हिंदी प्रदेशो का ये इतिहास रहा हे खासकर यूपी बिहार का की हम लोग संकीर्ण उपराष्ट्रवाद में या प्रान्तीयता में दिलचस्पी नहीं लेते हे मगर इस बार संकीर्णता और प्रान्तीयता से दूर रहते हुए भी बिहार की जनता से अपील हे की वो गंभीरता से बिहार के एक आदमी को प्रधानमंत्री बनाने के लिए आगे बढ़ाय और सभी लोग सब बाते भुलाकर एकजुट होकर अपने राज्य के एक आदमी आदमी को पी एम पद के लिए आग़े बढ़ाय इन विधानसभा चुनावो में बिहार की जनता को चाहिए की वो नितीश कुमार को वोट करे केवल इसलिए नहीं की वो सी एम के लिए उमीदवार हे बल्कि बिहार की जनता को सोचना चाहिए और ये सोच कर उन्हें वोट करना चाहिए की वो बिहार से पहले पी एम के लिए भी नितीश को वोट कर रही हे हमें यह नहीं भूलना चाहिए की मोदी जी ने तीसरी बार विधानसभा के चुनाव के समय से ही खुद को पी एम के लिए प्रोजेक्ट करके चुनाव लड़ा था तभी से गुजरातियो ने एक गुजराती को ही पी एम बनाने के लिए उन्हें पूरा पूरा समर्थन दिया भले ही वो इस पद के योग्य ना थे ना हे मोदी जी एक संकीर्ण साम्प्रदायिक असवेन्दनशील और असहिष्णु किस्म के शख्स हे परिवारविहीन जीवन जीने के कारण उन्हें जनता के सुख दुःख का कोई तजुर्बा ही नहीं हे इसी कारण उनमे संवेदनाओ की कमी सी ही लगती हे जो कई बार ज़ाहिर हो चुकी हे ( हाल ही में जब केवल भारत में ही नहीं बल्कि सारी दुनिया दादरी में एक बुजुर्ग की कुरुरता पूर्ण हत्या पर रो रही थी तब वो बजाय उस घटना के अपने एक खतरे से बाहर घोषित नेता के लिए अधिक चिंतित थे ) संवेदनाओ की इतनी कमी भारत जैसे विविधतापूर्ण और समस्याओ से ग्रस्त देश को चलाने के लिए उचित नहीं हे जैसा की सब जानते ही हे की उन्हें पी एम बनाने के लिए साम्प्रदायिक और पूंजीवादी शक्तियों ने पूरा पूरा साथ दिया नतीजा देश में महगाई और साम्पर्दयिकता की बाढ़ सी आ गयी हे फिर गुजरात से पहले भी मोरारजी देसाई पी एम बन चुके ही थे फिर भी गुजरातियो ने बेहद उत्साह के साथ एक गुजराती मोदी जी को पी एम के लिए पूरा पूरा समर्थन किया तो बिहार के लोगो को भी ही सोचना चाहिए की बिहार से अगर कभी भी कोई आदमी अगर पहला पी एम बन सकता हे सारी दुनिया में बिहार का डंका बजा सकता हे कभी ना कभी तो वो सिवाय नितीश कुमार के भला और कौन हो सकते हे ?
नितीश कुमार एक पढ़े लिखे उच्च शिक्षित पारिवारिक इंसान हे अच्छे प्रशासक हे शुद्ध सेकुलर हे उदारवादी हे सहिष्णु हे उनका बिहार को अन्धकार से निकाल कर लाना मोदी जी का बहुत पहले से ( हज़ारो साल से ) चमकते गुजरात को और अमीर बना देने के मुकाबिल बहुत बड़ा कारनामा था ये कारनामा अभी ठीक से पुरे भारत की जनता तक नहीं पंहुचा हे गलती ये हो गयी की ईमानदारी के कारण और बड़े पूंजीपतियों की चाकरी ना करने के कारण उनके पास दुसरो की तरह हज़ारो करोड़ का बजट ना था की वो इसका अँधा प्रचार कर सके वैसे करना भी नहीं चाहिए क्यों कही से भी अँधा पैसा लेकर अँधा प्रचार करने की कीमत भी अंत में जनता को ही देनी पड़ती हे जो हम इस समय पुरे देश में देख ही रहे हे नितीश कुमार को सी एम और फिर पी एम बनने के लिए पूंजीपतियों के उन हज़ारो करोड़ की जरुरत नहीं हे जो बाद में जनता का खून चूस कर कई गुना वापस करने पड़ते हे उसके लिए बिहार की जनता का इस बार का सपोर्ट ही काफी हो सकता हे याद रखिये की अगर आप इस समय नितीश कुमार को समर्थन करेंगे तो वो सीधे सीधे पी एम पद के उमीदवार बन जाएंगे ये केवल बिहार के लिए ही नहीं बल्कि पुरे देश के लिए जरुरी हे क्योकि ये साफ़ दिख रहा हे की सभी ”तानोशाहो ” के इतिहास की तरह ही मोदी जी भी अपने कार्यकाल में काफी सारी बड़ी और बढ़ी हुई समस्याएं ही छोड़ जाएंगे जैसे बढ़ती महगाई बढ़ती साम्प्रदायिकता बेरोजगारी गैर बराबरी की इंतिहा सीमा पर तनाव लोकतान्त्रिक सनस्थाओ की कमजोरी आदि .
यानी 2019 में कई समस्या बेहद विकराल रूप में कड़ी होगी उस समय या उसके बाद भी केवल नितीश कुमार जैसा अनुभवी अच्छा प्रशासक और उदारवादी नेता ही इन समस्याओं पर काबू पा सकेगा वर्ना हालात और खराब हो सकते हे बिहार की जनता ने पहले भी अपना अपना भारी नुकसान करके भी 1857 1942 74 में अपना फ़र्ज़ निभाया था आज भी कुछ कुछ वैसे ही हालात हे धमकिया भी मिल ही चुकी हे की अगर नितीश को जिताया तो पैकेज नहीं मिलेंगे आदि उमीद हे की बिहार की जनता इन धमकियों से पहले की तरह इस बार भी डरेगी नहीं इस बार भारत को मोदीवाद से आज़ादी चाहिए और अगर आप इस चुनाव में नितीश को जिताते हे तो ये एक बड़ी क्रांति की ही शुरुआत ही होगी उमीद हे की बिहार की जनता फिर क्रांति की शुरुआत करेगी नितीश कुमार ये चुनाव जीतते ही राष्ट्रिय स्तर के नेता और अगले पी एम के दावेदार बन जाएंगे और देश की एकता अखंडता के लिए खतरा बन रही और जनता को शोषण कर रही ताकतों के लिए बहुत बड़ी चुनौती बन जायेगे उमीद हे बिहार की जनता इन सब बातो को ज़हन में रख कर वोट करेगी शुक्रिया
अफज़ल भाई लेख के साथ मेरा नाम डलवाना रह गया हे ?
बिहार के पाठको से विनती हे की हो सके तो इस लेख को और इस भावना को की आप नितीश को सी एम के लिए ही नहीं बल्कि बिहार से पहले पी एम के लिए भी वोट कर रहे हे ये विचार अधिक से अधिक लोगो तक पहुँचाय अभी तक जो पता चला हे उससे लगता हे की बिहार में कांटे की टक्कर हे अगर नितीश चुनाव हार गए तो ना केवल बिहार एक बेहतरीन प्रशासक तो खेर खो ही देगा फिर ये भी तो सोचे की आगे फिर कम से कम बीस साल तक बिहार से कोई प्रधानमंत्री होने के कोई चांस नहीं हे ?
अच्छा लेख है . कमेंट से पता चला है के सिकंदर हयात जी ने लिखा है . में सहमत हु के बिहार का विकास नितीश जी ही कर सकते है ,
असल में जब रात में ये लेख अफज़ल भाई को भेजा तो हड़बड़ी में नाम लिखना छूट गया था खेर वहाब भाई बात बिहार की ही नहीं रह गयी हे बात तो बहुत आगे बढ़ चुकी हे इस समय देश को कोई चेहरा चाहिए हे जिसके पीछे देश भर की मोदी विरोधी ताकते एकजुट हो सके नितीश कुमार इसके लिए सबसे सटीक चेहरा हो सकते हे उनकी ईमानदारी लम्बा प्रशासनिक अनुभव सेकुलरिज़म वंशवाद से दूर आदि बातो पर कोई सवाल नहीं हे इस समय देश की सभी मोदी विरोधी ताकतों को एक हो जाना चाहिए अपने मतभेद बाद में सुलझा लेंगे या ना भी सुलझे तो भी कोई नी मगर सबसे पहले सबसे अधिक जरुरी हे ” मोदी हटाओ मोदी हराओ ” और हां याद रहे हमेशा की मुलायम और सपा मोदी खेमे के ही लोग हे हमेशा याद रहे इन लोगो से दूर रहना चाहिए
جی بہت ہی سہی کہا آپ نے – اصل مے ملک کی حالات بہت ہی خراب ہوتے جا رہے ہے – ملک کا ماحول ١٩٤٧ کی طرح ہوتا جا رہا ہے مگر آنے والے دنو مے اور خراب ہو جائے گا ،
Sonia Gandhi ,Rahul Gandhi agar prachar karne to koi bat nahi manmohan bhi spnia or rahul kaya USA ke President ship ke liye parchar kar rahe hain Bihar.
पीएम दावेदारी के चक्कर में नितीश बेचारे लोक सभा चुनाव में ‘धोबी के गधा’ बन गए थे ! और अबकी बार आप ‘सीएम’ की कुर्सी भी छिनवाने के चक्कर में है !
वैसे आपलोगो ने मोदी को प्रधानमंत्री बनने से रोकने के लिए भी काफी प्रयास किया था ! पर अफ़सोस की वो प्रयास ‘असफल’ रहा !
वैसे बिहारी चेतना जगाने के लिए सुक्रिया!
गिरते हे शहसवार ही मैदान जंग में वो क्या घिरेंगे जो घुटनो ( दंगो और पूंजीवादी पिशाचों का फायदा ) के बल चलते हे
मित्रों मतदान भी एक तरह का दान ही होता है, और शास्त्रों में कहा गया है कि कुपात्र को दिया गया दान ,दाता को नरक में ले जाता है। अतः अपना मतदान सोचसमझकर राष्ट्रवादी दलों को ही देवें अपना निर्णय स्वयं करें किसी चापलूसी के चक्कर में ना आएं।
इन लोगो की राष्ट्रवाद की परिभाषा यही हे की राष्ट्र इनके बाप दादाओ की छोड़ी हुई प्रॉपर्टी हे जिस पर सिर्फ इन्ही का हक़ हे पाठको ध्यान से देखे पता कर ले की इस देश में सरकार चाहे किसी की भी रही हो मगर सबसे अधिक पैसा इन्ही लोगो और इनके समर्थको के पास रहा हे लेकिन क्या सद्पयोग किया हे भला इन्होने उस पैसे का कभी ? ना फंसे इनके चक्कर में ” मोदी हटाओ नितीश लाओ ”
लेखक तो बिलकुल जिद पकड़ कर बैठ गए है…मोदी हटाओ नितीश लाओ..आखिर नितीश के आने के बाद क्या होगा. देश की सब समस्याएं खत्म हो जाएंगी…क्या गॅरन्टि है को उनके सत्ता में आने के बाद सब कुछ सही हो जाएगा…आज नितीश कुमार सत्ता के लालच में मान्यता प्राप्त भरष्टाचारि लालू से मिला लिए….कल को किसी और अपराधी भरस्ताचारि से हाथ मिला सकते है…नितीश कुमार का अहंकार जगजाहिर है. वो मोदी से ईर्ष्या करते है…असली समस्या वाही है…
और रही बात बढ़ती या घटी सम्प्रदायिकता की वो तो इस देश में हमेशा से थी आज भी आगे ही रहेगी…इस देश में सम्प्रदायिकता तो कोई मुद्दा ही ही है….वो भाजपा आरएसएस की देंन नही है.. इस देश में हिन्दू मुस्लिम मतभेद हमेशा से थे…पर उसे स्थायी बना दिया महात्मा गांधी और उनके रास्ते पर चलने वालो . ने…असल जिम्मेदार वाही लोग है….जो बिलकुल भी दूरदर्शी किस्म लोग नही थे….
CM के लिए नहीं PM के लिए वोट करे बिहार की जनता—- वाह हयात जी बडी पोजेटिव सोच है आपकी | वैसे पहले ये तो कन्फर्म कर लिजिये कि कही आपके घोर सेकुलर नेता आपको रोता बिलकता छोड कर कल फिर सन्घि खेमे मे ना चले जाये
नितीश कुमार ने समझोता नेहरूवादी अटल की भाजपा के साथ किया था ना की संघियो के साथ अटल जी सिर्फ नामात्र के संघी थे असल में तो वो एक नेहरूवियन ही थे दुनिया जानती हे दूसरा की नितीश अगर चाहते तो मोदी की भाजपा के साथ रहते तो हो सकता हे की बहुत अधिक फायदे में ही रहते हे बिहार तो उनके कब्ज़े में रहते ही लोक सभा की भी 20 सीटें आराम से जीत लेते जब पासवानो और कुशवाहो तक ने सात आठ सीटें जीत ली पासवान का कमअक्ल लड़का ( देखो उसकी फिल्म पीटो सर ) तक लोकसभा पहुंच गया ? तो नितीश अगर मोदी से हाथ मिला लेते तो फिर बीस पचीस सीटें नितीश कुमार की भी पक्की थी फिर कौन जाने की मोदी सरकार बहुमत के लिए नितीश पर निर्भर रहती मगर नितीश ने उसूलो पर अडिग रहते हुए मोदी से हाथ मिलाने से साफ़ इंकार कर दिया में भी मानता हु की चाहे जो हो उसूलो पर अडिग रहना चाहिए इसका लाभ बाद में दीखता हे
बात तो आपकी भी सही है लेकिन ये सत्ता का सुख इन्सान को बहुत नीचे गिरा देता है अब अपने सपा प्रमुख को हि देख लो कभी इन्होने कारसेवको पर गोलिया चलाई थी और अब अन्दर खाने हि सही पर सन्घियो ये मिल गये है
नितेीश जेी और उसुल ?
दोहरेी बात !
अज् के जमाने मे कौन् नेता उसुल वाला है ? भाजपा के लिये नितिश जेी तभि तक अच्हे थे जब् तक् उन्के साथ थे ! नेीतिश जि भ्रश्त सजा याफ्ता लालु जेी से मिल कये तब भि उसुल वादेी ?
कमाल है पक्श्पात् का !
यहेी नितिश जेी गुजरात कान्द के बाद मोदेी जेी कि तरिफ कर चुके है !
राम जन्म्भुमि के नेता आद्वानेी जि अब क्यो भले लग्ने लगे वह भेी सन्घेी है !
अतल जेी स्न्घेी न होते तो वह भेी प्रधान मन्त्रेी नहि बन पाते !
आज् अगर मोहन भाग्वत जेी भजपा के नेता बन जाये तो आप जैसे कोग फिर मोदेी जेी कि तरेीफ कर्ने लगेन्गे जैसे आज् आद्वनेी जोशेी जेी जेी कि तरिफ करते है !
भज्पा का हर नेता सन्घ के खुन्ते से बन्धा हुआ है जरा सा इधर उधर हुआ तब वह बज्पा का नेता नहि रहेगा ! मधोक गद्करेी आद्वानेी मिन्तो मे हताये गये थे !
उसूल ?
नितीश कुमार जी और उसूल 🙂
जिन लालू जी के जंगल राज की बुराई करते-२ नितीश जी का मुह दुःख रहा था उन्ही लालू जी से समझौता कर लिया ?? …।
क्या उसूलो की यही परिभाषा हे आपकी नज़र में ??
दुनिया भर में इसे अवसरवादिता कहते हे और ऐसा करने वाले को अवसरवादी यानी मौका-परस्त। …. या यु कहे कि थाली का बैंगन जो किसी भी तरफ लुढक सकता हे। ….
लालू जी से गठबंधन करके नितीश जी ने लोगो का भरोसा खो दिया हे बेशक उनको सत्ता मिल जाए मगर लोगो का भरोसा किसी कीमत पर नहीं मिल पायेगा। …।
इससे बढ़िया तो मोदी जी हे जिनकी पार्टी ने लोकसभा चुनावो में पूर्ण और स्पष्ट बहुमत मिलने के बाद भी अपने छोटे-२ सहयोगी पार्टियो को केबिनेट में जगह दी !!… लोगो का भरोसा और सहयोगियों का भरोसा दोनों ही उनके साथ हे
केजरीवाल के नाम के भी कसीदे पढ़ते हे जबकि हकीकत में आज दिल्ली में डेंगू के मरीज १०००० पार कर गए हे उसकी वजह भी जनाब का अड़ियलपन हे , वजह सफाई कर्मचारियों की रोकी गयी जिस कारण उन्होंने “वेतन नहीं तो काम नहीं” का रवैया अपनाया और दिल्ली में कूड़े के ढेर लग गए जिसका साइड इफ़ेक्ट आज डेंगू हे !!
This comment is for Hayat bhai , wrongly posted in Raj bhai’s post. inconvenience caused is regretted.
किसी भी सभ्य समझदार लोकतांत्रिक सेकुलर भारत के प्रेमी के लिए इस समय एक ही मकसद सबसे ऊपर होना चाहिए हे और हे भी की ” मोदी हटाओ देश बचाओ ” उसके लिए लालू तो क्या शैतान से भी हाथ मिलाने में कुछ गलत नहीं हे देश इस इस समय गंभीर संकट में जा रहा हे गुजरात से एक बार फिर एक ” जिन्ना ” भारत की एकता और सेक्लुरिस्म पर खतरा बन चूका हे उससे देश को बचाने के लिए नितीश ने लालू से हाथ मिला भी लिया तो क्या गलत किया लालू सिर्फ बिहार के लिए खतरा हे जब की” नया जिन्ना ” बिहार ही नहीं पुरे भारत की आत्मा पर खतरा बन चूका हे यही तो हम कह रहे हे की पहले भी ( 1857 – 1942 74 आदि ) बिहार ने अपना नुक्सान करके भी देश को फायदा करवाया इस बार उन्हें फिर से वही फ़र्ज़ नीभाना हे वैसे मुझे उमीद हे की नितीश लालू एंड पार्टी को काबू रखेंगे लालू के लिए भी यही बेहतर होगा की चुपचाप नितीश के पीछे जिंदाबाद के नारे लगाते चले वार्ना उनके और उनके बच्चो का कोई भविष्य नहीं हे
आप हमें क्या कोई भावुक लल्लू समझ रहे हे क्या भाई ? हम कुछ सोच समझ कर ही नितीश को समर्थन दे रहे हे . कहा मुलायम कहा नितीश कुमार जमीं आसमां का फर्क हे मुलायम के ऊपर आय से अधिक सम्पत्ति के जातिवाद के परिवारवाद फिर कुनबावाद के साम्प्रदायिकता के तरह तरह के आरोप ? कहा नितीश कुमार जिनके ऊपर एक भी आरोप तक नहीं एक फेस चाहिए हे जिसे मोदी के सामने खड़ा किया जा सके इसके लिए नितीश ही सबसे उपयुक्त हे ये बात सबसे पहले बिहार की जनता को समझनी चाहिए लेकिन हां अगर बिहार को अपने यहाँ से कोई पी एम चाहिए ही नहीं वो गुजरातियो की ख़ुशी में खुश हे तो ठीक हे उनकी मर्जी में तो मुज्जफरनगर का हु हमारे इलाके से तो बहुत पहले चरण सिंह पि एम बन ही चुके हे और यु पी से तो खेर कई रहे हे
मम्ता ,ललिता, मुलायम, शरद , रहुल सोनिया लालु, केज्रिरेी वाल आदेी कभि भेी नितिश को आगे नहेी करेन्गे जद कि रज्निति सिर्फ बिहार मे है पुरे देश् मे नहेी
भाजपा उस्से कई गुना बदेी पारतेी है और सन्घ के साथ होने के कारन मोदेी जेी पेी एम बन पाये है ! वर्ना आदवनेी जेी पेी एम् बन्ते !
अगर उन्केी उम्र कम होतेी
इतिहास गवाह है की अहंकार और ईर्ष्या बड़े बड़े लोगो को ले डूबता है…नितीश कुमार उसी ईर्ष्या अहंकार का शिकार हैं…. सन् २००७ के गुजरात चुनाव से पहले तक उन्हें नरेंद्र मोदी से कोई परहेज़ नही था….पर जब उन्होंने देखा की ये भी स्टेट का मुख्यमन्त्री और मैं भी…ये इतना लोकप्रिय देश में…मैं नही …जैसा की मानव स्वाभाव है…ईर्ष्या अहंकार मानव कमजोरी है वो नितीश में जाग गयी….जो बिहार प्रगति पथ पर भाजपा जदयू के साथ बढ़ रहा था नितीश के अहंकार शिकार का शिकार हो गया…
नितीश कुमार इतने ही सिद्धांतवादी थे तो सत्ता के लिए लालू से हाथ मिलाते क्या…वो भी एक अवसरवादी नेता है जो सिधांत खुद बनाकर अपनी मर्ज़ी से बदल लेते है….उन्हें प्रधानमन्त्री बनाएगा कौन ये लालू मुलायम ममता….या इर् कांग्रेस….२० सीट लेके ये पीएम बनेगे तो चारो तरफ से टांग खीचाइ होती रहेगी…फिर हो गया देश की तरक्की…..
2007 से पहले कहा किसी ने सोचा था की मोदी भी पि एम बन सकते हे हुआ ये की तब की कांग्रेस सरकार पर जब तरह तरह की वाम गांधी वादी और समाजवादी ताकतों के प्रभाव से नाराज़ होकर तब ही छोटी और बड़ी बड़ी पूंजीवादी पैशाचिक ताकतों ने मोदी पर नज़र गड़ा दी थी इन्हे ऐसा ही आदमी चाहिए होता हे जो एक तो तानाशाह टाइप का हो ताकि जल्दी जल्दी काम और फैसले दूसरा की जो आम जान का ध्यान असली मुद्दो पर से बिलकुल हटा दे ताकि इनकी लूट पर ध्यान न जाए अब देखिये एक तरफ दाल प्याज़ बिज़ली में लोट रहे हे दूसरी तरफ जनता को गाय के पीछे लगा रखा हे मोदी का पि एम बना बहुत सारी साज़िशों का नतीजा वार्ना तो इतनी सीटें तो आडवाणी भी बड़े आराम से 2014 में नितीश ममता नायडू नवीन को साथ लेकर ले ही आते बड़े आराम से .
आद्वानेी कब से अच्हे हो गये ?
फिर तो कभेी मोदेी भेी अच्हे हो सक्ते है
मोदि भेी कैन्सर् या एद्स् नहि है
कल्पित श्रेी इब्लेीस जेी भेी नहि है
सिर्फ रज्नैतिग्य् मात्र् है मुद्दो को’ भुना’ लिया करते है .
आप एक खफ्ती इंसान हे जो पिछले दिनों हुए हिंदुत्व और शाकाहार के नाम पर हुए हल्ले और इंसानो की हत्याओ से बेहद खुश और मुदित हे ..मुद्दो की आपको कोई समझ नहीं हे मोदी की सारी बुराइयो का राज़ उनकी दस पन्दरह साल सत्ता में बने रहने की प्यास हे जबकि आडवाणी पि एम बनते तो वो अटल के स्टाइल में ही चलते और उम्र की इस साँझ में उन्हें अगले चुनाव जितने की परवाह नहीं करनी होती और मोदी से बहुत बेहतर पि एम साबित होते वैसे खेर अब तो साबित हो ही गया हे की आडवाणी ही नहीं नितीश सुषमा जेटली राहुल आदि हर कोई मोदी से अधिक बेहतर पि एम सिद्ध होता मोदी जी जैसा कम्युनल असहिष्णु और आत्मुग्द कोई और हे ही नहीं हे
दुनिया ज्हुकतेी है ज्हुकाने वाला चाहिये कभि आप शायद आदवनेी के भेी विरोधेी रहे होन्गे आज उन्केभेी भक्त् हो गये कभेी ऐसा हाल मोदि जि से भेी हो सक्ता है अगर मोहन भागवत् जेी उन्के मुकाब्ले मे जये !
हम् कभेी किसेी कि मौत पर खुश् नहि होते यहि आप्कि भुल है !
बड़े ही दुःख की बात हे की बड़ी बड़ी पूंजीवादी ताकते बार बार बार अपनी एक ही गलती दोहराती हे और अपने सहित आम जनता को भी भारी नुकसान करवाती हे यूरोप में कम्युनिस्टों को रोकने के लिए फासिस्टों नाज़ियों को आगे किया एशिया अफगानिस्तान में साम्यवाद को थामने के लिए तालिबान का राक्षस खड़ा किया बंबई में मज़दूर आंदोलनों को कमजोर करने के लिए शिवसेना को खड़ा किया और अब भारत की बढ़ती असमानता पर जनता के रोष की दिशा मोड़ने को हज़ारो करोड़ खर्चा करवा कर भारत जैसे देश को सबसे संकीर्ण पि एम दिया
‘विकास के पप्पा’ के साशनकाल में फिर से बिहार में लूट, मर्डर, अपहरण, और घूसखोरी अपने चरम पर है ! जनता को बेवकूफ बनाने में नितीश और उनके ‘चाहने वाले’ मोदी और मोदी भक्त से भी दो कदम आगे है !
”लूट, मर्डर, अपहरण, और घूसखोरी ‘ ‘ मोदी राज़ में इनके साथ साथ बोनस के तौर पुरे देश महगाई साम्प्रदायिकता और सीमा पर बेगुनाह लोग इस सरकार की छप्पन इंच की तोंद की सनक में मारे जा हे इसलिए मोदी हटाओ देश बचाओ और मोदी जी को हटाने के लिए नितीश ही उपयुक्त चेहरा हे बिहार चुनाव जीतते ही नितीश राष्ट्रिय नेता हो जाएंगे नितीश केजरीवाम वाम और राहुल का घटबन्धन फिर सरकार बनाएगा जो जनता को भारी राहत देगी सब लोग खुल कर इनका साथ दे कायर बज़रंगियो संघियो से डरे या दबे नहीं कैफ़ी आज़मी के शब्दों में ” दूर से देखो ना धधकते हुए शोलो का जलाल इसी दोजख के किसी कोने में जन्नत होगी ” मोदी जी और इस संघी सरकार के हटने के बाद ये देश वाकई जन्नत लगने लगेगा
क्या मोदेी के पहले यह् देश कल्पित जनन्त था? जो मोदेी के जाने के बाद हो जायेगा
अभि बिहार मे करेीब् १५ दिन चुनव प्रचार् सकता है नितिश जि के विशेश सहयोगियो को चाहिये कि वह जेी जान लगाकर् बिहार मे चुनाव प्रचार करे १
साथ् मे देखे कि नितिश जि केी पारतेी अप्ने सहयोगेी लालु जि से कितना जय्दा धन् चुनाव मे खर्च् कर रहि है ! भाज्पा तो धन्वनो कि पर्तेी है हेी लेकिन नितिश् जेी के पास इत्ना धन् कहा से आया ? जरुर धन पिपासु पुन्जि पतियो से मिल्ता है वह भि नितिश जेी से कई गुना वसुल् करेन्गे
नितिश जेी के विशे श खुशम्दियो को चहियेकि वह नितिश् जेी को पि एम बन्वा पाये य न् बन्वा पाये १
कम् से कम कल्पित जनन्त तो उन्को दिल्व दिज्ये दर्गाहो मे जऐये, मस्जिदो मे जऐये, देव्बन्द भेी चले जऐये , इममो से मनन्ते मन्ग लिजिये कल्पित कुरानेी अल्लाह से मनन्त मन्ग् लिजिये ! भले हेी मोदि जिन को कल्पित जहन्नुम दिल्वा दे
लेकिन नितिश जि को जरुर् कल्पित जन्नत केी याद रखियेगा !
हम्को यह्पता नहेी है कि इन भ्रश्त नेतओ का पक्श लेने से कल्पित अल्लह को कल्पित् खुशेी मिलतेी है कि नाहेी !
नितीश ही बिहार के लिए सही है क्यों के वे ही विकास कर सकते है बस इस बात का दर है के कही लालू जी डिस्टर्ब न करे.
नितीश कभी टीचर को तो कभी डॉक्टर को पिटवा देते है ! तो कभी सांख्यिकी कर्मचारियों को ‘उठा कर बाहर फेकने’ की बात करते है ! क्या ये सभी ‘विकास ‘ करके बिहार एवं भारत का उद्धार करना चाहते है.?
मत भूलिए की ये सभी (टीचर, डॉक्टर, वकील, इत्यादि ) भावी समाज का निर्माण करते है और नितीश की नजरो में इनकी कोई औकाद नहीं ! तो फिर कैसे बिहार देश में अपना योगदान देगा ? दिन दहाड़े डॉक्टरों का अपहरण हो रहा है और प्रदेश सरकार अपना सर का बोझ दुसरो के सर पर डालकर अपना पलड़ा झाड़ रही है !
हयात भाई याद रखिये कि नितीश जी, लालू जी, मोदी जी राजनेता हे हयात भाई याद रखिये कि नितीश जी, लालू जी, मोदी जी राजनेता हे और भारतीय राजनीति उसूलो पर नहीं चलाई जाती क्योकि यहाँ की काफी जनता भी जातिवाद, क्षेत्रवाद, धर्मवाद और भाषावाद की अफीम की पिनाक में मदहोश हे। ……. उसूल शब्द का मजाक मत बनाइये वार्ना आपका मजाक बनते देर नहीं लगेगी। ….
आप किसे भी सपोर्ट कीजिये कोई बात नहीं ये आपका हक़ भी हे पर जिस रास्ते पर आप डटे हुए हे वह अवसरवादिता की तरफ जाता हे उसूलो वाला रास्ता इससे एकदम अलग होता हे। …कश्त के लिए क्षमा
मेने उसूलो की बात नितीश दुआरा मोदी पर किसी हाल में समझोता ना करने के संदर्भ में कही थी भला बताइये इसमें क्या शक ही की अगर नितीश मोदी से हाथ मिला लेते तो बिहार के साथ साथ लोकसभा में भी मोदी के बहुमत की चाबी नितीश के पास हो सकती जब लोकसभा चुनाव में कांग्रेस विरोध और मोदी प्रोपेगेंडा लहर में चिराग पासवान जैसा ——- तक संसद में पहुंच गया तो फिर मोदी के साथ रहने पर नितीश के बीस पचीस सांसद से कम तो क्या आने वाले थे ? नितीश ने उसूल पर रहना का नुक्सान उठा कर दिखया या नहीं ? आपकी बाकी बाते अपनी जगह हे मगर इस समय ”आपदा धर्म ” कहता हे की इस आज मोदी हटाओ अभियान सबसे जरुरी हे और नितीश कुमार जीतते ही मोदी जी के लिए बड़ी चुनौती बन जाएंगे भाजपा में भी बगावत हो सकती हे
मेरा भारत! (सॉरी, इंडिया)
एक महान देश, जो कि अब से सिर्फ 18 महीने पहले तक सुशासन, धार्मिक सद्भावनाओं से ओतप्रोत था, एक ऐसा देश जहां सबको अभिव्यक्ति की पूर्ण आजादी थी, यहाँ तक कि किसी भी पुस्तक, मूवी अथवा नाटक पर कोई रोक नहीं लगी।
जहां किसी ने भी “जाति” का नाम तक नहीं सुना था और ना ही “धर्म” का। वहां कभी कोई भूखा नहीं सोया, और गरीबी का नामोनिशान तक न था।
सारे किसान सम्पन्नता के साथ जीवन यापन कर रहे थे, और आत्महत्या जैसी सोच भी नहीं थी।
इस देश में 18 महीने पहले तक किसी ने भी भ्रष्टाचार, हत्या, बलात्कार इत्यादि शब्द भी नहीं सुने थे।
साम्प्रदायिक दंगे, खून-खराबा तो पता भी नहीं था। किन्ही कारणों से इस देश में सन 1947 और सन 1984 पहुंचे ही नहीं, और इसीलिए, विभाजन के दंगे और सिख-विरोधी दंगे जैसा कुछ हुआ ही नहीं।
पर हाँ, सन 2002 जैसा जघन्य काण्ड जरुर हुआ था गुजरात जैसे पिछड़े इलाके में, जहां मात्र कुछ लोगों को ट्रेन में ज़िंदा जलाने की छोटी सी घटना के कारण हजारों लाखों लोगों को मार दिया गया था। वही एक बदनुमा धब्बा इंडिया के सदियों से साफ़ और सेकुलर कपड़ो पर लगा था।
वरना तो कश्मीरी पंडित कितने आराम से जम्मू-कश्मीर की घाटियों में पड़ोसियों के साथ मिलजुल कर रह रहे हैं, और घाटी से जातिगत सफाया जैसी कोई बात हुई ही नहीं।
आतंकवादी हमले, बम धमाके जैसी बातें भी कभी कहीं नहीं हुई।
इंडियन लोगों को दुःख, दर्द, गरीबी वगैरह पता भी नहीं थी। हाँ अगर कोई जानना चाहता था तो सूडान फिलिस्तीन इत्यादि देशों में जाकर जरुर पता कर लेते थे।
इतना महान था मेरा इंडिया।
जारी……
दुर्भाग्यवश, इंसानियत के दुश्मनों से हमारी ख़ुशी देखी नहीं गई।
मुझे आज भी याद है 16 मई, 2014 का वो काला दिन – जब एक फासीवादी कट्टर हिन्दू नरेन्द्र मोदी, किसी तरह से इस देश का प्रधानमंत्री बन गया।
बस उस दिन से ही इंडिया में गरीबी, साम्प्रदायिक द्वेष-दंगे, किसान-आत्महत्या, धार्मिक-जातिगत-लैंगिक भेदभाव, हत्याएं, बलात्कार, कर-चोरी, राहजनी और यहाँ तक कि सड़क पर थूकना और गन्दगी फैलाने जैसी सामाजिक बुराइयां भी- और वो सब जो आप सोच सकते हो -इतिहास में पहली बार – होने लगीं!!
