Haider Rizvi
17 April at 23:58 ·
मेरा धर्म बेस्ट, मेरी किताब बेस्ट, मेरा पैग़म्बर बेस्ट, मेरा धार्मिक स्थल बेस्ट यहाँ तक कि मेरे धार्मिक स्थल का लाउडस्पीकर बेस्ट…….. तुम्हारा सब कुछ बेस्ट है क्यूनकि तुम्हारा है …. तो फिर मोदी-योगी का सूर्य नमस्कार, योगा, आरती, मूर्ति विसर्जन, गीता, वेद, संस्कृत, भगवा, मटर पनीर, धोती, चोटी वग़ैरह वग़ैरह बेस्ट होने पर इतनी आपत्ति क्यूँ……
तुमहे दूर से देखता हूँ तो ऐसा लगता है जैसे मुहल्ले के छोटे बच्चे मेरे पापा बेस्ट मेरे पापा बेस्ट कहकह कर बाल नुचववल कर रहे हों….. कोई अम्बेडकर को इतना बड़ा बनाए जारह है की क्षितिज छोटा पड़ जाय, कोई परशुराम जी पर मोहित है, कोई गांधी को पैग़म्बर बनाए दे रहा है तो किसी के भगत सिंह भगवान बने जारहे हैं….. जिसे कुछ नहि मिला वो गय्या की अलापे पड़ा है…..
शुक्र मनाओ तुम्हें कांग्रेस भाजपा जैसे नेता मिलते हैं… मेरे जैसा कोई सरफिरा मिलता तो तुम्हारे धर्मों को तुम्हारे घर से बाहर निकलते ही जेल में डाल देता….. भाड़ में गयी तुम्हारी आज़ादी भाड़ में गयी तुम्हारी आस्था……. पूरी की पूरी जेनरेशंस का सत्यानाश किए बैठे हो…….
एक दहेज लिए बिना बहु नहि लाता तो एक तीन तलाक पर औरत को नचाए फिरता है…. और बेशर्म दोनो ऐसे लड़ते हैं एफ़बी पर जैसे इनहि के घर सब पैग़म्बर और अवतार जन्मे हों….. जो अपनी मा बहनो के सगे नही हुए मुल्क और क़ौम के सगे होने की पोस्ट लिख कर लाइक कमेंट बटोर रहे हैं…..
और नास्तिक….. इनकी बता रहा हूँ, ये आने वाले समय में ख़ुद एक बीमारी बनेगे… यह आस्टिकता से ज़्यादा नास्तिकता की ढपली बजाए पड़े हैं… अगर यह शरीफ़ होते तो चुपचाप अपनी आस्था या अनास्था घर में लिए बैठते… लेकिन इन्हें सिर्फ़ पब्लिसिटी चाहिए……
दरअसल तुम लोग लोकतंत्र में रहने के लायक ही नहि हो… तुम्हें वो शसक चाहिए जो ख़ुद को भगवान का अवतार या पैग़म्बर बता दिन भर तुम लोगों से अपने चरण धुलवाए और जयजयकार करवाए…. तुम ग़ुलाम थे और ग़ुलाम ही रहना, क्यूँकि तुमने आज़ादी का मतलब ही नहि सीखा……
सनातनियों ने अपनी इतनी प्यारी आज़ादी की मट्टी पलीद कर दी कर्मकांडों में फँसकर….. मुहम्मद साहब की दी आज़ादी को तुमने मुल्लों की शरीयत की रस्सी से जकड़ दिया…. गांधी की दी हुई आज़ादी को सत्ता की दलाली बना डाला….. और उस पर तुर्रा यह कि कोई सनेपचैट का मालिक तुम्हें जाहिल क्यूँ कह गया…..न तो क्या कहे तुम्हें????? एडिसन कहे? आइंसटाइन कहे? न्यूटन कहे?जब दुनिया भाप का इंजन बनारही थी तो तुम्हें यह सिखाया जारह था की अपने बाप के मरने पर अपनी मा को ज़िंदा न जलाओ…… जब दुनिया चाँद पर पहुँच रही थी तब तुम बरखे और पैजामे की लंबाइयाँ नाप रहे थे….. तुम्हारे जैसे ही देश्वासी होते हैं जिनका प्रधानमंत्री हर भाषण में पहले उन्हें ये सिखाता है कि बेटा देखो हगना कहाँ चाहिए, थूकना कहाँ चाहिए, मूतना कहाँ चाहिए…..और जब दुनिया सड़क पर उतरने की ज़रूरत महसूस कर रही है तब तुम बैठे फ़ेसबुक के लाइक्स गिन रहे हो…..
बड़े आए हैं सनेपचैट पर देशभक्ति पेलने वाले……इतिहास गवाह है कि भारतीयों ने जितने चुटकुले इन तीन सालों में गढ़े उतने शायद कभी न गढ़े गए होंगे….. मतलब तुम डोनो पार्टियों को राजनीति, विकास या आज़ादी नहि केवल मनोरंजन की दरकार है……. हँसो, पियो, खाओ, सो और जब जागो तो धर्म का नाम लेकर लड़ मरो…..
मरते भी तो नहि हो कंमबख़्तों…….हैदर रिज़वी———————— ———————–
-Krishn a Kant
19 hrs ·
हमने कहा ‘माइक का शोर अच्छा नहीं’ तो मुल्ला जी लोग लेकर उड़ लिए. कुछ भक्त आ गए, इस पर क्यों नहीं कहते, उस पर क्यों नहीं कहते. जबकि दुनिया जानती है कि माइक और ऐसे संसाधनों से सबसे ज़्यादा दुरुपयोग और शोर हिंदू करते हैं. हर मंदिर पर सवेरे भजन लगा देंगे और दो घंटे बजता रहेगा. हर अवसर पर डीजे, माइक, कानफोड़ू भद्दे गाने. अब उनकी नकल में मुसलमान भी डीजे फीजे बजाकर यात्रा और जुलूस निकलने लगे हैं. दोनों में मूर्खताओं की तगड़ी होड़ है. हमने कहा तो दोनों के लिए, लेकिन आप लेकर उड़ लिए. मेरी समझ है कि कट्टर हिंदू शातिर मूर्ख है, लेकिन कट्टर मुसलमान सिर्फ़ मूर्ख है. महामूर्ख.
जो यहां पर हमसे जुड़े हैं, वे जानते होंगे कि मैं नास्तिक हूं. नास्तिक होकर हमारे लिए एक ही कसौटी है, संविधान और मानवता की भलाई. सबकी बराबरी. जो कहूंगा सबके लिए कहूंगा. हमारे दिमाग में किसी धर्म के खिलाफ वह बजबजाहट नहीं है जो आपके दिमाग में है. हममें और आपमें यही फर्क है साहबान! यदि आप हमें जानते नहीं तो हमसे जुड़े क्यों हैं?
मेरी स्पष्ट राय है कि धर्मांधता आपको 500 बरस पीछे ले जाकर खड़ा करती है. कोई शक?Krishna Kant
20 hrs ·
हम नही सुनना चाहते
■ मानस पाठ के नाम पर बेसुरी आवाज़ और ग़लत उच्चारणों से भरी बोरिंग आवाज़ें जो पूरी रात माइक पर गूँजती हैं।
■ झूठे वादों और घटिया पैरोडी वाले चुनावी प्रचार जो दिन दोपहरी आराम नहीं करने देते।
◆ कपिल शर्मा की अश्लील और घटिया कॉमेडी जो पड़ोसी की टीवी पर चलती रहती है।
■ किरपा बरसाने के दावे करने वाले बाबाओं के प्रवचन।
■ अन्नू मलिक के साथ बैठकर फरहा और सोनू मलिक की घटिया बकवास और एक दूसरे की झूठी तारीफ़ें।
■ मन की बात तो हम कतई नहीं सुनना चाहते। लगता है चुनाव पांच साल पर नहीं हर घण्टे होते हैं।
■ हाँ हम भी सुबह सुबह अजान का शोर नहीं सुनना चाहते लेकिन उसी वक़्त हनुमान चालीसा का बेसुरा पाठ भी हमारी नींद और मूड ख़राब करता है। अगर अजान से आपको दिक़्क़त है और चालीसा का बेसुरा पाठ सुन्दर लगता है तो माफ कीजिये हम आपकी बकवास नहीं सुनना चाहते।Krishna Kant
22 hrs ·
महाकवि कुमार विश्वास ने एक वीडियो जारी किया है जिसमें वे सैनिकों को वीर सिपाही कह रहे हैं और सैनिकों के साथ बदसलूकी कर रहे कुछ लड़कों को शोहदा कह रहे हैं. कश्मीर की जनता अपने बच्चों के साथ है। उनको आतंकी घोषित करके, गोली मार के कुछ हासिल नहीं होगा। एक युवक मरता है तो हजारों की भीड़ उमड़ती है, यह नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता। सोशल मीडिया ट्रायल से और बात बिगड़ेगी ही।
आपको याद है जंतर मंतर? मुझे याद है। हमारी उम्र में पहली बार हमने सुना था कि सरकार जनता की नौकर है। सरकार को गालियां दी जा रही थीं। पुलिस से लोग भिड़ रहे थे, गालियां दे रहे थे, प्रधानमंत्री तक को लोग गालियां दे रहे थे, वह सब जनता का लोकतांत्रिक अधिकार था।
कश्मीर का मामला राजनीतिक है और बेहद जटिल भी। कश्मीरी अलगाववादी अलग देश मांग रहे। यह नहीं स्वीकार हो सकता। लेकिन सड़क पर उतरे कश्मीरी युवाओं को दिल्ली से कोई संबोधित कर रहा है क्या? उन्हें गोली मारकर या आतंकवादी घोषित करके आप उनसे चाहते हैं कि भारत माता के नारे लगाएं तो यह असंभव है।
एक मामले में जवानो ने संयम बरता, काबिलेतारीफ है, लेकिन एक अन्य युवक को गोली भी मार दी गई, जिसके विरोध में पूरा कश्मीर सड़क पर है। एक युवक को जीप में बांधकर 5 घंटे घुमाया गया, यह आपको उचित लग रहा है, लेकिन कश्मीर के भारत समर्थक भी इससे बिदक जाएंगे। दिल्ली का लोकतंत्र कश्मीर जाकर क्रूर हो जाएगा, इससे कुछ हासिल होगा, ऐसा सोचने वाले मूर्ख हैं।
कश्मीर समस्या से हम साठ सत्तर साल से ऐसे ही निपट रहे हैं. हम यहां से ऐसे ही देखते हैं कि जो भारतीय लोकतंत्र से असंतुष्ट है, वह शोहदा है, राष्ट्रद्रोही है, आतंकवादी है. यह नजरिया कश्मीरियों में और नफरत भरता है. आपका वीडियो कश्मीरी भी सुनते होंगे. जब आपके मुंह से अपने लिए वे शोहदा, आतंकी, देशद्रोही सुनते होंगे तो कैसा लगता होगा? क्या जो असंतुष्ट है वह देशद्रोही है?
भारत की सरकारों ने कई दशक तक सत्ता के लिए कश्मीरियों का सम्मान नहीं किया, उनके जनमत का सम्मान नहीं किया. आज भी उनको बातचीत की टेबल पर लाने की कोई पहल नहीं दिख रही। कश्मीर सड़क पर है और देश का प्रधानमंत्री निगम चुनाव में ताकत लगाए है। देश को चलाने और एकजुट बनाये रखने के लिए सिर्फ चुनावी हवस ही काफी होती तो कोई भी इसे विश्वगुरु बना चुका होता।
दुनिया में कोई भी देश, कोई भी हिस्सा, कोई भी जनता बंदूक से एकजुट नहीं की जा सकी है.
काश! भारत के सभी दल मिलकर कश्मीर में ज़्यादा दिलचस्पी लेते और कश्मीरियों को विश्वास में ले पाते. सैनिक बेशक भारत मां का लाल है, लेकिन क्या इसी धरती पर जुर्म में मुब्तला कोई बच्चा भारत मां का लाल नहीं है? खोट कश्मीरियों में होगा, अलगाववादियों में होगा, लेकिन हमारे नजरिये में भी है. जिसे इस बात की तस्दीक करनी हो, वह पडगांवकर की रिपोर्ट और सरकार का नजरिया पढ़—जान सकते हैं.
कश्मीर पर मीडिया जो भी प्रसारित कर रहा है, ऐसा करके वह अलगाववादियों की मदद कर रहा है। यहां से आप जितनी नफरत प्रसारित करेंगे, कश्मीरियों को उतना ही दूर धकेलेंगे। जिन्हें कश्मीर और पाकिस्तान में अंतर करना न आता हो, वे यह कहना छोड़ दें कि कश्मीर हमारा है। कश्मीर हमारा है तो पूरा भारत भी कश्मीरियों का है, जैसे यूपी या बिहार वालों का। उन्हें यह भरोसा दिलाने के सिवा कोई दूसरा चारा नहीं है।Krishna Kant
17 April at 23:36 ·
संघ काहे का हिन्दू है?
■ संघ का गणवेश देखिए। खाकी पैंट (पहले आधा फिर पूरा) सफेद शर्ट। काली टोपी। अब आंख मूंद कर दो मिनट सोचिए। किस हिन्दू धर्मशास्त्र में यह गणवेश लिखा है। जवाब मिलेगा कहीं नहीं।
■ तब सोचिए यह वेश कहां से आया? सर्च कीजिये गूगल या किताबें पलटिये तो पता चलेगा कि खाकी कच्छा और सफेद शर्ट आया हिटलर के यहां से। जबकि काली टोपी मुसोलिनी के सैनिकों का वेश थी। यानी देशभक्ति का दावा करने वालों का गणवेश ही जर्मनी और इटली की खिचड़ी है! फिर काहें के भारतीय और काहें के हिन्दू!
■ अब आइये इनकी शाखा पर। सोचिए किस हिन्दू ग्रंथ में शाखा का वर्णन है। कहीं नहीं मिलेगा। लट्ठ चलाने की प्रैक्टिस को शाखा कहने वाले आपको कभी नहीं बताएंगे कि यह तकनीक भी सीधे जर्मनी से आई है।
■ हिन्दू आदर्शों पर बना आज़ादी के पहले का एक क्रांतिकारी संगठन था अनुशीलन। उसके बारे में तलाशेंगे तो वह आज़ादी की लड़ाई में सक्रिय था। लेकिन संघ आज़ादी की लड़ाई से दूर रहा। जिस राम की बात करते हैं संघी वह कहते हैं – जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी। तो अगर इस आदर्श को मानते संघी तो जन्मभूमि को अंग्रेज़ों की दासता से मुक्त कराने के लिए संघर्ष कर रहे होते। लेकिन वे तो आज़ादी से पहले बस दंगे करा रहे थे। ज़ाहिर है उनका इस आदर्श से कोई लेना देना नहीं।
◆ एक और महान हिन्दू आदर्श है वसुधैव कुटुम्बकम का। इसका अर्थ है पूरी धरती ही अपना परिवार है। सोचिए क्या संघ इस आदर्श को मानता है?
◆ हां बस एक चीज़ मानता है संघ हिन्दू परम्परा की। वह है वर्ण व्यवस्था या जातिवाद। इसलिए उसका सर संघचालक एक राजेन्द्र सिंह को छोड़कर हमेशा उच्च गोत्र के ब्राह्मण होते हैं।
■ तो आप सोचिए क्या आपके लिए भी हिंदुत्व का मतलब केवल जातिपाति बनाये रखना, दलितों पर अत्याचार और धर्म के आधार पर नफरत करना है या “वसुधैव कुटुम्बकम” “सर्वे भवन्तु सुखिनः” और “अहिंसा परमो धर्म:” जैसे उच्च आदर्श आपको बेहतर लगते हैं?
【आंखें न बंद कीजिये। धर्म के नाम पर बेवकूफ़ बनाने वालों को पहचानिए और अपनी महान परम्पराओं को याद कीजिये। धर्म किसी का ठेका नहीं आपकी अपनी परम्परा है। 】
जय हिंद
#InDefenceOfDemocracyKrishna Kant
17 April at 21:37 ·
ईश्वर यानी खुदा सर्वशक्तिमान है। तो आपको अपनी बात सुनाने के लिए लाउड स्पीकर क्यों लगाना पड़ता है? डीजे, माइक, लाउड स्पीकर नहीं था तब इबादत कैसे होती थी? लाउड स्पीकर इंसान का बनाया है। क्या सच मे उसकी मदद से खुदा सुनता है? सच में इंसानी आविष्कार पर निर्भर खुदा सर्वशक्तिमान है? अगर आप ऐसा मानते हैं तो आपके दिमाग मे कुछ लोचा है।
Krishna KantJournalist at The Wire Hindi
हैदर रिज़वी साहब को सेल्यूट किया जाना चाहिए एक तो ये बढ़िया विचार रखते हे लिखते हे (Haider Rizvi
7 April at 10:11 हालाँकि मेने यहाँ लिखना छोड़ दिया है, लेकिन सिर्फ़ एक बात कहने के लिए इसलिए आना पड़ा…. क्यूँकि मुझे पता है ये अगर मेने यह बात नहि बोली तो कोई और भी नहि बोलेगा…..मेरी अपनी जाति यानी शिया मुस्लिम अपना ईमान बेचकर खा चुकी है….. अगर आप कोई भी मूवमेंट चला रहे हैं, कोई संगठन या संस्था बना रहे हैं तो इनसे बचकर रहें…. आपको इनका इंटेलेक्ट ज़रूर प्रभावित करेगा, लेकिन बिका हुआ इंटेलेक्ट वैश्या के शरीर से भी ज़्यादा गलीज़ होता है.. ( हालाँकि मैं निजी तौर पर वेश्याओं से बिलकुल नफ़रत नहि करता)
जी सही पहचाना, ये वही क़ौम है जो ख़ुद को मौला अली और हुसैन का मानने वाला बताती है, जिन्होंने इंसानियत के लिए अपनी क़ुरबानी देदी थी, लेकिन मुझे पूरा यक़ीन है की अगर उत्तर भारत और ख़ासकर लखनऊ के शिया करबला में होते तो इमाम हुसैन पर ये दबाव ज़रूर डालते कि यज़ीद के साथ सुलह करलो और मौज करो….. और सुलह न भी करो तो कम से कम अपना कोई मुख़्तार अब्बास या मोहसिंन रज़ा यज़ीद के पास भेज दो जो चाटने में निपुड़ हो……ऐसा नही है की भारतीय शियों ने कोई क़ुरबानी नही दी है… कैफ़ी आज़मी, अली सरदार जाफ़री, सज्जाद ज़हीर, मूनिस रज़ा और राही साहब जैसे दसियों लोग हुए हैं जिन्होंने वक़्त वक़्त पर सरकारों से मोर्चे लिए हैं….. लेकिन उन्हें भी अपनी जाति से बाहर आना पड़ा या जाती ने उन्हें ख़ुद दूर कर दिया…..हो सकता है कुछ शिया मित्रों को यह पोस्ट बुरी लगे कि सुन्नियों के सामने उनकी बेज़्ज़ती हो गयी, तो कोई बात नही वो मित्र हैं भी इसी लायक….. आइंदा मेरे नाम का भी तबर्रा पढ़ लेना कमजरफ़ो….यादवों, कुशवाहाओं, कुर्मियों, शाक्यों, नाऊ तेली, धोबी, जुलाहे वग़ैरह वहैरह …. मैंने लेली … अब तुम भी अपनी अपनी जेबों की तलाशी लेलेना ….. जब तक गाय बन खूँटे से बधे रहोगे ज़बरदस्ती दुहे ही जाओगे…. हैदर रिजवी )———- दूसरी बात इन्होने और बहुत लोगो की तरह खुद के शिया या बरेलवी होने की बात छुपाई नहीं खुल कर अपनी पहचान ज़ाहिर की की वो शिया हे , जैसे में सुन्नी देवबंदी सय्यद हु और अपनी किसी भी पहचान पर ना मुझे कोई स्पेशल गर्व हे ना ही कोई शर्म हे और ना ही मुझे किसी के शिया या बरेलवी या कुछ भी होने से कोई चिढ हे लेकिन अगर आप उदारवादी इस्लाम का प्रचार भी कर रहे तो पहले खुल कर बताइये की आप शिया या बरेलवी बोहरा अहमदी जो भी हे पहले बता तो दीजिये क्योकि एक तो पहले ही काफी मतभेद हे ही इन फिरको के बीच , तो ये टोन नहीं जानी चाहिए इनडायरेक्टली आप उदारवादी इस्लाम की आड़ में अपने फिरके का या फिरके की राजनीती के बड़े खिलाड़ियों का प्रचार तो नहीं कर रहे हे अपनी पहचान बताइये फिर खुल कर उदारवाद का प्रचार कीजिये शुद्ध सेकुलर बनिए में सुन्नी देवबंदी हु मगर कभी इसका प्रचार नहीं करूँगा क्योकि यही शुद्ध सेकुलरिज्म हे और उपमहाद्वीप में यही चाहिए आजकल बहुत से कटटरपंथी नेट पर ये प्रचार कर रहे मुस्लिम लेखकों लेखिकाओं के नाम घुमा रहे हे शियाओ पर तो खुल कर तोहमत लगा रहे हे और ये भी कह रहे हे की ये सब ———हे इससे बेकार में और क्लेश और गंद फैलेगी संघी फौज और मज़बूत होगी गलती कुछ इन उदार लेखकों लेखिकाओं की भी हे की ये खुल कर नहीं बताते हे की ये शिया या बरेलवी आदि हे बताना चाहिए था खेर सोशल मिडिया पर 90 -99 % तो गंद हे और समय की बर्बादी हे हमारी कोशिश रहेगी की जो 1 % अच्छी सामग्री हे उसे ढूंढ कर खबर की खबर के पाठको तक पहुचाये अच्छी सामग्री के अल्वा एक कोशिश ये भी रहेगी की क्योकि ये विभन्न रंग के राइटिस्ट आपस में बहस नहीं करते हे इन सभी से बहस लिबरलों को ही करनी पड़ती हे ये लोग कही आपस में बात बहस नहीं करते हे तो हम कोशिश करेंगे की इन राइटिस्टों की एकतरफा बकवास इस कॉलम में एक जगह एक साथ पेश की जाए जैसे फ़र्ज़ कीजिये जैसे एक राइटिस्ट संजय तिवारी को पहलु खान की मौत पर कोई अफ़सोस नहीं इसे कोई तकलीफ नहीं वही मशाल खान की मौत पर ये ऐसे आंसू बहायेगा की मानो ये कोई ” ईसा मसीह ” हो , वही जगत चचा, मशाल खान की मौत पर सौ किन्तु परन्तु करेंगे और पहलु की मौत को इंटरनेशनल कोर्ट में ले जाना चाहेंगे वहा इनका मानवाधिकार इतना उबलता हे तो ये हे तो ये तिवारी और ये चचा तो आपस में बहस नहीं करते हे तो हम ही कोशिश करेंगे की इन राइटिस्टों के एकतरफा विचार एकजगह रक्खे जाए
Suresh Chiplunkar
5 hrs ·
#Saharanpur
दलित भाईयों, आपके भगवान आंबेडकर पर तो आपको विश्वास है ना?? उन्हीं को ठीक से पढ़िए, इस्लाम और मिशनरियों के बारे में वे सब लिख गए हैं… “दलित-मुस्लिम एकता” सिर्फ और सिर्फ फर्जीवाड़ा है… यह न कभी हुआ है और न कभी हो सकता है… खुद बाबासाहब आंबेडकर इस बात को अच्छी तरह जानते थे…
जब आगरा में विहिप के अरुण माहौर (महादलित) को कसाई लोग मार रहे थे, तब तमाम दलित चिन्तक-विचारक सब गायब हो गए थे… कल सहारनपुर में भी यही हुआ…
दलित बंधु, समय रहते मिशनरी और मलमूत्र निवासियों का खेल समझ लें, इसी में इनकी भलाई है… आगे ईश्वर इच्छा.Suresh Chiplunkar. ———-Krishna Kant
4 hrs ·
मैं कह रहा था कि अखिलेश को दंगों का खेल नहीं खेलना चाहिए. अखिलेश इस मामले में बच्चे हैं. जिनको दशकों से दंगे की ट्रेनिंग दी गई है, वे बाज़ी मार ले जाएंगे. देेखिए न! जिंदगी भर सांप्रदायिकता से नफरत करने और उसके खिलाफ आवाज उठाने वाले अंबेडकर की शोभायात्रा में भी दंगा करा लिया गया. अंबेडकर को भी ताजिया, दुर्गामूर्ति और गाय बना दिया. दंगे की राजनीति में वे हमेशा विजेता साबित होंगेKrishna Kant
29 mins ·
डेयरी किसान को पीटकर मारने वालों की तुलना शहीद भगत सिंह से हो रही है. डॉ. अंबेडकर के नाम पर दंगा हो रहा है. दंगाइयों को जेड सिक्योरिटी सुरक्षा मिल रही है. धमाका करने वाले जेलों से छूट रहे हैं. सरेआम लात घूंसा चलाने वाले, दंगा करने वालों को पार्टी का प्रवक्ता और अध्यक्ष बनाया जा रहा है. और कैसे अच्छे दिन चाहिए बे देशद्रोहियों?.——-Dilip C Mandal
5 hrs ·
सहारनपुर में आंबेडकरवादियों की कोई विवादित शोभा यात्रा नहीं निकली थी. आंबेडकरवादी परंपरा है कि संविधान और नियम तोड़कर कोई काम नहीं करना. वह शोभा यात्रा आरएसएस की थी. नेतृत्व बीजेपी के सासंद राघव लखनपाल शर्मा कर रहे थे, दंगों के पुराने आरोप रहे हैं.
