तुफ़ैल चतुर्वेदी
संयुक्त राज्य अमेरिका में स्टीफन नैप नाम के एक विदेशी लेखक की बहुत रिसर्च की हुई पुस्तक ” भारत के खिलाफ अपराधों और प्राचीन वैदिक परंपरा की रक्षा की आवश्यकता ” प्रकाशित हुई है। ये पुस्तक विदेशों में चर्चित हुई है मगर भारत में उपेक्षित, अवहेलित है। इस पुस्तक का विषय भारत में हिन्दुओं के मंदिरों की सम्पत्ति, चढ़ावे, व्यवस्था की बंदरबांट है। इस पुस्तक में दिए गए आँखें खोल देने वाले तथ्यों पर विचार करने से पहले आइये कुछ काल्पनिक प्रश्नों पर विचार करें।
बड़े उदार मन, बिलकुल सैक्यूलर हो कर परायी बछिया का दान करने की मानसिकता से ही बताइये कि क्या हाजियों से मिलने वाली राशि का सऊदी अरब सरकार ग़ैर-मुस्लिमों के लिये प्रयोग कर सकती है ? प्रयोग करना तो दूर वो क्या वो ऐसा करने की सोच भी सकती है ? केवल एक पल के लिये कल्पना कीजिये कि आज तक वहाबियत के प्रचार-प्रसार में लगे, कठमुल्लावाद को पोषण दे रहे, परिणामतः इस्लामी आतंकवाद की जड़ों को खाद-पानी देते आ रहे सऊदी अरब के राजतन्त्र का ह्रदय परिवर्तन हो जाता है और वो विश्व-बंधुत्व में विश्वास करने लगता है। सऊदी अरब की विश्व भर में वहाबियत के प्रचार-प्रसार के लिये खरबों डॉलर फेंकने वाली मवाली सरकार हज के बाद लौटते हुए भारतीय हाजियों के साथ भारत के मंदिरों के लिये 100 करोड़ रुपया भिजवाती है। कृपया हँसियेगा नहीं ये बहुत गंभीर प्रश्न है।
क्या वैटिकन आने वाले श्रद्धालुओं से प्राप्त राशि ग़ैर-ईसाई व्यवस्था में खर्च की जा सकती है ? कल्पना कीजिये कि पोप भारत आते हैं। दिल्ली के हवाई अड्डे पर विमान से उतरते ही भारत भूमि को दंडवत कर चूमते हैं। उठने के साथ घोषणा करते हैं कि वो भारत में हिन्दु धर्म के विकास के लिये 100 करोड़ रुपया विभिन्न प्रदेशों के देव-स्थानों को दे रहे हैं। तय है आप इन चुटकुलों पर हँसने लगेंगे और आपका उत्तर निश्चित रूप से नहीं होगा। प्रत्येक धर्म के स्थलों पर आने वाले धन का उपयोग उस धर्म के हित के लिए किया जाता है। तो इसी तरह स्वाभाविक ही होना चाहिए कि मंदिरों में आने वाले श्रद्धालुओं के चढ़ावे को मंदिरों की व्यवस्था, मरम्मत, मंदिरों के आसपास के बुनियादी ढांचे और सुविधाओं के प्रशासन, अन्य कम ज्ञात मंदिरों के रख-रखाव, पुजारियों, उनके परिवार की देखरेख, श्रद्धालुओं की सुविधा के लिये उपयोग किया जाये। अब यहाँ एक बड़ा प्रश्न फन काढ़े खड़ा है। क्या मंदिरों का धन मंदिर की व्यवस्था, उससे जुड़े लोगों के भरण-पोषण, आने वाले श्रद्धालुओं की व्यवस्था से इतर कामों के लिये प्रयोग किया जा सकता है ?
