प्रदीप कुमार, बीबीसी संवाददाता
गोरखपुर उप चुनाव के नतीजे आने से पहले वाराणसी में फ़्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों और नरेंद्र मोदी के साथ खड़े योगी आदित्यनाथ की बॉडी लैंग्वेज से इस बात के कयास लगाए जाने लगे थे कि उपचुनाव के नतीजे फ़ेवर में नहीं होंगे.
अमूमन तेज़-तेज़ और हाथों को झटक-झटक कर चलने वाले योगी आदित्यनाथ समारोह के दौरान हाथों को हाथों से बांधे खड़े नज़र आए.
योगी आदित्यनाथ के निकट सहयोगी के मुताबिक, “ऐसे इनपुट पहले ही मिलने लगे थे और मतदान के दिन जब पोलिंग प्रतिशत कम हुआ तो हार की आशंका मुख्यमंत्री को पहले से हो गई थी.”
गोरखपुर में चुनाव प्रचार के दौरान भी योगी आदित्यनाथ को इस बात की आशंका सताने लगी थी.
गोरखपुर में लंबे समय से पत्रकारिता कर रहे कुमार हर्ष कहते हैं, “पहले से प्रस्तावित दौरों के अलावा योगी आदित्यनाथ ने इलाक़े में दो अतिरिक्त चुनावी सभाएं भी की थी.”
तो इन आशंकाओं की वजहें क्या रही होंगी? इसकी सबसे बड़ी और बुनियादी वजह योगी आदित्यनाथ की अपनी छवि और अंदाज़ ही रहा है.
योगी की छवि पर असर
जिस तरह से 2017 में विधानसभा चुनाव के बाद उन्हें मुख्यमंत्री बनाया गया, उसको लेकर राजनीतिक गलियारों में ये बात भी कही गई कि उन्होंने इसके लिए केंद्रीय नेतृत्व पर दबाव बनाया.
इसलिए जब 300 से ज्यादा विधायकों वाली सरकार में जब योगी आदित्यनाथ के साथ दो-दो उपमुख्यमंत्री बनाए गए तो ये माना गया कि उन पर अंकुश रखने के लिए ऐसा किया गया है.
बहरहाल, केंद्रीय नेतृत्व ने उनकी छवि और उनके अंदाज़ का इस्तेमाल गुजरात विधानसभा चुनाव के दौरान भी किया.
लेकिन जब गोरखपुर उप चुनाव के लिए उम्मीदवार चुनने की बात आई तो केंद्रीय नेतृत्व ने योगी आदित्यनाथ की सलाह पर ध्यान नहीं दिया. भारतीय जनता पार्टी ने गोरक्षा पीठ मठ से बाहर के आदमी को अपना उम्मीदवार बनाया.
योगी से जुड़े विश्वस्त सूत्रों का कहना है, “ये धारणा तो रही है कि ‘नो इफ़ नो बट, गोरखपुर में ओनली मठ.’ अगर हमारे मठ का उम्मीदवार होता तो ये तस्वीर नहीं होती. मठ के नाम मात्र से लोग एकजुट हो जाते हैं.”
”हमलोगों ने मठ के पुजारी कमलनाथ का नाम आगे बढ़ाया था, जो जातिगत आधार पर भी पिछड़ा होने की वजह से मज़बूत उम्मीदवार साबित होते.”
योगी का क़द हुआ कम?
वैसे 1989 से लगातार इस लोकसभा क्षेत्र में मठ के उम्मीदवारों का डंका रहा है. नौवीं, दसवीं और ग्यारहवीं लोकसभा चुनाव में महंत अवैद्यनाथ चुनाव जीतने में कायमाब हुए थे, इसके बाद से 1998 से लगातार पांच बार योगी आदित्यनाथ सांसद रहे.
गोरखपुर में मौजूद स्थानीय पत्रकार कुमार हर्ष कहते हैं, “दरअसल, मठ के अंदर का उम्मीदवार होने से संसदीय क्षेत्र में मतदान में जातिगत गणित पीछे छूट जाता है. बीजेपी ने ब्राह्मण उम्मीदवार को खड़ा किया जिसकी आबादी वोटिंग के लिहाज से चौथे पायदान पर थी.”
हालांकि एक राष्ट्रीय दैनिक के गोरखपुर एडिशन के संपादक का कहना है, “उम्मीदवार के चयन में बीजेपी से ग़लती हुई, अगर साफ़ सुथरे विधायक को टिकट दिया जाता था तो बात दूसरी होती. गोरखपुर शहरी क्षेत्र के विधायक राधा मोहन दास अग्रवाल बेहतर उम्मीदवार हो सकते थे. जहां तक मठ के अंदर से उम्मीदवार की बात है, तो योगी आदित्यनाथ ने उस तरह से किसी शख़्स को तैयार ही नहीं किया है.”
इसके अलावा एक अहम बात ये भी रही कि भारतीय जनता पार्टी की ओर से चुनाव प्रचार के लिए ना तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और ना ही पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ही गए. योगी आदित्यनाथ के एक क़रीबी सलाहकार का कहना है, “पार्टी के संगठन ने भी अपना पूरा दम नहीं लगाया. संगठन के कार्यकर्ता लोगों को बूथ तक लाने में कामयाब नहीं रहे. संघ की ओर से भी उस तरह से ज़िम्मेदारी तय नहीं की गई थी, जैसा कि अमूमन अहम चुनावों में होता रहा है.”
बहरहाल, जिन उपेंद्र नाथ शुक्ला को भारतीय जनता पार्टी ने टिकट दिया, उनकी कभी योगी आदित्यनाथ से पटी नहीं थी.
इसलिए एक थ्योरी ये भी है कि योगी आदित्यनाथ ने इस उम्मीदवार को जिताने के लिए अपना पूरा ज़ोर नहीं लगाया. योगी आदित्यनाथ की हिंदू वाहिनी भी इस बार सक्रिय नहीं दिखी.
इस थ्योरी के पक्ष में ये भी कहा जा रहा है कि योगी आदित्यनाथ कभी नहीं चाहेंगे कि गोरखपुर की संसदीय राजनीति में उनके विकल्प के तौर पर किसी की ज़मीन बने.
हालांकि योगी आदित्यनाथ से जुड़े सूत्र ऐसी किसी बात से इनकार करते हैं, ”मुख्यमंत्री बनने के एक दिन बाद ही उन्होंने अपने संगठन को निष्क्रिय कर दिया था तो ऐसा नहीं है कि हिंदू वाहिनी के लोग केवल चुनाव के दौरान सक्रिय नहीं रहे. आप ये भी तो देखिए कि योगी आदित्यनाथ ने इलाक़े में कितनी सभाएं कीं. उपेद्र शुक्ला को सबसे ज़्यादा नुकसान इलाक़े से ही आने वाले दो ब्राह्मण नेताओं ने पहुंचाई है.”
