डॉ. वेदप्रताप वैदिक
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने पहले विक्रमसिंह मजीठिया और अब नितिन गडकरी से माफी मांगकर भारत की राजनीति में एक नई धारा प्रवाहित की है। यह असंभव नहीं कि वे केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली और अन्य लोगों से भी माफी मांग लें। अरविंद पर मानहानि के लगभग 20 मुकदमे चल रहे हैं। अरविंद ने मजीठिया पर आरोप लगाया था कि वे पंजाब की पिछली सरकार में मंत्री रहते हुए भी ड्रग माफिया के सरगना हैं।
गडकरी का नाम उन्होंने देश के सबसे भ्रष्ट नेताओं की सूची में रख दिया था। इसी प्रकार अरुण जेटली पर भी उन्होंने संगीन आरोप लगा दिए थे। इस तरह के आरोप चुनावी माहौल में नेता लोग एक-दूसरे पर लगाते रहते हैं लेकिन जनता पर उनका ज्यादा असर नहीं होता। चुनावों के खत्म होते ही लोग नेताओं की इस कीचड़-उछाल राजनीति को भूल जाते हैं लेकिन अरविंद केजरीवाल पर चल रहे करोड़ों रु. के मानहानि मुकदमों ने उन्हें तंग कर रखा है।
उन्हें रोज़ घंटों अपने वकीलों के साथ मगजपच्ची करनी पड़ती है, अदालतों के चक्कर लगाने पड़ते हैं और सजा की तलवार भी सिर पर लटकी रहती है। ऐसे में मुख्यमंत्री के दायित्व का निर्वाह करना कठिन हो जाता है। इसके अलावा निराधार आरोपों के कारण उन नेताओं की छवि भी खराब होने की संभावनाएं हमेशा बनी रहती हैं। ऐसी स्थिति से उबरने का जो रास्ता केजरीवाल ने ढूंढा है, वह मेरी राय में सर्वश्रेष्ठ है। ऐसा रास्ता यदि सिर्फ डर के मारे अपनाया गया एक पैंतरा भर है तो यह निश्चित जानिए कि अरविंद की इज्जत पैंदे में बैठ जाएंगी।
यह पैंतरा इस धारणा पर मुहर लगाएगा कि केजरीवाल से ज्यादा झूठा कोई राजनेता देश में नहीं है लेकिन यदि यह सच्चा हृदय-परिवर्तन है और माफी मांगने का फैसला यदि हार्दिक प्रायश्चित के तौर पर किया गया है तो यह सचमुच स्वागत योग्य है। यदि ऐसा है तो भविष्य में हम किसी के भी विरुद्ध कोई निराधार आरोप अरविंद केजरीवाल के मुंह से नहीं सुनेंगे। केजरीवाल के इस कदम का विरोध उनकी आप पार्टी की पंजाब शाखा में जमकर हुआ है लेकिन वह अब ठंडा पड़ रहा है। इस फैसले की आध्यात्मिक गहराई को शायद पंजाब के ‘आप’ विधायक अब समझ रहे हैं। यह फैसला देश के सभी राजनेताओं के लिए प्रेरणा और अनुकरण का स्त्रोत बनेगा।
sources- https://www.bhadas4media.com/
Anil Singh
16 March at 19:53 ·
अहंकार छोड़ काम करने की शक्ति बचाने में गलत क्या!
राजनीति में बहादुरी बातों से नहीं, काम से निकलनी चाहिए। जब केंद्र की मोदी सरकार हाथ धोकर पीछे पड़ी हो और उसके इशारे पर सारी अफसरशाही काम न होने देने पर अड़ी हो, तब पंजाब से लेकर दिल्ली तक मानहानि के मुकदमों में उलझना कहीं से भी बहादुरी या समझदारी नहीं होती। अरे, शेर से लड़कर मर जाने की ठकुरैती का क्या फायदा! अपनी जितनी भी शक्ति है, उसका अपव्यय रोककर अवाम के हित में लगाना ही राजनीतिक आधार को मजबूर कर सकता है।
वैसे भी अपना समाज झूठी शान की हीनता ग्रंथि का शिकार है। यहां तमाशबीन भी कम नहीं। लोग तो कहते ही रहेंगे कि चढ़ जा बेटा शूली पर, भला करेंगे राम।
कुल मिलाकर मुझे तो केजरीवाल का माफी मांग लेने का फैसला दीर्घकालिक रूप से बहुत व्यावहारिक और उचित लगता है। किसी के लिए अपने अहंकार को तोड़ना इतना आसान नहीं होता। यह एक तरह की सकारात्मकता है। वैसे भी राक्षसी शक्तियों और दुष्ट ग्रहों की शांति कराए बिना कोई सकारात्मक व रचनात्मक काम नहीं किया जा सकता। उम्मीद है कि अब केजरीवाल ‘स्वराज’ की मूल सोच पर कुछ जमीनी स्तर का सार्थक काम कर सकेंगे।
Anil Singh
20 March at 17:39 ·
भ्रष्टाचार ‘कोहड़े की बतिया’ नहीं कि तर्जनी दिखाने से मर जाए!
Anil Singh
16 March at 08:52 ·
देश जाग रहा है, सवाल पूछ रहा है!
