व्यासमुनि प्रजापति
वैसे तो किसी भी देश में एक साथ कई नाम ऐसे होते हैं जो चर्चित होते हैं लेकिन इस समय देश में यदि कोई नाम सबसे ज्यादा चर्चित है तो वह है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का। यह कहना कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी कि टॉप टेन चर्चित नामों की लिस्ट बनाने के लिए कहा जाए तो एक से दस नंबर तक नरेंद्र मोदी का ही नाम लिखना पड़ेगा। दूसरा नाम वास्तव में ग्यारहवें नंबर पर आएगा। प्रधानमंत्री मोदी की मौजूदा लोकप्रियता देश के लिए जितनी अच्छी है उतनी ही बुरी भी है।
अच्छी इसलिए कि मोदी अपनी मर्जी के हिसाब से काम कर सकते हैं और देश को बहुत आगे ले जा सकते हैं। वे देश के सबसे अधिक शक्ति प्राप्त प्रधानमंत्रियों में से एक हैं। बुरी इसलिए कि अत्यधिक लोकप्रियता उनमें तानाशाही प्रवृत्ति को जन्म दे सकती है और उनकी गलत नीतियाँ देश को उतना ही अधिक नुकसान भी पहुँचा सकती हैं। दुनिया में इसके तमाम उदाहरण मौजूद हैं। दुनिया में जितने भी तानाशाह हुए हैं वे शुरुआत में जनता में बेहद लोकप्रिय रहे थे।
70 साल से हम कर क्या रहे हैं?
पिछले सत्तर सालों के शासन पर नजर डालने पर एक बात साफ हो जाती है कि देश की जनता अंध भक्ति की शिकार रही है। यह अंध भक्ति पहले जवाहर लाल नेहरू, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी और कांग्रेस पार्टी के प्रति थी अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा के प्रति है। जरा सोचकर देखिए कि जनता की अंध भक्ति की यह प्रवृत्ति क्या किसी भी लोकतांत्रिक देश के लिए ठीक है? वास्तव में आजादी के बाद हर पीढ़ी ने जागरूक रहने के बजाय अंध भक्तिपन ही ज्यादा दिखाई है और इसी का परिणाम रहा है देश में घटिया शासन। इसका असर यह हुआ कि विकास करने के मामले में हम फिसड्डी साबित हुए जबकि इतने सालों में दूसरे देश कहाँ से कहाँ निकल गए।
यह जरा कड़वा है मगर है सत्य कि जब तक हमारी यह अंध भक्ति की आदत नहीं छूटेगी बहुत बड़े बदलाव की उम्मीद करना बेमानी है। सत्ता में आनेवाला हर कोई जनता को बेवकूफ बना जाएगा और जब तक हमें होश आएगा तब तक बहुत देर हो चुकी होगी। अंध भक्ति का आलम यह है कि आज नरेंद्र मोदी की आलोचना करना ही सबसे बड़ा अपराध हो गया है। कमोबेश क्या यही स्थिति कांग्रेस के लंबे शासन काल में नहीं थी? कांग्रेस ने लाख गलतियाँ की फिर भी लोग उसे सत्ता सौंपते रहे। जबकि आज कांग्रेस को गाली देने वालों की कोई कमी नहीं है, कल भाजपा के साथ भी ऐसा ही होनेवाला है। ऐसा न हो इसलिए आज जागरूक होना जरूरी है।
लोकतंत्र के लिए खतरनाक है अंध भक्ति
पिछले सत्तर साल से देश में लोकतांत्रिक शासन प्रणाली है। इस सत्य को नकारते हुए कि लोकतांत्रिक शासन प्रणाली ही सबसे अच्छी शासन प्रणाली होती है बड़ी तादाद में ऐसे लोग हैं जो इस शासन प्रणाली को गाली देते रहते/रहे हैं। जबकि वे यह भूल जाते हैं कि इसके लिए वास्तव में जिम्मेदार तत्व क्या हैं। लोकतांत्रिक शासन प्रणाली के सफल होने की कुछ अनिवार्य शर्तें हैं जिसमें सबसे बड़ी शर्त है जनता का शिक्षित और राजनीतिक रूप से जागरूक होना।
अंध भक्तिपन तो लोकतंत्र की गर्दन मरोड़ने जैसा है। किसी भी शासक को अंध भक्त जनता ही पसंद आती है। वैसे जनता को अंध भक्ति करना ही है तो पांच साल में सिर्फ एक दिन अर्थात चुनाव के दिन करना चाहिए। बाकी के चार साल तीन सौ चौसठ दिन जनता को सजग प्रहरी बनकर डंडा लेकर चौकस खड़ा रहना चाहिए। सरकार यदि अच्छा काम कर रही है तो जनता उसकी पीठ थपथपाए लेकिन यदि वह गलत करती है तो उसके सिर पर डंडा मारे। तभी लोकतंत्र सफल हो सकता है अन्यथा रोते रहने के सिवाय कोई उपाय नहीं है। वैसे भी हमारे देश के नेता महाधूर्तों की श्रेणी के हैं। वे बड़े मजे से जनता को ठगते रहते हैं और जनता को इसका पता सालों बाद ही चल पाता है।
मीडिया मुट्ठी में!