दबाव नहीं डाल पाएंगे योगी
गोरखपुर के स्थानीय पत्रकार कुमार हर्ष के मुताबिक, “अपने गढ़ में हारने जितना बड़ा जोख़िम योगी आदित्यनाथ नहीं ले सकते थे क्योंकि इस हार से केवल उनकी छवि को नुकसान पहुंचता और इसका एहसास उनको निश्चित तौर पर रहा होगा.”
कुछ विश्लेषकों की राय में बीजेपी को ब्राह्मण बनाम राजपूत वर्चस्व की लड़ाई की क़ीमत चुकानी पड़ी है, हालांकि समाजवादी पार्टी की ओर से निषाद समुदाय के उम्मीदवार के उतारे जाने से और बहुजन समाज पार्टी का साथ मिल जाने से ये लड़ाई उतनी आसान भी नहीं रह गई थी.
गोरखपुर में मतदाताओं के लिहाज से निषाद समुदाय के सबसे ज़्यादा साढ़े तीन लाख मतदाता हैं, जबकि दो-दो लाख मतदाता दलित और यादव समुदाय के हैं. जबकि ब्राह्मण मतदाता की संख्या केवल डेढ़ लाख की है.
इसके अलावा ये पहला मौका है जब गोरखपुर की जनता की उम्मीदों पर खरा उतरने की चुनौती योगी आदित्यनाथ के सामने है क्योंकि केंद्र और राज्य सरकार में भारतीय जनता पार्टी की सरकार है.
गोरखपुर के सांसद के तौर पर योगी आदित्यनाथ की पहचान लोगों के लिए आंदोलन करने वाले नेता की बन गई थी, सत्ता में आने के बाद लोगों की उम्मीदों पर खरा उतरना और सबको संतुष्ट कर पाना उनके लिए आसान नहीं रह गया है.
बहरहाल, अब एक बात बिल्कुल साफ़ हो गई है कि गोरखपुर में चुनावी हार के बाद योगी आदित्यनाथ अब उस तरह से बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व पर दबाव की रणनीति नहीं बना पाएंगे.
हिंदुत्व की राजनीति के चेहरे के तौर पर उनकी पहचान को धक्का लगा है जिसे उनके नरेंद्र मोदी के विकल्प के तौर पर उभर पाने की उम्मीदों को झटका लगा है.
उप चुनाव के दौरान भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ताओं की उदासीनता से इस थ्योरी को बल मिलता है.
लेकिन एक राष्ट्रीय दैनिक के गोरखपुर संस्करण के संपादक कहते हैं, “इस हार के बाद भी गोरखपुर और पूर्वोत्तर में योगी आदित्यनाथ का असर कम नहीं हुआ है. भारतीय जनता पार्टी चाहे भी तो योगी आदित्यनाथ के असर को कम नहीं कर सकती है.”
हालांकि चुनाव में हार के बाद प्रेस कांफ्रेंस में योगी आदित्यनाथ का मुरझाया हुआ चेहरा बता रहा था कि इस हार ने उनके क़द को कम कर दिया है.
bbc.com/hindi/india-43411616
Haider Rizvकल एक लम्बा लेख पढ़ा, जो किसी सज्जन ने Ravish Kumar के ख़िलाफ़ लिखा था…
कांग्रेस गवर्नमेंट के समय शायद, एक बार रविश जी ने कहा था, कि हैदर साहब मुझे मेरे जैसे चार पत्रकार और मिल जाएँ तो सरकारों को लाइन पर ले आएँगे हम लोग…
लेकिन मेरी कहानी उसके काफ़ी बाद से शुरू होती है..
२०१५ के बुक फ़ेयर में जब रविश कुमार मिले तो काफ़ी ख़ुश थे…. पार्किंग की दिक़्क़त पर चर्चा होते समय उन्होंने बताया कि मैं तो इसीलिए मेट्रो पकड़ कर आगया…. उसके दो-तीन दिन बाद जब बात हुई तो तो वो आश्चर्यचकित थे… उन्होंने बताया कि उस रोज़ मेट्रो से लौटते समय मेट्रो में लोगों ने उन्हें बुरा भला कहा, अपशब्द बोले और मेट्रो से सफ़र करने को केजरीवाल जैसा प्रपंच बोला….
मुझे यक़ीन नहीं हुआ, कि दिल्ली इतना बे मुरव्वत कैसे हो सकता है….. धीरे-धीरे रविश के ख़िलाफ़ लोग मुखर होते गए और रविश के स्वभाव में मुझे पहले जैसा जोश काम दिखने लगा.. अब उस पुरानी ऊर्जा की जगह चेहरे पर एक अजब सी बेचैनी और चिंता दिखा करती थी…. ये वही समय था जब उनको इतना अधिक बुखार हो चुका था कि होंठ तक पक गए थे…. हमें काफ़ी चिंता हुई और किसी बहाने से मैं और मेरी पत्नी उनसे मिलने उनके घर पहुँचे… अब चिंता और बेचैनी की जगह एक शांति थी… उस दिन वो जो बातें कर रहे थे उससे वो आश्चर्यचकित नहीं थे, वो आश्वस्त थे कि ऐसा ही होगा अब… उन्होंने बताया कि डीपार्ट्मेंटल स्टोर पर जब वो बिल करवाने पहुँचे तो उनका चेहरा देखकर दुकानमालिक ने उनका सौदा वापस लेलिया और कहा हम देशद्रोहियों को सामान नहीं देते हैं….
ये वही वक़्त था जब देश में यह बहस चल रही थी कि देश में असहिषणता बढ़ी है या फिर ये सिर्फ़ हैशटैग द्वारा फैलाया हुआ भ्रम है…. रविश शांत भाव से बैठे हुए कह रहे थे, हैदेर जी अब मुझे शांति चाहिए… घर बाहर भरा-भरा लगता है ये सोफ़ा कुर्सी सब बेच रहा हू… मुझे सब खुला-खुला चाहिए, सामान बर्दाश्त नहीं होता..
