by — मोहम्मद जाहिद
अमित शाह के व्यवहार और भाषा से यह स्पष्ट हो रहा है कि भाजपा कर्नाटक चुनाव हारने जा रही है।
दरअसल भाजपा के केन्द्रीय मंत्रियों की लफ्फाजी और धुर्त राजनैतिक बयान वहाँ की जनता भाषा के कारण समझ ही नहीं पा रही है , ऊपर से जो ट्रान्सलेटर हैं वह भाजपा के मंच से अमित शाह की मौजूदगी में भाजपा और मोदी को कभी विनासकारी बता रहे हैं तो कभी भ्रष्टाचारी बता रहे हैं।
अमित शाह खुद येदुरप्पा की मौजूदगी में येदुरप्पा को भारत का सबसे भ्रष्ट मुख्यमंत्री घोषित कर चुके हैं।
जैसे जैसे चुनाव करीब आएगा वैसे वैसे इनका यह व्यवहार बढ़ता जाएगा क्युंकि कर्नाटका की ग्रामीण जनता कन्नड़ ही समझती है , इनकी हिन्दी में की गयी फेकमफाक उसके समझ से बाहर की बात है।
कर्नाटका चुनाव में मुख्यमंत्री सिद्धरमैय्या ने खुद को कर्नाटक के स्वाभिमान से वैसे ही जोड़ लिया है जैसे नरेन्द्र मोदी ने गुजरात स्वाभिमान से खुद को जोड़ लिया है। वहाँ का चुनाव सिद्धरमैय्या और अमित शाह के बीच हो गया है , अंत में मोदी भी कूदेंगे।
सिद्धरमैय्या की फेंकी गुगली में भाजपा फँस गयी है और अमित शाह की रणनीति यहाँ ध्वस्त हो गयी है , सिद्धरमेय्या के लिंगायत समुदाय को अलग धर्म की मान्यता देने और अमित शाह के द्वारा इसे इन्कार करने पर कर्नाटका के 18% लिंगायत में बिखराव आ गया है जो कि येदुरप्पा के लिंगायत होने के कारण पूरा का पूरा वोट भाजपा के साथ था।
कल लिंगायत समुदाय के 200 मठों ने अमित शाह के बयान की निंदा करते हुए कांग्रेस को समर्थन देने की घोषणा की , यह भाजपा के लिए “बाढ़” की स्थीति होगी।
https://www.bbc.com/hindi/india-43681248…
इसी कारण अमित शाह अपने विरोधी दलों की एकजुटता को कुत्ता , बिल्ली , साँप , नेवला , चूहा इत्यादि इत्यादी के एक होने को कह रहे हैं , यह उनकी बौखलाहट का प्रतीक है जबकि भाजपा खुद इस समय 46 पार्टी के साथ गठबंधन में है।
खुद देखिए
1- शिव सेना
2- शिरोमणि अकाली दल
3- लोक जन शक्ति पार्टी
4 – अपना दल
5 – तेलगु देशम पार्टी
6 – जनता दल यूनाइटेड
7 – भारतीय समाज पार्टी
8 – जम्मू एंड कश्मीर पीपुल डेमोक्रेटिक फ्रंट
9 – राष्ट्रीय लोक समता पार्टी
10 – स्वाभिमानी पक्ष
11 – महान दल
12 – नागालैंड पीपुल्स पार्टी
13- पट्टाली मक्कल काची
14- ऑल इंडिया एन आर कांग्रेस
15- सिक्किम डेमोक्रेटिक फ्रंट
16- रिपब्लिक पार्टी ऑफ इंडिया
17- बोडोलैंड पीपुल्स फ्रंट
18 – मिजो नेशनल फ्रंट
19 – राष्ट्रीय समाज पक्ष
20- कोनगुनडाउ मक्कल देसिया काची
21- शिव संग्राम
22 – इंडिया जनानयगा काची
23 – पुथिया निधि काची
24- जना सेना पार्टी
25 – गोरखा मुक्ति मोर्चा
26 – महाराष्ट्र वादी गोमांतक पार्टी
27 – गोवा विकास पार्टी
28- ऑल झारखंड स्टूडेंट यूनियन
29 – इंडिजन्यस पीपुल्स फ्रंट ऑफ त्रिपुरा
30 – मणिपुर पीपुल्स पार्टी
31 – कमतपुर पीपुल्स पार्टी
32 – जम्मू कश्मीर पीपुल्स कांफ्रेंस
33- हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा
34- केरला कांग्रेस (थॉमस)
35 – भारत धर्म जन सेना
36- असम गण परिषद
37 – मणिपुर डेमोक्रेटिक पीपुल्स फ्रंट
38- प्रवासी निवासी पार्टी
39- प्रजा सोशलिस्ट पार्टी
40 – केरला विकास कांग्रेस
41- जनाधीय पठाया राष्ट्रीय सभा
42 – हिल स्टेट पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी
43 – यूनाइटेड डेमोक्रेटिक पार्टी(मेघालय)
44 – पीपुल्स पार्टी ऑफ अरुणांचल
45 – जनाठीपथिया संरक्षण समित
46 – देसिया मुरपोक्क द्रविड़ कड़गम
46 पार्टियों से खुद गठबंधन कर देश प्रदेश में सरकार चला रही भाजपा के अध्यक्ष को विरोधी पार्टियाँ जानवर लगती हैं तो समझिए कि इनकी भाषा बताती है कि इनका समयचक्र कर्नाटक चुनाव परिणाम के बाद उल्टा घूमने लगेगा।
यही नहीं , हार के डर से बौखलाहट लिए अमित शाह अपने धर्म पर सफाई दे रहे हैं , मुसलमानों को देशभक्ति का प्रमाणपत्र देने वाले गिरोह का सरदार अपने धर्म का प्रमाणपत्र कर्नाटक के मुख्यमंत्री को दे रहा है , वह भी झूठा।
अमित शाह खुद को सात पुश्तों से वैष्णव हिन्दू बता रहे हैं , यह वोट के लिए धर्म क्या अपना बाप भी बदल सकते हैं , हकीकत सारा गुजरात जानता है कि अमित शाह “जैन बनिया” हैं , उनकी चार बहनों की शादी भी जैन लोगों से ही हुई है।
और देखना है तो चुनाव आयोग को दिये उनके शपथपत्र को देखिए , इनका झूठ समझ में आ जाएगा।
कांग्रेस यदि कर्नाटक चुनाव जीतती है और उस जीत का प्रयोग करके कांग्रेस अध्यक्ष सड़क पर उतरते हैं तो मोदी जी का 2019 में पैकअप निश्चित है क्युंकि फिर पूरे विपक्ष को राहुल गाँधी के नेतृत्व को स्विकारना ही होगा , और फिर लोकसभा चुनावों के पहले राजस्थान , मध्यप्रदेश और छत्तिसगढ़ से भाजपा की निश्चित विदायी भाजपा के ताबूत के तीन अन्य कोनों में किल ठोक देंगें।
अमित शाह की बौखलाहट इसी कारण है।
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Deepak Sharma
11 April at 23:23 ·
