बाबरी मस्जिद- राम मंदिर का दौर चल रहा था। देश भर में लाल कृष्ण अडवाणी रथ यात्रा लेकर निकले हुए होते हैं। भय और आतंक का माहौल था। हिंदी भाषी मुसलमानों को लग रहा था कि अब बर्बाद हो जाएंगे या बर्बाद कर देंगे। इसी बीच मौके का फायदा उठाया एक शायर ने। नाम था मंज़र भोपाली। मंज़र भोपाली उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, जैसे मुस्लिम बाहुल्य राज्यों में मुशायरे पढ़ने जाते। मंज़र, मंच पर खड़े होते। चीख चीख कर मुसलमानों के दिलों में उबाल पैदा कर देते। उस दौर में यूट्यूब नहीं था। मंज़र भोपाली के ऑडियो कैसेट्स लखनऊ, मुरादाबाद, रामपुर के बाज़ारों में ठेलों और खोमचे में बिकने लगे। सरकारी मुशायरों में मंज़र को बुलाया जाता तो वह वहां भी जज़्बाती काव्य पाठ करने लगते। बवाल मचता। आयोजक कहते कि हमें क्या पता कि मंज़र ऐसी शायरी पढ़ने वाले थे। मुशायरों के मंच पर बवाल मचता उधर सुबह के ऊर्दू अख़बार मंज़र को हीरो के तौर पर पेश कर देते। बाबरी विध्वंस की बैसाखी के सहारे अपनी नैय्या पार लगाने वाले मंज़र , बाबरी मुद्दे के कमज़ोर होते ही नेपथ्य में चले गए। अब बहुत मुश्किल से मंज़र भोपाली साहब किसी मुशायरे वगैरह में दिखते हैं। ऐसा नहीं है कि मंज़र के पास सिर्फ जज्बाती शायरी ही थी, उनके पास अदबी खज़ाना भी है लेकिन जो ऊरूज़ और मशहूरियत उन्हें बाबरी के कंधों की वजह से मिली वह फिर दुबारा हासिल नहीं हो सकी।
फिर दौर आया मदरसों के नाम पर मुस्लिम नौजवानों को उठाने का, नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने का, जेएनयू के छात्र नजीब के गायब हो जाने का, दादरी के अख़लाक का और जज़्बात भड़काया इमरान प्रतापगढ़ी ने। इमरान प्रतापगढ़ी, उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी के उन मुस्लिम नेताओं के बुलावे पर जाने लगे जिन्हें चुनाव लड़ना होता था। जब पहली बार मुंब्रा के मुशायरे में इमरान ने ‘मत जोड़ो आतंकवाद से नाम मदरसों का’ पढ़ा तो वह दौर था बेहुनाह मुस्लिम युवाओं को उठाए जाने का। इमरान को मुस्लिम नेता मंच देते और इमरान वहां पर इसका पाठ करते लेकिन न तो इमरान ने कभी मंच से उन नेताओं से यह अपील कि की आप उन बेबस परिवारों की मदद करें जिनके बच्चे बंद है। न तो इमरान ने कभी सत्ता पक्ष से कहा कि आप अपने किए वादे पूरा कीजिए। सपा का मेनफेस्टो कहता था कि हम सरकार में आएंगे तो बेगुनाहों को छोड़ेंगे लेकिन बीते पांच साल तक इमरान प्रतापगढ़ी समाजवादी पार्टी के मुखिया के लेकर मुख्यमंत्री के सामने काव्य पाठ कर चुके परंतु उन्होंने कभी उनको अपना किया वादा याद नहीं कराया। जहां ज़रूरत थी इंक़लाब की , सवालों के बौछार की , वहां इमरान ने मेरे प्यारे टीपू , हिंदुस्तान के सरताज़ कहते हुए पंक्तियां पढ़ी।
बात यहीं खत्म नहीं होती है। जेएनयू के गायब छात्र नजीब को लेकर पढ़ी गई उनकी नज़्म बहुत पापुरल हुई। जिस भी मुस्लिम नेता द्वारा हाल फिलहाल में उनको बुलाया जाता वे वहां जा कर यह नज़्म पढ़ते और आवाम की आँखों से आँसू निकाल देते। मज़ाल है कि इमरान प्रतापगढ़ी समाज के उन खेवनहारों को ज़रा सा कुछ बोल देते जिनके बुलावे पर ने जनता के सीने में उबाल पैदा कर देते हैं। जिस समाज का नेतृत्वकर्ता मंच पर बैठा खद्दरधारी हो इमरान उस खद्दरधारी से यह अपील नहीं करते कि आप आगे बढ़िए, नजीब के लिए अपने तहसील , अपने जिला में प्रदर्शन कीजिए बल्कि इमरान प्रतापगढ़ी वहां बैठी बेबस, कमज़ोर, मज़लूम आवाम से अपील करते कि,’ चुप बैठोगे तो वे कल आपकी भी बारी आएगी।’
जनता डर जाती, डर के रो देती। और मंच पर बैठा सफेद खद्दरधारी भीतर ही भीतर खुश हो जाता कि चलो अब इनका वोट तो पक्का जो यहां आकर मुशायरा सुन रहे हैं। दादरी में अख़लाक की हत्या हुई। इमरान ने उस पर भी काव्य पाठ कर डाला। सारे सियासी मुशायरों के मंच से इमरान दादरी को पढ़ते और उसी सरकार से यश भारती उठा लेते है। दादरी के अख़लाक के लिए इमरान ने जिन मंचों का इस्तेमाल किया यदि उन मुशायरों की भीड़ से मुखातिब होने के बजाए मंच पर बैठे वादाखोर और मक्कार नेताओं को मुखातिब होकर कुछ अपील करते तो शायद बात कुछ और होती लेकिन उनमें इतनी हिम्मत कहां कि वे जिनके बुलावे पर गए हैं उनकी आँख में आँख डालकर उन्हें उनकी गलतियां गिना सकते।
मुजफ्फरनगर में दुर्दांत दंगे होते हैं। लोग ठंड में विस्थापित हो रहे होते हैं दूसरी तरफ इमरान प्रतापगढ़ी काले रंग की शॉल ओढ़े सैफई महोत्सव में अखिलेश यादव और मुलायम सिंह यादव की शान में उनके सामने बैठ कर कसीदे पढ़ रहे होते हैं। वहां से बाहर निकल कर वे दंगों के लिए तैयार दूसरी कविता पढ़ने लग जाते। हर मंच , हर माहौल के हिसाब से इमरान प्रतापगढ़ी के पास कविताएं हैं। इमरान को जितनी रक़म मुस्लिम सियासी लोग एक मुशायरे के लिए देते हैं उतने में पांच बड़े शायरों की फीस बन जाए। क्यों बढ़ा दाम इमरान की? सिर्फ इसलिए क्योंकि इमरान द्वारा पढ़ी जाने वाली शायरी से लाभ नेताओं को होता। चुनाव जीतने के लिए जज्बात भड़काने की ज़रूरत पड़ती और इमरान वह बाखूबी कर देते।
क्या आप एक ऐसे व्यक्ति को यूथ ऑयकन या फिर अपना हीरो बनाएंगे जो आपको झूठी शान और झूठी ताकत में झूमते रहने का आदि बना दे। क्या आप एक सियासी शायर को अपने बच्चों का भविष्य तय करने देंगे? यदि हां, तो आपको पूरी आज़ादी है। आवाम ही किसी को बनाती और बिगाड़ती है, मैं इमरान का कुछ बिगाड़ना नहीं चाहता, मेरी क्या बिसात और औकात। लेकिन मैं चाहता हूं कि इमरान प्रतापगढ़ी सरीखे सियासी शायरों को जो कि सामाजिक बनने का ढोंग करते हैं उनकी सच्चाई के रूबरू हो जाएं। कुछ बेहद कम उम्र के बच्चे भी इस तरह की सियासी शायरी करने लगे हैं और सामने बैठे लोग उनके घर वालों की रटाई पंक्तियों पर तालियां बजाते दिख रहे हैं। पैसों के लिए नौनिहालों को नरक में झोंक रहे वालिदैन की इसमें कम गलती और उन नेताओं की ज्यादा है जो चुनाव लड़ने से पहले ऐसे मंच तैयार करते हैं। मुसलमानों, इस ढोंग से बचो। तुम्हारी नस्लें बर्बाद हो जाएंगी। ये सियासत की पैदावर हैं, ये फसल जहरीली है जो अपनी ही नस्लों की सोच और समझ को खत्म करेगी।
इमरान प्रतापगढ़ी नाम के फूहड़ शायर ने भी मुसलमानों को बहुत नुकसान पहुँचाया है।
बहुसंख्यक वर्ग के खिलाफ बेवजह घटिया शायरी कर कर के बहुसंख्यक वर्ग को एक करने मैं इस तथाकथित शायर ने बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
ऐसे घटिया शायरो को सुनने देखने से परहेज करें क्योंकि ऐसे लोग दो समुदायों के बीच जहर घोलने का काम करते हैं।