इसी कट्टर इंसान मोदी की देखरेख में, धार्मिक भेदभाव ने अपनी सारी सीमाएं पार कर दी। हर रोज हजारों लोग मारे जाने लगे, और यही रफ़्तार रही तो 2019 तक इंडिया में कोई वोट तक देने को नहीं बचेगा।
कई महान इतिहासकारों और आदर्शवादी खुले विचारों के पैरोकारों ने तो इस युग को तालिबानी (एक सामाजिक संस्था जो कि बिना धर्म वाले आतंकवादियों ने स्थापित की है) भी कहा है।
वैसे तालिबान इस तुलना से इतना आहत हुए हैं कि वे चाहते हैं कि एक सामाजिक श्रेष्ठ नेता इनके लिए एक “धरना” जरुर आयोजित करवाएं।
हम ज्ञानवंत नागरिक अब ये जान गए है कि – हमारे कब्ज से लेकर, रेलवे के अवरुद्ध शौचालय तक- हर बात के लिए प्रधानमत्री मोदी ही व्यक्तिगत रूप से जिम्मेदार हैं। मैं स्वयं इस बात से क्षुब्ध हूँ कि मेरे घर की सीढियों पर पड़ी पान की पिचकारी पर अभी तक क्यों मोदी ने कोई वक्तव्य नहीं दिया। इस देश में हर एक गलत चीज के लिए सिर्फ और सिर्फ प्रधानमंत्री ही दोषी है, और कोई नहीं।
ओह मेरे प्यारे इंडिया, तुमने आखिर ऐसा क्या कर दिया जो तुम्हें इतनी बड़ी सजा मिली।
मैं उम्मीद करता हूँ कि मोदी जल्द से जल्द अपना इस्तीफा दें, ताकि हमारे जैसे आदर्शवादी बुद्धिवादी जल्द ही अपने पुराने स्वर्ग जैसे दिनों में जा सकें – जो कि गांधीवंश के महान, चिर युवा, बुद्धिमान, जवां दिलों की धड़कन श्री राहुल गांधी के नेतृत्व में – लालूप्रसाद यादव, ओवेसी, नितीश कुमार, केजरीवाल जैसे अपार समर्थन प्राप्त, उच्च शिक्षित बन्धुओ के साथ ही मिल सकता है ।
भला कौन बेवकूफ कह रहा हे की अठरह महीने पहले बहुत अच्छे हालात थे दिखाओ ? तब भी बुरे हालत थे मगर हालात को बद से बदतर किसने बनाया ? मोदी जी ने ? सीमा पर आर पार हज़ारो लोग किसकी खफ्त में मारे गए ? महगाई पहले भी थी मगर दवाइया प्याज़ दाल के नए नए कीर्तिमान किसने बनाये ? कांग्रेस सरकार भी बहुत बुरी थी मगर तब कम से कम से असली मुद्दे तो चर्चा में थे असली मुद्दो को छोड़ कर देश को गाय बीफ घरवापसी लवजिहाद की सनक में किसने उलझाया इसमें क्या शक हे किसने गुजरात से निकले एक और जिन्ना ने कोई शक ? पुराने जिन्ना के बारे में भी एक अँगरेज़ ने कहा था की में हैरान हु की इतनी छोटी सोच का इंसान इतने ऊँचे पद पर कैसे पहुंच गया ? आज भी वही हाल हे ? और हां जो आपने लास्ट लाइन में लिखा तो सुन लीजिये चाहे वो ओवेसी हो या मुलायम ये मोदी खेमे के ही लोग हे हे
मोदी जी के चुनाव में कम से कम तिस हज़ार करोड़ के खर्चे का आरोप हे ये किसकी जेब से गया ? चुनाव के बाद प्याज़ दाल दवाइयों की महगाई से कम से कम एक लाख करोड़ रुपया हमारी जेबो से निकल गया होगा ये किसकी जेब में गया ? मोदी जी की सबसे अधिक तारीफ़ डाइरेक्ट करप्शन रोकने पर हो रही हे सही कहा डाइरेक्ट करप्शन नहीं हो रहा हे डाइरेक्ट नहीं सही हे
Anil Singh : अब अडानी पोर्ट की कमाई दाल आयात से… राजनीति में घाघ वो जो अवाम की नितांत निजी भावनाओं का भी सार्वजनिक इस्तेमाल कर डाले और धंधे में घाघ वो हर संकट में मुनाफे का मौका ढूढ ले। इस मामले में मोदी और अडानी की जोड़ी कमाल की है। दाल के दाम 200 रुपए तक पहुंच गए। अगली फसल जनवरी-फरवरी के पहले आएगी नहीं तो आयात करने की मजबूरी है। इसे ताड़कर अडानी पोर्ट ने इंडिया पल्सेज एंड ग्रेन्स एसोसिएशन के साथ एमओयू कर डाला है कि देश में दाल का सारा आयात उसी के बंदरगाहों से होगा। यह एसोसिएशन क्या है और अडानी को धंधे का यह मौका दिलाने में मोदी जी की कितनी कृपा रही है, इसका पक्का पता नहीं। लेकिन कोई किसी को चुनाव प्रचार के लिए निजी हेलिकॉप्टर यू ही तो मुफ्त में नहीं दे दिया करता।
संघकी विचारधारा को अशोक वाजपेयी ने बाँझ क्यों कहा ? ये पढ़िए देखिये कैसे कैसे नमूने मोदी सरकार का समर्थन और पुरुस्कार लोटा रहे साहित्यकारों का विरोध कर रहे हेhttp://khabar.ibnlive.com/blogs/harish-chandra-barnwal/harish-barnwal-blog-on-award-return-controversy-418741.html और देखिये की इधर अर्णव ने राकेश सिन्हा को संघ खेमे का सबसे काबिल प्रवक्ता बताया ( इसकी वजह उनकी अच्छी अंग्रेजी भी हो सकती हे अंग्रेजी वालो के लिए इतना ही काफी भी होता हे ) उधर ये राकेश सिन्हा दादरी को स्थानीय घटना बता रहे हे जरा खुद ही सोचिये की अगर ये स्थानीय घटना होती तो क्यों दुनिया भर का मिडिया इसे चर्चा का विषय बनाता ? इतना तो चर्चा मुजफरनगर दंगो की भी विश्व में नहीं हुई थी क्यों कि वो फिर भी दंगा था दंगे सारि दुनिया में होते हे . मगर दादरी की घटना हिन्दू तालिबानों की वहशियत और हौसलों का नमूना था जिनके नेता और आदर्श और संरक्षक खुद पि एम मोदी हे इसलिए ये घटना इतनी चर्चा का विषय बनी इतनी सी बात संघ के खेमे के सबसे बड़े बौद्धिक को पल्ले नहीं पड़ी
http://khabar.ibnlive.com/blogs/harish-chandra-barnwal/harish-barnwal-blog-on-award-return-controversy-418741.htmlआज भारतेंदु जी की आत्मा तड़प रही होगी की कैसे कैसे चाटुकारो को उनके नाम का अवार्ड मिल गया हे जो ये संघी फेसबुकिया बड़ बड़ा रहा हे सेम यही बात ये अवार्ड विनर भी बक रहा हे एकदम बकवास इन्ही इतनी भी समझ नहीं की देखिये ये अवार्ड विनर लिखते हे ”——- यकीन नहीं है आम जनता बहुमत से जो फैसला करती है, उसकी लोकतंत्र में इज्जत करनी चाहिए।” इस आदमी को इतनी भी मामूली समझ नहीं की लोकतंत्र में चुनी गयी भारी बहुमत की भी सरकार को भी मनमानी या तानशाही का अधिकार नहीं हे और ये बात मोदी से सौ गुना बड़े नेता नेहरू ने अपने अपार बहुमत के बाद भी खुद ही लोगो को बताई थी की मेरा विरोध करने का तुम्हे पूरा पूरा हक़ हे नेहरू के सामने शया परसाद मुखर्जी कहते थे की उन्हें 35 सांसद मिल जाए तो वो नेहरू का दिमाग सही कर देंगे भारी बहुमत की सरकार के सामने मुखर्जी का ये रवैया भी लोकतंत्र ही था खुद नेहरू इसे सही मानते थे साहित्यकार इस सरकार को बदनाम करके इस सरकार को हटाना छह रहे हे तो ये उनका लोकतान्त्रिक हक़ हे बहुमत मिलने से किसी को पांच साल तांडव करने की इज़ाज़त नहीं हे साहित्यकार इस बदनाम सरकार की बदनामी को घर घर तक पंहुचा कर सांसदों और पार्टी को मज़बूर करना चाह रहे हे की वो मोदी से देश को छुटकारा दिलवाए वार्ना हर के लिए तैयार रहे तो तो बिलकुल ये लोकतंत्र ही हे लेकिन हिटलर के छुटभय्ये चेलो के दिलो में छुपा हुआ तानशाही के प्रति आकर्षण ही दीखता हे की वो चाह रहे की पांच साल तो मोदी को तानाशाही करने दो
तो यह माना जाये सिकंदर भाई कि अब आप एक राजनैतिक दल के समर्थन में लिखने लगे हैं. यानि आपकी लेखनी निष्पक्ष नहीं है… आप मोदी जी के अंध विरोध में उनके अंधभक्तों से भी आगे निकलने की कोशिश में हैं.
वास्तव में लेखन का स्तर गिराकर हम अपनी कलम को ही दूषित करते हैं, राजनीति तो पहले से ही घनघोर प्रदूषित है.
पत्रकारिता के प्रति समर्पित लेखक का सबसे पहला गुण होना चाहिये तटस्थता. सिक्कों के दोनों पहलुओं पर विचार कर अपना मंतव्य रखना, बिना किसी पक्ष के प्रति अनुग्रह या दुराग्रह रखे.
हमने और शरद भाई ने आरंभ में केजरीवाल जी के भ्रष्टाचार विरोधी विचारों का समर्थन किया था. पर उनके राजनीति में उतरने पर स्थितियाँ बदल गयीं. हम मोदी जी के भी समर्थक नहीं, पर अनावश्यक आरोप प्रत्यारोप से सदा दूर रहते हैं.
प्रधानमंत्री पद की गरिमा होती है, प्रधानमंत्री देश का अघोषित मुखिया होता है. हमें भी डॉ. मनमोहन सिंह पसंद नहीं थे, पर उनके प्रति असम्मान या अंधविरोध हमने कभी नहीं किया. और शायद उस दौर में अधिकतर लेखकों ने इस मर्यादा का पालन किया था. पर अब हम देख रहे हैं कि लेखन का स्तर गिरता जा रहा है.
जब तक आप लेखक होते हैं, तब तक भी ठीक है कि आप किसी का समर्थन करें, पर संपादक होने पर आपका उत्तरदायित्व बढ़ जाता है. अफजल भाई काफी हद तक निष्पक्ष हैं, पर आपकी लेखनी में आपके पूर्वाग्रह झलक जाते हैं.
कृपया, मंथन कीजियेगा, हम चाहेंगे कि सिकंदर हयात की लेखनी शफ्फाक हो, चिरजीवी हो, शाश्वत हो, सनातन हो. हमारे (स्व.) अपलम भाई की लेखनी की तरह…
वैसे, पत्रकारिता का उत्तम नमूना देखना हो तो यह देखिये… एक पाकिस्तानी पत्रकार का आईना दिखाता आर्टिकल…
http://www.dawn.com/news/1214869/why-pakistanis-and-indians-are-in-no-position-to-mock-each-other
रन्जन सर, लगता हे कि हयात भाई के लिये “मोदी हटाओ” मुद्दा नहेी बल्कि जिन्द्गेी का इकलोता मिशन हेः)
घोटालेबाजो से हाथ मिला कर उनके तलवे चाटने वाले नितीश जी आज हयात भाई को चमत्कारी नेता नज़र आने लगे हे:)…खुदा खैर करे
सही पकड़े हैं…
मुझे तो लग रहा है की कही अन्ध विरोध मे ये (हयात भाई माफ करे) अन्ध भक्तो कि भाति मानसिक रोगी ना बन जाये
लोहा ही लोहे को काटता हे
लोहे को आग मे तपाकर् नया शेव { रुप } भेी दिया जाता है
लोहा ,लोहे को कातता भेी है तभेी जब उस्को कई गुना जुल्म{ या बदला } करना होता है !
रंजन सर ऐसा क्यूँ हो रहा है कि इससे पहले बुद्धिजीवियों ने कभी इतना विरोध नही किया, या सीमा रेखा नही लांधी. जिस मर्यादा के उल्लंघन की आप बात कर रहे हैं, उसी सवाल मे इसका जवाब है. कुछ तो ग़लत हो रहा है, जो आज देश की आम जनता को समझ नही आ रहा. लेखको और साहित्यकारो को क्यूँ घुटन हो रही है, सोचो. पहले ऐसा क्यूँ नही हुआ?
जिया उल हक का दौर भी ऐसा था, जब कई आँकड़े आर्थिक विकास को दर्शा रहे थे. बुद्धिजीवी चिंता जाहिर कर रहे थे. सरकार, शिक्षा जगत को दक्षिणपंथी और राष्ट्रवाद का स्वरूप देने की कोशिश मे लगी थी, लेकिन मूर्ख जनता साथ दे रही थी, जिया उल हक की आलोचना करने पे आप गद्दार घोषित हो जाते थे, विज्ञान की तरक्की को इतिहास के मिथको से गढ़ा जा रहा था.
लेकिन आज पाकिस्तान जितना बदसूरत हो गया, उसकी नींव उस समय पड़ गयी थी. जिया उल हक से पूर्व पाकिस्तान, आज की तुलना मे उदार और प्रगतिशील था. फिल्म और कला जगत भी भारत की टक्कर का था.
क्या हम भी अपनी इन 60-65 सालो की मजबूत नींव पे आज हथौड़ा नही मार रहे, बुद्धिजीवियो की चिंता को राजनैतिक षड्यंत्र करार देके?
जाकिर भाई, हमें भी ताज्जुब इसी बात का है. हमने आपातकाल का काला दौर देखा था, जिसमें कई लेखकों और कलाकारों को जेल में डाल दिया गया था, “आँधी”, “किस्सा कुर्सी का” जैसी कलात्मक फिल्मों को बैन कर दिया गया, जला दिया गया. “किस्सा कुर्सी का” के निर्माता निर्देशक अमृत नाहटा साहब को जेल में डाल दिया गया था. तब गुलजार साहब की संवेदना कहाँ गयीं थीं, जबकि आँधी उनकी ही कलाकृति थी?
आज तक हमने कभी गुलजार साहब के किसी साक्षात्कार में “आँधी” को लेकर किसी भी प्रकार का कोई वक्तव्य नहीँ सुना, क्यों?
दूर भी मत जाइये, अन्ना आंदोलन से जुड़े व्यंग्य चित्रकार असीम को तीन वर्ष पहले जेल में डाला गया, “चोर की दाढ़ी में तिनका” मुहावरे का प्रयोग करने पर चिल्लपों मचाई गयीं, शंकर के नेहरूकालीन कार्टून पर हंगामा खड़ा किया गया व एक विद्वान सांसद ने दिवंगत शंकर को जेल में डालने का अनुरोध किया, क्या ये सब अभिव्यक्ति की आजादी के प्रतीक हैं?
वैसे, साठ सत्तर सालों में अगर यहाँ प्रगतिशीलता आई है तो वह सरकारों के कारण नहीं, बल्कि तकनीक, जनता के समर्थन व निस्वार्थ काम करने वाले कलम के सिपाहियों द्वारा. लेकिन अफसोस कि बढ़ते बाजारवाद ने हर चीज को बिकाऊ बना दिया, अब कलम भी बिकने लगीं हैं और यही कारण है कि अधिकतर विरोध भी प्रायोजित हो रहे हैँ. हमें लगता है कि अधिकतर विरोध के स्वर नपुंसक हैं. क्यों नहीं अब कोई लेखक राग दरबारी जैसा कालजयी उपन्यास लिखता? क्यों नहीं “किस्सा कुर्सी का” जैसी बेबाक फिल्म बनतीं? यदि इस प्रकार से विरोध हो, तो हम उनके संग खड़े होंगे.
हम किसी भी प्रकार अभिव्यक्ति की आजादी के पर कतरने के विरुद्ध हैं, हमें लंदन का हाईड पार्क आदर्श लगा, जहाँ आप खड़े होकर कुछ भी कह सकते हैं और एक बॉबी आपकी आजादी सुनिश्चित करता है. बीबीसी लंदन ने सरकार के परामर्श तक मानने से मना कर दिया व इसे अपने सूचना देने के विशेषाधिकार के विरुद्ध माना. भारत में हम इस तरह के माहौल की कल्पना अभी नहीं कर सकते.
लेकिन, जिस कालखंड में “पाई पर पहरा और मोहरों की लूट” जैसे उदाहरण प्रस्तुत हो रहे हों वहाँ चुप बैठना ही श्रेयस्कर है.
वैसे एक बेहतरीन कहानी अभी अभी किसी ने फेसबुक पर भेजी है, सो पेश है…
“एक पिता की युवा औलाद एकदम नकारा थी । तंग आकर पिता ने ऐलान कर दिया, की आज से खाना तभी मिलेगा जब दिनभर में १०० रुपये कमाकर लायेंगा ।
माँ ने नकारे बेटे को चुपचाप १०० रुपये दे दिये और कहा, “शाम को आकर बोल देना की कमाये है ।”
शाम को लडका घर आया तो पिता को १०० रूपये दिखायें, पिता ने कहा इस नोट को नाली में फेँक आओं….. लडका तुरंत नोट नाली मे फेंक आया ।
पिता समझ चुका था की ये इसकी मेहनत की कमाई नही ।
पिता ने अपनी पत्नी को मायके भेज दिया, ताकि वो बेटे की मदद ना कर पायें । आज फिर बेटे को १०० रुपये कमाकर लाने थे, तो उस के पास मेहनत करके कमाने के अलावा कोई चारा ना बचा! शाम को जब वह १०० रुपये कमाकर घर लौटा, तो पिता नें फिर से उस नोट को नाली मे डालने को कहा, तो लडके ने साफ मना कर दिया.. क्यो की आज उसे इस नोट की कीमत पता चल गयी थी !!
#पुरस्कार लौटाने वाले लेखक और फिल्मकार इस पोस्ट को दिल पर ना लें…”
यानी रंजन सर गजेंदर चौहान जैसे महान अभिनेताओं के साथ हे जो ” बोल उछालती हुई कहा जा रही हो बैट तो मेरे पास हे ” टाइप डाइलोग की अमर फिल्मे करते हे
हम किसी के साथ नहीं हैं, जनाब. बस यही देख रहे हैं कि मूल्यों की गिरावट सभी ओर है, और अब यही कहने को रह गया है कि,
पावस आवत देखि के, भई कोकिलहिं मौन,
अब दादुर वक्ता भये, हमहिं पूछत कौन…
तो बस, यूँ समझ लीजिये…
सर जी मेने यहाँ ”आपदा धर्म ” शब्द प्रयोग किया हे ये शब्द सारी कहानी बयान कर रहा हे ? फिलहाल एक ही सबसे जरुरी मुद्दा हे मोदी हटाओ जब तक न हटे तब तक मोदी हराओ ताकि कौन जाने खुद भाजपा ही उन्हें हटा दे और इस अभियान के लिए नितीश ही सबसे उपयुक्त चेहरा हे मेने उनकी पार्टी का तो कही नाम तक नहीं लिया आप ही बताय अगर हमने हर हाल में 2019 में मोदी को हटाना हे तो सबसे उपयुक्त चेहरा कौन सा हे जिसे जनता को पेश किया जा सके ? वो सिर्फ नितीश ही हे उम्र अनुभव स्वभाव हर कसौटी पर देखे और कौन हे भला ? और अगर नितीश ने लोकसभा में पांच सौ सीटें भी जीत ली या पांच सौ करोड़ हमे दे देने का वादा किया तो भी हम ” भक्तो ” में नाम नहीं लिखवाएंगे ना किसी की भक्ति करेंगे और ये बार बार लोकतंत्र का सम्मान ना करने की धौस क्यों दी जा रही हे हमने या साहित्यकारों ने मोदी जी को हटाने के लिए कौन सी अलोकतांत्रिक हरकत कर डाली हेक्या कही से हमारे खातों मे हज़ारो करोड़ आये हे ? क्या हम नक्ससलियो की फ़ौज़ लेकर मोदी जी को हटाने की बात कर रहे ? लोकतंत्र में किसी को भी चुनाव जितने पर पांच साल तानाशाही का अधिकार नहीं हे उनके खिलाफ इतना जनमत भड़का कर उन्हें चुनावो में हरहराकर उनकी पार्टी और सांसदों की मददद से हटाना उन्हें रज़्य्सभा में बहुमत हासिल करने से रोकना पूरी तरह लोकतंत्र ही हे
और साइट का में संपादक फिलहाल सिर्फ नाममात्र का ही हु में सिर्फ और सिर्फ लेखन करता हु और कुछ नहीं
मोदी जी देश को सेकुलरिज़म को किस कदर नुक्सान करवा रहे हे इसका अंदाज़ा इस बात से लगाइये की जो शीबा असलम फहमी कल तक इमाम बुखरियो और मुस्लिम कटरपन्तियो से भिड़ा करती थी आज तहलका में उनका लेख पढ़िए आज शीबा जी के लेख में और छुटभय्ये मुस्लिम नेताओ के भाषणो – बुखारियो मदनियो की तकरीर और ओवेसी के भड़कावे में कोई फर्क नहीं रह गया हे सबको एक पेज पर पंहुचा दिया मोदी जी ने ” मोदी हटाओ देश बचाओ ”
साहित्यकारों को तो मोदी टोडीज ने वाम खेमे का बता दिया था मगर अब वैज्ञानिक लोगो का क्या करेंगे जिन्होंने इस ” हाथी के सर लगाने को ” को प्लास्टिक सर्जरी का पहला उदहरण बताने वाली सरकार के खिलाफ आवाज़ बुलंद कर दी हे वास्तव में ये सभी लोग सवतंत्रता सेनानियों की तरह ही हे देश को मोदी और संघी सरकार से आज़ादी चाहिए वही आज़ादी की लड़ाई लड़ाई बिलकुल सही समय पर छेड़ दी हे इन लेखको बुद्धजीवियों और वज्ञानिको ने बहुत बहुत बधाई सभी को
इस देश मे इससे पहले भी अनेको सरकारे बनी, जिसमे एक दूसरे के विरोधी माने जाने वाले, कांग्रेसी और वामपंथी भी विभिन्न क्षेत्रो मे रहे. दक्षिणपंथी लोग भी कम संख्या मे ही सही थे. देश मे दंगे भी हुए, कश्मीरी पंडितों का पलायन भी हुआ. भागलपुर, मेरठ के दंगो मे बड़ी तादात मे मुस्लिम भी मरे, सिख नरसंहार भी हुआ, इमरजेंसी भी लगी. दक्षिणपंथी बीजेपी की सरकार भी आई. गैर कांग्रेसी, जनता पार्टी भी सत्ता मे पहुँची.
लेकिन तब किसी साहित्यकार, फिल्मकार, वैज्ञानिक ने अवॉर्ड नही लौटाया. और 1-2 लोगो ने नही सैकड़ो अपने अपने क्षेत्रो के नामी लोगो ने ऐसा किया है. पूर्वाग्रह मे इन तमाम लोगो को राजनीति से प्रेरित बता देने से आप सच से मुँह ही मोड़ रहे हैं. हालात इस कदर खराब होते जा रहे हैं कि ऐसी किसी भी न्यूज के नीचे पाठको की प्रतिक्रियाओ मे एक तार्किक विमर्श भी गायब हो गया है.
बस वो वामपंथी है, खानग्रेसी है, गद्दार है, दलाल है, इसे पाकिस्तान भेज दो जैसी ही प्रतिक्रियाए आ रही है. देश, बहुत बुरे दौर से गुजर रहा है, समय रहते आम इंसान ने सरकार तक ये संदेश नही पहुँचाया तो आने वाली पीढ़ियो की दुर्दशा के हम ज़िम्मेदार होंगे.
हम पाकिस्तान और बांग्लादेश के रास्ते पे निकल चुके हैं. बस वहाँ, मुस्लिम कठमुल्ला है, यहाँ हिंदू कठमुल्ला आ जाएँगे, बाकी बर्बादी एक जैसी ही होगी. उल्टा मुझे बांग्लादेश के हालात, बेहतर लगते हैं, जहाँ सरकार कट्टरपंथ से लड़ती दिख रही है.
जाकिर भाई, तब एक बार भी कॉंग्रेस विरोधी विचारधारा को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला था इसीलिए कॉंग्रेस समेत बाकी पार्टिया आपस मे जोड़-तोड़ करके राजनीतिक स्तर पर बहुमत बना कर जबर्दस्त दवाब बनाने मे कामयाब हो जाती थी (अभी यह सिर्फ राज्य-सभा तक सीमित होकर रह गया हे ) पर अब राजनीतिक स्तर पर दवाब नहीं बनाया जा सकता इसीलिए बाकी चेलो-चपाटों को ज़िम्मेदारी दी जा रही हेः)
यानी लेखको के बाद अब वैज्ञानिको का विरोध भी शरद भाई और रंजन सर के लिए कोई मायने नहीं रखता यानी रात दिन लेबॉरटरि में ये वैज्ञानिक लोग भी राजनितिक गुना भाग में लगे रहते होंगे ? मुझे नहीं लगता की इन वैज्ञानिको के पास इतना समय होता होगा हां अखबार जरूर पढ़ते होंगे और वो पढ़ते पढ़ते ही वो समझ गए होंगे की कुछ लोग भारत को हिन्दू पाकिस्तान बनाने में जुटे हुए तो खेर बरसो से थे ही मगर अब वो खतरे के निशान से ऊपर आ गए हे तभी इन्होने विरोध किया
हयात भाई आज की ही खबर हे कि पाकिस्तानी मूल के ब्रिटिश मुक्केबाज आमिर खान भारत आए हुए हे और वे भारत को इस हद तक सेफ मानते हे कि यहा अपनी मुक्केबाज़ी अकादमी खोल्न चाहते हे !! यानि बाहर वालो को सुरक्षा से कोई समस्या नहीं पर कुछ साहित्यकारों को हे ??
बार-2 एक ही बात दोहराना अच्छा नहीं लगता पर ये साहित्यकार तब कहा मुह धक कर सोये थे जब हजारो सिखो की जान गयी थी और कश्मीर से लाखो हिन्दू परिवारों को उनकी जमीन से ही विस्थापित किया गया था ?? क्या इन साहित्यकारों की नज़र मे हिन्दू और सिख इन्सानो मे नहीं गिने जाते हे ??
नौटंकीबाज कही के
पाकिस्तांनी बॉक्ससेर आमिर ने जो कहा वो अपनी जगह सही हे जायज़ हे क्या अफगानिस्तान जाकर भी आमिर ये कहेंगे की में यहाँ खुद को असुरक्षित महसूस कर रहा हु ? नहीं ना मेहमान के कुछ कायदे होते हे स्वरा भास्कर ने भी पाकिस्तान जाकर जो कहा था वो हमने दिखाया था ये बाते अपनी जगह हे फिर हमारी भी अगर किसी विदेशी से या किसी पाकिस्तानी से बहस होगी तो हम आज भी अपने देश को बहुत अच्छा सेकुलर लिबरल ही कहेंगे अरे वो बाते अलग होती हे बात अंदरुनी हो रही हे वो अलग होती हे हे ऐसे तो कोई भारत में गृहयुद्ध भी करा दे उसमे एक हज़ार लाख या करोड़ लोग भी मर जाए तो भी भारत पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा इसका ये मतलब नहीं हे की हम जो हो रहा हे उस पर ध्यान न दे परत्किरिया न करे भाई सरकार का फ़ज़ीता तो करेंगे ही यही फ़र्ज़ हे आप ही लोग हे जो अपनी इगो के कारण अभी भी मोदी के साथ खड़े हे और अपने फ़र्ज़ से दगा कर रहे हे वार्ना असलियत से तो आप या रंजन सर जैसे लोग वाकिफ तो होंगे ही इतने मुर्ख या मूढ़ तो आप बिलकुल नहीं हे
भारत से जो लोग पाकिस्तान जाते हे गैर मुस्लिम भी हिन्दू भी संघी भी सभी यही कहते हे की पाकिस्तानी उनकी मेहमानवाजी में एक टांग खड़े रहते हे ये बाते सही हे अपनी जगह हे कोई इंकार नहीं हे लेकिन इसका ये आशय तो नहीं हे की पाक में सब ठीक हे ? सब सेकुलर हे ? अलप्संख्यको को तकलीफे नहीं हे ? भाई वो मुद्दे अलग हे ही
नौटंकी बाज़ो की लिस्ट में में एक नाम और जुड़ गया हे नारायण मूर्ति का और पाठको मोदी सरकार का आई क्यू कितना जबरस्त हे इसका एक नमूना तो राजीव परताप रूढ़ि ने पेश कर ही दिया हे जब इसकी खबर आई तो फिर भी एक मोदी टोडी लिखते हे की ” आखिर पाकिस्तानी अखबारों में एड देने की नितीश की मंशा क्या हे अंदाज़ा लगाइये ये किस टाइप के लोग हे
हयात जी हो सकता है नारायण मूर्ति का विरोध व्यकितगत हो क्योकि ये फोर्ड ट्र्स्ट से जुडे है और इसकी फन्डिग पर मोदी सरकार ने रोक लगा दी है
http://www.fordfoundation.org/about-us/leadership/narayana-murthy
रंजन सर गिरावट सभी और हे ये कहकर सत्ता को और सत्ताधीशो को बख्शा नहीं जा सकता हे इतने मुद्दे हुए हे मगर ताजुब हे अब आपकी कलम से एक भी व्यंगय या लेख नहीं फुट रहा हे वज़ह साफ़ हे की मोदीवाद को अंध समर्थन के कारण अब आप लिखने में शर्मा रहे हे सर शर्म छोड़िये जो हो गया सो हो गया हे मोदीवाद के खोखले ड्राइंगरूम से बाहर आइये और अब तो कुछ दिन तो गुजारो जमीनी हकीकतों के मैदान में
कान्ग्रेस के ५५ साल के शसन के मुकाब्ले मे मोदेी जेी के शासन को १७ महेीने का नन्हे बच्हे जैसा है अभेी इस बच्हे को थोदा बदा तो होने दिजिये गुजरात जैसा कोई कान्द् हो जाये तब सिकन्दर जेी जैसो को नाराज् होने का पुरा अधिकार रहेगा ! कुल मिलाकर अभि मोदिजि कि शसन् व्यवस्था थिक चल रहेी है यह् सत्य है कि कुच मोर्चो मे मोदेी जि असफल्ता भेी दिख रहेी है ! १००% नम्बर बहुत कम लोग्व ला पते है फिर् भेी जिस्को मोदेी जि का अन्ध विरोध कर्ना है तो उस्का भेी अधिकार रहेगा क्योकेी मोदेी जि को सिर्फ ३८% वोत हेी मिले है और ५१% वोत कौन लाता है , वह ” तत्काल मोदेी हताओ और मुस्लिम बचाओ ” का जज्बातेी नारा भेी दे सक्ते है ! वह जल्दि मशहुर् हो सक्ता है !
इसी बीच देश के खराब माहोल को देखकर इंद्राणी मुखर्जी अपने सारे पति लौटा गयी……….
मोदी जी चार पांच इस्तीफे दे
एक पतेी जेी भेी अप्नि पत्नेी जेी और् कुक्ष्ह बच्हो को वापस अप्नेी ससुराल च्होद कर आ गये ! वह कहते है कि आज्कल मैदल् वापस कर्ने का फैशन चल् रहा है
अब जो आसान तरिके से तलाक तलाक तलाक दे सक्ते हो उन्के लिये तो सुनहरा अव्सर आ गया है ! और वह साथ मे शर्त भेी रख् दे कि जब तक मोदेी जेी इस्तेीफा नहेी देन्गे तब तक हम अप्नेी देी हुयेी तलाक् वापस नहेी लेन्गे
शाय्द मोदेी जेी उन्के परिवार बचाने के लिये अपने पद से इस्तेीफ देदे !
लेकिन जिस्ने पेी एम होकर् के भेी अप्नेी बेीबेी और परिवार को अप्ने निवास मे घुस्ने न दिया हो वह दुसरे के परिवार् को भि क्यो समभालेगा ?
अल्लाह माफ़ करे परिवार और पत्नी को साथ क्यों नहीं रखा इस पर मुह न खुलवाओ बात बहुत दूर तक जायेगी वैसे राज़ साहब आप भी एक बेटी के बाप हे अल्लाह न करे आपको भी मोदी जी जैसा दामाद मिले की नतीजा बेटी ना विधवा न सधवा ना कुवारी न गृहस्थ ? बस हमसे ना लिखवाओ और कुछ माफ़ करो . और ये भूल कर की जशोदा बेन भी किसी की बेटी होंगी उस बाप पर क्या गुजरी होगी ? आप तो सब भूल कर सेल्फ़ी विथ डॉटर करो जैसा आपको आदेश हे
दिल खोल्कर लिखिए हम किसेी भेी नेता के किसेी भि सन्स्था के गुलाम कभि नहेी रहे ! मोदेी जेी के अच्हे कार्यो को पसन्द भेी कर्ते है और उन्के गलत काम कि निन्दा भेी कार्ते है और आगे भेी निन्दा करेन्गे है ! फिर भेी मोदेी जि को ५ साल का समय प्रेम् से मिल्ना चहिये रज्नैतिक कर्यो मे उतार चधाव होते रहते है एक् परिवार को चलाने मे भेी उतार् चधाव होते हैजब कि सभेी सगे होते है और सत्त कि लदाई मे गैर और अप्ने भेी हमेशा ताक मे रहते है ! सन्घ सन्स्था मे अविवहित हजारो है कभेी ऐसि स्थिति बन जातेी है कि परिवार के दबाव मे विवाह कर्ना होता है और प्रेम किसि और से रहता है ऐसे लखो केस मिल जायेन्गे अप्कि निगाह मे भेी ऐसे केस जरुर होन्गे है ! हम् स्वयम अविहित् रहना पसन्द कार्ते थे परिवार कि इच्ह्ह पर विवाह किया थ !
जो कम्जोर होते है उन्को ज्यादा सहन करना होता है मोदेी जि का उद्देश्य सत्त्त नहेी था सन्घ सेवा थेी वह तो अतल जि ने एक दम से गुजरात का मुख्य मन्त्रि बन्वा दिया मोदेी जेी पत्नेी हेी नहेी बल्कि अप्नि माता जि भाई जेी के पास भेी नहेी गये परिवार से मोह खत्म सा हो चुका है पेी एम होने के बाद भि कभि अप्ने परिवार नहेी गये ! और न किसेी को अपने पास बुलाया ! ऐसे व्यक्ति दिल् से कथोर होतेहै अपने उद्देश्य के लिय्ये हजारो लाखो मौतो का भि कोइ मुल्य नहि होत है ! फिए भेी मोदेी जेी ने अप्नि पत्नि को पधवाया और वह अश्यापक भेी बनेी ! मुस्लिम समुदाय् मे कितने तलाक होते है और तलाक कि धम्केी का भाय होता है वह आप भेी जन्ते होन्गे ! अभेी भेी हमारेी बेतेी अविवाहित है ! जो कर्म करेन्गे उस्का फल मिल सक्ता है माफेी का सवाल हेी नहि उथता है !
आप अंदाज़ा लगाइये की मोदी समर्थको कैसे हे ? मतलब बीवी को साथ ना रखने पर भी मोदी जी जयजयकार कर रहे हे ये भी इन्हे तारीफ की बात लग रही हे जबकि चुनाव जितने पर और उससे पहले फॉर्म में नाम लिखने पर जशोदा बेन ने कहा था की बुलाएँगे तो में उनके साथ रहने 7 रेसकोर्स आ जाउंगी लेकिन आपने ने न बुलाया न बुलाना था ना आपकी कोई दिलचस्पी जब कोई दिलचस्पी नहीं थी तो नाम क्यों लिखा फॉर्म में ? घोर असेवदनशीलता फिर अब जैसा की एक महिला लेखिका के शब्दों में की कम से कम उस महिला को तलाक ही दे दीजिये ? वो भी नहीं देते देते हे तो इरिटेट कर देने वाली सिक्योरिटी जुल्म की भी हद हे और ये मोदी समर्थक इस रवैये की भी तारीफ कर रहे हे जैसा राजा वैसे उसके भक्त
मोदेी जेी कि पत्नेी भि करिब ६० केी हो चुकि है अब तलाक कैसा ? अब तलाक देन्गे तो बद्नाम और ज्यादा होन्गे ! गान्धेी जेी कि पत्नेी कस्तुरबा जेी पत्नेी होते ह्ये भेी अलग थेी गान्धेी जेी अन्य् कन्याओ से जयादा निकत थे नेताओ के परिवार खुब बर्बाद मिलते है अन्दर् कुच् ,बाहर कुच् ! पत्नेी को सुरक्शा इस्लिये है केी अगर कोई अतन्क्वादेी घत्ना हो जये तो मोदेी जेी और ज्यादा बद्ना म हो जयेन्गे !
हमें तो पहले ही पता था की घोर कम्युनल होने के कारण चाहे जो हो जाए आप जैसे लोग तो मोदी का साथ देंगे ही खेर इनसे यही उमीद थी बाकी पाठको शरद भाई और दूसरे लोगो ने जो बहाना लेकर रखा की जाओ पहले उसके साइन लाओ पहले इसके साइन लाओ उस पर रविश कुमार का लेख http://naisadak.org/%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE-%E0%A4%A4%E0%A4%AC-%E0%A4%AD%E0%A5%80-%E0%A4%86%E0%A4%AA-%E0%A4%AD%E0%A5%80%E0%A4%A1%E0%A4%BC-%E0%A4%95%E0%A5%87-%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%A5-%E0%A4%96%E0%A4%A1/
हम सिर्फ वैचारिक मत्भेद रख्ते है .किसेी इन्सान का तो क्या किसेी जान्वर् पक्शेी आदि का भेी एक बुन्द खुन बहना भेी हम पसन्द नहेी कारते है ! आप जैसे लोग् भेी अगर् इस देश के पि एम बन् जाये तब भेी हम्को तक्लेीफ् नहेी होगेी फिर मोदेी जेी के पेी एम बनने मे तक्लेीफ क्यो होतेी है ! मोदेी जि सब्के साम्ने चुनौतेी देकर् खुले आम् पेी एम् बने है ! जिस्केी हम्को तो उम्मेीद भेी नहेी हेी
वो तो हे ही आप हो या आपके —– जी हो वो खुद खून बहाना बिलकुल पसंद नहीं करते बल्कि कोशिश यह रहती हे की दुसरो के बच्चे वो भी खासकर दलितों पिछडो गरीबो आदिवासियों के उनसे खून बहवाना अधिक पसंद करते हे
नेता कोइ भेी हो अधिकान्श नेता लाशो पर अगर सत्ता मिलतेी हो उस्को भि पसन्द करते है वह जिन्ना हो या गान्धेी हो नेहरु हो , वह इन्दिरा हो य राजेीव हो , अतल हो या मोदेी हो लालु हो य मुलायम्, आजम हो मायाव्तेी हो य नितिश् हो सेना मरतेी है और नेत दोस्ति और सम्ज्हौते करते है ! राजाओ को गद्देी चहिये , फौज भले हेी मरतेी रहे यह् सदियो से परम्परा रहेी है , हर कोई सम्रात अशोक नहेी बन सक्ता है !
आप विवाहित होकर भी गृहस्थी से दूर रहे, ये आपका निजी फैसला है। हम सबको इसका सम्मान करना चाहिए, करते भी हैं, लेकिन आपको ये हक़ कैसे मिल गया कि आप परिवार जैसी संस्था का ही अपमान करने लगें? आप घर छोड़कर ’’महान’’ हैं तो क्या हम सब भी अपने अपने परिवार से मुंह मोड़ लें? क्या आपने कभी सोचा है कि जब आप किसी की बेटी या बेटे को कोसते हैं तो औलाद वालों के दिल पर क्या गुज़रती है?
राजकुमार सिद्धार्थ ने भी गृहस्थी छोड़ी और महात्मा गौतम बुद्ध हुए, लेकिन क्या कभी बुद्ध ने परिवार नामक इकाई को इस तरह अपमानित किया? राजकुमार वर्धमान भी घर-गृहस्थी छोड़कर भगवान महावीर बने लेकिन उनके किसी भी उपदेश में परिवार का निषेध नहीं बताया गया। ज्यादा दूर क्यूं जाते हैं.. आप अपने विरोधियों के परिवारवाद को निशाने पर लेते हैं, ठीक ही करते हैं, लेकिन क्या कभी अपनी पार्टी के परिवारवाद पर आपकी नज़र नहीं जाती? विजयाराजे सिंधिया की बेटियों वसुंधरा राजे, यशोधरा राजे, प्रमोद महाजन की बेटी पूनम और गोपीनाथ मुंडे की बेटी पंकजा के लिए तो ‘सेट’ करने जैसा शब्द नहीं ना बोलेंगे आप? बोलना भी नहीं चाहिए। राजनाथ सिंह, कल्याण सिंह, यशवंत सिन्हा, सुन्दरलाल पटवा, कैलाश जोशी, कैलाश सारंग आदि ने अपने कुनबों को कैसे राजनीति में सेट किया है, यह शायद आपको मालूम भी नहीं होगा! अकाली दाल, शिवसेना और पी डी एफ के साथ सरकारें चलाते वक्त आपको ये पता भी नहीं चला कि सुखबीर बादल, उद्धव ठाकरे और महबूबा मुफ़ती आखिर हैं कौन?
