सिकंदरहयात
26 जनवरी को एक रिश्तेदार आये हुए थे वेस्ट यु पि के रहने वाले , सरकारी कर्मचारी समाज में खासा प्रभाव इज़्ज़त पैसा पढ़े लिखे सब कुछ उनसे बात हो रही थी तब एकतरफ पढ़ रहा था की कैसे संघी और भाजपाई भेड़िये कासगंज में दंगा करवा रहा था रोहित सरदाना और श्वेता सिंह जैसे लोग कैसे अपनी तरक्की के लिए लोगो को और दंगे के लिए उकसा रहे थे उधर इस सब से बेखबर हमारे रिश्तेदार बता रहे थे की वेस्ट यु के एक अच्छे खासे शहर में ठीक बस अड्डे के पास जहा जमीन के दाम सर्वाधिक होते हे उन्होंने अपनी सौ गज़ जमीन मस्जिद के लिए दे दी और आस पास की भी जो उनके दोस्तों की थी वो भी दिलवाने की बात कर रहे थे में सुनकर सोचने लगा की हमारी जानकारी शायद ही कही वेस्ट यु पि में ऐसा हो की मस्जिदों की कोई कमी हो ऐसा कम से कम मेरी जानकारी में तो नहीं हे मेने उनसे कहने की कोशिश की जिसका उन पर कोई असर नहीं हुआ की फिलहाल नयी मस्जिदों की जगह अगर वो किसी क्लिनिक के लिए जगह देते कोई प्याऊ खुलवा देते या उस जमीन को बेचकर पैसा उनके अपने इलाके के दलित नेता चंद्र शेखर की रिहाई में खर्च करते या रिहाई मंच को देते या आप को देते या कम्युनिस्ट पार्टियों को देते विभिन्न गाँधीवादी उदारवादी लोगो को देते उन नए मिडिया समूहों को देते जो जो इस ज़हरीली कम्युनल सरकार से झूझ रहे हे तो क्या ये भी आज जरुरी नहीं हे एकतरफ संघी दौलत के ढेर पर बैठे हे दूसरी तरफ क्या भूखे पेट और बिना जमानत और वकील के जेल में सड़ सड़ के लोग मोदी और भाजपा से जूझेंगे———————– —————— ?
एक अकेला प्रशांत भूषण किस किस का केस लड़ेगा मेरी बातो का हमारे रिश्तेदार पर कोई असर नहीं हुआ वो अपने फैसले पर बेहद खुश थे चेहरे पर चमक थी तसल्ली थी की उन्होंने बेहद सवाब का काम किया हे ठीक भी हे मगर क्या उनकी और उनके जैसे पैसे वाले मुसलमानो की क्या कुछ और जिम्मेदारी नहीं हे क्या अरुन्धन्ति ने अपने पास से जिग्नेश मवानी को पैसा नहीं दिया नतीजा एक हिन्दू मुस्लिम एकता का समर्थक और दलितों को मुसलमानो के खिलाफ इस्तेमाल करने की भजपाई नीति को कमजोर करने वाले नेता का उदय नहीं हुआ ————— ? क्यों नहीं पैसे वाले मुसलमान ऐसा क्यों नहीं करते हे में जानता हु की ये बात बहुत से लोगो को बहुत ही बुरी लगेगी मगर में साफ़ कहता हु की अब आपको ये करना ही करना होगा वार्ना इस्लाम इंसानियत और इण्डिया के , इण्डिया के सविधान सेकुलरिज्म के हत्यारे दिन पर दिन और भी अधिक ताकतवर होते जाएंगे आपके बच्चो का आपके देश का भविष्य खतरे में हे हमारी अपील हे पुरे मुस्लिम समाज से उस मुस्लिम समाज से जिसमे पैसे वाले लोगो की इतनी कमी भी नहीं हे जितनी दर्शायी जाती हे बहुत हे बहुत पैसा हे लोगो को धार्मिक और उपभोक्ता वादी गतिविधियों पर खूब खर्चा करते देखा जा सकता हे एक सेकड़ो बीघा के जमींदार मुस्लिम परिवार के पड़ोसी ने मुझे बतया की हर साल उमरा को जाते हे और हर साल नयी गाडी लेते हे ——————— ? उन्हें और सबको समझना होगा बहुत बड़ा खतरा मंडरा रहा हे उस खतरे से निपटने के लिए पैसा चाहिए होगा इसलिए आपसे अपील हे की अब आगे मज़हबी गतिविधियों के लिए कुछ कम और सेकुलर लोगो और सेकुलर लोगो की गतिविधियों के लिए पैसा अधिक खर्चना शुरू करे !
मुस्लमान भले ही अपनी बदहाली का रोना रोये लेकिन ना तो पैसे वाले मुसलमानो की कोई कमी हे ना ही ऐसा हे की वो और आम मुस्लिम भी धार्मिक गतिविधयों पर अच्छे खासे पैसा खर्च ना करता हो मगर अब कम से कम आज इस बात को समझे की मस्जिदों में कई कई ऐ सी और मार्बल लगाने नयी नयी मस्जिदों और मदरसों के लिए पैसा खर्च करने बार बार हज और उमरा करने बकरीद पर लाखो लाखो के बकरे लेने मज़ारो दरगाहो पर बड़े बड़े चढ़ावे चढाने बड़ी बड़ी धार्मिक सभाये करने पर अल्लाह के वास्ते कम से कम फ़िलहाल जब तक देश पर से मोदी नामकी आफत पूरी तरह से टल नहीं जाती हे तब तक मुसलमान धार्मिक गतिविधयों पर पैसा खर्च करना कुछ तो कम करे मुशायरो पर शायरों पर भी क्या खूब पैसा लुटाया जाता हे शायद एक साधारण शायर कैसे करोड़पति हो गया ——– ?
मुसलमानो को समझना होगा की इस्लाम इंसानियत और इण्डिया पर कैसा खतरा मंडरा रहा हे और कैसे उस खतरे से निपटा जा सकता हे उसमे पैसे का क्या रोल हे कासगंज के दंगो ने एक बात साफ़ कर दी हे की संघी और भाजपाई नेता खुनी भेड़िये बन चुके हे ये सब लोग पागल हो रहे हे इन्हे पागल किया हे गुजरात दंगो का फायदा उठाकर पी एम् तक बने मोदी की कामयाबी ने लेकिन यही बस नहीं था देश के सबसे बड़े राज्य तक में भी एक ऐसे ही आदमी के हाथ में सत्ता आ गयी जिसकी लोकप्रियता की वजह से सिर्फ दंगे और भड़काऊ गतिविधिया रही हे इसके बाद से तो संघी ब्रिगेड में पागलपन सा सवार हो गया हे हर संघी और भाजपाई नेता जैसे आज हर समय दंगे करवाकर मोदी योगी की तरह अपना कॅरियर चमकाना चाहता हे पत्रकार अभिषेक श्रीवास्तव लिखते हे की ये परवर्त्ती गली मोहल्ले के बेरोजगार लड़को तक में फैला दी गयी हे ” Abhishek Srivastavaकल रात तक अपनी समझ पर बीस परसेंट शंका थी। आज साफ हो गयी जब मृतक नौजवान चंदन के एक अनन्य मित्र ने भारी मन और भरी आंखों से बताया, “भैया, आप नहीं जानते यूपी का हाल। जब से मोदीजी ने नेतानगरी को एक फुलटाइम काम कहा है, यहां की हर गली में हर लौंडा मोदी बनने की इच्छा पाल बैठा है। कासगंज के हर मोहल्ले से एक मोदी निकल रहा है।”यह युवा भाजपा का समर्थक है, चंदन जैसे लड़कों का बौद्धिक संरक्षक और बीटेक पास है। अंग्रेज़ी बोलता है। मॉडर्न है। चंदन को शहीद मानता है लेकिन इस शहादत के पीछे हर लड़के के मन में पनपी नेता बनने को ख्वाहिश को ज़िम्मेदार मानता है। ये लड़का आजतक की कवरेज को सही मानता है लेकिन ABP News को दुश्मन। आज इसी तरह के लोगों ने पंकज झा का जीना हराम किया हुआ है और पूरे पुलिस बल और आरएएफ के सामने ABP की ओबी वैन को उठा लिया और बोनट खोल दिया। ”
ऐसा नहीं हे की देश में सेकुलर हिन्दू सेकुलर ताकते और कोई कम हो गए हे या इतने कमजोर हो गए हे की हर समय दंगो की फ़िराक में घूम रहे इन संघी और भाजपाई भेडियो से भिड़ नहीं सकती हे उन्हें हरा नहीं सकती हे मगर ऐसा लगता हे की पैसा बहुत बड़ी समस्या हे इन लोगो के पास तो पैसा ही पैसा हे उसी पेसो की खनक से मिडिया का एक बड़ा हिसा भी दंगाई हो चुका हे जबकि लिबरल सेकुलर ताकतों के हिस्से का पैसा आज गायब दिखता हे ऐसा लगता हे की वो सारा पैसा खासकर कोंग्रेसी करप्ट खा गए हे इसी कारण लिबरल सेकुलर खेमे में इतनी शिथिलता आ गयी हे आख़िरकार हर काम को करने को पैसा तो चाहिए ही चाहिए होगा वो पैसा मुसलमान भी दे सकते हे खासी मदद कर सकते हे इसलिए बात को समझिये या तो मज़हबी गतिविधियों के साथ ही साथ नहीं तो मज़हबी गतिविधियों में होने वाले खर्च में कटौती करके मुसलमान खासकर पैसे वाले मुसलमान उदार सेकुलर न्यायप्रिय ताकतों की लोगो की पहचान करे उन्हें पैसा दे नहीं तो मोदी और भाजपा के इरादे बेहद भयंकर लग रहे हे कासगंज की घटना साफ़ बताती हे की भाजपाइयों को लाशो पर चढ़ कर सत्ता में बने रहने की खफ्त सवार हो गयी हे ये लोग किसी भी हद तक जा सकते हे दंगा गृहयुद्ध इनके लिए कोई बड़ी बात नहीं हे मुसलमान अगर आज सेकुलर ताकतों को पैसा सपोर्ट नहीं देंगे तो वैसे भी कल को आपका बहुत ज़्यादा नुकसान होने के आसार हे इसलिए देर ना करे सभी उदारवादी ताकतों की सहायता करे ध्यान दे समय दे पैसा दे और ये भी याद रहे की पैसा किन्ही मुस्लिम तंजीमो को नहीं बल्कि शुद्ध सेकुलर लोगो और कामो को ही दे !
अरुण पूरी खेर हे तो एक ———— , मगर फिर भी एक साख रही हे उनकी अंजना ओम—– मोदी श्वेता सिंह जेसो तक भी एक हद थी मगर एक दंगाई को आखिर क्यों उन्होंने लिया हुआ हे कोई राज़ हे क्या , खुदा न खास्ता देश के ” असली गृहमंत्री ” का इस सबमे कोई हाथ हे सरदाना इतने खुलेआम लुच्चेपन पर कैसे उतरा हुआ हे क्या इसे पता हे की इसकी खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं होगी — ? ऐसा कहा जा रहा हे की भाजपा की चुनावी मीटिंग में भी देश के ” असली गृहमंत्री ” मौजूद हे . क्या सरदाना दंगाई के सर पर भी देश के इन्ही असली गृहमंत्री का तो हाथ नहीं हे असली सरकार तो वैसे भी इन्ही ढाई लोगो की बताई जाती हे मोदी शाह और असली गृहमंत्री , रविश को ये मुद्दा सही लगे तो ध्यान दे —– ? ————————————————————————————————————————————————————————————-https://www.youtube.com/watch?v=FCpWm16OkfE Shashi Bhushan
17 hrs · एक ही चैनल पर दो तरह की रिपोर्ट…कासगंज हिंसा को लेकर आजतक पर रोहित सरदाना ने जो कहानी बताई उसे उसी आजतक के रिपोर्टर ने सिर के बल खड़ा कर दिया. क्या सरदाना स्टूडियो में बैठकर फंतासियां गढ़ रहे थे?Shashi Bhushan
Yesterday at 13:21 · Abvp के भगवा सह तिरंगा सह दंगा यात्रा में शामिल रहे चंदन गुप्ता के परिजनों को टैक्सपेयर के धन से 20 लाख देने से अच्छा होता कि उसके पिता को फूलपुर या गोरखपुर से abvp के पितृ पार्टी भाजपा से लोस उपचुनाव में टिकट दे दिया जाए….!संघवीर चंदन गुप्ता को यह सच्ची श्रद्धांजलि होगी..! —————————————————————————————————- —————————————————————————- ” Dilip C Manda8 hrs ·
रोहित सरदाना तो नौकरी कर रहा है. जो करने को कहा जाएगा, करेगा. कल मालिक के कहने पर कांग्रेस जिंदाबाद भी करेगा.
सवाल यह है कि India Today ग्रुप के मालिक अरुण पुरी अपने कर्मचारी रोहित को दंगाई बनने की इजाजत क्यों दे रहे हैं? रोहित की हरकतों से समाज में जो कटुता फैल रही है, उसका जिम्मेदार कौन है?अरुण पुरी को क्या हो गया है? अब कौन सा मुकाम बाकी है, जिसके लिए ऐसे समझौते करने पड़ रहे हैं? इतने साल की कमाई हुई प्रतिष्ठा इस तरह मिट्टी में मिलाई जाएगी क्या?Dilip C Mandal8 hrs · जिस संपादक ने रोहित सरदाना को टीवी में पहली नौकरी दी थी, उनके दर्द को कौन समझ सकता है. उन्हें क्या मालूम था कि रोहित में इतना जहर भरा है. रोहित तब बेहद मासूम बनकर उनके पास आया होगा.
चूंकि मैं उस संपादक को जानता हूं, इसलिए उस दर्द को महसूस कर सकता हूं. अगर उन्हें पता होता कि रोहित की हरकतों से आगे चलकर समाज टूटेगा, तो रोहित को वह नौकरी कतई न मिलती.रोहित की हरकतों से लोगों के मन में नफरत भर रही है. इस दुष्कर्म का बोझ लेकर रोहित पता नहीं क्या बनना चाहता है.
वह एक सम्मानित पत्रकार तो कभी नहीं बन पाएगा. हद से हद उसकी हैसियत उस बंदर की होगी, जिसके बनाए पुल पर चढ़कर सेना ने लंका की ओर प्रस्थान किया था.
इतिहास तो राजा का होता है, बंदरों का इतिहास नहीं होता. रोहितों का इतिहास में कोई जिक्र नहीं होता.
रोहित पत्रकारिता का तोगड़िया बनेगा और आखिर में रोएगा. लेकिन यह होने तक समाज को इसकी कीमत चुकानी होगी.
इतनी कड़वाहट क्यों बो रहे हो रोहित? हो सकता है कि निजी जीवन में तुम या तुम्हारे परिवार का कोई दर्द हो. कोई शिकायत हो. लेकिन मासूमों के घर जलाकर उसकी कीमत वसूलोगे क्या?
आज तक के संपादक रोहित को इतना जहर बोने क्यों दे रहे हैं? उन्हें ही क्या हासिल हो जाएगा? गाड़ी की लंबाई चार इंच बढ़ भी गई तो क्या? कौन देखता है, कौन जानता है, कौन पूछता है?
टीआरपी की वासना में लोगों की जान चली जाएगी. ”——————Sadhvi Meenu Jain12 hrs · कमला: अरी विमला, तेरे बेटे ने अंगूठा चूसना कैसे छोड़ा?विमला: कुछ खास नहीं,
एक ढीली चड्डी पहना दी,अब पूरा दिन दोनों हाथों से चड्डी संभालता है।
*शिक्षा ,स्वास्थ्य , रोजगार,पेट्रोल , मंहगाई का अंगूठा छुड़वाने के लिए आजकल युवा बेरोजगारों को 7-7.5 विकास-दर/GDP, गाय ,गोबर ,पद्मावत ,राष्ट्रवाद की ढीली चड्डी पहना दी गई है।*…….स्रोत : अज्ञातSadhvi Meenu Jain
20 hrs · लीजिए, यशवंत सिन्हा ने बिस्मिल्लाह कर दिया ‘राष्ट्रीय मंच ‘ की घोषणा मोदी सरकार की नीतियों के खिलाफ ।Jagadishwar Chaturvedi
11 hrs · Tabrez Shams के टाइम लाइन से साभार-
छिपकली रातभर हजारों कीड़े-मकोड़े खाकर सुबह होते ही महापुरुषों की तस्वीर के पीछे छिप जाती है, यही चरित्र भारत मे BJP नेताओं का है।————–Rajiv Nayan Bahuguna Bahuguna
6 hrs · Dehra Dun ·
बरेली के कलेक्टर राघवेंद्र विक्रम कुमार सिंह का ताजा लेकिन विवादित वक्तव्य एक कर्तव्य निष्ठ नौकरशाह की कसौटी पर खरा उतरता है । उन्होंने छद्म राष्ट्र भक्ति का आवरण ओढ़ समाजिक सौहार्द्र का ताना बाना छिन्न भिन्न करने वाले दंगाइयों , असामाजिक तत्वों को ललकारा । बस , इसी से वे भगवा ब्रिगेड की आंखों में किरकिरी बन गए ।
मैं बार बार कहता हूं कि प्रशासनिक सेवाओं के अधिकारी किसी डीएम , सीएम या पीएम के प्रति नहीं , अपितु भारतीय संविधान के प्रति उत्तरदायी होने चाहिए । दुर्भग्यवश यदि कोई बहादुर ब्यूरोक्रेट इस राह पर चलता है , तो उस पर चहुं दिशि बौछारें पड़ना शुरू हो जाती है । लेकिन फिर भी ईमानदार नौकरशाहों को अपनी टेक नहीं छोड़नी चाहिए ।
एक संस्मरण । भजन लाल केंद्रीय पर्यावरण मंत्री थे , और टी एन शेषन पर्यावरण सचिव । भजन लाल ने अनुचित तरीके से सचिव पर एक उद्योग को पर्यावरण क्लीयरेंस देने का दबाव डाला । शेषन ने मना किया । फिर भजन लाल ने लिखित आदेश कर फाइल भेजी । शेषन ने उस फाइल पर नोट लिखा ,:-
माननीय मंत्री जी ,
यह काम नहीं होगा , यह काम नहीं होगा
यह होगा , तो आपका शुभ नाम बदनाम होगा ।
अस्तु ।—————–असली सहनशीलता तो ‘राष्ट्रवादी’ युवाओं में है। सरकार ने केंद्र सरकार के लगभग चार लाख पदों को बरसों खाली रखने के बाद उन्हें समाप्त करने की भी तैयारी शुरू की दी, लेकिन ये युवा चुप रहेंगे। उन्हें एक भव्य राष्ट्र दे दिया गया है जिसमें न भूख लगती है न प्यास। न ही इस राष्ट्र में कोई बीमार पड़ता है। न फ़ीस भरने की चिंता है न अस्पताल में इलाज कराने की।
-सुयश सुप्रभ————–Awesh Tiwari
21 hrs · Raipur ·
साथी अभिषेक श्रीवास्तव की यह लाइव रिपोर्ट और इसमें शामिल तथ्य यह साबित करते हैं कि कासगंज में माहौल खराब होने की सूचना 26 जनवरी से 6 दिनों पहले ही यूपी पुलिस , जिला प्रशासन और राज्य सरकार सभी को थी| यह रिपोर्ट बताती है कि फेसबुक पर भगवा ब्रिगेड क्या क्या खेल कर रही है| यह पोस्ट यह भी बताती है कि अगले लोकसभा चुनाव तक इस तरह के दंगे बार बार हों तो नहीं चौकना चाहिए , जल रहे कासगंज से यह रिपोर्ट पढना हम सबकी जिम्मेदारी है |————Dilip C Mandal
3 hrs ·
ब्राह्मण आतंकवादी कैसे होते हैं?
सावरकर की प्रेरणा थी. पता नहीं कैसी प्रेरणा थी. चितपावन तेज से चमचमाता नाथूराम गोडसे मारने को जिन्ना को भी मार सकता था. वैसे तो पास में पिस्तौल थी, तो किसी अंग्रेज को भी मार सकता था.
लेकिन नहीं,
आजाद भारत के पहले आतंकवादी चितपावन ब्राह्मण नाथूराम ने मारा किसे? डेढ़ पसली के एक बूढ़े को, जो ऐसे भी मरने ही वाला था. उस बूढ़े को, जिसकी पूरे देश में कोई सुनने को तैयार नहीं था. जिससे किसी का कुछ बन या बिगड़ नहीं रहा था.
नाथूराम ने उस बूढ़े को मारा, जिसके पास देश का एक सपना था. कैसा सपना था, यह और बात थी. लेकिन एक सपना तो था ही गांधी के पास. इस नाते वे सम्मान के हकदार तो हैं ही.
बाबा साहेब ने पूरे जीवन में संघियों से बात नहीं की, लेकिन गांधी के साथ लंबे डायलॉग में गए. गांधी इस काबिल थे कि उनसे बात की जाए. हेडगेवार और गोलवलकर कभी इस काबिल नहीं माने गए, कि उनसे बातचीत की जाए. बेहद नीच विचार थे उनके. उनके सपनों में भारत है ही नहीं. एक ब्राह्मण राष्ट्र है, जहां बाकी हिंदू गुलामी करे.
बहरहाल,
यह एक पुरानी परंपरा है. आरएसएस में मर्दानगी सिखाने और दंगे के लिए कलेजा मजबूत करने के लिए मुर्गे का सिर काटने का रिवाज है. भीष्म साहनी की किताब तमस में आपने पढ़ा होगा और टीवी सिरियल में आपने देखा होगा.
ये किसी कमजोर के लिए ही शेर हैं. मुर्गा मारकर कलेजा मजबूत करते हैं.
—-Satyendra PS
11 hrs ·
ये एक और एंगल सामने आया कि फेसबुक पर हिन्दू और मीयां लौंडो के बीच लाउडस्पीकर को लेकर बवाल चल रहा था, जिसने 26 जनवरी तक दंगे का रूप ले लिया।
इसके पहले एक और कहानी चली कि गर्ल फ्रेंड को लेकर चन्दन गुप्ता और किसी सोनकर में बवाल था और मौका पाते ही सोनकर ने गुप्ता को ठोंक दिया।
एक सूचना यह भी आ रही है कि दंगे में गिरफ्तार 122 लोगों में 60 मुस्लिम और 62 ओबीसी हैं।
ये अंग्रेजों को नहीं, मासूम बुड्ढे को मारकर बहादुरी दिखाते हैं.————
क्या दंगाई भेड़िये सरदाना को बाकायदा किसी साज़िश के तहत आजतक में भेजा गया हे क्योकि छी न्यूज़ में तो तिहाड़ चौधरी के साथ था और समझदार लोगो ने कब का छी न्यूज़ देखना बंद कर रखा हे और दुसरो को भी छी न्यूज़ से दूर रहने को कह रखा था बाकी इण्डिया टीवी और रजत तो हे ही इनके क्या ये सोचा गया की एक ही जगह दो दो भेड़िये तिहाड़ी और सरदाना का क्या फायदा ————- ? इसलिए दंगाई सरदाना को दूसरे चेनेल में फिट किया गय ? क्या देश के असली गृहमंत्री और शायद असली विदेशमंत्री भी जो बेहद शार्प हे और उनके कुछ वीडियो से ये भी लगता हे की वो दिल से टूनेशन वादी हे क्यों वो ये सब कर रहे हे ——————————- ?————————————”Abbas Pathan3 hrs · देखिये आपने कैसा मुख्यमंत्री चुना है। 8 साल इंडियन आर्मी में सेवाए दे चुके डीएम विक्रम सिंह ने हुड़दंगियों के लिये एक 39 शब्दो की फेसबुक पोस्ट क्या लिख दी ये बंदरो को मूंगफली खिलाने वाला मुख्यमंत्री डीएम को फटकारने लगा और यही नही रुका, डीएम को तलब भी कर लिया मानो उन्होंने कोई नफरत भड़काने वाली बात कर दी हो। जब हुड़दंगियों के विरुद्ध डीएम को नही बोलने दिया जा रहा तो एक साधारण से पुलिस कर्मी की हैसियत ही क्या है।
कासगंज हिंसा के चलते वहां का सांसद खुल्लम खुल्ला “हमारे तुम्हारे लोग” टाइप भाषण देकर पूरे प्रदेश को दंगो में झोंकने का प्रयास कर चुका है, उस समय इस भगवे मुख्यमंत्री की जुबान पेट मे गिर गयी थी। अति संवेदनशील और भड़काऊ बयान इसी की सरकार में आते रहे, कभी फटकार नही लगी। सोचिये यदि प्रदेश में सांप्रादायिक हिंसा होती है तो क्या सिर्फ हिन्दू मुस्लिम मरते है? नही.. उस समय वो बच्चे भी मरते है जिन्हें पता नही होता कि आखिर धर्म किस टँटे का नाम है। किसी मज़दूर की मज़दूरी मारी जाती है जिसका धर्म दो रोटी है। भारत मे ऐसे करोड़ो लोग है जिनकी जिंदगी का सबसे बड़ा फ़र्ज़ उनके बच्चो के पेट मे शाम का निवाला डालना है। दंगो की पृष्ठभूमि उठाकर देखिये आपको मिलेगा की एक 80 वर्षीय बुज़ुर्ग पुलिस के कदमो की आहट सुनकर खौफ से मर गया, उसे लगा दंगाई आ गए। बस सोचकर देखिये गली के बाहर मुट्ठीभर सुरक्षा कर्मी खड़े है और घरों में चंचल से बच्चे नजाने कौनसी अनहोनी के डर से दुबके हुए बैठे है। उन औरते की तस्वीर जहन में लाइये जो हाथों में तस्बीह मालाएं लिए ईश्वर से अमन की प्रार्थना कर रही है।
किसी चौराहे पे जाकर वहां खड़े मज़दूरों से पूछिए की भारत की राजधानी कौनसी है वो नही नही बता पाएंगे, उनका एकमात्र लक्ष्य दिहाड़ी निकालना होता है। देशभक्ति के सारे परीक्षण झुग्गी झोपड़ियों में रहने वाले गरीबो पे आज़माकर देखिये, सब फेल हो जाएंगे। उन्हें आटे दाल का भाव पूछिये एक मिनट में बता देंगे, जनगण मन की एक लाइन नही गा पाएंगे।Abbas Pathan
10 hrs · अभी बरेली के डीएम विक्रम सिंह का टाइमलाइन देखा। उन्होंने वो पोस्ट डिलीट कर दिया जिससे अतिवादियों को खुजली मची थी। एक अन्य पोस्ट जिसमे उन्होंने अपने बयान से मज़बूरन पलटी मारी और साथ मे मुसलमानो को अपना भाई भी कह दिया।
राघवेंद्र विक्रम सिंह ने एक अरसे तक आर्मी में सेवाए दी है आज उन्हें ये दो कौड़ी के हुड़दंगी देशभक्ति सिखाते नजर आ रहे है। विक्रम सिंह ने खुद को बोटी बनाकर कुत्तो के झुंड में फेंकने का कार्य किया है। उत्तर प्रदेश में भगवे संघटनो ने पुलिस प्रशासन को अपनी रखैल बनाकर रख दिया है। पुलिस की हालत ये है कि धारा 144 और कर्फ्यू का पालन भी करना होता है और किसी भगवे हुड़दंगी को डंडा भी नही मार सकते। पुलिस के दोनों हाथों में अंगारे है। पुलिस को व्यवस्था भी संभालनी है और व्यवस्था बिगाड़ने वाले अराजक तत्वों को भी गुलाबी चमड़ी की भेड़ की तरह प्रेम से खदेड़ने का कार्य करना है। कल मथुरा में और आज आगरा में भारी पुलिस बल तैनात है।
इस बीच यदि कोई पुलिस वाला शहीद हो जाता है तो उसका धर्म पूछने वाला कोई नही होगा
यही आटे दाल का भाव अपने नेताओं को पूछिये वे नही बता पाएंगे। असुरक्षित आप है और आपका शहर है। इन जहरीले नेताओ की सुरक्षा में ब्लैक कमांडो फोर्स और एसपीजी जैसी सुरक्षा एजेंसिया लगी हुई। इन के टकले पे कव्वा भी बीट नही कर सकता और आपके हंसते खेलते घर मे अचानक से कयामत बरपा हो सकती है।
अगर बात नही समझ आ रही है तो जाइये, नुक्कड़छाप संघटनो में प्रवेश निशुल्क है।—————Sanjay Shraman Jothe
3 hrs ·
कबीर, रैदास, नानक, फरीद, बुल्लेशाह, जीसस, बुध्द, मुहम्मद -इन सबके अनुयायियों में अगर भाईचारा बन गया तो भारत निश्चित ही बच जाएगा।
सभी मित्र, संस्थाएं, मंच, समूह, संगठन इस प्रयास को अगर प्राथमिकता पर ले लें तो दंगा ब्रिगेड फिर से किसी बिल में घुस जाएगी।
हालिया दंगों और सँगठित षड्यंत्रों पर नजर डालिए, ये मुल्क बहुत गहरी रणनीति के तहत “हिन्दू पाकिस्तान” बनाया जा रहा है।
ये भयानक समय है।
अपने अपने स्तर पर सबको सक्रिय होना होगा।
और कुछ न कर सकें तो विभिन्न धर्मों जातियों के मित्रों के घर चाय ही पी आएं महीने में एक बार, दुसरीं बार उन्हें अपने घर बुलाएं।
शादी, जन्मदिन, सालगिरह, खतना, निकाह, ईद, दीवाली, होली इत्यादि पर प्रयास करके दस पांच मुसलमानों, ईसाइयों, दलीतों आदिवासियों, ओबीसी को आग्रह करके बुलाइये। घर मे बैठाकर दावत दीजिये। उत्सवों में शामिल कीजिये।
अब चुनाव और चुनावी दंगों का दौर आ रहा है। अगर आप आपस में संवाद बनाये रख सके तो आपको दंगों में कोई नहीं लड़ा सकता।
Sanjay Shraman Jothe
8 hrs ·
नॉन-वेजिटेरियन क्या होता है? क्या वो कभी वेज नहीं खाते? जिन्हें हम वेजिटेरियन कहते हैं असल मे उन्हें “नॉन-मीटइटर” कहना चाहिए।
“वेजिटेरियन” और “नॉन वेजिटेरियन” कहकर आप “गैर-मांसाहारियों” का सम्मान करते हैं, और “मांसाहारियों” का अपमान करते हैं।
इसी तरह “ब्राह्मण या सवर्ण” कुछ नहीं होता। बेहतर है ब्राह्मण और सवर्ण को “नॉन-बहुजन” की तरह देखा जाए।
जो लोग भारत की ओबीसी (यादव अहीर कुर्मी इत्यादि), दलित जैसी श्रमशील जातियों और अल्पसंख्यक मुसलमानों इसाइयों में इंसानों की तरह शामिल नहीं होे सकते उन्हें नकारात्मक संबोधन देना चाहिए।
सवर्ण, ब्राह्मण और नॉन-ब्राह्मण कहकर आप सवर्णवाद और ब्राह्मणवाद को ही मजबूत करते हैं।
आप अगर “बहुजन” और “नॉन-बहुजन/ गैर-बहुजन” की तरह देखते है तो आप बहुजन का सम्मान करते हैं, तब आप बहुजन भारत को मजबूत करते हैं।
आपके इलाके में दंगे न हों, ये जिम्मेदारी आपकी है। मिल जुलकर दंगे रोकिए।Sanjay Shraman Jothe
10 hrs ·
भारत के मुसलमान और इसाई इस बात को अपनी दीवारों पर लिख लें.
रविदास जयंती पर दंगा ब्रिगेड अपने सनातन काम में लगी हुई है. रविदास को “चंवरवंशी” बताते हुए मुग़लों और अन्य मुसलमानों के हाथों रविदास को सताने की कहानियां फैलाई जा रही हैं. व्हाट्सएप पर ऐसे संदेशों को बाढ़ आई हुई है. बताया जा रहा है कि रविदास वेदों को सर्वोच्च मानते थे और मुगलों से भिड गये थे.
दंगा ब्रिगेड ये भी बता रही है कि रविदास ने हिन्दू धर्म की रक्षा के लिए मुसलमानों से लोहा लिया था.
ये दलितों को ही नहीं बल्कि मुसलमानों और ईसाईयों को भी ध्यान से समझना चाहिए .दलितों का इस्तेमाल तो दंगों में हुआ ही है अब सिखों का इस्तेमाल भी मुसलमानों ईसाईयों के खिलाफ होने वाला है.
सभी मुस्लिमों और ईसाईयों को अब आँख खोल लेनी चाहिए. अगर वे दलितों, शूद्रों (ओबीसी) आदिवासियों और अन्य सभी पिछड़ी जातियों से भाईचारा बढाने में अगले दस साल में असमर्थ रहते हैं तो उनके भविष्य का कोई ठिकाना नहीं है.
भारत की सभी बहुजन आबादी और अल्पसंख्यक अगर एकसाथ एक मंच पर आकर अपनी राष्ट्रीयता और बहुजन भारत की घोषणा नहीं करते हैं तो यह देश पूरी तरह दंगों और नफरत की आग में जलने लगेगा.
अलग अलग राज्यों में कैसे नफरत और दंगे फैलाए जा रहे हैं इसे गौर से देखिये और आपस में हाथ मिलाते हुए अपनी पीढ़ियों को बचाने के लिए कमर कस लीजिये.Urmilesh Urmil
5 hrs ·
कासगंज में एक ‘तिरंगा यात्रा’ कैसे दंगा-यात्रा में तब्दील हो गई, यह पूरी दुनिया को मालूम हो चुका है! इसके बावजूद यूपी सरकार आगरा, फिरोजाबाद सहित कई शहरों-कस्बों में तिरंगा यात्रा निकालने की इजाजत क्यों दे रही है? अभी आज एक ऐसी यात्रा की तस्वीर देखने को मिली, जिसमें एक तिरंगा बहुत पीछे दिख रहा था। आगे-आगे सिर्फ बजरंग दल और वीएचपी के भगवा झंडे दिख रहे थे। उग्रता भरे तेवर में कुछ खास तस्वीरों के साथ उत्तेजक नारे भी लग रहे थे। ये घटनाक्रम बताते हैं कि सत्ताधारी दल और सरकार ऐसी दंगा यात्राओं के प्रायोजकों के दबाव में है या उन्हें सहयोग दे रही है। तो क्या इसे ‘खुला-खेल फरुखाबादी’ समझा जाय। संकेत साफ हैं कि अगला संसदीय चुनाव ‘दंगा-फसाद’, ‘हिंदू-मुस्लिम’ और ‘पाकिस्तान’ के सहारे लड़ा जाएगा! भारत के लोकतंत्र और जनता के साथ यह कितना बड़ा धोखा है! इस वक्त देश में खरबपतियों और बेरोजगारों, बेहद अमीरों और बेहद गरीबों, दंगाइयों और बेहालों की संख्या तेजी से बढ़ रही है! कुल मिलाकर एक देश के तौर पर हम लगातार एक खतरनाक दौर में दाखिल हो रहे हैं।————-Samar Anarya
5 hrs · Hong Kong ·
BJP’s General Stupidity Secretary Kailash Vaijayvargiya brought 5.9 Degree Celsius #earthquake in Noida, Delhi NCR etc? In Hong Kong its 7.1 Degree temperature, should I take shelter in some earthquake resistant shed?
