हिमालय का संरक्षण, अविरल स्वच्छ गंगा और वन बंधु कार्यक्रम। संघ परिवार के यह तीन नारे आज के नहीं है पहली बार पूर्व सरसंघचालक गुरु गोलवरकर के दौर में ही सवाल आरएसएस ने उठाये थे। लेकिन पहली बार किसी सरकार के एजेंडे के प्रतीक यह मुद्दे उसी तरह बने है जैसे 15 बरस पहले अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के दौर में अय़ोध्या, कामन सिविल कोड और धारा 370 को ठंडे बस्ते में डालकर सत्ता संभालने की जरुरत प्रचारक से पीएम बनने जा रहे अटल बिहार वाजपेयी को महसूस हुई थी। और उस वक्त संघ परिवार ने भी वाजपेयी की मजबूरी को समझा था। लेकिन संघ परिवार के लिये वक्त 180 डिग्री में घूम चुका है तो अब प्रचारक से पीएम बने नरेन्द्र मोदी बेखौफ है तो फिर अयोध्या, धारा 370 और कामन सिविल कोड को कहने की जरुरत नहीं है बल्कि सामाजिक-सांस्कृतिक घरोहर को संभालने की जरुरत है। क्योंकि संघ परिवार यह मानता आया है कि किसी भी देश को खत्म करना हो तो वहा की संस्कृति को ही खत्म कर दो। तो पहली बार खुले तौर पर प्रधानमंत्री मोदी ने राष्ट्रपति के अभिभाषण के जरीये इसके संकेत दे दिये कि अब जो दिखाना है। जो कहना है, जो पूरा करना है उसे लेकर मनमाफिक लकीर सरकार खिंच सकती है । तो फिर अयोध्या की जगह हर घर शौचालय। सीमापार विस्तार की जगह हिमालय का संरक्षण। धारा 370 की जगह कश्मीर का विकास। कामन सिविल कोड की जगह अल्पसंख्यकों को विकास के समान अवसर। धर्मांतरण की जगह वनबंधु कार्यक्रम । बांग्लादेशी घुसपैठ की जगह कश्मीरी पंडितों को बसाने का जिक्र।\
पाकिस्तानी आंततकवाद की जगह पडौसी से बेहतर संबंध। चीनी घुसपैठ या उसकी विस्तारवादी नीतियों का जिक्र करने की जगह चीन के साथ सामरिक-रणनीतिक संबंध। तो जनादेश की ताकत में कैसे कुछ बदल गया और जो भारत मनमोहन सिंह की इक्नामी तले बाजार में बदल गया था उसे दोबारा जीवित करने की सोच अभिभाषण में है तो यह संघ परिवार का ही दबाब है या फिर प्रचारक को मिली ट्रेनिंग ही है कि आरएसएस की सोच सरकार के रोड मैप का हिस्सा है। इसलिये पहली बार मोदी सरकार ने राष्ट्रपति के अभिभाषण को बेहिचक सामाजिक सांस्कृतिक मूल्यों को बचाने तले लाने का प्रयास किया ना कि 21 वी सदी की चकाचौंध में भारत को खड़ा करने की सोची। लेकिन इस सच ने उस इंडिया को भी आइना दिखा दिया जो विकसित कहलाने के लिये बीते दो दशक से छटपटा रही थी । याद कीजिये तो 1991 में आर्थिक सुधार के बाद से ही भारत को विकसित देशों की कतार में खडा करने की सोच हर प्रधानमंत्री की रही। लेकिन यह कल्पना के परे है कि 1915 में भारत लौटने के बाद पहली बार महात्मा गांधी ने चंपारण से भारत भ्रमण करने के बाद जिन मुद्दों को उठाया था उसमें जंगल-गांव, किसान-मजदूर, जल सुरक्षा-स्वास्थ्य सेवा से लेकर शौचालय और आदिवासियों के जीवन की जरुरतो का जिक्र किया था।
