by — गौस सिवानी
जल्द ही दुनिया की अधिकांश आबादी मुसलमान होगी और सबसे ज्यादा मुस्लिम आबादी वाला देश भारत है। यूरोप में ईसाई अल्पसंख्यक होंगे और मुसलमानों की आबादी अधिक बढ़ चुकी होगी। दुनिया के सभी देश कलमा ए तौहीद पढ़ने वालों से परिपूर्ण होंगे और मुसलमान गर्व से कह सकेंगे कि:
चीनो अरब हमारा, हिन्दोस्तां हमारा
मुस्लिम हैं हम वतन है सारा जहां हमारा
मगर सवाल यह है कि जब दुनिया में मुस्लिम आबादी में नंबर एक होंगे तब क्या वह शिक्षा में भी पहले नंबर पर होंगे? विज्ञान और प्रौद्योगिकी में भी वह सबसे आगे होंगे? सैन्य शक्ति उनके पास सबसे अधिक होगी? राजनीतिक सूझबूझ और दीनी और नैतिक चेतना में भी सारी दुनिया पूर्ववर्ती होंगे या तब भी किसी अमेरीका ही का राज होगा और मुट्ठी भर यहूदी दुनिया पर राज कर रहे होंगे? जिस तरह अरब देशों के संसाधनों पर आज अमेरिका और यूरोप का कब्जा है उसी तरह मुस्लिम देशों के संसाधनों पर पश्चिमी ताकतें काबिज रहेंगी? भारत में मुसलमान दलितों से बदतर ज़िंदगी गुज़ार रहे हैं और उनका जीवन स्तर तेजी से गिरता जा रहा है, इसी तरह और अधिक गिरेगा और मध्य युगीन दलितों के स्थान पर पहुँच चुके होंगे? जिस तरह पांच हजार साल तक दस प्रतिशत ब्राह्मणों ने नब्बे प्रतिशत आबादी पर राज किया इसी तरह मुसलमानों की गर्दन पर सवार होंगे और मुसलमान गुलामों की तरह जीवन व्यतीत कर रहे होंगे? प्यू रिसर्च सेंटर ने अपनी एक ताजा रिपोर्ट में मुसलमानों की आबादी बढ़ने की अटकलें तो की है मगर उन सवालों का कोई जवाब नहीं दिया है जिन्हें हम उठा रहे हैं। उसने यह भी नहीं बताया कि जिस तरह से अरब देशों में मुसलमान ही मसलक के नाम पर मुसलमानों की गर्दनें काट रहे हैं, उस समय भी काटते रहेंगे? जिस तरह इराक और सीरिया में ‘आईएस’ खून खराबा कर रहा है करता रहेगा? जिस तरह मिस्र में इस्लाम दुश्मनों के इशारे पर लोकतंत्र की जड़ें खोदी जा रही हैं, खोदी जाती रहेंगी? जिस तरह सऊदी अरब में इस्लाम के नाम पर नागरिकों का नातेक़ा बंद किया जा रहा है और महिलाओं की जीवन दुभर की जा रही, ये जारी रहेगा? जिस तरह पाकिस्तान की मस्जिदों में बम फट रहे हैं फटते रहेंगे ? जिस तरह अफगानिस्तान से अफ्रीका तक इस्लाम के नाम पर संकीर्णता का दौर दौरा है, जारी रहेगा?
प्यू रिसर्च का कहना है: भारत वर्ष 2050 तक दुनिया में सबसे ज्यादा मुस्लिम आबादी वाला देश हो जाएगा और इस मामले में वह सबसे बड़ी मुस्लिम आबादी वाले देश इंडोनेशिया को पीछे छोड़ देगा जबकि उस समय तक दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी आबादी हिंदुओं की हो जाएगी। प्यू रिसर्च सेंटर द्वारा गुरुवार को जारी धर्म से संबंधित अनुमानों के आंकड़ों के अनुसार दुनिया की कुल आबादी की तुलना में मुसलमानों की आबादी तेजी से बढ़ने का अनुमान है और हिंदू और ईसाई आबादी वैश्विक जनसंख्या वृद्धि की गति के अनुसार रहेगी। इसमें कहा गया है कि भारत हिंदू बहुल देश बना रहेगा लेकिन वह इंडोनेशिया को पीछे छोड़ते हुए दुनिया में सबसे बड़ी मुस्लिम आबादी वाला देश बन जाएगा। रिपोर्ट के अनुसार भारत की 717 करोड़ मुस्लिम आबादी की तुलना में अभी इंडोनेशिया में करीब 520 करोड़ आबादी है। तदनुसार अगले चार दशकों में ईसाई सबसे बड़ा धार्मिक समूह बना देंगे लेकिन इस्लाम किसी अन्य बड़े धर्म की तुलना में तेजी से बढ़ जाएगा।
बराबर हो जाएगी मुसलमानों और ईसाइयों की आबादी: प्यू रिसर्च की रिपोर्ट में भविष्यवाणी की गई है कि वर्ष 2050 तक इतिहास में पहली बार मुसलमानों (2.8 अरब या जनसंख्या का 30 प्रतिशत) की संख्या और ईसाइयों की संख्या (2.9 अरब या जनसंख्या का 31 प्रतिशत) लगभग इसी तरह की होगी। इसमें कहा गया है, मुसलमानों की आबादी दुनियाभर में ईसाइयों के करीब होगी और अगर यह प्रवृत्ति जारी रहती है तो 2070 के बाद इस्लाम सबसे लोकप्रिय धर्म होगा। साल 2050 तक मुस्लिम यूरोप की आबादी के करीब 10 प्रतिशत होंगे जो 2010 के 5.9 प्रतिशत से अधिक होगा। प्यू रिसर्च रिपोर्ट के अनुसार हिंदुओं की आबादी दुनिया भर में 34 प्रतिशत बढ़ने का अनुमान है जो एक अरब से कुछ ज्यादा बढ़कर 2050 तक लगभग 1.4 अरब हो जाएगी। इसमें कहा गया है कि वर्ष 2050 तक दुनिया की कुल आबादी में तीसरे स्थान पर हिंदुओं की आबादी होगी। वह दुनिया की कुल आबादी का 14.9 प्रतिशत होंगे। इसके बाद वे लोग होंगे जो किसी धर्म को नहीं मानते। उन लोगों की संख्या 13.2 प्रतिशत होगी। फिलहाल किसी भी धर्म में विश्वास न रखने वाले लोग दुनिया की कुल आबादी में तीसरे स्थान पर हैं। उस अवधि तक यूरोप में हिंदुओं की आबादी करीब दोगुनी होने की उम्मीद है। यह मुख्य रूप से आव्रजन के चलते करीब 28 लाख 40 प्रतिशत हो जाएगी।
