by हरिगोविंद विश्वकर्मा
राष्ट्रपिता मोहनदास करमचंद गांधी की कथित सेक्स लाइफ़ पर एक बार फिर से बहस छिड़ गई है. लंदन के प्रतिष्ठित अख़बार “द टाइम्स” के मुताबिक गांधी को कभी भगवान की तरह पूजने वाली 82 वर्षीया गांधीवादी इतिहासकार कुसुम वदगामा ने कहा है कि गांधी को सेक्स की बुरी लत थी, वह आश्रम की कई महिलाओं के साथ निर्वस्त्र सोते थे, वह इतने ज़्यादा कामुक थे कि ब्रम्हचर्य के प्रयोग और संयम परखने के बहाने चाचा अमृतलाल तुलसीदास गांधी की पोती और जयसुखलाल की बेटी मनुबेन गांधी के साथ सोने लगे थे. ये आरोप बेहद सनसनीख़ेज़ हैं क्योंकि किशोरावस्था में कुसुम भी गांधी की अनुयायी रही हैं. कुसुम, दरअसल, लंदन में पार्लियामेंट स्क्वॉयर पर गांधी की प्रतिमा लगाने का विरोध कर रही हैं. बहरहाल, दुनिया भर में कुसुम के इंटरव्यू छप रहे हैं.
वैसे तो महात्मा गांधी की सेक्स लाइफ़ पर अब तक अनेक किताबें लिखी जा चुकी हैं. जो ख़ासी चर्चित भी हुई हैं. मशहूर ब्रिटिश इतिहासकार जेड ऐडम्स ने पंद्रह साल के गहन अध्ययन और शोध के बाद 2010 में “गांधी नैकेड ऐंबिशन” लिखकर सनसनी फैला दी थी. किताब में गांधी को असामान्य सेक्स बीहैवियर वाला अर्द्ध-दमित सेक्स-मैनियॉक कहा गया है. किताब राष्ट्रपिता के जीवन में आई लड़कियों के साथ उनके आत्मीय और मधुर रिश्तों पर ख़ास प्रकाश डालती है. मसलन, गांधी नग्न होकर लड़कियों और महिलाओं के साथ सोते थे और नग्न स्नान भी करते थे.
देश के सबसे प्रतिष्ठित लाइब्रेरियन गिरिजा कुमार ने गहन अध्ययन और गांधी से जुड़े दस्तावेज़ों के रिसर्च के बाद 2006 में “ब्रम्हचर्य गांधी ऐंड हिज़ वीमेन असोसिएट्स” में डेढ़ दर्जन महिलाओं का ब्यौरा दिया है जो ब्रम्हचर्य में सहयोगी थीं और गांधी के साथ निर्वस्त्र सोती-नहाती और उन्हें मसाज़ करती थीं. इनमें मनु, आभा गांधी, आभा की बहन बीना पटेल, सुशीला नायर, प्रभावती (जयप्रकाश नारायण की पत्नी), राजकुमारी अमृतकौर, बीवी अमुतुसलाम, लीलावती आसर, प्रेमाबहन कंटक, मिली ग्राहम पोलक, कंचन शाह, रेहाना तैयबजी शामिल हैं. प्रभावती ने तो आश्रम में रहने के लिए पति जेपी को ही छोड़ दिया था. इससे जेपी का गांधी से ख़ासा विवाद हो गया था.
तक़रीबन दो दशक तक महात्मा गांधी के व्यक्तिगत सहयोगी रहे निर्मल कुमार बोस ने अपनी बेहद चर्चित किताब “माई डेज़ विद गांधी” में राष्ट्रपिता का अपना संयम परखने के लिए आश्रम की महिलाओं के साथ निर्वस्त्र होकर सोने और मसाज़ करवाने का ज़िक्र किया है. निर्मल बोस ने नोआखली की एक ख़ास घटना का उल्लेख करते हुए लिखा है, “एक दिन सुबह-सुबह जब मैं गांधी के शयन कक्ष में पहुंचा तो देख रहा हूं, सुशीला नायर रो रही हैं और महात्मा दीवार में अपना सिर पटक रहे हैं.” उसके बाद बोस गांधी के ब्रम्हचर्य के प्रयोग का खुला विरोध करने लगे. जब गांधी ने उनकी बात नहीं मानी तो बोस ने अपने आप को उनसे अलग कर लिया.
ऐडम्स का दावा है कि लंदन में क़ानून पढ़े गांधी की इमैज ऐसा नेता की थी जो सहजता से महिला अनुयायियों को वशीभूत कर लेता था. आमतौर पर लोगों के लिए ऐसा आचरण असहज हो सकता है पर गांधी के लिए सामान्य था. आश्रमों में इतना कठोर अनुशासन था कि गांधी की इमैज 20 वीं सदी के धर्मवादी नेता जैम्स वॉरेन जोन्स और डेविड कोरेश जैसी बन गई जो अपनी सम्मोहक सेक्स-अपील से अनुयायियों को वश में कर लेते थे. ब्रिटिश हिस्टोरियन के मुताबिक गांधी सेक्स के बारे लिखना या बातें करना बेहद पसंद करते थे. इतिहास के तमाम अन्य उच्चाकाक्षी पुरुषों की तरह गांधी कामुक भी थे और अपनी इच्छा दमित करने के लिए ही कठोर परिश्रम का अनोखा तरीक़ा अपनाया. ऐडम्स के मुताबिक जब बंगाल के नोआखली में दंगे हो रहे थे तक गांधी ने मनु को बुलाया और कहा “अगर तुम मेरे साथ नहीं होती तो मुस्लिम चरमपंथी हमारा क़त्ल कर देते. आओ आज से हम दोनों निर्वस्त्र होकर एक दूसरे के साथ सोएं और अपने शुद्ध होने और ब्रह्मचर्य का परीक्षण करें.”
किताब में महाराष्ट्र के पंचगनी में ब्रह्मचर्य के प्रयोग का भी वर्णन है, जहां गांधी के साथ सुशीला नायर नहाती और सोती थीं. ऐडम्स के मुताबिक गांधी ने ख़ुद लिखा है, “नहाते समय जब सुशीला मेरे सामने निर्वस्त्र होती है तो मेरी आंखें कसकर बंद हो जाती हैं. मुझे कुछ भी नज़र नहीं आता. मुझे बस केवल साबुन लगाने की आहट सुनाई देती है. मुझे कतई पता नहीं चलता कि कब वह पूरी तरह से नग्न हो गई है और कब वह सिर्फ़ अंतःवस्त्र पहनी होती है.” दरअसल, जब पंचगनी में गांधी के महिलाओं के साथ नंगे सोने की बात फैलने लगी तो नथुराम गोड्से के नेतृत्व में वहां विरोध प्रदर्शन होने लगा. इससे गांधी को प्रयोग बंद कर वहां से बोरिया-बिस्तर समेटना पड़ा. बाद में गांधी हत्याकांड की सुनवाई के दौरान गोड्से के विरोध प्रदर्शन को गांधी की हत्या की कई कोशिशों में से एक माना गया.
ऐडम्स का दावा है कि गांधी के साथ सोने वाली सुशीला, मनु, आभा और अन्य महिलाएं गांधी के साथ शारीरिक संबंधों के बारे हमेशा गोल-मटोल और अस्पष्ट बाते करती रहीं. उनसे जब भी पूछा गया तब केवल यही कहा कि वह सब ब्रम्हचर्य के प्रयोग के सिद्धांतों का अभिन्न अंग था. गांधी की हत्या के बाद लंबे समय तक सेक्स को लेकर उनके प्रयोगों पर भी लीपापोती की जाती रही. उन्हें महिमामंडित करने और राष्ट्रपिता बनाने के लिए उन दस्तावेजों, तथ्यों और सबूतों को नष्ट कर दिया गया, जिनसे साबित किया जा सकता था कि संत गांधी, दरअसल, सेक्स-मैनियॉक थे. कांग्रेस भी स्वार्थों के लिए अब तक गांधी के सेक्स-एक्सपेरिमेंट से जुड़े सच छुपाती रही है. गांधी की हत्या के बाद मनु को मुंह बंद रखने की सख़्त हिदायत दी गई. उसे गुजरात में एक बेहद रिमोट इलाक़े में भेज दिया गया. सुशीला भी इस मसले पर हमेशा चुप्पी साधे रही. सबसे दुखद बात यह है कि गांधी के ब्रम्हचर्य के प्रयोग में शामिल क़रीब-क़रीब सभी महिलाओं का वैवाहिक जीवन नष्ट हो गया.
ब्रिटिश इतिहासकार के मुताबिक गांधी के ब्रह्मचर्य के चलते जवाहरलाल नेहरू उनको अप्राकृतिक और असामान्य आदत वाला इंसान मानते थे. सरदार पटेल और जेबी कृपलानी ने उनके व्यवहार के चलते ही उनसे दूरी बना ली थी. गिरिजा कुमार के मुताबिक पटेल गांधी के ब्रम्हचर्य को अधर्म कहने लगे थे. यहां तक कि पुत्र देवदास गांधी समेत परिवार के सदस्य और अन्य राजनीतिक साथी भी ख़फ़ा थे. बीआर अंबेडकर, विनोबा भावे, डीबी केलकर, छगनलाल जोशी, किशोरीलाल मश्रुवाला, मथुरादास त्रिकुमजी, वेद मेहता, आरपी परशुराम, जयप्रकाश नारायण भी गांधी के ब्रम्हचर्य के प्रयोग का खुला विरोध कर रहे थे.
गांधी की सेक्स लाइफ़ पर लिखने वालों के मुताबिक सेक्स के जरिए गांधी अपने को आध्यात्मिक रूप से शुद्ध और परिष्कृत करने की कोशिशों में लगे रहे. नवविवाहित जोड़ों को अलग-अलग सोकर ब्रह्मचर्य का उपदेश देते थे. रवींद्रनाथ टैगोर की भतीजी विद्वान और ख़ूबसूरत सरलादेवी चौधरी से गांधी का संबंध तो जगज़ाहिर है. हालांकि, गांधी यही कहते रहे कि सरला उनकी महज “आध्यात्मिक पत्नी” हैं. गांधी डेनमार्क मिशनरी की महिला इस्टर फाइरिंग को भी भावुक प्रेमपत्र लिखते थे. इस्टर जब आश्रम में आती तो वहां की बाकी महिलाओं को जलन होती क्योंकि गांधी उनसे एकांत में बातचीत करते थे. किताब में ब्रिटिश एडमिरल की बेटी मैडलीन स्लैड से गांधी के मधुर रिश्ते का जिक्र किया गया है जो हिंदुस्तान में आकर रहने लगीं और गांधी ने उन्हें मीराबेन का नाम दिया.
दरअसल, ब्रिटिश चांसलर जॉर्ज ओसबॉर्न और पूर्व विदेश सचिव विलियम हेग ने पिछले महीने गांधी की प्रतिमा को लगाने की घोषणा की थी. मगर भारतीय महिला के ही विरोध के कारण मामला विवादित और चर्चित हो गया है. अपने इंटरव्यू में कभी महात्मा गांधी के सिद्धांतों पर चलाने वाली कुसुम ने उनकी निजी ज़िंदगी पर विवादास्पद बयान देकर हंगामा खड़ा कर दिया है. कुसुम ने कहा, “बड़े लोग पद और प्रतिष्ठा का हमेशा फायदा उठाते रहे हैं. गांधी भी इसी श्रेणी में आते हैं. देश-दुनिया में उनकी प्रतिष्ठा की वजह ने उनकी सारी कमजोरियों को छिपा दिया. वह सेक्स के भूखे थे जो खुद तो हमेशा सेक्स के बारे में सोचा करते थे लेकिन दूसरों को उससे दूर रहने की सलाह दिया करते थे. यह घोर आश्चर्य की बात है कि धी जैसा महापुरूष यह सब करता था. शायद ऐसा वे अपनी सेक्स इच्छा पर नियंत्रण को जांचने के लिए किया करते हों लेकिन आश्रम की मासूम नाबालिग बच्चियों को उनके इस अपराध में इस्तेमाल होना पड़ता था. उन्होंने नाबालिग लड़कियों को अपनी यौन इच्छाओं के लिए इस्तेमाल किया जो सचमुच विश्वास और माफी के काबिल बिलकुल नहीं है.” कुसुम का कहना है कि अब दुनिया बदल चुकी है. महिलाओं के लिए देश की आजादी और प्रमुख नेताओं से ज्यादा जरूरी स्वंय की आजादी है. गांधी पूरे विश्व में एक जाना पहचाना नाम है इसलिए उन पर जारी हुआ यह सच भी पूरे विश्व में सुना जाएगा.
दरअसल, महात्मा गांधी हत्या के 67 साल गुज़र जाने के बाद भी हमारे मानस-पटल पर किसी संत की तरह उभरते हैं. अब तक बापू की छवि गोल फ्रेम का चश्मा पहने लंगोटधारी बुजुर्ग की रही है जो दो युवा-स्त्रियों को लाठी के रूप में सहारे के लिए इस्तेमाल करता हुआ चलता-फिरता है. आख़िरी क्षण तक गांधी ऐसे ही राजसी माहौल में रहे. मगर किसी ने उन पर उंगली नहीं उठाई. कुसुम के मुताबिक दुनिया के लिए गांधी भारत के स्वतंत्रता आंदोलन के आध्यात्मिक नेता हैं. अहिंसा के प्रणेता और भारत के राष्ट्रपिता भी हैं जो दुनिया को सविनय अवज्ञा और अहिंसा की राह पर चलने की प्रेरणा देता है. कहना न भी ग़लत नहीं होगा कि दुबली काया वाले उस पुतले ने दुनिया के कोने-कोने में मानव अधिकार आंदोलनों को ऊर्जा दी, उन्हें प्रेरित किया.
लेखक हरिगोविंद विश्वकर्मा कई न्यूज चैनलों में वरिष्ठ पदों पर कार्य कर चुके हैं. उनका यह लिखा उनके ब्लाग से लेकर यहाँ प्रकाशित किया जा रहा है !
SACHCHAI JO BHI HO MAGAR LEKH PASAND AAYA , KUCH TO SACHCHAI RAHI HOGI AISE BAAT THODE HI NIKLI HAI
में आप से रिक्वेस्ट करना चाहुगा के इस तरह के लेख न प्रकाशित करे क्योके ये भगवा और संघ द्वारा लिखा जाता है गांधी जी को बदनाम करने की साजिश है ! ऐसे भी सेक्स उनका अपना मसला था इससे किसी को मतलब नहीं होना चाहिए
मेरे बिचार से अभी इन बातों को उठाना बिलकुल अप्रसंगिक है, कारण हर इन्सान का एक सेक्स लाईफ होता है, बहुत सिमित लोगों का उजागर होता है, अधिंकाश का छुपा रहता है, ये कोई अपराध नहीं है, ना ही इससे उनकी छवी पर अांच आती है, जितना गान्धी जी के बारे मे जानकारी उपलब्ध है, उससे यही पता चलता ये सारे कार्य सहमति से किया गया था, अपितू अभी ये बाते कोई मायने नहीं रखती,
All such bakwaas and fake news by some irresponsible Sangh Parivar people cannot detract the people of the world from deifying Gandhi. The concerned senior people of the organisation to which this mad cap belongs should control this mad cap. The one experiment about Brahmacharya Gandhi made in Noakhali is hinted by Prof. Nirmal Kumar Bose in his book published by Navajeevan. This fellow has not read that book. I have not only read it but discussed the matter with Prof. Bose, the well-known anthropologist and Commissioner for SC&ST 1967-71. Very soon Gandhiji gave up the experiment on a personal appeal by the doyen of social workers, Thakkar Bapa, who was requested by the close associates of the Mahatma to make a short visit to Noakhali for this purpose. Now this ignorant man is inventing so-called historians and allegedly sensational stories. His post deserves to be dismissed with the contempt it deserves. He may not have been born when I came in contact with the RSS in 1941 but it is below my dignity to spread canards about the vulnerable aspects of the fascist organisation or about the character of some of its leaders or cadres merely because I am instinctively opposed to its ideology. I am not even sure if the writer is connected with the RSS. He may be from the discredited army of the so-called ‘gorakshaks’ or Hindu Yuva Vahini.
दुनीया मे बहोत सारे लोगोको पास कोइ काम धाम होता नही है. वो लोग सेक्स के बारे मे जादा सोचते है. या फिर जो कुछ जादाही फाँरवर्ड और खुदको माँडर्न समझते है वो सेक्स के बारेमे जादा खुलकर बाते करते है. गांधीजी इन दोनो कँटँगिरी मे नही आते है. गांधीजी की सेक्स लाइफ पर रिसर्च करने वाला माँडर्न विचारोका कोइ इन्सान होगा. this is totally unproductive research. ऐसे विषयो से कुछ फायदा नही होता है.
अगर बाजार मे कपडे खरीदने गये तो कपडे ही खरीदने चाहीये, दुकानदार कि सेक्स लाइफ के बारे मे जानने का प्रयास नही करना चाहीये. गांधीजी से हमने अहींसा, त्याग, उपवास, संयम ये सिखना है, बाकी की बाते बकवास है.
अभी देखा की सोशल मिडिया पर छोटे इकबाल के सबसे बड़े फेन इलाहबादी सज़्ज़न और उनके बहुत सारे साथी आजकल कुछ मुस्लिम लड़कियों और खासकर एक लड़की से तो बुरी तरह खार खाये बैठे हे इस पत्रकार लड़की की दोस्त और रूम मेट ने पिछले वर्ष कई मानसिक दबावों से परेशान होकर खुदखुशी कर ली थी तो उस केस के कारण और एक वेबसाइट दुआरा ज़बर्दस्ती सिर्फ विवाद पैदा करने और प्रचार पाने की खातिर कुछ मुस्लिम लड़कियों को खांमखा क्रांतिकारी आदि घोषित कर दिया गया था जबकि इनमे से अधिकतर कोई खास लिखती भी नहीं हे हद ये की उनमे से एक तो यु ही बबली सी लड़की का नाम भी था जिसने दो चार पोस्ट कभी बुर्के पर लिखी होगी बस इनमे से किसी भी महिला की ऐसा कोई खास लेखन या गतिविधि नहीं थी की उन्हें रूढ़िवाद विरोधी कोई क्रन्तिकारी घोषित किया जाए जाहिर हे की वेबसाइट ने ये घटिया हरकत विवाद पैदा करने को की थी क्योकि आज हर कोई कैसे भी करके विवाद और पब्लिसिटी चाहता हे निगेटिव पॉजिटिव शब्द अब कोई महत्व नहीं रखते हे वेबसाइट अपने मकसद में कामयाब भी हुई और खासा प्रचार मिला यही आज हर कोई चाहता हे की दिखे और बिके खेर वो जो भी हो वो एक अलग विषय हे बात आयी गयी हो गयी लेकिन छोटे इकबाल के सबसे बड़े फेन और उनके बहुत सारे साथी अभी भी रूममेट की खुदखुशी विवाद को लेकर उनसे से एक लड़की के पीछे हाथ धो कर पड़े हे और उस पर तरह तरह की बाते कर रहे हे वो बाते सही हे या गलत हमें नहीं पता हमें उससे कोई लेना देना नहीं हे हमारा विषय कुछ और ही हे हमारा विषय हे की आखिर ये कटटरपन्ति ( सभी प्रकार के हिन्दू मुस्लिम छोटे बड़े- खुले छिपे- नरम गरम सभी प्रकार के ) इन आधुनिक लड़कियों से महिलाओ इतना क्यों चिढ़ते हे इसके पीछे क्या राज़ छिपा हो सकता हे आपने देखा ही होगा की भारत के सभी कटटरपन्ति लोग वो इन आज़ाद ख्याल आधुनिक लड़कियों से बेहद चिढ़ते हे आजकल ये भी देखा की नोएडा घरेलू कामगार विवाद के बाद कुछ हिन्दू कटटरपन्ति जिम जाने वाली शॉर्ट्स पहनने वाली लड़कियों और उनकी आधुनिक माताओ को खूब कोस रहे थे आखिर क्यों ————– ? असल में जैसा की उस केस में देखे तो वो लड़की जॉब के लिए इंदौर से दिल्ली आयी थी काम करना चाहती थी सहेली के साथ अकेली रहती थी उस सहेली ने सुसाइड कर ली आदि तो बात ये भी हे की इन कटटरपन्तियो को इस प्रकार की लड़किया सिरे से ही बिलकुल पसंद नहीं आती हे इस प्रकार की लड़कियाँ जो पढ़ना चाहती हे काम करना चाहती घर से बाहर निकलना चाहती हे कुछ बनना चाहती हे अपनी जिंदगी जीना चाहती हे इन लड़कियों से इन सभी प्रकार के कटटरपन्तियो को बड़ी सख्त नफरत होती हे बहुत सख्त नफरत इसकी वजह मुझे मेरी मोटी अक्ल से मुझे तो ये समझ आती हे ये लड़कियाँ इन लोगो की बहुत बड़ी आकांशा चाहत और सपने और छुपे हुए हित पर पानी फेरती दिखाई पड़ती हे और ये इन कटटरपन्तियो की दूरदर्शिता कहा जा सकती हे की वो बखूबी जानते हे की ये लड़किया और इनका रवैया अगर फैलता हे तो इनके हितो के खिलाफ हे कैसे खिलाफ हे ———- ? वो ऐसे हे की ये लड़किया और इनका रवैया इन हिन्दू मुस्लिम कटटरपन्तियो के एक बहुत बड़े मनसूबे पर पानी फेरती हे वो मंसूबा हे की लोगो से अधिक से अधिक आबादी बढ़वाकर अपना वर्चव बढ़ाना और इसी से कई तरह के हित साधना . आपने देखा ही होगा की खासकर मुस्लिम कटटरपन्ति और हिन्दू कटटरपन्ति भी ये जरूर ही करते हे की लोगो से परिवार नियोजन ना करने आबादी बढाने की अपील करते हे या नहीं तो बढ़ती आबादी को कभी मुद्दा नहीं बनाते आपने देखा ही होगा की सोशल मिडिया के ये मुस्लिम कटटरपन्ति रोज सुबह शाम मुसलमानो की बदहाली का जिक्र करते हे सारी दुनिया को इसके लिए जिम्मेदार ठहराते हे मगर भूल कर भी फेमली प्लानिंग की बात नहीं करते हे क्योकि इसमें ही इनके कई हित छुपे होते हे अब होता ये हे की छोटे इकबाल के संबसे बड़े फेन इलाहाबादी सज़्ज़न और उनके साथी जिस लड़की से खार खाये बैठे हे इस तरह की लड़किया इनके इरादों में बहुत बड़ा रोड़ा बनती हे ये पढ़ना चाहती हे कुछ करना चाहती हे अपनी जिंदगी जीना चाहती हे अपनी मर्जी चाहती हे जिसमे स्वाभिवक हे की कुछ गलतिया भी होने को हो सकती हे मगर इससे ही किसी के खुद की जिंदगी जीने का हक़ नहीं छीना जा सकता हे तो इस प्रकार की लड़किया नेचुरल हे की वो ना तो जल्द शादिया करेगी और ना ही बच्चे पैदा करने की मशीन बनेगी ना ही इसमें कोई खास रूचि लेंगी यही होगा अब इन लड़कियों महिलाओ की इसी हरकत और फितरत से कटरपन्तियो को और उनके आकाओ को बहुत चिढ होती हे ये तो चाहते हे की अधिक से अधिक से अधिक आबादी बढे ताकि इनके धर्म का राजनीति का वर्चस्व बढे इन कटरपन्तियो के आका नेता और पैसे वाले लोग होते हे ये भी यही चाहते हे की अधिक आबादी हो इनके अधिक वोट हे ज़ज़्बाती और भड़काऊ मुशायरा सभाये सुनने को लाखो की भीड़ हो , जाती के अधिक से अधिक वोट हे नेताओ को फायदा हो पैसे वाले लोगो के लिए अधिक से अधिक बड़ा बाजार हो सस्ते से सस्ते लेबर हो यही नहीं अधिक आबादी से जिंदगी से परेशान लोग हे जो भेड़ बकरी की तरह इनके पीछे चले इनके कहने पर लड़े यानी अधिक आबादी से इन लोगो का कटटरपन्तियो का शोषकारियो का नफ़ा ही नफ़ा हे अब होता ये हे की ये आधुनिक लड़कियाँ इनमे भी बाकी सभी लोगो की तरह अच्छाइया बुराइया होती ही हे मगर ये तो तय हे की इनका एटीट्यूड कभी भी जल्दी शादी करके अधिक बच्चे पैदा करने का किसी भी हालत में नहीं होता हे इसलिए ये आधुनिक लड़कियाँ इन कटटरपन्तियो के हमेशा निशाने पर रहती हे हमेशा .
मेने भी ऊपर यहाँ कहा था की मेन मुद्दा हे लड़कियों से अधिक बच्चे पैदा करवाने का कटटरपन्तियो का सपना – राजेश प्रियदर्शी बी बी सी हिंदी ————-इन लड़कियों की आँखों में माँ बनने के नहीं, करियर के सपने हैं. वे बहुत जद्दोजहद के बाद घर से निकल पाई हैं, वे इज्ज़त से रहना चाहती हैं, हॉस्टल में रहने की अनुमति उन्हें आसानी से नहीं मिली होगी. अब इतने बवाल के बाद पिटकर घर लौटी बहुत सारी लड़कियों पर ज़बान बंद करके चुपचाप रहने या घर लौट आने का भारी दबाव होगा.लेकिन ये सिर्फ़ बीएचयू की लड़कियों की बात नहीं है, ये दबाव हर जगह होगा और ज़िंदगी को देखने के नज़रिए का टकराव भी हर ऐसी जगह दिखाई देगा जहाँ लड़कियों के मुँह में ज़बान है और वे उसका इस्तेमाल करना सीख गई हैं.
बीएचयू की लड़कियाँ छेड़खानी से सुरक्षा की माँग कर रही थीं, सीसीटीवी लगाने का अनुरोध कर रही थीं, रास्ते में लाइटें लगाने की बात कह रही थीं, जबकि संघ का प्रतिनिधित्व करने वाले वीसी उनसे बात तक करने को तैयार नहीं थे.नवरात्र में देवी की अराधना करने वाले प्रोफ़ेसर त्रिपाठी ने लड़कियों को पुलिस के हाथों पिटने दिया.5 मौके जब नरेंद्र मोदी सरकार से भिड़े यूनिवर्सिटी के छात्रमांगपत्रइमेज कॉपीरइटRAJESH PRIYADARSHIImage captionबीएचयू की छात्राओं का मांगपत्रबीएचयू की छात्राओं के साथ जो व्यवहार हुआ है उससे देश में, ख़ास तौर पर कैम्पसों में गुस्सा है, कई शहरों में यूनिवर्सिटी की छात्राओं ने इसके ख़िलाफ़ प्रदर्शन किया है जो ये दिखाता है कि वे इस टकराव में अपना पक्ष चुन रही हैं, और इसके लिए किसी राजनीतिक रुझान या समर्थन की ज़रूरत नहीं है.जब देश की महिलाएँ हर क़दम पर मर्दवादी वर्चस्व के ख़िलाफ़ लड़ रही हैं, क़दम-क़दम पर संघर्ष और कई बार जीत की कहानियाँ लिख रही हैं, ज़ाहिर है, उन्हें हिंदू राष्ट्र की रक्षा के लिए सबल और संस्कारी पुत्र पैदा करने की भूमिका में धकेला जाना कैसे मंज़ूर होगा?
वे साक्षी महाराज के चार बच्चे पैदा करने के आह्वान में योगदान करने वाली माताएँ बनने के इरादे से यूनिवर्सिटी नहीं जा रही हैं.