और इमरान प्रतापगढ़ी का पूरा कारोबार जहर घोलने पर ही आधारित है, क्योंकि अगर शांति हो जाये तो ऐसे राजनीतिक शायरो को कौन देखेगा सुनेगा इनकी तो कहानी ही खत्म हो जायेगी।
यादव राज के लिए मुसलमानो के वोट और मुस्लिम कटरपंथ जरुरी था तो यादव राज में इसे पेंशन मिलती थी शायद , तो शायद ( कन्फर्म नहीं ) इसी के सोशल मिडिया पेज पर इसने ऐसा घिनोना कमेंट शेयर किया हे किसी यादव का ही की ” आज़ाद भारत में मुस्लमान और अनुसूचित जाती के लोग ब्राह्मणों की बजा डालते इसलिए ब्राह्मणों ने पाकिस्तान बनवा डाला ” ब्राह्मणो ने पाकिस्तान बनवाया था —- ? तौबा तौबा थू हे ऐसी घिनोनी सोच पर , इन्ही लोगो के कारण भाजपा को विशाल बहुमत मिला हे यादव राज में इसे शायद पचास हज़ार की पेशन मिलती थी अब भाजपा को इन्हें लाख की पेशन देनी चाहिए . अच्छा एक बार इनके सबसे बड़े फैन ज़ाहिद साहब पता नहीं क्या नॉनसेंस बता रहे थे की अख़लाक़ की हत्या पर इसने ऐसी दर्द भरी नज्म पढ़ी की पूरी दिल्ली सरकार केजरीवाल की आँखे शर्म से झुक गयी हद हे ये क्या बकवास हे अख़लाक़ की हत्या हुई यु पि जहा इनका फेवरिट यादवराज आजमराज था जिसके ये कसीदे पढ़ते हे और शर्मिंदा बता रहे हे केजरीवाल को , उस केजरीवाल और आप को जिसको एक बार पुलिस मिल तो जाए तो ये सारे कम्युनल और करप्ट को जेल भेज देगा उस केजरीवाल को ”छोटा इकबाल ” वैसे ही जलील कर रहा था जैसे ” बड़े इक़बाल ” अंग्रेज़ो ( यादवराज ) के खिलाफ चु नहीं करते थे और गाँधी नेहरू आज़ाद की छाती पे चढ़ते थे ( आज केजरीवाल और आप ) खेर इन इमरानो और रात दिन मुस्लिम विक्टिमहुड़ सेलिंग करने वालो को बता दू की तुम्हारे जो भी मुद्दे हे अख़लाक़ नजीब सैफुल्लाह जो भी हे जितने भी हे तो तुम भी क्यों नहीं उन सब मुद्दो पर केजरीवाल की तरह आमरण अनशन पर बैठ जाते ——– ? केजरीवाल बिजली बिल पर पंद्रह दिन अनशन पर बैठ कर दिल्ली का हीरो बना था बावजूद की उसे डाइबटीज हे और शुगर के मरीज की इम्युनिटी वैसे ही आधी रह जाती हे फिर भी वो बैठे जबकि तुमसे बीस साल बड़ा भी हे तुम भी अपने मुद्दे लेकर बजाय मुसलमानो को भड़काने के अनशन पर क्यों नहीं बैठ जाते ——————- ?
ike · 2 · 3 hrs
” Mohammad Aarif
Mohammad Aarif मुस्लिम इलाकों में मुस्लिम नेता द्वारा किये जाने वाले काम:
-मुशायरा करवाना
-क्रिकेट टूर्नामेंट करवाना
-उर्स में चन्दा देना
-ईद मिलाद व मुहर्रम के जुलुस में शामिल होना
-ईद, बकरा ईद पर मुबारकबाद की होर्डिंग लगवाना
-टूटे फूटे रास्तों पर भी चमकदार नाम वाली तख्ती लगवाना
-बेरोज़गार और काहिल लोगों को गुटका पानी कराना
दरअसल अब मुशायरे का सारा खर्च सियासतदान ही उठा रहे हैं, और शायर नामवर(भारी भरकम फीस) वाला हो तो सिर्फ पॉलिटिशियन के बस की ही बात होता है, अब वहां जमा लोग भी उसी मिजाज़ के मुताबिक जाते हैं और शायर को अपना हक अदा करने के साथ मुसलमानों के जज़्बात को भुनाना भी होता है।ऐसे ही फैक्टर हैं जो ऐसे शायर पैदा करते हैं।Mohammad Aarif ”
कोई कुछ भी कहे दोनों अच्छे शायर है , मुसलमानो को जगाने का काम कर रहे है . इमरान भाई तो आजकल हीरो है उनके बेगैर कोई मुशायरा कामयाब माना ही नहीं जाता है .
Mohammad Anas
1 hr ·
फेसबुक के इनबॉक्स में जुहैब अहमद ने यह मैसेज भेजा है।
इसे पढ़ना बहुत ज़रूरी है-
जनाब इमरान प्रतापगढ़ी साहब की कुछ तारीफ-
अफजलगढ के जिला बिजनोर में नेजा मेले की तैयारिया जोरो से चल रही थीै तमन्ना बहुत दिन से थी कि जनाब इमरान साहब से रुबरु हो जाऊ मेरे मन मे नेजे की तैयारियों देखकर ख्याल आया कि इस नेजे को एतिहासिक बना दिया जाये तो मै अपने बड़ो के साथ बैठक पर बैठा हुआ था और उसमें कमेटी के लोग भी बैठे हुऐ थे तो मैंने कमेटी के लोगों से कहा कि इस नेजे में मुशायरा का भी इन्तेजाम करा दो अंकल जी
तो उन्होंने राय मान ली और अब शायर का नम्बर आया तो मेरे दौस्तो और बड़ो ने राए दी कि इमरान साहब से अच्छा मुशायरा के लिये कोन हो सकता है जो मुशायरा को चार चांद लगाता हो और खुद तु उसका फैन है तो जनाब इमरान साहब को ही बुला लिया जाये। क्योकि कोम का दर्द पढ़ता है मुशायरा कि दुनिया मे अब तक का सबसे बड़ा दर्द भरा शायर है। और पढ़ता भी अच्छा है सामने वालो को रुलाने की ताकत रखता है। मशवरा सबका था बड़ो का और दोस्तो का भी उनके मुंह से इमरान का नाम सुनकर खुशी से कूद पड़ा कि मेरी पंसदीदा और कोम का दर्द पढ़ने वाला शायर भी अब अफजलगढ़ की सरजमी पर आयेगा तो हमने जनाब इमरान साहब से मुशायरा के लिये बात की तो साहब ने हमे अपने मैनेजर का नम्बर दिया साहब से बात करने के बाद अच्छा लगा तो हमने मुशायरा के लिये मैनेजर साहब से बात की तो मैनेजर साहब की बात सुनकर शुरु में तो मजाक लगा जब मेने उनकी बातो को गोर से सुना की जनाब इमरान प्रतापगढ़ी को आप लोग मुशायरा में बुलाना चाहते है तो आप को कम से कम वाला पैकेज 250000/-लाख रुपये अदा करने होगे। मैंने मैनेजर साहब से कहा कि साहब मै तो इमरान साहब का फैन हुँ साहब कुछ कम हो जायेगा तो मैनेजर साहब ने कहा कि जब ही तो आप को 250000/-लाख बताये है जो कम से कम है मेरे दोबारा फैन कहने पर मैनेजर साहब ने कहा कि तो आप फैन ही रहिये मुशायरा मत कराईये और आप मुहब्बत करने वाले लोग है आप बस मुहब्बत करो ऐसे तो सभी फैन है और उनके मैनेजर साहब ने कहा ये उनका प्रोफेशन है मुशायरा करना उनका काम है और मैनेजर साहब ने कहा एक कालेज बना रहे है तो मेने कहा साहब किसी फैन के लिये कम कर सकते है तो उन्होने कहा मेरे पास इन बातो के लिये टाईम नही है आप से फिर कभी बाद मे बात करते है और एक तलख्या अंदाज के साथ साहब के मैनेजर ने फोन को काट दिया मैनेजर साहब की बाते सुनकर ऐसा लग रहा था जैस मैं किसी चीज को खरीदने के लिए मौल भाव कर रहा हूँ तो मैंने सोचा यार ये मंचों पर चीखना चिल्लाना और कौम के दर्द पढ़ना ये क्या मामला है यार कोम को तुमसे रुबरु होने के कम से कम 250000/- लाख क्या कीमत है जनाब की सब ड्रामा है जनाब कोम का दर्द पढ़ने का नाटक है लोगों के जज़्बातो से खेल कर बिज़नैस कर रहे हैं क्या जनाब ओ अब समझा करो जनाब बिज़नेस करो खूब करो
मगर मैं कहता हूँ करये जनाब खूब करये मगर ये ड्रामेबाज़ी बन्द करये वरना पब्लिक समझ जायेगी मैं तो समझ गया जनाब के भाव सुनकर क्योंकि जो ड्रामे बाज़ी आप करते हैं ना कोम के दर्द पढ़ने की तो मैं आपको बता दूँ ये 250000/- लाख आप कोम से ही ले रहे हैं जनाब कोई RSS या BAJRANG DAL वालों से नहीं बल्कि अपनी ही कौम से दर्द पढ़ने के 250000/- लाख और मैं भी कौम का होने के नाते फैन बना था वाह भाई वाह