अब आइये इस पुस्तक में दिए कुछ तथ्यों पर दृष्टिपात करें। आंध्र प्रदेश सरकार ने मंदिर अधिकारिता अधिनियम के तहत 43,000 मंदिरों को अपने नियंत्रण में ले लिया है और इन मंदिरों में आये चढ़ावे और राजस्व का केवल 18 के प्रतिशत मंदिर के प्रयोजनों के लिए वापस लौटाया जाता है। तिरुमाला तिरुपति मंदिर से 3,100 करोड़ रुपये हर साल राज्य सरकार लेती है और उसका केवल 15 प्रतिशत मंदिर से जुड़े कार्यों में प्रयोग होता है। 85 प्रतिशत राज्य के कोष में डाल दिया जाता है और उसका प्रयोग सरकार स्वेच्छा से करती है। क्या ये भगवान के धन का ग़बन नहीं है ? इस धन को आप और मैं मंदिरों में चढ़ाते हैं और इसका उपयोग प्रदेश सरकार हिंदु धर्म से जुड़े कार्यों की जगह मनमाना होता है। उड़ीसा में राज्य सरकार जगन्नाथ मंदिर की बंदोबस्ती की भूमि के ऊपर की 70,000 एकड़ जमीन को बेचने का इरादा रखती है।
केरल की कम्युनिस्ट और कांग्रेसी सरकारें गुरुवायुर मंदिर से प्राप्त धन अन्य संबंधित 45 हिंदू मंदिरों के आवश्यक सुधारों को नकार कर सरकारी परियोजनाओं के लिए भेज देती हैं। अयप्पा मंदिर से संबंधित भूमि घोटाला पकड़ा गया है। सबरीमाला के पास मंदिर की हजारों एकड़ भूमि पर कब्ज़ा कर चर्च चल रहे हैं। केरल की राज्य सरकार त्रावणकोर, कोचीन के स्वायत्त देवस्थानम बोर्ड को भंग कर 1,800 हिंदू मंदिरों को अधिकार पर लेने के लिए एक अध्यादेश पारित करने के लिए करना चाहती है।
कर्णाटक की भी ऐसी स्थिति है। यहाँ देवस्थान विभाग ने 79 करोड़ रुपए एकत्र किए गए थे और उसने उस 79 करोड़ रुपये में से दो लाख मंदिरों को उनके रख-रखाव के लिए सात करोड़ रुपये आबंटित किये। मदरसों और हज सब्सिडी के लिये 59 करोड़ दिए और लगभग 13 करोड़ रुपये चर्चों गया। कर्नाटक में दो लाख मंदिरों में से 25 प्रतिशत या लगभग 50000 मंदिरों को संसाधनों की कमी के कारण बंद कर दिया जायेगा। क्या आपको ऐसा नहीं लगता कि महमूद गज़नी तो 1030 ईसवी में मर गया मगर उसकी आत्मा अभी भी हज़ारों टुकड़ों में बाँट कर भारत के मंदिरों की लूट में लगी हुई है ?
यहाँ यह प्रश्न उठाना समीचीन है कि आख़िर मंदिर किसने बनाये हैं ? हिंदु समाज के अतिरिक्त क्या इनमें मुस्लिम, ईसाई समाज का कोई योगदान है ? बरेली के चुन्ना मियां के मंदिर को छोड़ कर सम्पूर्ण भारत में किसी को केवल दस और मंदिर ध्यान हैं जिनमें ग़ैरहिंदु समाज का योगदान हो ? मुस्लिम और ईसाई समाज कोई हिन्दू समाज की तरह थोड़े ही है जिसने 1857 के बाद अंग्रेज़ी फ़ौजों के घोड़े बांधने के अस्तबल में बदली जा चुकी दिल्ली की जामा-मस्जिद अंग्रेज़ों से ख़रीद कर मुसलमानों को सौंप दी हो।
