अरुण माहेश्वरी
ऐसा लगता है, जब से मोदी सत्ता में आए हैं, पूरे देश में सिर्फ एक ही काम चल रहा है — पूरे सामाजिक ताने-बाने में तोड़-फोड़ और आगे किसी भारी विस्फोट के जरिये पूरे समाज को चिंदी-चिंदी करके उड़ा देने के लिये जीवन के तमाम क्षेत्रों में बारूद बिछाने का काम । यह शासन विध्वंसों के प्रयोग का शासन बन कर रह गया है ।
जीवन का हर स्वरूप हमेशा अनेक तत्वों के एकीकृत रूप से ही तैयार होता है, जिसे unified multiplicity कहते हैं । यह ‘विविधता में एकता’ वाली भारत की अपनी कोई खास विशेषता नहीं है । जब किसी भी ठोस से ठोस चीज को असंख्य टुकड़ों में बिखेरा जा सकता है, यह बिखराव ही इस बात का प्रमाण है कि हर चीज असंख्य तत्वों का समुच्चय होती है । इसीलिये, ध्वंसात्मकता मात्र के लिये हमेशा किसी बुराई के होने की अनिवार्यता नहीं होती है । वह खुद में एक स्वायत्त, स्वतंत्र खतरनाक प्रवृत्ति भी हो सकती हैं ।
खास तौर पर आज असम में राष्ट्रीय नागरिक पंजी के नाम पर जो परिस्थिति बन रही है, वह तो जैसे गुजरात के 2002 के नर-संहार के आगे हमारे देश में व्यापक पैमाने पर एथनिक क्लींजिंग की तरह की तैयारी की तरह दिखाई दे रही है । असम में आबादी की संरचना का विषय कई भौगोलिक-राजनीतिक कारणों से ही एक बहुत जटिल विषय बना हुआ है । इसे लेकर असमिया समाज में पिछले पचास साल से भी ज्यादा समय से भारी सामाजिक-राजनीतिक तनाव कायम है । बगल के पड़ौसी देश बांग्लादेश में बहुत सालों से, पाकिस्तान के दिनों से ही हमेशा एक अस्थिर राजनीतिक-आर्थिक परिस्थिति बनी रही है । इसीलिये वहां से दुनिया के सभी देशों में आबादी का एक निरंतर प्रवाह चलता रहता है । दुनिया के अधिकांश देशों में आपको बांग्लादेश के लोग मिल जायेंगे । पड़ौसी मुल्क के नाते रोजगार की तलाश में भारत में भी वहां से लोग आते रहे हैं और नाना उपायों से वे भारत में ही बस भी जाते हैं ।
नाना प्रकार की विपदाओं के कारण आबादियों के अपनी मूल स्थान से स्थानापन्न होने की यह समस्या सारी दुनिया में एक स्थायी समस्या है और इससे सभी जगह खास प्रकार के सामाजिक-राजनीतिक तनाव भी पैदा होते रहे हैं । आज पश्चिम के देशों में भी शरणार्थियों की समस्या सबसे बड़ी राजनीतिक समस्या है । लेकिन इस दुनिया ने वे दृश्य भी देखे हैं जब, किसी अन्य देश के नागरिकों को नहीं, हजारों साल से रह रहे यहूदियों को हिटलर ने लाखों की संख्या में गैस-चैंबरों में ठूस कर मार दिया था । इसीलिये, आबादी के किसी हिस्से से, सह-नागरिकों से भी घृणा के मूल में हमेशा उनकी नागरिकता का सवाल ही प्रमुख नहीं होता है । ऐसी नफरत की अपनी खुद की ही एक फितरत होती है, जैसा कि हमने ध्वंसात्मकता के बारे में कहा — एक स्वतंत्र, स्वायत्त प्रवृत्ति !
बांग्लादेश से हमारे देश की तकरीबन 92 किलोमीटर की जल-सीमा है जिसे किसी प्रकार से भी पूरी तरह से बंद करना अब तक संभव नहीं हुआ है । इसीलिये तमाम राजनीतिक-सामाजिक आंदोलनों और दबावों के बावजूद असम में बांग्लादेश के लोगों का आना आज तक भी पूरी तरह से रुक नहीं पाया है । इसका भारी प्रभाव वहां आबादी में वृद्धि की दर के आंकड़ों पर भी पड़ा है । इन तथ्यों का संज्ञान लेते हुए ही सुप्रीम कोर्ट ने सन् 2009 में अपने एक फैसले में असम में बाकायदा नागरिकों का एक रजिस्टर तैयार करने का आदेश दिया था । असम सरकार ने उसी रजिस्टर को हाल में प्रकाशित किया है, जिसके कारण पूरे असम में ऐसी उथल-पुथल मची हुई है, जिसकी विध्वंसक संभावनाओं का अनुमान तक लगाना कठिन है । इस रजिस्टर को प्रकाशित करने के पहले ही पूरे राज्य में सेना को तैनात कर दिया गया था ।
रजिस्टर में अब तक दर्ज नामों की जो पहली सूची जारी की गई है उसमें कुल 1.9 करोड़ लोगों के नाम शामिल हैं और 1.39 करोड़ ऐसे लोगों के नाम शामिल नहीं हैं जिन्होंने अपनी नागरिकता का आवेदन किया था । जिन नामों को शामिल नहीं किया गया हैं, उनमें राज्य के एक-दो मंत्री और सांसदों के नाम भी शामिल हैं । यद्यपि राज्य सरकार ने कहा है कि वह आगे और भी सूची प्रकाशित करेगी ताकि अब तक की सूची की कमियां दूर हो सके । लेकिन राज्य में अभी जो भाजपा की सरकार है उसने इस पूरे मामले में यह कह कर जटिलता पैदा कर दी है कि 2014 तक बांग्लादेश से राज्य में जितने हिंदू आए हैं, उन्हें वह नागरिकता देने के पक्ष में है, लेकिन मुसलमानों को नहीं । इस प्रकार, पहली बार भारत में नागरिकता के सवाल को धर्म की पहचान से, अथवा शासक दल की अपनी मन-मर्जी से जोड़ने की जो कोशिश की जा रही है, वह बेहद खतरनाक है । इससे भविष्य में हमारे देश में जिस प्रकार के भयानक सामाजिक तनाव पैदा हो सकते हैं और किस प्रकार यह भारत में हिटलरी जन-संहार की, जातीय क्लींजिंग की राजनीति की एक नई जमीन तैयार कर सकती है, इसकी आशंका करना जरा भी निराधार नहीं है ।
पिछले साढ़े तीन साल से ज्यादा के मोदी शासन के काल में अपने पड़ौसियों से नफरत करने, नागरिकों के बीच आपस में अविश्वास पैदा करने के जो सभी उपक्रम चल रहे हैं, यह हमारे देश को सचमुच साक्षात नर्क में बदल देने के उपक्रम से कम नहीं है । सार्त्र का एक नाटक है — नो एक्सिट । इसके अंत में सार्त्र यही कहते हैं कि यदि आपको अपने जीवन को नर्क में बदलना हो तो आप अपने पड़ौसी से नफरत करना शुरू कर दीजिए, उसे हमेशा अविश्वास की दृष्टि से देखिये । इससे उसका कितना अनिष्ट होगा, यह तो कोई नहीं कह सकता, लेकिन आपका जीवन जरूर नर्क में तब्दील हो जायेगा । हमारे आज के हुक्मरान और हमारा मीडिया आज इसी काम में लगे हुए दिखाई देते हैं । कहना न होगा, परस्पर सामूहिक नफरत पूरे सामाजिक जीवन को जहन्नुम बनाने से कम पाप नहीं है ।
नर्क बना रखा हे इन संघियो ने एक ये हे संघी राक्षस भोकाल चतुर्वेदी ये सोशल मिडिया पर सौलह साल की ज़ोया बनकर संघी बकवास करता हे ये रविश कुमार का पडोसी ”भोकाल चतुर्वेदी ” हे जैसे गोडसे को काफी समय तक लड़की बनाकर पाला गया था वैसे ही ये या इसका गेंग ही – सोशल मिडिया पर सौलह साल की हिंदुत्ववादी ज़ोया बनकर लिखता हे ताकि लोंडे अट्रेक्ट हो खेर हुआ ये की इसी की वैचारिकजात का भाजपा की एक रद्दी का संपादक —— झा जिसकी बीवी बेचारी मेहनत करके इसका घर चलाती हे और ये घर बैठकर ये सब करते हे की एक दिन इस के साथ फ़्लर्ट कर रहा था खेर भोकाल चतुर्वेदी उर्फ़ ज़ोया लिखता हे अगर ऐसा होता हे जैसा ये भोकाल हिज़ाब करके लड़की बनके लिखता हे तो ये हम जैसे शुद्ध सेकुलर मुस्लिम सोच के लिए सुनहरा मौका होगा हम तो हमेशा से कहते हे की मुसलमान मुसलमान मुद्दों से दुरी बना ले और असली मुद्दों पर मैदान में आये नो हिन्दू मुस्लिम तो कुछ ही समय बाद पुरे उपमहाद्वीप में क्रांति हो जायेगी सबका भला होगा आमीन ———————————————————————————————————— ” भोकाल उर्फ़ Zoya
15 hrs ·
पिछले 3 सालों में ‘राजनैतिक भारत’ हैरतअंगेज़ रूप से बदल गया है… सत्ता के केंद्र बदल गए और एक मुश्त वोट के दम से मनचाहे दल को सत्ता पर काबिज कराने वाली कौम केंद्र से बाहर हो गई…
