लोकमित्र गौतम
ऊना के दलित आंदोलन से चर्चा में आए जिग्नेश मेवानी को महज दलितों का युवा नेता कहना एक तरह से उनकी देशव्यापी चुम्बकीय स्वीकार्यता को कम करके आंकना है। वास्तव में जिग्नेश तमाम दूसरे युवा नेताओं की तरह एक नेता भर नहीं हैं, वह बदलाव की एक नई उम्मीद का नाम हैं। उन्होंने अपने तार्किक और तूफानी भाषणों से देशभर के युवाओं को प्रभावित किया है। वह युवा राजनीति के नये आइकन हैं। यह अकारण नहीं है कि आज देश 2019 के आम चुनावों में जिग्नेश को एक अहम फैक्टर के रूप में देखता है। हाल ही में सम्पन्न गुजरात विधानसभा चुनावों में बडगाम विधानसभा सीट से निर्दलीय विधायक चुने गए जिग्नेश, इन चुनावों में हार्दिक पटेल और अल्पेश ठाकोर के साथ मिलकर भाजपा को नाको चने चबवा दिए थे। साल 1980 में गुजरात के मेहसाणा में जन्मे जिग्नेश अंग्रेज़ी साहित्य से पोस्ट ग्रेजुएट हैं। उनके पास लॉ की डिग्री भी है और कविताएं लिखने के साथ-साथ वह कई सालों तक पत्रकारिता भी कर चुके हैं। उनकी इस पृष्ठभूमि का भी उनके जोरदार भाषणों में योगदान होता है। इसी की वजह से उनके भाषण बेहद तार्किक और जीवंत होते हैं तथा लोगों के दिल-दिमाग में उतरते चले जाते हैं? पिछली 27 जनवरी 2018 को अहमदाबाद में वरिष्ठ पत्रकार लोकमित्र गौतम ने जिग्नेश के साथ विस्तृत बातचीत की जिसमें उन्होंने जानने की कोशिश की कि उनका राजनीति को लेकर दीर्घकालिक विजन क्या है और कमजोर विपक्ष कैसे आगामी लोकसभा चुनावों में मौजूदा सत्तापक्ष को मजबूत टक्कर दे सकता है? पेश है इस विस्तृत बातचीत के कुछ महत्वपूर्ण अंश।
लोकमित्र: जिग्नेश गुजरात हो गया अब क्या?
जिग्नेश मेवानी: जहाँ तक मेरा सवाल है तो अब स्वाभाविक तौर पर बडगाम, जहाँ से मैं विधायक चुना गया हूँ, को मुझे एक मॉडल ऑफ़ डेवलपमेंट के तौर पर पेश करना है। मैं साफ़ तौरपर मानता हूँ कि मेरी इलेक्टोरल सक्सेज से जितनी मुझे ख़ुशी हुई है उतने या उससे भी कहीं ज्यादा इस देश के न जाने कितने अम्बेडकराईट, वामपंथी और प्रगतिशील लोग खुश हुए कि मैंने मोदी के गुजरात में सेंध लगाई जबकि न रिसोर्स थे, न पार्टी, न पार्टी का सिंबल। मेरी कोंसीट्वेंसी में, जो अभी गुजरात के चीफ मिनिस्टर हैं, वो विजय रुपानी ने जनसभा की, उत्तर प्रदेश के जो चीफ मिनिस्टर हैं योगी आदित्यनाथ, उन्होंने सभा की, बगल में 15 किलोमीटर दूर अमित शाह व मोदी ने जनसभा की जिसमें अमितशाह ने मुझे गाली देने के लिए 3 मिनट बर्बाद किये।
इन सबके बावजूद हमने यह सीट 15 दिनों में क्रैक कर लिया। इससे तमाम प्रगतिशील लोगों को उम्मीद बंधी है। यह कोंसीट्वेंसी वास्तव में उन सबकी बननी चाहिए। कोई मनरेगा का एक्सपर्ट है, कोई रूरल मैनेजमेंट का एक्सपर्ट है, कोई वाटरशेड मैनेजमेंट का एक्सपर्ट है, कोई आरटीई का एक्सपर्ट है, कोई पब्लिक हेल्थ का एक्सपर्ट है, कोई कल्चरल एक्टिविस्ट है, कोई बच्चों को सिर्फ पेंटिंग करना सिखाना चाहता है। कोई डिसेबल लोगों के बीच में काम करना चाहता है। कोई मेडिकल कैम्प करना चाहता है। कोई बच्चों के बीच आकर सिर्फ गाना, गाना चाहता है। जो भी आप करना चाहते हैं आइये और बडगाम शुड बिकम द मोस्ट बाईब्रंट हैपनिंग इन धमाकेदार कोंसीट्वेंसी ऑफ़ गुजरात टू द एक्सटेंट। कोई बीजेपी का एमएलए मुझे एक साल के बाद आकर कहना चाहिए कि आपको मोदी जी को जो गाली देना है दो। लेकिन मुझे उस एक्सपर्ट से मिलवा दो जो आपकी कोंसीट्वेंसी में ओरगेनिक फोर्मिंग का प्रोग्राम कर रहा है। मैं ये चाहता हूँ। बडगाम को एक मॉडल के रूप में देखना चाहता हूँ।
इसीलिये मैं मानता हूँ कि यह आपकी मेरी, हम सबकी जिम्मेवारी है। ये बडगाम का सवाल है। अब बडगाम से कहीं हजारों गुना ज्यादा इम्पोर्टेंट है कि इन फासीवादी ताकतों को रोका जाए। क्योंकि अगर ऐसा नहीं होगा तो न बडगाम बचेगा न बडगाम में काम करने वाली फोर्सेज बचेंगी। ये जब मैं कहता हूँ तो इसमें मुझे कहीं एक्जेजेरेशन इसलिए नहीं लगता क्योंकि जो लोग आरएसएस के चहेते, ब्राह्मिन, गुजरात के होम मिनिस्टर हरेन पांड्या को मार सकते हैं। जो लोग कलबुर्गी, दाभोलकर, पंसारे को मार सकते हैं, जो लोग रोहित वेमुला की मौत के लिए जिम्मेदार हैं, नजीब के गायब होने के लिए जिम्मेदार हैं, जो लोग जर्नलिस्ट भूमि को मार सकते हैं। जो लोग चन्द्रशेखर आजाद को जेल में ठूंस सकते हैं। जो लोग इलेक्टेड रिप्रेजेंटेटिव यानी मुझे भीमा कोरेगांव के मामले में, एक फर्जी मुकदमे में अंदर डालने की कोशिश कर सकते हैं, वो किसी भी हद तक जा सकते हैं।
यहाँ तक कि मैं कहता हूँ जो लोग खुलेआम यह कहते हैं कि हम संविधान बदलने के लिए आये हैं [हेगड़े ]। तो इन ताकतों को कुछ करके भी रोकना हैज टू बी अल्टीमेट प्रायरिटी…इस समय इससे बड़ी कोई और प्रायरिटी नहीं हो सकती।
लोकमित्र: जिग्नेश जिस तरह से बहुत सारी चीजें आ रही हैं मसलन सर्वे आ रहे हैं, पर्सपेक्टिव आ रहे हैं, उस सबसे लग रहा है कि साल 2019 को लेकर बहुत सारी रणनीतियां चारों तरफ से बन रही हैं। आपकी क्या प्लानिंग है? आप क्या कर रहे हैं?
जिग्नेश: देखिये मुझे ऐसा लगता है कि रेडियो में मन की बात करना, 15 अगस्त, 26 जनवरी को लाल किले से जुमलेबाजी करना, विदेशों में घूमना और ग्राउंड जीरो पर कुछ डिलीवर नहीं करना, इन बातों का कहीं न कहीं इस देश की जनता को सेंस हो रहा है। राम-रहीम काण्ड के वक्त भी उनकी खामोशी, भीमा कोरेगांव के समय भी खामोशी, ऊना के वक्त खामोशी, रोहित वेमुला की आत्महत्या पर भी उनकी खामोशी, गौरी लंकेश के मामले में उनकी खामोशी। नोटबंदी के चलते डेढ़ सौ लोग मर गए, उस मुद्दे पर भी खामोशी। इन सारे मुद्दों को लेकर कोल्लेक्टिवेली देखें तो ये बात साफ़ है कि 2014 में मोदी जिस उम्मीद के प्रतीक थे, अब वो उस उम्मीद का प्रतीक नहीं हैं। 4 सालों में नोटबंदी और जीएसटी ने जिस तरह इकोनामिक क्राइसिस पैदा किया, उससे उनकी पापुलर्टी का ग्राफ बहुत नीचे आया है।
आते ही मोदी जी ने सारे लेबर लॉज को डिसटॉर्ट करने की कोशिश की, दलित और मुसलमानों पर घर वापसी, लव जिहाद और गाय माता के नाम पर उत्पीड़न बढ़ा है। इस सबके चलते न केवल उनकी पॉपुलरटी का ग्राफ नीचे आया है, असंतोष बढ़ा है और आक्रोश बढ़ा है। ..तो एक जेनुइन चांस है कि व्यक्तिगत तौरपर मोदी पीएम न बनें और बीजेपी दुबारा पावर में न आये। इसके लिए मैं ऐसा मानता हूँ कि सारी मेनस्ट्रीम की पोलिटिकल पार्टीज का एक ब्रॉड एलायंस बने। उसी तरह का एक ब्रॉड एलायंस बने सारे पीपुल्स मूवमेंट का और इन दोनों की अपनी स्वतंत्र मौजूदगी रहे। ये दोनों एलाएंस अलग अलग दिशाओं से एक साथ आगे बढ़ें।
ये पीपुल्स मूवमेंट के जो चेहरे हैं– जिनमें जिग्नेश मेवानी, सहला रशीद हैं कन्हैया कुमार हैं, योगेन्द्र यादव हैं, प्रशांत भूषण हैं, एक्स वाई जेड हैं। ये अगर इन पोलिटिकल मेनस्ट्रीम पार्टी का हिस्सा बनते हैं तो जिस संघर्ष की भूमि से ये खड़े हुए हैं, वो भूमि भी उनकी छूट जायेगी, और फिर वो उस उम्मीद का प्रतीक भी नहीं रहेंगे। लेकिन अगर ये दोनों साथी बन सकते हैं तो मैं मानता हूँ देयर इज मोर दैन अ चांस ऑफ़ कीपिंग बीजेपी अवे फ्रॉम पॉवर। इस सबमें एक सबसे अहम भूमिका [हू नोज ?] शायद बहन जी मायावती अदा कर सकती हैं। बीएसपी, सपा और कांग्रेस का एलाएंस हो जाए यूपी में देन मोदी कांट बिकम पीएम।
लोकमित्र: लेकिन जब आप ग्राउंड में जाते हैं, चीजों को रीड करते हैं तो क्या पोस्बिलटी नज़र आती हैं ?
जिग्नेश: इसी ग्राउंड की रीडिंग के बेस में ही मैं यह कहता हूँ। गुजरात में जिस तरह से दलित आन्दोलन हुआ, पाटीदार आन्दोलन हुआ, ओबीसी समाज का राइज हुआ, असावरकर बहनें लड़ीं, आंगनवाड़ी की बहनें लड़ीं, किसान सड़कों पर आये, सूरत के व्यापारी सड़कों पर आये, उसी के चलते ये जो 150 सीटों का घमंड लेकर घूम रहे थे, इट कम डाउन 99। राधनपुर में अल्पेश ठाकोर जीते और बडगाम में मैं। तो राधनपुर के लोग, बडगाम की जनता और गुजरात का दलित समाज। यही दो पॉकेट हैं जहाँ लोग सेलिब्रेट कर रहे हैं। दूसरी तरफ भाजपा सत्ता में आने के बाद भी जुबिलियंट या सेलिब्रेटिंग मूड में नहीं है। क्योंकि वो जानते हैं कि केवल सात सीटों के बल पर ही वो सरकार फॉर्म कर पायी है। ये रियलाइजेशन उनमें है। जिसके चलते अब वो ये क्लेम नहीं कर पा रहे कि ग्रेट गुजराती मॉडल ऑफ़ डेवलपमेंट।
ग्राउंड की रियलिटी अभी भी मुझे ये बता रही है कि जिन मुद्दों को लेकर यह लड़ाई लड़ी गयी, उसमें और कुछ मुद्दे शामिल करके तथा हार्दिक और मैं यदि केवल दलित और पाटीदार इश्यू की बात न करें, जो हम नहीं ही करते बल्कि और भी पब्लिक हेल्थ और एजूकेशन के मुद्दे उठायें, एग्रेरियन क्राइसिस, इकोनोमिक एक्सप्लॉइटेशन और अनइम्प्लॉयमेंट का मुद्दा उठायें, गुजरात में और ग्राउंड तगड़ा हो। बिलकुल इसी तरह की चीज करने की कोशिश पूरे देश में है। इसी के चलते अभी हम सारे यूथ प्लेटफ़ोर्म को एक मंच में लाकर या कोई नया यूथ प्लेटफॉर्म लांच करके, पूरे नेशनवाइड अनएम्पलॉयमेंट का मुद्दा उठाना चाहते हैं और 2 करोड़ रोजगार का जो मुद्दा है, उसी को लेकर बंगलौर में, दिल्ली में, जयपुर में तीन बड़ी रैलियों की हम लोग प्लानिंग कर रहे हैं। नो जॉब, देन नो वोट फॉर बीजेपी। दो करोड़ रोजगार दो या रिटायर हो जाओ।
लोकमित्र: आपको लेकर इन्हीं फोर्सेज के बीच से जो बातें आ रही हैं जैसे बहन जी ने कहा कि आप किसी का मुखौटा हो ….?
जिग्नेश मेवानी: ऊना से लेकर अब तक जितने भी लोगों ने इस तरह से क्रिटिकल बातें कहीं या क्रिटिसाइज किया या बिलो द बेल्ट मारा या विशेष कंपेन की। उन सभी को ‘फ्रॉम द बॉटम ऑफ़ माय हार्ट आई’म सेइंग बिग थैंक यू’ क्योंकि इस सबके चलते मैं इतना चर्चा में रहा, इसके चलते मैं इतना ग्लैमराइज रहा, इसके चलते मुझे इतना अटेंशन मिला है, जनता के बीच में भी और मेनस्ट्रीम मीडिया में भी, इससे आदर्श परिस्थितियाँ कहीं हो ही नहीं सकतीं कि जहां सिर्फ 7% दलित हैं, मेरे लिए इससे बढ़िया कुछ और हो ही नहीं सकता। संघ और बीजेपी को रियलाइज होना चाहिए कि नाउ आई’म मोर पॉपुलर दैन रुपानी। पीपुल्स इन दिस कंट्री नो मी मोर दैन बीजेपी।
लोकमित्र:जिग्नेश कांग्रेस का जो एक लम्बा इतिहास है कि इस देश का पोलिटिकल कैरेक्टर लगभग उसी ने तय किया है। यहाँ तक कि आज बीजेपी कई जगहों पर लगभग उसी के नक्शे कदम पर चल रही है। ऐसे में क्या आपको लगता है कि कांग्रेस के साथ इस ग्रेटर और लार्ज़र विजन के लिए साथ आया जा सकता है?
जिग्नेश मेवानी: नहीं मैं ऐसा मानता हूँ वह ग्रेटर और लार्जर विजन जो हमारी संविधान की प्रस्तावना की स्पिरिट हो-सेक्युलर सोशलिस्ट डेमोक्रेसी यानी धर्मनिरपेक्ष समाजवादी गणतंत्र की सोच का हो, इससे ट्यून करे, इसके साथ हार्मनी रखे। ऐसा विजन तो केवल और केवल पीपुल्स मूवमेंट से ही निकल सकता है। यह तो बिल्कुल साफ़ है।
लोकमित्र: तो फिर इन मेनस्ट्रीम पोलिटिकल पार्टीज का साथ कितना और कहाँ तक हो सकता है ?
जिग्नेश मेवानी: चुनावी राजनीति की जो मेनस्ट्रीम पोलिटिकल पार्टीज हैं और इस देश की इस समय की जो परिस्थितियां हैं, इसके लिए वह जिम्मेवार भी है। हम अगर आज बीजेपी के सामने खुलकर लड़ पा रहे हैं तो इसीलिये कि ये तमाम राजनीतिक पार्टियां भाजपा की तरह ही करप्ट हैं इसलिए जिस तरह से हम उसके खिलाफ खुलकर बोल रहे हैं वे बोल न पाएंगी। लेकिन कम्प्लीटली ऐसी पार्टियों से दूर दूर तक कोई नाता न हो ऐसी पोजीशन लेकर आइडियली तो हम प्योर रह सकते हैं लेकिन पोलिटिकली बीजेपी के साथ नेविगेट नहीं कर सकते।
लोकमित्र: मतलब रिजल्ट नहीं दे पायेंगे ?
जिग्नेश मेवानी: हाँ। ये तय है। आप व्यक्तिगत तौर पर आब्सोल्यूटली नॉन कम्प्रोमाइजिंग रहें, नॉन करेप्ट रहें, कोई डिसटॉर्ट न होने दें, आपका ग्राउंड जीरो का काम, डेडिकेशन, कमिटमेंट इंटेक रहे। लेकिन आइडियोलोजिकली प्योरिटी के चक्कर में माननीय प्रधानमंत्री जी हमारे सर के ऊपर नोटबंदी, जीएसटी थोपते जाएँ या गाय की पूछ हिलाते जाएँ वो हमको नहीं स्वीकार।
लोकमित्र: आपको वामपंथियों से क्या उम्मीदें हैं ?
जिग्नेश मेवानी: इस देश का जो वामपंथी खेमा है, उसके पास जो विमर्श है, उसके पास जो आइडियाज हैं, उसके पास जो प्रोग्रेसिव कंटेंट है। उसके पास जो एनालिसिस है उसके पास जो एक साइंटिफिक मेथडोलोजी एनालाइजिंग द सोसायटी है। वो दूसरी किसी भी विचारधारा के पास नहीं है। यदि अम्बेडकराईट और वामपंथी साथ आकर सालों तक संघर्ष करें तो बहुत बड़ा रेलीवेंट ट्रांसफर ऑफ़ द सोसायटी का स्कोप है।
लोकमित्र: जिग्नेश अभी तक आपकी जो तमाम लोगों से बातचीत चल रही है उसके आधार पर क्या कहेंगे? आपको उम्मीद है कि 2019 में ये सभी ताकतें एक साथ मिलकर लड़ेंगी ?
जिग्नेश मेवानी: दुर्भाग्य से अभी सीपीएम ने कहा कि कांग्रेस के साथ एलाएंस नहीं करेंगे। शायद मैं गलत नहीं हूँ तो अखिलेश यादव ने भी कहा कि वो कांग्रेस के साथ नहीं जायेंगे। कांग्रेस ने भी दिल्ली में आम आदमी के 20 एमएलए को लेकर उसके सामने बहुत बैटिंग की है। ये न हो। देखिए ये मेनस्ट्रीम पार्टियां पिछले 70 सालों में इतने बड़े-बड़े कम्प्रोमाइज कर चुकी हैं कि इनका तो ये हक़ ही नहीं बनता यह कहने का कि हम एक्स के साथ नहीं जायेंगे या वाई के साथ नहीं जायेंगे। ये सब पोजीशन तो हम ले सकते हैं। हम नॉन कम्प्रोमाइजिंग हैं। हम कह सकते हैं कि किसी भी कीमत पर नहीं बैठेंगे तुम्हारे साथ। तुम जो 70 सालों में देश का कबाड़ा करके बैठो हो, तुम जो इतने करप्ट लोग हो, तुम तो यह सब कह ही नहीं सकते हो। हम तो लार्जर पब्लिक इंटरेस्ट के लिए यह पोजीशन ले रहे हैं और तुम लोग व्यक्तिगत अहम के लिए यह सब कह रहे हो। हम लोग इस बात को जानते हैं कि भाजपा को हराकर भारतीय फासीवाद को नहीं हराया जा सकता। उसकी बहुत गहरी जड़े हैं। वह समाज में बहुत खतरनाक ढंग से मजबूत है। उसको हराना एक लम्बा प्रोजेक्ट है। हम इस बात को भलीभांति जानते हैं। लेकिन तात्कालिक रूप से देश को इस खतरनाक सरकार और माहौल से मुक्त कराने के लिए तमाम ताकतों का एक न्यूनतम कार्यक्रम के तहत साथ आना जरुरी है। हमें उम्मीद है ऐसा होगा। देखना साल 2019 हैरान करेगा।
लोकमित्र: जिग्नेश 2014 तो बंधी मुट्ठी थी, खूब समाँ बांधा गया – ये कर देंगे, वो कर देंगे। लेकिन हो कुछ नहीं सका तो क्या 2019 के आम चुनावों में मुद्दों का संकट होगा ?