यहाँ ये बात ध्यान में लानी उपयुक्त होगी कि दक्षिण के बड़े मंदिरों के कोष सामान्यतः संबंधित राज्यों के राजकोष हैं। एक उदाहरण से बात अधिक स्पष्ट होगी। कुछ साल पहले पद्मनाभ मंदिर बहुत चर्चा में आया था। मंदिर में लाखों करोड़ का सोना, कीमती हीरे-जवाहरात की चर्चा थी। टी वी पर बाक़ायदा बहसें हुई थीं कि मंदिर का धन समाज के काम में लिया जाना चाहिये। यहाँ इस बात को सिरे से गोल कर दिया गया कि वो धन केवल हिन्दू समाज का है, भारत के निवासी हिन्दुओं के अतिरिक्त अन्य धर्मावलम्बियों का नहीं है। उसका कोई सम्बन्ध मुसलमान, ईसाई, पारसी, यहूदी समाज से नहीं है। वैसे वह मंदिर प्राचीन त्रावणकोर राज्य, जो वर्तमान में केरल राज्य है, के अधिपति का है। मंदिर में विराजे हुए भगवान विष्णु महाराजाधिराज हैं और व्यवस्था करने वाले त्रावणकोर के महाराजा उनके दीवान हैं। नैतिक और क़ानूनी दोनों तरह से पद्मनाभ मंदिर का कोष वस्तुतः भगवान विष्णु, उनके दीवान प्राचीन त्रावणकोर राजपरिवार का, अर्थात तत्कालीन राज्य का निजी कोष हैं। उस धन पर क्रमशः महाराजाधिराज भगवान विष्णु, त्रावणकोर राजपरिवार और उनकी स्वीकृति से हिन्दू समाज का ही अधिकार है। केवल हिन्दु समाज के उस धन पर अब वामपंथी, कांग्रेसी गिद्ध जीभ लपलपा रहे हैं।
यहाँ एक ही जगह की यात्रा के दो अनुभवों के बारे में बात करना चाहूंगा। वर्षों पहले वैष्णव देवी के दर्शन करने जाना हुआ। कटरा से मंदिर तक भयानक गंदगी का बोलबाला था। घोड़ों की लीद, मनुष्य के मल-मूत्र से सारा रास्ता गंधा रहा था। लोग नाक पर कपड़ा रख कर चल रहे थे। हवा चलती थी तो कपड़ा दोहरा-तिहरा कर लेते थे। काफ़ी समय बाद 1991 में फिर वैष्णव देवी के दर्शन करने जाना हुआ। तब तक जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल पद को जगमोहन जी सुशोभित कर चुके थे। आश्चर्यजनक रूप से कटरा से मंदिर तक की यात्रा स्वच्छ और सुविधाजनक हो चुकी थी। कुछ वर्षों में ये बदलाव क्यों और कैसे आया ? पूछताछ करने पर पता चला कि वैष्णव देवी मंदिर को महामहिम राज्यपाल ने अधिग्रहीत कर लिया है और इसकी व्यवस्था के लिये अब बोर्ड बना दिया गया है। अब मंदिर में आने वाले चढ़ावे को बोर्ड लेता है। उसी चढ़ावे से पुजारियों को वेतन मिलता है और उसी धन से मंदिर और श्रद्धालुओं से सम्बंधित व्यवस्थायें की जाती हैं।
ये स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ गया कि मंदिर जो समाज के आस्था केंद्र हैं, वो पुजारी की निजी वृत्ति का ही केंद्र बन गए हैं और समाज के एकत्रीकरण, हित-चिंतन के केंद्र नहीं रहे हैं। अब समाज की निजी आस्था अर्थात हित-अहित की कामना और ईश्वर प्रतिमा पर आये चढ़ावे का व्यक्तिगत प्रयोग का केंद्र ही मंदिर बचा है। मंदिर के लोग न तो समाज के लिये चिंतित हैं न मंदिर आने वालों की सुविधा-असुविधा उनके ध्यान में आती है। क्या ये उचित और आवश्यक नहीं है कि मंदिर के पुजारी गण, मंदिर की व्यवस्था के लोग अपने साथ-साथ समाज के हित की चिंता भी करें ? यदि वो ऐसा नहीं करेंगे तो मंदिरों को अधर्मियों के हाथ में जाते देख कर हिंदु समाज भी मौन नहीं रहेगा ? मंदिरों के चढ़ावे का उपयोग मंदिर की व्यवस्था, उससे जुड़े लोगों के भरण-पोषण, आने वाले श्रद्धालुओं की व्यवस्था के लिये होना स्वाभाविक है। ये त्वदीयम वस्तु गोविन्दः जैसा ही व्यवहार है। साथ ही हमारे मंदिर, हमारी व्यवस्था, हमारे द्वारा दिए गये चढ़ावे का उपयोग अहिन्दुओं के लिये न हो ये आवश्यक रूप से करवाये जाने वाले विषय हैं। संबंधित सरकारें इसका ध्यान करें, इसके लिये हिंदु समाज का चतुर्दिक दबाव आवश्यक है अन्यथा लुटेरे भेड़िये हमारी शक्ति से ही हमारे संस्थानों को नष्ट कर देंगे।
