साम्प्रदायिक एकता निश्चित रूप से एक सराहनीय उद्देश्य है। हालांकि, इसके पीछे नियोक्ता इरादे भी बहुत महत्वपूर्ण है। एक दूसरे को काफिर कहने वाले वहाबी देवबंदी और सूफी बरैलवी संप्रदाय पिछले कुछ महीनों से एकजुट होने की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन किस दिशा में और किन आधारों पर?इसकी पहल पहले मौलाना तौक़ीर रज़ा खान ने मार्च में अंतरराष्ट्रीय सूफी सम्मेलन के बाद जिसमे कि प्रधानमंत्री ने भी शिरकत की थी और उसमें उन्हें आमंत्रित नहीं किया गया था, मई 2016 में देवबंद का दौरा कर के की थी इसके उत्तर में जमीयत उलेमा से संबंधित देवबंदी मौलाना महमूद मदनी ने चन्द महीने बाद नवंबर में कुछ बरैलवी उलेमा के साथ मिलकर अजमेर शरीफ में एक भव्य सभा का आयोजन किया।
देवबंदी सुफीवाद में पैदा होने वाली अपनी नई प्रेम का खूब प्रचार कर रहे हैं और हज़रत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती अजमेरी के अनुयायी होने का दावा कर रहे हैं। यहां तक कि उन्होंने सूफी शेख हजरत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती के साथ अपने बड़े बुजुर्गों की निकटता दिखाने के लिए उर्दू अखबारों के मुख्यपृष्ठ पर विज्ञापन द्वारा उनका शिजरा भी प्रकाशित किया है। वह सूफी बरैलवियों के साथ एक शताब्दी तक जारी रहने वाली इस सांप्रदायिक युद्ध के बाद के जिसमें उन्होंने सूफीवाद को एक “प्रदूषण” और इस्लाम के अंदर “नवाचार” का नाम दिया था, अब सांप्रदायिक संघर्ष को खत्म करने की कोशिश कर रहे हैं। मार्च 2016 में ही जमीयत के प्रमुख मौलाना अरशद मदनी ने विश्व सूफी मंच की आलोचना की थी और उन्होने इसे सुफीवाद बनाम वहाबियत के आधार पर मुसलमानों को विभाजित करने की भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार की साजिश करार दिया था। उन्होंने कहा था कि “सुफीवाद कुछ भी नहीं है: यह कोई इस्लामी संप्रदाय नहीं है और कुरान में कोई आधार नहीं है। यह उन लोगों का काम है जो कुरान और हदीस से कोई लगाव नहीं रखते।” यहाँ तक कि अजमेर सम्मेलन में भी देवबंदी नेताओं ने सूफीवाद के ऊपर अपनी गलत बयानी पर कोई अफसोस जाहिर नहीं किया। और देवबंदीयों ने सुफीवाद के बारे में अपनी धार्मिक समझ में किसी बदलाव का भी संकेत नहीं दिया।
सूफियों और बरैलवियों के साथ अपनी एक सदी पुरानी फूट को खत्म करने की देवबंदियों की यह कोशिश यादगार हो सकती थी। लेकिन उन्होंने मात्र मुस्लिम पर्सनल लॉ में किसी भी परिवर्तन से लड़ने के लिए यह गठबंधन किया था। इससे केवल यही निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि देवबंद केवल भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार के खिलाफ जहाँ तक हो सके मुसलमानों का एक बड़ा मोर्चा स्थापित करने और नेतृत्व करने की कोशिश कर रहा है। इससे यह ज्ञात है कि हाल के दशकों में सऊदी पेट्रो डॉलर के आधार पर वहाबियत को बढ़ावा देने के बावजूद अभी भी देवबंदी पैरोकार बहुत कम हैं। कुल मिलाकर अभी भी भारतीय मुसलमान सूफीवाद पर ही विश्वास करते हैं। हालांकि, केवल देवबंद ही नहीं है जो केवल राजनीतिक कारणों से सूफी बरैलवियों के साथ गठबंधन बनाने की कोशिश कर रहा है। बल्कि मौलाना तौक़ीर रज़ा बरैलवी ने भी अपने देवबंद यात्रा में कहा था कि: “हमें अपने धार्मिक (सांप्रदायिक) मान्यताओं पर कायम रहते हुए अपने साझा दुश्मन से लड़ने के लिए एकजुट होना चाहिए, यही एकमात्र रास्ता है।”
दुश्मन कौन है? बेशक भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार। लेकिन अब क्यों? क्योंकि यह मुस्लिम पर्सनल लॉ में लैंगिक न्याय पर आधारित सुधारों के संकेत दे रही है। अब जब कि उसने सूफी विद्वानों और मशाईख बोर्ड को शर्मिंदा और चुप कर दिया है जिसने प्रधानमंत्री को अपने प्रपत्र से बात करने के लिए आमंतरण दी थी अन्य सभी दल तुरंत तीन तलाक पर प्रतिबंध की संभावना का विरोध करने के लिये एकमत होने का प्रयास कर रहे हैं।