जिग्नेश मेवानी: नहीं 2019 के आम चुनावों में खूब कम्युनल वोमेटिंग होगी। जिस प्रकार से भाजपा ने अभी गंध मचा रखा है वही सब वो करती रहेगी। घर वापसी,लव जिहाद।
लोकमित्र: आप लोग क्या मुद्दे लेकर आम चुनाव में जायेंगे?
जिग्नेश मेवानी: हम तो अभी से कह रहे हैं 2 करोड़ रोजगार दो या रिटायर हो जाओ। दूसरा सब कुछ बकवास नहीं चाहिए। नथिंग डू इट। आपके साथ इंटरव्यू के माध्यम से हम यह भी कहना चाहते हैं कि प्रधानमंत्री जी पाकिस्तान के साथ आपका जो मैच फिक्सिंग चल रहा है वो बंद कर दो और वन्देमातरम के साथ हम आपसे अपील कर रहे हैं कि हाफिज सईद और दाऊद को पकड़कर लाओ। क्यों नहीं पकड़कर ला रहे ? पाकिस्तान से कोई घूस खाई है क्या….वंदेमातरम !!! भारत माता को इंतज़ार है कि मोदी जी कुछ करके दिखाएँ।
लोकमित्र: अब तो शायद टाइम नहीं बचा ?
जिग्नेश मेवानी: क्यों टाइम नहीं बचा। उनका सीना तो 56 इंच का है कुछ भी कर सकते हैं। लेकिन लगता है पैसा खा गए हैं। तभी दाऊद और हाफ़िज़ सईद को नहीं लाये।
लोकमित्र: जिग्नेश आपने कहा कि 2014 में देश को नरेंद्र मोदी से बहुत उम्मीदें थीं….पूर्ण बहुमत भी मिला फिर भी उमीदें क्यों पूरी नहीं हुई ?
जिग्नेश मेवानी: उनको नहीं आता। ही कांट डिलीवर, ही इज टोटली फेल्योर। वह इन कॉम्पिटेंट आदमी हैं।
लोकमित्र: पर्सनली…या उनका आइडिया ही।
जिग्नेश मेवानी: एक पोलिटीशियन के तौरपर, एक प्रधानमंत्री के तौरपर वह एक अक्षम व्यक्ति हैं। आप 6 महीने के बाद मेरा दुबारा इंटरव्यू करियेगा। मैं पब्लिक लाइफ छोड़ दूंगा अगर मेरे पास 21 आइडिया न हों जिनके चलते जॉब क्रियेट हो। मैं जिग्नेश मेवानी अगर गुजरात का सीएम होऊं तो दुनिया भर से घूमकर जॉब क्रियेट करने के आइडिया लेकर आऊंगा। लेकिन मेरा दावा है मोदी ये नहीं कर सकते। वह कम्पीटेंट नहीं हैं। उनके बस की ये बात नहीं है। 2 करोड़ रोजगार का वायदा किया था। वायदे के मुताबिक़ अब तक आठ करोड़ को देना था। लेकिन अपने वादे के मुताबिक़ 1% यानी 8 लाख को भी रोजगार नहीं दे पाए। यह भयानक असफलता है।
लोकमित्र: आपको क्या लगता है इस बात के लिए उन्हें गिल्ट होगा?
जिग्नेश मेवानी: नहीं उनको कोई गिल्ट नहीं होगा। वह ईमानदार आदमी नहीं हैं। वह कभी अपने किये पर पछताने वाले या शर्मिंदा होने वाले व्यक्ति नहीं हैं। वो अच्छा आदमी नहीं हैं। हमने उन्हें 20 साल गुजरात में देखा है। उसकी आत्मा में सच्चाई नहीं है। झूठ है। फरेब है।
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कश्मीर समस्या तो इन लोगो ने मास्टर शिफू जैसे जोकर एंकरों पर छोड़ राखी हे ———————————————————————————————Subodh Rai
3 February at 08:57 · सेना ही बता सकती है कि कश्मीर में उनके लिए हालात कितने और क्यों मुश्किल हुए हैं। सेना पर राजनीति करने वाले आपको ये नहीं बताएंगे। न ही सेना के नाम पर अपनी देशभक्ति की मार्केटिंग करने वाले एंकर आपको ये समझाएंगे। दरअसल किसी भी लोकतांत्रिक देश में सेना सरकार का आखिरी विकल्प होती है। सरकार और सिस्टम जब फेल होता हैं तो सेना मोर्चा संभालती है। आज हालत ये है कि सेना को ही कश्मीर में पहला और आखिरी विकल्प मान लिया गया है। सरकार अपनी नाकामी छिपाने के लिए सेना के पीछे छिपी है। सरकार की नाकामी पब्लिक के बीच न जाने पाए इसके लिए तथाकथिक देशभक्त एंकरों ने टीवी पर मोर्चा संभाल रखा है। सवाल सरकार से नहीं पूछा जा रहा उनसे पूछा जा रहा है जो ये पूछ रहे हैं कि सेना के लिए कश्मीर मुश्किल क्यों होता जा रहा है। सेना आतंकियों को मार रही है और राजनीति वहां रोज नए आतंकी पैदा कर रही है। पाकिस्तान से लड़ते लड़ते आज सेना को कश्मीरियों से लड़ना पड़ रहा है। दिक्कत ये है कि जिन्हें इन हालातों पर शर्मिंदा होना चाहिए वो नेता देशभक्ति की दुकानें खोलकर बैठे हैं। जिन एंकर्स को इन हालातों पर सरकार से सवाल पूछने चाहिए वो स्टूडियो में वीर रस की जुगाली कर रहे हैं। शर्मनाक है।Subodh Rai
2 February at 08:59 ·
सवाल था रविशंकर जी मिडिल क्लास को क्या मिला। रविशंकर जी ने आदतन नाट्यशास्त्र की सारी भंगिमाएं एक साथ अपने थोपड़े पर उतार दीं। पहले मुंह बनाया, फिर आंखें फाड़ी, फिर वाणी में रौद्र लाते लाते करूणा के साथ बोले मिडिल क्लास देश के प्रति अपनी जिम्मेदारी समझता है उसे टैक्स में छूट नहीं मोदी जी का विकास चाहिए। मेरी आंखों में आंसू आ गए। मन हुआ चप्पल उठाऊं और हरिद्वार चला जाऊं और इससे पहले गंगा साफ न कर पाने के लिए उमा भारती गंगा में जलसमाधि दे मैं ही दे दूं।Subodh Rai
1 February at 13:15 ·
बजट में वाट्सएप क्लास (मिडिल क्लास)के लिए कुछ नहीं है। जेटली का मानना है कि वो मंदिर और मुसलमान को लेकर सरकार की वाट्सअप योजना में व्यस्त और मस्त है। मजबूरन बजट में सरकार को नॉनवाट्सएप (गरीब किसान) क्लास पर जोर देना पड़ा है क्योंकि ये क्लास स्मार्टफोन हाथ में न होने की वजह से विश्वगुरू बन चुके भारत और मोदी जी के चमत्कार से वंचित है और अभी भी रियलिटी को सच माने बैठा है। :)Subodh Rai
1 February at 09:02 ·
क्या अब गली के गुंडे तय करेंगे कि हिंदुस्तान में रहना होगा तो वंदे मातरम कहना होगा। पूरा वंदे मातरम सुनाने में जिन बीजेपी नेताओं जीभ लड़खड़ाने लगती है क्या वो तय करेंगे कि वंदे मातरम बोलकर ही कोई हिंदुस्तान में रहेगा या नहीं। क्या नागपुर मुख्यालय पर बरसों तक तिरंगा न फहराने वाला संघ तय करेगा कि कौन हिंदुस्तान में रहेगा कौन बाहर जाएगा। दरअसल मामला देशभक्ति का नहीं विशुद्ध गुंडागर्दी का है। गुंडों की जमात के हाथ इस बार तिरंगा लग गया है। ये तिरंगे देशप्रेम में नहीं उठाए गए हैं बल्कि अपनी बरसों पुरानी नफरत को राष्ट्रभक्ति का नाम देने के लिए उठाए गए हैं। ऐसा ही खेल ये गुंडे राम के नाम पर खेल चुके हैं। महात्मा गांधी ने जिस राम का नाम लेकर समाज को जोड़ा था। उन्हीं राम को भगवा ब्रिगेड ने नफरत का टूल बनाकर सियासत के लिए इस्तेमाल किया। ऐसे में अगर किसी गली के गुंडे के हाथ में तिरंगा दिखे तो समझ जाइए देश की पहचान संकट में है। कोई बदमाश वंदे मातरम की जबरदस्ती करे तो समझ जाइए वो नफरत के कैंसर का शिकार है। कोई सियासत के मंच पर राम राम करता दिखे तो समझ जाइए कि ईश्वर स्वयं संकट में है। भावनाओं के रास्ते चलिए मगर सावधानी से चलिए।Subodh Rai
30 January at 10:26 ·
प्रिय राष्ट्रवादी एंकर,
हमें बख्श दो। हमारे छोटे छोटे बच्चे हैं। घर पर बूढ़े मां बाप हैं। हम हिंदू मुसलमान बाद में हैं पहले तमाम तकलीफों से गुजरते आम इंसान हैं। स्टूडियो में बैठकर तुम जो नफरत का लाइटर रोज जलाते हो। उससे तुम्हारा तो कुछ नहीं बिगड़ेगा। हम आम इंसानों के घर पहले जलेंगे। छोटी छोटी दुकानें जलेंगी। हम छोटी मोटी नौकरी करने वालों की दुनिया उजड़ेगी। खुद को राष्ट्रवादी कहते हो और भूल जाते हो कि राष्ट्र तो हम आम लोगों के खून पसीने से बनता है। हम रोज जिंदगी खपाकर देश बनाते हैं। सड़क बनाने वाला और इमारतें खड़ी करने वाला मज़दूर तुमसे ज्यादा राष्ट्रवादी है। वो हल्ला नहीं करता राष्ट्रवादी और देशभक्त होने की ताल नहीं ठोकता वो चुपचाप देश को बुनता रहता है। हे स्वयंभू राष्ट्रवादी एंकर तुम टीवी पर हमारे सवाल गोल कर जाओ कोई बात नहीं। तुम हर मसले पर सरकार को बचाकर विपक्ष को घेरो ये भी तुम्हारी मर्जी। तुम पीएम के सामने हमारे नौजवानों की नौकरियों का पकौड़ा तलवाओ ये भी तुम्हारी मर्जी। लेकिन बंधु अपने भेजे में लगी नफरत की आग हमारे घरों तक तो न पहुंचाओ। हमें हमारे हाल छोड़ दो और कुछ कर सकते हो तो जाकर अपना इलाज़ कराओ।
तुम्हारे हॉरर शो का भुक्तभोगी——————Rakesh Kayasth
19 hrs ·
प्रधानमंत्री ने कर्नाटक में Top का फुल फॉर्म टमैटो, अनियन और पोटैटो बताया। उसके बारह घंटे के भीतर मणिशंकर अय्यर ने भी नीच (Neech) का फुल फॉर्म बता दिया।
N– Nationalist
E- Enthusiastic
E- Eloquent
C- Charismatic
H– Hard working
ज़ाहिर है,अय्यर के बयान को गलत समझा गया था। कांग्रेस पार्टी में उनसे माफी मांगकर सदस्यता बहाल करने की मांग उठने लगी। पार्टी माफी मांग भी लेती। लेकिन नया पेंच फंस गया। अय्यर से पूछा गया है कि जब नीच का मतलब इतना उच्च होता है तो उन्होने राहुल जी को नीच क्यों नहीं कहा।
अय्यर कह रहे हैं कि वे हमेशा सच बोलते हैं और उनकी परिभाषा में मोदी जी ज्यादा फिट बैठते हैं। ख़बर है कि अय्यर को पार्टी निकाला मिलने वाला है।
टैलेंट की कद्र आजकल सिर्फ बीजेपी में है। अय्यर अब इस बात का इंतज़ार कर रहे हैं कि कब शाहजी उन्हे माला पहनाकर कांग्रेस मुक्त भारत का शपथ दिलवाते हैं।
(नोट- ख़बरें आजकल पुष्टि की अनिवार्यता से मुक्त हैं। इसलिए बेधड़क ब्रेकिंग न्यूज़ चला लें।)———————————————————————————–Dilip C Mandal
1 hr ·
आंबेडकर बनाम हेडगेवार: जाति विनाश बनाम समरस एकात्मवाद
दिलीप मंडल
पुणे के पास भीमा कोरेगांव में दलितों के सालाना जमावड़े पर हमले और उसके बाद के आंदोलन से संघ यानी आरएसएस चिंतित है. मध्य प्रदेश के विदिशा में चल रही संघ के मध्य क्षेत्र की समन्वय बैठक में इसके संकेत नजर आए, जहां संघ प्रमुख मोहन भागवत ने आह्वान किया कि काम करने वालों को मकर संक्रांति के दिन तिल और गुड़ देना चाहिए.
इस सिलसिले में उन्होंने घर में बर्तन साफ करने वाली, कटिंग करने वालों, कपड़े धोने वालों (पिछड़ा वर्ग) और जूते-चप्पल सुधारने वाले (दलित) से संपर्क करने और उन्हें घर बुलाने का अपील की. इससे पहले 2015 में संघ ने आह्वान किया था कि हिंदुओं की तमाम जातियों के कुएं, मंदिर और श्मशान एक होने चाहिए. आरएसएस के लिए जाति समस्या के समाधान का यही मॉडल है. यह समरसता है, यही एकात्मवाद है. तमाम जातियों के लोग, छोटे-बड़े सभी समरसता के साथ रहें, यही संघ चाहता है. जाति बनी रहे लेकिन समरसता के साथ.
आरएसएस ने कभी जाति के विनाश की बात नहीं की. जाति के विनाश यानी ‘एनिहिलेशन ऑफ कास्ट’ का मॉडल बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर का है. बाबा साहेब जातियों के बीच समरसता की बात नहीं करते. उनके मुताबिक जाति के ढांचे में ही ऊंच और नीच का तत्व है, इसलिए जातियां रहेंगी तो जातिभेद भी रहेगा.
बाबा साहेब का मॉडल वंचितों को समर्थ और सक्षम बनाकर उन्हें इस काबिल बनाने का है कि वे जातिवाद को चुनौती दे सकें. अपने ऐतिहासिक भाषण एनिहिलेशन ऑफ कास्ट में वे सवर्ण हिंदुओं से आह्वान करते हैं कि अगर वे अपने धर्म को बचाना चाहते हैं तो उन्हें जाति का विनाश करना होगा और चूंकि जाति का स्रोत उनके धर्मग्रंथ हैं, इसलिए उनसे मुक्ति पानी होगी. बाबा साहेब के लिए जाति एक बीमारी है, जिसने हिंदुओ को जकड़ रखा है और इस बीमारी से बाकी लोग भी परेशान है. बाबी साहेब एक डॉक्टर की तरह सलाह देते हैं कि बीमारी ठीक करनी है तो ग्रथों से मुक्ति पा लो.
दूसरी ओर, आरएसएस का मॉडल जातिवाद से भिड़ने का नहीं, एकात्म होने का है. यानी मतभेद के साथ समरसता बरतने का है. आरएसएस के मॉडल में जातियां बनी रहेंगी, जाति के आधार पर ऊंच और नीच भी बने रहेंगे, लेकिन वे मिल जुलकर रहेंगे. इसलिए आरएसएस सहभोज जैसे आयोजन करता है, जिसमें तमाम जातियों के लोग साथ में भोजन करते हैं. साथ पढ़ने-लिखने, साथ में शाखा में जाने और भाईचारे के साथ रहने को संघ जाति समस्या का पर्याप्त और असरदार समाधान मानता है. इसी आधार पर संघ के लोग बहुत सहजता से यह दावा करते हैं कि संघ जातिवाद को नहीं मानता और संघ में जातिवाद नहीं है.
देश भर से आने वाली दलित उत्पीड़न की खबरें बताती हैं कि दावा चाहे जो भी हो, लेकिन समाज में ऐसी कोई समरसता हो नहीं पाई है. जिन प्रदेशों में दशकों से बीजेपी का शासन रहा और आरएसएस की मर्जी के मुताबिक शासन चला, वहां भी कोई वास्तविक समरसता नहीं आई है. जातिवाद वहां भी पूरी क्रूरता के साथ मौजूद है. जाति हिंसा और भेदभाव को खत्म करने में समरसता और एकात्मवाद का मॉडल पूरी तरह फेल साबित हुआ है. इसके अलावा राजकाज, न्याय, शिक्षा, नौकरशाही आदि संस्थाओँ में दलितों का हाशिए पर होना भी जारी है. दलितों के लिए देश अब भी एक हद तक ही सुधरा है.
हां, इस बीच बदलाव यह हुआ है कि दलितों ने पहले की तरह सब कुछ चुपचाप सह लेने से इनकार कर दिया है. दलित उत्पीड़न की ज्यादातर घटनाओं की अब दलित समाज में उग्र प्रतिक्रिया होती है. लोग ऐसे सवालों पर सड़कों पर आने लगे हैं. इसलिए देश भर में इस मुद्दे पर बवाल हो रहा है. इसे ही कुछ लोग जातिवाद का बढ़ जाना मानते हैं.
महाराष्ट्र में इस बार विवाद ज्यादा ही गंभीर हो गया और यहां तक कहा जा रहा है कि इस बार मतभेद बहुत नीचे तक पहुंच गया और समाज में स्थायी किस्म की कड़वाहट आ गई है.
महाराष्ट्र के दलित सौ साल से भी ज्यादा समय से हर साल 1 जनवरी को भीमा कोरेगांव में इकट्ठा होते हैं और उस ऐतिहासिक संघर्ष को याद करते हैं, जब भारत के सर्वाधिक क्रूर जातिवादी पेशवा शासन को उनके पूर्वजों ने धूल चटाई थी. इस युद्ध की अलग अलग व्याख्याएं हैं. कोई चाहे तो इसे अंग्रजों की जीत के तौर पर देख सकता है, तो कोई इसे पेशवाई की हार के तौर पर. पेशवाई को अगर मराठा साम्राज्य की निरंतरता में देखें, जो कि वह है नहीं, तो इसे अंग्रेजों के हाथों मराठों की हार के तौर पर भी देखा और दिखाया जा सकता है.
बहरहाल इस युद्ध की एक दलित व्याख्या है और इस व्याख्या से सहमत लोग भीमा कोरेगांव को सामाजिक लोकतंत्र के प्रतीक के तौर पर देखते हैं.
भीमा कोरेगांव में दलितों के सालाना जलसे से जाति यथास्थितिवादी हमेशा असहज रहे हैं. जाति वर्चस्व के समर्थकों को लगता है कि दलितों का इस तरह जश्न मनाना उनके लिए एक चुनौती है. लेकिन इस साल से पहले कभी भी इस समारोह पर हिंसक हमला नहीं हुआ. अब तक का विरोध विचार के स्तर पर ही था. लेकिन इस साल विरोध ने हिंसक रूप ले लिया. इस तरह जातिवाद विरोधी और जातिवादी शक्तियां आमने-सामने आ गईं.