मीडिया इसे दलितों और मुसलमानों का टकराव बता रहा है. माना कि मीडिया बहुत ताकतवर है और इस समय पूरी तरह RSS के साथ है. लेकिन वह भी नहीं छिपा पा रहा है कि शोभा यात्रा का नेतृत्व शर्मा कर रहे थे,Dilip C Mandal
5 hrs ·
बीजेपी ने प्रशासन द्वारा प्रतिबंधित किए गए मार्ग से शोभायात्रा निकालने की शरारत की. पुलिस ने रोका. नहीं माने. मारपीट की. हंगामा किया. इससे आंबेडकरवादियों का क्या लेना-देना. बीजेपी की शोभायात्रा, योगी की पुलिस. निपट लें.Dilip C Mandal
2 hrs ·
जब बाबा साहेब ने 22 में से अपनी दूसरी प्रतिज्ञा में कहा था कि मैं राम में आस्था नहीं रखूँगा और न ही उनकी पूजा करूँगा, तो सहारनपुर में बीजेपी की आंबेडकर शोभा यात्रा में जयश्री राम के नारे क्यों लगाए गए। वह भी प्रशासन द्वारा प्रतिबंधित मार्ग पर।
इस जुलूस का आंबेडकरवादियों से क्या लेना देना। यह बीजेपी सांसद शर्मा जी का शक्ति प्रदर्शन था। इसलिए उन पर मुकदमा हुआ है।Aasmohammad Kaif – Frank Huzur .
6 hrs · सहारनपुर यहाँ कानून सिसक गया और खद्दर ने गुंडई की
यह तस्वीर सहारनपुर में सड़क दुधली में अम्बेडकर यात्रा के बाद पनपे तनाव के बाद की है ,गले में माला पहने यह शख्स
यहाँ के सांसद राघव लखनपाल का भाई राहुल बताया जा रहा है , एक पुलिस अफसर की वर्दी पर इनकी पकड़ देखिये , इनके समर्थको ने कल यहाँ ऐसा तांडव किया कि कानून सहम गया , कमिश्नर की गाड़ी तोड़ी ,एसएसपी आवास पर कब्ज़ा कर लिया , पुलिस कप्तान की नेम प्लेट उखाड़ दी , पुलिसककर्मियो को दौड़ा दौड़ाकर पीटा , मीडियाकर्मियों के कैमरे तोड़ दिए ,छीन कर वीडियो डिलीट कर दी ,एक पत्रकार गौरव मिश्र को बुरी तरह पीटा गया , गाली तो लगभग सभी बड़े पुलिस अफसर को दी गयी , यहाँ के सांसद राघव लखनपाल अपने भाई राहुल को कल भाजपा के टिकट पर शहर से चुनाव लड़वाना चाहते थे ,मगर राजीव गुम्बर लड़े जिन्हें भीतरघात कर हरवा दिया गया ,अब राघव भाई को मेयर बनवाना चाहते है ,सड़क दूधली शहर से सटा गाँव है एसएसपी आवास जहाँ बिलकुल पास में है ,मेरा बहुत बड़ा सवाल यह है कि सहारनपुर के एसएसपी लव कुमार के घर पर उनका परिवार भी था ,घंटो उनके आवास पर अराजकता का राज रहा उनके विरुद्ध नारे लगे ,आवास पर पथराव हुआ ,तोड़फोड़ की कोशिश हुई ,उनकी नेमप्लेट उखाड़ दी गयी ,सांसद उनके निलंबन की मांग को लेकर धरने बैठ गये ,उनकी मौजूदगी में उनके समर्थकों ने यह सब किया ,सवाल यह भी जब गाँव में किसी ख़ास रास्ते से यात्रा निकालने की परंपरा नही थी तो सांसद ने प्रशासनिक अमले के बार बार मना करने और अनुमति न देने के बावजूद जबर्दस्ती वहीँ से यात्रा क्यों निकाली ,एक वीडियो है जिसमें कोई कह रहा है कि अब मुसलमानो को हथियारो से जवाब देना है ,सांसद बराबर में खड़े है और फिलहाल विदेशी पानी की बोतल से गला तर कर रहे है , सहारनपुर के एसएसपी लव कुमार की नियुक्ति चुनाव आयोग ने की थी और वो निष्पक्ष कारवाही के लिए जाने जाते है ,उनके आवास पर सांसद समर्थको के हमले से एक अजीब सी डर उनके परिवार में भी पहुंच गया होगा , सांसद पुलिस से इसलिये नाराज थे क्योंकि पुलिस उनकी इच्छानुसार एक ख़ास समुदाय के लोगो को कुचला नही , पुलिस उनका खिलौना नही बनी , सांसद खुद तो इंसान बन नही रहे थे पुलिस से भी चाहते थे कि वो शैतान बन जाए , लेकिन
पुलिस ने दोनों पक्षो पर बराबर लाठी भांजी ,यह निष्पक्षता सांसद को चुभ गयी , यह तस्वीर देखकर आप समझ जाएंगे की साँसद के भाई ने जब यह कर रहे है तो उनके गुंडे क्या कर रहे होंगे , सांसद के दिवंगत पिता भी यहाँ से विधायक रहे है मगर सर्वधर्म समभाव में उनकी भूमिका हमेशा बेहतर रही ,मगर सांसद अपनी ही पार्टी की सरकार में खुद को लाशो के ढेर पर खुद को नामनिहाद हिंदुत्व का नायक साबित करने पर तुले है ,पिछले कुछ दिनों में एक माह पुरे करने वाली योगी आदित्यनाथ की नेतृत्व वाली भाजपा की सूबाई सरकार ने मुसलमानो में भाजपा की छवि बेहतर की है ,सरकार के सभी फैसले निष्पक्ष और सराहनीय रहे है ,मुख्यमंत्री योगी मुसलमानो में लोकप्रिय हुए है ,कानून व्यवस्था को लेकर पूर्व की सरकार काफी आलोचना झेल चुकी है ,भाजपा सरकार की कानून व्यवस्था पार्थमिक्ताओ में है ,मगर सहारनपुर की घटना ने पार्टी के ही सांसद ने सरकार पर सवाल खड़े कर दिए है , सड़कों पर नगा नाच हुआ है , कमिश्नर की गाड़ी तोड़ दी गयी ,डीएम सहमे रहे , खाकी बेइज्जत हुई ,ऐसे में सरकार के इकबाल की तो बात मत कीजिये ।
पाठको , केजरीवाल जी कब तक ढोइएगा इस विभीषण ——— को लेख से नाराज़ होकर नागपुर से राइटिस्टों ने दो बार ना केवल साइट को हैक किया बल्कि बहुत सारे लेख और कमेंट तक वायरस डाल कर उड़ा दिए हे अब साइट आठ दिन पुराने स्टेट्स पर हे में समझता हु की विभीषण वाला लेख तो सिर्फ एक बहाना था असल में ये साइट जिस तरह से हिन्दूमुस्लिम राइटिस्टों की पोल खोलती हे इनकी अंदुरुनी साठ गाँठ इनका करप्शन और जुल्म उजागर करती हे हिन्दू मुस्लिम साम्प्रदायिकता कठमुल्लावाद की बिना किसी एक इंच भी भेदभाव के निंदा करती हे बाकी लोग एक साम्पर्दस्यीक्ता की निंदा करते हे दूसरे का बचाव करते हे हमने पहली बार ये सोच दी की इन दोनों की हि जड़ो में मट्ठा डालना हे इसी नयी सोच उससे ये लोग बोखला गए हे वो भी तब जबकि अभी तो साइट की लोकप्रियता भी नहीं हे अभी तो हज़ार के करीब ही परमानेंट विजिटर होंगे तब भी हम इन राइटिस्टों की आँखों में इतना खटक रहे हे की रविश कुमार जिनके की पैर के अंगूठे जितना भी हमारा कद नहीं हे उनके क़स्बा के बाद शायद सिर्फ इसी साइट को राइटिस्ट हैकरों ने निशाना बनाया हे अगर फ़र्ज़ कीजिये हम भी औरो की तरह सिर्फ संघी राइटिस्टों के खिलाफ होते तो शायद हम इतना ना खटकते क्योकि इन्हे पता हे की एकतरफा हमलो से इन्हे उल्टा सिम्पेथी भी मिल जाती हे लेकिन हम लोग क्योकि हिन्दू मुस्लिम राइटिस्टों की हमेशा एक साथ पोल खोलते हे उन्हें पता हे की ये वाली टोन कल को अगर फैली अगर ये सोच लोकप्रिय हुई तो इनकी जड़े खोद देगी इसलिए हमें टारगेट किया जा रहा हे उन पाठको से अपील हे जिनके कमेंट हैकरों ने उड़ा दिए हे की अगर सेव हो तो फिर से कमेंट डाल दे शुक्रिया और ” वो लेख ” रविश कुमार के ब्लॉग पर कमेंट में डाल दिया हे पाठक उसे वहा पढ़ सकते हे शुक्रिया
नागपुर वालो ने साईट उडाई इसका सबुत क्या है ?
जिस लेख को इतनी अच्छी ” टी आर पि ” मिल रही थी उसे भला क्यों हटाया जाता हे हैकर जान को आ गए थे वार्ना क्यों हटाते———- ? संपादक अफ़ज़ल भाई को क्या पड़ी जो एक आजकल गर्म मुद्दे वाले और ” टी आर पि ” देने वाले लेख को हटाते जिसमे कोई आपत्तिजनक बात भी नहीं थी , हो तो क़स्बा – कमेंट में पेस्ट कर रखा हे आप देख कर वो आपत्तिजनक लाइन दिखा दीजिये ——— ? आप नहीं जानते की सोशल मिडिया वाट्सअप अदि के ज़माने में लोगो को हिंदी साइट्स या प्रिंट पर लाना किस कदर मुश्किल काम हो रहा हे —————– ? इस हालात में विभन्न राइटिस्ट प्रोपगंडेबाज़ो निहित स्वार्थी तत्वों , पी आर वालो के तो मज़े हि मज़े हे मगर खासकर हिंदी लेखकों पत्रकारों विचारको का सांस लेना भी कठिन होता जा रहा हे सोशल मिडिया पर देखिये की अच्छे अच्छे लेखकों को पढ़ने वाला कोई नहीं हे बड़े बड़े इज़्ज़तदार लेखक बुढ़ापे में शर्माते हुए लाइक मांगते हे पर कोई पूछने वाला नहीं हे उधर एक संघी साम्प्रदायिकता का दहकता हुआ जवालामुखी भोकाल चतुर्वेदी ही शायद शायद , एक हिज़ाब वाली 16 साल की मुस्लिम लड़की का भेस बनाकर भाजपा संघ समर्थक बाते लिखता हे वो भी बहुत कम और साधारण , वहा पब्लिक टूट टूटकर पड़ती हे और हज़ारो उदहारण हे
Jolly bahadur to – सिकंदर हयात • a day ago
Sikander Hayat, humility is a rare and noble quality but please do not compare the articles on your site to any other and consider them to be inferior, in any way. I read the writeups on the said site frequently and they are logical and well articulated. The number of followers will surely increase , very soon. Do not lose heart when faced with hurdles such as hacking as alas! this is the bane of modern technology.
Our society is in a dilapidated condition and needs to be rebuilt afresh. We need people who can speak their minds fearlessly and help others find their way through the darkness which is enveloping our country.. ..so keep up the good work!.
Godspeed!
सिकंदर हयात to Jolly bahadur • a day ago
जॉली जी में अपने लिए परेशान या दुखी नहीं हु में तो हज़ारो और लेख लिख दूंगा मुझे दुःख इस बात का हुआ की इस साइट पर जाकिर हुसैन भाई एक आईआई टीयन , जैसे महाविद्वान आदमी ने जाने कैसे कैसे समय निकाल कर , इतना बेहतरीन लेखन कमेंट बॉक्स में लिख रखा हे जो जैसे जैसे पढ़ा जाएगा समाज के बहुत काम आएगा राइटिस्टों की जड़े हिला देगा ऐसा बेहतरीन लेखन और मेने कही नहीं देखा , अब फोन आ रहे हे की वीभिषण विश्वास वाला लेख हटाओ नहीं तो पूरी साइट तहस नहस कर देंगे इसलिए परेशान था और कोई बात नहीं हे बाकी राइटिस्ट हमें चाहे जो नुकसान पंहुचा भी देंगे हम फिर से खड़े हो जाएंगे
Jolly bahadur to सिकंदर हयात • 21 hours ago
I can understand how disheartening it must be to build something with sweat and pain only to have it threatened with ruin by a few misguided persons, with a not-so-innocent agenda. It would also be very taxing to re-post an article. Perhaps you could lodge a complaint with the cyber crime cell? Do you think that would help in any way?
Keep up this never say die attitude!
सिकंदर हयात to Jolly bahadur • 20 hours ago
जॉली जी अगर आपने हमें पहले से पढ़ा हो तो मेने कई बार लिखा हे की इस पूरी दुनिया में एक शुद्ध सेकुलर लिबरल भारतीय मुस्लिम वो भी सुन्नी वो भी देवबंदी ( शियाओ और बरेलवियो को फिर भी वहाबिज्म से लड़ने के नाम पर अपने यहाँ सपोर्ट मिलता हो सकता हे इसलिए सारी छोटी बड़ी लिबरल मुस्लिम वोइस सब या तो शिया होंगी या बरेलवी चेक करे ) हमसे ज़्यादा अकेला और थकेला कोई जीव नहीं हे हमारे लिए कोई भी लड़ाई फ़िलहाल असम्भव हे क्योकि हर लड़ाई के लिए कुछ ना कुछ सपोर्ट तो चाहिए होता ही हे हर किसी के पास किसी ना किसी का सपोर्ट तो होता ही हे हमारे लिए नहीं हे इसलिए हमें अंडर ग्राउंड सा होकर ही काम करना पड़ता हे यु समझिये की मेरे सोशल सर्किल एक से बढ़ कर एक काबिल मुस्लिम्स हे मगर में किसी को अपने काम के बारे में नहीं बता सकता हु क्योकि बात फैलने पर सपोर्ट मिले ना मिले पिटने या विरोध की गारंटी हे इसलिए हम फ़िलहाल ना खुल कर अपना प्रचार कर सकते ना किसी से भिड़ सकते हे हां बस चुपचाप लिख सकते हे लिख ही रहे थे तब ही लिखते लिखते लिखते ही नेट पर अफ़ज़ल भाई दुबई और जाकिर भाई मुंबई जैसे साथी मिले तो उम्मीद हे की आगे भी धीरे धीरे चुपचाप लोग मिलते रहेंगे फिर सही समय पर खुल कर काम और बात होगी तब इन राइटिस्टों को देख लेंगे
Jolly bahadur to सिकंदर हयात • 20 hours ago
It is hard to wait for something you know might not happen but it is even harder to give up when you know it is everything you want.
So, chin up and all the best in your endeavours!
kamal to सिकंदर हयात • 16 hours ago
haan bhai ,tum bilkul durust likhtey ho…khuda ke baad dusra number aapka hi hai…apni bato ka saboot le kar aana…
सिकंदर हयात to kamal • 4 hours ago
जिस लेख को इतनी अच्छी ” टी आर पि ” मिल रही थी उसे भला क्यों हटाया जाता हे हैकर जान को आ गए थे वार्ना क्यों हटाते———- ? संपादक अफ़ज़ल भाई को क्या पड़ी थी जो एक आजकल गर्म मुद्दे वाले और ” टी आर पि ” देने वाले लेख को हटाते , जिसमे कोई आपत्तिजनक बात भी नहीं थी , हो तो यही पेस्ट कर रखा हे आप देख कर वो आपत्तिजनक लाइन दिखा दीजिये ——— ? आप नहीं जानते की सोशल मिडिया वाट्सअप अदि के ज़माने में लोगो को हिंदी साइट्स या प्रिंट पर लाना किस कदर मुश्किल काम हो रहा हे —————– ? इस हालात में विभन्न राइटिस्ट प्रोपगंडे बाज़ो के तो मज़े हे मगर लेखकों पत्रकारों विचारको का सांस लेना भी कठिन होता जा रहा हे सोशल मिडिया पर देखिये की अच्छे अच्छे लेखकों को पढ़ने वाला कोई नहीं हे बड़े बड़े इज़्ज़तदार लेखक बुढ़ापे में शर्माते हुए लाइक मांगते हे पर कोई पूछने वाला नहीं हे उधर एक संघी साम्प्रदायिकता का दहकता हुआ जवालामुखी भोकाल चतुर्वेदी , एक हिज़ाब वाली 16 साल की मुस्लिम लड़की का भेस बनाकर भाजपा संघ समर्थक बाते लिखता हे वहा पब्लिक टूट कर पड़ती हे और हज़ारो उदहारण हे
अच्छा लेख था मेने भी कमेंट किया था , आज सदेखा तो लेख गायब था , अभी कमेंट से सिकंदर हयात के द्वारा मालूम हुआ के साइट हैक किया गया ही मगर क्यों !
नॉन राइटिस्टों के छोड़ कर और ये काम कौन करता हे राज़ साहब——————-? , रमेश जी लेख एक बार नहीं दो बार उड़ाया गया बार बार ”खबर की खबर ” साइट को हैक किया जा रहा हे फोन करके कहा जा रहा हे की अगर ये कुमार विश्वास वाला लेख नहीं हटाया तो पूरी साइट बर्बाद कर देंगे हम लोगो ने बड़ी मेहनत से पढ़ने लायक सामग्री जुटाई थी ——– ? मुझे ये कुमार विश्वास के गेंग का काम बिलकुल नहीं लगता हे विश्वास चाहे जितने इरिटेटिंग हो वो लोग ये काम नहीं कर सकते हे कोई गुंडे नहीं हे . ये गुंडागर्दी कौन लोग करते हे सब जानते ही हे खुद महापरूषो का हाथ इनके सर पर बताया जाता हे और रमेश जी लेखो का उड़ाए जाने मुझे इतना दुःख नहीं हे जब तक जिन्दा हे ऐसे हज़ारो लेख लिख देंगे अब जो अगला लेख लिखा हे” गाय गौ रक्षा -छात्र मदरसा कुछ नहीं हो सकता ” वो इन राइटिस्टों को और तपायेगा मुझे लेखो के उड़ने का दुःख नहीं हे मुझे अधिक तकलीफ इस बात की हो रही हे की आप पाठको के कमेंट भी हैक करके उड़ा दिए हे आजकल हज़ारो हिंदी साइट आ रही हे बहुत ही कम पर कमेंट या बहस दिखती हे बहुत ही कम , यु समंझ लीजिये की बस रविश की साइट और खबर की खबर इसके अलावा कही और अब कमेंट या फिर कोई बहस नहीं हे इसलिए मुझे खबर की खबर के पाठको के कमेंट उड़ाए जाने का बहुत दुःख हे
नागर जी की साइट कभी बहस का गढ़ हुआ करती थी अब वहा भी कोई बहस नहीं हे दो चार छुटभय्ये राइटिस्ट जरूर बकार बकार करते हे मगर बहस नहीं हे आज की तारीख में बहुत हिंदी साइट्स आ रही हे मगर चल नहीं पा रही हे मार्किट नहीं पकड़ पा रही हे आज प्रिंट का पतन हे चेनेल सिरदर्दी हे और सबसे अधिक पाठक सोशल मिडिया पर हे पर इससे एक तो लेखकों पत्रकारों विचारको की कोई कमाई नहीं हे कमाई हो रही हे जुकेरबर्ग की और सहवाग जैसे ——- की , और ” गुफाओ ” में बैठे विभन्न आकार प्रकार और भार के राइटिस्ट प्रोपेगड़ेबाज़ो की , ये बहुत ही खतरनाक इस्तिथि हे ऐसे में विभन्न हिंदी साइट्स का चलना बहुत जरुरी हो गया हे हमारी भी यही कोशिश हे की साइट्स चले सिर्फ हमारी नहीं बल्कि सभी अच्छी साइट्स चले क्योकि साइट्स पे तो फिर भी पब्लिक को फंसाया और बेवकूफ नहीं बनाया जा सकता हे क्योकि जवाबदारी रहती हे ये फसाये जाने का काम सोशल मिडिया वाट्सअप पर बहुत हो रहा हे सिर्फ अच्छी और वैचारिक साइट्स ही लोगो को सोशल मिडिया और वाट्सअप पर मुर्ख बनाने के चक्रव्यूह का तोड़ हो सकती हे
आखिर संघी फौज केजरीवाल से इतना खौफ क्यों खाती हे ये भाजपाई बेनामी वाले नहीं खुलेआम केजरीवाल को क्या क्या नहीं बकते हे शायद भाजपा का एक पेड़ कार्टूनिस्ट जो खुद देखने में सेम किसी गेंडे का कार्टून लगता हे वो रोज केजरीवाल के अश्लील कार्टून बनाता हे जिसका दस % भी कोई मोदी का बना दे तो जाने क्या होगा ——- ? लेकिन वही बात की इन राइटिस्टों को तो कोई डर हे नहीं इन्हे पता हे की लिबरल्स मारेंगे तो हे नहीं विरोध ही करेंगे सरकार , पैसा और गुंडों की फौज इनकी हे ही विरोध से मिली पब्लिसिटी से ये और हीरो बन जाएंगे चर्चा पा जाएंगे यही इन सबका हिस्टीरिया भी बन गया हे खेर ये हमेशा केजरीवाल को ऐसे बताते हे मानो केजरीवाल कोई हाफिज सईद विजय माल्या ललित मोदी लालू मुलायम आदि का कोई मिश्रण हो ——— ? जबकि केजरीवाल की आप की तो ना तो कोई खास पावर अभी हे ना इन्होने ऐसा कुछ गलत अभी तक किया हे फिर क्यों ये केजरीवाल के इतने खिलाफ हे की केजरीवाल को सही सलाह देते हुए हमने एक लेख क्या लिख दिया गुफाओ में बैठी राइटिस्ट आर्मी ”खबर की खबर की खून की प्यासी ” हो गयी इसलिए कुछ भी हो जाए हमने केजरीवाल का साथ छोड़ना नहीं हे Rajiv Nayan Bahuguna Bahuguna
26 April at 12:54 ·
दिल्ली म्युनस्पलिटी के चुनावों में केजरीवाल की हार को लेकर चतुर्दिक उल्लास और संतोष का वातावरण है , मानो केजरीवाल ही इस देश की सबसे प्रमुख समस्या हो । मेरी राजनीति और राजनेताओं में न्यूनतम रूचि है । यह विषय देशाटन , संगीत , अध्यापन , बाइकिंग , पोर्नोग्राफी , शराब पीना , पढ़ना और लिखना , भोजन बनाना इत्यादि मेरी प्रमुख रुचियों के बाद कहीँ आठवें- दसवें नम्बर पर आता है । अरविन्द केजरीवाल को न मैं कभी मिला हूँ , न उसे ज़्यादा जानता हूँ ।
लेकिन केजरीवाल को लेकर कभी भ्रष्टाचार और सम्प्रदायिकता की शिकायत नहीं आयी , जो आज राजनीति की प्रमुख व्याधियां हैं । फिर भी उनकी हार पर अधिसंख्य लोग फूले नहीं समा रहे । कहीं ऐसा तो नहीं कि हम मतदाता अथवा समाज के रूप में समवेत रूप से शनैः शनैः साम्प्रदायिक और भ्रष्ट होते जा रहे हों ।Rajiv Nayan Bahuguna Bahuguna
26 April at 19:56 ·
विगत दिनों राष्ट्र अनेक सुख – दुखों से गुज़रा , पर राजर्षि अन्ना जी अन्य मनस्क ही रहे , उनका मौन न टूटा । प्रतीत होता था कि वह सांसारिक हानि , लाभ , जीवन , मरण , यश , अपयश से ऊपर उठ सूक्ष्म में प्रवेश कर चुके हैं । आज दिल्ली नगर पालिका का रिजल्ट क्या आया , कि अन्ना जी की वाचा फूट पड़ी । मानो महा प्रलय में भी समाधिस्थ ब्रह्म देव् की योग तन्द्रा एक गिलास के टूटने की आवाज़ से उचट गयी हो । ईश्वर किसी धवल वस्त्र धारी को अपने वस्त्र विन्यास के सदृश धवल छवि दे , तो उसे विचार शून्य न बनाये ।Rajiv Nayan Bahuguna Bahuguna
27 April at 10:13 ·
म्युनस्पलिटी चुनाव में केजरीवाल की हार से देश भर में राहत और ख़ुशी की लहर । क्योंकि इस चुनाव में सिर्फ केजरीवाल हारा है , बाक़ी के कोंग्रेस , सपा , बसपा , रालोद , समता ममता और कोई नहीं हारा । इस चुनाव में केजरीवाल की करारी हार हुयी । बाकियों की हार में वह करारापन नहीं है । उसे अपने कर्मों का फल मिला , क्योंकि झूठ बोलता है और वादे पूरे नहीं करता । शेष सभी पार्टियां अब तक अपने शत प्रतिशत वादे पूरे करती आयी हैं । चुनाव लड़ने बनारस , पंजाब , गोआ आदि चला जाता है । शेष तो गऊ की तरह अपने खूंटे से बंधे हैं । कहीं और झांकते भी नहीं । उसे अन्ना का श्राप लग गया । अन्ना बड़ा तपस्वी है । हज़ारों मील दूर से श्राप देकर किसी को म्युनस्पलिटी के वार्डों में चुनाव हरा देता है , लेकिन जब अपने गृह राज्य के महानगर मुम्बई में रैली करता तो 350 लोग जुटते । आतंक , नक्सली , मंहगाई , रोज़गार वगैरह समस्याएं चुटकी में हल हो जाएंगी । बस केजरीवाल का खाँसना और मफलर पहनना देश की सबसे बड़ी समस्या है । पहले यह हल हो । सबको जी लगा कर क्यों सम्बोधित करता , अबे तबे कह कर क्यों नहीं दुत्कारता ,अथवा रायजादा , साहबजादा कह कर मज़ाक क्यों नहीं उड़ाता ।Rajiv Nayan Bahuguna Bahuguna
26 April at 07:29 ·
आश्चर्य होता है , जब मैं ख़ास कर अपने प्रदेश उत्तराखण्ड में कांग्रेस नेताओं में 2019 के लोकसभा चुनाव के लिए हिलोरें मारते देखता हूँ । मैं विधान सभा चुनाव से पूर्व लिखी अपनी उस पोस्ट पर कायम हूँ कि प्रदेश से कांग्रेस की विदाई कम से कम 25 वर्ष के लिए हुयी है । इससे पहले पंचायत एवं निकाय चुनावों की छिट पुट जीत के सिवा किसी अन्य चुनाव के बारे में सोचना भी नहीं चाहिए । ये 25 साल कांग्रेस गांधी जी के अनुरूप रचनात्मक कार्यों में गुज़ारे । सुझाव इस प्रकार हैं :-
1:- जिन गांवों और बस्तियों में शौचालय नहीं हैं , वहां जाकर मैला साफ़ करें , जैसा कि गांधी जी करते थे ।
2:- खादी पहनने का संकल्प लें , और नियमित चरखा कातें , जैसा कि गांधी जी करते थे ।
3:- अपने दौरों के समय बड़े कांग्रेस नेता किसी स्वीपर के घर ठहरें , न कि डाक बंगला में , जैसा कि गांधी जी करते थे ।
4:- पाप की कमाई से बने अपने विशालकाय भवन पार्टी कार्य के लिए दान दे दें । स्वयं पार्टी ऑफिस के एक कमरे में रहें , जैसा कि मोती लाल नेहरू जी ने किया ।
5:- पार्टी के बड़े नेता स्थायी रूप से पहाड़ के किसी 1 गांव में जा बसे , और वहां शिक्षा , स्वास्थ्य , ग्राम स्वराज्य आदि का कार्य करें ।
6:- अधिक से अधिक पैदल चलें , एवम अहिंसा , सत्य , अस्तेय , असंग्रह , शरीर श्रम , आस्वाद व्रतों का पालन करें , रेल के दूसरे दर्जे में सफर करें , जैसा कि गांधी जी करते थे ।
7:- कुष्ठ रोगियों की सेवा अपने हाथ से करें , उनके ज़ख्म धोएं , जैसा कि गांधी जी करते थे ।
8:- गांधी जी ने अपना मुख्यालय कभी भी दिल्ली नहीं बनाया , अपितु एक पिछड़े गांव सेवा ग्राम में रखा , आप भी किसी गांव में ठौर जमाये ।
9:- साठ वर्ष से ऊपर के नेता सेवा कार्य में जुटे , एवम चुनाव आदि लड़ने का जिम्मा युवकों को सौंपे , जैसा के कामराज ने योजना लागू की थी ।
10:- क्रोध पर विजय पाएं , तथा कल्याणकारी सुझाओं पर चिढ कर रि एक्ट न करें ।
तभी खनन , डेनिस एवम असत्य भाषण का पातक धुलेगा ।Raj Kishore
7 hrs ·
प्रधानमंत्री की प्यास : दस करोड़ का पानी और जूस पी गये
An RTI inquiry filed by Junta Ka Reporter has been answered by the Prime Minister’s Office. We had asked the PMO to tell us the amount of money that was spent on buying fruit juices and mineral waters by the Union Government during the Navratri days ever since BJP came to power.