और आजादी के 67 बरस बाद नरेन्द्र मोदी सरकार ने जब महात्मा गांधी के भारत लौटने के सौ बरस पूरे को 2015 में प्रवासी दिवस बनाने का जिक्र किया और उसी अभिभाषण में हर घर शौचालय, जल सुरक्षा, नई स्वास्थ्य नीति, जनजातियों के लिये वन बंधु कार्यक्रम और शहर – गाव के बीच खाई दूर करने का जिक्र किया तो पहला सवाल यही उभरा कि देश अब भी न्यूनतम की लड़ाई ही लड़ रहा है। ध्यान दें तो पीएम पद संभालने से पहले सेन्ट्रल हाल में भी मोदी ने गरीब-गुरबो की ही बात कही। और सेन्ट्रल हाल में राष्ट्रपति ने अभिभाषण में हाशिये पर पड़े तबके पर जोर दिया। लेकिन यह जनादेश की ही ताकत रही कि जिस पाकिस्तान को लेकर बीजेपी बात बात पर तलवार खिंचने से नहीं कतराती थी और आरएसएस के अखंड भारत के सपने भी सियासी हिलोरे मारने लगते। उसका कोई जिक्र सत्ता संभालने के बाद बतौर एजेंडा अभिभाषण के जरीये नहीं किया गया। इतना ही नहीं चीन पर पीठ में छुरा भोकने का आरोप लगाने वाले जनसंघ से बीजेपी और आरएसएस से संघ परिवार का चितन चीन को लेकर कैसे अभिभाषण में बदला यह ‘ चीन के साथ सामरिक और रणनीतिक संबंध’ के शब्दों के साथ ही खामोशी बरतने से छलका। लेकिन आजादी के बाद पहली बार अभिभाषण में सांप्रदायिक सौहार्द की जगह सांप्रदायिक दंगो को लेकर जीरो टोलरेन्स का जिक्र हुआ। अल्पसंख्यक समुदाय को सीधे संकेत दिये गये कि बतौर अल्पसंख्यक वह कुछ खास ना चाहे। बल्कि विकास में समान अवसर से आगे जाने की जरुरत मुस्लिम तबके को नहीं होनी चाहिये। यानी जनादेश की ताकत ने मोदी सरकार को मनमाफिक लकीर खींच कर एक आदर्श भारत की कल्पना देश के सामने रखने देने की हिम्मत तो दी है इससे इंकार नहीं किया जा सकता। लेकिन बिना कारपोरेट और मुनाफा बनाकर देश का चेहरा बदलने वाली कंपनियो के सपने से आगे कोई सपना सरकार के पास है जो दुबारा भारत को सोने की चिडिया बना दें इस पर हर कोई मौन है।
आदरणीय पुण्य प्रसून बाजपेयी सर
कुछ नई की उम्मीद के साथ ही १२५ अरब की जनशंख्या ने लोकतंत्र मे सामिल होकर मोदी जी को एक मौका प्रदान किया है..! उम्मीद भी है और विस्वास भी की अच्छे दिन आ जाये, आ जाये तो अच्छा न आये तो ऋषि मुनियों के देश मे अभी भी इतना ( पुण्य ) बचा है..! की एक नयी सुरूआत करेगे जैसे आज़ादी के बाद की थी..! बार बार लूटने और बर्बाद होने के बाद की थी..! वैसे ही जैसे एक मासूम बच्चा उठता गिरता और फिर दौडता है. उसी प्रकार भारत देश उठ , गिर दौड मे बार बार सामिल हो कर कई बार पिछड़ ज़रूर जाता है लेकिन हार नहीं मानता यही नया है हमरी संस्कृति मे सब से कुछ न कुछ सीखकर लगातार बढ़ते रहे है. कुछ अच्छा और बहुत अच्छा करने की कोशिस न कभी खत्म हुई थी न होगी मोदी शूरुआत हो शक्ति है लेकिन या अंत नहीं है. अभी यूथ की लंबी फ़ौज तैयार है नए भारत को नयी उचाई पर ले जाने के लिया ..!
अच्छे लेख के लिए बहुत बहुत साभार
jpsgdubey@yahoo.com