रवीश जी ने गौ रक्षा गुंडागर्दी पर लेख लिखा वही किन्ही शुजूको जी का ये कमेंट था ——
Shuzuka • 14 days ago गौरक्षा के उपाय :-१. प्रतिदिन एक रोटी गाय के लिए जरूर निकालें | हो सके तो ज्यादा भी | २. गाय को सूखा आटा या उसका चोकर, गुड़ और हरी पत्तेदार कच्ची सब्ज़ियां (पालक , धनिया आदि ) बहुत पसंद होती हैं | अपनी श्रद्धानुसार आप ये सब गाय को खिला सकते हैं |३. कभी भी गाय को बासी खाना न दें |४. यदि आप गाय को पालते हैं तो उसके दूध कम देने पर अथवा बूढी हो जाने पर भी उसकी सेवा करें | उसे न त्यागें | और न ही उसे कूड़ाघरों में प्लास्टिक और कूड़ा खाने के लिए छोड़े | आखिर गाय हमारी माता है |५. गौधारक शपथ लें कि कभी भी अपनी गाय को कसाई के हाथों नहीं बेचेंगे | और ना ही, गाय के मरने पर उसको चमड़ा उतरने वालों को बेचेंगे | बल्कि उसका यथाविधि अंतिम संस्कार करेंगे |६. सरकार को चाहिए कि वो गाय की ही तरह भैंस, बैल और दूसरे मवेशियों के मांस पर भी प्रतिबन्ध लगाए | साथ ही गाय, भैंस, बैल और दूसरे मवेशियों के मांस के निर्यात पर रोक लगाए |७. सरकार को उन गौधारको की आर्थिक मदद करनी चाहिए , जिनकी गाय बूढी हो गयी हैं या दूध नहीं देती | ताकि वो उसकी सेवा कर सकें |८. बूढ़ी गायों की सेवा न करना अपराध की श्रेणी में गिना जाए और उचित दंड दिया जाए |९. गाय – भैंसों को Oxytoxin के इंजेक्शन न दिए जाएँ | सरकार को Oxytoxin के इंजेक्शन की खुली बिक्री पर रोक लगा देनी चाहिए | सिर्फ डॉक्टर के prescription पर बीमार lactating women को ही बिकना चाहिए |१०. गाय – भैंस के मांस का प्रयोग , दवाओं आदि में प्रयोग होने वाले gelatin को बनाने में ना किया जाए | सरकार को ऐसी कंपनियों को जेलाटीन की जगह Hypromellose का इस्तेमाल करना सुनिश्चित करना चाहिए |११. किसी भी उत्पाद में जानवरों की चर्बी के इस्तेमाल पर रोक लगनी चाहिए | इसका वनस्पति विकल्प इस्तेमाल करना चाहिए | १२. सरकार को गायों – मवेशियों की संख्या की आधार या जीपीएस ट्रैकिंग करनी चाहिए | ताकि वो सड़को पर आवारा न घूमे और न ही बूचड़खानों में काटी जाएँ |१३. जिन्होंने गौशाला की ज़मीने हड़पी हैं , सरकार को उनसे ज़मीने छीन लेनी चाहिए | १४. जो गौमांस के कानून का उल्लंघन करें , उन पर कानूनी कार्यवाही की जाए | ताकि गौरक्षा दल को बेवज़ह कानून हाथ में ना लेना पड़े | क्या सरकार के बस की नहीं है गौरक्षा कानून को ठीक से लागू करवाना, जो बेचारे गौरक्षको को कानून तोड़कर – बिना कोई जाँच पड़ताल किये – किसी की हड्डियां तोड़नी पड़ती है ?१५. डेरी वालो को गाय – भैंस के दूध में मिलावट बिलकुल बंद कर देनी चाहिए | ताकि शाकाहारी लोग तंदरुस्त हो सके | और लोगो का मांसाहार के प्रति प्रोत्साहन कम हो |१६. सरकार को मवेशियों के लिए अच्छे पशु अस्पतालों की संख्या बढ़ानी चाहिए | और सुविधाओं में (डॉक्टर , दवाएं आदि ) भी सुधार होना चाहिए | ”——
ये कमेंट पढ़कर में सोच में पढ़ गया की अब इन लम्बी चौड़ी मांगो का खर्च कौन उठाएगा डी एन झा लिखते हे ”और अगर आप दूध न देने वाली और बीमार होती जा रहीं गायों को बचाते रहेंगे तो मेरे हिसाब से ये अनइकोनॉमिक (आर्थिक नुकसान का) ख़्याल है.मैं खुद जानवरों के अधिकारों का समर्थक हूँ लेकिन सड़क पर घूमती प्लास्टिक खाने वाली, गंदगी खाने वाली और घरों से निकाल दी गईं गायों को बचा के रखने में कहाँ की समझदारी है. ” खेर फिर भी मान ले की जनता पर टेक्स लगाकर हिंदूवादी सरकार गायो की फुल देखभाल करने की कोशिश करेगी आज ही खबर भी आई की सरकार गायो के आधार कार्ड ट्रेकिंग आदि की वयवस्था करने वाली हे यानि आपके हमारे खून पसीने की कमाई के टेक्स से गायो की देखभाल की जायेगी चलिए धार्मिक भावनाव की खातिर ये भी सही , मगर भारत में जो जमीनी हालात हे उनमे ये तो तय हे की गायो के लिए चाहे जितने फण्ड की व्यवस्था कर भी ली जाए तो भी गायो का भला नहीं होगा क्यों की बीच में ही वो पैसा ठिकाने लग ही जाना हे . जिस देश में इंसानो को सुविधा नहीं हे कम से कम तीस से पचास करोड़ लोग जिस देश में जानवर जैसी या जानवर से भी बदतर हालत में रहते हे वहा कोई कैसे सोच सकता हे की गायो के लिए इतनी सुविधाओं का जुगाड़ कभी भी हो सकता हे ऐसा कभी नहीं हो पायेगा – वही में ये भी सोचने लगा की जैसे ये गायो के लिए कई सुविधाएं मांग रही हे ”बूढ़ी गायों की सेवा न करना अपराध की श्रेणी में गिना जाए और उचित दंड दिया जाए ” जिस देश में बूढ़े माँ बाप की सेवा ही एक बड़ा मसला बन कर खड़ी हे वहा बूढी गायो की सेवा का सपना ——- ? और जैसे ये गायो का महत्व उससे जुडी अपनी धार्मिक भावनाये बता रही हे वैसे ही मिलता जुलता केस हमारे यहाँ मदरसों का भी तो नहीं हे ———— ?
मुझे अपनी मोटी अक्ल से दोनों केस कुछ कुछ सेम से लगे हे गाय हो या मदरसों के छात्र दोनों का ही कुछ होता बनता मुझे नहीं दिख रहा हे हां दोनों ही मामलो में कुछ सयाने लोग खूब पैसा बना रहे हे इस विषय में कुछ बोलते ही धर्मविरोधी करार दिए जाने का खतरा हे पाठको जरा सोचिये गाय का भला -भला कैसे हो सकता हे सवाल ही नहीं भारत जैसे देश में जहा इतना बुरा हाल हे जगह संसाधनों की इतनी कमी हे वहा गौ सेवा के लिए भला कौन आएगा कोई अपनी जेब नहीं ढीली करने वाला हे जैसे बहुत से लोग मदरसों का गुणगान करते हे मगर सवाल नहीं हे की अपने बच्चो को मदरसे भेजे — ? वैसे ही गौ माता के गीत हर कोई गाता मिल सकता हे मगर गायो की दुर्गत हम घर से बाहर निकलते ही देख सकते हे अब दूध ना देने वाली गायो पर होने वाला खर्च तो सीधे कोई उठाएगा नहीं सवाल ही नहीं उठता हे पढ़े ये लेख जो एक शुद्ध संघी की साइट से ही हे पढ़े http://desicnn.com/blog/ban-on -beef-the-other-side-of-coin तो ये बात हम नहीं कह रहे हे एक संघी की साइट पर ही हे की गौसेवा असम्भव सा काम हे यही नहीं फ़र्ज़ कीजिये की गौ सेवा के लिए सरकार या पैसे वाले लोग पैसा दे भी देंगे तो भी गौ सेवा नहीं होने वाली हे आप जिस किसी को भी पैसा देंगे उनकी अपनी जायज़ नाज़ायज़ जरूरते जरूर होंगी वो उन पेसो से अपनी वो जरूरते ही पूरी करेंगे गौ सेवा तब भी नहीं होने वाली हे तो ये बिलकुल तय हे की गौ रक्षा गौ सेवा के नाम पर केवल लूट और गुंडागर्दी करप्शन राजनीति ही हो सकती हे सही मायनो में गौ सेवा कभी नहीं होने वाली क्योकि हर कोई गौ माता का गुणगान करके उस पर होने वाला खर्च दूसरे पर डालने वाला हे . जिस देश में इंसानो के लिए आने वाला पैसा बीच में कहा गायब हो जाता हे जरूरतमंद समझ भी नहीं पाता राजीव गाँधी ने इसे 1 रूपये में से 85 पैसे बताया था बेचारी गे के मामले में ये और भी अधिक ही जाना हे कोई शक .
इसी तरह बात करे मदरसों की तो सेम गायो के केस की तरह कई लोग मदरसों का नाम लेते ही हकीकत से दूर रहकर मज़हबी भावनाव से बहकर बात करने लगते हे सच तो ये हे की मदरसों के छात्रों का कोई भविष्य नहीं हे जिस देश ( या यु कहे पूरा उपमहाद्वीप ) में सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चो का भविष्य अंधकार में दीखता हे वहा भला मदरसों के छात्रों का क्या कोई भविष्य हो सकता हे—————- ? जैसे गायो का तो भला नहीं होता हां गौ सेवा के नाम कितने ही लोग फंड और जमीन हड़प रहे हे वैसे ही मदरसों के नाम पर देश विदेश से चंदा लिया जाता हे कोई अरब देशो से करोड़ो का चंदा लेता हे तो कोई ठीक इसी समय रसीद लेकर बाहर दरवाजे की घंटी बजा रहा हे एक मदरसा संचालक तो शायद करोड़पति भी नहीं अरबपति बताये जाते हे ( आरोप ) इनके अपने बच्चे शायद दार्जिलिंग में पढ़ते हे और मेने नोट किया की इनका एक दाए बाए का साथी एक लेखक मदरसों का महत्व बतलाता दीखता हे समझे —— ? ये भी तय हे की ये अकेले नहीं होंगे बहुत लोग होंगे ऐसे . और कोई एक दो दस बड़े मदरसे हो भी तो जहा इस्लाम से जुड़ा अध्ययन होता हे तो वो तो एक बात हे मगर हज़ारो मदरसे ————– ? आखिर क्या भविष्य हे इनमे पढ़े बच्चो का ——— ?
दो उदहारण देता हु मेरा एक एजुकेटिड कज़िन मदरसों का महत्व बता रहा था की यहाँ दीनी तालीम दी जाती हे बहुत जरुरी हे मेने पूछा ये बताओ की तुम्हारे पब्लिक स्कुल में पढ़ रहे बच्चो को दीनी तालीम कहा मिलती हे जैसे तुम्हारे बच्चो को मिलती हे वैसे ही इन गरीबो के बच्चो को क्यों नहीं मिल सकती हे उसने जवाब नहीं दिया दूसरे केस में मदरसों को खासा चंदा इमदाद देना वाले मेरे बहुत पैसे वाले डॉक्टर दोस्त से मेने पूछा की चंदा दे रहा हे वो तो ठीक हे ये बता की कल को इन बच्चो को अपने क्लिनिक पर कम्पाउडर असिस्टेंट आदि नौकरी देगा उसने साफ जवाब दिया नहीं में कैसे दे सकता हु स्किल ही नहीं हे मेने इन दोनों चरित्रों को कहा की बजाय मदरसों में चंदा देने के जहा गरीबो के बच्चे पढ़ते हे तुम सीधे ही दो चार गरीब मुस्लिम बच्चो की पढाई का खर्च क्यों नहीं सर पर ले लेते हे मगर शायद दोनों ही किसी की भी जिम्मेदारी लेने की सरदर्दी के बजाय सीधे चंदा देकर पुण्य कमाना चाहते हे वो चंदा जिस पर इन दक्षिणपंथी ज़ाहिद साहब तक ने सवाल खड़े किये हुए http://khabarkikhabar.com/arch ives/1811 , तो ये सब वो प्रशन हे जिनके जवाब सभी गौ प्रेमियों और मदरसा समर्थको को सोचना चाहिए .
मुझे इतना दुःख हुआ की मेरा अपना डॉक्टर दोस्त पहले लखपति था अब जमीन के अर्बनाइजेशन से करोड़पति होने की कगार पर हे तो जी बहुत खुश , बातो ही बातो में उसके पापा ने मुझसे बता दिया की अरे साहब मेरा बेटा मदरसों को बहुत देता हे बहुत ( चेहरे पर जन्नत में सीट रिजर्व होने की गहरी ख़ुशी सुकून ) बहुत देता हे साहब कभी पैसा लकड़ी आटा तेल घी भिजवाता रहता हे सुनकर में सर पकड़ कर बैठ गया , की हम भी तो इतने साल से समाजसेवा कर रहे हे राइटिंग कर रहे हे झक मार रहे हे हम ———– ? हमें तो हमारे काम में तो उसने कभी कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई कभी हमें नहीं पूछा की हम किस हाल में हे क्या काम हे क्यों हे कैसे होगा क्या होगा कभी कोई अमाउंट हमें नहीं दिया चलो हमें छोड़ो ना कभी आप को दिया ना केजरीवाल को न कभी वाम दलों को दिया ना रिहाई मंच को दिया हम लोग क्या हवा खाकर जिन्दा रहेंगे ——– ? अब वो यु पि चुनाव के बाद सर पकडे बैठे था और भी कई मुसलमानो की तरह , इनकी चिंता सम्प०ारदायिक तनाव ही नहीं बल्कि ये भी की सपा बसपा सरकारों में पैसे वाले आदि मुसलमानो के काम हो ही जाते थे अब ये चिंतित हे वास्तव में यही तो किया पैसे वाले मुसलमानो ने की मदरसों को चंदा दिया , कई कई बार हज किये , बकरीद पर लाखो के बकरे लिए , और पैसा दिया भी तो कम्युनल और सड़ चुके दिमाग के मुस्लिम नेताओ को तो दिए मगर सेकुलर लिबरल प्रगतिशील ताकतों की इन्होने मदद नहीं की अब भाजपा की बढ़ती ताकत देख कर अब रो रहे हे भुगतो ——————- जारी
http://desicnn.com/blog/ban-on-beef-the-other-side-of-coin
http://khabarkikhabar.com/archives/1811
मदरसों की सही संख्या भी मुझेनहीं पता हे , बहुत से मुस्लिम लेखक जहा मदरसों का गुणगान करते हुए उनकी संख्या बेहद कम बताते हे ( अरबपति – -? ) मदरसा संचालक के दाए बाए दिखने वाले पत्रकार की साईट पर एक लेख में केवल चार % मुस्लिम बच्चो के मदरसों में होने की बात कही गयी हे वही वही एक संघी पत्रकार लिखते हे की सिर्फ बिजनौर के ही इलाके में पांच सौ मदरसे हे किसे सच माने ————— ? Sanjay Tiwari
22 April at 10:55 · छह राज्यों की पुलिस ने मिलकर ऑपरेशन किया और बिजनौर से पांच लोगों को गिरफ्तार कर लिया। इनमें एक इमाम है बाकी चार मदरसों में पढ़नेवाले तालिब। वे पांचों मिलकर तालिब से तालिबान होने की प्रक्रिया में थे कि पुलिसवालों ने पकड़ लिया। वो न पकड़े जाते तो दिल्ली और यूपी में इस्लामिक स्टेट का आतंक फैलाते।इस कार्रवाई के बाद यूपी पुलिस की नींद खुली है। अब वह कह रही है कि इलाके की १५०० मस्जिदों और पांच सौ मदरसों पर नजर रखेगी। पहली तो चौंकानेवाली बात यही है कि महज बिजनौर के इलाके में पांच सौ मदरसे चल रहे हैं। इतनी बड़ी तादात में चलनेवाले मदरसे क्या पढ़ाते हैं अपने यहां? कौन सी तालीम देते हैं? क्या सिर्फ कुरान की तिलावत ही कराते हैं या फिर कुछ और भी सिखाते हैं?जावेद अहमद घामड़ी कहते हैं कि दुनिया का कोई भी मदरसा हो वह चार चीज जरूर सिखाता है। इन चार बातों में जो सबसे खतरनाक है वह है राज्य के खिलाफ विद्रोह। मदरसे लोकतंत्र को कुफ्र मानते हैं और बच्चों को सिखाते हैं कि दुनिया में सिर्फ इस्लाम का शासन होना चाहिए। गैर मुस्लिम हम पर शासन नहीं कर सकते, वो तो सिर्फ हमारे महकूम (शासित) होने के लिए पैदा हुए हैं। इन मदरसों की इन्हीं तालीम का फायदा उठाकर पाकिस्तान ने मदरसों को तालिबान की फैक्ट्री बनाया था और जिहाद के लिए अफगानिस्तान भेज दिया था।योगी हों कि मोदी। अगर वो मदरसों पर उसी तरह पहरा नहीं रखते जैसे चीन रखता है तो तालिबान की फैक्ट्री यहां भी खुलेगी। आज न खुले दस साल बाद खुले, सौ साल बाद खुले लेकिन खुलेगी जरूर।Sanjay Tiwari
सिकंदर हयात जी आपसे सहमत , गाय और मदरसे के नाम पे लोग अपनी तिजोरी भर रहे है और सब से दायीय स्थिति में गाय और मदरसा के बच्चे ही है लेकिन किसी से इसको कोई मतलब नहीं है सब धर्म के नाम पर जायज है !
AAP NE SAHI MUDDA UTHAAYA HAI , AAJ KA HAR KOI MADARSA BANA RAHA HAI AUR SHAHAR SHAHAR ME HI GAU RAKSHAK PAIDA HO GAYE !
रमेश भाई और हसन खान भाई , मदरसों की दुनिया के एक बड़े खिलाडी तो हमारे ही रिश्तेदार हे इनकी वेल्थ पता नहीं , मगर बताने वाले खासी बताते हे हो ये रहा हे की इन्ही धर्माधिकारियों को लखपति करोड़पति और एक साहब तो अरबपति बताये जाते हे वैसे इन अरबपति साहब का में तो फिर भी शुक्रिया करूंगा की ना से हां की ये कम से कम भड़कने भड़काने के खेल में नहीं हे ये तो चुपचाप नोट छाप रहे हे भला हो इनका , अच्छा अब जब लोगो को इतना पैसा पीटता हुआ देखा जा ही रहा होगा , तो जैसा की दूसरे बिजनेस में होता हे की अमीरो को देख और भी दुसरो लोग सेम बिजनेस में उतर आ रहे हे इसलिए मेने कई लोगो से पूछा तो उनकी भी सेम यही कहानी हे की हर टाइम कोई ” निरीह ” हाथ में रसीद लेकर घंटी बजा रहा हे वैसे असली लानत तो इन कुछ पैसे वालो पर हे जो गरीब मुस्लिम बच्चो को पढ़ाने की सरदर्दी तो लेते नहीं हे मगर धर्म के नाम पर खूब पैसा लुटाते हे ऊपर मेने लेख में जिसका मेने जिक्र किया उसकी एकतरह से ”वहशी ” सोच में आगे लेख या कमेंट लिख कर बताऊंगा और बात करे उन वहशियों की जो गाय के लिए ( असल में अपने लिए ) पता नहीं क्या क्या ट्रीटमेंट उस देश में मांग रहे हे जहा हिमांशु कुमार लिखते हे -भारत में चालीस करोड़ मजदूर असंगठित क्षेत्र में काम करते हैं၊
यानी ईंट भट्टे पर, चाय की दूकान पर, शापिंग माल में, या बाबु साहब लोगों के बंगले या कालोनी के बाहर गार्ड बन कर खड़े हैं၊
या आपके घरों की बाई, माली और ड्राइवर၊
इनकी हालत बहुत बुरी है . ना हफ्ते की छुट्टी का नियम, ना बीमारी में कोई रियायत, ना प्रसूति अवकाश၊
हजारों मामलों में इनकी मजदूरी नियमानुसार हर सप्ताह ना मिलने के कारण इन्हें बंधुआ बन कर काम करना पड़ता है၊
हज़ारों मामलों में काम करने वाली मजदूर औरतों का शरीरिक शोषण किया जा रहा है၊
इनकी कोई सुनने वाला नहीं है၊
हांलाकि इनके रक्षण के लिये कानून बनाये गये हैं लेकिन आज़ाद भारत में आज तक किसी अधिकारी को मजदूरों के अधिकारों की रक्षा में कोताही के लिये कोई सज़ा नहीं हुई है၊
गरीब के खिलाफ अपराध को हम अपराध ही नहीं मानते၊
श्रम कार्यालय के अधिकारियों और निरीक्षकों का काम है कि वो घूम घूम कर देखें कि हर मजदूर को न्यूनतम मजदूरी, छुट्टी तथा अन्य सुविधाएँ दी जा रही हैं या नहीं ?
इस देश में लाखों मेहनत कश लोग जानवरों की तरह जीने के लिये मजबूर हैं၊
अदालतों ने स्वीकार कर लिया है कि मजदूर का मामला तो उसे पैसे देने वाले और मजदूर के बीच का है इसमें अदालत को आने की कोई ज़रूरत नहीं है၊
मजदूरों से बारह घंटे सातों दिन काम कराया जा रहा है၊
आज सबसे ज़्यादा मुसीबत में दो ही लोग हैं . एक वो जो प्रकृति की गोद में रह रहे थे और दूसरे वे जो मेहनत कर के जीते हैं၊
मज़े में और ताकतवर वो हैं जो दूसरों की मेहनत और दूसरों की प्राकृतिक सम्पदा पर कब्ज़ा कर रहे हैं और उन्हें ताकत के दम पर लूट रहे हैं၊
ज्यादतर मामलों में लूटने की यह ताकत सरकार और पुलिस दे रही है၊
ये आजदी का सपना नहीं था जनाब၊
आजादी का सपना था कि गरीब का किसान का मजदूर का ज़्यादा ख्याल रखा जायेगा၊
अपने वादा तोड़ दिया၊
जिस वर्ग के पास बड़े पैमाने पर लोगों को लूटने की ताकत है उन्ही लोगों के पास सरकार को अपने काबू में करने की ताकत भी है ! इसी सरकार के दम पर ये अपनी लूट को कानूनन सही भी सिद्ध करवा लेते हैं ၊
इस हालत को बदलना ही होगा
” Sheetal P Singh : काजोल के पति अजय देवगन तमाम संघी प्रोफ़ाइलों के heartthrob हैं। वे बालीवुड के उस क्लब से आते हैं जो मोदी जी / बीजेपी/संघ/हिंदुत्व / कश्मीर / नक्सल / जे एन यू आदि पर उनके मन की बात कहता / लिखता है। काजोल को मोदी सरकार ने प्रसार भारती बोर्ड की सदस्यता का उपहार दिया है।अजय देवगन का नाम कुख्यात “पनामा पेपर्स ” में भी है जिस पर भारत में कोई कार्रवाई नहीं हुई पर तमाम यूरोपीय देशों सहित पाकिसतान में वहाँ के सुप्रीम कोर्ट ने इस पर तगड़ा हल्ला बोला। नवाज शरीफ़ तक इसके लपेटे में आये हुए हैं। पनामा पेपर्स अवैध विदेशी खातों की एक फ़ेहरिस्त का नाम है!
ख़बर काजोल की एक “लंच पार्टी” की है जो भक्तों का ज़ायक़ा बिगाड़ देगी। काजोल और उनकी कई दोस्त जिस ख़ास डिश पर चीख रही हैं वह “बीफ” से बनी है। यह गौमांस या भैंसमांस में से एक होगा। “बीफ” दोनों के लिये प्रयुक्त होता है। काजोल ने ट्वीट कर कहा है कि यह “भैंस माँस” था।
इस ख़बर को यहाँ प्रस्तुत करने की वजह है संघी “hypocrisy”! क्या संघी भगतमंडल अजय देवगन और उनके राजनैतिक दोस्तों से इस सच के सामने आने पर विलग हो सकता है / घृणा कर सकता है जो एक मेवाती मुस्लिम पशुपालक की हत्या पर जश्न मनाता है? ताजी सूचना के मुताबिक काजोल ने फेसबुक लाइव पर से वीडियो को डिलीट कर दिया है. पूरी खबर यूं है, जो जनसत्ता डाट काम से साभार लेकर यहां प्रकाशित की जा रही है…
बॉलीवुड अभिनेत्री काजोल ने दोस्तों संग की बीफ पार्टी, सोशल मीडिया पर वायरल हुआ वीडियो
बॉलीवुड की मशहूर अभिनेत्री काजोल ने रविवार को अपने फेसबुक पेज पर एक वीडियो पोस्ट किया है जो धीरे-धीरे सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है। इस वीडियो में काजोल अपने दोस्तों के साथ लंच पार्टी में नजर आ रही हैं। काजोल ने फेसबुक लाइव कर ये वीडिये बनाया है। वीडियो में काजोल बता रही हैं कि वो और उनकी सहेलियां उनके एक दोस्त के यहां लंच पर इकट्टा हुई हैं। काजोल अपने इस वीडियो में बता रही हैं कि उनके दोस्त रेयान ने लंच में कुछ बेहद खास बनाया है। इसके बाद काजोल का कैमरा सीधे प्लेट पर रखे बाउल की तरफ जाता है। बाउल में वही खास चीज रखी गई है जो काजोल के दोस्त ने बनाया है। बॉलीवुड अभिनेत्री के दोस्त रेयान उस बाउल में कुछ रसा सा डालते हैं। रेयान को ऐसा करता देख वहां मौजूद काजोल समेत उनकी सहेलियां काफी उत्साहित नजर आ रही हैं। काजोल एक बार फिर से कैमरे को बाउल में रखी उस डिश की तरफ से हटाकर अपने चेहरे पर लाती हैं। उसके बाद काजोल अपने दोस्त को कैमरे पर बुलाती हैं और उनसे कहती हैं कि आप सबको बताइए कि आपने ये कौन सी डिश बनाई है।
काजोल के इस सवाल का जो जवाब मिला वही इस वीडियो के सोशल मीडिया पर वायरल होने का कारण बन गया है। लोग काजोल के फेसबुक वॉल पर इस वीडियो को देख अपने-अपने तरह से प्रतिक्रियाएं दे रहे हैं। दरअसल जब काजोल ने अपने दोस्त से उस डिश के बारे में पूछा तो उनके दोस्त ने बताया कि ये बीफ है। वीडियो में जब काजोल के दोस्त बीफ की उस डिश के बारे में बता रहे थे तब काजोल काफी उत्साहित भी नजर आईं। काजोल ने वीडियो खत्म करते समय कहा कि चलिए अब मुझे अपने हाथ खाने की उस बाउल में बिजी करने हैं इसलिए अब मैं ये वीडियो बंद कर रही हूं।
जहां पूरे देश में इस वक्त बीफ को लेकर ऐसा माहौल बन गया है कि जिसका नाम भी उससे जुड़ता है वो विवादों में आ ही जाता है। साल 2015 में तो बीफ खाने के शक में अखलाक नाम के एक शख्स को लोगों ने पीट-पीट कर मार डाला था।हालत ऐसी हो गई है कि बीफ खाने को लेकर कोई भी खुल कर बात करने से कतरा रहा है। ऐसे में काजोल के इस वीडियो ने सोशल मीडिया हलचल बढ़ा दिया है। लोग इस वीडियो को शेयर कर रहे हैं। कुछ ऐसे यूजर्स भी हैं जो वीडियो को शेयर करते हुए लिख रहे हैं- राष्ट्रवादी हीरो अजय देवगन जी की बीवी काजोल राष्ट्रवादी बीफ खाती हुई।
वहीं कुछ यूजर्स ऐसे भी हैं जो वीडियो को शेयर करते हुए सवाल पूछ रहे हैं कि क्या बीफ खाने वाली काजोल भी राष्ट्र विरोधी हैं। सोशल मीडिया पर विवाद बढ़ता देख काजोल में अपने फेसबुक पेज से ये लाइव वीडियो हटा लिया है, लेकिन शायद तब तक बहुत देर हो चुकी थी।
वरिष्ठ पत्रकार शीतल पी. सिंह ” ————————–हलाकि ये भी हे की इसमें अजय देवगन का कोई लेना देना नहीं हे असल में कुड दिमाग संघी फौज आज से नहीं बीसियों सालो से खान सितारों की लोकप्रियता से बहुत चिढ़ती हे इसलिए वो हमेशा किसी को भी चढाने की फ़र्ज़ी कोशिशे करती रहती हे अच्छा इसी विशाल संघी फौज को देखते हुए शायद कनाडा के नागरिक ——— कुमार , ने बड़ी चतुराई से अपनी मनोज कुमार जैसी छवि बना ली हे और इस तरह से अपने गिरते हुए कैरियर को बचा लिया हे चतुर खोपड़ी लोग इसी तरह से इन मुर्ख सस्तेदेशभक्तो और धर्मभक्तो का फायदा उठाते हे
”
कुछ मदरसे हो जिनमे इस्लाम से जुड़े अध्ययन हो तो वो तो फिर भी ठीक हे मगर उपमहाद्वीप में हज़ारो हज़ारो मदरसे सिर्फ गरीबी से जुड़े हुए हे गरीब लोग हे गरीब ज़्यादा बचे पैदा करता हे वो अपने बच्चो एक दो को मदरसों में भजते हे मदरसों कि सही संख्या पता नहीं एक मुस्लिम राइटिस्ट कहता हे की सिर्फ चार % बच्चे मदरसे में हे यानी बहुत कम उधर दूसरा राइटिस्ट शयद संघ का एक अंडर कवर पत्रकार ——- तिवारी इनकी संख्या सिर्फ एक ही इलाके में पांच सौ कह्ता हे , जैसा की बताया हे की दोनों ही राइटिसट आपस में इस विषय पर कोई सार्थक बहस करेंगे नहीं क्योकि दोनों राइटिस्टों को मतलब बदलाव से नहीं हे बल्कि इन बातो की आड़ में कोई ना कोई व्यक्तिगत हित साधने से हे एक तरह से उपमहाद्वीप में 90 करोड़ हिन्दुओ और 60 मुसलमानो के बीच मौजूद दक्षिणपंथियों ने आपस में एक अदभुत संतुलन एक अध्भुत गठबंधन बना लिया हे ऊपर से ये लड़ते दीखते हे मगर अंदर से इन्हे एकदूसरे से मोहब्बत हे एकदूसरे का महत्व ये खूब पहचान गए हे एक दूसरे को खूब ताकत प्रदान कर रहे हे एकदूसरे की जड़े सींचते हे दोनों को ही पता हे की इनके असली दुश्मन लिबरल्स हे एक ऐसा चक्रव्यूह इन राइटिस्टों ने कायम कर लिया हे की जिसमे फंस कर सारे लिबरल सारे नॉन राइटिस्ट सबका दम सा घुट रहा हे इन लोगो के पास पैसा हे पावर हे हिंसक और फ्रस्ट्रेट एनर्जी से भरे सपोटरो काडर की भरमार हे किसी को अरब से लेकर अमरीका एन आर आई और उपमहाद्वीप के बईमान पैसे वालो का सपोर्ट हे क्या क्या नहीं हे इनके पास ——— ? लिबरल्स के पास क्या हे कौन कुछ देने वाला हे पहले भी कोई नहीं था मगर पहले इनलोगो ( राइटिस्टों ) की भी इतनी वेल्थ इतना आकर्षक भविष्य और इतने फ्रेस्ट्रेट युवाओ की पगलाई भीड़ भी नहीं थी खेर ये कमेंट राहुल जैन भाई का हे जो मेरे मेल पर हे पर यहाँ शो नहीं कर रहा हे जैन समाज भारत का सबसे पैसे वाला समाज हे और राइटिस्टों को खासी फंडिंग भी करता हे अगर राहुल जैन भाई जैसे लोग ये समझेंगे और प्रचार करेंगे तो इससे बढ़िया बात नहीं हो सकती हे
Visit Rahul Jain’s profile
Rahul Jain
Bahut shaandar, Aisa aanklan aapki Zindagi bhar ke anubhav ka nichod Hai..Atulniya hai
2 p.m., Thursday April 27 | Other comments by Rahul Jain
Visit Rahul Jain’s profile
Rahul Jain
Bahut shaandar, Aisa aanklan aapki Zindagi bhar ke anubhav ka nichod Hai..Atulniya hai
2 p.m., Thursday April 27 | Other comments by Rahul जैन अब आप देखे की राइटिस्ट हलके फुल्के भी राइटिस्ट किस कदर गद्दारी करते हे ऊपर जो मेरा डॉक्टर कज़िन हे वो जो कह रहा था की मदरसे बहुत जरुरी हे जो दीनी तालीम देते हे आदि और ये कुछ राइटिस्ट जो रात दिन मुसलमानो के पिछड़ेपन की बात करते हे मगर फेमली प्लानिंग की बात भी नहीं करते हे कभी चू भी नहीं करते हे कुछ मुस्लिम राइटिस्ट अभी राहुल गाँधी का दिमाग खा कर आये तो ये सभी लोग गौर करे की ये कभी मुसलमानो की सबसे अधिक आबादी बढ़ोतरी दर की भूल कर भी चर्चा नहीं करते हे ये इनकी इतनी बड़ी मक्कारी हे की मेरा खून खोल उठता हे इस विषय पर तफ्सील से लेख या कमेंट लिखता हु
बूढ़ी गायों को बीजेपी नेताओं के घर बांध दो, कुत्ते पालने वालों का गौप्रेम सामने आ जाएगा: लालू
Created By : नेशनल दस्तक ब्यूरो Date : 2017-05-05 Time : 10:04:11 AM
बूढ़ी गायों को बीजेपी नेताओं के घर बांध दो, कुत्ते पालने वालों का गौप्रेम सामने आ जाएगा: लालू
पटना। कथित गौरक्षकों की गुंडई और उन्हें बढ़ावा दे रही भाजपा पर लालू प्रसाद यादव ने जमकर हमला बोला। राजगीर में राष्ट्रीय कार्यकारिणी में बोलते हुए लालू प्रसाद ने कार्यकर्ताओं से कहा कि अपने-अपने इलाके की बूढ़ी गायों को इकट्ठा करके बीजेपी नेताओं के घर बांध दो। इनकी गौ भक्ति, गौ प्रेम सामने आ जाएगा।उन्होंने इस बात को फेसबुक पर लिखा, मैंने अपने कार्यकर्ताओं से कहा है कि बिना दूध देने वाली गायों को भाजपा कार्यालयों में जाकर बांध दो तब देखना कि कुत्ते पालने वाले तथाकथित गौमाता हितैषी उन गायों के साथ क्या-क्या करते हैं? अगर वे गाय माता को पीट-पाट कर भगाते हैं तो उसे ध्यान से देखो। यदि वे गाय माता का अपमान करते है, किसी और के यहां भेजते है तो उन्हें तथाकथित गौरक्षकों को सौंप देना।
उन्होंने आगे कहा कि भला बताइये, कुत्ते पालने वाले आडंबरी लोग गौ-पालकों को गौरक्षा का उपदेश दे रहे हैं। है ना विडंबना। अब आप सोचिए, विचारिए? कितने खतरनाक किस्म के लोग हैं।
बैठक में भी प्रस्ताव के जरिए लालू को नरेंद्र मोदी सरकार को हटाने के अभियान मोर्चाबंदी के लिए अधिकृत किया गया। लालू ने कहा कि वह देश में घूम-घूम कर इस मोर्चाबंदी को अंजाम देंगे। उन्होंने कहा कि 27 अगस्त को पटना में राजद की महारैली होगी। बैठक में न्यायित सेवा में आरक्षण और नौकरियों में आरक्षण के बैकलॉग को भी भरने की मांग उठी।पढ़ें- लालू ने पीएम मोदी पर साधा निशाना, कहा- गाय दूध देती है, वोट नहीं
लालू प्रसाद ने कार्यकर्ताओं से कहा कि मनुस्मृति पढ़ो, ताकि बीजेपी के खतरनाक मंसूबे को पर्दाफाश किया जा सके। एक ही नशा रखो- दिल्ली में बैठी बीजेपी सरकार को हटाने का नशा।
पढ़ें- गुजरात में एक और ऊना कांड, मरी गाय न उठाने पर गर्भवती महिला को पीटा
आपको बता दें कि लालू प्रसाद यादव का गौप्रेम जगजाहिर है। वे दिल्ली में भी अपने सरकारी आवास में गाय रखते थे। ऐसे समय में जब भाजपा ने राजनीति के लिए गाय की पूंछ पकड़ रखी है तब लालू प्रसाद यादव ने उऩ्हें कुत्ते पालने वाला बताते हुए निशाना साधा है।
संपादन- भवेंद्र प्रकाश —————————-
—Dilip C Mandal
4 hrs ·
गुजरात के SC ने सवर्णों से कहा कि अपनी मरी माता का अंतिम संस्कार ख़ुद करो। बिहार से आवाज़ आई है कि बूढ़ी गोमाताओं को बीजेपी नेताओं के गेट पर बाँध दो।
अगर बीजेपी नेताओं ने गोमाताओं से बदसलूकी की तो वहीं पकड़ लो।Dilip C Mandal added 5 new photos.
