सिकंदर हयात
आने वाले समय में साफ दिख रहा हे की प्रिंट मिडिया और टेलविजन के पाठक दर्शक कम होंगे नहीं तो कम से कम बढ़ेंगे नहीं जबकि खासकर नेट पर हिंदी पढ़ने लिखने सोचने समझने बहसने वालो की तादाद बढ़ती ही जा रही हे ऐसे में व्यक्ति और समूह के स्तर पर पब्लिसिटी के लिए राजनीती के लिए हिंदी नेट पर पाठको को अपनी तरफ खींचने की खासी मारामारी और बेचैनी देखि जा सकती हे ऐसे में देखा की हिंदी सोशल मिडिया पर काफीसमय से एक ज़ोया मंसूरी नाम की आई डी से संघी बाते की जाती हे एक तो मुस्लिम फिर लड़की फिर कम उम्र फिर भाजपा मोदी संघी हिंदुत्ववादी बाते इस्लाम और मुस्लिम विरोधी स्वर नतीजा बड़े बड़े अच्छे लेखकों से हज़ारो गुना अधिक आज इस ज़ोया के फ़ॉलोअर हे इसे खासा पढ़ा जाता हे तो अपने पाठको बता दे की जितना हम जानते हे और जितना हम समझते हे तो पाठको को बता दे की हम अपना अंदाज़ा बता रहे हे ये आई डी या तो घोर साम्प्रदायिक इस्लाम और मुस्लिम लेखक प्रचारक और गजल आदि से जुड़े ——– चतुर्वेदी की हो सकती हे या तो फिर ———- फॉउंडेशन से जुड़े किन्ही लोगो की ही हो सकती हे मकसद हे हिन्दूकम्युनल राजनीति की मज़बूती के लिए अधिक से अधिक पाठक खींचना हम वो बाते पेश कर रहे हे जिनकी वजह से हमें लगता हे की ये कोई लड़की नहीं हे बल्कि हिन्दू साम्प्रदायिक संघटनो से जुड़ा कोई व्यक्ति हे हमारा शक खासकर चतुर्वेदी पर ही क्यों हे ये बताएँगे पहली बात तो ऐसा नहीं हे की कोई भी मुस्लिम लड़की इस्लाम या मुस्लिम विरोधी बाते नहीं कर सकती हे या फिर उसे हिंदुत्व से प्रेम नहीं हो सकता हे जरूर हो सकता हे मगर जरा सोचिये पाठको अगर किसी गैरहिन्दू को इतनी समझ और हिंदुत्व से इतना प्रेम होगा तो अवशय ही हिंदूवादी संघटनो की क्रूरता और धूर्तता का विरोध करेगी तथाकथित ज़ोया ने ऐसा कभी नहीं किया पाठको समझिये आपके आस पास अगर किसी गैर मुस्लिम को इस्लाम से प्यार हो जाए तो क्या सम्भव हे की वो आज़म ओवेसी बुखारी आदि की राजनीति और हरकतों की निंदा न करे जरूर करेंगे जबकि हिंदुत्त्ववादी ज़ोया ने ऐसा कभी नहीं किया इससे अंदाज़ा होता हे की ज़ोया हिन्दुत्वादी साम्प्रदायिक संघटनो की फेक आई डी हे उसकी भाषा शैली किसी अनभुवी धूर्त व्यक्ति की ना की किसी भी कम उम्र लड़की की!
सोचने वाली बात हे या नहीं , की अगर———— चतुर्वेदी या उसका गेंग या कोई ———– फॉउंडेशन का कोई साज़िश ही अगर सौलह साल की हिंदुत्ववादी हिज़ाब वाली ज़ोया नहीं हे तो फिर भला क्यों एक दिन मेने देखा की —— चतुर्वेदी इसकी आई डी डुगडुगी बजा कर प्रोमोट कर रहा था जितना हम जानते हे की चतुर्वेदी ——— तिवारी का भी टेगिया मित्र भी हे तो फिर क्यों आजतक तो चतुर्वेदी ने —– तिवारी की आई डी का तो कभी प्रचार नहीं किया उस —– तिवारी का जिसने हिंदूवादी कटटरता और ———– फॉउंडेशन के इरादों और साज़िशों के लिए शायद सबसे बड़ी क़ुरबानी दि हे कहा तो ——- तिवारी हिंदी की शायद सबसे बेहतरीन और निष्पक्ष वैचारिक साइट का मालिक सम्पादक था इज़्ज़तदार था आज ये हिन्दू कठमुल्वाद का मोदी का संघ का हिन्दू साम्प्रदायिकता का एक मामूली प्यादा बन गया हे इसकी भी अब वही घटिया बाते भाषा झूठे वीडियो फोटोशॉप———- दवे जैसे शर्तियामनोरोगी से अब इसकी छनती हे हलाकि तमाम घटियापन के बाद भी हिन्दू साम्प्रदायिकता के खेमे में —तिवारी जैसा कोई और बड़ा विद्वान नहीं हे फिर भी ——-चतुर्वेदी ने मेरी जानकारी में कभी ———–तिवारी का प्रचार नहीं किया जबकि जोया की आई डी का ये डुगडुगी के साथ प्रचार कर रहा था क्यों भला ———— ? क्या इसलिए ना की ये कम्युनल गेंग ऑफ़ गाज़ियाबाद या फिर ———— फॉउंडेशन वाले साज़िशी ही ज़ोया हो सकते हे ——– तिवारी की बात करे तो इतनी सेवाओं के बाद भी कोई उसका प्रचार नहीं करता हे नतीजा उसके फॉलोवर इस फ़र्ज़ी ज़ोया के एक तिहाई भी नहीं हे
जब से हमने लोगो को बताया हे की सोशल मिडिया पर तुम्हारी सपनो की रानी सौलह की ज़ोया असल में साठसाल का —– चतुर्वेदी हे या फिर उसके ही गेंग का कोई हे तब से ही शायद शायद . ज़ोया पर बहस चल रही हे ठरकी और कुंठित लोगो मानने को तैयार ही नहीं हे की ज़ोया असल में एक हिन्दू कम्युनल गेंग के लोगो का एक प्रोपेगेंडा हे खेर हास्यपद देखिये जो असम की एक संघी लड़की गीता को शायद ऊपर से आदेश मिला होगा तो उसने भरम फैलाने के लिए यु लिखा की ज़ोया सौलह की सी ही हे लिखती ” गीता—-
8 January at 13:04 ·एक बात बताओ !
मैंने कभी नार्थईस्ट में फैले extremism पर एक भी लेख लिखा ? आपने कश्मीर में बैठ कर किसी को खुलेआम वहां के आतंकवाद पर लिखते देखा ?
हर व्यक्ति के कुछ अपने लोकल , धार्मिक , राजनैतिक खतरे होते हैं..पॉइंट ब्लांक रेंज पर कोई मुझे गोली मार जायेगा और फेसबुक वाले सिर्फ RIP लिखकर चादर तान देंगे अपनी.
जोया का असली नाम ,पता जानने की चाहत रखने वाले ….उसकी सिक्यूरिटी की गारंटी ले पाएंगे ? फतवे की जद में उसका परिवार आयेगा तो आप क्या कर लोगे ? अब तक कितनो को सिक्योर किया है आप लोंगो ने ?
अरे बच्ची है वो …लिखना चाहती है ..उसे बेख़ौफ़ होकर लिखने क्यों नही देते मर्जी से ..उसका चेहरा देखकर क्या करोगे आप लोग ?
हद है एकदम …अदिति गुप्ता वाली चाशनी में जोया मंसूरी को मत भिगोयिये.उसने किसी का नुक्सान नही किया.
आय सपोर्ट हर …..खुलेआम.
पॉवर टू this वंडरफुल गर्ल”
पाठको देखिये इनकी नॉनसेंस कुंठित लोगो को ललचाने के लिए ये बता रही हे की बच्ची हे तो यही इनका झूठ पकड़ा गया मेने पिछले दिनों एक मानव् विज्ञानि के लेख के हवाले से बताया था की इंसानो की मेच्योरिटी में अब दस साल का सा फर्क आ गया हे तीस साल की लड़की या लड़का अब बीस साल की जैसी बचकानी और चाइल्डिश भी हो सकती तो समझ लीजिये की भारत जैसे जटिल देश में कोई भी लगातार का लेखन -माने लेखन दो चार लाइने नहीं बल्कि लेख लेखन जो आपको पसंद या पढ़ने लायक लग रहा हो उनके लेखकों का तीस पैतीस चालीस या ऊपर का होना अनिवार्य सा समझिये ठीक ठाक सा भी लिखने के लिए पहले तो खूब पढ़ना होता हे जीवन के कुछ अनुभव भी चाहिए तब जाकर ऐसा लेखन सामने आता हे जिनसे आप सहमत हो या ना हो पर जिन्हे आप लेख लम्बे भी हो असहमत भी हो तो भी आप जिन्हे पढ़ने की ज़हमत लेते हे तो ऐसे में भला कोई बच्ची ये सब कैसे लिख सकती हे कोई पोएम नहीं हे —————– ? लेकिन इन्हे पता हे की कुंठित लोग कम उम्र लड़कियों के पीछे पागल रहते हे इसलिए एक कम उम्र और मुस्लिम लड़की का करेक्टर बनाया गया जो हिंदुत्ववादी बाते हिन्दू साम्प्रदायिकता का समर्थन और लम्बे लम्बे पोस्ट लिखती हे ये —— चतुर्वेदी और गैंग इतना इतना घोर कम्युनल हे की इनका डी एन ए भी करो तो उसमे भी साम्प्रदायिकता निकलेगी इन लोगो से भिड़ना आसान नहीं हे पैसा ही पैसा सत्ता सब कुछ आज इनका हे पॉवर इतनी हे की ज़्यादा चु चपड़ हम करेंगे तो ये किसी ज़रूरतमंद शिया या अहमदी आदि लड़की को पैसा देकर ज़ोया बनाकर भी पेश कर देंगे कर भी चुके हे कोई मुश्किल नहीं हे आज बस पैसा चाहिए वो इनके पास हे ही सबसे ताकतवर आदमी खुद ये सब झूट तिकड़म पसंद करता हे रविश के शब्दों में ये खुद चुनाव जितने के लिए फेक न्यूज़ प्रोमोट करते हे ज़ोया ही चतुर्वेदी या गेंग हे मुझे ऐसे पता चला की एक तो भाषा और लिखने के स्टाइल से पहचान लेता हे दूसरा की एक दिन ये ही ज़ोया की आई डी डुग डुगी बाज़ा कर प्रोमोट कर रहा था इसका क्या मतलब हुआ — ? , पाठको —- तिवारी और चिप — कब से हिन्दू कटटरता और हिन्दू कठमुल्लावाद हिन्दू साम्प्रदायिकता की दीवानो की तरह सेवा कर रहे हे कब से , फिर भी ना तिवारी के फॉलोवर हे ना चिप—- के क्लिक हे जबकि चिप—– तो रो रो के पागल हो गया अपनी साइट की टी आर पि बढ़वाने के लिए इसने अपने हिन्दू कठमुल्वादी गेंग के लोगो से सौ अपील कर दीं अपने बाल नोच लिए वैचारिकआत्मदाह की धमकी दीं मगर हिन्दू कटटरता वादी गेंग जो आज इतिहास की सबसे बड़ी समर्द्धि और ताकत भोग रहा हे उसने ही कभी इनका तो ऐसा कोई खास प्रचार नहीं किया किया इसने फिर भला कैसे एक दिन ये ही ज़ोया की आई डी प्रोमोट कर रहा था फिर ये ज़ोया भी उर्दू और कुछ शेरो शायरी भी ” करता ” हे और ये चतुर्वेदी तो हे ही उर्दू आदि का भी जानकार और एक फ्लॉप उर्दू ग़ज़ल लेखक , उर्दू लेखन और ग़ज़ल आदि की अंदुरुनी राजनीति ने ही शायद इसे घोर कम्युनल और मुस्लिम विरोधी बना दिया ज़्यादातर लोग इसी तरह अपने जीवन के कुछ बुरे और शोषण भरे अनुभवों से किसी किसी के विरोधी हो जाते हे वो ये नहीं देखना चाहते की ये पूरा उपमहाद्वीप ही हे घोर शोषण का अड्डा!
माफ़ी पाठको एक जगह टाइपिंग मिस्टेक हे ” की तो पाठको को बता दे की हम अपना अंदाज़ा बता रहे हे ये आई डी या तो घोर साम्प्रदायिक इस्लाम और मुस्लिम लेखक प्रचारक और गजल आदि से जुड़े ” सही लाइन हे घोर साम्प्रदायिक और इस्लाम और मुस्लिम विरोधी लेखक प्रचारक यानी ” विरोधी ” शब्द रह गया जिससे पूरा अर्थ का अनर्थ हो गया हे माफ़ी खेर ज़ोया का एक दीवाना लिखता हे जहा एक हिन्दूकम्युनल लेखक रो सा रहा था की उसके फॉलोअर ज़ोया से सिर्फ एक हज़ार गुणा कम हे तो ज़ोया नाम के लड़के का एक दीवाना कहता हे ”drajeet Sharma ओये शर्म करो यार …फॉलोवर गिनती के दो सौ और बातें 20-25 हजार फॉलोवर वाली …जबसे जोया से जुड़ा हूँ तबसे जोया समय समय पर अपने विरोधियों को कड़क जवाब देती रही है …पहले तुम जैसे ही भयंकर फेमस लोग उसके लड़की होने पर ही सवाल उठाते थे तब जोया ने कई बार लाइव आकर उनका मुंह बंद कर दिया …उसके बाद तुम जैसों ने अगला राग अलापा हिंदू लड़की होने का …बंदी ने फेसबुकिया मूल्लूओ का मुंह धुआंधार उर्दू झाड़कर और कुरआन की आयतें सुना सुनाकर बंद कर दिया ….अब तुम जैसे स्वघोषित महा फेमस जाने क्या नया साबित करने में लगे हुए हैं …अरे जोया का नाम लेकर फेमस होने की होड़ सी लगी है यार तुम लोगों में …बहती गंगा में हाथ धो डाले भाई ने ??? drajeet Sharma” ———————— यहाँ फिर बता दू की भोकाल साहब उर्दू और कुरान के जानकार भी हे
facebook pe aise bahut farzee naam hai aap kis kis ke piche padege. facebook ka naam fakebook hona chaahiye
सही कहा रमेश जी मगर फेक आई डी में सबसे बड़ी आई डी यही हे राइटिस्ट खेमे में– तिवारी से बड़ा विद्वान कोई नहीं हे उससे भी तीन गुणा अधिक इसके फॉलोअर हे इसलिए प्रतीक के रूप में इसकी ही पोल खोली
अगर इस ज़ोया के फर्ज़ीवाड़े के पीछे भोकाल चतुर्वेदि नहीं हे तो फिर जरूर इसमें भोकाल के भी बाप ———– फॉउंडेशन वाले मक्कारो और ताक़तवरो का हाथ हो सकता हे इन धूर्त और बेहद पावरफुल और साज़िशी लोगो का तो ये बाए हाथ कि छोटी उंगुली के नाख़ून का खेल हे अच्छा इनकी चतुराई देखिये की चाहते तो ये ज़ोया की जगह कोई सलीमा या हमीदा आपा नाम भी रख सकते थे मगर इन्होने कम उम्र लड़कियों वाला नाम और चरित्र पेश किया इन्हे पी ——— झा टाइप हज़ारो ठरकीयो की इस फितरत का पता था की ये लोग कमउम्र लड़कियों के पीछे अवशय पागल होते हे इसलिए नाम और चरित्र कमसिन सा रखा गया और तीर बिलकुल सही निशाने पर लगा सोशल पर बड़े बड़े अच्छे लेखकों से हज़ार गुना ज़्यादा इस फ़र्ज़ी ज़ोया के फ़ॉलोअर हे और देखा की माशाल्लाह लखनऊ के सूफी संत जो अपने पाठको को खबर की खबर और जाकिर हुसैन जैसे जीनियस लेखन के बारे में बताना जरुरी नहीं समझते हे और वो भी इस फर्ज़ीवाड़े की लिस्ट में हे कौन जाने उन्हें भी गुदगुदी हुई हो की कानपूर से लखनऊ दूर ही कितना हे — ? लानत हे- खेर एक घोर सन्घि के विचार जोया ने इस ठाकुर के भी हाथ काट दिए और इसके अपने संघी भाइयो ने जिनमे से कई जोया नामके लड़के से शादी भी करना चाहते हे उन्होंने तालिया बजाई छी गंदे लोग ——————— ”विपुल विजय रेगे
9 hrs · न फरीदा खानम मेरी सूची में थी, न ज़ोया मंसूरी को जगह दी है। फेसबुक के गुमनाम सुपरस्टार, जिनका कहीं कोई अस्तित्व ही नहीं है। कोई भी हो, अच्छा लिख रहा है, उससे हमे क्या। ऐसा कई लोगों का कहना है। जो अपनी पहचान बताने में भी डरता हो, उसका जीवन दर्शन लोगों को क्या सीख देगा। बुरका डालकर नए साल की बधाई तो किसी से भी दिलवाई जा सकती है। इससे ये सिद्ध कैसे हो गया कि विश्व मे ज़ोया मंसूरी नामक ‘गब्बर’ महिला अस्तित्व रखती है। आधे से अधिक तो ज़ोया पर मर मिटे हैं। फेक आईडी के प्रति गहरा आकर्षण मानव स्वभाव की कमज़ोरी है। जो खुद पर पर्दा डालता है, उसके प्रति जिज्ञासा हो ही जाती है। देश के महत्वपूर्ण मसलों पर फेक आईडी वाले अपनी राय बांटते फिरते हैं और लोग वाह-वाह कर उठते हैं। ऐसे सीक्रेट सुपरस्टार फेसबुक की शान बने हुए हैं। हालांकि फेसबुक का मिज़ाज़ ही कुछ ऐसा है। सुंदर फोटो, भद्दे चुटकुले, गाली-गलौज और फेक आईडी का आकर्षण यहां सबसे अधिक है। ज्ञान और जानकारी सबसे निचले पायदान पर है।विपुल विजय रेगे
2 hrs ·
कुत्तों की फौज आई थी लेकिन काटने के बजाय वॉल गंदी कर रही थी मलमूत्र से। इतने गंदे लोग पाल रखे हैं। इनको पट्टा तक नहीं पहनाया।विपुल विजय रेगे
46 mins ·
ये बात सही है कि मेरे और ज़ोया मंसूरी के म्यूचल मित्रों को किसी तरह की अग्नि परीक्षा में नहीं डालना चाहिए। पिछली पोस्ट में वो वाक्य हटा दिया था जिसमे म्यूचल मित्रों को अमित्र हो जाने की बात कही थी। वह बात न्यायसंगत नहीं थी। फिर मैंने उस पोस्ट के लाइकर्स पर दृष्टिपात किया तो लगा जैसे मन के भीतर कुछ दरक सा गया है। पहले ये बात स्पष्ट कर दूँ कि यदि वह पोस्ट सपाट आलोचना की होती तो उतना दर्द नहीं होता लेकिन उसमे मुझे लेकर भद्दा मज़ाक बनाया गया था। आश्चर्य की बात मेरे कई मित्रों ने उस उपहास भरी पोस्ट को पसंद किया था। मेरे कई मित्र, जिनमे महिलाएं भी शामिल थी। मुझे ज़ोया की पोस्ट से फर्क नहीं पड़ा लेकिन उन मित्रों के लाइक मुझे चिढ़ा रहे हैं। मैं कोई तुर्रम खां नहीं हूँ। एक औसत दर्जे का फेसबुकिया हूँ, मठाधीशों वाली श्रेणी में तो कतई नहीं हूँ और ‘कुत्ते पालने वालों’ में तो बिलकुल ही नहीं हूँ। मेरी भद्दी आलोचना वाली उस पोस्ट को पसंद करना शायद आपकी विवशता रही होगी। मैं समझ सकता हूँ। तो दिल पर पत्थर रखकर उन लाइकर्स को विदा कह दिया है। रही बात मेरे स्वघोषित पत्रकार होने की, तो इस पर कोई टिप्पणी नहीं करूँगा। आज ये पता चला कि ये आभासी मंच ‘आभासी लोगों’ का ही है। आभासी लोगों के लिए वास्तविक लोगों की ‘आतुरता’ आज मुझे हैरान कर गई। ”
Archana Tabha
16 January at 19:11 ·
फेसबुक पर जिन प्रगतिशील, क्रांतिकारी और नारीवादी पुरुषों के चेहरे से नक़ाब उतरे हैं उनके बर्ताव का एक अलग ही पैटर्न है जो काफ़ी दिलचस्प और सभी में लगभग एक समान है । ये सभी के सभी किरान्तिकारी पुरुष समाज में व्याप्त धार्मिक, जातीय, क्षेत्रीय, लैंगिक और आर्थिक असमानता के खिलाफ खूब लिखते हैं । इनके लेख को देखकर किसी भी व्यक्ति को तसल्ली मिल सकती है ये सोच-सोचकर कि चलो कोई तो है समाज में जो समस्याओं से अवगत है और उनकी ख़िलाफ़त कर रहा है और इन सबके बीच लड़कियों के लिए किरान्तिकारी पुरुष काफ़ी क्रांतिकारी लगते हैं । चूकि लड़कियां शुरू से दबाई हुई और भेदभाव का शिकार हुई होती हैं ऐसे पुरुषों के प्रति आकर्षण बढ़ना लाजमी है और होता है । बेचारी लड़कियों को क्या पता कि ये प्रगतिशीलता, नारीवादी और किरान्तिकारी चोला सिर्फ़ एक मुखौटा ही नहीं बल्कि एक जाल भी है । ये महान किरान्तिकारी-नारीवादी पुरुषों का तबका अगर ये सुन भी ले कि कहीं लड़की के साथ कोई बुरा हादसा हो गया तो उसी क्षण किरान्ति धावा बोल देती है,दुनिया उलट-पुलट की जाती है। उसी वक़्त इन महान किरन्तिकारी पुरुषों को ये आत्मग्लानि होती है कि प्रकृति ने उनको स्त्री जैसा क्यों नहीं बनाया कि वो स्त्रियों के दुख-दर्द को और करीब से महसूस कर सकें। उफ़्फ़ !!
लेकिन अगर इनकी खुद की निजी जिंदगी में झाँका जाए तो ये महान किरान्तिकारी-नारीवादी पुरुष निजीतौर पर बेहद दोगले और एक वक़्त में कम से कम एक साथ कई लड़कियों के सम्बंध में रह रहे होते और उनको धोखा दे रहे होते हैं । इस धोखेबाजी के पीछे इनके जबरदस्त आत्मविश्वास का कारण होता है कि ये सामने वाले ही को ये अहसास दिलाते हैं कि सामने वाली ही संकीर्ण मानसिकता की है, सामने वाली ही बिना मतलब के शक करती है , अतः सामने वाली को थोड़ा खुले विचारों का होना चाहिए,सामने वाली को ही थोड़ा और किरान्तिकारी होना पड़ेगा !!
लेकिन किरान्तिकारी-नारीवादी पुरुषों ऐसा है ना कि सिर्फ़ आप ही दिमाग ले कर पैदा नहीं हुए हैं, लड़कियां भी 1130cc का दिमाग लेके पैदा हुईं हैं जो उनके शरीर के हिसाब कहीं ज्यादा है लेकिन आपका उतना ही कम है। अगर सामने वाली आपकी चोरी नहीं पकड़ रही है तो इसका मतलब ये हरगिज नहीं लड़की बेवकूफ है बल्कि इसलिए ऐसा है क्योंकि वो अभी विश्वास वाले फेज में होती है । और जो ये आप लोगों को भ्रम है न कि आप पकड़े नहीं जाएंगे तो ये आपका बहुत बड़ी गलतफहमी है, इसे निकाल दीजिये अपने जहन से ।
नोट- पुरुष नारीवादी हो सकते हैं लेकिन वो अपवाद की श्रेणी में आते हैं और अपवाद अक्सर चलन में भी नहीं होते हैं। तो प्यारी बहनों अगर आप ऐसे किसी महान किरान्तिकारी, प्रगतिशील और नारीवादी पुरुष के प्रभाव में हैं तो इनके पीछे इनकी जासूसी जरूर कीजिये हो सकता है भारी मुसीबत से बच जाएं ।
See TranslationArchana Tabha
5 hrs ·
सिमोन एक जगह कहती हैं कि आधुनिकता ने जिस तरह जिंदगी को अस्थिर और अनिश्च किया है और शादी के बाहर सेक्स की उपलब्धता सहित तमाम तकनीकी-सुविधाओं ने रोजमर्रा की जिंदगी आसान की है उससे पुरुषों को शादी एक अतिरिक्त भार लगता है । ये आज से 40-50 साल पहले की बात है , पर आज परिस्थिति कितनी तेजी से बदली ये भी साफ दिख रही है । शादी से सिर्फ सेक्स और घर के काम में मदद की आवश्यकता ही पूरी नहीं होती बल्कि अकेलेपन से भी निजात देती है । अकेलेपन और वंश बढ़ाना दो बड़े कारण हैं कि लोग शादी करते हैं ।
पर जिस तरह आधुनिकता ने निजी जिंदगी पर असर करती आई है ठीक वैसे ही सोशल मीडिया भी असर कर रही है, हालांकि इस पर अभी कोई ठोस शोध होना बाकी है । सोशल मीडिया के प्लेटफार्म से बेहिसाब लोगों से संवाद किया जा सकता है, उनसे खुद की महत्व का ठप्पा लगवाया जा सकता है, इसके जरिये अकेलेपन को कुछ हद तक मोड़ा जा सकता है और बाकी के फ़ायदे तो हैं ही । सोशल मीडिया का एक असर ये है कि जिन शादी शुदा औरतों की जिंदगी एकदम खत्म मानी जाती थी शादी के बाद अब उनको नया मंच मिला है । अब शादी शुदा औरतें फेसबुक जैसे माध्यम से आर्थिक-सामाजिक मुद्दों पर अपने विचार रख सकती हैं, पुरुषों से भी संवाद कर सकती हैं और इस तरह किसी न किसी तरह समान विचारों वाले स्त्री-पुरुषों संपर्क में आ जाती हैं । यही बात पुरुषों पर भी लागू होती है लेकिन समाज में स्त्री और पुरूष की स्थिति बराबर नहीं है, पुरुषों को आदत है कि बाहर भले उन्हें तवज़्ज़ो मिले न मिले लेकिन घर पर उसे जरूर मिले । औरतें पहले भी बाहर काम करती थीं लेकिन उससे पति को कोई ज्यादा समस्या नहीं होती थी क्योंकि किसी पुरुष से समपर्क के ज्यादा अवसर नहीं होते थे । लेकिन अब कामकाजी औरतें काम के साथ-साथ अपने विचारों को साझा करने के माध्यमों यानी सोशल मीडिया पर कई पुरुषों से संपर्क कर सकती हैं । और इसी संयोजकता रिश्तों में जलन का कारण हैं ।
पिछले दो -तीन दिनों से कई ऐसी पोस्ट नज़रों से गुजरीं जिसका सार यही निकलता है पति अपनी पत्नी की कामयाबी के जश्न में शरीक़ नहीं है, पत्नी की बातों पर ध्यान नहीं दे रहा है और पत्नी बहुत आगे बढ़ चुकी है वगैरह-वगैरह । कुल मिलाकर ये कि शादी जैसी संस्था पर सोशल मीडिया काफी असर डाल रही है और आने वाले दिनों में ऐसे मामले और बढ़ेंगे ।
जबसे स्त्री आर्थिक रूप से स्वतंत्र हुई है बेमेल शादियों से निकलने में उसे आसानी हुई है और परिणाम स्वरूप तलाक़ के मामले बढ़े हैं, पर सोशल मीडिया के माध्यम से बेहतर विकल्पों से समपर्क से अब इनमें और बढ़ोतरी होगी । लेकिन जिस तरह के व्यक्तित्व का विकास भारतीय समाज करता है क्या वो ये सब झेलने को तैयार है??Archana Tabha
Yesterday at 20:12 ·
आज मंटो की पुण्यतिथि है ,कोई पूछे कि मंटो कौन है तो जवाब होगा कि मंटो हिंदुस्तान का एक बड़ा कहानीकार बनने के बाद पाकिस्तान का एक बड़ा कहानीकार है जिस पर हिंदुस्तान और पाकिस्तान दोनों ही देशों की अदालतों में मुकदमे चले, अश्लीलता के मुकदमे ,सच्चाई को अदब के करीब लाने के आरोप में अश्लीलता के मुकदमे ,उनकी कहानियों में अश्लील जो था वो ये कि एक तवायफ के बेटे जिसके सीने को अंग्रेजों की गोली छलनी कर देती है ,उसकी बहनों को वो मंटो गैरतमंद कहते हैं ,लेकिन समाज मे (अंग्रेजों के भी और आपके भी ) तवायफ की बेटी तो सिर्फ तवायफ ही होती है ,तभी तो वो लिखते हैं कि अगर आपको मेरी लिखाबट से दिक्कत है तो दिक्कत आपके समाज मे है ,मंटो बाइस किताबों का लेखक है जो महज 43 साल की उम्र में दुनिया को छोड़कर चला गया ,मंटो पाकिस्तान में रहते रहते बोर हो चुका एक ऐसा व्याकुल इंसान है जो कभी इंग्लैंड के चचा सैम को खत लिख देता है तो कभी भारत के चचा नेहरू को ,वो कभी चचा सैम के देश को नंगा कहते हुए वहां के एक लेखक का बचाव करते हैं जिस पर उन्ही की तरह अश्लीलता के मुकदमे चल रहे हैं तो कभी नेहरू से भारत मे उर्दू की हालत खराब होने की खबर देते हुए नेहरू को बताते हैं कि आपकी उर्दू भी ठीक नहीं है ,वो खुद की नजर में कहानी कार नहीं वल्कि एक जेबकतरा है ,मेरी नजर में मंटो गरीब नहीं हैं ,वो फकीर है ,गरीब वो होता है जिसे अमीर होने की चाहत हो ,औऱ फकीर वो होता है जिसे अमीर और गरीब से ज्यादा फर्क ही न पड़े ,मंटो की कहानियों पर जाएं तो मंटो बंटवारे के बाद अमृतसर से चली ट्रैन में अपनी पत्नी की मौत के बाद अपनी 17 साल की बेटी को खोजता एक बूढ़ा सिराजुद्दीन है,जिसने अपनी बेटी खोजने के लिए जिन शरीफजादों से मदद माँगी उन्ही ने उसकी बेटी को अपना शिकार बना लिया ,मंटो अपनी बेटियों और बीवी से बात करते हुए,रिश्तेदारों की मेहमान नवाजी करते हुए कहानी लिखने वाला अफसाना निगार है ,मंटो रोज दिन भर काम करके रात को चैन से सो जाने वाली औरतों से खफा है ,वो एक रंडी में अपनी हीरोइन खोजता है जो रात को जागती है और दिन में सोते सोते अचानक इस ख्याल से चौककर परेशान होकर जाग जाती है कि बुढापा उसके दरवाजे पर दस्तक दे रहा है उसका क्या होगा ? ,उसे पति से पिटकर फिर से उसी की सेवा करने वाली औरत बिल्कुल नापसन्द है ,मंटो अपनी बेबाक कहानियां लिखने के लिए मुकदमों का स्वागत करने वाला ऐसा लेखक है जिसे लिखने की लत शराब की लत की तरह है ,मंटो बंटवारे के दौरान हिंदुस्तान और पाकिस्तान दोनों ही जगह बंटवारे की सजा पाती लड़कियों के फूले हुए पेट में भरे हुए बच्चों का मालिक ढूढंते हुए चिंतित हो उठने वाला एक वो इंसान है जिसके हिस्से में किस्से आये आंसू आये ,खून आया ,लाशें आईं ,लेकिन न तो हिंदुस्तान आया और न ही पाकिस्तान ,
आज पुण्यतिथि है नमन रहेगा ,
~ फ़ोटो और पोस्ट साभार अंशुल कृष्णा
See Translation
एक तरफ ———— फाउडेंशन वालो ने ज़ोया जैसे 6—- छोड़ रखे हे वही इन्हे भी शायद ट्रेनिंग भी दे राखी हे ये संघी तिवारी इन्हे क्या सीखा रखा हे की ये दिखावे को मोदी की निंदा करते हे ताकि लोग निष्पक्ष समझ कर इन्हे पढ़े फिर ये उन्हें साम्प्रदायिकता का जाम पिलाकर मोदी का पक्का वोटर बनाते हे आवेश तिवारी जि ने इन तिवारियों की ही सही पोल खोली हे की कोई दलित या मुस्लिम विरोधी कतई मोदी विरोधी नहीं हो सकता हे भला ही वो ऐसा दर्शाने की पूरी कोशिश करे खेर संघी तिवारी लिखता हे
4 hrs · एक इस्लामाबाद पाकिस्तान में है, एक मेरठ में भी है। सच्चे मुसलमानों को सच्चा मोहल्ला। हर चोरी बड़ी सच्चाई से की जाती है। इस चोरी में बिजली चोरी सबसे ऊपर है। बिजली इस्तेमाल करो लेकिन बिल मत भरो।कल इस मोहल्ले में बिजली अधिकारी मीटर की जांच करने पहुंच गये। दस बारह मीटर पकड़े जिन्हें लगाया तो गया था लेकिन बिजली बाइपास से इस्तेमाल होती थी। अभी जांच आगे बढ़ती इससे पहले ही इस्लामाबाद के सभी नौनिहाल इकट्ठे हो गये। जैसा कि हमेशा होता है। अपने अपराध को बचाने के लिए सच्चे मुसलमान तत्काल संगठित होकर सड़क पर आ जाते हैं। यहां भी यही हुआ। सबने मिलकर अधिकारियों को वहां से भगा दिया गया और सरकार के खिलाफ ही धरना प्रदर्शन शुरु कर दिया। हमारी चोरी पर जब अल्लाह आंख मूंदकर बैठा रहता है तो ये काफिर कौन होते हैं आंख लगाने वाले? ”———————————————————————————————– पाठको मेने तो बहुत पहले ये मुद्दा मेरे वेस्ट यु पि में ऊँची सरकारी नौकरी वाले कज़िन के सामने उठाया था तो उसने दबंग जातियों के कई गांव बताये जहा डाकिया गाँव से बाहर ही बिजली बिल फेंक कर खिसक जाता हे
Hemant Kumar Jha
20 January at 01:07 ·
आप यूलिया वंतूर को जानते हैं? जरूर जानते होंगे।
आप टीवी के न्यूज चैनल्स देखते हैं, अखबार पढ़ते हैं, तो क्या मजाल कि इस रोमानियाई महिला को न जानें।
आप उसे सिर्फ जानते ही नहीं, आप में से बहुतों को यह भी पता होगा कि आजकल वह टेंशन में क्यों है।
न्यूज चैनल्स प्राइम टाइम में दिखाते हैं कि अपने भाईजान आजकल फिर से कटरीना कैफ के नजदीक आ रहे हैं। जाहिर है, यूलिया टेंशन में है।
लेकिन, आप सुनील भाई को नहीं जानते। वह आदमी, जो जेएनयू से इकोनॉमिक्स में स्नातकोत्तर करने के बाद प्रशासनिक सेवा में नहीं गया, किसी विश्वविद्यालय में प्रोफेसर बनने नहीं गया, बल्कि एक सुदूर आदिवासी इलाके में 30 वर्षों तक शोषण के खिलाफ अथक संघर्ष करता रहा और फिर वेदनापूर्ण असामयिक मौत मरा। उन विवश आदिवासियों के लिये संघर्ष, जिनके संसाधनों पर सत्ता के सहयोग से कारपोरेट का अनैतिक कब्जा होता रहा। वह हमारे समय का नायक था।
आप प्रेम सिंह और सुशील कुमार को नहीं जानते, जो किसी विश्वविद्यालय में प्रोफेसर हैं, लेकिन छुट्टियों में हिल स्टेशन न जा कर अपने वेतन के पैसों से सुदूर गांवों में जाते हैं और गरीबों में अपने हक के लिये लड़ने का जज्बा पैदा करते हैं। उन गांवों में, जहां जाने के लिये उन्हें मीलों पैदल चलना होता है, पहाड़ों को लांघना होता है। उनके साथ अधनंगे, शोषित, कुपोषित लोगों का काफिला चलता है, जो उन्हें देवदूत मानते हैं।
ये चैनल्स यह नहीं दिखाते कि अर्द्धसैनिक बलों और नक्सलियों के बीच पिस रहे छत्तीसगढ़ और झारखंड के लाखों आदिवादियों का जीवन कितना नरक बन चुका है। इलाज के बिना कारुणिक मौत मरते उनके बच्चे, भूख से त्रस्त उनके वृद्ध, दोतरफा आतंक के साये में जीते उनके नौजवान…ये न्यूज चैनल्स के लिये ‘बिकाऊ माल’ नहीं।
जिस शीतलहरी से पूरा उत्तर भारत कांप रहा था, उसकी सर्द रात में पटना की खुली सड़कों पर बेहाल पड़े उन बेरोजगार नौजवानों पर कोई स्टोरी नहीं कर रहा था, जो बिहार कर्मचारी आयोग की अकर्मण्यता के खिलाफ संघर्षरत थे। आखिर, पांच वर्षों से भी अधिक समय से वे एक ही परीक्षा के चक्रव्यूह में उलझे पड़े हैं।
देश के करोड़ों लोगों के सामने अस्तित्व का संकट है। सरकार की आर्थिक नीतियों ने उन्हें कहीं का नहीं छोड़ा है और न ही उनकी पीड़ा सुनने समझने को कोई तैयार है। उन पर स्टोरी नहीं होती।
लोगों को यह पता ही नहीं चलने दिया जा रहा कि उनके देश के ही नागरिक, उनके ही करोड़ों भाई बन्धु किस नारकीय स्थिति में हैं और देश की रिकार्डतोड़ विकास दर के बावजूद उनकी स्थिति में सुधार के कोई लक्षण नहीं दिखते।
महज एक साल में माननीय अडानी जी की संपत्ति में दोगुनी से ज्यादा वृद्धि हो गई। इस युगपुरुष ने कैसे इतना बड़ा चमत्कार कर दिखाया, इस पर भी हमने कोई स्टोरी नहीं देखी।
लोगों को क्या जानना चाहिये, अब यह कोई और निर्धारित करने लगा है।
परंजय गुहा ठाकुरता जैसा कोई धुनी अगर तस्वीर का दूसरा पहलू दिखाने की कोशिश करता है तो उसे बाहर का रास्ता कैसे दिखाया जाता है, यह हम देख चुके हैं।
सूचना क्रांति के दौर में सूचना के स्रोतों पर कब्जा…इसका उदाहरण एक अन्य युगपुरुष, राष्ट्रभक्त बड़े अम्बानी प्रस्तुत कर रहे हैं, जो मीडिया घरानों में एक के बाद एक अपनी हिस्सेदारी खरीदते जा रहे हैं, फिर उसे बढाते जा रहे हैं। उनका थिंक टैंक जो चाहेगा, वही स्टोरी प्रसारित होगी।
उन्होंने चाहा कि हम कई दिनों तक विरुष्का की शादी में रमे रहें तो हम शौक से उसमें रमे रहे। दो अलग अलग लोगों के नामों को मिला कर कितना प्यारा सा नाम उन्होंने बनाया…’विरुष्का’। हमने उसे समझने में कोई देर नहीं लगाई।
वे नहीं चाहते कि हम इस पर मगज लड़ाएं कि भारत में दुनिया में सबसे तेज गति से, बल्कि इतिहास में सबसे तेज गति से आर्थिक असमानता बढ़ रही है। वे यह भी नहीं चाहते कि शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे क्षेत्रों में निजीकरण के व्यापक दुष्प्रभावों पर हम बहस करें।
वे हमें रोज अतिरंजित भाषा में आतंकियों और चीन, पाकिस्तान आदि देशों को सबक सिखाने के अन्दाज में राष्ट्रवाद की घुट्टी पिलाते रहते हैं।
वे जो चाहते हैं, हम वही जानते हैं। जो वे नहीं चाहते, उसे जानने के लिये हमें जिन स्रोतों तक पहुंचना होता है, उतना धीरज और समय हम में से बहुतों के पास नहीं।
वे हमें किसी नशे में गाफिल रखना चाहते हैं। हम शौक से गाफिल हैं। बिना इस बात की चिंता किये कि अपने बेटे और बेटियों के लिए हम कितने कठिन भविष्य का निर्माण कर रहे हैं।Hemant Kumar Jha
——— जी के नेतृत्व में इन्हि हिज़डो की सेना नालंदा जलाने की फ़िराक में हे Raj Kishore
15 hrs ·
लेखकों, बुद्धिजीवियों और कलाकारों से विनम्र अनुरोध है कि वे अगले दस वर्षों तक रचना कार्य स्थगित करके राजनैतिक-सामाजिक जागरण और संघर्ष में लगें।
नालंदा पुस्तकालय जलने को है। यह समय पुस्तकालय को बचाने का है, न कि कुछ और किताबें लिख देने का। जब समाज ही नहीं रहेगा, तब आप का लिखा पढ़ने वाला कहां से आयेगा?
