सन १९४४ की बात है. भारत की आजादी को लेकर अंग्रेजों ने बटवारे का पेंच फंसा दिया. महात्मा गाँधी और मुस्लिम लीग के मुहम्मद अली जिन्ना के बीच ऐतिहासिक १८ दिन लम्बी बातचीत चली. पर जिन्ना को ब्रितानी हुकूमत की शह थी. लिहाज़ा विवेक और तार्किकता जिद पर भारी नहीं पड़ सकती थी. सातवें दिन यानी १५ सितम्बर को गाँधी ने जिन्ना को एक पत्र लिखा: “हम दोनों की बातचीत के दौरान आपने पुरजोर तरीके से कहा कि भारत में दो देश हैं –हिन्दू और मुसलमान…’। जितनी अधिक हमलोगों के बीच बहस आगे बढ़ रही है उतनी हीं अधिक चिंताजनक मुझे आपकी तस्वीर दिखाई दे रही है…….. इतिहास में मुझे एक भी घटना की याद नहीं आती जब धर्मान्तरण करने वाले लोग या उनके वंशज अपने मूल धर्म के लोगों से अलग उसी राष्ट्र में एक नए राष्ट्र का दावा करें. अगर भारत इस्लाम के आने के पहले एक राष्ट्र था तो इसे एक रहना होगा भले हीं उस राष्ट्र के तमाम लोगों ने अपना पंथ बदल लिये हो “.
बहरहाल ३५ महीने बाद हीं पाकिस्तान बन गया. लेकिन आगे की घटना देखिये.
बंटवारे के दौरान और बाद के कई महीनों तक लाखों हिन्दू -मुसलमान एक दूसरे को मारते रहे . हिंसा का तांडव अभी चल हीं रहा था। संविधान सभा को अपना अपना कार्य करते हुए कोई एक साल से ज्यादा हो चुके थे. पूरा देश इस विभाजन से सकते की हालत में था. दिसम्बर , १९४७ को मुस्लिम लीग (जो बँटवारे के बाद बचे-खुचे सदस्यों से बना रह गया था) ने संविधान के प्रारूप में दो संशोधन प्रस्ताव रखे। पहला था –भारत में रहने वाले मुसलमानों के लिए अलग लोक सभा सीटों में आरक्षण। लेकिन दूसरा उस संकट में मुसलमान नेताओं की मनोदशा बताता है। यह संशोधन प्रस्ताव था –मुसलमानों को पृथक मतदाता श्रेणी में रखना (याने सेपरेट एलेक्टोरेट — एक ऐसी मांग जो अंततोगत्वा फिर एक अन्य देश बनाने का मार्ग प्रशस्त करती. इस संशोधन को देख कर पूरा देश स्तब्ध रहा गया . पटेल ने बेहद भावातिरेक में कहा “मुझे समझ में नहीं आ रहा है कि इतने बढे झंझावात में फंसे देश के अनुभव के बाद भी इनमें कोई बदलाव आया भी या नहीं जो ऐसी मांग कर रहे हैं. ”
आज ७० साल बाद सोशल मीडिया पर एक विडिओ वायरल हो गया है जिसे लाखों लोगों ने देखा. बांग्ला टीवी चैनलों ने इसे दिखाया। राज्य की राजधानी कोलकता में इसी सितम्बर १२ को पश्चिम बंगाल अल्पसंख्यक फेडरेशन के तत्वावधान में १८ संगठनों ने रोहिंग्या शरणार्थियों को भारत में रहने की अनुमति देने की मांग को लेकर एक रैली आयोजित की। रैली में बोलते हुए एक युवा नेता मौलाना शब्बीर अली वारसी चीच-चीख कर कह रहा था “आप इस गलतफहमी में न रहें कि मुसलमान कमज़ोर है. तुम हमारी हिस्ट्री नहीं जानते . हम कर्बला वाले हैं , हम हुसैनी मुसलमान है . अगर हम ७२ भी है तो लाखों का जनाजा निकाल सकते हैं. …………….. “ . मंच से आवाज आती है – बहुत खूब. भीड़ से अल्लाहो अकबर के नारे) इस नेता का चीखना और तेज होता है, “दिल्ली की सरकार से मैं बताना चाहता हूँ कि ये रोहिंग्या हमारे भाई है. इनका और हमारा कुरआन एक है , जो इनका खुदा वो हमारा खुदा……. दुनिया में मुसलमान कहीं भी हो हमारा भाई है………”. भीड़ हाथ उठाकर कहती है —- नाला-ए -तदबीर , अल्लाहोअक्बर . नेता आगे कहता है, “ये बंगाल है , गुजरात नहीं, आसाम नहीं , यूपी नहीं , मुज़फ्फरनगर नहीं. मीडिया यहाँ बैठी है. मेरा चैलेंज है. अभी बंगाल में किसी मां ने वो औलाद पैदा नहीं किया जो एक भी रोहिंग्या मुसलमान को निकाल सके”. भीड़ पागल की हालत में नारे लगाने लगती। प्रश्न इस नेता के आपत्तिजनक भाषण का नहीं है. प्रश्न उस भीड़ का है जो इसे न केवल अनुमोदित कर रही थी बल्कि इन वाक्यों से एक तादात्म्य प्रदर्शित कर रही थी, कुछ भी कर गुज़रने के भाव में।
अब जरा इस कुतर्क को समझें. यह नेता दुनिया के मुसलमानों को अपना भाई मान रहा है पर वह जिससे खून का रिश्ता रहा है या जिस मिट्टी में पला है उसी को चुनौती दे रहा है. इस्लाम से पहले इसके पूर्वज भारतवासी थे. लेकिन क्या आपने कभी किसी सभा में भारत के टुकडे करने वाले कश्मीरी नारों के खिलाफ अन्य भाग के मुसलमानों को इतने गुस्से में देखा है.? खालिद और उसके लोग जे एन यू में कौन सी आजादी मांग रहे थे और न मिलने पर “भारत तेरे टुकडे होंगे इंशाल्लाह “ का ऐलान कर रहे थे? याने धार्मिक रिश्ता वैश्विक है और वह जहाँ की मिटटी में सांस ली है उसके रिश्ते पर भारी पड़ती है. तर्क-वाक्य के विस्तार की प्रक्रिया के तहत यह कहा जा सकता है कि पाकिस्तान का मुसलमान हमला करे तो वह जायज है क्योंकि वह भाई है. सेमिटिक धर्मों की यह एक बड़ी समस्या है उनकी प्रतिबद्दता में राष्ट्र नहीं है. परा-राष्ट्रीय निष्ठा जो मूलरूप से विश्व भर में फैले उन धर्मनुयाइयों के प्रति होती है वह उन्हें राष्ट्र की अवधारणा से दूर ले जाती है.
ऐसे में देश क्या करे? हिन्दुओं का भाव कैसे गीता के “स्थितिप्रज्ञ” सरीखा बना रहे. आज जरूरत है कि मुसलमान भी इस बात को समझे कि अगर दुनिया के मुसलमान एक हैं और वो कहीं से भी आयें तो यह बक़ौल इस नेता के यह भारत की जिम्मेदारी है कि उन्हें उदार दिल के साथ आत्मसात करे , तो फिर कल ये ४०,००० रोहिंग्या भी तो इसी तरह चीख-चीख कर चिल्लायेंगे और चुनौती देंगे और कर्बला का इतिहास बताएँगे. यहाँ के मूल होंगे तो पाकिस्तान बनायेंगे या अलग मतदाता श्रेणी की बात करेंगे।
जहाँ एक ओर अपेक्षा के जाती है कि सत्ता किसी दल विशेष द्वारा हासिल होने का मतलब यह नहीं कि उग्र हिन्दु किसी अखलाक के घर गौमांस तलाशें और फिर उसे मार दें और न हीं ट्रक से दूध के व्यापार के लिए वैधरूप से गाय ले जा रहे पहलू खान को सरे आम पीट-पीट कर मार दें वहीं “उनकी मां ने वह लाल पैदा नहीं किया” कहना भी अमनपसंद औसत मुसलमानों द्वारा ऐतराज़ का सबब होना चाहिये न कि उन्माद का कारण। स्वयं मुसलमानों को ऐसे भाषणों पर रोक लगाना होगा क्योंकि किसी ममता या अन्य राजनीतिक दलों को सिर्फ वोट से मतलब है जानें तो आती जाती रहती हैं।
हम निरपेक्ष विश्लेषक अख़लाक़ के मारे जाने पर उग्र हिन्दुत्व को कोसने लगते है स्वयं को तटस्थ साबित करने का होड़ में, पर क्या कभी कट्टरता के इस पहलू पर ऐतराज़ जताया है। आतंकी घटना होती है तो हमारा तर्क होता है कि आतंकी का कोई धर्म नहीं होता। हम झूठ बोलते है। उसे धर्म ही वैचारिक प्रतिबद्धता देता है और धर्मानुयाई शरण और वे ही उसका महिमामंडन भी करते हैं।
sources- http://nksinghjournalist.blogspot.com
मुसलमानो के बीच सेकुलरिज्म की सारी ”लड़ाई ” ”मलाई ” और क्रेडिट हमेशा शियाओ बरेलवियो बोहराओ आदि के पास रहा हे जबकि बहुमत देवबन्दियो का हे जिनके कटटरपन्तियो को तो पेट्रो डॉलर आदि से बहुत कुछ मिलता ही रहा हे इनके पास बहुत कुछ हे उधर शुद्ध सेकुलर देवबंदी सोच बिलकुल अनाथ रही हे अगर मुसलमानो के बीच कोई नयी उदार सोच चाहते हे तो सभी को सेकुलर देवबंदी सोच को ही सपोर्ट देना होगा इसी से जुडी एक बहस – zakir hussain • 3 days ago
रवीश जी, मैं आपकी रिपोर्टिंग की शैली को पसंद करता हूँ. बहुत कम बार ही ऐसा होता है कि आप किसी भी मुद्दे के महत्त्वपूर्ण पहलू को नज़र अंदाज करते हो. लेकिन एकाध बार कर देते हो. जैसे इस बार रोहिंगया मुसलमानो को लेके आपके कार्यक्रम मे नज़र आया.
1. बर्मा के अशांत इलाक़े मे जहाँ रोहिंगया मुस्लिम रहते हैं, या पलायन कर रहे हैं, वहाँ हिंदू समुदाय उनके बीच अल्पसंख्यक है. रोहिंगया तबके के मुस्लिम कट्टरपंथियों द्वारा रोहिंगया हिंदुओं के साथ क्रूरता के समाचारों पर आपका ध्यान क्यूँ नही गया? हिंदू-मुस्लिम समाचारों से सनसनी पैदा करने वाले, न्यूज चैनल तो गोदी मीडिया हैं, आपकी इस बात से सहमत हूँ, लेकिन रोहिंगया समुदाय पर रिपोर्ट करते समय, रोहिंगया हिंदुओं के साथ हुई क्रूरता को नज़र अंदाज करने का कारण? ऐसा तो नही हो सकता कि आप की नज़र इस पर पड़ी ही नही हो.
2. संतुलित और अहम जुड़े मुद्दों से राजनीति और समाज के प्रति, जनता को जागरूक बनाने वाले पत्रकारों के इस अकाल मे आप उम्मीद है. हिंदुत्व की आँधी मे आपकी उम्मीद का दीपक, आपकी निष्पक्षता से ही बच सकता है, इसके लिए मैने आपको पहले भी चेताया था. रोहिंगया मुस्लिमो पर रिपोर्टिंग करते समय, सऊदी अरब के द्वारा वहाँ के लोगो को वहाबिज्म की ओर धकेलने के तर्क को आपने किस हँसी मे खारिज कर दिया. जबकि यह सच्चाई है.
3. बहुसंख्यक हिंदू तबके का सेक़ूलेरिज़्म से मोह इसलिए भी भंग हुआ है क्यूंकी वो इस्लामी चरमपंथ के प्रति उतनी चिंता दिखाता हुआ नज़र नही आता, जितना हिंदू कट्टरपंथ के प्रति दर्शाता है. अल्पसंख्यक होने की वजह से, भले ही मुस्लिम कट्टरपंथी, भारतीय राजनीति मे हावी ना हो पाए, लेकिन असुरक्षा का भाव, बहुसंख्यक तबके मे डालने मे सफल हुए है.
4. रोहिंगया मुस्लिम, बांग्लादेश की जिन बस्तियों मे शरणार्थी है, वहाँ रोहिंगया हिंदुओं का भी एक छोटा तबका है. इन शिविरों मे पीड़ित हिंदू और उनके साथ क्रूरता करने वाले मुस्लिम कट्टरपंथी भी साथ रह रहे हैं. इन हिंदुओं के जबरन धर्म-परिवर्तन की घटनाए भी प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय पत्रिकाओं मे प्रकाशित हुई है. ऐसी सूरत मे सेकुलर तबके को मुस्लिम कट्टरपंथ की ऐसी घटनाओं की मुखर निंदा करनी ही होगी. आपको मुस्लिम तबके के ऐसे प्रगतिशील व्यक्तियों को जो विचारों मे स्पष्ट हो, मजबूत हो को मंच और सहयोग देकर मजबूत करना होगा. उदाहरण के लिए आप ताबिश सिद्दीकी, मुबारक अली जैसे सोशल मीडिया पर मुखर व्यक्तियों को एक्सपर्ट की तरह आमंत्रित कर सकते हैं.———————-जाकिर भाई और पाठको भारतीय मुसलिम सेकुलरिज्म वो भी सुन्नी और देवबंदी दुनिया की सबसे कठिनतम लड़ाई हे इस लड़ाई में रवीश जैसा सुपरमैन भी कोई सहयोग नहीं दे सकते हे वो दो मोर्चो पर नहीं लड़ सकते हे लीजिये सबूत वो अनस साहब के लिए चिंतित हे और अपने लाखो पाठको को अनस साहब की तरफ भेज रहे हे और अनस साहब वैसे आदमी भले और सेकुलर हे मगर हे मेनस्ट्रीम के तो रवीश और उनकी बात सुन लीजिये फिर आपको अपना उत्तर मिल जाएगा
Ravish Kumar1 hr ·
कमल का फूल हमारी भूल लिखी हुई पर्ची तो जाने कितने लोग शेयर कर रहे हैं। फिर भी इसके लिए फेसबुक न अनस का पेज तीस दिन के लिए ब्लाक कर दिया। सियासत में इस तरह के तंज तो आम बात है। अब इतनी सी बातों के लिए फेसबुक ब्लाक करेगा तो क्या होगा। फेसबुक फेक न्यूज के लिए इतना विज्ञापन दे रहा है, अभियान चला रहा है दूसरी तरफ इस तरह के बैन भी लगाता है। क्या यह सब ऑटो मोड पर होता है ? लगता यही है कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का काम है। या फिर यहाँ भी वही डर है जिसकी चर्चा यशवंत सिन्हा कर रहे हैं कि डर इतना भर दिया गया है कि लोग ढहती अर्थव्यवस्था को देखते हुए भी नहीं बोल रहे हैं।Ravish Kumar———————— तो एकतरफ तो देवबंदी होकर भी हमें ऐसे लेखो के कारण अंडरग्रॉउंड सा रहना पड़ता हे दूसरी तरफ रवीश जी के प्रिय अनस साहब मदरसों को सामाजिक क्रांति मानते हे ” Mohammad Anas3 July 2015 · बेहद प्यारे दिलीप मंडल,
सर, जस्टिस राजेंद्र सच्चर ने मुसलमानों को आरक्षण देने की वकालत करती हुई ऐसी रिपोर्ट पेश की जिसे पढ़ कर कोई भी ईमानदार शख्स इसे लागू करवाने की हिमायत करेगा। वह सेक्यूलरीज्म का रिपोर्ट कार्ड नहीं बल्कि एक पूरी कौम को आज़ादी के बाद सरकारी नौकरियों, शैक्षणिक संस्थानों, प्राइवेट सेक्टर और दूसरे ज़रूरी आयामों से बेदखल कर देने का दस्तावेज़ था। उसमें बताया गया है कि मुसलमानों के हालात दलितों से भी बदतर हैं। सच्चर ने किसी एक भौगोलिक क्षेत्र के कुछ मुसलमानों, सवर्ण अथवा पिछड़े मुसलमानों की बात नहीं कि थी बल्कि उन्होंने उस रिपोर्ट में हर एक मुसलमान की बात लिखी थी। इन हालातों में भी मुसलमानों ने अपने शैक्षणिक संस्थानों को बचाए रखा। जब उनके छोटे कारखानों को बंद करवा दिया गया तो वे काम सीख कर खाड़ी मुल्क की तरफ जाने लगे। वहां से पैसा भेजते, किसी तरह से घर परिवार चलता। देश की गरीबी भी दूर करने का काम किया। लेकिन सरकारें तो चाहती थी अजमल और याकूब पंचर बनाए। कोई सकीना किसे के घर में बर्तन मांजे। और इसमें वे कामयाब भी हुए। लेकिन ऐसे लोगों के सामने मदरसे सीना ताने खड़े रहे। आलिमों ने गांव गांव टहल कर अभिभावकों से बच्चों को मांगा। उन्हें पढ़ाया ताकि वे इज्जत की ज़िंदगी बसर कर सकें। यतीमों को गोद लिया। बेसहारा को ज़िंदगी दी।मुझे इस्लाम की बहुत सी चीज़े पसंद हैं उसमें एक चीज़ ये है कि इस्लामी शिक्षा पर किसी एक का हक़ नहीं। कुरान पढ़ कर कोई भी हाफिज़ बन सकता है। जिस गरीब परिवार को गांव में अन्य मुसलमानो द्वारा दुत्कार दिया जाता था आज उसका बच्चा हाफिज-ए-कुरान बन पगड़ी बांधे आता है तो सामंती और लठैती मुसलमान भी कुर्सी छोड़ उठ जाते हैं। मदरसों ने भारत में सामाजिक क्रांति की और चुपचाप की। इसलिए मदरसों की ज़रूरत है।मदरसों ने जिस तरह से शिक्षा के माध्यम से अमीर गरीब का फर्क मिटाया वह संसार के किसी अन्य एजुकेशनल सिस्टम में खोजने से भी नहीं मिलता। हाफिज और मौलवी के नाम के बाद आज भी साहब लगाया जाता है। करोड़पति मुसलमान भी ऐसे आलिमों को सम्मान देते नहीं थकते। हमारे वोट से सरकार बनाने वालों ने अपनी जाति, अपने लोगों को नौकरियां दी लेकिन मुसलमानों को दंगा, गाय, भगवा में फंसा कर शोषण करते रहे। इन सबके ज़िम्मेदार कौन लोग हैं? वे लोग जो खुद के विकास सूचकांक को बढ़ाते रहे लेकिन साथ में रहने वाले मुसलमानों की सुध भी न ली।कभी फर्जी इनकाउंटर तो कभी दंगे। यही नियति बना दी गई हमारी। बुद्धिजीवियों से लेकर क्रांतिकारियों तक ने कभी नहीं सोचा कि मुसलमान इस देश में भयभीत क्यों रहता है। क्या बेहतर माहौल बनाने की ज़िम्मेदारी उनकी नहीं है जिनके अपने लोगों, नेताओं के द्वारा ऐसे हालात बना दिए गए जिससे हर तरह की समस्या सामने आ खड़ी हुई।आज भी लाखों की तादाद में मुस्लिम बच्चे मदरसा तो छोड़िए, बेसिक स्कूली शिक्षा से वंचित हैं। मुद्दा होना चाहिए था उन बच्चों को तालीमयाफ्ता कैसे बनाया जाए लेकिन विडंबना देखिए लोग बात कर रहे हैं मदरसे होने चाहिए या नहीं। मदरसों के प्रति ऐसा माहौल बनाया जा रहा है कि वहां कोई जाए ही न। ठीक है। न जाए। तो करे क्या। कहां जाए। कान्वेंट स्कूल? जहां की फीस पूरे परिवार के महीने भर के राशन के बराबर होती है। अच्छा सजेशन है। खूब समझ कर दिया गया होगा। मदरसे, मुसलमानों के पैसे से चलते थे, चलते हैं और चलते रहेंगे। वहां सिर्फ मज़हबी नहीं बल्कि एक ज़िम्मेदार, आत्मनिर्भर और मेहनतकश इंसान बनाने की ट्रेनिंग दी जाती है। वहां से मौलाना आज़ाद बने, वहीं से ज़ाकिर हुसैन और वहीं से कलाम। जिसकी जैसी सामर्थ्य थी वो वैसा बना। आप चाहतें हैं हम पंचर की दुकान पर बैठे तो यह होने नहीं देंगे। कुछ न होने से कुछ होना, बन जाना बेहतर होता है।
आपको पढ़ते हुए कुछ सीख बैठा तो खत लिख दिया।
आपका,Mohammad अनस ” और आपके प्रिय ताबिश साहब लेखक तो कमाल के हे मगर कहना कठिन हे की वो शुद्ध सेकुलरिज्म की लड़ाई लड़ रहे हे या किसी शिया सुन्नी देवबंदी बरेलवी खींच तान का हिस्सा हे मुझे लगता हे की किसी खींचतान का हिस्सा हे क्योकि एक तो लिख ही चुके हे की उनकी सोच खानदानी हे यानी पुरानी पुरखो से चली आ रही हे उनके पिता जी भी सेम विचार रखते थे दूसरा अगर शुद्ध सेकुलर होते तो एक बार नहीं दो दो बार उनकी संकीर्णता के दर्शन ना होते एक बार जाकिर नायक पर उनकी एक पोस्ट पर मेने ये लिंक लगाया था जिसमे की ”जाकिर नायक ” पर इस जैसी और लम्बी बहस शायद ही कही हो तो परमपूज्य सिद्द्की ने वो पोस्ट ही डिलीट कर दी दूसरी बार उन्होंने एक जगह सेकुलर मुस्लिम लेखकों का नाम दिया तो परिचित होते हुए भी खबर की खबर अफ़ज़ल भाई या आपका नाम तक नहीं लिया मगर एक लेमनचूस बच्ची का नाम उन्हें याद था बाकी उनके शिया और बरेलवी बिरादरान थे मतलब इतनी संकीर्णता की इन्हे बर्दाश्त नहीं की इन्के पाठको को खबर की खबर या आपका लेखन का भी पता चले इसलिए अंदाज़ा हुआ की ये किसी शुद्ध सेकुकरिज्म की नहीं किसी शिया सुन्नी या देवबंदी बरेलवी खींच तान से जुडी सोच हे तो आपके सिद्द्की या अली से भी कोई खास फर्क नहीं पड़ पायेगा इनसे पहले भी कितने ही बड़े सेकुलर मुस्लिम विचारक शिया और बरेलवी रहे जिनसे कुछ नहीं उखड पाया
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सिकंदर हयात सिकंदर हयात • 2 days ago
यानि शुद्ध सेकुलर भारतीय मुस्लिम वो भी सुन्नी और देवबंदी इस सोच की हालात इतनी पतली हे की इसमें रविश की तो खेर बात ही क्या सेकुलर मुसलमानो का भी सहयोग नहीं मिल सकता हे क्योकि सारे सेकुलर बड़े छोटे नाम या तो शिया हे या बरेलवी बोहरा टाइप हे उधर मोदी और भाजपा ने अपनी घोर संकीर्णता और साम्प्रदायिकता से बरसो की मेहनत चिनी गयी नयी मुस्लिम सोच की वैसे ही हवा निकाल di हे
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सिकंदर हयात सिकंदर हयात • 2 days ago
सुबह से तनाव से मेरी हालत ख़राब हे शायद किसी राइटिस्ट विरोधी ने मेरी मेल आई डी ओपन कर ली थी एक घंटे बाद मुझे पता चला इस दौरान जाने क्या कर दिया हो क्या पता किया हो ————– ? अगर में कोई शिया या बरेलवी होता या कोई भी और होता तो डर की इतनी बात नहीं थी क्योकि बाकियो के तो विरोधी भी होते हे सपोटर भी , मगर हम देवबंदी सेकुलर तो बिलकुल ही तनहा लोग और सोच होते हे सपोर्ट का नामोनिशा भी नहीं —————— ” Did you sign in on this device?
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मैंने भी ताबिश सिद्दीकी के लेखन मे यह बात नोट करी. लेकिन फिर भी मैं मानूँगा कि वो शिया-सुन्नी टकराव के मकसद से भी अगर वहाबीज्म से लड़े, अपनी पहचान को शिया धर्मगुरू या शिया चिंतक के तौर पर नही दिखा कर तो भी कम से कम मुस्लिम समाज के एक हिस्से मे थोड़ी बहुत तो मंथन को बढ़ावा दे सकते हैं.
वैसे भी खुल कर, वहाबीज्म से लड़ने वाले लोग कम (ना के बराबर) ही है, सुन्नी देवबंदी तबके मे. तो ऐसी सूरत मे जहाँ से शुरूआत हो बेहतर है. रवीश, ताबिश को ही अपने शो मे बुला ले. वैसे मुझे लगता है, सोशल मीडिया पर ताबिश एक बड़ा नाम बन गया है तो रवीश भी इससे अंजान तो नही ही होंगे. लेकिन सबसे बड़ा सवाल, रवीश मुस्लिम कट्टरपंथ के विषय की गहराई मे जाना चाहते हैं या नहीं.सिकंदर हयात -to zakir • a day ago
जाकिर भाई इस विषय से कुछ जुड़ा एक पुराना कमेंट बाकी और जरुरी बाते हे ———- जारी सिकंदर हयात
April 21, 2017
हैदर रिज़वी साहब को सेल्यूट किया जाना चाहिए एक तो ये बढ़िया विचार रखते हे लिखते हे (Haider Rizvi
7 April at 10:11 हालाँकि मेने यहाँ लिखना छोड़ दिया है, लेकिन सिर्फ़ एक बात कहने के लिए इसलिए आना पड़ा…. क्यूँकि मुझे पता है ये अगर मेने यह बात नहि बोली तो कोई और भी नहि बोलेगा…..मेरी अपनी जाति यानी शिया मुस्लिम अपना ईमान बेचकर खा चुकी है….. अगर आप कोई भी मूवमेंट चला रहे हैं, कोई संगठन या संस्था बना रहे हैं तो इनसे बचकर रहें…. आपको इनका इंटेलेक्ट ज़रूर प्रभावित करेगा, लेकिन बिका हुआ इंटेलेक्ट वैश्या के शरीर से भी ज़्यादा गलीज़ होता है.. ( हालाँकि मैं निजी तौर पर वेश्याओं से बिलकुल नफ़रत नहि करता)
जी सही पहचाना, ये वही क़ौम है जो ख़ुद को मौला अली और हुसैन का मानने वाला बताती है, जिन्होंने इंसानियत के लिए अपनी क़ुरबानी देदी थी, लेकिन मुझे पूरा यक़ीन है की अगर उत्तर भारत और ख़ासकर लखनऊ के शिया करबला में होते तो इमाम हुसैन पर ये दबाव ज़रूर डालते कि यज़ीद के साथ सुलह करलो और मौज करो….. और सुलह न भी करो तो कम से कम अपना कोई मुख़्तार अब्बास या मोहसिंन रज़ा यज़ीद के पास भेज दो जो चाटने में निपुड़ हो……ऐसा नही है की भारतीय शियों ने कोई क़ुरबानी नही दी है… कैफ़ी आज़मी, अली सरदार जाफ़री, सज्जाद ज़हीर, मूनिस रज़ा और राही साहब जैसे दसियों लोग हुए हैं जिन्होंने वक़्त वक़्त पर सरकारों से मोर्चे लिए हैं….. लेकिन उन्हें भी अपनी जाति से बाहर आना पड़ा या जाती ने उन्हें ख़ुद दूर कर दिया…..हो सकता है कुछ शिया मित्रों को यह पोस्ट बुरी लगे कि सुन्नियों के सामने उनकी बेज़्ज़ती हो गयी, तो कोई बात नही वो मित्र हैं भी इसी लायक….. आइंदा मेरे नाम का भी तबर्रा पढ़ लेना कमजरफ़ो….यादवों, कुशवाहाओं, कुर्मियों, शाक्यों, नाऊ तेली, धोबी, जुलाहे वग़ैरह वहैरह …. मैंने लेली … अब तुम भी अपनी अपनी जेबों की तलाशी लेलेना ….. जब तक गाय बन खूँटे से बधे रहोगे ज़बरदस्ती दुहे ही जाओगे…. हैदर रिजवी )———- दूसरी बात इन्होने और बहुत लोगो की तरह खुद के शिया या बरेलवी होने की बात छुपाई नहीं खुल कर अपनी पहचान ज़ाहिर की की वो शिया हे , जैसे में सुन्नी देवबंदी सय्यद हु और अपनी किसी भी पहचान पर ना मुझे कोई स्पेशल गर्व हे ना ही कोई शर्म हे और ना ही मुझे किसी के शिया या बरेलवी या कुछ भी होने से कोई चिढ हे लेकिन अगर आप उदारवादी इस्लाम का प्रचार भी कर रहे तो पहले खुल कर बताइये की आप शिया या बरेलवी बोहरा अहमदी जो भी हे पहले बता तो दीजिये क्योकि एक तो पहले ही काफी मतभेद हे ही इन फिरको के बीच , तो ये टोन नहीं जानी चाहिए इनडायरेक्टली आप उदारवादी इस्लाम की आड़ में अपने फिरके का या फिरके की राजनीती के बड़े खिलाड़ियों का प्रचार तो नहीं कर रहे हे अपनी पहचान बताइये फिर खुल कर उदारवाद का प्रचार कीजिये शुद्ध सेकुलर बनिए में सुन्नी देवबंदी हु मगर कभी इसका प्रचार नहीं करूँगा क्योकि यही शुद्ध सेकुलरिज्म हे और उपमहाद्वीप में यही चाहिए आजकल बहुत से कटटरपंथी नेट पर ये प्रचार कर रहे मुस्लिम लेखकों लेखिकाओं के नाम घुमा रहे हे शियाओ पर तो खुल कर तोहमत लगा रहे हे और ये भी कह रहे हे की ये सब ———हे इससे बेकार में और क्लेश और गंद फैलेगी संघी फौज और मज़बूत होगी गलती कुछ इन उदार लेखकों लेखिकाओं की भी हे की ये खुल कर नहीं बताते हे की ये शिया या बरेलवी आदि हे बताना चाहिए था zakir to सिकंदर हयात • 10 hours ago
असल मे आज ध्रुवीकरण के दौर मे लोगो ने बड़े ख़तरे को चिह्नित कर लिया है, और उससे लड़ने के लिए उसके विरोधी तमाम गुटों के साथ खड़े होने को कारगर नीति मान लिया है. दरअसल यह उसूलों पर डटे रहने के साहस की कमी है. इस वजह से यह अवसरवादी नीति समाधान नही देगी. दोहरे मापदंडों मे अंतर्विरोध उजागर होंगे ही. इसलिए मूल सिद्धांत, सत्य और उसूलो का साथ ही होना चाहिए.