इसके बाद रविश कुमार से एक लम्बे अरसे तक कोई ख़ास मुलाक़ात नहीं हो पाई.. कभी किसी समारोह में मिल गए हाय हेलो होगयी बस.. हालाँकि माहौल की ख़बर हमारे पास मौजूद थी… फिर कई बातें आयीं जैसे NDTV बंद हो जाएगा… या जब रविश कुमार छुट्टी पर गए तो एक अफ़वाह उड़ी की रविश को NDTV ने निकाल दिया है, या फिर NDTV पर सरकार ने इतने केस कर दिए हैं कि अब ये चैनेल सर्वाइव नहीं कर पाएगा…. चिंता तो हुई लेकिन पूछने की हिम्मत नहीं हुई….
फिर एक दिन फ़ेसबुक पर देखा एक छोटा सा प्रोग्राम है हैबिटेट सेंटर में, जहाँ रविश कुमार बोलने वाले हैं…. जाने मुझे क्या हुआ कि बिना किसी इंविटेशन पहुँच गया वहाँ…. और अच्छा हुआ पहुँच गया… वहाँ मेने जिस रविश कुमार को देखा ये वही रविश थे जो रविश की रिपोर्ट में दिखायी दिया करते थे…. किसी ने NDTV बंद होने पर या उनकी नौकरी जाने पर सवाल पूछ लिया… रविश ने पूरे विश्वास से कहा, कि जो काम करता हूँ अच्छा करता हूँ, और वही काम मुझे आता है…. चैनेल नहीं होगा तो ऑटो के ऊपर लाउडस्पीकर लगाकर पूरी दिल्ली में घूमघूम कर जनता तक अपनी ख़बरें पहचाऊँगा… चैनेल बैन हो जाएगा ऑटो थोड़ी… वहाँ बैठी लड़कियों को उन्होंने डाँटा कि क्यूँ घूमती हो ऐसे लड़कों के साथ जो हिंदू-मुसलमान करता है… मत बनाओ ऐसे बॉयफ़्रेंड…. एक अलग उत्साह था रविश में, जैसे उन्होंने कमर कस ली हो…
अभी जब पिछले हफ़्ते उनसे बात हुई तो बहुत उत्साह था उनकी आवाज़ में…. जिन लड़कों को बॉयफ़्रेंड बनाने को हैबिटेटसेंटर में वो मना कर रहे थे, जो लड़के पिछले चार सालों से उन्हें ट्रोल कर रहे थे, जो मेट्रो में गालियाँ दिया करते थे… सब माफ़ी माँग रहे थे…. क़रीब १००-१५० फ़ोन आए कि हम आज से न ही ख़ुद हिंदू-मुसलमान करेंगे न ही ऐसा कोई कार्यक्रम TV पर देखेंगे और न ही ऐसे किसी मेसेज को आगे शेयर करेंगे….
रविश ने कहा ऐसे नहीं मानूँगा, यदि वास्तव में पश्चाताप है तो २०० रुपए के स्टांप पेपर पर अपने हाथ से माफ़ी नाम लिख कर भेजो…. आज NDTV के दफ़्तर में ऐसे माफ़ी नामों का एक गटठर इकट्ठा हो चुका है… दस हज़ार से ज़्यादा माफ़ी नामे हैं और उनके फ़ोन और मेल के इन्बाक्स में सैंकड़ों ऑडीओ फ़ाइल्ज़ जिनमे लड़कों ने हिंदू-मुसलमान न करने की शपथ ली है….
रविश कुमार का यह तीन साधे तीन साल का सफ़र मेरे नज़रिए से लिखना ज़रूरी लगा मुझे… क्यूँकि मेने अपने सामने किसी को इस तरह देश-समाज से अकेले संघर्ष करते देखा था, और अगर इसको स्क्रिप्ट न करता तो यह अन्याय होता अगली पीढ़ी के उन पत्रकारों के साथ जो कुछ कर गुज़रने का सपना रखेंगे…. मेरा अपना मान्ना है कि शायद रविश कुमार को लोगों द्वारा इतने गंदे विरोध और बदतमीजियों की आशा नहीं थी लेकिन जब ऐसा हुआ तो उनके अंदर उससे लड़ने का जज़्बा और ज़्यादा जोश मार गया… ग़ालिब ने कहा है न
रंज से खूंगर हुआ इंसाँ, तो मिट जाता है रंज
मुश्किलें इतनी पड़ीं, कि ख़ुद ही आसाँ हो गयीं
Haider RizvArun Maheshwari
10 hrs ·
भारत को सिर्फ बेरोज़गारों की एक भीड़ में तब्दील होने से बचाना होगा !
नोबेलजयी अर्थशास्त्री पॉल क्रुगमैन ने भारत के बारे में जो डरावनी भविष्यवाणी की है, वह किसी भी देशप्रेमी के रौंगटे खड़े कर देने के लिये काफी है । उन्होंने कहा है कि इस बात की पूरी आशंका है कि भारत बेरोज़गार नौजवानों की महज एक भीड़ बन कर रह जायेगा ।
क्रुगमैन का यह कहना कोई आधारहीन कल्पना नहीं है । उन्होंने कृत्रिम बुद्धि के वर्तमान युग में सिर्फ सेवा क्षेत्र के जरिये आर्थिक विकास को जारी रखना नामुमकिन बताया है । आगे सेवा क्षेत्र के अधिकांश काम कृत्रिम बुद्धि के उपकरणों के जरिये होने लगेंगे । यदि विनिर्माण (manufacturing) की अभी की तरह की अवहेलना जारी रही तो फिर भविष्य के भारत में सिर्फ बेरोज़गार पैदा होंगे । आर्थिक विकास की दर पूरी तरह से थम जायेगी ।
यह सच है कि आरएसएस और भाजपा को बढ़ते हुए बेरोज़गारों के हुजूम में निश्चित तौर पर अपना राजनीतिक भविष्य दिखाई देता होगा । दंगाइयों, गोगुंडों, रोमियो स्कैवड, अफ़वाहबाजों, आईटीसेल के ऑनलाइन गुंडों, हत्यारों, बलात्कारियों और षड़यंत्रकारियों की अपनी फ़ौज को तैयार करने का इससे अच्छा कच्चा माल और कहाँ मिलेगा । समाज के सारे स्तरों के उच्छिष्ट और विवेकहीन अवसरवादी पशुओं को पहले से ही वे अपने यहाँ जमा करते रहे हैं । मोहन भागवत जिस फ़ौज को तीन दिनों में तैयार कर लेने की हुंकार भर रहे थे, वह इन तत्वों की ही फ़ौज तो हैं !बहरहाल, कांग्रेस दल के महाधिवेशन में अपने भाषण में राहुल गांधी ने बेरोज़गारी को भारत की केंद्रीय समस्या के रूप में चिन्हित करके विनिर्माण के क्षेत्र के विस्तार पर जिस प्रकार बल दिया है, वह थोड़ा आश्वस्तकारी है । इसके साथ ही राष्ट्र की समस्याओं के समाधान के लिये ग़ैर-कांग्रेस दलों के लोगों को भी एक मंच पर सामने आने का उनका आह्वान बेहद समीचीन और जरूरी है । परिस्थितियों को फासिस्टों के हाथ में बिगड़ने के लिये यूँ ही छोड़ा नहीं जा सकता है । राष्ट्र को भविष्य की एक नई दिशा पकड़नी होगी । ” ——————————————————–मोदी की ईमानदारी फ़र्ज़ी हे इसकी ताकीद करता एक संघी राक्षस इस राक्षस को उम्मीद हे की मोदी चाहे जितना बुरा हे हम संघियो के लिए आख़िरकार कुछ अच्छा करेगा मतलब बुरा हे मगर हमारे लिए अच्छा साबित होगा बरसो बाद होगा जरूर होगा इन संघियो को नहीं पता की बुराई भलाई का कोई ऑन ऑफ बटन नहीं होता हे
”Rajeev 17 hrs · एक अमेरिकन सीरियल है “हाउस ऑफ कार्ड्स”…अमेरिकन राजनीति पर आधारित काल्पनिक सस्पेंस थ्रिलर. अगर आपके पास नेटफ्लिक्स हो तो देख सकते हैं.