वर्तमान दौर में जनता को इसलिए भी जागरूक होना ज्यादा जरूरी है क्योंकि आज मीडिया सरकार की कठपुतली बना हुआ है। इससे पहले कभी ऐसा देखने को नहीं मिला कि पूरा मीडिया जगत सरकार की मुट्ठी में कैद हो। तब मीडिया सरकार के गलत फैसलों पर सवाल उठाता था जबकि आज का मीडिया सरकार की चाटुकारिता में लगा हुआ है और उसका इस्तेमाल सरकार की छवि चमकाने के लिए हो रहा है।
मीडिया मालिक पूरी तरह धंधेबाज हो गए हैं उन्हें पत्रकारिता के उसूलों से कोई सरोकार नहीं है। उन्हें तो बस पैसे से मतलब है। अखबार-टीवी चैनल मीडिया मालिकों के लिए शानदार हथियार और ढाल हैं। वे इनका इस्तेमाल अपने सारे गलत कामों से बचने के लिए करते हैं। सरकार को भी तो ऐसे ही मीडिया मालिक चाहिए जो चोर हों क्योंकि सरकार इन्हें आसानी से अपनी मुट्ठी में कर सकती है। दूसरी ओर मीडिया मालिकों को इस देश की जनता से कोई लेना-देना नहीं है, उन्हें तो सिर्फ अपना धंधा बढ़ाना है।
आज जागने की ज्यादा जरूरत…
किसी भी देश का मीडिया जब सरकार के हाथों बिक जाए तो लोकतंत्र के लिए खतरा बढ़ जाता है। अब सवाल यह है कि ऐेसे में जनता सजग प्रहरी कैसे रह पाएगी क्योंकि जनता तो वही जानती है जो मीडिया उसे बताता है। अब जनता को पर्दे के पीछे चलने वाले खेल को समझना होगा और अंध भक्ति करनी छोड़नी होगी। सरकार के अच्छे कामों को अच्छा और गलत कामों को गलत कहने की आदत डालनी होगी। अंध भक्ति छोड़े बगैर यह नहीं हो सकता क्योंकि जब आप किसी के अंध भक्त होते हैं तो उसका गलत कदम भी आपको गलत नहीं लगता।
बेवजह बचाव करना छोड़ना होगा
अब बदलाव तेज गति से होना चाहिए और यह कहकर हमें किसी का भी बचाव करने की आदत छोड़नी पड़ेगी कि एक आदमी क्या-क्या करेगा, कहाँ-कहाँ ध्यान देगा क्योंकि सरकार कोई एक व्यक्ति होती ही नहीं है। हाँ, शीर्ष पर बैठा एक व्यक्ति बहुत बड़ा फर्क जरूर ला सकता है। पूरी दुनिया में इसके अनेक उदाहरण हैं जब एक नेता ने ही अपनी नीतियों से इतना बड़ा फर्क लाया कि उस देश के भाग्य का सितारा चमक गया।
मैं आपको यह बता देना चाहता हूँ कि 2014 के लोकसभा चुनाव में मैंने भी नरेंद्र मोदी को वोट दिया था और उनमें एक ऐसे नेता की छवि को देखा था जो देश की तकदीर को बदल कर रख देने की ताकत रखता है। अब भी मैं ऐसा मानता हूँ कि देश को नरेंद्र मोदी जैसे ही मजबूत नेता की जरूरत है और देश को इस नेता का बखूबी इस्तेमाल कर लेना चाहिए लेकिन अंध भक्ति करने से ऐसा बिल्कुल नहीं होने वाला। 2014 के चुनाव में मोदी का नारा था ‘सबका साथ, सबका विकास’। यह नारा सभी को खूब भाया था और परिणाम था मोदी को पूर्ण बहुमत वाली सरकार मिलना। मोदी को इस नारे से जरा सा भी डिगना नहीं चाहिए था परंतु तीन साल के शासनकाल में ऐसा दिखाई नहीं दिया फिर भी अंध भक्ति में कोई कमी नहीं आई।
निश्चित रूप से हम सबको एक मजबूत अर्थव्यवस्था वाला देश चाहिए। अमन-चैन वाला मुल्क चाहिए। स्वच्छ और मजबूत प्रशासन वाला देश चाहिए लेकिन सरकार इस दिशा में बहुत बेहतर काम करती दिखाई नहीं देती। 2014 के लोकसभा चुनाव में मोदी ने जो वादे किए थे वे अब भी पूरे होने बाकी हैं और सरकार लगातार इस कोशिश में है कि जनता का ध्यान इन मुद्दों की ओर न जाए। विचार कीजिए, क्या ऐसा नहीं हो रहा…।
लेखक व्यासमुनि प्रजापति पिछले 22 वर्षों से पत्रकारिता में हैं. साढ़े तीन साल पहले लोकमत ने साजिश के तहत एक साथ 61 कर्मचारियों को बर्खास्त कर दिया था, उसमें से एक व्यास मुनि जी भी हैं. इनसे संपर्क prajapativyasmuni@gmail.com के जरिए किया जा सकता है