We received the answer from the PMO and the stats were shocking. A whopping ten crore nine lakh twenty eight thousand and forty five rupees were spent by the union government just on buying mineral water and fruit juices.
(स्रोत : जनता का रिपोर्टर)
link: http://www.juntakareporter.com/…/rti-query-reveals-pm-modi…/
See TranslationRaj Kishore
29 April at 22:04 ·
केजरीवाल बहुत बुरा नेता है उसने जनता से किया कोई वादा पूरा नहीं किया,
मोदी जी ने सारे वादे पूरे किये_
केजरीवाल ने WIFI का वादा पूरा नही किया
मोदी जी ने पूरे देश को डिजिटल इंडिया बना दिया
केजरीवाल ने ढंग के मुहल्ला क्लीनिक नहीं खोले,
मोदी जी ने गाँव गाँव में AIMS खुलवा दिए
केजरीवाल ने मुफ़्त बिजली, पानी नहीं दिया
मोदी जी ने 15 लाख रूपये लोगों के खातों में जमा करवा दिए
केजरीवाल ने odd, even करके नौटंकी की
मोदी जी की नोटबंदी से भारत को बहुत लाभ हुआ
केजरीवाल दिल्ली से भ्रष्टाचार नही मिटा पाया,
मोदी जी ने सारा काला धन वापस ला दिया
केजरीवाल सरकारी पैसे से अपनी छवि चमकाता रहा,
मोदी जी ने 11 अरब रूपये जो अपने प्रचार पर खर्च किये वो जनता के हित में किया
केज़रीवाल अपना काम छोड़ चुनाव व पार्टी प्रचार में गोवा पंजाब में घूमता रहा,
मोदी जी जो चुनावी रैली करते हैं और बनारस की गलियों में घूमें वो जनता से संवाद था
केजरीवाल ने दिल्ली में कुछ नही किया लेकिन दिल्ली की MCD पर जो दस साल से बीजेपी क़ाबिज़ थी उसने बहुत ईमानदारी से काम किया
वो बात अलग है मोदी सरकार तीन साल की हो गयी जबकि केजरीवाल सरकार केवल दो साल की है
इसलिये आपने केजरीवाल को सबक सिखाया_
साफ़ साफ़ क्यों नही कहते कि तुम्हें_
जुमले,फरेबी ख्वाब,भ्रम,
ढोंग ज्यादा पसंद है….
केज़रीवाल ने भी हिन्दू, मुस्लिम, गाय, गौबर, गौ मूत्र किया होता तो आज वो भी हिन्दू हृदय सम्राट होता_
*ढोंगी जनता का ईमानदारी का ढकोसला राजकिशोर —————————-Mukesh Tyagi
हिंदु ‘राष्ट्रवादीद्वारा मुस्लिम ‘राष्ट्रवादी’ का स्वागत
सेकुलर तुर्की को इस्लामिक मुल्क बनाने में लगे अरदुआं (Erdogan) आज दिल्ली पधार रहे हैं; हिंदू राष्ट्र आकांक्षी नरेंद्र मोदी उनका इंतज़ार कर रहे हैं! जामिया मिलिया इस्लामिया उनको डॉक्टरेट की डिग्री भी देगा| डॉक्टरेट बनती भी है – एक लाख से ज़्यादा प्रोफ़ेसर, छात्र, डॉक्टर, पत्रकार, साहित्यकार, मजदूर संगठनकर्ता, वकील, कम्युनिस्ट, मानव अधिकार कार्यकर्त्ता, आदि जेल की सलाखों के पीछे पहुँचाये जा चुके हैं; 2099 शिक्षण संस्थान बंद किये गए हैं| 7317 प्रोफ़ेसर नौकरियाँ गँवा चुके हैं, 2824 छात्र कार्यकर्त्ता जेल में हैं| बहुत के ऊपर राष्ट्रद्रोह और आतंकवाद के आरोप लगाये गये हैं| बहुत से नौकरी गँवाये शिक्षक खुले में क्लास ले रहे हैं| कुर्द जो अपना स्वायत्त राज्य चाहते हैं उनके ऊपर तो फौजी अत्याचार जारी है ही|
मोदी भी भारत में ऐसे बहुत से काम करना चाहते हैं, कोशिश में लगे हैं; अरदुआं से और गुर सीखेंगे – ‘इतने कॉलेज/विवि कैसे बंद कराये, गुरू? हम तो अभी एक JNU पे ही अटके हैं!’ कश्मीर, छत्तीसगढ़, उत्तर-पूर्व पर भी शायद अरदुआं का तजुर्बे भरा मशविरा लें!
अरदुआं तुर्की में शरिया क़ानून भी लाना चाहते हैं, पर्दा समर्थक हैं, स्त्रियों को घर की चौहद्दी में वापस भेजने के भी हिमायती हैं, शायद आगे तीन तलाक़ भी वापस लायें! यह भी याद रहे कि ISIS का पेट्रोलियम तुर्की के जरिये ही बिकता है जिससे वह हथियार खरीदता है| इसलिये जामिया भी इस्लाम की सेवाओं के लिए इन्हें डॉक्टरेट देगा, मोदी की भारत सरकार भी इस पर रजामंद है| जामिया के इस्लामी कट्टरपंथी तत्व भी खुश हैं, कुछ विरोध करने वालों को इस्लाम विरोधी की सनद भी मिल गई है, जो स्त्रियाँ हैं उन्हें ‘अलंकारों’ से भी नवाज़ा जा रहा है|
लब्बो-लुआब ये कि अरदुआं के स्वागत में हिंदुत्ववादी और इस्लामी कट्टरपंथी दोनों ‘भाईचारा’ निभाने के लिए एकजुट हो गये हैं!
इसमें ‘भाई’ ये दोनों कट्टरपंथी हैं और ‘चारा’ मुल्क की मेहनतकश आबादी है|Shamshad Elahee Shams
14 hrs · Brampton, ON, Canada ·
शासक वर्ग की दुर्लभ एकता- एक लीचड़ हिन्दू सम्राट दूसरा बकलोल मुसलमान सुलतान ( तुर्की का एरोद्गान ) – एक ने कुर्दों, लिब्रल्स,पत्रकारों, प्रगतिशील तबके की अपने मुल्क में ऐसी तैसी कर रखी है दूसरे ने कश्मीर, छत्तीसगढ़, उत्तर पूर्व में फ़ौजी दरिंदगी की नई इबारत लिखी है और देश में भीतर गौ भक्तों (पशु पुत्रों) के आतंक से मुसलमानों पर कहर बरपा रखा है.
हिन्दू सम्राट और मुसलमान सुलतान की एकता का ग्रहण काल ठीक मई दिवस पर दिल्ली में दिखेगा-दीदार कीजिये.
Sanjay Tiwari
2 hrs ·
जिन दिनों अन्ना आंदोलन चरम पर था उस समय बाबा रामदेव भी रोज जंतर मंतर से रामलीला मैदान की दौड़ लगा रहे थे। पहले केजरीवाल के साथ साथ फिर अपना रास्ता अलग कर लिया। अकेले देश बदलने के लिए आगे निकल पड़े और सलवार पहनकर भागना पड़ा। इसी बीच एक बार वो दल बल सहित जंतर मंतर पर आये। वहां केजरीवाल उनके मंच से उतरकर चले गये थे। उस वक्त मैं भी वहीं था। मैने देखा रामदेव तो आंदोलन की आड़ में कुछ और ही खेल कर रहे हैं। वो अपना बिजनेस नेटवर्क बढ़ा रहे हैं।
वो जिस गांव गांव आंदोलन ले जाने की बात कर रहे थे, असल में वो गांव गांव तक अपना डिस्ट्रीब्यूटर नेटवर्क तैयार कर रहे थे। इससे जुड़े हुए पम्फलेट वहां बांटे जा रहे थे, लोगों को बाबा रामदेव समझा रहे थे कि कैसे राजनीतिक स्वावलंबन से पहले आर्थिक स्वावलंबन जरूरी है। लौटकर मैंने जो देखा था वो लिख दिया। राष्ट्ररोगियों की भरपेट गालियां मिलीं।
खैर तीन चार साल में ही वह सच सामने आ गया कि रामदेव असल में धंधा ही करना चाहते थे। योग और आंदोलन ये सब उनके बहाने थे। इसलिए मैं बाबा रामदेव को एक योगी या आंदोलनकारी के रूप में कभी नहीं देखता। मैने हमेशा उनको एक बिजनेसमैन के रूप में ही देखा है। एक ऐसे बिजनेसमैन के रूप में जो घटिया दर्जे का प्रोडक्ट तो बनाता है लेकिन आला दर्जे का बनाकर बेच भी लेता है। उनकी दवाइयां खा लें तो आपका आयुर्वेद से ही भरोसा उठ जाएगा। खाने पीने की चीजें भी कुछ नरम कुछ गरम हैं। फिर भी बाबा इतना काबिल बिजनेसमैन है कि धंधा लगातार बढ़ रहा है।
यह तब तक बढ़ता रहेगा जब तक रामदेव का मार्केट है। जिस दिन गिरेगा एक झटके में सब खत्म हो जाएगा।Sanjay तिवारी
————Prakash Govind
1 hr · ‘बाबा रामदेव’ ने बताया कि वे अपना मुनाफा चैरिटी मैं देते हैं।
लेकिन उन्होने ये नहीं बताया कि ‘पतंजलि’ के दस हजार करोड़ के टर्न ओवर का मुनाफा, मात्र सैनिक स्कूल की स्थापना और कुछ शहीदों को दो लाख रुपैया दिये जाने भर ही है ?चैरिटी का मतलब जानना हो तो ‘विप्रो’ के अजीम प्रेमजी, ‘वेदांता’ के अनिल अग्रवाल, ‘इन्फोसिस’ के नन्दन नीलेकणी, ‘महेन्द्रा एंड महेंद्र’ के आनंद महिंद्रा, ‘इन्फोसिस टेक्नोलोजी’ के नारायन मूर्ति, ‘शेयर कारोबारी’ राकेश झुनझुनवाला को गूगल करके देखें ……क्या बाबा की चैरिटी इनके बाल बराबर भी है ……. ?और बाबा के चेलों ये भी जान लो कि ये सब के सब स्वदेशी हैं। अनिल अग्रवाल ने तो विदेशों में कमा कर भारत मैं दान किया है……
इनमें कोई भी बाबा की तरह मजमा और सर्कस नहीं लगाते ना ही फेरी वालों की तरह दिन भर ‘लेलो .. लेलो की आवाज लगाते हैं …… और ना ही हर समय राष्ट्रभक्ति की मोनोपोली वाला लाइसेन्स हाथ मैं लिए बार बार दिखाते हैं……
.(गिरधारी लाल गोयल जी की वाल से)Neelima Singh मोदी जी और अटल जी में यही बुनियादी अन्तर है ।यद्यपि दोनों ही संघ के प्रचारक रहे हैं, किन्तु जब अटल जी प्रधान मन्त्री बने तो उन्होंने संघ को देश की शासन व्यवस्था में दखल नहीं देने दिया ।उनसे पहले की सरकारें जिस संविधान के अनुरूप काम करती आई थीं , उन्हों ने उसी कार्यशैली को अपनाया ।इसी लिये उन्होंने पाँच साल देश को सुशासन दिया ।राजनैतिक कारणों से सामान्य विरोध हुआ पर उनकी आलोचना आज भी नहीं की जाती है ।अटल जी के समय संघ “बार बार उकसहिं अकुलाहीं ” वाली स्थिति में तिलमिलाता रह गया पर सिर नहीं उठा पाया ।इस बार वह पूरी तैयारी से राजनीति के अखाड़े में कूदा है ।सब जगह आर एस एस छाया हुआ है ।मोदी और उनका मंत्रिमडल, भा ज पा शासित राज्यों के मुख्य मत्री और अधिकांश राज्यपाल, अधिकांश उच्च सरकारी संस्थानों के शीर्ष पदाधिकारी , मीडिया के अधिकारी सब के सब खुले तौर पर आर एस एस के लोग हैं ।अब राष्ट्रपति के पद पर भी आर एस एस का कोई दबंग व्यक्ति प्रतिष्ठित होगा ।इसी लिये मोदी सुशासन चलाने से ज्यादा आर एस एस का जाल फैलाने में रुचि ले रहे हैं ।जैसे भी जीतें लेकिन चुनाव पर चुनाव जीतने में रुचि ले रहे हैं ।एक बार फ़ासीवादी व्यवस्था के पैर मजबूती से जम जायें तो लोग यह पूछने की हिम्मत ही नहीं करेंगे कि गरीबी और बेरोजगारी क्यों बढ़ रही है ? किसान क्यों मर रहे हैं ? टैक्स क्यों बढ़ रहे हैं ? आतंकवाद और नक्सलवाद पर काबू क्यों नहीं पाया जा रहा है ? एक के बदले दस सिर क्यों नहीं आये ? मोदी खामोश हैं और खामोशी से अपना काम कर रहे हैं ।वह किसी सवाल का जवाब वक्त आने पर ही देंगे ।” हम अभी से क्या बतायें क्या हमारे दिल में है ? “Neelima Singh
Krishna Kant
23 hrs ·
ट्रोल बनने के बाद आदमी आदमी नहीं रह जाता, एक फेफनाया हुआ, फेचकुर फेंकता हुआ जंतु हो जाता है जो मनुष्य की शक्ल में पैदा हुआ था। ट्रोल थोड़ा डूड टाइप होता है। एमबीए या इंजीनिरिंग किया होता है। बेंगलोर, दिल्ली, चेन्नई जैसे बड़े शहर में रहता है। ट्रोल गालियां खाता है, गालियां पीता है, गालियां ओढ़ता है, गालियां बिछाता है, गालियों में सोता है, गालियों में जागता है। ट्रोल गालियों में ऐसा सीझ जाता है, जैसे चाशनी में रसगुल्ला सीझता है। जैसे ज़हरबुझा तीर होता था, वैसे गालीबुझा मनुष्य ट्रोल कहलाता है।
कल एक ट्रोलिया कहीं से प्रकट हुआ। दोस्त नहीं है। एक एक पोस्ट पढ़ पढ़ के गालियां देने लगा। उसकी वाल पर गया। देखा बेंगलोर में रहता है। टेक्नोक्रेट टाइप था। सोचा इसके हृदय में धधक रही ज्वाला का क्या समाधान है। तब तक वो 4 और पोस्ट पर गालियां दे चुका था। अंततः उसे ब्लॉक लोक पहुंचा के फुर्सत ली।
आपने गौर किया हो तो गालियां देने वालों में एमबीए और इंजीनियर टाइप लोग ज़्यादा होते हैं। हमने अपने बच्चों को किस तरह पढ़ाया है? इंजीनियर बन चुका युवक गालियां देता फिर रहा है। कहने को पढ़ा भी है, नौकरी भी करता है। फिर भी फ्रस्ट्रेटेड घूम रहा है।
सरकार को एक ट्रोल साइको अध्ययन केंद्र बनाना चाहिए। जिनको ट्रोल के रूप में चुनाव में इस्तेमाल किया गया होगा, आजकल खलिहर हैं। उन बेचारों की मानसिक हालत का अध्ययन होना चाहिए।
वह कौन सी मानसिक स्थिति होती होगी कि एक युवक भारत माता का नारा लगाते हुए तमाम स्त्रियों को रंडी कहता फिरता है। उसकी मानसिक हालत को वहां तक लाने की ज़रूरत है जहां आकर वह सोच सके कि रंडी भी मनुष्य है, वह भी किसी की माँ है और सम्मान की हकदार है, जिसे बीच बाजार खड़ा कर दिया गया है। मेरी लिस्ट में कोई मनोवैज्ञानिक हो तो ट्रोल ब्रिगेड पर उसे अध्ययन शुरू करना चाहिए।Krishna KantMukesh Tyagi
8 hrs ·
‘बनाना रिपब्लिक’ सुनकर मतलब पता न चला हो तो,
‘काऊ रिपब्लिक’ के निम्न वर्णन से भी समझ सकते हैं; दोनों मिलते-जुलते ही हैं|
लखनऊ चारबाग स्टेशन पर एक मालगाड़ी के आगे गाय आ गई| ड्राइवर बेचारा सीटी बजाता रहा पर गौमाता न हिलीं| डर के मारे कुछ कर भी न सकता था|
घंटा भर लाइन जाम!
पीछे बरेली एक्स और फरक्का एक्सप्रेस दो गाड़ियां भी रुक गईं| इंतजार के बाद यात्री पटरी पर ही उतरकर पैदल प्लेटफार्म पहुँचे|
स्टेशन मास्टर ने शिकायत तक भी न लिखी, गौमाता के डर से!Mukesh Tyagi
15 hrs ·
सिर्फ सत्य, सत्य के सिवा और कुछ नहीं!
मोदी जी ने हरयाणा में ‘बेटी बचाओ’ शुरू किया; 2 साल में ऐसा चमत्कार कर डाला कि जहाँ 2011 की जनगणना में हरयाणा में लिंग अनुपात 834 (पूरे देश में यह 919 था) होता था वहीं दिसम्बर 2016 में यह बढ़कर 935 और मार्च 2017 आते तो 950 हो गया|
पर ख़बर ज़्यादा ही अच्छी हो तो शक करना चाहिये!
अब पता चला कि ये संघी हिसाब-क़िताब के नतीजे थे अर्थात फ़र्जी! कितना बढ़ाया गया था इसके लिए कुछ जिलों का आँकड़ा समझना काफ़ी है – पानीपत असल 872 से बढाकर 1007, नारनौल 841 से 968, झज्जर 845 से 949! बाक़ी जिले भी इसी तरह|
अब अर्थव्यवस्था की वृद्धि का अनुमान आप खुद लगा लें; वैसे कल औद्योगिक उत्पादन भी हिसाब का फार्मूला बदलकर कल 0.7% से तुरंत 5% पर जा पहुँचा!