एक अरब नागरिकों की महाशक्ति बनते ही भारत को जब ‘ब्लू बिलियन’ की संज्ञा दी गयी तो इस प्रचंड जनसंख्या की गणित से दुनिया घबराने सी लगी । इसकी एक वजह चीन की कुटिल नीतियां थीं जिसने सबसे पहले ये जताया कि प्रचंड जनसँख्या की भी अलग ऊर्जा और शक्ति होती है। ‘न्यूमेरिकल स्ट्रेंथ’ यानी संख्यात्मक शक्ति का अपना प्रभाव होता है। इसे अगर सही दिशा में प्रयोग किया जाए, तो सुपरपावर बना जा सकता है । और सही मायनो में चीन ने अपनी भीड़ को बोझ में नहीं, बल में बदलकर दुनिया को इस शक्ति का अहसास कराया है । चीन के इस महाप्रयास के परिणाम आज सबके सामने हैं।
ये सही है कि दस साल के यूपीए राज के बाद जब मोदी 2014 में सत्ता परिवर्तन के यज्ञ में लीन थे तो उन्होंने देश को यही सन्देश दिया था कि उनकी सरकार बनी तो वे ‘ब्लू बिलियन’ को एक महाशक्ति में परिवर्तित करेंगे। वे इस नीले समंदर की ताकत सबको दिखाएंगे। उनके सपने बड़े थे, सकारात्मक थे और जिस तरह चुनावी अभियान में हर वचन को उन्होंने वजन के साथ मार्केट किया, उससे पहली बार सबको लगा कि ये शख्स कुछ कर सकता है। 2014 के चुनावी नतीजे कहीं और भी ज्यादा सार्थक निकले और फिर ऐसा लगने लगा जैसे कि इस अभागे देश को भी कोई शी जिनपिंग कोई डेंग मिल गया है। हम मान बैठे कि ब्लू बिलियन वाले देश को आखिरकार एक दिशा , एक गति मिल गई है।
लेकिन आज चार साल बाद जब अखबारों की सुर्ख़ियों पर, चैनल की हेडलाइंस पर निगाह जाती है तो लगता है मोदी इस भीड़ को बल में बदल नहीं पाए। उन्होंने प्रचंड बहुमत वाले फ्री हिट जैसे मौके को खो दिया। वे समूची पारी में एक भी करिश्माई शॉट न खेल सके। चीन के फॉलो ऑन को हम बैक फुट पर जाकर कैसे फ़तेह करेंगे ? आज सच में, मन क्षुब्ध है। फ़्रस्ट्रेटेड है। हर ओर निराशा पसरी दिखती है। सुबह हो या शाम, आज जब भी हम टीवी आन करते हैं तो कहीं पकौड़ी बनाम छोले भठूरे और कहीं उपवास बनाम उपहास की चर्चा सुनते हैं। राष्ट्रीय मीडिया पर इतनी छिछली बहस हमने बीते पंद्रह वर्षों में कभी नहीं देखी । पर आयना झूठ क्यों बोलेगा, अगर छोले भठूरे लोकसभा में भी छाये हों। पकौड़ी राज्य सभा में भी छानी जा रही हो। सियासत का मिजाज ही इतना छिछला है तो पत्रकार क्या करें ?
दरअसल, कोई रोजगार पर, रोजी पर बहस ही नहीं चाहता है । क्या ये सच नहीं कि आज भारत में नए कारखानों की जगह सिर्फ उबर, ओला, अमेज़न और फ्लिपकार्ट है। डिजिटल इंडिया की जगह पर वीवो और ओप्पो है। यूँ तो देश में मर्सेडीज़ और बीएमडब्लू की फैक्टरियां लगाई गयी हैं लेकिन हमे मालुम है कि इन फैक्टरियों में भी आँखों में धूल झोंकी जा रही है। इंजन से लेकर गाड़ी की सारी किट जर्मनी से लाकर यहाँ असेम्बल की जाती है। कंप्यूटर हो, एलईडी टीवी हों, मोबाइल फोन हो, कुछ भी देश में नहीं बन रहा है। सिर्फ कस्टम ड्यूटी बचाने के लिए यहाँ प्रोडक्ट असेम्बल हो रहा है। बाहर से पुर्ज़े लाकर यहाँ जोड़ने से ये देश कैसे चीन को पिछाड़ेगा? कोई सोचता क्यों नहीं ? देश निर्माण की सोच में इतना दिवालियापन कैसे है ?
मार्क ज़करबर्ग के व्हाट्सऐप और फेसबुक पर भी, देश को ऊर्जा देने वाला कुछ भी नहीं दिख रहा है। कहीं सवर्ण और दलितों में वैचारिक युद्ध हैं तो कहीं मुसलमान और हिन्दू की छींटाकशी वाले असंख्य पोस्ट हैं । समाज को जोड़ने का काम तो मोदी और राहुल के कॉडर भी नहीं कर रहे हैं । उनका हर कथन, कमर के नीचे वाले वार से ज्यादा घातक हैं। और देश में बाकी कमी दलित, जाट, गुजर, पंडित और ठाकुरों के बेरोजगार बेटे आगजनी से पूरी कर रहे हैं।
यार वाकई, ये ब्लू बिलियन कहाँ जा रहा है?
यार कहीं तो हस्तक्षेप करिये ?
कहीं तो टोकिये ?
कुछ तो बोलिये ?
ब्लू बिलियन हैं आप !
रंगा बिल्ला नहीं !!
Rajiv Nayan Bahuguna Bahuguna
9 April at 08:13 · Ghaziabad ·
दो दिन से दिल्ली में हूँ , और खूब देख – समझ रहा हूँ कि यहां के मुख्य मंत्री अरविंद केजरीवाल को कॉंग्रेस और भाजपा क्यों पानी पी पी कर कोसते नहीं अघाते ।
केजरीवाल ने उन्हें कहीं न छोड़ा । भ्रष्टाचार मुक्त शासन की मिसाल कायम कर उनका जीना दूभर कर दिया ।
कांग्रेस , भाजपा के राज में बिजली मेहमान की तरह आती थी , और बिल हज़ारों , लाखों में । अब सतत विद्युत आपूर्ति के बावजूद बिजली का बिल 3 अंकों में आता है । हर नागरिक के लिए उत्कृष्ट उपचार सुलभ है । निजी स्कूलों की धांधली पर रोक लगी । cm की सवारी गुजरते वक़्त अन्य मुसाफिरों को जाम से हलकान नहीं होना पड़ता । मुख्यमंत्री कलफ चढ़ी सिल्क अथवा खादी की झकाझक पोशाक नहीं , अपितु किसी दफ्तर के बाबू की तरह सामान्य ड्रेस पहनता है । इस पर हरामखोर , मुफ्तखोर , टुकड़खोर और चुगल खोर उसका मजाक उड़ाते हैं ।
कभी नहीं सुना , की कहीं बिजली के दाम घटे हों । यह दिल्ली में देखा । क्योंकि भाजपा , कॉंग्रेस शासित राज्यों में बिजली का वितरण और बिल वसूली निजी हाथों में हॉइ । निजी संस्थान गुंडागर्दी कर मनमाने दाम वसूलते । फिर उस वसूली की चवन्नी डीएम से लेकर सीएम तक बंटती ।
मैं जब बिहार में नौकरी करता था , तो एक रोचक घटना सुनी । हरचरना चमार का बेटा धड़ा धड़ बीए पास कर गया , जबकि उसी का हम उम्र , तपेश्वर बाबू ठाकुर साहब का कुंवर 10वीं में 4 बार फेल कर गया । इस पर ठाकुर साहब चमार को धमकाए – रे चमरा , अपने बेटा को चेताओ । हमारा सोमेश्वर 10वीं में 4 बार फेल , और तुम्हारा मंगतू बीए पास ? वह होश में आये , और पास होना बंद करे । अन्यथा हम तुम्हारा मार जूता अक़्ल ठिकाने लगा देंगे ।
