by पीके खुराना
हमेशा से कहा जाता रहा है कि “जर, जोरू और जमीन” के कारण पक्के दोस्तों में ही नहीं, भाइयों में भी दुश्मनी हो जाती है। धीरूभाई अंबानी के देहावसान के बाद अंबानी भाइयों में छिड़ा युद्ध इस सत्य की मिसाल है। इतिहास ऐसे उदाहरणों से भरा पड़ा है। हालांकि इतिहास इस बात का भी गवाह है कि “जर, जोरू और जमीन” के साथ इसमें “तख्त” भी जोड़कर इसे “जर, जोरू, जमीन और तख्त” कहा जाना चाहिए। “जर” यानी धन, “जोरू” यानी स्त्री, “जमीन” यानी चल-अचल संपत्ति, और “तख्त” यानी सत्ता। इतिहास उन उदाहरणों से भी भरा हुआ है जहां तख्त के लिए पुत्र ने पिता को कारागार में डाल दिया या भाई ने भाई को मार डाला। राजा की वफादार सेना अलग होती थी और युवराज की वफादार सेना अलग, या अलग-अलग राजकुमारों की सेनाएं अलग-अलग रही हैं और उनमें युद्ध हुए हैं।
प्रवीण तोगड़िया से जुड़ा ताज़ा मामला “तख्त” का है जिसने तोगड़िया को इस हाल तक पहुंचा दिया कि ज़ेड सुरक्षा के बावजूद वे गायब हो गये और बाद में बेहोशी की हालत में पाये गये। कैंसर डाक्टर से फायर ब्रांड हिंदू नेता के रूप में उभरे डा. प्रवीण तोगड़िया को अब भाजपा में कोई पूछता नहीं क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उन्हें पसंद नहीं करते और मोदी का प्रभामंडल ऐसा है कि कोई उनके सामने सिर उठाकर बोल नहीं सकता। मोदी की दूसरी आदत है कि वे अपने सामने सिर उठाकर बोलने वाले को बर्दाश्त नहीं करते और सिर्फ नापसंदगी तक ही सीमित नहीं रहते। किसी ज़माने में उनके सबसे बड़े शुभचिंतक रहे लालकृष्ण आडवाणी का हाल हम सबके सामने है।
एक ज़माने में प्रवीण तोगड़िया और नरेंद्र मोदी अच्छे मित्र रहे हैं और उन्होंने गुजरात में भाजपा को सत्ता में लाने के काम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। समय का फेर है कि महत्वाकांक्षाओं के चलते दोनों एक-दूसरे के प्रतिद्वंद्वी हो गये और इसी कारण डा. तोगड़िया प्रधानमंत्री के मुखर आलोचक बन गए।
डाक्टरी की पढ़ाई के लिए सन् 1978 में प्रवीण तोगड़िया अहमदाबाद आये थे और गुजरात के होकर रह गए। वे एक नामचीन कैंसर डाक्टर रहे हैं और हिंदुत्व के अपने प्रेम के कारण वे संघ से जुड़े हुए थे और 1985 में वे बाकायदा विश्व हिंदू परिषद में चले गए और अपनी लगन और मेहनत के कारण उन्होंने न केवल अपनी पहचान बनाई बल्कि विश्व हिंदू परिषद में उनका प्रभाव भी बढ़ता चला गया।
हिंदू प्रेम के कारण ही नरेंद्र मोदी भी संघ से जुड़े और 1987 में वे संघ से भाजपा में भिजवा दिये गए। मोदी भी शुरू से ही बहुत अनुशासित, मेहनती और महत्वाकांक्षी रहे हैं। विचारधारा की समानता के कारण मोदी और तोगड़िया की आपस में खूब जमती थी और दोनों मिलकर काम करते थे। मार्च 1990 में चिमन भाई पटेल के मुख्यमंत्री बनने और फिर मार्च 1995 में केशुभाई पटेल के मुख्यमंत्रित्व में भाजपा को सत्ता में लाने में इन दोनों मित्रों की अहम भूमिका रही। उसीका परिणाम था कि केशुभाई पटेल लगभग हर छोटे-बड़े फैसले में दोनों की सलाह लेते थे और यह बात सरकारी अधिकारियों से भी छिपी नहीं थी। उसी दौरान प्रवीण तोगड़िया का कद ऐसा बढ़ा कि उन्हें ज़ेड सेक्योरिटी दे दी गई।
अक्तूबर 2001 में गुजरात के बिगड़ते हालात को संभालने के लिए केशुभाई पटेल को हटाकर नरेंद्र मोदी को गुजरात का मुख्यमंत्री बनाया गया। फरवरी 2002 के गुजरात दंगों के बावजूद उसी साल दिसंबर में गुजरात में हुए विधानसभा चुनाव हुए और नरेंद्र मोदी शान के साथ सत्ता में वापिस आये। इस चुनाव में प्रवीण तोगड़िया ने भाजपा के पक्ष में सौ से भी अधिक जनसभाएं कीं। इसके बाद ही दोनों में दरार की शुरुआत हुई, और कारण वही था “तख्त”!