आरएसएस के लिए यह चिंताजनक बात है. भीमा कोरेगांव को लेकर आरएसएस की शुरूआती प्रतिक्रिया में एक अनिश्चिय और ढुलमुलपन दिखता है. वह आम तौर पर खामोश रहने की रणनीति पर अमल करता है. किसी भी एक पक्ष में खुलकर आना उसके लिए संभव नहीं था. हालांकि भीमा कोरेगांव की दलित व्याख्या से आरएसएस पूरी तरह असहमत है, लेकिन इसे औपचारिक तौर पर कहना उसके लिए आसान नहीं है. संघ के कार्यकर्ता नीचे के स्तर पर बेशक यह संदेश लेकर जा रहे हैं कि भीमा कोरेगांव को विराट हिंदू एकता को तोड़ने के लिए उछाला जा रहा है और “निशाने पर भारत” है. लेकिन संघ नहीं चाहेगा कि वह दलितों के खिलाफ खड़ा नजर आए. भीमा कोरेगांव में हुए बड़े जमावड़े और वहां समारोह पर हुए हमले के खिलाफ महाराष्ट्र के सैकड़ों कस्बों और शहरों में हुए विरोध ने उसकी नींद उड़ा दी है. इसलिए संघ बेहद संभलकर चल रहा है.
संघ की कोशिश होगी कि अपने आक्रमण की धार किसी तरह मुसलमानों के खिलाफ मोड़ दी जाए, ताकि विराट हिंदू एकता कायम हो सके और दलितों या पिछड़ों के सवाल कहीं पीछे छूट जाएं.
संघ की चिंता सिर्फ भीमा कोरेगांव की घटनाएं नहीं हैं. पिछले तीन साल में, खासकर केंद्र में बीजेपी की सरकार बनने के बाद से दलितों का आक्रोश सरकार और बीजेपी को लेकर बढ़ा है. संघ बेशक कहे कि वह सांस्कृतिक संगठन है, लेकिन बीजेपी के साथ उसका गर्भनाल का संबंध किसी से छिपा हुआ भी नहीं है. बीजेपी अगर दलितों के निशाने पर आती है, या बीजेपी को लेकर अगर दलितों के अंदर किसी किस्म का आक्रोश पैदा होता है, तो इसकी आंच आरएसएस तक पहुंचना तय है.
हैदराबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी के शोध छात्र रोहित वेमुला की सांस्थानिक हत्या के मामले में संघ सीधे निशाने पर रहा. रोहित वेमुला के संगठन आंबेडकर स्टूडेंट्स एसोसिएशन और संघ के छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के आपसी झगड़े से ही यह विवाद शुरू हुआ और इसमें संघ और बीजेपी के राष्ट्रीय स्तर तक के नेताओं ने अपनी भूमिकाएं निभाईं.
इसके बाद गुजरात के ऊना में भी गोरक्षकों ने जिस तरह दलितों पर अत्याचार किए, उससे संघ की विचारधारा को लेकर दलितों की कड़वाहट बढ़ी. सहारनपुर में भी दलितों ने देखा कि संघ और बीजेपी के नेता, अत्याचार करने वालों के साथ हैं. केंद्रीय मंत्री जनरल वी. के. सिंह के बयानों से भी दलितों और बीजेपी के बीच दूरी बढ़ी है.
दलितों को प्रमोशन में आरक्षण दे पाने में बीजेपी की अक्षमता को लेकर भी दलित नाराज हैं. पूर्ण बहुमत की सरकार होने के कारण बीजेपी इस सवाल को हल कर सकती है. लेकिन ऐसा करने से उसके कोर सवर्ण वोटर के नाराज हो जाने का खतरा है. हालांकि दलित समुदाय से आने वाले रामनाथ कोविंद को राष्ट्रपति बनाकर संघ और बीजेपी ने एक प्रतीकात्मक मिसाल कायम करने की कोशिश की है, लेकिन इससे दलितों के वास्तविक सवाल हल नहीं हुए हैं.
2014 में सोशल मिडिया के ”कम्युनलनाली के कीड़ो ” ने इस आधार पर वोट माँगा था की देश को स्वर्ग बना देंगे चारो तरफ गाय के दूध घी और जी की नदिया बहेगी और अब नाली के कीड़े इस आधार पर वोट मांगने की प्लानिंग कर रहे हे की स्वर्ग तो गया भाड़ में , देखो देखो देखो देश बर्बाद हो जाएगा गज़वा ए हिन्द हो जाएगा तबाह हो जाएगा सब कुछ धुँआ धुँआ हो जाएःगा-अगर मोदी को और ना झेला तो ————————————————————————————————————- Devanshu Jha is with Shailendra Singh Parihar.23 hrs · सावधान.! …सावधान !!…सावधान!!!
धीरे-धीरे ये साफ होता जा रहा है कि नरेन्द्र मोदी को सत्ता से हटाने के लिए इस वर्ष कुछ अप्रत्याशित, अननुभूत और भयावह काम होने वाले हैं । गुजरात से इसकी शुरुआत हो चुकी है और अभी शैलेन्द्र सर, यानी शैलेन्द्र सिंह परिहार की वॉल पर जो मैंने पढ़ा है उससे भीतर तक हिल गया हूं । क्योंकि कुछ साजिश तो साफ दिखने लगी हैं। जैसे कि शिवसेना का विद्रोह । 2018 में कांग्रेस और राहुल गांधी की जीत के लिए वो सब काम किये जाएंगे जो संभव है, जिसमें फर्जी राष्ट्रवादियों की फौज खड़ी होगी, बीजेपी के नाकारे स्वार्थी सांसदों को खरीदा जाएगा । पुराने खूसट बुड्ढों की सेना सज्ज होगी, जिसमें सिन्हा ब्रिगेड सबसे आगे होगा । एनडीए से धीरे-धीरे लोग अलग होने की धमकियां देंगे । जिसमें चंद्रबाबू नायडू से लेकर अकाली, नीतीश कुमार और रामविलास पासवान जैसे लोग शामिल होंगे । बाबू लोग लामबंद होंगे । देश में दंगे फसाद तो होंगे ही साथ ही सीमा पर पाकिस्तान भारत को अस्थिर करने की कोशिशें करता रहेगा बल्कि उसमें तेजी लाएगा । ताकि 56 इंच पर बार-बार तंज कसा जा सके और हम एक फिल्म और जो शाश्वत सम्मान है, जो हमारी आत्मा में रचा बसा है, उसे जबरन ठेस पहुंचाने के नाम पर मोदी को सबक सिखाते रहेंगे ! क्यों भाई ठीक कह रहे हैं ना ! ऊपर से टोपी.. और चद्दर गिरोह वाले भितरघातियों का वार जारी रहेगा । ये लिखना ज़रूरी नहीं है कि मीडिया इस राक्षसी पूजा में सबसे बड़ी भूमिका नि्भाएगा । सोच समझ कर कदम बढ़ाओ.. हिन्दू अस्मिता की रक्षा का ये अंतिम युद्ध है । इसमें पराजित हुए तो वापसी नहीं कर सकोगे, क्योंकि तब तक भारत अनगिनत जात-पात और क्षुद्र स्वार्थ में बंट कर तबाह हो चुका होगा !Pushker Awasthi added 4 new photos.
4 February at 16:16 · Akbarpur Aunchha ·
Gaurav Pradhan (DrGPradhan) ट्विटर के सबसे बड़े नामो में से एक है। वे डेटा एनालिस्ट, साइबर सिक्योरिटी और SMAC(सोशल, मोबाइल, अनालीटिक, क्लाउड) के अंतराष्ट्रीय स्तर के रणनीतिज्ञ है। वे जब, 2014 से पहले अमेरिका में थे, तब से भारत मे राष्ट्रवादी सरकार लाने के लिये ट्विटर पर अपनी ट्वीट के जरिये काम कर रहे है। नरेंद्र मोदी जब सिर्फ प्रधानमंत्री के उम्मीदवार थे तब से वो गौरव प्रधान को फॉलो कर रहे है।
आज Neena Verma ने उनके ट्वीट्स के एक संकलन को फेसबुक में डाला है जो उन्होंने 2018 को लेकर लिखा था। यह अंग्रेज़ी में है इस लिये इसका हिंदी में अनुवाद यहां कर रहा हूं ताकि आप यह समझ सके की आज भारत और उसके राष्ट्रवादियों के सामने चुनौतियां क्या क्या है। ये ट्वीट्स न सिर्फ रोचक है बल्कि चिंताजनक भी है।
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REVOLT against @narendramodi ji
1.जब मैंने ट्विटर पर यह पोल ट्वीट किया था तब मैने इसको मज़ाक में या HRW(कट्टर राष्ट्रवादियों) पर क्रोधित हो कर नही लिखा था। यह लोगो को यह हिंट देने के लिये लिखा था कि यदि मोदी जी क्षितिज से हट जाते है तो भारत का(2019 में) कौन प्रधानमंत्री होगा और यही Queen(सोनिया गांधी) हर कीमत पर चाहती है।
2. मैंने पहले ही यह बता दिया था की (भारत के लिये) 2018 का वर्ष एक रक्तरंजित वर्ष है और आप सब उन घटनाओं के साक्षी होने वाले है जिसकी आप कल्पना भी नही कर सकते है।
क्वीन (सोनिया गांधी) ने जो 10 वर्ष के UPA काल मे कमाया है वह सब Pappu(राहुल गांधी) पर, अगले एक वर्ष में लगा देगी। जो पैसा खर्च किया जायेगा वह NDA सरकार की GDP का करीब 5% से 8% होगा।
3. नरेंद्र मोदी जी के विरुद्ध विद्रोह की योजना, बजट के बात नही बनी है बल्कि यह आज से 4/5 महीने पहले बनी है। हालांकि Miya Patel(अहमद पटेल) इस कार्य पर 2017 की गर्मी से लगे हुये है।
4. याद है, कुछ महीने पहले ममता(बनर्जी), उद्धव(ठाकरे) से मिलने पहुंची थी? (बीजेपी के) सहयोगियों के साथ (मोदी जी के विरुद्ध विद्रोह) योजना की शुरवात वही से हुई थी। एक मीटिंग में क्वीन( सोनिया गांधी) ने ममता बनर्जी को इस काम के लिये कहा था। वो सोनिया के लिये सेतु का काम कर रही है और इस विद्रोह का नेतृत्व कर रही है।
अब आपने यह देख ही लिया है कि उद्धव(ठाकरे) बीजेपी के गठबंधन से अलग होने की घोषणा कर चुके है।
5. उद्धव के बात ममता ने @ncbn(एन चंद्रबाबू नायडू) से रिश्ते बनाये। अगले कुछ दिनों या हफ्ते में आप (चंद्राबाबू) नायडू को नरेंद्र मोदी जी के विरुद्ध विद्रोह करते हुये देखेंगे।
इसके बाद अकाली विद्रोह करेंगे और उसके बाद नीतीश(कुमार) और फिर (रामविलास)पासवान विद्रोह करेंगे।
6. ये सब सीटों और मंत्रालयों को लेकर बड़े हिस्से की मांग करेंगे। इनके साथ एक बड़ी शक्ति भी नरेंद्र मोदी के विरुद्ध खड़ी होगी जिसमें (2014 के) क्लब 160 (बीजेपी के नेता), बीजेपी के वर्तमान के कुछ सांसद, अकर्मण्य सांसद और एक महिला बीजेपी मंत्री शामिल है।
7. करीब 50 वर्तमान में बीजेपी सांसद, मियां(अहमद) पटेल के संपर्क में है। ये वे सांसद है जिन्होंने कोई काम नही किया है और उनको 2019 में टिकट भी नही मिलेगा।
इन सबको मियां पटेल के कैम्प द्वारा बहुत बड़ी रकम के साथ, 2019 के चुनाव में टिकट भी देने का प्रस्ताव रखा है।
8. मिंया(अहमद) पटेल इन सबको JDU(जनता दल यूनाइटेड) के झंडे तले आने को कहा है। एक मंत्री जो एक अम्बेडक्राइट पार्टी का प्रमुख भी है , उससे मिलने (अहमद पटेल) गये थे।
9. यह थ्रेड(ट्वीट्स) कोई कल्पित कथा नही है बल्कि 100% अंदर की सूचना है।
मियां(अहमद) पटेल का कैम्प बीजेपी आईटी सेल के लोगो और (राष्ट्रवादियों के) बड़े हैंडल्स(नाम) को, नरेंद्र मोदी जी के विरुद्ध विद्रोह का समर्थन करने के लिये, 50 हज़ार से 15 करोड़ तक देने का प्रस्ताव रखेंगे।
जिन HRW(कट्टर राष्ट्रवादीयों) ने यूपी के चुनाव में समाजवादी पार्टी के लिये ट्वीट किया था वे राडार पर है उन पर निगरानी रक्खी जारही है।
10. बिहार के चुनाव के वक्त प्रशांत किशोर ने 5000+ फ़र्ज़ी राष्ट्रवादी के हैंडल्स(आईडी) बनाये थे जो अब करीब 7000 हो गये है। इस सब फ़र्ज़ी राष्ट्रवादी एकाउंट्स का उपयोग जनता को मोदी जी के खिलाफ भड़काने के लिये किया जायेगा।
11. एक बात पर गौर करे की पप्पू(राहुल गांधी) चुप हो गया है। मालूम है क्यों?
12. क्योंकि क्वीन(सोनिया गांधी) ने निर्देश दिया है कि वह मुहँ बन्द रक्खे बाकी वह देख लेंगी।
आंतरिक विद्रोह बीजेपी के अंदर के लोगो का विश्वास डगमगा देगा। आडवाणी जी के काल के और बाजपेयी जी की सरकार के कई भूतपूर्व मंत्री अपने को उपेक्षित समझ कर मोदी जी, (अमित) शाह को उखाड़ फेंकना चाहते है।
13. कुछ वरिष्ठ मंत्री यह भुनभुना रहे है की नरेंद्र मोदी के नीचे जी कमर तोड़ मेहनत करने से अच्छा है की वे विपक्ष में बैठे। ये वो जोंक है जो NDA की सरकार आने के बाद मलाई मिलने की उम्मीद कर रहे थे लेकिन मोदी जी के कंट्रोल के कारण कुछ नही कर पारहे है।
14. आप दिल्ली के बाबुओं से पूछे, वे सब चाहते है कि नरेंद्र मोदी जी चले जाय ताकि पहले की तरह मौज मस्ती वापस लौट आये।i
15. आप सोचते होंगे कि मै षणयंत्र के मतों को ट्वीट करता हूँ। आप 2020 तक प्रतीक्षा कर लीजिये। मैं जब ट्वीट करना बंद कर दूं या फिर मैं जीवित न रहूं, तब मेरे ट्वीट्स को फिर से पढ़ लीजियेगा। तब आपको पता चलेगा की मैने आप लोगो को चेतावनी वर्षो पूर्व दे दी थी।
‘यदि’ UPA फिर से वापस आती है तो मैं पहला हूंगा जिसको ठिकाने लगाया जायेगा। मैं यह सिर्फ और सिर्फ ‘यदि’ कह रहा हूँ।
#पुष्करवास्थि——————————————————- अब इस सब बकवास पर -इस पर एक सुपर संघी जो एड अहमियत ना मिलने से नाराज़ हे ——————————————Suresh Chiplunkar
4 hrs ·
#गिरावट
मोदी सरकार के अच्छे कामों की गिनती करवाते-करवाते… प्रचार करते-करते… अब चार साल बीतते-बीतते गौरव प्रधान टाईप धमकियों, “कथित” षड्यंत्रों, “तो जाओ कांग्रेस को वोट दे देना”, “कोई विकल्प नहीं है, तो चुप बैठो बिकाऊ कहीं के…” — जैसी गिरावट क्योंकर आई??
आईटी सेल वालों और कूटनीतिक विद्वानों ने कभी इस पर विचार किया है??SP Singh यही समझ नहीं आ रहा कि अगर 2O19 में कांग्रेस आ गई तो गजवा ए हिन्द कैसे हो जाएगा?
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सही कहा हिटलर चाहे जैसा था मगर वीर था जर्मन लोग वीर हे वैज्ञानिक है उनका इन हिन्दू कटटरपन्तियो से तुलना उनका अपमान हे जर्मन जैसा वीर और कोई नहीं हुआ जबकि हिन्दू कटटरपंथ दुनिया की सबसे कायर विचारधारा है ये इतना कायर हे की लिख लीजिये जो भी कोई शख्स अगर वीर होगा तो फिर वो हिन्दू कटटरपंथी संघी बजरंगी आदि आदि हो ही नहीं सकता हे सवाल ही नहीं उठता हे ——————————————————————————–Abhishek Srivastava
10 hrs · कल मैं बेरोज़गारी पर हिटलर के किए काम को पढ़ रहा था। मार्क वेबर, गराटी और गाल्ब्रेथ जैसे विद्वानों द्वारा जर्मनी में रोजगार संबंधी हिटलर की नीतियों पर बहुत सकारात्मक लिखा गया है। ठीक उसी वक्त अमेरिका में रूसवेल्ट ने सत्ता संभाली थी। दोनों अपने-अपने देश के बारह साल तक मुखिया रहे। रूसवेल्ट के ‘न्यू डील’ नामक कार्यक्रम का कोई खास असर बेरोज़गारी पर नहीं पड़ा लेकिन हिटलर ने बेरोज़गारी दूर करने के कई नवीन प्रयोग किए। भारत में अमेरिका के राजदूत रहे जॉन केनेथ गाल्ब्रेथ ने इसके बारे में विस्तार से लिखा है।हिटलर 1933 में जर्मनी की सत्ता में आया था। उसके शासन संभालते वक्त वहां करीब पैंसठ लाख लोग बेरोज़गार थे। तीन साल के राज के बाद महज डेढ़ लाख लोग बेरोज़गार रह गए। चार साल बाद कहते हैं कि बेरोज़गारी समाप्त हो गई। अपने प्रधानजी अगर हिटलर होते तो कम से कम बेरोज़गारी को लेकर उनके पास पकौड़ा नीति के अलावा कोई और ठोस पैकेज होता। उनके हाथ में कुछ नहीं है। लोग जबरन उनको हिटलर कहते हैं। मुझे कल वास्तव में ऐसा लगा कि ये बात गलत है। वे हिटलर नहीं हैं। हो ही नहीं सकते। हम लोग जबरन हिटलर बोल-बोल के उनका भाव बढ़ाए हुए हैं। ये सब बेकार की बात है।वे हिटलर की घटिया नकल भी नहीं हैं। उनकी बुनियादी दिक्कत ये है कि वे एक आम चाय विक्रेता की चेतना और नोस्टेल्जिया से अब तक आगे नहीं बढ़ पाए हैं। इसीलिए चाय-पकौड़े पर ज़ोर रहता है। इसमें उनकी गलती भी नहीं है। जो जितना पढ़ा-लिखा है, जो काम किया है, उसी के हिसाब से सोचेगा। वर्ग-चेतना भी कोई चीज़ होती है कि नहीं? प्रॉब्लम क्या है?—————————————————————————————————————————————————गोपाल राठी भारत माता की जय बोलना अब ऐसा नारा होता जा रहा हे जैसे कभी डकैती से पहले जय भवानी बोलना था ——————————-Girish Malviya
33 mins ·
राफेल डील पर विवाद क्या हैं इसे समझने एक छोटी सी कथा से समझते हैं
एक दुकान पर लोहे की बाल्टी बिकती है दो अलग अलग आदमी बाल्टी खरीद कर ले जाते हैं
पहले आदमी की बीवी पूछती है कि आप ये बाल्टी कितने में लाए आदमी बता देता है कि ये बाल्टी मैं 250 रु में लाया हूँ यही पहला किस्सा खत्म हो जाता है
दूसरे आदमी की भी बीवी पूछती है कि आप ये बाल्टी कितने में लाए, दूसरा आदमी कहता है कि देखो ये बाल्टी बाकी सभी बाल्टियों से कम कीमत पर लाया हूँ
बीवी कहती है कि मैं भी उस दुकान पर बाल्टी खरीदने गयी थी तब यह बाल्टी 250 की मिल रही थी आप ये बाल्टी कितने की लाए ?
