भारत के न्यायालय के न्यायधीश या किसी भी जाँच एजेंसी अथवा व्यवस्था के लोग भी इंसान ही होते हैं , और यदि इंसान हैं तो निश्चित ही उनकी अपनी एक व्यक्तिगत सोच होगी , श्रृद्धा होगी , धर्म होगा और उस धर्म के प्रति समर्पण होगा , राजनैतिक पसंद होगी , पसंद के नेता होंगे तथा उन नेताओं के प्रति भी कुछ ना कुछ तो समर्पण होगा ही होगा , और यदि उनकी प्रारंभिक शिक्षा और परवरिश किसी विशेष संस्कार( जैसे संघी ) में हुई है और आगे चल कर वह न्यायधीश अथवा महत्वपूर्ण पदाधिकारी बन गए तो कैसे कोई विश्वास करे कि अमुक फैसला पूर्वाग्रह से प्रेरित नहीं होगा ?
दरअसल चिंता करने का कारण इधर आ रहे कई उदाहरण हैं, तिस्ता सीतलवाड़ को गुजरात हाईकोर्ट से अग्रिम जमानत नहीं मिलती परन्तु उन्ही आरोपों पर मुम्बई हाईकोर्ट से मिल जाती है तो क्युँ ? समझौता एक्सप्रेस विस्फोट के आरोपी आतंकवादी असीमानंद को ज़मानत दे दी जाती है और एनआइए कहती है कि उसके ज़मानत के विरोध का उसके पास कोई आधार नहीं है तो क्युँ ? उच्चतम न्यायालय बाबरी मस्जिद – श्रीराम जन्मभूमि पर “स्टेटस को” अर्थात यथा स्थिति रखने के अपने निर्णय को ही पलट देती है और मरम्मत का आदेश दे देती है तो क्युँ ? राजनैतिक समझौते और आका के सुरक्षित स्थिति में हो जाने पर गुजरात में तमाम फर्जी मुठभेड़ के आरोपी आईपीएस एक एक करके ज़मानत पा रहे हैं तो क्युँ ? , गुजरात दंगों में 90 लोगों की हत्या करने और एक गर्भवती महिला का पेट चीरकर उस नवजात शिशु को त्रीशूल की नोक पर लहरा कर हत्या करने का आरोप सिद्ध उम्रकैद सजायाफ्ता कैदी बाबू बजरंगी जब चाहे जेल से बाहर आकर घर पर शान से रहता है तो क्युँ ? आज एक चोर यदि चोरी करता पकड़ा जाए और यदि उसने अपने साथ मेरा या आपका नाम पुलिस को बता दिया तो आप जानते हैं कि पुलिस उसी हाल में हमारे घरों में से हमें टांग लेगी जिस हाल में हम होंगे , कपड़े भी पहनने नहीं देगी परन्तु बाबू बजरंगी की कैमरे पर की गई स्विकरोक्ती पर सब कान आंख कान बंद करके बैठ जाते हैं तो क्युँ ? वह स्विकार करता है कि हर हत्या के बाद वह गुजरात के गृहमंत्री को सुचित करता था और अमित शाह उसे शाबासी देते थे , उसकी यह स्विकरोक्ती तो और चिंता बढा देती है कि कैसे मुख्यमन्त्री रहते नरेन्द्र मोदी न्यायालय और न्याधीश को प्रभावित करके उसे फांसी से बचा ले गये अन्यथा उसे पाँच छः बार फांसी की सज़ा होती,फिर भी कोई संज्ञान नहीं लिया जाता तो क्युँ ? कैसे दंगों में हत्याओं के लिए उम्रकैद सजायाफ्ता माया कोडनानी जेल की बजाए अपने घर में रह रही है तो क्युँ ? एक अदालत कैसे इसी अमित शाह को गुजरात में प्रवेश पर प्रतिबंध लगा कर तड़ीपार घोषित करती है और राजनीति मजबूती मिलते ही धड़ाधड़ यही अदालतें सभी आरोपों से मुक्त कर देती हैं तो क्युँ ?