प्रवीण तोगड़िया विश्व हिंदू परिषद में पहले से ही स्थापित थे, जबकि मोदी दिसंबर 2002 में सत्ता में वापसी के बाद से ज़्यादा उभरे। अब हम जानते हैं कि मोदी अपने किसी प्रतिद्वंद्वी या विरोधी को बर्दाश्त नहीं करते। वे विपक्षियों को हराने में नहीं बल्कि कुचलने में विश्वास रखते हैं। गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में भी उनके मंत्रियों को उनके सामने बोलने की हिम्मत नहीं होती थी। उनके एक वरिष्ठ मंत्री हीरेन पंड्या अपनी महत्वाकांक्षा और अहम के चलते ही जान गंवा बैठे। इसी तरह तोगड़िया भी महत्वाकांक्षी थे और मोदी भी, सो दोनों में दरार पड़ना स्वाभाविक था। मोदी ने तोगड़िया के पर कतरने शुरू किये और अंतत: तोगड़िया को यह कहना पड़ा कि नरेंद्र मोदी की भाजपा सरकार में उनकी कोई पूछ नहीं है। इसके बाद नरेंद्र मोदी जब तक गुजरात में मुख्यमंत्री रहे, उन्होंने तोगड़िया को अपने नज़दीक नहीं फटकने दिया। इस तरह दो मित्र, दो दुश्मन बन गए।
यह संयोग की बात है कि मोदी ने अपने मुख्यमंत्रित्व काल में अमरीकी कंसल्टेंसी एप्को वर्ल्डवाइड की सेवाएं लीं और वाइब्रेंट गुजरात नामक आयोजन के माध्यम से विदेशी निवेश बढ़ाने का प्रयत्न किया। इस आयोजन में प्रवासी गुजरातियों और उनके संपर्क वाली बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने शिरकत की। मोदी ने योजनाबद्ध ढंग से कई अन्य विकास कार्यक्रम भी चलाए। धीरे-धीरे देश भर में गुजरात के विकास के माडल की चर्चा होने लगी। इस बीच एप्को वर्ल्डवाइड उनकी नयी छवि गढ़ने में लगी रही।
सन् 2009 का लोकसभा चुनाव एक तरफ सोनिया गांधी, डा. मनमोहन सिंह और राहुल गांधी के नेतृत्व में और दूसरी तरफ लालकृष्ण आडवाणी के नेतृत्व में लड़ा गया और उसमें कांग्रेस की जीत हुई, लेकिन यूपीए-2 के शासनकाल के घोटालों, डा. मनमोहन सिंह की चुप्पी और तत्कालीन सरकार में व्याप्त अनिर्णय की स्थिति से देश त्रस्त था। मोदी एक कर्मठ, ऊर्जावान और दूरदृष्टि वाले नेता के रूप में तेजी से उभर रहे थे। अब तक भाजपा कार्यकर्ताओं में यह भाव घर कर गया था कि कांग्रेस को अगर हराना है तो उसके लिए लालकृष्ण आडवाणी के बजाए नरेंद्र मोदी ज़्यादा उपयुक्त व्यक्ति हैं और अंतत: सारी अड़चनों को हटाकर मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित कर दिया गया। मोदी ने पहली बार भाजपा को केंद्र में बहुमत दिला कर और अपने दम पर सरकार बनाने के काबिल बना कर इतिहास रचा । केंद्र में हालांकि एक गठबंधन सरकार है लेकिन तूती सिर्फ मोदी की बोलती है।
सन् 2008 में मोदी जब गुजरात के मुख्यमंत्री थे तो राज्य में अवैध मंदिरों को गिराया गया था जिससे नाराज़ होकर तोगड़िया ने मोदी के विरुद्ध बोलना शुरू किया। पहले से पड़ी संशय की दरार अब बढ़ने लगी और समय के साथ-साथ बढ़ती ही गई। आज स्थिति यह है कि दोनों आमने-सामने हैं। तोगड़िया यह कह चुके हैं कि उन्हें मारने की कोशिश की गई थी।
