बनारस हिंदू मुस्लिम एकता की एक अज़ीमह मिसाल रहा है ।पर जैसे जैसे यूपी का चुनाव नज़दीक आता जा रहा है यहाँ के बहाने पूर्वाञ्चल का महोल धधकाने का प्रयास भी हो रहा है । इस बीच साम्प्रदायिकता की आग भड़काने की कोशिशें की जा रही हैं । मामला ज्ञानवापी मस्जिद का है …!!
ज्ञानवापी मस्जिद यानी आलमगीरी मस्जिद के बारे मे आरएसएस अलगाववादियों द्वारा ये अफवाह उड़ाई जा रही है कि इस मस्जिद को मुगल बादशाह औरंगज़ेब ने विश्वनाथ मन्दिर ध्वस्त कर के बनवाया था .। यह विडम्बना नहीं तो क्या ? सच्च कौन नहीं जनता ???,
ये सच है कि औरंगज़ेब ने विश्वनाथ मन्दिर को ध्वस्त करने का आदेश दिया था पर उसका कारण था !!!!
उस मन्दिर के प्रबंधक द्वारा देवता की मूर्ति के पीछे एक हिंदू रानी का बलात्कार करना,। जिसके कारण मन्दिर को अपवित्र मानते हुए बादशाह ने देवता की मूर्ति को किसी अन्य मन्दिर मे स्थानांतरित करने और मन्दिर को ढहा देने का आदेश दिया …. ये तथ्य दस्तावेजों के आधार पर डाक्टर पट्टाभि सीता रमैया ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक “द फेदर्स एण्ड द स्टोन्स” मे सिद्ध किया है …। अब कितनों ने पढ़ा है ? कितने तो नाम भी नहीं जानते होंगे । अब आइये इसकी विवेचना करते हैं …………….
मेरे पास ये बात मानने का कोई कारण नहीं है कि इतिहास के सारे धर्म विद्रोही मुस्लिम ही क्यों बताये जाते हैं, और अन्य धर्म वालों को पाप रहित किस कारण समझ लिया जाता है ?? अब जब किसी को मारना है तो उसको खूब बदनाम कर दो और फिर हत्या !!!! हररे ना फिटकिरी रंग चोखा ॥ जबकि इस्लामी शरीयत मे युद्ध के समय भी शत्रु पक्ष के स्त्रियों, बच्चों व बूढ़े लोगों, सन्यासियों, खेत खलिहान, फलदार पेड़ों, घरों, पानी के स्रोतों, पालतू जानवरों आदि को जलाने या काटने मारने आदि किसी भी प्रकार की हानि पहुंचाने की सख्ती से मनाही की गई है। (इस्लाम के पहले खलीफा हजरत अबू बक्र रज़ि. के मुस्लिम सेनापतियों को दिए निर्देशों के आधार पर )।
वहीं वेद निन्दक को चीर, फाड़, काट डालने व जला कर भस्म कर डालने की शिक्षा वेद मे दी गई है, महिषासुर वध , रावण वध , शंबुक वध , हिरण्य कश्यप वध बौद्धों और दलितों का नरसंहार !!!!! तो फिर ये विश्वास कैसे कर लिया जाता है कि ऐसा धार्मिक निर्देश होने के बावजूद हिन्दुओं ने तो नालंदा को नष्ट नहीं किया जो वेद निन्दक बौद्ध लोगों की वेद निन्दक शिक्षा का केन्द्र था,।
लेकिन इस्लाम मे धार्मिक निषेध के बावजूद मुस्लिमों ने उसे जला डाला ?? ये क्या है ? उसी कचरा मानसिकता का ध्योतक है है । वाराणसी का यह विवाद । सोचने की बात है कि जिस स्थान को बादशाह ने मन्दिर के भी रहने के लिए अपवित्र माना था, भला उसी स्थान को मस्जिद बनाने के लिए वो कैसे पवित्र मान लेते ??
कुछ नासमझ लोग ये तर्क देते हैं कि ये मस्जिद, विश्वनाथ मन्दिर के परिसर मे बनी है और मन्दिर मे बनी नन्दी की प्रतिमा का मुंह मस्जिद की ओर है जबकि नन्दी का मुंह सदैव भगवान की तरफ होता है … दोनों बातों से सिद्ध होता है कि मस्जिद की जगह भी पहले एक मन्दिर था ।. इतिहास की कम जानकारी रखने के कारण ऐसे लोग खुद भी भ्रमित हो रहे हैं, और दूसरे लोगों को भी भ्रमित कर रहे हैं .। क्योंकि नन्दी की प्रतिमा और मस्जिद के बराबर मे विश्वनाथ मन्दिर का निर्माण, मस्जिद के निर्माण के लगभग सौ वर्ष बाद 1780 मे करवाया गया था ।वास्तव मे जिस समय बनारस की आलमगीरी मस्जिद बनाई गई थी, तब वहाँ कोई मन्दिर नहीं था…. मस्जिद के पास एक कुवां था । मुगल अधिपत्य से निकल कर काशी अवध के नवाब के अधिकार मे आई तो मीर रुस्तम अली ने यहाँ कई महत्वपूर्ण घाटों का निर्माण कराया फिर उसके बाद बनारस पर हिन्दू राजाओं राजा मनसा राम, उनके बाद राजा बलवन्त सिंह और उनके बाद राजा चेत सिंह का शासन रहा .. लेकिन किसी ने भी आलमगीरी मस्जिद या उसके समीप के कुवे पर मन्दिर बनाने का नहीं सोचा …… कारण यही था कि उस स्थान पर पहले भी कोई मन्दिर नहीं था ( यदि 1770 से पहले भी हिन्दुओं की ऐसी आस्था होती कि मस्जिद के पास वाले कुवें मे भगवान समा गए हैं, तो उस बीच तीन-तीन हिन्दू शासकों का बनारस पर राज रहा ….मन्दिर का निर्माण न सही कम से कम कुवें पर तो कोई निर्माण कराते )
परंतु जैसा हमेशा होता है 1770 मे काशी पर ईस्ट इण्डिया कम्पनी का अधिकार हो गया …. इसके बाद ही ये अफवाहे उड़ाई गयीं कि औरन्गज़ेब ने विश्वनाथ मन्दिर तुड़वाकर उसपर ही आलमगीरी मस्जिद बनवाई थी और मन्दिर मे जो शिव लिंग स्थित था वो मन्दिर गिराए जाने से पूर्व स्वयं ही अंर्तध्यान होकर समीप के कुवें समा गया था…..। .