पर नोटबंदी के बाद पुराने नोट कितने जमा हुए इस पर कल सरकार ने कहा उसकी गिनती अब भी चल ही रही है! शायद कुछ और पुराने नोट अभी खपाने हैं!Mukesh Tyagi
12 May at 13:06 ·
दिल्ली मेट्रो के छाँटे हुये पँच थे, तो फैसला तो अम्बानी के पक्ष में ही होना था! अब मेट्रो को रिलायंस इन्फ्रा को ब्याज समेत 4725 करोड रू देना है। इसलिये भाडा तो बढाना ही था। धंधा भी अच्छा है, बगैर मेट्रो चलाये ही खूब मुनाफा कमाया अम्बानी ने।
इसको कहा जाता है पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप। घाटा पब्लिक का, मुनाफा प्राइवेट!Mukesh Tyagi
12 May at 10:07 ·
चांदनी नाम है उसका। कल ही उसकी 3 वर्ष की बेटी, 5 वर्ष का बेटा और 30 वर्षीय पति ट्रेन से गिर कर मर गए। बदहवासी में वो उन्हें देखने ट्रेन से कूदने लगी, लेकिन लोगों ने पकड़ लिया। पटना से करीब 80-90 किमी दूर एक छोटे स्टेशन के पास हुआ यह हादसा कोई ट्रेन दुर्घटना नहीं थी। यह भीड़ के कारण बोगी के दरवाजे के पास बच्चों के साथ जैसे-तैसे खड़े होकर यात्रा करने की विवशता का नतीजा था।
रेलवे अपनी कहानी गढ़ेगा। मरने वालों को ही दोष देगा। खबर आई-गई हो जाएगी।
लेकिन, यह भारत की विकास प्रक्रिया का अमानवीय नतीजा है। सबसे तेजी से विकास करने वाला देश, जो दुनिया की चुनिंदा आर्थिक महाशक्तियों में शामिल हो चुका हो, अपने सामान्य नागरिकों के लिये परिवहन की ऐसी व्यवस्था विकसित नहीं कर सका, कि आदमी आदमी की तरह सफर कर सके।
नहीं, कोई उम्मीद नहीं रखिये। आगे भी कुछ नहीं होने वाला है और स्थिति बदतर ही होने वाली है। विकास की नवउदारवादी अवधारणा में इस देश के 70 प्रतिशत गरीबों के लिये कोई चिंतन ही नहीं है।
सत्ता में आते ही मोदी जी ने बुलेट ट्रेन का सपना उछाल दिया। न्यूज चैनल जापान, कनाडा आदि देशों की बुलेट ट्रेनों पर स्टोरी करते हमें सपनों की दुनिया मे ले जाने लगे कि ऐसा ही अब भारत में भी होगा…कि ‘विकास पुरुष’ आ गया, अब तो देश छलांगे लगाएगा।
चाय बेचने, अगर वे बेचते थे तो, के क्रम में उन्होंने बचपन मे ही ट्रेन में आम लोगों की फजीहतों को देखा होगा। प्रधानमंत्री बनने पर उन्हें पैसेंजर ट्रेनों की संख्या बढ़ाने का नारा देना था, उन्होंने बुलेट ट्रेन का नारा दिया।
बुलेट ट्रेन से विरोध नहीं, लेकिन इस पर सवाल उठने ही चाहिये कि संसाधनों के इस्तेमाल की नीति आम आदमी विरोधी क्यों है। हजारों करोड़ रुपये जो भारतीय रेलवे को ‘इलीट लुक’ देने पर खर्च किये जा रहे हैं, सुरेश प्रभु जो रेलवे को ‘विश्वस्तरीय’ बनाने की बातें कर रहे हैं, उनमें आम आदमी कहाँ है?
इलीट हितों के लिये संसाधनों के मनमाने इस्तेमाल की प्रवृत्ति सत्ता के सिर चढ़ कर बोल रही है। विरोध के स्वर कुंठित हैं। लेकिन, कुंठाओं का भी विस्फोट तो हो ही सकता है। यह विस्फोट नहीं हो, इसके लिये पक्ष के साथ विपक्ष भी सन्नद्ध है।
अंधेरे बढ़ते जा रहे हैं। यह व्यवस्था आम जन की विरोधी ही नही, अब तो शत्रु बनती जा रही है। धर्म, जाति, संस्कृति, गाय, तलाक आदि मुद्दों पर विभाजित आम जन संसाधनों की इस डकैती पर ध्यान कैसे दें?
By Hemant Kumar JhaDinesh Choudhary
18 hrs · Jabalpur ·
मूर्ख इसी लायक होते हैं कि उन्हें मूर्ख बनाया जाए। उनसे कोई सहानुभूति रखना भी एक किस्म की मूर्खता है क्योंकि वे अपनी मूर्खता को तमगे की तरह लादे फिरते हैं और इसके गौरव तले प्रफुल्लित महसूस करते हैं। ऐसे गौरव को बोझ बताना कुछ वैसा ही है, जैसे परसाई जी कहते थे कि सूअर अगर मैला खाकर ही परमआनन्द का अनुभव करता है तो उसे फल खाने की सलाह देकर उसका मजा किरकिरा नहीं करना चाहिए। सुना है कि जस्टिन बीबर नाम का गवैया, जो अपना सोफ़ा-पलंग भी साथ लेकर चलता है, 35 से 70 हजार रुपयों की टिकिट के बदले 4 गाने लाइव सुनाकर भाग गया । बाकी गानों में होंठ हिलाता रहा। ये विदेशी हम हिन्दुस्तानियों को ऐसे ही मूर्ख बनाते हैं, इसीलिए बाबा स्वदेशी के मन्त्र का जाप करते हैं। चौथाई दाम से भी कम की टिकिट पर शुद्ध, स्वदेशी, 100 प्रतिशत आयुर्वेदिक, देशप्रेमी गायक अभिजीत 4 दिनों तक लाइव गा सकते थे। देश का पैसा देश में रहता और बेचारे गरीब पूँजीपतियों के काम आता। कुछ नहीं तो इतने पैसों से कलात्मक केलेंडर छापने वाले कलाप्रेमी विजय माल्या का ऋणांश तो चुकाया ही जा सकता था।
मजाक की बात नहीं है। कला कोई उपभोक्ता वस्तु या कमोडिटी तो है नहीं कि पैसे दिए और आनन्द वसूल लिया। अपने जमाने में 60 पैसे की थर्ड क्लास की टिकिट में भी सिनेमा में उतना ही आनन्द आता था, जितना 5 रूपये की बालकनी की टिकिट में। कुछ रईसजादे बॉक्स में भी जाते थे पर पर सबसे सामने वाली सीट का मजा उन बेचारों को क्या पता? आनन्द अनुभूति, आत्मा, एहसास, रुचि, ‘टेस्ट’ वगैरह की चीज है और 35 या 70 हजार रुपयों में नहीं खरीदी जा सकती। यह कन्ज्यूमर फोरम के दायरे में भी नहीं आता कि मरदूद बीबर पर केस ठोंक दिया जाए कि पैसे तो खूब ऐंठ लिए पर मजा कौड़ी का नहीं आया। भाई लोगो, वैसे भी आप लोग इस गरीब मुल्क के लायक नहीं हो। गाना-फाना, आर्ट-कल्चर वगैरह तो फ़ालतू के चोचले हैं। असल चीज स्टेट्स सिम्बल है जो 35 से 70 हजार रुपए में आता है। अब मजा नहीं आया बोलकर अपनी ही भद्द मत उड़ाओ। कहो कि लिप-सिंकिंग हाई क्लास चीज थी, मूर्खो और जाहिलों के समझ में नहीं आई!
Krishna Kant
14 May at 21:10 ·
(रीपोस्ट: पोस्ट की सेटिंग गड़बड़ थी. जिन्होंने न पढ़ा हो उनके लिए फिर से)
#मीडिया_डायरी
आप यक़ीन नहीं करेंगे, लेकिन यह सच है कि आप एक ख़तरनाक दौर में हैं, जहां विश्वसनीयता का संकट सबसे बड़ा संकट है.
आइए बताते हैं कैसे.
सेना के अधिकारी लेफ़्टिनेंट उमर फ़याज़ की शहादत हुई. इसके बाद सोशल मीडिया पर अफ़वाह उड़ी कि शहीद अधिकारी के जनाज़े पर पत्थरबाज़ी हुई. इसके बाद कथित मुख्यधारा का मीडिया भी चिल्ला उठा, एलास, शॉकिंग, ग़ज़ब हो गया. शहीद के जनाज़े पर पत्थरबाज़ों ने पत्थरबाज़ी की. India Today, CNN-News18, DNA, Zee News and InUth जैसे चैनलों ने यह ख़बर चलाई कि शहीद के शव पर पत्थरबाज़ी की गई.
कई पत्रकार, लेखक, नागरिक, ट्रोलिए सब बेहाल हो गए. कुछ ने ‘देशद्रोहियों’ को गालियां दीं. कुछ ने इसके लिए वामपंथियों को कोसा. कुछ ने कश्मीरियों को बद्दुआ दी. जाकी रही भावना जैसी, उसने वह किया.
हमारे पास न्यूज़रूम में जो फ़ोटो थी, उसमें स्थानीय कश्मीरी लोग जनाज़े को कंधा दे रहे थे. लेफ़्टिनेंट उमर फ़याज़ भी कश्मीरी ही थे. मैं कन्फ़्यूज़ हो गया. स्पष्ट सूचना नहीं मिली.
बाद में पता चला वह अफ़वाह थी. घटनास्थल पर एनडीटीवी के रिपोर्टर नाज़िर मसूद थे. उन्होंने ट्वीट किया, ‘Reports of stone throwing at the body of Lt Umar Fayaz are baseless. I was there in Kulgam. Spoke to people, there is sense of loss&disbelief.’
मसूद ने न्यूज़ लॉन्ड्री से कहा, ‘तथ्य यह है कि ग्राउंड पर मैं अकेला रिपोर्टर था. वहां कोई दूसरा रिपोर्टर नहीं था. बाक़ी सब रिपोर्ट करने और विजुअल जुटाने में व्यस्त थे.’ इसके बावजूद, जिन मीडिया संस्थानों ने ग़लत रिपोर्ट चलाई थी, वह नहीं हटाया.
दूसरी एक और समस्या है कि कोई एक घटना घटती है, तुरंत मीडिया, सोशल मीडिया में उसके तमाम वर्जन आ जाते हैं. आप किस बात पर भरोसा करेंगे, यह तय कर पाना मुश्किल हो जाता है. मोटा मोटा कहें तो इस प्रवृत्ति में कन्हैया प्रकरण के बाद तेज़ी आई है. आप मीडिया से सूचनाएं लेते हैं, तुरंत उसपर प्रतिक्रिया देते हैं. क्या आपके साथ सही हो रहा है?
कुछ लोगों ने मुझसे भी कहा कि उमर फ़याज़ के जनाज़े पर पत्थरबाज़ी पर क्यों नहीं लिखा? उन्होंने हमसे यह नहीं पूछा कि आप पत्रकार हैं, आपके पास क्या सूचना है? क्या यह सही है? नहीं. वे मुतमईन थे क्योंकि वह सूचना उन्हें मीडिया से मिली. मैं न्यूज़रूम में बैठा हुआ रोज़ इस तरह की झूठी ख़बरों से दो चार होता हूं. क्या आप यह बात जानते हैं कि आपको झूठी ख़बरें परोसी जा रही हैं?
सोच रहा हूं कि अब आगे से रोज़ की झूठी ख़बरों के प्रसारण की डायरी लिखूंगा.
OMG sorry OMM (Oh my man),god avoided.
ईतनी intolerance, ईतना गुस्सा.
कृष्णकांत जी mount everest चढनेका सपना देखना आसान होता है पर ऊसे वास्तविकता मे चढना जानलेवा होता है.
आप तो खुद अपने भावनाओ को काबु नही कर पा रहे हो तो आप कैसे ये expect करते हो की समाज के लोग ऊनकी भावनाओ को काबु करे.
आपने मनही मन मे ये तै किया है कि सिर्फ आपके विचार ही सर्वोत्तम है. जो आप चाहते हो अगर वैसाही ईस दुनीया मे होगा तोही ये दुनीया सुंदर है.
जिवन का वास्तविक ग्यान ये ऐसे विचार करनेसे नही मिलता है. हर जिवको ऊसकि अच्छाई और बुराई के साथ स्विकार करना सिखो. ये ईस लिये कि या तो आप किसी जिवको खाकर जिंदा रहते हो या फिर किसी जिवका खाना खुद बन जाते हो.
Self declared intelectuals like you आपसे जादा ग्यान तो जानवरो को है क्युं पता है because animals never complains. मानवद्वारा निर्मित हर दवाइया वो खुद अपने शरीरमे ही तैयार करलेते है. ऊन्हे किसी अस्पतालकी जरुरत नही पडती है.
समाजकी बुराईया ऊनपर छोडदो, जिसके मन मे जहर है वो खुद जलरहा है और आप ऊन लोगोके प्रती खुदके मनमे जहर पैदा कररहो.
मै ईसीलिये मानता हु कि मानवतावाद mount everest चढनेका सपना देखने वालोकी विचांरधारा है. जो खुदको अच्छा और समाज को बुरा कहने मे अपना जिवन व्यतीत करते है.
पहेला पत्थर ऊसेही मारना चाहीये जिसने कोई पाप ना किया हो…….
कृष्णकांतजी..हम सब एक जैसे ही है..कुछ अपने बुरे कर्मो को भी याद करो..मन शांत होगा,अपने आपही…..
एक प्रकृतीवादी,
प्रसाद…. (जोशी)
The nature do maintains her balance and she controls all of us.
कृष्णकांतजी,
किनारेपर बैठकर किसीको तैरना नही सिखाया जा सकता है. ऊसके लिये पाणी मे गोता लगाना पडता है.
खुदका पेट भरने के बाद नेकी सुझती है पर ऊसी पापी पेट की भुख किसी जिव या वनस्पती को खाकर मिटती है. हमारी हर सास किसी कि मौतपर चलती है. हम कैसे खुदको अच्छाई के ठेकेदार समज सकते है.
अब आप ये कहैंगे कि ये तो प्रकृती का नियम है. तो महाशय मै यही कहरहा हु ये नियम ही हमे यह समझाते है कि we are just the surviver in race of life. पता नही ये जिवन मृत्युकी दौड मे ये अच्छाई बुराई कहासे आगइ.
हम ईन्सान तरक्की कर रहे है. हमारे पास विग्यान की कई सुविधाए है. ऐसा आपको लगता है पर ये भि जिवनकी ईसी दौड का नतीजा है. मै एक engineer हु मै अगर खराब मशीन बनाताहु तो वो बिकेगी नही ये सोच मुझे quality and invention कि और ले जाती है. Its not the brain and its evolution, it is hunger that let me invent new machines and technology.
बदकिस्मतीसे जिंदा रहने की ईस दौड को ईन्साने विकास और ऊन्नती कहा है.
कृष्णकांतजी जरा ईस नजर से देखो दुनीया को यहा हर कोई ईस दौड का हिस्सा है. Being equieped with machineries is tempeory provision this may not rule the natures law.यहा हिदु, मुसलमान, ब्राह्मण, दलित,अमेरिकन,अरब, ईन्सान, जानवर, संत, आतंकवादी सब भाग रहे है.
Huminity is post business activity, and the business is the prime and dominent need of mankind. The very businesses is the real picture of the nature.
चलो मै आपको आज खुष करता हु. मै आपकि खुषी के लिये आने वाले चुनाव मे केजरीवाल या कॉंग्रेस या किसी भी secular पार्टी को वोट करुंगा. मोदी को नही करुं गा. क्युंकी मोदी हो या केजरीवाल या कॉंग्रेस या ओवेसी या खुद कृष्णकांत या औरंगजेब या अकबर या ब्रिटीष या संघ. अब ईन मे से कोई ना तो बारीश बनकर बरसने वाला है और नाही अनाज बनकर किसीकि भुख मिटाने वाला है और नाही तेल बनकर गाडी चलाने वाला है. ये सब कौन है, कोई नही है.
और क्या यार आपने तो हद करदी मोदीजी क़ा खाना पीना तक calculate किया.
नही यार जैसे हर धर्म मे कट्टर पंथी होते है वैसे आप मानवता वाद और secularism के कट्टरपंथी हो. अरे आने वाले समय मे दुनीया तेल या पाणी के लिये लडेगी शायद हवा के लिये भि
लडेगी.
मानलो ईस दुनीया मे सारे लोग कृष्णकांत होगये. तब भि ये सारे कृष्णकांत तेल, पाणी और हवा के लिये आपस मे लडने वाले है.
नही महाशय ये नही है, ये हिंदु, मुसलमान, ये धर्म ये जाती या ये कुछ भि है ही नही. पर आप जैसे ग्यानी जनो को कौन समझाएगा. जैसे राजनेता वैसे ही आप लोग. किसीका हिंदुत्व तो कोई ईस्लामीक तो कोई सेक्युलर तो कोई communist. पर वो सब दिन मे रात होते ही दिन भर के करप्शन कि हिस्सो का बटवारा शुरु. और फिर दुसरे दिन की प्लँनींग.
Get the rest from all of such void thoughts. You are thinking in that direction which tends to big illusion.
ग्यान और भ्रम ईन दोनो मे एक गहरा संबध है और वो ये है कि ग्यान हमेशा भ्रम को जन्म देता है और भ्रम हमेशा ग्यान को. ये ऐसा ईसलिये है कि पुर्ण ग्यान कभिभी हो नही सकता है. ग्यान के मामले मे हम हमेषा अधुरे ही रहते है.
विश्वकी कुछ गंभीर समस्याओ को समझो ये कम नही होगी..
(१) Fertility of land reducing day by day.
(२) Entropy of earth increasing.
(३) Polar glaciers are melting.
(४). Yet Oil has no alternative.
(५). Non recyclable scrap.
(६). Ocean sweetness rising.
(७). Nuclear weapons
(८). Forest cutting.
(९). Resource consumption increasing.
(१०) WATAR …
संघी हिंदुत्व कि बाते करते है, ओवेसी ईस्लाम की, गांधीजी अहिंसा कि, बगदादी शरीयतकी, कश्मिरी आझादी कि, कृष्णकांत मानवतावाद कि, अन्सारीजी इस्लाम के नेकदिली कि
एक चमन जो ऊजडने वाला है,
ऊस चमनमे हर कोइ अपने खयालो की खेती
यु ईस कदर कर रहा है के
ऊसका ये आशीयाना मानो हमेशा आबाद रहेगा.
बचपन मे एक कहानी सुनीथी,
आकाश गिरने के..
एक खरगोश कि पिठ पर एक पत्ता गिरता है. डर के मारे वो भागने लगता है, बहोत चिल्लाता है, सभि प्राणीयोको भागने को कहता है. सब ऊसे पुछते है क्या हुवा? क्यु भाग रहे हो? तो वो खरगोश कहता है मेरे पिठ पर ‘आकाश गिरा’ , भागो हम सब मरने वाले है. कुछ प्राणी ऊस पर हसते है.. और कुछ ऊसके साथ भागने लगते है,… भागो आकाश गिरा..
कृष्णकांत जी,
भारत मे आप जैसे लोगो के पिठ पर ‘मोदी’ नाम का पत्ता गिरा है और आप लोग ऐसा बवाल मचा रहे हो मानो आकाश गिरगया. मानो मोदी कोई त्सुनामी लेकर आने वाला है और हम सब डुब जायेंगे. या फिर मानलो मोदी कि जगा केजरीवाल, ममता pm होगये तो पुरा देश विकास कि गंगा मे गोते लगानेवाला है. मेरे लिये मोदी, ममता, केजरीवाल,सोनीया ये सब एक जैसे ही है. ना मै किसी को अच्छा कहता हु और ना मै किसी के बुरा कहता हु. हर किसीको सत्ता चाहीये. मै तो अोवेसी के भि खिलाफ नही हु. अगर ओवेसी pm बनते है तब भी कुछ बुरा नही होगा. ओर कृष्णकांत pm बनते है तो भि कुछ बहोत अच्छा नही होगा. ये इस लिये क्युंकी अच्छाइ बुराई सुख दुख आते जाते रहते है.ये मनमोहन के काल मे भी थे ओर मोदी के काल मे भी है.
पर ईस दुनीया मे आप जैसे खरगोश है जो पत्ते के गिरने से आकाश गिरगया ऐसा डर लोगो मे फैलाते है. आप क्या संघीयो कोस रहे है आप भि ऊनके जैसे ही हो. ईस देश का माहोल खराब करने के लिये, ईस देश मे intolerance बढाने के लिये मै आप जैसे intellectuals को ही दोशी मानता हु.
आप जैसे लोगो को intellectual क्युं कहते है ये मेरी आज तक समझमे नही आया है.
Sanjay Tiwari
2 June at 15:33 ·
यह जो सुन्नती जन्नती पाकिस्तान है उसने दीनी मामलात में खूब तरक्की है। काफिर हिन्दुओं को कैसे खत्म कर देना है इसके एक से एक नायाब नुख्से विकसित किये गये हैं लेकिन खुद बीमार हो गये तो इलाज कैसे करेंगे इसका नुख्सा विकसित नहीं कर पाये। इसलिए जब किसी को कोई गंभीर बीमारी होती है और वह ठीक भी होना चाहता है तो उसे काफिरों की जमीन हिन्दुस्तान याद आती है।
लेकिन खुद ही हालात इतने खराब कर रखे हैं कि आना जाना इतना आसान नहीं रहा। पहले धड़ल्ले से आते थे, इलाज कराते थे और जाकर उसी भीड़ का हिस्सा हो जाते थे जो हिन्दुस्तान में गजवा ए हिन्द करने पर आमादा है। लेकिन अभी सुषमा स्वराज ने एक पेंच फंसा दिया है। मेडिकल वीजा मिल तो जायेगा लेकिन वहां के विदेश मंत्री की अनुशंसा लेनी पड़ेगी। ठीक भी है। कम से विदेश मंत्री को अपने देश की औकात तो पता रहनी चाहिए कि जिन काफिरों को खत्म करने के मंसूबे पाले बैठे हैं उन काफिरों के बिना इलाज भी नहीं करा सकते।
ऐसे में आज जिस बच्चे के दिल के आपरेशन के लिए चार महीने का मेडिकल वीजा दिया गया है उससे साबित होता है कि मानवता किस तरफ कमजोर हुई है और कहां अभी भी पूरी तरह से मजबूत बनी हुई है। बच्चे के पिता ने “मानवता के जीत” की दुहाई दी है, उम्मीद करनी चाहिए कि जन्नती जमात मानवता शब्द का महत्व समझेगी और पैगाम-ए-मोहब्बत का भी।Sanjay Tiwari
2 June at 14:03 ·
हिन्दू लोग बहुत धार्मिक कट्टर हो जाएंगे तो क्या करेंगे? नदी साफ करेंगे। पेड़ पौधा लगायेंगे। पशुओं की सेवा करेंगे। चिड़ियों कौवों को दाना चुगायेंगे। चीटीं को आंटा खिलायेंगे। कीर्तन भजन और भण्डारा करेंगे। राह चलते लोंगों को पकड़ पकड़ के भोजन करायेंगे। पानी पिलायेंगे। मंदिर और धर्मशाला बनावेयेंगे। राहगीरों के लिए प्याऊ खुलवायेंगे। अस्तित्व में जो कुछ है उसकी भलाई के लिए काम करना है। यही हिन्दू धर्म है और यही भारत की ब्राह्मण संस्कृति।
यह सब करना आपको अपनी आजादी में दखल लगता है तो समस्या आपके साथ है। क्योंकि हिन्दुओं के लिए धरम का काम यही सब है। उन्हें न किसी पर ईमान लादना है और न अपना गंवाना है।Sanjay Tiwari
1 June at 13:32 ·
जिस दिन पाकिस्तान में हिन्दू और मसीही उसी आजादी से चर्चा, संवाद या बहस कर सकेंगे जिस आजादी से भारत में मुसलमान करते हैं, उस दिन इस्लाम से मेरा सारा संदेह खत्म हो जाएगा।Sanjay Tiwari
31 May at 10:43 ·
न खाऊंगा, न काफिरों को खाने दूंगा
(अलीगढ़ मुस्लिम युनिवर्सिटी में रोजा) ।Sanjay Tiwari ————————————— mohd Umar added 2 new photos — with Wasim Akram Tyagi and 15 others.