दिल्ली में केजरीवाल के साथ यही हो रहा है । मेरी सम्वेदनाएँ कॉंग्रेस , बीजेपी के साथ हैं ।
Rajiv Nayan Bahuguna Bahuguna
12 April at 12:17 · Dehra Dun ·
महात्मा गांधी जी के पौत्र राजमोहन गांधी आज देहरादून में मेरे पिता से मिलने आये । एक कदली कुंज के तले आधा धूप तथा आधा आधा छांव में दोनों गांधी जन भूमिपर बैठे ।
कल मैं राजमोहन भाई के व्याख्यान में शामिल था । कल के व्याख्यान ने मेरी जानकारी एवं धारणाएं पुष्ट कीं ।
1:- गांधी ने लार्ड इरविन से भगत सिंह इत्यादि की फाँसी माफ करने का आग्रह किया । इरविन ने उनकी हर बात की तरह यह बात भी नहीं मानी । गांधी और भगत सिंह दोनों के द्रोही दुष्ट संघी यह दुष्प्रचार करते हैं कि गांधी ने भगत सिंह को बचाने के लिए कुछ नहीं किया ।
2:- नेता जी सुभाष चन्द्र बोस एवं गांधी के मध्य वैचारिक मतभेद अवश्य थे , किंतु परस्पर अगाध स्नेह एवं श्रद्धा भाव भी था । गांधी को सर्व प्रथम राष्ट्र पिता की संज्ञा सुभष ने ही दी थी । गांधी भी उनको राष्ट्र का सच्चा सपूत मानते थे ।
राजमोहन जी एक लंबे , छरहरे और सरल मनुष्य हैं । उनके पिता देवदास गांधी ने 1947 में मेरे पिता को हिंदुस्तान टाइम्स का अंश कालिक संवाददाता बनाया , जब वह इस अखबार के सम्पादक थे । मेरे पिता ने यह ड्यूटी 75 वर्ष की उम्र तक निभाई ।
मेरे लिए भी गांघी के वंशज से मिलना आल्हाद का क्षण था । क्योंकि लोहिया की तरह मैं भी ” कुजात गांधी वादी ” हूँ ।
Rajiv Nayan Bahuguna Bahuguna
Yesterday at 06:55 ·
निसन्देह डॉ भीमराव अंबेडकर कभी भारतीय स्वाधीनता संग्राम में जेल नहीं गए , बल्कि अन्य स्वाधीनता प्रेमियों के उलट अंगेज़ी पोशाक कोट , पैंट , टाई पहनते रहे । लेकिन यदि वह दलित – दमितों के पक्ष में चटान की तरह दृढ़ न रहते , तो आज भारत की स्वाधीनता निरर्थक होती । अंग्रेजों से आज़ाद होने के बाद भी भारत मे दलितों के रूप में एक बड़ा गुलाम समुदाय होता । वस्तुतः आम्बेडकर का अंग्रेज़ी पोशाक पहनना अथवा बौद्ध धर्म स्वीकारना प्रतीकात्मक था , जिसके जरिये वह भारत के दलित समुदाय की दुर्दशा को रेखांकित करना चाहते थे ।
वह गांधी से जी भर भिड़े , लेकिन दोनों महा पुरुषों के अन्तर्सम्बन्धों को गहराई से देखे जाने की आवश्यकता है । पृथक निर्वाचक मंडल पर अम्बेडर की मांग के विरुद्ध जब आमरण अनशन से गांधी का जीवन खतरे में पड़ गया , तो एक मानवीय , राष्ट्र भक्त तथा समतावादी व्यक्तित्व का परिचय देते हुए आम्बेडकर अपनी मांग से पीछे हट गए । इसी तरह संविधान सभा मे आम्बेडकर के जीतने का सतुना न होते देख गांघी ने बाला साहेब खेर और मोरारजी देसाई से कह कर आम्बेडकर को मुंबई से जितवा कर भिजवाया ।
तिब्बत पर चीन के खतरे को सर्वप्रथम आम्बेडकर ने ही ताड़ा , और शोर मचाया ।
यह भी सोचिए कि हिन्दू धर्म मे अस्पृश्यता के कोढ़ से अघाये आम्बेडकर यदि आज़ादी से पहले बौद्ध की बजाय मुसलमान बन जाते , और अपने करोड़ों अनुयायियों को भी ऐसा करने की प्रेरणा देते , तो आबादी के लिहाज से तब हिन्दू – मुस्लिमों की संख्या बराबर हो जाती , और आधा हिंदुस्तान आज पाकिस्तान में होता ।मुस्लिम लीग उन पर ऐसा करने के लिए दबाव डाल रही थी ।
दुर्भाग्य कि ऐसा देश भक्त कभी किसी अनारक्षित सीट से चुनाव नहीं जीत पाया । न केवल आम्बेडकर , अपितु एक संघ प्रिय गौतम का अपवाद छोड़ कोई दलित कभी भी जनरल सीट से चुनाव नहीं जीत पाया । जिस दिन कोई दलित अन रिज़र्व सीट से चुनाव जीतने लगेगा , तब मैं समझूंगा कि भारत मे अब आरक्षण की दरकार नहीं है ।ajiv Nayan Bahuguna Bahuguna
8 hrs ·
अभी मैं अपने मुहल्ले के पास साईं बाबा के कीर्तन – भंडारे में बैठा हूँ । इसका कारण यही है कि आयोजक मेरे मित्र हैं तथा घटना मेरे पड़ोस में घटित हो रही है । भजन के बाद भोजन प्रमुख आकर्षण है । सिख खालसा पंथ को मैं सर्व श्रेष्ठ इसी लिए मानता हूं कि वे भाषण की बजाय भोजन करवाते हैं । यही बात कमोवेश साईं बाबा पर लागू होती है ।
जहां तक मैने पढ़ा है , साईं बाबा महाराष्ट्र में शिरडी गांव में रहते थे । उनके हिन्दू या मुस्लिम होने का कोई पता न था । उन्होंने 1857 की ग़दर में भी भाग लिया था । भीख मांग कर खाते थे , तथा उसमें से भी बांट देते थे । इन सब कारणों से मेरी उनमे जिज्ञासा बढ़ी । वह 1920 के आसपास मरे । उनके जीते जी सेठों ने उन्हें भगवान बना दिया था , जब कि वह भगवान नहीं थे । क्योंकि भगवान कोई नहीं है । उनका एक चित्र मिलता है , जिसमे एक मार वाड़ी सेठ उनके ऊपर छतरी ताने खड़ा है । मुंबई पास होने के कारण फ़िल्म वालों की भी उनमे रुचि बढ़ी तथा उन पर फिल्में बनीं । इससे वह और पॉपुलर हो गए ।
हमारे एक शंकराचार्य ने हाल में उनका खूब खंडन किया । कारण साईं बाबा की लोकप्रियता थी । किसी भी हिन्दू मन्दिर से अधिक चढ़ावा साईं मंदिरों में आता है । शंकराचार्य की मुख्य 2 आपत्तियां थीं । पहली की साईं बाबा मुसलमान था । तथा दूसरी यह कि वह लोगों के मुंह मे जबरन मीट का टुकड़ा ठूंसता था । दोनो आपत्तियां बकवास हैं । यदि वह मुसलमान भी थे तो क्या फर्क पड़ता है ? उनके नाम पर आज भी कहीं दंगा नहीं होता । और मेरे मुंह मे किसी ने आजतक किसी साईं मन्दिर में मीट का टुकड़ा नहीं ठूंसा । यद्यपि मुझे उसकी प्रतीक्षा है ।