भाजपा के राष्ट्रीय मूर्खता महासचिव कैलाश विजयवर्गीय 5.9 डिग्री सेल्सियस का भूकंप ले आये हैं। हांगकांग में तापमान 7.1 डिग्री चल रहा है, किसी भूकंप रोधी इमारत में शरण ले लूँ क्या? Samar Anarya
7 hrs ·
काश्मीर के डिप्टी ग्रैंड मुफ़्ती के भारत के मुसलमानों को नया पाकिस्तान बनाने का ज्ञान दिए 24 घण्टे के ऊपर हो गया और मुफ़्ती छुट्टा घूम रहे हैं! कश्मीर और केंद्र दोनों में बैठी भाजपा सरकारों की देशद्रोह तो छोड़िये, सादा एफआईआर करने तक की औक़ात न हुई!
काहे भाई? मुस्लिम बहनों की चिंता करते करते मोदी नया पाकिस्तान बनाने निकले भाइयों का भी तुष्टीकरण करने लग गया क्या? या फिर संघी दामादों- नक़वी खानों से कोई रिश्ता है मुफ़्ती साहब का कि छू नहीं सकते- बहन के घर का मामला है! कि असल में केजरीवाल सही हैं- ये दरअसल मनोरोगियों और कायरों की पार्टी है- गरीब निहत्था मिले तो चढ़ बैठो, मुफ़्ती टाइप जनता मिले तो मुँह में दही जमा लो! कि इंतज़ार कर रहे हैं कि दोस्त नवाज़ शरीफ की पार्टी गिरफ्तार करवा के भेजेगी मुफ़्ती को- साल साड़ी दिए थे, चुकाना चाहिए न?
और भक्त सब किस बिल में छुपे हैं? सरकार कायर निकली तो खुदे जाकर धर लेते मुफ़्ती को- कि कासगंज ठीक है, कश्मीर में फटती है? आवाज़! निकलने से.Parmod Pahwa ऐसा भी तो हो सकता है कि मुफ़्ती से खुद ही कहलवाया हो। अब इस बात पर डिबेट्स होंगी और ध्रुवीकरण की कोशिश की जाएगी।
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Nazeer Malik
Yesterday at 08:46 ·
कासगंज दंगे के मद्देनजर अब तक 60 मुस्लिम और 62 हिन्दू समाज के लोग गिरफ्तार किये गए है। हिन्दू समाजके अरेस्ट किये गए लोगों में सारे के सारे पिछड़े और दलित है। इनमें द्विज हिन्दू कोई नही है।
इसी प्रकार गिरफ्तार मुसलमानों में एक भी द्विज यानी शेख, सैयद शमिल नही है। सारे लोग अंसारी मंसूरी आदि पिछड़ी जमातों के लोग है।
अक्सर साम्प्रदायिक दंगों में दोनों ही समाजों के पिछड़ी जातियों के ही लोग पकड़े जाते है, इन दंगों से अगड़ी जमातों के लोग दूर ही रहते हैं। मुंबई, गुजरात, अयोध्या आदि हिंसक घटनाओं में इनकीं मृत्यु और गिरफ्तारी के आंकड़े इसके गवाह हैं।
पिछड़ों को दंगाई बना कर अगड़ों द्वारा राजनीतिक लाभ उठाने की ये साज़िश आज़ादी के बाद से ही अमल में लाई जा रही है। दोनों ही धर्मो के पिछड़े अक्सर रोते हैं कि उन्हें आर्थिक, राजनीतिक भागीदारी नही मिलती। भैया काहे को मिलेगी भागीदारी? पहले आप अपने् को दंगाई मानसिकता की गुलामी से मुक्त तो कर लो।Nazeer Malik
31 January at 09:13 ·
कश्मीर के डेपुटी मुफ़्ती जो कुछ बोल रहे हैं वो भड़काऊ और भारत विरोधी है। एक हैं बाबर कादरी वो भी भारत के तमाम tv चैनलों पर ऐसे बयान देते देखे जाते है। चैनल भी सब कुछ जानते हुए भी इन्हें बुलाते रहते हैं।
ऐसे लोगो को चैनल वाले निमंत्रित कर भड़काऊ बाते करवाते हैं और उन्हे बाकायदा पेमेंट भी देते है। दूसरी तरफ कश्मीर और केंद्र की सरकार इनको जेल में डालने के बजाय मूक दर्शक बनी हुई है।
क्या आपको नही लगता कि सरकार की सहमति से ये सब नियोजित है, ताकी उनकी भड़काऊ बातों से माहौल को गर्म कर सियासी रोटी सेकी जा सके। आखिर उंन्हें जेल में क्यों नही डाला जाता? क्या आपको दाल में कुछ काला नही नज़र आ रहा? मुझे तो पूरी दाल ही काली नज़र आ रही है।Nazeer Malik
29 January at 07:50 ·
खिलजी: इतिहास और मिथक…3
दिल्ली के सुल्तानों में अल्लाउद्दीन पहला शासक था जिसने वित्तीय और राजस्व सुधार की दिशा में काफी काम किया। इसके बारे में समकालीन लेखकों यथा बरनी ने तारीख ए फ़िरोज़शाहीें, खुसरो ने खजाइनल फतुह्, इब्नबतूता ने रेहला, नासिरुद्दीन ने ख्यारुल मजालिस नामक क़िताब में सब कुछ लिखा है।
इतिहासकार फरिश्ता के अनुसार मूल्य नियंत्रण सुल्तान के सभी प्रान्तों में लागू था। इतिहासकार मोरलैंड के अनुसार खल्जी ने वस्तुओं के दाम उत्पादन लागत के सिद्धांत पर तय किया। आज की तरह ही उसने अनाज भंडारण के लिए बड़े बड़े गोदाम बनवाए थे। जहां से संकट काल मे जनता को निम्न कीमत पर अनाज दिए जाते थे।
ऊपर लिखित इतिहासकारों के मुताबिक उसने राशनिंग व्यवस्था बनाई थी, उसकी कपड़ा नीति सराहनीय थी।चोरबाज़ारी के लिए कडे दंड के प्रविधान थे। बाजारों के गुप्तचर अधिक मूल्य लेने वाले व्यापारियों पर नज़र रखते थे।
इतिहासकार एस के पांडे के मुताबिक जब्ता के तहत सभी वस्तुओं के दाम तय थे। मसलन गेंहू साढ़े सात जीतल प्रति मन, घी 1 जीतल में ढाई सेर, चना 5 जीतल में एक मन और जौ 4 जीतल में एक मन के हिसाब से बिकता था।
मैं एक बार फिर कहूंगा कि सब कुछ राजशाही में राजा की वाणी ही कानून होता था, शक्ति के बल पर साम्राजय बढ़ाना शान की बात थी, ये मध्ययुगीन अवगुण खिलजी में भी थे, पर वह कुशल प्रशासक भी था, लेकिन आज जब उसके शासन का पुनरावलोकन किया जाता है तो उसे मात्र बर्बर बता कर एक दम से खारिज कर दिया जाता है।
मिसाल के तौर पर जब अकबर रॉनी दुर्गावती पर हमला करता है तो दक्षिणपंथी इतिहासकार लिखते हैं कि मुगलों की गिद्ध जैसी नज़रें हिन्दू राज्य गोंडवाना को हड़पने को आतुर थी, मगर जब हर्सवर्धन तमाम हिन्दू राजाओं पर हमला कर उनके राज्यों को जीतता है तो वही इतिहासकार लिखते हैं कि हर्ष के यश और कीर्ति की पताका पंजाब से बंगाल तक फैल गई थी। ज़ाहिर है कि इस तरह का दुष्प्रचार कर कुछ लोग भारत की सोच को दूषित कर रहे। नफरत की जो खेती वे कर रहे हैं, उससे अंततः नफरत ही पैदा होगी।Nazeer Malik
28 January at 08:58 ·
आखिरी मुगल बहादुरशाह ज़फ़र की पांचवीं पीढ़ी का नौजवान शहज़ादा कमाल बख्त कोलकाता की झुग्गी में रह कर चाय बेच रहा है और उसी के पुरखों की बनवाई जामा मस्जिद की करोड़ों की कमाई से इमाम बुखारी अपना घर भर रहा है।
तुम दूसरों से शिकायत क्यो करते हो मुस्लमानो? इस इमाम बुखारी के खिलाफ आवाज़ क्यों नही उठाते। तुमने ऐसे हाथों में इमामत क्यों सौंप रखी हैं, जो इसका हकदार ही नही हैं है। इमामत पुशतैनी नही होती। झूठ मूठ दूसरों को दोष देने का रोना बंद करो। सरकार से इसे हटाने और इस्लामिक व्यवस्था के मुताबिक इमाम बनाने की मांग करो।—————Ashok Kumar Pandey
10 hrs · New Delhi ·
मध्यवर्ग व्हाट्सएप के महिमागानों में व्यस्त है, शम्भू रैगरों को पैसे भेजकर मस्त है, पड़ोसी की ख़ुशी से त्रस्त है।
फिर कसाई को क्या चिंता!Ashok Kumar Pandey
19 hrs · New Delhi ·
राजस्थान के मांडलगढ़ विधानसभा सीट पर कांग्रेस जीती। दोनों लोकसभा सीटों पर बढ़त।
Ashok Kumar Pandey
Yesterday at 08:07 · New Delhi ·
एफ आई आर एक सामान्य प्रक्रिया है। उसके बाद चलता है मुक़दमा और फिर सज़ा। क्या सेना या कोई सैनिक क़ानून से ऊपर है? अगर आपके बच्चे को कोई सैनिक गोली मार दे तो आप क्या करेंगे? क्या इसके पहले सैनिकों पर मुक़दमे नहीं हुए? क्या भीतर कोर्ट मार्शल नहीं हुए? क्या सैनिक दोषी नहीं पाए गए कभी?
इतना पवित्र न बनाइये सेना को। यहाँ बैठकर अखबारों की स्टोरीज का इतना भरोसा न कीजिये। क़ानून पर भरोसा कीजिये। सेना का ही नहीं जनता का मनोबल भी बचा रहनाम चाहिए।
बेकार में पद्मावती का सेक्स चेंज कराया गया।Ashok Kumar Pandey
31 January at 21:42 ·
अशोक बाजपेई जी ने मेरी वाल पर तो जवाब नहीं दिया लेकिन अपने यहाँ एक बयान पोस्ट किया जिसमें उन्होंने कहा है कि वे विचारधारा नहीं अवदान देखते हैं। इसी क्रम में उन्होंने कहा है कि वह साम्प्रदायिक लोगों को नहीं बुलाते।
जे एन यू के प्रोफ़ेसर परांजपे और उदयन बाजपेई , जिन पर मैने सवाल उठाया था, इस हिसाब से साम्प्रदायिक नहीं हैं। मैं यहाँ परांजपे के एक लेख से स्क्रीनशॉट लगा रहा हूँ। इंटरनेट पर ढूंढेंगे तो “hindus are being targeted” शीर्षक पूरा लेख मिल जाएगा। पढ़कर तय कीजिये कि जिस कैम्पस में छात्रों को बिना सबूत जेल भेजा गया, कन्हैया पर हमला हुआ जेल के भीतर और नज़ीब आजतक ग़ायब है वहाँ हिंदुओं को टारगेट किये जाने की यह चिंता साम्प्रदायिक है या नहीं? यह भी याद दिला दूँ कि परांजपे न केवल मनुस्मृति दहन को प्रश्नांकित करते हैं बल्कि सवर्णों द्वारा दलितों के उद्धार को भी रेखांकित करते हैं। उदयन अपने तरीके से यह लगातार करते हैं। कहेंगें तो उनके तमाम लेखों के हिस्से पोस्ट कर दूँगा।
लोकतांत्रिकता वह आवरण नहीं हो सकती जिसमें रहकर एक बार तो आप जे एन यू के आंदोलन को सही घोषित करें दूसरी बार परांजपे को आमंत्रित करें, एक बार तो आप कट्टर हिंदुत्व के ख़िलाफ़ लिखें, दूसरी बार आप उनके समर्थकों को ग़ैर साम्प्रदायिक होने के तमगे दें।
हालाँकि लोकतांत्रिकता के दावे के बरक्स यह सवाल तो पूछा ही जा सकता है कि इस आयोजन के कवि समवाय या अन्य सत्रों में दलितों की इस क़दर अनुपस्थिति का क्या सबब है? क्या परांजपे और उदयन की प्लेज़र ऑफ रीडिंग के बरक्स एक दलित एक लिबरल की प्लेज़र ऑफ रीडिंग अलग नहीं होगी? उसका प्रतिनिधित्व क्यों नहीं?
सवाल तो मैं और लोगों से भी पूछना चाहता था, लेकिन उनकी चुप्पियाँ समझता हूँ। उन्हें साहित्य की दुनिया मे बहुत आगे जाना है…
Abbas Pathan
Yesterday at 12:13 ·
एक नया वीड़ियो सामने आया है जिसमे दिखाया जा रहा है कि चन्दन गुप्ता जिस मोटरसाइकिल को चला रहा है उसके पिछली सीट पे एक आदमी बैठा है और वही आदमी दूसरी वीडियो क्लिप में अंधा धुंध गोलियां चला रहा है। सम्भवतः जो गोली चन्दन के कंधे पे लगी वो उसी व्यक्ति की बंदूक से निकली है जो उसके पीछे बैठा था। जिस आरोपी सलीम को गिरफ्तार किया गया है उसका पूरा घर और दुकान खोद लेने के बाद भी वो हथियार नही मिला जिससे .315 बोर का कारतूस चन्दन के कंधे पे लगा। उसके घर से कुछ अन्य हथियार मिले जिसमे एक लायसेंस सुदा बंदूक है और कुछ अवैध हथियार भी है।
अब्दुल हमीद तिराहे पे विवाद सुबह 10 बजे हुआ था, वहां से मुहल्ले वासियो ने विहिप एबीवीपी के लोगो को खदेड़ दिया। खदेड़े जाने से व्यथित होकर इन लोगो ने दुगुनी ताकत से दूसरे मुस्लिम इलाके पे धावा बोला, तोड़फोड़ और आगजनी की जाने लगी और उसी दरमियान चन्दन को गोली लगी। गोली लगने का समय सुबह 11.30 बजे का था। यानि के ये साफ हो गया कि चन्दन गुप्ता हुड़दंगी संघटन का सिपाही बना हुआ था। यदि वो होशो हवाश वाला युवक होता तो 10 बजे हुए विवाद से सबक लेकर घर की टॉप पकड़ लेता लेकिन उसे 11.30 बजे गोली लगी इसका अर्थ है की वो भी हुड़दंगियों के साथ शौर्य बरपाने में लगा हुआ था। उसके हाथ मे तिरंगा रहा होगा किन्तु उसके मित्र के हाथ मे राइफल थी अतः उसे भारत माता का इनोसेंट सुपुत्र नही माना जा सकता।
22 साल का नौजवान चन्दन ब्लड डोनेशन जैसे कार्यो में संलिप्त रहता था और वो एक समाज़सेवी संस्था से जुड़ा हुआ था जो कि उसके पक्ष को बहुत अधिक मजबूत करता है किंतु जिस समय उसकी मौत हुई तब वो कट्टरपंथी संघटनो के साथ था और वे संघटन “सड़को पे तोड़फोड़ और गोली बंदूकें लाठी तलवारे चलाने के लिये कुख्यात है। यही ट्रेनिंग नौजवानों को हुड़दंगी संघटनो में दी जाती है, जबतक जिंदा रहते है तबतक राजनीतिक पार्टियों के फायदे के लिए हाथ मे अंगारे लेकर गली मोहल्लों में शौर्य बरपाते रहते है और जब मरते है तो राजनीतिक पार्टियों को और अधिक दुगुना फायदा पहुँचाते है। वो कहते है “जिंदा हाथी आठ का और मरा हाथी साठ का”:
चन्दन गुप्ता की चिता से उठी चिंगारी पूरे प्रदेश को जलाने पे अब भी आतुर है। उसकी माताजी बेटे को इंसाफ दिलाने के लिए धरने पे बैठी है और वास्तविक हत्यारे बगल में बैठकर माताजी के सिर को अपना कंधा दे रहे है। चन्दन मात्र 22 साल का लड़का था, उसकी समज़सेवी गतिविधियो पे मनोवैज्ञानिक पड़ताल को जाए तो समझ आता है कि वो दिल से संवेदनशील व्यक्तित्व का मालिक था, अपनी संवेदनशीलता को केवल परोपकारी कार्यो में खर्च करता तो आने वाले समय मे तस्वीर कुछ और होती किन्तु अक्सर नौजवान हुड़दंगी संघटनो के आगे अपने जज्बातों को गलत राह दे देते है।
जो आतंकवादी कम उम्र में आत्मघाती फिदायीन बनकर उड़ जाते है यदि इनकी डौर सही हाथों में थमाई जाए तो यही “फिदायीन” अब्दुल हमीद बनकर दुश्मन पे आत्मघाती बम बनकर बरस सकते है।Abbas Pathan
कासगंज में संघी और भाजपाई कमीनापन इतना खुलकर सामने आया किस तरह से एक बीस साल के लोंडे को शिकार के लिए लायी गयी बाँधी गयी भेड़ की तरह इस्तेमाल किया ये इतना साफ़ साफ़ था की कई बड़े बड़े बहुत ही नीच किस्म के संघियो ने भी आखिरकार झक मारकर इस नीचता के खिलाफ लिखना स्वीकार किया ये सभी संघी खुर्राट अधेड़ हे इन्हे ये भी डर होगा की ऐसे तो कल को हमारा ही लड़का भी हमारी पोस्ट पढ़कर ही कही चंदन की तरह चारा बन कर मारा ना जाए लेकिन संघी मक्कारो में सबसे बड़े कमीन निकले दो एक पगलेट तिवारी और एक चिलपु वाकई बहुत ही बड़े वाले नीच हे ये दोनों , सब कुछ शीशे की तरह साफ़ था ये तब भी भड़काने में ही जुटे रहे सही समय पर कानून के दायरे में ही इन सरदानो तिहाड़ियो श्वेता सिंघो पगलेट तिवारी चपलू रुबिकालियाकतो आदि आदि को इन सबको जो बेगुनाहो की लाशो पर बैठकर नेताओ की तरह अपने हित देखते हे लाशो पर बैठकर किसी को राजयसभा चाहिए किसी को टी आर पि किसी को एड किसी को फॉलोवर अदि , सही समय कानून के दायरे में ही इन्हे अच्छी तरह से सबक सिखाया जाएगा इंसानियत का जो अपमान इन आतंकियों ने किया हे ये ये ना समझे की हम इसे भूल जाएंगे सही समय पर इसका कानून के दायरे में ही हिसाब जरूर लिया जाएगा – देखिये पागलपन की हद तक कम्युनल इस इंसान तक ने कासगंज के कमीनेपन के खिलाफ लिखा हे ” Devanshu
Yesterday at 12:55 · तिरंगा यात्रा से देशभक्ति साबित नहीं होती..
कासगंज की घटना का अवलोकन करते हुए जो विचार सहज भाव से मेरे मन में आ रहे हैं वो उस तिरंगा यात्रा के विरोध में हैं । मैं ऐसी किसी तिरंगा यात्रा का समर्थन नहीं कर सकता.. जिसमें लोग हाथों में डंडा…रॉड और पिस्तौल लिये चल रहे हों । अल्पसंख्यकों के मुहल्ले से गुजरते हुए भड़काऊ नारे लगा रहे हों या बलपूर्वक यह बताना चाह रहे हों कि तुम सब पाकिस्तानी हो । ऐसा करना बार-बार किसी की निष्ठा को कोंचना है, कुरेदना है और उसे विपरीत अर्थ में प्रतिक्रिया करने के लिए बाध्य करना भी है । याद रहे, अहिंसक के अंगुलिमाल बनने की कथा । किसी को बारंबार खराब मत कहो, गाली मत दो, प्रश्न मत खड़े करो क्योंकि ऐसा करने से वो नकारात्मक ऊर्जा से भर जाता है ।
दूसरी बात यह कि पंद्रह अगस्त को जब समस्त सरकारी प्रतिष्ठानों में झंडारोहण होता ही है, देशप्रेम के तराने सुन सुन कर कान पक ही जाते हैं तो गली मुहल्लों में तिरंगा लेकर हुड़दंग करने से देशप्रेम साबित नहीं होता । ऐसे सभी आयोजनों, पूजा विधानों में मूल भाव मृत होता है…हंगामा.. मौज मस्ती और हुल्लड़बाजी हावी रहती है ।तीसरी बात यह कि हिन्दुओं का स्वभाव बहुत विचित्र होता है । वो करते कम हैं, मायावी विप्लव ज्यादा मचाते हैं । जबकि मुसलमान खामोशी से अपना काम करते हैं और जरूरत पड़ने पर ज्यादा आतंक भी फैलाते हैं । इसलिए हिन्दुओं को तिरंगा यात्रा निकालने, हुड़दंग करने, लाठी डंडे लेकर शोर करने के बदले राष्ट्रवाद के अनुषंगिक संस्थानों के साथ जुड़कर काम करना चाहिए । जो जमीनी स्तर पर बदलाव लाने की कोशिश में हैं । जो छोटे-छोटे स्तर पर धर्म परिवर्तन के विरुद्ध संघर्षरत हैं, जो घरवापसी की मुहिम चला रहे हैं । घरवापसी एक पुण्य का काम है । गांधी तक कहते थे कि धर्मांतरित हुए हिन्दुओं को वापस हिन्दू धर्म अंगीकार कर लेना चाहिए । उन्हें यह बताना जरूरी है कि आपके पूर्वज तो हिन्दू ही थे । किसी भले कार्य के लिए होने वाले भावनात्मक दोहन के लाभ होते हैं ।तिरंगा यात्रा निकाल कर हुल्लड़ मचाने से अनावश्यक अशांति फैलती है, तोड़फोड़ और अव्यवस्था कायम होती है, जान-माल का नुकसान होता है, कामकाज प्रभावित होते हैं । राष्ट्रीय संपत्ति की क्षति होती है।, वैमनस्य बढ़ता है और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बदनामी होती है । जनता के बीच छवि खराब होती है । ऊपर से विपक्ष को आप यह कहने के मौके देते हैं कि आप दंगाई हैं, प्रशासनिक रूप से अक्षम हैं ।इसलिए सकारात्मक अर्थों में अपने धार्मिक अधिकारों की रक्षा करते हुए शांतिपूर्ण माहौल बनाने की कोशिश करनी चाहिए । और घरवापसी जैसे अभियान को बल प्रदान करना चाहिए ताकि भविष्य में एक राष्ट्र के रूप में, हिन्दू शक्ति के रूप में हम सशक्त बन सकें । ऐसा करना अति आवश्यक है क्योंकि जैसे-जैसे संख्या बल में वे बढ़ेंगे वैसे-वैसे हमारी शक्ति कम होगी । समय रहते इस देश की शांति और सुव्यवस्था के लिए यह वांछित है । इसी में देश की भलाई है Devanshu ——————ये एक घोरकायुनल संघी मोदीपरस्त इस्लाम और मुस्लिम विरोधी के विचार हे अब अंदाज़ा लगाई की सरदानो और श्वेता टाइप लोगो ने किस हद तक की नीचता दिखाई
https://www.youtube.com/watch?time_continue=224&v=l45PIGJrpLQ आपको तिरंगा यात्रा में पिस्तौल लेकर घूमने वाले नौजवान देशभक्त लगते हैं और आपके बच्चों की फ़ीस कम कराने के लिए आंदोलन करके पुलिस की लाठियाँ खाने वाले जेएनयू के युवा देशद्रोही। फ़र्ज़ी राष्ट्रवाद ने क्या हाल बना दिया आपका!
सुयश सुप्रभ
सिकंदर हयात सिकंदर हयात • 4 minutes ago
हमारे परिचितों में एक लवमैरिज हो रही थी लड़का राज़ी लड़की राज़ी एक धर्म एक जात दोनों सुन्नी सय्यद देवबंदी सब कुछ एक , वर्ग तक एक दोनों पैसे वाले दोनों के परेंट्स तक फुल राज़ी बल्कि शायद लड़के की माँ ने ही बढ़ावा दिया था तो इस विषय पर कुछ पढ़े लिखे धार्मिक मुस्लिमो से चर्चा हो रही थी तब में ये देख कर हैरान रह गया था की एक इतना यंग पढ़ा लिखा धार्मिक मुसलिम लड़का कह रहा था की बहुत गलत किया बहुत गलत किया इस लड़के ने बहुत गलत , कुल मिलाकर उसकी सोच थी की की क्योकि लड़के ने किसी की लड़की ”पटा ” ली ” सेट ” कर ली तो यु समझो की लड़की के घरवालों की तो इज़्ज़त का भाजीपाला हो गया में पढ़े लिखे की ऐसी बाते सुनकर चौक गया था तब ही मुझे लगा था की जब इनकी ये राय हे तो कम पढ़े लिखो और दबंग जातियों आदि के लिए ऑनर किलिंग करना कितनी सामान्य बात हे और इसकी पीक हे फिर कन्या भ्रूण हत्या , खेर भड़ास की खबर थी की एकतरफ कुछ लड़किया कोई अफेयर नहीं कोई ल;अड्का नहीं कुछ नहीं लेकिन सिर्फ वो खुली हवा में साँस लेने को घर से भाग गयी वही ये घटना दोनों को मिलाकर एक लेख लिखता हु की किस तरह से शोषणकारी ताकते और उनके एजेंट कामकरते हे लड़कियों को आज़ादी और बराबरी बा देने के लिए ये बात कैसे लोगो के शोषण से जुडी हे इस पर लेख लिखता ——————————हुसुयश सुप्रभ
11 hrs ·
समाज की मूर्खधारा को प्रेम का मतलब आज तक समझ में नहीं आया। बच्चे पैदा हो जाते हैं, लेकिन प्रेम पैदा ही नहीं होता। ऐसे समाज में जाति और धर्म के बंधनों को तोड़ना किसी क्रांति से कम नहीं है। अंकित मरा नहीं है। वह शहीद हुआ है। प्रेम के पथ पर। उसकी शहादत को मेरा सलाम।Vikram Singh Chauhan
17 hrs ·
मुस्लिम लड़के ने हिन्दू लड़की से प्यार किया तो हिन्दू दंगाइयों के लिए लव जिहाद हो गया। और अगर हिन्दू लड़के ने मुस्लिम लड़की से प्यार किया तो ये मुस्लिम जाहिलों के लिए भी लव जिहाद ही जैसा कुछ हो गया और मार दिया एक अच्छे भले युवक को। दूसरे धर्म में भी लोग प्यार करते हैं,शादी करते हैं लेकिन बात जैसे ही हिन्दू -मुसलमान के बीच आती है लोग वहशी जानवर बन जाते हैं। अंकित सक्सेना की हत्या बताता है कि नफरत की फसल जो सियासतदारों ने बोया है वह अब फल देने लगा है। आज इधर से अंकित की हत्या हुई है कल उधर से कोई अहमद को मार देगा। सबसे अमानवीय तो हम और आप यानी आम जनता हो गए हैं। जब हत्यारे उसे चाकू मार रहे थे तो अंकित ने मदद की गुहार लगाई, फिर बेहोश हो गया। उसकी मां उसके गले पर चुन्नी बांधकर खून का बहाव रोकने की कोशिश करते हुए मदद मांग रही थी, लेकिन उधर से गुजर रहे लोग जो तस्वीरें लेने के लिए रुके थे, मदद नहीं की। किसी ने पुलिस कंट्रोल रूम को फोन तक नहीं किया। रवीश के शब्दों में ‘वहीँ वाला ‘ टॉपिक अब सर चढ़कर बोल रहा है। खुश हो जाइये ,कल ये आपके घर में भी होगा।
अब ये पेसो की ही तो कमी हो रही हे की राकेश सिन्हा अभी तक जेल नहीं गया हे http://www.mediavigil.com/tv/case-registered-against-rakesh-sinha-of-rss-for-hate-speech-in-patna-court/
Abhishek Srivastava
10 hrs ·
(अंकित के हत्यारे पकड़े गए, अगला सवाल?)
अंकित सक्सेना की ख़बर शाम को मिली। घर लौटकर देखा तो मसला सोशल मीडिया पर गरमाया पड़ा था। हिंदूमना लोग इस लड़के को ऐसे क्लेम कर रहे हैं जैसे बिछड़े हुए भाई हों। इस मौत पर हो रही हिंदूवादी राजनीति से ख़फ़ा लोग मृतक से अतिरिक्त प्रेम दिखा रहे हैं, जैसे यही मौका हो खुद को पॉलिटिकली करेक्ट साबित कर देने का। एक मौत के 24 घंटे के भीतर समाज में दो पाले खिंच गए हैं। क्या मज़ाक है! क्या इससे पहले प्रेम करने वालों की जान नहीं गई है? प्रेमी युगलों को नहीं मारा गया? मनोज-बबली याद आते हैं। ”लव, सेक्स एंड धोखा” की बर्बर ऑनर किलिंग याद आती है। अपने इर्द-गिर्द के कई केस याद आते हैं। फिर तेरह साल पहले अपने ही दिन याद आ जाते हैं। कैसी दहशत थी मन में।
एक कहानी सुनाता हूं। सन् सत्तर में हुए एक अंतर्जातीय प्रेम विवाह से सन् अस्सी में पैदा एक लड़के ने सन् 2000 में अंतर्जातीय प्रेम कर लिया। उसके मां-बाप को यह नाग़वार गुज़रा। किसी तरह मामला सुलझा। लड़के की बहन ने सन् 2005 में अंतर्जातीय प्रेम कर लिया। अबकी यह लड़के को नाग़वार गुज़रा। उसने जी-जान लगा दिया कि शादी न होने पाए। बड़ी मुश्किल से मामला सुलझा। अब उस परिवार की तीसरी पीढ़ी की एक युवती प्रेम में है। पिछली पीढि़यां मिलकर उसे रोकने में लगी हैं गोकि सभी ने प्रेम विवाह ही किया था। मामला कुल मिला कर यह है कि हमारे समाज में प्रेम की तो पर्याप्त अधिकता है लेकिन उसे पनपने और अंजाम तक पहुंचने देने वाले लोकतंत्र की घोर कमी। जब हम कहते हैं कि समाज में असहिष्णुता बढ़ रही है, तो इसका मतलब इतना सा है कि हर पीढ़ी के साथ दूसरे के प्रेम को बरदाश्त करने की क्षमता कम होती जाती है। तिस पर जाति, धर्म, गोत्र के बंधन तो बने ही हुए हैं जो बहाने का काम करते हैं।
ऐसे मामलों में कभी लड़के को मार दिया जाता है, कभी लड़की को और कभी प्रेमी युगल को। इसमें हिंदू मुस्लिम का सवाल ही नहीं पैदा होता। सब रात में टीवी देखते हैं। सरकार सबको बराबर डराती है। हिंदुओं को मुसलमानों से डराया जाता है। मुसलमानों को हिंदुओं से। दलितों को ब्राह्मण से डराया जाता है। ब्राह्मणों को ठाकुरों से। ठाकुरों को भूमिहारों से। भूमिहारों को यादवों से। यादवों को दलितों से। दलितों को पिछड़ों से। शिया को सुन्नी से। सुन्नी को शिया से। सब एक-दूसरे से डराए जा रहे हैं। सब एक-दूसरे से डरे हुए हैं। डरा हुआ इंसान प्रेम कैसे सहेगा? जो अब तक नहीं डरा, वह प्रेम कर लेता है। फिर अंकित मारा जाता है। उसकी प्रेमिका का साहस देखिए। सबको अंदर करवा दिया। वह निडर है। उसके मन में प्रेम है। प्रेम उसे निर्भय बनाता है।
अंकित की मौत पर बस एक सवाल बनता है, अलग-अलग शक्लों में। कौन है जो हमे डरा रहा है? हमें प्रेम करने से कौन रोक रहा है? हर 14 फरवरी को किसने इश्क़ पर पहरेदारी का टेंडर भरा है? लव जैसे खूबसूरत शब्द में कौन है जो जिहाद जैसा शब्द जोड़े दे रहा है? कौन नहीं चाहता कि लोग प्यार से रहें? कौन है जिसे मरने वाले के धर्म से मतलब नहीं जब तक उसकी रोटी सिंकती रहे? प्रेम में अंकित मरता है, हिंसा में चंदन- कौन है जो दोनों की लाश को देखने सबसे पहले इनके घर पहुंचता है? कहीं ऐसा तो नहीं कि वे सबसे पहले इनके घर यही सुनिश्चित करने पहुंचते हों कि बंदा ठीक से मरा या नहीं? जिस देश में निर्णयकर्ता को पंच-परमेश्वर का दरजा दिया गया है, वहां उसे मारकर कौन उसकी लाश को बाकायदा घर तक छुड़वाता है? कौन है जो फि़ल्मी इश्क़ से भी सियासी फ़सल काटने की ख्वाहिश रखता है? कौन है जो दूसरों के कमरे में झांकने का शौकीन है? कौन है जो दूसरों का पीछा करवाता है? कौन है जो हमें इतना डरा चुका है कि हमें खुद के किए पर शक़ होने लगा है? किसने इस प्राचीन समाज में सहज भरोसे का ताना-बाना तोड़ा? इन सब सवालों के जवाब एक हैं। जवाब खोजिए। इसी में चंदन से लेकर अंकित तक के हत्यारों का सुराग़ है।
दूसरा सवाल यह है कि इस हत्यारे को शह कौन दे रहा है। पता करने का तरीका आसान है। अगर आज आप वाकई अंकित की मौत पर आंसू बहा रहे हैं, तो ईमानदारी से याद करिए कि क्या कभी आपने 14 फरवरी को किसी का मुंह रंगे जाने, बाल काटे जाने, पीटे जाने, पार्क से खदेड़े जाने पर मज़ा लिया है। इसका जवाब बता देगा कि आपका अपना हाथ कहां है- हत्यारे की पीठ पर या उसके खिलाफ हवा में उठा हुआ।
विक्टिमहुड सेल कर कर के करोड़पति शायर के राइट हेंड ( जितनी हमें जानकारी हे ) शहला रशीद पर हमलवार हे मौज़ हे इन राइटिस्टों की मलाई सारी इनके हिस्से और जिम्मेदारी सरदर्दी कुछ नहीं मौजा ही मौजा वोट ” नोट ” जयकार लाइक्स सब इनके और ना कोई खतरा ना कुछ गाँठ से जाने कर डर——————————————————————Mohd Zahid is with Mohd Zahid.
