यु पी विधानसभा चुनाव राहुल प्रियंका के लिए एक आखिर और अच्छा मौका था भाजपा की नोटबंदी की सनक से सपा बसपा के जातिवाद और कुशासन से लोग बेहद दुखी थे इसलिए जब यु पि चुनाव की आहट के साथ ही राहुल अपनी खाट सभा लेकर जब सबसे पहले मैदान में सकिर्य हुए प्रिंयका भी भागदौड़ करती दिखी तो भीड़ से लगा था की कोंग्रेस सौ नहीं तो पचास सीटे जीत कर अगली सरकार की चाबी अपने पास रख लेगी और भारत के सबसे बड़े सबसे महत्वपूर्ण सबसे अधिक लोकसभा और राज्यसभा की सीट , के साथ भारत के सबसे पिछड़े और परेशान राज्य उत्तरप्रदेश को पटरी पर लाने में अपना योगदान देकर अगली केंद्र सरकार का अपना दावा ठोक देंगे मगर हमेशा की तरह अचानक राहुल थक से गए और निक्कमो आलसियों और चाटुकारो की बातो में आकर ये समझ बैठे की अगली सरकार तो फर्जी विकास पुरुष अखिलेश की ही बनती दिख रही हे जो अपने परिवार और पार्टी में एक नूराकुश्ती के बाद हीरो से बनते दिख रहे थे इन चाटुकारो की बात मानकर राहुल प्रियंका ने जमीनी संघर्ष एकतरफ रख कर अखिलेश से गठबंधन करके सोचा की इस तरह बैठे बिठाय कोंग्रेसियो को यु पी में सत्ता मिल जायेगी लेकिन नतीजा वही आया जो आना था सबसे अधिक दंगो और परिवारवादी समाजवादी पार्टी के साथ के कारण राहुल -प्रियंका कोंग्रेस की भी लुटिया डूब गयी और इतने बड़े और महत्वपूर्ण राज्य यु पी में ढंग का विपक्ष तक नहीं बचा अब आगे क्या हो ————— ?
अब ये साफ़ हो चूका हे की राहुल प्रियंका दोनों आलसी तो हे दोनों ही इतना अधिक सत्ता देख चुके हे की दोनों में सत्ता हासिल करने की भी कोई आग कोई जोश कोई जूनून नहीं हे इनकी इस फितरत का दंड देश और कोंग्रेस को भुगतना पड़ रहा हे कोंग्रेस देश के लिए बेहद जरुरी हे आख़िरकार ये आज भी देश के हर कोने में मौजूद सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी हे लोकतंत्र में मज़बूत विपक्ष का होना बेहद जरुरी हे नहीं तो कब सत्ता अपनी सनक में क्या क्या कांड कर देगी कोई नहीं जानता और बता सकता हे दुनिया की अगर कोई सबसे बेहतर और विनम्र सरकार हो भी तो भी मज़बूत विपक्ष की जरुरत होती हे भारत में तो भृष्ट कायर और शोषक हिन्दू कठमुल्लावादी सरकार बनी हुई हे जिसे कंट्रोल करना और हटाना बेहद जरुरी नहीं तो ये सरकार देश को और अनगिनत संमस्याओं में डुबोने वाली हे मज़बूत विपक्ष आज की पहली जरुरत हे और मज़बूत विपक्ष में मज़बूत कोंग्रेस चाहिए ही चाहिए अब कोंग्रेस मज़बूत कैसे होगी ——– ? सोनिया जी बीमार हे तो राहुल प्रियंका में इस ज़हरीली सरकार से लड़ने भिड़ने का सड़को पर उतरने का , जेल भरो को दमखम नहीं हे इनसे ना हो पायेगा इसके आलावा भी कोंग्रस के सारे बड़े नेता दस साल की सरकार में खा खा कर ”अजगर ” हो चुके हे पुरे पुरे जानवर निगलने के बाद अजगर महीनो बिना हिले डुले पड़े रह सकता हे यही हाल इन कोंग्रेसी नेताओ का हे आज जबकि इस ज़हरीली हिन्दू कट्टरपन्ति सरकार से हर मोर्चे पर टक्कर लेने की जरुरत हे तो कोंग्रेसी नेताओ का हाल ये हे की ऐसे समय में वो नेट पर कुत्ते खरीदने और ठगे जाने में बीजी हे कईयो की अंदरखाने भाजपा नेताओ से साठ गाँठ बताई जाती हे बदले में इनके हितो की सुरक्षा बताई जाती हे तो ये लोग तो अजगर ही बने रहने वाले हे ये कुछ नहीं करने वाले हे ऐसे में यही सब चलता रहा तो कोंग्रेस दस साल में खत्म हो जायेगी तब क्या होगा ————– ?