ब्रिटेन में ईसाई अल्पसंख्यक धर्म बनेगा: उत्तरी अमेरिका की आबादी में हिंदुओं की संख्या अगले दशकों में लगभग दोगुनी होने की उम्मीद है, बौद्ध एकमात्र ऐसा धर्म है जिसके अनुयायियों के बढ़ने की संभावना नहीं है। ऐसा इस धर्म के अनुयायियों के वृद्ध होने और बौद्ध देशों (चीन, जापान और थाईलैंड) में स्थिर प्रजनन दर की वजह से होगा। अध्ययन में यह भी अनुमान है कि 2050 तक हर नौ ब्रिटिश में एक मुसलमान होगा। वहाँ ईसाई अल्पसंख्यक धर्म बनने वाला है। अनुमानों के अनुसार ईसाई के रूप में पहचान रखने वाली ब्रिटेन की जनसंख्या 2050 तक लगभग एक तिहाई रह जाएगी और यह मात्र 45.4 प्रतिशत होगी।
एशिया में दुनिया की 62 प्रतिशत मुस्लिम आबादी: पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की तशरीफ़ आवरी अरब की धरती पर हुई। इस लिहाज से यह धरती मुसलमानों के लिए हमेशा सम्मान योग्य रही। यहीं कुरान उतारा गया और यहीं से इस्लाम का संदेश पूरी दुनिया में फैला। इस ऐतिहासिक तथ्य से इनकार संभव नहीं, लेकिन मौजूदा दुनिया को देखा जाए, तो मुसलमानों के बहुमत गैर अरब है। मुसलमान यूं तो सारी दुनिया में रहते हैं। दुनिया का कोई हिस्सा ऐसा नहीं, जो बादा ए तौहीद के मतवालों(मुसलामानों) का निवास स्थान न हो। अफ्रीका के तपते रेगिस्तानों से लेकर यूरोप की बर्फीली वादियों तक, हर जगह मुसलमान फैले हुए हैं, लेकिन उनकी बहुमत एशिया में रहती है और वह भी अरब के बाहर रहती है। सभी अरब देशों की आबादी का मिश्रण किया जाए तो भी वह कुल मिलाकर इंडोनेशिया की आबादी के बराबर न पहुंचें। इसी तरह जनता पर प्रभाव डालने वाली हस्तियों में अधिकांश का संबंध भी गैर अरब इलाकों से ही है। अधिकांश मुसलमान भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, चीन, इंडोनेशिया, मलेशिया, अफगानिस्तान और पूर्व सोवियत संघ के इलाके में रहते हैं। अगर देखा जाए तो सभी मुसलमानों में लगभग 80 प्रतिशत का नाता इन्ही देशों से है। इस तरह यह एक सबसे शक्तिशाली मुस्लिम क्षेत्र है। यह अलग बात है कि मुसलमानों ने कभी शक्ति का एहसास नहीं किया और हर मामले में उनकी नज़र अरब देशों की ओर उठती है। वह चाहते हैं कि उनका नेतृत्व अरब के आलिम ही करें। हालांकि जिस तरह से गैर अरब क्षेत्र मुसलमानों के बहुमत के निवास हैं इस तरह बड़े बड़े नेता, विद्वान और बड़े संस्थान भी गैर अरब एशियाई देशों में ही हुए। मौलाना अशरफ अली थानवी, मौलाना कासिम नानोतवी, मौलाना अहमद रज़ा खान बरैलवी (आलाहजरत), मौलाना मोहम्मद अली जौहर, अल्लामा इकबाल, मौलाना अबुल आला मौदूदी, मोहम्मद अली जिन्नाह, मौलाना अबुल कलाम आजाद, मौलाना अहमद नूरानी, सर सैय्यद अहमद खान, सैयद अमीर अली, डॉक्टर एपीजे अब्दुल कलाम, डॉक्टर अब्दुल क़दीर खान, काजी नजरुल इस्लाम आदि वे व्यक्तित्व हैं जिन्होंने विभिन्न क्षेत्रों में वैश्विक और देर तक रहनें वाले प्रभाव छोड़े। ये सभी गैर अरब और दक्षिण एशिया से संबंधित हैं।
दक्षिण एशिया के शैक्षणिक संस्थान पाकिस्तान, बांग्लादेश और अन्य देशों में कई बड़े बड़े विश्वविद्यालय और मदारिसे इस्लामिया हैं। भारत जहां आम तौर पर मुसलमानों की सरकार से शिकायतें रहती हैं ‘यहां भी कई बड़े संस्थान हैं’ जो विभिन्न अनुभाग के विशेषज्ञ पैदा कर रहे हैं और यहां अरब के छात्र भी लाभ उठानें के लिये आ रहे हैं। अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय, जामिया मिल्लिया इस्लामिया और हमदर्द विश्वविद्यालय भारत में मुसलमानों के महान शिक्षण संस्थान हैं, जहां समकालीन और आधुनिक तकनीकी शिक्षा दी जाती है। इसके अलावा दीनी तालीम के लिये यहां विश्व प्रसिद्ध दारुल उलूम देवबंद है, जहां अफ्रीका, यूरोप से भी छात्र आते हैं। अल जामियातुल अशरफिया मुबारकपुर, नदवतुल उलेमा लखनऊ, अल सकाफतुल सुन्निया कालीकट, अल जामियातुल फलाह बिलरियागनज आजमगढ़, अल जामिया तुल इस्लाह सराय मीर आजमगढ़, मज़ाहिर ए उलूम सहारनपुर और जामिया सलफिया बनारस ऐसे धार्मिक शिक्षण संस्थान हैं, जिनके नाम जामिया अज़हर (मिस्र) के बाद लिए जाते हैं, जो इस्लामी विषयों पर काम करते हुए अपने जीवन व्यतीत करते हैं। इस प्रकार के मदरसे दक्षिण एशिया में बड़े पैमाने पर रहे हैं, जहां अरब वाले भी ज्ञान प्राप्त करने के लिए आते हैं।
