वह स्थान स्पेन था , जहां हमने यह सीखा की एक सही व्यक्ति होने के बावजूद आपको हराया जा सकता है , शक्ति आत्मा को पराजित कर सकती है ,कभी कभी ऐसा समय भी आता है जब स्वयम साहस भी अपनी रक्षा करने मे असमर्थ हो जाता है ” कैमस”
*********फ्रांस का प्राचीन नाम ‘गॉल’ था। यहाँ अनेक जंगली जनजातियों के लोग, मुख्य रूप से, केल्टिक लोग, निवास करते थे। सन् 57-51 ई.पू. में जूलियस सीजर ने उन्हें परास्त कर रोमन साम्राज्य में मिला लिया। वहाँ शीघ्र ही रोमन सभ्यता का प्रसार हो गया। प्रथम शताब्दी के बाद कुछ ही वर्षों में ईसाई धर्म का प्रचार तेजी से आरंभ हो गया और केल्टिक बोलियों का स्थान लातीनी भाषा ने ले लिया। पाँचवीं शती में जर्मन जातियों ने उसपर अक्रमण किया। उत्तर में फ्रैंक लोग बस गए। इन्हीं का एक नेता क्लोविस था जिसने सन् 486 में अन्य लोगों को हरा कर अपना राज्य स्थापित किया और 496 ई. में ईसाई धर्म में अभिषिक्त हो गया। उसके उत्तराधिकारियों के समय देश में पुन: अराजकता फैल गई। तब सन् 732 में चार्ल्स मार्टेल ने विद्रोहियों का दमन कर शांति और एकता स्थापित की। उसके उत्तराधिकारी पेपिन की मृत्यु (768 ई. में) होने के बाद पेपिन का पुत्र शार्लमान गद्दी पर बैठा। उसने आसपास के क्षेत्रों को जीतकर राज्य का विस्तार बहुत बढ़ा दिया, यहाँ तक कि सन् 800 ई. में पोप ने उसे पश्चिमी राज्यों का सम्राट् घोषित किया।
शार्लमान के उत्तराधिकारी अयोग्य साबित हुए जिससे साम्राज्य विखंडित होने लगा और उत्तर से नार्समॅन लोगों के हमले शुरू हो गए। ये लोग नार्मंडी में बस गए। सन् 987 में शासनसूत्र ह्यूकैपेट के हाथ में आया किंतु कुछ समय तक उसका राज्य पेरिस नगर के आस पास के क्षेत्र तक ही सीमित रहा। इधर उधर कई सामंतों का बोलबाला था जो यथेष्ट शक्तिशाली थे। 13वीं शताब्दी तक राजा की शक्ति में क्रमश: वृद्धि होती गई किंतु इस बीच शतवर्षीय युद्ध (1337-1453) के कारण इसमें समय समय पर बाधाएँ भी उपस्थित होती रहीं। जोन ऑफ आर्क नामक देशभक्त महिला ने राजा और उसके सैनिकों में जो उत्साह और स्फूर्ति भर दी थी, उससे सातवें चार्ल्स की मृत्यु (1461) तक फ्रांस की भूमि पर से अंग्रेजी आधिपत्य समाप्त हो गया। फिर लूई 11वें के शासनकाल में (1461-83 ई.) सामंतों का भी दमन कर दिया गया और वर्गंडी फ्रांस में मिला लिया गया।
आठवें चार्ल्स (1483-89) तथा 12वें लूई (1489-1515) के शासनकाल में इटली के विरुद्ध कई लड़ाइयाँ लड़ी गईं जिनका सिलसिला आगे भी जारी रहा। परिणामस्वरूप पश्चिमी यूरोप में शक्तिवृद्धि के लिए स्पेन के साथ कशमकश आरंभ हो गई। जब फ्रांस में प्रोटेस्टैट धर्म का जोर बढ़ने लगा कई फ्रेंच सरदारों ने राजनीतिक उद्देश्य से उसे अपना लिया जिससे गृहयुद्ध की आग भड़क उठी। फ्रेंच राजतंत्र स्वदेश में तो सामान्यत: प्रोटेस्टैट विचारों का दमन करना चाहता था किंतु बाहर स्पेन की ताकत न बढ़ने देने के उद्देश्य से प्रोटेस्टैटों का समर्थन करता था। नवें चार्ल्स (1560-74) तथा तृतीय हेनरी (1574-89) के राज्यकाल में गृहयुद्धों के कारण फ्रांस को बड़ी क्षति पहुँची। पेरिस, कैथालिक मत का गढ़ बना रहा। सन् 1572 में हजारों प्रोटेस्टैट सेंट बार्थोलोम्यू में मार डाले गए। निदान चतुर्थ हेनरी (1589-1610) ने देश में शांति स्थापित की, धार्मिक सहिष्णुता की घोषणा की और राजा की स्थिति सुदृढ़ बना दी। एक कैथालिक द्वारा उसकी हत्या हो जाने पर उसका पुत्र 13वाँ लूई गद्दी पर बैठा। उसके मंत्री रीशल्यू ने राजा की और राज्य की शक्ति बढ़ाने का काम जारी रखा। तीसवर्षीय युद्ध में शरीक होकर उसने फ्रांस के लिए अलसेस का क्षेत्र प्राप्त किया और उसे यूरोप का प्रमुख राज्य बना दिया। 13वें लूई की मृत्यु के बाद उसका पुत्र 14वाँ लूई (1638-1715) पाँच वर्ष की अवस्था में फ्रांस का शासक बना (1643)। उसका शासन वस्तुत: बालिग होने पर 1661 ई. में प्रारंभ हुआ। शुरू में उसने ऊपरी टीमटाम में बहुत रुपया फूँक दिया, जब उसने वर्साय के प्रसिद्ध राजप्रासाद का निर्माण कराया। वृद्धावस्था में उसका स्वेच्छाचार बढ़ता गया। उसने विदेशों से युद्ध छेड़ते रहने की नीति अपनाई जिससे देश की सैनिक शक्ति और आर्थिक स्थिति को क्षति पहुँची तथा विदेशी उपनिवेश भी उससे छिन गए। उसके उत्तराधिकारियों 15वें लूई (1715-74) तथा 16वें लूई (1774-93) के समय में भी राजकोष का अपव्यय बढ़ता गया। जनता में असंतोष फैलने लगा जिसे वालटेयर तथा रूसो की रचनाओं से प्रोत्साहन मिला।
जुलाई १७८९ में बस्तील का विध्वंस फ्रांस की क्रांति की सबसे महत्वपूर्ण घटना मानी जाती है।
जब राष्ट्रीय ऋण बहुत बढ़ गया तब लूई 16वें को विवश होकर स्टेट्स-जनरल की बैठक बुलानी पड़ी। सामान्य जनता के प्रतिनिधियों ने अपनी सभा अलग बुलाई और उसे ही राष्ट्रसभा घोषित किया। यहीं से फ्रांसीसी क्रांति की शुरुआत हुई। सितंबर, 1792 में प्रथम फ्रेंच गणतंत्र उद्घोषित हुआ और 21 जनवरी 1793, को लूई 16वें को फाँसी दे दी गई। बाहरी राज्यों के हस्तक्षेप के कारण फ्रांस को युद्धसंलग्न होना पड़ा। अंत में सत्ता नैपोलियन के हाथ में आई, जिसने कुछ समय बाद 1804 में अपने को फ्रांस का सम्राट् घोषित किया। वाटरलू की लड़ाई (1815 ई.) के बाद शासन फिर बूरबों राजवंश के हाथ में आ गया। दसवें चार्ल्स ने जब 1830 ई. में नियंत्रित राजतंत्र के स्थान में निरंकुश शासन स्थापित करने की चेष्टा की, तो तीन दिन की क्रांति के बाद उसे हटाकर लूई फिलिप के हाथ में शासन दे दिया गया । सन् 1848 में वह भी सिंहासनच्युत कर दिया गया और फ्रांस में द्वितीय गणतंत्र की स्थापना हुई। यह गणतंत्र अल्पस्थायी ही हुआ। उसके अध्यक्ष लूई नैपोलियन ने 1852 में राज्यविप्लव द्वारा अपने आपको तृतीय नैपोलियन के रूप में सम्राट् घोषित करने में सफलता प्राप्त कर ली। उसकी आक्रामक नीति के परिणामस्वरूप प्रशा से युद्ध छिड़ गया (1870-71), जिसमें फ्रांस को गहरी शिकस्त उठानी पड़ी। तृतीय नैपोलियन का पतन हो गया और तीसरे गणतंत्र की स्थापना की बुनियाद पड़ी।
तृतीय गणतंत्र का संविधान सन् 1875 में स्वीकृत हुआ। इसने राज्य को चर्च के प्रभाव से पृथक् रखने का वचन दिया और सार्वजनिक पुरुष मताधिकार के आधार पर चुनाव कराया। संविधान का एक बड़ा दोष यह था कि राष्ट्रपति मात्र कठपुतली जैसा था और कार्यपालिका भी शक्तिहीन थी। इसी से एक मंत्रिमंडल के बाद दूसरा मंत्रिमंडल बनता था और अत्यंत प्रभावशाली अवर सदन द्वारा पृथक् कर दिया जाता था। फिर भी गणतंत्र ने दृढ़तापूर्वक उस स्थिति का सामना किया जो वामपंथियों और दक्षिणपंथियों के पारस्परिक झगड़ों के कारण उत्पन्न होती जा रही थी। इस समय तक एशिया तथा अफ्रीका के कतिपय क्षेत्रों पर फ्रांस का आधिपत्य स्थापित हो चुका था और प्रभाव तथा राज्यविस्तार की दृष्टि से उसका स्थान ब्रिटेन के बाद दूसरा था।