राहुल सोनिया प्रियंका को सोचना चाहिए पहले भी वो एक महाभूल कर चुके हे जब कई घोटालो और लुंजपुंज छवि से अलोकप्रिय हुए मनमोहन सिंह को 2011 के बाद उन्होंने हटाकर किसी प्रणव या गुलाम नबी को पी एम् नहीं बनाया था इस डर से की ये काबू से बाहर हो जाएंगे नतीजा आज कोंग्रेस पचास सीट से भी नीचे पहुच चुकी हे इससे बुरा और क्या होना था ——- ? उस समय अगर हिम्मत करके किसी और को सत्ता सौप दी जाती तो आज कम से कम कोंग्रेस सौ सीट लेकर मज़बूत विपक्ष तो होती ही वही गलती आज फिर ये लोग कर रहे हे की किसी और को कोंग्रेस नहीं सौप रहे हे राहुल प्रियंका सोनिया को सोचना चाहिए की क्या अगर कल को कोंग्रेस मिट जायेगी तो खुद उनकी क्या अहमियत रह जायेगी क्या दुनिया भर में आप मजाक का विषय नहीं बनोगे इससे तो बढ़िया हे की आगे बढे और दिल बड़ा करके किसी और को कोंग्रेस सौप दे कोंग्रेस चाहे जिसके हाथ में हो अगर कोंग्रेस मज़बूत होगी तो आपका भी एक रूतबा तो बना ही रहना हे और इस दुनिया में कोई अपनी अहमियत खोना नहीं चाहता हे राहुल प्रियंका की अहमियत कोंग्रेस के मज़बूत होने में ही हे . अगर राहुल प्रियंका किसी और को कोंग्रेस सौपने का दिल बड़ा करना और देश हित समझदार दिखाना चाहेंगे तो इसके लिए ममता बनर्जी से बेहतर दावेदार कोई नहीं हे शुद्ध सेकुलर छवि की ममता ही देश पर छाती जा रही हिन्दू कठमुल्लाओ की फौज को कमजोर कर सकती हे . इस ज़हरीली सरकार में सबसे अधिक महिमांडन मोदी जी की फ़र्ज़ी ईमानदारी और फ़र्ज़ी सादगी का किया जाता हे ममता के सामने होने पर इस फर्ज़ीवाड़े की भी पोल खोल जायेगी क्योकि ममता बनर्जी मोदी जी तरह फ़र्ज़ी नहीं बल्कि असली सादगी पसंद ( सूती साडी रबर की चप्पल बेदाग किसी बड़े घराने का सपोर्ट नहीं ) ) और शुद्ध ईमानदार हे!
