लंदन। ब्रिटेन का कितनी तेजी से इस्लामीकरण हो रहा है, इसका आप अंदाजा भी नहीं लगा सकते हैं। आप इसे इसी तथ्य से समझ सकते हैं कि लंदन में ही 500 से ज्यादा चर्च बंद हो गए हैं, लेकिन यहां 423 से ज्यादा मस्जिदें बन गई हैं। इतना ही नहीं, सैकड़ों वर्ष पुराने गिरजाघरों में मस्जिदें और सरकारी शरिया अदालतें खुल गई हैं।
लंदन को लंदनिस्तान बताने वाले इस्लामी प्रचारक मौलाना सैयद रजा रिजवी का कहना है कि बहुत सारे इस्लामी देशों की राजधानियों की तुलना में लंदन अधिक इस्लामी हो गया है। लंदन में रहने वाले साहित्य का नोबेल पुरस्कार जीतने वाले वोल सोयिंका का कहना है कि ‘ब्रिटेन अब इस्लामवादियों की गंदगी का गड्ढ़ा बन गया है। हालांकि यह बात की कही जाती है कि ब्रिटेन के बहुसांस्कृतिकवाद ने इस्लामी आतंकवाद को बढ़ाया दिया है।’
लेकिन, पाकिस्तान में पैदा हुए और एक ट्रक ड्राइवर के बेटे लंदन के मेयर सादिक खान का कहना है कि लंदन के बहुसांस्कृतिकवाद में आतंकवाद पनप नहीं सकता है, लेकिन लंदन में खुली 423 नई मस्जिदें और विगत में कई स्थानों पर हुए आतंकवादी हमले यह बताने के लिए काफी हैं कि इस्लाम ने लंदन और ब्रिटेन में गहरी जड़ें जमा ली हैं। एक जमाने में लंदन के जो नामी और प्रतिष्ठित चर्च थे, वे अब मस्जिदों में बदल गए हैं।
इन चर्चों को विदेशों से आकर बसे संपन्न मुस्लिम खरीद रहे हैं और ब्रिटेन में इस्लाम को कबूलने वालों की संख्या दोगुनी हो गई है। इस्लाम को मानने वाले ये लोग आतंकवादी भी बन जाते हैं जैसा कि आतंकवादी खालिद मसूद के मामले में हुआ जिसने ब्रिटेन के सबसे प्रतिष्ठित चर्च वेस्टमिंस्टर एबी पर हमला किया था। सेंट पीटर चर्च अब मदीना मस्जिद बन गई है।
साज जॉर्जियो के चर्च में 1230 लोगों के बैठने का इंतजाम है, लेकिन संडे मास के लिए यहां केवल 12 लोग इकट्ठा हुए। इसी तरह से सांता मारिया के चर्च में संडे मास के दौरान केवल 20 लोग ही शामिल हुए। जबकि ब्रून स्ट्रीट एस्टेट की मस्जिद में सौ लोगों के नमाज पढ़ने की जगह है लेकिन यहां शुक्रवार को लोग सड़कों पर आकर नमाज पढ़ते हैं।
ब्रिटेन में ईसाइयत खत्म हो रही है और इस्लाम यहां का धर्म बनता जा रहा है।
ब्रिटिश यूनिवर्सिटीज में इस्लाम की उच्चतर पढ़ाई होने लगी है और ब्रिटेन के प्रसिद्ध लोग वकालत करने लगे हैं कि कानून में शरिया कानून को भी शामिल किया जाए। उल्लेखनीय है कि ब्रिटेन के सउदी अरब में राजदूत साइमन कोलीज खुद इस्लाम को मानने लगे हैं और बाद में उन्होंने हज भी किया। और वे अपने को अब हाजी कॉलीज कहते हैं।
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किसी भी धर्म का प्रचार प्रसार या उसका बढ़ना घटना आदि हमारा मसला नहीं हे हमे इसमें कोई दिलचस्पी नहीं हे हमारे मुद्दे हे अन्याय शोषण असमानता आदि अब देश की राजधानी में इस इस्लाम विरोधी राक्षस को देखिये भोकाल चतुर्वेदी जिसका गेंग इंटरनेट पर लड़की तक बनता हे ये अलग किस्म के हिन्दुत्वादी राक्षस हे खुद ये बेहद कायर हे लेकिन आपके लड़को को गली गली में लड़वाने का सपना