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————–zakir toसिकंदर हयात • 11 hours ago
हैदर रिज़वी ने सही तरह से बताया. दरअसल शिया हो सुनी हो या हिंदू, ईसाई. हम जो लड़ाई लड़ रहे हैं, वो तभी मजबूत होगी, जिसमे दोहरे मापदंड ना हो. मेरी नज़र मे सही सेक़ूलेरिज़्म भी वोही है. इस्लामी कट्टरपंथ से लड़ने वाले तमाम ग्रुप जो दोहरे मापदंड वाले हैं, वो इसे एक ख़ास चुनौती नही दे सकते. यही वजह है कि मुस्लिम कट्टरपंथ से लड़ते समय भी ना हमे संघी आकर्षित करते हैं, ना शिया दक्षिणपंथी. हाँ, बिन्दुवार कोई बात तर्क संगत लगती है तो उसका साथ दे देते हैं. बिन्दुवार समर्थन और विरोध से ही सही मुहिम छेड़ी जा सकती है.——————————————————–सिकंदर हयात to zakir • 7 hours ago
जाकिर भाई मेने रिजवी की तारीफ इसलिए की की उन्होंने अपना शिया अक़ीदा छुपाया नहीं सिद्द्की की तरह बहुत से सेकुलर मुस्लिम अपना शिया बरेलवी बैकग्राउंड जाहिर नहीं करते हे ताकि लोगो को उनके कम्फर्ट ज़ोन में ही होने का पता न चले . अब खेर मसला ये हे की दुनिया और हालात कम्फर्ट ज़ोन में रहने होने वालो से या नदी की धार में तैरने वालो से नहीं बदलते हे ये तो बदलते हे उन लोगो से जो कम्फर्ट जोन से बाहर होते रहते हे नदी की उलटी धार में तैरते हे सो एकतरह से लोगो से अपील कर रहा था की वो शुद्ध सेकुलर सुन्नी देवबंदी लोगो को अपना सपोर्ट दे अगर हिन्दू मुस्लिम शिया सुन्नी सहअस्तित्व एकता चाहिए कश्मीर से लेकर अयोध्या तक का समाधान चाहिए भारत पाक महासंघ चाहिए वहाबी कटटरता का खात्मा चाहिए तो ”शुद्ध सेकुलर सुन्नी देवबंदी ” सोच को बढ़ावा दे मज़बूरी में ये बात बतानी पड़ रही हे वार्ना सारा ”सपोर्ट ” सेकुलरिज्म के नाम पर शिया बरेलवी बोहरा को मिलेगा मिलता आया हे हमें नहीं इसलिए ये बात कहनी पड़ रही हे कहना नहीं चाहता था मगर सिद्द्की ने अपनी संकीर्णता से मज़बूर किया इसलिए कहना पड़ रहा हे सिद्द्की हमसे सौ गुना बेहतर विद्वान हे मगर हे कम्फर्ट ज़ोन में ही . और कम्फर्ट में रहने वालो से कुछ बदलता नहीं हे हां अपने लिए वो लाइक्स से लेकर मंत्रिपद तक हासिल कर सकते हे मगर उससे कोई बदलाव नहीं होने वाला ——————- जारी
जाकिर भाई और पाठको ये पूरा खेल समझना होगा जिसमे चतुर खोपड़ी लोग अपने लिए तो बहुत कुछ नहीं तो कुछ ना कुछ हासिल कर लेते हे और जमीन पर रिज़ल्ट कुछ नहीं होता हे जीरो . अब देखिये होता क्या हे एकतरफ ये शिया बरेलवी बोहरा आदि लोग सेकुलरिज्म और उदारता के नाम पर कुछ न हासिल कर लेते हे मोदी योगी जैसी घोर कम्युनल सरकार में भी नकवी हैदर को मंत्रिपद मिल जाता हे इन लोगो को इनके लोग भी सपोर्ट देते हे जैसे लखनवी सोशल मिडिया सूफी संत के माध्यम से दर्शाया की इन्हे तो इनके घर वाले आदि लोग भी खूब सपोर्ट देते हे की ”अरे हमारा लल्ला तो इन वहाबियो से लड़ रहा हे ” तो ये लोग अपनी जगह ठीक – उधर इन लोगो की सकिर्यता और प्रचार को देख कर वहाबियो तब्लीगियो देवबंदियों में जोश आ जाता हे पेट्रो डॉलर का सपोर्ट इन्हे हे ही , पैसा ही पैसा हे तो ये भागे फिरते हे की देखो देखो इस्लाम में शिर्क घुसाया जा रहा हे तो इस प्रचार से इन्हे बहुत कुछ मिलता हे सोशल मिडिया पर इनके ” लड़को ” तक को मिल रहा मान सम्मान और बहुत कुछ देखा जा सकता हे ये लोग दबी जुबान से शियाओ को भला बुरा भी कहने लगे हे उधर संघी राज़ में घोर इस्लाम और मुस्लिम विरोधी संजय तिवारी जैसे लोग ” जय शिया राम ” का नारा दे रहे हे राष्ट्रिय मुस्लिम मंच में सारे शिया बरेलवी बोहरा ही हो सकते हे तो कहने का आशय ये हे की घुमाफिराकर सब लोग फायदे में हे और नुकसान में हे तो वो सोच जो बदलाव ला सकती हे शुद्ध सेकुलर उदार सुन्नी देवबन्दी सोच . रविश कुमार हो या दिलीप मंडल या कोई और सेकुलर लिबरल ताकते इन्हे इन बातो की समझ नहीं हे
ज़ाहिद बेग——————— वाहे गुरु जी दा खालसा-वाहे गुरु दी फ़तह।
दुनिया के सभी धर्म श्रेष्ठ हैं और अपने ग्रंथों में समस्त मानवता के लिए करुणा और प्रेम का सन्देश देते हैं। लेकिन इन धर्म ग्रंथों को आम तौर पर कोई अन्य धर्मावलम्बी नहीं पढ़ता। वो इनके अनुयायियों को देखता है और उस धर्म के बारे में, उसके दूतों, अवतारों और पैगंबरों के बारे में अपनी राय क़ायम करता है। दोस्तों मेरा अपना अनुभव और मानना है की इस मामले में सिख धर्म के अनुयायी अन्य धर्मों के अनुयायियों से बेहतर सिद्ध हुए हैं। पंद्रहवीं शताब्दी में गुरु नानक देव जी द्वारा सिखी की स्थापना से ही सिखों ने सम्पूर्ण मानवता की सेवा, और राष्ट्रप्रेम के अनुपम प्रतिमान स्थापित किये हैं। यध्यपि अपने धर्म की स्थापना से ही उन्होंने ज़ुल्म/ज़्यादती और अत्याचार का दंश झेला है।
शुरुआत में मुगलों ने अपने राजनैतिक मक़सद के लिए उनका दमन किया। पार्टीशन के समय भी सबसे ज़्यादा हिंसा उन्ही के ख़िलाफ़ हुई। इंदिरा जी की हत्या से उपजे आक्रोश के फलस्वरूप उन्हें जान और माल का अपूरणीय नुक्सान हुआ। पर सलाम इस क़ौम को की उनके दिल में किसी धर्म के प्रति कटुता स्थायी रूप से जग़ह नहीं बना पाई।
व्यक्तिगत तौर पर आप किसी भी सिख से मिलिए उसकी गर्मजोशी और मृदु व्यवहार आपको इस क़ौम का क़ायल बना देगा। अपने गुरुओं की सीख को उन्होंने पूरी तरह आत्मसात किया हुआ है। खालसा एड इंटरनेशनल के सेवा कार्यों के बारे में तो अब लगभग सारी दुनिया जान ही चुकी है। आप दुनिया के किसी भी गुरूद्वारे में चले जाइये वहाँ का आत्मीय माहौल, सेवा की परम्परा और हर मज़हब के दर्शनार्थियों के लिए निरंतर चलते लंगर आपको अपना मुरीद बना लेंगे। जब तक आप दर्शन कर के बाहरआएंगे सेवादार आपके जूते चमका देंगे, आपको पता भी नहीं चलेगा की आपके जूते चमकाने वाला कौन है? हो सकता है की वो अब्रॉड का कोई अरबपति सिख हो।ज़ाहिद बेग
मेरा सौभाग्य रहा है की मुझे हरमिंदर साहिब से लेकर हिंदी बेल्ट के अधिकाँश गुरुद्वारों में गुरुग्रंथ साहिब का दर्शन करने और उसका पाठ सुनने का शर्फ़ हासिल हुआ है। मैं जहाँ भी पर्यटन के लिए गया अगर वहाँ गुरुद्वारा है तो मेरे क़दम बेखुदी में उस और उठ ही गए। यूँ कहिये साहिबान की गुरूद्वारे मुझे अपनी ओर खींचते हैं। एक मुख़्तसर सा मेरा यात्रा वृतांत आपसे शेयर कर रहा हूँ –
जनवरी २०१० में इंदौर से सपरिवार अमृतसर,दिल्ली , आगरा,फतेहपुर सीकरी के लिए निकला। इंदौरसे पहला पड़ाव अमृतसर था। लगभग शाम के ५ बजे ट्रेन इंदौर से निकली। हमारे कूपे में सामने वाली बर्थ पर एक छोटा सा सिख परिवार बैठा था । माँ , उनका नौजवान बेटा और एक किशोरवय बेटी। उनके पिता और चाचा पकिस्तान से लरकाना साहिब में मत्था टेक कर ३ दिन बाद आने वाले थे उन्हें रिसीव करने वो अमृतसर जा रहे थे। बहुत सम्पन्न परिवार था। जैसा की अमूमन ट्रेन यात्राओं में होता है परिचय की शुरुआत आप कहाँ जा रहे हैं से हुई। जैसे ही उन्हें पता चला की हम मुस्लिम हैं और हरमिंदर साहिब दर्शन के लिए जा रहे हैं वो इतने प्रसन्न और अभिभूत हुए की उसको बयाँ करना मुश्किल है। पंजाबी अपने खाने/खिलाने के शौक के लिए पूरी दुनिया में मशहूर हैं आप यक़ीन नहीं करेंगे दोस्तों अमृतसर तक लगभग ३५ घंटों के सफर में उन्होंने हमे ३५ रूपये भी खर्च नहीं करने दिए। इतना और इतनी तरह का खाना ले कर वो चले थे की पुरे सफर के दौरान हम अपना खाना निकाल ही नहीं पाए। यही नहीं अपने परिजनों के लिए स्वर्णमंदिर परिसर के बाहर ट्रस्ट की धर्मशाला में आरक्षित ए सी कक्ष २४ घंटे के लिए हमें उपलब्ध करा दिए। अपने साथ हरमिंदर साहिब के दर्शन कराये और बाघा बार्डर ले कर गए। आज इस पोस्ट के माध्यम से मैं अपने परिवार की ज़ानिब से उस ज़िंदादिल परिवार के प्रति कृतग्यता ज्ञापित करता हूँ। ज़ाहिद बेग
सिखी की सर्वोच्च परम्परा का एक उदाहरण और – दूसरे दिन हम स्वर्ण मंदिर परिसर में शाम को टहल रहे थे। मग़रिब की नमाज़ का वक़्त हो गया था। मैं बच्चों से थोड़ा दूर आ गया था। ज़ीशान ने मुझ से आ कर कहा-“डैडी मम्मी नमाज़ पढ़ने का बोल रही हैं। ” मैंने कहा-” ठीक है परिसर के बाहर चलते हैं।” तब तक आरिफ़ा भी आ गईं थीं। बोलीं- इतनी भीड़ है बाहर निकलने में और कमरे तक पहुँचने में एक घंटे से ज़्यादा वक़्त लग जायगा और नमाज़ कज़ा हो जायगी। ” अब में सकपकाया मुझे पता था की उन्होंने शादी के बाद अब तक शायद एक नमाज़ भी नहीं छोड़ी थी। बोलीं -“यहीं कही पढ़ लें। ” अब मैं सिखों और हमारा रक्त-रंजित इतिहास जानता था। यधपि यह भी जानता था की 1588 में गुरु अर्जन साहिब ने लाहौर के एक मुस्लिम फ़क़ीर(सूफी संत) हजरत मियां मीर जी से हर मिन्दर साहिब की नींव रखवाई थी पर यह भी सत्य है की पिछले ४२२ सालों में पंजाब की पांचो नदियों में दोनों कौमो का बहुत रक्त बह चूका था। घर से २००० किलोमीटर दूर हजारों सिखों के बीच उनके सबसे पवित्र धर्म-स्थल पर बीबी-बच्चों को नमाज़ पढ़ने का कहने की मेरी हिम्मत नहीं हुई। शायद पढ़ा-लिखा होना इंसान को पूर्वाग्रही भी बना देता है। हमारी इस उहा-पोह को वहाँ से गुजर रहे सेवादार ने ताड़ लिया हिंदी मिश्रित गुरुमुखी में बोले -“बोले क्या बात है ?” मेरे कुछ बोलने के पहले ही ज़ेनिफ़र ने उन्हें सारा माज़रा कह सुनाया।
दिल और दिमाग़ को सिखी की महान शिक्षाओं से रोशन कर लीजिये साहेबान । वो निहंग सेवादार मुस्कराये और बोले-” तो इसमें क्या दिक़्क़त है?” फिर क्या था पवित्र सरोवर मेरे परिवार के लिए वज़ुख़ाना बन गया. सेवादार ने भीड़ को एक तरफ़ किया। दिशा भ्रम होने के कारण हमें बताया की मग़रिब किस तरफ़ है। अपने उत्तरीय को पवित्र सरोवर में डुबो कर नमाज़ पढ़ने के स्थान को पोंछा , जब तक बच्चे नमाज़ पढ़ते रहे वो अपनी नीली ड्रेस में चार फ़ीट लम्बी तलवार क़मर से लटकाये वहाँ खड़े रहकर नमाज़ियों के सामने से लोगों को निकलने से रोके रहा। जरा तसव्वुर कीजिये मित्रों दुनिया के सबसे पवित्र सिख धर्मस्थल पर हज़ारों सिखों के बीच में मेरा परिवार हरमिंदर साहिब में अपने रब की बारगाह में सज़दा कर रहा था।
ज़ीशान के सर पर टोपी के स्थान पर अकाल तख़्त के प्रतीक वाला भगवा सिरोपा (रुमाला) बंधा हुआ था। निहंग उनके एहतराम में तलवार बांधे खड़ा था। यह एक कल्पनातीत दृश्य था। जिसका चित्रण करना नामुमकिन है। जो संवेदनशील होंगे उन्हें दिख रहा होगा की इन नमाज़ियों, उस निहंग और वहाँ से ख़ामोशी से गुज़र रहे दर्शनार्थियों पर अल्लाह की रहमत के साथ-साथ तमाम गुरुओं और मियां मीर का आशीर्वाद भी बरस रहा था। बच्चों की नमाज़ के बाद मैंने अपनी भीग आई आँखों की कौर को पोंछा और उस मोहब्बत के फ़रिश्ते से मुसाफ़ा( दोनों हाथ मिलाना )कर उसका शुक्रिया अदा किया। वो ‘कोई नी जी कोई नी’ कहता हुआ खरामा-खरामा अपने काम में लग गया। हम भी मोहब्बत और सर्वधर्म-समभाव का एक अमिट पाठ अपने ह्रदय पर अंकित कर वहाँ से रुखसत हुए।
सतश्री अकाल दोस्तों।
हरमिंदर साहिब में हमारे साथ हमारे सिख मित्र का परिवार – शुक्रिया दार जी। वाहे गुरु जी दा खालसा-वाहे गुरु दी फ़तह। ज़ाहिद बेग
व्यक्ति और दुनिया की हर समस्या- वयवस्था से निजाम से सिस्टम से कैपिटलिज़्म कम्युनिज्म, सोशलिजम सेकुलरिजम कम्युनलिजम राइटिस्ट लिबरल आदि से ही जुडी हुई ही नहीं होती हे , इंसानो की फितरत भी सबसे बड़ी समस्या हे इंसान शायद कभी भी नहीं बदलेगा वो वैसा ही फितरती रहेगा अब देखिये एकतरफ तो हम हे शुद्ध विशुद्ध सेकुलर वो भी सबसे कठिन सेकुलर तप वाले यानि सुन्नी देवबंदी सेकुलर तो उधर घोर कम्युनल डायनासोर के ज़माने का एक संघी लेखक और एक्टिविस्ट आदि जिसकी फोटो मोदी के साथ भी हे तो अंदाज़ा लगाइये की दो बिलकुल ही बिलकुल ही विपरीत विचारधारा एक घोर सेकुलर एक घोर कम्युनल फिर एक सबसे कमजोर सोच यानि किसी चपरासी के साथ भी हमारा फोटो नहीं , दूसरे का फोटो पी एम् के साथ वो भी यु ही चलते चलते नहि बल्कि किसी ” भारी कांफ्रेस ” का तो दो बिलकुल विपरीत सोच और लोग हम और ये डायनासोर संघी लेखक हां इनकी भी लाखो लाइने हे कम्युनलिजम और कटटरता के प्रचार में और हमारी भी सेकुलरजिम और उदारता के प्रचार में लेकिन कुदरत और इंसानी फितरत का करिश्मा देखिये की दर्द दोनों का सेम सा भि हे कल ये लिखते हे ———– सुरेश Chiplu
12 hrs ·
#Self_Goal
जिस-जिस वेबसाईट का हिन्दूवादियों ने कसकर-जमकर विरोध किया, गालियाँ दीं, खिल्ली उड़ाई… लगभग वे सभी वेबसाईटें करोड़ों में खेल रही हैं… उन्हें फंडिंग हो रही है, चन्दे मिल रहे हैं…. (उनके नाम नहीं लूँगा, अन्यथा खामख्वाह और विज्ञापन हो जाएगा… वामी-कांगी-छिछोरी और दुष्प्रचार फैलाने वाली, मोदी विरोधी वेबसाईटों को हर राष्ट्रवादी जानता है).
कल से —————– ( बड़े ग्रुप की छोटी वेबसाइट ) नाम की वेबसाइट चर्चा में है… भाजपा के बड़े-बड़े नेता वहाँ जाकर इंटरव्यू दे रहे हैं… क्या इन भाजपा नेताओं ने ————– के पिछले लेख पढ़े हैं?? क्या योगी आदित्यनाथ को इस वेबसाइट के मंच पर जाने की सलाह देने वालों को, ————– का इतिहास पता है??
================खैर… दुःख केवल इस बात का होता है कि अपने ही हिन्दू भाई, किसी राष्ट्रवादी/हिंदूवादी वेबसाईटों को “प्रमोट करना” या उसे हृष्ट-पुष्ट बनाना तो दूर, उस पर लिखे गए लेखों को पढ़ने की ज़हमत तक नहीं उठाते… अधिकाँश राष्ट्रवादी वेबसाईट्स दरिद्री अवस्था में चल रही हैं… ”————————————————————————-सुरेश Chiplu ” – तो ये बात इनकी जायज़ हे ये देख कर होश उड़ गए होंगे की फेसबुक पर पचास हज़ार फॉलोवर रखने वाले इन डायनसोर संघी की साइट की टी आर पी करीब करीब इतनी ही होगी जो सबसे दीनहीन विचारधारा वाली खबर की खबर की हे अब देखे की जो रवैया लख्नउ के सोशल सूफी संत ने एक ही मकसद होने के बावजूद हमारे साथ किया की उसने पूरा ध्यान रखा की किसी हालत में उसके पाठको को विपुल सामग्री और बहस वाली खबर की खबर की खबर ना लगे इसी तरह नेट पर हिन्दू कठमुल्लाओ की भरमार और निवेश हे मगर कोई भी इनकी साइट का प्रचार नहीं करता हे कोई अपना घी ( ट्रेफिक क्लिक ) दूसरे की थाली में डालने को राजी नहीं हे ये इंसान की फितरत हे दूसरी तरफ चतुर खोपड़ी लोग क्या करते हे जिस वेबसाइट को उपर उस संघी ने भाजपा विरोधी कहा सही हे लेकिन ये सब इनकी चतुराई होती हे ये बहुत बड़ा ग्रुप हमेशा से भाजपा समर्थक रहा हे इसकी एक एंकर तो पति की जगह जल्दबाज़ी में मोदी बोल चुकी हे तो दूसरी एंकर तो बिलकुल ही किसी ——– छापसंघी की तरह ट्वीट करती हे तो दिखावे को एक छोटी साइट भी निकल दी की कल को कह सके की देखो हम तो इनका कितना विरोध करते थे अब इन लोगो की चतुराई देखिये की इनके एक शिया लेखक ने कुछ समय पूर्व सात क्रन्तिकारी मुस्लिम महिलाओ की लिस्ट पेश कर दी सब शिया और बरेलवी शायद , और किसी का भी न कोई खास अध्ययन न कोई विचार ना ऐसी कोई खास गतिविधि इतनी फ़र्ज़ी लिस्ट की दो तीन ने तो खुद ही अपना नाम होने पर ऐतराज़ किया मगर तीर बिलकुल सही निशाने पर लगा सुनते ही हल्के भारी कटटरपन्ति कुर्ताफाड़ होली खेलने लगे खूब गाली गलोच भला बुरा शुरू होगया यही तो चाहिए था जितनी गालीगलोच उतना ही अधिक प्रचार मिला यही तो चाहिए था हर कोई वेबसाइट को जान गया कुछ लोग मुक़दमेबाज़ी की धमकी देने लगे इससे भला एक बड़े ग्रुप के लोगो को भला क्या डर हो सकता हे वकील तो पहले ही होते हे इनके पास , कुछ कटरपंथी उस शायद शिया लेखक को धमकी देने लगे जिसने ये महान लिस्ट बनाई थी तो ज़ाहिर हे इन्हे भला क्या डर ——— ? इनके पास कई कई सुरक्षा कवच होते ही हे बताया हे उसने बेफिक्री से अपना पता ठिकाना बता दिया इन्हे भला क्या डर . तो तीर बिलकुल सटीक रहा आज का जमाना प्रचार का हे वो चाहे जैसे हो और देखिये ये भि ———————————————- ”-Suresh Chiplunkar
20 hrs ·
#Jay_Shahकृपया सर्च करके बताएँ… :– भाजपा के इतिहास में आज तक कितने नेता-पुत्रों पर आरोप लगे हैं, और उन नेता-पुत्रों के बचाव में कैबिनेट मिनिस्टर से लेकर समूची भाजपा बिलबिलाती हुई, विद्रूप और वीभत्स तरीके से मैदान में कूदी है??
अब साँप निकलने के बाद, लाठी जमीन पर फटकने की तर्ज पर… “द वायर” के कनेक्शन खोजे जा रहे हैं… कौन चन्दा देता था? कौन क्या लिखता था? किसकी नौकरी कहाँ लगी, कहाँ से गई??
===================आप में इतनी कूवत और अक्ल होती, तो आप भी तीन साल में “द वायर” का मुकाबला करने के लिए आठ-दस राष्ट्रवादी साईटों को मजबूती से खड़ा कर देते?? क्या आपके पास चन्दे या पैसों की कमी है?? लेकिन सच बात तो ये है कि आपकी देने की नीयत नहीं है… आपकी सोच “बनिया सोच” है, कि जब मुफ्त में काम हो रहा हो, तो उसके लिए पैसा खर्च क्यों करना??
See Translation
Suresh Chiplunkar
1 hr ·
#Hindutva
यह चित्र किसी ने व्हाट्स एप्प पर भेजा… बताया जाता है कि यह अफलातून किस्म की पोस्ट किसी “हिंदूवादी फेसबुक पेज” पर थी…
ऐसे चित्रों और ऐसे तमाम कूड़ा छाप फेसबुक पेजों पर मिलने वाले 4500 लाईक और 650 कमेंट्स सिद्ध करते हैं, कि राष्ट्रवाद और हिंदुत्व की सेवा सोशल मीडिया पर ज़ोरशोर से चल रही है… 😛 😛 😛
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और हाँ… एक बात और… फेसबुक पर शेयर किए गए desiCNN.com के किसी भी लेख पर आज तक एक हजार से अधिक लाईक नहीं आए…LikeShow More Reactions · Reply · 1 · 1 hr
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Suresh Chiplunkar
Suresh Chiplunkar चिरकुटों की कमी नहीं है… एक ढूँढो हजार मिलते हैं…
बंगाल में दुर्गा प्रतिमा के विसर्जन में मुल्लों और ममता ने टांग अड़ाई थी, उस लेख को desicnn.com पर “केवल 800” लोगों ने पढ़ा… इसी से आप समझ सकते हैं क्या गजब की जागरूकता है हिंदुओं में…Manage
अनुज अग्रवाल
अनुज अग्रवाल गलती आपकी ही है दादा
बताइये कभी आपने लिखा कि कट्टर हिन्दू देखते ही शेयर करेंikeShow More Reactions · Reply · 2 · 1 hr
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Suresh Chiplunkar
Suresh Chiplunkar कभी आप “हिंदुत्व का चीता”, “भगवा शेर”, “काट डालेंगे” टाईप के फेसबुक पेज पर जाएँगे तो हँसते-हँसते पागल हो जाएँगे… कोई किसी सैनिक का फोटो दिखाकर गुर्रा रहा है… तो कोई किसी गाय का चित्र ठेलकर उसके नाम से लाईक माँग रहा है…
कोई चिरकुट इस बात का सर्वे कर रहा होता है कि, “बताओ मोदी और राहुल में से कौन श्रेष्ठ है?” A or B…LikeShow More Reactions · Reply · 32 mins · Edited
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जितेन्द्र कुमार
जितेन्द्र कुमार उपदेश राणा और दीपक शर्मा की id देख लीजिए
यहां बड़े बड़े 1000 लाइक के लिए लड़ते हैं वहां वो 20-30 हजार लाइक बटोर रहे हैं।
ऊपर दर्शाया की इंटरनेट पर डायनसोर युग से सकिर्य भाजपा मोदी संघ समर्थक प्रोपगेंडेबाज़ शिकायत कर रहे हे की उनकी साइट को कोई नहीं पूछता हे संस्धानों के पहाड़ पर बैठे भाजपा वाले भी नहीं , और इनकी शिकायत हे की यही भाजपा वाले एक मोदी संघी विरोधी साइट की हाज़िरी बाज़ा रहे हे सी एम् तक , अब इसमें एक तो चतुर लोगो की चतुराई देखनी चाहिए की कितने शातिर होते हे ये लोग , जिस वेबसाइट की ऊपर ये संघी डायनासोर विचारक शिकायत कर रहा हे वो एक बड़े मिडिया ग्रुप की ही हे जो भाजपा समर्थक ही हे मगर चतुराई देखिये ये साइट उनकी खुली भाजपा संघ मोदी विरोधी चल रही हे जैसा की डायनासोर ने शिकायत की ही हे . तो भाई बात यही हे की इन चतुर खोपड़ियों को इस बात की समझ थी की अगर वो भाजपा समर्थक साइट लाएंगे तो उसे कोई नहीं पूछेगा जैसे डायनासोर की साइट को कोई नहीं पूछता हे वजह ये हे की इन शातिरों को तो पता ही था की छी न्यूज़ और दूसरे कई चेनेल तो हे ही जेब में फिर नेट पर वैसे ही इस कदर पेड़ अनपेड प्रोपेगेंडा मशीन हे ही मोदी संघ भाजपा की , तो ऐसे में उनकी भाजपा समर्थक साइट को कौन पूछेगा सो उन्होंने भाजपा और हिन्दू कटटरपंथ विरोधी साइट निकाली और यही वजह भी हे की डायनासोर संघी को तकलीफ हुई की हमारे गुरु घंटाल दुनिया भर का माल लिए बैठे हे और हमें ही नहीं पूछते हे और ये वो लोग हे जो 2002 से हि मोदी को पि एम् बनाने के लिए गंद और सांपररदायिकता फैलाने में जुट गए थे मगर थे ये असली ही रियल तो होता ये हे की आजकल हर दूसरा बड़ा संघी और मोदी समर्थक पुराना प्रोपगेंडेबाज़ शिकायत करने लगा हे की हमें क्यों कोई नहीं पूछता हे ————– ? खेर एक बात और ऊपर जिस साइट का जिक्र किया जिसने सात क्रन्तिकारी मुस्लिम महिलाओ की बहुत ही बेहूदा लिस्ट पेश की थी मगर तीर सही निशाने पर लगा और खूब जूते चले और यही टोटल जूते बाद में टोटल टी आर पि में बदल गए क्या कर सकते हे आज हालात ही यही हे . इस विश्य पर ये संघी उचित ही लिखता हे की ————–Vikas Agrawal
11 October at 20:51 ·
अभिसार शर्मा ने एक वाक्य कहा कि यह धान है और इसमें से गेहूं निकलेगा. और उसके बाद अभिसार शर्मा पर दो करोड़ लोगों ने मजाकिया और प्रतिकूल टिप्पणियां कीं. इससे दो बातें निकल कर आती हैं, एक तो यह कि फेसबुक पर आने वाली पब्लिक अभी भी आशा करती है कि टीवी पर आने वाले पत्रकार बेवकूफी की हरकत नहीं करेंगे, दूसरा यह कि बेहूदी बात करके आदमी हमारे देश में रातों रात लोकप्रिय हो सकता है ढिंचक पूजा, केआरके, मंडलों, बिग बॉसियों और तमाम राखी सावंतों की तरह.यहाँ यह जानना भी बहुत जरूरी है कि इस लोकप्रियता का प्रसार केवल उसी क्षेत्र में है जहाँ इंटरनेट महामारी और प्रदूषण की हद तक फ्री है. अखबारी क्षेत्रों में अभी भी मोदी मरीजों का ही जलवा है.अगर यह माना जाए कि यूट्यूब और वॉट्सएप चलाने वाली जनता मल्टीप्लेक्स और सिनेमा हाल तक भी जाती है तो क्या इस महत्वपूर्ण खोज को अमिताभ बच्चन अपने लड़के के लिए इस्तेमाल नहीं कर सकते, अभिषेक बच्चन लगभग गुमनामी में पहुंच चुके हैं. उनकी कोई पिक्चर आती है तो एक तो उनको पहचानना मुश्किल. मोटे अफ्रीकी रैपर की तरह शकल बनाए घूमते हैं, स्टार किड वाला दौर उनका जा चुका है, जो उनके पिता की अगली पीढ़ी देखने का कोई रोमांच बचा हो, ऊपर से अमिताभ बच्चन से ज्यादा कादर खान की औलाद लगते हैं, तो कादर खान का खुद का लड़का नहीं चला तो डुप्लीकेट लड़के को पब्लिक क्यों देखेगी. कुल मिलाकर अभिषेक बच्चन फरदीन खान बनने से एक कदम दूर हैं, हालांकि दूसरा पैर केले के छिलके पर टिका है, मगर चूंकि ऐश्वर्या रॉय के साथ इज़्जतदार तरीके से घूमते हैं, इसलिए मामला किसी तरह हाथ में है.इतनी दुष्वारियों में अगर अभिषेक बच्चन गन्ने के खेत के सामने खड़े होकर यह कह दें कि ये जो आप देख रहे हैं, यह गन्ना है, और इनकी गांठें जब पक जाएंगी तो इसमें से शकरकंद निकलेंगे. तो क्या होगा कि पूरे देश की पब्लिक उन्हें ट्रोल करने लगेगी, और जाहिर बात है कि उनको कम उनके पिताजी को ज्यादा ट्रोल किया जाएगा. और एक बार जब जलालत सर से ऊपर निकल जाएगी तो लोगों को अमिताभ बच्चन से सहानुभूति होने लगेगी. दोनों के बीच का लिंक भी याद आने लगेगा. पिंक भी याद आने लगेगी. और अभिषेक बच्चन को सफलता के लिए चाहिए भी क्या, नहाने का साबुन और दाढ़ी बनाने का ब्लेड बस. स्क्रिप्ट वगैरह अलग से देख लिया जाएगा.
बस हाथ आए मौके को पहचानें और मौके का फायदा उठाएं.Vikas Agrawal
एक भारतीय उपमहाद्वीप की इस समय की सबसे मज़बूत विचारधारा हिन्दू कठमुल्लावाद और एक हमारी उपमहाद्वीप की सबसे कमजोर और लीचर पिचर विचारदारा शुद्ध सेकुलर भारतीय मुस्लिम वो भी सुन्नी देवबंदी इससे कमजोर विचारधारा और कोई नहीं हे लेकिन उस विचारधारा के एक लेखक प्रचारक कार्यकर्त्ता और पता नहीं क्या क्या और क्या क्या नहीं आज इन लोगो के पास——- ? लेकिन इंसानी फितरत का कमाल देखिये की इनका भी सेम स्यापा ऊपर कमेंट में विस्तार से बताया हे – हलाकि ये इसे कुछ और यानि हिन्दू मानसिकता कांग्रेस वामपंथ आदि समझ रहा हे मगर असल चीज़ हे इंसानी फितरत जो अपने फिल्ड के नए और कमजोर लोगो को फ्लॉप होते देखना पसंद करती हे और ताकतवर लोगो को सलाम बजाना वो चाहे जैसे भी हो खेर पढ़े Suresh Chiplunkar
3 hrs ·
#Think
आदरणीय मित्र विपुल विजय रेगे की वाल से कॉपी-पेस्ट…
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कई प्रबुद्ध मित्रों के लिए पोस्ट का मतलब ‘दो मिनट में कॉपी-पेस्ट’ नहीं होता। बड़ी मेहनत से तथ्य जुटाकर, शोध करके वे पोस्ट डालते हैं। दस घंटे के श्रम से लिखी गई पोस्ट की लोकप्रियता 300 लाइक पर आकर रुक जाती है, पोस्ट खो जाती है। लेखक उसे अगली पीढ़ी के लिए सहेजना चाहते हैं, उस श्रम के बदले कुछ आर्थिक प्रोत्साहन चाहते हैं। एक पेशेवर लेखक इससे ज्यादा नहीं चाहता।
ये मनोविज्ञान मेरी समझ मे आज तक नहीं आया कि जब कोई लेखक अपने लेख की लिंक पोस्ट करता है तो बीस लोग भी उसे क्लिक नहीं करते। सिर्फ एक क्लिक में आप उसकी वेबसाइट पर छपे लेख तक पहुंच सकते हैं। लेकिन आप क्लिक नहीं करते, आगे बढ़ जाते हैं। आपमे से 500 लोग भी उसकी लिंक क्लिक कर दे तो उसका भी कुछ लाभ भविष्य में उसे मिल सकता है। वे पेशेवर लेखक हैं, उनके पास आमदनी का कोई जरिया नहीं है। आप लाखों लोग पलक झपकते ही उस लेखक को कहां से कहाँ ले जा सकते हैं, लेकिन नहीं ले जाते।
इस विशाल राष्ट्रवादी समूह में एक से एक लेखक और विचारक भरे पड़े हैं लेकिन वास्तविकता क्या है, मैं बताता हूँ… राष्ट्रवादी/कवि/रहस्यवाद/इतिहास पर बेहतरीन लिखने वालों की कीमत साहित्य जगत में दो कौड़ी की नहीं है, दो कौड़ी की। इनको कोई पब्लिशर मौका नहीं देता, इनको किसी साहित्य सम्मेलन के लायक नहीं समझा जाता। क्योंकि साहित्य के संसार मे वामपंथियो की हुकूमत चलती है। अखबारों में, पत्रिकाओं में, वेब पोर्टलों में उनका ही साम्राज्य है। पेशेवर फेसबुकिये लेखकों के पास ज्यादा विकल्प नहीं है। जो शौकिया है उनके पास आजीविका का दूसरा जरिया है, लेकिन ये लेखक खाली हाथ हैं।
तो इतना बड़ा प्रवचन इसलिए ही दिया है कि अपने बीच के किसी भी लेखक को आप चमत्कारिक ढंग से ऊंचाइयों पर पहुंचा सकते हैं। आपका संख्या बल लेखकों को सफलता की राह ले जा सकता है। और करना क्या है ‘बस उसकी वेबसाइट या फेसबुक वाल पर एक क्लिक’। और क्या मांग रहा वो आपसे??es
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Suresh Chiplunkar
Suresh Chiplunkar विपुल विजय रेगे जी… मेरे फालोअर्स और मित्र मिलाकर संख्या 50,000 के ऊपर है… लेकिन यदि मैं आपको desiCNN.com के पाठकों के “वास्तविक आँकड़े” दिखाऊँ तो मेरे साथ-साथ आप भी शर्म के मारे जमीन में गड़ जाएँगे… 🙁
आजकल सभी को शोर्टकट और व्हाट्स एप्प ज्ञान चाहिए… पढ़ने की इच्छा और समय दोनों खत्म हो चले हैं… पिछले दस माह के अनुभव से लगता है कि पता नहीं क्यों हम पागलों की तरह लिखे चले जा रहे हैं… काश पिछले दस वर्षों में इतना समय, इतनी ऊर्जा अगर मैंने अपनी दुकान में लगाई होती. लेकिन फिर बात वही आती है कि देश-काल की परिस्थितियाँ और घटनाएँ देखकर लिखे बिना रहा भी तो नहीं जाता…
न तो मैं पूरा पत्रकार (लेखक) बन पाया… न पूरा बिजनेसमैन… बीच में ही झूलता रहा आजीवन… आजीविका के कारण दुकान तो छोड़ नहीं सकता था… लिखना भी नहीं छोड़ पाया…
Suresh Chiplunkar
Suresh Chiplunkar मेरी टिप्पणी :- राष्ट्रवादी वेबसाइटों की असफलता (या आंशिक सफलता) की यह शोकांतिका कोई नई बात नहीं है… पाठकों की अपेक्षा सदैव मुफ्त में पढ़ने की रहती है, उन्हें भी दोष देना ठीक नहीं है… अतः इस समस्या का कोई और इलाज खोजना होगा, अन्यथा कई कलमें दम तोड़ देंगी…Suresh Chiplunkar Onkar Tak OM जी… — किसी लेखक के लिए “आर्थिक सुरक्षा” और “आर्थिक स्वतंत्रता” का मतलब यह होता है कि वह और भी बेफिक्र होकर, और मुक्त होकर, और अधिक समय देकर… विचारधारा के लिए जुटकर दिन-रात काम कर सकता है…
वामपंथी और काँग्रेसी उसे यह सुरक्षा उपलब्ध करवाते हैं… (इसीलिए काँग्रेस ने साठ वर्ष शासन किया, और बंगाल में उन्होंने पैंतीस साल). वे लोग अपने किसी NGO के माध्यम से, या किसी पद पर (“नाममात्र” के लिए) बैठाकर… किसी फेलोशिप के माध्यम से उसे चालीस-पचास हजार मासिक की रकम जुगाड़ करवा देते हैं… ऐसे बहुत से काम हैं… फिर वह लेखक सुबह से रात तक एक ही काम में जुटा रहता है कि कैसे संघ-भाजपा को कमज़ोर किया जाए, कैसे हिन्दू विचारधारा के टुकड़े किए जाएँ…
कड़वी है, लेकिन सच्चाई है कि आज भी हम “उन्हीं के द्वारा सेट किए हुए एजेंडे” पर केवल प्रतिक्रिया देते हैं… बाकी आप समझदार हैं.eShow More Reactions · Reply · 4 · 3 hrs · Edited
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Suresh Chiplunkar
Suresh Chiplunkar विपुल विजय रेगे जी… मराठी की एक कहावत के आधार पर एक उदाहरण देना चाहूँगा… (अनुरोध करता हूँ कि मित्रगण इसे शब्दशः नहीं लेंगे)…
“जब कव्वे को कोई रोटी सड़क पर पड़ी मिलती है, तो वह काँव-काँव करके दूसरे कौवों को भी बुलाकर मिल-बाँटकर खाते हैं… लेकिन वही रोटी जब कुत्ते को मिलती है तो वह भौं-भौं करके दूसरे कुत्तों को कभी नहीं बुलाता, अकेले हजम कर जाता है”…
(इस उदाहरण में कव्वे काँग्रेसी-वामपंथी सत्ताधीश हैं, और कुत्ते राष्ट्रवादी सत्ताधीश हैं).
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(नोट :- पहले ही कह चुका हूँ, कि केवल अर्थ ग्रहण करें, शब्दशः न लें)Aditya Vashisth परन्तु ये गुण वामपंथी विचारधारा मे Develop कैसे हुआ और भक्त शोटकट के ज्ञान क्यों चाहते हैं।।
Suresh Chiplunkar Aditya Vashisth – ये भी विचारणीय है… ?
संगीता गांधी
संगीता गांधी राष्ट्रवादी स्वयं किसी के लिए कुछ नहीं करना चाहते ।दो राष्ट्रवादी पत्रिकाओं में मेरी कहानी व लेख छपे ।कोई पैसा मिलना तो दूर की बात है ।पत्रिकाओं की प्रति तक नहीं मिली जबकि दोनों के सम्पादकों ने प्रति देने का वादा किया था ।रचनाओं के चित्र तक बड़ी मुश्किल से मांगने पर दिए ।उसके विपरीत वामपंथी पत्रिका भी भेजते हैं और मानदेय भी देते हैं ।अब राष्ट्रवादी पता नहीं किस अहंकार में रहते हैं ?
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LikeShow More Reactions · Reply · 7 · 3 hrs
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Suresh Chiplunkar
Suresh Chiplunkar दुखद…Suresh Chiplunkar Deep Maithani – सच कहना अच्छा तो नहीं लग रहा… लेकिन वास्तविकता यही है कि हिन्दू समाज “केकड़ा प्रवृत्ति” से ग्रस्त है…
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केकड़ा प्रवृत्ति = खुद कुछ करेंगे नहीं… यदि कोई कुछ करने का प्रयास कर रहा होगा तो उसकी भी टांग खींचेंगे…Suresh Chiplunkar Aditya Vashisth जी… “द वायर”, “द क्विंट”, “स्क्रोल” जैसे समकक्ष या इससे भी अच्छे उपक्रम चलाने के बारे में मेरी दो बार “काफी वरिष्ठ” लोगों से बात भी हो चुकी है… ब्लूप्रिंट भी उन्हें दिखाया था… लेकिन नतीजा ढाक के तीन पात…
“भाई साहब” का पहला सवाल था… ये सब तो ठीक है, लेकिन “इतना इन्वेस्ट कौन करेगा??” :(Aditya Vashisth तो विश्व की सबसे बड़ी पार्टी सत्ता में आकर झक मार रही हैं क्या ।
Suresh Chiplunkar
Suresh Chiplunkar Aditya Vashisth – हाँ… बिलकुल… विश्व की सबसे बड़ी पार्टी, सबसे बड़ा हिन्दू संगठन…पाँच करोड़ की सांसद निधि में से बीस परसेंट कमीशन खाने वाले 400 सांसद वगैरह सभी झख ही मार रहे हैं,…. पैसा नहीं है… बहुत गरीब पार्टी है ये…LikeShow More Reactions · Reply · 2 · 2 hrs
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केवल राम
केवल राम “क्योंकि साहित्य के संसार मे वामपंथियो की हुकूमत चलती है। अखबारों में, पत्रिकाओं में, वेब पोर्टलों में उनका ही साम्राज्य है। पेशेवर फेसबुकिये लेखकों के पास ज्यादा विकल्प नहीं है।” इस बात से मैं इत्तेफाक नहीं रखता, बाकी जो है उस पर विचार किया जा सकता है. मेरी समझ में यह नहीं आता कि कैसे एक व्यक्ति जब गंभीरता से पढना लिखना शुरू करता है तो वह वामपंथी हो जाता है. इस वामपंथ को भी समझा जाना चाहिए? स्पष्ट किया जाना चाहिए. मुझे काफी हद तक यह बच निकलने का तरीका लगता है. ऐसा नहीं है कि दक्षिणपंथ पर लिखने वालों को तरजीह नहीं दी जाती, उन्हें नहीं पढ़ा जाता, लेकिन सच यह है कि दक्षिणपंथ में अधिकतर लोग अध्ययन और विश्लेषण की जहमत ही नहीं उठाते. वह दूसरों पर आरोप मढने में ज्यादा यकिन रखतेuresh Chiplunkar Abhinav Pandey – लिंक वाली पोस्ट को फेसबुक अधिक आगे नहीं जाने देता… यह समझा जा सकता है… कम से कम दस प्रतिशत तक तो पहुँचाता ही होगा???