आदमी कहता है कि मैं कीमत नही बताऊंगा लेकिन बाल्टी बहुत अच्छी है बहुत काम की है !
बीवी बोलती है कि देखो पड़ोसन भी यह बाल्टी 250 रु में लायी है तुम कितने की लाए ?
आदमी बहुत परेशान हो जाता है कह देता है कि मेरा दुकानदार से समझौता हो गया है कि बाल्टी कितने की लाए यह बात सार्वजनिक नही की जाएगी यह बात हमारे समझौते की धारा 10 में लिखी हैं
बीवी फिर भी पूछती हैं कि मैंने सुना है कि ये एक बाल्टी तुम 750 रु की लाए हो तुम सच सच बताओ ये बाल्टी तुम कितने की लाए
आदमी कहता है कि नो कमेंट्स
यह कहानी है राफेल विमान डील की
पहली बाल्टी ख़रीदने वाला देश कतर है
क़तर को एक रफ़ाल क़रीब 108 मिलियन डॉलर यानी 693 करोड़ रुपये पड़ा है, इस बात को छुपाने की कोई जरूरत ही नही समझी गयी, वही पर किस्सा खत्म हो गया
दूसरा आदमी भारत हैं
हमारी रक्षामंत्री निर्मला सीतारमण ने कहती है कि राफेल को हमने पूर्ववर्ती यूपीए सरकार के कार्यकाल के मुकाबले ‘बहुत कम’ लागत में खरीदा गया है’ हमने जिस कीमत पर सौदा किया है, वह बहुत कम है।’
कांग्रेस का कहना है कि उसने ये ल़डाकू विमान मनमोहन सरकार के वक्त 530 करोड़ रू खरीदने का सौदा किया था, आज भाजपा को यह बताना चाहिए कि यह सौदा उन्होंने कितने में किया है ?
2016 में जो मोदी सरकार ने राफेल के लिए जो समझौता किया, उसमें स़िर्फ 36 विमानों को 8.74 बिलियन डॉलर में ख़रीदा जाना है. मतलब यह कि एक विमान की क़ीमत लगभग 1600 करोड़ रुपये वो भी बिना टेक्नोलॉजी ट्रांसफर के.
कांग्रेस के राज्यसभा सांसद एमवी राजीव गौड़ा ने संसद में रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमन से रफ़ाल समझौते की कीमत और सौदे को लेकर कई सवाल किए इसके जवाब में सीतारमन ने कहा, ”आर्टिकल 10 के मुताबिक, सौदे की जानकारी गोपनीय रखी जाएगी.
यानी कि कीमत नही बताई जाएगी अब इसे भ्रष्टाचार नही कहा जाए तो और क्या कहा जाए ?Himanshu Kumar
6 February at 16:52 ·
बड़े कारपोरेट अदानी और टाटा को
मोदी सरकार और राज्यों की भाजपा सरकारें मिलकर
पूरे के पूरे गांव सौंप रही हैं
उद्योगपति मशीनें लगाकर रोजगार कम कर रहे हैं
देश में बेरोजगारी फैल गई है
और यह बेशर्म प्रधानमंत्री TV इंटरव्यू में बोलता है
कि नौजवान पकौड़ा बेचे
इसे इतना नहीं पता कि सड़क के किनारे ठेला लगाने पर पुलिस और नगरपालिकाएं क्या व्यवहार करती हैं ?
ठेले उठा लिए जाते हैं या तोड़ डाले जाते हैं
क्या मोदी ने कोई ऐसा आदेश निकाला है
कि अगर नौजवान पकोड़े का ठेला लगाए तो उसे नहीं तोड़ा जाएगा
देखिए नीचे सब्जी वाले के ठेले को म्युनिसपैलिटि वाले कितनी बेदर्दी से तोड़ रहे हैं
कारपोरेट का गुलाम प्रधानमंत्री पद पर बैठ गया है
भारत का अन्धकार युग चल रहा हैMohammed Afzal Khan
18 hrs ·
नरेंद्र मोदी हमेशा की तरह आज फिर सदन में झूठ बोले या यु कहे के उन्हों ने गुमराह किया और कहा के अगर सरदार पटेल प्रधानमंत्री होते तो आज कश्मीर हमारा होता! जबकि इतिहास इस से उल्टा है सरदार पटेल ने उस समय पाकिस्तान के प्रधानमंत्री ( लियाक़त अली या याह्या खान) को ये ऑफर किया था के आप कश्मीर लेले और हैदराबाद (डेक्कन) हमें दे दे तो उस समय पाकिस्तान के शासक ने कहा के हम ये पहाड़ जंगल वाला कश्मीर लेकर क्या करेंगे हमें हैदराबाद चाहिए ! ये अलग बात है के भारत ने अपनी फ़ौज भेज कर हैदराबाद को भी कब्जा किया और कश्मीर को भी अपने देश में मिलाया !Nirbhay Yadav
Yesterday at 09:21 ·
वैसे तारीफ की बात है कि सीमा पर मारे गए जवानों से और रोज हो रहे सीजफायर उल्लंघन से आजकल पकौड़ीराष्ट्र के राष्ट्रवादियों का खून नहीं खौलता। कांग्रेस सरकार में तो हर एक शख्स बॉर्डर फ़िल्म का सनी देओल बना फिरता था, पता नहीं साहेब ने कौन सी बूटी चटाई है कि सब मगन हैं। original ·
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Nirbhay Yadav updated his status.
7 February 2017 ·
पूरे हफ्ते इस प्रोफाइल पर हिंदुत्व, धर्म, संस्कृति, आचार-विचार, मर्यादा, लज्जा, नैतिकता को बढ़ावा देती पोस्ट ही मिलेंगी।
क्योंकि पटनी तो है नहीं हमसे कोई, तो फिर सोच रहे कि समाज का ही भला किया जाये। 😄
बजरंग दल जिंदाबाद——————————Rajiv Nayan Bahuguna Bahuguna
1 hr · Dehra Dun ·
लोकाध्यक्षः , सुराध्यक्षः , धर्माध्यक्षः कृतांत कृत
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चंबल में एक दस्यु था , निर्भय गूजर । किसी को उसके बारे में डिटेल याद हो , तो बताए । अनपढ़ , उजड्ड , वाग्मी , प्रगल्भ , नशेड़ी । उसे नेता गिरी का चस्का उठा । पत्रकारों को अपने बीहड़ में बुलाता । बैग पाइपर की पौन बोतल पी चुकने के बाद आंय बांय बकता । देश , दुनिया , अर्थ व्यवस्था , समाज , दर्शन इत्यादि पर बकवास करता , जैसे कि एक नशेड़ी करता ही है । हाथ मटका कर मदारी की तरह ऊंची आवाज में बोलता । उन दिनों इलेक्ट्रोनिक मीडिया नया नया ही था । कई टेपोर्टर उस पर जाते , और उसकी बकवास को रिकॉर्ड कर एक्सक्ल्युसिव स्टोरी चलाते । एक मुझसे बोला , चलो तुमको भी मिला लाता हूँ । बहुत मज़ा आएगा । मैन कहा , उतनी दूर जाने की दरकार नहीं । तू मुझे यहीं पर पिला दे । अय लाले की जान । तेरी कसम , उससे भी ज़्यादा मज़े दूंगा । मार तमाम मूर्ख , उसी जैसे स्तर वाले डाक़ू की गप्पों पर तालियां बजाते । डाक़ू ने कुछ दिन मीडिया हाइप पीटी और मीडिया ने पैसे । कुछ दिन बाद सब समझ गए कि यह मूर्ख नशे में बकवास करता है । निर्भय गूजर का खेल खत्म हो गया Rajiv Nayan Bahuguna Bahuguna
3 February at 14:42 · Dehra Dun ·
क्या है शनि ???
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यह महज एक दिनाँक है , जो रवि वार से पहले एवं शुक्रवार के बाद आता है । इसके सिवा यह कुछ भी नहीं है । यह आपका बहुत कुछ बिगाड़ सकता है , यदि आप मुहल्ले की दुकान से खुला तेल खरीदते हैं , एवं शनि दान देते हैं ।
शनि का तेल मांगने वाला दिन भर अपने गन्दे बर्तन में तरह तरह का सड़ा हुआ और घातक तेल।इकट्ठा करता है । फिर इसी तेल को औने पौने दुकानदार को बेच देता है । इसमें हलवाई का इस्तेमाल किया जला हुआ एवं गृहणी द्वारा अपने पति की मालिश के बाद रात का बचा तेल भी शामिल रहता है । वह तेल के कटोरे में उंगलियां डुबो डुबो कर अपने पति की ” हर जगह ” मालिश करती है । फिर बचा हुआ तेल सुबह शनिदान वाले को दे देती है । फिर यही तेल घूम फिर कर आपकी किचन तक पहुंचता है ।
इसके अलावा शनिदान वाला हफ्ते में सिर्फ दो दिन इंगेज रहता है । मंगलवार को वह हनुमान जी का भेष धर उनका दान मांगता है । दान मांगते वक़्त वह आपके घर की रेकी करता है । एवं हफ्ते के बचे 5 दिन किसी न किसी घर मे चोरी अथवा नकबजनी करता है ।
शनि दान न दें । खुला तेल न खरीदें ।
Vishnu Nagar shared Anis Ahmad Khan’s post.4 hrs · Anis Ahmad Khan17 hrs · आज फिर व्हाट्सअपिया ज्ञान वाले मोदी जी ने संसद में ऑन रिकार्ड कहा “…अगर देश के पहले प्रधान मंत्री सरदार पटेल होते तो मेरा कश्मीर हमारा होता…” पहली बात तो ये की पटेल कांग्रेसी थे और मरते दम कांग्रेसी रहे।विभाजन की संधि पर सरदार पटेल के बहैसियतगृह मंत्री और श्याम प्रशाद मुखर्जी (जिनको संघ से लेकर भाजपा पूजता है)के हस्तक्षर है।वरिष्ठ पत्रकार कुलदीप नैयर ने अपनी आत्मकथा में लिखा है”..ये सत्य है नेहरू कश्मीर को भारत मे मिलाने के पक्ष में थे लेकिन पटेल इसका विरोध कर रहे थे।फरवरी 1971 को एक इंटरव्यू के दौरान शेख अब्दुल्ला ने मुझ से कहा था कि पटेल ने मुझ से बहस कीथी की चूंकि कश्मीर मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्र है तो इस को छोड़ देना ही बेहतर है…”(बियॉन्ड द लाइंस)पटेल ने 11नवम्बर 1947 को पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधान मंत्री लियाकत अली से कहा था”…..तुम जूनागढ़ और हैदराबाद की बात छोड़ दो हम कश्मीर छोड़ देंगे…”अगस्त 1948 में कहा था”…कश्मीर का विभाजन ही स्थायी,त्वरित और वास्तविक समाधान है।पर पाकिस्तान ने इसे नकार दिया था…”
ये एतिहासिक तथ्य आर्काइव में आज भी सुरक्षित है।मोदी जी अगर खुद न पढ़ सके तो अपने भाषण लिखने वालों या सलाहकारो को इस काम पर लगा दे और कमसेकम आधुनिक भारत का इतिहास पुराने डोकुमेंट्स के सहारे पढ़ औऱ समझ ले।Ashutosh Kumar
16 hrs ·
रोजगार के सवाल को केवल आर्थिक असुरक्षा का सवाल बना दिया गया है। वास्तव में ऐसा बिल्कुल नहीं है। एक युवा को उसकी रुचि और योग्यता के अनुरूप काम मिलना चाहिए या कम से कम उसकी यात्रा उस दिशा में होनी चाहिए। ऐसा न होना बेरोजगारी से कम भयानक नहीं है, भले ही ऊपर से न दिखता हो।
सिर्फ़ खाने कपड़े के जुगाड़ के सहारे कौन ज़िंदा रह सकता है? इंसान केवल ज़िंदा रहने के लिए ज़िंदा नहीं रह सकता। मनुष्य बुनियादी रूप से एक सृजनशील प्राणी है। सिर्फ़ यही चीज उसे अन्य प्राणियों से अलग करती है।
यह सृजनशीलता उसकी रुचि के काम से ही ज़ाहिर होती है। सिर्फ़ कविता लिखना ही सृजनशीलता नहीं है। पकौड़े बनाने में भी सृजनशीलता हो सकती है। जिसकी रुचि और गति इस कला में हो वो कमाल कर सकता है। वो बेसन और प्याज़ से उम्दा कविता लिख सकता है।
दुर्घटना तब होती है जब शब्दों से रची जाने वाली कविता में दिलचस्पी रखने वाले को बेसन के पकौड़े बनाने पड़ते हैं । उतनी ही बड़ी त्रासदी तब भी होती है जब पकौड़ा उस्ताद को क्लासरूम में कविता पढ़ानी पड़ती है। यह जरूरी नहीं है कि हर कवि एक बुरा रसोइया हो, न इसका उल्टा जरूरी है। लेकिन जिस काम को करने की साध हो, उसे छोड़कर मजबूरन कुछ और करना एक यंत्रणा है।
रुचि और काम का अलगाव इंसान के अलगावबोध, व्यर्थताबोध, हताशा और कुंठा का मूल कारण है, भले ही यह कुंठा अन्य रूपों में प्रकट हो। यह अवसाद, विक्षिप्ति, अपराध, हिंसा, नशा, एडिक्शन, यौनकुंठा, धार्मिक उन्माद, अंधराष्ट्रवाद, व्यक्तिपूजा जैसे अनगिनत रूपों में प्रकट हो सकती है।
यह एक पूरे समाज को भीषण बीमार कर सकती है। यह इंसान से इंसान होने का अहसास छीन लेती है। ज़िन्दगी उसके लिए एक उबाऊ अर्थहीन अंधी दौड़ है, जबकि अक्सर वो समझ भी नही पाता कि हुआ क्या है।
यह समझना कि पकौड़े बनाना हरेक के लिए बेरोजगारी का विकल्प हो सकता है, रोजगार को पेट भरने के जुगाड़ में घटा देना है। पेट भरने का जुगाड़ बेहद जरूरी है, लेकिन कोई भी मनुष्य सिर्फ पेट भर कर मनुष्य की तरह नहीं जी सकता। रोजगार का पकौड़ावादी सिद्धांत मनुष्य को मनुष्य नहीं, सिर्फ़ एक खाली पेट मानकर चलता है। पकौड़ा बनाना एक उत्कृष्ट कला है, लेकिन पकौड़ावाद इंसान और पकौड़े में फ़र्क़ करना भूल जाता है।
पकौड़ा आख़िर इंसान के लिए है, इंसान पकौड़े के लिए नहीं।Ashutosh Kumar
6 February at 22:42 ·
दुनिया भर में ऑनरेरी डॉक्टरेट किसी भी क्षेत्र में ऐसी किसी योगदान के लिए दी जाती है, जो समाज के लिए महत्त्वपूर्ण हो और अनूठा हो। इसका मक़सद उस योगदान को रेखांकित करना और उसे दुनिया की नज़रों में लाना होता है। ऑनरेरी डिग्री के साथ उसे देनेवाले विश्वविद्यालय की प्रतिष्ठा जुड़ी होती है।
यह डिग्री किसी व्यक्ति को सिर्फ़ इसलिए नहीं दी जा सकती कि वह किसी ऊंचे सरकारी पद पर बैठा है। लेकिन भारत के 160 विश्वविद्यालयों ने पिछले बीस वर्षों में 1400 ऐसे लोगों को ये डिग्रियां दी हैं, जो सीधे इन विश्वविद्यालयों को लाभ पहुंचाने की स्थिति में थे। यह सीधे सीधे रिश्वत खिलाने का मामला है।
ऐसे लोगों में दो कार्यरत राष्ट्रपति, एक कार्यरत यूजीसी अध्यक्ष और एक ‘नाक’ का सेवारत उच्चाधिकारी शामिल है। यह ख़बर आज इंडियन एक्सप्रेस में छपी है।
यह प्रव्रित्ति शर्मनाक तो है ही, ख़तरनाक भी है। अगर भारतीय विश्वविद्यालय मुंह देखकर सम्मान बांट रहे हैं, तो उनकी क्या प्रतिष्ठा रही? अगर वे योग्यता की पहचान करने में नाकारा हैं तो उनकी डिग्रियों का क्या मोल रहा? अगर वे स्वयं बेझिझक चरणचुम्बन में रत हैं तो वे अपने छात्रों को क्या शिक्षा देंगे?
यह दुखद है कि नेताओं अफसरों क्लर्कों के भ्रष्टाचार जी चर्चा होती है, लेकिन शिक्षा संस्थानों में व्याप्त कदाचार की नहीं। उत्पाद पर बात होती है,कारखाने की नहीं। अगर शिक्षा संस्थान राष्ट्र की बुनियाद होते हैं तो इस बुनियाद को कौन खोखला कर रहा है?H L Dusadh Dusadh shared Arun Maheshwari’s post.
4 hrs ·
एक महालफ़्फ़ाज़ और पढे-लिखे अनपढ़ व्यक्ति से आप इससे बेहतर टिप्पणी की उम्मीद नहीं कर सकते: जो आप कर सकते हैं , वह ‘करुणा’ से भिन्न और कुछ नहीं.
See Translation
Arun Maheshwari
15 hrs ·
संसद में मोदी की सर्वकालिक क्लासिक टिप्पणी :
“यदि देश में बड़ी बेरोज़गारी है तो बड़े रोज़गार भी हैं “ !Jitendra Narayan
5 hrs · Samastipur ·
मोदीजी संसद में गुस्से में बोले!पीएम यदि गुस्से में है तो समझो जनता से उसका विश्वास उठ रहा है। राष्ट्रपति जी ने अपने अभिभाषण में ऐसा कुछ नहीं बोला था जिस पर विपक्ष हमलावर होता। विपक्ष तो संसद में हाशिए के बाहर खड़ा है ,फिर मोदी जी को अभिभाषण का उत्तर देते समय इतना गुस्सा क्यों आया ?
आमतौर पर विपक्ष जिन आरोपों या सवालों को उठाता है उनका पीएम जवाब देते हैं,लेकिन पीएम ने तो विपक्ष के उठाए सवालों के अपने भाषण में उत्तर न देकर तमाम किस्म की ऊल-जलूल बातें कहीं।
असल में पीएम आहत हैं राजस्थान की जनता की मार से ,उनके हाथ से जाट और दूसरी जातियों की डोर निकल चुकी है, विकास ठप्प हो गया है, देशी-विदेशी कोई भी उद्योगपति चार साल में कारखाना लगाने नहीं आया,स्कील डेवलपमेंट के लिए हाथ-पैर मारने के बावजूद ट्रेंड लोग दर-दर बेकार घूम रहे हैं।
आठ करोड लोगों को अब तक मोदी जी नौकरी देने वाले थे लेकिन अचानक नौकरियां गायब हो गयीं ,यही वजह है जिसके कारण मोदीजी गुस्से और कुंठाग्रस्त होकर संसद में बोल रहे थे,उनका पूरा भाषण सफेद झूठ के पुलिंदे के अलावा कुछ नहीं है। झूठ बोलने के कारण वे अनेक भूलें कर बैठे।
-Jagadishwar Chaturvedi
नौकरी मांगना या करने का फैशन हो चुका है सबको नौकरी नहीं मिल सकती अब नौकरी की मानसिकता बदलनी चाहिए
Archana Tabha
11 hrs ·
“नौकरियों की भीख” जैसा शब्द बहुत सोची समझी प्लैन कार्ययोजना की स्क्रिप्ट की एक छोटी सी बानगी है,और साथ में यह भी कहना कि- “मिडिल क्लास नौकरी की भीख नहीं चाहता !” ये कौन सा मिडिल क्लास है ?