अदालतों और न्यायधीशों का उदाहरण देखना है तो देखिए कि कैसे नरोदा पाटिया दंगों की सुनवाई के लिए नियुक्त दोनों जज डर और दबाव के कारण अपने को इस मुकदमे से अलग कर लेते हैं तो क्युँ ? मुंबई दंगों में एक वर्ग के लोगों की हत्या करके सबक सिखाने की खुलेआम स्विकरोक्ती करने वाले और बाबरी मस्जिद विध्वंस की जिम्मेदारी लेने वाले आतंकवादी की गिरफ्तारी और न्यायिक प्रक्रिया की बात तो छोड़िए उस बाल ठाकरे की मृत्यु के बाद उसे तिरंगे में लपेटा जाता है तो क्युँ ? , मालेगांव विस्फोट , अजमेर दरगाह विस्फोट के आरोपियों के साथ एक प्रदेश के मुख्यमंत्री और अब के गृहमंत्री मिलने जाते हों और चिंता में डूबे हुए चित्र खिचाते हैं तो क्युँ ? , सरकार द्वारा ही गठित श्रीकृष्ण आयोग इसलिए कूड़े के ढेर में फेंक दी जाती है क्युँकि वह सच कहती है और कोई कार्रवाई नहीं होती है तो क्युँ ? हाशिमपुरा हत्याकांड में पीएसी लोगों को घरों से ले जाकर नहर के पास गोलियों से भून कर नहर के पानी में फेंक देती हैं और आरोपी वर्षों के बाद शक के आधार पर बाईज्जत बरी कर दिये जाते हैं तो क्युँ ? हत्यारे कौन थे ? 84 दंगों के आरोपियों पर तमाम गवाहों के बाद भी कोई निर्णय आना तो दूर उनको बाईज्जत बरी किया गया तो क्युँ ? हो सकता है कि उपरोक्त दिये उदाहरण सबूतों और साक्ष्यों के आधार पर लिए गए निष्पक्ष निर्णय हों परन्तु जैसे ही तस्वीर के इस तरफ देखता हूँ स्थिति बदल जाती है ।
आजादी के बाद आजतक अल्पसंख्यकों विशेषकर मुसलमानों के पक्ष में एक भी अदालती फैसले मैने तो नहीं देखा बल्कि यदि कोई विषय अदालत के समक्ष पेश हुआ तो विपरीत ही फैसला आया , ज़किया जाफरी के पति को उनके ही घर में जलाकर भून दिया गया और वह बूढ़ी अबला दर दर न्याय के लिए भटक रही है परन्तु अदालतें सुनवाई करने से मना कर दे रही हैं , देश में संसद पर हमले के आरोपी एक व्यक्ति को सबूत नहीं बल्कि परसेप्शन ( जनभावना ) के आधार पर फांसी दे दी जाती है , यह भी भारत के इतिहास का एक मात्र उदाहरण है , ऐसे ही एक व्यक्ति को 30 जुलाई के दिन ही लटकाने की किसी की ज़िद पूरी करने के लिए उच्चतम न्यायालय 18 घंटे में दनादन दो सदस्यीय फिर तीन सदस्यीय पीठ बनाकर आधी रात को सुनवाई और सुबह तक सभी अपील खारिज कर देती है तो विश्वास तो खंडित होता है क्युँकि सामान्यतः यह प्रक्रिया 2-3 महीनो में अपनाई जाती है , अपील खारिज करने वाले तीनो स्वर्ण जजों के विचारों को देख कर तो बिल्कुल ही ऐसी न्यायिक व्यवस्था से विश्वास टूटता है जब जस्टिस दवे को कहते सुनता हूँ कि मैं तानाशाह होता तो देश में भगवत गीता पढ़ना अनिवार्य कर देता , स्पष्ट हो जाएँ कि उनके भगवत गीता पढ़ाने पर आपत्ति नहीं है आपत्ति उनके तानाशाह होने की इच्छा पर है वह भी दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में तो कैसे कोई विश्वास करे न्यायपालिका पर ।
देश में व्यवस्था के दोगलेपन के इसके अतिरिक्त और भी बहुत से उदाहरण हैं, तो शक होता है ऐसी व्यवस्था और न्याय व्यवस्था पर कि एक तरफ तो मुम्बई हमलों के आरोपी लखवी को आप भारत सौपने की मांग करते हैं वहीं दूसरी तरफ समझौता एक्सप्रेस विस्फोट के आरोपियों को ज़मानत दे रहे हैं तो हमारे और पाकिस्तान की न्यायिक व्यवस्था में अंतर क्या है ? किस मुँह और अधिकार से हम लखवी और हाफिज़ सईद को भारत को सौपने की मांग करते हैं ? दरअसल इसी दोगलेपन के कारण संयुक्त राष्ट्र में हम हारते हैं और हम पाकिस्तान को क्या नंगा करें वह हमें ही नंगा कर देता है ।चीन रूस अमेरिका हमारे इसी दोगलेपन के कारण हमारे विरूद्ध वोट करते हैं और बराक ओबामा भारत आकर ऐश करते हैं और इसी दोगलेपन पर तमाचा मारकर चले जाते हैं , दरअसल संघी दीमक लग गया है हमारे देश की हर व्यवस्था में और देखिए कि यह दीमक क्या क्या चाटता है और मेरा विश्वास है कि इस दीमक का अंतिम लक्ष्य भारत है । हमें इसके उपचार की तुरंत आवश्यकता है अन्यथा देश के एक वर्ग के हृदय में इस दोगलेपन के कारण जो शंका है उसकी फसल कोई काट ले जाए इसकी संभावना घातक है ।
मे आप से सहमत हु के जिस तरह संघ से जुड़े आतंकवादी बाबू बजरंगी , असीमा नन्द , माया कोडानी अमित शाह अर सभी को जमानत मिल रही है . इस से तो सॉफ जाहिर है के संघ के आतंकवादियो के अच्छे दिन आ गये है .
अब क्या कहें, भारत पाकिस्तान जैसा महान, धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक देश तो है नहीं । यहाँ तो मुसलमानों को फाँसी पर चढ़ा दिया जाता है, वो भी कसाब, अफजल गुरू और याकुब जैसी महान और निर्दोष लोगों को । याकुब को केवल 22 सालों का वक्त दिया गया । जज लोग भी मुसलमानों के खिलाफ हैं । फिर भी पिछले 25 सालों मे सरकार केवल तीन भारतिय मुसलमानों को ही फाँसी पर लटका पाई है । लखवी और हाफिज सईद जैसे भले लोगों पर भारत के द्वारा दोष लगाना उचित नहीं है । पता नहीं कैसे अमेरिका भी आतंकवादी कहती है !