संघ की पौधशाला से उमा भारती और साध्वी निरंजन ज्योति ही आ सकती हैं जिन्होंने कभी किसी यूनिवर्सिटी की शोभा नहीं बढ़ाई है. राजेश प्रियदर्शी ” ———————- ——————————-लेकिन लड़कियों को खास कर आम लड़कियों को ये बात समझ लेनी चाहिए क्रांति और नए विचार एक बहुत ही लम्बी और कष्टसाध्य पर्किर्या हे इसमें तकलीफे ही तकलीफे हे क़ुरबानी देनी पड़ेगी उसके लिए भी तैयार रहिये जैसा हमने दी मेरी बहने आज अपने बड़े भाई की याद में रो रोकर बेहाल हे एक तरह से मेरे बड़े भाई की मौत भी इन्ही सब आदर्शो पर चलने में हुई हे ——————— जारी
”संजय जोठे – देश के लिये बड़ा खतरा है तकनीक के बाबू JUL 30, 2017 1भारत में इंजीनियरिंग मैनेजमेंट मेडिसिन या तकनीक की अकेली पढाई पूरी कौम और संस्कृति के लिए कितनी घातक हो सकती है ये साफ नजर आ रहा है. इस श्रेणी के भारतीय युवाओं में समाज, सँस्कृति, साहित्य, इतिहास, धर्म की अकादमिक समझ लगभग शून्य बना दी गयी है. ये तकनीक के “बाबू” देश के लिए बड़ा खतरा बन गए हैं.अकेली तकनीक,साइंस, मैनेजमेंट या मेडिसिन पढ़ने वालों से कभी बात करो तो पता चलता है कि ये व्हाट्सएप के प्रोपेगण्डा के कितने आसान शिकार हैं. इनमे से अधिकांश लोगों को इतिहास, समाज, सँस्कृति आदि की कोई समझ नहीं है, ये कल्पना भी नहीं कर पाते कि जैसे मेडिसिन या तकनीक की पढ़ाई की अपनी गहराई या ऊंचाई है उसी तरह साहित्य, दर्शन, राजनीति और सामाजिक विमर्श की भी अपनी गहराइयाँ और ऊंचाइयां होती हैं.ये तकनीक, मेडिसिन, मैनेजमेंट या साइंस के “बाबू” एक खतरनाक और आत्मघाती फौज में बदल गए हैं। दुर्भाग्य की बात ये भी है कि ये लोग सांप्रदायिक, धार्मिक और जातीय दुष्प्रचार के सबसे आसान शिकार हैं. आजकल के बाबाओं और अध्यात्म के मदारियों की गुलामी में इन बाबुओं की पूरी पीढ़ी बुरी तरह फस चुकी है. ये ही अप्रवासी भारतीयों की उस फ़ौज के निर्माता हैं जो विदेश से भारतीय संप्रदायवाद को पैसा और समर्थन भेजते हैं या यूरोप अमेरिका में पोलिटिकल या कोर्पोरेट लाबिंग करते हैं.भारत में समाज विज्ञान और मानविकी (ह्यूमेनिटीज) के विषयों की जैसी उपेक्षा और हत्या की गई है वह भयानक तथ्य है. ठीक मिडिल ईस्ट और अरब अफ्रीका के जैसी हालत है, आगे ये हालत और बिगड़ने वाली है. विज्ञान तकनीक मेडिसिन आदि को यांत्रिक ढंग से सीखकर कुछ सवालों के जवाब देने इन्हें आ जाते हैं, कुछ बीमारियों का इलाज करना, कुछ प्रबंधकीय समस्याओं को सुलझा लेना या “यूरोपीय या अमेरिकी” प्रेस्क्रिप्शन पर खड़े मोडल्स को चला लेना इनकी कुल जमा विशेषज्ञता है. ये असल में अच्छे आज्ञापालक हैं जो तकनीकी आज्ञाओं का पालन करके कुछ काम कर लेते हैं.ये स्वयं अपनी इंजीनियरिंग मेडिसिन या मेनेजमेंट में कितना नवाचार या शोध कर रहे हैं ये जगजाहिर बात है, उस मामले में ये फिसड्डी थे आज भी हैं क्योंकि इनमे क्रिटिकल थिंकिंग की कोई ट्रेनिंग ही नहीं है, ये सिर्फ अपने कुवें के मेंढक बने रहते हैं, जैसे ही यूरोप अमेरिका से कोई नई तकनीक पैदा होकर आती है वैसे ही ये उसका सबसे सस्ता या देसी संस्करण बनाने में लग जाते हैं. इसी से ये खुद को “वैज्ञानिक” भी सिद्ध करवा लेते हैं. फिर आगे बढ़कर इस विज्ञान को वेद उपनिषदों में खोजकर दिखाने वाले बाबाओं के चरण भी दबाने पहुँच जाते हैं. इन अधकचरे तकनीक के बाबुओं की भीड़ से घिरे हुए बाबाजी फिर दुनिया भर में हल्ला मचा देते हैं.ये बाबू और बाबा समाज में रूतबा रखते हैं, चूँकि इनके पास पैसा होता है कारें होती हैं और कारपोरेट की लूट के ये सीधे हिस्सेदार हैं इसलिए लोग इन्हें समझदार समझते हैं. भारत जैसे गरीब अनपढ़ और अन्धविश्वासी समाज में ज्ञानी और बुद्धिमान वही समझा जाता है जिसके पास पैसा हो बड़ा बंगला या कार हो. ये तकनीक के बाबू इसपर खरे उतरते हैं. इसीलिये ये दुष्प्रचार के सबसे आसान शिकार और उपकरण बन गये हैं.संजय जोठे
इनकी अपनी पढाई पर भी गौर किया जाए विज्ञान विषयों की शार्टकट और ट्रिक सीखते हुए ये इंजीनियरिंग मेनेजमेंट या मेडिसिन की पढाई में प्रवेश करते हैं. ऊपर से धन कमाने की मशीन बन चुके कोचिंग संस्थान इन्हें इंसान भी नहीं रहने देते. जिस विज्ञान की ये ढपली बजाते हैं उस विज्ञान और तकनीक को भी एकदम भक्तिभाव से घोट पीसकर चबा जाते हैं कोई क्रिटिकल थिंकिंग नहीं की जाती. कोचिंग या तैयारी के दौरान पैसा खर्च करके बिलकुल रट्टा घोटा मारकर जैसे ये कालेज में घुसते हैं वसे ही बाहर निकलते हैं और पैसा कमाने की मशीन बन जाते हैं, तब ये भीड़ यथास्थिति बनाये रखना चाहती है ताकि इनके माता पिता ने अपनी क्षमता से बाहर जाकर भले बुरे ढंग से कमाते हुए इनपर जो खर्च किया है वह इस समाज से वसूल किया जा सके. ये अर्थशास्त्र भारत के भविष्य पर भारी पड़ रहा है. इसके कारण ये धनाड्य लेकिन अनपढ़ पीढी भारत में सामाजिक बदलाव या क्रान्ति की सबसे बड़ी दुश्मन बनकर उभर रही है.ऐसी यथास्थितिवादी और सुविधाभोगी ‘कुपढ़’ भीड़ को हांकना धर्म, सम्प्रदायाद और राष्ट्रवाद के लिए बहुत आसान है. वे बड़े पैमाने पर हांके जा रहे हैं. इन लोगों पता ही नहीं कि वे अपने और अपनी ही अगली पीढ़ियों की कब्र खोद रहे हैं. संजय जोठे
इस “तकनीक की बाबू” पीढ़ी से अब इतना बड़ा खतरा पैदा हो चुका है जिसका कोई हिसाब नहीं. ये पीढी चलताऊ राष्ट्रवाद, अध्यात्म, सांस्कृतिक पुनर्जागरण और अतीत पर गर्व इत्यादि के बुखार में सबसे आसानी से फसती है और जहर फैलाने को तैयार हो जाती है. ये पीढी भारत के सभ्य और समर्थ होने की दिशा में एक बड़ी बाधा बनकर उभर रही है. इस पीढी को या अगली पीढी को अगर मानविकी विषयों, साहित्य, काव्य, इतिहास दर्शन आदि की थोड़ी समझ नहीं दी गयी तो ये सामूहिक आत्मघात के लिए बेहतरीन बारूद बन जायेंगे जिसे कोई भी सनकी तानाशाह या धर्मांध सत्ता आसानी से जब तब सुलगाती रहेगी.
– संजय जोठे ”
सिकंदर हयात • a minute ago
में भी इस सबका ज़बर्दस्त शिकार हु बहुत ज़्यादा , मेरे भाई भी सॉफ्टवेयर इंजिनियर हे और आई बी एम् में रहे लेकिन वो तकनीक के बाबू नहीं रहे हिंदी भी पढ़ने लिखने का शोक रहा नतीजा सवेदनशीलता की उन्होंने अपने मित्र की सही समय पर लाखो की मदद की और वो दोस्त आज आयरलैंड में मज़े कर रहा हे दूसरी तरफ मेरा बेस्ट फ्रेंड जिसे बीसियों लाख खर्च करके ——— बनाया गया उसे मेरी कोई परवाह नहीं हे बुरा नहीं हे वो अच्छा आदमी हे मगर समय समझ खत्म हो चुकी हे उन्हें सिर्फ उस विषय की समझ रह गयी हे जो उन्हें पैसा दे रहा हे बाकी किसी बात की समझ नहीं बची हे और मुसीबत की यही लोग धर्म कर्म पर जरूर खूब पैसा फूँक रहे हे
Deepak Sharma
4 August at 18:44 · New Delhi ·
बचपन में जब माँ को हर पूर्णमासी का व्रत रखते देखता था और पापा को हर मंगलवार को… तो एक डिफरेंट फीलिंग आती थी. या फिर वो दशहरा का मेला , या मेले से पहले नवरात्र और दुर्गा पूजा के पंडाल…जब माँ बाप बहनो के साथ हर शाम किसी पंडाल में हम सब होते थे… तो एक डिफरेंट फीलिंग होती थी. मांस नहीं खाना है…शराब नहीं छूनी है…तम्बाकू का सवाल नहीं…रोज़ दोहराया जाता था. और रोज़ नहा धोकर नाश्ते से पहले घर के मंदिर में रखे ठाकुरों को प्रणाम करना होता था. कोई बड़ा बुजुर्ग घर आये तो सबसे पहले पैर छूने का इशारा दिया जाता था. … ये हमने सीखा नहीं ..हमे सिखाया गया था. शायद मामा शाखा में जाते थे या दादा किसी गोलवलकर से प्रभावित रहेंगे होंगे. कारण संघ हो, आर्यसमाज हो या जो भी रहा हो पर घर में संस्कारों पर ही ज़ोर था. संतुष्टि ये है कि 40 -45 साल बाद संस्कारों का 90 प्रतिशत लहू से अभी अलग नहीं हुआ है. शायद यही प्रैक्टिस ऑफ़ हिन्दू लाइफ है…जिसे सुप्रीम कोर्ट ने भी हिंदुत्व कहा है.
लेकिन आज मै देखता हूँ कि एक टीवी रिपोर्टर जो 2014 से पहले दिल्ली के अशोक होटल के अमात्रा स्पा में दिन भर दलाली करते थे आजकल शाम को एंकरिंग में वो देश को संस्कार पर ज्ञान दे रहे हैं. हिंदुत्व और मोदित्व समझा रहे है. जिनके हाथों में जाम और हथेलियों में काली कमाई के नोट थे …जिनका संस्कारों से कभी सरोकार नहीं रहा वो अचानक टीवी का सुदर्शन चक्र हाथ में लेकर अपसंस्कारों का वध करने निकले है. जिन्होंने स्टूडियो में स्कर्ट पहनने वाली हर रिपोर्टर को बुरी निगाह से देखा और एंकर बनाने के प्रलोभन में दर्ज़नो मुताह किये वो मोहन भागवत के भक्त बने हुए है और ट्विटर पर भगवा का मोर्चा सभाला हुआ है. रातों रात बदली हुईं इन विचारधाराओं और वफादारियों को देखकर मै हैरान हूँ. जो कभी ताज मानसिंह होटल के चैम्बर क्लब में करोड़ों की डील कर आज टीवी मालिक बने है वो ये बता रहे हैं कि संघ और हिंदुत्व का कॉपीराइट उनके पास है. जो मशहूर एंकर यूपीए राज में हुडा के बेटे और वाड्रा के साथ मिलकर गुडगाँव की हर बड़ी ज़मीन का लैंड यूज़ बदलवा रहे थे वो 16 मई 2014 के बाद कांग्रेस मुक्त भारत का आह्वान कर रहे है. पिछले दस वर्षों से सत्ता के ये घोषित दलाल अचानक हिंदुत्व के पैरोकार, गौरक्षक और देश भक्त हो गए.
किसी पत्रकार का विचारधारा बदलना अपराध नहीं है. कांग्रेसी से भाजपाई होना भी अपराध नहीं है. लेफ्ट से राइट विंगर होना भी अपराध नहीं है.
लेकिन विचारधारा बदलकर अपराध(दलाली) जारी रखना सबसे बड़ा अपराध है.
ऐसे अपराधियों की पहचान ज़रूरी है.Deepak Sharma
Rajiv Nayan Bahuguna Bahuguna
5 August at 21:39 · Dehra Dun ·
यह भारतीय लोकतंत्र की स्वर्ण परीक्षा का काल है । यह इतिहास का एक मनोवैज्ञानिक क्षण है । स्वाधीनता संग्राम के सर्वाधिक नाज़ुक क्षणों में जिन्होंने अंग्रेजों का साथ दिया , आज यदि उनके हाथ मे भारत वर्ष का सत्ता सूत्र है , तो यह भारतीय लोकतांत्रिक प्रणाली अथवा संविधान का फेल्योर नहीं , अपितु लोकतंत्र गामी शक्तियों की असफलता है । सर्वाधिक कांग्रेस की , जिसके जघन्य भ्र्ष्टाचार , परिवारवाद और अकर्मण्यता से देश पक चुका था । महती आवश्यकता है , कि कांग्रेस को अहिंसक बम से उड़ा दिया जाए , और इसका पुनसृजन किया जाए । कम्युनिष्टों का स्वदेशीकरण किया जाए । वे टाई कोट की जगह अपने प्रदेशों की स्थानीय पोशाक पहनें । गिटपिट अंग्रेज़ी बोलना बन्द करें । भारतीय भाषाओं में संवाद करें । साम्राज्यवादी चीन के खिलाफ मोर्चा खोलें ।
सनद रहे , कि अभी अभी साम्प्रदायिक अधिनायक वाद में विश्वास रखने वाले वोट के लिए झूठ , अफवाह और सीनाजोरी का सहारा ले रहे हैं । कल वह संविधान को स्थगित भी कर सकते हैं । जिस विचारधारा का निर्मम हत्यारा अपने आड़े आ रहे एक अहिंसक , राम नाम भजने वाले वृद्ध की हत्या कर सकता है , उनके लिए कुछ भी असम्भव और वर्जित नहींRajiv Nayan Bahuguna Bahuguna
4 August at 21:12 · Dehra Dun ·
राहुल गांधी पर पड़े पत्थरों के प्रत्युत्तर में जो मूर्ख ” पत्थर का बदला पत्थर से ” का राग अलाप रहे हैं , क्या उन्हें आभास है कि वे देश को गृह युद्ध की दिशा में ठेल रहे हैं , जिसमे अंततः संघ परिवार की ही विजय होनी है ? वह तो चाहते ही यह हैं कि सरकार बनाने का फैसला अंततः वोट की बजाय पत्थर से हो , और उन्हें लोकतंत्र को स्थगित करने का अवसर मिले । आप उनसे गाली , गोली , लाठी , पत्थर और त्रिशूल के मुकाबले में नहीं जीत सकते । ये सब उनके पाठ्यक्रम में शामिल हैं । संघ परिवार ही एक ऐसा समूह है , जहां लाठी चालन की विधिवत और खुली ट्रेनिंग दी जाती है । डंडा उनके गणवेश में शामिल है ।अन्यथा कोई भी सभ्य नागरिक , जिसे भैंस न हाँकनी हो , लट्ठ लेकर चलना पसन्द नहीं करता ।
यद्यपि कई अलगाववादी मुस्लिम संगठन भी हथियारों की ट्रेनिग देते हैं , लेकिन भूमिगत । संघ परिवार में यह खुला खेल फरुखाबादी चलता है । इसी सबके मद्दे नज़र सरदार वल्लभ भाई पटेल गांधी हत्या के बाद संघ परिवार को ban करने का मन बना चुके थे , लेकिन नेहरू ने अपने लोकतांत्रिक अतिरेक के कारण उन्हें रोका । पत्थर और लाठी दर असल इन बर्बर हिंसकों की मातृ भाषा है । दंगे का मैदान उनका प्रिय रंग मंच है । याद नहीं कि जब इंदिरा गांधी की हत्या के बाद जब कुछ कांग्रेसी लुच्चे सिखों पर जुल्म ढा रहे थे , तब संघ परिवार उन कोंग्रेसी गुंडों के साथ था । राहुल गांधी को राजनीति करनी है तो लाठी , पत्थर , गाली , गोली सब झेलें , जैसा कि उनके पूर्वजों ने झेला ।—–Rajiv Nayan Bahuguna Bahuguna
7 August at 11:31 · Dehra Dun ·
कवियत्री के पक्ष में कवि पर लठ भांजते हुए फेसबुक तथा अन्यत्र समवेत वक्तव्य जारी करने वाले साहित्यकार उन राहगीरों जैसे हैं , जो महिला की स्कूटी और पुरुष की बाइक में टक्कर होने पर धड़ाधड़ पुरुष की सुताई करने लगते हैं , बगैर यह जाने समझे , कि गलती किसकी थी , कितनी थी और जानबूझ कर थी या अनजाने । चूंकि इससे उन्हें महिला के प्रति सहानुभूति दिखाने का सुअवसर और अपने पुरुष दम्भ की संतुष्टि का शुभ लाभ मिलता है । जैसे अमेरिका में कुछ लोग फैशन के तौर पर यदाकदा अमेरिकी नीतियों के विरुद्ध बयान देते रहते हैं , ऐसे ही कुछ पुरुष अपनी नैतिकता पर पालिश मारने के लिए पुरुष के विरुद्ध और महिला के पक्ष में बयान देते रहते हैं ।
मैने मूल सन्दर्भ नहीं देखा है , क्योंकि मैं साहित्य या उससे सम्बंधित सामग्री को तभी पढ़ता हूँ , जब मेरे पास कोई अन्य काम नहीं होता । मेरे पास साहित्य पढ़ने से अधिक आवश्यक बाइक दौड़ाना , जंगल मे लकड़ी से भोजन बनाना , किसी सरोवर में तैरना अथवा स्वस्थ और उन्मुक्त वाजि गण को बन में चरते देखना आदि कार्य हैं , जिनसे मुझे कम ही फुर्सत मिल पाती है । अतः मैने मामले से सन्दर्भित क्षेपक ही देखे हैं , जिनके मुताबिक मेरा निष्कर्ष है कि कवि पर पथराव अनावश्यक और अवांछित है ।
नम्र निवेदन है , कि फेस बुक और साहित्य में अलग से कोई महिला आरक्षण लागू नहीं है । नही यहां ऐसा है कि महिला को 15 सेकंड से अधिक देखने पर घूरने वाला क़ानून लागू हो जाये । इसी लिए मैं महिलाओं को अपनी फ्रेंड लिस्ट में शामिल नहीं करता । मेरी मित्र सूची में एक्का दुक्का वही महिलाएं हैं , जिनके बारे में आश्वस्त हूँ , कि वे अलग से महिला नहीं , अपितु एक व्यक्ति हैं । शिकायत किये जाने पर मेरा उत्तर यही होता है कि , चूंकि मैं आये दिन अश्लील लिखता हूँ , और इससे आपके महिला पन को ठेस लग सकती है , अतः हमारा एक दूसरे से दूर रहना ही समीचीन है ।Rajiv Nayan Bahuguna Bahuguna
Manisha Pandey
6 August at 12:55 ·
10-12 साल पुरानी बात है। तब ब्लाॅग नया-नया आया था। मैंने कुछ लिख दिया, हम लड़कियां पतित होना चाहती हैं। एकदम इममैच्योर सी पोस्ट थी, कुछ दम नहीं था उसमें। मतलब कुछ बहुत आर्टिकुलेट विचार नहीं थे, लेकिन क्यूट थी। लेकिन भई हिंदी वाले तो हिंदी वाले हैं। उस पर भी बवाल काट दिए। हिंदी के बवालों से ये मेरा पहला साबका था। सब अपना काम-धाम छोड़कर पतित लड़की का विश्लेषण करने तुल पड़े। थी तो मैं कम उमर ही। डर गई।
कोई डर जाए तो क्या करता है। किसी का हाथ ढूंढता है न पकड़ने के लिए। मैंने भी ढूंढा। मुझे लगा कि जो लोग दोस्त हैं, उन्हें इस पर कुछ बोलना चाहिए। मेरे पक्ष में स्टैंड लेना चाहिए। मैंने आवाज लगाई। लोग पतनशीलता का विश्लेषण छोड़ स्टैंड लेने लग पड़े। कुछ देर बाद हुआ यूं कि जिसकी ये लड़ाई थी, वो लड़ाई से गायब हो चुकी थी और लोग आपस में पुराने निजी और साहित्यिक स्कोर सेटल कर रहे थे। कोई मेरे बहाने किसी को गाली दे रहा था तो कोई उस बहाने किसी को पुचकार रहा था। कुछ लोग लगे हाथ दोस्ती में स्टैंड लेने के बहाने मुझे भी सेट करने में लग पड़े थे। सेट न हो पाने की सूरत में तत्काल पाला बदल ले रहे थे। ब्लाॅग जगत में कोहराम मचा हुआ था। सुबह से शाम फोन घनघना रहे थे। ब्लाॅग और ब्लाॅग के बाहर तय किया जा रहा था कि कौन किसके पक्ष में है और किसके पक्ष में नहीं है। और मैं उस शहर में निपट अकेली अपने दो कमरे के फ्लैट में छत को ताकती सोच रही थी कि कोई नहीं है, डर लगने पर जिसका हाथ थामा जा सके। मैं दीवार से सटकर बिछे गद्दे पर दीवार से सटकर सोती, जैसे लगे कि बगल में कोई है।
तो जी शाॅर्ट में स्टोरी ये कि हमने मदद का हाथ मांगा तो मदद में आए लोगों द्वारा एक चवन्नी छाप आंदोलन संपन्न हो गया।
उस घटना के सबक मेरे लिए कुछ यूं थे-
1- तुम लिखोगी, बोलोगी, जियोगी तो ये सब तो होगा ही। तारीफ, आलोचना। कोई आंय बोलेगा, कोई बांय। कोई पीठ थपथपाएगा, कोई शराब पीकर पोस्ट लिखेगा। अब जा-जाकर सबका मुंह तो नहीं पकड़ सकते न। सो जस्ट चिल।
2- तुम कम उम्र, कम अनुभव हो, सेंसिटव हो, अकेली हो, डर गई हो, आहत हो गई हो तो तुम्हें मदद चाहिए होगी। लेकिन ये एक उम्र के बाद उस तरह से मिलती भी नहीं, जैसे बचपन में गिरते ही मां गोद में उठा लेती थी। ये समझ भी उम्र के साथ आएगी कि कौन सचमुच हाथ पकड़ रहा है और कौन हाथ पकड़ने का दिखावा करते हुए निजी स्कोर सेट कर रहा है। और हां, जीवन बड़ा दयालु है। सुंदर-असुंदर सब यही हैं। हाथ पकड़ने वाले भी मिलेंगे। अच्छे लोग। अच्छी कविताएं, अच्छी किताबें देने वाले लोग। उन्हें पहचानने का सलीका जरूर वक्त के हाथ आएगा।
3- अपनी हर लड़ाई हमें खुद ही लड़नी होती है, फेसबुक पर या जिंदगी में। ये चुनाव तुम्हारे हाथ में है कि कौन सी वाली लड़नी है और कौन सी वाली छोड़ देनी है। फेसबुक वाली इग्नोर कर सकती हो। या न करना चाहो तो तुम्हारी मर्जी। फैसला खुद ही करना होगा। तुमको बारह पोस्टों से जवाब देना है, कोर्ट जाना है या चप्पल उतारकर वहीं के वहीं स्कोर सेटल करना है। तुम्हारा फैसला। प्लीज, लोगों से मत बोलो कि मेरे हिस्से की लड़ाई लड़िए न प्लीज। आप मेरे पक्ष में हैं या नहीं हैं। मेरे लिए स्टैंड लीजिए। मेरे पक्ष में कुछ बोलिए। लेख लिखिए। नो। ये सब किया तो फिर से एक चवन्नी छाप आंदोलन संपन्न होगा।
4- और जो लोग तुम्हारे साथ हैं, वो हैं। उनका हाथ है सिर पर। फेसबुक पर दिखे, जरूरी नहीं। बल्कि फेसबुक पर जो दिखता है, वो असल में होता नहीं है।Manisha Pandey
गाँधी जी ने ब्रह्मचर्य के प्रयोगों के नाम पर आश्रम में जो छिछोरपन फैला रखा था, उसकी कभी सार्वजनिक रुप से लानत मलामत हुई होती, तो किसी आसाराम या राम रहीम या एक जो कश्मीर में नंगा पीर सुना था, किसी की भी हिम्मत न होती भावनात्मक सहारे के लिए अपने आई किसी महिला के आँचल पर हाथ डालने की.
भीष्म जैसे दृढ़व्रती को भी इतिहास ने कभी क्षमा नहीं किया द्रौपदी का अपमान होते देखने के लिए, मगर पोती के साथ नहाने वाले बापू मोहन दास महात्मा कहलाए. नोटों पर छपे और लक्ष्मी गणेश के साथ पूजे गए.
पूरे ज्ञात भारतीय इतिहास में एक भी उदाहरण महात्मा गाँधी की टक्कर का नहीं है. हाई प्रोफाइल भक्तों का जमघट, आश्रम की महिलाओं को अपनी लौंडी समझना, साधना के नाम पर व्याभिचार, यह सब वो है जो गाँधी जी से भारतीय फिल्म निर्माताओं ने सीखा और रिफाइन करके समाज को वापस सिखाया.
गाँधी जी के खिलाफ कभी यौन शोषण का मुकदमा नहीं चला. आदमी की हिम्मत ही नहीं हुई. कोई कोई ऐसा होगा जिसकी इच्छा भी नहीं हुई होगी. सुना जाता है कि जय प्रकाश नारायण की पत्नी के साथ बापू ने ब्रह्मचर्य के प्रयोग कर लिए थे, जेपी नाराज़ थे मगर कुछ कह नहीं पाए. यह बिल्कुल उसी तरह है कि आदमी प्रमोशन कैरियर के लिए अपने बॉस और बीवी के नाजायज ताल्लुकात नज़र अंदाज़ कर दे.
जेपी जी ने समाज को जो नेता रत्न दिए उनके अलावा यह चुप्पी भी उनके कैरियर की बड़ी उपलब्धि है.
ये सब चुप रहे, बापू की बकरी को घास खिलाते रहे, चश्मे पर पालिश लगाते रहे, तभी तो किसी बाबा किसी पीर की हिम्मत बढ़ी होगी.
Vikas Agrawal
”देवेश कुमार
10 June ·
जब पूरा देश दाने-दाने को मोहताज था तब उसने बड़ी चतुराई से विदेश जाकर वकालत पढ़ी…और फ़िर अफ्रीका जाकर उतनी चतुराई से गुलामी और गुलामों के दर्द को महसूस किया। लेकिन, भारत आकर अंग्रेजों की खुशामद करके अपने लिए भारत के हर राज्य में एक हवेली बनवा ली… दिन-रात सैकड़ों नौकरों से घिरने वाला वो चतुर सूट-बूट चढ़ाकर जब निकलता था तो यहाँ की अपवित्र ज़मीन पर पैर ही नहीं रखता था कि कहीं पैर ही गंदे न हो जायें। अंग्रेजी हुकूमत ने जब उसे ‘भारत रत्न’ की उपाधि देनी चाही तो उसने अपने लिए ‘राष्ट्रपिता’ की उपाधि मांग ली….। जब अंग्रेज वीर सावरकर जैसों के भय से भारत छोड़कर जा रहे थे तो वो बहुत रोया था… अंग्रेजों के प्रति उसका प्रेम ऐसा था कि अंग्रेजों ने अपने यहाँ उसकी प्रतिमा लगवा दी…30जनवरी 1948 को फिसलकर गिरने से उसकी मौत हो गई थी…! लेकिन भारत को असली आज़ादी 26 मई 2014 को मिली…और भारत के पहले प्रधानमंत्री बनने का गौरव एक त्यागपुरुष को मिला जिसने भारत की आज़ादी में अतुलनीय योगदान दिया है…इस आज़ादी के बाद से भारत लगातार विकास की सीढ़ियां चढ़ता जा रहा है…. रोज़ एक इतिहास बन रहा है….कई महापुरुष ऐसे हैं जो जीवित किंवदंती बन गए हैं…और वे देश की अदालतों द्वारा समय-समय पर सम्मानित होते रहे हैं….उनको देश का वास्तविक इतिहास लिखने की महत्त्वपूर्ण भूमिका सौंपी गई है…और उन्होंने बड़ी ही ईमानदारी से इस काम को अंजाम देना शुरू कर दिया है…नई पीढ़ी को अब तक के भ्रामक इतिहास से बचाना इनका पहला कदम है…!