पर यह सचमुच में बिल्कुल काल्पनिक नहीं है. है यह यथार्थ के बिल्कुल करीब.
संक्षेप में, यह एक डेमोक्रैट राजनीतिज्ञ फ्रैंक अंडरवुड की कहानी है, जो राष्ट्रपति बनने के लिए कुछ भी करता है. नेपथ्य में है उसकी सुंदर और निर्मम पत्नी क्लेयर अंडरवुड जिसकी अपनी महत्वाकांक्षाएं हैं. ये पति-पत्नी एक जबरदस्त टीम हैं जो अपने रास्ते में आने वाली हर बाधा को हटाने में एक क्षण की देरी नहीं करते. लगभग कुछ ऐसा है कि ये जिस व्यक्ति को छू देते हैं, वह एकाएक सफलता की सीढ़ियाँ चढ़ने लगता है…और अगले ही पल बिल्कुल नष्ट हो जाता है. झूठ, धोखा, भ्रष्टाचार, हत्या, युद्ध…कुछ भी उनके लिए बहुत ज्यादा नहीं है. और जरूरी होने से वे एक दूसरे को भी नहीं बक्शते हैं…कोई भी विश्वासपात्र नहीं है…पति-पत्नी भी नहीं…पर इस सीरियल में जहाँ फ्रैंक और क्लेयर घोर भ्रष्ट और निर्मम दिखाए गए हैं, उनकी निर्ममता एक प्रशंसा ही उत्पन्न करती है. मैं अमेरिकन इतिहास के किसी भी डेमोक्रैट प्रेजिडेंट के लिए वोट नहीं करता…रूज़वेल्ट के लिए नहीं, कैनेडी के लिए नहीं…पर फ्रैंक के लिए करता. वह निर्मम और कुशल है. देश को, दुनिया को चलाने के लिए जो चाहिए वह उसमें है.
इस काल्पनिक चरित्र फ्रैंक अंडरवुड में ईमानदारी नहीं है, सिद्धांतों की प्रतिबद्धता नहीं है, लॉयल्टी नहीं है…पर एक गुण प्रचुर मात्रा में है…सर्वाइव करने की क्षमता. वह हर असंभव परिस्थिति से निकल लेता है. कानूनी और राजनीतिक दांव पेंच से, अखबारों की सनसनीखेज रिपोर्टिंग से, प्रतिकूल पब्लिक ऑपिनियन से…चाहे उसके लिए उसे सौदेबाजी करनी पड़े, चाहे चुनाव में धांधली, चाहे हत्या…भ्रष्टाचार सिर्फ पैसे का नहीं होता. सत्ता और शक्ति की अपनी करेंसी है, अपना मूल्य है. सत्ता अपने आप में एक लक्ष्य है. लोग अम्बानी-अडानी को कोसते हैं, मुझे तो ये लोग फरिश्ते लगते हैं. अगर आपके पास इतना पैसा है और आप सत्ता नहीं खोजते हो, राजनीति में नहीं घुसते हो…सिर्फ पैसे से, धंधे से मतलब रखते हो तो आप तो संत हो…और इस दृष्टि से एक बार मोदीजी को फिर से देखा. मोदीजी ने कभी पैसे का भ्रष्टाचार नहीं किया. कोई घोटाला नहीं किया. पर सत्ता अपार अर्जित की. टुच्चे होते हैं वे लोग, जो सत्ता पाकर उससे पैसा बनाने की सोचते हैं. जैसे कोई बच्चा कहे कि मैं बड़े होकर पैसे कमाऊँगा तब खूब टॉफी खरीदूँगा. सत्ता के सामने पैसा बच्चों की टॉफी से ज्यादा नहीं है. उसकी अपनी उपयोगिता है, आप उसे सत्ता में बने रहने के लिए प्रयोग कर सकते हैं…अगर आपके आसपास कुछ लोग बच्चों जैसे हैं तो उनमें टॉफ़ियाँ बाँट सकते हैं.तो मोदीजी से अपेक्षा करूँ… वे सत्ता में बने रहने के लिए कुछ भी करेंगे? कुछ भी माने कुच्छ भी? क्योंकि अगर वे अगले 10 साल और सत्ता को अपने हाथ में रख सकें तो क्या पता रास्ते में उन्हें यह भी समझ में आ जाये कि इस शक्ति का करना क्या है? मुझे आशा की एक किरण दिखाई देती है, क्योंकि मोदी में मुझे फ्रैंक अंडरवुड की एक झलक दिखाई देती है.”—————————————–क्या आप जानते हैं, मोटापा घटाने के बाद शरीर की “चर्बी “ कहॉ चली जाती है ?