गैर अरब मुसलमान शिक्षा में आगे: खास बात यह है कि अरब मुसलमानों से गैर अरब मुसलमानों में साक्षरता की दर अधिक है, इसलिए उनके अंदर प्रभावित करने की क्षमता भी अधिक है। अरब देशों में धन की बहुतायत है, क्योंकि वहां की जमीन ” तरल सोना ” उगलती है। जहां लोगों के पास विलासिता के सामान मौजूद हैं। अगर वह अपने धन का सकारात्मक उपयोग करते, तो वह ज्ञान, कौशल और विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी में यूरोप से आगे होते, मगर अफसोस कि ऐसा नहीं हुआ। इस लिहाज से देखा जाए तो एशिया के गैर अरब देशों में रहनेवाले मुसलमानों की माली हालत चाहे बहुत अच्छी ना हो मगर वे अन्य क्षेत्रों में अरबों से बहुत आगे हैं। आज जिस कदर विद्वान और हुनर वाले दूसरे इलाके के मुसलमानों में पैदा हो रहे हैं ‘अरब में नहीं होते। सऊदी अरब में साक्षरता दर 77 प्रतिशत है, जबकि इराक में 74 प्रतिशत है। यह दोनों बहु आबादी वाले अरब देश हैं। उनके मुकाबले इंडोनेशिया और मलेशिया में साक्षरता दर 100 प्रतिशत के आसपास है ‘कुछ ऐसी ही स्थिति सोवियत संघ से मुक्त होने वाले मुस्लिम देशों का है। ज़ाहिर है कम्युनिस्ट शासन ने उन्हें इस्लाम से दूर कर दिया है मगर बहुत तेजी के साथ इन देशों में जागरूकता की लहर आ रही है। बांग्लादेश और अफगानिस्तान में साक्षरता दर कम है।
बहु मुस्लिम आबादी वाला क्षेत्र: प्यू फोरम की 2010 की एक रिपोर्ट के अनुसार एशिया सबसे अधिक मुस्लिम आबादी वाला क्षेत्र है। यहाँ दुनिया की 62 प्रतिशत मुस्लिम आबादी रहती है। यहां की कुल आबादी का 24.8 प्रतिशत हिस्सा मुसलमान है, यानी यहां का हर चौथा व्यक्ति मुस्लिम है। प्यू फोरम की यह रिपोर्ट 2010 में सामने आई थी और संभावना जताई गई थी कि यहां जिस तरह से मुसलमानों की आबादी बढ़ रही है, भविष्य में उनकी आबादी का अनुपात बढ़ सकता है। उल्लेखनीय है कि एशिया में अधिकांश मुस्लिम आबादी वाले देश आते हैं जिनमें इंडोनेशिया, मलेशिया, पाकिस्तान, बांग्लादेश, अफगानिस्तान, उजबेकिस्तान, ईरान, तुर्की और चीन शामिल हैं। यूं तो सबसे ज्यादा मुस्लिम आबादी वाला देश इंडोनेशिया है, लेकिन दक्षिण एशिया की 90 प्रतिशत मुस्लिम आबादी भारत पाकिस्तान और बांग्लादेश में रहती है। मुसलमानों की बड़ी आबादी वाले देशों में चीन और भारत शामिल हैं। यह अलग बात है कि बड़ी आबादी के बावजूद यहां मुसलमान अल्पसंख्यक हैं। जहां मुसलमानों के हाथ में सत्ता है, वहां कुछ समस्याएं ज़रूर हैं। मगर पहचान की समस्या नहीं है। लेकिन भारत और चीन जैसे देशों में हालांकि करोड़ों मुसलमान हैं, लेकिन वहां उनके साथ पहचान की समस्या भी है और वह अपने अस्तित्व को दूसरों से अलग पहचान के साथ बाकी रखने की जिद्दो जहद कर रहे हैं। इसमें उनकी सहायता करते हैं वह इस्लामी शिक्षण संस्थान , जिनका गठन ही इस्लामी शिक्षाओं को बढ़ावा देने के लिए होता है।
मुसलमान पूरी दुनिया में करोड़ों की संख्या में फैले हुए हैं। विशेष रूप से वे एशिया में अधिक घनी आबादी रखते हैं, लेकिन वर्तमान में उनकी न तो कोई वैश्विक नेतृत्व बन पाई है और न ही क्षेत्रीय नेतृत्व। वह जहां कहीं भी बिना किसी नेता के जीवन बिता रहे हैं, मुस्लिम बहुल देशों में तो खानों में बटे हुए हैं। इसी तरह उन देशों में जहां वे अल्पसंख्यक हैं, नेतृत्व की कमी के कारण अस्थिर समस्याओं से जूझ रहे हैं। हालांकि उनके कई व्यक्ति विभिन्न क्षेत्रों में प्रभावित करने की क्षमता रखते हैं और प्रभावित करते हैं, मगर सभी मुसलमान उन्हें अपना नेता मानने को तैयार नहीं।
लोकप्रिय हस्तियाँ: एक वैश्विक संस्था The Royal Islamic Strategic Studies Centre
रिपोर्ट के अनुसार दुनिया के 500 प्रभावित करने वाली मुस्लिम हस्तियों में से कई लोग एशिया के हैं। हालांकि इस सूची में अधिकांश मुस्लिम राष्ट्राध्यक्ष हैं, लेकिन कुछ गैर राजनीतिक हस्तियाँ भी हैं। ऐसी हस्तियों में पाकिस्तान के तबलीगी जमात के अमीर हाजी मोहम्मद अब्दुल वहाब, इंडोनेशिया के मुस्लिम संगठन नह्दतुल उलेमा के चेयर मैन डॉक्टर एच सैयद अकील सरादी, भारत के अहले सुन्नत के पेशवा मुफ्ती अख्तर रजा खां अज़हरी मियां, मारहरा शरीफ की खानकाहे बरकातीया के सज्जादा नशीन मौलाना सैयद मुहम्मद अमीन मियां, पाकिस्तान के मौलाना मुहम्मद तक़ी उस्मानीं, जमीअत उलेमा ए हिंद के नेता और सांसद मौलाना महमूद मदनी, बोहरा समुदाय के धार्मिक पेशवा सैयदना बुरहानुद्दीन (अब वह दुनिया में नहीं रहे) शामिल हैं। ज़ाहिर है यह सभी लोग एक विशेष वर्ग या किसी विशेष विचारधारा को ही स्वीकार्य हैं। दूसरा वर्ग उन्हें स्वीकार नहीं करता। यही कारण है कि मुसलमानों की एक बड़ी भीड़ के बावजूद यहां वे बिखरे हुए हैं और उनके अधिकांश समस्याओं का कारण