प्रस्तुति: फरहाना ताज (मधु धामा)
1. रामभक्त हनुमान को बंदर समझकर पूजना, जबकि वह वन में रहने वाला वानर था यानी उनके वंशज बनर्जी आज भी अपने को हनुमान के वंशज मानते हैं और अमेरिका में एक आदिवासी जाति मकरध्वज की संतान अपने को आज भी मानती है, हनुमानजी विवाहित थे, उनके ससुर का नाम सूर्यदेव था। पत्नी के साथ हनुमान की पूजा दक्षिण भारत में होती है और कई मंदिरों में उनकी पत्नी की मूर्तियां भी हैं। वे वास्तव में राजदूत थे, जिसके यानी राजदूतों के पीछे लगे कपड़े को टेल कहने की परंपरा ब्रिटिश काल तक थी।
२. योगी शिवजी को नशेडी बनाकर पूजना, उसके नाम पर भांग पीना, शिवलिंग पर जल चढ़ाने में मुक्ति मानना, शिवलिंग को न्यूक्लियर रियक्टर का प्रतीक बताना, जबकि भगवान शिव महान योगी थे और योगी नशे से हमेशा दूर रहता है। उन्हें असाध्य सिद्धियां प्राप्त थी, लेकिन एक ओंकार का स्मरण वे भी करते थे।
३-गणेश को हाईब्रिड (आधा इंसान-आधा हाथी) बनाकर पूजना, जबकि गणेश जी घ्राण शक्ति पाने वाले पहले इंसान थे यानी नाक से सूंघने की शक्ति में वे पारंगत थे और कोसों दूर से आ रही हवा को सूंघकर बता देते थे कि अमुक जगह क्या हो सकता है। घ्राण शक्ति से पहले लोग भूमि में जल एवं खनिज की पता भी लगाया करते थे और तेलंगाना के ग्रामों में यह परंपरा अभी है, ऐसे लोगों को गणपत आज भी कहा जाता है।
४-एक मुस्लिम जिहादी फकीर को अपना ईश मानकर पूजना, मन्नत मनवाने के लिये दरगाहों पर चादर चढ़ाना, जबकि साई बाबा का मेरे पड़दादा से गहरा संबंध रहा है और हमारे पारिवारिक दस्तावेज के अनुसार साईं बाबा गाय का मांस खाते थे और इस्लाम के प्रचारक थे।
५-योगी कृष्ण को भोगी कष्ण बनाकर पूजना व उसके नाम पर रासलीला करना, उनकी पत्नी रुक्मिणी को छोड राधा की पूजा करना, महाभारत में राधा को कृष्ण की मामी बताया गया है।
६-वेदों के मार्ग पर न चल कर पुराणों की काल्पनिक व अश्लील बातों पर चलना, पुराण अपने आप में आज शुद्ध नहीं उनमें बहुत मिलावट है, अवैज्ञानिक बातें हैं जबकि वेदों में मिलावट कभी भी संभव नहीं, क्योंकि एक कांड और उनमें संग्रहित मंत्र इसी प्रकार एक दूसरे से संबद्ध हैं, जैसे सोने की चेन होती है, एक के तोड़ने या मिलावट करने से चेन का स्वरूप बिगड़ जाएगा। लेकिन ऐसा संभव ही नहीं है। वे शुद्ध हैं और परमात्मा की वाणी हैं।
7. धर्म निरपेक्षता के नाम पर सत्य सनातन वैदिक धर्म का त्याग करना और दुष्ट लोगों को देश में शरण देने पर शासन का विरोध न करना।
8- काली मैय्या को खून की प्यासी बनाकर पूजना, देवियों को प्रसन्न करने के लिये हर साल लाखों बकरों भैंसों की बलि देना। नेपाल व कलकत्ता एवं तेलंगाना में सबसे ज्यादा बलि दी जाती है।
9. यज्ञ व योग को छोड़कर मुस्लिमों की नकल मारकर धूप-दीपक से ही काम चला लेना…जबकि यज्ञ तो पृथ्वी के गर्भ में सृष्टि के आदिकाल से होता आ रहा है।
10. जादू टोना…भूतप्रेत, ओपरी परायी, श्राद्ध आदि कुप्रथाओं को धर्म व आस्था का अंग बनाकर दूसरे मत वालों को मजाक उडाने का अवसर देना, जबकि वेद कहते हैं कि मनुष्य मरने के बाद दोबारा जन्म ले लेता है या उस आत्मा को मोक्ष मिल जाता है, फिर श्राद्ध क्यों….भूत-प्रेत क्यों…आपकी बात ही माने कि इन्हें दंड के कारण मोक्ष नहीं मिलता इसलिए भूत बन जाते हैं तो क्या इन भूतों में इतनी शक्ति आ जाती है कि ये ईश्वर के बनाए इंसान से भी शक्तिशाली हो जाते हैं?