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डा० राम श्रीवास्तव ( drramshrivastava@gmail.com)
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अक्सर लोग अपनी तौंद कम करने और चर्बी घटाने के लिये व्यायामशाला या जिम में जाते हैं । बहॉ पर जाकर तरह तरह की मशीनों पर एक्सरसाईज करके , खूब पसीना बहाते हैं । जिम के विशेषज्ञ व्दारा तय की गई डाईट भी लेते हैं महिनों और सालों परहेज करने के बाद जाकर तौंद पिचकती है ।जिम मशीनों पर व्यायाम करके कुछ लोग परेशान होकर जिम जाना छोड़ देते हैं , और फिर से गोल मटोल हो जाते हैं । जिम जाने से एक तो फायदा होता है, बाहों की मॉसपेशिया फूल जाती हैं और अच्छी खासी मसल्स उभरने लगती हैं ।ऐसी ही मसल्स मैं जब महाराजा रणजीत सिंह कालेज इन्दौर में २००४ में था , तो एक बी०काम० के छात्र सचिन ने बनाई थी । आज बह सबसे कम आयु के आई पी एस अधिकारी बनकर उज्जैन में पुलिस अधीक्षक पद पर कार्य रत हैं । अच्छी मसल्स से व्यक्तित्व में निखार आजाता है । लम्बी चौडी भीड़ में भी ऐसा नौजवान अलग से ही नजर आने लगता है । लेकिन जब अच्छी मसल्स का आदमी जिम जाना बन्द कर देता है ,तब उसकी मसल्स टूटने लगती हैं । यह मसल्स टूटकर शरीर में “किडनी” फेल्युअर का कारण बन जाती हैं । एक सर्वे के अनुसार जिन लोगों की यंग एज में किडनी अचानक खराब होजाती है ऐसे मामलों में ७६ प्रतिशत बह युवक पाये गए हैं जो किसी समय अच्छे खासे पहलवान थे और उनकी बॉह की मसल्स एक दम कडक और फूली हुई थीं । उनके अचानक जिम जाना बन्द करने से , मसल्य टूटकर उनकी किड़नी में फस जाती हैं । इस तरह जिम में जाकर कसरत करके मसल्स बनाकर अपनी बॉह को ‘डब्लू डबलू एफ”जैसी बना लेते हैं,पर जब कसरत करना किसी कारण से बन्द हो जाता है , तो इन मसल्स के फायबर टूटकर किडनी में फसजाते हैl
इन दिनों रोबोट की मदद से आपरेशन करके जमा चर्बी को खींच कर बाहर निकाल देते । पर फिर से कुछ दिनों बाद तौंद पहले से भी ज्यादा बढ जाती है । अत : जिम जाकर जो लोग मसल्स बनाते हैं उन्है पूरी जिन्दगी जिम जाना अनिवार्य होजाता है । जैसे ही जिम जाना बन्द करेंगे तो उनकी मसल्स टूटना शुरू होजावेंगी और उनकी किडनी पर असर होने लगेगा ।
आस्ट्रेलिया के न्यू साऊथ वेल्स वि० वि० के जीव रसायन विभाग के प्रोफेसर एन्ड्रू ब्राऊन ने एक सर्वे में १५० चुनिन्दा डाक्टरों, न्युट्रीशनो, जिम के विशेषज्ञों से जब यह पूछा कि जब मोटा आदमी मेहनत करके अपनी चर्बी कम कर लेता है तो बह चर्बी कहॉ चली जाती है ? १५० लोगों में से सिर्फ तीन लोग ही सही जबाब दे पाये । कुछ लोगों ने कहा कि जिम में कसरत करके , सिट अप का व्यायाम करके चर्बी पिघल कर या जल कर इनर्जी में बदल जाती है । यह एक दम गलत है । कुछ लोगों के विचार में चर्बी जलकर मसल्स बनाती है, यह भी पूरी तरह गलत धारणा है । कुछ लोग कहते हैं कि जिम के व्यायाम से चर्बी जलकर बडी ऑतों के व्दारा अपशिष्ट पदार्थ (टट्टी) के रूप में शरीर से बाहर चली जाती है । यह भी पूरी तरह गलत है ।
हकीकत में हम जो भी भोजन करते हैं उसमें मौजूद कार्बोहाइड्रेट खाने के साथ पच कर “कार्बन डायआक्साईड” और पानी बनाते हैं । प्रोटीन पचाने के बाद यूरिया और अन्य पदार्थ में बदल जाते हैं । अपचा आहार रेशेदार अपशिष्ट पदार्थ के रूप मे ‘हाजत’ करने पर शरीर के बाहर निकल जाता है । इस प्रकार हम जब किसी भी तरह एक्सर्साईज करके अपनी तौंद पिचकाने के लिये अपने शरीर की चर्बी जलाते हैं तब चर्बी पूरी तरह कार्बन डाय आक्साइड और पानी के रूप में बदल जाती है । इस प्रकार शरीर की चर्बी CO2 और पानी यानि H2O में बदल जाती है । सी ओटू हमारी स्वांस के साथ नाक से बाहर चली जाती है , और पानी पेशाब या पसीने से शरीर के बाहर फैंक दिया जाता है ।
अगर कोई आदमी अपने शरीर का दस किलो बजन कम कर लेता है तो , उसके शरीर की दस किलोग्राम चर्बी में से ८.४ किलोग्राम चर्बी पूरी तरह “सी ओ टू “ में बदलकर हमारी स्वॉसों से बाहर चली जाती है । शेष १.६ कि०ग्रा० का पानी बन जाता है , जिसे पेशाब और पसीने से बाहर निकाल दिया जाता है ।यद्यपि जिम मे पसीना बहाकर जब चर्बी सीओटू और पानी के रूप में बाहर चली जाती है , किन्तु एक्सरसाईज के कारण मसल्स तो बन जावेगीं । किन्तु आपको जिन्दगी भर जिम के दरबाजे खटखटाना पडेगे । चर्बी को जलाकर जो “सीओटू “ गैस बनती है बह शरीर के हर जीव कोष या CELLमें भी जमा होजाती है जो आसानी से बाहर नहीं जाती । यही कारण है कि जिम में जाकर बजन कम करने के बाद भी सेल्स में पानी भरा रहने और सीओटू जमा होने से शरीर की कम चर्बी होने के बाद भी शरीर ‘पिलपिला’ सा होने लगता है ।