यह भी हो सकता है कि इन दस वर्षों में जो कुछ रचा जाए, वह कलात्मक उँचाई प्राप्त करने के लिए नहीं, बल्कि सिर्फ इस जनजागरण के लिए हो।
अगर ऐसा संगठित प्रयत्न होता। है, तो देश भर का युवा ज्वार की लहराता हुआ आप के पास आयेगा।
भविष्य का इतिहासकार इस अवधि को साहित्य और कला का अंधकार युग बतायेगा या भारतीय समाज का जागरण काल, इसकी चिंता करना हमारा काम नहीं है।
फेसबुक का फंदा कृष्ण उवाच, Krishan Says, कहा कृष्ण ने…Sunday, November 12, 2017
“जुकरबर्ग ने एक स्त्री के अलावा किसी दूसरी स्त्री की ओर कभी देखा नहीं, इसी से खरबपति हो सके।”- जुकरबर्ग का इंटरव्यू था।श्रीमती जी ने मुस्कुराते हुए मुझे ये खबर दिखाई। मेरी प्रतिक्रिया थी कि झूठ बोलता है ये बेईमान। इन्होंने भले ही एक ही स्त्री की प्रति यौन निष्ठा रखी हो। शारीरिक रुप से एक ही स्त्री को देखा हो, लेकिन स्त्री केवल शरीर नहीं होती। उसके अलावा भी वो बहुत कुछ होती है। वो एक स्वभाव है।इस आदमी ने अपनी पत्नी के अलावा हर स्त्री के उन स्त्रैणगुणों का शोषण किया है, जो उनके शरीर के अलावा, उनमें है। ये साहब, तन से भले एक ही स्त्री के प्रति निष्ठ रहे, लेकिन इनकी नजर, संसार के हर स्त्री के मनोविज्ञान पर थी। इन्होंने उसका ही दोहन किया। सबसे बड़ा शोषण तो जिज्ञासा, जानने की इच्छा और जलन के स्वभाव का किया। जुकरबर्ग ने इन भावनाओं को हवा दी, इन्हे भड़कया और फिर उसके ताप से कमाई की।
गपशप, गॉशिप और चुगली… हर व्यक्ति का चरित्र है, पर संसार इसे स्त्रैण गुण ज्यादा मानता है। अनुभव ऐसे ही हैं। वैसे हर पुरुष में थोड़ी स्त्री होती है। तो पुरुष भी ऐसा व्यवहार करते हैं। जुकरबर्ग ने पुरुषों के भीतर की उन स्त्रियोंपर भी नजर रखी। आज फेसबुक… व्यक्ति के इन्हीं स्तैणगुणों के चलते समाज में खलबली मचाए हुए है। उसने इसी इंसानी कमजोरियों का फायदा उठाया है। उसे ही बेचा और खरीदा है।
.स्त्री केवल शरीर के तौर पर नहीं, अपनी मनोवैज्ञानिक कमजोरियों के रूप में भी शोषित है। उनके इस गुण(अवगुण) का भी दोहन किया जाता है। एकता कपूर ने इन्हीं गुणों का शोषण कर अपना साम्राज्य स्थापित किया। बिग बॉस भी यही करके, सबसे ज्यादा कामयाबी बटोर रहा है। जुकरबर्ग इन सबसे अलग नहीं।
…तो उन्होंने एक नहीं, हजारों, लाखों, करोड़ों स्त्रियों पर, अलग तरीके से नजर रखी, इसी से खरबपति हो सके।
ऐसा जुकरबर्ग ने खुद ही माना है। फेसबुक का सबसे पहला गॉशिप, हॉवर्ड के दिनों में ही था, जब सौ लोग भी नहीं जुड़े थे इससे, तभी एक छात्र ने अपनी गर्लफ्रेंड को गाली देते, उसकी निजता को फेसबुक पर शेयर कर दिया था। ये मामला हॉवर्ड में सनसनीखेज हो गया। ये खबर फैली कि रातों रात फेसबुक के… सब्सक्राइबर बढ गये।
यही बात मैंने, स्त्री विमर्श पर हो रही एक सभा के अध्यक्षीय भाषण में कही तो एक भद्र महिला एकदम से खड़ी हो गयी कि “आप ये क्या कह रहे हैं कि स्त्रियां गॉशिप करती हैं? वे बस सीरियल देखती हैं ! पर पुरुष भी तो ऐसा करते हैं। सीरियल देखते हैं, फेसबुक पर गॉशिप करते हैं।” वो बोलती रहीं… मैं सुनता। फिर जब वो शांत हुई तो समझाने की कोशिश की मैंने कि मैम! ये मैं नहीं कह रहा, जुकरबर्ग खुद ही स्वीकार चुके हैं। टीवी के प्रोड्यूसर अपनी क्रिएटिव मीटिंग में, इस पर ही विचार करते हैं कि पैसा कैसे कमाना है। टीआरपी कैसे बढ़नी है। लोगों को क्या पसंद आयेगा। तो वो गॉशिप ही टारगेट करते हैं। उसमें भी स्त्रीमन और मनोविज्ञान उनका आसान शिकार होता है। ये तरीका कामयाब भी है, लोग इससे पैसा कमा रहे हैं।
नहीं वो समझ पायीं या नहीं, पर अजीब ही स्थिति थी। वो भी तब, जब वो महिला, वेल इंफॉर्मड और बौधिक लग रहीं थीं । (इस पर ज्यादा नहीं बोलूंगा कि ये व्यक्तिगत हो जाएगा।) उस महिला की प्रतिक्रिया से मन क्षुब्ध हो गया कि औरतों के हक के लिए लड़नेवाले लोग औरतों की ही वास्तविकता से इतना अनभिज्ञ, अनजान कैसे हो सकते हैं।
अब उसी फेसबुक के संस्थापक अध्यक्ष, शॉन पारकर ने खुलासा किया है कि फेसबुक की शुरुआत ही मनुष्य के मनोवैज्ञानिक कमजोरियों को भुनाने के लिए हुई थी। वो शुरू से ही मानव के खास तरह के मनोविज्ञान का शोषण कर रहा है। इसकी स्थापना के पीछे जो बुनियादी विचार था वो यही था कि आदमी एक दूसरे के बारे में जासूसी की हद तक जिज्ञासु होता है। तो व्यक्ति के दिमाग में घुस, उसकी मानवीय भावनाओं और कमजोरियों का दोहन करना सबसे सरल और फायदे का धंधा होगा।
पारकर आगे कहते हैं कि शुरू में तो ये हमें सहज और मामूली बात लगी थी। पर तब पता ही नहीं था कि फेसबुक… एक दिन मनोवैज्ञानिक भावनाओं पर आधारित हमारे स्वभाव का इस तरह, इस हद तक शोषण करेगा… और हमारा सामाजिक व्यवहार और आचरण ही बदल देगा।
वे बताते हैं कि हमलोग जो इनवेंटर या क्रिएटर थे, फेसबुक के लिए मैं और जुकरबर्ग थे, और इंटाग्राम के लिए केविन सिस्ट्रोम थे… हम सभी अपनी इन करतूतों के परिणाम, नतीजा और असर को अच्छी तरह समझ रहे थे… फिर भी हमने ऐसा किया।
“The inventors, creators it’s me, it’s Mark [Zuckerberg], it’s Kevin Systrom on Instagram, it’s all of these people — understood this consciously. And we did it anyway.”
अब असल बात ये है कि स्थिति और वास्तविक तथ्य की जानकारी अनिवार्य है। अन्यथा आप लगातार शिकार ही होते रहेंगे। क्रांति अगर होनी है तो उसे तथ्य आधारित होने की जरूरत होती है, तभी उसका वास्तविक असर होता है। नहीं तो नकली नोट पर लगाम के लिए नोटबंदी तो सरकार भी करती है… और नकली नोट अगले ही दिन बाजार में आ जाते है।
K. Krishan Anand at Sunday, November 12, 2017
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फेसबुक के एक्स वाइस प्रेज़िडेंट ने डिलीट किया FB अकाउंट
January 28, 2018, 10:54 AM IST NBT एडिट पेज in नज़रिया | व्यंग्य, साइंस-टेक्नॉलजी, सोसाइटी, रिश्ते-नाते, अन्य, मनोरंजन, देश-दुनिया, कल्चर
फाइल फोटो
विचार: चमथ पेलिहेपिटिया, फेसबुक के पूर्व वाइस प्रेज़िडेंट
सोशल मीडिया ने कुछ चीजें अच्छी की हैं तो कई चीजों पर इसका बुरा असर पड़ा है। फेसबुक को बनाने वाले भी सोसायटी पर सोशल मीडिया के बुरे असर को कबूल कर रहे हैं। जानिए, चमन पेलिहेपिटिया के विचार…
लाइक्स, थम्स अप और हार्ट के सिंबल जब सोशल मीडिया पर आपको मिलते हैं तो कुछ पल के लिए ही सही, आपको सिलेब्रिटी होने का एहसास हो जाता है। यह अहसास भले ही क्षणिक हो लेकिन इसकी आदत हमारे लिए स्थायी होती है। अगर कम लाइक्स मिले तो उदास होना लाजिमी हो जाता है और ज्यादा लाइक्स को हम अपनी पॉप्युलैरिटी से जोड़कर देखते हैं। इस तरह फेसबुक, ट्विटर जैसे सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म नशे की बुरी लत जैसे बन गए हैं।
मैंने अपना फेसबुक अकाउंट डिलीट कर लिया है। मैं फेसबुक पर ऐक्टिव रहकर फिर से प्रोग्राम्ड (रोबॉट की तरह काम करनेवाली) जिंदगी नहीं चाहता। हम सोशल मीडिया की हर बात पर यकीन कर लेते हैं। चाहे वे बातें सच्ची हों या फिर झूठी और लाइक्स को ही अपनी जिंदगी का मकसद मान लेते हैं। सुबह में उठने से लेकर रात में सोने तक, हमारा ध्यान सिर्फ लाइक्स पर रहता है। हम सोशल मीडिया के उन कंटेंट को पूरा सच मानते हैं, जिनका कोई औचित्य ही नहीं होता।
सांकेतिक फोटो
सच तो यह है कि बिजनस की दुनिया में फेसबुक जैसी कंपनी पूरी धरती पर ढूंढने से नहीं मिलेगी। हर दिन, हर लम्हा इसका बिजनस बढ़ रहा है। इंटरनेट की जहां तक मौजूदगी है, अमूमन हर उस जगह पर फेसबुक ने भी अपने लाइक्स और कमेंट्स से लोगों को बांधकर रखा है। फेसबुक के कर्मचारी एक तरफ तो कंपनी से शानदार मुनाफा कमा रहे हैं, दूसरी ओर इसके इस्तेमाल से यूजर्स को होनेवाले नुकसान के बारे में आवाज भी उठाते रहे हैं। मुझे लगता है कि सोशल मीडिया ने लोगों के स्वभाव में ही बदलाव ला दिया है। यह मेरे लिए बहुत तनाव की बात है कि हमारे बनाए हुए टूल्स की वजह से समाज का ताना-बाना बिगड़ा है। यह पूरी सोसायटी के काम करने के तरीके को खत्म कर रहा है। लोग अब आमने-सामने बैठकर बात ही नहीं करते। आपस में सहयोग करने की इच्छा खत्म होती जा रही है। गलत सूचनाओं का प्रवाह होता है। यानी कई बार फेसबुक पर कही हुई कई बातें सचाई से कोसों दूर होती हैं, लेकिन हम फिर भी यकीन कर लेते हैं।
बड़ा डर इस बात से है कि फेसबुक पर सक्रिय बुरे लोग बड़ी तादाद में लोगों को प्रभावित कर सकते हैं। यहां तक कि उनकी राय को पूरी तरह बदलने में कामयाब भी हो जाते हैं। जो लोग फेसबुक पर बहुत ज्यादा ऐक्टिव हैं उन्हें यहां होने के बाद हमें यह महसूस भी नहीं होता कि हम पूरी तरह प्रोग्रैम्ड हो चुके हैं। अब फैसला आपको करना है कि फेसबुक या सोशल मीडिया के दूसरे प्लैटफॉर्म को अपनी जिंदगी में कितनी दखल देने की इजाजत देनी है और उससे किस हद तक अलग होना है? मैं फेसबुक पर दोबारा ऐक्टिव होकर खुद को फिर से प्रोग्राम्ड नहीं करवा सकता और न ही अपने बच्चों को ही छूट दे सकता हूं कि इस फिजूल चीज का इस्तेमाल करें। मेरी सलाह है कि हरेक को सोशल मीडिया से एक लंबा ब्रेक जरूर लेना चाहिए। अगर एक बार आप इस लाइक्स और कमेंट्स के जाल में फंसे तो फिर इससे बाहर निकलना आसान नहीं होता।
डिसक्लेमर : ऊपर व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं———————————————————————-
अभिसार का कहना सही हे पुरे टुडे ग्रुप का बहिष्कार करे जिसमे सरदाना जंगली भेडियो को बुलाया गया हे श्वेता सिंह इजैसे ज़हरीले लोग जहा ऊँची पोजीशन में हे सका पूरा का पूरा बायकाट होगा http://www.jantakareporter….
Pankaj K. Choudhary
27 January at 20:17 ·
#रैंडम_थॉट
स्मार्ट फोन, मोबाइल और इन्टरनेट के प्रसार से हमने क्या हासिल किया है …अच्छी फिल्म टेक्नोलॉजी के उत्पात मचाने से पहले ही बन गई थी ..अच्छा साहित्य किंडल या अन्य रीडिंग एप या ऑनलाइन बुक सेल से पहले ही रचा जा चुका था …अच्छा संगीत पहले ही रचा जा चुका था …अच्छी धुनें पहले ही बन गई थी ..नुसरत पहले ही हो गया था ..मदनमोहन और लता मंगेशकर ने मिलकर पहले ही अच्छा गाना सुना दिया था ..
.टेक्नोलॉजी ने पहले हॉल में देखने वाली सिनेमा को टीवी पर देखने के लिए हमें मजबूर किया …फिर उसे हम कंप्यूटर पर देखने लगे ..फिर ट्रेन में लैपटॉप पर ..फिर मोबाइल पर देखने लगे ..और मोबाइल पर देखने लायक घटिया फ़िल्में बनने लगी और फिर सिंगल सिनेमा हॉल गायब हो गया ..
इसी तरह किंडल आया ..रीडिंग एप आया ..ऑनलाइन बुक मिलने लगा …फिर किताब की दुकानें गायब हो गई …और फिर एप पर पढने लायक, मोबाइल डिवाइस पर पढने लायक घटिया किताबें लिखी जाने लगी ..
यही हाल संगीत का हुआ ..पहले हम रेडियो पर एक बार रोज रोज आखों तले एक ही सपना जले गाना सुन लेते थे तो पूरा महीना याद रहता था ..फिर हम जब चाहे रोज रोज आखों तले गाना सुनने लगे ..फिर हमारा रोज रोज आँखों तले गाना से मन उब गया …गवाह है चाँद तारे गवाह है से मन उब गया ..जब से तुमको देखा है सनम क्या कहें से मन उब गया ..मेरा दिल भी कितना पागल है से मन उब गया …संभाला है मैंने बहुत अपने दिल को जुबां पे तेरा फिर भी नाम आ रहा है से मन उब गया .तुमसा कोई प्यारा कोई मासूम नहीं है गाना से मन उब गया ..फिर मोबाइल पर सुनने लायक घटिया गाना बनने लगा ..
फिर घटिया लोग घटिया गाना सुनने लगे ..घटिया लोग घटिया किताबें पढने लगे ..घटिया लोग घटिया साहित्य पढने लगे और फिर सब कुछ ख़त्म हो गया
ये स्टेटस मैं इसलिए लिख रहा हूँ क्यूंकि मेरी तीन साल की बेटी यू ट्यूब पर बच्चों का चैंनल देखती है ..और मुझे अहसास होता है कि जॉनी जॉनी यस पापा या लकड़ी की काठी काठी का घोड़ा जैसा गीत तो पहले ही लिखा जा चुका है ..अब तो बस उसे अलग अलग अंदाज में गाया जा रहा है ..
नया क्या हो रहा है ..कालजयी क्या रचा जा रहा है ..क्या पढ़ा जा रहा है ..क्या सुना जा रहा हैPankaj K. Choudhary
27 January at 13:30 ·
तस्वीर पुरानी …प्रतिक्रिया नयी
इस तस्वीर को देखकर मैं यही कह सकता हूँ कि यदि वंशवाद का विकल्प स्मृति इरानी है तो फिर वंशवाद ही ठीक है …यदि मुझे वंशवाद और स्मृति इरानी के बीच चुनाव करना होगा तो मैं वंशवाद का चुनाव करूँगा ..वो इसलिए क्यूंकि राहुल गांधी, गांधी परिवार की वजह से कम से कम एक पार्टी, या उस पार्टी की विचारधारा जिंदा है ..ये परिवार नहीं रहता तो कांग्रेस की विचारधारा सिंधियाओं, पायलटों, फोतेदारों, दिग्विजयों में बंट चुकी होती …
मुझे वंशवाद और स्मृति इरानी के बीच चुनाव करना होगा तो मैं तेजस्वी यादव का चुनाव करूँगा …क्यूंकि तेजस्वी यादव की वजह से, यादव परिवार की वजह से लालू यादव की राजनीति जिन्दा है …तेजस्वी यादव का विकल्प स्मृति इरानी नहीं हो सकती..लालू यादव का विकल्प दीनानाथ बत्रा नहीं हो सकता …शहाबुद्दीन का विकल्प करणी सेना नहीं हो सकता ..जिस दिन अच्छा विकल्प मिलेगा मैं भी चौबीस कैरट की राजनीति का समर्थन करूँगा …
स्टेटस ख़त्म कर रहा हूँ वही पुरानी कहावत से
Shambhunath Shukla
1 hr ·
यह गाजियाबाद है बिट्टो!
आज सुबह मेरी बेटी को लखनऊ जाने के लिए स्वर्ण शताब्दी पकड़नी थी. यह ट्रेन गाजियाबाद स्टेशन पर सुबह पौने सात पर आ जाती है. मैंने रात को ही बोल दिया था कि मैं स्टेशन छोड़ आऊंगा पर उसका कहना था कि मैं ओला या उबर कर लूंगी. मैंने कहा- बिट्टो, यह गाजियाबाद है, दिल्ली नहीं. और तुम्हें सवा छह पर घर से निकलना होगा, उस वक़्त अँधेरा होता है. ऊपर से स्टेशन के लिए टैक्सी हिंडन बैराज होकर जाएगी. वहां एकदम सन्नाटा रहता है, इसलिए मैं चलूँगा. गाजियाबाद शहर तो फिर भी ठीक है, लेकिन हम जिस ट्रांस-हिंडन के वसुंधरा इलाके में रहते हैं, वहां तो कोई वारदात होती भी रहे तो देखने वाला मुँह फेर लेगा. और पुलिसफ़ोर्स यहाँ न के बराबर है, इसलिए एक से भले दो.
चूँकि ‘निवाण टाइम्स’ आज से दैनिक हो रहा है और इसका विमोचन आज शाम कौशाम्बी के होटल रेडिशन ब्लू में होना है इसलिए इसका ग्रुप एडिटर होने के नाते काफी कुछ चीज़ें मुझे तय करनी थीं. अतः मैं सारी रात जगकर लैपटॉप पर काम करता रहा. सुबह मैंने गाड़ी निकालने की सोची फिर लगा उबर से इसको छोड़ आऊँ, वापसी में वाक करते हुए आ जाऊंगा. उबर दस मिनट बाद आई, इस तरह हम गाजियाबाद स्टेशन 6.40 पर पहुंचे. पांच मिनट बाद ट्रेन आ गई. लौटते समय मैं पहले तो स्टेशन से घंटाघर तक पैदल आया वहां एक विक्रम टेम्पो मिल गया. मैं उसी पर चढ़ कर हिंडन मोक्षधाम तक आया. उसे पांच रूपये टिकाए और लेफ्ट-राईट करते चल दिया. लेकिन अब दिन फूटने लगा था और सड़क पर वाहन सर्राटे से दौड़ रहे थे. इस फ़ोर लेन सड़क पर फुटपाथ है नहीं. और मेरा नाम भले ‘शंभूनाथ’ हो लेकिन मैं ‘त्रिनेत्र’ तो हूँ नहीं कि पीछे आते वाहनों को देख लेता. टेम्पो, टैक्सी, ट्रक, कारें सब स्पीड से भागे आ रहे थे. मुझे बार अपने को आड़ा-तिरछा कर चलना पड़ रहा था. ऊपर से बीच में हनुमान जी बैठे घूरते मिलते. अब मैं कोई बजरंगी भाईजान का पवनकुमार चतुर्वेदी तो हूँ नहीं कि उन्हें देखते ही दंडवत करता, इसलिए इस तरफ से उस तरफ करता रहता और जितनी हनुमान चालीसा याद है, बुदबुदा लेता. एकाध खूंखार कुत्ते और सांड़ भी मिले, लेकिन किसी ने हमला नहीं किया. किंतु एक बीएमडब्लू सवार व्यक्ति ने गाड़ी मुझसे इस तरह सटा कर निकाली कि होश उड़ गए. आप दिल्ली-एनसीआर में सांड़, बन्दर, कुत्ते से बच सकते हैं, लेकिन किसी बीएमडब्लू, मर्सडीज़ और ऑडी कार से नहीं. क्योंकि इनके चालक सदैव पौन बोतल का नशा चढ़ाए रखते हैं. उनको लगता है थाना, पुलिस और नेता तथा गुंडे सब को वे खरीद सकते हैं इसलिए वे दिन-दहाड़े भी किसी को कुचल दें, उनका कुछ नहीं बिगड़ेगा. पिछले वर्षों की हिस्ट्री इसकी गवाह है.
बैराज के बाद मैंने सड़क मार्ग छोड़ दिया एलिवेटेड रोड के नीचे का कच्चा, धूल भरा रास्ता पकड़ा, यहाँ बंदरों का डर तो था लेकिन साक्षात यमदूत बीएमडब्लू चालकों का नहीं. बीच-बीच में आसपास की झुग्गियों की ‘लोटा’ पार्टी दिखी. मगर शहर में उनके पास निदान भी क्या है. सुलभ के पांच रूपये भी उनके लिए इतने सहज नहीं हैं. लेकिन यह रास्ता था बड़ा सुकून भरा. ऊपर एलीवेटेड रोड और उसके नीचे परम शांति! न गाड़ियों का प्रदूषण न उनका शोर न पीछे से आकर सटा देने का डर. ऐसा लगे मैं किसी गाँव के बाहर के ‘बटहा’ (बैलगाड़ी के चलने का रास्ता) में जा रहा हूँ. इस तरह कुल 5.6 किमी का वाक घर जब घर आया तभी बेटी का फोन आया कि ट्रेन अलीगढ क्रास कर गयी है. शुक्र है खुदा का कि पीयूष गोयल के राज में पहली बार कोई ट्रेन वक़्त पर तो चली.———— शारिक़ अहमद ख़ान शंभू सर.. लंगूर तो शरीफ़ होते हैं लेकिन ललमुंहें बंदर होते हैं बदमाश.. ये बानर जैसे -जैसे बूढ़े होते जाते हैं ,वैसे -वैसे इनका मुंह और पिछवाड़ा लाल होता जाता है.. बुड्ढे बंदर इंसान पर ज़्यादा हमला करते हैं.. अगर आपके हाथ में छड़ी नहीं है तो इनसे बचने की ट्रिक ये है कि इनसे आंख मत मिलाइये ..जहाँ इनसे आपने आँख मिलाई तो ये समझते हैं कि आप इनपर हमला करने वाले हैं और ये जवाबी हमला कर देते हैं.. इनकी आँखों में मत देखिए ये बंदर हमला नहीं करेंगे
( रविश ऐसा क्यों हे ) रविश का दोस्त —- ? गन्दी नाली का बदबूदार कीड़ा ”पगलेट तिवारी ” जिसे लोकतंत्र का सजग सिपाही बताता हे ”लोकतंत्र के सजग प्रहरी Prashant Umrao को बधाई ” देखिये उसे ——————————-
Sheeba Aslam Fehmi
1 hr ·
How dangerous these bastards are! —————-https://www.altnews.in/prashant-p-umrao-unmasking-one-man-hate-factory/
वाकई में सोशल पर ही देखो तो संघी खेमे का या —— फॉउंडेशन का ज़ोया नाम का कानपूर का किन्नर कितना अच्छा लिखता हे हज़ारो हिंदुत्ववादी लौंडे इस किन्नर से शादी भी करने के सपने देखते हे -भाजपा की एक रद्दी का चालीस की एज में 55 की लुक वाला संपादक इस किन्नर से फ़्लर्ट करता हे देखते हे बजरंग दल और युववाहिनी वाले रिवर्स लवजिहाद में कब कब अपनी दुल्हनिया ले जाते हे एडवांस बधाई ——————- ”Archana Tabha8 hrs · प्रकृति में मादा की अहमियत को देखते हुए और योग्यतम की उत्तरजीविता यानी सर्वाइवल ऑफ फिटेस्ट तथा प्राकृतिक चयन यानी नेचुरल सिलेक्शन के तहत ये बात तो मैंने जहन में बैठा लिया था कि कोई कुछ भी कहता रहे लेकिन मैं यही मानूँगी कि “औरतों” में दिमाग़ ज्यादा होता है या उनके सोचने समझने की क़ाबलियत पुरुषों से कहीं ज्यादा होता है। इसीलिए “मादा दिमाग़” चाहे वो किसी भी जीव का हो वो ज्यादा बड़ा और तेज होता है। मेरा इस थ्योरी के मानने के पीछे ये कारण था कि किसी भी जीव में वंश बढ़ाने के लिए मादा की भूमिका अहम होती है इसीलिए उसको कई जतन लगाने पड़ते हैं बच्चे को सुरक्षित पालने के लिए , मादा को बच्चे की हर जरूरत के लिए सजग रहना पड़ता है इसीलिए उसके दिमाग का तेज होना प्राकृतिक जरूरत है। इसके साथ ये भी आम धारणा थी मेरी कि ये जो भी इंटेलीजेंस कोशिएंट टेस्ट पुरुष को ज्यादा इंटेलीजेंट दिखाते आये हैं तो या तो वे कहीं न कहीं पुरुषों को ले कर पक्षपाती हैं या फिर पुरुषों को जो सहूलियत और संसाधन उपलब्ध हैं उसकी वजह उनके दिमाग का ज्यादा क्रियाशील होना प्राकृतिक है।लेकिन कल ऐसा शोधपरक आर्टिकल इस विषय पर हाथ लगा जिससे ये सभी गलतफहमियां दूर हो गईं और आर्टिकल में जो भी कहा है वो ज्यादा सच दिखाई पड़ता है। कई हज़ार लोगों के दिमाग़ पर शोध करने के बाद वैज्ञानिक इस नतीज़े पर पहुंचे कि स्त्री पुरुष के दिमाग में ऐसा कोई लैंगिक फ़र्क़ नहीं है जिससे ये आसानी से पता लगाया जा सके कि कोई दिमाग किसी स्त्री का है या फिर पुरुष का है। बल्कि इंसानी दिमाग स्त्री-पुरुष का न हो कर “बीच का है या कहें तो इंटरसेक्स” है !! और ये “बीच का या इंटरसेक्स” दिमाग कैसा व्यवहार करेगा ये किसी परिस्थिति के वातावरण, व्यक्ति जीन और हॉर्मोन्स के आपसी परस्पर प्रभाव पर निर्भर करेगा। इसीलिए इंसानी दिमाग दो प्रकार का न हो कर कई प्रकार का हो सकता है जिसके लिए बाहरी परिस्थितियां ज्यादा जिम्मेदार हैं !!
इससे कई बातें कही जा सकती हैं जिनमें से पहले ये कि किसी भी परिस्थिति से निपटने के लिए बराबर स्त्री, पुरुष या जिसे लोग किन्नर कह कर चिढ़ाते हैं सभी के स्वस्थ शरीर मे एक जैसा दिमाग़ होता है, किन्नर वर्ग को किसी भी तरह से आयोग्य मानना अवैज्ञानिक सोच है। कोई भी लिंग किसी अन्य से उच्चतर होने की बात नहीं कह सकता है। इसीलिए अगर स्त्री पुरुष दोनों को जैसा ही माहौल मिले तो वे किसी भी क्षेत्र में बेहतर कर सकते हैं। ”
नरुका जितेन्द्र
8 March at 22:19 ·
आज महिला ID होकर भी जिसने महिला दिवस पर पोस्ट नही किया और प्रेम शायरी मे बिजी है समझ लो किसी राम/श्याम लाल की फेक ID है। ?
#भेरी_ईजी_to_Identify———————————————————Jagadishwar Chaturvedi
1 hr ·
Padmasambhava Shrivastava के टाइम लाइन से साभार-
बाबा रामदेव 16 लाख लीटर देशी गाय का घी प्रतिदिन बेचते हैं यानी 4 करोड़ लीटर दूध यानी 27 लाख देशी गाय ! कौन से आश्रम में इतनी गायों को रखते हैं? वास्तविकता है कि न कोई गौशाला और न इतनी देशी गायों की व्यवस्था उनकी संस्था कर सकती है।—————-Jagadishwar Chaturvedi
3 hrs ·
क्रांतिकारी, हिंदी और भगतसिंह-यशपाल
सन् 1925 की एक घटना याद है। पंजाब में हिंदी साहित्य सम्मेलन की नयी-नयी स्थापना हुई थी। उर्दू प्रधान लाहौर में सम्मेलन की ओर बहुत कम लोगों की रुचि थी। नेशनल कालेज के कुछ विद्यार्थी और संस्थाओं के हिंदी अध्यापक ही प्राय: उस में योग देते। सम्मेलन ने किसी एक विषय पर सर्वोत्ताम निबन्ध लिखने के लिए पचास रुपये के पुरस्कार की घोषणा की थी। मैंने निबंध लिखा था। कई महीने तक परिणाम की प्रतीक्षा करने पर पता लगा कि पुरस्कार किसी व्यक्ति को नहीं दिया जा सकता क्योंकि निर्णायकों ने तीन निबन्धों को एक ही कोटि का ठहराया था। यह भी मालूम हो गया कि उन तीनों में से एक निबंध मेरा था। दूसरे दो निबंध लेखकों के नाम जानने के लिए खोज की तो पता लगा कि दूसरा निबंध भगत सिंह का था और तीसरा जयचंद्रजी की मां जी का था।
लिखने की ओर भगत सिंह की प्रबल रुचि थी। मैं केवल हिंदी में लिखता था। भगत सिंह उर्दू में भी लिखता था। कुछ दिन बाद स्थानीय उर्दू पत्रों में उस की लिखी छोटी-छोटी चीजें प्रकाशित भी होने लगी थीं। अपने विचारों के प्रचार के लिए अथवा सन 1924-25 में प्राय: सोई राष्ट्रीय भावना को जगाने के लिए, नेशनल कालिज के विद्यार्थियों ने नाटकों का माध्यम भी अपनाया था। इस चेष्टा के दोनों ही कारण थे, नाटक खेलने की इच्छा और नाटक को अपने विचारों के प्रचार का साधन बनाना भी। किसी लेखक का ‘महाभारत’ नाटक था। उसके वार्तालापों में जगह-जगह परिवर्तन करके हम लोगों ने अपने लिए उपयोगी बना लिया। इस नाटक का नाम रखा गया था ‘कृष्ण विजय’। व्यंजना से अंग्रेजों को कौरव और देश भक्तों को पांडव बना लिया था। इस में कुछ गाने, विशेष कर प्रहसन भाग में, सम्मिलित कर लिए थे। इन में से एक गाना था-‘कदे तूं बी हिंदिया होश सम्भाल ओ’ (ऐ हिंद कभी तू भी होश सम्भाल! तेरा घरबार विदेशी लूट ले गया और तू भी बेखबर सो रहा है। ओ लूटने वाले हमारे साथ ज्यादतियां न कर। हम तेरी सब चालकियां समझ चुके है… इत्यादि।
यह गाना सरदार अजीत सिंह के एक पुराने गीत-‘पगड़ी सम्भाल ओ जट्टा’ (अरे बेखबर किसान तेरे सिर की पगड़ी उतरी जा रही है) के भाव को लेकर बनाया गया था। सरदार अजीतसिंह के उस गीत को सरकार ने गैरकानूनी कर दिया था। हमारे नाटकों के ऐसे विदेशी सरकार-द्रोही भागों को भी गैरकानूनी करार दे दिया गया था। कुछ दिन हम लोगों को नाटक खेलने का खूब शौक रहा। दो नाटक हम लोगों ने लाहौर में खेले। फिर ‘गुजरांवाले’ में प्रांतीय-कांग्रेस की कांफ्रेंस के अवसर पर भी ‘भारत दुर्दशा’ नाटक खेला।
नाटकों का आरंभ किया गया था देहरादून में अखिल भारतीय हिंदी साहित्य सम्मेलन के मौके पर 1924 में राजा भोज के कवि दरबार का नाटक खेलने से। राजा भोज के दरबार में आधुनिक हिंदी कवियों की उपस्थिति की कल्पना जयचंद्रजी के मस्तिष्क की उपज थी। इसमें मैंने राजा भोज की भूमिका की थी। भगत सिंह भी ‘भारत दुर्दशा’ आदि कई नाटकों में अभिनय करता रहा। नाटकों के कार्यक्रम में साथी झंडासिंह (अब सरदार जसवंत सिंह) धर्माभिलाषी, हुंडू और बलदेव जो अब रिजर्व बैंक आफ इंडिया में बहुत जिम्मेवार पद पर हैं, बहुत अग्रणी भाग लिया करते थे। इन दिनों भगत सिंह और सुखदेव प्राय: कालेज से गायब रहने लगे थे। भगत सिंह का व्यवहार मजाक के अलावा कामकाज के बारे में कुछ सख्त हो गया था ।
इस समय दल के संगठन की बात कुछ-कुछ स्पष्ट होने लगी थी। हिंदुस्तानी प्रजातंत्र दल(एच.आर.ए.) का एक परचा लाहौर में बलराज के दस्तखत से बांटा गया था। इस खतरनाक परचे का सफल बंटवारा संगठन और आयोजन के बिना नहीं हो सकता था। मैं सहयोग तो दे रहा था परंतु स्कूल में अपनी नौकरी और परीक्षा की तैयारी छोड़ने के लिए तैयार न था। सत्याग्रह के मार्ग की विफलताओं पर हम लोगों की बहस उन दिनों बहुत चलती थी और प्रजातंत्र और समाजवादी पध्दति की भी चर्चा काफी जोर से होती थी। समाजवाद की ओर ध्यान जाने का सीधा-सादा कारण था, रूस के संबंध में साहित्य हाथ आना। ‘तिलक स्कूल आफ पालिटिक्स’ और ‘सरवेंट्स आफ पीपुल्स सोसाइटी’ के अतिरिक्त लाला लाजपत रायजी ने अपने पिता के नाम पर ‘द्वारकादास पुस्तकालय’ की भी स्थापना की थी। इस पुस्तकालय में राजनैतिक पत्र-पत्रिकाएं और सामयिक साहित्य काफी मात्रा में आता था।
कानपुर के प्रसिध्द समाजवादी राजाराम शास्त्री इस पुस्तकालय के पुस्तकालयाध्यक्ष थे। हम लोग प्राय: समवयस्क थे और शास्त्रीजी को हमारे विचारों से भी सहानुभूति थी इसीलिए ‘द्वारकादास पुस्तकालय’ हम लोगों का अच्छा-खासा अब बन गया था। इस पुस्तकालय में सुविधा यह थी कि आस-पास अनेक कालेजों के बोर्डिंग होने के कारण यहां विद्यार्थी राजनैतिक अथवा क्रांतिकारी साहित्य में रुचि रखते थे।
शास्त्रीजी स्वभाव से विनोदी, मिलनसार और कद में काफी छोटे हैं। इसलिए प्राय: उनके ना ना करते रहने पर भी लाइब्रेरी से जरूरत के मुताबिक पुस्तकें झपट ली जा सकती थीं। कभी रात-बिरात घूम-घाम कर आने पर उनकी खाट या कमरे पर भी जबर्दस्ती दखल कर लिया जा सकता था। एच.आर.ए. का परचा बांटने में भी शास्त्राीजी का पूरा सहयोग था।———-Awesh Tiwari
15 hrs ·
कांग्रेसी और वामपंथी अब वही लंपटई कर रहे जो अब तक बीजेपी करती आई है। भाई लोगों ने राजस्थान के गृह मंत्री के साथ एबीवीपी के कार्यकर्ताओं की पिटाई के बाद घायल होने का फर्जी वीडियो वायरल करा दिया। वीडियो देखकर लग रहा कि गृहमंत्री गुलाब चंद कटारिया को जमकर कूंचा गया है यह वीडियो पूरी तरह से फर्जी है । इसे टुच्चई कहते है। इस तरह से बीजेपी का मुकाबला नही किया जा सकता,वो आपसे भी आगे निकल जाएंगे।
नरुका जितेन्द्र
17 hrs ·
सोशल मीडिया के एडिक्शन का जो मुख्य कारण नजर आता है यहां प्रशंसा बड़ी सस्ती है।
जिस मामूली बात पर यहां वाह, क्या विचार हैं तुसी ग्रेट हो.. न जाने क्या क्या लोग आसमान पर चढ़ा देते और नही तो एक कॉपी पेस्ट विचार पर लाइक गिन गिन कर ही हम इतरा लेते हैं।
यकीन मानीए रियल लाइफ में उक्त बात को सुनने वाले 3 लोग भी नहीं मिलेंगे प्रशंसा तो दूर की बात।
सिर्फ फिल्टर करके फोटो पर जितने अद्भुत सौंदर्य कमेंट आ जाते उतनी प्रशंसा तो बॉलीवुड मेकअपमैन 3 घण्टे सजाए तो नहीं मिलेगी।
तो यहां एडिक्शन का जो मुख्य कारण नजर आता है वो बोरी भर भर प्रशंसा है।
मुझे तो प्रशंसा से इतनी बदहजमी हो जाती है कि खुद का उपहास उड़ाते बीच बीच मे एक आध पोस्ट करना एंटासिड का काम करता है।
इस फोकट मिली प्रशंसा से आत्ममुग्धता बहुत आम है यहां।
कुछ लोग तो अमुख वाद/विचार के ठेकेदार समझने लगते खुद को। जाहिर है जीवन मे कभी ठीक से जिसका उच्चारण नही कर पाए यहां अमुख वाद/विचार के विशेज्ञ कहलाते हैं!!