इसी राजनैतिक भारत मे अखलाक की नृशंस हत्या के वक्त सेकुलर नेताओ का जमघट दादरी में जमा हुआ था… लाखों करोड़ो रुपए और फ्लैट न्योछावर करने की होड़ लग गई थी… सोशल मीडिया से लेकर जंतर मंतर तक लहू न केवल बोल रहा था बल्कि ज़ोर ज़ोर से इंकलाब जिंदाबाद चिल्ला रहा था … यूएन को चिट्ठी लिखकर मौजूदा सरकार को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कटघरे में खड़ा किया गए… अवार्ड वापसी का मेला लगा दिया गया था… तगड़ी सुरक्षा में रहने वाली फिल्मी हस्तियों को भारत मे रहने में डर लगने लगा था…
इसी राजनैतिक भारत मे ठीक 3 साल बाद उससे भी भयानक तरह एक और हत्या हुई… वीडियो बना कर सोशल मीडिया पर शेयर किया गया… कोई एवार्ड वापस नही हुआ… कोई फिल्मी कलाकर बिल से बाहर नही निकला… जंतर मंतर पर सिर्फ एक दिन के लिए सेल्फ़ीबाज़ों की दिखावटी भीड़ हुई… ‘लहू बुलवाने’ वाले मुसलमानों के स्वघोषित ठेकेदार इसे दलित आतंकवाद तो छोड़िए हिन्दू आतंकवाद तक कहने में संकोच करते रहे… धर्म के नाम पर हुई इस हत्या को हिन्दू आतंकवाद के बजाय संघी या भगवा आतंकवाद कहते रहे ताकि इनकी वाह वाही करने वाले सेकुलर हिन्दू मित्र और हिन्दू दलित समुदाय नाराज़ न हो जाए…
हत्यारा दलित समुदाय से था इसलिए भीम मीम एकता के परम पैरोकार बण्डल साहब को सदमे से उबरने में 12 घण्टे से ज्यादा लगे… बेहद दबाव और तानों के बीच 12 घण्टे बाद बण्डल साहब की एक सधी हुई टिप्पणी आई कि शम्भू को ब्राह्मणों ने बहलाकर हत्या करवा ली… फिर एक गुमनाम से ‘रैगर महासभा संगठन’ के शम्भू को बिरादरी से बाहर करने का रिफरेंस देते हुए बण्डल साहब ने अपने तरकश से वही पुराने भगवा आतंक , ब्राह्मण आतंक, हिन्दू आतंक के तीर चलाने शुरू कर दिए, दलित आतंकवाद इसलिये नही कहा ताकि मुसलमान जे बीम जे मीम का झुनझुना बजाते रहे…
पिछले कुछ समय के राजनीतिक घटनाक्रम पर नज़र दौड़ाइये… उत्तर प्रदेश में योगी सरकार द्वारा कुम्भ का नाम बदलने के बाद नेता प्रतिपक्ष ने विधानसभा के अंदर कहा कि कुम्भ का नाम बदलना हिंदुओ की धार्मिक आस्था का अपमान है, सत्ता पक्ष नकली हिन्दू है असली हिन्दू हम है… इससे पहले कभी समाजवादी पार्टी को हिंदुओं की धार्मिक भावना का ख्याल करते देखा आपने…?
दिल्ली में केजरीवाल सरकार ने कब्रिस्तान मुद्दे पर न केवल मुसलमानों को दुत्कारा बल्कि मुस्लिम युवकों की पुलिस से पिटाई भी कराई… ये वही केजरीवाल है जो चुनाव में टोपी पहनकर कब्रिस्तान के लिए अनुदान की घोषणा किए थे…
नीतीश कुमार पहले ही हिंदुत्व की गोद मे जा बैठे है, लालू यादव जेल में है,सत्ता से बाहर तो पहले ही हो चुके थे … ममता बनर्जी भी आने वाले वक्त में हिन्दू राजनीति करने के संकेत दे चुकी है… लगभग सभी राजनीतिक दलों ने अंदरखाने संगठित हिन्दू वोट बैंक की ताकत को अच्छी तरह से समझ लिया है लेकिन मुसलमान ये बात न समझ पाए इसलिए उसे एवीएम हैकिंग का झुनझुना पकड़ा दिया गया है…
पूरे गुजरात चुनाव में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी खुद को हिन्दू साबित करने के लिए मेहनत करते रहे… मन्दिर मन्दिर मत्था टेका… 2002 से लगभग सारे चुनाव में मुसलमानो से गुजरात दंगों के नाम पर वोट मांगने वाली कांग्रेस ने हिन्दू पिछड़ो से सौदेबाज़ी की, हिन्दू पटेलो से सौदेबाज़ी की, हिन्दू दलितों से सौदेबाज़ी की मगर मुसलमानों का नाम भी नही लिया… अगर इस चुनाव में गुजरात के दलितों ने कांग्रेस को वोट किया तो इसी लिए कि उसने मुसलमानों की बात करके हिन्दुओ का ध्रुवीकरण नही होने दिया… गौर करने वाली बात ये है कि कांग्रेस की ये सारी मशक्कत ख़ुद को हिन्दू विरोधी छवि से निकालने के लिए थी जिसमें वो काफी हद तक सफल रही, हिन्दू समर्थक छवि अगला और मुस्लिम विरोधी छवि कांग्रेस का अंतिम पायदान होंगा…
फिलहाल कांग्रेस को ये तो समझ आ गया है कि वर्तमान में सत्ता सिर्फ हिन्दू वोट बैंक ही दिलवा सकता है लेकिन समस्या ये है कि आज का जागरूक हिन्दू समुदाय हमेशा से हिंदुत्व की राजनीति करती आ रही भाजपा से जुड़ा है… तो एक रास्ता केवल इस वोट बैंक को तोड़ने का है… एक साल पहले तक C बण्डल ज्यादातर दलित हित की पोस्ट करते थे, दलितों को जगाते थे, उन्हें ताकत का एहसास कराते थे, ब्राह्मणों को कोसते थे… इधर कुछ वक्त से अचानक बण्डल साहब 10 में से 9 पोस्ट में ब्राह्मणों के लिए अभद्र भाषा का इस्तेमाल करते हुए मज़ाक उड़ाते है, कमेंट्स में हिन्दू देवी देवताओं के बारे में अभद्र टिपणियां की जाती है, सवर्णो की बहन बेटियों के लिए अपशब्द इस्तेमाल किए जाते है… ऐसा लगता है जैसे जान बूझ कर सवर्णों को उकसाया जा रहा हो… यकीनन बण्डल जैसे लोग जमीन पर भी काम कर रहे होंगे ताकि सवर्ण जमीन पर दलितों के खिलाफ उग्र होकर हमला करें… कोरे गाँव शौर्य दिवस में भी शौर्य गाथा कम पेशवाओं की हार का मज़ाक ज्यादा उडाया गया…
पिछले काफी वक्त से सवर्णो के खिलाफ चलाया जा रहा दलितों का संघर्ष अब परवान चढ़ने लगा है… दलित लड़ना सीख गए है… वो न केवल अपने सांसद विधायक चुन रहे है बल्कि सत्ता में भागीदारी भी कर रहे है… ये दलितों की ताकत है जिसने ब्राह्मण वर्चस्व वाली भाजपा को दलित राष्ट्रपति बनाने के लिए “मजबूर” किया… राजनीतिक दलों के बीच जो मारा मारी कभी मुस्लिम वोटों के लिए होती थी अब वो मारा मारी दलित वोटों के लिए है… दलितों ने मुसलमानो को पूरी तरह रिप्लेस कर लिया है… दलितों ने सत्ता की चाबी मुस्लिमों से छीन कर अपने हाथ मे लेली है… कांग्रेस को पता है दलितों पर कोरे गांव जैसा हर हमला भाजपा को सत्ता से दस कदम दूर और कांग्रेस को सत्ता के करीब कर देगा… कभी जाति के नाम पर किनारे कर दिए गए दलित आज ताकत मिलने से दलित उत्साहित है, और उत्तेजित भी… लम्बे समय तक सत्ता में रहना है तो सब्र करने की बारी अब सवर्णों की है… आने वाला वक्त हिन्दू दलितों का है… जो ‘दलित’ हित की बात करेगा वही देश पर राज रहेगा… किसी भी राजनैतिक दल को अब मुसलमानों की आवाज़ उठाने की कोई जरूरत नही… उन्हें पता है मुसलमान हमेशा की तरह झक मरा कर बिना माँगे हर उस पार्टी को वोट करेगा जो दलितों के सहयोग से भाजपा को हराती नज़र आएगी…
आने वाले वक्त में मुसलमान राजनीतिक ताकत के रूप में सिर्फ गोबर भरी कचौड़ी रह जाएगा जो फेका तो नही जाएगा पर खाया भी नही जाएगा…
जब से हमने लोगो को बताया हे की सोशल मिडिया पर तुम्हारी सपनो की रानी ज़ोया असल में साठसाल का भोकाल चतुर्वेदी हे या फिर उसके ही गेंग का कोई हे तब से ही शायद शायद . ज़ोया पर बहस चल रही हे ठरकी और कुंठित लोगो मानने को तैयार ही नहीं हे की ज़ोया असल में एक संघी गेंडा हे खेर हास्यपद देखिये जो असम की एक संघी लड़की गीता को शायद ऊपर से आदेश मिला होगा तो उसने भरम फैलाने के लिए यु लिखा की ज़ोया सौलह की ही हे गीता—-
8 January at 13:04 ·
एक बात बताओ !