विंस्टन चर्चिल और जनरल डी गॉल………. प्रथम महायुद्ध (1914-18) में फ्रांस को ब्रिटेन तथा अमरीका के साथ मिलकर जर्मनी, आस्ट्रिया तथा तुर्की से युद्ध में संलग्न होना पड़ा। विजय के परिणामस्वरूप यद्यपि अलसेस तथा लोरेन का औद्योगिक क्षेत्र पुन: फ्रांस को मिल गया, फिर भी लड़ाई मुख्यत: फ्रेंच भूमि पर ही लड़ी गई थी, इसलिए उसकी इतनी अधिक बर्वादी हुई कि वर्षों तक उसकी आर्थिक अवस्था सुधर न सकी। फरवरी, 1934 में दक्षिणपंथियों द्वारा किए गए व्यापक उपद्रवों के कारण वामपंथियों को अपनी ताकत बढ़ाने का अवसर मिल गया। सन् 1936 के चुनाव में उन्हें सफलता मिली, जिससे लियाँ ब्लुम के नेतृत्व में तथाकथित ‘जनता की सरकार’ स्थापित की जा सकी। ब्लुम ने युद्ध का सामान तैयार करनेवाले कितने ही उद्योगों का राष्ट्रीयकरण कर दिया और कारखानों में 40 घंटे का सप्ताह अनिवार्य कर दिया। अनुदार या रूढ़िवादी दलों का विरोध बढ़ जाने पर ब्लुम को पदत्याग कर देना पड़ा। एड्डअर्ड दलादिए के नेतृत्व में सन् 1938 में जो नई सरकार बनी उसका समर्थन, हिटलरी कारनामों से आसन्न संकट के कारण वामपंथियों ने भी किया। सितंबर, 1939 में ब्रिटेन के साथ साथ फ्रांस ने भी जर्मनी से युद्ध की घोषणा कर दी। 1940 की गर्मियों में जब जर्मन सेना ने बेल्जियम को ध्वस्त करते हुए पेरिस की ओर अग्रगमन किया तो मार्शल पेताँ की सरकार ने जर्मनी से संधि कर ली। फिर भी फ्रांस के बाहर जर्मनों का विरोध जारी रहा और जनरल डी गॉल के नेतृत्व में अस्थायी सरकार की स्थापना की गई। पेरिस की उन्मुक्ति के बाद डी गॉल की सरकार एलजीयर्स से उठकर पैरिस चली गई और ब्रिटेन, अमरीका आदि ने सरकारी तौर से उसे मान्यता प्रदान कर दी।
युद्ध समाप्त होने पर यद्यपि फ्रांस की आर्थिक स्थिति जर्जर हो चुकी थी, फिर भी सक्रिय उद्योग एवं अमरीका की सहायता से उसमें काफी सुधार हो गया। कार्यपालिका के अधिकारों के संबंध में मतभेद हो जाने से 1946 में डी गॉल ने पदत्याग कर दिया। दिसंबर में जो चतुर्थ गणतंत्र स्थापित हुआ, उसमें वही सब कमजोरियाँ थीं जो तृतीय गणतंत्र में थीं। सारा अधिकार राष्ट्रसभा के हाथ में केंद्रित था और विविध राजनीतिक दलों में एकता न हो सकने के कारण कोई भी मंत्रिमंडल स्थायित्व प्राप्त करने में असमर्थ रहा। इसी बीच उत्तर अफ्रीका तथा हिंदचीन में फ्रेंच शासन के विरुद्ध विद्रोह की व्यापकता बढ़ती गई। तब जनरल डी गॉल को पुन: प्रधान मंत्री के पद पर प्रतिष्ठित किया गया। नया संविधान बनाया गया जिसमें कार्यपालिका एवं राष्ट्रपति के हाथ मजबूत करने के लिए विशिष्ट अधिकार दिए गए। मतदाताओं ने अत्यधिक बहुमत से इसका समर्थन किया। नए चुनाव के बाद दिसंबर 1958 में डी गोल के नेतृत्व में पाँचवें गणतंत्र की स्थापना हुई। सन् 1961 तक फ्रांस ने अपने अधीनस्थ कितने ही देशों को स्वतंत्र कर दिया। वे अब संयुक्त राष्ट्रसंघ के सदस्य बन गए हैं।
प्रागैतिहासिक काल से लेकर एक देश के रूप में अस्तित्व मे आने तक स्पेन का राज्यक्षेत्र अपनी खास अवस्थिति की वजह से, कई बाहरी प्रभावों के अधीन रहा था। रोमन काल में यह हिस्पानिया राज्य था। रोमन प्रभाव सीमित होने के बाद विसिगोथिक राज्य बने। सन् 711 में अफ़्रीक़ा के मूर शासक तारीक बिन जियाद ने विसिगोथिकों की ( ऊंचवा – निचवा ) आपसी लड़ाई का फ़यदा उठाकर आक्रमण किया और जीत हासिल की। इसके बाद यहाँ सीरिया से निष्कासित उमय्यद ख़िलाफत की पीठ बनी। मुस्लिमों का शासन पूरे स्पेन (अल-अंदलूस) पर रहा – लेकिन उत्तर तथा उत्तर पूर्व में दो छोटे स्वतंत्र राज्य भी रहे। दसवीं सदी में कोर्दोबा स्थित साम्राज्य में मुस्लमान, ईसाइयों और यहूदियों के साथ मिलकर एक बहुआयामी संस्कृति का हिस्सा थे। दसवीं सदी में मुस्लमानों को ईसाइयों ने हराना आरंभ किया। इसके बाद ईसाइयों ने जेरुशलम से मुसलमानों का कब्ज़ा हटाने के लिए धर्मयुद्धों में भाग लिया। पोप के आग्रह पर सैनिक तुर्की होते हुए जेरुशलम पहुँचने लगे। इस समय तुर्की पर मुस्लिम तुर्कों का शासन आरंभ हो गया था जिसकी वजह से ईसाई यूरोपियों का उनके पवित्र धार्मिक स्थल जेरुशलम पहुँचना मुश्किल हो गया था। शुरुआत में तो ईसाई सफल रहे पर सन् 1180 के दशक में मामलुक सेनापति सलादीन के प्रयास के बाद यूरोप के सैनिक हारते गए। इसके साथ ही पूर्व से मसालों, रेशम और कीमती आभूषणों के मार्ग पर भी मुस्लमानों का कब्ज़ा हो गया। इन चीजों के यूरोप में भाव बढ़ते गए और इन कारणों से मुस्लमानों के खिलाफ रोष भी बढ्ने लगा।अब आते हैं वर्तमान मे जो जंग तब थी आज भी जारी है ।
कुछ गै़र-मुस्लिम की यह आम शिकायत हैं कि संसार भर में इस्लाम के माननेवालों की संख्या लाखों में नही होती यदि इस धर्म को बलपूर्वक नहीं फैलाया गया होता। निम्न बिन्दु इस तथ्य को स्पष्ट कर देंगे कि इस्लाम की सत्यता, दर्शन और तर्क ही हैं जिसके कारण वह पूरे विश्व में तीव्र गति से फैला न कि तलवार सें।हाँ आज जरूर इस्लाम के बहाने मुसलमानो को तलवार के बल पर खत्म करने की साजिश को अमली जामा पहनाया जा चुका है ? फ़्रांसिसी साम्राज्यवादी भेड़ियों की बमबारी में आइसिस के बजाए चुन चुनकर रिहायशी इलाकों को निशाना बनाया जा रहा है l भारी संख्या में छोटे छोटे बच्चों के मारे जाने की खबरें आ रहीं हैं l साथ ही पूरे विश्व में एक मजहब विशेष के विरुद्ध घृणा ,नफरत और शक का माहौल बनाया जा रहा है जिसमें साम्राज्यवादी ग्लोबल मीडिया और उनका दलाल बना बैठा उंकका ही साथ दे रहा है । यह बात आप इससे समझ सकते हैं की क्या साजिश है ? **********फ़्रांसिसी झंडे के तले !! जैक्स चिराक और निकोलस सारकोज़ी के कार्यकाल की ही पोल खोलते हुए 2011 में विकिलीक्स ने सबूत पेश किए थे कि किस तरह फ्रांस अपनी खुराफाती ख़ुफ़िया एजेंसियों की मदद से पचास साल पूर्व “आज़ाद” हो चुकी अपनी अफ़्रीकी कॉलोनियों में आज तक अपने वर्चस्व को कायम रखने के लिए उन्हें गृह युद्ध की आग में झोंकता आया है और इस्लामिक व कैथोलिक चरमपंथियों को दाना पानी मुहैया कराता आया है l
1994 के रवांडा के नरसंहार को कौन भूल सकता है जिसमें फ़्रांस की समर्थन वाली हुतू बहुसंख्यकों की सरकार के कार्यकाल में आठ लाख लोगों का नरसंहार किया गया ?