6 hrs ·
चीन से कुछ दिनों से खबर आ रही थी कि मुसलमानों को रोज़े रखने पर चायना ने पांबदी लगा दी-
इससे पहले भी चायना इस्लाम के खिलाफ ऐसी नापाक हरक़त कर चुका है और वह सिलसिला इस बार भी जारी रहा-
आज के इस आधुनिक युग मे चीन की इस हरकत पर मुझको रूस का 1973 का वह कम्युनिस्ट राज याद आ गया जब उनके पूरे देश मे लाल ध्वज लहरा रहा था।
साथ ही मुसलमानों पर रूस मे नमाज़, कुरान पढ़ने पर पूर्णतः पाबंदी थी, उस समय लगभग पाँच सात मस्जिदें ही रही होंगी रूस मे जिसको भी बंद करवा दिया गया था बस एक दो मस्जिदें ही पुरातत्व विभाग ने अपने लिए खोल रखी थी, कुलमिलाकर ना कोई अज़ान देने वाला और ना कोई कुरान और ना नमाज़ पढ़ने और पढ़ाने वाला लेकिन हौसला देखिए अल्लाह से मोहब्बत करने वाले उन रूसी मुस्लिमस का जो इतनी सख्त बंदिशों के बाद भी उन्होंने इस्लाम को पूरी मुस्तैदी से पकड़े रखा, मस्जिदें बंद कर दी गयी कुरान पढ़ने पर पांबदी, रोज़े पर पांबदी लेकिन वहा फिर भी इस्लाम ज़िंदाबाद रहा और जिस इस्लाम को मिटाने की सोच रखकर रूस ने बंदिशें लगायी थी मुसलमानों पर वह इतनी सख्ती के बाद भी इस्लाम को छुका ना सका।
वक्त बदला समय ने अपनी रफ्तार बढ़ायी और फिर धीरे धीरे उसी रूस मे आज पाँच हज़ार से ज़्यादा मस्जिदें आबाद है, और धीरे यही इस्लाम पूरे यूरोप मे सबसे तेज़ी से फैलने वाला मज़हब है आज जबकि मौजूदा समय मे पूरी दुनिया मे इस्लाम के खिलाफ साजिशें ज़ोरों पर है।
कल तक जो देश इस्लाम पे बंदिशे तय कर रहा था उसी रूस की हुकूमत ने मास्को मे यूरोप की सबसे बड़ी मस्जिद तामीर करवाई, साथ ही बड़ी तेज़ी से रूसी नौजवान और औरतों का इस्लाम मे दाखिल होने का सिलसिला चल रहा है और एक समय ऐसा आयेगा की अरब देशों की मुस्लिमस आबादी से ज़्यादा यूरोप मे मुस्लिमस हो जायेंगे।
इसी तरह जो सख्तियां और पांबदी आज चायना मे है इस्लाम के खिलाफ उससे कही ज़्यादा बंदिशें 90 के दशक मे रूस ने लगा रखी थी इसलिए यह समय चायना के मुस्लिमस का इम्तिहान का दौर है अल्लाह का दामन पकड़कर ईमान पर मुस्तैदी से टिके रहने का है और एक दिन जो चायना रोज़े पर सख्ती से पैरवी कर रहा है वहीं चायना एक दिन रूस की तरह ईमान पर क़ाबिज़ होगा “इंशा अल्लाह”-(मोहम्मद उमर)
नीतीश के. एस.12 hrs · सनी लियॉन। नाम ही काफ़ी है नज़रें घुमाने के लिए। लेकिन इस बार मोहतरमा ने मेरी नज़रों में अपनी औकात दो फ़ीट और ऊपर उठा ली है। मोहतरमा ने अपने शौहर के साथ मिल कर एक बच्ची गोद ली है। बच्ची गोद लेना साधारण काम लगता है लेकिन है नहीं। मुझे ये कदम खास तौर से पसंद आया। एक सज्जन ने पोस्ट किया, अच्छा किया गोद ले लिया। कम से कम बच्चे को बता तो सकती है कि तुम्हे गोद लिया है। अपना होता तो बाप कौन है, ये बताने में पूरा कैरियर सामने घूम जाता।मुझे ये गोद लेने वाला कदम बस इसीलिए अच्छा लगा। पुरुषवाद को जूते की नोक पर रखा, रूढ़ियों को धता बताया और आज यहाँ तक पहुंची सनी लियॉन ने एक बार फिर अपने काम से रूढ़िवाद और पुरुष सत्ता को चुनौती दी है। सनी और उसका पति चाहते तो सरोगेसी से बच्चा पैदा कर सकते थे। हालाँकि मैं सरोगेसी का समर्थक हूँ लेकिन इसे सही नहीं मानता। लिहाज़ा जब सनी के इस कदम के बारे में सुना तो ख़ुशी हुई कि सनी ने सरोगेसी को नकार कर अडॉप्ट करने का रास्ता चुना। वो बात अलग है कि उनके पास करियर को ख़तरे में डालने का विकल्प भी मौजूद था लेकिन उन्होंने सबसे बहादुरी वाला डिसीज़न लिया। उन्होंने बताया कि परवरिश ज़रूरी है न कि बाप का नाम। सरोगेसी में सबसे बुरी बात ये है कि माँ को बेरहमी से किनारे कर दिया जाता है और बच्चा पैदा करने का श्रेय पिता लूट लेता है। सनी ने एक अभावपूर्ण ज़िन्दगी जी रहे बच्चे को अपनी ज़िन्दगी में शामिल कर के बहुत खूबसूरत उदाहरण दिया है। एक पैदा हो चुके बच्चे के हक़् को उपलब्ध करवाने की जगह एक और बच्चा पैदा कर के सिस्टम का दोहरा नुकसान करने वालों के उलट सनी ने एक खूबसूरत मानवता का उदाहरण दिया है। बातों में नहीं, भावनाओं के साथ सलाम सनी। लव यू सो मच।नीतीश के. एस.—–Swati Mishra
15 hrs ·
पिछले कुछ वक़्त से बंगाल में एक कैंपेन चल रहा है। इसको चलाने वाला संगठन कह रहा है कि विष्णु ने मत्स्य अवतार लिया था, सो मछली ईश्वर का रूप है। मछली में विष्णु निवास करते हैं, सो मछली भी ईश्वर है। इसीलिए मछली खाना भगवान को खाने जैसा है। इस हिसाब से दुनियाभर में आजतक लोग करोड़ों टन भगवान खा चुके हैं। तल कर, रोस्ट-स्टीम करके, मसालों के साथ ग्रेवी में और कई बार तो कच्ची ही।
यह एक क्रांतिकारी जानकारी है। भक्ति के हिसाब से तो ये मतलब मिसाल ही है। किताबों और मंदिरों के निर्जीव प्रभु से आगे बढ़कर ईश्वर एक साक्षात-tangible रूप में भक्तों के सामने उपस्थित हैं। कि लो, देखो मुझे… महसूस करो। मैं काल्पनिक नहीं, वास्तविक हूं। भक्त केवल भगवान की पूजा ही नहीं कर रहा, भगवान को खा भी रहा है। इसमें ईश्वर की रज़ामंदी भी होगी ही। आख़िरकार जिस ईश्वर की मर्ज़ी के बिना पत्ता भी नहीं हिलता, उसकी इच्छा के बिना कोई उसे खा कैसे सकता है। भक्त की थाली में भगवान की कमी न होने पाए, इसके लिए नदी, तालाब और पोखरों में भगवान पाले जा रहे हैं। भगवान की जितनी मांग बढ़ती है, उतनी सप्लाइ भी सुनिश्चित होती है। भगवान की आपूर्ति में लाखों लोग जुटे हुए हैं। इस प्रकटीकरण से एक पुराना विवाद भी सुलझ गया है। यह साबित हो गया है कि हिंदू धर्म वास्तव में सब धर्मों से श्रेष्ठ है। किसी और धर्म का ईश्वर क्या इतना उदार हो सकेगा कि अपने भक्तों का भोजन बने?
जय हिंदू, जय सनातन। गर्व से कहो हम हिंदू हैं।———-Swati Mishra
Krishna Kant
2 hrs ·
आरएसएस को किताबों में ग़ालिब, पाश, रवींद्रनाथ टैगोर को पढ़ाए जाने से दिक्कत है। उर्दू, अरबी, फ़ारसी और अंग्रेजी शब्दो से भी परेशानी है। संघ चाहता है कि ये सब किताबों से हटा दिया जाए।
आपको ग़ालिब से दिक्कत है? फिर रहीम और रसखान का क्या करेंगे? आपको सलमान खान और नवाजुद्दीन सिद्दीकी से दिक्कत है? फिर दिलीप कुमार क्या करेंगे? आपको फवाद खान, सलमान खान से दिक्कत है तो राही मासूम रजा और जावेद अख्तर का क्या करेंगे? राही के लिखे रामायण महाभारत का क्या करेंगे? लगभग सारे अच्छे भजन कंपोज़ करने वाले साहिर, नौशाद और मोहम्मद रफ़ी का क्या करेंगे? यदि आपको गुलाम अली, नुसरत फतेह अली खान, मेहदी हसन, तसव्वुर खानम, फैज और फराज से भी दिक्कत है, तो बड़े गुलाम अली खां, गालिब, मीर, जौक, खुसरो, अल्ला रक्खां, बिस्मिल्ला खान, राशिद खान, शुजात खान, एआर रहमान का क्या करेंगे? मौजूदा हिंदुस्तानी संगीत के पितामह अमीर खुसरो का क्या करेंगे? हिंदुस्तानी संगीत, साहित्य, कला की महान विरासत को आगे बढ़ाने वालों में मुस्लिम कलाकारों की बहुतायत है, जो राम, कृष्ण और दुर्गा के भजन गाते हैं, साथ साथ उर्दू गजलें, कौव्वालियां गाकर संगीत परंपरा को आगे बढ़ाते रहे हैं. हालांकि, वे सिर्फ जन्मना मुसलमान हैं और एक से एक महान लोग हैं. वैसे भी, हिंदू हो या मुसलमान, घृणा से भरा मनुष्य कलाकार हो नहीं सकता. कुछ अच्छे कलाकार ज़रूर हाल में सत्ता के दलाल बनने को दुबले हुए जा रहे।
इन सारी महान हस्तियों को हटा दो, फिर संस्कृति, भाषा और साहित्य के नाम पर बचेगा क्या? गोडसे और उसकी पिस्तौल? वही पढ़ाओगे? संस्कृत भाषा के कालिदास और जयदेव आपको पढ़ा दिया जाए तो आपकी कुत्सित संस्कृति शीर्षासन करने लगे।
उस मनुष्य की बुद्धि और उसकी बेचारगी पर विचार कीजिये जो रविन्द्रनाथ टैगोर और ग़ालिब जैसी हस्तियों को हटाने की सलाह दे सकता है और जो ऐसे उज़बक से सलाह ले सकता है। जिन लोगों में घृणा का स्तर ऐसा हो गया हो, वे देश निर्माण का दावा कर रहे हैं!!!
इसी धरती की महान विरासत से नफरत करने वाले अपने को देशभक्त कहकर नारा लगाते हैं। पहले इनसे इनकी देशभक्ति का प्रमाण मांगा जाए।
जिन गधों को संस्कृति का स नहीं आता उन्होंने देश और संस्कृति का ठेका ले रखा है।Krishna Kant
उपासना झा
12 hrs · Patna ·
प्रियंका ने आत्महत्या का प्रयास किया था, बहुत अवसाद में चल रही थी। उसके माता-पिता पहुँच चुके हैं। अब ख़तरे से बाहर तो है लेकिन उसे इस हाल में पहुंचाने वाले कृष्णकांत पर जिस तरह उसके खेमे वाले (वामपंथी) चुप हैं वह बहुत लज्जास्पद है।
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( प्रियंका की वाल से)
The Wire Hindi लगातार महिलाओं से जुड़े मुद्दों को उठाता है लेकिन खुद अपने ही साथी कर्मी, एक झूठे क्रांतिकारी पत्रकार, धोखेबाज़ और धूर्त व्यक्ति का पक्षधर बना हुआ है.
वायर में काम कर रहे कृष्णकांत ने एक महिला पत्रकार को इस मुकाम पर ला खड़ा कर दिया कि वह लगातार में अवसाद में रहते हुए भयानक मानसिक पीड़ा और लगातार आते अटैक्स से जूझ रही हैं. सिर्फ यही नहीं, अपनी सफाई में कृष्णकांत ने वही सब कहा जो एक अपराधी मानसिकता वाला व्यक्ति कह सकता है/कर सकता है.
कृष्णकांत लगातार लोगों को मैसेज भेज कर और फोन द्वारा अपनी सफाई पेश कर रहा है कि लड़की विक्टम कार्ड खेल रही है, बदनाम कर रही है, मेरे अस्वीकार देने पर पगला गयी है. जबकि यही सारी बातें यह साबित करती हैं कि कृष्णकांत धूर्त व्यक्ति है. वह लगातार लड़की के दोस्तों को फ़ोन करके सभी पोस्टें हटा लेने को कहता है और रोने-धोने का नाटक करता है.
हम हैरान हैं कि Siddharth Varadarajan जो महिला की लिस्ट में भी हैं और लगातार इस मसले से अवगत हैं वह कैसे मौन है!! कृष्णकांत की नीचता की हद यह है कि उसने यह भी कहना शुरू कर दिया है कि वायर में महिला को जॉब नहीं दी तो बदला ले रही है…यह बेहद शर्मनाक बात है कि अपनी कालीकरतूतों को छिपाने के लिए यह झूठा आदमी महिला पर अनगर्ल बातें मढ़ रहा है.
कुछ दिनों पहले नेशनल दस्तक ने अपने कर्मी ओमसुधा को उसके इसी तरह के कृत्यों को जान कर उसे संस्थान से अलग किया था. ज्ञात रहे कि नेशनल दस्तक अपने तरह का एक मात्र प्रतिष्टित संस्थान है जैसा कि वायर है. हम The Wire Hindi यानी सिद्धार्थ वर्धराजन से उम्मीद करते हैं कि वह इस मसले पर अधिक देर तक और मौन नहीं रहेंगे. महिला मुद्दों पर आवाज़ उठाना और दबी चुप्पी को तोड़ना ही आपकी पहचान है जिसे आप बनाये रखेंगे ऐसी हम आशा करते हैं….
See Translationउपासना झा
26 September at 18:39 · Patna ·
महमूद फ़ारुखी केस में जिस तरह का स्टेटमेंट कोर्ट ने देकर उसे बरी किया है, वह निराशाजनक है। फ़ारुखी के सात वकीलों की टीम ने कोर्ट में यह कहा कि उसे ‘बाइपोलर सिंड्रोम’ है और वह पीड़िता की ना को हाँ समझ बैठा! जबकि साकेत कोर्ट ने उसे 7 साल की सजा सुनाई थी।
अब एक नया ट्रेंड शुरू होगा। बलात्कार के अभियुक्त कुछ पैसे डॉक्टर्स को देकर यह पैंतरा भी चलेंगे।
हैरत की बात यह भी है कि तमाम प्रगतिशीलों के मुँह में दही जम गया है जो दिन-रात स्त्री-विमर्श की रट लगाते रहते——————प्रियंका is with Khushboo Akhtar and 2 others.
1 September at 22:25 ·
बहुत बड़े सत्यवादी हरिश्चंद्र बनते हो, आओ तुम्हारा सच बताती हूँ….
प्रकाशन के चलते हाल ही में तुम्हारी पुरानी दोस्त से मिलना हुआ. मैं उससे और वो मुझसे क्लोज न हो जाये इसके लिए तुमने पहले ही मेरे मन में उसके प्रति कटुता भर दी. कहा, तुम जानती हो ये वही लड़की है जो कॉलेज से मेरे पीछे पड़ी थी. वो मुझे बुरी तरह से पसंद करती थी और उसने मुझे प्रपोस भी किया. लेकिन मैंने देखा कि वो लड़की लड़केबाज़ और मूडी है इसलिए मेरा मन उसके लिए खट्टा हो गया. अभी जब प्रकाशन के सम्बन्ध में मिली है तो कुछ कुछ वहीँ अंदेशे दे रही है.
तुमने बताया कि लास्ट टाइम जब तुम उसे किताबें देने गये तब उसने तुम्हें गन्दी तरह से गले लगाया और जब उसके घर खाना खाने गये तब उसने तुम से एक्स्ट्रा अफेयर और रिलेशन बनाने के बारे में तुम्हारी रूचि पूछी.
जबकि सच कुछ और निकला….उस लड़की ने कभी तुम्हें नहीं चाहा क्योंकि तुम उसकी दोस्त के प्रेमी थे. उसने कभी तुम्हें प्रपोस नहीं किया. कभी तुम्हारे पीछे नहीं भागी और न वो तुम्हें पसंद करती थी. तुम उसके पीछे पड़े थे वो भी बुरी तरह से. उसको दिन भर सौ-सौ कॉल और मैसेज करते थे तंग आ कर उसने तुम्हें ब्लाक भी किया था और जब वो दिल्ली आ गयी तब भी तुमने एक बार फिर ट्रय किया लेकिन फिर भी तुम्हारी बात नहीं बनी. जब वो तुम्हें अपने घर खाने खिलाने ले गयी तब तुम उसके सामने रोने लगे कि प्रियंका ने परेशां कर रखा है, मेरे पीछे पड़ी है, मुझे उससे बिलकुल भी प्यार नहीं है लेकिन फंसा हुआ हूँ और झेल रहा हूँ. ये तुम्हारा अंतिम प्रयास था उसको अपनी तरफ सहानुभूति और अफेयर के लिए तैयार करने के लिए जो फेल हो गया क्योंकि वो मेरी जैसी मूर्ख नहीं थी.
वो लड़की तो तुम्हारी सच्चाई जानती ही थी लेकिन तुम्हारा कमीनापन नहीं जानती थी और मैं…मैं तो सदमे झेल ही रही हूँ….
तुम्हारे ठरकी दोस्त तुमसे कहीं ज्यादा सच्चे हैं. कम से कम जो हैं वो सामने दिखते तो हैं….
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30 August at 21:57 ·
क्रांतिवीर तुम्हें क्रान्ति करनी थी तो वह कहाँ से शुरू होती? तो चलो कहते हैं सबसे कि तुम जातिवादी नहीं हो……
तुमने बड़ी शान से कहा था शुरुआत में कि कास्ट आदि मेरे लिए कोई मायने नहीं रखती, मेरे लिए किसी का सिर्फ अच्छा इन्सान होना ही पहली जरूरत हैं. तुम बहुत अच्छी हो और मुझे पसंद हो. तुम्हें पा कर मैं पूर्ण हो गया हूँ. मुझे आज तक सभी ने ठुकराया है और तुमने अपना कर मुझपर एहसान किया है….वाकई में …ये लाइन मेरी ही तरह बाकि लड़कियों को भी इम्प्रेस कर गयी थी ना!!
तुमने कास्ट का कहा. मैं उसे लेकर निश्चिन्त हो गयी लेकिन जब जब मैंने शादी के लिए कहा तुमने रोना शुरू किया और कहा, मैं ऐसे नहीं कर सकता, घर में सबको समझाना पड़ेगा, मनाना पड़ेगा. मेरे भाई ने खुद की ही कास्ट में शादी की लेकिन माँ ने आज तक उन्हें नहीं स्वीकारा. क्रातिंकारी जी एक तरफ तो आप जनेऊ को गरियाते हैं और दूसरी तरफ शान से कहते हैं कि… “हम वो ब्राह्मण हैं जिनके सर पर हाथ रख कर लोग कसमें खाते हैं’ ……………..और सोचो फिर अपना तो किस्सा ही अलग है. फिर मैंने कहा कोर्ट मैरिज कर लेते हैं बाद में सबको मना लेंगे लेकिन तुम बोले ऐसे कैसे अपने माँ-बाप को बिना बताएं शादी कर लें, तुम बताओ कैसे कर सकते हैं. समय दो मैं बात करूँगा सबसे… और अगर अभी बता दिया तो मेरी बहन की शादी पर मुसीबत आ सकती है. सोचो क्या तुम्हें ये सही लगेगा….नहीं सही लगता इसलिए शांत हो गयी लेकिन ये बात तुम्हारी लगातार जारी रही कि अब करोगे, तब करोगे और इसी तरह बहन की शादी का बहाना और पापा की बीमारी आदि सब चलता रहा.
मैंने तुमसे ये भी कहा कि अगर मेरी बात करने से तुम्हें बेदखल किया जा सकता है तो तुम पहले ये बताओ सबको कि तुम चैन स्मोकर, खैनी बाज़ और ड्रिंकर हो और जम के नॉनवेज खाते हो, अगर इस को सुन कर वो तुम्हें बेदखल न करें तो बाकी शायद कोई आपत्तिजनक नहीं होना चाहिये….. तुम्हारे ही हिसाब से पांडित्व तो इनसे भी खंडित होता है न? …लेकिन इस बात को सुन कर तुम लड़ने लगते.
अभी छह महीने पहले शुरू हुए तुम्हारे अफेयर को जब मैंने पकड़ा और कहा कि अब तो अपनी कास्ट की ही लड़की पकड़ी है वो भी सरकारी नौकरी वाली अब तो दिक्कत नहीं आएगी न कास्ट की? तो तुम भड़क कर बोले, मेरे यहाँ कब कास्ट को लेकर दिक्कत थी? सामाजिक रूप से दिक्कत आती यही कहा….अच्छा!!!
तुम कभी अपनी किसी बात पर नहीं टिके. हर बार नए तर्क और नई बातें, वो भी ऐसे कहते कि मुझे लगता अरे, शायद यही सही है मैं ही गलत हूँ…
लिखा नहीं जा रहा तबियत बहुत बिगड़ रही है. इसी को लिखने में घंटा भर लगा है…..आगे फिर…
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Krishna Kant : मुझ पर बहुत संगीन आरोप लगाए गए हैं. सोचा था कि हमारा अपना प्रेम संबंध था, इस पर कुछ नहीं कहना. लेकिन मामला अब हाथ से निकल गया है. अब फेसबुक ही सर्वोच्च अदालत है, और हर व्यक्ति मुख्य न्यायाधीश. शर्मिंदगी के साथ इस कीचड़ में उतरने को मजबूर हूं. कहा जा रहा है कि अलग होना बड़ी बात नहीं है, लेकिन धोखा दिया गया. इस ‘धोखे’ में उसका जिक्र कहां है कि हमारे आसपास के लोग पिछले डेढ़ साल से मध्यस्थता कर रहे थे. वे लोग कहां हैं इस पूरी बहस में जो बार बार समझा रहे थे कि तुम दोनों साथ नहीं रह सकते? यह जिक्र कहां हैं कि हमें जब कहा गया कि हम साथ नहीं सकते तो तीन बार आत्महत्या करने कोशिश/धमकी दी गई? यह जिक्र कहां है कि आत्महत्या की धमकी पर दो बार ऐसा हुआ कि दोस्तों को दौड़कर आना पड़ा? यह जिक्र कहां है कि आप आत्महत्या की धमकी देकर दरवाजा बंद करके सीपी घूम रही थीं और हम दोस्तों के साथ तुमको ढूंढ रहे थे?
इस बात का जिक्र कहां है कि किसी 45 या 50 साल की महिला से भी बात करने या हालचाल लेने पर आपको परेशानी होती रही है? इस बात का जिक्र कहां है कि मुझे लोगों के बीच में ही काम करना है और आपको लोगों से उबकाई आती है? इस बात का जिक्र कहां है कि जिन लोगों के पास आपको फोर्स करके भेजा गया कि तुम अकेलेपन से निकलो, उन्हीं के पास जाकर आपने हमको गालियां दीं? वे दोस्त, वे वरिष्ठ महिलाएं कहां हैं जो आपको समझाती रहीं कि कोई अलग होना चाहता है तो उसे जाने देना चाहिए? वे पुरुष दोस्त कहां हैं जिनके मेरे घर आने भर से आप हफ्ते भर लड़ाई करती थीं? आपको न्याय दिलाने के लिए वही लोग क्यों और किस मकसद से जुटाए गए जो हमसे कभी नहीं मिले या जो हमको नहीं जानते?
इस बात का जिक्र कहां है कि आपको हमारे दफ्तर जाने, रिपोर्टिंग पर जाने, दोस्तों के साथ बैठने पर भी आपको दिक्कत थी जिसपर लगातार समझाइश की कोशिश होती रही और आपने हर बार समझने से इनकार किया? बार बार यह कहने के बाद कि हम साथ नहीं रह सकते, धोखा कैसे होता है? मैं अलग होना चाहता हूं, यह लगातार कहते रहना किस कानून के तहत धोखा या अपराध है? जिस जगह पर मैं हूं वहां पर कोई स्त्री होगी तो क्या करेगी? हमारी पूरी सर्किल के लोग, दोस्त सब हमारे संबंध को जानते हैं तो किसी के साथ भी धोखा कैसे हो गया? इतनी किचकिच के बाद अगर मैं अलग होना चाहता रहा तो कौन सा कानून या लोग मुझे फांसी देंगे, मैं तैयार हूं.