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Ambrish Kumar
20 hrs ·
1998 में गांव बेगू का एक बच्चा डेरा की जीप तले कुचला गया। गांव वालों के साथ डेरा का विवाद हो गया। घटना का समाचार प्रकाशित करने वाले समाचार पत्रों के नुमाइंदों को धमकाया गया। डेरा के अनुयायी गाडिय़ों में भरकर सिरसा के सांध्य दैनिक रामा टाईम्स के कार्यालय में आ धमके और पत्रकार विश्वजीत शर्मा को धमकी दी। डेरा सच्चा सौदा की प्रबंधन समिति व मीडियाकर्मियों की पंचायत हुई। जिसमें डेरा सच्चा सौदा की ओर से लिखित माफी मांगी गई और विवाद का पटाक्षेप हुआ।
मई 2002 में डेरा सच्चा सौदा प्रमुख गुरमीत सिंह पर यौन शोषण के आरोप लगाते हुए डेरा की एक साध्वी द्वारा गुमनाम पत्र प्रधानमंत्री को भेजा गया। जिसकी एक प्रति पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को भी भेजी गई।
– 10 जुलाई 2002 को डेरा सच्चा सौदा की प्रबंधन समिति के सदस्य रहे कुरुक्षेत्र के रणजीत का मर्डर हुआ। आरोप डेरा सच्चा सौदा पर लगे। डेरा छोड़ चुके प्रबंधन समिति के सदस्य रणजीत सिंह पर डेरा प्रबंधको को शक था की उक्त गुमनाम चिठ्ठी उसने अपनी बहन से ही लिखवाई है. गौरतलब है की रणजीत की बहन भी डेरा में साध्वी थी. पुलिस जांच से असंतुष्ट रणजीत के पिता ने जनवरी 2003 में हाईकोर्ट में याचिका दायर कर सीबीआई जांच की मांग की।
– 24 सितंबर 2002 को हाईकोर्ट ने साध्वी यौन शोषण मामले में गुमनाम पत्र का संज्ञान लेते हुए डेरा सच्चा सौदा की सीबीआई जांच के आदेश दिए। सीबीआई ने मामला दर्ज कर जांच शुरू कर दी।
– 24 अक्तूबर 2002 को सिरसा के सांध्य दैनिक ‘पूरा सच’ के संपादक रामचन्द्र छत्रपति पर डेरा के गुर्गों द्वारा कातिलाना हमला किया गया। छत्रपति को घर के बाहर बुलाकर पांच गोलियां मारी गईं।
– 25 अक्तूबर 2002 को घटना के विरोध में सिरसा शहर बंद। डेरा सच्चा सौदा के विरोध। उत्तर भारत में मीडियाकर्मी पर हमले को लेकर उबाल। Ambrish Kumar
17 hrs ·
भिंडरावाला के बाद पहली बार किसी बाबा के लिए सेना निकली ,पार्टी की बहुत मदद की थीमीडियाकर्मियों ने जगह-जगह धरने-प्रदर्शन किए।
– 16 नवंबर 2002 को सिरसा में मीडिया की महापंचायत बुलाई गई और डेरा सच्चा सौदा का बाईकाट करने का प्रण लिया।आगे ….———————————Dilip C Mandal
36 mins ·
यह डेरों की सफलता नहीं, आंबेडकरवादी-समाजवादी- समतावादी राजनीति की असफलता है।
हरियाणा, पंजाब और साथ लगे राजस्थान का हिस्सा सामाजिक आंदोलनों की दृष्टि से बंजर साबित हुआ है।
यह देश में अनुसूचित जाति की सबसे सघन आबादी वाला इलाक़ा है। हर तीसरा आदमी SC है।
यहाँ समाजवादी आंदोलन कभी नहीं पनप सका। मंडलवादी-समतावादी राजनीति से भी यह इलाक़ा अछूता रहा। बीएसपी का यहाँ का उभार भी क्षणिक साबित हुआ। बाक़ी का आंबेडकरवादी आंदोलन भी सीमित ही रहा।
ऐसे में जनता के पास कोई सपना नहीं बचा। कोई भी नहीं था जो बेहतर समाज का सपना दिखाए।
इसी शून्य में नीचे की जातियाँ डेरों की शरण में चली गई। यहाँ का भाग्यवाद उन्हें सुकून देता है। साथ बैठकर प्रवचन सुनना ही इनका एंपावरमेंट है।
कोई ब्राह्मण तो डेरों में जाता नहीं है। उनका तो अपना मंदिर है। डेरा नीची की जातियों के लोगों के लिए हैं।
हालाँकि कोई भी बाबा नीचे की जातियों का नहीं है। ये बाबा चुनाव के समय जनता को इस या उस पार्टी को बेच देते हैं।
जनता के पास विकल्प क्या था? जिसने विकल्प दिया, लोग उसके पास चले गए।
आंबेडकरवादियों ने ज़मीन ख़ाली कर दी, बाबाओं ने पकड़ ली। जनता के पास आंबेडकरवादी विकल्प था कहाँ?