इससे पहले की फ्रांस , अमेरिका , ब्रिटेन , इजराइल व अन्य साम्राज्यवादी देशों के हुक्मरानों द्वारा पैदा किया गया दानव भस्मासुर बनकर खुद इन्हें ही जलाकर राख कर जाए , इन देशों की जनता को अपनी सरकारों के काले अमानवीय कृत्यों का जल्द से जल्द हिसाब कर देना होगा और इनकी पूँजी की साम्राज्यवादी सत्ता को उखाड़ फेंकना होगा l एक सच्च कहावत है की खराब मुद्रा अच्छी मुद्रा को चलन से बाहर कर देती है आइये इसे भी समझते हैं कैसे ?
मुसलमानों ने स्पेन पर लगभग 800 वर्ष शासन किया और वहॉ उन्होने कभी किसी को इस्लाम स्वीकार करने के लिए मज़बूर नही किया। बाद में र्इसार्इ धार्मिक योद्धा स्पेन आए और उन्होने मुसलमानों का सफाया कर दिया और वहॉ एक भी मुसलमान बाकी़ न रहा जो खुलेतौर पर अजा़न दें सके।
– मुसलमान 1400 वर्ष तक अरब के शासक रहें। कुछ वर्षो तक वहॉ ब्रिटिश राज्य रहा और कुछ वर्षो तक फ्रांसीसियों ने शासन किया। कुल मिलाकर मुसलमानों ने वहॉ 1400 वर्ष तक शासन किया । आज भी वहॉ एक करोड़ चालीस लाख अरब नसली र्इसार्इहैं। यदि मुसलमानों नेतलवार का प्रयोग किया होता तो वहॉ एक भी अरब मूल का र्इसार्इ बाक़ीनही रहता।
– मुसलमानों ने भारत परलगभग 1000 वर्ष शासन किया। यदि वे चाहते तो भारत के एक-एक गै़र-मुस्लिम को इस्लाम स्वीकार करने पर मज़बूर कर देते क्योंकि इसके लिए उनकेपास शक्ति थी। आज 80/ गै़र-मुस्लिम भारत में हैं जो इस तथ्य के गवाह हैं कि इस्लाम तलवार से नहीं फैला।
– इन्डोनेशिया (Indonesia) एक देश हैं जहॉ संसार में सबसे अधिक मुसलमान हैं। मलेशिया (Malaysia) में मुसलमान बहु-संख्यक हैं। यहॉ प्रश्न उठता हैं कि आख़िर कौन-सी मुसलमान सेना इन्डोनेशिया और मलेशिया गइ । ?
– इसी प्रकार इस्लाम तीव्र गति से अफ़्रीकाके पूर्वी तट पर फैला। फिर कोइ यह प्रश्न कर सकता हैं कि यदि इस्लाम तलवार से फैला तो कौन-सी मुस्लिम सेना अफ़्रीका के पूर्वी तट की ओर गइ थी? और यदि कोई तलवार मुसलमान के पास होती तब भी वे इसकी प्रयोग इस्लाम के प्रचार के लिए नहीं कर सकते थें। क्योकि पवित्र क़ुरआन में कहा गया हैं-
‘‘ धर्म में कोर्इ जोर-जबरदस्ती न करो, सत्य, असत्य से साफ़ भिन्न दिखार्इ देता हैं।’’ (क़ुरआन, 2:256)
पवित्र कु़रआन हैं-
‘‘लोगो को अल्लाह के मार्ग की तरफ़ बुलाओ, परंतु बुद्धिमत्ता और सदुपदेश के साथ, और उनसे वाद-विवाद करो उस तरीक़े से जो सबसे अच्छा और निर्मल हों।’’ (क़ुरआन, 16:125)
************अमेरिका से पूर्व सोवियत यूनियन दुनिया का नेतृत्व करता था लेकिन सोवियत यूनियन के अफ़ग़ानिस्तान मे शिकस्त के बाद टूटने के कारण दुनिया का नेतृत्व अमेरिका के हाथो चला गया जिसे अब तक किसी ने भी चैलेंज नही किया था लेकिन अब हालात बदल रहे है रूस अब दुबारा अमेरिका को न सिर्फ़ टक्कर दे रहा है बल्कि अमेरिका का एक विकल्प भी पेश किया है जो सीरिया युद्ध मे बखूबी देखने मे नज़र आ रहा था लेकिन इस हमले के तुरंत बाद अमेरिका की स्थिति दुबारा से मज़बूत हो गयी है जो ढीली पड़ती नज़र आ रही थी ।
**आतंकवाद और आइसिस के विरुद्ध निर्णायक जंग का अर्थ है अमेरिका , इजराइल , फ्रांस , ब्रिटेन जैसी हर साम्राज्यावादी ताकत के विरुद्ध विश्व की मेहनतकश आबादी की एकजुट जंग lसाम्राज्यबाद का नाश हो,बिश्व सर्बहारा साम्राज्यबाद के बिरूद्ध एकजुट हो, आज साम्राज्यबादी दानब एशिया को तबाह करना चाहता हैा बो इस्लामिक देशों के तेल भंडारों पर कब्जा जमाना चाहता हैा,,पूरा संचार तंत्र उसके कब्जे में हैा बह दुनिया को गुमराह कर रहा हैा ,इस हालात से सिर्फ और सिर्फ एक मजबूत क्रांतिकारी बिकल्प निर्माण करके ही जीता जा सकता हैा
मुसलमान एक मानसिक अवस्था है, आप किसी विशेष विषय पे एक विशेष राय रखते हो, वो हेी आपके मुसलमान होने को निर्धारित करता है. इसलिए किसी को ज़बरदस्ती मुसलमान बनाया ही नही जा सकता, और ना ही किसी को ज़बरदस्ती मुसलमान रखा जा सकता है.
ये पाकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान और सऊदी अरब मे ये जो मुर्तिद के क़ानून है, कि आप इस्लाम त्याग नही सकते, बिल्कुल मूर्खता भरा नियम है. भाई, किसी को किसी बात मे आस्था नही है तो, आप जबरन उसे उसपे यकीन नही करवा सकते, आप जबरन कलमा तो पढ़वा सकते हो, लेकिन उसपे यकीन नही.
लेकिन अफ़सोस अधिकांश मुस्लिम देशो ने इस सच को नही स्वीकारा, और इस्लाम से असहमति जताने पे कठोर सज़ा के रूप मे जो आतंक फैलाया है, उसने मुनाफिको की बड़ी तादात पैदा कर दी, और समाज मे तार्किकता का गला दबा दिया. परिणामस्वरूप हम दुनिया मे 20% तो हो गये, लेकिन वैज्ञानिक दृष्टिकोण के अभाव मे साइंस, प्रोद्योगिकी और गुणवत्ता की शिक्षा मे मात खा गये.
उन्हीं 20% मे हम सब हैं ? भाई आप जो कहिए मुसलमान क्या हैं उनका चरित्र क्या हो गया है या कैसा पेश किया जा रहा है एक जरूर चिंता का विषय है मगर आप इस्लाम को जानिए और समझिए यह एक लासा है जो सैट गया वो उसी का हो गया यानि इनकमिंग है आउटगोइंग नहीं है जिसने भी इस्लाम को समझा उसी का हो गया ॥
”वैज्ञानिक दृष्टिकोण के अभाव मे साइंस, प्रोद्योगिकी और गुणवत्ता की शिक्षा मे मात खा गये.” इसके असली जिम्मेदार कौन हैं ?
मतलब कि आप मानते हैं की आपके सामने में भी गुड और गोबर दोनों रखा था ! लेकिन उसमे से आपने जो भी खाया हो उसका जिम्मेदार कोई दूसरा है ! चलो मान लिया !! बस ? अब अपना हाजमा खराब होने के लिए बेहतर होगा कोई दवाई लो ! क्यूँ की केवल खिलाने वाले का नाम जपने से वो ठीक नहीं होगा !
एक और बात फुल चाहे मजार पे सजें हो या बुत पे उसकी सुगंध में कोई फर्क नहीं पड़ता तो फिर धर्म में कैसे इतना बुनियादी फर्क पड़ जाता है की वो इंसान काफिर ही हो जाए ?
जब असल में आपके हिसाब से मुसलमान होने वाले २ प्रतिशत भी नहीं तो बाकी १८ पर्तिशत के लिए आपको गर्व है या शर्मिंदगी ?
जब असल मानको में इस्लाम नहीं अपनाया जा रहा तो उसके खतना ,बुर्का आदि केवल आँखों को मुसलमान की पहचान देने वाले बातो की जिद क्यूँ ?
अगर इस्लाम को आप मानव कल्याण और इंसानियत का धर्म कहना चाह रहे हैं तो क्या बिना शरियत इस्लाम इस मकाम को नहीं पा सकता ? अगर नहीं तो शरियत से इंसानियत (न की इस्लामी इंसानियत !) लेकिन चलो ,इस्लामी इंसानियत ही सही आ जाने का ही कोई उदाहरण दीजिये फिर हिम्मत हो तो लोगों से इस्लाम कबुल करने भीख मांगो | अरे जनाब दया आती है आपकी तार्किकता पर जब आप ही मुसलमानों को फितूर कहते हो !
तर्क की दुनिया मे सवाल उठाने पे, तलवारे नही निकाली जाती, हत्याए नही की जाती. आज जो मुसलमान देश, इस्लाम की तस्वीर पेश कर रहे हैं, वो इस्लाम की तार्किक छवि कहीं से पेश नही करता.