करीब दस साल से पांच सितारा होटलों में होनेवाले कॉरपोरेट क्षेत्र, खासकर फाइनेंस की दुनिया की दिग्गज हस्तियों के जमावड़ों को कवर करता रहा हूं या बा-हैसियत उद्यमी उसमें भाग लेता रहा हूं। लेकिन कल ईटी मार्केट्स ग्लोबल समिट में भाग लेनेवाले आए लोगों ने पैनल चर्चाओं में जैसे सवाल पूछे, उनसे मैं अभी तक विस्मित हूं। ये वैसे लोग हैं जिन्होंने एक दिन के सम्मेलन में भाग लेने के लिए प्रति भागीदार 10,199 रुपए खर्च किए थे।
सोचिए, शेयर बाज़ार पर आयोजित सम्मलेन में कई लोगों ने पूछा कि किसानों की आय दोगुनी कैसे हो सकती है, क्या यह सरकार का छलावा नहीं है? उन्होंने पूछा कि यहां सम्मेलन में तो इंडिया शाइनिंग है, लेकिन किसानों की हालत बद से बदतर क्यों होती जा रही है? कुछ लोगों ने बेरोजगारों की बढ़ती फौज पर भी सवाल पूछा। बैंकिंग घोटाले पर भी सवाल पूछे गए। आश्चर्य तब हुआ, जब शेयर बाज़ार पर आयोजित इस सम्मेलन में बहुत ही कम ऐसे सवाल पूछे गए कि आगे बाज़ार कहां जाएगा।
वाकई, मेरा देश सोच रहा है, उसको छला नहीं जा सकता क्योंकि वह सवाल पूछ रहा है।
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हर पंथ के लोग केजरीवाल की माफियों पर मज़े ले रहे हैं। इसमें कुछ लोग भ्रष्टाचार के खिलाफ किसी लड़ाई को लड़ाई ही नहीं मानते और हमेशा क्रांति-क्रांति कांखते रहते हैं। लेकिन वे भूल जाते हैं कि हमारे यहां भ्रष्टाचार ने उन सामंती अवशेषों को खाद-पानी दे रखा है जिन्हें मिटाए बगैर भारत के संपूर्ण विकास की संभावनाओं की राह नहीं खोली जा सकती। वहीं, केजरीवाल की माफियों पर मज़ा लेनेवाले ज्यादातर लोग वे हैं जो कहीं न कहीं भ्रष्टाचारियों के हितैषी हैं और उनके राज में मौज कर रहे हैं।
लेकिन इस प्रकरण ने एक बात साफ कर दी है कि इस देश में भ्रष्टाचार महज तर्जनी दिखा देने से खत्म नहीं होने जा रहा और वह पूरी तरह संस्थाबद्ध हो चुका है। सीता के स्वयंवर में शिव का धनुष टूटने के बाद परशुराम जब कुपित होकर लक्ष्मण पर तर्जनी उठाते हैं तो तुलसीदास ने लक्ष्मण के मुंह से कहलवाया है – इहां कुम्हड़ बतिया केउ नाहीं, जे तर्जनी देखि मरि जाहीं। अपने यहां भ्रष्टाचार भी कोई कोंहड़े की बतिया नहीं है। माफी मांग चुके जिन तीन मामलों में केजरीवाल ने भ्रष्टाचार के आरोप लगाए थे, उन सभी में प्रथमदृष्टया और परिस्थितिजन्य साक्ष्य थे। लेकिन उन साक्ष्यों को व्यवस्थित रूप से जांच के बाद कोई स्वतंत्र संस्था ही सामने ला सकती थी।
होना तो यह चाहिए था कि लोकपाल जैसी कोई संस्था ऐसे आरोपों को संज्ञान में लेते हुए गंभीरता से जांच में जुट जाती। लेकिन ऐसी किसी संस्था या पहल के अभाव में भ्रष्टाचार के महारथियों ने ईमानदारी से आरोप लगानेवाले को ही अदालती चक्रव्यूह में घेर लिया। ऐसे में अभिमन्यु के सामने मजबूरी थी कि वह माफी मांग कर किसी तरह ज़िंदा बाहर निकल आए। आपको पता होगा कि जेठमलानी ने केजरीवाल को जेटली के खिलाफ मानहानि वाले मुकदमे में लड़ने के लिए दो करोड़ रुपए का बिल भेजा था। कौन अकेला शख्स 20-25 मामलों में इतनी भारी फीस देकर लड़ सकता है?
अगर हम चाहते हैं कि भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई में अरविंद केजरीवाल जैसा कोई शख्स अकेला न पड़े और इस लड़ाई को सही अंज़ाम तक पहुंचाया जा सके तो हमें केंद्र सरकार का गला इस बात को लेकर पकड़ना चाहिए कि उसने अभी तक लोकपाल का गठन क्यों नहीं किया और भ्रष्टाचार को उजागर कर सकनेवाली मीडिया से लेकर तमाम अन्य संस्थाओं का बधियाकरण क्यों कर दिया है?Anil Singh
21 March at 13:30 ·
प्रदूषण फैलाकर कहते हैं पर्यावरण शुद्ध कर रहे हैं!
मेरठ के भैंसाली मैदान में इन दिनों अयुतचंडी महायज्ञ चल रहा है। रविवार, 18 मार्च से शुरू हुआ नौ दिनों का यह महायज्ञ सोमवार, 26 मार्च तक चलेगा। इस दौरान 108 हवन कुंडों में यहां 400 क्विंटल आम की लकड़ी, 120 क्विंटन तिल, 60 क्विंटन चावल, 51 टिन देशी घी और तीन ट्रॉली गाय के गोबर के उपले या कंडे जलाए जाएंगे। आयोजकों का कहना है कि यह महायज्ञ मानवता व पर्यावरण के हितों के संरक्षण के लिए किया जा रहा है।
आयोजन समिति के उपाध्यक्ष गिरीश बंसल का दावा है कि उन्होंने इंटरनेट पर अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी, नासा की एक रिपोर्ट पढ़ी थी जिसमें बताया गया था कि भारत के ऊपर की ओज़ोन परत सबसे अच्छी है और इसी के संरक्षण के लिए यह महायज्ञ किया जा रहा है। जब उनसे पूछा गया कि नासा की यह रिपोर्ट किस साल में कब आई थी तो बंसल जी कोई जवाब न दे सके। सवाल उठता है कि इतने टन कार्बन के उत्सर्जन से पर्यावरण का संरक्षण कैसे हो सकता है?
मित्रों, हिंदू समाज की भावनाओं के दोहन के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े सनातनी तत्व नासा से लेकर बड़े-बड़े वैज्ञानिकों का नाम लेकर झूठ फैला रहे हैं। हाल ही में केंद्रीय मंत्री डॉ. हर्षवर्धन तक ने भारतीय राष्ट्रीय विज्ञान कांग्रेस में दावा किया कि स्टीफन हॉकिन्स ने कहा था कि वेदों के सिद्धांत आइंसटीन के सिद्धांत E=mc² से बेहतर हो सकते हैं। बाद में पता चला कि किसी संघी की तरफ से बनाई गई हॉकिन्स की फेक फेसबुक प्रोफाइल उनके ‘ज्ञान’ का आधार थी। इन लोगों द्वारा फैलाए गए झूठ अपरम्पार हैं। जैसे, गाय की आंत में एक ऐसा बैक्टीरिया पाया जाता है कि जो किसी भी वस्तु को 24 कैरट के सोने में बदल सकती है।
दिक्कत यह है कि झूठ बोलने का संस्कार संघियों के खून में घुस गया है। ये जो भी बोलते हैं, वो आमतौर पर झूठ होता है। मूलतः इंसान हैं तो कभी-कभी सच भी बोल लेते हैं। इनके झूठ ने भारतीय समाज में अपनी जड़ें बड़ी गहरी फैला ली हैं। बात निजी कर्मकांड तक सीमित रहे तो ज्यादा नुकसान नहीं होता। मसलन, मल-मूत्र विसर्जन के समय कान पर जनेऊ रखने से लकवा नहीं मारता – यह निजी कर्मकांड है। लेकिन टनों लकड़ी, घी व कंडे जलाने से पर्यावरण शुद्ध होता है! ऐसे झूठ से पूरे समाज व धरती का नुकसान होता है। इसे रोकना नितांत ज़रूरी है।
Anil Singh
20 March at 19:48 ·
छल से नहीं दबेगा बेरोज़गारी का दावानल!
मोदी सरकार के स्किल इंडिया कार्यक्रम का इससे बड़ा छल क्या हो सकता है कि भारतीय रेल ने जिन हज़ारों नौजवानों को खुद चुनकर एप्रेन्टिसशिप की ट्रेनिंग दी, उनमें से केवल 20 प्रतिशत को ही वह नौकरी देने को तैयार है। आखिर बाकी 80 प्रतिशत कहां जाएंगे? क्या भारत में दूसरी भी कोई रेलसेवा है?