हे महामानव, आप कांग्रेस सहित देश की राजनीति से परिवारवाद को मिटा डालिये, हमारी शुभकामनायें आपके साथ हैं, लेकिन मेहरबानी करके परिवार नाम की संस्था में हम सबका विश्वास बना और बचा रहने दीजिये। कम से कम हम साधारण भारतीय तो आज भी अपनी माँ, पत्नी, बेटी, बेटे से प्रेम करते हैं। हमें औलाद वाला होने पर बेइज्जत मत कीजिये साहेब।
लेखक डॉ राकेश पाठक डेटलाइन इंडिया मैग्जीन के प्रधान संपादक हैं.
अल्लाह तौबा परिवार और वंशवाद का सबसे घिनौना नमूना तो हमने तब देखा था प्रमोद महाजन की मौत के बाद उनकी जगह राहुल महाजन को दे ही दी गयी थी बस वो तो वो तभी नशा करके टुन्न पकड़ा गया वार्ना वो भी संसद सदस्य होता और सोच कर भी घिन आती हे क्यों की हमने कई शो में देखा हे की राहुल महाजन किस कदर बकवास अय्याश आलसी और बिलकुल रीढ़ विहीन आदमी हे रीढ़ के बिना भी कोई इंसान जिन्दा रह सकता हे इसका सबसे बड़ा उदहरण राहुल महाजन हे और जैसा की हमने बताया की मोदी जी ने चिराग पासवान जैसे को भी संसद में पंहुचा दिया तौबा हे ये कितने — आदमी हे इसकी फिल देखे यु ट्यूब पर फिल्म इंडस्ट्री वालो ने बाप बेटे को किस कदर मुर्ख बनाया और ये बने भी आप फिल्म देख कर समझ सकते हे पांच करोड़ तो सुना हे कंगना ही ले उडी थी जबकि आज जबकि वो तब से पांच गुनी बड़ी स्टार हे अब भी उन्हें इतनी रकम कोई नहीं देता यही नहीं फिल्म के बाद शायद एक अवार्ड तक टिकाकर इन्हे लूटा गया
कन्ग्रेस ने हेी परिवार् वाद केी गलत राज्नैतिक परमपरा दालेी और उस्को अन्य नेताओ दलो ने भेी सिखा ! आज कल नेता द्सरे दलो पर वहेी आरोप लगा तेहै जो स्वयम भेी अवसर मिल्ने वहेी कार्य कार्ते है ! रज्निति सुविधा वादेी हो चुकि है !
ये बड़ी सटीक जानकारी दी हे लेखक ने की संघ परिवार का ” भिंडरावाले ” होने वाला हे ये लोग मोदी राज में काबू से बाहर हो जाएंगे मोदी और भाजपा इनके बारे में वही सोच रहे हे जो कभी अकालियों और कोंग्रेसियो ने भिंडरावाले के बारे में सोचा था http://www.bbc.com/hindi/india/2015/11/151101_radical_shift_hartosh_bal_dil
पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण शौरी ने एक बार फिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर निशाना साधा है। शौरी ने आरोप लगाया कि पीएम नरेंद्र मोदी जानबूझकर दादरी जैसी घटनाओं पर चुप्पी साधे हुए हैं जबकि उनके मंत्रिमंडलीय सहयोगी और पार्टी नेता केवल बिहार विधानसभा चुनाव जीतने के लिए इन मुद्दों को जिंदा रखे हुए हैं।
एक न्यूज चैनल को दिए इंटरव्यू में शौरी ने इस बात से भी सहमति जताई कि मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह बिहार में एक समुदाय को दूसरे के खिलाफ खड़ा कर रहे हैं। एक पाकिस्तानी विश्लेषक के हवाले से उन्होंने कहा कि पड़ोसी मुल्क विवादों से बाहर निकलने की कोशिश कर रहा है जबकि भारत धीरे-धीरे उसके रास्ते पर बढ़ रहा है।
सिकंदर साहेब अब तो तय हो गया की आप मोदी विरोध में अंधे हो चुके हैं . आपने कहा क ये लोग दलित पिछडो को आगे करके खून बहते है. तो इसी तरह ये बतये की मुस्लिमो में कौन आगे रहता है दंगो में शिया सुन्नी देवबन्दी बरेलवी कौन आगे रहता है.. अब आप कम्युनल होते चले जा रहे ..जबरदस्ती ही सबको अपनी विचार समर्थन करने कोबाध्य करन चाहते है. ये तो है आपकी सहिसुन्नता..अबसमयगया है..की आप जैसलोगो का मुखर विरोध कियाजाए..जो केवल कुछ घटनाओ को बढ़ा चढ़ाकर देश कामाहोल ख़राब कर रहे हैं…और रही आत सम्मान वापस की तो केवल भेड़चाल है….अब यही सही समय है की छ्द् सेक्युलरवआड़ कुछल दियाजाए
किस किस को भेड़चाल बताओगे भाई पहले साहित्यकार फिर वैज्ञानिक और अब बिज़नेस मेन रिजर्वबैंक के गवर्नर , भारत का पूरी दुनिया में आज का सबसे लोकप्रिय सितारा शाहरुख़ और अब तो पर्यावरणविद भी इस सरकार के खिलाफ आ चुके हे वास्तव में ये आपकी बोखलाहट दर्शा रहा हे की इन लोगो ने सारी दुनिया में मोदी जी का असली चेहरा घर घर पंहुचा दिया वार्ना इससे पहले तो कुछ तो गुजराती पूंजी की धौस और कुछ सारी दुनिया का अपना माल खासकर खरबो के हथियार बेचने के लालच में मोदी जी की फालतू में जयजयकार हो रही थी मगर इन लोगो ने सब पर पानी फेर दिया हे इसलिए अरुण जेटली से लेकर बर्जेश यादव तक सब भन्ना रहे हे
———-वैसे देश मे सहिस्स्नुता कब थी?????? ——–
जब देश का बटवारा हो रहा था
या जब सिख,भागलपुर गोधरा आदि हो रहा था
या जब दक्षिण एशिया मे अल्पसन्खयको पर जुल्म हो रहा था
———वैसे ये सहिस्नुता लायेगा कोन ??????—————-
वो जो मुर्तियो पर पेशाब करने की बात करते है
वो जो माता सिता को राम जी की बहन बताते है
वो जो लाशो पर हसते है
वो जो अल्लाह के कार्टून बनाते है
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बहुत टफ कामेडी है भाई आक्सफोर्ड डिक्सनरी छान ली अब तक सोलुसन नही मिला
उमाकांत जी आप तो समझदार आदमी लगते हे फिर क्यों बात नहीं समझते हे पहले जो कुछ हुआ उसमे सत्ताओ की गलती थी हाथ नहीं था राजीव ने दंगे नहीं कराय थे वि पि सिंग ने कश्मीरी पंडितो को नहीं निकला था तब बात और थी राजीव के तो गृहमंत्री एक सिख बूटा सिंह भी थे अब सत्ता की गलती ही नहीं हाथ और प्रोत्साहन भी नज़र आ रहा हे मुजफरनगर दंगे के आरोपी को इनाम मिला तो संगीत सोम के मुह में पानी क्यों ना आये भला ? इसलिए बुद्धजीवियों ने इस सरकार के खिलाफ शांतिपूर्ण जिहाद छेड़ा हे आप भी इस जिहाद में शामिल होइए
असहिस्नुता के खिलाफ award return festival के कुछ तथ्य
१-ये फेस्टीवल किसी कल्बुर्गी की हत्या के उपलक्ष मे मनाया जा रहा है(हमे लगा था की अखलाख की हत्या के कारण)
२-ये माननीय साहेब कान्ग्रेश शासित राज्य कर्नाटक के किसी विश्व विधालय के पूर्व कुलपति थे
३-हत्या के २-३ महिने बाद भी कर्नाटक पुलिस हत्यारो को पकडना तो दूर कोइ सुराग तक पता कर पायी है
४-ना हि अभी तक कर्नाटक सरकार ने सीबीआई जाच की मान्ग की है
५-इस नौटन्की को शुरु करने वाली कोइ नेहरु जी की रिश्तेदार है
ये कान्ग्रेश की ही पूरि नौटन्की है
commonmanchandigarh को जवाब )- नीरेंद्र नागर
November 03,2015 at 01:39 PM IST
कृपया ब्लॉग फिर से पढ़ें। जब मुस्लिम कट्टरपंथी किसी पादरी का हाथ काट देते हैं तो राज्य या केंद्र में बैठी सरकारें उन हत्यारों को शरण नहीं देतीं, उनको बढ़ावा नहीं देतीं जैसा कि आज हो रहा है। यही अंतर है। कांग्रेस के राज में सिख विरोधी दंगे हुए लेकिन कांग्रेस की विचारधारा सिखों के प्रति नफ़रत की बुनियाद पर नहीं टिकी है और इसीलिए सिख कांग्रेस को माफ़ कर पाए। लेकिन संघ परिवार का पूरा विचारदर्शन ही इस्लाम और मुसलमान विरोध पर टिका है जिसकी परिणति गुजरात दंगों और दादरी कांड में होती है।रेंद्र नागर को जवाब )- sikander hayat
November 03,2015 at 04:02 PM IST
नागर जी य बाते इन मोदी टॉड़ीज के हमने सौ बार लिखी होंगी सेम जो आपने लिखी मगर जाने य केसे मूढ़ लोग है फिर भी मुह्जोरी से बाज़ नही आते आखिर कहा तक भी इन जंगलियो से बहस की जाये ? वही घिसे पीटे तर्क नवभारत ब्ब्लॉग पर मोदी टॉड़ीज ने एक से बढ़कर एक बेहूदे ब्लॉग लिखे बार बार वही बकवास जाओ पहले इसके साईन लाओ जाओ पहले उसके साईन लाओ बार बार 84 का मुद्धा जबकि कॉंग्रेस गाँधी परिवार ना केवेल माफी मांग चुका है बल्कि एक केशधारी सीख को दस साल के लिये पी एम तक बना चुका है जबकि मोदी माफी तो बहुत बहुत दूर की बात उल्टा कुत्ता कार के नीचे जेसी सी ग्रेड बाते करते है टोपी से इंकार ईदकी बधाई इफ़्तार पार्टी का बायकाट जेसी हरकते करते है सिर्फ ज़हरीले बज़रंगियो मे जोश ब्भरने के लिये ?
जवाब दें
श्रेी सिकन्दरजेी , इफ्तार् पार्तेी देना जरुरेी क्यो है ? क्या कभेी सर्कार ने होलि दिपावलेी नव्र रात्रेी पार्तेी देी थेी ? फिर आप्कि शिकायत मुस्लिम पारस्त क्यो नहेी कहि जायेगेी ?
मोदेी जेी का मुस्लिम् तोपेी से इन्कार ?
आप्कि ऐसेी इक्ष्चा क्यो होति है कि मोदेी जि मुस्लिम तोपेी पाहने ?
क्या कभि आप य अन्य कोइ मुस्लिम नेता सिर्फ चन्दन का तेीका अप्ने माथे मे लाग्ता है आगर अप लगा सक्ते हो तो तेीका लगि हुयि फोतो सर्वजनिक् कर् दिजिये, चन्दन् का तेीका किसि मन्दिर का नहेी होता है !
कुत्ते का उदहरन किसेी मुस्लिम के लिये नहेी था एक् जेीव कि मौत पर था
बार बार गुजरात दंगो से चौरासी की तुलना होती हे की तब कहा कहा थे कहा थे कैसे थे क्यों थे आदि बकवास ? जबकि फर्क साफ़ देखिये कांग्रेस गांधी परिवार ना केवल माफ़ी मांग चुके हे बल्कि एक सिख को दस साल देश का पि एम पद भी दे चुके हे यही नहीं राजीव के गृहमंत्री बूटा सिंह थे एक सिख ही जबकि मोदी जी की असहिष्णुता बदमिजाजी देखिये की माफ़ी तो दूर कुत्ता पिल्ला कार के निचे करते हे फिर शाहनवाज़ मुख्तार जेसो वफादारों को भी केबिनेट से दूर रखते हे पुरे राजग से सिर्फ एक मुस्लिम लोकसभा सांसद हे उसका भी कोई जिक्र नहीं जबकि बलात्कार के आरोपी दंगो के आरोपी को शायद केबिनेट या मंत्रिमंडल में लेते हे स्मरति ईरानी जैसी कल की लेडी को तो बेहद महत्वपूर्ण महकमा सौपते हे सिर्फ मुसलमानो को चिढ़ा कर संघ के सम्पर्दायिको में जोश भरने के लिए कोई शक ?
हाहाहाहाहहआ…. हयात भाई आप भी अमेरिका की तरह अच्छी कॉमेडी कर लेते हो जो आतंकवाद को अपनी सुविधा के हिसाब से “सॉफ्ट टेरोरिज़्म” और “हार्ड टेरोरिज़्म” का नाम देकर एक के खिलाफ जबर्दस्त कार्यवाई करता हे और दूसरे पर खामोश रहता हेः)
क्या “असहिष्णुता” शब्द का इस्तेमाल सिर्फ मुसलमानो के लिए ही रिजर्व हे ??
आखिर दंगे और दंगे मे फर्क क्या हे ?? मरने वाला सिर्फ एक हो और मुसलमान हो तो शाहरुख खान से लेकर पता नहीं कौन-2 अवार्ड-धारी मैदान मे कूद पड़ते हे??
आखिर मरने वाले हजारो सिख और बहू-बेटियो की इज्ज़त पर हमले झेल कर अपनी ही जमीन से दरबदर कर दिये गए कई लाख कश्मीरी हिन्दुओ के लिए क्या कोई माई का लाल “असहिष्णुता” शब्द का इस्तेमाल करेगा !! क्या हज़ार और लाख की संख्या इकाई से जायादा नहीं हे ??
वे नौटंकिबाज लोग जो किसी एक के लिए अपने अवार्ड लौटा देते हे क्या हजारो सिखो और लाखो हिन्दुओ पर हुए जुल्मो के खिलाफ अवार्ड लौटाने की हिम्मत जुटा पाये थे ?? अगर नहीं तो अचानक उनको इतना दिव्यज्ञान कहा से प्राप्त हो गया ??
देश मे इमरजेंसी के हालात बताए जाते हे , मीडिया चेनल्स ढूंढ-2 कर वो गिनती के चार शब्द निकाल कर “चावल के चार दानो का शाही पुलाव” 24 घंटे पूरे देश को दिखते हे ??
वैसे आपकी जानकारी के लिए बताना जरूरी हे सरकार की तरफ से दादरी पर बयान आ चुका हे और प्रकाश जवडेकर जी ने माना हे कि सरकार को इस मामले पर तेजी दिखानी चाहिए थी …. वैसे 1984 मे हजारो सिखो की जान जाने पर ऐसा कहा गया था कि “जब बड़ा पेड़ गिरता हे तो थोड़ा नुकसान तो होता ही हे”…..सिखो से माफी किसने मांगी थी हयात भाई ??
कहते हुए अफसोस होता हे कि आप पर मोदी-विरोध का कठमुल्लापन काफी तेजी से हावी होता जा रहा हे और आप सही और गलत का फर्क करने मे तर्क नहीं बल्कि जिद का इस्तेमाल जायदा कर रहे हो …..बताना हमारा फर्ज़ था बाकी आपकी मर्जी
शरद भाई, आज हम तथाकथित बुद्धिजीवियों के बीच बैठ गये, वहाँ भी यही सब चिटर पिटर चल रहा था. हमें गणेश जी के दूध पीने से भी ज्यादा बड़ा अजूबा “असहिष्णुता” लगने लगी है… तो हमें यह लगने लगा है कि असहिष्णुता विरोधियों में अधिक है
भाई, जब आप इतना खुल कर गाली तक दे पा रहे हैं, घिनौने आरोप तक लगा पा रहे हो, यूएन में देश की इज्जत उछालने में लगे हो, टोनी ब्लेयर को शिकायत कर रहे हो, और फिर भी…
तो ये दो पंक्तियाँ इन सभी संजीदा मसखरों के नाम…
मसले मसलते मसखरे,
ज्यूं बाट से भारी बटखरे…
शक ? अभि तक इरानेी जेी ने मुस्लिम विरोधेी कौन् सा कार्य किया बत्लैये सिकन्दर जेी ? वैस स्म्रिति जि को यह् विभाग देना थेीक् नहि था !
सिकन्दर जि अप्नेी समज्ह्दारेी देखिये मोदेी जेी के अन्ध विरोध् मे होश् मत खोइये
शह्नवज जि को तिकित मिला और् वह हार गये पिच्लेी बार जित चुके थे
मुख्तार जेी आज भेी कैबिनेत मे है
कोइ भेी पर्तेी तिकित् तब् देतेी है जब कोइ उस्के बहुत जय्दा निकत हो य जित्ने कि सम्भवन हो बत्लऐये कित्ने मुस्लिम् मोदेी जि या भज्पा के निकत है!
क्या भज्पा हम्को तिकित देगि या आप्को देदेगेी ? जो भज्पा केी सेवा करेगा तिकित तो वहि पायेग अग्लि बार तो आद्वानेी जेी और मुरलेी मनोहार आदेी को भेी तिकित नहेी मिलेगा जब कि शाह नवाज् कोजरुर मिलेगा !
यह् माफेी क्या होति है? हजरो सिक्खो कि पाह्ले हत्या कर्वाओ बाद मे उन्के शगिर्द उन्के मरने के बाद मान्ग ले ! फिर मोदि जि का भेी इन्त्जार किजिये कोइ उन्का शगिर्द भेी अप्ने स्वार्थ् मे गुज्रात कान्द कि माफेी मन्ग सक्ता है क्योकेी राज्निति मे सब कुच सम्भव है !
क्या हम किसि कन्या का रेप कर दे बाद मे माफेी मन्ग ले तो क्या हम्को माफेी मिल जायेगेी ? फिर अदलते किस्के लिये है ? मोदेी जेी ने रेप अरोपि को अप्ने साथ रखा वह गलत जरुर किया
अगर कोइ मोदेी जेी का साथेी य मोदेी जेी गुजरात कान्द केी मफेी मन्ग ले तब क्या आप भज्पाई हो जयेन्गे ? यनि अप्कि बात सिर्फ माफेी पर तिकेी हुये है !
”मुख्तार जेी आज भेी कैबिनेत मे है ” मुख्तार अब्बास मंत्री मंडल में हे केबिनेट में नही वहा तो स्मरति ईरानी हे मुख़्तार नहीं जो उस समय मंत्री मंडल में था ( 98 में ) जब स्मरति ईरानी ——— तो ये मुख्तार जैसे वफादार का घोर अपमान हे जो बाकायदा संघियो की तरह लोगो को समझोता एक्प्रेस में बिठाता हे मगर मुख्तार वफादार तो हे मगर रीढ़ विहीन हे इसी कारण ये अपमान सह रहा हे और पाठको संघी ओछेपन से बाज़ नहीं आते कैलाश ने यहाँ तक लिखा की शाहरुख़ अमिताब के बाद सबसे लोकप्रिय हे वही घटियापन क्योकि अमिताब मोदी के गुजरात के लिए प्रचार कर चुके हे तो उन्हें शाहरुख़ से अधिक लोकप्रिय बताया अभिनय में तो खेर शाहरुख़ अमिताब दोनों ही सामान्य ही हे मगर बहुत ही बड़े फिल्म लेखक जय प्रकाश चोकसे के अनुसार शाहरुख़ की दस फिल्मो ने ही अमिताभ की सारी फिल्मो से अधिक बिज़नेस किया होगा अमिताभ को कम्पीटीशन न होने का पूरा फायदा मिला एक था भी तो विनोद खन्ना तो वो ओशो की खफ्त का शिकार हो गए जबकि शाहरुख़ के सामने एक से बढ़ कर एक सितारे रहे बिलाशक शाहरुख़ सबसे अधिक लोकप्रिय रहे हे देश विदेश आम खास सभी में कोई शक ही नहीं हे और ये संघी कम्युनल दिमाग अमिताब की बाद बता रहे हे
इस मन्च मे आने वाले लोग समज्ह लेन्गे कि हम्ने क्या प्रशन् किये थे और सिकन्दर जेी उस्का क्या जवाब दे रहे है ! हम्को कुच्ह खुशेी है कि शिया मुस्लिम् मुख्तार अब्बास नकवेी जेी के लिये कुच जगह सिकन्दर जेी के दिल मे मौजुद है !
कैलाश विजयवर्गीय का ज़हरीला बयान ? कारण साफ़ हे इन सबके आइडल मोदी जी ही हे जब इन्होने देखा की एक साधरण आदमी साम्पदायिकता की सीधी से देश के सबसे ऊँचे पद पर जा बैठा तो ये भी क्यों पीछे रहे . सब उन्ही के रास्ते चल कर अपनी महत्वकांशा पूरी करना चाहते हे आखिर साम्पदायिकता की सारी मलाई सिर्फ मोदी जी के लिए ही तो आरक्षित थोड़े ही न हे ? कैलाशो को भी तो अपना हिस्सा चाहिए होगा
जहरीले बयान?/…. ओह्.. याद आया कि ताजतरेीन माम्ले मे वक्फ बोर्ड के किसी स्वयम्भु ज्ञानी मुस्लिम ने किताब लिख मारी हे कि हिन्दुओ के भगवान राम का जन्म पाकिस्तान के डेरा इस्माइल खान मे हुआ थाः)….. जिस कठमुल्ले को अपनी कुरान के बारे मे मालूम नहीं कि कुरान को लिखा किसने था और वह सिर्फ एक ही भाषा मे क्यो लिखी गयी वो दूसरे धर्म कि आस्था को वैज्ञानिक आधार पर कुतर्क करने मे लगा हे और “हमेशा कि तरह” मुस्लिम समाज उस कठमुल्ले का विरोध न करके दाबी जुबान मे अपनी सहमति कि मुहर लगा रहा हे ??
जी हाँ शरद भाई, गौर तलब यह भी है कि इस बात पर कितने असहिष्णु लोगों ने या सरकार ने फतवे जारी किये या लेखक का सिर काट कर लाने पर इनाम घोषित किया?
फालतू की बात सिर्फ स्कोर सेटल के लिए जिसमे कोई दम नहीं मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड कौन सी सरकार हे कौन से पार्टी हे भला ? बात हो रही हे की अब बाकायदा एक कम्युनल आदमी की लीडरशिप घोर कम्युनल लोगो की सरकार बन चुकी हे जिसकी तरफ सारी दुनिया का ध्यान आकर्षित करना हे सो बुद्धजीवियों ने किया बिलकुल सही समय पर
देखे श्रेी सिकन्दर जेी , राम जन्म के विश्य मे मुस्लिम लेखक द्वारा शोध आया
इस्के बहुत पहले ” सेीता का च्हिनाला ” पर शोध ऑ चुका है
बाद मे” रन्गेीला रसुल” पर भेी शोध आ चुका है !
जाकिर जेी केी भेी अनेक किताबे और सेी देी आदि है
इन सब्केी प्रेरना से हम भेी कुरान आदि पर अप्ने मत्भेद रख्ते है
अब आप्को हम्से नाराज नहेी होना चाहिये
हम् कोई पहले व्यक्ति नहेी है !
श्रि सिकन्दर जेी आपकेी सफल्ता ! सम्पर्दयिक मोदि जि उल्ते पाव लौत पदे कैलाश् जेी ने अप्ना बयान् वापस ले लिया
सिकंदर हयात जी अब आपके अन्धमोदी विरोध ने बालहठ का रूप धारण कर लिया है..य ही एक तरह की कट्टरता है…देखिये आपके इतने जिद के बाद भी रंजन जी और शरद जी जैसे शुद्ध सेक्युलर लोग भी आपसे तनिक भी सहमत नही है…होन भी नही चाहये…क्योकि यहाँ इस समय आप जैसे लोगो से सहमत होने मतलब है इस देश को सेदो सेकुलरिज्म के दलदल में उर गहराई तक धंसा देना है..जिसका अंजाम कट्टरता से भी जयदा खतरनाक होता ..इसलिए तमाम सच्चे सेक्युलरो को सूडो सेकलुरिस्म और आप जैसे लोगो के खिलाफ मजबूती से ठाड़े रहना होगा…तभी इस ऐश देश सामाजिक समरसता बचेगी…
धन्यवाद ब्रजेश जी, सिकंदर हयात साहब के साथ समस्या है कि वे इस देश के मुसलमानों के सच्चे प्रतिनिधि हैं, समझ नहीं पाते कि उनकी प्राथमिकता क्या है? कौन हितचिंतक है और कौन दुश्मन? राष्ट्रीयता, मजहब, फिरके और कौम के बीच के विरोधाभासों में अपना पक्ष निे्धारित नहीं कर पाते.
देश के सामने बड़ी समस्या गरीबी और भ्रष्टाचार है, जिसकी ओर से ध्यान बंटाने में यह सरकार पिछली सरकारों से अधिक सफल हो चुकी है, पर हयात भाई और बाकी बुद्धिजीवी “असहिष्णुता” जैसे झुनझुनों में ही उलझे पड़े हैं.
गरीबी और भरषटाचार पहले की तरह जस का तस हे बल्कि गरीबो की जेब पर डाका मार जा रहा हे उसकी तरफ से ही जनता का ध्यान हटवाने को हि आपकी ज़हरीली सरकार अपने कुकर्मो से कोशिश कर रही थी उसमे वो सफल भी हो रही थी मगर सही समय पर सही लोगो ने सामने आकर इस सरकार को सारी दुनिया के सामने नंगा कर के रख दिया इसी से आप लोग भन्नाय हुए हे और बर्जेश भाई रंजन सर और शरद भाई सेकुलर तो हे मगर ” शुद्ध ‘ ‘ ———?
तारिफ के लिये शुक्रिया हयात जी वैसे मे आपकी भाति सेकुलर नही हु दुसरा कान्ग्रेश हो या बीजेपी किसी के भी शासन से मे घुटन मह्सुस नही करता हु
और मेर छोटी बुधी है जिसको आपकी भाति ये पता नही चल पाता की एक दन्गे के लिये एक सरकार दोशी जबकि दुसरी के लिये पाक साफ ????????
वैसे मे अहिन्सावादी हु पन्तु मुझे वामपन्थि साहित्यकारो से को सहानुभूति भी नही है क्योकि मेरा मानना ये है कि ये लोग अमर्यादित रुप से आपने तर्क रखते है जो कही न कही हिन्सा का ही एक रुप है
बार बार ये बकवास की जाती हे की दादरी में एक आदमी मरा उसे इतना बड़ा मुद्दा क्यों बनाया गया ये सज़िश ये हे वो हे वहा ऐसा हुआ था ? तब कहा थे उस समय कहा था ? ब्ला ब्ला अब बताइये की ये बाते कितनी बेहूदा हे दादरी को मुद्दा संघियो बज़रंगियो ने ही बनवया था एक आदमी की हत्या हो गयी थी दोषियों को सजा मिलती बात खत्म तुम्हारे ही तो संगीत सोम महेश शर्मा साध्वी प्राची आदित्यनाथ और पता नहीं कौन कोन पहुंचे थे बकवास करने आरोपियों की वकालत करने पीठ थपथापने और अगर देश का पी एम इनके साथ नहीं हे तो निकालता इनको पार्टी से ? लेकिन किया कुछ भी नहीं ( उल्टा महेश शर्मा को इनाम में कीमती लुटियंस बांग्ला ) क्योकि मोदी इन्हे अपना सरमाया मानते हे उन्हें पता हे की जनता तो अगले चुनाव में बहुत मारेगी यही ज़हरीले लोग सबसे अगले चुनाव में सबसे बड़ी उमीद हे बस यही से बात बिगड़ी और समझ वाले लोग समझ गए की ये आदमी चुनाव जितने को सविधान को ताक पर रख रहा हे बस बुद्धजीवियों ने हल्ला बोल दिया और सारी दुनिया में मोदी जी असली चेहरा पंहुचा दिया
१-ये जरुरी नही है की जो पहले ना हुआ हो अब भी ना हो पर विरोध का कारण राजनेतिक नही होना चाहिय्रे कलबुर्गी केस का एक दुखद पहलु ये भी है कि ना तो कान्ग्रेश शासित पुलिस कोइ सुराग निकाल पायी ना ही सीबीआई जाच की सिफारिस कर पायी
२-इसमे कोई शक नही आदित्यनाथ आदि सभी लोग जहरीले है लेकिन इस आधार पर सपा सरकार को पाक साफ नही किया जा सकता जो दुखद घटना को रोक पाने मे असफल रही
३-किसी दुखद घटना के बाद उस क्षेत्र केे एम एल ए , एमपी ,या मुख्यमन्त्री या गरहमन्त्री का दोरा तर्क सन्गत होता है उसके आलाव सभी लोग
चाहे वो किसी दुसरे प्रदेश का सीएम ही क्यो ना सिर्फ राजनीति हि चमकाने आते है आप को इस पर भी ध्यान देना चाहिये तथा इस प्रकाए की घटनाओ पर न्याय फास्ट ट्रेक कोर्ट मे हो
यही सबसे उपयुक्त समय है….सूडो सेकलुरिस्म के खिलाफ डटकर खड़े होने का..अगर इस समय थोडा भी झुकाव हुवा या ढिलाई बरती तो सेकलुरिस्म जो धर्म विशेष का बंधक बना हुवा है वो उसकी जुटी तले आ जाएगा..इसलिए कट्टरता से तो जंग जरी रहेगी ही..पर सूडो सेकलुरिस्म से और भी कठोरता से निपटना होगा…इसके लिए भले ही कट्टर कम्युनल का आरोप लगे उसकी को बात नही..सेकलुरिस्म को साम्प्रदायिक सोच और वोट लाएलची नेताओ और वर्ग विशेष के पंजे से छुड़ाना ही होगा…तभी देश में सच्ची सेकलुरिस्म सथापित हो सकेगा
यही सबसे उपयुक्त समय है इस समय सारी दुनिया में प्रचार किया जाना चाहिए की भारत में मोदी राज़ असल में हिन्दू कठमुल्लाशाही का राज़ हे और पी एम खुद सभी हिन्दू साम्पर्दयिको का हौसला बढ़ा रहे हे सारी दुनिया को इस बारे में बताना चाहिए इससे कश्मीर नागालैंड सिक्योरिटी कौंसिल सबसे अधिक विदेश मुद्रा भेज़ने वाले अरब देश हर जगह भारत की पोजीशन कमजोर हो जायेगी जिससे देश में इस ज़हरीली सरकार का फ़ज़ीता हो जाएगा
अपने मूर्खतापूर्ण विचारों की भौंडी अभिव्यक्ति, व तोहमत हम पर कि हम “असहिष्णु” हैं… लानत है…
अफजल भाई के लिये सही समय है कि अपने संपादकों की समीक्षा करें…
शांत सर शांत देखिये देश को बचाने को थोड़ी कमजोरी भी आ जाए ( वैसे भी यह सरकार कर ही रही हे ) तो दिक्कत नहीं हे देश बचेगा तो फिर से मज़बूत हो जाएगा बल्कि ” मोदी संकट ” से जूझ कर और अधिक मज़बूत बन जाएगा इंशाल्लाह . वर्ना मोदी देश की एकता के लिए कितना बड़ा खतरा बन चुके हे इसका अंदाज़ा लगाइये की प्रधानमंत्री के प्रोत्साहन प्राप्त लोग एक सवतंत्रता सेनानी के बेटे और समाजसेवा के लिए यूनेस्को पुरुस्कार जीत चुके आदमी को पाकिस्तानी कहते हे जबकि याद रहे की उसके बयान में कही भी पाकिस्तान से तो कोई लेना देना भी नहीं था तब भी और अंदाज़ा लगाइये की मोदी वादी रंजन सर इस पर भी चु भी करने की जरुरत महसूस नहीं करते हे अंदाज़ा लगाइये की ये हाल कर दिया हे मोदीवाद ने देश का ? मोदी हटाओ की मुहीम आज की सबसे बड़ी जरुरत हे इसमें देर भारी पड सकती हे
रही बात अवार्ड लौटाने वाले महापुरुषो की तो देखदेखि में ये सब कर रहे है …एक फैशन सा चल निकला है..इन्हें खुद भी नही पता की कहा किस जगह देश का माहोल ख़राब है..ये वाही लोग है जो इमरजेंसी सिख विरोधी दंगो कश्मीरी पंडितो के मामले में अपना मुह सिलकर बैठ गए थे..तब वो घुटनो के बल रेंग रहे थे…तस्लीम नसरीन जब दर डर की ठोकरेखा रही थी किसी का हाथ काटदिया गया कोई जहरीले भासन दे रहा था..तब नकी जुबानों को लकव मार गयाथा..इसलिए इसे दोगले मुह लोगो की बातो बिलकुल ध्यान दि जाए
महसूस होता है कि पुरस्कार लौटाने वाले” कुछ बुद्धिजीवी वर्ग ” दरअसल वो सभी महान लोग है, जो राष्ट्रीय सम्मान की महत्ता व गरिमा के अर्थ को न तो ठीक तरीके से समझ पायें है और न ही महसूस कर पाये है। उन सभी के लिए अवॉर्ड महज़ दिवाली गिफ्ट की तरह ही है जो हर साल मिल जाना है। पुरस्कार वापिस आने की खुशी हो रही है; आखिर बेचारे इनका करते भी क्या ???. लेकिन मेरी नज़र सिर्फ इस बात पर टिकी है कि ये सभी पुरस्कार की राशि प्रधानमन्त्री राहत कोष में किस दिन दान करने वाले है ??. प्रतीकात्मक रूप से क्या, अगर विरोध करना ही है तो थोड़ा रचनात्मक रूप से भी कर लीजिये जनाब !!!.
मोदी की पृष्ठभूमि संघ की रही है, 2002 के दंगो के लिए भी उनपे अंगुली उठी, बावजूद मैं इन आलोचनाओ के बीच मैं मोदी मे सकारात्मक ढूँढने की उम्मीदे बचा के रखता हूँ. उसका कारण है, पिछले कुछ वर्षो से उनके बयान, और कई अन्य लोगो का उनपे भरोसा.
जैसे कि उन्होने पिछले 4-5 वर्ष मे हिंदुत्व का नाम नही लिया. हालाँकि योग वग़ैरह की बाते की, जिसमे मेरी कोई दिलचस्पी नही, मैं उससे इतना चिंतित नही. इसके अलावा ज़फर सरेशवाला, सलीम ख़ान, एम जे अकबर का मोदी का पक्ष लेना. इन सब लोगो को मैं मुख़्तार अब्बास नक़वी, शाहनवाज़ हुसैन से भिन्न और अधिक बुद्धिजीवी मानता हूँ.
इसके अलावा, परेश रावल और अनुपम खेर भी मोदी का बचाव करते नज़र आ रहे हैं. हालाँकि इंपे राजनैतिक लाभ लेने का आरोप मे कुछ सच्चाई हो, लेकिन इन लोगो के विचार बहुत खुले हैं, ये सब लोग स्वतंत्र सोच के हिमायती है. परेश रावल, जहाँ “ओह माई गॉड” जैसी फिल्म और नाटक की परिकल्पना करते हैं, अनुपम खेर “toatal siyapa” जैसी फिल्म करते हैं. जिसमे पाकिस्तानी लड़के और भारतीय लड़की की प्रेम कथा है, और कलाकार भी पाकिस्तानी है, उनकी पत्नी भी इसमे भूमिका अदा करती है. इन सब तथ्यो से आशावाद की उम्मीद होती है. ठीक ऐसी ही उम्मीद मैने परवेज़ मुशर्रफ़ से करी थी. हालाँकि वो कारगिल का रचनाकार था, लेकिन 9/11 के बाद, अमरीकी दवाब मे ही सही, उसने पाकिस्तान मे आधुनिकता और बहुल्टावाद को बढ़ावा देने का प्रयास किया, कुछ नीतिगत बदलाव किए.
इंसान की सोच मे तब्दीली आ सकती है, इसलिए कुछ कहा नही जा सकता.
लेकिन यही उम्मीदे तब कम हो जाती है, जब मोदी का करीबी अमित शाह, बीजेपी की हार पे पाकिस्तान मे पटाखे फूटने की बात करता है, और योगी आदित्यनाथ, और गिरराज सिंह जैसे लोगो को मोदी, सत्ता मे आने के बाद पुरूस्कृत करते हैं. मुझे लगता है, कि जो लोग मोदी की विकास पुरुष की छवि से मोहित होकर उसका समर्थन करते हैं, उन्हे मोदी से जुड़ी ग़लत बातो को भी भक्तो तक पहुँचना चाहिए, जिससे विकास पुरुष, पे हिंदू हृदय सम्राट बनने की चाह ज़्यादा ना हो जाए.
लोकतंत्र, जनता की इच्छा के अनुरूप अपने को धालता है, इसलिए जनता इस चुनाव मे ये संदेश दे.
