मुनव्वर राणा का दर्द और संघ परिवार की मुश्किल
आप सम्मान वापस लौटाने के अपने एलान को वापस तो लीजिये। एक संवाद तो बनाइये। सरकार की तरफ से मैं आपसे कह रहा हूं कि आप सम्मान लौटाने को वापस लीजिये देश में एक अच्छे माहौल की दिशा में यह बड़ा कदम होगा। आप पहले सम्मान लौटाने को वापस तो लीजिये। यहीं न्यूज चैनल की बहस के बीच में आप कह दीजिये। देश में बहुत सारे लोग देख रहे हैं। आप कहिए इससे देश में अच्छा माहौल बनेगा।
19 अक्टूबर को आजतक पर हो रही बहस के बीच में जब संघ विचारक राकेश सिन्हा ने उर्दू के मशहू शायर मुनव्वर राणा से अकादमी सम्मान वापस लौटाने के एलान को वापस लेने की गुहार बार बार लगायी तब हो सकता है जो भी देख रहा हो उसके जहन में मेरी तरह ही यह सवाल जरुर उठा होगा कि चौबिस घंटे पहले ही तो मुनव्वर राणा ने एक दूसरे न्यूज चैनल एबीपी पर बीच बहस में अकादमी सम्मान लौटाने का एलान किया था तो यही संघ विचारक बकायदा पिल पड़े थे। ना जाने कैसे कैसे आरोप किस किस तरह जड़ दिये । लेकिन महज चौबिस घंटे बाद ही संघ विचारक के मिजाज बदल गये तो क्यों बदल गये। क्योंकि आकादमी सम्मान लौटाने वालो को लेकर संघ परिवार ने इससे पहले हर किसी पर सीधे वार किये । कभी कहा लोकप्रिय होने के लिये । तो कभी कहा न्यूज चैनलों में छाये रहने के लिये । तो कभी कहा यह सभी नेहरु की सोच से पैदा हुये साहित्यकार हैं, जिन्हें कांग्रेसियों और वामपंथियों ने पाला पोसा। अब देश में सत्ता पलट गई तो यही साहित्यकार बर्दाश्त कर नहीं पा रहे हैं। सिर्फ हिंसा नहीं हुई बाकि वाक युद्द तो हर किसी ने न्यूज चैनलों में देखा ही। सुना ही । और यही हाल 18 अक्टूबर को उर्दू के मशहूर शायर मुनव्वर राणा के साथ भी हुआ । लेकिन अंदरुनी सच यह है कि जैसे ही मुनव्वर राणा ने अकादमी पुरस्कार लौटाने का एलान किया, सरकार की घिग्गी बंध गई। संघ परिवार के गले में मुनव्वर का सम्मान लौटाना हड्डी फंसने सरीका हो गया ।क्योकि अकादमी सम्मान लौटाने वालो की फेरहिस्त में मुनव्वर राणा पहला नाम थे जिन्हे साहित्य अकादमी सम्मान देश में सत्ता परिवर्तन के बाद मिला । सीधे कहे तो मोदी सरकार के वक्त मिला । 19 दिसबंर 2014 को जिन 59 साहित्यकार, लेखक, कवियों को अकादमी सम्मान दिया गये उनमें मुनव्वर राणाअकेले शख्स निकले जिन्होंने उसी सरकार को सम्मान लौटा दिया जिस सरकार ने दस महीने पहले सम्मान दिया था । यानी नेहरु की सोच या कांग्रेस-वाम के पाले पोसे आरोपों में भी मुनव्वर राणा फिट नहीं बैठते।
तो यह मुश्किल मोदी सरकार के सामने तो आ ही गई। लेकिन सवाल सिर्फ मोदी सरकार के दिये सम्मान को मोदी सरकार को ही लौटाने भर का नहीं है। क्योंकि संघ विचारक के बार बार सम्मान लौटाने को वापस लेने की गुहार के बाद भी अपनी शायरी से ही जब शायर मुन्नर राणा यह कहकर स्टूडियो में जबाब देने लगे कि, हम तो शायर है सियासत नहीं आती हमको/ हम से मुंह देखकर लहजा नहीं बदला जाता। तो मेरी रुचि भी जागी कि आखिर मुनव्वर राणा को लेकर संघ परेशान क्यों है तो मुनव्वर राणा के स्टूडियो से निकलते ही जब उनसे बातचीत शुरु हुई और संघ की मान-मनौवल पर पूछा तो उन्होने तुरंत शायरी दाग दी, जब रुलाया है तो
हंसने पर ना मजबूर करो/ रोज बिमार का नुस्खा नहीं बदला जाता । यह तो ठीक है मुनव्वर साहेब लेकिन कल तक जो आपको लेकर चिल्लम पो कर रहे ते आज गुहार क्यों लगा रहे हैं। अरे हुजूर यह दौर प्रवक्ताओं का है । और जिन्हें देश का ही इतिहास भूगोल नहीं पता वह मेरा इतिहास कहां से जानेंगे। कोई इन्हें बताये तो फिर बोल बदल जायेंगे। यह जानते नहीं कि शायर किसी के कंधे के सहारे नहीं चलता। और मै तो हर दिल अजीज रहा है क्योंकि मैं खिलंदर हूं । मेरा जीवन बिना नक्शे के मकान की तरह है। पिताजी जब थे तो पैसे होने पर