यह भी गौरतलब है कि रेलवे ने ग्रुप-सी व डी के खाली पड़े 90,000 पदों के लिए आवेदन मांगे हैं। इसके लिए आवेदन करने की अंतिम तिथि 31 मार्च है। लेकिन 18 मार्च तक ही करीब डेढ़ करोड़ आवेदन आ चुके थे। 31 मार्च तक यह संख्या आराम से 2 करोड़ तक पहुंच सकती है। यानी, एक पद के लिए 222 लोग दौड़ में लगे हैं और एक को नौकरी मिल भी गई तो 221 बेरोज़गार (99.55%) रह जाएंगे। क्या ऐसे में देश में मात्र 6.03% बेरोज़गारी दर का आंकड़ा मज़ाक नहीं लगता!
Anil Singh
19 March at 21:17 ·
किस बात का प्रॉपर्टी टैक्स लेती है बीएमसी!!!
बृहन्मुंबई म्युनिसिपल कॉरपोरेशन (बीएमसी) ने इस साल 23 फरवरी से ही हमारी करीब 500 फ्लैट वाली को-ऑपरेटिव हाउसिंग सोसायटी से सूखा व गीला, दोनों ही कचरा ले जाना बंद कर दिया है, जबकि हम पिछले कई महीनों से सूखे व गीले कचरे को अलग थैलियों में डालते रहे हैं। संभवतः बीएमसी ने ऐसा बहुत सारी सोसायटियों के साथ किया होगा। इस बीच 8 मार्च को ही बॉम्बे हाईकोर्ट का फैसला आ चुका है कि सूखा कचरा या सॉलिड वेस्ट को उठाने व ठिकाने लगाने की ज़िम्मेदारी बीएमसी की है।
यह भी चौंकानेवाली खबर है कि दक्षिण मुंबई में एल्फिंस्टन, परेल, हिंदमाता, करी रोड व भायखला जैसे इलाकों के करीब 90 किलोमीटर नालों की सफाई साल 1947 में देश के आजाद होने के बाद से अब तक एक बार भी नहीं हुई है। ब्रिटिश काल में बने इन नालों की मरम्मत की तो बात ही छोड़ दीजिए। सवाल उठता है कि बीएमसी आखिर प्रॉपर्टी टैक्स या अन्य स्थानीय टैक्स किसलिए लेती है? क्या ये टैक्स इसीलिए लिये जाते हैं ताकि नेताओं और अधिकारियों के ऐश में कोई कमी न आए और उनके भ्रष्टाचार का परनाला हमेशा बहता रहे?
Anil Singh
17 March at 08:01 ·
कबीर और बुद्ध की धरती रही पुकार…
जितना उलझाव, उतना ठहराव। लेकिन चीज़ें उतनी उलझी नहीं हैं, जितनी दिखाई जाती हैं। उलझाव और सुलझाव का यह टकराव, जड़ता और गति या प्रवाह का यह संघर्ष शाश्वत है। हम इसमें से किसके साथ हैं, यह हमें तय करना है। कबीर कहते थे – तेरा मेरा मनवा कैसे एक होई रे, मैं कहता सुलझावन हारी, तू कहता उलझाई रे। कबीर का राम दशरथ का सुत नहीं था, वह चीजों के मर्म को समझने का ज़रिया था। उनके यहां पोथियों के बजाय प्रेम के ढाई आखरों का महत्व था।
बुद्ध ने भी कहा कि जो ज्ञान अनुभूति तक न उतर सके, वह निरर्थक है। उन्होंने मुक्ति को वैदिक मायाजाल से निकालकर प्रज्ञा, शील व समाधि तक समेटकर सीधा-सरल बना दिया। सब कुछ सतत परिवर्तशील है, अनित्य है, इसलिए जुड़ाव या दुराव बेमानी है। जीवन में सदाचार का पालन ज़रूरी है। झूठ बोलने या दूसरों को तकलीफ देने से दूर रहना चाहिए। और, मन की एकाग्रता। बुद्ध के चिंतन में न आत्मा-परमात्मा का झंझट है और न ही ब्रह्म का उलझाव।
कबीर और बुद्ध की हर युग में प्रासंगिकता थी और आज भी है। बस, उनकी राह पर चलने के लिए उनके जैसा लीक से हटकर चलने का साहस और सत्य का आग्रह होना चाहिए। मेरे पुराने मित्र व सहपाठी और गुजरात के वरिष्ठ पुलिस अधिकारी विनोद मल (Vinod Mall) ने समाज के हित में इसी साहस और आग्रह को सामने लाने का बीड़ा उठाया है। वे 5 अप्रैल से लेकर 7 अप्रैल तक कुशीनगर से मगहर होते हुए गोरखपुर तक की यात्रा निकाल रहे हैं। इस यात्रा के दौरान कबीर और बुद्ध के चिंतन व कर्म के उन कणों को पकड़ने की कोशिश होगी जो आज भी हमारे परिवेश में बिखरे पड़े हैं। यात्रा के अंतिम पड़ाव पर गोरखपुर में संगोष्ठी का भी आयोजन किया जाएगा।
बड़ी इच्छा थी कि मैं भी इस यात्रा का हिस्सा हो पाता। लेकिन स्वास्थ्य संबंधी कारणों में नहीं जा रहा हूं। लेकिन जितने भी मित्र जा सकते हैं, उनसे बस इतना कहना है कि कबीर और बुद्ध की धरती आपको पुकार रही है। ज़रा गौर से, कान पारके सुनने की कोशिश कीजिए।
Pankaj Tripathi मार्क जकरबर्ग ने बीजेपी जॉइन की — गिरफ्तारी का खतरा टला
Prashant Tandon
20 March at 06:37 ·
केजरीवाल से वैचारिक मतभेद हो सकते हैं पर माफीनामों पर Lynch Mob में शामिल नहीं हूँ. मानहानि के मुकदमे भ्रष्ट का नया हथियार हैं.
Prashant Tandon
19 March at 21:01 ·
सीरियल माफीनामे – राजनीति में अदालतों में घसीटने की परिपाटी बंद होनी चाहिये:
अभी बहुत दिन नहीं हुये जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, पूर्व केंद्रीय मंत्री और राजदूत मणि शंकर अय्यर पर पाकिस्तान से साठगांठ करके गुजरात का मुख्यमंत्री तय करने का भरी जन सभा में आरोप लगाया था. इस गंभीर और बेबुनियाद आरोप की चपेट में पूर्व सेनाध्यक्ष, पूर्व विदेश सचिव और कई कई जानी मानी हस्तियाँ आगई थीं. मोदी इसी तरह की निचली स्तर की भाषा का प्रयोग शशि थरूर की पत्नी सुनंदा पुष्कर के लिए भी कर चुके हैं. मगर इन दोनों मामलों पर कांग्रेस ने मोदी को अदालत में नहीं घसीटा. राजनीतिक मंच से जवाब दिया – नतीजा ये हुआ की मोदी ने अरुण जेटली के जरिये संसद में मनमोहन सिंह से माफी मांगी. ये माफी संसद के रेकॉर्ड में हमेशा रहेगी.
