सच्ची रामायण पेरियार द्वारा लिखी गयी एक किताब है जो अपने वक़्त में बहुत विवादित रहा पड़ने का बहुत दिनों से शौक़ था क्यों के उस के बारे में बहुत सी पात्र पत्रिकाओं में पड़ा और सुना खासतौर से इस किताब की चर्चा दलित साहित्य में ज्यादा देखने को मिला. आखिर १० साल बाद इसे पड़ने की ख्वहिश पूरी हुई और इस के लिए खासतौर से मेरे एक मित्र है जतिन राम उन्हों ने मंडल यूनिवर्सिटी पुस्तकालय से ये पुस्तक की ज़ेरॉक्स कर किताबी शक्ल में एक हफ्ते पहले भेजी .कल ही पूरी पुस्तक पड़ ली तो सोचा आप लोगो से भी इस के बारे में शेयर करू !
सच्ची रामायण के लेखक “पेरियार इ रामासामी नयकर” जो तमिल भाषा में लिखी गयी इस का हिंदी अनुवाद रामाधार ने किया और इस का प्रकाशन मूलनिवास प्रचार प्रसार केंद्र वाराणसी ने किया है . इस पुस्तक को उत्तरप्रदेश १९६९ में जब्त कर उस पर पाबन्दी लगा दी मगर सुप्रीम कोर्ट ने १९७१ में उस पर से पाबन्दी हटा दी !
इस पुस्तक की शुरुवात ही इस के साथ हुई ” रामायण और महाभारत दोनों आर्य -ब्राह्मणो द्वारा चालाकी और चतुरता पूर्ण निर्मित प्रारभिंक प्राचीन कल्पित कथाएं है ! से द्रविड़ों ,शुद्रो और महशूद्रो की अपनी मनुष्यता को नष्ट करने के लिए ,उनकी बौद्धिक शक्ति को मलिन करने और समाप्त कर देने के लिए उन्हें फुसला कर अपने जाल में फंसा कर रखने के लिए रची गयी है . रामायण किसी इतिहासिक तथ्य पे आधारित नहीं है !ये एक कल्पना तथा कथा है और लोगो के दिल बहलाने के लिए लिखा गया है “!
इसी पुस्तक में कथा प्रसंग के तहत लिखा गया है के ” रामायण की घटनाएं और कथाक्रम बहुत कुछ अरबी योद्धा ,मदन कामराज और पंचतंत्र नामक पुस्तकों के सामान कल्पित है .वे मानव विचओ की समझ और गूढ़ विचारों से दूर है इस लिए कहा जा सकता है के रामायण हक़ीक़त से बहुत दूर है क्यों के इस में ऐसी ऐसी बाते कही गयी है जिस का कोई सुबूत नहीं है . रामायण में इस बात पे अधिक जोर दिया गया है के प्रमुख्य पात्र राम मनुष्य रूप में स्वर्ग से उतरा और उसे ईश्वर समझा जाना चाहिए . वाल्मीकि ने स्पष्ट कहा है के राम विश्वश्घात, छल. कपट , लालच ,क्रित्मता , हत्या ,अमिष-भोजि और निर्दोष पर तीर चलने का साकार मूर्ति था ! आगे पाठक देखे गए के राम और उस के कथा में कोई स्वर्गीय शक्ति नहीं है और उस के विषय में वर्णित गुण मानवमात्र की समझ से पर है तथा वे तमिलनाडु के निवासियों और भारत के समक्ष शुद्रो के लिए शिक्षाप्रद और अनुकरणीय है .”
सच्ची रामायण वाल्मीकि के रामायण की तरह नहीं है और न इसे एक कहानी की शक्ल में लिखा गया है बल्कि हम इसे रामायण की आलोचना में लिखी गयी एक पुस्तक कह सकते है .इस में रामायण के हर पात्र के बारे में अलग अलग लिखा गया है और उन की आलोचना की गयी है . इस में राम ,सीता ,दशरथ हनुमान आदि के बारे में ऐसी ऐसी बाते लिखी गयी है जो में यहाँ वर्णन नहीं कर सकता और सब से बड़ी बात सच्ची रामायण में जो दलित पात्र है उन की तारीफ़ की गयी है. में यहाँ राम और सीता के बारे में की गयी टिप्पणियाँ नहीं िखना चाहू गा सिर्फ एक टिपण्णी रावण के बारे में जिस की बहुत तारीफ़ की गयी है और कहा है के राम उसे आसानी से हरा नहीं सकते थे इस लिए उसे धोखे से मार गया .इसी पुस्तक में लिखा है के सीता अपनी मर्जी से रावण के साथ गयी थी क्यों के उन्हें राम पसंद नहीं थे “इसी पुस्तक में लिखा गया है के भारत में २० से अधिक रामायण प्रचलित है और सभी कहानिया एक दूसरे से भिन्न है .