ज़ाकिर हुसैन साहब आपके बस की बात नहीं इन बातों को समझना । आईएसआईएस के खोल मे कौन है ? अगर आप ही समझ जाते न तो ये बेमानी तर्क ना देते ॥
तो चलो आप समझा दो, कि isis ही नही, लश्कर ए झींगवी, बोको हराम, अल शबाब, अल क़ायदा, सिपाहे सहाबा, जैसे संगठन हम मुस्लिमो की नाक के नीचे बन गये. इराक़ और सीरिया मे जहाँ, आज मुसलमान नही आए हैं, सैकड़ो सालो से हैं, मे कैसे बड़े बड़े मौलानाओ और मौलवियो ने बग्दादि के आगे समर्पण कर दिया, लेकिन फ़िलिस्तीन मे वो ही यहूदी, छोटी सी जगह मे मुसलमनो को इतने सालो मे भी नही झुका पाए?
जो चंद मुसलमान, हमारे यहाँ से लड़ने के लिए वहाँ चले गये, वो भी क्या यहूदी एजेंट थे? जनाब हमारे मौलाना, मौलवी लाखो की भीड़ इकट्ठा करके दाईश की मजम्मत और उसके कृत्यो को गैर इस्लामी तो करार दे देंगे, लेकिन जिन बुनियादो पे यानी शरीयत आधारित राज्य व्यवस्था, के सपने बेचने वालो को कुछ नही बोलेंगे.
गुड भी खाए, और गुलगुलो से भी परहेज करें?
अंसारी साहब, ये जो नफ़रत की आग, मुस्लिम क़ौम के भीतर लगी है, इस आग मे पेट्रोल भले ही कोई डाल रहा हो, लेकिन बुझाने के लिए भी हम उतने संजीदा नही, हम उन सवालो से बचना चाह रहे हैं. हर मुसलमान इन सवालो से बच रहा है, बस इजरायल, अमेरिका, मोसाद पे सारा ठीकरा फोड़ दो. अरे उन्होने फूट डाली, लेकिन गद्दारी का ठेका हमने ही ले रखा है क्या?
ज़ाकिर हुसैन साहब ….. जो विषय लिखा है आप बिना पढे कमेंट करने आ जाते हैं वो भी खुद उलझे रहते हैं ? आप को जो जानना है इस पोर्टल पर मौजूद है और नहीं तो आप कहिए आपको उपलब्ध करवा दिया जाएगा । आपने बस वही जाना जो आपने किसी से सुना ”की कौवा कान लेगाया ” आप की सोच का स्तर अल्लाह बेहतर जाने वैसे मुझे जो आया वो यह की आपको लेख नहीं बल्कि मीन मेख मे मजा आता है बस और कुछ नहीं ॥ जानकारी रखिए फिर आइये बात करने मे तब मजा आयेगा ॥
मैने जो तर्क दिए, वो इस राय पे कि इस्लाम एक तार्किक मज़हब है, लेकिन आज जो मुसलमान ने इस्लाम की व्याख्या पेश की है, वो कहीं से भी तार्किक नज़र नही आती. तर्क की दुनिया मे सवालो पे तलवारे नही निकलती.
अगर वाकई मे हम मुसलमानो ने इस्लाम को तार्किक तरीके से अपनाया होता, तो तर्क के सबसे बड़े पैमाने यानी साइंस की दुनिया मे हमारा परचम लहराता. आज हम दुनिया मे 20% है, तर्क की दुनिया मे कहाँ खड़े हैं, बताने की ज़रूरत नही.
श्रेी जकिर् जेी इस्लाम कि बुनियादेी बाते और तर्क परस्पर विरोधेी बाते है
कुरान को मनने वाले दुनियमे करिब २५% है २० % नहेी है है !
जब फरिश्तो का वजुद नहि है तब यह् कहना केी फरिश्ते कुरान कि आयते लाये थे यह बात हेी अतार्किक है !
और फरिश्ते भेी क्या है इसलाम् कि नजर मे हर मुस्लिम के कन्धे मे दो फरिश्ते मौजुद रहते है और् कब्र मे भि फरिश्ते रहते है !
साथ मे कुरान ११/७८-८१ भेी देखिये जिस्मे हजरत लुत कि बस्तेी वाले कुरानेी फरिश्तो से “होमो ” कर्ने को उत्सुक थे! होमो तभेी होगा जब उन्के शरेीर होन्गे फिर मुस्लिमो के कन्धे मे फरिश्ते कैसे हो सक्ते है !
जनाब आप गुमराह हैं बहके हौवे हैं आरएसएस के लोगों के तर्क वितर्क से घायल ना होइए ॥ इस्लाम जो जिस रूप मे था आज भी है इसकी ब्याख्या और इसकी मंशा को समझने के लिए पहले अल्लाह के उस मकसद को समझना होगा जिसके लिए अल्लाह ने यह दुनिया बनाई ॥ जिस दिन यह आप समझ जाएंगे यहाँ कमेंट करने नहीं आएंगे । एक से एक जानकार और दानिश्वर इंसान हैं इस न्यूज़ पोर्टल को पढ़ते हैं और वो अपनी पॉज़िटिव राय भी देते हैं । आपने अगर इस लेख को गहन तरीके से पढ़ा होता तो आपके सभी सवालों का जवाब खुद ही पा लिया होता मगर अफसोस की आपने उतना ही पढ़ा जीतने मे आप किसी गैर को संतुष्ट किया मगर जान और समझ कुछ नहीं पाये …… अल्लाह से दुवा है की आपको समझने की सलाहियत दे …
कल्पित अल्लह से दुआ ?
क्या कमाल है ?
सब्से पहले करोदो मुस्लिम इस्लमि अतन्क्वदियो के सुधार के लिये दुवाये कर ले और देखे कि कित्नेी देर मे वह दुवाये कबुल होति है वरना कल्पित अलल्लह् सन्गति चोद दिजियेगा
साथ मे जो ३४ मुस्लिम् देश् इस्लमि आत्न्क्वादियो को थेीक कर्ने को एकत्त्रित हुये है उन्को भेी रोक लिजिये और कहिये कि सिर्फ कल्पित अल्लह् से दुवये करे तब् सब थिक हो जएय्गा
!
ज़ाकिर भाई बेशक इस्लाम तार्किक मजहब है । और जिसने भी इसकी ब्याख्या अपने हिसाब से की वो इस्लाम का मानने वाला नहीं है । मुसलमान हो सकता है मगर मुकम्मल नहीं । हमे इस्लाम को खुद समझना होगा खुद से तर्क करना होगा और मक़सद ए इस्लाम को समझना होगा तभी रास्ता मिलेगा ॥ तब और अब मे इस्लाम वहीं है हम मुसलमान गायब हो चुके हैं …………… ।इस बात को बहुत कम लोग जानते हैं कि ज्ञान के आदान/प्रदान में इस्लाम ने दुनिया को सबसे अधिक जोड़ा है।
ज्ञान पर पश्चिम के वर्चस्व के कारण अंग्रेजी जैसे आज अंतर्राष्ट्रीय संपर्क की भाषा है, उसी तरह आठवीं शताब्दी के उत्तरार्ध से ग्यारहवीं शताब्दी के अंत तक वैश्विक संपर्क की भाषा अरबी थी। अरबी प्रभुत्व के उस युग में मानो खलीफा से लेकर साधारण नागरिक तक सब विद्यार्थी हो गये थे। ज्ञान की जितनी प्यास नौवीं-दसवीं शताब्दी के अरब संसार में थी, वह उससे पहले कभी नहीं देखी गई थी।
उस बौद्धिक जागरण ने इस्लामी संसार में पुस्तकों की संस्कृति को जन्म दिया। सुदूर इलाकों से लोग असंख्य भारी भारी ग्रंथों को ऊंटों, खच्चरों और घोड़ों पर लाद कर लौटने लगे। नौवीं सदी का लेखक याकूबी लिखता है कि उसके समय में अकेले बगदाद शहर में सौ पुस्तक विक्रेता थे जो महज पुस्तकें नहीं बेचते थे, बल्कि ग्रंथों की नकल बनाते और सुलेखन कला के प्रशिक्षक केंद्र भी चलाते थे। मूल पांडुलिपियों की नकल बना कर उन्हें बेचने के काम में अनगिनत विद्यार्थी लगे थे।व्यक्ति की सामाजिक प्रतिष्ठा पुस्तकों के संग्रह के आधार पर बनती थी।
बगदाद के एक हकीम को जब बुखारा के सुल्तान ने अपने यहां रहने के लिए आमंत्रित किया तो हकीम ने वह निमंत्रण केवल इसलिए स्वीकार नहीं किया क्योंकि उसे अपनी किताबों को ढोने के लिए चार सौ ऊंटों की आवश्यकता थी। दसवीं शताब्दी में वजीर साहब-इब्न-उब्वाद के पास एक लाख से अधिक किताबें थीं। तब इतनी किताबें यूरोप के सभी पुस्तकालयों को मिला कर भी नहीं थीं।1064 ई0 में अकेले बगदाद में वैज्ञानिक ज्ञान के तीस बड़े शोध केंद्र थे। बगदाद के अलावा काहिरा, सिकंदरिया, यरूशलम, अलेप्पो, दमिश्क, मोसुल, तुस और निशपुर अरब संसार में विद्या के महत्वपूर्ण केंद्र थे।
जब यूरोप के दूसरे देश अंधकार में गुम थे तब स्पेन में अरबों की उपस्थिति के कारण ज्ञान की रोशनी प्रकाशित हो रही थी। अरबों के पास प्राचीन यूनानी दार्शनिकों और वैज्ञानिकों की रचनाएँ सुरक्षित थीं। उनके माध्यम से यूनानी ज्ञान ने यूरोप में प्रवेश किया। न केवल यूनानी बल्कि भारतीय और चीनी ज्ञान भी उनके माध्यम से यूरोप पहुंचा। अरबी से लैटिन में अनुवादित विज्ञान ग्रंथों ने यूरोप में वैज्ञानिक ज्ञान की नींव डाली तर्क और विवेक पर आधारित विज्ञान और दर्शन का अनमोल खजाना इसाई चर्चों के अंधविश्वास और पाखंड के कारण दबा पड़ा था।
अरब वैज्ञानिक जाबिर को आधुनिक रसायन विज्ञान का जनक माना जाता है। चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में अल-राजी की किताबें यूरोपीय विश्वविद्यालयों में आधार ज्ञान के रूप में कार्य करती रहीं।
अरबों का अरस्तू कहे जाने वाले इब्ने सिना ने दर्शन शास्त्र, नक्षत्र विज्ञान, रसायन शास्त्र, भुगोल, भूगर्भ शास्त्र, तर्क शास्त्र, गणित, भौतिक विज्ञान, मनोविज्ञान, काव्य, संगीत आदि विषयों पर 450 ग्रंथ लिखे। अलजेबरा शब्द अरबी का है। प्रायः सभी पूर्वी देशों में ज्योतिष का ज्ञान पंडितों पुरोहितों के हाथ में था। अरब लोगों ने उसे नक्षत्र विज्ञान के समीप लाकर विज्ञान के रूप में विकसित किया।सर्जरी को विज्ञान के रूप में विकसित करने का श्रेय कोरदोवा के अरबी चिकित्सक अल-जहरवी को जाता है। अबु बक्र ने अंतरिक्ष के नक्षत्र मंडल और उनकी गति के संबंध में जो विचार प्रस्तुत किये, उन्हीं की सहायता से बाद में ब्रूनो, गैलीलियो और कोपरनिकस अपने युग परिवर्तनकारी अनुसंधानों को विकसित कर सके।
9 वी सदी मे अरब ने विज्ञान का सुनहरा दौर देखा, और उससे पहले भारत ने. आर्यभट्ट, इबने सिना, चरक जैसे महान वैज्ञानिक हो या बाद के दौर मे आए न्यूटन, आइंस्टाईं जैसे लोग, उन्हे हिंदू, मुस्लिम, ईसाई या यहूदी पहचानो से जोड़ना ही अपने आप मे एक अवैज्ञानिक मानस्कीता है.