संघीयों ने पुरे तंत्र पर कब्जा किया हुआ है । वो अलग बात है कि वो इतने दिनों राज्य और केंद्र में BJP शासन रहने के बावजुद भी अयोध्या मे राम मंदिर भी नहीं बना पाए हैं । न्यायालय भी हिंदुओं के साथ है । लेकिन कश्मिरी पंडित अभी भी न्याय के लिए तरस रहे हैं । मुंबई के डोंगरी और राधा बाई चाॅल मे हिंदुओं की निर्मम हत्या करनेवाले पता नहीं कैसे हिंदु जजों ने फाँसी नहीं दी ।मुंबई बम कांड के ज्यादातर दोषि भी फाँसी से बच गए । और भी कई जगह बम ब्लास्ट हुए जिसमे हिंदु मरे, लेकिन हिंदु जज अपराधियों को फाँसी की सजा देना भुल गए । गोधरा मे हिंदुओं को जिंदा जलाने वाले भी लगता है इन कातिल जजों के चंगुल से बच गए । कुछ समय पहले मुजफ्फरनगर के पास जाउली नहर में कई हिंदुओं को काट के फेंक दिया गया था । लेकिन ये संघी जज अभी तक हत्यारों को फाँसी की सजा नहीं दे पाए हैं ।
हमें इस वेबसाईट से यही शिकायत है कि अभिव्यक्ति की आज़ादी के नाम पर कुछ लोग स्थापित निर्विवादित संस्थानों को भी विवादित बना कर भ्रमित करने का प्रयास करते हैं। इस्लाम में बुतकशी और बुतख़ानाबरबादी को सवाब माना गया है, पर जम्हूरियत, इंसाफ़ और संस्कृति को तो बख़्श दें, जनाब।
टोटल नॉनसेंस संघी बकवास धर्मवीर तेजस आदि की बातो से आप अंदाज़ा लगा सकते हे की संघ की दीक्षा कैसे इंसान की अक्ल और इंसानियत हर कर उन्हें संघी चाबी से चलने वाला रोबोट बना देती हे एक तो ये बकवास की जब भी बात भारत की हो रही हो तो बीच में पाकिस्तान का झुनझुना जरूर बजायेंगे जबकि पाकिस्तान अपनी हरकतों को ही भुगत रहा हे फिर भारत के बानी नेहरू ने तभी स्पष्ट कर दिया था की कुछ भी हो जाए भारत को पाकिस्तान नहीं बनने देंगे संघी नेहरुवाद को ही खत्म करना चाहते हे याकूब वाली फिर वही नॉनसेंस जब बता दिया हे की आखिर राजीव बेअंत सिंह के हत्यारों को फांसी क्यों नहीं हुई ये क्या 2015 की घटनाय थी इसमें भी बीस साल हो गए हे ये सच हे की राम मंदिर नहीं बना मगर बाबरी विध्वंस में भी तो सजा नहीं हुई ? आगे फिर नॉनसेंस की कश्मीरी पंडितो को न्याय नहीं मिला जबकि उन्हें फ्लेट से लेकर नौकरी तक दी जा चुकी हे उन्हें भगाने वाले लगभग सभी कश्मीरी कब्र पहुंच चुके हे गोधरा वाले सभी जेल में हे और दंगो में किसी को भी जेल फांसी होनी हो तो सबसे पहले उसे होनी चाहिए जिसे कैमरे पर कबूला था की उसने गर्भवती औरतो के पेट से ——उसके बाद ही फिर बाकियो का नम्बर आता हे जब उस शैतान को और उसकी एक मालकिन को संघियो ने जेल से निकाल लिया हे मुजफरनगर के बारे में तुम्हे पता क्या हे रोबोट धर्मवीर में मुजफरनगर का ही मूल निवासी हु इसीसे से तो ये सरकार बनी हे तो कहने सुनने को और बचा क्या ? जोला जोला बक रहे जहा पांच लोग मारे गए होंगे जबकि सेकड़ो के कातिल और उजाड़ने के दोसही बड़े नेता खुले घूम रहे हे मुजफरनगर की सी बी आई जांच हो तो जो पता चलेगा दुनिया हैरान रह जायेगी
लेखक की कम से कम ये बात जायज़ हे की आखिर क्यों मुंबई हमले तक पर भी पाकिस्तान को सयुंक्त राष्ट्र में ज़लील नहीं किया जा पाता हे ? आखिर क्यों जबकि इन हमलो में अमेरिकी नागरिक तक मारे गए थे वज़ह साफ़ हे की संघियो बज़रंगियो के कारण शायद दुनिया भारत पर भी कोई विशेष ट्रस्ट या सिम्पेथी नहीं रख पाती हे और कोई कारण नहीं दीखता हे मुस्लिम कटटरपन्तियो में और इनमे सिर्फ खून पीने का और खून चूसने का फर्क हे दूसरा की ये थोड़े कायर होते हे बस यही फर्क हे
वैसे सिकंदर भाई, आपके पूर्वाग्रह भी बहुत पुख्ता हैं. गाँधीजी को छोड़िये पर नेहरूजी को लेकर जितनी अंधभक्ति आप दिखाते हैं वह उचित नहीं. वास्तव में देश के बंटवारे, कश्मीर समस्या व रूस चीन के प्रति उनके मोह के कारण हमारी कई समस्याएँ छोटी से बड़ी हो गयीं. उनका योगदान अपनी जगह पर कमियाँ भी अपनी जगह. सुभाषचंद्र बोस के रेनकोजी मंदिर वाली कांग्रेसी कथा का झूठ हमने अपनी आँखों से देखा है और एक दिन इस झूठ का भी परदाफाश जरूर होगा. इस प्रकरण में नेहरूजी की भूमिका ठीक नहीं थी.
दूसरी बात संघियों के प्रति आपकी नफरत भी कुछ ज्यादा ही है. और आप जैसे बुद्धिजीवियों के हौवा खड़ा करने से ही विद्वेषकारक राजनीति में यह संगठन केन्द्र में आया है जो शायद सन साठ व सत्तर के दशक में खुद को हाशिये पर मान चुका था.