उनकी यही अराजकता है। ज़ाहिर है सैयदना बुरहानुद्दीन का प्रभाव क्षेत्र बोहरा समुदाय तक सीमित है। इस तरह हाजी मोहम्मद अब्दुल वहाब के प्रभाव तबलीगी जमात के लोगों तक ही हैं। मौलाना सैयद मोहम्मद अमीन मियां और मुफ्ती अख्तर रजा खां अज़हरी मियां अपने मुरीदीन में सम्मान की दृष्टि से देखे जाते हैं, तो मौलाना महमूद मदनी की लोकप्रियता जमीअत उलेमा ए हिंद तक ही सीमित है। इन लोगों को दूसरे मसलक (समूह) के लोग स्वीकार नहीं करते, बल्कि उन्हीं लोगों की स्वयं की विचारधारा में ही कई समूह हैं, जो उन के विरोध में आवाज बुलंद करते रहे हैं। एक छोटे से वर्ग में लोकप्रियता के बावजूद यह लोग लोकप्रिय पेशवा हैं, लेकिन अफसोस कि मुसलमानों में एक व्यक्ति भी ऐसा नहीं, जो हर वर्ग के लोगों के लिए स्वीकार्य हो।
यह मुसलमान हैं?: इस समय महत्वपूर्ण सवाल यह नहीं है कि मुसलमानों की आबादी दुनिया में कम होगी या अधिक? महत्वपूर्ण सवाल यह है कि वे दुनिया को कितना प्रभावित करने की क्षमता वाले होंगे? आज की दुनिया में प्रभावित करने के लिए ज्ञान और विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी में विशेषज्ञता की ज़रूरत है और हम देख रहे हैं कि मुसलमान इन क्षेत्रों में सारी दुनिया से पीछे हैं। भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफ्रीकी देशों के मुसलमान गरीब हैं और उनके पास शैक्षिक संस्थानों की कमी है तथा वित्तीय संसाधन नहीं हैं फिर भी वह समय के साथ आगे बढ़ने की कोशिश कर रहे हैं मगर अरब मुसलमानों के पास धन की मुद्रास्फीति है। वे बड़े शैक्षिक संस्थान स्थापित कर सकते हैं और साइंसी जांच में पूंजी लगा सकते हैं, लेकिन जो स्थिति सामने है, वह अधिक खुश करने वाली नहीं है।
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Koi khatarnaak nahi hota hai uska vinaash hathiyaar bhi saath me hi hota hai jaise sher aur ajgar ko control me kar lete ho tab use bhi sabak sikhaane wala koi n koi paida le lega hi baaki kudrat apne tarike se control karta hi hai isliye hamesha khush raho jyada advance me pareshan mat ho jab tyre puncture hota hai tab pahle wali baat nahi rah gaya har jagah repair wala rahta hai nahi to reserve me rakhta jise apne par bharosa nahi hota hai tabhi to jai Bharat
क्या बेहुदा और जाहिल वाला लेख है ! मुसल्मान को बद्नाम कर्ने कि साजिश है!
भारतीय हिंदुओं को यह लेख ठीक तरह से पढ़ना चाहिए। भारत के पिछड़ेपन और गरीबी बनाये रखने में मुसलमानों की महती योगदान है। अगर बच्चे अधिक पैदा करेंगे तो गरीबी अल्लाह दूर न तो कही किया है और नही कभी करेगा। इस लेख से यह तय है मुसलमान अपनी दरिद्रता, अन्धविश्वास, मुल्ला की गुलामी में जीने के लिए मजबूर रहेंगे। लाख सच्चर कमिसन बना लो इनकी दरिद्रता द्वारा ही दे दी गयी है। हाँ मरने कटने में आने बाले समय में भी सबसे अधिक होंगे मुसलमान।
Ekdam faltu likhe ho
अर्जुन , मेहशद और सभी नए पाठको का स्वागत हे
Jab musalman jiyda hoga to dekh lena kitni khushi hogi. Mujhe to he btaou ki kiya kabhi pehle jab kabhi dange hue hon to shuruaat kisi musalman ne ki. Aaj bjp ke jeet gye dhoke se to har jagah bjp ke log masjido or muslim logo per rang dal rhe be wirodh karne par unhe marpeet rhe hen. Bhaiyo sab ek hokar rho. Agrar esa hota rha to desh Barbadi ki garaf chala jayega. Or ise sahi karne me salo lag jayegen . Ho sakta he desh ki barbadi or mulko ko badawa de jisse dusre mulk hindustan par firse hukumat na krle. Bhai ek ho jaou sab hindu muslim ek zamane se is hindustan me rehte a rhe he ek hi moballe ke hindu muslim jo sath khate bethte the aaj unhe ladaya ja rha he. Ise rokne ki koshis kro badane ki ni. Hindustan zindaad.
”सुयश सुप्रभ -एक सवाल भाजपा समर्थकों से। आपकी ज़िंदगी में कभी किसी मुसलमान के कारण आपको परेशानी हुई?
ईमानदारी से जवाब दीजिएगा। एक और सवाल। बेईमान या लालची कंपनी, डॉक्टर, प्रिंसिपल, दुकानदार आदि के कारण परेशानी हुई?
अगर पहले सवाल का जवाब ‘नहीं’ और दूसरे का ‘हाँ’ है तो यकीन मानिए भाजपा ने करोड़ों रुपये आपको सिर्फ़ फ़र्ज़ी मामलों में उलझाए रखने के लिए खर्च किए हैं।
सुयश सुप्रभ ” ———————————————– Apoorva Trivedi
Apoorva Trivedi NDTV के पत्रकार रवीश ने एक बार कहा था-
यदि भारत में मुस्लिम बहु संख्यक हो गए तो कौनसा क़यामत आ जाएगी?