योग व्दारा जब चर्बी कम की जाती है तो चर्बी से बनी सीओटू को प्राणायाम मे “रेचक” और “पूरक” करके निगेटिव और पोजिटिव प्रेशर की सॉस के व्दारा शरीर के हर सेल में रूकी सीओटू को बाहर फैंक दिया जाता है । यही एक कारण है जो लोग योगा और प्राणायाम से अपनी चर्बी जलाते हैं बह हमेशा के लिये स्मार्ट बन जाते हैं फिर से मोटा होने का खतरा पूरी तरह खत्म हो जाता है ।———————विपुल वि रे 20 hrs · गौरेया कहीं नहीं गई है
यदि आज आपकी सुबह किसी गांव या शहर के बाहरी इलाके में होती तो निश्चित रूप से आप गौरया को न केवल देख सकते थे बल्कि उसकी चहचहाट भी सुन सकते थे। किसी ग्रामीण के लिए विश्व गौरैया दिवस कोई मायने नहीं रखता है। दिल्ली जैसे महानगर में ये पक्षी भले ही विलुप्त हो गया हो लेकिन देश के ग्रामीण क्षेत्र आज भी गौरेया की चहचहाट से आबाद हैं। इंदौर जैसे शहरों के बाहरी क्षेत्रों में ये आज भी मौजूद हैं। गौरेया कहीं नहीं गई, बस हम शहर वालों ने उसे दिल से निकाल दिया है।
मैंने अपने पत्रकारिता दौर में अख़बारों को तीन महा अभियान दिए थे। चिड़ियों को दाना-पानी देना उनमे से एक अभियान था। ये अभियान मैंने दैनिक भास्कर को सन 2008 में दिया था। जब तक मैं इस अभियान को चलाता रहा, इसे वैज्ञानिक ढंग से आगे बढ़ाया गया लेकिन बाद में तो ये अभियान लोगों के फोटो अखबार में छपने का साधन बन गया था। चिड़ियों को दाना-पानी देना भारतीय परंपरा का हिस्सा रहा है।मेरे अभियान ने इंदौर में एक नव-जागरण का काम किया। आज गौरेया को लेकर कई बातें चल रही हैं। ये बात सही है कि इसकी आबादी में पचास प्रतिशत की गिरावट आई है लेकिन ये विलुप्त नहीं हुई है। और न ही मोबाइल रेडिएशन इनकी विलुप्ति का कारण है। मोबाइल इनकी विलुप्ति का कारण होता तो ये शत-प्रतिशत ख़त्म हो गई होती। मोबाइल की तरंगे तो चहुँ ओर विद्यमान है तो फिर हर सुबह गौरेया मेरे घर कैसे आ जाती है।गौरेया खुद नहीं गई बल्कि हमने उसे घर से निकाल दिया। उसके घोंसले के कारण होता कचरा भी हम सह नहीं सके। जब वह घोंसला बनाती, हम उसे साफ़ कर देते। तंग आकर वह हमें छोड़ गई। सिर्फ यहीं नहीं, ये प्यारा जीव काँटों के पेड़ों पर अधिक पाया जाता है। वे बुश शहरी इलाकों से साफ़ हुए, तो गौरेया और दूर चली गई। हमने अपने बगीचे में रासायनिक कीट नाशक इस्तेमाल करना शुरू कर दिया और गौरेया के आशीर्वाद से खुद को दूर कर लिया। दिल्ली के गौरेया विहीन होने का मुख्य कारण यही है।जो लोग पक्षियों के लिए घर की छत पर या बगीचे में पानी रखते हैं, उनकी प्रशंसा की जानी चाहिए। मैं कई दिन से इस पर एक शोध कर रहा हूँ, जिसमे आंशिक सफलता मिली है। क्या आपने कभी पक्षी का झूठा फल खाकर देखा है। जिन लोगों ने खाया है, वे जानते हैं कि पक्षी के झूठा करने के बाद वह फल असाधारण रूप से मीठा हो जाता है। इसी बात ने मुझे और सोचने के लिए प्रेरित किया।मेरे यहाँ पक्षियों के लिए रखे मिट्टी के सकोरों में सुबह जो पानी बचता था, उसे मैं उन पौधों में डालने लगा, जो बीमार हो रहे थे। मेरे घर की तुलसी नहीं पनप रही थी। मैंने पक्षियों का झूठा पानी तुलसी जी में डालना शुरू कर दिया। मात्र चार दिन बाद ही तुलसी में नई कोंपले फूँट आई। ये प्रयोग पाम वृक्ष के साथ भी सफल रहा। पक्षी आपके घर आता है तो ये मत सोचिये कि आपने पुण्य कमा लिया। यथार्थ में पुण्य तो वे पक्षी कमाते हैं, आपको कुछ देकर ही जाते हैं लेकिन अब उस सौगात को पहचानने वाला ज्ञान ही खो गया।प्लास्टिक के बर्तन में पक्षियों के लिए पानी कभी न रखें। यदि आपके घर के बाहर या छत पर कोई नल है तो उसे इतना खोलें कि हर चार सेकंड में एक बूंद टपक जाए। पक्षी पचास फ़ीट की ऊंचाई से भी वह बूंद देख सकते हैं। पानी ऊंचाई पर रखें ताकि पक्षियों को बिल्ली का डर न हो। जब आप पक्षियों के लिए दाना डालने की शुरुआत करेंगे तो पहले के एक दो हफ्ते एक एक या दो पक्षी ही आएँगे। उनका कम्युनिकेशन धीमी गति से होता है इसलिए उनके झुण्ड को आने में कुछ दिन लग सकते हैं।गौरेया अब भी आती है लेकिन यदि आपके घर में कोई पेड़ नहीं है, बगीचा नहीं है तो वह क्यों आएगी। शहरों से दूर रहकर वह खुश है। उसको खाना-पानी बराबर मिल रहा है। गांव ने अब तक उसको दिल से नहीं निकाला है। यदि कोई तथाकथित विशेषज्ञ साथ चलना चाहे तो मुझे उनकी तथाकथित रिसर्च के चिंदे करने में अत्याधिक प्रसन्नता होगी। स्वागत है।विपुल
Awesh Tiwari
4 hrs · Raipur ·