कभी पायजामा बनाकर काम पर लौट जाते तो कभी कुर्ता बनवाते। और इसी तर्ज पर मेरे पास कुछ पैसे जब होते को घर की एक दीवार बनवा लेते। कुछ पैसे और आते तो दीवार में खिड़की निकलवा लेता । अब यह मेरे उपर सोनिया गांधी के उपर लिखी कविता का जिक्र कर मुझे कठघरे में खडा कर रहे हैं। तो यह नहीं जानते कि मेरा तो काफी वक्त केशव कुंज [ दिल्ली में संघ हेडक्वार्टर] में भी गुजरा। मैंने तो नमाज तक केशव कुंज में अदा की है। तरुण विजय मेरे अच्छे मित्र हैं। क्योंकि एक वक्त उनसे कुम्भ के दौरान उनकी मां के साथ मुलाकात हो गई। तो तभी से। एक वक्त तो आडवाणी जी से भी मुलाकात हुई। आडवाणी जी के कहने पर मैंने सिन्धु नदीं पर भी कविता लिखी। सिन्धु नदी को मैंने मां कहकर संबोधित किया। यह नौसिखेयो का दौर है इसलिये इन्हें हर
शायरी के मायने समझाने पड़ते हैं। और यह हर शायरी को किसी व्यक्ति या वक्त से जोड़कर अपनी सियासत को हवा देते रहते है। मैंने तो सोनिया पर लिखा, मैं तो भारत में मोहब्बत के लिये आई थी /कौन कहता है हुकूमत के लिये आई थी / नफरतों ने मेरे चेहरे का उजाला छीना/ जो मेरे पास था वो चाहने वाला छीना
। शायर तो हर किसी पर लिखता है । जिस दिन दिल कहेगा उन दिन मोदी जी पर भी शायरी चलेगी। अब नयी पीढ़ी के प्रवक्ता क्या जाने कि संघ के मुखपत्र पांचजन्य ने मेरे उपर लिखा और कांग्रेस की पत्रिका में भी मेरी शायरी का जिक्र हो चुका है । तो फिर एसे वैसो के सम्मान वापस लौटाने के बाद कदम पिछे खिंचने की गुहार का मतलब कुछ नहीं , सबो के कहने से इरादा नहीं बदला जाता / हर सहेली से दुपट्टा नहीं बदला जाता। तो यह माना जाये मौजूदा वक्त से आप खौफ ज्यादा है। सवाल खौफ का नहीं है । सवाल है कुछ लिख दो तो मां की गालियां पड़ती है । यह मैंने ही लिखा, मामूली एक कलम से कहां तक घसीट लाए/हम इस गजल को कोठे से मां तक घसीट लाए। लेकिन हालात ऐसे है जो रुठे हुये है तो मुझे अपनी ही नज्म याद आती है, लबों पे उसके कभी बद्दुआ नहीं होती / बस एक मां है जो मुझसे खफा नहीं होती। लेकिन सवाल सिर्फ गालियों का नहीं है सवाल तो देश का भी है। ठीक कह रहे हैं आप । कहां ले जाकर डुबोयेगें उन्हें जिन्हें आप गालियां देते है । कहते हैं कि औरंगजेब और नाथूराम गोडसे एक था । क्योंकि दाराशिकोह को मारने वाला भी हत्यारा और महात्मा गांधी को मारने वाला भी हत्यारा। तब तो कल आप दाराशिकोह को महात्मा गांधी कह देंगे। इतिहास बदला नहीं जाता । रचा जाता है । यह समझ जब आ जायेगी । तब आ जायेगी । अभी तो इतना ही कि, ऐ अंधेरे ! देख लें मुंह तेरा काला हो गया / मां ने आंखे खोल दी घर में उजाला हो गया ।
पुण्य प्रसून जी, मुनव्वर राणा ने कल खुद ये क्यों कहा कि मोदी कहें तो पुरस्कार वापस ले लूंगा? अशोक चक्रधर जी ने भी कुछ कहा है मुनव्वर राणा के पुरस्कार लौटाने पर, उनकी फेसबुक वाल पर पढ़ने की कोशिश कीजिएगा। मुनव्वर राणा गजब के शायर हैं परन्तु वे हर बार सही नही हो सकते।
साहित्य अकादमी पुरस्कार लौटाने वाले अशोक बाजपेयी,गुरुवचन भुल्लर और नयनतारा सहगल जैसे साहित्यकारों की मानसिकता पर प्रश्न चिन्ह लगाती भाई गौरव की नयी कविता):
हैं साहित्य मनीषी या फिर अपने हित के आदी हैं,
राजघरानो के चमचे हैं,वैचारिक उन्मादी हैं,
दिल्ली दानव सी लगती है,जन्नत लगे कराची है,
जिनकी कलम तवायफ़ बनकर दरबारों में नाची है,
डेढ़ साल में जिनको लगने लगा देश दंगाई है,
पहली बार देश के अंदर नफरत दी दिखलायी है,
पहली बार दिखी हैं लाशें पहली बार बवाल हुए.
पहली बार मरा है मोमिन पहली बार सवाल हुए.