उत्तर इन आंकड़ों में छिपा है–
‘स्लेवरी, टैररिज्म एंड इस्लाम-द हिस्टोरिकल रूट्स एंड कंटेम्पररी थ्रैट’।
लेखक डा. पीटर हैमंड
‘द हज’के लेखक लियोन यूरिस
उपरोक्त शोध ग्रंथों के अनुसार जब तक मुसलमानों की जनसंख्या किसी देश-प्रदेश क्षेत्र में लगभग 2 प्रतिशत के आसपास होती है, तब वे एकदम शांतिप्रिय, कानूनपसंद अल्पसंख्यक बन कर रहते हैं और किसी को विशेष शिकायत का मौका नहीं देते। जैसे अमरीका में वे (0.6 प्रतिशत) हैं, आस्ट्रेलिया में 1.5, कनाडा में 1.9, चीन में 1.8, इटली में 1.5 और नॉर्वे में मुसलमानों की संख्या 1.8 प्रतिशत है। इसलिए यहां मुसलमानों से किसी को कोई परेशानी नहीं है।
जब मुसलमानों की जनसंख्या 2 से 5 प्रतिशत के बीच तक पहुंच जाती है, तब वे अन्य धर्मावलंबियों में अपना धर्मप्रचार शुरू कर देते हैं। जैसा कि डेनमार्क, जर्मनी, ब्रिटेन, स्पेन और थाईलैंड में जहां क्रमश: 2, 3.7, 2.7, 4 और 4.6 प्रतिशत मुसलमान हैं।
जब मुसलमानों की जनसंख्या किसी देश या क्षेत्र में 5 प्रतिशत से ऊपर हो जाती है, तब वे शॉपिंग मॉल पर ‘हलाल’ का मांस रखने का दबाव बनाने लगते हैं, उन्होंने कई देशों के सुपरमार्कीट के मालिकों पर दबाव डालकर उनके यहां ‘हलाल’ का मांस रखने को बाध्य किया। जब मुस्लिम जनसंख्या किसी देश में 10 प्रतिशत से अधिक हो जाती है, तब वे उस देश, प्रदेश, राज्य, क्षेत्र विशेष में कानून-व्यवस्था के लिए परेशानी पैदा करना शुरू कर देते हैं, शिकायतें करना शुरू कर देते हैं, उनकी ‘आॢथक परिस्थिति’ का रोना लेकर बैठ जाते हैं, छोटी-छोटी बातों को सहिष्णुता से लेने की बजाय दंगे, तोड़-फोड़ आदि पर उतर आते हैं, चाहे वह फ्रांस के दंगे हों डेनमार्क का कार्टून विवाद हो या फिर एम्सटर्डम में कारों का जलाना हो, हरेक विवादको समझबूझ, बातचीत से खत्म करने की बजाय खामख्वाह और गहरा किया जाता है। ऐसा गुयाना (मुसलमान 10 प्रतिशत), इसराईल (16 प्रतिशत), केन्या (11 प्रतिशत), रूस (15 प्रतिशत) में हो चुका है। शोधकत्र्ता और लेखक डा. पीटर हैमंड बताते हैं कि जब किसी देश में मुसलमानों की जनसंख्या 60 प्रतिशत से ऊपर हो जाती है, तब अन्य धर्मावलंबियों का ‘जातीय सफाया’ शुरू किया जाता है (उदाहरण भारत का कश्मीर), जबरिया मुस्लिम बनाना, अन्य धर्मों के धार्मिक स्थल तोडऩा, जजिया जैसा कोई अन्य कर वसूलना आदि किया जाता है। जैसे अल्बानिया (मुसलमान 70 प्रतिशत), कतर (मुसलमान 78 प्रतिशत) व सूडान (मुसलमान 75 प्रतिशत) में देखा गया है। किसी देश में जब मुसलमान बाकी आबादी का 80 प्रतिशत हो जाते हैं, तो उस देश में सत्ता या शासन प्रायोजित जातीय सफाई की जाती है। अन्य धर्मों के अल्पसंख्यकों को उनके मूल नागरिक अधिकारों से भी वंचित कर दिया जाता है। सभी प्रकार के हथकंडे अपनाकर जनसंख्या को 100 प्रतिशत तक ले जाने का लक्ष्य रखा जाता है। जैसे बंगलादेश (मुसलमान 83 प्रतिशत), मिस्र (90 प्रतिशत), गाजापट्टी (98 प्रतिशत), ईरान (98 प्रतिशत), ईराक (97 प्रतिशत), जोर्डन (93 प्रतिशत), मोरक्को (98 प्रतिशत), पाकिस्तान (97 प्रतिशत), सीरिया (90 प्रतिशत) व संयुक्त अरब अमीरात (96 प्रतिशत) में देखा जा रहा है। Apoorva Trivedi”
सारी मानव जाती का रंग कभीभी एक ही नही होगा. बुनीयादी तौर पर हर धर्म का विस्तार कुछ हद तक सिमीत ही रहता है. पिछले सौ सालोमे एक और नये धर्म का विस्तार इस प्रीथ्वी पर हो रहा है. इस धर्म को Secularism कहते है. इस धर्म का भी कुछ हद तक विस्तार होगा.
वास्तविकता मै धर्म होता ही नही है. ये कुछ ऐसा है की
कही पहाड है तो कही मैदान,
कही बर्फ है तो कही रेगीस्तान,
कही समंदर है तो कही जमीन,
तो कही हिंदु है तो कही मुसलमान…
कही सुख है तो कही दुख,
कही भोज है तो कही भुख,
कुछ अमीर है तो कुछ गरीब,
कही प्रयास तो कही नसीब…
यहा की हर बात मे एक विरोधाभासी तत्व है. ये कुदरत है और ये ऐसीही रहेगी.
ईसी लिये ना मुझे मुसलमानो के बढने का डर है और नाही हिंदुओ के कम होने की चिंता और नाही Secularism के बढने की खुषी…
I believe in the NATURE.
जिवन कुदरत की देन है. हम ईश्वर, या अल्लाह के बारे मे बादमे सोचेंगे. पहले इस कुदरत को तो ठिक से समझे. मै नास्तीक नही हु. मै धर्म मे औऱ विग्यान दोनो मे विश्वास रखता हु. पर धर्म को युद्ध का कारण नही मानता हु.
एक मा के गर्भ से जन्मे बच्चे अपनी माता पिता कि संपत्ती मे आधीकार पाने के लिये लडते है. हिंदु मुसलमान विवाद तो बडी दुर की बात रही.