9 hrs ·
अब शहला रशीद की उल्टी :-
भारत में दक्षिण और वामपंथी अर्थात संघी और कम्युनिस्ट की सोच मुसलमानों और इस्लाम को लेकर लगभग एक जैसी ही है।
इसीलिए इनके लिखे इतिहास मुस्लिम शासकों को एक जैसे खलनायक दिखाते मिलेंगे। सिकंदर युद्ध जीता तो महान और मुस्लिम बादशाह युद्ध जीते तो आक्रमणकारी।
वामपंथी यदि हिन्दु नाम का है तो उसका धर्म विरोध केवल और केवल इस्लाम से है और संघियों का तो जन्म ही मुसलमानों के विरोध के कारण हुआ है।
वामपंथियों के संघ विरोध और कन्हैया , खालिद उमर और शहला रशीद के लच्छेदार संघ और भाजपा विरोध के भाषण पर खुश होकर ताली बजाने से अधिक आवश्यकता इनसे सावधान रहने की है। यह कभी भी अपना असली रूप दिखा सकते हैं।
खालिद उमर का अपने मुसलमान होने पर दिया गया बयान और कल शहला रशीद के बयान को ध्यान में रखिएगा तो आपको मेरी बात सच लगेगी , ऐसे ही “बाटला हाऊस” के एक मुशायरे में आए कन्हैया ने “अल्लाह” के बारे में भी मेरी आखों के सामने आपत्ती जनक बातें कहीं।
यह इनके दिल से स्वतः निकली बातें होती हैं।
अपनी राजनीति चमकाने के लिए यह भाजपा और संघ विरोध तो करेंगे परन्तु जैसे ही बात आईडियोलाजी की आएगी यह मुसलमान और इस्लाम को लेकर वही भाषा बोलेंगे जो संघी बोलते हैं।
इस मामले में दोनों एक ही थैली के चट्टे बट्टे हैं।
शहला रशीद इस पिच की नयी नयी खिलाड़ी हैं , जिनको आम मुसलमान , मुसलमान मान कर भाव देता रहा है जबकि वह एक कम्युनिस्ट है। और उनका हालिया ताज़ा बयान वैसा ही है जैसे साध्वी , योगी या प्राची देते रहते हैं।
हैरत की बात यह है कि किसी मौलाना के दिए मशवरे को “फतवा” “फतवा” कह कर आसमान उठा लेने वाली मीडिया अपने सेलेक्टिव सोच के कारण इसे “फतवा” नहीं मानती।
शहला रशीद ने दो दिन पहले कहा कि “मुस्लिम लड़कियों को गैर मुस्लिम लड़कों से शादी करनी चाहिए”
“शहला रशीद शोरा” काश्मीरी मुस्लिम माता पिता की औलाद हैं तो उनको उनके माँ बाप ने यह सिखाया होगा कि इस्लाम में गैर मुस्लिमों से विवाह की इजाज़त नहीं है , इसे हराम करार दिया गया है। और इस्लाम में ही क्युं हर धर्म में अपने धर्म के लोगों से ही विवाह को कहा गया है बल्कि और धर्म में तो जाति , गोत्र , कुल इत्यादि की भी बाध्यता है।
शहला रशीद को इस्लाम का यह मूल सिद्धान्त उनके काश्मीरी मुस्लिम माता पिता ने अवश्य बताया होगा परन्तु जेएनयू के वामपंथी वातावरण में लगता है कि वह सब भूल गयीं।
शहला रशीद ने सल्लल्लाहो अलैहेवसल्लम हज़रत मुहम्मद के बारे में भी बेहद घटिया बातें की थीं जिसके विरुद्ध अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी स्टूडेन्ट यूनियन की सदस्य गज़ाला अहमद ने 9 जनवरी 2017 को एफआईआर दर्ज कराई है।
शहला रशीद के पिता का नाम संभवतः “रशीद शोरा” ही होगा और माता भी संभवतः मुस्लिम ही हैं जो श्रीनगर में एक नर्स हैं , उनको अपनी माता से यह बात पूछनी थी कि उन्होंने एक मुस्लिम पुरूष से ही विवाह क्युं किया तो शायद उनको इसका जवाब मिल जाता।
भारतीय संविधान हर किसी को यह स्वतंत्रता देता है कि वह अपनी मर्ज़ी से अपना जीवन साथी चुने तो शहला रशीद किसी के व्यक्तिगत जीवन में दखल देने वाली होती कौन हैं ?
और जब दखल दे ही दिया है तो एक सच यह भी है कि शहला रशीद के ब्वाय फ्रैन्ड का नाम “अकबर” है जो संभवतः मुसलमान ही है।
अब ऐसे लोगों का भरोसा भी नहीं , आज कोई दूसरा भी हो सकता है। शहला रशीद किसी से कुछ भी करें वह उनकी स्वतंत्रता है , एक से करें दो से करें या पंचाली बन जाएं किसी को क्या आपत्ती है परन्तु इस्लामिक सिद्धान्त के खिलाफ जाकर वह दूसरों को नसीहत देने का वह अधिकार नहीं रखतीं।
ऊपर ज़ाहिद साहब के बदमिजाज विचार पढ़े ये हाल तो उनका हे जो बहुत ही नरम नरम बहुत सॉफ्ट मुस्लिम कटटरपंथी हे बहुत सॉफ्ट , और विनम्र साथ ही इन्होने शहला की उसके दोस्त के साथ फोटो भी लगा रखी हे की देखो ” गंदी लड़की ” , तो ये तक इतने बदमिजाज हे ये हाल हे . मुस्लिम कटटरपंथ बहुत ही मनहूस और पनोती सोच हे मुस्लिम ककटटरपंथ ने ही अपनी बदमिजाजी से वाम और दूसरे लिबरल्स को खूब कमजोर किया खूब जबकि ये सब इस्लाम और मुसलमानो की हमेशा ढाल बने रहे बचाव करते ना थके मगर ये लोग जितना ”रफू ” करते हे ये डबल ”फाड़ ” देते हे मुस्लिम कटटरपंथ अपनी मनहूसियत से लिबरल्स को कमजोर और हिन्दू कटटरपंथ को इतना मज़बूत करता रहा की आख़िरकार इनकी ज़हरीली सरकार तक बन गयी जो खून चूस रही हे वास्तव में भारत या उपमहाद्वीप के लिए सबसे बेहतर होता की यहाँ दो बड़ी पोलिटिकल पॉवर होती कांग्रेस और वाम या सभी लिबरल लेफ्ट सोशलिस्ट और कांग्रेस ही हिंदुत्व पूंजीवाद आदि की की भी प्रतिनिधि होती मगर मुस्लिम कटटरपंथ और माओ और चीन की नेहरू के विशाल कद से जलन के कारण हुए हमले ( विचारधारा वगरैह कुछ नहीं बल्कि नेहरू की लोकप्र्रियता की जलन से हुआ चीन हमला ) और हिंदी का महत्व ना मानने की ज़िद के आदि कारण लेफ्ट विशाल असमानता वाले इलाके में अपनी सही और वाज़िब ज़मीन नहीं पकड़ सका
https://www.youtube.com/watch?v=gVWSgFyaid0&t=318s
राजनीति पे कविता poem on politics
जबसे आप मशहूर हुए कई अपने आप से दूर हुए
अब तो आप ही आप है दिल्ली मे
जिक्र होता है आपका अक्सर लोगो की खिल्ली मे
काला धन और भ्रष्टाचार अब हो गई इनकी बातें बेकार
सफेद धन है सदाबहार
लेके भागो सात समंदर पार
सेवक अपना छोड़ तिजोरी घूमे देश विदेश
जनता बोले त्राहिमाम चोरो की तो हो गई है ऐश
जनहित के नाम पे जन – जन को देखो रोना आया है
अच्छे दिनो की आस मे तूने बहुत छकाया है.
पकौड़ा तो छनवा चुका ,बी ए – एम ए पास को
अब क्या मुंह दिखलाउंगा ,घर पे जाके अपनी सास को
पप्पू पास नही होता राजनीति के इम्तिहान मे
इसके सिवा कोई और नही मिलता इनको सारे जहाँ मे
खूब लूटा इनकी मम्मी ने अपने देश को
मन करता है भेज दे इनको अब तो परदेश को
विकास मिले तुम लोगो को तो कही से ढूंढ लाना
बची हो इंसानियत तुममे तो उसे
भारत मा का पता बताना
लहूलुहान ना करना इस भारत मां को
उसके ही बच्चो के खून से
ताज रखो तुम्ही
हमे रहने दो बस सुकून से ……..
Ashwini Kumar Srivastava was celebrating अच्छे दिन.
27 February at 23:10 · Lucknow ·
2014 में नरेंद्र मोदी के आने से पहले देश के बड़े ही ‘बुरे दिन’ थे। देश का मध्यम वर्ग यानी मिडिल क्लास और नौकरी पेशा तबका तब तक बदहाल था, जब तक मोदी जी के राज में उसके अच्छे दिन नहीं आये थे। मुझे याद है कि उस वक्त 2004-05 के बाद से ही मोदी जी के आने तक 2014 में भी मैं अपने आस-पास बस यही सुना करता था कि फलाने को फलानी कंपनी में दोगुनी या तिगुनी तनख्वाह पर नौकरी मिल गयी है, फलाने की तनख्वाह में इतना ज्यादा इन्क्रीमेंट हो गया है, ढमकाने ने इतने का पैकेज पा लिया है, इतनी महंगी कार खरीद ली, नया घर खरीद लिया, वहां प्लॉट खरीद लिया है, वह प्लॉट/मकान/फ्लैट इतने कम का खरीदा था और अब इतने ज्यादा का बेच दिया है, वह पालिसी ले ली है, यह इन्वेस्टमेंट कर दिया है ….मतलब इतने बुरे दिन थे कि क्या बताएं….
….और अब देखिए…जब से अच्छे दिन आये हैं, तब से ऐसी कोई भी बुरी खबर नहीं सुनने को मिलती। अब तो किसी से भी पूछो तो बस यही सुनने को मिलता है…क्या बताएं यार, हाल बहुत खराब है, सैलरी कई साल से नहीं बढ़ी, कोई और बढ़िया ऑफर किसी और कंपनी से मिल ही नहीं रहा, यहां भी डर बना रहता है कि पता नहीं कब नौकरी चली जाए, बढ़ती महंगाई और स्थिर सेलरी के चलते एक तो सेविंग हो ही नहीं रही और जो थोड़ा बहुत बचाने या कहीं लगाने को सोचता भी हूँ तो समझ ही नहीं आता कि कहाँ लगाऊं, जो प्लॉट/मकान/फ्लैट इतने साल पहले इतने का लिया था, वह अभी इतने का ही है बल्कि अब तो वह इतने पर भी खरीदने को कोई तैयार नहीं है, नया निवेश करने के लिए कोई जगह बची ही नहीं इसलिए समझ ही नहीं आता कि रिटायरमेंट के बाद अपने बुढ़ापे या बीमारी के लिए या बच्चों की पढ़ाई आदि के लिए अगर एकमुश्त बड़ी रकम की जरूरत पड़ी तो कहां से लाऊंगा?
बैंक 5-6 परसेंट ब्याज भी बमुश्किल दे रहे हैं बचत पर, शेयर बाजार से किसी ने कमाया हो, ऐसा कोई जानकार अपने सर्किल में अभी तक मिला नहीं, सोना खरीदने में भी बड़े झमेले हैं और फिर इसके रिटर्न्स भी अच्छे नहीं हैं, म्युचुअल फण्ड या किसी और पालिसी का कुछ भरोसा ही नहीं होता और लगता है कि पता नहीं इतने लंबे समय के निवेश और तब की महंगाई के बीच जंग के बाद हमें कुछ हासिल भी हो पाएगा या नहीं?
कुल मिलाकर हर तरफ अच्छे दिन हैं। अच्छे दिन इसलिए क्योंकि सब की हालत खराब है। अब कोई चिरकुट किसी को नई नौकरी, तनख्वाह में इजाफा, नया मकान/प्लाट/फ्लैट, नई गाड़ी या अन्य ऐसी ही बड़ी-बड़ी चीजें सुना-दिखा कर जला-भुना तो नहीं पायेगा।
मोदी जी ने देश में सबके पिछवाड़े पर प्याज एक बराबर रखकर ही काटा है…इसलिए अब कोई भी मिडिल क्लास इंसान ऐसी बुरी खबरें सुनाकर इस वर्ग में लोगों का मूड नहीं खराब कर पायेगा। सब एक-दूसरे से गले मिलकर अपना-अपना दुखड़ा रो रहे हैं। मिडिल क्लास की असमानता अब खत्म हो चुकी है। इससे अच्छे दिन अब और क्या आएंगे भला…
यह सब तो ठीक है मगर एक मोदी भक्त पिछले दिनों मिल गए, जिनके ‘अच्छे दिन’ चल रहे हैं और 2014 से पहले के बुरे दिनों से उन्हें देश के सभी लोगों की तरह छुटकारा भी मिल चुका है। फिर भी वह मुंह लटकाए हुए थे। मैंने पूछा कि भई मोदी और अच्छे दिन आने के लिए तो आपने 2014 में दोस्त क्या रिश्तेदारों तक को मोदी विरोध करने पर देशद्रोही और गद्दार घोषित कर दिया था। अब मुंह क्यों लटकाए हैं? अब तो आपको खुश रहना चाहिए।
तो उन मोदीभक्त ने एक ट्रक पर लिखने वाली शायरी के अंदाज में दो पंक्तियों में अपना जवाब दिया…
‘ इज्जत लुटाई क्यों? …मोहब्बत में।
तो अब रोती क्यों है?…फिर बुलाया है।’
उनके इस रहस्यवादी मगर घटिया शायरी वाले जवाब को मैं समझा नहीं तो वह बोले ‘अरे महाराज, 2014 के बाद के अच्छे दिन तो देख लिए हिंदूवाद और राष्ट्रवाद के नाम पर। लेकिन फटी इसलिए पड़ी हैं क्योंकि 2019 में फिर उसी के नाम पर वोट मांग रहे हैं…’
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नव् भरत महाराष्ट्र के किसानों ने सिखाया आंदोलन का सलीका
March 12, 2018, 10:05 PM IST प्रणव प्रियदर्शी in अंधेर नगरी | सोसाइटी, राजनीति, अन्य, देश-दुनिया
महाराष्ट्र के किसानों ने अपने आंदोलन के जरिए कई संदेश दिए हैं। लंबे अर्से बाद ऐसा आंदोलन देखने को मिला है जिसमें शामिल हुए लोगों ने अपने मुद्दे की गंभीरता का अहसास कराने के लिए खुद तकलीफ सहने का रास्ता अपनाया है। हम सब जानते हैं कि देश के तकरीबन सभी इलाकों में किसानों का जीवन बद से बदतर होता जा रहा है। खासकर महाराष्ट्र में तो किसानों की आत्महत्याएं पिछले कई दशकों से सुर्खियां बनती रही हैं, हालांकि बावजूद इसके, किसी सरकार ने ऐसे कदम नहीं उठाए जिससे किसान आत्महत्या का यह दाग धुल सके। नव भरत
बहरहाल, इस बार जब किसानों न अपने जीवन की कठिनाइयों की ओर सरकार का और समाज का ध्यान खींचने का फैसला किया तो रास्ता रोको, जेल भरो, फसलें शहर की सड़कों पर डाल दो – जैसे तरीके नहीं अपनाए। उन्होंने फैसला किया कि वह सीधे मुंबई जाएंगे और सरकार को अपनी मांगें थमाते हुए कहेंगे कि इन्हें पूरी करो। ये मांगें कितनी अहम हैं और इनके पूरी न होने की स्थिति में उनके लिए जीना कितना मुश्किल हो गया है, यह बताने के लिए उन्होंने फैसला किया कि वह पैदल चल कर मुंबई पहुंचेंगे।
आंदोलन के लिए बढ़ते किसान
नासिक से पैदल चलते हुए पैरों में छाले लिए 50 हजार किसान जब मुंबई पहुंचे तो वहां एक सुखद आश्चर्य उनका इंतजार कर रहा था। जी नहीं, यह सुखद आश्चर्य सरकार की तरफ से नहीं था। विभिन्न राजनीतिक दलों ने अपना-अपने हितों के हिसाब से इन किसानों का स्वागत जरूर किया, सरकार ने भी इन्हें इंतजार कराए बिना उनकी बात सुनी। मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने किसानों की सभी प्रमुख मांगें मान लेने का आश्वासन दिया। उस आश्वासन का सम्मान करते हुए किसानों ने अपना ‘लॉन्ग मार्च’समाप्त करने की घोषणा की। पर न तो किसान नेतृत्व यह मान कर चल रहा है कि इस आश्वासन से किसानों की समस्याएं सुलझ जाने वाली हैं और न सरकार की ऐसी घोषणाओं की अंतिम गति से परिचित लोगों को यह भरोसा है कि यह घोषणा पिछली तमाम घोषणाओं से बिल्कुल अलग साबित होगी।
खैर, किसानों को सरप्राइज दिया मुंबई के आम लोगों ने। हालांकि इसकी पूर्वपीठिका भी खुद किसानों ने तैयार की थी। नासिक से चलने के बाद ही इन आंदोलनकारी किसानों ने गजब का अनुशासन दिखाया था। कहीं भी उन्होंने न तो ट्रैफिक के लिए कोई समस्या पैदा होने दी और न ही रास्ते में पड़ने वाले शहरों-कस्बों के लोगों के लिए किसी तरह की परेशानी होने दी। किसानों की ऐसी भीड़ के मुंबई पहुंचने की खबरें मुंबईवासियों के दिलों तक पहले ही पहुंच चुकी थीं। रही-सही कसर भी इन किसानों ने तब पूरी कर दीं, जब ठाणे पहुंचने के बाद रात में आराम करने के बजाय वे रात एक बजे ही मुंबई के लिए चल पड़े। वजह? बस यही कि उन्हें पता चला अगले दिन शहर में एसएससी की परीक्षाएं होने वाली हैं। ऐसे में इतनी बड़ी संख्या में किसानों की भीड़ अगर शहर पहुंचेगी तो शहर की यातायात व्यवस्था को अस्त व्यस्त होने से कोई नहीं रोक पाएगा। तो किसानों के आने का नुकसान एसएससी की परीक्षा देने वाले युवाओं को और शहर के सामान्य लोगों को न झेलना पड़े इसके लिए ये किसान रात एक बजे ठाणे से पैदल चल पड़े ताकि सुबह होने से पहले वे आजाद मैदान पहुंच जाएं।
मुंबई वासियों को इन आंदोलनकारी किसानों के इस जज्बे का पता चला तो उनकी भी भावनाएं उमड़ आईं। जगह-जगह आम लोगों ने किसानों का स्वागत किया। रेजिडेंट वेलफेयर असोसिएशनों ने स्थान-स्थान पर इन किसानों के लिए खाने-पीने की व्यवस्था की।
आंदोलन के दौरान अक्सर यह देखने में आता है कि जब भी जनता का एक हिस्सा अपनी मांगों को लेकर सड़क पर उतरता है तो इसे अन्य हिस्सों के लिए असुविधाजनक बताया जाता है। लिहाजा अन्य हिस्से ऐसे आंदोलनकारी समूहों के विरोध प्रदर्शनों पर नाक-भौंह सिकोड़ते हैं। यह पहला मौका है जब शहरवासियों ने, जिनका किसानों की मांगों से कोई लेना-देना नहीं था, आगे बढ़कर आंदोलनकारी किसानों का इस्तकबाल किया।
यह समाज का, आम लोगों की एकजुटता का शानदार उदाहरण है। जरूरत यह है कि इस ऐक्य भाव का विस्तार हो। जनता के अलग-अलग हिस्से एक-दूसरे की लड़ाई में सहयोग करें तो हर हिस्से की लड़ाई आगे बढ़ेगी, उनका हक उन्हें मिलेगा और समाज को न्यायपूर्ण बनाने की मुहिम मजबूत होगी।
डिसक्लेमर : ऊपर व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं नव् भरत
आमिर खान कृष्ण विवाद वाला फ्रांक गॉटियर बहुत ही ज़हरीला आदमी हे आप जानते हे की कभी हिंदी की सबसे बेहतरीन और निष्पक्ष रही साइट के मालिक और संपादक ———– तिवारी को एक बेहतरीन इंसान और संपादक लेखक की जगह एक आधा पागल कम्युनल नाली का कीड़ा बना देने में इसी फ्रांक गॉटियर का बड़ा हाथ हे ——- तिवारी इसी को पढ़ पढ़ कर पागल हुआ हेसुचना क्रांति आदि जब शुरू हुई थी तब लेखक राजकिशोर ने अपनी किताब में सही लिखा था की ” लोगो को सूचनाओं के विस्फोट की नहीं सही सूचनाओं की जरुरत होती हे ” मगर ऐसा होगा नहीं निहित स्वार्थी तत्व लोगो को सही सूचनाए पहुंचने ही नहीं देंगे जैसे पति की जगह मोदी नाम बकने वाली को एक पूरा यु ट्यूब चेनेल पकड़ा दिया गया हे वो किसे ”बुरी खबर ” बताएगी पता ही हे ————————————————————
” Urmilesh Urmil
3 hrs ·
ख़बरों की बौछार, सूचना, दावों और कथित खुलासों का अंबार! मंत्री, नौकरशाह और शासन की कई सारी एजेंसियां बोल रही हैं! निर्वाचन आयोग तक ने कुछ बोला है! कहीं आप कन्फ्यूज तो नहीं हो रहे हैं कि भारत में इस वक्त चुनाव प्रक्रिया की निष्पक्षता और स्वतंत्रता सुनिश्चित करने के लिए असल मुद्दे ‘कुछ खास पार्टियों की बेहिसाब कारपोरेट फंडिंग’ है, ‘ईवीएम को लेकर शक और शंका का बढ़ता घेरा’ है या ‘फेसबुक’ है!
अगर आप कन्फ्यूज हो रहे हैं तो यह आपका कसूर नहीं, कोई भी हो सकता है! यह सूचनाओं के विस्फोट का युग है और वर्चस्व की शक्तियां सूचनाओं की बौछार अपनी इच्छा, स्वार्थ और सहूलियत के हिसाब से कराती हैं!
जय हिन्द!—–
Arun Maheshwari
2 hrs ·
अब राजनीतिक दलों को सोशल इंजीनियरिंग पर नहीं, सिर्फ डाटा इंजीनियरिंग पर भरोसा है ।नागरिक कोई जीता-जागता इंसान नहीं, महज एक डाटा है और समाज डाटा का संकलन । चुन कर कुछ खास डाटा पर हिट करो और पूरे समाज पर अपना वर्चस्व कायम कर लो । बाकी समाज जाए भांड़ मेंAshish Pradip
21 March at 23:23 ·
फेसबुक डाटा लीक के बाद भारतीयों का रिकॉर्ड भी सामने आया है
सुबह 5:30 – 7:00 – अलार्म घड़ी
7:00 – 8:00 – चाय प्रेमी
8:00 – 09:00 – धर्मगुरु
9:00 -10:00 – घर का वैद्य
10:00- 11:00 – ट्रैफिक एक्सपर्ट
11:00- 12:00 – राजनैतिक विश्लेषक
दोपहर 12 :00 – 02:00 – ग्लोबल वार्मिंग एक्सपर्ट
02:00 – 03:00 – ‘पर मोदी जी की नीयत पर शक नहीं कर सकते’
03:00 – 04:00 – ‘अकेला मोदी क्या-क्या करे’
04:00 – 06:00 – ‘ ये बच्चा बिलासपुर रेलवे स्टेशन पर खो गया है…’
शाम 06:00 – 08:00 – ट्रैफिक एक्सपर्ट
08:00 – 09:00 – धर्मरक्षक
09:00 – 10:00 -जगजीत सिंह फैन क्लब
रात 10:00 -11:00 – कवि
11:00 – 12:00 – शायर
12:00 – 05:30 एंजल प्रियाSanjay Shraman Jothe
18 hrs ·
ओए हवन कुंड गुंडों का झुंड…
अब वैदिक ज्ञान की काली रात
अब ऐसी रात रख दिल पे हाथ
हम साथ साथ बोलो क्या करेंगे ???
हवन करेंगे… हवन करेंगे… हवन करेंगे…
ओए वैज्ञानिक सब सो रहे होंगे
बुद्धिजीवी सब रो रहे होंगे
ऐसी रात सुनसान रात रख दिल पे हाथ
हम साथ साथ बोलो क्या करेंगे… ???
हवन करेंगे… हवन करेंगे… हवन करेंगे…
हवन करेंगे… हवन करेंगे… हवन करेंगे…
मुसलमानो में सेकुलर लोगो को कोई नहीं पूछने वाला पेसो की बेहद कमी हे हम खुद भी पेसो की कमी से शायद जल्द ही वैचारिक मौत मर जाएंगे यहाँ तक की बहुत बड़े बड़े उदार समझदार और सेकुलर गैर मुस्लिम तक मुसलमानो में सही मायनो में सेकुलर लोगो की पहचान नहीं हे पिछले दिनों ——— कुमार जैसा मानवाधिकार कार्यकर्त्ता भी उन लोगो का प्रचार कर रहा था जो अरबपति धर्माधिकारी के दाए बाए के लोग हे इसके अलवा बहुत से सेकुलर लोग सेकुलर मुसलमानो की तलाश में शियाओ और बरेलवियो को सर चढ़ाते हे सही मायनो में सेकुलर भारतीयमुस्लिमो की हालात तो दुनिया में सबसे बड़े यतीम जैसी हे ——————-
” हितेन्द्र अनंत
20 March at 14:06 ·
इतिहासकार रामचंद्र गुहा का एक महत्वपूर्ण लेख इंडियन एक्सप्रेस में छपा है जिसे धर्मनिरपेक्षता को लेकर चिंतित प्रत्येक भारतीय और खासतौर से प्रत्येक सजग मुस्लिम को पढ़ना चाहिए.
इसमें वो लिखते हैं कि मुस्लिम समाज के लिए आदर्श नेतृत्व एक उदार, शिक्षित और आधुनिक चेहरा होना चाहिए था जो शेख अब्दुल्लाह, हामिद दलवई और आरिफ मोहम्मद खान जैसा कोई होता. ऐसा हो नहीं पाया.
हिन्दू अर्थात बहुसंख्य समाज के भीतर के उदार व धर्मनिरपेक्ष लोग तभी कट्टर हिंदुत्व से जीत पाएंगे जब मुस्लिम समाज से उन्हें मदद मिले. यह मदद होगी मुस्लिम समाज का खुद आधुनिकता की ओर बढना और खुद के भीतर से उदार, आधुनिक व प्रगतिशील नेतृत्व तैयार करना. यह केवल अपवाद के रूप में न होकर समाज में व्यापक रूप से आया बदलाव हो जो स्पष्ट दिखाई भी दे.
यह सच है कि फिलहाल ऐसा है नहीं. मुस्लिम समाज में उतनी ही कट्टरता है जितनी कि दूसरी तरफ़. मुस्लिमों के नेता होने के दावे करने वाले मुस्लिम चेहरे भी प्रायः वैसे नहीं हैं जैसे तीन नाम गुहा ने सुझाए हैं. मुलायम, लालू आदि जो नेता मुस्लिमों के खैरख्वाह बनते हैं वह उन्हें सिर्फ़ पीछे ही रखेगा.
मुस्लिम समाज को चाहिए कि वह खुद अपना स्वरूप बदले, नजरिया बदले और आधुनिकता की दौड़ में शामिल हो. इसके आधार पर ही वह कट्टर बहुसंख्यकवाद से लड़ने के काबिल होगा और बहुसख्य्कों में जो उदार हैं उन्हें बल देगा. ”
संघी हिन्दू कठमुल्लावाद का नतीजा मुस्लमान भी भुगतेंगे मगर कम साल में एक दो बार , बाकी पुरे साल ये निरीह हिन्दुओ का ही खून पिएंगे देखे —————————–
रितेश 25 March at 13:02 · आज राजपूतों के छोरों ने पकड़ के सुनारों के छोरों को कूट दिया …. सुनारों के छोरों ने ख़ातियों को छोरों को कूट दिया …. ख़ातियों के छोरों ने नाइयों के छोरों को कूट दिया …. ब्राह्मणों के छोरों ने इसके छोरे को कूट दिया …. इसके छोरे को उसके छोरे के कूट दिया ….
ये हाल 2012-13 का है मेरे शहर का …. राजस्थान का ….
हिंदुओं के छोरे आपस में लड़ते थे जातीय गैंग बना के …. रोज़ इसका माथा फूटा तो उसका हाथ टूटा …. रोज़ थाने पुलिस केस वकीलों के चक्कर ….
जबकि देश मे उस वक़्त लव जेहाद के खिलाफ भी आवाजें उठ रही थी …. हमको लड़ना अन्य मोर्चे पे था हम लड़ आपस में रहे थे ….
एक दिन हम 4-5 मित्र बैठे थे …. उस वक़्त मेरी आयु 27-28 साल थी …. 6 साल पहले ….
हमने एक योजना बनाई और एक संगठन खड़ा कर दिया …. संगठन का नाम रखा “हिन्दू जाग्रति संघ” …. सारे आपस मे लड़ने वाले हिन्दू युवाओं को संगठन में एक छत के नीचे एकजुट किया हमने …. हिंदुत्व के मुद्दे पे सब हिन्दू एकजुट हो गए ….
