पूछिए कैसे? आजकल विश्वगुरू बनने का जैसा अभूतपूर्व प्रयास चल रहा है, वैसा पहले कभी किया ही नहीं गया. इसके अलावा मोदी जी ख़ुद ऐसे प्रतिभाशाली व्यक्ति हैं कि विश्वगुरु बनने के सारे लक्षण उनमें मौजूद हैं.
अब देखिए, संघी कोलकाता में एक ‘गर्भ संस्कार’ कार्यशाला कर रहे हैं. बता रहे हैं कि गर्भ में बच्चों को सुसंस्कारी, सुंदर और गोरा बना देंगे. आईक्यू लेवल भी बढ़ा देंगे. सुपर बेबी पैदा कर देंगे. वे पेट में ही सुनिश्चित कर देंगे कि आप ‘संस्कारी बच्चा’ पैदा करें. इसमें माता-पिता का तीन महीने तक शुद्धीकरण किया जाएगा. फिर ग्रहों के मुताबिक संभोग होगा. गर्भवती हो जाने के बाद पूरी तरह से परहेज और प्रक्रियात्मक व सही भोजन का पालन करना होगा. पूरा मेडिकल साइंंस गया तेल लेने.
कोर्ट ने पूछा, क्या इसके पहले ऐसा हुआ है? कोर्ट को जवाब मिला था, अभिमन्यु ऐसे ही पैदा हुआ था. गर्भ में ही संस्कारी हो गया था. अब राजा दशरथ ने तो अपनी रानियों को खीर खिलाया था. हो सकता है जब हम विश्वगुरु बन जाएं तो मर्यादा पुरुषोत्तम राम की तरह बच्चा पैदा करने की गरज से संघी कहें कि नागपुर कार्यालय में रोज खीर बनेगी, जो खाएगा उसे संस्कारी बच्चा पैदा होगा.
यह काम कोई एक कार्याशाला नहीं कर रही है. कुएं में भी भांग पड़ी है. रमेश पोखरियाल संसद में कहते हैं कि पहला परमाणु परीक्षण कण्व ऋषि ने दूसरी सदी में किया था. संघ के महान ज्ञानी पुरुष कहते हैं कि गोबर में विकिरण रोकने की क्षमता है. कुछ संघी विज्ञान कांग्रेस में पर्चा पढ़ आते हैं कि वेदों से विमान तकनीक निकलती है. इस जाहिलियत भरी ज्ञानगंगा से ही यह क्रूर आस्था भी निकलती है कि गौ माता के अपमान पर किसी को पीटकर मार दिया जाए.
बाक़ी मोदी जी ख़ुद काफी प्रतिभाशाली हैं ही. उनके पीएम बनने के बाद छपी एक किताब में बताया गया है कि बाल नरेंद्र ने मगरमच्छ के मुंह से गेंद छीन ली थी. खेलने के लिए एक मगरमच्छ भी पकड़ लाए थे और मगरमच्छ की पीठ पर बैठकर तालाब के बीचोबीच तिरंगा फहरा दिया था.
उनकी शिक्षा दीक्षा के बारे में तो आप जानते ही हैं. मोदी जी ने 1983 में दूरस्थ शिक्षा के तहत एमए किया. उसके बाद भारतीय गणतंत्र ने उनसे प्रेरणा लेकर 1983 में दूरस्थ शिक्षा यानी डिस्टैंस लर्निंग की शुरुआत की. देश में डिस्टैंस लर्निंग शुरू नहीं हुई थी, तब तक वे इसके तहत एमए कर चुके थे. वेकैंया नायडू बता ही चुके हैं कि नरेंद्र मोदी विष्णु के अवतार हैं. विष्णु भगवान की लीला अपरंपार है. इसीलिए मोदी जी दो बार पैदा हुए. पहले सन 49 में उसके बाद 50 में. पैदा क्या हुए होंगे, अवतार लिया होगा.
मोदी जी ने बीए वगैरह नहीं किया, सीधे एमए किया. उसके पहले मालगाड़ी के डब्बे में चाय बेचते थे. गायें भैंसें और चीनी आलू के बोरे सब खूब चाय पीते थे. यह सब वैसे ही है जैसे मोदी जी तक्षशिला को पाकिस्तान से उठाकर बिहार में रख देते हैं.