2 hrs ·
अगर RJD के युवा कार्यकर्ता एक हफ़्ते तक हर दिन बीस बूढ़ी गायों को बटोरकर सुशील मोदी के निवास और बीजेपी प्रदेश कार्यालय में आदर सहित पहुँचा दें तो देश को, गाय के नाम पर चल रहे आतंकवाद से, मुक्ति मिल जाएगी।
बाक़ी राज्यों में भी अन्य पार्टियाँ यह कर सकती हैं।
बीजेपी नेताओं ने अगर गोमाताओं को भगाया या डंडा मारा तो उसका वीडियो बनाकर अपलोड कीजिए।
कुत्ता पालकों के फ़र्ज़ी गाय प्रेम का भांडा फूट जाएगा।
एक हम हे जो पता नहीं कैसे कैसे सामान इक्कठा करते हे जबकि अपने ही जीवन में समस्याओ के अम्बार लगे रहते हर समय तनाव इंसिक्योरिटी आदि और कैसे कैसे ढूंढते हे की सामान जरूरतमंद को ही दे , और एक ये ”कम्युनल राक्षस ” हे विष्णुगुप्त- जो पांच करोड़ रूपये ( हिंदी पत्रकार के पास पांच करोड़ ———- ? ) Vishnu Gupt4 May at 15:31 · मैंने इसलिए स्कूल और अस्पताल नहीं बनवाया==============================मेरे द्वारा गौशाला को 5 करोड का दान देने पर सैकडों लोगों ने न केवल मुझे गालियां दी बल्कि मुझे इन लोगों ने शाब्दिक हिंसक तौर पर कोसा भी। गालियां देने और कोसने वालों का कहना था कि 5 करोड रूपये में एक स्कूल बन सकता था जहां पर गरीब बच्चों की शिक्षा दी जा सकती थी या फिर एक अस्पताल बनवाया जा सकता था?ऐसी सोच के लोगो का मेरा जवाब यह है…………… पढ-लिख कर आज देशभक्त कौन बनता है? आज पढने -खिलने वाले लोग जब नौकरी, व्यापार आदि में उतरते हैं तो रिश्वतखोर बन जाते हैं, लुटेरे बन जाते हैं, गरीबों के खून के प्यासे बन जाते हैं। ज्यादा पढ लिख गये तो फिर ये विदेश भाग जाते है, देश को मिलता क्या है? आईना दिखाने वाली बात यह है कि गांव-गांव के कोने-कोने में सरकारी स्कूल खुले पडे हैं जहां पर गरीब-अमीर सभी शिक्षा ग्रहण कर सकते हैं।अब अस्पताल की बात………….. पांच करोड में कोई ढंग का अस्पताल न बन पाता है। अगर सिर्फ अस्पताल का ढाचा खडा कर दिया गया होता तो फिर इलाज कहां सभव होता। आज कोन डॉक्टर दयावान है जो निशुल्क में इलाज करता और अपना समय दे देता। पैसे के लिए गैर जरूरी आपरेशन करने वाले और गैर जरूरी आक्शीजन पर रखने वाले डॉक्टरों से सेवा भाव की उम्मीद बेकार है। फिर अस्पताल चलाने के लिए हमें धनासेठों से भीख मांगनी पडती। गरीब के लिए सरकारी अस्पताल भी तो है। सुझाव देने वाले लोग सरकारी अस्पताल के सुधार के लिए कितना कार्य करते हैं?गौमाता……….. हमारी संस्कृति की अनमोल उपहार है, आर्थिक समृति का आधार है, स्वाभिमान का प्रतीक है। इसलिए हमनें गौमाता की सेवा में यह दान दिया है। मैं जिस गौशाला का दान दिया है उस गौशाला पर मेरे द्वारा नियुक्त देशभक्त निगरानी भी कर रहे हैं। मुझे गौमाता की सेवा में आनंद की अनुभूति हो रही है। ”
गाय से प्रेम, हूरों के सपने और सुसाइड बॉम्बरWritten by ताबिश सिद्दीकी
Tabish Siddiqui : कामसूत्र भारत में लगभग 300 BC में लिखी गयी.. उस समय ये किताब लिखी गयी थी प्रेम और कामवासना को समझने के लिए.. कामसूत्र में सिर्फ बीस प्रतिशत ही भाव भंगिमा कि बातें हैं बाक़ी अस्सी प्रतिशत शुद्ध प्रेम है.. प्रेम के स्वरुप का वर्णन है.. वात्सायन जानते थे कि बिना काम और प्रेम को समझे आत्मिक उंचाईयों को समझा ही नहीं जा सकता है कभी.. ये आज भी दुनिया में सबसे अधिक पढ़ी जाने वाली किताबों में से एक है
भारत किसलिए अलग था अन्य देशों से? संभवतः इसीलिए.. क्यूंकि भारत जिस मानसिक खुलेपन की बात उस समय कर रहा था वो शायद ही किसी सभ्यता ने की थी.. मगर धीरे धीरे विदेशी प्रभावों से यहाँ की मानसिकता दूषित हो गयी.. खजुराहो के मंदिर इस्लाम के आने के कुछ ही सौ साल बाद बने.. ये बताता है कि उस वक़्त तक यहाँ अपनी संस्कृति और समझ को स्वीकार करने की हिम्मत थी.. यहाँ तक की भारत की पूजा पद्धति में अभी तक नग्नता पूजनीय है.. जीवन कि उत्पत्ति के अंग पूजनीय स्वीकार किये गए हैं मगर आज वही पूजने वाले शर्माते हैं अगर कोई उनसे सवाल करे तो वो लिंग और योनी के दार्शनिक पहलू समझाने लगते हैं.. ये बताता है कि भीतर से उन्हें ये स्वीकार्य नहीं है.. विदेशी प्रभावों द्वारा ये अपनी परंपरा से शर्मिंदा हैं.. बस परंपरा निभा रहे हैं किस तरह
बैन (निषेध) तो भारत ने शायद कि किसी चीज़ पर लगाया हो.. खासकर जहाँ प्रेम कि बात आये वहां तो ये संस्कृति और सभ्यता के हिसाब से एक असंभव बात लगती है.. निषेध की मानसिकता इस्लामिक मानसिकता है.. शराब लोग ज्यादा पियें तो शराब बंद कर दो.. काम (सेक्स) निषेध कर दो.. साथ घूमना.. गले में हाथ डालना.. आलिंगन करना.. ये सब निषेध है इस्लामिक मानसिकता में.. भारत का इस से कोई लेना देना नहीं है.. मगर चूँकि उनसे नफरत करते करते हमने कब उनही की चीज़ें ओढ़ लीं ये पता ही न चल पाया.. साधू और साध्वी हमे जो ब्रहमचारी हों वो अधिक भाने लगे.. इस्लाम के तरह ही जो हर चीज़ के निषेध कि बात करता हो उसे हम सर आखों पर बिठाने लगे
सोचिये अगर तालिबान को कामसूत्र दे दी गयी होती पढने को.. और ये कहा गया होता कि ये बिलकुल भी निषेध नहीं है.. जैसे जीना चाहते हो वैसे जियो.. प्रेम तुम्हे किसी से भी हो सकता है और अल्लाह तुम्हारे प्रेम पर पहरा नहीं लगा रहा है.. तो क्या उन्हें किसी हूर कि चाहत होती कभी? यूरोप के लोग क्यूँ नहीं मरते हैं हूर की चाहत में? वो क्यूँ नहीं शराब की नदियों के लिए जन्नत कि कल्पना करते हैं? क्यूंकि उनके लिए ये निरी बेवकूफी भरी बातें हैं.. उनके डिस्को में हूरों की कमी नहीं है.. और ऐसा नहीं है कि वो उनसे रेप कर रहे हों.. मर्ज़ी का सौदा होता है प्रेम का वहां.. शराब उनके यहाँ अथाह है और हर तरह की है.. उन्हें किसी जन्नत की ज़रूरत नहीं है शराब पीने के लिए.. उन्होंने अपने देश को ही जन्नत बना रखा है.. और इसीलिए हर मुल्क का हर नागरिक अमेरिका में रहने के सपने देखता है.. क्या है अमेरिका में? वहां कुछ नहीं है बस आपके जन्नत कि कल्पना को धरती पर साकार कर दिया है उन्होंने.. वहां वो खुलापन है जो कभी भारत में था.. इसीलिए आप मरते हैं वहां जाने के लिए
भारत अमेरिका हो सकता था.. और अभी भी हो सकता है.. अगर किसी चीज़ की ज़रूरत है हमे तो वो है सख्त कानून और मानवाधिकार.. बाक़ी किसी भी चीज़ पर बैन लगाने की कोई आवश्यकता नहीं है.. और वैसे भी ये निषेध हमारी संस्कृति के ही विरुद्ध है.. और प्रेम पर बैन तो ये बताता है कि आपको अपने धर्म की रत्ती भर समझ नहीं है.. आप के भीतर सिर्फ इस्लाम की कुंठा भर गयी है बस
निषेध लोगों को जीवन विरोधी बना देता है.. उन्हें कुंठित कर देता है.. जिन नौजवानों को स्त्री/पुरुष से प्रेम करना है उन्हें आप गाय से प्रेम करना सिखा रहे हैं और जिन्हें इस जीवन में कामसूत्र पढनी चाहिए उन्हें आप हूरों के सपने दिखा रहे हैं.. और ऐसा करके आप सुसाईड बॉम्बर पैदा कर रहे हैं.. एक की परिकल्पना साकार रूप ले चुकी है और वो इस निषेध से तंग आकर अब हूरों से मिलने को लालायित हैं और दुसरे बस तय्यारी कर रहे हैं.. ये बहुत धीरे धीरे होता है मगर आज नहीं तो कल आप उन्हें भी यही समझाने में सफल हो जायेंगे कि कहाँ इन गंदे मांस के लोथड़ों के पीछे पड़े हो.. वहां स्वर्ग की अप्सराओं का सोचो.. और शराब यहाँ नहीं वहां सवर्ग में मिलेगी भरपूर.. यहाँ बस तुम लट्ठ ले कर जैसा हम कहते हैं वैसा करते रहो बस
ताबिशTabish Siddiqui
माफी चाहता हु सिकंदर जी फिर एक बार आप ने बात को समझ ने की गलती कि है.
(१) ‘बंधन ही मुक्ती है.’. ये हिंदु घर्म का ग्यान है. स्त्री और पुरुष संबध संसार और परीवार को जन्म देता है़. प्रेम, काम, धर्म, त्याग, कर्तव्य, अर्थार्जन, संगोपन, शालीनता ,सात्वीकता ऐसे कई सारे पहलु ईस संसार रुपी स्त्री पुरुष संबंध का हिस्सा है. मुझे लगता है इस्लाम भी यही सिखाता है ..
(२) वैसे आझादी की कोइ हद नही होती है. एक वक्त एक के साथ या कइयो के साथ शारिरीक संबध बनाया जा सकता है. या फिर जानवरो के साथ भी लोग संबध बनाते है. जैसे खजुराहो के मंदीरो पर की मुर्तीया दिखाती है वैसे. ये सही है या गलत है मै ईस विवाद मे नही जाना चाहुंगा. अगर आप ये कर ना चाहते है तो शौक से करीये. पर ये धर्म या संन्स्कृती मे लिखा है ये मत कही ये.
(३) काम जीवन हर किसी का निजी मामला है. अगर कोइ घर के कमरो से बाहर आकर चौराहे पर संभोग कर ना चाहता है तो शौक से कर सकता है. पर ये करने की खुली छुट होने को आझादी कहना बचकाना लगता है.
(४) किचन मे खाना बनाते है अगर कोइ कहे मुझे वहा टट्टी करनी है तो ऊसे वो करने देना आझादी होगी क्या?
(५) आझादी कि कोई हद नही होती है लेकीन बंधन मनसे स्विकारा जाना चाहीये बंदुक की नौक पर या लाठी की धौस पर नही.
Mukesh Tyagi added 3 new photos.
10 hrs ·
किस किस्म के लोग मोदी की फासीवादी राजनीति के पीछे के असली शातिर दिमाग हैं उसको समझना जरूरी है| रिपब्लिक टीवी के एक निवेशक और हथियार व्यापारी राजीव चंद्रशेखर के बारे में मैं पहले लिख चुका हूँ| आज इसके एक और निवेशक मोहनदास पई के बारे में| ये पहले भारतीय पूँजीवाद की बड़ी आदर्श मानी जाने वाली इनफ़ोसिस के मुख्य वित्तीय अधिकारी थे| आजकल ये कुछ हजार करोड़ रुपये वाले वित्तीय फंड चलाते हैं, रिपब्लिक में भी पैसा लगाया है, ‘हरे कृष्णा’ के ‘धार्मिक-खैराती’ कामों के जिम्मेदार हैं और अक्सर टीवी पर मोदी का गुणगान करते, शाकाहार का प्रचार करते, पशु और गौमाता पर अत्याचार का विरोध करते देखे जा सकते हैं| पिछली बकरीद पर इन्होने पशु हत्या पर बड़ा शोर मचाया था| अब इनके कुछ और कारोबार जानिए –
ये अमीर लोगों को घर पर उच्च गुणवत्ता वाला माँस पहुँचाने वाली कंपनी Licious के भी साझीदार हैं| इस कम्पनी का एक खास दावा कम उम्र के मेमनों जिनका वजन 8 किलो से कम हो का नरम माँस बेचना है| कल इनको सोशल मीडिया में इस पाखंड के लिए घेरा गया तो इनका जवाब नीचे देखिये – हम पशु हत्या नहीं करते, हम तो वैध कत्लखानों से लेकर बस सप्लाई करते हैं!
आज और पता चला कि इन्होने अपने बेटे के नाम पर एक रेस्टोरेंट भी खोला है, वह भी नियमों के ख़िलाफ़ भ्रष्टाचार और पहुँच का फायदा उठाकर| खैर इस रेस्टोरेंट में ‘बीफ बर्गर’ भी सर्व किया जाता है| आज फिर इनको घेरा गया तो इनका कहना था कि हमने तो सिर्फ पैसा लगाया है, मेनू बनाने का काम तो मैनेजरों का है! (मेनू नीचे देखा जा सकता है)
हत्यारे गुंडा गिरोहों के पीछे फासीवादी राजनीति के असली योजनाकार ये नीलेकणि, पाई, चंद्रशेखर से लेकर और अम्बानी, अडानी, टाटा, भारती, धूत, गोयल, आदि बहुत से ऐसे ही वित्तीय-औद्योगिक पूँजीपति हैं जो ऊपर से बड़े सभ्य उद्यमी बने रहते हैं| लेकिन इनके नियंत्रण वाला मीडिया, एनजीओ, थिंकटैंक, धार्मिक-शैक्षिक-खैराती संगठनों का तंत्र फासीवादी गिरोहों का संचालन भी करता है, उन्हें न्यायोचित ठहराने के ‘बौद्धिक’ तर्क भी तैयार करता है और इससे मुनाफा भी कमाता है| ऐसे घनघोर पाखंडी, ढोंगी, लालची, अनैतिक गिरोह ही फासीवादी राजनीति के पीछे के चेहरे हैं|
See TranslationMukesh Tyagi
9 hrs ·
जीडीपी वृद्धि दर
आखिर विश्व की सबसे तेज अर्थव्यवस्था के प्रचार से पर्दा उठ गया और वो हक़ीक़त सामने आ गई जिसके बारे में हम जैसे पर्यवेक्षक बहुत पहले से बता रहे थे लेकिन भोंपू बना कॉर्पोरेट मीडिया शोर में असलियत को छिपाने की कोशिश में लगा था| जनवरी-मार्च 2017 की तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर घटकर 6.1% रह गई जो लगातार चौथी तिमाही में गिरावट है अर्थात अर्थव्यवस्था की सुस्ती की निरंतर प्रवृत्ति की परिचायक है|
लेकिन इस दर को भी ध्यान से देखें तो पता चलेगा कि यह दर भी माँग की दर है, अगर पूर्ति अर्थात उत्पादन की दिशा से देखें तो यह 5.6% ही है| फिर अगर गणना की 3 वर्ष पहले तक की पद्धति अपनाई जाये तो यह दर मात्र 4% ही रह जाती है| इसमें भी यह मान लिया गया है कि अनौपचारिक अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर औपचारिक अर्थव्यवस्था के समान ही है| लेकिन हम सब अवगत हैं कि नोटबंदी का सर्वाधिक नुकसान अनौपचारिक क्षेत्र को ही हुआ जिसमें सभी गैर सरकारी विश्लेषकों का मानना है कि भारी गिरावट आई है| अगर उसे भी ध्यान में रखें तो यह वृद्धि दर मात्र 0.9% ही रह जाती है|
अब इस वृद्धि को ओर बारीकी से देखें तो पता चलता है कि सर्वाधिक रोजगार देने वाले निर्माण, उद्योग, वित्तीय सेवायें और व्यापार में वृद्धि बहुत कम है; निर्माण में तो नोटबंदी के बाद तीव्र गिरावट है| नया निवेश लगातार गिर रहा है| निजी उपभोग में भी वृद्धि नहीं है अर्थात लोग बाजार में ख़रीदारी नहीं कर रहे| करें भी कैसे, शहरी श्रमिकों की वेतन वृद्धि दर बहुत गिरी है| फिर यह वृद्धि कहाँ से आ रही है? सरकारी आँकड़े कह रहे हैं कि सरकारी उपभोग अर्थात खर्च बढ़ने से यह वृद्धि हुई है| अब समझना होगा कि सरकार खर्च कहाँ कर रही है| शिक्षा, स्वास्थ्य, महिला-बाल कल्याण, गरीब कल्याण, ग्रामीण विकास पर तो व्यय कम हो रहा है| फिर क्या प्रशासनिक ढाँचे, पुलिस और फ़ौज-शस्त्र ख़रीद का बढ़ता व्यय है यह? लेकिन यह तो अनुत्पादक खर्च है, इससे अर्थव्यवस्था में विकास कैसे होगा? निजी क्षेत्र पहले ही नया निवेश अर्थात नए उद्योग लगाना बंद कर चुका है|
एक और क्षेत्र जहाँ भारी वृद्धि – 5% दिखाई गई है वह है कृषि| कहा गया है कि पिछले वर्ष के अच्छे मानसून से कृषि में रिकॉर्ड उत्पादन हुआ है| लेकिन यह समझ में नहीं आ रहा है कि इतने रिकॉर्ड उत्पादन के बाद भारत को अनाज का भारी आयात क्यों करना पड़ रहा है? दूसरे, उत्पादन में इस वृद्धि का कोई लाभ किसानों को मिलता नजर नहीं आ रहा| उनकी आमदनी में गिरावट इस भारी उत्पादन के बावजूद जारी है|
फिर इस स्थिति में रोजगार कहाँ से आयेंगे? इसीलिए चारों ओर से नौकरियों में कटौती की खबरें आ रही हैं जबकि मोदी जी ने दो करोड़ रोजगार प्रति वर्ष सृजन का ख्वाब दिखाया था| लेकिन अब वह सिर्फ कौशल प्रशिक्षण और अप्रेंटिस योजना की बात कर रहे हैं| लेकिन प्रशिक्षण रोजगार नहीं दे सकता, अगर अर्थव्यवस्था में रोजगार होगा ही नहीं| रोज़गार और मजदूरी-वेतन में वृद्धि नहीं होगी तो जनता की आमदनी कैसे बढ़ेगी? नहीं बढ़ेगी तो उनके जीवन स्तर में कोई सुधार कैसे होगा? अगर नहीं होगा तो जीडीपी की दर कितनी है, इससे देश के आम नागरिक को क्या लेना-देना?
Himanshu Kumar
Yesterday at 12:54 · Dharamsala ·
मैंने अपने विद्यार्थी काल में गो रक्षा के लिए पांच दिन का उपवास किया था,
यह तब की बात है जब विनोबा भावे गोरक्षा पर जोर देते थे,
तब हम यह मानते थे कि भारत में छोटे किसान को बचाना है तो बैल से होने वाली खेती बचानी पड़ेगी,
इसके अलावा रासायनिक खेती रोकने,
किसानों के क़र्ज़ में डूबने और खेतीबाडी छोड़ने की रोकथाम,
के लिए गोबर खाद का इस्तेमाल और ट्रैक्टर की बजाय बैल से खेती के लिए गाय बैल बचाना एक रचनात्मक काम की तरह किया जाता था,
हमारे मन में या किसी भी साहित्य में या बातचीत में मुसलमानों के खिलाफ कोई विचार नहीं था,
बल्कि हम लोग बड़े औद्योगिक कत्लखानों को बंद करने के लिए कहते थे,
विनोबा की प्रेरणा से मुंबई के देवनार के कत्लखाने पर हमारे वरिष्ठ सर्वोदयी कार्यकर्ता अच्युत देशपांडे द्वारा अट्ठारह साल तक सत्याग्रह किया गया जिसमें हजारों कार्यकर्ताओं ने गिरफ्तारी दी,
इस सत्याग्रह में मुसलमान कार्यकर्ता भी शामिल होते थे,
भारत में गाय पर खतरा कभी भी मुसलमानों की वजह से नहीं हुआ,
गाय पालने, गाय की सेवा करने में मुसलमान किसान, हिन्दु किसानों से कभी कम नहीं रहे,
भाजपा और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ द्वारा गाय के प्रतीक को इस्तेमाल करके अल्पसंख्यक मुसलमानों के खिलाफ हिन्दुओं की नफरत को भड़काने का काम लम्बे समय तक किया गया,
अगर आप सरस्वती शिशु मंदिर की किताबें देखंगे तो आपको उसमें इस तरह की कहानियां मिलेंगी जिसमें शिवाजी गाय ले जा रहे किसी मुस्लिम कसाई का हाथ काट रहे हैं,
अपनी शाखाओं और शिशु मन्दिरों के माध्यम से संघ ने हिन्दू युवाओं के बीच इस तरह की झूठी कहानियां पहुंचाईं और उनके मन में अल्पसंख्यकों के प्रति नफरत पैदा करी,
वर्तमान में देश भर में मुसलमानों पर हमले करके उन्हें गाय की हत्या करने वाला साबित करने की कोशिश भी संघ की योजना का ही हिस्सा है,
जबकि सच्चाई यह है कि मुग़ल बादशाहों ने गाय की हत्या को अपराध घोषित किया था और गोकुशी पूरी तरह बंद करवाई थी,
आज भी भारत के मुसलमान गाय काटने के धंधे में नहीं हैं,
गाय बैल काट कर विदेशों को भेजने के ज़्यादातर कारखाने हिन्दुओं के हैं, जिनमें से कुछ तो भाजपा के नेताओं के ही हैं,
गाय के मांस का व्यापार करने वाले समूह से भाजपा बड़ा चंदा लेती है,
भाजपा को गाय से कोई लेना देना नहीं है,
बल्कि भाजपा सत्ता पर कब्ज़ा हेतु हिन्दुओं से वोट लेने के लेने उन्हें मुसलमानों के खिलाफ भडकाने के लिए गाय के प्रतीक का इस्तेमाल करती है,
भारत के मुसलमान चाहते हैं कि गाय काटने पर रोक लगा दी जाय,
लेकिन भाजपा ऐसा नहीं कर रही है,
भाजपा अगर ऐसा करेगी तो भाजपा के नेताओं के गाय कत्लखाने बंद हो जायेंगे और भाजपा को मिलने वाला चंदा बंद हो जायेगा,
इसके अलावा वोट दिलाने वाला यह मुद्दा भी खत्म हो जाएगा,
भाजपा ने अभी जो नया कानून बनाया है जिसके बाद गाय भैंस का खरीदना और बेचना असम्भव हो जाएगा उसका सबसे बड़ा नुकसान गाय भैंसा पालने वाले छोटे किसान को होगा,
अगर किसान बूढ़े और बेकार जानवरों को बेचेगा नहीं,
तो बेकार पशु को खिलाने में खर्चे और बिक्री से मिलने वाले पैसे के नुकसान की वजह से उसकी सारी अर्थव्यवस्था बर्बाद हो जायेगी,
भाजपा के इस कदम से भारत में गाय भैंस पालन पूरी तरह समाप्त हो जाएगा,
इससे दूध और उससे बनने वाले खाद्द्यान्न की कीमतें बढ़ेंगी,
उस समय बड़े पूंजीपतियों को दूध और डेरी पशुओं के कारोबार से बड़ा फायदा होगा,
तब बड़े उद्योगपति दूश और डेरी उद्योग में पैसा लगायेंगे,
बड़े उद्योगपतियों को फायदा पहुंचाने के लिए भारत के गाय भैंस पालन को सरकारी कानून बना कर नष्ट किया जा रहा है,
इस काम को सरकार, सत्ताधारी दल, उसके गुंडे और उसके मीडिया के लोग मिलकर कर रहे हैं,
भाजपा अगर सफल हो गई तो छोटे किसान और छोटी डेरियाँ खत्म हो जायेंगी और भारत का पशुपालन खेती और डेरी उद्योग पूरी तरह कारपोरेट के हाथों में चला जाएगा,
यही भाजपा की योजना भी है,Himanshu Kumar
कट्टर हिंदुत्व की विचार धारा बढने लगी तो उसे रोकना चाहीये,
कट्टर ईस्लामियत बढने लगे तो ऊसे रोकना चाहीये,
कट्टर माओवाद बढने लगे तो ऊसे भी रोकना चाहीये,
कट्टर राष्ट्रवाद बढे तो उसे भी रोकना चाहीये…
हर तरह कि कट्टर विचार धारा को रोका जा सकता है.
पर कट्टर बुद्धीजिवीयो को कभी रोका नही जासकता है. क्युंकी ये सब बुद्धीजिवी ईस भ्रम मे जिरहे है कि अच्छाइ और बुराइ कि सारी समज सिर्फ इनके पास है. और ईस पृथ्वी पर सदीयो से रहने वाला मानव बस एक वहशी दरींदा था. जिसे ना तो कुछ समझ थी और ना है. बुद्धीजिवीयो कि दृष्टीसे इस दरींदे मानव को Civilize करने की प्रक्रीया को परीवर्तन या विकास का नाम दिया गया. अब ये बुद्धीजिवी पुरी मानव जाती कि अच्छाइयो के ठेकेदार बने घुम रहे है. शांती के ठेकेदार बने घुम रहे है.
हम आतंकवाद को खत्म कर सकते है क्युं की आतंकवाद एक बुरा दौर है मानव जाती का. हम जाती व्यवस्था और धार्मीक विद्वेष से भी ऊपर ऊठ रहे है. और मै सच कहता हु लोगो के दिलो मे इतनी नफरत नही है एक दुसरे के प्रती कि हर कोइ अपने काम धाम छोड छाड कर मरने मारने पर ऊतरने वाला है.
पर ये बुद्धीजिवी है के मानते ही नही है. ये बुद्धीजिवी ने मन ही मन मे ये तै किया है के जातीय और धार्मीक महा प्रलय आने वाला है. इस सदिकी सबसे बडी और कभी भी न खत्म होने वाली समस्या ये बुद्धी जिवी है. हर साल लोग मर ते है, कुछ बुढापे कारण, बिमारी के कारण, किसी प्राकृतीक आपदा के कारण, अतर्गत कलह, विवाद, युद्ध, साप के काटने से, पाणी मे डुब कर, viral infection, road accident. ये नियम है हम सबको मरना है.
पर ये बुद्धी जिवी है के लिखे जार हे है. मौत का कारण दंगे फसाद के अलावा और कुछ है ही नही. अपनी जिंदगी का सारा समय बस यही समस्या सुलझाने मे लगे हुवे है.
धार्मीक कट्टर पंथीयो के साथ इन बुद्धी जिवी कट्टर पंथी भि ऐक बहोत बडी सामाजीक समस्या है
https://www.youtube.com/watch?v=cHB2H8aUYZw
”Dilip C Mandal added 6 new photos.
6 hrs ·
21वीं सदी में गोमांस का ब्राह्मण कनेक्शन।
दुनिया में बीफ स्नैक्स बेचने वाली महत्वपूर्ण कंपनी फ्रिटो ले पेप्सिको की ग्लोबल सीईओ तमिल ब्राह्मण इंदिरा नूई शायद अपने पाप का प्रायश्चित करने तिरुपति मंदिर आती हैं।
क्या यह कलाबाज़ी आप दिखा सकते हैं? या यह ब्राह्मण विशेषाधिकार है।
वह एक साथ गोगुंडा और गोमांस विक्रेता हो सकता है। वह प्रगतिशील होकर गोगुंडों का विरोधी भी हो सकता है।
इस कंपनी का दावा है कि उसका बीफ बेहद टेस्टी, पौष्टिक और मुलायम होता है।
अमेरिका में बीफ मतलब वही है, जो आप जानते हैं। पैकेट पर भी साँड़ बना दिया गया है।
पैकेट के अंदर क्या है, ग़ौर से पढ़ लीजिए। जानकारी फ्रिटो ले पेप्सिको कंपनी की वेबसाइट सेDilip C Mandal
1 hr ·
जो बिज़नेसमैन अभी GST को लेकर छटपटा रहे हैं, वे बर्बाद हो जाने पर भी बीजेपी को यही सोचकर वोट डाल आयेंगे कि हमें बेशक बर्बाद कर दिया, लेकिन मोदी जी मुसलमानो को टाइट रखते हैं।
मोदी जी को पता है कि इनका सुख क्या है। वे उन्हें उनकी ख़ुशी दे देंगे।
See TranslationDilip C Mandal added 2 new photos — with Palash Biswas.
2 hrs ·
नरेंद्र मोदी का कोई ईमान-धरम नहीं है।
रोहित वेमुला के मामले पर मंच पर आँसू बहाने के फ़ौरन बाद, मामले के जवाबदेह HCU के वाइस चांसलर अप्पा राव को मिलेनियम अवार्ड से सम्मानित करते मोदी।
इस आदमी से कोई नहीं जीत सकता। इतनी धूर्तता आप कहाँ से लाएँगे?
