जनसत्ता
आइएस ने जिस तरह नृशंसता का प्रदर्शन किया है उसके कारण सारी दुनिया उसे हैवानियत का पर्याय मानने लगी है। उसके कहर को देख दुनिया स्तब्ध है। आइएस की शैतानी हरकतों की मुसलिम जगत में ही तीखी आलोचना हो रही है। मगर आइएस इस्लाम की उसकी अपनी व्याख्या पर डटा हुआ है। आखिर आइएस चाहता क्या है
दुनिया भर के मुसलमान रमजान बहुत हर्ष और उल्लास के साथ मनाते हैं। लेकिन इस बार इस्लामिक राज्य या आइएस के कारण रमजान का महीना रक्तरंजित रहा। रमजान के दौरान सऊदी अरब में इस्लाम के पवित्र शहर मदीना में फिदायीनी हमला हुआ, इराक की राजधानी बगदाद में दो सौ लोग हमले में मारे गए, बांग्लादेश की राजधानी ढाका में बीस लोगों की गला रेत कर हत्या कर दी गई, इंस्ताबुल के अतातुर्क अंतरराष्ट्रीय हवाई अड््डे में विमानतल पर फिदायीनी हमले में बत्तीस लोग मारे गए। रमजान मुसलमानों के लिए सबसे पवित्र महीना माना जाता है। आइएस ने रमजान के पवित्र महीने को खून बहा कर नापाक कर दिया। आखिर अगर ढाका की घटना को छोड़ दें, तो बाकी सभी घटनाओं में मारे गए लोग मुसलमान ही थे। फिर इस्लामी कहलाने वाले आइएस ने मुसलमानों की हत्याएं करके क्या हासिल किया? अब आ रही खबरें बताती हैं कि आइएस ने जान-बूझ कर ऐसा किया। रमजान की शुरुआत में आइएस के प्रवक्ता ने कह दिया था कि यह महीना काफिरों के लिए संकट लेकर आएगा। लेकिन आइएस की नजर में काफिर केवल गैर-मुसलिम नहीं हैं, वरन वे सभी मुसलमान भी काफिर या शिर्क हैं जो इस्लाम में संशोधन कर रहे हैं। इस तरह आइएस ने मुसलमान की परिभाषा ही बदल दी है। इराक और सीरिया के एक हिस्से पर काबिज होकर बने इस्लामिक राज्य ने हाल ही दो साल पूरे कर लिये। इस दौरान आइएस ने जिस तरह नृशंसता का प्रदर्शन किया है उसके कारण सारी दुनिया उसे हैवानियत का पर्याय मानने लगी है। रूस, पश्चिमी सैनिक गठबंधन (नाटो) और अरब देशों के आसमान से बरसती हजारों मिसाइलों के कारण उसकी अपनी जमीन पर उसकी हालत खस्ता है। वह इराक में पैंतालीस प्रतिशत और सीरिया की बीस प्रतिशत जमीन खो चुका है; इराक का फालुजा उसके हाथ से निकल चुका है, जहां से वह इराक पर धावा बोलता था। मगर इसका बदला चुकाने के लिए वह दुनिया भर में आतंकी वारदातों को अंजाम देकर कई देशों को दहला रहा है, उसके कहर को देख दुनिया स्तब्ध है। आइएस की शैतानी हरकतों की मुसलिम जगत में ही तीखी आलोचना हो रही है। मगर आइएस इस्लाम की उसकी अपनी व्याख्या पर डटा हुआ है। आखिर आइएस चाहता क्या है। क्या है उसकी सोच? क्या वह पागलपन भर है?