नरेंद्र मोदी जी ने लीला के मामले में भगवान कृष्ण को पीछे छोड़ दिया है. ऐसे चिल्लर टाइप मसलों पर उलझकर यह देश विश्वगुरु बनेगा. जिस देश में चुनाव लड़ने के लिए कोई डिग्री या शैक्षिक योग्यता निर्धारित नहीं है, जिस देश में अभी करोड़ों लोग अनपढ़ हैं, उस देश का पीएम अपनी डिग्री को लेकर रहस्य बनाए हुए है. यही तो भगवान की लीला है.
ऐसे महान व्यक्तित्व है उनका इसीलिए उन पर देश की जनता फिदा है. भारत को हमेशा अवतार पुरुष चाहिए होता है. मोदी जी अवतार पुरुष से एक रत्ती कम नहीं हैं. उतना ही रहस्य, उतनी ही कथाएं, उतने ही गप्प, उतना ही कोलाहल, उतना ही फरेब, उतना ही झूठ, यह सब अवतारी पुरुषों के ही लक्षण हैं. अवतारी पुरुष का एक और लक्षण है कि उसकी महागाथा कुछ भी तथ्यात्मक या वैज्ञानिक नहीं हो सकता. मोदी जी, उनकी पार्टी यह अर्हता पूरी करते हैं.
मेरे हिसाब से अगर पीएम अनपढ़ भी हैं, या बहुत कम पढ़े हैं तो यह कोई शर्म की बात नहीं है. यह तारीफ की बात है. अगर संघी पोंगा हैं तो वे पढ़ने लिखने की शुरुआत भी कर सकते हैं, लेकिन वे ऐसा करने की अभिमन्यु पैदा करने में लगे हैं. वे खीर खाकर लड़का पैदा कराने की तकनीक खोज रहे. हीनताबोध का क्या किया जाए? यह भारतीयों की नस नस में भरा है.
इस ज्ञान से विश्व गुरु ज़रूर बनेंगे. हाल फिलहाल राष्ट्र गुरु ढूँढ लिए गये हैं.
Anil Singh : घोटाले की जुबान बंद तो बोलेगा कौन! मोदी सरकार का बड़ा दावा है कि अब तक उस पर भ्रष्टाचार का संगीन आरोप नहीं लगा है। लेकिन कौन खोजकर निकालेगा आपके भ्रष्टाचार! लोकपाल की नियुक्ति आपने अभी तक होने नहीं दी। सीएजी पहले रक्षा सचिव रह चुके हैं और संघी विचारधारा के करीबी बताए जाते हैं। सीवीसी का मामला भी इधर-उधर में लटका रहा।
मीडिया को आपने ज़रखरीद गुलाम बना लिया है। जो घोटाले सामने आते हैं, उन्हें आप मानने को तैयार नहीं। बलात्कारियों तक को मोदी सरकार लंबे समय तक मंत्री बनाए रही तो भ्रष्टाचार की बात कैसे सुन सकती है। व्यापम या चावल घोटाले को वह कुछ मानती ही नहीं। प्रधानमंत्री पर लगे आरोपों पर वो जुबान नहीं खोलती। आखिर 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले में सरकारी खजाने को 1.76 लाख करोड़ रुपए का नुकसान तो सांकेतिक ही था। अगर निष्पक्ष जांच हो जाए तो मोदी की नोटबंदी से भारतीय अर्थव्यवस्था को कम से कम 1.6 लाख करोड़ रुपए का नुकसान हुआ है। रामदेव को आपकी सरकारों ने कितने हज़ार करोड़ की सब्सिडी दी है? परोक्ष या प्रत्यक्ष रूप से अडानी या अम्बानी का कितना कल्याण आपने किया है? अपने प्रचार पर 1100 करोड़ रुपए और केवल नवरात्र में मोदी जी 10 करोड़ रुपए का मिनरल पी गए! क्या यह सब घोटाला नहीं? यह तो वही बात हुई कि सारे थाने बंद कर दो और कह दो कि सारा अपराध खत्म हो गया है।
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आठ करोड़ रोजगार, निकले शाह की जुबान से! अवधी में एक शब्द है नंगा। हो सकता है भोजपुरी में भी हो। लेकिन इसका अर्थ हिंदी के निर्वस्त्र होने का नहीं है। इसका अर्थ उजड्ड होने के करीब है। कहा जाता है कि नंगों के मुंह नहीं लगना चाहिए। उसी तर्ज में अब कहना पड़ेगा कि झूठों के मुंह नहीं लगना चाहिए। भाजपा अध्यक्ष अमित शाह कहते हैं कि मोदी सरकार ने तीन साल में आठ करोड़ रोज़गार पैदा किए हैं और उसी सांस में कहते हैं कि देश में रोज़गार का सही आंकड़ा निकालने का अभी कोई तरीका नहीं है। मान्यवर, फिर कैसे आपने आठ करोड़ का आंकड़ा दे दिया। वो भी तब, जब केंद्रीय श्रम मंत्रालय से जुड़ा लेबर ब्यूरो आठ प्रमुख उद्योगों में लगातार रोज़गार घटने के आंकड़े दे रहा है और आरएसएस से जुड़ा भारतीय मजदूर संघ अकेली नोटबंदी से दो करोड़ रोज़गार खत्म होने की बात कहता रहा है। कमाल तो यह है कि प्रेस काफ्रेंस में किसी चैनल या अखबार के पत्रकार ने शाह की इस कलाबाज़ी पर सवाल तक नहीं उठाया।
मुंबई के वरिष्ठ पत्रकार और अर्थकाम डाट काम के संस्थापक अनिल सिंह
हर धर्म मे कई सारी ऐसी बाते है जो चमत्कार से संबधीत है. जैसे ईसा ने पाणी को वाइन बदल दिया, या फिर गँब्रीएल नाम का दुत अल्लाह के संदेश लेकर जमीन पर उतरा ( मै गलत हु तो इस्लाम के अनुयायी मुझे माफ करदे ) या फिर भगवान कृष्ण की कई सारी लिलाये. मै जानता नही पर कहते है भगवान बुद्ध ने भी चमत्कार किये थे.