जाहिर है यह वो मिडिल क्लास है जो 1925 से अब तक चार पीढ़ियों के बाद संघ का सम्पन्न “असेट्स” है यह बनिया वर्ग हो सकता है यह बड़ी जोत का काश्त-किसान हो सकता है यह प्राईवेट स्कूल मालिक हो सकता है,दीगर और भी हो सकता है, जो लंबे समय से (1925 से अब तक जीन में भी संघी संस्कार बद्ध हो चुका है ) इस समय की प्रतीक्षा में था और आज भारतीय राज्य मशीनरी उसके ‘कल्ट’ के हाथ में है तो वह साहस (?) के साथ अपनी मन की योजना लागू कर रहा है !
अब आप की तरह मैं भी ठीक-ठीक इसकी संख्या नहीं बता सकता कि कश्मीर से कन्याकुमारी तक, गुजरात से अरुणाचल तक ये कितने संसाधनों और संपत्ति का स्वामी है !
चलिए इसकी संख्या जानने के लिए हम संघ के डेटा को ही आधार बनाकर इसकी संख्या का अनुमान लगा सकते हैं, मसलन संघ के स्वयंसेवक,सरस्वती शिशु मंदिर के आचार्य,और इन स्कूलों के बच्चे, संघ के अनुषांगिक संगठनों के कार्यकर्ताओं की संख्या (हालांकि हो सकता है एक ही व्यक्ति संघ के एकाधिक संगठन का समर्थक हो सकता है इससे संख्या द्विगुणित हो सकती है अतः सावधानी से एक संख्या तक पहुंचें,) और परिवार के बाकी सदस्य मान लीजिए एक परिवार न्यूनतम 4 सदस्यों का है !
अब आप एक मोटा-मोटी फीगर प्राप्त कर सकते हैं.
अब आप उन राज्यों में जहां भाजपा कमजोर है या सत्ता में नहीं है वहां संघ के कार्यक्रमों/सक्रियता/स्वयंसेवकों की संख्या और उनके संपर्क/फालोअप से अनुमान लगा सकते हैं कि उन्होंने उत्तर की या हिंदीभाषी पट्टी से बाहर अपनी कितनी आउटसोर्स लगायी है और इसका कितना प्रतिफलन/विस्तार/कर वे कितनी जड़ें जमा सके हैं !
और हां फौजी का परिवार और फौज लगभग-लगभग संघ की विचारधारा से ही अवचेतन में प्रभाव रहता है (स्मरण रहे कि हमारे दिमाग का महज 17% हिस्सा ही हम औसतन जिंदगी में इस्तेमाल कर पाते हैं सो बचा 83% हमें कब्जा कर चलाता है यदि हमारा दिमाग और स्नायुतंत्र पर हमारे विवेक का प्रभुत्व न हो तो और ऐसा बहुत कम लोग कर सकते हैं या तो व्यक्ति बहुत अधिक इंटलीजेंसिया हो या फिर बहुत संपीड़न प्रशिक्षण प्राप्त ) तब ये एक बहुत छोटा सा हिस्सा है जो पक्ष अथवा प्रतिरोध तय करने का स्वविवेकी है !
“थोड़ा कहना बहुत समझना” आशा है आप भविष्य समझ सकते हैं… (हां आप सही समझ रहे हैं इसी निष्कर्ष पर मैं भी पहुंचा हूं ! )
और हां यह सही समय है ग्राम्शी को पढ़ने का जो नहींं समझ आ रहा वो भी क्लियर हो जायेगा !
चिंता घनीभूत है पर यही सच है !
~ Yuva Deep PathakArchana Tabha
Yesterday at 17:33 ·
रंडुओं का गिरोह आरएसएस अब गर्भ संस्कार की बात कर रहा है और ज्ञान दे रहा है कि कैसे दंपत्ति सु-संतान या मनचाही संतान प्राप्त कर सकते हैं । इसमें कुछ मोटा -मोटा ये कहा जा रहा है कि गर्भ धारण के दौरान किन-किन संस्कारों और मंत्रो को जाप करके हष्ट-पुष्ट ,तीव्र बुद्धि का बच्चा(मुख्यतया लड़का) प्राप्त कर सकते हैं ! जैसे गर्भ धारण के बाद गर्भ के अंदर अच्छी आत्माओं को बुलाना होगा और वो आत्मा बच्चे(मुख्यतया लड़का) को बलिष्ट बनाएगी, बस माँ को अपने खाने पीने का ख्याल रखना होगा । लेकिन कोई भोला व्यक्ति सवाल कर सकता है कि जब आत्मा ख्याल रख लेगी तो अच्छे खाने के फ़िज़ूल खर्चे की क्या जरूरत !!
इस गर्भ-संस्कार के लिए आरएसएस ने एक वर्कशॉप किया था कोलकाता में मई 2017 में । और ये वर्कशॉप करने के पीछे आरएसएस की वो समझ है बंगालियों को ले कर जिससे ज्यादातर अवगत नहीं । बंगालियों में भले अपनी बौद्धिकता के लिए गर्व हो लेकिन वे अपने रंग और कद-काठी को लेकर काफ़ी बचाव की मुद्रा में होते हैं । ये आत्मग्लानि अंग्रेजों के समय से है जब वो अपनी फौज में राजपूतों, सिखों, जाटों आदि को ले रहे थे । गोरे रंग और कोकेशियान शरीर के प्रति आकर्षण तो लगभग पूरे भारतीयों में है लेकिन सांवले रंग वाले किसी अन्य भारतीयों की तरह बंगालियों में ये चाहत ज्यादा है । बंगालियों में इसी आत्मग्लानि को हिंदुत्व से जोड़ने का काम आरएसएस कर रहा है और बंगालियों को सुंदर व बलिष्ट बच्चे की इच्छा को वो गर्भ संस्कार से पूरा करने के सपने दिखा रहे रहे हैं ।
इससे आरएसएस के फ़ासीवाद की दो मांगे पूरी होती हैं- एक तो औरत के शरीर पर अधिकार और दूसरा पितृसत्तात्मक ढांचे को मजबूत करने के लिए नई पीढ़ी की फ़ौज। लेकिन ऐसा नहीं है कि ये दुनिया में अपनी तरह का पहला दकियानूसी सा कुछ हो रहा है । इससे पहले भी हुआ है जिसे हिटलर ने किया था । हिटलर ने भी अपने नाज़ी सत्ता के दौरान जर्मन औरतों को सिर्फ बच्चे पैदा कर के एक हष्ट-पुष्ट नागरिक तैयार करने वाली मशीन तक सीमित रख दिया था । दुनिया मे आर्थिक-सांस्कृतिक स्तर पर चाहे कितनी ही भिन्नता हो लेकिन फ़ासीवाद का पैटर्न एक समान ही रहता है ।
खैर जिसको मनचाहे बच्चे चाहिए वो आरएसएस के रंडुओं से ज्ञान लेने जरूर जाये ।नोट- उन लोगों से माफ़ी जो किसी न किसी कारण या अपनी इच्छानुसार सिंगल रह गए । आजीवन सिंगल कोई बुराई नहीं बल्कि एक चुनाव है और इस चुनाव के प्रति बेहद सम्मान है । जो भी तल्ख़ी लिखी है वो सिर्फ फासीवादी आरएसएस तक सीमित । फिर भी किसी को व्यक्तिगत तौर बुरा लगे तो माफी चाहूंगी ।Archana Tabha———————————————————————————————————-mera khud bhi shaadi or bachho ka koi irada nahi he
https://www.youtube.com/watch?v=Xv1BuNdrNY0 कादर खान और शक्ति कपूर कौन हे ये तो सब को पता ही हे असरानी समझ लीजिये की ”तिहाड़ी सरदाना श्वेवता और सोशल मिडिया के ढेर सारे अधेड़ संघी ” और मिलावट राम समझ लीजिये की इन्हे वोट देने वाले कम्युनल माध्यम वर्ग जिसकी ”टोपी ” भी शक्ति कपूर ने ले ली जिन्हे कुल मिलाकर इन्होने 2014 मुंबई के एक किनारे से उठाया और 2019 में दुबई बताकर दूसरे किनारे पर उतार रहे हे
Swati Mishra shared Darpan Sah’s post.
1 hr · दर्पण साह…हाथ चूम लें आपका. क्या लिखते हैं आप. जो भी लिखते हैं, कितना अच्छा लिखते हैं.Darpan Sah
14 hrs ·
किताबें बहुत सी पढ़ी होंगी तुमने,
मगर क्या पकौड़ा भी तुमने तला है?
तला है डियर सर, सफल में तला है,
बता फिर पकौड़ों में क्या क्या मिला है?
गोभी मिली है, टमाटर मिला है,
प्यॉरइट का सारा ही वाटर मिला है.
पकौड़े में भला कब हैं पड़ते टमाटर
न पड़ते तो घर में ही सड़ते टमाटर
ये टमाटर हकीकत में टैंगी बहुत है
और बाकी की भाजी महंगी बहुत है.
किताबें बहुत सी पढ़ी होंगी तुमने,
मगर क्या पकौड़ा भी तुमने तला है?
तला है डियर सर, सफल में तला है,
बता फिर पकौड़ों में क्या क्या मिला है?
अगर हम कहें कि वैकेंसी नहीं है
ये ढाबा है गोया, एमएनसी नहीं है.
बड़े आए ये इन्टर्न एमएनसी वाले
जॉब व्हाइट-कॉलर और ह्रदय काले-काले
काला नहीं दिल, कुढ़न से जला है,
हम हैं फेलियर, हाथ हमने मला है.
किताबें बहुत सी पढ़ी होंगी तुमने,
मगर क्या पकौड़ा भी तुमने तला है?
तला है डियर सर, सफल में तला है,
बता फिर पकौड़ों में क्या क्या मिला है?
(जॉब इंटरव्यू का दो-गाना या डायलॉग)————- ”
Sindhuvasini Tripathi7 February at 20:30 ·
Misconception: Ladies first!
Actuality: Pretty ladies first!———————————-Dilip C Mandal
1 hr ·
जसोदाबेन वाले कार एक्सिडेंट में, आप जानते हैं कि एक आदमी की मौत हुई है। वह नरेंद्र भाई का साला यानी ब्रदर इन लॉ था।
घटना के दूसरे दिन नरेंद्र भाई संसद में बोलते हुए रामायण सीरियल की हंसी को याद करके हंस रहे थे, तो मुझे बहुत अच्छा नहीं लगा।
लोकलाज भी कोई चीज होती है।Dilip C Mandal
10 hrs ·
ऐसा न हो, लेकिन कभी नीता अंबानी की कार का एक्सिडेंट हो गया, तो हर पार्टी के नेता उनका हाल-समाचार पूछेंगे.
प्रधामंत्री नरेंद्र मोदी की विवाहिता पत्नी जसोदाबेन का एक्सिडेंट हो गया और उनका चचेरा भाई चोट का शिकार होकर मर गया, तो किसी पार्टी के नेता को यह ख्याल नहीं आया कि अस्पताल जाकर खोज-खबर ही ले लें.
मर गई इंसानियत.
बिक गई गोरमिंट.
गरीब का हाल पूछने वाला कोई नहींDilip C Mandal
22 hrs ·
मोदी जी,
यहां कौन अमृत पीकर आया है. हम सब भी मरेंगे और आप भी मरोगे. सब ठाठ यहीं पड़ा रह जाएगा. एक औरत, जिसकी आपसे धार्मिक रीति रिवाज से शादी हुई, जिससे आपका अब तक तलाक नहीं हुआ है, जो आपके नाम का सिंदुर लगाती है, मंगलसूत्र पहनती है, उसका एक्सिडेंट हुआ है. आपके साले की मौत हो गई है.
चले जाओ करमजले. एक बार मिल आओ. सेहत का हाल पूछ लो. दुनिया की सैर करते हो. फुरसत की कौन कमी है. जेटली संभाल लेगा. पांच-छह घंटे की बात है.
एक बार देख आओ.
न गए तो मैं शाप देता हूं कि आप जिस नर्क पर भरोसा करते हो, वहीं सड़ोगे.Dilip C Mandal
23 hrs ·
हादसे में घायल जसोदाबेन की सेहत की खबर लेने के लिए विपक्ष के एक प्रतिनिधिमंडल को अस्पताल जाना चाहिए.
इसमें कोई राजनीति नहीं होनी चाहिए. यह इंसानियत और सामान्य शिष्टाचार की बात है.
आखिर वे भारतीय गणराज्य के प्रधानमंत्री की विवाहिता पत्नी हैं.Sadhvi Meenu Jain
13 hrs ·
उनके भीतर JNU ज़िंदा है अभी ! ! !
प्रधान मंत्री द्वारा रेणुका चौधरी पर की गई अभद्र टिप्पणी का वीडियो देखें ।
जहां अमित शाह समेत सत्ता पक्ष के सभी पुरुष सांसद / मंत्री और एक साध्वी बुक्का फाड़कर मेजें थपथपाते हुए हंसते – हंसते लोटपोट हुए जा रहे हैं ।
वहीं प्रधान मंत्री के पीछे बैठी हुई ( एक कतार छोड़कर ) निर्मला सीतारामन हाथ बांधे चुप बैठी हुई हैं । —————————————————————————————————————–−
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सिकंदर हयात • 5 hours ago
दिल्ली में मेने उन गाँव वाले लोगो के साथ फुटबॉल खेली जो खेती की जमीन बेच बेचकर करोड़पति हो चुके हे मगर फिर भी इतने बर्बर की एक छह सौ की फुटबॉल लाते थे और आते ही सारे दलित गरीब लड़को से भी उसके शेयर के पैसे मांगते थे जबकि हम लिबरल्स में तो हज़ारपति भी नहीं रहा फिर भी क्या फर्क पड़ता हे मेने ही अपनी जेब से कितनी ही फुटबॉल लायी और गायब दलितों और स्लम्स के बच्चो को भी दी कभी पैसे नहीं मांगे खेर अब उन्हें सोशल पर देखता हु तो स्वाभाविक हे की सब के सब भाजपा संघ की तरफ झुके हुए हे पहले ये लोग अपनी अपनी जाती के लोगो को सपोर्ट करते थे मगर सोशल मिडिया पर मोदी आर्मी ने इन्हे घेर लिया और अपने घोर बर्बर शोषक चरित्र के साथ साथ अब ये हिंदुत्ववादी भी हो गए और भी बुरे हो गए हे ———— ——————————————————————————————————–”Jagadishwar Chaturvedi
4 hrs · दिल्ली के मर्म की तलाश में-
हर शहर की अपनी निजी विशेषताएं होती हैं दिल्ली की भी हैं, चूंकि बहस कोलकाता और दिल्ली को लेकर हो रही है तो हम दिल्ली तक सीमित रखेंगे।
हम जब दिल्ली के अंदर झांकेंगे तो दिल्ली नजर आएगी! हमने शहरों में रहना सीखा लेकिन शहर को कभी जानने की कोशिश नहीं की।शहरी बुनाबट के तारों को छूने की कोशिश नहीं की,शहर वह नहीं होता तो सतह पर दिखता है ,शहर का मर्म तो उसकी नाभि में छिपा होता है। दिल्ली के साथ दो चीजें जुड़ी हैं, पहला है गांव, दूसरा है ऐतिहासिकता। गांवों को समाहित करके दिल्ली बसी है। दिक्कत यह है ग्राम्य बर्बरता और ग्राम्य असभ्यता के खिलाफ यहां कभी कोई आंदोलन नहीं हुआ, गांवों को शहर का अंग बना लिया गया लेकिन ग्राम्य बर्बरता के रूपों को चुनौती नहीं दी गयी,यह काम दिल्ली के लेखकों -बुद्धिजीवियों -समाज सुधारकों को करना था लेकिन वे इस पहलू को नजरअंदाज करते रहे। इसके विपरीत कलकत्ते में राजा राम मोहन राय- ईश्वर चंद विद्यासागर आदि ने ग्राम्य बर्बरता के खिलाफ सामाजिक संघर्ष चलाया। बर्बर और दकियानूसी विचारों को हरेक घर की चौखट पर जाकर चुनौती दी, इसके परिणामस्वरूप मानवीय कलकत्ते का जन्म हुआ।यह वही कलकत्ता है जहां सती प्रथा थी , हिंदू महासभा सभा थी, विद्या सागर को बंगाल के भद्रलोक गालियां देते थे, विद्यासागर के खिलाफ पूरे बंगाल में आंधी थी,लेकिन सुधारकों ने रास्ता नहीं छोड़ा,संघर्ष बंद नहीं किया। इसके विपरीत दिल्ली में कोई वैचारिक जंग ग्राम्य बर्बरता के खिलाफ नहीं हुई।गांव शहर बन गए,लेकिन मूल्यस्तर पर पुराने बर्बर रूप बचे रहे। दिल्ली की धुरी है ग्राम्य बर्बरता!
ग्राम्य बर्बरता के कारण अधिसंख्य जनता में जातीयभाषा , संस्कार,नई आदतों का जन्म ही नहीं हो पाया। दिल्ली वाले की हेकड़ी का ग्राम्य बर्बरता से गहरा संबंध है। सामाजिक हैसियत का नशा उसी का अंश है।यह ऐसा मनुष्य है जिसकी खोपड़ी पुरानी है कपड़े नए हैं,आदतें -संस्कार पुराने हैं लेकिन घर नया है,दिमाग १८वीं सदी का है लेकिन कार से चलता है।
दिल्ली लंबे समय से राजधानी रही है।हर जगह इतिहास के चिह्न दिख जाते हैं।लेकिन शहरी लोगों में ऐतिहासिक बोध नहीं है।Jagadishwar Chaturvedi
4 hrs ·
बेकारी ने मोदी को बेनकाब किया-
युवाओं के लिए आज रोजगार पाना एक बड़ी चुनौती है. जहां एक ओर युवाओं को रोजगार नहीं मिल रहा है, वहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र ने एक बयान देते हुए कहा कि ‘बेरोजगारी से अच्छा है युवा मजदूरी करके पकौड़े बेचें’. पीएम के इस बयान के बाद देखते ही देखते पकौड़ा रोजगार का मजाक पूरे देश में उड़ने लगा. वहीं AAJ TAK. IN देश में बढ़ती बेरोजगारी को लेकर कुछ ऐसे आंकड़े बता रहा है, जो युवाओं के लिए चिंता का विषय है. बता दें, ये सभी सरकारी आंकड़े हैं, जो श्रम ब्यूरो से लिए गए हैं.
– आंकड़ों के अनुसार भारत दुनिया के सबसे ज्यादा बेरोजगारों का देश बन गया है.
– भारत की 11 फीसदी आबादी लगभग 12 करोड़ लोग बेराजगार हैं.
– 2015-16 में बेरोजगारी की दर 5 साल के उच्चतम स्तर पर पहुंच गई.
– जहां 12 करोड़ लोग बेरोजगार हैं, वहीं 2015 में सिर्फ 1 लाख 35 हजार लोगों को ही नौकरी मिली.
ये हैं वो सरकारी नौकरियां, जहां होगी 50 हजार से 1 लाख तक की सैलरी
– वहीं चार साल से 550 नौकरियों रोज खत्म हो रही हैं.
ग्रेजुएट के लिए सरकारी नौकरियां, 50 हजार से 1 लाख तक की होगी सैलरी
– इन चार सालों में महिलाओं की बेराजगारी दर 8.7 तक पहुंच गई है.
– श्रम रोजगार की रिपोर्ट कहती हैं कि स्वरोजगार के मौके घटे हैं, और नौकरियां कम हुई हैं.