मैंने कभी नार्थईस्ट में फैले extremism पर एक भी लेख लिखा ? आपने कश्मीर में बैठ कर किसी को खुलेआम वहां के आतंकवाद पर लिखते देखा ?
हर व्यक्ति के कुछ अपने लोकल , धार्मिक , राजनैतिक खतरे होते हैं..पॉइंट ब्लांक रेंज पर कोई मुझे गोली मार जायेगा और फेसबुक वाले सिर्फ RIP लिखकर चादर तान देंगे अपनी.
जोया का असली नाम ,पता जानने की चाहत रखने वाले ….उसकी सिक्यूरिटी की गारंटी ले पाएंगे ? फतवे की जद में उसका परिवार आयेगा तो आप क्या कर लोगे ? अब तक कितनो को सिक्योर किया है आप लोंगो ने ?
अरे बच्ची है वो …लिखना चाहती है ..उसे बेख़ौफ़ होकर लिखने क्यों नही देते मर्जी से ..उसका चेहरा देखकर क्या करोगे आप लोग ?
हद है एकदम …अदिति गुप्ता वाली चाशनी में जोया मंसूरी को मत भिगोयिये.उसने किसी का नुक्सान नही किया.
आय सपोर्ट हर …..खुलेआम.
पॉवर टू this वंडरफुल गर्ल.” ———————————– देखिये इनकी नॉनसेंस कुंठित लोगो को ललचाने के लिए बता रही हे की बच्ची हे तो यही इनका झूठ पकड़ा गया मेने ऊपर एक मानव् विज्ञानि के लेख के हवाले से बताया की इंसानो की मेच्योरिटी में अब दस साल का सा फर्क आ गया हे तीस साल की लड़की या लड़का अब बिस साल की जैसी बचकानी और चाइल्डिश भी हो सकती तो समझ लीजिये की भारत जैसे जटिल देश में कोई भी लगातार लेखन लेखन दो चार लाइने नहीं बल्कि लेख लेखन जो आपको पसंद या पढ़ने लायक लग रहा हो उनके लेखकों का तीस पैतीस चालीस या ऊपर का होना अनिवार्य सा समझिये ठीक ठाक भी लिखने के लिए पहले खूब पढ़ना होता हे जीवन के कुछ अनुभव भी चाहिए तब जाकर ऐसा लेखन सामने आता हे जिनसे आप सहमत हो या ना हो पर जिन्हे आप लेख लम्बे भी हो असहमत भी हो तो भी आप जिन्हे पढ़ने की ज़हमत लेते हे तो ऐसे में भला कोई बच्ची ये सब कैसे लिख सकती हे लेकिन इन्हे पता हे की ठरकी लोग कम उम्र लड़कियों के पीछे पागल रहते हे इसलिए एक कम उम्र और मुस्लिम लड़की का करेक्टर बनाया गया जो हिंदुत्ववादी बाते और लम्बे लम्बे लेख लिखती हे अब आप कहेंगे की मुझे कैसे पता चला की ये भोकाल चतुर्वेदी या उसका गेंग हे जिनके पास माल इतना हो सकता हे की इन्होने खुद ही बताया था की बात की बात में अपनी कम्युनल हिज़डो की फौज ( किन्नर भाइयो से हाथ जोड़ कर माफ़ी वो तो इनसे लाख गुना बेहतर और बहादुर होते हे ) के लिए बीस बीस लाख रुपया यु ही आ जाता हे और ये तो खुला खेल हे और भी जाने इन सांपदारयिक राक्षसों को आज और क्या क्या मिल रहा होगा ये भोकाल इतना घोर कम्युनल हे की इसका डी एन ए भी करो तो उसमे भी साम्प्रदायिकता निकलेगी इन लोगो से भिड़ना आसान नहीं हे पैसा ही पैसा सत्ता सब कुछ आज इनका हे पॉवर इतनी हे की ज़्यादा चु चपड़ हम करेंगे तो ये किसी ज़रूरतमंद शिया या अहमदी लड़की को पैसा देकर ज़ोया बनाकर भी पेश कर देंगे कर भी चुके हे कोई मुश्किल नहीं हे आज बस पैसा चाहिए वो इनके पास हे ही सबसे ताकतवर आदमी खुद ये सब झूट तिकड़म पसंद करता हे रविश के शब्दों में ये खुद चुनाव जितने के लिए फेक न्यूज़ प्रोमोट करते हे ज़ोया ही भोकाल य़ा गेंग हे मुझे ऐसे पता चला की एक तो भाषा और लिखने के स्टाइल से पहचान लेता हे दूसरा की एक दिन ये भोकाल ही ज़ोया की आई डी डुग डुगी बाज़ा कर प्रोमोट कर रहा था इसका क्या मतलब हुआ — ? हमें क्या शिकारपुरी समझता हे ये , अरे बताइये संजय तिवारी और चिपलू कब से हिन्दू कटटरता और हिन्दू कठमुल्लावाद हिन्दू साम्प्रदायिकता की दीवानो की तरह सेवा कर रहे हे कब से , फिर भी ना तिवारी के फॉलोवर हे ना चिपलू के क्लिक हे जबकि चिपलू तो रो रो के पागल हो गया अपनी साइट की टी आर पि बढ़वाने के लिए इसने अपने हिन्दू कठमुल्वादी गेंग के लोगो से सौ अपील कर दीं अपने बाल नोच लिए वैचारिकआत्मदाह की धमकी दीं मगर हिन्दू कटटरता वादी गेंग जो आज इतिहास की सबसे बड़ी समर्द्धि और ताकत भोग रहा हे उसने ही कभी इसका प्रचार नहीं किया किया इसने ——– शर्माओ टाइप के यहाँ गुहार की तो उन्होंने कहा की जरा पीछे मुड़ना और दीं ———- पर एक जोरदार लात तो भोकाल ने भी मेरी जानकारी में तो कभी चिपलू या तिवारी को कोई खास प्रचार नहीं दिया फिर भला कैसे एक दिन ये ही ज़ोया की आई डी प्रोमोट कर रहा था फिर ये ज़ोया भी उर्दू और कुछ शेरो शायरी भी ” करता ” हे और ये भोकाल तो हे ही उर्दू आदि का भी जानकार और एक फ्लॉप उर्दू ग़ज़ल लेखक उर्दू लेखन और ग़ज़ल आदि की राजनीति ने ही शायद इसे घोर कम्युनल और मुस्लिम विरोधी बना दिया ज़्यादातर लोग इसी तरह अपने जीवन के कुछ बुरे और शोषण भरे अनुभवों से किसी किसी के विरोधी हो जाते हे वो ये नहीं देखना चाहते की ये पूरा उपमहाद्वीप ही हे घोर शोषण का अड्डा ————————– इति सिद्धम
सोचने वाली बात हे या नहीं , की अगर भोकाल चतुर्वेदी या उसका गेंग या कोई ———– फॉउंडेशन का कोई साज़िश ही अगर सौलह साल की हिंदुत्ववादी हिज़ाब वाली ज़ोया नहीं हे तो फिर भला क्यों भोकाल चतुर्वेदी इसकी आई डी डुगडुगी बजा कर प्रोमोट कर रहा था भोकाल –
——— तिवारी का भी टेगिया मित्र bhi हे तो फिर क्यों आजतक तो भोकाल ने पगलेट तिवारी का तो कभी प्रचार नहीं किया उस पगलेट तिवारी का जिसने हिंदूवादी कटटरता और ———– फॉउंडेशन के इरादों और साज़िशों के लिए शायद सबसे बड़ी क़ुरबानी दि हे कहा तो पगलेट तिवारी हिंदी की शायद सबसे बेहतरीन और निष्पक्ष वैचारिक साइट का मालिक सम्पादक था इज़्ज़तदार था आज ये हिन्दू कठमुल्वाद का मोदी का संघ का एक मामूली प्यादा बन गया हे इसकी भी अब वही घटिया बाते भाषा झूठे वीडियो फोटोशॉप———- दवे जैसे शर्तियामनोरोगी से अब इसकी छनती हे हलाकि तमाम घटियापन के बाद भी हिन्दू कठमुल्लावादी खेमे में तिवारी जैसे कोई और बड़ा विद्वान नहीं हे फिर भी भोकाल ने मेरी जानकारी में कभी पगलेट का प्रचार नहीं किया जबकि जोया का ये डुगडुगी के साथ प्रचार कर रहा था क्यों भला ———— ? क्या इसलिए ना की भोकाली गेंग ऑफ़ गाज़ियाबाद या फिर ———— फॉउंडेशन वाले साज़िशी ही ज़ोया हो सकते हे पगलेट तिवारी की बात करे तो इतनी सेवाओं के बाद भी कोई उसका प्रचार नहीं करता हे नतीजा उसके फॉलोवर इस फ़र्ज़ी ज़ोया के एक चौथाई भी नहीं हे पहले तो दो ढाई hazar ही थे अब जितने भी हे उसमे भी शायद सबसे बड़ा हाथ मेरा भी हो सकता हे मेने जगह जगह इसकी निंदा कर करके इसे खूब प्रचार दिया उसके बाद ही तीन चार हज़ार बढे अच्छा खुद ये इतना मक्कार हे की जब हमने इसके ”वैचारिक धर्मपरिवर्तन ” पर लेख लिखा तो इसने कोई नोटिस ही नहीं लिया कोई जवाब नहीं दिया ये इनकी चतुराई ( मक्कारी ) हे इन्हे पता हे की ऐसा करेंगे तो इनके पाठको को हमारी साइट की जानकारी मिलेगी जो इसने करना नहीं था क्योकि इंसान की ये फितरत होती हे की वो अपनी फिल्ड के नए और कमजोर लोगो को नाकामयाब होते ही देखना पसंद करता हे वो उन्हें चढ़ते नहीं डूबने की दुआ करता हे इसी तरह एक पोस्ट में अपने विशाल पाठको को लख्नऊ का सूफी संत दो चार थकेले उदारवादी लेखकों लेखकिकाओ की जानकारी सी दे रहा था जबकि वो अफ़ज़ल भाई और खबर की खबर या जाकिर हुसैन से परिचित हे और अवश्य पढता होगा मगर जानकारी अपने पाठको को किन्ही और की दे रहा हे क्योकि वो जानता था की भले ही फोटोफिनिश हो मगर जाकिर भाई उस से बेहतर ही विचारक हे और वैसे दोनों से बड़ी बड़ी अध्यात्म और सूफिज़्म की बाते चुग लो मगर अंदर से वही के वही , इंसान की फ़ितरते बदलना नामुमकिन सा काम हे