बुद्धी कि कसौटी पर धर्म को तोला जाना चाहीये? या आस्था से धर्म मे बताये मार्ग पर चलना चाहीये? इस सवाल का जवाब बहस को जन्म देता है. इसी कारण पुरी दुनीया दो खेमो मे बट गयी है. धर्म वादी लोग और विग्यान वादी लोग. पर ईस विवाद का तोड हर देश के संवीधान ने दिया है. राष्ट्र विग्यानवाद पर चलाया जायेगा और जनता अपने धर्म और आस्था का पालन अपने अपने घरोमे अपने तरीके से कर सकती है.
अल्बर्ट आइन्स्टाईन ने कहा था ईक्कीसवी सदी मे बौद्ध धर्म विश्व को शांती का ग्यान देगा.
इस्लाम, ख्रिश्चन और हिंदु हर धर्म के मानने वाले शायद अपने धर्म के बारे मे ऐसा ही सोचते है. हर कोई अपने धर्म की
सर्वाधीक प्रशंसा हो यही सोचता है. और मेरा ही धर्म सर्वोत्तम है ऐसा मानता है.
चलो हर किसी की आस्था का सम्मान रखते हुवे हर धर्म का ग्यान जिवन के बुरे दौर मे उस व्यक्ती को वो आत्मीक शांती प्रदान करने की क्षमता रखता है. और हर धर्म ग्यान विश्व गुरु बनके लायक है.
मजहब के नाम पर बहुत पाखंड है इसको छोड़ना चहिये
पाखंड मजहब के नाम पर नही है, अंधविश्वास पाखंडीयो को कारोबार करने का मौका देता है. पर कुछ पाखंडीयो के कारण धर्म की आलोचना करना गलत है.
ये तो कुछ ऐसा होगा कि कुछ पुरुष बलात्कारी है तो सारी पुरुष जाती को बलात्कारी नही कहा जा सकता है.
और विग्यान का भी गलत इस्तमाल करते है ना लोग. ऊदाहरण के तौर पर Hacking, Tampering, हमारे किम जोंग साहाब हथीयारो का ऐसा दिखावा कर रहे है मानो दुनीया तबाह करनी है.
बीजेपी या संघ से थोड़ी हमदर्दी रखने वालो को कुछ घटनाक्रम की गंभीरता को समझना चाहिए. इस लेख के अलावा,
1. राजस्थान के हाई कोर्ट के जस्टिस शर्मा का मोर-मोरनी का बयान तो आपने सुना. ठहाके भी लगा लिए होंगे. उन्होने 140 पेज मे ऐसी बीसियो बकवासो को वैज्ञानिक तथ्य बताया.
सोचो, उनके पास ये विज्ञान के नाम पे ग़लत जानकारियाँ कहाँ से आई, जो वो अब तक सच मानते आ रहे हैं.