एक मेरा शहर …. मेरे विधानसभा क्षेत्र के 147 गांव …. कारवां बनता गया …. हर गांव से 2 से 10 हिन्दू युवा जुड़ते गए …. आज हमारा संगठन 2000 हिन्दू युवाओं का है ….————————————————————
Madan
पहली बार दिखा हिन्दू तालिबान :
आज पटना से वापस आते समय मखदुमपुर में दिखा खौफनाक मंजर, रामनवमी का जुलूस,हाथ में तलवार लाठी, डंडा लिए हुए तकरीबन 200-300 युवक, अधिकांश नशे में चूर, भीड़ में 12-14 वर्ष के लड़के भी थे, रास्ता दोनो तरफ से जाम, हर ट्रक गाड़ी के ड्राइवर को जबर्दस्ती जय श्रीराम बोलने के लिए मजबूर कर रहे थे, गाड़ियों को डंडे से पिट रहे थे, एक गाड़ी में भोजपुरी फ़िल्म के महिला कलाकार थी उस गाड़ी को घेरकर अश्लील हरकतें कर रहे थे, यह सबकुछ हिन्दू क्षेत्र में कर रहे थे, उन्हें गुंडा कहा जा सकता है लेकिन हिन्दू तो कतई नही ,देखकर लगा मुल्क को तालिबान बनाने की राह पर बढ़ा दिया है मोदी ने, राजद के गुंडाराज में गुंडे बदमाशी करते थे, रंगदारी मांगते या चन्दा मांगते थे परंतु आज जो दिखा वह तो विशुद्ध रूप से आतंकवाद था, राजद के गुंडाराज को भूल जाएंगे हिंदुत्व के नाम पर पनप रहे इस आतंकवाद को देखकर।
सकुन वाली बात एक ही दिखी की आगे में मुस्लिम क्षेत्र था जहां सैप सहित पुलिस अधिकारी डेरा डाले हुए थे, नीतीश की प्रशंसा करनी पड़ेगी । कल मेरे मुहल्ले से भी जुलूस गुजरा ,मैं बाहर निकलकर लाईव दिखला रहा था, मखदुमपुर के जुलूस की हरकत देखकर लगा कि अगर मेरे घर के सामने से गुजर रहे उस जुलूस ने किसी को जयश्रीराम बोलने के लिए बाध्य किया होता तो निसन्देह हंगामा हो जाता ,पिटाई करता कमीनो की ।नीतीश को अलग हो जाना चाहिए, उनक़ी साख अच्छी है ये तालिबान भाजपाई उनकी प्रतिष्ठा को भी समाप्त कर देंगे ।
बीजेपी के इस गन्दे खेल को रोकने और युवाओं को बर्बाद होने से बचाने के लिए हर घर के बुजुर्गों को आगे आना चाहिए अन्यथा कुछ भी नही बचेगा, उनके बच्चों की बलि चढ़ाकर बीजेपी सता हासिल करती रहेगी, युवक न तो नौकरी लायक रहेंगे, न व्यवसाय योग्य।
आतंकी बनकर रेप डकैती करेंगे ।
बहुत ही एलार्मिंग स्थिति है ।
मुल्क को जर्मन,अफगानिस्तान, इराक बनने से बचाना होगा ।
Saleem Akhter Siddiqui 19 hrs · असदुद्दीन ओवैसी की बेटी की सगाई की कुछ तस्वीरें सामने आई हैं। गरीब मुसलमानों के रहनुमा ऐसे ही अमीर होते हैं। मुसलमानों की गुरबत पर रात दिन आंसू बहाने वाले ओवैसी साहब गरीब मुसलमानों के सामने सादगी की मिसाल पेश नहीं कर पाए ———————————————————————————-देशभक्ति और मज़हबभक्ति दोनों फर्जीवाड़ा होता हे अपने हित साधने का साधन हे और कुछ नहीं धर्मभक्ति सेल कर करके ओवेसी दस हज़ार करोड़ के मालिक बन गए उस पेसो को ये शादी में फूंकेंगे मगर राकेश सिन्हा को जेल भिजवाने में नहीं करेंगे क्योकि इनका कोई नुकसान राकेश सिन्हा के भड़काऊ बयान से नहीं हे बल्कि फायदा हे राकेश को इनसे फायदा हे उपमहाद्वीप के हिंदू मुस्लिम कठमुल्लाओ का आपस में गजब का समन्वय हो चूका हे दोनों ऐसे सांप हे जो मिलकर सेकुलरिज्म उसमे भी खासकर सेकुलर मुसलमानो का दम घोंट रहे हे
हिज़ड़े भी एकदम सामान्य इंसान की तरह ही होते हे जैसे हमारे संपादक अफ़ज़ल भाई जिन एंकरों को हिज़ड़े कहते हे रविश के शब्दों में वो गुंडे भी हे अच्छा कई संघियो की रो रो के आँखे सूझ हई हे जैसे उज्जैनी गेंडे की इनका मन्ना हे की इन्होने भाजपा संघ राष्टवाद आदि की बहुत सेवा की हे पर इन्हे कोई नहीं पूछता हे इनके हिस्से का पैसा रविश और एनडी टीवी के सिग्नल उड़ाने में खर्च किया जाता हे कल उज्जैनी जब अपना हक़ मारने वाले आई टी सेल को भला बुरा कह रहा था तो बहुत सम्पन्न वाले भाजपाई कम्युनल भाई बहन की जोड़ी में से भाई ने दी उज्जैनी के——–पर जोरदार लात ——————————-Ravish Kumarपब्लिक ही मेरा संपादक है और मैं पब्लिक न्यूज़ रूम में काम करता हूं।
हमारा चैनल अब कई शहरों में नहीं आता है। इससे काम करने के उत्साह पर भी असर पड़ता है। शहर का शहर नहीं देख पा रहा है, सुनकर उदासी तो होती है। इससे ज्यादा उदासी होती है कि संसाधन की कमी के कारण आपके द्वारा भेजी गई हर समस्या को रिपोर्ट नहीं कर पाते। कई लोग नाराज़ भी हो जाते हैं। कोई बेगुसराय से चला आता है तो कोई मुंबई से ख़बरों को लेकर चला आता है। उन्हें लौटाते हुए अच्छा नहीं लगता। आपमें से बहुतों को लगता है कि हर जगह हमारे संवाददाता हैं। सातों दिन, चौबीसों घंटे हैं। ऐसा नहीं है। दिल्ली में ही कम पड़ जाते हैं। जिन चैनलों के पास भरपूर संसाधन हैं उन्हें आपसे मतलब नहीं है। आप एक एंकर का नाम बता दें तो सुबह चार घंटे लगाकर सैंकड़ों लोगों के मेसेज पढ़ता है। इसलिए धीरज रखें। मेरा सवाल सिस्टम से है और मांग है कि सबके लिए बेहतर सिस्टम हो। आपमें से किसी की समस्या को नहीं दिखा सका तो तो आप मुझे ज़रूर उलहाना दें मगर बात समझिए कि जो दिखाया है उसी में आपका सवाल भी है।आपके मेसेज ने पत्रकारिता का एक नया मॉडल बना दिया है। उसके लिए मैं आपके प्रति आभार व्यक्त करना चाहता हूं और प्रणाम करना चाहता हूं। स्कूल सीरीज़, बैंक सीरीज़, नौकरी सीरीज़, आंदोलन सीरीज़ ये सब आप लोगों की बदौलत संभव हुआ है। दो तीन जुनूनी संवाददाताओं का साथ मिला है मगर इसका सारा श्रेय आप पब्लिक को जाता है।दुनिया का कोई न्यूज़ रूम इतनी सारी सूचनाएं एक दिन या एक हफ्ते में जमा नहीं कर सकता था। महिला बैंकरों ने अपनी सारी व्यथा बताकर मुझे बदल दिया है। वो सब मेरी दोस्त जैसी हैं अब। आप सभी का बहुत शुक्रिया। हर दिन मेरे फोन पर आने वाले सैंकड़ों मेसेज से एक पब्लिक न्यूज़ रूम बन जाता है। मैं आपके बीच खड़ा रहता हूं और आप एक क़ाबिल संवाददाताओं की तरह अपनी ख़बरों की दावेदारी कर रहे होते हैं। मुझे आप पर गर्व है। आपसे प्यार हो गया है। कल एक बुजुर्ग अपनी कार से गए और हमारे लिए तस्वीर लेकर आए। हमारे पास संवाददाता नहीं था कि उसे भेजकर तस्वीर मंगा सकूं।जब मीडिया हाउस खत्म कर दिए जाएंगे या जो पैसे से लबालब हैं अपने भीतर ख़बरों के संग्रह की व्यवस्था ख़त्म कर देंगे तब क्या होगा। इसका जवाब तो आप दर्शकों ने दिया है। आपका दर्जा मेरे फ़ैन से कहीं ज़्यादा ऊंचा है। आप ही मेरे संपादक हैं। कई बार मैं झुंझला जाता हूं। बहुत सारे फोन काल उठाते उठाते, उसके लिए माफी चाहता हूं। आगे भी झुंझलाता रहूंगा मगर आप आगे भी माफ करते रहिएगा। यही व्यवस्था पहले मीडिया हाउस के न्यूज़ रूम में होती थी। लोगों के संपर्क संवाददाताओं से होते थे। मगर अब संवाददाता हटा दिए गए हैं। स्ट्रिंगर से भी स्टोरी नहीं ली जाती है। जब यह सब होता था तो न्यूज़ रूम ख़बरों से गुलज़ार होता था। अब इन सबको हटा कर स्टार एंकर लाया गया है।
आपसे एक गुज़ारिश है। आप किसी एंकर को स्टार होने का अहसास न कराएं। मुझे भी नहीं। ये एंकर अब जन विरोधी गुंडे हैं। एक दिन जब आपके भीतर का सियासी और धार्मिक उन्माद थमेगा तब मेरी हर बात याद आएगी। ये एंकर अब हर दिन सत्ता के इशारे पर चलने वाले न्यूज रूम में हाज़िर होते हैं। पुण्य प्रसून वाजपेयी ने हाल ही में कहा है कि ख़बरों को चलाने और गिराने के लिए पीएमओ से फोन आते हैं। कोबरा पोस्ट के स्टिंग में आपने देखा ही कैसे पैसे लेकर हिन्दू मुस्लिम किए जाते हैं। इस सिस्टम के मुकाबले आप दर्शकों ने जाने अनजाने में ही एक न्यूज़ रूम विकसित कर दिया है जिसे मैं पब्लिक न्यूज़ रूम कहता हूं। बस इसे ट्रोल और ट्रेंड की मानसिकता से बचाए रखिएगा ताकि खबरों को जगह मिले न कि एक ही ख़बर भीड़ बन जाए।
मैंने सोचा है कि अब से आपकी सूचनाओं की सूची बना कर फेसबुक पर डाल दूंगा ताकि ख़बरों को न कर पाने का अपराधबोध कुछ कम हो सके। यहां से भी लाखों लोगों के बीच पहुंचा जा सकता है। कभी आकर आप मेरी दिनचर्या देख लें। एक न्यूज़रूम की तरह अकेला दिन रात जागकर काम करता रहता हूं। कोई बंदा ताकतवर नहीं होता है। जो ताकतवर हो जाता है वो किसी की परवाह नहीं करता। मैं नहीं हूं इसलिए छोटी छोटी बातों का असर होता है। आज कल इस लोकप्रियता को नोचने के लिए एक नई जमात पैदा हो गई है जो मेरा कुर्ता फाड़े रहती है। यहां भाषण वहां भाषण कराने वाली जमात। एक दिन इससे भी मुक्ति पा लूंगा। शनिवार रविवार आता नहीं कि याद आ जाता है कि कहीं भाषण देने जाना है। उसके लिए अलग से तैयारी करता हूं जिसके कारण पारिवारिक जीवन पूरा समाप्त हो चुका है। जल्दी ही आप ऐसे भाषणों को लेकर आप एक अंतिम ना सुनेंगे। अगर आप मेरे मित्र हैं तो प्लीज़ मुझे न बुलाएं। कोई अहसान किया है तब भी न बुलाएं। मैं अब अपनी आवाज़ सुनूंगा साफ साफ मना कर दूंगा। अकेला आदमी इतना बोझ नहीं उठा सकता है। गर्दन में दर्द है। कमर की हालत खराब है। चार घंटे से ज्यादा सो नहीं पाता।आप सब मुझे बहुत प्यार करते हैं, थोड़ा कम किया कीजिए, व्हाट्स अप के मेसेज डिलिट करते करते कहीं अस्पताल में भर्ती न हो जाऊं। इसलिए सिर्फ ज़रूरी ख़बरें भेजा करें। बहुत सोच समझ कर भेजिए। मुझे जीवन में बहुत बधाइयां मिली हैं, अब रहने दीजिए। मन भर गया है। कोई पुरस्कार मिलता है तो प्राण सूख जाता है कि अब हज़ारों बधाइयों का जवाब कौन देगा, डिलिट कौन करेगा। मुझे अकेला छोड़ दीजिए। अकेला रहना अच्छा लगता है। अकेला भिड़ जाना उससे भी अच्छा लगता है। गुडमार्निग मेसेज भेजने वालों को शर्तियां ब्लाक करता हूं। बहुतों को ब्लाक किया हूं। जब नौकरी नहीं रहेगी तब चेक भेजा कीजिएगा! तो हाज़िर है पब्लिक न्यूज़ रूम में आई ख़बरों की पहली सूची।
उत्तर प्रदेश में बेसिक टीचर ट्रेनिंग कोर्स एक पाठ्यक्रम है। प्राथमिक विद्यालय में शिक्षक की नौकरी पाने के लिए यह कोर्स करना होता है। प्राइवेट कालेज में एक सेमेस्टर की फीस है 39,000 रुपए। राज्य सरकार हर सेमेस्टर में 42,000 रुपये भेजती है। मगर इस बार छात्रों के खाते में 1800 रुपये ही आए हैं। छात्रों का कहना है कि अगले सेमेस्टर में एडमिशन के लिए उनके पास पैसे नहीं हैं। आगरा के एम डी कालेज के छात्र ने अपनी परेशानी भेजी है। उनका कहना है कि प्राइवेट और सरकारी कालेज के छात्रों के साथ भी यही हुआ है।छात्र ने बताया कि बेसिक टीचर ट्रेनिंग का नाम सत्र 2018 से बदलकर डिप्लोमा इन एलिमेंट्री एजुकेशन कर दिया है। इसमें राज्यभर में 2 लाख छात्र होंगे। अब जब 2 लाख छात्र अपने साथ होने वाली नाइंसाफी से नहीं लड़ सकते तो मैं अकेला क्या कर सकता हूं। इन्होंने कहा है कि मैं कुछ करूं तो मैं लिखने के अलावा क्या कर सकता हूं। सो यहां लिख रहा हूं।बिहार से 1832 कंप्यूटर शिक्षक चाहते हैं कि मैं उनकी बात उठाऊं। लीजिए उठा देता हूं। ये सभी पांच साल से आउटसोर्सिंग के आधार पर स्कूलों में पढ़ा रहे थे। मात्र 8000 रुपये पर। अब इन्हें हटा दिया गया है। आठ महीने से धरने पर बैठे हैं मगर कोई सुन नहीं रहा है। इन्हें शिक्षक दिवस के दिन ही हटा दिया गया। कई बार लोग यह सोचकर आउटसोर्सिंग वाली नौकरी थाम लेते हैं कि सरकार के यहां एक दिन परमानेंट हो जाएगा। उन्हें आउटसोर्सिंग और कांट्रेक्ट की नौकरी को लेकर अपनी राजनीतिक समझ बेहतर करनी होगी। नहीं कर सकते तो उन्हें रामनवमी के जुलूस में जाना चाहिए जिसकी आज कल इन 1832 कंप्यूटर शिक्षकों की भूखमरी से ज़्यादा चर्चा है। ऐसा कर वे कम से कम उन्माद आधारित राजनीति के लिए प्रासंगिक भी बने रहेंगे। नौकरी और सैलरी की ज़रूरत भी महसूस नहीं होगी क्योंकि उन्माद की राजनीति अब परमानेंट है। उसमें टाइम कट जाएगा। सैलरी की ज़रूरत ही नहीं पड़ेगी। वैसे इन शिक्षकों ने एक ट्विटर हैंडल भी बनाया है जहां वे मुख्यमंत्री को टैग करते रहते हैं। मगर कोई नहीं सुनता है। पचास विधायकों ने इनके लिए लिखा है मगर कुछ नहीं हुआ। ये सांसद विधायक भी किसी काम के नहीं है। पत्र लिखकर अपना बोझ टाल देते हैं।
हज़ारों की संख्या में ग्रामीण बैंक के अधिकारी और कर्मचारी तीन दिनों से हड़ताल पर हैं मगर इन्हें सफलता नहीं मिली है। रिटायरमेंट से पहले एक लाख रुपये की सैलरी होती है और रिटायर होने के अगले ही महीने इनकी पेंशन 2000 भी नहीं होती है। बहुत से बुज़ुर्ग बैंकरों की हालत ख़राब है। कोई 2000 में कैसे जी सकता है। आप नेताओं की गाड़ी और कपड़े देखिए। अय्याशी चल रही है भाई लोगों की। ज़ुबान देखिए गुंडों की तरह बोल रहे हैं। आपका सांसद और विधायक पेंशन लेता है और आप से कहता है कि पेंशन मत लो। यह चमत्कार इसलिए होता है क्योंकि आप राजनीतिक रूप से सजग नहीं है। आखिर ऐसा क्यों है कि सरकारें किसी की नहीं सुनती तो फिर क्यों इन दो कौड़ी के नेताओं के पीछे आप अपना जीवन लगा देते हैं।
कटिहार मेडिकल कालेज के छात्र लगातार मेसेज कर रहे हैं। वहां डॉक्टर फैयाज़ की हत्या हो गई थी। कालेज प्रशासन ख़ुदकुशी मानता है। फ़ैयाज़ की हत्या को लेकर छात्र आंदोलन कर रहे हैं। कैंडल मार्च कर रहे हैं। बहुत दुखद प्रसंग है। गोपालगंज, कटिहार में भी छात्रों ने प्रदर्शन किया है। दोस्तों अपनी लड़ाई में मेरे इस लेख को ही शामिल समझना। मिलने की ज़रूरत नहीं है न बार बार मेसेज करने की। काश संसाधनों वाले चैनल के लोग आपकी खबर कर देते तब तक आप अपने घरों से हर न्यूज़ चैनल का कनेक्शन कटवा दें। एक रुपया चैनलों पर ख़र्च न करें।
अनवर बर्ख़ास्त हो गया, अनिल बच गया। हांसी से किसी पाठक ने दैनिक भास्कर की क्लिपिंग भेजी है। खबर में लिखा गया है कि गवर्नमेंट पी जी कालेज प्रशासन ने प्रोग्रेसिव स्टुडेंट यूनियन के सदस्य अनवर को बर्ख़ास्त कर दिया और एक अन्य सदस्य अनिल को चेतावनी दी है। अच्छी बात है कि सभी छात्रों ने इसका विरोध किया है और प्रिंसिपल सविता मान से मिलकर आंदोलन की चेतावनी दी है। भास्कर ने लिखा है कि कालेज के इतिहास विभाग ने 22 मार्च को भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु की शहादत के मौके पर भाषण प्रतियोगिता कराई थी। कार्यक्रम में प्रोगेसिव स्टुडेंट्स फ्रंट के सदस्यों ने पुस्तक प्रदर्शनी लगाई। भगत सिंह की जेल डायरी,दस्तावेज़ व अन्य प्रगतिशील पत्रिकाएं रखी गईं। छात्रों ने कहा कि प्रिंसिपल ने क्रायक्रम के बीच से ही सब हटवा दिया। छात्रों के आई कार्ड छीन लिया। इसके बाद नोटिस लगाया गया जिसने अनवर का नाम काटने और अनिल को चेतावनी देने की बात लिखी हुई है। छात्रों ने विरोध किया है। प्रिंसिपल ने कहा कि अनवर अनुशासनहीनता करता है। प्राध्यापकों की बात नहीं मानता है। दीवार पर पोस्टर चिपका देता है। उसे कई बार चेतावनी दी गई मगर नहीं माना। हमने भास्कर की ख़बर यहां उतार दी।Ravish Kumar26 March at 21:45 · न्यूज़ चैनल निर्लज्ज तो थे ही अब अय्याशियां भी करने लगे हैं। इस अय्याशी का सबसे बड़ा उदाहरण है अभी बारह महीने बाद होने वाले चुनाव में कौन जीतेगा। ताकि दिल्ली के आलसी पत्रकारों और एंकरों और बंदर और लोफर प्रवक्ताओं की दुकान चल सके। आम आदमी सड़कों पर मरता रहे।
Ravish Kumar—————————————————————जनज्वारजेएनयू छात्र नेता शेहला रशीद ने गर्भवती होने की फर्जी ट्वीट का खुद किया खुलासा
सवाल यह है कि सत्ता में बने रहने के लिए मोदी के लोग कितनी नीचता पर उतरेंगे, शेहला के नाम पर भाजपा आईटी सेल ने बनाया असली सा दिखने वाला फर्जी ट्वीटर हैंडल
शेहला को कन्हैया कुमार द्वारा गर्भवती करने वाले फर्जी ट्वीट पर एबीपी न्यूज एंकर अभिसार शर्मा ने कहा, ‘शेहला, नकली ट्वीटर अकाउंट बनाकर इस तरह का दुष्प्रचार करना दिखाता है कि गंदगी ‘भक्तों’ के है डीएनए में
जनज्वार, दिल्ली। जेएनयू छात्र संघ की पूर्व उपाध्यक्ष शेहला रशीद के नाम से सोशल मीडिया पर उनके द्वारा रिट्वीट किया गया एक ट्वीट वायरल हो रहा है। उसमें शेहला ने लिखा है, ‘कन्हैया ने मुझे प्रैग्नेंट कर दिया है। हॉस्टल में मैं एबॉर्शन कैसे करवाउं। मुस्लिम भाइयों से अनुरोध है कि गर्भपात के लिए मुझे घरेलू उपाय सुझाएं। #तैमूरपार्ट2’
जेएनयू में यौन उत्पीड़न के आरोपी प्रोफेसर अतुल जौहरी की गिरफ्तारी
शेहला का कहना है कि उनके नाम का फर्जी एकाउंट बनाकर उससे यह ट्वीट किया गया है, जिससे कि मुझे बदनाम किया जा सके। फासिस्ट भाजपा ने यह चाल मुस्लिम राष्ट्रीय मंच के साथ मिलकर चली है, उन्हीं लोगों की आईटी सेल ने मेरा नकली ट्वीटर हैंडल बनाया है।
जेएनयू में बिरयानी बनाने और खाने पर लगा 10 हजार का जुर्माना
शेहला रशीद ने ट्वीट किया है, ‘देखिए फासिस्ट पार्टी बीजेपी का विरोध करने के लिए क्या कीमत चुकानी पड़ती है। मुस्लिम राष्ट्रीय मंच (आरएसएस की मुस्लिम विंग) के साथ साझेदारी कर भाजपा आईटी सेल द्वारा मेरे नाम से नकली ट्वीटर एकाउंट बनाकर गंदगी फैलाने और मुझे दुष्प्रचारित करने का काम किया जा रहा है। ऐसे घटिया ट्रोल और इस तरह गंदगी प्रचारित करने की फासिस्ट पार्टी की चालों से सावधान होने की जरूरत है।’
भाजपा के लिए चेतावनी है छात्रसंघ चुनावों के नतीजे
गौर करने वाली बात यह है कि जिस ट्वीटर हैंडल से यह ट्वीट किया गया है, उस पर नीले रंग का राइट का साइन भी बना है, जो फेक आईडी में नहीं दिखाता। मगर सवाल यह है कि आखिर इसमें ट्वीटर ने नीले रंग का राइट का साइन कैसे दिखाया है, जब यह शेहला का ट्वीटर हैंडल है ही नहीं तो, इससे सोशल मीडिया की विश्वसनीयता पर भी सवाल उठने शुरू हो गए हैं।
नजीब के गायब होने के एक साल पूरे, जानिए अबतक कितनी मिली सफलता
इस पर प्रतिक्रिया व्यक्त करने हुए वरिष्ठ पत्रकार स्वाति चतुर्वेदी ने लिखा है, शेहला यह कृत्य निश्चित ही बहुत घृणित है, मगर मुझे इससे बिल्कुल भी आश्चर्य नहीं हुआ है, क्योंकि यही इन लोगों की असली गंदगी है।
कैंपस में आरएसएस और सिंह द्वार पर लड़कियां
वरिष्ठ पत्रकार अभिसार शर्मा ने कहा है, शेहला रशीद के नाम से इस तरह का नकली ट्वीटर हैंडल बनाकर ऐसी टिप्पणी करना वाकई चौंकाता है। शेहला तुमने भक्तों को इतना परेशान कर दिया है कि वे यही कर सकते हैं। नकली ट्वीटर अकाउंट बनाकर इस तरह का दुष्प्रचार करना दिखाता है कि गंदगी ‘भक्तों’ के डीएनए में है। (हमें पता है यह किसी का पसंदीदा शब्द है।) यही ऐसी चीज है, जिसे वो बखूबी जानते हैं।
जनपक्षधर पत्रकारिता को सक्षम और स्वतंत्र बनाने के लिए आर्थिक सहयोग दें। जनज्वार किसी भी ऐसे स्रोत से आर्थिक मदद नहीं लेता जो संपादकीय स्वतंत्रता को बाधित करे
हिंदी सोशल मिडिया पर छाए ये हिन्दू कम्युनल अधेड़ हे जिनमे कोई पुराना लात खाया बेरोजगार पत्रकार हे किसी के सर पर उसके ससुराल वालो ने हथोड़ा मारा था कोई बीवी की मेहनत की कमाई पर जिन्दा हे कोई आई एस का साला हे किसी को उम्मीद हे की जल्द ही भजपा हर भड़काऊ पोस्ट के लाख रूपये देगी जरूर देगी इक्कठा पेमेंट आएगा जरूर आएगा इन सबकी बीविया और घरवाले शायद शुक्र मनाते हे कि अच्छा हे ये लिजलिजा जीव सारा दिन सोशल पर लगा रहे वार्ना हमारी जान खायेगा सब इतने ——– हे सारा दिन खाली पड़े पड़े अपने से भी ज़्यादा खाली बेरोजगार कुंठित हिन्दू लड़को को भड़काते रहते हे इतना भड़काते हे की एक आपसी ही गैंगवार में कई के खिलाफ ऍफ़ आई आर दर्ज हो चुकी हे पुलिस ढूंढ रही हे हुआ ये की जैसे ये संघी खूसट अधेड़ हर समय हिंदुत्व खतरे में हे की बांग लगाते रहते हे तो इसी भड़कावे के अतिउत्साह में ये संघी लौंडे एक मामूली सी किताब को धर्म के विरुद्ध बता कर लाइक्स शेयर का नशा और पब्लिसिटी चाहते थे इसी हवस में और अफीमची और भंगेड़ी तो हे ही ये सब तो इसी पिनक में लेखक की मित्र लड़की के खिलाफ भी कोई गंदे कमेंट कर दिए होंगे और उसके बाद भी कई दिनों तक बंदरो की तरह तक खी खी कर रहे थे लड़की ने हिम्मत करके पुलिस रिपोर्ट कर दी और अब कई संघी भागे फिर रहे हे और असली दोषी गद्दार उपरोक्त संघी खूसट अधेड़ो में सारे गधेड़े अपने अपने लाइक्स के हिसाब से कोई इसका तो कोई उस का पक्ष ले रहे हे Vikram Singh Chauhan
12 hrs ·
हिंदी -अंग्रेजी के न्यूज़ चैनल भगवत गीता पढ़ने वाली एक मुस्लिम लड़की को स्टूडियों में बिठाकर देश को बताती है कि देखिये एक मुस्लिम लड़की को,मुस्लिमों को इनसे सीख लेनी चाहिए।लेकिन यही न्यूज़ चैनल उस हिन्दू लड़की को नहीं ढूढ़ती जो क़ुरान पढ़ती है।ये न्यूज़ चैनल तो आपको आसनसोल के इमाम इमदादुल के बारे में भी नहीं बताएगा।इमाम इमदादुल आसनसोल दंगों में अपने 16 साल के बेटे को खो चुके हैं। आंखों में आये आसुँ को रोककर वे दूसरे घर के बेटों की फिक्र कर रहे हैं।वे बोल रहे हैं मेरा बेटा तो चला गया पर इस वजह से प्रतिशोध में किसी और के घर का चिराग न बुझे।वे अपने लोगों को बोलते हैं आप लोगों ने सवाल किया तो मैं चुपचाप ये जगह छोड़ जाऊंगा। इमदादुल इस दौर में इंसानियत के मसीहा है। इनके पैर में कभी कांटा न चुभे ।
Vikram Singh Chauhan
14 hrs ·
उत्तराखंड के मेडिकल छात्रों और अभिभावकों के नाम एक पत्र-
बहुत शुक्रिया। आपको ख़ुशी हुई और फायदा हुआ। मुख्यमंत्री रावत ने फीस वृद्धि की वापसी का एलान कर दिया है। उम्मीद है वे कैबिनेट का फैसला भी वापस लेंगे। एक साल की फीस 6 लाख से बढ़कर 23 लाख कर दी जाए यह अमानवीय है और आर्थिक ग़ुलामी भी। आप सभी 650 छात्रों और माता-पिताओं ने 48 घंटे के भीतर यह असर देखा कि अगर पत्रकारिता जनता की तरफ रहे तो जनता को कितना लाभ हो सकता है। आपसे एक और गुज़ारिश है। अगर आप किसी भी तरीके से सांप्रदायिक बातों का समर्थन करते हैं तो उसमें बदलाव कीजिए। आप या आप नहीं तो आपके बच्चे कभी भी दंगाई माहौल के चपेट में आ सकते हैं। उनके भीतर किसी से नफ़रत करने का ख़्याल आ सकता है, किसी की हत्या करने का विचार आ सकता है। हत्या की शुरूआत नफ़रत से होती है।
आप चाहें हिन्दू हैं या मुसलमान हैं। मैं सभी से कह रहा हूं। भारत की राजनीति ग़लत दिशा में जा रही है। जिस तरह से मैं आप या आपके बच्चों के लिए खुल कर बोलता हूं उसी तरह आपको भी अपने और पड़ोसी के बच्चों के लिए खुलकर सांप्रदायिकता का विरोध करना होगा। वरना एक दिन आप तो बच जाएंगे मगर आपकी नागरिकता चली जाएगी। तब कोई मीडिया आपके लिए नहीं होगा। क्या पता मैं भी न रहूं। मैं सम भाव में यकीन करता हूं। गीता का यही सार है। तारीफ और गाली दोनों बराबर से खाता हूं। आप लोगों के ज़रिए जितना अपमान सहा है और जितना प्यार मिला है वो सब लौटाता हूं। मैं लौटाता भी रहता हूं। मैं अपने पथ पर अकेला जाता हूं। रवीश कुमार, प्राइम टाइम
Vikram Singh Chauhan
17 hrs ·
रवीश कुमार जिंदाबाद जिंदाबाद।उत्तराखंड सरकार ने मेडिकल की फीस वापस ले ली है। सभी स्टूडेंट और उनके परिवारवालों को 40-40 लाख का फायदा हुआ है।उत्तराखंड सरकार ने मनमानी करते हुए एमबीबीएस,एमडी,एमएस के छात्रों की फीस पांच गुनी यानी 25 लाख तक बढ़ा दी थी।कुछ कोर्स तो 1 करोड़ फीस तक पहुंच गई थी।इसके बाद रवीश कुमार ने इन छात्रों के लिए मोर्चा सम्हाल लिया था,और प्राइम टाइम में दो दिनों से इसे बड़ा मुद्दा बना दिया था।
Ravish Kumar सरFollow
Vikram Singh Chauhan
29 March at 22:59 ·
बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर के नाम के साथ रामजी जोड़ने से क्या हो जाएगा? खुद अंबेडकर ने अपने पूरे नाम का ऐसा सार्वजनिक प्रदर्शन ज़रूरी नहीं समझा. उनके राजनीतिक-बौद्धिक अनुयायियों को भी कभी यह खयाल नहीं आया कि अंबेडकर के साथ रामजी को जोड़ें. उनका कई खंडों में जो समग्र साहित्य अंग्रेजी, हिंदी और मराठी जैसी भाषाओं में सुलभ है, उसमें भी अंबेडकर के साथ रामजी नाम जोड़ा हुआ नहीं है. यही नहीं, मराठी में वे पहले से आंबेडकर लिखे जाते रहे हैं, हिंदी में उनका अंबेडकर नाम प्रचलित है.
फिर अचानक योगी आदित्यनाथ को सभी सरकारी दस्तावेजों में भीमराव के साथ रामजी जोड़ने और अंबेडकर को आंबेडकर करने का का ख़याल क्यों आया? बहुत संभव है, पहले उन्हें यह जानकारी न रही हो. जब उन्हें पता चला हो तो उन्हें खयाल आया हो कि शायद इस तरह अंबेडकर को हिंदुत्व के कुछ क़रीब लाया जा सकता है.
अगर योगी की यह मंशा है तो यह सबसे पहला छल अंबेडकर के साथ ही है. क्योंकि अंबेडकर बौद्ध हो चुके थे. यही नहीं, हिंदू रहते हुए भी उन्होंने हिंदुत्व के बारे में जो कुछ कहा, उसे अगर बीजेपी, प्रधानमंत्री मोदी या मुख्यमंत्री योगी सही मानते हों तो उनको अपनी पूरी विचारधारा का आग्रह छोड़ना होगा. अंबेडकर हिंदू धर्म को एक मिथ बताते थे, इसे किसी भी बराबरी के विरुद्ध मानते थे. उनकी स्पष्ट राय थी कि हिंदू तभी एक होते हैं जब उन्हें मुसलमानों से लड़ना होता है. वे यह भी कहते थे कि अगर हिंदुओं को एक होना है तो सबसे पहले हिंदुत्व से मुक्ति पानी होगी.
ऐसा नहीं कि अंबेडकर यह सब किसी राजनीतिक लक्ष्यसिद्धि के लिए कहते थे. यह उनकी सुविचारित विचारधारा थी जिसे लगातार उनके अनुभव पुष्ट करते रहे और अंततः उन्होंने धीरे-धीरे ख़ुद को हिंदुत्व से दूर किया और बौद्ध धर्म की शरण ली. उनका यह आकलन बहुत दूर तक सटीक रहा कि भारत की राजनीतिक आज़ादी के बावजूद उसके बहुत सारे उन समुदायों की सामाजिक आज़ादी नहीं मिलेगी जिन्हें जातिवाद की जंजीरों से जकड़कर रखा गया है.
ऐसा भी नहीं कि बीजेपी के झंडाबरदार यह सब कहने वाले अंबेडकर को जानते या समझते न हों. अगर उन्हें लोकतंत्र का, दलितों के वोट खोने का भय न होता तो ऐसे अंबेडकर को वे सबक सिखाने में देर न करते- वेद पढ़ने के लिए उनके कान में शीशे डाल देते या इनकी आलोचना करने के लिए उनकी जीभ काट लेते. लेकिन आजाद हिंदुस्तान के लोकतंत्र की यह मजबूरी है कि उन्हें अंबेडकर को भी सहन करना है- बल्कि उनका सम्मान भी करना है.
लेकिन बीजेपी को अंबेडकर का विचार नहीं उनकी मूर्ति चाहिए जिस पर वे माला चढ़ा सकें. उन्हें बौद्ध नहीं, हिंदू दिखने वाले अंबेडकर चाहिए. क्या यह भी एक वजह है कि सरकार को उनके नाम के साथ रामजी जोड़ना ज़रूरी लग रहा है?
लेकिन अगर इस फ़ैसले के पीछे अंबेडकर या राम के ऐसे किसी राजनीतिक इस्तेमाल की मंशा है तो यह फिर से दोनों के लिए दुर्भाग्यपूर्ण है. हालांकि न यह इस्तेमाल नया है और न ही इस इस्तेमाल की वजह से दोनों के व्यक्तित्व पर पड़ने वाले दाग नए हैं. राम बीजेपी और संघ परिवार के पैदा होने से सदियों पहले से ही भारतीय मानस का हिस्सा रहे हैं- उन्हें सिर्फ हिंदू अस्मिता से जोड़कर जय श्रीराम की आक्रामकता के साथ की जाने वाली राजनीति करके बीजेपी ने दरअसल उन्हें कुछ छोटा करने का ही काम किया है. अब अंबेडकर के साथ रामजी को जोड़कर वह अगर कोई राजनीतिक संदेश देना चाहती है तो इसके अपने विद्रूप हैं. यह अनायास नहीं है कि इसी हफ़्ते योगी आदित्यनाथ ने विधानसभा में समाजवाद को ख़ारिज करते हुए रामराज्य की बात की. ऐसा कौन सा रामराज्य हो सकता है जो समाजवाद के बिना चला आए? या राजनीतिक तौर पर यह जयभीम को जय श्रीराम के क़रीब लाने की कोशिश है? लेकिन क्या जय श्रीराम को छोड़े बिना जयभीम बोलना संभव है?
(एनडीटीवी के सीनियर एडिटर प्रियदर्शन का लेख)
https://www.youtube.com/watch?v=zHMfVIz6vCo
इन संघी गेंडो को विश्वास था की मुस्लिम और इस्लाम विरोध के कालीन के नीचे ही ये अपना सारा कूड़ाकरकट सेट कर देंगे और किसी को पता भी नहीं चलेगा——————————————————————–Manoj Kumar2 hrs · अगर आपको दलितों के गुस्से और आक्रोश का अनुमान नहीं था तो आप शुतुरमुर्ग हैं, या फिर दंगा फैलाने की अपनी ताकत का इतना गुमान है कि आपने इस तरफ ध्यान नहीं दिया|
दरअसल मायावती को उतर-प्रदेश के चुनाव में सीट नहीं मिलने के बाद और रामविलास, उदितराज और आठवले को खरीदकर आपको लगा कि आपने दलित आन्दोलन को निगल लिया है| आपके आसपास के लग्गू-भग्गू और करीबी intelligentsia भी आपको यही विश्वास दिलाती रही|
तकनीकी बातों में मत उलझाइए| ये कहने का कोई मतलब नहीं है कि आन्दोलनकारी सुप्रीम कोर्ट के ऑब्जरवेशन का सही मतलब समझकर निकले थे या नहीं| यह गुस्सा एक दिन का नहीं है|
आखिर किस ठिठाई से और किसकी शह आर केन्द्रीय मंत्री अनंत कुमार हेगड़े संविधान बदलने की बात करता है| किसकी शह पर वह दलितों के लिए अपमानजनक भाषा बोलता है|
अनंत कुमार हेगड़े आज भी केन्द्रीय मंत्री है| उसपर कोई कार्रवाई नहीं हुई|
किसकी शह पर उतर-प्रदेश का मुख्यमंत्री अजय सिंह विष्ट दलित नेता चन्द्रशेखर को जमानत मिलने के बाद जेल में रखने का हौसला दिखाता है?किसकी शह पर वह चंदशेखर पर राष्ट्रीय सुरक्षा क़ानून की धारा लगाता है?