नेहरू से नरसिम्हा तक भारत में शांति अनूठी थी,
पहली बार खुली हैं आँखे,अब तक शायद फूटी थीं,
एक नयनतारा है जिसके नैना आज उदास हुए,
जिसके मामा लाल जवाहर,जिसके रुतबे ख़ास हुए,
पच्चासी में पुरस्कार मिलते ही अम्बर झूल गयी,
रकम दबा सरकारी,चौरासी के दंगे भूल गयी
भुल्लर बड़े भुलक्कड़ निकले,व्यस्त रहे रंगरलियों में,
मरते पंडित नज़र न आये काश्मीर की गलियों में,
अब अशोक जी शोक करे हैं,बिसहाडा के पंगो पर,
आँखे इनकी नही खुली थी भागलपुर के दंगो पर,
आज दादरी की घटना पर सब के सब ही रोये हैं,
जली गोधरा ट्रेन मगर तब चादर ताने सोये हैं,
छाती सारे पीट रहे हैं अखलाकों की चोटों पर,
कायर बनकर मौन रहे जो दाऊद के विस्फोटों पर,
ना तो कवि,ना कथाकार,ना कोई शायर लगते हैं,
मुझको ये आनंद भवन के नौकर चाकर लगते हैं,
दिनकर,प्रेमचंद,भूषण की जो चरणों की धूल नही,
इनको कह दूं कलमकार,कर सकता ऐसी भूल नही,
चाटुकार,मौका परस्त हैं,कलम गहे खलनायक हैं,
सरस्वती के पुत्र नही हैं,साहित्यिक नालायक हैं,
—–कवि गौरव चौहान(कृपया मूल रूप में ही शेयर करें..काँटा छांटी न करें)
साहित्यिक नालायक़ कौन है दुनिया देख रही है. एक बेकार सी कविता जिस पर सीना फुलाने की ज़रूरत नहीं. पहली बार दिखी हैं लाशै?? माने आप एक थप्पड़ पर चुप रहे तो दूसरे थप्पड़ पर आपको बोलने का अधिकार नहीं. खाते रहिए थप्पड़. कविता मे कहीं कल्बुर्गि और पंसारे का कोई ज़िक्र नहीं जिनके माध्यम से ये संदेश देने की कोशिश की गई. की आपको क्य लिखना है यह हम तय करें गे. एख़लाक़ से पहले बहुत क़त्ल हुए लेकिन एख़लाक़ के हवाले से ये मेसेज देने की कोशिश है की अब आपके खाने पीने का मेनू हम तय करें गे . बात खाली क़त्ल की होती तो इतना हल्ला ना मचता ,बात तो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की है की ये खाओ वो ना खाओ ,कॉंग्रेस के खिलाफ लिखो, हमारे फेवर मे लिखो नहीं तो….. कुछ मुट्ठी भर लोगों ने समझ लिया है हिन्दुस्तान उनकी जागीर है .जिसको चाहें गे रखें गे जिसको चाहें गे पाकिस्तान भेज दें गे . दुख की बात यह है की सबका साथ और सबका विकास वाले मुखिया जी तो कुछ बोलते ही नहीं. लोग कहते हैं की मुखिया जी किस किस पर बोलें मेरा कहना है मुखिया जी अगर पहली घटना पर सख़्त तेवर दिखा देते तो आगे की घटनाए शायद ना होतीं…
ललित जी, अंतर यह है की दंगे मोदी जी क्या उनसे भी पहले बहुत हुए, लेकिन दंगो या उन्माद के पीछे क्या कोई राजनैतिक विचार है क्या, वो महत्वपूर्ण है. 84 के दंगो के लिए, हम कांग्रेस को कठघरे मे रखते हैं, उसे आरोपी सिद्ध करते हैं, लेकिन उसे आज सिख विरोधी नही मानते.
इसी प्रकार, मोदी राज मे गोधरा की ट्रेन जली, उसके लिए हम मोदी को दोषी नही मानते, जबकि वो राज्य के मुख्यमंत्री थे, क्यूंकी उस दुखद हादसे मे उनका हाथ नही था, लेकिन उसके बाद की प्रतिक्रिया को जायज़ ठहरा के उसको संरक्षण देके अगर कोई हिंदू हृदय सम्राट का तमगा प्राप्त करना चाहता है तो हम उसका विरोध करेंगे ही, और मैं ही नही वो हिंदू जो अपने धर्म को सहिष्णु और मानवतावादी मानते हैं, उन्होने भी इसका विरोध किया है.
अख़लाक़ की हत्या का शोर और पीड़ा इसलिए है कि इस उस उन्मादी भीड़ की जो सोच है, वो एक राजनैतिक विचारधारा से उपजी है. गोधरा ट्रेन की तरह, इस दुखद घटना के लिए भी हम राज्य सरकार को नही, अपितु नफ़रत पे टिकी राजनैतिक विचारधारा को दोषी ठहराते हैं.
ये अवॉर्ड को लौटाने के पीछे भी उसी राजनैतिक सोच के प्रति विरोध है. वो राजनैतिक सोच, सत्ता के गलियारो तक पहुँच गयी है, इसी वजह से चिंता अधिक है.
गौरव शायद एक नामी संघी फेसबुकिया भी हे मुझे ठीक से पता नहीं में सोशल मिडिया पर नहीं हु खेर ये लोग शायद पेड एजेंट हो सकते हे इसलिए सोशल मिडिया पर इनकी खासी गतिविधिया रहती हे हम सेकुलरो को क्योकि कही से फंडिंग नहीं मिलती इसलिए नेट पर संघी प्रोपेगेंडा से मुकाबला ठीक से नहीं हो पाता खेर ये बकवास कविता हे जो बकवास ये कर रहा हे उसकी तुलना आज से नहीं की जा सकती हे क्योकि उन कांडो में सरकारों या सरकारों में मुखियाओं का हाथ या हौसला नहीं था जबकि अब जो कुछ हो रहा हे उसमे खुद पी एम का समर्थन हासिल हे ”हाथ कंगन को आरसी क्या ”लाख कहने सुनने पर भी दादरी पर कुछ नहीं बोला एक तरह से दादरी के हत्यारों को हौसला दिया की खुद पी एम उनके साथ हे इसलिए इन सभी साहित्यकारों को मेरा सेल्यूट में ये एहसान कभी नहीं भूलूंगा की उन्होंने इस उम्र में आगे बढ़ कर इंसानियत और इण्डिया के लिए खतरा बन रहे हे पी एम का असली चेहरा दुनिया के कोने कोने में पंहुचा दिया सेल्यूट इन सभी को
पढ़े लिखे लोग इस अकर्मण्यता और नफ़रत के खिलाफ आवाज़ उठाएँगे तो ज़रूर परिणाम अच्छा निकलेगा. मुनव्वर राणा का मैं पहले से मुरीद रहा हूँ. अवॉर्ड वापसी और उसके बाद दिए उनके बयानो से मेरी और लखो लोगो की नजरो मे वो और बड़े बन गये हैं. ये राष्ट्रवादी लोग, जितना उनपे आरोप लगाएँगे, मुनव्वर राणा के जवाब उससे अधिक प्रभावशाली होंगे.
ये संघियो को इन 5-6 दिनो मे समझ आ गया है. इसीलिए मनुहार लगाई जा रही है, वरना अभी तक इनके कान पे जू भी नही रेंगी थी.
SABHI KA KHUN HAI SHAAMIL YAHA KI MITTI ME
KISI KE BAAP KA HINDUSTAN THODE HAI
MANAWAR RANA KO SALAM—
चिस्ती साहब, आप जिनको सलाम कर रहे है वो तो मोदी का ‘जूता’ भी उठाने को तैयार हो गया है ! और प्रधानमंत्री के कहने पर थूका हुआ (पुरुस्कार लौटना) फिर से चाटने (फिर से ग्रहण) को तैयार है !