#कल्लू_मामा ” संघी अग्रवाल लिखता हे ” जेपी नाराज़ थे मगर कुछ कह नहीं पाए. यह बिल्कुल उसी तरह है कि आदमी प्रमोशन कैरियर के लिए अपने बॉस और बीवी के नाजायज ताल्लुकात नज़र अंदाज़ कर दे. ” ——————————————- कौन सा प्रोमोशन ——- ? जे पी को तो नेहरू अपना उत्तराधिकारी बनाना चाहते पहले उप और बाद में प्रधानमंत्री बनाना चाहते थे जे पी ने ही खुद मना किया था फिर किस प्रोमोशनं की बकवास की जा रही हे फिर जे पी के कारण भी संघी मेनस्ट्रीम में घुसे थे ( आरोप ) संघी मोदी को ”हेलीकॉप्टर ” देने वाले राम रहीम कांड के बाद से पगला गए हे और बचाव का कोई रास्ता न देकर पता नहीं क्या क्या नॉनसेंस बक रहे हे जबकि हिन्दुओ को आदिवासियों को -ईसाई मिशनरियों से बचाने के नाम पर शायद संघ की लीडरशिप में बकौल राजेंद्र यादव एक से बढ़ कर एक राक्षसी संत तांडव कर ही रहे हे ———————————Satyendra PS-सिरसा के एक अदना से बाबा ने 56 इंच ब्रांड नरेंद्र मोदी को औकात दिखा दी। सेना भेजने के बावजूद 37 लोगों की हत्या हुई जिनमें शायद आम नागरिक ज्यादा हैं।
एक बार रामदेव भी अपनी एक लाख सेना लेकर दिल्ली चढ़ आए थे। बहुत अमीर, ज्यादा चेले। भीड़ देखकर ख़ुशी से पागल बाबा बोले कि सोनिया की सभा में जितने लोग जुटते हैं, उतने लोग मेरे पेशाब करने पर देखने के लिए जुट जाते हैं।
शांत , मृदुभाषी, ईमानदार गृह राज्यमंत्री आरपीएन सिंह मामले को देख रहे थे। भारत के इतिहास में शायद यह पहला मौका था जब यह आदेश दिया गया कि कार्यक्रम में निहत्थी पुलिस कानून व्यवस्था देखेगी। किसी पुलिस वाले को डंडा ले जाने की भी अनुमति नहीं थी।
नशे में चूर बाबा ने ऊल जुलूल बयान देना शुरू किया। योग के लिए अनुमति से चार गुना भीड़ जुटाई। समय सीमा का उल्लंघन किया। लगा कि बाबा रामलीला ग्राउंड को राजनीतिक मंच बनाएगा।
आखिरकार सरकार सख्त हुई। रामदेव सलवार पहनकर भागा। पुलिस ने मंच से एक किलोमीटर पर ही उसे धर दबोचा। दूसरे दिन सलवारी बाबा ने रोते हुए मीडिया वार्ता की।
वहीँ राम रहीम के गुर्गों ने न सिर्फ उत्पात मचाया, हत्याएं की, बल्कि उसके निजी गार्डों ने एक आईपीएस अधिकारी को थप्पड़ जड़ दिया।
…
शासक अगर नैतिक हो तो हमारे सैन्य बल, हमारे प्रशासन और जनता की आबरू सुरक्षित रहती है। अगर शासक लिबिरहा हो, घूसखोर हो, पूंजीपतियों और बाबाओं का दलाल हो तो क्या आईपीएस, क्या सेना, क्या पब्लिक, किसी की आबरू सुरक्षित नहीं रहती।स्वतंत्रता के समय अगर संघियों के हाथ सत्त्ता आई होती तो देश के सैकड़ों रजवाड़ों में से कोई भी चढ़कर पीएम की पता नहीं क्या-क्या कर दिया होता।
देश सैकड़ों रियासतों में बंट गया होता।
एक अदने से बाबे ने केंद्र से लेकर राज्य तक की सरकार और सुरक्षाबलों को मुर्गा बना दिया, इसे देखकर तो यही लगता है।
शुक्रिया सरदार कि आप थे.
Satyendra PS
Satyendra PS
हम सरकार को एक आदमी की मानते हैं, इसलिए नमो नही तो कौन का सवाल भक्त लोग पब्लिक मे उछाल देते हैं. एक व्यक्ति का सवाल तब हो, जब तानाशाही की बात हो, जैसे नमो ने देश के तमाम संस्थानो को अपने आगे झुका दिया है. इतनी मजबूत सरकार कि देश के संस्थान कमजोर हो गये, और देश मजबूत हो गया.
नमो की 56 इंच की छाती है, वो खूब बोलते हैं, इसलिए मजबूत है. मनमोहन बहुत कम बोलते थे, इसलिए इतने ज्ञानी नही थे, उनमे विजन नही था. रिमोट से चलने वाले पीएम थे, इसलिए कमजोर थे.
अब ये अलग बात है, उनकी सरकार मे रामदेव को सलवार पहन के भागना पड़ा, और बीजेपी के केंद्र और राज्य दोनो जगह होने के बावजूद तांडव हो गया.
बाकि नमो की ही दिलेरी है कि वो कश्मीर मे अलगाववादी और आतंकवादियों के साथ, धारा 370 के समर्थन मे खड़ा होने वाले कश्मीरियों को मीडिया के ज़रिए, भारत विरोधी घोषित कर, सारे कश्मीरियों से लड़ने को तैयार है.
सरकार ने देश की बड़े बड़े विश्वविद्यालयों की छवि आम जनता मे देशद्रोही बता कर निस्संदेह राष्ट्र-निर्माण का कार्य किया है. तार्किक और सभ्य चर्चा की बजाय, असहमतियों को ललकार और गाली-गलौच से चुनौती देने वाली देशभक्तो की फौज तैयार करी है.
देशभक्ति के इतने सारे लिटमस टेस्ट्स की खोज इस सरकार ने कर दी कि और हमे पता चल सका कि हमारे देश मे इतने गद्दार रहते हैं. हमारा देश तो इतने इसे गुणी और महान व्यक्ति का नेतृत्व पाकर धन्य हो गया.
सही है भाई कि bjp ने 37 आदमी मरवा दिए पंचकूला में पर आप डेरा सिरसा को रामदेव के साथ कैसे compare कर सकते है। रामदेव की सभा में किसके पास हथियार थे। वहां जो पुलिस एक्शन हुआ वो इसलिए कि रामदेव और सोनिया की कैबिनेट में जो सेटिंग हुई थी रामदेव उससे आगे निकल गए थे। बाकी जैसा आपकी समझदार और राज काज में काबिल कांग्रेस सरकार ने उस दिन रामलीला ग्राउंड में समझदारी के साथ खून रहित एक्शन किया वोह समझदारी 1984 में कहा गयी थी। तब हज़ारो लोग मरवा दिए थे इंदिरा गांधी और ज़ैल सिंह की नीतियों ने और पंजाब अगले 8साल तक जलता रहा। इसी कांग्रेस ने आनंद मार्ग को लाइन में लाने के लिए कितने लोगों को मरवाया था वो भी कभी पढ़ लीजीये। उस दिन अगर रामलीला ग्राउंड में खून की होली नही हुई थी टी कारण था कि संघी रामदेव लोकतांत्रिक तरीके से लड़ रहे थे। माफ कीजिये हमें तो यही सरकार आपकी कांग्रेस से अच्छी लगती है
गाँधी ने ब्रह्म्चर्य के साथ अपने प्रयोगों को अपनी किताब “सत्य के साथ मेरे प्रयोग” मे विस्तार से लिखा है. गाँधी ने कुछ छुपाया नही, ऐसे मे इस विषय पर सनसनीखेज लेख बनना मुश्किल है. सिवाय इन अटकलों के फलाँ महिला को चुप रहने के लिए कहा. सरदार पटेल और गाँधी की दूरी की बात लेख मे लिखी गई है, लेकिन ऐतिहासिक दस्तावेज़ इसकी पुष्टि नही करते. ना सिर्फ़ पटेल बल्कि उनका पूरा परिवार गाँधी के काफ़ी करीब रहा था.
मेरे परिवार माँ काली पर पान और पेड़ा चढ़ाने का रिवाज है लेकिन मैं उनपर चढ़ने वाली बलि का विरोध नहीं कर सकता हु यही वजह है की मैं बकरीद पर कटने वाले बकरो का भी विरोध नहीं करता हु वास्तव में जब हम किन्तु परन्तु लगा कर एक सेलेक्टिव सोच का समर्थन करते है और दूसरे का विरोध तो यही से ही न चाहते हुए भी हम कट्टरता को हो बढाने का काम करते है
सही कहा जाकिर भाई गाँधी जी ने जो किया ( ? ) वो बहुत अजीब सा था मगर जो भी हो गाँधी ने कुछ नहीं छिपाया था ना ये रिलेशन थे न रेप था ना बदले में देने को कुछ था गांधी खुद कहते थे की वो काम को कंट्रोल के लिए झूझते रहे थे फ़्रांस की क्रांति और आधुनिक दुनिया की नींव के पत्थर ” रूसो ” ( फ़्रांस में कहावत हे की अगर यहाँ रूसो ना पैदा होता तो क्रांति भी ना होती ) लिखते हे की वो मदाम रोला जिन्हे वो माँ जैसी कहते थे वो स्वीकारते हे की वो उनकी और भी” आकर्षित ” हुए थे तो जो गाँधी जी ने किया बताया जाता हे वो सब अजीब सा था मगर संघियो का अपने ज़हरीले विलासी लोभी लुच्चे बाबाओ के बचाव में महामानव गाँधी को लाना इनकी पुरानी नीचता का प्रदर्शन ही हे ——————————Shahnawaz Malik
2 hrs ·
बाबा रामपाल इसलिए मशहूर हुए क्योंकि वो स्नान पानी से नहीं दूध से करते थे. फिर उस दूध से खीर बनाई जाती थी और प्रसाद के रूप में बांटा जाता था. बाबा से जुड़ी ख़बर पढ़ेंगे तो पाएंगे कि इस विशेष खीर वाले प्रसाद को ग्रहण करने के लिए लंबी क़तारें लगती थीं. गिरफ़्तार होने से पहले बाबा लाखों-करोड़ों भारतीयों को ये प्रसाद खिला चुके थे.
बाबा के बारे में ये जानकारी मिलने के बाद आज जब करोड़ों भारतीय भाजपा के साथ खड़े दिखते हैं तो मुझे हैरानी नहीं होती. किसी को भी नहीं होनी चाहिए.Shahnawaz Malik
2 hrs · Rajiv Nayan Bahuguna Bahuguna
26 August at 12:13 ·
अंध भक्त चाहे किसी बाबे के हों या राजनेता के , यहां तक कि भगवान के भी , सभी तरह के अंध भक्त स्वयम के लिए तथा समाज के लिए घातक होते हैं । इतिहास साक्षी है कि ये समय समय पर भारी आपदा का हेतु बने हैं। यहां तक कि एक अलग तरह के बाबा रजनीश मोहन जैन के अंध भक्तों ने भी देश विदेश में भारी कहर ढाया है , जबकि रजनीश एक सुपठित एवं तार्किक मनुष्य था । लेकिन चूंकि उसमे भी सेक्स , सम्पति और यश की भारी हवस थी , अतः उसने भी खाते पीते घरों के लड़कों को नीम पागल बना दिया । निदान , जब रजनीश मोहन जैसे बौद्धिक बाबाओं ने भी इतिहास के साथ घात किया तो आसुमल सिरुमलानी अथवा गुरमीत जैसे मूर्खों की तो बात ही क्या है। ऐसे डेरों तथा झूठे , पाखंडी राजनेताओं के निकट प्रभाव में रहने वाले भक्तों की नियमित जांच कोई डॉक्टर करे । यदि उसके दिमाग तथा खून में भक्ति की मात्रा सामान्य से अधिक पाई जाए , तो तुरंत उसका बिजली के झटकों से इलाज किया जाए , ताकि जन धन की सम्भावित क्षति से बचा जा सके । Rajiv Nayan Bahuguna Bahuguna
महात्मा गाँधी के अजीब प्रयोग ही नहीं नेहरू की सेक्स लाइफ भी बेहद चर्चा में रही हे महिलाये भी नेहरू की तरफ बेहद आकर्षित रही हे एडविना की बेटी ने पिछले दिनों बिलकुल सटीक बताया की नेहरू और उनकी माँ एकदूसरे को बेहद पसंद करते थे मगर फिजिकल रिलेशन नहीं थे . कहा तो ये भी जाता हे की नेहरू को सेकुलर राष्ट्र बनाने से रोकने के लिए एक सन्यासिन ————– जिससे ———– ? खेर बात ये हे की क़ाम तो एक बड़ी समस्या रहा ही हे कुछ लोग इसका हल दमन को तो कुछ सब कुछ फ्री को इसका हल बताते रहे मगर हल नहीं मिला दमन बताने वाले किस कदर येड़ा बनकर पेड़ा खाने वाले हुए ये तो शीशे की तरह साफ़ हे ही मेरे एक दोस्त का दोस्त फाइव स्टार होटल में था अल्लाह ही जाने क्या सच था वो कहता था की उसने मुसलमानो की एक बहुत बड़ी हस्ती —
को ————–उधर फ्री बताने ओशो टाइप के आश्र मो में उन्ही के चेले चेलिया गर्भपात से लेकर रेप तक पर किताबे लिख रहे हे गाँधी नेहरू जेसो ने छुपाया नहीं ना किसी का शोषण किया ये महामानव थे ये न दोगले थे न येड़ा बनकर पेड़ा खाने वाले थे बस हो सकता हे की ———————— ? नेहरू की बात करे तो जवानी उनकी जेल और आंदोलनों में गुजरी उसके बाद उनकी बीवी रही नहीं उसके बाद भी बहुत बिजी रहे इंदिरा को देखे हुए दूसरी शादी ना कर सके , मेरे जैसे टुच्चो का हाल तो समाजसेवा का रुझान और छुटभय्येक्रन्तिकारी होने के कारण खतरों को देखते हुए अंदाज़ा लगाया की शादी से दूर रहना चाहिए और वैसे भी बहुत बड़ी फेमली से होने के और हमेशा फेमली के साथ रहने के कारण भी उस हलवाई जैसी हालात हो गयी जिसे मिठाई ( बीवी बच्चे परिवार ) में कोई आकर्षण नहीं दीखता हे लेकिन हे तो हम भी सामान्य आदमी ही जो हमेशा आकर्षण में रहता हे तो हमारे जेसो के लिए क़ाम बहुत बड़ी समस्या रहा हे शादी कर नहीं सकते क्योकि रूचि नहीं हे किसी से झूठा प्यार का नाटक नहीं कर सकते क्योकि बुरे नहीं हे पेड़ सेक्स भी नहीं रुचता किसी तरह चैन नहीं ऊपर से वो लोग जो एक्सरसाइज वगैरह करते हे उनमे और भी ज़्यादा ————————? तो क़ाम तो बेहद समस्या हे ही जैसे एक बार अगर वो लड़की दुनिया को बता देती की देखने में बेहद शरीफ दिखने वाले और हे भी सिकंदर ने ———————-तो शायद शायद मुझे सुसाइड करनी पड़ सकती थी भला हो उसका की उसने किसी को भी कुछ नहीं बताया . तो हम सभी को समझना चाहिए अपने अंदर झांकना चाहिए की काम तो समस्या हे ही महात्मा गाँधी तो महामानव थे जो उन्होंने कुछ भी छुपाया नहीं
एक बात गौर करे तो चाहे वो झाँसाराम हो या ये जो—- या फिर अपनी तेज ( पाल) ठरक में एक अच्छे खासे जमे जमाये पत्रकारिता ग्रुप को डुबो देने वाला , एक बात गौर करे तो तीनो को ही सेक्स की कोई कमी नहीं रही होगी भर भर कर होगा मगर तीनो ने ही कम उम्र कुंवारी लड़कियों पर भी हाथ साफ़ करने के चक्कर में ——————– ? ये सब इन्होने क्यों किया इनके लिए तो सब कुछ तो बढ़िया चल रहा होगा बात यही हे की सेक्स यहाँ बहुत बड़ी समस्या हे यहाँ या तो मिलता नहीं हे , या भर भर कर मिलता हे जिन्हे नहीं मिलता वो तो कुंठित होते ही हे तो जिन्हे मिलता हे वो भी बोर होकर नया नया नया चाहते हे और फिर ——- ? ऊपर तीन ठरकियो की बात करे तो तीनो ने ही भर भर कर सेक्स मौजूद होने के बाद भी जो किया , बात यही हे की इन तीनो को किसी ना किसी ने जरूर बताया होगा की अरे हमने तो कुंवारी ————- ——- अरे मेरे पीछे पड़ गयी थी —————– अरे बहुत ——————–तो ये सब इन्होने सूना होगा और . बात ये भी हे की किसी के भी सेक्स अनुभवों को कभी भी सौ फीसदी सच मानकर ही ना चले इनमे बहुत कुछ तीर तुक्का खट्टा मीठा आधा सच आधा झूठ गप्पे शप्पे होते ही हे . लोग किसी की भी बातो सेक्स दावों को शर्तिया सच मानकर ना चले ये पॉइंट भी हमेशा याद रखे————————————————————————————–Arvind Varun
27 August at 09:31 ·
आखिर कैसे कुछ लोग अपना सब कुछ दांव पर लगा देते हैं?
गुरमीत राम रहीम प्रकरण को ही लीजिए।
साध्वी तो जानती थी कि गुरमीत कितना खूंखार अपराधी है और किस तरह उसके चरणों में बड़े-बड़े राजनेता पोंछा लगाते हैं, लेकिन वह नहीं झुकी। उसे अपना भाई खोना पड़ा,परंतु भाई की हत्या के बाद भी वह नहीं टूटी। वर्षों चली जांच और अदालती कार्रवाई में वह कभी पीछे नहीं हटी। कल्पना कीजिए, उसे शांत कर देनेे के कौन-कौन से तरीके अपनाये गए होंगे।
रामचंदर छत्रपति को किसी बड़े अखबार का साया प्राप्त नहीं था। वह पूरा सच नामक एक छोटा अखबार निकालते थे। लेकिन दिल इतना बड़ा था कि साध्वी के जिस पत्र को छापने का साहस कोई बड़ा अखबार नहीं दिखा सका, उसे प्रमुखता से छापने के साथ गुरमीत राम रहीम के काले कारनामों का एक-एक कर उद्भेदन करने लगे। इस दौरान कितना दबाव, कितना प्रलोभन, कितनी धमकियां इन्हें मिली होंगी, लेकिन सच का दामन छोड़ने का नाम नहीं लिया। सीना छलनी करवाना मंजूर किया, परंतु पूरा सच सामने ला दिया।सीबीआई डीएसपी सतीश डागर। खूब जानते थे कि वह जिसके खिलाफ सबूत जुटा रहे है, उसकी चरण वंदना में किस तरह पूरा सत्ता प्रतिष्ठान हर पल समर्पित है। लेकिन कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी। इतने पुख्ता सबूत जुटा दिए कि अपराधी का बच पाना असंभव हो गया। नौकरीपेशा लोगों की एक सीमा होती है। इस लिहाज से सोचिए कि कितना और किस तरह का जानलेवा दबाव इन्हें झेलना पड़ा होगा। लेकिन टस से मस नहीं हुए।
जिस किशोर बेटे के बाप को छलनी कर दिया गया था, उस अंशु छत्रपति की परिस्थितियों का अनुमान आसानी से लगाया जा सकता है। पिता रामचंदर छत्रपति के हत्यारे गुरमीत के खिलाफ लड़ पाना इस नौजवान के लिए इकट्ठे सत्ता, शासन और समाज के एक भांग खाये हिस्से से अकेले लोहा लेना था। लेकिन अब भी इन सबसे सामने अंशु एक अटूट चट्टान की तरह खड़ा है।आखिर कौन सा वह तत्व है जो किसी आम आदमी को भी इतना मजबूत बना देता है कि बिना किसी डर-भय के वह अपना सब कुछ दांव पर लगा देता है?इस तत्व को आत्मसात करने वाली भारत की इन संतानों के आगे नतमस्तक हो जाना एकदम स्वाभाविक है ।Arvind Varun————————————————————————————-Surya Pratap Singh
9 hrs ·
एक बाबा के ‘फ़र्श से अर्श’ तक की कहानी के पीछे ३ हत्याओं/मौत के हादसे क्या कहते हैं ?
अमेरिका में पढ़ी-लिखी प्रसिद्ध लेखिका प्रियंका पाठक-नारायण ने आज देश के प्रसिद्ध योगगुरु व अत्यंत प्रभावशाली व्यक्ति, बाबा रामदेव की साइकिल से चवनप्रास बेचने से आज के एक व्यावसायिक योगगुरु बनने तक की कथा अपनी निम्न किताब में Crisp facts/प्रमाणों सहित लिखी है। इस पुस्तक में बाबा की आलोचना ही नहीं लिखी अपितु सभी उपलब्धियों के पहलुओं को भी Investigative Biography के रूप में लिखा है। इस पुस्तक में सभी तथ्य बड़े सशक्त ढंग से लिखे है , कुछ भी ऐसा नहीं लगता जिसे बकवास कहकर दरकिनार कर दिया जाए, प्रथम धृष्टता ऐसा भी नहीं लगता कि यह किसी मल्टीनैशनल द्वारा प्रायोजित किताब है। वैसे बाबा रामदेव ने कोर्ट के injunction order से प्रकाशक को यह स्थगन दिलवाया हुआ है कि अब इस पुस्तक की कोई नई कॉपी न छापी जाए।
ज़रूरी नहीं कि इस पुस्तक में सभी बातों पर विश्वास किया जाए, लेकिन सार्वजनिक जीवन में बाबा रामदेव का क़द बहुत बड़ा है और राजनीतिक/ सामाजिक रसूक़ भी बहुत बड़ा है, अतः जनमानस को उनके बारे में जानने की उत्सुकता होना स्वाभाविक है। किताब है :
“Godman to Tycoon : The Untold Story of Baba Ramdev by Priyanka Pathak-Narain”
इस किताब में तीन हत्याओँ/ मौतों का विस्तार से परिस्थितियों व शंकाओं का प्रमाण सहित ज़िक्र किया है:
१- बाबा रामदेव के ७७ वर्षीय गुरु शंकरदेव का ग़ायब होने से पूर्व बाबा रामदेव का एक माह तक विदेश में चले जाना। दिव्य योगपीठ ट्रस्ट की सभी सम्पत्ति शंकरदेव के नाम थी, जी अब बाबा रामदेव के पास है। (CBI की जाँच अत्यंत मद्धम गति से जारी है)
२- बाबा रामदेव को आयुर्वेद दवाओं का लाइसेंस देने वाले स्वामी योगानंद की वर्ष २००५ में रहस्मयी हत्या।
३- बाबा रामदेव के स्वदेशी आंदोलन के पथ प्रदर्शक राजीव दीक्षित की वर्ष २०१० में संदिग्ध मौत।
मैं इस किताब का प्रचार नहीं कर रहा… लेकिन इसको पढ़कर आपको कुछ शंकाओं का निराकरण तो अवश्य होगा कि कैसे योग ने राम कृष्ण यादव को बना दिया बाबा रामदेव….. धर्म के नाम पर तेज़ी बढ़े बाबा के व्यापार पर ED/IMCOME TAX की भी नज़र है।
गुरु शंकरदेव की रहस्यमयी गुमशुदी के साथ-अन्य दो हत्याओं/मौतों को भी CBI के दायरे में लाना उपयुक्त होगा ….. राम रहीम पर आए कोर्ट के निर्णय से आम लोगों को अन्य ढोंगी बाबाओं पर भी सिकंजा कसने का विश्वास जगा है। CBI को उक्त जाँच में भी शीघ्रता कर दूध का दूध व पानी का पानी अवश्य करना चाहिए … वैसे उ.प्र. मी भी नॉएडा/यमुना इक्स्प्रेस्वे में बाबा को 455 एकड़ भूमि अखिलेश यादव ने दी थी, उसकी जाँच भी ज़रूरी है।
नोट: कुछ लोगों ने मुझे फ़ोन कर यह आगाह किया है / चेतावनी दी है कि बाबा रामदेव के बारे में और न लिखें, क्यों कि इनके पास धनबल के साथ अन्य सभी बल हैं। सभी बड़ी मीडिया कम्पनीओँ को इतने विज्ञापन/ धन बाबा रामदेव से मिलते हैं कि कोई उनके ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने की हिम्मत नहीं करता।
संलग्न न्यूज़ भी पढ़ें Surya Pratap Singh
9 hrs · http://www.hindi.indiasamva…
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सिकंदर हयात सिकंदर हयात • 13 hours ago
Girish Malviya
14 hrs ·
पतंजलि ओर देश भर की भाजपा सरकारो का गठजोड़ कितना भयानक है कि ,उत्तराखंड में अब पैदा होने वाली जड़ी बूटियों का खरीद मूल्य की घोषणा अब उत्तराखंड की सरकार नही करेगी बल्कि अब से जड़ी बूटियों का दाम बाबा रामदेव के स्वामित्व वाली पतंजलि तय करेगी, यह राज्य सरकार की घोषणा है
एक समय इसकी शुरुआत जब हुई जब भाजपा सरकारो ने बेभाव से सरकारी जमीने पतंजलि को अलॉट करना शुरू कर दी थी अब यह भाजपा सरकारो ओर पतंजलि के गठजोड़ का यह अगला दौर है उत्तराखंड सरकार ने यह घोषणा की है कि राज्य मे जो टूरिस्ट सेंटर बंद पड़े हैं उनका संचालन भी पतंजलि को सौंप दिया जाएगा,
हर न्यूज़ चैनल पर देखे तो पतंजलि के तरह तरह के उत्पादों के विज्ञापन भरे हुए है, ये विज्ञापन उन्ही को दिए जा रहे हैं जो मोदी सरकार के पक्ष में बात करते हैं, पतंजलि को धीरे धीरे स्वतंत्र मीडिया को दबाने के टूल के रूप मे इस्तेमाल किया जा रहा हैंGirish Malviya
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सिकंदर हयात सिकंदर हयात • 2 minutes ago
Dilip C Mandal added 2 new photos.
3 hrs ·
आप में से कितने लोगों को आठ महीने पुरानी यह खबर याद है. 27 दिसंबर, 2016 की यह लगभग हर अखबार में पहले पन्ने पर छपी थी. और चैनलों में प्रमुखता से चली थी.
नोटबंदी के बाद हर दल ने अपना कैश बैंक में जमा कराया. बीएसपी ने भी कराया. बीएसपी के पैसे पर इनकम टैक्स की निगरानी लगा दी गई. पैसा बैंक में फंस गया.
अखबारों ने यह सब कुछ इस अंदाज में छापा मानो काला धन पकड़ा गया हो.
यह सब यूपी चुनाव के दौरान हो रहा था.
बीजेपी ने यूपी चुनाव अपने अथाह पैसे से लड़ा. यह हजारों करोड़ का चुनाव था.
चुनाव बाद इनकम टैक्स विभाग ने कहा कि बीएसपी के पैसा जमा कराने में कोई गड़बड़ी नहीं पाई गई.
चुनाव आयोग ने 4 मई, 2017 को कहा कि बीएसपी ने पैसा जमा करके कुछ भी गलत नहीं किया है. अब वह रकम निकाली जा सकती थी.
लेकिन तब तक तो खेल खत्म हो चुका था.
बीजेपी की राजनीति को राजनीति विज्ञान नहीं, अपराधशास्त्र के नजरिए से समझिए.
बीजेपी के शिखर पर इस समय नेता नहीं, छंटे हुए अपराधी है. उनका दिमाग अपराधियों की तरह ही काम करता है.
See TranslationDilip C Mandal
11 hrs ·
नोटबंदी अपने उद्देश्यों में सफल रही है. यूपी चुनाव में बीजेपी के 32 हेलीकॉप्टर्स के मुकाबले सपा+बसपा+कांग्रेस के 5 हेलीकॉप्टर थे. बीजेपी ने बाकी दलों से दस गुने से भी ज्यादा खर्च किया.