आलम ये हो जाता है कि लोगों में कमी निकालते खुद को रामदेव के शुद्ध गाय के घी सा प्रस्तुत करते हैं।
ऐसे कलही लोगों से भैरू जी बचाये क्योंकि वर्चुअल दुनिया की टेंशन निजी जिंदगी में ना रे बाबा।
खैर
इस प्रशंसा पाने की होड़ में कुछ भी कॉपी पेस्ट खबरें, संवेदना दिखा लाइक बटोरने की होड़ इतना असंवेदनशील बना देती है कि उक्त खबर/बात के प्रसार के नकारात्मक प्रभाव से कोई सरोकार नहीं।
जिम्मेदारी से तो दूर दूर का नाता नही सोशल मीडिया का लाइक कमेंट की होड़ मे।
एक बीमारी और है, झूठ घड़ी गयी खबरें सिर्फ एक विचार के लोग नही फैलाते, बल्कि मैं कहूंगा नागपुरी झूठ तो दूर से नजर आता, समझदार बुद्धिजीवी कहलाने वालों का झूठ ज्यादा खतरनाक है।
लोग वो ही लिखते हैं जहाँ ज्यादा समर्थन मिलता है।ऑनलाइन कुकरमुत्तों से पनपे झल्लर अखबारों ने भी बड़ा कबाड़ा किया है।
खबर पढ़ने की अक्ल नही या जानबूझकर भ्रमित करते हैं वो यहां बड़े ज्ञानी हैं।
उदाहरण के तौर पर
ऊपर हैडिंग होगा EVM हैक बड़ी गड़बड़ी
अंदर होगा कई EVM में निकली गड़बड़ी चुनाव आयोग ने बदली। हैक और मशीनी गड़बड़ी को एक करके क्या मसाला परोसा।
गुजरात चुनाव के वक्त पूर्व चुनाव आयुक्त ने कहा:- बिहार UP गुजरात मे EVM जीती…बेहतर चुनाव कराकर।
ऑनलाइन झल्लर टॉप अखबारों के लिंक लिए समझदार घूम रहे थे देखो खुद चुनाव आयुक्त ने माना EVM की वजह से जीत।
खैर ये उदाहरण मात्र है, बहुत कचरा परोसा जाता यहां हर मसले पर।
मेरे लिए यहां एडिक्शन का बड़ा कारण ढेर सारे ज्ञानी आत्मीय मित्र हैं पर फिर भी सोशल मीडिया एक एडिक्शन है जिससे नुकसान ज्यादा और फायदे कम ऐसा मेरा मत है… न.रुकानरुका जितेन्द्र
17 hrs ·
सोशल मीडिया के एडिक्शन का जो मुख्य कारण नजर आता है यहां प्रशंसा बड़ी सस्ती है।
जिस मामूली बात पर यहां वाह, क्या विचार हैं तुसी ग्रेट हो.. न जाने क्या क्या लोग आसमान पर चढ़ा देते और नही तो एक कॉपी पेस्ट विचार पर लाइक गिन गिन कर ही हम इतरा लेते हैं।
यकीन मानीए रियल लाइफ में उक्त बात को सुनने वाले 3 लोग भी नहीं मिलेंगे प्रशंसा तो दूर की बात।
सिर्फ फिल्टर करके फोटो पर जितने अद्भुत सौंदर्य कमेंट आ जाते उतनी प्रशंसा तो बॉलीवुड मेकअपमैन 3 घण्टे सजाए तो नहीं मिलेगी।
तो यहां एडिक्शन का जो मुख्य कारण नजर आता है वो बोरी भर भर प्रशंसा है।
मुझे तो प्रशंसा से इतनी बदहजमी हो जाती है कि खुद का उपहास उड़ाते बीच बीच मे एक आध पोस्ट करना एंटासिड का काम करता है।
इस फोकट मिली प्रशंसा से आत्ममुग्धता बहुत आम है यहां।
कुछ लोग तो अमुख वाद/विचार के ठेकेदार समझने लगते खुद को। जाहिर है जीवन मे कभी ठीक से जिसका उच्चारण नही कर पाए यहां अमुख वाद/विचार के विशेज्ञ कहलाते हैं!!
आलम ये हो जाता है कि लोगों में कमी निकालते खुद को रामदेव के शुद्ध गाय के घी सा प्रस्तुत करते हैं।
ऐसे कलही लोगों से भैरू जी बचाये क्योंकि वर्चुअल दुनिया की टेंशन निजी जिंदगी में ना रे बाबा।
खैर
इस प्रशंसा पाने की होड़ में कुछ भी कॉपी पेस्ट खबरें, संवेदना दिखा लाइक बटोरने की होड़ इतना असंवेदनशील बना देती है कि उक्त खबर/बात के प्रसार के नकारात्मक प्रभाव से कोई सरोकार नहीं।
जिम्मेदारी से तो दूर दूर का नाता नही सोशल मीडिया का लाइक कमेंट की होड़ मे।
एक बीमारी और है, झूठ घड़ी गयी खबरें सिर्फ एक विचार के लोग नही फैलाते, बल्कि मैं कहूंगा नागपुरी झूठ तो दूर से नजर आता, समझदार बुद्धिजीवी कहलाने वालों का झूठ ज्यादा खतरनाक है।
लोग वो ही लिखते हैं जहाँ ज्यादा समर्थन मिलता है।ऑनलाइन कुकरमुत्तों से पनपे झल्लर अखबारों ने भी बड़ा कबाड़ा किया है।
खबर पढ़ने की अक्ल नही या जानबूझकर भ्रमित करते हैं वो यहां बड़े ज्ञानी हैं।
उदाहरण के तौर पर
ऊपर हैडिंग होगा EVM हैक बड़ी गड़बड़ी
अंदर होगा कई EVM में निकली गड़बड़ी चुनाव आयोग ने बदली। हैक और मशीनी गड़बड़ी को एक करके क्या मसाला परोसा।
गुजरात चुनाव के वक्त पूर्व चुनाव आयुक्त ने कहा:- बिहार UP गुजरात मे EVM जीती…बेहतर चुनाव कराकर।
ऑनलाइन झल्लर टॉप अखबारों के लिंक लिए समझदार घूम रहे थे देखो खुद चुनाव आयुक्त ने माना EVM की वजह से जीत।
खैर ये उदाहरण मात्र है, बहुत कचरा परोसा जाता यहां हर मसले पर।
मेरे लिए यहां एडिक्शन का बड़ा कारण ढेर सारे ज्ञानी आत्मीय मित्र हैं पर फिर भी सोशल मीडिया एक एडिक्शन है जिससे नुकसान ज्यादा और फायदे कम ऐसा मेरा मत है… न.रुका
Mohd ZahidFollow
8 hrs ·
FBP/18-42
भाजपा आईटी सेल का भंडाफोड़ :-
करीब 1-1•5 साल पहले अपने एक हिन्दू मित्र के साथ मैं राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के इलाहाबाद मुख्यालय “ज्वाला देवी इंटर कालेज” गया था , मेरे उस मित्र को वहाँ किसी से मिलना था , हम जैसे ही उस कालेज के गेट को पार किए मैंने अपने मित्र से मेरी पहचान छुपाने के लिए कही और वहाँ किसी को भी मेरा परिचय हिन्दू नाम से ही कराने का निवेदन किया।
हम वहाँ के मुख्य आफिस पहुंचे जहाँ पहले से ही 5-6 लोग मौजूद थे , मेरे मित्र के जानने वाले भी थोड़ी देर में वहाँ आ गये और मेरे मित्र को जो काम था उसके बारे में वह बातचीत करने लगे और मैं वहाँ की गतिविधियों को ताड़ने लगा , मेरे मित्र को किसी से मेरा झूठा परिचय कराने की आवश्यकता भी नहीं पड़ी।
काम की चर्चा के बाद वहाँ उपस्थित लोगों से आगामी विधानसभा चुनाव के संदर्भ में बात हुई और फिर राजनीति से होते हुए मुसलमानों के विरुद्ध चर्चा प्रारंभ हो गयी , मेरा मित्र थोड़ा असहज हुआ तो मैंने उसे इशारे से चुप रहने को कहा।
सोशलमीडिया पर और वेबसाईट्स पर मुसलमानों और इस्लाम के विरुद्ध जितने भी शब्द , किस्से कहानी मैंने सुने सब वहाँ चुपचाप बैठा सुनता रहा।
करीब 1 घंटे बैठने के बाद एक 25 साल का चड्ढीधारी लड़का चाय लेकर आया तो उसकी नज़र मुझ पर टिक गयी , वो तपाक से बोला कि आप “मोहम्मद ज़ाहिद” हैं ? मैं और मेरा मित्र थोड़ा सकपकाए और मुझसे अधिक असहज स्थिति वहाँ मुसलमान और इस्लाम विरोधी चर्चा करने वाले लोगों की थी।
मैंने पूछा कि आप मुझे कैसे जानते हैं ? वह बोला कि संघ और भाजपा की साईबर सेल का शायद ही कोई हो जो आपको ना जानता हो ? आपको लेकर यहाँ रणनीति बनती है , साईबर सेल के लोगों की ड्यूटी आपकी वाल पर लगाई जाती है और आपकी वैसी पोस्ट ढूंढी जाती है जिस पर मास रिपोर्टिंग कर के आपकी आईडी बंद कराई जा सके।
फेसबुक और व्हाट्सअप ग्रुप में आपके प्रोफाईल के लिंक रिपोर्ट करने के लिए हमेशा आते ही रहते हैं।
चुंकि मेरे वह मित्र इलाहाबाद के असरदार व्यक्ति हैं तो वहाँ उपस्थित लोगों का मेरी पहचान जानकर भी मेरे प्रति प्रेम पूर्वक ही व्यवहार था और उसमें से कोई एक बोला कि जहाँ निजी संबन्ध होते हैं वहाँ हम दिल में मैल नहीं रखते।
मैं उस लड़के के साथ कमरे से बाहर आ गया और पूछा कि क्या यहाँ भी वह साईबर सेल है ? बोला आईए ले चलते हैं , और वह मुझे एक कमरे में ले गया जहाँ 25-30 कंप्यूटर और उस समय 10-15 लड़के अलग अलग ब्रोज़र से एक कंप्यूटर पर 5-6 फेसबुक आईडी आपरेट कर रहे थे , सबके सामने 3-4 मोबाईल भी था और उन सब मोबाईल पर भी फेसबुक प्रोफाईल खुली हुई थी।
कहने का अर्थ यह है कि एक लड़का कम से कम 8-10 फेसबुक एकाउंट आपरेट कर रहा था। किसी की वाल पर लगातार विषय भटकाने वाले कमेन्ट तो किसी की वाल पर मुस्लिमों के खिलाफ जहर उगलती टिप्पणी।
देश के हर शहर , हर महानगर , हर कस्बे में मौजूद भाजपा की आईटी सेल की यही स्थिति है , सोचिगा कि प्रोपगंडा फैलाने का कितना बड़ा जाल संघ और भाजपा ने बना रखा है।
खैर
मुझे उस कमरे में भी एक दो लड़कों ने पहचाना , मैं वहाँ 10 मिनट सब देखा और सब खेल समझ कर वापस मित्र के पास आकर बैठ गया , फिर हम अपने मित्र के साथ वहाँ से वापस आ गये।
मेरा मित्र वहाँ हुई मुस्लिम और इस्लाम विरोधी बातचीत से थोड़ा असहज दिख रहा था , मैंने कहा कि अरे यार मस्त रहो , हम मुसलमानों को इस सबकी आदत पड़ चुकी है।
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के दो महीने पहले मुझे भगवा गिरोह की तरफ से उनके दिये विषय और कंटेन्ट पर लिखने के लिए ₹50 हजार प्रतिमाह का आफर मिला , मैंने उत्सुकतावस पूछा कि लिखना क्या है क्युंकि भाजपा और संघ के पक्ष में तो मैं लिखूंगा नहीं ?
तो यह बताया गया कि आप ओवैसी के पक्ष में लिखिए , उनके भड़काऊ विडियो शेयर कीजिए , अकबरुद्दीन ओवैसी वाला वीडियो शेयर करिए , ओवैसी के पक्ष में भड़काऊ पोस्ट लिखिए , आपकी आईडी की ज़िम्मेदारी मेरी , यह कभी ब्लाक नहीं होगी , उसने मुझे बताया कि मुस्लिम नाम की सैकड़ों “पठान” इत्यादि नाम की फेक आईडी से ओवैसी के पक्ष में हम तो लिखवाते ही हैं , चुंकि आपकी फेसबुक पर एक विश्वसनीयता है इसलिए आपसे बात कर रहा हूं।
मैंने डाँट दिया तो मेरे पास इस दो महीने के लिए ₹2 लाख देने का आफर प्राप्त हुआ जिसे मैंने अस्विकार कर दिया , उस उत्तर प्रदेश की विधानसभा चुनाव में मैंने ओवैसी का भरपूर और तिव्र विरोध किया जिससे संघ की ओवैसी के सहारे हिन्दू मतों के ध्रुवीकरण की योजना विफल करने में कुछ प्रयास कर सकूं।
फिर उत्तर प्रदेश सरकार बनने के पहले और योगी का नाम फाईनल होते ही मुझे “ज़ाकिर त्यागी” की तरह फँसाने का काम किया गया जिसमें मैं अपने संपर्क सूत्रों के सहयोग से बच निकला , यह बात मेरे करीबी मित्र और खास फेसबुक मित्र अच्छी तरह जानते हैं।
कल भाजपा आईटी सेल के लिए 3 साल काम कर चुके “जगदीश” को “अवि डांडिया” और “ध्रुव राठी” सामने लेकर आए और संघ तथा भाजपा की साजिश का भंडाफोड़ कर दिया।
अवि डांडिया ?
https://m.youtube.com/watch?v=sqNka_z3Tu0
ध्रुव राठी ?
https://m.youtube.com/watch?v=BL2ZYXLW5bU
उसका यह वाक्य कड़वा सच है कि
“भाजपा और संघ की आईटी सेल ने देश का वह नुकसान कर दिया जितना कि पाकिस्तान 4 बार देश पर आक्रमण करके भी नहीं कर सकता।”
भाजपा आईटी सेल के सुपर-150 के 150 लोग सीधे देश के प्रधानंमत्री और भाजपा अध्यक्ष के साथ संपर्क में रहते हैं , प्रोपगंडा करने का एजेन्डा तय करते हैं और यही 150 लोग देश की सभी भाजपा आईटी सेल को संचालित करते हैं।
लाखों फालोवर वाली फेक आईडी और भारतीय सेना तथा सेलेब्रीटी के नाम की करोड़ों फालोवर वाली फेक पेज से इस भारत में कैसे इस्लाम और मुसलमान विरोधी झूठा प्रोपगंडा फैलाया जाता है यह जगदीश ने सारा कच्चा चिट्ठा खोल कर रख दिया। इस खेल में फेसबुक और मार्क जुगरबर्ग तक शामिल हैं।
महत्वपुर्ण बात यह है कि आईबी , एनआईए , सीबीआई , और तमाम खूफिया एजेन्सीज़ , देश में ज़हर घोलने के इस काम को जानने के बावजूद चुप हैं।
आप सब खुद देखिए और मुसलमान सोचें कि वह कितने बेखबर हैं।
• जगदीश ?——————————————https://www.youtube.com/watch?v=BL2ZYXLW5bU&app=desktop
महिला बैंकरों के पत्र आए हैं….अगर जोक्स शेयर से वक्त मिल जाए तो पढ़िएगा..
रवीश कुमार March 13, 2018 0 Comments
1) A very good morning sir,सर आपने जो बैंको में महिलाओं की समस्याओं को लेकर मुद्दा उठाया वो सब जायज है ।मेरी एक अनुरोध है सर कृपया हमारे पीरियड्स को भी लेकर बोले कितने बार हमें इसके लिए तकलीफ होती है। हम दर्द में होते है लेकिन फिर भी हम छुट्टी नही ले सकते हे जबकि सेंट्रल गवर्नमेंट में इसके लिए महिलाओं को 2 दिन की छुट्टी दी जाती है।
आपसे अनुरोध है सर की बैंको में भी हमे 2 दिन की छुट्टी दिलवाने की कोशिश की जाये इसके लिए मैं सदा आपकी आभारी रहूगी । One of the women banker’s,And hats off to you for your support to Bankers and thank you,Keep going sir we are with you
2)एक महिला बैंकर ने लिखा है कि ब्रांच मैनेजर सवाल करने पर गंदी गंदी गालियां देता है। मैं एक महिला बैंकर हूं। घर पर 8 महीने का बच्चा मेरी राह देखता है। रिज़र्व बैंक से शिकायत कर सकती हूं कि देर शाम तक रोक कर काम कराया जाता है मगर ब्रांच में सस्पेंड कर दी जाऊंगा या फिर तबादला।
3) रवीश जी, नमस्कार, आपकी वजह से हम बोलना सीख रहे हैं। हमारे सीनियर ब्रांच में आए थे। जिन खातों में बड़े बड़े रीजनल मैनेजर और रिकवरी एजेंट रिकवरी नहीं करा पाए, उन खातों की रिकवरी के लिए हमें बस से या अकेले जाने को बोलते हैं। मैंने अकेले जाने से मना कर दिया।
4) मैं एक महिला बैंकर हूं। बहुत मेहनत से पीओ बनी मगर ट्रक दुर्घटना की शिकार हो गई. व्हील चेयर पर आ गई। मेरा शरीर कमज़ोर हो चुका है जिसका असर काम के रफ्तार पर पड़ता है। मगर मेरी ईमानदारी और इरादे पर कोई शक नहीं कर सकता। चार महीने बाद मेरी तबीयत फिर बिगड़ने लगी है। डॉक्टर ने आराम के लिए बोला मगर मैं काम करती रही क्योंकि इलाज के लिए लिया गया लाखों का लोन भी चुकाना था। इसके बाद भी ब्रांच मैनेजर इस हालत में लोन रिकवरी के लिए घर घर जाने को भेज देते हैं। एक दिन पीरियड के टाइम में मैनेजर से कहा कि आज बाहर नहीं जा सकती तो उसने बोला कि अदालत चली जाओ मगर तुम्हीं जाओगी। उसके बाद मेरा तबादला घर से 2000 किमी दूर कर दिया। मुझे फिज़ियो की ज़रूरत है लेकिन सुबह 9 से शाम के 8 बजे तक बैंक में काम करना पड़ता है। मैं कब कराऊं। मेरी शरीर मेरे हाथ से छूट रहा है। इसके बाद भी मैं अपना काम 110 फीसदी करती हूं। रवीश सर, बैंकिंग में बहुत कुछ सहना पड़ता है जो खुलकर बोल नहीं पा रहे लेकिन आपकी वजह से आज एक छोटी सी बैंकर भी कुछ बोलना चाहती है। मुझे जीने का मन नहीं करता है। रोज़ मरने का मन करता है। मां बाप के लिए जी रही हूं। मेरे अलावा उनका कोई नहीं है।
5) रवीश जी, महिला दिवस पर प्राइम टाइम की बैंक सीरीज़ देख कर ऐसा लग रहा है जैसे कोई मेरी ही कहानी कह रहा हो। सभी फीमेल बैंकर एक ही नाव में हैं। सर, अपनी भी परेशानी शेयर करना चाहती हूं। मैं 6 साल से बैंकर हूं। आज भी क्लर्क हूं। मैं एम बी ए हूं, सारे इम्तहान पास किए हैं। मगर बैंकिंग सिस्टम ही हालत देखकर प्रमोशन लेने की हिम्मत नहीं होती है। बहुत सपने देखे थे आगे बढ़ने के। पर प्रमोशन से डर लगता है। तबादला हो जाएगा, टारगेट का दबाव बढ़ जाएगा, रात 9 बजे तक दफ्तर में रहना होगा। सर, ये मेरी नहीं हज़ारों प्रतिभाशाली महिला बैंकर की कहानी है।
6) रविश सर, मैं पंजाब नैशनल बैंक में कार्यरत हूँ | पंजाब नैशनल बैंक ने हरयाणा अर्बन डेवलपमेंट अथॉरिटी) से एग्रीमेंट किया है की बैंक उनके पानी के बिल लेगा | रविश जी यहाँ मैं बताना चाहता हूँ की बैंकर का काम पानी बिल लेना नहीं हैं, खैर हम ले रहे हैं, बंधुआ मजदूर जो हैं| पर एक बिल को लेने में जो परेशानी आती है वो आपके साथ साँझा करना चाहता हूँ| सबसे पहले तो हमें एक बिल की डिटेल्स अपने फिनेक्ल सॉफ्टवेयर में लेने के लिए बिल की डिटेल्स को हुडा पोर्टल पर अपलोड करना पड़ता है| उसके पंद्रह मिनट बाद उस बिल को क्लर्क सॉफ्टवेयर में एंटर करेगा, कैश लेगा, उसके बाद अधिकारी एक एक बिल वेरीफाई करेगा| मतलब की अगर हमारे पास दिन के एक सौ पचास बिल भी लगा कर चलें तो तीन स्टेप के प्रोसेस के हिसाब से चार सौ पचास लोग हो जाते हैं, जो की बैंकिंग काम से अलग हैं. ऊपर से ब्रांच में ३ लोगों का ही स्टाफ है| इसमें क्या तो हम बिल लें, क्या बैंकिंग करें| और तनख्वाह तो आप जानते ही हैं| काम खत्म करते करते रात के नौ बज जाते हैं. खुल कर आवाज़ भी तो नहीं उठा सकते| प्लीज मदद कीजिये|
7) इलाहाबाद बैंक के बहुत सारे बैंकरों ने पत्र लिखा है कि उन्हें बैंक का शेयर ख़रीदने के लिए मजबूर किया जा रहा है। इसके लिए उन्हें लोन लेकर खरीदने के लिए बोला गया है। बैंक का शेयर गिर रहा है और हम सबको घाटा हो रहा है। जो पत्र आया है ज़ाहिर है उसमें ऐसी भाषा नहीं हो सकती मगर पत्र के अलावा दूसरे तरीके से दबाव डाला जा रहा है कि आप बैंक का शेयर ख़रीदें। ऐसे सैंकड़ों पत्र आए हैं।
8) एक ब्रांच में काग़ज़ पर 10 अधिकारियों को छुट्टी दी गई ताकि रिकार्ड से पता चले कि सबको छुट्टी मिलती है। मगर रीजनल मैनेजर के आदेश से वे वहां काम करते रहे। पत्र भेजने वाले का दावा है कि अगर सीसीटीवी फुटेज की जांच हो तो पता चल सकता है। कुछ और लोगों ने भी ऐसी शिकायतें भेजी हैं।
ऐसे पत्र भी आते हैं….
9) रवीश भाई मैं 6 साल से फॉलोवर था आपका सत्य लेकिन बायस्ड होने के कारण आपका प्रोग्राम देखता नही…23 साल फौज में रहने के बाद आज तीन साल से बैंकर हूँ… कुछ इनबॉक्स में भेजूंगा तो बिना नाम का संज्ञान लेना..हालांकि हम भक्त रोज गरियाएँगे.. बदनाम होंगे तो नाम भी होगा
अब हमारा छोटा सा भाषण-
हमने सिर्फ कुछ सैंपल पत्रों को आप तक रखा है। हज़ारों पत्रों को पढ़ते पढ़ते मेरी आंखों में दर्द हो गया है। चुभता रहता है। कई पत्रों को पढ़ कर रो देता हूं। कुछ पत्रों को प्राइम टाइम में पढ़ा भी है। एक बैंकर मां को सात महीने के बीमार बच्चे को देखने के लिए घर जाने नहीं दिया गया। उसका पति दूर ट्रांसफर कर दिया गया है। बुखार बढ़ा तो आया के सहारे नहीं छोड़ सकती। बच्चे को मेज़ के ऊपर रखकर काम करती रही। रोती रही। मैं उस तस्वीर को देखकर रोने लगा।
11 सीरीज़ के बाद भी बैंकों के चिरकुट चेयरमैनों पर कोई फर्क नहीं पड़ा। लोग वाकई लोफर से भी बदतर हो चुके हैं। सबको सत्ता की सोहबत ही जीवन का सत्य लगता है। मंत्रियों के जूते चाटने वाले इन चेयरमैनों से इतना नहीं हुआ कि अपने लोगों की सुन लें, उनका दर्द बांट लें, कुछ हो सकता है तो कर दें। पता नहीं इनके घर वालों ने बैंक सीरीज़ देखी है या नहीं। कितना पाप ये पचा ले जाते हैं, मेरी समझ नहीं आता। और बैंकर कितने कायर हो चुके हैं कि ग़ुलामी बर्दाश्त कर लेते हैं।
अगर आप नागरिक वाकई कुछ कर सकते हैं तो बैंकों में काम कर रहीं इन महिला बैंकरों को बचा लीजिए। उनकी आवाज़ को दूर दूर तक पहुंचा दीजिए कि कैसे उन्हें ग़ुलाम बना कर रखा गया है। यही समस्या हु ब हू मर्दों की है लेकिन मर्दों को गर्भ धारण नहीं करना पड़ता है, उन्हें पीरीयड नहीं होते हैं। उन्हें छह महीने के बच्चे को दूध नहीं पिलाना पड़ता है।
मर्दों को भी तरह तरह की बीमारियां हो गई हैं। वे भी शिकार हैं मगर उनमें से कई महिलाओं पर क्यों ज़्यादती कर रहे हैं। अच्छा लगा कि कई मर्द बैंकर महिलाओं की व्यथा को अपनी व्यथा से आगे रख रहे हैं मगर महिलाओं को सताने वाली मानसिकता किसने बनाई। कई महिला रीजनल मैनजर भी उसी तरह ज़ुल्म करती हैं जैसे कोई मर्द रीज़नल मैनेजर करता है। यह सबसे घटिया लिंक है बैंक। सरकार से दबाव आता है, चेयरमैन उसे कार्यकारी निदेशक को थमा देता है और वहां से सारे रीजनल मैनजरों के ज़रिए कहर बरपाया जाता है।
पुरुष बैंकरों को सोचना होगा। यह कैसे मुमकिन है कि 13 लाख बैंकर ग़ुलाम की ज़िंदगी स्वीकार कर सकते हैं। मैंने होली के दिन पत्र लिखा कि आप कोई पर्व त्योहार न मनाए न इस दिन पर किसी को मुबारकबाद दें। पता नहीं कितनों ने उसका पालन किया। जब आप ग़ुलाम हो जाते हैं तो बाहर आने में सौ साल लग जाते हैं। शादी बारात में जाकर लोगों को पकड़ पकड़ कर बताएं। ऐसा तो हो नहीं सकता कि आप झूठी शान भी जी लें और आज़ादी भी पा लें। झूठी शान भी ग़ुलामी है। जब आपको पता है कि आपकी कोई औकात नहीं रही, तो आप लोगों से छिपाते क्यों हैं, बता दीजिए सबको। उनसे मैंने कहा था कि आप अपना हाल लिख कर बोतल में बंद कर गंगा में बहा दें। लाखों बोतल रात को नदी में छोड़ आएं। मंदिर के बाहर रख आएं। पत्र लिख कर कम से कम सौ घरों में भेज दें ताकि भारत को पता चल जाए। पता है उनके पास वक्त नहीं है, लेकिन ग़ुलामी से मुक्ति के लिए रातों को जागना पड़ता है वैसे ही जैसे आप ग़ुलामी के लिए रात रात जागकर काम करते हैं।
जो लोग प्राइवेट बैंक में काम करते हैं और इस सीरीज़ को देखकर अपना धीरज खो रहे हैं उनसे यही कहना चाहता हूं कि अभी आप हिन्दू मुस्लिम कीजिए। आप अपनी लड़ाई किसी को आउट सोर्स नहीं कर सकते। खुद लड़ना सीखें। नाइंसाफी से लड़ नहीं सकते तो मुझे पर आरोप न लगाएं कि मैं केवल सरकारी बैंकरों की बात कर रहा हूं। मुझसे पूछ कर ग़ुलामी करने गए थे क्या। तकलीफ आपको है तो बोलेगा कौन। आप या हम? यह शिकायत उन दौ कौड़ी के नेताओं से क्यों नहीं करते जिनके लिए आप लाइन में लगकर मतदान के दिन सत्तर फीसदी बनते हैं, उंगली दिखाकर सेल्फी खींचाते हैं।
जिन्होंने फ़ेसबुक पे लड़की का फ़ेक अकाउंट बना रखा है, वे सब 31 मार्च को सच में लड़की बन जाएँगे”
13, Mar 2018 By बगुला भगत
एजेंसी. दुनिया में जितने भी लोगों ने फ़ेसबुक पर या किसी और सोशल मीडिया साइट पर लड़की के नाम से फ़ेक अकाउंट बना रखा है, उनके लिए बहुत बुरी ख़बर है। ब्रह्मर्षि नारद मुनि ने सूचना दी है कि आज से ठीक 18 दिन बाद यानि 31 मार्च की आधी रात को वे सब सच में लड़की बन जाएँगे।
Facebook Fake Accountइस अकाउंट वाला लड़का भी बन जाएगा लड़की
तीनों लोकों में निरंतर विचरण करने वाले नारद ने कल रात फ़ेकिंग न्यूज़ के रिपोर्टर को यह ब्रेकिंग न्यूज़ दी। अपनी वीणा पर राग भैरवी छेड़ते हुए उन्होंने कहा, “प्रभु ने उन सब लोगों का उद्धार करने का फ़ैसला कर लिया है, जिन्होंने पूर्व जन्मों के पापों के कारण पुरुष रूप में जन्म लिया है लेकिन लड़की बनने के लिए तड़प रहे हैं! नारायण…नारायण!”