उनके आगे आने पर कोंग्रेस की महाभरष्ट छवि भी सुधरेगी . मोदी जी की हिंदी में लगातार बड़ बड़ करने की क्षमता के कारण ही मिडिया उन्हें रात दिन दिखाकर प्रचार देकर उनकी कामयाबी सुनिश्चित कर रहा हे आज का जमाना ही ऐसा हे की जो दिखता हे वही बिकता हे मोदी के सामने राहुल प्रियंका को बोलना नहीं आता हे दोनों धाराप्रवाह नहीं बोल सकते हे जबकि ममता बंगला अंग्रेजी और हिंदी भी बोल सकती हे और मोदी को कड़ी टक्कर दे सकती हे शुद्ध सेकुलर छवि की ममता ही इस हिन्दू कट्टरपन्ति सरकार के सामने सही दिखेगी सेकुलर हिन्दुओ मुसलमानो ईसाइयो का भी उन्हें एकतरफा सपोर्ट मिल सकता हे वैसा ही एकतरफा सपोर्ट जैसा कम्युनल हिन्दुओ का आज मोदी शाह को मिल रहा हे आज जरुरत इस ज़हरीली सरकार को सड़क पर कड़ी टक्कर देने की ही हे ममता से ज़्यादा इस काम में तपा तपाया शायद ही कोई और नेता हो उन्होंने बीसियों साल सड़को पर ही संघर्ष और अनशन आंदोलन करके सत्ता पायी हे साथ ही इसी कारण वो फियर लेस भी हे उन्हें किसी से डर नहीं हे ना उन्हें कोई डरा पाया हे इसके आलावा मोदी जी को गुजरात और गुजरातियो ने अँधा सपोर्ट देकर पी एम् बनवाया हे तो चालीस से अधिक लोकसभा सीट वाले बंगाल और बंगलियो से भी और महिलाओ से भी ममता को खूब सपोर्ट मिल सकता हे वैसे ही जैसा मोदी को मिला था ममता के आने से कोंग्रेस की संसद सीट में भी काफी इजाफा होगा उसमे नया आत्मविश्वास आ सकता हे ममता ही हे जो मोदी शाह की हर ” ईट” का जवाब पत्थर से दे सकती हे इस सरकार को हटाने और कोंग्रेस को नया जीवन देने में सबसे अधिक अधिक सटीक चेहरा ममता बनर्जी का ही हो सकता हे सोनिया राहुल प्रियंका जी से अपील हे की कोंग्रेस के ढहते किले को बचाने की खातिर इस किले की चाबी ममता बनर्जी को सौप दीजिये वार्ना सब कुछ खत्म हो जाएगा —
सिकंदर हयात जी आपसे सहमत क्योके ममता बनर्जी हिम्मती और संघर्ष करने वाली नेता है , बाकी कांग्रेस में अब सिर्फ वातनुकूलित कमरे में बैठ कर सियासत करने वाले है आप देख लीजिये दिग्विजय सिंह को गोवा में ऐश कर रहे थे और भाजपा ने सर्कार बना ली , मगर सच्चाई ये भी है के कांग्रेस भले ही ख़त्म हो जाए कांग्रेस परिवार से बहार किसी और को सत्ता की कमान नहीं सौंपेगा !
मोदि के मुकाबले मे अखिलेश मायवति केजरिवाल नितिश लालु थेीक रहेन्गे
उत्तर भारत का व्यक्ति हेी मोदि को हरा सक्ता है अगर् मायवति अखिलेश मिल्कर लद्ते तो मोदि कि हालत भि दिल्लि बिहार कि तरह होति
मोदि तो आद्वानि जैसे भि बन् सक्ते है
सन्घ किसि को भि
मित्ति मे मिला सक्ता है
मोदि के बजये योगि को आगे किय जा सक्ता है
हम्ने मोदि के सत्ता मे आने के पहले कहा था
कि देश मे ५०% से ज्यदा वोत् {मत} पाये वहेी विजयि घोशित किया जाये
अगर तभि यह नियम बना लिया होता
तो मोदि सत्ता मे कभेी नहि आ पाते
अब मोदि ऐस क्यो करेन्गे
Agar Congress ladna nahi cahti hai to das sal kya agle 5 sal me hi khatam ho jayegi.Ab Samye a gya hai lado ye khatam ho jao.