साईं बाबा के बाद एक लम्पट व्यक्ति मद्रास में हुआ , जो पक्षी के घोंसले जैसे घुंघराले बालों की जटा रखता था । वह स्वयं को साइ बाबा का अवतार बता कर उनकी लोकप्रियता का दोहन करता रहा । पमुलपति व्यंकट नरसिंह राव भी इसका भक्त था । इस वजह से यह बाबा पहली ही नज़र में मेरी दृष्टि में संदिग्ध हो गया । क्योंकि नरसिंह राव स्वयं एक गड़बड़ व्यक्ति था , तथा चंद्रा स्वामी का भी चेला था ।
अंततः – साईं बाबा भगवान नहीं हैं । कोई भी भगवान नहीं है । लेकिन उनके नाम पर भंडारा चलते रहना चाहिए ।Rajiv Nayan Bahuguna Bahuguna
6 hrs ·
2019 में प्रधान मंत्री पद के लिए मेरी क्रमशः 10 पसन्द
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1:- माणिक सरकार , त्रिपुरा के कम्युनिस्ट नेता , वस्तुतः एक गांधीवादी चरित्र
2:- ममता बनर्जी , हवाई चप्पल पहनने वाली cm ,भ्रष्ट और साम्प्रदायिक तत्वों का गला पकड़ कर उन्हें चप्पल से मारने का माद्दा रखने वाली शेरनी
3:- अरविंद केजरीवाल, भाषण को आचरण में उतारने वाले , जुझारू एवं निर्भीक पुरुष ।कांग्रेस , bjp दोनों के दुःस्वप्न
4:- मायावती :- आयरन लेडी , अपनी पार्टी के बलात्कारियों को अपने घर बुलवा कर अरेस्ट करवाने वाली
5:- लालू प्रसाद यादव :- साम्प्रदायिकता से कभी कोई समझौता नहीं , ग्रामीणों में आत्म विश्वास के संचारक
6:- लाल कृष्ण आडवाणी :- दंगों का और मस्जिद तुड़वाने का फल चख चुके । अब एक निरीह तथा भयभीत वृद्ध
7:- मनमोहन सिंह , आजन्म भद्र , आ मरण भद्र
8:- दिग्विजय सिंह :- सद्यः लम्बी पदयात्रा से स्वयं को सिद्ध किया । सम्पदायिकता के चिर शत्रु
9:- नवीन पटनायक :- ब शर्ते हिंदी अथवा उड़िया सीखें
10:- राहुल गांधी :- ड्रामे , तमाशे बन्द कर बूढ़े चाटुकारों को धक्का मारें । दलितों के घर बार बार जा कर उन्हें तंग न करें , उन्हें अपने घर बुलवाएं
आप मित्र जन भी अपनी राय देंSubodh Rai
9 April at 11:53 ·
ना हिंदू मुसलमान कर पाई ना दलित दलित खेल पाई ना भूखे लोगों को ये समझा पाई कि हक मांगना देशद्रोह है। #दिल्ली_सरकार ने दो साल में #सरकारी_स्कूल को प्राइवेट स्कूल से बेहतर बनाने में करोड़ों रूपए बर्बाद कर दिए। जो गरीब बच्चे बड़े होकर दंगे फसाद जैसे न्यू इंडिया मिशन के काम आ सकते थे उन बच्चों को दिल्ली सरकार ने पढ़ाई जैसे फिजूल के काम में झोंककर अमित भाई शाह के सपने को चकनाचूर कर दिया। #ABP_न्यूज़ ने दिल्ली सरकार की साजिश का पर्दाफाश किया है। देखिए हिंदू मुसलमान के दौर में दिल्ली सरकार के सरकारी स्कूलों में बच्चों के भीतर के दंगाई और नफरती हो जाने के हुनर का कैसा गला घोटा जा रहा है। सच्चा हिंदू दोनों पैर ऊपर करके इस वीडियो को हमेशा की तरह आंख मूंदकर शेयर करे।
Subodh Rai
Yesterday at 03:50 ·
मित्र तुम्हें भी बुरा लग रहा है न कि कठुआ रेप में लोग बार बार हिंदू क्यों कर रहे हैं। मेरी तरह तुम्हें भी लग रहा है न कि बलात्कारी केवल बलात्कारी होता है उसका कोई धर्म नहीं होता। यहां तक तुम बिल्कुल ठीक सोच रहे हो। अब थोड़ी देर के लिए खुद को उस आम मुसलमान की जगह रखकर देखो जिसे तुम मुंह छूटते आतंकी कह देते हो। किसी मुसलमान के छोटे से छोटे और बड़े से बड़े गुनाह को उसके मज़हब से जोड़ देते हो। दिल्ली में मुस्लिम लड़की से प्यार करने वाले लड़के के कत्ल में तुम हिंदू मुस्लिम एंगल खोज लेते हो। तब क्यों नहीं सोचते कि अपराध अपराध होता है उसका कोई मज़हब नहीं होता। तब खुलकर क्यों नहीं बोलते कि प्यार के दुश्मनों की कोई जात नहीं होती। माफ करना मित्र तुम बड़े हिंदू इसलिए हो क्योंकि सामने वाला तुमसे बड़ा मुसलमान है। तुम सच्चे हिंदू होते तो आठ साल की बच्ची से रेप करने वाले दरिंदों को धर्म की आड़ में छिपने न देते। तुम वाकई सच्चे हिंदू होते तो तिरंगे से गुनाहों को छिपाने वालों के खिलाफ सबसे आगे खड़े होते। याद रखो किसी धर्म को खतरा दूसरे धर्म से नहीं बल्कि खुद की कट्टरता से ज्यादा होता है। आज तुम आहत हो उनकी सोचो जिन्हें एक पार्टी के राजनीतिक एजेंडे के लिए तुम रोज आहत करते हो।Hridayesh Joshi
22 April 2017 ·
मोदी जी कल आप देश के ब्यूरोक्रेट्स से कह रहे थे बिना डरे काम करो… जिस अशोक खेमका IAS की इमेज का लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने जमकर इस्तेमाल किया उसके खिलाफ चार्जशीट करने वालीआपकी ही सरकार है.. ढेरों घोटालों का पर्दाफाश करने वाले रमन मैग्गेसे पुरस्कार विजेता आईएफएस अधिकारी संजीव चतुर्वेदी के खिलाफ अदालत में वकीलों की फौज आपकी ही सरकार खड़ी कर रही है.. मीडिया, सोशल मीडिया का इस्तेमाल करके, पिछलग्गू पत्रकारों की फौज जमाकर और टीवी स्क्रीन पर कब्ज़ा कर कब तक घुमाते रहोगे… हंसी तबआई जब आपने ब्यूरोक्रेट्स को समझाया की सोशल मीडिया का इस्तेमाल अपनी छवि बनाने के लिए न करें… वाह…Vishnu ChaturvediYesterday at 13:46 ·ये मुल्ले देश को बदनाम कर रहे हैं, कठुआ घटना की शिकायत संयुक्त राष्ट्र तक कर आये हैं तथा संयुक्त राष्ट्र ने उसे “मानवता पर कलंक” तथा “वीभत्स” घटना बता दिया है, अब देश की इज्जत बचाने के लिए हम राष्ट्रवादियों को ही आगे आना होगा, मजबूरी में ही सही हमें मुल्लों के साथ खड़े होने का ढोंग करना होगा ||
हर हर महादेव ||