हालांकि शिव लिंग के गायब होकर कुवें मे समा जाने की बात न तो तर्क पर खरी उतरती थी, और न ही आलमगीरी मस्जिद के किसी मन्दिर पर बने होने की बात किसी ठोस तथ्य पर आधारित थी…. लेकिन भोली भाली हिन्दू जनता ने इन बातों को सच मान लिया इन्दौर की मराठा महारानी अहिल्या बाई होल्कर ने कुवें मे भगवान के स्थित होने की आस्था के कारण सन् 1780 में आलमगीरी मस्जिद के पास कुवे से थोड़ा हटकर विश्वनाथ मंदिर बनवाया, जिस पर पंजाब के महाराजा रणजीत सिंह ने 9 क्विंटल सोने का छत्र बनवाया। ग्वालियर की महारानी बैजाबाई ने ज्ञानवापी का मण्डप बनवाया और महाराजा नेपाल ने वहां विशाल नन्दी प्रतिमा स्थापित करवाई जिसका मुंह कुवें की ओर उन्होंने उसमें भगवान का वास समझकर बनवाया और कुवें को ज्ञानवापी यानी ज्ञान का कुवां कहा जाने लगा और इस कुवें के नाम पर ही आलमगीरी मस्जिद को एक और नाम दिया गया “ज्ञानवापी मस्जिद” ।
अब अपने यकीन को और मजबूत कर लीजिये जी दस्तावेज़ कभी झूठ नहीं बोलते । उड़ीसा के राज्यपाल रह चुके श्री बी. एन. पाण्डेय जी ने अपनी किताब मे लिखा कि जब वे इलाहाबाद मे कार्यरत थे तो उनके पास एक प्राचीन मन्दिर के स्वामित्व से जुड़ा एक विवाद लाया गया, इसी केस की छानबीन करते हुए उनके हाथ मुगल बादशाह औरन्गजेब के मन्दिर के नाम जारी किए कुछ फरमान ( राजाज्ञा ) हाथ लगे, जिसमें बादशाह ने मन्दिर को सम्पत्ति और अनुदान देने का हुक्म जारी किया था,।
ये पढ़कर सहसा बी. एन. पाण्डेय जी को विश्वास ही नहीं हुआ क्योंकि ये औरन्गजेब के विषय मे जन साधारण मे फैली धारणाओ के बिल्कुल विपरीत बात थी ।
औरन्गजेब के विषय मे उन्होंने और खोजबीन करने की ठानी तो उन्हें और बहुत कुछ चौंकाने वाली बातें पता चलीं …। वे लिखते हैं “उज्जैन के महाकालेश्वर मन्दिर, चित्रकूट के बालाजी मन्दिर, गौहाटी के उमानन्द मन्दिर, शत्रुन्जाई के जैन मन्दिर और उत्तर भारत में फैले हुए अन्य प्रमुख मन्दिरों एवं गुरूद्वारों से सम्बन्धित जागीरों के लिए औरंगज़ेब के फरमानों की नक़लें मुझे प्राप्त हुई। यह फ़रमान 1065 हि. से 1091 हि., अर्थात 1659 से 1685 ई. के बीच जारी किए गए थे। हालांकि हिन्दुओं और उनके मन्दिरों के प्रति औरंगज़ेब के उदार रवैये की ये कुछ मिसालें हैं, फिर भी इनसे यह प्रमाण्ति हो जाता है कि इतिहासकारों ने उसके सम्बन्ध में जो कुछ लिखा है, वह पक्षपात पर आधारित है”।
औरन्गजेब द्वारा मन्दिर तोड़ने की घटना को बड़ा तूल दिया जाता है जबकि सच तो ये है कि औरन्गजेब ने बेशक मन्दिर तुड़वाया लेकिन किसी धर्म से द्वेष के कारण नही बल्कि पीड़ित को न्याय दिलाने के लिए,। न्याय के लिए ही औरन्गजेब ने एक मस्जिद को भी ढहा दिया था तो भला औरन्गजेब पर धर्मान्धता का आरोप कैसे लगाया जा सकता है ?
