by — सिकंदर हयात
मध्य प्रदेश के बड़वानी के अरिहंत होम्योपैथिक कॉलेज के छात्र और दुआरा एडमिशन के बाद दाढ़ी रखने और उसके बाद छात्र का आरोप हे की प्रिंसिपल जैन साहब दुआरा उस पर क्लीन शेव करके कॉलेज आने के दबाव डाला गया इसके अलावा भी कई लोग ये आरोप लगा चुके हे की उन्हें दाढ़ी नहीं रखने दी जाती हे शायद इसी तरह का विवाद पिछले दिनों एयर फ़ोर्स में भी हुआ था जहां एक मुस्लिम कर्मचारी दाढ़ी रखना चाहता था बात करे तो मध्यप्रदेश के बड़वानी के उस छात्र की तो . ये मानकर ही सही की फ़र्ज़ करे की कॉलेज के प्रिंसिपल साम्प्रदायिक भावना से ग्रस्त होकर ही आप पर खास हुलिए को बदलने को कह रहे थे ये मानकर भी हम तो उस छात्र से यही कहेंगे की दोस्त इस्लाम के नाम पर किसी भी पँगेबाज़ी में मत पड़ो मत पड़ो कोई फायदा नहीं हे इसमें नुकसान ही नुकसान हे कुछ भी तो फायदा नहीं हे ”खुदा के लिए ” फिल्म भारत व पाकिस्तान सारी दुनिया में ही पसंद की गयी थी इस में अंत में मौलवी बने नसीरुद्दिन शाह कुछ ऐसा कहते हे की ” दाढ़ी ‘अंजाम ‘ हे इसे आगाज़ ही बना लेने की ज़िद मत करो ” बड़वानी के दोस्त पढ़ो लिखो नमाज़ रोजा करो कोई तुम्हे नहीं रोक रहा हे ना रोक सकता हे मगर इन विवादों में ना पड़ो इसमें इस्लाम इंसानियत और इण्डिया तीनो का ही नुकसान हे फायदा कुछ भी नहीं हे दाढ़ी रखने की ज़ल्दबाज़ी क्यों – ? क्यों इन बातो पर विवाद किया जाए विवाद में पड़ा जाए हे कोई लाभ कुछ भी तो नहीं दाढ़ी अनिवार्य ही हो इस्लाम में ही ऐसा भी नहीं हे करोड़ो मुस्लिम दाढ़ी नहीं रखते हे और जो लोग फ़र्ज़ करो तुम्हे दाढ़ी रखने और उस पर अड़ने के लिए उकसा रहे हे उनकी मांगे इतनी हे की दाढ़ी पर तो किसी भी बात पर ही ये कभी राजी नहीं होंगे सच्चे और असली मुस्लिम की इनकी शर्तो का कोई अंत नहीं होता हे बैंक बीमा पर्दा हर मुद्दे पर इनकी अनगिनत मांगे हे या सोच हे इतनी शर्ते हे की तुम कभी भी पूरी नहीं कर पाओगे बेहतर यही होगा की इनकी सुनो मत मेरा अंदाज़ा हे की ऐसे ही किसी न किसी से प्रभावित होकर तुमने कोर्स के बीच में ही दाढ़ी रख ली होगी चलो मानलिया की तुमने दाढ़ी रखनी ही हे , तो कोर्स पूरा करके रख लो भाई इल्तज़ा हे की इस्लाम के नाम पर पँगेबाज़ी बन्द कर दो खुदा के वास्ते बन्द कर दो !
तुम मानो ना मानो सारी दुनिया में ही मुस्लिम कटरपंथ बढ़ रहा हे गलती चाहे किसी की भी हो , ये बढ़ रहा हे और दुनिया इससे चिंतित हे हम दुनिया से अलगथलग नहीं रह सकते हे हमे इसी दुनिया में रहना हे और गेर मुस्लिमो के साथ ही रहना हे हमें उनके सामने इस्लाम के उदारवादी चहरे को पेश करना चाहिए कट्टरवादी चेहरे को नहीं अगर ऐसा करेंगे तो क्लेश बढ़ेगा और क्लेश से किसी का फायदा नहीं हे नुकसान ही नुकसान हे ये भी देखो दोस्त की दुनिया के दो सबसे बड़े लोकतान्त्रिक देशो में , मुस्लिम कट्टरपंथ से परेशान होकर जनता ने भारत में मोदी और अमेरिका में डोनाल्ड ट्रम्प जेसो को सत्ता सौप दी हे ये दोनों ही बेहद बदमिजाज असवेंदंशील और तानाशाही मिजाज के हे कितना बड़ा नुकसान हुआ हे मोदी भारत की निरीह बेकसूर जनता को खून के आंसू रुल्वा रहे हे तो उधर ट्रम्प के आने से सारी दुनिया सहमी हुई हे अगर मुस्लिम कटरपंथ ना होता या हमने उस पर काबू पा लिया होता तो आज हम मोदी और ट्रम्प जैसे छोटी सोच के छोटे नेताओ को नहीं झेल रहे होते आगे भी फ़्रांस और जर्मनी जैसे बहुत ही महत्वपूर्ण देशो में मुस्लिम कट्टरपंथ विरोध के नाम पर दक्षिणपंथियों के नयी खेप उभर रही हे यहाँ भी मुस्लिम कटरपंथ से आम जनता परेशान हे और वहां के मोदियो डोनाल्ड़ो के लिए रास्ता साफ़ हो रहा हे आखिर इस सब क्लेश से इस्लाम और इंसानियत का क्या भला होगा———- ? दोस्त अपने आस पास ही बहुत ध्यान से चेक कर लोग सबसे अच्छे और सच्चे मुस्लिम उदारवादी मुस्लिम ही होंगे जो क्लेश नहीं करते . क्लेश को टालते हे कट्टरपन्ति जिनसे शायद तुम थोड़े बहुत इम्प्रेस हुआ होंगे वो हर जगह लोगो को परेशान ही करते मिलेंगे ध्यान से गहराई से सवेंदना से देखोगे तो ये सच तुम्हे नज़र आ जायेगा !
सबसे महत्वपूर्ण बात समझ लो की इस विषय पर केवल मुल्ला धर्मगुरुओ की ही बात नहीं हे इनके अलावा भी एक और वर्ग तुम्हारा हौसला बढ़ा रहा होगा तुम्हे अपने हुलिए के लिए अड़ने के लिए तुम्हारी जयकार कर रहा होगा ”सिख भी तो ” ”मास्टर जी भी तो तिलक ” ”मुसलमानो पे जुल्म ” आदि बड़ बड़ा रहा होगा. ये लोग ही बहुत बड़ी समस्या हे ये वो लोग होते हे जो बिलकुल सामान्य लोगो की तरह जीवन में लगे होते हे इस्लाम से इनका कोई खास लेना देना नहीं होता हे ये किसी आम गेर मुस्लिम की तरह ही जीवन में आगे बढ़ने के लिए झूझ रहे होते हे उसके लिए सही गलत सब कुछ करते हे तुम्हारे लिए उछलकूद कर रहे एक क्लीन शेव सपोटर को मेने देखा इन साहब पर मेने दूसरे लोग ( ये भी दाढ़ी के मुद्दे पर तुम्हारे साथ ही होंगे ) दुआरा चंदा खाने का आरोप सूना हुआ हे कितनी सच्चाई अल्लाह जाने कहने का आशय हे की एक बहुत बड़ा वर्ग मुसलमानो में ऐसा भी हे जिसका इस्लाम और उसके उसूलो और आदर्शो से कसम खाने को भी रिश्ता नहीं होता हे मगर अगर कोई मुद्दा होगा तो ये लोग कटरपन्तियो के पक्ष में ही मुँहजोरी करते दिखाई देंगे सिर्फ मुँहजोरी और कुछ नहीं क्योकि इनकी सोच ये होती हे की दुनियादारी में तो हम लगे हुए हे ही और उसमे लगे हुए इनमे ईमानदारी सिर्फ उतनी ही बचती हे कोई उसूल कोई आदर्श कोई महानता सिर्फ इतनी ही बचती हे जितना की आज के हालात में किसी भी गेर मुस्लिम में .मगर इस्लाम के नाम पर ये वर्ग हमेशा फ़ौरन कट्टरपंथ के साथ ताल मिला देता हे और सोचता हे की चलो सस्ते में सवाब भी पा लिया फिर ये नार्मल दुनियादारी में लग जाता हे!
जहां ये किसी इस्लामी या कैसे भी उसूल आदर्श का पालन नहीं करता हे कल को प्रिंसिपल जैन साहब के साथ क्लेश में फ़र्ज़ करो तुम्हारी पढाई लिखाई बर्बाद हो गयी तो याद रखो ये दीन धर्म के ठेकेदार ये नेता ये क्लीन शेव तुम्हारे मुँहजोर सपोटर कोई तुम्हारे लिए कुछ नहीं करने वाला डॉक्टर ना बन सके सस्ते मज़दूर बन गए तो ये सब तुम्हारे से फायदा ही उठाएंगे तुम्हारे लिए कोई कुछ नहीं करेगा. मेने ऐसे ही अपने एक क्लीनशेव डॉक्टर कजिन के बारे में दर्शाया हे की वो क्यों जाकिर नायको को जबानी सपोर्ट देता हे ( सिकंदर हयात September 27, 2016अभी में वेस्ट यु पि गया हुआ था वहां एक जगह मेरा कज़िन डॉक्टर हे मुस्लिम बहुल सम्पन्न इलाका , वेस्ट यु पि की मुस्लिम आबादी का साफ़ तब्लिगीकरण हो चुका हे ( एक जाट केंद्रीय मंत्री के पिता के शब्दो में पहले तो यहाँ का मुस्लिम हमारे जैसा था अब हमसे बिलकुल अलग हो चूका हे जो भी हुआ उसका भारी फायदा लोकसभा चुनावो में भाजपा को मिला अब वही कहानी विधान सभा चुनावो में दोहराने की कोशिश जारी हे ) खेर मेरा कज़िन पढ़ा लिखा डॉक्टर , पुश्तेनी इलाका , खानदानी सय्यद यानी इलाके पर उसका खासा प्रभाव लेकिन रवैया वही अलीगढ़ जामिया या कही के भी पढ़े लिखे कल्चर्ड मुस्लिम वाला की – पैसा अच्छा खासा , खुद मॉडर्न , बच्चे पब्लिक स्कूल में , बीविया बुर्के परदे हिज़ाब से बहुत दूर , गेर मुस्लिमो से भी बेहद अच्छे रिश्ते , मगर वो कठमुल्लाशाही को ना कोई समस्या मानता हे ना उसके खिलाफ चु भी करता हे इलाके में चारो तरफ बच्चे ही बच्चे ( कठमूल्लशाही का परिवार नियोजन विरोध ) मेने मेरे कज़िन को उसी के अवचेतन मन के बारे में ये समझाया की ” तुम कठमुल्लाशाही तब्लिगीकरण के खिलाफ कुछ नहीं बोलोगे क्योकि इसी में तुम्हारा फायदा हे कठमूल्लशाही मतलब इलाके में कोई और डॉक्टर होने के चांस कम नतीजा तुम्हारे लिए कम्पीटिशन नहीं फिर इसी से अधिक बच्चे तो तुम्हारे लिए अधिक मरीज फिर अधिक आबादी यानी तुम्हारी जमीनों के दाम अधिक , फिर अधिक आबादी यानी सस्ती लेबर , पूंजी तुम्हारे पास हे ही और बस सस्ती लेबर मिल जाए तो तुम लोकल अम्बानी , यानी दुनिया में मज़े ही मज़े फिर कठमुल्लाशाही का बचाव कर करके सोचते हो की जन्नत में सीट रिजर्व और दुनिया में भी हमारी खुशाली को किसी की नज़र ना लगे यानी ये हे तुम्हारी टोटल साइकि ) में समझता हु की तुम्हारे जैसे नौजवानों को सबसे अधिक बरगलाता और कन्फ्यूज़ यही खास वर्ग करता हे तो दोस्त इनसे सावधान . तो बड़वानी के होम्योपैथिक कॉलेज के दोस्त हम तो तुमसे यही अपील करते हे की दोस्त इस्लाम के नाम पर किसी क्लेश में ना पड़ो पढ़ो लिखो नमाज़ रोजा करो अच्छे डॉक्टर बनो इस्लामी आदर्शो आदेशो के अनुसार ब्याज लूट और शोषण से भी दूर रहो और जैसा की खुदा के लिए फिल्म में मौलवी बने नसीर बताते हे की जब सही समय आएगा तो दाढ़ी भी रख लेना .
मैं दाढी नहीं रखता और जो दाढी रखता है उस पर यह भी जोर नहीं डालता कि वह दाढी साफ कराये, मैं तिलक भी नहीं लगाता, कलावा भी नहीं बांधता मगर जो ऐसा करता है उसे मना भी नहीं करता और न ही उससे नफरत करता। मेरे काॅलेज से लेकर विश्विद्यालय तक में मुझसे किसी ने न तो यह मालूम किया कि मैं मुसलमान होकर दाढी क्यों नहीं रखता और न ही किसी ने मेरी बढी हुई शेव के ऊपर कोई कमेंट किया कि ‘चिकने’ होकर’ काॅलेज आया करो। हां मेरे ऐसे कई साथी थे जो मुसलमान तो नहीं थे मगर वे दाढी रखते थे जैसे Suraj Singh भाई, Sumeet Thakur ये लोग दाढी रखकर कैंपस आते थे मगर किसी प्राध्यापक ने इन्हें दाढी रखने को लेकर कोई टोका टाकी नही की। मगर जब मध्य प्रदेश के अरिहंत मेडिकल काॅलेज का निदेशक एम के जैन दो टूक कहता है कि काॅलेज आना है तो दाढी कटानी होगी वरना काॅलेज आने की कोई जरूरत नही है, तब गुस्सा आता है खून खोलता है मगर बहता नहीं, बहाना जरूरी भी नहीं। गुस्सा सरकार पर आता है कि उसने कैसे कैसे लोगो को काॅलेज चलाने की मान्यता दे रखी है जिन्हें समाज को ही दूषित कर रखा है, ऐसे लोग कैसा समाज गढेंगे कभी यह सोचा है आपने ? सोचियेगा ? फिर दोहरा रहा हूं मैं दाढी नही रखता मगर जब कोई एम के जैन जैसा तथाकथित अंग्रेज यह कहता है कि दाढी कटाकर ही कालेज आना है तब मेरे अंदर का छात्र मुझे झंझोड़ कर कहता है कि चाहे आगे दाढी रखना या नही रखना मगर अब जरूर रखनी है। ताकि उस तथाकथित शिक्षाविद्य को दिखाया जा सके कि शिक्षा के मंदिर आप किसी के धार्मिक/ मौलिक अधिकारो का हनन नही कर सकते, आपका काम शिक्षा देना है शेविंग करना नाई का काम है उसे ही करने दीजिये।
Wasim Akram Tyagi
Brother सिकंदर हयात जी आप इस विषय पर देर से आये मगर दुरुस्त नहीं आये क्योकि आप द्वारा जो लेख प्रस्तुत किया गया है उसमे घटना की निंदा करने के जगह पीड़ित पक्ष को ही सुधरने की सलाह दे दिया गया वो भी मोदी और डोनाल्ड ट्रंप कर डर बता कर आप क्यों नहीं कहते की बुराई दाढी में नहीं उनकी मानसिकता में है
मुसलमानो के सारी दुनिया में ही टकराव चल रहे हे गलती चाहे किसी की भी हो चाहे उसके पीछे वजह जो भी हो उस पर बात चलती रहेगी सही हे मगर हर हाल में इन टकरावो को टाला जाना चाहिए टालने के बिंदु सोचे जाने चाहिए सबसे अच्छा बिंदु हे उदारता अगर आप ही लिबरल बनजाओगे दुसरो को भी लिबरल होने की सलाह दोगे तो कोई हर्ज़ नहीं हे इसलिए इन लड़को को सलाह दी हे की भाई तीन चार साल का कोर्स होता हे उसके बाद रख लेना सच तो ये हे की जो कट्टरपन्ति होगा या कट्टरपंथ की तरफ जा रहा होगा वही इन बातो पर अड़ेगा या अड़ने की सलाह देगा वार्ना लिबरल तो अड़ेगा ही नहीं —– जारी
Brother सिकंदर हयात जी मुसलमानो से नफरत और टकराव तो हर दौर में जारी रहा है और ये वास्तविक सच है कि मौजूदा दौर में कुछ लोग द्वारा एक साजिश के तहत इस नफरत को बढ़ाया गया है हालांकि इसमें कुछ मुसलमानो की जहालत ने इस नफरत को बढ़ाने में सहयोग किया है
Brother सिकंदर हयात जी आप ने लेख व कमेंट में विषय से हट कर एक अलग बात की शुरुआत की है और आप द्वार ये समझाने का प्रयास किया गया है की मौजूदा दौर में मुसलमानों को लिबरल होना चाहिए मेरी ये राय है की ये जयादा कारगर नहीं होगा क्योकि आप ने उदारता देखाते हुए ही ऐसी लेख प्रस्तुत किया गया और नतीजा में brijesh yadav January 3, 2017 जी का कमेन्ट देखे उनके द्वारा बड़े आसान शब्दों में मुस्लिम समाज की बुराई व कमिय बताकर खुद को ‘ मैं ‘ या श्रेष्ठता का अहसास कर लिया है.
बहरहाल सिकंदर हयात जी मै आप से ये कहना चाहता हु कि “जहाँ बोलने की जरूरत हो वहां चुप रहा जाये तो ये, झूठ जैसा ही है”
असलम भाई आपने लिखा की brother सिकंदर हयात जी मुसलमानो से नफरत और टकराव तो हर दौर में जारी रहा है और ये वास्तविक सच है कि मौजूदा दौर में कुछ लोग द्वारा एक साजिश के तहत इस नफरत को बढ़ाया गया है हालांकि इसमें कुछ मुसलमानो की जहालत ने इस नफरत को बढ़ाने में सहयोग किया है ” असल म भाई वो जो कुछ भी हे उस साज़िश के खिलाफ लिखने वाले लोग भी तो बहुत हे बहुत हे आपने मुसलमानो की गलतियों और ज़हालत की बात मानी तो भाई इस पर लिखने बोलने वाले मुसलमानो में कम ही हे तो अगर हम उस तादाद को बढ़ाने की कोशिश कर ही रहे हे तो इसमें क्या गलत हे भला — ? और सच तो ये हे की बृजेश भाई को आप शुरू से पढ़े तो धीरे धीरे वो नरम ही हो रहे हे आप पुराना पढ़े परिवर्तन धीरे धीरे ही आता हे ये बहुत लंबी लड़ाई हे और समझ लीजिये की उपमहादीप में जितने भी क्लेश हे सब ऐसे ही हे ग़ुस्से से ना सुलझेंगे बहुत सयम से काम लेना होगा उदारवादी बनेंगे तो बृजेश भाई से ना सही मगर अपने ही मुस्लिम पडोसी या रिशतेदार या कुलीग या शिया बरेलवी बोहरा अजलाफ अशराफ जरूर बनने लगेगी एक बार आओ तो सही शुद्ध सेकुलरिज्म और लिबरलिज्म की दुनिया में आओ तो सही अच्छे लगेगा अच्छा होगा आमीन और आपने कहा की ”जहाँ बोलने की जरूरत हो वहां चुप रहा जाये ” बताइये हम कहा चुप रहे हे —- ? अगर आप पूरी साइट और सारे कमेंट पड़ेंगे तो शायद आपको ऐसा ना लगे अच्छा इस साइट से अलग भी बहुत लिखा हे हमने —– जारी
Brother सिकंदर हयात जी के कथन कि “असल म भाई वो जो कुछ भी हे उस साज़िश के खिलाफ लिखने वाले लोग भी तो बहुत हे बहुत हे आपने मुसलमानो की गलतियों और ज़हालत की बात मानी तो भाई इस पर लिखने बोलने वाले मुसलमानो में कम ही हे तो अगर हम उस तादाद को बढ़ाने की कोशिश कर ही रहे हे तो इसमें क्या गलत हे भला — ?
जवाबः
brother सिकंदर हयात जी दुनिया में बहुत बड़ी तादाद में ऐसे लोग है जो सिर्फ वही सुन्ना और जाना चाहते है जो मुसलमानो के विरुद्ध कहा गया हो .ये वही देखना चाहते है जिस से मुसलमानो के चरित्र पे शक पैदा हो और आप के उपरोक्त लेख ऐसी मानसिकता को बहुत अधिक बल दे रहे है
Brother सिकंदर हयात जी आप के मन में ये सवाल उत्पन्न हुआ होगा की मै मुसलमानों से उदारवादी होने के आलावा कैसी अपेक्षा रखना चाहता हु तो मै मुसलमनो से यही अनुरोध करुगा की मौजूदा मुसलमानों को दौरे सहाबा से शिक्षा लेनी चाहिए क्योकि वही दौर था जब मुसलमानो (सहाबा) सत्य, न्याय, वचन-पालन और अमानत में सबसे आगे थे
” मौजूदा मुसलमानों को दौरे सहाबा से शिक्षा लेनी चाहिए क्योकि वही दौर था जब मुसलमानो (सहाबा) सत्य, न्याय, वचन-पालन और अमानत में सबसे आगे थे
REPLY ”वो सब लीजिये जरूर लीजिये मुझे कोई ऐतराज़ नहीं मगर खुद पढ़िए खुद शिक्षा लीजिये खुद जितना अच्छा जो भी बनना हे बनिए असलम भाई जरूर बनिए मगर एक तो इस्लाम के नाम पर अपना कोई भी विचार कोई ज़बरदस्ती य क्लेश से दुसरो पर मत थोपिए आप खुद इस्लाम के आधार पर जितना धार्मिक अच्छा नेक शरीफ सादा धार्मिक जितना बनना हो बनिए खुद सही रहिये बस बाकी अल्लाह पर छोड़िये की लोग खुद ही आपसे इम्प्रेस हो आप जैसा बने बहुत अछि बात हे हमें कोई ऐतराज़ नहीं लेकिन अगर आप इस आधार पर क्लेश को बढ़ावा देंगे कट्टरता को बढ़ावा देंगे तो फिर हम तो विरोध करेंगे ही इस विषय पर बहुत ही विस्तार से इस लेख पर बात हुई हे वो सब यहाँ हे अगर कोई बात गलत लगे तो आप उसे कोट करके बता सकते हे http://khabarkikhabar.com/archives/1105
असलमभाई जैसे की हम देखते ही हे की इस दुनिया में चारो तरफ बुराइया हे ही आप इस्लाम और इस्लाम की गहरी आस्था के माध्यम से साफ दिल से ही उन बुराइयो से लड़ना और मिटाना ही चाहते होंगे हमें इससे ज़रा भी ऐतराज़ नहीं हे मगर कुछ बातो का ध्यान रखे तो कोई हर्ज़ नहीं हे एक तो ये ”असगर अली इंजिनियर अपनी किताब इस्लाम का जन्म और विकास के अंत में लिखते हे की ” डा इकबाल जैसे आदर्शवादी इस्लाम के पहले ३० वर्षो में मौजूद समाज की तर्ज़ पर एक इस्लामी समाज कायम करने में पक्का विशवास करते हे ये आदर्शवादी ऐतिहासिक शक्तियों को पूरी तरह से अनदेखा करते हे ——————— इस्लामी भाईचारा इन आदर्शवादियों का गढ़ा हुआ एक और मिथक हे आरम्भ से ही इस्लामी समाज वर्गों और श्रेणियों में बटा हुआ रहा हे ————– हमारे दौर में जो लोग इस्लामी भाईचारे की बात करते हे वे भी सामजिक वास्तविकताओं से तथा समाज के विभिन भागो और वर्गों के बीच मौजूद आपसी टकराव से अनजान हे इसलिए ये कहना शुद्ध आदर्शवाद होगा की मुक़्क़मल भाईचारा सिर्फ धर्म के आधार पर कायम किया जा सकता हे जो ऐसे भाईचारे को जारी रखने के लिए आवशयक दशा तो हो सकती हे पर्याप्त दशा नहीं हो सकता सामान्य धर्म और विशेषकर इस्लाम का इतिहास इसे साफ़ साबित करता हे लेकिन तथ्यों के नाक के सामने होते हुए भी इस्लाम के पैरोकार इस्लामी भाईचारे के मिथक को बने रखने की कोशिश करते आये हे मेरी राय में इस्लाम के ये पैरोकार उसके लक्ष्यों की सेवा नहीं कर रहे हे ” ————–दूसरा ये की जब आप इस्लाम के आधार पर बुराइया मिटाने निकलेंगे तो आप तो अच्छे हे सही हे मगर और सभि लोग सही नहीं भि हों सक्ते हे उनसे सावधान रहना होगा तब हो सकता हे किसी जिन्ना को इस्लाम के नामपर अपने जूनियर गाँधी नेहरू आज़ाद से कोंग्रेस में मिली हार का बदला लेना हो किसी को चन्दा खीचना हो किसी को वोट खीचना हो तो किसी को सिर्फ अपनी धाक जमानी हो किसी को कोई और दुनियावी हवस हो बहुत बाते हे इंसान बड़ा फितरती होता हे ध्यान से
Brother सिकंदर हयात जी आप कई बात/विषय का समावेश करके अपनी बात का रहे है बहरहाल मै आप की हर बात का जवाब विषयनुसार दुगा
अच्छा लगता है जब कोई ऐसी बाते करता है जिसका वास्तविक जिंदगी से वास्तविक लोगो से रत्ती भर भी सम्बन्ध नहीं होता ! पता नहीं किन लोगो कि बाते करके , सोच कर अपने दिल तो तस्सली देते है !
Brother सिकंदर हयात जी एक बात समझिएगा कि झूठ को अनेक लोग अनेक बार बहुतायत से बोलें तो वह सच की तरह दिखने लगेगा। इस्लाम और मुस्लमानों पर झूठे और बेतुके इल्जामात लगाकर कुछ लोग ऐसा ही कर रहे है आज़ादी के बाद भारतीय मुसलमानों को जहाँ कई प्रकार की समस्याओं का सामना है वहीं एक यह भी है कि एक विशेष मानसिकता के लोग इस्लाम और मुस्लमानों पर झूठे और बेतुके इल्जामात लगाकर उन्हें मानसिक उलझनों का शिकार रखना चाहते हैं।
बहरहाल मुद्दे पर आये आप की सारे बातो के बारे में मै निष्कर्ष निकाल रहा हु कि आप इस्लामिक भाईचारा के खिलाफ है आप ये कहना चाहते है कि इस्लामी भाईचारा कुछ आदर्शवादियों का गढ़ा हुआ है और मिथक हे भाई ये अलग वौर बहुत बड़ा विषय है जिसका जवाब यहाँ देना उचित नहीं है अगर आप कहेगे तो जवाब दुगा लेकिन कुछ समय समय लुगा क्योकि मेरे पास समय का अभाव है मै आप के अन्य कमेंट का जवाब धीरे धीरे दुगा
Brother सिकंदर हयात जी मैंने जब पहली बार इस साइट पर कमेंट किया तो मैंने आप को बताया कि विगत 3 से 4 महीने से इस साइट के सारे लेख व कमेंट पढ़ा हूं और गहन अध्य्यन किया हूं क्योंकि जब तक आप किसी विषय या किसी व्यक्ति के विचार को हर तरह पहलु को नहीं समझे तब तक आप किसी सही निष्कर्ष पर नहीं आ सकते है इसलिए आप ने जिस लिंक को दिया है मैंने उसको भी पड़ा है
बहरहाल मुद्दे यानि आप कमेन्ट पर आते है आप का कथन कि “”वो सब लीजिये जरूर लीजिये मुझे कोई ऐतराज़ नहीं मगर खुद पढ़िए खुद शिक्षा लीजिये खुद जितना अच्छा जो भी बनना हे बनिए असलम भाई जरूर बनिए मगर एक तो इस्लाम के नाम पर अपना कोई भी विचार कोई ज़बरदस्ती य क्लेश से दुसरो पर मत थोपिए आप खुद इस्लाम के आधार पर जितना धार्मिक अच्छा नेक शरीफ सादा धार्मिक जितना बनना हो बनिए खुद सही रहिये बस बाकी अल्लाह पर छोड़िये की लोग खुद ही आपसे इम्प्रेस हो आप जैसा बने बहुत अछि बात हे हमें कोई ऐतराज़ नहीं लेकिन अगर आप इस आधार पर क्लेश को बढ़ावा देंगे कट्टरता को बढ़ावा देंगे”””
जबाब:
ख़राबी की जड़
हर आदमी सत्य का नाम लेता है। इसके बावजूद दुनिया में हर तरफ़ बिगाड़ क्यों है।
इसकी वजह क़ुरआन के शब्दों में इल्हाद (विचलन/deviation) है। यानी बात को सही दिशा से ग़लत दिशा की ओर मोड़ देना।
इल्हाद या विचलन का एक रूप जो मौजूदा ज़माने में बहुत ज़्यादा आम और प्रचलित (common) है‚ वह है— इनफ़रादी या व्यक्तिगत (individual) हुक्म का रूख़ लोगों के समूह की तरफ़ कर देना। जिस हुक्म का संबोधन ख़ुद अपने लिए है उसका संबोधित (addressed) दूसरों को बना देना।
भाई आप किसके मन की बात कर रहे मैंने ऐसा कौन सा कॉमेंट कर दिया की आप द्वारा इतना दूर तक सोचना पढ़ा ?
भाई आप ने मुसलमानों को लिबरल होने की सलाह दी तो मैंने जवाब देते हुए कहा कि
“”मौजूदा मुसलमानों को दौरे सहाबा से शिक्षा लेनी चाहिए क्योकि वही दौर था जब मुसलमानो (सहाबा) सत्य, न्याय, वचन-पालन और अमानत में सबसे आगे थे””
भाई दोनों लोगो ने मुसलमानों को सलाह दिया जिसकी सलाह अच्छी होगी मुसलमान उस सलाह मानेगे
भाई मैंने आप को कोई सलाह नहीं दी और न ही मैंने आप को सलाह दिया कि आप लिबरल बनें मगर किसी को जबरदस्ती लिबरल मत बनाये तो आप ने कैसे मेरे बारे में उपरोक्त कथन किया गया
अब आप को मेरी बात पर हँसी आयेगी लिबरल होने में क्या बुराई है तो मुझे भी आप की बात पर हँसी आयी थी कि कोई व्यकित सत्य, न्याय, वचन-पालन और अमानत करता है तो वो कैसे कटरपंथी हो जाता है
में समझ नहीं पा रहा हु की आप कहना चाह रहे हे सवाल ये हे की आप भी भलाई चाहते हे हम भी तो फिर हम आपस में क्लेश क्यों करे — ? आप इस्लाम की अपनी व्याख्या के आधार पर भलाई में लगे तो हम अपनी व्याख्या के आधार पर भलाई में लगे हे तो फिर क्लेश किस बात का—- ? आप अपना काम करे हमें अपना काम करने दे हम किसी पर जबदस्ती नहीं करते हे हिंसा का तो सवाल ही नहीं हे प्राण रक्षा के अलावा हम किसी हालात में हिंसा को मान्यता नहीं देते हे तो फिर हमसे आपको या किसी को भी तकलीफ क्या हे ——- ? मान लीजिये हमारा एक भी समर्थक कोई गलत काम करता हे कोई लूट कोई शोषण कोई जबदस्ती कोई झगड़ा तो हम जिम्मेदार होंगे आप इस्लाम की अपनी व्याख्या के आधार पर जितना अच्छा समाज बनाना हो बनाइये कोन आपको रोक रहा हे–? इसी तरह हम भी अपनी सेकुलर व्याख्याओं के आधार पर बुराई शोषण लूट जुल्म खत्म करना चाहते हे हम अपना काम कर रहे हे फ़र्ज़ कीजिये इस काम में आप कामयाब होते हे और हम नाकामयाब तो भी हमे ज़रा भी ऐतराज़ नहीं हे
Brother सिकंदर हयात जी ये तो मै जानता हु की आप शब्दों के जादूगर है किसी तरह आप ने शब्दों का इस्तेमाल करके इस विषय को कट्टरपंथ से जोड़ दिया क्या दाड़ी रखना कट्टरपंथ का घोतक है? क्या सिर्फ मुसलमान दाड़ी रख ले तो वो कट्टरपंथी हो जाता और सब दूध के धुले है ? कृपया सिर्फ विषय पर जवाब दे की भारतीय संविधान ने मुसलमानों कोई अधिकार नहीं दिए है क्या आप चाहते है की मुसलमान अपने सारे संवैधानिक अधिकार को उदारवादी बनकर परित्याग कर दे? भारत में संविधान के सामानांतर जो मनुवादी व्यवस्था चल रही है आप उस व्यवस्था का indirect समर्थन करते हू आप ने ये लेख प्रस्तुत किया है
असलम भाई दूसरे समाजो में भी बुराइया हे बहुत बुराइया हे इंसान की फितरत में ही बुराइया भरी हुई हे वो अलग बाते हे मगर धार्मिक कटरपंथ आज की तारीख में मुसलमानो में ही सबसे अधिक हे अमेरिका रूस चीन में लाख बुराइया हे मगर उसकी जड़ इंसानी फितरत बुराइया लालच हे उनका धार्मिक कटरपंथ नहीं जैसे डोनाल्ड ट्रम्प मुस्लिम विरोधी हे तो उसका मतलब ईसाई कट्टरपंथ नहीं बल्की डोनाल्ड की सत्ता की हवस थी . एक ज़माने में ऐसा ही ईसाई कट्टरपंथ यूरोप में था सेम सब कुछ वही तब अनेक लेखक विचारक आगे आये और उन्होंने उस कटरपंथ को काबू किया अब यही जिमेदारी हमारे ऊपर हे हमें अपने जिम्मेदारी से भागना नहीं चाहिए अगर कटरपंथ नहीं हे तो क्यों मोरक्को से लेकर इंडोनेशिया तक हर जगह मुसलमानो के संघर्ष ही चल रहे हे कही भी तो ना आपस में बन रही हे ना गेर मुस्लिमो से ना शिया सुन्नियो में इस सबकी जड़ कटरपंथ और कटरपंथी ही हे जो हर जगह क्लेश को बढ़ावा देते हे आप चाहे तो शतुरमुर्ग की तरह अमेरिका इज़राइल को दोष देकर रेत में सर छुपा सकते हे मगर उससे कोई समस्या ना सुलझेगी और मुझे इतना बता दीजिये की भारतीय संविधान ने आपसे कौन सा अधिकार छीन लिया हे — ? इस देश में मुकेश अम्बानी दो बीविया घर में नहीं रख सकता हे जबकि अम्बानी के किसी धर्मग्रन्थ में दो बीवियों की मनाही नहीं हे जबकि कितने ही मुस्लिम घर में दो बीविया रखते हे आखिर आप किस छीने हुए अधिकार की बात कर रहे हे — ? दाढ़ी भी चारो और दिखेगी हर जगह दिखेगी आपने लिखा की”क्या दाढ़ी कट्टपंथ को धोतक हे ” नहीं कोई बुजुर्ग या कोई दुनियादारी से हट चुका मुस्लिम दाढ़ी रखे और हर वक्त इबादत में रहे कोई ऐतराज़ नहीं मगर असलम भाई आप भी बताइये की जो खुदा के लिए फिल्म में मौलवी बने नासिर दुआरा कहा गया था क्या वो कोई गलत बात थी — ? एक बीस बाइस साल का पढाई कर रहा लड़का अचानक शायद शायद किसी लोकल जाकिर नाइक से इम्प्रेस होकर अपना हुलिया बदल लेता हे ये कटरपंथ का संकेत हे या नहीं ये आप खुद जान जाएंगे जब आप उससे पूछेंगे की क्या वो अपनी बहनो को भी अपनी मर्जी के कपडे पहने की इज़ाज़त देता हे या नहीं हे अगर इसकी बहन अपनी मर्जी के कपडे पहनती हे तो वो उससे लड़ेगा तो नहीं अगर कोई मुस्लिम दूसरी शादी कर रहा हो बिना तलाक दिए तो वो विरोध करेगा या नहीं , वो हिन्दू मुस्लिम एकता में विश्वास करता हे या नहीं शियाओ के बारे में उसके क्या विचार हे — ? वैसे तो और भी प्रशन हे मगर फिलहाल यही प्रशन पूछ लीजिये और उनका उत्तर हमें भी बताइये —— जारी
बीस साल की उम्र में अचानक से दाढ़ी बढ़ा रहे लड़के की परिवार नियोजन पर राय क्या हे ——– ? मुसलमानो को अधिक बच्चे पैदा करने चाहिए या कम ——– ? . बहुत से कटरपंथी बैंक बीमा ये वो सबको गलत बताते हे उसकी क्या राय हे ——— ? पिछले दिनों एक फतवे में तो नाईयो को भी कुछ बताया सा गया था उस लड़के की क्या राय हे —— ?
असलम भाई आपने बिलकुल सही कहा हे की हम देर से आये हम अधिकतर मुद्दो पर देर से ही आते हे क्योकि हमें बहुत सोच समझ कर बहुत ध्यान से बहुत संभाल कर लिखना होता हे इसलिए भी की एक शुद्ध सेकुलर भारतीय मुस्लिम वो भी सुन्नी वो भी देवबंदी का काम इस दुनिया में सबसे कठिन हे पाकिस्तान में भी जो ऐसे लोग होंगे उनका काम भी थोड़ा आसान होगा क्योकि वहाँ हिन्दू कटरपंती नहीं हे वहां भी सिर्फ एक मोर्चे पर लड़ना होता हे जबकि यहाँ दो दो फ़्रन्ट पर लड़ना होता हे तो जी एक शुद्ध सेकुलर भारतीय सुन्नी देवबंदी मुस्लिम होना इससे बड़ा वैचारिक भेजा फ्राई दुनिया में और कोई नहीं हे इसलिए भी आप देखे की भारत में सारी लिबरल मुस्लिम आवाज़े शिया या बरेलवी ही होंगी सुन्नी देवबन्दी ले दे के दो चार ही मिलेंगे ये काम हद से ज़्यादा कठिन हे क्योकि शियाओ बरेलवियो लेखको को तो फिर भी इस आधार पर हो सकता हे कोई सहारा मिलता हो की भाई हम तो सुन्नी या वहाबी कट्टरता के खिलाफ लिख रहे हे जबकि हम तो बिल्कुल ”बेसहारा” लोग हे इसलिए हमें बहुत सोच विचार करके लिखना होता हे में जो कुछ लिखता हु वो मेने सिर्फ पढ़ कर नहीं बल्कि बीस साल लंबे संघर्ष ( अभी भी जारी ) से मिले अनुभवो से सिख कर लिखता हु असलम भाई ऊपर जिस लेखन पर आप मुग्द हुए जा रहे हे वो तो बहुत ही आसान हे मुस्लिम यूनिटी सुपीरियॉरिटी इकवेल्टी की बाते करना विक्टिमहुड़ सेलिंग करना हर मुद्दे पर गेर मुस्लिमो को दोषी ठहराना ये मानना की मुस्लिम कटरपंथ जैसी तो कोई चीज़ ही नहीं सब अमेरिका इज़राइल की साज़िश हे हिन्दुओ का तासुब हे ये टोन ये काम तो बहुत ही आसान हे सरल हे लगभग पूरा का पूरा उर्दू मीडिया ही ऐसी बातो से भरा मिलेगा तो ज़रा भी मेहनत या ज़हमत नहीं लगती हे ऐसी बातो में . हम भी उलटे हाथ ये कर सकते हे आपको बहुत पान आएगा , मगर नहीं करते हे क्योकि इन बातो से कुछ भी नहीं बदलेगा हां आप या आप नहीं लेकिन परदे के पीछे कोई और इन बातो में व्यक्तिगत फायदा उठा सकता हे वोट से लेकर नोट चन्दा एड समर्थक खिंच सकता हे अपने लिए बहुत कुछ कर सकता हे वो काम आसान हे मगर हम तो बदलाव के लिए एक नयी सोच के लिए काम कर रहे हे ये काम बहुत कठिन हे मगर हम पीछे नहीं हटेंगे —– जारी
सिकंदर साहब ये पूरी दुनिया शांति सुकून से जीना चाहती है।। कोई भी कट्टर नही बनना चाहता। क्योकि कट्टरता से सबका नुकसान ही है। बस केवल मुस्लिम समाज ही कट्टर होता है। बाकि के सारे धर्म कके लोग सेकुलर ही होते हैं।। पर मुस्लिमो की वजह से हो सबको मजबूरी में कट्टर बनना पड़ता है।। ये बात सबको पता है।। साबुत पेश करने की जरुरत नही है।। बाकि लोग मज़बूरी में कट्टर बने हुए है।। मुस्लिम कट्टरता स्वाभाविक होती है। उनके समाज में गिने चुने लोग ही सेक्युलर होते है। उन पर भी बराबर संदेह बना रहता है।। इसमें भी हमारी गलती नही है। आप लोग खुद गिरेबान में झांके।। और आप मोदी को गली दे दीजिये यहाँ तक की मुझे दे दीजिये पर मोदी को तानाशाह मत कहिये।। तानाशाही का अंश मात्र नही है।।तानाशाह होते तो इतने उलटे सीधे शब्दों को इस्तमाल उनके खिलाफ होता है।। जबान खींच ली जाती अब तक।। तानाशाही शब्द को हल्का मत कीजिये।।
मजा आ गया सिकंदर साहब बहुत ही अच्छा लेख ,आपने एक अलग अंदाज में मुद्दे को उठाया है !
दाढ़ी रखने की किसी को भी जरूरत नहीं है
फिर भी किसी को बाध्य नहीं किया जा सकता है की दाढ़ी मत रखो करोडो हिन्दू भी दाढ़ी रखते है सिक्ख बाबारामदेव रविशंकर मोदी आदि इसके सबुत है
और करोडो मुस्लिम भि ऐसे है की जो दाढ़ी नहीं रखते है लेकीन अपनी बीबियो को बुर्के में रहने को बाध्य भी कर देते है
इस्लामिक विद्वान् वाही उद्दीन जी निजामुद्दीन दिल्ली वाले उनके घर की महिलाये स्वयं कोई बुरका नहीं पहनती है शायद वह भी बुरका पहने पर जोर नहीं देते होंगे
सिकंदर जी हमारी निगाह में आपने अपने लेख में अधिकांश बाते सही {सब नहीं] लिखी है
सिकंदर हयात जी मुस्लमान दाढ़ी रखा तो आपको ऑब्जेक्शन और जो हिन्दू , सिख, और आदि धर्म वाले रखते है उनके बारे में आपने कुछ कहा ! सिर्फ मुसलमानो के खिलाफ आपलोग लिखते है ! में यहाँ धर्म की बात नहीं ककर रहा हु दाढ़ी रखना हमारा पर्सनल अधिकार है सर्कार इसे कैसे चीन सकती है ! आप जवाब दे
एक तो ऊपर कमेंट में ”पसंद ” की जगह गलती से ”पान ” टाइप हो गया हे अंसारी जी पहले तो आप वो पिक्चर के आखिर में मौलवी बने नसीर का बयान पूरा सुन ले उन्होंने क्या गलत कहा आपको क्या गलत लगा आप ही लिख कर बता दे . अंसारी साहब हम शतुरमुर्ग नहीं बन सकते हे रेत में सर छुपा लेने से तूफान थम नहीं जाएगा भारत सहित सारी दुनिया में मुस्लिम कट्टरपंथ बढ़ ही रहा हे अगर हमने आवाज़ ना उठाई तो मोदी डोनाल्ड जैसे लोग इसका फायदा उठाते रहेंगे बहुत क्लेश होगा कोई फायदे में नहीं रहेगा और मुस्लिम खुद सबसे अधिक नुक्सान में रहेंगे तो हमने मुस्लिम कटरपंथ को कमजोर करना ही होगा इसके लिए उदारता और उदार आवाज़ों को बढ़ावा देना ही होगा इसलिए उस छात्र से अपील की की वो उदार बने इस मुद्दे को तूल ना दे दरगुजर कर दे और कोर्स के बाद जितनी चाहे दाढ़ी रख ले . क्या कुछ गलत कहा – ? हम उदारता को बढ़ावा नहीं देते इसलिए बंगाल तक में इतना बुरा दंगा होता हे जहा की चालिसियो बरसो से वाम और ममता का शासन हे तब इतनी असहिष्णुता हे इतना गुसा हे हे कल को वहां भी फिर हिन्दू दुखी होकर संघ भाजपा में जाएंगे क्या तभी तसल्ली होगी —- ? आपने लिखा की ”दाढ़ी रखना हमारा पर्सनल अधिकार है सर्कार इसे कैसे चीन सकती है ! आप जवाब दे ” अंसारी जी हम ऐसी भड़काऊ बाते करते हुए ये नहीं सोचते की कम उम्र भावुक या जिंदगी से परेशांन कुछ लोगो पर इन बातो का कितना घातक असर हो सकता हे भला कोन सी सरकार मुसलमानो की धार्मिक आज़ादी छीन रही हे चीन जरूर कुछ कुछ छीन रहा हे और उसी का अपने को इस्लाम का किला बताने वाला पाकिस्तान और कट्टर पाकिस्तानी उसके पिट्ठू हे चेले हे इसके आलावा भी सऊदी अरब सहित सभी मुस्लिम देशो से उसके अच्छे सम्बन्ध हे – ? भारत में तो पूरी धार्मिक आज़ादी हे ही दाढ़ी वाले भी मेने जितना देखा हे मुझे तो पिछले सालो दाढ़ी रखने वालो की तादाद वेस्ट यु पि और दिल्ली में तीन गुना बढ़ती ही दिखी हे तो किसने आपको रोक लिया में तो कह ही रहा हु की फ़र्ज़ करे की जैन साहब ही क्लेश पर उतारू थे तो भी आपने में इतनी उदारता होनी ही चाहिए और आज तो चाहिए ही चाहिए हमें ऐसी उदारता की वो लड़का कहे की ठीक हे जैन साहब अल्लाह आपका भला करे फ़िलहाल में पूरा ध्यान पढाई पर देता हु कोर्स के बाद में दाढ़ी रख लूंगा की आपका भला हो ( कोन जाने की जैन साहब ढाका में बिलकुल बेकसूर मारी गयी लड़की तारिषी जैन —— ? ) तो अंसारी जी हम तो कट्टरता कठमुल्लावाद का विरोध करेंगे और टकराव टालने वाली सोच को ही बढ़ावा देंगे —– जारी
खबर की खबर में पड़ती रहती हु ,पहली बार कमेंट लिख रही हु ! सिकंदर हयात साहब ने बहुत ही अच्छा मुद्दा उठाया है और सही बात कही है ! दूसरी बात ये के कुछ मुस्लिम समस्त पे भी लिखा करे उनके समर्थन में सिर्फ विरोध में नहीं . फिर भी खबर की खबर की तारीफ़ होमी चाहिए !
निकहत अंजुम जी आपका स्वागत है , मेरे समझ से इस साइट पे किसी मुस्लिम लड़की का पहला कमेंट है , हम आपका स्वागत करते है और आपके कमेंट , विचार और लेख का भी स्वागत है !
अंजुम जी आपका पहला कमेंट हे आपका बहुत बहुत इस्तकबाल हे एक इल्तज़ा हे की पुराने भी सभी लेख और बहस भी जब समय हो जरूर पढ़े . अफ़ज़ल भाई की इस साइट की खासियत यही हे की यहाँ पुराना पढ़ना भी बहुत आसान हे जैसा आप चाहते हे वैसा भी लिखा मिलेगा शुक्रिया और बहुत शुक्रिया असलम भाई आपने अपनी बात रखी इससे बहुत फायदा होता हे क्योकि बहुत सी बाते या पॉइंट ऐसे होते हे जो लेख की जगह बहस में ज़्यादा सही तरीके से सामने आते हे में जल्द ही जवाब लिखता हु इतने आप अगर ना पढ़ी हो तो इन दोनों लेखों पर हुई बहस पढ़े http://khabarkikhabar.com/archives/2659 और एक ये भी http://khabarkikhabar.com/archives/2625
अंजुम जी आपका पहला कमेंट हे आपका बहुत बहुत इस्तकबाल हे एक इल्तज़ा हे की पुराने भी सभी लेख और बहस भी जब समय हो जरूर पढ़े . अफ़ज़ल भाई की इस साइट की खासियत यही हे की यहाँ पुराना पढ़ना भी बहुत आसान हे जैसा आप चाहते हो वैसा भी लिखा मिलेगा शुक्रिया और बहुत शुक्रिया असलम भाई आपने अपनी बात रखी इससे बहुत फायदा होता हे क्योकि बहुत सी बाते या पॉइंट ऐसे होते हे जो लेख की जगह बहस में ज़्यादा सही तरीके से सामने आते हे में जल्द ही जवाब लिखता हु
Brother सिकंदर हयात जी मेरे कमेंट लाइव मेरा मतलब है की तुरंत पोस्ट नहीं हो रहे है अगर कोई कंडीशन नहीं है तो कृपया ठीक कर दे
कभी कभी हो जाता हे में साइट पर सिर्फ लेखन करता हु और कुछ नहीं आप अफ़ज़ल भाई को मेल कर दीजिये ” भारत में संविधान के सामानांतर जो मनुवादी व्यवस्था चल रही है आप उस व्यवस्था का indirect समर्थन करते हू आप ने ये लेख प्रस्तुत किया है” ये बात सही हे आपकी जायज़ हे मगर ये भी तो देखिये की इससे जो हिन्दू लड़ रहे हे भिड़ रहे हे वो कोन लोग हे वो शुद्ध सेकुलर लिबरल उदारवादी मिजाज के लोग हे हे ना ? तो फिर वही सेकुलरिज्म उदारता आधुनिकता हम मुसलमानो में भी फैलाना चाहते हे तो इसमें गलत क्या हे फिर हिन्दू मुस्लिम समस्या हो या मुसलमानो की और समस्या हो ये कोई अल्पसंख्यको पे जुल्म की ही बात नहीं हे बात ये हे की पुरे उमहदीप में साठ करोड़ मुस्लिमो और नब्बे करोड़ हिन्दुओ के बीच कटरपंती ताकतों में लालकिले पर कब्ज़े की जंग हे ये पाकिस्तान बांग्लादेश कश्मीर अयोध्या तोगड़िया बाबरी दादरी ओवेसी जाकिर नायक हाफिज सईद मोदी जी को बहुमत सब इसी जंग के प्रोडक्ट हे और हमें इस फालतू जंग में नहीं पड़ना हे ये ऐसी जंग हे जिसमे आप पड़ेंगे तो हम या शोषक बनेगे या शोषित और हमें न शोषक बनना हे ना शोषित तो खुद मुस्लिम होने के नाते हमारा फ़र्ज़ हे की हम अपने यहाँ के कटरपंथ से लड़े बिना किसी किन्तु परंतु के रही बात हिन्दू कटरपंथ की तो उससे तो पहले ही करोड़ो हिन्दू झूझ ही रहे हे जब ये कटरपंथ खत्म या कमजोर होंगे तो ही इस पुरे उपमहादीप को जहां सौ करोड़ गरीब हिन्दू मुस्लिम भयानक शोषण में जीते हे उन्हें राहत मिलेगी उनका जीवन बेहतर होगा तो हमारी तो ये सोच हे हां आपकी सोच ये भी हो सकती हे की भाई मुसलमानो का जीवन तो इस्लाम के हिसाब से बेहतर होगा यानी जो व्याख्या आप देंगे . यहाँ भी हम कहते हे की ठीक हे आप ऐसा कर सकते हे तो करिये बस क्लेश ज़बरदस्ती नहीं होना चाहिए बस इतनी रिक्वेस्ट हे हमारी इसलिए ये कहा की चलिए मान लिया की वो बड़वानी का लड़का बहुत ही बहुत ही अच्छा था होगा उससे अच्छा कोई नहीं तो सिर्फ इतना ही तो कहा हे की भाई कोर्स के बाद दाढ़ी रख लेना बताइये क्या गलत कह दिया – ?
असलम भाई और पाठको ये भी समझिये की जब हम कटरपंथ की बात करते हे तो उसका विरोध करते हे तो इसका मतलब सिर्फ दंगे पंगे ब्लास्ट सुसाइड बॉम्बिंग बड़े बड़े क्लेश युद्ध कश्मीर अयोध्या ये वो बड़ी बड़ी बातो से ही नहीं होता हे इसके और भी बहुत से आयाम होते हे बहुत सारे और सभी में शोषण या कोई बुराई ही छुपी हुई होती हे एक परिवार की बात करू उसके सभि क्लीन शेव हे गेर मुस्लिमो से उनके बेहद अच्छे सम्बन्ध बहुत शरीफ हे मुश्किल से दस % कटरपंथ होगा उनके घर नतीज़े — घर में लड़को की पढाई पर तो लाखो खर्च किये गए मगर लड़कियों को घर में बिठा लिया गया बिलकुल कैद जैसी जिंदगी ये भी कटरपंथ का जुल्म हे एक साहब हे ये भी मुश्किल से दस % कटरपंथी होंगे इतने का ही नतीजा की जब हज पर गए ( बहुत अछि बात तो ”जबदस्ती ” मदर को भी ले गए जबकि मदर पहले ही हज कर चुकी थी तो भि मेरे उनपर कम से कम से कम पचास य पचिस हज़ार निकलते होंगे उनका कोई जिक्र नहीं मगर लाख खर्च करके मदर को दोबारा हज कराएँगे चलो मेरा छोड़ो में तो बहुत बुरा हु मगर अपने आस पास भी तो देखो कितने गरीब शोषित दुखी लोग हे उन्हें छोड़ कर आप दो बारा हज करवा रहे हो लाख खर्च कर रहे हो एक और फेमली सुनी हे ये भी भृष्ट से और इनका यहाँ एक बुजुर्ग मोहतरमा छह बार हज कर चुकी हे भाई इतना पैसा कहा से आता हे और चलो हे भी तो एक बार कर लो बहुत अच्छी बात हे मगर आप जाए जाये जा रहो हो गरीब बेबस लोगो के लिए कुछ नहीं करते ये भी कटरपंथ ही तो हे —– जारी
Sikandar Bhai, pichhle Kuchh waqt se apke lekh, comments pad Raha hu. ek had Tak apki baat se ittefaq bhi rakhta hu, lekin is lekh se kuchh-kuchh na ittifaki Hai. Pehle to ye bate aap se arz kar du ki kattarwad me yakin nahi karta hu, Mohabbat se hi nafrat ko jita ja sakta Hai.
Bhai ek baat batayiye ki badwani wale ladke ko bhi bhartiya sanwidhan ye adhikar deta hai ki nahI ki wo Apne majhab pe Amal kar sake. Rahi baat jain sahab ki to kal se Koi kahega, apna Naam bhi Muslimo wala na rakho, halal hi Kyun Khate ho, ek ishwar ko Kyun mante ho, nirakar ko Kyun mante ho, fir aap kahege Pehle pad lo fir kar Lena jaisa chaho. Aaj jain sahab (teacher) keh rah kai, Kal wo job karega to uska boss kahega parso uske padosi kahege to Kya wo Sab ki bato me apne adhikar ka prayog na Kare, (specially wo kaam jise karne se dusre ka nuksan na ho raha ho) apne majhab pe amal na Kare. Uske dari rakh lene se kya kisi ko Koi nuksan Hai?
mere dost bhi tika lagate Hai, chotI rakhte Hai, mere dil me unke liye utni hi dosti Aur Mohabbat Hai jitni mere Muslim dosto ke liye Hai, Bhai yaha baat sirf Aur sirf tassub ki buniyad Hai Aur kuchh nahi. Use Apne collage me managment se bat karke apni baat rakhna chahiye. Managment na mane to unse jawab talab Kare ki Kyun nahi? Wo apni baat adalat me lekar jaye aur insaf le, Kisi bhi nagrik Ke molik adhikar ka hanan na ho.