स्वस्थ आलोचना व स्वस्थ प्रशंसा में कोई आपत्ति नहीं, पर क्या करें हमारे यहाँ निष्पक्ष रहने, स्वस्थ तुलना करने का रिवाज ही नहीं है. कभी नेहरू जी को सुभाष, सरदार पटेल व जिन्ना के दृष्टिकोण से भी देखियेगा, तब समझ पायेंगे…
रंजन सर नेहरू आदि विषयो पर बात यहाँ कमेंट में रखी हे http://khabarkikhabar.com/archives/1056 आगे भी इस सब पर बात होती रहेगी आपको पता नहीं हे की एक समय में में नेहरू का कटटरविरोधी था खेर फिलहाल तो सबसे अहम बात हमारा एकसूत्रीय एजेंडा हे ”मोदी हटाओ देश बचाओ ” सरकार भले ही भाजपा की ही बनती हो तो बन जाए ऐसी बात नहीं हे की हम शुरू से ही मोदी या संघ के प्रति पूर्वाग्रह से ग्रस्त हो हमने तो शरू में कई पॉजिटिव कॉमेंट किये थे मगर इन्ही लोगो ने ये हालात पैदा किये
सिकंदर भाई, कभी आप नेहरू के कट्टर आलोचक थे, अब प्रशंसक हैं। सँभल कर रहियेगा, इन दिनों आप मोदी जी के कट्टर आलोचक हैं।
इसमें कोई शक नहीं हे की मोदी सरकार और मोदी मिजाज मुसलमानो के लिए ही नहीं बल्कि पुरे भारतीय उपमहादीप की आम शोषित पीड़ित जनता के लिए गंभीर खतरा बन चुकी हे सीमा पर ही देखिये बेमतलब में गोलीबारी में सेकड़ो लोग मारे जा चुके हे और ये सरकार बार बार दावे करती हे ( अपने ज़हरीले सपोटरो की तसल्ली के लिए ) की इनकी छप्पन इंच की तोंद से पाकिस्तान डर गया हे हमने सबक सीखा दिया देख लेंगे वगेरह वगेरह इसी खफ्त में सेकड़ो मासूम मारे जा चुके हे और जो तनाव दंगे पंगे हे उनसे इतर भी ये सरकार बड़े छोटे व्यापारियों की लूट में सुगमता ही लाएगी आखिर इन्ही लोगो ने तो तिस हज़ार करोड़ का खर्च उठाया था दूसरा की संघ के बड़े सपोटर भी इसी वर्ग से आते हे खून चूसना इनके खून में हे बहुत से मुस्लिम मुझसे पूछते हे की आखिर इस सरकार से पीछा कैसे छूटेगा में सबको यही कहता हु की जाकिरो ओवेसियो आज़मो से दुरी बनाओ और पूरी ताकत से नितीश कुमार केजरीवाल और वाम मोर्चे से जुड़ जाओ यही एकमात्र रास्ता हे और लालू मुलायम एंड पार्टी से भी दूर रहो सिर्फ केजरीवाल नितीश वाम
धर्मवीर जी, आप बाबू बजरंगी का यू ट्यूब पे वीडियो देख लीजिएगा. वैसे जो लोग पाकिस्तान और बांग्लादेश मे हो रहे हिंदू अत्याचारो या अपने देश मे कश्मीर मे किसी अलगाववादी नेता के बयान को सोशल मीडिया पे एक प्रोपेगेंडा के तहत फारवर्ड करते रहते हैं, वो इस मामले मे चुप रहते हैं.
बाबू बजरंगी जैसा ख़ूँख़ार आतंकवादी बीजेपी शासित राज्य मे बाहर घूम रहा है. सरकार की कृपा से.
आतंकवाद पे ज़ीरो टोलेरेंस की बात करने वाली पार्टी की हक़ीकत यह है. 4 बम ब्लास्ट के केसो मे जो संघ से जुड़े लोगो के हाथ है, उन केसो को भी इसलिए दबाया जा रहा है कि हिंदुओं और उनके धर्म के ठेकेदार बने देश को बर्बाद करने वाले संगठनो का कच्चा चिट्ठा ना खुल जाए, और कुछ मूर्ख लोग इन्हे देश-भक्तो का संगठन कह देते हैं, जबकि हक़ीकत मे ये विशुद्ध लंपट लोग हैं.
इनके एक अपरिपक्व खिलाड़ी नेता ने म्यांमार की कथित कार्यवाही के बाद कहा की हम दूसरे पड़ौसी देशो मे भी ऐसा करेंगे तो पड़ौसी देश को तो बयान देना ही था कि बर्मा और पाकिस्तान मे अंतर है. और बयान के बाद इस सरकार के करीबी चैनल्स टी आर पी के लिए दिखाते हैं की पाकिस्तान डर गया.
काश पाकिस्तान डरता, लेकिन इस सरकार ने एक भी ऐसा कदम नही उठाया, जिससे पाकिस्तान डरे या अपनी गुस्ताखियाँ कम करे. सीमा पे गोलीबारी भी होती है, घुसपैठ भी बदस्तूर जारी है. बस अंतर यह है कि चरमपंथी हिंदू संगठनो का हौसला बढ़ा है, जो अराजकता और शेखी बघारने के अलावा कोई कुछ नही करते. गुंडे, मवाली, लंपट लोग जोश से भर गये हैं. पाकिस्तान के नक्शे कदम पे चलने की तैयारी हो गयी है. वैसे भी ये हर बात पे पाकिस्तान का ही तो हवाला देते हैं.