Punya Jee…Munavvar hi the jinhone puraskar lautane ko thook k chatna kaha tha…tabse unke wall pe musalmaan unse fariyaad karte rahe aur ant me wo bhi muslamaan banke wapas kar gae to isme Sangh kyun sharminda ho?? Ravi Poojari ki bhi hatya hui hai…aur in lauta-lauti se kuchh nahi hone wala
वाजपेयी जी, कहाँ हैं, आप? यहाँ तो राणा जी ने राग देस द्रुत में तिहाई लगाकर खत्म कर दिया है. बहुत तालियाँ बजीं. अब उनका नया राग “दरबारी” का गायन शुरू हो गया हैं. देखना यह है कि गायन पूरा होने पर कितनी तालियाँ बजतीं हैं व कितने बचते हैं बजाने वाले ..
http://www.jagran.com/uttar-pradesh/lucknow-city-if-modi-will-ask-as-big-brother-i-can-pick-up-his-shoes-also-munawwar-rana-13063769.html?src=fb
हमे ये समझ नही आ ये मोदी विरोध है ,पब्लिसिटी स्टन्ट ,या भेडचाल है अब तो लग रहा है उर्दु का ये शायर अपने तथाकथित सेकुलरो को रोता छोडकर बडे भाई के जूते उठायेन्गे?????
रंजन सर हमे तो राणा साहब का गोरखधंधा समझ मे ही नहीं आ रहा हे ?? क्या टेलीविज़न के लाइव शो मे अवार्ड वापस करने की हरकत उन्होने मोदी जी की सहमति लेकर की थी ? अब मोदी जी को क्यो शामिल कर रहे हे ?
शरद भाई, और कुछ हो या ना हो, हम भारतीय राजनीति में अभिनय या ड्रामेबाजी के बेइंतहा इस्तेमाल से ज्यादा आहत हैं. पता ही नहीं चल रहा कि यह पॉलिटिक्स है या एकता कपूर का सीरियल, जिसमें ज्यादातर करेक्टर ग्रे शेड के हैं…
वैसे भी, जहाँ संवेदनाएँ मजहब, अमीरीगरीबी, प्रांतभाषा के हिसाब से घटती बढ़तीं हैं, वहाँ मानवीयता का स्थान नहीं रह जाता. मजेदार बात तो यह है कि गुजरात में दंगे हों हजारों मर जायें तो मुख्यमंत्री जिम्मेदार और दादरी में एक मासूम की जान जाये तो प्रधानमंत्री जिम्मेदार…
कभी कभी हमें लगने लगता है हमारी संवेदनाएँ ब्लैकमेलिंग का शिकार हो रहीं हैं. टीवी की खबरें तो बहुत पहले ही हमने देखनी बंद कर दीं थीं. और, अब तो हमने रवीश कुमार का प्राइम टाइम भी देखना बंद कर दिया है…
”गुजरात में दंगे हों हजारों मर जायें तो मुख्यमंत्री जिम्मेदार और दादरी में एक मासूम की जान जाये तो प्रधानमंत्री जिम्मेदार ” हमने कई बार बताया हे की मुलायम सपा और मोदी खेमे को अलग अलग समझना भूल होगी ये सब एक ही लोग हे ओवेसी को भी इन्ही में जोड़ ले पढ़े ” महान कवि गोपाल दास नीरज ने कहा है कि नरेंद्र मोदी को साहित्यकार लोग बेवजह परेशान कर रहे हैं जबकि वे विकास करना चाहते हैं। गोपालदास नीरज को समाजवादी पार्टी अपना ऑफिशियल कवि घोषित कर चुकी है। नीरज अक्सर अखिलेश यादव जी के पास पहुंचे रहते हैं। मजे की बात यह है कि एक दिन पहले मध्य प्रदेश के एक शहर में गोपालदास और मुनव्वर राना एक ही मंच पर थे। राना और नीरज जैसे लोग नरेंद्र मोदी की तरफ ही रहें तो बेहतर है। राना पहले टीवी पर भावुक होते हुए अब तक के सारे प्रतिरोध के हीरो बनाए जाते हैं और उसके तुरंत बाद वे ऐसा कहते फिरते हैं कि मोदी जी कहें तो जूता उठा लूंगा।राना साहब, आप मोदी जी का जूता उठाएं चाहें चप्पल हमें इससे मतलब नहीं है। लेकिन आप जब भी मुसलमान या फिर पीड़ित जनता के प्रतिरोध पर अपनी गंदी राजनीति करेंगे तो ठीक नहीं होगा। आपसे लाख गुना बेहतर Rahman Abbas हैं जिन्होंने महाराष्ट्र सरकार का पुरूस्कार सबसे पहले लौटाया और ऊर्दू ज़ुबान की लाज रख ली। मोहम्मद अनस साभार
रंजन सर आपकी निराशा का राज़ हे की आप मोदी के तिस हज़ार करोड़ के प्रचार में बहक गए थे आपने सोचा था की मोदी के आने के बाद चारो तरफ घी दूध और हिंदुत्व की नदिया बहेगी मगर सिवाय क्लेश के कुछ नहीं मिला यही आपकी निराशा का सार हे इसी कारण आपकी कलम भी थम सी गयी हे ना खाते बनता ना उगलते बनता समर्थन करने को कुछ हे नहीं विरोध का हौसला आप जुटा नहीं पा रहे हे सर गलती यही हो गयी की मोदी समर्थन में तो इतना हर्ज़ नहीं था मगर आप जैसे महाविद्वान को ” भक्तो ” की पाठशाला में नहीं जाना चाहिए था खेर जो हुआ सो हुआ हिम्मत करके इस पाठशाला से नाम कटवा लीजिये और फिर पुरे जोश में कलम चलाइये
हमने गोधरा ट्रेन के लिए तो तत्कालीन मुख्यमंत्री माननीय मोदी जो को कसूरवार नही ठहराया था. ठंडे दिमाग़ से सोचोगे तो इस नाराज़गी का कारण पता चलेगा.