देखते हे अंदाज़ा लगाइये इनके पागलपन का की भारत में उपमहाद्वीप में सिर्फ दो करोड़ सिख थे उसमे से आधे ही मुश्किल से अलगावादी थे विदेशो में सिखो का कोई मुल्क नहीं था तब भी सिख हिंसा और अलगावाद को काबू करने में इस कदर समय लगा मुश्किलें हुई और ये हिन्दू कम्युनल शैतान सीधे इतने अधिक मुसलमानो से लड़ने भिड़ने भिड़वाने और जीतने का सपना देखते हे अगर ये देश को गृहयुद्ध और उपमहाद्वीप में युद्ध भी करवा दे एक करोड़ लोगो को भी मरवा दे तो भी दक्षिण एशिया में ना कोई फर्क आएगा ना कोई चेंज आएगा न कोई जीत सकता हे खेर इस्लाम का समर्थन प्रसार इस्लाम के पक्ष में कन्वर्जन और विरोध दोनों ही बढ़ता ही जा रहा हे इस्लाम का विरोध और समर्थन जैसे जैसे बढ़ रहा रहा हे हम जैसे शुद्ध सेकुलर लिबरल और शोषण विरोधी मुसलमानो का उसमे भी सुन्नी देवबंदी सेकुलर मुसलमानो का जीना मुहाल होता जा रहा हे हमारे लिए समर्थन कही से भी नहीं कैसा भी नहीं हे कोई पैसा नहीं हे और हमे जवाब देने के लिए चारो तरफ सवाल ही सवाल हे दम घुट रहा हे हमारा
Abdul Rashid
Abdul Rashid Sanjay Tiwari जी ,विस्फोट की आज भी जरूरत है।
Sanjay Tiwari ब्लाग के बतौर तो आज भी जिन्दा ही है बाकी विस्फोट को पैसे की जरूरत है। जब तक पैसा नहीं होगा अब किसी से लिखवायेंगे नहीं।Abdul Rashid Sanjay Tiwari जी इस समस्या से इनकार नहीं किया जा सकता। ब्लॉग मैं पढ़ता हूँ। मुझे नहीं मालूम के द वायर वालों की बात कितना सच है लेकिन वो ये दावा करते हैं के सब कुछ जनता के पैसे से चल रहा है,तो क्या ऐसी व्यवस्था बनाया जा सकता है।
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Sanjay Tiwari
Sanjay Tiwari Abdul Rashid ऐसी कोई व्यवस्था नहीं हो सकती। वायर को बड़ी फंडिंग है। कुछ कॉरपोरेट घरानों से। भारत के लोगों को अभी मीडिया दान और सहयोग का सब्जेक्ट ही नहीं लगता। उनके लिए मीडिया एक धंधा है। इसलिए कोई मदद को आगे नहीं आता।—————————————————————————————————————————————————————————————————————————————————————————पाठको तिवारी हो या कोई हो हिंदी वालो को कोई पैसा नहीं दे सकता हे ना देगा जिसके पास भी जब भी पैसा आता हे वो उसे अपनी जरूरतों पर खर्च कर देता पहले जरूरतों पर फिर महत्वकांशाओ पर चाहतो पर खर्च कर देता हे टाइम्स ग्रुप के पास खरबो रुपया हे एक ज़माने में नवभारत ब्लॉग की टी आर पि फेसबुक टाइप ही थी मगर सवाल ही नहीं उठता की ये हिंदी लेखकों को चवन्नी भी दे और सभी का भी यही हाल हे संसथान छोड़े एक ज़माने में एक हिंदी लेखक ने मनोरंजन जगत के लिए लिख कर खूब पैसा कमाया था लोगो को आस थी की अब ये गरीब हिंदी , हिंदी लेखकों की मदद करेगा मगर उनके दोस्त लेखक ने बताया की आस तो बहुत थी मगर उन्होंने कोई खास नहीं किया मेरा अंदाज़ा हे की उनकी क्योकि ढेर सारी मित्र थी वो शायद उन पर लुटा देते होंगे उनकी एक मित्र ने तो उनके मुंबई के फ्लेट पर भी कब्ज़ा कर लिया था सेकुलर थे लेकिन कम्युनल की मदद से फ्लेट छुड़वाया था लब्बोलुआब ये हे की पैसा आते