बैनर, पोस्टर, गाड़ियां, अखबारों में फुल पेज के विज्ञापन, टीवी विज्ञापन, रैलियों में बसों से लोगों को लाना, वोट मैनेजरों और समाज के असरदार लोगों को पैसे बांटना, बूथ मैनेजमेंट….हर खेल में बीजेपी ने विरोधियों को पटक-पटक कर मारा और विरोधी रो भी नहीं पाए कि हमारे पास खर्च करने के लिए, पैसा नहीं है.
करोड़ों रुपए तो बीजेपी ने अखबारी विज्ञापनों पर खर्च कर दीजिए. इसके मुकाबले सपा और बसपा के विज्ञापन देख लीजिए. आपको अंदाजा हो जाएगा कि मुकाबला किस कदर गैर-बराबरी का था.
और क्या चाहिए?
दो लोकसभा चुनावों के बीच सबसे बड़ा चुनाव यूपी का विधानसभा चुनाव ही होता है. बीजेपी की नोटबंदी वाली रणनीति कामयाब रही.
यूपी का हर आदमी जानता है कि सपा और बसपा ने कंगालों की तरह यह चुनाव लड़ा. पैसा रहा होगा, लेकिन बैंक से निकालने की लिमिट लगी हुई थी. वहीं, बीजेपी तैयारी करके बैठी थी.
अब इस चक्कर में कई लोग लाइनों में मर गए तो बीजेपी क्या करे. आदमी की जिंदगी की बीजेपी की नजर में क्या औकात है, यह आप गुजरात से लेकर गोरखपुर तक में देख चुके हैं.
बीजेपी ने नोटबंदी की तैयारी कर ली थी. बीजेपी के नेता कहीं-कहीं नए नोटों के बंडल के साथ पकड़े भी गए. यह लोकल पुलिस वालों की बेवकूफी से हुआ.
बीजेपी नेताओं तक नए नोट पहुंचा दिए गए थे.
बीजेपी ने अपना काफी पेमेंट एडवांस भी कर लिया था.
Rajiv Nayan Bahuguna Bahuguna
7 hrs · Dehra Dun ·
मनसा , वाचा ,कर्मणा अहिर्निश राम नाम सुमिरने वाले वृद्ध वैष्णव की हत्या को समर्थन देने वाली विचार धारा यदि भारत जैसे महान गण तंत्र में आज सत्तारूढ़ है , तो यह कांग्रेस के भीषण पतन के कारण ही घटित हुआ है । जिस भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को गांधी ने एक दब्बू और सुधारवादी संगठन से उठा कर एक क्रांतिकारी समूह में रूपांतरित कर दिया , वह भ्रष्टाचार , अय्याशी और कदाचार में यूं फंस गई कि जनता को निकृष्ट विकल्प ही सूझा । भेड़ियों के झुंड में फंसा हिरन कभी कभी घबराहट और प्राण रक्षा की त्वरा में खन्दक अथवा अंधे कुंएं में कूद जाता है । 2014 में यही हुआ ।
ऐसा नहीं कि भारतीय जन मानस साम्प्रदायिकता या सामूहिक हिंसक सन्निपात के खतरों से वाकिफ नहीं है । लेकिन एक हिंसक – साम्प्रदायिक समूह अवसर मिलने पर ही अपने मन की करता है , जबकि भ्रष्टाचार की लपट पूरे समाज को प्रतिपल झुलसाती है । भ्र्ष्टाचार का प्रतिफल केवल सार्वजनिक धन की चोरी तक सीमित नहीं है । बल्कि भ्रष्टाचारी मंहगाई बढाता है । अश्लीलता और अनैतिकता की गंध फैलाता है । याद है कुछ वर्ष पहले की वह वीडियो क्लिप , जिसमे एक 85 साल का कांग्रेसी खूसट भारत के राजचिन्ह अंकित पलँग पर चित लेट कर एकाधिक औरतों के साथ लैला मजनू का खेल खेल रहा है ? वह उन पर हर रात लाखों लुटाता था । वह लाखों रुपये क्या वह अपनी पेंशन या वेतन से ख़र्चता होगा ? ज़ाहिर है कि वह भ्रष्टाचार का पैसा था । भ्रष्टाचार का रावण सहस्त्र बाहु होता है । उसके अनेक रूप होते हैं । अतः राष्ट्र पिता की जयंती पर संकल्प लें , कांग्रेस को ठोको ( सुधारो ) और फिर भाजपा को रोको ।Rajiv Nayan Bahuguna Bahuguna
16 hrs ·
चूंकि हम हिंदुओं अथवा सनातनियों की धर्म श्रृंखला सर्वाधिक पुरातन है , अतः इसमे वैज्ञानिक , समाज शास्त्रीय एवं ऐतिहासिक प्रामाणिकता का पुट न्यूनतम है । रामायण अथवा महाभारत जैसे हमारे धर्म ग्रन्थ अमिधा , लक्षणा एवं अभिव्यंजना से परिपूर्ण हैं । विश्व साहित्य में उनका कोई जोड़ नहीं । लेकिन इसके बावजूद वे शुद्ध साहित्य हैं , कथा गल्प हैं । इतिहास हरगिज़ नहीं । काल्पनिक कथा होने के कारण इनके पूज्य पात्र अविश्सनीय और कभी कभी हास्यास्पद हो जाते हैं ।
अन्य प्रचलित धर्मों के साथ यह समस्या या तो है ही नहीं , अथवा न्यूनतम हैं । क्योंकि उनका सृजन निकट अतीत में हुआ है , जब ज्ञान विज्ञान और इतिहास तत्व का प्रारम्भ हो चुका था ।
ऐसे में हम हिन्दू क्यों न परम् पावन , जगद्ग वरेण्य महात्मा गांधी को अपना पैगम्बर माने , जिनका शुभ जीवन और चरित्र किसी भी धर्म के मसीहा से उन्नीस नहीं है । उनके जीवन से अधिक उनकी मृत्यु में देवत्व का आलोक है । विश्व के अप्रतिहत साम्राज्य को धूल चटाने के बाद वह एक सामान्य , लुच्चे तथा नराधम हत्यारे के हाथों राम नाम भजते कीर्ति के स्यंदन पर बैठ परम् पिता के लोक को प्रस्थान किये । काश बाल्मीक या तुलसी जैसा कोई महा कवि गांधी चरित मानस का महा काव्य रचे ।————————–Shambhunath Shukla
Yesterday at 10:22 ·
मैं उन 31 प्रतिशत लोगों की कतार में नहीं हूँ जिन्होंने भाजपा को वोट दिया था। न तब मैंने कांग्रेस को वोट दिया था क्योंकि नियमतः और सैद्धांतिक रूप से मैं कांग्रेस के खिलाफ हूँ। मुझे कांग्रेस सदा से ही दलाल पूंजीपतियों की पार्टी लगी जिसने इज़ारेदार पूंजीवाद को बढ़ावा दिया। हालांकि कांग्रेस की तुलना में मुझे पूर्ववर्ती जनसंघ या भाजपा बेहतर लगी क्योंकि उसकी दृष्टि प्रगतिशील पूंजीवादी रही है। साल 2014 के लोकसभा चुनाव में मैंने बसपा को वोट दिया था। बसपा सुप्रीमो मायावती भ्रष्ट भले हों मगर लोक कल्याण की भावना से वे ओतप्रोत हैं। किंतु जीती भाजपा तो मुझे लगा कि अब यह तो लोकतंत्र का खेल है। एक पार्टी हारेगी तो एक जीतेगी भी। लेकिन 3 साल 4 महीने की इस भाजपाई मोदी सरकार ने जो जनविरोधी फैसले किए हैं उससे तो लगता है मनमोहन सरकार ही ठीक थी। एक भी काम समय पर नहीं ऊपर से मंत्रियों के अहंकार का लेबल इतना हाई है कि कोई पत्रकार सवाल पूछे तो पीयूष गोयल डांट देते हैं कि अंग्रेजी समझ में नहीं आती? यह डांट भी उन्होंने उस पत्रकार को पिलायी जो खुद एक बड़े अंग्रेजी दैनिक की वरिष्ठ संपादक है। निर्मला सीतारमण किसी से मिलती तक नहीं हैं। सुना गया है कि एक दिन उन्होंने भारतीय मूल के एक बड़े विदेशी निवेशक को आधा घण्टा बैठाए रखा और वह निवेशक भी महिला थी। जो संज़ीदा मंत्री हैं उनकी कद्र नहीं है। राजनाथ सिंह, सुषमा स्वराज, मनोज सिन्हा जैसे समझदार मंत्री खाली बैठे हैं।
नोटबंदी और जीएसटी से व्यापार ठप है। छोटे दुकानदार तक परेशान हैं। एक दिन एक मोदी स्टोर वाले ने बताया कि हम छोटे व्यापारी हैं, हमारे पास दस और पांच के सिक्के खूब आते हैं। जिन्हें न बैंक लेता है न रिटेलर। ऊपर से जीएसटी। हमें समझ नहीं आता किस चीज को किस दर से बेंचे। मैं खुद हर वर्ष दो अक्टूबर के बाद कनाट प्लेस के खादी ग्रामोद्योग भवन से कपड़े ले आया करता था क्योंकि वहां 20 प्रतिशत छूट मिलती थी। इस बार छूट तो दूर खादी पर 5 प्रतिशत जीएसटी ऊपर से है। हर जगह लूट-खसोट और भयभीत कर देने वाला माहौल है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी या तो इस अराजकता पर काबू नहीं कर पा रहे या उन्हें उनकी चौकड़ी ने कन्फ्यूज कर रखा है। जिस आदमी का बचपन रेलवे स्टेशन पर चाय बेचते गुज़रा हो उसे इतना तो संवेदनशील होना चाहिए कि वह गरीब आदमी का कष्ट समझ सके। अब तो मुझे लगने लगा है कि इस सरकार से तो पप्पू सरकार अच्छी होगी।
Ila Joshi
10 hrs ·
जिसे प्रेम मिलता है वह इस बात को समझ ही नहीं पाता कि सामने वाला उसको कितना प्रेम करता है। वह अपनी ही धुंध और नशे में होता है। वह समझता है यह मेरी खासियत है जिससे मुझे प्रेम मिल रहा है। पर वह सिर्फ उसकी ही खासियत नहीं होती। प्रेम करने वाले की खासियत होती है।
प्रेम करना काबिलियत है। विश्वास देना गुण है। प्रेम ग्रहण करना भी काबिलियत है। जो मिल रहा है उसे श्रद्धा से, आदर से सिर झुका के ग्रहण करना चाहिए तभी वह आपको अपनी पूर्णता में मिलता है। जो डूबना नहीं जानता वह प्रेम की इस अगाध और अबाध वर्षा से भी सूखा निकल आता है।
Sandhya Navodita ने ये जो लिख दिया है न ये हम सबके हिस्से का सच है—–Sandhya Navodita
Indians for sexual Liberties लक्श्मन सिन्घ देव
7 hrs ·
#मानो या न मानो वास्तविकता यही है समाज की#
1. अकेली रहती है! मतलब साथ(सेक्स) कि जरूरत तो होगी ही, ट्राय तो मार मौज़ करने के लिए बेस्ट ऑप्शन है।
2. बाहर रहकर पढ़ी है मतलब घाट-घाट का पानी हुई है। पक्का कैरेक्टरलेस है। हाथ रखते ही तैयार हो जाएगी। ऐसियों का क्या….
3. दिल्ली में रहती है मतलब खुली होगी। मेट्रो सिटीज़ में रहने वाली लड़कियां तो बहुत खुली {रंडी} होती हैं, पता नहीं कितनों के साथ सो जाए। यहाँ खुली का मतलब सेक्स के लिए हमेशा आसानी से उपलब्ध रहने से है।
3. गाँव की है, सीधी होगी। मतलब इसको आसानी से बेवकूफ़ बनाकर यूज़ कर सकते हैं। छोटे शहर की है! मतलब चालू होगी।
4. ब्रेकअप हो गया है! मतलब रोती लड़की को विश्वास देकर सेक्स की जुगाड़ की जा सकती है।
5. पहले बॉयफ्रेंड ने चिट किया है! ओह्ह बेबी मैं ऐसा नहीं हूं, दुनिया से अलग हूँ। यार चिट हुई लड़कियों को यूज़ करना औऱ आसान है। सिली गर्ल्स……
6. नीच जात की है! यार ये चमारिनें होती बहुत बेवकूफ़ हैं। मैं जाति को नहीं मानता, शादी करूँगा बस इतने में तो तन-मन-धन से समर्पित हो जायेंगी।
7. काली है! ओह्ह….यार रंग से कुछ नहीं होता काला रंग तो बहुत खूबसूरत होता है। यार उस कलूटी को ऐसे नहीं बोलूंगा तो बिस्तर तक कैसे आएगी।
8. सेल्फ डिपेंड है! इमोशनल फुल बनाकर सारी अय्याशी करने का बढ़िया ऑप्शन है। इंडिपेंडस और बराबरी की बात कर देख कैसे नीचे करती है।
9. तलाकशुदा है ! विधवा है! यार कंधा ही तो देना है बस वो पैर खोलने की लिए तैयार मिलेंगी।
10.अभी स्कूल में पढ़ रही है! लगती तो एकदम माल है, गोटी सेट करनी पड़ेगी।
ये वो लोग जो गिरगिट से जादा रंग बदलने में विश्वास रखते है।
और कपड़ो से ज्यादा girlfriend बनाने में एक्सपर्ट होते है।
और लड़की न मिले तो गाँव से लेकर शहर तक उसे बदनाम करने का ठेका ले लेते है।
और कुछ चंपू typ इनकी हा में हा मिलाते रहते है
जैसे अपनी बहनों की दलाली करते है वैसे ही दूसरों की करने में तत्पर होते है।
बातें चाहे जितने तरीके से हों….. केंद्र में बस ” सेक्स” है। ऐसे ही नहीं हर दिन रेप हो रहे, ये रेप की तैयारी तो हरपल हो रही है। नाभि के ठीक तीन इंच नीचे केंद्रित रहने वाला भारतीय समाज…..
#यौन_कुंठित_समाज
नीतीश के. एस.
14 December at 10:17 ·
सेक्स। बड़ी अजीब शै है सेक्स। बलिष्ठ भी करता है और कमज़ोर भी। गोरा भी करता है और काला भी। अमीर भी करता है और ग़रीब भी। ख़ूबसूरत के साथ भी करता है और बदसूरत के साथ भी। कर के न बताओ तो मज़ाक बनेगा, खुले आम करो तो लोग बुरा मान जाएंगे। उम्र से पहले करो तो कानूनन अपराध, उम्र के बाद करो तो सामाजिक अपराध। सेक्स करो तो सही, उसकी बात करो तो ग़लत। सेक्स परोसना जायज़ और मेहमाननवाज़ी, सेक्स मांगना नाजायज़। आदमी कहे-करे तो सही, औरत करे तो ग़लत। छोटा परिवार सुखी परिवार का विज्ञापन बढ़िया, लेकिन कंडोम का विज्ञापन बेहूदा।
इंसान सेक्स करते हैं, जानवर प्रजनन करते हैं, देवी देवता अवतार करते हैं। शायद इसी वजह से सामाजिक ठेकेदारों ने सेक्स को वर्जित विषय बना दिया। सभ्य समाज में सेक्स एक टैबू बनाया गया। शायद इसलिए कि भगवान सेक्स की बात नहीं करते और सो कॉल्ड आदिवासी सेक्स को टैबू नहीं मानते। आदिवासियों में वर्जिनिटी हौवा नहीं होती। बलात्कार पीड़िता के साथ उसका परिवार छाती पीट कर शोक नहीं मनाता बल्कि उसे आगे बढ़ने में मदद करता है। उनमें “तू सिर्फ़ मेरी है और मेरी रहेगी” वाला कट्टरवाद भी नहीं होता। शायद इसीलिए सेक्स को सभ्य और ब्राह्मण नेतृत्व वाले समाज में हेय दृष्टि से देखा गया। लिहाज़ा अगर मैं ये कहूँ कि सेक्स को वर्जित विषय बनाना विशुद्ध ब्राह्मणवाद है तो बहुतों की नज़र तिरछी हो जाएगी, बुरा लग जायेगा, असहमत हो जाएंगे। लेकिन है तो ऐसा ही।
अक्सर देखता हूँ कि “प्रोग्रेसिव” तबके की आलोचना इसलिए की जाती है क्योंकि वो सेक्स को वर्जित नहीं मानते। उनके “खुलेपन” पर ताने दिए जाते हैं, मज़ाक उड़ता है। असल में सिर्फ़ प्रोग्रेसिव और लिबरल तबका ही नहीं, हर वो तबका जो ठेकेदारी से असहमत है सेक्स को वर्जित विषय नहीं मानता। सेक्स को वर्जित कहने के पीछे इसे निचले तबके से जोड़ कर देखना है, जबकि करते सभी हैं।
बाकी सहमति असहमति तो अपनी जगह है, लेकिन अपना दोगलापन तो आप खुद ही जांच सकते हैं।नीतीश के. एस.
ल्axman Singh Dev
21 January 2015 ·
सेक्स वर्क को कानूनी मान्यता देने का सबसे ज्यादा विरोध कुछ महिलाएं ही करती हैं। पता नहीं उन्हें इसके वैधीकरण से किस प्रकार की असुरक्षा हो रही है ?
यौन सुख के सहज उपलब्ध हो जाने को लेकर वो क्यो इतना असुरक्षित महसूस कर रही है ?कहीं इसके पीछे यह भावना तो नहीं कि मर्द हमेशा योन सुख प्राप्त करने हेतु लट्टू बनकर उनके चारो और घूमते रहें। हर महिला का हक़ उसके शरीर पर है। वो चाहे कुछ मिनटों के लिए बेचे तो सेक्स वर्क ,सम्पूर्ण जीवन समझौता करे तो विवाह का नाम। ?Laxman Singh Dev updated his status.
21 January 2015 ·
अंग्रेजो ने सुनियोजित ढंग से भारतीय शाशको को अपमानित करने के लिए अपने दरबानों की पोषाक राजपूत राजाओ के समान कर दी और खाना परोसने वालों की पोशाक नवाबों जैसी। अभी भी होटलों के बहार खड़े बड़ी मूंछ वाले दरबान उसी का अवशेष हैं।Laxman Singh Dev is with Naveen Kaushik.
10 hrs ·
इलेक्शन के माहोल में मैंने
पड़ोसन से पूछ ही लिया
किसको दोगी..???
वो ग़ुस्से से बोली “AAP” को तो बिलकुल नहीं दूंगीLaxman Singh Dev
14 hrs ·
गुरूजी : “बताओ घरबार किसे कहते हैं, एक पति के जीवन में इसके महत्व की विवेचना कीजिये ।”
छात्र : गुरु जी *घरबार* का एक पति के जीवन में बड़ा महत्व है । *घर* में पत्नी द्वारा उत्पन्न किये गए तनाव से मुक्त होने हेतु पति *घर* से *बार* में चला जाता है और *बार* में ज्यादा चढ़ जाने पर *बार* से *घर* आ जाता है । घर और बार के इस चक्र को ही *घर बार* कहते हैं ।
गुरु जी छात्र का नाम राष्ट्रपति पुरस्कार के लिए भेज कर सुबह से बार में बैठे हैं .
।Laxman Singh Dev
19 January at 21:55 ·
मेकअप एक बहुत एडिक्ट करने वाला नशा है,एक बार प्रयोग करना शुरू करने पर अपने आपको कुरूप समझने की भावना मन में आ जाती है।Laxman Singh Dev
19 January at 19:01 ·
राजस्थानी, सुहागरात को SEX करते हुए: थारी बहुत
loose है।
बीवी (गुस्से से): जल्दी बाहर निकालो !
और मेरी Car, AC Aur Jewellery भी वापिस
करो।
राजस्थानी: गलती हो गई। माहरो ही पतलो है——————————।जान अब्दुल्लाह Loose है तो इसका मतलब है सेक्सुअली एक्टिव नही है। इसका अर्थ है कि इस वयस्क महिला की योनि के टिश्यू एंड सेल्स में रक्त का प्रवाह नही गया जो हीट होने पर होता है
भारतीय पुरुष यही मार खाजाता हैLaxman Singh Dev shared Indians for sexual Liberties’s post.
19 January at 18:04 ·
Indians for sexual Liberties
19 January at 18:04 ·
एक महिला डॉक्टर से बोली,
मेरा पति 300% नपुसंक है?
डॉक्टर हैरानी से बोला: अरे वो कैसे?
महिला रोते हुए बोली: एक तो उनका खड़ा नहीं होता।
दूसरी उनकी उंगली भी टूटी है
और तीसरा कल उसने गर्म-गर्म दूध पीकर अपनी जीभ भी जला ली।Laxman Singh Dev
18 January at 21:51 ·
Lady pornstar, आयुर्वेदिक डॉक्टर से: मेरे दांतों में कभी कभी दर्द होता है
डॉ•: मुँह में लौंग रखा करो
Pornstar: हाउ लौंग ?Laxman Singh Dev
18 January 2017 ·
??☺☺???☺अध्यापक: बच्चों को महाभारत पढाते हुए………..”कंस ने सुना कि देवकी का आठवां पुत्र उसे मार देगा तो उसने देवकी और वसुदेव को जेल में डाल दिया”पहला बच्चा हुआ, कंसने मार दिया.दूसरा…….. हुआ, कंस ने मार दिया,तीसरा भी, चौथा भी……….आठवांएक शिष्य: गुरु जी एक मिन्ट..गुरु: क्या बात है?शिष्य : अगर कंस को पता था कि देवकी और वसुदेव का आठवां बच्चा उसे मार देगा तो उसने दोनों को एकही कोठरी में बंद क्यों किया?अध्यापकबेहोश!????????
See Translation
सिकंदर साहब, ये कमैंट्स आप ने भूल से कॉपी – पोस्ट की या समझ लेने के बाद (सेकंड एंड थर्ड लास्ट)
अबरार साहब मेरा इरादा नेक हे पर में कोई प्रतिभाशाली नहीं हु प्रतिभा नहीं हे मेरे पास या कोई अकादमिक नहीं हु मुझे हर बात की समझ नहीं हे किसी के भी विचारो को पेश करने का ये मतलब नहीं हे की हम उसकी हर बात से ही सहमत हे या मुझे खुद हर बात की जानकारी हे समझ हे आपने देखा होगा की में यहाँ पवन जैसे घोर कम्युनल और प्रोपगेंडेबाज़ के भी विचार लगा देता हु सरफ़राज़ जैसे लोग हमसे अपोजिट हे उनके भी विचार पेश करते हे लोग पढ़े लिखे और बहस करे इसी तरह सेक्स भी जीवन का अभिन्न अंग हे उस पर लक्ष्मण सिंह देव के जो विचार हे मुद्दे हे चुटकुले हे वो मेने पेश किये
अबरार साहब और पाठको ये चुटकुला लक्ष्मण सिंह देव का हे जो की एक दलित हे दलित अब राजनीति के” नए मुसलमान ” हे जैसे सेकुलर पार्टियों के राज़ में मुसलमान और नेता जो चाहे कहते करते थे वैसे ही अब दलित हे मोदी सत्ता के बिना नहीं जी सकता हे उसे हर हाल में सत्ता चाहिए उसके लिए उसे पता हे की स्वर्ण हिन्दू कटटरपन्ति को तो चाहे कुछ दो ना दो वो तो मुस्लिम विरोध के चक्कर में हर हाल में साथ देगा लाख नाराज़गी के बाद भी देगा जैसा गुजरात में हुआ अब उनका फोकस दलितों पर हे जो भी हे जो भी हो मेरी तो सलाह दलितों और कमजोर हिन्दुओ को हे की वो इस मौके का पूरा फायदा उठा ले भाजपा संघ और हिन्दू कटटरपन्तियो के पास पैसा ही पैसा हे खिंच ले इनसे अधिक अधिक , मुसलमान होने की धमकी देकर , मुसलमानो का या किसी का ही साथ होने देने लेने की धमकी देकर कैसे भी करके आपके लिए अच्छा मौका हे अधिक से अधिक खिंच ले जब तक मोदी हे और उसका सत्ता के लिए पागलपन हे आपके लिए मौक़ा हे
सिकंदर साहब, नाराज़गी की कोई बात नहीं थी, आज तक मैंने आपके जितने भी कमैंट्स देखे है चाहे वो खबर की खबर पे हो या रविश जी की नई सड़क पे या नव भारत के ब्लॉग पे लेकिन कभी भी स्तरहीन नहीं देखे, कहने का मतलब सिर्फ इतना था कि कही गलती से तो कॉपी करने में वो चुटकुले भी नहीं आ गए थे।
आपकी बौध्दिक क्षमता के तो हम कायल है और आपकी वजह से ही खबर की खबर की साइट पे आये थे, अकादमिक या नॉन अकादमिक की कोई बात नहीं थी। chill yaar, don’t take otherwise.
अबरार साहब एक बात की लास्ट चुटकुले के माध्यम से हो सकता हे की लक्ष्मण सिंह उन पगलेटतिवारी टाइप हिन्दू कठमुल्लाओ पर निशाना साध रहे हे जो एकतरफ दावा करते हे की अणु परमाणु अमीबा अला फ्ला हर बात की समझ इनके पास पांच हज़ार साल पहले ही हो चुकी थी तो लक्ष्मण सिंह देव एक दलित ये शायद अपने चुटकुले से बता रहे हे की इतनी सामान्य सी बात की भी समझ नहीं थी ———— ?
Jagadishwar Chaturvedi
3 hrs ·
यादों के आइने में भगतसिंह और उनके साथी- एक अंश-यशपाल
आजाद को अच्छी-अच्छी पुस्तकें लाकर साथियों को पढ़ाने का बहुत शौक था परंतु उपन्यास या यौन विषय (सेक्स) संबंधी पुस्तकें देखकर उन्हें बहुत ही चिढ़ उठती थी। ब्रह्मचर्य का एक बहुत रूढ़िवादी आदर्श उस समय तक आजाद के मस्तिष्क में था। उससे पहले दो-एक दफे दल में ऐसे कांड हो चुके थे कि साथियों ने नारी के आकर्षण के कारण अपने कर्तव्य में निर्बलता दिखाई थी। आजाद को नारी, प्रेम और सौंदर्य की चर्चा से ही चिढ़ हो गई थी। कसरत स्वयं करने और दूसरों को कराने का भी शौक था। यदि कोई और काम न हो तो आजाद का मन लगातार बातचीत करने से या हवाई पिस्तौल ले कर किसी बारीक चीज पर निशाने का अभ्यास करते रहने से बहलता था।
उस समय आजाद और दूसरे साथियों की ब्रह्मचर्य, नारी और सौन्दर्य के बारे में कैसी धारणायें थीं, यह दो-एक बहुत छोटे-छोटे उदाहरणों से स्पष्ट हो जायेगा। प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रूप में स्त्री का प्रसंग चलते ही आजाद एतराज किये बिना न रह सकते थे- ”फिर ‘चुम्बक’ की बात। यह साला ‘चुम्बक’ जिसे लगा ले डूबा। सिपाही को औरत से क्या मतलब ” उस समय ऐसी धारणा केवल आजाद की थी। दूसरे साथियों को स्त्री और प्रेम की चर्चा से कोई परहेज नहीं था। हां, सुखदेव भी इस प्रसंग में कम ही रस लेता था परंतु आदर्श की दृष्टि से कोई विरोध न था। उसका कहना था-‘जब औरत है नहीं तो उस की चर्चा से क्या फायदा।’
आजाद का सब से प्रिय गाना था-‘मां हमें विदा दो, जाते हैं हम विजयकेतु फहराने आज।’ वे प्राय: ही भगत सिंह या राजगुरु और बाद में बच्चन (वैशम्पायन) से यह गाना सुनाने के लिए अनुरोध करते। राजगुरु यों तो धीर स्वभाव था परंतु चुटकियां लेने में उसे मजा आता। जब आजाद उसे गाने के लिए कहें तो वह जरूर ही कोई इश्किया गजल गुनगुनाने की चेष्टा करने लगता। यह गजलें वह प्राय: भगत सिंह से सुन कर याद कर लेता था। भगत सिंह को शायरी से भी बहुत शौक था। महाराष्ट्रीय होने के कारण राजगुरु का उर्दू उच्चारण बहुत विचित्र था। गजल में वह आशिक और ‘माशूक’ को प्राय: ही ‘आशुक’ और ‘माशिक’ कह जाता और खूब हंसता। यदि आजाद ‘विजयकेतु’ वाला गाना सुनने पर जिद्द ही करें तो वह हंस कर उत्तर देता-‘अभी पुलिस आता है विजयकेतु लेकर।’
एक रोज राजगुरु कहीं से बहुत सुंदर स्त्री की तस्वीर का एक कैलेण्डर ले आया और लाकर ‘नाई की मंडी’ आगरा वाले मकान में दीवार पर लटका दिया। आजाद कहीं बाहर से लौटे। बच्चन (वैशम्पायन) ने उस कैलेंडर की और संकेत किया-”भैया, देखा! यह कौन ले आया है?”
