्लिमों में कट्टरवाद घोलने का काम तब्लीगी जमातें कर रही हैं। स्थानीय लोगों ने बताया कि जमात के लोग गांव-गांव घूमते हैं और मुस्लिम युवाओं को जिहाद और लव जिहाद के लिए उकसाते हैं। साथ ही हिन्दुओं को मुस्लिम बनाने का काम करते हैं। पिन्गवां के एक युवक ललित ने बताया कि करीब एक साल पहले मौलानाओं के भाषण से प्रभावित होकर वह मुस्लिम बन गया था और इस्लाम का प्रचार करने लगा था। किन्तु जल्दी ही उसे अपनी गलती का अहसास हुआ और आर्य समाज के कार्यकर्ताओं के सहयोग से पुन: हिन्दू हो गया। इस तरह की घटनाएं मेवात में प्राय: रोज ही घटती हैं। मेवात के अधिकतर मुस्लिम युवा ट्रक चालक हैं। इस बहाने उन्हें पूरे भारत में जाने का मौका मिलता है। आए दिन ये युवा कहीं न कहीं से हिन्दू युवतियों को साथ ले आते हैं। कुछ दिन मौज-मस्ती करते हैं फिर उन्हें आपस में ही बेच देते हैं। आर्य वेद प्रचार मंडल मेवात के संरक्षक श्री पदमचंद आर्य ने बताया कि ऐसी अनेक युवतियों को हमारे कार्यकर्त्ताओं ने जान हथेली पर रखकर मुस्लिमों से छुड़ाया है।
इस्लामी शैली में सरकारी भवन
मेवात में जो भी सरकारी भवन बन रहे हैं, उनमें इस्लामी शैली की छाप स्पष्ट रूप से दिखती है। उदाहरण के लिए आप नूंह में बन रहे नए सचिवालय और नूंह के पास ही नल्लड़ गांव में बन रहे चिकित्सा महाविद्यालय को ले सकते हैं। ये दोनों भवन इस्लामी शैली में बन रहे हैं। इनमें मस्जिद की तरह मीनारें और गुम्बद हैं। क्या हिन्दूबहुल क्षेत्र में कोई सरकारी भवन मंदिर की शैली में बन सकता है? यदि नहीं तो मेवात में ऐसा क्यों हो रहा है? मांडीखेड़ा का अल-आफिया जनरल अस्पताल, जिसका निर्माण ओमान के सुल्तान ने अपनी बेटी के नाम पर किया है, भी पूरी तरह इस्लामी शैली में है। सवाल उठता है कि इस्लामी शैली में एक अस्पताल के भवन का निर्माण क्यों किया गया? इसकी अनुमति किसने दी?
मेवात में आएदिन पुलिसकर्मियों की पिटाई होती है। पिछले 10 महीने में ऐसी 40 घटनाएं हो चुकी हैं। जब भी पुलिस किसी अपराधी, तस्कर, बलात्कारी या हत्यारे की धर-पकड़ के लिए जाती है तो स्थानीय लोग पुलिसकर्मियों को घेर कर पीटते हैं। दिल्ली में भी मेवात के युवा डकैती, हत्या, छीना-झपटी, बलात्कार आदि घटनाओं में शामिल पाए जाते हैं। दिल्ली में उन्हें ‘मेवाती गिरोह’ के नाम से जाना जाता है। जब भी दिल्ली पुलिस मेवाती गिरोह के किसी अपराधी को पकड़ने के लिए मेवात जाती है तो उसकी भी पिटाई होती है।
सामाजिक संगठन
मेवात में हिन्दुओं का हौसला बढ़ाने के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक, भाजपा एवं आर्य समाज के कार्यकर्ता और कुछ अन्य संगठनों के लोग प्रयासरत हैं। प्रो. जयदेव आर्य कहते हैं, ‘जब भी हिन्दुओं के साथ कोई घटना होती है इन संगठनों के कार्यकर्ता ही उनकी ओर से आवाज उठाते हैं। इसके बाद ही प्रशासन हिन्दुओं की रक्षा के लिए कुछ कदम उठाता है।’ भारतीय शुद्धि सभा एवं गोरक्षा समिति के बैनर तले मेवात में काम कर रहे सामाजिक कार्यकर्ता सुन्दर मुनि कहते हैं, ‘मेवात में स्थिति तब ठीक हो सकती है जब मेव मुस्लिमों को उनकी प्राचीन संस्कृति से अवगत कराया जाए। उन्हें यह बताने की जरूरत है कि मेवात के हिन्दुओं और मुस्लिमों का खून एक ही है, फिर अपने हिन्दू भाइयों को प्रताड़ित क्यों कर रहे हो?