अब आप कहेंगे के और शायर नहीं लेते क्या तो मैं कहता हूँ वो कौम का दर्द पढ़ने की ड्रामेबाज़ी नहीं करते चाहे आप पाँच लाख लो या दस मगर कोम के नाम पर गद्दारी मत करये जनाब सोचो आप पर ही लोग उंगली क्यों उठा रहे हैं लोग क्यों कि आप ड्रामेबाजी में जिस के ऊपर पढ़ते हो उससे भी ऊपर निकल रहे हो जनाब मैं नाम नहीं लूँगा आप समझ गये होंगे मैं किस की बात कर रहा हूँ
रही बात दूसरे शायरों की दूसरे शायर पढ़ते हैं फीस भी लेते हैं मगर कौम को दर्द के नाम पर छलते नहीं हैं जनाब
मीर सादिक मत बनिये जनाब ये आपकी ही कौम हैं जनाब मत बनिये मीर सादिक
जनाब की रिकार्डिग के साथ मौजूद है
किसी को सच्चाई बुरी लगे तो
माफी भाईMohammad AnasMohammad Anas
5 hrs ·
इमरान प्रतापगढ़ी , प्रतापगढ़ में एक स्कूल बनवाना चाहते हैं। किस नाम से? बीबी फातिमा के नाम से? नहीं। हजरत उमर के नाम से? नहीं। सर सैय्यद के नाम से? नहीं। अल्लामा इक़बाल के नाम से? नहीं। दादरी के अख़लाक के नाम से ? नहीं। जेएनयू के नजीब के नाम से ? नहीं। फिर किसके नाम से? खुद के नाम से…. इमरान प्रतापगढ़ी पब्लिक स्कूल। जनता के पैसे से कोई खुद के नाम से स्कूल खोलता है?
पिछले चार सालों से। अभी तक स्कूल के नाम पर एक ईंट भी नहीं लगी। और स्कूल के नाम पर खाड़ी के मुल्कों से लेकर भारत भर के पैसे वाले और भावुक मुसलमानों से न जाने कितनी रक़म हड़प चुके हैं।
वह प्रोपगेंडा करते हैं कि वहां गरीबों के लिए मुफ्त शिक्षा होगी। कब होगी? 2025 में ? जब होगी तब देखा जाएगा कि कितनी मुफ्त होगी और कितनी पैसे में।
इस तरह से तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा ने भी देश की जनता को ख्वाब दिखाए थे.. अच्छे दिनों का। स्मार्ट सिटी और बुलेट ट्रेन का। क्या मिला लोगों को? सबको पता है। जब मोदी की वादा खिलाफी पर वे मंचों से चीखते हैं तब खराब नहीं लगा? आज कोई उनसे उनके कामों का हिसाब मांग रहा है तो दुश्मन हो गया। बुरा हो गया। दग़ाबाज़ हो गया।Mohammad AnasMohammad Anas
28 mins ·
इमरान प्रतापगढ़ी हर रोज़ दूसरों की तस्वीर लगाते हैं। दस बीस हजार की मदद का ढिंढोरा पीटते हैं। चीख चीख कर बताते हैं कि उन्होंने परसों शादी करवाई, चार दिन पहले शहीदों के परिवार को पैसा दिया, मिन्हाज़ के परिवार को इतना दिया अख़लाक के परिवार को उतना दिया।
इमरान ने कभी नहीं बताया कि उनकी मदद कौन करता है। अरब से एक शख्स ने फेसबुक के इनबॉक्स में यह मैसेज भेजा है। इमरान से मेरी अपील है कि वह इस मैसेज को अपने पेज पर शेयर करें।
इमरान प्रतापगढ़ी बड़े वाले दानवीर, दयालू।
Asslamulaikum
Last year jub yeh saudi perform ke liye aaye tha uswaqt inamaat ke alawa ek badi raqam Sheakh Bandar saleh al salman jinka ramzan main salana sadqa crores main hai yeh sahab unse kisi ghurba bewa yateem ki madad ke liye ek bada amount liye hain
Detail jald hi collect karke aagah karta hon
Aap zaati tor pr hi zaleel karyega aam mat kijiyega logon main acchi image hai unko dukh hoga।
– Zaheer Zen
41 mins ·
एक प्रोफेशनल शायर जब क़ौम को राह दिखाने का दावा करता है तो क्या होता है- फेसबुक के इनबॉक्स में यह मैसेज जापान से एक आदमी ने किया है। नाम न छापने की शर्त पर।
—–
इमरान साहब कोलकाता भी आए थे, सुल्तान अहमद के मुशयरे में. कोई पाँच लाख दिया था उनके स्कूल के लिए. सुल्तान अहमद ने एक सड़क तक नहीं बनायी मसलमानो के नाम से. मनमोहन के समय पर्यटन मंत्री भी थे, कोलकाता के मुसलमान और उनके मसायल जूँ के तू बने हैं, पाँच लाख दी. जनता भावुक हुई आउर चुनाव जीत गए, वैसे अनस भाई आप से अनुरोध है की बस अब रहने दीजिए, आपने इमरान को अछी ख़ासी सबक़ दे दी है, अब उसपे है की होश के नाख़ून ले, जापान से ये मेसिज आपको कर रहा हूँ, आपकी बात हर जगह पहुँच चुकी है, बस माफ़ कर दीजिए क़ौम की ही बदनामी ही रही है, बड़े बन जाएँ, अल्लाह आपको अमन में रखे, वैसे ये अकाउंट फ़र्ज़ी है, भक्तों से प्रेरित हो कर बनायी थी, कभी कभी ही आन करता हूँ। लिखते रहए, हमारे मुल्क व हमारे क़ौम को आप जैसे निर्भीक, संवेदनशील, सच्चे युवा पत्रकार की ज़रूरत है। अल्लाह हाफ़िज़ Mohammad Anas
हालत कितने ख़राब हो रहे हे ———– ? मेरठ के सलीम अख्तर सिद्द्की पुराने और उदारवादी पत्रकार हे मगर वो भी इस छोटे इक़बाल की पोल खोलने की जगह इससे यकजहती की बात कर रहे हे ———– ? Like · 3 · ” 15 hrsSaleem Akhter Siddiqui अनस साहब, ये सब कब तक चलेगा? अब जब जरूरत यकजहती की है, हम इंतेशार फैलाने में लगे हैं। कमियां किसमें नहीं होतीं। मेरा तो मशविरा है कि इस तरह के मामले फेसबुक पर लाकर दूसरों की नजरों में मजाक न बनाएं। उन लोगों से भी मैं यही कहना चाहता हूं, जो अक्सर आप पर तरह तरह के इल्जाम लगाते रहते हैं। बाकी आप लोगों की मर्जी।saleem Akhter SiddiquiMohammad Anasमैं तो इमरान प्रतापगढ़ी के पैटर्न पर लिख रहा हूं। वो जब किसी की मदद करते हैं तो सबको बताते हैं। मैंने वही लिखा है कि लोग इमरान प्रतापगढ़ी की भी मदद करते हैं। इमरान को अपने पेज पर इसे भी जगह देनी चाहिए। अब कोई पोस्ट नहीं आएगी। किसी के मना करने पर नहीं मान रहा हूं, बल्कि जितना करना था वह कर दिया मैंने। Mohammad Anas ” ————— सलीम सर से ये उम्मीद नहीं थी ऐसे छोटे इकबालो से किस किस्म की यकजहती ( एकता ) की बात कर रहे हे सलीम सर ———— ? क्या मुस्लिम यूनिटी की ———– ? तो फिर से लिख दू की मुस्लिम यूनिटी ज़हर हे ज़हर , भूल कर भी किसी मुस्लिम एकता के पीछे नहीं भागना चाहिए रिजल्ट जिन्ना इक़बाल तालिबान हुर्रियत इमरान बुखारी भोपाली बीमारी के रूप में ही सामने आएगा इन क्लीनशेव कठमुल्लाओ – इमरानो को सर पर बैठने वाले मुस्लिम नेताओ की हि यु पि में पिछले लोकसभा और विधानसभा चुनावो में सबसे अधिक दुर्गत हुयी हे अच्छा हुआ
आम लोगो से कोई लेना देना नहीं हे तो मेने हमेशा लिखा की बड़ी बड़ी लिबरल भारतीय मुस्लिम आवाज़े या तो शिया हे या बरेलवी ही दिखती हे जमीन पर इनका कोई रिजल्ट या प्रभाव मेने नहीं देखा खेर हेडर रिजवी रेडियो वाले लिखते हे Haider RizviHaider Rizvi
7 April at 10:11 ·
हालाँकि मेने यहाँ लिखना छोड़ दिया है, लेकिन सिर्फ़ एक बात कहने के लिए इसलिए आना पड़ा…. क्यूँकि मुझे पता है ये अगर मेने यह बात नहि बोली तो कोई और भी नहि बोलेगा…..