किसकी शह पर यह हो रहा है कि हत्यारे बर्बर शम्भुलाल रैगर की शोभायात्रा निकलती है और एक दलित युवक को घोड़ी आर चढ़ने के लिए मुँह कुचल कर मार दिया जाता है|
बंद के दौरान हिंसा हुई है और लोगों की जानें गई हैं क्योंकि प्रशासन और सरकार को इस गुस्से का अंदाज नहीं था| यह पूरी तरह से प्रशासनिक असफलता है|
आज हिंदुत्व के नकली रंग में रंगे सवर्ण हिंदुत्ववादी सियारों के रंग उतरने का दिन है|
सवर्णों , अभी भी चेत जाइए| कल तक आपको लग रहा था कि आपके पास बहुसंख्यकों की ताकत है और मुसलमान अल्पसंख्यक हैं| एक ही दिन में आपको अपने अल्पसंख्यक होने का अहसास हो गया और क़ानून के शासन की याद आने लगी?लगेगी आग तो आएँगे घर कई ज़द में
यहाँ पे सिर्फ़ हमारा मकान थोड़ी है
Shambhu Nath
14 hrs · Ghaziabad ·
एक मौलाना ने पढ़ा दिया पूरे आज़मगढ़ को!
टीवी देख-सुन कर और अख़बार बाँच कर मैं भी अन्य सामान्य भद्रजनों की तरह यही समझता था कि उत्तर प्रदेश का ज़िला आज़मगढ़, की एक पहचान माफिया सरगना दाऊद इब्राहीम और अबू सलेम को जन्म देने की है. पिछले 15 वर्षों की सरकारों की विज्ञप्तियों से यह भी धारणा पुख्ता थी कि यह ज़िला रमाकांत यादव जैसे बाहुबलियों का जिला है और हर समय यहाँ बंदूक की नली से गोलियां निकलती रहती हैं तथा साम्प्रदायिक तनाव को यह जिला पनपाता है. मुझे यह भी समझाया गया था कि यह कट्टर वहाबियों का ज़िला है. मगर आज़मगढ़ में तीन दिन के प्रवास और दिल्ली से आज़मगढ़ की यात्रा जिस कैफ़ियात एक्सप्रेस से की, उसने पूरे 17 घंटे लगाए, मगर इस यात्रा में मुझे जो सहयात्री मिले वे कहीं से वहाबी नहीं लगे. बल्कि जैसे ही ट्रेन दिल्ली से निकली, तो एक सहयात्री दम्पति जमना पर गाड़ी के आते ही बुदबुदाया- जय हो जमना मैया की! उस सेकंड एसी कोच में बेचारा जोर से बोल भी नहीं सकता था, लेकिन सदियों की रवायत यूँ भी इग्नोर नहीं की जा सकती. उसकी यह बुदबुदाहट सुन कर मुझे अपने मित्र श्री अनिल माहेश्वरी द्वारा सुनाया गया इतिहास का एक किस्सा याद आ गया. जब मुगलों का पतन हो रहा था, उस 18 वीं सदी में एक अरबी धर्म प्रचारक/सुधारक अब्दुल वहाब दिल्ली आया. उसका इरादा था कि हिंदुस्तान में कमजोर हो रहे इस्लाम को मजबूत करना और हिंदुस्तान के मुसलमानों को दरगाह व मदार-पूजन से उबारना. उसने यहाँ दिल्ली के आसपास के मुसलमानों को इससे उबारा और फिर धर्म-सुधार हेतु गंगा पार कर मुरादाबाद और बरेली के पठान इलाके की तरफ का रुख किया. ज़िला बुलंदशहर के करीब स्याना के आगे से गंगा पार करने का निश्चय किया. तब कोई पुल तो थे नहीं, इसलिए शेर शाह सूरी के वक़्त के बंदर बाराबस्सी से उसने एक बड़ी नौका की और उसमें बैठकर अब्दुल वहाब और उसके तमाम हिन्दुस्तानी अनुयायी गंगा पार करने लगे. नौका जब बीच धारा में पहुंची तो एक अनुयायी ने हाथ जोड़े और बोला- जय गंगा मैया की. बाकी हिन्दुस्तानी साथियों ने भी यही किया. अब्दुल चिल्लाया- यह क्या कर रहे हो बेवकूफों, यह सब इस्लाम में वर्जित है. वे सब एक साथ बोल उठे- मौलाना तुम हमें धर्म तो समझाओ नहीं, धर्म हमें पता है. हम गंगा मैया के हाथ तो जोड़ेंगे ही, आखिर गंगा मैया हमारे खेतों को सींचती है. अब्दुल वहाब बोला- नामाकूलो, तुम हिन्दुस्तानी लोग मज़हब को नहीं समझोगे और वह उन्हें छोड़ कर अपने वतन वापस लौट गया.
अब रुख करें आज़मगढ़ का. शाहगंज पार करते ही इंजिन की दिशा बदलती है और ट्रेन आज़मगढ़ की ओर बढ़ती है. हमारे सहयात्री दम्पति ने बताया कि यहाँ से कैफ़ी आज़मी का गाँव न्योजा करीब ही है. मुझे फुरफुरी हो आई, इतने अज़ीम शायर के घर के बगल में हम हैं. कुछ ही देर में हम आज़मगढ़ पहुँचने ही वाले थे थी कि ट्रेन के एक कोच में आग लग गई. ट्रेन रुकी और कुछ ही देर में फायर ब्रिगेड और पुलिस की गाड़ियाँ आ गईं. आग बुझी तो हम आगे चले. तमसा तट पर आज़म शाह द्वारा बसाया गया शहर आज़मगढ़ प्रत्यक्ष था. आज़म शाह के पुरखे गौतम राजपूत थे. जिस दिन हम वहां पहुंचे, उस दिन रविवार था. सड़कें साफ़-सुथरी, भीड़ कम और शांत शहर. हमारे रुकने की व्यवस्था जिस त्रिवेणी-इन में थी, वह ठंडी सड़क पर था और ठंढ़ा भी. यह शहर बहुत समृद्ध है, मौलाना शिब्ली नोमानी के प्रयासों से बने शिबली इंटर कालेज, शिबली नेशनल कालेज, शिबली नर्सरी और शिबली अकादमी यहाँ स्थापित हैं, इस कारण पढ़ाई में यह शहर और जिला अव्वल है. हमें न तो वहां कोई तनाव दिखा, न ही क्राइम. और तो और ड्रेस एवं पहरावे से यहाँ के लोग मॉडर्न हैं पर अपनी रवायतें बनाए हुए हैं. लड़कियों में पढ़ाई-लिखाई खूब है. क्योंकि शिबली नेशनल कालेज में लड़कियों को भी प्रवेश मिलता है. यहाँ के लोग अत्यंत विनम्र, मेहमाननवाज़ और कोमल ह्रदय वाले हैं और संकोची भी खूब. लोग आगे बढ़कर आपकी मदद करेंगे लेकिन श्रेय नहीं लेंगे. वहां से लौटने के बाद मुझे प्रतीत हुआ कि अगर ऐसे शहर कम्युनल, क्राइम-प्रोन और बाहुबलियों वाले कहलाते हैं तो खुदा करे हिन्दुस्तान का हर क्षेत्र और उसके वासी ऐसे ही नामी-गिरामी हों. इस शहर से सांसद अपने चचा मुलायम सिंह हैं.
Ashok Kumar Pandey
9 May at 23:23 ·
जिन राजा महेन्द्र प्रताप को लेकर संघी बन्दर की तरह उछल कूद रहे हैं और श्वान की तरह स्वामीभक्ति दिखा रहे हैं वह हिन्दू मुस्लिम एकता के बड़े अलमबरदार थे। अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से पढे लिखे राजा साहब 1 दिसम्बर, 1915 को काबुल में बनी जिस Government In Exile के हेड थे उसमें मौलाना बरकतुल्लाह प्रधानमन्त्री थे और देवबंदी मौलाना उबैदुल्लाह सिन्धी गृह मन्त्री। युद्ध मन्त्री मौलाना बशीर थे तो विदेश मन्त्री थे चम्पकरमन पिल्लई। उन्होने देश की आजादी के लिये लेनिन की सरकार से भी वार्ता की थी। वह लेनिन और त्रात्स्की से मिले भी थे।
अपनी प्रिय यूनिवर्सिटी को उन्होने 3.02 एकड़ ज़मीन 2 रुपये प्रतिवर्ष की लीज़ पर दी थी।
इसके पहले 1913 में वह गाँधी के साथ दक्षिण अफ्रीका के आन्दोलन में शामिल हुए थे। अनेक शिक्षा संस्थान बनाने वाले राजा साहब ने एक नया धर्म बनाने की कोशिश की थी – प्रेम धर्म और इसके बारे मे एक किताब लिखी थी। जब लेनिन को उन्होने यह किताब दी तो लेनिन ने कहा कि वह इसे पहले ही पढ चुके हैं और इसे तालस्ताय वाद का नाम दिया। बृन्दावन में उन्होने जब देश का पहला पॉलीटेक्निक कॉलेज खोला तो उसका नाम रखा – प्रेम महाविद्यालय। 1929 में गाँधी जी ने उनके बारे मे कहा था – देश के लिये इस महान व्यक्ति ने निर्वासन चुना। उन्होने अपनी सारी सम्पत्ति दान कर दी…शिक्षा के प्रसार के लिये। अपनी कृति प्रेम महाविद्यालय के लिये।
विस्तार से जानना हो तो उनकी जीवनी उपलब्ध है। नाम है – माय लाइफ स्टोरी 1886-1979। सम्पादन डॉ वीर सिंह ने किया है। भरोसा न हो तो रविवार को घर आ जाइये।
अभी एक और वाकया – 1957 के चुनाव में निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में राजा साहब ने जनसंघ के उम्मीदवार अटल बिहारी बाजपेयी की जमानत जब्त करा दी थी।
राजा को 1932 में नोबल पुरस्कार के लिये नोमिनेट किया गया था। लेकिन उस साल यह पुरस्कार नहीं दिए गये।
See Translation
Ashok Kumar Pandey
10 May at 08:01 ·
अग्निशेखर और क्षमा कौल के पुत्र हिमालय सम्बली बौखलाए हैं। इनबॉक्स में माँ बहन की गालियाँ भेज रहे हैं और चाहते हैं कि मै उन्हें शेयर करूं।
लेकिन मैं इनबॉक्स की गालियाँ कभी शेयर नहीं करता। यह लिखा भी बस इसीलिए है कि बता सकूँ कि अगर माँ बाप साम्प्रदायिक नाग में बदल जाएँ तो बच्चे नाली के कीड़ों में तब्दील हो जाते हैं। सब पढ़ाई लिखाई बेकार है बेटा हिमालय अगर यही भाषा सीखी है। तुमसे बेहतर संबल में नाव चलाने वाले तुम्हारे पुरखे या फिर श्रीनगर में चपरासी की नौकरी करने वाले कम पढ़े लिखे तुम्हारे बाबा थे, तुम तो पढ़ लिखकर भी घिनौने बदबूदार कीड़े में तब्दील हो गये हो।
कश्मीरनामा को रंडीनामा लिखकर तुम मेरा नहीं उस कश्मीर का अपमान कर रहे हो जिससे मुहब्बत का दावा तुम्हारे पिता करते हैं। कल पनुन कश्मीर का नाम भी इसी तर्ज पर न बदल देना, उन्हें दुख होगा।
Atul Chaurasia29 April at 11:55 ·
पढ़े-लिखों का रचा सरायमीर का दंगा
अकसर ये बात सरसरी तौर पर कह कर बहुत सारी जिम्मेदारियों से नेता-अधिकारी बच लेते हैं कि अशिक्षा इसकी जड़ है. एक बार लोग शिक्षित हो जाएं तो बहुत सी समस्याएं समाप्त हो जाएं. पर यह अधूरा सच है. शिक्षा सिर्फ एक पहलू है, सारा पहलू नहीं. यहां हम दो ऐसे ही पढ़े-लिखे लोगों की बात करने जा रहे हैं, जिन्होंने अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा, कंपटीटिव पॉलिटिक्स की अंधी दौड़ में कमपढ़, अधिकतर खलिहर नौजवानों को धर्म की आड़ लेकर इतना बरगलाया कि पहले से ही सांप्रदायिक नजरिए से बदनाम आज़मगढ़ का सरायमीर कस्बा एक और नफरत की आग में जल उठा. कस्बे के लोगों ने एक दूसरे पर हमला किया, पुलिस बूथ जलाया, पुलिस थाने पर पथराव किया और पुलिस अधिकारी पर भी हमला किया. सरायमीर कस्बा अभी भी तनाव की गिरफ्त में है.
यह सारा किया धरा दो पढ़े-लिखे लोगों का है. Obaidur Rahman और Kalim Jamei . ओबैदुर्रहमान अलीगढ़ यूनिवर्सिटी से पढ़े लिखे हैं और कलीम जामिया मिलिया इस्लामिया से, जैसा कि उनके नाम से ही विदित है. ओबैदुर्हमान सरायमीर टाउन एरिया के दो बार चेयरमैन रह चुके हैं. लेकिन पिछले दो बार से वे चेयरमैन बनने चूक रहे हैं. इसकी बड़ी वजह कस्बे का धार्मिक ध्रुवीकरण है जो भाजपा के उठान के कारण उनके खिलाफ जा रहा है. कुछ महीने पहले हुए नगर पंचायत के चुनाव में हार के बाद ओबैदुरर्हमान ने पूरी तरह से मुस्लिम पहचान की राजनीति को हवा देने और भड़काने का काम किया. ऐसा उनकी फेसबुक पोस्ट से गुजर कर समझा जा सकता है. चुनाव से पहले उनकी छवि धर्म निरपेक्ष थी. अब वे धर्म सापेक्ष हो गए हैं. जाहिर है चुनावी हारजीत से जीवन मूल्यों को पल-पल बदलने वाला कोई व्यक्ति किसी भी धारा के प्रति कितना प्रतिबद्ध हो सकता है.
दूसरे कलम जामेई हैं जो हाल के दिनों में बड़ी तत्परता से कस्बे की राजनीति में अपना वजूद तलाश रहे हैं. इस तरह अलीगढ़ और दिल्ली की जामिया यूनिवर्सिटी से निकले दो खिलाड़ियों ने किस तरह अपनी सियासी महत्वाकांक्षा में कस्बे को लोगों का जीवन नर्क बना दिया वह कहानी आप भी जानें. इस पोस्ट के साथ लगे कुछ स्क्रीन शॉट से भी आपको स्थिति समझने में मदद मिलेगी.
25 अप्रैल के आस-पास कस्बे के एक हिंदू लड़के ने पैगंबर साहब और मुस्लिम समाज में बुर्का को लेकर बेहद आपत्तिजनक फेसबुक पोस्ट किया. उन पोस्ट का स्रोत कोई भी आसानी समझ जाएगा कि व्हाट्एप यूनिवर्सिटी का ज्ञान है. पोस्ट का सार मुस्लिम समाज से घृणा और अज्ञान को बढ़ावा देने वाला है. जाहिर है प्रशासन को समय रहते चेत जाना चाहिए था. पर ऐसा नहीं हुआ, जैसा की हमेशा से होता है. उस लड़के का अपराध अछम्य इसलिए भी है कि वो लंबे समय से इसी तरह की घृणास्पद पोस्ट लिखने के लिए बदनाम है।
27 अप्रैल आते-आते मुस्लिम समाज की ठेकेदारी इन दो नेताओं ने अपने हाथ में ले ली. गुस्ताखे रसूल के खिलाफ एफआईआर दर्ज करवाने, उसका श्रेय लेने के दलदल में दोनों इस क़दर मसरूफ हुए की यह लड़ाई एक कीचड़ में तब्दील हो गई.
खैर पहली बाजी ओबैदुर्हमान के हाथ लगी. एफआईआर दर्ज हुई, आरोपित लड़के को गिरफ्तार कर लिया गया. दूसरे “पढ़ेलिखे” खिलाड़ी कलीम जामेई को अपने हाथ से जाती सियासत ने बेचैन कर दिया. तो उसने आरोपित की गिरफ्तारी के बाद भी मुद्दे को तूल देने की कोशिश में नई कहानी रची कि जो धाराएं लगाई गई हैं वो रसूल के अपमान को देखते हुए कमतर हैं. आरोपित पर रासुका लगाना होगा. अगर ऐसा नहीं हुआ तो 28 अप्रैल को बाजार बंद रहेगा. थाने का घेराव पर प्रदर्शन होगा. ये बात कलीम अपने साथियों और सोशल मीडिया के जरिए फैलाने लगे. दूसरी तरफ ओबैदुरर्हमान अपनी जमीन मजबूत करने के चक्कर में सोशल मीडिया पर कलीम जामेई को नाम लेकर उन्हें डरपोक और भगोड़ा करार देने लगे. बेरोजगार, कमपढ़, मुस्लिम युवा जिसके हाथों में मोबाइल और फेसबुक हाल ही के दिनों में पहुंता है, इन दोनों महत्वाकांक्षी नेताओं की पाट में ल्यूब्रिकैंट बन गया. दोनों की सियासत हजारों युवाओं की ऊर्जा पाकर तरलता से फिसलने लगी. जामेई के आह्वान को मुसलिम युवाओं का मिल रहा जबर्दस्त समर्थन देख ओबैदुर्रहमान की स्थिति सांप-छछूंदर वाली हो गई. शाम होते-होते वे भी बाजी अपने हाथ में रखने के लिए बाजार बंद के समर्थन में पोस्ट लिखने लगे.
व्हाट्सएप, फेसबुक के जरिए 28 अप्रैल को बंद की ख़बर पूरे कस्बे और आस-पास के सैकड़ों गांवों में फैला दी गई. 1500 से 2000 के बीच लोगों की भीड़ ने 28 अप्रैल को सुबह थाना घेर लिया. इसके बाद वो सब हुआ जिसका जिक्र ऊपर किया जा चुका है. भीड़ ने बाजार के स्थानीय बुजुर्ग भाजपा नेता को पीट दिया, इससे मामला और सांप्रदाययिक हो गया. हिंदुओं ने भी पलट कर मुसलिमों पर हमला किया. जो लड़ाई अभी तक मुसलिम युवा (अपने नेताओं के बरगलाने पर) प्रशासन से लड़ रहे थे उसका दायरा तत्काल ही हिंदू-मुसलमान हो गया.
सरायमीर कस्बा लंबे समय से सांप्रदायिकता की चपेट में है. दो-तीन महीने पहले ही यहां के एक हिंदू युवक और मुसलिम युवती की शादी को लेकर कस्बा ज्वलनशील हो गया था. तब भी इन्हीं दो नेताओं ने जमकर राजनीति को हवा दी थी. हालांकि तब लड़की ने खुद ही बयान देकर मामला खत्म कर दिया था कि वह अपनी स्वेच्छा से शादी कर रही थी और दस्तावेज मुहैया करवाकर दोनों ने खुद के वयस्क होने का सबूत दिया.
इस तरह कहानी इस मुकाम पर पहुंची, कि पढ़े-लिखे लोग कमपढ़, अशिक्षितों के बीच किसी समस्या का समाधान होने की बजाय ऐसा ज़हर हैं जो लोगों को नीम बेहोशी की हालत में पहुंचा देते हैं. पढ़े-लिखे लोगों के नेतृत्व में कस्बा दो महीने के भीतर दूसरी बार जलने को तैयार है. अब यह नेता लोग इस आग पर गंगा-जमुनी तहजीब का पानी छिड़कने में लगे हैं. हालांकि गंगा-जमुनी तहजीब शब्द की उत्पत्ति इनसे पूछ ली जाय तो बहुत संभव है कि इन्हें गूगल खंगालना पड़े.Atul Chaurasia
Ashok Kumar Pandey
29 May at 16:49 ·
धीरेश सैनी लिखते हैं –
यह विडंबना ही हो सकती है कि किसी सर का बचाव किया जाए, वह सैयद अहमद ही हों। लेकिन, सैयद अहमद की तुलना मलवीय से करनी पड़ जाए तो इससे बड़ी विडंबना क्या होगी? अगर समय और माहौल की बात भी करुं तो सैयद और मालवीय के जीवन काल में ही इतना फ़र्क़ है! सैयद 1817 में पैदा होकर 1898 में दुनिया से चले गए। मदन मोहन मालवीय 1861 में जन्मे और 1946 में संसार से कूच कर गए। सैयद के समय में भी और उनसे पहले भी दुनिया में उनसे आगे के विचारों के लोग मौजूद थे। मालवीय का वक़्त वह है, जब दुनिया में ही नहीं, हिंदुस्तान में भी सेक्युलरिज़्म एक मूल्य की तरह स्थापित हो चुका है। भगत सिंह और उनके साथी ही नहीं, राष्ट्रीय आंदोलन के कई दूसरे प्रतिनिधि धर्म, जाति, भाषा आदि के सवालों पर साफ़ सोच के साथ नेतृत्व में हैं। जेंडर के प्रश्न को लेकर भी पूरी शिद्दत के साथ जद्दोजहद है। उस समय मालवीय भयानक रूप से साम्प्रदायिक, दलित विरोधी और स्त्री विरोधी हैं। वे महज पिछड़ी मानसिकता के नहीं हैं बल्कि इन मूल्यों के प्रतिरोध में सक्रिय रूप से खड़े हैं। यहां तक कि भगत सिंह उनका नाम लेकर आलोचना करते हैं। हाँ, भगत सिंह हमारे नायक हैं।
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मैं पूछ रहा हूँ
पहले तो यही कि जेंडर के सवाल पर उस दौर में कौन सी जद्दोजेहद है? क्या भगत सिंह के यहां जेंडर पर कुछ है। फिलहाल इसे जाने दीजिए।
प्रताप नारायण मिश्र 1856 में जन्में 1891 में दुनिया ए फ़ानी से विदा हो गए। यानी वही पीरियड जिसमें सर सैयद सक्रिय थे। तो उसी तर्क पद्धति का इस्तेमाल करें अगर तो मिसिर जी की अंग्रेज़ परस्ती और साम्प्रदायिकता को भी माफ़ कर देना चाहिए?
जोड़ दूं अजीमुल्लाह खान को। 1857 का असली हीरो। जिसने हिन्दू मुस्लिम एकता की बात की थी। यही नहीं 1857 का वह महान विद्रोह भी जिसमें लगातार अंग्रेजों के ख़िलाफ़ हिन्दू मुस्लिम एकता की बातें हुईं थीं वह सब जब हुआ तो सर सैयद 40 पार के थे तो यह कहना कि तब तक सेक्यूलरिज़्म की बात ही नहीं हुई थी, या तो इतिहास के शून्य ज्ञान से पैदा हो सकता है या उस ब्राह्मणवादी तर्क पद्धति से जो निष्कर्ष पहले तय करती है उसे सही साबित करने के जुगाड़ बाद में लगाती है। गैर से देखें तो असल में भारत में साम्प्रदायिक राजनीति के चरम पर बीसवीं सदी के आरंभिक वर्षों में पहुंचती है और जड़ें जमाती है। हिन्दू महासभा बनती है मुस्लिम लीग बनती है। अकाली दल बनता है। आर एस एस बनती है। बाकी सब तो इतिहास का सामान्य विद्यार्थी जानता ही है।
वैसे भाषा भी अपना काम करती है जहां सर सैयद ‘पैदा’ होते हैं, मालवीय ‘जन्म’ लेते हैं, सैयद “दुनिया” से जाते हैं मालवीय “संसार” से कूच करते हैं। यह मष्तिष्क की भाषाई साम्प्रदायिक बनक का इशारा है, एक ब्राह्मणवादी संरचना जो उसी दौर के उसी हिन्दू माफ कीजिए हिंदी नवजागरण में पनपी जिसके ख़िलाफ़ धीरेश झंडा उठाने का भ्रम पालते हैं।
हाँ जम्मू में गोरक्षा आंदोलन के नाम पर दंगे करवाने वाले हिन्दू महासभाई मालवीय पर पहले ही इतना लिख चुका हूँ कि मुझे यह बताने की ज़रूरत नहीं कि उन्हें मैं क्या मानता हूँ।
(यह विशुद्ध बौद्धिक और वैचारिक बहस है। धीरेश या किसी व्यक्ति के बारे में कोई घटिया टिप्पणी बर्दाश्त नहीं की जाएगी। वह मित्र हैं और रहेंगे बहसें चलती रहेंगी वह शामिल न होना चाहें तो भी)
Ashok Kumar Pandey
12 mins ·
1947 में कश्मीर के जो दो हिस्से पाकिस्तान के कब्ज़े में गए उनमें गिलगिट-बाल्टिस्तान की चर्चा सबसे कम होती है जबकि कश्मीर के इतिहास में इसका महत्त्व बहुत अधिक है। असल में अकबर के समय से ही केंद्रीय सत्ता का कश्मीर पर कब्ज़े की आकांक्षा का यह एक ज़रूरी सबब रहा है, कारण है इसकी स्ट्रेटेजिक अवस्थिति। एक तरफ़ अफगानिस्तान और रूस की सीमा तो दूसरी तरफ़ चीन। अकबर इस पर कब्ज़े के साथ पश्चिम से होने वाले हमलों को रोकना चाहता था तो अंग्रेजों के लिए पहले ज़ारशाही और फिर साम्यवादी रूस से संपर्क रोकने के लिए ज़रूरी था। आप देखेंगे महाराजा प्रताप सिंह के समय से ही अंग्रेजों ने इस पर लगभग प्रत्यक्ष कब्ज़ा बनाए रखा।
1947 में भी इस इलाके पर क़ब्ज़े में पाकिस्तान की मदद एक अंग्रेज़ अफसर ने ही की। गिलगिट स्काउट के प्रमुख मेज़र विलियम ब्राउन ने वहाँ स्थानीय लोगों और हुंजा-नागर के मीर आदि के साथ पाकिस्तानी झंडा फहरा दिया। पाकिस्तान से तो एक तहसीलदार स्तर का अधिकारी सरदार आलम खान कई दिनों बाद वहाँ पहुँचा। आप इस घटना में ब्राउन की भूमिका इसी बात से समझ सकते हैं कि पाकिस्तान सरकार ने उसे मरणोपरांत अपने सबसे बड़े सम्मान ‘निशान ए पाकिस्तान’ से सम्मानित किया।
इसके बावजूद पाकिस्तान ने कभी इस क्षेत्र को अपना अधिकृत हिस्सा घोषित नहीं किया था। लंबे समय तक इसे नॉर्दर्न एरिया कहा जाता था। वह किसी भावी जनमतसंग्रह तक इसे विवादित हिस्सा ही बनाये रखना चाहता था ताकि जब ऐसा हो तो कश्मीर के तीनों हिस्सों में जनमतसंग्रह हो सके। हालाँकि 1963 में इसका 2700 वर्ग मील हिस्सा चीन को देने और इसकी जल संपदा का दोहन जैसे तमाम क़दम असलियत बयान करते हैं। इसका नुकसान यह था कि इस क्षेत्र के लोग आम पाकिस्तानी नागरिक को मिलने वाले अधिकारों से वंचित थे और पाकिस्तान की नेशनल असेंबली में यहां का प्रतिनिधि भी नहीं था। इसी अन्याय के चलते वहाँ ‘बलवारिस्तान’ नामक स्वतन्त्र देश बनाये जाने की मांग भी होती रही है।
हाल में ही पाकिस्तान ने ‘गिलगिट बाल्टिस्तान ऑर्डर’ पास किया है जिसके बाद इस इलाके के पाकिस्तान के पांचवे राज्य बनने की राह खुल गई है। यानी इस इलाके पर अपना क़ब्ज़ा पाकिस्तान अधिकृत रूप से स्वीकार कर रहा है। हालाँकि भारत ने इसका विरोध किया है लेकिन मुझे लगता है कि बाजपेयी की यह समझ ही सबसे बेहतर थी कि दोनों देश अपने अपने कश्मीर को स्वीकार करें और नियंत्रण रेखा को अंतरराष्ट्रीय रेखा में तब्दील कर दिया जाए तो शायद विवाद के किसी समाधान की ओर बढ़ना ज़्यादा आसान होगा।
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Abdul Rashid
Abdul Rashid Sanjay Tiwari जी ,विस्फोट की आज भी जरूरत है।
Sanjay Tiwari ब्लाग के बतौर तो आज भी जिन्दा ही है बाकी विस्फोट को पैसे की जरूरत है। जब तक पैसा नहीं होगा अब किसी से लिखवायेंगे नहीं।Abdul Rashid Sanjay Tiwari जी इस समस्या से इनकार नहीं किया जा सकता। ब्लॉग मैं पढ़ता हूँ। मुझे नहीं मालूम के द वायर वालों की बात कितना सच है लेकिन वो ये दावा करते हैं के सब कुछ जनता के पैसे से चल रहा है,तो क्या ऐसी व्यवस्था बनाया जा सकता है।
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Sanjay Tiwari
Sanjay Tiwari Abdul Rashid ऐसी कोई व्यवस्था नहीं हो सकती। वायर को बड़ी फंडिंग है। कुछ कॉरपोरेट घरानों से। भारत के लोगों को अभी मीडिया दान और सहयोग का सब्जेक्ट ही नहीं लगता। उनके लिए मीडिया एक धंधा है। इसलिए कोई मदद को आगे नहीं आता।—————————————————————————————————————————————————————————————————————————————————————————पाठको तिवारी हो या कोई हो हिंदी वालो को कोई पैसा नहीं दे सकता हे ना देगा जिसके पास भी जब भी पैसा आता हे वो उसे अपनी जरूरतों पर खर्च कर देता पहले जरूरतों पर फिर महत्वकांशाओ पर चाहतो पर खर्च कर देता हे टाइम्स ग्रुप के पास खरबो रुपया हे एक ज़माने में नवभारत ब्लॉग की टी आर पि फेसबुक टाइप ही थी मगर सवाल ही नहीं उठता की ये हिंदी लेखकों को चवन्नी भी दे और सभी का भी यही हाल हे संसथान छोड़े एक ज़माने में एक हिंदी लेखक ने मनोरंजन जगत के लिए लिख कर खूब पैसा कमाया था लोगो को आस थी की अब ये गरीब हिंदी , हिंदी लेखकों की मदद करेगा मगर उनके दोस्त लेखक ने बताया की आस तो बहुत थी मगर उन्होंने कोई खास नहीं किया मेरा अंदाज़ा हे की उनकी क्योकि ढेर सारी मित्र थी वो शायद उन पर लुटा देते होंगे उनकी एक मित्र ने तो उनके मुंबई के फ्लेट पर भी कब्ज़ा कर लिया था सेकुलर थे लेकिन कम्युनल की मदद से फ्लेट छुड़वाया था लब्बोलुआब ये हे की पैसा आते ही लोगो की दस चाहते जाग जाती हे पैसा लूट जाता हे और हिंदी हिंदी वाले खासकर कंगाल ही रहते हे अब एक लास्ट कोशिश हम करना चाहते हे में और अफ़ज़ल भाई शुद्ध ईमानदार हे हमारी कोशिश ये चल रही हे मेरे एक लंदन के कज़िन ने कुछ हज़ार की मदद से शुरुआत भी की हे एक और कज़िन यूरोप में हे उससे भी मदद मांगी हे लेकिन ज़ाहिर हे की इतना आसान नहीं हे सो मेने मॉडल ये सोचा हे की लगभग लगभग तीस लाख की जमीन मेरे पास हे ही एक हाइवे बन गया तो कीमत डबल भी हो सकती हे तो मेरा मॉडल ये हे की लोग हमे पैसे दे हमारे अकॉउंट में डाले आपका पैसा सेफ रहेगा हम उसे हाथ भी नहीं लगाएंगे वो रखा रहेगा फ़र्ज़ कीजिये की देने के बाद जबकभी आपको जरुरत हो आप हमसे वापस ले ले और अकॉउंट में रखे रखे जो कुछ भी उसका ब्याज का पैसा होगा वो हम खबर की खबर के लिए अच्छा लिखने वाले हिंदी लेखकों में बाँट देंगे हम खुद कुछ नहीं रखेंगे सब कुछ ओपन रहेगा हिंदी लेखन में पैसा हो हिंदी लेखक फल फुले और इतना तो मिले ही की लेखन की लागत तो निकले इससे भी कोई बड़ा बदलाव आ सकता हे ऐसी मेरी आस हे और ये भी तय हे की हमारे आलावा ये काम कोई नहीं कर सकता हे कोई नहीं
अगर कोई पाठक इस योजना में जो मेने ऊपर बताई हे कोई सहयोग देना चाहे तो मेरा नम्बर 9582937300 हे
पिछले दिनों सूना हे की ग्रामीण पत्रकारिता के नाम पर एक प्रकार और rj को काफी फण्ड मिला था उससे क्या होना था वही हुआ की खबर आयी की उन्होने अपने रिश्तेदारों को काम पे लगा दिया उनके बिज़नेस जमा दिए लखनऊ में शानदार बंगला बना लिया और ज़ाहिर हे की ये काम करते करते हिंदी वालो को हिंदी के लिए तो कोई बजट नहीं बच सकता हे न बचा ये काम सिर्फ हम कर सकते हे हम लोग काबिल तो नहीं हे टेलेंट नहीं हे हमारे पास मगर एक खासियत हे हमारी हम टफ भी हे और शुद्ध ईमानदार भी हे हम कभी करप्ट नहीं हो सकते हे चाहे जो परलोभन हो बल्कि हमे चाहिए ही नहीं हे वो सब जिसके लिए लोग देर सवेर भ्र्ष्ट हो ही जाते हे तो में बिलकुल कन्फर्म हु की कल को चार पैसे हुआ तो वो हम तो दे सकते हे हिंदी में अच्छा लिखने सोचने वालो को बाकी चाहे जिसे फण्ड दे दो सुविधाएं दे चाहे जो दे दो कोई ये काम नहीं करने वाला हे जैसे उर्दू के सबसे बड़े पत्रकार साहब के बारे में एक छोटे उर्दू पत्रकार ने बताया था की पैसा फण्ड खिंच खिंच के खुद उन्होंने नोएडा में शानदार बंगला बना लिया और नए उर्दू पत्रकारों से कहते हे की पेट पर पथर बांध कर कौम की खिदमत करनी हे इसी तरह से एक ”कौम की खिदमत ” करने वालो के यहाँ उनकी मैगज़ीन में मेरे एक दोस्त ने काम किया मुझसे भी लिखवाया मुझे तो खेर पता ही था मगर मेरे दोस्त के पैसे मारकर कौम का इंसाफ दिलवाने के लिए फण्ड लेने वालो ने सबसे पहले मेरे दोस्त के काम का पैसा मारा हर कोई यही करता हे हिंदी के सभी अखबार कहते हे इसी तरह बड़े बने हे यही तरीका हे शोषण करो और बड़े बने लेकिन अगर हमारे पास बजट हुआ तो हम ये सब नहीं करेंगे क्योकि हमें इन सब बातो की सारी गहराई पता हे
ऊपर हिंदी लेखन के लिए हमने जो मॉडल सोचा हे कह नहीं सकते हो सकता हे की वो बहुत बेवकूफी की बात हो जो भी हो मगर इरादा नेक हे तो खेर शुरुआत तो हुई हे मेरे एक लंदन के कज़िन ने और उसके दोस्त ने एक लाख रूपये मेरे अकॉउंट में डलवाये हे जो की उनके हे उनके ही रहेंगे जब चाहेंगे उनको वापस कर दिए जाएंगे या अगर वो कहेंगे की जकात आदि के लिए किसी को देने हे तो वो में दे दूंगा उनके कहे अनुसार जैसा चाहेंगे वैसा होगा हमे खुद के लिए एक पैसा नहीं चाहिए अब इस एक लाख रूपये के जो भी इंट्रेस्ट मिलेगा वो में खबर की खबर के लिए अच्छे लेख और अच्छे कमेंट लिखने वाले को दे सकता हु मुस्लिम लेखकों को हमारी इस योजना पर ऐतराज़ भी हो सकता हे की भइ ब्याज के पैसा हम नहीं लेंगे ठीक भी हे तो उन्हें थोड़ा इंतज़ार करना होगा की जब तक टी आर पि बड़े और ad के पैसा आये तो वो पूरी ईमानदारी से दे दिया जाएगा ये अच्छे हिंदी लेखन के लिए हमने सोचा हे इस सम्बन्ध में जो कोई भी काम करना चाहे या हेल्प करना चाहे वो इस नंबर पर संपर्क कर सकता हे 9971712174
कुछ समय के लिए मेरे लंदन के कज़िन और उसके दोस्त का एक लाख रुपया मेरे अकॉउंट में रहा उसके बाद जैसा की वादा था जब आप चाहेंगे आपका पैसा रिटर्न कर दिया जाएगा उसके बाद उनके किसी रिश्तेदार को पैसे की जरुरत थी उन्होंने मुझसे कहा तो मेने फ़ौरन दे दिया जितने टाइम उनका पैसा मेरे पास रहा उसका जो भी ब्याज होगा वो में खबर की खबर के लिए अच्छा लिखने वाले को दे दूंगा तो ये मॉडल हे मेरी नज़र में तो निष्पक्ष और जरुरी हिंदी लेखन के लिए , जिसको इस विषय में कोई भी सहयोग करना हो वो मुझे 9971712174 पर कॉल कर सकता हे
Abbas Pathan
1 hr · अगर मैं इमाम बुखारी होता तो दरवाजे पे आई भाजपा से सौदा कर लेता। सौदा होता मुस्लिम समाज के लिए एक अच्छे से पैकेज का… यदि भाजपा हमारे समाज के उत्थान की शर्त मान लेती तो एलानिया तौर पे भाजपा को वोट डालने की अपील कर डालता। लगभग तमाम जातियो ने राजनैतिक पार्टियों से खुद के उत्थान की सौदेबाज़ी की है, कोई जाति किसी की जन्मजात वोटर बनकर नही रही। गुजरात मे देखिये पटेल सौदेबाज़ी पे अड़े थे, राजस्थान के गुज्जर सौदेबाज़ी पे अड़े हुए है। राजस्थान में चुनाव की तारीख डिक्लेर हो चुकी है लेकिन प्रदेश अध्यक्ष डिक्लेर नही हो पा रहा क्योकि प्रदेशध्यक्ष की दौड़ में दो नेताओ का नाम है, एक दलित है और दूसरा राजपूत.. बीजेपी को दोनो का वोट चाहिए, सौदा पट नही रहा इसलिये प्रदेसाध्यक्ष चुनने में दुश्वारी आ रही है। हालांकि राजपूतों को अपनी तरफ आकर्षित करने के लिए ही भाजपा ने गजेंद्र सिंह शेखावत को केंद्रीय मंत्री बनाया है।
विस्थापित कश्मीरी पंडितों के ऊपर कांग्रेस ने बेशुमार लुटाया है। दुनिया मे जितने भी विस्थापित है उन सब मे सबसे बेहतर स्थिति में कश्मीरी पंडित ही है। हाल ही कश्मीरी पंडितों की पेंशन 10,000 मासिक से बढ़ाकर 13,000 मासिक कर दी गयी। बीजेपी की मौजूदा सरकार द्वारा ये पहला तोहफा सामूहिक रूप से कश्मीरी पंडितों को दिया गया है। इसके अतिरिक्त कश्मीरी पंडितो को कांग्रेस के समय से ही मकान, सस्ता कर्ज, सरकारी नौकरी, पेंशन, और बच्चो के लिए उत्तम दर्ज़े की मुफ्त शिक्षा मिल रही है। इनकी शक्लें देखिये सरकार की कृपा से विस्थापित लगते ही नही। “कश्मीरी सेब” के जैसे इनके चेहरे है जबकि विस्थापित की शक्ल बासी बैंगन के जैसी हो जाती है। काँग्रेस की कृपा से फले फुले कश्मीरी पंडितों ने टीवी पे आकर बीजेपी के पक्ष खूब माहौल बनाया था क्योकि उनका सौदा बीजेपी के साथ पट चुका था । कहने का अर्थ है जो कौम हुक्मरानों से सौदेबाज़ी करना सीख जाती है वो बैंगन से सेब बन जाया करती है
अगर मुसलमान कद्दू से कबाब बनना चाहते है तो कब्रिस्तान की दीवार, जालीदार टोपी और नेताओ द्वारा दरगाहों पे चढ़ाई चद्दरों को देखकर उन्हें अपना मसीहा समझना बन्द कीजिए। आप एक बड़ा वोटबैंक है, जो किसी को भी कुर्सी से उतार सकता है और चढा सकता है… दंगे होने का कारण आपका धर्म नही बल्कि वोट है.. तो इस वोट का इस्तेमाल कीजिये एक बेहतर पैकेज के एवज में..