ही लोगो की दस चाहते जाग जाती हे पैसा लूट जाता हे और हिंदी हिंदी वाले खासकर कंगाल ही रहते हे अब एक लास्ट कोशिश हम करना चाहते हे में और अफ़ज़ल भाई शुद्ध ईमानदार हे हमारी कोशिश ये चल रही हे मेरे एक लंदन के कज़िन ने कुछ हज़ार की मदद से शुरुआत भी की हे एक और कज़िन यूरोप में हे उससे भी मदद मांगी हे लेकिन ज़ाहिर हे की इतना आसान नहीं हे सो मेने मॉडल ये सोचा हे की लगभग लगभग तीस लाख की जमीन मेरे पास हे ही एक हाइवे बन गया तो कीमत डबल भी हो सकती हे तो मेरा मॉडल ये हे की लोग हमे पैसे दे हमारे अकॉउंट में डाले आपका पैसा सेफ रहेगा हम उसे हाथ भी नहीं लगाएंगे वो रखा रहेगा फ़र्ज़ कीजिये की देने के बाद जबकभी आपको जरुरत हो आप हमसे वापस ले ले और अकॉउंट में रखे रखे जो कुछ भी उसका ब्याज का पैसा होगा वो हम खबर की खबर के लिए अच्छा लिखने वाले हिंदी लेखकों में बाँट देंगे हम खुद कुछ नहीं रखेंगे सब कुछ ओपन रहेगा हिंदी लेखन में पैसा हो हिंदी लेखक फल फुले और इतना तो मिले ही की लेखन की लागत तो निकले इससे भी कोई बड़ा बदलाव आ सकता हे ऐसी मेरी आस हे और ये भी तय हे की हमारे आलावा ये काम कोई नहीं कर सकता हे कोई नहीं
अगर कोई पाठक इस योजना में जो मेने ऊपर बताई हे कोई सहयोग देना चाहे तो मेरा नम्बर 9582937300 हे
अर्पित द्धिवेदी
कई दशकों से दुनिया की नाक में सबसे ज्यादा दम यदि किसी ने किया है तो वह है इस्लामिक कट्टरवाद और उससे जनित आतंकवाद। सभी देश अपने अपने तरीके से इससे निपट रहे हैं लेकिन भारत में एक तेजी से उभरता वर्ग जिस तरह से इससे निपटना चाह रहा है वह चिंताजनक है। इनके तौर तरीके उन्मादियों वाले हैं जिनमें कोई सूझ-बूझ, कोई दूरगामी नीति की झलक दूर दूर तक दिखाई नहीं देती। ये माथे पर तिलक और हाथों में भगवा झंडे उठाये ऐसे धार्मिक उन्मादियों की भीड़ है जिनके पास अपना कोई दिमाग ही नहीं है। ये लोग ऐसे हैं जैसे आँखों पर पट्टी बांधकर तलवार भांजता कोई तलवारबाज। जो अपने ही लोगों को मार रहा है, जबकि उसका प्रतिद्वंद्वी दूर खड़ा हंस रहा है। इन उन्मादियों की भीड़ को अपने सुरक्षित किलों में बैठे आकाओं द्वारा अपने व्यक्तिगत हितों के लिए रिमोट से संचालित किया जा रहा है। ये वो लोग हैं जिनको समस्या की कोई वास्तविक समझ नहीं है। इनके सामने इनके आकाओं द्वारा जो विकृत सच्चाई परोसी जा रही है और उससे निपटने का जो समाधान सुझाया जा रहा है, ये बस उसी को सच मानकर सड़कों पर निकल पड़े हैं। जबकि ये नहीं जानते कि जिसे ये समाधान समझ रहे हैं वह इनको और इनकी आने वाली कौम को ऐसी मुसीबतों में फंसा देगा जिसकी भरपाई शायद हो ही न पाए।
वैसे भी धार्मिक अंधमूढ़ लोगों के समाधान अक्सर समस्या को सुलझाते नहीं बल्कि उसको और ज्यादा उलझा देते हैं। क्योंकि किसी भी समस्या के सटीक समाधान पर पहुँचने के लिए निष्पक्ष तार्किक विश्लेषण जरुरी है ताकि सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे। लेकिन निष्पक्ष और तार्किक हो पाना धार्मिक लोगों के लिए असंभव सी बात है। तो होता ये है कि सांप भी नहीं मरता और लाठी भी टूट जाती है।