सवाल यह है कि तोगड़िया को ज़ेड सेक्योरिटी मिली हुई है, फिर कैसे वे एक आटो-रिक्शा में किसी के साथ चले गए? यदि वह गए तो उसी वक्त हड़कंप क्यों नहीं मचा? जब उनके “गुम” होने की आशंका हुई तो सरकारी मशीनरी सुस्त कैसे रह गई? क्या सरकारी मशीनरी का सुस्त रहना किसी और गहरी बात की ओर का संकेत है? क्या उनका हश्र भी हीरेन पंड्या का-सा हो सकता है? मैं कुछ भी सोचने में असमर्थ हूं और बहुत अच्छा हो कि मेरी सारी आशंकाएं गलत साबित हों।
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वि एच पि के अंतराष्ट्रीय अध्यक्ष तोगड़िया , समझा जा सकता हे की हुआ क्या ————– ? उधर आडवाणी चुपके चुपके आंसू बहा रहे हे वो तो खुदा का शुक्र हे की उनकी बेटी प्रतिभा जी ने शादी भी नहीं की तो वो आडवाणी का पूरा ध्यान रखती होंगी और आडवाणी को उनसे बड़ा सहारा होगा बेटिया तो शादी के बाद भी माँ बाप को नहीं भूलती प्रतिभा जी ने तो शादी भी नहीं की सो वे अपने पिता का पूरा ख्याल रखती होंगी . वार्ना तो दिल दहलाने वाला फोटो था वो की आडवाणी अकेले ही अपना 90 जन्मदिन अकेले उदास बनारस में थे जहा भाजपा का कोई छुटभ्या नेता भी नहीं आया इसे पता चलता हे की भाजपा कितनी कायरो की पार्टी हे इसी तरह तोगड़िया रो रहे हे और कोई कुत्ता भी नहीं फटक रहा हे आस पास समझिये की हुआ क्या —- ?: हुआ ये की गुजरात दंगो के बाद ”कायर हिन्दू कटटरपन्तियो की ख़ुशी ” का कोई ठिकाना नहीं था इंटरनेट आ चूका था मोदी ने तभी अपना दावा समझ और ठोक दिया था मगर विनाश काले विपरीत बुद्धि इस दावे को दंगे कराने वाला तोगड़िया और दंगो के बाद मोदी को बचाने वाले आडवाणी समझ ही ना सके वार्ना तभी मोदी का राजनीतिक अंत हो सकता था दोनों ने ही समझा की मोदी को इसकी फसल गुजरात में काटने दो सो तोगड़िया मोदी को गुजरात जिताने में जुट गए तो आडवाणी मोदी को गुजरात में फ्रीहैण्ड सौपने में मोदी को 2002 चुनाव में तब बदतमीजी करने से किसी ने नहीं रोका था शायद किसी ने कहा की नकवी और शहनाज़ भी गुजरात चुनाव प्रचार को उपलब्ध हे मोदी ने दी दोनों के ———– तो ये सब होता रहा आडवाणी सोच रहे हे मोदी को गुजरात में हॅसने खेलने दो क्या फर्क पड़ता हे देश में तो हिन्दू कटटरपन्तियो की गुजरात दंगो की ख़ुशी की ये फसल में ही काटूंगा तो उधर तोगड़िया देश और दुनिया में हिंदुत्व के बेताज बादशाह होने का सपना देख रहे थे मगर इंटरनेट आ चूका था मोदी समझ और दावा ठोक चुके थे की हिन्दू कठमुल्वाद के बिस्मार्क वही हे आडवाणी और तोगड़िया दोनों ने भयंकर भूल की दोनों ही मोदी की आँखों में ——— का बाल नहीं देख सके सावधानी हटी दुर्घटना घटी अब दोनों फफक रहे हे
मोदी और तोगड़िया : ये जंग हिंदू चहरे के लिए है!