लेकिन फिर सवाल ये है कि पचास हजार फालोअर्स का दस प्रतिशत, यानी मान लो 5000 तक पोस्ट पहुँची… इसे थोड़ा और कम कर लेते हैं…. मान लो 3000 तक ही पोस्ट पहुँची… फिर भी पोस्ट को पढ़ने वालों की संख्या अधिकतम दो हजार (किसी-किसी पोस्ट पर तो आँकड़ा 500 ही है)?? ऐसा क्यों?? ??Abhinav Pandey यहाँ भी चुक है… दरअसल यह फॉलोअर्स वह नहीं है जो आपको सी फर्सट कर रखे हैं… दरअसल आपको जो लोग निवेदन भेजते हैं वह ऑटोमैटिक आपके फॉलोअर बन जाते हैं भले ही आप उनका निवेदन स्वीकार करें या न करें…
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Suresh Chiplunkar
Suresh Chiplunkar Abhinav Pandey – हाँ… वही तो मैं सोच रहा हूँ… कि या तो इन फालोअर्स लोगों ने मुझे मजाक-मजाक में फ्रेंड रिक्वेस्ट भेज दी थी… वर्ना यदि वास्तव में मेरा लिखा हुआ पढ़ने के इच्छुक होते तो मेरी वाल पर दिन में कम से कम एक बार तो आते… फिर यहाँ से desiCNN पर जाते… लेकिन लगता है कि उन्होंने बस ऐसे ही उत्साह-उत्साह में फ्रेंड रिक्वेस्ट भेज दी होगी और फालोअर्स बन गए होंगे… दो-चार बार आए होंगे… फिर हमेशा के लिए गायब… – ये संभावना है…Suresh Chiplunkar Abhinav Pandey – और जैसा कि आपने कहा है यदि सब गणित सही हो… तो फिर किसी वेबसाइट का अधिकतम 2000 पाठकों के भरोसे अधिक चलना संभव नहीं है… क्योंकि इतने पाठकों (या क्लिक) पर तो धेले भर की कमाई भी नहीं होती…
वेबसाइट से “असली मोटी कमाई” के लिए तो सनी लियोन की ख़बरें, या तड़क-भड़क वाली हेडिंग, मूर्ख बनाने वाले तौरतरीकों, वाद-विवाद और गालीगलौज वगैरह चाहिए होते हैं… ये सब मैं कहाँ से लाऊँ?? और क्यों लाऊँ?? ??
एकदम सटीक Awesh Tiwari ने जो कहा , हालांकि पूरी बात ये हे की पुरे उपमहाद्वीप में ही हिन्दू मुस्लिम कटटरपन्तियो ने एकदूसरे को पैसा वोट सपोर्ट नोट लोग लोजिक देने का अधभुत गठबंधन और संतुलन बना रखा हे इनकी बातो में हैरान कर देने वाली समानताये हे ”Awesh Tiwari
1 hr · कांग्रेस के साथ पाकिस्तानी मीडिया भी एक बड़ा खेल कर रही है।मुझे लगता है पाकिस्तान कही न कहीं से पीएम मोदी की बीजेपी सरकार से बड़ा खतरा कांग्रेस को मानता है। कांग्रेस के खिलाफ जो प्रोपोगंडा टेक्निक अपनाई जा रही है उसमे न सिर्फ जी न्यूज, रिपब्लिक टीवी जैसे चैनल शामिल है। कुछ दिनों पहले पीटीवी और एआरवाई डिजिटल में एक खबर चलाई गई जिसमें कहा गया कि मुरादाबाद की कांग्रेस रैली में पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगाए गए,मुझे यह साफ पता है कि मुरादाबाद की किसी कांग्रेस की रैली में ऐसा कोई नारा नही लगा जो वीडियो है वो एडिटेड है,लेकिन पाकिस्तान में इसका इस्तेमाल हुआ। यह बात हमेशा जेहन में रखनी चाहिए कि क्रॉस बॉर्डर टेररिज्म का मुकाबला मनमोहन सिंह की सरकार में ज्यादा कारगर ढंग से हुआ है। चाहें तो वो वीडियो आपको भी दिखाया जा सकता है।Awesh तिवारी ” ——————————————————————————— ये भी देखे की जब से मोदी सरकार आयी हे तब से पाकिस्तान से तरह तरह की हिंसा और शिया सुन्नी से लेककर मुहाजिर सिंधी पंजाबी आदि क्लेश की खबरे कम ही आ रही हे ऐसा लगता हे की जैसे मुस्लिम कटटरपन्तियो ने सारे हिन्दू कठमुल्लाओ को मोदी के निचे एकजुट किया वैसा ही बदले में हो रहा हे की मुस्लिम कटटरपन्तियो में एकजुटता आ रही हे और
देखे सेम इसी तरह की बकवास आपको पाकिस्तानी न्यूज़ चेनेल पर मिल जायेगी की हम तो दुनिया के सबसे सभ्य लोग थे हमारी सारी सामाजिक बुराइया हिन्दुओं की सोहबत से आयी सेम ये नमूना भी बोल रहा हे ” Sanjay Tiwari
Yesterday at 08:32 ·
मैं जब कहता हूं कि भारत में बाल विवाह इस्लाम की देन है तो लोग विश्वास नहीं करते। उन्हें लगता है कि मैं किसी पूर्वाग्रह से यह बात कह रहा हूं। नहीं भाई। पूर्वाग्रह से तो वह बात कही गयी कि बाल विवाह हिन्दू धर्म की बुराई है। भारतीय समाज में पर्दा प्रथा, दहेज प्रथा और बाल विवाह इस्लाम ने फैलाया। इस्लामिक आक्रमणों से पहले समाज में न तो बाल विवाह था, न पर्दा प्रथा और न ही दहेज प्रथा। Sanjay तिवारी ”———————– इसी तरह रंजन सर एकदिन शायद गंगा जमुनी सनस्क्रति पर कटाक्ष कर रहे थे सेम इसी तरह ये पाकिस्तानी जोकर ओरिया मकबूल जान गंगा जमुनी सनस्क्रति पर करता हे 5 25 पर सुने https://www.youtube.com/watch?v=cEa1BrpWsaQ
तिवारी वैसे तो बहुत बदमाश हो चूका हे मगर इसकी ये बाते जायज़ हे मगर इसकी ये बाते जायज़ हे ”Sanjay Tiwari
3 hrs ·
ओबैसी कह रहे हैं कि अयोध्या में सरकार द्वारा राम की मूर्ति बनवाना जनता के टैक्स मनी की बर्बादी है। कोई सरकार ऐसा कैसे कर सकती है? उनकी इस टैक्स चिंता को सलाम। राज्य के ९५ फीसदी हिन्दू व्यापारी जो सरकार को टैक्स दे रहे हैं उससे राम की मूर्ति बनवाना टैक्स मनी की बर्बादी है। इसकी चिंता भी किसी हिन्दू व्यापारी को नहीं एक मुस्लिम लीडर को हो रही है। क्यों हो रही है, हम जानते हैं। लेकिन एक चिंता हमें भी हो रही है। इन्हीं हिन्दू टैक्सपेयरों के पैसे से राज्य के मदरसे चलते हैं जहां “लोकतंत्र को कुफ्र और हिन्दुओं को काफिर करार दिया जाता है।” यहीं पढ़ानेवाले मुल्ला मौलवी ९५ प्रतिशत हिन्दू टैक्सपेयरों के पैसे से पगार पाते हैं। क्या समय आ गया है कि मदरसों को दी जानेवाली सभी प्रकार की सरकारी मदद को तुरंत बंद कर दिया जाए? आखिर टैक्सपेयरों का पैसा मुल्ला मौलवी और काजी पैदा करने के लिए क्यों बर्बाद किया जाए?Sanjay Tiwari
47 mins ·
बीते एक हफ्ते में पाकिस्तान से दूसरे सामूहिक धर्मांतरण की खबर आयी है। पाकिस्तान के सिन्ध इलाके में जहां अब मुश्किल से कुछ लाख हिन्दू आदिवासी और दलित बचे हैं इस वक्त उनको बड़े स्तर पर धर्मांतरित करने की मुहिम चल रही है। बीते हफ्ते पहले एक हजार हिन्दुओं का सामूहिक धर्मांतरण करवाया गया और अब दो सौ हिन्दुओं को मुसलमान बनाया गया है। इस काम में पाकिस्तान का हर महमका लगा हुआ है। राजनीतिक दल, मजहबी जमातें, सेना, पुलिस सभी बहुत कोआर्डिनेटेड तरीके से इस काम को अंजाम देते हैं।
ताजा मामला ये है कि सिन्ध से जिन दो सौ लोगों के धर्मांतरण की खबर आई है उसमें नवाज शरीफ की पार्टी के स्थानीय नेता भी मौजूद थे। आप क्या कर सकते हैं? कुछ नहीं कर सकते। आपने ये मान लिया है कि जो पाकिस्तान के हिन्दू हैं वो भेड़िये के सामने पड़ी लाश हैं। आज नहीं तो कल भेड़िया उसे खायेगा ही। वरना, कम से कम भारत सरकार का विदेश मंत्रालय तो इन मामलों में हस्तक्षेप करता ही। लेकिन कैसे करेगा? हम तो अपनी सेकुलर खाल बचाने में लगे हुए हैं। हम तो बोल ही नहीं सकते। ये उनका अंदरूनी मामला जो ठहरा। वैसे भी बोलने के लिए आदमी के पास विजन होना चाहिए। यहां के विजनरी तो धनिया मिर्चा बेचने में बिजी हैं, इनको फुर्सत कहां है? ” संजय तिवारी —————————————————————————————-इन मुद्दों पर बोलना तो उन्हें चाहिए वो मुसलमानो के अरबपति से लेकर करोड़पति मसीहा और उनके सेकड़ो लगगभग्गू और सोशल मिडिया के प्यादे कहा हे ये सब इनकी छोड़िये मुसलमानो के बीच सेकुलरिज्म की सबसे अधिक मलाई छपने वाले शिया और बरेलवी लोग यानि वो जो कटटर होने की मलाई खाते हे ( वहाबी एन्ड पार्टी ) और वो भी जो सेकुलर होने की मलाई खाते हे सब चुप ही रहे हे और रहेंगे भी क्योकि इन्होने जिम्मेदारी लेनी ही नहीं हे इन्हे तो बस लाइक्स से लेकर मंत्रिपद चाहिए जिम्मेदारी कुछ नहीं सरदर्दी कुछ नहीं हे वहाबी और उनके चम्पू का तो खेरपता ही हे पिछले दिनों ये भी देखिये की मुहर्रम पर घटी घटनाओ को लेकर ज हिन्दू कटटरपन्तियो ने कितना भड़काया कितनी छाती पीटी और उधर मुसलमानो में सेकुलकारिज्म के विशेष अक़ीदे वाले झंडाबरदार चुप ही रहे क्योकि उन्हें इस सब पर कुछ बोल कर अपने ही समाज के बीच अलोकप्रिय नहीं होना हे जैसे हम सेकुलर देवबंदी चिंतक होते हे इन्हे कम्फर्ट ज़ोन में रहना हे और वहाबिज्म के खिलाफ लिख कर खुद को सेकुलर सितारे समझते हे
Sheeba Aslam Fehmi
14 hrs ·
ये क्या चल रहा है मीडिया में?
संगीत सोम ताज महल पर कुछ भी बकेगा और उसका जवाब ओवैसी से लिया जायेगा?
ताज महल को ओवैसी की ज़रुरत नहीं है. ये नूरा कुश्ती बंद होनी चाहिए.
संगीत सोम-ओवैसी बंद करो बकवासSheeba Aslam फेहमी सेम यही सोशल मिडिया पर चल रहा हे छोटा इक़बाल और ओवेसी के समर्थक नूरा कुश्ती लड़ रहे हे मकसद हे प्रचार . जबकि असल में दोनों में कोई फर्क नहीं सब कुछ समान हे बस ओवेसी खबपति हे छोटा इकबाल फ़िलहाल शायद करोड़पति ही होगा और इनमे कोई फर्क नहीं हे दोनों के समर्थक लड़ाई के बहाने प्रचार कर रहे हे
Tabish Siddiqui
2 hrs ·
इस्लाम के पहले के अरब के इतिहास लिखने की वजह से मुझे सैकड़ों मेल मिली हैं.. और रोज़ मिल रही हैं.. ज़्यादातर मुसलमानों की और इसी तरह के सवाल और इसी तरह की मेल होती हैं.. गालियों वाली मेल्स मैं यहाँ नहीं लिख रहा.. गलियों वाली मेल बहुत हैं.. बस कुछ मेल की झलकियाँ देखिये और आप खुद सोचिये कि क्या जवाब दिया जाय इन सब को.. एक मेल अभी तक नहीं आई मेरे पास जिसने किसी इतिहास या किसी ग़लत रिफरेन्स के लिए मुझे टोका हो या जवाब माँगा हो.. या किसी ने कुछ भी ढंग का पूछने की कोशिश की हो
मैं इन मेल से परेशान नहीं हूँ बल्कि एन्जॉय करता हूँ.. फिर मैं ही अकेला क्यूँ एन्जॉय करूँ.. सोचा आपको भी एन्जॉय करवाऊं 🙂 🙂 🙂 Why should I have all the fun?———————————————————–http://reportlook.com/busted-a-literary-thief-who-writes-the-history-of-islam/
हिन्दू-मुस्लिम समस्या
October 22, 2017, 6:48 PM IST विपिन किशोर सिन्हा in नवचेतना | कल्चर
१९८० के दशक तक मेरे गांव में हिन्दुओं और मुसलमानों में जो आपसी सौहार्द्र था वह अनुकरणीय ही नहीं आदर्श भी था। मेरे गांव के मुसलमान ताज़िया बनाते थे। पिताजी के पास बांस के चार कोठ थे। इसलिए मुसलमान पिताजी से ताज़िया बनाने के लिए बांस भी ले जाते थे, साथ ही सहयोग राशि भी ले जाते थे। पिताजी उन लोगों को अपनी बंसवारी से बांस उसी प्रसन्नता से देते थे जिस तरह किसी हिन्दू लड़की के विवाह के लिए मण्डप निर्माण के लिए बांस देते थे। मुस्लिम भी मुहर्रम के दिन जब ताज़िया का जुलूस निकालते थे तो मेरे घर पर जरुर आते थे। दरवाजे के सामने ताज़िया रखकर तरह-तरह के करतब दिखाते थे। मेरे घर की महिलाएं बाहर निकलकर ताज़िए का पूजन करती थीं। जुलूस में ज्यादा संख्या में हिन्दू ही लाठी-भाला लेकर मुसलमानों के साथ ताज़िए के साथ चलते थे। हमलोग उसदिन पटाखे छोड़ते थे। लगता ही नहीं था कि मुहर्रम हमारा त्योहार नहीं है। मुसलमान भी हिन्दुओं के त्योहार मनाते थे। मेरे गांव की कई मुस्लिम औरतें छठ का व्रत रखती थीं और पूरे विधि-विधान से अर्घ्य देती थीं। मेरे गांव में वसी अहमद एक प्रतिष्ठित व्यक्ति थे। वे और उनका परिवार हिन्दुओं के साथ होली खेलता था। होली की मंडली के स्वागत के लिए पूरा परिवार पूरी व्यवस्था रखता था। वे शिया संप्रदाय के थे। उन्हें और उनके पड़ोसियों को रंग-अबीर से कोई परहेज़ नहीं था। शादी-ब्याह, व्रत-त्योहार में परस्पर बहुत सहयोग था। लेकिन १९८० के बाद माहौल में बदलाव आना शुरु हो गया। कुछ मौलाना तहरीर के लिए गांव में आने लगे। उनकी तहरीर रात भर चलती थी। उनकी तहरीर सिर्फ मुसलमान ही नहीं सुनते थे बल्कि हिन्दुओं को भी लाउड स्पीकर के माध्यम से जबर्दस्ती सुनाया जाता था। परिणाम यह हुआ कि दोनों समुदायों में सदियों पुराना पारस्परिक सहयोग घटते-घटते बंद हो गया। अब ताज़िए के जुलूस में हिन्दू शामिल नहीं होते। इन सबके बावजूद भी शिया मुसलमानों के संबन्ध आज भी हिन्दुओं के साथ सौहार्द्रपूर्ण हैं। मेरे गांव के शिया मुसलमान सुन्नियों के साथ कम और सवर्ण हिन्दुओं के साथ उठना-बैठना ज्यादा पसंद करते हैं। जहां सुन्नी मुसलमान अलग बस्ती में रहते हैं, वहीं शिया मुसलमान बिना किसी भय के हिन्दुओं से घिरी बस्ती में सदियों से रहते आ रहे हैं। न कोई वैमनस्य, न कोई झगड़ा। क्या भारत के सुन्नी मुसलमान शियाओं की तरह उदार नहीं हो सकते? जब हमें साथ-साथ ही रहना है तो क्यों नहीं उदारता, सहिष्णुता और एक दूसरे के धर्मों के प्रति सम्मान के साथ रहा जाय?
कुछ हिन्दूवादी संगठन मुसलमानों की घर वापसी के पक्षधर हैं। मेरा उनसे एक ही सवाल है कि अगर कोई मुसलमान घर वापसी करता है तो उसे किस जाति में रखा जायेगा? सैकड़ों जातियों में बंटा जो हिन्दू समुदाय आज तक एक हो नहीं सका वह मुसलमानों को कहां स्थान देगा? यह विचार अव्यवहारिक है। मुसलमानों में भी जो पढ़े-लिखे हैं और इतिहास का ज्ञान रखते हैं, उनका मानना है कि अखंड भारत के ९९% मुसलमान परिस्थितिवश हिन्दू से ही मुसलमान बने हैं। हमारे पूर्वज एक ही हैं और हमारा डीएनए भी एक ही है। भारत के मुसलमानों का डीएनए अरब के मुसलमानों से नहीं मिलता। जिस दिन भारत का मुसलमान इस सत्य को स्वीकार कर लेगा, उसी दिन हिन्दू-मुस्लिम समस्या का सदा के लिए अन्त हो जाएगा। इसके लिए हिन्दू और मुस्लिम समुदाय के प्रबुद्ध वर्ग को सामने आकर यह जिम्मेदारी उठानी पड़ेगी। अलग रहने की हमने बहुत बड़ी कीमत चुकाई है। अब साथ रहकर हम विश्व को नई दिशा दिखा सकते हैं। हिन्दुओं ने जैसे बौद्धों, जैनियों, सिक्खों को अपने से अभिन्न स्वीकार किया है, उसी तरह अलग पूजा पद्धति को मान्यता प्रदान करते हुए मुसलमानों का भी मुहम्मदपंथी हिन्दू के रूप में दिल खोलकर स्वागत करेंगे। फिर हमलोग ईद-बकरीद, दिवाली-दशहरा और होली साथ-साथ मनायेंगे। न कोई राग होगा, न कोई द्वेष, न लड़ाई न झगड़ा।
डिसक्लेमर : ऊपर व्यक्त विचार लेखक के अपने हैंविपिन किशोर सिन्हा
Sarfraz Katihari
19 October at 19:38 ·
ईतिहास से ले के वर्तमान तक ये एकतरफा क्यू होता रहा है ? बदले में हिन्दू कब अपने मंदिरो या मठो को मुस्लिम त्योहारो में सजायेंगे ?
आम मुस्लिम हिन्दू त्योहारो में (धार्मिक कर्मकांड छोड़ के ) बढ़ चढ़ के हिस्सा लेता रहा है , हिन्दुओ त्योहारो में भी पटाखों , रंगो ,दियो में खर्च करता रहा है , कई रंगोली भी बनाते है तो कुछेक सजाते भी है मतलब हिन्दुओ के तरह उनके फेस्टिवल को मनाते है ,
लेकिन नगण्य हिन्दू मुस्लिम त्योहारो को मुस्लिम की तरह मनाता है , ना इतिहास में हिन्दू रजवाडो ने किया ना ही वर्तमान में हिन्दू ऐसा करते है ।
ये एकतरफा भाईचारा को दोतरफा बनाने का वक़्त आ गया ही , हिन्दुओ को चाहिए के जिस तरह उनके त्योहारो के लिए अपने धर्म से थोडा बहुत कोम्प्रोमाईज़ करके उनको साथ देता है वो भी अब ये सब शुरू करे । बाकी कहने को तो हिन्दू धर्म में कोई रोक नही और दावा किया जाता है के मुस्लिम से कम सख्ती है हिन्दुओ में फिर भी हिन्दुओ का रेश्यो हमेशा से कम या नगण्य रहा है ।
सामाजिक आर्थिक तौर पे भी बुरा हाल कर दिया शातिर हिंदूवादी कांग्रेस और स्वघोषित ने ।
ये निजामुद्दीन दरगाह की तस्वीर है इस तरह कई दरगाहो को सजाया जाता है तो कई दरगाहो में होली इत्यादि भी खेला जाता रहा है।
लेकिन मेरी जानकारी में कोई भी ऐसा मठ या मंदिर नही है जहा किसी भी मुस्लिम त्यौहार को किसी भी तरह सेलिब्रेट किया जाता है ।
अगर आपकी जानकारी में तो बताने का कष्ट करे ।Sarfraz Katihari
19 October at 18:30 ·
कुछ महात्माओ को इस बात से दिक्कत हो गयी के मैंने पूछ लिया मुस्लिम इतिहास से वर्तमान तक हिन्दू धार्मिक त्योहारो में भागीदारी किया जब मुस्लिम रूलिंग क्लास थे तो उन्होंने राजकीय तौर पे भी इसको मनाया लेकिन इतिहास में कभी ना हिन्दू रजवाडो ने ऐसी मिसाल पेश की और आज भी हिन्दू मुस्लिम की तुलना में मुस्लिम त्यौहार को कम मनाते है , अपने पॉकेट से कम खर्च करते है तो इस बात को एडमिट करते हुए भी लेकिन शातिर हिंदूवादी मतलब भारतीय वामी और कांग्रेस जैसे पार्टियो के प्रोपेगंडा के शिकार होशियार लोग कहने लगे के मुस्लिम के फेस्टिवल में सेलिब्रेट करने वाली क्या चीज़ है ?
मतलब सेलिब्रेट खाना पीना , पहनने ओढ़ने उर घर सजाने को कहा ही नही जाता है , फिर कहने लगे के मुस्लिम के फेस्टिवल में खुद विवाद है उद्धरण के तौर पे बारावफ़ात सब मुस्लिंम नही मानते है ना ही शब् ए बारात को ।
भैया ठीक है ईद उल फ़ित्र और ईद उल अज़हा में तो विवाद नही है उसको मानाने में क्या दिक्कत है ?हर फेस्टिवल मानाने का अलग ढंग होता है इनको भी इनके ढंग से मना लीजिये , फिर लगे हाथ मैंने कह दिया क्रिसमस में विवाद नही है (ऑर्थोडॉक्स ईसाई जनुअरी में मनाते है तो बाकी दिसंबर में ) हिन्दूओ के कौन से फेस्ट को पुरे भारत में मनाया जाता है ? कौन से फेस्टिवल पे हिन्दुओ के विभीनन धरो के बीच विवाद नही है , होली , दुर्गापूजा या दीवाली । (अम्बेडकरवाड़ी, सेक्युलर, जातिवादी या हिन्दू एक्टिविस्ट ने विवाद खड़ा नही किया हुआ है? )
इसका कोई जवाब नही मिला और जनाब रुक्सत हो लिए
बाकि एक बात और जब हम उनके विवादों को किनारा रख के उनके त्यौहार को उनके अनुसार मनाते है (रिचुअल /कर्मकांड छोड़ के )/तो वो भी तो ऐसा कर सकते है।
फिर एक जनाब कहने लगे के मुस्लिम नही मनाते है मुस्लिम में कुछेक लोग कुफ़्र का फतवा देते है विश करने पे तो मैंने कहा के तब भी धर्म के बंधन को एक किनारा रख के मुस्लिम ना सिर्फ विश करता है बल्कि हिन्दू फेस्टिवल को आज भी रेश्यो अनुसार ज्यादा मनाता है और अपने पॉकेट को ढीला करके मनाता है । हिन्दुओ को भी चाहिए मुस्लिम त्योहारो को अपने घरो मनाये तो कहने लगे के 95% हिन्दू तो सेक्युलर होता है तो मैंने कहा तब तो 90% संघी को भी सेक्युलर कहना पड़ेगा क्यूके हिन्दुओ के लगभग 45% ने तो स्वघोषित हिंदूवादी को चुना है , वोट दिया है तो कहते है वोट से क्या बगदादी के लिए तो सिर्फ 150 वहाबी गए तो क्या सिर्फ वही आतंकी है ?
(150का डेटा का श्रोत वही जाने , राजनाथ से शायद ज्यादा जानकारी है बाकी कई गए है ये फैक्ट है कई हिज्बोल्लाह और दूसरे आतंकी संगठन के लिए भी गए है )
तो मैंने कहा तबक इसका मतलब हुआ के संघी को सिर्फ 45% हिन्दुओ का वोट मिला लेकिन उससे ज्यादा हिन्दू संघी है जो कुछेक हित या कारण से वोट नही दिए ।
तुम्हारी बातो से यही साबित होता है ।
इसलिए बात रखने के पहले सोच लिया करो भाई।
बाकी एक भूदेव मिले कहने लगे के मुस्लिम का फेस्टिवल सामाजिक नही बस धार्मिक होता है तो मैंने कहा के भाई तुम्हे जानकारी का अभाव है । मुस्लिम फेस्टिवल सामाजिक जश्न ज्यादा है , गरीब भी इस जश्न को मना सके इसलिए प्रावधान भी हुमलोगो के फेस्टिवल में है । जकात, खैरात सदका इत्यादि इसलिए है । हिन्दुओ में ऐसा कोई प्रावधान नही है के गरीब भी सेलिब्रेट कर सके । इसलिए हिन्दुओ के फेस्टिवल से मुस्लिम के फेस्टिवल को ज्यादा सामाजिक कहा जा सकता है। खैर, जब तुम्हे पता ही नही तो क्या कहा जाए सिवाए इसके के जानकारी एकत्रित करो ।
जनाब भी रुक्सत हो गए दूसरे संघी भी फ़र्ज़ी सेक्युलर के बचाव में आ गए जिनको दिन रात ये गाली देते फिरते है (अक्सर संघियो को देखा हु ऐसा करते हुए , क्यूके समझदार संघी को हकीकत पता है के ये तबका शातिर है जो काम संघी 700000 जन्म में नही कर सकते वो काम शातिरो ने 70 साल में कर दिखाया है ,मुस्लिमो पे जुल्म भी किया और जिम्मेदार भी मुस्लिम को बनाया )
इनके फ़र्ज़ी प्रोपेगंडा का काउंटर या सही तरह से जवाब नही मिलने के कारण ये चोर उलटे कोतवाल को डांटने में लग जाते है ,मतलब जितना मुस्लिम accomodate किया उलटा दोषी और कठघड़े में भी मुस्लिम को रखा और जानकारी के अभाव में मुस्लिम को लगने लगा के उनमे ही बहूत कमज़ोरी है ,मुस्लिम को ही काम्प्लेक्स का शिकार बना दिया।
जबके हकीकत उलट है ,इसलिए सभी से फिर गुजारिश करूँगा के आप मुस्लिम के इतना accomodate और दुसरो को respect देने वाले बन जाइए फिर आगे की बात कीजिये । जब मुस्लिम हुक्मरान था तब भी ये किया (हुक्मरान को ये करना ही चाहिए ) आज जब पसमांदा है तब भी कर रहा है लेकिन हिन्दू हुक्मरान अपने रजवाडो वाली पालिसी आज भी चला रहे है । सरकारी तौर पे थानो में जन्माष्ठमी होता है दुर्गापूजा , दीवाली सब होता है लेकिन धार्मिक अल्पसंख्यक का कही नही होता है बस कभी कभी टोकेनिस्म होता है और उसी को बढ़ा चढ़ा के अपने प्रोपेगंडा मेशिनरी और अपने तुकदखोरो से करवाया जाता है।
ये सिर्फ धर्मीक ही नही सामाजिक आर्थिक सभी जगहों पे यही बात है जो के हर सर्वे और रिपोर्ट में भी साफ़ है । लेकिन ये शातिर लोग की हकीकत सुनके बौखला जाते है और चाहते है के इनकी हकीकत सामने ना आये। इसके बाद चाहते है इनका फ़र्ज़ी गुणगान भी हो आर मुस्लिम खुद को कोसे भी , लानत मलानत भेजता रहे ।
ई सब न चोलबे ………Sarfraz Katihari————————————-Pawan Saxena
17 October at 22:10 · आज धनतेरस है,बर्तनों की स्थायी/अस्थायी दुकानों में मुंहमांगे दामों में बर्तन इत्यादि बिक रहे हैं ! संदर्भित दुकान के मालिक #मोहम्मद_ख़ालिक़ के पास बात करने के लिए वक्त नहीं है !Pawan Saxena
16 October at 17:46 ·
आदर्शवाद ले डूबेगा !!
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अखिलेश सिंह यादव ने गाज़ियाबाद में हज हॉउस बनाने की घोषणा की ! तुरंत टेंडर निकले,पास हुए ! सपा की राज्य-सरकार ने खुद हिंडन नदी के डूब-क्षेत्र (रिवर बेड) की ज़मीन को अनाधिकृत रूप से अधिग्रहित किया ! राज्य-सरकार के ही विभागों के अभियंताओं से रात-दिन काम लिया गया ,कई सौ करोड़ की लागत आई , सिर्फ तीन साल में हज हाउस बन के उदघाटित भी हो गया ! NGT, प्रदूषण और वन विभाग से न कोई NOC मांगी गई, न ली गई !! यहाँ कानून और आदर्शवाद बेशक लापता है,परंतु अपने कोर वोटर (मुस्लिम) को खुश रखने की दुर्दांत इच्छा का पता चलता है ! यह बात भाजपा और मिस्टर मोदी की सीखनी शेष है !Pawan Saxena
16 October at 13:51 ·
#उत्तरप्रदेश_में_विकास_का_असली_माडल :-
विकास 100 जिलों में #गरीब_नवाज_कौशल योजना से आयेगा ,सैकड़ों करोड़ रु के फंड का ‘अल्पसंख्यकों’ हेतु एलोकेशन!
उत्तर प्रदेश के 51 जिलों मे अल्पसंख्यक सदभावना मंडप , (मुस्लिम विवाह-समारोह भवन) ! प्रत्येक मंडप का क्षेत्रफल कम से कम 4 एकड़ होगा ! देखरेख के लिए मुस्लिम स्टाफ भी नियुक्त करेगी उप्र सरकार !
एक लाख मदरसा टॉयलेट का निर्माण प्रारम्भ हो चुका है !
क्या ‘धोने’ के लिए 2 लाख चोंचदार-लोटे (गड़ुए) भी सरकार ही देगी ?
( कितने मदरसे हैं यूपी में ?)Pawan Saxena
8 October at 10:21 ·
#इकरा_का_करवाचौथ
रश्मि से अख्तर ने अपना मज़हब,बगैर छुपाए मोहब्बत की थी ! रश्मि, एक कान्यकुब्ज ब्राह्मण,प्रोफेसर की पुत्री थी ! रश्मि ने एनसीआर के एक नामी कालेज से प्रबंधकीय में डिग्री प्राप्त की और संयोग से कुछ समय पश्चात उसी कालेज में अध्यापिका की नियुक्ति भी प्राप्त की ! अख्तर एक न्यूज़ चैनल में रिपोर्टर था ! अख्तर ‘सर्वधर्म समभाव’ का वाहक था,अनेकों बार रश्मि के साथ मंदिर गया,शिवार्चना की,कलावा और तिलक धारण किया ! रश्मि को रिपोर्टर अख्तर में अपना आदर्श भावी पति दिखाई दिया ! मां-पिता और परिवार से विद्रोह किया ,एक मदरसे में निकाह हुआ,रश्मि ‘इकरा’ बनी ! आठ भाई-बहनों वाले भरे-पुरे ‘इस्लामिक मूल्यों’ वाले परिवार को रश्मि उर्फ इकरा ने खुशी-खुशी अपनाया ! इकलौती बेटी के विद्रोह से माँ बाप टूट गए ! बेटी जनित बदनामी और बेवफाई को माँ बर्दाश्त न कर सकीं ! प्राणान्त हुआ ! रश्मि कुछ माह के गर्भ से थी , आना ‘संभव’ न हुआ !
मां द्वारा प्रदत्त संस्कार कभी तिरोहित नहीं होते ! आज रश्मि का निकाह के बाद पहला करवा चौथ था ! बगैर किसी की मज़हबी भावनाओं को चोट पहुचाये, आज रश्मि ने अख्तर की लंबी आयु के लिए निर्जला उपवास/व्रत रखा था ! दोपहर होते-होते ,रश्मि की कर्कशा सास को रश्मि के इस ‘दुस्साहस’ का पता चल चुका था ! सास ने इसे गैर इस्लामिक होने के फतवे के साथ उपवास को तोड़ने का निर्देश दिया ! कालेज की छुट्टी थी ,अख्तर घर पर नहीं था,गर्भवती रश्मि के साथ अख्तर के सास -ससुर और परिवार ने भीषण मारपीट की,और ‘अब’ मुस्लिम होने का वास्ता दिया ! परंतु रश्मि को उम्मीद थी कि अख्तर शाम को जब लौटेगा तो करवा चौथ व्रत की महत्ता और उसके पीछे छुपी भावना के तहत उसका पक्ष लेकर उसे व्रत पूर्ण करने के लिए रश्मि का पक्ष लेगा !
शाम जब अख्तर घर लौटा तो अख्तर के घोर ‘मज़हबी’ परिवार ने रश्मि के इस ‘बेदीनी-गैर इस्लामिक दुस्साहस’ की नमक मिर्च लगाकर जानकारी दी ! उस शाम, जो अख्तर ने हाथ मे बैल्ट उठाई तो थकने की हद तक गर्भवती रश्मि को पीटता रहा ! रश्मि का इस शहर में कोई घर न था ! कहाँ जाती गर्भवती रश्मि उर्फ ‘इकरा’ ?
अंततः रश्मि उर्फ इकरा ने अख्तर के परिवार से ‘करवा चौथ’उपवास के लिए ‘तौबा’ की ! अख्तर ने चेताया कि अब उसे इस घर मे ‘इकरा’ बन कर रहना है !! ‘इकरा’ ने उपवास तोड़ ‘मीट’ खाया ! ‘तबलीग’ पूरी हुई !!!—————————————————————————-Pawan Saxena
23 hrs ·
कुछ मित्रों के मतानुसार #आरक्षण जैसे बेहद संवेदन प्रश्न को मुझे छूने की ज़रूरत नहीं थी ! याद दिला दूँ कि कल मैंने प्रश्न रखा था कि ‘ मोदी समर्थक और बीजेपी भक्तों का आरक्षण के बारे में क्या ख्याल है ?’
उत्तरों का सारांश देखिए :-
1.यह प्रश्न उठाने का गलत वक्त (चुनाव) है !
2.कुछ ने आरक्षण को पूजा पद्धति से जोड़ दिया !
3.कुछ ने मुझे कांग्रेसी करार दे दिया !
4.जो आरक्षण के लाभ प्राप्त कर चुके हैं उनकी राय में इसे अनंत काल तक चलना चाहिए !
5.एक ने भड़काऊ प्रश्न बताया !
6.आरएसएस के स्वयंसेवकों ने कहा कि जब आरक्षण हट नहीं सकता उस पर चर्चा कैसी ? विरोधी(?) फायदा उठाएंगे !
7.ओबीसी संवर्ग के मेरे एक अनुज ने कहा कि इसको फौरन हटाया जाए ,मगर सिर्फ एक ने, सिर्फ ! कुछ सामान्य वर्ग के लोगों ने भी आरक्षण हटाने की मांग की !
8.अधिकांश का मत था कि कोई सरकार इसे हटा नहीं सकती ! इसलिए चर्चा करना समय की बर्बादी है ! वैमनस्य बढ़ सकता है !
9.अंतिम बात यह है कि पात्रता,कुपात्रता, सामाजिक न्याय और बेरोजगारी के परिणामों जैसे आत्महत्या-अंडर इम्प्लॉयमेंट, ज़बरदस्ती गरीब बनाए जा रहे लोगों पर कोई विचार नही मिला !