कट्टरपंथीयों की ये आदत है कि ये लोग सरकार, न्यायालय सब पर दोषारोपन करते रहते हैं और खुद को निर्दोष और पिड़ित बताते हैं । बहुत से लोग बगैर कानुन को जाने और ये जाने के जजों ने किन तथ्यों के आधार पर फैसला लिया है, जजों को कटघरे मे खड़ा करने लगते हैं। कुछ जज अधिक सख्त हो सकते हैं, लेकिन ये कहना गलत है कि वो धर्म और जाति के आधार पर न्याय करते हैं । अगर ऐसा होता तो अभी तक कितने ही मुसलमानों को उन्होंने फाँसी की सजा सुना दी होती ।
ये कहना भी गलत है कि सरकार मुसलमानों के प्रति ज्यादा सख्त है । बहुत से कट्टर मुस्लिम खुलेआम पाकिस्तान और ISIS का झंडा लहरा रहे हैं । ओवैसी जैसे लोग खुलेआम हिंदुओं को मारने की बात करते हैं और उनके धर्म को गाली देते हैं । क्या कर लिया सरकार ने उनका ? अगर सरकार मुसलमानों के खिलाफ होती तो क्या जाहीद साहब जैसे लोग खुलेआम सरकार की आलोचना कर पाते ?
भारत का पाकिस्तान से तुलना करना तो शर्मनाक है । पाकिस्तानियों ने हजारों हिंदुओं और सिख्खों को मारा, उनके ज्यादातर मंदिर और गुरूद्वारे तोड़ दिये । क्या सजा मिली उन आतताइयों को ? बाबु बजरंगी को तो आजीवन कारावास हुआ, हाफिज सईद को क्या हुआ ? वो तो खुलेआम गजवा ए हिंद की बात करता है ।
किसी को कट्टरपंथी बोलने से पहले अपने ऊपर भी एक नज़र डाल लें की कहीं ऐसा तो नहीं की आप भी उसी श्रेणी मे आते हों. जजों पर उंगलियाँ इसलिए उठती हैं की एक जैसे मामले मे एक मुजरिम को सज़ा मिलती है तो दूसरा मुजरिम खुले आम घूम रहा होता है. अगर याक़ूब दोषी है तो बजरंगी और कोडननी ने भी तो जाने ली हैं उनको फाँसी क्यों नहीं?? राजीव गाँधी के हत्यारों को फाँसी क्यों नहीं?? ये पाकिस्तान और आइ एस का झंडा कहाँ लहराया जा रहा है आपको पता भी है??जो लोग लहरा रहे हैं आपकी प्रियसरकार उनकी गोद मे बैठी है .किस मुँह से वो सख्ती का ड्रामा रचाए गी. ओवैसी जैसी भाषा का प्रयोग करते हों तोगड़ियाओं और सिघलों और आजकल साध्वियों, साक्षियों से ज़्यादा खराब भाषा का उपयोग तो नहीं कर्ते. ज़ाहिद साहब अगर आलोचना कर पा रहे हैं तो इसमे आपकी सरकार की कोई शाबाशी नहीं है ये लोकतंत्र का कमाल है कोई तानाशाही नहिन.पकिस्तन का ज़िक्र आप जैसे लोग ही हर बात मे करते हैं .सिखों को हमारे भारत मे भी बड़ी बेरहमी से मारा गया था जिनके क़ातिलओं को भी आज तक कोई सज़ा नहीं हुई…
धर्मवीर , रंजन जी
सच्चाई से आँखे नहीं छुपाई जा सकती . में लेखक के सभी बात से इत्तफ़ाक़ नहीं रखता , मगर क्या ये सच नहीं है के मोदी सरकार में सभी गुजरात दंगे के जितने अपराधी है छूट रहे है . माया कोडानी जिन पर ५० से अधिक लोगो को मारने का इल्जाम है . बाबू बजरंगी का पूरा वीडियो दुनिआ ने देखा है .तीस्ता को इस लिए परेशान किया जा रहा है के मोदी के खिलाफ उन्हों ने आवाज उठाई .तीस्ता को जमानत मिली है उस जज का फैसला पद लीजिये . अमित शाह को जिस जाज ने क्लीअन चिट दी है आज वह जज गवर्नर बना हुआ है .