एक ४८ साल के अनमेचोर से उम्मीद रखना खुद को कुअ मे धक़ेलने जैसा है गोवा और मनिपुर इसका प्रमाण है कान्ग्रेश को यदि अपना अस्तित्व बचाना है तो गान्धी परिवार को दरकिनार करके कोइ योग्य नेता पैदा करना ही पडेगा
बिलकुल सही पकडे है हयात भाई ममता जी घर घर मीट भिजबायेंगी अगर केंद्र में सरकार आई ममता की ?
सिकंदरजी,
मध्यम वर्ग (middle class) भारत के आर्थीक विकास मे योगदान देते है. सरकार secular हो या हिंदुत्ववादी economic policies पर इसका कुछ भी असर नही होता है. भौगोलीक परिसीमा और कुल जन संख्या के प्रमान मे हमारी घनता जादा होने के कारण विकास lower class तक नही पोहच पाता. China की तरह हम देश नही चला सकते ये हमारी नितीयो का हिस्सा नही है.
आपके लेख मे एक आभासी भय छुपा है. भारत के कदम ना तो रशीया की तरहा बिखरने के कगार पर है और नाही सिरीया की तरह civil war के दिशा मे है.
Rakesh Kayasth shared a video.
20 hrs ·
यह बीजेपी और आरएसएस के प्रचार तंत्र की ताकत है कि देश का सबसे मूर्ख आदमी भी खुद को राहुल गांधी से अक्लमंद मानता है। यह सच है कि राहुल गांधी संयोग से राजनीति में आये या ले आये गये। बेशक राजनेता के तौर पर उनका परिपक्व होना बाकी है।
लेकिन संवाद करने और आड़े-टेढ़े सवालों के जवाब देने के मामले में उनका रिकॉर्ड अपने विरोधियों से बेहतर ही नहीं बल्कि बहुत बेहतर हैं। वे नियमित रूप से प्रेस कांफ्रेंस करते हैं। मैने उन्हे आंखों में आंसू भरकर इंटरव्यू बीच में छोड़ते आज तक नहीं देखा है।
गुजरात कैंपेन के बाद से राहुल गांधी में एक अलग बदलाव दिखा है। प्रधानमंत्री द्वारा किये गये निजी हमलों पर उनके जवाब देते वक्त भी राहुल गांधी ने ये साबित किया कि भले ही वे एक शातिर राजनेता ना हों लेकिन `पप्पू’ कतई नहीं हैं।
Rakesh Kayasth
4 hrs ·
जनसभा में जनप्रिय प्रधानमंत्री ने हाथ उठाकर पूछा— बताइये भाइयो-बहनो क्या कोई कांग्रेसी नेता भगत सिंह और उनके साथियों से जेल में मिलने गया था? सवाल सुनते ही एहसास हुआ कि मेरा भारत फिर से सोने की चिड़िया बन चुका है। अब यहां गली-गली में तक्षशिला जैसे विश्वविद्यालय हैं, जिनसे निकलकर लाखों इतिहासकार सीधे मोदीजी की रैली में आ रहे हैं।
प्रधानमंत्री ने सवाल फिर दोहराया— मैने जितना इतिहास पढ़ा है, मुझे पता है कि कोई नहीं गया था। आप बताइये भाइयो बहनो कुछ गलत हूं तो मुझे सही कीजिये।
समझ में नहीं आता कि मोदीजी ने इतना लोड क्यों लिया? लालकृष्ण आडवाणी जैसे पढ़े लिखे नेता अब भी पार्टी में हैं और उपर वाले की मेहरबानी से सेहतमंद भी हैं। उनसे जाकर पूछ लेते। अगर आडवाणी से आंख मिलाने में शर्म आ रही थी तो सुषमा स्वराज से पूछ लेते, काफी पढ़ी-लिखी नेता हैं। मातहत भी हैं, बात एकदम गोपनीय रहती।