असलम भाई और पाठको जो असगर अली इंजिनियर ने कहा ”——-जो लोग इस्लामी भाईचारे की बात करते हे वे भी सामजिक वास्तविकताओं से तथा समाज के विभिन भागो और वर्गों के बीच मौजूद आपसी टकराव से अनजान हे—— ”आदि आदि आइये उसे प्रेक्टिकल में दिखाते हे फ़र्ज़ करे असलम भाई ये जो बड़वानी के लड़के का मुद्दा हे या मुस्लिम यूनिटी सुपीरियॉरिटी एकवेल्टी की बाते हे विक्टिमहुड़ सेलिंग हे मुसलमानो पे जुल्म की बात हे अधिकार छीने जाने की बात हे या असलम भाई और जो भी आपने कहा की सब सब तो फ़र्ज़ करे की ये सब बाते आप और तो छोड़ो बस एक ही पार्टी के आज़म खान के सामने करे तो वो कहेंगे हां हाँ भाई असलम आप सही कह रहे हे अधिकार की बात जुल्म की बात इस्लाम पे चलना आदि आदि आदि असलम भाई सब सही फिर आप जाए और यही बाते इमाम बुखारी के सामने करे वो भी ज़ाहिर हे की यही कहेंगे की ” हाँ हां हां सब सही ” दोनों ( व्यक्ति विशेष नहीं करेक्टर ) आपकी बाते सटीक मानेगे पूरा जबानी सपोर्ट देंगे हमारी तरह आपकी बात बिलकुल नहीं काटेंगे तो ये हे . लेकिन लेकिन आप जमीनी सच पर गौर करे तो इसके बाद भी दोनों की ही आपस में बिलकुल नहीं बनती हे बिलकुल भी नहीं जबकि उधर हमारा तो दावा हे की जो कोई हमारे सेकुलर लिबरल मुद्दो पर नयी उदार सोच को सपोर्ट देगा हमारी तो भाई उससे शर्तिया बनती हे और बनेगी फिर इनकी क्यों नहीं बनती हे— ? जब ये आपकी कही हर बात का सपोर्ट करते हे ( लेख में भी दो ऐसे करेक्टर दर्शाये हे दोनों बड़वानी के छात्र के सपोर्ट में खड़े होंगे मगर दोनों की ही आपस में नहीं बनती हे ) तो सवाल ये हे की आखिर आपस में क्यों नहीं बनती हे क्यों — ? हम बताये असलम भाई की इसलिए नहीं बनती हे की या तो दोनों नहीं तो कम से कम कोई ”एक ” तो इस्लाम और मुसलमानो की बात की आड़ में अपने व्यक्तिगत हित या मह्त्वकांशाओ या फिर सत्ता की दौड़ दौड़ रह हे तो असलम भाई अगर हम उस” एक ” से सावधान करते हे उसके खिलाफ लिखते हे तो क्या ये कोई ब्लासफेमी हे क्या —- ? इसी तरह हम बड़वानी के लड़के को सावधान करते हे की वो अभी पढ़े लिखे मज़हब पर भी चले मगर अति ना करे क्योकि अति करेगा तो वो ” एक ” उसका फायदा भी उठा सकता हे या फिर खुद भी कल को वो ”एक ” बन सकता हे तो भाई इसलिए लोगो को मज़हब के साथ साथ ही उदारता भी सेकुलरिज्म भी और तर्क वितर्क भी साथ साथ लेकर चलने की अपील और इसमें अपनी कोशिश हम करते हे करते रहेंगे आपका शुक्रिया की आपकी वजह से हमें पूरी बात लिखने का मौका मिला बहुत शुक्रिया असलम भाई
एक और जो बड़ा सही प्रशन असलम भाई ने किया की आखिर हम हर हर बात को घुमा फिरा कर कटरपंथ की तरफ क्यों ले जाते हे ————– ? आइये इसका भी जवाब प्रेक्टिकल सहित देते हे तो आपने पढ़ा तो होगा की मुस्लिम ही नहीं हिन्दू कट्टरपंथ का भी हम विरोध ही करते हे इसलिए करते हे की उपमहादीप में साठ करोड़ मुस्लिम हे और नब्बे करोड़ हिन्दू हे जिन्हें साथ साथ ही रहना हे और हिंदुत्व और इस्लाम दो विपरीत प्रकार की आस्थाये हे लेकिन चाहे रोकर रहो चाहे हंस कर रहना साथ ही हे न कोई किसी को हरा सकता हे ना गायब कर सकता ना कोई अंतिम विजय हासिल कर सकता हे इनके बीच किसी भी संघर्ष को ड्रा ही होना हे हां उठाने वाले इस ड्रा मैच का भी पूरा फायदा उठाते हे कोई सत्ता हासिल करता हे हथियारों का दलाल हे तो कोई अपने अपने धर्म का व्यापारी तो ये सब तो हे ही बड़े खिलाड़ियों से इतर भी अब अगर यहाँ कोई अतिधार्मिक होगा या उदार नहीं होगा कटरपंथ की तरफ कम ज़्यादा झुकाव होगा तो स्वभाविक हे की उसे अपना दुश्मन या विरोधी बगल में ही दिखे और वो उससे किसी ना किसी क्लेश में पड़े या पड़वाए या बढ़ावा दे इसलिए हम हर कदम कट्टरपंत का , जरुरत से अधिक रिलजियस होने का , धर्मगुरुओ की सत्ता का विरोध करते हे इसलिए जहां एक तरफ बड़वानी के छात्र को भी अति से बचने की सलाह दी वही इस संजय तिवारी का भी विरोध किया http://khabarkikhabar.com/archives/2700 इस तिवारी के साथ हुआ ये था की जिंदगी से परेशां दुखी होकर राहत के लिए ये हिन्दू कटरपंथ उग्र हिन्दुवाद की तरफ झुकता ही चला गया अब जब ये हिन्दू कट्टरपंथी हो गया तो अनुभवी महाविद्वान होने के बाद भी ( बड़वानी का छात्र तो लड़का ही ) ये स्वभाविक हे की इसे अपना दुश्मन बगल में ही दिखा और ये घोर मुस्लिम और इस्लाम विरोधी भी हो गया फिर ज़ाहिर हे की फिर ” शोषक या शोषित ” ही डेस्टिनी के तहत ये मोदीभक्त भी हो गए और अपने पेशे से दगा करते हे हरियाणा हिंसा तक पर चुप रहे फरजिकल स्ट्राइक पर मोदी को रेम्बो मानने लगे तो इनके जैसे संपादक महाविद्वान तक का ये हाल हुआ हो तो आम लोगो और कम उम्र लड़को की तो बात ही क्या —- ? इसलिए हर कदम हर जगह हर इंच हमें कटरपन्तियो और कट्टरपंथ का विरोध ही करना चाहिए
एक बीस साल का लड़का जो पढ़ने आया था अचानक से ऐसा क्या हुआ होगा की वो दाढ़ी बढ़ाने में लग गया —- ? होने को ये भी हो सकता हे की सिकंदर हयातJune 19, 2016आर्थिक असुरक्षा ( इनसिक्योरिटी ) और सिक्योरिटी , दोनों से ही आये जीवन में एक ठहराव एक खालीपन को जब लोग अधिक रिलिजियस या अधिक आध्यत्मिक सा होकर जब भरते हे तो वैसे मुझे खुद जीरो स्प्रिचुअल होते हुए भी कोई एतराज़ भी नहीं हे मगर मसला ये हे की उपमहाद्वीप में साठ करोड़ मुस्लिम और नब्बे करोड़ हिन्दुओ हे जिन को साथ ही रहना हे और हर कदम साथ रहना हे तो जब इन लोगो का झुकाव अधिक रिलिजियस होते हुए दक्षिणपंथ में हो जता हे तो ये हिन्दूमुस्लिम एकता के बजाय हिन्दू एकता या मुस्लिम एकता और एकदूसरे पर फिर सारी दुनिया पर ” फतह ” के सपने या तो देखने लगते हे या इस सपने का समर्थन करते हे या नहीं तो विरोध नहीं कर पाते हे बाद में यही लोग किसी जाकिर नाईक के किसी मदनी बुखारी ओवेसी के रविशंकर के रामदेव के वि एच पि के सीमेंट बनते हे संजय तिवारी जैसे सेम मसला ——कुमार झा नाम के मामूली पत्रकार का भि हे जो भाजपा की पत्रिका का संपादक हे दस साल पत्रकारिता करके भी खुद उसी के शब्दों में बेहद असुरक्षा हे तो अब ये रोज इस्लाम को दुनिया से खत्म कर देने की कसमे खा रहा हे उधर मेरे एक लिबरल ही रहे कज़िन अब मिडएज और काफी पैसा बना लेने के बाद अब मुझे तब्लीग़ में जाने की सलाह दे रहे हे तो ये हे पुरे उपमहाद्वीप की यही स्टोरी हे सिकंदर हयातOctober 2, 2016उग्रराष्ट्रवाद साम्प्रदायिकता कट्टरता अतिधार्मिकता नस्लवाद रिलिजियस सुपीरियॉरिटी आदि की बातो में दो तरह के लोगो का मन लगता हे एक तो वो जो जरुरत से ज़्यादा खुशहाल या फ्री हे या उन्हें अपनी सत्ता और खुशाली को बचाने बढ़ाने के लिए इन बातो की जरुरत होती हे दूसरे वो लोग होते जो जिंदगी से हारे थके घिसे पिटे उजड़े हुए होते हे अपने तिवारी जी दूसरे प्रकार के लोगो में से हे सर्जिकल स्ट्राइक की खबरों के बाद इनकी ख़ुशी का कोई ठिकाना नहीं हे इससे ये अपनी पिटी हुई जिंदगी में रंग भरते हे ये सब ( उग्रराष्ट्रवाद साम्प्रदायिकता कट्टरता अतिधार्मिकता नस्लवाद रिलिजियस सुपीरियॉरिटी ) ठीक किसी ड्रग्स की तरह कुछ समय के लिए गम भुला देता हे बॉडी में जोश भर देता हे ऐसा लगता हे की आप चाँद तारे तोड़ सकते हे और तोड़ भी रहे हे मगर कुछ समय बाद जब नशा उतरता हे तब ————– ?
کیا بیوقوفی والا مضمون ہے – داڑھی ہر مسلمان کو رکھنی چاہئے – سکندر حیات اسلام کے خلاف جا رہے ہے آپ پر فتویٰ لگنی چاہئے !
गूगल ट्रांसलेट से पता चला की वाहिद साहब हमारे ऊपर फ़तवा चाहते हे अब इसके लिए इन्हें हमारे लेख को इस्लाम विरोधी साबित करना होगा . और अगर ऐसा होता ही तो फिर तो ये यही लिख कर या हमारी लाइनों को कोट करके बता सकते हे लेकिन ये कुछ नहीं बता पाएंगे मेरी लिखी लाखो लाइने नेट पर मौजूद हे इनमे से एक सिंगल भी लाइन ये इस्लाम की तो खेर बात ही क्या , वैसे भी किसी भी धर्म अक़ीदे आस्था के खिलाफ साबित नहीं कर सकते हे चाहे जितनी कोशिश कर लो कुछ भी आपतिजनक नहीं मिलने वाला हे . हम कोई रश्दी तस्लीमा नहीं हे http://khabarkikhabar.com/archives/1269 हम आस्था के खिलाफ नहीं बल्कि आस्था की आड़ में दुनियावी हवस पूरी कर रहे लोगो के ही खिलाफ लिखते हे आगे भी लिखते रहेंगे लेकिन अपनी इस बेबसी पर बहुत क्रोध आता हे की आखिर क्यो जब कोई अगले पर कोई ऐसा झूठा आरोप लगाय जैसा वाहिद लगा रहा हे तो हमें ही क्यों सफाई देनी पड़ी —- ? ये तो आराम से बिना किसी सबूत के आये आरोप लगाय और खिसक ले ( ऐसा बहुत बार हो चुका हे लेखन में भी रियल लाइफ में भी और फिर हम बेगुनाह होते हुए भी इनसे हाथ जोड़ते रह जाते हे की भाई लाइन करो लाइन कोट करो ये नहीं करते क्योकि इन्हें तो बस आरोप लगाना हे बस फिर ये ज़ज़ और हम मुजरिम ) और हम सफाई देते फिरे— ? खेर ये बेबसी इसलिए हे की में अनमैरिड तो हु लेकिन क्या करे मेरे साथ मेरी बहुत बड़ी फेमली भी तो हे जो बहुत हि लंबे संघर्ष के बाद अब धीरे धीरे अपने खून पसीने की कमाई से सेटल हो रही हे हम अगर किसी पंगे में पड़े तो बेकार में इतने सारे लोग भी डिस्टर्ब होंगे जो रात दिन मेहनत करके अपना घरोंदा बना रहे हे ये सोच कर जीवन में जाने कितने ही अलग अलग मुद्दो पर सेकड़ो बार दब दब कर रहना पड़ा सेकड़ो बार अपमान का खून का घूंट पीना पड़ा
मै Brother सिकंदर हयात जी मै माफ़ी के साथ उपरोक्त लेख से निम्न कारणों के आधार पर पूणेत: असहमत हु
1- लेखक ने लेख में घटना की निंदा नहीं की बल्कि पीड़ित पक्ष को भविष्य का डर दिखा कर लिबरल बनने की सलाह दी है जबकि ये घटना एक मेडिकल संस्थान की है आज तो विज्ञान ने दाढ़ी रखने के अनगिनत फायदे बताया है और इस बारे में अमर उजाला समाचार पत्र में कई बार लेख निकल चुके है और उस लेख में बताया गया है की दाढ़ी रखने से कई फायदे है मै लिंक http://WWW.AMARUJALA.COM/…/HEALTH-BENEFITS-OF-HAVING-BEARD ) दे रहा हु
2. उपरोक्त लिंक में दी गई जानकारी से जिसे जाहिर होगा कि त्वचा के कैंसर से बचाव, दमकती त्वचा, एलर्जी से बचाती है, आकर्षण बढ़ता है व नमी बनी रहती है इसका फायदा हर कोई उठा सकता है मुसलमान अगर दाढ़ी रखता है तो कट्टरपंथी हो जाता है ज्ञात हो जो मैंने लिंक दिया उसमे वैज्ञानिक फायदे बताये गए है जो संस्थान में ये घटना घटी है वो भी मेडिकल संस्थान है क्या वो ये सब फायदों को नहीं जानती थी?
3. स्वामी रामदेव ने दाड़ी रखने के जो फायदे बताये Brother सिकंदर हयात जी उसे सुनकर आप ताजुब्ब करेगे मै लिंक दे रहा हु https://YOUTU.BE/KLFWHAUCMYM) youtube पर देख सकते है मेरे कहने का मतलब है की भारत का हर एक नागरिक अपनी मर्जी से हर काम कर सकता है लेकिन अगर वही काम एक मुसलमान करता है तो वो कट्टरपंथी कैसे हो जाता है अगर आप ये कहेगे की मुसलमानों की छवि ख़राब है ऐसा हो तो मेरा जवाब होगा की ऐसे ही बेबुनियादी इल्जाम लगाकर लोग मुसलमान की छवि ख़राब की जा रही है क्योकि किसी की गलती की सजा किसी और को क्यों दी जा रही है क्या ये न्याय है?
4. उक्त कालेज के प्राचार्य द्वारा किसी तथाकथित मानसिकता के आधार पर उस लड़के को रोका गया क्या ये पूर्वाग्रह मानसिकता का घोतक नहीं? क्या निंदनीय मानसिकता नहीं है? क्या एक निष्पक्ष लेखक का दायित्व नहीं है की ऐसी मानसिकता की भी निंदा नहीं की जाय
Brother अफजल भाई मेरे कमेंट क्यों नहीं लाइव हो रहे है कृपया प्रोब्लम सही करे मेरे कई कमेंट पेंडिंग है
असलम साहब एक बार जिस ईमेल से आपने कमेंट किया वह रजिस्टर्ड होगया उस ईद से किया गया कमेंट डायरेक्ट लाइव हो जाता है उसे फिर मॉडरेटर की जरुरत नहीं है ! अगर नए मेल से कमेंट आएगा तो वह लाइव होने में समय लगेगा ! फिर भी में देखता हुके क्या प्र्ब्लेम है
मै Brother सिकंदर हयात जी मै माफ़ी के साथ उपरोक्त लेख से निम्न कारणों के आधार पर पूणेत: असहमत हु
1- लेखक ने लेख में घटना की निंदा नहीं की बल्कि पीड़ित पक्ष को भविष्य का डर दिखा कर लिबरल बनने की सलाह दी है जबकि ये घटना एक मेडिकल संस्थान की है आज तो विज्ञान ने दाढ़ी रखने के अनगिनत फायदे बताया है और इस बारे में अमर उजाला समाचार पत्र में कई बार लेख निकल चुके है और उस लेख में बताया गया है की दाढ़ी रखने से कई फायदे है मै लिंक http://www.amarujala.com/…/health-benefits-of-having-beard ) दे रहा हु
2. उपरोक्त लिंक में दी गई जानकारी से जिसे जाहिर होगा कि त्वचा के कैंसर से बचाव, दमकती त्वचा, एलर्जी से बचाती है, आकर्षण बढ़ता है व नमी बनी रहती है इसका फायदा हर कोई उठा सकता है मुसलमान अगर दाढ़ी रखता है तो कट्टरपंथी हो जाता है ज्ञात हो जो मैंने लिंक दिया उसमे वैज्ञानिक फायदे बताये गए है जो संस्थान में ये घटना घटी है वो भी मेडिकल संस्थान है क्या वो ये सब फायदों को नहीं जानती थी?
3. स्वामी रामदेव ने दाड़ी रखने के जो फायदे बताये Brother सिकंदर हयात जी उसे सुनकर आप ताजुब्ब करेगे मै लिंक दे रहा हु https://youtu.be/KlFwhAUcMYM) youtube पर देख सकते है मेरे कहने का मतलब है की भारत का हर एक नागरिक अपनी मर्जी से हर काम कर सकता है लेकिन अगर वही काम एक मुसलमान करता है तो वो कट्टरपंथी कैसे हो जाता है अगर आप ये कहेगे की मुसलमानों की छवि ख़राब है ऐसा हो तो मेरा जवाब होगा की ऐसे ही बेबुनियादी इल्जाम लगाकर लोग मुसलमान की छवि ख़राब की जा रही है क्योकि किसी की गलती की सजा किसी और को क्यों दी जा रही है क्या ये न्याय है?
4. उक्त कालेज के प्राचार्य द्वारा किसी तथाकथित मानसिकता के आधार पर उस लड़के को रोका गया क्या ये पूर्वाग्रह मानसिकता का घोतक नहीं? क्या निंदनीय मानसिकता नहीं है? क्या एक निष्पक्ष लेखक का दायित्व नहीं है की ऐसी मानसिकता की भी निंदा नहीं की जाय
5. मनुष्य नर के मुंह पे दाढ़ी उगना प्राकृतिक एवं स्वाभाविक है। पुरुषों में हार्मोन्स की वृद्धि होने पे दाढ़ी उगती है। जो एक वास्तविक सत्य है लेकिन लेखक ने अपने लेख में इन सत्य को कोई स्थान नहीं दिया है जो लेखक के लेख को पक्षपाती होना साबित करता है
6. मोदी जी के भी दाढ़ी है, बाबा रामदेव दाढ़ी लटकाए विश्वभर को योग सीखा रहे है। “सिख रेजिमेंट” में सभी सिख भाइयो के दाढ़ी है। हज़ारो लाखो प्रतिभाऐ देश में मौजूद है जिनके चेहरे पे दाढ़ी है पर कुछ लोगो को इनकी दाढ़ी व उनके व्यक्तितिव में कोई छल कपट व अपराध नहीं दिख रहा है लेकिन मुसलमानों में कट्टरपंथ व अपराध दिख रहा है क्या यह न्यायोचित है
नोट:
a. Brother सिकंदर हयात जी कृपया विषय पर ही कमेंट कीजियेगा और कृपया बताया की आप ने कैसे पीड़ित पक्ष के साथ न्याय किया है मुसलमानों के भविष्य की बात मत कहियेग क्यों मुसलमानों का अगर भविष्य ख़राब होगा तो ये कारण नहीं होगे
b. Brother अफजल खान जी कृपया आप जज की भूमिका निभाते हुए इस मामले पर प्रकाश डालिये और मेरा मार्ग दर्शन कीजिये
माफ़ी चाहूंगा असलम भाई मुद्दे से आप भटक रहे हे बात आज की हो रही हे आज की समस्याओ की हो रही हे आज के हालात की हो रही हे फ़र्ज़ कीजिये की आपकी हमारी और दूसरे सेकुलर लोगो की कोशिशो से उपमहादीप में सम्पदायिक्ता खत्म हो गयी कट्टरता खत्म हो गयी आतंकवाद गरीबी पंगे खत्म हो गए सब कुछ सही हो गया तो हो सकता हे की दस साल बाद बीस साल बाद कोई जैन आपको दाढ़ी के लिए दुखी ना करे ना पास लड़े ना भिड़े ये कोई मुद्दा ही ना हो मगर हम आज आज के मसलो से झूझ रहे हे दाढ़ी रखने से अनेक फायदे होते हे ये मुझे भी पता हे क्योकि 15 साल से दिल्ली और यु पि का भयंकर प्रदूषण झेल रहे हे और कभी ए सी कमरो की ही भी लाइफ नहीं रही हे दाढ़ी के बहुत फायदे हे इसमें कोई शक नहीं हे. लेकिन लाख पूछने पर भी आपने ये नहीं बताया की खुदा के लिए फिल्म में जो मौलवी बने नसीर का बयान था वो गलत था क्या —- ? उस बात में क्या क्या गलत था अगर कोई बहुत गलत थी तो ऐसी फिल्म और डायलॉग के लिए नसीरुद्दिन शाह के खिलाफ कोई फ़तवा क्यों नहीं ————– ? दूसरे हमने ये भी कहा की चलो मान लिया की सही हे की जैन साहब ही क्लेश तक उतारू थे तो भी अगर आप दो साल बाद कॉलेज के बाद दाढ़ी रख लोगे तो क्या ये कहना कोई ब्लासफेमी हे क्या — ? अगर कोई इतना उदार होकर किसी क्लेश को टाल देगा तो क्या ये इस्लाम के खिलाफ होगा क्या — ? इस उदार मानसिकता से फिर पुरे भारत में जो दंगे होते रहते हैजिसमें बेगुनाह हिन्दू मुस्लिम पिसते हे अगर मुस्लमान उदार होकर सयम से इन दंगो को टाल देंगे तो क्या ये कोई ब्लासफेमी होगी क्या —— ? बताय और बात दाढ़ी रखने की या नहीं रखने की नहीं हे बात हे साइकि की इसलिए कहा चलिए में उस लड़के के साथ हु बस साथ ही अगर ऐसा कोई लड़का आपके आस पास हो तो मेने ऊपर कुछ सवाल दिए हे उनके जवाब आप पता करके यहाँ लिख दीजिये बस इतनी रिक्वेस्ट थी शुक्रिया
सिकंदर भाई वाहिद राजा साहब आप पर कुफ्र का फतवा लगाना चाहते है उन्होंने लिखा है के आप इस्लाम के खिलाफ लिखते है ! शुक्र है के मुझे माफ़ कर दिया है ऐसे जैसे लोग से फतवा से अब हम लोगो को चलना पड़ेगा ! मुझे लगता है के अब भारत में भी मुसलमानो के अंदर पाकिस्तान वाली कट्टर सोच उभर रही है जो के आने वाले समय में खतरनाक बन सकता है जैसा के आप पाकिस्तान के हालात से अंदाजा लगा सकते है !
असलम भाई इस्लामी भाईचारा की थ्योरी के खिलाफ में नहीं हु . में खिलाफ हु की इसके प्रेक्टिकल में फितरती इंसान अपना फायदा उठाएगा अपनी सत्ता और दुनियावी हवस पूरी करेगा सवाल ये हे की आप इस्लामिक भाई चारे की थ्योरी बताते हे और हम जमीनी हकीकतों की चर्चा करते हे तो आप बहुत अच्छे और हम बुरे क्यों हो जाते हे इस्लाम में जमीनी सचाइयों की चरचा करना मना नहीं हे फिर हम जमीनी हकीकतों की बात करके बुरे क्यों बने जाते हे – ? पाकिस्तान बनाने वाले से लेकर चलाने वाले सब इस्लामिक भाई चारे की बात करते आये हे मगर जिन्ना से लेकर हुर्रियत तक सब अपनी दुनियावी हवस पूरी कर रहे होते हे उससे आगाह किया हे अगर नहीं कर रहे . तो चलो दुनिया की छोड़ो भारत में ही केरल की मुस्लिम लीग से लेकर असम के तय्यब बुखारी ओवेसी आज़म सब मिलकर एक पार्टी बना ले मोस्ट वेलकम हे आगे राजनीती को भी छोड़े इतर भी असलम भाई अगर आप इस्लामिक भाईचारा चाहते हे तो आप जरूर कोशिश कीजिये हम जरूर चाहेंगे की आप कामयाब हो जरूर हो कोशिश करके देख लीजिये बस हम अपना बता दे की हम इस्लामिक ही नहीं बल्कि सभी शोषितो का भाईचारा चाहते हे क्योकि इसके बिना शोषण से छुटकारा नहीं हे आप अपना काम करे हम अपना हमारा क्लेश नहीं होना चाहिए आप सफल होते हे तो मुझे बहुत ख़ुशी होगी और अफ़ज़ल भाई एक बात की ये सारी की सारी बहस खत्म हो जायेगी खुदा के लिए फिल्म का सन्देश क्या हे क्या बात हे ? वो ये हे की असलम भाई सिर्फ इतना कर दे की जब भी उन्हें अपने आस पास कोई ऐसा बीस साल का लड़का मिले जो पहले क्लीन शेव था फिर उसने अचानक दाढ़ी रख ली ( हमें कोई ऐतराज़ नहीं हे इस पर ) ठीक में सिर्फ ये कह रहा हु की असलम भाई उससे कुछ सवाल पूछे ध्यान रहे की हमें नहीं पता हे की उसने क्या कहा हम तो असलम भाई जो कहेंगे वो मान लेंगे वो सवाल ये हे क्या वो अपनी बहनो को भी अपनी मर्जी के कपडे पहने की इज़ाज़त देता हे या नहीं हे अगर इसकी बहन अपनी मर्जी के कपडे पहनती हे तो वो उससे लड़ेगा तो नहीं अगर कोई मुस्लिम गेर जरुरी दूसरी शादी कर रहा हो बिना पहली को तलाक दिए तो वो विरोध करेगा या नहीं , वो हिन्दू मुस्लिम एकता में विश्वास करता हे या नहीं , शियाओ के बारे में उसके क्या विचार हे — ? बीस साल की उम्र में अचानक से दाढ़ी बढ़ा रहे लड़के की परिवार नियोजन पर राय क्या हे ——– ? मुसलमानो को अधिक बच्चे पैदा करने चाहिए या कम ——– ? . बहुत से लोग बैंक बीमा ये वो सबको गलत बताते हे उसकी क्या राय हे ——— ? इन सवालो के जवाब जो भी असलम भाई पता करके देंगे जो भी कहेंगे हम मान लेंगे बस
एक बार फिर असलम भाई का बहुत बहुत शुक्रिया की उनकी वजह से इतनी सारे मुद्दो पर लिखने का मौका मिला टीवी की बहस सर में दर्द करती हेकुछ समझ नहीं आता तो आमने सामने की बहस कई बार ईगो पर चली जाती हे सबसे अच्छी बहस इन्टरनेट पर लिखित में ही होती है कोई भी फिर आराम से ध्यान से पढ़ सकता हे बहुत सी बाते सीख और समझ सकता हे और इन बातो को दिल पर नहीं लेने चाहिए न ही बहस को कोई हार जीत का विषय समझना चाहिए सब अपनी बात अपने अनुभव रखे मुद्दे के अलग अलग पहलु सामने आये बस बाकी जनता पर छोड़ दे की वो पढ़े समझे बस हो सकता हे की हम ही गलत हो हम ही बेवकूफ हो असलम भाई ही सही हो हमें कोई गिला नहीं हे
वाहिद रजा जी आप किसी बात को सिर्फ बात से ही गलत साबित करिये ये सब बाते कहना बिलकुल गलत है आप के इस तरह के विचार को पुरे भारतीय मुस्लिम समाज गढ़ दिया जायेगा? और कुछ लोग ऐसा कर ही रहे है.
मै तो खुश होता हू जब कोई इस्लाम के खिलाफ लिखता है क्योकि वो ऐसा लिख कर इस्लाम का प्रचार करते है क्योकि हर क्रिया के पीछे एक प्रतिक्रिया छुपी रहती है मुस्लिम समाज जो एक मुर्दा कौम बन रही है वो लोग ऐसे लोगो को जागते है और जब तक मुस्लिम समाज जागेगा नहीं तब तक ऐसे सवालो का जवाब नहीं मिल सकता, मै भी उनमे से एक हू मैंने इस साइट को पहली बार करीब 3 साल पहले पढ़ा था तो मैंने ये सोच की ये लोग गलत बात कर रहे है और गलत बात का क्या जवाब देना है मगर जब हाल ही में करीब 2-3 महीने पहले अपनी फेसबुक वाल पर इनकी पोस्ट देखी तो ताज्जुब हुआ की इनकी कुछ विचार को तेजी से फैलाया जा रहा है तो मैंने इस साइट की हर लेख को पढ़ना शुरू किया तब मैंने सोच की ये लोग उतने गलत नहीं जितना मै पहले समझता था इस साइट पर बहुत से ऐसे लेख है जिससे पड़ व समझ कर मुस्लिम समाज की कमियों को सुधार जा सकता है जो जरुरी है जहा पर कुछ लोगो के लेख द्वारा गलत सन्देश जा रहा है उनको कमेंट के जरिये विरोध करिया न की फालतू के फतवा जारी करने की बात की जाये
मैं आमतौर पर अब इस साइट पर नहीं आता. कारण कई हैं. पर कल एक मित्र ने बताया कि हमारे पुराने साथी श्री सिकंदर हयात जी ने एक अच्छा लेख लिखा है, जिसपर काफी रोचक बहस छिड़ी है. अतः पढ़ लिया…
शायद यह बात कोई बड़ी नहीं, विद्यार्थियों को सही वेशभूषा, जैसे निक्कर जींस टीशर्ट में ना आने, छात्राओं को सलीकेदार वस्त्र पहनकर आने आदि की कई सलाह हम भी दे चुके हैं, व आपत्तिजनक लगने पर डाँट भी चुके हैं. ईईजी लेने के लिये एक सिख छात्र को पगड़ी भी उतारने के लिये कहा तो उसने तुरंत उतार दी, जबकि यह उसकी धार्मिक मान्यता का अंग था.
चिकित्सा के छात्रों को दाढ़ी, नाखून, बाल आदि को लेकर सजगता रखनी चाहिये, क्योंकि इनसे संक्रमण फैल सकता है. हमें याद है, हमारे एक मित्र, सर्जरी के प्रोफेसर अब सेवानिवृत्त हो चुके हैं, वे छात्रों को मूँछें भी नहीं रखने देते थे. उनकी सनक कहिये या अतिरिक्त सजगता, कभी किसी छात्र ने विरोध नहीं किया.
अपनी अलग पहचान बनाने का प्रयास करना अच्छी बात है, पर यह गुणों द्वारा हो तो बेहतर, वेशभूषा या केशदाढ़ीमूँछों का सहारा लेना हमें कम जमता है. हमारे सिख भाई भी हमसे असहमत हो सकते हैं…
काफी दिनों बाद दर्शन दिए शुक्रिया रंजन सर अगर आप साइट पर नहीं आ रहे हे तो इसमें गलती हमारी ही हे की हम उस स्तर का लेखन नहीं करे पा रहे हे खैर आगे कोशिश जारी रहेगी शुक्रिया अगला लेख में बंगाल के दंगो पर लिखने की कोशिश करूँगा की आखिर मुसलमानो में इतना गुस्सा क्यों हे कोन जिम्मेदार हे — ? रंजन सर नोटबंदी के बाद मोदी जी पर आपकी एक टिपण्णी पढ़ कर बहुत ख़ुशी हुई थी वो मेने यहाँ पेस्ट कर दी थी और आगे विषय पर बात करते हे की की मेने उस लड़के के जिन क्लीनशेव सपोटर्स का जिक्र किया हे अच्छा ये लोग आजकल जोरशोर से रोहिंग्या मुस्लमान पे जुल्म का मूद्दा उठा रहे हे और दुनिया को कोस रहे हे अब इसमें तो कोई दो राय नहीं हो सकती की इस जुल्म की जितनी निंदा की जाए वो कम होगी हम भी पीड़ितों के साथ हे लेकिन मसला यही हे की ये क्या साइकि हे की ये मुसलमानो पे जुल्म का मुद्दा उठाये सारी दुनिया को कोसे तो ये तो बहुत अच्छे हो जाते हे और हम जब पूरी डिटेल बताय की भाई बगल में ही बांग्लादेश हे करोड़ बांग्लादेशी मुस्लिम भारत में रह सकते हे तो बांग्लादश इन मुट्ठी भर मुस्लिमो को क्यों नहीं बसा लेता — ? जर्मनी लाखो सीरियाइयों को लाखो मुस्लिमो पनाह दे सकता हे तो अरब देश इन मूठी भर रोहिंग्या मुसलमानो को क्यों नहीं बुला लेते —– ? हद तो ये हे की सीरिया के अरब लोगो को भी किसी अरब देश ने नहीं बसाया इन्हें लिया जर्मनी आदि ने , तो भाई पूरी बात – जमीनी हकीकत बताने पर हम क्यों बुरे बन जाते हे और जो रात दिन मुसलमानो पे जुल्म की बात करे और मुसलमानो के जुल्म पर चुप्पी साधे रखे वो क्यों अच्छे बन जाते हे — ? हम क्यों बुरे बन जाते हे – ? और असलम भाई समय के अभाव की कोई समस्या ही नहीं हे आपके पास जब भी जब भी सरलता से समय हो तब ही आप आराम से लिख सकते हे लेख भेज सकते हे अफ़ज़ल भाई ने साइट ही इस तरह से बनवाई हे की पुराना भी पढ़ना बहुत आसान हे इसलिए कोई मुद्दा यहाँ पुराना नहीं पड़ता हे जैसे साज़िद रशीद के जाकिर नाइक वाले लेख पर ही बहस और विचार पिछले दो सालो से जारी हे आप जैसे पाठक किसी भी साइट के लिए बहुत कीमती होते हे आप तसल्ली से आये शुक्रिया
वाहिद रजा जी मै आप से पुनः एक बात कहना चाहता हु और हदीश शरीफ़ की तरफ ध्यान दिलाना चाहता हु क्योकि मै Brother अफजल जी के कथन कि “”मुझे लगता है के अब भारत में भी मुसलमानो के अंदर पाकिस्तान वाली कट्टर सोच उभर रही है जो के आने वाले समय में खतरनाक बन सकता है”” से सहमत नहीं हु इसलिए ये हदीश शरीफ़ रख रहा हु हम सब के लिए हिदायत है:
अब्दुल्लाह बिन उमर रज़ि अल्लाहु अन्हु कहते हैं कि मुहम्मद रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने कहा
तुम मे से कोई व्यक्ति मोमिन (ईश्वर-भक्त) नहीं हो सकता यहाँ तक कि उसकी इच्छाएँ उस चीज़ के अधीन न हो जाए जो मैं लाया हूँ।
(मिश्कात अल–मसाबेह 59–1)।
उपरोक्त हदीस से मालूम होता है कि दुनिया में अमल (कर्म) करने के दो तरीक़े हैं। एक है अपनी इच्छाओं पर अमल करना और दूसरा है पैग़म्बर के लाए हुए दीन (रास्ता/धर्म) पर अमल करना।
आपके सामने एक सच्चाई आई। आपके दिल ने गवाही दी कि यह सत्य है। लेकिन इसी के साथ जाने-अनजाने में यह एहसास पैदा हुआ कि अगर मैं इस सच्चाई को मान लूं तो मेरा दर्जा नीचा हो जाएगा। अब अगर आपने सच्चाई को मान लिया तो आपने पैग़म्बर के लाए हुए दीन(रास्ते) पर अमल किया और अगर आपने सत्य का इन्कार किया तो आपने अपनी इच्छा की पैरवी की।
किसी व्यक्ति ने आपकी या किसी अन्य की आलोचना की। इससे आपके अहं को चोट लगी। आप विचलित हो गए। इसी के साथ रसूल की लाई हुई शरीअत का यह हुक्म आपके सामने आया कि अहंकारी न बनो‚ बल्कि संयम और विनम्र बन कर लोगों के बीच रहो। अब अगर आपने आलोचना के जवाब में विनम्रता का अन्दाज़ अपनाया तो आपने पैग़म्बर के लाए हुए दीन(रास्ते/धर्म) पर अमल किया और अगर आपने आलोचना के जवाब में घमंड व अहंकार का अन्दाज़ अपनाया तो आपने अपनी इच्छाओं का अनुसरण किया।
एक व्यक्ति के किसी रवैये से आपको शिकायत पैदा हुई। आप उत्तेजित हो गए। उस वक़्त आपके सामने शरीअत का यह हुक्म आया कि लोग भड़काएं तब भी तुम सब्र ,संयम और नज़रअन्दाज़ करने के तरीक़े को अपनाओ। अब अगर आपने उत्तेजना के बावजूद सब्र किया तो आपने पैग़म्बर के लाए हुए दीन(धर्म) पर अमल किया, और अगर आप उत्तेजित होकर उस व्यक्ति से लड़ने लगे तो आपने अपनी इच्छा की पैरवी की।
यही मामला पूरी ज़िन्दगी का है। हर मामला जो आदमी के साथ घटता है‚ उसमें उसके लिए दो में से एक रवैया को चुनने का मौक़ा होता है। एक रवैया अपनाने के बाद वह ख़ुदा के यहाँ मोमिन (ईश्वर भक्त) लिख दिया जाता है और दूसरा रवैया अपनाने के बाद ग़ैर–मोमिन।
Brother सिकंदर हयात जी के कथन कि “” इस दुनिया में चारो तरफ बुराइया ही बुराइया है””
जवाब ::::
आदमी पैदायशी तौर पर आदर्श-पसन्द (idealist) है। हर आदमी एक आदर्श दुनिया यानी हर तरह से सम्पूर्ण और दोषरहित दुनिया (ideal world) की तलाश में है, मगर इस दुनिया में आदर्श दुनिया (ideal world) का बनना संभव नहीं।
इस दुनिया में आदमी को सिर्फ़ मयारी सोच या आदर्श दृष्टिकोण दिया जा सकता है न कि आदर्श दुनिया (ideal world)।
आदर्श दुनिया (ideal world) बनने की जगह सिर्फ़ आख़िरत (परलोक) है।
मौजूदा दुनिया इम्तेहान की योजना के तहत बनायी गई है। यही वजह है कि यहाँ बहुत सी सीमाएँ और रुकावटें हैं। और ये ख़ुद ख़ालिक़ यानी सृष्टिकर्ता की तरफ़ से है और इन सीमाओं की मौजूदगी में यहाँ आदर्श दुनिया (ideal world) बनना संभव नहीं।
इसी के साथ इम्तेहान के उद्देश्य के तहत यहाँ हर आदमी को आज़ादी हासिल है। यहाँ अगर नेक लोगों को अच्छे कार्य करने की आज़ादी है तो यहाँ बुरे लोगों को भी छूट मिली हुई है कि वह जो चाहें करें। इसलिए बार–बार ऐसा होता है कि नेक लोग एक नक़्शा बनाते हैं और बुरे लोग शरारतें करके उस नक़्शा को तोड़ डालते हैं।
इम्तेहान की धारणा और सोच मौजूदा दुनिया को समझने की कुंजी है। फ़िलोस्फ़र और विचारक इस कुंजी को न पा सके इसलिए दुनिया को समझने में भी वो नाकाम रहे। उन्होने मौजूदा दुनिया में अपनी पसंद की दुनिया बनानी चाही। मगर ” अपूर्ण दुनिया ” में हर तरह से सम्पूर्ण और दोषरहित दुनिया नहीं बन सकती थी, इसलिए उनके हिस्से में मानसिक बिखराव के सिवा और कुछ न आया।
Brother सिकंदर हयात जी आप कमेंट में जितनी भी बाते/विचार दिए है चाहे वो विषयांकित लेख पर आधारित हो या उससे हट कर कही गई हो (वैसे लेख से हट कर जयादा बाते कही गई है) इन – शा अल्लाह मै देर सबेर उसका सम्यक जवाब दूगा. जवाब देने में जो देरी हो रही है उसके लिए माफ़ी चाहूगा क्योकि समय का अभाव है
ये कमेंट मेल पर आया हे अबरार भाई का शुक्रिया मेंजल्द जवाब लिखता हु जल्द Abrar Ahmed सिकंदर भाई,अस्सलामवालेकुम !आप का लेख पड़ा, एक बात अर्ज करना चाहूंगा, मुझे ऐसा लगा की शायद ये लेख आपने खुद को बैलेंस करने के लिए लिखा है, कही आप ये जताने की कोशिश में कि आप न्यूट्रल है, किसी एक गलत बात को सही सिद्ध करना तो नहीं चाह रहे है.
मैं यहाँ सिर्फ एक बात पूछना चाहूंगा कि एक भारतीय नागरिक को अपने मज़हब पे अमल करने का अधीकार है या नहीं?
आज वो अपने प्रिंसिपल की बात मान ले और दाढ़ी कटा ले, कल उसका बॉस नहीं चाहेगे, परसो उसके पडोसी नहीं चाहेगे तो फिर वो स्टूडेंट अपने धर्म पे अमल कब करे,क्या उसके दाढ़ी रखने से उसकी पढ़ाई पे असर पड़ेगा?
उसे दाढ़ी कटाने को सिर्फ तअस्सुब की बुनियाद पे कहा गया है इसका सब से अच्छा उदाहरण है फिल्मो के खान, बहुत हद तक तो वे दूसरे मजहब वालो की तरह व्यहार करते है फिर भी मजहब के नाम पे सबसे सॉफ्ट टारगेट है!
और हा एक बात और पूछना चाहूंगा की बातिन से ज़ाहिर बनता है या ज़ाहिर से बातिन, फिर क्यों स्कूल में एडमिशन के बाद से ही यूनिफार्म पहना दी जाती है, ये नहीं होता पहले पड़ा दे और फिर जब वे पद ले तब यूनिफार्म पहनने को कहे.
भाई, मैं कट्टरवाद में यकीन नहीं करता हु और यही मानता हु की नफरतो को मोहब्बत से ही जीता जा सकता है, और हा आप से कोई शिकायत नहीं है, आप बढ़िया काम कर रहे है. लोगो के दिलो से गलत बात मिटने के लिए, लेकिन ये उम्मीद रहेगी कि सही सब्जेक्ट (जो सही में मुस्लिम मआशरे में बुराई है) उसी पे लिखे. कीप इट उप.
Best Regards
Abrar Ahmed ( Ujjain / Indore – MP)
Brother सिकंदर हयात जी द्वारा उपरोक्त लेख के कॉमेंट बॉक्स में किया गया कथन कि “””पाकिस्तान बनाने वाले से लेकर चलाने वाले सब इस्लामिक भाई चारे की बात करते आये हे मगर जिन्ना से लेकर हुर्रियत तक सब अपनी दुनियावी हवस पूरी कर रहे होते हे”” आप की बात बिल्कुल सही है लेकिन इसमें आप इस्लाम या आम मुसलमानो को दोष नहीं दे सकते आम मुसलमान तो ऐसे लोगो की राजनीति से बर्बाद व बदहाल हो रहा है
वैसे मैं यहाँ पाकिस्तान के बारे में कुछ कहना चाहता हूँ
पाकिस्तान(Pakistan) शब्द की उत्पत्ति
मुस्लिम लीग के 1930ई के अधिवेशन के दौरान कवि मुहम्मद इक़बाल ने मुस्लिमो के लिए पृथक राज्यो का सुझाव दिया था
चौधरी रहमत अली (कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के छात्र ) ने 1933ई में ‘पकिस्तान’शब्द का प्रयोग इस प्रकार किया था
P=Punjab(पंजाब)
A=Afghanistan (अफगानिस्तान)
K=Kashmir (कश्मीर)
S=Sindh (सिंध)
TAN=blochisTAN(बलूचिस्तान )
स्पष्ट रूप से पृथक राज्य का प्रस्ताव लीग की तरफ से मुहम्मद इक़बाल व चौधरी रहमत अली ने किया गया था (याद रहे राज्य शब्द का प्रयोग किया गया है) मगर
मुस्लिम लीग के लाहौर अधिवेशन में अध्यक्षता करते हुए मुहम्मद अली जिन्ना ने23 मार्च , 1940ई को भारत से अलग “मुस्लिम राष्ट पाकिस्तान ” की मांग की थी लाहौर अधिवेशन (1940) में विभाजन करो और छोड़ो (Divide and Quit). का नारा दिया और 1946 में ‘कैबिनेट। मिशन ‘ भारत आया जिसे अलगाववाद की समस्या और भी जटिल हो गई।
यहाँ ये तथ्य उलेखनीय है कि
पूना समझौता
महात्मा गांधी और आंबेडकर के मध्य 24 सितंबर 1932ई को एक समझौता हुआ जिसमें पृथक प्रतिनिधित्व की मांग को वापस ले लिया
मैंने उपरोक्त कथन इसलिए किया है कि अधिकतर लोग पाकिस्तान शब्द का सृजन इस्लाम से जोडते है जो बिलकुल गलत है
Mohammad Aslam साहब्
“सिकंदर हयात जी दुनिया में बहुत बड़ी तादाद में ऐसे लोग है जो सिर्फ वही सुन्ना और जाना चाहते है जो मुसलमानो के विरुद्ध कहा गया हो”
पूर्वाग्रह की प्रवृत्ति मुसलमानो की भी बहुसंख्यक आबादी मे भी प्रवेश कर चुकी है. हर मुसलमान ने ये मान लिया है कि इस्लाम और ईमान की सही समझ उसे है, और उसी रास्ते पे दुनिया और समाज का भला होगा. उसपे उम्मा भी कायम होगी, खिलाफत भी.
हम उम्मा और खिलाफत के ख्वाबो मे पूरी दुनिया मे एक जैसे नियम, कानूनो के समाज को देखते हैं, जबकि तथाकथित मुस्लिम तो आपसा मे उलझता जा रहा है. अल्लाह के करम से मुझे साइंस और प्रोद्योगिकी के काम से अन्य देशो मे जाने का अवसर मिला. पूरी दुनिया मे इंजीनियरिंग, भौतिकी, रसायन के . . के पाठ्यक्रम एक जैसे हैं. वैज्ञानिक पत्रिकाएं, किसी देश विदेश से नही, बल्कि विषय आधारित है.
यही बात व्यापार, खेल आदि मे भी लागू हो रही है. क्या ए अल्लाह के द्वारा निर्देशित उम्मा की राह नही है? नही, हम इस और सोचना भी नही चाहेंगे, क्यूंकि ईमान और इस्लाम के प्रति हम अन्तिम नतेीजे पे पहुन्च गये है.
हमारेी शब्दाव्लि मे ईमान्दार और बे-ईमान लफ्ज है, लेकिन हम जिस ईमान केी बात करते है वो अलग है.
मेरा कॉलेज के समय का एक घनिष्ठ मित्र है, जिसे आम समझ के हिसाब से दुनिया हिन्दू या गैर मुस्लिम मानती है. वो अपने आप को नास्तिक (काफ़िर) कहता है, कुछ वर्ष पहले उसने जरूरत के समय मुझसे अच्छी खासी रकम उधार ली. मैने उससे किसी पेपर पे कुछ नही लिखवाया, ना मैने उससे अपने पैसे वापस मांगे, लेकिन उसने सही समय पे उसे लौटा दिये.
मुझे बताइये, मेरा दोस्त ईमान लाया है या नही. अगर उसे अल्लाह पे भरोसा नही, तो वो क्या चीज थी, जिस वजह से उसने मुझे धोखा नही दिया? जबकि 40 साल की इस जिंदगी मे अपने को मुसलमान कहने वाले अनेक लोगो ने मुझे धोखे भी दिये हैं.
में हमेशा से मेरे दोस्त को यही कहता आया हूँ, कि तू मुसलमान है, लेकिन तुझे नही पता, लेकिन अल्लाह दिलो की बात जानता है. दिलो के भेद अल्लाह ही जानता है, और हम है कि आडंबर और पाखंड को ही दीन और ईमान समझ के अटके हुये हैं.
आज मै Brother Zakir hussain जी का Welcome करुगा यकीन जानिए मैंने आप की वजह से ही इस साइट को रोज एक दो बार जरुर सर्च करता था, बस आते ही आप ने इस साइट पर आपने मन की बात कर दिया. इन – शा अल्लाह अब तो मै रोज समय निकालूगा क्योकि आप से कुछ जायदा ही मुझे सीखना है
और उधर अभी एक केस का अंत हुआ इस ” केस ” में एक बेहद धर्मनिष्ठ सज्जन को ”मेरी ” ”वजह ” से मिनिमम पांच लाख तक का फायदा हुआ होगा मगर मुझे एक सिंगल चवन्नी भी नहीं दी कभी नहीं उल्टा मेरा खर्च हो जाता था हां ये जरूर किया की खुद भी पूरी तरह दुनियादारी में लीन होते हुए भी हज पर निकल गए यहाँ भी सवाब पर बस नहीं हुआ बल्कि अपनी मदर को भी खीच ले गए जबकि उनकी मदर बहुत पहले ही अपने शौहर के साथ ही हज कर चुकी थी तब भी , तो ये किया ऐसे हज़ारो केस हे और याद रहे की ये तो हमारे सोशल सर्किल के किस्से हे हम तो सुन्नी सय्यद लोग हे बहुत ही शरीफ बहुत ही नेक बहुत ही भले ये तो मेरे यहाँ के किस्से हे में जरा भी जातिवादी नहीं हु मुझे सय्यद सुपीरियॉरिटी पर न यकीन हे न कोई दिलचस्पी हे मगर अंदाज़ा हे की और जगह क्या हाल होता होगा ———– ? कहने का आशय यही हे कीउपमहादीप में हिन्दू मुस्लिम धार्मिक कट्टरता बढ़ रही हे मगर धर्म के आधार पर कोई विशेष स्पेशल अच्छा आचरण हमें दिखलाई नहीं पड़ रहा हे —-? बाकी में भी असलम भाई से की बात से सहमत हु अफ़ज़ल भाई की इस साइट की सबसे बड़ी उपलब्धि मुझे भी यही लगती हे की इस साइट की वजह से जाकिर हुसेन भाई जैसे विद्वान मिला हे मुस्लिम मन मानस से जुड़े मुद्दो पर जो जो गहराई जाकिर साहब के पास हे वो और किसी के पास नहीं हे
एक बात ये रंजन सर के लिए हे की सर आपने कहा की कई कारणों से अब आप साइट पर नहीं आते हे मुझे याद आया की लास्ट टाइम जब आप आये थे तो हमारी , आपकी एक आध्यतमिक यात्रा पर बात हो रही थी आप———–यात्रा की बात कर रहे थे मेने कहा था की आप जैसा महाविद्वान आदमी अगर ———– ————–उसके बाद से हि आपने आना छोड़ा खेर अगर इस वजह से आपकी भावनाये आहत हुई हो तो में माफ़ी चाहूंगा मुझे किसी का भी दिल दुखाना भाता नहीं हे बाकी जैसी आपकी मर्जी एक रिक्वेस्ट आपसे ये थी की आपके ब्लॉग पर शायद हमारे आपके पुराने दोस्त सैफुल्लाह खान की मेल आई डी हो तो उन्हें जरूर इस साइट का लिंक मेल कर दे हो सके तो . शुक्रिया रंजन सर . और एक बात की असलम भाई ने कहा की सोशल मिडिया पर इन लोगो के विचारो को काफी फैलाया जा रहा हे ये थोड़ी हैरान करने वाली बात हे क्योकि में किसी सोशल मिडिया पर एक्टिव नहीं हु अफ़ज़ल भाई हे मगर कोई खास एक्टिव वो भी नहीं हे थोड़ा बहुत ही लिखते हे जाकिर भाई भी मना कर रहे थे तो जो असलम भाई ने कहा की सोशल मिडिया पर इस साइट के विचारो को काफी फैलाया जा रहा हे तो उसमे हमारा हाथ तो नहीं हे ना जानकारी हे हालांकि अगर अफ़ज़ल भाई इस साइट के शुद्ध सेकुलर शुद्ध उदारवादी सहअस्तित्व वादी विचारो को फैलाया जा रहा हे तो बहुत अच्छी ही बात हे फायदा ही होगा आमीन
ट्रांसपोर्टेशन और मोबाईल व इंटरनेट के ज़रिये आज एक इंसान दूसरे देश के इंसान के दुख-दर्द को भी शेयर कर सकता है। एकता और भाईचारे के अवसर आज पहले के मुक़ाबले कहीं ज़्यादा हैं। इसी के साथ इन सब जगहों पर अमन के दुश्मन भी मौजूद हैं।
शैतान कभी नहीं चाहता कि इंसान अपने मालिक के दिखाए सीधे रास्ते पर चले। यही वजह है कि धार्मिक लोगों को हमेशा सताया गया। धार्मिक लोग अच्छे गुणों से युक्त होते हैं। जिनमें कि सब्र यानि धैर्य भी एक गुण है।
सत्य को सामने लाने वाले हरेक आदमी को सब्र के साथ अपना काम करना चाहिए।
समाज के सामने सत्य को साक्षात करने वाले को चाहिए कि वह अपना काम करता रहे। प्रकृति को अपना काम करना बख़ूबी आता है।
हर आदमी जानना चाहता है कि मैं क्यों पैदा हुआ हूं और मुझे क्या करना चाहिए ? ईश्वर ने नबियों और ऋषियों के माध्यम से मनुष्य के ऐसे हरेक सवाल का जवाब दिया है।
धर्म का ठेकेदार शैतान भी हो सकता है। धार्मिक आदमी और धर्म के ठेकेदार में अंतर होता है। धर्म का ठेकेदार पहले दीन-धर्म को बदलता है और फिर वह उसे व्यवसाय बनाकर उससे आय पैदा करता है। वह लोगों को अपना माल नहीं देता। धार्मिक आदमी परोपकार में अपना माल ख़र्च करता है। धर्म का ठेकेदार ख़ुदग़र्ज़ और लालची होता है जबकि धार्मिक आदमी परोपकारी और बेलालच होता है।
समाज में धार्मिक आदमी कम हैं। इसके लिए हम सबको सब्र के साथ अपना काम करते रहना चाहिए।
अपने काम से मतलब यह है कि जो भी सत्य हो, हम उसे मानते रहें और एक दूसरे का दुख दूर करने के लिए जो भी बन पड़े, हम उसे ज़रूर करें।आज भी नेकदिल आदमी ज़्यादा हैं। हम सबको एक दूसरे के काम आना है। यही नेकी है। नेकी करना ही हमारा अपना काम है। ईश्वर नेक काम करने के लिए ही कहता है।
जो सब्र नहीं कर सकता। वह ईश्वर के दिखाए मार्ग पर भी नहीं चल सकता और जो उसके दिखाए मार्ग पर नहीं चलता। वह बुरे रास्ते पर चलकर बर्बाद हो जाता है।
हरेक आदमी को चाहिए कि वह देख ले कि वह अल्लाह (परमेश्वर) के दिखाए रास्ते पर चल रहा है या उससे हटकर चल रहा है
परमेश्वर क़ुरआन में हमारा मार्गदर्शन करते हुए कहता है कि
गवाह है गुज़रता समय, कि वास्तव में मनुष्य घाटे में है, सिवाय उन लोगों के जो ईमान लाए और अच्छे कर्म किए और एक-दूसरे को हक़ की ताकीद की, और एक-दूसरे को धैर्य की ताकीद की. [103:3]
इसके सच होने में किसे सन्देह हो सकता है सिवाय नास्तिक के !
मानवता के सामने आज आदर्श का संकट है । वह किसे सही माने और किस के जीवन के अनुसार अपना जीवन ढाले। पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद साहब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का जीवन हरेक के लिए एक आदर्श है। उन्हें भेजकर ईश्वर ने मानव जाति को आदर्श के संकट से सदा के लिए मुक्ति दे दी है। मुहम्मद साहब सल्ल. के अंतःकरण पर अवतरित ईश्वरीय वाणी ऐतिहासिक रूप से सुरक्षित है। उनकी जीवनी भी सुरक्षित है। उनके बताये गये नियम आज के समय में सरलतापूर्वक पालनीय हैं।
मेरी FB वाल से
शुक्रिया असलम साहब, हालांकि मैने अपने आप को कभी विद्वान या जानकार नही माना. बस आसपास के माहौल को लेके, थोड़ी वेदना होती है, इसलिये इस साइट पे आके कुछ चर्चा कर लेता हूँ. लेकिन जब कभी इन बातो से दूर रहकर, अपनी पढ़ाई या रोजगार मे ध्यान लगा पाता हूँ, अच्छा लगता है. इस वजह से मेरी मौजूदगी इस साइट पे कभी कभार ही रह पाती है.
बाकी मुझे लगता है कि नास्तिक, काफ़िर, मोमिन, मुर्तिद, मुशरिक आदि की अपनी समझ को हमे अंतिम नतीजे देने से बचना चाहिये, क्यूंकि ये अविश्वास को बढ़ावा दे सकती है. मैने स्व-घोषित नास्तिको को भी गरीबों की सेवा करते देखा है, अधिकांश मूर्तिपूजक लोगो को भी इस यकीन पे देखा है कि मूर्तियों मे कोई शक्ति नही, और ईश्वर जहां कहीं भी हो, इनमे नही. निराकार ईश्वर की इबादत की बात करने वालो को कागज के कुछ टुकड़ो के अपमान मे क्रोधित हुये देखा है. हर इंसान मे कुछ ईमानदारी है, कुछ बे-ईमानी, इसलिये ईमान को लेके एक वर्ग को दूसरे से अलग रखना, समाज मे कलेश पैदा करता है. अपने लिये कह सकता हूँ कि मेरे जेीवन मे ईमान केी बढोतरेी उन मित्रो ने अधिक करेी, जिन्हे दुनिया, काफिर् मुश्रिक या गैर्-मुस्लिम मानतेी है.