इसलिए डेरा भक्तों को दोष मत दीजिए।
यह समाजवादी-आंबेडकरवादी राजनीति की असफलता का साइड इफ़ेक्ट है।
समाजवादी-आंबेडकरवादी सपनों के बिना समाज का डेरा बन जाता है।
वहाँ ऐसे लोग राज करते हैं।Dilip C Mandal
36 mins · ——————————————— Yogendra Yadav
जब भी मैं डेरा सच्चा सौदा के बारे में सुनता हूँ, मुझे 20 अक्टूबर 2002 की याद आ जाती है। उस दिन मैं हरियाणा के शहर सिरसा में था, जो डेरे के मुख्यालय के नज़दीक है। मुझे वहां के अखबार “पूरा सच” के संपादक रामचंद्र छत्रपति जी ने “वैकल्पिक राजनीती और मीडिया की भूमिका” विषय पर व्याख्यान देने के लिए बुलाया था। एक ईमानदार और साहसी पत्रकार के रूप में छत्रपति जी की ख्याति और सिरसा शहर की पंजाबी और हिंदी की साहित्यिक मण्डली ने मुझे अभिभूत किया था। भाषण के बाद छत्रपति जी मुझे दूध-जलेबी खिलाने ले गए। वहीँ सड़क के किनारे बैठकर मैं उनसे डेरा सच्चा सौदा के बारे में सुनने लगा। उन्होंने मुझे पहली बार एक साध्वी द्वारा बाबा के खिलाफ यौन शोषण के आरोप के बारे में बताया। डेरे के अंदर की बहुत ऐसी बातें बतायीं जो मैं यहाँ लिख नहीं सकता। यह सुनकर मैंने कहा “अगर ये धर्म है तो अधर्म क्या है?”
छत्रपति जी मुस्कुराये, बोले ये बोलने की किसी में हिम्मत नहीं है। कोई वोट के लालच में चुप है, कोई पैसे के लालच में चुप है। लेकिन “पूरा सच” में हमने साध्वी की चिठ्ठी छाप दी है। उससे बाबा बौखलाए हुए हैं। चिठ्ठी छपने के महीने के अंदर उसे लीक करने के शक में भाई रंजीत सिंह की हत्या कर दी गयी। सुनकर मैं सिहर गया। पूछा “रामचंद्र जी, आपको खतरा नहीं है”? बोले “हाँ कई बार धमकियाँ मिल चुकी हैं, क्या होगा कोई पता नहीं। लेकिन कभी न कभी तो हम सबको जाना है।”
चार दिन बाद खबर आयी कि रामचंद्र छत्रपति के घर पर हमलावरों ने उन्हें पांच गोलियां मारी। कुछ दिन के बाद छत्रपति जी चल बसे। हरियाणा सरकार (उन दिनों चौटाला जी की लोक दल की सरकार थी) ने हत्या की ढंग से जांच तक नहीं करवाई, पूरे प्रदेश के पत्रकारों के विरोध के बाद मामला सीबीआई को सौंपा गया। बाबा के नजदीकी लोग इस क़त्ल के मुख्य आरोपी हैं, फैसला आना बाकी है। जब भी बाबा का कोई केस कोर्ट में लगता है, उनके हज़ारों अनुयायी कोर्ट को घेर लेते हैं (वैसे अभी तक किसी जज पर हमले की खबर नहीं है) उसके बाद आयी कांग्रेस और बीजेपी दोनों सरकारें डेरे के सामने नतमस्तक रही हैं। डेरे के लोग हर चुनाव से पहले खुल्लमखुल्ला पार्टियों से वोट की डील करते हैं। 2014 के हरियाणा विधान सभा चुनाव में डेरे ने बीजेपी को समर्थन दिया था। चुनाव जीतने के बाद खट्टर जी तो अपनी पूरी कैबिनेट को सिरसा लेकर बाबा का धन्यवाद करने गए थे!
आज पंचकुला में साध्वी के यौन शोषण वाले मामले का फैसला आना है। (साध्वी के बयान पर आधारित एक न्यूज़ रिपोर्ट सलग्न है जो आपको कुछ अंदाज़ा देगी) आरोप सही है या नहीं, प्रमाण पुख्ता हैं या नहीं, यह तो जज साहब ही बता पाएंगे। लेकिन इतना जरूर जान लें कि कटघरे में बाबा राम रहीम नहीं, बल्कि हमारी न्याय व्यवस्था है। Yogendra Yadav —————————–Dinesh Choudhary
15 hrs ·
जब भी आपकी आत्मा थोड़ी-सी आलोकित होती है, उनका बैंक बैलेन्स कई गुना बढ़ जाता है।
अभी कल ही रंगकर्मी साथी निसार ने परसाई जी के जन्म दिन पर नाटक ‘टॉर्च बेचने वाला’ खेला था और आज खबर मिल रही है कि डबल श्री 1000 रिटेल काउण्टर खोलकर भगोड़े बाबा को कड़ी चुनौती देने जा रहे हैं। कायदे से 1008 खोलना चाहिए। कलजुग इसी को कहते हैं। पहले बाबागण शास्त्रार्थ के बहाने एक-दूसरे के समक्ष चुनौती प्रस्तुत करते थे, आजकल गल्ला समेट कर करते हैं। जो जित्ता बड़ा बाबा वो उत्ता बड़ा व्यापारी (बलात्कारी भी!)।