आइएस के पीछे मध्यकालीन धार्मिक सोच काम कर रही है। उसका नेता और खलीफा अल बगदादी युद्धशास्त्र का नहीं, धर्मशास्त्र का भी ज्ञाता है। वह बगदाद विश्वविद्यालय से धर्मशास्त्र का पीएचडी है। आइएस द्वारा जारी वीडियो,उसकी पत्रिका ‘दबिक’ और अन्य प्रचार-साहित्य को पढ़ने पर एक बात उभर कर आती है कि आइएस एक वहाबी आंदोलन है जो इस्लाम के मूलरूप पर विश्वास करता है। उसका मानना है कि इस्लाम के चौदह सौ साल पहले की पहली पीढ़ी के यानी मोहम्मद और उनके साथियों की सोच और तरीके ही शुद्ध इस्लाम है। इसमें किसी तरह का संशोधन करने का मतलब है कि आप इस्लाम के मूलरूप की शुद्धता पर विश्वास नहीं करते। यह धर्मद्रोह है और धर्मद्रोह की इस्लाम में एक ही सजा है मौत। उसका मानना है कि इस्लाम की पहली पीढ़ी ने जो व्यवस्थाएं पैदा कीं वे ईश्वरीय व्यवस्थाएं हैं, जबकि अन्य व्यवस्थाएं मानव-निर्मित हैं। वह इन मानव-निर्मित व्यवस्थाओं को पूरी तरह से नकारता है। यही वजह है कि आइएस उन इस्लामवादी दलों को भी गुनहगार मानता है जो चुनाव में हिस्सा लेते हैं। उसके मुताबिक इस्लाम के दो स्तंभ हैं- खिलाफत और ईश्वरीय कानून शरीआ, जिसे वह ठीक उस तरह लागू करना चाहता है जैसे उसके मुताबिक पैगंबर मोहम्मद और उनके साथियों ने अपने समय में लागू किया था। वैसे आइएस बाकी मुसलमानों के विपरीत इस धारणा को खत्म करना चाहता है कि इस्लाम शांतिपूर्ण धर्म है। उसका कहना है कि इस्लाम से शांति आएगी, मगर इस दुनिया के दारुल इस्लाम बन जाने के बाद। जब बाकी सारे धर्मों को खत्म किया जा चुका होगा। कुछ अरसा पहले जानी-मानी पत्रिका ‘एटलांटिक’में अमेरिकी प्रोफेसर ग्राहम वुड का इस्लामिक राज्य पर लिखा लेख बौद्धिक हलकों में बहुत चर्चा में था। इस्लामिक राज्य द्वारा किए गए हर फैसले और कानून में वह पैगंबर के तौर-तरीकों को अपनाने का दावा करते हैं, यानी उनकी भविष्यवाणियों और उदाहरणों तक का पूरी तरह से पालन करने का दावा करते हैं। मसलन, आइएस की आॅनलाइन पत्रिका का नाम दबिक है। दबिक वह जगह है जिसके बारे में मोहम्मद पैगंबर ने भविष्यवाणी की थी कि इस्लाम की सेनाओं का रोम की सेनाओं से आखिरी युद्ध होगा। ग्राहम वुड कहते हैं अगर हम इस्लामिक स्टेट जैसी प्रवृत्ति से लड़ना चाहते हैं तो इसके बौद्धिक विकास को समझना होगा। इस्लाम में तकफीर यानी बहिष्कार की अवधारणा है, जिसके तहत एक मुसलमान दूसरे मुसलमान को धर्मद्रोही कह कर गैर-मुसलिम करार दे सकता है। हर वह मुसलिम धर्मद्रोही भी है जो इस्लाम में ‘संशोधन’ करता है। कुरान या मोहम्मद के कथनों को नकारना पूरी तरह से ‘धर्मद्रोह’ माना जाता है, लेकिन इस्लामिक राज्य ने कई और मुद््दों पर भी मुसलमानों को इस्लाम से बाहर निकलना शुरू कर दिया है। इसमें शराब, ड्रग बेचना, पश्चिमी कपड़े पहनना, दाढ़ी बनाना, चुनाव में वोट देना, और मुसलिमों को धर्मद्रोही कहने में आलस बरतना आदि शामिल है। इस आधार पर शिया और ज्यादातर अरब ‘धर्मद्रोह’ के निकष पर ‘खरे’ उतरते हैं। क्योंकि शिया होने का मतलब है इस्लाम में संशोधन करना और आइएस के अनुसार कुरान में कुछ नया जोड़ने का मतलब है उसकी पूर्णता को नकारना।