मन्दिर तोड़ने की घटना का खुलासा ये है कि उस मन्दिर यानि विश्वनाथ मन्दिर के गर्भग्रह मे एक हिंदू रानी का बलात्कार किया गया था। तो हिंदू राजाओ के अनुरोध पर ही बादशाहने आदेश दिया कि चूंकि पवित्र-स्थल को अपवित्र किया जा चुका है। अतः विश्वनाथ जी की मूर्ति को कहीं और लेजा कर स्थापित कर दिया जाए और मन्दिर को गिरा कर ज़मीन को बराबर कर दिया जाए और महंत को गिरफ्तार कर लिया जाए ।
डाक्टर पट्ठाभि सीता रमैया ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक ‘द फ़ेदर्स एण्ड द स्टोन्स’ मे इस घटना को दस्तावेजों के आधार पर प्रमाणित किया है। पटना म्यूज़ियम के पूर्व क्यूरेटर डा. पी. एल. गुप्ता ने भी इस घटना की पुस्टि की है ।
इसी तरह गोलकुण्डा की जामा-मस्जिद भी बादशाह के आदेश पे गिरा दी गई थी . गोलकुण्डा का राजा जो तानाशाह के नाम से प्रसिद्ध था, रियासत की मालगुज़ारी वसूल करने के बाद दिल्ली का हिस्सा नहीं भेजता था । कुछ ही वर्षों में यह रक़म करोड़ों की हो गई। तानाशाह ने यह ख़ज़ाना एक जगह ज़मीन में गाड़ कर उस पर मस्जिद बनवा दी। जब औरंगज़ेब को इसका पता चला तो उन्होने आदेश दे दिया कि यह मस्जिद गिरा दी जाए।
साभार पुस्तक: ‘‘इतिहास के साथ यह अन्याय‘‘ । लेखक: प्रो. बी. एन पाण्डेय, भूतपूर्व राज्यपाल उडीसा, राज्यसभा के सदस्य, इलाहाबाद नगरपालिका के चेयरमैन एवं इतिहासकार ।
जो लोग मुगल बादशाह बाबर पर राम मन्दिर तोड़कर उसपर बाबरी मस्जिद बनाने का इल्ज़ाम लगाते हैं , उन लोगों के पास अपना आरोप सिद्ध करने का कोई प्रमाण नहीं है,। और बाबर द्वारा लिखी गई इस वसीयत का उन लोगों के पास कोई जवाब नहीं है … ये वसीयत बाबर ने अपने बेटे हुमायूं को शासन के गुर बताते हुए लिखी थी, और हुमायूं को कुछ आदेश शासन की भलाई के लिए दिए थे …। .बाबर कि वसीयत ” मेरे बेटे, इस देश के लोगों के लिए गाय एक पवित्र और श्रद्धेय जीव है, इसलिए गाय काटने पर रोक लगाओ, और इस बात का भी ध्यान रखना कि किसी भी मज़हब की किसी भी इबादतगाह (धर्म स्थल) को कुछ भी नुकसान नहीं पहुंचे ! हिन्दोस्तान एक ऐसा देश है जहाँ अलग अलग धर्म और रीति रिवाजो को मानने वाले लोग रहते हैं , सर्वशक्तिमान की बहुत बड़ी कृपा है कि उसने तुम्हें ऐसे देश पर शासन करने का मौका अता किया ,और तुम इस बात का सदा ध्यान रखना कि लोगों की मजहबी भावनाओं को कोई ठेस न पहुंचे !”
इस वसीयत को कोई भी State Liabrery of Bhopal मे देख सकता है, जहाँ ये वसीयत सम्हाल कर रखी गई है !
ध्यान देने की बात है कि मन्दिर मस्जिद एक पास बने होने के बावजूद बनारस मे कभी साम्प्रदायिक सौहार्द नहीं बिगड़ा …. लेकिन अब राजनीति के गंदे खेल को देखकर बनारस वासी चिंतित हैं काशी विश्वनाथ मन्दिर के महंत श्री कुलपति तिवारी अपनी चिंता इन शब्दों मे व्यक्त करते हैं ……
“” काशी विश्वनाथ मन्दिर के बगल मे ज्ञानवापी मस्जिद है, पर कभी आरती से अज़ान टकराई नही । नवाब अज़ीज़ुल मुल्क ने मन्दिर के सामने नौबतखाना बनवाया था जिसमें भोग आरती के समय शहनाई बजती थी । इस सौहार्द वाले माहौल को विकृत करने की कोशिशें की जा रही है ।चुनाव बाद विकास के तो नही पर विनाश के संकेत अवश्य देख रहा हूँ । बाबा से काशी को बचाए रखने की प्रार्थना करता हूँ ।
आपके द्वारा औरंगजेब का तुष्टिकरण करना गले से नीचे नहीं उतर रहा है
muze yad nahi magar abhi abhi kisi news paper me blog padha tha ki hindustanni musalman videshi akramankari musalman se alag hai ye 98% hindu converted hai par aaj ifatiyar khilaji aurangjeb babar ka gun gan sun kar to ajab hi lag hai aur sochane par majabur ki kaisi gulamo wali soch indian musalman sari duniya ki inasaniyat arabo me dekhate hai aur arabi hai ki une insan hi nahi manate ye kaisi mansikata o sirf tumare hum mazhab the isliye o ache yahi to gaddari hai isi karan to intelligence agency musalman ko apane hi mulk ke khilaf bhadakati hai hindu mazhab bhi kuch acha hai aisa mai nahi kahata hindu mazhab bura tha ise brahmano ne apane control me rakha tha aur baki sare logo ko haase par soda tha isliye log hindu mazhab sod kar musalman bane ye bat such hai par yaha kuch hijade hindu aise bhi the jo kabhi lade hi nahi balki aaye huye un akramakari musalmano se ladane ke bajay apani maa bahano ko rakhel ki tarah de kar apani jaan bacha lete the isliye bhi islam yaha faila isaka matlab islam acha tha isliye nahi yaha faila to islam se batatar yaha hindu mazhab tha isliye faila nahi to islam to insani khun ka pyasa mazhab hai insan ke khun se hi ye mazhab chalu huya tha aur aaj bhi jaha islam hai waha insani khun hi bah raha hai jisane ye mazhab banaya usake rishtedaro ko bhi nahi bakaha musalmano ne hazrat abu bakr hazarat ali aur husain aur hasan ko kisi isai yahudi ya murtipujak ne nahi mara balki musalmano ne hi mara aur isis al qaida boko haram musalmano ko hi mar rahi hai india sabase jyada khun kashmir me hi bahata hai jaha 98% muslim hai aur mai na rss ka hu na muze hindu dharm ya kisi mazhab se koi lena dena hai
KUCH TO ITIHAAS KA LOCHA HAI . HINDU MUSLIM APNE APNE HISAB SE ITIHAS BATATA HAI . AB SAMAJH ME NAHI AATA KE KAUN ASLI HAI YA NAQLI HAI.