क्या मेरे मुताबिक, आप मेरे साथ नहीं रहना चाहें तो मुझे आपके चरित्रहनन का अभियान चला देना चाहिए? मुंह पर तेजाब डाल देना चाहिए? कहा गया है कि हमने कई लड़कियों को बरगलाया, मौत के मुंह में पहुंचाया और छोड़ दिया. तमाम लड़कियां आत्महत्या कर रही हैं. एक जिस रिश्ते में हम रहे, उसके अलावा वे कौन लड़कियां हैं? सब लड़कियां आत्महत्याएं कर रही हैं और अस्पताल से घर लौट जा रही हैं, लेकिन न कोई केस दर्ज हो रहा है, न अस्पताल रिपोर्ट कर रहा है. इतनी लड़कियों को बचा लेने वाले लोग भी कोई रिपोर्ट नहीं कर रहे हैं. ताजा आत्महत्या प्रकरण हुआ. किसी ने न देखा, न बात की, न अस्पताल ने पुलिस बुलाई, न मेरे पास पुलिस आई, न कोई केस हुआ, यह किस दुनिया में, कैसे संभव हुआ?
कहा गया है कि मैं तमाम लड़कियों को बरगला कर मौत के मुंह में डालता गया. यह सब देखते हुए आपको मुझसे शादी करनी थी? सारे आरोप अलग होने के बाद ही सामने आए? उसके पहले आपको उन लड़कियों की और हमारे ‘आपराधिक चरित्र’ पर चिंता नहीं हुई? एक महीने पहले तक हम आपसे शादी कर लेते तो यह सारे खून माफ थे? आरोप है कि हमने हैरेस किया, पैसा खाया. मैं सात साल से नौकरी कर रहा हूं. आप कितना पैसा कमाती थीं जो हम आपसे पैसे खाते थे और आप खिलाती थीं? बिना किसी पढ़ाई लिखाई के, बिना किसी अनुभव के आपको दोनों नौकरियां कैसे मिलीं? आपका परिवार आपको सपोर्ट नहीं कर रहा था, आप दिल्ली आ गईं, आपको यहां रहने के लिए आर्थिक मदद किसकी थी? अभियान चलाने के ठीक पहले आपका अकाउंट फ्रीज हुआ, आपने पैसा किससे लिया? आपके यहां आने से लेकर एक महीने पहले तक आपका रोना था कि मेरे कोई दोस्त नहीं हैं, कभी भी किसी भी परिस्थिति में आपकी किसी भी तरह की मदद, संबंध खराब होने के बावजूद, मेरे अलावा किसने की? (यह सब आरोप लगाया जाना और यह जवाब देना बेहद घिनौना है.)
जिस दिन मेरे घर बाबा की तेरहवीं थी, उस दिन भी मुझसे बहस करने की कोशिश की जा रही थी. 99 साल के मरे हुए व्यक्ति की भी फोटो लगाकर गालियां दी गईं? पिछले छह महीने में पिता और बाबा की मौत हुई, उसका यहां फेसबुक पर पोस्ट लिखकर मजाक उड़ाया गया. यह कौन सा न्याय मांगा जा रहा है? जितने आरोप लगाए जा रहे हैं वे सब पहले फर्जी अकाउंट से क्यों सामने आ रहे हैं? यदि मैं अपराधी हूं, तो उसका फैसला कौन करेगा? मुझे सजा कौन देगा? कहा गया कि फ्रिज में गोमांस है तो भीड़ जुट गई और पिटाई शुरू हो गई? इस संभ्रांत और वर्चुअल मॉब लिंचिंग के लिए आप सब बधाई के पात्र हैं.
तमाम लोगों का कहना है कि हमें हमारे संस्थान से निकाला जाए. हमारे किसी के साथ संबंध में मेरे संस्थान का क्या रोल है? किसी विचारधारा, जाति, वर्ग, समुदाय आदि का क्या रोल है? मेरे उन मित्रों, जिनका कहीं कोई रोल नहीं है, उनको भी इसमें घसीटा जा रहा है. प्रियंका से मेरी एक महीने से बात नहीं हुई है, उन्होंने जो किया, वह ठीक ही है. वे क्या क्या कहेंगी, क्या करेंगी, यह छोड़िए, बाकी जितने न्यायाधीश हैं, जिन्होंने भी नाम लेकर बिना मुझसे कुछ पूछे, बिना पक्ष लिए पोस्ट डाली है, वे सारे प्रोफेसर, पत्रकार और समाज बचाने के ठेकेदार अब अपने पक्ष और सबूत लेकर कोर्ट आएंगे, एफआईआर करवाकर सबको नोटिस भेज रहा हूं. मैं अपराधी हूं तो मेरी अपील है कि मुझे सजा मिले. एक महीने से फेसबुक ट्रायल किस मकसद से है? बार बार कहने के बाद भी कोई कोर्ट या पुलिस नहीं गया, तो मैं जाता हूं. जिस जिस का अपराधी हूं, सब लोग आएं.
आप लोग, जो भी मुझे जानते हैं, मुझ पर भरोसा करते रहे हैं, वे मेरे काम के कारण करते रहे हैं. संबंध में रहकर आप कहती रहीं कि ‘तुमको अपने काम के अलावा बाकी दुनिया नहीं दिखती.’ अब सारा हमला उसी काम पर है कि कैसे नौकरी छुड़वाई जाए. हां, मैं अपने काम को लेकर पागल हूं. तमाम लेखकों और पत्रकारों की हत्या के बावजूद मैं क्रूर भीड़ से नहीं डरता तो टुच्चे आरोपों से नहीं डरता. आप में से जिसे लगता हो कि मैं अपराधी हूं, वे छोड़कर जा सकते हैं. जो मुझे जानते हैं, वे जानते हैं कि मैं क्या कर सकता हूं. जो नहीं जानते उन्हें कोई सफाई देने की जरूरत नहीं है. जिसके साथ था, उसके बारे में भी दुनिया जानती थी. अब जिसके साथ हूं उसके बारे में भी दुनिया जानती है. अब जिन जिन के साथ धोखा हुआ हो, वे सब आएं और इस मॉब लिंचिंग में शामिल हों.
बाकी जिस पर इलाहाबाद से लेकर जेएनयू तक 50 लड़कियों के यौन शोषण का आरोप है, जो इलाहाबाद से भागा इसीलिए कि कुटाई होनी थी, उस महान स्त्रीवादी न्यायविद के आरोपों पर कुछ नहीं कहना. जबसे यह प्रकरण शुरू हुआ, सिर्फ तीन चार लोगों से बात की, इस उम्मीद से कि शायद यह सब शांत होगा. लेकिन जो जो लोग इस घृणा अभियान में बिना मेरा कोई पक्ष जाने शामिल हुए, उन सबको सलाम पेश करता हूं. बिना अपराधी का पक्ष लिए न्याय कर देने की आपकी यह नायाब क्षमता देश के काम आएगी.
पत्रकार कृष्ण कांत
Albert Pinto
2 hrs ·
कुछ दिनों पहले की बात है। दफ्तर में खेल डेस्क पर एक खबर आई कि एक पोर्न एक्ट्रेस को एक मशहूर अमेरिकी बास्केटबॉल खिलाड़ी मेसेज करके परेशान करता है। उस लड़की ने खिलाड़ी के मेसेज को लेकर खिलाड़ी के टीम मैनेजमेंट से और पब्लिकली शिकायत कर दी।
इस पर मेरे एक सहकर्मी ने राय रखी कि इस लड़की को कोई क्या परेशान करेगा? इस खिलाड़ी के पास तो इतना पैसा है कि वह इस रंडी को हमेशा के लिए खरीद ले। मैंने पूछा, तमाम पैसे के बावजूद अगर वह लड़की बिकने को तैयार न हो तो? तिस पर भी उस लड़के का कहना था कि ऐसी लड़की, किसी मेसेज से कैसे परेशान हो सकती है? सारी दुनिया उसके पोर्न वीडियोज देखती है, उसका किसी से कुछ नहीं छिपा है और वह लड़की सिर्फ किसी के मेसेज से परेशान हो जाएगी?
मैंने उसे मूढ़मति को लाख समझाने की कोशिश की पर वह इस बात से टस से मस नहीं हुआ कि वह लड़की इन तरीकों से परेशान भी हो सकती है। उस लड़के का तो नारीवाद-फारीवाद से कुछ नहीं लेना, पर इस किस्से का जिक्र इसलिए कि मेरी जान पहचान के कई नारीवादी-फारीवादी-क्रांतिकारी लड़कों पर हिंदुस्तान के कानून की परिभाषा में मॉलेस्टेशन, रेप, ब्लैकमेलिंग, धोखा देने जैसे कई आरोप लगते रहते हैं। एक पर इन्हीं दिनों लगा है। लगभग सभी मामलों में ये आरोप सही भी पाए गए। कई दोस्त तो दूसरे दोस्त पर ऐसे आरोप लगते ही उछल पड़ते हैं, स्कोर सेटल करने लगते हैं। हमाम में सभी के नंगे होने की खुशी। गजब हाल है।
इस बात को तो मानना ही पड़ेगा कि हमारे समाज में सेक्स छुई-मुई जैसी चीज है। सेक्स को लेकर नैतिकताओं के तमाम बोझों से हम लदे-फदे हैं। इसलिए यौनिकता संबंधित अपराधों को हम मानवता के प्रति सबसे महान अपराध समझते हैं। दूनिया के दूसरे समाजों की ओर देखें तो ऐसा नहीं देखने को मिलता है। यहां जबरन यौन संबंध बनाने वालों को फांसी देने की वकालत की जाती है, यानी जिंदगी ही खत्म दो। अगर आपके खाते में दुनिया के दूसरे समाजों के दोस्त-परिचत हैं और आप उनसे अपने समाज की इन या दूसरी मान्यताओं पर बात करें या आप दूसरे माध्यमों से भी वहां के समााज की पड़ताल करें तो आपको यह अतिरेकता बड़ी हास्यास्पद लगेगी।
इसलिए हमारी कोशिश यह होनी चाहिए कि हमारे समाज में जो लोग इस चीज को नहीं समझते हैं, उन्हें यह समझाया जाना चाहिए और इसे समझ चुके लोगों को बाकियों के समझने का थोड़ा सब्र करना चाहिए। तब तक हमारे पुरुष दोस्तों को इतना डेस्पो नहीं होना चाहिए कि हर दूसरी परिचित-अपरिचित लड़की, महिला पर फिसलते रहो और घर, समाज, सोशल मीडिया पर बार-बार लतियाये जाओ। प्यारे दोस्तो, लार टपकाते हुए कुत्ते की तरह नहीं घूमें, आपको रैबीज का कारण समझकर मारा-पीटा जा सकता है या कोई इंजेक्शन लगाया जा सकता है। लड़के सिर्फ लड़कियों को ही फ्री सेक्स की शिक्षा न दें, हमारे लड़कों को यह समझने की ज्यादा जरूरत है। सो सबसे पहले पहले उन्हें समझाएं। सेम सेक्स रिलेशंस, सेम सेक्स मैरेज को ज्यादा से ज्यादा बढ़ावा दें, ऐसे रिश्तों का मजाक न बनाएं। दो डेस्पो लड़कों के लिए दो अलग-अलग लड़कियों को समझाने से कम समय सहमति से शारीरिक संबंध बनाने में लगेगा। अपने घरवालों-रिश्तेदारों को भी इन रिश्तों के लिए राजी करें। और तब तक खूब हस्तमैथुन करते रहें, इससे वीर्य में पतलापन या लिंग में टेढ़ापन नहीं आता।Albert Pinto
Pushya Mitra
28 September at 15:48 · Patna ·
बगैर वैलिडिटी वाला रिचार्ज कूपन है प्रेम
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(टुकड़े-टुकड़े में कई बातें कहने की कोशिश की है, जिसका कोई नतीजा नहीं निकला. बहुत लंबा और उबाऊ है, पहले बता रहा हूं…)
एक बार मेरे एक पूर्व संपादक ने मुझे कहा था कि तुम बड़े अन-प्रिडिक्टेबल हो, यह बात आगे चल कर तुम्हारे लिये नुकसानदेह साबित होगी. उस बात को सात-आठ साल बीत गये, मैंने भरसक कोशिश की कि मैं थोड़ा प्रिडिक्टेबल हो जाऊं, मगर नहीं हो पाया. इस वजह से रोज फेसबुक में भी गालियां हासिल करता हूं. आज फिर गालियां हासिल करने के लिए यह सब लिख रहा हूं. मगर कोई चारा नहीं है, मन बेबस है. लगता है, अपनी बात-अपना नजरिया पेश कर ही देना चाहिए.
बात वही है, जिसका शोर आज फेसबुक पर हर जगह है. मुहब्बत, वादे, धोखा, खुदकुशी की कोशिशें, क्रांति, नैतिकता… वगैरह-वगैरह… कुछ रोज पहले एक महिला मित्र से मैंने आग्रह किया था कि मुहब्बत में धोखा क्या होता है, कभी लिखियेगा… उन्होंने वादा भी किया था…
मैं भी आप लोगों की तरह ही उन गीतों को सुनकर बड़ा हुआ हूं, जिनमें महबूब अपनी महबूबा को बेवफा कहता है और महबूबा अकेले में चुपचाप सिसकती है कि वह अपना गम किसी को बता नहीं सकती. अताउल्लाह खान के गाये गीत तो बेवफा महबूबा को कोसने का एक्सट्रीम था. उसकी महबूबा ने उससे कुछ वादे किये और फिर वह वादे तोड़ कर चली गयी.
आजकल इसे बेवफाई नहीं ब्रेक-अप कहते हैं. और ब्रेक-अप पर खूब सारे गाने बने हैं और मेकअप करके ब्रेक-अप को एंज्वाय करती लड़कियां फिल्मों में नजर आ रही हैं. डिस्कोर्स बदला है. बहुत तेजी से बदला है.
बहरहाल, जैसा कि हम सब जानते हैं कि यह मामला बेवफा महबूबा का नहीं बेवफा महबूब का है. जो खुद की ब्रांडिंग एक क्रांतिकारी के तौर पर करता था. उसने छोटे शहर की एक लड़की को विवाह का वास्ता देकर दिल्ली बुला लिया और अचानक कुछ कारणों से वह विवाह न करने के बहाने बनाने लगा और लड़की इतनी डिप्रेस हो गयी कि उसने खुदकुशी की कोशिश कर डाली. और इस घटना के बाद जैसा कि अपेक्षित था, हम सब बहुत भावुक होने लगे और उस लड़के को, बेवफा महबूब को कोसने लगे, जिसने उस लड़की को धोखा दिया था, शादी का वादा करके जिसने वादा तोड़ दिया और अपनी प्रेयसी को डिप्रेसन के दलदल में अकेला छोड़ गया.
यह बड़ा अजीब है, मगर सच है. जिसे हम प्यार करते हैं, अगर वह हमसे संबंध तोड़ता है तो उसका डिप्रेसन हमें अकेले ही भुगतना पड़ता है. वह उस डिप्रेसन में सांत्वना देने के लिए भी नहीं होता. ऐसा जाहिर है, जिंदगी के किसी न किसी मोड़ पर हम सबने भुगता होगा. कई बार प्रेम हमें पजेसिव बनाता है और प्रेम का खत्म होना हमसे बरदास्त नहीं होता. फिर हम हर ऐसे दाव को खेलने पर उतारू हो जाते हैं, जो हमें वापस हमारा प्रेम, प्रेम की संभावना और प्रिय पात्र को दिला दे. फिर सही गलत का विचार नहीं बचता. यह मेरा व्यक्तिगत अनुभव भी है और कई मित्रों को इसे भुगतते हुए नजदीक से देखा है. कई ऐसे प्रेमी-प्रेमिका भी थे, जो दोनों बहुत करीबी थे. एक ने अलग होने का फैसला कर लिया, दूसरा डिप्रेसन में चला गया.
कई दफा ऐसा भी हुआ कि दूसरे ने कहा, पहले का बायकॉट करो. उसने मुझे धोखा दिया है. मैंने मना कर दिया. क्योंकि उस उम्र में मैंने यह समझ लिया था कि प्रेम का होना न होना किसी के बस की बात नहीं है. और प्रेम न हो तो प्रिय पात्र को जबरन पकड़े रहने का कोई फायदा नहीं. अपने जिसे चाहते हैं, उसे गुलाम बना कर नहीं रख सकते. प्रेम बड़ी अजीब चीज है, जब तक दोनों तरफ से न हो, यह मुमकिन नहीं होता और इसमें कोई वादा नहीं किया जा सकता. मैं किसी से यह वादा नहीं कर सकता कि मैं तमाम उम्र क्या, छह महीने या फिर छह घंटे ही लगातार तुमसे प्यार कर सकता हूं. मैं कब अपने प्रिय पात्र से ऊब जाउं इसकी गारंटी खुद भी नहीं ले सकता. तो फिर प्रेम में कोई वादा क्यों, चाहे वह वादा शादी का ही क्यों न हो.
प्रेम एक क्षण है, एक ऐसा क्षण जिसमें दो लोग संयोगवश एक दूसरे को पसंद करते हैं और करीब आते हैं और एक दूसरे पर अपने प्रेम को न्योछावर करते हैं. मगर यह क्षण कितना लंबा चलेगा, कहना मुश्किल है.
मैं समझ रहा हूं कि मैं अजीब सी बातें कर रहा हूं और पूरे मामले को अलग ही दिशा में ले जा रहा हूं. कई लोग, जिनका इस मामले में मुझसे भी विशद अध्ययन और अनुभव रहा होगा वे जरूर सोचेंगे कि मैं इस मामले में क्यों ऐसी फालतू बातों को घुसा रहा हूं. तो चाहे तो इसे उस मामले से अलग करके देखिये, मेरे मन के विकार या उद्गार के रूप में ही देखिये. और बोर करे तो यहीं पढ़ना बंद कर दीजिये. यह विकल्प तो है ही…
मैं उस लड़की को नहीं जानता जिसने खुदकुशी करने की कोशिश की, हां उस लड़के को थोड़ा बहुत जानता हूं जो बेवफा महबूब है. मेरा छोटा सा परिचय इस वजह से भी है, क्योंकि कुछ शुरुआती एनकाउंटर में ही मैं समझ गया था कि यह बंदा वामपंथ का अच्छा सेल्समैन है. इसमें कोई मौलिकता, कोई नयापन नहीं है. यह सिर्फ औऱ सिर्फ अपने पक्ष की बातों को आक्रमक तरीके से दुहरा भर सकता है. ऐसे लोगों से दोस्ती बढाने का कोई लाभ नहीं था. उसने शायद मुझ पर व्यक्तिगत हमला भी किया था और मैंने उसे अनफ्रेंड कर दिया. लाभ-हानि का जोड़ घटाव करके…
फिर भी आज मैं किसी भी तरह उस युवक को इस कन्या की खुदकुशी की कोशिशों का जिम्मेदार नहीं बता पा रहा हूं. जैसे मैंने अपनी किसी प्रेमिका को कभी बेवफा नहीं कहा, क्योंकि मेरे हिसाब से यह एक गलत शब्द है. प्रेम में हर किसी को अपना निर्णय लेने का पूरा हक है. किसी भी क्षण उसे यह कहने का हक है कि मेरे मन में अब तुम्हारे लिए कोई प्रेम नहीं रहा. क्योंकि यह बहुत स्वाभाविक है. भले ही किसी ने कभी आपसे शादी का वादा किया हो या ऐसी बातें की हों, मगर किसी भी वक्त उसे ऐसा लग सकता है कि मेरा फैसला ठीक नहीं है. और सामने वाले को कोई हक नहीं बनता कि वह उसे उस वायदे के बिना पर मजबूर करे कि उस रोज तुमने शादी का वादा किया था, तुम्हे तो शादी करनी ही होगी.
इस मामले में भी संभवतः यह काफी पहले से जाहिर था कि लड़का लड़की से पीछा छुड़ा रहा था. मगर लड़की अपने मोह से पीछा छुड़ा नहीं पा रही थी. लड़के को लगता था कि उसने वादा किया है, वह सीधे-सीधे कैसे मना करे. लड़की उस वादे के डोर पर लड़के को बांध कर रखना चाहती थी.
कई दफा ऐसा होता है कि शादी के नाम पर प्रेम में बनाया गया शारिरिक संबंध लड़के के गले की फांस बन जाता है. लड़की कह देती है कि शादी का झांसा देकर यह संबंध बनाया गया. यह मुमकिन है कि ऐसा होता होगा.
मगर क्या यह उचित है कि शारीरिक संबंधों के नाम पर किसी को शादी के लिए मजबूर किया जाये. कोई भी शारीरिक संबंध जो दो बालिग लोगों के बीच आपसी सहमति से बनते हैं, उसके लिए दोनों जिम्मेदार होते हैं. और इसका कोई संबंध शादी-ब्याह से नहीं होना चाहिए. कई लोग ऐसा करते हैं कि शादी तो तय ही है, फिर क्या सोचना. शारीरिक संबंध बना लेते हैं. ऐसा इसलिए होता है कि हमने विवाह को शारीरिक संबंधों के लाइसेंस के रूप में रिड्यूस कर दिया है. यह गलत है.
प्रेम अलग है, शारीरिक संबंध अलग है और विवाह बिल्कुल अलग है. मैं तो मानता हूं कि विवाह का प्रेम से भी कोई लेना-देना नहीं है. विवाह विशुद्ध रूप से एक समझौता है, जहां दो बालिग लोग एक साथ रहना और परिवार चलाना तय करते हैं. हां, परिवार बढ़ाने के लिए वे शारीरिक संबंध भी बनाते हैं. मगर प्रेम जैसी भंगुर चीज से विवाह का क्या लेना-देना. अगर प्रेम ही आधार हो तो विवाह रोज दस बार टूटे. क्योंकि अभी मैं जिससे प्रेम कर रहा हूं, दो घंटे के अंदर उससे नफरत न हो जाये इसकी क्या गारंटी. इसलिए कई विवाह बिना प्रेम के भी होते हैं और हां, हम प्रेम के जरिये विवाह को सुखमय बनाने की कोशिश करते हैं.
भारतीय परंपरा में इसी वजह से विवाह में प्रेम को बहुत महत्वपूर्ण कारक नहीं माना जाता है. इसलिए जब किसी फिल्म में नायक-नायिका यह कहते हैं कि जिसे मैं प्रेम नहीं करता, उसके साथ कैसे जीवन गुजार सकता हूं, तो मुझे हंसी आती है. चलते-चलते फिल्म में दिखाया गया है कि कैसे एक दूसरे से अटूट प्रेम करने वाले दो लोग विवाह के बाद एक दूसरे से रोज झगड़ने लगते हैं. विवाह सहजीवन है. यह रूममेट चुनने और उसके साथ एडजस्ट करने जैसा काम है. जैसे आप अपना बॉस या अपना कुलीग नहीं चुनते, मगर उसके साथ लगातार एडजस्ट करते हैं. क्योंकि आप एक बड़े मकसद के लिए एक दूसरे के साथ लंबे वक्त के लिए जुड़े हैं. जैसे लोग एक लंबी रेल यात्रा में एडजस्ट करके चलते हैं. इसलिए कई प्रेम विवाह असफल हो जाते हैं और अरेंज मैरिज जिसमें प्रेम की कोई उद्दात्त भावना न भी हो, सफल रहते हैं. सफल का यह अर्थ नहीं है कि मन मार कर दोनों साथ रहते हैं, बल्कि इस अर्थ में कि दोनों धीरे-धीरे एक दूसरे के साथ ऐसे जुड़ जाते हैं कि एक दूसरे का पर्याय बन जाते हैं.
एक तो प्रेम को विवाह की पहली सीढ़ी समझा, प्रेम में विवाह का वादा करना गलत है और प्रेम में यह उम्मीद रखना कि आपको प्रेम करने वाला तमाम उम्र आपका एकनिष्ठ प्रेमी बना रहे भी उतना ही गलत है. प्रेम में आप किसी को बांध कर नहीं रख सकते. और बांधेंगे तो धागा टूटेगा ही. हां, आप आजाद करके देखिये, प्रेम का रिश्ता लंबा चलेगा.