मंच पर बोल रहे हैं, मत मारो। अंदर बोल रहे होंगे, जारी रखो। इनका कोई भरोसा है?
रोकना होता तो राज्य सरकारों को कहते – पकड़कर अंदर करो गुंडों को। एक दिन में सब ठंडा हो जाता।
नरेंद्र मोदी की नीयत ख़राब है।।दिलीप मंडल ” —————————सही कह रहे हे दिलीप मंडल मोदी किसी भी हद तक जा सकते हे इनका कोई ईमानधर्म नहीं हे गाये वाले कल के भाषण में भी इन्होने गाय की अति महानता की चर्चा करके असल में लोगो को गाय के नाम पर और हिंसा की अपील ही की हे
http://democracia.in/in-the-name-of-cow-bjp-and-rss-planned-family-alliance-in-the-killings-of-muslims/
इंदीरा नुइ किस जाती कि है, या फिर वो किस कंपनी मे काम करती है ये उनका निजी मामला है. और इंदीरा नुइ ने किसीकी हत्या नही करी है गो मास के संदेह मे. ये कमेंट किसी नुक्कड पर बैठे टपोरी कि तरह है.
इमरान प्रतापगडी जेसो की ज़बर्दस्त विक्टिमहुड सेलिंग में मिली कामयाबी देख कर उनके विरोधी भी ढके छुपे उनके जैसा बनना की इच्छा रखते हे पढ़िए —————-Mohammad Anas shared a memory.
3 hrs · आज से दो साल पहले दिलीप मंडल जी से तकरीबन तीन दिन लगातार बहस हुई। वे उधर से मुस्लिम आरक्षण के विरोध पर, मदरसों के विरोध पर पोस्ट डालते इधर से हम लंबा लंबा लिख कर उनको काउंटर करते।
दिलीप सोचते थे कि मदरसा से पढ़ कर मुसलमान सिर्फ पंक्चर बनाता है। सिर्फ दिलीप ही नहीं बल्कि बहुत से लोग यही सोचते हैं। कुछ तो मुसलमान भी ऐसे ही हैं जिन्हें लगता है कि क़ौम सिर्फ पंक्चर बनाना जानती है। उन तमाम लोगों के लिए साझा कर रहा हूं। लंबा है। तीखा है। पढ़ कर दिमाग में रखने लायक। फिलहाल दिलीप जी ने ब्लॉक कर रखा है हमें।
See Translation2 Years AgoSee your memorieschevron-rightMohammad Anas3 July 2015 · बेहद प्यारे दिलीप मंडल,
सर, जस्टिस राजेंद्र सच्चर ने मुसलमानों को आरक्षण देने की वकालत करती हुई ऐसी रिपोर्ट पेश की जिसे पढ़ कर कोई भी ईमानदार शख्स इसे लागू करवाने की हिमायत करेगा। वह सेक्यूलरीज्म का रिपोर्ट कार्ड नहीं बल्कि एक पूरी कौम को आज़ादी के बाद सरकारी नौकरियों, शैक्षणिक संस्थानों, प्राइवेट सेक्टर और दूसरे ज़रूरी आयामों से बेदखल कर देने का दस्तावेज़ था। उसमें बताया गया है कि मुसलमानों के हालात दलितों से भी बदतर हैं। सच्चर ने किसी एक भौगोलिक क्षेत्र के कुछ मुसलमानों, सवर्ण अथवा पिछड़े मुसलमानों की बात नहीं कि थी बल्कि उन्होंने उस रिपोर्ट में हर एक मुसलमान की बात लिखी थी। इन हालातों में भी मुसलमानों ने अपने शैक्षणिक संस्थानों को बचाए रखा। जब उनके छोटे कारखानों को बंद करवा दिया गया तो वे काम सीख कर खाड़ी मुल्क की तरफ जाने लगे। वहां से पैसा भेजते, किसी तरह से घर परिवार चलता। देश की गरीबी भी दूर करने का काम किया। लेकिन सरकारें तो चाहती थी अजमल और याकूब पंचर बनाए। कोई सकीना किसे के घर में बर्तन मांजे। और इसमें वे कामयाब भी हुए। लेकिन ऐसे लोगों के सामने मदरसे सीना ताने खड़े रहे। आलिमों ने गांव गांव टहल कर अभिभावकों से बच्चों को मांगा। उन्हें पढ़ाया ताकि वे इज्जत की ज़िंदगी बसर कर सकें। यतीमों को गोद लिया। बेसहारा को ज़िंदगी दी।मुझे इस्लाम की बहुत सी चीज़े पसंद हैं उसमें एक चीज़ ये है कि इस्लामी शिक्षा पर किसी एक का हक़ नहीं। कुरान पढ़ कर कोई भी हाफिज़ बन सकता है। जिस गरीब परिवार को गांव में अन्य मुसलमानो द्वारा दुत्कार दिया जाता था आज उसका बच्चा हाफिज-ए-कुरान बन पगड़ी बांधे आता है तो सामंती और लठैती मुसलमान भी कुर्सी छोड़ उठ जाते हैं। मदरसों ने भारत में सामाजिक क्रांति की और चुपचाप की। इसलिए मदरसों की ज़रूरत है।मदरसों ने जिस तरह से शिक्षा के माध्यम से अमीर गरीब का फर्क मिटाया वह संसार के किसी अन्य एजुकेशनल सिस्टम में खोजने से भी नहीं मिलता। हाफिज और मौलवी के नाम के बाद आज भी साहब लगाया जाता है। करोड़पति मुसलमान भी ऐसे आलिमों को सम्मान देते नहीं थकते। हमारे वोट से सरकार बनाने वालों ने अपनी जाति, अपने लोगों को नौकरियां दी लेकिन मुसलमानों को दंगा, गाय, भगवा में फंसा कर शोषण करते रहे। इन सबके ज़िम्मेदार कौन लोग हैं? वे लोग जो खुद के विकास सूचकांक को बढ़ाते रहे लेकिन साथ में रहने वाले मुसलमानों की सुध भी न ली।कभी फर्जी इनकाउंटर तो कभी दंगे। यही नियति बना दी गई हमारी। बुद्धिजीवियों से लेकर क्रांतिकारियों तक ने कभी नहीं सोचा कि मुसलमान इस देश में भयभीत क्यों रहता है। क्या बेहतर माहौल बनाने की ज़िम्मेदारी उनकी नहीं है जिनके अपने लोगों, नेताओं के द्वारा ऐसे हालात बना दिए गए जिससे हर तरह की समस्या सामने आ खड़ी हुई।आज भी लाखों की तादाद में मुस्लिम बच्चे मदरसा तो छोड़िए, बेसिक स्कूली शिक्षा से वंचित हैं। मुद्दा होना चाहिए था उन बच्चों को तालीमयाफ्ता कैसे बनाया जाए लेकिन विडंबना देखिए लोग बात कर रहे हैं मदरसे होने चाहिए या नहीं। मदरसों के प्रति ऐसा माहौल बनाया जा रहा है कि वहां कोई जाए ही न। ठीक है। न जाए। तो करे क्या। कहां जाए। कान्वेंट स्कूल? जहां की फीस पूरे परिवार के महीने भर के राशन के बराबर होती है। अच्छा सजेशन है। खूब समझ कर दिया गया होगा। मदरसे, मुसलमानों के पैसे से चलते थे, चलते हैं और चलते रहेंगे। वहां सिर्फ मज़हबी नहीं बल्कि एक ज़िम्मेदार, आत्मनिर्भर और मेहनतकश इंसान बनाने की ट्रेनिंग दी जाती है। वहां से मौलाना आज़ाद बने, वहीं से ज़ाकिर हुसैन और वहीं से कलाम। जिसकी जैसी सामर्थ्य थी वो वैसा बना। आप चाहतें हैं हम पंचर की दुकान पर बैठे तो यह होने नहीं देंगे। कुछ न होने से कुछ होना, बन जाना बेहतर होता है।
आपको पढ़ते हुए कुछ सीख बैठा तो खत लिख दिया।
आपका,Mohammad Anas
जज़ाक अल्लाह अनस साहब अल्लाह आपको और ज़्यादा ताक़ते-गुफ़्तार अता फरमायें| ताकि आप इसी तरह हक़ और इंसाफ की बात लोगों तक पहुँचा सकें और बातिल ज़मीदोज़ हो जाए……आमीन|
https://www.youtube.com/watch?v=TblsM3gf6BA
Mukesh Aseem
1 hr ·
सहजानंद 1920-30 के दशक में औपनिवेशिक-जमींदारी शोषण के ख़िलाफ़ किसान आंदोलनों के एक बड़े नेता थे| पहले वह गाँधी से प्रभावित थे और 1921 में उन्होंने हिन्दू-मुस्लिम एकता के लिए मुसलमानों से गौ-हत्या बंद करवाने का अभियान चलाया| पर उन्हें जल्दी ही अपनी ग़लती समझ में आ गई| 1940 में ‘मेरा जीवन संघर्ष’ में लिखते हैं कि जब उन्होंने बिहार के बक्सर (ब्रह्मपुर) के पशु मेले में गाय-बैलों की बिक्री रोकने की कोशिश की तो सारे ब्राह्मण-राजपूत उनके ख़िलाफ़ हो गए| उन्हें समझ आ गया कि गौ-हत्या को धार्मिक मुद्दा मानना उनकी ग़लती थी, यह तो आर्थिक-सामाजिक सवाल था|
एक मित्र से आज एक घटना सुनी| उप्र में सम्भल के पास एक गाँव – हैबतपुर| वहाँ एक किसान के पास दो बैल थे जिन्हें पालने की स्थिति में वह नहीं था| बेच नहीं सकता था; उप्र में गाय, बैल, बछड़े अब लगभग बिकने बंद हैं, उनके ‘आधार’ कार्ड भी बन गए हैं| गुस्से में वह गया, सम्भल में जिला अधिकारी के दफ़्तर के बाहर उन्हें छोड़ आया| स्थानीय अख़बार में थोड़ी खबर आई, ज्यादा नहीं| इसके बाद मुरादाबाद, अमरोहा में भी ऐसी इक्का-दुक्का घटनायें हुईं हैं जहाँ बिल्कुल हताशा, गुस्से में किसान सीधे जिला अधिकारी कार्यालय पर अपने पशु छोड़ आये| वैसे पशुओं को लावारिस छोड़ने की घटनायें और भी हो रही हैं|
अब प्रशासन, बीजेपी दोनों चुप रहकर इसकी उपेक्षा कर रहे हैं| ये किसान मुस्लिम नहीं थे, इन पर दमन करने से और भी किसानों का गुस्सा सुलग सकता है, खबर बनने से और भी ऐसा करने की सोच सकते हैं| पिछले साल ऊना की घटना के बाद वहाँ के दलितों ने भी इसी तरह से अपना विरोध जताया था| इसके पहले महाराष्ट्र, बुंदेलखंड में भी किसानों द्वारा अपने गाय-बैलों को लावारिस छोड़ देने की खबरें आईं थीं|
मतलब यह कि देश भर के ग़रीब किसान-पशुपालक समुदायों में अपनी आय के एक पारम्परिक स्रोत इन पशुओं को न बेच पाने, ऊपर से उनको पालने पर खर्च, से बेचैनी-परेशानी तो है, पर ऐसी कोई सशक्त राजनीतिक शक्ति नहीं जो इस मौजूद आर्थिक-सामाजिक समस्या को विरोध का मुद्दा बनाये, इसके आधार पर विभिन्न जाति-धर्म के किसान-पशुपालकों की एकता स्थापित कर उसे संघी राजनीति के सामने खड़ा करे| कांग्रेस तो इस मुद्दे पर बीजेपी से सहमत है, कई बार उसे एक राष्ट्रीय कानून बनाने की चुनौती दे चुकी है| वैसे भी आजकल वह तभी हरकत में आती है जब नेशनल हेराल्ड या वाड्रा के जमीन सौदों के मामलों में बीजेपी गाँधी कुनबे पर नकेल कसती है| ऐसे ही आप, सपा, बसपा, राजद, तृणमूल, बीजेडी हैं जो तभी थोड़ी जुम्बिश में आते हैं जब बीजेपी के हुक्म पर सीबीआई, आयकर या ईडी उनके नेता या उसके परिवार/करीबियों की गर्दन दबोचते हैं| नहीं तो इनकी राजनीति सिर्फ बयानबाजी और टीवी बहसों तक महदूद हो गई है| संसदीय वामपंथी दलों को अभी तक सीबीआई वाला खतरा तो नहीं है पर ये भी अब ऐसे मुद्दों पर मोबिलाइजेशन का माद्दा खो चुके हैं| बाक़ी शक्तियाँ अभी बहुत कमजोर हैं, या प्रतीकात्मक विरोध तक सीमित हैं|
आज की स्थिति में संघी राजनीति की ताकत की वजहों का यह एक उदाहरण मात्र है| इसके लिए जनता को दोष देना ठीक नहीं, जैसा अक्सर कुंठा में हम देने लगते हैं कि नोटबंदी, जीएसटी की परेशानियों के बाद भी लोग विरोध नहीं करते|
Mukesh Aseem
1 hr ·
एकतरफ पेसो की कमी से सन्जय तिवारी का पोटर्ल बंद हो गया दूसरी तरफ इसके ही शायद मित्र महासम्प्रदायिक विष्णुगुप्त ने पांच करोड़ लगा दिए पढ़े
Sanjay Tiwari19 hrs · बड़े भाई समान मित्र Madan Tiwary ने सार्वजनिक रूप से अपील किया है कि लोग मदद करें और मैं फिर सेविस्फोट का काम शुरु करूं। उनकी इस अपील के लिए मैं उनका हृदय से धन्यवाद करता हूं लेकिन क्षमा सहित उनके प्रस्ताव से अपनी असहमति भी दिखाता हूं।भारत का सामाजिक पतन इतना ज्यादा है कि हम मरे हुए आदमी के मुंह में गंगाजल तो डाल सकते हैं लेकिन किसी जीवित व्यक्ति के मुंह में दो घूंट पानी नहीं डाल सकते। यह किसी एक व्यक्ति पर नहीं, समूचे समाज पर समान रूप से लागू होता है। खासकर उत्तर भारत के इलाके में।
इसलिए पत्रकारिता जैसा काम चंदे के भरोसे नहीं हो सकता। पत्रकारिता का पेशा बहुत जटिल पेशा है। पेशेवर रूप से इसे करने पर थोड़ा खर्चीला भी। लेकिन अभी जनता की मनोदशा ये है कि पत्रकार ईमानदारी से तो लिखे पढ़े लेकिन इसके लिए उसकी कोई जिम्मेदारी नहीं है। हमारे यहां दान दिया तो जाता है लेकिन सिर्फ धर्म के नाम पर। समाज के दूसरे काम के प्रति लोगों का नजरिया बहुत तंग है। फिर पत्रकारिता के तो खैर कहने ही क्या। बेचारे पत्रकार को तब तक पत्रकार नहीं माना जाना जब तक पुलिसवाला उसका आईकार्ड देखकर उसकी गाड़ी न छोड़ दे। नेताओं और अफसरों से उसकी सेटिंग न हो। लोग ही कहते हैं, किस बात के पत्रकार हो। सिर्फ कलम घिसने के लिए हो या कोई काम भी करवा सकते हो?
मुझे लगता है वह समय आयेगा और इंटरनेट के जरिये ही आयेगा जब पत्रकारिता जनता द्वारा वित्तपोषित हो जाएगी। लेकिन उसका मॉडल चंदा नहीं होगा। आप अपनी स्टोरी बेच सकते हैं और जो कोई कीमत अदा करेगा वह आपकी स्टोरी पढ़ सकेगा। यह एक मॉडल है लेकिन इसके पूरी तरह अस्तित्व में आने में वक्त लगेगा। तब तक विस्फोट जैसे प्रयास कैसे चलेंगे, कह नहीं सकते। चलेंगे भी या बंद ही रहेंगे ये भी कह नहीं सकते। सात साल काम करते हुए मेरा जो अनुभव हुआ है वह बहुत समृद्ध है। लेकिन जन मानस शायद अभी चंदे वाली पत्रकारिता के लिए तैयार नहीं है। इसके लिए पूरा सामाजिक उत्थान जरूरी है। पत्रकारिता तो सिर्फ उसका एक छोटा सा हिस्सा भर है।
इसलिए मदन जी। आपकी सदिच्छा और सहृदयता के लिए हृदय से आभार। बाकी हरि इच्छा।
आपसे क्षमा सहित
संजय तिवारी—————————————————— Vishnu Gupt4 May · -मैंने इसलिए स्कूल और अस्पताल नहीं बनवाया
==============================
मेरे द्वारा गौशाला को 5 करोड का दान देने पर सैकडों लोगों ने न केवल मुझे गालियां दी बल्कि मुझे इन लोगों ने शाब्दिक हिंसक तौर पर कोसा भी। गालियां देने और कोसने वालों का कहना था कि 5 करोड रूपये में एक स्कूल बन सकता था जहां पर गरीब बच्चों की शिक्षा दी जा सकती थी या फिर एक अस्पताल बनवाया जा सकता था?
ऐसी सोच के लोगो का मेरा जवाब यह है…………… पढ-लिख कर आज देशभक्त कौन बनता है? आज पढने -खिलने वाले लोग जब नौकरी, व्यापार आदि में उतरते हैं तो रिश्वतखोर बन जाते हैं, लुटेरे बन जाते हैं, गरीबों के खून के प्यासे बन जाते हैं। ज्यादा पढ लिख गये तो फिर ये विदेश भाग जाते है, देश को मिलता क्या है? आईना दिखाने वाली बात यह है कि गांव-गांव के कोने-कोने में सरकारी स्कूल खुले पडे हैं जहां पर गरीब-अमीर सभी शिक्षा ग्रहण कर सकते हैं।
अब अस्पताल की बात………….. पांच करोड में कोई ढंग का अस्पताल न बन पाता है। अगर सिर्फ अस्पताल का ढाचा खडा कर दिया गया होता तो फिर इलाज कहां सभव होता। आज कोन डॉक्टर दयावान है जो निशुल्क में इलाज करता और अपना समय दे देता। पैसे के लिए गैर जरूरी आपरेशन करने वाले और गैर जरूरी आक्शीजन पर रखने वाले डॉक्टरों से सेवा भाव की उम्मीद बेकार है। फिर अस्पताल चलाने के लिए हमें धनासेठों से भीख मांगनी पडती। गरीब के लिए सरकारी अस्पताल भी तो है। सुझाव देने वाले लोग सरकारी अस्पताल के सुधार के लिए कितना कार्य करते हैं?
गौमाता……….. हमारी संस्कृति की अनमोल उपहार है, आर्थिक समृति का आधार है, स्वाभिमान का प्रतीक है। इसलिए हमनें गौमाता की सेवा में यह दान दिया है। मैं जिस गौशाला का दान दिया है उस गौशाला पर मेरे द्वारा नियुक्त देशभक्त निगरानी भी कर रहे हैं। मुझे गौमाता की सेवा में आनंद की अनुभूति हो रही है।
मदन तिवारी जैसा —————– आदमी जिस आदमी का ”बड़ा भाई ” हो वो संजय तिवारी शर्तिया ————ही हो सकता हे गौ रक्षा के नाम पर दुनिया भर की लूट गुंडागर्दी और जुल्म हो रहा हे गाय बेचारी वही की वही , सड़को पर गायो की भरमार हे लोग मर रहे हे रही बात जिसको भी गाय से प्रेम हो तो सड़को से उठाओ और अपने घर ले जाओ या इन पगलेट तिवारियों के घर बाँध दो खूब सेवा करो कौन मना कर रहा हे या रोक रहा हे———— ? रही बात मोदी की तो वो तो हे ही हमेशा डबल फेस एक तरफ दुनिया को कुछ और दर्शाते हे दूसरी तरफ लोगो को उकसाते हे कोर्ट तक सर पीट रहा हे की इंसान को मारने की सजा दो साल को गाय की 14 साल ——— ? देखिये ये आदमी क्या क्या लिख रहा हे इसलिए में कहता हु की हिन्दू कटटरपंथ एक बहुत ही भ्र्ष्ट -दुष्ट और कायर विचारधारा हे तिवारी जैसे इसका बखूबी प्रदर्शन करते हे Sanjay Tiwari
11 mins · भारत में गौ रक्षा का कुछ इतिहास पता है? यह कोई मोदी गोदी की सरकार बनने के बाद शुरु नहीं हुआ है और न ही ये संघियों का एजेण्डा है। लोगों ने गाय के लिए जान दी है। इतिहास उठाकर थोड़ा पढ़ लीजिए। मुसलमानों ने हिन्दुओं के खिलाफ गाय को एक हथियार की तरह इस्तेमाल किया है। फिर अंग्रेजों ने भी यही किया। संगठित रूप से गौरक्षा भी उसी समय शुरु हो गयी थी। शुरुआत किसी संघ ने नहीं किया था। उस समय तो संघ पैदा भी नहीं हुआ था। शुरुआत आर्य समाज ने किया था। 1890 में जब पहली बार अंग्रेजों ने गाय काटने के लिए कत्लखाना लगाया था, तभी से गाय की रक्षा की आवाज उठ रही है और छोटे छोटे गौरक्षक दल भी बने हैं।
गौरक्षा आंदोलन मूल रूप से साधु संतों का आंदोलन रहा है और आज भी है। विनोबा भावे जैसे लोग गाय के लिए प्राण दे देने तक का आवाहन करते थे। स्वामी करपात्री महाराज का गौरक्षा आंदोलन याद कर लीजिए जहां साधु संतों पर इंदिरा सरकार ने गोली चलवा दी थी।
गौरक्षकों को गुण्डा बताकर मोदी ने कम्युनिस्टों के एजंडे पर मुहर लगा दिया है। हो सकता है संघियों को इस बयान से खुशी हो और बीजेपी भी लहालोट हो जाए लेकिन यह बयान भारतीय समाज और साधु संतों के खिलाफ है। वही साधु संत जो मोदी मोदी करते रहते हैं।Sanjay Tiwari
1 hr ·
मेरे एक मित्र ने कहा था कुछ दिन पहले, मोदी गौरक्षकों के खिलाफ बहुत सख्त एक्शन लेने जा रहे हैं। इसके लिए सभी राज्य सरकारों को निर्देश जारी होने वाला है। आज मोदी ने उसका ऐलान खुद ही कर दिया कि निर्देश जारी किये जा चुके हैं।
मोदी जैसे लीडर के लिए यह एक भयानक सेकुलर ट्रैप है। आज नहीं तो कल उनको इसमें फंसना ही था। लुटियन्स जोन वाली दिल्ली इसी तरह किसी को अपने ट्रैप में फंसाकर खत्म करती है। मोदी भी फंस गये।
अच्छा होता वो इस मुद्दे पर कुछ न बोलते। जमीनी हकीकत वो नहीं है जो मीडिया में माहौल बनाया गया है। जो दो चार हत्याएं हुई हैं उनको जानबूझकर कम्युनल एंगल दिया गया है नहीं तो जुनैद की हत्या क्या गोमांस को लेकर हुई थी?
ऐसे में मोदी के लिए यही अच्छा था कि वो चुप रहते और कहीं गड़बड़ है तो चुपचाप ऐसे लोगों के खिलाफ कार्रवाई करते (जो कि हो भी रही है।) गौरक्षा के नाम पर अगर कहीं कोई गुंडा एलिमेन्ट सक्रिय था तो उसे प्रशासन चुपचाप एलिमिनेट भी कर सकता था।
खैर ठीक है। जब कोई अपनी छवि बदलने की कोशिश करता है तो इसी तरह अपने ही ट्रैप में फंस जाता है। ऐसे बयानों का असर बहुत दूर तक होगा। हो सकता है इंटरनेशनल लेवल पर इन्हें छवि सुधारने में मदद मिले लेकिन लोकल लेवल पर इसकी प्रतिक्रिया होगी। पोलिटिकिली करेक्ट होने के चक्कर में ये प्रैक्टिकली इनकरेक्ट हो जाएं तो अच्छा ही है। गुजरात ने इन्हें जो कुछ दिया है, गाय माता वह सब खा जाएंगी। संजय तिवारी विस्फोट
ये विचार किसी सेकुलर के नहीं संघी के ही हे में फिर दावे के साथ कहता हु ना गाय का भला हो सकता हे न मदरसों के छात्रों का हां इनके नाम पर कुछ लोगो भला हे कितना भी भला हो जाए इनका कुछ नहीं बनने वाला हे पॉसिबल नहीं हे ————————————————————————–”’-Surendar Godara Sri Ganganagar
Former Owner at Personal Buissness
Studied at Rajasthan University
Lives in Sri Ganganagar
Married
From Sri Ganganagar
गौ सेवक,रक्षको यह समझना पड़ेगा कि वह जो लड़ाई लड़ रहे है,उसमें हार तय है.क्योंकि गाय के प्रति समाज का नजरिया बदल रहा है.जमाना लोकतंत्र का है जिधर जनमत हुआ उसकी चलेगी.धार्मिक,सामाजिक पहलु को छोड़ देखें तो हकीक़त यह है गऊ,गौ-वंश हमारी खेती का आधार रहे है,इससे गाय के प्रति आस्था पैदा हुई.गाय को माता का दर्जा मिला.परन्तु आज यही गौ-वंश खेती के लिए सबसे बड़ा खतरा बन गया है.बड़ी तादाद में आवारा घूमते गौ-वंश पशु खेती चौपट कर रहे है.इनसे खेत को बचाने के लिए तारबंदी करनी पड़ती है,जिस पर रुपया खर्च होता है.पशु तारबन्दी तोड़ डालते है,मेंटीनेस का खर्चा बराबर रहता है.24घन्टे रखवाली अलग से करनी पड़ती है वरना इनका कहर कब टूट पड़े?खेत बर्बाद हो जाए.इससे किसान रात-भर सो नहीं पाता है.चैन-भंग होने के साथ खेती की लागत बढ़ जाती है.इसलिए आस्था का बन्धन कमजोर पड़ने लगा है.आज के मशीनी युग में वैसे गौ-वंश के लिए खेती में कोई भूमिका नहीं बची है.फिर स्वेत-क्रांति के फेर में जो नस्ल सुधार के अभियान चलाए,उन्होंने और कबाड़ा कर दिया.विदेशी नस्ल की गाय अधिक चारा खाती है.प्रजनन ज्यादा करती है,इससे इनकी संख्या में बेतहाशा बढ़ोतरी हो गई.यह पशु अब गाँव से निकल कर शहर-कस्बों में ताण्डव मचाने लगा है.मेरे शहर में हाल ही दो लोग इन पशुओं की चपेट में आकर मारे गए.ना जाने कितने घायल हुए है,तब जाकर मीडिया,शासन-प्रशासन को महसूस हुआ है यह एक समस्या बनती जा रही है.शहर से इन पशुओं को पकडे जाने मुहीम छेड़ी है.लेकिन यह कामयाब नहीं होगी,क्योंकि हम गांवो से और भेज देंगे.गौ-शाला,नंदीशाला भी कोई हल नहीं है.आखिर संख्या तेजी से बढ़ रही है.फिर आज नर गौ-वंश का तो कोई उपयोग नहीं है.यह तो पैदा ही गली,सड़क के लिए हो रहे है.फिर इनका क्या किया जाए.खेती को नुकसान पहुंचा रहे है,लोगों को मार रहे है,ट्राफिक के लिए प्रॉब्लम बन गए.इसलिए दब्बी-जुबान में सही लोग मानने लगे है,बुचडखाना ही इनका ईलाज है.समस्या बनी रही तो यह आवाज़ मुखर होगी.हालाँकि यह हमारे सामाजिक-मूल्यों के विपरीत है.बड़े तबके के आस्था का विषय है.इसका ख्याल रखा जाना चाहिए.द्वापर युग से गौ हमारे लिए पूजनीय है.इसकी रक्षा के लिए हमारे पूर्वजों ने बड़े बलिदान दिए है.गुरु गोविन्दसिंह ने दशम-ग्रन्थ में लिखा है”यही आज्ञा देऊ तुर्क को सपाऊं,गौ घात का दुःख जगत को हटाऊं .यही आज्ञा पूर्ण करो तो हमारी मिटे कष्ट गौ-उन छूटे खेद भारी.आर्य-समाज को एक प्रगतिशील संगठन के रूप में जाना जाता है.जिसने गौ-रक्षा के लिए आन्दोलन चलाया.उसके एक कार्यकर्त्ता हरफूल जाट का बलिदान इतिहास का भाग है.इस पृष्ठभूमि वाला समाज आज गौ के प्रति नजरिया बदल रहा है तो इसका जरुर कोई ठोस कारण है.वाकई समाज को गौ की प्रतिष्ठा की चिंता है तो इन वजहों का निदान करना पड़ेगा.वरना लाठी-सोटी से गौ को नहीं बचाया जा सकता है.इनको इकट्ठा करना,गौ-शाला में ताड़ देना कोई हल नहीं है.इनकी जगह फिर नए आ जायेंगेSurendar Godara ”.—————————————- जबसे ये ज़हरीली सरकार आयी हे सड़को पर गायो की तादाद बेहद बढ़ गयी हे लगता हे बहुत लोग इन गायो से होने वाली एक्सीडेंट से मरेंगे पता नहीं कितनी माएं रोयेगी और सबके जिम्मेदार ये तिवारीयो टाइप लोग भी होंगे सही समय पर कानून के दायरे में इन लोगो से भी इन मौतों का हिसाब लिया जाएगा
बेचारे संजय तिवारी संपादक विस्फोट पहले तो लिबरल थे अब कई सालो से ”ओमकारा ” के लंगड़ा त्यागी की तरह डेढ़ टांग पर घिसट रहे थे दक्षिणपंथ के ——— शुक्लाओं के पीछे , मुझे इनसे अब सख्त चिढ हे मगर इसमें कोई शक नहीं की दक्षिणपंथ में इनके जैसा विद्वान और कोई नहीं हे लेकिन हुआ ये की दक्षिणपंथ के ——— शुक्लाओं ने आजकल मध्य प्रदेश के एक कल के लड़के को एक शायद वेल्थी और अच्छी जॉब वाले वाले ” देशु फिरंगी ” को अपना नया बाहुबली घोषित कर दिया हे तिवारी जी की लाख सेवाओं के बाद भी दक्षिणपंथ के बुडबको ने तिवारी को कभी प्रचार नहीं दिया . कई कारण हे तिवारी के लंगड़ा त्यागी बनने के
संजय तिवारी को तो खेर कोई खास घास नहीं डाली गयी मगर कुछ कारणो से ”संघी फौज ” अपने नए ”देशु फिरंगी ” पर फ़िदा हे खेर Samar Anarya
18 hrs ·
एक मित्र ने मुझसे पूछा कि संघी लिजलिजाहट ने “गंगा पर इतनी सुन्दर पोस्ट लिखी” उसे कितने मुसलमानों ने लाइक किया. बावजूद इसके कि भारत के कम से कम आधे मुसलमान- यानी क़रीब क़रीब दस करोड़- गंगा किनारे रहते हैं. कितने मुसलमानों ने उस पोस्ट को शेयर किया। कितने मुसलमानों ने उस पर कमेंट किये!
हम पहले तो उनके मुताबिक़ इस “किंचित अकाट्य तर्क’ पर दरअसल एक वाक्य में झलरी हो जाय ऐसी बकवास पर हकबका ही गए! मने कोई ऐसी बेवकूफी इतने आत्मविश्वास से कर सकता है! फिर याद आया कि दरअसल विश्वास करने वाली परंपरा में किसी भी चीज पर विश्वास किया जा सकता है- ब्रम्हा के कंधे से पैदा हुए आदमी के ब्रम्हा को झुठला ज्ञान देने पर भी और किसी पैगम्बर के मार पत्थर चाँद के दो टुकड़े कर देने पर भी! विश्वास का क्या है- पसीने से, खीर खाकर अपने भगवान के पैदा होने पर किया भी जा सकता है और दूसरे के पैगम्बर के कुँवारी माँ से पैदा होने पर हँसा भी- और इसका ठीक उलटा भी!
खैर- माने अहमकई की इस हद की लिजलिजाहट कि गंगा किनारे 10 करोड़ मुसलमान रहते हैं – जबकि पूरे देश में काश्मीर छोड़ कुल मुस्लिम आबादी 18 करोड़ न है (2011 मुताबिक़ 17.2 करोड़! इसमें १० करोड़ गंगा किनारे बसे हैं तब तो बनारस, कानपुर, हरिद्वार, कोलकाता, भागलपुर सब को मुस्लिम बहुसंख्यक होना चाहिए! माने सोचिये- कोलकाता की मुस्लिम आबादी 45 लाख, बनारस 25 लाख, भागलपुर 4.23 लाख, मिर्ज़ापुर 2.3 लाख… माने कितने शहर बसवा दिए लिजलिजाहट भाई ने अपने मन वाले नफ़रतिस्तान में. खैर, हँस के हम बोले हाँ कठहिन्दू भाई- अगला सवाल!
संघी भाई पूछे कि अगर यही पोस्ट लिजलिजाहट भाई ने “गंगा” या “गाय” या “गीता” का उपहास करते हुए लिखी होती, जैसा कि हमारे पढ़े लिखे धर्मनिरपेक्ष लोग अकसर करते हैं, तो उस पर “लॉफ़िंग रिएक्शन” में मुसलमानों की क़तार नहीं लग जाती? आप फ़ेसबुक पर हिंदू प्रतीकों का उपहास करने वाली किसी भी पोस्ट के “लाइक्स” और विशेषकर “लॉफ़िंग रिएक्शंस” देख लीजिए! ऐसा क्यों है?”