Brother Zakir hussain जी का कथन कि कि नास्तिक, काफ़िर, मोमिन, मुर्तिद, मुशरिक आदि की अपनी समझ को हमे अंतिम नतीजे देने से बचना चाहिये, क्यूंकि ये अविश्वास को बढ़ावा दे सकती है. मैने स्व-घोषित नास्तिको को भी गरीबों की सेवा करते देखा है से मै सहमत हु
मगर ये भी स्पष्ट करना चाहता हु की स्व-घोषित नास्तिको को भी गरीबों की सेवा की वजह से समाज में उनकी इज्जत है मुसलमान ने ये अमल छोड़ रखा है इसलिए हर जगह असम्मान व परेशानी उठा रहा है
मै माफ़ी के साथ ये कहना/बताना चाहता हु कि Brother सिकंदर हयात जी व Brother Zakir Hussain जी की साइकी (मन मस्तिष्क की बुनावट या वो क्या कहना चाहते है या क्या समझना चाहते है) को समझना आसान नहीं है क्योकि dt. 09.01.2017 की तारीख में दोनों लोगो के द्वारा ( Brother सिकंदर हयात जी व Brother Zakir Hussain जी) किसी व्यकितगत लेन-देन का जिक्र करके एक भावनात्मक टच देकर indirect समझाने का प्रयास किया गया है की मुसलमान अविश्वासी होते है जबकि उनके द्वारा इसी साइट पर किसी लेख पर ये कमेंट किया गया था कि ” मैं मुद्दों की बहस में व्यक्तिगत बात या आरोप का सहारा नहीं लेता,”
मै ये कहना चाहता हु कि आप एक पब्लिक साइट पर कोई बात कर रहे है किसी भी समाज या किसी विशेष समुदाय में अच्छे लोग भी होते है और बुरे लोग भी होते है (रेशियो पर मत जायेगा क्योकि ये आसानी से तय नहीं हो सकता) आप की इस तरह के कमेन्ट नॉन मुस्लिम भाइयो पर डायरेक्ट प्रभावित करेगी और ये तुरंत ये कहेगे की मुसलमान तो हमेशा अविश्वासी वो ग़दर होते है
Brother सिकंदर हयात जी व Brother Zakir Hussain जी कैसे माना जाये की अफ़ज़ल भाई की इस साइट के शुद्ध सेकुलर शुद्ध उदारवादी सहअस्तित्व वादी विचारो को फैलाया जाता है यही नहीं आप भाइयो द्वारा बात बात में मै सैयद हू, मै खान हू मै पठान हु, मै सुन्नी हू मै शिया हू, मै वहाबी हु, मै देवबंदी हू मै बरेलवी हू मै सूफी बरेलवी हू आदि ऐसे कथन लेख व कमेंट में किया जाता है जिससे एक आम मुसलमान कुरआन व हदीश को छोड़ कर पहले ये तलाशता है की मै इनमे से क्या हू यकीन जानिए की इन सब के चक्कर में एक आम (सीधा सदा) मुसलमान कुरआन की आयतों व हदीश को सही समझ रख पा रहा है और वह गुमराह हो रहा है
मेरी ये राय है की दुनिया में सिर्फ दो तरह के मुसलमान है एक Practicing मुसलमान ( कुरआन व पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद साहब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के वास्तविक कथन के अनुसार अमल करने वाला ) और दूसरा Non Practicing मुसलमान ( जो सिर्फ नाम का मुस्लमान है अमल/कर्म से कुछ नहीं है)
ऐसे मुसलमानों की बात/घटना को Brother सिकंदर हयात जी व Brother Zakir Hussain जी आधार बनाकर पेश कर है
आत्मनिरीक्षण और चिंतन और आइना दिखाने को अगर आप गन्दा दिखाना समझ रहे हे तो ये आपकी समझ हे आप जैसा सोचे मगर हमारे हिसाब से ये विचार विमर्श हे बहस हे सोच विचार हे जो चलता रहना चाहिए में ये बाते तब्लिगियो के सामने भी कह चुका हु की भाई आप लोग लोगो के अमाल नहीं बदलवा पा रहे हे आप लोगो को धार्मिक या जैसा धार्मिक आप चाहते हे वैसा तो बनवा पा रहे हे मगर अमलो अमाल उदारता अच्छाई नेकी आपसदारी नहीं बढ़वा पा रहे हे और ख़ुशी हे की उन तब्लिगियो को भी इतनी समझ थी की उन्होंने कहा था ” हां साहब कह तो आप भी सही रहे हो ” हमारा कहना यही हे और जोर देकर कहना हे की उपमहादीप में सेकड़ो ”जाकिरनायको ” की फौज कोई अच्छाई आदर्श ( इस्लामी भी ) तो फैला नहीं सकी हे बल्कि सिर्फ कट्टरपंथ इन्होंने बढ़वाया हे और इनकी कोई उपलब्धि नहीं हे इस चिंतन को, कुछ लोगो को पॉइंट करने को , अगर आप ” सारे मुस्लिमो को गन्दा दिखाना समझते हे तो भाई आपकी सोच ना केवल गलत हे बल्कि ये सोच आपको दो ही रास्ते पर लेके जायेगी या तो शोषक या शोषित . हमारा काम हे लोगो को शोषक और शोषित दोनों बनने से रोकना ———- जारी
सय्यद वाली बात भी समझाने के लिए कही थी की मेरे लिए तो मुझे तो सय्यद होने या ना होने में कोई दिलचस्पी नहीं हे ना मुझे साम्पदायिक्ता में कोई दिलचस्पी हे ना जातिवाद में न नस्लवाद में ना रंगभेद में . मेरी दिलचस्पी नहीं हे लेकिन देखा हे की बहुत से लोग सय्यद होने के आधार पर खुद को या उनको दूसरे लोग भी कुछ स्पेशल समझ लेते हे तो में अपने अनुभवो से ये बता रहा था की यहाँ भी ऐसा कोई बहुत खास बहुत स्पेशल आचरण यहाँ भी नहीं हे और तो और ये भी देखिये की वो लोग जो हमारे सेकुलर और कठमूल्लवाद विचारो के कट्टर विरोधी हे ( मेरा कज़िन और दूसरे कई लोग ) वो तो सय्यद सुपीरियॉरिटी में भी फुल विशवास करते हे और कास्ट बाहर शादी का सोच भी नहीं सकते हे जबकि में खुला सपोर्ट करता हु कास्ट बाहर शादी का मेरा कोई भाई बहन चाहेगा तो में फुल सपोर्ट दूंगा . तो हमारा ये कहना था जिसे आपने पता नहीं क्या समझ लिया . और ये अजीब साइकि हे जाकिर नायक के खिलाफ लिखो तो वो और उसके सपोटर ये नहीं कहते की हम इनके खिलाफ लिख रहे हे कहेंगे की हम इस्लाम और मुस्लिमो के खिलाफ लिख रहे हे इमाम बुखारी के खिलाफ लिखो तो वो भी यही कहेंगे देखो देखो ये इस्लाम के खिलाफ लिख रहा हे आज़म खान के खिलाफ लिखो तो भी यही नतीजा मदनी के खिलाफ लिखो तो ओवेसी तो भी यही कहेंगे मतलब हर जगह ये धर्माधिकारी और मुस्लिम नेता उनके सपोटर अपने और अपने हितो और वर्चस्व के खिलाफ उठने वाली आवाज़ों के ये इस्लाम और मुस्लिमो के खिलाफ बता देते हे या सकते हे
Brother सिकंदर हयात जी आलोचना या विरोध प्रदर्शन संवैधानिक अधिकार है सोशल मीडिया से लेकर मुख्यधारा की पत्रकारिता हद दर्जे से भी ज़्यादा मुसलमानों से नफ़रत करती है और किसी एक घटना के बाद लगातार उत्पीड़न का शिकार बन रही क़ौम को नोचने लगती है और उनके बराबर खड़ी कर देती है जो उनसे सौ गुना ताक़तवर हैं। मुसलमनो को इमाम बुखारी, आज़म खान ओवैसी के साथ जुड़ने की जगह खुद ही आत्म विश्लेषण कर अपनी स्थिति सुधारन चाहिए
पता नहीं ये ये कहा निष्कर्ष निकाल लिया गया की आप को लिखने से कुछ लोग रोक रहे है अरे भाई आप खुलकर लिखे मै तो यही चाहता हु
अरे भाई यही तो बात हे की आप सोशल मिडिया के उन्ही गन्दे घिनोने कम्युनल लोगो का गुस्सा हम पर निकाल रहे होते हे जबकि हम भी उनके विरोधी हे एक बात ये भी समझ लीजिये की जितना उदारवादी इस्लाम और उदारवादी मुस्लिम मज़बूत होंगे उतना ही ये वर्ग कमजोर होगा शायद आपने देखा नहीं की हम इन साम्प्रदायिक तत्वो के खिलाफ भी बहुत लिख चुके हे http://khabarkikhabar.com/archives/category/writers/%E0%A4%B8%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A4%82%E0%A4%A6%E0%A4%B0-%E0%A4%B9%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%A4
उपरोक्त कथन से सहमत हू
मैंने आप के कई लेख पड़े है इसलिए जिस लेख में मुझे जो चीज या शब्द अनुचित लगा उसकी पर मेरे द्वारा आलोचना की गई है और मै आप की जानकारी के लिए अपने बारे में एक बात कहना चाहता हु कि मेरा एक सूत्री कार्यक्रम है कि समाज या हमारे हिंदुस्तान में इस्लाम के बारे में जो गलत धारणा या गलतफैमिया लोगो के बीच बन है या बनाई रही है उसका लेख या कमेंट के जरिये निवारण करने की कोशिश कर रहा हू और इसके लिए हर माध्यम (किताबो व सोशल साइट) से जानकारी व लेख (पक्ष व विपक्ष दोनों का) साक्ष्यो सहित विश्लेषण कर के सही व स्पष्ट स्थिती सामने आय और जहा कमी उसमे सुधार हो और जहा सही उसको लोगो को बता सके मेरा यही एक मकसद है और तभी समाज में भाईचारा व शांति हो सकती है
सिकन्दर सहाब, असलम सहाब, जाकिर सहाब और सम्पादक अफ्जल सहाब, आप सभेी भाईयो का बहुत बहुत शुक्रिया.एक उम्दा बहस के लिये जहा कोइ गालेी – गलोच या बिना सिर पैर कि बाते न होकर अक्लमन्देी वालेी बाते हो रहेी है! इन्शआल्लह कोशिश रहेगेी आप लोगो केी बाते सुनने केी और अपनेी बात रखने केी!
Brother सिकंदर हयात जी का कथन की “आत्मनिरीक्षण और चिंतन और आइना दिखाने को अगर आप गन्दा दिखाना समझ रहे है तो ये आपकी समझ हे ” Brother सिकंदर हयात जी कैसा आत्मनिरीक्षण है आप का जो सिर्फ एक आंख से देख रहे है आपने एक सामजिक बुराई जो सब हो सकते है मगर आप ने खास कर एक समुदाय की हो इंगित करके ये बताने का प्रयास किया गया है जबकि आप देखेगे की लेन देन के बहुत सारे मुक़दमे देश के अदालतों में लंबित है क्या वो सारे के सारे मुसलमानों के मामले है इन आधारों को कहने से आप की मंशा क्या है आप ही जानेगे ………जारी
अरे साहब कहा तो हे की एक आँख वाला चिंतन और लेखन हम कर रहे हे तो असलम साहब दूसरा आँख वाला चिंतन तो वैसे भी चारो तरफ हो ही रहा हे कही भी भी जाइये पढ़िए या किसी भी महफ़िल में जाइये वैसा ही चिंतन वैसे ही सोच विचार वही सब कुछ तो हो रहा हे जैसा आप चाह रहे हे वैसा हर जगह मिलेगा अगर यहाँ भीइस साइट पर भी आप ” मेन स्ट्रीम ” का सीधी धार का चिंतन चाहते हे तो भाई स्वागत किया तो हे आपका आप चाहे तो वैसा लेखन कर सकते हे लिंक दे सकते हे कॉपी पेस्ट कर सकते हे आप जरूर कीजिये . ———– जारी
भाई जबाब देने का ये उद्देश्य नहीं है की आप नाराज हो जाये मेरी बात बुरी लग रही है तो कहे मै माफ़ी के साथ इस साईट से विदा ले सकता हु मगर ऐसे कटाछ न मारे
नहीं असलम भाई में नाराज़ नहीं हु न कभी होऊंगा असल में जल्दी में था निकलना था इसलिए हो सकता हे एक दो शब्द गड़बड़ हो गए हो माफ़ी . खेर मेरा कहना ये हे की जैसा आप चाहते हे वैसा लेखन आप भी कर सकते या लिंक दे सकते हे की ”भाई देखो ये कितना बढ़िया लेख हे ये ये ये सही हे तुम गलत हो ” ऐसा कर लीजिये भाई असलम हम उसको जरूर पढ़ेंगे आपने जाकिर नायक पर लिखा तो उन पर बहुत लंबी बहस हो चुकी हे सेकड़ो कमेंट लिखे हे आप पढ़ ले और जो बात गलत लगे उसे कोट कर दे शुक्रिया निकलता हु बाकी रात में या कल बात जारी रहेगी
Brother सिकंदर हयात जी आप बात बात पर जाकिर नायक को बीच में ला रहे है मै आपकी साइकि को समझ रहा हु जरा आप जाकिर नायक जी के बारे में अपना विचार दे
आप विद्वान् व्यक्ति है इसलिए आप याद रखियेगा कि एकतरफा बात के आधार पर कोई बात मत कहियेगा डॉ ज़ाकिर नायक साहब ने कोई भी बयान बंद कमरे में नहीं दिया है उनके सारे वीडियो youtube पर मौजूद है और किसी भी वीडियो में उन्होंने न तो आतंकवाद का और न ही ओसामा का समर्थन किया मीडिया जो भी वीडियो देखा ती है वो डॉक्टेड व पुरानी विडीओ दिखाती है और हिन्दू देवी देवताओं के अपमान की बात मीडिया सिर्फ शॉर्ट किलिप दिखा कर उनके प्रति नफरत फैलती है वैसे हिन्दू देवी देवताओं के बारे में बहुत कुछ इन्टरनेट पर् लेख के रूप में मौजूद है क्या सरकार इंटरनेट पर् प्रति बन्ध लगायेगी
मैने तो कभी अपने आपको देवबन्दी, बरेलवी, शिया, सुन्नी नही कहा. लेकिन में आपकी परिभाषा से भी सहमत नही.
दुनिया में सिर्फ दो तरह के मुसलमान है एक प्रॅक्टिसिंग मुसलमान ( कुरआन व पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद साहब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के वास्तविक कथन के अनुसार अमल करने वाला ) और दूसरा नॉन प्रॅक्टिसिंग मुसलमान ( जो सिर्फ नाम का मुस्लमान है अमल/कर्म से कुछ नहीं है)
मेरी समझ ही सही है, में ऐसा दावा नही करता. लेकिन ऐसा जरूर मानता हूँ कि दुनिया को ईमान के आधार पे इतनी सरलता से बे-ईमान और ईमानदार मे बांट देना, कलेश को ही बढ़ावा देगा.
पैगंबर मुहम्मद साहब पे भी मेरी इस साइट या महफ़िलो मे चर्चा हुई. मेरा मानना है कि उनके बताये रास्ते पे चलना ज्यादा जरूरी है, बजाये इसके कि इसका दावा किया जाये. मुझे ऐसे लोग भी मिले, जो उनके लिये नकारात्मक राय रखते थे, यहाँ तक कि आतंकवाद के लिये, उनको जिम्मेदार मानते थे. मैने मेरी क्षमता मे उनकी राय को सकारात्मक करने की कोशिश की. लेकिन मैने यही कहा कि उन्होने आतंकवाद का नही मुहब्बत का पैगाम दिया. और अगर आप आतन्कवाद को गलत मानते है और प्रेम को सहेी मानते है तो आप इस्लाम के रास्ते पे हेी चल रहे है इस्लिये मेरे लिये बहस अब बेमानेी है.
अगर कोई व्यक्ति आतंकवाद का विरोधी है, सामाजिक सौहार्द का पैरोकार है, वो दिल से इन मूल्यो पे यकीन करता है, लेकिन वो मुहम्मद साहब के लिये नकारात्मक राय रखता है. तो मुझे लगता है, वो किसी दूसरे मुहम्मद की बात कर रहा है, तो मुझे इसकी चिंता क्यूं हो?
मैने इस लेख की पहली टिप्पणी मे ही लिखा कि हमने(बहू-संख्य्क मुसलमान) ईमान और इस्लाम के प्रति अपनी समझ को अंतिम सत्य मान लिया है. और हम वोही सुनना और पढ़ना चाहते हैं. लेकिन अंतर्विरोध का आलम यह है कि जब कभी हमारी नाकामियो की चर्चा होती है तो हम बहू-संख्यक मुसलमानो को इस्लाम से भटका घोषित कर देने मे भी देर नही लगाते.
Brother Zakir hussain जी आप ने किसी बड़ी बात को बहुत ही कम शब्दों कहने की अच्छाई है मगर मै थोड़ा अलग करके समझना चाहता हु कृपया मदद कीजियेगा
अगर कोई एक व्यक्ति आतंकवाद का विरोधी है, सामाजिक सौहार्द का पैरोकार है, वो दिल से इन मूल्यो पे यकीन करता है, लेकिन वो मुहम्मद साहब के लिये नकारात्मक राय रखता है. तो ऐसे व्यकित को दोहरे चरित का व्यक्ति है क्यों वो किसी एक विषय पर अलग अलग नजरिया रख रहा है क्योकि पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम शांति और सामाजिक सौहार्द के बहुत बड़े पैरोकार है
अगर आप ये कहते है की अलग अलग व्यकित है और उसमे से एक व्यक्ति जो आतंकवाद का विरोधी है, सामाजिक सौहार्द का पैरोकार है, वो दिल से इन मूल्यो पे यकीन करता है, तो वो सही है और कोई दूसरा व्यक्ति मुहम्मद साहब के लिये नकारात्मक राय रखता है. तो वो भी सही है क्योकि उसके जानकारी में है उसी के आधार पर कहेगा और ऐसे कंडीशन में आप के दुसरे कथन कि तो मुझे लगता है, वो किसी दूसरे मुहम्मद की बात कर रहा है, तो मुझे इसकी चिंता क्यूं हो? का कोई महत्व नहीं रह जाता है
मुहमम्द जी का सामाजिक सौहार्द ?
यह पहलेकी बाते होंगी जब वह कमजोर थे
जब वह ताकतवर हए तब उन्होंने क्या किया इसको देखिये
ताकतवर इन्सान कि खुबी मुख्य होती है
याह कमजोर व्यक्ति तो हाँ में हाँ मिला लिया करता है
मक्का नगर को जिटने केबाद सभी गैर मुस्लिमो के लिए
३ शर्ते राखी गयी थी
या तो मुस्लिम बन जाओ यानि मेरे चेले बन जाओ
या लड़ने को तय्य्यर हो जाओ
अथवा यह मक्का नगर छोड़ दो
तब से लेकरआज तक कोई गैर मुस्लीम मक्का और मदीना नहीं जा पाटा है
यह ताकतवर मुह्मम्द जी का इखलाख था
दुनिया का कोई भी मुस्लिम नेता हो कितना भी उदार हो वह क्यों न हो
आजतक किसी ने भी गैर मुस्लिम का इन दो नगारो जाने केलिये आवाज नहीं उठाता है
यह मुस्लिमो का दोहरापन दिख्ता है
किसी को मस्जिद में न आने को कहिये वह ठीक हो सकताहै
लेकिन किसी नगर में गैर मुस्लिम को न जाने देना एक बहुत बड़ा जुल्म है
और सभी मुस्लिम इसके समर्थक है या मौन है
इसके विरोध की आवाज तो कोइ उठाता भी नहीं है
अगर यही व्यवहार कोई अन्य समुदाय, दुसरे समुदाय के लिये कारे तब दूसरा समुदाय क्या भावना बनाएगा
धर्म क्या है?
किस किताब की गुलामी नहीं
किस व्यक्ति के पिछलग्गू नहीं
बल्कि
“दुसरे के साथ वही व्यवहार करो जो अपने लिए भी पसंद आये ”
यही सूत्र है मानवता का
और धार्मिकता का भी है
नैतिक मूल्य क्या है, ये महत्त्वपूर्ण है, उसका स्रोत क्या है, इसपे बहस करना ज्यादा कारगर नही. कोई भला और नेक दिल व्यक्ति पैगंबर के लिये नकारात्मक राय रखता है, तो इसका अर्थ यह नही कि वो दोहरे चरित्र का हो, यह भी संभव हो कि इस्लाम के तथाकथित आलिमो या मुसलमानो द्वारा दर्शाये गये व्यवहार या व्याख्या से किसी ने अपनी राय बनाई हो.
परीक्षा मे किसी ने सवाल का क्या उत्तर दिया है, महत्त्वपूर्ण है, गुरु चाहे कोई भी हो.
जहां तक बात सहाबा के दौर की है, तो हमे इस बात पे भी गौर करना चाहिये कि सहाबा और रसूल आज के दौर के कई क्षेत्रो मे निपुण नही थे, जीवन के विभिन्न क्षेत्रो मे हमे अनेक प्रेरणास्रोत और शिक्षक बनाने ही होंगे. विवाद और झगड़े सहाबाओ के दौर मे भी थे. इसलिये मुझे लगता है कि आदर्श व्यवस्था के लिये, इतिहास के एक दौर और व्यक्ति पे लटके रहना व्यावहारिक नही.
असलम भाई आपने लिखा ”मेरा एक सूत्री कार्यक्रम है कि समाज या हमारे हिंदुस्तान में इस्लाम के बारे में जो गलत धारणा या गलतफैमिया लोगो के बीच बन है या बनाई रही है उसका लेख या कमेंट के जरिये निवारण करने की कोशिश कर रहा हू और इसके लिए हर माध्यम (किताबो व सोशल साइट) से जानकारी व लेख (पक्ष व विपक्ष दोनों का) साक्ष्यो सहित विश्लेषण कर के सही व स्पष्ट स्थिती सामने आय और जहा कमी उसमे सुधार हो और जहा सही उसको लोगो को बता सके मेरा यही एक मकसद है और तभी समाज में भाईचारा व शांति हो सकती है ” असलम भाई अगर ऐसा हे तो आपका हमारा भला किस बात का विवाद हे ? कोई विवाद नहीं हे आप इस्लाम के बारे में अगर कोई गलत धारणा हे तो आप उसे दूर करिये जरूर करिये जहां तक हमारा विषय हे हम तो गौर से देखे तो हम तो ना तो इस्लाम ना ही किसी भी धर्म के बारे में ही लिखते हे ना जयजयकार में न विरोध में , हम तो भाई धर्म आस्था अक़ीदा पर कुछ भी नहीं लिखते हे में खुद एक सुन्नी सय्यद देवबंदी मुस्लिम हु तो हु लेकिन इस आधार पर में खुद को कोई स्पेशल नहीं मानता हु जो हु वो तो हु लेकिन खुद को विशेष नहीं समझता हु असल बात और मुद्दा अमाल हे कर्म हे इसी तरह दूसरा जो हे सो हे हिन्दू सिख ईसाई शिया बोहरा बरेलवी जो हे सो हे ना में इस आधार पर उसे कोई स्पेशल या कोई अच्छा या बुरा मानता हु नहीं . भाई हमारा मुद्दा आस्था अक़ीदा नहीं हे हम इस पर कुछ नहीं लिखते हे हमारा लेखन ”लोगो ” पर होता हे उनकी गतिविधियों और उनकी गतिविधियों के रिज़ल्ट पर होता हे हमारे बहुत से लेखो और कमेंट को लोग इस्लाम पर या इस्लाम विरोधी समझलेते हे या जानबूझ कर ऐसा करते हे जबकि हम मज़हब पर नहीं दुनियावी गतिविधियों हालातो अंजामो समस्यो पर ही लिख रहे होते हे आप जितना चाहे इस्लाम पर लिखे हम कभी आपको नहीं टोकेंगे और बेफिक्र रहिये हम कभी इस्लाम या किसी भी धर्म अक़ीदे के खिलाफ नहीं लिखेंगे . लेकिन हां इस्लाम और आस्थाओ की आड़ में जो जो अपनी दुनियावी हवस पूरी कर रहे हे ऐसे लोगो के खिलाफ हम जरूर लिखते रहेंगे जब तक ज़िंदा हे लिखते रहेंगे .
देखा जाए तो इस बी एस ऍफ़ जवान का खराब खाने का मामला और सेना में भ्र्ष्टाचार के जैसा ही सेम मामला मुसलमानो का भी हे देश आदि की जगह इस्लाम को रख दे उस जवान की जगह खुद को रख ले और सेना के अधिकारियो की जगह धर्माधिकारियों को रख ले तो सब कुछ वही तो हे देश और देशभक्ति की बड़ी बड़ी बाते की जाती हे सेना और देशभक्ति के नाम पर रोज पाकिस्तान को मिटने की कसमे खाई जाती ( इस्लाम के नाम पर दूसरे धर्मो को मिटा देने की सोच फैलाई जाती हे ) इन बड़ी बड़ी बातो की आड़ में सेना और सेनाधिकारियों को बिलकुल पवित्र बना दिया जाता हे इनके खिलाफ लिखना बोलना बेहद कठिन हे देशद्रोह और ब्लासफेमी का डंडा लेकर कुछ गुंडे हमेशा तैयार रहते हे . देश और इस्लाम को अपने फायदे के लिए हर समय” खतरे ” में रखा जाता हे ताकि लोग शांति से कुछ ना सोच सके . इनके और इनमे करप्शन और दूसरी बुराइयो को कालीन के निचे किया जाता हे इस पर बोलना मतलब देश के खिलाफ बोलना ( इसी तरह इस्लाम के धर्माधिकारियों व्यापारियों रहनुमाओ के खिलाफ बोलना मतलब इस्लाम के खिलाफ बोलना दर्शाया जाता हे ) सेना के अधिकारियो पर फण्ड खाने का आरोप हे तो इस्लाम के ये धर्माधिकारी पेट्रो डॉलर के चन्दे को बीच में ही खा कर फलते फूलते हे दोनों ही मामलो में गरीबो के बच्चो को आगे किया जाता हे जो मज़बूरी में आते हे इनकी फ़र्ज़ी जयजयकार की जाती हे जिसमे मिडिया ( भारत पाक का ) खूब साथ देता हे ये भी इन्ही का एक साझी होता हे अच्छा बहुत से लोग जो न देश के ना इस्लाम के ये लोग दूर से खड़े होकर इनके लिए तालिया बजाते हे ये अपने बच्चो को पढ़ने विदेश भेजते हे या पब्लिक स्कूल भेजते और तराने गाते हे सेना के जवानों की मदरसे के गरीब बचचो की . ( ऊपर लेख में भी इशारा किया हे उनलोगों की तरफ ) और बाकी वही सब कुछ जो इस लूट शोषण जुल्म के खिलाफ बोले उसे देश देशभक्ति और इस्लाम के खिलाफ बता देते हे पुरे उपमहादीप की सौ करोड़ गरीब हिन्दू मुस्लिम जनता का खून चुस्ती हे ये सस्ती देशभक्ति और धर्म मज़हबभक्ति
एक बात हे की भारतीय उपमहादीप की एकता अटूट हे काबुल से कोहिमा तक सब कुछ एक जैसा ही होता रहता हे अब जैसा इस जवान का मामला हे सेम यही मेने सूना था की एक मुस्लिम रहनुमा धर्माधिकारी के संसथान में भी बेहद साधारण खाना गरीब परिवारों से आये ” जवानों ” को दिया जाता हे खुद ये करोड़ो की सम्पाती के मालिक हे नाम ज़ाहिर हे की लिख नहीं सकते हे वार्ना इनके सपोटर छाती कूटना चालू कर देंगे की ” हाय हाय देखो तो ये नास्तिक , इस्लाम के खिलाफ बोल रहा हे ” अपने हितो और अपने ”बिज़नेस ” अपनी ”दूकान ” के खिलाफ उठी हर आवाज़ को ये इस्लाम के खिलाफ बता देते हे
सेना के कुछ आम जवानो ने अपनी व्यथा पर
ऊपर शिकायत भी की लेकिन कोई सुनवाई नहीं की गयी
एक अनुशासन हीन जवान ने जब उसको मीडिया में अपनी तकलीफ पेश की
तब सरकार हिलने को मजबूर हुयी
आधे रेट में जो समन खरीदते थे उन्होने भी स्वीकार किया कि सेना अधिकारी कैसे लूटते रहे
यह घटन कोइ २-४ सालो की नहीं है
बहुत सालो से ऐसी परंपरा चल रही है
जब नेता लूटेंगे
लूट की परंपरा बनायेंगे तब अधिकारी भी ऐसा क्यो नहीं करेंगे
जिसको भी मौका मिलेग वाही लूटेगा
एकचौराहे का सिपाही भी लूटता है
और एक चपरासी भी उसी टाक में रहता है
क्योकि ७० सालो से लूट की भांग हर कुंवे में पड़ी हुयी है
एक वर्षो किपराम्पराबानी हुयी है
Brother Zakir hussain जी आप का कथन कि “जहां तक बात सहाबा के दौर की है, तो हमे इस बात पे भी गौर करना चाहिये कि सहाबा और रसूल आज के दौर के कई क्षेत्रो मे निपुण नही थे, जीवन के विभिन्न क्षेत्रो मे हमे अनेक प्रेरणास्रोत और शिक्षक बनाने ही होंगे. विवाद और झगड़े सहाबाओ के दौर मे भी थे. इसलिये मुझे लगता है कि आदर्श व्यवस्था के लिये, इतिहास के एक दौर और व्यक्ति पे लटके रहना व्यावहारिक नही”
जवाब:::::::::
इंसान का मस्तिष्क प्रति सेकंड 160 प्रक्रियाओं को पूरा कर सकता है, जो इसे कोई भी कंप्यूटर या मशीन से बेहतर बनाता है। लेकिन इस मस्तिष्क में कई कमियां भी हैं। और इन्हीं में से एक है संज्ञानात्मक पूर्वाग्रह या अंग्रेजी में हम कहते हैं Cognitive Bias ये एक तरह का दिमागी पक्षपात है, जो हमें चेतना और सूझ बूझ से परे कर देता है, और हम सिर्फ अपनी धारणाओं के आधार पर फैसले लेते हैं और इसे दिमागी पक्षपात कहते है मेरे द्वारा उसकी कुछ किस्मो का बयान किया जा रहा है:
1 :- Stereotyping – किसी इंसान या समूह को बिना उसे जाने या पहचाने अपनी राय ज़ाहिर करना। किसी गलतफहमी से पनप रहे राय को ही Stereotyping कहते हैं। जैसे बंगाली लोग रसगुल्ले के शौक़ीन हैं, दक्षिण भारतीय हिंदी नहीं बोलते, मोटा इंसान ज्यादा खाना खाता है, और पतला इंसान कुछ खाता ही नहीं।
2 :- Recency – Conservatism इस में इंसान हाल ही में पाये गए तथ्य को ही सच और सही मानता है, क्योंकि उसे लगता है जो तथ्य बाद में आया है, वह काफी रिसर्च के बाद पाया गया है।
3 :- Ostrich Effect – कोई इंसान जब गम्भीर सच्चाई से भागता है तो उसके मस्तिष्क में यही समस्या होती है। शुतुरमुर्ग की तरह रेत में सर घुसेड़ कर वह सोचता है, सूरज है ही नहीं।
4 :- Outcome Bias – इसी प्रकार जो इंसान फल पर निर्भर होकर सिद्धांत बनाता है, उसे यह समस्या होती है। अगर एक बार आप जुए में जीत गए, इसका ये मतलब नहीं की पैसों से जुआ खेलने का फैसला सही था।
मेरे द्वारा उपरोक्त तथ्य इसलिए दिया गया है कि कुछ लोगो खासकर इस्लाम व उसके अंतिम संदेष्ठा हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम व सहाबा के बारे में उपरोक्त पैरा 1 से 4 का पक्षपाती रवैया अपनाते है…………………………….जारी
Brother Zakir hussain जी के कथन जवाब———-
आज मनुष्य पर धन-दौलत का भूत इस तरह सवार हो गया है कि उसकी समूची चिंतन प्रक्रिया प्रदूषित और नकारात्मक हो गई है। धन-दौलत की प्रबल चाहत में न केवल नैतिक मूल्य गौण हो गए हैं, बल्कि मानव जीवन में मूल्यों का शून्यक उपस्थित हो गया है। भौतिकता के इस दौर में न संबंधों का कोई महत्व रह गया है और न रिश्ते-नातों का। आज मनुष्य की नाप-तोल उसके पेशे और कमाई से की जा रही है। जिसके पास पैसा है, आज वही विद्वान है, वही सम्मानीय है, समाज में उसी का रूतबा है, चाहे वह लूटेरा व कातिल ही क्यों न हो।
इंसान के अन्दर सबसे ज़्यादा ताक़तवर जज़्बा, ‘ मैं ‘ या श्रेष्ठता का अहसास है. यह जज़्बा इतना ज़्यादा असर डालनेवाला होता है कि हर आदमी जाने या अनजाने में – ‘मैं, मेरे सिवा कोई नहीं’, की धारणा में जीने लगता है. यही वजह है कि हर आदमी के अन्दर बहुत जल्द, ख़ुद की बड़ाई और श्रेष्ठता की सोच पैदा हो जाती है, जो कि अहंकार का एक रूप है. इस क़िस्म की मानसिकता आत्म-शुद्धिकरण या तज़्किया की क़ातिल है. सही यह है कि आदमी के अन्दर एंटी-सेल्फ़ यानी स्वयं-विरोधी सोच पैदा हो. वह अपने ख़िलाफ़ सोचे और अपने ख़िलाफ़ सुन सके. उमर इब्न अल-ख़त्ताब { परमेश्वर (अल्लाह) के अंतिम संदेष्ठा हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के सहाबा} के अन्दर यह जज़्बा इतना ज़्यादा मज़बूत था कि उन्होंने कहा – ख़ुदा उस इंसान पर कृपा करे जो मुझे मेरे कमियों का तोहफ़ा भेजे.
———————-जारी
आज मनुष्य पर धन-दौलत का भूत इस तरह सवार हो गया है कि उसकी समूची चिंतन प्रक्रिया प्रदूषित और नकारात्मक हो गई है। धन-दौलत की प्रबल चाहत में न केवल नैतिक मूल्य गौण हो गए हैं, बल्कि मानव जीवन में मूल्यों का शून्यक उपस्थित हो गया है। भौतिकता के इस दौर में न संबंधों का कोई महत्व रह गया है और न रिश्ते-नातों का।…
देखिये, आप नकारात्मकता को अतिरंजना मे व्यक्त कर रहे हैं. समाज मे अनेको बुराइयों के साथ, अभी भी अनेक अच्छाइयां भी हैं. और ये अच्छाई या बुराइयाँ, आपकी परिभाषा के मुसलमान और बे-ईमान दोनो वर्गों मे मिल जायेगी. इसीलिये मैने अपने जीवन के कुछ उदाहरण दिये, जहां स्व-घोषित नास्तिको मे अनेको अच्छाइयां देखी. यदि स्रोत की स्वीकार्यता ही नैतिक मूल्यों के लिये आवश्यक शर्त होती, तो फिर आपकी परिभाषा के जो गैर-मुस्लिम है, उनमे कोई अच्छाई नही होती.
ब़ाकी मैने क़ुरान के साथ सैकडो किताबे पढी है, और मेरे अनुभव मे मुझे जीवन की कठिनाइयों मे दूसरी किताबो से भी कई समाधान मिले हैं.
दीन (Deen)
“हमने (अल्लाह ने) आदम,हव्वा व इबलीस [शैतान] से कहा : तुम सब यहाँ (जन्नत ) से उतरो, फिर यदि तुम्हारे पास मेरी ओर से कोई मार्गदर्शन पहूँचे, तो जिस किसी ने मेरे मार्गदर्शन का अनुसरण किया,तो ऐसे लोगों को न तो कोई भय होगा और न वे शोकाकुल होंगे ।
और जिन लोगों ने इंकार किया और हमारी आयतों को झुठलाया, वही आग (जहन्नम) में पड़ने वाले हैं, वे उसमें सदैव रहेंगे ।”………….( कुरआन : 2:38:39)
इस्लाम खुद को “दीन” कहता है,न की “मज़हब” (धर्म )।”दीन” का अर्थ है “अल्लाह का इंसान के लिए मार्गदर्शन (Allah’s guidance for mankind ) । “दीन” एक जीवन जीने का तरीका़ (A way of life ) है ।
दुनिया के सारे ज्ञान (Knowledge ) को दो प्रकार में विभक्त कर सकतें हैं :
1.तजुर्बे से प्राप्त ज्ञान ( Acquired-knowledge ) और अल्लाह की तरफ से दिया गया ज्ञान ( Revealed-Knowlege ) ।
प्रथम प्रकार का नॉलेज (Social Sciences, Humanities & languages, Sciences ect.) ज्ञानेन्द्रियां ( five-Senses ) की मदद से प्राप्त होती है । यह नॉलेज सिर्फ यह बता सकती है कि इंसान और कायनात ( Man & Universe ) क्या है ? (What) । और कैसे है ?( How)
दुसरे प्रकार की नॉलेज (यानी अल्लाह की तरफ से दिया गया ज्ञान ) ज्ञानेन्द्रियों की मदद के बिना , डायरेक्ट तौर पर रसूलों को मिलती है । यह नॉलेज बताती है कि इंसान क्यों पैदा किया गया है ? (Why) ।
दीन ,अल्लाह की तरफ़ से दी गई नॉलेज का नाम है । यह हमारे उन बुनियादी प्रश्नों का जवाब देता है, जिनका जवाब हमें और कहीं से नहीं मिल सकता : क्या हमारा कोई निर्माण कर्ता है ? अगर है, तो वह हम से क्या चाहता है ? हम कहाँ से आए ? क्यों आए ? और कहाँ जाना है ?
बहुत से लोग समझते हैं कि आज के इस नये दौर (Modern-Age) में दीन (जिसे वह इतर धर्म की तरह समझते हैं ) की ज़रूरत नहीं है । यह ग़लत है ।
आधुनिकता (Modernization ) का संबंध ,जीवन गुजा़रने के तरीके (Life-Style) से है । पुराने ज़माने में इंसान पैदल चलता था,आज कार व हवाई जहाज़ से सफर करता है ।
दीन का संबंध , अक़दार (Values) से है । जैसे इंसाफ़,सच्चाई,ईमानदारी,वाफा़दारी इत्यादी । आज से हजार वर्ष पहले ,गाँव का एक सरपंच,पैदल चलकर पंचायत पहुँचता,चबूतरे पर बैठता और फै़सला करता । मगर आज सुप्रिम कोर्ट का एक जज,कार से कोर्ट पहुँचता है,टेबल-कुर्सी पर बैठकर क्ंप्यूटर का उपयोग कर फै़सला करता है । सरपंच और जज ,दोनों के लिए अपने फै़सलों में न्याय करना बराबर अहमीयत रखता है । इंसाफ से फैसला करने की जितनी जरूरत हजार वर्ष पहले थी,आज भी उतनी ही है । इसी लिए ,दीन (धर्म) हर जमाने में इंसान की जरूरत बना रहता है ।
दुनिया की सारी नॉलेज,जि़दगी गुजा़रने के तरीके़ (Life-Style of Man ) को तरक्की़ देती है और इंसान के स्वास्थ की देखभाल करती है । पहले इंसान पैदल चलता था,फिर बैल-गाडी से,फिर साईकल से,फिर कार से,फिर हवाई जहाज से,फिर मेरीन व स्पेस-शटल से । पहले इंसान लकडि़यां जलाकर खाना पकाता,मगर आज गैस और ओवन से ।
दीन (अल्लाह का मार्गदर्शन ) इंसान की खू़बियों (Quality of man) को तरक़्की देता है । वह सिखाता है कि इंसान को ज्या़दा से ज्या़दा ईमानदार,वफादार,मददगार और सच्चा बनना चाहिए वगैरा । इसलिए Brother Zakir hussain जी के कथन नैतिक मूल्य क्या है, ये महत्त्वपूर्ण है, उसका स्रोत क्या है, इसपे बहस करना ज्यादा कारगर नही. बिलकुल गलत है क्योकि जबतक उसके मूल के हर पहलु व मकसद को नहीं समझेगे तब तक उसपर हम सही तरीके से अमल नहीं कर पायेगे
इसलिए Brother Zakir hussain जी के कथन नैतिक मूल्य क्या है, ये महत्त्वपूर्ण है, उसका स्रोत क्या है, इसपे बहस करना ज्यादा कारगर नही. बिलकुल गलत है क्योकि जबतक उसके मूल के हर पहलु व मकसद को नहीं समझेगे तब तक उसपर हम सही तरीके से अमल नहीं कर पायेगे
जनाब क्या आपको आपकेी परिभाशा के गैर मुसलमानो मे कोई अच्चाई नहेी दिखेी? मैने तो बहुत सारेी नेक बाते, अन्य स्रोतो से भेी सेीखेी. मैने इस लेख पे अपनी पहली टिपण्णी मे ये बात लिख चुका हूँ, कि अधिकांश तथाकथित मुस्लिम इस्लाम और ईमान पे अंतिम नतीजे पे पहुंच चुके हैं, लेकिन मेरी समझ उनसे अलग है. जहां प्रचलित मान्यता के मुताबिक 25-30% आबादी मुस्लिमो की और शेष गैर मुस्लिमो की है. मेरी नजर मे हर इंसान मे कुछ ईमान भी है, और कुछ बे-ईमानी भी. मेरी नजर मे ईमान (चारित्रिक दृढ़ता) एक व्यक्तित्व निर्माण की सतत प्रक्रिया है. 5 मिनट पहले एक इंसान बे-ईमान था, और एक रस्म अदा करके वो मुसलमान (ईमानदार) हो गया, जैसी बातों मे मेरा यकीन नही है.
लेकिन इस्लाम और ईमान पे अपनी समझ को अंतिम मानने वाला यही वर्ग, अपनी नाकामियो का ठीकरा, इस्लाम से दूरी या गलत समझ पे फोड़ देता है. ये अंतर्विरोध, इस परिभाषा के साथ हमेशा रहा है.
Brother Zakir hussain जी मै एक बात स्पष्ट कर देना चाहता हु हर व्यकित की मानसिकता में वाक्य संरचना और शब्द कई बार छिपे रहते हैं, जिनका निर्माण वह बहुसंख्यक समाज के विचारधारा व तौर तरीके से आधार पर व्यक्त करता जिसे एक अलग अव्यस्था सामने आती है इसी तरह आप द्वारा बड़े आसानी से इस्लामिक ईमान के बारे में ये अवधारणा प्रकट गई कि “”5 मिनट पहले एक इंसान बे-ईमान था, और एक रस्म अदा करके वो मुसलमान (ईमानदार) हो गया “” आपने बड़ी जल्दबाजी की है बहरहाल मै यहाँ इस्लामिक ईमान की अवधारणा के कुछ वयक्त कर रहू कृपया धयान से पढ़ें व समझे (ये अलग विषय की ये ईमान मौजूदा मुसलमानों मै है की नहीं क्योकि अभी नियमो पर बात की जा रही )
“इस्लामिक ईमान”
क़ुरआन के सातवें पारे में उन लोगों का ज़िक्र है जो नजरान से आए थे। उन्होने रसूलुल्लाह मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से क़ुरआन का कुछ हिस्सा सुना। उन पर खुल गया कि यह सच्चा दीन है। वह उसी वक्त़ ईमान लाए और रोते हुए सज्दे में गिर पड़े।(अल–माइदा 83)।
इस आयत में ईमान को मअरिफ़त (बोध) कहा गया है। यानी सच को पहचान लेना।
जिस चीज़ की पहचान हो‚ उसी के लिहाज़ से आदमी के अन्दर भाव पैदा होते हैं। ख़ुदा चूंकि सबसे बड़ी ताक़त है इसलिए ख़ुदा की पहचान से आदमी के अन्दर विनम्रता और छोटेपन का भाव पैदा होता है। इसलिए नजरान के लोगों में जब ख़ुदा की मअरिफ़त (बोध) पैदा हुई‚ जब उन पर ख़ुदा की अज़्मत और बड़ाई खुल गई तो उनका सीना फट गया। उनकी आँखों से आंसू बहने लगे और वे बेइख्तियार होकर सज्दे में गिर पड़े।
इसी तरह सहीह मुस्लिम में एक रिवायत है‚ जो हज़रत उस्मान बिन अफ़्फ़ान के वास्ते से नक्ल़ हुई है। वह कहते हैं कि रसूलुल्लाह मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया—“जो शख्स़ इस हाल में मरा कि वह जानता था कि अल्लाह के सिवा कोई इलाह नहीं वह जन्नत में दाख़िल होगा।”
इस हदीस में ईमान को इल्म कहा गया है. यानी जानना‚ आगाह होना। इससे मालूम होता है कि ईमान जानने का एक वाक़िआ है। वह एक चेतनामय खोज है।
हक़ीक़त यह है कि ईमान उसी क़िस्म का एक गहरा तजुर्बा है‚ जिसको मौजूदा ज़माने में डिस्कवरी कहते हैं।
ईमान एक डिस्कवरी है।
ईमान एक ऐसी हस्ती की मौजूदगी को पा लेना है‚ जो ज़ाहिरी तौर पर हमारे सामने मौजूद नहीं। ईमान उस गहरे ‘बोध’ का नाम है‚ जबकि आदमी के लिए परोक्ष का पर्दा फट जाता है और वह ख़ुदा को न देखते हुए भी उसे देखने लगता है।
ईमान बन्दे और ख़ुदा के बीच उस सिलसिले का क़ायम होना है‚ जिसकी एक भौतिक मिसाल बल्ब और पावर हाऊस के सिलसिले के रूप में दिखाई देती है। बल्ब का ताल्लुक़ जब पावर हाऊस से क़ायम होता है तो वह अचानक चमक उठता है। वह‚ वह हो जाता है जो वह पहले नहीं था। उसका अंधेरा‚ उजाले में तब्दील हो जाता है। उसी तरह एक बन्दा जब अपने रब को सच्चे मानों में पाता है तो उसकी हस्ती ख़ुदा के नूर से जगमगा उठती है। उसके अन्दर ऐसी खूबियां पैदा होती है जो उसको कहीं से कहीं पंहुचा देती है।
सहाबियों के लिए ईमान का मतलब यही था। सहाबियों का ईमान उनके लिए एक ज़िन्दगी से निकल कर दूसरी ज़िन्दगी में दाख़िल होना था।
परम्परा या अनुकरण वाला ईमान आदमी को अन्दर से नहीं हिलाता‚ उसे बदलता नहीं है‚ जबकि ‘मअरिफ़त’ (बोध) वाला ईमान आदमी को हमेशा–हमेशा के लिए हिला देता है‚ उसे बदल देता है।
अनुकरण वाले ईमान से आदमी के अन्दर कोई अपनी निगाह पैदा नहीं होती‚ जबकि ‘मअरिफ़त’ वाला ईमान आदमी के अन्दर अपनी निगाह पैदा कर देती है‚ जिससे वह चीज़ों को देखे और अपने आंतरिक बोध और अपनी निगाह से फ़ैसला कर सके।
अनुकरण वाले ईमान से सिर्फ़ जड़ और बेजान अक़ीदा पैदा होता है। जबकि ‘मअरिफ़त’ वाला ईमान आदमी के अन्दर इन्क़िलाब बन कर दाख़िल होता है। वह आदमी की सोच और अमल की दुनिया में एक तूफ़ान‚ एक खलबली पैदा कर देता है।
अनुकरण वाले ईमान से बेजान लोग पैदा होते हैं‚ जबकि ‘मअरिफ़त’ वाले ईमान से जानदार लोग जन्म लेते हैं और जानदार लोग ही वे लोग हैं जो इतिहास बनाते हैं‚ जो इन्सानियत के लिए कोई नया भविष्य बनाते हैं।
अनुकरण वाला ईमान आदमी को अपनी क़ौम से मिलता है और ‘मअरिफ़त’ (बोध) वाला ईमान सीधे अल्लाह से।
ईमान से जानदार लोग जन्म लेते हैं और जानदार लोग ही वे लोग हैं जो इतिहास बनाते हैं‚ जो इन्सानियत के लिए कोई नया भविष्य बनाते हैं। ईमान आदमी के अन्दर अपनी निगाह पैदा कर देती है‚ जिससे वह चीज़ों को देखे और अपने आंतरिक बोध और अपनी निगाह से फ़ैसला कर सके।
ईमान की इस खूबियों से में 100% सहमत हूँ. और आपको इस दुनिया मे नेंसन मंडेला, महात्मा गाँधी, राजा राम मोहन रॉय, ज्योतिराव फूले, अम्बेडकर जैसे अनेको लोग मिलेंगे, जिन्होने अपनी सोच, कर्म और विचारो से दुनिया के सामने मिसाल बने. विडंबना यह है कि लोगो मे दूरियाँ पैदा करने वाले लोग, ऐसी हस्तियों को भी मुसलमान मानने से इंकार कर, इन्हे महापापी घोषित कर देते हैं, जिन्हे इनके ईमान की कमी की वजह से ही अनन्त काल तक, दुर्दांत अपराधियों से भी बदतर यातनाये दी जायेगी.
और ऐसे स्व-घोषित आलिम, अपनी इस घिनौनी विचारधारा को पैगंबर मुहम्मद साहब से प्रेरित बतलाते हैं. इसी वजह से एक टिप्पणी मे मैने लिखा कि पैगंबर मुहम्मद साहब के लिये, अनेको लोगो ने इस गलत इस्लाम की व्याख्या से नकारत्मक राय बनाई है. ऐसेी सुरत मे बजाय् इन लोगो से विवाद बढाने के, पैगम्बर मुहम्मद साहब के हवाले से इस्लाम केी गलत व्याख्या वाले लोगो के प्रति हमे जागरुक होने केी जरुरत है. जिस दिन शैतान के प्रभाव मे आये, इन लोगो या इनकेी सोच से हम मुक्त हो जायेन्गे, सकरात्मक् बुद्धिजिवेी वर्ग मे मुहम्मद साहब, सबसे लोकप्रिय व्यक्तित्वो मे एक होन्गे. जैसे गान्धेी के साथ है.
इस्लाम केी नकारत्मक सोच के लिये इस्लाम केी गलत व्याख्या करने वालो केी आलोचना करने वालो को हतोत्साहित नहेी प्रोत्साहित किये जाने केी जरुरत है.
Brother Zakir hussain जी का ये कथन कि ईमान से जानदार लोग जन्म लेते हैं और जानदार लोग ही वे लोग हैं जो इतिहास बनाते हैं‚ जो इन्सानियत के लिए कोई नया भविष्य बनाते हैं। ईमान आदमी के अन्दर अपनी निगाह पैदा कर देती है‚ जिससे वह चीज़ों को देखे और अपने आंतरिक बोध और अपनी निगाह से फ़ैसला कर सके।
जवाब :::::
मेरे द्वारा इस्लामिक ईमान किस्म व परिभाषा ऊपर कमेंट में की है इसलिए यहाँ उसको दुबारा नहीं कहुगा आप किस ईमान की बात कर रहे आप ही जानते है
Brother Zakir hussain जी का ये कथन कि इस दुनिया मे नेंसन मंडेला, महात्मा गाँधी, राजा राम मोहन रॉय, ज्योतिराव फूले, अम्बेडकर जैसे अनेको लोग मिलेंगे, जिन्होने अपनी सोच, कर्म और विचारो से दुनिया के सामने मिसाल बने. विडंबना यह है कि लोगो मे दूरियाँ पैदा करने वाले लोग, ऐसी हस्तियों को भी मुसलमान मानने से इंकार कर, इन्हे महापापी घोषित कर देते हैं, जिन्हे इनके ईमान की कमी की वजह से ही अनन्त काल तक, दुर्दांत अपराधियों से भी बदतर यातनाये दी जायेगी.
जवाब :::::
उपरोक्त वर्णित व्यक्ति (जिनका नाम Brother Zakir hussain जी द्वारा लिखा गया है ) को Brother Zakir hussain जी 100% सही मान रहे है तो आप के विचार हो सकते क्योकि यह दुनिया इम्तिहान की जगह है इसलिए अखिरी फैसला या Result छुपा लिया गया है और फैसला गैब में रखना यह अल्लाह का कानून है जो इंसान के लिए बहुत बेहतर है इसलिए मै उपरोक्त लोगो को 50% सही और 50% गलत कहुगा और उन्हें कुरआन और सहीह हदीस कसौटी पर परख कर ही कुछ कहुगा. और यहाँ एक बात स्पष्ट कर देना चाहता हू कि
अल्लाह तआला कर्मो को तीन शर्तो के साथ ग्रहण (कबूल ) करता है
1. अल्लाह को एक मानना और उसके साथ किसी को शरीक (साझी ) न बनाना
2. सच्ची निष्ठा और इख्लास से अमल करना
3. अल्लाह और रसूल के तरीके पर कर्म करना
50% सही, 50% ग़लत, ये किसने निर्धारित किया. और फिर जब ईश्वर को ही निर्धारित करना है, और हम कुछ नही जानते, तो फिर बहस ही क्यूँ हो.
इंसानो मे अनेको खामियाँ हो सकती है. जिंदगी इम्तिहान है, इससे हम इनकार नही कर रहे. लेकिन किसी एक कमी की वजह से सदाचारी व्यक्ति को निर्दयता से अनंत काल तक आग मे जलाए जाने, तड़पाने की बात अगर इस्लाम की किसी व्याख्या मे कही जाएगी, तो बुद्धिजीवी और न्याय-प्रिय व्यक्ति, इस्लाम के प्रति नकारात्मक राय रखेगा ही.
मैने इसी बात पे ज़ोर दिया है कि बुद्धिजीवी और संवेदनशील वर्ग मे भी अगर इस्लाम की नकारात्मक छवि बनी है तो इसका क्या कारण है. अगर दिलो के भेद, सिर्फ़ ईश्वर को पता है तो फिर लोगो को ईमान के आधार पे मोमिन, मुनाफिक, मुसलमान, काफ़िर आदि लेबल लगाने से भी हमे बचना चाहिए. फिर बात नैतिक मूल्यों और भाईचारे की ही जाए, दुनिया को इस तरह दो शरीफ और पापी भागो मे विभाजित करना, निंदनीय ही है.
आप कितनी भी धार्मिक किताबो की दलील दे दें. ये किताबे मैने भी पढ़ी है. दुनिया मे कलमा पढ़ कर, अपनी शैतानी हरकतों को मज़हब की आड़ मे सही सिद्ध करने वाले भी दुनिया मे छाए हुए है, इसलिए कलेश पैदा करने वाली हर विचारधारा को मैं शैतान से प्रेरित मानता हूँ.
Brother Zakir hussain जी के कथन कि “”दुनिया मे कलमा पढ़ कर, अपनी शैतानी हरकतों को मज़हब की आड़ मे सही सिद्ध करने वाले भी दुनिया मे छाए हुए है, इसलिए कलेश पैदा करने वाली हर विचारधारा को मैं शैतान से प्रेरित मानता हूँ.””
जवाब………………………………
उपरोक्त के सम्बन्ध में मेरा ये विचार है कि थोड़ा इल्म और ग़लत इल्म से इंसान का दिमाग़ के साथ किरदार भी खराब हो जाता है सही इल्म इंसान को बुलन्दियों पर ले जाता है वही ग़लत इल्म जमाने मे ठोकरे खिलवाता है !
अक्सर ऐसे लोग हे जो गलत इल्म और अपने बदअमल की वजह से जमाने में रुसवा हुए अपनी नाकामी को छुपाने के लिए इस्लाम को बदनाम करने का नारा लगा देते है !
फिर क्या सारे या फिर एक भेी तथाकथित (मतलब आपकेी परिभाशा का) मुसलमान १००% सहेी है? अगर महात्मा गान्धेी, जैसे इन्सान निर्दयेी तरेीके से सताये जायेन्गे, या इनके जन्नतेी होने मे सन्देह है, तो फिर दुनिया का लगभग हर इन्सान जन्नत से महरुम रहने वाला है. और यहेी इस्लाम केी सहेी व्याख्या है, तो मै मुसलमान नहेी. ईश्वर को लेके मै भेी थोडा अनिश्चय मे जरुर हु, लेकिन उसके इतना क्रुर होने कि रत्तेी भर सम्भावना मे भेी मेरा यकेीन नहेी.
आप ईश्वर के निर्दयेी और वहशेी होने मे यकेीन रखिये, और मै ईश्वर केी न्याय्-प्रियता मे. ना आप मेरे विचार बदल पायेन्गे, इस जेीवन मे ना मै आपके.
अल्लाह ने ये दुनिया इम्तेहान के सिद्धांत पर बनाई है और इंसान एवं जिन्न को कर्म करने की स्वतन्त्रता दी गयी है। चाहे वो अच्छा कर्म करे या बुरा। चूंकि शैतान (सरकश जिन्न) को भी ये स्वतन्त्रता प्राप्त है इसलिए उसे इस दुनिया मे उसके कर्म करने से नहीं रोका जा रहा है। आखिरत यानि परलोक मे इंसान की तरह जिन्न का भी अपने इन कर्मो का पूरा सवाल जवाब होगा यह सिर्फ और सिर्फ एक मोहलत हैं यानि परीक्षा के लिए दिया गया समय।
इस बात को कुरआन मजीद ने कुछ इस तरह बयान किया है :
यदि अल्लाह लोगों को उनके अत्याचार पर पकड़ने ही लग जाता तो धरती पर किसी जीवधारी को न छोड़ता, किन्तु वह उन्हें एक निश्चित समय तक टाले जाता है। फिर जब उनका नियत समय आ जाता है तो वे न तो एक घड़ी पीछे हट सकते है और न आगे बढ़ सकते है . [कुरआन मजीद 16:61]
इस्लाम क्या है?
अल्लाह के लिए सिर झुका देना, उसका अनुसरण करना और बहुदेववाद (शिर्क) से दूर रहना इस्लाम कहलाता है. इस्लाम अरबी भाषा का शब्द है और इसका शाब्दिक अर्थ होता है “शान्ति”, इसका एक अर्थ “आत्मसमर्पण” भी होता है.
जन्नत पवित्र आत्मा के लिए
क़ुरआन की सूरह ताहा में, जन्नत के बारे में बताया गया है कि – जन्नत उस इंसान के लिए है जो अपना तज़्किया (आत्म शुद्धि) करे.
Paradise is for one who purifies himself.
क़ुरआन की इस आयत के मुताबिक़, जन्नत सिर्फ़ उस इंसान के लिए है जो मौजूदा दुनिया में अपना तज़्किया (आत्म शुद्धि) करे और एक पवित्र आत्मा वाले व्यक्तित्व के रूप में आख़िरत की दुनिया में पँहुचे.
यह सच्चाई क़ुरआन की कई अलग-अलग आयतों में बिल्कुल साफ़ तौर पर बयान की गई है. जन्नत में दाख़िले का फ़ैसला एक-एक इंसानों के अपने-अपने विशेषताओं के आधार पर किया जाएगा, न कि गिरोही सम्बन्ध के आधार पर.
जन्नत उस इंसान के लिए है जो अपने आप को पाक (पवित्र) करे. पाक करना यह है कि आदमी बेपरवाही और जिज्ञासा-शून्येता की ज़िन्दगी को छोड़ दे और अपनी अंतरात्मा की आवाज को सुने और अच्छे-बुरे की समझ वाली ज़िन्दगी को अपनाए, वह अपने आप को उन चीज़ों से बचाए जो सच्चाई से रोकने वाली है, और स्वार्थ जब रुकावट बन कर सामने आए तो वह उसको नज़रअंदाज़ (ignor) कर दे,
मन में लोभ और लालच उभरे तो वह उसे कुचल दे, ज़ुल्म और घमंड का मिज़ाज और मनोविकार जागे तो वह उसको अपने अन्दर ही अन्दर दफ़न कर दे , वग़ैरह.