January 21, 2018 Written by अनुराग सिंह Published in विविध
देश में इन दिनों एक सवाल सबके पास है कि प्रवीण तोगड़िया और बीजेपी सरकार के बीच आखिर तकरार है क्या? क्या वजह है कि तोगड़िया ने सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है और क्या वजह है कि वो ये कह रहे हैं कि एनकाउंटर की साजिश रची जा रही है। तो जरा लौटिए 2017 दिसंबर के महीने में, क्यों कि संघ से जुड़े सूत्र कहते हैं कि विश्व हिंदू परिषद जो कि संघ की अनुषांगिक शाखा है, इसके इतिहास में पहली बार अंतर्राष्ट्रीय अध्यक्ष पद के लिए चुनाव करवाए गए। इसकी सबसे बड़ी वजह ये थी कि संघ के भीतर ही दो खेमे बन गए थे। एक खेमा चंपत राय को अध्यक्ष के रूप में देखना चाहता है तो दूसरा खेमा प्रवीण तोगड़िया को अंतरराष्ट्रीय अध्यक्ष के रुप में देखना चाहता था। लिहाजा तय किया गया कि इसके लिए चुनाव करवाए जाएंगे।
विश्व हिंदू परिषद में ज्यादातर प्रचारक हैं। इनमें 40 फीसदी प्रचारक प्रवीण तोगड़िया के साथ हैं। इसके साथ ही सुब्रमण्यम स्वामी, आचार्य धर्मेंद्र, गोविंदाचार्य, रासबिहारी और महावीर जी भी तोगड़िया के पक्षधर हैं। दरअसल हमेशा नरेंद्र मोदी के साथ रहने वाले तोगड़िया पिछले कुछ समय से सरकार से खफा हैं, क्योंकि पिछले कुछ समय से तोगड़िया राम मंदिर, किसान और बेरोजगारी के मसले पर लगातार सरकार को अपने निशाने पर ले रहे हैं। सूत्र कहते हैं कि सत्ता और संघ के कई नेता नहीं चाहते थे कि प्रवीण तोगड़िया विश्व हिंदू परिषद की कमान संभालें। इसी विरोधाभास को खत्म करने के लिए चुनाव का रास्ता निकाला गया लेकिन इस चुनाव में कुछ ऐसा हुआ जिसकी कल्पना भी शायद संघ और मोदी सरकार ने कभी नहीं की थी।
सूत्र कहते हैं कि जब भुवनेश्वर में वोटिंग हुई तो करीब 60 फीसदी वोट प्रवीण तोगड़िया को मिले, जबकि संघ और मोदी सरकार चंपत राय को अंतरराष्ट्रीय अध्यक्ष के रुप में देखना चाहते थे, जो मौजूदा समय में अंतरराष्ट्रीय महामंत्री हैं। तमाम कोशिशों के बावजूद प्रवीण तोगड़िया को सबसे ज्यादा वोट मिले। संघ के भीतर हुई इस घटना ने सबको सकते में डाल दिया था क्योंकि ये कोई छोटी बात नहीं थी, जब सरकार ने अपने ही संगठन में मुंह की खायी थी। इसी के बाद प्रवीण तोगड़िया के बेहोश मिलने वाली घटना होती है, जिस पर प्रवीण तोड़िया कहते हैं- ‘मैं सुबह अपने कार्यालय में पूजा कर रहा था तभी वहां मेरा एक परिचित आता है जो मुझसे कहता है कि आप यहां से तुरंत निकल जाइए क्यों कि कुछ लोग आपके एनकाउंटर के लिए निकले हैं’।
Z+ सिक्यूरिटी वाले प्रवीण तोगड़िया वहां से समय रहते निकल जाते हैं, जिसके बाद वो बेहोशी की हालत में मिलते हैं।
इसी समय राहुल गांधी देश भर के मंदिरों में हिंदू वोटबैंक खंगाल रहे हैं।