लेकिन देश के प्रधानमंत्री को ना आडवाणी की ज़रूरत है, ना सुषमा स्वराज को। उन्हे सिर्फ भीड़ की ज़रूरत है। भीड़ ने मोदीजी के इतिहास ज्ञान पर तुरंत मुहर लगा दी पंचम स्वर में `नहीं’ बोलकर। देवताओं ने आसमान से फूल जरूर बरसाये होंगे, टीवी कैमरे पर नज़र नहीं आये वह अलग बात है। जब भीड़ जब इस बात का अनुमोदन तत्काल कर सकती है कि नेहरू या कोई कांग्रेसी नेता भगत सिंह से मिलने नहीं गया था, तो फिर भीड़ यह क्यों नहीं मान सकती कि मोदीजी ज़रूर गये होंगे।
बैक डेट से डिग्री बनवाई जा सकती है तो बैक डेट से महापुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर आजादी की लड़ाई में शिरकत क्यों नहीं की जा सकती है? महान नेता वही होता है जो इतिहास की धारा को मोड़ दे। नेता मोदीजी जैसा महान हो तो इतिहास को पीछे भी ले जा सकता है और रैली में मौजूद अपने इतिहासकारों की मदद से तथ्यो में पर्याप्त संशोधन भी करवा सकता है।
कर्नाटक की रैलियों में प्रधानमंत्री ने तथ्यों के साथ जो कुछ किया, उसके बाद कहने को कुछ बचता नहीं है। सोशल मीडिया पर रोजाना छीछालेदर हुई, रोजाना सही तथ्य याद दिलाये गये लेकिन मजाल है कि कान पर जूं तक रेंगे। मैने पहले भी कहा था कि देश को ऐसा प्रधानमंत्री मिला है जो 24 घंटे में 26 घंटे काम करता है। इसके बाद आप उम्मीद करें कि इतना काम करके वे पद की गरिमा भी रख लेंगे तो आपकी नादानी होगी। पद की गरिमा आपको ही रखनी होगी। तरीका एक ही है— आंखें और कान बंद कर लीजिये।=============================मुकाबले में राहुल
नवभारत टाइम्स | Updated: May 10, 2018, 09:21AM IST
TimesPoints
ataka assembly elections, rahul gandhi in race to become pm if congress wins big in lok sabha elections
कर्नाटक विधानसभा चुनावों के लिए जारी प्रचार युद्ध के दौरान ही कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने 2019 के चुनावी महासमर को लेकर एक बड़ा खुलासा कर दिया। उन्होंने कहा कि अगर 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी होकर उभरती है तो वह प्रधानमंत्री बनने के लिए तैयार हैं। पहली नजर में यह अत्यंत सामान्य बयान लग सकता है, लेकिन कांग्रेस और खासकर राहुल गांधी के संदर्भ में यह विशेष अहमियत रखता है। कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष और राहुल गांधी की मां सोनिया गांधी ने 2004 के लोकसभा चुनावों में पार्टी की अगुआई करने और उसे अप्रत्याशित जीत दिलाने के बाद जिस तरह से प्रधानमंत्री पद डॉ. मनमोहन सिंह को सौंप दिया, वह लोग भूले नहीं हैं। राहुल गांधी भी न केवल मनमोहन सिंह सरकार में मंत्री पद स्वीकारने में हिचकते रहे, बल्कि उनके पार्टी की कमान संभालने को लेकर भी कांग्रेस में लंबे समय तक कशमकश चलती रही।
टॉप कॉमेंट
राहुल का ताजा बयान कांग्रेस के अंदर लोकतंत्र कितना जीवित है उसको सॉफ तौर पर स्थापित करता है अन्यथा इस तरह के सवाल के जबाव मे अधिकतर राजनेता यही जबाव देते है चुने हुए सांसद ही यह तय…+