किसी भी लेख को पेश करना का हमारा ये मतलब नहीं होता हे की हम उस लेख से सहमत हे या पूरी तरह सहमत ही हे तिवारी बहुत क —- ना किस्म का इंसान हे लेख सही होगा में कैराना भी जानता हु में मुजफरनगर का ही हु कैराना पहले मुजफरनगर में था मगर तिवारी जैसे लोग जनता को ये समझना ही नहीं देना चाहते हे की ये सब पुरे उपमहाद्वीप में फैली लूट गुंडागर्दी और शोषण का ही एक पार्ट हे अब फ़र्ज़ कीजिये जो लोग मेवात में हिन्दुओ को सता रहे होंगे वो बाकी टाइम क्या हुक़्क़ा गुडगुडाते होंगे————- ? बस , नहीं जैसे ही कोई कमजोर मुस्लिम सामने होगा किसी मुद्दे के साथ तो वो फ़ौरन उसका भी टॉर्चर करते होंगे हां अल्पसंख्यक का जरूर उपमहाद्वीप में एक्स्ट्रा टॉर्चर होता हे http://khabarkikhabar.com/archives/2873 इस सब समस्याओ का एक बड़ा इलाज मुसलमानो में सेकुलर वैचारिक वर्ग को ढूंढ कर उसे हर तरह से सपोर्ट देना हे ये काम अफ़सोस कोई भी नहीं करता हे कोई भी नहीं हालात ही ऐसे हे
Vishnu · मुसलमानों की अम्मीजान हैं सुषमा स्वराज हिन्दुओं की सुनती नहीं/ विकास मिश्रा सही हैं==========================मेरे पास दर्जनों फोन आये हैं, विष्णु देव तिवारी का पोस्ट भी है। सब कहते हैं कि हिन्दुओं की बीजा समस्या को सुषमा स्वराज सुनती नहीं है, शिकायत करने पर भी कोई सुनवाई नहीं होती है। शिकायतकर्ता यदि पाकिस्तानी है, मुस्लिम है तो फिर दनादन सुनवाई होती है, मिनटों में वीजा मिल जाता है। एक देश द्रोही जिसने अपना देश भारत अधिकृत कश्मीर लिखा था को भी दनादन वीजा सटिफिकेट मिल गया। न जाने कितने पाकिस्तानियों को वीजा सुषमा स्वराज ने दिलायी है। विकास मिश्रा प्रकरण को देख लीजिये। जब विकास मिश्रा ने नाम पर आपत्ति दर्शायी तो वह मोहतरमा आग बबूला होकर सुषमा स्वराज के टिवटर पर शिकायत कर दी। जांच किये बिना विकास मिश्रा का तबादला हो गया। जबकि विकास मिश्रा अपनी जगह सही थे। जब तन्वी ने धर्म परिवर्तन कर मुस्लिम नाम रख लिया था तो फिर तन्वी नाम से वीजा कैसे मिलता। फिर भी सुषमा स्वराज की गुंडई चल गयी। अब 2019 में वोट इन्ही देशद्रोहियों से मांगना है? मेरी बात अब सही हो रही है Tiwari
