by — गुलाम रसूल देहलवी
पिछले दिनों इस्लामी प्रचारक जाकिर नाइक की संस्था ‘इस्लामिक रिसर्च फांउडेशन’ पर पांच साल का प्रतिबंध लगा दिया गया है। मुंबई पुलिस और एनआईए की टीम ने संस्था के दस ठिकानों पर छापेमारी की। इसके खाते भी फ्रीज किए गए हैं। यह संस्था जुलाई में उस वक्त शक के घेरे में आई जब बांग्लादेश में हुए आतंकी हमले के बाद आतंकियों के जाकिर नाइक के भाषणों से प्रभावित होने की बात सामने आई। अपने एनजीओ के खिलाफ कार्रवाई से बौखलाए नाइक ने भारतीय मुसलमानों के लिए चार पेज का खुला पत्र लिखा है, जिसमें पांच सवाल और एक अपील है। उन्होंने कहा है कि मेरे खिलाफ कार्रवाई करने का मतलब है 20 करोड़ मुसलमानों के खिलाफ कार्रवाई। नाइक की दलील है कि डेढ़ सौ मुल्कों में उन्हें सम्मानित किया जाता है और उनकी बातों का स्वागत होता है। लेकिन उन्हें अपने ही देश में ‘आतंकी उपदेशक’ बुलाया जा रहा है, जबकि पिछले 25 सालों से वे यही सब करते आ रहे हैं। उनका सवाल है कि अब उनके खिलाफ कार्रवाई क्यों हो रही है?
यह पूछना जायज है कि अब ही क्यों? नाइक पर मामला तभी दर्ज किया गया कि जब इंडियन मुजाहिदीन से जुड़े लोगों के घरों में छापेमारी के दौरान पुलिस को तालिबान समर्थकों का विडियो मिला। इसमें नाइक के अल कायदा और उसके प्रमुख ओसामा बिन लादेन के बचाव में दिए गए भाषण भी शामिल थे। कट्टर सलाफी विचारधारा के उपदेशक जाकिर की नजर में आत्मघाती बम विस्फोट, गुलामों के साथ शारीरिक संबंध बनाना, बाल विवाह, गैरमजहब के लोगों की निंदा करना, उनसे घृणा करना और असहिष्णुता फैलाना जायज है। ऐसे कामों को वे तब से जायज ठहरा रहे हैं, जब से पीस टीवी शुरू हुआ। तभी से नाइक ऐसी विषैली और कट्टर विचारधारा से भरे उपदेश देते रहे हैं, जो हमारी 21वीं सदी की प्रगतिशील और बहुलतावादी प्रकृति के साथ मेल नहीं खाती, खासकर भारत की धरती पर।
इस तरह नाइक ने हमारे संविधान के अनुच्छेद 25 का उल्लंघन किया। उन्होंने मुस्लिम देशों को अपने धर्म के अलावा किसी अन्य धर्म को जगह न देने और उनके पूजा स्थलों का निर्माण न होने देने का संदेश दिया है। ऐसा कहकर उन्होंने भारतीय संविधान ही नहीं, इस्लाम के सार्वभौमिक मूल्यों को भी धता बताय है। नाइक और उनके जैसे लोग संवैधानिक अधिकारों का विरोध करते हैं, जो कुरान के बहुलतावाद के बिल्कुल विपरीत है।
देश में इस्लाम के भीतर इधर एक कट्टर सलाफी विचारधारा उभरी है, जिसके उपदेशक ऐसी बातें कह रहे हैं जो इस धर्म के उदारवादी मूल्यों से मेल नहीं खाती। ऐसे ही एक धर्मोपदेशक हैं केरल के सलाफी धर्मगुरु शम्सुद्दीन फरीद, जो कहते हैं कि मुसलमानों को गैरमुस्लिमों के त्योहारों और धार्मिक पर्वों में भाग नहीं लेना चाहिए। माना जाता है कि मालाबार के लापता मुस्लिम युवा उन्हीं की शिक्षा से प्रभावित हैं। कई तथाकथित इस्लामी कार्यक्रमों में नाइक ने सालोंसाल जो काम किया, वही शम्सुद्दीन फरीद भी कर रहे थे। द्वेषपूर्ण भाषण देने पर कसारगोड पुलिस ने हाल में उनके खिलाफ मामला दर्ज किया है।