देशभक्त और प्रेमपुजारी मुग़ल, तैमूर और चंगेज खान के कुलों के आपस के विवाह संबंधों का ही परिणाम थे. इनमें बाबर हुआ जो अकबर “महान” का दादा था. यह वही बाबर है जिसने अपने काल में न जाने कितने मंदिर तोड़े, कितने ही हिंदुओं को मुसलमान बनाया, कितने ही हिंदुओं के सिर उतारे और उनसे मीनारें बनायीं. यह सब पवित्र कर्म करके वह उनको अपनी डायरी में लिखता भी रहता था ताकि आने वाली उसकी नस्ल इमान की पक्की हो और इसी नेक राह पर चले. क्योंकि मूर्तिपूजा दुनिया की सबसे बड़ी बुराई है और अल्लाह को वह बर्दाश्त नहीं! ध्यान रहे कि इतिहासकारों के लाडले और सबसे उदारवादी राजा औरंगजेब के परदादा अकबर ने ही सबसे पहले “प्रयागराज” जैसे काफिर शब्द को बदल कर इलाहबाद कर दिया था.! और इस्लामी शरीयत के मुताबिक युद्ध में जीते हुए बस्तु का तुम उपभोग( महिलाये एवम बच्चो के साथ सम्भोग ) करो ! आज ISIS इसी सरियत के मुताबिक बंदी बनाये औरतो के साथ जबरदस्ती सम्भोग एवं बलात्कार करता है जो इस्लाम में जायज है !
हन्नान साहब, वैसे दुनिया में आप अकेले नहीं है जो मुगलो को आदर्श मानते है ! और भी बहुत सारी उनकी अच्छाइयों (मंदिरो को लूटना, बलात्कार, सरियत कानून लागू करना, मदिरो को तोड़कर मस्जिद का निर्माण करना, हिन्दू नामों को बदलकर मुस्लिम नाम रखना, इस्लाम को न मानने वालो का सर कलम कर देना,) को आपने बताया ही नहीं!
अब आप ये मत कहना की पूर्वाग्रह से ग्रसित इतिहासकारो ने ये सब लिखा है !
बबलू जी
संघी इतिहास न पड़े , अच्छे लेखक का इतिहास पड़े . तो मालूम हो गा के सच्चाई क्या है . थाली एक हाथ से नहीं बजती . बाबर या विदेश से आक्रमणकारी को कौन बुलाता था . इतिहास को पड़े फिर कमेंट लिखे
Hahahahahahaha. ………
Mujhe to hasi ati hy ….. en muslim itihaskaro pe.
Jo jante to kuch nhi but #bakchodi krna Khub ata hy
लो भाई अब इतिहास भी ”संघी” हो गया ! क्या ‘विन्सेंट स्मिथ’ और ‘अबुल फजल’ संघी इतिहासकार थे…?
Wow.. अलगाववादी actually your name defines you Mr.writer..Don’t tell people hat you are Muslim.
बब्लू जी यहाँ आपकी मानसिकता संघी लगती है जिसका वजूद ही खोखलेपन्न से भरा है । आपने पूरी पोस्ट ही नहीं पढ़ा ?
खराटे जी आप गुमराह न हों !!!
सम्भवत: भारत की ओर मुस्लिम सेना लाने वालों मे हमारे हिन्दू भाई सबसे ज्यादा नफरत महमूद गजनवी से करते होंगे ये सोचकर कि महमूद ने हिन्दू धर्म के विनाश के लिए एक दो नहीं बल्कि 17 बार सोमनाथ मन्दिर पर आक्रमण किए……..
लेकिन भाईयों किसी भारतीय या अफगानी स्रोत मे महमूद द्वारा सत्रह आक्रमण की बात नहीं मिलती, 17 आक्रमणो की बात एक पश्चिमी इतिहासकार “हेनरी इलियट” ने बताई थी … ये बात हेनरी ने किस दैवीय स्रोत से पता लगाई, ये तो स्पष्ट नहीं, …….खैर आप गजनवी के सत्रह ही आक्रमण मान लो..
लेकिन इस बात पर भी विचार करने की कोशिश करो कि ये आक्रमण क्यों हुए ??
महमूद गजनवी ने न तो धन लूटने के लिए सोमनाथ पर हमले किए और न हिन्दू धर्म के द्वेष मे मन्दिर तोड़ने के लिए
क्योंकि यदि महमूद का उद्देश्य धन ही लूटना होता, तो भारत का सारा धन केवल सोमनाथ के मन्दिर मे ही तो नहीं भरा था, जो महमूद ने केवल सोमनाथ पर हमले किए , भारत के सारे राजे महाराजाओं और धनिकों के घरों और भारत के अन्य समृद्ध मन्दिरों को छोड़कर ??
और यदि महमूद को मूर्ति या हिंदू मन्दिरो से कोई शत्रुता होती तो गजनी से लेकर भारत तक उसके मार्ग मे पड़ने वाले मन्दिरों को महमूद ने हाथ तक क्यों न लगाया ????
स्पष्ट है कि महमूद गजनवी ने किसी अज्ञात विशेष कारण से केवल और केवल एक मन्दिर “सोमनाथ” पर आक्रमण किए वो भी बार बार
महमूद गजनवी ने सोमनाथ पर आखिरी बार सन् 1024 में हमला किया था तथा उसने व्यक्तिगत रूप से सामने खड़े होकर शिवलिंग के टुकड़े-टुकड़े किये और उन टुकड़ों को अफ़गानिस्तान के गज़नी शहर की जामा मस्जिद की सीढ़ियों में सन् 1026 में लगवाया। इसी लुटेरे महमूद गजनवी का ही रिश्तेदार था सैयद सालार मसूद… यह बड़ी भारी सेना लेकर सन् 1031 में भारत आया। सैयद सालार मसूद एक सनकी किस्म का धर्मान्ध मुगल आक्रान्ता था। महमूद गजनवी तो बार-बार भारत आता था सिर्फ़ लूटने के लिये और वापस चला जाता था, लेकिन इस बार सैयद सालार मसूद भारत में विशाल सेना लेकर आया था कि वह इस भूमि को “दारुल-इस्लाम” बनाकर रहेगा और इस्लाम का प्रचार पूरे भारत में करेगा (जाहिर है कि तलवार के बल पर)।…….