मेरी अपनी जाति यानी शिया मुस्लिम अपना ईमान बेचकर खा चुकी है….. अगर आप कोई भी मूवमेंट चला रहे हैं, कोई संगठन या संस्था बना रहे हैं तो इनसे बचकर रहें…. आपको इनका इंटेलेक्ट ज़रूर प्रभावित करेगा, लेकिन बिका हुआ इंटेलेक्ट वैश्या के शरीर से भी ज़्यादा गलीज़ होता है.. ( हालाँकि मैं निजी तौर पर वेश्याओं से बिलकुल नफ़रत नहि करता)
जी सही पहचाना, ये वही क़ौम है जो ख़ुद को मौला अली और हुसैन का मानने वाला बताती है, जिन्होंने इंसानियत के लिए अपनी क़ुरबानी देदी थी, लेकिन मुझे पूरा यक़ीन है की अगर उत्तर भारत और ख़ासकर लखनऊ के शिया करबला में होते तो इमाम हुसैन पर ये दबाव ज़रूर डालते कि यज़ीद के साथ सुलह करलो और मौज करो….. और सुलह न भी करो तो कम से कम अपना कोई मुख़्तार अब्बास या मोहसिंन रज़ा यज़ीद के पास भेज दो जो चाटने में निपुड़ हो……
ऐसा नही है की भारतीय शियों ने कोई क़ुरबानी नही दी है… कैफ़ी आज़मी, अली सरदार जाफ़री, सज्जाद ज़हीर, मूनिस रज़ा और राही साहब जैसे दसियों लोग हुए हैं जिन्होंने वक़्त वक़्त पर सरकारों से मोर्चे लिए हैं….. लेकिन उन्हें भी अपनी जाति से बाहर आना पड़ा या जाती ने उन्हें ख़ुद दूर कर दिया…..
हो सकता है कुछ शिया मित्रों को यह पोस्ट बुरी लगे कि सुन्नियों के सामने उनकी बेज़्ज़ती हो गयी, तो कोई बात नही वो मित्र हैं भी इसी लायक….. आइंदा मेरे नाम का भी तबर्रा पढ़ लेना कमजरफ़ो….
यादवों, कुशवाहाओं, कुर्मियों, शाक्यों, नाऊ तेली, धोबी, जुलाहे वग़ैरह वहैरह …. मैंने लेली … अब तुम भी अपनी अपनी जेबों की तलाशी लेलेना ….. जब तक गाय बन खूँटे से बधे रहोगे ज़बरदस्ती दुहे ही जाओगे….Haider Rizvi
जब मुतहा{ सिमित समय का निकाह } अच्छा लगेगा, तब वेश्या वृत्ति भी क्यों ख़राब लगेगी !
Mohammad Anas added 3 new photos.
6 hrs ·
हमारे हीरो-
इनका नाम है मुस्तक़ीम सिद्दीकी। झारखंड में रहते हैं लेकिन भीड़ और प्रशासन के हाथों हिंसा एवं अन्याय के शिकार लोगों के लिए पश्चिम बंगाल से लेकर बिहार तक पहुंच जाते हैं। इंसाफ इण्डिया के नाम से इनका कैम्पेन चलता है। यह कैम्पेन वह पूरे साल चलाते हैं।
कभी सांप्रदायिक हिंसा के शिकार मुसलमानों तो कभी जातिवाद के नाम पर अन्याय झेल रहे आम जन के दर्द में सहभागी बनते हैं।
हाल ही में जमशेदपुर पुलिस ने इन पर तथा इनके अन्य साथियों पर गंभीर धाराओं में मुकदमा दर्ज किया। मुस्तक़ीम चूंकि मुसलमान हैं तो उन्हें हिंदुस्तान अख़बार ने आईएसआई से रिश्ता रखने का अंदेशा जताया बाकि के साथी हिंदू हैं तो उन्हें नक्सली। अख़बार ने पुलिस की ज़ुबान बोली।
मुस्तक़ीम कभी बाइक से तो कभी ट्रेन की जनरल बोगी में फर्श पर बैठ कर जनता के लिए संघर्ष करने निकल पड़ते हैं। एक बार बाइक पंक्चर हो गई तो बेचारे कई किमी पैदल खींच कर लाए क्योंकि जहां पंक्चर हुई वहां जंगल था। न्याय दिलाने का कार्य राज्य सरकारों का है, परंतु यह कार्य मुस्तक़ीम कर रहे हैं फिर भी मुस्तक़ीम विद्रोही हैं। ऐसा झारखंड पुलिस कहती है।
मुस्तक़ीम सुदूर गाँवों में रहे अत्याचार की रिपोर्टिंग भी करते हैं। वे पहुंचते हैं वहां जहां मीडिया नहीं पहुंच पाती।
अब आप तय करें कि नेताओं के लिए कलाम पेश करने वाले आपका नेतृत्व करेंगे या फिर झारखंड पुलिस का दमन झेल रहे मुस्तक़ीम जैसे क्रांतिकारी साथी। तय कीजिए कि बसपा के मंच से सपाइयों को गुंडा कहने वाला, सपाईयों के मंच से बसपाईयों को कोसने वाला, कांग्रेस के मंच से भाजपा को लताड़ने वाला शख्स आपके लिए लड़ेगा, इंसाफ की मांग करेंगे या फिर ट्रेन की फर्श पर बैठ कर सफर करने वाले लोग।
तय कीजिए की सरकारी मुकदमों को झेलने वाले आपके अपने हैं या फिर सरकारी पुरूस्कार और पेंशन लेने वाले लोग। आराम से तय कीजिए। बहुत जल्दी नहीं है।
#यशभारती_वापस_करोMohammad Anas added 3 new photos.
7 hrs ·
हमारे हीरो-
इनका नाम है नदीम खान। अख़लाक से लेकर नजीब, पहलू खाँ से लेकर जुनैद तक के मुद्दे पर दिल्ली की सड़कों को इंक़लाब से भर डाला। आप नहीं जानते तो आपका टेस्ट बुरा है।
नदीम वह शख्स हैं जो दिल्ली की ऊंची दिवारों के उस पार मज़लूमों की आवाज़ और सिसकियां पहुंचाने का काम करते हैं। बहरी सरकार के कान पर नदीम की आवाज़ ख़ौफ पैदा करती है। यह ऐसा आदमी है कि थकता ही नहीं। कभी बसों में भर कर लोगों को जंतर मंतर ले जाता है तो कभी टैम्पो ट्रैवलर में बैठा कर लखनऊ पहुंच जाता है।
न कभी नाम की चाहत न छपास रोग। बस काम और सिर्फ काम। लिंचिंग के शिकार ज्यादातर परिवारों को कानूनी सेवा मुहैया करवाने का सबसे बड़ा काम नदीम खान कर रहे हैं।
नजीब की माँ को लेकर हर दरवाज़े जाने वाला यही शख्स है। इससे गलती यह हुई कि यह रोया नहीं। फेसबुक पर लाइव नहीं आ सका। वरना आप भी नदीम भाई ज़िंदाबाद कर रहे होते।
अब आप तय करें कि नजीब और पहलू पर नज़्म पढ़ कर नेताओं के दरबार की ज़ीनत बनने वाले मुसलमानों का नेतृत्व करेंगे या फिर सड़क से लेकर कोर्ट तक में पीड़ितों के न्याय की लड़ाई लड़ने वाले नदीम खान जैसे लोग। तय कीजिए। वक्त बहुत है।
#यशभारती_वापस_करोMohammad Anas added 5 new photos.