एक बात तो हम सब जानते हे की हमारे उपमहादीप में जो जो जितना बड़ा भ्र्ष्टाचारी हराम और लूट या शोषण का माल रखने वाला होता हे वो उतना ही बड़ा मज़हबी धार्मिक धर्मपरायण भी जरूर ही होता हे तो सवाल ये हे की भारत तो एक गरीब देश हे फिर इन मंदिरो में हज़ारो करोड़ रुपया कहा से आता हे ? ज़ाहिर हे एक बड़ा भाग शोषण से आता हे और शोषन यहाँ हिन्दुओ का ही नहीं सभी लोगो का का होता हे फिर मंदिरो का पैसा सब पर क्यों न लगे ? हां दूसरे धर्मो के धर्मस्थलो पर भी हो तो वो भी लो हमें तो कोई एतराज़ नहीं हे हमारे तो मुह में एक सिंगल पैसा भी बिना मेहनत का या किसी के शोषण का या लूट का नहीं गया हे एक भी नहीं
Mandir ka kyu lete hai only., masjido, Church ka bhi lo wo konse alg h, masjido ka pesa aantkwad or anti-national activities m use hota h agr bnd krde to ye terror ki dukan band ho jayegi
संघ की शिक्षाय कैसे हिन्दू तालिबान बना रही हे इसका बेहतरीन उदहारण ये साहब हे पिछले दिनों इन्होने पाञ्चजन्य में बड़ी बेशर्मी और बेगैरती के साथ इखलाक की हत्या का समर्थन किया और उस पर गौ हत्या वगेरह का आरोप लगाया फंडा साफ़ हे की कैसे भी करके लोगो को भड़काऊ कैसे भी करो अब जबकि रिपोर्ट आ चुकी हे की वो गौ मांस था ही नहीं फिर भी ये बेशर्मी से बाज़ नहीं आये ( क्यों ? वजह इनके आदर्श मोदी जब मोदी साम्प्रदायिकता की सवारी करके पि एम बन गए तो ये भी क्यों पीछे रहे इन्हे भी मलाई चाहिए ही होगी ) चलिए रिपोर्ट भी छोड़े खुद ही सामान्य बुद्धि से सोचे की एक सीधा साधा परिवार जो एक हिन्दू बहुल गाव में रह रहा हे जिसका कोई अपराधिक या दबंगई या काटरपन्ति रिकॉर्ड नहीं हे जिसके घर में औरते और लड़की हो वो भला क्यों गौ मांस या गौ हत्या करके ज़बदस्ती की पंगेबाजी की सोचेगा अपना हित अपनी सुरक्षा तो हर सामन्य परिवार खूब जानता ही हे सवाल ही नहीं हे की इखलाक या उसका परिवार ऐसी मूर्खता करते फिर भी ये बाज़ नहीं आये क्योकि इन्हे भी मोदी जी की तरह फायदा उठाना हे
आप विषय से एकदम भटक रहे हे हयात भाई। बात मंदिरो मे श्रद्धालुओ द्वारा चढ़ावे से इकट्ठा हुए धन और उसके गैर-हिन्दू कार्यो मे खर्चा करने की हो रही हे पर आप पता नहीं इसमे क्यो संघ और तालिबान को जोड़ रहे हे?
इखलाक केस का मंदिरो मे चढ़ावे से इकट्ठा हुए धन का कनेक्षण किसी भी एंगल से हमारे छोटे से दिमाग मे नहीं घुस पा रहा हे।
हयात भाई थोड़ा खुल कर समझाइए कि मंदिरो मे गैर हिन्दुओ का शोषण कैसे होता हे क्योकि हमने कभी न तो मुस्लिमो ईसाइयो आदि गैर-हिन्दुओ को न तो कभी मंदिर जाते देखा सुना और न ही चढ़ावा चढ़ाते हुए ?