आजाद ने कैलेंडर की ओर देखा। माथे पर बल पड़ गए। कैलेंडर को कील समेत दीवार से खींच लिया और फाड़ कर फेंक दिया।
कुछ देर बाद राजगुरु लौटा। दीवार से अपना कैलेंडर गायब देखकर वह ऊंचे स्वर में पुकार उठा-”अरे, हमारे कैलेंडर का क्या हुआ?”
बच्चन ने ओंठ दबाकर फर्श पर पड़े कैलेंडर के टुकड़ों की ओर देखा। राजगुरु ने झुंझलाहट और क्रोध के स्वर में प्रश्न किया-”यह किस ने किया?” ”हमने किया।” आजाद भला किसी से डरते थे।
आजाद के प्रति आदर से स्वर को कुछ धीमा कर राजगुरु ने विरोध किया-”आपने क्यों फाड़ डाला? हम इतने शौक से तस्वीर लाये थे।”
”हमें-तुम्हें ऐसी तस्वीरों से क्या मतलब?” आजाद ने डपट दिया।
”वाह, इतनी खूबसूरत तस्वीर थी।”
”हमें-तुम्हें खूबसूरत से मतलब?” नाराजगी से ऊंचे स्वर में आजाद ने डांटा।
”तो जो कुछ खूबसूरत होगा उसे फाड़ डालोगे, तोड़ डालोगे?” राजगुरु भी अड़ गया।
”हां तोड़ डालेंगे?” आजाद ने सीना तान लिया।
”तो जाकर ताजमहल को भी तोड़ डालो” राजगुरु ने चुनौती दी।
”हां तोड़ डालेंगे, जब हमारा बस चलेगा।” आजाद की आंखों में सुर्ख डोरे उभर आए।
दूसरे साथियों को होंठ दबाये, आंखें चुराते देख कर राजगुरु की झल्लाहट भी मुस्कराहट में बदल गई।
ब्रह्मचर्य के विषय में 1929 के आरंभ में आजाद की ऐसी ही धारणा थी परंतु एक ही वर्ष में उन का दृष्टिकोण बहुत ही स्वाभाविक और यथार्थवादी हो गया था। अनाचार और उच्छृंखलता से तो आजाद को सदा ही घृणा रही परंतु 1930 के जाड़ों की बात मुझे याद है कि कानपुर के ‘चुन्नीगंज’ मुहल्ले में आजाद मुझ से बात किया करते थे कि क्रांति को जीवन भर का काम बना लेने वाले आदमी को क्रांतिकारी स्त्री से विवाह कर लेना चाहिए। कभी मजे में आकर सम्भावित पत्नी का जिक्र करते हुए कल्पना किया करते थे:
”…पहाड़-पहाड़ घूम रहे हों, एक राइफल उसके कंधे पर हो और एक हमारे कंधे पर। दुश्मन से घिर जायें। वह राइफलें भरती जाए और हम दनादन-दनादन गोली चलाते जायें।”agadishwar Chaturvedi
पाठको पुराने क्लिक मिट गए हे इसलिए नए पाठको लेखकों के लिए सुचना की ये लेख पुराने नए मिलाकर लगभग २८ हज़ार तक पढ़ा गया हे -सभी पाठको खासकर नए पाठको को एक जरूरी सूचना की साइट को नया मोबाइल यूज़र फ्रेंडली रूप देने के दौरान हुआ ये की पुराने क्लिक्स की सूचना मिट गयी हे तो नए पाठको के लिए ये सूचना वार्ना वो सोचेंगे की कुछ जगह इतने अधिक कमेंट्स ( मेरे से इतर भी ) और क्लिक इतने कम — ? तो पाठको पुराने क्लिक डिलीट हो गए हे दुःख हे क्योकि ये अफ़ज़लभाई की साइट का जबर्दस्त कारनामा था की बगैर किसी बेक ग्राउंड के बगैर किसी से भी जुड़े बगैर , किसी बड़े या माध्यम नाम के बिना ही खबर की खबर के लेख -लाख हज़ारो तक भी पढ़े गए थे वही कमेंट तो मुझे नहीं लगता की नयी हिंदी साइट्स जो किसी बड़े मिडिया ग्रुप की नहीं हे उनमे से शायद ही किसी को इतने कमेंट्स वो भी एक दो लाइन या शब्दों के नहीं बल्कि विचारो वाले वो शायद ही किसी और नयी हिंदी साइट्स पर हो मेरी तो जानकारी नहीं हे
Rajiv Nayan Bahuguna Bahuguna is at Dehradun : The City of Love.
1 hr · Dehra Dun ·
मैं इतनी ज़ोर से नाची आज
कि घुंघरू टूट गए
——————-
यद्यपि मेरे लिए कथित वेलेंटाइन डे का कोई महत्व और औचित्य नहीं है , तथापि मैं युवकों का आव्हान करता हूँ कि वह खुल कर संसर्ग , समागम , सेक्स और स्त्री विमर्श करें । यदि आप 18 वर्ष की आयु पा चुके हैं , तो यह सब कुछ आपके लिए जायज़ , स्वाभाविक एवं आवश्यक है ।
अनेक मोर्चों पर फेल होने के बाद क्रूर और अलगाववादी धर्म ध्वजी अब वेलेंटाइन डे को लेकर बवाल काटेंगे । उनका मुकाबला करो । लड़कियां अपने पर्स में लाल मिर्च की बुकनी रखें । अधम साम्प्रदायिक गुंडे की आंख में झोंके , जब वह आपको अपने प्रेमी के संग पार्क या झुरमुट में बैठा देख तंग करे । अपनी हेयर क्लिप से उसका मुंह नोचे । लड़का हुमच कर गुंडे के अंडकोषों पर लात जमा कर उसे चित करे । न तो डरो , न अपराध बोध मन मे लाओ । बलात्कार और छलात्कार के सिवा स्त्री पुरुष का कोई भी सम्बन्ध अवैध नहीं है । सेक्स करने से तुम्हारा आत्म विश्वास बढ़ेगा । एकाग्रता बढ़ेगी । मन इधर उधर नहीं भटकेगा । क्योंकि सेक्स के बाद तुम पर यह खुल जायेगा कि यह नेचुरल है । सेक्स का तनाव फिर तुम्हारे दिमाग मे नहीं , अपितु तुम्हारे शिश्न में रहेगा ।
सुरक्षित काम क्रीड़ा करो । यौन रोगों एवं गुंडों से बचने का उपाय पहले कर लो । पार्क या किसी खुली जगह पर सेक्स न करो ।
सेक्स में महिला पर हावी होने का प्रयास न करो । अन्यथा यह सम्भोग की बजाय विषम भोग हो जाएगा । सेक्स में महिला को दर्द देना तुम्हारे पौरुष का नहीं , अपितु जानवर होने का प्रमाण है । मज़े दो और लो ।
लड़कियां समझ लें , की वे सिर्फ योनि नहीं हैं । कोई लड़की सेक्स करती है , तो स्वार्थी पुरुष समाज कहता है कि इसका सब कुछ लुट गया । ठीक से समझ लो कि योनि ही तुम्हारा सब कुछ नहीं है ।
पाश्चात्यों ने सेक्स को नेचुरल माना , अतः वे चांद पर पँहुचे । हमारे दिमाग मे सेक्स का भूत सवार है , हम इसे रिलीज़ नहीं कर पाए , अतः चांद को पूजते रह गए । उन्होंने बिन्दास सेक्स करने के बाद , फ्रेश होकर चांद पर अपने बूटों की छाप छोड़ दी ।
निर्भीक बनो , अनावश्यक बन्धन तोड़ो ।आगे बढ़ो ।
Awesh Tiwari
3 hrs ·
यौनिक संबंधों या फिर प्रेम संबंधों के नाम पर किसी स्त्री पुरुष का मान मर्दन करना घोर पुरुषवादी और अमानवीय विचार है। जीवन मे हर कदम पर छल प्रपंच झूठ चोरी करने वाले इन संबंधों में नैतिकता का प्रलाप करते है जबकि सच्चाई यह है कि खुदा भी चाहे वो किसी भी धर्म का क्यों न हो यौन संबंधों में नैतिक न रह पाया। यह केवल हिंदुस्तान में ही होता है कि किसी को नंगा करना हो तो उसके साथ किसी स्त्री के साथ उसके प्रेम संबंधों को सार्वजनिक कर दो या फिर उसके यौनिक जीवन को लाकर खड़ा कर दो । यह सोच पुरुषों में ही नही स्त्रियों में भी जबरदस्त ढंग से आई है कि चरित्र सीधे यौनिकता या फिर प्रेम संबंधों से जुड़ा है। राम माधव ,हार्दिक पटेल अटल बिहारी वाजपेयी, राहुल गांधी,दिग्विजय सिंह का निजी जीवन अगर आपके लिए महत्वपूर्ण है तो कृपया करके मेरी मित्र सूची से विदा हो लें क्योंकि कम से कम मैं आपकी मित्रता के योग्य नही हूँ क्योंकि मैं तीन बच्चों की माँ के परपुरुष प्रेम को भी स्वाभाविक मानता हूं।इस देश से देश नाम की चीज ही रोज मर रही है,आदमी का आदमी से सबंध वक्त के सर्वाधिक बुरे दौर से गुजर रहा है और आपको केवल यही झूठी खबर दिखाई दे रही है कि राममाधव होटल में स्त्री के साथ कथित तौर पर सेक्स कर रहे थे। आपको आपकी नैतिकता मुबारक हो, शीशे के सामने खड़ा होकर कभी खुद का भी सामना करिये।Awesh Tiwari
9 hrs ·
राम माधव को लेकर जो खबर फेसबुक पर और अन्य सोशल मीडिया के प्लेटफार्म्स पर वायरल हो रही है वो पूरी तरह से फर्जी है। इस तरह की फर्जी और बेतुकी खबरों से भाजपा और आरएसएस को और भी ज्यादा मजबूती मिलती है। आश्चर्यजनक यह है कि जिन लोगों को मैं बेहद गंभीर समझता हूं वो भी इसे साझा कर रहे और इस पर टिप्पणियां कर रहे। मुझे डर है कि कल को किसी भी किस्म की अफवाह को मान्यता दी जा सकती है । खैर जिस वेबसाइट ने यह खबर चलाई थी वो अब गायब है। भक्त हर तरफ हैं मुझे लगता है कि मुझ जैसों के लिए सोशल मीडिया को विदा करने का समय आ गया है।
सुयश सुप्रभ
10 February at 22:38 ·
जेएनयूू में वैलेंटाइन चार दिन पहले आ गया। फ़रवरी में यहाँ वैलेंटाइन आम के बौरों के तरह बौरा जाता है। दुखियारे को देखकर आँसू बहाने वाले बौड़म की तरह। वैसे अजीब बौड़म लोग हैं यहाँ के। पाँच अंकों वाली सैलरी छोड़कर कभी मज़दूरों की बस्ती तो कभी दलितों की बस्ती की तरफ़ दौड़ लगाते रहते हैं। कॉमन सेंस ही नहीं है। क्लास से ज़्यादा पढ़ाई क्लास से बाहर करते हैं। कहते हैं कि उस विज्ञान का कोई मतलब नहीं जो समाज के हित का नहीं हो। ढाबों पर सीखते हैं। ऊँची आवाज़ में बहस करते हैं। फुसफुसाते हुए प्रेम करते हैं। बैरिकेड पर लाठियाँ खाते हैं। कहते हैं कि हमें सिर्फ़ पेट बनकर नहीं जीना। इंसान बने रहने के लिए जानवरों जैसी ख़स्ताहाल ज़िंदगी जीने को तैयार रहते हैं। फ़रवरी में तो पागल ही हो जाते हैं। हर साल।Sadhvi Meenu Jain
16 hrs ·
राम माधव की रंगरेलियां
– हुआ यूं कि चुनावों के मद्देनजर उत्तर – पूर्व के दौरे पर गए हुए राममाधव पिछले हफ्ते दीमापुर के एक होटल में दो लड़कियों के साथ रंगरेलियां मनाते हुए रंगे हाथों धरे गए।
– नेशनल सोशलिस्ट कौंसिल ऑफ नागालैंड (NSCN)के कार्यकर्ताओं को जैसे ही इसकी भनक पड़ी उन्होंने होटल के एक कमरे में राममाधव को दो लड़कियों के साथ धर दबोचा
– इतना ही नहीं उन्होंने अपने सामने राममाधव को लड़कियों के साथ कामक्रिया के लिए बाध्य किया और सब कुछ कैमरे पर रिकॉर्ड कर लिया।
– मुसीबत में फंसे राममाधव ने NSCN की कैद से छूटने के लिए हेमंत बिस्वसरमा और भाजपा के अन्य पदाधिकारियों को ताबड़तोड़ फोन किए
– दीमापुर के लिए कनेक्टिविटी असुविधाजनक होने के कारण बिस्वसरमा कई घंटों बाद उस होटल तक पहुँच पाए
– घंटों तक चला यह पूरा घटनाक्रम और राममाधव द्वारा बिस्वाल आदि को की गई फोन कॉल्स NSCN के कैमरे में कैद है
– पहले से ही राज्य में विधानसभा चुनावों का विरोध कर रही NSCN के हाथ अब एक नया हथियार लग गया है
– उन्होंने मांग की है कि या तो चुनाव रद्द किए जाएं वरना राममाधव की रंगरेलियों की यह फ़िल्म पब्लिक के लिए जारी कर देंगे
– ब्रह्मचारियों की पार्टी भाजपा की जान सांसत में है । फ़िल्म जारी होने से उत्तर पूर्व में पार्टी की साख को बट्टा लगेगा
मित्रों, सेक्स सीडी केवल गुजरात में ही थोड़े बनती हैं ????????????—————–Chanchal Bhu
5 hrs · Machhlishahr ·
राम माधव को हम पसंद नही करते । वह समाज मे जहर बोने वालों में से एक है , लेकिन उसके लड़कियों के साथ ‘रंगरेलियां ‘(?) मनाने के सवाल पर हम उनके साथ कत्तई नही जो माधव को और लड़कियों को कटघरे में खड़ा करना चाहते हैं । इसके दो कारण हैं ।
एक – हम जिस समाज मे खड़े हैं उसने ‘ चरित्र ‘ को इतना चिथड़ा बना दिया है कि वह एक जगह आकर सिमट गया है और वह ‘ कमर के नीचे ‘ . । आप पेरिस जाकर देश बेचा आइये, चरित्र नही बिगड़ेगा । किसी महिला के साथ हैं तो आपका चरित्र खराब हो गया । कमबख्त ! यह जानते हो कि इंसान में ‘ काम ‘ एक आवश्यक तत्व है फिर भी उसे प्रताड़ित करते रहते हो ।
सियासत के एक मनीषी बोल गए हैं – वायदा ख़िलाफीऔर बलात्कार छोड़ कर औरत और मर्द के सारे रिश्ते जायज है । डॉ लोहिया का यह कथन केवल रिश्ते के तानेबाने को ही साफ सुथरा नही बनाता , बल्कि समाज को उर्ध्वगामी भी बनाता है । दिक्कत यह है कि राम माधव जिस चूहेदानी में फंसे हैं यह उनकी अपनी बनाई कला है जिसे वे वर्जना में डालते हैं । इस मुल्क में ‘इस चरित्र ‘ को सबसे ज्यादा किसी ने स्थापित किया है तो इन्ही गिरोहियो ने । यहां तक बापू , नेहरू वगैरह तक को नही छोड़ा ।
दो – एक सीधा सा पैमाना तय होना चाहिए कि औरत और मर्द के रिश्ते अगर आपसी सहमति से हैं तो इसमें काजी साहिब थोड़ा दूर ही रहें चाहे भगवाधारी ब्रिगेड या सेना हो या पुलिस ।
सच तो यह है कि यह उनके अंदर की लड़ाई का एक हथियार है जिससे एक दूसरे पर हमला करते आ रहे हैं । इसे या तो निहायत गंभीरता से उठाकर इस पार या उसपार का फैसला कर ही लिया जाय या कत्तई गंभीरता से न लिया जाय ।
Edit View in discussion
सिकंदर हयात
सिकंदर हयात 8 hours ago
कैसी ज़बर्दस्त लात पड़ी थी ना संघियो के ———– पर दंगल ने जाने कितने हज़ार करोड़ छाप लिए वास्तव में हिन्दूकम्युनलिज़्म बढ़ा नहीं हे बल्कि मोदी के कारण एक छत के निचे आकर चुनावी राजनीति में फायदे में रहा हे जबकि बाकियो के वोट बटे हुए हे बिहार मॉडल से इन्हे आसानी से कूड़ेदान में पहुंचाया जा सकता हे ” चिपलूनकर- shared Rana Daggubati’s photo.
3 February 2016 ·
राणा दगुबती ने सोचा नहीं होगा कि आमिर खान के साथ तस्वीर खिंचवाने से उसके फैन्स इतने नाराज हो जाएँगे… मूल फोटो पर क्लिक करके मूल पोस्ट पर पहुँचिये और एक हजार से अधिक कमेंट्स में पढ़िए कि दक्षिण भारत में भी इस दगाबाज आमिर खान के खिलाफ कैसा जबरदस्त माहौल है…
बस अब “दंगल” का इंतज़ार है… इसे भी “दिलवाले” की तरह पटखनी देनी ही है…
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शुभ संध्या मित्रों… ” ————————https://khabar.ndtv.com/news/india/media-can-lean-but-not-democracy-ravish-kumar-at-harvard-university-1811115—————————————————————————-सिकंदर हयात 2 hours ago
गन्दी नाली का बदबूदार कीड़ा पगलेट तिवारी लिखता हे की जो लोग जस्टिस लाया की मौत की जांच की मांग कर रहे हे वो उनकी बोटिया नोच रहे कुत्ते हे
( रविश भी )——————————————————————————————————————————————————————Arun Maheshwari16 hrs · जज लोया दिल का दौरा पड़ने से नहीं मरे थे, उनकी मृत्यु जहर दिये जाने अथवा सिर पर किसी भारी प्रहार से हुई थी । यह नतीजा निकाला है एम्स के फ़ोरेंसिक विशेषज्ञ डाक्टर आर के शर्मा ने । जज लोया की पोस्ट मार्टम रिपोर्ट के सारे काग़ज़ातों की गहराई से जांच करने के बाद डा. शर्मा ने यह राय दी है । कैरावन की इस रिपोर्ट को ध्यान से पढ़ें, सारा मामला साफ दिखाई देने लगेगा :http://www.caravanmagazine.in/vantage/death-judge-loya-medical-documents-rule-heart-attack-forensic-expertGirish Malviya
1 hr ·
‘जो सती सत पर चढ़े तो पान खाना रस्म हैं
‘आबरू’ जग में रहे तो ‘जानजाना’ पश्म है’
इस कहावत का किस्सा तो बाद में बताऊंगा वैसे कल
पदमावत देख कर यह याद आयी और यह भी समझ मे आया गया कि स्वरा भास्कर ने वो बात क्यो लिखी, दरअसल इस फ़िल्म को राजपूतों की भावना को ठेस पुहचाने के लिए नही अपितु इस फ़िल्म को तो सती प्रथा का समर्थन किये जाने पर बैन किया जाना चाहिए था आप सिर्फ शुरू में एक कैप्शन दिखा देने से बच नही सकते
अक्सर भन्साली की फ़िल्म इसलिए देख लिया करता हूँ कि वह भव्यता लिए होती है रंगों का प्रयोग खूबसूरत ढंग से होता है, तकनीकी रूप से उत्कृष्ट सिनेमा रचते हैं लेकिन पदमावत निराश करती है, अलाउद्दीन के चरित्र को बेहद मूर्खतापूर्ण ढंग से फिल्माया गया है, मेवाड़ के वंशजों को तो नही लेकिन अलाउद्दीन के वंशजों ( यदि कहे बचे हो तो )को इसका कड़ा विरोध करना चाहिए था,
फ़िल्म बहुत बिखरी बिखरी चलती हैं,मेहनत बस कॉस्ट्यूम डिजाइन ओर ज्वेलरी डिजाइन में ही दिखती है डायलॉग के लेवल पर भी बहुत कमजोरी दिखाई पड़ती है, पदमावत एक सूफी आख्यान है फ़िल्म इस पहलू को छूती तक नही ओर न ही इतिहास से कोई न्याय कर पाती है , क्लाइमेक्स में बस जौहर का महिमा मंडन ही दिखता है
अब रही बात कहावत की तो कहते हैं पुराने समय मे दो शायरों में आपस मे बड़ी अदावत हुआ करती थी जिसमे एक का तखल्लुस ‘आबरू’ था तो दूसरे का तखल्लुस ‘जानजाना’ था, तो जानजाना को नीचा दिखाने के लिए आबरू ने यह शेर कहा था जो बाद में कहावत बन गया
Ila Joshi
जिसे प्रेम मिलता है वह इस बात को समझ ही नहीं पाता कि सामने वाला उसको कितना प्रेम करता है। वह अपनी ही धुंध और नशे में होता है। वह समझता है यह मेरी खासियत है जिससे मुझे प्रेम मिल रहा है। पर वह सिर्फ उसकी ही खासियत नहीं होती। प्रेम करने वाले की खासियत होती है।
प्रेम करना काबिलियत है। विश्वास देना गुण है। प्रेम ग्रहण करना भी काबिलियत है। जो मिल रहा है उसे श्रद्धा से, आदर से सिर झुका के ग्रहण करना चाहिए तभी वह आपको अपनी पूर्णता में मिलता है। जो डूबना नहीं जानता वह प्रेम की इस अगाध और अबाध वर्षा से भी सूखा निकल आता है।
Sandhya Navodita ने ये जो लिख दिया है न ये हम सबके हिस्से का सच है—–Sandhya Navodita
दिल्ली, जनज्वार मदरसे के मौलाना ने 9 साल की बच्ची से किया दुष्कर्म, 3 दिन तक होती रही ब्लीडिंग
बच्चियों और औरतों को लेकर सभी धर्म के दरवाजे एक सी बास मारते हैं, फिर चाहे वह मुल्ले हों या कठमुल्ले या फिर पंडित—पुजारी या पंडे, और हैरान करने वाली तो यह बात है कि जघन्य हैवानियत के बावजूद न अल्लाह लड़की की चीख सुनता है न भगवान
दिल्ली, जनज्वार। कोई इस हद तक भी हैवान हो सकता है, सोचकर रोंगटे कांप जाते हैं। एक 70 साल के कुंठित मौलाना ने 9 साल की मासूम को न सिर्फ अपनी हवस का शिकार बनाया, बल्कि जब उसने विरोध किया तो मुंह में कपड़ा ठूंस दिया। बच्ची के शरीर को इस निर्ममता से रौंदा कि 3 दिन से उसकी ब्लीडिंग रुक नहीं रही थी।
बच्ची के पेट में दर्द होने और यौनि से लगातार खून आता देख जब उसकी मां ने उससे पूछा तो पहले तो बच्ची डर के मारे चुप रही, क्योंकि मौलाना ने उसे धमकी दी थी कि इस घटना के बारे में किसी को कुछ न बताये नहीं तो वह उसको और उसके परिजनों को जान से मार देगा। मगर जब पेशाब के रास्ते से लगातार तीन दिन तक खूब सारा खून आता रहा और बच्ची पेटदर्द के मारे चिल्ला रही थी, तो परिजन उसे डॉक्टर के पास ले गए। डॉक्टर ने बच्ची के साथ बलात्कार होने की पुष्टि की।
यह घटना बाहरी दिल्ली के नरेला थाना क्षेत्र के एक मदरसे में घटी है। नरेला के बवाना जेजे कॉलोनी में स्थित झुग्गीनुमा मदरसे को मौलाना जफर आलम संचालित करता है। पीड़ित बच्ची भी यहां पढ़ने जाती थी। 24 फरवरी को शाम को लगभग सात बजे जफर ने मदरसे से सभी बच्चों की छुट्टी कर उन्हें घर भेज दिया, मगर नौ साल की बच्ची को अपने पास रोक लिया।
पहले उसने बच्ची को पांच रुपए का सिक्का देकर रुकने का लालच दिया। पीड़ित बच्ची मौलाना को दादा बोलती थी। इस कलयुगी दादा ने पहले मदरसे का गेट बंद कर बच्ची के कपड़े उतारे, जब बच्ची चिल्लाने लगी तो उसने उसके मुंह में कपड़ा ठूंसकर अपनी हवस शांत की।
शुरुआती जांच में पुलिस ने बताया कि पीड़ित बच्ची के परिवार में माता-पिता के अलावा दो बहनें और एक भाई है। उसके पिता नगर निगम में दिहाड़ी मजदूर का काम करते हैं और मां मानसिक रूप से बीमार है। जिस मदरसे में बच्ची के साथ मौलवी ने दुष्कर्म किया वह उसके घर के पास ही है। वहां बड़ी संख्या में बच्चे पढ़ने आते हैं, बच्ची भी सबके साथ पढ़ने जाती थी।
मौलाना का डर बच्ची पर इस कदर हावी था कि डॉक्टर द्वारा दुष्कर्म की पुष्टि करने पर जब बच्ची से परिजनों ने पूछा तो वह कुछ भी बताने से डरती रही, सिर्फ रोती रही। बाद में बताया कि मौलाना दादा ने उसके कपड़े उतारे, जब उसने मना किया तो मुंह में कपड़ा ठूंस दिया और उसके साथ गंदा काम किया।
बच्ची के परिजनों की शिकायत पर पुलिस ने पोस्को एक्ट 2012 के तहत मामला दर्ज कर लिया है।
आरोपी मौलाना को गिरफ्तार कर लिया गया है। बच्ची फिलहाल बाबा साहब अंबेडकर अस्पताल में भर्ती है। मगर इस तरह की बलात्कार की घटनाओं की दिन—ब—दिन जिस तरह से बाढ़ आती जा रही है, उससे लगता है कि हमारे देश के मर्द मानसिक रूप से विक्षिप्त होते जा रहे हैं।दिल्ली, जनज्वार
Rajiv Nayan Bahuguna Bahuguna3 hrs · मौत से खेल रहे हैं तेरे जांबाज़ जुदा
———–भारतीय कम्युनिस्ट मनेंद्र नाथ रॉय लेनिन से भारतीय स्वाधीनता संग्राम में हस्तक्षेप करने का आव्हान करने मास्को गए । उनका आग्रह था कि सोवियत कम्युनिस्ट पार्टी भारत को अंग्रेजों से मुक्त करा कर सत्ता अपने हाथ में ले । लेनिन का दो टूक उत्तर था – तुम्हारा नेता गांधी है । वापस अपने देश लौटो , और गांधी के नेतृत्व में ही संघर्ष करो । भारत के समाज और जलवायु के लिए गांधी ही श्रेयष्कर है ।अब लेनिन की भारत निष्ठा का इससे बड़ा और क्या उदाहरण पेश करूँ?——————————————————पाठको पुराने क्लिक मिट गए हे इसलिए नए पाठको लेखकों के लिए सुचना की ये लेख पुराने नए मिलाकर लगभग २८ हज़ार तक पढ़ा गया हे
Sanjay ShramanjotheYesterday at 10:54 · … कोई भी सफल स्त्री चाहकर भी कमजोर, गुमनाम और गरीब आदमी को प्रेम नहीं कर सकती चाहे वो कितना ही अच्छा प्रेमी क्यों ना हो, और कर भी ले तो उससे शादी नहीं कर सकती. यह निजी जीवन में प्रेम के चुनाव के सन्दर्भ में स्त्री की गुलामी का एक अनदेखा पहलू है…
पैसा प्रेम और सफल स्त्री – इन तीनों का रिश्ता बहुत रहस्यमयी है और बहुत निराश करने वाला है. हाल ही में रानी मुखर्जी ने एक सुपर-रिच से विवाह करके प्रेम और पैसे/ सुरक्षा के बीच चुनाव के बारे में अपनी राय जाहिर कर दी. यही अन्य तारिकाये भी करती आयीं हैं.