2. इस सरकार के आने के बाद, जो पहली भारतीय विज्ञान कांग्रेस, मुंबई मे 2015 मे हुई. उसमे 6 सेशन मे से 1 सेशन, पुरातन विज्ञान का भी था, जिसमे 7 हज़ार साल पहले, एक ग्रह से दूसरे ग्रह के बीच आवागमन करने वाले 20 इंजिनो के विमान. गणेश जी के हवाले से एक मनुष्य के दढ पे हाथी के सिर की सफल सर्जरी जैसी मान्यताओ को वैज्ञानिक उपलब्धियो के तौर पे दिखाया. जो लोग विज्ञान जगत से जुड़े हुए हैं, वो जानते है कि ऐसे कार्यक्रमो मे डॉक्यूमेंटेड उपलब्धियों पे ही चर्चा होती है.
3. राजस्थान के शिक्षा मंत्री, वासुदेव देवनानी जो खुद शैक्षणिक दृष्टि से विज्ञान के छात्र और अभियंता रहे है, कहते है कि गाय एकमात्र प्राणी है, जो ओक्सीजन लेता है भी और देता भी है. और भी कई बकवासे उन्होने करी. और यही बात आज तक पे श्वेता सिंह और जी न्यूज पे सुधीर चौधरी ने करी. गौ मूत्र पे चार अमेरिकी पेटेंट का झूठ भी बताया गया. जबकि पब्लिक फोरम या इंटरनेट पे उपलब्ध जानकारी पे कोई पेटेंट मिलता ही नही है.
4. BAMS के पाठ्यक्रम मे नये बनाए गये आयुष मंत्रालय से स्वीकृत पाठ्य पुस्तको मे चरक के हवाले से बताया गया है कि गर्भ धारण के 3 महीने बाद, बच्चे का लिंग निर्धारित होता है, जिसे पुसावन प्रक्रिया कहते हैं, और इस दौरान आयुर्वेदिक औषधियों से इसे निर्धारित किया जा सकता है. जबकि ये साबित हो चुका है कि कन्सेप्शन के क्षण ही बच्चे का लिंग निर्धारित हो जाता है.
ऐसी अनेको बाते हैं, जो ग़लत होने के बाद भी, बड़े मंचो और पढ़े लिखे लोगो तक, इस तरह पहुँच रही है, कि लोग उसे सही मान रहे हैं. इससे पता लगता है कि देश का बौद्धिक स्तर लगातार गिर रहा है.
विज्ञान को लेके ये स्थिति है तो इतिहास के साथ, तो जबरदस्त छेड़छाड़ होगी ही. व्टेसेप यूनिवर्सिटी, कितनी ही झूठी बाते, इतिहास के हवाले से फैला रही है, जिसे लोग सच मान रहे हैं. और ये सरकार, उनको आधिकारिक पाठ्यक्रम मे डालने के अवसर ढूँढ रही है
झूठ की बुनियाद पे कोई तरक्की नही होगी, सिर्फ़ विनाश होगा. इस विषय पे आप गंभीरता से सोचिए.
जस्टीस शर्मा ने मोर और मोरनी को लेकर बेसलेस बयान दिया. डिस्कव्हरी, national geographic channel देखने वालो के युग मे जस्टीस शर्मा का कौन समर्थन करेगा? देश का बौद्धीक स्तर गिर रहा है ये कहना जस्टीस शर्मा को छोड कर जनता की आलोचना करने जैसा है.
आप जम कर आलोचना करो मोदी की, भाजप की, संघ कि. जनता या देश पर क्युं इल्जाम लगा रहे हो. आप लिख रहे हो के ‘ झुठ कि बुनीयाद पर कोइ तरक्की नही होती सिर्फ विनाश होगा ‘ ये विनाश शब्द का प्रयोग यही साबीत करता है कि आलोचना करते वक्त आप भी भावनाओ मे बह रहे हो. यही वो विचार धारा है जिसका मै बार बार खंडन कर रहा हु. विनाश होने तक आपकी बुद्धी सोच रही है.
मेरा पिछला पूरा कमेंट पढ़िए, उसमे सिर्फ मोर मोरनी की ही बात नही है।
कितनी झूठी बाते, विज्ञान के नाम पे लोग सच मान रहे है, वैज्ञानिक दृष्टिकोण का ये पतन, एक विशेष सोच के लोगो द्वारा किया जा रहा है। मैंने उस ओर ध्यान दिलाया।
झाकिर जी,
मै वही बात कर रहा हु. अगर भाजप और संघी लोग विग्यान के नाम पर झुठ फैला रहे है तो भारत की जनता उन्हे वोट नही देंगी. ईसमे ऊनका ही नुकसान है. झुठ से सिर्फ अफवाहे बनती है. और अफवाहो से पेट नही भरता है.
और इस झुठ का नतीजा एक ही हो सकता है भाजप चुनाव हार जायेगा. ऐसे झुठ से कोई विनाश होने वाला है या बहोत बडी अशांती फैलने वाली है मै इस विचार धारा का खंडन कर रहा हु.