शरद भाई में फिर अपील करता हु आप फ़ौरन मोदी खेमे से बाहर आइये भले ही कोई और खेमा न जॉइन करे आपकी बौद्धिकता को जंग पकड़ रहा हे ? ये कैसी बाते कर रहे हे आप ? मेने कब कहा की मंदिरो में गैर हिन्दुओ का शोषण होता हे ? में तो कह रहा हु की अगर मंदिरो में बेशुमार दौलत के ढेर जमे हुए हे तो उस पेसो का बड़ा हिस्सा शोषण का भी होगा ही? और शोषण यहाँ सभी का होता हे अम्बानी बंधू भी काफी रिलिजियस हे और मेरा भी बिज़ली के बढे दाम देकर दम फूल रहा हे यकीं नहीं होता दस साल पहले जितना महीने का खर्चा था आज उतना सिर्फ बिज़ली बिल दे रहे हेऔर यह तो बहुत मामूली आयाम हे शोषण का बहुत मामूली और इखलाक का मुद्दा इसलिए उठाया की इन्ही ” भोकाल चतुर्वेदी ” जी ने इखलाक मुद्दे पर बेहद भड़काऊ लेख पाञ्चजन्य में लिखा जो इतना भड़काऊ था की संघ और संपादक को भी सफाई देनी पड़ी
हयात भाई अपील तो हम आपसे करना चाहते हे कि किसी के भी विरोध मे इतने जज्बाती मत होइए कि बिना विषय को पढे ही बिना वजह उस विषय पर उस शख्श के नाम का कमेंट पोस्ट कर दे जिससे आप सहमत नहीं हे।
रही बात आपने क्या कहा था तो अपनी तरफ से बिना मेहनत किए हम सिर्फ आपके कमेंट का वह भाग कॉपी-पेस्ट करके नीचे दे रहे हे तसल्ली से पढ़ कर खुद भी समझ लीजिये और बाद मे हमे भी समझा दीजिये क्योकि आपकी कलाम से ऐसा कनफुजन होना हमे ठीक नहीं लगा इसलिए बोल दिया।
लेखक ने किसी दूसरे मुद्दे पर क्या लिखा था उसका हिसाब-किताब उसी लेख पर निपटा देना जायदा बेहतर विकल्प होता
हयात भाई अपील तो हम आपसे करना चाहते हे कि किसी के भी विरोध मे इतने जज्बाती मत होइए कि बिना विषय को पढे ही बिना वजह उस विषय पर उस शख्श के नाम का कमेंट पोस्ट कर दे जिससे आप सहमत नहीं हे।
रही बात आपने क्या कहा था तो अपनी तरफ से बिना मेहनत किए हम सिर्फ आपके कमेंट का वह भाग कॉपी-पेस्ट करके नीचे दे रहे हे तसल्ली से पढ़ कर खुद भी समझ लीजिये और बाद मे हमे भी समझा दीजिये क्योकि आपकी कलाम से ऐसा कनफुजन होना हमे ठीक नहीं लगा इसलिए बोल दिया।
लेखक ने किसी दूसरे मुद्दे पर क्या लिखा था उसका हिसाब-किताब उसी लेख पर निपटा देना जायदा बेहतर विकल्प होता
और हा, ये बार-2 बिना वजह मोदी खेमा कि जिद मत कीजिये क्योकि अभी तक तो ऐसा कोई खेमा बना नहीं हे जिसके चरणों मे हमने अपनी सोच गिरवी रखी हो
लीजिये पेश हे आपके कमेंट का वह हिस्सा….
भारत तो एक गरीब देश हे फिर इन मंदिरो में हज़ारो करोड़ रुपया कहा से आता हे ? ज़ाहिर हे एक बड़ा भाग शोषण से आता हे और शोषन यहाँ हिन्दुओ का ही नहीं सभी लोगो का का होता हे फिर मंदिरो का पैसा सब पर क्यों न लगे ?
” हयात भाई थोड़ा खुल कर समझाइए कि मंदिरो मे गैर हिन्दुओ का शोषण कैसे होता हे क्योकि हमने कभी न तो मुस्लिमो ईसाइयो आदि गैर-हिन्दुओ को न तो कभी मंदिर जाते देखा सुना और न ही चढ़ावा चढ़ाते हुए ? ” तो इसका क्या मतलब हुआ की ये जो हज़ारो करोड़ मंदिरो में इक्कठा हो रहे हे इनमे बड़ा हिस्सा जनता के शोषण का पैसा भी हो सकता हे और शोषित जनता जिसका ये पैसा हे इस जनता में हिन्दू ही नहीं गैर हिन्दू भी शामिल हे इसमें क्या गलत हो गया ? कहने का ये मतलब हे की गैर हिन्दू चाहे मंदिर ना जाए पर उसके भी शोषण का पैसा इन मंदिरो में इकठा हो रहा होगा ?