हालाँकि यहाँ कोई दावे से नहीं कह सकता कि ये विवाह प्रेम से प्रेरित है या असुरक्षा से, हो सकता है उनके बीच सच में ही प्रेम रहा हो. लेकिन फिल्मों में प्रेम के लिए कुछ भी निछावर कर जाना एक बात है और असल जिन्दगी में उस कुछ भी और प्रेम के साथ संतुलन बनाना बहुत दूसरी बात है.
पूरा समाज जो धन और प्रतिष्ठा से सम्मोहित है, उस सम्मोहन की मार सबसे ज्यादा स्त्री के जीवन में प्रेम की संभावना पर ही पड़ती है. कोई भी सफल स्त्री चाहकर भी कमजोर, गुमनाम और गरीब आदमी को प्रेम नहीं कर सकती चाहे वो कितना ही अच्छा प्रेमी क्यों ना हो, और कर भी ले तो उससे शादी नहीं कर सकती.
यह निजी जीवन में प्रेम के चुनाव के सन्दर्भ में स्त्री की गुलामी का एक अनदेखा पहलू है. कोई नारीवादी इसकी बात नहीं करता. कोई स्त्री जितनी मजबूत नज़र आती है वो प्रेम के मामले में उतनी ही बदनसीब साबित होती है. बालीवुड की तारिकाओं की शुरूआती मजबूती और बाद में उनकी मजबूरी देखकर डर लगता है.
उनका पूरा चमत्कार उनके शरीर और सौंदर्य पर टिका होता है, यह उन्हें किसी एक दिशा में एक ढंग से मजबूत बनाता है लेकिन बाकी सब दिशाओं में वे भयानक रूप से मजबूर और असुरक्षित हो जाती हैं, हर उद्योगपति, नेता, गुंडा और सारे प्रशंसक उसे नोच डालना चाहते हैं.
अभी चुनाव प्रचार में नगमा की हालत देखकर इसका अंदाज़ा होता है. इस असुरक्षा को तोड़ने के लिए उन्हें अक्सर ही प्रेम की बलि चढ़ानी होती है और प्रेम हीन लौह दुर्गों में शरण लेनी होती है.
प्रेम इत्यादि जिन चीजों का प्रदर्शन करके वे अपना करियर बनाती हैं, उन्ही की बलि चढ़ाकर उन्हें अपना परिवार बसाना होता है. और जो स्त्रियाँ/तारिकायों अंत तक इसके खिलाफ विद्रोह करती हैं उनका अंत शराब, आत्महत्या या अकेलेपन में होता है…
क्या यह भी नारी के शोषण और दमन का ही एक अनछुआ अध्याय नहीं है ?
(एक पुरानी पोस्ट)सिकंदर हयात on March 28, 2018 at 3:05 pm
संधया नवोदिता की ये लाइने मंत्रमुग्द कर देने वाली हे बार बार पढ़ने को जी चाहता हे—————————- ” Ila Joshiजिसे प्रेम मिलता है वह इस बात को समझ ही नहीं पाता कि सामने वाला उसको कितना प्रेम करता है। वह अपनी ही धुंध और नशे में होता है। वह समझता है यह मेरी खासियत है जिससे मुझे प्रेम मिल रहा है। पर वह सिर्फ उसकी ही खासियत नहीं होती। प्रेम करने वाले की खासियत होती है ।प्रेम करना काबिलियत है। विश्वास देना गुण है। प्रेम ग्रहण करना भी काबिलियत है। जो मिल रहा है उसे श्रद्धा से, आदर से सिर झुका के ग्रहण करना चाहिए तभी वह आपको अपनी पूर्णता में मिलता है। जो डूबना नहीं जानता वह प्रेम की इस अगाध और अबाध वर्षा से भी सूखा निकल आता है।Sandhya Navodita ने ये जो लिख दिया है न ये हम सबके हिस्से का सच है—–Sandhya नवोदिता ”
REPLY
सिकंदर हयात
सिकंदर हयात on April 26, 2018 at 1:37 pm
-जगदीश्वर चतुर्वेदी||
इंटरनेट की गतिशीलता और बदले नेट संचार के आंकड़े बड़े ही दिलचस्प हैं। विश्व स्तर पर इंटरनेट के यूजरों की संख्या 1.6 बिलियन है। इसमें एशिया का हिस्सा आधे के करीब है। एशिया में 738 मिलियन इंटरनेट यूजर हैं। इसमें सबसे ज्यादा यूजर चीन के हैं। फेसबुक के 500 मिलियन सक्रिय यूजर हैं। ये लोग संदेश ले रहे हैं और दे रहे हैं। इनके संदेशों की संख्या अरबों-खरबों में है। इसी तरह ट्विटर के यूजरों की संख्या भी करोड़ों में है। ट्विटरों के संदेशों की अब तक की संख्या 10 बिलियन है। यू ट्यूब में दो बिलियन वीडियो रोज देखे जाते हैं।
इंटरनेट की उपरोक्त गति को ध्यान में रखकर देखें तो पाएंगे कि पोर्नोग्राफी देखने वालों की गति क्या होगी ? पोर्नोग्राफी बेवसाइट पर एक पदबंध है जिसका व्यापक इस्तेमाल किया जा रहा है और वह है ‘‘Fuck Me Look’’ । इस पदबंध को पढ़कर लग सकता है कि इसका पोर्न के संदर्भ में ही प्रथम इस्तेमाल किया जा रहा है। लेकिन ऐसा नहीं है। औरत का तो विज्ञापन में कार से लेकर ब्लेड तक इस्तेमाल किया जा रहा है। ऐसी वस्तुओं के विज्ञापन में औरत रहती है जिसे औरतें इस्तेमाल नहीं करतीं।
संस्कृति और मासकल्चर की समस्या यह है कि ये दोनों मानकर चलते हैं कि पुरूष हमारी संस्कृति है,पुंसवाद हमारी संस्कृति है। पुरूष ही हमारी संस्कृति का समाजीकरण करता है। इसी पुरूष के ऊपर ‘Fuck Me’ के नारे के जरिए बमबारी हो रही है। इस नारे के तहत विजुअल इमेजों में कहा जा रहा है कि तुम मेरे शरीर के मालिक हो, स्त्री शरीर के हकदार हो।
पुरूष से कहा जा रहा है कि तुम बलात्कार या स्त्री उत्पीड़न के आरोपों को गंभीरता से न लो क्योंकि मैं तुम्हें अपना शरीर भेंट कर रही हूँ। फ़र्क इतना है कि पोर्न बेवसाइट में ‘Fuck Me’ कहने वाली औरत बाजार या गली में टहलती हुई कहीं पर नहीं मिलती।
इसी तरह हार्डकोर पोर्नोग्राफी बेवसाइट में गुप्तांगों का वस्तुकरण होता है, वहां पर स्त्री का सेक्सी लुक सभ्यता को नरक के गर्त में ले जाता है। यह संभावना है कि पोर्न के देखने से बलात्कार में बढ़ोतरी हो यह भी संभव है पोर्न का यूजर सीधे बलात्कार न भी करता हो। लेकिन यह सच है कि पोर्न गंदा होता है और यह दर्शक के सांस्कृतिक पतन की निशानी है।
जब तक कोई युवक पोर्न नहीं देखता उसकी जवानी उसके हाथ में होती है। वह अपनी जवानी का मालिक होता है। अपनी कामुकता का मालिक होता है। लेकिन ज्योंही वह पोर्नोग्राफी देखना आरंभ करता है उसका अपनी जवानी और कामुकता पर से नियंत्रण खत्म हो जाता है। अब ऐसे युवक की जवानी पोर्नोग्राफी के हवाले होती है। उसकी जवानी की ताकत का स्वामित्व पोर्नोग्राफी के हाथों में आ जाता है और इस तरह एक युवा अपनी जवानी को पोर्नोग्राफी के हवाले कर देता है। वह पोर्न देखता है, खरीदता है।
पोर्न बदले में उसके सेक्स के बारे में संस्कार,आदत, एटीट्यूट और आस्था बनाती है। युवा लोग नहीं जानते कि वे अपनी जवानी की शक्ति पोर्न के हवाले करके अपनी कितनी बड़ी क्षति कर रहे हैं। जवानी उनकी कामुक भावनाओं का निर्माण करती है। उनकी कामुक पहचान बनाती है।
जो लोग कहते हैं कि पोर्न के जरिए शिक्षा मिलती है,सूचनाएं मिलती हैं। वे झूठ बोलते हैं। पोर्न के देखने के पहले युवक का दुनिया के बारे में जिस तरह का नजरिया होता है वह पोर्न देखने के बाद पूरी तरह बदल जाता है। पोर्न देखने वाला सिर्फ स्वतः वीर्यपात करता रहता है और उससे ज्यादा सेक्स पाने की उम्मीद लगाए रहता है।
पोर्न की इमेजों में दुनिया,औरत,मर्द,कामुकता ,आत्मीयता ,शारीरिक लगाव आदि के बारे में कहानी बतायी जाती हैं। लेकिन पोर्न की सारी इमेजों से एक ही संदेश अभिव्यंजित होता है वह है घृणा। यह कहना गलत है पोर्न से प्रेम पैदा होता है। गेल डेनिश ने इसी संदर्भ में लिखा था कि पोर्न से प्रेम नहीं घृणा अभिव्यंजित होती है। पोर्न देखकर औरत के प्रति प्रेम नहीं घृणा पैदा होती है। पुरूष औरत के शरीर से घृणा करने लगता है। उसे तो वह शरीर चाहिए जो पोर्न स्टार का है।वैसा सेक्स चाहिए जैसा पोर्न में दिखाया जाता है। कहने का तात्पर्य यह है कि ’Fuck Me’ का नारा ‘Hate Me’ की विचारधारा की सृष्टि करता है।
आंद्रिया द्रोकिन ने इस बात पर लिखा है कि ”जब कोई औरत या लड़की के सामान्य जीवन को देखता है तो वह वस्तुत: उनकी क्रूर स्थितियों को देख रहा होता है। हमें मानना पड़ेगा कि सामान्य जीवन में चोट लगना आम बात है, यह व्यवस्था का हिस्सा है, सत्य है। हमारी संस्कृति ने भी इसे स्वीकार किया है। इसका प्रतिरोध करने पर हमें दंड मिलता है। गौरतलब है कि यह तकलीफ देना, नीचे ढकेलना, लिंगीय क्रूरता आदि दुर्घटनाएँ या गलतियाँ नहीं वरन् इच्छित कार्य व्यापार हैं। हमें अर्थहीन व निर्बल बनाने में पोर्नोग्राफी की बड़ी भूमिका है। यह हमारे दमन, शोषण तथा अपमान को सहज और अनिवार्य बनाती है।’
द्रोकिन ने यह भी लिखा है कि ‘‘पोर्नोग्राफर हमारे शरीर का उपयोग भाषा के रूप में करते हैं। वे कुछ भी कहने या सम्प्रेषित करने के लिए हमारा इस्तेमाल करते हैं। उन्हें इसका अधिकार नहीं है। उन्हें इसका अधिकार नही होना चाहिए। दूसरी बात, संवैधानिक रूप से भाषायी पोर्नोग्राफी की रक्षा करना कानून का निजी हित में उपयोग करना है। इससे उन दलालों को खुली छूट मिल जाएगी जिन्हें कुछ भी कहने के लिए हमारी जरूरत होती है। वे दलाल मनुष्य है, उन्हें मानवाधिकार प्राप्त है, वैधानिक रक्षण का सम्मान प्राप्त है। हम चल संपत्ति है, उनके लिए रद्दी से ज्यादा नहीं।’’
आंद्रिया द्रोकिन ने लिखा कि पोर्न के लिए औरत महज भाषिक प्रतीक मात्र है। पोर्न की भाषा दलाल की भाषा है। उन्हीं के शब्दों में ‘‘हम मात्र उनके भाषिक प्रतीक हैं जिन्हें सजाकर वे सम्प्रेषित करते हैं। हमारी पहचान दलालों की भाषा में निर्मित होती है। हमारा संविधान भी हमेशा से उन्हीं के पक्ष में खड़ा है, वही जो लाभ कमानेवाले सम्पत्ति के मालिक हैं। चाहे सम्पत्ति कोई व्यक्ति ही क्यों न हो। इसका कारण कानून और धन, कानून और पॉवर का गुप्त समझौता है। दोनों चुपचाप एक दूसरे के पक्ष में खड़े हैं। कानून तब तक हमारा नही जब तक वह हमारे लिए काम नही करता। जब तक हमारा शोषण नहीं रोकता, हमें मानव होने का सम्मान नही देता।’’
जैसा कि सभी जानते हैं कि अमेरिका पोर्न का मूल स्रोत है। सारी दुनिया में अमेरिका ने पोर्न संस्कृति का प्रचार-प्रसार करके एक नए किस्म की सांस्कृतिक प्रतिक्रांति की है। द्रोकिन ने लिखा है , ‘‘ अमेरिका में पोर्नोग्राफी उन लोगों का इस्तेमाल करती है जो संविधान के बाहर छिटके हुए हैं। पोर्नोग्राफी श्वेत औरतों का चल सम्पत्ति के रूप में इस्तेमाल करती है। यह अफ्रीकन-अमेरिकन महिलाओं का दास की तरह उपयोग करती है। पोर्नोग्राफी बहिष्कृत पुरुषों (अफ्रीकन-अमेरिकन दासों) का उपयोग कामुक वस्तुओं की तरह जानवरों द्वारा बलात्कार के लिए करती है। पोर्नोग्राफी वृद्ध श्वेत पुरुषों पर नही बनती। ऐसा नही हैं। कोई उन तक नही पहुँच पाता है। वे हमारे साथ ऐसा कर रहे हैं, या उन लोगों की रक्षा कर रहे है जो हमारे साथ दुर्व्यवहार करते हैं। उन्हें इसका फायदा मिलता है। हमें उन्हें रोकना होगा।’’
समाज में पोर्न तब तक रहेगा जब तक औरत को संपत्ति माना जाएगा और समाज में संपत्ति का महिमागान चलता रहेगा। संपत्ति पर आधारित संबंधों को नियमित करने में धर्म और मीडिया दो बड़े प्रचारक और राय बनाने वाले हैं। इसी संदर्भ में आंद्रिया द्रोकिन ने लिखा-
‘‘ज़रा सोचें किस तरह विवाह स्त्री को नियमित करता है, किस प्रकार औरतें कानून के अंतर्गत संपत्ति मात्र हैं। बीसवीं शती के आरम्भिक वर्षों के पहले यह स्थिति ऐसे ही बरकरार थी। चर्च महिलाओं को संचालित करता था। जो मर्द स्त्री को अपनी वस्तु समझते थे उनके खिलाफ प्रतिरोध चल रहा था। और अब ज़रा पोर्नोग्राफी द्वारा समाज के स्त्री नियमन की नई व्यवस्था पर गौर करें, यह औरतों के खिलाफ आतंकवाद का लोकतांत्रिक प्रयोग है। रास्ते पर चल रही हर स्त्री को इसके द्वारा यही संदेश दिया जाता है कि उसकी अवस्था नज़रे नीची किए हुए जानवर के समान है। वह जब भी अपनी ओर देखेगी उसे पैर फैलाए लटकी हुई स्त्री दिखेगी। आप भी यही देखेंगे।’’
पाठको पुराने क्लिक की सुचना मिट गयी हे ये लेख तीस हज़ार के करीब क्लिक हुआ हे
Laxman Singh Dev
1 June 2016 ·
भैरव एक छोटे शहर से दिल्ली पढ़ने आया था और वह भी भारत के सबसे प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय jnu में। भैरव ,वहां का माहोल देखकर भौचक्का रह गया।बड़ा शहर ,चकाचोंध, लेकिन जिसे देखकर वह सबसे भौचक्का था वे थी विश्वविद्यालय की खूबसूरत छात्राएं,और दिल्ली की बिंदास हसीनाएं।स्नातक के बाद परास्नातक,लेकिन भैरव अभी तक भरे शहर में अकेला था।लड़कियों से दोस्ती तो बहुत हुयी लेकिन अंतरंग सम्बन्ध किसी से नहीं बन पाये।मुग्धा उसी की सहपाठी थी,उसने उसे खूब पढ़ाया लेकिन बहुत दिनों बाद मुग्धा ने उसे बताया कि उसका तो एक बॉयफ्रेंड हैं और वो बस उसे मित्र ही समझती है।और उसे अपने आपको कंट्रोल करना चाहिए।भैरव अपने हार्मोन के कारन बहुत परेशांन हो जाता ,बहुत उत्तेजित हो जाता।दूसरे युगलों को देखकर उसे बहुत अजीब लगता ,उसे लगता मेरे अंदर क्या नहीं है जो दुसरो में है।क्योंकि कोई लड़की उसे तन,मन का साथ नहीं दे रही।बहुत समय गुजर गया।भैरव 20 से 37साल का हो गया। मास्टर डिग्री,एम,फिल के बाद अभी पीएचडी ही कर रहा था।बहुत कुछ बदला ।लेकिन वह अब भी कुमार ही था।उसे ऐसा महसूस होने लगा शायद उसे यौनानन्द सिर्फ विवाह करके ही मिलेगा।बेरोजगार होने के कारन विवाह भी नहीं हो रहा था।एक दिन उसने अपने मित्र को व्यथा सुनाई।कुछ समय बाद दोनों दिल्ली की एक बस्ती मोतिया खान की और चले जा रहे थे,बहुत देर चलने के बाद एक बड़ी सी झुग्गी आई,भैरव मित्र के साथ अंदर घुसा ,वहां 4 लड़कियां थी।एक अधेड़ महिला ने उसे लड़की चुनने को कहा।वह एक सांवली ,भरे बदन की लड़की को लेकर कमरे में चला गया। 37साल की उम्र हो गयी थी भैरव की।आज उसने पहली बार ,पहली बार किसी महिला को नग्न देखा था।उसका सिर गर्म और पैर ठंडे हो गए।शिशनोत्थानं (penile erection)भी नहीं हो रहा था।लगभग एक घण्टे बाद उसे लगा कि आज उसे निर्वाण मिला है।क्या यह सुख इतना सुलभ है कि मात्र 400 रुपये में मिल गया?उसे लग रहा था यह सपना है या सच,?कितना छटपटाया वो 37की उम्र तक इस सुख के लिए।कितना बेवकूफ बना सिर्फ इस सुख को पाने के लिए ,कितनी लड़कियों ने उसका इस्तेमाल किया ,उसके नोट्स लिए,ट्यूशन पढ़ी,और हाथ भी नहीं पकड़ने दिया।आज भैरव को निर्वाण प्राप्त हो गया था—कहने का तातपर्य है कि यौन सुख को दुर्लभ बना दिया गया है जिसके कारन पुरुषो का भी शोषण होता है।
Abhishek Srivastava
7 hrs ·
अनायास ही ”नदी के द्वीप” का एक प्रसंग याद आ गया। उसमें एक पत्रकार है चंद्रमाधव। मेफेयर सिनेमा में कोई अश्लील फिल्म लगी है। घर में पत्नी के खटराग से चटकर वह बाहर निकलता है। रिक्शा करता है। रिक्शे वाले को कहता है मेफेयर चलो। मेफेयर का नाम सुनकर रिक्शेवाला अपनी गति बढ़ा देता है। उसके ज़ेहन में अश्लील फिल्म का पोस्टर लहरा रहा है। वह जितना तेज़ पैडल मारता है, उतना गरमाता है। सिनेमा पर रुक के चंद्रमाधव को सलामी भी बजाता है। अज्ञेय इसे प्रातिनिधिक सुख का नाम देते हैं। मने सिनेमा देखने कोई और जा रहा है लेकिन गरम कोई और हो रहा है। बीरबल के बल्ब टाइप।
कल से लोग कह रहे हैं कि मीडिया मातम में है, सदमे में है। ये लोग मीडिया को नहीं समझते। मीडिया दरअसल उस रिक्शेवाले की तरह है जो अपने रिक्शे पर बैठाकर मतदाताओं को भारतीय जनता पार्टी नाम का अश्लील सिनेमा दिखाने कैराना ले गया था। रिक्शेवाले की तरह मीडिया बहुत उत्साह में था। सिनेमाहॉल पहुंचा तो फिल्म ही उतर चुकी थी। मतदाताओं ने तो दूसरी फिल्म से काम चला लिया, लेकिन फिल्म के नाम पर पहले से पर्याप्त गरमा चुके मीडिया का शीघ्रपतन हो गया। फटा पोस्टर, निकला जीरो।
कांग्रेसी या गैर-भाजपाई सरकारों में मीडिया इतना नहीं गरमाता है। वहां सेक्स, रोमांच, मारधाड़ की अपर्याप्तता है। भाजपा हीट करती है। मीडिया हीट होता है। अब मर्यादा है, तो सीधे मीडिया सिनेमाहॉल में नहीं घुस सकता। आरोप लग जाएगा। सो जनता को हॉल के भीतर बैठाकर बाहर से मौज लेता रहता है। कल मीडिया का यही प्रातिनिधिक सुख अचानक छिन गया। इसीलिए चेहरे लटके हुए हैं। संपादक झरे हुए हैं। बह गया संसार सरि सा… मैं तुम्हारे ध्यान में हूं…!
Laxman Singh Dev
Yesterday at 07:57 ·
सावधान-सेंसर विहीन पोस्ट है।अगर खुले वर्णन से दिक्कत है तो आगे न पढ़े//////बहुत दिनो बाद जैकब एवम् रुबीना से मुलाकात हुयी ।दोनों मेरे दोस्त है एवम् वे एक दूसरे के साथ प्रणय-संबंधो में हैं । बहुत देर इधर ,उधर की बात होने के बाद जैकब सिगरेट पीने पब से बाहर चला गया ।रुबीना मेरी पुराणी एवम् अच्छी दोस्त है।मैंने पूछा कैसा चल रहा है।रुबीना रुआंसी हो गयी और कुछ बोली ही नहीं। मेरे जोर देने पर उसने बताया कि वो पांचवी बार जैकब के कारन गर्भवती हों गयी और अब उसे गर्भपात कराना होगा।यह बात बताते बताते उसके कई आंसू उसकी वोदका के चषक(peg)में गिर गए।मैंने कहा कि तुम दोनों बेवकूफ हो क्या ?गर्भ निरोधक प्रयोग क्यों नहीं करते ?रुबीना बोली ,जेकब कहता है क्या टॉफी ,रेपर के साथ एवम् केला छिलके के साथ खाने में मजा आता है क्या? और उसे मुझमें उस समय केवल ——– दिखती है।,मैंने उनसे कहा ,आप लोग सुरक्षित समय में मैथुन क्यों नहींकरते ? मासिक के पहले दिन से सातवां दिन तक और 21 वे दिन के बाद सुरक्षित समय होता है।जब निश्चिंत होकर स्खलन कर सकते हैं।तापमान अगर लेते रहें तो अंडोत्सर्जन के समय का भी पता लगाया जा सकता है। स्खलन के समय बाहर निकल लेना भी एक बेहतर उपाय है, लेकिन उसके लिए संवेगों पर नियंत्रण होना चाहिए,अब कई एंड्राइड एप्प भी आ गए हैं जिससे सुरक्षित समय का हिसाब लगाया जा सकता है।अगर इन बातो को ध्यान रखा जाये तो महिलाएं बड़ी मुसीबत से बच सकती है।एक बार का गर्भपात ,स्वास्थ्य को बुरी तरह प्रभावित करता है।{पुनः प्रकाशित]————————–
Pushya Mitra4 hrs · सलोनी अरोड़ा……………….लोनी अरोड़ा अरेस्ट हो गयी है. वही सलोनी अरोड़ा जिस पर दैनिक भास्कर के पूर्व समूह संपादक स्वर्गीय कल्पेश याग्निक ब्लैकमेल करके खुदकुशी के लिए विवश करने का आरोप है. सलोनी अरोड़ा उसी दैनिक भास्कर समूह की पूर्व पत्रकार रह चुकी है और मुंबई ब्यूरो में काम करते हुए फिल्मी जगत की खबरें लिखा करती थीं. सलोनी अरोड़ा की गिरफ्तारी की खबर आने के बाद भड़ास4मीडिया.कॉम पर कल्पेश जी और सलोनी के बीच हुई बातचीत का एक ऑडियो और वह पत्र जो कल्पेश जी ने मध्यप्रदेश के एक बड़े पुलिस अधिकारी को लिखा था, दोनों प्रकाशित हुआ. जब से इन दोनों से होकर गुजरा हूं, कई बातें मन में उमड़ रही हैं और उन्हें लिखकर पोस्ट कर डालने का मौका तलाश रहा हूं.
1. पहली बात यह कि आप सभी अगर इस मामले में रुचि रखते हैं तो इन दोनों को पढ़ और सुन लीजिये. अगर मुझे आज भी लिंक मिल गया तो उसे कमेंट बॉक्स में डाल दूंगा.
2. इन्हें पढ़ और सुनकर इस मामले पर आप अपनी राय बनाइयेगा. मेरी बातें बस पढ़ लीजिये.
3. कल्पेश जी ने पुलिस अधिकारी को जो पत्र लिखा है, वह पांच पन्नों का है. काफी लंबा है. मेरा अपना मानना है कि अगर आपके विचारों में उलझ है, तभी आप इतनी लंबी शिकायत लिखते हैं. यह अनुमान गलत भी हो सकता है.
4. मैं कल्पेश जी की आवाज से परिचित नहीं हूं. मगर ऑडियो क्लिप में उनकी आवाज जिस कदर फुसफुसाहट भरी है, वह भी बताती है कि वे सलोनी को लेकर दबाव में रहते होंगे.
5. ऑडियो क्लिप को सुनकर सलोनी के बारे में जानने समझने का मौका मिलता है. दिलचस्प है कि वे एक सामान्य पत्रकार होने के बावजूद अपने समूह संपादक को सर कह कर नहीं बुलाती. कल्पेश कहती है और तुम कह कर पूरे अधिकार से संबोधित करती है. और इसमें कोई हिचकिचाहट नहीं है, ऐसा लगता है जैसे वह कल्पेश जी से इस तरह की बातचीत की अभ्यस्त हो. हमारी तो आज भी अपने सुपर बॉस के आगे घिघ्घी बंधने लगती है.
6. कहा जा रहा है कि सलोनी कल्पेश जी से पांच करोड़ रुपये मांग रही थी. उस क्लिप में भी सलोनी ने खुद यह बात कही है. मगर आप जब बातचीत गौर से सुनेंगे तो समझ में आयेगा कि वह पैसे नहीं मांग रही. वह कुछ और मांग रही है.
7. सलोनी खुलकर कहती है. मुझे फिल्म रिव्यू लिखने का अधिकार चाहिए, हर संडे को नवरंग की लीड स्टोरी मैं लिखूंगी. शायद वह पहले लिखती भी रही हों. क्योंकि वह टेप में कहती है कि तुमने उस लड़की को मेरे ऊपर बिठा दिया. ठीक है, वह गिरीश अग्रवाल(या इनके कोई और भाई का नाम कहा होगा) की कैंडिडेट है. मैं इतना बर्दास्त कर लूंगी. मगर मेरी पोजीशन क्लीयर होनी चाहिए. (हाय रे, पत्रकार की ख्वाहिशें)
8. वह कल्पेश जी से कहती है कि तुमने मुझे डिफेंड क्यों नहीं किया. शायद वह इसलिए कहती है कि वह खुद को कल्पेश जी का कैंडिडेट मानती है. मीडिया में यही सब होता है. हर कोई किसी न किसी का कैंडिडेट है. जो किसी का कैंडिडेट नहीं है, वह फुटबॉल बनकर रह जाता है.
9. तो सलोनी की पहली मांग यही है और इस मांग को पूरा नहीं करने पर वह पांच करोड़ की मांग करती है.
10. सलोनी एक और दिलचस्प बात कहती है. तुम जानते हो, पैसा मेरे लिए मैटर नहीं करता. मैं जिस शहर में रहती हूं वह प्रोड्यूसरों का शहर है और मेरे अंदर अभी भी चार्म है. मैं अगर किसी से भी इमोशनली अटैच्ड हो जाऊं तो मेरा और मेरे बच्चे का जीवन बड़े आराम से कटेगा. मुझे शादी करने की भी जरूरत नहीं पड़ेगी.
11. सलोनी अब इस प्रकरण की खलनायिका है. कल्पेश जी दुनिया छोड़कर जा चुके हैं. पुलिस कार्रवाई में जुटी होगी. अखबार को अपनी साख और परिवार को कल्पेश जी की छवि को बचाकर रखना है. सलोनी और उसके बच्चे का भविष्य क्या होगा, हम अंदाज भी नहीं लगा सकते. मगर एक सवाल तो है. वह एक हारी हुई रिपोर्टर आखिर क्या मांग रही थी? पांच करोड़ रुपये या एक पत्रकार के रूप में अपनी खोयी हुई पोजीशन? पढ़िये, सुनिये और सोचिये.