जिन्हें आरक्षण का लाभ मिल गया ,वह अपनी आने वाली 25 पीढ़ियों के आरक्षण के लिए प्राण तक छीनने पर आमादा हैं ! जो आरक्षण से सर्वाधिक पीड़ित हैं उनके आत्मविश्वास और आत्मसम्मान का पैमाना गहरे पानी में डूब हो चुका है ! प्रश्न उठाने की ताकत खो चुके हैं यह लोग !!
मेरा दूसरा निष्कर्ष यह है कि जानबूझकर हमारी सरकारों और कुटिल राजनीतिक पार्टियों ने आरक्षण के तौर-तरीकों और उसके प्रभावों का कोई अध्धयन नहीं किया है,क्योकि इससे उन्हें प्रेशर कुकर के फटने का डर सताता है ! सम्पूर्ण विश्व मे भारत अनोखा और अकेला देश है जहां आरक्षण के माध्यम से,जाति और धर्म के आधार पर, देश के लिए खून बहाने वालों योग्य बच्चों को,राजनीतिक लाभ हेतु सताया-वंचित जाता है !
खैर….आपको बताता चलूं कि इस देश मे 15-20 वर्ष बाद आरक्षण जड़ से खत्म हो जाएगा ! जैसे ही इस देश मे मुस्लिम जनसंख्या 30-35 % पहुचेगी, देश का प्रधानमंत्री मुस्लिम होगा ! देश का संविधान कूड़े में फेंक दिया जाएगा,निज़ामे मुस्तफा आयद होगा इस मुल्क में ! जो भी होगा मुस्लिम्स के लिए होगा ,यदि भारत मे रहना होगा तो इस्लाम कुबूल करना होगा ! भारत मे हिंदुओं की स्थिति बांग्लादेश में हिंदुओं जैसी होगी ! क्या कश्मीर में हिंदुओं के लिए कोई आरक्षण है ? क्या अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय,जामिया और हमदर्द विश्वविद्यालयों में कोई आरक्षण है ? क्या पाकिस्तान, बांग्लादेश,अफगानिस्तान में SC/ST/OBC के लिए आरक्षण है ?
मुसलिम जनसंख्या विस्फोट, बांग्लादेशी,रोहिंग्या,अफगानी,नाइजीरियाई और नेपाली मुस्लिमों की घुसपैठ और आरक्षण भारत के अस्तित्व के लिए सबसे बड़े खतरें हैं ! देश मे सिर्फ बांग्लादेशी घुसपैठियों की संख्या ही 10 करोड़ से ज़्यादा लमानी जाती है ! देश को तोड़ने में आरक्षण का रोल यह है कि आरक्षण के चलते हिन्दू हज़ारों टुकड़ों में बटां रहेगा और कुटनीतिक ,सामरिक और संगठित इस्लाम के आगे आत्मसमर्पण करता रहेगा ! यहीं नही आरक्षण पाने वाली अनेक जातियां उग्र-कट्टर इस्लाम के साथ खड़ी हो गईं हैं ! मुस्लिम इस खेल का पूरा मज़ा ले रहे हैं क्योंकि भारत मे मुस्लिम जनसंख्या का 75 % हिस्सा ओबीसी,ST/SC के रूप में आरक्षण का लाभ लेता आ रहा है !
सैंपल टेस्टिंग के लिए केरल और प.बंगाल की राजनीतिक व्यवस्था देखिए ,वहां जैसा मुस्लिम चाहते हैं सरकारें उसी हिसाब से कार्य करती हैं ! SC/ST/OBC वहां सिर्फ हिन्दू हैं जिन्हें अब अप्रत्यक्ष रूप से आरक्षण से वंचित कर दिया गया है !
इंतज़ार कीजिए सिर्फ 15-20 वर्ष और …..Pawan Saxena added 2 new photos.
Yesterday at 10:59 ·
जर्मनी तेज़ी से #निज़ाम_ए_मुस्तफा’ बनने की ओर अग्रसर है ! सीरिया, इराकी, सोमालियाई,अफगानी और पाकिस्तानी ‘कथित शरणार्थियों’ से बर्लिन, कोलोन, मैनहेम,दसलडॉर्फ ,बोन जैसे बड़े शहर भरे पड़े हैं !छोटे कस्बेनुमा जर्मन शहर भी जो प्राकृतिक सुंदरता और सफाई के उदाहरण थे,नरक बन चुके हैं ! हर तरफ सड़क पर बैठकर नमाज़ पढ़ते,सड़क के किनारे मूत्र-विष्ठा त्याग करते,अरबी -पाकिस्तानी-सीरियन शांतिदूत दिखाई देंगे ! हफ़्तों से बगैर नहाय-धोये घूमते जेहादी मुस्टंडे जर्मन मासूम लड़कियों का वैसे ही शिकार कर रहे हैं,जैसे बिल्ली कबूतर का करती है !
रेप, हत्या, डाकाज़नी , सामूहिक लूट के मामले तो आम हो गए हैं,उदाहरण के लिए ट्रानरीउत कस्बे (फोटो देखें) के सारे मूल जर्मन नागरिक अपना सामान लेकर भाग चुके हैं और खाली पड़े घरों में अरबी कथित शरणार्थी आराम से रह रहे हैं ,साथ ही साथ जर्मन सरकार से शरणार्थी भत्ता, खाने-पीने का सामान और मेडिकल सुविधाएं भी हासिल कर रहे हैं ! खाली घूम रहे अरबी लड़कों के पास फ्री में सरकारी वाहनों पर चढ़कर दूसरे शहरों में घूमने,लूटने और शरणार्थियों पर दया दिखाती जर्मन लड़कियों पर ‘लव-जिहाद’ और उनसे बलात्कार करने के अलावा कोई काम नही है !
पिछले दिनों बर्लिन में एक जेहादी ने ट्रक से कुचल कर दर्जनों जर्मनों को मार डाला था ! सरकारी रिकार्ड के अनुसार 18 लाख कथित मुस्लिम शरणार्थी हैं जर्मनी में,मगर समुद्री रास्तों और अन्य देशों के माध्यम से घुसे इन जेहादियों की संख्या संभवतः 30 लाख से ऊपर हो सकती है ! जर्मनी में अच्छी संख्या में मुसलमान, शायद 35 लाख पहले से ही रहते हैं !जो इन कथित शरणार्थियों की हर तरीके से कूटनीतिक, सामरिक और भावनात्मक मदद करते हैं ! आपको याद होगा 31 दिसंबर 2015 की मध्यरात्रि,कोलोन में नववर्ष उत्सव में ‘ताहररुष’ के तहत इन जेहादी शरणार्थियों ने 1000 से ज़्यादा जर्मन लड़कियों-महिलाओं के बलात्कार किया था ! परंतु एक भी जेहादी को दंड नही दिया जा सका !
भारत के 2009 के चुनाव याद कीजिए ,देश आतंकी हमलों,घोर भ्रष्टाचार और तुष्टिकरण से ग्रसित था ,परंतु मनमोहन सरकार पुनः जीतकर सत्ता में आ गई थी ! बस यही कहानीं जर्मनी में दोहराई गई ! इस्लामी, सेक्युलर,वामी,मुस्लिम वोटों के ध्रुवीकरण से कम्युनिस्ट-सेक्युलर एंजेला मार्केल फिर सत्ता पर वापस आ गईं ! ऐसा नहीं है कि जर्मनी में दक्षिणपंथी आवाज़े नहीं हैं, परंतु वह भी भारत की तरह बिखरी और बटीं हुई हैं !
वस्तुतः एंजेला मार्केल ,जर्मनी की ममता बनर्जी बन कर सामने आईं हैं ! हिटलर जैसे निहायत मज़बूत क्रूर राष्ट्रभक्त-ताना शाह के देश को केचुए की गति से मरते हुए देख कर मुझे भारत के इतिहास की पुनरावृत्ति होती दिखाई दे रही है !!!
जयश्रीराम -जय हिन्दूराष्ट्र———————————————————————————————————————-Sarfraz Katihari
Sarfraz Katihari
1 hr ·
(पोस्ट को ध्यान से पढ़िए यहा पार्टी प्रमुख की बात हो रही है, मुझे भी पता है के कुछेक जगह उन हिन्दू पतितो में उनके लठैत के रूप में फेस सेविंग के लिए मुस्लिम को खड़ा किया जाता है जिनको कुछेक हिन्दू भी वोट देते है , जैसे शाहनवाज़ हुसैन ही 2 बार बजप से सांसद बना है)
कुछलोग गुजरात का सुन के युही खुश हो रहे है, ख़ास के जाहिल मुल्ले लोग ,अबे तुमलोग काहे उछल कूद कर रहे हो ? हिन्दू जिस भी पार्टी को वोट देंगे वो भी तो हिन्दू ही होगा ।
हिन्दू साम्प्रदायिकता से थोड़े ऊपर उठ रहे है जो खुश होना बनता है तुम्हारा।
हिन्दू बीजेपी के बदले कांग्रेस को या आप को , कांग्रेस के बदले बीजेपी को दे या मुलायम को या मायावती को , देंगे तो हिन्दू को ही , कोई अयूब अंसारी ,ओवैसी , रशादी या अजमल साहेब या किसी अन्य मुस्लिम को थोड़े ही देंगे वोट ।
तो फिर उछलना बेकार ही है , हा जब हिन्दू भी मुस्लिम के तरह सेक्युलर बन सके और दूसरे धर्म के नेता को समथर्न देना शुरू करे तब इंसानियत के कारण खुश हुआ जा सकता है ।बाकि जबतक हिन्दू सेक्युलर नही बनता तब तक ये उछल कूद पूरी तरह बकवास है।Sarfraz Katihari
Yesterday at 16:58 · भारत का सेकुलरिज्म जो 26 नवेम्बर 1949 को अंगीकृत हुआ संविधान जो के 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ वो सबको अपने धर्म अनुसार चलने की आजादी, सबको सुरक्षा- सम्मान , प्रतिनिधित्व और अपने विचार के संवर्धन (propagation) की बात करता है । मैं उस संविधान को मानने वाला हु, उसके अनुसार सेक्युलर हु , आप शातिरों को भी उसी अनुसार सेक्युलर बनना होगा ना के शातिर हिंदूवादी।
आपने सेकुलरिज्म के नाम पे पिछले 70 सालो में जो कुछ गंध फैलाया है निचे उसकी कुछ बानगी भर है :-
…………………….इंडिया एक सेक्युलर राष्ट्र है जहा पे शातिर हिंदूवादीयो ने सेकुलरिज्म के नाम पे पिछले 70 सालो में हिन्दू धर्म को हर जगह थोप दिया ।स्कूल कॉलेज में सरस्वती पूजा के नाम पे, थानो और जेलो में जन्माष्ठमी के नाम पे , आम ऑफिस में लक्षमी पूजा और दीवाली के नाम पे ,कल कारखानो में विश्वकरमा पूजा के नाम पे , सेना और कई जगह दुर्गापूजा के नाम पे।
बाकि भी हर जगह किसी ना किसी तरह से थोप दिया गया है।
भारत को 70 सालो में ऐसा सेक्युलर राष्ट्र में तब्दील क्र दिया गया है जहा के आतंकी गुंडे अल्पसंख्यक को मारने ,लुटवाने के नाम पे उनको ऊँचा ओहदा मिलता है जबके उनको जेल म होना चाहिए।जहा मुस्लिमो के इलाको को “ghetto” में तब्दील कर दिया गया है।
जहा मुस्लिमो की प्रतिनिधित्व उनकी आबादी का 1/4 से 1/5 के बीच मतलब #नेहरू_कोटा के अंदर सीमित कर दिया गया है।
जहा #सोनिया_आँशु मतलब घड़ियाली आँसू और मनमोहन बोल ( जो बोला जाए लेकिन किया ना जाए ) को मुस्लिम तुस्टिकरण घोषित कर दिया गया।जहा के शातिर हिन्दुवादि मतलब सेक्युलर चाहते है के मुस्लिम और बाकी अल्पसंख्यक उनके तरह ही सबकुछ करे , हा जहा हिनदू के पन्थ या जाती अलग करे तो उनको छुट हो जैसे गौ मांस।
जहा बहुसंख्यक धर्म को धर्म के आधार पे संवैधानिक आरक्षण है, जहा धर्म आधारित आरक्षण है लेकिन कहेंगे के संविधान धर्म आधारित आरक्षण के खिलाफ है । (sc reservation)
जहा आजादी के बाद मुस्लिम महापुरुष के नाम पे शायद ही कोई स्कीम रखी गयी या इलाको या प्रोजेक्ट या रोड का नाम भी रखा गया , हा कई का नाम जरूर बदल गया है।
अब ये टुच्चे होशियार चाहते है के मुस्लिम खुद को मुस्लिम भी ना कहे ,मुस्लिम बुनियादी बात भी आ उठाये।
इन सब के बाद भी आप खुद को सेक्युलर , संविधान पसंद और मुस्लिम जो अब तक आपकी बदमाशी को शांति से देख रहा है और सोच रहा है के आप कभी तो सुधरेंगे उन्ही पे इल्जाम उन्ही को कठघड़े में खड़े करते है , आपलोग वाकई बहुत बेशर्म है।
अब एक नया शोशा है के आरएसएस बोले वन्देमातरम तो वंदे मातरम् बोलो , आरएसएस बोले मूर्ति पूजा करो तो वो भी करो आरएसएस जो बोले वो करो ,एकदम चुपचाप हो के करो उसपे अपना मत भी जाहीर न करो क्यूके इससे साम्प्रदायिकता फैलती है और आरएसएस मजबूत होता है ,हमको आरएसएस को रोकना है।
एक तरफ आप कहते हो के बहुसंख्यक सहनशील है ,सबका सम्मान करता है अलाना-फलाना-ढिमकना तो दूसरी तरफ कहते हो के मुस्लिम भी चुपचाप आपके आरएसएस के अनुसार चले। जबके मुस्लिम तो आपको नही बोल रहा है के अपना शोषण करवाओ वो अपने कानूनी बातो पे अब तक चुप्पी ही साधे है । आप सबकुछ कर या कह के किस बेशर्मी से ये सब बात कह लेते है ? इतना बड़ा बड़ा बात कहने के पहले 26 जनुअरी को लागू हुआ संविधान के अनुसार 50 %भी बात करो वरना कहना पड़ेगा ,
गजब के शरीफ और सेक्युलर हो आपलोग …….
See Translation
Tiwari
15 hrs ·
मोदी सरकार हुर्रियत से बात करेगी। वो भी बंद करवाकर थक गये हैं और ये भी लॉ एण्ड आर्डर लागू करवाकर थक गये हैं। अच्छा है। बातचीत कर लें। कांग्रेस भी यही करती थी। तिवारी———————————–सर पर हथोड़ा खाने के बाद से लगातार हिन्दू कठमुल्लावाद हिन्दू सुप्रियॉरिटी हिन्दू यूनिटी कम्युनिस्ट कुश आदि के आधार पर उपमहाद्वीप के साठ करोड़ मुसलमानो को और मुस्लिम कटटरता को कुचलने का सपना देख रहा ——- तिवारी अब दो साल बाद सिर्फ और सिर्फ बीस तीस लाख कश्मीरी मुस्लिम अलगावादी यो के साथ बातचीत का अब स्वागत कर रहा हे—————— ? हे न अजीब बात इसलिए हम कहते हे की कभी भि मत पड़ो हिन्दू यूनिटी- मुस्लिम यूनिटी सुप्रियॉरिटी शिकायतों तानो तिश्नो आदि की बकवास में पी एम् से लेकर एक छुटभ्या बुडबकीया तक सब के सब ये सब नॉनसेंस कुछ न कुछ हासिल करने को ही दर्शाते हे अपने लिए आपके ( आम आदमी ) लिए इसमें कुछ नहीं हे
Swati Mishra
2 hrs ·
पहले मुझे लगता था कि बड़े-बड़े पागल पागलखाने में रहते हैं। फिर मैंने शिया बोर्ड की नमूनी बातें सुनीं। एहसास हुआ। पागलखाने से ज़्यादा बड़े पागल तो वहां भरे पड़े हैं।
#HumayunTombSwati Mishra——————————————–Swati Mishra
Yesterday at 19:36 ·
गुजरात चुनाव अनोखा आयोजन है। नतीजे की तारीख पहले नक्की कर दी। चुनाव की तारीख बाद में बताई। इन दोनों के बीच का जो फासला था, उसमें मोदी जी को जी भरकर कबूतर उड़ाने के लिए खुला छोड़ दिया। अगली बार किसी विवाद की स्थिति में अपनी निष्पक्षता साबित करने के लिए चुनाव आयोग कहीं से नया मुंह मांग लाएगा। पुराने मुंह पर तो दिन-दहाड़े भगवा पोत लिया है उसने।Nazeer Malik
Yesterday at 09:03 ·
बरेली की एक नगर पंचायत अध्यक्ष ममता पांडेय इस्लाम स्वीकार कर सबा खान बन गईं। मौलवी ने उन्हें कलमा पढ़ाया। कट्टरपंथी भाई खुश है कि एक गैरमुस्लिम ईमान ले आई। मगर क्या ये खुश होने की बात है? क्या इससे इस्लाम मजबूत होगा? ये महत्वपूर्ण सवाल है।
दर असल ऐसे लोगो को इस्लाम स्वीकार करा कर मौलवी इस्लाम का अपमान कर रहे हैं। इस्लामी विचार से प्रभावित हो मुसलमान बनना गलत नही, मगर कोई घरेलू झगड़े से तंग आकर परिवार को चिढ़ाने, उसे लज्जित करने या अन्य किसी निजी स्वार्थ को पूरा करने के ख्याल से इस्लाम स्वीकार करे, क़ाज़ी उसे कलमा पढ़ाये और मुस्लिम तालियां बजाएं,ये बेहद शर्मनाक और इस्लाम को बदनाम करने वाला क़दम है। ऐसी ही हरकतों से दुनियां में इस्लाम की साख घट रही है।
कभी धर्मेंद्र ने हेमामालिनी से शादी करने के लिए इस्लाम कबूल किया था, हरियाणा के डेपुटी चीफ मिस्टर भी महबूबा का साथ पाने के लिए चांद मोहब्बत बन गए थे। क्या धर्मेंद्र और हेमा आज मुसलमान हैं?उन्होंने अपनी शादी के लिए चतद सिक्कों के बल पर इस्लामी कानून का सहारा लेकर अपना स्वार्थ साध लिया। दरअसल ऐसे धर्म परिवर्तन स्वार्थ के लिए होते हैं, न कि वसूलों की बुनियाद पर।
हर मौलवी इस सच्चाई को जान कर भी चन्द रुपयों के लिए ऐसे लोगों को इस्लाम मे दाखिल कराता है, और तंगनजर मुसलमान झूठी शान के लिए तालियां बजाता है। ऐसे ही लोग इस्लाम के शादी तलाक़ जैसे नियम को दुनियां की नज़र में मज़ाक़ का विषय बना रहे हैं।इसलिये मुस्लिम समाज को ममता पांडेय के सबा खान बनने पर खुश होने के बजाय ऐसी निकाह पढ़ाने वाले पेशेवर मौलवियों की निंदा और उनके बहिष्कार की ज़रूरत है।
See Translation—————————————————————————————————Devanshu Jha
5 hrs · अतुल्य भारत!अतिथि देवो भव: !!पधारो म्हारे देस!!!
और खोपड़ी तुड़वा कर लौटो अपने देश ! धरती के सबसे खूबसूरत देश समझे जाने वाले स्विटजरलैंड से जब जेरेमी क्लार्क और मारी द्रोज ने भारत आने की तैयारी की थी तब निश्चय ही इस बात की तैयारी नहीं की होगी कि अफ्रीका के अंतहीन रेगिस्तानों और दक्षिण अमेरिका के भयावह, दुर्गम वनों में भटकते हुए बेयर ग्रिल्स को जिन जंगली जानवरों का सामना करना पड़ता है वो तो उन्हें भारत के एक भीड़ भाड़ भरे कस्बे के स्टेशन पर ही करना पड़ सकता है । तब उनके दिमाग में धरती के सबसे तिलिस्मी देश की अनजानी, अनदेखी छवि मात्र रही होगी । भौगोलिक विविधताओं से भरा देश, भीड़ भाड़, भेड़ियाधसान आबादी का देश । किले-मंदिरों, कंदराओं का देश । मस्जिदों, मकबरों का देश । नदियों, समंदरों.. घाटियों, रेगिस्तानों, सदाबहार वर्षा वनों का देश। अनगिन त्योहारों का देश, लोक कलाओं का देश । महान शास्त्रीय संगीत का देश । विश्व की प्राचीन समृद्ध परंपराओं का देश ।
पिछले बीस पच्चीस दिनों में यहां वहां घूमते हुए उन्होंने बहुत कुछ समाहित भी किया होगा । लेकिन फतेहपुर सीकरी उनके लिए दु:स्वप्न साबित हुई । हमारे देश में, खास कर कुछ प्रांतों में अंग्रेज महिलाओं को रंडी, या पॉर्न स्टार ही समझा जाता है । ऐसा माना जाता है कि अंग्रेज औरतें जब चाहो तब हमबिस्तर हो जाएं ! गोया वो चौंसठ आसन की किताब कांख में दबाए चलती हैं इसलिए उनको धर लो, चांप दो, पटक दो । बलात्कार कर डालो तो बहुत उत्तम काम ! क्योंकि वो तो सिर्फ इसी काम के लिए बनी हैं ! हाय़ रे उजड्ड जाहिलों !!
जेरेमी क्लार्क की दोस्त द्रोज के साथ जबरन सेल्फी लेने पर उतारू मनचलों ने न सिर्फ उनके साथ बदतमीजी की बल्कि जान लेने की हद तक मारा पीटा । यह कल्पना करना भी असंभव है कि राह चलते किसी विदेशी महिला और उसके दोस्त को लोग लकड़बग्घों की तरह नोचने लगेंगे । क्लार्क की खोपड़ी तोड़ डाली,,उनके दिमाग में क्लॉट है । द्रोज का हाथ तोड़ डाला जिस्म पर दर्जनों ज़ख्म दिये । और ये सब मुहब्बत की महान इमारत से चालीस किलोमीटर दूर और हिन्दू, इस्लाम बौद्ध वास्तुकला के मणिकांचन योग से बनी फतेहपुर सीकरी में हुआ ।
कमाल है ! क्यों कोई विदेशी इस दरिद्र देश में घूमने आएगा ? क्या स्विटजरलैंड उन्हें काटता है ? क्या वहां की सुंदरता, ऐशो आराम, ऐश्वर्य खटकता है ? अरे अभागों…पतित पागल कुत्तों.. जाकर डूब मरो आगरा के नाले में !! तुम लोग आदमी कहलाने के लायक नहीं हो ! तुमने न सिर्फ उन्हें पीटा है बल्कि ऐलान कर दिया है कि हिन्दुस्तान जाहिल… बर्बर… भुक्खड़ों का देश है, जहां कभी भी कुछ हो सकता है । इस देश की ओर दुबारा नजर उठाकर मत देखना !छि: घिन आती है… !!!
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मुसलमानो को आधुनिकता का उदारता सेकुलरिज्म का पाठ पढ़ाने वाले सोशल मिडिया से लेकर केबिनेट तक सारे शिया या तो फिर बरेलवी बोहरा आदि ही मिलेंगे वैसे ये खूब बढ़ चढ़ कर लिखते हे मगर अपने समाजो पर इनकी कलम खामोश रहती हे ताकि अपने यहाँ अलोकप्रिय ना होना पड़े————- ? यही इनका कम्फर्ट ज़ोन हे इससे बाहर ये लोग नहीं निकलते हे इसलिए कभी कभी तो मुझे ऐसा लगता हे की क्या उदारवादी देवबंदी मुस्लिम लेखन में हम तीन ही हे क्या ————– ? अफ़ज़ल भाई जाकिर भाई और में क्या कोई और नहीं हे ————- ? खेर शिया ”रजा ” साहब लिखते हे “अब मुसलमानों के बदलने का वक़्त: एक ज़रूरी संवाद” मेरा लेखअहमद रज़ा
लीडरशिप और फ़तवा कैसे किसी क़ौम को बर्बाद करते हैं इसको एक ऐतिहासिक उदाहरण से समझा जा सकता है। दुनिया ने जब प्रिंटिंगप्रेस की खोज कि तो यह तुर्क-ख़लीफ़ा के सामने भी आया, जो उस वक़्त पुरी दुनिया के मुसलमानों और इस्लाम का लीडर हुआ करता था। धर्म का अफ़ीम पिये उस तुर्की के ख़लीफ़ा ने टाइपराइटर के इस्तेमाल को ग़ैर-इस्लामी करार करके उसके ख़िलाफ़ फ़तवा जारी कर दिया। बस होना क्या था, पुरी दुनिया के मुसलमानों के लिए प्रिंटिंगप्रेस के तरफ देखना तक हराम हो गया। वहीं दूसरी तरफ प्रिंटिंगप्रेस ने पुरे यूरोप की दशा और दिशा बदल कर रख दी। यूरोप में इल्म का दायरा जो चंद तबके तक सिमटा हुआ था वह साधारण लोगों तक पहुंचने लगा। बाइबिल, जो सिर्फ पादरियों के हाथ में था वह प्रिंटिंगप्रेस के माध्यम से जनसाधारण तक पहुँचने लगा परिणामस्वरूप इसने धर्म की सत्ता को झकझोर कर रख दिया। प्रिंटिंगप्रेस ने सबसे पहले धर्म और अंधविश्वास की जड़ता को तोड़ा जो उस वक़्त यूरोप की सभ्यता के विकास में सबसे बड़ी रुकावट था। वैज्ञानिकों व दार्शनिकों के लेखों और निबंधों का जन-जन तक प्रसार होने लगा। देखते देखते इनसे इंसानी ज़िन्दगी में एक क्रांतिकारी परिवर्तन ला दी। मतलब कहें तो प्रिंटिंगप्रेस ने यूरोप के अंधकार को हटा तक वहां ज्ञान-विज्ञान का सूरज खड़ा कर दिया। आज इस्लामी दुनिया और यूरोप की दुनिया दोनों हमारे सामने है। बड़े स्तर पर देखा जाए तो आज भी इस्लामी देश और वहाँ का समाज सोलहवीं-सत्रहवीं सदी के जीवनशैली से कुछ ऊपर नही उठ सके हैं। व्यापक स्तर पर बात की जाए तो आज भारतीय मुसलमानों की सोच, दृष्टिकोण और जीवनशैली का स्तर भी कुछ खास ऊपर नही उठ सका है। दो-चार चुनिंदा लोगों के नाम ऊपर आ जाने ने किसी समाज की स्थिति नही बदलती, समुदाय के औसतन लोग जब एक स्तर तक आते हैं तब कुछ तब्दीलियां देखने को मिलती हैं।
मैं पूछना चाहता हूँ, आज भी आपके लीडर कौन हैं, वहीं न जो मस्जिदों और मदरसों के मौलवी हैं? क्या आज के मौलवियों के ज्ञान का स्तर तुर्की के उस पागल ख़लीफ़ा से कुछ ऊँचा है? नही, बल्कि उसी के स्तर के हैं। मौलवी के पास सिर्फ वहीं ज्ञान है जो पंद्रह सौ साल पहले अरबों के पास का था। क्या इन लीडरों के पास फिजिक्स, केमिस्ट्री, मैथ्स, अर्थशास्त्र, दर्शनशास्त्र, मेडिकल साइंस और साहित्य के बारे में रत्ती बराबर भी जानकारी है? नही। फिर आप इनके फ़तवा को क्यों मानते हैं? क्या आप सिर्फ जन्नत में जाने के लिए और क़यामत के दिन ख़ुदा से जवाब देने के लिए जी रहे हैं? मौलवी यहीं चाहता है कि आप सातवीं सदी में जियें। इसके अलावा उसको हर चीज़ हराम लगती है और आपको भी वह उसी स्तर पर बनाये रखेगा। क्या ये सच नही है कि आज मुसलमानों ने धर्म का मतलब चीज़ों के सिर्फ हराम और हलाल से लगा लिया है? कल तक मौलवियों ने जो हराम करार कर रखा था, आज जब वे देखे की उसके बिना काम नही चल रहा है तो उसको ख़ुद ही अपना लिए। कल तक जो टीवी देखना हराम करार दिए थे और आज देखिए तो वे ख़ुद अपना थोबड़ा लिए दिन भर न्यूज़ चैनलों पर बैठे रहते हैं। क्या लाउडस्पीकर हराम नही था? था, लेकिन विडम्बना देखिए, अब मस्जिदों के मिनारों पर बांध कर मौलवियों ने लोगों की जिंदगियां तबाह कर रखी है। मुझे कोई ऐसी तकनीक बताये जिसको मौलवियों ने हराम करार न किया हो? ये कौन सा धर्म है जो आपको अपनी ज़िन्दगी में विज्ञान और तकनीक के इस्तेमाल से रोक रहा है? क्या विज्ञान और तकनीक के बिना मानव जीवन संभव है?
आज अहम बात है कि ये सब ठीक कैसे हो? तो सबसे पहले आपको यह बात गांठ बांधकर रख लेनी होगी कि धर्म का मतलब सिर्फ और सिर्फ ख़ुदा से सम्बंध स्थापित करना है। और ख़ुदा से सम्बंध स्थापित करने का व्यापक अर्थ इस सृष्टि से एकाकार होना है। सृष्टि से एकाकार तभी हुआ जा सकता है जब हम इस सृष्टि की सभी रहस्यों को जानने की कोशिश करेंगे और उसके साथ तादात्म्य स्थापित करेंगे। मानव जीवन के लिए धर्म और विज्ञान एक ही गाड़ी के दो पहिये हैं, दोनों को एक निश्चित अनुपात में स्वीकार करके चलना होगा। अगर मुसलमानों को इस दुनिया के साथ साहचर्य स्थापित करके चलना चाहते हैं तो उन्हें मस्जिदों और मदरसों से सुधार शुरू करनी होगी, जैसा कि यूरोप में हुआ था। मैं इस बात का बहुत बड़ा हिमायती हूँ कि धार्मिक मदरसों को पुरी तरह से बंद कर देना चाहिए, जो तुर्की के उस ख़लीफ़ा जैसे मौलवियों के उत्पादन करते हैं। इन मदरसों में पांच-सात वर्ष की उम्र में ही बच्चों को भेज दिया जाता है जो सिर्फ और सिर्फ धार्मिक शिक्षा ग्रहण करते हैं। जब ये पढ़कर बाहर निकलते हैं तो इनके पास इतनी जानकारी नही होती कि चपरासी की नौकरी तक कर सकें। इन्हें मदरसों और मस्जिदों में जगह मिलती है और कहने को ये हमारे लीडर बन जाते हैं। इसलिए धार्मिक शिक्षा सिर्फ वयस्कों के लिए होना चाहिए, बच्चों के लिए नही। बच्चों को सिर्फ संस्कार के स्तर तक धार्मिक शिक्षा दिया जाए, बेहतर होगा घरेलू स्तर पर माँ-बाप ही दें। धार्मिक शिक्षा सिर्फ विश्वविद्यालय स्तर पर एक कोर्स के तौर पर दिया जाए ताकि धार्मिक शिक्षा लेने से पहले व्यक्ति का सेक्यूलर विषयों(साहित्य, विज्ञान और मानविकी) का ज्ञान हो चुका हो, उसके अंदर तर्क करने की क्षमता विकसित हो चुकी हो। मस्जिदों के मिम्बरों पर से ऐसे मौलवियों को हटाकर विज्ञान के भाषा में संवाद करने वाले बुद्धिजीवियों को खड़ा करना होगा। मुस्लिमों को अपनी सभी ज़रूरतों के ऊपर शिक्षा पर निवेश करना होगा। आलीशान मस्जिद बनवाने की जगह पर कॉन्वेंट स्कूल बनवाना होगा। अगर ये सुधार नही किये गए तो विज्ञान और तकनीकी वाला यह युग मुसलमानों को रौंद कर आगे निकल जायेगा। आँखें खोलकर यह देखने का समय है कि आज परिस्थिति अलार्मिंग स्तर का हो गया है।
-अहमद रज़ा
जो इस संघी तिवारी ने लिखा तो बता दू की ये ना हिन्दू मुस्लिम भाईचारा हे न ये प्रगतिशीलता हे न उदारवाद हे ये तो शिया सुन्नी देवबंदी बरेलवी खींचतान हे अगर कोई इस संघी तिवारी की तरह बौराया हुआ हे तो बता दू की इस सबका कोई पॉजिटिव रिज़ल्ट नहीं आने वाला हे ऊपर बताया हे की क्यों ————– ? Sanjay Tiwari
53 mins ·
राम मंदिर बनाने के मामले पर बहुत सारी प्रगति हो रही है। शिया समुदाय खुलकर अयोध्या में राम मंदिर बनाने के लिए सामने आ गया है। शिया समुदाय का कहना है कि जो मस्जिद गिरी वह शिया समुदाय की संपत्ति थी, सुन्नी उस पर अपना दावा कैसे कर सकते हैं। इधर श्री श्री रविशंकर मध्यस्थ बनकर उभरे हैं। रविशंकर एक तरफ मोदी के करीबी हैं तो दूसरी तरफ शिया बहुल देशों से भी उन्हें समर्थन प्राप्त है। ऐसा लग रहा है राम मंदिर के लिए हिन्दुओं से ज्यादा अब शिया सक्रिय हो गये हैं।
।। जय शियाराम ।।
Farida Khanam was feeling खालसा खालिस है !!!
2 November at 16:05 ·
कभी फुर्सत के लम्हों में दो बातों पर मनन करें , पहली की आपका पडोसी किस ढंग से और किसकी इबादत करता है , यह आपके लिए महत्वपूर्ण है ? या वह कितना नैतिक है, कितना इमान पसंद है, यह आपके लिए महत्वपूर्ण है ?
दुसरा विश्लेषण इस बात करें की आपकी कौम या जात के लोंगों की सर्वाधिक हत्याएं , आर्थिक शोषण , बलात्कार जैसी धटनाओं का सर्वाधिक आरोपी कौन है ?
पिछले कई दिनों से मुझे शिया होने के कारण कुछ लोग बात बात पर जिन्हा , और इरान से संबंधित सवालों को दाग देते हैं ! इन्हीं लोगों को यह नहीं दिखाई देता की आजादी के बाद एक भी आंतकी या दंगाई धटनाओं में कभी एक भी शिया कम्युनिटी के व्यक्ति कभी आरोपी तक नहीं बने ! हालाँकि मैंने कभी एसे व्यक्तियों की बात का बुरा नहीं माना क्योंकि मैं ही नहीं बल्कि हिन्दुस्तान का 90% तक शिया समुदाय वहाबी , देवबंदी, या अहले हदिस जैसे फिरकों की तुलना में हिन्दू भाईयों से ही मित्रता रखता है, क्योंकि वह तुलनात्मक रूप से कहीं ज्यादा नरमपंथी हैं !
अब रही बात मजहबी आधार पर इंसान की पहचान करने की तो मै आपको बता दु की हमारे शहर इंदौर में 2 लाख से ज्यादा दाऊदी शिया बोहरा के लोग हैं लेकिन आजतक कभी एक भी आपराधिक मुकदमा इन कम्युनिटी के लोगों पर दर्ज नहीं हुआ , अगर आप पुरे देश से सिर्फ 5 इन कम्युनिटी के लोगों का हत्या या बलात्कार मे , दंगो में , शामिल होने की FIR उपलब्ध करा दें तो , मैं फरिदा खानम मौला अली अहिलैस्लाम को हाजिर नाजिर मान आपसे वादा करती ही सार्वजनिक रूप से हिन्दुज्म को स्वीकार कर लूंगी , हालांकि मैं मुसलमां हो कर भी कई हिन्दूओं से बेहतर हूँ !!!
कुछ फेसबुकीये दो कोडी के विचारक तो इतने गिर चुके हैं कि आजकल पंजाब में हो रही कुछ हिन्दू संगठनों के कार्यकर्ताओं की हत्या को सारी सिख्ख कम्युनिटी से जोड कर देख रहे हैं और उन्हें भला बुरा कह रहे हैं ! यह भुल ही जाते हैं की जिस देश और हिन्दूत्व की यह बांते कर रहे हैं उस देश की रक्षा और हिन्दुत्व की रक्षा में सबसे बडा योगदान अतीत और वर्तमान में भी यही सिक्खों का रहा है , और यही वह सिख्ख कम्युनिटी है जो पुरे भारत में दुध में शक्कर समान पाई जाती है कभी बलात्कार , बम ब्लास्ट , लुट आदी अपराध में इन्वॉल्व नहीं होती !!! जिन सिख्ख भाईयों की कुल आबादी मात्र हिन्दुस्तान में 2% है वह हिन्दुस्तानी फौज का 19 % हिस्सा है !!!
आपका और हमारा यह प्यारा वतन एक भिन्न-भिन्न तरह के फूलों का गुलदस्ता है , इसकी महक लें!!
समझदारी से काम लें वर्ना पडोसी की फुट डालो , राज करो की निती में आप प्रत्यक्ष नही तो अप्रत्यक्ष रूप से भागीदार बन जाएंगे !!!
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Pawan Yadav
Pawan Yadav फरीदा ji भारत में कितने पेरसेंत शिआ है.
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Like · 1 · 5 November at 18:19
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Farida Khanam
Farida Khanam 1 %Farida Khanam was feeling निर्मल , निर्दोष औरतों के तन को रौंदने से नही , उन्हें सम्मान देने से आपके मजहब की सही पहचान होगी !!