अगर वाकई मे हमारे या हिंदुओं के धर्म-ग्रंथो मे विज्ञान के ग़ूढ रहस्य छुपे होते तो तब्लीगी जमात, और संस्कृत महाविद्यालय सबसे अधिक वैज्ञानिक दुनिया को देता.
जनाब गलती से भी तर्क न कर बैठना इस्लाम और कुरान पर, पता नहीं कब कौन सा इस्लाम का झंडाबरदार आ के सर कलम कर जाये आपका!
श्रेी हन्नान जेी , कुरान २/२५६ यह आयत सिर्फ पध्ने के लिये है उस्का आदेश निरस्त हो चुका है कुरान मे सैकदो आयते निरस्त् है देखे अल्लमा जललुद्देीन सियुति कि किताब “लबाबन् नकुल फेी असबाबन् नजुल्” यह् किताब आज से करिब ७५० साल पुरानि है पेज् १६३ से निरस्त अयतो कि लिश्त मौजुद है !
साथ मे कुरान कि तफ्सेीर{ व्याख्या } करने वाले लेखक फख्रुद्द्देीन जेी कि ” तफ्सेीर कादरेी ” भाग २-पेज ४९२ भेी देख् लिजियेगा
” तफ्सिर मजहरेी” पेज ३६३ लेखक अल्लामा काजेी मुहम्मद सना उल्ला उसमानेी को भेी देख् सक्ते है जिस्मे १०० से ज्यादा कुरान् के आदेश निरस्त केी सुचि है
कुरन्२/२५६ ला इकराहा फिद्देीन ……. फक्तुलुल मुश् रेकेीना हेसो वज्जत्त्मुहुम ,, कि अयत से निरस्त कि गयि है !
जब मुहम्म्द् जि कम्जोर थे तब् उन्के अदेश नरम्र थे और चोरि से , चिप् कर मक्का से मदेीना भाग गये थे जब मुहम्मद् जेी मज्बुत हो गये तब कुरान के आदेश रज्नितिक सत्ता मिल्ने बाद सख्त हो गये थे उस्केी मिसाल है कि मक्का और मदेीना नगर मे तब से गैर मुस्ल्मो का प्रवेश वर्जित है! आज भि सऊदेी अरब मे गैर मुस्लिमो को अप्ने धन्ग से इश्वर कि आरध्ना कर्ने केी सख्त मनाहेी है १
अभेी कल एक् आदेश् और आया है — इसलामेी देश ब्रुनेइ के सुल्तान् ने आदेश् दिया है कि सर्वजनिक रुप से क्रिस्मिस मनाने वालो ५ साल के जेल कि सख्त सजा देी जायेगेी ! उस्मे जो क्रिस्मिस कि बधाई देगा य सैन्तो केी तोपि पाहन्ने पर भेी सजा देी जयेगेी !
बत्लौइये कुरान् २/२५६ अयत का वजुद क्या रहा?
“मजहब पर जबर दस्ति नहेी ” क्या मजाक है
इस्लिये कुरान के नाम पर दुसरो को बेव्कुफ मत बनाये !
कुरान केी सन्गतेी चोद्ने मे हि सभेी पधे लिखे मुसलिमो के लिये अच्ह हेी कहा जायेगा !
rajk साहब …….आप लेख नहीं पढ्न चाहते मगर आपके कमेंट का उत्तर देना जरूरी था ?/ ब्रह्म का अर्थ है : भगवान, ईश्वर, अल्लाह व रब्ब आदिआदि। इसी ब्रह्म के नाम का शोषण करके जो अपने निजी स्वार्थ में संलग्र है अर्थात जो अपना उल्लू सीधा करने में लगा है, चाहे वह किसी भी जाति व संप्रदाय का हो, वह ब्राह्मणवादी है। जिन लोगों ने यह मनघडंत कहानी गढ़ी कि ब्रह्मा के मुख से ब्राह्मण का जन्म हुआ, हाथों से क्षत्रिय, पेट से वैश्य तथा पैरों से शूद्रों का प्रादुर्भाव हुआ, यह पूरा कथन बिल्कुल ही भ्रम फैलाने वाला है। ऐसा न कभी किसी युग में हुआहै और न ही होगा। इसी प्रकार अवतारवाद भी ब्राह्मणवाद की एक कल्पना और मिथ्या प्रचार है। ऐसी कल्पना हिंदू धर्म को छोडक़र शायद ही किसी दूसरे धर्म में हो, लेकिन इस सभी का ठेका हमारे देश में हिंदू धर्म ने उठा रखा है, जबकि इस दुनिया में अन्य लगभग 210 देश हैं और दर्जनों धर्म हैं। यदि फिर भी किसी अन्य जगह या किसी धर्म में अवतारवाद है,तो वह भी ब्राह्मणवाद ही है।
rajk साहब …………….इस ब्राह्मणवाद के जनक मनु थे, जिन्होंने इस ब्राह्मणवाद को श्रेष्ठ अवस्था में रखने के लिए वर्ण व्यवस्था की स्थापना की। हालांकि अक्सर ये कहा जाता है कि पहले वर्ण व्यवस्था काम के आधार पर थी, लेकिन यह सच्चाई नहीं है क्योंकि यदि यह सच होता, तो ब्राह्मण वर्ण में अकेली ब्राह्मण जाति नहीं होती, जबकि दूसरे वर्णों में अनेकों अनेक जातियां हैं।इसी ब्राह्मणवाद को स्थायी रूप देने के लिए पुराणों व अन्य अनेक ब्राह्मणवादी स्मृतियों की रचना की गई, जो पूर्णतया कपोल कल्पित हैं और जिनमें कहीं भी रति भर सच्चाई प्रतीत नहीं होती। उदाहरण केलिए गरूड पुराण की शिक्षा है कि अपने संबंधियों को स्वर्ग सिधारने पर उन्हें स्वर्ग में भेजना है तो पिंडदान करवाओ तथा ब्राह्मण को गौदान दो ताकि वैतरणी को पार कर सकें अन्यथा नरक भोगना पड़ेगा। कहने का अभिप्राय: है कि जिन धर्मों में व देशों मेंगाय का दान नहीं दिया जाता और न ही पिंडदान करवाया जाता है, तो इसका अर्थ है कि उनके सभी स्वर्गवासी संबंधी नरक में ही जाते हैं। वैतरणी भी पूर्णतया काल्पनिक है। क्या बाकी धर्मों व देशों का इस नदी के बगैर कैसे गुजारा हो रहा है? स्कन्ध पुराण की शिक्षा तो पूर्णतया अमानवीय, अप्राकृति व असवैंधानिक है, जिसमें लिखा गया है कि किसी भी स्त्री के विधवा होने पर उसके बाल काट दो, सफेद वस्त्र पहना दो और उसे खाने को केवल इतना दिया जाए कि वह मात्र जीवित रह सके अर्थात उस अबला विधवा नारी को हड्डियों का पिंजर मात्र बना दिया जाए। इसके अनुसार किसी विधवा को पुनर्विवाह करना पाप माना गया है।