पढ़े-लिखे युवा बेरोजगार
कहते हैं कि पढ़-लिख लोगे तो एक अच्छी नौकरी मिल जाएगी. लेकिन आंकड़ों के मुताबिक बेरोजगारों में पढ़े-लिखे युवाओं की तादाद सबसे ज्यादा है. जिसमें 25 फीसदी 20 से 24 आयुवर्ग के हैं, जबकि 25 से 29 वर्ष की उम्र वाले युवकों की तादाद 17 फीसदी है. 20 साल से ज्यादा उम्र के 14.30 करोड़ युवाओं को नौकरी की तलाश है. विशेषज्ञों का कहना है कि लगातार बढ़ती बेरोजगारी का यह आंकड़ा सरकार के लिए गहरी चिंता का विषय है.
क्या कहती है यूएन रिपोर्ट
संयुक्त राष्ट्र श्रम संगठन की रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2018 में भारत में बेरोजगारी वर्तमान समय से और बढ़ सकती है. जो बेरोजगार युवाओं के लिए खतरे की घंटी है.
क्या कहते हैं पहले के सर्वे
साल 2017 के शुरुआती 4 महीनों को लेकर CMIE (Centre For Monitoring Indian Economy Pvt Ltd) ने सर्वे किया था जिसमें पाया गया था कि जनवरी से अप्रैल के बीच में करीबन 15 लाख लोगों ने नौकरी गंवाई हैं और बेरोजगारी का स्तर बढ़ा है. ये सर्वे नोटबंदी के बाद किया गया. बतादें नोटबंदी की घोषणा 8 नवंबर 2016 को हुई थी. गौरतलब है कि यहां जो संख्या दी गई है उसमें भारत के आर्गेनाइज्ड, अनआर्गेनाइज्ड सेक्टर शामिल हैं.(आजतक से साभार)
Jagadishwar Chaturvedi
5 hrs ·
बीस सूत्रीय कार्यक्रम और हम-
विद्वान,सम्मान,लेखक,साहित्यकार,बुद्धिजीवी,पंडित आदि पदबंध ब्राह्मणवाद की सृष्टि हैं,बंधु,कॉमरेड
, मित्र ,नागरिक आदि कामगारों की सृष्टि हैं ,हमें उन तमाम पदबंधों और पद्धतियों से बचना चाहिए ,जो ब्राह्मणवादियों ने बनाए हैं,दिक्कत यह है हम चाहते हैं ब्राह्मणवाद अपदस्थ हो लेकिन सोचते उनके ही पदबंधो में हैं,ऐसी अवस्था में वे अपदस्थ नहीं होंगे बल्कि ब्राह्मणवाद विरोधी ताकतें उनके अंदर प्रवेश कर जाती हैं और व्यवहार में यही हो रहा है,ब्राह्मणवाद विरोध,नव्य-ब्राह्मणवाद है।ये दोनों ही मार्ग लेखन के लिए कष्टदायक हैं।लोकतंत्र में रहते हैं तो नागरिक बनें,लेखक नहीं।
कुछ बातें जिनको समझना जरूरी है-
1.कुछ अच्छा लिखिए,बेहतर लिखिए,काम का लिखिए,यह शिक्षक-समीक्षकों की अ-साहित्यिक प्रवृत्ति है।
2.अपने लिखे से मोह नहीं रखना चाहिए।स्व-लेखन से मोह बीमारी है।
3.कल्ट या पंथ का फिनोमिना वर्चस्ववादी दृष्टिकोण की अभिव्यक्ति है।
4.नियमित अच्छी चीजें पढ़ने की आदत होनी चाहिए।नियमित रीडिंग बेहतर इंसान बनाती है।
5.मनुष्य के जीवन का खालीपन दो चीजों से भरा जा सकता है ,वह है प्रेम और त्याग ।
6.रामचरित मानस में राम को एक ही चीज पसंद है प्रेम।प्रामाणिक प्रेम प्रसन्नता का जनक है।
7.श्रद्धा का स्थान फेसबुक नहीं मनुष्य का हृदय है।
8.ठठ्ठेबाजी और नॉनसेंस भाषा को एमटीवी आदि टीवी चैनल ने रियलिटी शो का अनिवार्य अंग बनाकर रद्दी को मुनाफे में बदल दिया है। आज के युवाओं को इस तरह के रियलिटी शो की तू-तड़ाक की भाषा प्रभावित कर रही है।
9.मैं गंभीर लोगों से डरता हूं।मुझे गंभीरता नहीं व्यंग्य पसंद है।
10.फेसबुक खेल है,सूरदास के अनुसार- खेलन में को काकों गुसईंया।खेल में सब समान हैं।
11.कला ज्ञान मनुष्य को बूढा नहीं होने देता।
12.धर्म पुरानी जीवन संहिता है,संविधान नई जीवन संहिता है। तय करो किस ओर हो तुम।
13.तर्क में परास्त करना सबसे घटिया चीज है,इससे आनंद नष्ट होता है।सुंदर तर्क वह है जो संवाद में खींचे,संवाद खुला रखे।
14.पवित्रता सबसे घटिया शब्द है,इसने सबसे ज्यादा पीड़ित किया है।
15.मोक्ष मतलब मरना नहीं,बल्कि मोहरहित सजग जीवन है।
16.जो धर्म मातहत भाव का प्रचार करे वह धर्म नहीं अधर्म है।
17.विवेकहीन भक्ति और प्रेम अंततःदुख देते हैं।
18.भक्ति और प्रेम में विधि निषेध नहीं होते,बल्कि सभी किस्म के विधि निषेधों का अंत हो जाता है।
19.व्यक्ति के विकास के लिए एकांत जरूरी है।
20.दुनिया से विरक्ति पैदा कर दे वह गुरू नहीं बल्कि दुनिया को बदलना समझाए वह है गुरू।
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एक रफ़ाल की कीमत तुम क्या जानो रमेश बाबू
रवीश कुमार February 07, 2018 7 Comments
भारत फ्रांस से 36 रफ़ाल लड़ाकू विमान ख़रीद रहा है। क्या भारत ने एक विमान की कीमत टेंडर में कोट किए गए कीमत से बहुत ज़्यादा चुकाई है? इसे लेकर बहस हो रही है। मेरी अपनी कोई समझ नहीं है न जानकारी है लेकिन मैंने रक्षा विशेषज्ञ अजय शुक्ला और रक्षा की रिपोर्टिंग करने वाले शानदार रिपोर्टर मनु पबी की रिपोर्ट के आधार पर हिन्दी के पाठकों के लिए एक नोट तैयार किया है।
कांग्रेस पार्टी आरोप लगा रही है कि प्रधानमंत्री ने फ्रांस से रफाल लड़ाकू विमान की ख़रीद को लेकर जो क़रार किया है, उसमें घपला हुआ है। इस घपते में ख़ुद प्रधानमंत्री शामिल हैं। पिछले साल जब कांग्रेस ने मामला उठाया था तब रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा था कि हम सब कुछ बताने को तैयार हैं। कोई घोटाला नहीं हुआ है। अब वे कह रही हैं कि दोनों देशों के बीच करार की शर्तों के अनुसार हम जानकारी नहीं दे सकते। मगर कीमत बताने में क्या दिक्कत है?
कांग्रेस का दावा है कि उसके कार्यकाल यानी 2012 में जब डील हो रही थी तब एक रफाल की कीमत 526 करोड़ आ रही थी। एन डी ए सरकार के समय जो डील हुई है उसके अनुसार उसी रफाल की कीमत1640 करोड़ दी जा रही है।
मनु पबी की रिपोर्ट-
1 दिसंबर 2017 को दि प्रिंट में मनु ने लिखा कि 36 रफाल लड़ाकू विमान ख़रीदने से पहले सरकार ने उससे सस्ता और सक्षम लड़ाकू विमान ख़रीदने के विकल्प को नज़रअंदाज़ कर दिया। एक यूरोफाइटर टाइफून 453 करोड़ में ही आ जाता। ब्रिटेन, इटली और जर्मनी ने सरकार से कहा था कि वे विमान के साथ पूरी टेक्नालजी भी दे देंगे। 2012 में रफाल और यूरोफाइटर दोनों को भारतीय ज़रूरतों के अनुकूल पाया गया था।
यूपीए ने जो फ्रांस के साथ क़रार किया था उसमें देरी हो रही थी। मोदी सरकार ने उसे रद्द कर दिया। जब ब्रिटेन, जर्मनी और इटली को पता चला तो उन्होंने 20 प्रतिशत कम दाम पर लड़ाकू विमान देने की पेशकश की मगर सरकार ने अनदेखा कर दिया। सरकार के पास इनका ऑफर जुलाई 2014 से लेकर 2015 के आख़िर तक पड़ा रहा।
अजय शुक्ला की रिपोर्ट-
अजय शुक्ला ने लिखा कि भारतीय वायु सेना इस सदी की शुरूआत से ही रूसी दौर के महंगे विमानों की जगह सस्ते और सक्षम विमानों की तलाश कर रही है। 10 अप्रैल 2015 को जब प्रधानमंत्री मोदी ने एलान किया कि भारत दसाल्त से 36 रफाल लड़ाकू विमान ख़रीदेगा तब रक्षा मंत्री मनोहर पार्रिकर ने दूरदर्शन पर कहा कि यह एक रणनीतिक ख़रीद है। इसे प्रतिस्पर्धी टेंडर के ज़रिए नहीं किया जाना चाहिए था यानी बिना टेंडर के ही ख़रीदा जाना उचित है।
कई विशेषज्ञों की निगाह में रफ़ाल ख़रीदने का कोई ठोस कारण नहीं दिखता है क्योंकि उसके पास पहले से सात प्रकार के लड़ाकू विमान हैं। उनके रखरखाव का सिस्टम बना हुआ है, रफाल के आने से काफी जटिलता पैदा हो जाएगी।
रफाल की ख़रीद को इसलिए जायज़ ठहराया जा रहा है कि इस पर परमाणु हथियार लोड किया जा सकता है। विशेषज्ञों का कहना है कि ये दूसरे विमानों के साथ भी हो सकता है। कहने का मतलब है कि भारत को विचार करना चाहिए कि इतना महंगा विमान वह क्यों ख़रीद रहा है। यही काम तो सुखोई 30MKI भी कर सकता है।
और अगर इतने महंगे विमान की ख़रीद इसलिए हो रही है क्योंकि उसकी परमाणु हथियार ढोने की क्षमता दूसरों से बेहतर है तो सरकार ने पब्लिक में क्यों नहीं कहा। 2030-35 तक जगुआर और मिराज 2000 को अपग्रेड कर दिया जाएगा जो हवा में परमाणु हथियार लेकर मार कर सकेंगे तो फिर रफाल की ज़रूरत क्या है। अजय शुक्ला कहते है कि मिराज 2000 भी फ्रांस के दसाल्त की है। वो अब इसका उत्पादन बंद कर रहा है। कई लोग इस मत के है वह अपनी यह टेक्नालजी भारत को दे, जिसके आधार पर पहले से बेहतर मिराज 2000 तैयार किया जा सके क्योंकि कारगिल युद्ध में मिराज 2000 के प्रदर्शन से वायुसेना संतुष्ठ थी।
लेकिन उस वक्त जार्ज फर्नांडिस ने बिना प्रतिस्पर्धी टेंडर के सीधे एक कंपनी से करार करने से पीछे हट गए क्योंकि तब तक तहलका का स्टिंग आपरेशन हो चुका था। शुक्ला लिखते हैं कि 15 साल बाद वही हुआ जो जार्ज नहीं कर सके। सरकार ने सिंगल वेंडर से रफ़ाल ख़रीदने का फ़ैसला कर लिया। क्यों भाई ?
अजय का मत है कि रफाल ख़रीदने के बाद भी वायु सेना की ज़रूरत पूरी नहीं हुई है, तभी तो 144 सिंगल इंजन लड़ाकू विमानों के लिए टेंडर जारी किए जा रहे हैं। इस डील से मेक इन इंडिया की शर्त भी समाप्त कर दी गई है। रफाल से भी सस्ते और चार विमान हैं जिन पर विचार किया जा सकता था। दुनिया के हर वायु सेना के बेड़े में F-16 SUPER VIPER, F/A-18E, F SUPER HORNET 0 शान समझे जाते हैं। भारत ने इन पर विचार करना मुनासिब नहीं समझा। जिसकी ज़रूरत नहीं थी, उसे ख़रीद लिया।
अजय का एक लेख इसी पर है कि क्या भारत ने एक रफाल विमान के लिए बहुत ज़्यादा पैसे दिए हैं। कांग्रेस का आरोप है कि सरकार मूल टेंडर में दिए गए दाम से 58,000 करोड़ ज़्यादा दे रही है। चूंकि सरकार ने अपनी तरफ से कोई डेटा नहीं दिया है इसलिए बाज़ार में जो उपलब्ध है उसके आधार पर इन आरोपों की जांच की जा सकती है। निर्मला सीतारमण ने तो कहा था कि रफाल के दाम की जानकारी पब्लिक कर दी जाएगी लेकिन शुक्ला ने जब पूछा तो कोई जवाब नहीं मिला।
शुक्ला के अनुसार पूरी कीमत जानने के लिए विमान की कीमत, टेक्नालजी ट्रांसफर की कीमत, कलपुर्ज़े की कीमत, हथियार और मिसाइल और रखरखाव की कीमत का भी अंदाज़ा होना चाहिए।
अजय का कहना है कि 2015 में जो डील साइन हई है उसका एक आधिकारिक आंकड़ा उपलब्ध है। 36 रफाल के लिए भारत 7.8 अरब यूरो देगा। अजय लिखते हैं कि डील के तुरंत बाद रक्षा मंत्री ने कुछ संवाददाताओं के साथ ऑफ रिकार्ड ब्रीफिंग में कहा था कि एक रफाल की कीमत 686 करोड़ है। अजय भी वहां मौजूद थे। अगर ऐसा तो था कि 36 रफाल लड़ाकू विमान की कीमत होती है 3.3 अरब यूरो। केवल विमान विमान की कीमत। इसके अलावा भारत ने अपनी ज़रूरतों के हिसाब से और भी कीमत अदा की जो 7.85 अरब यूरो हो जाता है।
अजय एक सवाल करते हैं कि एयरक्राफ्ट की कीमत में अतिरिक्त लागत कितनी है? मतलब एक दाम तो हुआ सिर्फ जहाज़ का, बाकी दाम हुए उसके रखरखाव, टेक्लनालजी हस्तांतरण, हथियारों से लैस करने के।
कई जानकारों का कहना है कि भारत की ज़रूरतों के हिसाब से बदलाव की कीमत जहाज़ की मूल कीमत में शामिल होनी चाहिए न कि अलग से अदा की जाए। इसके कारण एक जहाज़ की कीमत हो जाती 1,063 करोड़। 13 अप्रैल 2015 को रक्षा मंत्री मनोहर परर्रिकर ने दूरदर्शन से कहा था कि रफाल काफी महंगा है। अगर आप टॉप एंड मॉडल लें 126 जहाज़ की कीमत 90,000 करोड़ पहुंच जाती है। इस हिसाब से तो एक जहाज़ की कीमत होती है 714 करोड़। यानी जो भारत चुका रहा है उससे भी कम।
अजय का कहना है कि रफाल ने जो MMRC टेंडर में दाम कोट किया था उसी से तुलना करने पर सही दाम का अंदाज़ा मिलेगा। फ्रांस की संसद यानी फ्रेंच सिनेट समय समय पर रफाल की कीमत जारी करती है। 2013-14 की सूची के अनुसार एक रफाल की कीमत है 566 करोड़। 527 करोड़, 605 करोड़ के भी मॉडल हैं। फ्रांस की संसद जो दाम बता रही है वो तो काफी कम है। भारत इससे ज़्यादा दे रहा है। कहीं ऐसा तो नहीं कि भारतीय वायु सेना फ्रांस की विमान कंपनियों को सब्सिडी दे रही है।
इन दो ख़बरों के अलावा पिछले दिसंबर में एक और ख़बर आई। फ्रांस ने इंकार किया है कि प्रधानमंत्री मोदी ने रफाल विमान के लिए दाम से अधिक दाम पर सौदा किया है। यह ख़बर आधाकारिक चैनल से नहीं आई बल्कि ख़बरों में फ्रेंच राजनियक के सूत्रों का हवाला दिया गया है। ज़ाहिर है यह हवाला प्लांट ज़्यादा लगता है।
प्रशांत भूषण का ट्विट देखिए। वे काफी आक्रामक हैं। भूषण सवाल कर रहे हैं कि 28 मार्च 2015 को अंबानी की कंपनी रिलायंस डिफेंस पंजीकृत होती है। दो हफ्ते के भीतर उसे मोदी 600 करोड़ में एक रफाल विमान की पुरानी डील को रद्द कर नई डील करते हैं कि 1500 करोड़ में एक रफाल विमान ख़रीदेंगे। हिन्दुस्तान एयरोनोटिक्स लिमिटेड को हटा कर रिलायंस डिफेंस कंपनी को इस डील का साझीदार बना दिया जाता है। इसमें घोटाला है।
आप अपना दिमाग़ लगाएं। सारा दिमाग़ पकौड़ा तलने में लगेगा तो लोग खज़ाना लूट कर चंपत हो जाएंगे। रक्षा सौदों को लेकर उठने वाले सवाल कभी किसी नतीजे पर नहीं पहुंचते हैं। आज तक हम बोफोर्स की जांच में समय बर्बाद कर रहे हैं और दुनिया को बरगला रहे हैं।
दो हफ्ते पुरानी कंपनी को हज़ारों करोड़ का डिफेंस डील मिल जाए ये सिर्फ और सिर्फ उसी दौर में हो सकता है जब देश हिन्दू मुस्लिम में डूबा हुआ है वरना जनता को उल्लू बनाने का कोई चांस ही नहीं था।
इसी 9 जनवरी को इटली से एक ख़बर आई जिसे लेकर किसी ने इस पर दमदार चर्चा नहीं की। सीएनएन आई बीएन के भूपेंद्र चौबे को छोड़कर। जबकि अगुस्ता वेस्टलैंड का मामला आता है तो गोदी मीडिया ज़बरदस्त आक्रामक हो जाता है क्योंकि इससे विपक्ष को घेरने में बनता है लेकिन जब सरकार इस केस में पिट गई तो चुप हो गया।
9 जनवरी को इटली की अदालत ने अगुस्ता वेस्टलैंड वीआईपी हेलिकाप्टर ख़रीद मामले में दो मुख्य आरोपियों को GIUSEPPE ORSI और BRUNO SPAGNOLINI को बरी कर दिया कहा कि इनके ख़िलाफ़ पर्याप्त सबूत नहीं है। वकील ने कहा कि इनके ख़िलाफ़ रिश्वत का कोई आरोप साबित नहीं हो सका। न ही किसी भारतीय अधिकारी ने टेंडर में हस्तक्षेप किया था। कहा गया कि इस बात के कोई सबूत नहीं दिए गए कि वायु सेना के पूर्व प्रमुख त्यागी ने हेलिकाप्टर कंपनी से रिश्वत ली थी।
इसके बाद भी सीबीआई कहती है कि उनकी जांच पर कोई असर नहीं पड़ेगा। जबकि वह इटली की अदालत में सबूत पेश नहीं कर सकी। सीबीआई के वरिष्ठ अधिकारी कोर्ट में गए थे। इटली के जज ने वही कहा जो टू जी मामले में जज ओ पी सैनी ने कहा कि हम इंतज़ार करते मगर सीबीआई कोई सबूत पेश नहीं कर पाई। टू जी मामले में भी सबूत पेश नहीं कर किसे बचाया गया है, किस किस से पैसा खाया गया है ये कौन जानता है। बहरहाल तिस पर भी दावा है कि भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ कार्रवाई कर रहे हैं।
नोट- आप भी पढ़ें, निष्कर्ष पर पहुंचने से पहले जानकारी जुटाएं और इस लेख को बीस लाख लोगों तक पहुंचा दें क्योंकि हिन्दी के अख़बार कूड़ा हो चुके हैं, वे इतनी मेहनत और विस्तार से आपको नहीं बताएंगे। मैं चार घंटे लगाकर सारे लेख पढ़े हैं और आप हिन्दी के पाठकों तक यह जानकारी फ्री में पहुंचाई है।
Faiq Ateeq Kidwai
9 February at 22:17 ·
सफ़ल होने से ज़्यादा मुश्किल होता है सफलता पाकर सामान्य रहना।
बाबा रामदेव का सीरियल आ रहा, रामदेव एक संघर्ष, फिर फ़िल्म आएगी, फिर हीरो बनेंगे, इनका हाल राम रहीम जैसा होगा।
सफलता इनसे सम्हाले सम्हल नही रही।
(फ़ायक इन मूड)———————————Hemant Malviya1 hr · Jnu मे पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगे खूब हंगामा हुआ पर आज तक हुआ कुछ नही कोई मामला कोर्ट मे साबित नही हुआ… पर BJP पीडीपी राज मे जम्मू विधान सभा मे विधायक खुलेआम नारा लगा कर पाकिस्तान जिंदाबाद बोलता है पूछने पर खुलेआम स्वीकार करता है हा नारा मैंने लगाया है मेरी मर्जी है। तो क्या उखाड़ लोगे, तो अब दो कौड़ी का बिकाऊ मीडिया और तीन टके का भाजपायी राष्ट्रवाद कहा मुह छुपा लेता हैं ।फारुख अब्दुल्ला से जब आजतक का एंकर पूछता है मकबूजा कश्मीर हमें मिलना चाहिए या नही ?…तो अब्दुल्ला बोलता है ‘हा जरूर मिलना चाहिए तो जा के ले लो किसने रोका है’ । तब वो चुप क्यों हो जाता हैं । आज जम्मू सेना केम्प के हमले पे भी जब कड़ी निंदा तक भी नही निकल पा रही राजनाथसिंह आश्वस्त रहे कह कर काम चला लेते हैं । या फिर हर मौके पे एक सर्जिकल को सौ बार गिना गिनै कर शाह जी मजमा लूटना चाहते हैं। पर हररोज सेना पर पथराव करने वालो को माफी जिनमे 60 सरकारी कर्मचारी भी शामिल हैं। उन्हें bjp की केंद्र सरकार की सहमति से pdp माफी दिला देती है ।। पर अगर कश्मीरी पुलिस हमारी सेना के अधिकारी पर केस fir दर्ज करवाती है तो उसे बचाने हमारी राट्रवादी मोदी सरकार नही बल्कि खुद सैनिक का बुढा बाप कोर्ट मे दरवाजा खटखटाता है ! शर्म की बात है यहा bjp की ही विधानसभा में पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगते हैं और bjp के ही कासगंज मे अब्दुल हमीद चौराहे पर झंडा फहराते मुसलमानो को देशभक्ति साबित करना पड़ती हैं——————————————ज़ुबान घिस गई ये कहते-कहते कि पंचर बनाना कोई बुरा नही है….ईमानदारी से किया गया कोई काम छोटा नही होता लेकिन उस वक़्त तो एक समुदाय विशेष को चिढ़ाने के लिए ये लफ्ज़ बार बार बोलते थे, आज पकौड़े पे ज्ञान दे रहे हो कि कोई काम छोटा बड़ा नही होता।
Faiq Ateeq Kidwai ————————————————————————————————————————————————————।Girish Malviya
4 hrs ·
Hemant Malviya की वाल से
सेवा में,
क्षेत्रीय प्रबंधक महोदय
इलाहाबाद बैंक
कानपुर, उत्तर प्रदेश
विषय : बाद मे सादी ओर पहिले रोजगार करने के लिए…
योजना का नाम : ‘तलेगा इंडिया तभी तो पलेगा इंडिया’ के तहत पकोड़े व्यापार हेतु ऋणप्राप्ति आवेदन
मान्यवर, जय श्री राम !