और अगर यह सोच रखा है की किसी को कांग्रेसी, सपाई, कम्युनिस्ट, सिकुलर कहके इन आरोपो से बच निकलोगे तो आप आज़ाद है.
मुनव्वर राणा ने आज कहा है के अगले हफ्ते उन की मुलाक़ात नरेंद्र मोदी से हो सकती है क्यों के PMO से उन को मिलने का समय माँगा है . उन्हों ने कहा के एकता और भाईचारगी के लिए कुछ भी कर सकते है उन्हों ने कहा के मोदी उन के बड़े भाई की तरह है , उस हैसियत से में उन के जूते भी उठाने के लिए तैयार हु
में नहीं जानता के मुनव्वर राणा साहब क्या कहने वाले है और मोदी से उन की क्या बात हो गी, मगर लगता है के एक शायर के हिसाब से उन की छवि को धक्का लगे गा. अगर उन्हों ने पुरुस्कार लौटा ही दिया था तो मिलने की जरुरत ही नहीं थी .ऐसे भी उर्दू में मुनव्वर राणा को साहित्य पुरुस्कार मिलने पर उर्दू साहित्यकार खुश नहीं है क्यों के अधिकतर उन्हें एक मुशायरे का शायर माना जाता है , उन्हें जब साहित्य अकादमी अवार्ड मिला था तो लोगो ने उस का विरोध किया था
दो दिन से राणा साहब को गाली देने वाले आज सभी भक्त उन की तारीफ़ में लग गए और उन्हें फिर से महान शायर कहा जाने लगा है — मुझे मुनव्वर राणा साहब का एक शेर याद आ रहा है,में उन को ही नजर कर रहा हु .
हुकूमत मुँह-भराई के हुनर से ख़ूब वाक़िफ़ है
ये हर कुत्ते के आगे शाही टुकड़ा डाल देती है .
इन्ही हरकतों के लिए बहुत से शायर और कवि खासे बदनाम रहे हे ये लोग मुस्तकिल मिजाज नहीं होते हे इसलिए हमने इनके अवार्ड लौटाने पर इनकी तारीफ नहीं की थी अभी टीवी पर ये टिविटर टिविटर टिविटरकिये जा रहे थे क्या मतलाब भला ? हमे ये भरोसे के काबिल नहीं लगते हे पि एम मोदी से मिलने में हर्ज़ नहीं हे मगर पहले वो मुह से दो ढंग की बात तो करे ? दो ढंग के काम तो करे ? अभी कुमार विशवास राणा साहब को अपने गुरु सा बता रहे थे कोई ताजुब नहीं जैसा चेला वैसा गुरु ?
वैसे मुझे ये बिजेपी का प्रोपेगन्डा लग रहा शायद ये प्लान हो कि पहले इन्से अवार्ड वापस करा दे फिर ये वापस ले ले जिससे भेडचाल मे अवार्ड वापस करने वालो कि मुहिम को धक्का लगे कि ये सब प्रि प्लान्ड है और ये मुहिम भि कम कमजोर पड जये की एक मुस्लिम ने अवार्ड वापस ले लिया
सही पकडे हे
अफ़ज़ल भाई मुनव्वर राणा के इस क़दम से मुझे भी अचम्भ हो रहा है. इस सिलसिले मे सोशल साइट पर एक पोस्ट देखी सोचा यहाँ शेयर कर लूँ……
मुनव्वर राना से बच कर रहिए। टीवी ने उन्हें अब तक के साहित्यिक प्रतिरोध का हीरो बना दिया है। यह जानबूझ कर किया गया है क्योंकि हममें से ज्यादातर लोग जानते हैं कि भाजपा से उनके बहुत करीबी रिश्ते रहे हैं। इस बार उन्हें साहित्य अकादमी अवार्ड मोदी सरकार के कहने पर मिला था।
यदि आप उनके फेसबुक पेज पर पिछले हफ्ते के पोस्ट पर जाएंगे तो देखेंगे कि वे सम्मान लौटाने वाले लोगों को बुरी तरह लताड़ रहे थे। बुरा भला बोल रहे थे फिर अचानक से ABP न्यूज़ पर प्लांटेड तरीके से सम्मान वापस कर देते हैं।
वहां वे जिस तरह से डिबेट करते हैं वह तो बेहतरीन था जिसके बाद हममें से बहुत से लोग उनकी तारीफ करने लगे थे यह भूल कर की यह वहीं इंसान है जिसने कवियों, लेखकों और बुद्धिजीवियों को ‘थके हुए लोग’ कह कर आलोचना की।
अब जिस तरह से टीवी वाले राना को झुका हुआ, घुटना टेक चुके, पर स्टोरी कर रहे हैं उससे यह संदेश जाएगा कि जब राना संवाद के लिए ऐसा कर सकते हैं तो बाकि लेखक क्यों नहीं।
यह शर्मनाक चाल है मुनव्वर राना की। मुनव्वर साहब, सब आपकी तरह नहीं होते। प्रधानमंत्री से संवाद क्यों करना? उनके पास देश का कानून है वे हत्यारों के खिलाफ उसका इस्तेमाल करके दिखा दें, सब खुद ब खुद ठीक हो जाएगा।
नरेंद्र मोदी से बातचीत क्यों करना भला? क्या वे रेडियों या फिर टीवी अथवा ट्विटर अकाउंट से असहिष्णुता फैलाने वालों को डांट डपट नहीं सकते?
मुनव्वर, बड़ी बेइज्जती करा दिए भई। कौम को बेचने का आरोप आज तक नेताओं पर लगता रहा लेकिन आपने तो सारी हदे ही लांघ डाली।
ये क़ौम वाली बाते ना ही करे. मुनव्वर साहब कौनसी क़ौम के है? अगर भारतीय है तो भारत के प्रधानमंत्री से मुलाकात मे क्या हर्ज़?
अफजल भाई, हम तो यह सोच रहे थे कि अब आप के मेहनत से लिखे लेख का क्या होगा? पता ना चला कि किसका चेहरा स्याह हो गया.