…………….rajk जी ……… याद रहे, ऐसे ही पुराणों की शिक्षाओं के कारण हमारे देश में वेश्यावृति और सति प्रथा ने जन्म लिया था। इसी प्रकार कुछ अन्य ब्राह्मणवादी ग्रंथों ने औरतों व दलितों के साथ घोर अन्याय करने की शिक्षा दी और हकीकत यह है कि इसी अन्याय के कारण भारतवर्ष को एक बहुत लंबी गुलामी का सामना करना पड़ा। उदाहरण के लिए ऐतरेय ब्राह्मण(3/24/27) के अनुसार वही नारी उत्तम है, जो पुत्र को जन्म दे। (35/5/2/४7) के अनुसार पत्नी एक से अधिक पति ग्रहणनहीं कर सकती, लेकिन पति चाहे कितनी भी पत्नियां रखे। आपस्तब (1/10/51/ 52) बोधयान धर्मसूत्र (2/4/6) शतपथ ब्राह्मण (5/2/3/14) के अनुसार जो स्त्री अपुत्रा है, उसे त्याग देना चाहिए। तैत्तिरीय संहिता(6/6/4/3) के अनुसार पत्नी आजादीकी हकदार नहीं है। शतपथ ब्राह्मण (9/6) के अनुसार केवल सुंदर पत्नी ही अपने पति का प्रेम पाने की अधिकारी है। बृहदारण्यक उपनिषद् (6/4/7) के अनुसार अगर पत्नी संभोग करने के लिए तैयार न हो तो उसे खुश करने का प्रयास करो। यदि फिर भी न माने तो उसे पीट-पीटकर वश में करो। मैत्रायणी संहिता(3/8/3) के अनुसार नारी अशुभ है। यज्ञ के समय नारी, कुत्ते व शूद्र को नहीं देखना चाहिए अर्थात नारी व शूद्र कुत्ते के समान हैं। (1/10/11) के अनुसार नारी तो एक पात्र(बर्तन) के समान है। महाभारत(12/40/1) के अनुसार नारी से बढक़र अशुभ कुछ भी नहीं है। इनके प्रति मन में कोई ममता नहीं होनी चाहिए। (6/33/32) के अनुसार पिछले जन्म के पाप से नारी का जन्म होता है। मनुस्मृति(100) के अनुसार पृथ्वी परजो कुछ भी है, वह ब्राह्मणों का है। मनुस्मृति(101)के अनुसार दूसरे लोग ब्राह्मणों की दया के कारण सब पदार्थों का भोग करते हैं। मनुस्मृति (11-11-127)के अनुसार मनु ने ब्राह्मणों को संपत्ति प्राप्त करने के लिए विशेष अधिकार दिया है। वह तीनों वर्णोंसे बलपूर्वक धन छीन सकता है अर्थात चोरी कर सकता है। मनुस्मृति (4/165-4/१६६) के अनुसार जान-बूझकर क्रोध से जो ब्राह्मण को तिनके से भी मारता है, वह 21 जन्मों तक बिल्ली की योनी में पैदा होता है। मनुस्मृति (5/35) के अनुसार जो मांस नहीं खाएगा, वह21 बार पशु योनी में पैदा होगा। मनुस्मृति (64 श£ोक) अछूत जातियों के छूने पर स्नान करना चाहिए।
rajk जी ……. गौतम धर्म सूत्र(2-3-4) के अनुसार यदि शूद्र किसी वेद को पढ़ते सुन लें तो उनके कान में पिघला हुआ सीसा या लाख डाल देनी चाहिए। मनुस्मृति (8/21-22) के अनुसार ब्राह्मण चाहे अयोग्य हो, उसे न्यायाधीश बनाया जाए वर्ना राज्य मुसीबत में फंस जाएगा। इसका अर्थ है कि वर्तमान में भारत के उच्चत्तम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश श्री कबीर साहब को तो हटा ही देना चाहिए। मनुस्मृति (8/267) के अनुसार यदि कोई ब्राह्मण को दुर्वचन कहेगा तो वह मृत्युदंड का अधिकारी है। मनुस्मृति (8/270) के अनुसार यदि कोई ब्राह्मण पर आक्षेप करे तो उसकी जीभ काटकर दंड दें।मनुस्मृति (5/157) के अनुसार विधवा का विवाह करना घोर पाप है। विष्णुस्मृति में स्त्री को सती होने के लिए उकसाया गया है तो शंख स्मृति में दहेज देने के लिए प्रेरित किया गया है। देवल स्मृति में तो किसी को भी बाहर देश जाने की मनाही है। बृहदहरित स्मृति में बौद्ध भिक्षु व मुंडे हुए सिर वालों को देखने की मनाही है।ऐसी ही शिक्षाओं ने केवल देश को गुलाम बनाने में केवल सहयोग ही नहीं दिया, पूरे समाज का ताना-बाना छिन्न-भिन्न कर दिया। इसी परिणामस्वरूप देश आजाद होने पर दलितों, पिछड़ों व महिलाओं के लिए आरक्षण की मांग उठने लगी। ब्राह्मणवाद का ही दूसरा अर्थ पाखंडवाद व अंधविश्वास है और इसको मानने वाला व्यक्ति किसी भी जाति, धर्म, पंथ और क्षेत्र का हो सकता है। कांवड़ लाना, पिंडदान करना व मृत्यु भोज करना आदि-आदि घोर पाखंडवाद है। गंगा से कांवड़ इसलिए लाई जाती है कि गंगा का पानी अपने स्थानीय शिव के मंदिरों में चढ़ाया जाए, जबकि हमारे धर्म शास्त्र कहते हैं कि गंगा तो शिवजी की जटाओं में रहती है। और दूसरे धर्मशास्त्र यह भी कह रहे हैं कि शिवजी तो कैलाश पर्वत पर रहते हैं। फिर यहां मूर्तियों पर गंगाजल चढ़ाने का क्या अभिप्राय: है?॥
यह सरे सबुत् फर्ज है और अमान्य् है इसि हिन्दु समाज मे वल्मिकि जि हुये सन्त रवि दास जेी भेी हुये ! अम्बेद्कर जेी कि पधाई के लिये बदोदा नरेश ग़ाय़ाक़वाद जेी से खर्च् उथाया था अम्बेद्कर जि किपत्नि जनमना ब्रहमन् थेी जग्जिवन् राम जि किपत्नि रुक्मनेी जि जन्मन ब्रह्म्न थेी !
यग्त्वलक्य कि पत्नि ग्यनि थेी १
सन्यसेी{साधु } कोइ भेी जातेी का हो सक्ता है साधु कि जातेी नहि पुचेी जातेी ऐसि कहावत विख्यात है !
शन्करचार्य जि से शास्त्रार्थ मन्दन मिश्र और उन्कि पत्नेी ने किया था अगर महिलये पधेी लिखेी नहेी होति तो कैसे हो सक्ता था ! शिव और पर्वति का वाद – विवाद विख्यात है !
श्रेी हन्नान् जि आप्को भि ब्रह्मन कहा जा सक्ता है ! जो ग्यानेी है वह ब्रह्मन है वह किसेी भेी समुदाय का हो सक्ता है !
क्या कोइ मुस्लिम मुहमम्द जेी कि तौहेीन् कर सक्ता है फिर् उस्केी सजा क्या होगेी ?
क्य कोइ मुस्लिम मौलनाओ कि तौहेीन कर् सक्ता है > फिर् उस्कि सजा क्या होगेी ?
किसेी एस् पेी कि तौहेीन कोइ आम अदमि कर सक्ता है उस्कि सजा क्या होगि !
एक आम् व्यक्ति एक सिपाहेी केी वर्देी फाद्ने पर पुलिस कया सजा देगेी ?
अदालत् मे किसि जज को चप्पल दिखलाईये फिर उस्केी सजा भि भुगलिजिये
इस्लिये पुरि दुनिय मे अनेक वर्ग है और आगे भेी रहेन्गे ! दुसरे अर्थो मे बुद्धेीजेीवेी , सेना पुलिस्, व्यापारेी {त्रेदर्स } मज्दुर् हर देश मे होते है
बुद्धेीजिवि {विद्वान } को आदर हर जगह मिल्ता है वहि हालत अप्ने देश् मे ब्रह्मन को थेी
लेकिन् जन्मजत ब्रह्मन को भि इज्जत मिले वह बहुत गलत है
बकि बाते सामाजिक कुरितियान है उन्का विरोध होना चहिये
श्रेी हन्नान् जि हम्ने इस तिप्प्देी मे ब्रह्मन वाद कि बात् नहि केी लेकिन आप् ब्रह्मन वाद कि चर्चा कर्न लगे
पहलेी बात इश्वर और अलल्ह एक समान नहि है
इश्वर सिर्फ् निराकारहै और सर्व व्यापक आदेी है उस्का कोइ पर्तेीक भेी नहेी है
जब्कि कल्पित अल्लाह सिरफ़् सतवे आसमान मे एक सिमित सिन्घासन मे मौजुद है साथ मे उस्के “दोनो हाथ्” भेी है देखे कुरान् ३८/७५ !
सब्का जन्म योनिद्वार से होता है मुख से नहेी !