इस तरह से शायद दाऊद से सम्बन्ध के आरोपी बिहार के एक बड़े मुस्लिम नेता भी मोदी खेमे में आ चुके हे उन्हें क्यों भूले ? सलीम खान ? को पता हे की कल सलमान सजा में सरकार की बेहद महत्वपूर्ण भूमिका होगी ज़फर सरेशवाला बोहरा बिज़नेस मेन हे इनके लिए सब कुछ बिज़नेस होना आम बात हे एम जे अकबर को राज़सभा सीट चाहिए जो जहा से मिल जाए ये वाही जाएंगे वैसे भी ये भरोसे के लोग नहीं हे इतने बड़े पत्रकार एम जे अकबर ने इतने लम्बे कॅरियर में भला कब मुस्लिम काटरपंथ से लड़ाई लड़ी ? हिन्दू काटरपंथ से भी हाथ मिला लेना इनके लिए कोई बड़ी बात नहीं हे अनुपम खेर को आज नहीं 12 साल पहले हरकिशन सिंह सुरजीत ने संघी कहा था ? मात्र फिल्मे करना एक अलग बात होती हे बाकी बाते अलग शाहरुख़ की फिल्मे आम होती हे मगर अगर उन्होंने समाजसेवा के लिए यूनेस्को अवार्ड जीता हे या सलमान की समाजसेवा या आमिर की समाजसेवा और रचनातमकता वो अलग बात होती हे तो हम इनकी तारीफ करते हे मोदी आदमी अच्छे नहीं हे सम्पर्दयिकता उनमे गहरे धसी हे उनकी सोच में तबदीली आएगी इसकी उमीद उतनी ही हे जितनी शाही इमाम या ओवेसी की सोच बदलने की ? मोदी हटाओ अभियान में अब कोई किन्तु परन्तु की गुजाइंश नहीं हे हां भाजपा सरकार से अंध विरोध नहीं हे
मोदेी से भाजपा अलग नहेी है ! जिस्से मोदेी के विचारो का जनम् हुआ है उसेी से भाजपा का जन्म हुआ है नेीम के पेद केी पत्तेी और दातुन् दोनो कद्वेी होति है इस्लिये दुसरो कोधोखा मत दिजिये !
मैं यह तो मानता ही हूँ कि इस बिहार चुनाव मे बीजेपी हारे तो भविष्य मे होने वाली राजनीति और समाज की दिशा कम बुरी या बेहतर रहेगी. लेकिन फिर भी मुझे लगता है कि कट्टरपंथ की लड़ाई, मे हमे दक्षिणपंथी वर्ग के भी सरलीकरण से बचना चाहिए.
जैसे कि बीजेपी से जुड़े लोगो के निजी स्वार्थो की मंशा से इनकार नही किया जा सकता, लेकिन ऐसा भी नही हो सकता कि दिल मे नफ़रत भरा बैठा, व्यक्ति “टोटल सियापा” जैसी मूवी कर ले. लोगो ने अनुपम खेर को संघी कहा हो, लेकिन मैं ऐसा नही मानता.
ठीक इसी तरह, परेश रावल की “ओह माई गॉड” उनके चिंतन से उपजी रचना थी. इस बात को भी तमाम स्वार्थ के आरोपो के बाद भी मद्दे नज़र रखना चाहिए.
वोट बॅंक ही सही, लेकिन अपने फ़ायदे के लिए बीजेपी, मुस्लिमो, दलितों को, ओवैसी मुस्लिमो से निकल कर दलितों को, राज ठाकरे यूपी बिहारियो को, खालिदा जिया, हिंदुओं को आकर्षित करने की कोशिश करते हैं, तो अपना कुछ ना कुछ कट्टरपंथ गँवाएँगे ही, इन सब दक्षिण पार्टियो का आलोचक होने के बावजूद, तब भी मैं उनके इस परिवर्तन को सकारात्मक मानूँगा.
बात शायद फिर विषय से भटक रही है, लेकिन जो ध्रुवीकरण दक्षिणपंथी पार्टियाँ कर रही है, राजनीति मे हर दक्षिणपंथी वर्ग से जुड़े व्यक्ति को संपूर्ण बुरा बता कर, हम भी दूसरा ध्रुवीकरण ही पैदा करेंगे, और सार्थक संवाद के दरवाजे बंद करेगे.
उदाहरण के तौर पे अवॉर्ड वापस करने वालो के समर्थन के बावजूद, मुनव्वर साहब का मोदी से बात करने की पेशकश मुझे ग़लत नही लगी. मोदी भक्तो से मोदी की बजाय, बिन्दुवार चर्चा करनी पड़ेगी.
जाकिर भाई आपने बेहद शानदार और बड़ा प्रकटिकल कमेंट लिखा हे जिसकी खुले दिल से तारीफ !!
जिस तरह शार्क समंदर मे कई मील दूर से खून की गंध सूंघ कर वह पहुँच जाती हे इसी तरह मोदी-विरोध की बात हो और हयात भाई वह न पहुंचे तो अजूबा ही माना जाएगा :)…………
हयात भाई जब तर्को की जगह कुतर्क ले ले, दिमाग की जगह दिल ही सोचने लगे, डिस्कसन मे खुलेपन की जगह बालहठ सरीखी जिद दिखने लगे….. तो बुजुर्गो की नसीहत हे कि ऐसे डिस्कसन से कुछ नतीजा निकालने कि उम्मीद नहीं करनी चाहिए !!………..
सवाल 1-दादरी कहा पर हे (यू पी मे)
सवाल 2-यू पी मे सरकार किसकी (पता कर लीजिये बीजेपी की नहीं है)
सवाल 3-दादरी पर त्वरित निर्णय लेने कि विफलता किसकी (राज्य सरकार की, केन्द्र सरकार की नही)
सवाल 4-यू एन जाने वाले साहब किस पार्टी के नेता हे (बीजेपी के नही है बल्कि उस पार्टी के है जहा उन्ही की सरकार ह़े)
सवाल 5-वे दादरी घटना को लेकर यू एन गए इससे क्या साबित हुआ (यू पी सरकार का निकम्मापन)
सवाल 6-यानि फिर तो आपके हिसाब से गोधरा, गुजरात, मुज़फ़्फरनगर, सहारनपुर आदि घटनाओ के लिये तब की केन्द्र सरकारो को ही जिम्मेदार माना जाना चाहिये (क्या कहते है आप) ??……….
अब खास सवाल-अगर केंद्र सरकार इसके लिए जिम्मेदार हे तो भूल सुधार करते हुए उसे अगला कदम क्या उठाना चाहिए (यू पी मे राष्ट्रपति शासन लागू कर देना चाहिए और मार्शल लॉं लगा कर ऐसी घटना दोहराने की कोशिश करने वालो को देखते ही गोली मार देनी चाहिए)
अब हयात भाई की राय—- क्या यू मे राष्ट्रपति शासन की सिफ़ारिश से आप सहमत हे ?? अगर नहीं तो फिर थोड़ा समझा दीजिये कि दादरी कि विफलता कि पहली ज़िम्मेदारी राज्य सरकार कि न होकर केंद्र सरकार कि किस तरह से बन पाती हे ??
इस बात का जवाब सौ बार दिया जा चूका हे फिर भी आप हमसे फालतू में लिखवाते हे की कौन नहीं जानता की यु पि सरकार और भाजपा में कैसे साठ गाँठ हे ? इसी साठ गाँठ से मोदी को बहुमत मिल पाया जो किसी ने सपने में भी नहीं सोचा था मुलायम के यहाँ शादी में मोदी के लिए ऐसा प्रेम दिखा जो भाजपा के बड़े नेताओ के यहाँ न दिखे ? दूसरी बात अगर दादरी के लिए सिर्फ यु पि सरकार जिम्मेदार हे तो फिर गोधरा गुजरात दोनों के लिए मोदी जिम्मेदार हे जिसके बाद वो आप लोगो की नज़र में महान प्रशासक बने ? और दादरी की घटना से नहीं दादरी की घटना के बाद संघियो के वहशी ब्यानो से दादरी दुनिया भर में चर्चा में आया ? एक संघी ब्लॉगर विजय सिंघल इतने दिनों बाद भी निकली अपनी पत्रिका में अख़लाक़ पर गौ हत्या का आरोप लगाते हे इतनी वहशी बेशर्मी इसी से दादरी दुनिया भर में फेमस हुआ और मोदी सरकार दुनिया भर नंगी हुई
एक संघी ब्लॉगर विजय सिंघल ही क्यो नवभारत टाइम्स के कुछ ब्लोगर्स तो इतने दिनों बाद भी अभी भी गाय और दादरी पर पिले हुए हे जबकि वे तो लोकतन्त्र का चौथा स्तम्भ भी माने जाते हे ??
अवार्ड लौटाने वाले कुछ ट्यूब लाइट बुद्धि वाले बुद्धिजीवी भी अपने बिरादरों को अवार्ड लौटा कर जॉइन कर रहे हे जबकि सुखद सच ये हे कि दादरी के उसी गाँव के वे कम पढे लिखे गाँव-वाले इन किताबी (मगर कोरे) शिक्षितों से काही जायदा बेहतर हे !!
याद रहे कि जब अवार्ड-धारी अवार्ड कि राजनीति कर रहे थे उसी बीच मे उन गाँव-वालो ने आपसी भाईचारे से नफरत के माहौल को इस हद तक भाईचारे मे बादल डाला कि दो मुस्लिमो कि शादिया भी हिन्दुओ के साथ कंधे से कंधा मिला कर “उसी गाँव कि जमीन पर” समपना हो गयी !!….. न ये बात आपकी समझ मे आएगी और न ही उस साहित्यिक राजनेताओ की ??
तो हमने कब दादरी के गाव वालो को बुरा कहा ? दिखाइए ? गाव में कितना भाई चारा अभी भी हे हम भी जानते हे मगर माहोल तो संघियो ने ही बिगाड़ा ( सोम आदित्य महेश प्राची वगेरह वगेरह ) ? अगर इस पर पी एम को ”नूरा कुश्ती ” के आलावा कोई और ज़रा भी ऐतराज़ होता तो कैसे अब भी शारुख को बार बार पाकिस्तानी कहा गया ( आदित्य गिरिराज कैलाश ) जबकि शाहरुख़ के ब्यान में कही भी पाकिस्तान का कही जिक्र भी नहीं था ? सीधी सी बात हे मोदी अगला चुनाव जीतने की खफ्त में हे उनकी इसी खफ्त के खिलाफ लोगो ने ऐतिहासिक लोकतान्त्रिक जिहाद छेड़ा हे कुंदन शाह ने इसे बिलकुल सटीक नाम दिया हे ” डार्क एज ” इस डार्क एज के खिलाफ बुद्धजीवियों का ये हल्ला बोल भारत ही नहीं सारी दुनिया में प्रेरणा माना जाएगा और अगर बिहार में जीत हुई तो कहने ही क्या
क्या इखलाख केी हत्या मे घातक् हथियारो का इस्तेमाल् हुया था या पितते पिय्ते हेी उस्केी मौत हो गयेी ! सम्भव ह कि अपारधियो का उद्देश्य उस्कि मौत कर्ना न हो ! सिर्फ्फ बुरेी तरह मार् पेीत हेी हो फिरे भेी महेश् जि मन्त्रेी थे उन्को अप्ने बय्नो मे एजल्द्बजेी नहेी दिख्लानेी चाहिये थेी !
हत्या तो हत्या ही होती है राज जी चाहे वो धर्म के नाम पर मनुस्य की या जीब के स्वाद या कर्मकाण्ड के नाम पर जानवरो की दोनो मे ही पीडित अपने प्राणो को खोता है फिर उस पर तर्क कैसा वैसे पीट -२ कर की गयी हत्या कही ज्याद विभत्स होती है
कित्ने कमाल् कि बात है केी सपा अप्नेी हानि करके मोदि जि को बहुमत दिल्वायेगेी ! अप्नि स्थित मजबुत करके मोदि को को ब्लैक्मेल कि रज्निति नहि करेगेी सपा क्या सन्त पार्तेी है जो मोदि का भला करेगेी !
लालु अप्नि सन्तानो के विवाह मे अगर मोदि जि को बुलयेन्गे तो मोदि जि फिर वहा जायेन्गे अगर राहुल् जेी के विवाह् मे भेी बुलाया जायेगा तब भेी उन्के विवाह् मे जायेगे ! दिग्विजय जि के पुत्र के विवाह मे मोदेी जेी गये थे !
सिकन्दर जेी अभेी इत्ने भोले मत बनिये नेता – नेता पक्के दोस्त होते है ! रज्निति एक खेल होता है कतुता सिर्फ आम जनता को दिख्लाने के लिये होतेी है १
अगर आप अप्ना विवाह करेन्गे तो बुलाने पर हम भि आप्के विवाह मे शमिल हो सक्ते है
लेकिन भोजन नहि हो सकेगा , फला हार हो सक्ता है ! और साथ मे कुरान् कि कतु अलोच्ना भि चल्तेी रहेगेी !
विजय सिन्घल जेी कि पत्रिक दुनिया बह्र्व मे चल्तेी नहि है फिर भि उन्को ऐस नहेी लिख्ना चहिये था ! जान्वर से इन्सान ज्यादा मुख्य होता है!
अब बात बिहार केी हे तो फिलहाल गाय, दादरी, मुनव्वर राणा और अवार्ड वापसी से अलग यानि बिहार के एक्ज़िट पोल पर….
एक्जिसट पोल एनडीए महागठबंधन अन्य
न्यूज़ 24 टुडेज़ चाणक्य 155 83 5
इंडिया टुडे- सिसेरो 113-127 111-123 4-8
एबीपी- नील्सन 108 130 5
न्यूज एक्स- सीएनएक्स 90-100 130-140 06-14
इंडिया टीवी- सी वोटर 101-121 112-132 06-14
न्यूज़ नेशन 115-119 120-123 0
टाइम्स नाऊ सी वोटर 101-121 112-132 10
अब कोई ये बताए कि कि रेंज का क्या मतलब हे ?? इसका मतलब हमारी नज़र मे यही हे कि हमारे देश के अधिकतर न्यूज़ चेनल्स का इतना कलेजा नहीं हे कि वे एक्ज़िट पोल के बारे मे कुछ भी ठीक बता सके ?? बच्चा भी बता देगा कि 243 सीटो मे से 230 और महागठबंधन मे ही बांटेंगी और उसमे भी 20 कि रेंज ?? 112-132 मे 20 का मतलब 15-18% ?? एक्ज़िट पोल हे या नौटंकी ?? अब अगर 108 सीटे आई तब भी चेनल्स खुद को मेडल दोगे और अगर 136 आई तब भी अपने सर्वे कि पीठ थपथपाओगे ??
एक्ज़िट पोल के नाम पर नौटंकी चला कर देश के कई करोड़ लोगो के कई अरब घंटे बर्बाद करने पर कानूनन कुछ तो प्रावधान होने ही चाहिए
शरद जी पिछले २-३ चुनावो का एक्ज़िट पोल देखे तो न्यूज़ 24 टुडेज़ चाणक्य की अक्युरेसी कुछ हद तक सटीक होती है
चानक्य के पिच्ले एक्जित पोल मे बत्लया था कि दिललेी मे आप पार्तेी ४८ सेीत जितेगि औ भाज्पा २२ जितेगेी ल्किन ६७== ३ आयि थि महाराश्त्र मे भाजपा को १५१ सित देने कि बात कहि थि वह भेी बहुत कम् अयि थि
हमरा अनुमान है केी बिहार मे भाजपा मोरचा अप्ने अहन्कार के कारन से , अप्नेी करतुतो से , गलत भाशनो केी दिशाओ से अनुशसन हेीन्ता के कारन विपक्श् मे रहेगेी ! चुनाव ने सिर्फ मेहनत हि काम नहेी अतेी है और भि व्यव्स्था देख्नेी होतेी है उसमे भाजपा ने अस्फलता दिख्लऐ है !
बात काटने के लिये माफी चाहुन्गा राज जी क्योकि मैने १००% अक्युरेसी नही कही है वैसे चानक्य ने दिल्ली मे कान्ग्रेश का सुपडा साफ और लोक सभा मे बीजेपी को पुर्ण बहुमत बताया था
हमरेी खुब बात कातेी जा सक्तेी है !
दिल्लि मे कन्ग्रेस को शुन्य चानक्य ने कहाथा और मोदि जेी को बहुमत मिलेगा वह्बात हम्को याद नहेी है !
हम् किसेी भेी इन्सान का किसि भेी जान्वर कि एक बुन्द खुन बहाने का किसेी भि हिन्सा का समर्थन् नहि कर् सक्ते है
सिवाये आत्म रक्शा { बचाव के !
लो कल्लो बात मोदी ने गुजरात और मुजफरनगर पर कांग्रेस और गांधी परिवार की की तरह चौरासी पर माफ़ी मांगी ? नहीं और न कोई प्रतीकात्मक कदम उठाया उल्टा मुजफरनगर के आरोपी को पहले मंत्रमंडल में लिया मुख़्तार जैसे वफादार और मोदी से भी पहले सीनियर मंत्री (98 में ही ) वो भी शिया मुस्लिम वो भी वो आदमी मुख्तार अब्बास जो संघियो की तरह ही लोगो को ज़बरदस्ती ”समझोता एक्सप्रेस ” का टिकट थमाता हे कराची में प्लाट दिलवाने की धमकी देता हे उस मुख़्तार तक को ना पहले लिया बाद में लिया तो केबिनेट तक में नहीं लिया जिसमे स्मरति ईरानी तक को लिया गया हे ये बात कहना गुलाब और जामुन मिलकर गुलाब जामुन बनाना हो गया हे क्या कहे ? एक जमाना था जब रंजन सर से बहस करने में मुझे दाँतो से पसीना आ जाता था घबराहट होती थी मगर आज मोदी भक्ति में रंजन सर की तर्कशीलता हवा होते देखना बेहद दुखद हे
माफी चाहते हे हयात भाई पर अभी तक हमे तो रंजन सर की तर्क-शीलता हवा मे उड़ती नहीं दिखी, हा ये अलग बात हे कि पिछले कुछ समय से आप जिस तरह से पता नहीं कहा-2 के जुगाड़ फिट करके हर मुद्दे को मोदी-विरोध से जोड़ने के करिश्माई काम पर जुटे हे उसके सामने रंजन सर तो क्या हम सब पाठको कि तर्क-शीलता एक साथ मिलने पर भी “आपकी नज़र मे” वो हवा मे उड़ती हुई दिखेगी ः)
हयात भाई ईमानदारी से बताइये कि काही आपके आस-पास के किसी लोकल कठमुल्ले ने आपके खिलाफ फतवा-वटवा तो जारी नहीं कर दिया हे क्योकि ऐसा लेखन किसी जबर्दस्त दवाब मे ही नज़र आता हे !! आपकी सलामती हमारे लिए किसी भी डिस्कसन से बढ़ कर हे
आदरणीय शरद भाई, हमारी तर्कशीलता का क्या है? हयात साहब की कल्पनाशीलता की पतंग हमारी हवा में उड़ती तर्कशीलता से मीलों आगे है. और वैसे भी कुतर्क, अड़ियल रवैये और एकांगी दृष्टिकोण के तूफान के सामने तर्कशीलता नाम की चिड़िया कहाँ टिकेगी…
वैसे, इस साइट पर जिस तरह की बहसें हो रही है, हमें लगता है यहाँ हर विषय में इस्लाम एक मुद्दा जरूर होता है. अगर इसे धर्मनिरपेक्षता कहते हैं तो धर्मसापेक्षता क्या होती है?
” इस्लाम एक मुद्दा जरूर होता है. अगर इसे धर्मनिरपेक्षता कहते हैं तो धर्मसापेक्षता क्या होती है?
” तो और भी तो कुछ सवाल कीजिये रंजन सर इसी तरह आपके मोदी जी के खास चाटुकार जिन्हे शायद सिर्फ चाटुकारिता की वजह से केंद्रीय मंत्री मण्डल में लिया गया उन्होंने क्यों ये कहा की शाहरुख़ खाते यहाँ की हे और गाते पाकिस्तान की हे जबकि जो भी हे शाहरुख़ चाहे जो कहा हो वो चाहे दुनिया की सबसे बेवकूफी की बात हो तो भी उसमे आखिर पाकिस्तान कहा से आ गया बीच में ? ये बात मोदी के खास चाटुकार ने कही इसका मतलब हे की खुद पि एम की इन बातो पर सहमति हे इसलिए सारे सोच समझने वाले लोग भड़के हुए लेकिन आप शांत हे और जवाब भी नहीं देते की कांग्रेस ने 84 पर तो माफ़ी तलाफ़ी कर ली पार्तिकतमक तोहफा भी दे दिया मोदी जी ने क्या किया जो दो दो दंगो की सवारी करके पि एम बने हे——- जारी
सन्घ ने शाह रुख जि को देश् द्रोह् काहने को गलत कहा है आखिर मोदेी जेी से सन्घ बदा कहलाया जाता है !
ऐसे तो पाकिस्तानी नेता या पि एम भी आतंकवाद को हिंसा को गलत कह देंगे और मुह पर कहते भी हे तो उससे क्या होता हे ? जमीनी हालात कुछ और हे जब ? इसी तरह संघ को कहा ही कई सर वाला —- कहा जाता ही हे
शरद भाई याद रखिये की फ़तवा हमारे खिलाफ ज़ारी हो ही नहीं सकता क्योकि फतवे की वजह तो बतानी ही होगी और कोई भी चाह कर भी हमारे लिखे पर पि एच डी करके भी कोई भी हमारे लेखन में इस्लाम तो क्या किसी भी धर्म के खिलाफ चाह कर भी एक भी शब्द निकाल ही नहीं पायेगा कई दीवाने आये और हम पर इस्लाम विरोधी लेखन का आरोप लगाया ( जैसे आज मोदी टोडीज़ देश विरोध का आरोप लगाते हे ) तो हमने हमेशा यही कहा की हमारी लाख लाइन नेट पर मौजूद होंगी लाओ सिर्फ एक लाइन कॉपी पेस्ट करके दिखा दो की य या य य लाइन इस्लाम विरोधी हे नतीजा आज तक कोई भी सिर्फ एक लाइन कॉपी पेस्ट नहीं कर पाया खेर और में दबाव में तो नहीं तनाव में बेहद हु क्योकि साफ़ दिख रहा हे की मुस्लिम काटरपंथ की मदद से मोदी को बहुमत मिला और अब एहसान उतराई में मोदी ने हिन्दू काटरपंथ इतना बढ़ा दिया हे की मुस्लिम काटरपंथ से लड़ाई का मोर्चा हम लोगो ने बिलकुल खाली कर दिया हे ये पुरे उपमहादीप में हो रहा हे इसलिए कहते हे की सभी कटट्रपंथ और अतिवाद एक दूसरे के सबसे बड़े मददगार होते हे
न केवल मुस्लिम कटरपंथ से लड़ाई का मोर्चा मोदी जी की वजह से खाली छोड़ना पड़ा हे बल्कि पंजीवादी कटट्रपंथ से लड़ाई का मोर्चा भी मोदी जी ने पूरी तरह से खाली करवा लिया हे यु ही नहीं इन लोगो ने हज़ारो करोड़ चुनाव में इन्वेस्ट किये थे ?
जहा तक मेरा सवाल हे तो कोई भी देख सकता हे मेरे लिखे या प्रस्तुत किये गए आधे से अधिक लेख गैर मज़हबवादी मुद्दे पर हे और जो बाकी हे भी तो गौर करे ( जो सर ने नहीं किया ) की हम इस्लाम या किसी भी धर्म पर न तो लिखते ही हे न कोई खास बहस करते हे ना हम किसी धर्म या पंथ को महिमामंडित करते हे न किसी की भी आस्था अक़ीदे का अपमान ही करते हे हमारी तो बहस का विषय धर्म नहीं बल्कि धर्मनिरपेक्षता और धार्मिक कठमुल्ला के कारनामे होते हे हमारा मेन मकसद एक दक्षिण एशिया महासंघ हे उससे ही जुडी साड़ी बहस होती हे उसमे ही आने वाली अड़चनों पर सहअस्तित्व की बात बताई जाती हे तो इसमें क्या गलत हो गया उपमहादीप की गरीबी तब ही मिटेगी जब यहाँ महासंघ बनेगा इसे न कोई मोदी न कोई अम्बानी न कोई जाकिर नाइक ही मिटा सकता हे तो इसमें क्या गलत बात हो गयी रंजन सर जैसे लोगो की जो आरामदायक जिंदगी रही होती हे उसमे उन्हें बहुत सी बाते नहीं पता होती हे बहुत सी बातो में दिलचस्पी नहीं होती हे बहुत सी बातो का अनुभव नहीं होता बहुत सी बातो का डर नहीं होता जेसे ये नहीं पता होगा की जब से मोदी आये हे तब से एक एक चीज़ के दाम बढे ही हे जबकि इस दौरान महगाई का मेन कारण तेल भी काबू में हे रंजन सर की दिलचस्पी मोदी जैसे तानाशाह टाइप नेता की अगुआई में एक सुपर पावर भारत में हे और बातो में नहीं जबकि हमारी दिलचस्पी शान्ति और गरीबी और समानता जैसे मुद्दो में हे ——- जारी
मोदी जी से सबसे अधिक उमीद आर्थिक चमत्कार की की जा रही थी और चलिए ठीक हे की इसी आस में शरद भाई रंजन सर तवलीन सिंह आदि लोग गैर कम्युनल होते हुए भी हर हाल में मोदी को बचाने में जुटे हो उन्हें लगता हो की मोदी भारत को सुपर पवार बनायेगे चलिए एक बार को मान लिया फिर भी अगले चुनाव में मोदी हटाओ अभियान सही ही हे मोदी ने कोई खास विकास दे भी दिया तो भी दुनिया में कही ही विकास असमानता बढ़ाय बिना नहीं हुआ हे तो होना ये चाहिए चलिए मोदी विकास करे भी तो भी उसके बाद नितीश केजरी वाम राहुल को लाया जाए इस टास्क पर की इस विकास का सामान बटवारा हो मान लीजिये ये लोग इस काम में विफल हो तो फिर से भाजपा सत्ता में आये लाया जाए यही लोकतंत्र हे एक आदमी की दीवानगी अवतारवाद लोकतंत्र नहीं हे चर्चिल ने ब्रिटेन को हिटलर पर जीत दिलाई थी लोग उनका सम्मान करते थे उसके बाद भी लोगो ने उन्हें जीत के फ़ौरन बाद चुनाव में उन्हें हराया था की भाई अब आगे हमें लेबर पार्टी चाहिए उसके बाद लेबर के बाद फिर चर्चिल आये
हयात भाई हमारे लिए इतना काफी हे कि मोदी जी के प्रधान-मंत्री बनने के बाद से अभी तक कोई बड़ा घोटाला नहीं हुआ हे जबकि पहले हर 15 दिन मे कोई न कोई बड़ा घोटाला बड़ी आम बात हो गयी थी।
पहली बात तो ऐसा हे नहीं मोदी ने पिछला चुनाव भी अँधा खर्च करके जीता और अगले चुनाव में भी यही होगा उसके लिए पैसा कहा से आएगा ? और इतनी चीज़ो की रिकॉर्ड तोड़ मेह्गाई क्या हे ? जबकि तेल के दम भी गिरे हुए हे कांग्रेस राज़ में तो फिर भी मेह्गाई तब बढ़ी थी जब 2009 का भयंकर सुख भी पड़ा और तेल भी बहुत ऊँचा था और चलिए मान भी ले आपकी ख़ुशी के लिए की करप्शन खत्म हुआ तो बता दू की बहुत से कारणों से डाइरेक्ट करप्शन चिंदी चोरी का जमाना तो जा रहा हे मगर इनडाइरेक्ट अब भी बहुत हे मगरिबी देशो में ये बहुत पहले हो चूका हे चलिए वो भी छोड़े तो मान भी ले की अ करप्शन खत्म हो गया हे तो भी कोई खास फर्क नहीं पड़ता क्योकि देश में पहले ही गैर बराबरी इतनी बढ़ चुकी हे की करप्शन होने या न होने से आम जनता को कोई खास फर्क नहीं पड़ेगा ( जैसे दिल्ली में आप सरकार में करप्शन नहीं हे मगर मेरी लाइफ अब भी बेहाल ही हे ) गैर बराबरी खुद सबसे बड़ा करप्शन हे और मोदी राज़ में गैर बराबरी और बढ़ेगी ही
गैर बराबरेी हमेश रहेी है आज भेी है और आगे भेी रहेगेी यह नेचर है ! सुर्य के पास जल नहेी ह और जल के पास आग् {सुर्य्} नहेी है !
कहेी धरतेी है कहि नदिया सागर है !
कोइ मरेीज रहेगा कोइ चिकित्सक रहेगा !
कोइ गरेीब और् कोइ अमेीर रहेगा ! अमेरिका मे भेी है और सऊदेी अरब मे भेी !
किसि के पस साईकिल् होगेी किसेी के पास कार होगेी !
कोई मज्दुर होगा कोई महल बन्वायेगा !
चुनाव १९५२ के हो या २०१५ के हो चुनवेी खर्च् बेतहाशा बधे है और आगे भेी बश्ते रहेन्गे ! क्योकि नेहरु जेी ने इस्केी बुनियाद गलत दालेी थेी !
मोदि जि और ताना शाह ?
करेीब् १८ महेीनो मे तो ऐसा नहि लगता है !
वह निर्वाचन् अयोग के नियम के अनुसा चुनाव् जेीत्कर पेी एम बने है अप्ने शपथ् ग्रहन समारोह् मे बहुत् से लोग को बुलाया था अनेक विदेशेी नेताओ को भेी !
१८ माह के दौरान किसेी भेी विरोधेी नेता को जेल नहेी भेजा
किसानो के जमिन लेने के मुद्दे को वापस् भेी ले लिया {जब कि हमारेी नजरो मे ऐसा कानुन् जरुरेी था }
अपने किसेी मन्त्रेी को अब तक् नहेी निकाला !
मन्त्रिमन्दल मे बहुमत से फैस्ले होते है !
अभि तक मुस्लिम या अन्य किसेी समुदाय् कि हत्या भेी नहेी कर् वाई ! किसेी राज्य सर्कार को अबतक बर्खास्त भेी नहेी किया
यह् सब कान्ग्रेस करतेी रहेी है !
तो बतलऐये अब किस बात पर मोदेी जेी तानाशाह है ?
आम जनता कि जान्करेी तो बधा दिजिये ?
तानाशाही की बात कोई और नहीं खुद कई भाजपा नेता दबी जुबान से कह रहे हे हो सकता हे कल कोई अच्छी खबर आ जाए तो दबी जबान खुल भी सकती हे ? और तानाशाही के लक्षसं देखिये अटल के ज़माने से ही भारत में न्यूज़ चेनेल रहे हमेशा मिडिया रहा मगर कभी ये नहीं हुआ की कोई चेनेल या मिडिया हाउस अटल या कांग्रेस के टोटल मुखपत्र बने हो ? कभी भी नहीं और आज देखिये कितने न्यूज़ चेनेल मोदी के भोपू बने हुए हे ज़ी न्यूज़ तो टीवी का पाञ्चजन्य बना हुआ और इतने घिनोने होते हे ये लोग की ये चेनेल भी ठीक बज़रंगियो की तरह मोदी विरोधियो को पाकिस्तानी बता रहा हे और खुद पाकिस्तानी सीरियल दिखा दिखा कर नोट भी छाप रहा हे इंडिया टीवी के पास तो खेर कोई लाज शर्म थी ही नहीं कभी जो थी वो भी अब बेच खायी हे और भी कई उदहारण हे ये सब तानाशाही के ही लक्षण होते हे तानाशाही में ही ऐसा होता हे
हयात भाई हम बोलना नहीं चाहते पर आप हमारे हलक मे हाथ डाल कर मजबूर कर ही रहे हो तो फिर अब सुनिए
1)नयनतारा सहगल
जवाहरलाल नेहरू की भांजी पुरस्कार मिला 1986 मे
सवाल-क्या पुरस्कार पाने के 29 वर्षो मे भारत मे रामराज्य था
1984 दंगो मे 2800 सिख मरे और केवल 2 साल बाद ही पुरस्कार मिला पर लौटाने के बजाय चुपचाप रख लिया
2)उदय प्रकाश
वर्ष 2010 मे साहित्य पुरस्कार मिला
सवाल-वर्ष 2013 मे दाभोलकर की हत्या के बाद पुरस्कार क्यो नहीं लौटाया
3)अशोक वाजपेयी
वर्ष 1994 मे पुरस्कार मिला
क्या वर्ष 1994 से वर्ष 2015 तक देश मे राम राज्य था
4)कृष्णा सोबती
वर्ष 1980 मे पुरस्कार मिला
सवाल-वर्ष 1984 के सिख दंगो के वक़्त भावनाए क्यो नहीं हुई
5)राजेश जोशी
वर्ष 2002 मे पुरस्कार मिला
सवाल-क्या इतने वर्षो मे सांप्रदायिक हिंसा की घटनाए नहीं हुई
आइये अब कुछ और तथ्य जाने
वर्ष 2009 से लेकर वर्ष 2015 तक सांप्रदायिक हिंसा की 4346 घटनाए हुई मतलब प्रतिदिन सांप्रदायिक हिंसा की 02 घटनाए हुई
वर्ष 2012 के असम दंगो मे 77 लोग मारे गए
वर्ष 2012 के सिख दंगो मे 2800 लोग मारे गए
वर्ष 1990 से कश्मीरी पंडितो की 95% आबादी को कश्मीर छोड़ना पड़ा था। करीब 4 लाख कश्मीरी पंडितो को उनके घरो से निकाल दिया गया
अब कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न
1दाभोलकर की जब हत्या हुई तब न केंद्र मे बीजेपी की सरकार थी और न ही राज्य मे
कलबूरगी की हत्या भी बीजेपी शासित राज्य मे नहीं हुई
93 दंगे और बम विस्फोट2002 मे साबरमती एक्सप्रेस मे कई लोगो औरतों बच्चो को जिंदा जला दिया गया
उसके बाद से देश भर मे कई आतंकी घटनाए और हुईसंकटमोचन मंदिर पर हमला
अक्षरधाम हमला
जम्मू मे रघुनाथ मंदिर पर हमला
मुंबई मे आतंकी हमला
तब किसी ने पुरस्कार नहीं लौटाया…
क्या तब माहौल खराब नहीं हुआ था ?
इस बात का जवाब नागर जी ने दे दिया रविश कुमार ने दे दिया हमारे जैसे टटपूंजिये ने भी दे दिया खेर एक बात बताइये बताइये शरद भाई की आप लोग या मोदी खेमे के प्रवक्ता अनुपम खेर ये सवाल तो कभी भी नहीं उठाते की जब गुजरात दंगे हुए थे तब क्यों नहीं नयनतारा काशीनाथ उदयप्रकाश आदि ने अपना अवार्ड वापस क्यों नहीं किया था ये तो मोदी खेमे का कोई भी इंसान नहीं पूछता हे ? —————- जारी
शरद जी, पुरूस्कर लौटाने वालो की फ़ेरहिस्त 100 के पार पहुँच चुकी है. इनमे से अनेको, चलिए अधिकांश लोगो को भी कांग्रेसी या वामपंथी मान ले, और प्रतिभा की बजाय, सिफारिशो से अवॉर्ड प्राप्त करने का अधिकारी मान लिया जाए, तब भी ऐसे लोग बच ही जाएँगे, जिनकी प्रतिभा और बुद्धिजीविता पे संदेह नही किया जाना चाहिए.
मुझे लगता है कि मोदी समर्थक अवॉर्ड वापस लेने वालो को बिकाऊ बता कर, जिस बहस से बचना चाह रहे हैं, उससे उन्हे ही नुकसान होगा.
अगर वो इन अवॉर्ड वापस करने वालो के लिए वो सिर्फ़ यह कहते कि उन्होने परिस्थितियो का सही मूल्यांकन नही किया है, तब भी स्थिति बेहतर होती.
बुद्धिजीवी वर्ग से कोई आवाज़ निकल रही है, तो उसे सुना ही जाना चाहिए.
उन्को मोदेी बह्क्त् कहिये न् केी मोदेी जि कि ताना शाहेी !
जब किसेी मुस्लिम पत्नेी जेी को एक् पल मे तलाक तलाक तलाक कहक र हमेशा के लिये जुदा कर दिया जायेगा तब हम इस्लाम् केी मुस्लिम समुदाय केी भेी तानाशाहेी कहेन्गे ! और् जब कोइ ति वि चैनल इस्लाम के गेीत् गाने वाला मिलेगा तब हम उस्को इस्लाम का भग्त् कहेन्गेि इस्लाम् केी तानाशाहेी हर्गिज नहेी कहेन्गे !
क्या बात हर किसी को पाकिस्तान ही भेजते रहते हो यदि भेजना है तो सऊदी,अमीरात या टर्की भेज दो कम से कम फजीहत तो ना होगी
पुरस्कार तो लौटेंगे ही क्योकि अब गीता पढ़ने वाला पी एम जो आ गया हे
पुरस्कार तो लौटेंगे ही क्योकि पाकिस्तान मे “मोदी हाय-हाय” जो मचा हुआ हे
पुरस्कार तो लौटेंगे ही क्योकि अब राष्ट्रपति भवन मे रोजा इफ्तार के साथ-2 नवरात्रि का कन्या पूजन भी जो हो रहा हे
पुरस्कार तो लौटेंगे ही जो इस देश का पी एम जाकर अरब मे मंदिर बनवा रहा हे
पुरस्कार तो लौटेंगे ही जो इस देश का पी एम विदेशो मे भी भगवा धारण कर रहा हे
पुरस्कार तो लौटेंगे ही जो आज मोदी की वजह से विश्व योगा दिवस मना रहा हे
जो आज पूरे देश मे गौहत्या रोकने की बात जो हो रही हे
इंतजार करिए अभी बहुत पुरस्कार लौटने बाकी हे क्योकि देश जाग जो रहा हे !!