आज आठ महीने बाद लग रहा है जैसे किसी ने मेरे कंधे पर रखे पहाड़ को उठाकर मुझसे अलग कर दिया है| डॉ कफील को जमानत मिल गई ,वो अपनी बेटी के साथ है,सोचिये इससे सुन्दर कुछ होता है क्या ,पिता के साथ बेटी |शुक्रिया देश, शुक्रिया माई लार्ड | आप को पता नहीं होगा मैंने कभी बताया भी नहीं बस सहा ,खूब सहा, भयभीत भी हुआ , जब मैंने लिखा कि वो निर्दोष है तो मीडिया के भेड़िये और भक्त मुझे घेर कर मेरे कानों में चीखने लगे, बार बार कहते रहे तू झूठा है केवल झूठा | मेरा ईश्वर जानता है डॉ कफील को या फिर गोरखपुर में बच्चों की मौत के बारे में लिखते वक्त मैंने एक फीसदी की भी बेईमानी नहीं की थी| जिस रात घटना घटी उसके अगले दिन मैं जब गोरखपुर पहुंचा तो सबसे पहले मुझसे डॉ कफील ही मिला था , उन्होंने जो कहा मैंने सिर्फ वो नहीं लिखा, जो मरने वाले बच्चों के मरीजों ने कहा जो सीमा पर मौजूद एसआईबी के कमांडेंट ने कहा मैंने वो माना ,याद है कमांडेंट कह रहा था डॉ कफील ने 22 मिनट में 13 बार फोन किया था| एक बात गोरखपुर ने समझाई है केवल सच लिखना तब तक लिखना जब तक लहू की आखिरी बूंद रगों में दौड़ रही है|
Awesh Tiwari
6 hrs · Raipur ·
इंदौर से जो खबर आ रही है वो कठुआ, उन्नाव जितनी ही महत्वपूर्ण है, वहां पर एक मॉडल लड़की ने खुद के साथ छेड़खानी किये जाने को लेकर दो दिनों पहले ट्विट किया ट्विट में लिखा कि जब वो एक्टिवा से जा रही थी दो लड़कों ने उसे रोका और उससे कहा दिखाओ स्कर्ट के नीचे क्या है इस खींचतान में वो गिर गई| सीएम के हस्तक्षेप पर पुलिस तत्काल सक्रिय हुई और कपडे की दूकान में काम करने वाले दो लड़कों को पकड़ ले आई लड़कों ने कहा कि हमारे साथ तो ऐसा कुछ हुआ नहीं एक्सीडेंट हुआ था| अब एक सीसीटीवी फुटेज सामने आया है जिसमें लड़की नशे में नजर आ रही है. इस मामले में नया ट्विस्ट ये है कि पीड़ित मॉडल ने उस दिन एक बार मे जाकर बियर पी और फिर शराब के नशे में सोशल मीडिया पर लाइव किया. इस मामले में बार के मैनेजर ने बताया कि लड़की ने शराब पी और रो रही थी. जब पूछा गया तो बताया कि एक्सीडेंट हुआ है फिर बार में ही उसे फर्स्ट एड बॉक्स दिया गया. लड़की ने शराब पीने के बाद रात 2 बजे किया सोशल लाइव किया| अब अगर यह आरोप झूठे साबित होते हैं तो नाबालिग लड़कों पर ऐसे आरोप लगाने वाली मॉडल को क्यों नहीं फांसी पर चढ़ाना चाहिए ? क्यों नहीं उसके खिलाफ गैरजमानती धाराएं लगानी चाहिए|
घटना को बीते इतने दिन हो गए गोरखपुर मेडिकल कालेज में बच्चे अभी भी इंसेफेलाईटीस से रोज रोज मर रहे हैं लेकिन अब हालात बदल गए हैं कोई डाक्टर यूपी की बेरहम, झूठी सरकार और क्रूर नौकरशाहों के बीच काम नहीं करना चाहता| मैंने अपनी बहन से डाक्टर के पेशे को जाना और समझा है जब कभी उसके आपरेशन थियेटर में कोई बच्चा मरता है उस रोज वो खाना नहीं खाती ,कोई फोन नही लेती ,लगभग सभी डाक्टर ऐसे होते हैं | गोरखपुर के असली गुनाहगारों को जिसमे मीडिया भी शामिल है ईश्वर भी माफ़ नहीं करेगा
Awesh Tiwari
11 hrs ·
एक छोटी सी घटना बताता हूँ। सुनीता मेरे घर मे झाड़ू- पोछे बर्तन का काम करती है। आज वो अपनी बेटी को लेकर आई कि उसे भी काम में लगा लो, मुझे भी किसी की जरूरत है जो दिन में खाना बना सके लेकिन मैंने सुनीता को हाँ नही कहा। सुनीता ने बता रखा था कि उसकी बेटी जिस लड़के से प्रेम करती थी उसे साथ भाग गई जब लौटी तो पिता ने केस दर्ज करा दिया लड़के पर रेप का आरोप और वो जेल। इधर लड़की माँ बन गई अब वादी और सजायाफ्ता दोनों चाहते हैं कि जल्द से निकले और शादी हो जो कि मुमकिन नही। खैर,मेरे मना करने की वजह केवल एक थी। मुझे लगा इस बात की क्या गारंटी है कि यह परिवार जो कि विवादित है ,कल को कोई और विवाद न पैदा कर दे। निर्भया कांड के बाद जो माहौल बना है उसमें महिलाओं के लिए काम करने के अवसर को कम किया है आप माने न माने मीडिया हाउस तक महिलाओं को काम देने से कतरा रहे। तमाम संस्थाएं लोग डरते हैं कि कब क्या न कह दे कोई, ऐसा नही होना था। यह भय का वातावरण खत्म करना होगा।
Awesh Tiwari
23 April at 21:46 · Raipur ·
आज मैं देर तक पाकिस्तानी मित्रों के वाल पर रहा जो एक बड़ी चीज देखी वो यह थी कि सभी ने गार्जियन, स्क्रॉल, कैच , एनडीटीवी , न्यूयार्क टाइम्स या फिर अल जजीरा की ख़बरों या वीडियोज को अपने वाल पर डाल रखा है म तो पाकिस्तान के प्रसिद्द अखबार डॉन की ख़बरें दिखी न ही कराची और इस्लामाबाद के अखबारों की कतरने या लिंक| दरअसल भरोसा इसी को कहते हैं जो सही मायने में पाठक होते हैं या जिन्हें ख़बरों की समझ होती है वो व्यवस्था और सत्ता की मजम्मत करने वाले अखबारों को पढ़ते हैं, उनमे ख़बरों की भूख होती है,वो जो चीजें ऐसी हैं वैसी ही देखना चाहते हैं |आपने रिपोर्टर्स विथाउट बार्डर सुना होगा , रीडर विथाउट बार्डर भी होते हैं | जो भक्त होते हैं वो अखबार के हर पन्ने पर अपने आराध्य को ढूँढ़ते हैं| खैर एक बड़ी खबर जो आप तक नहीं पहुंची होगी वो बता देता हूँ कि दैनिक जागरण ने अपने ई पेपर को पढने के लिए आज से रजिस्ट्रेशन अनिवार्य कर दिया है मुझे नहीं लगता है कि कोई पाठक इतनी फुर्सत में होगा कि रजिस्ट्रेशन कर ई पेपर पढ़ेगा|
Awesh Tiwari
22 April at 22:39 · Raipur ·
दैनिक जागरण , जागरण के आयोजन और उन आयोजनों में शामिल होने वाले का विरोध करना क्यों जरुरी है ?