ब्रह्मा से जन्म किसेी का नहेी हुहा ! मुख को ब्रह्मन इस्लिये कहते है कि सारे ग्यान के श्रोत चेहरे पर है नाक कान आन्ख दिमाग जुवान आदि
हाथ को च्हत्रिय् इस्लिए कहा कि हाथ हेी शरिर कि रक्शा के लिये अगे हो ते है ! पेत मे जाने वाला ह्र्र पदार्थ सारे शरेीर मे उर्जा देता है तान्ग{ पैर “सारे शरिर का बोज्ह सम्भाल्तअ है ! अव्तार वाद का कोइअस्तित्व नहेी है !
फिर भेी जब इश्वर सब्कुच्कर सक्त है तो वह जन्म भेी क्यो नहेी ले सक्ता है
इस्लिये इश्वर सब कुच कर सक्ने कि बात मत किजिये !
जो ग्यान् से कार्य कर्ते है व्ह सब ब्रह्मन है भले हि वह किसि भेी समुदाय् के व्यक्ति हो जैसे इन्जिनर् डाक़्तर प्रोफेसर दार्शनिक वग्यानिक आदेी, ब्रह्मन आदि गुन वाचक है ! पुलिस सेना क्शत्रिय , व्यापार कर्ने वाला वैश्य , ज्यदा शरिरिक मेहनत् मज्दुरि कर्ने वाला शुद्र !
rajk जी आपने baseless कमेंट किया मगर यहाँ वास्तविक उत्तर दिया हूँ आप इसका उत्तर दे सकते हैं तो उनही किताबों के हवाले से सही उत्तर ढूंढ कर दीजिये ॥
श्रेी हन्नान् जेी जो पर्श्न् हमने रखे उस्का आप जवाब भेी नहि दे पाये यह आप्कि अयोग्य्ता दिख्तेी है
मनु स्म्रिति के जित्ने भेी सबुत दियेहैवह् सब मिलाव्तेी है वह हम्को हर्गिज मान्य नहेी है @!
आज कोइ भेी हिन्दु उन बातो को नहि मन्ता
सति प्रथा हिन्दु समज् का अन्ग नहेी था वर्ना रावन कि मौत पर सुलोच्ना सति होति !
महाभारत के युद्ध मे भि कोइन पत्नि सति नहेी हुयेी इस्से बदा सबुत आप्को और् क्या चहिये ! आज भि कोइ पत्नि सतेी नहेी होतेी
जब मुग्ल और मुस्लिम विध्वा महिलाओ कि इज्जत् लुत्ते थे क्योकि कुरान मे ऐसा नियम है {लौन्देी दासेी आदेी } तब महिलये अप्नि इज्जत बचाने के लिये जरुर सतेी होति थेी ! अब वह खतरा नहेी रहा इस्लिये सतेी भि होना बन्द हो गयेी २१
दहेज क्या है? जो मान्गा जाये ! जो खुशेी से दिया जये उस्को उप हार{ गिफ्त } कहते है प्राचेीन काल मे उप हार था न कि दहेज !
दुसरो के तर्क को, प्रश्न् को , सबुत को अधार्हेीन कहना बहुत से मुस्लिमो का एक फैशन् है, उस्मे आप भि शमिल हो गये ऐसा हम्को लग्ता है ! कुरान तो मुल कि भुल है इस्का जवाब कोइ भि मुस्लिम नहेी जा सक्ता है ! चाहे कित्ने हेी पापद बेल लिये जाये !
बहुत सुन्दर उत्तर हन्नान भाई
ब्रभकर भाई साहब ….. जब ससुर कमरे मे प्रवेश करता है तो जाहिल बहू कमर का तौलिया खोल कर सर पर रख चेहरा ढँक लेती है यही हाल है यहाँ के कुछ लोगों का ? आप समझ सकते हैं ॥
फिरे भेी हिन्दु सामाज मे बहुत कमिय थेी तभि यह् देश हजार साल तक गुलाम् रहा अगर हिन्दु समाज अच्च्ह होता तो इस्लाम आदि का वजुद इस देश मे नहि होता १ फिर इस देश् का विभाजन भि नहेी होता १ १
अब मुसलिम् देश् सोमलिया मे क्रिसमिस त्योहार् मनाने पर रोक लगा देी गयेी और काहा गया कि इस्से इस्लाम् पर थेस लग्तेी है
कित्ना नाजुक् है इस्लाम ?
क्यो नहेीम् जुथ का पर्दाफश जो हो सक्ता है !
इस्लाम एक अरबी धर्म है और इसमें अरबी अरब का ही शुरू से अंत तक प्रभुत्व है ये बात कोई भी आसानी से नोट कर सकता है इसी तरह दुनिया में कोई भी धर्म हो वो केवल अपने ही आस पास ही सिमटा नज़र आता है
इस्लाम में ही गौर करे वो भी केवल अरबी और उसके आस पास की घटनाओ तक ही सीमित है
अल्लाह फरिश्तो शैतान पहले नबी आखिरी नबी जन्नत दोज़ख का पहरेदार सभी अरबी नाम वाले उर वाही के पात्र है फल मौसल जानवरो सभी अरब के आगे बढ़ नही पात
जितने धर्म उनके महापुरुषो उनकी किताबो का जिक्र व सब भी अरब के आस पास के हैं जैसे ईसाई यहूदी
दुनिया में उस समय भी बड़े बड़े धर्म मौजूद थे उनके किताबे महापुरुष आदि किसी का कोई नामो निशाँ ही ही नही
ऐसे ही समस्या सभी धर्मो के साथ है
प सबमे और मुस्लिमो अंतर ये है की किसी किताब में ये नही कहा की तुम्हे सब कुछ मानना ही पडेग वरना मौत से भी भयानक सज़ा मिलेगी
” और जिन्होंने हमारी आयते से इनकार किया हम उन्हें आग में झोक देंगे जब उनकी खाले पक जाएंगी तब उन्हें नई खाले पहना देंगे जिससे वो यातना का मज़ा लेते रहे”
ये सब पढ़कर किसी की भी तार्किकता एक कोने में पड़कर धूल ही खाती रहेगी
इसमे कोइ शक नही की मुस्लिमो मे सबसे ज्यादा एकता पायी जाती है और एक मजेदार बात इन २०% मे से कोन कब किसको काफिर कहके गर्दन उडा दे पता ही नही
कुच् अप्राधियो मे भेी एक्ता पाई जातेी है पुलिस के दन्दे तुत जाते है , अप्ने साथेी अप्राधियो के नाम नहेी बतलते है
फल को मीठा साबित करो ! फिर पेड़ की बात करो !!
जो धर्म अपनी श्रेष्ठता साबित होने के लिए तुलना का मोहताज हो वहीँ उसकी औकात दिख जाती है !
राज साहब की बात छोड़िये लेकिन क्या इस्लाम और कुरआन में एक भी …एक भी बुराई नहीं है ? इसका जवाब दो ! राज साहब तो कभी नहीं कहते की इस्लाम छोड़कर हिन्दू धर्म अपनाओ ! ??
फिर आप बिना यह साबित किये की हिन्दुओ की तुलना में ही सही इस्लाम बेदाग़ और सौ प्रतिशत सही है किस मुंह से कहते फिरते हो की इस्लाम कबुल कर लो ?
और सबसे महत्वपूर्ण सवाल फितुरो की जिम्मेदारी कौन लेगा ? हिन्दू ? ,ईसाई, ? या बाकी दर्जनों धर्म ?? क्यों उनकी जिम्मेदारी लेने की औकात न इस्लाम रखता है न कोई मुसलमान यह साफ़ साफ़ दुनिया भी देख रही है !
और कुरआन में कोई इन फितूरों के इलाज की जिम्मेदारी और इलाज को लिखना क्यों भूल गया ? जब की काफिरों का इलाज होते तो दुनिया आज भी देख रही है !
जिस इस्लामेी घर मे आग लगि हो कई लाख मुस्लिम जान से मारे जा चुके हो कई करोद मुस्लिमो को हेी अप्ना देश्, अप्ना जन्म स्थान् चोद्ने को मज्बुर होना पदा हो ,
कोइ भि मुस्लिम देश् इन मुस्लिम शर्ननर्थियो को जगह् न देता हो
कोई मुस्लिम विद्वान ,कोइ मुस्लिम् देश पिदित मुस्लिमो कि “चेीत्कार ” सुनने मे नाकाम हो
चोते चोते मुस्लिम बच्हो को भेी इस्लाम के नाम पर जान से मर् ने को मज्बुर होना पद्ता हो
तब उस जल्ते हुये इस्लामेी घर को सब्से पाह्ले निक्ल जाईइये
सिर्फ मान्व्त वादि ब् नकर अप्ना जिवन कतिये! “दुस्रेके साथ वहि व्यव्हार किजिये जो अप्ने को पसन्द अये एक मत्र यहि सुत्र आजेीवन् निभैये
फिर पध्कर समज्ह कर कोइ समुदाय अच्ह लगे तो उस्को भेी अप्नाया जा सक्ता है
श्रेी हन्नान जेी ,हमारे कुरान पर् रखे प्रश्नो का उत्तर तो दे दिजिये
अब आप मौन क्यो हो गये ?