अफ़ज़ल भाई, मैं मुनव्वर राणा की मोदी से मुलाकात की कोशिशो से खफा नही हूँ. किसी से भी असहमति इतनी हावी नही हो कि नफ़रत मे बदल जाए. मोदी वर्तमान मे देश के प्रधानमंत्री है. और अपनी पीड़ा और नाराज़गी, प्रधानमंत्री को बताने मे कोई हर्ज नही. वैसे भी ये दर्द तो मोदीत्व का ही दिया हुआ है. अगर मोदी मुनव्वर राणा को इस बार मना लेते हैं तो मोदी पे ज़िम्मेदारी होगी कि वो कुछ करे, जो दिखे.
नही मना पाए तो मोदी को ज़्यादा नुकसान होगा, मुलाकात का असर, अवॉर्ड वापसी से भी अधिक होगा.
भाग-१
प्रसून वाजपेयी साहब फरमाते हे कि “जैसे ही मुनव्वर राणा ने अकादमी पुरस्कार लौटाने का एलान किया, सरकार की घिग्गी बंध गई” …….क्या वास्तव मे ऐसा ही हुआ था ??
बहरहाल कुछ सवाल हमारे दिमाग मे भी घुमड़ रहे हे …
प्रसून वाजपेयी जी से –>मुनव्वर राणा साहब ने अवार्ड 24 घंटे पहले दूसरे न्यूज चैनल एबीपी पर बीच बहस में लौटाने का एलान किया था पर उस दिन टेलीविज़न पर तो कुछ और ही दिखाई दे रहा था जब बीजेपी प्रवक्ता संबित पात्रा जी के तीखे सवालो का जनाब मुनव्वर राणा साहब को कोई जवाब नहीं सूझ रहा था और वे हक्का-बक्का नज़र आते थे ?? क्या वास्तव मे सरकार कि घिग्गी बंधी नज़र आई थी ??
दूसरे न्यूज चैनल एबीपी पर सबसे पहले प्रसारित होने वाले उस ड्रामे का कोई भी क्रेडिट (अच्छा या बुरा) सिर्फ चैनल एबीपी को ही जाना चाहिए बाद मे कि गयी नकल पर प्रसून वाजपेयी जी और उनके चेनल “आज तक” को नहीं दिया जा सकता अगर ऐसा होता हे तो इसे “राजनीतिक-पत्रकारिता” के अलावा और कोई नाम नहीं दिया जा सकता
न्यूज चैनल एबीपी से –>आप किसी को अपने स्टुडियो मे बंदूक लाने देते हो और लाइव शो मे वह बंदा वही फायर कर दे और आप फिर उसे “सबसे बड़ी खबर” बना कर कई घंटे तक ब्रेकिंग न्यूज़ बना कर चलाते रहो तो इसके लिए जिम्मेदार किसको मानोगे ??
सवाल हे कि मुनव्वर राणा साहब अपने अवार्ड कि ट्रॉफी को हाथ मे लेकर न्यूज चैनल एबीपी के स्टुडियो मे पहुँच कैसे गए ?? इसका सीधा सा मतलब यही निकलता हे कि इस हाई वोल्टेज ड्रामा कि पटकथा मुनव्वर राणा साहब और चेनल के बीच शायद पहले से लिखी जा चुकी थी क्योकि अवार्ड लौटाने के इस दौर मे अगर मुनव्वर राणा साहब अवार्ड लौटाने नहीं आए थे तो अवार्ड साथ क्यो लेकर गए थे ?? अवार्ड लौटने कि घोषणा करना और हाथ मे अवार्ड लहरा कर अवार्ड लौटाना…. इनमे जमीन-आसमान का फर्क हे।…… जारेी हे
भाग-२
मुनव्वर राणा साहब से (बदे आदर के साथ और अपने किसी भी शब्द से आपको बुरा लाग्ने पर उसकी पहले से क्षमा-याचना के साथ)
1-सर आप दोहा (कतार) से आए पहले अपने घर गए अवार्ड को निकाला और बाद मे न्यूज़ चेनल पहुँच कर लाइव शो मे अवार्ड हाथ मे लेकर उसे लौटाने का ऐलान किया !! ऐसा क्यो ??
आपके पास खबर भी आ चुकी थी आप परेशान भी थे पर आपने अवार्ड लौटाने का ऐलान दोहा से ही क्यो नहीं किया गया ?? एक शायर के तौर पर आपकी बेहतरीन शायरी अब भी वही इज्ज़त पाएगी सिर्फ एक शेर को छोड़ कर (हम तो शायर है सियासत नहीं आती हमको/ हम से मुंह देखकर लहजा नहीं बदला जाता)…… एक इंसान के तौर पर आप कम से कम हमारे जैसे अपने चाहने वाले से उतना सम्मान नहीं पा पाएंगे (हालांकि हमारे जैसे बेहद मामूली इंसान की किसी भी भावना का आप पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा इसलिए परेशानी कि कोई बात नहीं हे)
2- सर आप बेहद संवेदनशील इंसान हे इसमे कोई शक नहीं क्योकि जो इंसान दादरी मे एक इंसान की निंदनीय तरीके से हुई हत्या पर चैन से सो भी नहीं प रहा हो उसकी संवेदनशीलटा को सर झुकते हे (हमने खुद भी उस घटना की अपने स्तर पर भरपूर निंदा की हे) ….
पर गुस्ताखी माफ यह संवेदनशीलटा तब क्यो नज़र नहीं आती जब इसी देश मे हजारो सिखों की हत्या हुई और कश्मीर से कई लाख हिन्दुओ पर हर तरह के जुल्म हुए ?? क्या वो सब आपकी नज़र मे जायज था ?? क्या वास्तव मे आपको उस बारे मे कभी कोई खबर नहीं हुई ?? अब हज़ार और लाख की गिनती से इकाई बड़ी तो नहीं हो गयी ??
सर आप तो ऐसे न थे !! क्यो किया आपने ये सब ??