“परंतु मुनिवर ऐसा भी तो हो सकता है कि उन लोगों ने लड़की फँसाने के लिए या दूसरे लड़कों को चू@#$ बनाने के लिये लड़की का भेस धरा हो…आई मीन…फ़ेक अकाउंट बनाया हो!” -हमारे रिपोर्टर ने प्रतिवाद किया। यह सुनकर नारद जी के मुँह से निकला- “लड़की फँसाने के लिए लड़की…चू@#$ बनाने का लिए लड़की…मतलब?” और कन्फ़्यूजन में अपनी चुटिया पर हाथ फिराने लगे।
फिर आसमान की तरफ़ देखते हुए बोले, “लेकिन भगवान जी ने तो समझा कि उन सब के मन में लड़की बनने की इच्छा दबी हुई है। यही सोचकर प्रभु ने उनका लिंग बदलने का फ़ैसला किया है। उन्होंने तो वरदान दे भी दिया…नारायण…नारायण!” -यह कहते हुए नारद जी अंतर्ध्यान हो गये और हमारा रिपोर्टर मूर्छित, क्योंकि उसने भी एक फ़ेक अकाउंट बना रखा है।
अब नारद जी मसखरी करके गये हैं या सचमुच ऐसा होने वाला है, ये तो 31 मार्च की रात को ही पता चलेगा। लेकिन अगर सचमुच ऐसा हो गया तो दुनिया में बड़ी भारी उथल-पुथल मचने वाली है। इस वरदान से हमारे देश का लिंगानुपात भी गड़बड़ा सकता है यानि लड़कों से ज़्यादा संख्या लड़कियों की हो सकती है।
सिनेमा हाल गए तो पंद्रह साल हो गए मुझे , फिल्मे नहीं देखते इन सालो में सिर्फ चार फिल्मे देखि हे पूरी और एक साँस में तो वो हे थ्री इडियट , मुंबई मज़दूर हड़ताल पर बनी सिटी ऑफ़ गोल्ड और गर्म हवा और शतरंज के खिलाडी और बाकी यु ही इधर उधर काट कूट के थोड़ी बहुत देख लेते हे तो यु ट्यूब पर जितने भी पद्मावत के सीन देखे उनसे साफ़ पता चलता हे की पूरी फिल्म राजपूतो की फ़र्ज़ी बहादुरी का ढिंढोरा पिटती हे और कुछ नहीं , फिर भी इतना उत्पात मचाया गया ——————– ? साफ़ हे की हिन्दू कटटरपंथ दुनिया की सबसे भ्र्ष्ट कायर और दुष्ट विचारधारा हे
आज भारत में हिन्दू कठमुल्लावाद के पास सबसे अधिक पैसा हे पॉवर हे तो खेर उस की मलाई खाने और पी एम् पद से लेकर लाइक्स तक की इतनी लूट और पागलपन मचा हुआ हे दंगे फ़र्ज़ी वीडियो फ़र्ज़ी खबरे तो ये करते ही अब पागलपन हिस्टीरिया इस हद तक पहुंच गए हे की किताब लड़की लाइक्स फॉलोवर आदि को लेकर हिन्दूकठमुल्लेकटटरपन्ति लुच्चे और लफंगे तत्व सोशल मिडिया पर आपस में ही बुरी तरह से भीड़ गए हे एकदूसरे के कपडे फाड़ रहे हे और एक दूसरे को लड़कियों से लेकर दर्जियो मज़दूरों का दलाल तक बता रहे हे देशभक्ति को यु ही नहीं लफंगो की आखिरी शरणस्थली कहा जाता हे ये तो होना ही था दक्षिणपंथ में निष्काम कर्म नहीं होता हे सब अपने मतलब के यार होते हे देशभक्ति धर्मभक्ति सब फर्जीवाड़ा होता हेमोदी जी की तरह निगेटिव प्रचार की मलाई मिलने की हवस इन हिन्दू कटटरपन्तियो में इस कदर हो गयी हे की ( जैसे ये लोग देश भर ज़बर्दस्ती दंगे भड़काते हे गणतंत्र दिवस मना रहे मुसलमानो तक पर ये टूट पड़े थे ) ताकि एक तो इनके छुटभय्ये नेताओ को प्रचार मिले जैसे मोदी को गुजरात दंगो से मिला दूसरा की ये लोग चाहते हे असली मुद्दे किसी तरह सामने ना आये यहाँ अकेले अभिमन्यु की तरह रविश कुमार ने इनका चक्रव्यूह तोड़ डाला तो खेर ये लोग हर समय प्रचार की हवस में रहते हे ये हवस इतनी कुरता फाड् की बढ़ी की ये लोग एकदूसरे से ही भिड़ गए सोशल पर इनका दंगा इतना बढ़ा हे पुलिस थाने मुकदमे हो रहे हो रहे हे मगर इससे कई हिन्दू कटटरपन्ति दुष्प्रचारक बेहद खुश हे जो जेल जाएगा वो जाएगा मगर इस कांड के कई हिन्दू कटटरपन्ति बेहद खुश हे सोशल मिडिया पर अपना नाम बहस देख कर अपने बढ़ते लाइक कमेंट देख कर ये ख़ुशी से पागल हो रहे हे सेलेब्रेटी होने की फ़र्ज़ी ही सही किक ले रहे हे इन्हे उम्मीद हे की इस निगेटिव प्रचार से इन्हे भी मोदी की तरह फायदा होगा उधर कई पुराने संघी ज़हरीले चिंतित भी हे ये वो हे जो बड़े और पुराने हिन्दू कठमुल्वादी प्रचारक हे नेट के मगर अभी तो इन्हे ही मलाई नहीं मिली पंद्रह पंद्रह साल हो गए लंगड़ा त्यागी की तरह घिसटते हुए उधर बढ़ते लाइक शेयर फॉलोवर के साथ कई नए नए हिन्दू कटटरपन्ति टुच्चे और आ गए हे तो वो चिंतित हे और ये नए लोंडे बेहद जोश में हे और इस निगेटिव प्रचार पुलिस थाने मुकदमे से बेहद खुश हे
इस केस में किस तरह हिन्दू कठमुल्वादी साज़िशियो ने कमउम्रकमसिन लड़कियों के प्रति इंसानी फितरत की कमजोरी का लाभ लिया -इंसान की फ़ितरते बदलना लगभग लगभग नामुमकिन सा काम हे एनिमी एट दा गेटस फिल्म में अंत एकतरह से आत्महत्या करने से पहले यहूदी कम्युनिस्ट सैनिक कहता हे की ” हमने कितनी मेहनत की थी एक नया समाज बनाने को सब बेकार गया इंसान कभी भी सुधर नहीं सकता ” और अगर इंसान खेर से सब समझ भी जाए सुधर भी जाए तो तब तक बहुत लेट हो चूका होता हे अब देखिये जरा ये आदमी महाविद्वान हे कोई जवाब नहीं इंसान भी अच्छा हे हो सकता हे की बहुत अच्छा हो मगर इंसानी फ़ितरते कमजोरिया पूरी तरह से काबू करने में ये भी विफल रहा देखिये हमेशा की तरह इसने ज़बर्दस्त लिखा हे लिखता हे
·—————————————————————————————————————————————————————————– ” दिल्ली में मेरा घर तीन मंजिलों वाली बिल्डिंग के पहले मंजिल पर था.. मेरी बालकनी के नीचे तीन गैराज थे जो हम तीनो फ्लैट वालों के थे.. मेरी बालकनी के सामने नीचे ग्राउंड फ्लोर पर लगभग एक बड़े कमरे जितनी जगह थी और उसके बगल में भी बहुत जगह थी.. बिल्डिंग के सामने रोड थी जो कि आम रोड नहीं थी.. वो कॉलोनी के भीतर की रोड ही और वहां गाड़ियों का आवागमन नहीं था और वो रोड सिर्फ गाड़ी पार्किंग के लिए इस्तेमाल होती थी
मेरी बालकनी के नीचे की जगह वैसे तो हमारे इस्तेमाल की होनी चाहिए थी मगर उस जगह पर तीसरी मंजिल वालों ने अपना हक़ जमा रखा था.. उस हक़ का ये आलम था कि अगर वहां ग्राउंड फ्लोर वाले हमारे पड़ोसी कपड़े डालने के लिए एक रस्सी भी लगा देते थे तो तीसरी मंजिल वाले रात में उस रस्सी को आ कर काट देते थे.. ग्राउंड फ्लोर वाले को घर के सामने लॉन मिला हुवा था इसलिए गैराज उनके पास नहीं था.. वो हम लोगों के पास ही था.. अब बालकनी के नीचे की उस जगह के सामने वाली रोड पर भी उन्ही का कब्ज़ा था.. शुरुवात में मुझे पता नहीं था तो मैं अपनी कार वहां लगा दिया करता था.. फिर उन्होंने मुझ से कहा कि वहां से हटा के बगल में लगा दें.. जितनी चौड़ी बालकनी के सामने की जगह थी उतनी ही चौड़ी जगह उनको सामने रोड पर चाहिए थी.. जो दो गाडी खड़ी करने की जगह के बराबर बनती है.. उन्होंने वहां निशान लगा रखा था कि इस निशान के बाद मैं अपनी गाड़ी पार्क करूँ.. शुरुवात में मुझे अजीब लगा और ग्राउंड फ्लोर वालों ने भी मुझे भड़काया कि वो मेरी जगह थी.. तो मुझे जब जगह मिलती मैं पार्क कर देताफिर एक दिन तीसरी मंज़िल वाले पडोसी के नीचे से ज़ोर जोर चिल्लाने की आवाज़ आई.. मैं बालकनी में गया तो वो मुझे गाली दे रहे थे.. मैंने विरोध किया तो मेरी पत्नी आ कर रोने लगी.. वो उस समय गर्भ से थी.. वो मुझे खींच कर अंदर ले गयी और रो कर कहने लगी कि रहने दो.. उम्र में बड़े हैं ये लोग.. हम लोगों के माँ बाप के बराबर हैं… इनसे कुछ न कहो.. अपनी गाड़ी किनारे खड़ी कर दिया करो.. मैं तो अंदर बैठ गया मगर वो गाली देते रहे.. सारा मोहल्ला इक्कट्ठा कर लिया उन्होंनेवो मोहल्ले वालों को चिल्ला चिल्ला कर बता रहे थे कि वो कितना मानसिक दबाव में रहते हैं इस पार्किंग की जगह की वजह से.. जब शाम को वो ऑफिस से घर के लिए निकलते थे तो अपनी पत्नी को फ़ोन करके पूछते थे कि उस जगह पर कोई और गाड़ी पार्क है कि नहीं? अगर मेरी गाड़ी वहां पार्क होती थी तो वो वहीँ से टेंशन में आ जाते थे.. और ऑफिस से घर तक का उनका दो घंटों का सफ़र ऐसा पीड़ादायक होता था कि वो बता नहीं सकते थे.. अगर कोई गाड़ी वहां नहीं होती थी तो उनकी पत्नी तीसरी मंज़िल से उस जगह की निगरानी किया करती थी ताकि कहीं किसी के घर का मेहमान वहां गाड़ी न लगा दे.. जबकि आसपास बहुत जगह होती थी मगर उनको उसी जगह गाड़ी लगानी होती थी.. जिसने लिए वो ऑफिस से टेंशन में ड्राइव करना शुरू करते और घर तक टेंशन में रहते.. वो ये सब मोहल्ले वालों को चिल्ला चिल्ला कर बता रहे थे और मैं चुपचाप सुन रहा था.. फिर मैंने सोचा कि सच में ये इंसान कितनी ज्यादा मानसिक पीड़ा में है.. और इसके साथ साथ इसका पूरा परिवार कितनी पीड़ा से गुज़र रहा थाउस दिन के बाद मैंने अपनी गाड़ी बगल में लगानी शुरू कर दी.. मगर जब कोई जगह पूरे दिन खाली रहे तो वहां और कोई न कोई गाडी लगा देता था.. खासकर लोगों के यहाँ आये मेहमान जिन्हें पता नहीं होता था कि ये उनकी जगह है.. तो फिर मेरे तीसरी मजिल के पडोसी ने अपने बेटी के लिए एक नयी स्कूटी ली और वो उस नयी स्कूटी को टेढ़ा खड़ा करके दो कार की जगह जितनी जगह घेर कर पार्क करवाने लगे.. पचास हज़ार की स्कूटी उस इंसान ने इस लिए ख़रीदी ताकि वहां वो जगह घेर सके.. वो स्कूटी दिन भर धूप ओर बारिश में खड़ी रहती.. जबकि उसे आराम से वो मेरी बालकनी के नीचे लगा सकते थे मगर वो उन्होंने जगह घेरने के लिए ली थी.. फिर मेरी बालकनी के नीचे की जगह पर जब एक दो बार मैंने अपनी छोटी गाड़ी पार्क कर दी तो मेरे पड़ोसी ने उस जगह पर गैराज से निकालकर पुरानी टाइल्स और कुछ सामान लगवा दिए ये बोलकर कि ऊपर घर में मरम्मत करवानी है ये उसका सामान है.. मगर हम सबको पता था कि ये उनकी जगह घेरने की चाल है और कुछ नहीं.. वो पुरानी टाइल्स वहां तब तक रहीं जब तक हम लोगों ने घर छोड़ नहीं दिया
मगर फिर मैंने उनको कुछ भी कहना बंद कर दिया.. क्यूंकि जिस पीड़ा से वो और उनका परिवार उस जगह के लिए गुज़र रहा था वो अपने आप में एक दुखदायी था.. तीसरे मज़िले पर बैठकर ग्राउंड फ्लोर पर जगह घेरना आसान बात नहीं है.. उन लोगों का सारा दिमाग और सारी एनर्जी इसी में लगी रहती थी.. क्यूंकि गहरे में वो जानते थे कि वो जगह उनकी नहीं थी मगर उन्हें उसे अपनी बनानी थी.. इसलिए मुझे उनकी पीड़ा देखकर उन पर तरस आने लगा था.. पचपन साठ के करीब की उम्र और दो जवान बच्चे और अपने साथ साथ उन दोनों ने उन दोनों बच्चों को भी इसी में लगा रखा था.. लड़की स्कूटी टेढ़ी कर के खड़ी करती थी और कोई हटा न दे इसकी निगरानी करती थी
ये पूरा परिवार एक गुरु का भक्त था.. और ये लोग हफ्ते में एक बार गुरु के आश्रम में जाते थे सेवा करने.. वहां भंडारे में लोगों को खिलाते थे.. सेवा करते थे और भावविभोर होकर वापस लौटते थे.. हर हफ्ते का उनका ये रूटीन था.. उनका पूरा घर गुरु की किताबों से भरा हुवा था.. सेलिब्रिटी गुरु थे.. सारी किताबें आध्यात्म की.. उनके घर आप चले जाईये तो वो दोनों पति पत्नी आपसे दर्शन की ऐसी बात करते थे कि आप बिना इम्प्रेस हुवे नहीं रह सकते. वो आपको बताते कि गुरु उनको बताते हैं कि क्या लेकर आये हो और क्या लेकर जाओगे.. उनकी पत्नी तो बता बता के इतना भावविभोर हो जाती थीं कि उनके आँख में आंसू आ जातेदिल्ली और बड़े शहरों में आपको इसी तरह के आध्यात्मिक लोग मिलते हैं.. मेरा सारा पड़ोस लगभग किसी न किसी गुरु का शिष्य था.. सब सेवा के लिए आश्रम जाते थे.. और एक भी पडोसी की आपस में नहीं बैठती थी.. हर एक दूसरे की सिर्फ और सिर्फ बुराई ही करता था.. मगर थे सारे रूहानी और आध्यात्मिक और सेवा वाले लोगमैं सोचता था कि इन लोगों का गुरु किस तरह का होगा.. क्या सिखाता होगा इन्हें और इन्हें आखिर गुरु चाहिए किस लिए? इनके लिए आध्यात्म एक नशे जैसा था जो हर हफ्ते इन्हें चाहिए होता था.. पड़ोसियों के लिए इतनी नफरत एक दूसरे के दिलों में और वहां, जिनके साथ इनका अहंकार टकराता नहीं है उनकी ये आश्रम में जा कर सेवा कर के धन्य हो जाते हैं
उस घटना के बाद से उन पडोसी ने मुझ से बात करनी बंद कर दी थी.. मगर मैं ही आगे बढ़कर उनसे बोला.. फिर वो बात करने लगे मगर बहुत प्रोफेशनल तरीके से.. और हालत ये थी कि हमसे ये लोग मुस्कुरा कर मिल भी नहीं पाते थे.. वो शायद सोचते थे कि अगर मुस्कुरा देंगे तो कहीं पार्किंग की जगह का कब्ज़ा न छोड़ना पड़ जाए उन्हें.. उनके लिए लोगों से रिश्ता बस वही नीचे की ज़मीन थी जो न तो उनकी थी और न मेरी.. मगर सेवा के लिए आश्रम ज़रूर जाते थेदिल्ली जैसे बड़े बड़े शहर ऐसे ही आध्यात्मिक लोगों से भरे हैं.. इनका आध्यात्मिक गुरु इन्हें पार्किंग की टेंशन से भी नहीं निकाल पाता है.. मेरी आध्यात्म की परिभाषा इनसे कभी मेल ही नहीं खायी.. ये सेवा करने वाले लोग और मैं सेल्फिश आदमी.. दिल्ली में मेरा इनसे कभी मेल न हो पाया.. और अंत में बीस साल रहने के बाद मैंने दिल्ली छोड़ दी ” ——————————————————————————————– ———————————–अब देखिये जो इसने लिखा तो बता दू की खुद इसने भी यही फितरत दिखाई जो इसके पडोसी की थी इसे भी पार्किंग ( पाठक ) छीनने का बेज़ा डर सवार था हलाकि ऐसा होना नहीं था ये खुद ज़बर्दस्त प्रतिभा हे मगर फितरत का ये भी गुलाम , इसने पार्किंग घेरे रखने के डर से क्या किया की लगभग सेम विचारधारा और मकसद होने के बावजूद इसने क्या की हलाकि ये अफ़ज़ल भाई और खबर की खबर से ये खूब वाकिफ हे मित्र हे खबर और जाकिर हुसैन भाई जैसे जीनियस को ये भी चार साल पढ़ रहा हे मगर एक बारएक पोस्ट में एक विषय पर जब इसे नाम लेना था अपने पाठको को जानकारी देनी थी तो फालतू लेखकों के नाम लेना लेगा और पार्किंग ( पाठक ) छीनने के डर से कभी भी खबर की खबर और जकिरहुसेन का नाम तक नहीं लिया क्योकि इसे डर था की कही पार्किंग ( पाठक ) ना छीन जाए हालांकि ऐसा होने की कोई सम्भावना दूर दूर तक नहीं थी मगर इस ”डर ” पर इंसानो की इस फितरत पर ये खुद भी काबू ना कर सका
शुक्रिया रविश के मित्र विनीत कुमार , में भी बहुत दिनों से इस बात का इशारा कर रहा था की —– ओम मोदी —— सिंह जैसी ज़हरीली —- और छोटा दलाल भड़काऊ दंगेबाज़ जिस सनस्थान में काम करते हो मफिया विट्टल कानिया बाबा पर जायज़ सवाल पूछने पर इतने बड़े पत्रकार की जहा छुट्टी कर दी गयी हो उसी ग्रुप की एक साइट का रुख भला इतना भाजपा और हिन्दू कठमुल्वाद विरोधी क्यों हे—————– ? वो इसलिए हे ताकि हम जैसे छुटभैयो की बेहद मामूली सी सेकुलर टी आर पि भी हड़प कर ली जाए हमारा गला घोंट दिया जाए हमारी सेकुलर कब्र पर आखिरी तिनका भी रख दिया जाए और सही समय पर इस टी आर पि को भी ये भाजपा को हेंडओवर या नीलाम कर देंगे सही समय पर इस काम में ”सोशल सूफी संत ” जैसे लोग भी माल मिलने पर सहयोग करते दीखते हे पैसा हे ही इन लोगो के पास ये हे इनका गेम प्लान इसलिए आज कोबरा पर ये कुछ नहीं बोले ना बोल सकते ——————————- ”Vineet KumarYesterday at 18:49 · कोबरा पोस्ट स्टिंग एक नया बिजनेस मॉडल भी है :
मीडिया पर ही मीडिया की ओर से स्टिंग ऑपरेशन किया जाना इस बात की ओर स्पष्ट संकेत करता है कि लोगों के उपर ” मीडिया को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ ” मामने का भरोसा नहीं रहा. वो भी किसी दूसरे कारोबार की तरह किसी भी स्तर पर जाकर सौदेबाजी कर सकता है, चाहे इसके लिए उसे लोकतंत्र के खिलाफ ही क्यों न जाना पड़े ?
कोबरा पोस्ट ने मीडिया पर दंगे फैलाने के लिए खबरों की सौदेबाजी से जुड़ा स्टिंग करके साहस का परिचय तो दिया ही है, इसके साथ ही उस मॉडल की तरफ इशारा भी किया है कि अब पैसा परंपरागत कारोबारी मीडिया पर खबरें करके, उन पर स्टिंग करके भी बिजनेस है. आखिर फेक न्यूज के बरक्स ऑल्टरनेटिव न्यूज मॉडल भी तो यही कहता है.
अब होगा ये कि धीरे-धीरे ये सारे कारोबारी संस्थान एक-एक करके ऐसी ब्रांड लांच करेंगे जो लोगों के बीच भरोसा पैदा करेंगे कि सच्ची खबर यहां है. इसके लिए वो संभव है अपने मदर ब्रांड से भी असहमत होते नजर आएं जैसा कि लल्लटॉप जैसी वेबसाइट की कलाकारी से हम सब अवगत ही है. ये वैसा ही है जैसे सॉफ्ट ड्रिंक बनानेवाली कंपनी शिकायत होने पर जूस सर्व करने लगी.
इधर साधन और पूंजी के अभाव में ऐसे मंच या तो दम तोड़ देंगे या नए धंधेबाज के तौर पर अपने पैर जमा लेंगे. सरोकार के नाम पर तीन-पांच की खबरें हम आए दिन पढ़ते ही आए हैं.याद कीजिए टीवी सीरियल की दुनिया. जब सास-बहू सीरियल से लोग चट गए और एकता कपूर की सरेआम आलोचना होने लगी तो उसी बालाजी टेलिफिल्म्स ने एक के बाद सामाजिक मुद्दे से जुडे सीरियल लांच कर दिए. ”
सोशल मिडिया पर हिन्दू कटरपन्तियो और फ़सादियों की आपस की लड़ाई में सीनियर संघी कटरपन्ति लोग पहले तो हेराफेरी के बाबू भैया की तरह धोती खुलने के बाद भी ” ये राजू मेरे को फाइट मारने दे ” कर रहे थे मगर बाद में होश आया तो हिन्दू कटटरपंथ के बाबू भैया लोग शयाम और राजू के बीच बीच बचाव करने में लगे हे देखे क्या होता हे पुलिस तो एक्टिव हो चुकी हे और मुख्यप्रधान फसादी पहले तो अपने लाइक शेयर बढ़ने गिनने में मस्त था मगर बाद में झोपडी पर ताला मारकर बल्कि शायद झोपडी में आग लगा कर भाग चूका हे उधर इस लड़ाई में कोई लाइक कमेंट शेयर पब्लिसिटी ना मिलने से नाराज़ छोटा दंगाई लिखता हे ” गैंगवार में कोई कमी नहीं आई है। मानवाधिकार आयोग वालों की सुलह अपील भी काम नहीं आ रही। अदृश्य तलवारें खनक रही है। भविष्य में कभी ‘फेसबुक दंगा’ हुआ तो उसकी शक्ल-सूरत ऐसी ही होने वाली है। मेरे ख्याल में ये फेसबुक का पहला घोषित दंगा कहा जा सकता है, जिसमे एफआईआर तक हो चुकी है। इस कर्फ्यू से सभी आतंकित हो चुके हैं और कर्फ्यू में ढील चाहते हैं। थोड़ा रोक दीजिये ना, बाहर जाकर दूध-सब्जी ले आएं।
‘छोटे दंगाई की अपील’ ” ————————खेर हम जैसे शुद्ध सेकुलर तो वही चाहते हे जो राजू खड़क सिंह को शयाम तक पंहुचा कर कह रहा था बाबू भया इन लोगो को मारपीट करके अपना मेटर सुलझाने दीजिये – दंगे रुका तो हमारी हालात भी वैसी ही हो जायेगी जैसे खड़क सिंह और शयाम के बीच मारपीट रुकवा देने पर बाबू भैया पर राजू भड़कता हे की ”इतना मज़ा आ रहा था- सत्यानाश कर दिया ”
हिंदुत्व के इस योद्धा के इस आदमी का एक बार पुराना रिकॉर्ड जरूर सर्च कर ले—————– https://www.youtube.com/watch?v=5iAFRGW0nN4
आजकल हिन्दू कठमुल्लाओ के प्रोग्रामो की बाढ़ सी आगयी हे नीचे ढेर सारे गुप्ता शर्मा दुबे सिंघल नाम होते हे सारे वही मिलावटराम भजपाराज़ में ( या वैसे भी ) दोनों हाथो से लूटने के बाद आजकल ये अपने पाप धोने और धोने के बाद फिर से पाप को भाजपा की मदद को खूब आयोजन कर रहे हे हमारे बगल में भी हिन्दू कठमुल्लाओ का एक प्रोग्राम था तो समापन में एक कवि अपनी स्त्रेण सी आवाज़ में पाकिस्तान फ़तेह कर रहा था —–
Anita Misra10 hrs · कल एक कवि सम्मेलन में जाना हुआ मजबूरी में ..फिर वही माहौल एक ढाई सौ ग्राम के कवि ने फिर लाहौर में तिरंगा फहरा दिया..सिर्फ इतना ही नही ..ये बालक इतना हिम्मती था कि डोकलाम में भी जा कर चीन की हालत भी खराब कर आया …एक दूसरा वरिष्ठ कवि जिसे लगा बालक ने मंच लूट लिया तो उसके पेट मे मरोड़ उठी क्योंकि वो पिछले कई साल से मंच से पाकिस्तान के पेट मे राणा सांगा की तलवार घुसेड़ रहा था लेकिन मंच अपने से जूनियर को लूटते देख उसे लगा कुछ और करना चाहिए उसने राम का एक भव्य मंदिर वहीं मंच पर खड़े खड़े बना डाला …मंदिर इत्ता भव्य था कि सभी कनपुरिये भावुक हो गए उन्होंने उस कवि के साथ जोर से कहा जय श्री राम ..कुछ पल को समझ नही आया कि कहां आ गई पास चेक किया देखा कि उसमे कवि सम्मेलन ही लिखा था ..फिर एक कवयित्री आई जिनकी कविता का पता नही पर साड़ी काफी अच्छी थी कविता खत्म हुई तो उनकी साड़ी के लिए मैने खूब तालियां बजायी। अंत मे कुमार विश्वास आये जिन्होंने केजरीवाल से प्राप्त रायता कानपुर के लोगो को पान मसाले के साथ खिला दिया लोगों के रिएक्शन से लगा उन्हें रायते में मजा आ रहा है …पर पाकिस्तान और चीन पर फतह , और मंदिर बन जाने के खुशी में उत्साहित भक्त जन थोड़े ख़फ़ा हो गए जब कुमार ने मोदी जी पर कुछ सुनाया ….कुल मिलाकर मैने तीसरी कसम खाई कि कवि सम्मेलन में नही जाना वो भी इस टाईप के …फ़ॉर चेंज कल कुमार ठीक लगे।
Anita Misra
26 March at 19:50 ·
मार्च २०१२ की घटना है एम पी के मुरैना जिले में आईपीएस नरेंद्र खनन माफिया के ट्रैक्टरों को रोक रहे थे उसी समय ड्राइवर ने ट्राली उनके ऊपर चढ़ा दिया था कुचलकर उनकी मृत्यु हो गई थी ..अब फिर मार्च में ही उसी प्रदेश के भिंड जिले में खनन माफिया का स्टिंग करने वाले पत्रकार संदीप शर्मा की आज ट्रक से कुचलकर मृत्यु हो गई ( ट्रक जानबूझकर चढ़ाया गया सी सी टी वी फुटेज में नज़र आ रहा है ).रेत खनन माफिया इतने धाकड़ हैं कि पुलिस , पत्रकार सब मार दिए जाते और सरकार कोई एक्शन नहीं ले पाती है इसका मतलब क्या है ?… संदीप शर्मा को पता था वो जो कर रहें हैं उसमे जान का खतरा है उन्होंने इसका अंदेशा जाहिर भी किया लेकिन छी टी वी के स्टूडियो में बैठकर फ़िज़ूल बातें करने वाले दो कौड़ी के तिहाड़ी पत्रकार को सुरक्षा मिलती है और संदीप जैसे लोग ऐसे मार दिए जाते हैं .. उधर बिहार में भी कल दो पत्रकारों की हत्या हो गई है …..यानि वही पत्रकार सेफ है जो सत्ता के सुर में सुर मिलाएगा …देशभक्त वही नहीं हैं जो कुछ न करके सिर्फ वन्दे मातरम का नारा और भारत माता का जयकारा लगाते हैं …कुछ लोग ख़ामोशी से अपना काम करते हैं और जान गँवा देते हैं …इनका सम्मान भी फौजियों की तरह नहीं होता है न कोई वीरता पुरस्कार है इनके लिए ..न कोई इनाम ..बहुत कम लोग हैं जो इस पेशे में अपना काम इस तरह करते हैं …जान गवाने वाले इन सभी पत्रकारों के हौसले को सलाम …सरकार कुछ करेगी इन लोगों के लिए ऐसी उम्मीद ही बेकार है ..
Anita Misra
19 March at 13:55 ·
कोई दूसरी भाषा बोलने वाला आपकी भाषा का साफ उच्चारण न कर पाए तो उसका मजाक उड़ाने वाले लोग सिर्फ ज़ाहिल ही कहला सकते हैं। सोनिया गांधी ने हमेशा हिंदी बोलने का प्रयास किया ये तारीफ की बात है। अगर आपके कान को ‘पलतकर रख दिया ‘ को बलात्कार सुनाई दे रहा तो इसमें आपके संस्कारों का दोष है और आपकी मानसिक हालत दोषी है कि आप कल्पना में हर वक़्त बलात्कार सोचते हैं।
एक बात और खासकर आई टी सेल के ट्रोल और चीप भक्तों के लिए मोदी जी को संस्कृति ( संस्क्रुति बोलते ) , योगी को सुरक्षा ( सुरक्सा बोलते ) शाहनवाज को बोलो बरे बरे पेर नही बड़े -बड़े पेड़ कहा जाता हैं।
Anita Misra is feeling 32 दांत हैं कितनी दफ़ा निपोरें.
17 March at 22:11 ·
गज़ब बाल नरेंद्र की मगरमच्छ वाली कहानी की चित्रकथा आ गई। थंक्स मोदी जी इस कठिन समय में यूं हंसाते रहने के लिए
Rakesh Kayasth
6 hrs ·
भीड़ बहुत अच्छी है, अगर आपके पक्ष में खड़ी हो। भीड़ बहुत बुरी अगर आपके खिलाफ हो। भीड़ जब आपके लिए लाठी और त्रिशूल भांजे तो आप अट्टाहास करते हैं। भीड़ जब आपके खिलाफ भारत बंद करवाने पर उतारू हो जाये तो आपके देश को होने वाले आर्थिक नुकसान की चिंता सताने लगती है।
दलितों के भारत बंद ने भारतीय राजनीति और समाज की कुछ भयावह सच्चाइयों को उजागर किया है। पहली बात यह कि संगठित आक्रमकता ही अपनी बात मनवाने का एकमात्र और स्वीकृत तरीका है।
याद कीजिये तमिलनाडु आकर जंतर-मंतर पर धरना दे रहे किसानो को। गले में खोपड़ी की माला, मुंह में मरे चूहे दबाये। पेशाब पीकर अपनी हालत बयान करते किसान। आंदोलन पूरी तरह अहिंसक था। राष्ट्रीय मीडिया पर कवरेज शून्य था। सोशल मीडिया पर लोग तालियां पीट-पीटकर हंस रहे थे। किसान कई दिनों तक बैठे रहे और फिर वापस चले गये। उनकी मांगों का क्या हुआ किसी को पता नहीं है।
अब आरक्षण की मांग कर रहे जाटों के आंदोलन को लीजिये। बसे जलाई गईं। निर्दोष राहगीरों की हत्या की गई। बलात्कार तक के मामले सामने आये। हरियाणा के मुख्यमंत्री ने फौरन जाट भाइयों को बातचीत का न्यौता दिया। आश्वसान दिया गया कि सारे मुकदमे वापस लिये जाएंगे। उसके बाद यूपी चुनाव के दौरान राष्ट्रीय अध्यक्ष जी का ऑडियो आया– जाट नेताओं को पुचकारते, ऐतिहासिक संबंधों की दुहाई देते।
हार्दिक पटेल ने गुजरात में हिंसा फैलाई और रातो-रात हीरो बन गया। उसे मनाने की भरपूर कोशिशें हुईं। लेकिन मुकदमों की वजह से वह इस तरह बिदका कि कांग्रेस के पाले में चला गया। इस तरह हार्दिक पटेल देशद्रोही हो गया लेकिन हिंसक पाटीदार आंदोलन से जुड़े उसके जो साथी बीजेपी के साथ आये वे सब देशभक्त हो गये।
21वीं सदी सबसे बड़े गांधीवादी योगी आदित्यनाथ इस देश के नये पोस्टर ब्वाय हैं, जिन्हे हिंदू वाहिनी नाम का एक हथियारबंद दस्ता स्थापित करने का श्रेय जाता है। बाबाजी भारत के पहले ऐसे नेता हैं, जो सांवैधानिक पद पर बैठकर एक्स्ट्रा ज्यूडीशियल किलिंग को सबसे पवित्र काम के रूप में स्थापित कर रहे हैं और वाहवाही लूट रहे हैं। योगी जी पहले ऐसे नेता हैं, जिन्होने मुख्यमंत्री बनने के बाद अपने उपर लगे सारे आपराधिक मामले हटा लिये।
दूसरी तरफ दलित नेता चंद्रशेखर आजाद रावण का हाल भी सुन लीजिये। कानूनी दांव-पेंच में फंसाकर लगभग गैर-कानूनी तरीके से जेल में बंद किया गया है और अपाहिज हो चुका है। ऐसे कई उदाहरण मिल जाएंगे। क्या चंद्रशेखर आज़ाद रावण की जगह उसका नाम संगीत सोम होता तब भी उसकी यह हालत होती? मरे हुए जानवर की खाल उतार रहे लोगो की खाल खींच ली जाती है। घोड़ी चढ़ने वालों की गर्दन काट दी जाती है और इस देश की सबसे बड़ी अदालत को लगता है कि एसटीएसी एक्ट का दुरुपयोग हो रहा है। जातिवादी पूर्वाग्रह की जड़े इस देश में कल्पनाओं से भी ज्यादा गहरी हैं।
दलित आंदोलन के दौरान हुई हिंसा देखकर बहुत दुख हुआ। जब आप न्याय की मांग कर रहे हों तो कोशिश इस बात की होनी चाहिए कि आचरण भी विधिसम्मत हो। हिंसा नहीं होनी चाहिए थी। लेकिन हिंसा की चिंता इस देश में किसे है? गांधी की तरह चरखा कातते हुए फोटो खिंचवाने वाले प्रधानमंत्री ने समाज में बढ़ रही हिंसा के बारे में कितनी बार क्या बोला है यह याद कर लीजिये और याद आ जाये तो मुझे भी बता दीजियेगा।——–Narendra Nath
10 hrs ·
बार-बार दोहराता रहा हूँ कि यह राजनीति का “बोये पेड़ बबूल के” काल चल रहा है।
पिछले हफ्ते ही तो धार्मिक आस्था पर बिना कानूनी परमिशन के तलवार लहराते रैली को लोग पूरी तरह सही ठहरा रहे थे। जय श्री राम के उद्घोष के साथ खुद कानून के रखवाले केंद्रीय मंत्री धर्म की रक्षा के लिए कानून को तोड़ना ताल ठोक सही ठहरा रहे थे। नतीजन बिहार जैसे राज्य ने सालों बाद दंगो का दौर देखा।
आज किरदार बदल गए। जय भीम के उद्घोष से दलित हक के नाम पर कानून तोड़ने को सही बता रहे थे।
ऐसा माहौल हो गया है जिसमें जो जितना डरा पाएगा,वह उतना मजबूत कहलाएगा। करणी सेना हो या श्री राम सेना या भीम सेना या मुस्लिम सेना या कोई और..हम अपने लोगों के “हिंसा” और बदतमीजी को “आंदोलन और हक की जंग ” और दूसरे की ऐसी करनी को “अराजक” बता देते हैं।
फिर कह रहा हूँ “बहुसंख्य वाद” को बढ़ावा देंगे तो ऐसे दिन बार-बार आएंगे। “हम्माम में सब सब नंगे” थे तो फिर भी ठीक था। अब तो ” हम्माम में सब हिंसक और हैवान” होते जा रहे हैं। सँभल कर रहें। जिस मोहल्ले में आप हमेशा आग लगाने की कोशिश करते रहते हैं, भूल जाते हैं कि उसी मोहल्ले में आपका भी घर है।जलेगा आपका भी घर।Manoj Kumar
2 hrs · अगर आपको दलितों के गुस्से और आक्रोश का अनुमान नहीं था तो आप शुतुरमुर्ग हैं, या फिर दंगा फैलाने की अपनी ताकत का इतना गुमान है कि आपने इस तरफ ध्यान नहीं दिया|
दरअसल मायावती को उतर-प्रदेश के चुनाव में सीट नहीं मिलने के बाद और रामविलास, उदितराज और आठवले को खरीदकर आपको लगा कि आपने दलित आन्दोलन को निगल लिया है| आपके आसपास के लग्गू-भग्गू और करीबी intelligentsia भी आपको यही विश्वास दिलाती रही|
तकनीकी बातों में मत उलझाइए| ये कहने का कोई मतलब नहीं है कि आन्दोलनकारी सुप्रीम कोर्ट के ऑब्जरवेशन का सही मतलब समझकर निकले थे या नहीं| यह गुस्सा एक दिन का नहीं है|
आखिर किस ठिठाई से और किसकी शह आर केन्द्रीय मंत्री अनंत कुमार हेगड़े संविधान बदलने की बात करता है| किसकी शह पर वह दलितों के लिए अपमानजनक भाषा बोलता है|
अनंत कुमार हेगड़े आज भी केन्द्रीय मंत्री है| उसपर कोई कार्रवाई नहीं हुई|
किसकी शह पर उतर-प्रदेश का मुख्यमंत्री अजय सिंह विष्ट दलित नेता चन्द्रशेखर को जमानत मिलने के बाद जेल में रखने का हौसला दिखाता है?किसकी शह पर वह चंदशेखर पर राष्ट्रीय सुरक्षा क़ानून की धारा लगाता है?
किसकी शह पर यह हो रहा है कि हत्यारे बर्बर शम्भुलाल रैगर की शोभायात्रा निकलती है और एक दलित युवक को घोड़ी आर चढ़ने के लिए मुँह कुचल कर मार दिया जाता है|
बंद के दौरान हिंसा हुई है और लोगों की जानें गई हैं क्योंकि प्रशासन और सरकार को इस गुस्से का अंदाज नहीं था| यह पूरी तरह से प्रशासनिक असफलता है|
आज हिंदुत्व के नकली रंग में रंगे सवर्ण हिंदुत्ववादी सियारों के रंग उतरने का दिन है|
सवर्णों , अभी भी चेत जाइए| कल तक आपको लग रहा था कि आपके पास बहुसंख्यकों की ताकत है और मुसलमान अल्पसंख्यक हैं| एक ही दिन में आपको अपने अल्पसंख्यक होने का अहसास हो गया और क़ानून के शासन की याद आने लगी?लगेगी आग तो आएँगे घर कई ज़द में
यहाँ पे सिर्फ़ हमारा मकान थोड़ी हैSatyendra PS
1 hr ·
12 प्रदर्शनकारियों की सरकार ने हत्या करा दी। हर जगह बेरहमी से प्रदर्शनकारियों को पीटा गया। बर्बरता से शांतिपूर्ण आंदोलन को दबाने की कवायद की गई। यहां तक कि संघी राकेश सिन्हा को दुबला पतला काला देखकर पुलिस ने दलित समझकर उठा लिया। यानी सरकार की नजर में जो भी काला कलूटा ठिगना और आर्यों जैसी शक्ल सूरत के विपरीत दिखा उसे पिटवाया।
उसके बावजूद कहा जा रहा है कि प्रदर्शनकारियों ने हिंसा की।
शायद ये ऐसे नहीं मानने वाले हैं। अब यह आंदोलन चलाना होगा कि आर्यों भारत छोड़कर तुम अपने देश चले जाओ। दलित पिछड़ों को अपने हाल पर छोड़ दो। वो अपने मुताबिक शासन सत्ता चला लेंगे।
Satyendra PS
13 hrs ·
ये लातों के भूत हैं। बातों से नहीं मानते। ऊना में दलितों को बांधकर पीटा गया। गोरक्षा के नाम पर दलितों को पीटे जाने की तमाम वीडियो आए। जगह जगह दलितों की हत्याएं हुईं। सरकार दलितों पिछड़ों का एनकांउटर कराती रही।
संघ कभी नहीं जागा।
आज जब समाज बगैर किसी बैकप के लाखों की संख्या में देश भर में सड़कों पर उतर आया तब संघ का स्पस्टीकरण आया।
अब तक ये मजे ले रहे थे कि नान्ह जतीये औकात में आ गए हैं!