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Laxman Singh
25 August at 22:19 ·
बाबा राम रहीम के कांड के संदर्भ में पुनः उसी प्रिय मुद्दे पर विचार करना चाहता हूं।यौन सुख ,पेट की भूख के बाद मनुष्यो की सबसे बड़ी भूख है।इसमें सबसे बड़ी समस्या है इसे सहज होकर स्वीकार न करना, ओशो जैसे चिंतक भी इसके शुद्ध आनंद वाले पक्ष को स्वीकार न करके समाधि इत्यादि के बहाने यौन सुख लेने की बात करते हैं।इससे पता चलता है कि कितना असहज हैं समाज यौन सुख की स्वीकार्यता को लेकर।इसे ढंग से स्वीकार न करने पर यौन विकृतियों में बढ़ोतरी होती है।वाल्मीकि रामायण में राम ने कहा है कि यौन इच्छा मनुष्य के कर्म को प्रभावित करने वाली सबसे बड़ी शक्ति है।पुरुषवादी धर्म नारी मुक्ति के सबसे बड़े दुश्मन हैं।महात्मा बुद्ध भी इसी यौन सुख के मुद्दे के कारण स्त्रियों के बौद्ध संघ में प्रवेश के विरोधी थे।नारी को नरक का द्वार मानने वाले तुलसीदास भी काम भावना से अति पीड़ित रहे और अंततः दोषी नारी को ठहरा दिया।सीता की यौन शुचिता की परीक्षा लेने वाले श्री राम भी इसी पुरुषवादी मानसिकता से पीड़ित रहे होंगें।भक्तों को अप्सराओं ओर अक्षत- [virgin vagina】हूरो का लालच देने वाले ईश्वर या ————- वस्तुतः पुरुषवाद का ही प्रतीक हैं।यहां औरतो के लिए मजे का कोई इंतेजाम नही है।औरतो की 50% मुक्ति उस दिन हो जाएगी जिस दिन पुरुष वर्ग यौन सुख को लेकर सहज हो जायँगे ओर ओर धर्म और सेक्स का घालमेल बन्द होगा।मजे को मजे की तरह स्वीकार करो।[पुनः प्रकाशित)
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S Bhattacharya
18 September ·
प्रेम में स्त्री को आर्थिक, सामाजिक सुरक्षा, प्रतिष्ठा चाहिए, जिसके एवज में स्त्री अपनी “दैहिक पूंजी” का सौदा करती है। तो पुरुष को बदले में “सुंदर दैहिक पूंजी” चाहिए। जिसके एवज में पुरुष अपनी शक्ति, प्रतिष्ठा, संपति का सौदा करता है। फिर उस “दैहिक पूंजी” का प्रदर्शन एक पुरुष अपने पुरुष समाज में करता है। इतराता है। जलता है। खुद के विशेष होने की गलतफहमी में जीता है। यही स्त्री भी करती है।
स्त्री हो या पुरुष, बिरले स्त्री पुरुष ही इस “जैविक अनुवांशिक आदम मूल प्रवृति” से बाहर निकल पाते हैं। खुद को संशोधित कर पाते हैं। सत्ता के गलियारों में, ब्यूरोक्रेट्स, नेताओं, उद्योगपतियों, मंत्रियों, संपादकों के बीच “दैहिक पूंजी बनाम शक्ति पूंजी” का खेल खूब देखा और समझा है। शायद ही कोई इस “जैविक प्रतिभा” से मुक्त मिला। ना जाने कितनी “सच्ची-मनोहर कहानियां” अपने ह्रदय में दबाए बैठा हूँ।
इनके अलावा एक “तीसरी प्रजाति” भी होती है स्त्री पुरुष की। जो ना दैहिक पूंजी के धनी हैं, और ना “शक्ति पूंजी” के। गाहे बगाहे इस प्रजाति की हताशा “अनूप जलोटा” के बहाने मुखर होती रहती है।
इसे Displacement of Frustration यानी
“हताशा का स्खलन” कहते है। राष्ट्रवादियों में यह हताशा, शास्त्र, संस्कृति आचरण की नैतिक दुहाई की शक्ल में अभिव्यक्त होती है। महामारी की तरह।
ईश्वर इनको सद्बुद्धि और पौरुष प्रदान करे।
Uday Narayan
26 October at 08:04 ·
Disadvantage of ORAL SEX
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कुछ दिन पहले मैं anal sex के disadvantage पर एक पोस्ट लिखा था जिसे बहुत लोगो ने पसंद किया था।बहुत से मित्रो ने oral sex पर पोस्ट लिखने का सुझाव दिया जो इस समय के young लोगो की खास पसंद बनती जा रही है ।मैं इसपर लिखना टाल रहा था हमे लिखना अच्छा भी नही लग रहा था ।लेकिन एक ऐसी घटना घटी की आज mood बन गया लिखने का ।वजह है हमारी एक 30 वर्षीय महिला रोगी जिसने हमसे थोड़ा सकुचाते हुवे पूछा कि डॉ साहब हमारे पति oral सेक्स (मुख मैथुन) करना चाहते है ,मैं क्या करूँ क्या यह नुकसानदेह है? मैंने पूछा कि उनको ऐसा करने को कौन कहा तो उसने बताया कि मोबाइल में ऐसा करते हुवे देखते है तो कहते है कि जब वो आदमी कर रहा है तो हमलोग क्यों ना करे ।मैं उस औरत को बोला कि तुम मोबाइल में पूरी वीडियो देखना पति के साथ अगर पत्नि पुरूष के genital orgon के साथ मुख मैथुन कर रही है तो पति भी पत्नि के genital orgon के साथ मुख मैथुन कर रहा हैऐसा देखने को मिलेगा ।अगर पति ऐसा करने को तैयार है तो कोई हर्ज नही है ।तीसरे दिन औरत आकर बोली कि dr साहब वो बोल रहे है कि वो जगह गंदी है मैं नही करूँगा और तुम भी मत करो ।
हलाकि oral सेक्स हिन्दू और मुसलमान में वर्जित रहा है ।कुछ मंदिरों में इसके चित्र मिलने से सर्व समाज की प्रबृत्ति नही मानी जा सकती है ।हो सकता हो राजा महाराज ऐसा करते हो पर जन साधारण में यह बर्जित था ।
वर्तमान में पोर्न वीडियो ही इसके लिए जिम्मेदार है ।
Disadvantage=अगर जनन अंगों की पूरी सफाई के साथ करे तो कोई हर्ज नही पर यह mutual होना चाहिए ।मतलब पुरूष और महिला दोनो एक साथ यह काम करे तो दोनों एक साथ orgasm (चरम आनंद)पर पहुचेंगे जो अच्छा रहेगा ।अगर सिर्फ पुरुष महिला के साथ मुख मैथुन करेगा तो वह उत्तेजित होगा पर महिला नही कयोकि महिला के clitoris को तो उत्तेजित किया ही नही जा रहा है ।इससे पुरुष का premature ejaculation हो जाएगा और महिला अतृप्त रहेंगी ।ay Narayan फिलहाल oral सेक्स कोई अच्छी चीज नही है लेकिन नयी पीढ़ी इसकी तरफ बहुत आकर्षित हो रही है ।कैंसर का तो पता नही फिर भी अगर सफाई का ध्यान न हो तो कुछ बीमारी हो सकती है ।
प्रेम तब से अब तक
रंजन माहेश्वरी ·
गुरुवार के अलावा शामें बिलकुल उदास होती थीं.
गुरु को बायो लैब संगीत कक्षा के पास होती थी.
वह बायो की छात्रा थी, और मैं गणित का मारा था,
बस वैकल्पिक विषय संगीत ही मेरा सहारा था.
बायो लैब में रोल नम्बर बाईस उसकी पहचान थी,
जो मेरी सरगम थी, आलाप थी, तोड़ा थी, तान थी.
उसे यादकर मन में फूटते थे प्यार के लड्डू,
उसे देखकर बेहोश हो जाते थे, मैं और डड्डू.
संगीत मय होती थी उसकी कैंची छुरी की चाल,
मैं खिड़की से देखता और भूल जाता था ताल.
उसका प्रेक्टिकल समापन भी कुछ खास होता था,
तब मेरा और मेंढ़क का दिल उसके पास होता था.
मेधावी थी वो, पहली ही बार में पीएमटी की पास,
मैं न तो गणित न संगीत में, कर पाया कुछ खास.
बस नौकरी की और लगे नून तेल इंतजाम में,
जाने कितने बरस गुजर गये सुबह से शाम में.
विधाता ने कुण्डली में कुछ यूँ रचा अंधेर,
नौकरी के कारण हम भी पँहुच गये अजमेर,
यहीं उसने की थी बहुत प्रतिष्ठा अर्जन,
और एक अस्पताल में थी वरिष्ठतम सर्जन,
ईश्वर ने मिलाने का निकाला मौका थोड़ा,
हमारी पीठ पर उगा दिया छोटा सा फोड़ा.
हम आ पँहुचे अस्पताल, श्रीमती जी के संग,
उसे देख फिर बज उठा, दिल में जलतरंग,
श्रीमती जी ने थमा दिया ओपीडी का परचा मेरा,
“कल चौदहवीं की रात थी, शब भर रहा चरचा तेरा”
वो देख रही थी एक मरीज की टूटी हुई टाँग
“मुझसे पहले सी मुहब्बत मेरे महबूब न माँग”
उसने देखा मेरी पीठ को गालिबन सरसरी तौर
“दे और दिल उनको जो न दे मुझको जुबाँ और”
जीवन में पहली बार मैं उसके इतना करीब था
मरीज बनकर उसके सामने लेटा गरीब था,
हाय, कमसिन जवानी में जिसको दिल सौंप दिया,
आज उसी बेदर्द ने मेरी पीठ में नश्तर घौंप दिया,
सोच रहा हूँ किस्मत में कोई जादू मंतर न था,
उसके लिये मुझमें और मेंढ़क में कोई अंतर न था.
टाँके, टूटा दिल, दवा का नुस्खा लिये हुए,
और हम, “बैठे रहे तसव्वुरे जाना किये हुए”.——————————————————————————————————————————————-Ila Joshi10 hrs ·जिसे प्रेम मिलता है वह इस बात को समझ ही नहीं पाता कि सामने वाला उसको कितना प्रेम करता है। वह अपनी ही धुंध और नशे में होता है। वह समझता है यह मेरी खासियत है जिससे मुझे प्रेम मिल रहा है। पर वह सिर्फ उसकी ही खासियत नहीं होती। प्रेम करने वाले की खासियत होती है।प्रेम करना काबिलियत है। विश्वास देना गुण है। प्रेम ग्रहण करना भी काबिलियत है। जो मिल रहा है उसे श्रद्धा से, आदर से सिर झुका के ग्रहण करना चाहिए तभी वह आपको अपनी पूर्णता में मिलता है। जो डूबना नहीं जानता वह प्रेम की इस अगाध और अबाध वर्षा से भी सूखा निकल आता है।
Sandhya Navodita ने ये जो लिख दिया है न ये हम सबके हिस्से का सच है—–Sandhya Navodita
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बी.पी. गौतम20 October at 20:46 ·हमारा सर्वे बता रहा है कि सेक्स के दौरान पूरे कपड़े सिर्फ 28.8% महिलायें ही उतारती हैं … 65% से ज्यादा लोग पूरी उम्र एक ही पोजीशन में गुजार देते हैं … ऐसे हालातों में मीटू होना स्वभाविक ही है … बहुत बड़ा वर्ग असंतुष्ट घूम रहा है, जो लफड़े-टंटे ही करेगा … यह कानून से नहीं बल्कि, दांपत्य जीवन सही करने से रुकेगा … पति सेक्स के दौरान पत्नी से और पत्नी अपने पति से भाई-बहन जैसा संकोच न करें … खुल कर जीयें और फिर गहरी नींद सोयें … सुबह उठेंगे तो, ऊर्जा के साथ आनंद की अनुभूति करेंगे … फिर मीटू दिमाग में ही नहीं आयेगा … समस्या बिस्तर पर ही है, उसे सही करिये …
#गौतमाचार्य_जी_महाराज
dr Skand Shukla
6 November at 04:15 ·
पहले वे सम्भोग की सफलता को गर्भाधान से जोड़ते थे ; अब वे उत्तेजन-चरम ( ऑर्गैज़्म ) से जोड़कर देखते हैं।
परम्परावादियों के लिए सम्भोग का का लभ्य निष्कर्ष गर्भाधान ही है। संसार का सभी विपरीतलिंगी आकर्षण व सौन्दर्य सच्चा है , किन्तु वह बनाया केवल सन्तानों को जनने के लिए गया है। समलिंगी आकर्षण तो उनके अनुसार विकार-विकृति और न जाने क्या-क्या है !
वैज्ञानिक शोध और अन्वेषण किन्तु ऑर्गैज़्म को तरह-तरह से पढ़ने-समझने की कोशिश करता रहा है। यौनक्रीड़ा के दौरान होनी वाली उत्तेजना का चरम न तो सन्तान पैदा करने के लिए ज़रूरी है और न हर बार यह स्थिति स्त्री-पुरुष के लिए सेक्स के दौरान आती ही है। सन्तान मात्र वीर्य के एक शुक्राणु के अण्डाणु से मेल-भर से पैदा हो सकती है : यौनतुष्टि हो सकता है , फिर भी स्त्री-पुरुष या दोनों को फिर भी न मिल सके। फिर यौन-तुष्टि की प्राप्ति में उत्तेजना का अपने चरम पर पहुँचना कितना ज़रूरी है और क्या इन दोनों घटनाओं का परस्पर सम्बन्ध है भी ? यौन-तुष्टि = उत्तेजन-चरम ? सदैव ? हमेशा ?
स्त्रियाँ उत्तेजन-चरम को छद्म रूप से प्रकट कर सकती हैं। यों यह काम पुरुष भी कर सकते हैं। लेकिन छद्म उत्तेजन-चरम या फ़ेक ऑर्गैज़्म एक ऐसा काम है , जो महिलाएँ पुरुषों की तुलना में अधिक और बेहतर करती रही हैं। पर फिर विज्ञान यह जानना चाहता है कि इस अभिनय से महिलाओं को हासिल क्या होता है और ऐसा करने का कोई लाभ भी है ?
सेक्स में आनन्द लिया जाए , कितना लिया जाए , खुलकर लिया जाए या झिझक कर अथवा किस तरह से लिया जाए — इन सब मामलों में जैविकी के साथ सामाजिकी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। गाँव के आदमी-औरत बनाम शहर के आदमी-औरत , भारत के आदमी-औरत बनाम अमेरिका के आदमी-औरत , ग़रीब आदमी-औरत बनाम अमीर आदमी-औरत , पुरानी पीढ़ी के आदमी-औरत बनाम नयी पीढ़ी के आदमी-औरत — सभी यौनकर्म के समय अपनी भागीदारी तय किया करते हैं। लेकिन फिर शोधकों ने यह जानने की कोशिश भी की है कि स्त्रियों का असली-नक़ली ऑर्गैज़्म क्या है और उन्हें इस मामले में इतना अभिनय-अनभिनय क्यों देखने को मिलता है।
समाज के अलग-अलग तबकों में वैज्ञानिकों को इसके अलग-अलग कारण मिले हैं। पहला कारण परोपकारी छल या एल्ट्रूइस्टिक डिसीट कहलाता है। स्त्री उत्त्जन-चरम के अभिनय द्वारा यह छद्म परोपकार करती है पुरुष पर कि वह उसे तुष्टि देने में सक्षम रहा है। कि वह भरपूर मर्द है। कि उसमें उसे सन्तुष्ट करने का माद्दा है। कि इससे पुरुष को खुशी-सन्तुष्टि मिलती है और उसकी मर्दानगी का सीना चौड़ा हो जाता है।
कई बार स्त्रियाँ असुरक्षा या डर के कारण भी ऐसा कर सकती हैं। उत्तेजना का प्रदर्शन अगर अतिशय करना किसी समाज में बुरा माना जाता है , तो उत्तेजना का एकदम प्रदर्शन न करना दूसरे समाज में। इसलिए उत्तेजना न अनुभव करने पर भी यह दिखाना ज़रूरी है कि ऑर्गैज़्म हो रहा है और यौनकर्म सन्तुष्टिजनक रहा है।
फिर उत्तेजना का यह अभिनय भी कई बार वास्तविक उत्तेजना लाने में सहायक सिद्ध होता है। यानी अभिनय के कारण स्त्री सत्य यौनतुष्टि को पा लेती है। कुछ स्त्रियाँ यौनकर्म को रोक देने के लिए भी उत्तेजन-चरम का अभिनय करती हैं। ऐसा इसलिए कि इस प्रकार के छद्म भावों के बाद सेक्स-क्रिया रोक दी जाएगी और उसे आगे फिर इस कार्य में भागीदारी नहीं करनी पड़ेगी।
कई बार स्त्रियाँ स्वयं भी इस बात को लेकर चिन्तित हो सकती हैं कि उन्हें चरम उत्तेजना का अनुभव क्यों नहीं हो रहा , जबकि वे ‘सामान्य’ हैं। सो वे इस छद्म उत्तेजना का अभिनय कर लेती हैं।
उत्तेजन-चरम का सम्बन्ध स्त्री-पुरुष यौन-कर्म से तो है , लेकिन कोई ज़रूरी नहीं कि हर बार शिश्न के योनि में प्रवेश के बाद यह घटित हो ही। कोई ज़रूरी नहीं कि उत्तेजन-चरम हर बार सेक्स करने पर हो ही। उत्तेजन-चरम बिना शिश्न के योनि में प्रवेश के , अन्य यौनकर्म की गतिविधियों के दौरान ( जैसे फोरप्ले ) भी घट सकता है। फिर कोई ज़रूरी नहीं कि एक यौन-सहभागी के साथ होने वाले यौन-अनुभव दूसरे यौन-सहभागी के साथ होने वाले यौन अनुभव जैसे ही हों।
अन्तिम बात यह कि उत्तेजन-चरम का सन्तान पैदा करने से कोई सीधा सम्बन्ध नहीं। सन्तान सेक्स में असन्तुष्ट स्त्री-पुरुष भी पैदा कर सकते हैं और यह भी हो सकता है कि सेक्स में पूर्ण सन्तुष्टि के बाद भी सालों सन्तान न हो।
Devanshu 38 mins · आशिकइरफान मियां चार महीने की बेरोजगारी काट कर नौकरी पाए थे । नया दफ्तर बहुत बड़ा था और माहौल भी जन्नत जैसा । मारे खुशी के बल्लियों उछल रहे थे । जहां लोगों के लिए दफ्तर आना जीविकोपार्जन की विवशता है, वहां मियां दफ्तर से दिल लगा बैठे थे । समय से पहले ही पहुंच जाते । तितलियां फिरतीं तो तबीयत हरी हो जाती । आंखों की पुतलियां पांव जमाकर बैठ ही जातीं । गोया, झपकना भी कोई काम होता है ! दरअसल इरफान मियां के साथ मामला कुछ ऐसा था कि मरुभूमि से सदाबहार वर्षावन में आ गए थे । यहां तो हरियाली ही हरियाली थी और मियां ठहरे आशिक मिज़ाज, दिन भर इसी जुगाड़ में लगे रहते कि किसी न किसी से टांका भिड़ा दूं लेकिन अंग्रेजी में जरा कमजोर थे । लड़कियों के सामने दो-चार लाइन अंग्रेजी झाड़ना तो न्यूनतम योग्यता है आशिक बनने की । मियां सोचते, “अब्बाजान ने बड़ी ज्यादती की हमारे साथ किसी कॉन्वेंट में पढ़ाए होते तो जिन्दगी गुलजार होती । यहां तो तितलियां सटासट अंगरेजी में सरसराती हैं, जो सर के ऊपर से निकल जाता है । थोड़ी बहुत तो समझ भी लेता हूं लेकिन बोलने का क्या होगा ।”
बोलने की बारी आती तो, मौन मधु हो जाय भाषा मूकता की आड़ में, ही ठीक लगता । लेकिन वो वाला प्रेम किसे चाहिए । इरफान तो मौन होकर नहीं मुखर होकर प्रेम करना चाहते थे । कई दिन हो गए थे नए दफ्तर में आते हुए पर किसी भी लड़की से दोस्ती नहीं हो सकी थी । बस हलो…हाय पर बात शुरू होती और हिन्दी वाले हाय… पर खत्म हो जाती । पर, कहते हैं ना उम्मीद पर दुनिया कायम है । चचा गालिब कह गए हैं, आशिकी सब्र तलब तमन्ना बेताब ! सो मियां जी ने सब्र को सिर से बांधे रखा । हार नहीं मानी । करत-करत अभ्यास वाली बात थी ।
दिनों तक इधर-उधर नजर दौड़ाने के बाद भी जब वे चिर वांछित प्रेम को न पा सके तो व्यग्र होने लगे । उदासी बढ़ने लगी । काम में भी जी नहीं लगता था । सोचने लगे, कितना नीरस जीवन है । यहां जिसे देखो वही लड़की लिये घूम रहा है । पत्नी वाले भी और बिन ब्याहे भी, कल के लौंडे ऐसे लपक के हाथ पकड़ लेते हैं जैसे छिपकली अपना शिकार पकड़ती है । सबने घर और बाहर का हिसाब-किताब अलग रखा है । घर में बीवी होती है लेकिन सिर्फ बीवी से काम नहीं चलता । जीवन को युवा बनाए रखने और तमाम तरह के तनाव से दूर रहने के लिए एक प्रेमिका भी तो चाहिए !
इऱफान मियां मायूस हो जाते । मायूसी के उन क्षणों में उन्हें घर की याद ज्यादा आती । खासकर घुड़कियां सुनाने वाली बीवी बरबस आंखों में उतर आती । ऐसे ही उदासी भरे क्षणों में डूबे इरफान काम में दिल लगाने की कोशिश कर रहे थे कि बीस-बाइस साल की एक मन्द चरण अभिरामा , एकदम सजीली, मुस्कराती हुई आई और पास वाली कुर्सी पर बैठ गई । इऱफान मियां का चेहरा मारे भीतरी खुशी के चमक उठा । कान गर्म हो गए, बालों में गुदगुदी दौड़ने लगी । नजरें रह रह कर लड़की पर चली जातीं । लड़की को देखते-देखते वह सोचने लगे कि लगता है कि ऊपरवाले ने रहम कर ही डाला, इसीलिए इसे मेरे पास भेजा गया है । वह बार-बार लड़की से बात करने का सोचते लेकिन अंगरेजी का आतंक उन्हें कंपा जाता । डेढ़-दो घंटे बीत जाने के बाद मियां जी से बर्दाश्त नहीं हुआ । पूछ बैठे,
नया ज्वाइन किया है.. लड़की ने हामी में सिर हिलाया ।
क्या नाम है आपका
.. कविता
एंड यू आर…
मुहम्मद इरफान…वैसे आप मुझे इरफी..कह सकती हैं..
लड़की ने ऊपर से नीचे तक देखा और सोचने लगी कि उम्र में तो चचाजान के बराबर लगते हैं पर दिल चौक पर दिन भर घूमने वाले लौंडों से भी जवान मालूम पड़ता है । कविता सोचने लगी इरफी बरफी भी कोई नाम होता है क्या । उधर इरफी भी भांप गए कि तितली दिल्ली के रिज एरिया से नहीं बल्कि मुगल गार्डन से आई है, जो बेला और जूही जैसे देसी फूलों पर नहीं बल्कि डेहलिया और व्हाइट रोज़ पर ठहरती है । अंगरेजी इसकी सगी बहन है और हिन्दी दूर वाले भया जी, जिससे साल दो साल में रक्षा बंधन के मौके पर वास्ता पड़ता है । इरफी जी ने बहुत जल्दी बहुत कुछ सोच लिया था । कल्पना जगत के जल-थल और वायु में विचरण करने के बाद अचानक वह धरती पर लौटे तो आतंकी अंगरेजी याद आई । इरफी फौरन अपनी फटी हुई अंगरेजी को रफू करने में जुट गए लेकिन जब मामला, चिपक रहा है बदन पर लहू से पैराहन ! वाला हो तो जेब को हाजत ए रफ़ू की जरूरत क्या है ?
अंग्रेजी में उन्हें यस नो, आई नो, आई गो..यू कम से ज्यादा नहीं आता था । कुल मिला कर आई केन वाक इंग्लिश, लाफ इंग्लिश, टाक इंग्लिश जैसा मामला था । तब तक बॉस ने इरफू जी को बुलाया और नई लड़की कविता को रन डाउन का काम समझाने को कह गए । मियां जी को मुंह मागी मुराद मिल गई । भीतर लड्डू गुलाब जामुन रसगुल्ले सब एक साथ फूटने लगे । और कहीं किसी कोने में बिरयानी भी पकने लगी । धीरे-धीरे दोस्ती बढ़ी तो दफ्तर के काम से चाय की गुमटी तक खिंचने लगी । मियां अकसर दांव खोजते कि अकेले चाय पिलाने ले जाऊं ।
एक दिन चाय की चुस्कियों के साथ गाने-वाने का जिक्र चला तो नब्बे का दौर याद आया । कुमार सानू जी भीतर गाने लगे,धीरे-धीरे से मेरी जिन्दगी में आना…इरफान ने गर्दभ राग में डूबकर उस गाने के साथ हर तरह से इंसाफ करने की कोशिश की । नाक का भी प्रयोग ज्यादा किया ताकि सानू जी की आत्मा संतुष्ट हो सके मगर गाना उन्हें आता नहीं था । ये अलग बात है कि हर बेसुरा कभी न कभी गाते हुए अपने ही सुरों में खो जाता है । उसे लगता है कि गायक का सुर सच्चा नहीं बल्कि उसका गाया हुआ ही ठीक है । कुछ इसी तरह के भाव से भरे हुए इरफान ने गाना खत्म कर कविता की ओर देखा । कविता ने मुस्करा कर बोली, आप बुरा नहीं गाते । थोडी प्रैक्टिस करें तो और अच्छा गा सकते हैं ।
इरफान मियां लजा गए । मन में पकौड़े तले जा रहे हैं, एकदम गर्मागर्म । बोले,
“अरे वो तो हमें समय ही नहीं मिलता, वर्ना किसी उस्ताद से सीख लेते । मेरा गला तो अच्छा है ही । बहुत सारे दोस्त कहते हैं । न्यूजरूम में भी जब स्टोरी का वीओ करता हूं तो सब देखने लगते हैं मुझे ।”
जबकि सच ये था कि इरफान मियां एक पन्ने की स्क्रिप्ट को आवाज देने में दस मिनट लगाते थे, जो कि एक साधारण आवाज देने वाला दो से तीन मिनट में निपटा देता है । कविता फिर मुस्करा दी ।
चलिये ऊपर चलें, थोड़ी देर हो रही है। सर खोज रहे होंगे । मुझे तो चार बजे का रन डाउन भी तैयार करना है !
इरफान ताक में थे कि जरा और समय काटा जाय ताकि गाने से धीरे-धीरे जिन्दगी में ले आने के पांसे फेंक सके । लेकिन मजबूरी थी, ऊपर जाना पड़ा ।
न्यूज रूम में जब दोनों हाजिर हुए तो नीरज ने कनखियों से देखा । इरफान की आंखों में चोर चमक उठा लेकिन उसने आंखों की बोली बदल ली कि जैसे सब कुछ आम रहा हो । उस रोज तो बस धीरे-धीरे मेरी जिन्दगी में आना गूंजता रहा उनके कानों में । कुमार सानू जी कई वर्षों से त्याग दिये जाने के बाद फिर सजीव हो उठे थे । उनकी आत्मा को संतोष मिल रहा था कि जलवा अब भी कायम है । शाम को घऱ में भी इरफान मियां का रेडियो चालू रहा । कभी खुद गाते, कभी मोबाइल फोन गाता । बीवी को एकबारगी भरम हुआ कि शौहर रोमांटिक हुआ जा रहा है लेकिन शौहर गाते-गाते कहीं गुम हो जाते । बीवी को क्या मालूम कि गाना कहां से उठ रहा है और किसके लिए उठाया जा रहा है ।
अगले दिन जब इरफान अपनी शिफ्ट के समय से एक घंटा पहले हाजिर हो गए । कविता ने देखा तो मुस्कराते हुए पूछा ..