सिकंदर हयात सिकंदर हयात • 2 minutes agoअगर इस ज़ोया के फर्ज़ीवाड़े के पीछे भोकाल नहीं हे तो फिर जरूर इसमें भोकाल के भी बाप – ———– फॉउंडेशन वाले मक्कारो और ताक़तवरो का हाथ हो सकता हे इन धूर्त और बेहद पावरफुल और साज़िशी लोगो का तो ये बाए हाथ का खेल हे अच्छा इनकी चतुराई देखिये की चाहते तो ये ज़ोया की जगह कोई सलीमा या हमीदा आपा नाम भी रख सकते थे मगर इन्होने कम उम्र लड़कियों वाला नाम और चरित्र पेश किया इन्हे पी ——— झा टाइप हज़ारो ठरकीयो यौन कुण्ठितो की इस फितरत का पता था की ये लोग कमउम्र लड़कियों के पीछे अवशय पागल होते हे इसलिए नाम और चरित्र कमसिन सा रखा गया और तीर बिलकुल सही निशाने पर लगा सोशल पर बड़े बड़े अच्छे लेखकों से हज़ार गुना ज़्यादा इस फ़र्ज़ी ज़ोया के फ़ॉलोअर हे और देखा की माशाल्लाह लखनऊ के सूफी संत जो अपने पाठको को खबर की खबर और जाकिर हुसैन जैसे जीनियस लेखन के बारे में बताना जरुरी नहीं समझते हे और वो भी भी इस फर्ज़ीवाड़े की फ्रेंड लिस्ट में हे कौन जाने उन्हें भी गुदगुदी हुई हो की कानपूर से लखनऊ दूर ही कितना हे — ?
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वैसे ये कोई नयी बात नहीं हे इससे पहले भी हुआ स्नोवा कांड पता ही हे हुआ शायद ये था की एक हिमाचली लेखक शायद अपनी कहानिया रिजेक्ट होने से भन्नाया हुआ था वही शायद पहाड़ो पर उसे कोई श्वेत लड़की मिल गयी तो उसने शायद उसकी आई डी लेकर कहानिया भेजना शुरू कर दिया जो धड़ाधड़ तो छपी ही इसके आलावा भी हिंदी के खूसट बूढ़ो के एंजियोप्लास्टी वाले दिल में हलचल और भगदड़ मच गयी एक तो सूना हे की अटेची लेकर पहाड़ो में मारा मारा फिरा ( पुष्टि नहीं ) फिर बाद में पता चला की चौदहवी का चाँद या आफ़ताब नहीं सच में ही आफ़ताब थाइस भोकाल उर्फ़ ज़ोया उर्फ़ ——– फॉउंडेशन वालो की कोई साज़िश——- ? जो भी हे की ये बात बिलकुल ही सटीक हे की दलित अब राजनीति के नए मुसलमान हे ——Pawan बरेली 6 hrs · अंततः भारत उसी मोड़ पर खड़ा है कि जब 23 मार्च 1940 को लाहौर में लांखोँ मुसलमान इकट्ठा हुए वहां उन्होंने एक पृथक राष्ट्र ‘पाकिस्तान’ की मांग पूरे ज़ोरशोर से उठाई ! हिन्दू मने कांग्रेसी उस समय स्वतंन्त्रता नही बल्कि सिर्फ एक स्वतंत्र उपनिवेश को मांग से आगे नहीं बढ़ पाये थे ! हिन्दू कौम,जो सदैव मूर्खतापूर्ण दिवास्वप्न देखने के लिए कुख्यात है,वह इस ख्वाब में थी कि ‘स्वतंत्र भारत’ मे हिन्दू-मुस्लिम, भाई-भाई बन कर शांति से साथ-साथ रहेंगे ! यह हालात तब थे कि देश मे 5 बड़े प्रान्त, मुस्लिम बहुल बन चुके थे,देश मे मुस्लिम जनसंख्या 24 % के ऊपर थी ! आज की भांति ही वह देश की संपदा का भरपूर दोहन कर रहे थे,मार-काट मची थी और ख्वाब निज़ामे मुस्तफा का था ! पाकिस्तान की मांग के समर्थन में अनेक पढ़े-लिखे लोग डटे थे, पाकिस्तान की मांग की तार्किक समीक्षा के लिए बाबा साहेब ने पूरी एक किताब “पार्टीशन ऑफ इंडिया” ही लिख डाली थी,जिसमे पाकिस्तान बनाने के लिए सैकड़ों तर्क दिए गए थे और इन्ही तर्कों को लेकर जिन्ना और कम्युनिस्ट पाकिस्तान बनवाने में सफल भी हो गए ! हिन्दू लांखोँ की संख्या में मरते-कटते और बलात्कृत होते रहे, गांधी के नेतृत्व में “ईश्वर ‘अल्लाह तेरो नाम” भी गाते रहे !!परिस्थितियों में अंतर सिर्फ इतना है कि उस समय देश अंग्रेज़ चलाते थे ,आज खुद को राष्ट्रवादी कहने वाले लोग देश को चलाने का अभिनय कर रहे हैं !हिन्दू आज भी उतना ही नासमझ है जितना 1940 या 2 सदी पहले था ,उसका आज भी विश्वास “ईश्वर अल्लाह तेरो नाम” पर है ! देश के प्रधानमंत्री भी “ईश्वर अल्लाह तेरो नाम” की ओर तेज़ी से बढ़ चुके हैं ! उनकी प्रियॉरिटी आर्थिक विकास और स्वच्छता है !! 1940 में पाकिस्तान की मांग का समर्थन करने वाले आज जिग्नेश मेवानी , कन्हैय्या,सीताराम येचुरी,राहुल गांधी और ममता बनर्जी के रूप में पुनः सामने हैं ! गौर से देखेंगे तो पाएंगे कि आज भारत के अंदर कन्याकुमारी से कश्मीर तक हज़ारों पाकिस्तान- गली,मोहल्लों,कस्बों तक मे फैल चुके हैं !पाकिस्तान या एक नए पाकिस्तान के समर्थक जगह-जगह “पाकिस्तान -जिंदाबाद” के नारे गर्व के साथ लगाते हैं !! बस मेरा प्रश्न इतना सा है की 19 राज्यों और केंद्रीय सत्ता पर तथाकथित ‘राष्ट्रवादी सरकार’ इन देशद्रोही तत्वों आगे घुटने क्यों टेंके बैठी है ? इतना बड़ा बहुमत प्रदान करना क्या बर्बाद हो गया ?…..किन्नर के हाथ मे तलवार देने से वह ‘राणा प्रताप’ नहीं बन जाता…
जिग्नेश मेवानी ,उमर खालिद,प्रकाश अम्बेडकर गिरोह ने पुणे,महाराष्ट्र में भयंकर उत्पात,हिंसा का तांडव मचाया,सैकड़ो बसें,ट्रक, दुकानें और घर जला कर फूंक डाले गए ! जिग्नेश मेवानी एंड कम्पनी , गिरफ्तारी वारंट होने के बाद भी मुम्बई में खुले आम विचरण करती रही ,केंद्र सरकार के निर्देश पर महाराष्ट्र पुलिस ने जिग्नेश और उमर खालिद को गिरफ्तार न कर उसे राष्ट्रीय स्तर का नेता बना दिया गया !! अपनी जीत के उत्साह से लबरेज़ जिग्नेश ने बगैर अनुमति संसद मार्ग पर प्रधानमंत्री-गृहमंत्री की नाक के नीचे रैली कर डाली! देश के प्रधानमंत्री को गालियों और उपहास के साथ चुनौती दी ,परंतु जिग्नेश को इस बड़े अपराध के बाबजूद भी गिरफ्तार करने की हिम्मत किसी ‘कथित राष्ट्रवादी’ की नहीं हुई !! बस इन्ही कारणों से पाकिस्तान बनते हैं और देश तोड़े जाते हैं ! जिग्नेश से पिटने का दूसरा बड़ा कारण भाजपा से सर्वदा विमुख दलित वोट बैंक है ,फिलहाल जिसका प्रतिनिधित्व जिग्नेश करता महसूस होता है !