और पिछले कई दिनोसे मै इस मंच पर यही बात कह रहा हु बुद्धीजिवीयो को कम से कम जनता पर विश्वास करना होगा.पर आप है की जनता को भटकाया जारहा है. जनता भी भटक रही है ऐसी बाते कर रहे हो.
क्या है जब भुख लगती है तो खान देखने से वो मिटती नही है, खाना खानेसे ही वो मिटती है. इस मामले मे कुत्ते बिल्लीयोको भी भटकाया नही जासकता है, तो इन्सान तो बडी दुरकी बात है.
जनता मे झुठ फैलाने वालो का विनाश होगा ना की जनता और देश का.
प्रसाद जी, जनता तथ्यो की पड़ताल नही कर रही, वो धारणा को ही सत्य मानती है. अगर पतनशील होने से सही राह पकड़ ली होती, तो आज पाकिस्तान, आतंकवाद, घरेलू हिंसा और पिछड़ेपन की जड़ मे देश मे इस्लामी जड़ता का कारण ढूँढ उसे दुरुस्त कर लेता.
मैं कहाँ जनता को भटका रहा हूँ, जो भटका रहे हैं, उन्ही के उदाहरण तथ्यो के साथ रख रहा हूँ. आप हो सकता है, संघ या बीजेपी के करीबी हो, बावजूद उसके वैज्ञानिक दृष्टिकोण को नुकसान पहुँचाने वाली सोच के विरुद्ध तो स्वर मुखर ही करना चाहिए.
ये लेख विश्वगुरु के उपर था. भावुकता को तार्किकता पे तरजीह देने से धारणा ही तथ्य का रूप ले लेती है. उत्थान, तथ्य परक ज्ञान और समझ से जनमता है. ज्ञान से ही अंधकार दूर होता है.
झूठ के खिलाफ, तब वोट देगी, जब पता होगा कि ये झूठ है.
जस्टिस शर्मा या देवनानी साहब या हमारे न्यूज चैनलो ने जो बताया, उन्हे वो पता ही नही है कि ग़लत है. जब पढ़ा-लिखा व्यक्ति भी अत्यधिक प्रचार के जमाने मे विज्ञान से जुड़ी बातो मे भ्रामक बन जाता है, तो समाज के बौद्धिक स्तर का अंदाज़ा लगाए.
आप जो कह रहे हैं, वो तब सही है, जब समाज का IQ स्तर बहुत ज़्यादा हो. आर एस एस झूठ नही फैला रहा, उसे लगता है, यही सत्य है. इसका कारण यह है कि हम भावुकता से भरे हैं. जब भी कोई सूचना हमारे सामने आती है, और वो हमे गर्व से भरती है, तो हम उसे सही मान लेते हैं. जो हमारे पूर्वाग्रह से मेल ख़ाता है, वो सूचना हमे मन-भावक लगती है, और हम उसे सत्य मान लेते हैं.
ये हमारे समाज मे घटती वैज्ञानिक दृष्टिकोण की ओर इशारा कर रहा है. ऐसे मे मुझे पतन शब्द का प्रयोग करना चाहिए था, विनाश की जगह. लेकिन जो भी परिवर्तन है, उसे सकारात्मक तो नही ही कहा जा सकता.
झाकिरजी मै संघ और भाजपा का करीबी नही हु. शायद जोशी ये सरनेम होने के कारण आप ऐसा सोच रहे है.
मै आपके विचारो कि कद्र करता हु. आपके कई सारे कमेन्टस मैने पढे है. आप जनता को भटका रहे है ऐसा नही कहा है मैने. जनता किसी भी राजनिती के तहत भटकायी जा रही है ईस आरोप का मैने खंडन किया है.
१९४७ को हमने लोकतंत्र अपनाया. इसका यही मतलब है कि हम जनता को चयन करने का आधीकार देते है.जिसके लिये बहोत बडे IQ की कोई जरुरत नही होती है. जनता अपना निर्णय लेने मे सक्षम है या नही है पर फिर भी ऊसे ही ये तै करने दो. भले ही वो तथ्य कि जाच करे या नही, क्युंकी ये आत्म निर्भर होने की प्रक्रीया है. जनता गलत फैसले लेती है तो लेने दो क्युंकी यही फैसले जनता को सिख देंगे कि चयन करते वक्त उसे किसे अहमीयत देनी है. अगर जनता कि बौद्धीक अकार्यक्षमता कि तरफ देखा जाता तो ऊसी वक्त डाँ आबेडकर ये कहते कि मै किसी ग्यानी विग्यानवादी को जनता का IQ लेव्हल बढने तक तानाशाह बनाओ और जनता के ग्यानी बनने के बाद लोकतंत्र का स्विकार करो.