Vishnu Chaturvedi13 April at 12:27 · देखिए किस प्रकार ये वामपंथी देशद्रोही मीडिया राष्ट्रभक्तो की छवि धूमिल करता है, बीजेपी नेता तथा कुतिया के निजी संबंधों को बलात्कार बता कर बदनाम किया जा रहा है, इन दोनों के मध्य लंबे समय से प्रेम संबंध थे, एक दिन संभोग के मध्य कुतिया ने इनको काट लिया जिससे गुस्साकर उन्होंने कुतिया को थप्पड़ मार दिया, थप्पड़ मारने के कारण कुतिया जोर जोर से चिल्लाने लगी तो लोग समझे वो कुतिया से जबरन बलात्कार कर रहें हैं, उनमें से कुछ खांग्रेसी वामियों ने पुलिस में रिपोर्ट कर दी |
Vishnu Chaturvedi
11 April at 11:07 ·
दलित ऋषि शंभूक की हत्या षणयंत्रपूर्वक मुल्लों द्वारा की गई थी, मुल्लों ने ही उनकी हत्या का आरोप क्षत्रियों पर डालकर राजनीतिक लाभ उठाने का प्रयत्न किया था, मुल्लों के इसी षणयंत्र के परिणामस्वरूप भारत में आजतक जातिगत द्वेष व्याप्त है ||
हर हर महादेव ||
Vishnu Chaturvedi
6 hrs ·
देखिए हमारा लक्ष्य मात्र इतना है कि प्रत्येक हिन्दू नारी के मन मष्तिष्क में मुल्लों के प्रति घृणा की भावना जागृत रहे, इसके लिए चाहे हमें कुछ भी करना पड़े किँतु हमें हिन्दू युवतियों को मुल्लों के प्रति आकर्षित होने से बचाना है, एक तो पता नहीं कौन सा शहद लगा होता है इन मुल्लों में प्रत्येक युवती उनसे ही चिपकती है, उस शहद का इलाज विष ही है, चूँकि एक स्त्री ही दूसरी स्त्री को अपनी बात प्रभावपूर्वक समझा सकती है अतः हमने #गौरी_शर्मा जैसी महिलाओं को इस कार्य पर लगा दिया है, हमारा भी कार्य हो जाता है तथा उन्हें भी घर बैठे 20-25 हजार रुपये मिल जाते हैं ||
गौरी जी आप ऐसे ही अपने घातक विषबाण छोड़ती रहिये हम सभी आपके साथ हैं ||
हर हर महादेव ||
Kamal Kumar1 hr ·
उन्नाव बलात्कार और पीड़िता के पिता की हत्या की घटना “हैव्स और हैव नॉट्स” का सर्वोत्तम उदाहरण है | इस काण्ड में दोषी विधायक तथा उसके गुर्गे ठाकुर हैं तो पीड़िता का परिवार भी ठाकुर है और सत्ता में बैठे हुए सभी लोग ठाकुर ही हैं उसके वाबजूद छोटी सी नाबालिग लडकी का रेप किया जाता है , शिकायत करने पर उसके पिता की हत्या कर दी जाती है , पूरे देश में उबाल आने के बाद भी विधायक और उसकी पार्टी बेशर्मी भरे बयान ही नहीं देते बल्कि पीड़ित पक्ष को धमका भी रहे हैं | यह जातीय वैमनस्य या धार्मिक वैमनस्य का कोई मामला नहीं है बल्कि सीधे – सीधे मार्क्स के ” बुर्जुआ वर्ग” और “सर्वहारा वर्ग” के बीच का अंतर या संघर्ष है | हमारे देश में जिसकी सत्ता तक पहुँच है या सत्ताधारी दल के लोग इसमें भी मुख्यतः बीजेपी और आरएसएस के लोगों के खिलाफ कोई भी कार्यवाही नहीं होती बल्कि इनका कैडर सच्चाई या न्याय का समर्थन नहीं करता बल्कि इनके हाई कमान से आये निर्देशों का पालन करता है | सत्ता पर बने रहने के लिए ये कुछ भी कर सकते हैं | न्याय इनके लिए कोई मायने नहीं रखता केवल धर्म और जातियां ही इनके लिए मायने रखती हैं वो भी सत्ता की प्राप्ति हेतु ।
दुर्भाग्यपूर्ण है कि हमारे देश में जिन लोगों के पास सत्ता की ताकत नहीं है उनको कभी भी न्याय नहीं मिल पाता है । उन्नाव की घटना इसका सबसे सटीक उदाहरण है जबकि बीजेपी और आरएसएस का सबसे बड़ा समर्थक वर्ग यही जातियां ( उच्च जातियां ) ही हैं जिनके दिलों में 1925 (हिन्दू महासभा के गठन) से ही नफरत भरी गयी है | इन जातियों में यह धारणा बैठाई गयी है कि मुसलमान उनके सबसे बड़े शत्रु हैं जिन्होंने इस देश के लोगों पर बहुत अत्याचार किये हैं तो दूसरे नम्बर के इनके दुश्मन दलित हैं जिन्होंने आरक्षण के बल पर उनकी नौकरियां खा ली हैं , तीसरे नम्बर पर अन्य अल्पसंख्यक हैं तो उसके बाद ओबीसी वर्ग के लोग | इन वर्गों को खत्म कर सके तो अंत में ब्राह्मण और ठाकुर भी उसी तरह शत्रु हो जायेंगे जैसे इस समय मुसलमानों और दलितों को अपना सबसे बड़ा शत्रु ये लोग मानते हैं | मुख्यतया यह घृणा और नफरत आधारित विचारधारा है जिसने सत्ता पर अधिकार के लिए इस तरह की धारणा का समाज में व्यापक प्रचार – प्रसार किया है | उच्च जातियों के लोग जिनकी सत्ता तक पहुंच नहीं है अर्थात सर्वहारा वर्ग के आम लोग जितनी जल्दी इस विचारधारा को समझ लें उतना ही अच्छा है अन्यथा ये लोग उन्नाव काण्ड की तरह ही उनके घरों को बर्बाद कर देंगे |
अब कल्पना कीजिये कि उन्नाव काण्ड का आरोपी कोई मुस्लिम विधायक होता और वह गैर भाजपाई , गैर संघी होता तो ये लोग अभी तक क्या कर रहे होते ? पूरा प्रदेश दंगों कि चपेट में आ गया होता उसी तरह जम्मू में आसिफा कि जगह कोई अक्षिता नाम कि हिन्दू लडकी होती और आरोपी मुसलमान होते जिन्हें बचाने के लिए मुस्लिम मंत्री दबाव डालते तो अभी तक जम्मू में संघियों का उत्पात मच चुका होता | ये लोग अपराध और शोषण के खिलाफ नहीं है बल्कि मुसलमानों , दलितों और कमजोर वर्गों के खिलाफ हैं | दूसरा भाजपा और संघी कभी भी अपने संगठन के बड़े से बड़े अपराधी को कोई सजा नहीं होने देते , चाहे वे बलात्कारी हों या देश में बलास्ट कराने का आरोपी क्योंकि हर घटना को न्यायोचित ठहराने के अनेक कारण होते हैं | अपराधी अपने अपराध को भी जस्टिफाई करता है | असीमानंद तथा अन्य सभी बम बलास्ट के आरोपी आज बरी हो चुके हैं जो कभी जमानत तक नहीं पा सकते थे उनको