जिग्नेश मेवानी वह शख्स है जो पाकिस्तान और इस्लामी उम्मा के समर्थक संगठन PFI से पैसा लेकर चुनाव लड़ता है ! चुनाव प्रचार में घोषणा करता है कि “यदि मेरी एक बहन और होती तो उसका निकाह मुसलमान से करता” ! सार्वजनिक रूप से 3 लाख का चेक एक मौलाना से लेते हुए फोटो खिचाता है ! खुले आम हिंदुओं को चेतावनी-चुनौती देता है और चुनाव भी जीत जाता है ! #फोटो_देखिए कि भारत मे इस्लामिक ‘उम्मा’ के शासन की वकालत भी करता है Pawan बरेली …….——————————–
नरुका जितेन्द्र13 January at 22:24 · हम दोनों ग्राहक ने एक साथ एक ही ब्रांड का टूथपेस्ट मांगा! दुकानदार बोला खत्म है बहन जी, दन्त भ्रांति दे दूँ??कभी किया नही।
बाबा रामदेव का है।महिला बोलीं फिर तो दे दो अच्छा ही होगा।फिर दुकानदार मुझसे बोला आपको भी दन्त भ्रांति दे दूं भाईसाहब??मैं बोला बिल्कुल नहीं।क्यों!!क्योंकि रामदेव का है। और कोई भी चलेगा।दुकानदार और उक्त महिला दोनों मेरी तरफ ऐसे आश्चर्य से देखने लगे जैसे अजूबा होऊं!!व्यापार में धोखा तो कौन नही करता!! गोरा बनाने का अरबों का व्यापार है।पर कोई संस्कृति देश धर्म का नाम भुनाएँ व्यापार राजनीति के लिए उनसे बड़ा कोई धूर्त नही होता।बाबा के विज्ञापन भरे हैं, देशहित में पतंजलि का उत्पाद इस्तेमाल कीजिये.. ऊपर से देशी, गाय,योग,धर्म,संस्कृति का तड़का।देशहित में कोई चाहे पान के पीक से सड़कें सरकारी भवन की फर्श लाल कर देता हो पर फोकट में देशभक्त बनना सबको अच्छा लगता है।बाबा माल कमाए और भारतीय जनता स्वदेशी इस्तेमाल का पुण्य! इससे बड़ा देशहित क्या हो सकता है!!दुकानदार समझ गया सनकी कम्युनिस्ट है और मुझे दूसरा उपलब्ध ब्रांड थमा दिया।मैं भी चुपचाप निकल लिया।फायदा भी क्या था जो मैं बताता की French luxury group Louis Vuitton बाबा के देशी व्यापार में 3250 करोड़ रुपये लगा रहा है तो वो ये ही कहता बाबा विदेश के धन से स्वदेश चमका रहा है।वो ही बाबा जो कहता था FDI कालेधन का सफेद रुट है। अब जस्टिफाई कर रहा है कि हम विदेशी धन लगाएंगे जरूर पर देश हित मे!!जैसे Louis Vuitton निवेश नही कर रहा मुनाफे के लिए बल्कि 3250 करोड़ गौशाला के डिब्बे में डाल रहा हो!!पर क्या बाबा अकेला बेशर्म है!!49% FDI को छोटे व्यापारियों की हत्या बताने वाले, रोजगार छीनना बताने वाले मोदी जी 100% रिटेल FDI को देशहित बता रहे हैं!!पर मोदी जी से बेशर्म तो मीडिया है जो पलटी मार 100% FDI पर ऐसे चुप है जैसे खबर ही नही उसे और खबरें पर खबरें चला रहा है कि उत्तर कोरिया का #किम बड़ा तानाशाह है दुष्ट है सावधान!!चलिए इनके तो स्वार्थ हैं!तो अव्वल दर्जे का बेशर्म मैं मेरे मित्र #निक्करधारी को ही मानता हूँ जो अभी भी बड़ी शान से स्वदेशी अपनाओ देश बचाओ के पर्चे बांटता है और छाती फुलाकर कहता है!! 800 साल बाद कोई हिन्दू शासक आया है, देश नही बिकने देगा, स्वदेशी स्वाभिमान ऊंचा रखेगा!! वो भी निस्वार्थ!!…न.रुकानरुका जितेन्द्र——————–Ajit Sahiमोदी, शाह, पांड्या, लोया
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एक थे हरेन पांड्या. गुजरात में आरएसएस के क़द्दावर नेता थे. मोदीजी के पहले क़रीबी रहे लेकिन फिर विरोधी. मोदीजी के विरोधी बनने के बाद उन्होंने धमकी दी कि वो सन् २००२ में गुजरात में हुए मुसलमानों के क़त्ल-ए-आम में मोदीजी की भूमिका की जानकारी जाँच आयोग में देंगे. फिर पंड्या की दिनदहाड़े गोली मार कर हत्या हो गई. पांड्या के परिवार वालों ने आरोप लगाया कि हत्या मोदीजी ने, जो उस समय गुजरात के मुख्यमंत्री थे, करवाई है. लेकिन हमेशा की तरह गुजरात पुलिस ने कुछ मासूम मुसलमानों को पांड्या की हत्या का मुजरिम बनाया. इन अभियुक्तों को निचली अदालत से सज़ा हुई लेकिन हाईकोर्ट ने केस को बकवास बताते हुए उनको बरी कर दिया. आज तक पांड्या के असली क़ातिल नहीं पकड़े गए हैं. कुछ सालों बाद सोहराबुद्दीन शेख़ नाम का एक आदमी गुजरात पुलिस ने एंकाउंटर में मार गिराया. लेकिन सोहराबुद्दीन के भाई ने आरोप लगाया कि ये एंकाउंटर नक़ली था और पुलिस वालों ने उसके भाई की हत्या की है. सोहराबुद्दीन की बीवी की भी हत्या हुई थी. कुछ समय बाद सोहराबुद्दीन के एक साथी तुलसी प्रजापति को भी पुलिस ने एंकाउंटर कर दिया. सोहराबुद्दीन के भाई की याचिका पर अदालत ने सोहराबुद्दीन, उसकी बीवी क़ौसरबी और प्रजापति के एंकाउंटरों की जाँच के आदेश दिए. मालूम पड़ा वाक़ई एंकाउंटर झूठा था. आरोप आया अमित शाह पर कि उनके कहने पर पुलिस वालों ने इन लोगों का एंकाउंटर किया. अमित शाह लंबे समय से मोदीजी के विश्वस्त रहे हैं और घटना के दौरान गुजरात के गृह राज्यमंत्री भी थे, यानी पुलिस महकमे के सरगना थे. अमित शाह कुछ महीने इस चक्कर में जेल भी रहे. आख़िर क्यों करवाया होगा ये एंकाउंटर? तो बात ये होने लगी कि दरअसल अमित शाह ने सोहराबुद्दीन को पांड्या की हत्या की सुपारी दी थी. काम हो जाने के बाद सोहराबुद्दीन का ज़िंदा रहना ख़तरनाक था. इसलिए उसको भी यमराज के पास भेज दिया. उसकी बीवी बेचारी इसलिए फँस गई क्योंकि वो चश्मदीद थी. प्रजापति का भी यही दुर्भाग्य था. ये सब चल ही रहा था कि मोदीजी चुनाव जीत कर प्रधानमंत्री बन गए. फटाफट अमित शाह बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बन गए. और इस एंकाउंटर-हत्याकांड का केस सुन रही अदालत के सामने अर्ज़ी डाल दी कि भइया अब हम बहुत बड़े वाले नेता हैं, और हमारी सरकार है, तो अब हमको छुट्टी दो इन आरोपों से. पहले जज ने नहीं माना तो उनका ट्रांस्फर हो गया. दूसरे जज थे बी. एच. लोया. उन्होंने भी अमित शाह की अर्ज़ी ख़ारिज कर दी. तो हफ़्ते भर बाद लोयाजी मर गए. तीसरा जज आया तो उसने दस मिनट में अमित शाह पर लगे इल्ज़ाम को राजनैतिक साज़िश बताते हुए उनको केस से बरी कर दिया. इस जज ने ये बताना भी ज़रूरी न समझा कि वह इस नतीजे पर आख़िर किन सबूतों के आधार पर पहुँचा. सोहराबुद्दीन के भाई ने कहा कि भइया अब मैं न लड़ सकूँगा इतने बड़े नेताओं से और उसने भी अपनी शिकायत वापस ले ली. सब चंगा हो गया. लेकिन अभी दो-तीन महीने पहले लोया के घरवालों के हवाले से एक पत्रिका ने दावा किया कि संभवत: जज लोया स्वाभाविक मौत नहीं मरे. इसके बाद जज लोया की मौत की जाँच की माँग करने वाली एक याचिका बॉम्बे हाई कोर्ट में और दूसरी सुप्रीम कोर्ट में आ गई. अब मोदीजी और शाहजी पर दोबारा आ खड़ा हुआ संकट कैसे टले? तो अगर सुप्रीम कोर्ट के चार जजों की प्रेस कांफ्रेंस का सही अर्थ निकालें तो इस संकट को टलवाने का बीड़ा सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश ने स्वयं उठाया है.