बाबागिरी का धंधा सबसे चोखा है। पूँजी कौड़ी की नहीं लगती। बस लोगों की आत्मा में प्रकाश जगाना होता है। इधर आत्मा में प्रकाश जागता है, उधर अकल पर ताले पड़ जाते हैं।
कारपोरेट बाबाओं का युद्ध देखना बड़ा दिलचस्प होगा। दोनों दाढ़ी-चोटीधारी है, पर चोटीकटवों में भक्तों को उलझाकर, उनकी जेब मूड़ेंगे। ग्राहकों को तोड़ने के लिए बाउंसर वगैरह भी लगाए जाएंगे। विष कन्याओं का इस्तेमाल होगा। लखलखे सुँघाए जाएंगे। पूरी कहानी बाबू देवकीनन्दन खत्री के नावेल की तरह अत्यंत रोमांचक होगी, जिस पर आगे चलकर एकता कपूर निहायत घटिया सीरियल भी बनाएंगी। मैं बहुत रोमांचित हूँ।
वे फिरंगी मूर्ख हैं, जो हमारे मुल्क को साँप और साधुओं का देश कहकर मजाक उड़ाते हैं। आकर देखें कि हमारे साधु और बाबा कितने एडवांस हो गए हैं। इनके टॉर्च अब गोरी चमड़ी वाले लोग भी खरीदने लगे हैं। प्रकाश जागरण का काम उनकी आत्मा में भी चल रहा है। जितनी जमीन ईस्ट इंडिया कम्पनी ने दो सौ साल में नहीं हड़पी, उतनी हमारे कारपोरेट बाबा ने दो साल में हड़प ली।
अगले कुछ बरसों में कुछ और गुरू पैदा करने का अपना लक्ष्य है। फिर गाय, गोबर और गुरू पूरे विश्व में अपनी पताका फहरा देंगे। कोई माई का लाल, ट्रम्प, पुतिन-फुतिन अपन को विश्वगुरू बनने से नहीं रोक सकता।
वो जमाना गया जब हम सूरज छाप टॉर्च बेचते थे। आत्मा में प्रकाश जगाने का पेटेंट अभी तक अपने ही पास है।
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Yashwant Singh7 hrs · केजरीवाल ने ये कमाल का काम किया है। केजरीवाल जनता को देता है। मोदी सिर्फ लेता है। तुलना कर लो।
P Singh added 3 new photos.Follow13 hrs · दिल्ली
प्रायवेट स्कूल अभिभावकों के अतिरिक्त वसूले गये एक हज़ार करोड़ लौटाने लगे !
केजरीवाल की करीब पाँच सौ स्कूलों के अधिग्रहण की नोटिस रंग लाई ।
स्कूल अख़बारों में विज्ञापन देकर अभिभावकों को पैसे वापस लेने के लिये बुला रहे हैं ! और पैसे वापस भी कर रहे हैं ।
ऐसा भी हो सकता है ? करके तो देखिये !Mahendra Yadav added 4 new photos.Follow
5 hrs · बलात्कारी साबित हुआ गुरमीत राम रहीम। मोदी और खट्टर का साथी निकला बलात्कारीAwesh Tiwari
3 hrs · Varanasi · हरियाणा के हालात काश्मीर से भी बदतर हो चुके हैं। डेरा समर्थक मीडिया और पुलिस के जवानों को दौड़ा दौड़ा कर मार रहे हैं। सिर्फ हरियाणा की भाजपा सरकार में ही नही पुलिस और ब्यूरोक्रेसी के शीर्ष पदों पर भारी संख्या में डेरा समर्थक है, इस बात से कत्तई इनकार नही किया जा सकता कि कई मंत्री ,सीएम खट्टर और पुलिस के वरिष्ठ अधिकारी नही चाहते थे कि डेरा समर्थकों पर कारवाई हो। हरियाणा सरकार राष्ट्रद्रोह की दोषी हैAwesh Tiwari4 hrs · Varanasi · आप कल्पना कर सकते हैं समूचे पंचकुला और सिरसा में जहां डेरा समर्थकों की भीड़ है वहां कोई मीडियाकर्मी नही है।हाल ऐसे हैं कि जनता किसी के हाथ मे भी कैमरा माइक देखे तो उसको मार डालेगी। दुनिया भर के सर्वाधिक खतरनाक क्षेत्रों में शुमार ईराक, सीरिया, सोमालिया में भी मीडियाकर्मियों को खतरा नही है ,वहां से रिपोर्ट की जा रही है, लेकिन इस कथित लोकतंत्र में है। फिलहाल एनडीटीवी की वैन जला दी गई है समर्थक कोर्ट को आग लगाने के फिराक में है। जो कुछ हो रहा है यह केंद्र सरकार के लिए और देश की पुलिसिंग के लिए बेहद शर्मिंदगी भरी बात है।।Vikram Singh Chauhan