31 October at 14:36 ·
घटना करीब 2 वर्ष पुरानी है , इंदौर के शिया इमामबाडे के करीब जुम्मे के दिन कुछ हिन्दू संगठनों के कार्यकर्ता बाईकों पर आये , गले में केसरिया गमछा , सिर पर तिलक और आंखों में अंगारे सजे थे ! उन्होंने पास ही के घर से एक मुस्लिम नवयुवक को खिंच कर बाहर निकाला जो कहीं बाहर से इंदौर में नौकरी करने आया था !! एक बुजुर्गवार ने उसे एक तमाचा रसीद कर सब कार्यकर्ताओं से कहा की ‘ यह वही लडका है जो मेरी नातिन को रोज स्कुल के रास्ते में रोक छेड़छाड़ करता है “!!
माहौल अचानक तब गर्मा गया जब नमाजी हुसैनी भी वहां पहुंच गए !! लडके मे उत्साह आ गया और उसने आरोप लगाया की छेड़छाड़ की बात पुर्णतह गलत है और दोनों प्रेम में हैं , मुस्लिम पिडीत कार्ड खेलते हुए उसने आरोप लगाया की उसे मुसलमान होने के कारण निशाना बनाया जा रहा है !!
इतना सुनते ही बुजुर्गवार ने अपनी नातिन को फोन लगा कर वहीं बुला लिया जो कुछ ही देर में वहां पहुंच गई !!!
उसे देख दोनों पक्ष हैरत में पढ गये क्योंकि उसकी उम्र मात्र 15 वर्ष थी और वह कक्षा 9वी की छात्रा थी !!
इसके पहले की वह कुछ बयान देती मौलवी साहब ने आरोपी लडके को तडातड दो थप्पड़ रसीद किये और कहा कि 15 वर्ष की बच्ची से एक 25 वर्ष का युवक भला प्यार का दावा भला कर भी कैसे कर सकता है ? मौलवी साहब को देखादेखी अब हुसैनीयों ने भी आरोपी पर अपने हाथों को गर्म करना शुरू कर दिया !!!
अब स्थिति देखने लायक थी , हिन्दू संगठनों के कार्यकर्ता कोने में खड़े हैरान-परेशान घटनाक्रम पर निगाह रखे थे, हुसैनी आरोपी लडके को पिट रहे थे और बच्ची के नाना जो न्याय के लिए पुलिस को ना ला कर हिन्दू संगठनों को लाये थे, वह आरोपी को पिटने से बचाते हुए दुहाई दे रहे थे की कानून को हाथ में ना लिया जाए !!!
खैर पास ही थाने से पुलिस पहुंची , मौलवी साहब और हुसैनी जहां आरोपी के खिलाफ FIR दर्ज कराने के लिए दबाव बना रहे थे वहीं बच्ची के नाना ने माफीनामा लिखवा उसे एक मौका और देना चाह रहे थे !!
कुछ ही देर में दृश्य कुछ ऎसा था की आरोपी युवक माफीनामा लिख रहा था , हिन्दू और हुसैनी मिल कर पास ही के रेस्तरां में चाय समोसे उडा कर, ठाहके लगा लगा कर चर्चा में व्यस्त थे और मौलवी साहब केश काऊंटर पर उन सबके बिल का हिसाब चैक कर भुगतान कर रहे थे !!!
कुछ ही दिनों में आरोपी युवक असुरक्षा की भावना के चलते राफजीयो का इलाका छोड कहीं और रहने चला गया पर बिटिया आज भी इमामबाडे के सामने से स्कुल जाती है जहां अली अहिलैस्लाम का यह कौल मानने वाले मुसलमान रहते हैं की –
“अगर तुमने किसी की माँ बेटी की तरफ एक गलत कदम उठाया तो समझो 10 कदम तुम्हारे घर में तुम्हारी माँ बेटियो की तरफ उठ चुके होंगे.”
– मौला ईमाम अली (عليه السلام)Farida Khanam was feeling वामपंथ बेनकाब !
25 October at 13:22 ·
कुछ ही दिनों पहले की बात है की एक वामपंथी भाई Himanshu Kumar ने मेरा मुस्लिम नाम पढ कर फ्रेंड रिक्वेस्ट भेज दी ! वह इस उम्मीद में थे की मै भी उनके अन्य मुस्लिम मित्रों के समान उनकी पाकिस्तानी परस्त और हिन्दूओ के विरोधी विचारों से सहमत हो उनकी पोस्ट पर वाहवाही करुगीं !पर उन्हें भान ही नहीं था की उन्होंने बर्रीया के छत्ते में हाथ डाल दिया है !
करवा चौथ का दिन था , उन्होंने फौरन अपनी कपट का जाल फैला कर अपनी पत्नी और बच्चियों के फोटो डाल दीये , और कहने लगे की यह एक कुप्रथा है मेरी पत्नी ने कभी उपवास नहीं किया पर मै जिन्दा हु!
अब बारी हमारी थी हमने भी फौरन कमेंट किया की जनाब मान लेते हैं यह कुप्रथा है , पर देश को, महिलाओं को इससे कोई खास नुकसान नहीं पहुंचता ! बल्कि आपकी गांधीजी वाली विचारधारा के मुताबिक देश का बहुत अन्न बच जाता है और हर व्यक्ति को हफ्ते में एक बार हफ्ते में उपवास करना चाहिए ! अब आप कृपया महिलाओ के हित में तिन तलाक , हलाला जैसी कुप्रथाओं पर कृपया अपनी राय रखें !
अब जनाब बुरे फंसे तो कमेंट अनदेखा कर गये क्योंकि अगर कुछ इन कुप्रथाओं के खिलाफ लिखते तो इनके मोमिन उदारवादी मित्र इनकी वहीं जुतम परचम कर देते !
कुछ देर इंतजार कर हमने दुसरा सवाल दागा की जनाब आप क्या रजवाड़ों के परिवार से हैं की आपकी पत्नी, बच्चे पांच , पांच हजार से ज्यादा के कपड़े पहने हैं , जबकि आप पिछले कई सालों से आदिवासियो के इलाके में रह कर बिना कुछ कमाए इनकी सेवा कर रहे हैं ?
तब जनाब की पत्नी फरमाती है की कपड़े( ब्राण्डेड) उन्हें दान में मिले हैं और यह भी बताती है की हम आदिवासियों को गलत समझते हैं कि वे बेहद गरीब है , उनके पास अपार वन संपदा है !
अब मान भी लिया जाए की उनकी पत्नी, बच्चियों को दान में ब्राण्डेड कपडे मिल गये जो जिन्स के पेंट और टी शर्ट थे पर क्या दान में ब्रांडेड कीमती बराबर नाप के जुते भी मिले थे जो आदिवासी सेवक का परिवार धारण किये था ?
खुद को नास्तिक कहते हैं पर आदिवासियों को रावण जलाने का विरोध कर सिखाते हैं की रावण ही आपका वंशज था, यह मानते भी है की वहां संघ आदिवासियों की सेवा कर रहा है पर इन्हें शिकायत है की संघ उन्हें हिन्दू बना रहा है ! अगर वह हिन्दु नहीं ? तब इन्हीं जनाब जनाब के मुताबिक उनके नाम रामनाथ , शिव कुमार जैसे कैसे हो गये ? क्या रावण के मानने वाले अपने बच्चों के नाम राम पर रखते हैं ?
दिपावली पर कुटिल खुद को दिल्ली में बता कर अस्थमा के मरीज बन जाते है , वायु प्रदुषण पर पोस्ट करते है पर मस्जिद से सुबह 5 बजे उठते ध्वनि प्रदूषण पर मौन है !
जब नजीब की मां को धरने से पुलिस उठा ले गई तो इन जनाब ने पोस्ट की ‘मुझे हिन्दू होने पर शर्म आती है, हिन्दू शुरू से हिंसक है, वह दलितों, मुसलमानों पर अत्याचार करते हैं ‘ ! लेकिन इनकी कलम उन मुसलमानों पर कभी नहीं उठी जो लाखों नजीब की मां समान कई हिन्दू , शिया , सुफीयों की मांओ के बच्चों को बमों से उडा चिथडे चिथडे कर देते हैं, वहाँ इन्हें इस्लाम पर शर्म नहीं आती !
दरअसल अधिकतर वामपंथियों का आदिवासी इलाकों में पाए जाने का कारण गहरा है, जब कोई भी सरकारी प्रोजेक्ट कागजों पर आता है तब यह लोग आदिवासियों को बहला फुसलाकर कर अपने लोगों की कई झोपड़ीयां बनावा देते हैं और इन्हें आदिवासी बता कर सरकारों से मुआवजा मांगते हैं , किंतु सरकार के पास आंकड़े सालों पुराने होते हैं इसलिए उन्हें मुआवजा नहीं मिलता और फिर शुरू होता है सरकार पर दबाव बनाने का खेल , जल समाघी , आदिवासी भुख हड़ताल, प्रदर्शन आदी आदी !!!
एक उदाहरण, माननीय कोर्ट ने सरदार सरोवर डेम के विस्थापितों को अपने निरीक्षण में मुआवजा बटवाया, अगर डुब की भुमी की किमत 5 लाख है तो सिर्फ 5 लाख रुपए नहीं बल्कि सारे उत्तराधिकारीयो को 5, 5 लाख का अनुमोदन किया और सरकार ने सारा पैसा कोर्ट में जमा किया !!!!
कई फेक कब्जाधारीयों के विलाप आपके सामने ही हैं !!!Farida Khanam added 3 new photos — feeling भेड़ की खाल में छुपे भेड़ियों को धरने की टेक्नीक !
23 October at 19:44 ·
बचपन में हम सारे मोहल्ले के बच्चे एक खेल खेलते थे, छोटे छोटे बुर्के मे चार लडकियां ओर एक लडका होता और सबको पहचानना होता की उनमें लडका कौन है !
खेल में बडा मजा आता , अब मैं उस खेल को रोज फेसबुक पर खेलती हु , बस अंतर इतना है की अब दलितों के बिच दलित नाम से छुपे मोमिनो को पकडती हु ??!
बचपन से इनके बिच रही हु , इन्हें धरना मेरे लिए बाएं हाथ का खेल है । उदाहरण के लिए किसी दलित बने मोमिन की पोस्ट पर पाकिस्तान को एक, दो गालियाँ दें दो, मुगल लुटेरों का जिक्र छेड दो, या शियाओं के कत्लेआम पर लानत भेज दो , या नमो बुद्धाय कहलवा लो, बस भेड़िया फौरन भेड़ की खाल छोड असली रुप में आ जाता है , भला दलितों को क्यों पाकिस्तान या मुगल लुटेरों से प्यार होगा जबकि उनके हाथों सब कटे हैं , या वह जातिवाद के नाम पर हर साल एक लाख मारे जा रहे शियाओं, सुफीयों के लिए क्यों दुखी नहीं होगें ?
जय भीम नही इनसे नमो बुद्धाय या बुद्धम शरणम गच्छामी बुलवाओ, भेड़िया फौरन भेड़ की खाल से बाहर आ कर हमला करेगा । ????Farida Khanam
18 October at 23:47 ·
सरप्राइज़ बर्थ-डे पार्टी ! आरीफ बहुत बहुत शुक्रीया! हैपी बर्थ डे टु मी ! जय राम जी की , दिपावली की भी ढेरों शुभकामनाएं !!!Farida Khanam was feeling इंसानियत की शिया!
17 October at 14:13 ·
कुछ मित्रों का मत है कि मै शियाओं के पक्ष में लिखती हु , जो काफी हद तक ठीक भी है ! शिया शब्द का अर्थ है साथी , मित्र! जो अली अहिलैस्लाम के साथी थे उन्हें अरबी भाषा में शिया कहा जाता था !
आप किसी भी धर्म को उठा कर देख लें , आप पाएंगे कि अवतारों के साथ उनके रिश्तेदारों से ज्यादा सहयोग और शहादत उनके शियाओं की , यानी साथियों की रही है ! लंका के युद्ध में भगवान् राम के सारे साथी वानर थे ! भगवान् शिव के साथी नंदी और वनवासी तक रहे,
अवतार किसी जात या मजहब के नहीं होते इसीलिए जब धर्म का अवतरण होता है तब संपूर्ण सृष्टि के जिव जन्तु तक उनकी सेवा में लग उनके मित्र यानी शिया बन जाते हैं !
मै खुद को मानवता की शिया मानती हु , मेरा धर्म इंसानियत हैं जहां भी इंसानियत का , मानवता का वास होगा, मेरा स्वयं का, अंतर का धर्म वहीं होगा!
मैं आज भी आंतकवाद का साथ दे रहे कुछ मुस्लिम अकिदों के साथ रहने से बेहतर हिन्दू भाईयों के साथ रहना पसंद करती हूं ! और आज भी मौला अली के कौल पर चलती हु की –
“जो तुम्हारे मजहब पर नहीं उसके साथ भी
मोहब्बत से रहो क्यूँ की
वो तुम्हारे इंसानियत के रिश्ते से भाई हैं.”
– मौला अली (عليه السلام)Farida Khanam was feeling एक गुमराह , गुमशुदा.
13 October at 15:13 ·
जोधाबाई आगे, उनके पिछे बीरबल, उनके पिछे अकबर राजसी बगीचे में चहल कदमी कर रहे थे! अकबर को मस्ती सुझी, उन्होंने एक जोरदार चिमटी बीरबल की कमर पर काट ली, बीरबल ने आव देखा ना ताव फौरन वैसी ही चिमटी जोधाबाई को काट दी, हैरान जोधाबाई ने पिछे पलट बीरबल को थप्पड़ रसीद कर दिया! बीरबल फौरन पटले और अकबर को थप्पड़ रसीद कर दिया! अकबर ने गुस्से में आगबबूला हो बीरबल से पुछा कि बीरबल यह क्या गुस्ताखी है ? बीरबल ने कहा ” क्षमा करें महाराज आपने जो आगे खत भेजा था उसका जवाब आया है!
जवाब आते हैं! चिमटी काटने का जवाब थप्पड़ से आता है! आज जे एन यु के नजीब अहमद को गुमशुदा हुए एक साल बित चुका ! कल रात उनकी बहना ” द वायर ” नामक वेब साइट पर दीये एक इंटरव्यू में फरमा रहीं थी की ” हमारे परिवार को न्याय पालिका पर पुरा भरोसा रहा है, वर्ना हम भी सड़क पर न्याय की लड़ाई लडते!
अब सवाल यह उठता है कि अगर आप के परिवार को न्याय पालिका पर शुरू से ही भरोसा रहा हैं तब आपका भाई न्याय पालिका के दिये फैसले के खिलाफ ” अफजल हम शर्मिन्दा है तेरे कातिल जिन्दा हैं” जैसे नारे क्यूँ लगता था ? वह उन कश्मीरी अलगाववादियों के साथ क्यु था जो अपने ही वतन के खिलाफ नारेबाजी कर रहे थे ?
जवाब आ चुका ! निश्चित ही नजीब की विचारधारा अलगाववाद समर्थक थी और इस तरह की विचारधारा का अंत दर्दनाक ही होता है , चाहे वह विरोधियों द्वारा हो या खुद समर्थकों द्वारा ! जिस तरह कानून उन कश्मीरी अलगाववादियों को नहीं ढूंढ पाया जो जे एन यु में देश विरोधी नारे लगा रहे थे, ठीक उसी तरहा नजीब को भी नहीं ढूंढ पाया , इस बात की संभावना को नहीं नकारा जा सकता की वह उन्ही अलगाववादियों का शिकार बन गया हो या उन्हीं की विचारधारा की लड़ाई लड़ने उन्हीं के साथ चला गया हो!
आज कन्हैया कुमार भी उसी न्यायालय के तारीफों के कसीदे पढ रहे हैं जिसके निर्णय के खिलाफ नारेबाजी करने के लिए उन पर केस दर्ज किया गया था!
समय है अब भी, समझ लें की न्यायपालिका देश की जिवन धारा है तो बेहतर वर्ना कहीं एसा ना हो यह भी नजीब के अंजाम तक पहुंच जाए!
See Translationrida Khanam is feeling महर्षि वाल्मीकि की जयंती की हार्दिक शुभकामनाएं !
4 October ·
बहुत दिनों बाद इंदौर में प्रवेश कर रहे हैं ! हाई वे पर मार्ग सुचक होर्डिंग लगा है , जिस पर लिखा है –
” प्रबिसी नगर किजे सब काजा !
ह्दय राखी कौशल पुर राजा ” !
यानी शायद ” नगर में राम को दिल में रख कर प्रवेश करें तब आपके सारे काम संपूर्ण हो जाएंगे ” !
राम तो सदैव से हमारे हृदय में हुसैन अहिलैस्लाम के साथ ही विराजे हैं यानी सारे कार्य निर्विघ्न संपन्न होना ही है । रामायण के रचयिता महर्षि वाल्मीकि की कल जयंती भी है , आप सभी को बहुत बहुत मुबारक !
इनसे ना होगा – हमने तो पहले ही ऊपर विस्तार से बताया हे आज देखा की दस करोड़ की वेल्यू बताई जा रही वेबसाइट के संपादक जी ने जिस नौजवान को पिछले वर्ष शायद देश और शायद सेकुलरिज्म का भविष्य घोषित किया था वो नौजवान आज खुनी मातम का वीडियो प्रचारित कर रहा हे उसका भी क्या कसूर —————- ? अगर वो ऐसा नहीं करेगा तो हम सेकुलर देवबंदियों की तरह अपने ही समाज में अलोकप्रिय असुरक्षित नहीं हो जाएगा इसी तरह सोशल सूफी संत भी कुछ मुद्दों पर चोंच बंद ही रखते हे इन्हे भी सीरीज लिखने पर अच्छा पैसा नाम और दाम मिला होगा और नुकसान टेंशन या खतरा कुछ भी नहीं हे क्योकि शिया या बरेलवी होने का ” कवच कुण्डल ” इनके पास हे ही . खेर ये नौजवान दस करोड़ी साइट के संपादक जी को तो लुभा सकते हे और सब अपनी जगह हे सही सा भी हे , ठीक हे मगर इस सबसे कुछ नहीं बदलने वाला हे . अच्छा जिन्हे बदलाव से खतरा महसूस होता हे उन्हें भी ये बात अच्छी तरह पता हे इस सबसे कुछ नहीं बदलने वाला हे इसी कारण वो भी इन्हे कुछ नहीं कहते हे खाओ खेलो खुश रहो जबकि उधर हम सेकुलर देवबंदी ——————- ? हमारे खिलाफ तो 2014 में ही उर्दू के सबसे बड़े पत्रकार साहब के अखबार में व्यंगय में कहे तो वारंट निकल गया था
Mohd Zahid is with Mohd Zahid and 11 others.
Yesterday at 13:34 ·
Short Post/17-1108
ऐसा नहीं कि कांग्रेस या अन्य दलों से मुझे शिकायतें नहीं हैं , बहुत शिकायते हैं , पिछले 60-70 सालों में इसी कांग्रेस और अन्य दलों ने कलेजा छलनी कर दिया है परन्तु आज सवाल इतिहास का नहीं वर्तमान और भविष्य का है।
एक एक करके दिखती लाशें यदि आपको यह सोचने पर मजबूर नहीं कर रहीं हैं कि सत्ता के भगवा रंग में रंगते ही कल हमारी या हमारे बच्चों को भी ऐसे ही सरकटी लाशों में इनके हाथों तब्दील होना पड़ेगा तो आप फिर कुछ देख नहीं पा रहे हैं।
यह साजिश समझना होगा और इतिहास की लाश पर रोने से बेहतर है कि इस देश में अपना और अपने बच्चों का वर्तमान और भविष्य को सुरक्षित रखने के लिए इतिहास भूल कर वह हिकमत लगाएँ जिससे इन नारंगियों का आस्तित्व समाप्त हो।
निश्चित रूप से कांग्रेस और अन्य के दिए ज़ख्म बहुत हैं पर इन ज़ख्मों में खन्जर तो इन संघियों का ही है , कांग्रेस सिर्फ़ इन को नियंत्रित नहीं कर पाई यह भी सच है।
कांग्रेस या अन्य दलों ने ताजमहल , मुगलसराय , औरंगज़ेब , शाहजहाँ , अकबर , जामा मस्जिद , लालकिला सबकी पहचान आज तक रहने ही दी है। पिछले 70 सालों में वह सब मिटा सकती थी।
किसी की पहचान , तहज़ीब और इतिहास को मिटा देना उस ज़िन्दा इन्सान के वजूद को मिटा देना होता है , यह समझना होगा और संघी इसीलिए इस पर आक्रमण करते हैं।
यदि आप गंभीरता नहीं समझ रहे हैं तो समझ लीजिए कि इनकी साजिशें हमारे वजूद को मिटाने की है।
अल्लाह ने दिमाग हिकमत लगाने के लिए दिया है उसका इस्तेमाल कीजिए नहीं तो इंतज़ार कीजिए अपनी बारी का।———————————————————————————————————————————————————–ande Mataram- Jai Hind Jai BharatLike Page
21 June 2016 · ·
हिन्दुओं को गुजरात के चेलिया मुस्लिमो से बिजनस माडल सिखने की जरूरत है
आपको राजस्थान, महाराष्ट्र और गुजरात के हाइवे पर तमाम ऐसे होटल मिलेंगे जिनका नाम भाग्योदय, तुलसी, बनास, डिनरवेल, अरुणोदय, आदि हिन्दू नाम वाला होगा |
लेकिन इन होटलों की चेन जिसमे हजारो होटल है उन्हें गुजरात के बनासकांठा के रहने वाले चेलिया मुस्लिम चलाते है….
इन होटलों में एक भी हिन्दू को नौकरी नही दी जाती.
चेलिया ग्रुप ऑफ़ होटल्स का हेड ऑफिस अहमदाबाद में है…
इनका पूरा खरीद सेंट्रलाइज्ड होता है.. ये डाइरेक्ट कोल्डड्रिंक, नमकीन आदि बनाने वाली कम्पनीज के साथ बल्क में डील करते है,..
फिर उसे हर एक होटल में सप्लाई करते है.
जहाँ तक सम्भव हो ये खरीदारी मुस्लिम से ही करते है.
इनके होटल्स में इनवर्टर, बैटरी, आरओ आदि सप्लाई करने वाला भी मुस्लिम ही होता है …
चूँकि ये अपने होटलों का नाम हिन्दू नाम जैसा रखते है और “ओनली वेज” लिखते है ..
और इनके होटल साफ सुथरे दिखते है. इसलिए हिन्दू इनके होटलों के तरफ आकर्षित होते है.इनका ये मानना है की हिन्दुओ से पैसा निकालो और उसे मुस्लिमो के बीच लाओ..
इनका पूरा बिजनस फ्रेंचाइजी माडल पर आधारित होता है. इनकी एक सहकारी कमेटी है जो अल्पसंख्यक आयोग में अल्पसंख्यक कमेटी के रूप में रजिस्टर्ड है .
इस कमेटी में देश विदेश के लाखो चेलिया मुस्लिम मेम्बर है .और सब अपना अपना योगदान देते है . फिर ये हाइवे पर कोई अच्छा जगह देखकर उसे काफी ऊँची कीमत देकर खरीद लेते है..फिर उस होटल का एक खरीदी बिक्री का एकाउंट बनाते है. और उस होटल को किसी चेलिया मुस्लिम को चलाने के लिए सौप देते है ..
पुरे विश्व के चेलिया मुस्लिम सिर्फ मुहर्रम में अपने गाँव में इकठ्ठे होते है .फिर हर एक होटल के लाभ हानि का हिसाब करते है .. यदि कोई होटल पांच साल से नुकसान में है तो उसे बेच देते है . फिर नया होटल खरीदते है ,..
और मुनाफे का हिस्सा पूंजी के हिसाब से आपस में बाँट लेते है …इसलिए मुहर्रम के दौरान करीब २० दिनों तक गुजरात, महाराष्ट्र, राजस्थान के हाइवे पर के 90% होटल्स बंद रहते है ..ये बसों के ड्राइवर को बेहद महंगे गिफ्ट देते है ताकि ड्राइवर इनके ही होटल पर बस रोके …
अहमदाबाद के सरखेज में इनका बहुत बड़ा सेंट्रलाइज्ड परचेज डिपो है ..खुद का आलू प्याज आदि रखने के लिए कोल्ड स्टोरेज है .. ये सीजन पर सीधे किसानो से बेहद सस्ते दाम पर आलू प्याज अदरक आदि खरीद लेते है ..
इकोनोमिक्स टाइम्स अहमदाबाद में छपे एक रिपोर्ट में इस चेलिया होटल्स की कुल पूंजी इस समय करीब तीन हजार करोड़ रूपये पहुंच चुकी है .. और इनकी कुल परिसम्पत्तियों की कीमत इस समय दस हजार करोड़ रूपये होगी ..
हिन्दुओ के जेब से पैसा निकालकर उसे मुसलमानों में बांटने का ये चेलिया ग्रुप्स ऑफ़ होटल्स बेहद खतरनाक मोडल है…
दुःख इस बात का है की अभी तक हिन्दू चेलिया मुस्लिमो के इस गंदे खेल को नही समझ सके और इनके होटलों में खाना खाकर इन्हें आर्थिक रूप से मजबूत करते है… फिर ये पैसा आतंकियों को जाता है…
इससे बड़ा खतरनाक ये है की ये किसी हिन्दू के होटल को चलने ही नही देते .. क्योकि इनका एक सहकारी समिति है इसलिए ये सालो तक नुकसान सहकर खूब सस्ता बेचने लगते है जिससे हिन्दुओ को अपना होटल बेचने की नौबत आ जाती है.
https://www.facebook.com/sashkttabharat/posts/1667936410115412————————————————————————————————–Pawan Saxena
12 November at 10:27 ·
हुंकार !!
क्या व्रत,कथा,मंदिर,घंटे, तीरथ यात्रा और प्रवचनों से सनातन हिन्दू धर्म की रक्षा होगी ? क्या कोई नरेंद्र मोदी,तोगड़िया,अशोक सिंघल,राम कोठारी-शरद कोठारी इस सनातन धर्म को बचा पाएगा ? इस्लाम के प्रचार,प्रसार और विकास की प्रक्रिया की समीक्षा कीजिए, कहीं गर्म,कहीं नर्म और कहीं सख्त ,बदलते वक्त की मानिंद अमीबा बन यह मज़हब 56 देशों में इस्लामिक सत्ता स्थापित कर चुका है ! दो बातें विशिष्ट हैं ,पहली इस्लाम मने अल्लाह से बड़ा कुछ नहीं , दूसरा आदर्शवाद को कोसो दूर से सलाम करता है पूरी दुनिया को जीतने उतरा इस्लाम ! कहिए कुछ भी,कुरान आपकी निगाह में कैसी भी हो ,मगर दुनिया को कैसे फतह करना है,इससे बढ़िया मनोवैज्ञानिक, कुटनीतिक,छल-बल और शस्त्रों के बेमिसाल सममिश्रण की कोई किताब ज़मीन पर उपलब्ध नहीं है !
कुरान कोई आध्यात्मिक ज्ञान दिखाने वालों की रचना नहीं है ! मानव मन जिन कारकों से प्रभावित होता है,आक्रमक,प्रेरित और मर्माहत होता है, उन कारकों का सम्मिश्रण कर कुरान को लिखा गया है ! सर्वधर्म -समभाव जैसी मूर्खताओं से पूर्णतया दूर है कुरान और इस्लाम ! आज वक्त का तकाजा है कि हिन्दू धर्म से निःस्वार्थ मोहब्बत करने वाला कुरान जैसा कोई सामान्य भाषा मे कोई दिशा-निर्देशक ग्रंथ लिखा जाए !! धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष-भोग-त्याग पर ही कोई अपनी पीपनी न बजाता रहे !
यह कुरान का ही जलवा है कि मुस्लिम लड़कियां किसी और धर्म के व्यक्ति से बेशक प्रभावित हो जाएं,मगर विवाह मुस्लिम से ही करती हैं,अपवाद स्वरूप विवाह भी कर लेती हैं तब भी अपना धर्म नहीं छोड़ती जैसे नरगिस और मान्यता इत्यादि !
दरअसल सिख धर्म और आर्य समाज की स्थापना ही कुरान जनित इस्लाम की सफलता से प्रेरित हो कर की गई थी !आर्यसमाज को सनातन-हिन्दू धर्म की प्रचलित परंपराओं से दूर नहीं किया जा सका, इसलिए समाप्त प्रायः हैं ,परंतु सिखों ने खुल कर मूर्ति पूजा का निषेध किया ,गुरुग्रंथ साहिब को अंतःकरण में स्थान दिया ,आज सिख धर्म, विश्व के बेहद सक्षम और सफल धर्मों में से एक है ! क्या कारण है जो सनातन धर्म से निकल गया,बेहद मजबूत होकर निकला,जैसे-जैन,बौद्ध,सिख ! हिन्दू विचार करें !
वेद,उपनिषद,श्रीरामचरितमानस,गीता कोई भी ग्रंथ उठा लीजिए अंततः आदर्शवाद, बहुमूर्ति पूजा और सर्वधर्म-समभाव जैसी ज्ञात मूर्खताएं ही निष्कर्ष रूप में दिखाई देतीं हैं ! मंदिर आध्यात्मिक विलासिताओं के अड्डे हैं ! किसी मंदिर ने किसी हिन्दू को सनातन धर्म के लिए खड़ग उठाकर संघर्ष करने के लिए प्रेरित नहीं किया ! मंदिर की मूर्ति के सोने,चांदी,अष्ट-धातु की होने के क्या प्रयोजन हैं ? एक-एक मंदिर में हज़ारों मूर्तियां होने का क्या उद्देश्य होता है ? मेरा सपना है कि हमारे मंदिरों की संख्या भी मस्जिदों की संख्या की भांति 3 लाख से ऊपर होती और मंदिर भी हिंदुओं के लिए वह ही कार्य करते,जो मस्जिदे और मदरसे, मुस्लिमों के लिए करते हैं !
पिछले महीने केरल सरकार ने गुरुवायुर मंदिर को श्रद्धालुओं और पूजा कराने वाले पंडितों से खाली करा कर अधिग्रहण कर लिया !! उत्तर,दक्षिण, पश्चिम और पूर्वी भारत के किसी मंदिर के पुजारी,श्रद्धालुओं और हिन्दू संस्थाओं में कोई रोष दिखा,आंदोलन हुआ ? रोष तो छोड़िए कहीं कोई सुगबुगाहट तक नहीं हुई !
हिंदुओं छोड़ दो मूर्ति पूजा सिर्फ दस बरस के लिए ! मात्र हिन्दू सनातन धर्म को अपना भगवान बना लो, उसकी रक्षा के लिए तन-मन-धन से अर्पित हो जाओ ! मंदिरों को नाच-गाना-मनोरंजन का केंद्र मत बनाओ ! मंदिरों को शक्ति और धर्म रक्षा का केंद्र बनाओं !! पुजारी बेशक हों मगर सेना नायक जैसे मज़बूत धर्म-रक्षा के लिए जान देने-लेने वाले प्रबुद्ध वीरजन !!
जयश्रीराम -जय हिन्दू राष्ट्र !!
ये आदमी चाहता हे की मुसलमानो को भड़का कर उकसाकर फ़र्ज़ी मुस्लिम यूनिटी सुप्रियॉरिटी एकवेल्टी विक्टिमहुड की मलाई सिर्फ इसके छोटे इकबाल को ही आगे बढ़ाने को आरक्षित हो बाकी किसी के लिए नहीं यानि वो ही मानसिकता जिसने मोदी से पहले मलाई खायी उसी के कारण मोदी आया और मोदी को हटाने से पैदा होने वाली मलाई पर भी ये अपना अधिकार चाहते हे —————– ? खेर दो विचार Mohd Zahid added 9 new photos — with Mohd Zahid.
4 hrs ·
FBP/17-242
आज का भारत और मुसलमान :-
गुजरात में दलित 7% हैं और पटेल 14% , राहुल गाँधी और कांग्रेस इन दोनों जातीयों को साधने के लिए हार्दिक पटेल और जिग्नेश मवानी के लिए रेड कार्पेट बिछाए जा रही है।
अल्पेश ठाकोर तो खैर कांग्रेस में शामिल ही हो चुके हैं और कांग्रेस उनको पूरा महत्व भी दे रही है।
अब यहाँ मुसलमान यह सोच रहा है कि गुजरात में मुसलमान तो 10% है परन्तु उसका तो कोई नाम लेवा भी नहीं , कांग्रेस या राहुल गाँधी मुसलमान नाम तक नहीं ले रहे हैं तो 10% मुसलमान वोटरों की कोई अहमियत नहीं ?
ऐसा नहीं कि यह सिर्फ़ गुजरात में हो रहा है , ऐसा ही उत्तर प्रदेश के चुनाव में भी हुआ है कि पूरे चुनाव प्रचार में सपा-कांग्रेस ने मुसलमान नाम तक अपनी सभाओं में नहीं लिया।
दरअसल मुसलमान बहुत जज़्बाती होता है , भारत की मौजूदा राजनीति में फिलहाल जज़्बात की नहीं अक्ल और बहुत कुछ बर्दाश्त करने की क्षमता विकसित करने की ज़रूरत है।देश के मुसलमानों को समझ लेना चाहिए कि आज का भारत और उसकी परिस्थियाँ क्या है।
देश के मुसलमानों को समझ लेना चाहिए कि वह पाकिस्तान , बंगलादेश, सऊदी अरब, यूएई और अफगानिस्तान या किसी अन्य इस्लामिक देश में नहीं बल्कि एक ऐसे भारत में अल्पसंख्यक हैं जहाँ का बहुसंख्यक हिन्दू समाज उनके विरुद्ध भगवा राजनीति के कारण एक होता जा रहा है।
आज मुसलमान-इस्लाम नाम भाजपा-संघ के लिए उत्प्रेरक और ध्रुवीकरण का सबसे बड़ा टूल है तो इस “टूल” का प्रयोग भाजपा ना कर सके इसके लिए अक्ल और हिकतम का प्रयोग करना चाहिए , चाहे कुछ बर्दाश्त ही क्युँ ना करना पड़े।
उत्तर प्रदेश का चुनाव देखिए , भाजपा की जीत के प्रमुख कारणों में 2 कारण बेहद महत्वपुर्ण थे , बसपा और सपा द्वारा मुसलमानों को 250 से अधिक टिकट देना और एक हैदाराबादी नेता का घूम घूम कर 36 जगह कट्टर भाषणबाजी करना।
भाजपा-संघ की घर घर घूमती टोली हिन्दुओं में यह संदेश देने में सफल रही कि उसने एक भी मुसलमान को टिकट नहीं दिया जबकि सपा-बसपा-कांग्रेस नें 403 सीट के विधान सभा में 250 से अधिक मुसलमानों को टिकट दिया। यही तुष्टीकरण है।
ऐसी हर सीट पर इसी कारण ज़बरदस्त ध्रुविकरण हुआ जहाँ सपा-बसपा-कांग्रेस का प्रत्याशी मुसलमान था। भाजपा अपने सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के इस प्रयास में सफल रही कि इस सीट पर “भाजपा” को वोट दो नहीं तो “मुसलमान” जीत जाएगा। और मुसलमान प्रत्याशी के विरुद्ध उस सीट पर लगभग सब हिन्दू एक हो गये।
देवबंद और सहारनपुर जैसी मुस्लिम बहुल सीटों पर भी भाजपा जीत गयी। मेरी इलाहाबाद की एक मुस्लिम बहुल सीट भी जीत गयी जहाँ भाजपा पिछले 30-35 सालों से कभी जीत ही नहीं पाई।
फिलहाल आपको “मुसलमानों” के नाम , इत्तेहाद , कयादत , मुस्लिम नेतृत्व और ” मुसलमानों के लिए कोरी भाषणबाजी” और टिकट जैसी चीज़ों से उठकर सोचना होगा , आज का समय और परिस्थितियाँ यही कहती हैं कि जिस राजनीति से भाजपा को लाभ हो उससे किनारा कर लेना चाहिए।
आप यदि कहते हैं कि आपको “भाजपा फोबिया” हो गया है तो आप अंधे और बहरे हैं जो आप 38 लाशों की हकीकत नहीं देख पा रहे हैं , राजस्थान में इस वसुंधरा सरकार के पहले अशोक गहलोत की सरकार में कोई पहलूखान कोई उमर खान कोई मेवात सामूहिक बलात्कार हुआ ? नहीं , झारखंड में इस संघी रघुवरदास सरकार के पहले क्या कभी कोई अलीमुद्दीन , कोई मिन्हाज , कोई मजलूम कोई छोटू हुआ ? नहीं।
हरियाणा में इस संघी खट्टर के पहले की हुड्डा सरकार में क्या कोई जूनैद बना ? नहीं।
दरअसल भाजपा और संघ सरकारों की भारी विफलता के बावजूद उनके समर्थकों का उनके साथ एक जुट होना मात्र इन गिरती लाशों के कारण ही हैं। इनको लगता है कि मुसलमानों के उनके पुर्वजों पर किए आत्याचार का बदला लिया जा रहा है और भाजपा सरकारें इन भगवा आतंकियों को बचा कर इस काम में इनकी मदद कर रही हैं।
भाजपा-संघी सरकारों के यह प्रत्यक्ष कारनामें हैं , अप्रत्यक्ष कारनामे और मुस्लिम विरोध की पालिसी और निर्णय समय आने पर आते ही रहते हैं। योगी जी ताजा उदाहरण हैं जिनके शासन का केवल और केवल एक सूत्र है मुसलमानों से घृणा।
इतिहास के नहीं आज के सबसे बड़े दुश्मन को पहचानना होगा और खामोशी से उसे जो हरा रहा है उसे चुपचाप समर्थन दे देना होगा , यही आज की राजनीति है।
टीवी और सभाओं में दाढ़ी टोपी लेकर चीखते चिल्लाते मौलाना और ओलेमा आज की यह परिस्थीतियाँ जितनी जल्दी समझ लें उतना बेहतर है क्युँकि भाजपा के हर चुनाव जीतते ही कई मुसलमान जूनैद , मिन्हाज , पहलू खान , उमर खान , अखलाक और अलीमुद्दीन बन जाते हैं और अबतक 38 मुसलमान इन भगवा आतंकवादियों के हाथों मारे जा चुके हैं।
गल्फ़ में बैठे लोग भी समझ लें कि उनका परिवार और बच्चे इसी माहौल और परिस्थितियों में रहते हैं इसलिए संघ और भाजपा को मदद पहुँचाती हरकतें वह भी बंद ही कर दें। मुसलमान ज़िन्दा रहेगा तो हक हलाल की कमाई कर लेगा और ज़िन्दगी जी लेगा।
मुसलमानों की यह मजबूरी ही सही पर फिलहाल उसके पास यही एकमात्र विकल्प है।
• आपकी याद ताज़ा करने के लिए कुछ चित्र———————————————————–योगेश सिंह
11 November at 15:21 ·
मुसलमान हिन्दूओं से कही ज्यादा पॉलिटिकली कोंशियस हैं , पॉलिटिकली करेक्ट भी . उन्हें मालुम है उन्हें क्या चाहिए , क्यों चाहिए और इसके लिए उन्हें क्या करना होगा . दूसरी तरफ हिन्दू की चाहत समय – समय पर बदलती रहती है , यादास्त बेहद कमज़ोर , या यूं कहें की हम राजनितिक पटल पर कभी हिन्दू बनकर आये ही नहीं और हमारी इसी कमजोरी का फायेदा उठाकर सेक्युलर पार्टियाँ मुस्लिम तुष्टिकरण को खूब बढ़ावा देती रहीं , उनका वोट बटोरती रही और दूसरी तरफ ऐसा माहौल खड़ाकर दिया कि जुबां से हिन्दू शब्द निकलते ही अगला सांप्रदायिक करार दिया जाने लगा . हम मारे लज्जा के सेक्युलर बनते चले गए , कही कोई सांप्रदायिक होने का इलज़ाम न लगा दे .