सही कहा जोशी जी पहले कुदरत और इंसान की फ़ितरतो को समझना चाहिए , कहते हे की इंसान अगर किसी दिन सुबह उठ कर पाए की सारे ही लोग उसके ही सेम – देश धर्म राज्य जाती भाषा रंग कद मिजाज खानपान नस्ल , वर्ग के हो गए हे तब क्या होगा ————————– ? तब भी वह दोपहर होने से पहले पहले लड़ने और दुसरो को नीचा दिखाने उन्हें कमतर समझने का कोई ना कोई बहाना ढूंढ़ ही लेगा
सिकंदरजी,
धर्म कभी Business world मे भी नही आता. जैसे की जब शहारुख,सलमान,आमीर की films लगती है तो कोइ हिंदु ये नही कहेगा कि ये मुसलमान कि film है और मै इसे नही देखुंगा. सब देखते है…. या फिर jio company एक हिंदु कि mukesh ambani कि है पर मुसलमान jio card use कर रहे है ना…
जब बात मुनाफे की होती है तो हर कोइ अपने सगे को छोड औरो से व्यापार करता है.
धर्म और जाती सिर्फ शादी मे देखी जाती है. ये हर किसीका निजी मामला है…
मेरा मानना है धर्म परीवार तक सिमीत रहे तो ठिक है. देश इस पर नही चलना चाहीये….
ज़ाहिद बेग वाहे गुरु जी दा खालसा-वाहे गुरु दी फ़तह।
दुनिया के सभी धर्म श्रेष्ठ हैं और अपने ग्रंथों में समस्त मानवता के लिए करुणा और प्रेम का सन्देश देते हैं। लेकिन इन धर्म ग्रंथों को आम तौर पर कोई अन्य धर्मावलम्बी नहीं पढ़ता। वो इनके अनुयायियों को देखता है और उस धर्म के बारे में, उसके दूतों, अवतारों और पैगंबरों के बारे में अपनी राय क़ायम करता है। दोस्तों मेरा अपना अनुभव और मानना है की इस मामले में सिख धर्म के अनुयायी अन्य धर्मों के अनुयायियों से बेहतर सिद्ध हुए हैं। पंद्रहवीं शताब्दी में गुरु नानक देव जी द्वारा सिखी की स्थापना से ही सिखों ने सम्पूर्ण मानवता की सेवा, और राष्ट्रप्रेम के अनुपम प्रतिमान स्थापित किये हैं। यध्यपि अपने धर्म की स्थापना से ही उन्होंने ज़ुल्म/ज़्यादती और अत्याचार का दंश झेला है।
शुरुआत में मुगलों ने अपने राजनैतिक मक़सद के लिए उनका दमन किया। पार्टीशन के समय भी सबसे ज़्यादा हिंसा उन्ही के ख़िलाफ़ हुई। इंदिरा जी की हत्या से उपजे आक्रोश के फलस्वरूप उन्हें जान और माल का अपूरणीय नुक्सान हुआ। पर सलाम इस क़ौम को की उनके दिल में किसी धर्म के प्रति कटुता स्थायी रूप से जग़ह नहीं बना पाई।
व्यक्तिगत तौर पर आप किसी भी सिख से मिलिए उसकी गर्मजोशी और मृदु व्यवहार आपको इस क़ौम का क़ायल बना देगा। अपने गुरुओं की सीख को उन्होंने पूरी तरह आत्मसात किया हुआ है। खालसा एड इंटरनेशनल के सेवा कार्यों के बारे में तो अब लगभग सारी दुनिया जान ही चुकी है। आप दुनिया के किसी भी गुरूद्वारे में चले जाइये वहाँ का आत्मीय माहौल, सेवा की परम्परा और हर मज़हब के दर्शनार्थियों के लिए निरंतर चलते लंगर आपको अपना मुरीद बना लेंगे। जब तक आप दर्शन कर के बाहरआएंगे सेवादार आपके जूते चमका देंगे, आपको पता भी नहीं चलेगा की आपके जूते चमकाने वाला कौन है? हो सकता है की वो अब्रॉड का कोई अरबपति सिख हो।ज़ाहिद बेग
मेरा सौभाग्य रहा है की मुझे हरमिंदर साहिब से लेकर हिंदी बेल्ट के अधिकाँश गुरुद्वारों में गुरुग्रंथ साहिब का दर्शन करने और उसका पाठ सुनने का शर्फ़ हासिल हुआ है। मैं जहाँ भी पर्यटन के लिए गया अगर वहाँ गुरुद्वारा है तो मेरे क़दम बेखुदी में उस और उठ ही गए। यूँ कहिये साहिबान की गुरूद्वारे मुझे अपनी ओर खींचते हैं। एक मुख़्तसर सा मेरा यात्रा वृतांत आपसे शेयर कर रहा हूँ –
जनवरी २०१० में इंदौर से सपरिवार अमृतसर,दिल्ली , आगरा,फतेहपुर सीकरी के लिए निकला। इंदौरसे पहला पड़ाव अमृतसर था। लगभग शाम के ५ बजे ट्रेन इंदौर से निकली। हमारे कूपे में सामने वाली बर्थ पर एक छोटा सा सिख परिवार बैठा था । माँ , उनका नौजवान बेटा और एक किशोरवय बेटी। उनके पिता और चाचा पकिस्तान से लरकाना साहिब में मत्था टेक कर ३ दिन बाद आने वाले थे उन्हें रिसीव करने वो अमृतसर जा रहे थे। बहुत सम्पन्न परिवार था। जैसा की अमूमन ट्रेन यात्राओं में होता है परिचय की शुरुआत आप कहाँ जा रहे हैं से हुई। जैसे ही उन्हें पता चला की हम मुस्लिम हैं और हरमिंदर साहिब दर्शन के लिए जा रहे हैं वो इतने प्रसन्न और अभिभूत हुए की उसको बयाँ करना मुश्किल है। पंजाबी अपने खाने/खिलाने के शौक के लिए पूरी दुनिया में मशहूर हैं आप यक़ीन नहीं करेंगे दोस्तों अमृतसर तक लगभग ३५ घंटों के सफर में उन्होंने हमे ३५ रूपये भी खर्च नहीं करने दिए। इतना और इतनी तरह का खाना ले कर वो चले थे की पुरे सफर के दौरान हम अपना खाना निकाल ही नहीं पाए। यही नहीं अपने परिजनों के लिए स्वर्णमंदिर परिसर के बाहर ट्रस्ट की धर्मशाला में आरक्षित ए सी कक्ष २४ घंटे के लिए हमें उपलब्ध करा दिए। अपने साथ हरमिंदर साहिब के दर्शन कराये और बाघा बार्डर ले कर गए। आज इस पोस्ट के माध्यम से मैं अपने परिवार की ज़ानिब से उस ज़िंदादिल परिवार के प्रति कृतग्यता ज्ञापित करता हूँ। ज़ाहिद बेग