ये लोग असल में इस्लामिक कट्टरपंथ का जवाब हिन्दू कट्टरपंथ से देना चाहते हैं। इनका मानना है ऐसा करके ये इस्लामिक कट्टरपंथ को परास्त कर देंगे। सच कहूँ तो मुझे इनकी मूर्खता और मासूमियत पर हंसी आती है। जो भी ऐसा सोचता है की इस्लामिक कट्टरपंथ का इलाज हिन्दू कट्टरपंथ है तो वह वास्तव में इस्लाम और हिन्दू धर्म की मूल भावना और दर्शन से बिलकुल अनभिज्ञ है।
भारत में धर्म के उदय का कारण और इसके दर्शन का मूल केंद्र जीवन, प्रकृति और ब्रह्माण्ड को लेकर मानव की सहज जिज्ञासाएं हैं। विस्तारवाद और अधिपत्य स्थापित करने की भावना इसमें अन्य पश्चिमी धर्मों की अपेक्षा बहुत कम है। यही कारण है कि भारत पर आक्रमण करने धरती के दुसरे छोर सुदूर पश्चिम तक से आक्रमणकारी चले आये लेकिन हम किसी पर आक्रमण करने कभी नहीं गए। जबकि इस्लाम के दर्शन का मूल केंद्र ही विस्तारवाद और अपने अधिपत्य की स्थापना करना है। और यह ऐसा कर पाने में बहुत सफल है क्योंकि यह लगभग अपने हर अनुयायी को म्रत्यु के भय से मुक्त कर एक समर्पित सैनिक में बदल देने की क्षमता रखता है जो दिन रात इस्लाम के विस्तार और अधिपत्य की स्थापना के लिए संघर्षशील रहता है। इस्लाम के दर्शन में यह जीवन वास्तविक जीवन नहीं है, यह सिर्फ एक टेस्ट है जो की अल्पकालिक है, असली जीवन जो की अनंतकाल तक रहेगा म्रत्यु के बाद शुरू होगा। ऐसा व्यक्ति जिसका इस दर्शन में अटूट विश्वास हो कुछ भी कर गुजर सकता है। इसके साथ ही इस्लाम का संघीय ढांचा बेहद मजबूत और अभेद है और इसके भीतर बेहद कुशल संगठनात्मक योग्यताएं भी हैं। यही कारण है कि अपने उदय के बाद मात्र कुछ ही शताब्दियों में यह पश्चिम में यूरोप की सीमाओं तक और पूर्व में मध्य एशिया को पार करते हुए भारत तक में फ़ैल गया।
इसलिए यदि आप धार्मिक कट्टरता को हथियार बनाकर इस्लामिक कट्टरपंथ से मुकाबला करने उतर रहे हैं तो आप भारी भूल कर रहे हैं। आप इसके सामने कहीं भी नहीं ठहरते। आपकी हार सुनिश्चित है। भले ही आप कितने ही कट्टर धार्मिक संगठन खड़े कर लें या आवाम में पूरे जोर शोर से धार्मिक कट्टरता का प्रचार कर लें फिर भी वह आपको उस उत्कृष्टता पर नहीं पहुंचा सकती कि आप कट्टर इस्लाम का मुकाबला कर सकें। क्योंकि आपके धर्म के डीएनए में ही वह चीज नहीं है। उस उत्कृष्टता पर पहुँचने के लिए आपको हिन्दू धर्म का पूरा दर्शन ही बदलना पड़ेगा। जो की असंभव के साथ साथ औचित्यहीन भी है।
यूँ समझिये इस्लाम अपने कट्टरतम स्वरुप में एक चतुर और खूंखार शिकारी है, जबकि हिन्दू धर्म अपने कट्टरतम स्वरुप में मात्र एक आसान शिकार। भारत की 800 वर्ष लम्बी गुलामी और इस दौरान भी हिन्दुओं में स्वतंत्रता की जनचेतना का न पैदा हो पाना इस बात का स्पष्ट प्रमाण है कि हिन्दू धर्म में वर्चस्व और अधिपत्य स्थापित करने की भावना अन्य धर्मों की अपेक्षा कितनी कम है। भारत में स्वतंत्रता की चेतना भी अंग्रेजों के आगमन के बाद अंग्रेजी शिक्षा के प्रसार के कारण पैदा हुए वैज्ञानिक द्रष्टिकोण का परिणाम थी। भारत