ये है हमारे देश का हाल. समझे कुछ, गुरू? ऐसे अपराधियों को हमने देश का नेता बनाया है. घिन आती है.
Ajit Sahi की वाल से
Pankaj K. Choudhary
2 hrs ·
आदरणीय पंकज के चौधरी का देश के नाम सन्देश:
मैं एक मिशन पर काम कर रहा हूँ …मिशन है हिन्दू समाज को बांटना ..क्यूंकि मेरा मानना है किसी भी देश की 85 प्रतिशत जनसंख्याँ धार्मिक होकर वोट करना, पंद्रह प्रतिशत जनता से खौफ खाना खतरनाक है ..वैसी स्थिति में देश को पाकिस्तान बनने देना…नात्सी जर्मनी बनने देना होगा ..जातिओं में बंटा हिन्दू समाज भारतीय राजनीति के लिए एक वरदान है …यूरोप के देशों का धर्मनिपेक्ष होना बहुत आसान है ..वहां एक देश में एक ही चमरी के रंग वाले लोग रहते हैं ..ज्यादातर देशों में एक ही धर्म को मानने वाले लोग रहते हैं दुसरे धर्म के लोगों से डर नहीं है इसलिए धर्म को राजनीति से अलग रखना आसान है ..यहाँ हमेशा दुसरे धर्म के लोगों का खौफ दिखाए जाने की संभावना रहती है …किसी बिष्ट की योगी बनने की संभावना रहती है ..इसलिए मैंने फैसला किया है कि हिन्दू समाज को जाति के आधार पर बांटू ..सभी जातिओं का अपना अपना हित है ..
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हमने तो वो दिन देखा है जब किसी संसदीय क्षेत्र में ब्राह्मण कांग्रेस के उम्मीदवार को मत देते थे तो राजपूत सोशलिस्ट हो जाते थे ..मैं चाहता हूँ वो समय फिर से लौटे ..न सिर्फ अगड़ों पिछड़ों की राजनीति हो बल्कि सवर्ण भी आपस में बंटे ..तभी देश बच सकता है …वैसे भी जब जब सवर्ण एक हुए हैं देश अशांत हुआ है ..वंचितों का नुकसान हुआ है ..
जाति कहाँ नहीं है ..यूरोप में भूमिहारों ने अपना एक अलग देश जर्मनी बना रखा है …ब्राह्मणों का एक देश फ्रांस है ..बनियों का देश इंग्लैंड है ..ब्राह्मण स्कॉटलैंड को अलग करना चाहते हैं ..कुर्मी (चेक) और कोइरी (स्लोवाक) एक साथ रह नहीं पाए …राजपूतों का इटली देश है …हम साथ साथ रह रहे हैं ..मगर हित अलग अलग है ..इसलिए बंट कर वोट करना होगा …तभी ये देश एक होकर रहेगा ..फासी वादी शक्तिओं के उपद्रव से बचा रहेगा ..सामजिक न्याय और धर्मनिरपेक्ष राजनीति जिंदा रह पाएगी …अपने अपने हितों का ध्यान रखते हुए मत देना और फर्स्ट पास्ट द पोल सिस्टम इसमें ही उम्मीद है ..और उस उम्मीद को जिंदा रखना हमारा कर्त्यव है ..
बहुत बड़े मिशन पर काम कर रहा हूँ …समय लगेगा फिर लोग साथ आना शुरू करेंगे ..
जब आडवाणी ने देश को अशांत करने का फैसला किया था ..रथ यात्रा निकाला था ..तब वो बिलकुल अकेले थे ..मगर लोगों ने साथ देना शुरू किया ..वाजपेयी जी आये ..धरातल समतल किया …बाल ठाकरे आए ..अरुण शौरी आए ..सुधीन्द्र कुलकर्णी (अभी का लिबरल) आए प्रवीण तोगड़िया आए .. बाबू बजरंगी जी आए ..माया कोदनानी आई …मोदी जी आए …सुधीर चौधरी जी आए .रोहित सरदाना जी आए ..रामजादी जी आई ..हरामजादे डरे ….अर्नब गोस्वामी जी आए ..ऍम जे अकबर जी आए ..योगी जी आए ..और देश अशांत होता चला गया ..
आज मै भी अकेला हूँ ..मगर लोग धीरे धीरे साथ देना शुरू करेंगे और देश को फासीवादी शक्तिओं से हम निजात दिला कर रहेंगे ..जय हिन्द ..
Pankaj K. Choudhary
Yesterday at 17:53 ·
भारत के मुसलमानों को उसके हाल पर छोड़ दिया जाय …हज सब्सिडी ख़त्म करने से जो पैसा बचता है वो उन सवर्ण युवक और युवतिओं को शिक्षित करने पर खर्च किया जाय जिसकी भावना फिल्म देखने से आहत हो जाती है …जो एक काल्पनिक चरित्र की इज्जत बचाने के लिए लोगों को मरने मारने पर उतारू हो जाते हैं ..जिसकी भावना कांचा इल्लैया या अन्य लेखकों की किताबों से आहत हो जाती है …जिन्हें इतना तक मालुम नहीं है ऐसी फिल्म या किताब जिससे आप असहमत हैं उसका जवाब फिल्म या किताब से ही दिया जा सकता है …मुसलमानों को क्या शिक्षित करना ..मुस्लिम कट्टरपंथ को तो एनकाउंटर, पुलिस और न्यायपालिका की मदद से ही निपटा जा सकता है ..खतरा तो बहुसंख्यकों के कट्टरपंथ से है …ऐस अशिक्षित हिन्दुओं के कारण देश को कट्टरपंथी प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री तक झेलना पड़ता है ..देश का नाम बाहर बदनाम होता है ..पढ़े लिखे लोगों को शर्मिंदगी झेलनी पड़ती है ..कानून के लम्बे हाथ भी इन तक नहीं पहुँच पाते ….गुड इवनिंग माय फ्रेंड्स..Pankaj K. Choudhary
9 hrs ·
मुसलमानों पर एक बहुत बड़ा अहसान हिन्दू साम्प्रदायिक पार्टी ने किया है ..हज सब्सिडी ख़त्म करके…लगे हाथों दूसरा अहसान धर्मनिरपेक्ष पार्टी भी कर दे ..कसम खाए कि कभी इफ्तार पार्टी नहीं करेंगे ..नमाजी टोपी पहन कर तस्वीर नहीं खिंचवायेंगे ..वाइट हाउस में प्रेसिडेंट को दिवाली मनाते देख खुश होने वाले सवर्ण हिन्दू भाईओं और बहनों को बहुत प्रॉब्लम है इफ्तार पार्टी से ..बहुत कुछ बिगड़ जाता है उनका ..बहुत सारी भावनाएं आहत हो जाती हैं उनकी ..इसलिए इसे भी ख़त्म किया जाय …..गुड मोर्निंग माय फ्रेंड्स …Pankaj K. Choudhary
Yesterday at 16:36 ·
यदि दिन बीतने पर हो और मैं हिन्दू, सवर्ण, साम्प्रदायिक मर्दवादी संगठन के खिलाफ कुछ नहीं लिख पाता हूँ तो मन बेचैन हो जाता है ..लगता है कि आज मैं मानवता की सेवा नहीं कर पाया हूँ ..इसलिए ये स्टेटस अपडेट कर रहा हूँ ..