8 hrs ·
हमारे हीरो-
इनका नाम है फैसल खान। मशहूर गाँधीवादी। दिल्ली में रहते हैं और पूरा देश जानता है। आप नहीं जानते तो आपका टेस्ट बुरा है।
फैसल खान ने खान अब्दुल गफ्फार खान का मूवमेंट आगे बढ़ाया। खुदाई खिदमतगार आज पूरे देश में हिंदू- मुस्लिम एकता पर काम कर रही है। मुस्लिम युवाओं को गाँधी और सीमांत गाँधी की विचारधारा से परिचय करवा रही है।
हिंदी प्रदेश के अलावा साउथ में भी जनवादी मुद्दों पर संघर्ष के लिए खिदमतगार हमेशा तैयार रहते हैं। यह काम उन्होंने दो दिन की तारीफ खातिर नहीं किया, बल्कि आधार ठोस करने हेतु किया।
अब आप तय करें की विभिन्न राजनैतिक मंचों पर चढ़ कर नेताओं की तारीफ करने वाले आपका नेतृत्व करेंगे या फिर फैसल खान जैसे गाँधीवादी लोग। जिनके सामने बड़े से बड़ा नेता भी अदब से बैठता है।
#यशभारती_वापस_करोMohammad Anas added 2 new photos.
8 hrs ·
हमारे हीरो-
इनका नाम है अमीक जामेई। कॉमरेड आदमी हैं। जनता के हित के लिए लड़ते हुए अच्छी पैकेज़ की नौकरी छोड़ दी। फुलटाइम एक्टिविज्म में दिल्ली से लेकर लखनऊ और पटना से लेकर जमशेदपुर तक लड़ते रहे। अक्सर टीवी डिबेट्स में आपने इन्हें देखा होगा।
लखनऊ में दमन के विरूद्ध अपने बीस साथियों के साथ तिरंगा मॉर्च किया। योग दिवस के कारण पुलिस ने सबको डिटेन कर लिया। बीस जून से लेकर बाइस जून तक जेल में रहे। गिरफ्तारी के वक्त पुलिस के एक सीनियर ऑफिसर ने गिरफ्तार साथियों के साथ बेहुदगी से बर्ताव किया। अमीक के साथ अन्य लोगों को थप्पड़ मारे। गालियां दी। (गाली का लाइव वीडियो अमीक के फेसबुक प्रोफाइल पर देख सकते हैं- 20 June)
मीडिया ने इस गिरफ्तारी को गायब कर दिया। काली पट्टी बंधवा कर जो लोग हीरो बन रहे हैं उन्हें योगी सरकार पचास हजार का पेंशन देती है। एहसास बेचने का लाखों कमाते हैं।
तय आप करें कि कोई दरबारी आपका हीरो है या फिर सड़क से लेकर विधानसभा और संसद घेर देने वाले अमीक जामेई जैसे साथी। तय कीजिए की आपका नेतृत्व कौन करेगा।
#यशभारती_वापस_करोMohammad Anas
वैसे छोटे इकबाल एन्ड पार्टी के आलावा सोशल मिडिया पर जो मुस्लिम राइटिस्टों का एक और गुट हे जिनका लीडर कोई और हे कम से कम सोशल मिडिया पर तो मुझे ज़्यादा नहीं पता , मगर रवैया सेम हे की जो लिखा की ”सिकंदर हयात
June 21, 2017
कर्णाटक की एक बेचारी मुस्लिम लड़की वो भी प्रेग्नेंट , दलित लड़के से शादी के कारण , जला कर मर दी गयी , अख़लाक़ पहलु नजीब आदि से भी बुरा हादसा हे ये क्योकि लड़की प्रेग्नेंट भी थी अब कहा हे वो घटिया शायर जो नजीब पहलु अख़लाक़ सबको सेल करके देश विदेश से पैसा खींचता हे कहा हे वो उसका सबसे बड़ा फेन जिसे पहले से ही अमीर होने के कारण पेसो की जरुरत नहीं , इसलिए वो खाली लाइक्स से ही खुश रहता हे पहलु की माँ को गले लगाकर कैमरे की तरफ देखता हे कहा हे ये सब लोग अब उस बेचारी लड़की पर शेर और घटिया पोस्ट नहीं लिखोगे —— ‘ तो वो इन सब पर यानी जंतर मंतर काली पट्टी आदि को लेकर कोई खास उत्साहित नहीं दिखे यानी क्रेडिट नहीं तो उत्साह नहीं साफ़ हे की इन राइटिस्टों पर भरोसा नहीं किया जा सकता हे ये अपना मतलब देख रहे होते हे मुस्लिम विक्टिमहुडसेलिंग से अपना हित देख रहे होते सही मायनो में सेकुलरिज्म की लड़ाई नहीं लड़ सकते हे
जैसा की होना ही था इस ज़हरीली मोदी सरकार की हरकतों के कारण , मुस्लिम समाज के बीच तीन तलाक बुरका पर्दा हिज़ाब सिमी आदि के समर्थक हीरो बनकर उभर रहे हे समाजवादी चिंतक सुरेंदर किशोर Surendra Kishore
28 June at 07:14 ·
आम तौर पर मैं मित्रों और रिश्तेदारों की बातों का जवाब नहीं देता।
क्योंकि कई बार इससे तर्कों में जीत कर दोस्ती हार जाने की नौबत आ जाती है।
पर अनुराग चतुर्वेदी की बातों पर मुझे जरूर कुछ कहना है।वह मेरी अनुभव जनित राय है।भले कोई माने या नहीं।
आज की स्थिति अच्छी नहीं है।पर आपातकाल से इसकी तुलना करना ज्यादती है।इससे उन भुक्तभोगियों के संघर्ष, त्याग और बलिदान का अपमान होता है जिन्होंने इंदिरा गांधी के आपातकाल में झेला था।
अनुराग जी कहते हैं कि मैं कुछ खास चीजें नहीं देख पा रहा हूं।दरअसल मैं सब कुछ देख पा रहा हूं।
मैं एकतरफा नहीं देखता।चीजों को सम्यक और असंतुलित ढंग से देखता हूं।तथाकथित सेक्युलर शक्तियों द्वारा एकतरफा ढंग से देखने और उसी के अनुसार कदम उठाने का ही नतीजा है कि आज केंद्र में मोदी सरकार है।
मैं देख रहा हूं कि किस तरह उन शक्तियों ने ऐसी स्थिति पैदा कर दी जिसमें मोदी को सत्ता मिल गयी। सन 2014 के चुनाव के बाद कांग्रेस ने ए.के. एंटोनी को जांच का भार दिया था।
एंटोनी ने हार का कम से कम एक कारण वही बताया था जो मैं कह रहा हूं।
और अब वही लोग अघोषित आपातकाल का रोना रो रहे हैं।
वंशवाद, भ्रष्टाचार, कुशासन और ढोंगी -एकतरफा धर्मनिरपेक्षता के बारे में अपना रुख बदल कर देखिए, भाजपा कमजोर हो जाएगी।
मैं यह नहीं कह रहा हूं कि भाजपा को इन कसौटियों पर कसें तो वह कोई दूध की धोयी मिलेगी।पर उसका रिकाॅर्ड बेहतर जरूर है। अधिकतर मतदातागण एक ग्राहक की तरह बेहतर माल ही तो खरीदेंगे !