ये कुच मेसेज हे जो पिच्ले कुच समय मे सभि ने देखे होन्गे…. हयात भाई दर्द इधर भेी कम नहेी मिला हे पर हम कभी भी बेवकूफी का जवाब बेवकूफी से देने के पक्ष मे नहीं रहे हालांकि जब सामने वाला नहीं सुधरने की कसं ही खाये बैठा हो तो क्या किया जाये ?
आशा हे आप ठंडे दिमाग से विचार करेंगे
गीता पढ़ने पर कोई ऐतराज़ नहीं हे मगर सिर्फ गीता पढ़ने वाला पि एम भारत के लिए सही नहीं हे पाकिस्तान में मोदी ही नहीं हर भारतीय नेता के लिए हाय हाय ही मचा रहता हे जो पाकिस्तानी गांधी नेहरू उनकी कोंग्रस को हिन्दू पार्टी कहते थे तो कोई खास बात नहीं की पाकिस्तान में क्या कहा जा रहा हे हां बाकी देश जरूर महत्वपूर्ण हे अरब में मंदिर दूसरे धर्मो के पूजा स्थल सिर्फ सऊदी में मना हे बाकि देशो में नहीं बगदाद तो चर्चो का शहर था ही पी एम विदेशो मे भी भगवा धारण कर रहा हे बिलकुल कर रहे कभी सिख वेश भी ले रहे हे सिर्फ मुस्लिम पर्तिको की मनाही हे क्योकि घोर कम्युनल इंसान हे योग के हल्ले के बाद ही मेडिकल इंडस्ट्री का ज़बरदस्त बूम हुआ हे योग को धन्यवाद तो बनता ही हे मोदी वैसे भी व्यापारियों के प्रिय हे पुरे देश में गौ हत्या रुके ( कुछ राज्यों में रोक कर तो देखो ) सारी गायो को सड़को से उठाकर अच्छी जगहों पर रखो खूब गाय पालो जो करना हो करो गौ हत्या पर कानूनन सजा हो वो भी ठीक हे मगर गौ हत्या पर इंसानो की हत्या बर्दाश्त नहीं की जायेगी और भले लोगो ने की भी नहीं हे अख़लाक़ की हत्या पि एम को बहुत महंगी पड़ी ————जारी
आप गलत बोल रहे हे क्योकि मुसलमानो कि तरह कोई भी अपने धार्मिक प्रतिको को दूसरों पर थोपता नहीं हे, आप हमे एक भी उदाहरण बता दीजिये जब क्रोशिये वाली टोपी लेकर जाने वाला मुसलमान अपने माथे पर तिलक लगा कर या हाथ मे कलेवा बांध कर गया हो ??
जब आप दूसरे के धार्मिक प्रतिको को स्वीकार नहीं कर सकते तो कोई आपके वालो को क्यो करे ??
दूसरे से उसी व्यवहार कि उम्मीद कीजिये जो आप दूसरों के साथ करते हे !!
गौ हत्या पर इंसानो की हत्या बर्दाश्त नहीं की जानेी चाहिये ऐसा हम आपसे पहले से बोलते आ रहे हे बल्कि हम तो इस बात के प्रबल समर्थक हे १)आपसी भाईचारा बढ़ाने के लिए धार्मिक मुद्दो को बीच मे लाना ही नहीं चाहिए !!
२)आप हमारा तिलक मत लगाये पर फिर अपनी मुल्ला टोपी को भी हमारे सामने मत निकाले
३)हम आपकी मस्जिद मे नहीं जाये तो हमे आपको अपने मंदिर मे लाने कि जिद करना बेवकूफी हे
४)कुरान किसने लिखी का वैज्ञानिक तौर पर जवाब मिलने तक मुसलमानो को राम कि जन्मभूमि को “वैज्ञानिक तौर पर “ साबित करने कि मेहनत करने से बचना चाहिए और अगर फिर भी जिद हे तो कुरान पर उठने वाले अप्रिय सवालो के लिए भी तैयार रहना चाहिए
क्या वास्तव मे धार्मिक बाटो को बीच मे लाये बिना भाईचारा नहीं हो सकता ??
जरूर हो सकता हे !!
सिक्खो केी पग्देी बान्ध्ने से सिक्खो का तुश्तेीकरन् नहेी काहा जाता है लेकिन मुस्लिम तोपेी पहनने रज्नैतिक् रुप से मुस्लिम तुश्तेीकरन् कहा जाता है ! सिक्ख पग्देी बान्ध्ने से सिक्ख खुश् नहेी होता लेकिन् मुस्लिम् तोपेी पाह्नन्कर मुस्लिम समुदाय को बेव्कुफ् बनाया जा सक्ता है इस्लिये मोदेी जि ऐसा नहेी करते है !
अगर कोइ एक हत्या भेी कर्ता है तो जिवन भरकेलिये उस्को हत्यारा हेी कहा जायेगा ! मुस्लिम समुदाय केी अन्खो का तारा सऊदेी अरब मे जब गैर मुस्लिम को अप्ने धन्ग से इश्वर् केी आराधना कर्ने से रोकाजाता है तो उस्को बुरा क्यो नहेी कहा जायेगा मुस्लिम समुदाय का कोइ भि नेता इस नियम का विरोध् क्यो नहेी कर्ता है
बात पि एम की हो रही थी भारत एक सेकुलर देश हे या तो आपसभी धर्मो के पर्तिको से दूर रहिये ( मोदी हिन्दू प्रतीक जोर शोर से धारण करते हे ) या फिर मुस्लिम पर्तिको से परहेज़ मत करिये ( जैसा मोदी करते हे ) या परहेज़ करना ही हे तो खुल कर खुद को हिन्दू राष्ट्र का पी एम घोषित कर दीजिये दम हे तो करके दिखाइए आप भूल रहे हे की मेन मुद्दा मोदी हटाओ हे ( और आपका मोदी बचाव ) तो उसकी बात हे बाकी जो बाते आपने की उन पर तो बहस चलती ही रहती हे
हयात भाई पिछले कुछ समय से आपके साथ समस्या ये होती जा रही हे कि आप तथ्यो को पूरी तरह नकार कर जिद पर अद् जाते हो
बराबरी और गैर-बराबरी ?? आज़ादी के 6 दशक से जायादा समय बीत जाने के बाद भी “पीने का पानी” उपलब्ध करवाना हमेशा एक मुख्य मुद्दा रहा हे ?? इसे कौन सी बराबरी मे रखना चाहेंगे आप जबकि बीजेपी तो सही तरीके से पिछले कुछ सालो मे ही अपने राजनीतिक वजूद मे आई हेः)
क्या प्रथम मुस्लिम राश्त्र्पति जाकिर हुसैन जेी राश्त्र्पति होकर भेी मुस्लिम तोपेी नहेी पहन् ते थे ! बन्गाला देश मे क्या कोई शिलान्यास य उद्घातन् होने पर कुरान् क अयते नहि बोलि जातेी है ! बन्ग्ला देश भि अप्ने को सेकुलर देश कहता है !
हयात जी बेससक भारत एक सेकुलर देश है पर यदि आप पि एम बन जाये तो क्या टोपी पहनना छोड देन्गे या फिर टोपी के साथ -२ कलावा और तिलक भी प्रयोग करने लगेन्गे पर शायद ना तो आप नास्तिक बनेन्गे ना ही शिर्क कर पायेन्गे तो फिर दुसरो से एसी आशा क्यो ??????????
फिर से पढ़े ध्यान से ”बात पि एम की हो रही थी भारत एक सेकुलर देश हे या तो आपसभी धर्मो के पर्तिको से दूर रहिये ( मोदी हिन्दू प्रतीक जोर शोर से धारण करते हे ) या फिर मुस्लिम पर्तिको से परहेज़ मत करिये ( जैसा मोदी करते हे ) या परहेज़ करना ही हे तो खुल कर खुद को हिन्दू राष्ट्र का पी एम घोषित कर दीजिये ”
” ये था और आप क्या लिख रहे हे ? और याद रहे शिर्क न करने की पाबंदी मुसलमानो के ऊपर हे आपके ऊपर नहीं शिर्क करे न करे आप के लिए कोई मुद्दा नहीं होता तो ज़बरदस्ती टाइम पास के लिए मुद्दा क्यों बना रहे हे ?
जो समुदाय कल्पित अल्लह के साथ मुहम्मद् जेी का नाम् जोद कर “कलमा ” पेश कर्ता हो और शिया मुस्लिम वर्ग के अनेक समुदाय अलेी जि का नाम भेी उसेी” कल्मा ” मे जोद्ते हो इस्के बाद भेी शिर्क न मानते हो सिर्फ काबा केी दिशा मे नमाज पधते हो , फिर् भेी यहेी कहे केी इस्मे शिर्क नहेी है तो उन्के बुद्धि के दिवालिये पन केी निशानेी है और यह् सब् जन्म जात् पदे सन्स्कार केी पदे निशानेी मात्र है इस्मे भेी सुधर केी सख्त जरुर हमेशा रहेगेी !
ऐसी बहस जिसका कोई नतीजा कभी नहीं निकलना हे उसे करने में आपकी ही दिलचस्पी हो सकती हे क्यों की बहस के आलावा ” आपसे कुछ ना होगा ” लेकिन हम सिर्फ बहस नहीं करते समझोते के बिंदु भी बताते हे जो आपने लिखा उससे क्या होता हे आप दुनिया के किसी एक भी शिया या बरेलवी या बोहरा से कहलवा कर तो दिखाइए की वो ” शिर्क ” करते हे कोई भी नहीं कहेगा की वो शिर्क करता हे वो खुद को शिर्क ना करने वाले शुद्ध मुस्लिम मानते हे तो देवबंदी खुद को तो वहाबी खुद को वो अलग बहस हे जबकि हिन्दुओ के लिए शिर्क करना या ना करना कोई भी मुद्दा नहीं हे इस पर तो कोई शक या बहस ही नहीं हे फिर टोपी से इफ्तार पार्टी से मोदी जी की दुरी ( देते ही नहीं हे बल्कि लाख बुलाने पर भी राष्ट्रपति की इफ्तार पार्टी में नहीं जाते ) साम्प्रदायिकता नहीं तो और क्या हे में तो कहता हु वो भी ठीक हे मगर खुल कर तो आओ सामने ? बाहर जाकर भोले भाले क्यों बनते हो ? ये अपना असली चेहरा नहीं दिखा रहे थे तो मेरे देश के शुद्ध सेकुलर लोगो ने यही किया की इनका नकाब नोच कर सारी दुनिया को मोदी जी का असली चेहरा पेश कर दिया बहुत बढ़िया
बीजेपी तो अभी वज़ूद में आई मगर उसका समर्थक तो हज़ारो साल से हे और सबसे अधिक माल भी इन्ही लोगो के पास हे गोचर के लिए जमीन मांगते हे जबकि सबसे अधिक जमीं माल अपनी ही अंटी में लिए बैठे हे और अब और चूसेंगे खेर आपने अवार्ड वापस करने वालो को बहुत कुछ कहा मगर बताया नहीं या हम ही बताय ? कीइस बात का जवाब नागर जी ने दे दिया रविश कुमार ने दे दिया हमारे जैसे टटपूंजिये ने भी दे दिया खेर एक बात बताइये बताइये शरद भाई की आप लोग या मोदी खेमे के प्रवक्ता अनुपम खेर ये सवाल तो कभी भी नहीं उठाते की जब गुजरात दंगे हुए थे तब क्यों नहीं नयनतारा काशीनाथ उदयप्रकाश आदि ने अपना अवार्ड वापस क्यों नहीं किया था ये तो मोदी खेमे का कोई भी इंसान नहीं पूछता हे ? —————- जारी और पाठको ”सफाई के नाम पर जम कर नौटंकी करने वाला मोदी खेमा और दूसरे लोग ( कपिल शर्मा की बकवास ) ? वही हुआ जिसका डर था ये सरकार सफाई के नाम पर हमारी जेबो की सफाई पर जुट चुकी हे पहले ही पता था मोदी जी के हर आत्मुग्दता की कीमत हमें ही चुकानी होगी ”
क्या कमाल कि बात है बि जे पि आभि वजुद मे आयेी और उस्के समर्तहक हजारो सालो से है !
कहेी आप के जन्म कि कहानेी हजारो सालो से तो नहेी थेी ?
शरद भाई तो देंगे नहीं इस बात का जवाब लाइए हम ही देते हे की गुजरात दंगो के बाद साहित्यकारों बुद्धजीवियों की फ़ौज़ ने अवार्ड वापसी की झड़ी नहीं लगाई थी तब भी नहीं लगाई जब कश्मीरी पंडितो को भगाया गया था क्योकि तब देश के सबसे ऊँचे पद पर वि पि सिंह और अटल थे जो शुद्ध लिबरल थे और इन घटनाओ में ना उनका कोई हाथ था ना प्रोत्साहन था और वो दुखी भी थे कम से क्मं इसकी तसल्ली थी गुजरात दंगो के समय लोकसभा में सबसे अच्छा भाषण काटरपंथी आडवाणी का ही था कम से कम ये बात थी मगर आज पि एम का हाथ खुद वहशियों की पीठ पर हे पि एम खुद दादरी पर चुप्पी साध कर लोगो के जले पर नमक छोिड़कने को मसखरे पन के लिए विश्वविख्यात और खतरे से बाहर घोषित अपने आदमी के लिए ट्वीट करता हे इसीलिए इस आदमी के खिलाफ दोसो से भी ज़्यादा सकिर्य बुद्धजीवियों ने अवार्ड वापस किये और उनके समर्थन में आये कौन ? अनुपम खेर मधुर अशोक पंडित ( सब म्रत हो चुकी कला वाले लोग ) इसी से आप अंदाज़ा लगा सकते हे
हाहाहाहा हयात भाई हमे उन अवार्ड-धारियो से पूरी खुशी हे जो अपना अवार्ड राजनीति करने के लिए इस्तेमाल मे नहीं ल रहे हे , न अवार्ड तब लौटाया और न ही अब लौटाएँगे !!
अवार्ड क्यो लौटाना भाई जब विरोध करने के एक से एक बेहतर तरीके मौजूद हे !! सारे “सेकुलर” साहित्यकार एकसाथ आकर घोषणा कर दे कि जब तक बीजेपी सरकार मे रहेगी हम कोई अवार्ड नहीं लेंगे !! पर पुरसकार देखते हेी लार तपकाने और तलवे चाटने वाले कई चाटुकार क्या ऐसा करने का कलेजा रखते हे??
श्रेी सिकन्दर जेी , बत्ल्लैये आप ज्यादा होशियार् है या सब्से बदेी विरोधेी दल् कान्ग्रेस !
अभेी तक् मोदेी विरोधेी कन्ग्रे स ने भेी मोदेी हताओ के लिये एक शब्द नहेी बोला अन्दोलन तो बहुत दुर कि बात है !
और आप मोदेी हताओ केी बात करते है साफ साफ कहियेइस आद मे अप्को मुस्लिम्र समुदाय मे मोदेी जेी का भय बैथाल्ना है !
नीरेंद्र नागर अब यदि कांग्रेस शासित राज्यों में संघ परिवार ऐसे सांप छोड़ रहा है जो ‘अंधविश्वासों, मठाधीशों और धार्मिक कट्टरता’ के ख़िलाफ़ बोलनेवालों को डस रहे हैं तो वहां की सरकारें तो दोषी हैं ही कि वे ऐसे सांपों को रोकने या पकड़ने में नाकाम रहीं लेकिन वे लोग सौ गुना ज़्यादा दोषी हैं जो ये सांप पालते हैं, उनको दूध पिलाते हैं और विरोधियों को डसने के लिए इन्हें समाज में छोड़ देते हैं। और उनसे भी हज़ार गुना दोषी वे हैं जो इन सांपपालकों को न केवल जानते-पहचानते हैं, बल्कि उनको मौन या मुखर समर्थन भी देते हैं। आपने दादरी कांड से जुड़े संजय राणा और केंद्रीय मंत्री महेश शर्मा की तस्वीर देखी होगी और हाल में दिल्ली स्थित केरल भवन में बीफ़ सर्व होने की झूठी ख़बर देनेवाले विष्णु गुप्ता का बीजेपी नेताओं के साथ का फ़ोटो भी देखा होगा। यह सबूत है कि कैसे ये ज़हरीले सांप केंद्र में बैठे लोगों के समर्थन और सहयोग से अपना संकीर्ण अजेंडा चला रहे हैं। पुरस्कार लौटानेवालों का सारा विरोध उन्हीं से है जो आज केंद्र की सत्ता में बैठे हुए हैं और मासूम होने का नाटक कर रहे हैं।
अच्छा अब मोदी टोडीज़ लिख लिख कर बता रहे हे की भाजपा क्यों इस कदर बुरी तरह हारी हज़ारो करोड़ का खर्च लाखो करोड़ की लटकायी गयी गाजर छी न्यूज़ जैसा भांड मिडियाा( जिसने कल शायद एको सो एक के बाद घबराहट में गिनती ही छोड़ थी कुछ समय के लिए जैसे शेयर बाजार बिकवाली पर कुछ समय को बंद हो जाता हे )बाल और सेन्स दोनों खो चुके —- जैसे मुरीद फिर भी भाजपा क्यों हारी अब ये टोडीज़ बताएँगे असल में इन्ही चाटुकारो की वजह से हारी ये चाटुकार अपनी सड़ियल जिंदगी में रंग भरने के लिए किसी एक नेता के भक्त बनते हे उसकी गुलामी करते हे इन्ही चाटुकारो भक्तो की वजह से हर सत्ताधारी को ये ग़लतफ़हमी हो जाती हे की बस अब तो तुम्ही तुम हो तुम्हारे जैसा कोई ना आया हे न आएगा तुम चकवर्ती तुम जो करोगे वो गलत हो ही नहीं सकता हे जो तुम्हारे विरोधी हे वो सब आई एस आई के एजेंट हे आदि इन्ही टोडीज़ की वजह से जो सत्ता में आता हे वही पागलपन अहंकार का शिकार हो जाता हे अहंकार की इंतिहा देखिये इस कदर बड़े बड़े लोगो ने अवार्ड वापस किये किसी को मिलने को नहीं बुलाया और जोकरों के झुण्ड को फ़ौरन मिलने के लिए बुला लिया जबकि तभी एक महिला के साथ बदसलूकी की भी हुई फिर भी अहंकारी ने इन्हे ही मिलने का समय दिया
हर चुनाव मे किसी ना किसी की हार होती है और कोई ना कोई जीतता ही है इसमे अजूबे जैसा कुछ भी नही है बहरहाल बिहार चुनाव के नतीजे आने के बाद कुछ समय खबरे देखने के बाद हमारी तरफ से कुछ बातो के लिये मीडिया और देश की जनता को हार्दिक बधाईया…….
1-पिछले कुछ समय से हर चेनल की सुर्खियो मे आ रही “असहिष्णुता” अब गायब सी हो गयी लगती है यानि कुछ ही घंटो मे हमारा देश फिर से “सहिष्णु” बन गया है…. महानतम जादूगर हेरी हुड़नी या अपने देसी जादुबाज पी सी सरकार भी ऐसा कारनामा नही कर पाते:)……
2-कल से “अगला अवॉर्ड कौन लौटाएगा” नामक बहुचर्चित सीरियल को तत्काल प्रभाव से रोक दिया गया लगता है:)…..
3-विदेशो मे भी देश के सम्मान का ग्राफ़ अचानक उच्चततम स्तर तक पहुंच गया लगता है !!…..
4-बीजेपी ने भी आत्म-मंथन कर लिया है और उसके सभी खिलाडी बेहद शानदार तरीके से खेले और वे किसी खिलाडी की बयानबाजी को गलत नही मानते (क्योकि स्लेजिंग खेल का हिस्सा है)…. कोई उनके खिलाडी को विभीषन कहता रहे पर मेच-फिक्सिंग का सुबूत उनके पास नही है….. उनके कुछ खिलाड़ियो पर अनुशासनहीनता की खबर जरूर है पर उनके खिलाफ एक्शन वाला कलेजा फिलहाल किसी के पास नही है ….यानि सब अच्छा था बस यू ही हार गये और यही वजह है कि हार का कोई कारण नही मिल पाया !!
5-चलते है अगले चुनाव मे “एग्ज़िट-पोल” वाला कॉमेडी शो देखना मत भूलिये….. वो कोई मित्र किसी “चाणक्य वाले पोल” की भी बात कर रहे थे… छोड़िये जाने दीजिये बिना हार्ड डिस्क वाले हमारे छोटे से दिमाग मे पुराना डाटा रखने की जगह ही नही है (सिर्फ रेम पर काम चल पाता है)….. लोकतंत्र की जय होः)
कुछ दिन पहले देश भी यही पूछ रहा था की पुरस्कार लौटाने वाले अचानक चापलूस ,सेकुलर,नालायक,पाकिस्तान,अमेरिका, सऊदी अरब की साजिश कैसे नजर आने लगे ?
ये सब वे पुरस्कार लौटाने से पहले क्यों ऐसे नहीं क्यों नजर आये ?
और आये भी तो फिर उनके पुरस्कार लौटाने से पहले ही सरकार ने उनके पुरस्कार क्यों नहीं छीन लिए ? एक साल में इतना काम तो हो ही सकता था !!
उस समय ये हुवा तब क्यों नहीं लौटाए ? वो हुवा तब क्यों नहीं लौटाए ? क्या यही पुरस्कार के लिए नालायक या लायक होने की कसौटी है ?
अब भी तथाकथित राष्ट्रवादियों के हिसाब से भी बहुत कुछ गलत हो रहा है !! कोई लौटा रहा है पुरस्कार ?
क्या पाकिस्तानी एक दो नहीं पुरे चार सैनिको के सर काट कर ले जाएंगे तभी ये राष्ट्रवादी पुरस्कार लौटायेंगे ? क्यों की एक दो सैनिको का सीमा पर मरना तो रोज की बात है भाई !!! ः)
मोदी टोडीज़ कैसे अक्ल के दुश्मन हे देखिये एक मोदी टोडीज़ ब्लेक केचुआ लिखते हे की इन लोगो के अंतरास्ट्रीय संपर्क हे ( कांग्रेस और वाम ) उसकी वजह से हारे यानी डेढ़ सालो से सारी सारी दुनिया में अभूतपूर्व स्वागत सम्मान जयजयकार तो मोदी जी की हो रही थी और सम्बबंध हे कांग्रेस और वाम वालो के ? और भगवत को भी खा मखा बलि का बकरा बनाने की कोशिश मोदी टोडीज़ कर रहे हे जिस देश में जितने आरक्षण के घोर समर्थक हे उतने ही घोर विरोधी भी फिर एक ही जाती में अमीर और आरक्षण का लाभ ले रहा हे उसी जाती का पडोसी उसे कुछ नहीं मिल रहा हे तो वो भी तो आरक्षण की समीक्षा चाहता हि होगा ? इसमें क्या हे तो कही नहीं भागवत के बयान से कोई फर्क पड़ा होगा हार मोदी शाह की ही हुई हे यहाँ तक की बिहार भाजपा की भी नहीं
अवार्ड वापसी भारत को जगाने के लिए हो रही थी ये चेक करने के लिए हो रही थी की भारत का सेकुलरिज़म लोकतंत्र लिब्रलिस्म कही सो तो नहीं गया हे कही वो तानाशाही के आकर्षण ( ये” आकर्षण ” बाहर से बेहद खूबसूरत और बिना मेकप के बेहद बदसूरत होता हे ) में दीवाना तो नहीं हो गया हे लेकिन बिहार नतीज़ों ( सवा लाख करोड़ की अफीम पर भी ध्यान नहीं दिया ) ने साफ़ कर दिया की भारत जाग गया हे या सोया ही नहीं था तो अब अवार्ड वापसी की फिलहाल जरुरत नहीं हे फिलहाल तो अनुपम खेर एंड झुण्ड को ढूंढिए और पी एम से पूछने की हिम्मत कीजिये की ऐसा इस झुण्ड में क्या खास था ( महिला से बदसलूकी ? ) जो अपना कीमती समय इस झुण्ड को दिया ?
इतवार को जब बिहार अपने वोट गिनवा रहा था, तब दुनिया के नीति-निर्माता और कॉरपोरेट हस्तियाँ इकॉनमिस्ट पत्रिका में छपे इस लेख को पढ़ रही होंगी. नतीजे आने से पहले लिखे गए लेख का अंत कुछ ऐसा हैः
“बिहार में सांप्रदायिक राजनीति करने का विकल्प चुनना और हिंदुत्व के नाम पर अपराधियों के ख़िलाफ़ सख़्त कार्रवाई न कर पाना मोदी की नीयत को संदिग्ध बनाता है. ये तत्व उस मशीन का ज़रूरी हिस्सा हैं जो चुनाव और दूसरे कामों में उनके लिए उपयोगी हैं. ये बात विचलित करने वाली है कि बिहार में मोदी की संभावित हार या जीत, दोनों ही मोदी को अतिवादियों के और क़रीब ले जाएगी. उससे भी बुरी बात तो ये है कि वे शायद इन तत्वों से सहमत भी हैं ”मतलब साफ़ हे की मोदी जी सुधरने वाले नहीं हे सो ये लड़ाई लम्बी चलेगी और नितीश कुमार को पि एम बनाने से पहले नहीं रुकने वाली हे
बिहार का चुनाव परिणाम लोक की जीत है ,लोकतंत्र की जीत है।ये भारतीयता की जीत है। ये सीधे सीधे नरेंद्र मोदी और मोदीवाद की करारी हार है। ये उस विचार की शिकस्त है जो अहंकार में डूब कर देश को अपने हिसाब से हांकने का मंसूबा बांध रहा था। हार के कारणों की पड़ताल करने के लिए बीजेपी नाम की पार्टी तो है ही नहीं क्यों की वो तो मई 2014 के बाद ही तिरोहित हो गयी थी।उसके बाद विश्व की सबसे बड़ी पार्टी होने का अट्टहास करने वाले दल को दो लोगों ने बंधक बना लिया।उसके बाद न पार्टी रही न कोई रीति नीति न आतंरिक लोकतंत्र।बचा तो सिर्फ मैं, मैं,मैं और सिर्फ मैं का राग भैरवी ताल कहरवा।सोशल मीडिया पर चक्रवर्ती सम्राट की विरुदावली गाने और सिंहासन की जय जय कार में दिन रात “मोदी-रासो” लिखने वाले चारण भाटों का रेला बढ़ा चला आ रहा था। कट पेस्ट, फोटो शॉप के जरिये इतिहास की झूठी सच्ची कहानियां बनाने वाले अय्यारों ने अपने नेता को महामानव बना दिया और अंध भक्त झाँझ, मजीरे, खप्पर लेकर कीर्तन करने लगे। विकास के नाम पर दिन रात गाल बजाने वालों को बिहार में जाति धर्म और हर उस टोटके से चुनाव जीतने को कोशिश करते सबने देखा। विरोधी नेता के “डी एन ए पर संदेह” से लेकर “बेचारी बेटी को सेट करने” जैसे स्तरहीन भाषण भी देश के मुखिया के मुंह से सुन लिए गए।लेखक डॉ राकेश पाठक डेटलाइन इंडिया मैग्जीन के प्रधान संपादक हैं.
उमीद करनी चाहिए की अब रंजन सर और शरदभाई जैसे मोदी समर्थक जिन्हे न भक्त कहा जा सकता हे ना टोडीज़ कहा जा सकता हे वो सोचेंगे की आखिर वो कौन सा कारण था की इतना कुछ होने के बाद भी वो मोदी जी के साथ डट कर खड़े रहे थे ? आखिर क्यों ? उमीद हे की अब वो भी अपना समर्थन वापस ले लेंगे चाहे तो किसी और को समर्थन न दे मगर समर्थन वापसी बहुत जरुरी हे
sharad Hayat Bhai,
Due to some technical problem failed to post below mentioned comment on your recent blog (ये सिर्फ हमारे व्यक्तिगत विचार हे सहमत-असहमत होने के लिए आप स्वतंत्र हे)
हयात भाई हम कभी किसी पार्टी के पिछलग्गू नहीं रहे बल्कि अपने छोटे से दिमाग की तर्क-शक्ति के आधार पर आकलन कर ऐसे व्यक्तियों नेताओ से प्रभावित जरूर होते आए हे जिनमे कुछ अलग सोचने और करने के गुण दिखाई देते हो और ऐसा तभी तक होता हे जब तक वह अपने स्तर को बरकरार रखता हो अन्यथा हमारी ऐसी रिश्तेदारी नहीं हे जो उसे छोड़ा न जा सके जिसका सबसे बढ़िया उदाहरण श्री केजरीवाल जी हे जिनके समर्थन मे हमने काफी समय भी दिया मगर जब उनकी कथनी और करनी के बीच मे रोज नई-2 नौटंकियों के दर्शन होने लगे तो हमने उनसे रास्ता भी बादल लिया !! मोदी जी से आज की तारीख मे न हमारा मोहभंग हुआ हे और न ही हमे उनसे शिकायत हे और ऐसा इसलिए हे कि काफी अरसे बाद देश को ऐसा चट्टान सरीखा राजनेता मिला हे जिसके बढ़ते कदमो को रोकने की जितनी कोशीशे हुई हे अगर उनको इकट्ठा भर कर लिया जाये तो महाभारत से कई गुना बड़ा एक ग्रंथ बन जाएगा….किस-किस ने नहीं रोड़े अटकाए उनके रास्ते मे…..
1-उनही की पार्टी वालो ने
sharad Hayat Bhai,
Due to some technical problem failed to post below mentioned comment on your recent blog (ये सिर्फ हमारे व्यक्तिगत विचार हे सहमत-असहमत होने के लिए आप स्वतंत्र हे)
हयात भाई हम कभी किसी पार्टी के पिछलग्गू नहीं रहे बल्कि अपने छोटे से दिमाग की तर्क-शक्ति के आधार पर आकलन कर ऐसे व्यक्तियों नेताओ से प्रभावित जरूर होते आए हे जिनमे कुछ अलग सोचने और करने के गुण दिखाई देते हो और ऐसा तभी तक होता हे जब तक वह अपने स्तर को बरकरार रखता हो अन्यथा हमारी ऐसी रिश्तेदारी नहीं हे जो उसे छोड़ा न जा सके जिसका सबसे बढ़िया उदाहरण श्री केजरीवाल जी हे जिनके समर्थन मे हमने काफी समय भी दिया मगर जब उनकी कथनी और करनी के बीच मे रोज नई-2 नौटंकियों के दर्शन होने लगे तो हमने उनसे रास्ता भी बादल लिया
2-देश की लगभग हर उस पार्टी ने जो अपना थोड़ा सा भी राजनीतिक वजूद रखती हो, यहा तक कि उनकी रैली वाली जगह पर बम भी फिकवाए गए (खुशनसीब थे मोदी जी जो बच गए)
3-देश के स्पेशल तबके वाले हर उस बुद्धिजीवी ने जो सिर्फ मोदी-विरोध के लिए ही जागता हे
4-ग्राम पंचायत से लेकर सूप्रीम कोर्ट तक कौन सी अदालत थी जहा उनके खिलाफ मुकदमे दर्ज नहीं हुए
5-देश कि हर चोटी बड़ी जांच एजेंसी के एक से एक काबिल ऑफिसर उनकी कामिया निकालने के लिए उन पर छोड़े गए
6-एक से एक धुरंधर गुप्तचर उनके पीछे लगाए गए
7-मीडिया तो इस तरह उनके पीछे हाथ धोकर पड़ा कि लाग्ने लगा कि अगर नरेन्द्र्दास दामोदरदास मोदी नाम का ये इंसान न होता तो हमारा मीडिया 24 कि जगह सिर्फ 23 घंटे ही अपने प्रोग्राममे दिखा पाता (यानि अनिवार्य रूप से एक घंटा मोदी जी के नामJ
8-यहा तक कि कुछ सरकारी अधिकारी 20-20 साल बाद कुम्भ्कर्णी नींद से जाग कर केस बनाते रहे (हालांकि वे अधिकारी स्वस्थ भी थे, उनकी याददाश्त भी दुरुस्त थी और ताज्जुब कि बात कि वे कभी कोमा मे भी नहीं गए….पर नींद टूटी दासियो सालो बादJ
9-यहा तक कि वेबसाइट्स पर भी अनगिनत ब्लोगर्स और पाठको ने मोदी जी पर अपनी तरफ से पूरी नकारात्मक कोशिश करके देख ली
पर नतीजा क्या निकला ?? सब कुतर्क फेल, हर कुत्सित कोशिश नाकाम, सारे आरोप निराधार और हर तरफ से बाइज्जत बारी !!
तो क्यो न करे हम ऐसे व्यक्तित्व का समर्थन !!……
आप हमे उनसे बेहतर एक भी राजनेता का नाम गिनवा कर उसके बारे मे अपने विचार रखिए अगर आप बेहतर हुए तो हम उस नेता के समर्थन मे आपके साथ खड़े दिखाई देंगे !! दिल्ली के विकास का काफी श्रेय हम शीला दीक्षित जी को भी देते हे पर उस दौर का और उनकी पार्टी के कुछ नेताओ का भ्रष्टाचार उनके अच्छे काम पर भारी पद गया इसलिए हार-जीत के साथ-2 तर्को पर तोलने का विकल्प भी खुला रखिए !!
कोई भी इंसान पर्फेक्ट नहीं होता हो सकता हे उनसे कुछ जानी-अनजानी गलतिया भी हुई हो (मालूम नहीं) पर उनके सकारात्मक प्रयासो की लं ….. बी लिस्ट के सामने वे नगण्य जितनी ही हे……..शुक्रिया
मधुर भंडारकर के टिविटर पर किये गए मूर्खतापूर्ण कारनामे से (इससे पहले राजीव परताप रूढ़ि )आप अंदाज़ा लगा सकते हे की मोदी समर्थको का मानसिक स्तर कैसा हे ?
हयात भाई एक आँख बंद कर के देखने वालो को सिर्फ एक ही पक्ष दिखाई देता हे.
1-हाल ही मे मोदी जी ब्रिटेन दौरे पर हे जहा के बारे कहा गया था कि ब्रिटेन ने मोदी जी के आने पर कभी प्रतिबंध लगाया हुआ हे , जबकि ये पूरी तरह गलत साबित हो चुका हे !!
2-देश को एक मजबूत आर्थिक शक्ति बनाने के लिए एक तरफ मोदी जी विदेशो मे पूरी ताकत से हाथ-पाँव मार कर कोशिशों मे जुटे हे जबकि दूसरी तरफ विपक्षी नेता पाकिस्तान मे अपने देश की नीतियो को कोस रहे हे ??
3-दादरी मे एक मुसलमान के मरने पर पचासों अवार्ड लौटाने की नौटंकी की गयी जबकि कर्नाटक मे “राज्य सरकार द्वारा प्रायोजित” टीपू सुल्तान का जन्म-दिन मनाने का विरोध करने पर तीन लोगो की जान ले ली गयी पर आश्चर्यजनक रूप से न किसी को “असहिष्णुता” नज़र आई और न ही किसी को अवार्ड लौटाने जैसा स्कोपः) …..
टीपू सुल्तान 1799 मे ऊपर चले गए यानि उनके इंतकाल को दो सौ साल से जयादा समय बीत गया हे और अब जन्मदिन मनाने मे किसी को कोई राजनीति नज़र नहीं आती ??…..क्या आपको आती हे हयात भाई ?