के जनमानस को वैज्ञानिक द्रष्टिकोण से विमुख कर धार्मिक कट्टरता की ओर मोड़ देने के विनाशकारी परिणाम हो सकते हैं। क्योंकि कट्टरता की इस प्रतिस्पर्धा में कट्टर इस्लाम का जीतना तय है। किसी भी समाज में बढती धार्मिक कट्टरता और घटता वैज्ञानिक द्रष्टिकोण कट्टर इस्लाम के लिए शुभ संकेत है। क्योंकि यह उसको वह अनुकूल वातावरण प्रदान करता है जहाँ वह अपने सभी प्रतिद्वंद्वियों को परास्त कर अपना वर्चस्व आसानी से स्थापित कर सकता है। एक युक्ति से समझाने की कोशिश करता हूँ।
मगरमच्छ पानी के भीतर एक शक्तिशाली और अपराजेय शिकारी है। आपको यदि तैरना भी ठीक से न आता हो और आप पानी में घुसकर मगरमच्छ से लड़ने की योजना बना रहे हैं तो आप आत्महत्या की तैयारी ही कर रहे हैं। पानी में मगरमच्छ को पराजित करना असंभव है। क्योंकि उसके शरीर का एक एक अंग पानी में शिकार करने के लिए ही विकसित हुआ है। पानी के भीतर वह अपने से कई गुना बड़े जानवरों को भी चित कर सकता है। इसलिए मगरमच्छ को पराजित करने के लिए पानी में घुसना बेवकूफी है। बेहतर है कि उसे पानी से निकलने पर मजबूर कीजिये और फिर जमीन पर उसे मात दीजिये। ठीक इसी तरह यदि इस्लामिक कट्टरपंथ को मात देनी है तो स्वयं कट्टरता में मत उतरिये, क्योंकि वहां आप उसे मात नहीं दे पायेंगे बल्कि उसकी राह ही आसान करेंगे। दुनिया में कट्टरपंथ का तालाब जितना बढेगा इस्लामिक कट्टरपंथ के मगरमच्छ को फलने फूलने का उतना ही अवसर मिलेगा। हमें इस तालाब के दायरे को बढाने में सहयोग नहीं देना चाहिए, बल्कि समाज में वैज्ञानिक द्रष्टिकोण का ज्यादा से ज्यादा प्रसार करना चाहिए। ताकि कट्टरपंथ का ये तालाब सिकुड़े और मगरमच्छ को आसानी से मारा जा सके।इसलिए यदि आप धार्मिक कट्टरता के वशीभूत होकर मुसलमानों के खिलाफ दिन रात जहर उगल रहे हैं, उनके प्रति अपनी नफरत का इजहार कर रहे हैं, उनको पीटकर या उनकी हत्या करके इस्लामिक कट्टरपंथ को पराजित करने का गर्व पाल रहे हैं तो इस मुगालते से जितना जल्द हो सके बाहर आईये। ऐसा करके आप इस्लामिक कट्टरपंथ को और ज्यादा फलने फूलने का अवसर ही प्रदान कर रहे हैं। आपकी ये हरकतें इस्लामिक कट्टरपंथियों के लिए उनके कुत्सित मंसूबों को पूरा करने की राह ही आसान कर रही हैं। ऐसा करके आप बिल्कुल वही कर रहे हैं जैसा वे चाहते हैं। वे तो चाहते ही हैं कि भारतीय समाज में हिन्दू और मुस्लिमों की बीच वैमनस्य बढ़े। ताकि वे बदले की भावना से भरे ज्यादा से ज्यादा लोगों को अपनी विचारधारा की ओर आकर्षित कर सकें। जब कोई पहलू खान पीट पीटकर मार दिया जाता है या फिर कोई शम्भू किसी अफराजुल शेख की निर्ममता से हत्या कर देता है और फिर उसके समर्थन में तमाम हिन्दू संगठन सड़कों पर उतर पड़ते हैं। उसको आर्थिक सहायता पहुँचाने के लिए बाकायदा कैम्पेन चलाये जाते हैं तो ये बहुत खतरनाक स्थिति है। क्योंकि उससे पैदा हुए क्रोध, भय और असुरक्षा के कारण कट्टरपंथियों के लिए कुछ और मुसलमानों को गंगा जमुनी तहजीब से विमुख कर कट्टरता की ओर मोड़ देना बहुत आसान हो जाता है। आतंकवादियों को ऐसी ही घटनाओं का हवाला देकर जेहाद के लिए तैयार किया जाता है। इस तरह आप अपने घर में ही दुश्मन पैदा कर लेते हैं।