हालांकि, देवबंद के लिए यह एक अतिरिक्त प्रोत्साहन है। यह हमारी स्वतंत्रता के बाद अक्सर सरकारों के पास रहा है। अब यह खुद को शक्तिहीन महसूस कर रहा है। इसलिए, यह मुस्लिम पर्सनल लॉ में संभावित सुधारों का विरोध कर सरकार को यह बताने का प्रयास कर रहा है कि हम भी सूफियों की ही श्रेणी में शामिल हैं जिनके बारे में सरकार का कहना है कि वे हमारे सहयोगी हैं।
धर्म की रक्षा और नास्तिक के खिलाफ युद्ध के एक कथित मंच पर मुसलमानों को इकट्ठा करना कोई मुश्किल काम नहीं है। इस्लामी वर्चस्व का एक पंथ सदियों से मुसलमानों के बीच विकसित किया गया है। सभी मदरसों चाहे वह बरैलवी हों या देवबंदी रस्म अलमुफ्ति नामक पुस्तक से फतवा सिद्धांतों की शिक्षा देते हैं जिस में उन्हें लगातार इन दो सिद्धांतों की शिक्षा दी जाती है।
1) इस्लाम हमेशा उच्च और ताकतवर रहेगा, उसे न तो कभी दबाया जा सकता है और न ही कभी उसे हराया जा सकता है।
2) सभी कुफ्र की दुनिया एक ही कौम हैं।
तौक़ीर रज़ा खान “काफिर” सरकार के खिलाफ लड़ने के लिए देवबंदीयों के साथ एकजुट होने की बात करते हैं तो इसमें आश्चर्य की कोई बात नहीं कि बरैलवी मुफ्तियो को इस पर कोई आपत्ति नहीं है। लेकिन जब खुद उनके अपने पाकिस्तानी विद्वान मौलाना तहिरुल कादरी जब असली सांप्रदायिक एकता के तरीकों की तजवीजात पर आधारित एक पुस्तक “सांप्रदायिकता का खात्मा कैसे हो” प्रकाशित करते हैं तो यही बरैलवी मुफ़्ती उनके खिलाफ फतवा जारी कर देते हैं।
हर संप्रदाय के मुसलमान दूसरे समुदायों के विद्वानों की नज़र में काफ़िर हैं। एक साथ एकजुट होने के सैद्धांतिक विवादों का समाधान अकल्पनीय है। लेकिन वह एक अलग धर्म बुतपरस्त से लड़ने के लिए एकजुट हो सकते हैं।
जब तक मुस्लिम और काफिरों का यह गठजोड़ विद्वानों का एक संगत इस्लामी परंपरा को विकसित नहीं करता मुसलमानों की आपसी व्याकुल जीवन का सपना साकार होना मुश्किल है। अस्थायी सांप्रदायिक एकता, स्थायी सांप्रदायिक सद्भाव के लिए खतरा पैदा कर सकता है, यह कोई समाधान नहीं है। बतौर मुसलमान हमें इतना ही नहीं कि हमें अपने आंतरिक फूट को दूर करना होगा, बल्कि काफिर और मोमिन की सोच को भी दूर करना होगा है। हम वर्चस्व और अलगाववाद की अपनी पुरानीं अवधारणाओं के साथ 21 वीं सदी की बहु संस्कृति दुनिया में एक मुसलमान के रूप में जीवन नहीं बिता सकते।
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सऊदी अरब ने पेट्रो डॉलर के मदद से वहाबियत फ़ैलाने की कोशिश की मगर उतनी कामयाबी नहीं मिली इसलिए भारत में बरेलवी फ़िर्क़े के पैरोकार अधिक है और इस लिए ये समुदाय आपसी सौहार्द बनाने की कोशिश कर रही है ! बरेलवी फ़िरक़ा खुले दिल से देओबंदी -बरेली दोस्ती चाहती है मगर देवबंद वाले क्या चाहते है कहा नहीं जा सकता !
islam ko badnaam karne me barelvi firqe ka bahut bada haaath raha hai , inlogo ke soch ke karan apas me itthahd hona mushkil hai
Allah paq me farmaya haq bat bolo chahe WO koibhi ho……tum itani Si bat se samj Jana ki fatwe kyu nikal the he …..
में सुन्नी देवबंदी हु हलाकि इसका देवबंद मदरसे से उसके फतवो से या मदनीयो से कोई लिंक नहीं हे ये हे की मेने जीवन में भी किसी मजार दरगाह पर कदम नहीं रखे हे न रखूँगा. चढ़ावे या किसी भी जेंटस के हाथ चूमना हमसे ना हो पायेगा खेर जो भी हे हम शुद्ध सेकुलर लोग हे बरेलवी हो शिया हो हिन्दू , सिख , कोई भी हो किसी की भी आस्था हमारे लिए मुद्दा नहीं बनेगी बस हिंसा ज़बर लूट और शोषण नहीं होना चाहिए , लेकिन सिर्फ हिंसा करना ही कट्टरपंथ नहीं हे या मुद्दा नहीं हे हम तो हर प्रकार की लूट और शोषण के खिलाफ हे इस लेख का लिंक मेने ही अफ़ज़ल भाई को मेल किया था http://khabarkikhabar.com/archives/2546 जब तक दोनों तरफ कोई नयी उदार गेर शोषणकारी सोच सामने नहीं आती हे तब तक ऐसी यूनिटी नहीं चाहिए हमको .
BAHUT ACHCHA LEKH SULTAN SHAHIN JI KA