ताजुब हे आप भी इतना भी नहीं समझ रहे हे की दादरी की घटना इतनी निंदनीय क्यों बनी ? क्यों इस घटना से मोदी सरकार की दुनिया भर में फ़ज़ीता हो गया ? वजह ये हे की आप कर्नाटक के नाटक में तीन लोगो की मौत से इसकी तुलना कर रहे हे तीन तो क्या तीनसो भी मारे जाते तो भी इसकी तुलना दादरी से वैसे नहीं हो सकती हे जैसा आप चाह रहे हे क्यों की कर्नाटक हो या कही हो कोई क्लेश दंगा पंगा तो हुआ न वजह चाहे जो हो ? जबकि दादरी में तो किसी क्लेश का या कोई विवाद का नामो निशा तक न था बल्की मृतक अपनी लोहार की सेवाय मुफ्त में मंदिर को दे चूका था कोई भी बात नहीं थी कुछ भी नहीं कोई बहस कोई विवाद कोई दंगा कोई किसी का पंगा कुछ भी नहीं था बिलकुल बेमतलब में एक आदमी को मारा गया था उसके बाद उल्टा चोरो ने खूब शोर मचाया कोतवालों को खूब डांटा हमारे पि एम इस पर बेहद शांत रहे वो मन ही मन खुश थे की इस क्लेश का फायदा बिहार में मिलेगा मगर हुआ उल्टा ही इसका भी पूरा क्रेडिट अवार्ड वापसी वालो को ही हे सेल्यूट इन सभी को ——- जारी
कभी मोदी जी के कटटर समर्थक रहे वेद परताप वैदिक जी के मुह में घी शक्कर और काटजू जी के भी ”उनका तर्क यह था कि मैं बाहरी कैसे? क्या बिहार भारत में नहीं है? और क्या भारत का नेता मैं नहीं हूं। मैं तो विश्व−नेता हूं। अमेरिकी राष्ट्रपति को मैं बराक−बराक कहकर बुलाने की हैसियत रखता हूं। मैं और शी याने चीन के राष्ट्रपति साथ−साथ झूला झूलते हैं। भला, नीतीश और लालू की मेरे आगे औकात क्या है? मैं दो−तिहाई मत से जीतूंगा। अब आप एक−चौथाई भी नहीं रह गए। बिहार का ‘डीएनए’ ही ऐसा है कि उसने विश्व−नेता को जिला नेता भी नहीं रहने दिया। जिन 26 जिलों में हिंदू हृदय सम्राट ने सभाएं की थीं, उनमें से सिर्फ 12 ही वे जीत पाए और सोनिया गांधी ने जिन चार में की थीं, वे चारों ही जीत गईं। मोदी ने कांग्रेस का कर्ज चुकाया है,ब्याज समेत! क्या कांग्रेस बिहार में 27 सीटें जीत सकती थीं? यदि राहुल जैसे भोले बाबा के चेहर पर चमक लाने का श्रेय किसी को है तो हमारे प्रचारमंत्रीजी को है।मोदी के व्यक्तित्व में अद्भुत गोंद है। शायद मोदी अकेला ऐसा नेता है, जो देश के सारे विरोधियों को एक छाते के नीचे इकट्ठा करवा सकता है। यदि बिहार की तरह पूरे देश में कोई संयुक्त मोर्चा खड़ा हो जाए तो मोदी को तानाशाह नहीं, लोकतंत्र का सबसे बड़ा संरक्षक माना जाएगा। पक्ष और विपक्ष का जबर्दस्त संतुलन लोकतंत्र के उत्तम स्वास्थ्य का प्रमाण है। सबल विपक्ष अगले साढ़े तीन साल का इंतजार क्यों करेगा? वह अगले एक साल में ही ऐसा कोहराम खड़ा करेगा कि मोदी को इस्तीफा देना पड़ सकता है या संसद भंग करके चुनाव करवाना पड़ेगा। मोदी को मुश्किल से 30 प्रतिशत ही वोट तो मिले हैं। यदि मध्यावधि चुनाव हो गए तो भारत बिहार बने बिना नहीं रहेगा। शायद बिहार से भी बदतर परिणाम भाजपा को भुगतने पड़ें।”
हैरान हू परेशान भी हू ना जाने ये बीफ कहा है असहिष्णुता भी कहा है
अरे याद आया अब चुनाव भी तो नही है ये फिर मिलेगे यूपी २०१७ के नये फलेवर मे
नाम भी वही होगा काम भी वही होगा बस पात्र अलग होन्गे
असहिष्णुता का प्रशन अपनी जगह कायम हे बहुत से लोगो जैसे की अनुपम खेर के लिए तो कोई असहिष्णुता थी ही नहीं इन्हे इतना भी नहीं मालूम की कैंसर का इलाज़ फर्स्ट स्टेज पर ही किया जाता हे उसके फैलने का इंतज़ार नहीं किया जाता हे वो तो अच्छा हुआ की बिहार में हार हो गयी वार्ना अनुपम देश की और बदनामी कराते जरा देखिये तो कैसी कैसी आत्माओ को ये सेवन रेसकोर्स में ले गए ( और किसी ने रोका तक नहीं ) अशोक पंडित अभिजीत और मधुर भंडारकर जिन्होंने पिछले दिनों टिविटर पर दीवाली नासा की तस्वीर से अपना मेन्टल लेवल बताया अब समझ में आया की क्यों ये आदमी पेज 3 के बाद से बार बार उसी फिल्म को क्यों तल तल कर पका रहा था
शीतल पी. सिंह -वैसे तो मोदी जी की विदेश यात्रायें आपका सुख चैन खबर बाखबर सब नियंत्रित कर लेती हैं, आप चाह कर भी मोदीमय होने से बच ही नहीं सकते। सारे चैनल उनका ही मुखड़ा दिखाते मिलते हैं और सारे अख़बार उन्हीं पर न्योछावर। सोशल मीडिया पर भी वही छाये रहते हैं पक्ष हो या विपक्ष! पर इस बार यह सब होते हुए भी कुछ और भी है जिसकी परदेदारी तो है पर वह परदे में समा नहीं रहा! इस बार लंदन में मोदी का भारी विरोध हुआ और अन्तर्राष्ट्रीय मीडिया में और सोशल मीडिया में उसने खासी हलचल पैदा की।
यह तब हुआ जब डोमेस्टिक पिच पर वे बुरी तरह से बिहार हार कर लंदन पहुँचे थे तो यहाँ भी एक बड़ा समाज उनके विरोध की परदा फाड़ कर आती ख़बरों में रुचि दिखा रहा था।मोदी जी के विरोध में इस बार सबसे बड़ी संख्या नेपालियों की है फिर सिक्ख मुसलमान वामपंथी लिबरल लोग हैं। नेपाल में ज़रूरी वस्तुओं के ब्लाकेड ने बड़ी बेचैनी पैदा कर रक्खी है। उसकी प्रतिध्वनि वहाँ सुनाई पड़ी। गार्डियन के नेतृत्व में लंदन में बसे साउथ एशियन इंटेल्कचुअल्स का बड़ा हिस्सा मोदी के २००२ में गुजरात दंगों को लेकर अनवरत आलोचक की भूमिका में है। इस बार उसे देश में लेखकों कलाकारों विज्ञानियों के पुरस्कार लौटाओ आन्दोलन की ऊष्मा भी मिल गई। नतीजे में करीब २५० लेखकों पत्रकारों कलाकारों सामाजिक कार्यकर्ताओं ने एक ख़त जारी कर विरोध को पंख दे दिये।–
मोदी के पास ब्रिटिश सरकार को ललचवाने का काफ़ी कुछ था। रफायेल के मामले में फ़्रांस से पिछड़ गये ब्रिटिशर्स इस बार कोई चूक नहीं करने वाले थे। संयुक्त संसद में भाषण, रानी के साथ लंच और कैमरून के आउट हाउस में डिनर रख कर अंग्रेज़ पूरी बिसात बिछा चुके हैं।
स्मार्ट सिटीज के पैकेज के बड़े हिस्से को हड़पने को आतुर अंग्रेज़ डिफ़ेन्स में भी नज़र गाड़े हुए हैं जिसमें अमरीका इज़रायल और फ़्रांस बड़ा हाथ मार रहे हैं। लंदन विज़िट में टाटा ग्रुप मोदी का अगुआ रहा। जैगुआर कारख़ाने में मोदी का विज़िट तय है ही। टाटा ने इस डील में बहुत हाथ जलाया पर अब यह कंपनी चल पड़ी है। दोनों प्रधानों ने इसका नाम लिया।
“वेंबले”! फ़ुटबॉल के इस मैदान में खचाखच भीड़ को मेसमेराइज करने के कार्यक्रम से मोदी अपने लंदन भ्रमण का समापन करेंगे। हमारे चैनल कई दिनों से इस मैदान को इतने एंगल से दर्शकों को परोस चुके हैं कि चप्पा चप्पा लोगों को पता है।
इंग्लैंड के करीब १५ लाख भारतीयों के उस तबके के लिये यह एक अलग इवेंट है जो टूरिस्ट मोड में यू के में रहता है और अंग्रेज़ों के लिये कौतूहल जिनके नेताओं की ज़िन्दगी में इतनी बड़ी भीड़ एक जगह भाषण सुनने के लिये मिलना किसी अजूबे से कम नहीं।
मोदी जी की सौ स्मार्ट सिटी बसाने की ” धमकी ” मुझे भी काफी डरावनी लगती हे मेरे ख्याल से ये सब सिर्फ जमीं जायदाद की कीमते बढ़ाएगा और कुछ नहीं इससे असामनता और बढ़ेगी और हम जैसे लोग जिनके बाप दादा कोई शहरी जमीं जायदाद नहीं छोड़ गए और जो अपनी कड़ी मेहनत से बना रहे हे उनकी जिंदगी और दुश्वार होगी
ठीक हे हयात भाई मान लिया कि भारत देश मे बिहार नाम का राज्य हे जहा हुए चुनाव मे प्रधानमंत्री की पार्टी नहीं बल्कि प्रधानमंत्री जी बुरी तरह हारे और बिहार का इतना अंतर्राष्ट्रीय महत्व हे कि विदेश मे बातचीत दो देशो के बीच नहीं नहीं बल्कि एक देश और दूसरे देश के बिहार नामक राज्य पर ही घूमेगी….
चलिये बिहार, मोदी, भंडारकर से आगे निकाल पर आपकी स्पष्ट राय जानने कि एक बार और रेकुएस्ट करते हे …..
1-200 साल बाद टीपू सुल्तान का जन्मदिन कर्नाटक की राज्य सरकार को मनाने पर आपका क्या विचार हे, इससे कौन सा सांप्रदायिक सद्भाव फैलने वाला हे
2-टीपू सुल्तान सभी को स्वीकार नहीं हे और अगर कर्नाटक के ही कई कोनो से टीपू विरोध की आवाज़ों को नकार कर राज्य सरकार टीपू की जयंती मनाने पर आदि हो तो क्या इसे किसी संप्रदाय विशेष का तुष्टीकरण नहीं माना जाना चाहिए ?? अगर ये आपकी नज़र मे सही हे तो बार-2 आप बीजेपी और संघ को क्यो कोसते हे ??
दीपावली के त्यौंहार के दौरान हम ध्वनि प्रदूषण व वायु प्रदूषण में ही मस्त रहे व इलेक्ट्रॉनिक प्रदूषण से दूर रहे. कभी कभी यह बदलाव सुखद भी होता है. सभी मित्रों को दीपावली की देर से, पर चिरायु बधाई.
इस बीच बिहार चुनाव के नतीजे निकले. मोदीजी के पूरे दमखम से प्रचार करने के बावजूद स्थानीय “विकास पुरुष” नीतीश बाबू व चाराचर्चित लालूजी की जोड़ी जनता को भा गयी. तो जनता के इस फैसले पर बस यही…
“भाई को भाई, वही भौजाई…”
बिहार के भाई का शुक्रिया की वो वही भोजाई ले आये वर्ना रंजन सर जहा रिश्ता करवाना चाह रहे थे वो लेडी तो बहुत ही झगड़ालू कामचोर फिजूल खर्च और निक्क्मी थी हर वक्त शोबाज़ी में रहती थी हम देवर तो उसे फूटी आँख नहीं भाते थे पड़ोसियों से भी उलझती रहती थी
पहले आप एक बात बताइये पाञ्चजन्य ने तो खेर हार का पूरा जिम्मा मिडिया पर ही डाल दिया हे इसके आलावा भी हर मोदी समर्थक मिडिया को कोस रहा हे की इन्होने अवार्ड वापसी को प्रचार दिया वगेरह वगेरह वैसे सामान्य दिनों में भी मोदी समर्थक मिडिया को हिन्दू विरोधी बताते हे ये क्या उलटबंसी हे भला ? किसी मिडिया को आप भाजपा विरोधी तो कह सकते हे मगर किसी मिडिया ग्रुप को आप कांग्रेस केजरीवाल नितीश या वाम समर्थक कह सकते हे किसी को भी नहीं जबकि इतना सारा मिडिया मोदी प्रेम में पागल हे सबसे बड़ा मिडिया हाउस का दावा करना वाला छी न्यूज़ तो मोदी प्रवक्ता तक बन चूका हे इसके सामने तो भाजपा प्रवक्ता तक शर्मा जाए ?
एक भी मिडिया हाउस या कोई पत्रकार कांग्रेस केजरी वाम नितीश किसी के लिए पागल नहीं हे एक भी नहीं तमिलनाडु में जरूर सुना हे की कुछ मिडिया हाउस जयललिता और करुणा के ही हे बस लेकिन मोदी के लिए मिडिया की दीवानगी कल सबने देखि ? खासकर छी न्यूज़ तो कल बिहार हार की खीज मिटा रहा था और इतने बचकाने तरीके से रिपोर्टिंग कर रहा था मानो कोई बच्चा रोते रोते अपना पापा की बढ़ाई कर रहा हो ” पता हे मेरे पापा कितने अच्छे हे माय डैडी इस स्ट्रॉंगेस्ट ” ————- ?
एन दि ति वि का नाम आप्ने जरुर सुना होगा वह भाज्पा विरोधेी है
राज़ साहब मेने खुद कहा हे की मिडिया हाउस भाजपा विरोधी भी हे सही हे एन डी टी वि भाजपा विरोधी हे और मुझे तो ये भी लगता हे की दादरी की घटना पर पर पहले दिन से मेरी नज़र थी इसी कोई खास अहमियत नहीं दी जा रही थी इसी गावो में होने वाली आम हत्या समझा जा रहा था वो तो रविश कुमार दादरी गए और बेहद गुस्से में रिपोर्टिंग कि वही से ये घटना सबकी नज़र में आ गयी शायद सही हे मगर यही रविश या उनका मिडिया हाउस विरोधी तो हे मगर कब ये कांग्रेस समर्थक रहे हे भला ? हम यही तो कह रहे हे की कोई मिडिया हाउस गैर भाजपा समर्थक नहीं हे हां भाजपा और मोदी के नग्न समर्थक जरूर हे
दीपावली के त्यौंहार के दौरान हम ध्वनि प्रदूषण व वायु प्रदूषण में ही मस्त रहे व इलेक्ट्रॉनिक प्रदूषण से दूर रहेः)
सर जी आपने तो भांति-2 के प्रदूषण रूपी कीचड़ के माहौल मे भी अपने शानदार कमेंट से मुस्कान का कमल् खिला दिया !!
कुछ बुद्धिजीवी पाठको से अनुरोध हे कि रंजन सर के कॉमेंट वाले कमल को किसी पार्टी विशेष के चिन्ह (कमल) से जोड़ कर न देखे…धन्यवाद
आदरणीय शरद भाई,
हमें तो लग रहा है कि असहिष्णुता का माहौल मीडिया में अधिक है. हमारे हयात भाई तो मोदी जी को लेकर कुछ अधिक ही “असहिष्णु” हैं. हम बार बार निवेदन कर रहे हैं कि वे देश के चयनित प्रमुख हैं, अतः लोकतांत्रिक मूल्यों का तकाजा है कि आप व्यंग्य करें, तंज करें, तीखा लिखें पर मर्यादित लिखें व अनावश्यक आरोप प्रत्यारोप राजनैतिक दलों के लिये ही छोड़ दें, पत्रकारिता के लिये यह शोभनीय नहीं होता.
इसी तरह कुछ चैनलों पर होने वाली झड़पों को देखकर हम मियाँ बीवी के बीच भी झड़पें शालीनता की सीमा लाँघने लगीं, तो हमने निश्चय किया कि तथाकथित राजनैतिक वादविवाद वाले कार्यक्रम ना देखें जायें. हमें लगने लगा है यदि हयात भाई का मोदीफोबिया जारी रहा तो कहीं हमें इस साईट…
बाकि बिना इंटरनेट के, भाईबहिनों, उनके बच्चों और अपने सगे संबंधियों के बीच हमें दीपावली के दौरान अधिक सुकून मिला… तब समझ आया कि दुनिया की उलझनों को हल करने से ज्यादा सुखद अपनी पारिवारिक सुलझनों में उलझना है…
रंजन सर कहते हे की कई बार बार विरोध करते करते हम अपने विरोधी जैसे ही हो जाते हे अब आप भी उन्ही पढ़े लिखे मुस्लिमो की तरह वयवहार कर रहे हे जो मुस्लिम कटरपंथ की निंदा में सौ बहाने सौ किन्तु परन्तु करते हे ज़्यादा तर्क करो तो हमें इस्लाम विरोधी बताने लगते हे सेम आप ही के जैसे जीवन और प्रोफाइल वाले मेरे कज़िन का यही हाल हे अब आप भी वही रवैया अख्तियार कर रहे हे कुछ भी हो जाए मोदी जी के खिलाफ एक शब्द नहीं कहना हे —————- लम्बी ख़ामोशी ये भी देखिये की अब आप कोई व्यंगय भी नहीं लिख प् रहे हे क्यों —- ? सोचिये और ये क्या हे की ”व्यंग्य करें, तंज करें, तीखा लिखें पर मर्यादित लिखें व अनावश्यक आरोप प्रत्यारोप राजनैतिक दलों के लिये ही छोड़ दें, ” भला हमने कब मर्यादा लांघी ? कौन सा झूठा आरोप लगाया ? और हमने कब कहा की कोई नक्ससल फ़ौज़ मुस्लिम कटरपन्तियो के साथ मोर्चा बनाकर दिल्ली पर कब्ज़ा करके ज़बदस्ती मोदी जी को हटा दे ? ऐसा कब कहा हमने हमने यही तो कहा की उन्हें लगातार हराया जाए ये पूरी तरह से लोकतंत्र हे
और आप इंटरनेट से दूर रह कर खुशिया मना रहे हे तो इंटरनेट छोड़ो हम तो इस लेखन के काम से ही बुरी तरह से थक और पक चुके हे लेखन का काम सुकून और शान्ति मांगता हे इसलिए बहुत से लेखक सरकारी नौकरी के बेक ग्राउंड से होते हे अगर ये न हो (सुकून और शान्ति ) तो भी बहुत से लोग खूब अच्छा लेखन कर लेते हे ये वो लोग होते हे जो शराब सिगरेट तम्बाकू पान कोई भी चीज़ खा कर पीकर गम भुला लेते हे फिर जम कर लिखते हे मगर हम ? न तो हमारे पास कोई शान्ति या सुकून की बात हे न कोई नशे का हमने एक सिप भी कभी लिया हे आपकी तरह तीन लोगो का परिवार नहीं हे बहुत बड़ा हे समस्याओ के अम्बार लगे हे फिर हम कोई शायर कोई कवि कोई चेतन भगत टाइप भी नहीं हे हमारा तो काम बेहद तनाव पूर्ण हे क्यों की हर तरफ से जूते ही पड़ने हे हर आदमी कामयाब होना चाहता हे लेकिन हम ऐसे अभागे हे की हमें पता हे की कल को कोई नाम हो गया खुदा ना खास्ता तो और भी अधिक जूते चप्पलो का ढेर हमारे लिए तैयार होगा तो हमारी हालात देखिये ईश्वर का शुक्र मनाइये और खुश रहिये आप लोग जानते नहीं हे की आपकी लाइफ कितनी बढ़िया हे खुश रहिये
कमेंट्स का दोहरा शतक लगाने पर हार्दिक बधाईया !!
सर जी २०० कमेंट्स का डिस्कसन होने के बाद अब भी अगर आपको लगता हे कि मोदी जी के बारे में हमारी तरफ से पर्याप्त डिस्कसन नहीं हुआ हे तो
इसका सेीधा मतलब हे कि आप फ़ाउल खेल रहे हे:) और इसके बाद हम आपसे टीपू सुलतान केी जयन्तेी सरकारेी स्तर पर मनाने के बारे मे आपसे राय नहेी मान्गेन्गे बल्कि इतना कह कर माफेी मान्ग कर निकल जायेन्गे कि….. रहने दिजिये हयात भाई “आपसे ना हो पायेगा” ः) ः)
वो बात नहीं हे टीपू सुल्तान ही नहीं मेने बहुविवाह विषय पर भी कुछ नहीं कहा क्योकि मुझे डर था की लम्बी बहस हो जायेगी असल में में फिलहाल लेख लिखने की सोच रहा था लेकिन अत्याधिक तनाव पूर्ण व्यक्तिगत हालात होने के कारण एक तो वैसे ही नहीं लिख पा रहा सो किसी नयी बहस से बच ही रहा था खेर आगे लिखने की कोशिश रहेगी
हमे कोई जल्दी नहीं हे हयात भाई पहले आप अपनी व्यक्तिगत परेशानियों पर समय दीजिये डिस्कसन बाद मे कभी भी कर लेंगे बस एक बात कहकर मुद्दा खत्म करते हे कि हालांकि पत्रकारिता के हिसाब से ये ठीक नहीं हे पर “ज़ी न्यूज़” के आने के बाद अब खबरी मीडिया मे कुछ बैलेन्स सा बना हे अन्यथा सारे चेनल पूरे समय बीजेपी और संघ पर ही पिले रहते थे और बीच-2 मे झूठ-मूठ के लिए लोगो की आंखो मे धूल झोकने के लिए एकाध लाइन कॉंग्रेस और वाम-विरोध की बोल देते थे…..
अभी 4 नवंबर को खाना खाते समय एन डी टी वी आयोजित बहस मे एंकर निधि कुलपति जिस एकतरफा तरीके से बीजेपी प्रवक्ता संबित पात्रा को बुरी तरह टोकती (उनके चेहरे का गुस्सा और झुंझलाहट वाले एक्स्प्रेशन बड़े स्पष्ट थे) और बीजेपी विरोध वालो (हिलाल अहमद, शेखर पाठक, सचिन पाइलट) को हरी झंडी हिलाती नज़र आती थी वो किसी “फर्जी सेकुलर” को दिखाई नहीं दिया होगा पर “दो नूरानी आंखो का एक सेट ऊपरवाले ने हमे भी नवाजा हुआ हे साहेबः)
स….ब दिखता हे !!
Samdarshi Shukla – सिकंदर हयात • 5 hours ago
Bhai… Dange ke pehle Godhra hua tha.. Agar godhra train jalane ke baad sab aise hi samne aa gaye hote jaise Dadri ke liye aaye the to kabhi Gujrat danga nahi hota.. Samjhe.. Tum jaise log desh ke ek din IRaq ya Seria bana ke chhodoge..
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सिकंदर हयात Samdarshi Shukla • 4 hours ago
मोदी समर्थको की अक्ल घुटने में भी नहीं होती हे शायद ? ये साहब क्या बात कर रहे अजीबो गरीब ? की गोधरा के बाद भी दादरी के जैसी परत्किरिया दी होती तो गुजरात दंगे न होते ? क्या जाहिलाना बात हे गोधरा पर पर्तिकिर्या का समय ही कहा दिया था आप लोगो ने उधर महान प्रशासक मोदी जी ने कर्फ्यू लगाने की बजाय उल्टा लाशो के प्रदर्शन की इज़ाज़त दी उधर वीभत्स दंगे शुरू हो गए थे परत्किरिया का समय ही कहा दिया था ” मोदी आर्मी ” ने ? दादरी पर भी परतकिर्या काफी दिन बाद आई शुरू में तो इसे गावो में होने वाली आम हत्या समझा जा रहा था और यही होना भी था वो तो रविश दादरी गए और बेहद गुस्से में इसकी रिपोर्टिंग की वहा से ही शायद सारी दुनिया का ध्यान दादरी पर गया और तब से ही सारी दुनिया में मोदी जी की पोल खुल गयी
बात तो आपकी सही है हयात भाई पर आजम खान जैसे सेकुलर सोच वाले नेता की अक्ल के बारे मे आप क्या कहेन्गे?????
मोदी जी के खिलाफ जो महागठबंधन होने वाला हे उसमे से सपा मुलायम एंड पार्टी को दूर रखना चाहिए ये सेकुलरिस्म के जयचंद हे और आज़म के बयान इसी जयचन्दी राज़नीति का हिस्सा लगते हे इससे पहले भी हम मुजफरनगर काण्ड में सब कुछ देख चुके हे किसने किस तरह किसे फायदा पहुंचवाया था——- ?
हम क्यों की बहुत ही ज़्यादा आम आदमी हे किसी भी परकार के कम्फर्ट या कैसे भी सिक्योरिटी ज़ोन में हम कभी भी नहीं रहे हे इसी कारण जमीनी हाल फ़ौरन महसूस होता हे हमने बहुत पहले ही लिखा था की ऐसा लग रहा हे की जब से ये ज़हरीली मोदी सरकार आई हे इसने गाय के नाम पर जो बवंडर खड़े किये जिस तरह से इनके टुच्चे नेताओ ने गाय बचाने के लिए बेरोजगार लुच्चो लफंगों को आगे किया उससे जहा दलितों किसानो गरीबो की हालात और खस्ता हो रही हे वही मेने ये भी भापा की सड़को पर गायो की तादाद बेहद बढ़ी हे अब यही बात नवभारत ने भी अपनी रिपोर्ट में कह दी हे
ikander hayat को जवाब )- jago india jago
हयात भाई.. मोदी जो आज कर रहा है.. उसका परिणाम आप को 2-3 बरस या बरसो के बाद देखने को मिलेंगिए.. कब्ज की तकलीफ मे हमेशा “” कड़वा हरडे “” दिया जाता है.. उसके परिणाम स्वरूप लूस मोसन होता है.. एक बार सब क्लियर हो गया तो उसके बाद आप को बड़ी राहत मिलेगी.. इसलिये आप जो देख रहे है वो “” हरडे “” का कमाल है.. अक्सर कम पढ़े लिखो को ए बात समाज मे नही आती इसलिये वो लोग तुरंत ही अपने विचार रख देते है.. आप तो काफी सयाने हो.. ???लाखो गरीबो को सुरक्षा का कवच, सफाई, मेक इन इंडिया, डिजिटल इंडिया का कमाल तो अभी से दिख रहा है / ..sikander hayatNovember 23,2015 at 01:38 PM ISTजागो भाई जो परवचन आप दे रहे है वेसे ही परवचन कोई भी सरकार कर लेगी और अगर दो चार अच्छे काम हो भी रहे हो तो क्या बड़ी बात है इतना बड़ा और ज़रखेज़ देश है यहा बहुत कुछ बढिया भी है ही बहुत कुछ बढिया हर सरकार भी करती भी है ही मगर आम आदमी को कुछ नही मिलता है आम आदमी वो होता है एक — भारत मे आबादी अधिक है तो फ़ेमली तीन चार की हो दो घर मे सरकारी नौकरी किसी की भी केसी भी ना हो तीन गाव मे खासी जमीन ना हो (पर व्यक्ति दस बीस बीघा या आधिक ) चार शहर मे जायदाद ना हो इसमे लगभग अस्सी % लोग आते है आप गौर करो की भारत मे जिन्हे आम आदमी की कामयाबी कहा भी जाता है वो भी इन चार केटेगरी मे नही होगे इनके लिये कुछ नही होगा जिनके लिये होगा वो भी बीस क्रोड से भी ज़्यादा है यानि रूस की आबादी से भी ज़्यादा तो य वर्ग मोदी की जयजयकार करेगा ही उन्ही मे से आप है आपके लिये सवच भारत है डिजिटेल इंडिया है विदेशो मे फर्ज़ी जयजयकार है बाकी के लिये साम्पदायिकता को बढ़या जा रहा है ताकि असल मूद्धो पर ध्यान ना जाये तो मोदी जी इसी नुस्खे पर दस बीस साल टिके रहना चाहते है मगर केजरी नीतीश कॉंगर्स वाम का गठजोड़ आएसा होने नही देगा इसलिये आप लोग भड़के हुए है
(saxenas501 को जवाब )- sikander hayat
November 23,2015 at 08:12 AM IST
में क्या करू की में एक बहुत ही ज़्यादा आम आदमी हु इसी कारण मुझे मोदी जी की हर ”मार ” मुझे साफ़ साफ़ महसूस होती हे आपको महसूस नहीं हो रही होगी क्योकि आप आम नहीं बल्कि किसी न किसी खास सुविधा में रहने के कारण आम जनता की दुविधाओं को महसूस नहीं कर रहे होंगे क्या करे ? हमारे मोदी भक्त रंजन सर भी जैसे ही देखते हे की सातवां वेतन आयोग दे दिया गया वन रेंक दे दी गयी अब महगाई और बढ़ेगी- ( पहले ही मोदी जी तेल के मिटटी हो चुके दामो के बाद भी महगाई बढ़वाने का अध्भुत हुनर दिखा चुके सो आगे और डर हमें लग रहा हे ) – वैसे ही जनता को ” राहत ” देने के लिए रामलला हम आएंगे मंदिर वही बनाएंगे का नारा लगाते हे मोदी सरकार और भक्तो की यही राहते हम शुद्ध आम आदमियो को डराती हे बाकी करप्शन का मुद्दा अपनी जगह उस पर भी केजरीवाल ढाई सौ करोड़ का फ्लाईओवर डेढ़ सौ में बनाकर दिखा चुके हे मगर क्या करे मोदी जी ने ही उन्हें ऐसे काम पर पूरा फोकस की की जगह मोदी हटाओ पर लगाया हे इसलिए तो हम मोदी जी देश के लिए अभिशाप मानते हे और इसलिए केजरीवाल को भी लालू से हाथ मिलाना पड़ा खेर मोदी जी के हटते ही फिर से लालू पर ध्यान दिया जाएगा फ़िलहाल लालू का भी साथ जरुरी हे और एक बात की मुजफरनगर दंगे ना होते छोटे ओवेसी ने अपना आएतिहासिक ज़हरीला भाष्ण ना दिया होता तो मोदी जी को कभी भी बहुमत ना मिलता इसलिये ओवेसी मुलायम भी मोदी खेमे के ही लोग है
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बहुत बढ़िया आमिर खान जियो खानो का भारत ही नहीं सारी दुनिया पर भारी प्रभाव हे इसी तरह से इस बदनाम सरकार की बदनामी घर घर पहुचाते रहो ताकि 2019 में भारत ही नहीं पुरे उपमहादीप इसकी सबसे ऊँची कुर्सी पर एक छोटे दिल और दिमाग के आदमी से छुटकारा पा सके ये एक तरह से एक नयी आज़ादी की लड़ाई ही हे और आप लोग नए स्वतंत्रता सेनानी
रामनाथ गोयनका एक्सेलेंस इन जर्नलिज्म अवार्ड्स के आठवें संस्करण के मौक़े पर अभिनेता आमिर खान ने समाज में गहरे उतरती असुरक्षा और भय की भावना का ज़िक्र करते हुए लेखकों, कलाकारों, इतिहासकारों और वैज्ञानिकों के विरोध-प्रदर्शन के प्रति जिन शब्दों में सहमति व्यक्त की है, वह सराहनीय है. उन्होंने सृजनात्मक कर्म में लगे लोगों द्वारा अपने अहसास – अपनी हताशा और असंतुष्टि – को वाणी देने का समर्थन तो किया ही है, घटनाओं के सिलसिले को देखते हुए एक व्यक्ति और नागरिक के रूप में खुद अपने भय को भी व्यक्त किया है, साथ ही सरकार में बैठे जन-प्रतिनिधियों के रवैये से किसी तरह का आश्वासन हासिल न होने की आलोचना की है. इस विडंबना पर गौर किया जाना चाहिए कि हर बार की तरह इस बार भी असहिष्णुता की आलोचना पर अनुपम खेर सरीखे लोगों ने जो प्रतिक्रिया ज़ाहिर की, वह उसी असहिष्णुता का असंदिग्ध उदाहरण है. यह बात सही है कि आमिर खान को आमिर खान इसी देश ने बनाया है, पर वह उसी बहुलतावाद की देन है जिसे आरएसएस और भाजपा तथा उनके समानधर्मा संगठन ख़त्म कर देने पर उतारू हैं. क्या यह बताने की ज़रूरत है कि बढ़ती असहिष्णुता की बात करना इस देश की आलोचना नहीं, बल्कि ‘भारत की संकल्पना’ को नेस्तनाबूद करने पर आमादा ताक़तों की आलोचना है? —-
दो दिन से झमेला हो रहा है कि आमिर खान को श्रीमती किरण खान ने कहा है कि देश बदलने की सोचो…
तो हमारी आमिर भाई को निःशुल्क सलाह है कि जो बीवी देश बदलने की कहे, उसे बता दो कि आप देश नहीं बदलेंगे. हाँ, बीवी बदल सकते हैं… चूंकि यह कारनामा आमिर पहले भी कर चुके हैं, इस बार देश के नाम पर ही सही….
वैसे, “पीके” जाओगे तो कोई घुसने ना देगा…
क्षमा करें रंजन जी ! आपसे सहमत !! क्यूँ की देश के नाम पर बीवी छोड़ने का कारनामा मोदीजी भी कर चुके हैं ! लेकिन उसके बावजूद उनकी पत्नी ने न पति छोड़ा न देश ! इससे तो श्रीमती खान को जरुर कुछ सीखना चाहिए !!
लेकिन एक बात समझ में नहीं आई की आप को किरण खान के लिए भी पिके का ही विकल्प क्यूँ सुझा ? क्या किरण खान को हम ये नहीं बता सकते की जो पति आपको दिए शादी के वचन नहीं निभा सकता उसे ही बदल दो ??? ः) और न भी बदलो तो छोड़ ही दो !! क्यूँ की पिके में जरुर कोई घुसने न दें लेकिन हम तो किरण खान को श्रीमती मोदी जी की तरह त्याग की मूर्ति बना कर पूज ही सकते हैं !! ः)
आपकी सहमति रूपी असहमति सर आँखों पर सचिन भाई…
हम एक दिग्दर्शिका, रचनाकार व गरिमामयी महिला के रूप में श्रीमती खान का बहुत सम्मान करते हैं. मीडिया के भौंडेपन पर उनकी व आमिर खान की कृति पीपली लाईव हमें बेहद अच्छी लगी.
खेद है कि उसी मीडिया पर देखकर उनको यह देश रहने लायक नहीं लग रहा… यदि यह बात व्यंग्य में कही गयी है तो खान दंपति को साधुवाद, पर दो दिन हो गये, ऐसा कोई स्पष्टीकरण आया नहीं…
दूसरे, आमिर खान साहब को हमने यह कहते सुना कि उनकी पत्नी ने कुछ कहा. तो नैतिकता का तकाजा है कि खान साहब से ही कहा जाये कि अपनी पत्नी तक संदेश पँहुचा दें. सीधे श्रीमती किरण खान से कहने सुनने में गलतफहमियाँ बढ़ सकतीं हैं.
तीसरे, पीके का विकल्प श्री खान की सोच को श्रद्धांजली है. जब विवादास्पद दृश्य दिखाने के बाद भी इस देश ने उनको सिर आँखों पर बिठाये रखा है तो अब अचानक ऐसा क्या हो गया??
आपकी इसी बात से मैं आपका कायल था और अब तो आपका ऋणी रहूँगा जो आप ऐसी शालीन बद्तामिजियाँ भी बड़े मिजाज से सहर्ष बूम्रर्यांग कर देते हो !! वरना शरदजी होते तो ….कट्टीबद्ध हो जाते ! वैसे अब भी हैं ः) और न भा टा के मंच पर नवाज शरीफ की तरह मुझे याद से भूल रहे हैं !! ः)
चलिए ,अब मुद्दे की बात ! मोदीजी के बाद अब अमीर ने नामचीन से नामचीन लोगों के मुंह से भी कबुलवा लिया की हम कितने सेकुलर हैं !! मुसलमानों के लिये हमारा देश कितना सुरक्षित है ! और आर एस एस जैसे अन्य हिन्दुत्ववादी सडांध की असल मे यहाँ क्या औकात है !!! हा हा हा हा ! यही तो चाल थी !
जहां राज्यपाल जैसे संवैधानिक पद पर बैठे लोग इस तरह की संविधान-विरुद्ध बात कह रहे हों कि हिन्दुस्तान हिन्दुओं के लिए है (सन्दर्भ: असम के राज्यपाल का हालिया बयान), और ऐसे बयान अपवादस्वरूप न आकर प्रतिदिन किसी-न-किसी कोने से आ रहे हों, साथ ही सरकार में बैठी पार्टी की चुप्पियों और कारगुजारियों में उनके खिलाफ़ कोई कार्रवाई तो दूर, हिमायत का रवैया पढ़ा जा सकता हो, वहाँ आमिर खान की बात की ईमानदारी से कोई इनकार नहीं कर सकता. अलबत्ता लेखकों पर पैसे लेकर विरोध करने का आरोप लगानेवालों से उस ईमानदारी को समझने-सराहने की उम्मीद करना ज़्यादती होगी!जनवादी लेखक संघ ‘भारत की संकल्पना’ के प्रति क्रूरतापूर्ण असहिष्णुता दिखाने वाली ताक़तों के ख़िलाफ़ विरोध की मुहिम को सुचिंतित समर्थन देने के लिए आमिर खान की सराहना करता है और उनके ख़िलाफ़ चल रही बयानबाजियों की कठोर शब्दों में निंदा करता है.मुरली मनोहर प्रसाद सिंह (महासचिव)
संजीव कुमार (उप-महासचिव)
क्या बात कर रहे हो सिकंदर भाई ? !! की कोई जन प्रतिनिधि आश्वासन नहीं दे रहा ! हिमायत का रवैया पढ़ा जा रहा ! ?? मोदीजी ने ब्रिटेन में कहा तो सही ये देश बुद्ध और गांधी की धरती है यहाँ छोटी से छोटी घटना भी हमारे लिए मायने रखती है ! क्या हुवा उन्होंने अगर यह बातें देश में नहीं कहीं ! अब वो देश में रहें तो देश में भी कुछ कहें !! और जब मनमोहन कुछ नहीं बोलते थे तो मोदीजी क्यों बोले ? और जरुरी नहीं की हर बात पर इस देश का पी एम् बोले ही !! ऐसी सार्थक दलीलें भक्तों ने दी ही है ! लेकिन कोई विदेशी पूछे तो जरूर बोलना चाहिए !! क्यों की वहां देश की इज्जत का सवाल होता है ! देश में न बोले तो भी चलता है !क्यों की इस देश में सभी लोग आमिर या असम के राज्यपाल नहीं जिनके कुछ कहने भर से देश की इज्जत लूट जाए !! ,ऐसा विश्वास उन्हें भी होगा ही न ?