Satyendra PS
14 hrs ·
आज का भारत बंद इस मामले में अहम है कि बन्द की सूचना सिर्फ सोशल मीडिया पर थी। किसने बन्द का आह्वान किया,कौन सा दलित संगठन इसके पीछे था,कुछ भी पता नहीं।
इसके बावजूद पंजाब, हरियाणा, दिल्ली,राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, गुजरात,महाराष्ट्र, बिहार के तमाम जिलों में लोग सड़कों पर आए।
अभी भी मीडिया में प्रदर्शनकारियों को उपद्रवी, दलित संगठनों द्वारा बुलाया गया आंदोलन आदि कहने के अलावा कुछ नही है।
किसी को नहीं पता कि यह आंदोलन कैसे हुआ? यह आंदोलन अद्भुत और शोध का विषय है। pankaj shrivastavबिना जाँच दलित एक्ट के तहत जेल भेजना अमानवीय! पर बिना जाँच के हज़ारों मुस्लिम नौजवानों को आतंकी कहकर जेल में सड़ाना राष्ट्रवाद!——————
Rahul VT nagpur
16 hrs ·
“ये रहा सबूत कि भगवा गुर्गों ने भीम सैनिक बन मचाया आतंक और इल्ज़ाम SC/ST के नाम।” #गौर_से_देखिये
Rahul VT
16 hrs ·
“जब शांति मार्च आगे निकल गया तब ये झंडुत्ववादी गोबरभक्त मुँह ढ़क कर पीछे आगजनी करते रहे, पुलिस ख़ामोश रही ताकि इल्ज़ाम SC/ST पर आये।”
― राहुल व्ही. टी.
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17 hrs ·
“Satyendra Murli जी समेत कई जगहों से खबरें आ रही हैं कि शांति मार्च के दौरान दूसरी ओर कोई जत्था आया, तोड़ फोड़ की और फ़रार हो गया, पुलिस ने ना तो उन्हें रोका और ना ही दबोचा, ग्वालियर में तो चौहान नाम के छद्म क्षत्रिय ने शांति मार्च पर गोलियाँ चलाई और मीडिया इसे दलितों की हिंसा रिपोर्ट कर रही है।” #सावधान_इंडिया
― राहुल व्ही. टी.
Rahul VT
18 hrs ·
“बंद के ख़िलाफ़ सवर्णों ने शांति मोर्चे पर गोलियाँ चलाई और गोदी मीडिया बता रही कि दलितों ने गोलियाँ चला हिंसा की, और ये ढ़ोंगी सुधारवादी ब्राह्मणवादी लग गए सोशल मीडिया पर दलितों को दबंग जल्लाद साबित करने में, इसलिये गोबऱ खाऊ मीडिया से सावधान।”
Rahul VT
18 hrs ·
“रा.सु.का. के अंतर्गत केवल महाराष्ट्र में ही 52 हज़ार से अधिक मासूम मुसलमानों को आतंकवाद के शक़ में जब जबरन अंदर ठूँस दिया गया, उसमें से 1% भी गुनाह साबित नही हुए, तब तो ‘सुप्रीम कोर्ट ऑफ मिश्रा’ ने रा.सु.का. निरस्त नही की, तब किसी सवर्ण छद्मावती को क्यों कोई मानवाअधिकार नज़र नही आये?
ये मानवाधिकार क्या ब्राह्मणों और सवर्णों की बपौती है?”
#छद्मावती_कहिन_कि_ऑनली_वो_ही_सहीन
― राहुल व्ही. टी.
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20 hrs ·
“जब करनी सेना हिंसा कर रही थी या जब शंभु ने अफराज़ूल को जिंदा जलाया था, उसके समर्थन में चड्डिधारी आतंकवादी हिंसा उफ़ान पर थी, तब तो तुमने इंटरनेट बंद नही किया था!
लेकिन आज जब लाचार होकर दमित शोषित अपनी जान बचाने के एक्ट के लिये सड़कों पर इसलिये उतर आए क्योंकि सरकार ने संवैधानिक रास्ता खोज निकाला है जातिय शोषण का, तो इंटरनेट समेत सारे मीडिया पर बैन लगाने की कोशिश आपके अंदर की जातिवादी कुंठा और ब्राह्मणी सोच का साक्षात प्रमाण है।
ये लोग जानवर की खाल खींचना तक जानते हैं, इसलिये मुफ़्त सलाह दे रहा हूँ, कि आरक्षण और एट्रोसिटी पर ‘सुप्रीम कोर्ट ऑफ मिश्रा’ से जातिवादी फैसलें करवाना बंद कीजिये वरना जनेऊ और चुटिया समेत नोच लिए जाओगे।
ऐसा है सरकार, कि अपनी जातिवादी और धर्मांध सोच के गुप्त रोग़ का ईलाज जल्द से जल्द किसी नीम-हक़ीम या हवन से करवायें, वरना झंडुत्ववाद के जोश के लिए शिलाजीत और वियाग्रा भी काम न आयेगी एक दिन।” #गल्ली_से_दिल्ली_तक_देश_ठप्प
― राहुल व्ही. टी.
Rahul VT
1 April at 21:02 ·
“2019 की तैयारी में जुटी भाजपा! बिहार, सहरसा जिल्हा, पस्तवार पंचायत के भाजपाई मुखिया राहुल सहित 5 देशभक्त लौंडे धरे गये जानलेवा बम समेत, इरादा था सूर्य मंदिर में ब्लास्ट करना और मुसलमानों पर इल्ज़ाम धरना।”
#रामराज्य
Haider Rizvi
15 hrs · अब से कोई क्रांति व्रांति नही…. सिर्फ लडकियां पटाई जायेंगी…
फेसबुक का शुद्ध और सही इस्तेमाल
Shakeel Samar Qureshi और वो हाजी गफूर निकली तो
संघीहिज़ड़ा ज़ोया उर्फ़ भोकाल चतुर्वेदी उर्फ़ ———— फॉउंडेशन का कोई एम्प्लोयी – आसिफा पर भि संघी नॉनसेंस बक रहा हे क्या कोई लड़की ऐसा लिखेगी ————— सवाल ही नहीं उठता हे एक और बात आसिफा के दोषियों को फांसी की बात हो रही हे मगर पुरे कांड में साफ़ दीखता हे आरोपियों का उत्साह , ये लोग अलग ही उत्साह में थे ये उत्साह पैदा किया हे खासकर सोशल मिडिया के संघ के जंगलियों ने जिनमे कुछ पेड़ हे कुछ अनपेड कुछ छुपे हुए कुछ खुले हुए कुछ सड़क पर हे कोई आई एस का साला हे इनमे तिवारी हे चिप हे कई सारे झा हे मिश्र हे अवस्थ हे चतु— हे मराठी टकला राक्षस हे बहुत सारे नाम हे सालो से ये लोगो को भड़काने में जुटे हे सही समय पर कानून के दायरे में ही हम इन लोगो के लिए भी—– की कोशिश करेंगे समय प रआसिफा के हत्यारो में संघी समर्थको मुख़्तार अब्बास नकवी राष्ट्रीyमुस्लिम मंच के 6kko , शाहनवाज़ हुसैन , ——- लियाकत और सभी संघी भाजपाई मुसलमानो को भी गिना जाना चाहिए जिन्होंने चार साल से चल रही दंगाई मानसिकता पर कायरता दिखाई इन सबका सामाजिक बहिष्कार हो खासकर लियाकत जेसो का , सही समय पर कानून के दायरे में ही इन सब को भी इनकी सही जगह पहुंचाया जायेगा————–मेने पहले ही शक ज़ाहिर किया था की —————– फॉउंडेशन और नकली जेम्स का तो हाथ नहीं हे दंगाई दाना आदि के पीछे अब ये आदमी देखिये कल तक पेसो की कमी से इलाज़ ना मिलने से मरने की कगार पर था शायद बताते हे की आप सरकार ने इसे बचाया था और अबदेखिये इसका कॉन्फिडेंस कुछ तो गड़बड़ चल रही हे ———— ? ——————–गुलामगिरी ——————————- Tiwari इस किताब को बैन कराने का कागजात बनाइये। जो खर्च आयेगा किया जाएगा। सुप्रीम कोर्ट में केस दाखिल करते हैं।——————————————-Mayank Saxena is with Ravish Kumar and 8 others.
7 hrs ·
रमेश कुमार जाल्ला, कई आतंकियों से मुठभेड़ के अगुआ रहे हैं…घायल हुए हैं…बुरी तरह घायल भी हुए हैं…अस्पताल में लम्बे समय तक भर्ती रहे हैं…रमेश कुमार जाल्ला को जम्मू-कश्मीर के सबसे बड़े वीरता पदक ‘शेर ए कश्मीर’ से भी सम्मानित किया जा चुका है…
यानी कि एक लाइन में कहा जाए, तो रमेश कुमार जाल्ला, वैसे ही पुलिस अधिकारी हैं, जिनको बीजेपी की भाषा में वीर-साहसी-देशभक्त-राष्ट्रवादी कहा जाए…(हमारी भाषा में कर्तव्यनिष्ठ अधिकारी ही काफी है)…रमेश कुमार जाल्ला की ईमानदारी मशहूर है…उनकी निष्ठा पर संदेह कश्मीर में अभी तक नेशनल कांफ्रेंस या पीडीपी सरकार ने भी नहीं किया…
चलिए, अब जान लीजिए कि रमेश कुमार जाल्ला, उस विशेष जांच टीम के प्रमुख हैं, जिसने कठुआ रेप मामले में बच्ची की मंदिर में रेप और हत्या की जांच की है…उनकी ही चार्जशीट के मुताबिक मंदिर में 8 लोगों (जिसमें 4 पुलिसकर्मी शामिल हैं) ने आसिफा के साथ बेरहमी से रेप किया…उसकी हत्या की…हत्या करने के बाद सिर पत्थर पर दे मारा…और हत्या के बाद उसके शव से भी बलात्कार किया…(योगी जी का कब्र वाला बयान याद आया क्या?)
रमेश कुमार जाल्ला के लिए अब भाजपा के नेता और कार्यकर्ता सवाल उठा रहे हैं कि ये जांच करने वाला अधिकारी निष्ठावान नहीं है…(ओह…) रमेश कुमार जाल्ला और उनकी टीम को कठुआ के वकीलों ने (जो जम्मू-कश्मीर बार काउंसिल से समर्थित थे) अदालत और थाने के बाहर घेराव, तोड़फोड़, आगजनी कर के चार्जशीट दाखिल करने से रोकने की कोशिश की…
याद रहे कि ये वकील किसी वकील की गिरफ्तारी का विरोध नहीं कर रहे थे…ये वकील एक मंदिर की देखरेख करने वाले रिटायर्ड सरकारी कर्मी, उसके नाबालिग बेटे और उसके दोस्त और 4 पुलिसकर्मियों की गिरफ्तारी रोकने के लिए खड़े हुए थे…ये अन्याय के ख़िलाफ़ नारे नहीं लगा रहे थे…ये भारत माता की जय और जय श्री राम के नारे लगा रहे थे…
आप ने इससे पहले वकीलों या बार काउंसिल को कभी किसानों के लिए सड़क पर उतरते देखा? आपने कभी उनको निहत्थे लोगों पर गोली चलते या लाठी पड़ने के खिलाफ़ सड़क पर उतरते देखा? आपने कभी देखा उनको अपराधियों या भ्रष्ट नेताओं के ख़िलाफ़ सड़क पर उतरते? आपने कभी उनको अदालत में होने वाली अनियमितता के ख़िलाफ़ सड़क पर उतरते देखा…आपको अंदाज़ा भी है कि आपके वकील, कब न्याय की जगह एक राजनैतिक दल विशेष के सिपाही बन गए हैं…आपको लगता है कि कल को उसी ‘जय श्री राम’ वाले नारे वाली पार्टी का कोई नेता या कार्यकर्ता, आपके घर में घुस कर आपकी हत्या से लेकर कुछ भी (जो लिखा नहीं जा सकता..) करेगा, तो ये आपको न्याय दिलवाएंगे…और बार काउंसिल भी कुछ करेगा…आप ने किन के हाथ में देश दे दिया है…ये सोच पा रहे हैं आप???
एक और नाम ले लेता हूं…वो नाम है Deepika Singh Rajawat का…इस केस को बच्ची के परिवार की ओर से लड़ रही वकील दीपिका सिंह को वकीलों (गुंडा कहना चाहता था) के झुंड ने, बार काउंसिल की शह पर कोर्ट परिसर में धमकी दे कर, इस मामले से दूर रहने को कहा…जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट को, पुलिस को दीपिका को सुरक्षा देने को कहना पड़ा…जबकि दीपिका की सुरक्षा की ज़िम्मेदारी तो ख़ुद बार काउंसिल को उठा लेनी चाहिए…लेकिन बार काउंसिल से एक वकील को ही ख़तरा हो गया है…
अब और ध्यान से पढ़िए…मृतक बच्ची का नाम आसिफ़ा था…वो घुमंतू चरवाहे समाज बक्करवाला से है…जांच कर के चार्जशीट दाखिल करने वाले पुलिस अधिकारी का नाम रमेश कुमार जाल्ला है…जो कश्मीरी रैनावारी पंडित हैं…दीपिका सिंह राजावत उस बच्ची का केस लड़ने वाली वकील हैं…आप जब इस मामले को हिंदू बनाम मुस्लिम बनाते हैं…आप भूल जाते हैं, कि ठीक इसी वक्त कश्मीर में भी इस मामले को ठीक वैसे ही लिया जा सकता है…लेकिन कश्मीर में एक राजनैतिक पार्टी के लोगों के अलावा नागरिक, अभी भी शांति बनाए हुए हैं…जबकि कितना आसान था लोगों के लिए सड़क पर आ जाना…और आपके लिए एक और बैरियर खड़ा कर देना…
अंत में एक बात और जो मुझे सबसे ज़्यादा अहम लग रही है…8 साल की बच्ची के रेप-हत्या के आरोपियों को बचाने निकली ये भीड़, हाथ में तिरंगा थामे थी…और आप अगली बार जब कश्मीरियों को तिरंगे से प्रेम करने की नसीहत देने के लिए सोशल मीडिया पर कुछ लिख रहे हों…या तिरंगे से उनकी नफ़रत का प्रोपोगेंडा व्हॉट्सएप पर बांट रहे हों…तो इस तस्वीर, इस भीड़ और इनके हाथों में थमे तिरंगे को एक बार याद कर लीजिएगा…आप समझ पाएंगे कि झंडों से मोहब्बत की ज़रूरत किनको होती है…और झंडो से नफ़रत आखिर किसे और क्यों हो जाती है…
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सिकंदर हयात
सिकंदर हयात 2 days ago
Huma Shahnaz
1 hr ·
ये महिला आयोग के नंबर है इनको फ़ोन करिये और आसिफा और उन्नाव मामले में क्या किया ये पूछिये जवाब न मिले तो इनका आफिस घेरिये
011 – 26942369, 26944740, 26944754, 26944805———————————–” Sarvapriya Sangwan22 hrs · पहले हिंदुत्व और तिरंगे के नाम पर सिर्फ़ टीवी डिबेट में हावी होते थे..हमने जाने दिया.
फिर हिंदुत्व और तिरंगे के पीछे छिपकर फ़्लॉप योजनाओं को अपने लिए इस्तेमाल किया..हमने जाने दिया.
फिर हिंदुत्व और तिरंगे के नाम पर किसी बेगुनाह को देशद्रोही ठहरा दिया..ये भी हो गया.
फिर हिंदुत्व और तिरंगे के नाम पर दुकानें जला दी..ये भी हुआ.
फिर हिंदुत्व और तिरंगे की आड़ में मुसलमान किसानों को बीच राह पीट-पीट कर मार डाला..चलता रहा.
फिर हिंदुत्व और तिरंगे की आड़ में अपनी दुश्मनी निकालने के लिए एक मज़दूर को काट कर फूँक दिया..हम वीडियो देखते रहे.
नौबत ये आ गयी है कि इसी हिंदुत्व और तिरंगे की आड़ में एक आठ साल की मासूम बच्ची के बलात्कारी को बचाया जा रहा है..देखते रहिए. ” ——————————————————————————————————————————–आसिफा के दोषियों को फांसी की बात हो रही हे मगर पुरे कांड में साफ़ दीखता हे आरोपियों का उत्साह ये लोग अलग ही उत्साह में थे ये उत्साह पैदा किया हे खासकर सोशल मिडिया के संघ के जंगलियों ने जिनमे कुछ पेड़ हे कुछ अनपेड कुछ छुपे हुए कुछ खुले हुए कुछ सड़क पर हे कोई आई एस का साला हे इनमे तिवारी हे चिप हे कई सारे झा हे मिश्र हे अवस्थ हे चतु— हे बहुत सारे नाम हे सालो से ये लोगो को भड़काने में जुटे हे सही समय पर कानून के दायरे में ही हम इन लोगो के लिए भी—– की कोशिश करेंगे समय पर
Rajiv Nayan Bahuguna Bahuguna
18 hrs ·
स्टेंसिला सैंथल की फ्रेंड रिकवेस्ट आयी है । लन्दन में रहती है । जेंडर फीमेल , और age 23 । सी ए की पढ़ाई कर रही है । कई बार मेसेज़ भेज चुकी ,- प्लीज़ एक्सेप्ट माई रिकवेस्ट । मैने हिंदी में लिख भेजा – चूंकि मैं सिर्फ देवनागरी में लिखता हूँ , और ज़ाहिर है कि तुम अंग्रेज़ हो , तो मेरी fb फ्रेंड बन क्या करोगी । न तुम्हे मेरा लिखा समझ आएगा , न मुझे तुम्हारा ।
फिर जवाब देती है – इंग्लिश प्लीज़ , नो हिंदी ।
तो मैंने कहा – तुझे हिंदी नहीं आती , फिर भी तू देवनागरी लिपि देख इतना तो समझी कि यह मराठी अथवा नेपाली नहीं , अपितु हिंदी है । और मैं ऐसे भी महिलाओं की रिकवेस्ट एक्सेप्ट नहीं करता । अधेड़ हो चला हूँ ,। जब मेरा लिखा पढ़ ही न पाएगी , तो मेरा क्या करेगी ?
फिर लिखती है – राइट इन इंग्लिश प्लीज़ । नो हिंदी ।आई लव इंडियंस ।
मैं – इंडियंस को लव करती है , तो पहले हिंदी सीख । कोई और रस्ता देख । मुझे ऐसे भी आटे की तरह गोरी औरतों से घिन आती है । मैं खूब यूरप घूमा , पर कभी उनके साथ कुछ करने की इच्छा नहीं हुई । मुझे भारत , पाकिस्तान , बांग्ला देश इत्यादि की तांबे अथवा कत्थे जैसे रंग वाली औरतें पसन्द हैं , या हद से हद रोमानिया की ।
तो बोली – आई एम नॉट फ्लावरिष व्हाइट लाइक यूरोपियन्स ।
मैने कहा – हरामजादे तू , खतौली अथवा मुराद नगर का कोई लौंडा है । मैं पहले ही समझ गया था तुझे । क्योंकि रिश्ते में तो हम तुम्हारे बाप लगते हैं ।Rajiv Nayan Bahuguna Bahuguna1 hr · आखिर तुम्हे मोदी , प्रसून जोशी अथवा त्रिपुरा के मूर्ख मंत्री के झाम से कैसे बाहर निकालूं ? क्योंकि प्रतिपल उन्हीं के बारे में पढोगे , लिखोगे और सोचोगे , तो उन्हीं के जैसे बन जाओगे। मनुष्य घृणा अथवा प्रेम में अहर्निश जिसका चिंतन करता है , अंततः उसी की गति को प्राप्त होता है । जैसे रावण , श्री राम जी के बारे में दिन रात बुरा सोचने के कारण मरणोपरांत उन्हीं के लोक् को प्राप्त हुआ । जैसे 1947 में पाकिस्तान से मुस्लिम दंगाईयों से लुटपिट कर आये अधिसंख्य रिफ्यूजी उनकी क्रूरता के बारे में हमेशा सोचने के कारण उन्हीं जैसे क्रूर और दंगाई हो कर संघी बन गए ।
अतः तुम्हारे लिए बड़ी जतन से यह अपनी पुरानी पोस्ट ढूंढी । जितनी भी मिल सकी । कभी आउट लुक में छपी थी । पढो , और प्रसून जोशी को भूल जाओ ।
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अब छठे दलायी लामा त्शान्ग्यांग ग्यात्सो के बारे में क्या क्या तो कहूँ और क्या न कहूँ . वह कवि , क्रांतिकारी , नर्तक , प्रेमी , शराबी , लोकतांत्रिक , कामुक , दार्शनिक और गायक जाने क्या क्या थे . उनका अपराध बस यही था की वह समय से करीब chaar सौ साल पहले अवतरित हो गए . वह महान पंचम कहे जाने वाले पांचवें दलायी लामा के उत्तराधिकारी थे . पांचवें दलायी लामा सिखों के गुरु महान तेग बहादुर की तरह वैज्ञानिक दृष्टिकोण वाले थे . लेकिन उनके उत्तरवर्ती ग्यात्सो ने परम्पराओं से विद्रोह कर हद मचा दी . इस आवारा मसीहा छठे दलाई लामा की रचित दो काव्य पंक्तियों के माध्यम से इन्हें समझने का प्रयास कीजिए –
” पूरब के पहाड़ से उगता है मुस्कुराते चाँद का चेहरा
मेरी चेतनाओं में उकेर देता है वह मेरे महबूब की सूरत ”
यह बुद्ध के जीवित अवतार की काव्य पंक्तियाँ हैं , जिसके लिए सुरा , सुंदरी स्वप्न में भी वर्जित थी . ( जरी )
एक अभिशप्त देवदूत की कथा -3
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यह चित्र नवांग लोबसांग ग्यात्सो का है , जो दलाई लामा परम्परा में पांचवें थे और जिन्हें महान पंचम के नाम से श्रद्धा के साथ याद किया जाता है । इन्होने मंगोल कबीलाई सरदार अल्तान खां से राजनयिक संधि की , भव्य पोताला प्रासाद का निर्माण कराया और तिब्बती समुदाय को राजनितिक दृष्टि से भी साक्षर बनाया । इन्ही महानं पंचम के उत्तराधिकारी त्संग्यांग ग्यात्सो थे जो छठे दलाई लामा बने , और उन परम्पराओं की जम कर ऐसी तैसी की , जिनकी रक्षा का भार उन पर था । यह दलाई लामा भारतीय मूल के पहले और अंतिम ” जीवित बुद्ध ” थे । महान पंचम की मृत्यु के बाद वर्षों तक उनके महा प्रयाण की खबर गुह्य रखी गयी । 1688 में बुद्ध के अवतार की खोज में धर्माधिकारियों का दल निकला । उसे भारत के अरुणाचल प्रदेश में उर्गेलिंग क्षेत्र में भावी धर्माधिपति के अवतरित होने सम्बंधित संकेत मिले । एक किसान लामा ताशी तेनजिन का 5 वर्षीय पुत्र नवांग दोर्मु उस वक्त हम उम्र दोस्तों के साथ खेल रहा था । इसी बालक को छठे दलाई के रूप में तिब्बत का भावी भाग्य विधाता बनना था । माँ ने जब घर में आये धर्माधिकारियों के अनुरोध पर जल्दी घर आने को आवाज़ दी , तो उसने एक शिला पट्ट पर लिखा – ईश्वर ही जानता है । सचमुच उसकी और तिब्बतियों की नियति को ईश्वर ही जानता था । बालक को राजधानी ल्हासा के पास एक मठ में गुपचुप दीक्षित किया जाने लगा । वह अपने अध्यापकों को धौल जमाता , चिकुटी काटता और कान में सलाई घुसेड कर सताता था । उसका मन धार्मिक शिक्षाओं की बजाय भेड़ों के रेवड़ और युवतियों को निहारने में ज्यादा लगता था । उसने अपने अध्यापकों के नाकों दम कर दिया , पर किया भी क्या जा सकता था । इश्वर के अवतार से कौन पंगा ले । यह भी कौन जानता था कि पदारूढ़ होने पर यह जप माला फेंक कर रातों को कुंवारियों के झुण्ड में जा घुसेगा और रोके जाने पर उनके विरह में करुण गीत लिखेगा ।(जारी)
Mohammad Anas
9 hrs · 1. रायपुर रेलवे स्टेशन पर वाटर कूलर पर इमाम हुसैन का नाम लिखा देख कर, आज हमने जिस नफरत का मुज़ाहरा देखा, और जिस तरह रेलवे ने वह स्टिकर हटा दिए, ये हिंदुस्तान में हिंदुत्व रेडिकलाइजेशन के लेवल का एक इंडिकेशन है. मैं ने कई जगह देखा है रेलवे स्टेशनों पर वाटर डिस्पेंसर्स भगवा रंग से पुते हुए हैं, विश्व हिन्दू परिषद् और ऐसी संस्थाओं के नाम, उनके मेसेज, देवी-देवता और धर्मगुरुओं (जिनके फॉलोवर्स ने कूलर डोनेट किये हैं) उनके भी नाम. मगर ‘हुसैन’ का नाम देख कर इनको जो तकलीफ हुई, और जिस तरह रेलवे मिनिस्ट्री को ट्वीट किये गए, ये कोई मामूली बात नहीं है. बहुसंख्यक समाज का बहुत बड़ा हिस्सा, नफरत-परसिक्यूशन कॉम्प्लेक्स और पागलपन के दौर में पहुँच चुका है. और ये कम नहीं होना है. जब स्टिकर हटा दिए गए. जो लोग इस केम्पेन में शामिल थे, वोह इस क़दर खुश हो रहे थे जैसे कोई बोहत बड़ी जंग जीत ली हो.
2. मुद्दा ये है कि जो लोग समझते हैं कि बात लाउडस्पीकर या जुलूस पर ख़त्म हो जायेगी, वोह ये नहीं समझते कि यहां एक पूरी नस्ल ऐसी पैदा हो चुकी है जिसे आपकी हर बात से नफरत है. उसे नमाज़ पढता मुसलमान या टोपी पहना मुसलमान तो खैर गवारा ही नहीं, उसे मुसलमान की किसी भी तरह शिनाख्त और इस्लाम के किसी भी तरह के प्रेज़ेंस से तकलीफ है. आप हर बात पर बैकफुट पर रहिये, विद्ड्रॉ होते रहिये, मानते जाइये कि हाँ ये ठीक नहीं, उसकी ज़रुरत नहीं, मगर आप धीरे धीरे अपने तमाम हुक़ूक़ से अपने ही मुल्क में महरूम किये जा रहे हैं. आप फ़िरक़ेबाज़ी में उलझे रहिये–कि फलां की ये बात ठीक नहीं, उसका ये काम मेरे अक़ीदे के हिसाब से नहीं ‘छोड़ो, ‘रहने दो’, ‘क्या ज़रुरत हैँ, ‘जाने दो’. मगर उनको आपकी हर शिनाख्त से तकलीफ है. उन्हें मुसलमान नाम और उसके वुजूद से ही तकलीफ है.
3. दर असल इनको हर दाढ़ी-टोपी वाला, हर मुसलमान नाम, इस्लाम के हर प्रतीक–नमाज़, अज़ान ही नहीं, इनको तो हरे झंडे, तारीखी शख्सियतों, साइनबोर्डों, हमारी दुकानों, मुस्लिम नाम वाली सड़कों, सबसे नफरत है. हर मुसलमान मोहल्ला देख कर इनकी तकलीफ बढ़ती ही चली जाती है. रोज़ एक नासूर इनके अंदर पनपता जाता है.
4. और हम, हर हाल में हमें अपनी मुकम्मल शिनाख्त के साथ ही ज़िंदा रहना है. अपनी मज़हबी शिनाख्त के साथ ज़िंदा हर मुसलमान मुझे अच्छा लगता है. ये मानते हुए कि ये बड़ा सख्त दौर है. ये हो सकता है आपको किसी फ़िरक़े (तब्लीगी जमात, अहले सुन्नत, सूफी वगैरा) से नज़रयाती इख्तिलाफ हो मगर जब वह अपनी मुकम्मल मज़हबी शिनाख्त के साथ साथ हिंदुस्तान के कोने कोने में आते जाते, नमाज़ पढ़ते नज़र आते हैं या अपने जलसे करते हैं, जुलूस निकालने वाले, अपने अक़ाएद के हिसाब से और अपने डेमोक्रेटिक राइट्स का इस्तेमाल करते हुए दिखाई देते हैं, तब इनकी नफरत और तकलीफ और बढ़ जाती है.
5. इन वाक़्यात से काफी सबक़ मिलते हैं.हमें किसी से नफरत की ज़रुरत नहीं हैं, मगर आँखें खुलती हैं.अक्सर सॉफिस्टिकेटेड मुसलमान विदड्रा होने की नसीहतें देता नज़र आता है मगर एक आम मुसलमान जब एक ऐसे इलाक़े में एक छोटी सी दूकान खोलता है जहां मुस्लिम आबादी न के बराबर हो और उसके साथ, एक हरा झंडा लगा देता है, अपनी मुकम्मल शिनाख्त के साथ ज़िंदगी का सबूत देता है, और आस पास से गुजरने वाले ‘सॉफिस्टिकेटेड’ मुसलमानों को तक़वियत का एहसास दिलाता है कि हम भी यहां मौजूद हैं, तब हम सबकी ज़िम्मेदारी और भी बढ़ती है. हम किसी भी हाल अपनी शिनाख्त से हटने वाले नहीं. तुम तड़पते रहो, नफरत की आग में झुलसते रहो. नफरत करने वालों को नफरत की राह मुबारक. तुमने अपनी राह चुन ली, ये नासूर खुद चुने हैं. तुम्हारे नासूर बढ़ते जाएंगे.
हम यही हैं अपनी मुकम्मल शिनाख्त के साथ, यहीं रहेंगे.
लेख साभार- Shams Ur Rehman Alavi ( वरिष्ठ पत्रकार,भोपाल )
Girish Malviya
7 hrs ·
बीजेपी की आई टी सेल कल कर्नाटक में बीजेपी सरकार की हार को दो तरह से प्रचारित करेगी,
पहले तो वह यह कहेगी कि मोदीजी ने ही यह इस्तीफा दिलवाया है मोदी का इस सरकार को समर्थन नही था, ओर राज्यपाल से मोदीजी नाराज हैं, इस हार को हर तरह से ग्लोरीफाई किया जाएगा, इस एजेंडे पर न्यूज़ चैनलों को काम पर लगा भी दिया गया है…… यानी गिर पड़े तो हर हर गंगे
दूसरी तरफ इस नयी सरकार को हिन्दू विरोधी सरकार कहकर प्रचारित किया जाएगा यह बताया जाएगा कि हिन्दू विरोधी ताकते एक साथ यूनाइट हो रही है और इस कदम से हिन्दू हृदय सम्राट मोदी को खतरा है, यदि 2019 में सेक्युलर शक्तियों को हराना है तो हिंदुओ को वापस संगठित होने की जरूरत है, यह पेट्रोल डीजल महंगा होना, व्यापार धंधों की ऐसी तैसी हो जाना, बेरोजगारी बढ़ जाना दीगर बात है असली बात है 2019 में मोदी की वापसी क्योकि व्यापक हिन्दू हितो को वही पूरा कर सकते हैं वही मुल्लो को टाइट रख सकते है आदि आदि
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कुछ ही दिनों में इस तरह के मैसेज की बाढ़ आपको व्हाट्सएप ओर फेसबुक पर देखने को मिलेगी, यह बहुत ऊंची चीज है बहुत फितरती दिमाग है इनका—————–
Zoya Mansoori
18 May at 15:11 ·
रविश कुमार कह रहे है कांग्रेस का अपने 6 विधायकों से संपर्क टूट गया है…
साफ साफ बोलने में शर्माते काहे है पांडेय जी…?बिक ही गए होंगे,कोनो प्लेन तो चला न रहे थे जो खराब मौसम में सम्पर्क टूट गया होगा..
सन्घियो कि एक और झोया https://hindi.thequint.com/khullam-khulla/socialbaazi/fake-social-media-profiles-muslim-identities-bolster-bjp-case-study-gini-khan
संजीव सिन्हा ‘प्रशान्त’
31 May at 08:56 · Lucknow ·
जरा हटके, जरा बचके, ये है लखनऊ मेरी जान?
एक नवाब साहब थे, खानदानी रईस, कोठे पे जाना खानदानी शौक। अब पैसे वालों के तो हजार दोस्त होते हैं, नवाब साहब के भी थे। नवाब साहब मित्र मंडली मे बैठकर अपनी अय्याशियों के चर्चे सुनाया करते थे कि बाजार की सबसे खूबसूरत और जवान तवायफ के कोठे पर उनका कितना जलवा है, वो तो बस उनके नाम की ही माला जपती है। एक दिन एक दोस्त ने कहा, नवाब साहब कभी दोस्तों को जन्नत की सैर करवा दीजिये। नवाब साहब ने कहा, क्यों नहीं, तुम उसके कोठे पर जाना और बताना कि नवाब साहब ने भेजा है, फिर देखना, तुम्हारी कितनी खातिर होगी।
अगले दिन नवाब साहब का दोस्त कोठे पर पहुंचा। दरवाजा खटखटाया, तवायफ निकली और प्रश्नसूचक नजरों से देखा (अंदाज-ए-तवायफ) दोस्त ने कहा कि नवाब साहब ने भेजा है, मैं उनका दोस्त हू्ँ, आपकी नजरे इनायत चाहता हू्ँ। तवायफ ने 3 नवाबों के नाम बताकर पूछा, इनमे से कौन से नवाब साहब? दोस्त ने कहा, नहीं ये तीनों मेरे दोस्त नहीं हैं। फिर तवायफ ने 13 नवाबों के नाम बताये, दोस्त ने कहा नहीं इनमें भी उसके दोस्त नवाब साहब का नाम नहीं है।
तवायफ ने बड़ी अदा से कहा, जनाब जब आपके दोस्त न तो 3 में हैं और न 13 में तो फिर आप समझ लीजिए कि वो किस खेत की मूली हैं। चलिए, दफा हो जाईये।
नोट:- इसका वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य, गुलामों, चाटुकारों, भक्तों आदि से कोई संबंध नहीं है।
भाजपा कार्यकर्त्ता इसलिए भी नाराज़ रहते हे और इसलिए उनकी सरकारों में उनकी सुनवाई नहीं होती हे बाकी की हो जाती हे क्यों ——- ? क्योकि भारतीय समाज के सर्वाधिक भ्र्ष्ट दुष्ट और अत्याचारी लोग आमतौर पर भजपा संघ के समर्थक हे सो एक तो इनकी मांगे अलग और ऊँची होती होंगी दूसरे ये अपने निजाम से और इनका निजाम इनसे खींचने के चक्कर में रहता होगा ———-
Sanjay Tiwari
2 June at 18:30 ·
भाजपा के कार्यकर्ता नाराज क्यों रहते हैं?
कैराना की जमीनी रिपोर्ट वैसी ही है जैसी उम्मीद थी। हार के अनेक कारणों में एक कारण स्थानीय नेताओं और कार्यकर्ताओं की नाराजगी भी है। बीजेपी के कार्यकर्ता वोट डालने या वोट दिलवाने घरों से कम निकले। कारण? जब सरकार में कोई सुनवाई ही नहीं तो उसके लिए काम क्यों करें?
