by –राम पुनियानी
गत 21 जून 2015 को धूमधाम से योग दिवस मनाने के बाद, मोदी सरकार बड़े पैमाने पर रक्षाबंधन मनाने की तैयारी कर रही है। इस योजना को भाजपा के पितृसंगठन आरएसएस का आशीर्वाद प्राप्त है। बिना किसी संकोच या हिचक के एक हिंदू धार्मिक त्योहार को राष्ट्रीय त्योहार का दर्जा दिया जा रहा है। यह इस सरकार के संकीर्ण राष्ट्रवाद के गुप्त एजेंडे की ओर संकेत करता है।
रक्षाबंधन का अर्थ है ‘‘रक्षा करने के वचन में बंधना’’ और यह देश के लोकप्रिय त्योहारों में से एक है, जिसे हिंदू, जैन और कुछ सिक्ख मनाते हैं। कई कहानियों में इस त्योहार का इस्तेमाल ऐसे लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए किया जाना बताया गया है, जो एक अर्थ में धार्मिक पहचान से ऊपर व परे हैं। कहा जाता है कि सन् 1535 में चित्तौढ़ की रानी करनावती ने बादशाह हुमांयू को तब राखी भेजी, जब उनकी रियासत पर गुजरात के सुल्तान बाहदुरशाह ने हमला बोल दिया। हिंदू रानी के रक्षा के इस आह्वान ने हुमांयू के दिल को छू लिया और वे बहादुरशाह से मुकाबला करने के लिए दिल्ली से निकल पड़े। परंतु जब तक वे चित्तौढ़ पहुंचे जब तक बहुत देर हो चुकी थी। इस राजस्थानी कथा को अनेक इतिहासविद सही नहीं मानते। सच कुछ भी हो, यह कहानी मध्यकाल में हिंदू-मुस्लिम सौहार्द को प्रतिबिंबित करती है। वह बताती है कि भारतीय उपमहाद्वीप में हमेशा से गंगा-जमुनी तहज़ीब रही है।
राखी के राजनैतिक उपयोग का दूसरा उदाहरण गुरूदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर से जुड़ा हुआ है। अंग्रेजों ने सन् 1905 में बंगाल का विभाजन कर दिया। उनकी इस निर्णय का विरोध करने और बंगाल के दोनों प्रमुख धार्मिक समुदायों के आपसी संबंधों को मजबूती देने के लिए, गुरूदेव ने रक्षाबंधन को हिंदुओं और मुसलमानों की एकता के बंधन के त्योहार के रूप में मनाने का आह्वान किया। उस समय सांप्रदायिक ताकतों ने अपना रंग दिखाना शुरू कर दिया था और ‘‘दूसरे’’ समुदाय के प्रति बैरभाव को प्रोत्साहन देने के प्रयास प्रारंभ हो गए थे। जहां दोनों समुदायों के सांप्रदायिक तत्व एक-दूसरे के प्रति घृणा फैलाते रहे हैं वहीं इस तरह की घटनाएं बताती हैं कि स्वाधीनता आंदोलन के दौरान हिंदुओं और मुसलमानों में आपसी एकता थी और यह एकता भारतीय राष्ट्रवाद का सामाजिक स्तर पर प्रकटीकरण था।
इस तरह के कई उदाहरण हैं जब विभिन्न सामाजिक समूहों, रियासतों और अलग-अलग कुलों के बीच राखी ने प्रेम और एकता के सेतु के रूप में कार्य किया। परंतु इसके साथ-साथ, हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि मूलतः राखी पितृसत्तात्मक संबंधों को प्रतिबिंबित करती है। इसमें बहन, भाई की कलाई पर राखी बांधकर उसके कल्याण की कामना करती है और भाई, जीवनभर उसकी रक्षा करने का वचन देता है।
‘‘राखी भाई’’ जैसी कई सुंदर अवधारणाएं राखी के साथ जुड़ी हुई हैं। परंतु इस त्योहार के मूल में समाज में व्याप्त असंतुलित लैंगिक समीकरण ही हैं। पूर्व के समाज को हम आज के मूल्यों के पैमाने पर नहीं माप सकते परंतु साथ ही यह भी आवश्यक है कि हम अपने प्रतीकों और कर्मकांडों को, जिस दिशा में हम आगे बढ़ना चाहते हैं, उसके अनुरूप बदलें। आज हमें लैंगिक समानता की दरकार है। आज हमें राखी के छुपे, गहरे अर्थ को समझने की जरूरत है। उसके वर्तमान स्वरूप को प्रोत्साहन नहीं दिया जाना चाहिए।