केजरीवाल ने अपनी पार्टी की प्रतिष्ठा दांव पर लगा कर माफीनामे की झड़ी लगा दी – जो सिलसिला अकाली दल के विक्रम सिंह मजीठिया से माफी से शुरू हुआ वो नितिन गडकरी, कपिल सिबल तक चल रहा है. अरुण जेटली से माफी अभी आनी बाकी है – खबरे हैं की तीस तक भी जा सकती है ये संख्या. इसमे कोई दो राय नहीं है कि इन माफीनामों ने आम आदमी पार्टी के अंदर एक अभूतपूर्व संकट खड़ा कर दिया है. पंजाब में पार्टी टूट के कगार पर है, अरविंद केजरीवाल की साख पर ये अब तक का सबसे बड़ा बट्टा लगा है. इसमें पर्दे की पीछे की राजनीति कुछ भी हो, केजरीवाल की कोई रणनीति हो या फिर कोरा पलायनवादी व्यक्तित्व लेकिन इन सिलसिलेवार माफीनामों से दो बड़े सवाल खड़े हुये हैं. राजनेताओं के बीच सार्वजनिक संवाद कैसा हो, और क्या हर आरोप को अदालत मे घसीट कर राजनीतिक विरोधियों का मुह बंद किया जाना चाहिये.
इसके लिए कोई कानून नहीं बन सकता है और न ही ज़रूरत है लेकिन अब तक राजनेताओं के बीच एक मोटी मोटी समझदारी रही है कि राजनीतिक बयानबाजी को राजनीतिक अखाड़े तक ही रहने दिया जाये.
लेकिन ये तभी संभव है जब विवाद, आरोप-प्रत्यारोप विचारधारा की मुखालफत तक ही रहे न कि जाति दुश्मनी में तब्दील हो जाये.
राहुल गांधी ने इस मामले में ज़रूर दिलेरी दिखाई है और आरएसएस से माफी मांगने की जगह उन्होने मुकदमा लड़ने का फैसला किया है. गांधी की हत्या आरएसएस की दुखती नस है और मुकदमा लंबा खिचेगा तो किरकिरी आरएसएस की ही होगी.
लेकिन राहुल गांधी भी ये हिम्मत शायद तभी जुटा पाये जब उनकी पार्टी में कपिल सिबल, चिदंबरम, अभिषेक सिंघवी जैसे बड़े वकील हैं.——————————————————————
Pankaj K. Choudhary
21 March at 17:42 ·
कौरव और पांडव आपस में खूब लड़े…. लड़ते लड़ते कौरव सेना और पांडव सेना थक गए …कौरव सेना की तरफ से अरुण जेटली, अरुण शौरी और यशवंत सिन्हा ने शंखनाद कर रात्रि विश्राम का आह्वाहन किया…. पांडव सेना की तरफ से कपिल सिब्बल, प्रणव मुखर्जी और पी चिदंबरम ने शंखनाद किया …दोनों सेना अलग अलग राजकीय विद्यालयों और कॉलेज में रात्रि विश्राम करने के लिए चले गए …..सुबह उठ कर जब तक वो वापस लड़ाई के मैदान में आए तब तक सभी राजकीय विद्यालय और कॉलेज गलगोटिया, लवली प्रोफेशनल यूनिवर्सिटी, एमिटी, रेयॉन, डी पी एस इत्यादि में बदल चुका था.
Pankaj K. Choudhary
23 March at 08:48 ·
कौरव और पांडव कुरुक्षेत्र के मैदान में लड़ रहे थे …खून की नदियां बह रही थी और एक बकरी खून पी रही थी …अचानक एक बाघ आया और बकरी से संभोग करने लगा …बकरी गर्भवती हो गई और दस दिनों बाद बकरी दस भेड़ियों की माँ बन गई …सभी भेड़िए बड़े हो गए ..और कौरव और पांडव रोज गरीबों का मांस भेड़ियों को खाने के लिए देने लगे …किसी भेड़िया का नाम अड्डा नी तो …किसी का अम्मा नी तो किसी का माल ला रखा गया (क्रमशः)
Pankaj K. Choudhary
22 hrs ·
कौरवों और पांडवों ने लड़ते लड़ते एक दूसरे को लहूलुहान कर दिया …सुबह से ये सब मुकेश अम्बानी देख रहा था ….शाम होते होते उसने कहा मेरे बच्चों दिल खुश कर दिया तुमने ….अब जाओ आज रात अस्पताल में अपने घावों की मरहम पट्टी करवा लो… फिर सबेरे लड़ाई शुरू करना …मैं इंतजार करूँगा …कौरव महाराजा धृतराष्ट्र सरकारी अस्पताल चले गए …वहीं पांडव महाराजा शांतनु प्रारंभिक रोग चिकित्सालय गए …सुबह जब वो वापस लड़ने के लिए आए तो एक हॉस्पीटल पर अपोलो का और दूसरे होस्पिटल पर फोर्टिस का बोर्ड लग चुका था (क्र
Pankaj K. Choudhary
18 hrs ·
जब कौरव और पांडव लड़ते हैं तब विजय माल्या देश से भाग जाता है…ललित मोदी भाग जाता है..शीला दीक्षित बच जाती है…कार्तिक चिदंबरम बच जाएगा..नीरव मोदी भाग जाता है…कौरव और पांडव पंजाब नेशनल बैंक लूट लेते हैं…व्यापम हो जाता है…अंजना ओम कश्यप और श्वेता सिंह व्यापम भूलने में हमारी मदद कर देती हैं…जज का चुनाव खुद जज कर लेते हैं…. जज का भाई, जज का भतीजा, जज का नाती जज बन जाता है…लालू यादव को सजा हो जाती है सुयश सुप्रभFollow
13 hrs ·
हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्टर अनुश्री कल ज़मीन पर गिरे एक लड़के को पीट रहे पुलिसवालों की तस्वीर ले रही थीं। पास खड़े एक अफ़सर ने कहा, “इसका कैमरा तोड़ दो।” फिर अनुश्री का कैमरा छीन लिया गया।
एक दूसरी पत्रकार को एक पुलिसवाले ने धक्का दिया और ऐसा करते हुए उसकी छाती दबाई। बाद में पुलिस ने सफ़ाई दी कि उस पुलिसवाले ने महिला पत्रकार को छात्रा समझ लिया था। अब सवाल यह है कि क्या छात्रा का स्तन दबाना अपराध नहीं है। अगर नहीं है तो सरकार इसकी घोषणा कर दे। पुलिस मैनुअल में इसे शामिल तो नहीं कर दिया गया है?
फ़र्स्टपोस्ट के पत्रकार प्रवीण सिंह को हाथ में गहरी चोट लगी। दूसरे पत्रकारों के साथ भी बहुत कुछ हुआ।
ये कैमरे फ़ोटोजर्नलिस्टों ने पुलिस मुख्यालय के सामने रखे हैं। विरोध जताते हुए। कुछ तस्वीरें बहुत बड़ी कहानी कह देती हैं। यह उन्हीं तस्वीरों में से एक है।
Vineet Kumar
23 March at 21:00 ·
जेएनयू में इन दिनों, दिन में वृक्ष लगाओ, रात में उखाडकर चैक करो कि जड़ों ने मिट्टी पकड़ी है कि नहीं..अभियान चल रहा है.