तो अगर मैंने किसी को बेवफा नहीं कहा, किसी के शब्दों को गांठ बांध कर नहीं रखा, किसी से यह उम्मीद नहीं की कि अगर आज वह मुझे चाहता है तो उसे तमाम उम्र मुझे चाहना ही होगा. उसका मुझे छोड़ना अपराध होगा. जब मैंने किसी अलगाव को अकेले में सहा और उस अलगाव में खुदकुशी जैसे ख्यालात दसियों बार आये और यह मेरी खुशनसीबी है कि मैंने उसे हावी नहीं होने दिया. यह बातें मिसाल के तौर पर कह रहा हूं, तो मैं कैसे किसी लड़की के प्रेम के नाम पर किसी को बांधने, प्रेम के खत्म होने पर अपने प्रेमी को भलाबुरा कहने. उसके क्रांतिकारी होने पर सवाल उठाने. खुदकुशी की कोशिश करने और प्रेमी को सजा दिलाने के अभियान का समर्थन कर सकता हूं. लगता है, मैं अपनी बात ठीक से नहीं कह पाया…. फिर भी….Pushya Mitra
कहते हे की जो कुछ भी अमेरिका में बीस पचास साल पहले हुआ हो सब भारत में जरूर होता हे अब जब अमेरिका जैसे समृद्ध समाज से रिपोर्ट आयी हे की बच्चे तो हो रहे हे मगर शादिया बहुत कम ही हो रही हे शादी ना होने की एक बड़ी वजह किसी रिसर्च ने ये बताई हे की की गैर कामयाब लोगो से कोई शादी नहीं करना चाहता हे ये हाल अमेरिका का हे अंदाज़ा लगाया जा सकता हे की दुनिया की सबसे अधिक गैर बराबरी वाला भारतीय समाज कितने बड़े जवालामुखी पर खड़ा हे याद आता हे वो संघी किशोर जो लाखो लौंडो की तरह सोशल मिडिया पर हिन्दुओ को धर्मयुद्ध के लिए आगाह करने के अवैतनिक जॉब पर था पर था कुछ दिनों बाद उसने एक बेकसूर ब्राह्मण किशोरी को घास ना डालने के जुर्म में चाकुओ से गोद डाला था अब गौरव सोलंकी लिखते हे Gaurav Solanki
6 hrs ·
यह Newslaundry Hindi के लिए लिखा।
खाली बरतन की तरह इधर से उधर घूमते बहुत सारे लड़के जो ख़ुद भी इसी मर्दवादी समाज के विक्टिम हैं। जो सिर्फ़ इसलिए अपने परिवार और समाज की परिभाषा में ठीक से मर्द नहीं हैं क्योंकि शाम को 100 रुपए भी कमाकर नहीं ला पाते। जो सेक्शुअली कुंठित हैं क्योंकि शादियों के बाज़ार में उनका खरीददार कोई नहीं। क्योंकि उनमें ऐसा कुछ नहीं जो उन्हें प्रगतिशील या पारम्परिक किसी भी परिभाषा में लड़कियों के लिए डिजायरेबल बनाए। और हैरत नहीं कि वे अपने भीतर समूची इंसानियत से नफ़रत करते हैं और कभी-कभी रोते भी हैं।
हम हर साल कितने लाख सोश्योपैथ बनाते हैं, किसी को नहीं मालूम।
हर दो में से एक बच्चा कुपोषण का शिकार है और यह समझने के लिए विज्ञान की डिग्री नहीं चाहिए कि क्यों इनमें से बहुत सारे बच्चे बड़े होकर तर्क नहीं कर पाते और तर्क नहीं समझ पाते। क्यों इन्हें बरगलाना आसान होता है, क्यों ये झूठे इतिहास पर गर्व करते हैं और धर्म की छाया चुनते हैं, भले ही वह इन्हें मार डाले।https://www.newslaundry.com/2017/10/04/troll-army-taking-control-over-social-media-and-everywhere-else
Albert Pinto
20 hrs ·
अर्णब गोस्वामी के शो में रितिक रोशन ने काफी अच्छी एक्टिंग की। मोदी के इंटरव्यू के बाद मैंने अर्णब को देखा, उसकी एक्टिंग भी सुधरती जा रही है।
दुनिया में अफ़ेयर आम बात है। इसे छुपाने के लिए इतने झूठ क्या बोलना? जो आदमी अपने अफेयर छुपाने और अपनी आदर्श हिंदू पुरुष की छवि बचाए रखने के लिए अपनी पत्नी के अफ़ेयर की ख़बरें छपवा सकता है, वह कितना शातिर आपराधिक क़िस्म का इंसान होगा? इस पर क्राइम पट्रोल और सावधान इंडिया में कार्यक्रम दिखाए जाने चाहिए।
नेपोटिजम यानी भाई-भतीजावाद के सारे नमूने इसमें रितिक के साथ खड़े दिखेंगे। करन जौहर, सैफ़ अली खान, वरुण धवन, ट्विंकल खन्ना, फ़रमान अख़्तर और भी चम्मचों-ढक्कनों की तमाम फ़ौज।Albert Pinto
20 hrs ·
अमित शाह के बेटे जय शाह की कंपनी को 2014 में मोदी के पीएम बनने से पहले डेढ़ हज़ार रुपये का घाटा हुआ था। इसके अचानक बाद अगले साल उसकी संपत्ति 16 हज़ार गुना बढ़ गई। ऐसी ख़बर छापने वाली वेबसाइट- द वायर पर उसने सौ करोड़ रुपये की मानहानि का दावा ठोका है।
पूरे साल कमाना-धमाना छोड़कर डेढ़ हज़ार रुपए नुक़सान करने वाले नालायक, बेवक़ूफ़ की इज़्ज़त सौ करोड़ रुपए कैसे हो गई? हाँ, अगर वह अपने बाप की इज़्ज़त का हर्ज़ाना माँग रहा है तो उसे मालूम होना चाहिए कि उसके बाप को देश भर में लोग दंगाई, हत्यारा, तड़ीपार, स्टॉकर पता नहीं क्या-क्या कहते हैं।
ऐसे में उसे पूरे या कम से कम आधे देश पर केस कर देना चाहिए। सरकार उसके बाप की है तो वह केस जीत ही जाएगा। ऐसे में बाप-बेटे को बिना काम किए पैसे मिल जाएँगे। कौन कहता है कि मोदी विकास नहीं कर रहा?————————Rajiv Nayan Bahuguna Bahuguna
9 hrs · Dehra Dun ·
प्राचीन भारतीय वांग्मय में करवा चौथ का कोई उल्लेख एवं स्थान नहीं है । सन्तोषी माता की तरह यह भी एक फर्जी एवं वणिक जनित पर्व है । जहां जहां सुनार और साड़ी बेचने वाले बनिया की बहुलता है , वहीं करवा चौथ का भी आतंक है ।
विश्व मे सर्वाधिक लम्बी उम्र के लोग जापान में होते हैं । वे लोग करवा चौथ का नाम भी नहीं जानते । मनुष्य की लंबी उम्र का रहस्य यथा सम्भव प्राकृतिक खान पान , अकुंठ जीवन पद्धति एवं नियमित दिन चर्या में छुपा है । जो महिला अपने पति पर गहने और नित नई साड़ी खरीदने के लिये दबाव डालती है , उसका पति रिश्वत के आरोप में कभी न कभी पकड़ा जाता है , अथवा तनाव के कारण जल्दी मरता है । हलवाई की मिलावटी मिठाई और पूरी खाने से महिला का मोटापा बढ़ता है ।
पर्वतीय एवं जनजातीय समाजों के लिए तो यह ठग्गू त्योहार सर्वथा त्याज्य है । यह सुनार , बजाज और हलवाई की तिजोरी भरने का उपक्रम है । देहरादून और हल्द्वानी में आ बसे पहाड़ियों की बीबियाँ घर मे बगैर काम के बैठ कर एक दूसरे को अपनी साड़ियां और गहने दिखाती रहती हैं । या फिर बापू के सत्संग में जाकर नाचती हैं , और करवा चौथ का व्रत करती हैं । इस पाषंड से होशियार रहो ।Sheetal P Singh
4 hrs ·
मनीष का यह पूछना जायज क्यों नहीं है ?
वे शिक्षा व्यवस्था संबंधी अध्ययन के सिलसिले में स्कैंडनेवियाई देशों में दौरे पर थे । टाइम्स नाऊ के लिये अरनब गोस्वामी ने एक कैमरामैन किराये पर रक्खा था कि कुछ मसालेदार मिल जाय , आख़िर में आइसक्रीम खाते हुए एक वीडियो दिखाकर मनीष की निंदा स्टोरी चलाई गई थी !
आज जय शाह के मामले में ये सारे चैनल सत्तारूढ़ पार्टी बीजेपी के प्रवक्ता के रोल में हैं !Sheetal P Singh
18 hrs ·
क्या संयोग है
इन दोनों बांकों के कारनामे उजागर करने वाली पत्रकार एक ही हैं रोहिणी सिंह
UPA के समय वाड्रा और NDA के समय जय शाहSheetal P Singh
18 hrs ·
आज सोशल मीडिया ने जय शाह के मुद्दे पर बीजेपी कांग्रेस और आप को मैदान में उतरने पर मजबूर करके टीवी के नेतृत्व में चल रहे सत्ता के दलाल मीडिया को “औकात बोध” करवा दिया !
बड़ा बदलाव बहुत तेज़ी से होता दिखाई दे रहा है ।————-Arun Maheshwari
7 hrs ·
आज के ‘जन चौक’ वेबसाइट पर हमारी टिप्पणी :
विश्व बैंक के अध्यक्ष का नया पासा
विश्व बैंक ने द्वितीय विश्व युद्ध के ठीक बाद उजड़े हुए पश्चिम को उठ खड़े होने के लिये उनमें आपसी समन्वय के जरिये वित्त मुहैय्या कराने का बड़ा काम किया था । लेकिन बाद में वह व्यवहारिक अर्थ में दुनिया पर पश्चिम के दबदबे का, खास तौर पर अमेरिकी दबदबे का औज़ार बन कर रह गई ।
दुनिया का कोई ई भी देश आर्थिक संकट में पड़े तो विश्व बैंक की उस पर गिद्ध दृष्टि रहती है और वह उसके उद्धार के लिये ऐसे सभी नुस्ख़ों के साथ तैयार रहती है जिनसे इन देशों की अर्थ-व्यवस्था में पश्चिमी देशों की वित्तीय पूँजी के प्रवेश का रास्ता सुगम हो सके । आज दुनिया में विश्व बैंक और उसकी सहोदर अन्तरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ़) उपनिवेशोत्तर काल में पश्चिमी देशों की वित्तीय पूँजी के निवेश के मध्यस्थ, अर्थात दलाल की भूमिका अदा कर रही है ।
दुनिया के विकासशील ग़रीब देश बार-बार मजबूरी में इसके द्वारस्थ होते रहे हैं और बदले में विश्व बैंक-आईएमएफ़ उन्हें कुछ संसाधन जुटा कर देने के साथ ही एक घुटे हुए महाजन की तरह उनकी आगे की आर्थिक नीतियों पर नाना प्रकार की शर्तें भी लादती रही है ।
आज तक का दुनिया का अनुभव यही है कि विश्व बैंक- आईएमएफ के सुझाये गये ढाँचागत समायोजन के नुस्ख़ों पर अमल करके दुनिया के किसी देश का कोई भला नहीं हुआ है। सारी दुनिया बहु-राष्ट्रीय निगमों के लिये खुले चारागाह का रूप जरूर लेती चली गई है ।
बहरहाल, भारतीय अर्थ-व्यवस्था को मोदी के तुगलकीपन ने अभी गर्त की ओर ढकेल दिया है। ऐसे में विश्व बैंक का भारत के प्रति एक खास प्रकार का आकर्षण पैदा होना स्वाभाविक है । वह भारत में आगे अपनी काफी बड़ी भूमिका को देख पा रहा है ।
मोदी सरकार का वित्तीय घाटा, तेजी से बिगड़ता हुआ व्यापार संतुलन, निवेश में गिरावट और बढ़ते हुए एनपीए के कारण बैंकिंग प्रणाली पर बढ़ रहा दबाव – विश्व बैंक के भावी हस्तक्षेप और भूमिका के लिये इससे अधिक आदर्श स्थिति और क्या हो सकती है !
यही वजह है कि विश्व बैंक के अध्यक्ष जिंग योंग किम ने दुनिया के बाक़ी सभी अर्थ-शास्त्रियों और संस्थानों की तुलना में मोदी के तुगलकीपन के प्रति काफी नरम रुख़ अपनाया है । उन्होंने कहा है कि अभी अर्थ-व्यवस्था में जो भी गड़बड़ी हुई है, यह मामूली एक भटकन (aberration) भर है । आगे सब ठीक हो जायेगा ।
किम की इस बात पर मोदी सरकार सहित भाजपा के सारे लोग उछल पड़े हैं । ‘चिंता की कोई बात नहीं है, रोगी मरेगा नहीं, ठीक हो जायेगा – दुनिया के सबसे बड़े डाक्टर ने कह दिया है ।’
किम तो यही चाहते थे । मरते हुए रोगी को जीने की आशा बँधाने वाला डाक्टर तो भगवान होता है ! जाहिर है कि पूरी मोदी सरकार अब जल्द ही विश्व बैंक के सामने हाथ जोड़ कर खड़ी दिखाई देगी । आगे की भारत की आर्थिक नीतियाँ शीघ्र ही जिंग योंग किम तय करते दिखाई देंगे । भारत की तमाम परिसंपत्तियों को औने-पौने दाम पर विदेशियों को बेचने की एक नई होड़ शुरू होगी ।
मोदी जाते-जाते भारतीय अर्थ-व्यवस्था पर पश्चिम के शिकंजे को और ज्यादा कस कर जायेंगे ।
Himanshu Kumar added 3 new photos.
Yesterday at 14:10 ·
प्रिय करीना ,
एक फोटो देख रहा हूँ . जिसमें आप एक मंच पर बैठी हैं और छत्तीसगढ़ का मुख्यमंत्री रमन सिंह आपके साथ अपने फोन से सेल्फी खींच रहा है .
आप वहाँ बाल अधिकार समारोह के लिए गयी थीं .
आपको छत्तीसगढ़ में बच्चों की हालत और जिसके साथ आप बैठी थीं उस व्यक्ति के बारे में थोडा जान लेना चाहिये
छत्तीसगढ़ में इस मुख्यमंत्री के आदेश पर अमीर कंपनियों के लिए ज़मीनों पर कब्ज़ा करने के लिए साढ़े छह सौ आदिवासियों के गाँव जला दिए गए हैं
इन साढ़े छह सौ गाँव का राशन पानी दवा सब बंद कर दी गयी
ताकि आदिवासी गाँव खाली कर के भाग जाएँ
इस मुख्य मंत्री के लालच और क्रूर आदेश के कारण इन गाँव में लाखों बच्चे बीमारी और भूख से पीड़ित हो गए हैं
आदिवासी बच्चों का इलाज करने के लिए गाँव में गए हुए बच्चों के डाक्टर बिनायक सेन को इस मुख्य मंत्री ने जेल में डाल दिया और फर्ज़ी मुकदमा बना कर उस डाक्टर को उम्र कैद की सज़ा दिलवा दी
इस मुख्य मंत्री के आदेश पर सोनी सोरी नामक एक आदिवासी महिला के गुप्तांगों मे पत्थर भरे गए
ताकि आगे से कोई इस मुख्य मंत्री के काले कारनामों के खिलाफ़ आवाज़ उठाने की जुर्रत ना कर सके
इस मुख्य मंत्री नें इन्द्रावती के पार बसे गाँव में छोटे छोटे आदिवासी बच्चों की पत्थरों पर पटक कर हत्या करवाई है
सारकेगुडा में बुजुर्गों से रात में कहानी सुनते बच्चों को इस मुख्यमंत्री नें गोलियों से भून डालने का हुक्म दिया
गोमपाड़ गाँव में डेढ़ साल के बच्चे की उंगलियां इस मुख्य मंत्री के आदेश पर काटी गयीं
जब मैंने इन सब के खिलाफ़ आवाज़ उठाई तो मेरे आश्रम पर इस मुख्य मंत्री ने बुलडोज़र चलवा दिया और मेरे खिलाफ़ करीब सौ फर्ज़ी मुकदमे बना दिए
यह मुख्य मंत्री बड़ी कंपनियों और उद्योगपतियों से पैसा खाता है और अपना पैसा विदेशों में भेजता है
अभी कुछ दिन पहले इसके विदेशी बैंक खातों का पता चला है
जिसमें इसका बेटा जाकर पैसा जमा करता है
पैसे के लालच में अपने ही प्रदेश के बच्चों की हत्या करवाने वाले इस आदमी के साथ आपका बैठना वो भी बाल अधिकार के नाम पर हम सब के लिए और प्रदेश के पीड़ित आदिवासियों के लिए बहुत सदमा देना वाला है
आपको चाहिये कि आप छत्तीसगढ़ में बच्चों के साथ होने वाली इस क्रूरता के विरुद्ध एक बयान ज़रूर दें
ताकि इस मुख्य मंत्री के लालच के करण बच्चों के ऊपर होने वाली सरकारी क्रूरता रुक सके
-हिमांशु कुमार
See TranslationHimanshu Kumar
11 hrs ·
क्या भारत का युवा मूर्ख और क्रूर हो जाएगा ?
युवा पीढी को हर पिछली पीढी के मुकाबले अधिक उदार, अधिक समझदार और अधिक प्रगतिशील बनना पड़ता है ,
तभी दुनिया आगे को बढ़ती है ,
अभी तक पूरे इतिहास में ऐसा ही होता आया है,
लेकिन अभी दुनिया में कुछ ऐसे संकेत दिखाई दे रहे हैं ,
कि एक बहुत छोटी संख्या को छोड़ दें तो बहुसंख्य युवा क्रूर और स्वार्थी नेताओं को समर्थन दे रहे हैं,
अमेरिका में ट्रम्प और भारत में मोदी का जीतना उसके ताज़ा उदाहरण हैं,
इसके खतरे बहुत गहरे और लम्बे समय तक समाज पर असर डालेंगे,
अगर युवा नफरत करने वाले और आर्थिक लूट को समर्थन देने वाले बन जायेंगे ,
तो उस समाज में समझदारी, उदारता और विचारों की तरक्की रुक जायेगी,
कला, साहित्य संस्कृति, कविता, आदि उदार और आज़ाद दिमाग से पैदा होते हैं,
नफरत से भरे हुए युवा इन सब की रचना कर ही नहीं सकते,
वो समाज कैसा होगा जो संस्कृति से हीन होगा,
नफरत की एक और खासियत होती है,
इसे समझा ना जाय तो यह बढ़ती जाती है,
जो समाज नफरत से भरा होगा और संस्कृति से हीन होगा,
क्या वह शान्ति से रह पायेगा ?
क्या ऐसा विकृत समाज युद्ध नहीं करेगा ?
क्या आज के विज्ञान के युग में युद्ध प्रेमी समाज खुद ही समाप्त नहीं हो जाएगा ?
हम हिंसा और नफरत के ऐसे रास्ते पर चल पड़े हैं जिसका अंजाम खुद को नष्ट कर लेना ही है,
हमें यह भी समझ लेना चाहिए ज्यादातर नफरत और क्रूरता दुनिया के संसाधनों पर कब्ज़ा ज़माने की नियत से पैदा करी गयी हैं,
जैसे मुसलमानों के खिलाफ युद्ध तेल पर कब्ज़े के लिए खड़ा किया गया,
आदिवासियों पर युद्ध खनिजों के लिए शुरू किया गया,
एक ऐसा समाज बनाया गया जो इस तरह की लूट पर मजे करे,
फिर लूट के समर्थन में पूरी राजनीति बनाई गयी,
ऐसा आप पूरी दुनिया में देख सकते हैं और भारत में भी,
इसलिए अब अगर इंसानी नस्ल को बचाना है ,
तो इंसान के द्वारा इंसान की लूट को खतम करना पड़ेगा,
इंसान के द्वारा इन्सान से नफरत को खतम करना पड़ेगा,
चाहे वह नफरत किसी के धर्म के आधार पर पैदा करी गयी हो,
चाहे वह किसी के देश के आधार पर पैदा करी गयी हो ,चाहे जाति, रंग या भाषा के आधार पर पैदा करी गयी हो,
नफरत की राजनीति इंसान के अस्तित्व के लिए खतरा है,
इसे अभी ही समझने की ज़रूरत है,Abbas Pathan
3 hrs ·
जब सोशल मिडीया पे ये छोटे छोटे न्यूज़ पोर्टल लांच होने लगें उस समय एक उम्मीद की किरण जागी थी, लगा “हां अब कोई निकल रहा है जो वे बातें और वे मुद्दे जनता के सामने लाएगा जो मुख्यधारा की मीडिया नही लाती। मुख्यधारा की मिडीया ने जहाँ सांप्रादायिकता फैलाने के लिए कमर कस ली थी व नेताओ का भजन कीर्तन करने में लगी थी वही इन छोटे न्यूज़ पोर्टल को देखकर उम्मीद की किरण बन्ध जाना एक स्वाभाविक बात है।
लेकिन देखते ही देखते है ये सारे पोर्टल कचरा फैलाने लगे, आज ये और इनके संपादक मुख्यधारा की मिडीया से ज्यादा बीमार हो गए है। इनके वेबसाइट पे आप जाइये तो वहां आपको सिर्फ कुछ विशेष मकशद रखने वाली खबरो का ढेर मिलेगा। इन्हें किसी खबर पे रंग भी बखूबी चढ़ाना आता है, और इनके पाठक भी वैसे ही बीमार है जो खबर पे पुता रंग देखकर वाहवाही करते है। मेरे लेख भी अक्सर इन पोर्टल्स पे पब्लिश हो जाते है लेकिन अब मुझे अपना लेख किसी पोर्टल पे देखकर खुशी नही होती क्योंकि ये समाचार वेबसाइट नही है बल्कि दलित वेबसाइट, हिन्दू वेबसाइट और मुस्लिम वेबसाइट है। पत्रकारिता का पहला कायदा निष्पक्षता है, वहां किसी खबर का मौजू देखकर रंग नही चढ़ाया जाना चाहिये और ना ही खबर को किसी राजनीतिक उद्देश्य के तहत चलाना चाहिये। इनकी आदत बन चुकी है ये उसी खबर की फिराक में रहते है जिससे कि मवाद निकलता नजर आए और ये उसपे हैडिंग भी ऐसा देते है कि पढ़ने वाले लिंक खोलने पे मजबूर ही हो जाए। साधारण आम जनजीवन की खबरे इनके पोर्टल से पूरी तरह नदारद रहती है। पोर्टल पे सिर्फ ऐसे समाचार और लेख होते है मानो किसी से जंग लड़ने जा रहे हो।
साधारण विर्मश एवं खबरे जिससे बिना रक्तचाप असन्तुलित हुए जानकारी मिलती हो ऐसी खबरें मुख्यधारा की मिडीया में अभी मौजूद है लेकिन वेब पोर्टल इस कोष्ठक से पूरी तरह खाली हो चुके… इन्हें पढ़ने वाले मानसिक रूप से किसी अनदेखी बीमारी को ग्रहण कर रहे है।
वेब पोर्टल्स वालो से अनुरोध है कि एक बार विश्व के मानचित्र को अपने दिमाग मे रखकर अपने पोर्टल पे खुद विजिट करे, एक एक खबर देखे और सोचे क्या यही इतनी सी आपकी दुनिया है? थोड़ा अपना दायरा बढाइये, निष्पक्षता अपनाइए। खेल का कॉलम दीजिये, थोड़ा बच्चो के लिए भी मेटर पब्लिश कीजिये.. कुछ बुजुर्गों का ख्याल रखिये और छात्रों के काम की बाते भी अपने पोर्टल पे सजाइये। सिर्फ राजनीति की गंदगी समेटकर पोर्टल पे सज़ा लिए हो, थोडा सकारात्मक सभी पहलुओं को जगह दीजिये।————————–Abbas Pathan
Yesterday at 13:31 ·
जोधपुर के सूरसागर इलाके में दो गुटों में झगड़ा हुआ। इस मामूली से उपद्रव ने कुछ ही देर में भयानक रूप ले लिया। एक दर्ज़ी की दुकान जला दी गयी, लोगो के घरों के शीशे तोड़ दिए गये, पत्थरबाजी हुई, जिनके वाहन घर के बाहर खड़े थे वे जला दिए गए, जो लोग घरो में थे उन्हें लगा अब तो बस भीड़ मृत्यु का रूप धारण करके आ गयी समझो…। सच्चाई से आंख चुराते हुए मैं इसे सिर्फ उपद्रव ही कहूंगा जबकि ये “सांप्रदायिक उपद्रव” था। हम सब की भलाई इसी में है कि इस कड़वी सच्चाई से आंख चुरा ले और इसे केवल दो गुटों की मुठभेड़ मान ले। हम जोधपुर वासी बड़े ही लिहाज़ी किस्म के है, हमारे यहां का मान मनुहार आदर सत्कार पूरे विश्व मे प्रसिद्ध है अतः हम अपने इतिहास में इस कलंक को दर्ज करने के बजाय लिहाज़ी रूप धारण करते हुए सच्चाई से नजरे चुरा रहे है।
लेकिन हम उस सच्चाई से नजरे नही चुराएंगे जो हमे हमारे गणमान्य नेताओ में नजर आई। जैसे ही उपद्रव की खबर शहर में गूंजी एक 80 वर्षीय बीजेपी विधायक सूर्यकांता व्यास फ़ौरन घटना स्थल पे पहुंच गई और दोनों पक्षों में समझाइश करने लगी। दूसरी तरफ हुड़दंगी संघटनो के योद्धा पहुँच गए थे। शहर में सबसे ज्यादा पढ़े जाने वाले अखबार दैनिक भास्कर ने भी इसे सांप्रदायिक उपद्रव लिखने के बजाय केवल उपद्रव लिखा और हालात को काबू करने में लग गया जो कि तारीफ के लायक पत्रकारिता मानी जाएगी। पुलिस ने पूरी निष्ठा से अपना कर्तव्य निभाया और शहर को जलने से बचा लिया लेकिन इस पूरे घटनाक्रम में जो नदारत रहे वो थे राजनीति के सेक्युलर चेहरे जिनकी ऐसे मौकों पे सबसे अधिक जरूरत पड़ती है। घटना 1 दिसम्बर को घटित हुई थी और ये लेख लिखने तक एक भी कांग्रेसी नेता सूरसागर क्षेत्र में सद्भावना कायम करने के उद्देश्य से नही पहुंचा। कांग्रेस के मुस्लिम और अन्य सेक्युलर चेहरे नजाने किस सिम्त गुम हो गए, कोई नजर ही नही आया। अरे भाई तुम लोगो की गर्दन थोड़ी मांगी जा रही थी जो तुम घटना के तीन दिन बाद तक भी नजर नही आ रहे ,वोट लेने तो तुम घर घर पहुँच जाते हो, लेकिन जब घर घर मे खौफ पसरा था उस समय तुम कहाँ रह गए ?? बीजेपी विधायक सूर्यकांता व्यास 80 वर्षीय बुजुर्ग है लेकिन अपने कर्तव्य पे खरी उतरी और तुम तोंद बढ़ाए सफेद कपड़े धारण किये केवल अपने से बड़े नेताओं के साथ फोटो खिंचवाने में ही व्यस्त रहते हो।
कांग्रेस के गणमान्य नेता कब आते जब लाशें गिर जाती और कर्फ्यू लग जाते तब? ये बात सर्वविदित है कि जब कभी कही माहौल साम्प्रदायिक होता है तब सत्तापक्ष और विपक्ष दोनो को अपनी भूमिका निभानी चाहिये किंतु विपक्ष के रूप में कांग्रेस बहुत बड़ी फेलियर साबित हुई है।
बहरहाल हमे कांग्रेस से उम्मीद रखनी भी नही चाहिये, ये दल राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के समस्त हत्यारो को सूली पे नही चढ़ा पाया, इनके प्रधानमंत्रीयो की हत्या हो गयी ये उनकी आत्माओं को इंसाफ नही दिला पाए.. अहसान जाफरी की पत्नी जकिया जाफरी आज भी इंसाफ की तलाश में दर दर की ठोकरे खा रही है किंतु कोई पूछने वाला नही है, बाबरी मस्जिद तोड़ी गयी, हज़ारो बेगुनाहो ने अपनी जिंदगी गंवाई और कल फिर तथाकथिक संप्रादायिक गुंडो का “शौर्य दिवस” है.. जोधपुर में हालत बिगड़ने की अब भी सम्भावना है, क्योकि ये दिन पिछले 25 सालों से भारी पड़ता आया है।
कांग्रेस जैसे दल से हमे उम्मीद ही नही रखनी चाहिए.. हाँ ये जरूर है कि हम में से कोई मरेगा, खबर हाई लाइट होगी और कुछ राजनीतिक स्वार्थ नजर आएंगे फिर ये सब लाशों के इर्द गिर्द इकट्ठे हो जाएंगे। शहर में शांति बहाल करने की जिम्मेदारी हम नागरिकों के कंधो पे है।
शांति बनाए रखे, भृमित करने वाले मेसेज आगे ना बढ़ाए, पुलिस प्रशासन का पूरा सहयोग करे।
सही कहा हैदर ने अय्याशी और शोषण जहा जिसका बस चलता हे करता हे Haider Rizviअरे मुसलमानो!!! बाबा पकड़ा गया, लड़कियाँ आज़ाद हुईं… इसमें हिंदू एंगल क्यूँ घुसा रहे हो बार-बार????