11 घंटे बाद बेहोशी की हालत में मिले प्रवीण तोगड़िया से मिलने के लिए हार्दिक पटेल पहुंचते हैं और ये इल्जाम लगाते हैं कि ‘इस पूरी घटना के पीछे मोदी और शाह का हाथ है’। यहां एक अहम तस्वीर देखने को मिली क्योंकि विरोधी खेमे के हार्दिक पटेल तो अस्पताल में हालचाल जानने पहुंचे लेकिन पुराने साथी नरेंद्र मोदी और बीजेपी का कोई भी नेता प्रवीण तोगड़िया से मिलने अस्पताल नहीं पहुंचा। अलबत्ता तोगड़िया के इतने बड़े आरोपों पर बीजेपी एकदम खामोश है। वैसे ये वही बीजेपी है जिसने राम मंदिर का सपना अशोक सिंघल और प्रवीण तोगड़िया के कंधे पर बैठकर देखा था और ये वही प्रवीण तोगड़िया हैं जिन्हें 1979 में महज 22 साल की उम्र में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवकों का मुख्य मार्गदर्शक बनाया गया था।
इसी घटना के ठीक 24 घंटे पहले सर संघ चालक मोहन भागवत ने ये कहा था कि ‘सत्ता कृत्रम चीज है, वो बदलती रहती है’। आप इस बात का क्या मतलब निकालते हैं। जरा जोर देंगे दिमाग पर तो तस्वीर साफ हो जाएगी कि ये शब्द किसके लिए कहे गए थे और इसका आशय क्या था। अब जरा एक और तस्वीर देख लीजिए। राम मंदिर का संकल्प लेने वाले प्रवीण तोगड़िया पिछले 22 सालों से अपने घर नहीं गए हैं। बेटी की शादी में भी वो इसलिए नहीं पहुंच पाए थे क्योंकि उस दिन वो धर्म जागरण कार्यक्रम में थे। डॉ. प्रवीण तोगड़िया देश के सबसे बड़े कैंसर सर्जन में शुमार होते हैं। उन्होंने अपने पैसे से एक कैंसर इंस्टीट्यूट खोला है, जहां के मुनाफे के रुपयों में से 1 लाख रुपए उनके घर खर्च को जाता है। बाकी पूरा पैसा सेवा के काम में इस्तेमाल होता है। इतना ही नहीं, जब भी पैसे की कमी होती है तो विदेश जाकर सर्जरी करते हैं और उससे कमाए पैसे को संघ और सेवा कार्यों में खर्च करते हैं।
इसी तस्वीर के समानांतर एक और तस्वीर देखिए। देश में स्वर्गीय अशोक सिंघल और स्वर्गीय बालाजी साहब ठाकरे के बाद अगर किसी नेता की छवि हिंदू नेता के तौर पर सबसे प्रभावशाली थी तो वो नाम डॉ. प्रवीण तोगड़िया का है। संघ से जुड़े सूत्र खुद इस बात का दावा करते हैंं कि गुजरात हिंसा के समय सबसे प्रभावशाली हिंदू नेता प्रवीण तोगड़िया ही थे। उस दौर में तोगड़िया ने ही लाल कृष्ण आडवाणी से बात की थी और हालातों की जानकारी दी थी। लेकिन इसके बाद जो कुछ भी हुआ उसकी कल्पना भी किसी ने नहीं की थी। यही वो दौर था जब देश के हिंदू वोटबैंक ने एक चेहरे पर अपनी मुहर लगाई थी। ये चेहरा था गुजरात के तत्कालीन सीएम नरेंद्र मोदी का। लेकिन हकीकत कुछ और ही थी जिससे आज भी पर्दा नहीं उठा है। देश जिस हिंदू चेहरे को स्वीकार रहा था उसके पीछे सबसे बड़ा योगदान तो प्रवीण तोगड़िया का था। काम तोगड़िया कर रहे थे और नाम मोदी का हो रहा था। कई बार ये क्रेडिट था तो कई मायनों में इसे डिसक्रेडिट भी कहा गया, क्यों कि जिस रीयल हिंदू नेता की छवि को देश देख रहा था असल में उसका जमीन पर कुछ भी आधार था ही नहीं। करते तोगड़िया जा रहे थे लेकिन सीएम होने के नाते उसका पूरा श्रेय मोदी लेते जा रहे थे।