सिखी की सर्वोच्च परम्परा का एक उदाहरण और – दूसरे दिन हम स्वर्ण मंदिर परिसर में शाम को टहल रहे थे। मग़रिब की नमाज़ का वक़्त हो गया था। मैं बच्चों से थोड़ा दूर आ गया था। ज़ीशान ने मुझ से आ कर कहा-“डैडी मम्मी नमाज़ पढ़ने का बोल रही हैं। ” मैंने कहा-” ठीक है परिसर के बाहर चलते हैं।” तब तक आरिफ़ा भी आ गईं थीं। बोलीं- इतनी भीड़ है बाहर निकलने में और कमरे तक पहुँचने में एक घंटे से ज़्यादा वक़्त लग जायगा और नमाज़ कज़ा हो जायगी। ” अब में सकपकाया मुझे पता था की उन्होंने शादी के बाद अब तक शायद एक नमाज़ भी नहीं छोड़ी थी। बोलीं -“यहीं कही पढ़ लें। ” अब मैं सिखों और हमारा रक्त-रंजित इतिहास जानता था। यधपि यह भी जानता था की 1588 में गुरु अर्जन साहिब ने लाहौर के एक मुस्लिम फ़क़ीर(सूफी संत) हजरत मियां मीर जी से हर मिन्दर साहिब की नींव रखवाई थी पर यह भी सत्य है की पिछले ४२२ सालों में पंजाब की पांचो नदियों में दोनों कौमो का बहुत रक्त बह चूका था। घर से २००० किलोमीटर दूर हजारों सिखों के बीच उनके सबसे पवित्र धर्म-स्थल पर बीबी-बच्चों को नमाज़ पढ़ने का कहने की मेरी हिम्मत नहीं हुई। शायद पढ़ा-लिखा होना इंसान को पूर्वाग्रही भी बना देता है। हमारी इस उहा-पोह को वहाँ से गुजर रहे सेवादार ने ताड़ लिया हिंदी मिश्रित गुरुमुखी में बोले -“बोले क्या बात है ?” मेरे कुछ बोलने के पहले ही ज़ेनिफ़र ने उन्हें सारा माज़रा कह सुनाया।
दिल और दिमाग़ को सिखी की महान शिक्षाओं से रोशन कर लीजिये साहेबान । वो निहंग सेवादार मुस्कराये और बोले-” तो इसमें क्या दिक़्क़त है?” फिर क्या था पवित्र सरोवर मेरे परिवार के लिए वज़ुख़ाना बन गया. सेवादार ने भीड़ को एक तरफ़ किया। दिशा भ्रम होने के कारण हमें बताया की मग़रिब किस तरफ़ है। अपने उत्तरीय को पवित्र सरोवर में डुबो कर नमाज़ पढ़ने के स्थान को पोंछा , जब तक बच्चे नमाज़ पढ़ते रहे वो अपनी नीली ड्रेस में चार फ़ीट लम्बी तलवार क़मर से लटकाये वहाँ खड़े रहकर नमाज़ियों के सामने से लोगों को निकलने से रोके रहा। जरा तसव्वुर कीजिये मित्रों दुनिया के सबसे पवित्र सिख धर्मस्थल पर हज़ारों सिखों के बीच में मेरा परिवार हरमिंदर साहिब में अपने रब की बारगाह में सज़दा कर रहा था।
ज़ीशान के सर पर टोपी के स्थान पर अकाल तख़्त के प्रतीक वाला भगवा सिरोपा (रुमाला) बंधा हुआ था। निहंग उनके एहतराम में तलवार बांधे खड़ा था। यह एक कल्पनातीत दृश्य था। जिसका चित्रण करना नामुमकिन है। जो संवेदनशील होंगे उन्हें दिख रहा होगा की इन नमाज़ियों, उस निहंग और वहाँ से ख़ामोशी से गुज़र रहे दर्शनार्थियों पर अल्लाह की रहमत के साथ-साथ तमाम गुरुओं और मियां मीर का आशीर्वाद भी बरस रहा था। बच्चों की नमाज़ के बाद मैंने अपनी भीग आई आँखों की कौर को पोंछा और उस मोहब्बत के फ़रिश्ते से मुसाफ़ा( दोनों हाथ मिलाना )कर उसका शुक्रिया अदा किया। वो ‘कोई नी जी कोई नी’ कहता हुआ खरामा-खरामा अपने काम में लग गया। हम भी मोहब्बत और सर्वधर्म-समभाव का एक अमिट पाठ अपने ह्रदय पर अंकित कर वहाँ से रुखसत हुए।
सतश्री अकाल दोस्तों।
हरमिंदर साहिब में हमारे साथ हमारे सिख मित्र का परिवार – शुक्रिया दार जी। वाहे गुरु जी दा खालसा-वाहे गुरु दी फ़तह। ज़ाहिद बेग
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Megha M20 December at 21:11 ·
डियर नसरूद्दीन शाह,शायद आपने नवोदय विद्यालय का नाम सुना होगा। केंद्र सरकार के अंतर्गत आने वाला आवासीय विद्यालय है जोकि देश के बहुत से शहरों में है। मेरे पिता नवोदय विद्यालय में शिक्षक हैं तो मेरा पूरा जीवन नवोदय के कैम्पस में बीता है। पापा की पोस्टिंग के चक्कर में देश के कई अच्छे-बुरे इलाके में हम रहे और फिलहाल पिछले कुछ सालों से पापा जहाँ पोस्टेड हैं, वह एक मुस्लिम बहुसंख्यक इलाका है। उस नवोदय में कम्पीट करके पहुँचने वाले करीब चालीस प्रतिशत बच्चे मुसलमान हैं।
किसी भी विद्यालय में कुछ नियम होते हैं, जैसे रविवार की छुट्टी या कैम्पस छोड़ने के लिये परमिशन। देशभर के नवोदय में भी है।
पर जिस नवोदय में पिता काम कर रहे हैं, वहाँ ये नियम नाम के हैं। हर शुक्रवार विद्यर्थियों की करीब चालीस प्रतिशत जनसँख्या बगल के शहर जाती है बिना किसी परमिशन के क्योंकि उन्हें वहाँ के मस्जिद में नमाज पढ़ना है। असल बात यह है कि बच्चों को इस आड़ में सप्ताह में एक दिन एक्स्ट्रा स्कूल बंक करने को भी मिल जाता है। पर आप रोक नहीं सकते क्योंकि जब एक बार पहले उनसे जब कहा गया कि नमाज तो वे पढ़ सकते हैं विद्द्यालय के अंदर ही अतः यह एक दिन का mass bunk बंद करे, तो तुरन्त विद्रोह हो गया कि शिक्षक धर्म पर हमला कर रहे हैं। वे उनके महत्वपूर्ण शुक्रवारी प्रार्थना को रोकना चाह रहे हैं।
मेरी बहन जब वहाँ पढ़ रही थी तो उसके कई अच्छे मुसलमान दोस्त थे। एक दिन बातों-बातों में मुद्दा उठ गया नेलपॉलिश का। उन दिनों किसी इस्लामिक देश में नेलपॉलिश लगाने पर पर लड़की की उंगली काट दी गयी थी। तुरन्त ही सारी मासूम मुस्लिम बच्चियाँ एक तरफ हो गयी इस घटना को justify करते हुये क्योंकि नेलपॉलिश लगाने वालीे वजू खराब कर रही थी। वह इस्लाम के विरुध्द कार्य कर रही थी। मैंने अपनी बहन को डांट लगायी कि उसे जरूरत क्या है इन पचड़ो में पड़ने की? उस बच्ची ने बड़ी मासूमियत से कहा कि दीदी पर मैं तो सही बोल रही थी, आप किसी की उंगली काटने का सोच भी कैसे सकते हैं? बहन को क्या मालूम था कि उस इलाके में इसके द्वारा कही गयी तार्किक बात भी blasphemy का रंग ले सकती थी। आयशा बीबी को क्या मालूम था कि बस एक ही बर्तन से पानी पीना उसके जान पर बन आयेगा??