आप पाकिस्तान या इस्लामी देशो कि बात क्युं करते हो वहा लोकतंत्र है ही नही. वहा की जनता सत्ताकारण मे आत्मनिर्भर बन ही नही पायी है.
यह लेख विश्वगुरु पर था तो मैने मेरी पहेली कमेंट मे ही कहाथा धर्म , ईश्वर की व्याख्या विग्यान कि किसीभी तार्किक कसौटी पर खरी नही उतरती है.तो हर देश के सामने संविधान बनाते वक्त यही चुनौती थी कि विग्यानवाद और धर्मवाद दोनो को साथ लेकर चलना है.
और धर्म हिंसा का कारण नही होता है हर बार. प्रथम और द्वितीय विश्वयुद्ध दुनाया के तमाम वैग्यानीक दृष्टीसे विकसीत देशोमे हुवा था जिसमे तिन करोड से जादा लोग मारे गये.
मैने लोकतंत्र का विरोध किया ही नही. धर्म और हिंसा एक अलग विषय है. धर्म, अपनी हिंसा से हिंसा की स्थिति तक नही पहुँचता है, तो भी इसके दूसरे सामाजिक प्रभावों की समीक्षा की जा सकती है.
ये मानते हुए भी कि लोकतंत्र की ये बुनियादी सीमा होने के बाद भी कि इसमे गुणवत्ता पे संख्याबल का बोलबाला होता है, मैं लोकतंत्र का पक्षधर हूँ. ये हमारी ज़िम्मेदारी बनती है कि हम, समाज मे होने वाले नकारात्मक परिवर्तन को देखने के बाद, विशेषकर अगर वो संस्थागत हो तो उसपे ध्यान आकर्षित करे.
इस लेख, और उसी से संबंधित टिप्पणी मे मैने संस्थागत रूप से नीचे जा रहे, वैज्ञानिक दृष्टिकोण की ओर इशारा किया. जबकि इस ओर ध्यान देंगे तो जाहिर होगा कि ये स्वत नही हो रहा, बल्कि इसको फैलाने वालो को संरक्षण मिल रहा है.
इसका नुकसान, हमे समाज के हर क्षेत्र मे मिलेगा, क्यूंकी वैज्ञानिक दृष्टिकोण सिर्फ़ विज्ञान की शिक्षा मे ही सहायक् नही है. समाज के हर क्षेत्र मे सुधार या समस्याओ के समाधान की इसकी आवश्यकता है.
जनता को चुनने से रोकने का आग्रह मैं नही कर रहा, इस परिवर्तन और इसके प्रभावों को समाज तक पहुँचाने की उन लोगो से अपील कर रहा हूँ, जो इसे समझ पा रहे.
विश्व गुरु, बिना वैज्ञानिक दृष्टिकोण के बना ही नही जा सकता.
विज्ञान के नाम पे ग़लत जानकारियाँ सिर्फ़ धर्म के नाम पे नही फैलाई जा रही है. इस झूठ को संस्कृति, गौरवशाली इतिहास वग़ैरह नाम से भी समाज मे डाला जा रहा है. और इन शब्दो मे वो सम्मोहन है कि बहुत उँचे पदो तक बैठे लोग भी कई बार अपनी तार्किकता को गँवा बैठते है. अगर विषय की गंभीरता को देखेंगे तो ये धीमा जहर है, जिसके नकारात्मक परिणाम, धीरे धीरे, और समाज के हर क्षेत्र मे आते हैं.
मैने लोकतंत्र कि बात इस लिये कि आपने जनता कि IQ की बात की.
विग्यान से जुडी जानकारी बदलने की बात पर सही गलत तै करने का आधीकार मै जनता को ही देना चाहुंगा. क्युंकि जनता खुद के फैसले खुद लेना सिखे ना कि आपकी या मेरी या रविश कुमार या सुधीर चौधरी या मोदी या केजरीवाल कि ऊंगली पकड कर जनता चले.
लोकतंत्र का विस्तार क्या यह है कि जनता का बहुमत निर्धारित करे कि गाय ओक्सीजन छोड़ती है या नही, मोरनी कैसे गर्भवती होती है, या बच्चे का लिंग, गर्भधारण के हफ़्तो बार निर्धारित होता है, या गाय पर हाथ फेरने से मधुमेह की बीमारी दूर होती है, या अमेरिका ने गौ मूत्र पे चार पेटेंट ले लिए है.