अरे आपकी शिफ्ट तो बारह बजे से होती है, अभी तो ग्यारह ही बज रहे हैं ।
हां, आ गया जरा जल्दी, कुछ काम निबटाना है, कल का काम रह गया था ।
खैर वो काम करने नहीं बल्कि कविता के साथ समय बिताने आए थे । छूटते ही उन्होंने पूछ लिया, चाय पीने चलें
कविता मुस्करा कर बोली, अरे आप तो काम निबटाने आए थे,
अरे वो तो हो जाएगा । चलिये सरदी भी हो रही है, चाय से गले में तरावट आ जाएगी ।
कविता मन ही मन सोचने लगी, लगता है फिर गाना सुनाएगा । नीचे मुन्ना टी स्टॉल पर भीड़ थी । वह कविता को लेकर अगली चाय की गुमटी पर चले गए । एकांत की तलाश में इरफान के भीतर का प्रेमी परिंदा फड़फड़ा रहा था । कविता चुपचाप चलती रही । चाय आई और इरफान ने चुप्पी तोड़ते हुए कहा,
कल तो मैंने उस गाने पर खूब प्रैक्टिस की है । मोबाइल में रिकॉर्ड कर के भी लाया हूं। बहुत अच्छा गाया मैंने ।
कविता समझ गई कि आशिकी का भूत अब वेताल की तरह इसके कंधों पर लटक गया है । लेकिन कुछ बोली नहीं । बस मुस्करा कर काम चला लिया । चूंकि इरफान को उम्मीद थी कि कविता गाना सुनने के लिए मोबाइल फोन मांगेगी इसलिए वह उसकी चुप्पी से जरा निराश हुए । लेकिन तभी उनकी उम्मीद से भी बड़ी बात हो गई । कविता बोली
अरे इरफी सर, गाना मोबाइल फोन में क्या सुनना । सामने गाकर सुनाइये ना !
इरफान मियां को मुंह मांगी मुराद मिल गई । उन्होंने फौरन स्वरांतरण कर कुमार सानू का कंठ धारण कर लिया और गाने लगे.. धीरे-धीरे से मेरी जिन्दगी में आना…
कविता अपने फोन में उसे रिकॉर्ड करती गई । इरफान गाते गए, आज तो उन्होंने उस गाने में कुछ अनावश्यक हरकतें भी ले लीं । और ऐसा करते हुए अपनी पीठ भी ठोंकी कि बस अब तो उस्तादी में जरा सा ही कसर बाकी है । गाना खत्म हुआ तो कविता मुस्करा कर बोली
फ्रैंकली स्पीकिंग सर, इट वॉज मच बेटर देन येस्टरडे..!
थैक्यू कह कर इरफान ठहर गए , क्योंकि इसके आगे अंगरेजी में बढ़ना खतरे से खेलना था । मारे खुशी के उनके नथुने फड़कने लगे । आंखों में सपनों की झिलमिलाहट उतर आई । अब तो चाय से बात आगे बढ़ गई है । कल पिज्जा खिलाने की पेशकश कर डालूंगा । अगले दिन इरफान दफ्तर आए तो नीरज ने टोका, अरे इरफान भाई आप तो अच्छा गाते हैं, हमें नहीं सुनाया कभी गाना । मियां अचकचा गए, बोले ”
.. अरे मैं कहां गाता हूं?
क्या बात करते हैं कल तो आपने कविता को खूब सुनाया है !
हाय रे आशिक. कविता इतनी कठोर निकली । वह गाना तो सिर्फ हमारे बीच का था । लेकिन अब तो बंट गया । आशिक इरफान मारे गए गुलफाम वाली हालत में आ गए । बगल में दो चार जूनियर लौंडे खिखिया रहे थे और सीनियर आंखें तरेर रहे थे, बड़ा आया आशिकी करने । तभी बॉस ने बुलाया ।
” गाना वाना तो ठीक है जरा काम पर भी ध्यान दीजिेए, कल का रन डाउन उल्टा पुल्टा लगा था । चैनल पर खबर की कोई सीक्वेंस ही नहीं । आपको यहां लेकर इसलिए नहीं आए कि आप दिन भर चाय पियें और गाना गाएं । अरे घर नौकरी का सोचिए, मुश्किल से यहां लाया हूं । ”
घऱ का सोचिए, क्या मतलब । इरफान मियां समझ गए कि कविता काम कर गई । अरे इसने तो भद्द ही पिटवा डाली ! लगता है सारे लौंडों के बीच मेरा छीछालेदर कर आई हैं ! एक झटके में बीवी शन्नो याद आ गई । और बीवी के बाद बेटी भी किलकारी मारने लगी । कविता लय ताल से उखड़ गई थी । कुमार सानू अताउल्लाह खान बन चुके थे, अच्छा सिल्ला दिया तूने मेरे प्यार का….! शाम को घर लौटे तो बीवी दस घुड़कियां सुना गईी । घर मे ये नहीं, वो नहीं.. निकल जाते हैं अपनी मर्जी से यहां मैं पिसती रहूं ! मियां जी ताव में तो थे ही । पहले से चोट खाया दिल रो रहा था,ऊपर से बीवी की Jagdish Shah
Jagdish Shah Devanshu sir
पोस्ट पहली बार पढा यह
(आप ने ऊपर दोबारा शेयर करने
का जिक्र किया हुआ है…)
हँसी-व्यंग्यात्मक पोस्ट भले ही हो लेकिन बहुधा मुस्लिम समाज का आईना है यह, आप का अवलोकन बहुत महीन रहा यहां…
(मेन विल बी मेन के तहत हर धर्म या समाज का पुरुष समावेशी है पर मुस्लिम पुरुषो की बात पर तो…अल्लाह बचाये….)बकबक ! लेकिन खुद को संभाल गए । सोचने लगे,अस्थायी टेंडर तो मिला नहीं,स्थायी भी चला जाएगा । ..आशिकी का तीतर बटेर हो चुका था ।—————————–
अनूप अम्बाला
21 January at 00:01 ·
एक सर्वे के अनुसार एक रात में दुनिया भर में जितने भी कपल सेक्स करते हैं उनमें से केवल 20% पुरुष ही अपनी महिला साथी को ऑरगैज़्म तक पहुंचा पाते हैं। बाकी की 80% महिलाएं अधूरे सेक्स का आनंद ले कर यूं ही सो जाती है।
लेकिन इस बात का ज़िक्र कभी अपने पुरुष साथी या महिला मित्र से नहीं करती। यदि उनसे यह पूछ भी लिया जाए, “मजा आया?” तो जवाब में वह शरमाते हुए हां में सिर हिला देती हैं। हां में सिर हिलाने के अलावा उनके पास कोई ऑप्शन भी नहीं। यदि ना कहेगी तो बदचलन कहलाएगी और साथ ही पति की मर्दानगी पर भी शक होगा , जो वह कभी ऐसा करना नहीं चाहती।
सेक्स के आनंद से वंचित पत्नी जब चिड़चिड़ी और गुस्सैल हो जाती है। तब भी ये पुरुष अपनी तानाशाही से बाज नहीं आते। उनके स्वभाव में आए इस बदलाव के कारण को न खोजने की बजाए उनके इस स्वभाव पर हजारों लाखों चुटकुले गढ़ दिए जाते हैं। क्या वास्तव में इन्हें ‘मर्द’ का नाम दिया जा सकता है? मेरी नजरों में तो नहीं….
सेक्स संतुष्टि का नहीं बल्कि आत्मसंतुष्टि का नाम है और वह आत्मसंतुष्टि तभी होती है जब दोनों आत्माओं को इससे संतुष्टि प्राप्त हो। लेकिन जब भी पुरुष को संतुष्टि हुई तभी खेल खत्म और वह हमेशा इस वहम में ही जीता है कि उसकी साथी को भी संतुष्टि मिल गई होगी। एक पुरुष के लिए संतुष्टि तक पहुंचना बहुत आसान है लेकिन अपने साथी को पहुंचाना एक साधना से कम नहीं। निज संतुष्टि के चलते ऐसा साधक कोई भी नहीं बनना चाहता।
एक महिला को चरमोत्कर्ष तक पहुंचने के लिए पुरुष से ज्यादा वक्त लगता है। इतना आनंद उसे हार्ड सेक्स में नहीं आता जितना सॉफ्ट सेक्स (फोरेप्ले)में आता है। और जब तक अच्छी तरह से फोरप्ले नहीं होगा तब तक उसे संतुष्ट करना कुत्ते की दुम को सीधा करने जैसा है। लेकिन इतना वक्त कोई उसे देना ही नहीं चाहता। क्योंकि खुद की संतुष्टि होनी चाहिए बात खत्म।
जब आदमी का दिल किया अपने शरीर का ज़हर निकाला और करवट बदल कर सो गया। अब तक पत्नी भी इस रोज के अधूरे खेल की आदी हो चुकी होती है। वह इस काम को भी नित्य कार्यों की तरह फटाफट निपटाने की कोशिश करती है। सेक्स में पति का साथ नहीं देती। फिर पुरुष अपने दोस्तों से बात करते हैं कि मेरी पत्नी ठंडी है सेक्स इंजॉय नहीं करती।
हर पुरुष हर बार स्खलित होता है लेकिन हर औरत हर बार स्खलित नहीं होती। एक ताजा सर्वे के अनुसार हर महिला अपने वैवाहिक जीवन में 50% से भी कम बार क्लाइमेक्स तक पहुंचती हैं। जिसका कारण केवल ये नामर्द पुरुष है। पत्नी यदि एक बार भी सेक्स को मना कर दे तो पति को गुस्सा आ जाता है लेकिन पत्नी की सहनशक्ति देखो। वह रोज रात को अधूरी सो जाती है लेकिन कभी अपने पति की नामर्दानगी को लेकर शिकायत तक नहीं करती।
औरत से ठंडी चीज कोई नहीं, औरत से गर्म चीज भी कोई नहीं, अब उस ठंडी औरत को कितना गर्म करना है यह पुरुष के हाथ में है, फिर भी अपनी कमी छुपाने के लिए ये पति प्राणी कितनी आसानी से बोल देता है कि औरतों का तो कभी भरता ही नहीं। लेकिन वह कभी यह नहीं कहता कि मुझ में इतनी मर्दानगी ही नहीं है कि औरत का भर सकूं।
तसल्लीबख्श किया गया एक बार का सेक्स ही संतुष्टि करा देता है। इसके लिए पूरी-पूरी रात लिप्त रहने की जरूरत नहीं। विवाह के शुरुआती दिनों में सभी ऐसा सोचते हैं कि पूरी रात जी जान से जुटे रहकर ही वह पत्नी को संतुष्ट कर सकते हैं ,लेकिन एक नवविवाहिता को सेक्स में चरम आनंद तक ले जाना ठंडे तवे पर रोटी सेकने जैसा है ,क्योंकि इस वक्त युवती को मालूम ही नहीं चलता कि वह सेक्स के दौरान कितनी बार पिघली और कितनी बार फिर से तैयार हो गई? उसे यह बात समझने के लिए महीनों लग जाते हैं। कभी-कभी तो कुछ साल भी। यह पागल पुरुष उसकी आहों से यह समझ बैठता है कि वह उसे क्लाइमेक्स तक ले गया।पुरुषों के दिमाग में वहम का कीड़ा घुस जाता है कि उसका लिंग इतना बड़ा है कि वह इसे महिला की बच्चेदानी के सुराख में भी घुसा सकता हैअनूप अम्बाला
——-Anjaan Musaafir
प्रतिमा त्रिपाठी स्वर्गलोक में आपातकालीन बैठक बुलाई गयी थी। जबसे अहिल्या का पाषाणरूप से उद्धार हुआ था उसने अपने सोशल मीडिया एकाउंट पर खुलासों की बौछार कर दी थी। पहले तो इंद्र समेत सभी देवताओं ने उसे इग्नोर किया लेकिन कुछ ही घंटों में अहिल्या के पोस्ट को 4000 से ज्यादा लाइक्स मिल चुके थे। बड़े ही कड़े लफ्ज़ों में इंद्र की थू थू हो रही थी। यहाँ तक कि कामदेव भी निंदकों की टोली में शामिल हो चले थे। अब ऐसे में क्या किया जाये? कोई मानहानि का मुक़दमा करने को कहता तो कोई रिपब्लिक पे लाइव होने की सलाह देता। लेकिन किसी भी सलाह पे आम राय नहीं बन पाई। बहुत सोच समझ कर देवताओं ने तय किया कि इस बारे में बैकुंठ जा कर विष्णु भगवान से सलाह मशविरा किया जाये। उन्होंने भी कृष्ण रूप में बहुत से गुल खिलाये थे और उनके राम रूप से तो पृथ्वीलोक की सभी सीतायें नाराज़ थीं।
“लेकिन परमपिता ब्रह्मा तो सबसे बड़े और पूजनीय हैं। उनकी राय जाने बग़ैर मैं कुछ नहीं कह सकता!” माता लक्ष्मी की तिरछी निगाहों से घबरा कर उन्होंने अपने माथे का सिर दर्द ब्रह्मा जी के हवाले कर चैन की सांस ली थी। अब इंद्र अपनी टोली समेत ब्रह्मा जी के दर पे पहुँचे। चार चार सिरों से दुनिया देखते देखते उन्हें माइग्रेन की शिकायत हो गई थी। अपने घर में बिन बुलाए मेहमानों को देख कर बड़ी हुई रुखाई से बोले-“क्या है? देख नहीं रहे हम ब्रह्मांड पे अपनी दृष्टि गड़ाए बैठे हैं। हमारे पास हहा ठीठ्ठी करने की फुर्सत नहीं है। जो बोलना है बोलो और दफ़ा हो जाओ।”
‘कितना तो मेलोड्रामा करते हैं परमपिता भी। यूँ तो आधा वक़्त औंघाई लेते रहते हैं और जब चोरी पकड़ ली गई तो डाँट रहे। अग़र दुनिया पे ऐसी ही नज़र होती तो…’ धीमी आवाज़ में इंद्र बड़बड़ाये। लेकिन वरुण देव ने उन्हें पीछे से धौल जमाई। उनकी चोट से संभल कर इंद्र में अपनी आवाज़ में अमूल बटर लगाते हुए कहा- “परमपिता आप तो सर्वज्ञानी हैं, आपको तो मालूम ही होगा कि अहिल्या मृत्युलोक के वासियों को गुमराह कर रही है। धरती पर मेरा बेजा चरित्र हनन हो रहा है..”
“तो इसमें मैं क्या करूँ?” परमपिता ने घुड़कते हुए जवाब दिया। शायद वे कुछ देर पहले की फुसफुसाहट सुन चुके थे। ऑफ्टरऑल वे सर्वद्रष्टा जो ठहरे।
“अरे अग़र मामले को यहीं पे रोका नहीं गया तो उसकी आंच तो प्रभु तक भी पहुँच सकती है। मैंने सुना है कि धरती पे कई बेलगाम औरतें देवी सरस्वती और आपके रिश्ते के बारे में जाने क्या क्या अंट शंट बकती रहती हैं। अग़र देवी सरस्वती भी उनकी बातों में आ गयीं तो…”
इंद्र की बातों से ब्रह्मा घबराए। उन्होंने कनखियों से झांक कर देखा, देवी सरस्वती उन लोगों से बेख़बर अपनी वीणा के साथ रियाज़ में व्यस्त थीं।
“देखो अब जो कुछ करना है वो शंकर देव ही कर सकते हैं। देवलोक तो क्या मृत्युलोक की स्त्रियों में भी वे सबसे ज्यादा लोकप्रिय हैं। सोलह सोमवार के व्रत उन्हीं के नाम रखती हैं। वे कुछ कहेंगे तो अहिल्या समेत बाकी स्त्रियाँ उनकी बात जरूर सुनेंगी।” शंकर देव के हाथों उनका केस फॉरवर्ड करके ब्रह्मा तो मजे से समाधि में तल्लीन हो गये लेकिन इंद्र पे एक नई मुसीबत छोड़ गये। शंकर जी का गुस्सा तो त्रिलोक में मशहूर था। लेकिन मरता क्या ना करता वे अपनी व्यथा लेकर कैलाश पर्वत पे विराजे। वहाँ माँ पार्वती गणेश और कार्तिकेय को पढ़ा रही थीं।
“हाँ तो तुम लोगों ने आज क्या सीखा?”
“यही कि नो का मतलब नो होता है।”
“शाबाश!”
लेकिन अचानक से आई देवताओं की भीड़ ने उनकी पढ़ाई में व्यवधान खड़ा कर दिया था। पार्वती को सारा मामला पहले से मालूम था। देवी लक्ष्मी ने उनके, सरस्वती के साथ बने व्हाट्सएप ग्रुप में सारा हाल पहले से ही अपडेट कर दिया था। इसलिए इंद्र को वहाँ देखकर वे कुपित हो गईं। लेकिन इससे पहले कि वे अपने आपे से बाहर होकर कुछ बोलतीं शंकर देव ने मामला अपने हाथों में ले लिया था। यूँ ही तो दुनिया उन्हें त्रिकालदर्शी नहीं कहा करती थी।
“मैंने अभी अभी अहिल्या को रिट्वीट करके अपना समर्थन जता दिया है। तुम जिस आस में यहाँ आये हो, वो मनोरथ कैलाश पर्वत पे तो कतई पूरा नहीं हो सकता।” इंद्र तो पहले से ही जानते थे। यहाँ दाल गलने वाली नहीं थी। उन्होंने आगे कोई और याचना नहीं की।
निराश होकर वे स्वर्गलोक पहुँचे ही थे कि बैकुंठ से कुछ देवदूतों ने आकर कहा कि भगवान विष्णु ने मामले की जाँच के लिए आंतरिक कमिटी बैठा दी है जिसके सदस्य वे, परमपिता ब्रह्मा और शंकर देव होंगे। जो भी फैसला किया जायेगा वो बहुमत के आधार पे लिया जायेगा।
“मान गये विष्णु महाराज को! तभी तो उनकी लीलाएं जगप्रसिद्ध है! अब बस देवी शची गवाही के लिए मान जाएं फिर तो..” वरुण देव ने हँसते हुए कहा। इंद्र विजयी मुद्रा में मुस्कराए।
“शची की फ़िक्र ना करो। हर करवाचौथ पे मैंने उसे जॉर्जेट और कांजीवरम की साड़ियाँ दी हैं। हर वैलेंटाइन मैं उसको क्लब लेकर गया हूँ। वो मेरी बात टाल ही नहीं सकती।”
दो दिनों बाद आंतरिक कमिटी की बैठक शुरू हो चुकी थी। अहिल्या और इंद्र दोनों को सम्मन देकर बुलाया गया। अहिल्या के पक्ष में खुलकर केवल लक्ष्मी और पार्वती ही सामने आई थीं। सरस्वती ने केवल मौन समर्थन देने का निर्णय लिया था। बाकी सभी देवियाँ, अप्सराएँ बड़े ही पशोपेश में कंफ्यूज खड़ी थीं। उनका दिल तो अहिल्या के साथ था लेकिन घर टूट जाने के डर से चुप होकर इंद्र के पक्ष में खड़ी हो गईं थीं। सबसे पहले इंद्र को अपनी बात रखने के लिए बुलाया गया।
“देवराज आप गीता की कसम खाएंगे या सोमरस की?” नारद मुनि को समिति ने कार्यवाही का वक़ील बनाया था। देवराज इंद्र ये सुन कर मन ही मन तिलमिला गए थे लेकिन उन्होंने कुछ नहीं कहा। नारद उनके पुराने दुश्मन थे।
“तो बताइए राजन! अहिल्या के बयान में कितनी सच्चाई है?”
“जी बस नोटबंदी जितनी सच्चाई है! मेरा मतलब है कि क्या सबूत है देवी अहिल्या के पास? आख़िरकार 3000 सालों तक क्या मुँह में दही जमा रखी थी?”
अहिल्या बिफ़र कर कुछ बोलने वाली ही थीं तब तक नारद मुनि ने उन्हें टोकते हुए कहा,
“शांत देवी शांत! आपके बयान का भी वक़्त आयेगा।”
ये सुन कर अहिल्या शांत होकर अपने स्थान पर बैठ गयीं।
“वैसे त्रिलोक में ये स्टोरी वायरल है कि अहिल्या देवी तो पिछले 3000 सालों से ASI के कब्जे में थीं। जिन पर प्रभु राम ने ही पाँव रखकर ही उन्हें उनके कब्जे से छुड़ाया।”
नारद मुनि की बात से इंद्र थोड़ा सकपकाए। भगवान राम का ज़िक्र आ गया था इसके अगेंस्ट वे क्या बोल सकते थे? और तो और इहलोक में उनके मंदिर का मामला वैसे ही बड़ा सेंसिटिव है, यहाँ कुछ बोले वहाँ उनके मंदिर पर हमला हो जायेगा।
“देखिये ये फेक न्यूज़ है। पता नहीं आप भी जाने किस तरह के देवविरोधी चैनलों के झांसे में आ गये? उन चैनलों ने तो ये भी झूठ फैला रखा है कि प्रभु राम ने सीता माँ का परित्याग किया था। आप खुद पूछ लें विष्णु महाराज से।”
सकपकाने की बारी अब नारद मुनि की थी। उन्हें यक़ीन नहीं हो रहा था कि देवराज जैसा मंदबुद्धि इतना शातिर जवाब कैसे दे सकता है? अब कौन इतना धृष्ट होगा जो नारायण से जवाब तलब करेगा?
“इसमें नारायण से पूछना क्या है? ये तो देवलोक की सारी देवियों को मालूम है। क्या आपको देवी सीता के बयान भी झूठे लगते हैं?” नारद ने पैंतरा बदला। और उनकी चोट बिल्कुल सीधा जाकर सही निशाने पर लगी।
“मैंने ये थोड़े कहा कि सीता माँ ने झूठ कहा था। देखिये पारिवारिक मसले कहाँ नहीं होते हैं? उनके बीच की अनबन को इन बिकाऊ चैनलों ने प्रभु को डिफेम करने में इस्तेमाल किया है। और वे अब मेरे पीछे पड़े हैं। कल को वे आपके ब्रह्मचर्य पे शक़ करेंगे तो आप क्या करेंगे?”
इंद्र ने पूछताछ को पर्सनल बनाकर नारद मुनि को निरुत्तर करना चाहा था लेकिन हुआ इसके ठीक उलट। हरिमुख वाले प्रैंक को वे अब तक भूले नहीं थे।
“जैसा कि देवी अहिल्या ने आप पर उनके शौहर का रूप धरने का आरोप लगाया है। उस लिहाज़ से क्या ये सच नहीं है कि आप आये दिन भेष बदल बदल कर मृत्युलोक जाते रहते हैं। पिछले दिनों तो मैंने आपको MJ AK…”
“व्हाट आर यू ट्राइंग टू इम्प्लाई? आई एम ए शेपशिफ्टर.. आई लाइक शेप शिफ्टिंग। आई लाइक शेप शिफ्टिंग वेरी मच। एव्रीबडी लाइक्स शेप शिफ्टिंग। देयर इज नथिंग रॉंग इन शेपशिफ्टिंग..”
आख़िरकार नारद मुनि के वार से इंद्र उखड़ गए थे। पता नहीं वे ब्रेट कैवनां से प्रेरित हुए थे या ब्रेट कैवनां उनसे। इसके बाद देवी शची की गवाही हुई और उन्होंने अपने सुहाग की लाज़ रखने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। वैसे भी देवलोक में मृत्यलोक के सारे चैनलों का प्रसारण होता था सो संस्कारों के आदान प्रदान में किसी भी किस्म का कोई भी व्यवधान नहीं आया। अब बारी आई देवी अहिल्या की। देवी अहिल्या अपने आरोपों पे डटी रहीं। उन्हें स्लटमीटर से भी नापा गया और लाइ डिटेक्टर से भी। लेकिन वे डॉक्टर फोर्ड की गुड विशेस अपने साथ लायीं थीं। थोड़ी देर में नारद मुनि ने अपनी पूछताछ खत्म की। अब मामला समिति के सदस्यों के हाथों में था। ब्रह्मा अपनी जगह पर बैठे खर्राटे भर रहे थे। शंकर देव के चेहरे पर इंद्र के प्रति साफ साफ क्रोध देखा जा सकता था। इसलिये विष्णु महाराज ने पहल करते हुए कहा कि समिति अपना निर्णय ले चुकी है। लेकिन इससे पहले विष्णु महाराज अपना फैसला सुनाते, कुछ अप्सराओं ने अपनी जगह से उठ कर नारे लगाना शुरू कर दिया!!
“ये कमिटी बायस है!
इसमें नहीं फीमेल वॉइस है!”
विष्णु महाराज हर स्थिति से निपटने को तैयार थे। लेकिन अप्सराओं द्वारा सिस्टरहुड का प्रदर्शन किया जायेगा इसकी उन्हें बिल्कुल भी उम्मीद नहीं थी। उन्होंने कनखियों से देखा, उन्हें शक़ ठहरा कि ये सारी साज़िश हो ना हो उनकी भार्या की ही होगी लेकिन लक्ष्मी पहले की तरह ही सबसे बेख़बर वहाँ के घटनाक्रम की लाइव रिकॉर्डिंग में लगी हुई थीं।
‘लक्ष्मी नहीं तो और कौन? देवी पार्वती में तो लीडरशिप स्किल्स तो बिल्कुल भी नहीं है..’ लेकिन उनके सोचने में ही देवी सरस्वती ने अपनी वीणा को अप्सराओं के नारों की धुन से मिलाकर बजाना शुरू कर दिया था। जैसे तैसे विष्णु महाराज ने नाराज़ अप्सराओं के नारों के बीच सभा खत्म की। देवी सरस्वती का एक्टिविज्म देखकर तो परमपिता भी नींद से जाग गये थे।
सभा खत्म होने के बाद देवताओं की कैबिनेट की मीटिंग बुलाई गई।
“आप लोगों को क्या लगता है कि देवराज को छुट्टी पर भेज कर और आंतरिक जांच कमिटी को भंग करके विष्णु महाराज ने क्या संदेश दिया है?” वरुण देव के इस सवाल पर सभी देवताओं में खुसुर फुसुर मच गयी थी। सभी लोग तरह तरह के कयास लगा रहे थे।
“मुझे लगता है कि वे मृत्युलोक से सीबीआई को जांच के लिए बुलाएंगे।” अश्विनी कुमार जो सबसे नये नवेले देवता चुने कर आये थे, ने बड़े ही आत्मविश्वास के साथ कहा था। जिसे सुनकर अग्निदेव ने चुटकी ली।
“तो ये भी बता दीजिए कि कौन वाली सीबीआई जांच को आएगी? अस्थाना वाली या आलोक वर्मा वाली?”
सभी देवतागण हँस पड़े थे।
“मुझे पूरा यकीन है, विष्णु देव हमें निराश नहीं करेंगे।” इंद्र देव ने उम्मीद जताते हुए कहा था। आखिर में फैसला चाहे जो भी आये लेकिन एक महीने के लिए देवराज की गद्दी से बाहर होने की चिंता उनके चेहरे पर साफ साफ दिखाई देती थी।
दूसरी तरफ़ देवी सरस्वती के नेतृत्व में अप्सराएँ जश्न मना रही थीं। बाहरी जांच समिति के आधे सदस्यों का चुनाव उन्हें करना था। अब मामले की निष्पक्ष जांच सुनिश्चित थी। शूर्पणखा के नेतृत्व में अप्सराओं ने भी मोर्चा खोल दिया था। वे देवी सरस्वती के पूरे मूवमेंट पर सवाल उठा रही थीं। उनका कहना था कि मूवमेंट ने उनको अलग थलग कर रखा है। जो वाज़िब भी था। देवी पार्वती और देवी लक्ष्मी आगे की रणनीतियों पे विचारविमर्श में व्यस्त थीं। कार्तिकेय और गणेश की बेबीसिटिंग की जिम्मेदारी महादेव की थी।
इन सभी घटनाक्रमों से दूर विष्णु महाराज मृत्युलोक के सभी मीडियाकर्मियों के साथ एक महीने के प्राइम टाइम शो की चर्चा कर रहे थे।
“तो अगले फ्राइडे देवी अहिल्या का इंटरव्यू लेना है ना?’
‘नहीं उस स्लॉट पे तो हमें ‘इंद्र एक एन्टी हीरो’ का प्रसारण करना है।”
“तो फिर मंडे रख लें?”
“हाँ मंडे ठीक है। अर्बन नक्सल की डिबेट के बाद इंटरव्यू ठीक रहेगा।”
“डन।” प्रतिमा त्रिपाठी
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