तज़्किया का मतलब है – किसी चीज़ को प्रतिकूल तत्वों से शुद्ध कर देना, ताकि वह अनुकूल और मददगार माहौल में अपनी स्वाभाविक उत्कृष्टता (सर्वश्रेष्ठता) तक पहुँच सके. यह (तज़्किया) पैग़म्बरों को करने के लिए दिया गया एक बहुत महत्वपूर्ण काम था. पैग़म्बर की आख़िरी कोशिश यह होती है कि ऐसे इंसान तैयार हों जिनके मन, अल्लाह की मोहब्बत के सिवा हर मोहब्बत से ख़ाली हो, ऐसी रूहें अस्तित्व में आए जो मानसिक असरलता और जटिलताओं से आज़ाद हों, ऐसे इंसान पैदा हों जो कायनात से वह रब्बानी (ईश्वरीय) सहारा पा सके जो अल्लाह ने अपने मोमिन (ईश्वर-भक्त) बन्दों के लिए रख दिया है.
जन्नत का मामला मन की पवित्रता (तज़्किया) से जुड़ा हुआ है. तज़्किया ही जन्नत में दाख़िले की एकमात्र शर्त है. तज़्किया(आत्म शुद्धि) के बग़ैर हरगिज़ किसी इंसान को जन्नत में दाखिला मिलने वाला नहीं.
Brother Zakir hussain जी मेरा भी मानना है की बहुत से गैर मुस्लिम अच्छे काम करते है मगर मेरी ये सोच नहीं है की जो काम (अमल) जायदा लोग करते है वो हमेशा सही होता है, यह गलत सोच है सही काम को जायदा लोग न करे तो वह गलत नहीं हो जाता, गलत काम को जायदा लोग करे तो वह सही नहीं बन जाता अगर जायदा लोगो के कामो को कसौटी मान लिया जाय तो दुनिया में जायदातर लोग जाहिल होते है और शिर्क करते है और गुनाहगार गरीब और बीमार और बिदअती होते है तो क्या इन चीजो की ज्यादती की वजह से सही मान लिया जाय?
इस्लाम के पास सृष्टि के संबंध में अपना एक दृष्टिकोण है, अच्छाई और बुराई के अपने पैमाने हैं। नैतिकता के ज्ञान के अपने स्रोत हैं, अपनी क्रियान्वयन शक्ति है और वह अपना प्रेरक बल अलग रखता है। उन्हीं की सहायता से इस्लाम परिचित मान्य नैतिक सिद्धांतों को अपने मूल्यों के अनुसार व्यवस्थित करके जीवन के सभी क्षेत्रों में लागू करता है। इसी आधार पर यह कहना बिल्कुल सही है कि इस्लाम अपनी एक पूर्ण एवं स्थायी नैतिक व्यवस्था रखता है। इस व्यवस्था की विशेषताएँ वैसे तो बहुत हैं मगर उनमें से तीन बहुत महत्वपूर्ण हैं जिन्हें उसका महत्वपूर्ण योगदान कहा जा सकता है।
मैने ये नही कहा कि ज्यादातर लोग करते हैं, इसलिये कोई काम सही है. मेरे कहने का तात्पर्य यह है कि अच्छे काम और नैतिक मूल्य सभी समुदायो मे है. चलिये व्यक्ति के स्तर पे मैं इसे समझाने की कोशिश करता हूँ. इस्लामी मूल्यों मे माता-पिता की इज्जत करना, मजदूरों को उनके मेहनत की कमाई समय पे देना, शराब नही पीना, लोगो से मधुरता से पेश आना आदि बहुत सी बाते हैं. तो जो भी व्यक्ति इस प्रकार का आचरण करे, उसे हमे उस स्तर तक तो मुसलमान मानना ही चाहिये, जहां तक वो सदाचार कर रहा है. इसी प्रकार जैसे कि हम इस्लाम का अर्थ शान्ति और अमन बताते हैं, तो जहां जहां हमे शान्ती और अमन दिखाई दे, वहां इस्लामी मूल्यो का विस्तार स्वीकारना चाहिये. लेकिन कुछ स्व-घोषित आलिम, इस बात को नकारते हैं, और जहां कहीं भी उन्हे अच्छाई नजर आती है, उसे इस्लाम से या प्रत्येक सदाचारी व्यक्ति को मुसलमान मानने से नकारते हैं. ऐसे लोग, या ये कहिये उनकी इस्लाम की परिभाषा, अमन और शान्ती तक सीमित नही है, और वो समाज मे क्लेश को बढ़ावा दे रही है. हमे ध्यान रखना चाहिये कि शैतान भेी समाज मे नफरत पैदा करने के लिये मजहब और ईमान केी दुहाई देता है.
Brother Zakir hussain जी के उपरोक्त कमेन्ट का सीधे सीधे कहना चाहता हू
हम ईमान वैसे लाए जैसे सहाब -ए -कराम लाए
1. पस अगर वे उस तरह ईमान लाये जिस तरह तुम लाए हो तो वे हिदायत पर होंगे और अगर वे मुँह फेरे तो (समझ लो कि ) वे मुखालिफत में पड़ गए अत: उनके मुकाबले में अल्लाह तुम्हारे लिए काफी होगा वह सब कुछ सुनने वाला जानने वाला है (सूर: बकर: (2:137)
2. और जो शख्स सीधा रास्ता मालूम होने के बाद पैगम्बर की मुखालिफत करे और मोमिनो के रास्ते के सिवा और रास्ते पर चले तो जिधर वह चलता है हम उसे उधर ही चलने देते है और (कियामत के दिन ) जहन्नम में दाखिल करेगे और वह बुरी जगह है (सूर: निसा 4:115)
मोमिन से मुराद सहाब -ए -कराम है जो पैरोकार और कामिल नमूना थे और इस आयत के नुजूल के वक्त उनके सिवा कोई गिरोह मोमिनो का मौजूद नहीं था जो मुराद हो
पहली विशेषता यह है कि वह ईश-प्रसन्नता को लक्ष्य बनाकर नैतिकता के लिए एक ऐसा उच्च मानदंड प्रस्तुत करता है, जिसके कारण नैतिक उत्थान की कोई अंतिम सीमा नहीं रहती। ज्ञान के एक स्रोत का निर्धारण करके नैतिकता को ऐसा स्थायित्व प्रदान करता है कि जिसमें उन्नति की तो संभावना है मगर अनावश्यक परिवर्तन की नहीं। ईशभय के द्वारा नैतिक नियतों के लागू करने के लिए वह बल देता है जो बाहरी दबाव के बग़ैर भी इन्सान से उसकी पाबन्दी कराता है। ईश्वर और परलोक पर विश्वास वह प्रेरक शक्ति प्रदान करता है जो इन्सान को स्वयमेव नैतिक नियमों का अनुसरण करने की चाहत और स्वीकृति पैदा करता है।
दूसरी विशेषता यह है कि इस्लाम अनावश्यक उर्वरता से काम लेकर कुछ निराली नैतिकता को प्रस्तुत नहीं करता और न मानव के प्रमुख नैतिक सिद्धांतों में से कुछ को घटाने-बढ़ाने का प्रयास करता है। वह उन्हीं नैतिक उसूलों को लेता है जो जाने-पहचाने हैं और उनमें से कुछ को नहीं बल्कि सबको लेता है। फिर जीवन में पूर्ण संतुलन के साथ प्रत्येक की स्थिति, स्थान और उपयोग तय करता है और उन्हें इतने व्यापक रूप से लागू करता है कि व्यक्तिगत आचरण, पारिवारिक जीवन, सामाजिक जीवन, राजनीति, कारोबार, बाज़ार, शिक्षण संस्था, न्यायालय, पुलिस लाइन, छावनी, रणक्षेत्रा, समझौता कांफ्रेंस अर्थात् जीवन का कोई भाग नैतिकता के व्यापक प्रभाव-क्षेत्र से बच नहीं पाता। हर जगह और जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में वह नैतिकता को शासक बनाता है और उसका प्रयास यह है कि जीवन के मामलों की लगाम इच्छाओं, स्वार्थों और परिस्थितियों के बजाय नैतिकता के हाथ में हो।
तीसरी विशेषता यह है कि वह (इस्लाम) इन्सानियत से एक ऐसी जीवन-व्यवस्था की मांग करता है जो अच्छाई पर आधारित हो और बुराई से पाक हो। उसका आह्नान यही है कि जिन भलाइयों को मानवता के स्वभाव ने सदा भला जाना है आओ उन्हें स्थापित करें और फैलाएँ तथा जिन बुराइयों को मानवता सदा बुरा समझती रही है, आओ, उन्हें दबाएँ और मिटाएँ। इस आह्नान को जिन्होंने स्वीकार किया उन्हें इकट्ठा करके इस्लाम ने एक उम्मत (समुदाय) बनाई जिसका नाम मुस्लिम था, जिसका एकमात्र उद्देश्य यही था कि वह ‘भलाई’ को जारी करे और ‘बुराई’ को दबाने और मिटाने के लिए संगठित प्रयास करे।
ईश्वर और परलोक के भय का उद्देश्य, समाज मे नैतिक मूल्यो की स्थापना है. अगर इन नैतिक मूल्यों का जितना विस्तार हमे, समाज मे मिले, उतने इस्लाम का प्रसार या जिस व्यक्ति मे ये नैतिक मूल्य जिस मात्रा मे मिले, उतना मुसलमान तो हमे उसे मानना ही होगा. ये अलग बात है कि ऐसा करने से समाज को मुसलमान और पापी इन दो वर्गों मे बेहद बेवकूफाना तरीके से बांट कर, कलेश पैदा करने वालो के जीवन मे एक अजीब प्रकार का सूनापन आ जायेगा.
ऐसी सूरत मे इस्लाम केी हिफाजत और असुरक्षा जैसी अवधारणाये भी मिट जायेगी. क्यूंकि बुद्धिजीवी और शान्तिप्रिय समुदाय, सिर्फ इंसानो मे दूरी बढाने वाली इस्लाम की परिभाषा को ही समाज के लिये हानिकारक मानकर चुनौती देता है. इस्लाम की सही व्याख्या, समाज मे शान्ती की कामना करने वाले वर्ग मे टकराव को टाल कर विन / विन स्थिति की राह दिखाता है. शैतान इसमे व्यवधान उत्पन्न करता है, हमे उसे पहचानने की जरूरत है.
दूसरी विशेषता यह है कि इस्लाम अनावश्यक उर्वरता से काम लेकर कुछ निराली नैतिकता को प्रस्तुत नहीं करता और न मानव के प्रमुख नैतिक सिद्धांतों में से कुछ को घटाने-बढ़ाने का प्रयास करता है। वह उन्हीं नैतिक उसूलों को लेता है जो जाने-पहचाने हैं और उनमें से कुछ को नहीं बल्कि सबको लेता है। फिर जीवन में पूर्ण संतुलन के साथ प्रत्येक की स्थिति, स्थान और उपयोग तय करता है और उन्हें इतने व्यापक रूप से लागू करता है कि व्यक्तिगत आचरण, पारिवारिक जीवन, सामाजिक जीवन, राजनीति, कारोबार, बाज़ार, शिक्षण संस्था, न्यायालय, पुलिस लाइन, छावनी, रणक्षेत्रा, समझौता कांफ्रेंस अर्थात् जीवन का कोई भाग नैतिकता के व्यापक प्रभाव-क्षेत्र से बच नहीं पाता। हर जगह और जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में वह नैतिकता को शासक बनाता है और उसका प्रयास यह है कि जीवन के मामलों की लगाम इच्छाओं, स्वार्थों और परिस्थितियों के बजाय नैतिकता के हाथ में हो।
हम भी तो यही कह रहे हैं. नैतिक उत्थान की कोई सीमा नही है. इसी वजह से मैने लिखा कि कोई भी स्थिति या व्यक्ति आदर्श स्थिति मे नही है, सुधार की गुंजाइश हर जगह है. और समाज के हर क्षेत्र मे आपसी सहयोग और सुधार की बात मैने उम्मा से जुड़ी इसी लेख मे एक टिप्पणी मे लिखी. क्या हम बेवजह उलझ रहे हैं?
Brother Zakir hussain जी आपके मन में सही व सटीक सवाल क्या गैर मुस्लिम और दुसरे धर्म के लोगो को नेक कर्मो का फल मिलेगा?( लेकिन आप द्वारा अभी तक पूछा नहीं है फिर लेकिन जवाब देना दिया जा रहा वो भी इस्लामिक नजरिये से)
जवाब
इस्लाम में 4 शर्त है अमल (कर्म ) कबूल (accept) होने की
1. एक अल्लाह (ईश्वर) पर ईमान व हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को अंतिम पैगम्बर मानना
2 कुरआन के हुक्म के मुताबिक और हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के तरीके के मुताबिक हो
3. सच्चे इख्लास (निष्ठा से ) सिर्फ अल्लाह (ईश्वर) को राजी करने के लिए कर्म करना न अहसान जतलाना और न घमंडी बनना
4. रोजी रोटी किसी हराम कमाई (झूठ बोलकर, शराब बेचकर सूद की कमाई इत्यादि) से न हो खून पसीने की कमाई से लोगो की मदद करना.
अगर ये ऊपर की शर्त किसी भी इन्सान चाहे वो मुसलमान हो या गैर मुस्लिम (हिन्दू ईसाईं, यहूदी, सिख आदि) कोई भी ऊपर दी गई शर्तो के मुताबिक कर्म नहीं करेगा तो अल्लाह (ईश्वर) उनके कर्मो का कोई फल नहीं देगा और यह लोग नुकसान उठाने वाले होगे
कुछ गैर मुस्लिम गरीब को दान देते है और भूकंप या सैलाब से पीड़ीत लोगो की मदद करते है, अस्पताल स्कूल खोलते है उनका फल उन्हें दुनिया ही में दे दिया जायेगा और अगर वह घमंडी और अहसान जताने वाला है और मूर्ति पूजक नास्तिक है तो ऐसे लोगो को अल्लाह सीधा रास्ता नहीं दिखाता और ऐसे लोगो के अच्छे कर्मो का हिसाब दुनिया ही में ठोक बजा कर पाई पाई चुकता कर देता है उनको मालदार बना देगा या उनके मन के इच्छाओ को पूरा कर देगा
इश्वर के साथ किसी अन्य { मुहमम्द जी को मानना जरुरी क्यों रहे
इश्वर के पास नाराजगी या ख़ुशी का अवगुण गुण नहीं होता है
यह जिव के गुण होते है
मैने कभी यह सवाल नही पूछा, क्यूंकि मुझे पूर्ण विश्वास है कि सदाचारी लोग, आखिरत मे कामयाब होंगे. अब बात पैगंबर मुहम्मद साहब की एक बार फिर. इनके जीवन को पढ कर उनकी प्रशंसा करने वाले लोगो मे महात्मा गाँधी, एनी बेसेन्ट, सरोजनी नायडू जैसे अनेक गैर-मुस्लिम (आपकी परिभाषा से) हैं. लेकिन उन्होने कलमा नही पढ़ा. महात्मा गाँधी ने अपने जीवन मे समाज के वंचित और शोषित वर्ग को उसके हक दिलाने के लिये कितने प्रयास किये, वो एक मिसाल है. अब आपकी परिभाषा से तो ऐसे महान व्यक्ति को जन्न्त नही, जहन्नुम की आग मे जलना होगा, क्यूंकि उन्होने तो क़ुरान का भी अध्ययन किया है, यानि उन तक आपकी परिभाषा वाले इस्लाम का पैगाम भी पहुंच गया है. इंडोनेशिया की एक सभा मे, विश्व-प्रसिद्द विद्वान जाकिर नायक ने गाँधी और टेरेसा के लिये साफ किया कि ये जन्नत मे नहेी जायेन्गे, क्युन्कि आपने जो शर्ते बताई, ये लोग उसको पुरा नहेी करते. और चुन्कि मौत के बाद् सिर्फ जन्नत और दोजख सिर्फ दो हेी विकल्प है वो दोजख केी आग मे जलेन्गे.
इसेी वजह से मैने कहा कि इस्लाम केी गलत व्याख्या, भले हेी इस्लाम को शान्ति का मजहब बतला कर् केी जा रहेी हो, वो समाज मे नफरत और गलत्-फहमिया मे ईजाफा कर रहेी है, और शैतान अपना काम् ईश्वर का हवाला देके भेी करता है. शैतान को समजने केी जरुरत है, वो सर पे सेीन्ग लगा के आपके सामने नहेी आयेगा.
Janab Aslan bhai, no doubt aapne kafi gahri study Ki hai. Allah aap ke ilam me barkar de aur sirate mustaqim pe chalaye. Bhai main aapke vichar janna chah raha Hu, lekh me jis student ka jikr kiya Gaya hai use is halat me kya karna chahiye jaha use collage is shart pe aane Diya jayega Ki wo dari na rakhe.
Brother Abrar Ahmad जी बुराई दाढ़ी में नहीं मानसिकता में है और एक सम्बन्ध में एक लेख http://www.kohraam.com पर छपा है उसको पड़ने के बाद आप भी निष्पक्ष रूप से यही कहेगे की पीडित पक्ष को न्याय मिलना चाहिए मै लिंक दे रहा हु http://www.kohraam.com/readers-opinion/evil-is-not-in-beard-but-in-your-mentality-87345.html
और आप के सवाल के जवाब में मेरी ये राय है कि पीडित छात्र ने जो कदम उठाय वो सही है मै उस लेख के कुछ अंश निचे कमेंट बॉक्स में रखुगा इसलिए क्योकि कुछ लोग कट्टरपंथ के नाम पर खुलकर कट्टरता फैला रहे है और उपरोक्त विषयांकित लेख उनके कार्यो की स्वीकारोक्ति है
I regret for disturbing in middle of debate. If it is disturbing.You may please answer after complete it.
इस लेख के विषय पे भी मेरे कुछ विचार है. दाढ़ी रखना, या हेयर स्टाइल व्यक्ति की निजी पसंद है, और इससे किसी को क्या आपत्ति होनी चाहिए, लेकिन दाढ़ी के इस्लाम से जुड़े होने की दलील से थोड़ी चिंता होती है. उसका कारण है कि इस्लाम की प्रचलित परिभाषा मे, हर इंसान को ईश्वर के एक और निराकार स्वरूप मे आस्था, मुहम्मद साहब को अंतिम पैगंबर मानना और उनके बताए रास्ते पे चलना है. इसको सुन्नत और शिक्षाओ को दीन कहा जाता है.
अब प्रश्न आता है, कि उनके अनुसरण को किन बिंदुओं तक अपनाने को एक धार्मिक मूल्य माना जाए? जैसे कि एक दायरा, अखलाख यानी संस्कारो और मूल्यो का है. मेहमान से कैसे पेश आए, अपने मुलाज़िमो से कैसा व्यवहार करे, अपने रिश्तेदारो, बच्चो, वालिदान के प्रति हमारी क्या ज़िम्मेदारी और फर्ज़ है, सादगी से जीवन व्यतीत करना वग़ैरह वग़ैरह.
लेकिन इसके बाद क्या, हम वो कैसे सोते थे, उठते थे, बैठते थे. खाने मे क्या खाना पसंद करते थे, क्या नापसंद करते थे, हाथ कैसे धोते थे, मूँछे कितनी रखते थे या नही रखते थे. दाढ़ी कितनी बड़ी रखते थे, जैसे गैर-ज़रूरी विषयो को भी आवश्यक जीवन मूल्यो की तरह अपनाने लगेंगे तो ये सनकपन चिंताजनक है. क्यूंकी फिर इसकी सीमा क्या हो.
फिर तो मुहम्मद साहब किसी स्कूल मे नही गये. उनको तो लिखना भी नही आता था. वो ना एक खिलाड़ी थे, ना फ़नकार, ना साइनसदान, ना सहाफी वग़ैरह वग़ैरह.
अनुसरण विचारो का ही होना चाहिए. व्यक्तिगत स्तर की पसंद-नापसंद को धर्म से जोड़कर, हम समुदाय की उन्नति का रास्ता रोकेंगे, और वो ऐसे विचारो की वजह से ही रुका हुआ है.
मैं जब तथाकथित मुस्लिम आबादी का विभिन्न क्षेत्रो मे प्रतिनिधित्व पे गौर करता हूँ, तो पता लगता है, हम आख़िरी पायदान पे खड़े हैं. असलम साहब, ईमान से इतिहास बदलने की बात करते हैं, तो क्या इतिहास बदलने वाली क़ौम की ये हालत होती है.
उन्होने बल्ब की बात एक जगह लिखी. इस बल्ब की खोज, एडीसन ने की थी. जिसकी वजह से आज पूरी दुनिया रोशन है. क्या इसने इतिहास नही बदला?
दाढ़ी को दीन से जोड़ने वाली साईकी, समाज मे अजीब तरह का निकम्मापन फैला रही है. और निकम्मापन, समाज मे समस्याओ का अंबार लगाता जाता है, इस वजह से हम अपने भीतर भी अनेको विवादो और झगडो मे भी घिरते जा रहे हैं.
मेरा एक दोस्त हे डॉक्टर हे लाख रूपये महीना से भी ज़्यादा खींचता हे बचपन से माथे पे सज़दे का निशान हे आज भी हे पहले वो कुछ हल्का सा कम्युनल था हमारे साथ रहकर शुद्ध सेकुलर हुआ आज भी हे और हां सज़दे का निशान भी हे हमने ऐसा कुछ नहीं कहा , किया की वो निशान मिट जाता हम किसी के भी धार्मिक होने के खिलाफ नहीं हे हां मगर अगर अचानक वो दाढ़ी बढ़ा लेगा तो में जांच करूँगा की कही वो कट्टरपंथ की तरफ तो नहीं जा रहा हे ——— ? अगर जा रहा होगा तो मुझे पूरा यकीन हे की में उसकी काउंसलिंग करके उसे फिर से नार्मल कर दूंगा यही बात – सोच , हमें और लाखो मुसलमानो में पैदा कर देनी हे ऐसा होगा तो मुस्लिम कटरपंथ खत्म हो जाएगा मुस्लिम कट्टरपंथ खत्म होते ही हिन्दू कट्टरपंथ भी अपनी मौत मर जाएगा उसके बाद ही पाकिस्तान कश्मीर अयोध्या आदि आदि सभी समस्याए सुलझ जायेगी इसके बाद ही उपमहादीप के सौ करोड़ गरीब हिन्दू मुसलमानो आदि जनता को शोषण गरीबी अपमान से निकाल कर एक अच्छा जीवन मिलेगा ये हमारा ”शेखचिल्ली ” टाइप ही सही पर सपना हे
रौशनी खुद ब खुद नहीं हो जाती उसके लिए दिया जलाना पड़ता है |
Brother अफजल खान जी बार बार ये msg की “”Your comment is awaiting moderation.”” क्यों लिखकर आ जाते और कृपया इसे ठीक कराने का कष्ट करे
Brother अफजल खान जी मेरी समस्या कैसे दूर hogi
बुराई दाढ़ी में नहीं मानसिकता में है
छात्र मोहम्मद असद खान का आरोप है की कालेज प्रशासन की ओर से दाढ़ी रखने के जुर्म में उन्हें बार बार परेशान किया जा रह था उन्हें इस बात की भी चेतावनी दी गई की जब तक तुम दाढ़ी कटाकर नहीं आओगे तब तक कैम्पस में तुम्हे आने की इजाज़त नहीं दी जाएगी जब असद ने कालेज के इन बातो को नहीं सुना तो उसके बाद कह गया की दाढ़ी की वजह से तुम परीक्षा फार्म नहीं भर पाओगे, इसलिए तुम हमारा कालेज छोड़ दो असद का यह भी आरोप है की वो इस मामले को लेकर वो बड़वानी जिला कलेक्टर के पास गए कलेक्टर ने उन्हें sdm कार्यालय भेज दिया अब वो लगातार कई महीनो से sdm कार्यालय का चक्कर लगा रहा था कोई कुछ भी सुनने को तैयार नहीं है समाधान के नाम पर प्रशासन की तरफ से सिर्फ टाल मटोल किया जाता रहा है. 4 दिसम्बर को एक और आवेदन सौपा और इंसाफ की गुहार लगाई पर यहाँ से भी उन्हें निराश ही हाथ लगी
बुराई दाढ़ी में नहीं मानसिकता में है
मोहम्मद असद का मामला बिलकुल जुदा है वह न तो फिजिकल एजुकेशन का छात्र है और न ही भारतीय वायुसेना का हिस्सा है जिसे दाढ़ी रखने की इजाजत तक न मिल पाए इसे सिर्फ इत्तेफाक ही माना जायेगा की असद का मामला ऐसे समय में सुर्खियों में आया है जब भारतीय उच्च न्यायलय ने फैजान अंसारी की उस याचिका को ख़ारिज कर दिया था जिसमे उसने वायु सेना में दारी रखने को कहा था दरअसल भारतीय वायु सेना की अपनी पॉलिसी है गैर धार्मिक दिखने के लिए unifarm पहनने के दौरान न सिर्फ दाढ़ी रखने बल्कि तिलक, विभूति लगाने हाथ पर किसी तरह का कोई धागा बांधने और कान में किसी तरह का कोई कुंडल पहनने के लिए भी मनाही है सुप्रीम कोर्ट ने अपने निर्णय के दौरान भी इन सब नियमो का हवाला दिया था ये नियम आर्मी और नेवी दोनों के लिय ही IAF के नियमो के हिसाब से unifarm में किसी तरह का धार्मिक पूर्वाग्रह नहीं दिखाई देना चाहिए
बुराई दाढ़ी में नहीं मानसिकता में है
मध्य प्रदेश के बडवानी जिला के अरिहंत होमियोपैथिक मेडिकल कालेज के प्रोस्पेक्टस में भी क्या ऐसा कोई उल्लेख है जिसमे दाढ़ी रखने की मनाही हो? मेडिकल कालेज में पड़ने वाले छात्र वायु सेना के हिस्सा तो नहीं होते फिर असद को कालेज से क्यों निकाल दिया गया? क्या इसलिए की छात्र मोहम्मद असद है और दाढ़ी उसकी आस्था से जुडी है? किस छात्र को दाढ़ी रखनी है नहीं रखनी है नहीं रखनी है या उसका निजी मामला है और असद का मामला तो उसके धर्म से भी जुड़ा है फिर कालेज प्रशासन अपनी औझी मानसिकता क्यों दिखा रहा है ? जिस छात्र को दाढ़ी रखने की वजह से कालेज से निकाल दिया वह डाक्टर बनना चाहता था मालूम नहीं अब उसका डाक्टर बनने का सपना पूरा भी होगा अथवा नहीं मगर कालेज प्रशासन की मानसिकता जरुर उजागर हो गई की वह एक पूर्वाग्रह से ग्रस्त है कालेज में सरस्वती कइ मूर्ति होती हैं जिसकी पूजा भी होती है अध्यापक और दुसरे छात्र माथे पर तिलक लगाकर हाथो में कलावा बांधकर क्लास में आते है क्या इस किसी कालेज ने आपत्ति जाहिर की है? फिर असद की दाढ़ी से भला कौन सा बैर था? क्या दाढ़ी कोई चरित्र प्रमाण पत्र है? या इस बात का दाढ़ी रखने वाला छात्र आतंकी, कट्टरपंथी होगा? आखिर कालेज के मायने क्या है?
कालेज प्रशासन को समस्या दाढ़ी से है या दाढ़ी रखने वाले छात्र से? अगर समस्या दारी से ही है तो फिर प्रधानमत्री से लेकर साधू संतो की लम्बी लम्बी लटाओ और दाढ़ी से भी समस्या होनी चाहिए
अपने धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस देश में सबको दाढ़ी रखने बाल रखने इत्यादि की आज़ादी है और यदि कोई संस्थान इसे अपने ड्रेसकोड के विरुद्ध मानता है तो वह ऐसा ही नियम सबके लिए लागू करे और सबको इस ड्रेसकोड से इन्कार करने पर दंड दे। लेकिन यह सोचना भी मूर्खता ही होगा क्योंकि इस्लाम फोबिया के शिकार लोगों की नजरों में दाढ़ी नहीं खटकती है बल्कि दाढ़ी रखने वाले खटक रहे हैं।
ऐसे लोगों से मुखातिब होकर केवल एक ही बात कहनी चाहिए ,
हमारे सदियों की मोहब्बत का ये अंजाम दिया है,
तुम्हारी घटिया सोच ने दाढ़ी को बदनाम किया है,
बहस बड़ी दिलचस्प मोड़ पे पहुच गयी है। और बेहद महत्वपूर्ण भी। जोरदार प्रसंग छिड़ा है। जाकिर साहब कह रहे है की क्या इस्वर इतना क्रूर हो सकता ह की वो महत्मा गाँधी मदर टेरेसा भीमराव अम्बेडकर आदि जैसा सदाचारी लोगो को अनंत कल तक असहनीय पीड़ा देगा। वो ऐसे व्याख्या को इस्लाम की गलत व्यख्या बता रहे है। और अगर यही सही व्यख्या ह तो वो खुद को मुस्लमान नही मानते। पर सही व्याख्या क्या ये बी उन्हें बताना चाहिए। कुरान हदीस आदि का हवाला देकर। जिन बातो को वो आधर मन रहे है वो तो सहज मानवीय सवेदना है। जबकि असलम साहब उन्हें कुरान की सुरतो आदि पेश कर रहे है। अब जाकिर साहब को भी अपने पक्ष में कुछ ठोस साबुत पेश करने चाहिए।। हवा हवाई बातो से कुछ नही होगा।।
देर आये दुरुस्त आये।। हम भी तो यही कहते आये है की दुनिया में देश में तमाम कट्टर की तो जड़ मुस्लिम कट्टर पन्थ है। बाकि सभी कत्त्र्प्न्थ तो असु रक्षा की भावना से प्रेरित होकर खड़े हैं। इस्लामी कट्टर पन्थ तो वो बरगद है जिसके गिरते ही उसके नीचे दबकर बाकि सभी दम तोड़ देंगे। लेकिन हो क्या रहा है अपने देश में खासकर मौका मिलते ही तुरंत संघी बजरंगी का ही गला पकड़ लिया जाता है। उनके खिलाफ बोल देना ही सेकुलरिज्म का सर्टिफिकेट है। मुस्लिम क्त्त्र्प्न्थ पे तो कोई महान सेक्युलर मुह बी नही खोलता।। मुस्लिमकत्त्र्प्न्थ इतिहास भूगोल सब बदल देता ह सरकारों को घुटने के बल बैठा देता ह पार्टियो को तलवे चाटने को मजबूर क्र देता है हिन्दू क्त्त्र्प्न्थ अपने सबसे सुनहरे दौर में ही असहाय बिना दांत नाख़ून का शेर है चारो तरफ से घिरा है बानगी देखिये लव जिहाद के सरे मामले नही फिर भी कुछ मामले तो सच होंगे ही। जिस देश में 80 फीसदी आबादी हिन्दू हो और बताया जाता हो की हिन्दू क्त्त्र्प्न्थियो का कथित सरगना उनकी प्रेरणा सबसे ताकतवर कुर्सी पर बैठा हो उस समय 15 फीसदी के आबादी वाली कौम के क्त्त्र्प्न्थि लव जिहाद जैसी हरकत क्र ले रहे हो और विरोध करने पर संघी लोग को ही कटघरे में खड़ा होना पड जता हो। अब आबादी का प्रतिशत उल्टा करके देखिये तब क्या हाल होगा। किसी हिन्दू क्त्त्र्प्न्थि की आज के समय में भी इतनी हिम्मत नही है । अफवाह भी उड़ जाये तो कथित सेक्युलर उसे नोच खायेंगे। इसलिए मरे हुए को मारने बजाए उस पर प्रहार कीजिये जिसकी कट्टरता की चमड़ी मोती और मोती होती जा रही है।।
उपर का कमेंट सिकन्दर भाई के उस कमेंट का जवाब है जिसमे उन्होंने कहा था की मुस्लिम कट्टरपंथ के खत्म होते ही हिन्दू क्त्त्र्प्न्थ भी खुद बा खुद खत्म हो जाएग
लेकिन सिकन्दर साहब इसके उल्टा कभी नही होगा
कुल मिलाकर बृजेश भाई और असलम भाई का कहना हे की भाई है ” हम तो अपने अपने यहाँ के कट्टरपंथ को ना देखेंगे ना समझेंगे वजूद ही नहीं मानते हे ना उससे लड़ने की सरदर्दी मोल लेंगे मुश्किल काम हम नहीं करेंगे आसान काम करेंगे ” . यही नहीं ये ”दोनों ” ( व्यक्ति विशेष नहीं ) की एक खासियत ये भी हे की पूरा नेट , मिडिया छान मारो कितना ही ढूंढ लो ये लोग आपस में बहस नहीं करते हे कभी भी नहीं . इनसे बहस दोनों मोर्चो पर सिर्फ सेकुलर लिबरल्स को ही करनी पड़ती हे ये लोग कही भी आपस में बहस नहीं करते हे पिछले पांच सालो से मेने ही हज़ारो बहस हिन्दू मुस्लिम्स ”कटटरपन्तियो शिकायतियो साप्रदायिको सुप्रियॉरिटीवादीयो विक्टिमहुड़वड़ियो खतरे में हेवादियो जुल्म हो रहा हेवादियो ” से की होंगी वो भी लंबी लंबी . कभी ये नहीं देखा की ये ”दोनों ” आपस बहस कर रहे हो इसकी पीछे क्या साइकोलॉजी काम कर रही हे ———— ? क्या ये की दोनों एकदूसरे के अंदर से अहसानमंद हे———– ? दोनों खूब जानते हे की इन्हें असल खतरा एकदूसरे से नहीं हमसे हे —— ? ————— जारि
Brother सिकंदर हयात जी मैंने पहले भी ये बात कही है कि आप शब्दों के जादूगर है आप ने शब्दों का इस्तेमाल करके मेरे विचारो को कट्टरपंथ से जोड़ दिया पहले तो आप को स्पष्ट करना होगा की कट्टरपंथ किसे कहते है ?—————————–
और सबसे पहले सेक्लुरेजम की शुरआत किसने की अगर मै ये कहू की “”मै एक देवबंदी मुस्लिम हू तो हू”” तो क्या इसे एक कट्टरपंथ की नजर से देखा जा सकता है ? ————————
हमारा देश हर नागरिक को ये अधिकार देता है कि हर वयक्ति किसी को भी सर्वशक्तिमान (अल्लाह) , देवी देवता मानकर उसकी इबादत और पूजा कर सकता है, और कोई नागरिक ऐसा करता है तो हम लोगो उसे कैसे गलत कह सकते है?————————————
धर्म पर जब कोई मुसलमान पूरे साजो सामान, सच्चाई और सबूत के साथ बातचीत करता है तो लोग (शांति शांति चिल्लाकर) शांत करवा देते हैं या उन्हें कट्टर कहने लगते हैं… ऐसा क्यूँ होता है?——————————————–
गलत तो तब होगा जब आप उसे उसके धर्म पर चलने से रोकेगे जैसा कि आप व Brother Zakir hussain जी व कुछ तथाकथित लोगो ने असद को दाढ़ी रखने आपत्ति की क्या ये एक देश की जम्हूरियत (लोकतंत्र) में दी गई व्यवस्था के विपरीत नहीं है?——————–
क्या आप भारत की जम्हूरियत (लोकतंत्र) में एक नयी परिभाषा बताना चाह रहे कि जो बहुसंख्यक लोग कहे उसकी को मानो ही वाही सेक्लुरेजम है?——————————
यदि कोई ये सवाल उठाता है कि देश बड़ा या धर्म तो उसे मुमकिन हो पूरी जानकारी ना तो धर्म कि है ना देश के क़ानून क़ी ——————————!
किसी व्यक्ति के बात का जवाब न देना उस व्यकित के साथ सहमती कैसे हो सकती है?———
नोट: कृपया Brother सिकंदर हयात जी व Brother Zakir hussain जी के अलावा इस साइट पर आने वाले पाठक से अनुरोध है की कट्टरपंथ व सेक्लुरेजम की वास्तविक परिभाषा क्या है कृपया अपनी राय जरुर दे
इस्लाम फोबिया शब्द का आपने इस्तेमाल किया, हम भी इसी ओर ध्यान दिलाना चाहते हैं. इस स्थिति के लिये, इस्लाम के आलोचक इतने जिम्मेदार नही, क्यूंकि वो इतने असरदार नहेी. हमे यह मानना पड़ेगा कि हर समुदाय मे कट्टरपंथि होते हैं, लेकिन जो धमक इस्लामी चरमपंथियो ने दिखाई है, उसके आस पास भी और कोई नजर नही आ रहा. ये बात सही है कि ये अनुपात के हिसाब से नगण्य है, लेकिन ये हमारे समुदाय मे हमारी नाक के नीचे से निकले, मुसलमान के तौर पे स्वीकार्यता प्राप्त किये हुये हैं. इस वजह से जब कभी पैगंबर मुहम्मद को लेके कोई आलोचनतमक लेख, या कार्टून जैसी खबर आती है, तब मेरा गुस्सा, उस लेखक या कार्टूनिस्ट पे नही, उस तबके पे आता है, जिसने ये छवि इस्लाम की ओर पैगंबर की बनाई. हम नफरत कीआखिरी सीढ़ी पे खड़े व्यक्ति के कर्मो को तो गलत ठहरा देते हैं, लेकिन उससे पहले की सीढ़ी को नजर-अंदाज कर देते हैं. मेरा प्रयास, उससे पहले की सीढियो पे ध्यान दिलाने का है. मुझे कोई ताज्जुब नही हुआ, जब ढाका का आतंकी, या केरल के चरमपंथी जाकिर नायक से प्रभावित थे. वो जावेद अहमद घामिदि, या वहेीउद्दिन खान साहब या असगर अलेी इन्जिनियर से प्रभावित नहेी थे. ये महज एक सन्योग नहेी, गहराई से सोचेन्गे तो शायद थोढा इत्तेफाक रख पाये.
नजरान का एक ईसाई वफ्द (प्रतिनिधि मंडल) आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से मिलने मदीना आया और वह दिन इनकी इबादत (इतवार) का दिन था। आप (स.अ.व.) ने इनको अपनी मस्जिद में इबादत करने की इजाज़त दे दी और इन लोगों ने मस्जिद के अंदर पूरब तरफ मुंह करके अपनी इबादत कर ली। कुछ मुसलमानों ने इनको रोकना चाहा तो आप (स.अ.व.) ने मना कर दिया। (हवाला – रहमतुललिआलमीन जिल्द अव्वल पेज नंबर 182)
Brother सिकंदर हयात जी व Brother Zakir hussain जी क्या ये सेक्युलरिज्म नहीं है? Brother Zakir hussain जी इससे बेहतर कोई सेक्युलरिज्म है तो कृपया बताये ?
आप कन्फ्यूज दिख रहे हे असलम भाई हालांकि अच्छा हे क्योकि इस साइट की सोच धीरे धीरे आपको प्रभाव में ले रही हे हालांकि पुरानी सोच भी कायम हे इसलिए आपका कन्फ्यूजन झलक रहा हे लेकिन बहुत दुःख की बात हे आप लोगो की ये हरकत बहुत ही गलत हे की ” आप लोग ” ( रियल लाइफ में भी ) उदारवादी इस्लाम को बढ़ावा देने वालो को जलील कर करके और उन्हें सता कर पता नहीं कोन सा वीभत्स सुख महसूस करते हे—- ? अब आप एक हदीस शरीफ का उद्धरण देकर पता नहीं हमसे क्या पूछना चाह रहे हे— ? यानी वही वीभत्स सोच की इन अफ़ज़लो सिकंदरों जाकिरों को इस्लाम विरोधी साबित करने का तो सुख लेना ही लेना हे जैसे आपने जो ऊपर लिखा —-तो भाई बिलकुल हे साहब है तो यही तो उदारवादी इस्लाम सहअस्तित्वादि सामाजवादी इस्लाम हम भी फैलाना चाहते हे इसलिए केपिटलिस्ट कठमुल्लाशाही के खिलाफ हम जी जान से लिखते हे पूरा लेख और बहस ही इसी ऊपर वर्णित हदीस शरीफ की भावना पर ही आधारित हे लेकिन तो भी आपको ये लेख ज़हर लगा क्यों ? ऊपर कमेंट में आपकी बात से हम तो सौ फीसद सहमत हे ही . ये कमेंट लिख कर आपने , जैसा की मेने पिछले कमेंट में पहले ही बता दिया था की आप लोग आपस में बहस नहीं करते हे कभी नहीं . आपको ये कमेंट लिख कर संबोधित तो बृजेश भाई राज़ हैदराबाद जैसे लोगो को करना था जो मानते हे की उदारवादी सहअस्तित्ववादी इस्लाम जैसी कोई चीज़ नही हे ये बात आपने इन्हें बतानी थी लेकिन बता हम जेसो को कर रहे हे वजह ताकि हमें जलील करने का सुख ले सके जबकि हम तो पहले ही उदारवादी इस्लाम के हामी हे तब भी हमारे तरफ ही सवाल पूछ रहे हो मानो हम इस्लाम के ही विरोधी हो —- ? सेम यही हरकत और भी बहुत लोग करते हे . खेर कंफ्यूजन से बाहर आइये असलम भाई
Brother सिकंदर हयात जी अल्हम्दुलिल्लाह मै बिलकुल ठीक हु मुझे कोई कन्फ्यूजन नहीं है शायद आप अपनी बात कह कर भूल गए जबकि आप कमेंट में अभी भी कमेन्ट बॉक्स में है आप ने बात ही बात में मुझे कट्टरपंथ से जोड़ चाह है मै आप के कमेंट भी निचे लिख रहा हु
Brother सिकंदर हयात जी के कथन कि “”कुल मिलाकर बृजेश भाई और असलम भाई का कहना हे की भाई है ” हम तो अपने अपने यहाँ के कट्टरपंथ को ना देखेंगे ना समझेंगे वजूद ही नहीं मानते हे ना उससे लड़ने की सरदर्दी मोल लेंगे मुश्किल काम हम नहीं करेंगे आसान काम करेंगे ” . यही नहीं ये ”दोनों ” ( व्यक्ति विशेष नहीं ) की एक खासियत ये भी हे की पूरा नेट , मिडिया छान मारो कितना ही ढूंढ लो ये लोग आपस में बहस नहीं करते हे कभी भी नहीं . इनसे बहस दोनों मोर्चो पर सिर्फ सेकुलर लिबरल्स को ही करनी पड़ती हे ये लोग कही भी आपस में बहस नहीं करते हे पिछले ——————————————————————————————————————– ये ”दोनों ” आपस बहस कर रहे हो इसकी पीछे क्या साइकोलॉजी काम कर रही हे ———— ? क्या ये की दोनों एकदूसरे के अंदर से अहसानमंद हे———– ? दोनों खूब जानते हे की इन्हें असल खतरा एकदूसरे से नहीं हमसे हे
आप के कथन से साफ़ जाहिर हो रहा है की मै या बृजेश भाई कट्टरपंथ को मौन सहमती दे रहे है और कही न कही हम लोग भी कट्टरपंथ के पोषक है भाई ये गलत है की नहीं जब से इस साइट पर आया हु मेरे किसी भी कमेन्ट के द्वारा ये नहीं कह सकते की मेरे द्वारा कट्टरपंथ को बढ़ावा दे रहे है मेरे द्वारा सिर्फ एक ही कोशिश की गई और वो ये है की इस्लाम का सकारात्मक व सही रूप लोगो के सामने आये और मेरी कोशिश है की इस्लाम धर्म पर पूरे साजो सामान, सच्चाई और सबूत के साथ बातचीत करना है मगर आप द्वारा इल्जाम लगा जा रहा है
असलम भाई देवबन्दी हु सय्यद हु ये बाते कर इसलिए कहनी पड़ती हे की सय्यद वाली बात तो ऊपर बताई ही हे देवबंदी वाली बात इसलिए बतानी पड़ती हे की अपनी हालात बता दे की हम कितना मुश्किल काम कर रहे हे देवबंदी से मेरा आशय ये था की भारत में लगभग सारी लिबरल मुस्लिम आवाज़े या तो शिया हे या बरेलवी तो मेरा कहना ये होता हे की भाई ना हम शिया हे ना बरेलवी हे देवबंदी होने से मेरा यही आशय था ना की ये की में कोई देवबंद मदरसे या मदनी फेमली से कोई लिंक करता हु या उनकी बात मानता हु नहीं में तो बता रहा था की सेकुलर मुस्लिम वो भी देवबंदी इसलिए हमारा अकेलापन और थेकेलापन और भी अधिक हे अब ये जो और लोग कटरपंथ के खिलाफ लिखते हे शिया और बरेलवी लेखक इन्हें तो फिर भी होने को हो सकता हे की अपने यहाँ कोई सपोर्ट मिलता हो इस आधार पर की की भाई हम तो वहाबी कट्टरता के खिलाफ लिख रहे हे ( कम्युनिटी के शक्तिशाली लोगो का सपोर्ट ) इसलिए देखे की सूफी सूफी करने वाले एक सेकुलर मुस्लिम लेखक जो फेसबुक पर लिखते हे उन्हें जब एक मुल्ला धमका रहा था तो उल्टा उन्होंने ही उसे धमका दिया था और वो भी हो सकता हे की इस बाबत दबक गया हो की भाई बात बढ़ी तो देवबंदी बरेलवी का रूप ना ले ले ऐसे ही शिया लेखको का भी हो सकता हे जबकि ऊपर देखे हमें तो यहाँ वाहिद रजा जेसो के सामने भी गिगिड़ाना पड़ता हे क्योकि हमारे लिए तो कोई सपोर्ट ही नहीं हे हम तो ना शिया हे ना बरेलवी हम तो बिलकुल तन्हा कमजोर लोग हे आगे आपने लिखा ”हमारा देश हर नागरिक को ये अधिकार देता है कि हर वयक्ति किसी को भी सर्वशक्तिमान (अल्लाह) , देवी देवता मानकर उसकी इबादत और पूजा कर सकता है, और कोई नागरिक ऐसा करता है तो हम लोगो उसे कैसे गलत कह सकते है? ” भला किसने आपको इबादत से रोक लिया भाई ये की बाते क्यों करते हे ? आगे फिर वही आपकी” मेरी मुर्गी की तीन टांग ” टाइप तर्क यानी इस लड़के का मुद्दा तो भाइ लाख पूछने पर भी आप बात का जवाब नहीं देते हे में कह चूका हु की में आपके साथ हु बस इतना बता दीजिये कीएक तो मौलवी बने नसीर के बयान में क्या बात गलत था ? दूसरा की मेने कुछ सवाल दिए तो जो आपको ऐसे ही किसी लड़के से पूछ कर बताने थे ——- ? उस पर भी आपने कुछ नहीं बताया ———– ? इतनी बार कह दिया की हम आपके सार्थ हे बस ये बात बता दे लेकिन आप अपनी ही कहे जा रहे हे जबकि हम हर सवाल का जवाब देते हे वो भी लाइन कोट कर कर के और हां सेकुलरिज्म केवल हिन्दुओ की जिमेदारी नहीं हे मुसलमानो को भी जिमेदारी लेनी होगी दूसरा की अधिकार के साथ साथ कर्तव्य भी उसी सिक्के का दूसरा पहले होते हे आप एक पहलु अधिकार का पकड़ लीजिये सही हे लेकिन सिक्के का दूसरा पहलु भी दिखाने उठाने समझाने के लिए हमें जलील और नीचा क्यों दिखाया जाना चाहिए ————– ?
आप बात बात में सेक्युलरिज्म की बात करते है और ये बताना चाहते है की इस्लाम में सिर्फ कट्टरपंथ ही है या बहुत जयादा है और अधिकतर लोग इस्लाम के नाम पर कट्टरपंथ फैला रहे है जबकि मै आप को हदीस व कुरआन की आयतों से बताना चाह रहा हु की कही सेक्युलरिज्म है तो वो सिर्फ इस्लाम में ही है जो बहुत लोगो को नहीं दिखती और यही नफरत हमारे गैर मुस्लिम भाइयो के दिलो में भी है
मैंने कही पर भी ये कहा और न ही सोचा की “”अफ़ज़लो सिकंदरों जाकिरों को इस्लाम विरोधी”” है बल्कि मानता हु ये लोग मुसलमानों को जो एक मुर्दा कौम बन रही है उसे जगा रहे है “” और सही माने में आप लोग ही एक शसक्त इस्लामिक प्रचार कर रहे है
इसलाम और सेकुलरिज्म ?
कुरान २/५४
बछड़े की पूजा कर्ने वालो को आपस में क़त्ल करनेका आदेश है
कुरान ८/६५ -६६ काफिरों{ गैर मुस्लिमो } के साथ जेहाद करनेका आदेश है
१४०० सालो से लगातार मक्का और मदीना नगर में गैर मुस्लिमो का प्रवेश वर्जित है
क्या इसको सेकुलर कहा जा सकता है
अगर अन्य कोई समुदाय किसी नगर में मुसलमानों को न घुसने दे तो उसको आप क्या कहेंगे ?
यही तो कहेंगे की मुस्लिम के साथ बेहद जुल्म हो रहां है
Brother सिकंदर हयात जी का कथन की “”आपको ये कमेंट लिख कर संबोधित तो बृजेश भाई राज़ हैदराबाद जैसे लोगो को करना था जो मानते हे की उदारवादी सहअस्तित्ववादी इस्लाम जैसी कोई चीज़ नही हे ये बात आपने इन्हें बतानी थी लेकिन बता हम जेसो को कर रहे हे वजह ताकि हमें जलील करने का सुख ले सके””
जवाब:::::::
Brother सिकंदर हयात जी चुकी चर्चा/बहस आप से हो रही थी इसलिए किसी और को संबोधित करना गलत हो जाता है और बृजेश भाई का कमेन्ट आप से सम्बंधित था इसलिए मैंने जवाब नहीं दिया यकीन जानिए मै किसी को बेवजह या वजह के जलील नहीं करता क्योंकि मै अल्लाह तआला से डरता हु और में अल्लाह के अंतिम रसूल हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से मोहब्बत करता हु (ये मेरा दावा है, मेरी मोहब्बत कबूल है, की नहीं ये तय होना है)
अगर मेरी बात कही आप को गलत लगी है तू मै आप से माफ़ी मांगता हू.
सिकन्दर साहब, असलम भाई और ब्रजेश भाई कि बातो मे फर्क है! एक, दुसरे धर्म को नेीचा दिखाना चाह्ता है और दुस्ररा अपने धर्म कि बात बता रहा है और किसेी भेी धर्म कि बुराई नहेी कर रहा है! कोई kuchh भेी कहे लेकिन असलम भाई ने सिर्फ और सिर्फ आपके लेख और comments के जवाब हेी दिये है!
जारेी——-
रात को या सुबह लिखता हु
पहले तो ये बता दू की बात तो असलम भाई के नाम पर की जा रही हे मगर इन्हें व्यक्तिगत ना लिया जाए क्योकि जो रवैया असलम भाई और कोई लोगो का नेट पर हमारे लिए रहा हे सेम वही रियल लाइफ में भी होता सेम वही एटीट्यूड वही कन्फ्यजन लेकिन वही पक्का इरादा जो यहाँ असलम भाई ” व्यक्तिविशेष नहीं ” ने ज़ाहिर किया की बस हमें अपमानित करना हे हमें नीचा दिखाना हे और भले ही हमारी एक सिंगल लाइन को भी इस्लाम तो क्या किसी भी अक़ीदे विरोधी ना साबित कर सके मगर आम पाठक ( रियल लाइफ में आस पास के लोग ) को ये सन्देश जरूर देना हे की अरे ये लोग तो इस्लाम विरोधी और नास्तिक लोग हे ( बृजेश भाई एन्ड पार्टी पिछले पांच सालो से हमें कट्टर मुस्लिम बताती हे ) इसी सन्देश के तहत असलम भाई ने ये किया की हमें ही उदारवादी इस्लाम का पाठ पढ़ा रहे हे जबकि पूरा लेख बहस और हमारा सारा लेखन ही उदारवादी इस्लाम के प्रचार में हे फिर भी हमें संबोधित किया इरादा हमें नीच दिखाना खेर असलम भाई ने पूछा की ” हम लोग भी कट्टरपंथ के पोषक है ” नहीं पोषक नहीं हे सेम आपके जैसा ही रवैया मेरे कज़िन और दूसरे लोगो का भी भी हे आप भी शायद उन्ही की तरह एक सुरक्षित अछि जिंदगी जीते आये हे आप लोग पढ़े लिखे तो हे मगर जमीनी जानकारी और जीवन के अनुभवो से महरूम हे जिस कारण आप कट्टरपंथ से हो रहे नुकसान और बुराइया देख और महसूस नहीं कर पाए इसलिए आपको समझ नहीं हे कट्टरपंथ के पोषक आप लोग नहीं हे लेकिन उससे लड़ने की अपनी जिमेदारी भी नहीं लेना चाहते हे इसमें दो बाते हे की एक तो आप ये जिम्मेद्दारी और बेहद मुश्किल काम अपने सर नहीं लेना चाहते हो दूसरा सुरक्षित जिंदगी के कारण आप लोगो में थोड़ी कायरता या डर भी बैठा हुआ हे मज़हब के सौदागर ये डर खूब फैलाते हे जिसके तहत आप लोगो को ऐसा लगता हे की पता नहीं अगर कटरपंथ के खिलाफ कोई स्टेण्ड लिया तो ये सौदागर ऐसे दर्शाते हे मानो ये मज़हब के खिलाफ कोई जंग हो ( यही टोन आप लोगो की बातो में भी आ जाती हे हालांकि आप सौदागर नहीं हो तब भी ) ऐसा किया तो पता नहीं कौन सी बिजली आसमान से आकर आप पर गिरेगी यही बात मेने अपने कज़िन से कही थी की ” तुम लोग कायर हो बिजली से बहुत डरते हो ” (जीवन बहुत अनिश्चित हे कल को किसी के साथ भी कुछ भी हो सकता हे ) हम कायर नहीं हे एक तो हमारे अमाल खरे हे हमने एक सेकण्ड के लिए जीवन में कोई बुरा काम नहीं किया हे दूसरा हमने जीवन में इतनी बिजलिया पहले ही झेल ली हे की हमें डर नहीं हे जबकि मेरे कज़िन जैसे लोग इसी डर से कटरपंथ के खिलाफ हमेशा चुप्पी साधे रखते हे सही हे की सपोर्ट भी नहीं करते हे लेकिन कोई खास विरोध भी नहीं करते हे इससे मुसलमानो में सेकुलर प्रोग्रेसिव वर्ग बिलकुल ही अकेला पड़ जाता हे इसी तरह का मिलता जुलता रवैया असलम भाई का भी हे खुद कटरपंती नहीं हे मगर कटरपंथ से लड़ने की जिम्मेदारी भी नहीं लेना चाहते हे इसलिए इस लेख का विरोध किया और बाद में अचानक एक कमेंट में एक हदीस सुनाकर हमें ही उदारवादी इस्लाम का पाठ पढ़ाने लगे अंदाज़ कुछ यु था की ” ये नीच लोग तो उदारवादी इस्लाम के भी विरोधी हे ” इसी का मेने कड़ा विरोध किया हे ( एक बार फिर की बात को व्यक्तिगत ना लिया जाए )
Brother सिकंदर हयात जी मै आप के उपरोक्त कमेंट का जवाब देना उचित नहीं समझता क्योकि आप ने पुरे कमेंट में पहले अपने आप ही इल्जाम लगाया और फिर खुद ही जज बनकर अपने हक़ में फैसला कर लेते है की हम ही सही है?
आप मेरे बारे में कुछ भी समझ रख सकते है मगर मेरा आप के प्रति या Brother Zakir hussain जी या Brother अफजल भाई के प्रति कोई नकारात्मक रवैया है आप ने जो भी इल्जाम मेरे या मेरे मध्यम से लगाया है वे बुनियाद है और आप का ये कथन की “”हमारी एक सिंगल लाइन को भी इस्लाम तो क्या किसी भी अक़ीदे विरोधी ना साबित कर सके”” ये बात सही लेकिन ये भी बात सही है की आप ने कभी कोई बात डायरेक्ट नहीं कहते घुमा फिर कहते है ताकि समझने वाला कभी समझ ही न सके इसलिए मैं आप को कहता हु की आप शब्दों के जादूगर है.