कई हिंदुत्ववादी बार-बार यह दलील दे रहे हैं कि यह त्योहार किसी भी महिला को अपना भाई चुनने का अधिकार देता है। वह किसी भी ऐसे व्यक्ति को अपना भाई बना सकती है जो खून के रिश्ते से उसका भाई नहीं है। परंतु यहां ‘‘भाई’’ वह व्यक्ति है जो अपनी बहन की रक्षा करता है और उस पर नियंत्रण रखता है। इसके विपरीत, आज की महिलाएं यह तय करने की स्वतंत्रता चाहती हैं कि वे किस तरह का जीवन जिएं और कौन उनका जीवनसाथी हो। इस सिलसिले में हमें यह ध्यान में रखना चाहिए कि सांप्रदायिक राजनीति के उदय के साथ ही खाप पंचायतों को जोर भी बढ़ा है। अगर इस त्योहार को उसमें निहित लैंगिक पदक्रम के साथ प्रोत्साहित किया जाएगा तो इसका अर्थ होगा महिलाओं की स्वतंत्रता पर रोक लगाने की प्रवृत्ति को बढ़ावा देना।
इसके अतिरिक्त, मोदी सरकार के इस निर्णय से दो और महत्वपूर्ण प्रश्न उभरते हैं। पहला यह कि क्या कारण है कि एक हिंदू त्योहार को राष्ट्रीय त्योहार के तौर पर प्रस्तुत किया जा रहा है और दूसरा यह कि सामाजिक त्योहारों को प्रोत्साहन देने का कार्य सरकार को क्यों करना चाहिए। इन प्रश्नों का उत्तर यह है कि सरकार का एजेंडा हिंदू राष्ट्रवाद है और इसलिए वह एक हिंदू त्योहार को राष्ट्रीय त्योहार के रूप में प्रस्तुत करना चाहती है। राष्ट्रीय त्योहार केवल वही हो सकते हैं जिनका संबंध देश के स्वाधीनता संग्राम से हो-उस परिघटना से, जिसने भारतीय राष्ट्र को गढ़ा। एक बहुवादी समाज में किसी एक धर्म को राष्ट्रीय धर्म का दर्जा नहीं दिया जा सकता। दूसरे, सरकार को धार्मिक त्योहारों से दूर ही रहना चाहिए। उन्हें मनाने का काम समाज पहले से कर रहा है। ऐसा लगता है कि यह सरकार लैंगिक मुद्दों से जुड़े अपने एजेंडे के संबंध में जनता को संदेश देना चाहती है। और वह संदेश यह है कि महिलाओं को पुरूषों के अधीन रहना चाहिए। सभी संकीर्ण राष्ट्रवादी विचारधाराएं अपने एजेंडे को लागू करने के लिए धर्म या नस्ल के लेबिल का इस्तेमाल करती हैं। चाहे वे ईसाई कट्टरपंथी हों, इस्लामिक कट्टरपंथी या हिंदू कट्टरपंथी, सभी किसी न किसी बहाने, किसी न किसी तरीके से महिलाओं की समानता और स्वतंत्रता पर पहरे लगाना चाहते हैं।
जिस समाज में खाप पंचायतों का बोलबाला हो, वहां जरूरत ऐसी योजनाओं की है जिनसे महिलाओं को आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाया जा सके और लोगों की मानसिकता में इस तरह के परिवर्तन हों जिनसे वे महिलाओं और पुरूषों को समान नजर से देखें। समाज का ढांचा ऐसा होना चाहिए कि भाई-बहन आवश्यकता पड़ने पर एक दूसरे की मदद करें और अपनी-अपनी पसंद से अपनी-अपनी जिंदगियां जिएं। आरएसएस का गहरा, छुपा हुआ एजेंडा, राखी के त्योहार में बहुत अच्छे से प्रतिबिंबित होता है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में केवल पुरूषों को सदस्यता दी जाती है। संघ की महिला शाखा का नाम है राष्ट्र सेविका समिति। इसके नाम में से ‘‘स्वयं’’ शब्द गायब है। संघ की दुनिया में महिलाओं के ‘‘स्व’’ के लिए कोई स्थान नहीं है। और राखी को राष्ट्रीय स्तर पर मनाने की तैयारी, इसी सोच को मजबूती देने का प्रयास है। (मूल अंग्रेजी से हिन्दी रूपांतरण अमरीश हरदेनिया)
राम पुनियानी जी पहले आईआईटी मुम्बई में पढ़ाते थे. हमें अब समझ में आ रहा है कि उन्हें नौकरी से क्यों निकाला गया था. यह लेख भी उनकी कुंठित मानसिकता का परिचय देता है. लेख के पूर्वार्ध में वे त्यौंहार को रानी कर्णावती व हुमायूं से जोड़ते हैं, गुरुदेव के सौहार्द स्थापित करने के प्रयास से जोड़ते हैं और उत्तरार्ध में उसी त्यौंहार पर सवाल खड़ा कर देते हैं. मूर्खता की पराकाष्ठा अगर यह नहीं तो क्या होगी?