”लेखक ने किसी दूसरे मुद्दे पर क्या लिखा था उसका हिसाब-किताब उसी लेख पर निपटा देना जायदा बेहतर विकल्प होता” वो लेख यहाँ नहीं हे होता तो जरूर लिखते
जब वो लेख यहाँ नहीं आपके द्वारा उसकी आड़ में इस लेख का डिस्कसन बर्बाद कर उस लेख की तरफ मोड़ने की वजह ??
लीला खाला जो रोज़ गिनकर दो हज़ार बकवास कमेंट करती हे उनकी तो आप तारीफ करते हे ? हमने लेखक के लेख के विषय से तो नहीं पर लेखक की हैवानियत से जुड़ा एक कॉमेंट कर दिया तो क्या हो गया ?
Ryt now all the major temples of the country are run by trust nd hope doing better.I feel all the major religious temples ,church,mosques must come under trust or govt .
य़े केसे मुमकिन होगा.. ंंमन्दिरो मे दान बन्द करकर्
हयात भाई आपने अपनी गलती मानी अच्छी बात हे पर बिना वजह लीला खला का नाम लेकर ये साबित कर दिया कि आप दिल से इसे पचा नहीं प् रहे हो। हमारा इरादा कभी किसी को निचा दिखाने का नहीं रहता
तारीफ़ तो हमने चिश्ती साहब की भी की हे आप उन्ही से मालुम कर लीजिये !! हमारा दुश्मन भी अगर अच्छा करेगा तो हमसे तारीफ़ ही पायेगा क्योकि हम इंसान की शक्ल देख कर अपने विचार नहीं लिखते। ….
अगर दाल की जमाखोरी और उसकी महँगी कीमत पर ब्लॉग होता और हमारी अ-सहमति उस पर न होती तो आप हमें कटघरे मेखड़ा कर सकते थे पर आप इमोशनल होकर मुद्दे ही ऐसे पकड़ते हो जहा आप बेहद कमजोर हो
क़िसि भेी राज्य मेन सम्प्पत्ति और कुच्ह नहि सम्प्रभु सत्ता का अश्वासन मत्र होता है, अतह प्र्त्येक सम्पत्ति धारेी राज्य के अधेीन होता है. चुन्कि हिन्दू देवता सम्पत्ति के स्वमि है अतह वे भेी कानुन मनने को बध्य है.
निहायत ही घटिया और गिरी ही सोच. आश्चर्य नही होना चाहिए कि मंदिरो मे लखो रुपये के सोने के मुकुट चढ़ाने वाले मंदिर के बाहर और आस पास भी भूखे नंगे लोग रहते हैं. ये लोग चाहते है कि ये पाखंडी लोग पूरा का पूरा पैसा ले, अपनी अययाशियाँ करे.
मैं अपने विचारो को शब्द नही दे पा रहा हूँ. लेकिन उनसे पूछना चाहता हूँ कि अगर इन्हे वहाबीज्म और वेटिकन सिटी से इतना ही लगाव है, तो फिर वो ईसाई मिशनरीज़ को इतना गलियाते क्यूँ हैं? आज तो इनकी इतनी तारीफ़ कर रहे हैं कि उनका धन प्रबंधन है, अच्छा काम कर रहे हैं.
लेख को स्पष्ट शब्दो मे बताया जाए तो मंदिरो मे खून पसीने की हो या सिकंदर भाई के मुताबिक अन्याय और शोषण से उपजी, लेकिन चढ़ावा, हिंदुओं द्वारा ही दिया जाता है, और धार्मिक भावना से ही दिया जाता है.
अगर सड़क, पानी, बिजली, अस्पताल बनाने के लिए ही पैसे देने होते तो ये धार्मिक हिंदू, खुद सरकार को नही दे देते. इसलिए पैसे देने वाले धार्मिक लोगो की भावना को ध्यान मे रखते हुए, सरकार को ये पैसा शिक्षा, स्वास्थ्य, बुनियादी ढाँचे के निर्माण या अन्य किसी अधार्मिक कार्य मे नही खर्च करने चाहिए.