22 hrs · दस .. सिर्फ दस मुसलमान सफ़ेद टोपी में मस्जिद से कहीं दूर इकठ्ठा हो जाये वहां से कम से कम दो बार पुलिस की गाड़ी गुजरेगी और तीसरी बार खड़ी हो जाएगी। अगर ये शाम का वक़्त हुआ तो थाने में ले जाकर पूछताछ शुरू हो जाती है। दुर्भाग्यजनक ढंग से देश में उस दिन किसी दूसरे राज्य में बम ब्लास्ट हुआ है तो वे सालों के लिए जेल में गए समझो। रात में न्यूज़ चैनलों में पट्टी चलनी शुरू हो जाती है संदिग्ध आतंकी पकड़ाए,सुबह अख़बारों के बड़े पेज में सबके फोटो सहित ,एटीएस की जाँच जारी । न कोई गवाही न शिनाख्त और न किसी चीज की जरूरत। बन गए आतंकी। सालों बाद हमारे मित्र Wasif Haider की तरह अदालत से बेगुनाह बरी होंगे ,तब तक इनकी पूरी दुंनिया खत्म।
और इधर देखिये। देश को नक़्शे से मिटाने की बात कर रहे हैं ,सरकार चुप है। देश में दंगा करने की बात कर रहे हैं ,सरकार चुप है। पैसे के बल पर समानांतर सेना बना लिया है ,सरकार चुप है। पेट्रोल ,डीजल ,धारदार हथियार और ईंट इकठ्ठा कर चुके हैं ,सरकार चुप है। हत्या ,बलात्कार साजिश रचने सब आरोप है ,फिर भी सरकार चुप है। सरकार क्यों चुप है? बस इसलिए कि गुरमीत राम रहीम सिर्फ ”रहीम” नहीं है!Girish Malviya
48 mins · इन साढ़े तीन घण्टेें की हिंसा 28 की मौत हुई 250 घायल है,करोड़ो अरबो की निजी एवं सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पुहंचा, बड़ा सवाल यह हैं कि जिम्मेदारी किसकी ?हरियाणा के मुख्य सचिव कह रहे है कि संपत्ति का नुकसान राज्य सरकार अपने पैसे से भरेगी, क्या सरकार के बाप का पैसा है, ये टेक्स पेयर्स का पैसा है जिससे सरकार नुकसान भरने की बात कर रही है, जिसने हिंसा फैलाई है उनके संपत्ति को बेचकर नुकसान की पूर्ति की जाए , वीडियो रिकार्डिंग किसलिए करवाई जाती है हिंसा कर रहे एक एक आदमी की पहचान कर उसकी संपत्ति बेचकर नुकसान की पूर्ति की जाएGirish Malviya1 hr · डेरा के प्रवक्ता का बयान आया है कि हमारे साथ अन्याय हुआ है, साथ ही वो ये भी कह रहे हैं कि हमारे साथ वही हुआ है जो इतिहास में गुरुओ के साथ होता रहा है,
अब ये वही चाल चल रहे है जो भाजपा का लम्बे समय से चल रही है ये अपने बलात्कारी बाबा को अभी निर्दोष बता रहे है,
डेरा सच्चा सौदा पूरी तरह से घटियापन पर उतर आया है, जितनी जल्दी हो सके इसका नामो निशान मिटा देना चाहिए, सरकारी संपत्ति को आग लगाने वाले ही सही मायनों में देशद्रोही हैं।Mohammed Afzal Khan
4 hrs · भाई कश्मीर से पैलेट गन मँगा लो !इससे पहले के हरियाणा पंजाब जल जाये Nitin Thakur
5 hrs · गुरमीत के पांवों में दिमाग रख आनेवालों ने हिंसा शुरू कर दी है. आजतक की ओबी वैन फोड़ दी है. पंजाब के दो रेलवे स्टेशन फूंक दिए हैं जिसमें एक मुक्तसर का मलोट भी है. मनसा में दो कारें जला दी हैं. कोर्ट के बाहर आंसू गैस के गोले चलाने पड़ रहे हैं. पंजाब के फिरोजपुर समेत 5 जिलों में कर्फ्यू लग गया है. पंचकूला के आयकर भवन में आग लगा दी गई है. . लेकिन ये सब नाम और पहचान से हिंदू हैं तो इन्हें उपद्रवी या दंगाई कहा जा सकता है “देश के गद्दार नहीं”. “देश के गद्दार” वाला टैग तो बस एक खास धार्मिक समुदाय वालों के लिए ही सुरक्षित है.Nitin Thakur
5 hrs · आसाराम के बाद गुरमीत राम रहीम का पतन दिखा रहा है कि धर्म का धंधा सबसे करप्ट है. ध्यान रखिए अभी कई और हैं जो योग, कथा और सत्संग के पीछे गोरखधंधे में लिपटे हैं.See TranslationAbhishek Srivastava4 hrs · ये सरकार हिन्दू-विरोधी है। रह-रह कर किसी न किसी बाबा को अपना निशाना बना रही है। हिंदू भक्तों की आस्था को चोट पहुंचा रही है। ये ठीक नहीं है। वोट दिया था हिंदू धर्म की स्थापना के लिए, धर्माचार्यों को ही जेल भिजवा दिया। वोट दिया था बुलेट ट्रेन के लिए, सामान्य ट्रेन पलटवा दिया। वोट दिया था बेटी बचाने के लिए, यूपी में खुद को बचा रही बेटी का हाथ कटवा दिया। वोट दिया था विकास के लिए, एनएच-24 पर 16 लेन के चक्कर में मंदिर तोड़वा दिया। वोट दिया था अच्छे दिन के लिए, नोटबंद कर के जीएसटी लगा दिया। वोट दिया था रामराज में बच्चों के भविष्य के लिए, पैदा होते ही आक्सीजन रुकवा दिया। मार डाला। वोट दिया था रोजगार के लिए, आइटी कंपनियों का भट्ठा बैठवा दिया। टाटा-इंफोसिस में फूट डलवा दिया। रेमंड के मालिक को सड़क पर ला दिया। माल्या को भगा दिया।