बहरहाल मुद्दे पर आते है आप का कथन की “”मुसलमानो में सेकुलर प्रोग्रेसिव वर्ग बिलकुल ही अकेला पड़ जाता हे”” बिलकुल गलत है मै इस कमेंट के निचे एक लेख कॉपी करता हु उसे आप और Brother Zakir hussain जी खास कर पढ़ें और समझे तो साफ़ जाहिर होगा सबसे जायदा लोगो की नजर में कौन निशाने पर है
आज से हज़ार साल पहले यहूदियों ने पूरी दुनिया के मुस्लिम का सर्वे किया के किस किस तरह के मुस्लिम हैं और उन्हें किस तरह बर्बाद करना है।
सर्वे के बाद उन्होंने 250 पेज की रिपोर्ट बनाई जिसमे उन्होंने मुस्लिम को 4 कैटगरी में रखा।
1-“Fundamentalist”
परिभाषा:- ये वो लोग होते हैं जो इस्लाम और क़ुरआन हदीस को हर क़दम पर रहनुमा मानते हैं।सिर्फ इस्लाम ही का सामाजिक(Social) , आर्थिक(economical), राजनीतिक(Political) व्यवस्था दुनिया में नाफ़िज़ करना चाहते हैं। ये लोग सोचने समझने वाले होते हैं।
ये लोग हमारे (यहूदियों के) सबसे बड़े दुश्मन हैं।
इनका इलाज:- इनपर जितना होसके दबाव डाला जाए, बदनाम किया जाये, इलज़ाम लगाया जाये, ताकि ये लोग अपना मक़सद भूल जाएं।
2-“Traditionalists”
परिभाषा:- ये लोग रिवायती होते हैं । सोचने समझने का काम नहीं करते, दुनिया में क्या होरहा है इन्हें उससे कोई मतलब नहीं। बस जो बाप दादा करते हुए आये हैं वोही करते हैं।
इनकी तादाद बहुत ज़्यादा है। इन्हें अल्लाह का कानून नाफ़िज़ नहीं करना ये लोग बस इबादत में मगन रहते हैं।
इसलिए हमें ( यहूदियो को) इनसे कोई ख़तरा नहीं।
इनका इलाज:- ये जिस चीज़ में मगन हैं इन्हें उसी चीज़ में आपस में लड़वा दो फिरके के नाम पर, इनकी ताक़त ख़त्म होजाएगी।
3:- “Modernists”
परिभाषा:- ये वो लोग हैं जो अपनी दुनिया बनाने में लगे रहते हैं।
इन लोगो को अपने career, future, study , buisness के अलावा किसी से मतलब नहीं। सिर्फ एक रिवायत के तौर पर इस्लाम को जानते मानते हैं।
ये लोग हमारे काम के हैं।
इनका इलाज:- इनके लिए career, buisness इतना मुश्किल कर दिया जाये की ये लोग उसी में उलझ कर रह जाएं।
और students को इस तरह पढ़ाया जाये की उसे उसका मज़हब एक पुराने लोगो की चीज़ नज़र आये और हमारी (यहूदियों की) मॉडर्न शिक्षा उसे अच्छी लगने लगे।
4:- “Secularism”
परिभाषा:- ये लोग बिलकुल हमारे ( यहूदियो) जैसे होते हैं।
ये इस्लाम की विपरीत (opposite) ही बोलते हैं।
इन्हें अपने धर्म से कोई मुहब्बत कोई लगाव नहीं होता।
ये लोग हमारे बहुत काम के हैं।
इनका इलाज:- इन्हें कैसे भी करके अपने साथ लेकर चलना है चाहे वो उन्हें उसका तरीका लालच हो या दबाव ।
इनके साथ रहने से बाकी धर्म के लोग इस्लाम के खिलाफ होने शुरू होजाएंगे।
Note:- कैटेगरी नो. 1 को किसी भी कैटेगरी से मिलने न दिया जाये वरना पूरी यहूदी क़ौम को ख़तरा होगा ।
और लोगो को इस्लाम की अच्छाइयां नज़र आने लगेगी और हमारी दुनिया पे हुकूमत करने वाली चाल नाकाम होजाएगी।
:-डॉ. मुहम्मद दानिश की वाल से
मुझे यक़ीन है कि आप अपनी कैटेगरी पहचान गए होंगे ।
हम लेखन में भी और रियल लाइफ में भी मुद्दो पर लगभग 95 %से भी अधिक अपने ही विचार रखते हे इसमें मेहनत लगती हे ज़हमत लगती हे अपने ही जीवन के अनुभव बयान करते हे जो कड़े संघर्ष से हासिल हुए हे असलम भाई आदि लोग सिर्फ कॉपी पेस्ट ही अधिक करते हे भाई हमारी बातो को गलत साबित करने को आप भी अपने जीवन के अनुभव बयान कर सकते हे —- ? असल में आप सिर्फ धर्मग्रंथो की बातो को आगे करते हे ( जिनसे हमारा कोई विरोध नहीं हे ) उसके बाद जिद पकड़ लेते हे की ”हमारी बातो ( धर्मग्रंथो से इतर भी ) को सही मानो मानो मानो बस मानो नहीं तो हम आपको धर्मविरोधी बताएँगे ” जबकि हम जमीनी हकीकतों की चर्चा कर रहे होते हे लेकिन आप जिद पकडे रखते हे की अगर आपकी बातो पर हामी नहीं भरी तो धर्मविरोधी बताने का डंडा तो आपके पास हे ही जैसे देखिये की लेख नसीर के बयान पर आधारित था मगर लाख सर पटकने पर भी आप मुद्दे पर नही आये ही नहीं . ”जाकिर नायक एन्ड पार्टी ” इसी तरह का तक्क्बुर लोगो में भर देती हे इसी तक्क्बुर से भी क्लेश पैदा होते ही हे . बिना कुछ करे धरे लोग खुद को महान समझने लगते हे लेकिन फिर जब हम जैसे लोग ” आइना ” दिखाते हे तो हम बुरे बनते हे . जो पाकिस्तान कभी एशिया में विकास दर में जापान के बाद दूसरे नंबर पर था उसे पेट्रो डॉलर की आमद से उभरे जाकिरों की फौज ने बर्बाद कर डाला हमें उससे सबक लेना चाहिए खेर इस बहस के चक्कर में में अगला लेख नहीं लिख पाया अब लेख की कोशिश करूँगा
Bhai १०१७ se yahudi itne developed the ki survey bhi karana jante the?? Jab unhone survey kara hi liya tha to becharo ko aaj tak apne hqko ki raksha k liye apne astitva k liye kyu ladna pad rha h?arre chodo saaari baate amma miyan Quraan roz pada karo..mullah waali nahi Alah waali..tabiyat aur budhi dono durust rahegi..
Mayank shakya जी
यहूदी कब कितना developed थे वो आप की समझ में नहीं आयेगा वैसे मुफ्त में सलाह देने के लिए शुक्रिया
जिस प्रकार अनेक विद्वान, मुसलमान की परिभाषा देते हैं, वैसे उसी प्रकार यहूदी की भी होती है क्या? यहूदी कौन होते हैं, उसके बाद अगले सवाल यह है कि वो क्या चाहते हैं, उनका इस जीवन का उद्देश्य क्या है, वो ऐसा क्यूं चाहते हैं, उनकी सोच कैसे स्थापित होती है? बच्चा सारी दुनिया मे किसी भी विचारधारा से मुक्त आता है, फिर आस-पास के माहौल, स्कूली शिक्षा आदि के आधार पर उसकी सोच को दिशा मिलती है. इस्लाम पे चर्चा के दौरान, ये यहूदी वाली थ्योरी पे कोई कडियो को जोड़ने की कोशिश करे.
वैसे यहूदियो ने 4 प्रकार के मुस्लिम बता दिये. अब इसमे मेरे जैसे लोग कहाँ फिट होते हैं? और एक अन्य प्रश्न, ये हाफ़िज सईद, अबू बग़दादी, और लादेन जैसे लोग भी इसमे कहीं फिट बैठते है, या इस श्रेणी का ओर विस्तार किया जाये? या ये सारे कुख्यात् लोग, अलग अलग सोच के है, और मैने सबको एक साथ रख दिया?
Brother Zakir hussain जी का कथन की “”वैसे यहूदियो ने 4 प्रकार के मुस्लिम बता दिये. अब इसमे मेरे जैसे लोग कहाँ फिट होते हैं?””
जवाब ::::::::::::::::::
मैंने कमेंट के last में कहा है की आप अपनी कैटेगरी पहचान गए होंगे यानी आप को खुद ही तय/कबूल करना है की हम किस कैटेगरी में आते है
Brother Zakir hussain जी का कथन की “””ये हाफ़िज सईद, अबू बग़दादी, और लादेन जैसे लोग भी इसमे कहीं फिट बैठते है, या इस श्रेणी का ओर विस्तार किया जाये? या ये सारे कुख्यात् लोग, अलग अलग सोच के है, और मैने सबको एक साथ रख दिया? “””
जवाब:::::::::::::::::::
Brother Zakir hussain जी हम लोगो को ऐसे लोगो की (या इनकी सोच की ) कोई फिर्क नहीं करना चाहिए और मेरे राय में ये लोग एंटी इस्लाम की सोच रखने वालो के दत्तक पुत्र है इसलिए ये लोग उपरोक्त कैटेगरी में नहीं आते है
कमाल की बात है, ऐसी महापूरूषो की हम फिक्र नही करे, जो इस्लाम का नाम लेके अपने कारनामो मे शैतान के बाप से भी आगे निकल गये. हमारी कौम के सर पे बैठे हैं. तो फिर फिक्र किसकी करे, जो ये कार्टून बनाते हैं, पैगंबर को गालियाँ देते हैं, उनकी? अरे जनाब, वो तो अपने आप को स्व-घोषित इस्लाम का दुश्मन कहते हैं, उनको तो हम नजर-अंदाज भी कर सकते हैं. लेकिन हमारे समाज मे रह कर, दिन रात इस्लाम के नाम पे कत्ले आम मचाने वालो या नफरत फैलाने वालो की हम फिक्र नही करे. शान्ती के पैरोकारो को इसकी फिक्र रहती ही है. इस सारी चर्चा का कारण ही यही है. अगर आपको आतंकवाद से कुछ फर्क नही पड़ता, तो फिर इस चर्चा का क्या लाभ?
यहूदियो की बात चली एक बात शेयर कर दू की पिछले वर्ष एक अरब मुस्लिम और एक यहूदी लड़की के बीच प्यार हो गया दोनों शादी करने चले तो यहूदी कटटरपन्तियो ने विरोध किया मगर इज़राइल सरकार ने शादी भी होने दी यही नहीं पूरी और कड़ी सुरक्षा भी दी ताकि कोई उस शादी को रोक ना पाए और उधर अरब देशो में आप एक गेर अरब मुस्लिम होकर अरब शेख की लड़की से कतई शादी नहीं कर सकते हे जबकि इस्लाम में सब बराबर हे अब इन्ही अरब शेखो से पैसा पीट पीट कर जाने कितने जाकिर नायक ( व्यक्ति विशेष नहीं बहुत लोग हे ) भागे फिरते हे दुनिया को इस्लाम का पाठ पढ़ाते हे और जिनसे चंदा खाते हे उनके सामने चु करने की भी मजाल नहीं हे ( ऊपर एक जगह असलम भाई जिन साहब के लेखन पर मुग्द हुए जा रहे हे वो भी शायद शायद इन्ही चन्दाखोरो के दाएबाए के लोग हे इसलिए ये लेख के मुद्दे पर ओर भड़काते हे ताकि ये ये दर्शा कर की देखो देखो इस्लाम पर हमले हो रहे हे लोगो को फोलो कर्ने से रोका जा रहा हे लाओ लाओ हमारा चन्दा और बढ़ा दो ताकि हम इन दुश्मनो से लड़े और चन्दा भेजो ) अच्छा जैसे ये जाकिर नायक वैसे ही इनके सपोटर या इनका बचाव करने वाले भी हे की एक से बढ़ कर एक बईमान मक्कार और गद्दार मुस्लिम भी भरे पड़े हे ये उन्हें कुछ नहीं कहते इनके निशाने पर रहते हे हम जैसे लोग जिन्होंने एक भी गलत काम या किसी के साथ भी कुछ भी बुरा कभी नहीं किया ———- ? https://www.youtube.com/watch?v=v6_RR5omrao
अल्लाह हम सब को गफलत की नींद से बचाए सुबह बात करते है भाई, ,, लेकिन भाई ये बात तो मान गए की आप अभी भी अपने मोहल्ले वाली सोच से निकले नहीं है
”, लेकिन भाई ये बात तो मान गए की आप अभी भी अपने मोहल्ले वाली सोच से निकले नहीं है ” असलम भाई ये आपने अच्छा मुद्दा उठाया इसलिए में आपका दिल से शुक्रगुजार हु की आपकी वजह से हमें वो बाते लिखने का मौका मिलता हे जो लेख में नहीं आ पाती हे शुक्रिया असलम भाई अब यही ताना मेरे कज़िन्स और लोग भी मुझे देते हे पढ़ा मेने भी बहुत हे इन्होंने भी हालांकि इन्होंने मुझसे ज़्यादा पढ़ा हे और ये पुरे भारत और विदेशो में घूम चुके हे जबकि मुझे दिल्ली और वेस्ट यु पि से बाहर भी जाने का अवसर कभी भी नहीं मिला तो ये मुझे कहते हे की तेरी सेकुलर सोच बचकानी हे तूने दुनिया नहीं देखि हे अब उधर में कहता हु की ” तुमने दुनिया नहीं देखि हे ” में भारत और दुनिया घूम चुके अलीगढ़ के टॉपर अपने कज़िन को क्यों कहता हु की ” तुमने दुनिया नहीं देखि हे ” ———– ? और मेने कैसे दिल्ली मुजफरनगर वेस्ट यु पि में ही धक्के खाते हुए दुनिया देख ली हे मेरा कहना ये हे की” दुनिया देखि ” का मतलब ईट पत्थरो इमारतों सड़को पहाड़ो नदियों केम्पस को देखना ही दुनिया देखना नहीं होता हे दुनिया देखना होता हे इंसानो को देखना समझना मिलना वो भी किसी मुद्दे के साथ किसी समस्या के साथ तब आप इंसानो को हालात को उसकी गहराई को समझते हे इसे दुनिया देखना कहते हे ( शायद इसी से जुडी एक हदीस भी हे शायद ) अब मेरे कज़िन के परिवार ने न पुश्तेनी इलाका छोड़ा ना केम्पस छोड़ा न सरकारी नौकरीयो की छत्रछाया से कभी महरूम रहे . उधर मेरे घऱ छोड़ो खानदान में भी किसी की सरकारी नौकरी नहीं रही इनके खानदान में सात लोगो की इसके बाद लडकिया इनके खानदान में ही नहीं थी लास्ट लड़की शादी इनके यहाँ इनकी पुपो ( बुआ ) की 1975 में हुई थी उसके बाद लडकिया खानदान में ही नहीं थी लड़कियों की परवरिश पढाई आज़ादी शादी हमेशा ही भारत में बहुत बड़ा मुद्दा रही हे ( मेरे पिता ने घऱ में पहली शादी सिस्टर की अपना रोजगार बेच कर की थी ) ना इन्होंने कभी जायदाद के झगडे देखे ना कभी कोर्ट कचहरी का मुह देखा ( मेने बीस साल कोर्ट में धक्के खाये ) अच्छा पुश्तेनी इलाके के पुराने रिश्ते खानदानी सय्यद होने के कारण लोकल मुस्लिम नेता ने इनके एक या दो भाई की सरकारी नौकरी में मदद की ( में तो कभी पुश्तेनी इलाका में रहा ही नहीं किसी नेता ने कभी पूछा नहीं ) यानी यु समझ लीजिये की भारत में आम आदमी के सामने आने वाली एक सिंगल समस्या भी इन्होंने फेस नहीं की जबकि भारत में आम आदमी के सामने आने वाली हर एक एक एक समस्या मेने फेस की हुई हे और वो बिना किसी कॉन्क्रीट बेकअप के तो भाई इस आधार पर में अपने कज़िन्स से कहता हु की तुमने भले ही पूरा भारत और विदेश घूम लिया हो मगर ”दुनिया नहीं देखि हे ” तुम्हे शोषण के विवेध आयाम उसमे कटरपंथ का रोल तुमने नहीं पता हे और मेने दुनिया देखि हे या नहीं ये पाठक फैसला कर सकते हे
इस्लाम की तालीम यह है कि एक इंसान जब दूसरे इंसान से मिले तो वह कहे “अस्साुमअलेकुम व रहमतुल्लाह” (तुम पर अल्लाह की सलामती हो और अल्लाह की रहमत हो)!
किसी शख़्स को जब छींक आये तो वह कहे “अलहम्दुलिल्लाह” और सुनने वाला कहे “यरहमकअल्लाह” (अल्लाह तुम्हारे ऊपर रहमत करे) !
नमाज़ के लिये मस्जिद में दाख़िल हो तो कहे “अल्लहुम्मा इफ्तह लि अबवाबा रहमतक” (ए अल्लाह मुझ पर रहमत के दरवाज़े खोल दे)!
इसी तरह नमाज़ी लोग जब नमाज़ ख़त्म करते हैं तो वो अपने दायें और बायें तरफ मुंह फेर कर कहते हैं “अस्सलामुअलेकुम व रहमतुल्लाह” (तुम लोगों के ऊपर अल्लाह की सलामती हो और अल्लाह की रहमत हो)!
इस तरह हर मौके पर सलामती और रहमत के कलिमात लोगों के मुंह से निकलते हैं ! रहमत के अंदाज़ में सोचना और रहमत के अंदाज़ में बोलना यह अहले ईमान की सिफ्त बन जाती है!
इससे अंदाज़ा होता है कि इस्लाम लोगों के अंदर किस क़िस्म का मिज़ाज बनाना चाहता है, वो दरअसल रहमत व मौहब्बत का मिज़ाज है! इस्लाम का तक़ाज़ा यह है कि हर मौके पर एक आदमी के अन्दर दूसरे आदमी के लिये रहमत के जज़्बात उभरें!
“ख़ुदा रहीम है, वह चाहता है कि उसके बन्दे भी रहीम बन कर दुनिया में रहें” !!
(#किताब_दीन_इंसानियत_से_मफहूम)
यहूदी चिंतक की पहली श्रेणी के लोग् जो की तथाकथित ईश्वर के कानून को समाज मे स्थापित करने के लिये, प्रयासरत रहते हैं. इस श्रेणी के कुछ लोगो पे गौर फरमाइएगा. लाल मस्जिद के मौलाना अब्दुल अजीज, जो पेशावर के आर्मी स्कूल मे बच्चो को मारने की हरकत पे, तालिबा न (पाकिस्तान वाले) का बचाव करते नजर आये. हाफ़िज सईद मियां, जिन्होने तो ईश्वर की किताब को कंठस्थ ही किया हुआ है. ज़वाहिरी और लादेन जैसे लोग, जिन्होने अपने संगठन का नाम ही अल-कायदा, यानी ईश्वर के नियमो को समाज मे स्थापित करने का मकसद बना लिया. बोको हराम के जाँबाज सिपाही, जिन्होने ईसाई लड़कियों को उठा कर, जबरन कलमा पढ़ा लिया, और इस अपहरण को उसी पवित्र किताब का हवाला देके पवित्र कार्य बतला रहे हैं. मरहुम् इसरार अहमद, जो तमाम अहमदी लोगो को कत्ल करने का कानून लाने की बात करते हो….अंतहीन सूची.
वैसे क्या ये लोग्, लोगो से मिलते हुये, या मस्जिद मे जाके वो सब नहेी बोलते, जो आपने उपर लिखा? ये तमाम लोग् अन्य किसेी भेी श्रेणेी के मुसल्मान स ये तमाम अल्फाज् कम नहेी बोलते, अपितु सदैव बोलते है
क्या उस पहली श्रेणी का इशारा, इन्ही लोगो की तरफ था. बाकी आज ये दिन भी आ गये, जब यहूदी की दी हुई सूची मे से अपनी पहचान करूं? वैसे ये यहूदी होता क्या है, इसकी परिभाषा, ईश्वर को लेके इसकि अवधारणा आदि के बारे मे कोई कुछ नही बताता. बस होता है, जो दुनिया मे मुसलमानो की सारी समस्या की जड है. हमारा धंधा ठीक नही चल रहा तो यहूदी की वजह से, इस्लाम को लेके मुसलमान आपस मे झगड रहा है तो यहूदी की वजह से. बदनाम हो रहा है, तो उसकी वजह से.
और वैसे ये अल्लाह का कानून, धरती के किस हिस्से मे पाया जाता है?
Brother Zakir hussain जी यहूदी वाले कमेंट में साफ साफ लिखा है कि यहूदियों ने पूरी दुनिया के मुस्लिम का सर्वे किया के किस किस तरह के मुस्लिम हैं और उन्हें किस तरह बर्बाद करना है। आप ने उस सम्बन्ध में जवाब देने की जगह उक्त सूची को ही एडिट करने का सुझाव देने लगे इसके अलावा आप उनलोगों की फ़िक्र करने लगे जो मुसलमानों को मुसलमान ही नहीं मानते आप ने जितने संगठन का नाम लिया है उनके द्वारा ही बड़ी तादाद में मुसलमानों का ही या कहे की इंसानियत का ही क़त्ल किया है
अच्छा भारत के आम मुस्लिम को एक सन्देश की ऊपर इस विडियो में हसन निसार पाकिस्तान की बात कर रहे हे तो पाकिस्तान की जगह खुद को रख ले और पैसे वाले अरब देशो की जगह मुस्लिम नेताओ रहनुमाओ धर्माधिकारियों जाकिरों की फौज को रख ले और ये जो छुटभ्ये इन्ही के दाए बाए के फेसबुकिये बुड़बकीय इनको रख ले तो इनका आपके प्रति सलूक व्यवहार वही मिलेगा जो हसन निसार साहब बता रहे हे की आपको ” मुह नहीं लगाते हे सिर्फ यूज एन्ड थ्रो ” अच्छा इस पर आपका ध्यान ना जाए इसलिए हर समय ” इस्लाम खतरे में ” इस्लाम और मुसलमानो के खिलाफ साज़िश ” हर कोई हमारा दुश्मन सब गलत हम सही ” हम भोले बाकि सब मक्कार और बुरे ” का भड़काऊ तनावपूर्ण माहौल हर समय बना कर रखा जाता हे ताकि इस शोरशराबे में आपका ध्यान इनके शोषण और लूट की तरफ जाए ही नहीं . सेम यही खेल हिंदुत्ववादी शक्तियां भि खेलती हे एक को अरब देशो से चन्दा मिलते हे तो दूसरे को अमीर एन आर आई आदि से . एक और बात की ये जाकिर नायक इंडोनेशिया जाकर बतते हे की गाँधी और टेरेसा जन्नत में नहीं जायेगे तो क्या इन साहब की कभी मजाल हुई हे की अरब देसो में जाकर वहां के लोगो की आँख में डाल कर कहे की तुम भी जन्नत में नहीं जाओगे क्यो की इस्लाम में सब बराबर हे मगर तुम गेर मुल्की मुस्लिम को पुरे अधिकार ना देकर बेटी न देकर इस्लाम की अवहेलना करते हो हे———- ? हिम्मत हे ये कहने की सवाल ही नहीं हे वहां से तो ये चंदा खींचते हे और निकल लेते हे इसलिए कहते हे की ये सब धर्म के व्यापारी हे बिजनेसमेन हे बिज़नेस करते हे कॅरियर बना रखा हे इन्होंने अच्छा सभी व्यपारियो के कुछ कर्मचारी भी होते हे जो अपने मालिक के खिलाफ कुछ नहीं सुनते हे बताते हे की वो कितना अच्छा हे कितनी समाजसेवा भी करता हे ये लोग कोन हे खुद ही पहचानिए
बहस में शुरू से आखिर तक असलम भाई लेख के मुद्दे पर आये ही नहीं . उसकी जगह टोन उन्होंने लगातार यही पकड़ी रखी की” मुसलमानो को उनके धर्म के पालन से रोका जा रहा हे रोका जा रहा हे ” वो इसी पर अड़े रहे. इससे इतर असलम भाई की टोटल बातो से ये तो ज़ाहिर होता हे की वो कुछ कंफ्यूज जरूर हे मगर ना तो असलम साहब कोई बुरे इंसान हे ना कम्युनल हे ( ना कट्टरपन्ति ही हे न साम्प्रदायिकता के पोषक ही हे ( बहुमत मुस्लिम भी ऐसा ही हे ) सवाल ये हे की फिर वो बार बार मुद्दे पर आने की जगह मज़हब खतरे में हे रोका जा रहा हे अधिकार छीने जा रहे हे पर क्यों अड़े रहे ——- ? असल बात ये हे की असलम भाई ( व्यक्ति विशेष नहीं ) उस प्रोपेगेंडे में बह गए जो मेने पिछले कमेंट में दर्शाया की कुछ बुड़बकीय ये प्रोपेगेंडे फैला रहे हे ये मज़हबी और राजनितिक रहनुमाओ के दाए बाए के लोग हे तो ये सोच फैलाते हे जिससे की एक तो ये दर्शा कर की भारत में इस्लाम खतरे में हे अधिक चन्दा देश विदेश से खिंचा जा सके दूसरा की मुसलमानो पे दबाव डाल रहे हे की तुम सिर्फ मुसलमानो को ही वोट दो इनमे से कोई किसी मुस्लिम नेता का लग्गू भग्गू हे हे तो कोई किसी का पिछलग्गू , हालांकि मेरा अंदाज़ा हे की ये नेता इन्हें थोड़ा बहुत ही”देते ” हे मगर वो थोड़ा बहुत ही इनमे पूरा जोश और वफ़ादारी भर देता होगा क्योकि एक तो ये की अपने हित दूसरा ये की ” कौम ” के लिए काम कर रहे हे की सोच का जोश . मगर हम साफ़ बता दे की कौम मज़हब ये मुद्दा ही नहीं हे ये सब लोग मज़हब के व्यापारी हे और अपने अपने हितो के गुलाम हे इसलिए हम मुसलमानो को सावधान करते हे की नमाज़ रोजा हज करे अल्लाह अल्लाह करे कोई आपको नहीं रोक रहा न रोक सकता मगर मुस्लिम यूनिटी सुपीरियॉरिटी इकवेल्टी और विक्टिमहुड़ के प्रचारको से दूर रहे इनके पास जाएंगे तो ये तो फायदा में रहेंगे आज भी हे मगर आपके हिस्से में सिवाय क्लेश के कुछ नहीं आएंगे याद रखिये
इसी संदर्भ में एक बात की पुरे उपमहादीप में ही हिन्दू मुस्लिम साम्प्रदायिकता के खिलाफ जंग में आने वाले समय से अच्छा कोई समय नहीं हे पेट्रोल के दामो में कमी , शिया सुन्नी तनाव असुरक्षा से अरब देशो की इकोनॉमी बेहद डाउन हे इनका भेजा पैसा ही उपमहादीप में तरह तरह के मुस्लिम कटटरपन्तियो जाकिर नायको की फौज के लिए ”डीजल ” का काम करता आया हे ये पैसा ही इनमे जोश भरता हे वैसे भी हर काम को पैसा तो चाहिए ही चाहिए होता हे ( मौलाना आज़ाद अपनी किताब में मुस्लिम लीग को वित् मंत्रालय ( सरदार साहब की जिद ) मिलने को पाकिस्तान बना लेने से जोड़ते हे ) पैसा आना कम होगा तो ये लोग सुस्त पड़ जाएंगे फिर 2019 मोदी सरकार का जाना भी तय दिख रहा हे एक हज़ार साल में बनी पहली हिन्दू कठमूल्लवादी सरकार और हिन्दू कटटरपन्तियो के ” हिन्दू बिस्मार्क ”मोदी के डाउनफॉल से हिन्दू कट्टरपंथ को बेहद गहरा झटका लगेगा ( इसलिए नोटबंदी के बाद हिन्दू कटरपंती बदहवास से दिख रहे थे ) वो कोमा में भी जा सकता हे तो इससे बढ़िया समय उपमहादीप में कटरपंथ कम्युनलिज्म कठमूल्लशाही धर्म के व्यापारियों के खिलाफ नहीं मिल सकता हे ”अभी नहीं तो कभी नहीं ” इस विषय पर लेख की कोशिश रहेगी
जाकिर नायक ने मुस्लिम वर्गो का दो भागो मे वर्गीकरण किया, जिसका जिक्र असलम साहब ने किया, उन्ही के अनुसार, किसी यहूदी चिंतक ने इसे 4 भागो मे वर्गीकृत किया है. मैं एक श्रेणी इसमे ओर जोड़ना चाहता हूँ, वो उन जीनियस लोगो की है, जो इस्लाम की एक ऐसेी परिभाषा गढ़ते हैं, जिसके विवेकशील और अमन-पसंद समुदाय से स्वीकृति की कोई संभावना नही हो. इस प्रकार ये इस्लाम को लेके एक नकारात्मक भाव समाज मे भरने की कोशिश करते हैं, उपरी तौर पे ये इस्लाम को शान्ति, सद्भाव, भाईचारे इत्यादि सद्गुणो का बताते हैं, लेकिन इनकी व्याख्या, पूरी तरह से इन गुणो के विपरीत होती है. इनका टारगेट, समाज के मानसिक रूप से वो कमजोर तबका होता है, जो सिर्फ रसूल, इस्लाम, क़ुरान, ईमान आदि शब्दों को सुनते ही, बिना दिमाग लगाये, माशाअल्लाह-सुभानल्लाह बोल के झूमने लगता है. ये तबका उस झुंड की तरह होता है, जिसे इस्लाम या रसूल के नाम पे किसी पे ओर कभी भी छोड़ा जा सकता है. इनका दिमाग, इन जीनियस लोगो के यहाँ गिरवी रहता है.
अपनी विकृत परिभाषा से ये हर् जगह उलझने के लिये तैयार रहते हैं, या फितना फैलाने मे उन जीनियस (लेकिन धूर्त) लोगो की मदद करते रहते हैं. नफरत और कुतर्क से भरी व्याख्या, जब समाज को नाकामी की ओर लेके जाती है, तो इनके पास प्लान बी होता है, जिसके अनुसार, ये जिंदगी दो कौड़ी की है, यहाँ तो शैतान कामयाब होगा, मुसलमान को तो दूसरी जिंदगी मे कामयाबी मिलती है. अल्लाह मिया से सब वहां माँगना. कभी कभी, इस सारी तरक्की और वैज्ञानिक उपलब्धि का सेहरा, क़ुरान के सर पे बाँधने के भी तर्क दिये जाते हैं. ये प्लान सी की तरह प्रयोग किया जाता है.
जिस प्रकार इस्लाम की आलोचना मे लिखेी सैकडो किताबे, अपनी दलीले कुरान और हदीसो से देती है, जिस प्रकार, उन लोगो को लगता है कि ये किताबे पढ़कर वो इस्लाम के एक्सपर्ट हो गये हैं, ठीक वैसा ही भ्रम इन तथाकथित आलिमो (विद्वानो) को होता है.
Brother Zakir hussain जी व Brother सिकंदर हयात जी में एक कमेंट व लेख में ये भी खासियत है की ये बात बात में जब तक डाक्टर जाकिर नायक के नाम के नाम की कवित नहीं गायेगे तब तक अपनी कोई बात पूरी नहीं करेगे क्योकि इनके द्वारा “” किसी झूठ को सौ बार बोलकर उसे सच बनाने की कोशिश की जाती है कि ताकि उसकी आड़ में, सच को झुठलाया जा सके। मेरी कथन की अगर पुष्टि कोई करना चाहता है तो इस साइट उपरोक्त विषयांकित लेख में उनके कमेंट को देखेगे तो पायेगे हर तीन या चार कमेंट के बाद डाक्टर जाकिर नायक की बात जरुर कही जाएगी
बहरहाल मै ये बताना चाहता हु कि डाक्टर जाकिर नायक का न तो मै सपोट करता हु और उनका विरोध करता हू क्योकि मैंने उनके बारे में जो भी जानकारी youtube के जरिये प्राप्त की है उसके आधार पर वो कही गलत नहीं है अगर आप जांच करना चाहते है तो last प्रेस कांफ्रेंस जो skypi के जरिये किया गया है उसे देख सकते है और उससे स्पष्ट हो जायेगे की क्या गलत क्या सही है
सौ बार लिख चुके हे की जाकिर नायक का नाम लेते हे तो आगे लिख देते हे की व्यक्ति विशेष की तो बात ही नहीं हे हज़ारो हे खुद मेरी कज़िन सिस्टर ” महिला जाकिर नायक ” बन चुकी हे जाकिर साहब पर हमने साज़िद मरहूम का लेख और इतनी लंबी बहस पेश कर दी हे वहां भी आपने आदत से मज़बूर की हमारी कोई लाइन कोट करके नहीं काटी हे ———— ? और हां आपकी जानकारी के लिए बता दू की हमने तो जाकिर साहब पर किसी कार्यवाही का भी विरोध किया हे क्योकि ये कोई व्यक्ति विशेष की बात ही नही हे और लिखा की उन्हें विचारो के माध्यम से ही हराया जाना चाहिए और साहब बता दू की क्या तो आप हे और क्या जाकिर नायक साहब हे —- ? उनसे भी बहुत ही ज़्यादा बड़े कटरपंथी पुणे के कोई वासी साहब थे जो अफ़ज़ल भाई के पुराने ब्लॉग पर लिखा करते थे हमने तो उनके साथ भी लंबी बातचीत करके उनके साथ भी समझौते का बिंदु बता दिया था उस बिंदु के बाद वासी भाई फिर नहीं आये ना ही उस बिंदु को उन्होंने इस्लाम के खिलाफ बताया था ——– असलम भाई ने लिखा की ”डाक्टर जाकिर नायक का न तो मै सपोट करता हु और उनका विरोध करता हू ” सच तो ये हे की आप विरोध कर ही नहीं सकते हे इसकी वजह मरहूम पत्रकार साज़िद रशीद ने बताया था की ” कोई भी व्यक्ति या संघटन अपने नाम के साथ इस्लामी या मुस्लिम लगा ले तो हम उसका विरोध नहीं कर पाते क्योकि हम सोचते हे और वो भी ऐसे दर्शाता हे की फिर उसका विरोध मतलब इस्लाम का विरोध ” असलम भाई साहब जाकिर नायक हो या कोई भी हो आप उसका विरोध कर ही नहीं सकते हे क्योकि फिर वो आपके ऊपर वही अस्त्र चला देगा जो आप बड़ी ख़ुशी से और उत्साह से हमारे ऊपर चला रहे हे की वो आपको भी इस्लाम के खिलाफ बता देगा इसी अस्त्र और उसके प्रयोग ने पुरे पाकिस्तान को सीरिया इराक को बर्बाद कर डाला इसलिए कहते हे की फेंक दो ये ”हथियार ” वार्ना एक दिन ये हथियार ——————
मैंने इस साइट पर कमेंट करने से पहले ही Brother Zakir hussain जी का Brother सिकंदर हयात जी साइकि समझने की कोशिश की है और काफी हद तक समझ चूका हु
Brother Zakir hussain जी “”””यहूदी चिंतक की पहली श्रेणी के लोग् जो की तथाकथित ईश्वर के कानून को समाज मे स्थापित करने के लिये, प्रयासरत रहते हैं. इस श्रेणी के कुछ लोगो पे गौर फरमाइएगा. लाल मस्जिद के मौलाना अब्दुल अजीज, जो पेशावर के आर्मी स्कूल मे बच्चो को मारने की हरकत पे, तालिबा न (पाकिस्तान वाले) का बचाव करते नजर आये. हाफ़िज सईद मियां, जिन्होने तो ईश्वर की किताब को कंठस्थ ही किया हुआ है. ज़वाहिरी और लादेन जैसे लोग, जिन्होने अपने संगठन का नाम ही अल-कायदा, यानी ईश्वर के नियमो को समाज मे स्थापित करने का मकसद बना लिया. बोको हराम के जाँबाज सिपाही, जिन्होने ईसाई लड़कियों को उठा कर, जबरन कलमा पढ़ा लिया, और इस अपहरण को उसी पवित्र किताब का हवाला देके पवित्र कार्य बतला रहे हैं. मरहुम् इसरार अहमद, जो तमाम अहमदी लोगो को कत्ल करने का कानून लाने की बात करते हो….अंतहीन सूची.””””
Brother Zakir hussain जी आप जैसे महान लोग ने जो उपरोक्त तथाकथित लोगो विवरण के रूप में जो नाम व उनके संगठन की परिभाषा व कार्यो (जो व्यक्तिगत मामलो पर आधारित होते है) को बड़ी आसान शब्दों में इस्लाम या मुसलमानों के खाते में डालते है और पूरी व्यवस्था को चैलेज करते है
और आप जैसी मानसिकता के अन्य लोग एक प्रोपगंडा के तहत समाज में एक ऐसी image बनाते है कि जो कुरआन व हदीश की बात करता है उसे तुरंत ऐसे लोगो के साथ जोड़ कर खूब हल्ला मचाओ और आप लोग द्वारा “” किसी झूठ को सौ बार बोलकर उसे सच बनाने की कोशिश की जाती है कि ताकि उसकी आड़ में, सच को झुठलाया जा सके। Brother Zakir hussain जी का व Brother सिकंदर हयात जी द्वारा बिलकुल इसी थ्योरी पर काम किया जाता है वो बार बार वही शब्द (आतंकवाद, कट्टरपंथ) या किसी गंदे व्यक्ति के नाम का इस्तेमाल कर के इस्लाम व मुस्लिम समाज पर बेतुके व बेबुनयादी इल्जाम लगाया जायेगा ताकि इससे बहुसंख्यक लोग में से उनकी मानसिकता के लोग खुश हो सके और हमलोगों द्वारा उनसे सीधा जवाब दिया जाता है कि “””””” किसी भी हिंसावादी व्यक्ति के स्वयं कर्म को उस के धर्म, देश और समुदाय से जोड़ कर देखा जाने लगे तो शायद कोई भी देश धर्म और समुदाय हिंसा और कट्टरता के हीन भावना से मुक्त नज़र नहीं आयेगा क्योंकि दिन के साथ रात का होना स्वाभाविक हैं। “”””””
Brother Zakir hussain जी Brother सिकंदर हयात जी के कमेन्ट अभी जारी —————–रहेगे
पूरी व्यवस्था? कौनसी व्यवस्था की बात कर रहे हैं. कौनसे सच को हमने झुठलाया?
इस्लाम पे बेतुके इल्जाम? बताइये जरा, कहाँ लगाया, आपकी इस्लाम की परिभाषा से असहमति, इस्लाम पे इल्जाम हो गया?
फिर तो हम भी कह दे कि आप भी मेरी इस्लाम की समझ पे सवाल उठा रहे हो, तो इस्लाम के दुश्मन हो? मैने पहले लिखा कि विकृत व्याख्या की समझ पाले बैठा एक तबका, समाज मे मजहब के नाम पे हर जिससे उलझने के लिये तैयार रहता है. हालांकि उपरी तौर पे मजहब को शान्ती और सद्भाव का बताता है.
Brother Zakir hussain जी Brother सिकंदर हयात जी के कमेन्ट अभी जारी —————–रहेगे
के स्थान पर ये पढ़ा जाये “”” Brother Zakir hussain जी Brother सिकंदर हयात जी द्वारा किये गए कमेन्ट का जवाब अभी जारी —————–रहेगे”””
#मुनाफ़िक़त
“लोगों में कुछ लोग ऐसे भी हैं जो कहते हैं कि हम ईमान लाये अल्लाह और आख़िरत (प्रलय) के दिन पर ,””
हालाँकि वास्तव में वे ईमान वाले नहीं हैं । वे अल्लाह और ईमान लाने वाले लोगों के साथ धोखेबाज़ी कर रहे हैं, मगर वे सिर्फ अपने आपको धोका दे रहे हैं और वे इसकी समझ नहीं रखते | उनके दिलों में रोग (मुनाफ़िक़त या कपटाचार की बीमारी) है जिसे अल्लाह ने और अधिक बढ़ा दिया और उनके लिए दर्दनाक अज़ाब है , इस वजह से कि वे झूठ कहते हैं | और जब उनसे कहा जाता है कि धरती पर फ़साद (बिगाड़) पैदा न करो तो वे यही कहते हैं कि “हम तो सुधार करने वाले हैं” |
ख़बरदार, वास्तव में यही लोग हैं बिगाड़ करने वाले , मगर वे नहीं समझते | और जब उनसे कहा जाता है कि तुम भी उसी तरह ईमान ले लाओ जिस तरह अन्य लोग ईमान लाए हैं तो वे कहते हैं , क्या हम उस तरह ईमान ले आएँ जिस तरह बेवक़ूफ़ लोग ईमान लाए हैं,
ख़बरदार , वास्तव में बेवक़ूफ़ यही लोग हैं,मगर वे नहीं जानते | और जब वे ईमान वालों से मिलते हैं तो कहते हैं कि हम ईमान लाए हैं , और जब अपने शैतानों की बैठक में पहुँचते हैं तो कहते हैं कि हम तुम्हारे साथ हैं,हम तो उनसे (यानी ईमान वालों से) महज़ मज़ाक करते हैं | अल्लाह उनसे मज़ाक कर रहा है और उन्हें उनकी सरकशी में ढील दे रहा है,वे भटकते फिर रहे हैं | ये वे लोग हैं जिन्होंने हिदायत (मार्गदर्शन) के बदले गुमराही ख़रीद ली है , लेकिन यह सौदा इनके लिए फायदेमंद नहीं है , और ये हरगिज़ सही रास्ते पर नहीं हैं || (क़ुरआन ~ 2: 6-16)
निष्कर्ष ::::::
क़ुरआन की यह आयतें मुनाफ़िक़ों (दोग़ली प्रवृत्ति वालों,कपटाचारी) के लिये उतरीं हैं जो अन्दर से मुनाफ़िक़ थे और इस्लाम व मुसलमानों को नुक़सान पंहुचाने के लिए अपने आप को मुसलमान ज़ाहिर करते थे | अल्लाह तआला ने फ़रमाया “माहुम बिमूमिनीन” वो ईमान वाले नहीं | यानी कलिमा पढ़ना, इस्लाम का दावा करना, नमाज़ रोज़े अदा करना मुसलमान होने के लिये काफ़ी नहीं, जब तक कि दिलों में तस्दीक़ न हो |
Brother Zakir hussain जी Brother सिकंदर हयात वर्तमान में आईएसआईएस, बोको हराम, तहरीके तालिबान, अलकायदा, जैसे संघठन व तारिक फ़तेह, तसलीमा नसरीन,सलमान रूश्दी जैसे लोगों को इसी सन्दर्भ में देखने की और उनसे होशियार रहने की ज़रूरत है , खुले दुश्मन से छुपा दुश्मन ज़्यादा ख़तरनाक होता है ||
Brother Zakir hussain जी Brother सिकंदर हयात इस्लाम की स्पष्ट व सही या उदारवादी व्याख्या अल्लाह के अंतिम रसूल व उनके सहाबा द्वारा बताया जा चूका है इसलिए हमको या आप या किसी को कोई नयी परिभाषा बताने की आवशकता नहीं है —————————————–जारी है
बिलकुल बिलकुल हम भी यही तो कहते हे की ” निष्कर्ष ”
क़ुरआन की यह आयतें मुनाफ़िक़ों (दोग़ली प्रवृत्ति वालों,कपटाचारी) के लिये उतरीं हैं जो अन्दर से मुनाफ़िक़ थे और इस्लाम व मुसलमानों को नुक़सान पंहुचाने के लिए अपने आप को मुसलमान ज़ाहिर करते थे | अल्लाह तआला ने फ़रमाया “माहुम बिमूमिनीन” वो ईमान वाले नहीं | यानी कलिमा पढ़ना, इस्लाम का दावा करना, नमाज़ रोज़े अदा करना मुसलमान होने के लिये काफ़ी नहीं, जब तक कि दिलों में तस्दीक़ न हो | ” हम भी इन्ही ”कपटाचारियों ” के खिलाफ ही तो लिखते हे जो बात तो करते हे इस्लाम की आख़िरत की मगर लगे रहते हे दुनियादारी की हवस में दौलत ताकत रुतबे की हवस में हम इन्ही लोगो का विरोध करते हे इसलिए आप देखे की हमने कभी ऐसे धार्मिक लोगो का विरोध नहीं किया जो इस्लाम की आड़ में दुनियादारी की हवस नहीं पूरी कर रहे हे अगर किया हो तो तो दिखा दे ———- ? जिन हवस में डूबे कुछ लोगो का हम विरोध करते हे पता नहीं उनके खिलाफ लिखना असलम भाई को क्यों पसंद नहीं हे —— ? अल्लाह जाने . लेकिन हम ये बाते अल्लाह पर छोड़ते हे असलम भाई की तरह ” फैसले फतवे ”सुनाने का हमें शोक नहीं हे इसी ”शोक ” ने हमारे पड़ोस में एक खुशहाल रहे देश को कब्रिस्तान में बदला हे लेकिन तक्क्बुर देखिये किस कदर भरा हुआ हे असलम भाई में की कभी भी तो ऐसा नहीं होता की जो हमने कहा लिखा उसे कोट नहीं करते हे की भाई देखो तुमने ये ये ये गलत लिखा हे कभी नहीं करते हे सीधे खुद फैसला सुनाते हे इस कदर ईगो गरूर भर चुका हे इसलिए तो हम कहते हे की ये ‘साइकि ” घर गली से लेकर हर जगह क्लेश करवा ही देती हे इस कदर घमण्ड भर देती हे ये सोच ये साइकि और ये साइकि वही लोग और उनके दाए बाए के लोग फैलाते हे जो इस्लाम की आड़ में अपनी दुनियावी हवस पूरी कर रहे हे तो ये तो कभी हमारी लाइन कोट नहीं करते हे मगर हम तो करते ही रहते हे लिखते हे ” सिकंदर हयात इस्लाम की स्पष्ट व सही या उदारवादी व्याख्या अल्लाह के अंतिम रसूल व उनके सहाबा द्वारा बताया जा चूका है इसलिए हमको या आप या किसी को कोई नयी परिभाषा बताने की आवशकता नहीं है ” तो हमने कब नयी परिभाषा बताई हे ज़रा दिखाए———— ? सौ बार लिख चुके की लेख भी मौलवी बने नसीरुद्दिन शाह के बयान पर आधरित था तो वो बयान कैसे गलत था ———–? या आपके हिसाब से इस्लाम के खिलाफ था सौ बार पूछ चुके मगर कुछ नहीं बताते हे सीधे अपना फैसला सुनाते हे इस कदर तक्क्बुर भरा हुआ हे
अल कायदा, बोको हराम की तो हर आम मुसलमान मुखालफत कर लेता है, क्योंकि ये उस विकृत परिभाषा से उपजी नफरत की आखिरी सीढ़ी पे है और हमारे आस पास नहीं। लेकिन हम उसकी पहली सीढियो को नजर अंदाज करते हैं, जो हमारे आस पास ही है।
इस सूची में मैंने एक नाम, मरहूम डॉ इसरार अहमद का भी जोड़ा है। वो इसलिए कि इनका बड़ा आदर मैंने, तथाकथित मुस्लिम आलिमो में पाया। सारे अहमदी लोगो को मौत की सजा की बात का वीडियो लिंक भी मैंने किसी एक लेख पे टिप्पणी में दिया था। किसी मरहूम की आलोचना करना मेरा मकसद नहीं। बात व्याख्या की है, और आज भी इसरार अहमद की तफ़सीर, सबसे ज्यादा सुनी और देखी जाती है। बकि इस्लामी मूल्यों पे आधारित व्यवस्था का मैं पूरा हिमायती हूँ, और मेरा मानना है कि वैश्विक स्तर पे अल्लाह के फजल से, वो विभिन्न क्षेत्रों में नई ऊंचाइयों को छू रहा है। उम्मा से जुडी मेरी टिपण्णी में मैंने उसका उल्लेख किया है। फिर पूरी व्यवस्था पे सवाल खड़े करने का इल्जाम ही गलत है।
लोगो का हवाला हम इसलिए दे रहे है कि मुनाफिक किस कदर, हमारे समाज पे हावी हो गए हैं कि बहुसंख्यक लोगो ने उनकी इस्लाम की समझ को ही सही मान लिया है। भले ही वो समर्थक हो या आलोचक।
बहुसंख्यक शब्द मैं पूरी एहतियात से लिख रहा हूँ। भ ले ही आतंकी बहुत छोटी सी अकलियत हो।
Brother Zakir hussain जी आप कई किस्म की बातो को एक साथ समेकित करके कोई बात कहते है इसलिए आप के जवाब देने में थोडा समय लुगा क्योकि मुझे थोडा Brother सिकंदर हयात जी से नूरा कुश्ती करनी है वो भी बिना किस तथाकथित हथियार के
वैसे मै कोशिश करुगा की Brother Zakir hussain जी व Brother सिकंदर हयात जी के मुद्दे को लेते हु कोई बात करू
ये एक बहुत ही जरुरी बहस हे हर मुस्लिम के लिए , पूरी सुने हम तो इसमें ज़ैद हामिद को छोड़ कर बाकी तीनो से पूरी तरह सहमत हे खासकर फौज़िया सईद ने तो बहुत ही सटीक बात बताई की एक से लेकर दस तक स्टेप होते हे बहुत से लोग एक से नो तक उछल कूद कर साथ देते हे जब दसवा स्टेप हो जाता हे तो सौ किन्तु परंतु करने लगते हे https://www.youtube.com/watch?v=3uWmi6NhpSs
इस्लाम जब कहता हे की भई आख़िरत की तैयारी करो दुनियादारी से ज़्यादा दिल मत लगाओ तो इसका मतलब हमारी समझ में सिर्फ धार्मिक गतिविधियां ही नहीं हे बल्कि ये भि हे की दुनियादारी की हवस के पीछे मत भागो दौलत ताकत सत्ता विलास अहमियत की भूख के पीछे मत अंधे होकर मत भागो , ये हे हमारी तो इस्लाम की समझ . अब क्या हमने कभी ऐसे धर्माधिकारी के खिलाफ लिखा या इशारा किया हे जो धार्मिक बातो की आड़ में अपनी हवस ( हवस कई तरह की होती हे ) के पीछे नहीं भाग रहा हे हमने सिर्फ उनके ही खिलाफ लिखा वैसे भी अगर कोई सीधा सीधा मुल्ला हे ( हे भी ऐसे ) जो दाल रोटी खा रहा हे अल्लाह अल्लाह कर रहा हे तो हम उसे भी कुछ नहीं कहते हे भले ही किसी हल्के फुल्के मुद्दे पर कोई मतभेद हो भी तो भी नहीं की भाई ठीक हे तुम्हारी जीवनशैली . हम तो विरोध करते हे उन धर्म के बड़े बड़े व्यापारियों का नेताओ का सारी गन्द इन्होंने ही मचाई हुई हे सारा कटरपंथ सारा क्लेश इन्होंने ही फैलाया हुआ हे मौलाना वहिदुद्दिन खान भी तो हे क्या हमने उनके खिलाफ कभी एक लफ्ज़ भी कहा — नहीं कहा क्योकि हमने कभी नहीं सूना की वो मज़हब की आड़ में दौलत ताकत और रुतबे की दौड़ में हे नहीं सूना इसलिए नहीं लिखा जिनके बारे में सूना उन्ही के के खिलाफ लिखा आगे भी लिखते रहेंगे — ? क्या गलत करते हे भला अब सवाल ये हे की असलम भाई को क्यों बुरा लगा बात यही हे की ये सब इंसानी फ़ितरते हे इन्होंने बहुत अरसे हे हमें बात बहस करते देखा इंसान की फितरत में कंपीटिशन हे तो इनकी इच्छा जागी की में इस साइट के लोगो को बहस में हराउ हालांकि में कह चुका हु की बहस को हार जित का मसला नहीं लेना चाहिए खेर इन्होंने लिया और एक अच्छे पहलवान की तरह हमें चित्त करने की कोशिश में लग गए कई दिन से चल रही कुश्ती के बाद भी जब इन्हें ऐसा लगा की ये चित्त नहीं कर पा रहे हे तो ये ” फाउल ” खेलने लगे . इसलिए हम कई बार लिख चुके हे की धर्म आस्था अपने आप में कोई मुद्दा या क्लेश का विषय नहीं होते हे .बल्कि ये सब तो इंसानी फ़ितरते हे स्वभाव हे जो क्लेश करवाते हे जाकिर नायक वाले लेख पर बहस में ये विस्तार से बताया था इसी तरह लेख के लड़के का मसला हे अगर वो दाढ़ी रखे नमाज़ रोजा करे सादा जीवन जिए मरीजो का इलाज करे अल्लाह अल्लाह करे तो हमें कोई ऐतराज़ नहीं हे मोस्ट वेलकम . लेकिन देखना पता करना जांच का विषय ये था की कही वो वो धर्म के बड़े बड़े व्यापारियों और उनके कुछ ” कर्मचारियों ” दुआरा फैलाये कटरपंथ इन्टॉलरेंस की तरफ तो नहीं जा रहा हे————- ? यही इस लेख का विषय था .जो स्वार्थी धर्म के व्यापारी हे वो ऐसे लेख नहीं चाहते हे क्योकि उन्हें डर रहता हे की अगर ये सोच फैली तो ऐसे तो लोग धीरे धीरे धीरे धीरे – बहस बात विचार चिंतन करते करते करते करते एक दिन उनकी असलियत उनकी लूट उनका शोषण उनकी हवस भी पहचान जाएंगे
असलम भाई वैसे तो बहस और चिंतन को हार जित की ” कुश्ती ” समझना ही नहीं चाहिए लेकिन अगर आपको ” कुश्ती ” लड़नी भी हे तो भाई ”कुश्ती ” में ”हथियारों ” का क्या काम ——— ? आप तो जीत की हवस में ये तक देखना भूल गए की जो हथियार आपने उठा लिया हे उस हथियार से करोड़ो लोग एक दूसरे पर वार करते हे लाखो मारे जा रहे हे तब भी आप उस ”हथियार ” को उस अस्त्र को इतनी ख़ुशी ख़ुशी लहरा रहे हे —— ? ज़रा संभाल के ये हथियार आप पर भी चल सकता हे फ़र्ज़ करे की अगर आप बरेलवी हे तो पुणे के महा कट्टरपंथी वासी भाई शियाओ और बरेलवियो को साफ साफ गेर मुस्लिम घोषित करते थे अगर आप देवबंदी हे तो भाई पाकिस्तान के एक महापुरुष ज़ैद हामिद देवबंदियों को क्या क्या कहते हे ये ही सुन लीजिये . तो इसलिए कहते हे की भाई हथियार हाथ में लेकर बहुत अच्छा लगता हे हथियार हाथ में लेकर दुसरो को डराना दबाना इंसान को बहुत अच्छा लगता हे . कमजोर व्यक्ति भी हथियार हाथ में लेकर खुद को शक्तिशाली महसूस करता हे लेकिन हमारी तो सलाह हे की फेंक दो ये हथियार वार्ना ——————-
Brother Zakir hussain जी व Brother सिकंदर हयात जी पहले मै कहना चाहत हु की क्योकि कुछ लोगो द्वारा या आप जैसे लोगो द्वारा बात बात में ये सुन्नी, शिया, बरेलवी, सूफी देवबंदी, अहमदी, अहले हदीश आदि के बारे में ये उनके मसले या उनके कार्यशैली पर बाते कही जाती है और ये उनलोगों नीति है जो मसलको के बारे में बात कर कर उन्हें हिंसक रूप देना चाहते है और ये बताना चाहते है की मुस्लिम जगत सबसे जयादा मौते इन्ही की वजह से होती जबकि वास्तविकता ये है इराक व सीरिया आदि देशो में मुख्य मुद्दा राजनैतिक व आर्थिक है आप जैसे लोगो ने चिल्ला चिल्ला कर यही साबित करना चाहा है की सब धर्म के नाम पर हो रहा उस धर्म के नाम पर जो एक शांति का धर्म है
बहरहाल में इसी विषय में कुछ डाटा जो मैंने सोशल साइट पर डिबेट में रखा था उसे यहाँ रखना चाहता हु ताकि सुन्नी, शिया, बरेलवी, सूफी देवबंदी, अहमदी, अहले हदीश आदि के बारे में स्थिती स्पस्ट हो सके इनकी इस्लाम व कुरआन की दृष्टि में क्या अहमियत है
चुकी Brother Zakir hussain जी व Brother सिकंदर हयात जी द्वारा इन्ही के जुड़े बातो व मुद्दे को रख कर अधिकतर बात कहते है
इस्लाम के सभी अनुयायी ख़ुद को मुसलमान कहते हैं लेकिन इस्लामिक क़ानून (फ़िक़ह) और इस्लामिक इतिहास की अपनी-अपनी समझ के आधार पर मुसलमान पंथों में बंटे हैं और देखा जाए तो मुसलमानों को दो हिस्सों-सुन्नी और शिया में बांटा जा सकता है
शिया-सुन्नी दोनों ही इस बात पर सहमत हैं कि अल्लाह एक है, मोहम्मद (सल्लल्लाहुअलैहि वसल्लम) उनके दूत हैं और क़ुरान आसमानी किताब यानी अल्लाह की भेजी हुई किताब है लेकिन दोनों समुदाय में विश्वासों और पैग़म्बर मोहम्मद (सल्लल्लाहुअलैहि वसल्लम) की मौत के बाद उनके उत्तराधिकारी के मुद्दे पर गंभीर मतभेद हैं. इन दोनों के इस्लामिक क़ानून भी अलग-अलग हैं.
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सुन्नी या सुन्नत का मतलब उस तौर तरीक़े को अपनाना है जिस पर पैग़म्बर मोहम्मद (570-632 ईसवी) ने ख़ुद अमल किया हो और इसी हिसाब से वे सुन्नी कहलाते हैं.एक अनुमान के मुताबिक़, दुनिया के लगभग 80-85 प्रतिशत मुसलमान सुन्नी हैं जबकि 15 से 20 प्रतिशत के बीच शिया हैं.
पैग़म्बर मोहम्मद (सल्लल्लाहुअलैहि वसल्लम) के बाद अबु-बकर (रजि.) (632-634 ईसवी) मुसलमानों के नए नेता बने, जिन्हें ख़लीफ़ा कहा गया और उनके बाद हज़रत उमर (रजि.) (634-644 ईसवी), हज़रत उस्मान (रजि.) (644-656 ईसवी) और हज़रत अली (रजि.) (656-661 ईसवी) मुसलमानों के नेता बने.
इन चारों को ख़ुलफ़ा-ए-राशिदीन यानी सही दिशा में चलने वाला कहा जाता है. इसके बाद से जो लोग आए, वो राजनीतिक रूप से तो मुसलमानों के नेता कहलाए.
सुन्नी इस्लाम में इस्लामी क़ानून के चार प्रमुख स्कूल हैं.आठवीं और नवीं सदी में लगभग 150 साल के अंदर चार प्रमुख धार्मिक नेता पैदा हुए. उन्होंने इस्लामिक क़ानून की व्याख्या की और फिर आगे चलकर उनके मानने वाले उस फ़िरक़े के समर्थक बन गए. ये चार इमाम थे- इमाम अबू हनीफ़ा (699-767 ईसवी), इमाम अबू हनीफ़ा के मानने वाले हनफ़ी कहलाते हैं. इस फ़िक़ह या इस्लामिक क़ानून के मानने वाले मुसलमान दो हैं.