मुगलो सिर्फ और सिर्फ एक ही उदेश्य था ! लूटपाट, कत्लेआम, गैर मुस्लिम महिलाओ के साथ बलात्कार करना, उनको अपने हरम में रखना ! तलवार की नोक पे इस्लाम कबूल करवाना ! वो सिर्फ एक लुटेरे थे और विदेशी थे जो यहाँ की धन-संपत्ति और संस्कृति को नस्ट करना चाहते थे ! और सफल भी हुए !
अरे अरे !!!! भाई उसने एक बार ही हमला किया था वो भी आपके बुलाने पर
ऐसे लोग जो मुसलमानों के प्रति भेदभाव और हिन्दूबहुलता के नाम पर छाती कूटते रहते हैं वो आज भारत के किसी भी गली से गुजर कर देख लें एक मुसलमान के दुनियाँ छोड़ कर जाने पर बच्चा बच्चा रो रहा है!
इज्जत माँगी नहीं कमायी जाती है!
जरूर देखेंगे तेजस भाई पर पहले 200 साल पुराने इतिहास की खुदाई करके मुगलिया सल्तनत का परचम लहराने की कमरतोड़ मेहनत से फुर्सत तो मिले:)
ये वही लोग हैं शरद भाई जो आज से १० साल बाद याकूब मेनन और अफजल गुरू को शहीद साबित करने के लिये ओवैसी के बयानों का हवाला दे कर इस से भी बड़ा लेख लिखेंगे!
आज से १० साल बाद ?? भाई ये सब तो अभी से ही जुटे हुए है वो क्या कहते है “कल करे सो आज कर, आज करे सो अब” 🙂 न्यायपालिका से सज़ा कम करने केी अपेील के लिये आतंकवाद का आरोपी ही मिला था ?? पता नही कितने बेगुनाह और पड़े होंगे पर क्या कोई जायेगा उनकी पैरवी करने ??
” कभी आरती से अज़ान टकराई नही ” जनए लोग क्यो आपस मै टकरात है और
ह्म भुल जातए है कि भरत एक ऐसा देश है जहाँ अलग अलग धर्म और रीति रिवाजो को मानने वाले लोग रहते है इस देश कि इस खुबई को बनय रखई….
लगभग सभी भारतीय मुस्लिम शासक ने तो कोई खास महान थे ना कोई खास अच्छे थे जितना उपमहादीप का मुस्लिम समझता हे और ना इतने बुरे थे जितना ओक साहब संघियो को घुट्टी में पिला गए हे असल में कोई कोई शासन इस तरह से नहीं चलता की अच्छा हिन्दू हे तो इन्हे लूट लो ( जैसा संघी बताते हे ) न इस तरह चलता हे की मानो मुस्लिमशासन में सभी मुस्लिम स्पेशल नागरिक हे उन्हें बढ़िया ट्रीटमेंट मिलेगा ( जैसा आम मुस्लिम सोचता रहता हे ) इस तरह से राज़ नहीं चलता हे हिन्दुओ को लूटा जाएगा रोज़ उनका हत्या बलात्कार होगा तो क्यों हिन्दू कमाकर राज़ को देगा ? इसी तरह कोई सुलतान मुसलमानो को वि आई पि ट्रीटमेंट दे ही नहीं सकता था भारतीय मुस्लिम इतने कम थे ही नहीं की राज़ उन्हें अच्छा ट्रीटमेंट का खर्च बर्दाश्त कर सकता . इस विषय में पहल मुसलमानो को ही करनी चाहिए अगर वो अकबर दाराशिकोह आदि उदार शासको की जगह औरंगजेब गज़नबी का गुणगान करेगा तो क्लेश तो होगा ही औरंगजेब तो सबसे बड़ा विलेन था उसी ने अकबर दुआरा स्थापित सेकुलर निजाम की जड़ हिलाई ( गुरु तेगबहादुर की हत्या आदि ) और नतीजे में अंग्रेज़ो के लिए रास्ता साफ़ हुआ जिसके नतीजे में अकाल पड़े और सबसे अधिक हिंदुस्तानी इन्ही अकालो में मरे थे
क्या किया जाये हयात भाई इतिहास की बातो पर इतिहास के पुश्तैनी जीन्स जोर मारने लग जाते है और सोच तो रहे थे कि कलाम साहब को श्राधांजलि देने के बाद इस मस्जिद और मस्जिद वालो का इतिहास तसल्ली से ही डिस्कस कर लिया जाये पर अब लगता है कि कुछ मुट्ठी भर लोगो के लिये बहुत जयादा वक़्त बर्बाद करना समय, एनर्जी की बर्बादी होगी , इनका क्या है ये तो मुगलिया सल्तनत की आखिरी निशानी तक खोद-2 कर उसे गुब्बारे की तरह फूला-2 कर अपने लेख लिखते रहेंगे.
हन्नान साहब, औरंगजेब के समय की किसी इतिहास किताब मे विश्वनाथ मंदिर के विध्वंश की ऐसी कोई वजह नहीं दी गई है ।एक पुरोहित को क्या राजा खुद सजा नहीं दे सकता था जो वो औरंगजेब से कहेगा ? और क्या राजपुत लोग कभी विश्वनाथ का अपमान करेंगे ?