इन कार्यो को अधार्मिक नही भी माने तो भी इन कार्यो का लाभ, सिर्फ़ हिंदू तो नही लेते. अस्पताल, स्कूलो मे सिर्फ़ हिंदुओं को ही प्रवेश मिलता हो, ऐसा तो है नही. यहाँ पे मुस्लिम, ईसाई, पारसी, नास्तिक सभी जाते हैं. इसलिए ये हिंदुओं का शोषण है.
हम आधे, कच्चे मुसलमान, बेईमान आदि के बाल बच्चो को हिंदू मंदिर पाल पोस रहे हैं, और हम अहसान फरमोश अहसान ही नही मान रहे.
इसी तर्क को आगे बढ़ाए तो अंबानी, अदानि, बिड़ला आदि सबसे अधिक टैक्स देने वाले लोग है, और सरकार उस टैक्स के पैसे से देश मे विकास कार्य करती है, लेख लिखने वाले लेखक का गुज़ारा भी अंबानी के पैसे से ही चलता है. ट्रेन, सड़क, बिजली, सब्सिडी सब ये अंबानी और अडानी जैसो के पैसो से ही हुआ है.
अब सरकार इस सरकारी खजाने को हिंदू, मुस्लिम, आमिर, ग़रीब, उत्तर-भारतीय, दक्षिण भारतीय, काले-गोरे, तेलगु, बंगाली जैसे भागो मे वर्गीकृत कर ले, और उसी के अनुपात मे इसे खर्च करे. इनकम टैक्स नही देने वाले ग़रीब को कोई सड़क और पानी नही दिया जाए. स्कूल की फीस मे कोई सब्सिडी नही हो, मूफ़्तखोरी और हराम खोरी बंद हो.
दूसरे तर्क से, ऐसा अद्भुत विचार इनके दिमाग़ से ही नही निकला, ये तो वहाबीज्म के किले सऊदी अरब और ईसाई मिशनरीज़ भी ऐसा ही करते हैं. वैसे ये सऊदी अरब वो ही है, जो अपनी जहालत के लिए दुनिया मे बदनाम है.
जिसके यहाँ काले सोने (कच्चे तेल) की वजह से अकूत पेट्रो-डॉलर है, लेकिन एक भी विश्व स्तर की यूनिवर्सिटी नही. जिसकी बर्बादी के लिए ये समीकरण है क़ि सऊदी अरब-कच्चा तेल = तालिबान
जिस सऊदी अरब से ये प्रेरणा ले रहे हैं, उसके मानसिक दिवालियापन का आलम यह है कि आतंकवाद से पीड़ित मुस्लिमो को जहाँ अनेक ईसाई बहुल पश्चिमी देश, शरण दे रहे हैं, वहाँ ये उनको अपने देश मे इस्लाम के ठेकेदार बन के भी शरण नही दे पा रहे. और इस तंगदिली के आरोप के बाद भी, जर्मनी मे 100 मुसलमानो पे एक मस्जिद बनवाने का अहसान लाद रहे हैं. यानी इनको सोते जागते हर समस्या का एक ही हल सुनाई और दिखाई देता है, मस्जिद और वहाबीज्म. अब ये वहाँ मस्जीदे बनवा कर, वहाँ से वाहबीज्म का संदेश पहुँचा कर उन ग़रीब मुस्लिमो की जिंदगी, जर्मनी मे भी बर्बाद करेंगे.
ऐसी सोच वाले लोगो के हाथ मे जब राजनैतिक कमान आती है तो सिर्फ़ नफ़रत फैलती है. लेखक भी उसी सोच की वकालत कर रहा है. और उसका साथ देने वाले, अपनी बर्बादी की दास्तान अपने हाथो लिख रहे हैं. हम मुसलमानो को छोड़ो, हमे बर्बाद करने के लिए तो वहाबी और तब्लीगी जैसे लोग पहले से ही लगे हुए हैं. ये संकीर्ण सोच हिंदुओं को भी फलने-फूलने नही देगी.
पांच्यजन्य के विरुद्ध कार्यवाही क्यों नहीं?