निवेदन के साथ सूचित करता हूँ की हम ही आपके मोहल्ले के ऐकमात्र एम बी.ए. पास बेरोजगार सुदर्शनं बाहुबली युवक है !… पिछली बार मोहल्ले की कांवड़य़ात्रा हम ही आयोजित कराये थे .. वही ज़िसमे dj के पिछवाडे पे फायरींग हुए थी .. नहीं आपको पता न हो तो … आपकी बिट्टी से ही पुछा लिजियेगा उसी के चक्कर मे तो पुरा बावेला कटा था .
हा तो आगे आपसे निवेदन ये हैं ! कि यू तो हमने मोदी योगी भक्त व्हाट्सएप यूनीवरसिटी से पब्लिक चीटर ओंनली मोदी रिपीटर भक्ती ट्रेण्ड में डिप्लोमा भी कर रखा है। और फिलहाल हम मोदी जी की स्पीच सूनकर बेहद प्रभावित है… तो हम भी मेक पकोडा इंडिया योजना के तहत… ‘तलो पकौड़ा बनो फ़कोडा’, उद्योग के माध्यम से अपनी शिक्षा एवं बाहुबल के अनुभव का सदुपयोग कर आपकी बिट्टी से सादी बनाना चाहते है…. किन्तु हमारी इस चाह में धन की कमी एक व्यवधान बन गयी है।
पर चुकि हम एक योग्य ओर स्वभिमानी कर्मठ युवक है …अतः हमारी योजना है की हम अपने घर से थोड़ी दूर स्थित मैकडोनाल्ड डॉमिनोज वालो के बाजू मैं एक छोटी सी पकोडी की कढाई स्थापित कर ले … बाकी नगर निगम प्रसासन मे अपने जीजाजी अल्डरमन है वो माल के बाजू वाली गुमटी की बात जमा दिये है
आप निश्चिंत रहे ओर हम पे भरोसा रखे.. बाकी इस आवेदन के साथ हम अपने सारे सम्बद्ध कागजात की प्रतिलिपियाँ मे अपने हाथो के आपके लिए स्पेशयल बनाये स्वादिष्ठ मूंग दाल बेसन भजिये पकोड़े और समोंसा भेज रहे है और साथ मे स्वयं हमारे हाथ से तली मिर्चे ओर ईटा से पिसी पुदीने की हरी चटनी भी है ! एक बार खाएंगे तो बार बार पछताएंगे ..
तो बहरहाल मामला यू है कि हमारे राष्ट्र की तरक्की ओर विकास के लिये जल्द से जल्दी हमरे आवेदन को फ़टाफट ok मंजूरी दे देवे…
वरना आंटी जी रोज आपकी बिट्टी के साथ वोडाफोन वारे ‘पग’ को घुमाने मुताए लाने हमरे घर के आगे से ही रोज पार्क मे आती जाती है | खैर थोड़ा ही लिखे है.. समझ लिजियेगा | बाकी एक बार बस अपनी दुकान चल जाये फिर अपने बुऊजी को आपके घर भेजेगे ,….देख लिजियेगा …..का समझे ?
अतः आपसे विनम्र निवेदन है की नियमानुसार ही सही एक हमार बनाये पकोड़े टेस्ट कर यथासंभव आसान किस्तों पर हमें मुद्राऋण प्रदान करने की कृपा करें। क्योकि जब
तलेगा इंडिया, तभी तो पलेगा इंडिया ! बाकी हम हमारे दहेज मे पटा लेंगे
धन्यवाद।
भवदीय
छुट्टन कुमार पाण्डे
बी-ब्लॉक 210/3
हेमंत मालवीयजी का बाडा
कानपुर, उत्तर प्रदेश।——————————-Girish Malviya
19 hrs ·
राफेल डील के बारे में बहुत से जवाब सुबह की पोस्ट पर प्रस्तुत किये गए लेकिन उन जवाबो में एक भी ऐसा तथ्य नही था जो ये बताए कि रिलायंस ओर दसों के बीच जो जॉइंट वेंचर सामने आया वह डील होने के दो हफ़्तों के भीतर ही कैसे सम्पन्न हो गया और कैसे उस जॉइंट वेंचर को हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स के ऊपर वरीयता देकर मेक इन इंडिया अभियान की धज्जियाँ उड़ा दी गयी
भाई नवनीत चतुर्वेदी ने इस डील के रिलायंस कनेक्शन की बड़ी बारीकी से जांच पड़ताल की है
#rafel story कंप्लीट स्टोरी मेकिंग रिलायंस डिफेन्स बिहाइंड द राफेल
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डस्सॉल्ट ग्रुप फ्रांस से अनुबंध होने से पहले ही रिलायंस समूह ने एक भूमिका बनानी शुरू कर दी थी ,ताकि यह लगे कि उसको रक्षा क्षेत्र में पर्याप्त अनुभव है।
राफेल के पीछे रिलायंस समूह का आना वस्तुतः गुजरात मॉडल का करिश्मा है ,जो कुछ इस तरह है — गुजरात के सुदूर समुद्री तट पर स्थित 1997 में स्थापित एक कंपनी पिपावा डिफेन्स एंड ऑफशोर इंजीनियरिंग कंपनी लिमिटेड पर यकायक अनिल अंबानी की दृष्टि जा गिरती है और वो कंपनी योजनाबद्ध रूप से अलग अलग रंग -रूप नाम से बदल होते हुए आज रिलायंस नेवल एंड इंजीनियरिंग लिमिटेड के नाम से जानी जाती है , मात्र 12 महीने के दरम्यान में इस कंपनी का नामकरण 5 बार अदल -बदल होता है।
कंपनीज एक्ट में हालांकि नाम भले 5 क्यों 50 बार बदला जा सकता है कोई गैरकानूनी कृत्य तो नहीं है लेकिन अपने आप में एक संदेह जरूर पैदा करता है – आइये इस समूह की नामकरण यात्रा पर एक नजर डाली जाए
1 पिपावा डिफेन्स एंड ऑफशोर इंजीनियरिंग कंपनी लिमिटेड ———-
2 पिपावा शिप डिस्मैंटलिंग एंड इंजीनियरिंग लिमिटेड ——-
3 पिपावा शिपयार्ड लिमिटेड
4 रिलायंस डिफेन्स एंड इंजीनियरिंग लिमिटेड
5. रिलायंस नेवल एंड इंजीनियरिंग लिमिटेड —— आज की तारीख में यह नाम है। साल 2015 से 2016 के बीच उपरोक्त नाम बदले गए है।
सिलसिला यहां से शुरू होता है , रिलायंस डिफेन्स नाम से पचासों कंपनीज वर्ष 2015 में बनाई गई -यह वो वक़्त था जब राफेल डील आदरणीय प्रधानमंत्री जी अंबानी के लिए करवा रहे थे।
1 रिलायंस इंजीनियरिंग एंड डिफेंस सर्विसेज लिमिटेड
2 रिलायंस एयरपोर्ट डेवेलपर्स लिमिटेड
3 रिलायंस डिफेन्स लिमिटेड
4 रिलायंस डिफेंस सिस्टम एंड टेक्नोलॉजी लिमिटेड
5 रिलायंस डिफेंस एंड एयरोस्पेस प्राइवेट लिमिटेड
6 रिलायंस डिफेंस टेक्नोलॉजीज प्राइवेट लिमिटेड
7 रिलायंस डिफेंस इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड
8 रिलायंस डिफेंस वेंचर्स लिमिटेड
9 रिलायंस डिफेंस सिस्टम प्राइवेट लिमिटेड
10 रिलायंस नेवल सिस्टम लिमिटेड
11 और इस तरह के मिलते जुलते नाम से और भी पचास कंपनीज उपलब्ध है जिनका वजूद सिर्फ कागजों में ही है और जाहिर है इनका प्रयोग सिर्फ एक अकाउंट से दूसरे अकाउंट में पैसे घुमाने और रिश्वत के पैसे एडजस्ट करने -काले धन को सफ़ेद करने का ही मकसद है। उपरोक्त सब कम्पनीज नाम में भारी -भरकम है लेकिन उनकी कैपिटल शायद ही किसी की 5 लाख से ज्यादा हो –जिस कम्पानी की कैपिटल ही 5 लाख हो वह डिफेंस क्षेत्र में क्या व कितना काम कर रही होगी यह समझदार इंसान खुद सोच सकता है।
जो कंपनीज वास्तविक है वो है मौजूदा ;; रिलायंस नेवल एंड इंजीनियरिंग लिमिटेड ;; प्रथमदृष्टया इंटरनेट पर या मिनिस्ट्री ऑफ़ कॉर्पोरेट अफेयर्स की वेबसाइट पर देखेंगे तो पता चलेगा कि 1499 करोड़ की कैपिटल है और 1997 से स्थापित है। अब 1997 के बाद कैसे मात्र एक साल 2016 में ही इसका नाम 5 बार बदला गया था –वो आर्टिकल की शुरू में ही बताया गया है की यह कंपनी अम्बानी ने खरीदी है रातो रात खुद को स्थापित किया है।
दूसरी वास्तविक कम्पनी है डस्सॉल्ट एयरक्राफ्ट सर्विसेज इंडिया प्राइवेट लिमिटेड जो 2012 में बनाई गई थी ,जिसके सभी निदेशक फ्रांस के है ,इस कंपनी का मुख्य काम डस्सॉल्ट समूह फ्रांस और भारत सरकार के बीच डील करवाना ,और यहां खुद के लिए कोई जॉइंट वेंचर ढूंढना। कंपनी का ऑफिस डिफेन्स कॉलोनी दिल्ली स्थित एक फ्रांस दूतावास अधिकारी के निवास का है ,जैसा मैंने वरिष्ठ खोजी पत्रकार नवनीत चतुर्वेदी ने वहां मालूम किया।
तीसरी वास्तविक कंपनी है जो 23 सितम्बर 2016 को भारत सरकार एवं डसाल्ट समूह फ्रांस के बीच रक्षा सौदे 36 राफेल जहाज का अनुबंध होने के बाद 10 फरवरी 2017 को 60 करोड़ की कैपिटल के साथ ;; डस्सॉल्ट रिलायंस एयरोस्पेस लिमिटेड ” जहां सितम्बर 2017 में महाराष्ट्र नागपुर के समीप इस कम्पनी की आधारशिला रखी गई ,भूमि पूजन हुआ -आधिकारिक रूप से यह कंपनी फ्रांस के डस्सॉल्ट और इंडिया के रिलायंस के बीच हुआ जॉइंट वेंचर है –जो फ्रांस की कम्पनी डस्सॉल्ट और भारत सरकार के रक्षा सौदे में आधिकारिक कंपनी है।
उपरोक्त 3 वास्तविक कंपनियों के अलावा जो भी है वो सब शैल कंपनियां है ,,जी वही शैल कंपनियां जिसका दावा प्रधानमंत्री मोदी करते है कि उन्होंने 3.46 लाख शैल कंपनियां बंद करवा दी –जिसकी लिस्ट खुद मिनिस्ट्री ऑफ़ कॉर्पोरेट अफेयर्स के पास नहीं है कि कब ये लाखों कंपनियां बंद हो गई लेकिन प्रधानमंत्री जी के मुंह से एक बार 3.46 लाख शैल कंपनियां बंद करवा दी यह शब्द निकल गया तो वही सत्य माना जायेगा जैसा अब का रिवाज चल निकला है।
उपरोक्त सब शैल कंपनियों और उक्त तीनों वास्तविक कंपनीज में एक अमेरिकी शख्श कॉमन है वह है ” अंथोनी जेसुडासन ” और दूसरा कॉमन शख्श है अनिल अंबानी।
अब बात आती है उस पहली वास्तविक कंपनी रिलायंस नेवल एंड इंजीनियरिंग लिमिटेड वह क्यों बनाई गई –वास्तविकता यह है कि इस कम्पनी को बनाने और खड़ा करने की जिद्द की कीमत भारतीय बैंको ने चुकाई है 15000 करोड़ रूपये की चपत से ,, एक कम्पनी एबीजी शिपयार्ड लिमिटेड जो 1974 से भारत में नौसेना व तटरक्षक दल के लिए जहाज ,बोट और अन्य युद्धक संचार उपकरण बनाती आई है उस कम्पनी का 22000 करोड़ का टेंडर सर्वप्रथम निरस्त किया गया , रिलायंस समूह के इशारे पर और यह कम्पनी बैंकरप्ट हो जाने को मजबूर किया गया , अंततः जून 2016 में यह कम्पनी बैंक्रप्ट हुई ,सरकारी बैंको का 15000 करोड़ यहां रिलायंस के फायदे के लिए डुबो दिया गया , अब यही कम्पनी रिलायंस समूह कौड़ियों के दाम में नेशनल कॉर्पोरेट लॉ ट्रिब्यूनल से खरीदने की प्रक्रिया में है और इसी कम्पनी के पुराने कर्मचारी अधिकारी आज कल रिलायंस समूह में देखे जा रहे है। यह फ़िल्मी किस्सा भले लगता हो ,पर हकीकत है जिसको कोई भी आदमी एबीजी शिपयार्ड के चेयरमैन ऋषि अग्रवाल से सुन सकता है।
अब बात आती है सबसे महत्वपूर्ण जैसा सोशल मीडिया में भगत समुदाय #मोदास वर्ग कह रहे है कि यह दो सरकारों के बीच हुआ सौदा है यहां कोई घोटाला सम्भव नहीं ,,उन मुर्ख भगत समुदाय की जानकारी के लिए डस्सॉल्ट समूह फ्रांस का एक निजी उपक्रम है -जैसे हमारे यहां के अंबानी अडानी वैसे ही ,,डस्सॉल्ट कोई फ़्रांसिसी सरकार की कम्पनी नहीं है ,जो सौदा हुआ है वो भारत सरकार और डस्सॉल्ट एक निजी कम्पनी के मध्य हुआ है।
अन्य महत्वपूर्ण बात जैसा पिछले दिनों हो -हल्ला मचा था कि आखिर 36 राफेल की वास्तविक कीमत क्या है !!! इस आर्टिकल के लेखक व पत्रकार नवनीत चतुर्वेदी के पास उपलब्ध दस्तावेज साफ़ साफ़ बताते है कि क्या है कीमत –उसका खुलासा पब्लिक डोमेन में कब कैसे किया जा सकता है उस पर उचित क़ानूनी सलाह के बाद वो बता पाएंगे।
Vineet Kumar
9 February at 11:03 ·
ओनली रविश :
कोलकाता की एक क्रिकेट टीम
इस टी को देखिए. कोलकाता के राजरहाट में क्रिकेट प्रतियोगिता हो रही है . उसमें टीम का नाम ही only ravish रख दिया है . रविवार को सारे खिलाड़ी ये टी पहनकर उतरेंगे .
आपकी तरह कई बार मुझे भी लगता है कि ये कुछ ज्यादा नहीं हो जा रहा ? लेकिन जब इवेंट मैनेजमेंट के दौर में खडा होकर सोचता हूं तो लगता है जहां छुन्नू-मुन्नू की बर्थडे पार्टी तक के लिए इन्हें हायर किया जाता है, जो लोग इस तरह सरेआम खुद को रविश का फैन घोषित करते हैं, बिना किसी लोभ-लाभ के, डिस्कार्ड कर दिए जाने के खतरों के बावजूद तब लगता है अपने ऑर्गेनिक इमोशन्स को जाहिर करने के कितने तरीके हो सकते हैं ?
नौ साल से चल रही इस प्रतियोगिता में अबकी बार जब ये तेरह खिलाडी एक साथ मैंदान में इस टी के साथ उतरेंगे तो कैसा नजारा होगा ? काश मैं इसे अपनी आंखों से देख पाता …
Only Ravish:
Vineet Kumar
7 hrs ·
रोजगार मामले में दिग्गज मीडियाकर्मी सफारी सूट न ही सिलें तो अच्छा है :
मीडिया के दिग्गज जब नौकरी को अंग्रेजों के बीच से उपजी कुंठित दासता से जोड़कर व्याख्या करने लग जाते है तो मेरा मन उनसे एकदम बेसिक सवाल करने का करता है- सरजी ! हमारी मानसिक, कुंठित दासता तो फिर भी समझ आती है लेकिन आपके साथ ऐसी कौन सी मजबूरी हुआ करती है कि फ्रीलांसिंग के बजाय, खुद का अखबार शुरू करने के बजाय सी-डी ग्रेड के चैनल और उतने ही दोयम दर्जे के व्यक्ति के साथ जुड़ना पसंद करते हैं ?