इसी पुस्तक में जवाहर लाल नेहरू की एक टिप्पणी रामायण और महाभारत के बारे में प्रकाशित की गयी है जो के १९५४ में द मेल नमक पत्रिका में छपी है उन का कहना है के ” जब में गम्भीरतापूर्वक विचार करता हु तो मेरा क्रोध बाद जाता है के ब्राह्मणो ने क्या वाहियात बात लिखी है और आज भी लोग जाहलियत के कारण इन्ही घटनाओं के आधार पर कबिता या लेख लिखते है और समाज में और जाहलियत फैला रहे है .ब्र्ह्मणो ने किस प्रकार दूसरे लोगो को अपने बराबर होने देने में रोक लगा दी है” !
तो अफजल जी अगर आप इस किताब से जरा भी सहमति रखते हैं तो क्या यह किताब और आपका लेख यह सन्देश नहीं देता की हर धर्मग्रन्थ की समीक्षा होनी चाहिए ? क्यों की हमारे पढ़े लिखे होने का मतलब ही यही है की हम इस काबिल हैं की केवल वर्षों से चली आ रही मान्यताओं को ज्यों का त्यों अंधानुकरण करने से पहले उसे जांचने की हिम्मत कर सकते हैं ! पूर्वाग्रह और अपने अपने व्यक्तिगत विचारों में भिन्नता के बावजूद हम हर धर्मग्रन्थ को अलग अलग पैमाने पर तौलने की बेवकूफी तो नहीं करेंगे ! इतना हर बुद्धिजीवी के लिए तो अपेक्षित होता ही है ! वर्ना इन्ही ग्रंथो के केवल तुलनात्मक आधार पर अपने अपने धर्मो को श्रेष्ठ करार देने वाले मनोरोगी, धर्म प्रचारक और हम में क्या अंतर रह जाएगा ?
ना सिर्फ़, रामायण बल्कि अन्य हिंदू धर्म ग्रंथो क ले के अतीत मे भी अनेको बुद्धिजीवियों ने आलोचनात्मक लेख और किताबे लिखी. हमारे संविधान के निर्माण मे महत्वपूर्ण भूमिका अदा करने वाले डॉ. अंबेडकर ने भी अपनी किताबो मे बहुत बेबाकी से इनके खिलाफ लिखा.
राम का असली चरित्र कितना महान या दागदार था, उससे कहीं अधिक महत्त्व यह रखता है कि राम को पूजने वाले, आज राम से प्रेरणा लेके कैसा आचरण करते हैं.
यही बात हमारे समुदाय पे लागू होती है. हम लोगो का तो मज़हब ही एक व्यक्तित्व पे टिका है, वो है आख़िरी पैगंबर मुहम्मद. आज अपने को आशिके रसूल कहने वाला व्यक्ति, जो आचरण करेगा, वो पैगंबर मुहम्मद के प्रति अन्य समुदाय मे उनकी छवि बनाएगा.
अगर आज उनपे सवाल करने पे, आशिके रसूल अगर हिंसा करेंगे, या इस्लाम को प्रेरणा मानने वाली न्याय-व्यवस्था, मृत्यु दंड सुनाएगी तो लोग यही मानेंगे कि पैगंबर मुहम्मद ने भी अपने पे सवाल करने वालो को जान से मारा होगा. आज हम इस्लाम की आलोचना पे संयम बरतते हुए, आलोचको से चर्चा करेंगे, तो गैर-मुस्लिम समुदाय मे ये संदेश जाएगा कि इनके रसूल भी संयम बरतते होंगे.