मैं दिल्ली में ओखला विहार अपनी दोस्त से मिलने जाती रहती थी। एक दिन उसने बताया कि वहाँ मुसलमान इतने ज्यादा है कि उसे वहाँ के लोकल लोग मिनी पाकिस्तान बोलते हैं। सिर्फ जनसँख्या ज्यादा होने से अपने देश की पहचान मानने से इनकार करने का कोई गम नजर नहीं आ रहा था मेरी सहेली की बातों में। मानो जहाँ ज्यादा जनसँख्या हुयी वह जगह अपने-आप में एक अलग नियम कानून वाला देश हो जाता है।
तो नसरूद्दीन जी, मुझे लगता है आपका डर बिल्कुल जायज है। मुझे भी डर लगता है अब इस देश के लिये। क्या होने वाला है यहाँ मेरे बच्चो का भविष्य? क्या मेरी छटी क्लास में पढ़ने वाली बेटी से उसकी सहेली बहस करेगी कि उंगली क्यों काटी जानी चाहिये? क्या मेरे बेटे के दोस्त जबरस्ती शुक्रवार को छुट्टी ना मिलने पर स्कूल के अंदर दंगे को तैयार रहेंगे? क्या मेरे बच्चों को कहना पड़ेगा कि वे भारत नहीं मिनी पाकिस्तान में रह रहे हैं??
जो लोग बड़े शहरों में सुरक्षित रह कर भाईचारा-भाईचारा चिल्ला रहे हैं फिलहाल उन्हें डरने की जरूरत नहीं है कुछ सालों तक। आप बाँधे रहे आँखों पर पट्टी लेकिन हम जैसों ने धरातल की सच्चाई देखी है कि जब एक धर्म विशेष बहुसंख्यक होता है तो उस क्षेत्र में बाकियों की क्या स्थिति होती है, इसीलिये अब हम डरते हैं।
So Nasiruddin Sir, let’s be afraid together.We indeed are going towards a very dark time of this country…————————————————————————————-
real id ——-Pawan S3 hrs ·#झूठ_जो_सच_बना_दिया_गया…
एक मित्र ने अंडमान की सेल्युलर जेल में भारत की कथित आज़ादी के लिए काले पानी की सज़ा काटने वालों की लिस्टें भेजी हैं… यह पट्टीकाएँ अंडमान में अष्टभुजी सेल्युलर जेल के मध्य में लगी हुई हैं…
इनमे से सैकड़ों ने अपना जीवन कष्टदायी यातनाओं के चलते त्याग दिया… अनेकों को जेल में ही फांसी देकर मार दिया गया… सेल्युलर जेल जाइये…भावुक व्यक्ति हैं तो रोएंगे…ज़रूर ! वहां हमेशा मुस्लिम जेलर रखे जाते थे..वो हिन्दू कैदियों को जबरदस्ती पेट्रोल पिला देते थे.. उस के बाद वो कैदी खुद के शरीर मे उगे मोटे फफोलो को नोच -नोच के पागल होकर खुद मौत मांगता था…
एक #झूठ इस देश में पाला – पोसा गया है कि देश की आजादी में मुस्लिमों ने कंधे से कंधा मिलाकर भाग लिया था… इन पट्टिकाओं को गौर से देखिए…एक भी मुस्लिम नाम नहीं दिखाई नहीं देगा !…
सच्चाई यह है इस वर्ग ने अंग्रेजों के आने से पूर्व हम पर खूब ज़ुल्म – जेहाद किए… जब अंग्रेजों आए तो यह वर्ग अंग्रेजों के साथ मिलकर हम पर अत्याचार करने में लिप्त हो गया… जब अंग्रेज देश छोड़कर गए तो 12 % मुस्लिमों ने देश का 35 % हिस्सा भी छीन लिया… और विभाजित भारत के भी बड़े हिस्से पर..भारत मे रह गए मुस्लिमों ने अपना कब्ज़ा बरकरार रखा…
आज हालात यह है कि मोटे अनुमान के अनुसार वर्तमान विभाजित भारत के 70 % भूक्षेत्र पर इस्लामिक कब्ज़ा हो चुका है…
डिबेट्स में देखिए मुस्लिम नेता… यह कहते हुए आरएसएस विचारकों पर चढ़ बैठते हैं कि हमने देश की आज़ादी के लिए खून दिया है !… हमारे नेता… ओवैसी और अबु आज़मी के इस खालिस झूठ पर बगलें झांकने लगते हैं… आज इस झूठ के आधार पर आरक्षण,विशेषाधिकार और मुस्लिम पर्सनल लॉ जैसे हथियार…मुस्लिम अतिवाद के पास हैं….