मुस्लिम राष्ट्रों में दिखाऊँ क्या-क्या अय्याशियाँ होती हैं???? जहाँ-जहाँ धर्म राजनीति से बड़ा हुआ है वहाँ वहाँ धार्मिक गुरु ऐसे कार्यों में लिप्त पाए गए हैं…. क्या बाबा क्या मुल्ले क्या पादरी
इतनी बार समझाया ओवर न किया करो न किया करो, लेकिन नहीं… हम तो दुनिया को ज़रूर दिखाएँगे कि हम जाहिल हैं.. अबे गधे के पीछे भी खड़े होगे और लात पड़ेगी तो रोओगे भी
और दूसरी बात…. मंदिर उनका, राम लला उनके, राम लीलाएँ उनकी अब वो रामलला के लिए स्वेटर माँगे या छाता.. तुम्हें क्या??? तुम्हें बड़े मज़े आरहे हैं पोस्ट्स शेयर करने में…. तुम भी तो गरमियों में बरखे पहनते हो, अच्छे खासे कपड़े छोड़ अरबी चोगों में घूमते हैं, इस पर अगर वो तबसेरा कर दें तब तो बहुत जल्दी मिर्ची लग जाती है…..
पहली भी लिखा था, फिर लिख रहा हूँ…. गोहत्या, लव जेहाद, लैंड जेहाद, समाज में बढ़ती कट्टरता के लिए ‘तुम्हारी ख़ामोशी’ और ‘पढ़े लिखे हिंदुओं की आवाज़’ दरकार है, और जो समय समय पर उठ भी रही है… बस तुम खुदा के लिए चुप्पे बैठे रहो
(अबे को अरे कर दिया है, अब खुश???)
Haider Rizvi
Sarfraz Katihari
6 January at 08:39 ·
#बेचारा_मर्द
Mazhar Anwar Aipmm द्वारा बयान शादी शुदा मर्दो की गई दुख भरी दास्तान ???????
………………….
मेहनत करे तो बीवी कहे मेरे लिए तो वक़्त ही नही है आपके पास
वक़्त दे तो बीवी कहे कुछ काम ही नही है आपके पास कुछ और
औरत पर हाथ उठ जाए तो ज़ालिम
औरत से पीट जाए तो बुज़दिल
औरत के आगे चले तो फ़िरऔन
पीछे चले तो मुरीद
घर से बाहर रहे तो आवारा
घर मे रहे तो नकारा
बच्चों को डांटे तो ज़ाबर
ना डांटे तो ला परवाह
औरत को नोकारी से रोके तो शक्की मिज़ाज़
ना रोके तो औरत की कमाई खाने वाला
आखिर यह बेचारा मर्द जाए तो जाए कहाँ जाए ––
एकतरफ भाउ के साथ मिलकर हँसते खेलते भीखू महात्राओ को निपटा देने वाले कल्लू मामा ने बीस किलो वजन कम कर लिया हे वही उंगुलियों पर गिने जा सकने वाले आज के सही पत्रकारों में से एक अभिषेक श्रीवास्तव की बढ़ते वजन के साथ तबियत चिंताजनक लग रही हे अपना ध्यान रखे Abhishek Srivastava
Yesterday at 19:16 ·
(दो महीने की मोहलत के वास्ते मित्रों के नाम एक ख़त)
जितना याद पड़ता है, नवम्बर के आखिरी हफ्ते से मुझे नींद नहीं आ रही थी. औसतन पांच घंटे सोने के मेरे अभ्यास में कम से कम चार बार खलल पड़ रहा था. इस पर ध्यान नहीं गया था. हाँ, एक चीज़ लगातार बढती गयी- नींद में बोलना. इधर बीच उसका चरम दिखा जब खुद अपने ही बोले को सुनकर मैं नींद से जग जा रहा था. जब ध्यान गया तो पत्नी जी से कहा कि पता करो क्या बोलता हूँ. उन्होंने रिकॉर्डिंग शुरू की. एक दिन मैं चिल्ला रहा था कि रैली की परमीशन नहीं मिली. एक दिन फोन पर किसी को जस्टिस लोया का केस समझा रहा था विस्तार से. अधिकतर बातचीत अस्पष्ट ही होती थी. फिर एक दिन पत्नी जी को लेकर डॉक्टर के यहाँ गया तो लगे हाथ अपना बीपी भी नपवा लिया. सारा बखेड़ा यहीं शुरू हुआ.
न कोई लक्षण, न दर्द, न अहसास, लेकिन बीपी 200 की तरफ दौड़ लगाता हुआ. पता चला इसे malignant hypertension कहते हैं जो silent stress से पैदा होता है. चुपचाप सफेद गोली लेकर आ गया. समस्या दो दिन बाद बिलकुल सामने आ गयी… खून आँखों में उतर आया! दो दिन आँख लाल रही, पानी झरता रहा. इस दौरान की एक रीडिंग 191/145 सुनकर एक डॉक्टर भड़क गए. बोले, तुम्हें ICU में होना चाहिए. आनन फानन में उन्होंने अस्पताल तीसरे डॉक्टर के पास भेजा. उसने भर्ती नहीं किया. इन्टरनेट पर पढ़ा तो अंदाजा लगा कि यह वाकई जानलेवा स्थिति थी: या तो किडनी बोल जाती, आँख की रौशनी चली जाती या फिर चुपके से ब्रेन हैमरेज हो जाता! फिर भी गोली खाता रहा.
अंततः परिवार के दबाव में बाज़ार की शरण जा पहुंचा. तमाम टेस्ट हुए. एकाध विटामिनों को छोड़ दें तो सारे अंग दुरुस्त. किसी का बीपी से कोई लेना देना नहीं. डॉक्टर बोले मामला रहस्यमय है और दर्जन भर दवा लिख दिए. पूरी तरह जेब साफ़ करने और सबको पैनिक में डालने के बाद मुख्यधारा के डॉक्टरों ने भी वही कहा- silent stress है. जो बात मैं फ़ोकट में समझ रहा हा था, जो बात होमियोपैथी के मेरे डॉक्टर देख कर समझ गए थे, वही बात सारे कर्मकांड के बाद जानकार विद्वानों ने कह दी. इस देश में डॉक्टरी पढने लिखने का कोई मतलब है या नहीं? बवाल अगर खोपड़ी में था तो पूरे देह की जांच क्यों करवाई? किसी ने प्यार से दिमाग को सहलाया तक नहीं?अब दो दिन से जनता की बारी है. वजन कम करो, खाना कम खाओ, साइकेट्रिस्ट को दिखाओ, सोचो मत, फेसबुक मत करो…. डेढ़ सौ सलाह मिल चुकी है. कोई नहीं बता रहा कि ये silent stress और anxiety आया कहाँ से? सिर्फ मैं जानता हूँ इसका जवाब, लेकिन मैं मने क्या? कुछ नहीं. तो मित्रो, इतने लम्बे अपडेट के बाद एक विनम्र निवेदन है सबसे. जब तक बहुत ज़रूरी न हो, फोन न करें. मिलने घर आ जायें, गप कर लेंगे आधा घंटा. कार्यक्रमों में मेरे आने की उम्मीद न करें. फोन पर बात को संक्षिप्त रखें क्योंकि कल से दो बार दीवार पर फोन मार चुका हूँ और इसमें मेरा कोई दोष नहीं. चिडचिडाहट और उत्तेजना उत्कर्ष पर है इस वक़्त. कोई आपात स्थिति होगी तो सूचना अपने आप पहुँच जाएगी. कम से कम दो महीने की मोहलत चाहता हूँ सार्वजनिक रायते से. रहूँगा यहीं, सारे मंचों पर. दिखूंगा कम. लिखूंगा कम.मुझे थोडा वक़्त चाहिए खुद के लिए. उम्मीद है आप सब समझेंगे. बहुत सोच समझ कर लिख रहा हूँ. सबको अलग अलग जवाब देते थक गया हूँ. सबका शुक्रिया. प्लीज, कमेंट में सुझाव मत दीजियेगा. सहानुभूति पर्याप्त रहेगी.अभिषेक श्रीवास्तव ” ———————– बात ये हे की कल्लू मामा तो पूरी उमंग में हे इनका हद से ज़्यादा अच्छा समय चल रहा हे जो ये चाह रहे हे अल्लाह का करना की सब वही हो जाता हे इसी कारण कल्लू मामा का वजन भी घट गया होता यही हे की लाइफ जब स्मूथ चल रही हो जैसा आप चाह रहे हो वैसा ही हो रहा हो तो उतेज़ना में भूख भी कम हो जाती हे खाने पर कंट्रोल हो जाता he एक्सरसाइज़ में भी मन लगता हे लेकिन जब हम तनाव में होते हे तो व्यायाम भी नहीं होता भूख ज़्यादा लगती हे हम खाने चाय वाय को स्ट्रेस बस्टर की तरह यूज़ करते हे और वजन बढ़ता जाता हे हां ये जरूर हे की अत्यधिक हद से ज़्यादा तनाव में भूख मर जाती हे मगर सामान्य तनाव में लगातार रहने पर भूख बहुत लगती हे हम बहुत खाते हे एक्सरसाइज़ का जोश नहीं रहता हे यही वजह हे की मोटापा सभी का बढ़ रहा हे सात मई से पहले मेने ज़बर्दस्त फिटनेट हासिल कर ली थी पंद्रह साल की मेहनत के बाद दुनिया का सबसे मुश्किल काम आँख खुलते मुँह अँधेरे बिस्तर छोड़ देना ये भी सिख लिया था मेराथन फुटबॉल स्लम के बच्चो की पानी की बीस बीस लीटर की केन उठाकर दोसो तीन सौ मीटर चल कर पहुंचना और भी कई एक्ससरसाइज खबर की खबर भी ग्रोथ कर रहा था जब अफ़ज़ल भाई ने बताया की राजस्थान से एक बिज़नेसमेन ने खुद फोन करके सपोर्ट और एड देने को कहा हे तब तो में बेहद जोश में था भूख लगना कम हो गया था गज़ब की ताकत और फिटनेस महसूस कर रहा था फुल मेराथन की तैयारी थी तभी 7 मई को जस्टिस लाया से भी बहुत छोटे बड़े भाई को भी गल्फ में ही संदिग्द हालात में अटेक आ गया चार दिन कोमा में रहे नहीं बचे उसके बाद से दुखो तकलीफो समसयाओ के अम्बार लग गए lekh लिखना व्यायाम दौड़ना सब छूट गया एक महीने तक अत्यधिक तनाव से कुछ नहीं खाया गया मगर उसके बाद जैसे ही तनाव सामान्य होता हे उस तनाव में भूख ज़्यादा लगती हे आप खाने पिने को स्ट्रेस बस्टर की तरह इस्तेमाल करते हे और वजन बढ़ रहा हे ये हे फिटनेस का चक्रव्यूह इसी तनाव में फंस कर सारा समाज मोटापे का शिकार हो रहा हे
हितेन्द्र अनंत
12 January at 10:24 ·
सोशल मीडिया के आदर्श बुजुर्ग
सोशल मीडिया पर विद्यमान एक आदर्श बुजुर्ग वह है जो सुबह उठकर निबटे, फिर पतंजलि के साबुन से हाथ धोकर दंत कांति से मंजन घिसे। अब मोबाइल उठाए। फिर व्हाट्सएप में जितने भी पारिवारिक ग्रुप हैं उनमें गुडमार्निंग का एक मैसेज चिपकाए। उसके बाद मुसलमानों और दलितों को देशद्रोही करार देने वाले दो मैसेज भेजे। उसके बाद फलां घास खाने से डायबिटीज ठीक होने का नुस्खा चिपकाए। उसके बाद अपने पुराने दोस्तों के ग्रुप में तीन सेक्सिस्ट चुटकुले फारवर्ड करे। इसके बाद हाउसिंग सोसायटी के ग्रुप में चेयरमैन को गाली देकर व्हाट्सएप बंद करे।
अब बालकनी में कुर्सी पर बैठकर कपाल भाति करे। इसके बाद पतंजलि का आंवला जूस पिए। अब जी न्यूज़ लगाकर ड्राइंग रूम में चाय का इंतज़ार करे। जब जी न्यूज़ से इंडिया टीवी और आजतक की ओर जाए तो बीच में एनडीटीवी के दिख जाने पर दो चार गालियाँ धीरे से देकर आगे बढ़ जाए। चाय के साथ पतंजलि के मारी बिस्किट खाए।
इसके बाद फेसबुक पर जाए। वहाँ “गुड मॉर्निंग टू ऑल माय डिअर फ्रेंड्स” पोस्ट करे। इसके बाद “कुदरत का करिश्मा, आलू में प्रकट हुए गणपति जी, असली हिन्दू हो तो इस पोस्ट को शेअर करो” वाली पोस्ट शेअर करे। इसके बाद छठवीं क्लास की लड़की जिसे वह प्यार करता था, उसे फेसबुक में सर्च करे। उसकी नाती-पोतों वाली तस्वीर पहले लाइक करे। फिर फ्रेंड रिक्वेस्ट भेजे।
इसके बाद पतंजलि के साबुन से नहाकर तैयार हो जाए। अब पूजा पाठ करे।
पूजा पाठ के बाद पुनः व्हाट्सएप उठाए। अब तक जिन बेटों और बहुओं के “गुड मॉर्निंग पापाजी” या “सुप्रभात अंकल जी” के जवाब आए हैं उन्हें रिप्लाई में हाथ जोड़ने वाला इमोजी भेजे। ग्रुप में जो दामाद हैं उन्होंने रिप्लाई न भी किया हो तो भी आशीर्वाद के मैसेज में उनका नाम जोड़े। ग्रुप में यदि किसी भतीजे ने मोदी जी पर कोई सवाल कर दिया हो तो उससे पूछे कि “ये बताओ कि मोदी नहीं तो कौन?” उससे पूछे कि ‘क्या तुमको गर्व नहीं कि तुम हिन्दू हो?”
अब भतीजे को यह बताए कि सत्तर साल में कुछ नहीं हुआ। इस समय यह भूल जाए कि कुछ सालों पहले इसी भतीजे को बताया था कि कैसे सत्तर साल पहले उनके पास एक साइकिल तक नहीं थी और आज साल में एक यूरोप टूर तो हो ही जाता है।
बहस खत्म करने के इच्छुक भतीजे के द्वारा यह कह देने पर कि “आई हेट आल पॉलिटिशियन्स”, यह कहते हुए संतोष व्यक्त करे कि चलो कम से कम वह कांग्रेसी या कम्युनिस्ट तो नहीं है।
अब दोपहर का भोजन कर सो जाए।
दोपहर की नींद से उठने के बाद पुनः व्हाट्स एप पर नजर दौड़ाए। दस-बीस लतीफ़े इधर से उधर करे। यदि गलती से कोई अश्लील लतीफ़ा पारिवारिक ग्रुप में चला जाए तो तुरंत डिलीट करे। अब फेसबुक पर जाकर अमेरिका में पढ़ रही अपनी भांजी की बियर पीती तस्वीर देखकर चौंक जाए और तुरन्त अपनी पत्नी को बुलाकर दिखाए कि देखो लल्ली आजकल क्या से क्या हो गई है। चूंकि यह पत्नी के तरफ़ वाले लोगों की तस्वीर है इसलिए हल्का सा मुस्कुरा भी दे।
अब सोसायटी के गार्डन में जाकर अन्य समवयस्कों से मिले। उनमें यदि कोई मुस्लिम मित्र हो तो “अरे सब सियासत के खेल हैं, वरना इंसान तो बस इंसान है” ऐसा कहना न भूले। यदि मुस्लिम मित्र उपस्थित न हो तो “देखना एक दिन ये लोग आपस में लड़कर मर जाएंगे, नहीं तो मोदी और ट्रम्प मिलकर इनको ख़तम कर देंगे” ऐसा कहना न भूले। बाद में यह भी जोड़ दे कि “चीन भी अब भारत से डर गया है। जापान और ऑस्ट्रेलिया अब अपने साथ हैं। अजित डोवाल बहुत ऊंची खोपड़ी है।” इन बुजुर्गों में यदि कोई कांग्रेसी मित्र हो तो उससे सहानुभूति की भाषा में बात करते हुए कहे “देखो! इंदिरा जी को तो खुद अटल जी ने दुर्गा कहा था। वो तो बाद की पीढ़ी में वो दम नहीं रहा, वरना कांग्रेस ने देश को बहुत कुछ दिया है।”
राजनीतिक चर्चा हो जाने के बाद सभी बुजुर्गों से मिलकर मोहल्ले के जवान लड़के लड़कियों के अफेयर्स की अपडेट ले। उनके चाल चलन पर टिप्पणी करे। फिर ओशो और रामदेव के बिज़नेस मॉडल में अंतर बताकर चर्चा का समापन करे।
घर आकर, खाना खाकर, नौ बजे न्यूज़ चैनलों पर सरकते हुए यदि रविश कुमार दिख जाए तो कुछ गालियाँ देखर जी न्यूज़ लगाए भले ही उसमें विज्ञापन आ रहे हों।
अब व्हाट्सएप पर सबको शुभ रात्रि के मैसेज फॉरवर्ड करे। अपने कॉलेज के ग्रुप में यदि महिला मित्र हों तो गुड मॉर्निंग के साथ स्वीट ड्रीम्स भी लिखे और सो जाए।हितेन्द्र अनंत———————————-
Yashwant Singh
Yesterday at 11:11 ·
देखते ही देखते टेलीविजन से मठाधीश संपादकों की एक पूरी पीढ़ी आउट हो गयी… अजित अंजुम, विनोद कापड़ी, आशुतोष, शैलेश, नक़वी, एनके सिंह, सतीश के सिंह, शाज़ी ज़मां, राहुल देव… जोड़ते-गिनते जाइए। इनमें से कुछ का कभी ये जलवा था कि दूसरों का करियर बर्बाद आबाद करने की सुपारी लिया दिया करते थे। आज खुद बेआबरू हुए बैठे हैं। समय बड़ा बेरहम होता है भाआआई….Amod Kumar Singh तथाकथित बुद्धिजीवी वर्ग को समर्पित चन्द्रसेन विराट की अमर रचना
तुम कभी थे सूर्य लेकिन अब दियों तक आ गये।
थे कभी मुख्पृष्ठ पर अब हाशियों तक आ गये ॥
यवनिका बदली कि सारा दृष्य बदला मंच का ।
थे कभी दुल्हा स्वयं बारातियों तक आ गये ।।
वक्त का पहिया किसे कुचले कहां कब क्या पता।
थे कभी रथवान अब बैसाखियों तक आ गये ।।
देख ली सत्ता किसी वारांगना से कम नहीं ।
जो कि अध्यादेश थे खुद अर्जियों तक आ गये ।।
देश के संदर्भ मे तुम बोल लेते खूब हो ।
बात ध्वज की थी चलाई कुर्सियों तक आ गये ।।
प्रेम के आख्यान मे तुम आत्मा से थे चले ।
घूम फिर कर देह की गोलाईयों तक आ गये ॥
कुछ बिके आलोचकों की मानकर ही गीत को ।
तुम ॠचाएं मानते थे गालियों तक आ गये ॥
सभ्यता के पंथ पर यह आदमी की यात्रा ।
देवताओं से शुरु की वहशियों तक आ गये ॥
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