सवाल है कि क्या नाइक और फरीद जैसे कट्टर इस्लामी प्रचारक करोड़ों भारतीय मुसलमानों के प्रतिनिधि हैं? क्या उनकी अलगाववादी विचारधारा मुसलमानों की उस बहुलतावादी संस्कृति के विरुद्ध नहीं है, जो भारत में सैकड़ों साल पहले सूफी संतों द्वारा विकसित की गई? वास्तव में आम हिंदुस्तानी मुसलमान को नाइक जैसे उपदेशकों, खासकर सलाफी प्रचारकों से बहुत नुकसान पहुंचा है। लेकिन उन तथाकथित सेक्युलर और उदारवादी विद्वानों को देखकर भी दुःख हो रहा है, जिन्होंने नाइक की वकालत की। बहुत से सुन्नी उलेमाओं ने उन पर लगे आरोपों को खारिज किया है और उनके विरुद्ध कार्रवाई को एक राजनीतिक चाल का हिस्सा बताया है। जबकि ये वही लोग हैं जो नाइक के उन भाषणों का कठोर विरोध कर रहे थे, जिनमें इस्लाम की सुन्नी, सूफी और शिया परंपराओं का मजाक बनाया गया था।
जब प्रमुख इस्लामी विद्वान स्वयं सलाफी कट्टरपंथी प्रचारकों के बारे में ऐसी बात करते हैं तो आम मुस्लिम समाज में कट्टर विचारधारा का विरोध बेकार ही है। दरगाह हजरत निजामुद्दीन औलिया की तरह कुछ सूफी संस्थाओं ने नाइक के घृणा फैलाने वाले भाषणों के खिलाफ जुलूस निकाले थे। लेकिन मुस्लिम समुदाय पर इन दरगाहों का तब तक कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा, जब तक खुद मुस्लिम उलेमा कट्टरपंथी विचारकों के खिलाफ नहीं बोलेंगे। पिछले दिनों देश में हुए विशाल सुन्नी सूफी सम्मेलन को मुस्लिम समुदाय में कोई खास महत्त्व नहीं मिला। चेचन्या में भी विशाल सुन्नी-सूफी सम्मेलन आयोजित किया गया था, लेकिन इस्लामी दुनिया पर इसका कोई प्रभाव सामने नहीं आया। यह भारतीय मुसलमानों और इस्लामी विद्वानों के आत्मनिरीक्षण का एक कठिन समय है।
केवल आतंकवाद विरोधी सम्मेलन आयोजित करने और आईएसआईएस-अलकायदा को ‘गैर इस्लामी’ बताने से काम नहीं चलेगा। मुस्लिम समाज में इस सोच को बढ़ावा देना होगा कि कट्टरपंथी विचारधारा के लिए यहां कोई जगह नहीं है। भारतीय सभ्यता और इस्लामी आस्था, दोनों को कमजोर करने वाली उन गतिविधियों को भी सिरे से खारिज करना होगा, जो जाकिर नाइक जैसे लोगों और संगठनों द्वारा भारतीय बहुलतावाद के खिलाफ एक अभियान की तरह चलाई जा रही हैं।
Source: http://blogs.navbharattimes.indiatimes.com/nbteditpage/zakir-naiks-islam-is-not-ours/
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me zakir nayak ka samarthak hu , inhone islam ko sahi taur pe pesh kiya hai, bas ise samajhne ki koshish hai , jaha tak pabandi ki baat hai sarkar bewaquf hai woh barelviyo musalmano ke bahkaawe me aakar aisa kiya hai .