फरहाना ताज का लेख में ने इस लिए पेश किया क्यों के उन का कहना है के उन्हों ने घर वापसी कर फिर से हिन्दू धर्म ममे आ गयी है अब उन का नाम मधु धामा है और इन्हो ने दो किताबे भी लिखी है . इन का मन्ना है के हिन्दू धर्म को वेद की तरफ लौट आना चाहिए —–
जैसा अफ़ज़ल साहब लिख रहे है फरहना ताज के बारे मे , क्या सच्चाई है क्या मालूम —- फरहना ताज नाम बदल कर या धर्म बद्ल कर क्या करना चाहती है ——
फरहाना जी के सभी विचारों से तो सहमत नही हुआ जा सकता है लेकिन ये बात तो सत्य ही है कि हिंदु धर्म मे बाद मे कई कहानियाँ जोड़ दी गई हैं जो सत्य नहीं हैं । लोग कई बार कुछ ढोंगी बाबाओं के चक्कर मे भी पड़े हैं । लेकिन ये भी सत्य है कि सनातन धर्म मे सत्य को स्वयं खोजने और अपने विचार को रखने की स्वतंत्रता है । ये एक बंद बक्से जैसा धर्म नहीं है । लोगों ने बाद के दिनों मे आई कई कुरीतीयों का त्याग भी किया है ।
जरा मुसल्मनोू केी भुल भेी बता दो
सब्से पहले अप्नेी गल्तिया समज्हनेी चाहिये , वहेी लेखिका जेी कर रहेी है !
धीरे धीरे हिन्दू धर्म के कई कुरीतियों को समाप्त किया जा चूका है…जैसे सती प्रथा, गाढ़ी माई मंदिर में दी जाने वाली पर रोक, और बहुत कुछ प्रगति पर है जैसे उंच-नीच का भेद-भाव और दलितों पर अत्याचार पर अंकुश…ये सभी परिणाम शिक्षा के बढ़ोतरी से हुआ है !
यहाँ तो कुछ बिसेष धर्म के लोग पढ़ लिखकर भी आतंकवादी बनने में अपने आपको व्यक्ति विशेस समझते है ! जैसे.. मेहँदी हसन
To janab bablu ji ye Ram pal , asharam, konse madarse me taleem hasil kiye h
विषय बहुत गंभीर है. प्लीज़ दूसरे धर्म की गलतियां निकाल कर सिर्फ उसी विषय पर चर्चा करें की जिस विषय पर ये लेख है. अन्धविश्वास और दोष (कमियां) हर धर्म में है. कोई भी धर्म निर्दोस हो, ऐसा है ही नहीं. पता नहीं की ये दोष शुरू से है या बाद में मिलाया गया है.
Ha sai baba bakra halal karte the mulsalmaan the sai charit padne k baad pata chala
आधा अधुरा ग्यान पाकर ईन्सान को किसी भी विषय पर अपना मत जाहीर नही करना चाहीये. मतलब जो बात आप समझ नही पाये या आधे स्वरुप मे समझे ईसका या मतलब नही है कि वो किसी दुसरे ने समझी नही हो.
कोई भी कहानीया बाद मे जोडी नही गयी है. हिंदु किसी मंच पर खडा होकर दुनीया को नही कह रहा है कि ईस धर्म मे आस्था रखो. या जो पुराण कथाये हिंदु धर्म मे सुनाई गयी है ऊन पर विश्वास करो. आपको विश्वास करना है करो नही करना है मत करो. पुराण कथाए वेदो जितनी ही महत्व पुर्ण है. आप को कोई नही कह रहा है कि इन कथाओ मे आस्था रखो. ये ऐसा ही है और ऐसा ही रहेगा.
तो शौकसे आप को इसपर जो टिप्पणी करनी है करो. आपके हिंदु धर्म को भ्रामक कहकर ठुकराने मे; या हिंदु धर्म को महानता का certificate देने मे; मेरे जैसे व्यक्ती की मेरे धर्म मे आस्था थोडी भी कम नही होने वाली है.
मै सिर्फ इस विषय पर इतना ही कहना चाहुंगा कि आप को कहा आस्था रखनी है आप सिर्फ वही तै करो. बाकियो ने जहा आस्था रखी है ये ऊनका निजी मामला है. ऊनकी आस्था को आपके तराजु मे मत तोलो. ये बाते आपके आधीकार क्षेत्र मे नही आती है. घर वापसी ऐसा कुछ नही है. हम हमारे घर मे है और आप आपके घर मे हो.