फिर तो विश्व गुरु के लिए भी ऑन-लाइन वोटिंग करा ली जाए, 21 जून को कि भारत विश्व-गुरु है या नही. इसी वजह से लेखक ने लिखा कि मोदी जी के कार्यकाल मे ही भारत विश्व-गुरु बन जाएगा.
और संख्या बल को इसका पैमाना माने तो इस नवीन या पुरातन विज्ञान मे आस्था रखने वालो की संख्या बढ़ती जा रही है. मैने जो अपने जीवन मे जो विज्ञान और वैज्ञानिक दृष्टिकोण समझा, उससे ये मेल नही खाता. इस वजह से ये सब लिखा.
वैसे अब जनता को ये निर्णय लेना चाहिए कि जो किताबे विज्ञान के नाम पे IITs मे पढ़ाई जा रही है, उन्हे बदल कर, जिन किताबो से जस्टिस शर्मा, देवनानी जी, भागवत साहब विज्ञान की अनोखी जानकारियाँ जुटा के लाए हैं, उन्हे पढ़ाया जाना चाहिए.
इतिहास तो आम जनभावना के अनुरूप संशोधित किया जा ही रहा है. सत्य की कसौटी भी अब बहुमत हो गयी.
लोकतंत्र मे जनता को सिर्फ जन प्रतिनीधी चुनने का आधीकार दिया गया है. मैने कहा था झुठ फैलाने वाले प्रतिनीधीयो का जनता चयन नही करेगी ये चुनाव जनता पर छोड दो.आप तो IIT के Syllabus तक पोहोच गये.
IIT के Syllabus को कोइ नही बदल सकता, ये बाते भारत के प्रधानमंत्री के आधिकार क्षेत्र मे नही आती है. आप भी ये झुठ यहा फैला रहे हो.
इसी लिये मै कहता हु एक तरफ है संघ के लोग जो मुर्खता भरे हिंदुत्व कि बाते करते है. और दुसरी तरफ है आप जैसे लोग जो
संघी बयान IIT के पाठ्यक्रम मे बदलाव ला रहे है ऐसा झुठ फैलाते हो.
सच्चाइ यही है जनता संघी और आप जैसे लोगो मे फसी है.
आप लोग लगे रहो..
मैने बाते अतिशयोक्ति मे लिखी है, लेकिन एकदम काल्पनिक नही. ये सरकार IIT नही, लेकिन राष्ट्रीय विज्ञान कांग्रेस मे तो अपना एजेंडा लेके आ ही गई. ये मंच भी विज्ञान के सबसे बड़े मंचो मे गिना जाता है. ये 102 वी विज्ञान कांग्रेस थी, अब तक एक भी विज्ञान कांग्रेस मे ऐसा नही हुआ. इसी सरकार मे क्यूँ हुआ.
इसी प्रकार, देश के पत्रकारिता के सबसे बड़े सरकारी कॉलेज आईआईएमसी मे कुछ दिनों पहले, वहाँ के छात्रों के विरोध के बावजूद हवन करवाया गया.
आप आम जनता की बात करते हैं, देश के सबसे प्रतिष्ठित पदों पे बैठे लोग, जिनसे हम समझदारी की आशा रखते हैं, वो तक इस झूठी सूचनाए, जो सत्य मान कर, आधिकारिक तौर पर सार्वजनिक रूप से बोल रहे हैं.
जनता को तो जागरूक करना पड़ेगा, उन लोगो द्वारा, जो इसे जानते हैं. हम अंतिम निर्णय जनता पर ही छोड़ेंगे, लेकिन उस तक सही तथ्यो को तो पहुँचना पड़ेगा.
जिन लोगो पर समाज की नीतियाँ बनाने की ज़िम्मेदारी है, उन पर ऐसी संस्थाओ से जुड़े लोगो का कब्जा होता जा रहा है, जो रेशनल थिंकिंग से दूर है. मैं आपकी बात से सहमत हूँ, कि लोकतंत्र बरकरार रहना चाहिए, जनता की इच्छा के ही जन-प्रतिनिधि सरकार मे शामिल हो. लेकिन जनता को इस पक्ष की गंभीरता को हमे समझाना होगा.