मौजूदा समय में जो क्लेश है या जो विवाद है, वो यही है कि असल में हिंदू चेहरा है कौन? प्रधानमंत्री मोदी ने देश के सामने खुद को हिंदू चेहरे के रूप में पेश किया। लेकिन अगर इसे समझना हो तो उदाहरण के तौर पर क्रिसिटोफर मार्लो और विलियम शेक्सपीयर को देखा जा सकता है। कहा जाता है कि विलियम शेक्सपीयर ने क्रिस्टोफर मार्लो को अपने घर में रख रखा था। वो उनको खाना, कपड़े और पैसे देते थे। इसके एवज में क्रिस्टोफर लिखते थे लेकिन विलियम शेक्सपीयर उसे अपने नाम से प्रकाशित करवाते थे। ठीक इसी तरह से जो कुछ भी होता था वो करते तो प्रवीण तोगड़िया थे लेकिन उसका फल या प्रतिफल नरेंद्र मोदी को मिलता था। बल्कि नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री बनाने में सबसे बड़ा सपोर्ट भी प्रवीण तोगड़िया का ही था लेकिन पिछले कुछ समय से तोगड़िया ने खिलाफत का रास्ता चुन लिया था। वो चाहते थे कि राम मंदिर पर संसद में कानून लाया जाए। बेरोजगारी और किसानों की समस्या को सिरे से नकारा ना जाए। इनसे निपटने के लिए रणनीति बनाई जाए। असल में जो हिंदू वोटबैंक के मसीहा थे वो प्रवीण तोगड़िया ही थे, इसलिए सत्ता को उनकी खिलाफत नागवार लगने लगी। अंदर ही अंदर ये डर सताने लगा कि कहीं तोगड़िया ही सबसे बड़ा चेहरा ना बन जाएं इसलिए उनको संगठन से बाहर रखे जाने का फैसला किया गया।
यहां सबसे ज्यादा भटकी हुई कांग्रेस थी। अगर कांग्रेस ने 2002 में आरोपों के कटघरे में मोदी की जगह प्रवीण तोगड़िया को रखा होता तो शायद आज ये तस्वीर खड़ी ही नहीं होती लेकिन कांग्रेस ने ऐसा नहीं किया। उसने हमेशा अपने निशाने पर मोदी को लिया। मोदी खुद भी इस बात को बार बार कहते हैं कि उन्होंने अपनी परेशानियों को अपने मौके में तब्दील किया है। असलियत भी यही है। ये बिल्कुल वैसा ही नजारा है जैसा अगर आप मोदी की तस्वीर को साफ करेंगे तो उसके अंदर से तोगड़िया की तस्वीर को निकलकर सामने आना होगा।
अनुराग सिंह
प्रोड्यूसर
सहारा समय
नोएडा
singh.or.anu@gmail.com
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तोगड़िया ने ही मोदी के पी एम् होने का विरोध किया था ! आडवानी ने मेहनत कि और अटल जी पि एम् हुए
क्या देश मोदी के मुकब्ले में तोगड़िया को पि एम् स्वीकार करता !
तोगड़िया राजनैतिक गोटियाँ डालने में असफल रहे
एनकाऊंटर की बात गुजरात चुनाव पूर्व करते तब्र राहुल गाँधी उनको हाथ हाथ लेते !
अब कौन तोगड़िया को पूछेगा
अब तोगड़िया विहिप से भी निकाले जायेंगे
राहुल गाँधी मोदी के मुकाबले में में तोगड़िया को अभी से पी एम् प्रत्याशी घोषित कर दे
पूराने दोस्त एक दुसरे की कमी जांन्ते हुए आम जनता मे पर्दाफ़ाश करते हुए मुकाबला तो तगड़ा हो सकता है
एन दी टी वि के पत्रकार रविशकुमार को मोदी के मुकबल में पि एम् प्रत्याशी घोषित कर दे ! एक नया चेहरा मोदी का मुकाबला करे
kaafi dino baad dikhe aap