21 hrs · मैंने भी बहुत लंबे समय तक वीजा माता को ट्विटर पर फॉलो किया है। मुझे याद नहीं पड़ता कि किसी हिन्दू के ट्वीट पर उन्होंने उसकी कभी कोई समस्या सुलझाई हो। लेकिन मुस्लिम चाहे वह पाकिस्तान का मरीज हो और ट्विटर पर वीजा मांग ले तो, वीजा माता हाजिर। मुस्लिम दुबई में हो, कश्मीर में हो या फिर लखनऊ में हो। उसे कोई भी दिक्कत आ गयी और गलती से भी उसने वीजा माता को ट्वीट कर दिया तो विदेश विभाग का सारा काम काज छोड़कर वीजा माता स्वयं जवाब देने के लिए हाजिर हो जाती हैं।ये इन लोगों की उदारता नहीं है। दमित चेतना है। ये भी उसी तरह मुस्लिम तुष्टीकरण करते हैं जैसे कांग्रेस करती है। ये भी उसी तरह संसाधनों और समस्याओं के समाधान के लिए मुस्लिम का पहला हक समझते हैं जैसे कांग्रेस समझती है। पता नहीं मुसलमानों से ये लोग कौन सा सर्टिफिकेट हासिल करना चाहते हैं जो प्रशासनिक मामलों में कांग्रेस से ज्यादा हिन्दू मुसलमान करते हैं?
ये तो भला हो मुसलमान का जो इतने के बाद भी इनके ऊपर थूकता नहीं है। अगर थूक दे तो ये दौड़कर चाट भी लेंगे। ” ।————————————————————————————————————————————————————————-सही हे सुषमा जी ने अगर हिन्दू कठमुल्लाओ कटरपन्तियो खासकर सोशल मिडिया के बुडबको को तड़पा रखा हे तो बिलकुल सही हे इन्ही कमीने लोगो के कारण सुषमा जी जैसे वरिष्ठ भाजपा नेताओ की दुर्गत हुई हे जो मोदी से अधिक हकदार थे इनके के कारण मोदी इतने बेहिस और बदमिजाज हे सुषमा जी का तीर बिलकुल निशाने पर हे कल को कोई गठबंधन सरकार बनी तो सभी लोग सुषमा जी का नाम भी तो आगे कर सकते हे
Vikash Narain Rai
22 June at 11:01 ·
हिंदुत्व समय में अटाली से ईद मुबारक
इस बार मीडिया और एनजीओ बिरादरी के लिए ईद पर अटाली की खोज-खबर लेने जाना कहीं अधिक आसान होना चाहिए था, लेकिन कोई नहीं पहुंचा| इसी मई में प्रधानमन्त्री मोदी ने बड़े धूम धड़ाके से ईस्टर्न पेरिफेरल एक्सप्रेस वे का उद्घाटन किया था| पेरिफेरल वे के फरीदाबाद में एकमात्र निकास, मौजपुर गाँव से वल्लभगढ़ कस्बे की दिशा में बढ़ने पर अगला गाँव ही तो अटाली हुआ|
ईस्टर्न पेरिफेरल एक्सप्रेस वे के खुल जाने से अब बड़े-बड़े ट्रक और ट्राले अटाली के बीच से गुजरती पतली-इकहरी सड़क पर चलने लगे हैं, जो बेतहाशा ट्रैफिक के इस नए बोझ को ढोने में पूरी तरह असमर्थ है| बेशक, अनवरत शोर, बढ़ते प्रदूषण और संभावित दुर्घटनाओं के बावजूद कोई शिकायत नहीं कर रहा क्योंकि इस आमदरफ्त से दुकानों की बिक्री भी बढ़ गयी है| लोगों को प्रशासन की ओर से बताया गया है कि भविष्य में यह सड़क चौड़ी की जायेगी| कब? मोदी विकास मॉडल में इस सवाल का जवाब किसी के पास नहीं होता|