एक और बात लिखकर रख लीजिए, एक बड़ा समूह जो देश का सबसे अव्वल दर्जे का दिमागी दिवालिया है, वो भाजपा को सिर्फ इसलिए सत्ता में देखना चाहता है क्योंकि उसे लगता है कि मुसलमान भाजपा से दुखी है। वो अपने हर जख्म पे यही मलहम लगाकर संतोष कर लेता है, मंदिर नही बना, गंगा एक मीटर साफ नही हुई, 370 ठंडे बस्ते में है, बहुत नश्तर चुभे हुए है लेकिन वो मूर्ख समूह अपने बवासीर को मुसलमानो के दिल का छाला दिख़ाकर ठंडा करने का प्रयास करता है। ऐसे में अगर मुसलमानो का भाजपा के साथ सौदा बैठ जाए तो इन मूर्ख प्राणियों का क्या हाल हो जरा सोचकर देखिए।
सन्देश सिर्फ ये है कि क़ौमी ऐतबार से आगे बढ़ना चाहते हो पार्षद से लगाकर प्रधनमंत्री तक को चुनने के एवज में सौदा किया कीजिये।
कुछ मुस्लिम लेखकों को हमारी इस योजना पर ऐतराज़ भि हो सकता हे की भाई लेखन के लिए ब्याज का पैसा हम नहीं लेंगे ये बहुत अच्छा आदर्श हे सही भी हे उनका फिर ये रहेगा की जैसे ही साइट की टी आर पि बढ़ेगी एड बढ़ेंगे तो फिर उन्हें ad से पैसे दिए जा सकते हे खेर जो भी हे ये मेरा दावा हे की सबसे अधिक टी आर पि वाली हिंदी और हिंदी रायटिंग जिसका वैसे कोई महत्व हो ना हो पर चुनावी में तो हे ही तो हिंदी के आम लेखकों को आज तक न किसी ने पैसे दिए ना देगा आज की तारीख में सबसे अधिक हिंदी लेखन फेसबुक पर हो रहा हे और फेसबुक कोई रेवेन्यू शेयर नहीं करता कोई भी हिंदी लेखकों को पैसा नहीं देता हे ये काम सिर्फ और सिर्फ हम कर सकते हे और कोई नहीं
जब प्रिंट में लिखते तो मेरे भी व्यंगय बिना सुचना बिना माल मत्ते के प्रकाशित होते थे और तो और पंजाब का शेर अखबार जिसके मालिकों की संपादक की रग रग रग में देशभक्ति हे माशाल्लाह , वो भी व्यंगय के पैसे नहीं देता था
Pushya Mitra
19 hrs ·
डिजिटल मीडिया और सोशल मीडिया के पोस्ट
इन दिनों हर कोई कह रहा है कि आने वाला समय डिजिटल मीडिया का है। कई लोगों ने इस उम्मीद में अपनी साइट बना रखी है। दिल्ली में कई पोर्टल अपने रिपोर्टरों और डेस्क के लोगों को अच्छे खासे पैकेज पर रख भी रहे हैं। राज्य की राजधानियों में भी कई पोर्टल शुरू हो गए हैं, जो बकायदा ऑफिस खोल कर काम कर रहे हैं। इन तमाम पोर्टलों के लिये सोशल मीडिया बड़ा प्लेटफार्म है। न सिर्फ अपने पोर्टल के प्रोमोशन के लिये बल्कि कंटेंट के लिये भी।
मैंने महसूस किया है कि मेरे पोस्ट कई पोर्टलों पर लगते हैं। कुछ तो इनबॉक्स करके बता देते हैं कि हमने आपके पोस्ट का इस्तेमाल किया है, कुछ तो ऐसे ही लगा लेते हैं। कुछ नाम तक नहीं देते। कई बार ये पोस्ट गूगल सर्च में दिखते हैं। एक बार मैंने हिसाब लगाया कि एक महीने में मेरे पोस्ट जितने पोर्टल पर लगते हैं अगर हर कोई मुझे सिर्फ 500 रुपये दे तो मुझे 15 से 20 हजार रुपये हर माह मिल सकते हैं। ज्यादा भी हो सकता है। ऐसा कई लोगों के साथ होता है।
मगर वेब पोर्टल समझते हैं कि उन्होंने आपका पोस्ट अपने यहां लगाकर आप पर अहसान किया है। कई लोग तो यह अपेक्षा भी रखते हैं कि इस अहसान के बदले आप उनके वेबसाइट को धन्यवाद कह कर थोड़ा प्रोमोट भी कर दें। कोई नहीं सोचता कि लेखक को उसका पारिश्रमिक भी मिलना चाहिये। आप यह खेल चेतन आनंद या अंग्रेजी के दूसरे प्रोफेशनल कॉलमिस्ट के साथ नहीं कर सकते। आपने अगर उनका आलेख छापा है तो पैसा देना पड़ेगा।
यह समझ में आता है कि हिंदी के कई पोर्टल अभी बिना किसी सेट अप के व्यक्तिगत प्रयास से चल रहे हैं, उन्होंने शुरुआत की है, वे पैसा नहीं दे सकते। मगर जो पोर्टल दफ्तर खोलकर, स्टाफ रखकर चल रहे हैं, उन्हें तो पैसा देना ही चाहिये। आप हर मद में पैसे खर्च कर सकते हैं, मगर लेखक को पैसा नहीं दे सकते। यह ठीक नहीं है। मैं अब गंभीरता से सोच रहा हूँ कि दफ्तर और स्टाफ वाले पोर्टलों से साफ कह दूं कि मेरे पोस्ट साभार न प्रकाशित करें। अगर मेरा कोई पोस्ट आपको प्रकाशित करने लायक लगता है तो एक बार पैसे की भी बात कर लें। क्यों, गलत सोच रहा हूँ? पुष्यमित्र ” —————————————————-
पाठको हिंदी में चाहे कितना भी बड़ा ऑफिस हो कुछ हो आम हिंदी लेखक को कोई पैसे नहीं देने वाला हे जिसके पास भी जिस मद में भी पैसा अगर आएगा तो वो उसे खुद पर खुद की तरक्की पर लगा देगा इन्वेस्ट कर देगा या जला देगा फूंक देगा जमीं में गाड़ देगा कुछ भी करेगा मगर हिंदी लेखकों को नहीं देगा ये रिकॉर्ड हे जो टूटेगा नहीं अब ये काम सिर्फ हम कर सकते हे और कोई नहीं करने वाला अगर अगर अगर हमारे पास पैसा होगा तो हम तो उसे अच्छा हिंदी लेखन करने वालो को दे देंगे इस सम्बन्ध में कोई भी कोई सहयोग करना चाहे तो वो 9971712174 पर बात कर सकता हे खबर की खबर का बैंक अकॉउंट भी खुलने वाला हे अच्छी बात हे की विदेशो में खबर की खबर के काफी पाठक हे उम्मीद हे की लोग सहयोग करेंगे
Sadhvi Meenu Jain
19 hrs ·
युवाओं में बढ़ती धार्मिक कट्टरता
आजकल विद्यालयों में सारा जोर विज्ञान की पढाई पर है । Humanities / कला /सामाजिक विषय पढ़ने वाले छात्रों की गिनती अंगुलियों पर की जा सकती है । लिहाजा विज्ञान के छात्र सामाजिक संरचना और इतिहास से एकदम कटे हुए रहते हैं।
जानकारी का यह अभाव नई पीढ़ी के युवा छात्रों में कट्टरता को जन्म दे रहा है । रही – सही कसर व्हाट्सअप ने पूरी कर दी है ।
यदि विज्ञान के साथ आंशिक रूप से सामाजिक
विषयों का अध्ययन भी अनिवार्य हो तो युवाओं में कट्टरता की भावनाओं को पनपने से काफी हद तक रोका जा सकता है ।
Sadhvi Meenu Jain
16 June at 14:01 ·
”तुम्हारे दादाजी ‘शेखुलर’ थे . ‘खांग्रेसी’ थे ”
🙁
——————————————
तब हम बहुत छोटे हुआ करते थे . जब ईद का चाँद दिख जाता तो हमारे दादाजी हम बच्चों को गुड़ की डली देते और कहते ‘ जाओ , छत पर जाओ , चाँद देखके गुड़ खाना ‘
हम पूछते उससे क्या होगा ?
दादाजी कहते ‘ क्लास में फर्स्ट आओगे ‘ 😀 :D:D
…और हम भागे-भागे छत पर जाते. चाँद देखकर गुड़ खाते.
मगर बालमन समझ नहीं पाता था दादा जी ऐसा क्यों करते थे. कभी सोचते शायद उर्दू उनकी बोलने – पढ़ने – लिखने की भाषा है इसलिए ईद का चांद देखने के लिए कहते हैं 🙂
मगर अब भक्तों ने समझाया – अरे ! तुम्हारे दादाजी ‘शेखुलर’ थे . ‘खांग्रेसी’ थे 🙁
ईद मुबारक ! ! !Girish Malviya
19 June at 21:00 ·
बर्बादी की ये कौन सी मंज़िल है रफ़ीक़ो
ता हद्द-ए-नज़र एक बयाबान सा क्यूँ है
‘तन्हाई’ की जगह बर्बादी शब्द रखने के लिए शायर शहरयार से माफी चाहता हूँ ……….ये किस समाज मे रह रहे हैं ? ……….ये किस तरह का जहर व्हाट्सएप ओर फेसबुक से हिंसक वीडियो बना कर फैलाया जा रहा है ? …………..इस आधुनिक समाज मे हम सभ्य नही बल्कि हिंसक समाज मे बदलते जा रहे हैं
आज खबर आयी कि उत्तर प्रदेश के पिलखुवा में एक मुस्लिम बकरी चराने वाले को भीड़ ने गोकशी का आरोप लगाते हुए लाठी-डंडों से पीट पीट कर मार डाला
असल बात यह थी कि सड़क पर पैदल चलते हुए उसकी टक्कर किसी बाइक चालक से हो गयी ओर उस बाइक सवार ने कुछ ग्रामीणों के साथ अपना गांव आने पर उसे घेर लिया और पीट पीट कर उसे मार डाला उसे बचाने आया एक व्यक्ति भी मरनासन्न हालत में है
सिर्फ वह हत्यारी भीड़ बच जाए इसलिए गोकशी वाला के एंगल जान बूझ कर उछाला गया, हत्यारे इतने बेखौफ हो गए है कि वह जानते हैं कि ऐसा करने से वो बच जाएंगे, क्योंकि मोदीकाल की यह अखंड परंपरा रही है राष्ट्रवाद और गौरक्षा जैसी भावनाओं को हथियार बना कर भांजा जा रहा है
कुछ दिन पहले यह खबर भी आयी थी कि मुंबई से 2 युवा साउंड इंजीनियर असम के किसी जंगल मे साउंड रिकार्डिंग कर रहे थे उन्हें बच्चा चुराने वाला समझ कर भीड़ ने मार डाला
एक सर्वे बताता है कि 2014 में मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद से कुल घटनाओं में से 97 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई। मॉब लिंचिंग की 63 घटनाओं में से 32 घटनाएं गायों से संबंधित थी, इन दिल दहला देने वाली 63 घटनाओं में मरने वाले 28 लोगों में से 86 फीसदी यानि की 24 मुस्लिम समुदाय के लोग शामिल थे। साथ ही इन घटनाओं में कुल 124 लोग जख्मी हुए।
इस तरह की घटनाओं में साल दर साल जो बढ़ोतरी हो रही है ये बेहद चिन्ताजनक है एक जाने माने पत्रकार ने कहा था कि भारत ‘लिंचोक्रेसी’ बन चुका है शायद उन्होंने ठीक कहा था…….
Deepak Sharma
20 June at 23:58 ·
मैं असहज हो जाता हूँ जब लोग कहते हैं कि मैं दुनिया का सबसे अमीर आदमी हूँ। “It’s really embarrassing. ये वाकई शर्मिंदगी की बात है,” बिल गेट्स ने अपने एक ताज़ा इंटरव्यू में कहा। इस असहजता के रहते माइक्रोसॉफ्ट के संस्थापक बिल गेट्स ने कई साल पहले लगभग 2500 अरब रूपए की सम्पत्ति लोक कल्याण कार्यों के लिए दान कर दी थी , लेकिन इतनी बड़ी रकम समाज को सौंपकर भी वे 2017 तक दुनिया के सबसे अमीर आदमी कहलाए। इस साल 2018 में जब फोर्बेस की लिस्ट में अमेज़न(amazon) के संस्थापक जेफ़ बेज़ोस धरती के नए कुबेर बने तो बिल गेट्स कुछ सहज हो सके ।
बिल गेट्स ने अब बर्कशाईर हैथवे के संस्थापक वारेन बुफे के साथ मिलकर दुनिया का सबसे बड़ा कल्याणकारी कोष स्थापित किया है। दोनों उद्योगपतियों ने अपनी आधी से ज्यादा सम्पत्ति दुनिया के ज़रूरतमंदों के नाम कर दी है। बिल गेट्स कहते हैं, ” हमे ये जान कर दुःख होता है कि अभी भी दुनिया के कई मुल्कों में बेहद गरीबी है। लोगों के पास दवा के पैसे नहीं हैं, पीने को साफ़ पानी नहीं है। मैं अकेले तो कुछ नहीं बदल सकता लेकिन जितना सामर्थ्य है उतना समाज के लिए ज़रूर करूँगा। ”
बिल गेट्स टेक्नोलॉजी और मेडिकल रिसर्च में भी बड़ी रकम झोंक रहे हैं। वे टेक्नोलॉजी के ज़रिये उपभोक्ता वस्तुएं और संसाधन आम आदमी के लिए सस्ता करना चाहते हैं।
ये सच है गेट्स अपने विचार, समर्पण और त्याग से भारत की उस सनातनी सोच से जुड़ते हैं जहाँ वसुधेव कुटुंबकम की बात कही गयी।
लेकिन अपने देश का हाल देखिये। यहाँ क्या उद्योगपति, क्या नेता…यहाँ तो योग पुरुष से लेकर प्रवचन वाले बापू और कथा वाचक से लेकर शनि महाराज के साधक तक, पूरी सनातनी जमात ही संपत्ति हड़पने से लेकर बलात्कार करने तक में कीर्तिमान स्थापित कर रही है।
उधर बाबा नीम करोली के दर्शन कर स्टीव जॉब्स, मार्क ज़करबर्ग या बिल गेट्स दुनिया बदल रहे हैं।
क्या कहें ? क्या न कहें ?
एक तरफ अमेरिका के गेट्स है तो दूसरी तरफ हमारे गेट्स
अरे अम्बानी जी, चैनल दर चैनल खरीदना छोड़िये , पहले सस्ती दवा की दुकाने, सस्ते अस्पताल, सस्ती सराए खोलिये।
अपनी 2600 अरब रूपए की संपत्ति में कुछ तो दीजिये इस देश की BPL जनता को।
आपसे अच्छे तो अग्रवाल धर्मशाला वाले पुराने ज़माने के लाला थे।
हर कसबे , हर शहर को ठहरने की सस्ती जगह तो दान कर गए।
Deepak Sharma
22 June at 23:54 ·
लखनऊ के किंग जॉर्ज मेडिकल कालेज की बेहद पुरानी इमारतों के एक कोने में था मॉर्चरी रूम। मॉर्चरी यानि मुर्दाघर जहाँ अप्राकृतिक मृत्यु से जुड़े आपराधिक मामलों की मेडिको-लीगल प्रक्रिया के तौर पर शवों के पोस्टमॉर्टेम होतें हैं।
शाम ढलते ही मार्चरी रूम किसी शमशान घाट से भी बेहद डरावना हो जाता था। ढलती रोशिनी के बीच इस कमरे में वे शव पड़े रहते थे जिनका पोस्टमॉर्टेम उस दिन डॉक्टर नहीं कर पाए या फार्मासिस्ट दोपहर बाद वहां पहुंचा नहीं या थाने से ही शव, सूर्यास्त के बाद लाया गया।
इस वीभत्स और भयावह जगह पर बिना नागा लखनऊ के कुछ क्राइम रिपोर्टर हर शाम मॉर्चरी पहुंचते थे … सिर्फ ये तस्दीक करने के लिए कि एसएसपी के क्राइम बुलेटिन में हत्या, एक्सीडेंट या ख़ुदकुशी की घटनाओं और मॉर्चरी में हुए पोस्टमॉर्टेम के बीच कोई ऐसे मामला तो नहीं रह गया है जिसे पुलिस छुपा रही हो। अक्सर एक्सक्लूसिव और बड़ी ख़बरों के सुराग इस खौफनाक मॉर्चरी के रूम से देर शाम को हाथ लगते थे।
ये रिपोर्टिंग का एक्सट्रीम पैशन था। ये रिपोर्टिंग के प्रति समर्पण था, सच को सामने लाने का साहस था। शायद इसीलिए एसएसपी से लेकर डीजीपी तक पत्रकारों से घबराते थे । मौका-ऐ-वारदात से लेकर पोस्टमॉर्टेम तक और एफआईआर से लेकर कोर्ट में दाखिल आरोपपत्र तक रिपोर्टर की मौजूदगी पत्रकारिता की साख को प्रमाणित करती जाती थी। शायद इसलिए तब अख़बार की कतरने , किसी RTI या CAG रिपोर्ट से ज्यादा असरदार हुआ करती थीं।
लेकिन आज दुःख के साथ कहना पड़ता है कि न्यूज़ चैनल से लेकर न्यूज़ वेबसाइट तक प्रामाणिक पत्रकारिता के उसूल, पत्रकारिता की साख , गूगल के सर्च इंजन में विसर्जित हो गयी है।
आज मैडम 35 लाख की SUV से उतरकर सीधे Otis की लिफ्ट में प्रवेश करती हैं और कुछ देर बाद मेकअप रूम से निकलकर 20 करोड़ के चमचमाते स्टूडियो से देश को ललकारने लगती हैं। खबर के नाम पर मसालेदार बहस छेड़ी जाती है, बेहद घटिया किस्म के पैनेलिस्ट उकसाए जाते हैं। और ये मज़बूरी है कि खबर देखने के लिए देश मैडम या खिचड़ी बालों वाले सर जी को देखता है।
मुझे SUV से गुरेज नहीं। और न ही 20 करोड़ के स्टूडियो से कोई रश्क है ।
मुझे इंतज़ार उस पल का है जब SUV किसी शाम किसी मॉर्चरी पर रुके, किसी ऐसे घटनास्थल पर पहुंचे जहाँ पुलिस सबूत मिटा रही हो , किसी ऐसे बंगले के बाहर ठहर जाए जहाँ कोई सरकारी फ़ाइल नीलाम हो रही हो। उस मौके से देश को ललकारा जाए तो देश सुनेगा , देश बदलेगा।
वर्ना उस 35 लाख की SUV या एक करोड़ की बीएमडब्लू का क्या मतलब है जिससे उतरकर कोई पत्रकार, 20 करोड़ के स्टूडियो में जाकर पहले अमित शाह के कोआपरेटिव बैंक की खबर लिखवाये फिर कुछ देर बाद उस खबर को किसी के ज़रिए मिटवा दे।
मैडम या सर जी अगर पत्रकारिता करनी है तो जिगर से करिये। वर्ना ..
आपसे अच्छे तो वो स्कूटर से चलने वाले रिपोर्टर थे
जो मुर्दाघर के मुर्दों से भी खबर ब्रेक करवाते थे।
Deepak Sharma
16 June at 22:56 ·
कोई केंद्र सरकार का शिक्षा सचिव यानि सीनियर मोस्ट आईएएस अफसर गाँव के सरकारी स्कूल में बच्चों के साथ बैठकर खाना खा सकता है ? कोई केंद्र का सचिव, नक्सली इलाकों के स्कूलों में ट्राइबल बच्चों के साथ घुलमिल सकता है ? यकीन मानिये यूपी के वरिष्ठ आईएएस अनिल स्वरुप ने देश के स्कूली शिक्षा के सचिव के तौर पर पिछले दो वर्षों से कुछ ऐसा ही किया। लेकिन किसी बड़े पत्रकार, नेता और सेलिब्रिटी ने उन पर गौर नहीं किया।
अनिल स्वरुप जैसी सादगी और उनके जैसी साफ़ सुथरी छवि आज देश में दस आईएएस अफसरों में नहीं होगी। ये देश का दुर्भाग्य है कि स्वरुप जैसे अफसरों को कैबिनेट सेक्रेटरी बनाने की जगह उन्हें करियर के पीक पर कोई चुनौती पूर्ण लक्ष्य नहीं दिया गया। स्वरुप ने कोयला मंत्रालय की कालिख को अपनी ईमानदारी से धोकर नई सरकार में बिना विवाद के माइंस के आवंटन कराये थे । लेकिन एक बड़े मामले में मोदी सरकार के खजांची पियूष गोयल उनसे उलझ गए। गोयल आज के दौर में अमित शाह और मोदी दोनों के लाडले मंत्री हैं। इस समीकरण के चलते स्वरुप साहब को साइडलाइन किया गया। ये कहानी आज लिखना मुनासिब नहीं क्यूंकि एक ईमानदार अफसर को आगे परेशान किया जा सकता है।
दफ्तर वाले बताते हैं कि स्वरुप दस रूपए की निजी चाय का हिसाब भी अपनी जेब से करते हैं। ” मैंने ऐसा ईमानदार अफसर अपनी ३० साल की नौकरी में नहीं देखा। वे जब सूचना निदेशक थे तब पत्रकार सरकारी गाड़ियों से हिलस्टेशन की सैर करते थे लेकिन उनके घरवाले रोडवेज की बस से मसूरी जाते मैंने देखे है, ” स्वरुप के एक पूर्व सहयोगी ने बताया। पर बात सिर्फ ईमादारी और विनम्रता की नहीं है। स्वरुप की डिलीवरी और इनोवेशन बेजोड़ है। वे देश के पहले इनोवेटिव ब्यूरोक्रेट थे जिन्होंने अपने अधीन पूरे मंत्रालय को पेपरलेस किया। कोयला माफिया की रीढ़ तोड़ने से लेकर रिश्वत और घूस के खिलाफ कार्रवाई करने में उनके जैसा अफसर मोदी सरकार में नहीं मिलेगा।
अनिल स्वरुप १५ दिन बाद रिटायर हो रहे हैं। वे अब न यूपी के चीफ सेक्रेटरी बन सकते हैं न देश के कैबिनेट सेक्रेटरी। मेरा मत है कि स्वरुप जैसे प्रतिभाशाली प्रशासकों की देश को सेवा लेनी चाहिए। वे बेहद कार्यकुशल है। सज्जन हैं और निहायत ईमादार। उन्हें तनावग्रस्त कश्मीर से लेकर नक्सल प्रभावी क्षेत्रों तक और भ्रष्टाचार में डूबे बैंकों से लेकर देश में सिमटते उद्योग तक के किसी भी मोर्चे पर तैनात किया जा सकता है। मुझे उनके डीएनए पर भरोसा है, अगर निर्णेय लेने की छूट दी गयी तो वे डिलीवर करेंगे।
पर ये फैसला मुझे नहीं, सरकार को करना है।
बहरहाल, मैं यूँ तो ऐसी पोस्ट नहीं लिखता लेकिन लिखने पर इसलिए मज़बूर हुआ क्यूंकि भ्रष्टाचार के युग में 35 साल ईमान से सेवा करने वाले को यूं चुपचाप पारी खत्म करते देख एक अजीब सी निराशा हो रही थी ।
पता नहीं क्यों मुझे लगता है कि
भ्रष्टाचार से भिड़ने के लिए इस देश को अभी कई अनिल स्वरुप चाहिए।
Nazeer Malik
25 June at 12:46 ·
जब ट्रंप जीता था तो कुछ की चुरकियां फडफड़ा रही थीं, अब खलीफा अर्दोगान जीत गये हैं तो कुछ की दाढ़ियां फड़फड़ा रही हैं। मने ट्रप उन्हें राशन पानी देता था अब खलीफा इन्हें देगा। इसके लिए भारत में स्कूल खोल देंगा, अस्पताल खड़ा कर देंगा। इन्हें रोजगार मुहैया करा देंगा। जैसे ट्रंप करा रहा है। इन्हें यह भी लगता है कि अब भारत में मांब लिंचिग नहीं हो पायेगी, दंगाई मुल्क छोड़ कर भाग जायेंगे।
अरे भइया जितना मुत्तहिद खलीफा के पीेछे हो, अगर उतने मुत्तहिद हिंदूस्तानी मुसलसमानों के मसायल को लेकर होते तो अब तक बहुत कुछ बदल गया होता।
Abhishek Srivastava
2 hrs ·
(कबीर जयन्ती पर एक उलटबांसी)
सुधीर मिश्रा की फिल्म ”हज़ारों ख्वाहिशें ऐसी” का एक दृश्य है। भोजपुर में जातिगत संघर्ष की पृष्ठभूमि में एक कॉमरेड वर्ग संघर्ष चला रहा है। वह कुछ दलितों को बड़ी मेहनत से प्रेरित कर के गांव के सामंत के यहां धावा बोलता है। लोग उच्च जाति के सामंत को घेर लेते हैं। उलटा सीधा बोलते हैं। सामंत उन्हें अपनी बात समझाने की कोशिश में हैं। माहौल में तनाव बढ़ता है। अचानक सामंत को दिल का दौरा पड़ जाता है। सही में या झूठ में, पता नहीं लेकिन वह अपनी छाती पर हाथ रखकर दर्द से कराहने लगता है। जो लोग वर्ग संघर्ष से प्रेरित होकर वहां लाठी-डंडा लेकर पहुंचे थे, वे सामंत को ढहता देख पिघल जाते हैं। वही उसे टांग कर गाड़ी में बैठाते हैं और अस्पताल भिजवाते हैं।
याद करिए, नोटबंदी में जापान की एक सभा में क्या हुआ रहा। प्रधानजी ने दोनों हथेलियां रगड़ते हुए इस देश के सौ करोड़ मजलूमों पर तंज कसा था- ”आपको भी पता है कि अचानक आठ तारीख को रात को आठ बजे… (आवाज़ मॉड्युलेट करते हुए) पांच सौ और हज़ार के नोट… (एक हथेली को दूसरे पर मारते हुए खल्लास के अंदाज़ में सरका देना, समवेत् स्वर में ठहाके)… घर में शादी है? पैसे नहीं हैं (दोनों अंगूठों को हिलाते हुए ठेंगा दिखाने के अंदाज़ में, फिर ठहाके)।” सौ करोड़ गरीब समझ ही नहीं पाए कि ये क्या हुआ। समझे, तो चुप लगा गए।
आज फिर वही हुआ है। प्रधानजी के खासमखास मेहुलभाई चोकसी ने कहा है कि उन्हें मॉब लिंचिंग से डर लगता है इसलिए वे भारत नहीं आएंगे। मॉब लिंचिंग किसकी हो रही है? मेहुलभाई दलित हैं कि मुसलमान? क्या इस देश में किसी अमीर सेठ को मॉब लिंच किया गया है आज तक? मेहुलभाई अच्छे से जानते हैं इस देश का चरित्र। बिलकुल मोटाभाई की तरह। कल उन्होंने गरीबों का मज़ाक उड़ाया था नोटबंदी के बहाने, आज इन्होंने मारे जा रहे मुसलमानों और दलितों का मज़ाक उड़ा दिया। किसी को कोई फ़र्क पड़ा?