में मानता हु के सभी जज भ्रष्ट नहीं हुए है मगर मोदी के राज्य में न्यायपालिका पे आंच आयी है . आप सोचते है के मुस्लिम ने लिखा है इस लिए विरोध किया जाना चाहिय —- गलत है . इतनी हिम्मत होनी चाहिए के जो गलत है — गलत है . मेहरबानी कर भक्त न बने — सच कहे —
रमेश जी ये इस साइट का सौभाग्य ही हे की उसे आप जैसे निस्पक्ष पाठक मिल चुके हे शुक्रिया
रमेश जी, यदि आप क़ानूनी प्रक्रिया जानते हों तो यह संभव है कि आप किसी भी मुक़दमे में स्वतंत्र पक्ष के रूप में पैरवी कर सकते हैं या PIL के माध्यम से ऊपरी अदालत में चुनौती दे सकते हैं पर यहाँ लिखने वालों में कोई यह करता नहीं। सरकारी वक़ील के कमज़ोर होने से न्याय व्यवस्था भ्रष्ट नहीं हो जाती या सरकार के दबाव डालने से न्याय के दरवाज़े बंद हो जाते हैं। जेसिका लाल मामले में सरकारी वक़ील ने तो हाथ डाल ही दिये थे, पर फिर भी सज़ा हुई है, वो भी कांग्रेसी नेता के बेटे को, सत्ता में रहने के बाद भी। डा. नूपुर व राजेश तलवार आरुषि केस में अंदर हैं, पानी की तरह पैसा बहाकर भी। हमें उनसे सहानुभूति है, पर क़त्ल की सज़ा मिल रही है और मिलेगी।
तो अगर लगता है कुछ ग़लत हो रहा है तो न्यायपालिका में सही करने के स्थापित तरीके हैं, इसीलिये सत्रह मुक़दमे लड़ने व सारे दाँव पेच देखने के बाद भी हमारी आस्था न्यायपालिका में इसीलिये बनी हुई है।
r मालेगांव ब्लास्ट की सरकारी वकील रोहिणी सालियन ने डेढ महीने पहले कहा था कि नई सरकार आने के बाद उन पर ‘नरमी’ बरतने का दबाव डाला जा रहा है। यह दबाव एनआईए की तरफ से डाला जा रहा है। दो दिन पहले असीमानंद को जमानत दे दी गई, जमानत के खिलाफ एनआईए ने हाईकोर्ट जाने इन्कार कर दिया। टीवी चैनल पर पैनल डिस्कशन तो दूर कहीं किसी का खून तक नहीं खौला। आतंकवाद को रात दिन पानी पी कर कौसने वाले असीमानंद की जमानत और एनआईए द्वारा नरम रूख अख्तियार करने पर खामोश हैं। अब शायद आतंकवाद समस्या नहीं रहा क्योंकि असली ‘आतंकवादी’ को फांसी पर झुला दिया गया है बाकी जो असीमानंद जैसे हैं वे ‘हिदुत्तव राष्ट्रवादी’ हैं। एक को फांसी एक को जमानत, एक की निंदा एक की वकालत, एक को ताज एक को जलालत। अपराधियों के प्रति धार्मिक आधार पर होने वाला यह नरम और सख्त रूख किसी भी देश के लिये घातक है और भारत जैसे विविधताओं वाले देश के लिये तो और भी ज्यादा घातक है।
लश्कर भी तुम्हारा है सरदार भी तुम्हारा है। तुम झूठ को सच लिख दो अख़बार भी तुम्हारा है। खून ए मजलूम जियादा नही बहने वाला, जुल्म का दौर बहोत दिन नहीं रहने वाला। इन अंधेरो का जिगर चीर के नूर आएगा,, तुम हो फिरऔन तो मूसा भी जरूर आएगा
मालेगांव ब्लास्ट की सरकारी वकील रोहिणी सालियन ने डेढ महीने पहले कहा था कि नई सरकार आने के बाद उन पर ‘नरमी’ बरतने का दबाव डाला जा रहा है। यह दबाव एनआईए की तरफ से डाला जा रहा है। दो दिन पहले असीमानंद को जमानत दे दी गई, जमानत के खिलाफ एनआईए ने हाईकोर्ट जाने इन्कार कर दिया। टीवी चैनल पर पैनल डिस्कशन तो दूर कहीं किसी का खून तक नहीं खौला। आतंकवाद को रात दिन पानी पी कर कौसने वाले असीमानंद की जमानत और एनआईए द्वारा नरम रूख अख्तियार करने पर खामोश हैं। अब शायद आतंकवाद समस्या नहीं रहा क्योंकि असली ‘आतंकवादी’ को फांसी पर झुला दिया गया है बाकी जो असीमानंद जैसे हैं वे ‘हिदुत्तव राष्ट्रवादी’ हैं। एक को फांसी एक को जमानत, एक की निंदा एक की वकालत, एक को ताज एक को जलालत। अपराधियों के प्रति धार्मिक आधार पर होने वाला यह नरम और सख्त रूख किसी भी देश के लिये घातक है और भारत जैसे विविधताओं वाले देश के लिये तो और भी ज्यादा घातक है।( wasim akram tyagi )
हिंदु कट्टरपंथियों ने भी अगर किसी निर्दोष की जान ली है तो उन्हें भी कड़ी से कड़ी सजा मिलनी चाहिए । मैने कभी बाबु बजरंगी को निर्दोष नहीं कहा । लेकिन ऐसा भी नहीं है कि सिर्फ हिंदु दंगाई ही मौत की सजा से बच गए ।
मैं तो केवल ये कह रहा हुँ कि भारतिय न्यायपालिका को धर्म के आधार पर बदनाम करना सही नहीं है । भारत का पाकिस्तान से तुलना तो लेखक ही कर रहे हैं ।
सिकंदर साहब के जोली नहर की घटना को कम कर के बता देने से या कश्मिरी पंडितों का दर्द को कम करके बता देने से पिड़ितों का दर्द कम नहीं हो जाएगा । उन पंडितों से पुछिए जिन्होंने अपने परिवार के लोग और घर को खोया है। हिंसा चाहे मुसलमानों के खिलाफ हुई हो या हिंदुओं के, सर्वथा नींदनीय है ।
कुछ लोग मेरे लिए बार- बार संघी संघी की रट लगाए हुए हैं। भाई साहब, ना तो मैं संघ का सदस्य हुँ और ना ही कभी उनके किसी कार्यक्रम में गया हुँ ।
धर्मवीर और रंजन जी
में ये नहीं कह रहा है के संघी सोच है . असल में जब से मोदी सरकार आई है और न्यायपालिका के फैसले बहुत चौंकाने वाले आ रहे है , अब देखिये भग्न के रेपिस्ट भी बरी हो गए है . गुजरात के जितने पुलिस अफसर है इन को ६ महीने के अंदर सब को जमानत मिल गयी . कुछ तो गड़बड़ है . में तो भाजपा सुर न्यायपालिका से विनती करू ग के न्यायपालिका को भ्रष्ट और संप्रदायक न बनया क्यों के यही एक संस्था बची है जिस पर सब का विश्वाश है बाकी सभी संस्था भ्रष्ट हो चुकी है .