हमे ये नही भूलना चाहिए कि इस्लाम और पैगंबर मुहम्मद की छवि की ज़िम्मेदारी, हम मुसलमानो पे है. इस्लाम या रसूल की आलोचना मे लिखी लाखो किताबे भी इस्लाम की छवि तब तक खराब नही कर सकती, जब तक मुसलमान हिंसा का रास्ता अपना कर, उन किताबो को सत्य साबित नही करता.
दुरुस्त फ़रमाया जाकिर साहब ! लेकिन इस्लाम और रसूल की आलोचना तो एकतरफ जब जाकिर नायक जैसे धुरंधर प्रचारक अपनी प्रतिभा का इस्तेमाल यह कहने में खर्च कर रहे हैं की किसी भी धर्म को जानना हो तो उस धर्मं के लोगों को नहीं बल्कि उस धर्म के ग्रंथो को देखो ! तब और क्या होगा ? वही होगा और हो रहा भी है जो आप फरमा रहे हो ! आपका हमारा पैमाना बिलकुल इसके विपरीत हैं हम लोगों को पहले देखेंगे फिर उनके धर्म को ,क्यों दुनिया में नए से नए धर्म को आये भी वर्षो बीत चुके हैं और अब उसके परिणाम देख कर कचरा साफ़ करने का समय है और जिन्होंने नहीं किया वो बिमारी झेलेंगे ही !! चाहे वो हिन्दु हों मुस्लिम हो ,अब उसमे भीं छोटी और बड़ी बिमारी की तुलना में अपने धर्म को कोई श्रेष्ठ साबित करने में लगा रहे तो उसे मनोरोगी कहने के अलावा और क्या कहेंगे ?
जाकिर साहब का मानना है कि दुनिया का हर व्यक्ति, चुनिंदा किताबो से बँधा है. वो एक हिंदू को कहेंगे कि जाओ, अपनी उस किताब मे देखो, ये लिखा है, ईसाई को बाइबल का उदाहरण देंगे. उन्हे लगता है, इन किताबो को रट कर, उन्होने पूरे मानव समाज को पढ़ लिया.
जबकि एक इंसान, इन किताबो से इतर भी अपनी सोच रख सकता है. जिस व्यक्ति ने वेद, पुराणों को पत्थर की लकीर माना ही नही, उन्हे उन किताबो का हवाला देने से क्या फ़ायदा? और इन किताबो को पढ़ कर, इंसान को कैसे पढ़ा जा सकता है.
दुनिया के तमाम ज्ञान और रहस्यो को कागज के कुछ टुकड़ो मे ही समेटा हुआ मान लेना, कैसी विद्वता. ज्ञान तो एक सागर है, उसमे से जितना पानी निकाल लो, पूरा कभी नही पा सकते.
कुदरत की हर चीज़, एक कौतूहल पैदा करती है, उसको बनाने वाले के प्रति विस्मय पैदा करती है, ऐसे महान रचीयता को कागज के चंद टुकड़ो मे समेटा हुआ मान लेने से बढ़कर तो उसका कोई अपमान हो ही नही सकता.
कागज के चंद टुकड़ो से उसे जान लेने का दावा करना, उसके अपार को नकारना ही है. यही वजह है, धर्मांध लोग, इस कुदरत के किसी रहस्य की थाह नही पा पाते.
तमाम मशहूर वैज्ञानिको ने बड़ी खोजे तभी की, जब उन्होने सत्य के प्रति अपनी प्यास जगाए रखी. समुद्र से निकाली एक बाल्टी को ही जिन्होने, सागर समझ लिया, उन्हे सागर की गहराई का अंदाज़ा तक नही हो सकता.
श्रेी जाकिर जेी यहि बात कुरान् पर लागु कर लिजिये
बेशक रामयन कि राम कि भेी अलोच्ना हो सक्तेी है अगर सेीता ने राम् को पसन्द नहि किया था तो वह उन्के साथ् वन मे क्यो गयि थि ?
रावन केी मौत पर दुखि क्यो नहेी हुयि थेी
राम् का मुकाबला रावन् आमने -सेामने हुआ था
विभिशन् से कुच गोप्निय राज जरुर लिये थे
राज साहब, मैने अपने समुदाय के लिए ही लिखा है.