आइएस के मुताबिक शियाओं में जो इमामों की कब्र की पूजा करने और अपने को कोड़े मारने की परंपरा है उसकी कुरान या मोहम्मद के व्यवहार में कोई मिसाल नहीं मिलती। इसलिए धर्मद्रोही होने के कारण करोड़ों शियाओं की हत्या की जा सकती है। यही बात सूफियों पर भी लागू होती है जो सुन्नी हैं। इसी तरह राज्यों के प्रमुख भी धर्मद्रोही हैं, जिन्होंने दिव्य माने जाने वाले इस्लामी कानून शरीआ के बाद मनुष्य निर्मित कानून बनाया और उसे लागू किया। इस तरह आइएस अपनी कल्पना के हिसाब से इस विश्व को शुद्ध करने के लिए बड़े पैमाने पर लोगों की हत्या करने के लिए प्रतिबद्ध है। उसके नजरिए से जो भी मूल इस्लाम में संशोधन करता है वह धर्मद्रोही है, इसलिए हत्या ही उसका दंड है। लेकिन अब तक जो जिहाद केवल काफिरों के खिलाफ था उसे आइएस ने मुसलमानों के खिलाफ भी शुरू कर दिया। वह गैर-मुसलिमों की तरह कथित तौर पर धर्मद्रोही मुसलिमों की भी हत्या कर रहा है। इस्लामिक स्टेट (आइएस) के लड़ाके इस्लाम के प्रारंभिक युग की सारी बातों को लागू करना चाहते हैं जिनमें से बहुत-सी बातें ऐसी हैं जिनके बारे में आधुनिक मुसलमान मानना चाहते हैं कि यह उनके धर्म का अपरिहार्य अंग नहीं है। गुलामी, सूली चढ़ाना, सर कलम करना, सेक्स स्लेव आदि मध्ययुगीन बाते हैं जिन्हें आइएस के लड़ाके थोक के भाव में आज के जमाने में ले आए हैं। कुरान में साफ तौर पर इस्लाम के शत्रुओं के लिए सूली पर चढ़ाना एकमात्र दंड बताया गया है। ईसाइयों के लिए जजिया और इस्लाम के वर्चस्व को स्वीकार करने का प्रावधान किया गया है। आइएस के नेता जो पैगंबर का अनुसरण करने का दावा करते हैं उन्होंने इन दंडों को अपने हिसाब से फिर लागू किया, जिन दंडों की कोई परवाह नहीं कर रहा था। हाइकेल कहते हैं कि इस्लामिक राज्य के समर्थकों ने इस्लाम के धर्मग्रंथों के केवल शाब्दिकअर्थ को ही ग्रहण किया। जब आइएस ने लोगों को गुलाम बनाना शुरू किया तो कुछ लोगों ने विरोध जताया, लेकिन इससे आइएस को कोई फर्क नहीं पड़ा, उसने कोई अफसोस जताए बगैर गुलाम बनाना और सूली पर चढ़ाना जारी रखा। इस्लामिक स्टेट की आॅनलाइन पत्रिका ‘दबिक’ ने तो गुलामी की पुनर्स्थापना पर एक पूरा लेख दिया था। इस लेख में लिखा गया था-
यजदी महिलाओं और बच्चों को शरीआ के मुताबिक सींजर में भाग लेने वाले लड़ाकों के बीच बांट दिया गया है; काफिरों के परिवारों को गुलाम बना कर उनकी महिलाओं को रखैल बनाना शरीआ का स्थापित हिस्सा है; अगर कोई कुरान की इन आयतों और मोहम्मद की बातों को नकारेगा या उनका मजाक उड़ाएगा तो इस्लाम का द्रोही होगा। बगदादी ने अपने भाषण में खिलाफत के बारे में कहा था कि संस्था ने पिछले एक हजार साल से कोई काम नहीं