अतिउत्साह में हर दो-चार महीने में चैक करने की कोशिश की जाती है कि जो नए पौधे लगाए हैं, (जाहिर है पुराने पेडों को बौना करार देने के लिए) उन्हें उखाड़कर देखा जा रहा है कि जड़े जमी की नहीं ?
जिन्हें पेड़ लगाने का शउर नहीं है वो ऐसा ही करते हैं. आखिर सारी कला शाखा लगाने से तो नहीं आ जाती न ? पेड़ लगाना बेहद धैर्य का काम है.
Nitin
28 March at 15:58 ·
भारत में कैंब्रिज एनेलिटिका की कहानी शुरू होती है 2009 के लोकसभा चुनाव से। वो चुनाव बीजेपी नेता महेश शर्मा बीएसपी के सुरेंद्र सिंह नागर के हाथों सोलह हज़ार वोटों से हार गए थे। शर्मा के लिए काम कर रहे अवनीश राय नाम के शख्स ने उन वजहों को खोजना शुरू किया जो उनकी हार की वजह बनी। चुनाव से पहले राय को भरोसा था कि शर्मा चुनाव जरूर जीतेंगे। इसी माथापच्ची के दौरान राय ने अपने कुछ ब्रिटिश दोस्तों से बात की। दोस्त ने राय को सलाह दी कि उसे ब्रिटेन से उन एक्सपर्ट्स को बुलाना चाहिए तो पॉलिटिकल बिहेवियर को समझते हैं। यहीं राय ने एससीएल के यूके हेड डैन मुरेसन से बात की। रोमानिया के मुरेसन तीन एक्सपर्ट्स के साथ भारत आए और पड़ताल शुरू की। ये एक्सपर्ट्स बिहेवियरल डायनेमिक्स इंस्टीट्यूट से ताल्लुक रखते थे। इसे नाइजेल ओक्स और एलेक्ज़ेंडर ओक्स ने बनाया था।ये लोग बाद में एलेक्ज़ेंडर निक्स की एससीएल में पार्टनर भी बने।
मुरेसन की टीम ने नोएडा के ज़ेवर में लोगों के इंटरव्यू लिए। यहां शर्मा को सबसे कम वोट मिले थे। महीने भर की पड़ताल से पता चला कि लोग शर्मा को नेता नहीं समझते, बल्कि एक अमीर पूंजीपति मानते हैं। जाति के फैक्टर ने भी अपना काम किया था। गैर ब्राह्मण वोटर्स ने उन्हें वोट नहीं दिए. रिपोर्ट्स देखकर राय काफी प्रभावित हुए।
साल 2010 में अवनीश राय बिहार में कुछ प्रत्याशियों के लिए काम कर रहे थे। कभी कभी वो पारिवारिक दोस्त अमरीश त्यागी के लिए भी काम करते थे। वो उस वक्त दवाई कंपनियों के लिए काम कर रहे थे। एक दिन मुरेसन और एलेक्ज़ेंडर निक्स दिल्ली आए और अमरीश त्यागी के ओवलेनो बिज़नेस इंटेलीजेंस दफ्तर में मीटिंग चली। मुरेसन की टीम राय के काम के बारे में जानती थी। उन्होंने प्रस्ताव रखा कि वो 28 सीटों के लिए डाटाबेस बनाते हैं ताकि 2014 लोस चुनाव में नेताओँ के सामने पेश किया जा सके।तब चुनाव चार साल दूर था। राय ने क्लाइंट्स की आसानी के लिए एक मोबाइल ऐप का भी प्रस्ताव दिया। इसके बाद राय ने खुद ही बिहार में काम करके डाटाबेस तैयार किया। एससीएल की टीम बिहार नहीं गई। क्लाइंट्स को आकर्षित करने के लिए एससीएल ने अपनी प्रेज़ेंटेशन में बिहार के 2010 चुनाव, राजस्थान और मध्यप्रदेश के 2003 चुनाव का भी ज़िक्र किया। दरअसल ये सारा काम राय का ही किया हुआ था।
2010-11 के करीब एससीएल ने घाना की एक पॉलिटिकल पार्टी का काम अपने हाथों में लिया था। सर्वे की जानकारी घाना से राय के दफ्तर आती थी। ओवेलेनो बिज़नेस इंटेलीजेंस के ज़रिए राय और त्यागी अब निक्स की कंपनी के लिए काम शुरू कर चुके थे। गाज़ियाबाद में टीम सर्वे डाटा का एनिलिसिस करती थी। इसके बाद घाना के राजनीतिक दल को सलाह भेजी जाती थी।
2011 के बाद निक्स और मुरेसन दिल्ली आते रहे। उनके स्टाफ के लिए गाज़ियाबाद के इंदिरापुरम में किराये पर फ्लैट लिया गया।
निक्स और मुरेसन ने अब राय और त्यागी के साथ नेताओं से मुलाकात शुरू कर दी। वो क्लाइंट्स को तमाम सुविधाएं देने का वादा करते थे। जाति के आंकड़े, बिहेवियरल पोलिंग, मीडिया मॉनिटरिंग, टारगेट ऑडिएंस एनेलिसिस की जानकारी देने की बातें तय हुईं.
राय बताते हैं कि वो लोग कांग्रेस के बड़े नेताओं से मिले. बीजेपी के नेताओँ से भी मुलाकात हुई। एक बात ध्यान देने लायक है कि निक्स कांग्रेस को क्लाइंट के तौर पर पाने को लेकर ज़्यादा उत्साही थे। उनका कहना था कि सत्ताधारी दल होने की वजह से कांग्रेस ज़्यादा पैसे देगी। उधर कांग्रेसियों ने रुचि तो दिखाई पर काम नहीं दिया। एससीएल ने ठाना कि राहुल गांधी को 4 लोस सीटों का डाटा तैयार करके दिखाया जाए। इसमें अमेठी, रायबरेली, जयपुर ग्रामीण और मधुबनी को चुना गया। ये डाटा राहुल गांधी को मुफ्त में पेश करना था। 2-3 महीने तक काम चलता रहा। एससीएल की यूके टीम ने भारतीयों को सर्वे की ट्रेनिंग दी। वोटरों से सवाल करने के बारे में बताया और मोबाइल ऐप में डायरेक्ट डाटा फीडिंग की टेकनिक भी बताई.
यहां ट्रेनिंग के दौरान राय को एक बात अजीब लगी। सर्वेयर्स को जिस तरह के सवाल पूछे जाने को कहा गया वो एंटी कांग्रेस कैंपेन ज़्यादा लग रहा था। राय को लगा कि कांग्रेस को क्लाइंट के तौर पर पाने के लिए इस तरह के सवाल लोगों से पूछा जाना अजीब है। ये सवाल लोगों में कांग्रेस को लेकर निगेटिविटी अधिक फैलाते लग रहे थे.