मैं उन अतिवादी हिंदुओं की हिंसा भी देख रहा हूंं जिन गंुडों का मनोबल नरेंद्र मोदी के शासन में आने के बाद बढ़ गया है।पर साथ ही मैं केरल और पश्चिम बंगाल की हिंसक और देशद्रोही घटनाओं को भी देख रहा हूं।
वहां भी राज्य सरकारों के कारण ही उनका मनोबल बढ़ा हुआ है।
वहां से भी ‘जुनेदों’ की कहानियां आती रहती हैं। उन पर भी कविता लिखी जानी चाहिए।
मैं यह भी देख रहा हूं कि सत्ता बदलते ही जांच एजेंसी यह कह देती है कि उसके पास साध्वी प्रज्ञा सिंह के खिलाफ कोई ठोस सबूत नहीं है।जबकि पिछले निजाम में प्रज्ञा को अमानवीय यातनाएं दे-देकर उसे अपंग जैसा बना दिया जाता है।
मैं यह भी देख रहा हूं कि ओसामा बिन लादेन को घोषित रूप से आदर्श मानने वाले ‘सिमी’ को इस देश के कुछ तथाकथित सेक्युलर नेतागण सार्वजनिक रूप से छात्रों का निर्दोष संगठन करार देते रहे हैं।केंद्रीय मंत्री रहे एक कांग्रेसी नेता तो सिमी के सुप्रीम कोर्ट में वकील भी थे।
उत्तर प्रदेश की समाजवादी सरकार मुस्लिम आतंकवादियों के खिलाफ मुकदमे उठाने का आदेश जारी कर देती है।
मैं यह भी देख रहा हूं कि कुछ हिंदू संगठन व व्यक्ति कानून को तोड़कर भी जबरन राम मंदिर बनाने पर अमादा हैं।तो मैं यह भी देख रहा हूं कि जो तीन तलाक करीब दो दर्जन मुस्लिम देशों में प्रतिबंधित है,उसे यहां जारी रखने के पक्ष मंे तथाकथित सेक्युलर दल अतिवादी मुल्लाओं का साथ दे रहे हैं।
कश्मीर के पंडितों की बात छोड़ भी दें तो दिल्ली के बाटला हाउस मुंठभेड़ में मृत उग्रवादियों के पक्ष में कुछ नेता आंसू बहाते रहे। और उसी मुंठभेड़ में शहीद इंस्पेक्टर शर्मा की शहादत को झूठा साबित करने वालों को वाहवाही मिलती रही ।
इस तरह की और भी बहुत सी बातें हैं।मोदी अपनी खूबियों के कारण कम, राजनीतिक और गैर राजनीतिक विरोधियों की खामियों के कारण अधिक ताकतवर बने ।
मोदी सरकार कुछ चैनलों और अखबारों को प्रभावित कर सकती है, पर यदि देश की पूरी मीडिया को एक साथ देखें तो लगेगा कि 1975-77 वाली स्थिति तो बिलकुल ही नहीं है।आपातकाल के पहले और बाद में भी मीडिया को सत्ता द्वारा झुकाने -दबाने के कई उदाहरण आपको मिल जाएंगे।मन मोहन सरकार के एक मंत्री ने तो पटना के संपादक स्तर के दो पत्रकारों को बारी -बारी से नौकरी से ही निकलवा दिया था।
देश के अन्य हिस्सों में भी ऐसे उदाहरण मिल सकते हैं।
आज कहीं न कहीं आज के सत्ताधारियों के कारनामों की खबरें भी छप ही जाती हैं।एक जगह नहीं छपेगी,दूसरी जगह छप जाएगी।
पर आपातकाल में ?
नवीन जोशी द्वारा पेश दस्तावेज सामने है।
डा.लोहिया की एक बात से अपनी बात खत्म करूंगा।हालांकि बातें और भी हैं।फिर कभी ।
1967 में लोहिया चुनाव लड़ रहे थे।उस दौरान उन्होंने यह बयान दे दिया कि देश में सामान्य नागरिक संहिता लागू होनी चाहिए।
उसके बाद उनके सहयोगियों ने कहा कि अब तो आप चुनाव हार जाएंगे।लोहिया ने कहा कि मैं सिर्फ चुनाव लड़ने के लिए नहीं बल्कि देश बनाने के लिए राजनीति करता हूं।
अनुराग जी, अधिकतर नेतागण तो आज अधिकतर बयान वोट के लिए ही देते हैं ।वैसा ही काम भी करते हैं।पर मेरा मानना है कि जिन्हें चुनाव नहीं लड़़ना है,उन बुद्धिजीवियों को तो संतुलित ढंग से संविधान के दायरे में रहकर देश के भविष्य और उसकी सुरक्षा के बारे में सोचना चाहिए।
यदि ऐसा नहीं होगा तो किसी ‘नरेंद्र मोदी’ को समय -समय पर सत्ता में आने से कौन रोक सकता हैं ?Surendra Kishore
28 June at 07:14 ·
Abbas Pathan with Mohd Zahid and 8 others.
6 hrs ·
मुस्लिम समाज की अधिकतर बीमारियां उसके खुद के अंदर समाहित है किंतु वो इसका हल बाहर ढूंढता है। इन सब बीमारियों में इन दिनों एक बड़ी बीमारी जो निरन्तर नजर आ रही है वो है हसद( ईर्ष्या) .. यहां बहुत से लोगो को इमरान प्रतापगढ़ी से हसद है, उनसे उनकी हसद कहती है कि इमरान अपने नाम की ब्रांडिंग करता है, इमरान मुशायरा प्रोग्राम करने के लाखो रूपये लेता है इत्यादि इत्यादि…
सबसे पहली बात इमरान साहब किसी परिचय के मोहताज नही है, वे यश भारती विजेता है.. आपको हसद की बजाय फ़ख्र करना चाहिए की कोई सूरज उग रहा है आपकी कौम में जो हर वक्त अँधेरे को दूर करने के प्रयत्न करने की कोशिश करता रहता है और उसी की कम्युनिटी के लोग काले बादलों की तरह उसके ताब को कम करने का प्रयास करते रहते है। आपको फ़ख्र करना चाहिए की जहाँ एक तरफ मुस्लिम बस्तियां शराब जुंए और दीगर नशाखोरी के अड्डे बन चुकी वही कोई इमरान है जो “यश भारती” जैसे राष्ट्रिय स्तर के साहित्यिक अवार्ड ले रहे है।
उन्हें लोग ख़ुशी से नजराने देते है, वो किसी का गला काटकर तो लाखों रूपये नही कमा रहे? वो हेट स्पीच देकर तो प्रसिद्ध नही हुए? वो प्रसिद्ध हुए है उर्दू अदब में दिलचस्पी लेकर.. जहाँ एक तरफ मुस्लिम बस्तिया शराब और जूंआखोरी का अड्डा बन चुकी वही इमरान जैसे लोगो ने साहित्य में दिलचस्पी ली। संस्कृती और साहित्य हमे जीने का सलीका सिखाते है, इमरान के लाखों फॉलोवर है जो उनसे कही न कही साहित्य की दीक्षा लेते है ये वो दीक्षा है जो हमारी बस्तियों और घरो में नही मिलती।
अब बात मुद्दे की, 6 अगस्त को इमरान प्रतापगढ़ी के नेतृत्व में देश की एकता और अखंडता को ऑक्सिजन देने के लिए एक मुहीम चलाई जाएगी, जो कश्मीर से लगाकर बंगाल तक मर चुकी इंसानियत को पुनर्जीवित करने का प्रयास करेगी। इसमें भी हमारा मन ये कहता होगा की नेतृत्व के नाम पे इमरान अपने नाम की ब्रांडिंग कर रहा है.. जबकी ये ब्रांडिंग नही बल्कि साहस है।
लोकतंत्र के खिलाफ असंतोष पैदा करने का इल्ज़ाम लगाकर इमरान को कई मुसीबतों में गिरफ्तार किया जा सकता है.. उनकी गांधीगीरी उन्हें जेल की हवा खिला सकती है, महात्मा गांधी को भी ब्रिटिश ने जेल की हवा खिलाई थी। बाबा रामदेव भी रामलीला मैदान में गांधीगिरी ही कर रहे थे, उन्हें उसी सरकार ने डंडे मारकर दौड़ाया जो गांधीवाद की कसमें खाती है। बाबा रामदेव कोई छोटा नाम नही है, उनकी गिनती बहुत बड़े व्यापारी और सन्त में आती है.. जब गाँधीवादी सरकार बाबा रामदेव को सलवार पहनाकर दौड़ा सकती है तो हम और आप चीज़ ही क्या है।
6 अगस्त को जो गाँधीवादी मुहीम चलाई जानी है उसके नेतृत्व का सेहरा किसी ना किसी को पहनना ही था, इसके लिए इमरान प्रतापगढ़ी जैसे गैर सियासी नाम से उपयुक्त कुछ भी नही।
मुहीम विश्वस्तर पे कामयाब हो सकती है, इसे अधिक से अधिक कामयाब करने के लिए सभी सामाजिक संस्थाओं का योगदान चाहिए होगा.. ये कालीपट्टी और #NotinMyName के बाद गांधीवादी दर्शन का तीसरा अध्याय है। बस एक मुस्लिम कौम के दिलो में पैबस्त हसद आड़े आ रही है।
मैं उम्मीद करता हूँ की हम सब अपने दिलो का मेल धोकर एक प्लेटफार्म आएँगे।Abbas Pathan
छोटे इकबाल के सबसे बड़े फेन ये साइट पढ़ते हे हो सकता हे उन्होंने ही ऊपर की गयी हमारी मांग की मुद्दों पर मुसलमानो को भड़काने उकसाने विक्टिमहुड सेलिंग की जगह आमरण अनशन पर क्यों नहीं बैठते हो —————– ? खेर जो भी हो अब ये लोग गांधीगिरी आदि बाते कर रहे हे हमारी शुभकामनाये . और चेतावनी भी की ये सब इतना आसान ना समझना बहुत मुश्किल काम हे लोगो को भड़काना उकसाना विक्टिम,सेलिंग एकतरफ़ाबाते आदि ये सब बाते बहुत आसान हे बहुत आसान कोई भी कर लेगा मगर ये समझ लेना की एक सेकुलर भारतीय मुस्लिम लिबरल होना उसमे भी सुन्नी देवबंदी होना दुनिया का सबसे मुश्किल काम हे अतिश्योक्ति नहीं हे इसमें कि एक सुन्नी देवबंदी सेकुलर लिबरल भारतीय मुस्लिम होना दुनिया की सबसे बड़ी सरदर्दी हे जिस सोशल मिडिया पर सारे दिन सक्रीय रहते हो उसी पर देख लो सारे लिबरल- बरेलवी और शिया मिलेंगे टोटल तो साहब छोटे इक़बाल एन्ड पार्टी समझ लो इस राह पर सरदर्दी ही सरदर्दी हे पाना कुछ भी नहीं हे जिम्मेदारियां जवाबदारी हर कदम पर हे और हासिल कुछ भी नहीं हे और जब बदले में कुछ नहीं मिलेगा और जिम्मेदारियां आएगी तो मेरे ख्याल से तो तुम लोग ( छोटे इकबाल एन्ड पार्टी ) भाग खड़े होंगे होगा यही है अगरयहाँ हम गलत साबित हुए तो भी हमें तो बहुत ख़ुशी होगी
जूतम पैजार तो चल रही हे मगर ये तो तय हे की हर किस्म के जूतम पैजार के भी प्रचार से भी ये राइटिस्ट कुछ ना कुछ फायदे में ही रहते हे जाता कुछ नहीं हे कुछ ना कुछ आता ही हे इसलिए तो हम जलन हे और हम कहते हे की मौज़ हे इन राइटिस्टों की ————————————————-mohd Zahid added 15 new photos — with Mohd Zahid and 12 others.