तीन साल में देख लिया सब पाखंड। अबकी किसी को भी जितवा देंगे लेकिन हिंदू के नाम पर पाखंड करने वालों को नहीं। काश! उसी दिन समझ में आ जाता जब इन्होंने मंदिर बनाने के लिए चंदा इकट्ठा किया था। मंदिर तो बनवाया नहीं, उलटे मस्जिद तोड़ दी। अबे, जिस काम का पैसा लेते हो वो करो! बाज़ार कितना ही लुटेरा हो, उसका भी एक नियम होता है। ये क्या बात हुई कि मांगा दूध और दे दी खीर! हमें तो दूध ही चाहिए बॉस! सौदा कच्चा भले हो, लेकिन सच्चा होना चाहिए।Abhishek Srivastava
9 hrs · Ghaziabad ·
Nirendra Nagar
5 hrs ·
बाबा राम रहीम के हाथ में तिरंगा और ज़बान पर वंदे मातरम। सही कहा गया है कि देशभक्ति बदमाशों का अंतिम हथियार है। आपको अपने आसपास ही ऐसे कई ‘देशभक्त’ तिरंगा लहराते और वंदे मातरम का नारा लगाते मिल जाएंगे। बंगला में कहावत है – अतिभोक्ति चोरेर लक्खन (अतिभक्ति चोर का लक्षण)। सो जब कोई बहुत ज़्यादा देशभक्त बनता है तो मैं समझ जाता हूं कि यह एक नंबर का गुरुघंटाल होगा। विदेशों में जमा काला धन वापस लाने की मांग करनेवाला एक राष्ट्रीय बाबा कैसे ‘अपने काले पैसे को लेकर आ रही मुश्किलों’ की बात कर रहे BJP कैंडिडेट को चुप कराते पकड़ा गया था, यह आपने देखा ही होगा। नहीं देखा हो तो इस लिंक पर क्लिक करके देख लीजिए। https://www.youtube.com/watch?v=YVL4EKcJQG0Nirendra Nagar
7 mins ·
साक्षी महाराज ने सही सवाल उठाया है! कोर्ट को एक व्यक्ति की बात माननी चाहिए जो कहता है कि उसका यौन शोषण हुआ या करोड़ों भक्तों की जो नहीं मानते कि ऐसा हुआ। लोकतांत्रिक न्याय यही है। यदि अदालतें साक्ष्य नीति के बजाय साक्षी नीति को अपना लें तो न्याय करना कितना आसान हो जाए। जिसके साथ ज़्यादा लोग, उसी को सच्चा (सौदा) मानते हुए उसके हक़ में फ़ैसला। मोदीजी को अपने इस नगीने का कहीं सदुपयोग करना चाहिए। योगी से ज़्यादा प्रतिभाशाली हैं।Nirendra Nagar added 2 new photos.
2 hrs ·
गोदी मीडिया हरियाणा की खट्टर सरकार की नाकामी पर कुछ नहीं बोल रहा क्योंकि खट्टर मोदीजी की निजी पसंद हैं। जो मोदी से करता प्यार, वह खट्टर पर कैसे करे वार?
See Translation
See TranslationRajiv Nayan Bahuguna Bahuguna
11 mins ·
साम्प्रदायिक गुंडों और अंध भक्तों का पहला सहज शिकार मीडिया बनता है । याद होगा , 6 दिसम्बर 1992 में वहां इकट्ठा आतंकवादियों ने पहले चालबाज़ी से सभी मीडिया कर्मियों को माइक से पुकार कर एक जगह जमा किया , फिर उनके कैमरे और सर तोड़े ।
आज भी बदमाश बाबा के गुंडों ने मीडिया की गाड़ियां जलायीं , और पत्रकारों को चाकुओं से गोदा । फिर भी मीडिया सब कुछ बिसार कर कुछ दिन बाद उनके गुण गाने लगता है ।
See TranslationPushya Mitra
8 hrs ·
इस देश के विचारकों को अब गंभीरता से सोचना चाहिये कि राम रहीम जैसे लोफर के पीछे, आशाराम जैसे घटिया आदमी, निर्मल बाबा जैसे उटपटांग व्यक्ति, मथुरा में किसी लठैत के पीछे, शहाबुद्दीन जैसे अपराधी के पीछे, राधे मां जैसी ग्लैमर क्वीन के पीछे, सन्नी लियोन की कार के पीछे तो लाखों की भीड़ जुट जाती है। मगर एक अच्छे विचार के लिये दस लोग मुश्किल से जुटते हैं। सभा, सेमिनार, गोष्ठियों, धरनों प्रदर्शनों में लोगों को खुशामद करके बुलाना पड़ता है।दरअसल देश का मध्यम और निम्न मध्यम वर्ग अब बिल्कुल अलहदा तरीके से सोचने लगा है। वह क्या चाहता है, किस मानसिक स्थिति से गुजर रहा है, उसके मसले क्या हैं, इसकी हमें खबर भी नहीं है। हम अपने सिद्धांतों के साथ एक आइसोलेशन में जी रहे हैं। जबकि दुनिया अपने गमों का इलाज बाबाओं, फिल्मों, यौन कुंठाओं, तिलिसमों और न जाने कहाँ कहाँ तलाश रही है।Pushya Mitra