कहा जाता है जो नेता अपने बारे में कोई धारणा न बनने दे वह नेता एक महान नेता होता है .इतनी बड़ी दुनियां में जो नेता प्रिडीक्टेबल हो जाये फिर वो कैसा नेता ? ऐसे नेताओं के कामों का असल मूल्यांकन उसके जाने के सैकड़ों सालों बाद तक होता रहता है . जैसा की जाहिर है मैं #मोदी समर्थक हूँ पर समय समय पर जम कर आलोचना भी करता रहता हूँ . और यह आलोचना इस लिए भी है कि एक नेता को सालों से इतना क्लोज़ली फॉलो करने के बाद भी आज तक उनके बारे में कोई धारणा नहीं बना पाया यही उनकी राजनितिक कुशलता है . पर यह मतलब नहीं है कि आप आलोचना करना बंद कर दे .ऐसे नेता इस समाज का बारीकी से अध्ययन करते हैं. पुराने ज़माने में योग्य राजा जनता की राय के लिए गुप्तचर भेजा करते थे परन्तु आज सोशल मीडिया सामाजिक मत को समझने का बहुत बड़ा जरिया है यही कारण है कि मोदी जी इसपर विशेष ध्यान देतें है और साथ अपनी सरकार द्वारा उठाये गए कदमो पर इंटेलिजेंस कि रिपोर्ट लेते हैं और इस रिपोर्ट पर बड़े गंभीरता से विचार किया जाता है .और सबसे बड़ी बात मोदी की नियत पर कोई संदेह नहीं करता , हम उनकी नियत की वजह से ही उनके समर्थक है और विरोधी उनकी नियत से भयभीत .
हाल में मैंने एक बात नोटिस की है कि मुस्लिम अब मोदी की आलोचना नहीं करते . वो चुप रहना पसंद करते हैं . पर इस चुप्पी का यह मतलब नहीं है कि मुस्लिम समाज का मोदी की तरफ झुकाओ हो रहा है . ऐसा कदापि नहीं है . राजनितिक समझ रखने वाला मुस्लिम समाज यह जान गया है कि हम मोदी की जितनी आलोचना करेंगे मोदी उतना मजबूत होते जायेंगे . २०१४ फिर हाल का उ0प्र0 चुनाव में मुस्लिमों ने देख लिया है कि अगर हिन्दू एकजुट हो गया तो हम कहीं नहीं ठहरते . जिस संख्या बल को दिखाकर आज तक हम राजनितिक लाभ लेते आयें है उसे मोदी ने मिथ साबित करके दिखाया है . आज आप यह भी देख रहें होंगे की मुस्लिम समाज अब राम मंदिर का विरोध नहीं करता . हमने विरोध देखा है यही मुस्लिम कहा करते थे कि अगर राममंदिर का निर्माण शुरू हुआ तो कत्लेआम होगा , जंग होगा , जिहाद होगा , पता नहीं क्या क्या ? आज स्थिति यह है कि शिया समाज राम मंदिर के पक्ष में खड़ा है और विरोध करने वाले इसके राजनितिक लाभ हानि का गणित लगा रहे हैं .
चलो मान लिया मोदी ने कुछ नहीं किया …पर हमें संगठित कर दिया , क्या यह कम है ?
हमें हमारे ही ताकत से अवगत कराया . क्या यह कम है ?
बहुत से मोदी समर्थक यह सवाल उठाते हैं कि मोदी को हिन्दू वोट बैंक का लाभ मिला पर उन्होंने हिन्दूओं के लिए क्या किया ?
मैं उल्टा उन्ही से पूछना चाहता हूँ …हिन्दू वोट बैंक था कब ?
सांप्रदायिक लोगों को एक मंच पर लाकर संगठित किसने किया ?
हमें तो रास्ता उन्होंने ही दिखाया अब हम चल पड़े हैं अपनी मंजिल की ओर ………….. जय श्रीराम .
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तिवारी हालांकि आदमी सही नहीं हे फिर भी जो हमने ऊपर समझाया उससे रिलेटिड हे की की शिया सुन्नी देवबंदी बरेलवी खींचतान अपनी जगहहे आप उससे कुछ पॉजिटिव की उम्मीद ना करे ये नहीं हो पायेगा कट्टरपंथी इस्लाम का नया खादिम
visfot news network देश विदेश November 16, 2017 0 Minutes
साल भर पहले की बात है। सोशल मीडिया पर एक वीडियो वॉयरल हुआ जिसमें एक मौलना हिन्दुओं की तुलना शौचालय से कर रहा था। इस मौलाना का नाम था खादिम हुसैन रिजवी। खादिम हुसैन रिजवी पाकिस्तानी पंजाब का रहनेवाला है और उसने हिन्दुओं को शौचालय इसलिए कहा था क्योंकि नवाज शरीफ ने कराची में दीवाली मिलन के कार्यक्रम में हिन्दुओं को भाई कह दिया था और ये भी हम कौन होते हैं जन्नत और दोजख के फैसले करनेवाले। यह बात खादिम रिजवी को इतनी बुरी लगी कि उसने नवाज शरीफ को भी गालियां दी और हिन्दुओं को भी।
यह पहला मौका था जब खादिम हुसैन रिजवी चर्चा में आया। लेकिन सालभर बाद ही वह एक और वजह से चर्चा में आया। उसने नवाज शरीफ के इस्तीफे के बाद खाली हुई सीट पर अपना उम्मीदवार उतारा और उसकी पार्टी तीसरे नंबर पर रही। अब पूरे पाकिस्तान के लिए रिजवी चर्चा का विषय बन गया। यह बहुत बड़ी उपलब्धि थी जब एक अनजान सी राजनीतिक पार्टी ने नवाज शरीफ के परिवार को लाहौर में ही चुनौती दे दी थी। लाहौर का ही रहनेवाला हाफिद सईद भी खादिम रिजवी की पार्टी से पीछे रह गयी जिसका मतलब था कि कट्टरपंथी दुनिया खादिम रिजवी हाफिज सईद से ज्यादा स्वीकार्य हो चला था।
पाकिस्तान में उसकी स्वीकार्यता और बढ़ती लोकप्रियता का कारण है। खादिम हुसैन रिजवी सुन्नी इस्लाम के बरेलवी फिरके से संबंध रखता है। बरेलवी फिरका पाकिस्तान में ही नहीं भारत में भी सबसे बड़ा समूह है। एक अंदाज के मुताबिक पाकिस्तान की ६० प्रतिशत से ज्यादा आबादी बरेलवी है। जबकि पाकिस्तान की सियासत पर देओबंदी सुन्नी राज करते हैं जो कि पाकिस्तान में अल्पसंख्यक हैं। ऐसे में खादिम हुसैन रिजवी का औचक उभार एक तरह से बरेलवी मुस्लिमों का मजहबी उभार है।खादिम हुसैन रिजवी ने अपने राजनीतिक सफर की शुरुआत एक ऐसे मुद्दे से की जो किसी भी मुसलमान के लिए बहुत संवेदनशील होता है। लाहौर में उनके गनर मुमताज कादरी द्वारा पंजाब के गवर्नर सलमान तासीर को गोली मार दी थी। मुमताज कादरी का कहना था नबी निन्दा कानून का विरोध करके सलमान तासीर ने पैगंबर और इस्लाम की तौहीन की है इसलिए उसने गोली मारकर इस्लामिक कायदे से उसे सजा दे दी। सलमान तासीर की हत्या के आरोप में मुमताज कादरी को फांसी की सजा हुई और यहीं से खादिम रिवजी के राजनीति की शुरुआत भी होती है। खादिम रिजवी ने मुमताज कादरी की फांसी को सरकार और न्यायालय का अपराध मानते हुए पाकिस्तान में नये राजनीतिक आंदोलन की शुरुआत की जिसको उसने नाम दिया लब्बैक या रसूल अल्लाह।खादिम हुसैन रिजवी अल्लामा इकबाल को अपना आदर्श मानता है और पाकिस्तान में सच्चे इस्लाम का शासन लाना चाहता है जहां नबी निंदा करनेवाले को बिना किसी सुनवाई गोली मारी जा सके। खादिम हुसैन रिजवी पाकिस्तान में यह कोई नयी बात नहीं कर रहा। देओबंंदी मुसलमान लंबे समय से ऐसी कट्टरता का समर्थन कर रहा है। नया ये है कि पहली बार उदार कहे जानेवाले बरेलवी समुदाय से कोई मौलवी कट्टरता की ऐसी बात कर रहा है जिसे देओबंदी और बहावी इसलिए काफिर कहता है क्योंकि वह मजारों की पूजा करता है। बरेलवी समुदाय भारत और पाकिस्तान दोनों जगह उदार मुसलमान के तौर पर ही पहचाना जाता है लेकिन पहली बार पाकिस्तान में बरेलवी मुसलमान कट्टरता की तरफ आगे बढता दिख रहा है।
पाकिस्तान में खादिम हुसैन रिजवी का यह उभार देओबंदी और बरेलवी के झगड़े तो बढ़ायेगा ही लेकिन इस कट्टरता से भारत का बरेलवी मुसलमान भी बच नहीं पायेगा। रिजवी की योजना है कि वह अगले साल पाकिस्तान में होनेवाले आम चुनाव में सभी सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़ा करेगा। इसलिए वह अभी से अपनी राजनीतिक ताकत बढ़ा रहा है। फिलहाल वह अपने समर्थकों के साथ इस्लामाबाद तक जानेवाले रास्ते को जाम करके बैठा है। उसकी मांग है कि पाकिस्तान के कानून मंत्री इस्तीफा दें क्योंकि उनकी वजह से खत्मे नबूवत (मोहम्मद को आखिरी पैगंबर मानने की जिद्द) खतरे में पड़ गयी है। खादिम हुसैन रिजवी की इस मांग से जहां वह कट्टरपंथियों की आंख का तारा बन रहा है वहीं वह पाकिस्तान के अल्पसंख्यक हिन्दुओं और अहमदियों के लिए भी खतरा पैदा कर रहा है।लेकिन असली खतरे की घंटी है खादिम हुसैन रिजवी का बरेलवी होना। अगर पाकिस्तान में खादिम हुसैन का राजनीतिक सिक्का चलता है तो बरेलवी समुदाय अपने भीतर कट्टरता के उभार को रोक नहीं पायेगा। जो पूरे भारतीय उपमहाद्वीप के लिए चिंता की बात होगी।visfot news network
ऊपर तिवारी ने जो कहा की साठ % आबादी बरेलवी की बताई हे ये गलत हे बहुमत देवबंदियों का हे हम शुद्ध सुन्नी देवबंदी लोग हे मगर कुछ रिश्तेदार बरेलवी भी हे निजामुद्दीन वाले भी दूर के रिश्तेदार हे हमारे , तो जितना में जनता हु की सिर्फ दरगाह पर चले जाने से ही कोई बरेलवी नहीं हो जाता हे इसी तरह कोई शिया नहीं हो जाता हे और भी बाते हे खेर होता ये हे की मुसलमानो में कटटरता की मलाई वहाबियो आदि के पेट में जाती हे और ” उदारता ” की मलाई ये लोग डकारते हे ( ऊपर विस्तार से )इन सबके बीच में सबसे बड़े अकेले और थकेले रह जाते हे हम ”सेकुलर देवबंदी ” भारत में यहूदियों तक की आबादी हमसे अधिक होगी . ये काम ही इतना कठिन हे मगर कठिन काम से कोई चेंज आ सकता हे वार्ना नहीं Mohammad Anas
5 hrs ·
अजमेर दरगाह के दिवान ने कहा है कि मुसलमान पद्मवाती फिल्म का विरोध करें। अमां सुनिए दिवान साब, आपके कहने पर मुसलमान मूतने तो जाएं न विरोध बड़ी दूर की बात है। चादर संभालइए जो चढ़ाई गई है। वापस से दुकानदार को देनी है।
बातचीत या बहस में आमतौर पर बरेलवी और शिया ये स्वीकार नहीं करते हे की वो हे शिया या बरेलवी हे इनका फेवरिट डायलॉग होता हे ” ये शिया सुन्नी ” या ये ”देवबंदी बरेलवी ” क्या होता हे कुछ नहीं होता हे . खेर जहा तक हमारा सवाल हे देवबंदी होते हुए भी हम तो सुकून तलाशने न देवबंद जाते हे न कही और हालांकि जीवन में इतना तनाव और दबाव रहा हे हे की जो शायद एक करोड़ में से एकाध ही मनहूस को मिलता होगा Mohammad Anas
13 hrs ·
मैं तो खुद सूफियों-औलियों की बारगाह में सुकून तलाशने जाता हूं। आरिफ दाग़िया, आप बहुत अच्छे इंसान हैं लेकिन अंध विरोध के चक्कर में मेरे एक ही पक्ष को जनता के सामने रख रहे हैं। आप बताइए कि ये वही अनस है जो दिल्ली में रहता है तो हर तीसरे दिन हजरत निज़ामउद्दीन औलिया की दरगाह जाता है, ये वही अनस है जब अजमेर रहता है तो ख्वाज़ा गरीब नवाज़ रह. के दरबार में बिछ जाता है।
लेकिन यह वही अनस है जो ऐसे मक्कार खादिमों, लुटेरे दरबारियों की आलोचना में पीछे नहीं हटता। मैं देवबंदी हूं मैं बरेलवी भी हूं। मैं ही वहाबी। मैं ही जमाती। मैं मुसलमान हूं।
आरिफ दागिया की तरह बेवकूफ नहीं हूं जो फिरका फिरका खेलते हैं।
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Mohammad Arif Dagia
20 hrs ·
खड़े खड़े मूतने वाला फ़ेसबुकिया आज कह रहा है कि मुसलमान अजमेर दरगाह के दीवान के कहने पर मूतने भी नही जाएंगे तो वे दरगाह दीवान के कहने पर “पद्मावती ” का विरोध क्या करेगे !
ये वो फ़ेसबुकिया बन्दा है (जिसका नाम मो. अनस है )जो खुद को वामपंथी कहता है मगर अक़ीदे के मामले में अपनी वहाबियत का इज़हार आए दिन करता रहता है।मज़ारों के बारे में इसके वही तास्सुरात होते हैं जो किसी खांटी देवबन्दी के रहते हैं।कभी यह सुन्नियों की आस्था का मज़ाक़ उड़ाने को कहता है -” हम तो शीरनी ,अगरबत्ती वाले मुसलमान हैं ” ; तो कभी लोगो को बारगाहे ख्वाजा में जाने से रोकने के लिए यह हरबा इस्तेमाल करता है कि –
” अजमेर शरीफ में ख्वाजा को छोड़ कर सब ठग मिले “!
यही वजह है कि अजमेर दरगाह के दीवान के बयान पर इस बन्दे ने ” मूतने” जैसे बेहुदे शब्द का इस्तेमाल किया है।वास्तव में इन लाल चड्डिधारी मुसलमानों की ट्रेजडी यह है कि अपने सेक्युलर तबके में अपनी स्वीकार्यता बनाए रखने के लिए इनको धर्म या उससे जुड़े लोगों जैसे मुल्ला या खादिमों को गाली देना ज़रूरी हो जाता है।ऐसे बन्दों की दिक्कत यह है कि ये लोग मुसलमानों के बीच खुद को पढ़ा लिखा साबित करना चाहते है और पढ़े लिखों के बीच खुद को मुसलमान भी ज़ाहिर करने की इच्छा पाले रहते हैं।नतीज़ा यह होता है कि ये लोग ज़िन्दगी भर दीन और दुनिया -दोनों के बीच झूलते रहते हैं और आखिर में न इधर के रहते हैं , न उधर के ///
.ध्यान रखिये की अगर कोई बन्दा मुल्ला मौलवी को गाली दे रहा है तो समझ लीजिए कि उसकी नियत इस्लाम को गाली देने की है ; और अगर कोई शख्स दरगाहों की खुराफ़ात और ख़ादिमों पर कोई तनक़ीद करता है तो हो सकता है कि उसका मकसद आपको वलियों से बदज़न कर के दरगाहों से दूर करना हो ///
.
आज के पुर फितन दौर में ऐसे लोगों के छल से बचना ज़रूरी है जो सुधार का नाम ले कर क़ौम में बिगाड़,विवाद और फितना पैदा करना चाहते हैं ///
मोहम्मद आरिफ दगिया
18/11/2017
Zishan Ghazali राजस्थान मे मुसलमानों की शैक्षिक हालात बद तर है लेकिन दरगाह वालों ने आजतक एक स्कूल अस्पताल नहीं खोला, हर साल हज़ारो करोड़ रूपया गटक जाते हैं ये लोग, उम्मत की हालात सुधारने के लियें कुछ नहीं करते ये खादिम। मै अजमेर मे रहता हूँ , इन्हें करीब से देखा हूँ।Like · 3 · 18 hrs
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Kalimuddin Ansari
Kalimuddin Ansari बेशक़ मुझे फक्र है कि मैं बरेलवी मुसलमान हूँ।
मगर ये बात भी सच है कि मज़ारों पे लूटने वाले ज़्यादा तादाद में मिलेंगे।
अगर आपको चादर चढ़ाना है तो….Zishan Ghazali मै कल मज़ार पर गया था बताऊं क्या हो रहा था वहां।। ढाई दिन का झोपड़ा मस्जिद मे मगरिब की नमाज़ पढ़ी,,,,अज़ान के वक़्त वहा 200 से ज़्यादा लोग थे लेकिन नमाज़ मे सिर्फ 25 या 30 ही शामिल हुए। ऐसा क्यूँ????
नमाज़ से पहले मज़ार क्यों आगया। उनको नमाज़ से ज़्यादा अहम् मज़ार क्यों लग रहा है। कौन उनको नमाज़ से ज़्यादा मज़ार पर फोकस करवा रहा ह?Like · 7 · 16 hrs
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Ateek Pathan
Ateek Pathan अजमेर दरगाह के खादिम मक्कार ही है ।। कभी ये संघियो पर फूल बरसाते है तो कभी भाजपाइयों की वाह वाह करते है ।। जब कि इन लोगो को सियासत से दूर रहना चाहिएLike · 5 · 14 hrs · Edited
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Vikram Singh Chauhan
Vikram Singh Chauhan अनस ने बिलकुल सही कहा है, उनकी बातें आपके सिर के ऊपर से निकल गई। यहां देख रहा हूँ लोग अनस का नाम लेकर मशहूर होना चाहते हैं।आपको तो आपकी गली के लोग भी नहीं जानते होंगे।
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Like · 13 · 14 hrs
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Asif Malik
Asif Malik #अनस ने भी गलत कहा…!!
और दिवान सहाब ने भी गलत कहा….!!ike · 3 · 14 hrs · Edited
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Tony Hasan
Tony Hasan जनाब आरिफ द
दगिया साहब अजमेर दरगाह के खादिमो की हरकतें स्थानीय अखबारो लगभग हर महीने छपती रहती है। और जायरीनों से बदसलूकी किये बिना तो इनका दिन पूरा नही होता होगा। Mohammad Anas की आलोचना से पहले खादिमो की हरकतों पर जरूर विचार करे। इनका बस चले तो जायरीनों से जबरदस्ती करके जेब से रुपये निकाल ले।
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Like · 9 · 14 hrs
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Royal Boy Faraz
Royal Boy Faraz wo zabrdsti se hi nikalte he
Like · 33 mins
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Tony Hasan
Tony Hasan जुआ सट्टा नशा के कारोबार जैसे मामलों की खबरे छपती रहती है खादिमो की।
See translationAnmol Diya आरिफ जी मै Mohammad Anas जी की बातों से सहमत हुँ मेरा बस चले तो मै मंदिर के नाम पर अपनी जेबें भरने वाला पुजारी बना पाखंडी व्यापारी को कड़ी सजा दूं क्योंकि उसकी आस्था भगवान पर नही अपनी पेट भरनी वाली दुकान पर है वलियों के दरगार पर बैठने वाला खादिम के नाम पर खाने वाला खादिम भी ठग है पाखंडी है खुदा की इबादत के बजाय मजार पर बैठ कर दुकानदारी कर रहे हैं पाखंडी बाबाओं की लिस्ट लंबी हो गई है करोड़पति बनने का बेहतरीन तरीका बाबा बन जाओ यह सब किसे गुमराह कर रहे हैं आम जनता को अंधविश्वास फैला रहे हैं इबादत दरगाह में नही मस्जिद में होती है और कोई वली यह नही कह के गया कि मेरे ना रहने के बाद भी मेke · 9 · 14 hrs · Edited
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Amjad Iqbal
Amjad Iqbal अजमेर दरगाह के खादिम ने तो कभी पहलु खान उम्र खान ।
जुनैद खान पे नहीं बोला क्यों आज पैसे तो नहीं मिले है नNaushad Chaudhary Sahi kaha usne bhai
Wo chor hai dargah ka khadim nhi hai…
Mere khawaja garib nawaz ke naam pr ye Napak kida
Vaha public ko lut raha h
Dalle baithe h vaha
Sahi muslim us chor ke kahne mutne bhi nhi jayega
Or muslim film nhi dekhte
Hai uske kahne ki jarurt hi nhi haiLike · 21 hrs
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Naushad Chaudhary
Naushad Chaudhary कौन दिवान कैसा दिवान
चौर दलला बोलो भाई
खुल शिरक करवा रहा हैं
जो लोगों ने देखा हैं
वो सच में उसके कहने पर मुतने क्या हगने भी नही जायेगे
मेरे ख्वाजा गरीब नवाज
की दरगाह पर अवैध कब्जा
कर लिया हैं
इन चीलम चोरो ने
चरस गांजा अफीम पीने वाले
वहा के खादीम नही हैंLike · 5 · 21 hrs
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Tahir Hussain
Tahir Hussain 2007 मे मै अपने बड़े भाई के साथ अजमेर शरीफ दरगाह मे थ मेरा ऐक रूमाल था जो ऐक हाजी साहब ने दिया था वो ख्वाजा पाक की कब्र से छू गया रूमाल कीमती था दो खादिमो ने छीनना शुरू किया ऐक तरफ दो खादिम ऐक तरफ मै ओर मेरे बड़े भाई जबरदस्त खींचतान के दरम्यान हम कामयाब हुऐ
रूमाल मिल गया
उनका कहना था जो कब्र से लग गया वो ख्वाजा का हो गया
खैर
उसके बाद 2011 मेरे हाजरी हुई उस वक्त गुल्लक का झगड़ा अपने पूरे चरम पर था
डीएम की मौजूदगी मे ये फैसला हुआ ऐक हरी गुल्लक है ऐक शायद लाल गुल्लक
ऐक पर दरगाह लिखा गया जिसका पैसा दरगाह कमेटी को जायेगा
दूसरी पर खुद्दाम जिसका पैसा खादिम बाटेंगे
शायद आज भी ऐसा है या नही मुझे नही मालूम
जबकि चादर चढ़वाने का नजराना 10000 से 150 तक वो खादिमो का है
बहुत दुख होता है जिन्हे हम ख्वाजा गरीब नवाज रहमतुल्लाहि अलेह से मंसूब मुअज्जज समझते हैं
वो हमारे ऐतेकाद कैसे मजाक उङाते हैं
कहने का मकसद हैंं बुजुरगान की जिंदगी के पहलू देखिये रौशन हो जाओगे
अगर कोई मजार पर अपनी भड़ास निकालता है उसे
अंट संट न बोलें बल्कि फैजाने ओलिया से उसे मुतमईन कीजिये
ताकि आप ओर उस मे इम्तियाज पैदा हो
बाकी आप अपना अखलाक पेश करें
उसे उसके हाल पर छोड़ें
हम ऐक मुअतकिद ख्वाजा हैं मुअतकिदे खादिम नही
अगर तुम कौम के साथ पहलू खान अखलाक खान या दीगर मजहब का हो बेकसूर मारा जाये उसके लिये नही बोल सकते तो फिल्म जिसकी मजहब मे कोई जगह ही नही उससे मंसूब आपको मैदान मे नही आना चाहिए था
नोट : खादिम है मुअद्दब रहेंLike · 13 hrs
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Anwar Hussain
Anwar Hussain दगिया जी अपने बेवजह बात के आगे पिछे के कहानी को छुपा का एक बात पकड़ा है बाकी दुसरे के आमाल उनपे छोड़िए क्या सही क्या ग़लत मैने भी वो पोस्ट पढ़ी है दरगाह के मुंजाबिरो की अगर कोई पोल खोल रहा नही बल्के उनकी असल औक़ात बता रहा है तो आप उसे वालियों की बेइज़्ज़ती बता रहे हो बात को ग़लत तारीकी से नही खुरचिये कभी चुभ जाएगा और हां ये मुजाविर जिसे आप शायद खादिम कहते होंगे इनके गिरेबान को पकड़ कर इनको रोड पर लाकर इनका काला कारनामा बताना कोई ग़लती नही है आप ज़बरदस्ती को एक बात को ग़लत रुख दे रहे हैं बाकी ख्वाजा गरीब नवाज अजमेरी रहमतुल्ला पर आप और मुंजाबिरो का है तो आप ग़फलत में जी रहे हैं
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Like · 2 · 20 hrs
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Syed Abu Sufiyan
Syed Abu Sufiyan इस्लाम मे बरह्मण वाद नहीं जो मौलवी और दरगाह के खादीम की गैर जिम्मेदार बातों पर मुसलमान खमोश रहे। मौलवी गलत बयान बाजी करेगा तो सुनेगा भी
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Like · 3 · 19 hrs
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Yohan Hussain
Yohan Hussain वेसे आरिफ सर , अजमेर दरगाह के खादिमो जितना मक्कार आज तक किसी को नही देखा…..
इन कमीनो को बहुत अच्छे से पहचानता हु….
बहुत बेगैरत है सिर्फ पेसो के भूखे है…..Like · Reply · 1 · 9 hrs
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Rishi Kumar Singh
Rishi Kumar Singh एक बार अजमेर गया माता-पिता के साथ, मंदिरों से ज्यादा लूट और गुंडई देखी. गेट पर ही एक से झगड़ा होते होते बचा, अंदर तो पूरी दुकान सजी थी
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एक सेकुलर मुस्लिम वो भी सुन्नी वो भी देवबंदी होना इससे बड़ा सरदर्द दुनिया में और कुछ नहीं हे पहले भी एक बड़े भाई ने एक अच्छा भला रिश्ता बरेलवी होने की वजह से नहीं हो पाया था और अब भी दूसरे बड़े भाई की बात लड़की की फेमली के बरेलवी होने से टूट सी गयी हे क्योकि हम लोग शुद्ध देवबंदी हे मगर हे लिबरल तो वो अलग सरदर्दी हो रही हे क्योकि देवबंदियों में आजकल वहाबियो तब्लीगियो हिज़ाबियो आदि का जोर हे जबकि हम ठहरे लिबरल देवबंदी हलाकि भाई मेरे जैसा नहीं हे ( जीरो स्प्रिचुअल ) वो तो भयानक गर्मियों में भी सारे के सारे रोज़े रखने वाला हे वो भी ऑफिस आदि वर्क सहित लेकिन उसे भी जरुरत से ज़्यादा रिलिजियस होना ये सब पसंद नहीं हे सो एक देवबंदी लड़की से भी जम नहीं पाया तो भेजा फ्राई ही हे दूसरी तरफ दुसरो की मौज़ देखिये की बड़े दलाल चौधरी का साथी छोटा ——— आजकल एक दूसरे बड़े ग्रुप के चेनेल में चला गया हे जो खुला भाजपा समर्थक ही हे जिसकीबड़ी एंकर अपने पति की जगह मोदी का नाम ले देती हे तो दूसरी सस्ती देशभक्ति के जातिवादी सडकछाप ट्वीट करती हे मगर मक्कार ये चतुर खोपड़ी इतने होते हे की नेट पर मौजूद भरी बी जे पि विरोधी टी आर पि को भी चाप जाने के लिए दिखावे को एक भाजपा संघ हिन्दू कटटरपंथ विरोधी साइट भी निकाल दी हे ( जिससे कई तथाकथित सेकुलर शिया नाम भी जुड़ हुए हे ) ताकि एक तो इस मलाई पर भी कब्ज़ा किया जाए और विपक्ष को भी जरुरत पड़े तो कहा जा सके की भाई हमने तो देखो इतना विरोध किया था लेकिन मक्कार इतने होते हे की लखनऊ के शिया झुकाव वाले लेखक को तो पूरी लम्बी सीरीज दे दी मगर जस्टिस लोया जैसे सरकार की जड़े हिलाने वाले एक केस को एक कोने के लेख में निपटा दिया आखिर हे तो ये वही जो विक्रम सिंह चौहान ने इन्हे बताया था तो खेर इनके शिया लेखकों का कम्फर्ट ज़ोन देखिये की ये भविष्य के जूनियर तिहाड़ चौधरी की फैलाई गंद पर कुछ नहीं बोल रहे हे क्योकि अगर जूनियर ——– की अभिव्यक्ति की आज़ादी का समर्थन करेंगे तो अपने यहाँ जूते खाएंगे जैसे हम सेकुलर देवबंदी खाते हे और जूनियर तिहाड़ चौधरी को भी कुछ कह नहीं सकते हे क्योकि इन्ही के ग्रुप का हे तो कुछ नहीं कहेंगे मज़े ही मज़े हे इनके .
Saleem Akhter Siddiqui
17 hrs ·
प्रखर राष्ट्रवादी पत्रकारों की भरमार है आजकल। कुछ भी कह देते हैं। धर्म को गाली दो, प्रचार पाओ। एक एंकर ने ऐसा ही किया। उस एंकर की फितरत को कौन नहीं जानता? उसे गाली देना या जान से मारने की धमकी देना सही नहीं है। उसकी अभिव्यक्ति की आजादी का भी मान रखो भाई। जिसकी जैसी फितरत होगी, उसकी अभिव्यक्ति भी वैसी ही होगी। भांड लोगों की कोई विचारधारा नहीं होती। कल दूसरा आएगा तो ये उसके तलवे चाटने लगेंगे। उसके पूर्वजों ने मुगलों की चापलूसी की, अंगे्रजों के सामने दंडवत रहे, वर्तमान लोग देख ही रहे हैं। उसको गंभीरता से मत लो।———Saleem Akhter Siddiqui Meerut
Yesterday at 10:45 ·
एक अकेला राहुल, सामने पूरी मोदी और रूपाणि सरकार, सैकड़ों बीजेपी संसद।
सवा लाख से एक लड़ाऊं।
हमें गलत साबित करते हुए सोशल सूफी संत ने तो छोटे तिहाड़ चौधरी की अभिव्यक्ति की आज़ादी का समर्थन किया हे अ हलाकि अभी भी ये हमारी तरह ” अनाथ ” भी नहीं हे अब हिन्दू कठमुल्लावादी वर्ग जिसकी ताकत इस समय उपमहाद्वीप में सबसे अधिक हे वो इनका इस समय पर अपने प्रिय जूनियर तिहाड़ी को समर्थन का अहसान याद रखेगा ike · Reply · 2 · 2 hrs
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Shashi Bhushan
Shashi Bhushan मैं नहीं खड़ा हूँ रोहित सरदाना के साथ…
मामला उसकी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का है ही नहीं। उसे “सेक्सी दुर्गा” फ़िल्म के नाम से आपत्ति थी तो फ़िल्म के प्रोड्यूसर, डायरेक्टर, एक्टर, सेंसरबोर्ड पर सवाल खड़े करने चाहिए थे….
लेकिन उसने अभिव्यक्ति के नाम पर अपनी कुंठित धार्मिक वैमनस्यता का प्रकटीकरण किया है…
उसने अपनी दंगाई चरित्र के अनुरूप इसे मुस्लिमों और ईसाइयों के प्रति नफरत का एजेंडा बनाया…. ”
Pawan Saxena
5 hrs ·
( जम के कट-पेस्ट-कापी करें,आने वाली हिन्दू नस्लों को बचाने के लिए)
कुछ लोग सोचते हैं की सूफी बड़े शांतिप्रिय होते हैं । नीचे की फोटो सूफी मुसलमान की है,जो रोहित सरदाना के विरोध में आजतक के ऑफिस पर हमला कर रहे हैं । असल में सूफीवाद मुस्लिम धर्मान्तरण की मुख्य बुनियाद है
हिंदु समाज में भी एक विशेष आदत हैं, वह हैं अँधा अनुसरण करने की।
क्रिकेट स्टार, फिल्म अभिनेता, बड़े उद्योगपति जो कुछ भी करे भी उसका अँधा अनुसरण करना चाहिए चाहे बुद्धि उसकी अनुमति दे चाहे न दे.अज्ञानवश लोग दरगाहों पर जाने को हिन्दू मुस्लिम एकता और आपसी भाईचारे का प्रतिक मान लेते हैं , लेकिन उनको पता नहीं कि सूफीवाद भी कट्टर सुन्नी इस्लाम एक ऐसा संप्रदाय है ,जो बिना युद्ध और जिहाद के हिन्दुओं को मुसलमान बनाने में लगा रहता है ।
भारत में सूफियों के चार फिरके हैं , पूरे भारत में इनकी दरगाहें फैली हुई हैं ,जहां अपनी मन्नत पूरी कराने के लालच में हिन्दू भी जाते हैं
1-चिश्तिया ( چشتی )
2-कादिरिया ( القادريه,)
3-सुहरावर्दिया سهروردية)
4-नक्शबंदी ( نقشبندية )
इन सभी का उद्देश्य हिन्दुओं का धर्म परिवर्तन कराना और दुनिया में ” निज़ामे मुस्तफा -نظام مصطفى ” स्थापित करना है . जिस समय भारत की आजादी का आंदोलन चल रहा था सूफी ” तबलीगी जमात – تبلیغی جماعت” बनाकर गुप्त रूप से हिन्दुओं का धर्म परवर्तन कराकर मुस्लिम जनसंख्या बढ़ने का षडयंत्र चला रहे थे .