एक फिल्म थी …नाम था परिंदा …पता नहीं क्यूँ ..मगर परिंदा फिल्म मैंने लगभग पचास बार देखी है …पता नहीं क्यों परिंदा फिल्म मुझे इतनी अच्छी क्यों लगती है ..पता नहीं क्यों विधु विनोद चोपड़ा परिंदा जैसी दूसरी फिल्म क्यों नहीं बना पाए …
परिंदा फिल्म का एक डायलॉग है …अनिल कपूर अपने बड़े भाई जैकी श्रॉफ से कहता है: भैया, जो गोली आपने दूसरों पर चलाई है वो एक दिन आपके अपनों पर भी चलगी ..ये तो होना है भैया ..ये होकर रहेगा भैया ..
और वही हुआ जिसका डर था ..सुहाग रात के दिन अनिल कपूर भी मारे गए और उसकी पत्नी भी ..जैकी श्रॉफ बिलकुल अकेला रह गया ..
मैं चाहता हूँ जिस पार्टी में एनकाउंटर कल्चर को बढ़ावा देने की परम्परा रही है ..उस पार्टी के सभी हिंसक लोग एक दूसरे का एनकाउंटर कर दें ..ताकि देश में अमन चैन बहाल हो और एनकाउंटर कल्चर ख़त्म हो और कानून का राज स्थापित हो ..गुड इवनिंग माय फ्रेंड्स.———————————Pawan shared Sukumar Rangachari’s post.
58 mins ·
वीडियो देखिए, हिन्दू घरों पर पत्थर फेंके जा रहे हैं,मल्लापुरम ,केरल में,साथ मे नारे सुनिए “अल्लाह ओ अकबर ” यह उन हिंदुओं का भारत है जो देश को हिन्दू धर्म से बहुत ऊंचा समझते हैं ! केरल,कश्मीर,बंगाल लगभग छीना जा चुका है ! अगर चरखा चलाने,पतंग उड़ाने से फुरसत मिले तो केरल पर एक निगाह डालिये !! चुनाव जीतना ही देशप्रेम नहीं होता ! ऐसे तो कांग्रेस भी 60 साल चुनाव जीतती रही है • केरल बचाइए…..गांधी की पूजा छोड़िए !!!!Pawan S18 hrs · सुनो @Ajit Singh जी !!
शाहबेग सिंह के नाम पर आपने बहुत तालियां बजवा लीं ! इस मुल्क में एक हिन्दू ही एक मात्र ऐसी कौम है जो अपने धर्म/मज़हब/विश्वास/faith को राष्ट्र के सामने हीन भावना से देखती है ! सदियों से हिंदुओं में यह कहने की परंपरा चली आ रही है कि देश से बड़ा कुछ नहीं है ! मुसलमान हो या सिक्ख,बौद्ध हों या ईसाई , इसमें हर समुदाय,अपने मज़हब को देश अर्थात भारत से कहीं ऊपर रखता है !
जो लोग मज़हब को अपने वतन से बहुत ऊपर रखते हैं,आज वह 58 मुल्कों के मालिक हैं और अगले 25 वर्ष में यह संख्या 100 से ऊपर होगी ! आप सिर्फ कुछ सौ साल पहले फारस तक काबिज़ थे ! देश सबसे बड़ा है,देश के लिए जान दे देंगे,” दिल दिया जाना भी देंगे” गाते-गाते, ईरान तो छोड़िए, अफगानिस्तान,श्रीलंका, पाकिस्तान, बांग्लादेश , कश्मीर,गिलगित-बालिस्तान और बलूचिस्तान सब छीन गया……..
पिछले 400 साल के इतिहास में अस्सी करोड़ हिंदुओं का नरसंघार हुआ ! जिस भूक्षेत्र में हिन्दू अर्थात भारत के मूलनिवासी रहते थे उसका सिर्फ 10 प्रतिशत उनके पास रह गया ! उस दस प्रतिशत( वर्तमान भारत) में भी लगभग 60 प्रतिशत भूमि ,भारत मे हिंदुओं से आज छीनी जा चुकी है !!…..यह नतीजा है ‘देश को सर्वोच्च’ मानने का……कश्मीर से कन्या कुमारी तक शांतिदूत आवादी,3 लाख मस्जिद ,2 लाख कब्रिस्तान,लांखोँ मदरसे,चर्चों, ईसाई,सिक्ख और बौद्ध बस्तियों का कब्ज़ा हो चुका है,देश के एक -एक संसाधन पर उनका कब्ज़ा है…..तुम्हारे पास क्या है हिंदुओं ? तुम्हारे पास देशप्रेम है….. और हिन्दुधर्म देश से बड़ा नहीं हो सकता….सिर्फ 10 बरस, हां सिर्फ दस बरस में, देश फिर बटेगा,वह जगह छीनी जाएगी जहां तुम आज रहते हो…..
क्या हिंदुओं को इस देश मे तब सम्मान प्राप्त होगा जब उसके पास शाहबेग सिंह, भिंडरवाले,आजमखान,ओवैसी,जिन्ना और मुफ़्ती,अब्दुल्ला जैसे नेता होंगे ? …….देश सिर्फ ज़मीन,पेड़,पानी और हवा से मिलकर नहीं बनता ! जब तुम यह कहते हो ‘देश सबसे बड़ा’ तो बताओगे कि देश के जिस हिस्से पर हिन्दू कम है या नहीं है,वहाँ अलगाव की हवा क्यों बहने लगती है ?………
Ajit Singh ,कदमों की आहट सुनो….साध्वी प्रज्ञा,कर्नल पुरोहित और रैगर में लोग हिंदुत्व का कल्याण क्यों ढूंढने लगे हैं ?
हां मैं कहता हूं मेरे लिए सबसे बड़ा हिंदुत्व संरक्षण और सनातन सम्मान है,उसके बाद राष्ट्र इत्यादि …….
जयतु हिन्दुराष्ट्रम ••Pawan
Rahul S
Yesterday at 19:49 ·
.. भारतवर्ष में कहीं भी गया हूँ.. हमेशा ऐसा लगा है कि यहां तो पहले भी आ चुका हूँ… शायद किसी पूर्वजन्म में.. सालों पहले कोटा गया.. आगरा से होते हुए ट्रेन राजस्थान में प्रवेश करने लगी और मुझे गुदगुदी सी होने लगी.. ऊपर से लग रहा था कि नई जगह जा रहा हूँ.. पर अंदर ही अंदर मन अशांत था.. खलबली सी मची थी.. राजस्थान की सीमा में काफी अंदर जाने के बाद उबड़-खाबड़ धरातल शुरू हो चुका था, और मुझे लग रहा था कि इन ऊंचाइयों के बीच मैं पहले भी कभी आया हूँ..
कोटा में लोगों से मिलकर लगा कि जैसे सदियों बाद इनसे फिर से मिल रहा हूँ.. बूंदी से होकर जब bus गुजरी तो ऊंचाइयों पर बने घरों को देखकर भावुक से हो गया, क्या मैं पहले भी यहां आ चुका हूँ..
पापा के बताए हुए एड्रेस पर अजमेर में, उनके 25 साल पहले के business client और मित्र, का घर और आफिस गलियों, चौराहों पर ढूंढता रहा.. लोगों से पूँछता रहा.. हालांकि मिल नही पाया.. पर मैं प्रसन्न था कि ये काम मुझे मिला..
पूना गया.. सुंदर शहर.. वहां महीनों रहा.. वहां का भोजन किया.. मराठी लोग अच्छे हैं.. मुझे उनके मराठीपन से कोई समस्या नही हुई.. कई मराठी लोग उत्तर भारतीयों पर अविश्वास करते हैं, पर मुझे इसमे अचंभा नही लगा और न ही कोई शिकायत ही हुई.. वो मुझे अपने ही लगे.. मराठी अस्मिता.. उनकी मराठी identity मुझे अपनी सी लगी.. मैं उनके मराठीपन में खुश था.. वो जितना कट्टर मराठी होते, मुझे उतना ज्यादा आकर्षित करते.. क्योंकि वो भी मेरे अपने ही थे..
बंगलौर पहुँचा.. वहां अलग लोग, वो स्वयं की भाषा, संस्कृति, समाज के प्रति जितने ज्यादा संरक्षी होते, जितने ज्यादा आग्रही होते.. मुझे उतना ही आकर्षित करते.. मुझे उनका हठीलापन भाता है, क्योंकि उनमें भी मुझे अपनापन सा लगता है.. मालूम नही क्यो.. शायद किसी पूर्वजन्म…
तमिलनाडु पहुँचा.. ये ऐसा स्थान है जहां प्रवेश करते ही आपको प्रतीत होगा कि निश्चय ही आप किसी नए स्थान पर आ गए हैं.. भाषा, वेशभूषा, भोजन, रूप, संस्कृति.. कदाचित भिन्न होते हुए भी कहीं न कहीं अपनी सी है..