एक देवबंदी हैं तो
दूसरे बरेलवी हैं
दोनों ही नाम उत्तर प्रदेश के दो ज़िलों, देवबंद और बरेली के नाम पर है दरअसल 20वीं सदी के शुरू में दो धार्मिक नेता मौलाना अशरफ़ अली थानवी (1863-1943) और अहमद रज़ा ख़ां बरेलवी (1856-1921) ने इस्लामिक क़ानून की अलग-अलग व्याख्या की अशरफ़ अली थानवी का संबंध दारुल-उलूम देवबंद मदरसा से था, जबकि आला हज़रत अहमद रज़ा ख़ां बरेलवी का संबंध बरेली से था इसी तरह इमाम शाफ़ई (767-820 ईसवी), इमाम हंबल (780-855 ईसवी) और इमाम मालिक (711-795 ईसवी).
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सल्फ़ी, वहाबी और अहले हदीस
सुन्नियों में एक समूह ऐसा भी है जो किसी एक ख़ास इमाम के अनुसरण की बात नहीं मानता और उसका कहना है कि शरीयत को समझने और उसका सही ढंग से पालन करने के लिए सीधे क़ुरान और हदीस (पैग़म्बर मोहम्मद सल्लल्लाहुअलैहि वसल्लम के कहे हुए शब्द) का अध्ययन करना चाहिए.
इसी समुदाय को सल्फ़ी और अहले-हदीस और वहाबी आदि के नाम से जाना जाता है. यह संप्रदाय चारों इमामों के ज्ञान, उनके शोध अध्ययन और उनके साहित्य की क़द्र करता है.
लेकिन उसका कहना है कि इन इमामों में से किसी एक का अनुसरण अनिवार्य नहीं है. उनकी जो बातें क़ुरान और हदीस के अनुसार हैं उस पर अमल तो सही है लेकिन किसी भी विवादास्पद चीज़ में अंतिम फ़ैसला क़ुरान और हदीस का मानना चाहिए.
शिया###
शिया मुसलमानों की धार्मिक आस्था और इस्लामिक क़ानून सुन्नियों से काफ़ी अलग हैं. वह पैग़म्बर मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के बाद ख़लीफ़ा नहीं बल्कि इमाम नियुक्त किए जाने के समर्थक हैं.
उनका मानना है कि पैग़म्बर मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के बाद उनके असल उत्तारधिकारी उनके दामाद हज़रत अली थे. शिया मुसलमान पैग़म्बर मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के बाद बने पहले तीन ख़लीफ़ा को अपना नेता नहीं मानते बल्कि उन्हें ग़ासिब कहते हैं. ग़ासिब अरबी का शब्द है जिसका अर्थ हड़पने वाला होता है.
उनका विश्वास है कि जिस तरह अल्लाह ने पैग़म्बर मोहम्मद (सल्लल्लाहुअलैहि वसल्लम) को अपना पैग़म्बर बनाकर भेजा था उसी तरह से उनके दामाद अली को भी अल्लाह ने ही इमाम या नबी नियुक्त किया था और फिर इस तरह से उन्हीं की संतानों से इमाम होते रहे.
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मालिकी####
इमाम अबू हनीफ़ा के बाद सुन्नियों के दूसरे इमाम, इमाम मालिक हैं जिनके मानने वाले एशिया में कम हैं. उनकी एक महत्वपूर्ण किताब ‘इमाम मोत्ता’ के नाम से प्रसिद्ध है.
उनके अनुयायी उनके बताए नियमों को ही मानते हैं. ये समुदाय आमतौर पर मध्य पूर्व एशिया और उत्तरी अफ्रीका में पाए जाते हैं.
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शाफ़ई#####
शाफ़ई इमाम मालिक के शिष्य हैं और सुन्नियों के तीसरे प्रमुख इमाम हैं. मुसलमानों का एक बड़ा तबक़ा उनके बताए रास्तों पर अमल करता है, जो ज़्यादातर मध्य पूर्व एशिया और अफ्रीकी देशों में रहता है.
आस्था के मामले में यह दूसरों से बहुत अलग नहीं है लेकिन इस्लामी तौर-तरीक़ों के आधार पर यह हनफ़ी फ़िक़ह से अलग है. उनके अनुयायी भी इस बात में विश्वास रखते हैं कि इमाम का अनुसरण करना ज़रूरी है.
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हंबली####
सऊदी अरब, क़तर, कुवैत, मध्य पूर्व और कई अफ्रीकी देशों में भी मुसलमान इमाम हंबल के फ़िक़ह पर ज़्यादा अमल करते हैं और वे अपने आपको हंबली कहते हैं.
सऊदी अरब की सरकारी शरीयत इमाम हंबल के धार्मिक क़ानूनों पर आधारित है. उनके अनुयायियों का कहना है कि उनका बताया हुआ तरीक़ा हदीसों के अधिक करीब है.
इन चारों इमामों को मानने वाले मुसलमानों का ये मानना है कि शरीयत का पालन करने के लिए अपने अपने इमाम का अनुसरण करना ज़रूरी है.
सुन्नी बोहरा#####
गुजरात, महाराष्ट्र और पाकिस्तान के सिंध प्रांत में मुसलमानों के कारोबारी समुदाय के एक समूह को बोहरा के नाम से जाना जाता है. बोहरा, शिया और सुन्नी दोनों होते हैं.
सुन्नी बोहरा हनफ़ी इस्लामिक क़ानून पर अमल करते हैं जबकि सांस्कृतिक तौर पर दाऊदी बोहरा यानी शिया समुदाय के क़रीब हैं.
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अहमदिया#######
हनफ़ी इस्लामिक क़ानून का पालन करने वाले मुसलमानों का एक समुदाय अपने आप को अहमदिया कहता है. इस समुदाय की स्थापना भारतीय पंजाब के क़ादियान में मिर्ज़ा ग़ुलाम अहमद ने की थी.
इस पंथ के अनुयायियों का मानना है कि मिर्ज़ा ग़ुलाम अहमद ख़ुद नबी का ही एक अवतार थे.
उनके मुताबिक़ वे खुद कोई नई शरीयत नहीं लाए बल्कि पैग़म्बर मोहम्मद की शरीयत का ही पालन कर रहे हैं लेकिन वे नबी का दर्जा रखते हैं. मुसलमानों के लगभग सभी संप्रदाय इस बात पर सहमत हैं कि मोहम्मद साहब के बाद अल्लाह की तरफ़ से दुनिया में भेजे गए दूतों का सिलसिला ख़त्म हो गया है.
लेकिन अहमदियों का मानना है कि मिर्ज़ा ग़ुलाम अहमद ऐसे धर्म सुधारक थे जो नबी का दर्जा रखते हैं.
बस इसी बात पर मतभेद इतने गंभीर हैं कि मुसलमानों का एक बड़ा वर्ग अहमदियों को मुसलमान ही नहीं मानता. हालांकि भारत, पाकिस्तान और ब्रिटेन में अहमदियों की अच्छी ख़ासी संख्या है.
पाकिस्तान में तो आधिकारिक तौर पर अहमदियों को इस्लाम से ख़ारिज कर दिया गया है.
इस्ना अशरी#####
सुन्नियों की तरह शियाओं में भी कई संप्रदाय हैं लेकिन सबसे बड़ा समूह इस्ना अशरी यानी बारह इमामों को मानने वाला समूह है. दुनिया के लगभग 75 प्रतिशत शिया इसी समूह से संबंध रखते हैं. इस्ना अशरी समुदाय का कलमा सुन्नियों के कलमे से भी अलग है.
उनके पहले इमाम हज़रत अली हैं और अंतिम यानी बारहवें इमाम ज़माना यानी इमाम महदी हैं. वो अल्लाह, क़ुरान और हदीस को मानते हैं, लेकिन केवल उन्हीं हदीसों को सही मानते हैं जो उनके इमामों के माध्यम से आए हैं.
क़ुरान के बाद अली के उपदेश पर आधारित किताब नहजुल बलाग़ा और अलकाफ़ि भी उनकी महत्वपूर्ण धार्मिक पुस्तक हैं. यह संप्रदाय इस्लामिक धार्मिक क़ानून के मुताबिक़ जाफ़रिया में विश्वास रखता है. ईरान, इराक़, भारत और पाकिस्तान सहित दुनिया के अधिकांश देशों में इस्ना अशरी शिया समुदाय का दबदबा है.
ज़ैदिया#######
शियाओं का दूसरा बड़ा सांप्रदायिक समूह ज़ैदिया है, जो बारह के बजाय केवल पांच इमामों में ही विश्वास रखता है. इसके चार पहले इमाम तो इस्ना अशरी शियों के ही हैं लेकिन पांचवें और अंतिम इमाम हुसैन (हज़रत अली के बेटे) के पोते ज़ैद बिन अली हैं जिसकी वजह से वह ज़ैदिया कहलाते हैं.
उनके इस्लामिक़ क़ानून ज़ैद बिन अली की एक किताब ‘मजमऊल फ़िक़ह’ से लिए गए हैं. मध्य पूर्व के यमन में रहने वाले हौसी ज़ैदिया समुदाय के मुसलमान हैं.
इस्माइली शिया######
शियों का यह समुदाय केवल सात इमामों को मानता है और उनके अंतिम इमाम मोहम्मद बिन इस्माइल हैं और इसी वजह से उन्हें इस्माइली कहा जाता है. इस्ना अशरी शियों से इनका विवाद इस बात पर हुआ कि इमाम जाफ़र सादिक़ के बाद उनके बड़े बेटे इस्माईल बिन जाफ़र इमाम होंगे या फिर दूसरे बेटे.
इस्ना अशरी समूह ने उनके दूसरे बेटे मूसा काज़िम को इमाम माना और यहीं से दो समूह बन गए. इस तरह इस्माइलियों ने अपना सातवां इमाम इस्माइल बिन जाफ़र को माना. उनकी फ़िक़ह और कुछ मान्यताएं भी इस्ना अशरी शियों से कुछ अलग है.
आप फिर गलत ट्रेक पर चले गए अरे साहब अगर शिया सुन्नी देवबंदी बरेलवी अहमदी सलाफी वहाबी हे भी ,या ऐसा कुछ नहीं हे , हे भी , तब भी , ना हो तब भी हमें कोई ऐतराज़ नहीं हे . ना हमारे लिए ये कोई मुद्दा हे हमारे शांति उदारता इन्साफ बराबरी शोषण रहित समाज हमारे मुद्दे हे उसी से जुड़ा हमारा लेखन हे अब असलम साहब मुझे आज्ञा दीजिये काफी दिनों से इस बहस के चक्कर में में अगला लेख नहीं लिख पा रहा हु ” कुश्ती का मैडल आपका ” मुझे इज़ाज़त दीजिये आगे अगले लेख पर आपकी राय का स्वागत होगा शुक्रिया
मै बीमारी की जड़ व कुछ लोगो का खेल समझ चूका और उसी ट्रेक पर आउगा wait
दाऊदी बोहरा###
बोहरा का एक समूह, जो दाऊदी बोहरा कहलाता है, इस्माइली शिया फ़िक़ह को मानता है और इसी विश्वास पर क़ायम है. अंतर यह है कि दाऊदी बोहरा 21 इमामों को मानते हैं.
उनके अंतिम इमाम तैयब अबुल क़ासिम थे जिसके बाद आध्यात्मिक गुरुओं की परंपरा है. इन्हें दाई कहा जाता है और इस तुलना से 52वें दाई सैय्यदना बुरहानुद्दीन रब्बानी थे. 2014 में रब्बानी के निधन के बाद से उनके दो बेटों में उत्तराधिकार का झगड़ा हो गया और अब मामला अदालत में है.
बोहरा भारत के पश्चिमी क्षेत्र ख़ासकर गुजरात और महाराष्ट्र में पाए जाते हैं जबकि पाकिस्तान और यमन में भी ये मौजूद हैं. यह एक सफल व्यापारी समुदाय है जिसका एक धड़ा सुन्नी भी है.
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खोजा#####
खोजा गुजरात का एक व्यापारी समुदाय है जिसने कुछ सदी पहले इस्लाम स्वीकार किया था. इस समुदाय के लोग शिया और सुन्नी दोनों इस्लाम मानते हैं.
ज़्यादातर खोजा इस्माइली शिया के धार्मिक क़ानून का पालन करते हैं लेकिन एक बड़ी संख्या में खोजा इस्ना अशरी शियों की भी है.
लेकिन कुछ खोजे सुन्नी इस्लाम को भी मानते हैं. इस समुदाय का बड़ा वर्ग गुजरात और महाराष्ट्र में पाया जाता है. पूर्वी अफ्रीकी देशों में भी ये बसे हुए हैं.
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नुसैरी###
शियों का यह संप्रदाय सीरिया और मध्य पूर्व के विभिन्न क्षेत्रों में पाया जाता है. इसे अलावी के नाम से भी जाना जाता है. सीरिया में इसे मानने वाले ज़्यादातर शिया हैं और देश के राष्ट्रपति बशर अल असद का संबंध इसी समुदाय से है.
इस समुदाय का मानना है कि अली वास्तव में भगवान के अवतार के रूप में दुनिया में आए थे. उनकी फ़िक़ह इस्ना अशरी में है लेकिन विश्वासों में मतभेद है. नुसैरी पुर्नजन्म में भी विश्वास रखते हैं और कुछ ईसाइयों की रस्में भी उनके धर्म का हिस्सा हैं.
अपने ही देश में लाखो बोहरा मुस्लिम महिलाये जवानी की उम्र अपना खतना करवाने को भी मजबूर की जाती है यह तो आप्ने बतलाया ही नहीं है मिस्र आदि अनेक देशो में कई करोड़ यानि आबादी का ९०% महिलाये खतना करवाए होती है
rajk.hyd जी इस टाइप के सवाल आप जैसे विचारधारा के लोगो द्वारा सोशल साइट पर खूब किये जाते है और ऐसे सवालों का जवाब कई लोगो द्वारा मुकम्मल/माकूल जवाब कमेंट व लेख के माध्यम से दिया जा चूका है मेरे मित्र द्वार facebook ग्रुप चलाकर ऐसे सवालों के जवाब दिया जाता है इसलिय मै यहाँ पुनरावृति नहीं करना चाहता बहरहाल अगर आप जवाब चाहते है तो मै अभी नहीं दे पहुगा क्योकि मुझे अभी Brother Zakir hussain जी व Brother सिकंदर हयात जी के सवालों का जवाब देना चाहता
सादर अनुरोध
अब प्रश्न ये बनता है की इस्लाम सही धर्म है तो मुसलमान फ़िको (Group) में क्यों बटा है कौन सही है कौन गलत हम कैसे पहचाने सही रास्ते पर कौन है ?
जवाब ##########
किसी धर्म या मजहब को समझने के लिए मजहब के मानने वालो को नहीं देखने चाहिए और न ही सोसाइटी को देखकर कोई नतीजा निकलना चाहिये बल्कि उनकी मजहबी किताबो में क्या लिखा है वो कसोटी होता है, क्योकि आज बहुत बड़ी भीड आँखे बंद करके धार्मिक गुरुओं और संतो के पीछे चल रही है या अपनी अटकलों या अपनी मन की इच्छाओं को अपने ईश्वर बना रखा है. कुरआन और हदीस (पैग़म्बर मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के वचन) में कही भी शिया या सुन्नी का नाम नहीं आया है तो पता चला यह नाम धार्मिक गुरुओं ने दिया है न की अल्लाह और उनके पैगंबर ने कुरआन में नेक लोगो को तीन गुणओं (सिफातो) से पुकारा गया है
1.मुस्लिम
2.मोमिन
3. मोहसिन
कुरआन में इन तीनो गुणओं (सिफातो) को दिया गया है निचे कुरआन की आयतों को कोड करुगा
सभी मुसलमानों को पवित्र क़ुरआन और प्रामाणिक हदीसों का ही अनुकरण करना चाहिए और आपस में फूट नहीं डालनी चाहिए।
इस्लाम में समुदायों और अलगाव की मनाही है
पवित्र क़ुरआन का आदेश हैः
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‘‘जिन लोगों ने अपने दीन को टुकड़े-टुकड़े कर दिया और गिरोह-गिरोह बन गए, निश्चय ही तुम्हारा उनसे कोई वास्ता नहीं, उनका मामला तो अल्लाह के सुपुर्द है और वही उनको बताएगा कि उन्होंने क्या कुछ किया है।’’ (पवित्र क़ुरआन , 6ः159)
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इस पवित्र आयत से यह स्पष्ट होता है कि अल्लाह तआला ने हमें उन लोगों से अलग रहने का आदेश दिया है जो दीन में विभाजन करते हों और समुदायों में बाँटते हों।
किन्तु आज जब किसी मुसलमान से पूछा जाए कि ‘‘तुम कौन हो?’’ तो सामान्य रूप से कुछ ऐसे उत्तर मिलते हैं, ‘‘मैं सुन्नी हूँ, मैं शिया हूँ, ’’इत्यादि।
कुछ लोग स्वयं को हनफ़ी, शाफ़ई, मालिकी और हम्बली भी कहते हैं, कुछ लोग कहते हैं ‘‘मैं देवबन्दी, या बरेलवी हूँ।’’
हमारे निकट पैग़म्बर
(सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) मुस्लिम थे
ऐसे मुसलमान से कोई पूछे कि हमारे प्यारे पैग़म्बर (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) कौन थे?
क्या वह हन्फ़ी या शाफ़ई थे। क्या मालिकी या हम्बली थे? नहीं, वह मुसलमान थे।
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दूसरे सभी पैग़म्बरों की तरह जिन्हें अल्लाह तआला ने उनसे पहले मार्गदर्शन हेतु भेजा था।
पवित्र क़ुरआन की सूरह 3, आयत 25 में स्पष्ट किया गया है ————————
कि हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम भी मुसलमान ही थे। इसी पवित्र सूरह की 67वीं आयत में पवित्र क़ुरआन बताता है कि हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम कोई यहूदी या ईसाई नहीं थे बल्कि वह ‘‘मुस्लिम’’ थे।
पवित्र क़ुरआन हमे स्वयं को ‘‘मुस्लिम’’ कहने का आदेश देता है
इस्लाम के सभी महान उलेमा का सम्मान कीजिए
हमें इस्लाम के समस्त उलेमा का, चारों इमामों सहित अनिवार्य रूप से सम्मान करना चाहिए। इमाम अबू हनीफ़ा (रहमतुल्लाहि अलैहि), इमाम शफ़ई (रहमतुल्लाहि अलैहि),इमाम हम्बल (रहमतुल्लाहि अलैहि), और ईमाम मालिक (रहमतुल्लाहि अलैहि),, ये सभी हमारे लिए समान रूप से आदर के पात्र हैं। ये सभी महान उलेमा और विद्वान थे और अल्लाह तआला उन्हें उनकी दीनी सेवाओं का महान प्रतिफल प्रदान करे (आमीन) इस बात पर कोई आपत्ति नहीं कि अगर कोई व्यक्ति इन इमामों में से किसी एक की विचारधारा से सहमत हो। किन्तु जब पूछा जाए कि तुम कौन हो? तो जवाब केवल ‘‘मैं मुसलमान हूँ’’ ही होना चाहिए।
कुछ लोग फ़िरकषें (समुदायों) के तर्क में पैग़म्बर मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की एक हदीस पेश करते हैं जो सुनन अबू दाऊद में (हदीस नंबर 4879) बयान की गई है जिसमें आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) का यह कथन बताया गया है कि ‘‘मेरी उम्मत 73 फिरकों में बंट जाएगी।’’
इस हदीस से स्पष्ट होता है कि रसूल अल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने मुसलमानों में 73 फिरकों बनने की भाविष्यवाणी फ़रमाई थी। लेकिन आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने यह कदापि नहीं फ़रमाया कि मुसलमानों को फिरकों में बंट जाने में संलग्न हो जाना चाहिए।
पवित्र क़ुरआन हमें यह आदेश देता है कि हम फिरकों में विभाजित न हों। वे लोग जो पवित्र क़ुरआन और सच्ची हदीसों की शिक्षा में विश्वास रखते हों और फिरकों और गुट न बनाएं वही सीधे रास्ते पर हैं।
तिर्मिज़ी शरीफ़ की 171वीं हदीस के अनुसार हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया है कि ‘‘मेरी उम्मत 73 फ़िरकषें में बंट जाएगी, और वे सब जहन्नम की आग में जलेंगे, सिवाए एक फिरके के…।’’
सहाबा किराम (रज़ि.) ने इस पर रसूल अल्लाह (सल्लॉ) से प्रश्न किया कि वह कौन सा समूह होगा (जो जन्नत में जाएगा) तो आप (सल्लॉ) ने जवाब दिय ‘‘केवल वह जो मेरे और मेरे सहाबा का अनुकरण करेगा।’’
पवित्र क़ुरआन की अनेक आयतों में अल्लाह और अल्लाह के रसूल के आज्ञा पालन का आदेश दिया गया है। अतः एक सच्चे मुसलमान को पवित्र क़ुरआन और हदीस शरीफ़ का ही अनुकरण करना चाहिए।
वह किसी भी आलिम (धार्मिक विद्वान) के दृष्टिकोण से सहमत भी हो सकता है जब कि उसका दृष्टिकोण पवित्र क़ुरआन और हदीस शरीफ़ के अनुसार हो। यदि उस आलिम के विचार पवित्र क़ुरआन और हदीस के विपरीत हों तो उनका कोई अर्थ और महत्व नहीं, चाहे उन विचारों का प्रस्तुतकर्ता कितना ही बड़ा विद्वान क्यों न हो।
यदि तमाम मुसलमान पवित्र क़ुरआन का अध्ययन पूरी तरह समझकर ही कर लें और मुस्तनद (प्रामाणिक) हदीसों का अनुकरण करें तो अल्लाह ने चाहा तो सभी परस्पर विरोधाभास समाप्त हो जाएंगे और एक बार फिर मुस्लिम समाज एक संयुक्त संगठित उम्मत बन जाएगा।
मै विगत 6 वर्ष पूर्व अपने आप को एक देवबंदी कहता था और मै बरेलवी लोग से बहुत बैर रखता था लेकिन जब मैंने कुरआन की उपरोक्त आयतों व हदीसो को पढ़ा व समझा और अपने आप को बदला और आज हमेशा अपने आप को मुस्लिम कहता हु जिसकी वजह व सोच के कारण मै बरेलवी से नफरत करना छोड़ा दिया कहने का तत्यपर(मतलब) यह है की दुनिया में अधिकतर मुस्लिमो ने अपनी सोच को इसी ग्रुपों में बाँध रखा है और इसी वजह से उन ग्रुपों के हितो को धयान में रखकर कोई बात कहते व समझते है और नफरत और कत्ल को जायज भी कहते है और मुस्लिम जगत जो अधिकतर इन्ही नफरत से ग्रस्त होने के कारण विरोधियो ने उनके हाथ में हथियार थमा दिया है ताकि अपनी सोच को नफरत तक सीमित मत रखो अपने ग्रुप के विरोधियो से बदल लो
Brother Zakir hussain जी व Brother सिकंदर हयात जी एक अलग विचार या ग्रुप गठित करना चाहते ताकि एक नए ग्रुप का इजाद हो जाये बल्कि मैंने कई बार ये कहा है हम कुरआन व सहीह हदीस के सम्बन्ध में सही समझ रख कर अमल करना चाहिय लेकिन पता ये भाई लोग अपने आप को कभी अहमदी मुसलमानों की तो कभी देवबंदी मुसलमनो के बारे व हक में ही अपनी बात को बुलंद करते है और हमारे बारे तो Brother सिकंदर हयात जी के सैकड़ो इल्जामत है तो मै क्या कर सकता हु
मै यहाँ यह भी क्लियर कर देना चाहता हू की दुनिया में मौजूदा धर्म जैसे हिन्दू धर्म में मुख्यतः दो सम्प्रदाय शैव (जो शिव की पूजा करते है) व वैष्णव (जो विष्णु की पूजा करते है ) आदि and बुद्ध धर्म में मुख्यतः दो सम्प्रदाय हीनयान व महायान व जैन बुद्ध धर्म में मुख्यतः दो सम्प्रदाय श्वेताम्बर व पिताम्बर व इसाई धर्म में मुख्यतः दो सम्प्रदाय कैथोलिक व प्रोटोस्टेंट है लेकिन इन सभी में conscept ऑफ़ गॉड अलग अलग है जबकि सुन्नी और शिया का conscept ऑफ़ गॉड एक ही है
बहुत दिनों बाद एक इंटरेस्टिंग लेख पड़ने को मिला इसके लिए सिकंदर साहब बधाई के पात्र है
Are you Muslim???think about it ..what rubbish you say…you give non muslim chance to attack islam ..you are just like pakistani tarik fateh
तारिक फ़तेह संघियो की गोद में जाकर बैठ गए हे इसके लिए उन्हें माफ़ नहीं किया सकता हे जबकि हम मुस्लिम कठमुल्लाओ के साथ हिन्दू कठमुल्लाओ के भी जानी दुश्मन हे http://khabarkikhabar.com/archives/2824
गाँधी और टेरेसा की बात पे इस तर्क पे गौर करियेगा, कि शैतान को अगर इस जिंदगी मे ही सजा दी जायेगी तो फिर अक्ल का इम्तिहान ही क्या हुआ? इन्ही अकलमंदो को ये गौर करना चाहिये, कि जिस महान किताब से ये वो दलील दे रहे हैं, उन्हे ये भी पता होना चाहिये कि उसी किताब मे सैकडो बार, शैतान के लक्षण बतलाये गये हैं कि वो समाज मे नफरत पैदा करते हैं, अत्याचारी, कपटी होते हैं. और बे-ईमानी से इस जिंदगी मे धन-दौलत कमा भी लेंगे, तो इस जीवन के बाद, ईश्वर उनके इन दुष्कर्मो की सजा उन्हे देगा. इन्ही शैतानो और अत्याचारियो के लिये, दोज़ख की आग का हवाला है. जबकि मोमिनो के लक्षण भी अनेक बार बयान किये गये हैं. उसी किताब मे, इस बात का भी जिक्र है, कि जिस दयालु ईश्वर की इबादत पे सिर्फ उसी का है, उसे शैतान लेना चाहता है.
अब सोचिये कि एक कोलकाता मे जब हिन्दू-मुस्लिम एक दूसरे के खून के प्यासे थे, तो जिस महिला ने सडको पे जाके अमन की अपील की, वो शैतान के चंगुल मे थी? किसी गरीब को नंगा देख के, जिसने ताउम्र धोती मे निकालने का संकल्प लिया, वो शैतान के चंगुल मे था. जिसने मुहम्मद की जीवनी और कुरान पढ कर उसकी शान मे कसीदे तो पढ दिये, लेकिन कलमा नही पढ़ा, इसलिये शैतान के चंगुल मे था? ईमान की इतनी ताकत कि दुनिया की सबसे ताकतवर सत्ता को उसके अत्याचारो के लिये ललकारा, सत्य के प्रति इतनी आस्था कि अपने जीवन मे की गई गलतियो को अपनी किताब मे लिख कर, दुनिया से आंख मिलाने का साहस. 1947 मे जब खून के प्यासे लोग थे, जिस मुस्लिम समुदाय की जान बचाने के लिये, वो अनशन पे बैठा, आज उसी के तथाकथित आलिम कह रहे हैं, वो शैतान के चंगुल मे था.
अब शैतान की ईश्वर की चुनौती, कि वो ईश्वर से ज्यादा सजदे, खुद को दिलवायेगा. ईश्वर या अल्लाह सिर्फ अल्फ़ाज़ नही. कारण कि मुहम्मद से लड़ने वाले भी ईश्वर के लिये अल्लाह शब्द का ही इस्तेमाल करते थे. अब जबकि इस्लाम जो की मानवता का धर्म है. मानवता का संदेश देने वाले लोगो को जिस ईश्वरीय अवधारणा के तहत, जहन्नुम की आग मे तड़पाया जायेगा, वो छवि ईश्वर की नही, शैतान की है. और ऐसी ईश्वरीय अवधारणा को मन मे लेके किये गये सजदे, ईश्वर को नही शैतान को किये जा रहे हैं.
ये जवाब बृजेश यादव जी को भी है. आपने इस बहस मे असलम भाई की इस्लाम की परिभाषा को सही मान लिया. इसी बात को मैने बार बार उठाया कि इस्लाम की विकृत व्याख्या को ही लोगो ने सही मान लिया. जब अपने को मुसलमान कहने वाले, शैतान के चंगुल मे आ गये, तो आपको क्यूं कोसे?
ईश्वर सिर्फ अल्फ़ाज़ नही, इबादत भी सिर्फ अल्फ़ाज़ नही. ये भावना है, इबादत इंसान को प्यार करना सीखाती है, लोगो के दुख-दर्द को दूर करने, खुशियाँ भरने की कामना दिलो मे भरती है, मुहब्बत दिलो मे भरती है. इसीलिये, बुल्ले शाह ने कहा ” ढा दे मंदिर, ढा दे मस्जिद, पर दिल ना किसी का ढाना, इस दिल बिच रब बसता”. कबीर ने कहा “पोथी, पढ पढ जग भया, पण्डित भया ना कोई, ढाई आखर प्रेम का पढ़े जो पण्डित होये”
अरबी, संस्कृत या कोई भी अन्य भाषा, तो मानव विकास के क्रम मे सदियो बाद आई. लेकिन प्रेम और घृणा या कहे सद्गुण या दुर्गुण सृष्ठि निर्माण के साथ ही थे, और ईश्वर भी. इसलिये अल्फ़ाज़ कभी इबादत का आधार नही होते, जज्बात होते हैं. जो दिल मे होते हैं. इसीलिये क़ुरान मे भी यही कहा गया है कि अल्लाह दिलो के भेद जानता है. स्व-घोषित नास्तिको के दिल मे भी अगर मुहब्बत भरी पड़ी है, तो ईश्वर उसको पहचानता है. इसलिये अल्फाजो पे नही, व्यवहार को परखो. अल्फाजो से तो शैतान भी हमे धोखा देता है. जुबान पे अल्लाह तो, जरूरी नही दिल मे भेी वोहेी हो.
Brother Zakir hussain जी आप सिर्फ जाहिर (जो दिखता/ समझ में आता है) उसी पर बात करते है एक बात आप से कहना चाहत हु की कोई मुफ़्ती/आलिम सिर्फ जाहिर चीजो के आधार पर ही राय(फतवा)देता है जबकि उक्त मुफ़्ती/आलिम को व्यकित(जिसका नाम Brother Zakir hussain जी लिया गया है) के नीयत या उसके दिल के इरादे/हालात के बारे में नहीं पता है आप इन्ही बातो को आधार बनाकर प्रश्न खड़ा कर रहे है जबकि मैंने पहले ही बताया की अल्लाह तआला निर्णय वाले दिन यानी क़यामत के समय कर्म और नीयत के आधार पर फैसला लेगे पहले से ही उसी बातो में उलझ रहे है बहरहाल कुरआन और सहीह हदीस से स्पष्ट हो चूका है कि
अल्लाह तआला कर्मो को तीन शर्तो के साथ ग्रहण (कबूल ) करता है
1. एकेश्वरवाद यानि अल्लाह तआला (सर्वशक्तिमान) को एक मानना और उसके साथ किसी को शरीक (साझी ) न बनाना
2. सच्ची निष्ठा और इख्लास से अमल करना
3. अल्लाह तआला (सर्वशक्तिमान) और रसूल के तरीके पर कर्म करना
क्रम संख्या ३ के सम्बन्ध में ये स्पष्ट कहना चाहता हू की चुकी पैग़म्बर मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अंतिम ईशदूत है और उनके इस धरती पर पैदा होने के बाद जितने भी इन्सान कयामत तक पैदा होगे उन सभी के लिय मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ही अंतिम ईशदूत है इसलिए उन्ही के तरीके पर कर्म करना चाहिए हालाँकि हर इन्सान स्वतंत्र है कि अंतिम ईशदूत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को अपना रसूल मने या न माने किसी पर कोई जोर या दवाब नहीं है
अल्लाह एक है तो शैतान भी एक ही है. शैतान को अल्लाह नाम से पुकारने से भी वो शैतान ही रहेगा. आप किसकी इबादत कर रहे हैं, वो इस्पे निर्भर करता है कि उसकी इबादत, आपके दिल मे प्यार भारती है या नफ़रत.
Brother Zakir hussain जी के कमेंट से एक प्रश्न ये बनते है कि “”””जब अल्लाह सर्व्शक्तिमान है तो फिर वो शैतान को लोगो को भटकाने से क्यो नहीं रोकता ?
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जवाब : अल्लाह ने ये दुनिया इम्तेहान के सिद्धांत पर बनाई है और इंसान एवं जिन्न को कर्म करने की स्वतन्त्रता दी गयी है। चाहे वो अच्छा कर्म करे या बुरा। चूंकि शैतान (सरकश जिन्न) को भी ये स्वतन्त्रता प्राप्त है इसलिए उसे इस दुनिया मे उसके कर्म करने से नहीं रोका जा रहा है। आखिरत यानि परलोक मे इंसान की तरह जिन्न का भी अपने इन कर्मो का पूरा सवाल जवाब होगा यह सिर्फ और सिर्फ एक मोहलत हैं यानि परीक्षा के लिए दिया गया समय।
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इस बात को कुरआन मजीद ने कुछ इस तरह बयान किया है :
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यदि अल्लाह लोगों को उनके अत्याचार पर पकड़ने ही लग जाता तो धरती पर किसी जीवधारी को न छोड़ता, किन्तु वह उन्हें एक निश्चित समय तक टाले जाता है। फिर जब उनका नियत समय आ जाता है तो वे न तो एक घड़ी पीछे हट सकते है और न आगे बढ़ सकते है . [कुरआन मजीद 16:61]
आपके हिसाब से अत्याचारी की परिभाषा क्या है
१-वे जो अल्लाह के नाम पर काफिरो का सल्ला करते हो
२-या वो जो काफिर होते हुए भी नेक नियत हो
Umakant जी आप के सवाल का जवाब देने से पहले मैं 2 सवाल आप से करना चाहता हूँ कृपया आप और zakir भाई दिनों लोग जबाब दे
1-अगर कोई शख्स जो अपने आप को मुस्लिम कहे या माने और टोपी लगा कर बिस्मिलाह करते हुए यानी अल्लाह तआला का नाम लेते हु शराब पीता है तो उसके उक्त कार्य के बारे में क्या कहेंगे , क्या ये राय/बात कहेंगे की इस्लाम में शराब जायज़ है?
2-आप काफिर से क्या मायने (अर्थ) लेते है?
२-नोन मुस्लिम
पहला सवाल पूछने से आपका क्या आशय है ये तो मेरी समझ से बाहर है
“जवाब : अल्लाह ने ये दुनिया इम्तेहान के सिद्धांत पर बनाई है और इंसान एवं जिन्न को कर्म करने की स्वतन्त्रता दी गयी है। चाहे वो अच्छा कर्म करे या बुरा। चूंकि शैतान (सरकश जिन्न) को भी ये स्वतन्त्रता प्राप्त है इसलिए उसे इस दुनिया मे उसके कर्म करने से नहीं रोका जा रहा है। आखिरत यानि परलोक मे इंसान की तरह जिन्न का भी अपने इन कर्मो का पूरा सवाल जवाब होगा यह सिर्फ और सिर्फ एक मोहलत हैं यानि परीक्षा के लिए दिया गया समय।”
–जब परलोक में ही कर्मो का हिसाब किताब होना है तो आप लोग शराब पिने या न पिने के मसले पर क्यों उलझे हुए हो —
Umakant जी लगता आप ने मेरे कमेंट को सिर्फ पड़ा है समझ कुछ नहीं क्यों की स्पस्ट है कि ये दुनिया एक परीक्षा स्थल है और इस दुनिया में इंसान को एक हिदायत के साथ यानी अच्छी नियत के साथ अच्छा कर्म किये तो स्वर्ग और बुरा कर्म किया तो नर्क में स्थान मिलेगा
ये बात सर्व विदित व सर्वमान्य है कि नशा (शराब आदि) गलत चीज है और। बुराई व् अपराध की जनक है और आप कह रहे है कि उसपर क्यों उलझे है?
बहरहाल मेरे उपरोक्त आसान सवाल का निष्पक्ष रूप से जवाब दीजिये की कोई। मुस्लिम व्यक्ति अल्लाह का नाम लेकर शराब पीता है तो आप उस व्यकित के कृत्य को इस्लामिक कहेंगे अथवा गैर इस्लामिक कहेंगे?
कृपया ने नियती से स्पस्ट जवाब दे
सादर!
दरसल जाकिर साहब बात को घुमा रहे हैं। हमे पता है की वो सवेंदनशील इंसान हैं। उन्होंने जितने भी उदाहरन दिए है और कहा की क्या ऐसे भी जहन्नुम में जायेंगे। हम समझ सकते हैं की कोई भी इन्सान जिसमे इंसानियत कूट कूट क्र भरी होगी वो उनके जैसे ही बात करेगा।। लेकिन बड़े अफ़सोस की बात की अपने बात की पुष्टि नही कर पा रहे है। कोई भी आयत या हदेश अपनी बात के समर्थन में पेश कर दे तो बात को समझने में आसानी होगी।।
एक हदीस हे जिसका की आरिफ मोहम्मद खान साहब ने तहलका में अपने लेख में जिक्र किया था ( में ढूंढता हु वो लेख ) इसमें लोगो को आने वाले समय में कुछ मसलो पर अपनी अक्ल से फैसला करने की सलाह दी गयी थी अब वो कुछ मुद्दो पर अक्ल किसकी चलेगी—— ? हम तो उसकी ही सलाह मानेगे जो की दीन और दुनिया के विद्वान भी हो और जिनका की दिल और ”रिकॉर्ड ” बिलकुल साफ हे हम किसी बुखारी जाकिर नायक मदनी वगेरह की नहीं मानेगे हम तो जो जाकिर साहब या मौलाना वहिदुद्दिन खान या मौलाना आज़ाद जेसो की ही मानेगे और उसी का प्रचार करेंगे
रसूलअल्लाह (صلی اللہ علیہ وسلم) ने फरमाया, “जो शख्स अल्लाह और आखिरत के दिन पर ईमान रखता हो वह अपने पड़ोसी को तकलीफ न पंहुचाये। और जो शख्स अल्लाह और आख़िरत के दिन पर ईमान रखता है उसे चाहिये कि अपने मेहमान की इज़्ज़त करे। और जो शख़्स अल्लाह और आख़िरत के दिन पर ईमान रखता हो वो अच्छी बात ज़बान से निकाले वर्ना ख़ामोश रहे !!”
(सहीह बुख़ारी : 6018)
Brother सिकंदर हयात जी अगर आप कोई बात या दलील हदीश शरीफ से पेश करना चाहते है तो इस बात का ध्यान रखियेगा की वो हदीश सहीह या मुस्तनद (प्रामाणिक) हो क्यों इस्लाम पर इल्जाम लगाने वाले अधिकतर ज़ईफ़ हदीश या गलत हदीस पेश कर लोगो को गुमराह करते है
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Brother सिकंदर हयात जी आप की दूसरी बात के सम्बन्ध में ये कहना है कि मैंने ऊपर कमेंट में एक स्पष्ट व सही तर्क दिया कि किसी भी आलिम (धार्मिक विद्वान) के दृष्टिकोण से तभी सहमत हो जब उसका दृष्टिकोण पवित्र क़ुरआन और हदीस शरीफ़ के अनुसार हो। यदि उस आलिम के विचार पवित्र क़ुरआन और हदीस के विपरीत हों तो उनका कोई अर्थ और महत्व नहीं, चाहे उन विचारों का प्रस्तुतकर्ता कितना ही बड़ा विद्वान क्यों न हो।
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Brother सिकंदर हयात जी आप के साइट (यानि रामपुर) के एक बहुत बड़े आलिम (धार्मिक विद्वान) शायद आप उनको जानते होगे उनका नाम है सैयद अब्दुलाह तारिक (Youtube पर उनका हजारो वीडियो) और उसके आधार पर मै उनके इस्लामिक विचार बहुत हद तक सहमत हु
और शायद आप को मेरी बात बुरी लगे मगर मेरे मूल आलिम (धार्मिक विद्वान) जिनसे मै पूरी तरह सहमत हु वो दो लोग है 1-वाहिउद्दीन खान 2. डाक्टर जाकिर नायक
नोट: डाक्टर जाकिर नायक का विरोध वही लोग करते है जो लोग धर्म के नाम पर दुकान खोल रखे और उन्हें अपनी दुकान बंद होने का दर है
Brother सिकंदर हयात जी व Brother Zakir hussain जी जैसे लोग डाक्टर जाकिर नायक को आतंकवाद व धन का कारोबार से जोड़ते है तो मै ऐसे बात से ताजुब हो जाता है जो लोग तर्क व साक्ष्यो की बात करते है वे लोग झूठे व भ्रामक बातो व प्रचारों पर अपना कमेंट या लेख लिखते है और आप लोग भी गुमराह करने वालो की फेरिस्त में आ जाते है
बात सिर्फ आतंकवाद तक सिमित नहीं हे लोगो को मारने तक ही सिमित नहीं हे कटरपंथ के और कई आयाम होते हे हालात भी देखने होते हे जैसे जाकिर नायक ( व्यक्ति विशेष नहीं ) जैसे लोग परिवार नियोजन का विरोध करते हे अब रूस नॉरवे फिनलैंड कज़ाकिस्तान जैसी जगह में कोई परिवार नियोजन का विरोध करे तो में कुछ नहीं कहता हु लेकिन भारतीय उपमहादीप जैसी जगह जहां तिल धरने की जगह नहीं सांस लेने को जगह नहीं मिल रही हे ( में खुद बड़े कुनबे से हु ददिहाल ननिहाल मेरे कुल 70 के करीब फर्स्ट कज़िन हे ) और सब छोड़ो आज की तारीख में यहाँ किसी भी परिवार नियोजन का विरोध करने वाले को में एक किस्म का आतंकवादी ही मानुगा ( ”बोल ” फिल्म देखि होगी आपने जरूर देखिये खुदा के लिए फिल्म के डाइरेक्टर ने ही बनाई हे ) बाकी आरिफ साहब के उस लेख का लिंक ढूंढता हु
Brother Zakir hussain जी परिवार नियोजन के मामले में अगर आप मुस्लिम समाज की बात कर रहे थे तो आप के पास रटा रटाया डाटा है और इसलिए आप ऐसी बात कर रहे है लगता है आप ने समय के upto डेट नहीं हुए कोई लेख लिखे तब बात का जवाब देगे
डेटा वेटा की कोई जरुरत ही नहीं उपमहादीप में काबुल टू कोहिमा मुसलमानो की आबादी साठ करोड़ आस पास जा रही हे जो की बहुत ही ज़्यादा हे जितनी ज़्यादा आबादी उतनी ही ज़्यादा समस्याए भी उनसे फिर जितना अधिक दुखी और असुरक्षित इंसान उतनी ही अधिक उसे धार्मिकता के सहारे की जरुरत इसी सहारे से बना खरबो रूपये के मुस्लिम और हिन्दू बाबाओ घाघ धर्माधिकारियों का बाजार . मुसलमानो दुआरा और उनके रहनुमाओ दुआरा रात दिन जिस पिछड़ेपन का रोना रोया जाता हे उसकी एक सबसे बड़ी वजह फेमली प्लानिंग न करना भी ही हे अब जाकर जो उसमे थोड़ा बहुत जागरूकता आयी हे वो भी इसलिए की अब ये जिंदगी और मौत का सवाल हो चुका हे यानि परिवार नियोजन पर कुछ ध्यान गया तो उससे भी आज़म खान जैसे रहनुमाओ के पेट में दर्द शुरू हो गया कहते हे की ” मुसलमान अब डर कर कम बच्चे पैदा कर रहा हे ” खासकर इलाके वेस्ट यु पि और दिल्ली में तो इतनी अधिक आबादी हे की में तो शादी ना करने और बच्चे ना पैदा करने का संकल्प ले चुका हु आज़म खान और जाकिर नायक इस पर अपनी छाती पीटते हो तो पीटते रहे . लेख की कोशिश रहेगी
असलम साहब, जिन चार स्कूलो और संस्थानो का आप जिक्र कर रहे हैं, उसका कुरान और हदीसो मे कोई जिक्र नही, इसलिये इन्हे भाव देने की ज्यादा जरूरत नही, हाँ जिन शाखाओ का आप जिक्र कर रहे हैं, उसे इतिहास और सामाजिक विज्ञान के विषय मे पढ़ा जा सकता है, जिसका मैने भी अध्ययन किया है.
अब जैसा कि आपने मेरी नबी की एक हदीस का जिक्र किया है, और अगर यह सही है, तो इसी से इसका बात का संकेत मिल रहा है, मुस्लिमो का बड़ा तबका, जहन्नुम मे जाने वाला है. यकीनन, वो कलमा पढने वाला ही होगा. इसलिये तथाकथित बड़े आलिमो को इसलिये सही मत मान लीजिये कि अकसरियत उन्हे सही मानती है.
यही बत बृजेश यादव जी को कहूँगा कि प्रेम, दया, भाईचारा, स्वभाविक मानवीय संवेदनाए है, लेकिन सिर्फ यही मानवीय लक्षण नही, नफरत, हिंसा आदि दुर्गुण भी मानव मे ही पाये जाते हैं. धर्म, सद्गुणो का उभार करने के लाइ है, और शैतान दुर्गुणो को बढ़ाता है. मैने कुरान का हवाला देके ही शैतान, और मोमिनो के लक्षण बताये. बाक़ी मुस्लिम कहने वाला बहुसंख्यक तबका, इस्लाम केी जो व्याख्या करे, वो हेी सहेी हो, आवश्यक नहेी.
Brother Zakir hussain जी का कथन कि, जिन चार स्कूलो और संस्थानो का आप जिक्र कर रहे हैं, उसका कुरान और हदीसो मे कोई जिक्र नही, इसलिये इन्हे भाव देने की ज्यादा जरूरत नही,
जवाब:::::::::::::::::::::::::::
Brother Zakir hussain जी मैंने उपरोक्त कथन के सम्बन्ध में पहले ही जवाब दिया जा चूका है कि किसी भी आलिम (धार्मिक विद्वान) के दृष्टिकोण से तभी सहमत हो जब उसका दृष्टिकोण पवित्र क़ुरआन और हदीस शरीफ़ के अनुसार हो। यदि उस आलिम के विचार पवित्र क़ुरआन और हदीस के विपरीत हों तो उनका कोई अर्थ और महत्व नहीं, चाहे उन विचारों का प्रस्तुतकर्ता कितना ही बड़ा विद्वान क्यों न हो।
और इस आधार पर चारों इमामों, इमाम अबू हनीफ़ा (रहमतुल्लाहि अलैहि), इमाम शफ़ई (रहमतुल्लाहि अलैहि),इमाम हम्बल (रहमतुल्लाहि अलैहि), और ईमाम मालिक (रहमतुल्लाहि अलैहि),, ये सभी हमारे लिए समान रूप से आदर के पात्र हैं। ये सभी महान उलेमा और विद्वान थे और अल्लाह तआला उन्हें उनकी दीनी सेवाओं का महान प्रतिफल प्रदान करे (आमीन) इस बात पर कोई आपत्ति नहीं कि अगर कोई व्यक्ति इन इमामों में से किसी एक की विचारधारा से सहमत हो।
Brother Zakir hussain जी का कथन कि, मेरी नबी की एक हदीस का जिक्र किया है, और अगर यह सही है, तो इसी से इसका बात का संकेत मिल रहा है, मुस्लिमो का बड़ा तबका, जहन्नुम मे जाने वाला है. यकीनन, वो कलमा पढने वाला ही होगा.
जी भाई बिलकुल सही निष्कर्ष है कि मुस्लिमो का बड़ा तबका, जहन्नुम मे जाने वाला है. यकीनन, वो कलमा पढने वाला ही होगा, और ये भी हो सकता है की वो मुस्लिम गाँधी जी (एवं अन्य लोग) की तरह दुनियावी मामले में किसी खास समुदाय के लिए बहुत अच्छे अच्छे काम किया हो लेकिन जब फैसला के दिन आयेगा तो अल्लाह तआला उनकी नेक नियती एवं निष्पक्षता की जांच जरुर करेगा उसी के अनुसार फैसला करेगा चाहे वो मुस्लिम हो या गैर मुस्लिम हो?
कोई मुफ़्ती/आलिम सिर्फ जाहिर चीजो के आधार पर ही राय(फतवा)देता है जबकि उक्त मुफ़्ती/आलिम को व्यकित(जिसका नाम Brother Zakir hussain जी लिया गया है) के नीयत या उसके दिल के इरादे/हालात के बारे में नहीं पता है.
हम भी तो यही कह रहे हैं कि जब इनको मुहब्बत की खुशबू और नफ़रत की दुर्गंध को जानने की काबिलियत ही नही, तो काहे को फोकट के ईश्वर के अनुवादक बने बैठे है. किसी के सद्गुणो या नेकी की नीयत, सिर्फ़ रट्टू तोते बन के नही पता की जा सकती.
यूँ समझे, गुरुत्वाकर्षण का सिद्धांत, न्यूटन ने दिया, तो इसके पहले भी वो दुनिया मे था. उसको किताब पे किसी भी प्रकार से लिखा गया, लेकिन उसे किसी ओर तरीके से भी लिखा जा सकता था या बिना लिखे भेी बतलाया जा सक्ता थ, वो सिद्धांत अक्षरो मे नही है.
ठीक उसी प्रकार, धर्मग्रंथो का एक मर्म होता है, वो इस सृष्टि की सकारात्मकता और नकारात्मकता के प्रति हमे आगाह कराते हैं. उद्देश्य उसका हमे भलाई के रास्ते पर ले जाना है. शांति का मज़हब, शांति का मज़हब बोलने से ज़रूरी नही, कि शांति का अर्थ भी पता चल जाए. फलाँ पेज, फलाँ श्लोक, फलाँ आयत, रटने से कोई आलिम नही हो जाता.
शैतान और फरिश्ते गुणो से होते हैं, अक्षर ग्यान से नहेी. मैं इसेी साइट का एक वाक़या बताता हूँ. एक वहाब चिश्ती मियाँ थे, उन्होने सिकंदर हयात के लिए लिखा कि दिल चाहता है कि तुम्हारी गर्दन पे छुरी चला दूं. वो मियाँ भी क़ुरान की आयते, हदीसो का हवाला दिया करते थे. लेकिन नफ़रत, जो शैतान का गुण है, उसके लपेटे मे आ चुके थे. ये विचार, उनकी मज़हब की एक खास समझ से पनपे, जो शैतान के ज़्यादा करीब थी, भविष्य मे हो सकता है, वो और शैतान के ज़्यादा करीब हो जाए, और धीरे धीरे उनकी इबादते और सजदे भी उसीके हो जाए. नबी ने ऐसे ही नही फरमा दिया कि बहुसंख्यक मुस्लिम, जहन्नुम मे जाएँगे.
बहुसंख्यक मुस्लिम, जहन्नुम मे जाएँगे, तो बहुसंख्यक आलिम भी शैतान के शिकार होंगे, जिनकेी वजह से कौम शैतान के रास्ते पे गयेी. आज हो भी यही रहा है, हम अक्षरो मे सिमट गये, जिसे ज़्यादा अक्षर याद है, वो आलिम हो गया. भले ही वो नफ़रत की शिक्षा दे रहा हो. इसी वजह से मैं, पेज नंबर, सूरा नंबर आदि का हवाला नही देता. क्यूंकी जिस व्यक्ति को मुहब्बत और भाईचारे का मतलब ही नही पता, वो इन आयतो को रट कर भी शैतान के कब्ज़े मे ही रहेगा.
ये जितने भी बड़े बड़े दहशतगर्द है, क्या इनको मज़हबी किताबे याद नही, या इनकी अल्लाह मे आस्था नही? आस्था भी है, किताबे भी याद है, लेकिन दिल मे शैतान घुस चुका है. इसलिये अल्लाह् जुबान पे है, लेकिन इबादत शैतान केी हो रहेी है. ये मुम्किन है कि एक हेी जगह पे जमा सैकडो सजदे हो, लेकिन कुछ अल्लाह के लिए, कुछ शैतान के लिए.
वैसे क्या प्रेम और नफ़रत को समझना इतना मुश्किल है कि हम अपने आस पास की अच्छाइयो और बुराइयो को लेके भी संदेह करे कि ये ईश्वर को पसंद है या ना-पसंद? वैसे फिर उसेी महान किताब का सन्देश्, ईश्वर को वो लोग पसन्द नहेी, जो अपनेी बुद्धेी का प्रयोग नहेी करते.
जाकिर भाई आप समझ ही गए होंगे की असलम भाई उसी साइकि का शिकार हे जैसे उनके जैसे ही करोड़ो अच्छे भले पढ़े लिखे भी मुस्लिम शिकार हे की हर समय एक सनक सी ही सवार रहती हे की इस खफ्त की निशानियां हे ” इस्लाम खतरे में हे ” इस्लाम को बदनाम किया जा रहा हे ” इस्लाम को ठीक से नहीं समझ जा रहा हे ” इसलिए कुछ लोग हर समय इस्लाम समझाने और उसकी धाक ज़माने को हर समय बेहद उत्सुक रहते हे ” इस्लाम तेजी से फैल रहा हे ” आदि आदि ये वो खफ्त हे जो कुछ लोगो पर सवार रहती हे जब तक आप इन खफ्त से खुद को आज़ाद नहीं करते हे तब तक आप जमीनी हालात समझने में और उनको बदलने में नाकाम ही रहोगे जैसे देखे इतनी लंबी बहस में जहां असलम भाई का उत्साह इन बातो के लिए पुरे चरम पर था ” इस्लाम खतरे में हे ” इस्लाम को बदनाम किया जा रहा हे ” इस्लाम को ठीक से नहीं समझ जा रहा हे ” इसलिए कुछ लोग इस्लाम समझाने और उसकी धाक ज़माने को बेहद उत्सुक रहते हे इस्लाम तेजी से फैल रहा हे ” आदि अपनी बात कहने को उन्होंने खूब कॉपी पेस्ट किये मगर वही जमीनी हालात में उन्हें कोई रूचि नहीं दिखाई ना इस सम्बन्ध में अपने कोई खास विचार कोई अनुभव बतलाये लिखे हां बहस के बाद वो खुद को बेहद सेटिस्फाइड जरूर महसूस कर रहे होंगे की उन्होंने ” लोगो को इस्लाम समझाया ” इस्लाम को बदनाम करने वालो को मुहतोड़ जवाब दिया आदि आदि यही” सेटिस्फेक्शन ” जाकिर नायको की ” फौज ” भर्ती हे इसी से करोड़ो कमाते हे और जमीनी हालात जस के तस रहते हे बल्कि हम तो क्योकि बहुत ही ज़्यादा जमीनी आदमी हे इसलिए जानते हे की जमीन पर हालात और ख़राब ही हो रहे हे अच्छा इस बात का ये फिर शायद इस्लाम विरोधी बता सकते हे पर ऐसा नहीं हे मेरी मदर ही पिछले पचास सालो से पांचो वक्त की नमाज़ और डेली कुरान और सारे रोजे रखती हे मगर वो खुद ऊपर बताई गई खफ्त और सनक से पूरी तरह आज़ाद भी हे इसलिए वो कभी किसी धर्मगुरु को नहीं सुनती हे और ना लोगो के कहे अनुसार की मुझ जैसे जीरो स्प्रिचुअल की जान खाती हे . ना उन्होंने अपनी पांचो में से एक भी लड़की पर कोई कठमूल्लवादी पाबन्दी थोपी बुरका भी अपनी मर्जी से पहना अपनी मर्जी से छोड़ दिया अच्छा मेरी पांचवी फैल मदर तक को इस बात की समझ हे जो इन बहुत से पढ़े लिखे जाकिरों इकबालो के भक्तो को नहीं हे जो एक इस्लामी यूटोपिया ( आदर्शवाद ) के पीछे भागते हुए शोषक या शोषित बन ते हे उन्हें समझ नहीं हे मगर मेरी मदर को हे उनका एक बहुत पुराना डायलॉग हे की ” दीन से दुनिया थामनी मुश्किल ही जाती हे ” मतलब आदर्शो को जमीन पर लाना आसान नहीं हे तो वो काम तो होगा नहीं मगर कुछ लोगो की दुकानदारी जरूर जम जाती हे और अपनी दुकानदारी के खिलाफ कोई भी दुकानदार एक लफ्ज़ नहीं सुनना चाहता हे हां आपको जितना इस्लाम लाना हे जितने इस्लामी आदर्श लाने हे वो जरूर अपनी जिंदगी में लाइए जरूर लाइए मगर मुद्दा मत बनाइये मुद्दा बनाएंगे तो नतीजा जिन्ना पाकिस्तान तालिबान आई अस जाकिर नायक सिमी बुखारी बीमारी के रूप में ही सामने आयेगा ये तय हे मुद्दो पर अपनी अक्ल लगाए और उन पर शुद्ध सेकुलर बन कर सामने आये फिर देखिये कितना अच्छा रिजल्ट आएगा जैसे इस्लाम में ब्याज मना हे तो मत लीजिये ब्याज लोगो को बिना ब्याज कर्ज दे ( मेरे भाई ने दिया डेढ़ लाख आठ दस साल बाद वापसी एक पैसा ब्याज नहीं नतीजा हमारा या कहे की मेरा भारी नुक्सान , आदर्शो के नुक्सान ) मगर बैंक बीमा पर जान मत खाइये फतवे मत लीजिये दीजिये
Brother सिकंदर हयात जी अफसोस होता है की आप द्वारा मेरे कमेंट जो आप के लेख में में किये गए है के शब्द के अर्थ पर अपनी बात रखते है उसके विचार को जरा भी समझते नहीं है और अपनी ही बात को सही समझ कर स्वयभू ज्ञानी बन जाते है आप द्वारा इस लेख में जितने भी कमेंट किया गया है उसमे अधिकतर मेरे खिलाफ बेबुनायादी आरोप (इल्जाम) लगाया गया मैंने जानबुझकर कोई जवाब इसलिए नहीं दिया गया है की यदि मै व्यक्तिगत आरोप (इल्जाम) का जवाब दुगा तो मुद्दे (जो आप के लेख/कमेन्ट व Brother Zakir hussain जी के कमेंट के आधार बने है ) से हट जाउगा और मै भी आप की तरह व्यक्ति में बुराइया तलाश या अपने मन से गडकर कहने लागुगा जिस तरह आप ने उपरोक्त कमेंट में किया है
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Brother सिकंदर हयात जी बात आप का यह इल्जाम की मुझे कोई व्यक्तिगत जमीनी अनुभव नहीं है बिलकुल गलत है क्योकि अगर मै भी आप की तरह व्यक्तिगत जमीनी अनुभव बताने लागुगा तो आप का यह लेख में मेरे व्यक्तिगत अनुभव के वर्णन के कारण कही छिप जायेगा. अलावा में ये भी स्पष्ट करना चाहता हु की मै आप या Brother Zakir hussain जी द्वारा व्यक्तिगत अनुभव शेयर कर के उसी को आदर्श माने का विचार नहीं रखता क्योकि खुद को ही सही मानना भी एक प्रकार की कटरता है वैसे Brother Zakir hussain जी ने बाद के कमेंट में काफी बदलाव लाया है और व्यक्तिगत बात करना कम करके मुद्दे पर चर्चा की है
जवाब अभी जारी रहेगा ——————————-
Brother सिकंदर हयात जी आप का ये कथन की मै कापी पेस्ट करता हु तो इसके बारे में इतना ही कहना चाहत हु जहा पर में कापी पेस्ट करता हु वहा स्पस्ट कर देता हु की कापी है और जो मै कमेंट करता हु वो किताब के आधार पर अपने द्वारा लिए गए निष्कर्ष के आधार पर करता हु ताकि कम शब्दों में सही बात सामने आ जाये और मैने ये कही नहीं कहा है कि Brother सिकंदर हयात जी व Brother Zakir hussain जी जायदा काबिल हू
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Brother Zakir hussain जी आप ने जो वासी भाई का जिक्र किया है मै उस सम्बन्ध में ये कहना चाहता हु की मै व्यक्तिगत कमेंट को जो किसी व्यक्ति के लिए किया गया है उसे इस्लाम या मुसलमानों से नहीं जोड़ कर नहीं देखता हु और उनके द्वारा ऐसा व्यवहार क्यों किया गया जब तब इस सम्बन्ध में उनका पक्ष नहीं सुन लुगा तब तक उनके बारे में कुछ उचित नहीं है है जहा तक Brother सिकंदर हयात जी की बात है वे दिल से एक अच्छे इंसान है बस उनमे मेरे द्वारा कमी देखी गई वो सच वो हक बात आ जाने पर भी उसे कबूलते नहीं और अपने मिजाज पर ही जमे रहते है
जवाब अभी जारी रहेगा ——————————-
Brother सिकंदर हयात जी आप का ये कथन कि में ये सोचता हो कि इस्लाम खतरे में है न तो मैने कभी कहा और नहीं कभी सोचा हु बल्कि उसके सम्बन्ध में मेरे मित्र द्वारा शायराना अंदाज में ये कथन किया गया जिसे में सही मानता हु वो ये है:
“खतरा है ज़र्दारो को
गिरती हुई दीवारों को
सदियों के बीमारों को
खतरे में इस्लाम नहीं
सारी जमीन को घेरे हुए
हैं आखिर चंद घराने क्यों ?