हम जवाब दें इसके पहले ही संघी भाई ने लिजलिजाहट भाई के अगले कुतर्क दाग दिए!
“अब दो बातें बताइए :
1) हाल ही में ईद मनाई गई. मुबारक़बाद देने के लिए हिंदुओं में होड़ लग गई. मैंने यह भी देखा कि “अब्दुल्ला दीवाने” की तरह हिंदू एक-दूसरे को ही “ईद मुबारक़” बोल रहे हैं. क्या आपने कभी देखा कि मुस्लिम भाई एक-दूसरे को फ़ेसबुक या वॉट्सएप्प पर किसी हिंदू त्योहार की मुबारक़बाद के लिए उस तरह से होड़ लगाए हों?
हम बोले संघी भाई- हमने तो खूब देखा है! लिजलिजाहट भाई तो जिस राजपूत परम्परा से आते हैं उसमें कितने अंतर्विवाह तक हुए- राजपूत-खान- अकबर-जोधाबाई तक! तब से ही तमाम मुसलमान हिन्दुओं से बेहतर दीवाली भी मनाते हैं ईद भी! और उनकी छोड़िये- हमारे लखनऊ का बूढ़ा मंगल नवाबों ने शुरू किया था ये भी भूल जाइये- आज भी जाके देख लीजिये कि हलवा और शर्बत बांटने वालों में टोपियाँ गमछों से बहुत ज़्यादा होती हैं! ऐसे ही किसी भी काँवड़ यात्रा के साथ निकल पढ़िए- ठीक ठाक मुस्लिम आबादी वाले किसी भी कसबे में कई भरम टूट जायँगे! ये लिजलिजाहट भाई आजकल किसी संघी घेट्टो में तो नहीं रहने लगे हैं कि नहीं देख पाते?
संघी भाई थोड़ा घबराये पर फॉयर लिजलिजाहट भाई के पास कुतर्कों की क्या कमी- अगला दाग दिए! 2) प्रसंगवश, अगर कोई हिंदू अपनी फ़ेसबुक वॉल पर कोई मुस्लिम विरोधी पोस्ट लिखता है तो कितने सेकुलर हिंदू उसका विरोध करने पहुंच जाते हैं? भीड़ लग जाती है! लेकिन क्या आपने कभी देखा कि कोई मुसलमान अपनी फ़ेसबुक वॉल पर कोई हिंदू विरोधी पोस्ट लिखे तो “सेकुलर मुसलमानों” की भीड़ यह कहते हुए उसका विरोध करने पहुंच जाए कि ख़बरदार जो हमारे भाइयों के ख़िलाफ़ एक लफ़्ज़ भी बोला तो?
हम इस पर हँस भी न पा रहे थे! मुसलमानों की कौन कहे- हमने जब भी गौरक्षकों को हिन्दू आतंकवादी कहा कई मुसलमानों ने हमको ही धमका लिया- यहीं हमारी पोस्ट पर ही! कि ये हिन्दू नहीं, संघी आतंकी हैं!
संघी भाई अब तक मानसिक रूप से विचलित नजर आने लगे थे- पर फिर भी कोशिश किये- लिजलिजाहट भाई ने पूछा है कि “जिस “गंगा जमुनी” संस्कृति के नाम में ही “गंगा” है, उसमें सांस्कृतिक सौहार्द के ये नज़ारे इतने इकहरे क्यों हैं, इतने विरल क्यों हैं? इनकी एक तरतीब क्यों नहीं नज़र आती? गंगा पर एक गीत, गाय पर एक नज़्म से क्या होगा? ये अपवाद की तरह दुर्लभ नहीं, नियम की तरह सर्वव्यापी होना चाहिए. अभी तो मुझे लगता है कि जैसे एकतरफ़ा ही मोहब्बत हो!”
हम बोले लगता है कि आजकल गौमूत्र कम पी रहे हैं- दिमाग पर असर पड़ गया है आपके! माने इकहरे बोले तो? बाबा वारिस की दरगाह पे होली में आप न जाएँ- और बोलें कि नज़ारे इकहरे हैं!? माने बाराबंकी दूर हो तो हज़रत निजामुद्दीन दरगाह की बसंत पंचमी में ही चले जाते। आप कभी बसंत पंचमी मनाते हैं खुद? या बनारस के दशहरे में जो बिस्मिलाह बाबा की शहनाई बिना शुरू न हुआ. या मैहर में जहां माँ दुर्गा के लिए जिंदगी भर उस्ताद अलाउद्दीन खान गाये। या खुद अमरनाथ में जिसकी यात्रा मुसलमानों के बिना संभव ही नहीं। मने और बताता जाऊं कि हो गया?
संघी भाई- जो खुद लिजलिजाहट भाई के चारण थे अब स्तब्ध थे! बोले कि मगर लिजलिजाहट भाई पूछते हैं कि —
“गंगा पर वह पोस्ट लिखने पर मुझे “संघी” कहकर पुकारा गया है लेकिन क्या गंगा हिंदुओं को ही अपना पानी देती है? दूसरे, गंगा नदी भारत की प्राण रेखा है और उसकी आराधना हर हिंदुस्तानी को करनी चाहिए, लेकिन जब आप गंगा को एक हिंदू प्रतीक मान लेते हो तो क्या आप प्रकारांतर से यह कहने का प्रयास नहीं कर रहे होते हैं कि केवल हिंदू ही हिंदुस्तानी हैं?”
हम बोले कि शुक्र है कि संकटमोचन के महंत बाबा यहाँ नहीं हैं नहीं तो आपको बचाना मुश्किल हो जाता मेरे लिए! ऐसी अहमकई पे ऊ लतिया देते हैं! क्या है कि मामला खाली बनारस के महबूब शायर नजीर बनारसी का नहीं है- किपढ़ के निकल लें कि ‘सोयेंगे तेरी गोद में एक दिन मरके, हम दम भी जो तोड़ेंगे तेरा दम भर के, हमने तो नमाजें भी पढ़ी हैं अक्सर, गंगा तेरे पानी से वजू कर करके।’
ये बनारस की, इलाहाबाद की, कानपुर की हमारी रोज की देखी और जी जिंदगी है! हाँ जी- दशाश्वमेध घाट पर गंगा मैया के पानी से वजू करके नमाज़ पढ़ना आम है! और उन नमाजियों के सामने गंगा मैया में कचरा फेंकने की कोशिश करके देखियेगा- पता चल जायेगा कि सड़कों पर प्लास्टिक खाने को मजबूर आपकी गाय माता की तरह वोट वाली फर्जी माता हैं कि असली।
संघी भाई अब तक मुँह से फेंचकुर फेंकने लगे थे! बोले पर लिजलिजाहट भाई तो इन तर्कों को किंचित अकाट्य बोले हैं! ऊपर से जोड़े हैं कि “क़ौमी एकता और भाईचारे की ताली एक हाथ से नहीं बजती, उसे दोनों हाथों को बराबरी से बजाना होता है और इक्का दुक्का मौक़ों पर नहीं, लगातार बजाना होता है, क्योंकि क़ौमी एकता एक साझा ज़िम्मेदारी होती है और वह काग़ज़ पर नहीं ज़मीन पर नज़र आनी चाहिए!”
हम बोले कि किंचित अकाट्य की तो मैंने बत्ती बना के डाल दी है- आपके कान में! ऐसे दावे सुनने हों तो इतनी बड़ी पोस्ट काहे पढ़नी चुगद! शाम को किसी ठेके पे चले जाय करो- वहाँ सबके तर्क “किंचित अकाट्य” ही होते हैं और जिंदगी झलरी!
बाकी- घेट्टो से बाहर निकलो, खाली पागल संघियों के साथ रहोगे तो हिन्दू तालिबान बन जाओगे! वो न स्वास्थ्य के लिए ठीक, न जिंदगी के! और ये बात दरअसल ‘किंचित अकाट्य” है!
पता नहीं संघी भाई के चेहरे पर जो दिखा था वह खिसियाहट थी या लिजलिजाहट!Samar Anarya
गौराक्षस संजय तिवारी का ”बड़ा भाई ” एक दूसरा तिवारी पढ़े इनके विचार Madan Tiwary23 hrs · दलितों को अब सवर्णों के वीर्य की जरूरत है इसको बिना शर्म के स्वीकार करें और IVF तकनीक से सवर्णों के स्पर्म से औलाद पैदा करे ,न सिर्फ आरक्षण की आवश्यकता ख़त्म हो जायेगी बल्कि शारीरिक सौंदर्य भी प्राप्त होगा ।Madan Tiwary
संपादक नीरेंद्र नागर जी ने अपने ब्लॉग में मोदी की गौ रक्षको पर सख्ती की बकवास को वैसे ही बताया हे जैसे की मेज़बान के यहाँ बदतमीजी कर रहे बच्चो को माँ बाप दिखावे को डांट देते हे मोदी अपने हर भाषण में गाय की महानता का जिक्र करके गौ रक्षको को और हिंसा को उकसाते हे इसी तरह इन संजय तिवारियों के फ़र्ज़ी गौ प्रेम और फ़र्ज़ी मोदी विरोध को भी समझिये संघ को यु ही ऑक्टोपस नहीं कहा जाता हे प्रशांत भूषण ने अपने ट्वीट में जोपरिवार में श्रम विभाजन दिखया था ये तिवारी जैसे मोदी विरोध की बाते करने वाले भि उसी संघी साइकि का हिस्सा हे जो मोदी विरोध की बाते करके निष्पक्ष लोगो को आकर्षित करते हे तिवारी जैसे एक तरफ मोदी विरोध करते हे दूसरी तरफ फ़र्ज़ी गौ प्रेम दिखते हे और फैलाते हे अब ये फ़र्ज़ी गौ प्रेमी आखिर जो भी होगा जायेगा तो भाजपा के ही खाते में ना तो ये हे इन संजय तिवारियों की असलियत , सावधान
https://www.youtube.com/watch?v=_CbDLPQEqNA
Vishnu Nagar
10 hrs ·
वैसे गौरक्षा -गौरक्षा का हव्वा खड़ा करके संघ -भाजपा ने अपने लिए बड़ी मुसीबत मोल ले ली है।मध्य प्रदेश में अनाथ (आवारा क्यों कहा जाए?)गायें इतनी बड़ी मुसीबतबन चुकी हैं कि विधानसभा में इस पर चर्चा ख़ुद भाजपाइयों ने ग़ैर सरकारी प्रस्ताव रखते हुए छेड़ी। अब वे या कोई और इस समय यह तो कह नहीं सकता था कि ये गौरक्षा की नाटकबाजी बहुत हो चुकी, इस नाम पर गुंडागर्दी को काफ़ी बढ़ावा दिया जा चुका, अब वास्तविक समस्या को देखो ये नाटकबाजी बंद करो।उन्होंने ही बताया कि गाँवों में ये गायें कितनी बड़ी समस्या बन चुकी हैं(मेरे मित्र अरुण व्यास मेरी एक पोस्ट पर क़स्बों में इससे जो समस्या पैदा हो रही है, उस पर टिप्पणी कर चुके हैं।)।वे खेतों में घुस जाती हैं, फ़सल चर जाती हैं।गाँवों में चरागाह ख़त्म हो चुके हैं, किसान या गोपालक उन गायों को -जो दूध देना बंद कर चुकी हैं-कहाँ से खिलायें? वे हद से हद फ़सल काट लिये जाने के बाद गायों को खेतों में छोड़ देते हैं मगर इससे हो यह रहा है कि जब फ़सल होती है, तब भी गायें खेत में घुस जाती हैं।साँप आदि के काट लिये जाने का ख़तरा उठाकर भी इस कारण किसानों को खेत पर ही सोना पड़ रहा है ताकि रात में ऐसी गायें फ़सल न चर जाएँ।आगर नें गाय अभ्यारणय न जाने कब से प्रस्तावित है, वह बना नहीं है और बन जाएगा, तब भी उसमें पाँच हज़ार से ज़्यादा गायों को रखा नहीं जा सकता जबकि एक भाजपाई विधायक ने ही चेतावनी दी कि उनसे इतने लोग इस बारे में पूछते हैं कि वहाँ पहले दिन ही चालीस-पचास हज़ार गायें पहुँचाने लोग आ सकते हैं।एक रीवा में बनेगी तो वह पाँच की बजाय हद से हद दस हज़ार गायों को रख पायेगी।उससे भी क्या होगा?अब सरकार के पास कोई ठोस जवाब तो है नहीं, बनेगी, तब बनेगी और बनेगी तो कार्यान्वित कब होगी और होगी भी या नहीं होगी ,कौन जाने?ज़ाहिर है कि यह संकट अन्यत्र भी आ रहा होगा।भाजपा ने स्वेच्छा से अपने गले में कई घंटियाँ बाँध रखी हैं, कहीं इससे भाजपा की ही घंटी न बज जाये? वैसे बज भी जाये तो क्या बुरा है?घंटी गले में बाँधी इसीलिए जाती है कि बजे तो बजवाओ,कौन रोकता है और राम भजन करो!जय श्री रामVishnu NagarLike · Reply · 10 hrsManageSandip NaikSandip Naik रीवा के डभौरा इलाके में मवासी आदिवासी बहुत परेशान है उनकी लगभग 70 % फसल नष्ट कर देती है ये और मुआवजा भी नही मिलता। अभी जून में कुछ परिवारों ने बताया था कि उन्हें एक से डेढ़ क्विंटल गेहूं ही मिला और चना तो 40- 50 किलो। अब कौन कुछ बोलें।
गाय हमारी माता है और हमको कुछ नही आता है।
Naresh Saxena
Naresh Saxena भाईसाहब, ये तो बात हुई गायों की, बूढ़े बैलों और बछड़ों का क्या करेंगे उनको आवारा बनायेंगे, बीफ़ बनायेंगे,या सानी पानी की व्यवस्था करेंगे।
5 लाख गाँव हैं भारत में।बहुत मोटा हिसाब लगाया मैंने तो कमसेकम 1लाख करोड़ सालाना ख़र्च आयेगा।बजट में प्रावधान किया क्या.?
See translationLike · Reply · 3 · 9 hrsManageVishnu Nagar
Vishnu Nagar उसकी जरूरत क्या है ?गाय के नाम का आधार कार्ड है न!?
Arun Vyas
Arun Vyas इस स्थिति में केवल वह धर्मगुरू जनता खुश है जिसे यह कह दिया गया है कि श्रावण के महीने में गायों को हरा चारा खिलाया जाए और गली-गली घूमने वाले ठेले वालों से 5 रुपए में पूले लेकर उन्हें खिलाने की सहूलियत मिल गई है वरना तो स्थिति उससे भी अधिक भयानक है जितने आपने लिखी है सड़कों और गलियों में मनुष्य कम पशु ज्यादा दिख रहे हैं दुर्घटनाएं तो आम बात हो गई हैं।
See translation
Like · Reply · 1 · 7 hrs
Manage
Sunil Kumar Misra
Sunil Kumar Misra ये सुविधा पहले देखते हैं, जब बांधना होता हैं घंटी बांध लेते हैं.. बोझ लगा तो उतार भी देते हैं .. अब आप देखो “राम नामी” को चुनाव के वक्त निकालते हैं और चुनाव के बाद फिर उतार देते हैं !!
See translation
Like · Reply · 1 · 7 hrs
Manage
Vishnu NagarLike · Reply · 2 · 6 hrs
Manage
Ramsharan Joshi
Ramsharan Joshi अनाथ गायों की चहल कदमीको दिल्ली की सड़कों पर आम देखा जा सकता है. ठीक मोदीजी के नाक के तले.
Vishnu Nagar चरित्रवान हैं न इसलिए।
Arun MaheshwariFollow25 July 2016 · WordPress · ( उमा भारती सन् 2003 में संयोग से मध्य प्रदेश की मुख्यमंत्री बन गई थी । मुख्यमंत्री के रूप में उन्होंने उस प्रदेश में क्या-क्या गुल खिलाये थे, इसकी एक झलक उनके शासन के सौ दिनों पर लिखी गई सरला माहेश्वरी की इस टिप्पणी से मिलती है । यह टिप्पणी 19 मार्च 2004 के ‘जनसत्ता’ में प्रकाशित हुई थी । हम यहाँ आज इसे इसलिये साझा कर रहे हैं क्योंकि इसे पढ़ कर आसानी से देखा जा सकता है कि उमा भारती ने तब एक प्रदेश में अपनी मूर्खतापूर्ण करतूतों से जो अराजकता पैदा की थी, उसे ही आज नरेन्द्र मोदी किसी न किसी रूप में पूरे देश में दोहरा रहे हैं । इसके अलावा आज तुलसी जयंती है और सरला की इस टिप्पणी में गुंसाई जी की बातो से ही उस ‘पीतवसनधारी कुटिल संत’ के राज पर रोशनी डाली गई थी ।)
उमा राज के सौ दिन
-सरला माहेश्वरी
तुलसी ने रामचरितमानस मानस के उत्तरकांड में कलयुग के पीतवसनधारी कुटिल संतों के बारे में काफी कुछ लिखा है। ये हमेशा डींगें हाँकने वाले (पंडित सोई जो गाल बजावा), सर मुढ़ाकर संन्यासी बन जाने वाले (मूड़ मुड़ाइ होंहिं संन्यासी) ऐसे गंभीर संत होते हैं, जो अपने हाथ से दोनों लोकों का नाश करते हैं (उभय लोक निज हाथ नसावहिं)।मध्यप्रदेश की पहली संन्यासिन मुख्यमंत्री उमा भारती के शासन के पहले सौ दिन देख लीजिये-तुलसीदास की कही एक-एक बात आपको सही दिखने लगेगी ।उमा भारती सत्ता में आई थीं राम राज्य का वादा करके। ‘दैहिक दैविक भौतिक तापा, राम राज नहीं काहुहिं व्यापा’ का सपना देकर; बिजली, सड़क, पानी की समस्या के समाधान की प्रतिज्ञा करके। उन्होंने सौ दिन, दो सौ दिन और साल-दो साल के अपने ‘समय-बद्ध’ विकास कार्यक्रमों को लेकर कम गाल नहीं बजाए थे। लेकिन अब सौ दिन बाद क्या दिखाई दे रहा है ?
बिजली, सड़क, पानी की बातें अब दूर की बात बनाकर छोड़ दी गयी हैं। जो तत्काल किया गया है, वह किसी भी राजसी संत के कोरे आडंबर और अहंकार के अतिरिक्त और कुछ नहीं है। राम राज के गायक तुलसी कहते थे : ‘संवतैं अधिक मनुज मोहे भाएं’, लेकिन उमा भारती ने दिखा दिया है कि मनुष्य उनकी अंतिम प्राथमिकता है। उनकी पहली और सर्वप्रमुख प्राथमिकता धार्मिक आडंबर भर है, जिसके ज़रिये वे सस्ते में भारत की धर्मभीरू जनता को बहका कर बाज़ी मात करना चाहती हैं ।उन्होंने आदमी को नहीं, गऊ को अपनी कृपा का पात्र बनाया; एक ऐसे निरीह, मूक और हिंदू मन के अतिप्रिय पशु को जो सत्ता के किसी भी विचार-अविचार पर कभी कोई टिप्पणी नहीं कर सकता है। गाय को पवित्र घोषित किया, गौशालाओं के वादे किये, गोवध पर रोक लगाई, गायों की चराई के लिये पूरे प्रदेश को खोल देने जैसा ढ़ोंग रचाया।कहते हैं कि उमा भारती के लिये रोज़ाना उनके अफ़सरान किसी गाय को पकड़कर लाते हैं जिसे वे सुबह-सुबह रोटी खिलाकर अपने दिन की शुरुआत करती हैं, और उन्होंने ठान रखा है कि हफ़्ते में एक निश्चित दिन वे काली गाय को रोटी खिलाएँगी, इसलिये उस दिन तो उनके अफ़सरों को, वे भले किसी भी शहर में क्यों न हों, काली गाय खोज कर लानी पड़ती है ।
मनुस्मृति में गाय को किसी भी अधम प्राणी, जैसे शूद्रों से अधिक पवित्र बताया गया है। इसीलिये गाँव के दलितों को भूमि मिले या न मिले, उमा जी की पहली प्राथमिकता गायों की चराई के लिये ज़मीन जुटाने की है।वे अपने इस गऊ-प्रेम के पीछे मनुस्मृति की बात बिना झिझक कहतीं हैं और इस तरह प्रकारांतर से वे समाज के दलितों, वंचितों के प्रति अपनी भावनाओं को भी साफ़ प्रकट कर दे रहीं हैं ।
मध्यप्रदेश शासन के इन सौ दिनों में इसी प्रकार का दूसरा आडंबरपूर्ण काम किया गया है पवित्र नगरों की घोषणा का।अब तक अमरकण्टक, महेश्वर और उज्जैन शहरों को पवित्र शहर घोषित किया गया है। वहाँ माँस-मदिरा प्रतिबंधित कर दिये गये हैं।इस घोषणा से और कुछ भी क्यों न हो, आम लोगों की जिंदगी किसी भी रूप में आसान अथवा समृद्ध नहीं होगी। उलटे सात्विकता को प्रोत्साहन के नाम पर समाज के कुछ ख़ास, उनमें भी विशेष तौर पर ग़रीब तबक़ों की खान-पान की आदतों पर हमला किया गया है ।यह दलितों और अल्पसंख्यकों को उनकी औक़ात समझा कर हर लिहाज़ से पराजित करने के संघ परिवार के हिन्दुत्व के कार्यक्रम का हिस्सा भर है।सब जानते हैं कि अमरकण्टक के इलाक़े में बैंगा और गोंड आदिवासी समुदाय रहते हैं। शिकार और वनोपज ही उनकी जीविका के आधार हैं। माँस, मछली और महुआ उनकी जिंदगी का हिस्सा है। इसी तरह महेश्वर में मुसलमान बुनकर बड़ी संख्या में रहते हैं।तुलसी का राम शबरी के झूठे बेर खाता है, उमा का राज शबरी से उसका भोजन छुड़ाता है। ग़रीबों के ‘दैहिक, दैविक और भौतिक तापों’ के हरण का कितना अनोखा राम-राज़ी नुस्ख़ा है यह ।तुलसी राम राज का चित्र खींचते हुए कहते हैं-‘ सब नर करहिं परस्पर प्रीती,चलहिं स्वधर्म निरत श्रुति नीति।’ उमा राज में परस्पर प्रीती यानि निजी धर्म पर चलने की कोई छूट नहीं है। जिस चीज़ को सबसे ज़्यादा उत्साह के साथ इस बीच किया गया है वह है विचारों की स्वतंत्रता का हनन। विरोधी विचारों की पुस्तकों की बिक्री में बाधाएँ डाली जा रही हैं। मध्यप्रदेश साहित्य अकादमी के सचिव पूर्णचन्द्र रथ को इसलिये निकाल बाहर किया गया है क्योंकि वे एक स्वतंत्रचेता साहित्यकार हैं। इसी आधार पर भारत भवन के उपनिदेशक को भी हटा दिया गया है। एक ऐसे शख़्स को प्रदेश का संस्कृति मंत्री बनाया गया है जो भारतीय शास्त्रीय संगीत की दुनिया की किंवदंती बन चुके परम आदरणीय उस्ताद अलाहुद्दीन खां की तौहीन करने से भी बाज नहीं आते और उन्हें बांग्लादेशी कह कर उनके नाम पर बनी संगीत अकादमी का नया नामकरण करने के लिये उद्धत है। हिंदी के सर्वप्रिय कवि शिवमंगल सिंह सुमन के नाम के अस्पताल का नाम बदलकर संघ प्रचारक कुशाभाऊ ठाकरे के नाम पर करने की बात भी की जा रही है ।जहाँ तक विकास के उन मुद्दों का सवाल है, जिनके बारे में क़समें खाकर उमा भारती सत्ता में आई थीं, उनके पास अब भी उनके बारे में सिर्फ वादे ही वादे हैं, किया हुआ कुछ भी ऐसा नहीं है जिसका ज़िक्र किया जा सके। कहना न होगा कि इस राजसी संन्यासिन का पूरा कार्यकाल ऐसे ही पाखंडों भरे कार्यकाल के अतिरिक्त और कुछ नहीं हो सकता। इसीलिये तो उन्होंने कई संघी प्रचारकों को अपने सलाहकारों के तौर पर नियुक्त किया है।Arun Maheshwar
https://satyagrah.scroll.in/article/19685/savarkar-cow-opinion
http://thewirehindi.com/15808/cow-maverick-animal-farmers-crop/
हालात उससे भी ख़राब हे जितना की कृष्णकांत की रिपोर्ट में बताया गया हे कुछ जगह तो बूचड़खने बंद होने से खाना ना मिलने से फिर पगलाए आवारा कुत्तो ने बच्चो को नोच डाला हे बहुत ही दुःख की बात हे की अब हमें भी ऐसा घटिया और नीच सुझाव देना पड़ रहा हे की भाजपा और संघ के जानवरो ने हमें भी जानवर बना दिया हे जानते हे की बहुत लोग मरेंगे बहुत किसान मरेंगे परसो मेरा भी एक आवारा गाय के कारण एक्सीडेंट होते होते बचा अब जैसा की हालात हे और हम इन लोगो की नीचता और कमीनगी से वाकिफ हे तो अंदरखाने ये लोग वेध अवैध बूचड़खानों को खुलवाने की कोशिश करेंगे दूसरी तरफ अपनी बकवास भी जारी रखेंगे जैसा की भजपा की एक रद्दी का संपादक ———— झा जो खुद बीवी की कमाई पर जिन्दा हे वार्ना भूख से तड़प तड़प कर मर जाता शायद , वो लिखता हे की सरकार हर तरह के पशुवध पर रोक लगाए जो नुकसान होगा हम भर देंगे . तो एक तरफ तो ऐसी नॉनसेंस जारी रखेंगे दूसरी तरफ किसानो के गुस्से को देखते हुए ये जरूर वेध अवैध बूचड़खाने खुलवाने की अंदरखाने सहमति देंगे जानता हु की बहुत लोग मरेंगे मगर अगले लोकसभा चुनाव तक बूचड़खाना मालिकों को काम शुरू नहीं करना चाहिए जानता हु की इस कारण बहुत लोग बेमौत मरेंगे मगर क्या करे इन जानवरो ने दुसरो को भी अपने जैसा बना दिया हे
http://naisadak.org/political-business-of-cow-bjp-does-very-well/
मौज हे उन लोगो की इस बार तो केवल मुस्लिमराइटिस्ट ही नहीं और भी महान लोग बाबा बवाल के बाद मार्जिन लेने के लिए अचानक से मदरसों को पूरी तरह से क्लीन चिट देने लगे महिमा बताने लगे क्या बात हे दोनों हाथो में लड्डू , किस्मत हो तो इन राइटिस्टों और कुछ शिया बरेलवीलिबरलों की , मज़े ही मज़े हे जाता कुछ नहीं हे बिना किसी सरदर्दी और खतरे के कुछ न कुछ आता ही हे . धन्य हे ये लोग , और करमजले हे हम लोग
http://www.bbc.com/hindi/india-41300792
http://www.mediavigil.com/investigation/rss-and-cow/
Arun Maheshwari
1 min ·
गोमांस के व्यापार पर इजारेदारी का यह कैसा उपक्रम !
आज बनारस के एक साथी ने लिखा है कि “अंदाज सही निकला सर, सरकारी गोरक्षा मूवमेंट ने छोटे स्लाटरों से पशु छीनकर बड़ों की ओर मूव करवा दिया । उधर के स्लाटरों में गायों की आपूर्ति की स्थति पता नहीं ।“
ये साथी खुद स्वामी करपात्री जी महाराज के एक परमसहयोगी और किसी समय गोरक्षा आंदोलन के कर्ता-धर्ताओं में एक रहे हैं । लेकिन जब आरएसएस के लोगों ने जगन्नाथपुरी पीठ के शंकराचार्य निरंजनदेव तीर्थ का इस्तेमाल करके इस आंदोलन पर क़ब्ज़ा जमा लिया और 1966 की गोपाष्टमीके दिन हज़ारों त्रिशूलधारी साधुओं को लेकर दिल्ली में संसद भवन पर हमला किया उसी समय से करपात्री जी महाराज ने आरएसएस की इस कार्रवाई का खुला विरोध करना शुरू करदिया था । वह भारत में संविधान के केंद्र-स्थल पर आरएसएस का पहला सीधा हमला था । पुलिस को आक्रामक साधुओं पर गोली चलाना पड़ी थी जिसमें कुछ साधू मारे भी गये ।
मजे की बात यह है कि जिन शंकराचार्य की पीठ को तबआरएसएस ने अपना मोहरा बनाया था आज उसी पीठ के साथ आरएसएस का छत्तीस का रिश्ता है । अभी आरएसएस आजके युग के आशाराम, रामपाल, राम रहीम, बाबा रामदेव आदि की तरह के भोगी बाबाओं को हिंदू धर्म के रक्षकों के रूप में पालता-पोसता है ।
करपात्री जी की मृत्यु के बाद भी ये साथी एक ओर जहाँ अपने स्तर पर गोरक्षा के कामों से जुड़े हुए हैं, वहीं इस क्षेत्र में आरएसएस की गतिविधियों पर इनकी तीखी नज़र रहने और स्लाटर हाउस तथा गोमांस के व्यापारियों के साथ संघ के लोगों की साँठ-गाँठ का हमेशा विरोध करने की वजह से संघ वालों ने इन्हें नाना प्रकार से प्रताड़ित भी किया है । इसीलिये उनका आग्रह है कि इस टिप्पणी में उनका नाम नहीं जाना चाहिए ।
इधर मोदी के सत्ता में आने और गोगुंडों के रूप में गोरक्षकों की भूमिका को देख कर वे इधर अक्सर कहा करते थे कि ये समूची गतिविधियाँ बड़े-बड़े स्लाटर हाउसेस की गोमांस के व्यापार परपूर्ण इजारेदारी को कायम करने का उपक्रम भर है ।
आज योगी सरकार ने सत्ता पर आने के साथ ही ग़ैर-क़ानूनी स्लाटर हाउस पर पाबंदी के नाम पर जो काम शुरू किया है, उसकी दिशा इसी बीच साफ हो गई है । अब आगे से गायों को कटने के लिये सिर्फ बड़े-बड़े स्लाटर हाउस को ही भेजा जायेगा। वे ही ऐसी गायों की क़ीमतों को अपनी मर्ज़ी से तय करेंगे । इसमें अब बाजार के नियम की कोई दखलंदाजी नहीं रहेगी ।
कहा जाता है कि आज के भारत में हज़ारों करोड़ रुपये के गोमांस के व्यापार पर इनकी पूरी इजारेदारी है । उनकी मर्ज़ी के बिना व्यापार के इस क्षेत्र का एक पत्ता भी नहीं हिलता है । अगर यह सच है तो कहना होगा, धर्म के नाम पर राजनीति का यह कैसा खेल है !Arun Maheshwari——————-Sanjay Tiwari
23 hrs ·
मोदी की हर नीति गरीबों के कल्याण के नाम पर चलाई जाती है लेकिन उनकी कोई भी नीति गरीबों के कल्याण के लिए नहीं होती। वो एक कल्याणकारी राज्य की अवधारणा में विश्वास ही नहीं रखते। इसका संकेत उन्होंने कभी मनरेगा का मजाक उड़ाकर दे दिया था। देश के “प्यारे सवा सौ करोड़ भाई बहन” उनके लिए एक बाजार हैं जिनका इस्तेमाल करके व्यापार को बढ़ाना है।
जनधन योजना इस व्यापार का पहला चरण था जब गरीब लोगों की जेब से पैसा निकालकर बैंकों के हवाले किया गया। आश्चर्य तो यह होता है कि इसे भी उन्होंने गरीबों के कल्याण की योजना बताई और लोगों ने मान लिया। इसके बाद नोटबंदी दूसरा चरण था ताकि ज्यादा से ज्यादा डिजिटल मनी को बढ़ावा मिले और कारपोरेट घरानों को अतिरिक्त व्यापार। उनके बाजार का तीसरा चरण है जीएसटी। चौथा डीजल पेट्रोल पर बेहिसाब टैक्स। पांचवा पेट्रोलियम कंपनियों को स्थाई बाजार देने के लिए घर घर सिलेण्डर पहुंचाने की योजना।
ऐसी और भी कई स्कीम हैं जिसे मोदी ने सफलतापूर्वक लागू किया और इसे गरीबों के कल्याण से जोड़ दिया। जबकि हकीकत में यह मार्केट का कंसालिडेशन था। एक खुदरा बाजार संगठित व्यापार के लिए हमेशा नुकसानदेह होता है इसलिए बाजार जितना संगठित हो वह व्यापारियों के लिए बहुत मुनाफे का सौदा होता है। जब संसार में नोट की करंसी आयी थी तब उसका भी मकसद यही था कि लोग जिस तरह से आपस में लेन देन करते हैं उससे बाजार कभी पूंजीपतियों के हवाले ही नहीं हो पायेगा। डिजिटल मनी उससे भी आगे का कदम है। पहले नोट के कारण बाजार में जो छुटभैये पैदा हो गये थे डिजिटल मनी और जीएसटी उनको साफ कर देंगें।
मोदी देश में ऐसी आर्थिक नीति लागू कर रहे हैं जिससे देश तो मजबूत होता दिख रहा है लेकिन लोग कमजोर होते जा रहे हैं। देश की समृद्धि का ग्राफ ऊपर उठेगा लेकिन लोगों की समृद्धि का ग्राफ नीचे चला जाएगा। देश में एक लाख लखपति पैदा होने की बजाय सौ करोड़पति पैदा किये जाएंगे। जिससे ऊपर से देखने पर देश आंकड़ों में बहुत समृद्ध नजर आयेगा, आधारभूत ढांचा भी विकसित होता चला जाएगा लेकिन आम आदमी की मुश्किलें बढ़ती जाएंगी। पहले भारत संपन्न लोगों का विपन्न देश था लेकिन मोदी का कार्यकाल खत्म होते होते विपन्न लोगों का संपन्न देश बन जाएगा।
लेकिन यह बात न कोई आज सुनेगा न समझेगा क्योंकि मोदी ने ऐसी बीन बजा रखी है कि सब लहरा रहे हैं। रही सही कसर कम्युनिस्ट और इस्लामिस्ट पूरी कर दे रहे हैं। इनको मोदी विरोध में खड़ा देखकर लोग सौ तकलीफ सहकर भी मोदी का समर्थन करने के लिए तैयार हो जाते हैं।
Hasan Rana
26 October at 08:41 ·
ज़िला बुलन्दशहर में एक मदरसा है, जिस गांव में है वह अब भी दो किलोमीटर दूर है, यूँ समझ लीजिए सन 2000 में तो मदरसे के आस पास जंगल बयाबान था, मदरसा रेलवे लाइन के बराबर में है, रेलवे फाटक पार करते ही सड़क किनारे मदरसा है.. वो सड़क अंदर के पूरे देहात को हाइवे से जोड़ती है.. ये मदरसा देखने मे तो सिर्फ मदरसा था, लेकिन यहां के हिन्दू मुसलमान दोनों के लिए इस मदरसे की एहमियत एक मज़हबी इमारत से कहीं ज़्यादा थी..