किया। खलीफा का एक दायित्व शरीआ को लागू करना है। दूसरा काम है हमलावर जिहाद शुरू करना। इसका मतलब है गैर-मुसलिमों द्वारा शासित देशों में जिहाद को फैलाना। खिलाफत का विस्तार करना खलीफा का कर्तव्य है। वही आजकल आइएस कर रहा है। इस तरह आइएस के समर्थक लोगों को इस्लाम की चौदह सौ साल पुरानी दुनिया में ले जाना चाहते हैं जहां कथित ईश्वरीय कानून शरीआ पूरी तरह से लागू होगा। इस सपने की भी दुनिया के कुछ मुसलमानों में अपील है। एक इस्लामी राज्य के समर्थक का बयान अखबार में छपा था कि ईश्वरीय कानून यानी शरीआ में जीने का अपना आनंद है। इसी आनंद का आस्वाद लेने दुनिया के कई देशों के हजारों मुसलमान वहां पहुंच रहे हैं। यह बात अलग है कि बाकी लोग इस्लामी राज्य की करतूतों को हैवानियत मानते हैं।
Source: http://www.jansatta.com/news-update/
भला इसमें क्या ताजुब की बात हे की मुस्लिम आई एस के निशाने पर क्यों हे ? कोई भी कट्रपन्ति हो वो अपने पराय थोड़े ही देखते हे जो उनके सामने पड़ जाए उसे मारते ही हे तालिबान ने क्या कम अफ़ग़ानों का कत्ल किया हिन्दुओ को मारकर पाकिस्तान बनने वालो ने क्या पाकिस्तान बनते ही अहमदियों बंगालियों मुहाजिरों ब्लूचियों को नहीं मारा था ? नाज़ियों ने क्या कैथोलिक कम्युनिस्ट गेर नाज़ी जर्मनों को नहीं मारा था कम्युनिस्ट कटट्रपन्तियो ने क्या रूस चीन में करोड़ लोगो को नहीं मारा था ? हिन्दू कटरपन्तियो ने क्या हज़ारो साल से आम हिन्दू को नहीं सताया खसकसर गेर सवर्णो आदिवासियों आदि को ? ये तो ये लोग करेंगे ही – ? इनके पास कोई सोच समझ नहीं होती हे सामने वाले को मारना दबाना हराना ही ये हर समस्या का हल समझते हे और अंत में जिन हथियारों के सहारे जी रहे होते हे उन्ही हथियारों से मर जाते हे
यहाँ कुछ हन्नान साहब जैसे कई मुस्लिम है, जो isis को यहूदी साजिश बताएँगे, जो हम जैसे मोटी बुद्धि के लोगो की समझ मे नही आ सकता. क्यूंकी ये उनके जैसे दुनिया जहाँ को बारीकी से देखने वाले, विद्वानों के ही बस की बात है. हालाँकि हमने तो इनकी इस थ्योरी को भी नही नकारा, बल्कि यही प्रश्न किया कि अगर बग़दाडी यहूदी है, तो उसके चंगुल मे मुस्लिम कैसे फँस रहे हैं. अपने आपको पाँच वक्त का नमाज़ी, रोज़ेदार बता के अगर कोई यहूदी, हिंदू, ईसाई, इस्लाम के नाम पे हिंसा की वकालत करे तो उसके गैर-मुस्लिम होने का पता कैसे कराए?
चलिए, isis कोई नयी घटना नही है. पाकिस्तान मे अपने आप को मुस्लिम कहने वाले एक वर्ग को 30-35 साल पहले बाक़ायदा संसद द्वारा गैर-मुस्लिम घोषित किया गया. और उससे पहले और उसके बाद भी उनके पूजा-स्थलो पे हमले किए गये. वो ना कब्र पूजते हैं, ना मज़ार.
उनकी इबादत गाहो पे हमले के यूटयूब के वीडियो के नीचे कमेंट्स पढ़ कर, अंदाज़ा हो जाएगा कि लोगो को अहमदियो से कितनी नफ़रत है. क्या उनसे नफ़रत को बढ़ावा देने वाले, उन्हे गैर-मुस्लिम घोषित करने वाले क्या सारे लोग यहूदी है?