औरंगजेब ने कोई केवल एक विश्वनाथ मंदीर ही नहीं
तुड़वाया था । मंदिरों को ध्वस्त करना तो उसकी आदत थी । मथुरा मे भी उसने मंदिरो को ध्वस्त करवाया था । इतिहास बताता है कि औरंगजेब हिंदुओं की प्रति अत्यंत ही क्रुर था । उसने हिंदुओं पर जजीया कर भी लगाया था और उन्हे धर्म बदलने के लिए मजबुर किया था । बाबरनामा बताता है कि किस तरह बाबर ने हिंदओं का नरसंहार करवाया था ।”आईने अकबरी” के अनुसार अकबर ने भी 30000 हिंदुओं का नरसंहार करवाया था ।”चाचनामा”और अल-बरूनी का “तारिखे हिंद” मे भी मुस्लिम हमलावरों का हिंदुओं के उपर अत्याचार का वर्णन है । सोमनाथ के विध्वंस और लुट की कहानी तो हम बहुत बार पढ़ चुके हैं। मुहम्मद गोरी, ऐबक, अलाउद्दीन खीलजी आदी ने भी हिंदुओं का नरसंहार करवाया था और मंदीरों को नष्ट करवाया था ।
वेद मे ऋषियों ने अत्याचारियों उर दुष्टों के संहार के लिए प्रार्थना की है । ईश्वर की उपासना की पद्धति(साकार या निराकार, एक या विविध रूप मे) के आधार पर किसी को मारने की बात सनातन धर्म मे कभी नहीं हुई । यहाँ सबको अपने तरिके से इश्वर की अराधना की आजादी है । दुसरे धर्म के लोगों को जहाँ पाएँ वहीं मारने और उनकी औरतों पर कब्जा करने की बात सनातन धर्म मे नहीं है ।
नालंदा के बौद्ध विहार को बख्तियार खीलजी ने नष्ट करवाया था ।
हन्न साहब लगता है आपने ज्यादा ही पढाई कर ली पर जो ISIS आज कर रहा है वह भारत ने बहुत पहले सह लिया
बामियान(में ही बलात्कार की ही खबर बना देना) की बुद्ध की मूर्तियां क्यों तोड़ी गयी ,ISIS तो library तक जला देते हैं इतिहास मिटाने को औ आप कहते हो कि बलात्कार हुआ हरामपन और गुलमई की
‘अरुण शौरी जी’ ने 2 सितम्बर 1669 के मुगल अदालती दस्तावेज जिसे “मासिरी आलमगिरी” कहा जाता है, उसमें से एक अंश उद्धृत करके बताया कि “बादशाह के आदेश पर अधिकारियों ने बनारस में काशी विश्वनाथ का मन्दिर ढहाया”, और आज भी उस पुराने मन्दिर की दीवार औरंगजेब द्वारा बनाई गई मस्जिद में स्पष्ट तौर पर देखी जा सकती है।
डाक्टर पट्टाभि सीता रमैया ने अपनी पुस्तक “द फेदर्स एण्ड द स्टोन्स” अपनी जेलयात्रा के दौरान एक डायरी में लिखी थी, और उन्होंने यह कहानी लखनऊ के एक मुल्ला से सुनी थी। और उसी आधार पर वो अपने किताब में उसे लिखा है अर्थात एक मुल्ला की जबान से सुनी गई कहानी को आप जैसे मुग़ल प्रसंसक ने सिर पर बिठा लिया और औरंगजेब को महान साबित करने में जुट गये, बाकी सारे दस्तावेज और कागजात सब बेकार,यहाँ तक कि “आर्कियोलॉजी विभाग” और “मासिरी आलमगिरी” जैसे आधिकारिक लेख भी बेकार हो गए आपके सामने !
औरंगजेब कितना दुष्ट और अन्यायी था वो उसके मंदिरों को तोड़ने के लिए दिए गए “फरमान” से पता चलता है । इन फरमानों को बीकानेर म्युजीयम मे रखा गया है । एक फरमान मे हिंदुओं पर कई तरह के प्रतिबंध लगाया है और एक फरमान मे हिंदुओं पर जजीया कर लगाने का आदेश दिया गया है । एक अन्य फरमान मे हिंदु पुरूषों और स्त्रीयों को मुसलमान बनने के बदले मे क्रमशः 4 और 2 रूपया देने की बात कही गई है ।
इन फरमानों को यहाँ देखें :-
http://www.aurangzeb.info/?m=1
औरंगजेब ने सिर्फ विश्वनाथ मंदिर ही नहीं तोड़वाया था अपितु केशवराय समेत कई मंदिरों को तोड़ने का फरमान दिया था । हन्नान साहब के पास उन मंदिरों को तोड़ने के लिए भी कोई बहाना है तो बताएँ ।
औरंगजेब और ज्ञानबापी मस्जिद का पूरा हवाला इस लेख मे है जिसको बहुत जानने की उत्सुकता है वो इतिहासकार प्रो बी . एन पांडे की किताब पढे ॥ अपनी खोखली मानसिकता का प्रदर्शन ना करे ।
इतना लम्बा लेख लिखा है तो मंदिर के प्रबंधक और हिन्दू रानी का नाम तो लिखा होता?? कौन सा हिन्दु राजा था जिसकेी रानेी का मन्दिर के प्रबंधक द्वारा देवता की मूर्ति के पीछे बलात्कार हुअ था ?? राजा का नाम सामने लाइये
खोखली मानसिकता से जयादा इस लेख मे कुत्सित मानसिकता नज़र आ रही है !!
किस इतिहासकार की किताब पढ कर सच सामने लाना है वो मेहनत हम कर लेंगे आप सिर्फ उन के नाम भर बता दीजिये
“माशिरी आलमगिरी” मे इस विश्वनाथ मंदिर के विध्वंस के पिछे ऐसी कोई वजह नहीं दी गई है । उस जमाने कि किसी अन्य किताब मे भी ये वजह नहीं है ।केवल एक बी एन पांडे की ही बात हम क्यों सच मानें ? उनसे बड़े कई इतिहासकार हुए हैं । किसी और इतिहासकार ने तो ऐसा कुछ नहीं कहा है । सनातन धर्म को नीचा दिखाने के उद्देश्य से झूठी और खोखली बातें कौन कर रहा है वो दिख रहा है ।
उस रानी के पति राजा का नाम नही मिला (कोई बात नही)
जिसका बलात्कार हुआ उस रानी का नाम नही मिला (कोई बात नही)
जिसने बलात्कार हुआ उस प्रबंधक का नाम नही मिला (कोई बात नही)……
हनान अन्सारि सहब खोज जारी रखिये और ये भी ढूंढने की कोशिश कीजिये कि डा0 पट्टाभि सीतारमैया नाम के कोई “इतिहासकार” कभी इतिहास मे थे भी:) अब आप अफरातफरेी मे किसी से भागते-दौड़ते उनका नाम सामने लेकर आ ही गये है तो सुनते जाइये ….