ब्लॉग का अर्थ यदि बकवास ही हो, तो संपादक मंडल हमें क्षमा करें. अब हम इस साईट पर नहीं आया करेंगे.
रंजन सर ये भी तो देखिये की अफज़ल भाई जैसे राम पुनियानी जी के लेख छाप रहे हे वैसे ही दक्षिणपंथी घोर बज़रंगी तुफैल चतुर्वेदी जी आदि के भी तो लेख दे ही रहे हे हमने उनका कड़ा विरोध किया मगर किसी के भी बायकाट की बात नहीं की ? फिर ऊपर ये लेख भी धार्मिक नहीं बल्कि सामाजिक मुद्दा अधिक बताता ही लग रहा हे जब गुस्सा ठंडा हो जाए तो एक बार फिर विचार कीजियेगा फौरी भावनाव में लिए अधिकतर फैसले सही नहीं होते हे यहाँ आपका हमेशा स्वागत हे
श्रेी सिकन्दर जेी , जरा याद किजिये आपने करेीब २ साल पहले नभाता मे हमारे ब्लोग का बहिश्कार् करने केी अपेील् लिखित रुप से अनेक बार केी थेी !
राज़ जी दिमाग पर जोर डालिये दो हि साल पहले की बात हे आपने इस्लाम के खिलाफ लिखते हुए एक गैर संसदीय शब्द प्रयोग किया था मेने इसे हटाने को कहा थ तभी से मेने आपके ब्लॉग का बायकाट किया था उससे पहले नहीं आपने लिखा था की ”पूरा इस्लाम ही ह— हे ” ये बात थी . अफज़ल भाई की साइट पर किसी ने भी गैर संसदीय शब्द लिखे हो तो दिखाइए शंकर शरण एक बहुत ही बड़े इस्लाम और मुस्लिम विरोधी लेखक हे फिर भी में खुद उनका फतवो पर लिखा जनसत्ता का लेख टाइप करके अफज़ल भाई भेज रहा हु अफज़ल भाई ने तो चतुर्वेदी जी जैसे घोर बज़रंगी लेखक के भी लेख छापे हे जब तक बदतमीजी नहीं होगी तब तक किसी के भी विचारो से हम डरते या चिढ़ते नहीं हे यही अपील रंजन सर से भी हे मगर ऐसा लगता हे की गुजरात मॉडल की पोल खुल जाने से और केजरी नितीश की जोड़ी बनता देख कर रंजन सर गुस्से और तनाव में हे जैसा की लोग रोड रेज़ में करते हे की कही का गुस्सा कही निकालते हे वैसे ही शायद सर भी ? खेर उमीद हे की गुस्सा ठंडा होने पर सर फिर से इस साइट पर दरस देंगे
रामपुनियानी जी हो सकता हे की चाहे जितनी गलत बात की हो मगर कोई बदतमीजी तो नहीं की कोई घटिया शब्द तो प्रयोग नहीं किये उन्होंने तो सामाजिक चर्चा की ना की धार्मिक हो सकता हे की उनकी बात गलत ही हो मगर लोकतंत्र में गलत बात भी कहने का अधिकार हे राम पुनियानी जी उन बज़रंगियो के सामने तो कुछ भी नहीं हे शयद लोकसभा चुनाव के लिए बनी मोदी जी की नेट प्रोपेगेंडा टीम में शामिल एक संघी ने तो ताज़महल के लिए ”मनहूस मक़बरा ” शब्द तक लिखा हे जरा तुलना कीजिये ?