इस्लिये हम कहते है कि इस्लाम तारेीफ के योग्य् हर्गिज नहेी है ,
वह तो चोद्ने के योग्य् जरुर् है !
rajk जी आप जैसे जाहिल गंवार कुरान के एक लफ्ज पर भी उंगली नहीं रख सकते आप निपट गंवार हैं । इसके लिए आपको कम से कम 10000 जन्म भी लेना पड़े तो कम है । मुसलमानो मे कमी हो सकती है मैं इससे इत्तेफाक रख सकता हूँ मगर कुरान अपने आप मे यकीनन मुस्तनद किताब है ।
श्रेी हन्नान् जेी , आप कितने बुद्धेीमान लग्ते है जो आप्केी नजरो मे जाहिल गन्वार हो उस्कि बात् का भेी आप जवाब् देने मे अस्मर्थ है
जाहिलो को जवब तो बहुत आसानेी से दिया जा सक्ता था जो आप नहेी दे सके १
कुरान् पर तो हजारो पिधियो से उन्ग्लेी उथ रह्हेी कत्तर् मुस्लेीम देशो मे तो उन्ग्लेी उथाने वालो केी हत्या कर देी जातेी है ! मुहमम्द जेी ने भेी नजर बिन् हारेीस को कैद कर्के हत्या कर् वाई थेी !
अप्को भि स्व्बह्विक रुप से इसलाम् के विचारो के विरुद्ध् बोल्ने को मज्बुर होना पदा !” १००० जन्मो” कि बात तो चोदिये कम से कम् इस जन्म के प्रश्नो का उत्तर तो देदेजिये
कुरान तो मुल कि भुल है जित्न जल्दि स्विकर हो सके स्विकार कर् लिजिए उतना हेी फयाद आप्का रहेगा !
हन्नान साहब, क्या हम अरब और अरबी की हर चीज़ से हम इस्लाम को जोड़ सकते हैं? 9वी शताब्दी तक, अरब मे भले ही इस्लामी हुकूमत आ गयी, लेकिन मुसलमान वहाँ उस समय अल्प-संख्यक ही थे.
अरबी भाषा तो इस्लाम के सैकड़ो, हज़ारो साल पहले भी थी. क्या हम अलिफ-लैला को इस्लामी ग्रंथ मान सकते हैं?
आप गौर करिए, 95% मुस्लिम आबादी वाले पाकिस्तान का सबसे बड़ा वैज्ञानिक, अब्दुस-सलाम जो खुद को मुसलमान कहता आया था, भी मुसलमान नही था. तो इब्ने-सीना, तुसी, उमर ख़य्याम आदि को मुसलमान की पहचान से नवाज कर, इस्लाम को तार्किक मज़हब बतलाना, कुतर्क हुआ.
और अगर, मान भी लिया जाए कि उस समय इस्लाम की व्याख्या, तार्किक थी, और आज इस्लाम की आलोचना करने पे असहिष्णुता, अगर गैर इस्लामी और तर्क का दमन करने वाली है तो आप इस्लाम की तार्किक व्याख्या के लिए ही संघर्ष करिए.
ईश-निंदा क़ानून के खिलाफ आवाज़ उठाइए, अगर असली इस्लाम जो आपकी नज़र मे तर्क का पैरोकार है, लेकिन आज दुनिया से गायब हो गया है, तो उसकी स्थापना के लिए प्रयास करिए.
इसके अलावा, आप इस पोर्टल पे मुझे मुस्लिम समुदाय मे isis जैसे हिंसक संगठनो मे कैसे पैठ बना लेते हैं, का भी लिंक मुहैया कराने वाले थे.
मीन मेख निकालने की बात तो साहब ऐसी है, आज जो इस्लाम के बड़े बड़े आलिमो ने इस्लाम की व्याख्या कर रखी है, उसमे तर्क पे प्रतिबंध ही लगा दिया है, ऐसे मे मेरा कमेंट, उस समस्या की ओर ध्यान आकर्षित करना है.
9वी सदी मे अरब, अल्प संख्यक मुस्लिमो लेकिन इस्लामी हुकूमत मे विज्ञान का सुनहरा दौर देखता है, लेकिन आज बहुसंख्यक मुस्लिमो के बावजूद भी साइंस मे नाकाम.
हमने इस्लाम मे तर्क पे प्रतिबंध किस दौर मे लगाए, क्यूँ लगाए, उसपे प्रकाश डालिए. और आज मुस्लिम समुदाय मे वैज्ञानिक दृष्टिकोण को कैसे विकसित किया जाए, उसपे भी गौर करिए. ऐसे दावे, जिन्हे आँकड़े नकारते हो, पे कोई तवज्जो नही देगा, और ना ही कारगर साबित होंगे.
पैगंबर मुहम्मद साहब के पिता का नाम अब्दुल्लाह था, लेकिन वो मुस्लिम नही थे. अब्दुल्ला बिन सवा, जिसको इस्लाम मे पहला फित्ना पैदा करने की भी कई लोग थ्योरी देते हैं, वो भी मुस्लिम नही था.
यानी अल्लाह शब्द भी सिर्फ़ इस्लामी नही, अरब मे ये शब्द ईश्वर के लिए तमाम धर्मावलंबी प्रयोग करते थे. मुहम्मद शब्द भी इस्लामी नही, मुहम्मद साहब का नाम उनके जन्म के समय रख दिया गया था, लेकिन तब तक उन्होने इस्लाम का सिद्धांत नही दिया था. ये सब बाते मैं इसलिए बता रहा हूँ कि हम अरब और अरबी की हर उपलब्धि को बिना किसी ठोस तर्क के इस्लाम से जोड़ देते हैं.
मध्यपूर्व में शिया-सुन्नी फ़ौजी मुहाज- हों बर्बाद हों बर्बाद Shamshad Elahee “Shams” सऊदी उप युवराज मोहम्मद बिन सलमान ने सऊदी नेतृत्व में ३४ इस्लामी देशों का महाज बनाने की घोषणा कर के सीरियाई संकट को एक और नया आयाम दे दिया है, सीरिया में रूस के सीधे हस्तक्षेप के बाद यह दूसरा महत्वपूर्ण सोपान है. बताया गया है कि इस फ़ौज का इस्तेमाल आइसिस जैसे संगठनों से लड़ने के लिए किया जायेगा जिसका मुख्यालय रियाद में होगा. इस फ़ौज में पाकिस्तान, तुर्की और मिस्र की महति भूमिका होगी. फिलहाल इस सतबेजडी फ़ौज का इस्तेमाल सीरिया-इराक में किया जायेगा, जहाँ फ़्रांस,अमेरिका,ब्रिटेन,रूस जैसी शक्तियां पहले से ही फिजाई हमलों में भारी शिरकत कर रही है, मसला जमीनी लडाई का उसे कौन करेगा? लिहाज़ा अमेरिका के खाड़ी मित्र देशों ने सऊदी नेतृत्व में यह जिम्मेदारी ली है. जाहिर है पश्चिमी देशों के सैनिकों के ताबूत अब उनके देशों में नहीं वरन इन्ही ३४ देशों में रवाना होंगे.सबसे अहम् सवाल इस मुहाज के धार्मिक चरित्र का है जो मूलतः सुन्नी फौजों का मुहाज है जिसमे सीरिया, इराक और इरान को शामिल न करके दुनिया भर को यह संदेश दिया गया है कि सऊदी ने यमन और बहरीन में जो किया वही सीरिया में दोहराया जायेगा. इस मुहाज में लेबनान का नाम भी है लेकिन लेबनान के एक मंत्री ने इसका हिस्सा न बनने का सार्वजानिक बयान देकर अपने मुल्क की आन्तरिक राजनीति के अंतर्विरोधों को जगजाहिर कर दिया है.सऊदी अरब, बशर अलअसद को सत्ता से हटने की पहली शर्त लगाता है जबकि उसकी फौजों ने ही आइसिस के खिलाफ अभी तक सबसे अधिक मोर्चाबंदी भी की और शहादतें भी दी. बशर अलअसद को हटाना ठीक वैसा ही होगा जैसे सद्दाम को इराक से हटा कर पूरे मुल्क को तबाह कर देना या गद्दाफी को हटाकर लीबिया को बर्बाद करना.
शिया-सुन्नी और खासकर सलफी इस्लाम की राजनीतिक मह्त्वकक्षाओं का मूल्यांकन मुस्लिम समाज को करना उतना ही महत्वपूर्ण है जितना इरान के सफविद शिया शासकों का. धार्मिक संकीर्णता ने मध्यपूर्व के समाज को जितना खोखला किया है, उसकी अनुपस्थिति में पश्चिमी साम्राज्यवादी शक्तियों को इस क्षेत्र में घुसपैठ करने की न मोहलत मिलती और न प्रश्रय मिलता . इन देशों के वैचारिक अंतर्द्वंद ही बाहरी शक्तियों को अपना खेल खेलने का माहौल भी देते हैं और अवसर भी.इस बीच एक छोटी लेकिन महत्वपूर्ण खबर टूनिसिया से आयी जहाँ अरब और उत्तरी अफ्रीकी देशों की वाम पार्टिओं का एक महासंघ बना है, लुटेरे शासकों के दलबल अगर ध्रुवीकृत हो रहे हैं तो समाज को बदलने वाली शक्तियों में भी करवट बदलने के संकेत मिल रहे है. धार्मिक उन्माद और धर्म के राजकीय उपयोग के विरुद्ध धर्मनिरपेक्ष ताकतों का गोलबंद होना भी स्वभाविक ही है.
चित्र: गृहयुद्ध में बर्बाद सीरिया का होम्स शहर
Posted by Shamshad Elahee “Shams” a
https://www.youtube.com/watch?v=ZpM79GQdLzU
छोटे मियाँ का ये नया हथियार तो देखा ही होगा. सुभांल्लाह