ये बीजेपी की जेनेटिकल प्राब्लम है। हो सकता है बाकी दलों में भले ही राजनीति कार्यकर्ताओं और समर्थकों के सम्मान से चलती हो लेकिन बीजेपी का पोलिटिकल मैनेजमेन्ट कार्यकर्ताओं की उपेक्षा से चलता है। बीजेपी के वर्कर उत्साह से काम तो करते हैं लेकिन सरकार बन जाने के बाद अगर किसी मंत्री के दरवाजे पहुंच जाएं तो कुत्ते की तरह दुत्कारे जाते हैं।
इसके बहुत से कारण हैं। इसीलिए ये बीजेपी का जेनेटिकल प्राब्लम बन गया है। इनमें एक कारण तो संघ का बीजेपी में दखल है जिसकी वजह से बीजेपी में नेता निर्माण नहीं होता। बीजेपी में संघ का संपूर्ण दखल है और बीजेपी का कोई नेता संघ को दरकिनार करके राजनीति नहीं कर सकता। इस दखल का केन्द्र होते हैं जिला, विभाग, प्रांत और केन्द्र में बैठे प्रचारक। बीजेपी नेताओं का भविष्य तय करने में उनकी बड़ी भूमिका होती है भले जीतने के बाद नेता उनकी सुने या न सुने।
अब जो बीजेपी में टिकट मांगने जाता है उसको जनता को कम और संघ/भाजपा नेताओं को ज्यादा खुश करना पड़ता है। वह जानता है कि मैं जनता में कितना भी लोकप्रिय क्यों न हो जाऊं टिकट तो संघ के किसी प्रचारक की कृपा और पार्लियामेन्ट्री बोर्ड की कृपा से ही मिलेगा।
अब उसे टिकट मिला। वह जीत गया तो उसकी जवाबदेही किसके प्रति रहेगी? वह कार्यकर्ता को भला क्योंकर खुश करके रखेगा जबकि वह जानता है कि ये कार्यकर्ता उसके नहीं बल्कि पार्टी सिस्टम के हैं। भाजपा का पार्टी सिस्टम कांग्रेस या दूसरे दलों से थोड़ा अलग है। भाजपा का आधार नेता नहीं, संगठन है जबकि दूसरे दलों का आधार संगठन नहीं बल्कि नेता होता है। इसलिए नेता अपना एक समर्थक वर्ग बनाये रखने के लिए कार्यकर्ताओं का ध्यान रखता है, जबकि बीजेपी के किसी नेता की ऐसी कोई जवाबदेही नहीं होती।—————–
Awesh Tiwari
10 hrs ·
बीजेपी इस देश के समृद्ध, खाये-पिये-मोटाये वर्ग, अभिजनों का प्रतिनिधित्व करती है। हांलाकि मैंने अपनी आंखों से देखा है कि दो दशक पूर्व तक संघ और विश्व हिंदू परिषद तेजी के साथ ग्रामीणों, दलितों, आदिवासियों को खुद से जोड़ रहे थे,लेकिन उसमें अटल जी के सत्ता में आने के बाद ब्रेक लग गया। महिलाओं को सीधे भागीदारी देने उन्हें जोड़ने की कोशिश तो कभी नही हुंई। अब जो महिलाएं बीजेपी की समर्थक नजर आती है और झंडा डंडा लेकर चलती हैं उनमें सेठों, दुकानदारों की बीबियाँ, तीन की जगह 13 वसूलने वाले पंडितों की पंडिताइन, पैसा कमाते कमाते थक गए सरकारी नौकरों की बीबियाँ, रात 9 बजे से 11.30 बजे तक धारावाहिक देखने वाली महिलाएं शामिल है जिनमे वो महिलाएं भी शामिल है जो नियमित तौर पर प्रवचन सुनने जाती हैं। जबकि ज्यादा से ज्यादा ग्रामीण, आदिवासी महिलाओं को जोड़ने की जरूरत थी। हांलाकि यह भी सच है कि समाजवादियों के अलावा ग्रास रुट पर महिलाओं को जोड़ने का काम किसी पार्टी ने नही किया है।
Awesh Tiwari
11 hrs ·
भाजपा समर्थक ज्यादातर महिलायें आवश्यकता से अधिक मोटी होती हैं, पुरुष दुबले
नरुका जितेन्द्र
3 hrs ·
वैसे तो सोशल मीडिया पर जानबूझकर तथ्यों को तोड़ मरोड़ भ्रामक प्रचार मुख्यतया नफरत फैलाने विरोधी विचारों की छवि धूमिल करने के उद्देश्य से होता है। लेकिन यहां वाहवाही की चाह मे जाने अनजाने भ्रामक बातें हर कोई फैलाता है और फिर कॉपिपेस्ट की बिना सोचे समझे ऐसी बाढ़ आती है कि कोई उसे सही करना चाहे तो हंसी का पात्र बन जाता है।
यानी सोशल मीडिया जहाँ जानकारियों का भंडार है तो उससे कई गुना कचरा पात्र है, न चाहते हुए हम भ्रम झूठ का शिकार होते रहते हैं। जब कोई संजीदा व्यक्ति बोले तो फेसबुकिया सेलिबिट्टी जाने अनजाने इस भ्रम को आगे बढ़ा दे तो फिर बुद्धिमान समझदार लोग भी तथ्यों की पड़ताल करने की जरूरत नही समझते।
3 साल से ईद पर आसमान की और इशारा करते कृष्ण की पेंटिंग ये कहते बढाई जाती है देखो साझा संस्कृति कृष्ण ईद का चांद मुस्लिमो को दिखा रहे साथ मना रहे।
मैं पहले भी लिख चुका हूँ इस तस्वीर का ईद और मुस्लिमो से कोई सम्बन्ध नही प्रचलित कृष्णलीला से ही सम्बन्ध है। सम्भवयता ये बीकानेरी राजस्थानी शैली है जिसपर मुगल शैली की गहरी छाप है। एक्सपर्ट की भी ये ही राय है पर कुछ इसे पहाड़ी शैली बताते हैं।(लिंक कमेंट में)
दरअसल जो मुगली पगड़ी में वृद्ध दिख रहे हैं वो बाबा नँद हैं नीचे दिए चित्रों से स्प्ष्ट हो जाएगा कि वो ही चरित्र अन्य पेंटिंग मे भी हैं।
खैर उद्देश्य किसी को गलत साबित करना नही सोशल मीडिया पर विशाल भ्रमजाल पर मैं अक्सर लिखता रहता हूँ।
गलत तथ्य से साझा संस्कृति का सन्देश देने की जरूरत नही हमारी संस्कृति वैसे ही इतनी घुली मिली है कि कहीं कहीं तो ये जानना मुश्किल की अमुक पहनावा,रिवाज,खानपान, रश्म मुगलों से भारत में आई या भारतीय मुगलों ने यहां से सीखी…न.रुका
Ashok Kumar Pandey
17 June at 23:11 ·
फेसबुक “सेलिब्रिटी” सुनकर मुझे अपने मोहल्ले की रामलीला में राम बनने वाला लड़का याद आता है।
अगले ही दिन बोतल लेकर कैरोसीन की लाइन में लगे देख हम कहते थे, रमवा ह न ई?
Ashok Kumar Pandey
18 June at 08:44 ·
कल एक वरिष्ठ साथी के यहाँ बैठा था। उन्होंने कहा इस साल ईद हिंदुओं ने ज़्यादा असर्शन के साथ मनाई।
और सही कहा उन्होंने। इसकी माकूल वजह थी और स्पष्ट संदेश। त्यौहार हों या फिर पिंगपांग इनके अर्थ और प्रतीक हमेशा एक से नहीं रहते।
अति सेकुलरों को समर्पित।
Ashok Kumar Pandey
18 June at 07:29 ·
ईद की मुबारकबाद के लिए प्रो मुखिया द्वारा पोस्ट किया गया 18वीं सदी का वह मिनिएचर मुझ सहित अनेक मित्रों ने शेयर किया जिसमें कृष्ण और बलराम चाँद की तरफ़ इंगित कर रहे हैं।
ज़ाहिर है कुछ लोग आलोचना करते। धार्मिक कट्टरपन के शिकार ओ बीमार लोगों का तो ऐसा करना सहज था लेकिन उनका और कुछ कथित पढ़े लिखे लोगों का यह तर्क पढ़कर वास्तव में चकित रह गया कि “कृष्ण के समय क्या मुसलमान भारत में आ गए थे?”
कला और साहित्य को लेकर इस स्तर की नासमझी हैरान करती है। दिन रात फोटोशॉप और असली फोटोग्राफ में फर्क और मिलावट करते लोग क्या पेंटिंग और फोटोग्राफ में अंतर भूल गए हैं? क्या कला की स्वायत्तता, कल्पनाशीलता और अर्थवत्ता लोग भूल गए हैं? क्या यह समझ भी बाक़ी न रही कि उस पेंटिंग में कृष्ण, बलराम के अलावा जो सूफी-मुल्ला-मर्द-औरत दिख रहे हैं चाँद को निहारते वह एक प्रतीक है समाज के सभी वर्गों द्वारा ईद के स्वागत और इस रूप में धार्मिक सहजीविता का? क्या कृष्ण के पद गाने वाले रसखान लोगों की स्मृति से बाहर हो गए या फिर मांग के खाइबो मसीत में राहबों वाले तुलसी?
कोई कलाकार, कोई लेखक या कोई कवि जब अपनी कृति रच रहा होता है तो कल्पना और यूटोपिया की उसकी अपनी एक दुनिया भी रची जाती है समकालीन यथार्थ के साथ। दुनिया के सारे आविष्कार पहले कलाकार के दिलोदिमाग में होते हैं। राइट ब्रदर्स से पहले उड़ा चुका होता है वह जहाज। ग्राहम बेल से पहले हज़ारो मील दूर बैठी प्रेमिका से बतिया चुका होता है। उसमें सुविधानुसार इतिहास ढूंढना उतनी ही बड़ी मूर्खता है जितना असुविधा होने पर उस पर सवाल खड़े कर देना।
अब समझ आता है कि मशीनी दुनिया और पैसे के पीछे दौड़ती इस नई अर्थव्यवस्था ने मनुष्य से उसकी कला समझ धीरे धीरे छीनना शुरू कर दिया है।
Ashok Kumar Pandey
16 June at 08:16 ·
अठारहवीं सदी का राजस्थानी मिनिएचर है यह जिसमें कृष्ण और उनके अग्रज बलराम चाँद देख रहे हैं जनता के साथ।
यह वह सहजीविता थी जो विकसित की थी हमने। एक घुलीमिली संस्कृति जिसमें रसखान कृष्णभक्ति के पद लिखते हैं, एक सूफ़ी जायसी पद्मावत में हिन्दू परम्पराओं और मिथकों का सजीव वर्णन करते हैं और कबीर पैदा होते हैं।
कल प्रो Harbans Mukhia ने पोस्ट किया था इसे। ईद और होली जिस तरह से हिंदुस्तान में मनाए जाते रहे हैं, मुझे हमेशा से ये मेलमिलाप और साझेपन के त्यौहार लगते हैं। इसी साझेपन और मुहब्बत की तलाश में है सकारात्मकता ईद मुबारक कहने की।
Ashok Kumar Pandey
15 June at 14:38 ·
कश्मीर में 2002 में कश्मीर के बड़े नेता और भारत से बातचीत के पक्षधर अब्दुल गनी लोन की हत्या कर दी गई। ऐसे ही अज्ञात हमलावरों द्वारा। आरोप स्टेट से लेकर पाकिस्तान तक पर लगे। इसके पहले 1990 में मीरवाइज़ मौलवी फ़ारूक़ की हत्या भी ऐसे ही हुई थी।
2 जनवरी 2011 को विभाजित हुर्रियत के नरम धड़े के प्रमुख प्रवक्ता अब्दुल गनी बट्ट ने कश्मीर बुद्धिजीवियों की भूमिका पर आयोजित एक कार्यक्रम में कहा – मीरवाइज़, लोन और जे के एल एफ के विचारक प्रोफेसर अब्दुल गनी वानी की हत्या भारतीय सेना ने नहीं भीतर के लोगों ने की थी। हमने अपने बुद्धिजीवियों को मार डाला। जहाँ भी हमें कोई बुद्धिजीवी मिला, हमने उसे मार डाला। (देखिये #कश्मीरनामा पेज़ 420 और ‘कश्मीर एन्ड शेर ए कश्मीर : अ रिवोल्यूशन डिरेल्ड, पी एल डी परिमू, पेज़ 244)
शुजात सिर्फ़ सेना के आलोचक नहीं थे। उन्होंने पाकिस्तान में पत्रकारों के प्रतिनिधिमंडल के सदस्य के रूप में सीधे नवाज़ शरीफ़ से पाकिस्तान द्वारा कश्मीरी लड़कों को आतंकवाद का प्रशिक्षण देने पर सवाल किया था। वह ट्रैक टू शांति प्रयासों में भागीदार थे। एक एन जी ओ चलाते थे जो घाटी में रह रहे कश्मीरी पंडितों की भलाई के लिए काम करता था। याद दिला दूँ कि उन पर पहले भी हमले हुए थे।
सरकार के विरोध में insane व्यवहार न कीजिये। कश्मीर का कोई मामला इतना सीधा नहीं। ईद के पहले औरंगज़ेब नामक एक सैनिक का भी अपहरण करके उसकी हत्या की गई है।
मैं यहाँ तत्कालीन अमेरिकी सेक्रेटरी ऑफ स्टेट कॉलिन पॉवेल की वह बात दुहराउंगा जो उन्होंने लोन साहब की हत्या पर कही थी – “हालाँकि उनकी हत्या का ज़िम्मा किसी ने नहीं लिया लेकिन इतना तो तय है कि उनके हत्यारे उनमें से ही हैं जो नहीं चाहते कि कश्मीर समस्या का शांतिपूर्ण समाधान हो।”
जनहित में सुचना ” गोविन्द फिर से अदालत आ रहा हे ” मतलब जिन जिन लोगो ने भोकाल चतुर्वेदी को अठारह लाख दिए थे वो फिर से लूटमार घटतोली मिलावट लूट कर्मचारियों का शोषण करप्शन टैक्सचोरी उठाईगिरी तेज़ कर दे पिखलवा में फिर से कुछ हुआ भोकाल आ ही रहा होगा अठारह लाख तैयार रखे धर्म और भोकाल के लिए
Girraj Ved
18 June at 22:13 ·
आज तो हद हि हो गयी ! कल रात को एंजिल् नेहा नाम कि एक देवी ने हमको टेगिया कर केवल इतना लिखा hii…
रात को नींद आ रही थी, पागल है सोचकर इग्नोर कर दिया ! सुबह देखा तो 200 से ऊपर लाइक और 350 से ज्यादा कमेन्ट और तो और 50 से ज्यादा शेयर !
देखते हि सबसे पहले तो teg हटाया फिर एंजिल को ब्लॉक किया, तब जाकर सुकून मिला !
बड़ी अजीब दास्तां है इस फेसबुक की, साला अगर कोई लड़का सोच साच के पूरी रिसर्च कर के फेसबुक पर खंडकाव्य भी लिख दे या अपनी सारी जिंदगी की एयरोनॉटिक्स की रिसर्च भी यहाँ पोस्ट कर दे तो 10- 20 से ज्यादा लाईक नहीं आते ! और दूसरी तरफ कोई लड़की कहीं से किसी सड़े हुए गाने का दो लाईन भी लिख दे,
जैसे की “तुमसे मिलने को दिल करता है” उस पर लाइक्स और कॉमेंट्स की बाढ़ आ जाएगी
कुछ कन्या प्रेमी तो ये भी लिख देंगे awesome lines bahut achha likhti hain aap, कोई भी ऐसा नहीँ होगा जो कहे की ये गाने की लाईन है, साले सब उसको मौलिक रचना बताने पर अड़ जायेंगे !
और लड़की भी मजा लुटते हुए लिखेगी aww thnks rahul
यार कोई हमारे घुम्मकड़ फ़कीर से कन्फर्म करके बताओ की इस तरह का ग्रैंड लेवल सूतियापा हर देश में होता है या सिर्फ हमारे जम्बूद्वीप वासियों में हि ये विलक्षण प्रतिभा है !
वैसे अब समय आ गया है की आजादी कि चौथी लड़ाई लड़नी पड़ेगी
“फेसबुक पर लिंगभेद कि आजादी”
यलगार हो ✊✊✊✊
Menka जी को समर्पित
Girraj Ved
21 June at 21:40 ·
आइसिस के किसी आतंकी ने जब पहली गोली चलायी होगी तब उसके फिरके वाले बहुत खुश हुऐ होंगे की चलो एक काफिर कम हुआ !
उसी वक़्त अमन चाहने वाले कुछ लोग भी इस हत्या के खिलाफ खड़े हुऐ होंगे और कुछ लोग हत्यारे के समर्थन में भी खड़े हुऐ होंगे ! धार्मिक सरकार ने भी हत्यारे के कुकृत्य को सही ठहराया होगा !
और ऐसा सिर्फ सीरिया नहीँ, आतंक का दंश झेल रहे हर देश में हुआ होगा और यहीं से तालिबानी सोच का अंकुर फूटा जो कुछ समय बाद विशाल पेड़ बन गया !
और जब लम्बे समय तक चले गृहयुद्ध के बाद इस आतंक का खात्मा हुआ तब तक पूरा देश कब्रिस्तान बन चुका था !
इन आतंकियों को धार्मिक द्वेष के कारण पाला गया लेकिन इनको पालने वाले लोग भूल गये कि ये आदमखोर जानवर है जिनके मुँह इंसानी खून लग चुका, जब इनका शिकार खत्म हो जायेगा तो ये अपने पालने वालों को भी नहीँ छोडेंगे !
तालिबान और आइसिस ने किसका खून बहाया ?
याद रखिए माहौल बदलते देर नहीँ लगती !
उन्होने भी लोकतंत्र को मारकर आतंक कि स्थापना कि थी !
कुछ ऐसा हि अब इस देश में हो रहा है !
इस्लाम के नाम पर, आतंक के सहारे, जो ख़ौफ़ तालिबान और आइसिस ने डाला वही डर, संघ द्वारा भारत में भी हिंदुत्व के नाम पर पैदा किया जा रहा है !
इस आतंक को खाद पानी देने वाले भी जल्दी हि इन भेड़ियों का शिकार होंगे, ये तो तय है !
ये देश अब तालिबान को बहुत पीछे छोड़कर आइसिस के आतंक कि राह पर चल पड़ा है, जहाँ ये सोचते है कि देश कि बहुसंख्यक आबादी को इनके हिसाब से जीना पड़ेगा !
क्या दलित मुस्लिम आदिवासियों के साथ आये दिन होने वाली इन घटनाओं का उदेद्श्य साम्प्रदायिक दंगे भड़काने का है ?
अगर आप ऐसा सोचते है तो आप बिल्कुल गलत है !
हाल ही मे जिस तरह लगातार ऐसी घटनाएँ बढ़ रही है उनका मुख्य उद्देश्य साम्प्रदायिक ना होकर समाज के कुछ तबकों को लोकतंत्र से बाहर करने का है !
उनको यह बताया जा रहा है कि उन्हें सबके बराबर अधिकार नहीं है ! उनके मन में भय पैदा किया जा रहा है कि अगर हमारी शर्त पर रहने को तैयार हो तो रहो, अन्यथा इस तरह की परेशानियां उठानी होंगी !
हमारी शर्त पर नहीं रहना है तो आपकी जान खतरे में है यह दरअसल, लोकतंत्र पर हमला है !
पिछले कुछ वर्षों मे जिस तरह शोषित तबकों मे अपने अधिकारों को लेकर जागरुकता आयी है वो सत्ता से अपने अधिकार माँगने लगे है !
उन्हें अब अहसास करवाया जा रहा है की, तुम केवल परम्परागत गुलाम हो, इस हिंदू राष्ट्र मे रहना है तो, हमारे रहमो करम पर और अपनी आवाज बंद करके !
यहां सिर्फ मुसलमानों की बात नहीं है, ईसाई, जैन, बौद्ध, दलित, आदिवासी, आदि सभी अल्पसंख्यकों और सेक्युलरिज़म और अमन पसंद करने वालों पर खतरा है, और बढ़ता हि जा रहा है !
आज नहीं तो कल सबकी बारी आएगी !
क्योंकि उनके पास सत्ता है, साधन है, लोग हैं और पैसा है और सबसे बढ़कर उन्हें राजसत्ता का सहयोग और साधन मुहैया है !
इन सबके साथ मिलकर वे मुसलमानों , दलितों, आदिवासियों, अल्पसंख्यकों को अलग-थलग कर रहे हैं !
अब शोषितों के पास दो रास्ते हैं कि या तो वे चुपचाप हाशिये पर रहते रहें या फिर वे गैर-संवैधानिक रास्ते अख्तियार करें !
मानता हूँ की यह दोनों बातें देशहित में नहीं है !
लेकिन बात सिर्फ मुसलमान, दलित, आदिवासी हित और सेक्यूलरिज्म को बचाने की हि नहीं, इस देश के लोकतांत्रिक ढांचे को बचाने की भी है ! 45-50 करोड़ आबादी को अलग-थलग रहने को विवश कर दें या फिर वह निराश होकर गैर-संवैधानिक रास्ता अपना ले, लोकतंत्र से उसका विश्वास खत्म हो जाए जो कि लगभग हो चुका, तो क्या स्थिति होगी ?
लेकिन ये सब आज नहीँ तो कल होना ही है कोई बहुत देर तक शोषित नहीँ रह सकता, विरोध कि चिंगारी उठती है, ये चिंगारी जिस दिन उठेगी देश गृहयुद्ध कि लपटों में घिर जायेगा ! विरोध के स्वर उठने ही है तो फिर क्यू इंतजार करे कुछ और लाशों के उठने का !
अब इन घटनाओं के प्रति संवेदना दिखाने का नहीँ, इन घटनाओं के विरोध मे खड़े होने का वक़्त है !
#भगवा_आतंक #गौ_आतंकी
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Girraj Ved
10 hrs ·
अब समझ आया मगरमच्छमर्दनी को जान से मारने की धमकी वाला लेटर क्यों भेजा गया ?
14 जून को मोदीजी की छत्तीसगढ़ के भिलाई मे रेली करनी थी लेकिन जीतोड़ कोशिश के बावजूद भाजपा कार्यकर्ता वहाँ भीड़ जुटाने मे सफल नहीँ हो सके ! लिहाजा 13 जून को मोदीजी को रेली रद्द करनी पड़ी !
23 जून को एमपी के इंदौर मे मोदीजी की रेली हुई
जिसमें
अकेले इंदौर निगम ने 60 लाख के विज्ञापन छाप डाले !
रेली की तैयारियों मे हज़ारों लीटर डीजल जला !
स्कूल/कॉलेज बंद रहे !
परीक्षायें रद्द हुई !
और भीड़..?
उम्मीद से भी एक चौथाई !
कुछ दिन पहले बहराइच मे भी मोदीको कम भीड़ की वजह से रेली रद्द करनी पड़ी थी !
कैराना चुनाव से दो दिन पहले दिल्ली कानपुर रोड पर रोड शो मे आम आदमी तो दूर भाजपा कार्यकर्ता भी रोड शो मे नहीँ पहुँचे !
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अब कुछ महिनों बाद राजस्थान, एमपी और छत्तीसगढ़ मे विधानसभा चुनाव है जहाँ मोदीजी को पहले स्टार प्रचारक के रुप मे पेश किया जाना था ! अकेले एमपी मे मोदीजी की 50 रेली होनी थी !
लेकिन रेली मे पहुँचने के लिए मुफ्त का डीजल, पेट्रोल और पैसे देने के बावजूद लोग रेली मे नहीँ पहुँच रहे !
राजस्थान और एमपी मे हिंदू मुस्लिम कार्ड चल नहीँ पा रहा ! और यहाँ चुनाव मे किसान आंदोलन, बेरोज़गारी, महँगाई, महिला सुरक्षा, दलित आदिवासी अत्याचार मुख्य मुद्दे बनने है ! ऐसे मे मोदी और उनकी गैंग को पता था की इन दोनो राज्यों मे मोदीजी की रेली मे उतने लोग भी नहीँ आयेंगे जितने Girraj Ved की बारात मे पहुँच गये थे !
और जो आयेंगे वो भी सिर्फ काले झंडे दिखाने और
मोदी मुर्दाबाद
मोदी मोदी चोर है
इस टाईप के नारे लगाने के लिए आयेंगे !
ऐसे मे मोदीजी की हत्या की साजिश वाले लैटर का भ्रम फैलाया गया ! और अब जबकि “ये क्लियर हो गया की लेटर फेंक था फिर भी गृह मंत्रालय ने आज मोदीजी की जान का हवाला देकर उनके रेलियां करने पर रोक लगाने का आदेश जारी कर दिया !”
मने बड़ी चालाकी से
फटसी फटत फटन्ती
फटामी फटाव फटाम
को रफू करने की कोशिश की गयी फेंक लेटर के सहारे !
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कब तक मुँह छुपाओगे राजा
कभी तो चौराहे पर आओगे राजा
वहाँ पेट्रोल लेकर जनता तैयार बैठी है
बजाने को तुम्हारा बाजा !
Girraj Ved
Yesterday at 00:23 ·
याद है ना खलीफा तुर्की में मरा था और खिलाफत आंदोलन के नाम पर हिंदुस्तान में अपने ही देशवासियों को मारा था !
एर्डोगन के समर्थन मे टखनो तक के पायजामें को घुटनों तक खींचकर अल हबीबी डाँस करने वालो, लगता है आज भी तुम्हारे अंदर वही तुर्क जिंदा है !
साला अमेरिकी बम सीरिया मे गिरता है और तुम यहाँ ज्ञापन सौंपते हो अपने गांव के सरपंच को !
सुनो ट्रम्प की जीत के लिए हवन करने वाले संघियों और अब ऐर्दोगन की जीत पर जश्न मनाने वाले मुसंघियों… तुम दोनो एक ही नस्ल के भेड़िये हो ! जिन्हें शांति और इंसानियत से नफरत है !
Girraj Ved
25 June at 09:31 ·
राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के भक़्त अमरनाथ यात्रा अपनी जान दाँव पर लगाकर करे ! सरकार आपकी हत्या करवाकर वोट बटोरने के लिए तैयार बैठी है !
एक साल पहले गुजरात चुनावों से पहले हुई अमरनाथ यात्रा के दौरान अमरनाथ यात्रियों की सुनियोजित हत्या को भूले तो नहीँ होंगे ?
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जब पूरे मार्ग पर 40 हजार सुरक्षा कर्मी तैनात थे ! रात में यात्रा करने के आदेश भी नहीं थे ! पूरे मार्ग और आसपास के एरिया की ड्रोन मॉनीटरिंग की जा रही थी !
ऐसे मे भी एक बस, ऐसे समय मे कई चेकपोस्ट आसानी से पार करते हुए निकल गई, जब बसों के आवागमन का समय नही था !
बस गुजरात की थी और मरने वाले सभी गुजराती थे !
कोई भी यात्री श्राइन बोर्ड से रजिस्टर्ड भी नहीं थे
(ध्यान दीजिए बिना श्राइन बोर्ड में रजिस्ट्रेशन करवाये मोहन भागवत तक पैदल अमरनाथ यात्रा पर नहीँ जा सके थे ! ऐसे में एक बस इतने लोगों को लेकर कई चेक पोस्ट पार कर जाती है )
फिर केवल 2 आतंकवादी बड़ी आसानी से हमला कर देते है और 6 लोगो को मारकर 40 हजार सुरक्षाकर्मियों को चकमा देकर उतनी हि आसानी से गायब हो गये !
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इन हत्याओं से पहले और बाद के हालात पर नजर डालिए –
सबसे पहले बीजेपी की नुपुर शर्मा का गुजरात दंगो की फोटो डालना !
अगले दिन सुबह लश्कर के आतंकी संदीप शर्मा का पकड़ा जाना !
गुजरात से बिना रजिस्टर्ड बस का अमरनाथ तक पहुँच जाना !
बस मे सभी गुजराती लोगों का होना !
इज़ाज़त न होने के बाद भी बस का हाईवे से जाना !
बस का जत्थे से अलग चले जाना !
40,000 सुरक्षा कर्मी लगे होने के बाद भी किसी की भी आयडी का चेक न होना !
और फिर हमला होने के बाद VHP द्वारा गुजरात बंद करने का ऐलान करना !
जगह जगह अमरनाथ यात्रा पर हमले को मुद्दा बनाकर दंगे भड़काने की कोशिश करना !
वो कहानी गुजरात मे लिखी गयी थी ! वो दंगे और हमले किसने करवाए थे ? सबको पता है !
क्योंकि इन्हें गुजरात हारने का डर था !
अब राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ हारने का डर है –
इसलिए दंगे और हमले जरुरी हैं, ताकि धर्म के नाम पर देश को लड़वाने के लिए माहौल बन सके !
धर्म की राजनीति हमेशा धूर्तों को लाशों पर चढ़ कर सत्ता दिलाती है
और मुर्ख जनता धर्म रक्षा के नारे लगाती है !
ये मुस्लिम और दलितों की ही नहीँ हिन्दुओं की हत्यारी सरकार भी है
खुद हिन्दू को मार कर दूसरों का नाम लगा कर दंगा करवाती है बीजेपी
जहाँ बीजेपी वहां दंगे
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इस बार भी अमरनाथ यात्रा पर नियोजित हमला तो तय है लेकिन मेन टारगेट इन तीन राज्यों के यात्री रहेंगे बेहतर होगा इन तीन राज्यों के यात्री अपनी यात्रा अगले साल तक के लिए टाल दें तो !
Girraj Ved
16 June at 13:15 ·
फेसभुक्खड़ो की इस दुनिया में कई तरह के लोग होते है –
सबसे पहले आते है वो नये नवेले कट्टर सेक्युलर, जिन्हें सेक्युलर दिखने/ बनने का सुलेमानी कीड़ा हमेशा काटता रहता है !
ये वो लोग है जो “मोहर्रम” और “गुड फ्राईडे” की भी बधाई दे डालते है और साथ में केप्शन और लिख देते है “ये दिन आपकी जिंदगी में रोज़ आये !”
बेटा सेक्युलर, ये बधाई देने के बाद कभी किसी सच्चे मोमिन के हत्थे मत चढ़ जाना ! वरना अगली मोहर्रम से पहले तुम्हारा ही फातिहा पढ़ा जायेगा !
दूसरे होते है कट्टर कम्यूनल ! ये प्रजाति भी अपने आपमें विलक्षण है और सिर्फ कॉपी पेस्ट के भरोसे फेसबुक पर जिंदा रहती है ! ये हर होली, दिवाली, ईद, क्रिसमस पर पानी, बिजली और जानवर बचाने का लम्बा चौड़ा उपदेश सुना जाते है !
मानसिक रुप से ये भी अत्यंत मंदबुद्धि रहते है ! जैसे मीठी ईद पर कोई पुरानी फोटोशॉप्ड पिक डालकर कहेंगे देखिए आज ईद पर इतने जानवर काटे गये की सड़के खून का दरिया बन गयी यहाँ पर अब नाव तैरा सकते है !
अबे गधे आज बकरे नहीँ कटे, सिवंईया बनी है !
तीसरे होते है मेरे जैसे, जो हर होली, दिवाली, ईद पर सुबह से शाम तक, होली पर दारू पिलाने और ईद पर मटन बिरियानी के लिए बुलाने का इंतजार करते है !
अब होता ये है की कहीं से निमंत्रण आगया तो ‘हैप्पी होली’ और ‘ईद मुबारक’ की पोस्ट चेंप देते है ! वरना फिर ईद पर ‘कुर्बानी एक कलंक’ और होली पर ‘सेव वाटर’ अभियान तो चलाते ही है !
और चौथी प्रजाति में आते है Jagmohan दद्दा टाईप अहसान फरामोश लोग ! ये हर होली में छककर दोस्तों के पैसो की दारू पियेंगे, बकरीद पर आधा बकरा अकेले भकोस जायेंगे, क्रिसमस पर मोहल्ले के सांटा से बच्चों को डबल टॉफी चॉकलेट दिलवायेंगे ! और सब काम होने के बाद…. रात को फुर्सत से “धर्म एक पाखण्ड” टाईप ज्ञान पेलेंगे !
ये सबसे खतरनाक प्रजाति है, जो किसीको नहीँ छोड़ती
हिंदी सोशल मिडिया के अधिकतर संघीगैंडे तो अब अक्सर ही मुँह फुलाकर बैठे रहते हे मगर पंजाब का एक हिंदी गेंडा हर समय सरकार की जयकार में लगा रहता हे इतफ़ाक़ से हुआ ये की बिहार के एक संघी ने उसकी पोल खोल दी शायद जानबूझ कर नहीं बातो बातो में उसके मुँह से निकल गया की उसके एन जी ओ को सरकार से फण्ड मिलता हे हलाकि बाद में शायद जब ये सीक्रेट आउट करने पर धमकिया मिली होंगी संघी गेस्टापो से तो उसने वो पोस्ट हटा दी खेर इसलिए हर समय गालीबाकने वाला ये बद्तमीज़ गेंडा सरकार के लिए हमेशा विनम्र बना रहता हे कहना का आशय ये हे की दक्षिपन्थ में निष्काम कर्म हो हो नहीं सकता हे सब अपने मतलब के यार होते हेबेचारा संघी चपलू बरसो से अपनी घटिया सी हिन्दुतावादी साइट के लिए चंदा मांग रहा था किसी ने चवन्नी ना दी और अब बेचारा भोकाल चतुर्वेदी को अलगायदा के सुपर कायर आतंकियों के लिए दोनों हाथो से माल पीटते देख रहा हे और डबडबाई सूजी हुई आँखों से खुद भी अपील कर रहा हे की और दो अलगायदा के लिए , उधर भोकाल ने हापुड़ के लिए माल लेना शुरू कर दिया हे खेर ——————————–
Atif Rabbani26 June at 10:55 · हम को क्या लगता है?
हत्यारी भीड़ द्वारा मेहनतकशों—निम्न-जातीय/वर्गीय मुसलमानों और दलितो—को पीट-पीट कर मार डालने की घटनाएं (mob lynching) सिर्फ़ साम्प्रदायिक घृणा का परिणाम भर है। अगर हमको ऐसा लगता है तो हम समस्या का सरलीकरण कर रहे हैं।
भारतीय जन-मानस में श्रम के प्रति जो घृणा और तिरस्कार का भाव है—वहाँ इसकी जड़ें हैं। ग्रंथों में मेहनत का कार्य करने वालों को ब्रह्मा के पैर से जन्म लिया गया बताया गया है। दलित तो ठहरे अवर्ण—जाति बाहर—वे चतुर्वर्ण में हैं ही नहीं! अब जिसने पैर से जन्म लिया है तो इतना तो बनता है कि मुँह और हाथ से जन्म देने वाले लोग उनको दबा कर रखें! कामगारों के प्रति घृणा का भाव भारत में किसी भी धर्म को मानने वालों में समान रूप से मौजूद है।
वहीं पिछले दो-ढाई दशकों के अबाध पूँजीवाद के विस्तार ने बेरोज़गारी, असमानता, विस्थापन और बहिष्करण आदि ने एक ऐसा माहौल तैयार किया जिसने किसान-पशुपालक-दस्तकार जातियों के पेशों को ख़त्म कर दिया—उनकी कमर तोड़ दी। इसी सर्वहारा को फासिस्ट-हिंदुत्ववादी संगठनों ने ‘लंपट सर्वहारा’ (Lumpenproletariat) में बदल दिया। पिछले दिनों अफ़राजुल की हत्या करने वाला शंभूलाल रैगर लम्पट ही है।
बरेली में सलीम क़ुरैशी उर्फ मुन्ना को गऊकशी के इल्ज़ाम में चौकी प्रभारी अली मियां ज़ैदी ने दो हवलदारों के ज़रिये 14 जून को उठवा लिया। यहाँ इस बात का ज़िक्र ज़रूरी है कि क़ुरैशी मतलब क़स्साब (चिकवा) जाति और ज़ैदी मतलब सैय्यद जाति। मुन्ना को एक मैरेज हाल के पास ले जाया गया जहां पर उन की जम कर पिटाई की गई। सलीम कुरैशी बरेली में बारादरी के पास एक छोटी सी गोश्त की दुकान चलाते थे और उनकी शिकायत लोकल सभासद के पति अंजुम ख़ान ने की थी। दो दिन पहले सलीम कुरैशी ने दिल्ली के एम्स अस्पताल में दम तोड़ दिया। सलीम भी मुसलमान थे; अली मियां ज़ैदी और अंजुम ख़ान भी मुसलमान हैं। फ़र्क़ बस इतना है कि सलीम पसमांदा-कामगार जाति के थे; और बाक़ी दोनों उच्च-जाति के मुसलमान।
जातिवाद के दानव को परास्त किये बिना, विनाशकारी पूंजीवाद से दो-दो हाथ किये बिना, साम्प्रदायिकता के इब्लीस को नहीं हराया जा सकता।——————————————————————सारी दुनिया अब जानती हे की रविश के भाई पर झूठे आरोप लगाने वाली लड़की ने मुख्य आरोपी से शादी भी कर ली हे मगर ये संघी सरदार ( फ़र्ज़ी ज़ोया की तरह आई डी ) ये सब बक रहा हे कारण की इन्हे अपने सपोटरो की ज़हालत का खूब पता हे कोई सरदार इतना बड़ा झूठ नहीं बोलेगा ये भी एक फ़र्ज़ी हे आई डी हे——————-
सतवीर सिंह
27 June at 09:35 ·
एक ख्याल मुझे हमेशा परेशान करते आया था कि अगर इस भूमि ने इतने महान पराक्रमी शूरवीर नायको को जन्म दिया हैं तो बाहर के हमलावर कबीले के लोग कैसे दिल्ली पर हुकूमत चलाते आये हैं ?
अगर मैं हमारे राष्ट्रीय स्तर के नायको को ही लिखने लग जाऊं तो अथाह नाम मन में आने लगते हैं ! क्या यह लोग वाकई सच्चे शूरवीर थे या इन्हें प्रांतीय / जातीय स्तरों के तुष्टिकरण के चलते हम पर थोपा गया था ??