ध्यान देने की बात है कि इस परिवार के दो अहम सदस्य प्रधानमंत्री पद पर रहते हुए अपनी जान गंवा चुके हैं। ऐसे में राहुल गांधी के नाम के साथ चलती इन अनिश्चितताओं के तरह-तरह के मायने निकाले जाने स्वाभाविक हैं। मौजूदा राजनीतिक हालात में ये तमाम मायने कांग्रेस की राजनीति को कमजोर कर रहे थे। न केवल बीजेपी को यह कहने का मौका मिल रहा था कि राहुल गांधी राजनीति में कच्चे हैं, इसके लायक नहीं हैं, बल्कि गैर कांग्रेस-गैर बीजेपी पार्टियों का तीसरा मोर्चा बनाने की इच्छुक शक्तियों को भी यह असमंजस ताकत दे रहा था। अपने इस स्पष्ट बयान के जरिए राहुल ने न केवल कांग्रेस कार्यकर्ताओं के मन की दुविधा दूर की है बल्कि अपने विरोधियों को भी संदेश दिया है कि वे उन्हें हल्के में लेने की गलती न करें।
हालांकि चुनावी लड़ाइयों के दौरान इस तरह की घोषणाओं का सांकेतिक महत्व ही होता है। सब कुछ आखिरकार इसी बात पर तो निर्भर करेगा कि सीटें किसे कितनी आती हैं। अगर सीटें ही कम आएंगी तो राहुल के इस बयान का कोई मतलब नहीं रह जाएगा। अगर सीटें ज्यादा आईं तब क्या होगा? इस सवाल पर अब कोई असमंजस नहीं रह गया है और यह बात कांग्रेस की राजनीति को, निश्चित रूप से ताकत देगी।
Prashant Tandon
10 hrs ·
राजीव गांधी समय के आईने में:
राजीव गांधी जब तक सत्ता में रहे उन्हे बेहद नापसंद किया – कई वजह थीं. नापसंदगी की शुरुआत सिखों के नरसंहार पर उनके “बड़ा पेड़ गिरता है तो ज़मीन हिलती है” बयान से ही हो गई थी.
उसके बाद अरुण नेहरू और अरुण सिंह जैसों की पैराशूट से राजनीति में उतरी चौकड़ी आँखों में अखरती थी. जब वो पोस्टल बिल लेकर आये तो उनके प्रति रहा सहा विश्वास भी जाता रहा. इसी के चलते उनके राष्ट्रपति ज्ञानी ज़ैल सिंह से रिश्ते भी तल्ख हुये जिन्होने नागरिकों की निजता में सरकार के दखल देने वाले उस बिल को मजूरी नहीं दी. (पोस्टल बिल आज भी राष्ट्रपति भवन में ही है).
फिर वीपी सिंह नें एचडीडब्लू पनडुप्पी और बोफोर्स तोपों की खरीद में दलाली के आरोप लगाकर सरकार से बाहर निकले तब मैं राजीव गांधी का मुखर विरोधी हो चुका था. उनके तकिया कलाम “हमे देखना है” का मज़ाक भी बनाता था.
श्रीलंका में भारतीय शांति सेना को भेजने का फैसला ठीक नहीं था. जिसकी कीमत उन्हे अपने जान गंवाने से चुकानी पड़ी. उस हादसे के बाद उनसे सहानुभूति होने लगी.
अब पीछे मुड़ कर देखता हूँ तो राजीव गांधी अपने कार्यकाल में कुछ बड़े काम कर गये जिसका प्रत्यक्ष फायदा आज भी देश को मिल रहा है.
सबसे बड़ा काम उन्होने पंचायती राज को संस्थागत कर के किया जिस वजह से लोकतंत्र की जड़े सबसे निचले पायदान तक पहुंची और विकास कार्यों में ग्राम पंचायत की भागीदारी हो पाई. आज भी मानरेगा, प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना जैसी बड़ी सरकारी योजनायें उन्ही संस्थाओं से चलती हैं.
कंप्यूटर और आईटी में अगर आज हम दुनिया में विकसित देशों के साथ खड़े होने लायक हैं तो राजीव गांधी की ही वजह से. पंजाब और असम समझौते भी राजनीति और शांति कायम करने के लिहाज से दूरगामी साबित हुये. आज हालांकि असम समझौते का खुला उलंघन हो रहा है सिटीजन रजिस्टर और बिल के जरिये.