4 hrs · आज राम चंद्र छत्रपति को याद करने का दिन है. जिसकी खबर ने पहली दफा राम रहीम को एक्सपोज किया था और अपे अखबार पूरा सच के नाम को सार्थक किया था. इसकी कीमत छत्रपति ने जान देकर चुकाई… आज भी वहां डेरा सच्चा सौदा के समर्थक सबसे अधिक नाराज मीडिया से ही हैं.Dinesh Choudhary
21 hrs ·
जब भी आपकी आत्मा थोड़ी-सी आलोकित होती है, उनका बैंक बैलेन्स कई गुना बढ़ जाता है।
अभी कल ही रंगकर्मी साथी निसार ने परसाई जी के जन्म दिन पर नाटक ‘टॉर्च बेचने वाला’ खेला था और आज खबर मिल रही है कि डबल श्री 1000 रिटेल काउण्टर खोलकर भगोड़े बाबा को कड़ी चुनौती देने जा रहे हैं। कायदे से 1008 खोलना चाहिए। कलजुग इसी को कहते हैं। पहले बाबागण शास्त्रार्थ के बहाने एक-दूसरे के समक्ष चुनौती प्रस्तुत करते थे, आजकल गल्ला समेट कर करते हैं। जो जित्ता बड़ा बाबा वो उत्ता बड़ा व्यापारी (बलात्कारी भी!)।
बाबागिरी का धंधा सबसे चोखा है। पूँजी कौड़ी की नहीं लगती। बस लोगों की आत्मा में प्रकाश जगाना होता है। इधर आत्मा में प्रकाश जागता है, उधर अकल पर ताले पड़ जाते हैं।
कारपोरेट बाबाओं का युद्ध देखना बड़ा दिलचस्प होगा। दोनों दाढ़ी-चोटीधारी है, पर चोटीकटवों में भक्तों को उलझाकर, उनकी जेब मूड़ेंगे। ग्राहकों को तोड़ने के लिए बाउंसर वगैरह भी लगाए जाएंगे। विष कन्याओं का इस्तेमाल होगा। लखलखे सुँघाए जाएंगे। पूरी कहानी बाबू देवकीनन्दन खत्री के नावेल की तरह अत्यंत रोमांचक होगी, जिस पर आगे चलकर एकता कपूर निहायत घटिया सीरियल भी बनाएंगी। मैं बहुत रोमांचित हूँ।
वे फिरंगी मूर्ख हैं, जो हमारे मुल्क को साँप और साधुओं का देश कहकर मजाक उड़ाते हैं। आकर देखें कि हमारे साधु और बाबा कितने एडवांस हो गए हैं। इनके टॉर्च अब गोरी चमड़ी वाले लोग भी खरीदने लगे हैं। प्रकाश जागरण का काम उनकी आत्मा में भी चल रहा है। जितनी जमीन ईस्ट इंडिया कम्पनी ने दो सौ साल में नहीं हड़पी, उतनी हमारे कारपोरेट बाबा ने दो साल में हड़प ली।
अगले कुछ बरसों में कुछ और गुरू पैदा करने का अपना लक्ष्य है। फिर गाय, गोबर और गुरू पूरे विश्व में अपनी पताका फहरा देंगे। कोई माई का लाल, ट्रम्प, पुतिन-फुतिन अपन को विश्वगुरू बनने से नहीं रोक सकता।
वो जमाना गया जब हम सूरज छाप टॉर्च बेचते थे। आत्मा में प्रकाश जगाने का पेटेंट अभी तक अपने ही पास है।Dinesh Choudhary——————-Nirendra Nagar
21 August at 14:06 ·
क़रीब एक साल पहले Media khabar के एक कार्यक्रम में आज की पत्रकारिता पर कुछ बातें कही थीं। मैंने बताने की कोशिश की थी कि क्यों आज के मीडिया पर मोदीराग छाया हुआ है। अधिकतर लोग मानते हैं कि सारे पत्रकार और मीडिया हाउस मोदीभक्त हो गए हैं या फिर मोदी सरकार से डरे हुए हैं। इसमें कुछ-कुछ सच्चाई है लेकिन यह पूरा सच नहीं है। आज उस भाषण की रिपोर्टिंग मैं यहां पेश कर रहा हूं। एक इनसाइडर के निजी अनुभव के तौर पर आपको यह जानकारी रोचक लगेगी कि क्यों Navbharat Times Online जैसी स्वतंत्र वेबसाइटें भी मोदी के बारे में ज्यादा और पॉज़िटिव खबरें दे रही हैं।—–
पाठको से माफ़ी चाहेंगे की कुछ समय से अफ़ज़ल भाई की तबियत थोड़ी खराब रही इस कारण से , और बड़े भाई की मौत के सदमे से में भी काफी समय से लेख नहीं लिख पा रहा हु तो इस सबसे काफी समय से साइट अपडेट नहीं हो पा रही हे . खेर संजय राजोरा को सुने संजय राजोरा को सुंनना हमेशा रोचक होता हे
https://www.youtube.com/watch?v=Dt6y74GSW0c और मोदी पर एक शानदार कॉमेडी https://www.youtube.com/watch?v=nEW4fiyWEkw