दोषमुक्त करना न्याय के साथ मजाक है लेकिन यह हुआ है क्योंकि जांच एजेंसी कोर्ट में कोई सुबूत ही नहीं रखेगी तो न्यायालय क्या कर सकता है ? चुनाव जीतना इनके लिए क्यों युद्ध सरीखा हो जाता है , इससे आसानी से समझा जा सकता है | सत्ता के बल पर ही ये अपने एजेंडे को फैला सकते हैं और देश पर निरंकुश हिंदुत्व को थोप सकते हैं जिसमें इनका विरोध करने वाले लोगों को ये आसानी से देशद्रोही साबित कर सकते हैं | पूरी मीडिया इनके प्रचार का माध्यम बना हुआ है (कुछ अभी भी ईमानदारी से अपना काम कर रहे हैं ) | इसके लिए ये देश को चंद पूंजीपतियों के हाथों या अमेरिका के हाथों गिरवी भी रख सकते हैं | विभाजन के समय ही कट्टरपंथी मुस्लिम जिन्ना के साथ चले गये थे जबकि राष्ट्रवादी मुसलमानों ने हिन्दुस्तान में रहने का चुनाव किया था लेकिन कट्टरपंथी हिन्दू और हिंदुत्व के ठेकेदारों को फलने फूलने का पूरा अवसर कांग्रेस ने दिया जिस कारण आज अनेकों कट्टरपंथी दल बन चुके हैं जिनकी विचारधार फासीवाद की है , हिंदुत्व केवल इनके लिए वोट पाने का टूल मात्र है |
उधर आसिफा का केस लड़ने वाली वकील दीपिका सिंह राजावत को धमकियां मिल रही हैं उन्होंने कोर्ट में कहा है कि “उनकी हत्या हो सकती है या रेप किया जा सकता है” ; यह हालत तब है जबकि देश उनके साथ खड़ा हुआ है | मध्यप्रदेश से बीजेपी सांसद मनोहर ऊंटवाल भरी सभा में धमकी दे रहे हैं कि “जो पीएम , सीएम का अपमान करेगा उसे वे दुनिया से गायब करा देंगे” : यह बीजेपी के चरित्र को समझने के लिए काफी है | ये लोग किसी भी लोकतंत्र को नहीं मानते बल्कि सत्ता के लिए कुछ भी कर – करा सकते हैं | अब भी देश की जनता अगर अंधी बनी रहती है तो इस देश का फिर हाल अवश्य ही सीरिया जैसा ही हो जाएगा जिसकी धमकी श्री श्री रविशंकर ने कुछ दिन पहले ही दी है |
ध्यान रहे लोगों की एकजुटता संघियों को खल रही है | ये अपना अचूक तीर चलाएंगे | कहीं भी , कभी भी हिन्दू मुस्लिम दंगे कराए जा सकते हैं जिससे ये एकता तोड़ी जा सके | आज विभिन्न जातियों के बीच नफरत फैलने के मूल कारण भी यही लोग हैं |
आज अगर गाँधी , नेहरु, पटेल , आंबेडकर , शहीद भगत सिंह या नेताजी सुभाष चन्द्र बोस होते तो देश की ऐसी हालत देखकर वे भी घरों में चुपचाप नहीं बैठे रहते बल्कि देश को बचाने के लिए संघर्ष कर रहे होते | अतः, सभी लोगों से अनुरोध है कि लोकतंत्र और राष्ट्र की एकता और अखंडता के लिए वे लोग घरों से बाहर निकलें | इस तरह के साजिशकर्ता धूर्तों से देश बचाना ही आज सबसे बड़ी देश भक्ति है |
नोट — हम किसी भी तरह के शोषण और अत्याचार, असमानता, जातिवाद और धार्मिक वैमनस्य के सख्त खिलाफ हैं । अतः हमें कोई धर्म या जातियों की दुहाई ना दे ।
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1 hr ·
भाई अग्निशेखर,
जितनी सफाई देंगे उतनी ही और साफ होंगी बातें, चार फोटो चार झूठ।
1- 7 अप्रैल को हुई नागरिक समाज की बैठक में नाबालिग पीड़िता नहीं “रसना के हिंदुओं” के लिए न्याय की मांग थी। पहला स्क्रीनशॉट देख लीजिये। यही नहीं बैठक के संयोजन शैलेंद्र आइमा बार काउंसिल के नहीं आपके संगठन “पनुन कश्मीर” के सदस्य हैं। आपके साइन हैं प्रस्ताव पर। (स्क्रीन शॉट 1)
2- जम्मू बंद में भी पीड़िता के लिए न्याय की कोई मांग नहीं है। सीबीआई इन्क्वायरी की मांग है जिसकी आड़ मे हिन्दू एकता मंच से लेकर शिव सेना राम सेना और चार्जशीट के खिलाफ हंगामा मचाने वाले तथा पीड़िता को धमकाने वाले वकील वकालत कर रहे हैं। (स्क्रीन शॉट 2)
3- इस बंद मे आप उन वकीलों के साथ शामिल हुए। (स्क्रीन शॉट 3)
4- आपने पीड़िता के लिए न्याय की कभी मांग नहीं की असल में। जब आपकी गोलमोल पोस्ट पर मैंने आपत्ति दर्ज़ कराती पोस्ट लिखी आपको टैग करके तो खेल खुलता नज़र आते आपने उसके तुरंत बाद एक पोस्ट लिखी लेकिन उसके पहले मुझे ब्लॉक करना भूल गए। होना तो यह था की जम्मू खबर सबसे पहले पहुंची तो सबसे पहले आप लिखते। (स्क्रीन शॉट 4)
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— अब झूठ तो इतने कि कोई क्या कहे? बैद साहब के जिस बयान के बाद क्राइम ब्रांच की जरूरत पड़ी उसी का उपयोग आपने जांच के संदेहास्पद होने का आरोप लगाने के लिए कर दिया है? मैंने पूरी चार्जशीट हिन्दी मे अनूदित कर दी है, लोग खेल समझ जाएँगे और आपका झूठ भी।
—पूरी तरह से नंगे हो जाने के बाद जम्मू बंद के बहाने बलात्कारियों का समर्थन कर रहे लोगों ने क्राइम ब्रांच अफसर इरफ़ान वानी को निशाना बनाया। आख़िर एक मुस्लिम विलेन तो चाहिए उन्हें।
सच्चाई तो वे भी जानते ही हैं इरफ़ान वानी पर लगे आरोपों की और यह भी कि उन्हें फिर से सेवा में बहाल करने वाले आई जी पुलिस और सीबीआई के ज्वाइंट डायरेक्टर मुनीश कुमार सिन्हा क़हते हैं – “उसके खिलाफ़ दर्ज़ किए गए केस पूरी तरह से मनगढ़ंत और आधारहीन है। वह एक निरपराध अधिकारी था और जबर्दस्ती उसे फंसाया गया है। मैं इस बात से राहत महसूस कर रहा हूँ कि न्यायिक जाँच में उसके खिलाफ़ कुछ नहीं सिद्ध किया जा सका जिससे उसे सभी आरोपों से बरी कर दिया गया।”
यही नहीं आरोप लगाने वाली लड़की पिछले आठ साल से कभी कोर्ट में नहीं आई और उसका पिता उसे आर एस एस के एक नारी निकेतन में है जहाँ से उसे मुक्त कराने के लिए उसका बाप कोर्ट के चक्कर काट रहा है। (डिटेल कमेन्ट में)