नाम नबी का लेने वाले
उल्फत से बेगाने क्यों
खतरा है बटमारों को
मगरिब के बाज़ारों को
नव्वावों गद्दारों को
खतरे में इस्लाम नहीं ”
जवाब अभी जारी रहेगा ——————————-
ठीक है जाकिर साहब इस विषय पे आगे कुछ नही पूछूँगा। आपने यहाँ वहा की सब बाते बता दी। पर जो पूछा उस को सीधे सीधे जवाब नही दिया।। मई आपकी परेशानी समझता हु अब मई आपको और ज्यदा धर्मसंकट में नही डालना चाहता।।
Mr. Brijesh यादव जी
किसी के व्यक्तिगत विचारों/आरोपों से कोई धर्म परिभाषित नहीं होता है धर्म परिभाषित होता है उसकी शिक्षाओं (धार्मिक ग्रन्थ व पैगम्बर आदि की दी हुई शिक्षाओं ) से अब तारिक फतैह को ही ले लीजिये क्या हमनें कभी जाननें की कोशिश की कि तारिक फतेह का धार्मिक ज्ञान किस स्तर का है क्योंकि यह तारिक भी उन ही अल्प ज्ञानी/गुमराह मुसलमानों की श्रेणी का आता है जिन्होनें कभी सही इस्लाम को समझा ही नहीं बस कुछ सड़क छाप मौलवियों की झूटी/अप्रमाणक बातों को ही इस्लाम समझकर फौलो किया….
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ये स्पष्ट है कि तारिक फतेह नें ऐसे ही मुसलमानों को देख उनके कर्मों को इस्लाम समझ लिया… यह सही है कि आज का मुसलमान इस्लाम की सही शिक्षाओं से काफी दूर है मानसिक दासता/शख़्सियत परस्ती(व्यक्तित्व ग़ुलामी) आज कल के ज़्यादातर (जिनकी संख्या कम है) मुसलमानों के ख़ून में बस चुकी है जिसकी वजह से उन्होंनें बुद्धी/तर्क/विवेक का इस्तेमाल करना बंद कर दिया है उनको बस वही सही और आख़िरी लगता है जो उनके बड़े(मौलवी/मुल्ला) कहते हैं भले ही उन मौलवियों की बाते तर्क/ प्रमाण से खोखली हों…
यही एक तरीका हे जिससे की इस्लामिक कटरपंथ को काबू किया जा सकता हे बृजेश भाई अगर ये भी आपको पसंद नहीं हे तो फिर दूसरा तरीका यही हे की आप एक हसी सपना देखे की आप हिन्दू यूनिटी बनाकर ताकत हासिल करके उस ताकत से इस्लामिक कट्टरपंथ को कुचल डाले ये फिर आपकी नज़र में ऐसा हो सकता हे . मगर इसमें पेंच ये हे की हिन्दू यूनिटी वैसे ही असम्भव हे जैसे की हम समझा रहे हे की मुस्लिम यूनिटी नहीं हो सकती हे ( शिया सुन्नी देवबंदी बरेलवी वहाबी सलाफी वगेरह वगेरह ) तो हिन्दू यूनिटी तो और भी आकाशकुसुम हे हमारा तो ” बाबा बंगाली ” की तरह खुला चेलेंज हे की उपमहादीप में हिन्दू यूनिटी या मुस्लिम यूनिटी के पीछे भागने से नतीजा आपका ”शोषक या शोषित ” हो जाने के रूप में ही सामने आएगा
Aslam जी
वैसे तो में जानता था की आपसे मेरे सवालो का जबाब नही मिलेगा और बात को आप घुमा भी दोगे अमूमन हर कट्टरपंथी, नरमपंथ की आड़ लेकर यही करता है मेरे एक खाश मित्र के बहनोई सऊदी में ठेके पर पेंट का काम करते है और उनका कहना है की ब्लेक में शराब से लेकर कबाब तक सब मिल जाता है इसी लिए आप से पूछ रहा हु की क्या शराबी को इस्लाम की आड़ लेकर गला काट दोगे उसका और यदि ऐसा करोगे तो क्या ईश्वर क़त्ल के जुर्म से बरी कर देगा आपको
विषय से अलग एक बात की – मुस्लिम कटरपंथ के खिलाफ मे दस साल से प्रिंट और नेट पर लिख रहा हु बोल रहा हु .अंदाज़ा हुआ है की य सोच शुध सेकुलर लिबरल भारतीये मुस्लिम सोच बिल्कुल ही अनाथ है बहुत ही बुरी इस्थिति है हमारी , हमारे लिये मुसलमानो के बीच तो कोई सपोर्ट है ही नही खेर . उपर से हिन्दुओ मे तीन तरह के लेखक और बुद्धजीवी आदि है एक वो जो हिन्दू कटरपंथ से लड़ने मे इतने व्यस्त है की उन्हे मुस्लिम कटरपंथ से लड़ने का ना समय है ना समझ है ना एनर्जी ,जेसे रवीश कुमार या नीरेंदर नगर जी दूसरे उपमहादीप में साठ करोड़ मुसलमानो के बीच मुस्लिम कटरपंथ से तंग आकर बहुत से हिन्दू लोग लेखक कट्टर इस्लाम और मुस्लिम विरोधी है या हो चुके है हो रहे हे और य जुनून इनमे बढ़ता ही जा रहा है बढ़ता ही जा रहा हे इन्हे मज़बूत और वेल्थी दक्षिणपंथ का” सपोर्ट ” भी मिल रहा है जिससे य और अधिक उत्साह मे है जेसे एक नाम दू तो रविश जी के मित्र विस्फोट संपादक संजय तिवारी http://khabarkikhabar.com/arch…, तो वही तीसरे बहुत से वांम और दूसरे टाइप के बुद्धजीवी कार्यकर्ता आदि है जो भारतीये मुसलमानो का एक बिलकुल ही सरलीकरण करके हर मुस्लिम को सिर्फ एक घोर स्पेशल पीड़ित और सहमा हुआ मानते है और हर बात पर बिना सोचे समझे समर्थन देकर खुद को महान सेकुलर और खेरखवाह समझते है जेसे दिलीप मंडल टाइप . तो अब दूसरी सोच ( संजय तिवारी वाली ) तो गलत हे ही , वैसे तीनो ही सोच कुछ गलत है ही . तीनो के ही कारण हम जेसे लोगो और सोच पर क्या क्या बीतती है तीनो को बिल्कुल जानकारी नही है . अब खेर हम अपनी कोशिशें तो जारी रखेंगे मगर अंदाज़ा यही हो रहा हे की इन तीनो सोच के इफेक्ट से हमारी सोच हमेशा नाकामयाब ही रहनी हे लग यही रहा हे . असल में एक जगह ये देख कर मुझे इतनी गहरी निराशा हुई की हम लोग तो इधर ऐसे लेखों और बहस के कारण ” धमकियां ” झेल रहे हे और उधर रविश जैसे लीजेंड की तरबियत पाया एक करेक्टर ऐसे ”सोच” को ”सपोर्ट ” दे रहा था जो इस मुद्दे को धार्मिक आज़ादी का हनन मानता हे और मुस्लिम कट्टरपंथ का तो लगभग वज़ूद ही नहीं मानता हे ——-?
रविश के ब्लॉग से उज्जनी जी में सोच रहा हु की दो शायद दोस्त भी हे रविश कुमार और संजय तिवारी दोनों महाविद्वान आदमी एक मुसलमानो के बीच बेहद बेहद लोकप्रिय मेरा महाविद्वान ऊँची पोस्ट का कज़िन उसके लिए रविश की बात पत्थर पे लकीर हे( उधर मेरे कज़िन की बात सेकड़ो मुस्लिमो के लिए पत्थर पे लकीर हे ) अब रविश को क्योकि मुस्लिम कटरपंथ की समझ नहीं हे तो मेरा कज़िन मुझे कभी भी कोई सपोर्ट नहीं देने वाला कैसा भी नहीं ना हाथ पैर से न पेसो से न कैसा भी . रविश मुस्लिम कट्टरपंथ पर कोई स्टेण्ड नहीं ले सकता हे और अगर मुसलमानो के साथ कुछ भी अन्याय होगा तो रविश साथ खड़ा होगा यही कारण हे की हर तरह के हर सोच के मुस्लिम रविश कुमार के दीवाने हे दक्षिणपंथी उनके जितने विरोधी हे तो उधर दूसरे खेमो में उनकी बेहद लोकप्रियता हे रविश को अब लीजेंड कहा जा सकता हे . रविश को टच भी करने की भी अगर कोई गंभीर कोशिश हुई तो लाखो लोग उनके हर तरह के जैसी जरुरत होगी वैसे सपोर्ट में आ जाएंगे अब बात करे उनके मित्र की संजय तिवारी की रविश के लिए मुस्लिम कट्टरपंथ कोई मुद्दा नहीं हे इसलिये बताया की उनके तरबियत याफ्ता ने किन्हें सपोर्ट दिया रविश यहाँ तक कहते हे की अगर ”मुसलमानो की संख्या हिन्दुओ से अधिक भी हो गयी तो क्या हे ” उधर तिवारी ज़्यादा नहीं सिर्फ आज की ही संख्या के आधार पर कहते हे की मुसलमानो के बीच कट्टरपंथ इतना अधिक बढ़ रहा हे की वो लगातार लिखते हे की इराक से लेकर पाकिस्तान बांग्लादेश तक जो हो रहा हे वो कल को यहाँ भी होगा उनके लिए इतने खतरनाक हालात हे रविश की तरह ही तिवारी का भी कोई जोड़ नहीं हे यह भी रविश की तरह जीनियस हे दक्षिणपंथ को आजकल बेहतर प्रवक्ताओ की शिद्दत से तलाश हे ही राकेश सिन्हा से लेकर स्वपनदास गुप्त अर्णव का उठान हम देख ही रहे हे तो तिवारी तो इन तीनो की टक्कर का हे ही तो तिवारी की लोकप्रियता भी धीरे धीरे ही सही बढ़ती जा रही हे आगे और बढ़ेगी इस्लाम और मुस्लिम विरोधी लेखन या किसी टिप्पणी के कारण अगर तिवारी को कोई टच की कोशिश हुई तो इनके भी खैरख्वाह कम नहीं होंगे उधर मुसलमानो के बीच और छोड़िये एक मामूली शायर जिसे सानिया मिर्जा दुप्पटा ना करने के लिए पसंद नहीं वो सुना हे की मुसलमानो के बीच इतना ज़बरदस्त विक्टिमहुड़ सेल कर रहा हे की कम उम्र में ही लीजेंड सा बन गया हे युवा ह्रदय सम्राट बन गया हे पैसा भी काफी हे तो सत्ता का संरक्षण भी तो ये चल रहा हे रविश को तिवारी से ऐतराज़ नहीं तिवारी को रविश से गिला नहीं दोनों को शायर से ऐतराज़ नहीं शायर को इन दोनों से बहस नहीं सब अपने अपने काम में माहिर , और इन सबके बीच हम तीनो सोच से बहस कर करके विरोध कर करके भेजा फ्राई कर चुके हासिल कुछ भी नहीं न होना हे —-हम एक ”शुद्ध सेकुलर लिबरल भारतीय मुस्लिम आत्मनिरीक्षण सोच ” कल को हम अपने लेखन के कारण अगर मर गए तो खेर कोई बात नहीं सारा खेल ही खत्म लेकिन अगर कल को हम हॉस्पिटल या कोर्ट में हुए तो यकीन मानिये हम बिलकुल अकेले होंगे . शादी तो मेने करनी ही नहीं हे वैसे भी शायद तब हमारा परिवार या कोई भी तब हमारे साथ नहीं होगा इतनी अकेली और थकेली पिटी हुई हे हमारी सोच और बाकी सब लोग कितने महान हे हे ना . अल्लाह भला करे इन सबका . आमीन
श्री सिकंदर जी साथ में अपना भला भी उसी अल्लाह से करवा लीजिये
पेशेवर मजबूरियों के कारण, कुछ वक्त से व्यस्त हूँ. कुछ समय बाद, वापस साइट पे आऊंगा. इसी विषय यानी प्रचलित धार्मिक व्याख्या की विकृति और उसके नकारात्मक प्रभाव को दूसरे नज़रिए से व्यक्त करने की कोशिश करूँगा. इस साइट पे पहले भी अनेक लेख आए हैं, उनपे टिप्पणियो से बात को बढाउन्गा, लेकिन अभी बिल्कुल समय नही निकाल पा रहा.
कोई नी जाकिर भाई आप जब सरलता से समय दे सके तब आये कोई मसला नहीं हे ये कोई लाइक शेयर फॉलोवर की बात नहीं हे की गिनो और चादर तानकर सो जाओ ये तो सारा जीवन चलने वाली लड़ाई हे भला हो अफ़ज़ल भाई जिन्होंने साइट भी इस तरह से बनवाई हे की यहाँ कोई भी मसला पुराना नहीं होता हे हर मुद्दा हर समय जीवन्त रहता हे कोई शक नहीं हे की ”टी आर पि ” इस समय काफी कम हे हमें इससे निराश नहीं होना चाहिए उमीद करनी चाहिए की जो भी लोग पढ़ेंगे वो विचारो को फेलायेंगे . बाकी नयी साइट्स का तो और भी बुरा हाल हे केवल साइट्स ही नहीं पूरा मिडिया ही गंभीर संकट में हे आकार पटेल तो 2020 तक आधे अखबार बन्द होने की भविष्यवाणी कर रहे हे होभी रहे हे हिंदुस्तान जैसे अख़बार तक के बिकने की अफवाह चल रही हे सभी अखबारों के एडिशन ब्यूरो बन्द हो रहे हे टी वि चेनलो का भी यही हाल हे ये सब इसलिए हो रहा हे की पब्लिक का एक बड़ा हिस्सा सोशल मिडिया पर चढ़ कर बैठ गया हे और नज़र हटाने को रेडी नहीं हे बहुत सारा एड रेवेन्यू फेसबुक और टिवीटर के खातों में जा रहा हे सोशल मिडिया के फॉलोवर लाइक शेयर रि टिवीट लोगो को जो किक देते हे जो नशा देते हे सेलिब्रिटी होने का जो फील देते हे ( फ़र्ज़ी ही सही पर फील ) वो हम या कोई भी और मिडिया नहीं दे सकता हे नतीजा हिंदी वाले फेसबुक और अंग्रेजी वाले टिवीटर पर धूनी रमा कर बैठ गए हे इन माध्यमो में भी अच्छाइया हे लेकिन 90 % गन्द और समय की बर्बादी और प्रोपेगेंडा हे लेखन पत्रकारिता जहा इस हालात में हांफ रही हे मरने की कगार पर हे वही प्रोपेगेंडेबाज़ या निहित स्वार्थी तत्व इस हालात से बेहद खुश हे उनका तो फायदा हे सभी पार्टियों और पैसे वालो ने अपनी झोली सोशल मिडिया प्रोपेगेंडे के लिए खोल रखी हे तो इनके लिए तो सब अच्छा हे मगर इस सबके नीचे विचार चिंतन सब दम तोड़ रहा हे . आने वाले टाइम में आस रखनी चाहिए की शायद पब्लिक इस प्रोपेगेंडे और समय की बर्बादी से ऊब जाए और सही सूचनाओ और विचारो को ढूंढे कुछ विद्वानों ने कहा भी हे की लोगो को सूचनाओ के विस्फोट की नहीं , सही सूचनाओ की जरुरत होती हे ( rajendra Yadav27 December 2012 · प्रसिद्ध चिन्तक अर्न्श्ट फ़िशर ने अपनी किताब ‘नेसेसिटी आफ़ आर्ट्स’ (कला की ज़रूरत ) में लिखा था कि जब सूचनाएं एक नहीं अनगिनत, बेशुमार रास्तों, माध्यमों से आने लगती हैं और वे सूचनाएं किसी एक सच या तथ्य को मज़बूत नहीं करतीं बल्कि एक दूसरे को काटती और ख़ारिज करती हैं, तो जिस आदमी के पास सबसे ज्यादा एक दूसरे को काटने वाली सूचनाएं आती हैं, वह आदमी सबसे अधिक ‘कन्फ्यूज़’ या भ्रमित रहता है। यानी हमारे आज के ‘सूचना समाज’ में जो सबसे अधिक सूचित है, वह सबसे अधिक भ्रमित है। सूचनाओं की बाढ़ सत्य के बारे में हमें जानकार नहीं बनातीं बल्कि सत्य को अपने साथ बहा ले जाती हैं। ) तो इसी आस में हमें अपनी तरफ से बेहतर बेहतर करने की लिखने की कोशिश जारी रखनी चाहिए
Brother अफजल खान व Brother सिकंदर हयात व Brother Zakir hussain जी को इस्लामिक तरीके से अस्सलामालेकुम कहता हु ये कहना चाहता हु की जॉब व घरेलु जिमेदारी होने के कारण मै Brother सिकंदर हयात द्वार किये गए कुछ कमेंट व लेख का जवाब नहीं दे पा रहा हु लेकिन जल्दी ही इस साइट पर आउगा खासकर Brother सिकंदर हयात जी के कुछ बातो का जवाब देना जरुरी है और Brother Zakir hussain जी शुक्रिया आप का क्योकि आप ने विषय बता दिया मै भी तैयारी कर लुगा इंशा अल्लाह जल्दी मिलते है
इस कदर पब्लिक अपना समय सोशल मिडिया पर बर्बाद कर रही हे की हद हे हम भारतीय शायद हमेशा मुर्ख और कुंठित ही रहेंगे अच्छे अच्छे लोगो और लेखको को पढ़ने वाला कोई नहीं हे रविश जैसे दसियो 15 साल के अनुभवी तक ये कह चुके हे की दस बिस हज़ार के करीब ही लोग ही उन्हें पढ़ते हे जबकि विभिन्न पार्टियों और विभिन्न कठमूल्लवाद के पैरोकारों नेताओ के पिठुओं के तीस तीस चालीस हज़ार फॉलोवर हे वो भी छोड़े उससे भी बुरा हाल हे की अक्षय कुमार के शब्दो में ” लकड़ी को भी दुप्पट्टा ओढा दो तो साले सूंघते हुए आ जाएंगे ” हर लड़की ( चाहे वो लड़की गुत्थी ही क्यों ना हो तब भी ) इधर टाइपिंग शुरू करती हे उधर उसके दस बीस हज़ार फेन तैयार मिलेंगे . इंतिहा तो ये हो गयी की शायद शायद सम्प्रेदायिक्ता के दहकते हुए जवालामुखी भोकाल ——-वेदी जी ने सोशल मिडिया पर एक फ़र्ज़ी मुस्लिम लड़की पेश की जो हिज़ाब लगाकर भाजपा समर्थक बाते करती हे तो इतना बुरा हाल हे की ये जानते हुए भी की वो उतनी ही लड़की हे जितना की ”रिंकू भाभी ” उसके भी दसियो हज़ार फॉलोवर बन चुके हे यहाँ भी बस नहीं हुआ एक भाजपा की पत्रिका का संपादक जिसकी बीवी बेचारी जॉब करके इसका घर चलती हे तो ये नेट पर गन्द फैलता हे हद से ज़्यादा कम्युनल बाते करता हे तो ये भी ठलुआ एक दिन उस हिज़ाब वाली लड़की से रुख से नकाब हटाने की अपील कर रहा था अंदाज़ा लगाइये इस माहौल में विचार -लेखको और लेखन की केसी दुर्गत होनी हे ———- ?
” Tabish SiddiquiYesterday at 13:02 · लखनऊ में जिस लड़के को ATS ने ISIS समर्थक कह कर मार गिराया है, मैं उसकी दिनचर्या पढ़ रहा था जो उसने डायरी के दो पन्नो पर लिख कर अपने कमरे की दीवार पर चिपका रखी थी.. सुबह चार बजे उठकर पहले वो तहज्जुद पढता था, फिर फ़ज्र कि नमाज़, फिर व्यायाम.. फिर नौ बजे कुरान की तिलावत के बाद खाना बनाता था.. 12:30 पर ज़ुहर की नमाज़ के बाद खाना खा के कैलूला (दोपहर में सोना).. चार बजे उठ कर अस्र की नमाज़.. उसके बाद कुरान की तफसीर और हदीस पढना.. फिर छः बजे मगरिब की नमाज़ और फिर 8:30 पर इशा की नमाज़ के बाद धर्मशास्त्र पढना.. फिर खाना खा के सो जानाये दिनचर्या है एक पचीस साल के लड़के की.. कोई आम धार्मिक जब इस तरह की दिनचर्या देखता है किसी इंसान की तो उसे लगता है कि वाह.. क्या इंसान है.. कितना इबादतगुज़ार.. और इस तरह की दिनचर्या में उसको कुछ ग़लत नज़र नहीं आता है.. मगर ये दिनचर्या “प्राकृतिक” नहीं है.. मुझे इसमें बिमारी दिखती है.. जब भी आपका लड़का या आपके आस पास कोई भी इतनी बुरी तरह से धार्मिक बने तो उससे बात कीजिये.. कुछ गड़बड़ मिलेगा आपको उसके भीतर.. टूटा हुवा दिल, दबी हुई कामवासना, सामाजिक बहिष्कार, कोई न कोई छुपी हुई मानसिक या शारीरिक बिमारी.. या इन सब जैसा कुछ.. वो व्यक्ति कभी भी स्वस्थ नहीं होगा जो इस उम्र में इस हद तक धार्मिक हो और वो भी पागलपन की हद तक.. और ऐसे बच्चे को जितना हो सके अपने मौलानाओं से दूर रखिये.. क्यूंकि मनोविज्ञान की उन्हें रत्ती भर समझ नहीं होती है.. उनके हिसाब से अल्लाह के लिए जो जितना पागल हो जाए उतना अच्छा क्यूंकि उन्होंने ये कभी जाना ही नहीं है कि मनोविज्ञान में “रिलीजियस मेनिया” नाम की बिमारी होती है
सोचिये ज़रा कि उसकी दिनचर्या में अगर रात की “इशा” नमाज़ के बाद एक घंटा “संगीत के रियाज़” का होता और दोपहर की नमाज़ के बाद “कुछ घंटे लैपटॉप” में मूवी देखने के होते तो हालात क्या से क्या होते.. ये स्वस्थ मस्तिष्क के लक्षण होते.. मगर वो नहीं हो सका.. क्यूंकि आप मौलाना साहब से बच भी जाएँ तो यहाँ इन्टरनेट पर लाखों बैठे हैं जो आपको टार्चर करने की हद तक धार्मिक बनाने पर लगे रहते हैं.. मैं जब भी गाने या अपने बच्चे के गाने का विडियो डालता हूँ तो मुझे इनबॉक्स में पूछने आ जाते हैं कि आपने नमाज़ पढ़ी या आपके बच्चे ने पढ़ी या बस आप लोग गाते ही हैं? ये जब मुझे समझाने आ जाते हैं तो सोचिये अपने आसपास रहने वालों को ये कैसे जीने देते होंगे
सैफ़ुल्ला जिस भी तरह का इंसान बना वो हमारे कुंठित समाज की वजह से बना.. मुझे क्यूँ नहीं ISIS आकर्षित करता है? मेरे जैसे लाखों करोड़ों को क्यूँ नहीं करता है? क्यूंकि मुझे उनकी बिमारी दिखती है.. वो बीमार लोग हैं.. और बीमार ही सिर्फ बीमारी की तरफ आकर्षित हो सकता है.. इस पागलपन की हद तक धार्मिक होना बिमारी है.. मगर हर समाज उसे बढ़ावा देता है.. और फिर सोचता है कि कैसे मेरा बच्चा ऐसा पागल हो गया आखिर? जिस उम्र में उसे भरपूर नींद लेनी चाहिए थी.. लड़की/लड़के/प्रकृति से प्यार करना चाहिए उस वक़्त आप उसे “अल्लाह” से प्यार करना सिखा रहे थे.. जो कि इस समझ और इस उम्र के लिए पूरी तरह अप्राकृतिक है.. मगर आप इसे समझ ही नहीं पाते हैं
मुझ से जब कोई 18/20 साल का लड़का पूछता है कि “ताबिश भाई मुझे थोडा सुफ़िस्म के बारे में बताईये.. ये बताईये कि अल्लाह कैसे मिलेगा? कैसी इबादत करूँ मैं”.. तो मैं उस से पूछता हूँ कि “कोई लड़की मिली आज तक तुम्हे? प्यार किया किसी से कभी? कभी किसी से धोखा खाया?”.. तो ज़्यादातर लड़के जवाब देते हैं कि “क्या ताबिश भाई.. कैसी बात करते हैं आप.. ये सब तो गुनाह है”.. मैं उन्हें समझाता हूँ कि “पहले दुनिया से प्यार करो.. यहाँ प्यार करना सीखो.. पहले आकार से प्यार करो.. प्रकृति से प्यार करो.. स्थूल से प्यार किया नहीं और निराकार के पीछे पड़े हो इस उम्र में.. जाओ मूवी देखो.. संगीत सुनो.. संगीत सीखो.. नाचना सीखो”कुछ को मेरी बात समझ आती है.. मगर कुछ फेसबुक और मौलानाओं के आकर्षण में फँस जाते हैं और फिर वही सैफुल्ला वाली इबादत की रूटीन अपना लेते हैं.. उन्हें यहाँ कि लड़कियां और लड़के “मांस का लोथड़ा” लगने लगते हैं.. और जन्नत में पारदर्शी हूरों की पिंडलियाँ उनकी नींदे हराम करने लगती हैंTabish Siddiqui ”
में भी इस विषय पर लेख की कोशिश करूँगा शीर्षक हो सकता हे ” डपट दिया करे उभरते हुए कटरपन्तियो को ”
सिकंदर भाई, इबलीस ने आपको बुरी तरह पकड़ लिया है! अस्तग्फार कसरत से पढते रहिये! अल्लाह आपको नेक सोच अता फरमाएँ…. आमीन! वैसे जो जितना गाफ़िल होता है अल्लाह उसे उतनी ही जल्दी और मजबूती से हिदायत और ईमान पर लाते हैं! अगर आप मुसलमान हैं तो कुरान तर्जुमे से पढ़िए….उसे हक मानिए…सिराते मुस्तकीम को पहचानिये! अल्लाह की क़सम – कुरान हक है! यही ईमान है! अगर आपको इसमें कोई शक है तो बराए मेहरबानी अपने आप की इस्लाह करें! अपने आप को मुसलमान साबित करके “अल्लाह के लिए” हराम बातों को जायज़ ठहराने की कोशिश ना करें! जिन बातों को इस्लाम ने हराम ठहराया है आप उसी की पैरवी कर रहे हैं! आप को इस बात का अंदाजा है या नहीं! मुनाफिक की परिभाषा याद है या नहीं! भाई तौबा कर लो! किसी आलिम की सोहबत में बैठा करें! इस्लाम में प्यार करना मना नहीं है, लेकिन सिर्फ अपनी शरीके-हयात से! गैर की तरफ नज़र उठाना भी मना है! जब आप किसी काबिल हो जाएँ तो किसी ईमान वाली लड़की से मोहब्बत कर सकते हैं और उसे निकाह का पैगाम भी भेज सकते हैं! आशिकी – धोखा जैसी छिछोरी हरकतों के लिए मुसलमान की ज़िंदगी में कोई जगह नहीं! अगर अल्लाह ने जन्नत में हूरों का वादा किया है तो दोज़ख की आग का भी वादा किया है! अगर पूरी बात लिखने की ताकत नहीं है तो आधी अधूरी जानकारी देकर अपने खोखली मानसिकता नहीं दिखाइए! वरना वाजिबुल-क़त्ल भी इस्लाम का एक हुक्म है! अल्लाह आपको देीन की सही सोच आता फरमायें!
वाह ! हलकी सी अलग सोच रखने वालो को वजेबुल क़त्ल की धमकी भी !
और जो कुरान विरोधी होंगे उनके साथ क्या हो सकता है यह भी सबको जान लेना चाहिए
हाशिम hamza hayat
ahsan अली साहब और सभी नए पाठको का बहुत बहुत इस्तकबाल हे पहले इल्तज़ा हे की शांति से सारे लेख और बहस पढ़ ले और आप तीनो क्या बोले जा रहे हे , लड़की ये , वो ये क्या हे भाई ————– ? लाइन कोट करके बात करे आप दोनों पता नहीं क्या क्या बोले जा रहे हे ——————- ? , आप हो या कोई और हो मेरी मतलब मेरी खुद की लिखी सिर्फ एक लाइन कोट करके अगर आप इस्लाम तो क्या किसी भी धर्म अक़ीदे के खिलाफ साबित कर देंगे तो में लिखना छोड़ दूंगा आप कोशिश करके देख लीजिये आपसे पहले भी कई लोग आये मगर कोई भी मेरी लिखी किसी लाइन को कोट नहीं कर सके क्योकि मेरी किसी भी लिखी लाइन में आपत्तिजनक कुछ भी होता ही नहीं हे . अगर हे तो दिखाइए कॉपी पेस्ट करके की ये ये ये लाइन गलत हे समय चाहे जितना ले लीजिये —————– ? शुक्रिया
रविश कुमर के ब्लोग से
सिकंदर हयात सिकंदर हयात • 3 days ago
उज्जयिनी जी और पाठको मेरा ये कहना था की चाहे वो रविश जी की साइट हो या दिलीप सिद्धार्थ साहब अफ़ज़ल भाई की या विस्फोट मोहल्ला आदि बन्द हो चुकी साइट और बहुत सी साइट इनका चलना बहुत जरुरी हे कारण की प्रिंट का तो बेहद पतन हो रहा हे चेनलो का हाल पता ही हे जनता का एक बहुत बड़ा हिस्सा फेसबुक टिवीटर आदि पर जमकर बैठ गया हे हे नतीजा प्रोपेगेंडेबाज़ों और सहवाग जैसे नमूनों ( अस्सी लाख की कमाई टिवीट से ) के तो मज़े हे मगर विचार दम तोड़ रहा हे झूठ अफवाहों और ट्रोलबाज़ों के तो मजे हे मगर कुल मिलकर बेहद नुक्सान हो रहा हे मीडियाकर्मियों लेखको पत्रकारों की नौकरियां जिंदगियां खतरे में हे उधर तिजोरी जुकेरबर्ग की भर रही हे फायदा मोदी जी जैसे लोग उठा रहे हे कम उम्र लोगो को सोशल मिडिया प्रचार में फसाया जा रहा हे ऐसे में बहुत जरुरी हे की अच्छे संपादको लेखको की साइट्स चले नहीं चली तो बहुत बुरा होगा इस विषय पर लेख की कोशिश रहेगी
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सिकंदर हयात सिकंदर हयात • 3 days ago
कटरपन्तियो कठमुल्लाओ , धर्माधिकारियों धर्म के व्यापारियों के पास ,दक्षिणपंथियों के पास सम्पर्दायिको के पास अच्छे लेखक और पत्रकार नहीं होते हे , हां प्रोपेगेंडेबाज़ और कमअक्ल फॉलोअर बचकाने भावुक उत्साही कुंठित कार्यकर्त्ता जरूर होते हे ऐसे में सोशल मिडिया की बढ़ती लोकप्रियता सस्ता होता नेट स्मार्ट फोन से इनका खूब फायदा हुआ आगे और हो सकता हे ( अमित शाह की धमकी – अब हम पचीस साल राज करेंगे ) जिस देश में कोंग्रेस की दस साल लगातार सरकार चली यु पि में अगर सपा बसपा तक को बहुमत मिल सकता हे तो उसमे भाजपा की भी सरकार बन जाना तो एक बात हे . मगर ये चमत्कार लोकसभा से लेकर यु पि तक बम्पर बहुमत————– ? इसमें सोशल मिडिया प्रोपेगेंडे का बड़ा हाथ होने से ही सम्भव हुआ पिछले सालो में वोट देने के प्रति जागरूकता बड़ी सही भी हे मगर कम उम्र आदमी बड़ी आसानी से फांसा जा सकता हे प्रचार में बह जाता हे कुछ विद्वानों का यहाँ तक अंदेशा हे की अब आदमी बड़ी देर से परिपक्व हो रहा हे बीस पचीस के एज तक लोग अब उम्र से दस साल कमपरिपक्व बचकाने भावुक आसानी से देखे जा सकते हे ऐसे में साफ़ हे की लोगो को सोशल मिडिया पर खूब भर्मित किया जा रहा हे चुनाव आयोग की सख्ती के बाद पार्टिया खासकर पैसे वाले दक्षिणपंथी दिल खोल कर पैसा खर्च करके सोशल मिडिया प्रोपेगेंडे कर ही रहे हे आगे और अधिक होंगे चिंता का विषय तो हे ही
सिकन्दर हयात भाई, ज़रा पढ़िए, लेकिन अब इसे होशियारी दिखाकर “आउट ऑफ कांटेक्स्ट” मत कहियेगा! ये सब आपने ही लिखा है!…….सोचिये ज़रा कि उसकी दिनचर्या में अगर रात की “इशा” नमाज़ के बाद एक घंटा “संगीत के रियाज़” का होता और दोपहर की नमाज़ के बाद “कुछ घंटे लैपटॉप” में मूवी देखने के होते तो हालात क्या से क्या होते.. ये स्वस्थ मस्तिष्क के लक्षण होते.. मगर वो नहीं हो सका……जिस उम्र में उसे भरपूर नींद लेनी चाहिए थी.. लड़की/लड़के/प्रकृति से प्यार करना चाहिए उस वक़्त आप उसे “अल्लाह” से प्यार करना सिखा रहे थे.. जो कि इस समझ और इस उम्र के लिए पूरी तरह अप्राकृतिक है.. ! क्या अल्लाह से प्यार करना सिखाने की उम्र सिकंदर हयात समझायेंगे? क्या कम उम्र में अल्लाह से प्यार करना अप्राकृतिक है? ये क्या है मेरे भाई?……..कुरान और हदीस ने तो साफ़-साफ़ समझा दिया है कि बालिग़ होते ही सभी नमाज़े पढना है, और नाचना-गाना -रियाज़ – मूवी सब हराम है! अब आपकी मर्जी है, जितना शब्दों की “जगलरी” करें! पर बराए मेहरबानी ऐसी कोई बात नहीं लिखें जो इस्लाम की शान के खिलाफ हो! मुसलमान गलत हो सकता है, इस्लाम नहीं! आप जैसे लोगों की बातें पढकर ही लोग इस्लाम पर अपनी राय बना लेते हैं! अगर अल्लाह ने आपको ताकते-गुफ्तार दी है तो उसे सही राह में लगाएं! सही इल्म सीखें और दुनिया को भी सिखाएं! हदाक-अल्लाह मेरे भाई……..!
हाशिम भाई, क्या नमाज़ नही पढ़ने वाले अल्लाह से मुहब्बत नही करते? हम पाँच वक्त के नमाज़ी नही, लेकिन दिन मे सैकड़ो बार अल्लाह, दुआए जहन मे रहती है. बात यह है कि कुछ लोग, समझते हैं कि इस्लाम की प्रचलित परिभाषा को मानने वाले लोग ही अल्लाह से मुहब्बत करते हैं, जो हद दर्जे की संकीर्ण, दिलो मे तकब्बुर भरने वाली है.
अल्लाह से मुहब्बत मे असहजता और अप्राकृतिक कुछ नही. अगर कोई व्यक्ति किसी नेक, दयालु, ईमानदार व्यक्ति के लिए ये समझे कि चूँकि वो नमाज़ (जैसा आप समझते है) नही पढ़ता, इसलिए वो अल्लाह से मुहब्बत नही करता, तो वो बुरा इंसान है, तो यहीं से नफ़रत की नींव रख दी जाती है.
मैं ताबिश के विचार से सहमत हूँ, दिल मे मुहब्बत है तो दिल मे अल्लाह है. वरना सब पाखंड और आडंबर. ज़रूरी नही पाखंड लोगो के सामने भी किया जाए, वो अकेले कमरे मे भी हो सकता है.
मुहब्बत से खाली दिलो की नमाज़े, शैतान के सजदे से ज़्यादा कुछ नही. मुहब्बत दिल मे भर के अल्लाह को दिया हर शुक्रिया इबादत और नमाज़ है.
रसूल ने 5 बार नमाज़ (अल्लाह को याद) करने के कहा. लेकिन मुहब्बत को ही ईमान की मुख्य पहचान बताई. नफ़रत और धरती मे बिगाड़ पैदा करने वाले लोगो की इबादत को उन्होने मुनाफकत ही बतलाया है.
मुहब्बत सहज और प्राकृतिक है, इसलिए इस्लाम भी प्राकृतिक है. असहज और अप्राकृतिक जो भी है, इस्लाम नही.
हाशिम साहब जो आपने कहा इसके लेखक ताबिश सिद्दकी लखनऊ हे . लिखा तो हे साफ़ साफ़ , -जो की एक बरेलवी हे जबकि में देवबंदी हु ताबिश सिद्दकी फेसबुक पर लिखते हे जबकि में सोशल मिडिया पर नहीं हु अफ़ज़ल भाई साइट पर और में कमेंट बॉक्स में हर तरह के विचार पेश करते हे रखते हे ( जिनके हे उनके नाम विचार के आगे और पीछे देकर ) चाहे हम सहमत हो या न हो आप भी चाहे तो अपने विचार कमेंट या लेख के रूप में भेज सकते हे
माफ करना सिकंदर भाई…मेरी गलती है! अल्लाह हमें और आपको दीन की खिदमत करने की तौफीक आता फरमायें…आमेीन!
हाशिम साहब् आप हमें दीन का दुश्मन क्यों समझते हे ————– ? वैसे भी में कई बार लिख चूका हु की सारी भारतीय लिबरल मुस्लिम आवाज़े या तो शिया हे या बरेलवी मगर हम ना शिया हे ना बरेलवी हे हम तो देवबंदी हे आप हमें दीन का दुश्मन क्यों समझते हे ? भला , जबकि इस साइट का हमारा एक भी लेख इस्लाम तो क्या किसी भी मज़हब के खिलाफ नहीं लिखा गया हे हम लोग आस्था के खिलाफ नहीं आस्था की आड़ में दुनियावी मज़े लूट रहे लोगो के खिलाफ लिखते हे और यही लोग और उनके पिट्ठू ही हमारे लेखन को दीन के खिलाफ होने के कान भर सकते हे . और कोई नहीं सच्चे दीनदार तो बिलकुल नहीं क्योकि सच्चे दीनदार तो किसी भड़कने भड़काने लड़ने मारने पैसा पीटने कूटने जुगाड़ करने के खेल में होते ही नहीं हे वो तो बस दाल रोटी खाते हे और अल्लाह अल्लाह करते हे हमारा लेखन उनके खिलाफ नहीं हे ना होगा
वैसे जहा तक उपर बात चलि तो प्रेम और संगीत की बात हे पाठको में तो प्रेम और संगीत के बिना जी ही नहीं सकता हु इस विषय में ताबिश भाई से भी दो जूते आगे हु . में अगर जीवन कोई न हो तो भी जैसा की ममता कालिया जी ने रविंदर कालिया जी से मिलने से पहले लिखा था की ” उस समय मेरे जीवन में प्रेम नहीं था लेकिन में प्रेम के भाव से ही प्रेम कर रही थी ” ये बहुत सटीक लाइन हे जब मेरे भी जीवन में प्रेम नहीं होता तो ठीक भी हे जर्बदस्ती या फ़र्ज़ी प्रेम हो भी नहीं सकता होना भी नहीं चाहिए तो उस समय भी में प्रेम के भाव से ही प्रेम कर रहा होता हु ”प्रेम ” नहीं तो संगीत का भी पूरा आनद नहीं मिलता हे तो ” प्रेम ” में होने पर ही आप ”येसुदास ” की अदभुत आवाज़ का पूरा आंनद ले सकते हे https://www.youtube.com/watch?v=iiE_r0pjoec
ये जाहिल मौलाना, इस बात को तो मानते हैं कि ईश्वर ने इस धरती पे 1,24,000 संदेश वाहको को भेजा, चार रसूलो को किताब के साथ भी भेजा. ये तो जाहिर सी बात है कि इनमे से एक भी संदेश वाहक और पैगंबर का कृत्य गैर-इस्लामी नही था. कायनात की शुरुआत से नैतिक और अनैतिक, सही-ग़लत, अच्छे-बुरे की कसौटी अल्लाह के लिए, एक जैसी रही है. बस इन रसूलों, नबीयों, पैगंबर आदि ने अलग अलग तरीके और समाज की बोलियों, और संस्कृति के मुताबिक बयान किया.
क्या ये सब दाढ़ी रखते थे, क्या ये सब मौसीक़ी को ग़लत मानते थे? क़ुरान मे कहीं मौसीक़ी को हराम तो क्या हानिकारक तक नही माना. ये हदीसो के चक्कर मे पड़े हैं. इन्हे हदीसो से नैतिक मूल्य सीखने थे, एक व्यक्तिवादी नही होना था. पैगंबर और रसूल कभी इबादत के ना केंद्र होंगे, ना उसका हिस्सा. एक पूरी सूरा “मरयम” इस बात को समझाने के लिए उतार दी. अपनी मूर्ति या तस्वीर को बनाने से इसलिए रसूल ने मना कर दिया.
लेकिन ये जाहिल मौलाना, उसी रसूल-परक व्यक्तिवाद मे फँस गये, जिसके लिए उन्हे चेताया गया. रसूल सिर्फ़ संदेश वाहक है. जब हम कलमे की दूसरी लाइन, उनके बताए मूल्यो को अपना पथ-प्रदर्शक मानने की है. और ये मूल्य चिर-प्राचीन है, सनातनी है. एक भी रसूल, एक भी नया नैतिक मूल्य नही लाया.
अब ये जाहिल लोग तस्वीर, कागज मे तो नही बना रहे, लेकिन जहन मे बराबर ढूँढ रहे हैं. दाढ़ी थी, तो कितनी थी, मूँछे थी या नही, हेयर स्टाइल कैसी थी, वस्त्र कैसे थे. जाहिलो तस्वीर और मूर्ति ही बना लो, जब ऐसा ढूँढने निकले हो.
और ये जहालत, लगभग तमाम फिरको (व्याख्याओ) मे है. इसलिए एक (तार्किक और मुहब्बत-परक) फिरके को छोड़, सब ने जहन्नुम का रास्ता अपना लिया है. बहुमत कभी भी ईमान का पैमाना नही था. इसलिए तथाकथित मौलानाओ और आलीमों का बहुमत भी संकीर्ण और एक-व्यक्तिवादी व्याख्या को ही सही इस्लाम माने, मैं उसे शैतान और जाहिल ही मानूँगा.
भलाई या बुराई जो कोई भी करेगा वह उसका फल ज़रूर पायेगा चाहे वह औरत हो या मर्द, मुसलमान हो या फिर पहले अवतरित हो चुके ज्ञान पर विश्वास रखने वाला।
तो ज़ाकिर भाई आप तो नमाज़ से ही मुकर गए! क्या आप ने ये हदीस पढ़ी है कि, “मोमिन और काफिर में सिर्फ नमाज़ पढ़ने का फर्क है”! भाई आपने तो कुरान को ही बाई पास कर दिया.. नाउजूबिल्लाह! हदीस क्या समझोगे? अपनी मर्जी से ही नया दीन गढ़ रहे हो! ऐसे ही गढते-गढते दुनिया में अस्सी करोड़ भगवान/देवी देवता बन चुके हैं, जिन्हें लोग पूज रहे है! सिर्फ अल्लाह को मानना ही इस्लाम नहीं बल्कि अल्लाह की मानना भी इस्लाम है! जब तक ये दोनों मिजाज़ साथ नहीं तब तक हम और आप मोमिन नहीं! आख़री नबी मुहम्मद सल्ललाहो अलैहे व सल्लम हैं! अल्लाह ने नबी के तरीके को पसंद फरमाया है! कुरान में लिखा है| ये तो पता है ना..? तौहीद, नमाज़, रोजा, ज़कात और हज, ये तो पता है ना..? इसके बिना मोमिन नहीं! ये तो पता है ना..? पहले ये सब हैं तब इंसानियत और मुहब्बत अपने आप आ जायेगी! अगर फिर भी इंसानियत नहीं आ रही तो फिर ऊपर लिखे पांच रुक्नों में आप कमज़ोर हैं पहले उसे सुधारें! अगर ये सब पता नहीं है तो मेरे भाई पहले कुरान पढ़ो और किसी आलिम (जिसे आप सही समझते हो उसी) से आयतों का तफसीर से मतलब पूछो! उसके बाद ही यहाँ लिखो….! अल्लाह आपको हिदायत दें आमीन…..!
अल्लाह इस्लामी अतंकवादियो को हिदायत देने में कमजोर क्यों हो जाता है? क्यों उससे ऐसी आशा की जाए
स्वयम अछा रास्ता चुन कर चलना होता है
हाशिम साहब, मैने कोई नया दीन नही चलाया है. मैं उसी दीन और मज़हब की बात कर रहा हूँ, जिसके आख़िरी पैगंबर मुहम्मद साहब थे. और वो उसी मज़हब और ईश्वर के आख़िरी नबी थे, जिसके उनसे पहले 1 लाख 30 हज़ार नबी आए.
आप जिस चीज़ को नमाज़ समझते है, यक़ीनन मैं उसका 5 बार का नमाज़ी नही. लेकिन मेरी नज़र मे नमाज़, उस रचीयता की आराधना और शुक्राना है, जिसने हमे और दोनो जहाँ को बनाया. उस की याद, मैं हर साँस, और उठक-बैठक मे लेता हूँ. वो तमाम समय मेरे जहन और दिमाग़ मे है. वैसे तो उसकी निशानी, आदमी की विनम्रता से लगाया जा सकता है. फिर भी इस बात का प्रमाण, किसी को भी देना ज़रूरी नही समझता. भले ही आप मुझे मोमिन ना माने.
यक़ीनन, जो बाते आपने लिखी, उनपे अमल करने से, मुहब्बत अपने आप आ जाएगी. और मुहब्बत है, तो बाते भी मुकम्मल है. भले ही आपको नज़र नही आ रही.
हदीसो की आपने बात कही थी, तो आख़िरी पैगंबर की ही एक हदीस है, उनको किसी व्यक्ति ने बतलाया कि एक औरत, मज़हब के सारे रिवाजो, जैसे नमाज़, रोज़ा को निभाती है, लेकिन अपने पड़ौसी से झगड़ती है, नबी ने फरमाया कि उसे सूचित कर दो कि, उसके लिए जहन्नुम है.
ठीक इसी प्रकार, उसी समय एक महिला का ज़िक्र हुआ, जिसमे बतलाया गया कि, वो किसी धार्मिक रिवाजो का पालन नही करती, लेकिन हिजाब पहनती है, और पड़ौसी से सलीके से पेश आती है. आख़िरी नबी ने फरमाया कि वो जन्नती है. मोमिन और काफ़िर की निशानी भी क़ुरान मे मुहब्बत के पैमाने पे ही की है. बिना, मुहब्बत वाले, फ़साद और तकब्बुर बढ़ाने वालो को काफ़िर ही कहा है. अगर ऐसे लोग, मज़हबी रिवाजो को निभाते भी है, तो उन्हे मुनाफिक बतलाया है.
ना मेरी समझ, क़ुरान के विरोधाभासी है, ना आख़िरी नबी की शिक्षाओ के,ना ही उनसे पूर्व आए, किसी भी नबी के.
नमाज़ पे मैं दोबारा स्पष्ट होना चाहता हूँ. नमाज़ सिर्फ़ अल्फ़ाज़ नही, एक विनम्र प्रार्थना है, जिसके लिए, किसी विशेष शारीरिक मुद्रा की आवश्यकता नही, किसी विशेष भाषा की मोहताज नही.
अगर, ख़ास मुद्रा या अल्फ़ाज़ नमाज़ होते, तो आख़िरी नबी से पहले के नबी, जहन्नूमी होते. आख़िरी नबी ही नही, तमाम नबी जन्नती है, और सृष्टि निर्माण से कयामत तक, अल्लाह ने अपने कर्मों के हिसाब की कसौटी एक ही रखी है.
नमाज़ ही नही, कलमा का सही अर्थ भी ज़्यादातर लोगो ने ग़लत निकाला है. सचेत रहो, बहुमत की राय को ही सत्य ना समझो. इस के लिए, आख़िरी नबी ने आगाह भी किया है, हम सबको.
ज़ाकिर हुसैन भाई, शब्दों के जाल मत बिछाइए! इस फन में आप माहिर हैं सबको पता है! अल्लाह आपको और ताकते-गुफ्तार दे और उसे सही राह में इस्तेमाल कराएं यही हमारी दुआ है! इस्लाम शब्दों के फन पर नहीं, कुरान और हदीस की रूह से है! जब-जब अल्लाह ने नबी भेजे उस के वक़्त की क़ोम उस नबी की फर्माबदारी करती है! अगले नबी के आने पर उसकी क़ोम को उस नए नबी की पैरवी करने का हुक्म होता था! पुराने का अदब करना था, पर अब नए नबी को और नए नबी की मानना होता था! रिविज़न का मतलब समझते हो न बिलकुल वैसे ही नए नियम आ जाते थे! पुराने सब खतम! वरना पहले के नबियों के वक्त तो एक ज़माने में काबे शरीफ का तवाफ नग्न होकर किया जाता था और इबादत तालियाँ पीट-पीट कर भी करते थे! इसीलिये हर अगले आने वाले नबी के वक्त सुधार होता गया! आखिरी नबी मुहम्मद सल्ललाहो-अलैहे-व्-सल्लम है…! अब नबूवत खत्म…! यह अल्लाह का हुक्म है…..कुरान में लिखा है| अब ता-क़यामत कोई नबी नहीं आयेंगे| अल्लाह ने हमारे नबी के लाये दीन को मुकम्मल कह दिया है! इसमें किसी कमी-ज्यादती की गुंजाइश नहीं है! सोचना भी नहीं है! इसी को हक मानना है! इसी को इस्लाम कहते हैं| अब हमारे नबी के बताए तरीकों पर ही अमल करना होगा यही दीने-इस्लाम है! अब पूरी दुनिया के लोग मुहम्मद सल्ललाहो-अलैहे-व्-सल्लम की उम्मत हैं| कुछ काफिर हैं, कुछ मुनाफिक हैं, कुछ गाफ़िल है, कुछ मुसलमान है और कुछ मोमिन….| हम सब इनमें से क्या हैं, बेशक इसका फैसला अल्लाह ही करेगें! पर इस्लाम कहता है कि अब हमें हमारे नबी के तरीके पर ज़िंदगी गुजारनी है| पुराने नबियों के तरीकों को सच मानना है पर अब नियम नए नबी के चलेगे| अब कुरान फाइनल रिविज़न है| ज़बूर, तौरात, इंजील (बाइबल) के रूल खत्म| ये तो पता हैं न क्यूंकि ये तो कम-से-कम्तर ईमान वाला भी समझता है| नमाज़ कैसे पढ़ना है ये हमारे नबी ने बताया! पूरी दुनिया इसी तरीके पर नमाज़ पढ़ती है और क़यामत तक इसी तरीके से पढेगी| नमाज़ कब-कब पढ़ना है, किस तरह शारीरिक मुद्राओं में पढ़ना है और नमाज़ में क्या पढ़ना है ये सब अल्लाह के नबी ने बताया है! बाकी घंटियाँ बजाकर, नाचकर, तालियाँ पीटकर, मन में याद करके, हर साँस में, उठक-बैठक करके और भी कई कई तरहों से तो ईश्वर की पूजा आज भी हो ही रही है!
ज़ाकिर भाई आप का सरनेम हुसैन रज़ि. अन. की तकलीद करता है जिन्होंने इसी दीन की खातिर सर तन से जुदा करवा लिया था| कम से कम अल्लाह के लिए तो इस तरह का मिजाज़ नहीं रखें| नबी से आगे मत बढ़ जाइए! खाली इल्म से काम नहीं चलेगा मेरे भाई अमल भी करना होगा| आपने ऊपर जो भी मिसाले दी हैं उनसे ये साबित नहीं होता की नमाज़ छोड़ दी जाए, अपनी मर्जी और अपने तरीके से इबादत की जाये, फिर तो काफिर भी जन्नती हो जाएँगे क्यूँकी आजकल तो ये लोग अखलाक में हमसे आगे हो गये हैं! क्यूंकि हम दीन से दूर होते जा रहे हैं! “ऐ ईमान वालों, पूरे के पूरे दीन में दाखिल हो जाओ” कुरान में ये तो आपने पढ़ लिया होगा| तभी मुकम्मल कामयाबी है! जन्नते फिरदौस है! वरना एक राई के दाने के बराबर ईमान रखने वाला भी दोज़ख के अज़ाब उठान के बाद अल्लाह के हुकुम से आखिर में जन्नत के सबसे निचले दर्जे में तो चला ही जाएगा| अब आप हम कहाँ जाने के तम्मना रखते हैं ये आपका और हमारा ईमान फैसला करेगा| हदाक-अल्लाह|
आखिर में फिर आपसे इल्तिजा है कि, गुमराही की बातें नहीं लिखें! आपको दुनिया पढ़ रही है……! अल्लाह देख रहा है…….|
आपकी बातो से ऐसा लग रहा है की आप दिल के अच्छे इंसान है, लेकिन गलत तफ़्सीरो और आलिमो की वजह से गलत समझी के शिकार हो रहे हैं. मैंने कभी भी कुरान और आखिरी नबी की एक भी, बात के खिलाफ नहीं लिखा.
कुरआन में अल्लाह ने फ़रमाया है की अल्लाह को अपनी बुद्धि का इस्तेमाल नहीं करने वाले लोग नापसंद है. आखिरी नबी के आने से पहले के नबियों को मानने वाले लोग, जरुरी नहीं की उनकी शिक्षाओं पे अमल कर रहे हो. कुरआन ने ये नहीं कहा की पहले की किताबे या नबियों ने जन्नत के पैमाने सही नहीं बताये. उसमे कहा है की लोगो ने उसे बदल दिया. संस्कृति बदलती रहती है, मूल्य नहीं. आप चाहे जो भाषा बोले, चाहे जिस भाषा में ईश्वर को याद करे, दाढ़ी रखे या न रखे. जींस पहने या पाजामा. इन बातो का जन्नत या जहन्नुम से कोई लेना देना नहीं.
काफिर, जन्नती नहीं है, कुरआन में लिखा है, तो फिर मैं इससे इंकार कैसे करूँगा. मेरा एक भी विचार, कुरआन की एक भी आयत के खिलाफ नहीं. इसे सही ढंग से समझिये. फिर कह रहा हूँ, बहुमत को सही गलत का पैमाना न माने. अपने विवेक का इस्तेमाल करे.