दिल्ली में निजामुद्दीन औलिया की दरगाह हैं। 1947 से पहले इस दरगाह के हाकिम का नाम था ख्वाजा हसन निजामी था।(1878-1955)
आज के मुस्लिम लेखक निज़ामी की प्रशंसा उनके उर्दू साहित्य को देन अथवा बहादुर शाह ज़फर द्वारा 1857 के संघर्ष पर लिखी गई पुस्तक को पुन: प्रकाशित करने के लिए करते हैं। परन्तु निज़ामी के जीवन का एक और पहलु था। वह गुप्त जिहादी था, धार्मिक मतान्धता के विष से ग्रसित निज़ामी ने हिन्दुओं को मुसलमान बनाने के लिए 1920 के दशक में एक पुस्तक लिखी थी जिसका नाम था दाइये इस्लाम-دايءاسلام ” इस पुस्तक को इतने गुप्त तरीके से छापा गया था की इसका प्रथम संस्करण का प्रकाशित हुआ और कब समाप्त हुआ इसका मालूम ही नहीं चला। इसके द्वितीय संस्करण की प्रतियाँ अफ्रीका तक पहुँच गई थी। इस पुस्तक में उस समय के 21 करोड़ हिन्दुओं में से 1 करोड़ हिन्दुओं को इस्लाम में दीक्षित करने का लक्ष्य रखा गया था।
एक आर्य सज्जन को यह प्रति अफ्रीका से प्राप्त हुई जिसे उन्होंने स्वामी श्रद्धानंद जी को भेज दिया। स्वामी ने इस पुस्तक को पढ़ कर उसके प्रतिउत्तर में पुस्तक लिखी जिसका नाम था “खतरे का घंटा”। इस पुस्तक के कुछ सन्दर्भों के दर्शन करने मात्र से ही लेखक की मानसिकता का बोध हमें आसानी से मिल जायेगा की किस हद तक जाकर हिन्दुओं को मुस्लमान बनाने के लिए मुस्लिम समाज के हर सदस्य को प्रोत्साहित किया गया था जिससे न केवल धार्मिक द्वेष,मार-काट के फैलने की आशंका थी ! इस पुस्तक के कुछ अंशों का अवलोकन करते हैं।
1- फकीरों के कर्तव्य – जीवित पीरों की दुआ से बे औलादों के औलाद होना या बच्चों का जीवित रहना या बिमारियों का दूर होना या दौलत की वृद्धि या मन की मुरादों का पूरा होना, बददुआओं का भय आदि से हिन्दू लोग फकीरों के पास जाते हैं बड़ी श्रद्धा रखते हैं। मुस्लमान फकीरों को ऐसे छोटे छोटे वाक्य याद कराये जावे,जिन्हें वे हिन्दुओं के यहाँ भीख मांगते समय बोले और जिनके सुनने से हिन्दुओं पर इस्लाम की अच्छाई और हिन्दुओं की बुराई प्रगट हो।
2- गाँव और कस्बों में ऐसा जुलुस निकालना जिनसे हिन्दू लोगों में उनका प्रभाव पड़े और फिर उस प्रभाव द्वारा मुसलमान बनाने का कार्य किया जावे।
3-गाने बजाने वालों को ऐसे ऐसे गाने याद कराना और ऐसे ऐसे नये नये गाने तैयार करना जिनसे मुसलमानों में बराबरी के बर्ताव के बातें और मुसलमानों की करामाते प्रगट हो।
4- गिरोह के साथ नमाज ऐसी जगह पढ़ना जहाँ उनको दूसरे धर्म के लोग अच्छी तरह देख सके और उनकी शक्ति देख कर इस्लाम से आकर्षित हो जाएँ।
5-. ईसाईयों और आर्यों के केन्द्रों या उनके लीडरों के यहाँ से उनके खानसामों, बहरों, कहारों चिट्ठीरसारो, कम्पाउन्डरों,भीख मांगने वाले फकीरों, झाड़ू देने वाले स्त्री या पुरुषों, धोबियों, नाइयों, मजदूरों, सिलावतों और खिदमतगारों आदि के द्वारा ख़बरें और भेद मुसलमानों को प्राप्त करनी चाहिए।
6- सज्जादा नशीन अर्थात दरगाह में काम करने वाले लोगों को मुस्लमान बनाने का कार्य करे।
7- ताबीज और गंडे देने वाले जो हिन्दू उनके पास आते हैं उनको इस्लाम की खूबियाँ बतावे और मुस्लमान बनने की दावत दे।
8-. देहाती स्कूलों के मुस्लिम अध्यापक अपने से पढने वालों को और उनके माता पिता को इस्लाम की खूबियाँ बतावे और मुस्लमान बनने की दावत दे।
9- नवाब रामपुर, टोंक, हैदराबाद , भोपाल, बहावलपुर और जूनागढ आदि को , उनके ओहदेदारों , जमींदारों , नम्बरदार, जैलदार आदि को अपने यहाँ पर काम करने वालो को और उनके बच्चों को इस्लाम की खूबियाँ बतावे और मुस्लमान बनने की दावत दे।
10. माली, किसान,बागबान आदि को आलिम लोग इस्लाम के मसले सिखाएँ क्यूंकि साधारण और गरीब लोगों में दीन की सेवा करने का जोश अधिक रहता हैं।
11- दस्तगार जैसे सोने,चांदी,लकड़ी, मिटटी, कपड़े आदि का काम करने वालों को अलीम इस्लाम के मसलों से आगाह करे जिससे वे औरों को इस्लाम ग्रहण करने के लिए प्रोत्साहित करे।
12- फेरी करने वाले घरों में जाकर इस्लाम के खूबियों बताये , दूकानदार दुकान पर बैठे बैठे सामान खरीदने वाले ग्राहक को इस्लाम की खूबियाँ बताये।
13- पटवारी, पोस्ट मास्टर, देहात में पुलिस ऑफिसर, डॉक्टर , मिल कारखानों में बड़े औहदों पर काम करने वाले मुस्लमान इस्लाम का बड़ा काम अपने नीचे काम करने वाले लोगों में इस्लाम का प्रचार कर कर हैं सकते हैं।
14 राजनैतिक लीडर, संपादक , कवि , लेखक आदि को इस्लाम की रक्षा एह वृद्धि का काम अपने हाथ में लेना चाहिये। हिंदु,पढ़ी-लिखी और अनपढ़ लड़कियों को मोहब्बत इत्यादि के स्वांग कर इस्लाम की जद में लाना चाहिए उनका निकाह कट्टर दीनी ईमान वाले मुसलमानों से होना चाहिए ! सबसे ज़्यादा तेज़ी तबलीग में, इसी कदम से आएगी !
15-. स्वांग करने वाले, मुजरा करने वाले, रण्डियों को , गाने वाले कव्वालों को, भीख मांगने वालो को सभी भी इस्लाम की खूबियों को गाना चाहिये।
यहाँ पर सारांश में निज़ामी की पुस्तक के कुछ अंशों को लिखा गया हैं। पाठकों को भली प्रकार से निज़ामी के विचारों के दर्शन हो गये होंगे।
1947 के पहले यह सब कार्य जोरो पर था , हिन्दू समाज के विरोध करने पर दंगे भड़क जाते थे, अपनी राजनितिक एकता , कांग्रेस की नीतियों और अंग्रेजों द्वारा प्रोत्साहन देने से दिनों दिन हिन्दुओं की जनसँख्या कम होती गई जिसका अंत पाकिस्तान के रूप में निकला।
अब पाठक यह सोचे की आज भी यही सब गतिविधियाँ सुचारू रूप से चालू हैं केवल मात्र स्वरुप बदल गया हैं। हिंदी फिल्मों के अभिनेता,क्रिकेटर आदि ने कव्वालों , गायकों आदि का स्थान ले लिया हैं और वे जब भी निजामुद्दीन की दरगाह पर माथा टेकते हैं तो मीडिया में यह खबर ब्रेकिंग न्यूज़ बन जाती हैं। उनको देखकर हिन्दू समाज भी भेड़चाल चलते हुए उनके पीछे पीछे उनका अनुसरण करने लगता हैं।
देश भर में हिन्दू समाज द्वारा साईं संध्या को आयोजित किया जाता हैं जिसमे अपने आपको सूफी गायक कहने वाला कव्वाल हमसर हयात निज़ामी बड़ी शान से बुलाया जाता हैं। बहुत कम लोग यह जानते हैं की कव्वाल हमसर हयात निज़ामी के दादा ख्वाजा हसन निज़ामी के कव्वाल थे और अपने हाकिम के लिए ठीक वैसा ही प्रचार इस्लाम का करते थे जैसा निज़ामी की किताब में लिखा हैं।
कहते हैं की समझदार को ईशारा ही काफी होता हैं यहाँ तो सप्रमाण निजामुद्दीन की दरगाह के हाकिम ख्वाजा हसन निजामी और उनकी पुस्तक दाइये इस्लाम पर प्रकाश डाला गया हैं।
ताकि हिन्दू भविष्य में किसी औलिया पीर या साईँ की कब्रों पर जाकर लाशों की पूजा करने की वैसी भूल नहीं करें, जिस से देश का विभाजन हुआ था, जिसका फल हिन्दू आज भी भोग रहे है, बताइए अभी नहीं तो हिन्दू समाज कब इतिहास और अपनी गलतियों से सीखेगा?
साभार :विपिन खुरानाPawan Saxena
हदिया का मामला मुझे यही लग रहा हे की वो एक आम शक्ल सूरत की लड़की हे शायद उन्ही लड़कियों में से एक जिन्हे ये जायज़ शिकायत सी भी रहती हे की लड़के उन्हें घास नहीं डालते हे ऐसे में जब एक मुस्लिम लड़का उसका दीवाना हुआ होगा तो वो भी उसकी दीवानी हो गयी होगी परेशान ना करे तो लड़कियों को ये सब बड़ा भाता हे ठीक भी हे तो उसने जो जो कहा उसने मान लिया होगा अब अल्लाह ही जाने की वो उससे पवित्र प्रेम के उत्साह में था या इस उत्साह में की उसने एक इंसान को शिर्क से हटाकर उसके और अपने लिया सवाब और जन्नत कमा ली हे अल्लाह ही जाने मेरी सलाह तो यही हे की ऐसे मामलो में निकाह के साथ साथ कोर्ट मैरिज भी हो या कोर्ट मैरिज ही हो लड़किया भी समझे में इस विषय पर तफ्सील से लेख लिखूंगा बाकी नवभारत का ये सम्पादकीय सटीक हे जो शायद एक बेहद सुलझे हुए आदमी नीरेंदर नागर जी ने ही शायद लिखा होगा ” केरल के कथित लव जिहाद से जुड़े बहुचर्चित मामले में सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने हादिया की मांग पर उसे पिता की ‘देखरेख’ से आजादी दे दी। हादिया (अखिला) वही लड़की है जिसने इस्लाम कबूलने के बाद एक मुस्लिम युवक शफीन जहां से निकाह किया। हादिया के परिवारवालों का आरोप है कि उसका जबरन धर्मांतरण कराया गया। उसकी शादी को भी वे लव जिहाद का उदाहरण बताते हैं और कहते हैं कि उनकी बेटी का ब्रेनवॉश किया गया है। इसी दलील पर केरल हाईकोर्ट ने निकाह को रद्द करते हुए लव जिहाद की जांच करने का आदेश दिया था।
हाईकोर्ट के इस फैसले को शफीन जहां ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी, जिस पर सुनवाई करते हुए अदालत ने हादिया को कॉलेज हॉस्टल में रहकर अपनी पढ़ाई जारी रखने को कहा। सुनवाई में हालांकि लव जिहाद वाला पहलू अभी नहीं आया है, लेकिन अब तक की सुनवाई में यह बात बिल्कुल साफ हो चुकी है कि हादिया पर किसी तरह की जोर-जबरदस्ती नहीं की गई। निकाह रद्द किए जाने का हाईकोर्ट का फैसला आने के बाद छह महीने अपने पैतृक घर में बंद रहते हुए, लगातार अपने परिजनों के साथ होने के बावजूद हादिया के विचारों में रत्ती भर भी बदलाव नहीं आया। सुप्रीम कोर्ट ने इस यथार्थ को रेखांकित किया और ब्रेनवॉश की दलील को जरा भी तवज्जो नहीं दी। भारतीय समाज के संदर्भ में यह दलील खास अहमियत रखती है। यहां बेटियों के मामले में यह बात अक्सर दोहराई जाती है कि कोई उन्हें फुसला कर अपने प्रेम जाल में फंसा लेगा। ‘ब्रेनवॉश’ इसी सनातनी चिंता का अंग्रेजी नाम है।
समझना जरूरी है कि अपनी संतान को, खासकर बेटी को अपने कहे में रखने की उत्कट इच्छा से उपजा यह सामंती तर्क वैयक्तिक गरिमा के खिलाफ जाता है। किसी भी वयस्क व्यक्ति के विचारों को किसी और के प्रभाव का नतीजा बताना उसके व्यक्तित्व को कमतर करना है, जिसकी इजाजत हमारा संविधान नहीं देता। आतंकवाद और साजिश से जुड़े पहलुओं पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला बाद में आएगा, लेकिन हादिया मामले में उसके आदेश की रोशनी में ब्रेनवॉश की दलील को हमेशा के लिए दफना देने में अब कोई हिचक नहीं होनी चाहिए। ” साभार नवभारत
Sarfraz Katihari
21 November at 16:59 ·
बाकी हम अपने मसलक से ज्यादा भोलेपन के कारण मोहरा बनते रहते है। इसके लिए वो नही बल्कि 80% हम जिम्मेदार है। आपके मुखालिफ तो आपके खिलाफ तो साजिश , मक्कारी और ऐय्यारी तो करेंगे ही। ये आम सी बात है।
निचे इक़बाल भाई को पढे।
………….
वामपंथी और प्रोग्रेसिव लोग मुसलमानो को आपस में लड़ाने के लिए तरह तरह का पैंतरा इस्तेमाल करते हैं, जैसे वो लोग सूफियों को कहते हैं की आप तो बड़े ही लिबरल हो मगर वहाबी बड़े ही कट्टर होते हैं, इस तरह सूफी लोगों की पीठ थपथपा कर उनसे वहाबियों को जी भर कर सुनवाते हैं |
फिर वहाबियों के पास जाकर उनका अलग अलग मुददों पर समर्थन करते हैं, जैसे तलाक़ का मुददा हो या दूसरे मसले हो, इन मुददों पर वहाबियों की हाँ में हाँ मिलाते हैं और कहते हैं की तुम तो बड़े प्रोग्रेसिव हो मगर ट्रेडिशनल मुल्ला मौलवी बड़ा ही दकियानूस होता है, फिर वहाबी लोग झांसे में आकर सूफियों और ट्रेडिशनल मौलवियों को सुनाने लग जाता है |
इस तरह वामपंथी और प्रोग्रेसिव लोग बारी बारी से दोनों की पीठ सहला कर दोनों को एक दूसरे से गाली सुनवाता है और दोनों तरफ के लोग, मक्कार प्रोग्रेसिव लोगों की झूठी वाहवाही पाने के लालच में एक दूसरे की लानत मलामत करता रहता है |
जो मैंने महसूस किया है उसकी बुनियाद पर ये मोटा मोटा एनालिसिस है, तफसीली एनालिसिस कभी फुरसत में करेंगे |
From Md Iqbalभाई wall.
See Translation
Zahid Baig
2 September ·
ईदुज़्ज़ुहा की नमाज़ पढ़ कर बदस्तूर कब्रिस्तान में अपने अज़दादों (बुज़ुर्गों) की क़ब्र पर फ़ातहा पढ़ कर घर लौट रहे थे। मस्जिद के मोड़ पर ही नगर और क्षेत्र की मशहूर और मारूफ़ शख़्सियत सर्वधर्म-समभाव के प्रतीक आयुर्वेदाचार्य पंडित विश्वनाथ जी शर्मा का निवास है। पिछले ४० सालों से पहले अपने वालिद मरहूम मिर्ज़ा हामिद बेग़ और बाद में अपने बड़े भाई मरहूम मिर्ज़ा वाज़िद बेग़ के साथ दोनों ईदों पर पंडित जी का आशीर्वाद लेता आया हूँ। पंडित जी हमेशा से ही ईद के दिन अपने घर के बाहर कुर्सी लगा कर बैठ जाते और नमाज़ पढ़ कर निकलने वाले हर मुस्लिम का इत्र लगा कर यथायोग्य स्वागत/सत्कार और दुआएं देकर बड़े खुलूस और मोहब्बत से इस्तकबाल करते रहे हैं। बस यह समझ लीजिये की हम खातेगांव के मुस्लिमों की ईद उनसे गले मिले या उनके चरण-स्पर्श किये बिना मुक़म्मल नहीं होती थी। आदत के मुताबिक जब आज उनकी कुर्सी खाली देखी तो एक धक्का सा लगा। पता चला की पंडित जी बहुत बीमार हैं चलने-फिरने से माज़ूर हैं और आजकल अपने निवास की पहली मंज़िल पर ही सिमट जाने को बाध्य हैं। अब बताओ दोस्तों उनसे आशीर्वाद लिए बिना कैसे ईद मनती ? मेरे साथ क्षेत्र के जाने-माने व्हालीबॉल खिलाडी सैयद मुर्तुजा हुसैन भी थे। हम सीढ़ियां चढ़कर ऊपर गए तो देखा की पंडित जी पलंग पर बैठे हुए थे , इत्र की शीशी उनके सिरहाने रखी हुई थी जो इस बात का प्रतीक थी की उन्हें पक्का भरोसा था की नमाज़ी उनसे ईद मिलने जरूर आएंगे। उनसे मिलने सीढ़ियां चढ़ते-उतरते लोग इस बात के गवाह थे की मुस्लिमों ने उनके भरोसे को नहीं तोड़ा। मैंने भी मुर्तुज़ा के साथ उनके चरण छूकर उनका आशीर्वाद ग्रहण किया और उनकी लम्बी उम्र और तंदरुस्ती की दुआ की। दोस्तों उम्र के आखिरी पड़ाव पर बैठे बुज़ुर्गों को जब प्यार मिलता है तो वो भावुक हो जाते हैं। मैंने जब उनसे बात की तो उनके आंसू नहीं रुक पाए अतीत को याद कर वो भावविव्हल हो गए। इस उम्र में भी उन्हें देश और नगर की गंगा जमुनी तहज़ीब को बचाने की फ़िक़्र थी। हमने उन्हें आश्वस्त किया की पंडित जी जब तक आप जैसे सनातन धर्म का पालन करने वाले लोग इस देश में मौज़ूद हैं (अल्लाह का शुक़्र है की वो हमेशा बहुमत में रहे हैं) इस देश की संस्कृति और भाई-चारे की पवित्र भावना अक्षुण्ण रहेगी। इस बार पंडित विश्वनाथ जी शर्मा जैसे करोड़ों लोगों के हवाले से आप सब को ईदुज़्ज़ुहा की दिली मुबारक़ बाद।
RipostZahid Baig
” आधुनिक सरमद ” और इस ज़हरीले पत्रकार को आपस में बहस करनी चाहिए——————————————————————————- Devanshu Jha10 hrs · सूफीवाद की सुई सबसे गहरा मार करती है..
महान शास्त्रीय गायक बड़े गुलाम अली खान भारत विभाजन के कुछ समय बाद पाकिस्तान चले गए । दो-तीन सालों में उनका मोहभंग हो गया, वे भारत वापस लौटे। उन्होंने कहा, वो भी कोई मुल्क है, वहां गायक के नाम पर कव्वाल होते हैं । आश्चर्य है कि वहां का सूफी संगीत उन्हें लुभा न सका । वे कट्टर मुसलमान होते हुए भी आजीवन भारतीय शास्त्रीय संगीत में डूबे रहे, जिसकी बुनियाद भक्ति संगीत है । वे इस सूफीवाद के छद्म को तोड़ने वाले अनन्य उदाहरण हैं जबकि वे मुसलमान थे ।
बीसवीं सदी के धुरंधर शास्त्रीय गायकों की सूची उठाइये, अगर उसमें कोई सूफी गायक मिले या सूफी गायन के प्रति आकर्षित दिखे तो मुझे बताइये । नाम एक नहीं पच्चीस लिख सकता हूं लेकिन सिर्फ शब्द और समय की बर्बादी होगी । क्योंकि आलादिया खान से लेकर किशोरी अमोनकर तक कोई नहीं है ।
ये सूफी इस्लाम में धर्मांतरित करने का सबसे मुलायम चेहरा रहा है । इसने भारत का बहुत अहित किया है अन्यथा यहां अधिकांश सूफियों की मज़ार तो क्या कोई नामलेवा तक न होता । दिलचस्प ये कि जिन सूफी गायकों को साझी संस्कृति के नाम पर सुनते हुए हम लहालहोट होते रहे उनमें से किसी ने अपने जीवन में गलती से भी कभी एक भजन नहीं गाया ।क्यों..? यह तो गजब का सूफीवाद और मुक्ति है धर्म की भाई..
सूफीवाद एक छद्म है..वाजपेयी सरकार में मंत्री रहे और महान पत्रकार अरुण शौरी ने इंडियन एक्सप्रेस में लेख लिखा था कई खंडों में, कि क्यों सूफी भारत में धर्मांतरण का सॉफ्ट चेहरा रहे । लेकिन अब चूंकि शौरी जी मोदी से कुपित हैं इसलिए मोदी बजरंगी हो गए ! मैं इस मुद्दे पर जाना नहीं चाहता । मेरा मुद्दा ये है कि एक ऐसा धर्म जिसने हमेशा खुद से संवाद कर अध्यात्म के अनंत आकाश में विचरण किया उसे सूफीवाद की जरूरत क्यों पड़ी? एक ऐसा धर्म जिसे इस बात से कभी फर्क ही नहीं पड़ा कि उसे कौन सुन रहा है कौन नहीं वो सूफी के चरणों में जाकर लोट गया? प्राचीन भारत से लेकर पिछली सदी तक के संतों की सूची उठा लीजिए, सारे ब्राह्मणों की सूची निकालिये, उनमें से कोई भी अपनी बात प्रचारित करने के लिए परेशान नहीं रहा । क्योंकि वह सत्य की तलाश करता था, अपनी आत्मा से संवाद करने वाला व्यक्ति ! जिसका आधार था, तत्वमअसि..तुम हो वह ! वह यानी परमात्मा ! एक हिन्दू जिसके हर प्रश्न का उत्तर उसके ग्रंथों में रहा है वो कभी सूफी नहीं बन सकता ! सूफी वही बन सकता है जिसकी जड़ें हिली हुई हों जिसने विषम परिस्थितियों में अपना धर्म त्यागा हो और उस कायरता, आत्मविस्मृति को गंगा जमनी तहजीब का नाम देकर अपनी आत्मा में बुझ बुझ कर मरा हो !
जिस गाज़ी सालार मियां के नाम पर उर्स लगता है वो गजनी का भतीजा और आक्रांता था जिसे सुहैलदेव ने मारा लेकिन आज मूर्ख हिन्दू वहां चादर चढ़ाने जाते हैं । अपनी धार्मिक आस्था से हिला हुआ, घासलेटी संस्कृति में सांस लेने वाला आदमी ही किसी सूफी के पास जाएगा । अगर मेरे राम ने मेरी आवाज नहीं सुनी तो न सही, मैं प्राण त्याग दूंगा किसी सूफी की चौखट पर नहीं जाऊंगा ।
इस सूफीवाद से मुक्त होना परमावश्यक है । इसके लिए बजरंगी होना जरूरी नहीं बल्कि एक आत्मविश्वासी हिन्दू होना जरूरी है जिसे अपनी धार्मिक और आध्यात्मिक आस्था पर अडिग विश्वास हो, जो बजरंग बली की तरह प्रचंड हो कि राम का नाम लिया तो काम होगा । काम नहीं हुआ तो ईश्वर नहीं चाहते थे कि काम हो…
Pankaj Chaturvedi
16 hrs ·
आज ईद मिलाद उन नबी है। हज़रत साहब का जन्मदिन। अभी दो दशक से इस अवसर पर जुलूस निकालने का अजब रिवाज़ शुरू हो गया। कल जोधपुर में इसको ले कर दंगा हुआ। पूर्वी उत्तर प्रदेश के कुछ स्थानों से भी खटपट की ख़बर है। अकेले मुरादाबाद में तीन जगह झगड़े हुए। गोली चली।
हरा झंडा, झांकियां, डी जे, कुछ लफंगे लड़के तेज मोटर साईकिल भगाते हुए, कुछ मुल्ले अरब का वेश धरे हुए। कुछ ऊंट।
असल में यह हिंदुओं के रामनवमी और दशहरे के आक्रामक जुलूसों का प्रति उत्तर किस्म का है।
क्या इस किस्म के जुलूस किसी भी तरहः के धार्मिक, सामाजिक प्रयोजन की पूर्ति करते हैं? ये केवल टकराव, समय श्रम धन की बर्बादी, ट्रैफिक जाम और टकराव का जरिया है। काश इन पर पूरी तरह पाबन्दी पर कोई सोचे।——————————————————————————————-Satyendra PS
18 hrs · Gorakhpur ·
मीयों का कोई त्योहार है। गोरखपुर मेडिकल कॉलेज के सामने बड़े बड़े माइक लगाकर सब घण्टों पता नहीं क्या आंय बांय किए। इतने से पेट नहीं भरा। फिर जुलूसकी शक्ल में मेडिकल कॉलेज में घुस गए और इमर्जेंसी के सामने से फुल वॉल्यूम लाउडस्पीकर लेकर निकले।
यह भी लोकतंत्र और उसकी धार्मिक आजादी है, जो मरे सो मरे। मरने वाले का कोई न तो अधिकार है न आजादी।
और ये तो तिरंगा लिए घूम रहे हैं इसलिए राष्ट्रवादी मीयां हुए ??। अब सबको मालूम हो गया कि तिरंगा हाथ मे लेकर कोई भी बेहूदगी की जा सकती है.————————-
Rakesh Kayasth
1 December at 22:22 ·
मेरे जीवन में सर्वधर्म समभाव है। सभी धर्मों से समान रूप से पीड़ित हूं। इसलिए समभाव रखना मजबूरी है। यह बात मैं पहले भी लिख चुका हूं। आज दोबारा इसलिए लिख रहा हूं क्योंकि आज डेली टार्चर के वीकली महाएपिसोड वाला दिन है।
आज जुम्मा है। पड़ोस वाली मस्जिद के गुंबद पर बंधे चार लाउडस्पीकर सुबह से पूरी ताकत से चीख रहे हैं। मौलाना बहुत ही जोशीली तकरीर कर रहे हैं। आवाज़ इतनी तेज है कि बिना खिड़की बंद किये आप अपने घर में सामान्य ढंग से बातचीत नहीं कर सकते। आवाज़ में असाधारण किस्म की उत्तेजना है और अति नाटकीयता से भरा-उतार चढ़ाव। किसी भी आदमी को भ्रम हो सकता है, यह किसी तरह की ललकार है।
लेकिन ध्यान से सुनने पर पता चलता है कि यह कोई ललकार नहीं है बल्कि मौलाना अच्छी-अच्छी धार्मिक बातें कह रहे हैं। फिर इतनी उत्तेजना, इतनी आक्रमकता और ऐसी अति नाटकीयता क्यों? क्या ऊंची आवाज़, अतिरिक्त भावुकता और उत्तेजना के बिना ईश्वरीय बातें नहीं समझाई जा सकतीं?
शुक्रवार में दिन मैं कभी गलती से घर पर रह गया या फिर दफ्तर से जल्दी लौट आया तो कुछ भी करना मुहाल हो जाता है। यह बात बिनी किसी अतिश्योक्ति के कह रहा हूं। कई बार सोचता हूं तो लगता है कि विज्ञान की इतनी तरक्की के जमाने में कोई ऐसा प्रबंध क्यों नहीं करता कि भजन और अजान की आवाज़ सिर्फ उन्ही लोगो तक पहुंचे जो उन्हे सुनना चाहते हैं। सोचकर देखिये तो कोई मुश्किल नहीं है। लेकिन दुनिया को कैसे पता चलेगा कि भक्त अपने ईश्वर को याद कर रहा है?
मेरी नींद रोज सुबह अजान की आवाज़ से टूटती है। लेकिन अजान और मौलाना की तकरीर में बहुत फर्क है। अजान या किसी भी धार्मिक प्रार्थना में एक तरह की रुहानियत होती है, इसलिए बुरी नहीं लगती। मेरी नींद टूटती है, अल्लाह का नाम सुनता हूं और फिर सो जाता हूं। लेकिन जुमे की तकरीर झेलना बहुत ही तकलीफदेह है। सार्वजनिक शांति भंग करने और आम नागरिकों को कष्ट देने के मामले में देश के ज्यादातर धार्मिक समूहों का व्यवहार एक जैसा है। लेकिन कुछ उदाहरण अलग भी हैं।
इस बार गुड फ्राइडे को मैने मुंबई में कई जगहों पर चर्च की ओर जारी अपील देखी जिसमें त्यौहार को शोर मुक्त रखने और लाउडस्पीकर ना बजाने की प्रार्थना की गई थी। गुरुद्वारों में चलने वाले शबद कीर्तन की आवाज़ कभी इतनी तेज नहीं होती कि पड़ोस में रहने वालों की शांति भंग हो।
धार्मिक हाहाकार से होनेवाला कष्ट अपनी जगह है। लेकिन मैं मुंबई के लोगो की सहिष्णुता को दाद देता हूं। जो शोर जुम्मे की तकरीर या फिर किसी पीर-औलिया की शोभा यात्रा में होता है, वैसा ही शोर गणेशोत्सव और अंबेडकर जयंती में भी होता है। दिन में ट्रैफिक रुकता है और रात में कई बार सोना मुहाल हो जाता है। फिर भी मुंबई वाले शांति से एक-दूसरे को झेलते हैं। आस्था का प्रदर्शन एक मानवीय और उससे भी कहीं ज्यादा आम भारतीय स्वभाव है। भगवान ही भगवान के नाम पर होनेवाले हाहाकार को झेलने की ताकत देता है।
(पोस्ट पर की गई भड़काऊ टिप्पणियां हटा दी जाएंगी।)Rakesh Kayasth———————————————–Pawan Saxena
Yesterday at 16:24 ·
मोदी की वर्तमान मस्तिष्क संरचना को मुस्लिम मानस हम से कहीं ज़्यादा समझता है ! इस्लाम की सफलता उस किताब से निकलती है, जो सर्वकालीन आम मुस्लिम माइंडसेट को समझते हुए, वह सिद्धांत प्रतिपादित करती है जो आदर्शवाद से नितांत दूर होते हैं और आम मस्तिष्क में अनायास ही स्वाभाविक रूप से उपजते हैं ! इस्लाम अमूमन नदियों के प्रवाह की दिशा अपनी ओर नहीं मोड़ता वरन बहती हुई नदी पर ही कब्ज़ा करने में यक़ीन रखता है ,यहीं तो आदमी की स्वाभाविक सोच और इच्छा होती है ! इस्लामिक किताबें अपने अनुयायियों को समयानुसार बदलती भावभंगिमा, सशक्त अभिनय और आक्रमकता सिखाती हैं ! हिंसा और यौन आक्रमण , सभ्य समाज मे एक आदिम प्रवत्ति मानी जाती है ,मगर यह किताबें यह बताती आईं हैं कि देशों,सभ्यताओं को जीतने के लिए यह दो हथियार बेहद ज़रूरी और कारगर हैं ! यह किताबें बताती हैं जीतने और काबिज़ होने के लिए कोई भी अपराध ,अपराध नहीं माना जाएगा !!
इस्लाम की एक खासियत यह भी है कि उनकी किताबें यह भी ज्ञान बाटतीं हैं कि दूसरे मज़हबों के सिद्ध-प्रभावी, पुरुषों/स्त्रियों को कैसे भावनात्मक रूप से प्रभावित कर अपने उपयोग हेतु अनुकूल बनाया जा सकता है ! कश्मीर में मुफ़्ती सरकार को लांखोँ करोड़ की मदद, मुस्लिमों के लिए भारत मे चलती योजनाएं, मोदी सरकार द्वारा मुस्लिम कन्याओं हेतु भारी अनुदान,मदरसों -मस्जिदों में सरकारी अनुदान से एक लाख निर्माण कार्य,मुस्लिमों और कश्मीरियों को फ्री आईएएस और IIT कोचिंग,मुस्लिमों का अभूतपूर्व सरकारी नौकरियों में सेलेक्शन, मोदी का हिन्दू राष्ट्रवादी गौरक्षकों इत्यादि के विरुद्ध अभियान, दरअसल इस्लामी किताबों द्वारा दिये गए प्रशिक्षण की ही सफलता है !!
आइये जानते हैं कि हिंदुओं का ह्रदय सम्राट ,मुस्लिमों के मोहरे में कैसे तब्दील हुआ ? मोदी की 2014 की जीत से भारत -पाकिस्तान के मुसलमान परेशान तो हुए मगर हतोत्साहित नहीं ! मुस्लिम थिंक टैंक आपस मे सिर जोड़कर बैठे ! तब तक जफर सरेशवाला और मसूद मदनी जैसे लोग मोदी की गोद में बैठ चुके थे ! जफर सरेशवाला प्रारम्भ में मोदी का कट्टर आलोचक गुजराती मुसलमान था,जो मोदी को अखबारों में 2002 दंगों का हत्यारा लिखता था ! मोदी चूंकि कमज़ोर शैक्षिक पृष्ठभूमि से हैं ,अतः जफर सरेशवाला की क्लासिक अंग्रेज़ी और परिष्कृत जीवन शैली उन्हें भा गई थी ! जफर सरेशवाला ने मोदी को विहिप और तोगड़िया से दूर कर दिया ! आरएसएस के प्रति भी मोदी की विचारधारा में अवज्ञा भर दी गई ! देवबंद के मौलाना मदनी को मोदी ने गुजरात का राजकीय अतिथि बनाया था !
2009 के लोकसभा चुनावों में भाजपा की हार ने मोदी के मस्तिष्क को यह सोचने के लिए विवश किया कि पूर्ण समावेशी और कथित धर्मनिरपेक्ष हुए बिना भारत की सत्ता हांसिल करना सम्भव नहीं ! याद कीजिए 2014 के सम्पूर्ण अभियान में उत्तरप्रदेश को छोड़कर मोदी ने जयश्रीराम के उदघोष से परहेज़ किया ! सिर्फ लखनऊ की सभा मे ‘पिंक क्रांति’
(गौहत्या-गौमांस व्यापार ) का शोशा इसलिए छोड़ा कि उद्दात स्वर्ण हिंदुओं का वोट एक ढेर के रूप में भाजपा को मिल सके ! बाद में गौरक्षकों की जो हालात मोदी ने की,वह हम जानते हैं !
मई 2014 में मोदी के प्रधानमंत्री बनते ही,मुस्लिम प्रतिनिधिमंडलों ने मोदी से लगभग हर माह योजनाबद्ध तरीके से आम और गुप्त मुलाकातें की ! हिंदुत्व समर्पित तत्वों के खिलाफ मोदी में मस्तिष्क में विष भर दिया गया ! अखलाक हत्याकांड,घर वापसी योजना और पुरुस्कार वापसी को लेकर इन मुस्लिम प्रतिनिधि मंडलों ने मोदी को हिंदुत्व समर्थकों से घ्रणा करने पर विवश कर दिया ! रही सही कसर बिहार में हुई करारी शिकस्त के लिए मोदी ने उपरोक्त घटनाओं को ज़िम्मेदार मान लिया ! मोदी ने हिंदुत्व ब्रिगेड को खलनायक मान लिया ! सुब्रमण्यम स्वामी,मुरली मनोहर जोशी जैसे लोगों को हाशिये पर फेंक दिया गया ! मुस्लिम उम्मा अपनी मेहनत में कामयाब हुई ! विश्वास मानिए ,योगी अड़ न जाते, 210 विधायकों को समर्थन न होता तो आज उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री मनोज सिन्हा होते ! सोशल मीडिया का बहुत बड़ा रोल है योगी को गद्दी तक पहुचाने में ! योगी के शपथग्रहण समारोह में मोदी जी की उदासी और बाडी लैंगुएज देखिए,सारी बात खुद समझ मे आ जाएगी !
नया रहस्योद्घाटन यह है कि #ओबामा और #हिलेरी_क्लिंटन,अनेक मुस्लिम देशों के राज्याध्यक्षों का दवाब भी मोदी पर था कि मुस्लिमों का भारत मे #दामाद का दर्जा #बरकरार रखा जाये ! नीचे की पेपर कटिंग देखिए ! यहीं वजह है कि कश्मीर में 370 हटाने का विमर्श तक प्रारम्भ न हो सका ! आज मोदी ,महबूबा मुफ्ती को 370 और 35 A न हटाने का वायदा कर चुके हैं ,हुर्रियत से बातचीत के लिए मोदी के मध्यस्थ दिनेश्वर घाटी में गिड़गिड़ा रहे हैं,अलगावादियों के पैकेज वैसे ही चल रहे हैं ! कुल मिलाकर 5000 पत्थरबाज छोड़ दिये गए हैं,नौकरियां बट रहीं हैं अलगावबादियों /उग्रवादियों के बच्चों को !
हां, बाबा रामरहीम कांड में 41 हिन्दू बेबकूफों को गोली से उड़ाते समय क्या हरियाणा सरकार को मोदी की केंद्र सरकार का समर्थन नहीं था क्या ? 5000 पत्थरबाजों को छोड़ने वाली सरकार 41 हिंदुओं को मारते समय इतनी निर्मम क्यो हो गई ? क्या कभी हुड़दंग करते 41 मुसलमानों या हिंदुओं के अतिरिक्त किसी अन्य धर्म के लोगों को भाजपा सरकारों ने ऐसे ही गोली चलाकर मार डाला हो !! याद करिए ! मौलानाओं की मोदी के साथ मीटिंगें सफल रहीं !