”हमने खुद भी उस घटना की अपने स्तर पर भरपूर निंदा की हे) ….” जी नहीं आपने भरपूर नहीं सिर्फ एक औपचारिकता निभाई और महज़ रस्मी निंदा की . और गाय को ज़बरदस्ती मुद्दा बना रहे लोगो के खिलाफ तो शायद एक लफ्ज़ तक नहीं बोला
सही कहा हयात भाई आपने हमारे बारे में !! यह हमारी बहुत बड़ी कमी हे कि आपकी तरह विषय कोई भी हो उस पर हम मोदी जी का विरोध करने वाला कमेंट पोस्ट नहीं कर पाते। ….पर हम अपनी इस कमी के साथ खुश हे क्योकि बिना वजह किसी का विरोध या समर्थन करना हमें उचित नहीं लगता !!
अब बात गाय पर। … तो हयात भाई हमारे कमेंट्स यहाँ वहां देखने की तकलीफ से आपको बचाने के लिए हम सीधे-२ आपके सामने अपनी राय दे रहे हे (थोड़ा ठन्डे दिमाग से पढ़िए)
गाय पर अगर सरकार की तरफ से बेन नहीं हे तो बकरा, मुर्गा की तर्ज पर जिसको जो खाना हो अपना पैसा खर्च करे और शान्ति से खाए यहाँ तक हमें कोई समस्या नहीं क्योकि जब आप गोमांस बाज़ार में आने से नहीं रोक सकते तो गोमांस खाने को मुद्दा बना कर किसी पर हमला कैसे कर सकते हो ??
बहरहाल प्रेस कॉन्फ्रेंस करवा कर या अखबारों में हल्ला मचवा कर बीफ-पार्टी देने की बक-बक करने वालो पर होने वाले हमलो को हम अपना पूरा समर्थन देते हे। … एखलाक ने किसी तरह की बीफ-पार्टी का हल्ला नहीं मचाया था इसलिए उन पर हुए हमले और उनकी हत्या को हम पूरी तरह गलत मानते हे मगर जम्मू-कश्मीर के विधायक इंजीनियर राशिद की पिटाई को उचित मानते हे !!…. ग़लतफ़हमी दूर न हुई हो तो अभी सामने से बात कर लीजिये
अब लगे हाथो ये भेी जान जाइए कि कैसे लोगो का हम विरोध करते हे,
१-ये वे लोग हे जो अपने देश की छोटी से छोटी कमी निकाल कर अपने देश की बेइज़्ज़ती करने में पीछे नहीं हट्टे मसलन जो अपनी ही सरकार की नाकामी की जिम्मेदारी लेने के बजाय यू इन पहुँच गए ??
२- ऐसे लोग जो बार-२ भारत और पाकिस्तान के अथिति सत्कार पाकिस्तान को ऊपर रखते हे इसलिए को पाकिस्तान जाने की बात करने पर गलत जैसा ?? वे खुद बड़ी शान से बताते हे कि बहुत प्यार करती हे और भारत में बची हुई जिंदगी की साँसे मनपसंद -हवा में लेने से उनको हे:)
३-तीसरे वे खुजली वाले कीड़े जिनको बॉर्डर पर पाकिस्तानी गोलाबारी और आतंकवादियों के घात लगा कर किये गए हमलो में शहीद अपने जवान और उनके यतीम परिजनों की बजाय पाकिस्तान से क्रिकेट बहालेी और पाकिस्तानी कलाकारों के प्रोग्राम आयोजित करने केी जयादा चिंता हे ?
४- ऐसे संवेदनशील लोग जिनकी संवेदना दादरी में किसी एक इंसान की मौत पर जाग जाती हे पर दादरी से पहले अनगिनत घतनाओ पर कुम्भकर्ण की तरह सोती रहती हे जबकि उन अनगिनत घटनाओ में मरने वाले २ से लेकर कुछ हज़ार तक थे ??
इसे संवेदना कहा जाये या राजनिति ??
पता चल गया हमारा नजरिया या कुछ और बाकेी रह गया हे 🙂
अब लगे हाथो ये भेी जान जाइए कि कैसे लोगो का हम विरोध करते हे,
१-ये वे लोग हे जो अपने देश की छोटी से छोटी कमी निकाल कर अपने देश की बेइज़्ज़ती करने में पीछे नहीं हट्टे मसलन जो अपनी ही सरकार की नाकामी की जिम्मेदारी लेने के बजाय यू एन पहुँच गए ??
२- ऐसे लोग जो बार-२ भारत और पाकिस्तान के अथिति सत्कार की तुलना कर पाकिस्तान को ऊपर रखते हे इसलिए उन को पाकिस्तान जाने की बात करने पर गलत जैसा ?? वे खुद बड़ी शान से बताते हे कि पाकिस्तान की जनता और हुकूमत उनको बहुत प्यार करती हे और भारत में उनका दम घुटता हे ?? तो बची हुई जिंदगी की साँसे मनपसंद पाकिस्तानी आबो-हवा में लेने से उनको रोक किसने हे:)
३-तीसरे वे खुजली वाले कीड़े जिनको बॉर्डर पर पाकिस्तानी गोलाबारी और आतंकवादियों के घात लगा कर किये गए हमलो में शहीद अपने जवान और उनके यतीम परिजनों की बजाय पाकिस्तान से क्रिकेट बहालेी और पाकिस्तानी कलाकारों के प्रोग्राम अपने यहाँ आयोजित करने केी जयादा चिंता हे ?
४- ऐसे संवेदनशील लोग जिनकी संवेदना दादरी में किसी एक इंसान की मौत पर तो तुरनत जाग जाती हे पर दादरी से पहले हुइ अनगिनत घतनाओ पर कुम्भकर्ण की तरह सोती रहती हे जबकि उन अनगिनत घटनाओ में मरने वाले २ से लेकर कुछ हज़ार तक थे ??
इसे संवेदना कहा जाये या राजनिति ??