1985 में दबदल कानून राजीव गांधी ही लेकर आये थे और संविधान संसोधन कर के 10वी अनुसूची जोड़ी गई थी. बिल कितना उपयोगी था इसका ताजा उदाहरण दो दिन पहले कर्नाटक के विश्वास मत दौरान देख ही चुके हैं. उन्होने 21वी सदी के भारत का सपना देखा था और आगे की सरकारे उसी विज़न से आगे बढ़ी और जो नया भारत हम देख रहे हैं वो खून में राजीव गांधी ने भरा ही था.
414 के बहुमत के बाद भी राजीव गांधी की लोकतंत्र की संस्थायों के प्रति आस्था डिगी नहीं थी और वो सहजता बनाये रहे. तमाम कमियों के बाद भी राजीव गांधी की नीयत साफ थी इसीलिये शायद वो इतना कुछ दे ग——————
Nitin Thakur
14 hrs ·
समाजवादी वीरेंद्र भाटिया के पुत्र गौरव भाटिया ने नमक का हक़ अदा किया
कल इंडिया TV पर भाजपा के प्रवक्ता गौरव भाटिया को सुना। अखिलेश यादव से लेकर मुलायम सिंह यादव, शिवपाल यादव पर खूब जहर उगल रहे थे । वंशवाद पर लम्बे चौड़े भाषण दे रहे थे। पिछली सपा सरकार के विरुद्ध जमकर बरस रहे थे। सपा सरकार को भ्रष्टाचारी सरकार बता रहे थे।
गौरव भाटिया , विरेंद्र भाटिया जी के बेटे है । स्व० विरेंद्र भाटिया जी को मुलायम सिंह यादव ने उच्च सदन ( राज्य सभा ) में भेजा था । अपने पिता का दामन थामकर गौरव भाटिया भी सपा में आ गए , अखिलेश यादव ने उन्हें राष्ट्रीय प्रवक्ता और समाजवादी लीगल सेल का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया ।
सरकार बनते ही उन्हें Additional Solicitor General बनाया जिस पर वो फ़रवरी , 2017 तक रहे । विधान सभा चुनाव से एक सप्ताह पहले वो भाजपा में चले गए ।
पूरी सरकार में उन्होंने जमकर मलाई खाई , एक बार लखनऊ Airport पर मेने स्वयं उनके जलवे देखे थे । ऐसे कितने भाटिया , अग्रवाल , मिश्रा , पांडे और राजा भैया है जो सरकार में सबसे अहम पदों पर रहते है और सपा की सरकार जाते ही अपनी मातृ पार्टी में वापस चले जाते है ।
विपक्ष में आते ही सपा का झंडा किसी यादव, ख़ान, कुरैशी, कुशवाहा, मौर्या, राजभार, निषाद और पटेल के हाथ में आ जाता है । पाँच साल यह लोग संघर्ष करते है , सरकार बनती है और फिर भाटिया जैसे लोगों की घर वापसी हो जाती है ।
क्या इस बार अखिलेश यादव कोई ऐसा भरोसा दिलाएँगे की इन लोगों की सत्ता में घर वापसी नहीं होगी ? यह लोग अपने समाज के तो छोड़िए अपने घर के वोट भी आपको नहीं दिला सकते फिर इनको इतना महत्व क्यों ?
क्या आप भी जाति के आधार पर लोगों को बुद्धिमान समझते है । विश्वास कीजिए यह लोग आपके साथ संघ द्वारा ही लगाए जाते है जिससे आपकी सरकार में भी संघ का कोई काम ना रुके । एक बार इनकी एंट्री पार्टी में रोककर तो देखिए , विपक्ष का मुँह नहीं देखना पड़ेगा , बस अपने लोगों पर विश्वास कीजिए । @राहुल कुशवाहा