इसे थोड़ा खींच कर देखिए। प्रधानजी की जान को ‘अज्ञात’ से खतरा है। ‘अज्ञात’ का खतरा वे समझते भी हैं क्या होता है? जाकर पूछें बंबई के फुटपाथ पर पैदल जा रहे उस बदकिस्मत गरीब से जिसके सिर पर चार्टर्ड विमान गिर गया। इसे कहते हैं ‘अज्ञात’!
इस देश में पहली बार ऐतिहासिक रूप से गरीबों का मज़ाक बनाया जा रहा है। इस देश के गरीब पहली बार इतनी खतरनाक चुप्पी साधे हुए हैं कि अमीरों को उन्हें याद दिलाना पड़ रहा है कि तुम मुसलमानों और दलितों के साथ कभी-कभार हमें भी मार सकते हो।
Nazeer Malik
26 June at 10:11 ·
फ़िल्म स्टार धर्मेंद्र और सांसद हेमामालिनी का नाम निकाहनामे पर दिलावर खान और आयशा के रूप में दर्ज है जबकि पासपोर्ट धर्मेंद्र हेमा के नाम है। सुषमा स्वराज को गाली देने वालो भक्तो ये भी याद नही क्या?
Zaigham Murtaza
10 July at 14:39 ·
पिट कौन रहा है और लिंचिंग का शिकार कौन हो रहा है इसे समझने के लिए ग्रामीण अर्थव्यवस्था को समझना ज़रूरी है। प्राचीन काल से गांव बसाते वक़्त ख़याल रखा जाता था कि पेशेवर लोग उसका हिस्सा ज़रूर हों। इनमे नाई, धोबी, दर्ज़ी, जुलाहा, धुना, बढ़ई, लुहार, मोची, बाल्मीकि, क़साई, तेली और यहां तक कि डोम, बनिए, ब्राह्मण और फक़ीर भी हर हाल में शामिल किए जाते थे ताकि गांव भर के ज़रूरी काम गांव के लोग ही निपटा लें। सामंतों को सेवाएं मिल जाती थी और इन लोगों को रोज़गार। इसी कारण इन क़ौम या बिरादरियों की बसावट छितराई हुई है। यानि राजपूत, जाट, यादव, पठान, सैयद जैसी बिरादरियों की तरह किसी एक इलाक़े में सिमटी हुई नहीं है। इस लिहाज़ से गांव मे आबादी का बहुसंख्यक ज़मीन के मालिक, काश्तकार और खेती किसानी करने वाली जातियां होती आई हैं जबकि पेशेवर बिरादरी के हर गांव में दस पांच घर ही होते हैं। इन पेशेवर बिरादरियों के आपस में रिश्ते इतने ही होते है जितने की कृषक बिरादरियों से, यानि सिर्फ कारोबारी और लेने-देन वाले। बढ़ते शहरीकरण और घटती कॄषि आय के चलते गांव आर्थिक संकट की चपेट में हैं। इसके चलते गांव के कमज़ोर तबक़े मेहनत मज़दूरी के लिए शहरों का रुख़ कर रहे हैं। इससे न सिर्फ गांव में उनकी तादाद घट रही है बल्कि शहर के सामाजिक तंत्र में वो पहले के मुक़ाबले और ज़्यादा कमज़ोर हैं। ऐसे में गांव के मज़बूत वर्ग अगर उनके ख़िलाफ हो जाएं तो जान और माल की हिफाज़त आसान नहीं है। संघ और और उसके नफरती चिंटू इस स्थिति का फायदा उठा रहे हैं। वो गांव के बहुसंख्यकों को समझा रहे हैं कि अगर गांव के ये बचे मुसलमान भगा दिए जाएं तो इनके घर, ज़मीन, दुकान और पशु कौड़ियों के दाम या फिर मुफ्त में ही हथियाए जा सकते हैं। शहर में वही चिंटू आकर समझाते हैं कि गांव से आकर ये मुसलमान तुम्हारे हिस्से के संसाधन और आमदनी में हिस्सा बांट रहे हैं। इन्हें भगा दिया जाए तो इनका कारोबार, संपत्ति और संसाधन तुम्हारे होंगे। बहुसंख्यक वर्ग के इन बातों पर यक़ीन करने की वजहें भी हैं। बढ़ती आबादी की वजह से कृषि जोत लगातार घट रही है और नौकरियां हैं नहीं। लेकिन पेशेवर बिरादरी से जुड़े काम की मांग हर तरफ है। न सिर्फ शहरों और गांव में बल्कि ये लोग विदेशों में भी काम पा जाते हैं। इनकी बढ़ती समृद्धि लोगों की आंख में खटकती है। जो अपने आपको जातिगत आधार पर बड़ा मानते हैं वो आर्थिक आधार पर पिछड़ रहे हैं। ये जातियां अपनी कमज़ोरी तलाशने के बजाय कमज़ोर तबक़ों के आर्थिक विकास को अपने पिछड़ेपन की वजह मानने लगी हैं और नफरती चिंटू इस ग़ुस्से को हवा दे रहे हैं। निशाना वो बन रहे हैं जो वर्षों से शांतिपूर्वक लोगों की सेवा करते आए हैं। मुफ्त की बेगार भी करते हैं और हंसकर शोषण भी सह लेते हैं। लेकिन तबक़ों की आर्थिक प्रगति बहुसंख्यक वर्ग को खटक रही है। मज़े की बात ये है कि इस नफरत में सिर्फ सवर्ण नहीं बल्कि हिंदू पेशेवर दलित और पिछड़ी क़ौम शामिल हैं। सवर्ण समझ रहा है कि मज़बूत होकर गांव के बढ़ई, जुलाहे उसपर हावी हो जाएंगे तो दलित को लग रहा है जो काम उसको मिल सकता है वो ये मुसलमान छोड़ नहीं रहे हैं। रही सही कसर विदेश से लौटे मुस्लिम नौजवान और उनके परिजनों की दिखावा भरी लाइफस्टाइल पूरा कर देती है। यहीं से शुरु होती हे दंगे, लिंचिंग और दबंगई की राजनीति। इधर पेशेवर क़ौम लड़ाई झगड़े और हथियारों से डर कर रहने वाले लोगों की हैं, ख़ासकर उनकी जिन्हे अपने मार्शल रेस होने का दंभ कभी नहीं रहा। इन्हें मारना, कूटना आसान है। ऊपर से गांव में इनकी तादाद मारपीट करने के लिहाज़ से भी मुफीद है। अब दंगों का इतिहास देख लीजिए। मेरठ, मलियाना, हाशिमपुरा, अलीगढ़, मुरादाबाद, भागलपुर, मुंबई, असम, गुजरात, मुज़फ़्फ़रनगर जहां भी देखेंगे निशाने पर यही कमज़ोर तबके मिलेंगे। किसी ख़ान साहब, मीर साहब या मुसलमान राजपूत के गांव में दंगाई या लिंचर्स नहीं जाते। वहां कुटने का बराबर का अंदेशा होता है। अपने गांव या मुहल्ले के चार पांच कमज़ोर घरों पर ही इनकी तमाम दबंगई होती है। इसका इलाज क्या है? शायद घेटो या सम्मिलित बस्तियां जिन्हे नफरत से मिनी पाकिस्तान कहा जाता है क्योंकि वहां जाकर किसी कमज़ोर को कूट आना आसान नहीं है।
क्रमशः
Sanjay Shramanjothe31 July at 20:05 · भारत में इंजीनियरिंग मैनेजमेंट मेडिसिन या तकनीक की अकेली पढाई पूरी कौम और संस्कृति के लिए कितनी घातक हो सकती है ये साफ नजर आ रहा है। इस श्रेणी के भारतीय युवाओं में समाज, सँस्कृति, साहित्य, इतिहास, धर्म की अकादमिक समझ लगभग शून्य बना दी गयी है। ये तकनीक के “बाबू” देश के लिए बड़ा खतरा बन गए हैं।अकेली तकनीक,साइंस, मैनेजमेंट या मेडिसिन पढ़ने वालों से कभी बात करो तो पता चलता है कि ये व्हाट्सएप के प्रोपेगण्डा के कितने आसान शिकार हैं। इनमे से अधिकांश लोगों को इतिहास, समाज, सँस्कृति आदि की कोई समझ नहीं है, ये कल्पना भी नहीं कर पाते कि जैसे मेडिसिन या तकनीक की पढ़ाई की अपनी गहराई या ऊंचाई है उसी तरह साहित्य, दर्शन, राजनीति और सामाजिक विमर्श की भी अपनी गहराइयाँ और ऊंचाइयां होती हैं।
ये तकनीक, मेडिसिन, मैनेजमेंट या साइंस के “बाबू” एक खतरनाक और आत्मघाती फौज में बदल गए हैं। दुर्भाग्य की बात ये भी है कि ये लोग सांप्रदायिक, धार्मिक और जातीय दुष्प्रचार के सबसे आसान शिकार हैं। आजकल के बाबाओं और अध्यात्म के मदारियों की गुलामी में इन बाबुओं की पूरी पीढ़ी बुरी तरह फस चुकी है.
ये ही अप्रवासी भारतीयों की उस फ़ौज के निर्माता हैं जो विदेश से भारतीय संप्रदायवाद को पैसा और समर्थन भेजते हैं या यूरोप अमेरिका में पोलिटिकल या कोर्पोरेट लाबिंग करते हैं.
भारत मे समाज विज्ञान और मानविकी (ह्यूमेनिटीज) के विषयों की जैसी उपेक्षा और हत्या की गई है वह भयानक तथ्य है। ठीक मिडिल ईस्ट और अरब अफ्रीका के जैसी हालत है, आगे ये हालत और बिगड़ने वाली है।
विज्ञान तकनीक मेडिसिन आदि को यांत्रिक ढंग से सीखकर कुछ सवालों के जवाब देने इन्हें आ जाते हैं, कुछ बीमारियों का इलाज करना, कुछ प्रबंधकीय समस्याओं को सुलझा लेना या “यूरोपीय या अमेरिकी” प्रेस्क्रिप्शन पर खड़े मोडल्स को चला लेना इनकी कुल जमा विशेषज्ञता है. ये असल में अच्छे आज्ञापालक हैं जो तकनीकी आज्ञाओं का पालन करके कुछ काम कर लेते हैं.ये स्वयं अपनी इंजीनियरिंग मेडिसिन या मेनेजमेंट में कितना नवाचार या शोध कर रहे हैं ये जगजाहिर बात है, उस मामले में ये फिसड्डी थे आज भी हैं क्योंकि इनमे क्रिटिकल थिंकिंग की कोई ट्रेनिंग ही नहीं है, ये सिर्फ अपने कुवें के मेंढक बने रहते हैं, जैसे ही यूरोप अमेरिका से कोई नई तकनीक पैदा होकर आती है वैसे ही ये उसका सबसे सस्ता या देसी संस्करण बनाने में लग जाते हैं.इसी से ये खुद को “वैज्ञानिक” भी सिद्ध करवा लेते हैं. फिर आगे बढ़कर इस विज्ञान को वेद उपनिषदों में खोजकर दिखाने वाले बाबाओं के चरण भी दबाने पहुँच जाते हैं. इन अधकचरे तकनीक के बाबुओं की भीड़ से घिरे हुए बाबाजी फिर दुनिया भर में हल्ला मचा देते हैं.
ये बाबू और बाबा समाज में रूतबा रखते हैं, चूँकि इनके पास पैसा होता है कारें होती हैं और कारपोरेट की लूट के ये सीधे हिस्सेदार हैं इसलिए लोग इन्हें समझदार समझते हैं. भारत जैसे गरीब अनपढ़ और अन्धविश्वासी समाज में ज्ञानी और बुद्धिमान वही समझा जाता है जिसके पास पैसा हो बड़ा बंगला या कार हो. ये तकनीक के बाबू इसपर खरे उतरते हैं. इसीलिये ये दुष्प्रचार के सबसे आसान शिकार और उपकरण बन गये हैं.
इनकी अपनी पढाई पर भी गौर किया जाए विज्ञान विषयों की शार्टकट और ट्रिक सीखते हुए ये इंजीनियरिंग मेनेजमेंट या मेडिसिन की पढाई में प्रवेश करते हैं. ऊपर से धन कमाने की मशीन बन चुके कोचिंग संस्थान इन्हें इंसान भी नहीं रहने देते. जिस विज्ञान की ये ढपली बजाते हैं उस विज्ञान और तकनीक को भी एकदम भक्तिभाव से घोट पीसकर चबा जाते हैं कोई क्रिटिकल थिंकिंग नहीं की जाती.
कोचिंग या तैयारी के दौरान पैसा खर्च करके बिलकुल रट्टा घोटा मारकर जैसे ये कालेज में घुसते हैं वसे ही बाहर निकलते हैं और पैसा कमाने की मशीन बन जाते हैं, तब ये भीड़ यथास्थिति बनाये रखना चाहती है ताकि इनके माता पिता ने अपनी क्षमता से बाहर जाकर भले बुरे ढंग से कमाते हुए इनपर जो खर्च किया है वह इस समाज से वसूल किया जा सके.
ये अर्थशास्त्र भारत के भविष्य पर भारी पड़ रहा है. इसके कारण ये धनाड्य लेकिन अनपढ़ पीढी भारत में सामाजिक बदलाव या क्रान्ति की सबसे बड़ी दुश्मन बनकर उभर रही है.
ऐसी यथास्थितिवादी और सुविधाभोगी ‘कुपढ़’ भीड़ को हांकना धर्म, सम्प्रदायाद और राष्ट्रवाद के लिए बहुत आसान है. वे बड़े पैमाने पर हांके जा रहे हैं. इन लोगों पता ही नहीं कि वे अपने और अपनी ही अगली पीढ़ियों की कब्र खोद रहे हैं.
इस “तकनीक की बाबू” पीढ़ी से अब इतना बड़ा खतरा पैदा हो चुका है जिसका कोई हिसाब नहीं. ये पीढी चलताऊ राष्ट्रवाद, अध्यात्म, सांस्कृतिक पुनर्जागरण और अतीत पर गर्व इत्यादि के बुखार में सबसे आसानी से फसती है और जहर फैलाने को तैयार हो जाती है. ये पीढी भारत के सभ्य और समर्थ होने की दिशा में एक बड़ी बाधा बनकर उभर रही है.
इस पीढी को या अगली पीढी को अगर मानविकी विषयों, साहित्य, काव्य, इतिहास दर्शन आदि की थोड़ी समझ नहीं दी गयी तो ये सामूहिक आत्मघात के लिए बेहतरीन बारूद बन जायेंगे जिसे कोई भी सनकी तानाशाह या धर्मांध सत्ता आसानी से जब तब सुलगाती रहेगी.
इसलिए में हमेशा ये कहता हु की इस दुनिया में हम सेकुलर मुस्लिम वो भी इंडियन वो भी सुन्नी वो भी देवबंदी हमसे ज़्यादा महीन और बारीक जिम्मेदारी और बहुत बड़ी सरदर्दी किसी के भी ऊपर नहीं हे भारत उपमहाद्वीप सहित सारी दुनिया के ही शोषितो का भविष्य हमारी कामयाबी पर ही निर्भर करेगा इससे बड़ा भेजा फ्राई कुछ नहीं हे जो हमे करना हे वो ये कि एकतरफ़ हमे कटटरता से लड़ना हे केपिटलिस्ट कठमुल्लाशाही से भिड़ना हे ज़ाहिर हे इसके लिए फेथ से अधिक लॉजिक की दुनिया रहना होगा दूसरी तरफ हमें बाकी लोगो की तरह ये सुविधा भी नहीं हे की हम फेथ पर हमले करे नहीं कर सकते हे क्योकि ये इस्लामिक फेथ ही हे जो लोगो इसी भूकंप से ही नहीं जीवन में और भी कई भूकम्पों से बचाता हे https://www.youtube.com/watch?time_continue=46&v=xWZguy3Op60
ये हाल तो उदारवादियों का हे कटटरपन्तियो की तो बात ही क्या मतलब कह तो आप यह रहे थे की हिन्दुओ ने आपकी हालात खराब कर राखी हे और अब अंदर की बात बता रहे हे की आपको राज़ करना था यानी इतनी अच्छी हालात थी आपकी —— ? इन्ही लोगो के कारण ज़हरीली मोदी सरकार आ पायी यही लोग जिम्मेदार हे
Mohd Zahid
Yesterday at 08:41 ·
FBP/18-101
दलाई लामा ऊवाच :-
17 मार्च 1959 की रात से आज तक लगभग 59 साल से भारत में शरणार्थी बन कर रह रहे तिब्बती धर्म गुरू दलाई लामा ने भारत के इतिहास के पन्नों को झगझोर दिया है।
उन्होंने गोवा प्रबंधन संस्थान के एक कार्यक्रम में कहा कि
“महात्मा गांधी चाहते थे कि मोहम्मद अली जिन्ना देश के शीर्ष पद पर बैठें, लेकिन पहला प्रधानमंत्री बनने के लिए जवाहरलाल नेहरू ने ‘आत्म केंद्रित रवैया’ अपनाया। यदि महात्मा गांधी की जिन्ना को पहला प्रधानमंत्री बनाने की इच्छा को अमल में लाया गया होता तो भारत का बंटवारा नहीं होता।”
एक शरणारार्थी को भारत के इतिहास भुगोल पर बोलना वैसे तो उचित नहीं पर जिस दलाई लामा का भारत मे स्वागत , सुरक्षा और “धर्मशाला” उनके हवाले कर देना जवाहरलाल नेहरू के द्वारा ही हुआ उससे उनकी बात सोचने पर विवश तो करती ही है।
मुझे लगता है दलाई लामा जिस समय भारत आए उस समय बँटवारे का इतिहास बहुत स्पष्ट था , और भारत पाकिस्तान के बँटवारे को मात्र 12 साल ही हुए थे और बँटवारे की सटीक जानकारी आज की स्थीति में उनसे बेहतर कोई नहीं बता सकता।
हालाँकि वह आजकल संघ के करीब होने की कोशिश कर रहे हैं तो हो सकता है कि उन्होंने यह बयान संघ को खुश करने के लिए दिया हो , परन्तु यदि गोडसे वादियों को खुश ही करना था तो वह नेहरू से अधिक गाँधी को इस बँटवारे के लिए ज़िम्मेदार ठहराते।
दरअसल सच तो यह है कि , दलाई लामा ने अधूरी बात की , पहली बात यह कि बँटवारे के बाद भी गाँधी जी ने ही बँटवारे के बावजूद मुसलमानों को इस देश से पाकिस्तान जाने से रोका , बँटवारे के बावजूद पाकिस्तान को 56 करोड़ देने के लिए गाँधी जी का लड़ना यह दिखाता है कि बँटवारे के बावजूद गाँधी जी पाकिस्तान को अपने से अलग नहीं मानते थे और दूसरी यह कि जिन्ना को तो अंग्रेजों ने देश के विभाजन के लिए एक मोहरा बनाया और इस खेल में नेहरू-पटेल की अंग्रेजों के साथ सहमति थी।
प्रधानमंत्री का पद तो सिर्फ़ एक बहाना था , नेहरू-पटेल को डर यह था कि इस देश पर मुसलमानों के 650 साल की हुकूमत के बाद आई अंग्रेजी हुकूमत से मुक्ति के बाद इस देश में कहीं फिर से मुसलमानों की हुकूमत ना आ जाए।
सोचिएगा , 25 करोड़ भारत में + 21 करोड़ पाकिस्तान में +16•5 करोड़ बंगलादेश में मिलाकर कुल 62•5 करोड़ की आबादी इस देश की हुकूमत किसके हाथ में हो यह तय करती।
यही सोचकर नेहरू-पटेल ने मुकम्मल इलाज कर दिया।
सिकंदर हयात Sumit 2 days ago
पाठको शरीयत पर्सनल लॉ धर्म देशभक्ति की बड़ी बड़ी – सब हि बाते हे इन सब बातो से अपना ध्यान हटाना चाहिए उपमहाद्वीप का मुख्य मुद्दा शोषण गैर बराबरी हे जितना आप इस बात ko नहीं समझेंगे उतने ही अधिक शोषण का शिकार बनेगे अब जैसे एक बड़ा मुद्दा हे तो बता दू शरीयत पर्सनल लॉ का तो ऐसा हे हमारे तीन मुकदमे चल रहे हे तीनो में पर्सनल लॉ के हिसाब से शरीयत के हिसाब से हमारा पक्ष मज़बूत हे मगर सामने वाली पार्टीया जो की बढ़ चढ़ कर दीन ईमान शरीयत इस्लाम की बात करती हे उन्होंने अपने बईमान हितो के लिए इन सब बातो को नकार दिया तीनो केस और दूसरा पक्ष जनरल लॉ के हिसाब से ही चल रहे हे ठीक खून चूसने वाले सस्ते देशभक्त संघियो की तरह वैसे दीन ईमान की बड़ी बड़ी बाते करवा लो चाहे जितनीसिकंदर हयात सिकंदर हयात a day ago
अमिताभ हो या कोई भी भारत में अमीर और कामयाब लोग जरा भी समाजसेवा नहीं करते हे इसका कारण ये हे की उन्हें पता हे की यहाँ एक की करो तो दस आ जाएंगे जिन दस की करोगे उनकी सौ समस्याएं और सुननी पड़ेगी बहुत लोड होगा बहुत भेजा खाएंगे लोग इसलिए पहले स्टेप से ही लोग कदम पीछे खिंच लेते हे ऐसे में सेल्यूट से सलमान और उसमे भी सलीम खान को जो की इतना करते हे बहुत लोड लेना पड़ता होगा बहुत एनर्जी खर्च होती होगी ये देखने में भी की पैसा सही जगह लग भी रहा हे या नहीं ये बहुत जान खाने का काम हे लोग भला आदमी सूंघते ही एडवांटेज लेना शुरू कर देते हे सलमान और सलीम खान की जितनी तारीफ की जाए कम होगीऐसे ही सस्ते देशभक्त अक्षय कुमार के पास या शाहरुख़ के पास या सचिन के पास अरबो रुपया हे अय्याश भी ये लोग नहीं हे फिर इतने पेसो का ये करेंगे क्या —– ? सलमान और सलीम खान ke jese समाजसेवा करते हुए इन्हे क्या मौत पड़ती हे —– ? ( और भी भारत में ऐसे लाखो करेक्टर हे ) इसकी एक वजह तो पहले बताई ही हे दूसरी वजह से वही की अपना अरबो रुपया ये सेफ रखेंगे किसके लिए — ?: इसलिए की उसे ये ( और भी बहुत ) लोग फूंकेंगे अपने निक्क्मे और प्रतिभाहीन बच्चो को थोपने के लिए उन्हें ज़बर्दस्ती और फ़र्ज़ी कामयाब करने के लिए इसलिए मेने पहले ये मुद्दा उठाया की भारत में लोगो को अपनी औलाद की मोह्हबत के पागलपन से उबरना होगा ये एक बहुत बड़ी लूट और शोषण और बदमिजाजी की जड़ भी हे
जब आपके अच्छे दिन थे तब क्या आपने तरह तरह की सेकुलर वाम समाजवादी गांधीवादी ताकतों की कोई मदद की थी ————- ? ————————————-
Abrar Khan17 August at 02:30 · बात 90 के दशक की है मुंबई के सबर्बन मुलुंड में हमारा काफी बड़ा परिवार रहता था, हमारे फूफा के चार पांच भाई उनके बहनोई, उनके बहनोई के बहनोई काफी बड़ा खानदान था । हर कोई सेल्फ एंप्लोई था सबका छोटा-मोटा कारोबार था और कोई नया आता तो उसे भी बाहर नहीं जाना पड़ता था आपस में ही किसी के यहां नौकरी कर लेता था और कुछ दिनों बाद अपना कारोबार खड़ा कर लेता था । पूरे मुलुंड इलाके में बहुत सारे बड़े-बड़े भाई/दादा हुआ करते थे मगर हमारे परिवार की अपनी अलग धाक थी । उसी दौरान हमारे पिताजी की भी 1 बरस की दुकान हुआ करती थी जो कि आज भी है मगर तब 18 से 22 लादी बर्फ रोजाना सेल होती थी (एक लादी बर्फ में 120 किलो का वजन होता है) सब बड़े खुशहाल थे । मगर तभी 5 दिसंबर 1992 को लखनऊ में अटल बिहारी वाजपेई ने भाषण दिया कि अयोध्या में कारसेवा होकर रहेगी यह कार सेवा कोर्ट का अपमान नहीं बल्की सम्मान होगी, जब कारसेवक वहां जाएंगे बैठेंगे तो नुकीले पत्थर हैं उन पत्थरों को समतल करना होगा, मुझे नहीं पता कल वहां क्या होगा मुझे दिल्ली बुलाया गया है और मैं दिल्ली जा रहा हूं । उस भाषण को आज भी सुना और देखा जाए तो अटल बिहारी वाजपेई की कुटिल मुस्कान बताती है कि उन्हें सब पता था क्या होने वाला है क्या होने जा रहा है ।
6 दिसंबर को वही हुआ जो केंद्र की कांग्रेस सरकार ने और राज्य की भाजपा सरकार ने पहले से तय कर रखा था । कारसेवक जुटे मस्जिद के गुंबद पर मस्जिद की मीनारों पर दीवारों पर चढ़ गए । तरह-तरह के नारे लगे और बाबरी मस्जिद की एक एक ईंट तक खोदकर उठा लाए अटल के शब्दों में कहूँ तो जमीन को समतल कर आये । उसके बाद पूरे देश में दंगे भड़क गए, जब यह दंगे भड़के तो उसकी आंच मुंबई तक भी पहुंची । चूंकि मूलुण्ड हिंदू बहुल इलाका था लिहाजा वहां के मुसलमान भी काफी प्रभावित हुए ।
दंगे के समय हमारे पिताजी गांव में थे 4 मजदूर थे जो कारोबार संभालते थे सप्लाई करते थे । तब टेलीफोन का दौर नहीं था मोबाइल तो दूर की बात है कोई अर्जेंट बात होती तो तार भेजा जाता था अन्यथा अंतर्देशीय कार्ड या पोस्टकार्ड से काम चला लिया जाता था जो कभी हफ्ते भर में पहुंच जाता तो कभी महीने भर में और कभी-कभी पहुंचता भी नहीं था ।
बरहाल कोई खबर नहीं थी कि मुंबई में क्या हो रहा है सुबह सुबह रेडियो पर BBC लगता था उसी में जो खबरें आती सुनी जाती कुछ समझ में आती थी कुछ नहीं आती थी मगर हर कोई चिंतित होता था अपने परिजनों को लेकर । उस दंगे में हमारा पूरा परिवार बिखर गया, बहुत से लोग दंगे के समय ही छोड़कर भाग गए जो बचे थे वह दंगे के बाद बेच कर भाग गए ।
दंगे के समय हमारे बड़े पिताजी यानी हमारे अब्बा के बड़े भाई वही मुंबई में थे और हमारे फूफा की मुर्गी की दुकान थी उसी में जान बचाकर वही 8-10-12 लोग छुपे हुए थे रातलके समय अचानक हमला हुआ हमले का प्रतिकार भी हुआ । मगर उस हमले में हमारे बड़े पिताजी को काफी चोटें आई थी तलवार का वार लगभग हफ्ते भर के बाद जब वह गांव पहुंचे तब तक उनके जिस्म पर नुमाया था मगर अल्लाह का शुक्र था कि तलवार उल्टी लगी थी इसलिए कटा नहीं था बल्कि नील पड़ गया था । खैर सभी लोगों की जान बच गई थी क्योंकि हमारे परिवार के अधिकतर लोग गांव खेत-खलिहानों से निकल कर गिर गए थे तंदुरुस्त बदन था स्टेमिना था और लठबाज़ी जी का हुनर भी था ।
दंगों के समय हमारे बड़े पिताजी का भी बर्फ ही का कारोबार था जब वह जान बचाकर गांव चले आए तो उनका सारा का कारोबार पूरी तरह बिखर गया, उनका एक मकान था जो कि मात्र ₹13000 में बेचना पड़ा जिसकी आज की क़ीमत लगभग चालीस लाख रुपए है । और उसके बाद मेरे बड़े पिताजी कभी सेहतमंद नहीं हुए और सन 98 में इंतकाल कर गए । बड़ी अम्मा बेवा हो गई उनकी चार बेटियां यतीम हो गई । जब बड़े पिताजी का कारोबार बिगड़ा तो गांव में जो थोड़ी बहुत जमीन उनके हिस्से में आई थी उन्होंने वह भी बेच दी बैंक से कुछ लोन लिया गांव में ही कपड़ो का कारोबार शुरू किया मगर कामयाब नहीं हुए और बैंक का लोन वे अपने जीते जी कभी चुका नहीं पाय ।
उन्हीं दंगों के समय मेरी बड़ी मौसी का एक यतीम लड़का जो की उम्र में मुझसे दो या 3 साल कुछ बड़ा था परिवार से बिछड़ गया और घर से निकलने के लगभग 10-12 दिन बाद वह किसी तरह अपनी जान बचाते हुए यूपी पहुंचा । जब वव यूपी पहुंचा तो उसके बदन पर उस कड़ाके की ठंड में भी सिर्फ एक सेंडो बनियान थी और हाफ पैंट था और इलाहाबाद में लगे किसी रिलीफ कैंप से मिला हुआ एक कंबल था ।
अब आते हैं अपने घर की कहानी पर । जैसा कि मैंने पहले बताया दंगों के समय हमारे पिताजी घर पर थे वहां मजदूर थे जो कि कारोबार देखते थे वह सब अपनी जान बचा बचा कर किसी तरह भागे और हमारा भी सारा कारोबार बिखर गया । दंगे समाप्त होने के बाद जब पिताजी मुंबई पहुंचे तो वह कारोबार वह बर्फ की सेलिंग जहां 22 लादी 18 लादी होती थी व कारोबार मात्र दो लादी पर सिमट गया । आज भी वही कारोबार है आज भी मात्र दो से चार लादी की ही बिक्री होती है । पिता जी का मन उस कारोबार से पूरी तरह ऊब गया वह गांव रहने लगे और कारोबार की सारी जिम्मेदारी हमारे खालू जो कि मेरे ससुर भी हैं उनके सुपुर्द कर दी । इधर हमारे परिवार का खर्चा बढ़ रहा था हम भाई-बहन धीरे-धीरे बड़े हो रहे थे उधर कारोबार की हालत दिन-ब-दिन बिगड़ती जा रही थी ।
सन 1998 में हमने नौवीं तक पढ़ कर के पढ़ाई छोड़ दी क्योंकि घर वालों ने मेरी शादी कर दी थी उसके बाद मुझे ज़िद हो थी कि मुझे पैसे कमाने । 1999 में पैसे कमाने मैं मुंबई आ गया चूंकि अब्बा गाँव में थे तो मुंबई में हम अपने खालू/ससुर जी पर निर्भर हो गए । हमारे ससुर जी निकले महा कंजूस वह पॉकेट मनी के नाम पर मात्र ₹10 देते थे नतीजा यह हुआ कि हम और ज़िद्दी और ख़ुदसर हो गए कोई काम कोई हुनर सीख नहीं पाए । डिग्री तो हमारे पास थी ही नहीं लिहाजा सालों तक इधर उधर भटकने के बाद अंततः ड्राइविंग करने लगे ।
आज भी हम ड्राइविंग ही करते हैं और हमारे पिताजी बचे-खुचे मात्र दो लादी बर्फ का कारोबार करते हैं, एक समय वह था जब हमारे पिताजी बर्फ का कारखाना खोलने का सपना पाले हुए थे और एक समय यह है कि खाने के लाले पड़े हैं । बताने की जरूरत नहीं है कि इसका जिम्मेदार कौन सा संगठन था कौन सी पार्टी थी कौन सा नेता था ।
इसलिए हे मित्र …… आप की संवेदना कुलांचे मार रही है तो आप फूट-फूट कर रोएं मगर हम से इस तरह की उम्मीद मत रखिए क्योंकि मैं जानता हूँ बहुत से परिवार ऐसे हैं जिनकी हालत मुझसे भी ज्यादा खस्ता है। बहुत से परिवार ऐसे हैं जिनके कई सदस्य उन दंगों में मारे गए, जिनकी बहन बेटियों का बलात्कार हुआ उनकी आंखों के सामने । बहुत से परिवार ऐसे भी हैं जिन की दुकानें उनकी आंखों के सामने लूट ली गई उनके मकान जला दिए गए । और मैं इस सब का जिम्मेदार RSS को मानता हूँ RSS के लोगों को मानता हूं उसके नेताओं को मानता हूँ और उसकी विचारधारा वाले लोगों को मानता हूँ ।
अफ़ज़ल भाई क्लिक काम नहीं कर रहे हे यानी क्लिक करो तो क्लिक की संख्या नहीं बढ़ रही हे —————— ?