तीन साल पहले, मई 2015 में अटाली की करीब डेढ़ सौ घरों की समूची मुस्लिम आबादी गाँव से पलायन को विवश कर दी गयी थी| पहले उन्होंने वल्लभगढ़ पुलिस थाने में कुछ दिन शरण ली और फिर वे फरीदाबाद शहर और आस-पास के इलाकों में रिश्तेदारों और दोस्तों की शरण में चले गए| अब तक करीब आधे घर ही गाँव लौटने का साहस कर पाए हैं| पूरी आबादी के वापस आते-आते न जाने कितने साल लग जाएंगे| गाँव में पुलिस की आज तक भी नियमित उपस्थिति इस दुखद प्रसंग के जल्द अंत की बानगी तो नहीं हो सकती|
अड्डा यानी गाँव का मुख्य बाजार, बीच में पड़ेगा| शुरूआत में, हरिजन चौपाल के पास जाटव (दलित) समुदाय के लोगों की चंद दुकानें पड़ती हैं| चाय, अंडा, किरयाना, मोबाइल रिचार्ज मार्का| वहां दबी जबान में बताया गया कि इस बार मुस्लिम समुदाय की ईद सौहार्दपूर्ण वातावरण में संपन्न हुयी| यह भी कि सभी वापस आ गए पलायित गाँव में सुरक्षित महसूस करते हैं और जिंदगी का सामान्य ढर्रा लौट आया है|
हालाँकि अविश्वास और तनाव भरे वे दिन कोई नहीं भुला सकता| ‘आग बुझ जाये, चिंगारी तो रहती है’, उस दौर के एक मुख्य किरदार बिजली ठेकेदार हाजी अली ने फोन पर कहा| वे अब नियमित रूप से गाँव से 25 किलोमीटर दूर फरीदाबाद सेक्टर 48 में रहते हैं|
हरियाणा में पहली भाजपा सरकार को अक्तूबर 2014 में शपथ लिए अभी बमुश्किल छह माह हुए थे| तभी, पंचायत चुनाव की बेला में, गाँव में दो भू-स्वामी जाट समूहों की परस्पर उठा-पटक ने मुख्यतः बेलदारी श्रम पर आधारित मुस्लिम आबादी को साम्प्रदायिक उत्पीड़न के चपेटे में ले लिया| तनाव बढ़ाने का बहाना बना, गाँव के बीच वक्फ बोर्ड की जमीन पर नमाज पढ़ने वालों के लिए मस्जिद बनाने की हलचल|
इस जमीन की मिल्कियत को लेकर स्थानीय निचली अदालत से फैसला मार्च 2015 में वक्फ बोर्ड के हक़ में आ चुका था| अब, इसी अप्रैल में, सेशंस अदालत से अपील भी उनके हक़ में हो चुकी है| फिलहाल, दूसरा पक्ष हाई कोर्ट में गया हुआ है और वहां का निर्णय आने तक विवादित भू-खंड पर निर्माण कार्य करने पर रोक लगी रहेगी|
एक जाटव दुकानदार ने कहा, बिना बात का बवाल है यह| ‘हिन्दुओं के इतने मंदिर हैं तो मुसलमानों को भी जगह चाहिए अपनी नमाज के लिये|’ यानी चिंगारी तो है और हाई कोर्ट के फैसले के बाद आग लगेगी या नहीं, कौन जानता है| हाँ, यह जाहिर है कि मोदी का पेरिफेरल वे भी समस्त विस्थापितों को गाँव वापस नहीं ला सका|
2015 में एक जाट धड़े ने नमाज स्थल को गाँव के बाहर कब्रिस्तान के पास स्थानांतरित करने का मुद्दा आक्रामक रूप से उठाया और अंततः मुसलमानों पर धावा बोल दिया गया| भाजपायी सरकारों की रणनीति के अनुरूप यहाँ भी प्रशासनिक निष्क्रियता ही रही| इसके चलते, मुस्लिम आबादी को सामाजिक बहिष्कार का सामना करना पड़ा| उन्हें काम मिलना बंद हो गया और गाँव के बाजार में उन्हें सामान न देने का ऐलान लागू कर दिया गया| यहाँ तक कि उन्हें कहीं आने-जाने के लिए यातायात साधनों के भी लाले पड़ गए| समुदाय में सबसे समृद्ध, हाजी अली का घर फूंक दिया गया|