आदर्नेीय श्रेी सिकन्दर जेी , हम व्यक्ति का सम्मान करते है गलत विचार धारा का नहेी ! इस्लाम हो गमेश आदेी हो हम उन्को कल्पित कहतेहै और आगे भि कहेन्गे और उनकि खिल्लि भि उदाते रहेगे ! आप जैसो कि हम समर्तहन या आलोचना सम्म्मान से करेन्गे ! पुरान हो या कुरान बाईबल् आदि हो उस्को हम मुल कि भुल कहते है और आगे भि कह्नेगे ! वैचरिक मत्भेद रखना बुरा नहि कहा जाना चाहिये !
हम आह भि करते है तो आप कार्ते है बद्नाम.
और कुरान कत्ल कि बात भि करे तो आप चह्ते हैकि उस्कि चर्चा न हो ”
ऐसा नहेी हो सक्ता है !
देखे कुरान २/५४ जिस्मे सिर्फ बच्दे कि पुजा कर्ने वालो को आपस मे हत्या कर्ने का आदेश दिया जाता है ! बच्दे कि पुजा गलत है लेकिन उन्केी हत्या करने का आदेश भेी कई गुना गलत कहा जायेगा !
देखे कुरान २/६५ जिसमे नाफर्मान कर्ने वालो को बन्दर् बनाने केी बात कहि गयि है !
उस्कि भेी निन्दा क्यो न कि जाये ! जब से कुरान का सन्देश आया है तभि से उस्कि अलोच्ना भेी हो रहेी है !
हम पहले व्यक्ति इस्के नहेी है !
कबिरजेी का वचन् याद रखिये !
“निन्दक नियरे राखिये आन्गन कुतेी चावाये ” बिन साबुन पानि के निर्मल करे ……..” आप अगत्र हम्से नाराज है तो अप्का पुरा अधिकार है कि आप हमरे ब्लोग मे न आये लेकिन दुस्रो से बहिश्कार कि बात कर्ना एक तानाशहि केी बात है ! क्योकि आप् कोइ पार्ति नहि है और सभि लोग आपके गुल्लाम भेी नहि है !
इस्के बाद भि हम अप्कि खिल्लि नहि उदायेन्गे
अव्सर मिलने पर मत्भेद जरुर पेश् करेगे १
इस दुनिया मे करिब ६ अरब केी जन् सन्ख्या इसलाम को नहि मानतेी है तो क्या वह इसकि निन्दा नहि कर सक्ति है !
अरे अरे सर ऐसा मत कीजिये इतनी ” मन्नतो दुआओ पार्थनाओ कवालियो भज़नो ” के बाद तो आपको हमने इस साइट पर खुदा से माँगा था और आप हे की लज़्ज़ा ( 2002 ) फिल्म के ससुर की तरह वार्ना हम उठ जाएंगे कर रहे हे मत कीजिये इससे सौ गुणा अधिक बकवास तो हमारी आपकी पिछली साइट पर थी ही कई बार तो वहा नाक पर रुमाल रख कर जाना पड़ता था छोड़िये सर जाने दीजिये
जब इस देश मे कम से कम् ९० % महिलाये आर्थिक और शरिरिक रुप से स्वाव्लम्बेी ह जायेन्गेी तब राखेी क त्योहार मनाने कि जरुरत नहेी पदेगि १ आज भेी कित्ने प्रतिशत भाई अप्नि बहन केी रक्शा कर्ने जाते है ! अगर ऐसा होता तो रेप कि घत्नाये क्यो होति? उस बहन का भाई बहुत मज्बुत है उस भय से अपाराध नहेी होने पाते !
कुच मज्बुत बहने भेी अप्ने कमजोर् भाई का भला भेी करतेी है !
जब समाज पित्रत्रात्मक् है तो सभि त्योहरो मे उन्केी हि मर्जि चल्ति है !
और लगभग सभेी त्योहारो केी रच्ना भेी उन्हेी ने केी है !
राम पुनियानी जी का लेख की तरह में ने कही एक लेख पड़ा था मुझे याद नहीं आ रहा है के कहा पड़ा था और किस का लेख था , जिस में लेखक ने इसी तरह का विचार जाहिर किया था . खैर जो भी हो रक्षा बंधन एक पवित्र पर्व है और इसे सभी धर्म के लोग मानते है .