.डा0 पट्टाभि सीतारमैया दरअसल सर्जरी वाले डॉक्टर थे इतिहासकार नही !!
ये वही थे जिनको सुभाष चंद्र बोस जी ने कॉंग्रेस अध्यक्ष के लिये हुए चुनाव(वोटिंग) मे हराया था…..
और वो क्या कह रहे थे आप कि ‘द फ़ेदर्स एण्ड द स्टोन्स’ मे इस घटना को दस्तावेजों के आधार पर प्रमाणित किया है….जनाब वह किताब ही डा0 सीतारामाय्या ने जेल मे लिखी थी और जेल मे ऐसे कौन से उस मस्जिद से सम्बंधित ऐसे कौन से दस्तावेज थे इसके दम पर उन्होने पता नही क्या प्रमाणित कर दिया :)…….
ऐसे हज़ारो “इतिहासकार” इंटरनेट पर मौजूद हैजिनका इतिहास से दूर-2 तक का कोई वास्ता नही है फिर भी इस्लाम की बखिया ऐसे उधेड़ते है कि आपको पढ़वा दिया तो गश आ जायेगा ….क्या उन इतिहासकारो की बातो को मानने का कलेजा है 🙂 उम्र हो गयी सर के आधे बॉल तक गायब हो गये जनाब इस उम्र मे अफवाहे फैला कर नफरत घोलने के काम अच्छे नही है
शरद जी, पट्टाभी सीतारमैय्या ने ये कहानि लखनउ के किसी मुल्ले से सुनी थी । सीतारमैय्या से यह कहानी बी एन पांडे ने ली है ।इस कहानि मे कहा गया कि एक बार बंगाल की यात्रा के दौरान औरंगजेब के साथ बहुत से हिंदु राजा और उनकी रानियाँ थीं। बनारस पहुँचने पर रानियाँ विश्वनाथ की पुजा करने गई ।यहीं कच्छ की रानि का बलात्कार मंदिर के पुजारी ने की ।तब राजाओं ने औरंगजेब से पुजारी को दंड देने कहा । औरंगजेब ने पुजारी को दंडित किया और उस मंदिर नष्ट करवा दिया क्योंकि वो अपवित्र हो गया था ।
अब सोचने वाली बात है कि औरंगजेब क्या किसी पिकनीक के लिए जा रहा था जो इतने सारे राजा और उनकी रानियाँ भी जा रही थी ः) अगर ऐसी घटना हुई भी थी तो क्या एक बलात्कारी पुरोहीत को सजा देने की शक्ति उन राजाओं मे नहीं थी जो वो औरंगजेब से कहेंगे ? रानी के साथ सिपाही भी गए होंगे । ऐसे मे कौन पुजारी इतना बड़ा दुस्साहस करेगा और सिपाहियों से बच भी जाएगा ? और राजा लोग अगर क्रोधित भी थे वो क्या विश्वनाथ का अपमान करने के लिए कहेंगे ?
किसी भी प्रसीद्ध इतिहासकार ने रानी के बलात्कार वाली इस घटना का वर्णन नहीं किया है । “माशिरी आलमगिरी” मे बताया गया है कि बनारस के विश्वनाथ मंदिर को नष्ट करने को कहा गया क्योंकि बनारस मे दुर दुर से लोग आकर हिंदु धर्म की शिक्षा लेते थे ।
धर्मवीर जी थोड़ा सब्र तो रखिये सारे सुबुतो पर इन्के खुद के विचारो को सामने तो आने देीजिये क्योकि अपने लेख मे जिन् तथाकथित सुबूत कई इन्होने बारिश केी है अभी तो उन पर एक एक कर काफी डिस्कसन होना बाकी है….उनके अवाब का इन्तार कीजिय !!
यह लेख हिन्दुओं को एक और इंतकाम लेने के लिए उकसाने के लिए है या फिर मुस्लिम शासको की “अच्छाई” का श्रेय इस्लाम को देने के लिए है ? क्यूँ की काशी विश्वनाथ मन्दिर के महंत श्री कुलपति तिवारीजी की चिंता की आड़ में आपने ये दोनों जिम्मेदारियां बखूबी निभा दी है !
हमारे भारत में यह बिमारी आजादी के बाद ही क्यूँ पनपी है ? अंग्रेजों के जमाने में तो किसी माई के लाल में ये हिम्मत पैदा नहीं हुई की किसी मस्जिद को मंदिर या मंदिर को मस्जिद साबित करने के अपने अपने दावों के लिए अंग्रेजों से कभी दो दो हाथ कर लें ? आजादी के बाद ही यह सब क्यूँ सूझ रहा है ? जारी
दूसरा ऐसे मुद्दों पर समाधान क्या ये है की आप अपने दावे को जड़ से ही सही साबित करने निकल प्डो ? ? और मंदिर या मस्जिद दोनों में से किसी एक के सही होने और दुसरे के हटाने की कारीगरी में अपने अहं को संतुष्ट करने में लग जाओ ? इतना ही जड़ें खोदने का शौक है तो क्या यहाँ कोई बतायेगा की हिन्दू और मुस्लिम दोनों में से किसी एक को सही और दुसरे को गलत ठहरा कर हटाने की नौबत आई तो ? आजादी से पहले के इस अनाथ देश की कसौटी पर कौन खरा उतरेगा ? आप दोनों पक्षों को देश की ही चिंता है न ? तो हर बात शुरू से शुरू करों ! हिंदूवादी बताएं की यहाँ हिन्दूराष्ट्र कहाँ था और उसे मुस्लिम से लेकर अंग्रेजों तक बचाए रखने में हिन्दू धर्म का ,धर्मियों का क्या योगदान था ? और मुस्लिम अगर इतना ही इस्लाम का गर्व हैं तो बताएं की किसी भारत जैसे देश या दुनिया के किसी भी देश के लिए शरियत कितना काबिल है ? अगर नहीं है तो उसे हटाने का जिगरा है ?