सच्चा देशभक्त किसे कहते हे ये आमिर खान ने दिखा दिया वो अच्छी तरह से जानते थे की किस कदर माहोल मोदी जी ने और उनके टोडीज़ ने बिगाड़ कर रखा हे और ज़रा कुछ बोलते ही ये शैतान ( मोदी टोडीज़ का झुण्ड ) पागलो की तरह उन पर टूट पड़ेंगे ( असल में ये इसलिए बोखलाए हुए हे की 2019 में देश को मोदी जी से छुटकारा मिलना तय हे और आमिर जेसो के बयान इसे और पक्का करते जा रहे हे ) फिर भी उन्होंने जोखिम लिया आमिर के लिए पहले ही मन में सम्मान था ही और अब और बढ़ गया हे जिस देश का महानायक लोकल गुंडे राज़ ठाकरे से डर गया हो वहा बिना डरे सीधे भारी बहुमत प्राप्त पी एम और उनके समर्थको की सच्चाई सारी दुनिया को बताना वाकई सेल्यूट आमिर को कम हाइट के लेकिन बेहद ऊँचे कद के आदमी हे आमिर
आमिर बहुत समझदार आदमी हे ऐसी बात न्ही हे की उन्हें पता नहीं होगा की बात केवल मुसलमानो की ही बिलकुल नहीं हे पुरे देश के कमजोर लोग मोदी जी से परेशान हो रहे हे अभी नवभारत की रिपोर्ट आई थी की किसानो को उनके बेकार हो चुके पशुओ के दाम तक नहीं मिल रहे हे वो उन्हें खुले में छोड़ने पर विवश हे वो भी भारत जैसे देश में जहा पहले सी किसान इतना बेहाल हे मेने भी बुरे दिन देखे हे उन दिनों में सर्वाइवल के लिए हर चीज़ बेच डालता था ऐसे में सोचता हु की मुझ पर क्या गुजरती अगर बुरे दिनों में कोई हमारे सर पर तांडव करता की हेल्प तो नहीं करूँगा ऊपर से ये नहीं बेचने दूंगा वो नहीं बेचने दूंगा सोचिये बेचारे किसानो पर क्या गुजर रही होगी यही नहीं उसी किसान के बेरोजगार बेटे को ये मोदी टोडीज़ कुछ पैसे पकड़ा कर जगह जगह दादरी जैसे काण्ड भी कर रहे हे जिसमे मुस्लिम ही नहीं और भी गरीब इनके हाथो मरे जा रहे हे रंजन सर जैसे लोगो को तो इन बातो से कोई फर्क नहीं पड़ता क्योकि मुश्किलें बेबसी परेशानी चिन्ताय क्या होती हे इसका कोई अनुभव इन्हे नहीं होता ये तो उसी फ़्रांसिसी रानी की तरह होते हे जो रोटी ना मिलने पर केक खाने को कहती थी मगर हम तो समझ सकते हे
इस देश का किसान, गरिब आदि बस १८ महेीने से परेशन हुये है पहले तो कल्पित जन्नत् का सुख उन्को मिल्ता था
जिनके कारण पहले भी सुख नहीं मिलता था उनका तो आपने खूब विरोध किया था तो अब जिनके बाद भी कोई सुख नहीं मिल रहा ऊपर से क्लेश का बोनस तो उनका विरोध आप क्यों नहीं करते हे ?
अभेी मोदेी जेी कार्य् कर रहे हैजब ५ साल का समय निकत अयेगा तब उन्केी असफल्ता केी भेी जम कर अलोच्ना भेी करेन्गे अभेी उस्केी शुरुआत कर देी है
आपने रेस की शुरुआत ही की हे और हमने रफ़्तार पकड़ ली हे तो क्या गलत हो गया अगर मोदी जी अच्छा काम कर रहे तो जीतेंगे ही फिर ? रो ते क्यों हो ? अरे भाई रोना पीटना बदतमीजी जहालत तो मोदी भक्त ही करते हे मोदी जी अच्छा काम करते तो जीतते ही , नहीं कर रहे हे इसलिए तो मोदी भक्त इतना पगलाय हुए हे अच्छा काम करते तो जीत तय मानकर शान्ति से रहते ?
आमिर ने या उनकी बीवी ने जो बात कही उसमे भला क्या गलत हे किरण जी का आशय ये था की इतने मोदी जी से जान छूटे इतने क्या हम विदेश रह सकते हे इसमें क्या गलत हो गया बहुत से बाल बच्चे वाले लोग ऐसा सोचते भी हे ही मेन बात बच्चो की कि खुद की नहीं हम उनकी मानसिकता समझ सकते हे शादीशुदा तो नहीं हे लेकिन परिवार को लेकर कितनी चिन्ताय अशंकाय होती हे समझ सकते हे अपनी नहीं मगर अपनों की चिंता हमें बेहाल करती ही हे चाहे जो हो जाए चाहे हिन्दू महासभा बैरंग दल भी सरकार बना ले आदित्यनाथ प्राची तोगड़िया राष्ट्रपति प्रधानमंत्री हो तब भी में भारत नहीं छोड़ सकता चाहे जो मगर अपनों की फ़िक्र तो होती ही हे मेरे पांच भाई बहन मैरिड हे दो भाई विदेश हे में तो चाहूंगा ही की हो सके तो सारे के सारे विदेश चले जाए जब मोदी जी से जान छूटेगी तो वापस आ जाए इसमें क्या गलत बात हे ?
अगर आप् अविवहित है तब भेी तो आप्का एक परिवार के है उस्के हित के लिये मोदेी यमराज से बच्ने के लिए विदेश् आप भि परिवार सहित जा सक्ते है कम् से कम् जान तो बच जयेगि ! अखिर आमेीर गलत् क्यो बोलेन्गे उन्होने भेी दुनिया देखि है और करिब १२-१५ साल से वह मोदेी विरोधेी भेी है
राजभाई साहब ! किसी के विरोध को वर्षों के पैमाने पर ही तोलना है तो बराक बराक कह कर अमेरिका के गले मिलना क्या था ? और क्यूँ था ??
आदर्नेीय श्रेी सचिन जेी , नर्मदा अन्दोलन से आमेीर जि मोदेी जेी का विरोध् कर रहे है और गुजरात मे उन्कि फिल्म फना भेी नहेी जारि हो सकेी थेी! लेकिन पि एम बन्ने के बाद मोदेी जि से आमेीर जेी मिल्ने भेी गये थे और इन्दिया गेत मे भेी उन्क मिल्ना मोदेी जेी से हो चुका है ! जैसे हम पाखन्दो आदि के चिर विरोधेी बहुत सालो से है ! वहेी हाल आमेीर जि का मोदेी जेी के लिये भेी है !
मोदेी जेी का ओबामा जेी को सार्व्जनिक रुप से ” बराक बराक” बुलाना हम्को भेी अशोभ्नेीय लगा था
ताकत् वर देश् के मुखिया से मिल्ना गले लगाना आदि नितिगत और् स्वार्थ् युक्त फैसले होते है !
श्रेी सिकन्दर जेी हम मोदेी जि सर्कार केी कुच अस्फल्ताओ का विरोध करते है , हम न मोदेी जेी के अन्धे समर्थक् है और न उन्के अन्धे विरोद्धेी भेी ! इस्लिये हम्को “रफ्तार पकदने ” केी कोइ जरुरत हेी नहेी है !
अभिनव सब्यसाची
2 hrs · New Delhi ·
नीतीश कुमार ने बिल्कुल सही किया है। राष्ट्रीय जनता दल के साथ सरकार चलाना कोई बाएं हाथ का खेल नहीं। पिछले 20 महीनों में नीतीश को कई बार याद आया होगा कि कैसे कभी सुशील मोदी के साथ मिल कर वह ‘केक वाक’ की तरह सरकार चला रहे थे। उन दिनों सरकार का एक ही मुखिया था। सत्ता की एक ही धुरी थी। नीतीश कुमार।
फिर अचानक नीतीश को नरेंद्र मोदी की तरह ‘महान’ बनने का शौक चढ़ा। उनको लगा कि जब गुजरात की ‘झूठी’ तरक्की के नाम पर यह प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बन सकता है तो मैं क्यों नहीं! अब नीतीश बाबू को बस एक चीज़ की ज़रूरत थी, सेकुलर बनने की। विपक्ष में मोदी के टक्कर का कोई बड़ा नेता नहीं दिख रहा था। नीतीश को लगा कि बहुत जल्द भारतीय राजनीति दो धुरियों में बंट जाएगी। विकास और साम्प्रदायिकता के प्रतीक नरेंद्र मोदी और दूसरी तरफ सेकुलर पार्टियों की इकलौती उम्मीद बिहार के विकास पुरुष नीतीश कुमार।
सेक्युलर बुद्धिजीवियों के मन में तो नीतीश भविष्य के विकल्प के रूप में फूटने लगे थे लेकिन विपक्ष नीतीश के नाम पर कभी एक नहीं हो पाया। नीतीश ने अपनी छवि चमकाने की खूब कोशिश की और आंशिक रूप से सफल भी हुए लेकिन राजनितिक दृष्टि से देखे तो मुश्किलों में ही फंसते चले गए और राष्ट्रीय स्तर पर विपक्ष के इकलौते नेता भी कभी नहीं बन पाए। 2014 के चुनावों के बाद इस्तीफा दिया तो मांझी जी गले की फांस बने। सत्ता जाती दिखी तो वापस संभलें। सारे गणित मिला कर देखा तो लगा कि लालू के साथ जाने में ही फायदा है। जब्बरदस्त-बम्पर फायदा मिला। मोदी-अमित शाह की बिहार में भद्द पिटी। दोबारा बिहार की सत्ता हाथ लगी। लेकिन सपना तो इससे बड़ा था।
2019 के चुनाव में अब मुश्किल से 2 साल का वक़्त भी नहीं बचा है और विपक्ष नीतीश को लेकर सीरियस ही नहीं है! इधर बिहार की सरकार में नीतीश एकछत्र राज भी नहीं कर पा रहे थे। लालू का परिवार गले की फांस बना हुआ था। ऐसे में सेकुलरिज्म का घंटा बांधे बेचारे नीतीश कितने दिन घूमते। भाजपा और मोदी से गलबहियां कर के नीतीश ने लालू को कई बार इशारा भी किया कि सरकार ‘आराम से’ उन्हें ही चलाने दिया जाए। लेकिन एक तो लालू इससे ज़्यादा समझौता कर नहीं सकते थे और दूसरी बात लालू के लिए अपना परिवार हमेशा से ही सबसे ऊपर रहा है। तो फिर नीतीश को अंततः लगा कि किसी भी बहाने से इस सरकार से पीछा छुड़ा ही लिया जाए। और लालू से कभी भी दूर होना हो तो अचानक ‘भ्रष्टाचार, भष्टाचार’ चिल्लाने लगिये। मीडिया साथ आ कर खड़ी हो जाएगी आपके। तो बस नीतीश बाबू ने आखिरकार सोचा कि प्रधानमंत्री बनने का अब कोई चांस दिख नहीं रहा तो क्यों न अच्छे से मुख्यमंत्री ही बन लिया जाए।
एक बिहारी होने के नाते मेरा अभी भी यही मानना है कि मुख्यमंत्री पद के लिए फिलहाल बिहार के पास नीतीश से अच्छा कोई विकल्प नहीं। लेकिन बिहार के दलित, मुस्लिम, धर्मनिरपेक्ष और आज भाजपा की खुलेआम चल रही साम्प्रदायिक राजनीति के विरोधी वोटरों का जिस तरह से नीतीश ने विश्वास तोड़ा है उससे एक बार फिर यह तय हो गया है कि भारत में ‘सेकुलर राजनीति’ के नाम पर जो भी होता हैं उससे छिछली तो शायद साम्प्रदायिक राजनीति भी नहीं। कम से कम वह जैसा ऊपर से दिखती हैं वैसी ही होती तो हैं।अभिनव सब्यसाची
2 hrs · New Delhi ·
कइ लोगोने एक अधमरीसी थेअरी विकसीत करी है. मोदी के खिलाफ ढेर सारे राजनेताओ का गठबंधन खडा करना है. ये लोग देश को स्थिर मोदी सरकार अस्विकार करके कइयो के गठबंधन वाली टुकडो मे बटी मिली जुली सरकार देश मे बिठानेके सपने देख रहे है. वो इस लिये क्युंकी इन लोगो को मोदी की सुरत पसंद नही है.
कहते है, हम हद से जादा जिसकी बुराइ करने लगते है, कुछ समय बाद हम उस इन्सान से भी बुरे बन जाते है. मोदी की बुराइ करते करते मोदी के विरोधक इस देश को अस्थीर सरकार के कुवे मे ढकेलने को तय्यार है. इनके पास नया कुछ नही है, वही घिसी पिटी बाते, सांप्रदाइक शक्तीया बढ रही हा, पुंजीवाद बढ रहा है, जातिवाद बढ रहा है, देश मे दंगे हो रहे है, देश का माहोल खराब हो रहा है. कुछ पुराने इश्यु नये रँपर मे है.
मुझे इस देश मे स्थिर सरकार चाहीये. जो ऊसे देनेकी क्षमता रखता है वोही इस देश का प्रधानमंत्री होना चाहीये. मोदी हो, मनमोहन हो या नितीश या ममता. कइ नेताओ का गठजोड ये एक घटीया और वाह्यात idea है. लेखक ने मोदी को शैतान कहा है, तो ये उनका निजी मत है. और लेखक उनकी सोच सब पर नही थोप सकते है.
Sarika Tiwari Anand added 2 new photos.
19 hrs ·
रामगोपाल यादव के संसदीय जीवन के 25 साल होने के अवसर पर नरेश अग्रवाल ने 26 जुलाई की रात अशोका होटल में पार्टी दी जिसमें उपराष्ट्रपति के अलावा प्रधानमंत्री सहित तमाम दलों के नेताओं ने शिरकत की.
सदन में हिन्दू देवताओं पर नरेश अग्रवाल की टिप्पणी के विरोध में आग बबूला होने वाले अरुण जेतली साहब भी कुरता -पायजामा छोड़,बढ़िया ड्रेस में हँसी ठहाके लगाते और माहौल का लुत्फ़ लेते देखे गए….. नितीश कुमार के इस्तीफे और प्रधानमंत्री की उसपर बधाई के बाद की बात है बाकी सब ड्रामा जनता के लिए होता है.फेसबुकिये नाहक ब्लड प्रेशर चढ़ा लेते हैं.
_______________Dhananjay singh————————-Rama Shankar Singh14 hrs · तब जबकि सोशल मीडिया पर चारों ओर से नीतीश कुमार को ही गाली दी जारही हो । यह कहना चाहे वक्त व धारा के विपरीत ही हो पर कुछ इस पर भी विचार करें कि जिस लालू को हम ईमानदार , संघर्षशील , जातिकेंद्रित , मसखरा और घर्मनिरपेक्ष नेता मानते थे उसने सत्ता का ऐसा दुरुपयोग किया कि आज उसके परिवार पर हजारों करोड की संपत्ति की परते रोज खुल रही हैं और अभी बहुत कुछ शेष है। अपराध के संगठित गिरोहो के माध्यम से उगाही की खबरे मिलती रहती है । अब शराबबंदी के बाद अवैध शराब के धंधे के माफिया को प्रश्रय देने से पूरे बिहार में सरकार का इकबाल और साख दोनों ही खत्म हो रहा था । क्या गठबंधन धर्म मे यह भी शामिल था कि नीति कार्यक्रम के अलावा उगाही वसूली पर चुप्पी रखी जायेगी। लालू जी ठेठ अपनी भदेस शैली में रोज जिलाधिकारियो को सीधे सीधे हडकायेंगें भी और अवैध वैध सब कामों के लिये कहेंगें। आधे मंत्री राजद के थे सरकार में फिर भी अंसवैधानिक चैनल चालू था। नीतीश कुमार ने पिछले चार पॉच महीनों में कई बार कांग्रेस नेतृत्व को सब बिंदु बता कर हस्तक्षेप करने को कहा पर कांग्रेस हाई कमान ने अपनी ही कार्यपद्धति से डील किया , समय पर छोड दिया और लालू को समझाने की कोशिश बिलकुल नहीं की , नतीजा सामने है। असल में नीतीश कुमार असम चुनाव से ही तल्ख हो गये थे जब पहले तो कांग्रेस हाईकमान के कहने पर उन्होने असम विधानसभा चुनावों मे दिलचस्पी लेकर तमाम गैरभाजपा गैरकांग्रेसी दलो से तालमेल बिठाया और उन्हें कांग्रेस के नेतृत्व मे सीट समझौते पर राजी कर लिया । सीटें भी बंटकर सहमति हो गई पर जब घोषित करने का वक्त आया तो कांग्रेस पलट गई , सारी सीटें लडी और परिणाम वही आया जो अपेक्षित था। असमगण परिषद को भाजपा ने अपनी ओर कर लिया और बदरुद्दीन अजमल की पार्टी ने इतने वोट काट लिये कि भाजपा जीत जाये। नीतीश का सोनिया राहुल से मोहभंग यहॉं से शुरु हुआ। फिर यूपी के चुनाव में कांग्रेस ने एक और गच्चा दिया धोखा दिया कि एक बरस पहले से नीतीश ने यूपी में जनसंपर्क बढाकर माहौल बनाने मे मदद की और गठबंधन के लिये जमीन को तैयार किया लेकिन जैसेही अखिलेश यादव ने कांग्रेस नेतृत्व के सभी गैरभाजपा दलो के लिये १०५ सीटें छोडीं तो नेतृत्व के मन में बेईमानी आ गई और सभी सीटों पर स्वयं कांग्रेस चुनाव लड बैठी व छोटे राजनीतिक दलों को दरकिनार कर दिया जैसे रालोद जदयू पीसपार्टी आदि । सीट घोषणा के बाद शरदयादव समेत सब नेताओं के फोन तक कांग्रेस नेतृत्व ने नही उठाये , नतीजा सामने है । फिर बिहार की घटनायें ? फिर राष्ट्रपति के लिये साझा प्रत्याशी की घोषणा मे टालमटोल व देरी। नीतीश को पूरे भारत में बेशक प्रधानमंत्री का वैकल्पिक उम्मीदवार समझा जाता हो पर उन्हे यह मुगालता कभी नहीं रहा । न साधन न संगठन है उनके पास। वे सदैव बिहारकेंद्रित राजनीतिक मिजाज के ही रहे हैं । यह तो सभी मानते हैं कि वे अपनी निजी छवि को लेकर अतिसंवेदनशील हैं । चालीस साल की राजनीति में यदि वे सबसे बेदाग़ दिखते हैं तो यह अनायास संभव नहीं होता । इसके पीछे का प्रयास और तप का महत्व है जो कुछ जिद्दीपन भी चरित्र में लाता है। अब नीतीश की क्षेत्रीय महात्वाकांक्षा है बस लेकिन उसके जरिये परिणाममूलक यथासंभव स्वच्छ शासन लेकिन लगातार सत्ता में रहते हुये एक तरह की निरंतरताजन्य ऊब भी आती है इसलिये यदि फिर कभी किसी सवाल पर इस्तीफ़ा हो जाये तो चौंकना मत । अब फिर लालू पर लौटें। यदि लालू तेजस्वी से इस्तीफा दिलवाकर किसी को भी उपमुख्यमंत्री बना देते तो क्या पहाड टूट जाता ? यदि लालू सीधे सीधे नीतीश की सलाह मानकर प्रशासन में दखल और आपराधिक अर्थशास्त्र के क्रियान्वयन से बाज आये रहते तो आज
यह नौबत आने का कारण न होता। क्या बिहार के बाहर के लोगो को यह मालूम है कि रोज बिहार राजद के बडे नेता अखबारों मे नीतीश के खिलाफ अनर्गल बयानबाजी किये रहते थे और लालू राबडी अपने दैनिक जनदरबार मे चिरपरिचित शैली में खिल्ली उडाते थे । गठबंधन धर्म का पालन दोनो तीनो तरफ से होता है तब निभती है। यह स्थिति उससे एकदम उलट थी जब भाजपा जदयू की युति थी। वहॉं अनुशासित माहौल था और काम करने का फ्रीहैंड था । यह मैनें सिर्फ सिक्के का दूसरा पहलू बताने के लिये लिखा । नीतीश के ताजा कदम को डिफेंड करने के लिये नहीं। वह इनडिफेसबिल हो सकता है हमारी आपकी नजर में। अब कुछ उन कारणो पर भी सोचना कि क्यों यूपी असम मणिपुर नागालैंड अरुणाचल दिल्ली कर्नाटक गुजरात बंगाल गोवा तेलंगाना छत्तीसगढ आदि राज्यों के खॉंटी कांग्रेसी कार्यकर्ता अन्य दलों में पर मुख्यत: भाजपा में जाने को मजबूर हो रहे है ? क्यो काग्रेस के बडे क्षेत्रीय नेताओ की भाजपा मे जाने की चर्चा चलने लगती है ? बीमारी बहुत गहरा गई है और हम आप स्पष्ट बात करने से कतरा रहे है । समस्या यह है कि कुछ दशक पहले का एक लगभग अछूत दल आज राजनीतिक कार्यकर्ताओ के लिये सर्वस्वीकार्य क्यों हो गया है ? और इसके लिये कौन सा नेतृत्व जिम्मेदार है ? और सबसे बडा सवाल कि आज के हालत तक पहुंचने के लिये कौन दल जिम्मेदार है ? कैंसर कांग्रेस के पूरे शरीर में फैल गया है , इसे एकबार बडे ऑपरेशन की जरूरत है। नेतृत्व को बदलने की जरूरत है इससे पहले कि यह मौत के बिलकुल नजदीक आ जाये। कांग्रेस अब गांधी नेहरू की नहीं सिब्बल चिदंबरम दिग्विजय जैसे भ्रष्टों व ग़ुलाम नबी आज़ाद जैसे दरबारियों की कैद में अनासक्त बैठे राहुल जैसों की हैं। जबसे राहुल उपाध्यक्ष बने हैं जब जगह पराभव निराशा और टूटन ही दिख रही है ।भाजपा का साठ साल काअध्यक्ष नब्बे दिन के लगातार दौरे पर है और राहुल को हर रोज दिल्ली लौटना होता है तंथा ठीक किसान आंदोलन के समय ननियाने लगते हैं। जो नेतृत्व अपनों को नहीं संभाल पा रहा वह नीतीश जैसे जमीनी व्यावहारिक नेताओं को कैसे सहेज कर रंख सकता है ? ये इस स्तर के समन्वय के लिये नितांत अक्षम है। बिहार की जाजमबदल के लिये कांग्रेस के राहुल सोनिया व लालू राबडी भी बराबर के जिम्मेदार हैं।फिर अंतत: लोकतंत्र का फैसला ही सबका जबाब होता है , देखिये शायद बिहार में अगले बरस तक मध्यावधि चुनाव हो जायें तो उत्तर मिल जाये । नीतीश की अखिल भारतीय छवि और खास तौर पर उन सब में जो मोदी भाजपा का अश्वमेध रथ २०१९ में नीतीश के हाथों रुकना देखनाचाहते थे उन्हें घोर निराशा हुई है । भजपा के साथ जानें में नीतीश के सामने खतरे भी बहुत बडे हैं पर दीर्घकालीन राजनीति अब करता कौन है ? भाजपा संघ की बाँछें खिली हैं लेकिन सार्वजनिक प्रदर्शन का रहस्यमय अभाव बता रहा है कि ऐन वक़्त पर परोसी थाली (?) को अपमानजनक ढंग से हटाये जाने की टीस अभी ख़त्म नहीं हुई है । मोदी शाह जोड़ी २०१९ की जीत के लिये इतनी बौराई हुई है कि यह आश्चर्य न हो कि कुछ अल्पसमय के लिये सुनियोजित ढंग से नीतीश को अनुपात से ज़्यादा महत्व दें । राजनीति में सत्ता में लौटने के लिये सबकुछ करना जायज़ है। हरेक ने किया है। ख़ैर नीतीश ( पटेल ) के ज़रिये भाजपा ने बिहार ही नहीं बल्कि गुजरात के पटेल अंसतोष को भी साध लिया है । जैसे राष्ट्रपति चयन से गुजरात महाराष्ट्र यूपी के बडे सामाजिक तबके को। क्या कोई अन्य दल इस सामाजिक इंजीनियरिंग से पृथक व्यवहार करता है ? सिद्धांतहीनता के दल दल में कौन दल नहीं सना है ? इसका अर्थ यह भी नहीं कि सिद्धांत की चर्चा उस पर टिकने की बात छोड दी जाये आखिरकार वही तो जिस पर भविष्य टिका है। पूरे घटनाक्रम में भाजपा को ही फायदा होगा , वही ऐसा संगठन है जो अपना दीर्घकालिक हित जमीन पर उतारने की क्षमता रखता है। शेष निजी राजनीतिक संपत्तियॉं है। ज़बरन कोई मेरी इस पोस्ट को किसी के समर्थन में मानें तो उस मनोग्रंथि का मैं क्या कर सकता हूँ ?-Rama Shankar Singh1
Krishna Kant
1 hr ·
#आपको_यह_सब_नहीं_दिखता_नीतीश_जी
#नरोत्तम_मिश्रा पर कोर्ट में आरोप साबित हो गए हैं। विधायकी चली गई है। बहुत बदनामी हो रही है।लेकिन मंत्री पद पर जमे हुए हैं।
#सुषमा_स्वराज ने ललित मोदी सहायता की। उनकी बेटी ललित मोदी की वकील हैं। सुषमा ने इस भगोड़े के लिए सिफारिशी चिट्ठी लिखी थी।
#जेटली जी …. डीडीसीए वाले मामले पर आपके ही सांसद कीर्ति आजाद जेटली जी के बारे में कुछ कहा था न..इग्नोर करें?
#वसुंधरा भी ललित की सहायता कर चुकी हैं। वसुंधरा के बेटे की कंपनी में ललित का इनवेस्टमेंट है। ललित मान चुका है कि वह वसुंधरा का साथी है। उनके बेटे पर लगे तमाम आरोप भी आपने ठंडे बस्ते में डाल दिये।
मंत्री #निहालचंद तो बलात्कार के मामले में फंसा है. लेकिन आपको नहीं दिखेगा।
#व्यापम और डंपर घोटाले वाले शिवराज को. इतने लोग मार डाले गए व्यापम में। उस पर कुछ कहिये।
#रमन_सिंह तो धान-नान घोटाले के साथ-साथ न जाने कितने आदिवासियों को खाए बैठे हैं…
■ येल यूनिवर्सिटी से डॉक्टरेट करने वाली #ईरानी मैम का तो बनता है. या फ़र्ज़ी डिग्री भ्रष्टाचार नहीं है सर?
#सुशील_मोदी और आप खुद ट्रेजरी घोटाले में आरोपी हैं सर।
◆ #गडकरी जी तो साफ-साफ घोटाला किए, ड्राइवर को डायरेक्टर दिखाया..पूर्ति घोटाला तो उन्हीं का किया है न। सिंचाई स्कैम भी उसके सिर पर है।
¶¶ #उमा_भारती के ऊपर तो चार्जशीट भी दाखिल हो गई है।कम से कम उन्हें तो..
◆◆ जोगी ठाकुर #आदित्यनाथ पर तो इतने केस हैं कि गिन ही नहीं सकते। अटैंप्ट टू मर्डर भी लगा है। उनकी अपनी एफिडेविट देख लीजिए..
●● उनके डिप्टी #केशव मौर्या पर तो मर्डर तक का..
-खुद साहब पर भी तो दंगों समेत न जाने कितने केस में हैं। अनार पटेल को 400 एकड़ जमीन 92% डिस्काउंट में दे दी. सहारा डायरी में साहब के पैसा लेने का तो प्रमाण भी है. अडानी का प्लेन भी चुनाव में खूब उड़ाया था….
#नैतिकता_की_नौटंकी छोड़िये नीतीश जी। सत्ता के लालच में थूक के चाटा है आपने। स्वाद तो आया होगा लेकिन डी एन ए सच मे बदल गया होगा अब।
शर्म बची हो तो तुलना कर लीजियेगा।
1- यूपी के मुख्यमन्त्री योगी आदित्य नाथ पर।धारा 506, 307, 147, 148, 297, 336, 504, 295, 153A, और 435 के तहत मुकदमा दर्ज है।
2- यूपी के उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य पर धारा 302, 120 B, 153 A, 188, 147, 148, 153, 153 A, 352, 188, 323, 504, 506, 147, 295 A,153, 420, 467, 465, 171, 188, 147, 352, 323, 504, 506, 392, 153 A, 353, 186, 504, 147, 332, 147, 332, 504, 332, 353, 506, 380, 147, 148, 332, 336, 186, 427, 143, 353 और 341 के तहत मुक़दमा दर्ज है।
3- बिहार के उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव पर धारा 120B और 420 के तहत मुक़दमा दर्ज कराया गया है।
#InDefenceOfDemocracy ——————–
#भारतीयसत्यशोधकसमाज_RSS——————————————–Dilip C Mandal
1 hr ·
मेरे जीवन में न जाने कितने नीतीश कुमार आए, जिनकी मैंने मदद की, इलाज करवाया, नौकरी दिलवाई, पैसा दिया, संकट से बचाया, ख़ुद भीड़ में बैठा और उनको मंच पर चढ़ाया, जिनके लिए पैरवी की, मदद न भी कर पाया तो कोशिश की लेकिन उन्होंने काम निकलते ही मेरी पीठ पर छुरा भोंक दिया। मेरे ही खिलाफ साज़िश करने लगे।
मेरा तो पूरा शरीर लहूलुहान है।
इसके बावजूद मैं नीतीश कुमारों की मदद करना बंद नहीं करता। मुझसे बड़ा मूर्ख कौन है?
उनकी इतनी औक़ात नहीं है कि मुझे कुछ दे सकें। मैं पर्याप्त समर्थ हूँ। आज भी उनकी मदद करने की हैसियत में हूँ। इतना दम है कि हमेशा मदद ही करूँगा।
मुझे नाम भी नहीं चाहिए। एहसान न मानो, पर रोज़-रोज़ गाली तो न दो।
क्या आपके साथ भी ऐसा होता है?
TN Sinha
Yesterday at 14:32 ·
बिहार के मुख्य मंत्री के नाम एक खुला पत्र–
आदरणीय मुख्य मंत्री नीतीश बाबू ,
करोडो़ रुपया खर्च करके, पूरे तामझाम के साथ पटना विश्वविद्यालय का शताब्दी समारोह मनाया गया । एन.डी. ए. के प्रमुख नेताओं के चित्रों से भरे हुए पोस्टर्स,बैनर्स से पूरे बिहार का कोना कोना भर दिया गया । मुझे यह देखकर बहुत अफसोस हुआ कि आप उनमें कहीं भी दिखाई नहीं पडे़ । मुख्य समारोह के आमंत्रित अतिथियों में कई ऐसे नेता थे जिनका बिहार से कुछ भी लेना देना नहीं है । लेकिन पटने के सांसद शत्रुघ्न सिन्हा और पटना विश्वविद्यालय के भूतपूर्व मेधावी छात्र तथा बिहार-झारखंड के सर्वमान्य नेता, बाजपेयी जी की कैबिनेट में वित्त मंत्री, श्री यशवंत सिन्हा को आमंत्रित नहीं किया गया । क्यों ऐसा किया गया इसका जबाब पटना विश्वविद्यालय के वाइस-चांसलर और आपको ही देना है । इन दोनों की उपेक्षा करना क्या हमारी लोकतांत्रिक परंपराओं के अनुरूप है ? एन.डी.ए. में शामिल होने के बाद क्या आप इतने लाचार हो गये हैं कि मूकद्रष्टा बने रहने के अलावा आपके सामने कोई विकल्प नहीं बचा है ? मुख्य समारोह के समय भी आपकी लाचारी साफ दिखाई दे रही थी । ऐसा लग रहा था कि पटना विश्वविद्यालय को केन्द्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा देने की माँग करते समय आप गिड़गिडा़ रहे थे कि प्रधानमंत्री मंत्री आपकी इज्जत बचाने के लिये कुछ तो करें । लेकिन प्रधानमंत्री ने आपको दो टूक जबाब देते हुए आपकी माँग मानने से साफ इन्कार कर दिया । उस समय आपको अपनी लाचारी देखते हुए कैसा महसूस हुआ होगा, यह तो सिर्फ आप ही बता सकते हैं । कहावत है कि बुद्धिमान के लिये इशारा काफी । अगर आपने अभी तक इशारा नहीं समझा है तो आपको बहुत पछताना पडे़गा ।
नीतीश बाबू ! जनता को बेवकूफ समझने की गलती करने वाले शासक लोग अक्सर अत्यंत अहंकारी हो जाते है और गलती पर गलती करते चले जाते हैं । आपकी छवि एक साफ सुथरी ईमानदार नेता की थी । इसमें कोई संदेह नहीं है कि आप प्रधानमंत्री के पद के अच्छे दावेदार हो सकते थे क्योंकि आपके अन्दर वे सारे गुण थे जिनकी जरूरत सामासिक संस्कृति वाले भारतवर्ष को है । लेकिन आप तात्कालिक लाभ के चक्रव्यूह में फँस गये जिसमें घुसना तो आसान था लेकिन उससे निकलना बहुत ही मुश्किल है । आपकी हालत अब साँप-छुछुन्दर वाली हो गयी है जिसको न आप निगल सकते हैं और न उगल सकते हैं । आप बाजपेयी जी के समय के एन.डी.ए. और आज के एन.डी.ए. में फर्क नहीं समझ सके । बाजपेयी जी की आस्था भारतीय संविधान और लोकतांत्रिक व्यवस्था में इतनी मजबूत थी कि किसी भी विपरीत परिस्थिति में वह हिलने वाली नहीं थी । उनके लिये विरोधियों के मन में भी अपार श्रद्धा थी ।उनके शासनकाल में किसी अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों के बीच भय तथा आतंक की छाया में रहने का दुखदाई एहसास नहीं था । आज की परिस्थिति बिल्कुल अलग है । जिन लोगों की मुठ्ठी में देश का शासनतंत्र चला गया है वे अभी तक सबके सब नकाबपोश थे । २०१४ के आम चुनाव में अधिकांश लोग धोखा खा गये ।अब नकाब लगभग उतर चुका है । लेकिन एक बार जो राजनीतिक गलती हो गयी उससे छुटकारा पाना भी आसान नहीं होता है । अभी सारा देश, खासकर अल्पसंख्यक, दलित और आदिवासी समुदाय भय और आतंक के माहौल में जीने के लिये विवश है । विरोध और आक्रोश सारे देश में फैल रहा है ।परन्तु अभी तक वह चिनगारियों के रूप में ही सुलग रहा है ।अनुकूल हवा पाकर ये चिनगारियाँ ही ज्वाला बनकर धधकने लगेंगी ।
नीतीश बाबू ! वर्तमान एन.डी. ए. के कर्ण धारों की नजर में आप अब सिर्फ दया के पात्र हैं । राजनीति वह निष्ठुर चुडै़ल है जो किसी पर दया नहीं करती है। २०१९ के आम चुनाव के समय आप दूध में मरी हुई मक्खी की तरह निकाल दिये जायेंगे ।आपके ऊपर बहुत दया की जायेगी तो आपको केन्द्र में कोई महत्वहीन मंत्रालय देकर आपका मुँह भी उसी तरह बन्द कर दिया जायेगा जस तरह बिहार से लाये गये दूसरे नेताओं का मुँह बन्द कर दिया गया है । इस स्थिति से उबरने का आपके लिये एक ही रास्ता है –ईमानदारी से बिहार के लिये केन्द्र की गलत नीतियों के खिलाफ व्यापक मोर्चा बनाना और संघर्ष करना । इस प्रकार का संघर्ष अब लम्बा और आपके लिये दुखदाई भी हो सकता है । अपने महान नेताओं, जयप्रकाश नारायण, डा. राम मनोहर लोहिया और बाबा साहब डा. भीमराव अम्बेडकर की राह पकडिये और तात्कालिक गद्दी का मोह त्याग दीजिए । जनता उसी को मकुट पहनाना चाहती है जो मुकुट का मोह त्याग दे । सत्यमेव जयते । सत्य वह सूर्य है जिसके सामने अंधकार टिक नहीं सकता । अभी तक आपकी छवि अधिक नहीं बिगडी़ है । देश के असली दुश्मन वही लोग हैं जो धार्मिक-साम्प्रदायिक उन्माद फैलाकर अपनी गद्दी सुरक्षित करना चाहते हैं । इनकी विषैली राजनीति से देश को बचाइये ।आप अभी भी इस महत्वपूर्ण काम को करने की क्षमता रखते हैं ।
सत्य हमेंशा कडवा ही होता है ।फिर भी क्षमा प्रार्थी हूँ ।
—–निवेदक, तृपित नारायण सिन्हा, भू.पू. प्राध्यापक, जी.डी. कॉलेज बेगूसराय (एल.एन.एम.यू. )
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अक्टूबर 16, 2017पुष्यमित्र
नीतीश जानते हैं, बीजेपी को कंट्रोल नहीं किया तो खुद डिलीट हो जायेंगे, और यह दांव उसी के लिए है…
पोलिटिकल टिप्पणीकार कितना भी तीसमारखां क्यों न हो, राजनेता का दिमाग उससे कई कोस आगे चलता है और कभी न कभी उसे शानदार पटखनी दे ही देता है…
ModiNitishमैं इस बात से अमूमन सहमत रहता हूं और इसलिए हड़बड़ी में पोलिटिकल टिप्पणी करने से बचता हूं. मगर 14 अक्तूबर को जब मोदी पटना विवि में नीतीश की सेंट्रल यूनिवर्सिटी की मांग को गोल-गोल घुमा रहे थे तो मेर मन में छिपा नातजुर्बेकार टिप्पणीकार बोल ही गया, ‘सुशासन बाबू को आज अपनी राजनीतिक हैसियत का अंदाजा हो गया होगा…’ दिलचस्प है, कई लोग इस बात से सहमत थे और मेरे इस वन लाइनर पर उन्होंने सकारात्मक टिप्पणियां कीं. ज्यादातर लोग इस बात से मुत्मइन थे कि नीतीश ने भाजपा के आगे इस कदर समर्पण कर दिया है कि अब मोदी अपनी बिहार से संबंधित योजनाएं भी उनसे शेयर नहीं करते. वरना नीतीश क्यों मांगते और मोदी क्यों इनकार करते. हंसी-हंसी में हमने यह भी कह डाला… मांगा गिफ्ट तो मिला होमवर्क…
पुष्यमित्र
अगला आयोजन मोकामा में था, लोकल न्यूज चैनलों पर लाइव प्रसारण हो रहा था. हम बहुत उत्सुक थे नीतीश जी का हाव-भाव देखने के लिए. हम मान कर चल रहे थे कि उनका चेहरा उतरा हुआ होगा. क्योंकि सोशल मीडिया इतनी ही देर में रंग चुका था और नीतीश को पल-पल का फीडबैक मिल ही रहा होगा. मगर नीतीश वहां भी मुस्कुरा रहे थे. मंच पर आये तो वहां भी उन्होंने अपनी मांगों का सिलसिला शुरू कर दिया. यह सब हमारी समझ से बाहर की बात थी. हम सोच रहे थे कि इस बेगैरत इंसान को इतनी भी समझ नहीं कि अब मांगने का मतलब मुंह खाली करना है. बिहार में मोदी को जो चाहिए था वह बिना मांगे मिल गया. अब उनका टारगेट गुजरात बचाना है, बिहार उनकी प्राथमिकताओं में कहीं नहीं है.