उस दौरान, राजनीति और मीडिया की दिलचस्पी से उभरे मिश्रित स्वरों का इतना असर जरूर हुआ कि कुल दर्ज हुए इक्कीस मुकदमों में एक सौ नौ व्यक्ति आरोपी बनाये गए| दो मुक़दमे पलायित मुस्लिमों पर भी कायम हुए| राष्ट्रीय ही नहीं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी कुछ अरसे तक पड़ताली टीमों की गूंज बनी रही| तमाम मुक़दमों में अभी भी पेशियाँ चल रही हैं, जबकि सभी आरोपी जमानत पर जेल से बाहर आ चुके हैं|
कश्मीर से कन्याकुमारी और कच्छ से कामाख्या तक भाजपा कमजोर पड़ रही है और हिंदुत्व उतना ही उग्र| अटाली पलायन के दो माह बाद अनेकों विस्थापितों से मिलने पर, उनके भीतर से निकलते डर और विवशता के स्वरों में तब भी यह ध्वनि मिली थी कि सुरक्षा का भरोसा होने पर वे वापस जाना चाहेंगे| इनके पुरखे विभाजन में भी गाँव से नहीं गये थे; जाहिर है, हिंदुत्व के समय में शासन-प्रशासन सभी को सुरक्षा का इत्मीनान नहीं दिला सका है| बहरहाल, इस बार गाँव में ईद तो मनी!
Mayank Saxena27 June at 21:24 · इस पोस्ट को कोई बागपत पहुंचा दे****************************मेरे एक मामा थे…थे का मतलब ये कि वो अभी भी होंगे पर मुझे उनसे मिले 15 साल से ज़्यादा हो गए होंगे…गहरी आंखें, मुस्कुराता चेहरा और तांबई रंग…वो बचपन में मुझे गोद में ले लेते और खूब दुलारते…साइकिल पर बिठा कर घुमाते…टॉफियां लेकर आते मेरे लिए…वो आते, घर के बाहर के दरवाज़े की कुंडी खड़का कर, मेरी मां को पुकारते…मेरी मां का उनके लिए वही नाम था, जो मैंने अपने मामाओं और उनके तमाम दोस्तों से सुना था…एक शब्द…कमाल का शब्द…
‘जिज्जी…’
मां कहती, ‘देखो, ईदू आया है…’ हां, ईदू नाम था उनका…मैंने बचपन में बहुत जिज्ञासा से पूछा था कि मेरे नाम का मतलब चंद्रमा है…तो ईदू का मतलब क्या है…और तब पता चला था…’ईद के दिन पैदा हुआ, तो नाम ईदू हो गया…जैसे जुम्मन…रमज़ानी…या बरसाती’ मैंने इतने मधुर नाम शायद कम ही सुने हैं और शायद तब भी इसीलिए, मुझे कभी ज़रूरत महसूस नहीं हुई कि उनका असली नाम पता भी करूं…
उनके पिता…उनका नईम खान नाम था…या कुछ और…उनको मां, चाचा कहती थी…वो मां को ‘ललिता बिटिया’…और मुझे याद नहीं पड़ता कि मैंने उनको ‘नाना’ के सिवा कुछ और कहा हो…मैं कुछ एक सम्बोधन ही सुनता था…और इतने प्यार में भीगे हुए… ‘जिज्जी…ललिता जिज्जी…जीजाजी…बिटिया…चाचा…बेटे…’