Yesterday at 09:38 ·
FBP/17-156
लहू बोल रहा है के साथ साजिश :-
कहना तो नहीं चाहता था परन्तु यदि जवाब ना दिया जाए तो समझा जाएगा कि हमने झूठ को स्वीकार कर लिया।
“लहू बोल रहा है” एक मुहिम और इसके साथ अपने लोगों कि की गयी साजिशें और उनका व्यवहार।
जिस देश में मुसलामानों के किसी भी आंदोलन को जहाँ मेनस्ट्रीम मीडिया , व्यवस्था और सरकारें या तो नज़रअंदाज़ कर देती हैं या उसको नकरात्मक रूप से दिखलाती हैं वहीं कुछ अपने लोग इससे भी घटिया स्तर पर जा कर , मुहिम में घुस कर मुहिम के खिलाफ़ साजिश करते हैं तो समझिए इन ज़हरीले लोगों का चरित्र जो संघ और भाजपा से भी अधिक ज़हरीला हैं।
“लहू बोल रहा है” जैसे बेहद सफल आयोजन के साथ भी यही सब हुआ और उसी को आपके सामने रखने के लिए यह पोस्ट है।
दरअसल , मुख्यकेन्द्र ज़तर-मंतर समेत देश के 28 विभिन्न स्थानों पर “लहू बोल रहा है” अभियान के तहत अपना खून देकर भीड़तंत्र को जवाब देने की इमरान प्रतापगढ़ी की इस अनोखी और भावुक आंदोलन की सफलता का अंदाजा आप यूँ लगा सकते हैं कि लगभग सभी जगहों पर ब्लड बैंक ने अपनी सीमित किट उपलब्धता के कारण खून लेने से मना कर दिया पर लोग डटे रहे। कुछ अस्पतालों ने यूँ मना किया कि अधिक खून लेकर हम करेंगे क्या ? यह बेकार हो जाएँगे क्युँकि हमारे पास इससे अधिक खून रखने की सुविधा नहीं है , हमें फेंकना पड़ेगा।
सलाम आप सभी दोस्तों को
मैं आपको विभिन्न शहरों में आयोजित एक एक कैम्प में हुए खूनदान का लेखा-जोखा आपके सामने स्पष्ट रूप से रखूँगा। डाटा आज शाम तक हर जगह से आ जाएँगे।
परन्तु जंतर-मंतर मुख्य केन्द्र जहाँ मैं उपस्थित था वहाँ की स्थिति देखिए।
दीन दयाल उपाध्याय अस्पताल , ट्रामा सेन्टर और अन्य सभी अस्पतालों में ब्लड डोनेशन कैम्प आयोजित करने की सूचना देने के बावजूद केवल दो जगह से ब्लड को कलेक्ट करने की सुविधा प्रदान की गयी , 4 चेयर की एक एसी बस और 6 चेयर का खूनदान कैम्प आयोजित करने वाली एक अन्य संस्था जो जंतर मंतर पर फुटपाथ पर पेड़ के नीचे कैम्प लगा कर ब्लड कलेक्शन का काम कर रही थी।हजारों की तादाद में उमड़े लोगों का खून कलेक्ट करने के लिए तमाम जगह सूचना पहुँचाने के बावजूद केवल 10 चेयर की व्यवस्था। सोचिएगा कि व्यवस्था कितना दोगला व्यवहार करती है।
जंतर मंतर पर पुलिस की नियमावली के तहत ना तो टेन्ट लग सकता है और ना ही उसमें कूलर एसी व अन्य सुविधाएँ। इसके बावजूद फुटपाथ पर 40 डिग्री तापमान में लोगों का हुजूम उमड़ा रहा और लोग खून देते रहे तो उपस्थित बस में भी खून देने वालों का ताँता लगा रहा।
3 बजे तक एसी बस में 180 आम लोग खून दे चुके थे और फुटपाथ पर 40° तापमान में लगभग 250 लोग।
सुबह 11 बजे से शुरू हुआ और चार बजे तक चलने वाले इस खूनदान आयोजन में किसी को कोई समस्या नहीं , जो खून दे रहे थे उनको भी नहीं , समस्या थी तो अपनी कौम के ही कुछ ज़हरीले लोगों को जो वहाँ सिर्फ़ तमाशा करने गये थे ।
दरअसल दिल्ली में बैठे कुछ “प्रोफेशनल प्रोटेस्टर” को यह देखते ना बना कि 25 वी वी आइपी और हजारों हजार लोग इमरान की एक अपील पर कैसे आकर ब्लड डोनेट कर रहे हैं
और वह इसी कारण इस सफल मुहिम पर पलीता लगाने पर तुले हुए हैं , उनको 45° तापमान में सूरज के ठीक नीचे 7 घंटे खड़े रहे इमरान प्रतापगढ़ी की पसीने से भीगे उनके कपड़े नहीं दिखे , दिखे तो 12 मिनट बस में खून देती मेरी या इमरान की तस्वीर।
सोचिएगा कि इनकी जलन , हदस किस स्तर की है , जो एक सफल और नेक मुहिम को भी साजिश करके बिगाड़ देना चाहते हैं।
कोई खुद को ना बुलाने का रोना रो रहा है तो कोई मेदान्ता में 4 युनिट खून को हमारे द्वारा ना पहुंचाने का जैसे हमने दावा किया हो कि हम हर अस्पताल में मरीज़ों तक खून पहुँचाएँगे।
ये लोग इतने हसद और जलनखोर हैं कि यह भी नहीं देखते कि इमरान भाई ने किसी को नहीं बुलाया बल्कि एक आम पब्लिक अपील की , जिसे आने की इच्छा हुई उन्होंने खुद फोन करके आने की बात कही और हमनें उनका नाम एनाउंस किया।
दरअसल “लहू बोल रहा है” की सफलता से इनके सीने पर साँप लोट गया तो समझ सकते हैं कि इनका उद्देश्य कौम की फिक्र नहीं बल्कि खुद की राजनीति चमकाने की अधिक है ।
20-25 दर्जन केला और 10-50 पाउच फ्रूटी लिए इन लोगों को देख कर पहले तो मुझे इनका यह सहयोग बड़े हृदय का होने का सबूत दिखा परन्तु शाम होते होते सोशलमीडिया पर उनका रोना धोना बताने लगा कि यह सब कार्यक्रम को विफल और वहाँ की बदइंतजामी दिखाने के लिए किया गया। चंद सौ खर्च करके यह कौम पर एहसान लादना चाहते हैं जिसको सोशलमीडिया पर उनकी नकरात्मक मुहिम देख कर समझा जा सकता है।
फेसबुक पर और कुछ वेबसाइट पर इसी खेल को खेला जाने लगा , यह इनकी घटिया मानसिकता के सबूत से अधिक कुछ नहीं।
कुछ लोग खुद खून ना देकर अस्पतालों में खून की जरूरत बताते दिखे , मजेदार बात यह है कि उनको उस अस्पताल में खुद जाकर खून देना चाहिए था तो वह यहाँ आई भीड़ से 40 किमी दूर दिल्ली की ट्रैफिक में 3 घंटे का सफर करके मेदान्ता जाकर खून देने की बात कर रहे थे।
और फिर सोशलमीडियिया पर इसे उछाल रहे हैं कि मेदान्ता में 4 यूनिट खून नहीं पहुंच सकता।
मैं उनसे पूछना चाहता हूँ कि मेदान्ता जाकर खुद खून क्युँ नहीं दिया ?