1- मीडिया की सीधे जवाबदेही जनता के प्रति होनी चाहिए , उसे पक्ष विपक्ष से खुद को बचाकर रखना होगा दैनिक जागरण मोदी जी के सत्ता में आने के बाद से इस जवाबदेही में न केवल विफल रहा है बल्कि जनविरोधी हो चुका है| दैनिक जागरण दरअसल बीजेपी है
2- दैनिक जागरण ने केवल कठुआ ही नहीं इसके पूर्व यूपी के कैराना में भी हिन्दुओं के पलायन की फर्जी खबर छापकर प्रदेश का माहौल खराब किया
3-हाल में कोबरा पोस्ट के द्वारा किये गए स्टिंग में यह बात साबित हो चुकी है कि 2019 के चुनाव में दैनिक जागरण पैसों के दम पर चुनाव को प्रभावित करने की कोशिश करेगा|
4- दैनिक जागरण ने नरेन्द्र मोहन के साथ साथ कई अन्य को भी जबरदस्ती का साहित्यकार कवि बनाते हुए हिंदी भाषा और हिंदी भाषा के लेखकों का अपमान किया है|
5- दैनिक जागरण के मालिक संजय गुप्ता राज्य सभा में जाने को उत्सुक हैं उनके हितों को साधने के लिए पाठक या फिर आम आदमी को बकरा क्योंकर बनना चाहिए ?Follow
Mayank Saxena
15 hrs ·
वर्तमान वित्त मंत्री, अरुण जेटली उस समय विपक्ष में थे…चूंकि लोकसभा जाना तो उनके बस के बाहर की बात तब भी थी…तो वो राज्यसभा में थे…और भाषण दे रहे थे, अभिव्यक्ति की आज़ादी पर…मुद्दा था आईटी एक्ट की धारा 66 ए…ये सोशल मीडिया पर आपत्तिजनक कमेंट करने के मामले में लगाई जाने वाली IT एक्ट की धारा थी…और अरुण जेटली ने इस क़ानून और इस धारा की तुलना इमरजेंसी जैसी स्थिति से की थी…उन्होंने इसे लोकतंत्र की मूल भावना के ख़िलाफ़ बताया था…उन्होंने ही कहा था कि आप किसी से उसकी अभिव्यक्ति की आज़ादी कैसे छीन सकते हैं…हम सबको लगा कि चलो बीजेपी में भी समझदार लोग हैं…
इस के ख़िलाफ उस समय के टेलीकॉम मिनिस्टर कपिल सिब्बल के घर के बाहर प्रदर्शन करने के लिए उसी शाम दिल्ली पुलिस ने मुझे, कार्टूनिस्ट Aseem Trivedi , Stop Acid Attacks के एक्टिविस्ट संस्थापक Alok Dixit समेत कई लोगों को हिरासत में ले लिया था…अगले रोज़ अपनी चोटें थोड़ा सहज होने पर हमने अरुण जेटली का ये भाषण सुना…अदालत में हम सब समेत कई और लोगों की याचिका पर सुनवाई हुई और सुप्रीम कोर्ट ने धारा 66 A को रद्द कर दिया है। न्यायलय ने इसे संविधान के अनुच्छेद 19(1)ए के तहत प्राप्त अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उल्लंघन करार दिया..
ख़ैर अब भाजपा सत्ताधारी पार्टी है…अवतारी पुरुष प्रधानमंत्री हैं…उनके दाएं (या बाएं, जो सही लगे) हाथ हैं, अरुण जेटली…और अब इसी एक्ट की तर्ज पर, बिनाह पर प्रधानमंत्री मोदी के ख़िलाफ़ बोलने वाले लोग, इस सरकार के आने के बाद लगातार गिरफ्तार हुए हैं…उन पर मुकदमे दर्ज हुए हैं…आरएसएस और भाजपा समेत इनके टुटपुंजिए लफंगों के संगठनों बजरंग दल और विहिप के द्वारा सरकार की निंदा करने वालों को धमकाया गया है…और केस पर केस दर्ज होते जा रहे हैं…
क्योंकि अब देश न तो ज़मीन है, न नक्शा है और न ही लोग हैं…अब देश हैं श्रीमान नरेंद्र दामोदर मोदी…आप पर केस दर्ज नहीं भी हुआ…तो धमकियां आनी तो तय ही हैं…उसी सोशल मीडिया पर ऑनलाइन गुंडों की एक फ़ौज है…जो सोशल मीडिया पर भाड़े के क़ातिल हैं… (जिनमें से कई को प्रधानमंत्री ख़ुद फॉलो करते हैं…ख़ैर ये पोएटिक लॉजिक है) जो आपकी चरित्र हत्या करेंगे…आपकी मां बहन से रिश्ता जोड़ेंगे…अब मैं अरुण जेटली को दोबारा सुनता हूं…वो कहते हैं, “लोकतंत्र की भी अपनी सीमाएं हैं…हमको किसी को कुछ भी बोलने से रोकना होगा…” प्रधानमंत्री ऑनलाइन गुंडों की सेना के भरण पोषण का इंतज़ाम भी देखते हैं और लंदन में ये भी कहते हैं कि वो निंदा पसंद करते हैं, वो चाहते हैं कि सरकार की समीक्षा हो…
ऐसा लगता है कि ये सब के सब फिल्मों के चरित्र अभिनेता हैं…जो हर फिल्म में अलग किरदार में होते हैं..कभी सकरात्मक और कभी नकरात्मक…और हर बार किरदार के हिसाब से संवाद बोलते हों…हम तब भी विपक्ष में थे, आज भी हैं…हमसे पूछा जाएगा कि क्यों, क्या हम विरोध के लिए विरोध करते हैं…अगर हम वह भी करते हैं, तो कम से कम कोई लोग हैं…जो इनका विरोध कर पा रहे हैं…और शायद हम सवर्ण हिंदू न होते, तो हमारे घर भी पुलिस आ चुकी होती…
इस लिंक को क्लिक कीजिए…पढ़िए…बेहद ज़रूरी स्टोरी है…अपने दिमाग को खंगालिए कि कहीं कोई समझ निकल आए…बाकी शुक्रिया Hussain Haidry इसे साझा करने का…हालांकि तुम मुसलमान जैसे नाम वाले हो और मैं जानता हूं कि मेरे लिए इसे साझा करना आसान था…फिर भी तुम्हारे नाम को मेंशन कर रहा हूं कि ये ज़रूरी स्टोरी मुझ तक आई…अपने सवर्ण हिंदू होने के प्रीविलेज के साथ इसे साझा कर रहा हूं…कि अभी तक मुझे न मारा गया…न मेरे ऊपर केस दर्ज हुआ और न ही मुझे किसी ने धमकाया…