ईदू मामा के अब्बू, यानी कि मेरे नाना…जिनकी लम्बी सी दाढ़ी थी…जो मुझे रामायण धारावाहिक के ब्रह्मा या वशिष्ठ सी लगती थी…उनकी गोद में जाते ही, मैं दाढ़ी छूता और वो हंसते…कि कभी मैं उसी दाढ़ी से डरता भी था…वो कहते, ‘इसमें देसी घी लगाते हैं हम…चलो घर से देसी घी लाकर दो’
नाना, साइकिल रिक्शा चलाते थे…नईम खान नाना मेरे नाना के मकान में किरायेदार थे…बाज़ दफ़ा ऐसा हुआ कि नईम खान के घर में फ़ाकों के हालात हुए और मेरे नाना की मां…यानी कि मेरी मां की दादी…कहें कि मेरी परनानी…वो नईम ख़ान के परिवार के लिए कभी अनाज भिजवाती, तो कभी घर बुला कर खाना खिलाती…किराया कब दिया जाएगा, इसके लिए नईम खान आकर कुछ कहते, तो मेरे नाना कहते, ‘नईम खान…ऐसा है, आपका ही घर है ये…हमारी मां, आपसे, हमसे कम प्यार तो नहीं करती थी…’
और नईम खान…कमाल के आदमी…मेरे नाना की मां को अपने रिक्शे पर लाद कर, शहर का एक-एक मंदिर घुमाते…बुद्धेश्वर से अलीगंज का हनुमान मंदिर…कभी सिद्धेश्वर…तो कभी अमीनाबाद का मंदिर…चौक से चारबाग…चारबाग से चंदर नगर तक रिक्शा घूमता…ईदू मामा मेरी मां से राखी बंधवाने पहुंचते…हम जब बड़े हुए, तब समझ पाए कि ये शायद हमारी समझ की हैसियत से कहीं ज़्यादा ख़ूबसूरत रिश्ता है…
इसमें कहीं, कोई ग़ैर बराबरी थी ही नहीं…दोनों पक्ष एक-दूसरे के लिए जितना कर सकते थे, उससे ज़्यादा कर रहे थे…मुझे नईम खां नाना और ईदू मामा से वही मुहब्बत मिली, जो मेरी मां के बायोलॉजिकल घर वालों से मिली…मेरी मां से अभी फोन पर इस बाबत बात हुई, तो वही बात उन्होंने दोहरा दी…फिर वो बोली, ‘सब नेताओं का किया हुआ है…’ मैं यहां उनसे सहमत नहीं था…सब नेताओं का किया है??? क्यों आखिर…हम क्या कर रहे हैं..नेता हम से कहेंगे कि आमरण अनशन कर के हम मर जाएं…तो क्या हम करेंगे…नहीं न…
बागपत के एक गांव से आज एक ख़बर आई है…एक परिवार पर गांव में पूज्य सांड़ को मार देने का आरोप लगा है…उस पर तुर्रा कि सांड़ गायब है…पर दो कौड़ी के हिंदू जागरण मंच, गांव की पंचायत और गोरक्षक दल ने मान लिया है कि ये साड़, उसी गांव में सालों से उनके साथ रह रहे, एक मुस्लिम परिवार ने मार दिया है…उस परिवार के ख़िलाफ़ दो बार पंचायत बैठ चुकी है…उस परिवार का बुज़ुर्ग मुखिया, कुरआन और अपने बेटे की कसम खाकर दुहाई दे रहा है कि उसने कुछ नहीं किया…लेकिन गांव वाले पंचायत कर रहे हैं…