एक दिन निक्स नए स्मार्टफोन्स के साथ दिल्ली आए और बताया कि ये फोन ज़्यादा अपडेटेड हैं। अब डाटा इनमें फीड होने लगा. इस तरह अमेठी और रायबरेली को मैप कर लिया गया। फिर एक दिन एक इंडियन अमेरिकन गुजराती प्रोजेक्ट देखने आई। पता चला कि वो क्लाइंट की तरफ से आई है। राय का दिमाग ठनका कि अभी तो हमें क्लाइंट खोजना था लेकिन यहां तो पहले से ही क्लाइंट है। जानकारी मिली कि दरअसल एक गुजराती अमेरिकन व्यापारी ने पहले ही निक्स को काफी पैसा दिया था ताकि कांग्रेस को हरवाया जा सके। राय ने निक्स से सवाल किया। राय का कहना था कि कांग्रेस को हराने को लेकर उन्हें दिक्कत नहीं थी मगर नैतिक रूप से ये गलत लगा कि एक तरफ हम कांग्रेस से काम मांग रहे हैं और दूसरी तरफ उन्हें हराने में लगे हैं। निक्स ने दोटूक कहा कि मैं यहां पैसा बनाने आया हूं चाहे वो जैसे बने। राय ने तब निक्स से मोबाइल ऐप का रॉ कोड मांगा। पहले ये तय हुआ था कि डाटा भारतीय सर्वरों पर भी रहेगा। हैरानी की बात नहीं कि सर्वर तो अमेरिका में थे। निक्स ने राय से रॉ डाटा मांगा लेकिन उसके लिए राय ने मना कर दिया।
राय चाहते थे कि एक मेमोरेंडम ऑफ अंडरस्टैंडिंग साइन हो जाए जो कभी ना हो सका. वो मुरेसन को दिल्ली में लाकर काम करना चाहते थे लेकिन निक्स ने ये भी नहीं किया. राय को मुरेसन पर ज़्यादा भरोसा था। भारत में प्रोजेक्ट तब तक ठहर चुका था। मुरेसन चुनावी काम पर कीनिया में थे जहां वो उप प्रधानमंत्री उहूरू केनयाटा के समर्थन में काम कर रहे थे। 2013 में उहूरू इसी कंपनी के साथ काम करते हुए जीते थे। 2017 में भी वो ही जीते हैं। 2017 में उनके लिए जब कैंब्रिज एनिलिटिका ने काम किया तब काफी बवाल मचा।
बहरहाल 2012 के दौरान राय यूपी विधानसभा के लिए काम कर रहे थे। वो लगातार मांग कर रहे थे कि काम में तेज़ी तभी आएगी जब मुरेसन को उनके साथ गाज़ियाबाद में काम पर लगाया जाए। फिर एक दिन कीनिया से मुरेसन की मौत की खबर आई। वो होटल में मृत पाए गए। वजह दिल का दौरा पड़ना बताई गई लेकिन राय के मुताबिक उन्होंने सुना था कि उनकी हत्या हुई है। मुरेसन की मौत के बाद क्रिस्टोफर वाइली को काम सौंपा गया जो हाल ही में कैंब्रिज एनिलिटिका के खिलाफ व्हिसल ब्लोअर बनकर उभरा है। उसने भी मुरेसन की मौत पर हैरत जताई है। बाद में राय और त्यागी अपने काम में लगे रहे। राय वोटर प्रोफाइलिंग में जुटे लेकिन के सी त्यागी के सुपुत्र अमरीश अपनी ओवेलेनो बिज़नेस इंटेलीजेंस के ज़रिए कैंब्रिज एनिलिटिका के साथ काम करते रहे।
(साभार द प्रिंट और राय के कई जगह दिए गए साक्षात्कार)
Vishnu Nagar
12 hrs ·
दिल्ली के पूर्व उपराज्यपाल नजीब जंग की इस पद पर नियुक्ति तो मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्रित्व काल में हुई थी मगर वह उन चंद राज्यपालों-उप राज्यपालों की सूची में थे,जिन्हें मोदी सरकार ने हटाया नहीं था या हटने को नहीं कहा था।इसकी कीमत भी जंग साहब ने पूरी अदा की और मोदी सरकार के प्रति वफादारी निभाते हुए 70 में से 67 सीटें जीतने वाली अरविंद केजरीवाल की सरकार को परेशान करनेेे में कोई कोरकसर नहीं छोड़ी।
एक दिन अचानक पता चला कि उन्होंने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है।कयास था कि मोदी सरकार शायद उन्हें और भी बड़ा पुरस्कार देना चाहती होगी।ऐसा कुछ नहीं हुआ।रोज खबरों में रहनेवाला शख्स अंधेरे में ऐसे गुम हो गया कि जैसे वह कहीं था ही नहीं, जैसे वह कभी कुछ था ही नहीं।
अरविंद केजरीवाल की पत्नी सुनीता केजरीवाल द्ववारा दिल्ली के मौजूदा उप राज्यपाल अनिल बैजल को लिखे एक पत्र के आज छपने से पता चला कि जंग साहब गंभीर रूप से बीमार हैं(शायद इसकी शुरूआत उनके पद पथ रहते हो चुकी होगी, तभी त्यागपत्र दिया।)।श्रीमती केजरीवाल के शब्दों में जंग साहब को इस बात का बेहद रंज है कि उन्होंने अपने कार्यकाल में आप सरकार को बेहद तंग किया था।उन्होंने एक तरह से बैजल साहब को भी चेतावनी दी है कि आदमी के ‘कर्म’, उसके ‘कर्ता’ का पीछा नहीं छोड़ते।छोड़ते हैं या नहीं छोड़ते हैं,इस बारे में मेरा ग्यान स्वल्प ही नहीं संपूर्ण अग्यान है।आप विद्वान मेरा ग्यान वर्द्धन करें लेकिन मुझ दिल्लीवासी को पहली बार जंग साहब की कोई खबर मिली है।कभी महत्वपूर्ण रहे लोगों के बारे में जानते रहना चाहिए न!