लेकिन जम्मू बंद और पकड़े जाने के पहले तक आसिफ़ा की जगह रसना गाँव के आरोपियों के लिए न्याय माँग रहे लोग ख़ुद को जितना बचाते हैं, उतने और नंगे होते जाते हैं।
—-हाँ, कश्मीरी पंडितों के विस्थापन पर मेरा स्टैंड तो मेरी किताब में कोई पढ़ सकता है आपकी समस्या मैं जानता हूँ। बीस सालों से आप हिन्दी जगत को लगातार झूठ परोस रहे थे। हिन्दी में चूंकि कोई कश्मीर में रुचि नहीं लेता था तो आपका कहा अंतिम सत्य था। अब मेरे होने से है समस्या आपको। रहेगी। उम्र भर रहेगी। अभी मेरे जैसे कई आएंगे।
—–हाँ, बलराज माधोक को सार्वजनिक रूप से जीवन आदर्श बताने के बाद भी आप जिनके लिए लिबरल हों उनसे मैं सर्टिफिकेट नहीं लेता।
___और, जिस संगठन के 23 वें स्थापना सम्मेलन में हिन्दू जनजागृति समिति के राष्ट्रीय प्रवक्ता कहते हों कि “कश्मीरी पंडितों की वापसी का लक्ष्य हिन्दू राष्ट्र के निर्माण से जुड़ा है।” और जिसमें भाजपा के मंत्री अध्यक्षता करते हों, उस संगठन का संयोजक या तो मूरखों या फिर फ्राड्स के लिए ही लिबरल हो सकता है।
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एक सवाल आप लोगों से। कभी इस व्यक्ति के सहयोगियों की वाल खंगालते हैं? उन पर फैला ज़हर देखते हैं? कभी इनके परिवारजनों का स्टैंड देखते हैं? ऐसा कैसे संभव है कि एक आदमी के सभी प्रिय जन, परिवार जन, संगठनिक मित्र भयानक कम्यूनल हों और वह लिबरल?
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और इस मुद्दे पर यह मेरी आख़िरी पोस्ट है। दोस्तों से अनुरोध कि जब तक कोई नई या खास बात न हो स्क्रीनशॉट आदि न भेजें मुझे। इतने महत्त्वपूर्ण व्यक्ति नहीं वह।
Nitin Thakur
9 hrs ·
परिधानमंत्री जी और सेंसलेस बोर्ड का चेयरमैन लंदन में डेट पर हैं। उनकी हर मुस्कुराहट पर कवि निसार हो चुका है। उनके हर शब्द पर वो बिछा जा रहा है। मैं डर रहा हूं कि कहीं किसी मिनट में हमारा कवि घुटनों पर बैठकर उन्हें प्रोपोज़ ना कर डाले। कह ही ना दे कि आप हमेशा के लिए सदर क्यों नहीं बन जाते, कहां ये चुनाव-वुनाव का चोचला करते हैं।
और अचरज है कि मेरा इतना सोचना भर था कि कवि ने केंचुली बदली और भाट बन गया। उसने एक प्यारी सी कविता कही जिसमें अभ्यस्त और आश्वस्त की बढ़िया सी तुकबंदी थी। मुझे सालों पहले पढ़ी रासो याद आ गई। किसने कहा कि अब रासो नहीं लिखे जाते। वो लिखे जाते हैं, बस साइज़ में छोटे हैं और लंदन में पढ़े जाते हैं।
देव मुस्कुराए। उन्हें मालूम है कि नर्वसनेस में कवि वो चालीसा नहीं पढ़ सका जो उसने तब लिखी थी जब उसे सेंसलेस बोर्ड का चेयरमैन बनाया गया था। वैसे कवि जो अब भाट बन चुका था, उसे भी इस बात का आभास है कि अखबारों और टीवी से भरे देश में किसी पत्रकार को ना चुनकर सात समंदर पार उससे सवाल क्यों कराए जा रहे हैं। आखिर वो विज्ञापन जगत का धुरंधर है। वो जानता है कि क्या कह कर क्या बेचा जाता है। आत्मविश्वास के साथ अभिनेताओँ से झूठ बुलवाकर उसने बहुत प्रोडक्ट बेचे हैं। अब वो खुद प्रोडक्ट है और बिक भी बढ़िया रहा है लेकिन आज रात उसके ऊपर परफॉरमेंस का दबाव है। उसे अहसास है कि हर जवाब के शुरू, बीच और बाद में वाह-वाह करना ही नहीं है बल्कि चेहरे से दिखाना भी है। उसने सैकड़ों लोगों के बीच दो लोगों को सवाल पूछने के लिए उठाया जिनके नाम उसे पहले ही दे दिए गए थे। एक विदेशी, जो ओबामाकेयर को ‘उनकी’ नीति के समतुल्य बताकर लोगों के दिमाग में स्थापित कर रहा है कि तुम्हारा नेता एंवेई नहीं है बल्कि ओबामा टाइप इंटरनेशनल लीडर है और फिर कर्नाटक का एक नागरिक खड़ा किया जो ऐसा सवाल पूछे कि उसका जवाब देकर नाराज़ लिंगायतों को पटा कर पार्टी के लिए अगले चुनाव के लिए वोट पड़वाए जा सकें।
इस बीच एक छोटी सी फिल्म भी दिखाई गई। उसे देखकर आपको लगेगा कि देश में सब खुश हैं। बिल्कुल ऐसा फील हुआ जैसा टीवी पर डोमिनोज़ और कोक के एड बार-बार देखकर फील होता है कि देश में अब सभी लोग पिज्ज़ा और कोल्ड ड्रिंक ही खाते पीते हैं। उस मिनट भर की फिल्म का कहना था कि अब हर आदमी स्किल्ड है। सबको रोज़गार मिल गया है। किसान को उचित दाम मिलने लगे हैं। फसल खराब हो जाए तो फटाफट मुआवज़ा मिल जाता है। उस फिल्म को देखकर मुझे अब ‘उन’ पर तरस आने लगा है। एक सेकेंड के लिए मुझे महसूस हुआ कि कोई आदमी अगर अपने चारों तरफ झूठ रचने की छूट दे दे तो एक वक्त बाद वो खुद ही उसे सच मानने लगता है। हर दिन अगर उनके दरबारी यही सूचना देते होंगे कि हुज़ूर रियाया बड़ी खुश है तो कहां इस आदमी को पता चलता होगा कि हालात वाकई क्या हैं। ये वो ज़माना भी तो नहीं कि रात को रूप बदलकर राजा प्रजा के बीच घूम आए। रात को घूम आए तो आज रात भी एटीएम के बाहर लाइन लगाए खड़े लोग दिख जाते।
जिस लंदन में बैठकर वो भाट के मुंह से ‘आप में एक फकीरी तो है’ वाली बात पर मुस्कुरा रहे थे वहां से वो विजय माल–लिया बहुत दूर नहीं रहता जो कई-कई बैंकों को फकीर बना गया।
इन आत्मप्रशंसाओं को करने के लिए जितनी बेशर्मी चाहिए, उतनी ही सुनने के लिए भी चाहिए। उनकी बेशर्मी बेहद है वो बोलते रहेंगे, मेरी सीमित है मैं अधूरा सुनकर बंद कर रहा हूं।
उड़ता उड़ेंद्र जी की जय!