वहां शाम छे बजे के बाद देहात में जाने के लिए जब कोई वाहन न मिलता तो वो लोग मदरसे आ जाते, मदरसे में उन्हें खाना खिलाया जाता, अगर देर हो जाती तो मेहमान खाने में उनके सोने का इंतज़ाम किया जाता, बहुत बार ऐसा हुआ कि पूरा परिवार औरतो बच्चो के साथ मदरसे में रात गुज़ारता.. वो सुबह नाश्ते से फारिग होकर अपने घर रवाना होते.. दर असल इन लोगो को जब तक पता नही था कि मदरसे आतंकवाद का अड्डा हैं..
बहुत से लोग अपने घर जाने की ज़िद करते तो मौलाना बड़े बच्चो को लाठी देकर उनके साथ रवाना करते.. पांच सात किलोमीटर रात को बच्चे उन्हें पैदल उनके गांव तक छोड़ आते.. और इनमे बहुत बार गैर मुस्लिम होते , हर स्टूडेंट चाहता कि ये मौक़ा उसे मिले.. ताकि जब उन्हें छोड़कर वापस आए तो रास्ते मे हुल्लड़ मचा सकें.. वाक़ई रात का पांच दस किलोमीटर का ये सफर बहुत रोमांचक होता था..
इन दिनों हाइवे के बराबर में बहुत से कोल्हू चलते थे, असर की नमाज़ के बाद अक्सर मदरसों के बच्चे टहलते हैं, हम उन कोल्हुओं की तरफ चले जाते, कोल्हू अक्सर गैर मुस्लिमो के होते थे, वो लोग हमें बुलाते और थोड़ा थोड़ा गुड़ हर बच्चे को देते, हम लोग पूरा एक घण्टा कोल्हू पर गुज़ारते, बाते करते और अज़ान के वक़्त वापस आ जाते..
में तक़रीबन दस साल अपना जीवन स्टूडेंट की हैसियत से मदरसे में गुज़ारा है, यक़ीन जानो मेने किसी मज़हब के मुताल्लिक़ कुछ नही सुना, न अच्छा न बुरा, जब मदरसे से निकला तो अजीब माहौल हर तरफ देखा, हिन्दू मुस्लिम और ये और वो, हमे लगा कि हमारे लिए तो वो जंगल ही ठीक था.. अगर मदरसो को जानना है तो आप मदरसा जाइये, और उनकी ज़िंदगी को क़रीब से देखें.. आप देखेंगे मीडिया ने मदरसों की जो तस्वीर आपके सामने पेश की है, हक़ीक़त उसके उलट है…
मदरसे की ज़िंदगी के इस किस्म के बहुत से किस्से मुझे याद हैं, लेकिन जब मुझे वहां दुबारा रहने का इत्तेफ़ाक़ हुआ तो सूरतेहाल बदल चुकी थी, अब मदरसे में शायद ही कोई गैर मुस्लिम इस तरह से आता था, न मदरसे के बच्चे रोड क्रॉस करके हिन्दुओ के खेतों में जाते हैं, न कोई गैर मुस्लिम मदरसे में अपनी साइकिल खड़ी करता हौ, न ही रेलवे फाटक के ऑपरेटर सब्ज़ी लेने के लिए मदरसे आता है.. न पंडित जी एक किलो दूध मदरसे में देते हैं… न ही अब बच्चे किसी को छोड़ने उसके गांव जाते……!!Hasan Rana
19 hrs ·
लगेगी आग तो आएंगे घर कई ज़द में..
Dr फ़िरोज़ मलिक साहब का क़स्बा बुढाना में क्लिनिक है, अक्सर पेशेंट गैर मुस्लिम हैं, एक गैर मुस्लिम औरत ने उन्हें रोते हुए बताया कि उनकी गाय हरयाणा में है, गोरक्षक गुंडों की गुंडागर्दी के खौफ से लाने की हिम्मत नही हो रही…
ऐसे सेंकडो वाकियात हैं जो ज़ुल्म की कोख से जन्म लेते हैं.. ज़ुल्म पीड़ित के लिए ही नुक़सान देह नही होता, बल्कि जो लोग ज़ुल्म पर खामोश रहते हैं उन्हें भी उतना ही नुक़सान होता है जितना मज़लूम को होता है….!!दीपक शर्मा को ताज परिसर में हनुमान चालीसा पढ़ने से रोक दिया गया… मेरे ख्याल से इसपर इतना उछलने कूदने की ज़रूरत नही है.. दीपक शर्मा ने एक गैर कानूनी काम किया था.. क़ानून ने अपना काम किया.. आपको इसपर चिंतित होना चाहिए कि स्थिति कितनी गम्भीर है कि ताजमहल जो एक ऐतिहासिक स्थल है, उसपर भी कितनी ढिटाई के साथ दावा ठोक दिया गया है…
दर असल स्टेप बाय स्टेप काम करना संघ और उसकी बगल बच्चा संस्थाओं का विशेष तरीका है.. आप वक़्ती खुशी में पटाखे फोड़ने में मस्त रहते हैं, हालांकि आपकी वक़्ती जीत भी संघ के प्लान का एक हिस्सा होती है…
ताज महल को विवादित बनाने का काम पहले पहल संघ की बगल बच्चा ज़िला स्तर /राज्य स्तर की इलाकाई संस्थाओं ने किया.. उनकी बातों को ज़िम्मेदार लोगो ने बे वक़ूफ़ी समझकर नज़रअंदाज़ किया, लेकिन इस झूट का प्रचार तेज़ी के साथ होता रहा, मैदान इतना तो बन चुका कि यूपी के मुख्यमंत्री ताजमहल का नाम बदलने की बात नेशनल टीवी पर करते हैं, और उनकी इस अभिव्यक्ति पर तालियां बजती हैं…
इनकी मजबूरी है ये ताजमहल को बाबरी मस्जिद की तरह गिरा नही सकते.. लेकिन उसकी हैसियत को तब्दील ज़रूर कर सकते हैं, इस काम की शुरुआत तो हो चुकी है, ये संघ के मौखिक प्रचार का ही असर है कि पन्द्रह सोलह साल का ‘युवा हिन्दू ह्रदय सम्राट फसबूक यूज़र’ इस बात पर ज़रा भी शक नही करता कि ताज महल एक मंदिर था, आइंदा अगर आपको खबर मिले कि ताज परिसर के एक कोने में पूजा पाठ होने लगी है तो चोंकियेगा मत…!!Hasan Rana———————————————————-Abbas Pathan
15 hrs ·
ब्याज बट्टे का धंधा जबतक बनियो के पास था तब तक ये एक तरह का व्यापार था.. जिसे आवश्य्कता होती वो साहूकार बनिये से वाजिब ब्याज दर के बदले नकद ले लेता था। बनियो की ब्याजदर आज भी 1 से 2 प्रतिशत तक सीमित है। ये एक ऐसी ब्याज दर है जिससे कर्जदार को फंदा नही लगाना पड़ता.. जो सही राह पे चलने वाला व्यक्ति होगा वो इस सामान्य ब्याजदर का भुगतान आसानी से कर देगा और मूल रकम भी चुका देगा। वो बात अलग है कि पुरानी फिल्मों में लाला बनिये को खलनायक के रूप में दिखाया जाता था।
बनियो तक तो ठीक था किंतु जबसे दूसरी कौमें ब्याज बट्टे का धंधा करने लगी है तबसे ही इन लोगो ने ब्याज के व्यापार को एक तरह का अंडरवर्ल्ड बना दिया है.. तकरीबन प्रत्येक बस्ती में कोई ना कोई ब्याज माफिया होता है जो 5% से 30% तक का ब्याज खा रहा होता है और इनसे इतने ऊंचे दर पे पैसा लेने वालो की भी कमी नही होती। ये चार महीने में अपना पैसा डबल कर लेते है.. ब्याजखोरी का ये गन्दा काम ओबीसी और मुस्लिम कौम धड़ल्ले से करती है।
मुझे आजतक अफसोस है कि मैं एक ब्याजखोर द्वारा दी गयी दावत में चला गया था.. उसने आलीशान घर बनाया और घर के उद्घाटन पे दावत रखी, मुझे बाद में पता चला कि इसका मुख्य काम तो अनैतिक ब्याज खोरी का है.. वो आलीशान घर 30% ब्याज खा खाकर बना था। सेकड़ो मजबूर इंसानो को रुलाकर इन ब्याज़खोरो के चेहरों पे हंसी आती है.. लोगो को रौंदकर इनकी आरामगाहे बनाई गई है। सेकड़ो लोगो को कर्ज की वजह से रात में नींद नही आती, इतने लोगो की नींदे उड़ा लेने के बाद ये ब्याजखोर एयर कंडीशनर कमरों में सोते है। इन ब्याज़खोरो की खुशियों पे, इनकी हंसी पे और इनके ऐशो आराम पे मैँ थूकता हूँ।
बनियो को ब्याज का धंधा हराम नही है लेकिन फिर भी बनियों ने अधिक ब्याजदर को खुद के लिए हराम कर लिया है.. मुसलमानो के लिए ब्याज मना है किन्तु आपको तकरीबन हर मुस्लिम बस्ती में उच्च ब्याजदर वाला मुसलमान मिल जाएगा जो अपनी ही बस्ती वालो का खून चूसता है।
मुसलमानो का ईमान ईमान चिल्लाना भी फ़र्ज़ी है.. कोई ब्याजखोर कोरमे की दावत दे दे तो देखिए जाकर वहां कितनी भीड़ पड़ेगी.. पूरा मुहल्ला और सारे रिश्तेदार उमड़ेंगे।
ये नही सोचेंगे कि ये निवाले किसी के मुंह से छीने हुए है, किसी को रुलाकर इनके चेहरे पे रंगत आयी है। लोगो का घर नीलाम करवाकर इनके बंगले बने है।
जिसके पास ईमान होगा वो अनैतिक तरीके से अमीर बने आदमी के घर का पानी तक नही पियेगा.. ये होता है वास्तविक छुआछूत और यही होना चाहिए। जातपात और रंग के भेद झूठे है।
See Translation————————————नीतीश के. एस.
25 October at 21:46 ·
मुल्ला : रोको मत, जाने दो
मीडिया : मौलवी ने कहा – रोको, मत जाने दो।नीतीश के. एस.
24 October at 22:41 ·
नेता लगातार भाषण दे रहे हैं, बयान दे रहे हैं कि ताजमहल की जगह मंदिर था। बाबरी की जगह मंदिर था कह कह कर हज़ारों टटपुँजिया छिछोरे नेता बन गए। आज ताज में पूजा पाठ हो रहा है। मुख्यमंत्री खुद हेट स्पीच के राजा हैं। और लोग कहते हैं सरकार बढ़ावा नहीं देती है ऐसे बकवास कॉन्सेप्ट्स को, नफ़रत को, साम्प्रदायिकता को। अगर ऐसा होता तो न सिर्फ राष्ट्रीय स्तर पर प्रचार करने वाले नेताओं की तरफ़ से ऐसे बयान नहीं आते, बल्कि छुटभैये नेताओं की तरफ़ से होने वाली ऐसी किसी पहल पर नाराज़गी जताई जाती। अब तक न तो ऐसा हुआ न कोई संकेत ही दिखा। बल्कि हर मामले में बड़े नेता छुटभैये नेताओं को नीचता के मामले में टक्कर देते ही दिखे हैं।
अबकी बार , “धर्म निरपेक्ष” सरकार। ??————————-Dilip C Mandal
15 mins ·
बीजेपी की मंत्री की सीडी देखने पर कोई कानूनी बाधा नहीं है. लेकिन फारवर्ड करने से बचें. अपनी वाल पर भी न लगाएं. न शेयर करें. बीजेपी परेशान है. IT एक्ट के तहत, और एक्ट ऑफ डिफेमेशन के हिसाब से पुलिस कार्रवाई कर सकती है. 120 (A), (B) के तहत आपराधिक षड्यंत्र का गैरजमानती केस हो सकता है. सात साल की सजा है.
सब पर कार्रवाई नहीं होगी.
कहीं से एक मुसलमान बच्चा पकड़ लेगी.
बीजेपी का काम हो जाएगा.
भक्तों को विलेन मिल जाएगा.
कानून का ज्यादा पाबंद होने का दायित्व मुसलमानों का है. अगर आपका हिंदू नाम है, तो आप अपेक्षाकृत सुरक्षित हैं.
कल अम्मी का ऑपरेशन हे और में हम जैसे छुटभय्ये क्रन्तिकारी जो इस तरह के लेख लिखते फिरते हे ——— ? आज में भागा फिर रहा था काफी सामान एक मदरसे में देकर आया , बड़े भाई कीडेथ हो गयी पिछले दिनों , डेथ से पहले चार दिन कोमा में रहे तब भी में जो अम्मी ने दूसरे बड़े भाई ने कहा वो सब मदरसों में देकर आया था इससे पहले सिस्टर के दो मिसकैरेज हुए थे तीसरी बार जब लड़की हुई दो महीने हॉस्पिटल रही तब भी जो जो उन्होंने कहा सब करके आया था पिछले साल भतीजी हुई थी डिलीवरी से ठीक पहले भाभी बाथरूम में फिसल गयी थी हड्डी टूट गयी बहुत तनाव था तब भी जो कहा सो किया और यहाँ हम क्रन्तिकारी लेख लिखते फिरते हे——————– ? क्या कर सकते हे जीवन ही ऐसा हे ये जरूर हे की खुद में मर भी रहा हु तब भी कुछ ना करू मगर जैसा की ऊपर बताया तब सब कुछ करना पड़ता हे खेर जितना मेरे समझ में आया हे की एक ठीक ठाक भी गैर अंधविश्वासी समाज और समाज का मिजाज तब ही बन सकता हे जब इंसानो के बीच ऐसे सम्बन्ध हो की हर हाल में सुरक्षा ( सुरक्षा इमोशनली भी फाइनेंशली भी सोशली भी ) का अहसास कराये तब ही कुछ हो सकता हे वार्ना नहीं , आज हम देखते हे की कोई किसी कोई नहीं पूछता हे कोई किसी के साथ खड़ा होने का भरोसा नहीं देता हे इसी कारण आज धर्म की दुकान और उनके दुकानदार मालिक किस कदर फलफूल हि रहे हे . क्या कर सकते हे
Mohammed Afzal Khan added 2 new photos.
3 hrs ·
Mera beta Ayaan khan Apollo hospital -Delhi me admitt hai doctor ne blood cancer bataya hai lekin allah ka shukr hai ke initial stage me hai . Doctor ne 100% cureable bataya hai. Aap logo se duwa ki darkhat hai.
Sanjay Tiwari
7 mins ·
योगी सरकार ने कहा है कि अब मदरसों में व्यावसायिक शिक्षा भी दी जाएगी। हिन्दी, गणित, अंग्रेजी के साथ साथ कुछ रोजी रोजगार वाला हुनर भी सिखाया जाएगा। पता नहीं यह पहल अच्छी है या नहीं, यह भी पता नहीं, मदरसे इसके लिए तैयार होंगे या नहीं क्योंकि वो जो शिक्षा देते हैं उसमें व्यवसाय के लिए कहीं जगह नहीं है। मदरसा दीनी तालीम के लिए हैं, दुनियावी तालीम के लिए नहीं। दीनी तालीम के नाम पर क्या पढ़ाया जाता है मदरसों में? पाकिस्तान के एक मॉडरेट इस्लामिक विद्वान जावेद अहमद घामड़ी बताते हैं कि दुनिया में कहीं भी मदरसा होगा वो चार चीजें पढ़ायेगा ही। आपके सामने न पढ़ाये तो आपके पीछे पढ़ायेगा, लेकिन पढ़ायेगा जरूर। वो चार बातें हैं-१) दुनिया में जहां कहीं भी शिर्क (मूर्तिपूजा) कुफ्र (इस्लाम के खिलाफ व्यवहार) और इर्तिदाद (इस्लाम छोड़कर जाना) होगा उसकी सजा मौत है और यह सजा देने का हक हमें (मुसलमान को) हासिल है।२) दुनिया में गैर मुस्लिम सिर्फ महकूम (शासित होने) के लिए पैदा किये गये हैं। दुनिया पर मुसलमानों के सिवा किसी को शासन करने का हक नहीं है। गैर मुस्लिमों की हर हुकूमत नाजायज हुकूमत है, जब हमारे पास ताकत होगी, हम उसे पलट देंगे।३) संसार में मुसलमानों की एक ही हुकूमत होनी चाहिए जिसे खिलाफत कहते हैं। मुसलमानों की अलग अलग हुकूमतों का कोई मतलब नहीं है।३) राष्ट्र राज्य (लोकतंत्र) कुफ्र है, हमें इसे खत्म करना है।ये चार बुनियादी बातें हैं जो हर मदरसा और हर इस्लामिक सियासी जमात अपने लोगों को सिखाती और समझाती हैं। जावेद घामड़ी सवाल करते हैं कि अगर ये चार बातें आपको सिखा दी जाएं तो आप क्या करेंगे? वही करेंगे जो मुजाहिद बने मुसलमान कर रहे हैं।लेकिन हमारे यहां मुश्किल ये है कि मदरसों को पवित्र गाय बना दिया गया है। वोट देनेवाली पवित्र गाय। मदरसों की जांच पड़ताल करने की बजाय उसे सरकारी मदद दी जाती है। क्यों दी जाती है? क्या सिर्फ इसलिए कि वो लोकतंत्र के खिलाफ जिहाद की ट्रेनिंग देते हैं?मदरसों को व्यावसायिक बनाने की मूर्खतापूर्ण कोशिश की बजाय मदरसों को मिलनेवाली सरकारी मदद बंद करनी चाहिए। जो शिक्षण संस्थान जिस बात के लिए डिजाइन ही नहीं किया गया उसमें आप वह कहां से भर देंगे? बुनियादी शिक्षा अगर जिहाद ही है तो कम्प्यूटर सिखाने से उस मानसिकता में क्या बदलाव आ जाएगा?योगी जो कर सकते हैं वो ये कि मदरसों को मिलनेवाली सरकारी इमदाद बंद करें। और मदरसों को ही नहीं, किसी भी प्रकार की धार्मिक शिक्षा व्यवस्था को सरकार पैसा क्यों देगी? उलटे सरकार इस बात की जांच जरूर करे कि वहां पढ़ाया क्या जा रहा है? अगर कहीं उसे कुछ ऐसा लगता है कि यह लोकतंत्र के खिलाफ है तो उसके खिलाफ कार्रवाई करनी चाहिए।Sanjay तिवारी–संपादक विस्फोट ———————————————————————————————————————————शम्भूनाथ शुक्ल
एक बार दारुल उलूम अवश्य जाएंDarul Uloom Deoband शंभूनाथ शुक्लदेवबंद जाना हो तो मुझे लगता है कि दारुल उलूम अवश्य जाना चाहिए। इसलिए नहीं कि यह इस्लामिक शिक्षा का एक विश्वप्रसिद्घ केंद्र है बल्कि इसलिए भी कि यहां का अनुशासन और विद्यार्थियों की जनतांत्रिक चेतना आपका मन मोह लेगी। बड़ी-बड़ी कक्षाओं के बावजूद गैलरी में जगह-जगह विद्यार्थी बैठे हुए अपने अध्ययन में डूबे मिल जाएंगे। चौकी पर पुस्तक रखे ये विद्यार्थी अपना पाठ रटते ही नहीं बल्कि आपस में बहस-मुबाहिसा कर किसी समस्या अथवा प्रश्न की तह तक पहुंचने का प्रयास करते हैं। यहां हर छात्रावास के बाहर परचे चिपके मिल जाएंगे जो दरअसल बुलेटिन की तरह के अखबार होते हैं और ये छात्र हर समस्या पर बेखौफ होकर अपने विचार रखते हैं। ठीक फेसबुक की तरह। बस फेसबुक पर सब कुछ आभासी और क्षणिक है जबकि यहां पर हर कुछ स्थायी है। यहां पर हर कमरे में मुफ्ती बैठे मिल जाएंगे जो दुनिया भर से आए खतों का जिज्ञासा का जवाब देते मिल जाएंगे। इनके जवाब को कुछ लोग फतवा बताने की मूर्खता कर बैठते हैं लेकिन उनका जवाब यह बताता है कि इस्लामी शरीयत में इस बारे में ऐसा कहा गया है बाकी आप मानें या न मानें। यह फतवा नहीं बल्कि इस्लामिक शरीयत की व्याख्या है।पूरे दारुल उलूम का माहौल एक तरह से शैक्षिक ही लगता है। यहां पर विशालकाय लायब्रेरी है और उसमें न सिर्फ इस्लामिक ग्रन्थ मिल जाएंगे बल्कि वाल्मीकि की रामायण और ऋग्वेद का अरबी लिप्यंतरण भी मिल जाएगा। गीता और महाभारत का लिप्यंतरण व अनुवाद भी आप यहां पा सकते हैं। यहां पर कोई भी छात्र आकर शिक्षा ग्रहण कर सकता है। यहां तक कि गैर मुस्लिम भी। अंदर आने पर यहां भी किसी संस्कृत स्कूल का माहौल ही नजर आता है। पर यहां के छात्रों का अनुशासन देखकर कहना पड़ता है कि एक तरफ वे शहरी विश्वविद्यालय हैं जहां पर अनुशासन और पढ़ाई नाम की कोई चीज नहीं होती इसके उलट दारुल उलूम है जहां पर पढ़ाई और अनुशासन ही अहम है। यहां आकर लगता है कि आप वाकई सरस्वती के मंदिर में आ गए हैं।मेरी पसंदीदा जगह है देवबंद। यह कस्बा मुजफ्फर नगर से कुल 24 किमी दूर है। यहां पर बनियों और मुसलमानों की लगभग बराबर की तादाद है। इसके अलावा राजपूत हैं, दलित हैं और कुछ बांभन व अन्य किसान बिरादरियां जाट-गूजर व सैनी। मुसलमानों की संख्या कम भले हो पर पढ़ाई-लिखाई व शिष्टाचार में वे अन्य हिंदुओं से बीस हैं। यहां पर इस्लाम दर्शन का सबसे बड़ा केंद्र दारुल उलूम है और उसके बूते मदनी भाइयों की लंबे समय से राजनीति भी चल रही है। असम में बदरुद्दीन अजमल जी की भी। मैं जब भी जाता हूं दारुल उलूम जाकर कयाम जरूर करता हूं। वहां पर उर्दू जबान के सबसे बड़े शायर नवाज देवबंदवी साहब रहते हैं और इस्लामिक दर्शन के विश्वप्रसिद्घ विद्वान मौलाना बनारसी भी। वे इस दारुल उलूम के मोहतमिम भी हैं। दारुल उलूम के अंदर आपको जगह-जगह पर अध्ययनरत छात्रों की टोलियां मिलेंगी। अध्यापनरत मुदर्रिस मिलेंगे और कलमबद्घ करते मुफ्ती भी। दुनिया भर से मुसलमान यहां पर इस्लामी शरीयत के मुताबिक चलने हेतु अपनी-अपनी शंकाएं भेजते हैं और मुफ्ती उनका जवाब पर यह जवाब उनके लिए अपरिहार्य नहीं होता बस यह कहा जाता है कि इस्लामी शरीयत से यह सही है और यह अनुचित पर जनता को आचरण तो अपने देश के संवैधानिक कानून के मुताबिक ही करना पड़ता है।बाकी तो सब ठीक एक बात मुझे अजीब लगी कि भारत के हर कोने से छात्र यहां आते हैं और सब अपने-अपने इलाके की जबान बोलते हैं पर यूपी-बिहार और अन्य हिंदीभाषी इलाकों के छात्र न तो हिंदी बोलते हैं न हिंदी लिपि का प्रयोग करते हैं। वे उर्दू जबान और उर्दू लिपि का ही प्रयोग करते हैं। आपको यहां पर असमिया, बांग्ला, मलयालम और तेलगू के परचे निकलते मिलेंगे पर हिंदी का एक भी नहीं। ऐसा लगता है मानों हिंदी भाषा ही सांप्रदायिक और सिर्फ हिंदुओं की ही भाषा है। दारुल उलूम के अंदर आपको टोपी लगाए और गोल मोहरी का ऊँचा पाजामा पहने छात्र दिखेंगे। संभव है यह सब देखकर आपको लगे कि यहां पर गैर मुस्लिम का कोई काम नहीं पर ऐसा नहीं है। इन छात्रों को समझने की कोशिश करिए तो ये सब आपको उतने ही स्वजन लगेंगे जैसे कि आपके बंधु-बांधव। ये छात्र अन्य आधुनिक विश्वविद्यालयों के जींस धारी छात्रों से अलग भले हों पर इनमें इंसानियत और मानवीयता कहीं ज्यादा है। शायद इसलिए भी कि ये यहां दर्शन पढऩे आते हैं राजनीति के दांवपेच सीखने नहीं।मैं जब वहां गया तो ड्राइवर ने अपनी मूर्खता से गाड़ी का अगला टायर एक नाले में फँसा दिया। कुछ ही देर में तमाम छात्र दौड़े-दौड़े आए और गाड़ी उठाकर सड़क पर रख दी। एक और घटना याद हैं जब मैं मेरठ में एक लोकप्रिय अखबार का संपादक बनकर पहुंचा तो शुरू-शुरू में वहां के चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय के अतिथि गृह में कुछ दिन रुका था। एक दिन ऐन कुलपति आफिस के सामने अखबार के दफ्तर से मुझे लेने आई गाड़ी धक्कापरेड हो गई। ड्राइवर ने तमाम जींस टीशर्ट वाले छात्रों से मदद की गुहार की पर एक भी मदद को आगे नहीं आया। ऐसे में वे टोपी लगाए छात्र मुझे देवदूत से लगे, जिन्होंने इनोवा जैसी भारीभरकम गाड़ी को हाथों से उठाकर सड़क पर रख दिया।शम्भुनाथ शुक्ल पूर्व संपादक अमर उजाला
मुसलमानो में पैसे वाला वर्ग कोई कम भी नहीं हे उसने सपा बसपा कांग्रेस के साथ तो दो लो का रिश्ता रखा और पिछले सालो में मज़हबी गतिविधयों पर खूब खर्चा किया बाकी देवबंदियों ( ठेकेदारों ) ने अरब से पैसा खिंचा बरेलवियो ( ठेकेदारों ) ने गरीबो और हिन्दुओ से खिंचा शियाओ ने ईरान से खिंचा ये सब तो चलता रहा मगर मुसलमानो ने हिन्दू कठमुल्वाद से लड़ने वाली तरह तरह की लेफ्ट लिबरल सेकुलर गाँधीवादी समाजवादी आदि ताकतों के लिए कुछ नहीं किया उसी का नतीजा अब भुगतना पड़ रहा हे ———————————————————————————————Abbas Pathan
5 hrs · एक वक़्त मेने देखा जब लोगो के मुंह से मैं अक्सर ये सुनता था कि “मुसलमानो में बहुत एकता और आपसी भाईचारा है”..
जबरन बन्द, हड़तालें, उग्र रैलियां उस समय भी हुआ करती थी जिसमे हज़ारो की तादाद में लोग हिस्सा लेकर बाज़ारो को बंद करवाते थे लेकिन उनकी रैलियों का रुख कभी मुस्लिम इलाको की तरफ नही जाता था। पूरा शहर जिस दिन बन्द हुआ करता था उस दिन सिर्फ मुस्लिम इलाको में दुकाने खुली होती थी और माहौल सामान्य रहा करता था। हज़ारो लोगो की तादाद में “बन्द समर्थित” रैलियां उन इलाकों के समीप से निकल जाती थी जहाँ मुसलमानो के 500 घर हो लेकिन वे लोग कभी बस्ती के अंदर नही घुसते थे। चाहे उनके जहन में जितनी उग्रता हो, लेकिन इतना होश उन्हें था की यहां नही जाना हैं। किंतु अब वैसा नही है, अब कोई हमारी एकता की मिसालें नही देता। पहले हमारे प्रत्येक मुहल्ले में एक मस्जिद हुआ करती थी तब रौब था, जबसे हर इलाके में तीन मस्जिदे खड़ी हुई है तबसे वो एकता की मिसालें और वो रौब खत्म हो गया है क्योंकि लोगो को समझ आ गया कि ये तीनो मस्जिदे अलग अलग मजहब के मानने वालों की है, हालांकि हम इसे फिरका कहेंगे लेकिन ये मजहबी इख़्तेलाफ़ से भी घिनोना रूप ले चुका है। कुछ मुहल्ले तो इतने कट्टर है कि साल में चार बार हज़ारो रुपये का मंच लगवाकर फिरका फिरका का मौखिक कबड्डी करवाते है। एक ही मुहल्ले में खड़ी अहले हदीस, अहले सुन्नत और देवबन्दी अक़ाइद की मस्जिदों से जब तीन अजाने गूंजती है तो लोगो को चौदहवी सदी का वो इस्लाम समझ आने लगता है जिसे हम पेश करते रहते है , फिर ये तमाम उग्र संघटन जो कभी इलाके के भीतर नही घुसते थे वे आज उन्ही मस्जिदों के दरवाजे पे खड़े होकर हिंसक नारे लगाने लगते है और मुसलमान मज़बूरी को सब्र का नाम देकर खुद के आमालनामे में पड़ी नेकियों की टोकरी में झांकने लगता है।
ये एक मुहल्ले में तीन मस्जिदों को खड़ी करने की होड़ पिछले डेढ़ सौ सालों से विश्वभर में जारी है। एक मुहल्ले में तीन मस्जिदों की बजाय एक मस्जिद और एक स्कूल की होड़ होती तो आज प्रशासन के सामने सुरक्षा की भीख नही मांगनी पड़ती, आज हमें प्रशासन में सच्चा सेक्युलर अधिकारी नही तलाशना पड़ता। मुहर्रम का चंदा, ताजियों का चंदा, मिलाद का चंदा और मस्जिदों में चिल्ले काटने वाली जमाअतों का खर्च मुस्लिम समुदाय अपनी मुफ़्लिशि में से भोग रहा है, यही पैसा सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाते हुए आने वाली नस्ल के उज्ज्वल भविष्य में खर्च किया जाता तो नजारा कुछ और होता। हमारा खुद का व्यक्ति प्रशासन में रहकर देश की सेवा कर रहा होता।
कहीं से दंगो की आहट सुनाई देती है मुसलमान सहम जाता है, इसलिए सहम जाता है क्योंकि उसकी कौम से निकला एक आदमी भी प्रशासन में अधिकारी के पद पे नही है.. अधिकारी के पद पे इसलिए नही है क्योंकि हमारे पास विद्यालय, यूनिवर्सिटी नही है। चंद शैक्षणिक संस्थान है जो हमारे बड़ो ने हमारे लिए खड़े कर दिए थे, आज जो बची खुची बुद्धिमत्ता बाकी रह गयी है वो उन्ही की बदौलत है। बाकी लगभग अधिकांश मदरसों से फिरको के योद्धा ही निकल रहे है।
हम हर साल अरबो का जकात निकालते है.. यदि इस जकात का पैसा सही दिशा में खर्च हो तो हिंदुस्तान की तस्वीर बदल सकती है। हमारे पास इतने ज्यादा मदरसे है कि हम उन्हें आधुनिक बनाने की जिद पकड़ ले तो आने वाली नस्लो में फिर से मौलाना अबुल कलाम आजाद और अब्दुल कलाम निकलने लगेंगे।
हमे किसी को डराना नही है कि कोई हमारे इलाके में ना घुसे। जियो और जीने दो का सीधा सा सिद्धांत यदि हम अपना ले तो सबकी जिंदगी गुलजार हो सकती है। मैं फातिहा का हलवा खाऊ तो तुम्हारे पेट मे मरोड़ ना पड़े और तुम जोर से आमीन कहो तो मेरे कान ना फ़टे। सबके अपने अपने अक़ाइद… नबी का कौल था कि फिरके होंगे जो हो गए अब तकरार का कोई फायदा नही है।
एकता और भाईचारे से रहने का अर्थ ये ना समझिये की गैर कौमो के खिलाफ एकता करो। अपने दिलो के सुकून और आने वाली नस्लो के भविष्य के लिए आपस मे मुहब्बत और अखलाक से रहो।Abbas Pathan
Mukesh Aseem
Yesterday at 16:26 ·
हमीरपुर, उप्र के दो गांवों – चिबौली और मगरौल – के किसानों में आवारा पशुओं (गायों?) को खदेड़ने के सवाल पर लट्ठबाजी-गोलीबारी हो गई, 12 अस्पताल पहुंच गए, 34 के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज हुई है, 8 गिरफ्तार हो चुके हैं|
इसमें कोई पक्ष मुसलमान होने की खबर नहीं है!