See TranslationPawan Saxena——————————————————————————————————————————————-Sarfraz Katihari
1 December at 22:09 ·
उनलोगो के पेशे खिदमत जो के मुस्लिम को चिड़िया के बच्चे जैसा मानते है ….
चिड़िया का बच्चा है मुस्लिम ? बाकि 1947 से अब तक मिटाने में कौन सा कसर छोड़ा गया है ?
लाखो की मौत , खरबो का सम्पति का नुक्सान । उसपे कभी इन्साफ नही ।
बाकि जॉब नही , इंफ्रास्ट्रक्चर नही मुस्लिम इलाको में ।
अब क्या कर देता भाई ?
हा , दिक्कत थोडा गल्फ बूम और प्राइवेटाइजेशन ने थोडा पैदा कर दिया ।
अगर गल्फ बूम नही आता तो आज मुस्लिम की क्या हालत होती है सोच भी नही सकते । हर साल 50 अरब डॉलर रेमिटेंस (कामगार जो भारत में पैसा भेजते है ) गल्फ से आता मतलब कम से कम 20 अरब डॉलर से ज्यादा सिर्फ भारत का मुस्लिम लाता है , जो के जान बचा दिया है ।
बाकी इसलिए बकवास में एहसान मत दिखाओ जालिमो।
#लास्ट_इयर की पोस्ट थी
Ravish Kumar
9 hrs ·
राजस्थान के राजसमंद में एक इंसान को काटा, फिर जला दिया। वीडियो भी बनाया और सबको दिखा दिया। जो काटा गया, जला दिया गया, मुसलमान था, जो मार रहा था वो हिन्दू था। टीवी और राजनीति जो ज़हर बो रहा है, उसका पेड़ उग आया है। सांप्रदायिकता आपको मानव बम में बदल देती है। एक ऐसी असुरक्षा पैदा कर देती है जिसके चलते आप हर वक्त हिंसा का सहारा लेने लगते हैं। ऐसे बहुत से मानव बम हमारे बीच घूम रहे हैं। इसका लाभ उठाकर चार लोगों का गैंग राज करेगा, बाकी हत्या के बाद मुकदमा झेलेगा। जिनके यहां मौत होगी, उनके ग़मों की परवाह न करने की ट्रेनिंग आपको रोज़ टीवी से दी जा रही है। कोई केरल का उदाहरण देगा तो कोई कहीं का मगर हिंसा को निंदा के बाद सब पालेंगे क्योंकि आज की राजनीति के लिए बहुत से हत्यारों की ज़रूरत है। समाज कितना बेचैन है हत्यारा बनने के लिए।
एक की तो सिर्फ मौत हुई है, उसकी नागरिकता हर ली गई है मगर ऐसा करने के लिए दूसरे समाज के भीतर कितने हत्यारे पैदा किए जा चुके हैं। क्या आप चाहेंगे कि आपके घर का कोई किसी की भी हत्या करके लौटे। भले उसकी विचारधारा की सरकार बचा ले मगर क्या आप उसके साथ रह पाएंगे? इसकी चपेट में कौन आएगा, आपको पता नहीं। मुमकिन है स्कूल से लौटते वक्त, कालेज में खेलते वक्त, किसी मामूली झगड़े में हिंसा का यह ख़ून सवार हो जाए और बात-बात में आपके घर का कोई हत्यारा बन जाए। उसे यह शक्ति उसी राजनीति और सोच से मिल रही है जिसे आप टीवी और सोशल मीडिया पर दिन रात पाल पोस कर बड़ा कर रहे हैं। धर्मांधता और धार्मिक पहचान की राजनीति के लिए अपने भीतर से बहुत से हत्यारे चाहिए जो दूसरे पर हमला करने के काम आ सकें। राजनीति से धर्म को दूर कर दीजिए वरना आप इंसानियत से दूर हो जाएंगे।
जिन्हें आप ट्रोल कहते हैं, दरअसल यही सोच समाज में कुल्हाड़ी और माचिस लिए घूम रही है। तभी कहता हूं कि हमारी आंखों के सामने पीढ़ियों के बर्बाद होने की रफ़्तार काफी तेज़ हो गई है।
ऐसी बहसें बेलगाम हो चुकी हैं। आम आदमी इन्हें सुनते हुए संभालने की ताकत नहीं रखता। लिहाज़ा वो मानव बम की तरह कहीं जाकर फट जाता है। हत्यारा में बदल जाता है। मेरी इस बात को अगर समझना है तो इस पेज के किसी भी पोस्ट के बाद दी गई गालियों की मानसिकता को देखिए। भारत की राजनीतिक संस्कृति बदल गई है। पहले भी ये सब तत्व थे। अतिरेक भी था मगर अब यह नियमित होता जा रहा है। तो इसे लेकर किसी को शर्म भी नहीं आती है।Ravish Kumar
गलती इन मुल्लाओ की खुद हे भला छी न्यूज़ जैसी गन्दी घिनौनी जगह पर कोई कैसे जा सकता हे Mohammed Afzal Khan
2 hrs ·
प्रम शुक्ला BJP प्रवक्ता (पूर्व संघ परिचालक या चिंतक ) ने कल ZeeTV पर एक बहस में मौलाना अब्दुल रहमान को इतनी बहुत भद्दी गालियाँ दी कि कानो पर हाथ रखने को दिल किया। मौलाना के पूर्वजो से लेकर उनके इस देश मे रहने को अधिकार तक को नही छोड़ा शुक्ल जी ने। “बाबर की औलाद” तो उन्होंने मौलाना को कई बार कहा बदले में मौलाना ने प्रेमशुक्ल को जब बद्तमीज़ इंसान कहा और ऐंकर का ध्यान प्रेम शुक्ला की बदतमीज़ी की तरफ खींचा तो इस पर ZeeTV की एंकर मीमांसा मालिक ने मौलाना को ही बुरी तरह डांट दिया और उनको ही ज़्यादा बोलने से मना किया। यह है हिंदुत्व की सभ्यता और उसके मीडिया समर्थकों का रवैय्या।
शर्म तो मुझे ऐसे कठमुल्लों पर आती है कि TV पर अपना थोबड़ा दिखने की चाहत में यह न् केवल अपनी बेइज़्ज़ती करवाते है बल्कि मुस्लिम समाज की तरफ नफरत बढाने का काम करते है।ये मुल्ले जिनका कोई भी बुजूद न् मुस्लिम समाज मे है और न् ही मस्जिद मंदिर के मुकदमे में इनका कोई हक हैं, बहुसंख्यंको की नफरत मुस्लिमों की तरफ बढाने के लिए जिम्मेदार है। मुस्लिम समाज को इन कठमुल्लों का बहिस्कार करना चाहिए। इनकी अपनीं कोई इज़्ज़त हो न् हो (क्योंकि यह इतनी बे इज़्ज़ती सह कर भी बेशर्मी से बहस में बैठे रहते हैं) भारतीय मुसलमानो की अपनी इज़्ज़त तो है जो न् केवल भारत के मूलनिवासी हैं बल्कि भारत देश को आज़ाद करवाने में इनके पूर्वजो ने सबसे अधिक खून बहाया है।
इसके साथ ही में प्रेम शुक्ल जैसे हिंदुत्ववादियों की भर्त्सना करता हूँ जो अपने क्रोधयुक्त अहंकार में पूरे मुस्लिम समाज को गालिया देने में अपनी सभ्यता दिखाते हैं । क्या यही सिखाता है हिन्दू द्धर्म कि दूसरे इंसान पर अपना अहंकार दिखाकर अमर्यादित और क्रोध में लिप्त अभद्र भाषा का पृयोग करें। ??
देश मे और कितना ज़हर बोयेंगे ये लोग? कूटनीति और नफरत द्वारा सत्ता हथियाने की एक हद होती है ।पहले सिमी और इंडियन मुजाहिदीन के नाम पर सारे भारतीय मुसलमानों को आतंकवादी बना दिया गया लेकिन आज के दौर में वह मुजाहिदीन नाम के आतंकी कहाँ हैं? यह सब धुरबिकण का ड्रामा / खेल है जिसकी पटकथा समय समय पर चालाक राजनीतिग्य लिखते रहतें है। कभी आतंकवाद, क़्भी भारत माता की जय, कभीं राष्ट्रवाद , कभीं गौ रक्षा, कभी बूचदनखाना,कभी लव जिहाद और मंदिर तो है ही। अफसोस कि अधिकतर बहुसंख्यक इन चतुर राजनीतिज्ञों की चालें समझ नही रहे उन्हें केवल हिंदुत्व दिखाई पड़ रहा है जिससे किसी राजनीतिग्य या राजनीतिक पार्टी का कोई लेना देना नही। सब अपनी तिजोरी भरने में लगे हैं आम आदमी दाल रोटी की मंहगाई और बेरोजगारी से दुखी तो है लेकिन हिन्दू राष्ट्र और हिंदुत्व की मीठी चटनी को चाटने के चक्कर मे अपना घर बार भूल कर हिंदुत्व के बहरूपियों को सत्ता का भोग करवा रहा है। खुद मर रहा है लेकिन नेताओं और उनके बेटों की तिजोरियां भरने में मदद कर रहा है। वाहः क्या बात है, क्या बात।
भारतवासी अगर नही सोचेंगे नही जागेंगे तो देश का बहुत बड़ा नुकसान हो सकता है। धन्यवाद।
( नफिसुल हसन)
इसी छी न्यूज़ में एन्कर ———— टाइप लोग भि हे ये भी खूब नाक फुलाते हे – रविश का दोस्त संजय तिवारी हे भाजपा के कई झा हे और भी कई नाम हे जो लोगो को भड़काते हे इस मज़दूर की हत्या में इन लोगो का भी हाथ -सही समय पर कानून के दायरे में ही इन लोगो से भी इन हत्याओं का हिसाब किताब लिया जाएगा ——————————————————————- Vikram Singh Chauhan
7 December at 23:55 ·
उस मुसलमान मजदूर का हत्यारा सिर्फ शंभूलाल नहीं था। उसके हत्यारे तो न्यूज़ चैनलों में भी है। ज़ी न्यूज़ और इंडिया टीवी के एंकर हैं असली हत्यारे। देश को लव जिहाद के बारे में भड़काने वाले यही लोग है। इनके तीन साल के कंटेट निकालिये। सिर्फ लव जिहाद पर ही 200 प्रोग्राम निकल जायेगा।कोई आदमी इस चैनल को लगातार दो माह ही देख ले तो किसी मुसलमान को मारने ऐसे ही चला जायेगा। ये हिंदुओं को मुस्लिमों के खिलाफ भड़काते हैं।ये किसी भी लिहाज से न्यूज़ चैनल के दफ्तर नहीं है।ये आपको मानसिक तौर पर दूसरे धर्म के खिलाफ हमले के लिए उकसाते हैं। कोई रिसर्चर अगर इस पर काम करे तो ये बिल्कुल साफ हो जाएगा कि देश के कुछ न्यूज़ चैनल मुस्लिमों के खिलाफ हिडेन एजेंडा लेकर चल रहे हैं और कट्टर हिंदूवादी ताकतों द्वारा पोषित हो रहे हैं।Vikram Singh Chauhan
11 hrs ·
देश के मुसलमान किसी मुस्लिम की हत्या पर सड़क पर नहीं आते, रेल पटरियां नहीं उखाड़ते, जंतर मंतर पर भीड़ इकट्ठा नहीं करते,सड़क जाम नहीं करते,उग्र प्रदर्शन नहीं करते। उनको पता है वे ऐसा करेंगे तो आतंकवाद फैलाने के नाम पर, देशद्रोह के नाम पर धर दिए जाएंगे।सालों बाद जेल से निकलेंगे।हम भारतीय मुस्लिमों के मस्ज़िद के अलावा कहीं भीड़ को बर्दाश्त नहीं कर पाते। बस देश उनको भीड़ में नमाज पढ़ते देखना चाहता है और उसी भीड़ में से एक -एक नमाजी को बाहर कभी गाय के नाम पर कभी लव जिहाद के नाम पर मार रहा है!Vikram Singh Chauhan
15 hrs ·
देश में पहली किसी राज्य सरकार ने एक बड़े हॉस्पिटल का लाइसेंस इसलिए रद्द कर दिया है क्योंकि उस हॉस्पिटल ने एक गरीब मज़दूर के जिंदा बच्चे को मृत बता उसे पॉलीथिन में लपेटकर उनके पिता को दे दिया था।उस मृत बच्चे के पिता ने उस हॉस्पिटल को बंद करवाने का बीड़ा उठाया और इसे अमल में लाया अरविंद केजरीवाल की सरकार ने।मैक्स हॉस्पिटल का लाइसेंस रद्द कर केजरीवाल सरकार ने बताया है कि अभी भी एक आम आदमी की जान उनके बच्चे की जान की कीमत अरबों रुपये से बने हॉस्पिटल से ज्यादा है। यह चेतावनी भी है उन हॉस्पिटलों के लिए जो गरीबों का इलाज करने में कोताही बरतते हैं लापरवाही बरतते हैं। देश के आम आदमी के लिए ये एक क्रांतिकारी निर्णय है और अब उस बच्चे को सच्ची श्रंद्धांजलि भी।जियो केजरीवालVikram Singh Chauhan
Yesterday at 07:39 ·
आप ये सुनकर चौक जाएंगे कि मुस्लिम मजदूर के हत्या का जो वीडियो वायरल हुआ है उसे उस हत्यारे ने अपने मासूम भतीजे से शूट करवाया है। इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार हत्यारे ने अपने भतीजे को मोबाइल कैमरा दिया और उसे रिकॉर्ड करने कहा। मतलब बच्चे के सामने ही उसे मारा गया और जलाया गया। हैवानियत और नृशंसता का नंगा नाच एक बच्चे के सामने की गई। मतलब उस मुस्लिम मजदूर के साथ ही एक बच्चे की करुणा और कोमलता का भी खून किया गया। उसकी हत्या होता रहा रोने चीखने की आवाज आई पर बच्चा चुपचाप शूट करता रहा ,बच्चा न रोया और न कैमरा छोड़ भागा और न ही उसे दया आई।आपको याद होगा आईएस का वीडियो सालभर पहले हम जो देखते थे उसमें ठीक इसी तरह से बच्चों को हथियार देकर बंदियों का गला रेत दिया जाता था। बच्चों को बचपन से हत्यारा बनाया जाता था। अब ये हमारे देश में होने लगा है।हमारी धार्मिक नफरतों की जद में अब बचपना भी आ गया है।हम बचपन से बच्चों को स्कूली शिक्षा के साथ दूसरे धर्म से नफरत करना भी सीखा रहे हैं। उन्हें मानव बम बना रहे हैं।निश्चित रूप से इस देश का भविष्य बहुत उज्ज्वल हाथों में है। इसका श्रेय जरूर मिलना चाहिए।किसे मिलना चाहिए सोचिये आप।Vikram Singh Chauhan
7 December at 22:07 ·
मणिशंकर अय्यर के अपशब्द के बाद राहुल गांधी ने ट्वीट करके निंदा किया और पार्टी से भी बाहर कर दिया। अब मोदी जी देश को जवाब दीजिये परेश रावल ने सोनिया गांधी को ” बार डांसर ” कहा था तब आप कहाँ गये थे?जब मनमोहन सिंह जी को आपने ” देहाती रेनकोट ” जैसे असभ्य शब्दो से उद्बोधन किया तब आप क्या सोचकर बोले थे?संबित पात्रा ने जी न्यूज की डिबेट में मनमोहन सिंह को “गूंगा” कहा तब आपके संस्कार कहाँ चले गये थे?जब विनय कटिहार ने प्रियंका गांधी के लिए अशोभनीय शब्दो का प्रयोग किया तब आपको क्या हुआ था?श्रीकांत शर्मा नाम के प्रवक्ता ने राहुल गांधी को ” मंदबुद्धि ” का कहा तब आप कहाँ गए थे?आप हमेशा नेहरु और इंदिरा को गाली भरी सभा में देते है तब आपके संस्कार क्या गटर में बंद हो जाते है? जब अनिल विज नामक संघी ने दलित समाज को “सूअर” कहा था तब आप कहाँ थे?अभी हाल में अमित शाह ने फिर से मनमोहन सिंह को ‘नमूना ‘कहा तब आप चुप क्यों थे।क्या वे प्रधानमंत्री नहीं थे,क्या उनका अपमान नहीं हुआ था?Vikram Singh Chauhan
7 December at 21:36 ·
राहुल गांधी ने मणिशंकर अय्यर का निलंबन कर स्पष्ट संदेश दिया है कि कम से कम वे पार्टी में ऐसे गालीबाजों को बर्दाश्त नहीं करेंगे। कांग्रेस को ऐसे ही निर्णय लेने वाले नेता की जरूरत थी। राहुल गांधी स्वयं कई बार प्रधानमंत्री पद की इज्जत करने की समझाइश अपने नेताओं को दे चुके थे लेकिन ये नेता सुधर नहीं रहे थे।राहुल गांधी जैसे नेता को देखकर अब भी लगता है राजनीति में कुछ अच्छे लोग आज भी है।
zakir hussain एक समय था जब यह कहा जाता था कि हर मुस्लिम आतंकवादी नही होता, लेकिन हर आतंकवादी मुस्लिम होता है. हम जैसे लोग भी इसी तरह के विचार लेकर, मुस्लिम समाज के लोगों से सवाल करते थे, कि हमे आत्म-मंथन की ज़रूरत है. “मज़हब नही सिखाता, आपस मे बैर करना” सही बात है, लेकिन यह भी सही है कि मज़हब के नाम पर आतंकवाद फैलाने वाले अपनी दलीले धर्मग्रंथों से ही दे रहे हैं. भले ही व्याख्या विकृत हो लेकिन हमे इस पहलू पर ध्यान देना चाहिए.
लेकिन अब देखिए, हाल के वर्षों मे नगण्य ही सही, हिंदू आतंकवादियों की ख़बरे आई. न्यायपालिका मे सरकारी दखल की अटकलों के बावजूद 3 आतंकवादियों को जयपुर की विशेष अदालत ने दोषी ठहराया. “भगवा आतंकवाद” की थ्योरी पर बीजेपी ने कांग्रेस को भले ही राजनैतिक मैदान पर दवाब मे ला दिया हो लेकिन खुद को भी “सारे आतंकवादी मुसलमान होते हैं” से “आतंक का कोई धर्म नही होता” की दलील पर ला खड़ा किया.
लेकिन सोचिए, इस हिंदू कट्टरपंथ ने मुस्लिम समाज को आत्म-मंथन की ओर ले जाने के प्रयासों को सरल किया है या उनकी बरसों की मेहनत पर पानी फेरा है?
आप भले ही किसी राजनैतिक दल के लिए वीर रस की कविता का पठन-पाठन कर लें, गली मोहल्ले के गुण्डों को अपना नेता मान ले, लेकिन इस्लामी कट्टरपंथ को चुनौती वैचारिक धरातल पर ही दी जा सकती है. समाज के बौद्धिक स्तर को गिरा कर आप मुस्लिम कट्टरपंथ को कोई चुनौती नही दे सकते, बल्कि खुद का, समाज का और इस देश का अहित ही करेंगे.
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zakir hussain • 4 hours ago
मोदी जी और उनके चाहने वाले, हर सवाल को सेना की आड़ लेकर दबाते हैं. लेकिन क्या वो खुद सेना की इज़्ज़त करते हैं?
मनमोहन सिंह के अलावा उस मुलाकात मे पूर्व सेनाध्यक्ष दीपक कपूर भी मौजूद थे, और उन्होने भी इस बात की तस्दीक़ करी कि उस मुलाकात मे इधर और उधर के दोस्तों या जान पहचान वालो ने दोनो देशो के बीच संबंधों को लेकर चर्चा करी.
क्या अब भक्तो को वृद्ध मनमोहन सिंह के साथ दीपक कपूर को भी पाकिस्तान भेजने के नारे लगाने चाहिए.
इससे पहले मोदी भक्त गायक अभिजीत सेना के रिटायर्ड जनरल पनाग को भी पाकिस्तान का एजेंट घोषित कर चुके हैं.
इनके लिए आर्मी के बड़े अफसरो से लेकर, बड़े से बड़े वैज्ञानिक भले ही वो नोबल पुरूस्कार विजेता हो, लेखक मुंशिचंद हो या कवि रवीन्द्र नाथ टैगोर सबके सब गद्दार हैं.
मोदी का कोई दोष नही, मोदी वो ही कह रहे हैं, जो जनता सुनना चाहती है. जनता मूर्ख है, मोदी जी इन मूर्खों के सरदार (लेकिन मूर्ख नही).
लेकिन सवाल यह है कि, जनता को मूर्खता मे दखेलने से चुनाव तो जीत जाओगे, लेकिन मूर्खों की भीड़ से भारत विश्व गुरु बन पाएगा.
आज इंटरनेट के दौर मे हर कहा हुआ दर्ज हो रहा है. भविष्य मे जब इतिहास पढ़ा जाएगा तो मोदी जैसा व्यक्ति भारत का प्रधानमंत्री बना था पर लोग ताज्जुब करेंगे.zakir hussain
Pawan
17 December at 13:06 ·
रामजतन ने बड़े जतन से एक ‘तोती’ पाली थी ,तोती खूबसूरत थी,बढियां खाना खिलाते थे,प.रामजतन ! तोती होशियार थी,कान्वेंट स्कूलों में पढ़ी हुई थी तोती !! रामजतन ने तोती के लिए पूरा घर खुला छोड़ रखा था तो तोती भी खुले विचारों की परिंदा थी ! सब बढ़िया चल रहा था !!
रामजतन को सपरिवार गांव जाना था,तोती को गांव कौन ले जाये ? रामजतन पूरी कालोनी में घूमे , सबसे चिरौरी की “गांव जाना है,पिंजरे में 10 दिन के लिए रख लो,चौथियाई रोटी सुबह,चौथियाई रोटी शाम साथ मे 2 मिर्चे दे देना”,मगर कालोनी में कोई जीदार न हुआ जो तोती को 10 दिन अपने घर रख ले !!
हार कर रामजतन, मियां जलालुद्दीन के पास पिजरा लटका कर पहुचे ! जलालुद्दीन ने कहा कि वाह-वाह पंडीजी ,तुमने अच्छा किया कि तोती ले आए ,हमे तोता पालने का तजुर्बा भी है,”एक तोता हमने अभी भी पाल रखा है” तोते की बात सुनकर रामजतन घबराए ! तोती की ‘इज़्ज़त’ की चिंता उमड़ पड़ी !
जलालुद्दीन, पंडित जी के मन की बात समझ गया, बोला “पंडीजी बड़ा ‘अख़लाक़ी’ और धार्मिक तोता है,पांचों वक्त की नमाज़ पढ़ता है,चिंता की कोई बात नहीं” कुछ दिन हमारे घर रह लेगी तो हमारा क्या जाएगा ! तोते की चोंच के ऊपर नमाज़ पढ़ने का निशान भी था सो रामजतन निश्चिंत हो गए , इसी बीच तोते ने हाथ मे माला लेकर कुरान ख्वानी शुरू भी कर दी ! राम जतन ने तोती का पिंजड़ा जलालुद्दीन के हवाले किया और लौट पड़े ! तोते ने खुदा का शुक्रिया किया !!
रामजतन को लौटकर आने में कुछ हफ्ते लग गए ! वह अपनी तोती को वापस लेने जलालुद्दीन के घर गए ! देखते क्या हैं कि तब तक जलालुद्दीन का तोता और रामजतन की तोती एक ही बड़े पिजरे में थे !! तोती ‘पेट’ से थी और 2 अंडे भी साइड में रक्खे थे ! रामजतन समझ गए कि ‘लवजिहाद’ हो गया है लेकिन तब भी उन्होंने पिंजड़ा खोलकर तोती को बहुत प्यार से घर वापस ले जाने के लिए पिंजरे से बाहर निकालना चाहा ! तोती ने पिंजड़े का द्वार ‘अंदर’ से बंद कर लिया !
!!प.रामजतन भारी मन से खाली हाथ घर लौटे !!Pawan
शिया लेखिका कहती हे हलाकि जैसा की ऊपर बताया की इन लोगो का एक विशेष कम्फर्ट हे लेकिन फिर भी इनकी ये पचास हज़ार वाली बात सही सी हे वैसे भी ये लोग रोज पेसो के लिए छी न्यूज़ जैसे घिनोने लोगो के यहाँ अपनी ख़ुशी ख़ुशी झंड करवाते हे न्यूज़ चेनेल ये सब मोदी सपोटेरो की तसल्ली और उत्साह के लिए करते हे ” Farida Khanam was feeling प्रगति की ओर बड़े मौलाना साहब के कदम !
22 December at 18:33 ·
?तमतमाए मौलाना साहब – कमिनी Farida कितने में तुने अपने इमान का सौदा किया जो इस्लामीक कुप्रथाओं का सरेआम काफिरों के बिच ढिंढोरा पिटती रहती हैं ? ?
नजरें झुकाए फरीदा? – जी जनाब पचास हजार रुपये महीने में ! ?
?भौंचके से मौलाना साहब कुछ पल चुप रहने के बाद – अच्छा सुन फरीदा तु तो जानती है इस्लामीक कुप्रथाओं का मैं भी कितना बड़ा जानकर हूं , और लिख भी अच्छा लेता हूँ , इसलिए इस नौकरी में कोई जगह खाली होतो बताना , वाकई अब इस्लाम को उसकी कुप्रथाओं से मुक्त कराने का समय आ गया है ! ?
अच्छा एक बात और बता पैसा समय से आ तो जाता है ना ? ”
Pawan 22 hrs · 1989-1993 के मध्य एक अंग्रेजी कलम थी,जो देश-विदेश में राम जन्मभूमि आंदोलन के विरुद्ध आग उगल रही थी ! यह कलम श्रीमान #एम_जे_अकबर की थी, जो शायद उस समय ‘एशियन एज’ चलाते थे, लगभग हर अंग्रेज़ी अखबार में शनिवार-रविवार को अकबर के लेख छपते थे ,जिसका निहितार्थ यह होता था कि ‘उग्र हिन्दू’ अर्थात विहिप,आरएसएस और बीजेपी वाले भारत को साम्प्रदयिक आधार पर तोड़ रहे हैं ,मुस्लिमों को दबाया जा रहा है,देश मे हिंदुओं ने दंगे फैला रखे हैं (इसी दौर में अकबर ने एक किताब भी लिखी ‘राइट्स आफ्टर राइट्स’ जिसमे कथित ‘हिन्दू साम्प्रदायिकता को भारत के विभाजन का जिम्मेदार ठहराया गया था)……
उस समय एम.जे अकबर भारत की सबसे खतरनाक लोकसभा सीट,जहां बंगलादेशियों का दशकों से प्रभुत्व रहा है,से कांग्रेस के लोक सभा सांसद भी थे ! राजीव गांधी को हिंदुओं के विरुद्ध उकसाने वालों में माननीय अकबर भी एक थे ! कश्मीर के निर्णयों में भी राजीव गांधी-वीपी सिंह को प्रभावित करने वाले एम.जे अकबर ही थे ,इसी काल मे कश्मीरी पंडितों को घाटी छोड़नी पड़ी थी,उस समय राजीव गांधी के ऑफिसियल प्रवक्ता एम जे अकबर ही थे !
अकबर बेशक, प्रेसिडेंसी कालेज कलकत्ता के जीभ घुमाकर अंग्रेज़ी बोलने वाले उच्च शिक्षित ब्यरोक्रेट सरीखे जोड़-तोड़-जुगाड़ू व्यक्तित्व हैं ,परंतु इनके दादाजी,प्रयाग नारायण एक हिन्दू थे,जिनके पिता को मुस्लिमों ने दंगों में मार डाला था और मुसलमान भी बना डाला था ! अकबर की पत्नी एक क्रिश्चियन हैं जो अब मुस्लिम हो चुकी हैं ! एम.जे अकबर कोई वास्तविक सेकुलर नहीं,बल्कि इस्लाम के प्रचार-प्रसार और प्रभुत्व के समर्थक रहे हैं ! प्रश्न यह है कि सुषमा स्वराज और जनरल वी के सिंह के विदेश मंत्रालय में रहते ख़ास तौर से एम जे अकबर को 2015 में राज्यसभा जितवाकर विदेश राज्यमंत्री बनाने की ज़रूरत क्या थी ?……
दरअसल मुख्तार अब्बास नकवी एक शिया हैं,उनकी गिनती मुसलमानों में होती ही नहीं है, मुस्लिमों और अरब वर्ल्ड को खुश करने और तुष्टिकरण के लिए अकबर को विदेश राज्यमंत्री बनाया गया था!इसी तुच्छ सोंच के चलते यह माना गया कि 58 मुस्लिम देशों से नेगोशिएट करने के लिए मुस्लिम विदेशमंत्री रखा जाए, यह भी एक तुष्टिकरण ही है ! (नोट करें कि के.जे अल्फ़ोन्स और डॉ हरदीप सिंह पुरी को भी कथित अल्पसंख्यक तुष्टिकरण नीति के चलते मंत्री और राज्यसभा सदस्य बनाया गया है ! 50-50 साल से भाजपा का झंडा उठाये और जेल जाने वाले भाजपाइयों को उपेक्षित कर दिया गया ) !
फिलहाल,यरूशलम में इज़राइल द्वारा अपनी राजधानी को स्थान्तरित करने पर मुस्लिम वर्ल्ड आंदोलित हो गया,UNGA में मामला आया ! सच्चाई यह है कि भारत, अमेरिकी और इज़राइल के आभारों के नीचे एक दबा देश है ! इजराइली भी भारत के प्रति गहरा श्रद्धा भाव रखते हैं क्योंकि भारत के हिंदुत्व ने सदियों से यहूदियों को पनाह दी,सम्मान दिया ! इजराइलियों ने 1965,1971 1999 के युध्दों में हमे आड़े वक्त पर हर तरीके की सैनिक मदद दी ,जिससे हम लड़ाइयां जीत सके ! यही नहीं यहूदी लाबी के दवाब में अमेरिका भी भारत को सम्मान और सैनिक,तकनीकी मदद करने लगा ,आज सब जानते है कि अमेरिका और भारत के संबंध भारत-रूस के मुकाबले ज्यादा प्रगाढ़ हैं ……
फिलहाल 50 अरब देशों के राजदूतों ने एम जे अकबर से व्यक्तिगत मुलाकात की और अमेरिकी-इज़राइल प्रस्ताव का विरोध करने का ‘निर्देश’ दिया ! भारत वैसे भी इज़राइल संबंधित मामलों में 15 बार इज़राइल के विरोध में मत दे चुका है, एक बार और दे देता तो कोई आसमान नहीं गिर पड़ता , लेकिन भारत के 25 करोड़ मुस्लिमों के तुष्टिकरण के लिए अरब मुस्लिम वर्ल्ड के आगे आत्मसमर्पण करना अपमानजनक है !
कुछ नए ज्ञानार्थी बताते हैं कि हम वोटिंग में तटस्थ रहते तो अरब हमसे नाराज़ हो जाते ,क्या अरब हमे तेल मुफ्त में देते है ? कुछ फेसबुक कूटनीतिज्ञ बताते है कि ईरान नाराज़ हो जाता क्योकि चाबहार बंदरगाह उसकी जमीन पर बना है,वहां से हम अफगानिस्तान को सामान भेजते हैं ! अफगानिस्तान को अरबों डॉलर की मदद 100 % बेकार ही जा रही है ! दरअसल हम अफगानिस्तान को 100 % अनुदान देते हैं,सड़के, अस्पताल, हवाई अड्डे और संसद भवन बनवाते हैं,मगर इससे भारत को कोई फायदा नही,अपितु अरबो-खरबों का खालिस नुकसान ही है,अफगानी मुस्लिमों के लिए हम भारतीय टैक्स-दाताओं को लूटा जा रहा है !!
दरअसल असली कूटनीतिज्ञ हम नहीं, बल्कि अफगानी हैं , खबरे यह भी हैं कि अफगानियों को भारतीय मदद का कुछ हिस्सा पाकिस्तान को भी चोरी-छिपे जा रहा है ,क्योकि अफगानिस्तान में ठेके और कंस्ट्रक्शन का काम पाकिस्तानियों के कंट्रोल में है ! फिलहाल एम.जे अकबर ,सुषमा स्वराज के स्वास्थ्य के चलते विदेश मंत्रालय के असली मालिक हो चुके हैं…..
!! अल्लाह मालिक है,भारत की विदेश नीति का—————– पवन्
पिछले दिनों आध्यात्मिक महापुरुषों द्वारा बलात्कारों की झड़ी सी सामने आयी तो सुपर आध्यतमिक ——— तिवारी ने इस पर एक लफ्ज़ नहीं लिखा वजह समझी जा सकती हे में जीरो स्प्रिचुअल नीड का आदमी हु मेरी किसी आस्था में ना कोई दिलचस्पी हे न प्रचार हे ना मुझे कोई बैर हे खेर असल बात बताता हु ———– तिवारी लिखता हे ————– ” तिवारी
2 hrs · पाकिस्तान के जो मुसलमां हैं वो कौन हैं? कहां से आये हैं? खैबर दर्रा पार करके आनेवाले कितने लोग होंगे? कुछ हजार या लाख। बाकी तो यहीं के हैं। उनके बाप दादा या किसी पुरखे ने तलवार के डर से जान बचाने के लिए इस्लाम कबूल कर लिया था। अब उन्हीं की संतानें सुन्नती हुई घूम रही हैं।
जाट, गूजर, राई, पठान, चौहान, राजपूत और कुछ पंडित बनिया। ज्यादातर तो यही लोग हैं। क्या इन्हें नहीं मालूम उनकी अम्मी की अम्मी की अम्मी की अम्मी की अम्मी अपना सुहाग कैसे सलामत रखती थीं? चूड़ी बिन्दी कंगन और सिन्दूर में न तो बम छिपाया जा सकता है और न ही इतनी सघन जांच के बाद कोई कैमरा और माइक्रोफोन ले जाया जा सकता है। यह सब जांच करना उनका मकसद भी नहीं था।
मकसद था अपमानित करना। वो अपने अतीत से नफरत करते हैं। इस्लाम यही सिखाता है। अपने अतीत से नफरत करो क्योंकि अतीत छोड़कर ही तुम आये हो। या फिर ऐसे भी कह सकते हैं कि छुड़ाकर तुम्हें लाया गया है। इसलिए वहां का सच्चा मुसलमान हो कि यहां का सच्चा मुसलमान उसके लिए हिन्दुओं से नफरत करना उसका ईमान है। इसी में उसका और उसके इस्लाम का सम्मान है।तिवारी ” ————————————————————————————असल में इस्लाम का मेन मुद्दा शिर्क हे और इन पगलेट तिवारियों और इनके पसंदीदा कुछ शियाओ बरेलवियो बोहरा अहमदी आदि के माध्यम से इन लोगो की हमेशा कोशिश हे रही हे की की कैसे भी करके इस्लाम में भी शिर्क ठूस दो मगर ये लोग अपने मकसद में कामयाब ना हुए ना होंगे तो इसलिए सही गलत कारणों से क्लेश चलता रहता हे फिर उसमे स्वहित हे राजनीति भी हे सत्ता की लड़ाई भी हे हथियारों के सौदागर भी हे शोषणकारी हे बहुत सारे फेक्टर हे मगर सौ बात की एक बात इस्लाम में शिर्क नहीं ठूसा जा सकता हे लेकिन – हां हम जैसे लोग पूरी कोशिश कर रहे हे और आगे भी जान लड़ा देंगे की ये भी हे की ना तो इस्लाम में शिर्क घुसाया जाए और इस्लाम और सभी का सहअस्तित्व भी हो जरूर हो पूरी कोशिश करेंगे इंशाल्लाह की सभी क्लेश खत्म हो मगर क्लेश से फायदा उठाने वाले भी हे और बहुत ताकतवर हे ये तिवारी भी उन्ही में से एक मामूली पयादा हे अच्छा इसकी बदमिजाजी देखिये नेट पर इस्लाम से जुड़े सभी क्लेश खत्म करने की दिशा में सबसे अधिक सामग्री हमने जुटाई मगर इस पगलेट ने कभी हमें प्रचार नहीं दिया और बताऊ तो इसकी साइट पर हमने बहुत लिखा था बहुत लोग हमें पसंद भी करते थे मगर हमारा कसूर था की हम सेकुलर भी थे और इस्लाम में शिर्क भी नहीं घुसाते थे तो इसने हमें तो कभी घास नहीं डाली और फिर एक दिन इसे जैसे ही इसे लखनऊ के बरेलवी लेखक——– सिद्द्की के दरस हुए तो उन्हें इस पगलेट तिवारी ने फ़ौरन उठाकर अपनी साइट की गोद में बिठा लिया था तो ये लोग हे क्लेश से फायदा उठाने की नियत वाले
हज़रत आयशा की शादी और उम्र आदि पर काफी विवाद रहता हे मेरा ख्याल हे की वो अरबी में 16 का 6 हो गया होगा खेर ये व्यू हे https://www.youtube.com/watch?v=kGLWi7i2Uv0&t=623s