पता चल गया हमारा नजरिया या कुछ और बाकेी रह गया हे 🙂
तो किरण रिजिुजू ऋषि कपूर काटजू आदि का भी नम्बर कब हे ? जो खुद ऐलान कर रहे हे ( ज़या का नाम नहीं लूंगा क्योकि उन्होंने खुद नहीं कहा ) और कश्मीर में वो गौ मांस था या नहीं पता नहीं ? बीफ लिखा था और बीफ में गौ मांस ही नहीं और भी बहुत कुछ आता हे —–जारी
जनाब, मुनव्वर राणा चाहते थे कि उनके अवॉर्ड वापसी के पीछे के कारण का लोगो को पता लगे, इसलिए उन्होने न्यूज चैनल पे ऐसा किया. इसमे क्या ग़लत है?
ऐसा तो है नही कि राणा साहब, अपने आपको उस अवॉर्ड का हकदार ही नही मानते, जो कई नौसीखियो और चाटुकरो को मिल चुका है. उनका विरोध, उस अवॉर्ड से नही, बल्कि एक सोच से है. अवॉर्ड वापसी के बहाने वो उस सोच पे सवाल खड़ा करना चाहते थे, इसलिए मीडिया का सहारा लिया. मेरी नज़र मे अच्छा किया. और ये पटकथा, अगर पहले से लिखी हुई थी, तो अच्छी और क़ाबिले तारीफ़ थी.
Mere kehne layak bacha hi kuch nahi itni bejti hi kafi hai.In addition to it most of the people are those who already declared that if Modi becomes PM will return award .Therefore nothing more to say about incidents which they say motivated them to return the award.
हयात भाई हमने अपने विचार ईमानदारी से लिख दिए हे उनके बारे में आपकी नहीं आई जो हमारे लिए हैरानी की बात हे फिर आप ६ महीने बाद किसी और ब्लॉग पर कहोगे कि हमने अपने विचार ही नहीं रखे 🙂
तो किरण रिजिुजू ऋषि कपूर काटजू आदि का भी नम्बर आये या न आये हमारी बला से हमें क्या इनका आचार दबाना हे ?? मुह पर चुना पोत कर खुद को सर्वशक्तिमान समझने की ग़लतफ़हमी में जीने वाली १२ वि फेल (दो-चार को छोड़ कर) इस जमात की बातो पर धयान भी इनके जैसे लोग ही देते हे और वैसे भी अधिकतर कलाकार इस पचड़े में नहीं पड़ते। …. विवादस्पद बयान भी उन्ही फ्लॉप कलाकारों ? के आते हे जिनको काम नहीं मिल रहा या जो चर्चा में आना चाहते हे
मुनव्वर साहब से पहले जब लेखको ने साहित्य पुरूस्कर लौटाए तो संघियो ने अपने गिरेबान मे झाँकने की बजाय, इतने सारे लेखको पे जो की 50 की उमर के पार जा चुके हैं पर सस्ती लोकप्रियता बटोरने का आरोप लगा के, मामले को हल्का करने का प्रयास किया.
लेकिन जब मुनव्वर साहब ने पुरूस्कर लौटाया तो वो ये आरोप नही लगा सके, क्यूंकी शायरी और कविताओ का ज़रा भी शौक रखने वाला व्यक्ति, मुनव्वर साहब के शायरी के हुनर का कायल हुए बिना नही रह सकता. इसलिए इन्होने, उनकी सोनिया गाँधी पे लिखी एक अराजनैतिक लेकिन संवेदनाओ से भरी कविता का सहारा लेके कांग्रेसी होने का आरोप लगा दिया, इन लोगो के लिए कांग्रेसी होना ही गाली है, और किसी को कांग्रेसी या कम्युनिस्ट ठहरा के ये एक तार्किक बहस से बच जाना चाहते हैं.
लेकिन इस बार ऐसा हुआ कि मुनव्वर साहब के प्रशंसको ने उनकी प्रतिभा का बचाव किया, सिकुलर के तमगे मिलने के बाद भी, और यही से संघियो को डेमेज दिखने लगा, अब बस वो यही चाहते हैं क़ि नयानतरा सहगल जैसे 50 लेखक भले ही अपना अवॉर्ड वापस ना ले लें, लेकिन मुनव्वर राणा ले लें. मेरे संघी देशवासीयो, किसी पे गद्दारी या सिकुलर होने का आरोप लगा के गंभीर चर्चा से बचने की बजाय, बात को सुनो. कौन कह रहा है कि बजाय क्या कह रहा है, पे ध्यान दो
वैसे एक बेहतरीन कहानी अभी अभी किसी ने फेसबुक पर भेजी है, सो पेश है…
“एक पिता की युवा औलाद एकदम नकारा थी । तंग आकर पिता ने ऐलान कर दिया, की आज से खाना तभी मिलेगा जब दिनभर में १०० रुपये कमाकर लायेंगा ।
माँ ने नकारे बेटे को चुपचाप १०० रुपये दे दिये और कहा, “शाम को आकर बोल देना की कमाये है ।”
शाम को लडका घर आया तो पिता को १०० रूपये दिखायें, पिता ने कहा इस नोट को नाली में फेँक आओं….. लडका तुरंत नोट नाली मे फेंक आया ।
पिता समझ चुका था की ये इसकी मेहनत की कमाई नही ।
पिता ने अपनी पत्नी को मायके भेज दिया, ताकि वो बेटे की मदद ना कर पायें । आज फिर बेटे को १०० रुपये कमाकर लाने थे, तो उस के पास मेहनत करके कमाने के अलावा कोई चारा ना बचा! शाम को जब वह १०० रुपये कमाकर घर लौटा, तो पिता नें फिर से उस नोट को नाली मे डालने को कहा, तो लडके ने साफ मना कर दिया.. क्यो की आज उसे इस नोट की कीमत पता चल गयी थी !!
#पुरस्कार लौटाने वाले लेखक और फिल्मकार इस पोस्ट को दिल पर ना लें…”
सच को बयान करती बढ़िया कहानी हे !! ईमानदारी से कहे तो कईयो के नाम तब पहली बार सुने जब वे अवार्ड “वापस करके” चर्चा मे आएः)