जनाब कुरेद कुरेद कर मुसलमान और गैर मुसलमान ढूँढ कर, उन्हे मुर्तिद और मुनफिक घोषित कर, उनपे हमले की मानसिकता isis से चालू नही हुई है. और अगर मुनफिको से नफ़रत और हिंसा, गैर इस्लामिक है, ये नफ़रत अगर यहूदियों ने बॉई है तो 80% मुसलमान, यहूदी ही है फिर.
आज की बात नही है. मैने तो मस्जिदे अल-जर्रार का हवाला देके भी यहूदी साजिश की थ्योरी देने वालो से ये सवाल पूछा. जब तक अंतर्विरोधो पे गौर नही करोगे. इस समस्या के हल तक नही पहुचोंगे.
एक फ्रांसीसी अधिकारी ने इजरायल के चैनल 2 न्यूज से कहा है कि 1,000 से अधिक फ्रांसीसी नागरिक जो इस्लामिक स्टेट में शामिल हो गए हैं उनमे अधिकतर यहूदी हैं।
फ्रांसीसी गृह मंत्रालय द्वारा संकलित आंकड़ों का हवाला देते हुए सोमवार को एक अधिकारी ने कहा खुफिया जानकारी से पता चलता है कि जो लोग इस्लमिक स्टेट में शामिल हो रहे हैं उनमे एक बड़ी संख्या यहूदी से इस्लाम धर्म अपनाने वालों की है? ”यह बात आज से एक साल पहले हमने एक लेख मे उजागर किया था । यह सच्च बात है की विश्व मे इस्लाम के असली दुश्मन यहूदी ही हैं ये ये इसाइयों को गुमराह करके अपने पाले में बहुत आसानी से कर लेते हैं । ” इज़राईल मुट्ठी भर है मगर इस्लाम को क्षिकष्त देने के लिए अमेरिका को भी और यूरोपे को भी मुट्ठी में रखता है ।
कुछ दिन पहले ही यह रहस्योद्घाटन हुवा कि पिछले डेढ़ साल के दौरान सीरिया में जिहाद में शामिल होने के लिए 100 युवा यहूदी महिलाओं ने फ्रांस छोड़ दिया।
यहूदी फ्रांसीसी संसद सदस्य मेयर हबीब ने कहा कि संदिग्ध जिहादी फ्रांस के यहूदी समुदाय के बीच बातचीत के विषय हैं ।
हबीब ने चैनल 2 से कहा कि अगर एक यहूदी महिला भी इस्लामिक स्टेट में शामिल होती है तो यह वास्तव में दुनिया का अंत है और मामला पेचीदा है।
एक फ्रेंच रब्बी ने कहा कि यह यहूदी समुदाय में लिए बड़ी चिंता का मुद्दा है यह समझ से बाहर है कि ऐसा होगा, रबी ने आगे कहा ऐसी अफवाहें हैं पर अब हमें आधिकारिक सूत्र ही आश्वस्त कर सकते हैं।
भाई साहब आप याद कीजिये सद्दाम हुसैन के दाहिना हाथ कौन था ? फ़लस्तीन के यासिर अराफ़ात की दूसरी बीवी कौन थी ? सद्दाम हुसैन की दूसरी बीवी कौन थी और इन साहबान का हश्र क्या हुवा ?? यह विचारधारा की जंग है जनाब ये बड़े बड़े पिलर गिराने के बाद ही आईएस का जन्म हुवा था ? और अब भी आपलोग गलतफहमी पाले हैं तो तवारीख – ए- इस्लाम का मुताला कीजिये । और अगर यह भी नहीं समझना चाहते तो तारिक बिन ज़ियाद को पढ़िये सच्च !! आँखें खुल जाएंगी । अब भी नहीं समझे तो सलाउद्दीन अयुबी को पढ़िये इन यहूदियों के कारनामे आपको नज़र आने लगेंगे ॥ बाकी अल्लाह मालिक ।