लगता है लेखक को पागल पन के दौरे पडते है
अगर एक बहन भाई के कल्याण की कामना करती है और भाई बदले मे भाई जीवन भर रक्षा का वचन दे रहा है तो इसमे पितृसत्तात्मक मानसिकता कहा से आ गयी दोनो अपनी तरफ से कुछ न कुछ दे हि तो रहे है वैसे भी अपनी बिजी लाइफ से समय निकाल कर भाई बहन इस त्योहार के बहाने मिल रहे है तो इसमे बुराई क्या है
राम पुनियानी ?? अच्छा अच्छा वो राम पुनियानी साहब !! वही अजीम शख्शियत जिनहोने 27 साल तक देश के सर्वोच्च शिक्षा संस्थान यानि आई आई टी मे अपनी सेवाए देने के बाद “सांप्रदायिक सौहार्द” के मिशन को पूरा समय (फुल टाइम) देने के लिए वक़्त से पहले से स्वेच्छिक रिटायरमेंट ले लिया था और वह भी “मात्र 59 साल की उम्र मे” !!
सेकुलर भाइयो गुस्सा मत होइए एक बार हमारी बात परख जरूर लीजिये कि जन्म 1945 और स्वेच्छिक रिटायरमेंट 2004 मे तो कुल 59 साल ही हुए ना !!…. और भाईजान 2004 के बाद तो ऐसा काम किया ऐसा काम किया की सिर्फ दो वर्षो मे ही 5 लाख रुपया नकद और एक प्रशस्ति पत्र के साथ दिये जाने वाले “इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय एकीकरण पुरस्कार” से भी नवाजे गए !! अब भला ये भी कोई बताने की बात हे क्या कि यह पुरस्कार देश पर सबसे लंबे समय तक राज करने वाली राजनीतिक पार्टी यानि कॉंग्रेस कि तरफ से दिया जाता हे !!
अब इतने बड़े नामधारी इंसान ने जब कुछ लिखा हे तो उम्मीद करते हे कि इतिहास वगैरा कि जानकारी लेकर ही लिखा होगा, चूंकि हमारे द्वारा पढे इतिहास से मेच नहीं करता इसलिए यहा से भागने मे ही भलाई हेः)
शरद भाई, पुनियानी जी को ससम्मान निकाला गया था। प्रशासन ऐसे मामले त्यागपत्र लेकर ही सुलझाता है। हमें एक बार इनके विचार श्रवण का अवसर मिला था। तब समझ में आया विवेक, नैतिकता, सौजन्यता आदि का अर्थ।
एक लाइन छूट गयी थी कि रिटायरमेंट कि उम्र 60 साल तय की गयी हे ः) ः)
आज अपने उन मुसलमान दोस्तों के खाली कलाई जिनके हाथों में बचपन में राखी हुआ करती थी देख कर समझ आता है कि कभी भारत भी धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र हुआ करता था!
सब मोदी जी की कृपा हे ”मोदी हटाओ देश बचाओ ” खासकर बिहारवासियों से अपील हे
BY Rajendra Kapse, ……) भारतीय महिलाओं के ‘दमन’, ‘शोषण’ और ‘हीन’ भावनाओ का ऐतिहासिक ‘ब्राह्मणी त्यौहार’ :—->
रक्षाबंधन- अपनी सुरक्षा की मांग
करवाचौथ-अपनी सुरक्षा की मांग
सात फेरे-अपनी सुरक्षा की मांग
मंगलसूत्र-अपनी सुरक्षा की मांग
भाईदूज-अपनी सुरक्षा की मांग
कन्यादान- फ्री की चीज होना मतलब unvaluable होना।
सिंदूर- अपनी सुरक्षा की मांग एवम् विवाह की पहचान।
मतलब नारी सदैव गुलामी की जीवन को याद बनाये रखे यही है त्यौहार।
होलिका-स्त्री का दमन
सीता का अग्निपरीक्षा-स्त्री का दमन
कन्यादान-स्त्री का दमन
माता पिता की जायदाद का हक़ न मिलना- स्त्री का दमन
सती प्रथा-स्त्री का दमन
आदि आदि आदि
ये सब मनुवाद एवं धर्म ग्रन्थ और त्योहारो के कारण है।
और इन सब कुरूतियों से बाबा साहेब ने अपने दम पर अकेले लड़कर महिलाओं को आज़ादीऔर अधिकार दिलाये।
क्या यह बात भारत की महिलाओ को पता है।
इसलिये हर भारत की महिलाओ को चाहिए की वे बाबा साहेब के “हिन्दू कोड बिल” को जरूर पड़े।
Women empowerment by Dr B R Ambedkar.