Jagadishwar Chaturvedi
Yesterday at 07:24 ·
याद रखें नरेन्द्र मोदी को परास्त करने के मामले में विगत चार साल में अरविंद केजरीवाल ने जो भारत रिकॉर्ड बनाया है उसे अभी तक कोई तोड़ नहीं पाया है और केजरीवाल के हाथों हुई हार के कारण आज भी मोदीजी की दिमाग की नसों में रह-रहकर दर्द होता है,जब भी दर्द होता है तो केजरीवाल की ओर पुलिस दर्द देने दौड़ पड़ती है लेकिन केजरीवाल लोहे का बना है। उस पर कोई असर ही नहीं होता। लोकतंत्र में लोहे का महत्व है।—————
Deepak Sharma
9 hrs ·
एक लीटर पेट्रोल का दाम आज मुंबई में 84.40 रूपए और दिल्ली में 76. 24 रूपए रहा । अगर क्रूड आयल के दाम कुछ डॉलर और बढ़ गये तो देश में पेट्रोल 100 रूपए प्रति लीटर का आसमान छू लेगा। चुनाव के आखिरी साल में तेल के दाम में ये रिकॉर्ड उछाल सरकार का तेल निकाल सकती है।
पेट्रोलियम मंत्रालय के एक संयुक्त सचिव के अनुसार मोदी सरकार अगर सब्सिडी की ओर लौटे, कुछ ड्यूटी कम करे, तो इस संकट को हल किया जा सकता है। सरकार अपना खजाना थोड़ा खाली करे तो तेल के दाम 60-65 रूपए तक लाये जा सकते हैं।
यूपीए-1 के आखिरी साल में इस तरह का चुनावी कैलकुलेशन प्रणब मुखर्जी ने किया था जब वे सब्सिडी के सहारे तेल के दाम 45 रूपए से भी नीचे ले गए थे। भारी सब्सिडी के ज़रिये सस्ता पेट्रोल और किसानो के लिए मनरेगा की महायोजना, ये दो ऐसे फैसले थे जो मनमोहन सरकार को सत्ता में वापस ले आये थे। या यूँ कहे कि दो अहम आर्थिक फैसले लेकर या जनता को आर्थिक राहत देकर मनमोहन का दुबारा सत्ता में लौटने का रास्ता आसान हुआ था। ये रास्ता मोदी भी अपना सकते हैं और तेल संकट को हल कर सकते हैं । लेकिन ऐसा लगता है कि कॉर्पोरेट कंपनियों को राहत देने की फ़िराक में सरकार अपने ही जाल में फंस गयी है।
मोदीजी के लिए तेल की सब्सिडी देना वाकई मुश्किल चुनौती है। वजह ये है कि सब्सिडी सरकारी तेल कंपनियों को दी जा सकती है लेकिन रिलायंस और एस्सार जैसे कारपोरेट को कैसे दें ? अगर निजी कंपनियों को सब्सिडी दी तो हंगामा खड़ा हो जायेगा। कांग्रेस जैसे ‘भ्रष्ट’ शासन में भी एस्सार और रिलायंस को सब्सिडी नहीं दी गयी थी। लिहाजा मुकेश अम्बानी से लेकर एस्सार के रुइया बंधुओं को तब अपने पेट्रोल पंप बंद करने पड़े थे।
2014 में लालकिले के पहले भाषण के बाद मोदीजी ने तेल से सरकारी नियंत्रण हटा लिया था । तर्क ये दिया गया था कि क्रूड आयल के जो दाम बाजार में होंगे उसी दाम के आधार पर भारत में तेल बिकेगा। इस फैसले के बाद रिलायंस ने अपने करीब 1500 और एस्सार ने करीब 5000 पेट्रोल पंप फिर से शुरू कर दिए। तेल पर सब्सिडी और कण्ट्रोल दोनों हटने से एस्सार और रिलायंस ने अपने पंप नेटवर्क के ज़रिये खूब पैसा पीटा। लेकिन अचानक क्रूड आयल के दाम दुनिया में फिर बढ़ने लगे। इतने बढ़े की सरकार के लिए चुनावी दौर में संकट खड़ा होना लगा है।
अब अगर मोदीजी सरकारी तेल कंपनियों को सब्सिडी देते हैं तो मुकेश भाई को अरबों का नुकसान होगा और उन्हें अपने सारे पेट्रोल पंप बंद करने पड़ेगे। एस्सार आयल को खरीदने वाली रुसी कम्पनी को भी भारी घाटा होगा। अगर मोदीजी सब्सिडी एस्सार और रिलायंस जैसी निजी कंपनियों को भी देते हैं तो नया विवाद खड़ा हो जायेगा। अगर मोदीजी किसी को भी सब्सिडी नहीं देते तो तेल के दाम बढ़ते ही चले जायेंगे और महंगाई से त्रस्त जनता सरकार के खिलाफ मुट्ठी बाँध सकती है।
सच में संकट तो विकट है।
और अगर हल है तो साहेब के हाथ बंधे है।
वैसे हाथ तभी बंध जाते हैं
जब आप कहते कुछ हैं
और करते कुछ और है।
बहरहाल अंग्रेज़ी का एक चर्चित कथन है। पढ़िए और खुद मतलब ढूंढिए।
“Truth will rise above falsehood as oil above wat
Deepak Sharma
19 May at 22:52 ·
इरादे तो नेक नहीं थे। पर अंजाम तक आते आते कुछ दिल बदला, कुछ ख्याल बदले।
वाजपेयी अभी जिन्दा है।
शायद भाजपा की अंतरात्मा को ग्यारहवें घंटे पर ऐसा आभास हुआ।
यूँ तो येदियुरप्पा किसी कोण से वाजपेयी नहीं दीखते है पर वे वाजपेयी के परिवार से हैं, इसमें संदेह नहीं। बेशक उनके पाँव दलदल में हों पर आज येदियुरप्पा साफ सुथरा कमल खिलाने में कामयाब रहे।
मुमकिन है येदियुरप्पा को आज इस्तीफा मज़बूरी में देना पड़ा हो पर उन्होंने छल-लोभ-मोह के शुरुआती खेल के बाद अपनी पारी सम्मानजनक स्थिति में समाप्त की। वे सदन में पराजित तो दिखे पर विपक्ष के होंठ सिलकर सदन के बाहर निकले। जिस येदियुरप्पा की राजनीति पर भ्रष्टाचार के दाग हों, वे आज खुद को पहले से बेहतर साबित कर पाए। बेहतर इसलिए क्यूंकि जिस तरह का परिचय आज येदियुरप्पा ने दिया उसकी अपेक्षा उनसे नहीं थी। लोग मान रहे थे कि पैसे और रसूख का नंगा नाच आज सदन में देखने को मिलेगा लेकिन वहां तो आज येदियुरप्पा का निरीह भाषण था जो 1996 के निसहाय प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपायी की कुछ कुछ यादें ताज़ा कर रहा था। खैर अंत भला तो सब भला। पर एक नज़र ज़रा इस बाज़ी के जीतने वालों पर भी।
जनता दल के कुमारस्वामी और कांग्रेस के सिद्धारमैया कोई दूध के धुले नही है। उनके विधायकों पर भी खनन, ठेकेदारी और लूट के गम्भीर आरोप है। कई विधायक इंकम टैक्स की जाँच के घेरे में है। ये सच है कि अमित शाह के दौर में अगर भाजपा चाह लेती तो कर्नाटक की गले तक भ्रष्टाचार में डूबी राजनीति को अपने हक़ में करने में उसे देर ना लगती। जिस शाह के एक फ़ोन पर अम्बानी से लेकर अडानी तक बिछ जाते हों उस शाह के लिए कर्नाटक मेँ सात विधायक तोड़ना घंटे भर का सौदा था ।
अगर शाह ने मोदी के कहने पर बंगलोर में अपने पाँव एक क़दम पीछे खींच लिए तो आज ये भाजपा की हार नही जीत है।
देश की सबसे बड़ी सत्ताधारी पार्टी होकर अगर भाजपा साम दाम से बंगलोर में सरकार बनाती तो इसका
कलंक शाह पर नही वाजपायी के माथे पर लगता। वे वाजपायी
जो 1996 में अपनी सरकार का विश्वास खोने के बाद
देश का विश्वास पाने में सफल हुए।
ये सच है
अगर आपकी नीयत साफ़ है तो
आप सदन में विश्वास खोते नहीं
विश्वास जीत लेते है।
येदियुरप्पा
यूँ तो कागज़ पर हार गए
लेकिन आज उन्होंने खोया कम
पाया ज्यादा है।
Rakesh Kayasth
8 hrs ·
बीजेपी के आप कितने बड़े आलोचक क्यों ना हो राजनीतिक जीवन में पारदर्शिता स्थापित करने का क्रेडिट उसे देना ही पडे़गा।
कर्नाटक का ड्रामा जिस दिन से शुरू हुआ उसी दिन से तमाम बीजेपी नेता दावा कर रहे थे कि हम कांग्रेसी विधायकों को तोड़ लेंगे। क्या किसी पार्टी ने कभी इतनी साफगोई से इस तरह के इरादे जताये हैं?