मेरा हाईप्रोफाइल कज़िन पिछले दिनों इतना कुछ हो जाने के बाद भी बजाय कटरपंथ के खिलाफ एक लफ्ज़ भी बोलने के , सवेंथ पेय कमीशन को जस्टिफाय कर रहा हे खुद केंद्रीय कमचारी हे ना तो चाहे वो मेरा कज़िन हो या कोई और मेन मुद्दा इनका ये होता हे जाकिर भाई – की इस दुनिया में इस्लामिक कटरपंथ नाम की तो कोई बात ही नहीं हे सब साज़िश हे अब जब कोई बात ही नहीं हे तो हमारे ऊपर उससे लड़ने भिड़ने की जिम्मेदारी और जिम्मेदारी से जुड़े तनाव भी नहीं हे तो बस हम तो मस्त रहेंगे दुनिया में हर मौज मारेंगे दुनिया के हर आराम के पीछे भागेंगे हासिल करेंगे हासिल के लिए सफेद तो सफेद स्याह तो स्याह भी करेंगे इस्लाम की बात करेंगे मगर सिर्फ तब तक जब अपनी हितों पर कोई आंच ना आये अगर आ रही होगी तो वहां हम इस्लाम को बीच में लाएंगे ही नहीं वहां हम सेकुलर बन जाएंगे . ये तो रही हमारी दुनिया अब मरने के बाद हमे जन्नत में सीट कंफर्म चाहिए बिलकुल कंफर्म उसके लिए हम हर हर हर मुल्ला की हा में हां मिलाएंगे जो वो कह रहा कर रहा हे सब सही हम कोई भी बहस नहीं करेंगे ( बहस करके दोजख में थोड़े ही जाना हे ) हम उस लोकल या इंटरनेशनल जाकिर नायक को फुल जबानी स्पोर्ट देंगे ( बिना मेहनत का पैसा हुआ तो वो भी देंगे ) अपने बच्चों को कहेंगे की तुम आई आई टी की तैयारी करो दूसरों के खासकर अपने से गरीब या कमतर से कहेंगे आखिरत की तैयारी करो तब्लीग़ में जरूर जाओ बहुत जरुरी हे और सोचेंगे चलो जी अपना दीनी फ़र्ज़ भी पूरा हो गया हो गया काम सब फिट हमसे बढ़िया कौन- ?
http://azvsas.blogspot.in/2016/07/israeli-military-make-it-clear-that.html
बिलकुल हो सकता हे की यहूदी एजेंट इसके पीछे हो जो यहूदी एजेंट बरसो तक अरब सेनाओं में ऊँचे पद पर चुके हे तो क्या ताजुब की ये ऐसा कर रहे हो ताकि अरब देश कमजोर होते चले जाए और उन्हें परेशान ही ना करे इसमें क्या नयी बात हो गयी जो ईरान कल तक इज़राइल को धमकी दे रहा था अब एपीआई सुरक्षा में और सऊदी अरब से क्लेश में फंसा हे —- ? यहूदी इज़राइल वो अपनी सिक्योरिटी कर रहे हे जिसका उन्हें हक भी हे जब डेढ़ अरब से अधिक मुस्लिम