सोचोगे कि फासीवादियों की अंधता भरी गुंडागर्दी का शिकार सिर्फ मुसलमान या दलित ही होंगे, तो फिर से सोच लो!
तुम्हारे खेत ही नहीं कल तुम्हारे घर भी ये आवारा पशु रोंदेंगे; तुम्हें, तुम्हारे बच्चों-बुजुर्गों को भी कुचलेंगे! फिर खूब इनकी पूजा करना!
नहीं तो अभी पहले ही इन फासीवादी गिरोहों को दौड़ा लोrakesh Gautam हे भोले बकरों।
तुम इन झूठे, लंपट पशुप्रेमियों की बातों में मत आना,
जीवन एक संग्राम है, मुक्ति ही समाधान है,
तुम्हारी इज़्ज़त ही इस वजह से है की तुम कटते हो,
जिस दिन इन झूठे पशु प्रेमियों की बातों में आकर तुमने कटना बन्द किया,
उसी दिन तुम आवारा हो जाओगे और चारे की जगह पॉलीथिन, कूड़ा करकट और यहां तक के लठ खाने पड़ेंगे।
ये सारे पशुप्रेमी शहरी पपलू हैं, ये फिर तुम्हे आवारा पशु कह कर अपने शहरों से दूर हमारे गांवो में धकेल देंगे,
अपने urban estate में ये तुम्हारी छांव तक नही पड़ने देंगे, फर
देखो भाई बकरों, हमारे गांवो में इनकी माता और पिता गाएं ने ही तबाही मचा रखी है, उस के साथ हर रोज़ हमारा संग्राम होता है, लठपुजारी होती है,
तुम बेचारे तो एक लठ भी सहन नही कर पाओगे, इनकी माताएं और पिता तो फिर भी 8-10 लठ सहन कर लेते है।
इन लंपट के माता पिता तक आवारा तो मेरे भाई बकरों हमारे गांवो से बहुत अच्छा है तुम्हारा बाड़ा,
हमारे गांवो में मत आना भाई लोगो,
तुम ईद पर यूँ ही कटते रहना, लोगो को यूं ही जन्नत का रास्ता दिखाते रहना,
मत आना भाई बकरों इन झूठो की बातों में। rakesh Gautam ———————————————————————-Sanjay Shraman Jothe30 August at 09:45 ·क्या देशप्रेम का ठेका आयुर्वेद और प्राणायाम ने ही ले रखा है? क्या सिर्फ शाकाहारी ही देशप्रेम के गीत गा सकते है? शिलाजीत, और कपालभाति में जितना देशप्रेम उभरता है उतना ही देसी चिकन करी और बिरयानी से क्यों नहीं उभर सकता?
दलितों आदिवासियों के अपने रोजगार हैं। चिकन, बकरा बकरी, सब्जी भाजी, दूध इत्यादि कई रोजगार हैं। इन सबसे देश की असली सेवा होती है।
भाई कुलदीप के पोल्ट्री फार्म से चिकन खरीदिये और उससे स्वदेशी पकवान बनाइये। पिज्जा बर्गर फ्रेंच फ्राइज जैसे विदेशी पकवानों का मोह छोडकर देसी पकवान बनाइये और अमूल्य भारतीय मुद्रा को विदेश जाने से बचाइये।
देशप्रेम दर्शाने का हर भारतीय का अपना तरीका और अधिकार है। हर जाति वर्ण और समुदाय अपने ढंग से देशप्रेम की घोषणा करें। किसी एक रंग के देशप्रेम का कोई परमानेंट ठेका नहीं है।
अपना अपना देशप्रेम अपनी भाषा मे व्यक्त कीजिये और धूर्तों की देशप्रेम की मोनोपाली को टक्कर दीजिये।Sanjay Shraman Jothe—————-kuldeep Pahad added 2 new photos — feeling जन्मदिन स्पेशल with Munesh Bhumarkar and 9 others.
30 August at 09:37 ·
#स्वदेशी_पकवान_खाइए, #विदेशी_लूट_से_छुटकारा_पाइए
मैकडोनाल्ड और KFC जैसीे विदेशी कम्पनियों के विदेशी पकवान जैसे बर्गर, पिज़्ज़ा, फ्रेंच फ्राई और चिकन खाकर आप देश की अमूल्य मुद्रा विदेशों में भेज रहे हैं।
आप हमारे अपने स्वदेशी चिकन और स्वदेशी चिकन करी, टिक्का, बिरयानी, तंदूरी चिकन जैसे लजीज भारतीय पकवान खाइये।
भारत की अर्थव्यवस्था एवं भारतवासियो को मजबूत कीजिये।
हमारे जय भारत पोल्ट्री पर स्वदेशी चिकन और बाबा फेमिली रेस्टोरेंट & ढाबे पर स्वदेशी पकवान ऑर्डर कीजिये और देशभक्ति – देशप्रेम का परिचय दीजिये।
देश को विदेशी लूट से बचाइए।
भारत माता की जय
जय भीम जय भारत
आपका अपना साथी
कुलदीप पहाड़
8982291148-more comments
Kuldeep Pahad
Kuldeep Pahad क्या सिर्फ शाकाहार ही देश प्रेम का प्रतिक है जबकि जिस समय यह भारत देश सोने की चिड़िया हुआ करता था उस समय चमड़े का व्यापार सबसे बड़ा काम था इस देश की अर्थव्यवस्था को मजबूत करने का।
और आज भी मांशाहार एक बड़ी इकाई है देश को मजबूत अर्थ नीति देने के लिएudhir Meshram कंहा है भाई ये ढाबा
See translation
Like · 2 · 31 August at 16:26
Manage
Kuldeep Pahad
Kuldeep Pahad मध्यप्रदेश के बैतूल जिले में भोपाल नागपुर हाइवे 47 पर ससुन्द्रा चेकपोस्ट के पास!Rajiv Nayan Bahuguna Bahuguna
15 September at 09:55 · Dehra Dun ·
देहरादून से लखनऊ की फ्लाइट में सवारी सीट पर कुत्ता ले जाने की ज़िद पर अड़े यात्री को समझदार पायलट ने उतार दिया , तो कुत्ता पति ने तूफान खड़ा कर दिया । दर असल जहाज़ में कुत्ता ले जाने की छूट देने का नियम अंग्रेजों ने बनाया था , जिनकी मेमें काले भारतीयों से घृणा करती थीं , जबकि काले कुत्ते स——————– मैं बार बार कहता हूं कि कुत्ता रखने का अधिकार सिर्फ किसान , चरवाहे , बागवान , ग्रामीण , व्याध और घमन्तु मनुष्य को है , जिनके लिए कुत्ता उपयोगी है । इसके सिवा शहरों में स्टेटस और शौक़ के लिए कुत्ता रखने वाले अव्वल दर्जे के घामड़ हैं । जिसके घर मे कुत्ता होता है , में कभी दुबारा उसके घर नहीं जाता । उसका कुत्ता कभी मुझ पर भौंक कर मुझे अपमानित करता है , तो कभी नाश्ते के वक़्त अपनी थूथनी से मेरी देह सूंघने लगता है । कुत्ता स्वामी सुबह सुबह दूसरों के गेट पर कुत्ते से टट्टी करवाता है । नौकर को पूरी पगार नहीं देता , जबकि कुत्ता को मंहगे बिस्कुट खिलाता ।
शहरों में कुत्ता रखने पर पाबंदी लगे । तमाम शहरी कुत्तों को पकड़ उत्तराखण्ड के बनों में छोड़ दिया जाए , जहां शिकार के अभाव में बाघ बस्तियों में आ रहे हैं । शहर में कुत्ता रखने वालों का बायकाट कीजिये । उन्हें बताइये कि कुत्ता रहने से उनकी शान नहीं बढ़ रही , बल्कि वह असामाजिक सिद्ध हो रहे हैं । एक बार में एक परिचित के लॉन में बैठ चाय पी रहा था , कि छोटा खरगोश कुत्ता उछल कर मेरी गोद मे आ बैठा । मैंने उस पर गर्म चाय उंडेली तो किकिया कर भागा । मैने पूछा – क्यों रखा तूने यह बदतमीज़ कुत्ता ? तो उसकी बेटी मुझ पर गुस्सा हुई कि इसने हमारे हनी को कुत्ता बोला ।
में सम्बंधित पायलट को बधाई देता हूँ । चलते जहाज़ में कुत्ता अपनी पर आकर किसी को काट सकता था , अथवा उपद्रव कर सकता था ।Rajiv Nayan Bahuguna Bahuguna
15 September at 21:04 · Dehra Dun ·
कुत्ता कलंक कथा -2
—————
मेरी शहरी कुत्ता विरोधी पिछली पोस्ट पर कई अजब तर्क आये हैं । पहले स्पष्ट कर दूं कि मैं नगर – पुरी में कुत्ता पाले जाने का विरोधी हूँ , ग्राम्य तथा वन प्रान्तर में नहीं ।
एक ने कहा है – कुत्ता से अधिक स्वामी भक्त तथा वफादार कोई नहीं । ” बराबर है , लेकिन कई मनुष्य भी अपने स्वामी के प्रति इतने वफादार तथा भक्ति से ओतप्रोत होते हैं , कि स्वामी के इंगित पर अन्य मनुष्यों को मार डालते हैं , अथवा मरवा देते हैं । यह कुत्ता नुमा स्वामी भक्ति अंततः मनुष्य विरोधी है ।
दूसरे ने जीव दया एवं पशु प्रेम का हवाला दिया है । अगर आप सचमुच पशु प्रेमी हैं , तो घर मे अपने बंगले या फ्लेट में बकरी पालिये । कुत्ते जितनी ही जगह घेरेगी । दूध देगी । बकरी की मेग्नी सर्व श्रेष्ठ जैविक खाद है । किसी को काटेगी नहीं । कुत्ते से कम खर्च में पलेगी । भौंक कर भय तथा आतंक नहीं फैलाएगी , तथा सोते वक्त मालकिन की रजाई में भी नहीं घुसेगी ।
किसान , चरवाहे , बागवान अथवा आखेटक का कुत्ता एक श्रम जीवी प्राणी है , जबकि शहरी कुत्ता टुकड़खोर है । इसी लिए दुम हिलाता है , तथा तलवे चाटता है । शहरों में जानवरों की डॉक्टरी पढ़ कर आये जन भी गाय , बकरी , भैंस आदि उपयोगी मवेशियों की बजाय कुत्ते के इलाज में रुचि लेते हैं , क्योंकि उसमें फीस भारी मिलती है ।एक का तर्क है कि गांधी भी पानी के जहाज में अपनी बकरी को विलायत ले गए थे । अवश्य ले गए थे । लेकिन गांधी अपनी बकरी का दूध पीते थे , तथा उनकी बकरी किसी को काटती नहीं थी । क्या आप भी अपने कुत्ते का दूध पीते हैं ?
निदान यह कि शहर में कुत्ता पालन अन्न और धन की निर्मम बर्बादी है , अतः शहरों में कुत्ता पालन पर सख्ती से रोक लगे । कुत्ता पति की काउंसलिंग की जाए । कुछ दिन सदमे से उबारने के लिए उन्हें प्लास्टिक अथवा रबर का कृत्रिम कुत्ता दिया
पिछले दो दशकों से मध्य भारत का अधिकांश हिस्सा तीन साल में एक बार अल्प वर्षा का शिकार रहा है। यहां से रोजगार के लिए पलायन की परंपरा भी एक सदी से ज्यादा पुरानी है, लेकिन दुधारू मवेषियों को मजबूरी में छुट्टा छोड़े देने का रोग अभी कुछ दश्क से ही है। ‘‘ अन्ना प्रथा’’ यानि दूध ना देने वाले मवेषी को आवारा छोड़ देने के चलते यहां खेत व इंसान दोनेां पर संकट है। उरई, झांसी आदि जिलों में कई ऐसे किसान है। जिनके पास अपने जल ससांधन हैं लेकिन वे अन्ना पशुओं के कारण बुवाई नहीं कर पाए। जब फसल कुछ हरी होती है तो अचानक ही हजारों अन्ना गायों का रेवड़ आता है व फसल चट कर जाता है। यदि गाय को मारो तो धर्म-रक्षक खड़े हो जाते हैं और खदेड़ों तो बगल के खेत वाला बंदूक निकाल लेता है। गाय को बेच दो तो उसके व्यापारी को रास्ते मंे कहीं भी बजरंगियों द्वारा पिटाई का डर। दोनों ही हालात में खून बहता है और कुछ पैसे के लिए खेत बोने वाले किसान को पुलिस-कोतवाली के चक्क्र लगाने पड़ते हैं। यह बानगी है कि हिंदी पट्टी में तीन करोड़ से ज्यादा चौपाये किस तरह मुसीबत बन रहे हैं और साथ ही उनका पेट भरना भी मुसीबत बन गया है।
इस सप्ताह के मेरे विमर्श का मसला यही है , इस आलेख को विस्तार से मेरे ब्लॉग पर पढ़ सकते हैंpankajbooks.blogspot.inपंकज चतुर्वेदी
भारत जैसा खेती प्रधान देश जहां, पशु को लाईव-स्टॉक कहा जाता है और जो कि देश की अर्थ व्यवस्था का बड़ा आधार है, वहां दूध देने वाले मवेशियों का करोड़ों की तादात में आवारा हो जाना असल में देश की बड़ी हानि है। गाय सियासत के फरे में गलियों में घुम रही है और उसके गोबर, दूध या अन्य लाभ के आकांक्षी उन भक्तों से भयभीत हैं जो कि ना तो खुद गाय पालते हें और ना ही गौ पालकों की व्याहवारिक दिक्कतों को समझते हैं। इलाहबाद, प्रतापगढ़ से ले कर जौनपुर तक के गांवों में देर रात लेागों के टार्च चमकते दिखते हैं। इनकी असल चिंता वे लावरिस गोवंश होता है जो झुंड में खेतों में आते हैं व कुछ घंटे में किसान की महीनों की मेहनत उजाड़ देते हैं। जब से बूढे पशुओं को बेचने को ले कर उग्र राजनीति हो रही है, किसान अपने बेकार हो गए मवेश्यिों को नदी के किनारे ले जाता है, वहां उसकी पूजा की जाती है फिर उसके पीछे कुछ तीखा पदार्थ लगाया जाता है , जिसे मवेशी बेकाबू हो कर बेतहाश भागता है। यहां तक कि वह अपने घर का रासता भी भूल जाता हे। ऐसे सैंकड़ों मवेशी जब बड़े झंुड में आ जाते हें तो तबाही मचा देते हैं। भूखे, बेसहारा गौ वंश के बेकाबू होने के चलते बुंदेलखंड में तो आए रोज झगड़े हो रहे हैं। ऐसी गायों का आतंक राजसथान, हरियाणा,मप्र, उप्र में इन दिनों चरम पर हे। कुछ गौशालाएं तो हैं लेकिन उनकी संख्या आवारा पशुओं की तुलना में नगण्य हैं और जो हें भी तो भयानक अव्यवस्था की शिकार , जिसे गायों का कब्रगाह कहा जा सकता हे।
देश के जिन इलाकांे मे सूखे ने दस्तक दे दी है और खेत सूखने के बाद किसानों व खेत-मजदूरों के परिवार पलायन कर गए हैं , वहां छुट्टा मवेशियों की तादात सबसे ज्यादा है। इनके लिए पीने के पानी की व्यवस्था का गणित अलग ही है। आए रोज गांव-गांव में कई-कई दिन से चारा ना मिलने या पानी ना मिलने या फिर इसके कारण भड़क कर हाईवे पर आने से होनें वाली दुर्घटनाओं के चलते मवेषी मर रहे हैं। आने वाले गर्मी के दिन और भी बदतर होंगे क्योंकि तापमान भी बढ़ेगा।
बुंदेलखंड की मषहूर ‘‘अन्ना प्रथा’’ यानी लोगों ने अपने मवेषियों को खुला छोड़ दिया हैं क्योंकि चारे व पानी की व्यवस्था वह नहीं कर सकते । सैकड़ों गायों ने अपना बसेरा सड़कों पर बना लिया। पिछले दिनों कोई पांचह जार अन्ना गायों का रेला हमीरपुर से महोबा जिले की सीमा में घुसा तो किसानों ने रास्ता जाम कर दिया। इन जानवरों को हमीरपुर जिले के राठ के बीएनबी कालेज के परिसर में घेरा गया था और योजना अनुसार पुलिस की अभिरक्षा में इन्हें रात में चुपके से महोबा जिले में खदेड़ना था। एक तरफ पुलिस, दूसरी तरफ सशस्त्र गांव वाले और बीच में हजारों गायें। कई घंटे तनाव के बाद जब जिला प्रशसन ने इन गायों को जंगल में भेजने की बात मानी , तब तनाव कम हुआ। उधर बांदा जिले के कई गांवों में अन्ना पशुओं को ले कर हो रहे तनाव से निबटने के लिए प्रशासन ने बेआसरा पशुओं को स्कूलों के परिसर में घेरना शुरू कर दिया हे। इससे वहां पढ़ाई चौपट हो गई । वहीं प्रशासन के पास इतना बजट नहीं है कि हजारों गायों के लिए हर दिन चारे-पानी की व्यवस्था की जाए। एक मोटा अनुमान है कि हर दिन प्रत्येक गांव में लगभग 10 से 100 तक मवेषी खाना-पानी के अभाव में दम तोड़ रहे
भूखेे -प्यासे जानवर हाईवे पर बैठ जाते हैं और इनमें से कई सड़क दुर्घटना में मारे जाते हैं और कई चारे और पानी के अभाव में कमजोर होकर मर रहे हैं। किसानों के लिए यह परेषानी का सबब बनी हुई हैं क्योंकि उनकी फसलों को मवेषियों का झुंड चट कर जाता है।
पिछले दो दशकों से मध्य भारत का अधिकांश हिस्सा तीन साल में एक बार अल्प वर्शा का षिकार रहा है। यहां से रोजगार के लिए पलायन की परंपरा भी एक सदी से ज्यादा पुरानी है, लेकिन दुधारू मवेषियों को मजबूरी में छुट्टा छोड़े देने का रोग अभी कुछ दषक से ही है। ‘‘ अन्ना प्रथा’’ यानि दूध ना देने वाले मवेषी को आवारा छोड़ देने के चलते यहां खेत व इंसान दोनेां पर संकट है। उरई, झांसी आदि जिलों में कई ऐसे किसान है। जिनके पास अपने जल ससांधन हैं लेकिन वे अन्ना पषुओं के कारण बुवाई नहीं कर पाए। जब फसल कुछ हरी होती है तो अचानक ही हजारों अन्ना गायों का रेवड़ आता है व फसल चट कर जाता है। यदि गाय को मारो तो धर्म-रक्षक खड़े हो जाते हैं और खदेड़ों तो बगल के खेत वाला बंदूक निकाल लेता है। गाय को बेच दो तो उसके व्यापारी को रास्ते मंे कहीं भी बजरंगियों द्वारा पिटाई का डर। दोनों ही हालात में खून बहता है और कुछ पैसे के लिए खेत बोने वाले किसान को पुलिस-कोतवाली के चक्क्र लगाने पड़ते हैं। यह बानगी है कि हिंदी पट्टी में तीन करोड़ से ज्यादा चौपाये किस तरह मुसीबत बन रहे हैं और साथ ही उनका पेट भरना भी मुसीबत बन गया है।
यहां जानना जरूरी है कि अभी चार दषक पहले तक हर गांव में चारागाह की जमीन होती थी। षायद ही कोई ऐसा गांव या मजरा होगा जहां कम से कम एक तालाब और कई कुंए नहीं हों। जंगल का फैलाव पचास फीीसदी तक था। आधुनिकता की आंधी में बह कर लोगों ने चारागाह को अपना ‘चारागाह’ बना लिया व हड़प गए। तालाबों की जमीन समतल कर या फिर घर की नाली व गंदगी उसमें गिरा कर उनका अस्तित्व ख्षतम कर दिया। हैंड पंप या ट्यूबवेल की मृगमरिचिका में कुओं को बिसरा दिया। जंगलों की ऐसी कटाई हुई कि अब बुंदेलखंड में अंतिम संस्कार के लिए लकड़ी नहीं बची है व वन विभाग के डिपो ती सौ किलोमीटर दूर से लकड़ी मंगवा रहे हैं। जो कुछ जंगल बचे हैं वहां मवेषी के चरने पर रोक है। एक बात जान लें जब चरने की जहग कम होती है और मवेशी ज्यादा तो बंतरतीब चराई, जमीन को बंजर भी बनाती है। ठीक इसी तरह मवेािशयों के बउ़े झुंड द्वारा खेतों को बुरी तरह कुचलने से भी जमीन की उत्पादक मिट्टी का नुकसान होता है।
अभी बरसात बहुत दूर है। जब सूखे का संकट चरम पर होगा तो लोगों को मुआवजा, राहत कार्य या ऐसे ही नाम पर राषि बांटी जाएगी, लेकिन देष व समाज के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले पषु-धन को सहेजने के प्रति षायद ही किसी का ध्यान जाए। अभी तो औसत या अल्प बारिष के चलते जमीन पर थोड़ी हरियाली है और कहीं-कहीं पानी भी, लेकिन अगली बारिष होने में अभी कम से कम तीन महीना हैं और इतने लंबे समय तक आधे पेट व प्यासे रह कर मवेषियों का जी पाना संभव नहीं होगा। बुंदेलखंड में जीवकोपार्जन का एकमात्र जरिया खेती ही है और मवेषी पालन इसका सहायक व्यवसाय। यह जान लें कि एक करोड़ से ज्यादा संख्या का पषु धन तैयार करने में कई साल व कई अरब की रकम लगेगी, लेकिन उनके चारा-पानी की व्यवस्था के लिए कुछ करोड़ ही काफी होंगें। हो सकता है कि इस पर भी कुछ कागजी घोड़े दौड़े लेकिन जब तक ऐसी योजनाओं की क्रियान्वयन एजेंसी में संवेदनषील लोग नहीं होंगे, मवेषी का चारा इंसान के उदरस्थ ही होगा।पंकज चतुर्वेदी——————Arvind Shesh
7 January at 00:33 ·
मजेदार है..!
पुरस्कार में गोदान..! लेकिन दानित-गो को उल्टे मुंह लौटाया जाएगा तो क्या कहा जाएगा… ‘घर-वापसी’ की तर्ज पर ‘गोदान-वापसी’ कहते हैं…!
बॉक्सर ज्योति गुलिया ने कहा कि ‘हम अपनी भैंसों के साथ खुश हैं! (यानी अपनी गाय ले जाओ!) पिछले पांच दिनों में मेरी मां को इस गाय ने तीन बार मारा, मां के लिगामेंट को काफी नुकसान पहुंचा!’
इसी तरह, विश्व युवा महिला बॉक्सिंग चैंपियनशिप में स्वर्ण और रजत पदक जीतने वाली दो अन्य खिलाड़ियों ने सरकार को पुरस्कार में दी गई गाय लौटा दी।
जबकि हरियाणा सरकार के मंत्री ने उन गायों के बारे में कहा कि कहते हैं कि ताकत चाहिए तो भैंस का दूध पियो, और सुंदरता और बुद्धि चाहिए तो गाय का दूध पियो। झारखंड के एक गो-मंडल में डूबे जज महोदय को इस मंत्री के बारे में किसी ने खबर दे दी तो..!
और मुक्केबाज लड़कियों ने सरकार की गइया सरकार को लौटाई और एक तरह से कहा कि अपनी सुंदरता और अपनी मूर्ख बुद्धि की दुकान अपने पास रखो…. हमें तो अपनी भैंस ही प्यारी है..!
यह गाय को नफरत और खौफ का पर्याय बना देने की उन घटनाओं के बाद हुआ है, जिनमें कई लोगों की जान गई और नफरत एक राजनीति बन गई।
समझदारों को समझ में आ रहा है कि गैया उनकी नैया डुबोएगी.. विश्व प्रतियोगिताओं में गोल्ड और सिल्वर लाने के लिए तो भैंस ही काम आएगी..!
Himanshu Kumar
2 March at 23:54 ·
कल अपने चाचा जी के पास बैठा था,
वो पुराने किस्से सुनाने लगे,
चाचा जी ने मुझे बताया कि सन चालीस के लगभग की बात है,
एक बार तेरे दादा जी मुज़फ्फर नगर में घर के सामने बैठे थे,
तभी दुल्ला कसाई एक लंगड़ी गाय लेकर जा रहा था,
हमारे घर की भैंस कुछ दिन पहले मर चुकी थी,
घर में दूध की दिक्कत थी,
दादा जी ने आवाज़ लगा कर कहा अरे कितने में लाया भाई इस गाय को ?
दुल्ला ने कहा जी दस में लाया,
दादा जी ने कहा ले ग्यारह रुपये मुझ से ले ले और गाय यहाँ बांध दे,
कुछ महीनों की खिलाई पिलाई से गाय बिल्कुल स्वस्थ हो गई,
फिर वह ग्याभन हुई और दस लीटर दूध देने लगी,
मैने चाचा जी से पूछा क्या तब गाय काटने पर हिन्दु कोई झगड़ा नहीं करते थे ?
चाचा जी नें बताया झगड़े का कोई सवाल ही नहीं था,
ये उनका खाना था वो खा सकते थे,
हिन्दु कसाई भी थे,
वो खटीक कहलाते थे,
मुस्लिम लीग का हेड आफिस मुज़फ्फर नगर था,
उनका चुनाव चिन्ह बेलचा था,
लोग उन्हें बेलचा पार्टी कहते थे,
तो उस गाय ने बछिया को जन्म दिया,
घर में सफाई के लिये आने वाली जमादारिन ने हमारी दादी से कहा चाची जी ये बछिया मुझे दे दीजिये,
दादी ने कहा खोल ले और ले जा,
वो बछिया वहाँ उनके घर पर ब्याह गई और एक दिन में पन्द्रह लीटर दूध देने लगी,
एक दिन मैं और अब्बा जी शामली अड्डे से घर की तरफ आ रहे थे,
हमारे सब से बड़े ताऊ जी को पूरा शहर अब्बा जी के नाम से जानता था,
अब्बा जी वकील थे,
स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी थे,
उनके मुंशी मुसलमान थे,
उनका बेटा हमारे ताऊ जी को अब्बा जी बोलता था,
उनकी देखा देखी घर के सारे बच्चे उन्हें अब्बा जी कहने लगे,
रास्ते में अब्बा जी को जमादारिन ने रोक लिया,
और बोली पन्डत जी जो बछिया आप से लाई थी उसका दूध पी के जाओ,
मैनें उत्सुकतावश पूछा क्या अब्बा जी ने वहाँ दूध पिया ?
चाचा जी ने बताया हाँ वो गांधी जी का ज़माना था,
आज़ादी की लड़ाई में लगे लोगों के लिये जात पात और हिन्दु मुसलमान का भेदभाव मिटाने का बहुत जोश था,
चाचा जी आगे सुनाते रहे,
सन् पचपन की बात है,
मुझे ऊन का कताई केन्द्र शुरू करने के लिये रुड़की के पास मंगलोर भेजा गया,
वहाँ पास में एक मुसलमानों का गांव था,
गांव में बस एक हिन्दु बनिया था जो दुकान चलाता था,
गांव के प्रधान एक मुस्लिम थे,
मुस्लिम प्रधान नें चाचा जी से कहा पंडत जी कहो तो आपके रहने खाने का इंतज़ाम बनिये के यहाँ करवा दूँ ?
मैं तो मुसलमान हूँ,
चाचा जी ने कहा आप मेरे बड़े भाई जैसे हैं मुझे आपके घर पर रहने खाने में कोई आपत्ति कैसे हो सकती है ?
चाचा जी वहाँ छ्ह महीना रहे,
गूजरों के गांव में जाकर भेड़ की ऊन खरीदना और उसे गांव की महिलाओं से चर्खे पर कतवाना और उससे कंबल बनवाना उनका काम था,
केन्द्र शुरू करने के छह माह बाद उनका शुरूआती काम पूरा हुआ,
गांव छोड़ते समय चाचा जी ने अपने मुस्लिम मेजबान से हाथ जोड़ कर कहा भाई साहब मेरे रहने खाने का पैसा ले लीजिये,
गांव के उस मुस्लिम प्रधान ने कहा पंडत जी आपने मेरी गांव की महिलाओं को रोज़गार दिया मेरे गांव के लोगों की खिदमत करी और मुझे बड़ा भाई कह रहे हो ,
बताओ मैं अपने छोटे भाई से पैसे कैसे ले सकता हूँ ?
बताते हुए नब्बे साल के मेरे चाचा जी अपनी आंखों में भर आया पानी पोंछने लगे थे,
मुझे उस समय के पश्चिमी उत्तर प्रदेश के सामाजिक राजनैतिक माहौल की एक झलक मिली जिसे साझा करने का लोभ मैं रोक नहीं पाया और आपके साथ बांट रहा हूं,
Sanjay Shraman Jothe
20 hrs ·
भक्त: ऋषिवर, एक तरफ बीफ का एक्सपोर्ट बढ़ रहा है, दुसरी तरफ शुद्ध देसी पॉलीथिन खाने वाली शुद्ध गाय के शुद्ध घी का शुध्द उत्पादन भी बढ़ रहा है, ये दोनों एकसाथ कैसे संभव है?
ऋषिवर: यह गूढ़ रहस्य है वत्स, ध्यान से समझो इसे।
शुध्द पॉलिथीन खाने वाली गाय के शुध्द दूध के शुद्ध मक्खन से इस शुद्ध घी का कोई संबन्ध नहीं है। योगिराज द्वारा बनाये और बेचे गए शुध्द घी में इस अशुद्ध मृत्युलोक की गौ राशि के दूध की तनिक भी मिलावट नहीं है, इसीलिए यह घी डबल शुद्ध है।
यह शुद्ध घी वास्तव में शुद्ध आकाशगंगा के शुध्द जल का पान करने वाली और शुद्ध कल्पवृक्ष के शुद्ध पत्ते खाने वाली कामधेनु के शुध्द दूध से निर्मित है।
भक्त: अहो भगवन ! किंतु यह दिव्य कामधेनु और इसके दूध की सप्लाई चेन हमें दिखाई क्यों नहीं देती?
ऋषिवर: यह सिर्फ सिद्ध योगी और ऋषि ही अपने दिव्य चक्षुओं से देख सकते हैं वत्स! यह रहस्य इन चर्म चक्षुओं से नहीं देखा समझा जा सकता।
सिध्द योगी ब्रह्ममुहूर्त में ऋषिकेश में पावन गंगातट पर बैठकर त्रिबन्ध और पद्मासन लगाकर अपने प्राण को ब्रह्मरन्ध्र में टिकाकर जब कातर भाव से कामधेनु की कृपा का आह्वान करते हैं तब ममतामयी माता अपने उर्वर स्तनों से शुध्द दूध की अदृश्य धार इस मृत्युलोक की तरफ तक बहा देती हैं, कृतज्ञ भक्त एक आंख इसी धार पर लगाये रहते हैं। इस धार को झेलकर ऋषिगण तुरन्त कुछ मिनटों में ही शुद्ध घी बनाकर पैक कर देते हैं।
किंतु वत्स आजकल के विधर्मियों और तर्कवादियों को यह रहस्यमयी उत्पादन प्रक्रिया कभी समझ मे नहीं आएगी।
इसीलिए तुमसे कहता हूँ कि शरणागत बनों, तर्क न करो वत्स!
भक्त: अहो ऋषिवर, यह रहस्य जानकर आज मैं भी शुद्ध हुआ!Sanjay Shraman Jothe
23 hrs ·
आदिवासी (शेड्यूल्ड ट्राइब्स) और बौद्ध (श्रमण) सँस्कृति का नामों निशान मिटा दिया गया, इतिहास में उनका उल्लेख तक नहीं मिलता, जो मिलता है वो हाल ही में खोजा गया है।
लोग पूछते हैं ये सँस्कृति इतिहास और धर्म मिटाने का काम कैसे हुआ?