सोचिएगा कितने घटिया लोगों की प्रजाति है इन जलन और हसदखोर लोगों की। वह चीढ़ और हसद में जले जा रहे हैं और ऐसे इंतज़ाम की बात कर रहे हैं जैसे वलीमा या बारात में आए हों इसके बावजूद कि जंतर मंतर पर सभा करने की नियमावली बेहद सख्त है ,
हमारा मिशन और उद्देश्य अस्पतालों में किसी एक या दो ज़रूरतमंद मरीजों को खून पहुँचाना नहीं था , हमारा उद्देश्य खून दान करके सरकारों और भगवा आतंकवादियों को झगझोरना था जिसमें हम कामयाब हुए। बकिया ख़ून तो ज़रूरतमंदो तक ही पहुँचेगा।
हमारा यह भावुक आंदोलन हर कैम्प में पूरी तरह सफल रहा और इतिहास बन चुका है कि किसी व्यक्ति के कहने से इस देश में पहली बार हजारों हजार लोग अपना खून डोनेट करने सड़कों पर उतर आए।
बाकी रही इंतज़ाम की बात तो टीम इमरान ने तो वहाँ उपस्थित लोगों के लिए खाने तक की व्यवस्था की थी।
फोटो देखो और अपना मुँह पीट लो , और जलना है तो यह देख कर और जलो कि कल “ट्विटर पर “लहू बोल रहा है” दूसरे नंबर पर टाप ट्रेंड कर गया इसके बावजूद कि कल “फ्रेंडशिप डे” था।
See Translationmohd ज़ाहिद———————————————Mohammad Anas added 2 new photos.
3 hrs · Allahabad ·
तुम्हारा तो पसीना भी झूठ बोलता है।
यहां दो तस्वीरें हैं। एक महीनों पहले किसी मुशायरे की दूसरी जंतर मंतर पर मनीष सिसोदिया, संजय सिंह, स्वामी अग्निवेश आदि के स्वागत समारोह की।
दोनों में एक समानता है। सफेद रंग का कुर्ता है। कुर्ता-पैजामा पहनने वाले लोगों को मालूम है कि कुर्ते के नीचे बनियान पहना जाता है। गले में सफेद रंग का लंबा सा गमछा डालने वाले के पास आखिर बनियान क्यों नहीं? शायद ही कोई ऐसा इंसान होगा जो खाली कुर्ता पहन ले और नीचे बनियान न पहने। एक बार हो सकता है भूलवश इंसान ऐसा कर दे लेकिन बार बार वह इस गलती को नहीं दोहराएगा। जल्बाजी में पूरी तरह सजना संवरना याद रहा। गमछा याद रहा। घड़ी याद रही। बस याद नहीं थी तो उस बनियान की जिससे पसीना छुप जाता। कौन चाहेगा कि उसका पसीना लोग देखें ? ज़ाहिर सी बात है मॉर्केटिंग में थर्ड क्लास पास कोई इंसान ही ऐसा करेगा। एक बार पसीना बिक गया तो उसे बार बार बेचा जाएगा। इस देश का यही दुर्भाग्य है। यहां जो दिखता है भीड़ उसी के पीछे भागती है। खून दिखा, लोग निकल पड़े, पसीना दिखा लोग रो पड़े। लोग सोच नहीं पाते। उन्हें ऑंखों पर इतना भरोसा हो जाता है कि वे दिमाग तक कुछ लेकर ही नहीं जाते।
जंतर मंतर पर बहुत से लोग थे। फोटोग्रॉफर ने सिर्फ अल्लामा की फोटो उतारी। सैकड़ों लोग जो खून देने दूर शहर से आए थे क्या उनमें से किसी एक पर भी फोटोग्रॉफर फोकस नहीं कर सकता था। क्या वहां मौजूद लोगों का जिस्म सूख चुका था, उनमें पर्याप्त पसीना नहीं था कि कैमरे का लेंस फोकस हो सके। ये जो फोकस और ब्लर का नाटक है न मियाँ, इससे जज़्बात की सौदेबाज़ी तो अब नहीं ही होने दूंगा।
लेकिन हमारे प्रिय शायर साहब को तो पसीने से भी एहसास कमाने की लत लग गई। सो उन्होंने अपने पर्सनल फोटोग्रॉफर से मस्त पसीने वाले पोज़ में तस्वीरें उतरवाईं। महीने भर पहले जो पसीने वाली फोटो किसी मुशायरे से निकली थी पहले तो उस फोटो को ‘लहू बोल रहा है’ में इस्तेमाल किया गया, और जब लहू बोल रहा है की बदइंतज़ामी तथा अपरिपक्वता पर लोगों ने आपत्ति दर्ज की तो वक्त के अल्लामा तथा उनके दिहाड़ी मजदूरों वाली भक्त फौज ने ‘जादू मंतर’ से पसीने से तरबतर वाली फोटो लगा डाली।
अब भाई ऐसी फोटो जनता देखेगी तो ज़ाहिर सी बात है भावुक होगी। जनता गुस्सा करेगी उन लोगों पर जो ‘क़ौम’ के फायदे और फलाह के लिए चलाई गई मुहिम को टॉर्गेट कर रहे थे। और यही हुआ भी, लोग मुझे फोन करके समझाने लगें कि अब बस करो, जाने दो, बहुत ‘डैमेज’ हो गया है। तुम्हारी वजह से मुख्यधारा की मीडिया से तथाकथित इतना बड़ा प्रोटेस्ट गायब रहा। किसी भी हिंदी या अंग्रेजी अथवा ऊर्दू के ख़बरिया चैनल पर स्टोरी नहीं चली, जबकि जंतर मंतर ऐसी जगह है कि कुत्ता भी छींक दे तो बीस पत्रकार दौड़े चले आते हैं। लोग कहने लगे कि अब दिल्ली से लेकर खाड़ी तक के लोग समझ चुके हैं शायर को। जितना तुम्हें करना था तुमने कर दिया। मोहर्रम के जुलूस में बैनर लगा कर ‘मुबारकबाद’ देने वाली जमात के लोगों में वो हीरो है तो बने रहने दो हीरो।
खैर एक गंभीर बात, जंतर मंतर पहुंच कर सब अन्ना हजारे या अरविंद केजरीवाल नहीं बन जाते। मुशायरा वुशायरा पढ़ो। नेतागीरी और क़ौम की फर्जी खैरख्वाही का दिखावा जितनी जल्दी हो सके बंद करो। वरना मुशायरे वाली दुकान भी बंद हो जाएंगी। नए लोग तेजी से चढ़ रहे हैं। कई तो प्रतापगढ़ के ही हैं।
तो भैया ई पसीना वसीना उन्हीं को दिखाओ जो तुम्हें नहीं जानते। और हां, बनियान पहिन के जाना अगली बार। फिर से फोटो लगाओगे तो जनता पकड़ के पूछ लेगी। एक ही पोज़ में सारे इवेंट कैश नहीं कराए जाते। पूअर स्ट्रैटजी है। हमने इतना सब सिखाया था, भूल गए का?
इस पोस्ट के बाद मेरे विरूद्ध पोस्ट लिखने वाले सबसे उत्तम चिकलांडू को हमारी संस्था पिछली बार की तरह इस बार भी ‘दिवाल घड़ी’ ही गिफ्ट करेगी। इससे ज्यादा का स्तर हमारे विरोधियों का अभी नहीं हुआ है। चलो लग जाओ सब काम पर। लाइन से। धक्का मुक्की नहीं। ठीक से लिखना।-Mohammad Anas