क्यों नहीं आप PIL के माध्यम से ज़मानत को चुनौती देते हैं, दंगों में पीड़ित परिवार भी चुनौती दे सकते हैं, सलमान खान केस में विश्नोई लोगों ने ज़मानत रुकवाई थी। बाद में चूँकि किसी व्यक्ति को ख़तरा नहीं पाया गया अत: ज़मानत मिल गयी। हाल के सलमान खान के मामले में चाहते तो कई लोग चुनौती दे सकते थे, पर “हमें क्या” वाली सोच ने रोक दिया। हाँ, बाद में यही लोग न्याय व्यवस्था को मुस्तैदी से कोसते हैं।
वे लोग कानूनी प्रक्रिया के तहत अपराध सिद्ध सजा पाये है। कानूनकी व्यवस्था संवैधानिक
है।
उस पर प्रश्नचिन्ह नही लगाया जा सकता।उस पर गलत प्रतिक्रिया नही व्यक्त की जानी चाहिये।
बिश्व मे भारत की न्यायपालिका ने मृत्यु दण्ड की पूरी प्रक्रिया पूरी होने के बाद भी पीड़ित पक्ष की सुनवाई रात तीन बजे सर्वोच्चन्यायलय ने कर कर न्याय देने की अनूठी मिशाल पेश कीहै।
भारत जैसी संवेदन शील न्याय व्यवस्था दुनिया मे कही भी नही है।
भाई मेरे चश्मा बदल कर देखो । ऐसा कुछ भी नही है। राष्ट्रवादी मुस्लमानो के लिये इस देश से बेहतर कोई हो ही नही सकता।
जरूरत है अपनी साम्प्रदायिक सोच बदलने की।
चलो जी शटर डाउन करो और निकल लो सब लोग जस्टिस चौधरी यानी रंजन सर ने अपने ऐतिहासिक फैसले में साफ़ कर दिया हे इन मुद्दो पर बोलने लिखने का हक़ उसी को हे जो पहले पी आई एल डाले
259 बेगुनाहो के कत्ल और करीब 700 लोगो को घायल करने की साजिश रचने वाले याकूब को अगर बाइज़्ज़त बरी कर दिया जाता तो यकीनन जाहिद साहब, वाहिद रज़ा साहब और डा0 मुज़फ्फर साहा का न्यायपालिका मे यकीन पुख्ता हो जाता !!…….
दंगे और बेगुनाहो की मौत के आरोपियो को हिन्दू-मुसलमान के तराजू मे तौलने वाले बुद्धिमानो इतना अवश्य याद रखना कि अदालते आरोपी को नही बल्कि गुनाहगार को सज़ा देती है क्योकि आरोपी तो किसी को भी बनाया जा सकता है मगर आरोपी से गुनाहगार साबित होने के लिये सुबूत चाहिये होते है जो शायद नहेी मिले होन्गे …अगर मिल जाते तो सजा क्यो नहेी मिलतेी ??
माया कोड़नानी हो, मुन्ना बजरंगी हो, टाइगर मेमन हो या दाउद इब्राहीम हो…अगर इनके खिलाफ सुबूत है तो सामने लाकर इनके खिलाफ मुकदमे की पैरवी कर रहे वकीलो को दे दिये जाये आपस मे क्यो हिन्दू-मुस्लिम का बदबूदार तड़का लगा रहे हो ?
मैं ने याक़ूब के बाइज़्ज़त बरी हो जाने की कभी वकालत नहीं की. ये आपके मन का फितूर है. जैसे याक़ूब गुनहगार था वैसे ही कुछ लोग और भी गुनहगार थे (हैं) क़ानून उनको क्यों नहीं फाँसी देता?? हद तो तब हो जाती है जब आतंकवादियों की फाँसी के विरोध मे पंजाब और तमिलनाडु की सरकारें खड़ी हो जाती हैं तब आप जैसे बुद्धिजीवी चैन की नींद सो जाते हैं और जैसे ही याक़ूब का मामला सामने आता है भक्तों (अंधभक्तों) की राष्ट्र भावना एक दम से जाग उठती है. वो धड़ाधड़ देशभक्ति और देशद्रोह के सेरटिफिकट बाँटने लग जाते हैं ( जैसे ये देश उनके बाप का हो). कुतर्क कितने भी आप कर लें लेकिन सच यही है की हिंदू मुस्लिम सब से पहले आपके ही दिमाग़ मे घुसता है. मैं ने एक व्यवस्था पर सवाल उठाए आप आस्तीन चढ़ा कर कूद पड़े और मामले को सांप्रदायिकता से जोड़ दिया. रहा सवाल सुबूत का तो बजरंगी का वीडियो क्या सुबूत नहीं है?? कोडननी के खिलाफ क्या सुबूत नहीं थे ?? शहीद हेमंत करकरे ने प्रगया, असीमानद , पुरोहित, के खिलाफ कितने सुबूत दिए थे क्या हुआ उनका ??असीमनंद को ज़मानत मिल गयी. रोहिणी सालियन का बयान क्या सुबूत नहीं है??कितने सुबूत चाहिए आप को ??याक़ूब से पहले मुंबई मे हज़ारों का क़त्ल करने की साज़िश करने वालों का क्या हुआ?? श्री कृष्णा कोमिशन ने सुबूत तो दिए थे उनका?? इतने सारे सुबूत अगर आपको नहीं दिखते तो इस से यही साबित होता है की हिंदू मुस्लिम आपकी नस नस मे भरा है.