और अगर यह बिना तुष्टिकरण के यह सही मायनों में नायक थे तो इनमे कितने नायको ने आपस में तालमेल बैठा कर बाहरी आक्रमणकारी तत्वों से निस्वार्थ लडाइयां लड़ी ? भारत से बाहर जा कर आक्रमण करना तो दूर यह आपस में ही लड़ते मरते आये हैं ! भारत के लिए लड़ना एक बात और अपने प्रान्त के लड़ना अलग बात थी !
बहुत ज्यादा सोच विचार बोझिलता ला देता , इसलिए मैं इसका सरलीकरण कर के समझने की कोशिश करता हूँ ! भूमि की जगह मैं सोशल मीडिया रख देता हूँ और राष्ट्रीय नायको की जगह बड़े बड़े नामधारी लेखको को ! सोशल मीडिया में बड़े बड़े नामचीन लिखने वाले लोग हैं ! बेशक राष्ट्रीय स्तर के नामचीन लोग नहीं हैं लेकिन ऐसे नाम हैं जिन्हें लोग पढ़ते ,सीखते और ग्रहण करते ! इनका आपसी व्यवहार कैसा रहता हैं ?? ऐसा लगता हैं कि इन्हें बाहर वालो से ज्यादा अपने आसपास के लोगो से लड़ने में ज्यादा मज़ा आता हैं !
बेशक ,दोनों ग्रुप्स के अपने अपने तर्क और विचार हैं जिसे एकदम से भी खारिज नहीं किया जा सकता लेकिन इतना तो तय किया जा सकता की इससे बाहर वालो को मदद मिल रही हैं या नहीं ?? क्या यह सब देख कर वह हँसते नहीं होंगे ?? इन राष्ट्रवादियो को श्रध्दा से पढने वालो को असंमजस नहीं होता होगा कि यह ऐसा बगावती झंडा क्यों लेकर खड़े हो गए ??
पासपोर्ट प्रकरण में बेशक विकास मिश्रा के लिए लड़ कर काबिले तारीफ काम हुआ लेकिन इसकी कीमत अपने राष्ट्रीय स्तर के सम्मानित महिला लीडर को नंगी गालियाँ खिला कर चुकानी पड़ी ?? इससे बचा जा सकता था !
फिर मैं खुद से इन सब बातो का आकलन शुरू करता हूँ कि वास्तविक जीवन में अपने यार दोस्तों के संग रहते हुए उनकी गलती के लिए मेरा स्टैंड कैसा रहता हैं ? साथ रहते हुए कभी यह नहीं सोचा जाता कि साथ वाले सही हैं या गलत , ……वह साथी हैं बस मेरे लिए इतना ही मायने रहता हैं !
सही को सही और गलत को गलत कहने का दंभ भरने वाले महान पत्रकार
खबिश पांडे अपने भाई की रिपोर्टिंग करने का साहस भले ही नहीं रख पाए लेकिन मुझे ऐसे राष्ट्रवादियो से उम्मीद हैं कि अपने किसी पारिवारिक सदस्य की गल्तियों को भी सरे आम लोगो के बीच जुतिया कर उधेड़ेंगे ताकि देखने सुनने वाले मिसाल दे …….वाह इसे कहते हैं पारदर्शिता …… इससे साबित हो गया की यह अंधभक्त नहीं हैं ?
S
Sadique Anwer
Sadique Anwer रजिया बानो और मोहम्मद अरशद नाम की फेक आईडी के जरिए मध्यप्रदेश के छोटी बच्ची के बलात्कार को सही बताने वाले शर्मा जी वर्मा जी बेनकाब हो चुके हैं लेकिन ऐसी हजारों की संख्या में फेक आईडी है जो कभी हिंदू के नाम से कभी मुस्लिम के नाम से मंघढ़त झूठी बातें फैलाकर समाज में नफरत फैला रहे हैं ज़हर घोल रहे हैं हम में से बहूत कम लोगों को पता है कि #फरीदा_खानम #जोया_मंसूरी #आदिला_अत्तार जैसी हजारों की संख्या में फाॅलोवर वाली आईडी भी फेक ही हैं जो आरएसएस कार्यकर्ताओं और बीजेपी आईटी सेल के हैं जिन्हें हजारों संघी और कुछ ना समझ हिंदू मुस्लिम भी फाॅलो करते हैं एक भारतीय और देश के नागरिक होने के नाते हमारी जिम्मेदारी एसी आईडी के खिलाफ पुलिस में शिकायत दर्ज कराएं और फेसबुक पर भी रिपोर्ट दर्ज कराएं ऐसी फेक आईडी झूठी अफवाह और नफरत फैलाकर हमारे देश और समाज को बर्बाद कर रहे हैं।
Mohammad Anas
Yesterday at 21:20 ·
BJP IT Cell द्वारा मुसलमानों के नाम से फेक फेसबुक आईडी बना कर मंदसौर रेपिस्ट के समर्थन में पोस्ट तथा कमेंट किए जा रहे हैं।
जब एक भी मुसलमान नहीं मिला मंदसौर के बलात्कारी के समर्थन हेतु तो बेचारे दिहाड़ी मजदूर खुद ही धर्म परिवर्तन करके नफरत फैला रहे हैं। कुछ भी कर लो कमलछीछड़ों, दौड़ा दौड़ा कर तुम्हारी नफरत खत्म करेंगे इस देश के हिंदू-मुसलमान। तुम्हारा टाइम ख़त्म हो चुका है। फेसबुक पर फर्जीवाड़ा नहीं चलेगा।
Mohammad Anas
Yesterday at 20:30 ·
देश भर के मुसलमानों ने कहा कि वे कठुआ में ‘हिंदू एकता मंच’ के तले बीजेपी विधायकों तथा वहां के कट्टरपंथी वकीलों की तरह बलात्कारियों के समर्थन में ‘मुस्लिम एकता मंच’ नहीं बनाएंगे। हम मुसलमान किसी रेपिस्ट को बचाने के लिए ‘तिरंगा यात्रा’ नहीं निकालेंगे। मंदसौर की मुस्लिम संस्थाओं तथा शहर काज़ी ने एलान किया है कि बलात्कारी को चौराहे पर लटका दिया जाए। उसकी लाश को मंदसौर के किसी भी कब्रिस्तान में दफ्न नहीं होने देंगे।
इतना सब मुसलमान कह रहा है। फिर वे कौन लोग हैं जो फेसबुक पर लिख रहे हैं कि मंदसौर बलात्कार पर वामपंथी/कलाकार/साहित्यकार/पत्रकार/उदारवादी धड़ा खामोश बैठा है? वे सब बीजेपी के लोग हैं। क्योंकि भाजपा ही एक पार्टी है जो रेप पर भी राजनीति करती है। राजनीति के लिए रेप भी करती है। गुजरात दंगों के दौरान रेप के सैकड़ों केस रजिस्टर्ड हुए हैं। इससे यह साफ ज़ाहिर होता है कि बीजेपी के समर्थकों के लिए रेप से ज्यादा उस पर सियासी गोलबंदी तथा नफे नुकसान का ख्याल होता है।
मंदसौर में रेपिस्ट पकड़ा जा चुका है। यदि कोई मुसलमान उसका समर्थन करता हुआ मिल जाएगा तो मैं सबसे पहले कैंडिल लेकर इंसाफ के लड़ूंगा। लेकिन ऐसा कभी नहीं होगा, क्योंकि हम इंसानियत के पैरोकार हैं। हरमजदगी के नहीं।Farhan Khan
Farhan Khan कठुआ में वारदात जनवरी में हुई थी, ख़बरों में आई लोगों ने कानून पर ऐतमाद किआ और कोई हो हंगामा नहीं हुआ, उतना भी नहीं जितना ऐसी वारदात पर होना चाहिए,
लोगों का गुस्सा कई महीने बाद अप्रैल मई में तब सामने आया जब आम नागरिक ने देखा की कुछ दरिन्दे बलात्कारिओं के पक्ष में उस कानूनी कार्यवाही के सामने आकर खड़े हो गए हैं ,
दुनिया ने देखा कैसे एक पार्टी हित में प्रतिष्ठित अख़बारों ने वारदात के होने तक को नकार दिया .
पंकज
7 hrs ·
कोई प्रोफ़ाइल फेक है या असली इसकी एक बड़ी पहचान आप इस आधार पर कर सकते हैं कि प्रोफ़ाइल में कभी भाई-दोस्त-रिश्तेदारों आदि के साथ वाला फ़ोटो पोस्ट किया गया है? या उसके किसी फ़ोटो या पोस्ट पर दीदी, भैया, चाचा-चाची, मौसा-मौसी आदि संबोधनों के साथ कोई टिप्पणी दिखी है?
तो फेक आइडी वाले एंजल प्रियाओं.. अगर ख़ुद की फेकनीयता को लम्बे समय तक ढंके रखना चाहते हो, तो कुछ बाप-चाचा-चाची आदि के प्रोफ़ाइल भी पैदा कर लो, टिप्पणियों के लिये.
ध्यान रखना… भारत कुछ भी भले हो गया हो लेकिन अभी तक ख़ानदान/रिश्तेदार निरपेक्ष देश नही हुआ है.
फेसबुक आतंकियों से
-प्रेमकुमार मणि
फेसबुक या अन्य सोशल मीडिया अभी नए संचार माध्यम हैं। तकनीक और संस्कृति के क्षेत्र में प्रायः होता है,ज्यादा अच्छा,अच्छे को पछाड़ देता है। यही विकास की प्रक्रिया है। अच्छे का शत्रु,ज्यादा अच्छा होता है। सोशल मीडिया ने पारम्परिक मीडिया को पीछे धकेल दिया है,या धकेलती जा रही है। अख़बार,रेडियो,टीवी भी इस सोशल मीडिया के ही मंच पर आने लगे हैं । इसकी एक विशेषता यह है कि इससे स्थापित मीडिया घरानों अथवा पूंजीपतियों के प्रभाव को जबरदस्त धक्का लगा है। अनेक आंदोलन और राजनीतिक सक्रियताएं इससे प्रभावित-संचालित हो रही हैं। इसलिए इसका महत्व असंदिग्ध है। आने वाले समय में इसका महत्व और बढ़ने की सम्भावना है।
लेकिन तकनीक का इस्तेमाल अच्छे-बुरे दोनों लोग करेंगे। इससे यदि क्षण भर में अच्छाई का प्रसार होगा,तो बुराई का भी। ज्ञान-विज्ञान का प्रसार होगा,तो अज्ञान-पाखण्ड का भी। धर्म का प्रसार होगा तो अधर्म का भी। प्रश्न होगा बुराइयों की रोकथाम हम कैसे करेंगे ? हम आधुनिक जन,जो नागरिक या सिटिज़न बन चुके है (या अब नेटीजन) केवल व्यवस्था या सरकार पर निर्भर होना चाहते हैं। सरकार पर,यानी कानून पर। क्या यह संभव है कि कानून और व्यवस्था सब कुछ सम्भाल ले ? शायद नहीं। जब कोई शासन व्यवस्था नहीं थी,तब नैतिकता और धर्म का सृजन हुआ था। इसने मानव समाज को संवारा। जैसे -जैसे इसका विकास हुआ,मानव पशुता से दूर हुआ। समाज में नियमन बना। यही व्यवस्था का आरंभिक रूप है। इसी की देख-रेख के लिए संस्थागत धर्म बने और फिर राज -व्यवस्था भी; जिसके आधुनिक रूप जनतांत्रिक सरकारें हैं।
यह बतलाना फिजूल होगा कि धर्म और राज व्यवस्था पर मुट्ठी भर लोगों ने कब्ज़ा कैसे किया। दुनिया भर के संस्थागत धर्मों में पाखण्ड विकसित हुए — पुरोहितवाद के रूप में। ये पुरोहित अलग-अलग समाजों में पण्डे,पादरी,लामा या मुल्ला आदि रूपों में विकसित हुए और धर्मों की मूल चेतना को भ्रष्ट या दिग्भ्रमित कर दिया। इसलिए आधुनिक समाज में एक दीर्घ विमर्श के बाद धर्मनिरपेक्ष स्टेट की भावना सर्वोपरि हो गयी। स्टेट से धर्म को निरपेक्ष करने की बात जरूर हुई,लेकिन मनुष्य को धर्मनिरपेक्ष बनाने की बात शायद कम ही हुई। कम्युनिस्टों ने प्रयोग किये कि संस्थागत धर्मों को दरकिनार कर नयी कम्युनिस्ट नैतिकता विकसित की जाय। लेकिन प्रयोग विफल हुआ।
अनेक सामाजिक दार्शनिकों ने स्थापित धर्मों की आधुनिक व्याख्या की और संभावित विश्व नागरिकता के लिए एक वैश्विक मानवतावाद की सिफारिश की। टॉलस्टॉय से लेकर गाँधी और फुले आंबेडकर ने यही किया। पुराने धर्मों को खंगाला,रफ़ूगिरी भी की; उनके आधुनिक अर्थ दिए। इस के विपरीत पुरोहिती-वर्चस्ववादी ताकतों ने इससे राष्ट्रवाद को जोड़ा। यह काम यूरोप में शुरू हुआ और बीसवीं सदी के पूर्वार्ध में भारत पर भी छा गया। हिन्दू और मुस्लिम राष्ट्रवाद की बात होने लगी। यूरोप में इस राष्ट्रवाद ने दो विश्वयुद्ध करवाए और करोड़ों को तबाह किया। भारत में इसने सांप्रदायिक वैमनस्य और दंगों के बूते दो देश बनवाये। सावरकर और जिन्ना व्यक्तिगत रूप से जहीन आदमी थे। लेकिन उनकी राष्ट्रीयता अमानवीय थी। आज उनकी वैचारिक संततियां जोर -शोर से फिर सक्रिय हैं। उन्होंने सोशल मीडिया का सब से अधिक दुरूपयोग किया है,और कर रहे हैं। गाँधी,टैगोर,नेहरू,आंबेडकर की सांस्कृतिक-राजनैतिक विरासत को ये ख़त्म करना चाहते हैं। मंदिर-मस्जिद,कब्रगाहों-श्मशानों की इन्हे खूब फ़िक्र होती है। स्कूल-अस्पतालों की नहीं होती। धर्मग्रंथों और इतिहास पुरुषों की चिंता ये खूब करते हैं,क्योंकि इनके बूते वर्तमान समाज पर ये वर्चस्व बनाये रखना चाहते हैं। हमलोग जब इस वर्चस्ववादी प्रवृति का विरोध करते हैं,तब धर्म-संस्कृति की झूटी धजा लेकर खड़े हो जाते हैं। हमारे भारत में जनतंत्र ने पुरोहितवादी-सामंतवादी ताकतों को कमजोर किया और मिहनतक़श समूहों और उत्पीड़ित सामाजिक समूहों दलित-पिछड़ों-स्त्रियों को आगे किया,तब ये धार्मिक-सांस्कृतिक पताकाएं लेकर खड़े हो गए। मंदिर-मस्जिद,व्रत और हज की चिंता इन्हे ज्यादा होने लगी। जनतंत्र इनके लिए मुसीबत है,लेकिन उसके ये अपने अर्थ निकालते हैं और उससे अपनी कुटिल धार्मिकता नत्थी करना चाहते हैं। हालांकि लोग इनकी होशियारी और दुष्टता समझते हैं।
हम इन से भी संवाद का स्वागत करना चाहते हैं। हम चाहते हैं,ये सुधरें और नयी मनुष्यता के विकास में सहभागी बनें। लेकिन इनकी जड़ता इन्हें हिलने नहीं देती। बाज़ दफा तो इनकी मूर्खता और थेथरोलॉजी इतनी अश्लील होती है कि उसका केवल प्रतिकार ही किया जा सकता है। हम इस समूह के तमाम मित्रों से निवेदन करते हैं कि यदि वे हमारे फेसबुक मित्र सूचि में हैं और अपनी प्रवृति से बाज़ नहीं आना चाहते हैं,तो स्वयं को ड्रॉप कर लें। उनके इस कदम का मैं स्वागत करूँगा। और यदि रहना चाहते हैं तो संवाद की नैतिकता का सम्मान करें। एक दूसरे की इज़्ज़त करना सीखें। भारतीय मनीषा ने वादे-वादे जायते वादः की बात की है। वाद-संवाद से ज्ञान विकसित होता है। हम एक चींटी से भी सबक ले सकते हैं। लेकिन सीखने की प्रवृति तो होनी चाहिए। नफरत, गुस्से और झगड़े की प्रवृति के साथ हम आखिर कहाँ पहुंचेंगे ? कम से कम मुझमे ऐसे मित्रों को झेलने का धैर्य नहीं है। इनके लिए मैं केवल प्रार्थना ही कर सकता हूँ कि इन्हे सद्बुद्धि मिले।————————————————Shadab A Khan
23 June at 14:27 ·
भीड़ के ख़तरे..आप के मारे जाने के लिए मुसलमान होना जरूरी नहीं होगा। कल को आप का भी नंबर आएगा, अलग अलग तरीके से पढ़े, Mithilesh Priyadarshy bhai को।
Mithilesh Priyadarshy
23 June at 14:03
पहले लोग व्यक्तिगत दुश्मनियों, आत्महत्याओं, बीमारी, बुढ़ापे, सड़क और अन्य दुर्घटनाओं आदि में मरते थे.
पर अब इस सरकार ने मरने का एक नया विकल्प मुहैय्या करवाया है.
भीड़ द्वारा हत्या.
विकास पहुंचा हो या नहीं, सरकार की इस ‘नयी सेवा’ का ‘अनचाहा लाभ’ आपके दरवाजे तक कभी भी पहुँच सकता है.
फ़िलहाल इसके ‘लाभार्थी’ मुस्लिम हैं. पर जैसे-जैसे ‘सेवा का विस्तार’ होता जायेगा, इसके लिए मुस्लिम होने की योग्यता जरुरी नहीं रह जाएगी.
सरकार के परम भक्त होने के बावजूद इससे आप नवाज़े जा सकते हैं.
जैसे मान लीजिये, आप, मतलब बीजेपी के प्रतिबद्ध वोटर, आपकी कार से बगल वाली कार को स्क्रेच लगता है और जब तक आप उसकी ग़लत साइड से इंट्री की बात उसे समझाना चाहते हैं, आप लात-घूंसों के समंदर में होते हैं और बिना किसी ख़ता-कसूर के सस्ते में निपट जाते हैं.
एक दिन आप, (मतलब मोदीजी का हार्डकोर समर्थक, 100 रुपये पेट्रोल होने पर भी उनका समर्थन करने वाला) बग़ल के फ़्लैट में रोज़ देर रात तक बजने वाले तेज़ संगीत और शोर-शराबे की शिकायत करते हैं. उन्हें समझाने की कोशिश करते हैं पर एक रोज कुछ सुनने की बजाय उन्मादित लड़के आपका वहीं काम-तमाम कर देते हैं.
आप, मतलब गौरक्षणी समिति वाले चिंटू के पापा, किसी छोटे कस्बाई शहर में रहते हैं. आप पानी वाले दूध से परेशान हो एक गाय खरीदने की सोचते हैं. एक दिन मेले से गाय खरीद कर लौटते वक्त रास्ते में कसाई समझ कर आपके प्यारे चिंटू की पीट-पीट कर हत्या कर दी जाती है. अब आप पूरी दुनिया को घूम-घूम कर बताना चाहते हैं कि भीड़ से कितनी बड़ी गलती हो गयी. हम तो ख़ुद गौरक्षा से जुड़े लोग थे.
आप, मतलब विश्व हिन्दू परिषद के स्थानीय कार्यकर्ता, भारत-पाकिस्तान के मैच पर भारत की जीत से आश्वस्त ढ़ेर सारे पटाखे लाते हैं. भारत हार जाता है पर पटाखा प्रेमी आपका मासूम बच्चा हार-जीत समझे बिना पटाख़े फोड़ने लगता है. गुस्साई ‘देशभक्त’ भीड़ आपके घर पर जमा हो जाती है. जब तक आप भीड़ को बच्चे की नादानी समझाते हैं, तब तक भीड़ आपको बच्चे सहित फूंक देती है.
आप अधिकतम देशभक्त हैं. सिनेमा शुरू होने के पहले पूरे मनोयोग से सावधान की मुद्रा में राष्ट्रगान गाते हैं. हॉल में आप बेहद तन्मयता से अपने पसंदीदा नायक को देख रहे हैं पर बगल के लड़कों की हाहाहीही की वजह से उसका डायलॉग ठीक से नहीं सुन पा रहे हैं. आप उन्हें इशारे से शांत होकर फ़िल्म देखने को कहते हैं पर वे पहले बहस करते हैं, फिर गाली-गलौज पर उतर आते हैं. और जब आप इस पर ऐतराज़ जताते हैं, फ़िल्म में खलनायक के मरने के पहले आप मार दिए जाते हैं.
तो यही होगा, जब महंगाई, बेरोजगारी आदि से त्रस्त और कुंठित भीड़ को हत्या की लत लग जायेगी. अदालतों पर ताले लग जाएंगे. सारे फ़ैसले सड़क पर ही होने लगेंगे. अब इसमें जरूरी नहीं, अखलाक, पहलू, ज़फ़र, जुनैद, कासिम ही मरेंगे. बबलू, चिंटू, पिंटू भी मरेंगे और वह भी मिंटू, सिंटू के हाथों ही.
Krishan Yadav shared a live video.
Yesterday at 21:07 ·
घर देखो, दीवार देखो,
किस हालत में ये परिवार रहता है,
इनका लड़का शिवम् वशिष्ट जो किसी हिन्दू रक्षक टाइप्स गिरोह में शामिल हो गया था, और मृत्यु हो गयी थी जिसकी,
उसकी मौत पर चंदा इकट्ठा हुआ और इकठ्ठा करने वाला वो पैसे खा गया, जोकी एक अलग मुद्दा है।
मेरा मुद्दा ये है की इतने गरीब परिवारों के बच्चे जिनके पास की मूलभूत सुविधाएं भी नहीं है उन्हें भी संघी गैंग्स में फंसाया जाता है उनका करियर चौपट किया जाता है,
जबकि उनपर तो जिम्मेदारी ये होनी चाहिए की की वो अपने परिवारों को नौकरी पेशे से कमा के सुविधाएं इकट्ठी कर सके।
लेकिन उनको ऐसे फ़ालतू के धर्म बचाओ टाइप आंदोलन में ब्रैंवश किया जा रहा है, बर्बाद किया जा रहा है।
ये वीडियो उन सभी भाइयों के लिए एक मार्गदर्शक बन जाना चाहिए जो इस तरह के फ़र्ज़ी संघठनो में अपना समय बर्बाद कर रहे हैं।
नौकरी करो और अपना परिवार चलाओ, ये फ़र्ज़ी संघठन तुम्हे कुछ नहीं देने वाले।
अवनीश मिश्रा was live.
12 July at 10:05 ·
दीपक शर्मा (हिंदुत्व उपासक) के नाम पर सब से बड़ा दलाल है ये बात आज में साबित कर रहा हु
जो अपने भाई शिवम् वशिष्ठ के नाम पर भी दलाली कर लगभग 20लाख रूपेय खाया है
आगे तक पहोचना अपकाँ काम है
Sheetal P SinghYesterday at 07:12 · कल्पेश याग्निक
सच से भागता हिंदी समाज, नारी और नर के संबंधों में परिवर्तित होती परिभाषाएँ
लगातार बदलती कल्पेश याग्निक आत्महत्या/असमय मृत्यु प्रकरण की कथा में नई पात्र शामिल हो चुकी है ।
Bhadas4media.com का दावा है कि उनके पास कई महीनों पहले से कल्पेश और एक स्त्री के फोन वार्तालाप के टेप हैं जो उनके विवाहेत्तर संबंध और उससे उत्पन्न consequences में कल्पेश के बेतरह उलझने और परेशान होने के स्पष्ट संकेत देते हैं ।
ऐसे किसी टेप का होना और उसका भड़ास तक पहुँचना इस मामले में “अपराध” की उपस्थिति सुनिश्चित करता है ।
हमारे चारों तरफ़ ऐसी ख़बरों की भरमार है जो यौनिकता से उपजे अपराध पर आधारित हैं । सोशल मीडिया और मीडिया की सफलता का सबसे अचूक अस्त्र यही सब है । नमो और इसी तर्ज की कई मिलियन लाइक्स वाले कई FB accounts के बारे में Alt News ने कल ही पर्दाफ़ाश किया है कि उनकी प्रसार संख्या का मूल उनमें परोसे जाने वाले सेमी पोर्न और अश्लील फोटोशाप में निहित है ।
एक बहुचर्चित नामानिगार की अपनी प्रोफ़ाइल से कई गुना ज्यादा लाइक्स उनकी नकली महिला प्रोफ़ाइल पर बरसों बना रहा (प्रोफ़ाइल बंद करने तक)जिसमें एक युवा सुंदर महिला का चित्र प्रोफ़ाइल पिक था । वे एक ही कन्टेंट पहले अपनी प्रोफ़ाइल पर डालते थे और कई घंटों बाद अपनी फेक महिला प्रोफ़ाइल पर बढ़ाते थे ।महिला प्रोफ़ाइल पर सुधी पाठक उसी कंटेंट में तमाम गुण खोज लेते थे जो मूल प्रोफ़ाइल पर भिनकते भी न थे !
हमारे समाज के अगुआ राजनेता यौनिकता के ज़िक्र तक से आतंकित लगते हैं । आप नरेंद्र मोदी या राहुल गांधी या केजरीवाल तक से इस पर एक शब्द की उम्मीद नहीं कर सकते ! सब के सब एक मध्य युगीन आदर्श के टनों भारी झूठे लबादे के नीचे छिपे हुए हैं !
हिंदी भारत में लोहिया इकलौते थे(वे कभी प्रधानमंत्री की रेस तक नहीं पहुँचे थे)जिन्होंने दुस्साहस करके कहा” वायदाखिलाफी और बलात्कार के सिवा नर नारी के सारे संबंध जायज हैं “! उनके बाद अभी कुछ महीनों पहले राज्यसभा से रिटायर होने के दिन अपने विदाई भाषण में देवी प्रसाद त्रिपाठी ने भी इसे ज़ोरदार ढंग से उठाया और उम्मीद जताई कि संसद किसी दिन जरूर इस पर विस्तार से संवाद करेगी (हालाँकि इसके कोई संकेत नहीं मिलते )!
हिंदी संसार के संपादकों में भी इस पर बात करने,संवाद चलाने,सच का सामना करने के साहस का अकाल है हालाँकि उनमें बलात्कार और यौन विद्रूपता की ख़बरों की चाट परोसकर सरकुलेशन में रहने की होड़ है ।
कल्पेश इसी दोहराव के शिकार हुए लगते हैं वरना पचपन बरस भी कोई उम्र है प्रेम कर लेने के “गुनाह” में छत से कूद जाने की ?
उपमहाद्वीप में साठ करोड़ मुस्लिम और सौ करोड़ हिन्दू रहते हे हालात इतिहास संस्कर्ति सब कुछ जो भी हे जैसा भी हे ये तो तय हे और रहेगा की कम से कम यहाँ कोई राइटिस्ट अच्छा कलाकार या लेखक हो ही नहीं सकता हे आजकल फ्लॉप कलाकारों के कम्युनल हो जाने की गति बेहद तेज हे पाक में भी यही हे की घटिया कलाकार भारत और हिन्दू विरोधी हे ————————————————————– ”जगदीश्वर चतुर्वेदी आज मैंने जब लिखा कि आरएसएस की बाँझ विचारधारा है तो कुछ संघी मित्रों को मेरी बात पसंद नहीं आई,उनका मन शांत करने के लिए एक अनुभव रखना चाहता हूं ,मैंने प्रोफेसर विष्णुकांत शास्त्री के साथ कलकत्ता विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग में कई साल अध्यापन कार्य किया है ,वे बहुत अच्छे शिक्षक थे, बेहतरीन वक्ता थे,भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष थे,राज्यसभा सदस्य,यूपी के राज्यपाल,बंगाल में संघ के बड़े नेता थे। दिलचस्प पहलू यह कि वे जब साहित्य पर बोलते थे तो एकदम प्रगतिशील नजरिए से, वे कभी किसी संघी थिंकर को कभी उद्धृत नहीं करते,हमेशा प्रगतिशील कवियों को उद्धृत करते,यह रवैय्या कक्षा से लेकर संगोष्ठी तक हमेशा नजर आता था,मैंने एक दिन उनसे पूछा कि आप राजनीति में संघी हैं,कट्टर सीपीएम विरोधी हैं,लेकिन साहित्य में प्रगतिशील लेखकों को ही पसंद क्यों करते हैं ? उन्होंने ईमानदारी से कहा प्रगतिशील लेखकों से बेहतर किसी ने नहीं लिखा, दूसरी बात यह कही कि आरएसएस के नजरिए से साहित्य नहीं रचा जा सकता।
शास्त्री जी का साहित्य लेखन उपलब्ध है उससे यह बात कोई भी समझ सकता है। मेरे साथ उनका खास प्रेम था,उनका आदेश था कि मैं जब कक्षा लूं उसके साथ उनकी कक्षाएं रखी जाएं जिससे मेरे साथ अंतराल में गप्प हो सके। ”
Himanshu N
24 July at 10:57 ·
फेसबुक इनबॉक्स चैटिंग खतरनाक है, बचो इससे….
दिल्ली की एक अदालत ने आदेश दिया है कि फेसबुक के इनबॉक्स में हुए सभी चैट का ब्योरा पुलिस इकट्ठा करके उनका अध्ययन करें….
यह आदेश कोर्ट ने उस मुकदमें में दिया है जिसमें एक महिला का आरोप है कि प्यार का इजहार करके एक युवक उसके साथ लंबे समय तक बलात्कार करता रहा, ऐसे क्षणों की फोटो युवक चुपके से लेता रहा और बाद में उन्हीं फोटो के जरिए वाे महिला को ब्लैकमेल करके अवैध वसूली करने लग गया और बड़ी मोटी रकम वसूलता रहा । जब युवती ने पुलिस में मुकदमा दर्ज कराया तो युवक ने अपना एकाउंट डिलीट कर दिया ।
फेसबुक इस तरह की गंदगियों का जरिया बन कर रह गया है और मेरा अपना अनुभव है कि महिलाएं ज्यादा ही उछल कूद करने लगी है । संभवतः हमारे समाज में महिलाओं पर सामाजिक बंधन कुछ ज्यादा ही कड़े रहे हैं…
एक तरफ जहां पुरुष वर्ग को पूरी छूट मिली रही वहीं महिला को अकेले अपने घर के दहलीज से बाहर निकलने की इजाजत नहीं रही और अब अचानक से यह छूट कि बिना किसी की जानकारी में आए किसी से जुड़ सकती है, अपने मन की भावनाओं को बता सकती है, अपने लिए प्रेम का संदेश प्राप्त कर सकती है….. इनबॉक्स और वॉट्सएप के माध्यम से महिलाओं ने भी मर्यादाएं लांघी हैं और जरूरत से ज्यादा लांघी है ।
कम लड़कियों या महिलाओं को यह जानकारी है कि उनके द्वारा किए गए चैट डिलीट नहीं होते बल्कि छह साल के लिए सुरक्षित रखे जाते हैं… कानूनी तौर पर जरूरी यह व्यवस्था फेसबुक इनबॉक्स में पहले से थी और अब वॉट्सएप में भी हो गई है ।
महिलाओं को जानना चाहिए कि उनके चैट कभी भी खोले और पढ़े जा सकते हैं । चैट में लिखे मेसेज के साथ ही उसका समय भी बड़ा महत्व रखता है, समय बोलता है कि किस मनोदशा में लडके लड़कियां जुड़े रहे हैं । यह कोई आश्चर्य की बात नहीं कि हर महीने दर्ज होने वाले बलात्कार के मुकदमों में दस में से एक मामला फेसबुक से जुड़ा है ।
व्यक्तिगत तौर पर मैं आज तक किसी महिला के इनबॉक्स में खुद नहीं गया लेकिन फिर भी अनुभव रखता हूं कि महिलाएं किस कदर इस छूट का नाजायज उपयोग करने लगी हैं । आए दिन इस तरह के मैसेज इनबॉक्स में आते ही हैं और अगर सतर्क नहीं रहा जाए तो पता नहीं कब किस मुसीबत में पड़ना पर जाए । वर्तमान में भी बिना किसी कारण एक कम उम्र की महिला जबरदस्ती इस तरह की बातें मुझसे कर रही है… मैं वाच कर रहा हूं कि इसकी मंशा क्या है, क्यों उम्र में इतना अंतर होने पर भी यह मुझसे प्यार भरी नजदीकियां बढ़ाने पर लगी हुई है…. जरूरत पड़ी तो सारी परतें खोल कर रख दूंगा कि इसके मुझसे नजदीकी बढ़ाने के पीछे के कारण क्या है ।
कुछ ही दिन पहले मैंने पोस्ट डाला था कि लंबे समय तक जुड़े रहने के बाद किसी कारण से अलगाव हो तो महिलाओं में से कुछ ऐसी भी हैं जो इसे बलात्कार का रूप से देती हैं । संभवतः इन्हीं कारणों से अदालत ने आदेश दिया है कि दोनों के बीच के चैट को पढ़ कर यह पता किया जाए कि इनके बीच क्या था… प्यार या बलात्कार ।
निश्चित तौर पर चैट से यह निष्कर्ष निकल जाएगा कि दोनों तरफ से प्यार था या किसी एक तरफ से प्यार के नाम पर दिखावा…. फोटो भी लडकी की जानकारी के बिना लिए गए थे या सहमति थी उसकी… अगर लड़की की आंखें कैमरा की तरफ रही होंगी तो यह स्पष्ट है कि ऐसे फोटो लेने की मर्जी उसकी भी थी ।
इन्ही युसुफी साहब की रचनाओं से माल कमाने को रविश कुमार का पडोसी कायर संघी आतंकी भोकाल चतुर्वेदी जो जगह जगह सौसंघीहिज़डो को एक दो व्यक्तियों पर हमले के लिए भड़का रहा हे . भोकाल चतुर्वेदी ये ह —- मी आतंकी खुद पाकिस्तान तक होकर आया और यहाँ कहता हे की किसी भी मस्जिद के पास से अपने माँ बहन को लेकर गुजर जाइये आपको पता चल जाएगा इस्लाम क्या हे—– ? सवाल ये की य तो भारत हे फिर ये ह–मी पाकिस्तान क्यों गया वहा क्या हुआ इसके साथ —- ? इस ह — मी भोकाल चतुर्वेदी को में ऐसी मस्जिदे दिखा सकता हु जहा शाम के समय हमारी हिन्दू माताए बहने अपने नवजात बच्चो को लेकर खड़ी रहती हे और नमाज़ियों से ब्लेसिंग लेती हे .
” Tejendra Sharma
8 hrs ·
मित्रो – मैनें जब जब आदरणीय ज़किया जी को हिन्दी के वर्तमान व्यंग्यकारों की रचनाएं पढ़वाने की कोशिश की, तो उनका एक ही जवाब होता था कि मुश्ताक अहमद यूसुफ़ी जैसी बात किसी में नहीं है।
यूसुफ़ी साहब का जन्म टौंक राजस्थान में हुआ था और जब वो पाकिस्तान में बसने चले गये तो वहां नीम का दरख़्त ढूंढते रहे… इस विषय पर उन्होंने एक बेहतरीन व्यंग्य भी लिखा। व्हाट्सएस के एक मैसेज से मुश्ताक अहमद युसूफी साहब के इंतकाल का समाचार मिला जो मैनें व्हाट्सएप और मैसेंजर पर मित्रों से साझा भी किया । वे उर्दू जगत में हास्य और व्यंग के ग़ालिब माने जाते थे । आइए, उनकी कुछ व्यंग्यभरी वन-लाइनर्स का आनन्द उठाएं….
भाई Lalitya Lalit और Girish Pankajके लिये होमवर्क है कि वे खोज करें – “क्या व्यंग्यकारों की वर्तमान पीढ़ी के लेखन में ऐसे सूत्र वाक्य पढ़ने को मिलते हैं….”
“इस्लाम के लिए सबसे ज़्यादा कुर्बानी बकरों ने दी है !”
“मर्द की आँख और औरत की ज़ुबाँ का दम सब से आख़िर में निकलता है !”
“ईस्लामिक वर्ल्ड में आज तक कोई बकरा नेचरल डेथ नहीं मरा !”
“दुश्मनी के लिहाज़ से दुश्मनों के तीन दर्जे होते है, दुश्मन, जानी दुश्मन और रिश्तेदार !”
कोई गुंजाईश नहीं रहती !”
“वो ज़हर दे के मारती तो दुनिया की नज़र में आ जाती, अंदाज़-ए-क़त्ल तो देखो, हमसे शादी कर ली !”
“दुनिया में ग़ालिब वो अकेला शायर है, जो समझ में ना आया तो दुगना मज़ा देता है !”
“कुछ लोग इतने मज़हबी होते है कि जूता पसंद करने के लिए भी मस्ज़िद का रुख़ करते है !”
“मेरा तआलुक उस भोली भाली नस्ल से है, जो ये समझती है कि बच्चे बुज़ुर्गों की दुआओं से पैदा होते है !”
“हमारे ज़माने में तरबूज़ इस तरह खरीदा जाता था, जैसे आज कल शादी होती है, सिर्फ सूरत देखकर !”
“सिर्फ 99 प्रतिशत पुलिस वालों की वजह से बाकी 1 प्रतिशत भी बदनाम है !”
“हुकूमतों के अलावा कोई भी अपनी मौजूदा तरक्की से खुश नहीं होता !”