इसका उत्तर इस फोटो में देखिए।
तीस हजार से अधिक दलित, आदिवासी और ओबीसी (शूद्र) किसान मुम्बई में रैली और प्रदर्शन कर रहे हैं।
मीडिया ने खबरों और न्यूज चैनल्स और अखबारों में इन्हें जगह न देकर “सूचना जगत” में इन्हें मिटा दिया है।
इन खबरों को छुपाकर काली चुड़ैल, अश्वत्थामा, पाताल की गुफा, बगदादी किंम जोंग, ओसामा आदि की खबरें चलाई जाती हैं।
इतिहास में भी ठीक यही किया गया है।
आदिवासी, दलित, ओबीसी के रोजमर्रा के मुद्दों को छुपाकर यज्ञ, हवन, मंदिर, अध्यात्म साधना, मोक्ष आदि की बकवास चलाई गई है।
रणनीति वही की वही है।
कल का पुराण ही आज का मीडिया है।
इस मीडिया से और उस पुराण से आजादी तब तक संभव नहीं है जब तक कि समाज इन पुराणों को पैदा करने वाले धर्म से आजाद नही हो जाताSanjay Shraman Jothe
10 March at 17:10 ·
जब हिंदी साहित्य पर कर्मकांडी और सनातनी लोगों ने अधिकार जमा ही लिया है तो यह साहित्य समाज और आमजन के किसी काम का हो भी नहीं सकता, जब पुराणों, मिथकों और महाकाव्यों की बकवास साहित्य में घोली जाती है तब ये साहित्य आम जन के जीवन से दूर हो जाता है … ऐसा मुर्दा साहित्य 200 रुपये,100 रुपये किलो ही बिकेगा।
See Translation।
See Translation
Mayank Saxena
29 May at 02:26 ·
चिल्ल पौं के कारण, हर तारीख पर इंतज़ार करता हूं कि सब लिख लें…फिर मैं लिखूं…तो भई सावरकर के श्रद्धालुओं…मान लिया कि वो महान क्रांतिकारी थे…और तुम उनके आदर्शों पर चलने की कसम उठा ही चुके हो…तो लो पढ़ो कि वह क्या लिख गए हैं…खासकर गोरक्षा वाले ज़रूर पढ़ें…
लेओ लल्ला पढ़ लेओ…
सावरकर के एक लेख से
——————————————
यदि गाय की पूजा इसलिए की जाती है कि वह इतनी उपयोगी है तो क्या इसका मतलब यह नहीं कि उसकी देखभाल इतनी अच्छी तरह से हो कि उसकी उपयोगिता ज्यादा से ज्यादा बढ़ सके? यदि गाय का सबसे अच्छा उपयोग करना है तो सबसे पहले आपको उसकी पूजा बंद करनी पड़ेगी. जब आप गाय की पूजा करते हैं तो आप मानव जाति का स्तर नीचे गिराते हैं.
ईश्वर सर्वोच्च है, फिर मनुष्य का स्थान है और उसके बाद पशु जगत है. गाय तो एक ऐसा पशु है जिसके पास मूर्ख से मूर्ख मनुष्य के बराबर भी बुद्धि नहीं होती. गाय को दैवीय मानना और इस तरह से मनुष्य के ऊपर समझना, मनुष्य का अपमान है.
गाय एक तरफ से खाती है और दूसरी तरफ से गोबर और मूत्र विसर्जित करती रहती है. जब वह थक जाती है तो अपनी ही गंदगी में बैठ जाती है. फिर वह अपनी पूंछ (जिसे हम सुंदर बताते हैं) से यह गंदगी अपने पूरे शरीर पर फैला लेती है. एक ऐसा प्राणी जो स्वच्छता को नहीं समझता उसे दैवीय कैसे माना जा सकता है?
ऐसा क्यों है कि गाय का मूत्र और गोबर तो पवित्र है जबकि अंबेडकर जैसे व्यक्तित्व की छाया तक अपवित्र? यह एक उदाहरण दिखाता है किस तरह हमारी समझ खत्म हो गई है.
यदि हम ये कहते हैं कि गाय दैवीय है और उसकी पूजा हमारा कर्तव्य है तो इसका मतलब है कि मनुष्य गाय के लिए बना है, गाय मनुष्य के लिए नहीं. यहां उपयोगितावाद की दृष्टि जरूरी है : गाय की अच्छी देखभाल करें क्योंकि वह उपयोगी है. इसका मतलब है कि युद्ध के समय, जब यह अपंग हो सकती है, इसे न मारने की कोई वजह नहीं है.
विकल्प दो हैं जिनमें से एक को चुनना है. उपयोगितावादी दृष्टि और धर्मांधता की जकड़न. धार्मिक ग्रंथ और पुजारी सिर्फ यही कहते हैं कि यह पाप है और यह पवित्र है: वे यह नहीं बताते कि क्यों. विज्ञान धर्मांधता से अलग है. वह चीजों की व्याख्या करता है और हमें सही या गलत जानने के लिए वास्तविकता का परीक्षण करने की अनुमति देता है. विज्ञान हमें बताता है कि गाय उपयोगी है इसलिए हमें उसे नहीं मारना चाहिए – लेकिन यदि वह मनुष्य की भलाई के लिए अहितकर सिद्ध हो तो वह मारी भी जा सकती है.
‘विज्ञाननिष्ठ निबंध’ – वी डी सावरकर
पशु तस्करों का प्रमुख निकला दैनिक जागरण का रिपोर्टर!
Posted on November 8, 2018 by bhadasadmin
– कभी दैनिक जागरण का पत्रकार तो कभी काली कोट पहन वकील बनकर इलाके में दिखाता रहा रौब -सहयोग न करने पर नवाबगंज से दो दरोगाओ को थानाध्यक्षी से धोना पढ़ा था हाथ…. रातों रात हो गया ट्रांसफर -न नौकरी न कोई बिजनेस चार साल में बना करोड़पति… करीब 5 साल पहले प्राइवेट स्कूल की टीचरी से पशु तस्करी के धंधे में उतरा युवक बोलेरो से चलने लगा… रातोंरात बदल गए ठाट… -करीब तीन साल में अकूत कमाई के बल पर शहर में जमीन खरीदी… देहात में पांच आलीशान मकानों का बना मालिक… अरबों रुपए की बेनाम संपत्ति… इलाके के बेरोजगार युवकों को बतौर गुर्गे साथ में रखकर करता है जरायम…
प्रयागराज : पुलिस की स्पेशल टास्क फोर्स (एस टी एफ़ ) ने गोवंश तस्करी और प्रतिबंधित मांस सप्लाई के धंधे का भांडाफोड़ किया है। इसमे पाच लोगों को मौके पर गिरफ्तार करके धंधे से जुड़े 14 लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया गया है। उसमें दैनिक जागरण का एक रिपोर्टर भी शामिल है। बताया जा रहा है कि इस गिरोह के तार दिल्ली से लेकर कोलकाता, लखनऊ तक गहराई से जुड़े हैं। नवाबगंज के झोखरी (आदमपुर) के रहने वाले योगेंद्र नारायण शुक्ला की पहचान गाय- बैल, भैस- भैंसा सरीखे मवेशियों की तस्करी करने वाले कुख्यात अपराधी के रूप में है।
दैनिक जागरण इलाहाबाद यूनिट ने उसे अटरामपुर से संवाददाता नियुक्त कर दिया। गंभीर अपराधी के रूप में उस पर आधे दर्जन से ज्यादा मुकदमे विभिन्न थानों में दर्ज है इसके बावजूद दैनिक जागरण ने उसे पत्रकार का चोला पहना दिया। शातिर अपराधी ने पत्रकार के रूप में इलाकाई पहचान बनाने की बाद पुलिस विभाग में पैठ जमानी शुरू कर दी। स्थानीय नेता भी अखबार में नाम फोटो छपवाने की गरज से उस शातिर के साथ प्रगाढ रिश्ते बना लिए। पुलिस और कतिपय नेताओ के हितैषी बनते ही इलाके में पशु तस्करी के धंधे ने तेजी पकड़ ली। शुरू में पुलिस ने धंधेबाजो से समझौता करने में ही भलाई समझी। नेशनल हाईवे NH-2 दिल्ली – कोलकाता सड़क मार्ग से रोजाना मवेशी लदे दर्जनो ट्रक बे रोक-टोक गुजरते रहे।
हंडिया कोखराज बाईपास पर बोलेरो सवार तस्करों का सरगना दस से बीस हज़ार रुपए प्रति ट्रक वसूली करता और अपने गुर्गों के जरिए आगे का रास्ता क्लियर करा देता। आस-पास की पुलिस थानों में उसकी नजदीकी लोगों की जुबान पर है। एक नवंबर को एसटीएफ़ इलाहाबाद टीम ने धूमनगज के हैप्पी होम के पास डीसीएम आयशर मिनी ट्रक पर 18 कुंटल गो मांस के साथ पांच लोगों को पकड़ा। मिनी ट्रक के जरिए 40 पेटी में गो मांस रखकर चोरी छिपे बाहर भेजा जा रहा थाl एसटीएफ़ की छानबीन में गिरोह से जुड़े 14 लोगों के नाम सामने आए। सभी के खिलाफ इलाहाबाद के धूमनगंज थाने में एफ़आइआर कराई जा चुकी है। खास बात यह है कि शुरू में पुलिस ने तेजी दिखाई और इलाहाबाद की मीडिया में यह मुद्दा प्रमुखता से उठाया गया।
परंतु तीन-चार दिन के बाद मामला ठंडे बस्ते में डाल दिया गया। मीडिया ने इस प्रमुख खबर पर फॉलोअप करना भी मुनासिब ना समझा और पुलिस भी एकदम आराम की मुद्रा में दिखने लगी। नतीजतन एक तरफ जहां एसटीएफ का दावा है कि मामले से जुड़े लोगों की तलाश की जा रही है वहीं दूसरी तरफ सच्चाई यह है कि नवाबगंज का यह शातिर पशु तस्कर खुलेआम थाने के इर्द-गिर्द टहलते देखा जा रहा है। सूत्रों के मुताबिक मामले को रफ़ा दफा करने के लिए पुलिस विभाग के प्रमुख अफसरों पर दबाव डालने की शुरुआत भी हो चुकी है। गोमाता संरक्षण का राग अलापने वाली सत्तासीन भाजपा के कतिपय नेता ही मामले को दबाने में जुट गए हैं।
अभी एक डाक्टर दोस्त से बात हो रही थी कह रहा था की मिलावटी दूध की समस्या इतनी गंभीर हो रही हे की उसने एक भैंस खरीद कर अपने विश्वासपात्र को दी हे उसका कहना था की मिलवटी दूध से कैंसर की बीमारी बहुत ज़्यादा फैलेंगी भारत में दूध का उत्पादन खपत से काफी कम हे ये एक्स्ट्रा दूध क्या हे ———- ? साफ़ हे की कायर हिज़ड़े हिन्दूआतंकियों ने जो गाय के नाम पर करप्शन लूट और किन्नरआतंकवाद फैलाया उसी के कारण आख़िरकार भारत में दूध का उत्पादन जरुरत से इतना कम हे हिज़ड़ेहिन्दू आतंकवाद के कारण लाखो लोग मरेंगे वो भी एक झटके से नहीं बल्कि तिल तिल कर यही नहीं पैसा भी सारा अस्पतालों दवाइयों को जाएगा जिससे सिर्फ मौत ही नहीं होगी परिवार के परिवार उजाड़ जाएंगे इन किन्नर हिन्दू आतंकियों के कारण
मुस्लिम आतंकवाद से या किसी और आतंकवाद उग्रवाद से जब कोई मरेगा भी तो बेचारा एक झटके में मरेगा उसका परिवार तो रहेगा उसे समाज की सिम्पेथी , नौकरी और मुआवज़ा भी मिल सकता हे आदमी जाएगा मगर परिवार बचा रहेगा जबकि किन्नर हिन्दू आतंकवाद के ” कैंसर ” से जब कोई मरेगा तो तिल तिल के तड़प तड़प के मरेगा उसका परिवार खून के आंसू रोयेगा जमीन जायदाद नौकरी सब हिन्दू आतंकवाद की भेंट चढ़ जायेगी
Krishna Kant
10 November at 12:46 ·
पंडित चाचा ने सरकार बहादुर के नाजुक अंगों की तरफ प्रत्यक्ष मौखिक निशाना साधते हुए कहा, हिंदूवादी सरकार ने हिंदुओं को ही कसाई बना दिया।
गौर से सोचिए यह कैसे हुआ?
इन तस्वीरों को ध्यान से देखिए। ये गायें दो मुस्लिम परिवारों की हैं जो रोज़ इनकी देखभाल करते हैं। सरकार कहती है कि वह गोशाला खुलवायेगी। ऐसी व्यवस्था किस गोशाला में आपने देखी जिसमे रोज़ हरा चारा आएगा और गाय नांद में खाएगी? इन गायों के पीछे पूरा परिवार मेहनत करता है। क्या सरकार लाखों की संख्या में आवारा घूम रहे पशुओं की ऐसी व्यवस्था कर सकती है? फिर आपने ग्रामीण पशु इकॉनमी को क्यों बर्बाद किया?
जिस देश के लाखों बच्चे कुपोषण से मर जाते हैं उस देश की बेशर्म सरकार और निर्लज्ज नेता कह रहे कि वे गोशाला खोलकर गाय पालेंगे। जो किसान गाय पाल रहे थे और ग्रामीण समाज मे एक व्यस्थित इकॉनमी चल रही थी, उसको छिन्न भिन्न कर दिया गया। अकेले यूपी में 2 करोड़ गाय और बैल हैं। किस अक्ल के अंधे को लगता है कि सरकार उन गायों की देखरेख कर लेगी? क्या आपको पता है कि इसमें जितना संसाधन लगेगा, वह जुटाने की कुव्वत आप और आपके गोरक्षक बाप में नहीं है? जिस भी घर मे गाय पाली जाती है उस घर का हर सदस्य उन पशुओं की देखभाल में शामिल होता है। सरकार गाय पालेगी तो राजस्थान की हिंगोनिया गोशाला की तरह उन्हें भूखों मारेगी। क्योंकि आपको अभी तक बच्चे पालना नहीं आया। जो सरकार 60 साल में बच्चों को स्कूल, अस्पताल और अनाज नहीं दे पाई। वह सरकार गाय क्या खाक पालेगी जो अपने बच्चों को दाना नहीं दे पाती? यूपी में 46 प्रतिशत बच्चे कुपोषित हैं, कभी इनके बारे में किसी नेता को बात करते सुना है आपने?
निकृष्ट राजनीति गोरक्षा के लिए उतरी और नतीजा यह कि किसान और पशुओं में युद्ध छिड़ गया है। सरकार ने अवैध बूचड़खाने को बंद कर दिया। चलो अच्छा है लेकिन पशुओं की खरीद बिक्री भी बन्द हो गई। अब बेकार जानवर आवारा घूम रहे और खेत बचाने के लिए लगाए गए ब्लेड वाले तार से कटने लगे। भूखे इंसान जानवर का मांस नहीं खाएंगे, लेकिन वही जानवर खेतों में ब्लेड से कटेंगे, सड़कर घूमेंगे और मर जायेंगे। वे किसानों की फसल तबाह करेंगे। किसान उन्हें मारेंगे। गाय पूजने वाले ही गाय से चिढ़ने लगे हैं।
हमारे यहां की जनता कह रही है, सरकार ने ऐसी गोरक्षा की है कि हिंदुओं को कसाई बना दिया है। उनको अब अपनी फसल बचाने के लिए सांड़, बैल और छुट्टा जानवरों को भाला पेलना पड़ रहा है। हिन्दू मुसलमान बांटने के फेर में हिन्दू को उसकी हज़ारों साल की आस्था और सुपरम्परा के ही खिलाफ कर देने वालों को आप हिंदूवादी मान रहे हैं तो आप उन्हीं की हिंदुओं के दुश्मन हैं।
कई मुसलमानों को इसलिए पीटकर मार दिया गया क्योंकि उनको गायों के साथ देखा गया। गाय पालने मुसलमान भी हैं, लेकिन इसी समुदाय के कुछ लोग बूचड़खाने भी चलाते हैं, इसलिए आपने उनको हिंदुओं का दुश्मन घोषित करके मुसलमान की जान लेने के लिए हिंदुओं की फौज सड़क पर उतार दी।
हमारे घरों में जिस ठीये पर गाय बंधती थी, आज उसी ठीये पर बैठकर हिन्दू लोग आवारा गाय बैलों और सांड़ों को मार भगाने की मंत्रणा कर रहे हैं। कुत्सित सियासत ने हमारी आस्थाओं को कसाई बाजार से परिभाषित किया और हमारे घरों को कसाईखाना बना दिया।
भारत एक महान देश है। हिन्दू मुस्लिम दोनों गाय खाते भी हैं, दोनों पालते भी हैं, दोनों मिलकर रहते भी हैं, लड़ते भी हैं। इस देश को हिन्दू मुसलमान की बाइनरी से चलाने की कोशिश करने वाले इसे जिन्ना की तरह फिर से तोड़ देंगे। जिनके पास ठहर कर सोचने का वक़्त है वे सोचें।
Abrar Khan30 Augustरोज़ ही दो चार लोग दरवाज़े पर माइक ले करके मदरसे या मस्जिद का चंदा मांगने पहुंच जाते हैं, जुम्मे के रोज तो चंदा मांगने वालों की बाकायदा लाइन लगी होती है । यह चंदा मांगने वाले सिर्फ मस्जिद और मदरसे के लिए चंदा मांगते हैं, लोग सवाब (पुण्य) कमाने के लिए चंदा भी इन्हीं लोगों को और इसी मद में देते हैं । यह लोग कभी परोपकार के लिए चंदा मांगते नजर नहीं आते, कभी किसी अस्पताल किसी गरीब के लिए चंदा मांगते नजर नहीं आते ।
चंदा देने वाला कोई व्यक्ति अगर झुंझलाकर करके कह दे कि स्कूल कॉलेज खोलिए लोगों को दुनिया के मुताबिक अप टू डेट करिए तो हमारे भाई लोग बुरा मान जाते हैं । उन्हें लगता है कि मस्जिद बनाने से रोका जा रहा है उन्हें लगता है दीनदारी से रोका जा रहा है उन्हें लगता है स्कूल कॉलेज की बात करने वाला अस्पताल की बात करने वाला व्यक्ति नास्तिक है । ऐसे लोगों की नजर में दीन का मतलब सिर्फ मस्जिदें तामीर करना और मदरसे तामीर करना भर है भले मदरसों की कोई उपयोगिता ना हो भले मदरसों में पढ़ने वाले दुनिया से पूरी तरह कट के अलग-थलग पड़ गए हैं मगर जैसे ही मदरसों को अपडेट करने की बात आती है यह लोग भड़क जाते हैं ।
मैं ऐसे लोगों से कहना चाहता हूँ भाई साहब आपको इबादत करने से कोई नहीं रोकता आपको मस्जिदें बनाने से भी कोई नहीं रोकता मगर मस्जिदें उतनी बनाइए जितनी ज़रूरत है । आप भी जानते हैं मस्जिदे जुम्मे के अलावा कभी भी भरती हुई नजर नहीं आती, किसी भी वक्त की नमाज में पूरी एक जमात भर लोग नहीं होते । फिर इतनी बड़ी बड़ी मस्जिदें किसके लिए बनाई जा रही हैं ? अगर हफ्ते में एक ही दिन नमाज पढ़नी है तो बिना छत के भी पढ़ी जा सकती है बिना दीवारों के भी पढ़ी जा सकती है, या जो मस्जिदें हैं उनमें दो बार में नमाज पूरी की जा सकती है । मगर मसला यहाँ पर नमाज़ पढ़ने का नहीं है बल्कि मस्जिद की मीनार ऊंची करने का है मीनार के पीछे अपनी नाक ऊँची करने का है यही वजह है कि हर मोहल्ले में कम से कम तीन मस्जिदें ज़रूर होती हैं एक बरेलवियों की, एक देवबंदियों की, एक अहले हदीस की ।
बात अगर सुन्नत की की जाए तो हुज़ूर के ज़माने में मस्जिदे छप्परों में होती थीं कच्ची दीवारों में बनी होती थीं खजूर की चटाई होती थी । मगर आज मस्जिदों में महंगे-महंगे कालीन बिछे होते हैं, मंहगे मंहगे झाड़-फानूस लगे होते हैं, बेइंतेहा लाइटें लगाई जाती हैं, 3 से 4 फीट पर एक सिलिंग फैन लगा होता है, एसी और कूलर लगा होता है, महंगे महंगे पत्थर लगे होते हैं, महंगी महंगी टाइल्स लगी होती है । किराए पर इमाम रखे जाते हैं, किराए पर मुअज्जिन रखे जाते हैं और मस्जिद की देखभाल करने वाला साफ सफाई करने वाला एक व्यक्ति भी किराए पर रखा जाता है । और सारे का सारा पैसा समाज से चंदा ले कर इकट्ठा किया जाता है । अब सवाल उठता है कि जिस समाज की बहन-बेटियां सरकारी अस्पतालों में बड़ी तादाद में धक्के खाएं उस समाज के लोग अपनी मस्जिदों में ऐशो इशरत के इतने सामान कैसे इकट्ठे कर सकते हैं क्या यह जायज़ है ?
जब हमारे जैसा कोई आम इंसान इस तरह का सवाल करता है तो उसे नास्तिक, जाहिल, बैलेंसवादी, ठरकी कहकर किनारे कर दिया जाता है । कुछ लोग यह भी कह देते हैं कि कान्वेंट स्कूल से पढ़े हो दीन को क्या समझोगे । मैं यहाँ बताना चाहूँगा कि अगर मैं या मेरी तरह के लोग कान्वेंट स्कूलों को प्राथमिकता दे रहे हैं, ईसाई मिशनरियों के चंगुल में फंस रहे हैं, RSS के स्कूलों में जा रहे हैं तो उसके जिम्मेदार भी आप और आपके मदरसा संचालक हैं जो मदरसों को सिर्फ दीनी तालीम तक महदूद किए हुए हैं । किसने कह दिया कि मदरसे का मतलब सिर्फ दीन की तालीम होती है ? मदरसे का मतलब दर्सगाह है जहाँ दीन की रोशनी में सारी दुनिया की तालीम दी जाए । अगर हमें मदरसे में हमारे ज़रूरत की तालीम मिल जाए तो हम कान्वेंट स्कूलों में क्यों जाएंगे ? यही कारण है कान्वेंट स्कूलों में पढ़ने वाले मदरसे में पढ़ने वालों को जाहिल दकियानूस समझते हैं और मदरसे में पढ़ने वाले कान्वेंट स्कूलों में जाने वालों को बेदीन समझते हैं, काफिर समझते हैं ।
इस दूरी को पाटने की जिम्मेदारी उन्हीं की है जो समाज से चंदा लेते हैं चंदा लेकर मदरसा खोलते हैं और मदरसा खोलकर सिर्फ कूपमंडूक पैदा करते हैं । चंदा ले कर अपना परिवार चलाते हैं, अपने बच्चे पालते हैं । और यह बातें मैं हवा-हवाई नहीं कर रहा हूँ क्योंकि मैं जानता हूँ मदरसे से निकलने वाले दो पर्सेंट लोग भी चंदा मांगने के अलावा कोई दूसरा काम नहीं करते न कर सकते हैं । मदरसे से निकलने वाले लोगों को इज़्ज़त मोहब्बत चाहे जितनी मिले पर वह समाज के साथ खुद को फिट नहीं कर पाते । उनके पास ले-देकर के दो चार वाक़यात होते हैं जिन्हें वह गाहे-बगाहे बयान करते हैं, उन्हें कुछ हदीसों का रट्टा याद होता है उनके पास ले देकर दीनदारी की कुछ बातें होती हैं और जरूरी नहीं कि उन बातों पर वह खुद भी अमल करते हों । वह मदरसे से निकलते हैं तो किसी मस्जिद में इमाम बन जाते हैं या फिर मदरसा खोलकर चंदा वसूलना शुरू कर देते हैं जिनमें दो चार दस आलिम ऐसे भी निकल जाते हैं जिन्हें गला फाड़ कर तकरीर करने की कला आती है तो वह लोग पुरोहितों की तरह नज़राना लेकर के अपनी जिम्मेदारियों से मुंह चुरा लेते हैं ।
बात अगर चंदे तक हो तब भी कोई बात नहीं थी पर बड़ी बात यह है कि चंदे के साथ-साथ जकात, फितरा, ख़ैरात और सदक़ा भी यह लोग उठा ले जाते हैं जबकि जक़ात, फितरा, ख़ैरात सदक़ा सिर्फ और सिर्फ गरीब, मजबूर, बेसहारों का हक़ है । गरीबों की इस हक़तलफी को जायज़ करार देने के लिए भी मौलाना लोगों ने खूब बहाना तलाशा है जिस मदरसे में 3 बच्चे भी नहीं पढ़ते उसका भी नाम यतीमख़ाना रखा है ताकि जकात, फितरा, ख़ैरात, सदक़ा सब लिया जा सके और उसे जायज़ ठहराया जा सके ।
मुझे बड़ी हैरत होती है कि महज चंद ईंटों को जोड़कर एक या दो कमरे खड़े कर दिए जाते हैं और फिर उसके बाहर एक बोर्ड लड़का दिया जाता है जिसके ऊपर जामिया लिखा होता है जबकि जामिया के मायने यूनिवर्सिटी होता है। अगर यूनिवर्सिटी के पैमाने पर देशभर के मदरसों को रखा जाए तो बड़ी मुश्किल से दो चार मदरसे ही ऐसे निकल कर सामने आएंगे जो उस पैमाने पर खरे उतरते होंगे । गांव मोहल्ले की मस्जिदों में भी जो कमेटियाँ हैं उन्होंने भी बच्चों को यकजा करने के लिए गांव में दीनी बेदारी पैदा करने के लिए मस्जिद से लग करके एक मकतब खोल दिया है और उस मकतब के लिए भी समाज से ही चंदा लिया जाता है । अभी इसी रमजान में चंदा वसूलने वाले एक मौलाना साहब से मुझे पता चला कि बड़ी दिक्कत हो गई है जो चंदा मदरसों को मिलना चाहिए अब नहीं मिल पा रहा है क्योंकि गली मोहल्ले में चलने वाले मकतब वाले भी अब घूम-घूमकर के चंदा मांगते हैं और हम से पहले वे लोग उठा ले जाते हैं ।
मकतबों मदरसे अगर समाज से चंदा ले कर दीनी तालीम और तरबियत देते तो कोई मसला नहीं था मगर मसला तब खड़ा होता है जब ये मकतबो मदरसे वाले’ ग़रीब, मजलूम, बेबस, बेसहारा लोगों का हक़ जो की जक़ात फितरा, सदके के रूप में निकलता है वह भी उठा ले जाते हैं । और उसका भी सदुपयोग नहीं करते बल्कि अधिकतर मदरसे अपना नाम ऊंचा करने के लिए अपना मकाम ऊंचा करने के लिए ज्यादा से ज्यादा चंदा जमा करने के लिए फर्जी डिग्रियां बांट रहे हैं । हमारे समाज के पास ऐसा कोई मैकेनिज्म नहीं है जो इन मदरसों का ऑडिट करें जो इन मदरसों से सवाल पूछे इन में बटने वाली डिग्रियों को वेरीफाई करें या डिग्री लेकर निकलने वाले आलिमों हाफिजों को परखे । इन मदरसों से निकलने वाले अधिकतर आलिम और हाफिज सिर्फ चंदा उगाही का ही काम जानते हैं और वही काम करते हैं । इन मदरसों से जो भी आलिम और हाफिज निकलते हैं उनके पास ना कोई मक़सद होता है ना उनके कोई ख्वाब होते हैं ना उनकी कोई सोच होती है और जब उनके सामने जिंदगी की परेशानियां आती हैं घर परिवार की जिम्मेदारियां आती हैं तब वह भी एक मदरसा खोल देते हैं और उसी मदरसे के नाम पर चंदा ले कर अपना परिवार चलाते हैं ।
बात अगर मदरसे तक ही होती तब भी कोई बात नहीं थी बड़ी बात यह है कि मस्जिदें जिनके बारे में कहा जाता है कि उसकी तामीर में सिर्फ और सिर्फ खून पसीने की कमाई लगेगी उसकी तामीर में जकात, फितरा, सदका नहीं लगेगा उसकी तामीर में कर्ज लेकर के खर्च नहीं किया जाएगा हमारे ओलमा वहाँ भी चोर दरवाज़ा खोल लेते हैं । जकात फितरा सदक़ा सब जमा कर लेते हैं और वह सब ले जाकर के किसी गरीब बच्चे के हाथ में रखकर मस्जिद को दान करवा लेते हैं जिसे हीला शरई नाम दिया गया है ।
मैं कोई हवा हवाई बातें नहीं कर रहा हूँ बल्कि आंखों देखी बातें बता रहा हूँ । मेरे गांव में जो पुरानी मस्जिद थी उसकी दीवारों और छत में कई जगह से दरारें आ गई थी गांव के लोगों ने तय किया इस मस्जिद को फिर से बनाया जाए और इसे कुछ बड़ा किया जाए । नतीजा यह हुआ कि पहले के मुकाबले मस्जिद की लंबाई-चौड़ाई दोगुनी हो गई, मस्जिद में पहले तहखाना बनाया गया तहखाने के ऊपर मस्जिद बनाई गई और ऊपर भी खुली छत छोड़ी गई कुल मिलाकर मस्जिद में तीन मंज़िलें बन गईं और बुनियाद ऐसी है कि भविष्य में और भी बढ़ाई जा सकती है । इतना सब करने से मस्जिद का खर्च बहुत ज्यादा बढ़ गया इतना बढ़ गया कि मस्जिद के इमाम जो कि हमारे अच्छे मित्र हुआ करते थे वह भी चंदा वसूलने हर रमजान में मुंबई आने लगे । यहाँ पर गौर करने वाली बात ये है कि जब वह कहीं चंदा लेने जाते थे तो मस्जिद के नाम पर चंदा नहीं मांगते थे बल्कि मदरसे के नाम पर चंदा मांगते थे रमजान के महीने में लोग जकात और फितरा निकाल कर के ही थक चुके होते हैं ऐसे में चंदा या इमदाद करने का सवाल ही नहीं पैदा होता लिहाजा अगर कोई दाढ़ी टोपी देख कर के रसीद कटवाता है तो वह जकात का ही पैसा देता है । मौलाना साहब सारा पैसा ले लेते और लेकर चले जाते फिर उसी पैसे का हीला शरई करके ( यानि वह पैसा किसी गरीब बच्चे को देते और फिर वह बच्चा वही पैसा मस्जिद की तामीर के लिए दे देता, इसके लिए बच्चे को पहले ही तय्यार कर लिया जाता था) मस्जिद की तामीर में इस्तेमाल किया जाता था ।
वह मौलाना साहब अब हमारे गांव की मस्जिद में इमाम नहीं हैं कहीं किसी बड़े मदरसे में मुदर्रिस (टीचर) हैं मगर चंदा लेने अब भी बाक़ायदा वह हमारे पास आते हैं क्योंकि हमारे मोहल्ले में हमारे जान पहचान के लोगों से भी उन्हें अच्छी खासी रकम मिल जाती थी । पिछले दो 3 सालों से मैंने चंदा करवाना बंद कर दिया । मौलाना साहब इस बार भी आए थे मैंने हीला शरई के बारे में उनसे सवाल कर दिया । मैंने पूछा मौलाना साहब किसी गरीब का हक़ आप मस्जिद में कैसे लगा सकते हैं ? किसी यतीम का हक आप मस्जिद में कैसे लगा सकते हैं ? क्या हीला शरई करना खुदा को धोखा देने जैसा नहीं है? तो मौलाना साहब ने बड़ी मासूमियत से कहा अबरार मैंने कभी भी सदका फितरा ले करके मस्जिद में नहीं लगाया मैं जहां भी चंदा लेने जाता था मैं कहता था कि मदरसे के लिए इमदाद चाहिए मैंने उनसे पूछा कि कितने लोग हैं जो यह कह कर के देते हैं कि यह जक़ात नहीं है, फितरत नहीं है, सदका नहीं है, खैरात नहीं है बल्कि आपके मदरसे के लिए चंदा है ? चलिए मैं मान लेता हूँ कि आप जो पैसा वसूलते थे वह मदरसे के लिए चंदा होता था इमदाद होती थी आप बताइए क्या वह मस्जिद के लिए इस्तेमाल हो सकता है उन्होंने कहा ….. अब इतना तो चलता है यार ….।
चंदे के लिए इस हद तक गिर जाने वाले हमारे आलिमों की यह है असल पहचान …./जबकि यही आलिम बशर और खैरुल बशर में उलझे रहते हैं, लंबे और छोटे पाजामे में उलझे रहते हैं । हमारे यही आलिम दूसरे मसलक की छोटी-छोटी बातों को भी एक्सेप्ट नहीं कर पाते । एक्सेप्ट करना और बात है टॉलरेट करना और बात है हमारे यह आलिम दूसरे आलिमों को टॉलरेट भी नहीं कर पाते । अगर किसी से कह दिया जाए कि आज के दौर में चार शादियों पर रोक लग जाए तो हमारे ओलमा को शरीयत ख़तरे में नजर आने लगती है । अगर तीन तलाक पर रोक लगाने की बात हो तो हमारे उलमा को शरीयत ख़तरे में नजर आने लगती है मगर यही आलिम गरीबों यतीमों का हक़ मदरसे के नाम पर वसूल कर डकार जाते हैं उन्हें शर्म नहीं आती हमारे यही आलिम मदरसे के नाम पर चंदा मांगकर हीला शरई जैसे चोर दरवाज़े बनाकर उसी पैसे से मस्जिद तामीर करते हैं और कहते हैं इतना तो चलता है तब इन्हें शर्म नहीं आती तब इनका दीन ख़तरे में नहीं आता ।
अब आप बताइए कि यह अमल क्या ख़ुदा को धोखा देने जैसा नहीं है ? आप सवाल कीजिए कि जो लोग जकात, फितरा, सदका जमा करके किसी गरीब के हाथ पर रखकर उसे बेवकूफ बनाकर के मस्जिद के लिए दान करवा लेते हैं वह लोग किसे धोखा दे रहे हैं उस गरीब को या चंदा फितरा, जकात देने वाली जनता को या ख़ुदको या ख़ुदा को ? यह सोचना मेरा नहीं आपका काम है मैंने सवाल रख दिया है ।
आप इतना सब पढ़कर इसमें मेरी ठरकपन पर ढूंढ रहे होंगे आपको लग रहा होगा कि मैंने यह सब लिबरल दिखने के लिए लिखा है । तो भाई साहब बताता चलूँ कि मेरा भी ईमान है कि हमारे उलमा नायबे रसूल हैं, हमारे रहबर हैं । मेरे ईमान में रत्ती भर भी कमी नहीं है मेरे अमल में कमी हो सकती है ।
मगर थोड़ा गौर करके सोचिए तो मेरी फिक्र मेरी बात आपको अपनी फिक्र लगेगी आपकी अपनी बात लगेगी । सोचिए कि आप अपने बच्चों को दीनदार डॉक्टर बनाना चाहते हैं मगर नहीं बना सकते क्योंकि जहां वह डॉक्टर बनेगा वहां दीन नहीं होगा जहां वह दीनदारी सीखेगा वहां डॉक्टर बनने की सहूलियत नहीं होगी । आप अपने बच्चे को दीनदार वकील बनाना चाहते हैं मगर नहीं बना सकते क्योंकि जहां दीन होगा वहां वकालत की पढ़ाई नहीं होगी और जहां वकालत की पढ़ाई हो रही है वहां दीन नहीं है । ऐसे में आपका बच्चा या तो वकील डॉक्टर बनेगा या चंदा वसूलने वाला आलिम बनेगा ।
अगर हमारे उलमा दीन की ठेकेदारी करते हैं अगर हमारे उलमा मदरसा और मकतब के नाम पर चंदा ले करके जाते हैं आप देते हैं तो हमारे ओलमा का ये फर्ज़ बनता है कि वह मदरसों को अपडेट करें उसके अंदर डॉक्टरी भी पढ़ाएं, वकालत भी पढ़ाएं, मैनेजमेंट भी पढ़ाएं, सियासत भी सिखाएं ताकि वहाँ से निकलने वाले हमारे नौजवान झोला लेकर के दरवाजे़ दरवाजे़ पर चंदा वसूलने ना जाएं बल्कि समाज के काम आएं
आप गौर कीजिए आपके पास पड़ोस में बहुत से लोग ऐसे होंगे जिनके घर पर एक वक्त का चूल्हा नहीं चल पाता, आप गौर कीजिए हमारे देश में ऐसे बहुत से लोग हैं जो अपने मां-बाप की लाश को कंधे पर लादकर साइकिल पर लादकर ठेले पर लादकर 10-10, 20-20, 50 किलोमीटर तक चलते हैं उन्हें एंबुलेंस नहीं मिल पाती, बहुत से बच्चे हैं जिन्हें दूध नहीं मिल पा रहा है, बहुत से बच्चे हैं जिन्हें सही खु़राक नहीं मिल रही है कुपोषण का शिकार होकर के मर जाते हैं. जकात, फितरा, सदक़ा उनका हक है मदरसों का हक नहीं है । किसी मदरसे में जकात फितरा सदका खैरात आदि पैसा तभी लगाया जा सकता है जब वहां यतीम बच्चे पढ़ रहे हो और उनके खाने का इंतजाम ना हो मगर आप देखेंगे सारे मदरसों में जकात का पैसा जाता है तो क्या यह मान लिया जाए कि हमारे सारे आलिम यतीम हैं, गरीब हैं, मजबूर हैं, बेबस हैं या यह मान लिया जाए कि सब मुफ्तखोर हैं ?