Aapko khud ke bare me kaanun se upar samajhne ki galatfahmi ki la-ilaj bimari ki vajah ya majburi?? Yakub ka gunah sabit hua aur 22 saalo tak mukadma chala. saza mili baat khatm….isko kyo nahi mili usko kyo nahi mili ke kutark aap do aur kutark ka iljaam ham par 🙂 kya masumiyat he:). ….jab sare subut aapke pas he to chaati pitne ki bajaay khud aage aakar baakiyo ko saza dilvaane ki disha me kaam kyo nahi karte?
डा0 मुज़फ्फर साहब के लिये मेसेज इंग्लीश मे टाइप हो गया था जिसके लिये खेद है दोबारा हिन्दी मे लिख रहे है ………
आपको खुद के बारे मे कानून से उपर समझने की गलतफहमी की ला-इलाज बीमारी की वजह या मजबूरी?? याकूब का गुनाह साबित हुआ और 22 सालो तक मुकदमा चला. सज़ा मिली बात खत्म….इसको क्यो नही मिली उसको क्यो नही मिली के कुतर्क आप दो और कुतर्क का इल्जाम हम पर 🙂 क्या मासूमियत है:). ….जब सारे सुबूत आपके पस है तो छाती पीटने की बजाय खुद आगे आकर बाकियो को सज़ा दिलवाने की दिशा मे काम क्यो नही करते?
मुजफ्फर साहब, आप तो ऐसी बात कर रहे हैं जैसे यहाँ हर रोज मुसलमानों को फाँसी पर चढ़ाया जा रहा हो । एक याकुब को क्या फाँसी हो गई, लगता है कि भुचाल आ गया हो । कितने मुस्लिम दंगाई और हत्यारों को फाँसी हो गई ? अगर न्यायपालिका पुर्वाग्रह से ग्रस्त होती तो याकुब को 22 साल का वक्त क्यों दिया जाता ?
आप साक्षी और साध्वी आदि की बात कर रहे हैं । मैने कभी इनके तल्ख बयानों का समर्थन नहीं किया । लेकिन साहब, दुसरी तरफ भी जहर उगलने वाले भी ज्यादा ही हैं, कम नहीं । ओवैसी, जाकिर नाईक और ऐसे ही कई और लोग खुलेआम हिंदु धर्म की बुराई कर रहे हैं । फेसबुक आदि सोसल साईट्स भी ऐसे लोगों के जहरीले बयानों से भरा पड़ा है । कमियाँ दोनो तरफ हैं । केवल एक दुसरे पर दोष लगाने से कुछ नहीं होगा ।
पाकिस्तान का झंडा भारत मे कोई पहली बार नहीं लहराया गया है । कहने को तो लोकतंत्र पाकिस्तान मे भी है लेकिन क्या किसी की मजाल है कि वो फौजी हुकुमत या इस्लाम के खिलाफ कुछ बोलेगा ? गैरमुस्लिम तो ये सपने मे भी नहीं सोच सकते । कुछ लोग ऐसी बात कर रहे हैं मानो भारत हिंदु तालिबान बन गया हो ।
रमेश जी, बीजेपी कोई पहली बार सत्ता मे नहीं आई है । कई राज्यों मे तो इसने 10 साल से भी अधिक समय तक शासन कर लिया है । हर राजनीतिक दल एक दुसरे पर सांप्रदायिक राजनीति करने का आरोप लगाती है ।कुछ नेताओं ने बाटला हाउस मे मारे गए आतंकियों पर भी राजनीति की । हमें खुद के विवेक से देखना होगा कि कौन कहाँ गलत है । जहाँ जो गलत है वहाँ उसकी आलोचना होनी चाहिए ।
बिहार भागलपुर दन्गो मे सेकुलर कान्ग्रेश का हाथ १९८४ सिख कतलेआम मे कान्गेश का हाथ जौलि नहर और गोधरा त्रेन मे मुस्लिम कततरपन्थियो का हाथ फिर भि सारा दोश हिन्दुओ का
वाह रे वाह अन्ध सेकुलरो तुम फिर भुल जाते हो कि सन्घि कततरवाद बदाने मे सिर्फ और सिर्फ तुमहारा हाथ
आतन्कि को मुसलमान और शहिद बताने वालो से और क्या आशा कि जा सकति है????????????
NYAY PALIKA BHI NETAO KE KAHE PE CHALNE LAGI AGAR. JO WAQEEL AMIT SHAH KA CASE LADA USE SUPREME COURT KA JUDGE BANAYA JANE LAGA. BANA YA NAHI PATA NAHI KITNE AAROP LAGE MODI AUR AMIT SHAH PE DONO BAHAR HAIN. UP ME SAMAJWADI GUNDO NE KIS TARHA IPS AMITABH THAKUR KO FASA KE SUSPEND KAR DIYA. KAHA HAI NYAY PALIKA. ANGREZO KE SAMAY GUNDE APNI AAUKAT ME RAHTE THE AAJ IMANDAR LOGO KO MARWAYA JA RAHA HAI.
जिसको भी यदि ऐसा लगता है तो अपने औलादोँ की अच्छी पढ़ाई लिखाई करवाकर LLB,LLM कर अदालतो मेँ जज और वकील बनने के लिए ही प्रेरित किया जाय अपनी औलादोँ को । इसके लिए सबसे पहली बात कि कम बच्चे पैदा करने की होड़ हो ताकि कम आय मेँ भी अच्छी तरीके से पढ़ा लिखाकर जज व वकील बनाने का उदेश्य पूरा हो सकेँ।
” खुदी को कर बुलन्द इतना कि / हर तकदीर बनाने से पहले/ खुदा बन्दे से ये पूछे / बता! तेरी रजा क्या है?”