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Vivek Shukla
10 April at 17:47 ·
When friend Muzzafar Khan offered namaz with Idi Amin
भारत देखने की तमन्ना ही रह गई मुजफ्फर खान की
Muzzafar Khan’s recent demise is a body blow for the Indian community in East Africa and for his students like me. He was an elder statesman of Indian community there. He was a born Kenyan though he always proudly says,”My roots are in India. I love it.” His father Juma Khan came to Kenya in the early part of the last century. A Pathan Juma Khan shifted from Peshwar to Bombay before taking ship on his way to Mombassa. Muzzafer Khan was the father-figure of Indian community in East Africa, known as Asians there. We became friends, despite huge age gap, through Harjinder paaji. And immediately, he became my teacher on African affairs. As my interests for east Africa and Indian Diaspora was growing thick and fast, he was always ready to answer my unending queries. Indian high-commission in Nairobi used to invite him without fail as and when any big ticket dignitary from India visit Nairobi. When PM Modi was visiting Nairobi last year, he was invited by the Indian envoy to meet the him. Muzzafer saheb was a kid when partition of India took place. One day he told me, ” Vivek, it is so unfortunate that due to division of the country, Indians settled abroad also became Indians and Pakistanis.” Muzzafar Khan was a great story teller. He could speak hours together on Hindi film songs, aviation, motorsports and wild-life. Once he narrated a very interesting story about Idi Amin. Mr Khan was
in a masjid in Kampala, capital of Uganda, to offer Friday prayer. When prayer was over, he found Idi Amin was standing right behind him.
भारत देखने की तमन्ना ही रह गई मुजफ्फर खान की
मुजफ्फर खान भारत से हजारों मील दूर रहने पर भी सच्चे भारतीय ही थे। उनका जन्म ईस्ट अफ्रीकी देश केन्या में 1937 में हुआ था। उनके पिता भारत से केन्या में जाकर बसे थे। मुजफ्फर खान ने केन्या की आजादी की लड़ाई में भाग लिया था। वे अपने को फख्र के साथ केन्याई ही बताते थे। पर वे यह बताना नहीं भूलते थे कि उनके दिल के किसी कोने में भारत भी बसता है। मेरा उनसे परिचय अपने मित्र हरजिंदर पाजी ने करवाया था। उसके बाद हरजिंदर नेपथ्य में चले गए थे। हमारी दोस्ती पक्की हो गई थी। वे भारत आना चाह रहे थे। कहते थे, एक बार सेहत सुधरी तो भारत का टिकट कटवा कर आ जाऊंगा। अफसोस ये हो ना सका और उनका बीते दिनों नैरोबी में निधन हो गया। उनके पास किस्सों का खजाना था। उन्होंने ही एक बार बताया था कि वे एक बार पड़ोसी मुल्क युगांडा की एक मस्जिद में नमाज पढ़ रहे थे,तब उनके साथ ही ईदी अमीन भी नमाज पढ़ने के लिए आ गया था। वे केन्या और बाकी अफ्रीका में जंगली जानवरों का शिकार करने वालों के खिलाफ चल रहे आंदोलन के शिखर नेता थे। वे अफ्रीका में हाथियों के अनाप-शनाप तरीके से मारे जाने से बहुत क्षुब्ध थे।
See Translation
Vivek Shukla
31 March at 11:12 ·
हनुमान चालीसा 24×7
श्रीगुरु चरन सरोज रज, निज मनु मुकुरु सुधारि। बरनऊं रघुबर बिमल जसु, जो दायकु फल चारि… यह हनुमान चालीसा राजधानी के कम से कम दो बजरंग बली के मंदिरों में लगभग अखंड चलता है। इसमें कहीं कोई व्यवधान नहीं आता। यह क्रम दिन-रात जारी रहता है। कनॉट प्लेस के हनुमान मंदिर और इससे तीन-चार किलोमीटर दूर पूसा रोड या आप कह सकते हैं कि करौल बाग और झंडेवालान मेट्रो स्टेशन के बीच में स्थित हनुमान मंदिर में अखंड हनुमान चालीसा समवेत स्वर में हनुमान चालीसा सुना जा सकता है। इस दूसरे हनुमान मंदिर में संकट मोचन की 108 फीट ऊंची प्रतिमा लगी है। इसे मंदिर में जाकर या फिर मेट्रो में सफर करते हुए देखना अपने आप में एक रोमांचकारी अनुभव से कम नहीं होता। इसे करीब से देखने के लिए मंदिर के आसपास कई विदेशी टुरिस्ट भी घूम रहे होते हैं। बजरंग बली की इस विशाल मूर्ति को ‘इश्क जादे’, ‘बजरंगी भाईजान’, ‘दिल्ली-6’ वगैरह फिल्मों में दिखाया भी गया है। खैर, इनमें भक्त पांच बार, सात या इससे भी अधिक बार हनुमान चालीसा का पाठ पूरी श्रद्धा भाव के साथ करते हुए मिलेंगे। जिधर जिसको बैठने का स्थान मिल गया, वो वहां से हनुमान चालीसा का श्रीगणेश कर देता है। कनॉट प्लेस के हनुमान मंदिर में दिन में हर वक्त लगभग डेढ़ दर्जन भक्त हनुमान चालीसा को पढ़ रहे होते हैं। मंगल और शनिवार को भक्तों की संख्या में तेजी से वृद्धि हो जाती है। रात को इनकी संख्या घटती है, पर खत्म नहीं होती। कुछ भक्तों के हाथों में हनुमान चालीसा की प्रतियां रहती हैं,कुछ को यह याद है। मतलब अनेक भक्त बार-बार इसे पढ़ने के बाद इसकी प्रति अपने हाथों में भी नहीं ऱखते। कुछ सुंदर कांड भी पढ़ रहे होते हैं। सुंदरकांड पढ़ने वाले कम होते हैं। अगर कनॉट प्लेस के सन 1724 में राजा जयसिंह के प्रयासों से निर्मित हनुमान मंदिर को राजधानी का प्राचीनतम हनुमान मंदिर माना जा सकता है, तो पूसा रोड का संकट मोचन मंदिर तो अपने मौजूदा स्वरूप में हाल के दौर में आया है। सन 1980 से सन 1995 तक ये छोटा सा हनुमान मंदिर था। इसमें पूसा रोड, करौल बाग, राजेन्द्र नगर आदि के भक्त ही पूजा- अर्चना के लिए पहुंचते थे। पर यहां पर इधर हनुमान जी की भव्य मूर्ति स्थापित होने के बाद यहां पर दिल्ली-एनसीआर के अलावा शेष भारत के हनुमान भक्त भी दर्शन करने के लिए आने लगे हैं।
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