मगर हम गलत थे. नीतीश बेवकूफ नहीं थे. वे इस नये गठबंधन में शक्ति संतुलन को साधने की कोशिश कर रहे थे, बिल्कुल अपने तरीके से. वे गठबंधन के सहयोगी से बिहार के लिए मांग रख रहे थे. मोदी मांगें मान लें तो बढ़िया ठुकरा दें तो और बढ़ियां. क्योंकि दोनों सूरत में यह जाहिर होने वाला था कि बिहार मोदी की और भाजपा की प्राथमिकता में नहीं है. बिहार सिर्फ और सिर्फ नीतीश की प्राथमिकता में है. और अगले दिन मोदी पर ही लिखी हुई एक किताब के विमोचन में नीतीश ने कह भी दिया कि हमारा काम मांगना है, हम मांगने से क्यों चूकेंगे.
पुष्यमित्र
मोदी की बिहार यात्रा के दौरान हम सभी ने देखा कि पटना विवि में उनके भाषण के बाद तालियों की वह गड़गड़ाहट नहीं सुनने को मिली जो अमूमन मिला करती थी. बाद में छात्रों में दिल खोल कर अपनी निराशा जाहिर की. आम लोगों ने भी कहा कि मोदी कुछ देने के बदले बात को गोल-गोल घुमाकर चले गये. मोदी खुद अपने भाषण में लड़खड़ा गये और पटना को केंद्रीय विवि की मान्यता न देने की बात को ही जस्टिफाई करते रह गये.
राजनीति के माहिर खिलाड़ी बन चुके नीतीश का यह नया और बिल्कुल अनोखा दांव है. अब देखना है कि बीजेपी और मोदी इससे खुद को कैसे बचाते हैं. मोकामा में मोदी ने कह ही दिया कि नीतीश जी के दिल में बिहार की प्रगति की लालसा है. वे हमेशा बिहार के लिए कुछ न कुछ मांगते हैं. कभी फलां तो कभी ढेकानां दे दीजिये…
राजनीति की नजदीकी समझ रखने वाले जानते हैं कि यहां जितने दांव-पेंच पक्ष और विपक्ष के बीच चलते हैं, गठबंधन के धड़ों के बीच उससे कम दांव नहीं चलते. और नीतीश इसके माहिर खिलाड़ी बन चुके हैं. लगभग न के बराबर वोट बैंक होने के बावजूद वे 2005 से लगभग लगातार राज्य के मुख्यमंत्री हैं (मांझी जी का कार्यकाल छोड़कर). पहले दस साल उन्होंने बीजेपी को जिस तरह बैकफुट पर रखा वह तो देखने लायक था ही. उससे अधिक मारक था, लालू के साथ उनके ही वोट बैंक की बदौलत सत्ता में आना और पूरे कार्यकाल में उन्हें चुप कराकर रखना. सरकार को लीड करना.
इस बार जिस तरह लालू से भी नाता टूट गया, तो अब इस गठबंधन में अपनी ताकत बरकरार रखना नीतीश जी के लिए सबसे मुश्किल काम है. क्योंकि जब वे लालू के साथ थे तो बीजेपी उनकी ताकत थी. लालू जी को हमेशा एक भय रहता था कि नीतीश बीजेपी के साथ जा सकते हैं. अब वह भी नहीं है. मान लिया गया है कि अब नीतीश के लिए बीजेपी को झेलना और उनके डोमिनेंस को बरदास्त करना लाचारी है. अब को दांव नहीं है, जिससे नीतीश बीजेपी को शह दे सकें. लालू के साथ फिर से आना इतना आसान नहीं होगा. ऐसे में इस मांगने के खेल को वे अपनी ताकत बनाना चाहते हैं. उन पर बीजेपी के मायालोक में खो जाने का खतरा है, मगर वे यह भी जानते हैं कि राजनीति की इस बाजी में कोई न कोई दांव ऐसा जरूर है, जो उन्हें अपनी पहचान के साथ जिंदा रख सकता है, बारगेनिंग पोजिशन में ला सकता है. शायद, वे यही कर रहे हैं.7पुष्यमित्र
हलाकि दिलीप मंडल और बहुत से लोग नितीश फोर पी एम् के लिए अब शर्मिंदा हे मुझे भी बहुत कोफ़्त होती हे नितीश की हरकतों से मगर फिर भी कही न कही मुझे लगता हे की नितीश फिर कोई खेल करेगा जरूर करेगा शायद भजपा और मोदी जब अगला लोकसभा चुनाव जितने के लिए साम्प्रदायिकता को बढ़वा देंगे तब नितीश शायद फिर ”शहीद ” होंगे और कहेंगे की देखो मेने करप्शन पर लालू और कम्युनल पर भाजपा और सत्ता को लात मार दी हे मुझसे बेहतर कौन शायद ऐसा कुछ होगा वार्ना नितीश फीनिश हे
बर्बरीकलालूमुक्त और बीजेपीयुक्त सरकार बनाकर नीतीश कुमार ने अपने लिए चाहे सुकून हासिल कर लिया हो, लेकिन बिहार का सुकून छिन गया है। जुलाई 2017 में गठबंधन टूटने के बाद बिहार में 200 सांप्रदायिक घटनाएँ हो हुई हैं। इस साल अब तक 64 ऐसी घटनाएँ हो चुकी हैं। बीते मार्च में ही ऐसी 30 घटनाएँ हुईं हैं और लगता है जैसे पूरे बिहार में आग लगी हुई है।इस संदर्भ में आज इंडियन एक्सप्रेस ने एक ख़बर छापी है जिसमें बीते पाँच साल का तुलनात्मक विश्लेषण किया गया है। इसके मुताबिक 2012 में 50, 2013 में 112, 2014 में 110, 2015 में 155 , 2016 में 230 और 2017 में सबसे ज़्यादा 270 सांप्रदायिक घटनाएँ बिहार में दर्ज की गईं। नीतीश कुमार 2010 से एनडीए में थे। जून 2013 में एनडीए से अलग हुए। नवंबर 2015 में वे काँग्रेस और आरजेडी गठबंधन में शामिल हुए। यह साथ जुलाई 2017 तक रहा। इसके बाद वे फिर एनडीए का हिस्सा हो गए।
बिहार में ज़्यादातर सांप्रदायिक घटनाएँ धार्मिक जुलूसों के ज़रिए अंजाम दी जा रही हैं। हिंदू संगठनों के जुलूस मुस्लिम बहुल इलाके में गए और झगड़ा हुआ, यही पैटर्न है। हमेशा आरोप लगा कि जुलूस में शामिल लोग अपमानजनक नारे लगाते हुए झगड़ा ‘रचते’ हैं। ऐसा कई ज़िलो में हुआ। रामनवमी या नवसंवत्सर के नाम पर,आपत्तिजनक नारे लगाते और हथियार लहराते मोटरसाइकिल रैलियाँ निकालना किसी धार्मिक परंपरा का हिस्सा नहीं है। यह धर्म की आड़ में शुरू किया गया राजनीतिक अभियान है।
अररिया में आरजेडी प्रत्याशी की जीत के बाद मुस्लिम लड़कों का भारत विरोधी नारे लगाते एक वीडियो वायरल हुआ था। बाद में जाँच से पता चला कि उस वीडियो में आवाज़ काटकर नारे डाले गए थे। ज़ाहिर है, नफ़रत का अभियान हर क़ीमत पर बढ़ाया जा रहा है। मक़सद सिर्फ़ एक कि हिंदुओं और मुसलमानों के बीच नफ़रत बढ़ाई जाए।
पिछले दिनों जिस तरह केंद्रीय मंत्री अश्विनी चौबे के बेटे अर्जित शाश्वत का नाम भागलपुर हिंसा में आया है, उसने नीतीश कुमार के सुशासन और बीजेपी की मंशा पर सवाल खड़े कर दिए हैं। काफ़ी दिनों तक पुलिस की पकड़ से बाहर अर्जित ने कल ही सरेंडर किया है, लेकिन इस बीच उसने और अश्विनी चौबे ने जिस तरह सांप्रदायिक उन्माद फैलाने की हरक़तों को ‘राष्ट्रवाद’ से जोड़ा, उससे बीजेपी की रणनीति स्पष्ट हो गई है।
आरजेडी की उपचुनावों में जीत ने संकेत दिया है कि नीतीश कुमार और बीजेपी का गठबंधन चुनावी मोर्चे पर कमज़ोर साबित हो सकता है। ऐसे में बीजेपी सांप्रदायिक उन्माद फैलाकर विपरीत सामाजिक समीकरणों पर भारी पड़ना चाहती है। लेकिन सवाल तो नीतीश कुमार के सुशासन के दावे का है। जिस भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाकर उन्होंने आरजेडी से नाता तोड़ा था, क्या बीजेपी नेताओं के मुंह से निकलने वाली दंगाई आग उससे कम ख़तरनाक है।सच तो यह है कि बिहार सांप्रदायिक उन्माद की आग में झुलस रहा है तो सबसे पहले नीतीश कुमार की साख ही ख़ाक हो रही है। नीतीश ने इसे जल्द नहीं समझा तो बीजेपी, बिहार की चौसर पर बादशाह को पैदल करने में देर नहीं करेगी।
बर्बरीक
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Pushya Mitra
1 April at 09:28 ·
एक बिहारी के मन की बात
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डिस्केलमर- इसे पत्रकार नहीं, एक आम बिहारी के बयान के रूप में देखा जाए।
मेरे पत्रकार मन में एक डरपोक बिहारी चोर की तरह बसता है। अमूमन मैं रोज नीतीश कुमार की सौ खामियां निकालता हूँ, जो सच और जरूरी भी है। मगर जिस रोज लगता है कि बिहार में सत्ता की कमान भाजपा या राजद वालों में से किसी के हाथ में जा सकती है, मन सिहर उठता है। क्योंकि दोनों पार्टियों के शासन संचालन का अनुभव यही है कि दोनों के राज में असमाजिक तत्वों को उपद्रव की खुली छूट रहती है। दोनों सत्ता के लिये शांति को दांव पर लगाने में जरा भी नहीं हिचकते। भले ही पिछले 12 सालों में कभी भाजपा तो कभी राजद सरकार का हिस्सा रहीं, मगर ये कभी सरकार का ड्राइविंग फोर्स नहीं रहीं। सरकार नीतीश ही चलाते रहे।
आप लाख तर्क दें, आंकड़े बताएं, मगर पिछले 12 साल में हमने जो जीवन जिया है, जिस चैन का अनुभव किया है उसको गंवाने की बात सोचकर भी घबराहट होती है। और यह सिर्फ मेरी बात नहीं है। राज्य के सभी जातियों और संप्रदायों ने, पुरुषों-महिलाओं और बच्चों ने शायद ऐसा ही महसूस किया होगा।
इन बारह सालों में हमने पहली बार पूरे राज्य में बिना हिचकोले वाली सड़कों का आनंद लिया। पहली बार गांव में महसूस किया कि इन्वर्टर की भी जरूरत नहीं है। पहली बार सपरिवार उन इलाकों में रात दो बजे यात्रायें कीं जिन्हें मिनी चंबल और नक्सलॉइटों का गढ़ कहा जाता था। आरा के सहार इलाके में स्कूल बसों को दूर दूर से बच्चे ढोकर लाते देखा। यह इलाका कभी रणबीर सेना का गढ़ था। पहली बार औरतों को नौकरी के लिये दूर दराज के ग्रामीण इलाकों में रोज 30-30 किमी अकेले जाते देखा। जिन औरतों को कभी फलां गांव वाली, फलां की माय कह कर बुलाया जाता था, उन्हें शांति देवी और सलमा खातून बनते देखा। पहली बार देखा कि दिल्ली, बम्बई, मद्रास और कलकत्ता में रहने वाले बिहारी गर्व से कहते हैं, हां, हम बिहारी हैं।
यह सब 2005 से पहले एक असंभव कल्पना थी। और इस असंभव कल्पना को साकार करने और हमें अमन चैन का माहौल देने में इस आदमी की बड़ी भूमिका है, जिसे आज बहादुरशाह जफर कहकर गालियां दी जा रही हैं।
भाजपा वाले कह सकते हैं कि उनके इस सफर में लंबे वक्त तक उनकी पार्टी साथी रही है। यह सच भी है। मगर वह भाजपा अटल जी वाली भाजपा थी। मोदी-शाह और गिरिराज वाली नहीं। सुशील मोदी ने आज तक जो भूमिका निभाई है वह अमन चैन को बरकरार ही रखती है, बिगाड़ती नहीं है। एक बार रामचन्द्र गुहा ने कहा था, यही जोड़ी बिहार के लिये शुभ है। यह सच है। मगर क्या मोदी-शाह-गिरिराज जैसे लोग जो आज भाजपा के नीति निर्धारक हैं, ऐसा होने देंगे? इन्हें आग लगाकर घूर तापने का चस्का लगा हुआ है। ये मानते हैं कि चुनाव जीतने के लिये कुछ भी जायज है। सौ पचास मर गए तो मर गए।
उसी तरह राजद का चरित्र रहा है, सत्ता हासिल करने के लिये सब कुछ जायज है। सामाजिक न्याय के नाम पर एक जात को दूसरे जात के खून का प्यासा बना देना भी गलत नहीं है।
गांव मेरे घर के ठीक सामने यादवों के दो परिवार रहते हैं। मुझे याद है कि 2005 से पहले तक हमदोनों परिवार के लोग कभी नार्मल रूप से साथ नहीं बैठ सके। पिछले कुछ सालों से हमारे संबंध काफी मधुर हैं। तो क्या पिछले 12 सालों में सामाजिक क्रांति रुक गयी? क्या दलितों पिछड़ों के अधिकार में कटौती होने लगी? और इन सालों में महिलाएं जितनी सशक्त हुईं, क्या इसके बारे में सोचा भी जा सकता था। वह भी खून की एक बूंद गिराए बगैर।
यह सच है कि अभी भी बहुत काम बचा है। खास कर शिक्षा और स्वास्थ्य के मसले पर। मछुआरों और मुशहरों जैसी जातियां आज भी हाशिये पर है। उद्योग के लायक माहौल आज भी नहीं बना है। प्रेस की स्वतंत्रता पर लगातार सरकार का पहरा रहता है। नीतीश के खिलाफ खबर लिखना मुश्किल है। पलायन और रोजगार का सवाल बहुत बड़ा है। इनपर हम रोज बातें करते हैं। मगर मुझे ऐसा लगता है कि इन सवाल के जवाब नीतीश ही तलाश सकते हैं। लालू या गिरिराज नहीं। इसलिये, मेरा। एक बिहारी का मानना है कि नीतीश का कमजोर होना हमारे हित में नहीं। नीतीश को कोई मोदी या कोई लालू कमजोर नहीं कर सकता। यह हमहीं हैं, जो उसे कमजोर या मजबूत कर सकते हैं।
चुनावी नतीजों के बाद बिहार
प्रेमकुमार मणि
विगत 31 मई को उपचुनावों के आये नतीजों ने पूरे देश में एक राजनीतिक खलबली पैदा कर दी है . ये उपचुनाव देश के विभिन्न हिस्सों में संपन्न हुए थे और इसमें चार लोकसभा और दस विधानसभा क्षेत्रों के उपचुनाव थे . भाजपा को इनमे एक लोकसभा और एक विधानसभा क्षेत्र से ही संतोष करना पड़ा . तीन लोकसभा क्षेत्रों और नौ विधानसभा क्षेत्रों में उसे या उसके सहयोगी दलों को पराजित होना पड़ा . ऐसे में जब लोकसभा चुनावों के अब सालभर से भी कम के समय हैं ,ये नतीजे भाजपा केलिए खतरे की घंटी और विरोधी दलों केलिए उत्साहवर्धक माने जायेंगे . हैं भी . कर्नाटक विधानसभा चुनाव में हुई किरकिरी के तुरंत बाद इन नतीजों ने भाजपा की साख ख़राब कर दी है . निश्चित ही उसके हौसले पश्त होंगे . इस पश्त- मिजाजी के साथ 2019 का जंग जीतना क्या आसान रह जायेगा ? राजनीति हमेशा संभावनाओं का खेल रहता है ,इसलिए निश्चित तौर पर कुछ कहना तो संभव नहीं होगा ,लेकिन यह तो कहा ही जा सकता है कि भाजपा केलिए मुश्किलों का दौर शुरू हो गया है .
इन चुनावी पराजयों से अधिक चिंताजनक उसके राजनीतिक मोर्चे राजग में विखराव है . राजग में चार बड़े घटक थे . टीडीपी ,शिवसेना, जेडीयू और अकाली . टीडीपी तो कब की अलग हो चुकी . बाकि बचे तीन में शिवसेना ने स्थिति लगभग स्पष्ट कर दी है . उसके राजग में बने रहने की संभावना अब न के बराबर है . अकाली से चखचख जारी है और जेडीयू तो अब मुखर हो चुका है . हम यहाँ जेडीयू पर ही केंद्रित होना चाहेंगे .
जेडीयू राष्ट्रीय लिबास में एक इलाकाई पार्टी है ,जिसका प्रभाव बिहार तक सीमित है . इसके राष्ट्रीय अध्यक्ष नीतीश कुमार बिहार के मुख्यमंत्री भी हैं . जेडीयू की संरचना समाजवादी तत्वों से हुई थी ,लेकिन सत्ता की राजनीति में लम्बे समय तक बने रहने के कारण राजनीति के मौकापरस्त तत्व पर्याप्त मात्रा में यहां जगह बना चुके हैं . बावजूद इसके पार्टी की समाजवादी तबियत कभी -कभार खदबदा उठती है . ऐसी ही एक खदबदाहट जून 2013 में हुई थी जब भाजपा ने नरेंद्र मोदी को केंद्रीय चुनाव समिति का अध्यक्ष बना कर स्पष्ट कर दिया कि 2014 के लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री के उम्मीदवार यही हैं . जेडीयू अपनी सुविधा केलिए आडवाणी बनाम मोदी का राग अलाप रही थी और आडवाणी को सेकुलर दर्जे का मान रही थी . मोदी के नाम पर नीतीश कुमार का विरोध इतना उग्र हुआ कि उन्होंने आनन् -फानन में अपनी पार्टी को भाजपा से अलग कर लिया . स्वाभाविक रूप से वह कांग्रेस और राजद के नजदीक हुए . 2014 का चुनाव वह बिना किसी गठबंधन के लड़े और चारों खाने चित हो गए . ऐसे अवसाद में डूबे कि मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा करके पोलिटिकल हाइबरनेशन में चले गए .अंततः उनका चरगट्टा अथवा चौकड़ी उन्हें अवसाद से निकाल लाया और वह फिर मुख्यमंत्री बने . इस बार उन्होंने लालू प्रसाद के राष्ट्रीय जनता दल और कांग्रेस के साथ महागठबंधन बनाया . 2015 के बिहार विधान सभा चुनाव में इस गठबंधन को विधानसभा की कुल 243 में से 178 सीटें मिली . हलाकि लालूप्रसाद की पार्टी संख्या बल में बड़ी थी , लेकिन लालू ने उदारता बरती और नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री बनाया . बिहार की जो सामाजिक -राजनीतिक संरचना है ,उसके हिसाब से महागठबंधन निश्चित तौर से अनुकूल और इसलिए स्वाभाविक रूप से मजबूत राजनीतिक मोर्चा था . इसके बूते नीतीश कुमार की एक राष्ट्रीय छवि बननी शुरू हुई थी . उन्होंने संघ मुक्त भारत का जब नारा दिया ,तब मुल्क के सेकुलर खेमे में उनकी विश्वसनीयता बढ़ी . वह विकल्प की राजनीति के स्वाभाविक केंद्र बनने लगे . एक मुश्किल घडी में ऐसी केन्द्रीयता हासिल करना बड़ी बात थी . लेकिन सम्भावना भरे मंच से अचानक एक बार फिर नीतीश ने पलटी मारी . इस बार सब चौंक गए . उन्होंने किसी को भनक भी नहीं लगने दी और महागठबंधन से भाजपा की गोद में कूद कर चले गए . मुख्यमंत्री तो बने रहे ,लेकिन भाजपा के साथ इस गठबंधन ने उनकी नैतिक छवि को ध्वस्त कर दिया . वे और उनके लोग गफलत के भी शिकार हुए . उन्हें महसूस हो रहा था कि महागठबंधन की जीत उनके स्वच्छ चेहरे के कारण हुई है . संभव है एक छोटा कारण यह भी रहा हो ,लेकिन इसका प्रधान कारण भाजपा विरोधी मतों का एकत्रीकरण अथवा ध्रुवीकरण था . दरअसल यह वोट प्रबंधन की जीत थी और इसके आर्किटेक्ट और कोई नहीं , लालूप्रसाद थे . नीतीश कुमार ने एक कंपनी मैनेजर को इसका श्रेय दिया . अपने साथियों को नीचा दिखाना शायद नीतीश की फितरत में शामिल है . अहम के टकराव शुरू हुए और केंद्रीय ख़ुफ़िया एजेंसियों की लालू परिवार पर छापों ने नीतीश कुमार को अलग होने का एक अवसर दिया . बीस महीने बाद जुलाई 2017 में वह अलग हो गए . तबसे वह भाजपा के साथ हैं .
भाजपा का नया संग – साथ नीतीश की राजनीतिक सेहत को भा नहीं रहा है . उनका अनुमान शायद यह रहा होगा कि लालूप्रसाद के जेल चले जाने के बाद पिछड़े तबकों के वह एकमात्र उम्मीद रह जायेंगे ,क्योंकि लालूप्रसाद का राजद विखर जायेगा . यह नहीं हुआ . तेजस्वी नीतीश मंत्रिमंडल में महज़ उपमुख्यमंत्री थे . परिस्थितियों ने तेजस्वी को नेता बना दिया . पिछले तीन महीने में लगातार तीन चुनावों में तेजस्वी के हाथों नीतीश को पराजित होना पड़ा . अररिया ,जहानाबाद और अब जोकीहाट के चुनाव नतीजों ने सिद्ध कर दिया है कि राजनीति में चेहरा ही सबकुछ नहीं होता है , सरोकारों का अपना मूल्य होता है . कुछ समय पहले नीतीश ने तेजस्वी पर एक अगंभीर टिप्पणी की थी कि वह यानि तेजस्वी बच्चे हैं . यह टिप्पणी आज उन पर भारी पड़ रही है . उस बालक के हाथ ही उन्हें लगातार पराजित होना पड़ रहा है . कल जोकीहाट का विश्लेषण करते हुए जब तेजस्वी ने नीतीश को सिर्फ 599 वोटों का नेता बताया तब लोग सिर्फ मुस्कुरा ही सकते थे . दरअसल जोकीहाट में भाजपा द्वारा पिछले चुनाव में प्राप्त मतों को घटा देने पर नीतीश के पास यही वोट बचता है .
कल के नतीजे बिहार में राजनीतिक धृवीकरणको तेज करेंगे . यह सबको महसूस हो रहा है कि नीतीश राजग में सहज नहीं हैं . लेकिन क्या वह टीडीपी के नायडू की तरह का निर्णय ले सकते हैं ? क्या एकबार फिर वह भाजपा विरोधी गठबंधन में होना चाहेंगे . अपुष्ट सूचनाओं के अनुसार वह इसी फ़िराक में लगे हैं . वह कांग्रेस पर डोरे डाल रहे हैं . बिहार कांग्रेस हाल तक सवर्ण प्रभाव की पार्टी रही है . इसी कारण वह लालू की अपेक्षा नीतीश को अनुकूल समझती रही . लेकिन राहुल ने उसके चरित्र को बदलने की कोशिश की है . स्वयं राहुल नीतीश की अपेक्षा तेजस्वी के साथ अधिक सहज महसूस करते हैं .इसलिए कांग्रेस -राजद गठजोड़ कमजोर होगा यह उम्मीद नहीं की जानी चाहिए . बिहार पर कोई फैसला निश्चित ही राजद के बगैर सहमति के संभव नहीं है . कल प्रेसवार्ता में तेजस्वी नीतीश की वापसी की संभावनाओं का धत्ता बना रहे थे . लेकिन केवल इससे संभावनाओं के द्वार बंद नहीं हो जाते . नीतीश अगला चुनाव भाजपा के साथ नहीं लड़ेंगे ,इसकी सम्भावना प्रबल है ,वह किसके साथ लड़ेंगे ,यह समय बतलायेगा .
Pushya Mitra1 June at 14:58 · जिस वक्त नीतीश के अवसान की घोषणा हो रही है, वे अपने राजनीतिक कैरियर का सबसे ऊंचा दाव खेलने की तैयारी कर रहे हैं………………………………………………………………………..मैं जानता हूं, इस पोस्ट का शीर्षक थोड़ा अजीब है. सामान्य आकार से थोड़ा लंबा भी है और आज के दौर में किसी पत्रकार के लिए यह लिखना खतरनाक भी हो सकता है, क्योंकि वह बड़ी आसानी से नीतीश का पीआर एजेंट मान लिया जा सकता है. खास कर उस दौर में जब नीतीश की पार्टी जोकीहाट उप चुनाव हार चुकी है और उनके फेसबुक पेज की रेटिंग अभियान चलाकर एक पर पहुंचा दी गयी है. उनकी राजनीतिक ताकत लगभग शून्य पर पहुंच गयी है. एनडीए में उनकी कोई वकत नहीं रही और महागठबंधन की तरफ से ऐसा माहौल बनाया जा रहा है कि नाक रगड़ने पर भी नीतीश को वहां जगह नहीं मिलेगी. फिर भी…
यह सच है कि जोकीहाट विधानसभा उप चुनाव को जीतने के लिए जदयू ने बहुत कुछ दांव पर लगा दिया था. राजधानी पटना में मुसलमानों की एक बड़ी रैली करवाई थी और एक जहीन मुसलमान नेता खालिद अनवर को विधान परिषद भेजा था. वहां एक बाहुबली मुसलिम नेता मुर्शीद आलम को टिकट दिया, जिस के खिलाफ हत्या और गैंगरेप के मामले चल रहे हैं. इसके बावजूद बड़े मार्जिन से हार गये. हारे तो कहने लगे कि वहां सांप्रदायिक ध्रुवीकरण हो गया, केंद्र सरकार की विफलता का असर पड़ा. अपनी संगठनात्मक कमजोरी को स्वीकार नहीं किया.
वे करेंगे भी नहीं. क्योंकि नीतीश जानते हैं, वोट बैंक, राजनीतिक ताकत या संगठन उनकी मजबूती नहीं है. वे इन मामलों में हमेशा से कमजोर रहे हैं. इसलिए जब भी अकेले मैदान में उतरते हैं, हाशिये पर चले जाते हैं. वे पिछले 13 साल के दौरान लगातार अलग-अलग तरीके से अपना वोट बैंक गढ़ने की कोशिश में जुटे रहे. कभी अति पिछड़ों, महादलितों और पसमंदाओं में राजनीतिक भविष्य तलाशा तो कभी शराबबंदी, दहेज प्रथा और बाल विवाह के खिलाफ अभियान चलाकर महिलाओं के बीच अपने दल की पैठ बनाने की कोशिश की और कर रहे हैं. मगर जिस तरह यादव और मुसलमानों के बीच राजद की मजबूत पैठ है, वैसी पैठ नीतीश की किसी समाज में नहीं है.
उनकी ताकत उनकी छवि है, जिससे वे हर बार बारगेनिंग करते हैं और हर बारगेनिंग में सफल रहते हैं. कमजोर रहने के बावजूद लालू जैसा नेता उन्हें महागठबंधन का चेहरा बना लेता है, क्योंकि वे नीतीश के चेहरे के महत्व को समझते हैं और फिर जब वहां से वापस होते हैं तो भाजपा फिर उन्हें बिहार में अपना नेता कुबूल कर लेती है. पहले भी कमजोर समता पार्टी को भाजपा ने बिहार में अपना चेहरा बनाया, क्योंकि उसके पास राज्य में कोई ऐसा चेहरा नहीं है. राज्य तो राज्य, देश की राजनीति में भी तमाम विरोधाभासों के बावजूद जो नीतीश की एक छवि है, वह उन्हें बार-बार प्रेरित करती है कि वे पीएम का चेहरा बन जायें.
यही वजह है कि आज इतने कमजोर होने पर भी उन्हें पूरा भरोसा है कि वे अगर ठीक से गोटियां फिट करें तो बहुत आराम से संयुक्त विपक्ष के पीएम पद का चेहरा बन सकते हैं. तभी वे नोटबंदी पर सवाल खड़े कर रहे हैं, स्पेशल स्टेटस का पुराना हथियार निकालकर उसकी साफ-सफाई कर रहे हैं, हार के बाद उनके सिपहसालार पेट्रोल की बढ़ती कीमतों पर सवाल खड़े कर रहे हैं. क्योंकि नीतीश को मालूम है कि संयुक्त विपक्ष का सबसे बड़ा संकट ऐसे चेहरे का न होना है, जो मोदी को चुनौती दे सके.
तमाम कोशिशों के बावजूद राहुल गांधी वह चेहरा बन नहीं पा रहे. लालू-मुलायम अब रिटायरमेंट की कतार में हैं, ममता बनर्जी अपने रेडिकल रवैये की वजह से पूरे भारत को स्वीकार्य नहीं हो सकतीं, मायावती का चेहरा सभी समुदायों को स्वीकार्य होगा या नहीं कहना मुश्किल है. अखिलेश और तेजस्वी का चेहरा प्रभावी तो है, मगर अभी एमेच्योर है. अरविंद केजरीवाल अभी तक संयुक्त विपक्ष की राजनीति से दूर ही रहे हैं. ऐसे में उनका सर्वसमावेशी चेहरा और सुशासन का तमगा एक अलग पहचान दे सकता है.
हालांकि उनकी मौजूदा परिस्थितियां बहुत नाजुक हैं. दुबारा एनडीए में जाकर उन्होंने अपनी छवि का कबाड़ा कर लिया है. लोग उन्हें अब सुशासन बाबू के बदले अवसरवादी बाबू कहने लगे हैं. धर्मनिरपेक्षता, जो संयुक्त विपक्ष का सबसे बड़ा यूएसपी है, उसमें वे फेल्योर होते नजर आ रहे हैं. राजद हर हाल में उनसे दूर रहना चाहता है और आज बिहार में राजद एक ऐसी शक्ति के रूप में उभर चुका है कि संयुक्त विपक्ष उसे इग्नोर नहीं कर सकता. वे महज एक साल में एनडीए के साथ अपने अलगाव को कैसे डिफाइन करेंगे यह जटिल मसला है. फिर भी नीतीश यह जानते हैं कि 2019 का चुनाव उनके राजनीतिक जीवन का ऐसा मौका है, जो फिर दुबारा लौटकर नहीं आयेगा. पेट में दांत वाले नीतीश इसके लिए गोटियां फिट करने लगे हैं.
नीतीश जैसे नेता के लिए यह इतना मुश्किल भी नहीं है, क्योंकि कहा जा रहा है कि कांग्रेस इन्हें स्वीकार करने के लिए तैयार है. अगर जदयू खुद आगे बढ़कर तेजस्वी को सीएम पद का ऑफर कर दे और नीतीश दिल्ली की राह पर निकल पड़ें तो राजद के लिए भी इस ऑफर को ठुकराना आसान नहीं होगा. हां, नीतीश के लिए जरूर यह मुश्किल मामला होगा कि जिस तेजस्वी पर भ्रष्टाचार के आरोप की वजह से वे महागठबंधन से अलग हुए उसे फिर कैसे सार्वजनिक रूप से स्वीकारेंगे.
मगर नीतीश इतने महत्वाकांक्षी हैं कि इसका रास्ता भी निकालेंगे और अपने चिर-परिचित अंदाज में निकालने की कोशिश करेंगे. धीरे-धीरे भाजपा पर हमला करेंगे और तेजस्वी पर हमला कम करेंगे, जैसे महागठबंधन से अलग होते वक्त किया था. जब माहौल बन जायेगा तो एक झटके में फैसला लेंगे. वे बहुत चतुर व्यक्ति हैं, उनके लिए यह सब बहुत मुश्किल नहीं.
मगर राजनीति हो या जिंदगी, हर बार चतुर व्यक्ति की चतुराई काम आ जाये यह मुमकिन नहीं. कई दफा होशियार व्यक्ति खुद अपने ही फंदे में उलझ जाता है. नीतीश यह भी समझ रहे होंगे. इसके बावजूद उन्होंने पीएम मटेरियल के अपने सबसे बड़े सपने को सच करने का आखिर दांव खेलना शुरू कर दिया है, इसमें मुझे कोई कंफ्यूजन नहीं.
Pushya MitraYesterday at 17:20 ·
IBTimesIndiaदरअसल नीतीश भारतीय राजनीति का मध्यममार्गी चेहरा हैं. वे न इतने वाम हैं कि समानता के नाम पर विकास और पूंजीवाद को तिलांजलि दे दें और जरूरत पड़ने पर भ्रष्टाचार और हिंसा की भी वकालत करने लगें. और न ही इतने दक्षिण हैं कि धर्मनिपरेक्षता की सामान्य भावना को छोड़ सकें. देश को हिंदुत्ववादी राष्ट्र बना देने में खुशी महसूस करें. वे मूल अर्थों में लिबरल डेमोक्रेट हैं, न रेडिकल लेफ्ट हैं और न ही रेडिकल राइट. एनडीए में लंबा वक्त गुजारने के बावजूद वे सेंटर टू लेफ्ट ही हैं. वे समाजवाद के मूल सिद्धांतों का सम्मान करते हैं. गैर कांग्रेसवाद में पगे हैं, कांग्रेस के वंशवाद से परहेज करते हैं. एनडीए में उन्होंने वह दौर गुजारा है जब भाजपा का माहौल भी लिबरल था. समावेशी विकास की बातें हुआ करती थीं, पढ़े-लिखे इंटेलेक्चुअल लोग राजनीति करते थे.
मोदी के आने के बाद से देश की राजनीति बदल गयी. अब मध्यममार्ग का कोई मतलब नहीं रह गया है. या तो इधर रहना है या उधर और दोनों तरफ के रेडिकल एटीच्यूड को न सिर्फ झेलना है बल्कि जस्टिफाई भी करना है. जाहिर है नीतीश जैसे नेता सबसे पहले इस राजनीति के शिकार हुए और हाशिये पर जाने लगे. वे न नवीन पटनायक थेऔर न ही चंद्रबाबू नायुडू हैं, जिनके राज्यों में मोदीवाद की हवा भी नहीं पहुंचती. बिहार उन राज्यों में है जो पोलिटिकली सबसे अधिक एक्टिव रहता है. ऐसे में नीतीश पेंडुलम की तरह डोलते हुए ही संतुलन साध सकते हैं और सत्ता के केंद्र में कायम रह सकते हैं. अब चाहे इसके लिए आप उन्हें पलटू राम कहें या डगरे का बैगन.
यह तय है कि भाजपा से अलगाव की स्क्रिप्ट उन्होंने लिख डाली है. अब बस वक्त का इंतजार है. राजद भले उन्हें घास न डाले पर कांग्रेस और विपक्षी राजनीति में सक्रिय कुछ और मध्यममार्गी पार्टियां न सिर्फ उन्हें स्वीकारने के लिए तैयार हैं बल्कि महत्वपूर्ण भूमिका भी दे सकते हैं. क्योंकि 2019 के चुनाव में मोदी का बायोडाटा जहां कमजोर है वह है आमलोगों का विकास और इस मामले में नीतीश आज भी उनसे बीस साबित हो रहे हैं.
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