“फूल जो कुछ ज़मीं से लेते है, उससे कहीं ज़्यादा लौटा देते है !”
“हमारे मुल्क की अफवाहों की सब से बड़ी खराबी ये है कि वो सच निकलती है !”
???कमाल का सेंंस आॅफ ह्युमर था । ”
“उस शहर की गलियां इतनी तंग थीं कि गर मुख्तलिफ जीन्स (opposite sex) आमने सामने हो जायें तो निकाह के अलावा
Faking News सोशल मीडियाकैम्ब्रिज एनालिटिका का ख़ुलासा- “2 करोड़ लड़के, लड़की बने हुए हैं फ़ेसबुक पे”08, Apr 2018 By Guest Patrakar कैलिफ़ोर्निया. लोगों का डाटा चुराने वाली मशहूर ब्रिटिश कम्पनी कैम्ब्रिज एनलिटिका ने यह ख़ुलासा किया है कि फ़ेसबुक पर दो करोड़ से भी अधिक लड़कियों की प्रोफ़ाइल के पीछे लड़के छुपे हुए हैं और उनमें भी 80% प्रोफ़ाइल भारत की ही हैं।Facebook5फ़ेसबुक पर लड़की बने हुए कुछ लड़के
दरअसल, कैम्ब्रिज वालों ने भारत की पॉलिटिकल पार्टियों की मदद के लिए फ़ेसबुक से डाटा ख़रीदा था। उस डाटा की छानबीन के बाद ही उन्होंने यह ख़ुलासा किया है। हमने कैम्ब्रिज एनलिटिका के CEO रॉबर्ट शर्मा से बात की और इसके बारे में अधिक जानकारी ली।
रॉबर्ट ने बताया कि “हमें भारतीयों का डाटा पढ़ने के बाद चौंकाने वाली जानकारी मिली है। जिसके बाद हम कन्फ़्यूज़ हो गए, जिसकी वजह से हम अभी तक काँग्रेस के लिए रणनीति नहीं बना पाये हैं क्योंकि जहाँ एक तरफ़ हमें ‘कमेंट में पाँच लिखें और जादू देखें’ जैसी पोस्टों पर लाखों बेवक़ूफ़ भारतीय लगे पड़े दिखे। वहीं दूसरी तरफ़ लाखों ऐसे टैलंटेड भारतीय भी दिखे जो लड़कियों की प्रोफ़ाइल बनाकर लाखों लड़कों का काट चुके है। और भारतीय फ़ेसबुक पर हमें लड़कों की एंजल प्रिया और नेहा वाली इतनी प्रोफ़ाइल मिली हैं कि यह फ़ेसबुक कम और स्वर्ग ज़्यादा लगने लगता है। कुछ लड़के तो इतने बेवक़ूफ़ हैं कि वो सलीना गोमज की फ़ोटो वाली लड़के की प्रोफ़ाइल देख कर ‘यू आर सो ब्यूटीफ़ुल’ जैसे कमेंट करते हैं। हमें इसके साथ-साथ कुछ अधेड़ उम्र के भारतीय मर्द भी दिखे, जो जस्टिन बीबर की फ़ोटो लगाकर लड़कियों को फँसाने की कोशिश करते हैं। अब ऐसे में हम क्या करें, कुछ समझ नहीं आ रहा!”
और इतने पर भी कैम्ब्रिज की परेशानी नहीं ख़त्म हुई! कैम्ब्रिज के MD डेविड चौरसिया ने बताया कि उनका सबसे बड़ा चैलेंज भारी मात्रा में कैंडी क्रश रिक्वेस्ट को इग्नोर करना था। उन्होंने कहा, “एक तो हम वैसे ही परेशान थे, ऊपर से रोज़ कम से कम पचास लोग हर मिनट कैंडी क्रश की रिक्वेस्ट भेज रहे थे। और यह सब भी हम सह लेते मगर फिर हमने मीना बॉयज की प्रोफ़ाइल देखी और हमसे और नहीं सहा गया! उनकी गंदी एडिटिंग और एटिट्यूड वाले कैप्शन देख कर हमारे पाँच कर्मचारियों ने फाँसी लगा ली। इसलिए हम सोच रहे हैं कि भारत में रणनीति बनाना छोड़ ही दें। वरना हम शायद राहुल गाँधी की छवि तो सुधार लें मगर हमारा ख़ुद का दिमाग़ बिगड़ जाएगा”
कैम्ब्रिज एनलिटिका फ़ेसबुक के बाद अब भारतीय ट्विटर पर घात जमाएगा। जहाँ शायद उन्हें फ़ेसबुक के मुक़ाबले शायद कम ऐसे अजूबे देखने को मिलें। हालाँकि कैम्ब्रिज वालों को यह समझना चाहिए यह भारतवर्ष है, इसे तो ऋषि मुनि तक नहीं समझ पाए तो वे कौन से खेत की मूली हैं? और जब आपका क्लाइंट राहुल गाँधी जैसा हो तो ये लगभग असम्भव है।
किसी मुस्लिम पर्व पर एक दिन कुछ मिनट के लिए रविश कुमार के पडोसी आतंकी भोकाल चतुर्वेदी की गाडी को नयी नवेली दुल्हन की तरह चलना पड़ा था तो इसने खूब भोकाल मचाया था यह रविश का पड़ोसी बा —— र्ड भोकाल चतुर्वेदी इन गुंडों के लिए जमकर माल पीट रहा हे लड़की और उसके पिता को चाहिए की इसकी गर्दन पकड़ कर अपना नुक्सान पूरा करे
Arvind Shesh
7 hrs ·
कार महिला चला रही थी। उसका दोस्त साथ था। कांवरियों ने सड़क को लगभग पूरी तरह जाम कर रखा था। कार कांवरियों के झुंड में से एक के बाद से छू गया! फिर सारे कांवरियों ने डंडे और लोहे के रॉड से कार की तोड़फोड़ कर दी, उसे उलट दिया! उसमें आग लगाने की कोशिश की!
लोग देखते रहे। जाहिर है, घटना का वीडियो बना! पुलिस आई! महिला ने पिता को खबर की! पिता पैरामिलिटरी फोर्स में ऑफिसर हैं!
सबसे अहम बात-इस समूची घटना के सरेआम होने और पुलिस की मौजूदगी के बावजूद पुलिस में कोई शिकायत दर्ज नहीं कराई गई! युवती, उसके दोस्त और युवती के सैन्य अफसर पिता ने भी कोई शिकायत नहीं की!
सुधिजन अपनी सुविधा से इस घटना की व्याख्या करें!
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सिकंदर हयात • a minute ago
मज़ा तो तब आएगा जब किसी दिन इन हिंदुत्ववादी भोकालो की गाडी टकराएगी हराम का माल खा खा कर चर्बी चढ़ी हुई हे इनको सो भाग भी नहीं पाएंगे फिर देखते हे जो होगा अच्छा ही होगा
ह — मी भोकाल चतुर्वेदी या उसके गेंग ने ज़ोया ही नहीं और भी कई नाम से फ़र्ज़ी आई डी बना रखी हे खेर बा—- र्ड भोकाल एक सम्मलेन में कहता हे की किसी भी मस्जिद के पास अपने माँ बहनो को लेकर गुजर जाइये आपको पता चला जाएगा हमने तो ऐसा कुछ नहीं देखा मगर अब सारी दुनिया नई देखा की कैसे करोड़ो लोग आपनी माँ बहनो को घर में बंद करके बैठे थे जब तक ये भोकाली भीड़ सावन में छंट ना जाए ————————————Girraj Ved
6 August at 20:38 ·
सुबह से हि घर के पास हाइवे पर फुल वोल्यूम में DJ बजाते चल रहे ट्रको और ट्रेक्टरो को देखकर अहसास हो गया कि आज सावन का सोमवार है !
और ये कावड़िये है…
ये कावड़ यात्रा – निठल्ले, नालायक, आवारा और बदमाशों की हुड़दंग यात्रा होती है ! इन दिनों सड़कों पर नजर डालने पर तो यही लग रहा है !
एक ट्रेक्टर के पीछे बंधी ट्रॉली पर एक बड़ी सी झांकी बनाई गई थी, यह ट्रेक्टर और झांकी एकदम दाहिनी तरफ के लेन में थे ! इस ट्रेक्टर पर रखे डीजे में पूरे वॉल्यूम पर कोई फिल्मी गाना बज रहा था !
इस ट्रेक्टर में बैठे 15-30 साल तक की उम्र के लड़के आसपास से बाइक पर बैठकर गुजर रही लड़कियों को देखकर हूटिंग कर रहे थे !
थोड़ा साआगे बढ़ा तो देखा कि इस ट्रेक्टर के आगे संतरी रंग की टीशर्ट- शॉर्ट्स पहने दो- तीन लड़के मंद रफ्तार में दौड़ रहे थे !
इनके पास कांवड़ नहीं, एक के हाथ में बेसबॉल बैट और दूसरे के हाथ में हॉकी थी ! ये अपने आसपास से गुजर रहे गाड़ी वालों को खदेड़ते हुए आगे बढ़ रहे थे इस ट्रेक्टर की वजह से ही लंबा जाम लगा था और इसके आगे रास्ता खुला था ! मगर थोड़ा सा आगे बढ़ने पर दोबारा इसी तरह के हालात मिले !
सबसे ज्यादा दुख ये देखकर हुआ कि इन हुडदंगीयों के चक्कर में ट्रेक्टर के पीछे एक एम्बुलेंस फँसी हुई थी शायद ज्यादा सीरियस केस रहा होगा एम्बुलेंस वाला बार बार हॉर्न बजाकर आगे निकलने कि भरसक कोशिश कर रहा था, लेकिन भाँग के नशे में झूमते इन हुडदंगीयों पर उसका कोई असर नहीँ था ! बल्कि बार बार कोई ना कोई उस एम्बुलेंस के पास जाकर उसे हॉर्न बजाने से रोक रहा था !
अगले चौराहे से ये यात्रा शिव मंदिर वाली सड़क की और घूम गयी जो लगभग डेढ़ किलोमीटर आगे है, मंदिर और चौराहे के बीच महिला कॉलेज, गर्ल्स स्कूल और कामकाजी महिला छात्रावास पड़ता है ! इस सड़क पर घूमते ही कावड़ियों का जोश दुगना हो गया, DJ की आवाज़ भी और तेज हो गयी ! स्कूल कॉलेज जाने वाली लड़कियाँ डरी सहमी सी वहाँ से निकल रही है, हालांकि उनकी सुरक्षा के लिए वहाँ पुलिस मौजूद है लेकिन पुलिस भी इस धार्मिक भीड़ के आगे बेबस नज़र आरही है, और लड़कियों को देखकर हूटिंग करने वालों की ज़बान पर अब अश्लील फब्तियां आचुकी है !
….शायद आज हर शहर का नजारा भी ऐसा ही होगा !
———
सावन के महीने में शुरू होने वाली कांवड़ यात्रा हिंदू धर्म की ‘महा पाखंड’ यात्रा बन चुकी है ! इस महीने में उत्तर भारत के लगभग हर शहर के अखबार कांवड़ियों के उत्पात से भरे रहते हैं !
इससे अंदाजा लगता है कि “इन कांवड़ियों में उन लोगों की तादाद ज्यादा है, जो अपने घरवालों पर भी बोझ बन चुके हैं!”
ये उन घरों के नकारे बेटे हैं, जिनके परिवार वाले इन्हें पैसा देकर कांवड़ यात्रा पर भेज देते हैं कि चलो, कुछ दिन तक तो घर पर शांति रहेगी !
और ये आवारा सड़कों पर गुंडागर्दी करते फिरते हैं ! भोले बाबा के नाम पर चरस-गांजा पीते हैं ! स्कूल की बच्चियों को छेड़ते हैं ! सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाते हैं और कई बार तो दंगे भड़काने से भी पीछे नहीं हटते ! और, मजाल कि कोई इन्हें कुछ कह दे !
इसी ‘पवित्र धार्मिक यात्रा’ की वजह से हर साल गाजियाबाद, इलाहबाद समेत गंगा किनारे बसे तमाम शहरों के स्कूलों को बंद करना पड़ता है ! इस बार तो दिल्ली में भी कई जगह स्कूल बंद करने पड़े है ! हर साल इनके उत्पात की वजह से कई शहरों में धारा 144 भी लगानी पड़ती है !
कई जगहों पर इस यात्रा की वजह से एक्स्ट्रा फोर्स तैनात करनी पड़ती है !
इन कांवड़ियों की सुरक्षा के लिए नहीं, बल्कि आम जनता को इन ‘श्रद्धालुओं’ से बचाने के लिए !
एक महीने के लिए लड़कियों, मरीजों और मेहनतकश लोगों के लिए समस्या बन जाने वाली इस यात्रा पर बैन लगा दिया जाना चाहिए !aj Adiwal कायर से कायर डरपोक लौंडें भी भीड मे सांवरिया बन जाते है इनका इलाज भिड बनकर ही पॉशिबल है जनता जाग उठे और झुडं बनकर सडको पर हुंडदंग करते कांवडियो को पिटकर बॉवरिया बनादे
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Girraj Ved
Girraj Ved सावरकर के चेले है… बम पर पड़ने लगे तो.. बम बम भोले करके माफीनामा पेश करेंगे——————Share ›
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सिकंदर हयात • an hour ago
मुसलमानो में भी यही कुछ हे हालांकि इन संघियो से तो खेर बहुत सोबर हे जिंदगी से परेशान और हारे हुए लोग दीन फैलाते दिख जाते हे
Anita Misra19 hrs · एक हमारे चाचा थे…धर्म रक्षा का भारी बोझ उन्होंने अपने नाजुक पैरासाइट कंधों पर उठा रखा था। पापा ने कई दफ़ा पैसे देकर कई तरह के बिजनेस कराए। लेकिन उन्होंने पैसे को तुच्छ समझा सावन में कावंड़ लेकर निकल जाते इस बीच धंधा पानी बंद.. भई अब इससे जरूरी काम क्या था कि भोले को खुश करो वो शायद कुछ कमाल करें और बिना किसी मेहनत के काम चल निकले इस आस्था में कई सौ किलोमीटर जाते …फिर एक काम बंद दूसरा शुरू फिर पापा पैसे देते..तब तक नवरात्र आ जाते फिर उन पर माँ का दौरा पड़ता फिर उन्हें लगता भैया का पैसा देना काफी नही माँ की कृपा जरुरी है। बस फिर उनका अनुष्ठान चलता। इस तरह कुछ दिन बाद काम ठप फिर कोई नया बिजनेस …..खैर फाइनली काफी पैसा बर्बाद करके आधा दर्जन करीब बच्चे पैदा कर सन्यास ग्रहण कर लिया।
ये जो कावड़ियों के दारू पीते, तोड़फोड़ करते , मार पीट करते पिक लगा रहे सब लोग और इस गलतफहमी में हैं कि कुछ बदल जायेगा तो ये मासूमियत है। ये सब और बढ़ रहा और बढ़ता जाएगा… मामला सिर्फ आस्था का नही है वर्ना शांति से निपट जाता। मामला है इनमे तमाम बेरोजगार हैं। जो नही है पर इतने दबे कुचले हैं कि इसमें अपनी पहचान खोज रहे हैं। कभी कोई तवज्जो नही मिली आयडिंटीटी क्राइसिस है….सोचो कहाँ मोहल्ले के एक अदना सिपाही चार झापड़ मार देता था। अब आप नेशनल गेस्ट हैं आप पर इतना बड़ा पुलिस ऑफिसर और डी एम पुष्प वर्षा कर रहा है।
इतना काफी नही है क्या तात्कालिक गर्व के लिए ? वो गर्व इतना फूल जाए तो खुद को ख़ास समझकर रास्ते मे हर किसी को उड़ाते चलो।…क्या हैसियत है किसी की जो बाबा के काम मे अड़ंगा लगाए पीट दो .कोई नही रोकेगा सरकारी अमला फूल बरसायेगा आप चाहे जो बरसाये। भक्ति का अहंकार कम नही होता है।
इन्हें पता है जब ये लौट कर आएंगे तब सबकुछ वैसा होगा कोई इन्हें खास नही समझेगा। कोई पहचान नही होगी। जब बदमाशी नेशनल गेस्ट हो तब सज्जनता से उसके रास्ते से हट जाइये शिकायत न करिये। भोले भला करेंगे पता नही किसका
कितने बड़े ——- मी हे ये संघी लोग पूरी सरकार इनकी हे और बिहारी छात्रों की सुरक्षा में कोताही के लिए रविश कुमार को कोस रहे हे एक दिन कानून के दायरे में इन सभी को अच्छी तरह सबक सिखाया जाएगा आमीन पढ़िए इस जोकर को और याद रहे की ये जोकर संघ खेमे के बुद्धिजवी लोग हे
Swami Vyalok
23 mins ·
बारिश हो रही है। धुआंधार, मूसलधार।
मैं दूर ताड़ के पेड़ को झूमता हुआ देख रहा हूं, सोचता हूं कि अभी नेहरू विहार और मुखर्जी नगर के बिहारी लड़के क्या कर रहे होंगे?
खबर है कि कल से ही पुलिस उनको दौड़ा रही है, साथ में स्थानीय गुंडे भी। (यह बात दीगर है कि दिल्ली में भला स्थानीय होने का दावा कौन करता है, या कर सकता है। पंजाबी तो यहां खुद ही शरणार्थी होकर आए, जाट भी लड़ाइयों के बाद लड़ते-भिड़ते आए, बाकी अब पुरबियों ने यहां दखल जमा लिया है) ।
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…बिहारियों का मुख्यमंत्री तुगलक हो गया है। उसे यह शर्म की नहीं, गर्व की बात लगती है कि 3 करोड़ बिहारी बाहर के राज्यों में अपमानित, लांछित होकर किसी तरह अपना जीवन-यापन कर रहे हैं। उनके लिए यह शायद ही सोचनीय हो कि दड़बेनुमा कमरों में किस तरह छात्र अपना जीवन गुजारते हैं और परीक्षा की तैयारी करते हैं।
…आखिर, बिहारी बाहर क्यों जाएं? इस राज्य में अगर उसे मुखर्जी नगर या कोटा की सुविधाएं मिलें….(वह भी क्या, पढ़ाई की, कोचिंग की, और किताबों की) तो शायद ही वह मार खाने औऱ अपमानित होने बाहर जाएगा।
….केजरी को केवल बिहारियों के वोट चाहिए। वैसे भी, उसके पास तो सदाबहार बहाना है कि पुलिस केंद्र के पास है।
….बीच में बिहारी छात्र-छात्राएं पिस रहे हैं।
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…ऐसे में मुझे स्वयंभू और जिहादी पत्रकार की भी याद आती है। रवीश को कितने साल हो गए होंगे, फील्ड में निकले हुए? जब वह रवीश की रिपोर्ट करते थे, जब मैं भी उनको पसंद करता था। क्या वह आज रिपोर्टिंग पर निकलेंगे….या आज भी फोन पर उन लोगों को डांट देंगे, जो इसकी ख़बर उन्हें देंगे। आज, एक खबर तो वैसे उनका इंतजार कर रही है।
(पुनश्चः दिल्ली के पत्रकार मित्रों से अनुरोध है कि नेहरू विहार और मुखर्जी नगर की ख़बर लें, क्योंकि नीलोत्पल मृणाल के मुताबिक हालात बहुत खराब हैं और मीडिया की कोई ख़बर नहीं है)।
भोकाल चतुर्वेदी और उसका गैंग काफी सकिर्य हे उसके वीडियो भाषण देखे वो इसी तरह की हरकतों के लिए भड़का रहा हे काण्ड के बाद पैसा भी दे रहा हे उसके खाते में काफी पैसे आ रहे हे उसकी गिरफ़्तारी होनी चाहिए https://khabar.ndtv.com/news/crime/ndtv-exclusive-panic-in-dadri-five-incidents-of-firing-on-the-same-pattern-1900002?type=news&id=1900002&category=crime
इस बार बाबा भारती के साथ ये हुआ मुझे डर हे की एक तो पार्किंग दूसरा अंकल आंटी का वार इन्ही कारणों से तीसरा विश्वयुद्ध होगा ———————————–
”Abhinav Pandey
24 August at 21:10 ·
हेलमेट लगाये … भगवा स्कार्फ मूँह पर लपेटे अपन गुनगुनाते गाड़ी चलाते जा रहे थे…. तभीच् अपनी नजर पड़ी एक लगभग दसवीं क्लास में पढ रही कुल ड्युडनी टाइप पतली सी लड़की पर… जिसने लगता है हाल ही में पप्पा से लड़कर स्कुटी प्राप्त की हो… पता नहीं लायसेंस था भी की नहीं…. अब चुंकि माय लायफ माय एटीट्युड टाइप वाली यह लड़कीयाँ बातें बड़ी बड़ी कर लें… लेकिन इन्हें पेट्रोल का अंदाजा नहीं होता… पापा की परी बनती उड़ रही इस लड़की की का पेट्रोल भी खतम हो चुका था.. इधर उधर मदत को ताक रही थी… शरीर में इतना दम कहाँ की गाड़ी खींच कर पेट्रोल पंप तक ले जा सकें।….
ऐसे में एक जिम्मेदार नागरिक होने की वजह से मैं मदत के लिये उसके पहुँच गया…. लड़की से कहा की डिक्की खोलो उसमें बोतल वगैरह होगी …. डिक्की से बोतल मिल गयी … अपन बोतल लेकर सामने के आधा कि.मी. पेट्रोल पंप पर गये… लंबी सी लाइन लग कर पेट्रोल लिया पचास का… कारण उससे ज्यादा पेट्रोल आ भी न सकता था उस बोतल में… पेट्रोल ले अपन वापस उस 35 Kg की कन्या के पास पहूँच गये… पेट्रोल उसकी टंकी में भरा… उसने जो 100₹ पेट्रोल के लिये दिये थे उसमें से 50₹ लौटा दिये।…
अब इतना करने के बाद एक लड़का क्या चाहता है?… दो मीठे शब्द?… जैसे थैंक्यू व्हेरी मच…. वगैरह।
लड़की बोली – ” थैंक्यू अंकल। ”
मैं मन ही मन बोला यह थैंक्यू भैया बोल देती यह हादसा तो मैं झेल लेता… कई बार हो चुका है लेकिन अंकल? मुझसे उम्र में कुछ दस साल ही तो छोटी होगी?.. माना की शादी हो गयी है…लंबा चौड़ा दिखता हूँ दाढी वगैरह माशाअल्ला बड़ी अच्छी और घनी है… भरा शरीर होने की वजह 28-29 का तो लगता ही हूँ 26-27 का होने का बावजूद … लेकिन फिर भी अंकल? …. तब ध्यान आया की अरे अच्छा मैंने हेलमेट जो पहन रखा है… स्कार्फ से चेहरा जो ढँक रखा है.. अब हल्का सा निकला हुआ पेट और ढँके हुये चेहरे को देखकर तो किसी भी 15-16 साल की बच्ची को अंकल ही लगूँगा न?…
उस लड़की को उसके अंदाजे पर बेइज्जत करने के लिये … उसे यह एहसास दिलाने के लिये कि उसने जिसे अंकल बोला है वह आज भी लाखों जवां दिलों की धड़कन है… वह तो ठीक है वरना हाफ सेंचुरी लगा होता यह बंदा .. ऐसे आदमी को अंकल बोलना कितना गलत है…. मैंने फटाफट अपना हेलमेट और स्कार्फ निकालकर अपना असली रूप उसके सामने रख दिया… और उसे देखने लगा … उसने भी मुझे देखा….
और कहा – ….” बाय अंकल। ”
इस तरह वह चली गयी।
दिल किया उसे रोकूँ, जैसे बाबा भारती ने खड़ग सिंह को रोका था जिसने अपाहिज बनकर बाबा से मदत माँगी थी पर धोखा देकर उनका घोड़ा चुराकर भाग रहा था। और ठीक उसी प्रकार से इस लड़की से कहूँ जैसे बाबा ने खड़गसिंह से कहा था , कि इसका घटना का जिक्र किसी से मत करना, वरना आज के बाद कोई किसी की मदत नहीं करेगा। ”
Mridula Shukla
2 September at 10:05 ·
प्रिय पुरुषों ।
आप हमारे जीवन का अभिन्न हिस्सा हैं। भाई पिता पति प्रेमी आदि तो आदिम समय से रहे हो मित्रता का रिश्ता ,अभी नया नया बना है ।सामाजिक दृष्टि से भी इसे पूरी मान्यता नही मिली है |”वी आर जस्ट फ्रेंड” की सफाई के बाद भी समाज,परिवार में इस सम्बन्ध को लाल घेरे में अलग से रेखांकित करके रखा जाता है ।
समाज की छोड़िये आप ने भी अभी हम सिर्फ दोस्त हैं इसे मन से कहाँ माना है |ईमान से कहो देह से आगे कितनी मित्रों के बारे में सोच पाते हो आप?और मजेदार बात यह है इस मामले में पुरुषों में पूरा समाजवाद है ।
ऐसा नही है कि हमारे पास देह नही हमारी दैहिक इच्छाएं नही हैं मगर हम इस मामले में आपसे थोड़ी ज्यादा सेलेक्टिव रही हैं चाहे उसके लिए हमारी दैहिक संरचना और गर्भ धारण की क्षमता ही जिम्मेदार हो मगर हम अपने लिए पुरुष का चयन बेहद सावधानी से करती है | वह आप भी हो सकते हैं अपने एकांत में स्त्री समाज द्वारा गढ़ी गयी छद्म नैतिकताओं से मुक्त होती है| यह मेरा अनुभव रहा है ।
सोशल मीडिया ने हमे आपको इनबॉक्स दिया जहां हम नितांत अकेले होते हैं |अपने आदिम रूप में आप वहां भी स्त्री से जुड़ने का मुख्य कारण उत्तेजना ही पातें है क्योकि बाकी हर कामना की पूर्ति के लिए रिश्ते हैं आपके पास |स्नेह के लिए माँ है बहन है रूटीन बिस्तर के लिए पत्नी कंधो को बल मिल जाता है पिता भाई से । इंटलेक्चुअल बातों के लिए पुरुष मित्र हैं । मूर्ख स्त्री को आप इनबॉक्स में झेलते ही थोड़ी अतिरिक्त उत्तेजना के लिए हो ऐसे में जब वह आपकी अपेक्षाओं पर खरी नही उतरती ,आप खीज कर वह सब कहने लगते हो जो आपके मन मे वास्तव में चल रहा होता है । मसलन ,मूर्ख ,जाहिल कमअक्ल ,गंवार आदि।
स्त्रियों का मामला थोड़ा अलग होता है उन्हें शुरुआत में आप में शुद्ध मित्र चाहिए होता है बाद में समय के साथ चाहे वह जो भी आकार ले । आप समय बर्बाद नही करना चाहते आपको अगले लक्ष्य तक भी जाना होता । साथ ही आपको अपनी मर्दानगी पर पूरा यकीन भी होता है कि आप उतार लेंगे शीशे में| गरमा देंगे ,उत्तेजित कर देंगे ,आदि आदि ।अपने पौरुष के गर्व में अंधे जब आप अश्लील हो रहे होते है ठीक उसी वक्त स्त्री को भी अपने औरतपने पर पूरा विश्वास होता है आपको समझा लेगी अभी वह ऐसी किसी बात के लिए तैयार नही है। भविष्य में क्या होगा पता नही |यही उसकी गलती मान ली जाती है। तब जब आप अश्लील हो रहे होते उसने क्विट क्यों नही किया बनी क्यों रही उस चैट में ।
प्यारे पुरुषों ।
जब आपको लग रहा होता है कि आपकी अश्लीलता को बर्दाश्त कर वह सेट हो रही है उसे उस वक्त आपसे मित्रता की थोड़ी उम्मीद बची रहती है उस समय तक वह आपको खोना नही चाह रही होती|आपको बचपन से इतने प्रेम और आदर की आदत होती है इसीलिए समझ नही पाते यह सब
आपकी आँखे अर्जुन की तरह मछली की आँख पर होती है | कभी किसी भावना में बह अगर आपके आई लव यू पर मी टू कह दिया गया तब तो इसको आपका मस्तिष्क “कपड़े उतारने लिये तैयार की तरह डी कोड करता है” | यदि आप प्रतीक्षा करें इच्छाओं से भरी देह उसके पास भी है | मगर आपने उसकी देह को अपनी सम्पति जो मान रखा है | अपनी सम्पति के ताले की चाभी आप खुद के पास ही रखना चाहते हैं | आप मालिकाना हक से भरे हुए सोच ही नहीं पाते हैं आपकी सम्पति आपकी इच्छा को अपनी इच्छाओं मानने से भला इनकार कैसे कर सकती है |
अब जब लिखित में सुरक्षित होने लगा है यह सब तब आपके लिए लिप्साओं का रास्ता और आसान दिखने लगा है |स्त्री ने इसे बर्दाश्त क्यों किया का प्रश्नचिह्न स्त्री को घेरे में बांधता है ।आप मुक्ति पा लेते हैं बहुत आसानी से ।
मगर यह भी सुनते जाइए आप मुक्ति क्यों पा जाते हैं । मेरी माँ कहती थी (मंसेधुन के का ओ तो कुकुर होत्हें कतहूँ मुंह मार दे थें मेहरारुन के आपन इज्जत बचावे रहे के चाही )अर्थात पुरुष का क्या वो तो कुत्ता होता है किसी भी पत्तल में मुंह मार लेता है औरतों को उनसे अपनी इज्जत खुद बचाना होता है ।क्या आप मेरी माँ की बात से सहमत हैं ? मैं तो नहीं होना चाहती | बल्कि चाहती हूँ तुम बिना शर्त मेरे मीत रहो साथी ,सखा |
साथी सखा तो जानते हो न तुम ?
#लड़कीतबचुपक्योंरही खुली चिट्ठी ।
See Translation
कितने बदजात लोग हे ये और कितना हराम का माल इन लोगो के पास इक्क्ठा हे अब पता चला हे की इन लोगो ने एक लड़की तक हायर कर रखी हे जो इन हिंदुत्ववादी ठरकियो से सौलह साल की ज़ोया बन कर बात करती हे हलाकि अच्छी बात हे की कई हिन्दुत्त्वादि मुर्ख हमारा ये लेख पढ़ कर चर्चा करने लगे हे की ज़ोया भोकाल चतुर्वेदी के गेंग का कोई गेंडा हे इसके आलावा भी गेंग ऑफ़ भोकाल ने कई फ़र्ज़ी आई डी बना रखी हे हे
Jitendra NarayanYesterday at 17:41 ·आरएसएस की बाँझ विचारधारा है,उसमें रहकर सृजन और कलासृजन संभव नहीं है। संघ में रहकर मुनाफा पैदा कर सकते हो, मोटा धन कमा सकते हो,एक के तीन बना सकते हो। अच्छे गुण्डे,माफिया बन सकते हो !लेकिन बेहतरीन लेखक, कलाकार, संगीतकार और अच्छे मनुष्य नहीं बन सकते।
आरएसएस जन्म से उलटा पुलटा संगठन रहा है , यह बात अपने आपमें प्रमाण है कि उसमें सृजनक्षमता नहीं है।मसलन्, क्या आप पाँच बडे शास्त्रीय संगीतकारों और फ़िल्मी संगीतकारों के नाम बता सकते हैं जो कभी युवापन में संघ की शाखा में गए या जिनकी कला संघ से प्रभावित थी ! क्यावजहहै हर क्षेत्र के कलाकार संघ से दूर रहे और उन्होंने उदारतावादी या रेडीकल परंपरा को अपनाया?इसी तरह क्या हिंदी फिल्मों के पाँच निर्देशक और प्रमुख अभिनेताओं के नाम बता सकते हैं जो बचपन या तरूणावस्था में कभी आरएसएस की शाखाओं में गए हों और जिनके नजरिए पर शुरू से संघ की छाप हो!गाली देने,झूठ बोलने या फिर नकली को असली बताने के कौशल में आरएसएस और उनके बजरबट्टुओं का जवाब नहीं है।वे साइबर संस्कृति -संघ की वर्णशंकर पैदाइश हैं।गिनती के दो-तीन लेखकों के बलबूते पर हिंदी साहित्य का पेट नहीं भर सकते हैं आरएसएस वाले! हिंदी की विशाल परंपरा है, आधुनिक काल में आरएसएस के जन्म के बाद सैंकड़ों हिंदी लेखक पैदा हुए हैं,उनमें से इक्का दुक्का लेखकों को छोड़कर सभी लेखकों ने उदारतावादी या वाम विचारधारा को अपनाया।सवाल यह है लेखकों के लिए संघ की विचारधारा अपील क्योंनहीं कर पाई ?आरएसएस वालों और उनके भक्तों से यही कहना है कि उदारतावादियों में मार्क्सवादियों को गरियाना बंद करो। इनके बिना आप किसी भी विषय का स्कूली शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा का पाठ्यक्रम नहीं बना सकते । आरएसएस दंगों और घृणा फैलाने में समृद्ध है लेकिन ज्ञान -विवेक , सामाजिकचेतना और नागरिकचेतना में दरिद्र है।कैमिस्ट्री , ज्योमैट्री , फ़िज़िक्स और बायोटैक्नोलॉजी के एमए के पाठ्यक्रम के हिन्दुत्ववादी कंटेंट और नजरिए पर कहीं कुछ लिखा गया हो या आरएसएस नया हिंदूवादी कोर्स कैसा हो सकता है ? आरएसएस वाले मित्र मोहन भागवत जी से मिलकर पता करके रोशनी डालें !आरएसएस के लोगों को बीए और एमए के सभी विषयों के पाठ्यक्रमों का तुरंत हिन्दूकरण कर देना चाहिए !!मसलन् क्या उनके पास इतने लेखक , वैज्ञानिक और अवधारणाएँ भी हैं जिनके आधार पर भारत के युवाओं को महान बनाया जा सके !Jagadishwar Chaturvedi
Surendra Kishore
4 January at 20:20 ·
–नो-मो-फोबिया से ग्रस्त–
नोमोफोबिया यानी एक ऐसी बीमारी जिसमें मोबाइल साथ में नहीं रहने पर डर लगता हो !
कहीं जरूरी फोन करना है तो काम बिगड़ सकता है,यदि उस समय मेरे पास मोबाइल नहीं हो।यही है डर !
अब तो स्मार्ट फोन का जमाना आ गया है।शहर से गांव तक यह महामारी के रूप मौजूद है।बढ़ता ही जा रहा है।
स्मार्ट फोन में व्यस्त पिता को पुत्र से बात करने की फुर्सत नहीं तो पति को पत्नी से।अब तो पत्नियों के हाथों में भी स्मार्ट फोन नजर आने लगे हंै।
इससे सबसे अधिक खतरा बच्चों की आंखों को है।पर कौन ध्यान देता है !
कई बार तो आपके ड्राइंग रूम में बैठे आपके चारो -पांचों मित्रों की नजरें अपने -अपने स्मार्ट फोन पर
होती हैं और आपकी तरफ से वे लगातार बेपरवाह रहते हैं।
हद तो तब हो जाती है जब कोई राजनीतिक दल या संगठन किसी गंभीर विषय पर बात करने के लिए कुछ प्रमुख व्यक्तियों की बैठक बुलाए।
बैठक में रह -रह कर मोबाइल की घंटियां ध्यान बंटा देती हैं।
हाल में दार्जिलिंग में जब गोरखा जन मुक्ति मोर्चा ने गंभीर चिंतन के लिए अपने संगठन की बैठक बुलाई तो उसने सख्त हिदायत दे दी थी कि किसी के हाथ में मोबाइल सेट नहीं होगा।
ऐसी बैठकों के लिए एक अन्य उपाय भी हो सकता है।उससे ‘नो-मो-फोबिया’ से एक हद तक लोगों को बचाया जा
सकता है।
बैठक हाॅल में प्रवेश करने से पहले प्रत्येक व्यक्ति अपने मोबाइल सेट की बैट्री एक छोटे लिफाफे में रख कर एक जगह जमा कर दें।
जाहिर है कि उन लिफाफों में उनके नाम लिखे होंगे।इससे लौटाने में सुविधा होगी।
मोबाइल सेट तो पास में रहने का संतोष होगा,पर बात नहीं कर पाएंगे।
यानी यह संतोष रहेगा कि कुछ देर बाद बैट्री वापस मिलते ही बातें होने लगेंगी।शायद इससे ‘नो मो फोबिया’ का असर कम होने लगे।
याद रहे कि नोमोफोबिया शब्द 2010 से ही चलन में है।
@ 4 जनवरी, 2019 को प्रभात खबर -बिहार में प्रकाशित मेरे काॅलम कानोंकान से।
बहुत ही गन्दा आदमी हे भोकाल चतुर्वेदी और उसका गेंग हुआ ये की इसके गेंग की फेक id ज़ोया की आगरा के एक संघी के साथ लाइक्स की छीना झपटी में बहस हो गयी हे उसके बाद से जो गंदी गन्दी बाते इस ज़ोया नाम के हिज़ड़े की id से की गयी आप सोच भी नहीं सकते हे भला कौन लड़की ऐसी घिनौनी बाते करेगी इसी भोकाल के गेंग ने और भी कई फेक id बना राखी हे मुस्लिम नामो से फेक id बनाना इसका प्रिय शगल हे नीम पागल तिवारी जिस फ़र्ज़ी id का पिछले दिनों प्रचार कर रहा था वो भी गेंग ऑफ़ भोकाल चतृर्वेदी की ही हे