आपको याद रखना चाहिए आपकी लड़ाई इस्लामिक कट्टरपंथ से है मुसलमानों से नहीं। यदि आप इन दोनों में फर्क नहीं कर पा रहे हैं और दोनों को एक ही तराजू में तोल रहे हैं तो आप भारी भूल कर रहे हैं। इस भूल की भरपाई आपको भविष्य में भीषण गृहयुद्ध के रूप में करनी पड़ सकती है। जिसमें न केवल जानो माल की भारी क्षति होगी बल्कि देश का विकास बुरी तरह प्रभावित होगा और देश कई दशक पीछे चला जायेगा। हो सकता है इस कारण से देश को एक और विभाजन झेलना पड़ जाए। क्योंकि मुस्लिम समुदाय संख्या के लिहाज से देश का दुसरे नम्बर का समुदाय है। जब आप मुस्लिम समुदाय की बात करते हैं तो आप 18 करोड़ लोगों की बात कर रहे हैं। यदि आप सोचते हैं कि वे सभी इस देश को छोड़कर कहीं और चले जायें या फिर वे सभी घरवापसी करके हिन्दू बन जायें तो ये असंभव बात है। दोनों समुदाय आपस में समन्वय से रहें ऐसा ही कोई मार्ग निकालना होगा। यही देश हित में है। धार्मिक और राजनितिक ताकतें अपने व्यक्तिगत स्वार्थ के लिए आपको लगातार जिस राह पर चलने के लिए उकसा रही हैं वह राह सिर्फ और सिर्फ बर्बादी की ओर जाती है।
इस्लामिक कट्टरपंथ से निपटने के लिए आपको हिन्दू कट्टरपंथ की शरण में जाने, मुसलमानों के प्रति घ्रणा पालने और उनसे दो दो हाथ करने की जरुरत नहीं है। इससे निपटने का एक ही तरीका है कि समाज में ज्यादा से ज्यादा वैज्ञानिक द्रष्टिकोण का प्रसार किया जाए, समाज को धार्मिक कूपमंडूकता से मुक्त कर स्वतंत्र सोच को विकसित होने का अवसर प्रदान किया जाये। क्योंकि यही वे चीजें हैं जिससे इस्लामिक कट्टरपंथियों को सबसे ज्यादा तकलीफ होती है। क्योंकि यही इनकी सत्ता के लिए सबसे बड़ा खतरा हैं। इनका बस चले तो दुनिया से सारा ज्ञान विज्ञान नष्ट करके इसे वापस मध्य युग में पहुंचा दें। आज दुनिया में बढती आधुनिक शिक्षा और वैज्ञानिक द्रष्टिकोण के कारण इनके पेटों में मरोड़ें उठती हैं। क्योंकि आधुनिक शिक्षा और मोबाइल इन्टरनेट के कारण ज्ञान तक बढती पहुँच के कारण बहुत से मुस्लिम कट्टरता को त्याग रहे हैं। आज मुस्लिमों में बढती नास्तिकता इनकी चिंता का मुख्य केंद्रबिंदु है। इसलिए ये हमेशा आधुनिक शिक्षा का विरोध करते हैं। निर्मम हत्याओं के लिए कुख्यात आतंकवादी संगठन बोको हराम की आधारशिला आधुनिक शिक्षा के विरोध पर रखी है। बोको हराम का अर्थ ही है पश्चिमी शिक्षा हराम है। आज के दौर में यदि कोई चीज इनको सबसे ज्यादा खौफजदा कर रही है तो वह यही है जिसको रोकने के लिए ये अपनी ओर से भरसक प्रयास कर रहे हैं। इसलिए यदि आप वास्तव में इस्लामिक कट्टरपंथ को परास्त करने के लिए गंभीर हैं तो हमें उन सभी मोर्चों पर काम करना होगा जिससे समाज में वैज्ञानिक द्रष्टिकोण बढ़े।