मैं तमिलनाडु के सुदूर दक्षिण में था.. मुझे लगा यदि कुछ दिन और यहां निवास रहा तो मूक-बधिरों वाली साइन लैंग्वेज सीख जाऊंगा क्योंकि अक्सर कोई चीज लेने के लिए हाथों से इशारा करके ही दिखाना पड़ता था.. हर बात में मुँह-भाषा का प्रयोग 30% तथा हाथों और भाव-भंगिमा का 70% सहारा लेना पड़ता था.. इतनी भिन्नता-दूरी होते हुए भी एक अनजाना सा लगाव था..
वो अपनी तमिल identity के अत्यधिक आग्रही थे.. और मैं उनकी इस बात से अत्यधिक आकर्षित था.. कुछ राजनैतिक विषधरों को अलग-थलग कर दिया जाए तो सामान्य जनता अपनी संस्कृति से अत्यधिक जुड़ी हुई होकर भी, स्वयं को सर्वश्रेष्ठ मान-समझकर भी, भारतवर्ष.. इस देश की प्राचीनता से गहरे से जुड़ी हुई है.. वो देश की आत्मा को समझते हैं..
मैं समस्त संस्कृतियों, समाजों और समुदायों के अपनी identity के प्रति आग्रह, उसके प्रति संकुचन, उनसे गहरे से जुड़ाव होने को अत्यधिक सुखद और शुभ मानता हूँ.. क्योंकि उनकी ये identity उन्हें देश से और जोड़ती है.. राजनैतिक व्यक्तियों से परे, आज किसी भी सूदूर स्थित भूभाग पर बसने वाला देशवासी, स्वयं को इस देश की प्राचीनता से सम्पोषित होकर देश की आत्मा से जुड़ा पाता है.. और आत्मा तो अविनाशी है.. जन्म जन्मांतर का भ्रमण है.. कदाचित इसीलिए मुझे हर उस संस्कृति के आग्रही से प्रेम है, जिसकी जड़ें भारत की प्राचीनता में धंसी हैं, और वहीं से पोषण पाती हैं..
हम समान उद्देश्य के प्रति कार्यरत हैं.. लक्ष्य एक है हमारा.. आपस के मतभेद विस्मृत करो.. स्वयं को बड़ा न समझकर उद्देश्य बड़ा समझो.. अपनी identity के प्रति आग्रही रहो, परंतु भारत की आत्मा से जुडो.. आज आवश्यकता एक होने की है.. छुद्रता त्यागो… समक्ष उद्देश्य विशाल है.. आमन्त्रण है आपको… उद्देश्य प्राप्त करो..
जितनी भी तरह आप किसी भी बात का संधि-विच्छेद करें, तोड़े, मरोड़े आप की बातों से स्पष्ट है की मोदीजी हिन्दुओं का ध्रुवीकरण कर सत्ता में आये हैं और आगे भी आने की कोशिश बरक़रार है | सिकंदर साहब , मै आपके जितना इतिहास का उदहारण तो नहीं दे सकता न ही आपके जितना करंट अफेयर्स से इतना रूबरू हो पाता हूँ | गोधरा एक बहुचर्चित काण्ड के बारे में मुझे जो जानकारी है , संक्षेप में बता रहा हूँ| कारसेवकों की एक बौगी को बंद कर सभी कारसेवकों को बौगी में ज़िंदा जला दिया गया | स्पष्ट है की मुस्लिम समुदाय ने ही यह काम इस शक पर किया की कारसेवकों ने किसी मुस्लिम महिला अथवा लड़की के साथ अभद्र व्यवहार किया गया होगा , फलस्वरूप आग की तरह विभिन्न भ्रांतियों के फैलने के कारण मुस्लिम समुदाय ने इस घटना को अंजाम दिया | जब बात और आगे बढ़ गयी तब गोधरा जैसा काण्ड हुवा और मुस्लिम समुदाय को इसका खामियाजा भुगतना पडा जो सबके सामने है | स्पष्ठतः न कारसेवकों की बौगी में आग लगती न ही हिन्दू मुस्लिम रायट होता न ही इतनी बड़ी बात बनती | इस बात को स्वयं समझा जा सकता है की गलती किसी की भी थी , आखिर बदनामी नरेन्द्र मोदी जी की होनी थी हुई |आज भी किसी भी अन्य कारण से किसी भी मुस्लिम समुदाय के लोगों के साथ कोई घटना घटित होती है , सीधा इलज़ाम मोदीजी पर लगता है |
मोदीजी की पार्टी आज आसाम में बांग्लादेश के मुसलमानों को भारत की नागरिकता नहीं देना चाहती और वहीँ बंगला देश के हिन्दुओं को नागरिकता देने के पक्ष में है | इसमें बहुत साफ़ हैं की भारत का विभाजन जातीय आधार पर ही हूवा था | मुस्लिम समुदाय के लिए पाकिस्तान बनाया गया था , पूर्वी या पश्चिमी | जो हिन्दू पाकिस्तान में , जो मुसलमान रह गए भारत में , क्या हिन्दुओं की हालात बिलकुल वैसे ही हैं जो हिन्दू पाकिस्तान में रह गए , जिन मुसलमानों को हिन्दुस्तान ही में रहना अच्छा लगा , उनके साथ क्या उसी तरह का व्यवहार हूवा जैसा हिन्दुओं के साथ पाकिस्तान में हूवा| यह बात बिलकुल साफ़ हो गयी है की हिन्दुओं की जनसंख्या जो पाकिस्तान में आज़ादी के समय थी वह बिलकुल बिलुप्त तो नहीं हुई लेकिन पाकिस्तानियों ने हिन्दू जनसंख्या का एक बीसवां हिस्सा की जनसंख्या भी नहीं रहने दी| जो कुछ बचे खुचे हिन्दू बांग्लादेश में हैं या पश्चिमी पाकिस्तान में उनकी हालत बद से बदतर है |
पाकिस्तान में हिन्दुओं की स्थिति जो है वो सबके सामने है , जम्मू और कश्मीर में हिन्दू जाति के साथ क्या हूवा , सबको मालूम है | हिन्दू पंडित दर दर ठोकरे खा रहे हैं | कश्मीर की महबूबा सरकार के कुछ लोग हिन्दूओ के लिए रिहैबिलिटेशन कोलोनियों का खुल कर विरोध किया , क्या यह बात किसी से छिपी है | हिन्दुओं की हालत पाकिस्तान में जो है उसकी बात तो है ही लेकिन हिन्दुओं को अपने हिन्दुस्तान में भी अपनी जगहों से भगाया जाना ,कितना वाजिब है ? और बहुत से इन्स्टान्सेस है जिसकी व्याख्या करने से भूचाल भी आ सकता है | एक छोटी सी बात , गौहत्या न हो , गौमांस न खाया जाय , इस बात पर तो बात पर बात हो रही है | गौमांस खाना , गौमांस खाने की इजाजत देना कई राजनितिक पार्टियों का इलेक्सन प्रचार का हिस्सा बन चुका है | क्या गौमांस खाए बिना काम नहीं चल सकता है ?
और आज अगर हिन्दू एकत्र हो रहा है तो बहुत से लोगों को इसमें आर एस एस की जालसाजी मालूम पड़ रही है | क्यों नहीं हो ऐसा ? होना चाहिए | हिन्दुओं को भी अपनी सुरक्षा करने का पूरा अधिकार है , वह भले आर एस एस के झंडे के निचे हो या बीजेपी के झंडे के |
गोयल साहब आपने लिखा ” और आज अगर हिन्दू एकत्र हो रहा है तो बहुत से लोगों को इसमें आर एस एस की जालसाजी मालूम पड़ रही है | क्यों नहीं हो ऐसा ? होना चाहिए | हिन्दुओं को भी अपनी सुरक्षा करने का पूरा अधिकार है , वह भले आर एस एस के झंडे के निचे हो या बीजेपी के झंडे के | ” जो भी हे एक बात समझ लीजिये मुसलमानो ने उपमहाद्वीप में जितना कटटरपंथ साम्प्रदाययकता दिखाई जो किया सबसे ज़्यादा अपना ही नुक्सान किया अब हिन्दू कटटरपंथ के बैनर तले जो कुछ भी हो रहा हे नुक्सान हिन्दुओ का ही होगा जैसे गायो का ही मामला देख लीजिये चारो तरफ गाय गाय हो रहा हे नुक्सान हिन्दुओ का ही होगा उन्ही की फसल चरेगी उन्ही को सड़को पर टक्कर लगेगी लोग बेमौत मरेंगे उन्ही से गौरक्षा के नाम पर पैसा लुटा जाएगा जो किसी हालात में गायो तक नहीं पहुंचने वाला इस पैसे से जो गुंडे पंनपेंगे वो हिन्दुओ का ही खून पिएंगे मुस्लिम कटटरपंथ को पालने पोसने को तो तेल का पैसा आ गया था हिन्दू कटटरपंथ को पालने का भारी खर्च कमजोर हिन्दुओ का गला दबाकर ही वसूला जाएगा देखते रहिये
राजू श्रीवास्तव के शादी वाले एक्ट में सास के शब्द ”हमारी तो कट गयी अब तुम्हारी कटेगी ‘ ‘