खेती में होने वाली उपज और लोगों की सैलरी से निकलने वाले 2.5% जकात को अगर छोड़ दिया जाए, अपनी आख़िरत के लिए दिए जाने वाले सदक़ा और खैरात को अगर छोड़ दिया जाए, पुरखों के लिए किए जाने वाले सदक ए ज़ारिया को अगर छोड़ दिया जाए तब भी साल भर में हर मुसलमान फितरा निकालता है । इस फिकरे की रकम को अगर जोड़ा जाए और उसका सही इस्तेमाल किया जाए तो हर साल विश्व स्तर के 2-4 अस्पताल बनाए जा सकते हैं ।
मुंबई में इस साल प्रति व्यक्ति फितरे की रकम लगभग ₹80 थी मेरा ख्याल है गांव देहात में ये रकम लगभग ₹50 के आसपास रही होगी. अगर प्रति व्यक्ति ₹50 ही माना जाए तो पूरे देश में मुसलमानों की जनसंख्या यदि बीस करोड़ भी मान ली जाए तो यह रकम दस हज़ार करोड़ से अधिक होती है आप सोचिए यह दस हज़ार करोड़ कहाँ जाते हैं ? आप सोचिए इसके अतिरिक्त जकात, सदक़ा, खैरात और दीगर मदों में निकलने वाला आपका पैसा कहाँ जा रहा है । आपके पास अपना कोई कम्युनिटी सेंटर नहीं है, कम्युनिटी अस्पताल, स्कूल नहीं है और ताजमहल लालकिला आदि पर आपका हक़ भी नहीं है फिर देश में आपका अपना क्या है जिसपर आप फख्र कर सकें ।
कौम के नवजवान फर्जी आरोपों के तहत जेल में बंद हैं उनके लिए लड़ने वाला कोई वकील नहीं है, वकील है तो पैसे नहीं हैं । हमारी बहन बेटियाँ अनपढ़ हैं उनके लिए तो मदरसा भी नहीं है और जब उनके बच्चे बीमार होते हैं तब वे किसी सरकारी अस्पताल में धक्के खाती मर जाती हैं या किसी फर्जी बाबा के चक्कर में आकर अपना भी शोषण करवाती हैं । यह सब इसलिए हो रहा है क्यूँ कि समाज का पैसा ग़लत लोग खा रहे हैं ।
क्या ऐसा नहीं हो सकता कि अब तक हमने जो मस्जिदें और जो मदरसे बनाए हैं उनका समाज के लिए सदुपयोग किया जाए ? क्या ऐसा करना गुनाह होगा कि शहरों में एम्स और टाटा जैसे अस्पतालों में भर्ती मरीजों के जो परिजन सड़कों पर रात गुजारने को मजबूर हैं उन्हें हम मस्जिदों में पनाह दें ?/क्या हम इस तरह समाज के काम नहीं आ सकते, क्या हम इस तरह एक अच्छा संदेश नहीं दे सकते ? अगर दे सकते हैं तो हम ऐसा क्यों नहीं कर रहे हैं ? क्या खि़दमत ए ख़ल्क (समाज सेवा) से बढ़कर कोई अमल हो सकता है ? अगर नहीं हो सकता तो हमें सोचने की ज़रूरत है हमारी मस्जिदें हमारे मदरसे खि़दमत ए ख़ल्क को किस हद तक अंजाम दे रही हैं अगर नहीं दे रही हैं तो इसका जिम्मेदार कौन है ।
जकात – जकात का एक अर्थ होता है टैक्स जैसे हम सरकार को टैक्स देते हैं उसी तरह कुल इनकम का ढाई प्रतिशत एक लिमिट से ज्यादा बनाए गए जेवरों ढाई प्रतिशत खेतों में पैदा होने वाली उपज का ढाई प्रतिशत हिस्सा जकात के रूप में निकाला जाता है । जक़ात कंपल्सरी है बाध्यकारी है, मुसलमान यदि जक़ात न निकाले तो उसका सारा धन काला धन माना जायेगा ।
सदक़ा – बाल बच्चों की सेहत और तंदुरुस्ती के लिए पत्नी, महबूब, महबूबा, मां-बाप, पति, भाई, बहन या अन्य किसी भी आत्मीय अथवा प्रिय व्यक्ति की सेहत और तंदुरुस्ती के लिए कुछ रकम निकाली जाती उसे सदक़ा कहते हैं । अक्सर बहुत खुशी में भी सदका निकाला जाता है । और यह सदका भी किसी मदरसे का हक नहीं है बल्कि गरीब मिस्कीन लाचार का हक है ।
ख़ैरात – यह भी एक तरह का दान है जो हम राह चलते या घर आए किसी जरूरतमंद को अपनी जेब से निकाल कर दे देते हैं दूसरे शब्दों में इसे भीख कहा जाता है ।
इमदाद- इमदाद मदद से बना है अर्थात जो व्यक्ति जका़त निकाल चुका हो सारे अनिवार्य कार्य कर चुका हो फिर भी वह अपनी खुशी से अपनी जेब से किसी की मदद करे तो इमदाद कहलाती है ।
फितरा – फितरा रमज़ान शुरू होने के बाद ईद की नमाज से पहले कभी भी निकाला जा सकता है यह कंपल्सरी है इसमें भी कोई छूट नहीं है । मौलाना साहब बताते हैं कि जब तक आप फितरा अदा नहीं करते तबतक आपकी ईद की नमाज कुबूल नहीं होती । प्रति व्यक्ति दो किलो पैंतालिस ग्राम अनाज का मूल्य अथवा अनाज निकलना कंपल्सरी है । यदि आप गेहूँ खाते हैं तो दो किलो पैंतालिस ग्राम गेहूँ की कीमत (जिस भाव का गेहूँ खाते हैं) के हिसाब से निकालना होता है । गेहूँ न्यूनतम मापदंड है आप चाहें तो खुज़ूर और चने के में भी या उनकी कीमत के हिसाब से फितरा निकाल सकते हैं । यह भी गरीबों का हक़ है ।
जक़ात, फ़ितरा, सदक़ा, ख़ैरात, इमदाद को अगर छोड़ दिया जाये तो सिर्फ मुंबई में होने वाली कुरबानी के चमड़े की इतनी क़ीमत होती है कि उससे एक राष्ट्रीय लेवल का न्यूज़ चैनल खोला जा सकता है और बिकाऊ चैनलों की प्रोपेगेंडा न्यूज़ का जवाब दिया जा सकता है पर ये चमड़ा भी मदरसों में ही जाता है ।
सही मायने में मदरसों में सिर्फ इमदाद की रकम लगनी चाहिए और मस्जिदों लिए बाक़ायदा बताकर मस्जिद के नाम पर चंदा लिया जाये ताकि मस्जिद में वही रकम लगे जो पूरी तरह हलाल हो मेहनत और खून पसीने की कमाई हो ।
चंदा फितरा जकात वगैरह अगर देेना ही है तो किसी जकात फाउंडेशन या एजुकेशन फॉर यूथ जैसी संस्थाओं को दीजिए । मदरसे ही खोलने हैं तो देवबंदी आलिम और पूर्व में देवबंद के अध्यक्ष रहे गुजराती मूल के हैं मुझे उनका नाम नहीं याद आ रहा है उनके पैटर्न पर चलिए उनके मदरसों की शिक्षा पद्धति को अपनाइये कौम का भला होगा ।
Faking News देश
उत्तरप्रदेश: गाय की पूँछ पर भिनभिना रही मक्खियों को बेकाबू भीड़ ने पटक-पटककर मारा
09, Dec 2018 By Fake Bank Officer
लखनऊ. उत्तर प्रदेश में गौरक्षा के नाम पर भीड़ की हिंसा का एक और मामला सामने आया है। शहर के एक तनावग्रस्त इलाके में कल एक गाय की पूँछ पर भिनभिना रही मख्खियों के कारण तनाव और बढ़ गया और अचानक ही आयी एक बेकाबू भीड़ के हाथों मक्खियों को जान गंवानी पड़ी। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार दोपहर के समय एक माँ समान गाय कचरे के एक ढेर में अपनी खुराक ढूंढ रही थी, तभी कुछ आवारा मक्खियों ने उनपर हल्ला बोल दिया।
fliesमृत पड़ी मक्खियाँ
मक्खियों की यह भिनभिनाहट सुन अचानक ही जाने कहाँ से हाथ मे कट्टे और पत्थर लहराते हुए बजरंग दल के कार्यकर्ता आ पहुँचे। कार्यकर्ताओं का यह आक्रामक तेवर देखकर मक्खियाँ वहाँ से भागने प्रयास करने लगी, लेकिन भीड़ पर तो खून सवार था। उन्होंने एक एक मक्खी को दौड़ा-दौड़ाकर मारा।
घटना की जानकारी मिलते ही उत्तर प्रदेश पुलिस ने तत्काल कार्यवाही करते हुए मक्खियों के खिलाफ FIR दर्ज कर दी है और नौ-दस धाराएं एक साथ लगा दी हैं। साथ ही गौमाता को सही सलामत उनके मालिक के पास पहुँचाने के लिए पुलिस की एक टुकड़ी भी भेज दी है।
हालाँकि खबर लिखे जाने तक गाय के मालिक का पता नही चल पाया था। वही मक्खियों के परिजनों ने जब पुलिस थाने का घेराव कर न्याय की मांग की तो उन्हें भी कीड़े-मकोड़ो की तरह मसल दिया गया। इस घटना की रिपोर्ट ‘पेटा’ वालों को भी भेज दी गई है, उन्होंने कहा है कि जैसे ही हमें चंदा माँगने से फुर्सत मिलेगी हम आ जाएँगे।
उधर, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ इस पूरे घटनाक्रम पर नज़र बनाए हुए हैं। उन्होंने एक कमेटी गठित कर जाँच बिठा दी है कि क्या मक्खियाँ खुद ही गाय को छेड़ने आयी थी या उन्हें किसी साजिश के तहत भेजा गया था। जब विपक्षी दलों ने सरकार पर मक्खियों के प्रति संवेदनहीनता का आरोप लगाया तो योगी जी ने झट से मक्खियों के परिजनों के लिए एक-एक हज़ार रुपये के मुआवजे की घोषणा कर दी।
Wasim Khan Baloch-Indian किसानों को पहले फसल बुआई के समय परेवट (सिंचाई), खाद, बीज और जुताई के लिए पैसे की व्यवस्था करना पडता था। अब योगी जी की कॄपा से आवारा पशुओं से फसल बचाने के लिए उसमें खंबे लगाकर तार बांधने का भी जुगाड़ करना पड रहा है। जो ऊपर बताए गये पूरे खर्चे से अधिक है। एक बीघे में 4500-5000 का खर्च आ रहा है। उस ब्लेड लगे तार को बांधने में इतनी दिक्कत है कि जहाँ हाथ पैर में लग जाए तो चार दिन डाक्टर के पास जाओ।
उसमें भी जानवर मानते नहीं तो इतनी कोहरे भरी शर्द रात में जाकर रखवाली करो। क्योंकि भूख की वजह से जानवर भी रिस्क ले लेते हैं कभी ऊपर से छलांग लगाई तो कभी झुककर नीचे से निकल गये। एक बार भी दस पन्द्रह जानवर घुस गये तो पूरी फसल चौपट। इस रिस्क को लेते समय जानवरों को जो तार के ब्लेड से चोंट लगती है उससे उनको शर्दी में बहुत दिक्कत होती है। देखकर बडा खराब लगता है लेकिन इतने जानवरों की जो रक्षा करे वो किसान खुद भूखा मरे। इतनी समस्या है कि एक सौ बीस दिन की फसल में आप रोज रखवाली करो अगर एक दिन भी चूके या कहीं जाना पड गया तो 119 दिन की मेहनत के साथ- साथ सब कुछ गया। अब हर किसान हिन्दू नहीं किसान बनकर सोच रहा है। जानवर इतना बढ चुके हैं कि अगर कोई सरकार कोशिश भी करे तो गौशाला में आ नहीं पाएंगे। सांड बहुत अधिक हो गये हैं। गाय पालना भी किसान के लिए किसी फायदे का सौदा नहीं है। चारा दाना ही इतना मंहगा है कि ये प्रैक्टिकल नहीं है। हर जाति वर्ग का किसान योगी जी मोदी जी पर इतना नाराज है कि इसका जबरदस्त खामियाज़ा सरकार को भुगतना पडेगा। त्रस्त किसानों ने अब खुद आवाज उठाई है। सरकारी अस्पताल और स्कूलों में गायों को बंद करके ताला लगा दे रहे हैं। ये चीज न मीडिया को दिखेगी न सरकार को बस 2019 में देख लेना। सब कह रहे लाख चोर होने के बाद भी अन्य सरकारें ये समस्या तो खत्म करेंगी।
hindutav ka dlal —————————————–
M Mittal
4 January at 18:21 ·
गौरक्षा में जुटे महंत योगी आदित्यनाथ
————————————-
यूपी सीएम योगी आदित्यनाथ ने सभी जिला अधिकारियों को निर्देश दिया कि आगामी 10 जनवरी तक बेसहारा एवं आवारा गौवंश को गो-संरक्षण केन्द्रों में पहुंचाए जाएं. योगी ने कहा कि गो-संरक्षण केन्द्रों में गायों के चारे, पानी और सुरक्षा की पूरी व्यवस्था सुनिश्चित की जाए. जहां पर चारदीवारी नहीं है वहां तुरन्त फेन्सिंग की जाए और पशुओं की देखरेख करने वालों की नियुक्ति की जाए.
योगी ने कहा कि सभी नगर निकायों में कान्हा गौशाला के लिए वर्ष 2017-18 में 60 करोड़ रुपये तथा वर्ष 2018-19 में निर्माण कार्य हेतु 95 करोड़ रुपये तथा भूसे, चारे आदि के लिए 23.5 करोड़ रुपये अतरिक्त का बजट जारी कर दिया गया है। गोवंश संवर्धन व सुरक्षा हेतु इस धनराशि का शीघ्रता से उपयोग करने का निर्देश दिया गया।
आगामी गौरक्षा खर्च के लिए योगी सरकार द्वारा यूपी में शराब पर 2 परसेंट ‘गौ कल्याण टैक्स’ लगाया गया। व मंडी शुल्क, एक्साइज ड्यूटी वाले उत्पाद व टोल टैक्स में भी गौ कल्याण सेस जोड़ा गया। योगी सरकार में ऊर्जा मंत्री श्रीकांत शर्मा ने कहा कि पूरे राज्य में हर ग्रामीण व शहरी क्षेत्र व नगर निकायों में न्यूनतम 1000 निराश्रित पशुओं के लिए आश्रय स्थल बनेंगे। मनरेगा के माध्यम से इनका निर्माण कराया जाएगा व व्यवस्था की जाएगी। ग्राम पंचायत, विधायक, सांसद निधि से इसका खर्च उठाया जाएगा।
इसके साथ ही योगी महाराज ने बजट में, राज्य ने गाय और दूध उत्पादन के लिए पिछले वर्षों में सर्वाधिक 233 करोड़ रुपए का आवंटन किया था।
योगी सरकार ने गोवंश स्वास्थ्य और रोग नियंत्रण कार्यक्रम के लिए 100 करोड़ रुपये और पशु स्वास्थ्य और रोग सुधार सुनिश्चित करने के लिए 700 करोड़ रुपये के मोबाइल अस्पतालों की घोषणा की थी।
देशी नस्ल की गाय के प्रजनन को लोकप्रिय बनाने और इनाम देने के लिए, योगी आदित्यनाथ ने “नंदबाबा (बैल) पुरस्कार योजना” शुरू की, जो कि भारतीय नस्ल के गायों से अधिकतम दूध का उत्पादन करने वाले किसानों को 52 लाख रूपए का इनाम प्रदान करेगी। योगी सरकार ने गोशाल चलाने वाले लोगों के लिए 54 लाख रुपये के “गोकुल पुरस्कार” पुरस्कार भी घोषित किये।
योगी सरकार ने बजट में घोषित ग्रामीण इलाकों में स्थापित 100 आयुर्वेदिक अस्पतालों में गोमूत्र से बनाई जाने वाली दवाओं को बढ़ावा देने की योजना भी शुरू की। राज्य आयुर्वेद विभाग ने गाय के मूत्र से बनाई गई आठ दवाएं तैयार की हैं, योगी सरकार उन्हें लिवर और प्रतिरक्षा की कमी आदि बीमारियों के लिए उन्हें बनाने के लिए तैयार है।
राज्य की 12 जेलों में गौ शाला स्थापित करने में 2 करोड़ रूपए का प्रारंभिक आवंटन किया गया। गौशाला लखनऊ, बाराबंकी, सुल्तानपुर, सीतापुर, बरेली, उन्नाव, आगरा, प्रयाग, वाराणसी और फतेहगढ़, बरेली और कानपुर की केंद्रीय जेलों में स्थापित की जाएगी।
साभार : विभिन्न न्यूज एजेंसीज, इंटरनेट। ————————————————————————————————————————————————-
Rama Shankar Singh shared a post.
9 hrs ·
किसी को अच्छा या बुरा लगता रहे , भावनायें आहत होतीं रही पर यह चाहें आज मान लें या कल अगले पाँच दस सालों में गाँवों के वे लोग जो पशुपालक रहे हैं ,सदैव से हैं ,वे संगठित होकर लाठी बल्लम लेकर गोगुंडों का मुक़ाबला करते हुये ट्रकों में भरकर खुद अपने या सबके अनुपत्पादक पशुधन को खुद ले जाकर वहॉं छोड़ देंगे या बेच देंगे जहॉं वैज्ञानिक रीति से उन्हें डिब्बा बंद कर निर्यात कर दिया जायेगा। अभी वे लोग जो गाँवों की डूबती अर्थव्यवस्था से कतई अनभिज्ञ रहे हैं वे एक्सपर्ट बनकर गोनीति बनाते रहे हैं। बाबा, महंत , संत, शंकराचार्य टाइप लोग कुछ मेहनत कर कमाते तो हैं नहीं बस दूसरों के पैसे से बकबास करना जानते है। आज यूपी के गाँवों में जायें और गोरक्षा की बात करके देखें । किसान सबसे पहले अपनी फ़सल को बचायेगा जो नज़र हटते ही आवारा पशु नष्ट कर रहे हैं । ज्यादा हिंदुत्व बघारेंगें तो वह भी नहीं बचेगा जो अभी हाथ में है। गॉंव के कारण ही तुम्हारा धर्म अभी तक बचा है । वही हाथ से निकाल दोगे तो ठनठन गोपाल रह जाओगे जो देश के लिये तो अच्छा ही होगा पर ऐसी ऐतिहासिक चीज़ होगी कि प्रचारकों से ही मूल चीज़ नष्ट हुई। योगी जैसे क्रिमिनल और धर्मांध जीवन भर चढ़ावे पर मौज करते रहे हैं, उनके लिये गाय एक राजनीतिक धार्मिक पशु है , वोट कबाडने का आसान ज़रिया पर बहुत दिनों तक यह रहने वाला नहीं है । अब नौबत यह आ गई कि गो का मुद्दा ही राजनीतिक नहीं रह जायेगा।
दूसरा मैं पहले ही कह चुका हूँ यदि किसी भी कारण से मंदिर के सवाल पर भी भाजपा चुनाव नहीं जीत सकी तो सदैव के लिये न सिर्फ मंदिर का सवाल बल्कि आपके इस मुद्दे की अपराजेयता पर भी प्रश्नचिन्ह लग जायेगा! क्या ये इसके लिये तैयार है ? ज़ाहिर है कि ऐसा ही है, इन्हें सिर्फ चुनाव से मतलब है। हिंदुओं का सबसे बडा दुश्मन आज हिंदुत्व ही बन गया है।
गांधी को याद करें । गोरक्षा नहीं गोसेवा के पक्षधर थे गांधी। आज भूखे गो परिवार को किन तत्वों ने आवारा भटकने को मजबूर कर दिया है ?
पढिये खाँटी हिंदी पत्रकार शेषनारायण सिंह जी की राय ! किसीऐसे पत्रकार की नहीं है जो समाज से कटे अंग्रेजीदॉं की हो सकती है।
See Translation
Shesh Narain Singh is with Deomani Dwivedi and 6 others.
15 hrs
छुट्टा सांड उत्तर प्रदेश के ग्रामीण इलाकों में बहुत नुक्सान कर रहे हैं. सरकार की पशुओं के प्रति नीति इस दुर्दशा के लिए ज़िम्मेदार है . जहां २०१४ में मोदी लहर थी ,वहां आज इस एक कारण से केंद्र और राज्य सरकार की निंदा हो रही है . दिल्ली में बैठे जो ज्ञाता जातियों के आधार पर हिसाब किताब लगाकर उत्तर प्रदेश के २०१९ के नतीजों का आकलन कर रहे हैं ,उनको कुछ नहीं मालूम. अजीब बात यह है कि ३२५ विधायक और ७० के करीब लोकसभा के सदस्य अपने नेताओं को बता नहीं पा रहे हैं कि उनकी पार्टी की हालत इन आवारा पशुओं के कारण कितनी खराब है . मेरे अपने क्षेत्र में हज़ारों की संख्या में ऐसे जानवर घूम रहे हैं जो किसी के नहीं हैं , झुण्ड के झुण्ड के आ जाते हैं और बस कुछ मिनट में फसलों को बेकार करके चले जाते हैं . कल खबर आई है कि उत्तर प्रदेश सरकार ने बड़े तामझाम से मेरे क्षेत्र के गजापुर गाँव में ५२ बीघे ज़मीन में सरकारी गौशाला बनवाने का काम शुरू किया है . इस गौशाला में कितने जानवर बंद किये जा सकेंगें यह लखनऊ में बैठे अफसरों को नहीं मालूम है. अगर उनको यह उम्मीद है कि इसके बाद आवारा जानवरों की समस्या ख़त्म हो जायेगी तो वे सच्चाई को शुतुरमुर्गी स्टाइल में समझ रहे हैं . इस खबर में यह भी बताया गया है कि जो लोग अपने जानवर छुट्टा छोड़ रहे हैं उनके खिलाफ सरकार कार्रवाई करेगी यानी बीजेपी के कुछ वोटर और नाराज़ किये जायेंगें और उनको पुलिस के वसूली तंत्र का शिकार बनाया जाएगा . मेरे लिए अभी यह अंदाज़ा लगा पाना असंभव है कि २०१९ में बीजेपी का कितना नुकसान होगा लेकिन यह तय है कि बड़ी संख्या में किसान बीजेपी के खिलाफ वोट कर सकते हैं और उनकी जाति कुछ भी हो सकती है . २०१४ में बीजेपी के कट्टर समर्थकों से भी बात करके यही समझ में आता है कि नाराज़गी बहुत ज्यादा है . अभी करीब सौ दिन बाकी हैं मतदान शुरू होने में . क्या इतने दिनों में ऐसा कुछ कर पायेंगे कि वोटों में होने वाले निश्चित नुक्सान को कम किया जा सके .
A Singh
8 January at 18:41 ·
भोत पहले , यानी कि 2014 से पहले , मैंने fb पे एक पोस्ट लिखी थी ।
उसमे मैंने ये लिखा था की ये गोरक्षा को आस्था का या बकचोदी का प्रश्न मत बनाओ ।
गाय का क्या करना है , कैसे करना है ……… इसका फैसला गौ पालक को या किसान को या Dairy Farmer को करने दो ……….
वो जो गाय खुद नही पालता , वो जिसको सिर्फ गाय का फोटो लगा के ही गो रक्षा — गो रक्षा चिल्लाना है , गो रक्षा उसका विषय ही नही है ।
जिसके खूंटे पे 10 गाय बंधी है उसको decide करने दो कि उसको अपने गो वंश का क्या करना है ।
मेरी इस पोस्ट पे मुझे भाई लोग ने भोत गाली दी थी ।
भोत जायदे गाली …….. मने उस पोस्ट पे 750 से ज़्यादा comments आये थे जिसमें से ज़्यादातर मुझे गाली ही दे रहे थे ।
तब मैंने कहा था कि नदी पे बांध बना देने से कुछ न होगा । बांध बनाने से पहले नहरें खोदनी पड़ती है । रुके हुए पानी को नहरों का जाल बिछा के फैलाना पड़ता है । पहले नहर खोदते हैं उसके बाद बांध के फाटक बंद किये जाते हैं , वरना पानी बांध के ऊपर से बहने लगता है ।
गोरक्षा यदि आपके लिए भावनात्मक विषय है तो बेकार , बूढ़ी , Unproductive गाय , बैल , बछड़े , साँड़ अपने दरवाजे पे बांध के रखिये । गाय से बहुत प्रेम है तो उसे सड़क पे लावारिस पिटने के लिए मत छोड़िए ।
बहुत ज़्यादा गोरक्षा नसों में उबल रही है तो एकाध गाय बछड़ा , बैल , साँड़ को गोद ले लीजिए , उसको Sponsor कीजिये , अपने घर नही पाल सकते तो किसी गौशाला में उसको रख के उसका खर्च उठाइये ।गोरक्षा सिर्फ नारेबाजी से नही होगी ………मैंने तब ये भी लिखा था कि देश मे आज 9 करोड़ गाय हैं । इनके हर साल लगभग 4 करोड़ बछड़े पैदा हो जाएंगे ।
गो हत्या रुकने से 5 साल में 20 करोड़ बछड़े लावारिस सड़कों पे घूमेंगे तो पूरी खेती ही चर जाएंगे । इसके अलावा यदि इनको गौशालाओं में बांध के भी रखें तो ये 20 करोड़ पशु हमारी agriculture पे एक बहुत बड़ा बोझ बन जाएंगे । आज जो आपका Asset है वो Liability बन जाएगा ।
जल्दी ही ये संख्या 20 करोड़ से बढ़ के 40 करोड़ हो जाएगी ।बिना planning के , बिना सोचे समझे गो हत्या बंद करने का नतीजा आज आपके सामने है । देश के हर गांव में झुंड के झुंड लावारिस आवारा पशु खेत चर रहे हैं ।अभी भी समय है । सबसे पहले तो गाय को Redefine कीजिये । सिर्फ कूबड़ वाली देशी गाय ही गाय है ……. विदेशी नस्ल , बछड़े , बैल , को गाय की परिभाषा से मुक्त कीजिये । वरना यही समाचार हर गांव से मिलेंगे ।
सार्थक लेख
https://www.youtube.com/watch?v=ANtzxZ9eN_8
गिरधारी लाल गोयल
16 hrs ·
मेरा बाड़ के काम में आने वाले कांटेदार तार बनाने का कारखाना है
रिटेल में भी तार बिकता है
कभी कभी फुर्सत सी में होने पर अपने व्यवसायिक हित के विपरीत जाकर किसान को खरी खोटी सुनाते हुए कहा देता हूँ
“कुछ शर्म करो भगवान के दिये हुए खेतों से खुद के पेटों के लिए तो फसल पैदा कर रहे हो , लेकिन खेती पर ही आश्रित गौ वंश के लिए खेत के एक हिस्से में कुछ नहीं उगा सकते”
हमारे यहां किसान आलू की फसल के बाद खेत खाली रखते हैं, दो बीघा खेत में चरी करते हैं , उसकी तार बंदी करते हैं , लेकिन तार बंदी की कीमत से आवारा गो वंश के लिए और दो बीघा चरी नहीं बोते
जबकि हमारा क्षेत्र गौ माता के आशीर्वाद का साक्षी है कि
जिन खेतों में गो वंश घुस कर बर्बादी कर देता है उन खेतों में भगवान की दया से सवाई पैदावार निकलती है
कई किसानों ने अपना अनुभव बताया कि गेंहू बोने के बाद तीन चार इंच की होने पर सांड़ अपनी थुंथनी रगड़ रगड़ कर तहस नहस कर देता है , उस हिस्से में गेंहू के जवारे के गुच्छे के गुच्छे निकल आये और भरपूर वल्कि कहीं ज्यादा ही फसल निकली
लेकिन फिर भी रवी सीजन में गो वंश की दयनीय हालत आंखों में आंसू ला देती है
गाय का घी दूध दही अमृत है ये तो वेदों में भी लिखा है ,
गाय का घी मंहगा पड़ता है ये हर कोई जानता हैगिरधारी लाल गोयल
23 hrs ·
बाबा रामदेव यदि गाय के घी और गोमूत्र के प्रोडक्ट की महानता बखान कर बेचने की बजाय अपने शिविरों में
स्वयं और शिविरारथीयों द्वारा गो मूत्र सेवन का लाइव प्रसारण दिखाते
तो दसियों हजार गायें तिल तिल मरने या कट्टी खाने की यातना से बची रहतीं
ध्यान रहे इस समय गौ रक्षा के लिए गाय का दूध और घी महत्वपूर्ण नहीं है महत्वपूर्ण है गाय का मूत्र और गोबर
गाय के मूत्र और गोबर के महत्व से ही गायों का बुढ़ापा कट सकता है
लेकिन इन तथ्यों के आधार पर गौ पालन कर भावनात्मक प्रचार द्वारा गाय के घी से कमाई करने के लिए तो बाबा रामदेव ही सबसे भारी पड़ेगा
कोई लाख तर्क दे लेकिन गाय के दूध के उत्पाद बेचने के लिए गौ पालन गौ सेवा नहीं वल्कि गाय पालन के व्यवसाय में आयेगा
गौ सेवा के लिए तो बूढ़ी गायों के गोबर पेशाब की उपयोगिता खोज कर उसकी व्यापकता बनानी होगी
क्या कोई गौ सेवक कल्पना कर सकता है कि हमारे आगरा के Anand Sharma जी ने सात साल से खेतों में रसायनिक खाद का एक दाना भी नहीं डाला है
और केवल गौ मूत्र और गोबर के बूते ही सवाई उत्पादन दर ले रहे हैं
ऐसा प्रयोग कोई बाबा रामदेव या 1500-2000 रुपये किलो घी बेचने वाला गौ पालक ने किया हो तो
उसको अपना घी बाई प्रोडक्ट में रख के उक्त फॉर्मूले को बेचने का काम करना चाहिए
अन्यथा लोग अमृत के नाम पर 1500-2000 में खरीदने की वजाय गाय को पालेंगे
फिर बूढ़ी गाय और जवान सांड़ को तिल तिल कर मरने को लावारिस छोड़ते रहेंगे