सबसे पहला काम तो शिक्षा के मोर्चे पर करने की जरूरत है। हमें सरकार पर दवाब बनाना चाहिए कि वह देश में सभी को गुणवत्ता युक्त शिक्षा उपलब्ध कराना सुनिश्चित करे। शिक्षा के पाठ्यक्रमों में व्यापक बदलाव हो ताकि समाज में वैज्ञानिक द्रष्टिकोण को बढाया जा सके। साथ ही हमें एकजुट होकर सरकार से मांग करनी चाहिए कि वह बच्चों को धार्मिक शिक्षा देने वाले सभी धार्मिक शिक्षण संस्थानों ‘फिर चाहे वे मदरसे हों या आश्रम’ पर पूरी तरह प्रतिबन्ध लगाये। बच्चे किसी धर्म विशेष की बपौती नहीं हैं, बच्चे राष्ट्र की संपत्ति और देश का भविष्य हैं। इसलिए आधुनिक गुणवत्तायुक्त शिक्षा पर सभी बच्चों का हक है जो उनको हर हाल में मिलनी ही चाहिए। धार्मिक शिक्षा लेने न लेने का निर्णय वे बालिग होने पर कर सकते हैं।
दूसरा काम जिसके लिए जोर शोर से प्रयास किया जाना चाहिए वह है देश में सभी धार्मिक कानूनों को समाप्त करके एक समान नागरिक संहिता की स्थापना। धार्मिक कानूनों के कारण समाज में धर्म के ठेकेदारों को कुछ विशेषाधिकार प्राप्त हो गए हैं जिसकी आड़ में वे न केवल समाज का शोषण करते हैं बल्कि लोगों को डरा धमकाकर धार्मिक नियमों को मानने के लिए बाध्य करते हैं। नागरिक कानूनों में धर्म का बिल्कुल भी दखल नहीं होना चाहिए। देश के सभी नागरिकों को समान अधिकार प्राप्त होने चाहिए।
तीसरा काम सार्वजानिक रूप से किये जाने वाले किसी भी तरह के धार्मिक प्रचार पर रोक। किसी को भी सार्वजानिक रूप से धार्मिक प्रचार अथवा वैज्ञानिक द्रष्टिकोण के विरुद्ध किसी भी बात का प्रचार करने की अनुमति नहीं होनी चाहिए। सार्वजानिक सभाओं के अतरिक्त संचार के सभी साधनों जैसे रेडियो, टीवी, अख़बार, पत्रिकाएं, मोबाइल इत्यादि पर ऐसा कोई भी प्रचार करना अवैध होना चाहिए। यदि किसी को धार्मिक प्रचार करना है तो वह सिर्फ व्यक्तिगत संपर्क के माध्यम से ही किया जा सके ऐसा कोई नियम बनना चाहिए।
इसके अतरिक्त सभी लोग जो वैज्ञानिक द्रष्टिकोण रखते हैं समाज में इसका ज्यादा से ज्यादा प्रसार करें और वैज्ञानिक द्रष्टिकोण के विरुद्ध होने वाले सभी कार्यों की कड़ी आलोचना करें तथा ऐसा करने वालों को हत्सोत्साहित करने का हर संभव प्रयास करें। इसके साथ ही समाज में दोनों समुदायों के बीच मेलजोल का प्रयास भी करना होगा। इसके लिए त्योहारों को मिलजुल कर मनाने की परम्परा के साथ साथ अंतरजातीय विवाहों को बढ़ावा देना भी एक अच्छा विकल्प हो सकता है।ये कुछ सुझाव हैं जो मेरी समझ में आते हैं जिनसे हम न केवल इस्लामिक कट्टरपंथ से बेहतर ढंग से निपट सकते हैं बल्कि अपने समाज को भी एक बेहतर प्रगतिशील समाज बना सकते हैं। इनके अतरिक्त भी और बहुत से सुझाव ऐसे हो सकते हैं जो अपनाये जा सकते हैं। यदि आपके पास भी कोई ऐसा सुझाव या विचार है तो आप कमेंट में सुझा सकते हैं।
यदि आप अति धार्मिक हैं तो हो सकता है ये सुझाव आपको समझ न आयें। लेकिन इस मामले में आप चाहें तो पश्चिम से सीख सकते हैं। उन्होंने इस्लामिक कट्टरपंथ से निपटने के लिए वैज्ञानिक द्रष्टिकोण का दामन नहीं छोड़ा, न ही धार्मिक कट्टरता को अपनाया। और आज वही हैं जो न केवल इसका मुकम्मल इलाज कर रहे हैं बल्कि अपनी सूझ बूझ से इसको अपने फायदे के लिए इस्तेमाल भी कर रहे हैं।