मैं सुबह से बेचैन हूं…मुझे लग रहा है कि जैसे वो बुज़ुर्ग नईम खां है…जिस बेटे की वो कसम खा रहा है…वो मेरे ईदू मामा हैं…और उनके ख़िलाफ़ साज़िश कर रहे लोग, अचानक से मेरे नाना और मामा बन गए हैं…नहीं…मैं बेहद परेशान हूं…नईम खां भी मेरे नाना हैं…ईदू मेरे मामा हैं…मेरी मां ने सालों-साल राखी बांधी है उनको…आखिर ऐसा कैसे होने दूं मैं…सुनो वो सांड़ मैंने मार दिया है…आप मुझे मार दो…जाने दो उनको, जिनके लिए मेरे पुरखों ने जान हथेली पर रख दी थी…और जो अपनी जान हमारे लिए हथेली पर लिए घूमते रहे…
ईदू मामा की मां, यानी कि नानी…मुझे ननिहाल के आंगन में, नानी के साथ गेहूं साफ करती याद आती हैं…अब हमारे गेंहूं में घुन इतना है कि हम घुन ही खा रहे हैं…न मेरी मां की मां हैं…न ईदू मामा की मां…गेहूं जो हमारा समाज है, वो घुन हो गया है…और वो दोनों औरतें नहीं हैं, तो इसका साफ होना नामुमकिन है…हमको वो औरतें और वो आदमी वापस लाने होंगे…कहीं से भी ढूंढ कर वापस लाने होंगे….ईदू मामा फिर से नौजवान हो जाएं…मैं फिर से बच्चा…नईम खां किसी दूसरी दुनिया से लौट आएं…मैं ईदू मामा के साथ साइकिल पर बैठ कर टॉफी ले आऊं…और लौट कर नईम खां की दाढ़ी में, अपनी रसोई से चुरा कर थोड़ा सा देसी घी मल दूं…
हम सब बागपत, दादरी, अलवर होते जाएंगे…या हममें कहीं नईम खां और कृष्ण बहादुर जौहरी भी बचेंगे…कृष्ण बहादुर जौहरी…देखिए न, इस पूरी कहानी में मैं नईम खां का नाम लेता रहा…अपनी मां के पिता का नाम लेना ही भूल गया…मालूम है क्यों…क्योंकि उन दोनों का नाम मेरे लिए नाना था…इस मुल्क का भी एक नाम था…हिंदुस्तान…हम सब का भी एक ही नाम था…इंसान…हम ने कितने नाम रख लिए अपने….???
~ मयंक सक्सेना
#गोरक्षकमानवभक्षक
#अधर्मकीजयहो
#साम्प्रदायिकतामुर्दाबाद
#साझाविरासत
तिवारी भोकाल हो चपुलु हो कई सारे झा हो ये और दूसरे कई कायर संघी असल में कछुए ही हे
Jagadishwar Chaturvedi
12 hrs ·
सवाल यह है मोदी की जनप्रियता का रहस्य क्या है ? इतने बड़े संकटों को पैदा करने के बाद भी मोदीमोह से आम जनता,खासकर मध्यवर्ग मुक्त क्यों नहीं हो रहा ?वे कौन सी चीजें हैं जो मोदी को रहस्यमय बनाए हुए हैं ?
मैंने कल एक उपमा का एक पोस्ट में इस्तेमाल किया था,मैंने लिखा था भारतीय मनोदशा कछुए की तरह है।कछुए देखने में शाकाहारी है लेकिन मौका लगते ही मांसाहारी हो जाता है,कमजोर और असहाय को नदी में कछुए खींचकर ले जाते हैं और खा जाते हैं>
मथुरा की यमुना में आए दिन हमने युवाओं को कछुओं का शिकार होते देखा है। भारतीय जनता के मन में कछुआ भाव है।कमजोर पर वो हमलावर होती है और ताकतवर के सामने सिर झुकाती है।यही कछुआ भाव है। मोदी को पछाड़ने के लिए कछुआ के मनोभाव से लड़ना होगा।