कर्नाटक में एक नैतिक और ईमानदार सरकार बनाने की बीजेपी की कोशिशें दुर्भाग्य से नाकाम हो गईं। उसके बाद बीजेपी प्रवक्ता ने कहा कि कांग्रेस ने अलोकतांत्रिक तरीके से अपने विधायकों को कहीं छिपा दिया था, इसलिए हम नाकाम हो गये।
तब लोगो को प्रवक्ता गौरव भाटिया के बयान को मजाक में लिया। आज बीजेपी के वरिष्ठ नेता सुधांशु त्रिवेदी ने यही बात दोहराई और साथ ही यह भी कहा कि उस समय से तो छिपा दिया था, लेकिन आखिर कांग्रेस अपने विधायक कब तक छिपाएगी?
पारदर्शिता सनातन भारतीय दर्शन है, पुराने जमाने में डाका डालने वाले भी पहले चिट्ठी भेजते थे। परंपरा लुप्त हो गई थी। अच्छी बात है कि अब कोई इसे फिर से स्थापित करने के लिए आगे आ रहा है।
बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने भी पारदर्शिता के नये प्रतिमान कायम करते हुए दावा किया है कि फाइव स्टार होटल में बंद विधायक थोड़ी देर के लिए भी बाहर आ गये होते तो उनका वोट बीजेपी को ही जाता।
थोड़ा पीछे लौटें तो स्वयं प्रधानमंत्री ने उत्तर प्रदेश की चुनावी रैलियों में विपक्षी नेताओं को ज्यादा ना फड़फड़ाने की सलाह दी थी, क्योंकि सबकी कुंडली सरकार के पास है। कर्नाटक में भी प्रधानमंत्री ने भी ऐसी ही चेतावनी दी। जनता के दरबार में जाकर ब्लैकमेलिंग की ऐसी अनोखी मिसाल भारत क्या पूरी दुनिया में कही नहीं मिलेगी।
पारदर्शिता और नैतिकता इसी रफ्तार से आगे बढ़ी तो क्या होगा? हो सकता है अगले चुनाव में यह कहा जाये कि हम इनकी कारगुजारियों का कच्चा-चिट्ठा शराफत से दबाये बैठे हैं, अभी तक ना मुकदमा किया है और ना जेल भिजवाया है, लेकिन ये कमबख्त इतने बेशर्म हैं कि ब्लैकमेल होने तक को तैयार नहीं हो रहे हैं। जनता सब देखती है, वह ब्लैकमेल ना होनेवालों को सबक ज़रूर सिखाएगी।
Rahul Kushwaha
20 May at 23:02 ·
नोटबंदी का सच !
में कोई अर्थशास्त्र का विद्यार्थी नहीं हूँ ना ही मुझे अर्थशास्त्र का कोई ज्ञान है । जितनी मेरी जानकारी उसके अनुसार जो नोट छापे जाते है वो देश के गोल्ड रिज़र्व के हिसाब से छापे जाते है । जो नोट आपके यहाँ चलन में हो अगर किसी कारण वो चलन से निकाल लिया जाए तो उस वैल्यू के नोट छापे जा सकते है । नोटबंदी में लगभग 15.44 लाख करोड़ 500 और हजार के नोट चलन से बाहर हो गए । सरकार को उम्मीद थी की लगभग 3 लाख करोड़ रुपय वापस नहीं आएँगे , सरकार के वकील ने सुप्रीम कोर्ट में कहा था की 4-5 लाख करोड़ तक हम उम्मीद कर रहे है की नोट वापस नहीं आएँगे लेकिन अचानक दिसम्बर में RBI से खबर आयी की 97% नोट वापस आ गए । फिर फ़रवरी में पता चला की 99% नोट वापस आ गए । लास्ट रिपोर्ट यह है की लगभग सभी नोट वापस आ गए , फ़ाइनल गिनती आज तक जारी है । जितने नोट वापस आए उतने ही नोट छपे भी होंगे । बस यही कैच है जिसे समझने की जरूरत है । मेरा अपना आंकलन यह है की
१. नोट इतने वापस नहीं आए जितना RBI बता रही है । आपके सबके कोई ना कोई जानने वाले ऐसे लोग अवश्य होंगे जिनके पास आज भी पुरानी करेन्सी होगी , अभी दो महीने पहले तक नेपाल में भारत की पुरानी करेन्सी 10% की वैल्यू पर बिक रही थी , मोदी जी जब अभी नेपाल गए थे तब नेपाल की सरकार ने पुराने नोट बदलने
का मुद्दा उठाया था । उनके पास दस बीस लाख रुपय तो होंगे नहीं , जाहिर है बड़ी संख्या में नोट होंगे । नोटबंदी के समय कितनी खबरे आयी की वहाँ बोरे में कटे हुए नोट मिले , पानी में बहते हुए नोट मिले , अभी पिछले दिनो तक पुरानी करेन्सी बड़ी मात्रा में पकड़ी गयी। जब लगभग सारी पुरानी करेन्सी जमा हो गयी तो फिर यह करेन्सी कहाँ से आ गयी ??
२. जब सारी करेन्सी जमा हो गयी तो लोग उसे वापस भी निकाल लेते । जिनके पास भी पैसा था उन्होंने अपने गरीब रिश्तेदार और मित्रों के अकाउंट में जमा करा दिया था वो सब धीरे धीरे उन्होंने निकाल लिया फिर पैसा मार्केट में क्यों नहीं आया । 2000 का नोट कहाँ गायब है । ATM में नोट का फ़्लो क्यों रुक गया । अब तक तो सबकुछ नॉर्मल हो जाना चाहिए था ।
३. सच्चाई यह है की RBI का दावा गलत है । नोट सारे जमा नहीं हुए , सरकार का अनुमान सही था , तीन लाख करोड़ नोट वापस नहीं आया लेकिन छाप लिया गया और वो अधिक छपा हुआ नोट भाजपा के पास है । जमाख़ोरी पहले भी होती थी लेकिन मार्केट में नोट कम नहीं होते थे अब मार्केट से जमाख़ोरी के साथ साथ यह करेन्सी भी गायब है जो इन्होंने एक्स्ट्रा छापी है इसलिए बार बार नोट की समस्या हो रही है बाजार में ।
100 करोड़ का विधायक इसी पैसे से खरीदने की बात हो रही थी और लोकसभा में सांसद 500 करोड़ का भी इसी पैसे से खरीदा जाएगा । इसके और भी पहलू होंगे , मुझे अर्थशास्त्र की जानकारी नहीं है लेकिन RBI का साफ साफ अभी तक कुछ ना बोलना इस बात की ओर इशारा करता है की घपला नोट छापने और नोट जमा करने में हुआ है । कांग्रेस और दूसरी पार्टी इस पहलू पर सोच रही है या क्यों नहीं सोच रही है , मेरी समझ से परे है ।
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