===================
लेखक : डॉ. पुरुषोत्तम मीणा ‘निरंकुश’
पांच्यजन्य जिसे अभी तक आरएसएस (संघ) का मुखपत्र कहा जाता था, लेकिन अब संघ इससे साफ़ मुकर रहा है, इसमें विनय कृष्ण चतुर्वेदी उर्फ तुफैल चतुर्वेदी नामक लेखक लिखते हैं कि—
“वेद का आदेश है कि गोहत्या करने वाले के प्राण ले लो। हममें से बहुत लोगों के लिए तो यह जीवन-मरण का प्रश्न है।”
“वेद का आदेश है कि गोहत्या करने वाले पातकी के प्राण ले लो। हम में से बहुतों के लिए यह जीवन मरण का प्रश्न है।”
इसका सीधा सा मतलब यही है कि वर्तमान भारत में पांच्यजन्य द्वारा वैदिक विधि के मनमाने प्रावधानों को लागू किये जाने का समर्थन किया जा रहा है। वेद किसने, कब और क्यों लिखे, यह जुदा विषय है, लेकिन भारत का संविधान लागू होने के बाद वैदिक कानूनों को लागू करने और वैदिक विधियों के प्रावधानों का उल्लंघन होने पर वेदों के अनुसार सजा देने की बात का खुल्लमखुल्ला समर्थन इस आलेख में किया गया है।
अखलाक के बारे में मंदिर के पुजारी द्वारा अफवाह फैलाई गयी कि अखलाक द्वारा गाय को काटा गया है। यह खबर भी बाद में असत्य पाई गयी। लेकिन इस अफवाह के चलते वैदिक सैनिकों ने अखलाक को पीट—पीट कर मौत की नींद सुला दिया गया। जिसके बारे में हक रक्षक दल की और से निंदा की गयी और दोषियों के विरुद्ध कठोर कार्यवाही की मांग भी की गयी थी।
इस अमानवीय घटना के लिये शर्मिंदा होने के बजाय पांच्यजन्य इसका खुलकर समर्थन कर रहा है। एक प्रकार से पांच्यजन्य में प्रकाशित लेख में वैदिक विधि को वर्तमान संविधान से भी ऊपर बतलाकर उसका पालन करने की बात कही गयी है।क्या वेद के उपरोक्त असंवैधानिक और अमानवीय आदेश का समर्थन करके वैदिक व्यवस्था की लागू करने वाला लेख लिखने वाले लेखक चतुर्वेदी और पांच्यजन्य के सम्पादक तथा प्रकाशक के खिलाफ किसी प्रकार की कानूनी कार्यवाही नहीं होनी चाहिये???
यदि हां तो पांच्यजन्य के विरुद्ध कानूनी कार्यवाही में देश की कार्यपालिका और न्यायपालिका कतरा क्यों रही है? यहां तक की मीडिया भी चुप्पी धारण किये बैठा है!
विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र में जन्मजातीय आधार पर बने दबंगों के विरुद्ध किसी प्रकार की त्वरित कानूनी कार्यवाही नहीं होना ही दलित, आदिवासी और अल्पसंख्यकों के लगातार उत्पीड़न का मूल कारण है। जिसके लिए राजनीति के साथ-साथ, सीधे-सीधे देश की कार्यपालिका और न्यायपालिका भी जिम्मेदार है।लेखक : डॉ. पुरुषोत्तम मीणा ‘निरंकुश’
872871 667204We stumbled more than here coming from a different internet page and thought I may possibly check items out. I like what I see so now im following you. Appear forward to exploring your internet page however once again. 471463
Public Mobile Save 10$ referral code After using referral code PQNO6P you will receive 10$
so basically a free sim card. Being 100% clear and honest
we both receive credit when you use my code.
So I want to say thank you for using my code.
(other people who claim to have a 25$ code is fake, you
can find on their website referral codes only
offer 10$) I’d rather be honest, hope being honest is
enough for you to use my code. Thank you To order a sim card use link: https://store.publicmobile.ca/cart When activating Public Mobile you
can use Referral link: https://activate.publicmobile.ca/?raf=PQNO6PReferral code:
PQNO6P Also save 2$ every month from your bill using autopay.
Save an additional 1$ every month after 1 year of
being a Public Mobile customer, save 2$ after 2 years and so
on.
Feel free to surf to my web-site; Public mobile referral
Also Read भारतीय मंदिरों के बारे में कुछ सोच-विचार करने वाले तथ्य क्या हैं? here https://hi.letsdiskuss.com/What-are-some-thought-provoking-facts-about-Indian-temples