ये वही जाकिर साहब है जो कह रहे है की महात्मा गांधी मातृ टेरेसा आदि भी जन्नत जाएंग लेकिन उसकी कोई ठोस दलील पेश नही कर पाए
बृजेश जी, इस कमेंट को आप पढोगे तो पता लगेगा कि गांधी और टेरेसा, क्यों जन्नती है. दोनों के अमाल, इस्लाम के अनुरूप है. जिन मूल्यों को उन्होंने अपने जीवन में अपनाया, वो मुहम्मद साहब समेत, तमाम नबियो कि सीख के अनुरूप है. यानी उन्होंने, मुहम्मद साहब को रसूल माना है. मुहम्मद अल्फाज नहीं है. और आज के दौर में तो वो जिस्म भी नहीं. वो एक नैतिक मूल्यों का संग्रह है. जो इसके जितना करीब हुआ, उसका ईमान उतना ही मजबूत होगा. ये लोग, जन्नत के कौनसे मुकाम पे जाएंगे, ये अल्लाह बेहतर जानता है. लेकिन ये लोग, जहन्नुमी कतई नहीं. और जो लोग, इन्हे जहन्नुमी समझते हैं, उन्होंने इस्लाम का मर्म समझा ही नहीं. और अगर, इस गलत समझ में उन्होंने ऐसा रास्ता या व्यवहार अपना लिया है, जो लोगो में नफ़रत और तकब्बुर पैदा करे, तो वो जहन्नुम के ही हकदार है. अल्लाह ने इसी जीवन में मनुष्य को शैतान से सचेत और दूर रहने कि हिदायत दी है.
हाशिम साहब, एक बात बताइये, क्या किसी नबी ने अपनी माँ या सगी बहन के साथ शादी रचाई? या पत्थर की मूर्ति बना के ईश्वर की आराधना की? कुछ लोगो ने ईसा को भगवान् बताया, या उनकी पूजा की, लेकिन कुरआन में फ़रमाया है कि ईसा ने ऐसा करने के लिए कभी नहीं कहा. पुराने नबियों में आस्था रखने वाले के व्यवहार को, उन नबियों कि शिक्षा से जोड़ना सही नहीं. जो परम सत्य है, वो सृष्टि कि रचना से और आज तक नहीं बदला, और ना ही क़यामत तक बदलेगा. क्या आप कहना चाह रहे हैं कि ईश्वर ने समय के साथ अपनी गलतियों में सुधार किया. अल्लाह ने सृष्टि कि रचना के समय भी कोई गलत शिक्षा, अपने नबियों के माध्यम से नहीं भेजी. जैसे जैसे इंसानी सभ्यता और संस्कृति में तबदीली आती गयी. नबियों के द्वारा दी गयी शिक्षाओं के माध्यम और तरीके बदल गए.
और जो हर नबी के साथ बदलता जा रहा है, वो संस्कृतियां है, व्यक्तिगत पसंद, नापसंद है. उदाहरण के तौर पे आखिरी नबी, मुहम्मद साहब को कद्दू और लौकी कि सब्जी बहुत पसंद थी. इसका अर्थ यह नहीं कि, कद्दू को नापसंद करने वाला व्यक्ति, ईश्वर कि तौहीन कर रहा है, या उसका ईमान कमजोर है.
कुरआन भी फरमाती है, और ऐसी अनेको हदीसे भी है, जिनमे ईश्वर के लिए कई नामो का प्रयोग किया गया है. जब अल्लाह को कई नामो से बुलाया जा सकता है, तो उसका शुक्रिया या आराधना भी किसी भी भाषा में की जा सकती है. ईश्वर के प्रति समर्पण का भाव, जरुरी है. ना इबादत, अल्फाज है, ना ईमान.
हमें मुहम्मद साहब कि दिए गए रास्ते पे चलना है. उनको नबी मानने का अर्थ है, उनको अपने जीवन का पथ-प्रदर्शक मानना. उनकी बताये मूल्यों को, अपने जीवन के मूल्य बनाना. मिसाल के तौर पे, आखिरी नबी के माध्यम से, अल्लाह ने फ़रमाया कि किसी मजदूर के पसीने सूखने से पहले, उसकी मजदूरी दे दो. अपने वालिदैन कि इज्जत करो. माँ के पैरो के नीचे जन्नत है, वगैरह वगैरह. अब जो भी व्यक्ति, इस तरह कि सोच रखता हो, वो नबी को ही उन बिंदुओं पे अपने जीवन में नबी मान रहा है. भले ही, ऊपरी तौर पे मुहम्मद को नबी मानने से इंकार कर रहा हो, या अपने आप को नास्तिक समझ रहा हो. बाकी मुद्दों पे उसका आचरण ईमान के विपरीत भी हो सकता है. लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि, वो ईमान नहीं लाया.
जब तक मुहम्मद साहब, इस धरती पे रहे, तो वो उस कौम के सामने, जिस्मानी और रूहानी दोनों तौर पे रहे. उनसे बाद के तौर में तो उन्होंने, अपना चित्र तक बनाने को निषेध कर दिया. उसके बाद के दौर में मुहम्मद साहब कि शिक्षाए ही लोगो के सामने है. उस रास्ते पे चलना ही, उनको नबी मानना है. अल्लाह, ने आख़िरत में, सिर्फ तारीख के तालिबों को ही कामयाबी का वादा नहीं किया है. दीन या मजहब तारीख नहीं है. रिसालत के कानून को हमें समझने कि जरुरत है. सहाबाओ के दौर में भी इस मुद्दे पे रिसालत का कानून, अमल होगा, क्यूंकि उस दौर के लोगो के लिए, नबी जिस्मानी तौर पे भी है.
जिस व्यक्ति के चित्र कि आज मनाही है, उस व्यक्ति को लोगो ने अपनी आँखों से देखा है.
हसन निसार कि एक नात याद आ रही है “तेरे होते जनम लिया होता”
जाकिर साहब मैं तो आपको अन्य मुस्लिमो से थोड़ा से लग समझता थ मगर आप ही उन्ही तरह लच्छेदार गोलमोल बाटेकर रहै आप इंसानियत के नाते तो बिल्कुल हीक क रहे ह पर इस्लाम क़ुरान हदीस किसी चीज़ का हवाला तो दीजिये की ये अब जन्नत के हकदार ह कोई एक आयत ही
मुझे आपके कमेंट से मतलब है ही नही मजूझ आपके किसी आयत की मतलब है उससे साबित कीजिये की वरना ऐसे तकरीरे बहूत सुनी उर पढ़ी है
बृजेश जी, इस लेख पे मैने सबसे ज़्यादा बहस मोहम्मद असलम साहब से की है. वो क़ुरान की आयत और तफ़सीर करते हैं, उसको भी आप पढ़ेंगे, तो मदर टेरेसा और गाँधी जी यक़ीनन जन्नती है. लेकिन मैं आपको एक बात कहूँगा कि सदाचारी और लोगो की सेवा करने वाले, अपने अहंकार को त्याग कर के, लोगो मे प्रेम-भाव बढ़ाने की शिक्षा, इस्लाम देता है. और ऐसा सदाचारी व्यक्ति, अगर इस्लाम के प्रति नकारात्मक राय रखता है, तो इसका ज़िम्मेदार, मुस्लिम समुदाय है.
अल्लाह ने मुसलमान को संदेश दिया है कि, वो अपने अमाल और किरदार को इतना रोशन करे कि, सामने वाला व्यक्ति, इस्लाम के प्रति स्वत खीचा आए. अगर किसी के सामने, सही संदेश आया ही नही है, तो उसकी सज़ा, इस्लाम की ग़लत छवि पेश करने वाले को ही मिलेगी, क्यूंकी वो ईमान नही लाया, ईमान लाता तो अमाल अपने आप सही होते. अब असलम साहब का लिखा पढ़िए.
जन्नत पवित्र आत्मा के लिए
क़ुरआन की सूरह ताहा में, जन्नत के बारे में बताया गया है कि – जन्नत उस इंसान के लिए है जो अपना तज़्किया (आत्म शुद्धि) करे.
Paradise is for one who purifies himself.
क़ुरआन की इस आयत के मुताबिक़, जन्नत सिर्फ़ उस इंसान के लिए है जो मौजूदा दुनिया में अपना तज़्किया (आत्म शुद्धि) करे और एक पवित्र आत्मा वाले व्यक्तित्व के रूप में आख़िरत की दुनिया में पँहुचे.
यह सच्चाई क़ुरआन की कई अलग-अलग आयतों में बिल्कुल साफ़ तौर पर बयान की गई है. जन्नत में दाख़िले का फ़ैसला एक-एक इंसानों के अपने-अपने विशेषताओं के आधार पर किया जाएगा, न कि गिरोही सम्बन्ध के आधार पर.
जन्नत उस इंसान के लिए है जो अपने आप को पाक (पवित्र) करे. पाक करना यह है कि आदमी बेपरवाही और जिज्ञासा-शून्येता की ज़िन्दगी को छोड़ दे और अपनी अंतरात्मा की आवाज को सुने और अच्छे-बुरे की समझ वाली ज़िन्दगी को अपनाए, वह अपने आप को उन चीज़ों से बचाए जो सच्चाई से रोकने वाली है, और स्वार्थ जब रुकावट बन कर सामने आए तो वह उसको नज़रअंदाज़ (ignor) कर दे,
मन में लोभ और लालच उभरे तो वह उसे कुचल दे, ज़ुल्म और घमंड का मिज़ाज और मनोविकार जागे तो वह उसको अपने अन्दर ही अन्दर दफ़न कर दे , वग़ैरह.
ज़ाकिर भाई आपको तो इबलीस ने पूरे-का-पूरा पकड़-जकड़ लिया है! वक़्त कम था पर, मैंने अब आपके पिछले सारे कमेन्ट पढ़ लिए हैं! या तो आप नाम बदलकर रायता फैला रहे हैं….या आपका मिजाज़ यहूदियों वाला है जो कि शदीद अज़ाब में मुब्तिला होने वाली नस्ल है| आपको हिदायत देना तो अल्लाह के ही हाथ है! मेरे हाथ तो…………तलवार ढूंढकर लाता हूँ……….कहाँ मिलेंगे आप (ये मजाक की बात थी बुरा मत मानियेगा)? वैसे इस्लाम में तो माफ करने को ज़्यादा अफज़ल बताया गया है इसलिए……माफ| अब आप अपनी राह और हम अपनी(लकुम दीनुकुम वलियदीन) | अल्लाह-हाफ़िज़|
हाशिम मियाँ आपने नाम का ज़िक्र किया. क्या मुस्लिम नाम से होता है? जनाब मेरा नाम तो मेरे वालिदैन ने जाकिर रख दिया. अगर मुहम्मद भी रख दिया होता, लेकिन मेरी सोच और कर्म, इस्लाम के खिलाफ है तो मैं काफ़िर ही होता. और अगर आपको लगता है कि मेरी समझ, और कर्म इस्लाम सम्मत नही, तो अल्लाह इसको बेहतर समझेगा.
और कोई रमेश, सुरेश, राहुल, जॉन, पीटर जिंदगी के किसी भी क्षण ईमान ले आए तो, वो मुसलमान ही होगा, भले ही नाम बदले या ना बदले. मुसलमान सोच और यकीन से होता है. बाकी यहूदी क्या है, क्या कोई जन्म से यहूदी होता है? जन्म के आधार पे, अल्लाह ने किसी को भी मुसलमान या बे-ईमान नही माना. जैसे मुसलमान सोच से बनता है, यहूदी भी तो सोच से बनता होगा.
मैने इस फोरम पे, दुनिया के किसी भी फ़साद के पीछे, यहूदी साजिश की थ्योरी देने वालो से यहूदी की परिभाषा पूछी. कोई नही देता.
भाई, यहूदियों की क्या सोच होती है, क्या वो माँ के पेट से वो सोच लेके आते हैं. वहाँ से नही लाते, तो उनकी परवरिश कैसे होती है, जो उनकी सोच ऐसे हो जाती है, इन सवालो पे हमे गौर करना चाहिए.
Krishna Kant
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फिल्म में एक दृश्य है जहां सुभाष चंद्र बोस चेट्टियार मंदिर में अपने अफसरों के साथ जाते हैं और उनके साथ कुछ मुसलमान अफ़सर भी थे. वहां के पंडित ने उन्हें अंदर से आने से रोका तो 2-3 मुस्लिम बाहर आ गए, जब सुभाष चंद्र बोस को ये पता चला तो वे ख़ुद बाहर आ गए.
उन्होंने कहा है कि मुझे तो पूरे हिंदुस्तान के लिए प्रार्थना करनी है, हिंदुस्तान में तरह- तरह के लोग रहते हैं. लगता है कि हम आपके भगवान के लायक नहीं हैं. पंडित ऐसा सुनकर सबको अंदर ले गए और फिर सबको टीका लगाया लगाया. जब वे बाहर आए तो उन्होंने अपने माथे से टीका हटा दिया और कहा कि अगर हमारे चेहरे में हमारा धर्म नज़र आएगा तो हिंदुस्तान बनने से पहले ही बंट जाएगा.Krishna Kant
सिकंदर हयात zakir hussain 2 days ago
जाकिर भाई एक हम हे जिन्हे हर समय डर डर के रहना पड़ता हे एक एक लाइन सोच समझ डर डर कर लिखनी पड़ती हे एक्टिव तो हो ही नहीं पाते हे इसलिए हमें अंडरग्राउंड सा रहना पड़ता हे सबसे अधिक पाठक वाले माध्यम सोशल मिडिया से दूर रहता हु की पकडे गए तो जूते पड़ेंगे अपने ही लोग मारेंगे . जब मेने गायो पर लिखा तो फेसबुक पे पता चला की मेरे ही साथ फुटबॉल खेलने वाला दबग जाती का लड़का भी गौ रक्षा में इंट्रेस्टिड हे में डर गया की अगर इसे मेरा पता चला तो कही मेरे घर ही मोर्चा न लेकर आ जाए एक बार तो एक कटटरपंथी साहब तो मेरे ही गाँव के आस पास के थे कहने लगे तुम्हारे रिश्तेदारों ( सुन्नी सय्यद लोग ) से तुम्हारा पता निकाल कर घर आकर प्यार बरसायेंगे तो हमें इतना डर कर रहना लिखना पड़ता हे क्योकि पता हे की कुछ ऊंच नीच हो गयी तो कोई भी नहीं हे इस पूरी कायनात में , जो हमें बचाएगा या साथ खड़ा होगा इसलिए एक एक लाइन सोच समझ कर और बहुत लेट लेख लिखने पड़ते हे दूसरी तरफ आज़म और छोटे इकबाल के मित्र हमदम दमदम इन ZAHID साहब को देखिये जो मन में आये दबंग होकर लिखते हे नतीजा क्या होना हे यही ना या तो अपने यहाँ लोकप्रियता मिलेगी ही मिलेगी – विरोध हुआ कार्यवाही हुई जेल मुक़दमेबाज़ी हुई तो उससे भी अपने यहाँ और विपक्ष में भी जिन्दा शहीद का स्टेटस और बाहर आते ही MALAAYE जयजयकार मिलेगी दोनों हाथो में लड्डू , सूफी संत को देखिये रविश कुमार को देखिये भाजपा आई टी सेल और राइटिस्टों ने रविश का विरोध कर कर के उन्हें इतना ऊँचा उठा दिया हे की कुछ लोग तो रविश को पि एम् का उमीदवार बताने का सुझाव विपक्ष को देने लगे हे तो सब जगह यही हाल हे बस हम ही अभागे और मनहूस हे बाकी सबकी आज मौज़ हे ——————————————— Mohd ZahidYesterday at 13:17 · वो औरत कौन थी ?सारा गुजरात जानता था कि साहेब की पत्नी हैं परन्तु साहब विधानसभा चुनाव के तीन हलफनामें में खुद को कुंवारा बताते रहे , उच्चतम न्यायालय के कड़े आदेश के बाद उन्होंने 2014 में खुद को उनका पति तो बताया परन्तु पत्नी का हक नहीं दिया।
वो इंजीनियर लड़की कौन थी ?
सारा गुजरात जानता है कि साहेब की “रखैल” थी।
वहाँ रहते हुए सरकारी आवास में ऐय्याशियाँ की गयीं और तड़ीपार ने इसकी चौकीदारी की , साहेब के करीबी आईएएस ने उच्चतम न्यायालय में शपथपत्र देकर उस लड़की के साथ साहेब के बंद कमरे के मिनट दर मिनट कारगुजारी का ब्यौरा दिया है जिसका साहेब ने कभी इंकार भी नहीं किया। दिल्ली रवानगी से पहले फिर वह लड़की गायब करा दी गयी। जीवित भी है या मर गयी कोई नहीं जानता।
तड़ीपार की पत्नी कौन थी ?
सारा गुजरात जानता है कि साहेब की रखैल थी।
आनंदी बेन किसके चंगुल में थीं ?
उनके पति के आडवाणी को लिखे पत्र के आधार पर
साहेब के चंगुल में फंस कर उन्होंने अपने पति को छोड़ दिया था।
साहेब का छिछोरापन सारी दुनिया ने देखा है।
सुनते हैं कि साहेब के घर का पिछवाड़ा भी इनकी मनपसंद की किसी मंत्री के घर के पिछवाड़े से मिलता है।
सबका हक मार कर चले हैं मुस्लिम महिलाओं को हक दिलाने।Mohd Zahid
Yesterday at 11:01 ·
देश के प्रधान प्रचारक जी बचपन मे चाय बेचते थे।उनकी माता जी 4 मुस्टंडों को जन्म देने के बाद भी दूसरों के घर बरतन मांजती थीं।
फिर भी बाल नरेंदर बचपन मे स्टूडियो जाकर टाई, सूट पहन कर फोटो खिंचवा लेते थे। मालगाड़ी में चाय बेंचकर यूपी के ग्वालो से हिंदी सीख लेते थे। दिल्ली से हरियाणा स्कूटर से जाते थे। गांव की लाइब्रेरी में खाली समय पढ़ने चले जाते थे। उस जमाने मे शरारत करने के लिए लड़कियों की चोटी में स्टेपलर से स्टेपल कर देते थे। गाँव के तालाब में मगरमच्छ का बच्चा पकड़ लेना तो एक खेल था।
ये सब जानकारी माननीय जी ने खुद जनता को दी है। विदेशों में अपनी माता जी को याद करके रो भी लेते हैं। अपने जन्मदिन वाले दिन पूज्य माता जी को घर के बाहर बरामदे में बुलवाकर मीडिया के कैमरों की तरफ देखते हैं।
ये सब तो पब्लिक को हजम हो गया। बस हमको ये जानने की बड़ी तीव्र इच्छा है कि इनके पूज्य पिता जी क्या काम धाम करते थे ? उनका स्वर्गवास कब और कैसे हुआ ?
इनके बड़े भाई मोदी के भाई प्रह्लाद मोदी के बारे में तो अपने पास पुख्ता जानकारी है। ये जनाब कोई परचून की दूकान नहीं चलाते हैं ना चलाते थे, वो जो गरीबो को संस्था राशन कार्ड पर राशन बांटती है ये जनाब उसके अध्यक्ष हैं। इस संस्था में करोड़ों रुपयों की गड़बड़ होती है।
कमाई का अंदाजा लेने के लिए आजतक का 2013 का स्टिंग ऑपरेशन “ऑपरेशन ब्लैक” देखें। यूट्यूब पर उपलब्ध है। अभी पिछले हफ्ते ही इनकी लक्ज़री एसयूवी दुर्घटनाग्रस्त हो गयी थी।
मीडिया की तो औकात ही नही है जो इसको कवर स्टोरी बनाये। सोशल मीडिया वालों को क्या दिक्कत है? झूठे के घर तक पहुंचो। असलियत सामने आ जायेगी।
जब जब सच बोलने के लिए राजा हरिश्चंद्र का नाम लिया जाएगा तो झूठ बोलने के लिए भी अगली पीढ़ी को एक रोल मॉडल की जरूरत पड़ेगी। हुजूर इसमे सौ परसेंट फिट हैं !
सिकंदर हयात zakir hussain 2 days ago
जाकिर भाई मेने प्रिंट में भी धक्के खाये हे हम जैसे टुच्चो – इरादा नेक जमीनीअनुभवी पर प्रतिभाशून्य , हम जेसो की तो बात ही छोड़िये अब आप देखिये की इतना बुरा हाल हे की जरा भी समझ हो इरादा सही हो तो कायदे से तो रवीश कुमार का हर एक लेख और हर एक पोस्ट हिंदी अखबारों को सभी अखबारों मुहमांगे दामों पर खरीदनी चाहिए मगर कोई नहीं पूछता तो हम तो किसी गिनती में ही नहीं हे फिर इतना बुरा हाल हे की मेरे चारो तरफ एक से बढ़कर एक काबिल लोग थे हे मगर हराम हे कोई कैसा भी सपोर्ट देने की जगह तरह तरह के तनाव तरह तरह के जख्म देते रहे मेरे बड़े भाई की अकाल मर्त्यु में इसी सबका बड़ा हाथ था हां अगर हम लोग सेकुलर लेखक होने की जगह धर्मप्रचारक होते तब्लीगी होते सूफी होते लोकल जाकिर होते तो अपने और मुस्लिमस की तो बात ही छोड़िये गैर मुस्लिम तक – नवाज़ रहे होते मेने देखा हे . ले दे के सिर्फ अफ़ज़ल भाई से उम्मीद हे की वो सपोर्ट देंगे लेकिन उन पर भी इतनी बड़ी आफत आ गयी हे क्या कर सकते हे अच्छा बाकियो का तो ये हे की बदलाव सोच विचार प्रचार की लड़ाई में कल को किसी पर कोई आफत हो कोई समस्या आती हे कोई हमला जेल मुकदमेबाज़ी आदि आदि तो उनके लिए विरोध भी होगा सपोर्ट भी , बल्कि विरोध से उल्टा आज फायदा होता हे विरोध से ही सपोर्ट सामने आता हे वो कॉन्क्रीट होता हे मगर हमारी ही भारतीयसेकुलरदेवबंदीमुस्लिम जात ही ऐसी हे जिसकी लिए सिर्फ विरोध हे हो सकता हे , सपोर्ट नहीं हे और सब छोड़िये सोशल सूफी संत तक का रवैया दिखाया ही , तो इतने बदतर हालात हे पर्सनल और सामाजिक प्रोफेशनल मोर्चो पर , तनाव से सर फटा जा रहा हे कभी कभी सोचता हु की आज कितना अच्छा होता की हम रिक्शवाले होते सारा दिन रिक्शा चलाते और रात को थक कर सो जाते इस सोचने समझने समझाने चिंतन चिंता करने लिखने बोलने , क्रांति बदलाव की दुनिया से बहुत दूर होते
”
विशाल
15 hrs ·
कहु रहीम कैसे निभै, बेर केर को संग।
वे डोलत रस आपने, उनके फाटत अंग।।
बचपन में रहीम जी का ये दोहा पढ़ा था, अर्थ भी बखूबी समझा था, पर इधर जब से मुस्लिम दलित भाईचारे की बातें ज्यादा ही जोरों से उठने लगी हैं, रह रह कर ये दोहा दिमाग में कौंध जाता है| मुस्लिम और दलित की मित्रता की संभावना उतनी ही है, जितनी खूँखार भेड़िये और किसी खरगोश की| पता नहीं कौन से स्वप्नलोक में रहते हैं दलितों के ये कथित हितैषी जहाँ इन्हें मुस्लिम दलित प्रेमालाप की विकट संभावनाएं दिखती हैं|विशाल
अब तक के अपने अनुभव के आधार पर मैं दावे से कह सकता हूँ कि अनुसूचित जाति में शामिल जातियों के प्रति जितनी दुर्भावना और घृणा का भाव मुस्लिमों के मन में होता है, उसका लक्षांश भी कथित उच्च जातियों के मन में नहीं होता| किसी को जातिसूचक शब्द से सम्बोधित करने का चलन मुझे अब हिन्दुओं में ना के बराबर ही दिखता है, कुछ जागरूकता के चलते और अधिकांशतः कानूनी डर से ही| पर यही बात मैं मुस्लिमों के बारे में नहीं कह सकता क्योंकि मैंने आपसी बातचीत में उन्हें हमेशा अनुसूचित जाति के बंधुओं के लिए जातिसूचक शब्दों का प्रयोग करते हुए ही पाया है, और वो भी बहुत घृणा और वितृष्णा के साथ|
कभी किसी मुस्लिम बाहुल्य गाँव में दो एक दिन गुज़ार आइये, दलित-मुस्लिम भाईचारे का बढ़ चढ़ कर लगाया जाने वाला नारा किसी गन्दी नाली में दम तोड़ते मिलेगा आपको| च^ट्टों से लेकर साले भ^गी तक के जातिसूचक शब्द जरा जरा से बच्चों के मुँह से दिन भर में इतनी बार आपको सुनने को मिलेंगे कि उबकाई आने लगेगी| अभी छः महीने नहीं बीते जब एक गाँव में मुस्लिम बच्चों ने मिड डे मील योजना के अंतर्गत पकाया जाने वाला खाना केवल इसलिए खाना बंद कर दिया क्योंकि रसोइया हिन्दू जाति की नाई थी और उनके हिसाब से नीची जाति की थी, जबकि सब जातियों के हिन्दू बच्चे आराम से खा रहे थे| कहाँ गया दलित मुस्लिम दोस्ताने का ढकोसला?
चलो हिन्दू देवी देवताओं को नहीं मानोगे तो किसी को तो मानोगे| अम्बेडकर को नया भगवान् बनाया है और उनकी पूजा करना शुरू किया है तो जाओ किसी मुस्लिम बाहुल्य इलाके में अम्बेडकर की प्रतिमा लगवा कर उसकी पूजा करके दिखाओ| एक इलाका ऐसा नहीं मिलेगा मुस्लिम बहुल जहाँ अम्बेडकर या ऐसे ही किसी दूसरे की एक छोटी सी भी प्रतिमा मिल जाये| क्यों? क्योंकि इस्लाम मूर्तिपूजा की इजाजत नहीं देता और ये केवल राम कृष्ण हनुमान की मूर्तियों पर लागू नहीं है, अम्बेडकर या तुम्हारे ऐसे किसी भी दूसरे नायक के चित्रों और मूर्तियों पर भी लागू है|
मुस्लिम-दलित भाईचारा केवल वहीँ तक है, जहाँ तक दलित किसी मज़ार में चादर चढ़ा कर या बकरीद में बाँटा हुआ माँस खाकर अपनी धार्मिक आस्था की इतिश्री कर लेता है| पर जैसे ही वो कोई मंदिर बनाता है, चाहे रैदास-बाल्मीकि-अंबेडकर या नारायणगुरु का ही सही; किसी भी तरह का पूजापाठ करता है, कोई धार्मिक किस्म का आयोजन करता है, ये मुस्लिम-दलित भाईचारा छूमंतर हो जाता है और फिर वहाँ मुस्लिम और काफिर ही पाए जाते हैं| काफिर, जिनका खात्मा ही हर मुस्लिम का पाक फ़र्ज़ है, चाहे ख़त्म करके, चाहे मुस्लिम बनाके|विशाल ”
सिकंदर हयात
सिकंदर हयात सिकंदर हयात 5 days ago
अशोक जी को तो अब पता चला हमें तो हमेशा से इन सूफियों की भी असलियत पता थी हम शुद्ध देवबंदी हे और देवबंद और धर्मांतरण की दुनिया के एक बड़े खिलाडी हमारे ही रिश्तेदार हे वही दूसरी तरफ निजामुद्दीन वालो में भी रिश्तेदारी हे सबको जानते हे -Ashok Kumar Pandey
3 January at 21:28 ·
#कश्मीरनामा के लिए पढ़ने का एक नुकसान यह हुआ कि सूफ़ीवाद को लेकर जो एक रूमान था वह ख़त्म हो गया। समझ आया कि उस दीवानगी से आगे एक बहुत कठोर यथार्थ था जिसकी अपनी राजनीति थी। एक पूरा चैप्टर लिखा भी है सूफ़िज़्म और ख़ासतौर पर भारत मे सूफ़िज़्म को लेकर।
आज जब कई लेखकों/ कवियों को ख़ुद को सूफी कहते देखता हूँ तो उनकी भौतिक लिप्साओं और आकांक्षाओं से जोड़कर देखने पर लगता है वाकई ये भी वैसे ही “सूफी” हैं।—————————-Ashok Kumar Pandey
23 hrs · New Delhi ·
दलित मुस्लिम : एकता वेकता
_____________यह बहस कई बार उठ चुकी कि दलित मुस्लिम एकता संभव है या नहीं? ज़रूरी भी है या नहीं?
मेरा सवाल है कि कोई एकता आख़िर क्यों? ज़ाहिर है एकतायें समान लक्ष्यों के लिए समान शत्रुओं के खिलाफ ही संभव हैं। जब हम कहते हैं कि सभी कम्युनिस्टों को एक हो जाना चाहिए तो हमारा उद्देश्य होता है कि वे एक होकर पूँजी की ताक़तों के विरूद्ध संघर्ष तेज़ करें। इसी क्रम में दलित-मुस्लिम एकता का मानी क्या होगा?
कुछ मित्रों ने लिखा कि जहां दलितों का शत्रु ब्राह्मणवाद है वहीं मुसलमानों का शत्रु सांप्रदायिकता। मेरा सवाल है कि क्या आज सांप्रदायिक और ब्राह्मणवादी शक्तियाँ अलग अलग हैं? क्या जो ताक़तें अफ़लू खान की हत्या करती हैं वही कोरेगांव पर हमला नहीं करतीं? फिर? क्या इतना ही मुस्लिम दलित एकता के लिए काफी होगा?मेरा मानना है नहीं। असल में न तो दलित कोई मोनोलिथ रह गया है न ही मुसलमान। दलितों का एक हिस्सा संघ की ओर गया है, दूसरे ने मध्यवर्गीय लक्ष्य हासिल कर लिए हैं और सत्ता का भागीदार हो चुका है तो मुसलमानों में किसी भी संघर्ष का लाभ अक्सर अशराफ़ तक पहुँचा है। फिर दलितों और मुसलमानों के अलावा भी अल्पसंख्यक और वंचित तबके हैं। स्त्रियाँ हैं, आदिवासी हैं, कश्मीर तथा उत्तर पूर्व की उत्पीड़ित राष्ट्रीयताएं हैं और छोटा सा सही पर प्रगतिशील लोगों का एक तबका है जो गौरी लंकेश की तरह दक्षिणपंथ की आँख की किरकिरी है। देखें तो इन सबका समान शत्रु है दक्षिणपंथी फ़ासीवाद। कोई एकता उस फ़ासीवाद से फैसलाकुन मुकाबिले के लिए इन सब वंचित और मुक्तिकामी जनता की व्यापक एकता ही होगी। वही फ़ासीवाद के चंगुल से आज़ाद करेगी।
लेकिन यह एकता आसमान से नहीं टपकेगी। इसके लिए संघर्षों में साझा मोर्चे बनाकर भरोसा हासिल करना होगा एक दूसरे का। इसीलिए जहाँ बन सके वहाँ दलित-मुस्लिम एकता, दलित-वाम एकता आदि के साझा मोर्चों का स्वागत होना चाहिए। ये टूटे भी तो आगे की राह दिखाएंगे। घंटे भर में एकता खाली चुनाव लड़ने/जीतने वाली एकता होती है। मुक्ति संघर्ष की एकता लंबी प्रक्रिया में हासिल होती है।
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Sarfraz Katihari
6 January at 20:39 ·
अब उलेमा , मौलानाओ और सभी मुस्लिमो को कुछ इस तरह की बात करनी चाहिए……
1)नमाज़ रोजा जाहिलाना है ये सब एक वक्त की बर्बादी है।डिस्को ,dj इत्यादि वक़्त का सदुपयोग है।
2)सूद हलाल है, सूद बड़ी अच्छी चीज है।
3) सेक्स में कोई बंदिश नही होनी चाहिए। किसी तरह (चाहे anal ही क्यो ना हो) , किसी से (फ्री सेक्स की तरह और कोई भी लिंग के लोगो के साथ) , कभी भी कर सकते है।
4)मर्दो को औरतो को घूर घूर कर देखना चाहिए और मर्दो को ज्यादा दिक्कत ना हो इसलिए औरतो को भी नारी ससक्तिकरण के नाम पर थोड़े अलग ढंग के वस्त्र पहनने चाहिए।
5)शराब बहुत अच्छी चीज है। इससे सेहत बनता है।
6)मस्जिद मदरसा का कोई तुक नही है इसके बदले इन पैसों का कही और इस्तेमाल हो ।
7)जानवर जानवर होता है , हलाल हराम इसमें क्या ? हलाल जानवर की मौत में ज्यादा कष्ट होता है इसलिए हलाल ढंग से जबह नही करना चाहिए नाहि जानवर हलाल है हराम है इसकी परवाह करनी चाहिए।
8) मुसलमानों को दफनाना नही बल्कि लाश को कुत्तो या अन्य जानवर को खिला देना चाहिए , दफनाने के लिए जगह की जरूरत होती है ,नमाज़ ए जनाजा पढ़ने वाले लोगो का कीमती वक़्त ज़ाया होता है जबके जानवरो को खिलाने से उनका पेट भरेगा।
9) निकाह एक दकियानूसी चीज़ है निकाह के बदले live in (आधुनिक रखैल सिस्टम) को अपनाना चाहिए । पहले शादी की सामाजिक स्वीकृति जरूरी होती है आज इसकी कोई उपयोगिता नही है इसलिए निकाह की भी कोई जरूरत नही है।
10) कोई जुल्म करे तो उसको जालिम नही कहा जाए बल्कि उसकी तारीफ हो।
इत्यादि इत्यादि।Sarfraz Katihari
चंदाखोर लोग होते हे ये और कुछ नहीं इनहे कुछ नहीं पता इसलिए एक आम संघी इन पर भारी पड़ गया—————————————————————————- ”Pawan
#इस्लामिक_इनफार्मेशन_सेंटर,का स्टाल बेशक छोटा था ! लेकिन जिस उद्देश्य के लिए वह लोग वहाँ बैठे थे,उसके लिए यह जी-जान से जुटे थे ! इस ग्रुप की टारगेट आडिएंस हिन्दू नौजवान और युवतियां थे ! इस ग्रुप के लोग यहां -वहां बिखरे लोगों को अपने इस स्टाल तक लाने के प्रयासों में सफल थे और उन्हें इस्लामिक सहिष्णुता का पाठ पढ़ा रहे थे !
हमारे युवक-युवतियां जिन्हें यह तक नहीं मालूम कि श्रीराम किस राज्य के राजा थे या अयोध्या किस राज्य में स्थित है ? एक ने मेरे ज्ञान में वृद्धि की कि अयोध्या मध्यप्रदेश में कहीं है ! मगर रु 30/- में कुरान चट से खरीद ली ! ज़ाहिर है उन्हें रामचरितमानस पढ़ने के लिए कहने वाला कोई नहीं है !
इस स्टाल पर कुछ प्रोफेसरनुमा दढ़ियल लोग डटे थे जो बता रहे थे कि #राष्ट्रवाद भारत के लिए असली खतरा है, यदि मुल्क बचाना है तो #इस्लाम द्वारा प्रदत्त विश्व-बंधुत्व की भावना से ही बचेगा ! नारियों का असली सम्मान यदि कहीं है तो वह सिर्फ इस्लाम ‘धर्म’ मे ही है ! एक मौलाना बता रहे थे कि मुल्क की आज़ादी के लिए लाखों मुसलमानों ने कुर्बानियां दीं ,हमारे छोकरे सहमति में मुंडी हिला रहे थे…..
खैर….भीड़ में खड़े हम भी इस प्रहसन को देख रहे थे,आजकल तराशी हुई दाढ़ी भी है सो अक़्सर मौलाना लोग हमे मुसलमान ही मान लेते हैं ! हम ने कहा कि “मौलाना क्यों फेंक रहे हो,ज़रा बताओं वो कौन से मुसलमान थे ,जिन्होंने आज़ादी के लिए कुर्बानियां दी ? ” मौलाना गुर्राए -“आपने खिलाफत मूवमेंट का नाम सुना है?” हमने कहा “खिलाफत नहीं, #ख़लिफत कहिए,जनाब ” मौलाना बोले “फर्क क्या है,एक ही बात है” ! हमने ने कहा ” नहीं मौलाना,बेबकुफ़ बनाना बंद कीजिए,1920 से 1921 तक आपने तुर्की में इस्लामिक शासन की लड़ाई वहां के खलीफा के लिए लड़ी थी,हिंदुस्तान की आज़ादी के लिए नहीं ” मौलाना का चेहरा बुझी बीड़ी जैसा हो गया ! रेस्क्यू के लिए दूसरे मुल्लाजी नमुदार हुए……
मुल्ला जी ने मखमली आवाज़ में दाना डाला
“भाईजान आइए,अंदर बैठ के गुफ्तगू करते हैं”,हमने कहा कि “बच्चों को भी चीजों का इल्म हो जाये तो बेहतर है” बच्चे की दिलचस्पी बढ़ चुकी थी ! हमने मुल्ला जी पर सवाल दागा – भई इस्लाम अगर शांति का मज़हब है तो 5 लाख कश्मीरी हिन्दू पंडित घाटी से क्यों निकलवा दिए आप लोगों ने ? श्रीनगर, बारामुला, शोपियां और अनंतनाग के मंदिर किसने जलाए ? आप शांति के मज़हब इस्लाम वालों ने मुस्लिम आतंकियों को क्यों नहीं रोका ? आज भी श्रीनगर में मंदिर टूटे-जले पड़े हैं,आप तो शांति का मज़हब हैं ,मंदिर फिर से क्यो नहीं बनवा देते और कश्मीरी पंडितों को उनके खाली घरों में क्यो नहीं बसा देते ?
मुल्ला जी का दूध फट-कर दही बन चुका था ! बोले ,”भाईजान इस वक्त भीड़ आप देख ही रहे हैं ,फुरसत में बात होगी ! हमने कहा,”भई फुर्सत में ही हैं,बात जारी रखें ! वैसे यह समझ लें कि लोग आपके मज़हब का सम्मान नहीं करते,सिर्फ डरते हैं,आप लोग आतंक को शांति का नकाब न पहनाएं ” , बच्चे आश्चर्य से देख रहे थे, शायद उन्हें कोई पहली बार कोई ऐसा हिन्दू-प्रौढ दिखा था जो पगलाये भैंसे को सींग से पकड़कर पटकने की इच्छा रखता हो……जयतु हिन्दुराष्ट्रम !! ” पवन
पाठको पुराने क्लिक मिट गए हे इसलिए नए पाठको लेखकों के लिए सुचना की ये लेख पुराने नए मिलाकर लगभग ४- हज़ार से अधिक तक पढ़ा गया हे -सभी पाठको खासकर नए पाठको को एक जरूरी सूचना की साइट को नया मोबाइल यूज़र फ्रेंडली रूप देने के दौरान हुआ ये की पुराने क्लिक्स की सूचना मिट गयी हे तो नए पाठको के लिए ये सूचना वार्ना वो सोचेंगे की कुछ जगह इतने अधिक कमेंट्स ( मेरे से इतर भी ) और क्लिक इतने कम — ? तो पाठको पुराने क्लिक डिलीट हो गए हे दुःख हे क्योकि ये अफ़ज़लभाई की साइट का जबर्दस्त कारनामा था की बगैर किसी बेक ग्राउंड के बगैर किसी से भी जुड़े बगैर , किसी बड़े या माध्यम नाम के बिना ही खबर की खबर के लेख -लाख हज़ारो तक भी पढ़े गए थे वही कमेंट तो मुझे नहीं लगता की नयी हिंदी साइट्स जो किसी बड़े मिडिया ग्रुप की नहीं हे उनमे से शायद ही किसी को इतने कमेंट्स वो भी एक दो लाइन या शब्दों के नहीं बल्कि विचारो वाले वो शायद ही किसी और नयी हिंदी साइट्स पर हो मेरी तो जानकारी नहीं हे Nitin Thakur13 hrs · हिंदू मन को क्या डराता है?
किसी मुसलमान को देखते ही मन में पहलेपहल ख्याल आया करता था कि अगर इसकी दाढ़ी ना होती तो ये कैसा दिखता। आधा मिनट कल्पना करना काफी होता है। एक ऐसा चेहरा उभरता है जो एक हिंदू मन को बिलकुल अनजान नहीं लगता। अहसास होता है कि ये तो बहुत ही आम सा चेहरा है। फिर वो क्या है जो डराता है? दाढ़ी? या वो काला निशान जो नमाज़ियों के माथे पर धीरे -धीरे गहरा होता जाता है? खूंखार पाकिस्तानी आतंकवादियों की तस्वीरों और फिल्मों मेें गढ़े गए आतंकी हुलिये ने एक ‘खतरनाक मुसलमान’ की जैसी तस्वीर हमारे दिल में बना दी है हम ताउम्र उससे ही खौफ खाते रहते हैं। पड़ोस में कोई दाढ़ी वाला किराये पर घर लेने आए तो डर लगता है, बस की सीट पर बेडौल सा झोला लिए दाढ़ी वाला बैठ जाए तो घबराहट होने लगती है, कॉलेज या दफ्तर में कोई दाढ़ी पालने लगे तो कोफ्त दिन ब दिन बढ़ती जाती है। कब से देख रहा हूं कि हिंदू मन इस दाढ़ी के साथ तारतम्य नहीं बैठा पा रहा। वो कभी लादेन की लगती है तो कभी बगदादी की याद दिलाती है। ब्रह्मा की दाढ़ी, गोलवलकर की दाढ़ी, आसाराम की दाढ़ी और फिर रामदेव की दाढ़ी शंका को जन्म नहीं देती लेकिन मुसलमान की करीने से कटी दाढ़ी क्यों हिंदू मन को डरा रही है?
अब तो डर का साथ नफरत भी देने लगी है। मुझे ये साबित करने की चुनौती मत दीजिएगा क्योंकि इसी समाज में पैदा होने, बड़े होने और माहौल समझने के दौरान एक नहीं बल्कि बार-बार ये डर देखने को मिलते रहे हैं। यूं तो डरना कोई अपराध नहीं, लेकिन डर पैदा करने वाली मानसिकता ज़रूर अपराधी है। आपको सावधान करने के नाम पर डराकर शोषित करने की मानसिकता बेहद खतरनाक है। इससे बचिए। ये आपको ही शोषित नहीं करती बल्कि आपकी आनेवाली पीढ़ी के शोषण का भी पुख्ता इंतज़ाम करती है। क्या आप किसी ऐसे इंसान को पसंद करेंगे जो आपके छोटे बच्चे को खिलाने के नाम पर डराने लगे? और फिर किसी काल्पनिक डर से हिफाज़त का बहाना बनाकर उसका शोषण करे?
देश की आज़ादी के लिए लड़नेवाले अब्दुल कलाम आज़ाद, खान अब्दुल गफ्फार खान, भारत की बेटी गीता को अपने पास हिफाज़त से रखने वाले मशहूर समाजसेवी अब्दुल सत्तार ईदी वगैरह सभी की दाढ़ियां थीं। तुरंत लिखने में बहुत सारे छूट जाएंगे। रोज़मर्रा की ज़िंदगी में तो कोई गिनती नहीं मिलेगी कि कितने दाढ़ी वालों ने कांवड़ के वक्त शिवभक्तों की सेवा की होगी। नवरात्र में व्रत रखे होंगे।
ज़हन को इस डर से मुक्त करने की ज़रूरत है। इस डर के साथ हम एक ऐसा समाज नहीं बना पाएंगे जहां दो समुदाय दूध और पानी की तरह मिल जाते हैं। डर एक दूसरे के प्रति हिंसक बनाता है। हिंसा की तैयारी में झोंक देता है। सारी ऊर्जा एक-दूसरे को डराने में ही चली जाती है। वैसे भी हिंदू मन को डरने की ज़रूरत नहीं है। इतिहास बताता है कि धार्मिक समुदाय के तौर पर वो कभी खत्म नहीं हुए। आइंदा होने की वजह भी नहीं है। हां, अगर दाढ़ियों से डरते रहे तो सहिष्णुता की छवि खो बैठेंगे, नाम भले हिंदू रह जाए।Nitin Thakur
Yesterday at 18:48 ·
भारत का मुसलमान अरबी मुसलमानों की कथित श्रेष्ठता के सामने भयानक कुंठित है. ऊंचा पायजामा, गोल टोपी और बुरका सिर्फ उस हीन भावना से निकलने की कवायद हैं. सच ये है कि दक्षिण एशिया ने जिस तरह इस्लाम को प्रैक्टिस किया है उतनी खूबसूरती से शायद अरब भी ना कर सके. एक-दूसरे की मस्जिद में घुसकर हिंसा उनके लिए बड़ी बात नहीं लेकिन यहां अभी गनीमत है.. कम से कम एक-दूसरे के पूजास्थल पर बम फेंकने की घटना उंगली पर गिनने लायक हैं. भारतीय इस्लाम पर गर्व करने की ज़रुरत है ना कि तेल की लड़ाई में उलझे ISIS में शामिल होकर खुद को सच्चा मुसलमान साबित करते हुए घर से दूर मरने की. जिनकी लड़ाई है उन्हें कर लेने दीजिए. आपकी गरीबी दूर करने वो कभी भी नहीं आए.
Asghar Wajahat
10 February at 21:17 ·
पर्दे के संबंध में मेरी एक पोस्ट पर बहस हुई है। कुछ लोग मेरे विचारों से सहमत हैं और कुछ लोग नहीं है।उनका अपना अलग मत है। उनमें से एक आसिम बेग मुग़ल हैं। जिनके सवाल नीचे दे रहा हूं और उसी के साथ साथ जवाब भी दे रहा हूं।
Asghar Wajahat सर, छोटा मुंह बड़ी बात के लिए माफ़ी चाहूंगा।
सवाल – सर, जब कहीं भी मुस्लिम औरतों के पर्दे को लेकर चर्चा होती है तो मुझे एक चीज़ समझ नही आती कि चर्चा करने वाले क्या वाकई में पर्दे के बारे में जानते हैं ?
जवाब – भाई आसिम साहब आपका शुक्रिया कि आपने मेरी पोस्ट पर अपनी राय जाहिर की है ।आपने लिखा है कि पर्दे के बारे में मेरी जानकारी पूरी नहीं है ।हो सकता है आपकी बात सही हो। कृपया यह बताएं कि पर्दे के बारे में पूरी जानकारी क्या है। केवल कुरान शरीफ के आधार पर यह बताएं कि किस प्रकार के परदे का हुक्म दिया गया है? किस प्रकार के बुर्के /चादर/ हिजाब की बात की गई है? और अगर पर्दा संबंधी ऐसा कोई बहुत स्पष्ट हुकुम क़ुरान शरीफ में है तो पूरी इस्लामी दुनिया की मुसलमान औरतें समान रूप से कुरान शरीफ द्वारा निर्धारित बुर्के या हिजाब का प्रयोग क्यों नहीं करतीं ? मतलब भिन्न-भिन्न मुस्लिम देशों की औरतों के पर्दों के तरीके अलग-अलग क्यों हैं?
सवाल
– पर्दा – जो औरत को राह चलते लोगों की उस नज़र से बचाता जिसमें फ़ितना हो। पर्दे के दो हिस्से होते हैं एक चेहरा ढकता है दूसरा हिस्सा पूरा बदन ढकता है।
जवाब-
आपके ख्याल से महिलाओं के प्रति अपराध करने वाले लोग क्या किसी महिला के प्रति इसलिए अपराध नहीं करेंगे कि वह बुर्का पहने हुए है ? निश्चित रूप से बुर्का कोई कवच नहीं है। महिलाओं के प्रति अपराध करने वाले बुर्का पहनने वाली औरतों के साथ भी उसी प्रकार अपराध करेंगे जैसे बुर्का न पहनने वाली औरतों के साथ। इसलिए बुर्का पहनने से कोई बचाओ नहीं होगा।
यह पता लगाएं कि संसार में औरतों के प्रति सबसे कम अपराध किन देशों में होता है और क्या वहां की औरतें बुर्का पहनती हैं? मेरी जानकारी के अनुसार विश्व में महिलाओं के लिए सबसे सुरक्षित देश आइसलैंड है। भारत में, नागालैंड में, महिलाओं के प्रति सबसे कम अपराध होते हैं। निश्चित रूप से आइसलैंड और नागालैंड में बुर्के की प्रथा नहीं है।
सवाल
1.पर्दा औरत के लिए किस तरह से नुक्सानदेह है ?
जवाब
– पढ़ाई लिखाई से लेकर किसी भी प्रकार का पेशा अपनाने जैसे डॉक्टर बनने, वकील बनने या वैज्ञानिक बनने वाली औरत अगर बुर्का पहनती है तो निश्चित रूप से वह अपना काम नहीं कर सकती। इसका मतलब यह हुआ कि बुर्का पहनने वाली औरतों का जीवन केवल घर तक सीमित हो जाता है। घर को देखना और बच्चे पैदा करने के अलावा उनका जीवन और कुछ नहीं रहता।
सवाल
2. लोग औरतों के हुक़ूक़ अच्छी तरह से पूरे नही कर रहे हैं, क्या इसकी वजह पर्दा है?
जवाब
आपने औरतों के हुक़ूक़ यानी अधिकारों की बात की है जो कि बहुत अच्छा सवाल है । मुस्लिम औरतों को क्या अधिकार दिए जाते हैं? या दिए जाने चाहिए? क्या उन्हें शिक्षा का अधिकार दिया जाना चाहिए ? और यदि हां तो कहां तक की शिक्षा का अधिकार देना चाहिए ? हाईस्कूल पास कर लें या इंटर पास करने या बीए पास कर ले या एम ए पास कर लें? मुस्लिम लड़कियों को कहां तक शिक्षा मिलनी चाहिए ? क्या उन्हें डॉक्टर,इंजीनियर या वैज्ञानिक बनने का अधिकार भी मिलना चाहिए ?
मैंने देखा है कुछ शहरों में गरीब मुस्लिम औरतें बीड़ी बनाने का काम करतीं हैं और छोटे मोटे काम करके अपना पेट पालती हैं। क्या उन्हें वहीं तक सीमित रखना चाहिए या अच्छी शिक्षा और अच्छा रोजगार देना चाहिए? जब आप इन सवालों का जवाब देंगे तब आपको पता चलेगा कि मुस्लिम महिलाओं को अधिकार देने के लिए बुर्का किस प्रकार उनकी सहायता करेगा या उनके काम में बाधा डालेगा।
सवाल
3. औरतों के शोषण के मामले दिन बदिन बढ़ रहे हैं ख़ासकर भारत की बात करते हैं तो क्या पर्दे की वजह से उनका शोषण हो रहा है ?
जवाब
औरतों के प्रति जो अपराध बढ़ रहे हैं, उसका मेरे विचार से ,पर्दे से कोई सीधा संबंध नहीं है। उसके अनेकों कारण है जिन पर बहुत विस्तार से चर्चा की जरूरत है। लेकिन इतना तय है कि बुर्के या पर्दे का इस्तेमाल करने की वजह से औरतों के प्रति अपराध है कम नहीं हो सकते।
बुर्का और महिलाओं के प्रति अपराध के बात मैं लिख चुका हूं।
सवाल
– नोट लोग blue films बहुत पसंद करते हैं क्योंकि उसमें औरत पूरी तरह से निवस्त्र होती है।
जवाब
-अगर आप यह कहना चाहते हैं कि बिना बुर्के के स्त्रियां उसी प्रकार दिखाई देती हैं जैसे ब्लू फिल्मों में नजर आती हैं तब मैं आपसे सहमत नहीं हूं ।बिना बुर्के के भी स्त्रियां बहुत शालीन, गंभीर गरिमामय लगती हैं। बुर्का न पहनने का मतलब स्त्रियों का अश्लील देह प्रदर्शन नहीं है।
कृपया इन बातों पर विचार करें।
मदरसों को बंद करने की बात करने वाले —————— रिज़वी जैसे दलालो की जितनी निंदा की जाए कम हे ऐसे ऐसे डरपोक कायर लोग बहुत भरे हुए हे और भी बहुत देखे मेने जो आजकल इस्लामिक कटरपंथ की निंदा करते हे उदारता की प्यारी प्यारी बाते करने लगे हे लेकिन आज , आज आज ही क्यों ——— ? पहले क्यों नहीं करते थे क्योकि इस्लामिक कटटरपंथ की निंदा आज अब एक कम्फर्ट ज़ोन हे आसान काम हे थू हे इन हिज़डो पर ( हिज़ड़े भाइयो से माफ़ी वो तो इनसे बहुत वीर होंगे ) हमने पंद्रह बिस साल पहले ही मुस्लिम कटटरपंथ की कड़ी आलोचना और उसके दुष्प्रभाव बताने शरू कर दिए थे तब मुस्लिम भारतीय चुनावी राजनीति की नाक के बाल थे हम तब बोले और निन्दित हुए गद्दार कहलाये पागल गधे मुर्ख मुर्तद कहलाये तब मुस्लिम कटटरपंथ से भिड़ना मुश्किल काम था हमने किया आज मुश्किल काम हे हिन्दू कठमुल्वाद हिन्दू कम्युनलिज़्म हिन्दू संकीर्णता हिन्दू आतंकवाद से टक्कर लेना हे वो भी कर रहे हे दूसरी तरफ ये छक्के आज हिन्दू कटटरपंथ के तलवे चाट रहे हे और मुस्लिम कटटरपंथ की निंदा कर रहे हे लानत हे मुसलमानो में सेकुलरिज़्म की मलाई कुछ शिया बरेलवी बोहरा आदि चतुराई से हड़प कर जाते इन रिज़वान अहमद साहब की बात देखिये एक फेकिया घोर कम्युनल आदमी के गले में बांहे दाल कर फोटो खिचवाते हे पूरा केस ये हे Share ›
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सिकंदर हयात • 2 hours ago
fake news -by ek ias ka sala –
” P A
29 March at 22:37 · Mainpuri ·
सत्य कठोर होता है।
सत्य कष्ट देता है और हिन्दू कष्टविहीन गुलामी में सुअर की भांति मस्त रहना चाहता है।
कर्नाटक के मुख्यमंत्री कार्यालय के आदेश पर, जैन मुनि की एक मुसलमान द्वारा हत्या के प्रयास को उजागर करने पर निम्न राष्ट्रवादियों पर केस लिखा गया और वारंट निकाला गया है।
1. #Mahesh_Hegde
2. #PostCard
3. Gaurav Pradhan
4. #Deepak_Shetty
महेश गिरफ्तार हो चुके है और बाकी भी किये ही जायेंगे।
यह है सत्य कर्नाटक के हिन्दू मुख्यमंत्री का जो, पहले रोमन कैथलिक ईसाई राहुल गांधी के आदेश पर हिन्दू को ही तोड़ रहा था और अब हार की डर से विच्छिप्त हो कर, जैन मुनि पर किये जाने वाले हत्या के प्रयास को उजागर करने पर, धारा 153 A का मुकदमा लिखवा रहा है ” ———–https://www.altnews.in/hindi/postcard-news-spreads-fake-news-about-a-jain-sage-attacked-by-muslim-youth/ ये फेक न्यूज़ का कारखाना एक मुस्लिम के साथ मिलता हे में कई बार कह चूका हु की मुसलमानो में सेकुलरिज़्म के नाम पर कई शिया बरेलवी बोहरा नाम मलाई खाते रहते हे भला कौन सच्चा सेकुलर होगा जो इन फेकियो को अपने बगल में बिठाये रिज़वान साहब शर्म करो कुछ ——– ? फेकिया लिखता हे
P A added 2 new photos — with Rizwan Ahmed.
2 March · Lucknow · इस बार जब लखनऊ आया था तब यह सोच कर आया था कि इस बार Dr Rizwan Ahmed से मुलाकात करूँगा। कुछ समय से टीवी पर उनको सुन रहा था और मुझे लगा कि इनसे व्यक्तिगत रूप से मिल कर बात करनी चाहिये।
खैर इनबॉक्स पर संवाद हुआ और हम लोग उनके ही निवास पर मिले। हमारी मुलाकात उतनी लम्बी नही हुई जितनी मुझे अपेक्षा थी लेकिन कुछ मेरे देरी से उनके घर पहुचने और कुछ उनकी 2 बजे टीवी पर एक डिबेट में पहुँचने की मजबूरी ने निश्चित सोचे गये समय को कुछ कम कर दिया।
औपचारिकता के बाद हम लोगो ने सिर्फ बात की और यह समझने मुझे कोई देरी नही हुई की जिनसे मैं वार्ता कर रहा हूं वो अपने मे बेहद सुलझे हुये है। वे किसी रोमानियत से दूर धरातल पर वास्तविकता से रूबरू हो कर अपनी बात कह रहे थे। हमारे बीच जो बातें हुई उसको तो मैं यहां अभी नही लिखूंगा लेकिन एक बात जो उन्होंने की उसका जिक्र जरूर करूँगा।हुआ यह की जब मैं उनके घर पहुंचा तब टीवी पर जॉर्डन के किंग और मोदी जी का भाषण खत्म हो चुका था और मुझे उनके भाषण के बारे में कुछ नही मालूम था। बातो के बीच, रिजवान साहब ने दिये गये भाषण का जिक्र छेड दिया और कहा, ” ————————————————————————————————————————————————————–सिकंदर हयात an hour ago
एक तरफ अपने पति की जगह मोदी का नाम लेने वाली लोग जिस ग्रुप में हे उस ग्रुप का एक पत्रकार -नहीं बिल्ला नहीं दूसरा झा एक तरह से लोगो से अपील कर रहा हे की अगर मोदी को वोट नहीं दिया तो मुस्लमान आपके बच्चो का मांस आपके मुँह में ठूसेंगे तो इस किस्म की नीचता पर उतर आये हे ये लोग दूसरी तरफ इसी ग्रुप की एक हिंदी साइट हे ये रात दिन सेकुलरिज़्म उदारता सहिष्णुता की बात करती हे अपने ग्रुप के गंदे लोगो को छोड़कर सबकी निंदा करती हे रात दिन funda साफ़ हे की यानि दोनों तरफ से मलाई खाओ उदारता की भी कटटरता की भी भारत ही नह