Deepak Sharma
12 hrs ·
संस्कार पैसों से नहीं मिलते … पैसों से मिलते तो नीरा राडिया का बेटा विवेकानंद (सरीखा) होता। और आर्य समाज से प्रभावित माँ विद्यावती, भगत सिंह को कभी भगत सिंह ना बना पाती।
संस्कार का, साख का, पैसों से लेना देना कम है।
पैसों की अपनी नियति है। अपनी सीमा है।
पैसा विनिमय है, विचार नही।
संस्कार और साख लेकर कोई गांधी आगे बड़े तो पैसों का राजनीति से आज भी ज़्यादा रिश्ता नही।
पैसों से प्रचार बड़ा हो सकता है, पैसों से कोई पार्टी बड़ी नहीं हो सकती।
2013 में मैंने दिल्ली के विधान सभा चुनाव बेहद करीब से देखे। आम आदमी पार्टी तब पहली बार मैदान में थी। मतदान के दिन आलम ये था कि दिल्ली कैंट से लेकर दिल्ली पश्चिम तक, कई ऐसी सीटें थी जहाँ आप के प्रत्याशी अपने बूथ पर एक मेज का भी इन्तिजाम न कर सके। कैंट सीट से कमांडो सुरिंदर सिंह खड़े थे। मैं दोपहर में कैंट पहुंचा तो वहां हर बूथ के पास सिर्फ कांग्रेस और बीजेपी के कार्यकर्ता दिखे। हरिनगर सीट पर तो आप की तरफ से वोटर को कोई पर्ची देने वाला भी नहीं था। तिलकनगर और विकासपुरी में भी आप हर बूथ हर सेंटर से गायब दिखी।
मैंने शाम को मनीष सिसोदिया को फ़ोन लगाया तो वे निराश दिखे। फिर कुमार विश्वास से बात हुई। विश्वास ऑफ़ द रिकॉर्ड बोले कि ‘हम चुनाव लड़ते भले ही न दिखें हों पर 10-12 सीटें ज़रूर जीतेंगे। “शाम को आजतक चैनल में मुझसे पूछा गया कि दिन भर की दौड़ धूप के बाद मेरा क्या आकलन हैं, तो मैंने 5/6 सीटें गिनाई जहाँ आप जीत सकती थी। ज़ाहिर तौर पर मेरा आकलन बूथ मैनेजमेंट के आधार पर था जहाँ आप संसाधनों से इतनी टूटी दिखी थी कि कोई भी आब्जर्वर उसे 7/8 सीटों से ज्यादा अहमियत नहीं देता।
बहरहाल 8 दिसंबर को जब चुनाव का नतीजा आया तो 28 सीटें जीतकर आप ने कमाल कर दिखाया। उस दिन मुझे यकीन हुआ कि देश में चुनाव बिना पैसों के भी जीते जा सकते हैं। 2013 में आप के कई ऐसे प्रत्याशी थे जो दिल्ली जैसे महानगर में 20-25 हज़ार रूपए खर्च करके चुनाव जीत गए। दैनिक जागरण के पत्रकार जरनैल सिंह उनमे से एक थे। दर्ज़न भर ऐसे प्रत्याशी थे जिनके पास प्रचार वाहन के नाम पर गाडी तक नहीं थी। लेकिन अगले चुनाव यानि 2015 में खुद केजरीवाल ने इस बात पर यकीन नहीं किया और चंदे की सिसायत में वे उलझ गए। बाद में राज्य सभा की सीटों का सौदा करने का भी उन पर आरोप लगा। इसी सौदेबाज़ी को लेकर पहले कुमार विश्वास और अब आशुतोष, आशीष खेतान आप से अलग हुए।
ज़ाहिर है 2013 के ये नतीजे, देश की भ्रष्ट चुनावी राजनीति में एक नया मोड़ ला सकते थे लेकिन देश का दुर्भाग्य देखिये, इस मोड़ से दो कदम आगे खुद केजरीवाल नहीं चले।
बहरहाल देश के नए चाणक्य अमित शाह और उनके कुबेर, पियूष गोयल ने चुनावी बजट को लेकर अब इतनी बड़ी लकीर खींच दी है कि आज कांग्रेस को अहमद पटेल की शरण लेनी पड़ी है । पटेल को मुकेश अम्बानी का करीबी माना जाता है और वे कांग्रेस की मुट्ठी गरम करने की कूवत रखते हैं। पैसों की इसी जोड़ तोड़ को लेकर ये चर्चा है कि अगला चुनाव दो गुजराती नेता अमित शाह और अहमद पटेल के बीच, दो गुजराती बनिये गौतम अडानी और मुकेश अम्बानी की सरपरस्ती में खेला जायेगा। लेकिन जन धन की ये बारात सिर्फ शाह और पटेल तक ही नहीं सीमित है।
ज़रा बंगाल पर नज़र डालिये। वो ममता बनर्जी जो कभी रबर की चप्पल और दो कमरे के मकान के लिए जानी जाती थीं आज पैसों के चक्कर में चिट फण्ड कंपनियों के गिरोह से घिरी हैं। और थोड़े बहुत ईमानदार से दिखने वाले ओडिशा के सीएम् नवीन पटनायक, माइनिंग माफिया की मुट्ठी में क़ैद हैं। कर्नाटक और तमिल नाडु की लूट फॉर वोट वाली राजनीति की बात ना करें तो बेहतर हैं।
कुल मिलाकर, कहना ये है कि देश 2013 की अदभुत मिसाल को हमेशा के लिए दफ़्न कर अब अपने सबसे महंगे चुनाव यानि लोकसभा 2019 की ऒर बढ़ रहा है।
हाल ये कि ईमानदारी के लिए पूजे जाने वाले अटल जी की अस्थियां, करोड़ों रुपए की कलश यात्रा में प्रचार सामग्री बन कर रह गयी हैं।
जीते जी जिस अटल को हमेशा सम्मान से देखा गया आज उनकी अस्थियों पर कार्टून, चुटकुले और बेहूदे व्हाट्सअप मैसेज गढ़े जा रहे हैं।
शायद इसीलिए आधुनिक भारत के चाणक्य को एक बात समझनी होगी कि
अगर चुनाव पैसों से जीते जाते तो यूपी में मायावती
और महाराष्ट्र में शरद पवार कभी नहीं हारते।
पंजाब में बादल अविजित रहते
और लालू अब तक बिहार के लाल होते।
2019 के संग्राम में उतरने से पहले, एक बार अमित शाह और पीयूष गोयल को ये ज़रूर सोचना चाहिए कि
पैसा अगर खुदा होता
तो कांग्रेस हारती ही क्यों ?Follow
Deepak Sharma
29 August at 23:58 ·
नेवी ब्लू रंग की बीएमडब्लू का शीशा रोल करते हुए वो बोला , ” डियर, आपसे मिलकर अच्छा लगा। किसी दिन लम्बा डिस्कशन करते हैं। ” … उसने गाड़ी की स्टीयरिंग पूरी घुमाई , यू-टर्न लिया और फिर तेज पिकअप के साथ मेरी आँखों से दूर हो गया ।
मेरे घर से 2 किलोमीटर दूर, उसका यानि अजित कुमार का बड़ा सा फार्महाउस है। वो आईआईटी का टॉपर रहा है और कुछ साल से गुडगाँव में सॉफ्टवेयर कम्पनी चला रहा हैं। लेकिन आज अजित की बाते बुरी लगीं। वो देश छोड़ रहा है । वो अपनी कम्पनी यहाँ से वाइन्ड अप करके कनाडा माइग्रेट कर रहा है ।
उसके यहाँ से माइग्रेट करने के साथ साथ उसके विचार, उसकी बातें और भी ज्यादा बुरी लगीं।
दरअसल अजीत समूची व्यवस्था से परेशान लगा।
“दीपक, मुझे GST से कोई प्रॉब्लम नहीं है। लेकिन जिस लहजे में सेंट्रल एक्साइज (GST) का इंस्पेक्टर बात करता है …ऐसा लगता है मैं चोर हूँ। और मैं जब असिस्टेंट कमिश्नर से बात करता हूँ तो वो भी कुछ वैसा ही बीहेव करता है । … लेबर अफसर तो उससे(GST) भी बुरा है। आपकी कम्पनी के कागज पत्तर सही हों फिर भी वे गलती निकालेंगे। आपको उन्हें (मंथली) देना ही देना है,” अजित ने कहा।
मेरे पास इन सवालों का कोई जवाब नहीं था इसलिए मैं अजित को सुनता रहा।
उसका बोलना जारी था। ” फॉरगेट साइबर पार्क, आप गुडगाँव के उद्योग विहार जाओ। जाओ देखो कितनी फैक्ट्री बंद हैं। फेज वन में दो दर्ज़न फार्मा फैक्ट्री होती थीं आज तीन -चार रह गयी है। It’s not because of any political party, the system is collapsing. आप कोई जेन्युइन बिज़नेस करके दिखा दो। अगर किसी बड़े कारपोरेट या लॉबी की बैकिंग नहीं है तो आप नहीं कर सकते। ”
कुछ दिन पहले एक और मित्र राकेश गुप्ता मिले थे। उनकी स्टील की रोलिंग मिल थी दिल्ली के वज़ीरपुर इंडस्ट्रियल एरिया में। पता लगा कि राकेश जी ने फैक्ट्री अब ईरान शिफ्ट कर ली है । वहां चीन से आयात होने वाले स्टील पर ड्यूटी कम है और सरकारी मशीनरी पूरी तरह से बिज़नेस स्थापित करने में सहयोग करती है। दिल्ली के कई गारमेंट मैन्युफैक्चरर भी बांग्लादेश चले गए हैं। मुझे बताया गया कि बांग्लादेश में प्रॉडक्शन कॉस्ट भारत की तुलना में कम है इसलिए ढाका में रहकर आप चीन, थाईलैंड , इंडोनेशिया या वियतनाम से प्रतिस्पर्धा कर सकते हैं।
मुझे इन डिप्रेसिंग बातों से थोड़ी परेशानी हुई तो मैं खुद गुड़गांव के उद्योग विहार गया। वहां फेज फाइव में मारुती सुजुकी की विशाल फैक्ट्री देखी जो वाकई विशाल है। फेज फाइव में ही हीरो मोटर्स का पुराना कारखाना भी देखा । लेकिन मारुती कैंपस के ठीक पीछे कई ऐसी फैक्टरियां दिखीं जो बंद पड़ी थीं। इनमे ऑटो पार्ट्स से लेकर इंजीनियरिंग के प्रोडक्शन यूनिट्स थे। वहां एक बंद पड़ी फैक्ट्री की साइट पर , फैक्ट्री मालिक की बहनजी मिली जो दरअसल केरल से थीं। उनके भाई अब अमेरिका माइग्रेट कर गए हैं। फैक्ट्री साइट पर मिली उस बहन ने मुझे बताया कि पिछले कुछ महीनो से फैक्ट्री किराये पर भी नहीं उठ रही है। रेट के हाल ये हैं कि पिछले साल यहाँ किराया 37 रूपए प्रति फुट था और आज 24-25 का रेट भी नहीं मिल रहा है।
दिल्ली से सटे इस उद्योग विहार को देश का सबसे विकसित इंडस्ट्रियल एरिया माना जाता है। लेकिन जो हालात दिखे उससे बेहद निराशा हुई।
मैं अजित से फिर मिला और उससे पूछा … कि इंडस्ट्री में इस बदहाली के लिए क्या करप्शन ही मुख्य कारण है ?
वो बोला, ” करप्शन मुख्य कारण नहीं है। ये फैक्टरियां एक दो साल में बंद नहीं हुई। बंद होने का दौर पिछले 8-9 वर्षों से चल रहा है …जहाँ एक एक कर यूनिट बंद हो रहे है। फैक्ट ये हैं कि हम इंडस्ट्री सेक्टर में चीन को झेल नहीं पा रहे हैं। सच कहूं तो प्रॉब्लम और भी बड़ी है क्यूंकि एक तरफ चीन की मार है और दूसरी तरफ एक भ्रष्ट व्यवस्था।” मैंने अजित को देर तक सुना और बाद में सोचा कि उसका कनाडा माइग्रेट करना उसके लिए अब एक मजबूरी है। वो माइग्रेट करके अपराध नहीं कर रहा है बल्कि सच तो ये है कि अपराध उसके साथ व्यवस्था कर रही है। लगा लगाया, जमा जमाया धंधा कोई बंद नहीं करना चाहता है।
गुड़गांव के उद्योग विहार फेज़ वन में जहाँ कारखानों की गिनती, दुगनी तिगनी होनी चाहिए थी, उन्ही सिमटते कारखानों की ज़मीन पर आज पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल के बेटे सुखबीर ने फाइव स्टार, ओबेरॉय ट्राइडेंट होटल खड़ा कर लिया है। इस होटल की ज़मीन कुछ बरस पहले ओम प्रकाश चौटाला जैसे भ्रष्ट सीएम ने बादल परिवार को कौड़ियों के दाम उपलब्ध कराई थी। कई और कारखानों की ज़मीन पर होटल और काम्प्लेक्स बन गए हैं।
भला हो मारुती का। भला हो हीरो मोटर्स का। उद्योग के नाम पर इन दो को छोड़कर आज गुड़गांव कारखानों के नाम वीरान है, आज यहाँ प्रोडक्शन यूनिट की जगह अमरीकी कम्पनी मूडी, गूगल और माइक्रोसॉफ्ट के दफ्तर खुले है या फिर बादल और चौटाला के होटल और कमर्शियल काम्प्लेक्स।
मैंने फिर अजित से पूछा , ” तुम जा तो रहे हो , लेकिन ये तो बताओ हम कैसे निपटें इस सिचुएशन से ?”
काफी देर सोचने के बाद वो बोला ,” लोग तो हैं हमारे यहाँ। काम भी कर रहे हैं। लेकिन पूरी तरह से जेन्युइन(genuine ) नहीं दीखते हैं । अगर दीखते है तो होते नहीं है। टॉप लेवल पर जेन्युइन लोग चाहिए । पूरी तरह से जेनयुइन। थोड़े से भी हों तो चलेगा। “
सिकंदर हयात • 3 days ago
मुस्लिम तो हम जैसे सेकुलर मुस्लिम प्रचारक लेखक चिंतक को चवन्नी की इमदाद नहीं देते ही हे ये तो कन्फर्म हे वो भी नहीं जिन्हे हमारी वजह से बहुत फायदा तक हुआ हाल ही में करोड़पति मुस्लिम बेस्ट फ्रेंड ने पचास हज़ार दिए थे खबर की खबर साइट के लिए तो चार ही महीने बाद टपली मारकर वापस ले लिए यही आदमी मदरसों को लाखो दे चूका होगा मुस्लिम की तो बात छोड़िये गैर मुस्लिम तक जब बाबरी के प्रशचित में मुस्लिम हुआ तो पचीस लाख इन साहब को दे दिए सेकुलरो को कोई नहीं पूछता पढ़िए https://www.newslaundry.com/2018/12/06/6-december-mohammad-amir-babri-masjid-ayodhya-religious?fbclid=IwAR1m2E-5WgVAk-oO94nOVC50H0Nem4cGRPg-c8MPESaMgeR5bFMXWlp63XQ और हम जो बरसो से ” सेकुलर तब्लीग ” कर रहे हे हमे न कोई हिन्दू न कोई मुस्लिम चवन्नी को भी नहीं पूछता हे वैसे आपको जानकारी दे दू की पिछले दो तीन सालो में अचानक बहुत से से मुस्लिम लिखने वालो में लिबरल लेखन की बाढ़ सी आयी हे उसका बहुत कुछ क्रेडिट उनके खबर की खबर पढ़ने को हे में जानता हु हलाकि मर जाएंगे पर क्रेडिट कोई नहीं देगा जैसा की विनीत कुमार ने लिखा था की हिंदी में कोई किसी को स्वीकार नहीं करता हे सबको लगता हे कही उसे फायदा न हो खैरमें भी मुज्जफरनगर का ही मूल निवासी हु जितना में जानता हु ” महान आत्मा ” दीन और दुनिया दोनों में कामयाब हे ( दुनिया मतलब वही वही ) दोनों में , और हम हम जैसे सेकुलर मुस्लिम विचारक लोग वो भी सुन्नी वो भी सय्यद वो भी देवबंदी हम हम दोनों में बुरी तरह नाकामयाब हे न हम दीन के न दुनिया के यानि सेकुलर विचारक होने के कारण दीन के भी नहीं और दुनिया के भी नहीं क्योकि किसी भी तरह की लूट शोषण वादा खिलाफी पैसा हम कर नहीं पाते हे दुसरो की मदद के चक्कर में अपना बेडा गर्क कर लेते हे महान आत्मा के ही एक और ”क्लोन ” भी मुज्जफरनगर में हे वो भी बहुत बड़ा नाम हे मुस्लिम्स की बात ही क्या गैर मुस्लिम भक्त भी होते हे इनके , पैसे वाले तो इनके खास फैन होते ही हे क्योकि पैसे कमाने वालो की एक खास साइकि होती हे की वो पैसा वहा देते हे जहा उन्हें रिटर्न जरूर मिले सो यहाँ रिटर्न दुनिया में भी ” मिलता हे ” और मरने के बाद तो बम्पर हे ही तो मेरा कज़िन उनके साथ लग गया और बारहवीं फेल मेरे उस कज़िन की लाइफ बेहद बदल सी गयी हे आजकल मौज़ ही मौज़ हे यानि ये दोनों में कामयाब हे माशाल्लाह दीन में भी आख़िरत में भी और दुनिया में भी मौजा ही मौजा और हम जैसे लोग दीन और दुनिया दोनों में बुरी तरह फेल हे लेकिन फिर भी चाहे जो हो हम सरेंडर नहीं करने वाले घास खाकर भी जिन्दा रहेंगे और अपनी जंग जारी रखेंगे
कुछ चीज़ें ज़िंदगी में बार बार सोचने पर मजबूर करती हैं. एक शख्स सख़्तगीर किस्म का संघी है. उसकी ज़बान भी कड़वी है मगर जब कोई कहता है कि एक गरीब (मुस्लिम हो या हिन्दू) की नौकरी चली गयी है, तो फ़ौरन जोड़तोड़ कर कहीं न कहीं फिट करने की पूरी कोशिश करता है–जैसे पेट्रोल पम्प पर या किसी ट्रांसपोर्ट के दफ्तर में लिखा पढ़ी, इस तरह के सेक्टर्स में और आदमी आपने खानदान के साथ सड़क पर आने की हालत से बच जाता है. मजबूर आदमी के लिए ये कितनी बड़ी मदद होती है, सोचियेगा.
कई ऐसे मुस्लिम दोस्त हैं जो ज़बरदस्त क़ौमपरस्त होने के दावेदार हैं, साल में कई बार दावतें होती हैं, मुस्लिम मसाएल पर डिस्कशन होते हैं, साल दर साल, “हाँ करना तो कुछ चाहिए”, “करते हैं”, इसी पर बात ख़त्म हो जाती है. असबाब भी हैं, खूब मदद करने की पोज़िशन में भी (कनेक्शंस के ज़रिये, पैसा नहीं) मगर किसी की फौरी ज़रुरत हो तो उस वक़्त गायब हो जाते हैं या कोई बहाना सामने आ जाता है, सीरियसली पर्स्यू करते नज़र नहीं आते. जबकि दुनिया में कनेक्शंस से बहुत कुछ हो जाता है. बहरहाल, इस तरह के बहुत लोग मिलते हैं शहरों में, जो अपने बाएसेज़ के बावजूद, इंसानियत का बड़ा अच्छा मुज़ाहरा करते हैं।
कोई यतीमों के लिए फ़ौरन तैयार है कोई गरीब के लिए, और इस लिए फिर उनसे दूसरी डिबेट्स में उलझना मैं ठीक नहीं समझता, इग्नोर करना बेहतर होता है शायद. ऐसे एक साहब हैं जिनके अंदर काफी हिंदुत्व है (मगर फलाही काम में मज़हब की तखसीस नहीं करते) और बोलते भी रहते हैं, कई दोस्त है कहते हैं, ‘भड़भड़िया है’ [पॉलिश्ड नहीं], मतलब खुल कर इज़हार कर देता है और हमें पता भी चल जाता है. इन इशूज़ पर सब की अलग अलग आ’रा (राय) होती हैं. कोई कहता है इंसानियत, कोई कहता है फलां के बचपन के दोस्त मुस्लिम ज़्यादा हैं, इसका असर है, कोई कहता है भाई अल्लाह ने दिल में डाला, वगैरा वगैरा, बहरहाल ये एक कॉम्प्लेक्स समाज है, किसके यहां नेकी का कांसेप्ट कैसा है, कौन ह्यूमनिस्ट हो कर भी सेल्फिश है, कौन कम्यूनल हो कर भी एक अलग लेवल से मजबूर की तकलीफ को समझता है, कई चीज़ें बेचैन करती हैं, बहुत से पहलू हैं।
-शम्स सर, भोपाल।
Pawan
15 hrs ·
9.1.2018
“हाउ पुअर पीपुल दीस मुस्लिम्स आर…
माइ गोश् ! होरिबल …
वी शुड डू समथिंग स्पेशल टू दीस पुअर पीपुल !”
यह उन कूल डूड लोगों के बीच की बातचीत है जो लंच में ठेले पर छोले-कुलचे खाने के बाद 24 मंजिला बिल्डिंग के नीचे गुनगुनी धूप में खड़े होकर सिगरेट के सुट्टे का मज़ा ले रहे हैं और मुस्लिम पंचर वाले की ‘दशा’ पर आंसू बहा रहे हैं..
#हाउ_पुअर’ लोगों की हकीकत जानिए ! पता नहीं वह बंगला है या बांग्लादेशी ! मगर बंगाली मिक्स हिंदी बोलता है नूर उल इस्लाम !अँगूठा छाप है ! पंचर जोड़ने का बिज़निस है भाई का ! 50 रु रेट है मोटर साइकिल का,80 रु रेट कार का ,बड़ी कार मने एसयूवी,वग़ैरा तो रु 125/- प्रति पंचर !! नकली ट्यूब रु 80/- वाला रु 300/- में मोटर साइकिल में,कार में 125 वाला 375 /- में लगाया जाता है यहाँ !! शर्त बस इतनी सी कि मोटर साइकिल-कार मालिक इमरजेंसी,जल्दी में हो और अज्ञानी हो ! जनाब जिन मुस्लिम मज़लूम (?) लोगों की मज़ाक हम #पंचर_वाला’ कह बना रहे हैं उनकी दैनिक आय एनसीआर में रु 1000/- से लेकर रु 5000/- प्रति दिन तक है ! यानि रु 30000/- प्रति महीना कम से कम और अधिकतम की कोई सीमा नहीं !!
कहानी चालू आहे ! जहां यह कूल डूड एक कमरे में तीन वाले PG में रहते हैं…. नूर उल इस्लाम..’पँचरवाला’ TV- कूलर-युक्त ‘झोपड़पट्टी’ में निवास करता है ! कांग्रेस सरकार ने ‘निर्वासन स्कीम’ के अंतर्गत मुआवज़े में उल इस्लाम को एक कमरे का फ्लैट फ्री, NCR में आबंटित किया ! नूर उल इस्लाम ने रु 10000/- में फ्लैट को किराए पर दे दिया और झोपड़पट्टी से सरकारी दामादों को हटा कौन सकता है ! आज नूर उल उल इस्लाम एनसीआर में दो घर,एक कार ,एक मोटर साइकिल और 5 बच्चों का मालिक है और नमाज़ी मुस्लमान तो है ही !!!
ऊपर अंग्रेज़ी झाड़ते कूल डूड हिंदु हैं ! 12 लाख में बीटेक करने के बाद प्राइवेट कंपनी में कथित इंजीनियर हैं और रु 15000/- महीना कमाते हैं…..
Pawan
2 January at 09:07 ·
#शेख_हसीना VS #नरेंद्र_मोदी
#यथार्थ VS #आदर्शवाद
हसीना से मोदी को बहुत कुछ सीखने को मिल सकता है…शेख हसीना बांग्लादेश को एक प्रगतिशील मुल्क के रूप में सामने लाने में सफल हुईं हैं… भारत से जो चाहा… जीतने में सफल रहीं हैं !… भारतीय रुपया.. मदद के रूप में मिला…भारतीय सरकारों के साथ नदी जल समझौतों में मनचाहा पानी पाया…. भू-संधिओं में भारत के एक बड़े शहर के बराबर ज़मीन उन्होंने हथिया ली… कम से कम 10 करोड़ बांग्लादेशी भारत मे प्रवेश करा कर बांग्लादेश को भुखमरी से बचाकर विकास के रास्ते पर ले आयी यह महिला !.. रोहिंग्या को मदद दी…मग़र इसके लिए धन भारत से लिया… यह है कूटनीति !
आप आश्चर्य करेंगे कि इटली,हंगरी, जर्मनी, इंग्लैंड ,आस्ट्रेलिया और स्वीडन तक बांग्लादेशी फुटकर व्यापारियों के रूप में छा गये हैं… बांग्लादेश… कमीज़…स्पोर्ट्स कैप और जुट निर्मित सामानों के निर्माण में वर्ल्ड लीडर बन चुका है… अर्थव्यवस्था में बांग्लादेश भारत को टक्कर दे रहा है… रेस्टोरेंट और होटल व्यवसाय में बांग्लादेशी अमेरिका तक मे भारतीयों को पछाड़ रहे हैं …शेख हसीना ने उन सारे मिलिट्री जनरलों को सीखचों के पीछे पहुचाया अनेकों को फांसी दिलाई..जो उनके पिता और परिवार की हत्या में शामिल थे… जमाते इस्लामी बांग्लादेश के हेड को फांसी देदी…जिसने पाक की शह पर आर्मी जनरलों को मुजीब परिवार की हत्या के लिए उकसाया था !… शेख हसीना… मोदी की हमउम्र हैं…परंतु पाकिस्तान को हर बार उसी की बाड़ में घुसकर उन्होंने मार लगाई है… अंततः पाकिस्तान ने जेहादी मुल्लों को बांग्लादेशी धरती पर उतरने से रोक दिया… शेख हसीना में इतनी अक्ल है कि यदि बांग्लादेशी कठमुल्लों को बांग्लादेशी हिंदुओं पर जुल्म करने से बांग्लादेश को कोई नुकसान नहीं है तो वह किसी आदर्शवाद के नाटक में नहीं पड़तीं हैं… भारत से गैरकानूनी रूप से आयातित गौवंश को रोकने में उन्होंने कोई रुचि नहीं दिखाई क्योकि बांग्लादेश को इससे रोज़गार,भोजन और निर्यात के द्वारा विदेशी मुद्रा भी मिलती है !
दरअसल ,शेख हसीना तीस्ता जल समझौते द्वारा तीस्ता नदी का पूरा पानी भी लेने में सफल हो जातीं… क्योकि मोदी और सुषमा स्वराज इस समझौते के द्वारा शेख हसीना का दिल जीतने पर आमादा थे… अंतिम समय मे ममता बनर्जी ने मोदी, स्वराज और शेख हसीना की गलबहियों में विघ्न डाल दिया !…आज बांग्लादेशी शिक्षा और चिकित्सा व्यवस्था में व्यापक सुधार के बाद भी हज़ारों छात्र भारतीय कालेजों में ‘साफ्टा’ और ‘सार्क’ के तहत लगभग फ्री में पढ़ते है और हज़ारों बांग्लादेशी फ्री में भारत मे इलाज कराते हैं ! यह है शेख हसीना की देन… बांग्लादेश को…बरअक्स भारत मे देखिए… 70 साल के चोर… ‘चौकीदार’ को ही खुलेआम चोर-चोर चिल्ला रहे हैं… इन चोरों ने न्यायालयों, कार्यपालिका और मशीनरी को आज भी अपने पंजो में जकड़ रखा है… एक भी भ्रष्टाचारी जेल नहीं भेजा जा सका ! मोदीजी लम्बी लन्तरनियाँ और भाषणबाज़ी छोड़ … शेख हसीना की कार्यशैली पर ध्यान देते तो शायद ‘सफल’ होते !.. कश्मीर ठिकाने आ जाता… 35 A रद्दी की टोकरी में फेंक दिया होता !…. शेख हसीना ने तो बांग्लादेशी संविधान में आमूल-चूल परिवर्तन कर दिए…तदनुसार…उन्होंने जैसा चाहा किया !… भारत मे मोदी ने संविधान को अल्लाह का कानून मान लिया गया है , जिसमे कोई परिवर्तन नहीं हो सकता…
संविधान को देश ने बनाया है… संविधान ने देश को नहीं ! संविधान को पवित्र और अक्षुष्ण मानना बेहद बड़ी भूल है ! शेख हसीना ने बताया है कि संविधान लगातार परिवर्तनीय है और समयानुसार इसमे परिवर्तन ज़रूरी है…
Yashwant Singh
बिजनेस स्टैंडर्ड की महिला पत्रकार अजंता कृष्णामूर्ति और उनके पिता बेहद मुश्किल दौर में, आर्थिक मदद की जरूरत… बहुत जुझारू लड़की है. 7 साल से खुद कैंसर से जूझ रही है. अब पिता को भी कैंसर हो गया है. बिजनेस स्टैंडर्ड वाले फंडिंग किए हैं लेकिन अभी भी इस महिला पत्रकार की दुर्दशा है. लड़की का नाम है अजंता कृष्णामूर्ति. यह महिला पत्रकार खुद कैंसर को मात देकर उठ खड़ी हुई तो पता चला कि पिता को कैंसर हो चुका है. कभी पिता ने पत्रकार बेटी का इलाज कराया और अब पत्रकार बेटी अपने पिता का इलाज करा रही.
एक ही घर में दो-दो कैंसर पेशेंट की यह कहानी आपके रोंगटे खड़ी कर देगी. ईश्वर न करें किसी के साथ ऐसा हो. अजंता बेहद जीवट, जीवंत और जुझारू हैं. इसलिए वे इस पूरे दुश्कर दौर को हिम्मत-हौंसले के साथ झेल जा रही हैं. लेकिन वो बिना आर्थिक ताकत के कब तक यह युद्ध लड़ती रहेंगी. बिजनेस स्टैंडर्ड, जहां वह काम करती हैं, ने अपने पत्रकार की मदद की है. अजंता बेहद स्वाभिमानी हैं. वे नहीं चाहतीं कोई उन पर दया करे. लेकिन अब उनकी हालत ऐसी है कि हम सभी को लगना पड़ेगा.
बिजनेस स्टैंडर्ड से भी उन्होंने मदद नहीं मांगी थी और मदद के आफर को ठुकरा दिया था. लेकिन बिजनेस स्टैंडर्ड एक संवेदनशील मीडिया समूह है जिसने अपनी महिला पत्रकार और उसके पिता की हालत को महसूस कर खुद ब खुद अपनी तरफ से मदद इकट्ठा कर अजंता के एकाउंट में डलवा दिया. इस नेक काम के लिए बिजनेस स्टैंडर्ड दिल्ली की स्थानीय संपादक निवेदिता बधाई की पात्र हैं. लेकिन अजंता को अब भी मदद चाहिए. अजंता को फौरन आर्थिक मदद चाहिए. जिस साथी से जितना बन पड़े वह नीचे दिए गए अजंता के एकाउंट नंबर में डाले….
Name : Ajanta Krishnamurthy
Account Number : 6711590397
IFSC Code : KKBK0000172
Bank : Kotak Mahindra
Branch : KG Marg, New Delhi
मैं खुद निजी तौर पर अपनी तरफ से दो हजार रुपये की एक छोटी-सी राशि अजंता के उपरोक्त एकाउंट में भेज रहा हूं(यशवंत सर द्वारा). अजंता की इच्छा के चलते उनकी तस्वीर का प्रकाशन यहां नहीं किया जा रहा है. अजंता से संपर्क उनकी मेल आईडी ajanta.krishnamurthy@bsmail.in के जरिए किया जा सकता है.
आप अजंता के बारे में पूरा जानने के लिए उनके आफिस में कार्यरत शिखा शालिनी की पोस्ट जरूर पढ़ें जिसका लिंक नीचे कमेंट बाक्स में है.
गिरीश मालवीय जी के यहाँ ड्रेस कोड- हिज़ाब और etc पर बात हो रही थी ————–Sikander Hayat आज चारो तरफ हिज़ाब ही हिज़ाब हे इसके पीछे अरबोrs का चंदा हे वैचारिकी आर्थिकी हे. हालात बदलने के लिए वैचारिकी चाहिए होगी उसके लिए बजट चाहिए होगा एक आर्थिकी चाहिए होगी वो कहा से आएगा कोई एक व्यक्ति ताकत पार्टी कॉर्पोरेट बता सकते हे जो सेकुलर मुस्लिम वैचारिकी को सपोर्ट देगा और क्यों देगा उसे क्या लाभ होंगे रिटर्न में —– ? या नहीं हे ऐसी वैचारिकी , तो उन्हें क्या नुक्सान हे भला ———- ? ————–मेरी अपनी सिस्टर हे लेडीजाकिर नायक , वैचारिकी हे आर्थिकी हे अपनी वट हे अपने फॉलोअर हे भीड़ हे उस भीड़ में किसी बड़े आदमी की बीवी भी हो सकती हे यहाँ तक की गैर मुस्लिम बड़े आदमी की बीवी भी हो सकती हे यानी सत्ता हे ये होता हे मेने पांच साल में सेकुलर विचारो से जितना कमाया हे उतने का तो उनकी संस्था का सिर्फ बोर्ड ही बन गया हे———————-Girish Malviya बहुत ग़जब का पॉइंट उठाया है आपने, मानना पड़ेगा——————–Sikander हयात to Girish Malviya अगर आप कह रहे हे तो ठीक ही होगा पोइंट । लेकिन इन points के पीछे हमारा कितना लम्बा संघर्ष कितना अध्ययन कितने जीवन की पाठशाला के अनुभव धक्के ताने तिश्ने तनाव हमारी कितनी कुर्बानिया छुपी हुई हे ये ये समाज नहीं समझता हे समाज छोड़ो हमारे अपने लोग नहीं समझते हे वो हमे ठलुए समझते हे एक लेफ्टिस्ट संपादक तक हमारे साथ क्या सलूक करते हे जब हम ” विचारो का ट्रंक लोहे का बक्सा खोपड़े पे रख कर उनके ड्राइंगरूम में चले जाते हे तो एक गिलास पानी को भी नहीं पूछते हे ” —हलाकि वो लेफ्टिस्ट सम्पादक तो फिर भी बहुत अच्छे हे की ड्राइंगरूम में घुसकर पोटली में से अपना वैचारिक माल दिखाने तो देते हे भले ही पानी को न पूछे जबकि डॉक्टर साहब के जो गुरु देव हे गुरु घंटाल उन्होंने तो पिछले दिनों हमे कलम और विचारो की मज़दूरी करते हुए गंदे संदे कपडे पसीनो पसीन सर पर विचारो की पोटली लेकर अपने ड्राइंगरूम में घुसाने से ही इंकार कर दिया———————————- ” Shahid Sayed to Sikander Hayat साहब आपके यहां हिजाब के लिए साहब आपके यहां हिजाब के लिए कितना चंदा पहूँचा है ——- ? ” —————————————Sikander Hayat to Shahid Sayed –वो बात नहीं हे मित्र में हिज़ाब को या किसी को भी गलत या बुरा नहीं कह रहा हु सब कुछ ब्लैक एंड व्हाइट ही नहीं होता हे सिर्फ , नहीं. भाई में कह रहा हु की सेकुलर मुस्लिम वैचारिकी भी चाहिए ही चाहिए ना दोस्त , ये तो आप भी मानेगे लेकिन हर वैचारिकी के पीछे भी एक आर्थिकी होती हे तो में यही कह रहा हु की -कोई एक व्यक्ति ताकत पार्टी कॉर्पोरेट बता सकते हे जो सेकुलर मुस्लिम वैचारिकी को सपोर्ट देगा और क्यों देगा———- ? उसे क्या लाभ होंगे रिटर्न में —– ? या अगर फिर नहीं भी हे ऐसी वैचारिकी वज़ूद में , तो उन्हें क्या नुक्सान हे भला ———- ?