होते हुए भी और मुसलमानो का बहुमत खासा रिलिजियस होते हुए भी हर समय इस्लाम खतरे में हे की बात की जाती हे और सुनी भी जाती हे तो डेढ़ करोड़ यहूदी अपनी सुरक्षा और वज़ूद की रक्षा की बात क्यों नहीं सोचेंगे . बेवकूफ का सारी दुनिया फायदा उठाती हे तो मुस्लिम कटट्रपन्तियो की मूर्खता ज़हालत और फसाद का यहूदी फायदा उठा भी रहे हे तो क्या आश्चार्य—- ? लेकिन इसका मतलब ये तो नहीं की आप बजाय मुसलमानो को जागरूक शिक्षित सेकुलर लिबरल वैज्ञानिक बनने की जगह यहूदियों के चारो तरफ गोल गोल घूमते रहे असल; में ये हरकत आप लोग जानबूझ कर करते हे क्योकि ये काम बहुत ही आसान हे मेने कहा ना की मेरा जीनियस कज़िन भी आप ही की तरह का रवैया रखता हे ताकि उसके सर पर ये मुश्किल काम आये ही ना . जबकि मुसलमानो में नयी सोच उदारता सहिष्णुता का फैलाव बहुत मुश्किल और थकाने वाला काम हे इसलिए आप लोग इससे बचते हो हम तो मुश्किल काम ही करेंगे क्योकि जो लोग मुश्किल काम ज़हमत सरदर्दी वाले काम करते हे नयी सोच लाते हे वाही इतिहास बनाते हे जनरल सोच वाले आसान जिंदगी जी सकते हे मगर इतिहास नहीं बना सकते हे
हन्नान साहब, आपकी बात मान ली. हमने तो यह कहा कि ये नया घटनाक्रम नही है. अहमदी जो अपने आपको मुसलमान कहते आए हैं, उनको कत्ल करने का सिलसिला isis से भी पुराना है. उन्हे तो बाक़ायदा संसद चला कर मुनाफिक घोषित किया.
वो सब लोग भी यहूदी थे. यहूदी मुसलमानो के लीडर है हर जगह. इसरार अहमद यहूदी. जाकिर नायक यहूदी, सिकंदर हयात यहूदी, जाकिर हुसैन यहूदी. हाफिज़ सईद यहूदी, ओवैसी यहूदी.
मान लिया कि रोज़ेदारो मे और नमाजियों मे यहूदी घुसे हुए हैं, जो बड़े बड़े आलिम बन या आमिर भी बन गये. मुल्को के हुक्मरान भी बन गये हो. सवाल यह है कि दाढ़ी मे छुपे यहूदी की पहचान कैसे हो.
मस्जीदे अल-जर्रार का हवाला देके तो कई कट्टरपंथी, मुनाफीकॉं से लड़ने का आह्वान करते रहते हैं. ये कोई 3-5 साल पुरानी बात नही है.
मुनाफिक बात क़ुरान की करेगा, क़ुरान से ही इस्लाम के नाम पे आतंक फैलाएगा. इस्लाम के नाम पे उसकी हिफ़ाज़त के नाम पे क़त्ले-आम करेगा. और ये सिर्फ़ isis ही नही कर रहा. बड़े बड़े आलिम जिनके करोड़ो फॉलोवर है, वो भी ऐसा ही कर रहे हैं. इस्लाम को बदनाम करने वाले सिर्फ़ isis के ही लोग नही. हमारी गली-मोहल्ले मे इस्लाम की हिफ़ाज़त के नाम पे जज्बाती बयानबाज़ी आम बात है.