मोदी और संघ कि जितनी आलोचना करनी है वो करो ये आपका लोकतांत्रिक आधीकार है. पर आलोचको को ईस बात को भी समझना चाहीये की जनता का अपना भी लोकतांत्रीक आधीकार है, जनता की खुद की अपनी सोच है. जनता का IQ कम है, जनता तथ्यो कि जाच नही करती है, जनता सही गलत नही सोच सकती है, ऐसी बाते जनता के बारे मे करना आलोचको के काम का हिस्सा नही है.
मोदी को छोडकर कल को जनता ने ओवेसी या झाकिर हुसैन को भी प्रधान मंत्री पद पे बिठा दिया तब भी मै ऊनका पक्ष लुंगा क्युं की वो जनता का चयन है. हम अपनी निजी जिंदगी मे जिसका चयन करते है और जनता ने ऊसे ठुकराया हो तब भी हमे जनता के चयन को स्विकार करना ही होगा.
यहा कुछ भी शाश्वत नही होता है. दस साल भाजप, फिर दस साल काँग्रस, फिर दस साल भाजप, फिर दस साल काँग्रेस ये ऐसी सरकारे आती जाती रहेगी. विकास, ऊत्थान, कि चोटी पर भी हम होगे, और पतन कि खाई मे भी गिरेंगे. कभी विकास तो कभी पतन फिर विकास फिर पतन जैसे दिन होता है और फिर रात होती है ये भी चलता रहता है. कभी दंगे होगे तो कभी शांती भी होगी, युद्ध और शांती ये भी धुप छाव की तरह है.
जिवन के हर पडाव मे हमे शांती और संयम से काम लेना ही होगा. पर यही बाते भारत के बुद्धीजिवीयो को समझती ही नही है. भारत मे अशांती बढ रही है ये कह के कई लोग अपने पुरस्कार लौटाते है. भारत का भविष्य अंधेरे मे है, भारत का पतन होने जा रहा है, विनाश होरहा है ऐसी बयान बाजी करते रहते है.
ऐसे ग्यानी बुद्धीजिवीयोसे लाख गुना अच्छा है एक देहती गवार अनपढ इन्सान जो कम से कम जिवन के सत्य को भली भाती जानता है. यहा कुछ भी शाश्वत नही है. ना विकास ना पतन ना भाजप ना काँग्रेस ना धुप ना छाव ना मनमोहन सरकार और नाही मोदी सरकार.
मेरे पास कहने के लिये और कुछ नही बचा है. शायद मै इसके बाद मेरी कुछ कमेंट भी इस मंच पर नही करुंगा. बहस जिवन के अंत तक चलती रहती है.
इतनी चर्चा के बाद मुझे ऐसा लग रहा है, मैं अपना नज़रिया आप तक नही पहुँचा पाया, क्यूंकी आपके कमेंट उससे संबंधित नही लग रहे, जिसकी मैं बात कर रहा हूँ.
मैं लोकतंत्र के खिलाफ बोल नही रहा, और आप इस चर्चा को लोकतंत्र के पक्ष-विपक्ष की समझ रहे हैं.
हम सरकार की नीतियों पर चर्चा ही क्यूँ करे? जनता समझदार है, उसको समझाने की कोशिश करने वाले, लोकतंत्र का अपमान नही कर रहे? जनता का अपमान नही कर रहे? कोई किसी को ग्यान ना बाँटे, कोई स्कूल ना जाए. क्यूंकी ज्ञान प्राप्ति के लिए स्कूल, कॉलेजो मे जाने का अर्थ ही यही है कि हम जनता को अज्ञानी मान रहे हैं. जब देश की जनता का बौद्धिक विकास उस स्तर पर पहुँच गया है, तो फिर शिक्षण संस्थानो की आवश्यकता ही क्या?
इसलिए शिक्षा के लिए, जनता को जागरूक करने वाले लोग, जनता के विवेक पर भरोसा नही कर रहे. अब इस देश मे लोकतंत्र और जनता के सम्मान के लिए, कोई किसी को कुछ नही समझाए.
अब उपदेश बंद, कॉलेज बंद, नेताओ की रैलियाँ बंद. सब ज्ञानी है, इसलिए कोई कहीं भी ज्ञान बाँट कर देश का माहौल ना खराब करे.
आप हमेशा अंतीम छोर पर चले जाते हो झाकिर जी.
जनता को जागरुक करने का काम करोना आप, ये जरुर होना चाहीये. ऐसे नेक काम को मै भला क्युं रोकुंगा.
मै सिर्फ ईतना ही कहना चाहता हु कि आपकी जन जागृती करने के बावजुद भी अगर जनता ने अगली बार भी फिरसे मोदी को ही प्रधानमंत्री पद पे बिठा दिया तो ये आप लोगो के संयम कि परिक्षा होगी.