जहाँ तक मैं समझता हूँ हम लोग जो धर्म पर बहस करते हैं उन मछलीयोन की तरह है जो किसी न किसी जाल में फंसी है और हंसी तो आएगी ही जब कोई अपने जाल को सोने का बुना बताएगा !
रामायण का वास्तविक मै आपको बताता हु आपको..
रावण कौन है?
हर जिव जंतु मनुष्य प्राणि जो भि यहा जन्मा है वो रावण है.
सिता कोन है?
सिता है ये सृष्टी, प्रकृती, कुदरत, कायनात.
हर जिव, जंतु, मनुष्य, प्राणि (यानी कि रावण) अपने जन्मसे लेकर जिवन के अंत तक इस सृष्टी, प्रकृती, कुदरत, कायनात पर आधीकार जतानेकी कोशिष मे लगा रहता है. जैसे कि जमिन, पाणि, पेड, पौधे, प्राकृतीक संपदा, अनाज, मांस कुछ भी हो ये सारे प्रकृती के भिन्न भिन्न रुप है. और इस कुदरत पर अपना आधीकार जताने के बाद हर जिव, मनुष्य, प्राणी ( रावण ) ईस भ्रम मे जिता है कि ऊसने ईस प्रकृती को कुदरत को बंदी बनाया है.( रामायण कि वास्तविक कथा अनुसार रावण ने सिता का नही सिता कि परछायी का हरण किया था ) तो ये जो जिव, जंतु, मनुष्य , प्राणी ( यानिकी रावण ) इसके दस सर है. ये है ग्यान. हम इन्सान थोडा बहोत ग्यान पाकर ये सोचने लगते है कि
हम ने इस पुरी कायनात को, कुदरत को जान लिया है, और इस कुदरत को हमने हमारे आधीन करलिया है. जैसे रावण के बंधन मे सिता कि परछाई.
राम कौन है?
राम है अतीम सत्य, निर्गुण इश्वर, शिव, मृत्यु जो हर जिव, जंतु, मनुष्य, प्राणी, (रावण), सुर्य, चंद्र, आकाशगंगा किसीकि तरफ बढता है धिरे धिरे. अंतीम सत्य हर किसिको अपने वास्तविक रुपसे परिचित करने हेतु हर किसी कि तरफ धिरे धिरे बढता है. और अंत मे हर वस्तु अंतीम सत्य के मे नष्ट होती है.
राम हो, मोहम्मद पैगंबर हो, येशु ख्रिस्त हो इनकी आलोचना करने वाला खुदको ग्यानी समझता है, पर सच्चाई यही है कि असलीयत मे वो खुद को दुनीया के सामने नंगा कर रहा होता है.
करो करो सभी धर्मोकी आलोचना करो, मेरी शुभ कामनाये आपके साथ है. ऐसे किसीके कुछ लिखने से कुछ नही होने वाला.
भौतीकशास्त्र (physics) कि बात करे तो अल्बर्ट आईनस्टाईन या स्टिफन हॉकिंग्स को आदर्श मानकर चलेंगे.
अगर क्रिकेट कि बात करे तो सचिन तेंडुलकर या ब्रायन लारा को आदर्श मानकर चलेंगे.
अगर अभिनय (acting) कि बात करे तो आमिताभ बच्चन या आमिर खान को आदर्श मानकर चले.
स्वतंत्रता का आंदोलन हो तो महात्मा गांधी का आदर्श होगा.
वर्णवाद या किसी समाज व्यवस्था के खिलाफ लडना हो तो डॉ. आंबेडकर आदर्श होंगे.
राजा कैसा हो तो सम्राट अशोक या सम्राट अकबर का आदर्श होगा.
पर..पर..
अंतीम सत्य कि बात हो तो राम, मोहम्मद पैगंबर, येशु ख्रिस्त ही पुजे जायेंगे. … मै सत्य कि बात नही कर रहा हु.. सत्य तो विग्यान के द्वारा खोजा जा सकता है. अंतीम सत्य वो है जिसे कोई टाल नही सकता, ना ऊस से कोई दुर भाग सकता है. और हर कोई अंतीम सत्य मे नष्ट होता है.
विग्यान सत्य का ग्यान देता है और धर्म अंतीम सत्य मे विलीन होना है हर किसिको ये बताता है.