ताबिश सिद्द्की——– प्रकृति ऐसे ही काम करती है.. आपको क्या लगता है कि मुसलमान क्यूँ पीड़ित हैं पूरी दुनिया में? ये इसलिए पीड़ित हैं क्यूंकि इंसानियत के खिलाफ जब भी कुछ हुवा इनके इस्लामिक राज्य या इस्लामिक देशों में तो इनके कान पर जूँ नहीं रेंगी कभी.. इन्होंने शरीया बनाया.. ऐसा नियम जहाँ दुसरे धर्म और आस्थाओं के लोगों के लिए न के बराबर जगह रखी.. उसे इन्होंने प्राशनिक कानून बोला जबकि हकीकत में वो “प्रशासनिक आतंकवाद” का ही एक रूप हैमुसलमानो को अभी भी यही लगता है कि यहूदी और ईसाई मिलकर उन पर ज़ुल्म कर रहे हैं और वो ये कभी नहीं समझ पाते हैं कि ये “क़ुदरत” का ज़ुल्म है उन पर.. उसके लिए जो उन्होंने सदियों से बोया है.. ये क़ुदरत है जो उन्हें ख़त्म कर रही है क्यूंकि मुसलमानो के लिए सिर्फ “मुस्लिम ब्रदरहुड” ही बचा था.. अन्य नस्लों से उनका भाईचारा लगभग समाप्ति की कगार पर पहुँच चुका हैमुसलमानो को जब तक शिया, अहमदिया, हिन्दू, सिख, बौद्ध, ईसाई, यहूदी के मारे जाने पर उतना ही दुःख नहीं होगा जितना “मुसलमानो” के मरने पर होता है तब तक ये ख़त्म ही होते जाएंगे.. जब ये इस अवस्था में पहुंचेंगे जहाँ इनके सच्चे “आंसू” टपकेंगे किसी के ऊपर कोई भी ज़ुल्म देखकर, उसी दिन मुसलमानो के दिन पलटने शुरू हो जाएंगे और क़ुदरत रुक जाएगी इनको मिटाने सेअब हिन्दू भी चल पड़ा है उसी रास्ते पर.. शौर्य दिवस मना रहा है.. फासिज़्म का आखिरी हथियार मिलिट्री रूल होता है और जब उन्हें लग जाता है कि जितने बड़े पैमाने पर वो खून ख़राबा चाहते हैं वो लोकतंत्र द्वारा संभव नही है तो वो सेना का राज्य चाहने लगते हैं.. फासिज़्म प्रशासनिक आतंकवाद को आखिरी हथियार के रूप में इस्तेमाल करता है.. मगर फिर अन्त उसका भी वही होता है तो आज तक हर फासिज़्म और नाज़ी का हुवा हैमेरे हिसाब से कश्मीर भारत के लिए काल बनेगा.. हमारा अन्त कश्मीर के द्वारा ही होगा.. हम प्रकृति की नाक के ऊपर तक पानी पहुंचा देंगे इसके द्वारा और फिर यही ज़ुल्म हमारी आने वाली पीढ़ियों को खा जाएगा ताबिश सिद्द्की
मैने सऊदी अरब या अन्य मुस्लिम देशो के धार्मिक आज़ादी के प्रतिबंध और वैज्ञानिक दृष्टिकोण (विभिन्न नज़रियो पे खुली चर्चा) पे प्रतिबंध की बात की. जिसकी वजह से ना तो वहाँ विज्ञान पनपा ना नफ़रत कम हुई. आधिकारिक रूप से वहाँ लोगो को ब्लेस्फेमी के आरोप मे कोडे मारे जाते हैं, गर्दन उड़ा दी जाती है. क्या ये वहशीपाना नही? लोगो कहते हैं, ये वहाँ की संस्कृति है, जाकिर नायक जैसे लोग तो इसे इस्लाम के मुताबिक जायज़ तक ठहरा देते हैं.
अब ज़रा सोचिए कि यहूदियो पे हम आरोप लगाते हैं कि वो मुसलमान का चोला पहन, इस्लाम के नाम पे आतंक फैला कर, इसे दुनिया मे बदनाम कर रहे हैं, जिससे लोग, इस्लाम से नफ़रत करने लगे. तो ये बताइए कि जाकिर नायक जैसे सेलिब्रिटी और इस्लाम के मार्केटिंग मेनेज़र, अगर अलग राय रखने के लिए हत्या को इस्लाम सम्मत बता रहे हैं, तो क्या इससे इस्लाम की बदनामी नही हो रही?
जो लोग, उनकी सभाओ मे 5-10 लोगो के कलमा पढ़ने को इस्लाम की जीत मानते हैं, तो याद रखिए लोग तो isis की तरफ से लड़ने के लिए सीरिया भी जा रहे हैं, तो क्या ये इस्लाम की जीत है?
बुद्धिजीवी वर्ग, जाकिर नायक की ताक़त के ज़ोर पे बहुलतवाद को कुचलने को भी आतंकवाद मानता है, और isis की विचारधारा को. इस्लाम को बदनाम दोनो कर रहे हैं.