आपके साथ ऐसी कौन सी कुंठा काम करती है कि आप बिना एमबीए की डिग्री के संपादक से सीईओ हो जाना पसंद करते हो ? मीडिया में आपकी पहचान पत्रकारिता करने से बनी और कुर्सी मैनेजरीवाली थाम लेते हो ?
इन दिनों देख रहा हूं कि नौकरी और रोजगार के सवाल को अस्मिता, भारतीय चेतना, राष्ट्रभक्ति आदि भारी-भरकम शब्दों से व्याख्यायित किया जाने लगा है जिसका सार ये है कि जो नौकरी की बात कर रहे हैं वो छोटी सोच के लोग हैं. बडी सोच के लोग वो हैं जो खुद रोजगार पैदा करते हैं, बढ़ाते हैं. ये एक किस्म से पूरे जनतंत्र को फेक ग्लोरी में ले जाने जैसा है.
मेरी अपनी समझ है कि नौकरी और रोजगार का संबंध मानसिकता का नहीं मिजाज का है. हम जैसे लोग एक सेटअप के भीतर अपनी सेवा देना पसंद करते हैं और बदले में जीवन चलाने के लिए साधन चाहते हैं. ये बात मुझे अच्छे से पता है कि मैंने कल को खुद का रोजगार किया तो ज्यादा पैसे कमा सकता हूं, कुछ को रोगजार दे भी सकता हूं. लेकिन
इसके साथ मुझे अपना मिजाज भी पता है. मुझे दिनभर प्रबंधन का काम संभालना होगा. कई स्तर पर चीजें मैंनेज करनी होगी. मेरे जैसा आदमी जो फोन पर जल्दी किसी से बात करना पसंद नहीं करता, एक्सेल शीट से कोफ्त होती है, वो खुद का रोजगार नहीं कर सकता. फिर मुझे बहुत पैसे के बजाय उतने पैसे चाहिए जिसे कि मैं जीवन सुंदर करने में लगा सकूं. मेरी तरह इस देश में लाखों लोग होंगे.
ऐसे में दिग्गज मीडियाकर्मियों को चाहिए कि रोजगा के नाम पर सफारी सूट सिलने के बजाय लोगों के मिजाज की विविधता को भी समझें. उनकी दिलचस्पी कोरस गाने में है तो बिल्कुल गाएं लेकिन सोलो परफॉर्म करनेवाले को गैरजरूरी करार देने से बचें.Narendra Nath
5 hrs ·
जम्मू आतंकी हमले में अब तक 5 जवान शहीद हो चुके हैं। 1 नागरिक की भी मौत हुई है। कई घायल भी हैं। हाल के दिनों का सबसे बड़ा आतंकी हमला साबित हुआ है यह। अभी भी ऑपरेशन जारी है। उम्मीद करनी चाहये कि अब कोई और नुकसान नहीं होगा।पठानकोट और उरी हमले के 2 साल के अंदर आर्मी इलाके में यह हमला इंटेलिजेंस-सेक्युरिटी की भयंकर लापरवाही है। कहीं न कहीं पाकिस्तान को “अलग-थलग” कर चुप करने की नीति की भी विफलता है।
इधर जब जम्मू हमला हो रहा है,सरकार सपोर्टर “भाव विव्हहल” हैं कि मोदी जी की विदेश यात्रा में लोग मोदी-मोदी कर रहे,मंदिर जा रहे,NRI स्टेडियम में भाषण सुनने आ रहे हैं।
मैं शुरू से कह रहा हूँ कि मोदी जी अरजीति सिंह या रणबीर कपूर नहीं है जिनके दौरे की सफलता को हम इनसब बातों से आंके।
तथ्य की बात करें। हम पड़ोसी देशों की बेरुखी से बुरी तरह घिर रहे हैं। मालदीव की हालत हम लाइव देख रहे हैं। अब तक तक सबसे बेहतर पड़ोसी रहा नेपाल एन्टी-इंडिया-प्रो-चीन लीग में चला गया। पाकिस्तान का तो खैर क्या कहना। श्रीलंका भी तेजी से कब चीन का हो गया पता नहीं चला। भूटान भी दबाव में है।
ये फैक्ट्स बेस्ड हैं। भारत ने भी कुछ सेंधमारी की है। कुछ बेहतरीन काउंटर भी हुए हैं। उसके भी अपने लाभ हैं। लेकिन वाजपेयी जी के शब्दों में हम दोस्त बदल सकते हैं,पड़ोसी नहीं।
कहने का मतलब डिप्लोमेसी और विदेश दौरों का आकलन “स्टार वेलकम” से नहीं होता हस बल्कि उसके देश को हुए हासिल पर होता है।बहस इसपर होनी चाहये।Girish Malviya
19 hrs ·
राफेल डील के बारे में बहुत से जवाब सुबह की पोस्ट पर प्रस्तुत किये गए लेकिन उन जवाबो में एक भी ऐसा तथ्य नही था जो ये बताए कि रिलायंस ओर दसों के बीच जो जॉइंट वेंचर सामने आया वह डील होने के दो हफ़्तों के भीतर ही कैसे सम्पन्न हो गया और कैसे उस जॉइंट वेंचर को हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स के ऊपर वरीयता देकर मेक इन इंडिया अभियान की धज्जियाँ उड़ा दी गयी
भाई नवनीत चतुर्वेदी ने इस डील के रिलायंस कनेक्शन की बड़ी बारीकी से जांच पड़ताल की है
#rafel story कंप्लीट स्टोरी मेकिंग रिलायंस डिफेन्स बिहाइंड द राफेल
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डस्सॉल्ट ग्रुप फ्रांस से अनुबंध होने से पहले ही रिलायंस समूह ने एक भूमिका बनानी शुरू कर दी थी ,ताकि यह लगे कि उसको रक्षा क्षेत्र में पर्याप्त अनुभव है।
राफेल के पीछे रिलायंस समूह का आना वस्तुतः गुजरात मॉडल का करिश्मा है ,जो कुछ इस तरह है — गुजरात के सुदूर समुद्री तट पर स्थित 1997 में स्थापित एक कंपनी पिपावा डिफेन्स एंड ऑफशोर इंजीनियरिंग कंपनी लिमिटेड पर यकायक अनिल अंबानी की दृष्टि जा गिरती है और वो कंपनी योजनाबद्ध रूप से अलग अलग रंग -रूप नाम से बदल होते हुए आज रिलायंस नेवल एंड इंजीनियरिंग लिमिटेड के नाम से जानी जाती है , मात्र 12 महीने के दरम्यान में इस कंपनी का नामकरण 5 बार अदल -बदल होता है।
कंपनीज एक्ट में हालांकि नाम भले 5 क्यों 50 बार बदला जा सकता है कोई गैरकानूनी कृत्य तो नहीं है लेकिन अपने आप में एक संदेह जरूर पैदा करता है – आइये इस समूह की नामकरण यात्रा पर एक नजर डाली जाए
1 पिपावा डिफेन्स एंड ऑफशोर इंजीनियरिंग कंपनी लिमिटेड ———-
2 पिपावा शिप डिस्मैंटलिंग एंड इंजीनियरिंग लिमिटेड ——-
3 पिपावा शिपयार्ड लिमिटेड
4 रिलायंस डिफेन्स एंड इंजीनियरिंग लिमिटेड
5. रिलायंस नेवल एंड इंजीनियरिंग लिमिटेड —— आज की तारीख में यह नाम है। साल 2015 से 2016 के बीच उपरोक्त नाम बदले गए है।
सिलसिला यहां से शुरू होता है , रिलायंस डिफेन्स नाम से पचासों कंपनीज वर्ष 2015 में बनाई गई -यह वो वक़्त था जब राफेल डील आदरणीय प्रधानमंत्री जी अंबानी के लिए करवा रहे थे।
1 रिलायंस इंजीनियरिंग एंड डिफेंस सर्विसेज लिमिटेड
2 रिलायंस एयरपोर्ट डेवेलपर्स लिमिटेड
3 रिलायंस डिफेन्स लिमिटेड
4 रिलायंस डिफेंस सिस्टम एंड टेक्नोलॉजी लिमिटेड
5 रिलायंस डिफेंस एंड एयरोस्पेस प्राइवेट लिमिटेड
6 रिलायंस डिफेंस टेक्नोलॉजीज प्राइवेट लिमिटेड
7 रिलायंस डिफेंस इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड
8 रिलायंस डिफेंस वेंचर्स लिमिटेड
9 रिलायंस डिफेंस सिस्टम प्राइवेट लिमिटेड
10 रिलायंस नेवल सिस्टम लिमिटेड
11 और इस तरह के मिलते जुलते नाम से और भी पचास कंपनीज उपलब्ध है जिनका वजूद सिर्फ कागजों में ही है और जाहिर है इनका प्रयोग सिर्फ एक अकाउंट से दूसरे अकाउंट में पैसे घुमाने और रिश्वत के पैसे एडजस्ट करने -काले धन को सफ़ेद करने का ही मकसद है। उपरोक्त सब कम्पनीज नाम में भारी -भरकम है लेकिन उनकी कैपिटल शायद ही किसी की 5 लाख से ज्यादा हो –जिस कम्पानी की कैपिटल ही 5 लाख हो वह डिफेंस क्षेत्र में क्या व कितना काम कर रही होगी यह समझदार इंसान खुद सोच सकता है।
जो कंपनीज वास्तविक है वो है मौजूदा ;; रिलायंस नेवल एंड इंजीनियरिंग लिमिटेड ;; प्रथमदृष्टया इंटरनेट पर या मिनिस्ट्री ऑफ़ कॉर्पोरेट अफेयर्स की वेबसाइट पर देखेंगे तो पता चलेगा कि 1499 करोड़ की कैपिटल है और 1997 से स्थापित है। अब 1997 के बाद कैसे मात्र एक साल 2016 में ही इसका नाम 5 बार बदला गया था –वो आर्टिकल की शुरू में ही बताया गया है की यह कंपनी अम्बानी ने खरीदी है रातो रात खुद को स्थापित किया है।
दूसरी वास्तविक कम्पनी है डस्सॉल्ट एयरक्राफ्ट सर्विसेज इंडिया प्राइवेट लिमिटेड जो 2012 में बनाई गई थी ,जिसके सभी निदेशक फ्रांस के है ,इस कंपनी का मुख्य काम डस्सॉल्ट समूह फ्रांस और भारत सरकार के बीच डील करवाना ,और यहां खुद के लिए कोई जॉइंट वेंचर ढूंढना। कंपनी का ऑफिस डिफेन्स कॉलोनी दिल्ली स्थित एक फ्रांस दूतावास अधिकारी के निवास का है ,जैसा मैंने वरिष्ठ खोजी पत्रकार नवनीत चतुर्वेदी ने वहां मालूम किया।
तीसरी वास्तविक कंपनी है जो 23 सितम्बर 2016 को भारत सरकार एवं डसाल्ट समूह फ्रांस के बीच रक्षा सौदे 36 राफेल जहाज का अनुबंध होने के बाद 10 फरवरी 2017 को 60 करोड़ की कैपिटल के साथ ;; डस्सॉल्ट रिलायंस एयरोस्पेस लिमिटेड ” जहां सितम्बर 2017 में महाराष्ट्र नागपुर के समीप इस कम्पनी की आधारशिला रखी गई ,भूमि पूजन हुआ -आधिकारिक रूप से यह कंपनी फ्रांस के डस्सॉल्ट और इंडिया के रिलायंस के बीच हुआ जॉइंट वेंचर है –जो फ्रांस की कम्पनी डस्सॉल्ट और भारत सरकार के रक्षा सौदे में आधिकारिक कंपनी है।
उपरोक्त 3 वास्तविक कंपनियों के अलावा जो भी है वो सब शैल कंपनियां है ,,जी वही शैल कंपनियां जिसका दावा प्रधानमंत्री मोदी करते है कि उन्होंने 3.46 लाख शैल कंपनियां बंद करवा दी –जिसकी लिस्ट खुद मिनिस्ट्री ऑफ़ कॉर्पोरेट अफेयर्स के पास नहीं है कि कब ये लाखों कंपनियां बंद हो गई लेकिन प्रधानमंत्री जी के मुंह से एक बार 3.46 लाख शैल कंपनियां बंद करवा दी यह शब्द निकल गया तो वही सत्य माना जायेगा जैसा अब का रिवाज चल निकला है।
उपरोक्त सब शैल कंपनियों और उक्त तीनों वास्तविक कंपनीज में एक अमेरिकी शख्श कॉमन है वह है ” अंथोनी जेसुडासन ” और दूसरा कॉमन शख्श है अनिल अंबानी।
अब बात आती है उस पहली वास्तविक कंपनी रिलायंस नेवल एंड इंजीनियरिंग लिमिटेड वह क्यों बनाई गई –वास्तविकता यह है कि इस कम्पनी को बनाने और खड़ा करने की जिद्द की कीमत भारतीय बैंको ने चुकाई है 15000 करोड़ रूपये की चपत से ,, एक कम्पनी एबीजी शिपयार्ड लिमिटेड जो 1974 से भारत में नौसेना व तटरक्षक दल के लिए जहाज ,बोट और अन्य युद्धक संचार उपकरण बनाती आई है उस कम्पनी का 22000 करोड़ का टेंडर सर्वप्रथम निरस्त किया गया , रिलायंस समूह के इशारे पर और यह कम्पनी बैंकरप्ट हो जाने को मजबूर किया गया , अंततः जून 2016 में यह कम्पनी बैंक्रप्ट हुई ,सरकारी बैंको का 15000 करोड़ यहां रिलायंस के फायदे के लिए डुबो दिया गया , अब यही कम्पनी रिलायंस समूह कौड़ियों के दाम में नेशनल कॉर्पोरेट लॉ ट्रिब्यूनल से खरीदने की प्रक्रिया में है और इसी कम्पनी के पुराने कर्मचारी अधिकारी आज कल रिलायंस समूह में देखे जा रहे है। यह फ़िल्मी किस्सा भले लगता हो ,पर हकीकत है जिसको कोई भी आदमी एबीजी शिपयार्ड के चेयरमैन ऋषि अग्रवाल से सुन सकता है।
अब बात आती है सबसे महत्वपूर्ण जैसा सोशल मीडिया में भगत समुदाय #मोदास वर्ग कह रहे है कि यह दो सरकारों के बीच हुआ सौदा है यहां कोई घोटाला सम्भव नहीं ,,उन मुर्ख भगत समुदाय की जानकारी के लिए डस्सॉल्ट समूह फ्रांस का एक निजी उपक्रम है -जैसे हमारे यहां के अंबानी अडानी वैसे ही ,,डस्सॉल्ट कोई फ़्रांसिसी सरकार की कम्पनी नहीं है ,जो सौदा हुआ है वो भारत सरकार और डस्सॉल्ट एक निजी कम्पनी के मध्य हुआ है।
अन्य महत्वपूर्ण बात जैसा पिछले दिनों हो -हल्ला मचा था कि आखिर 36 राफेल की वास्तविक कीमत क्या है !!! इस आर्टिकल के लेखक व पत्रकार नवनीत चतुर्वेदी के पास उपलब्ध दस्तावेज साफ़ साफ़ बताते है कि क्या है कीमत –उसका खुलासा पब्लिक डोमेन में कब कैसे किया जा सकता है उस पर उचित क़ानूनी सलाह के बाद वो बता पाएंगे।
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सिकंदर हयात • 5 hours ago
Girish Malviya
4 hrs ·
Hemant Malviya की वाल से
सेवा में,
क्षेत्रीय प्रबंधक महोदय
इलाहाबाद बैंक
कानपुर, उत्तर प्रदेश
विषय : बाद मे सादी ओर पहिले रोजगार करने के लिए…
योजना का नाम : ‘तलेगा इंडिया तभी तो पलेगा इंडिया’ के तहत पकोड़े व्यापार हेतु ऋणप्राप्ति आवेदन
मान्यवर, जय श्री राम !
निवेदन के साथ सूचित करता हूँ की हम ही आपके मोहल्ले के ऐकमात्र एम बी.ए. पास बेरोजगार सुदर्शनं बाहुबली युवक है !… पिछली बार मोहल्ले की कांवड़य़ात्रा हम ही आयोजित कराये थे .. वही ज़िसमे dj के पिछवाडे पे फायरींग हुए थी .. नहीं आपको पता न हो तो … आपकी बिट्टी से ही पुछा लिजियेगा उसी के चक्कर मे तो पुरा बावेला कटा था .
हा तो आगे आपसे निवेदन ये हैं ! कि यू तो हमने मोदी योगी भक्त व्हाट्सएप यूनीवरसिटी से पब्लिक चीटर ओंनली मोदी रिपीटर भक्ती ट्रेण्ड में डिप्लोमा भी कर रखा है। और फिलहाल हम मोदी जी की स्पीच सूनकर बेहद प्रभावित है… तो हम भी मेक पकोडा इंडिया योजना के तहत… ‘तलो पकौड़ा बनो फ़कोडा’, उद्योग के माध्यम से अपनी शिक्षा एवं बाहुबल के अनुभव का सदुपयोग कर आपकी बिट्टी से सादी बनाना चाहते है…. किन्तु हमारी इस चाह में धन की कमी एक व्यवधान बन गयी है।
पर चुकि हम एक योग्य ओर स्वभिमानी कर्मठ युवक है …अतः हमारी योजना है की हम अपने घर से थोड़ी दूर स्थित मैकडोनाल्ड डॉमिनोज वालो के बाजू मैं एक छोटी सी पकोडी की कढाई स्थापित कर ले … बाकी नगर निगम प्रसासन मे अपने जीजाजी अल्डरमन है वो माल के बाजू वाली गुमटी की बात जमा दिये है
आप निश्चिंत रहे ओर हम पे भरोसा रखे.. बाकी इस आवेदन के साथ हम अपने सारे सम्बद्ध कागजात की प्रतिलिपियाँ मे अपने हाथो के आपके लिए स्पेशयल बनाये स्वादिष्ठ मूंग दाल बेसन भजिये पकोड़े और समोंसा भेज रहे है और साथ मे स्वयं हमारे हाथ से तली मिर्चे ओर ईटा से पिसी पुदीने की हरी चटनी भी है ! एक बार खाएंगे तो बार बार पछताएंगे ..
तो बहरहाल मामला यू है कि हमारे राष्ट्र की तरक्की ओर विकास के लिये जल्द से जल्दी हमरे आवेदन को फ़टाफट ok मंजूरी दे देवे…
वरना आंटी जी रोज आपकी बिट्टी के साथ वोडाफोन वारे ‘पग’ को घुमाने मुताए लाने हमरे घर के आगे से ही रोज पार्क मे आती जाती है | खैर थोड़ा ही लिखे है.. समझ लिजियेगा | बाकी एक बार बस अपनी दुकान चल जाये फिर अपने बुऊजी को आपके घर भेजेगे ,….देख लिजियेगा …..का समझे ?
अतः आपसे विनम्र निवेदन है की नियमानुसार ही सही एक हमार बनाये पकोड़े टेस्ट कर यथासंभव आसान किस्तों पर हमें मुद्राऋण प्रदान करने की कृपा करें। क्योकि जब
तलेगा इंडिया, तभी तो पलेगा इंडिया ! बाकी हम हमारे दहेज मे पटा लेंगे
धन्यवाद।
भवदीय
छुट्टन कुमार पाण्डे
बी-ब्लॉक 210/3
हेमंत मालवीयजी का बाडा
कानपुर, उत्तर प्रदेश।