अगर किसीको हटाना ,मिटाना ,गिराना, ढहाना ही है तो अपने अपने धर्मो पे इतिहास से लेकर आज तक के कलंको को मिटा के दिखाओ ! वर्ना पत्थर मिटटी की औकात ही क्या है ? ऐसे ही चलता रहा यो एक दिन तो आएगा ही की ढहाने के लिए कुछ नहीं बचेगा !! जब दुसरे धर्म के स्थान खत्म हो जायेंगे तब अपने ही धर्म के विवादित मान्यताओं के ढाँचे तोड़ोगे ! वह भी एक दिन खत्म हो जायेंगे !!! तब क्या करोगे ? जितना दिमाग पिच्छे दौड़ता है उतना ही दिमाग आगे दौड़ा लोगे तो इसका जवाब भी मिल जाएगा ! इसीलिए उस दिन का इन्तजार क्यूँ ? जो तब करोगे वही अभी से क्यूँ नहीं करते ???
हटाना ,मिटाना ,गिराना, ढहाना का पहाड़ा रटते रटते ही हम पर यह नौबत आई है ! इसीलिए अब कुछ बनाने की बात पर डिस्कशन करो तो जाने !
लायंस हन्नान अंसारी साहब कुछ जानकारी मिली क्या “अपने वाले” इतिहासकारो की किताबो मे 🙂
असल बात ये है की पर – देशी सोच या आरएसएस की हिटलर वादी सोच अपने टी बी के इलाज की जगह खांसी का इलाज कर वा रहे हैं ?? बीमारी जाए तो कैसे ?? यही वजह है की कोई भी अच्छी और सच्ची बात इनको हजम होती ही नहीं !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
बाबर लुटेरा था ,हुमायु लुटेरा था ,अकबर लुटेरा था ,शाहजहाँ लुटेरा था ,सब लुटेरे थे अरे भैया ये तो बताओ वो सारा लूटा हुआ धन कहाँ ले गए थे !!मर के यहीं दफ़न हो गए थे !!सबके सब या फिर स्विस बैंक मैं जमा करा दिया था !!शायद आपके पास कोई जबाब नहीं होगा उन वेबकूफों ने सारा पैसा भारत में ही लगा दिया ताकि जनता को सुख सुविधा मिलती रहे कई बकवास चीज़ तो उन्होंने ऐसी बनबाई की जिससे आज भी लाखो लोगों के घर के चूल्हे जलते हैं जिनमे से एक ताज महल जिसकी वजह से विदेशी सैलानी भारत आते हैं…और भारत में विदेशी मुद्रा भण्डार बढ़ता है अकेले ताज महल की हिस्सेदारी है 35% विदेशी मुद्रा भण्डार मेऔर हां अलाउद्दीन ख़िलजी के जमाने मैं दूध फ्री मिलता था आप एक काम करो मोदी के जमाने मैं पानी ही फ्री दिलवा दो यार !
हननान साहब जी भारतीय इतिहास में हमने बहुत पढ़ लिया इन चोर लुटेरों के बारे में. बो तो भारतीय इतिहास में इन चोरों को बहुत इज्जत के साथ पेश किया गया है
जिस दिन हम अपनी पर आ गये तो इस झूठे इतिहास जो हिन्दुओं के दुश्मनों द्वारा लिखा गया था को ही बदल देंगे जैसा उस समय उन लोगों द्वारा किया गया था उन्होंने ही भारत का इतिहास बदला था।
उन ही की वजह से भारत में छुवा-छूत और जातिवाद बहुत बढ़ गया था।
और रही बात ताजमहल अर्थात तेजोमहालय की तो वो किसी मुगल बादशाह द्वारा कभी बनाया ही नहीं गया था वह एक विश्व का सबसे सुंदर मंदिर है जिसे सब ताजमहल के नाम से जानते हैं यह मुगलों से भी पहले हिन्दुओं द्वारा बनवाया गया था जिसे बाद में एक मकबरे में कनवरट कराया गया था।
शाहजहाँ द्वारा लिखी पुस्तक बादशाह नामा में उसने खुद स्वीकारा है कि उसने इस मंदिर को राजस्थान के नरेश से छीना था .
आपको अपना ग्यान बढाने की आवश्यकता है
और रही बात ताजमहल अर्थात तेजोमहालय की तो वो किसी मुगल बादशाह द्वारा कभी बनाया ही नहीं गया था वह एक विश्व का सबसे सुंदर मंदिर है जिसे सब ताजमहल के नाम से जानते हैं यह मुगलों से भी पहले हिन्दुओं द्वारा बनवाया गया था जिसे बाद में एक मकबरे में कनवरट कराया गया था।
शाहजहाँ द्वारा लिखी पुस्तक बादशाह नामा में उसने खुद स्वीकारा है कि उसने इस मंदिर को राजस्थान के नरेश से छीना था .
आपको अपना ग्यान बढाने की आवश्यकता है
यानि अब ये मान लिया जाये कि इस विषय पर जानकारी के नाम पर आप काफी मेहनत के बाद भी आपके पल्ले कुछ नही जनाबेआली 🙂
Baba viswanath aap jaise vicharko see kashi ko bachayi kay ki aap jaise log satya ko swikaar nahi karte hai. Jise jhagada bana rahata hai waha mandir too jarur banega Kyo ki satya ko kisi pramaad ki awasykta nahi hoti hai. Samaye aane per satya saabit ho jayega .धरति faad Ker.
औरंगजेब का सच प्रमाणों के साथ….
इस पोस्ट को केवल धैर्यवान जिज्ञासु मित्र ही पढ़े….
हमारे वामपंथी इतिहासकारो द्वार हिन्दुओं पर असंख्य अत्याचार करने वाले औरंगजेब को धर्म निरपेक्ष बनाने का असफल प्रयास किया गया हैं …. स्वतंत्र भारत में इतिहास विषय के साथ सबसे बड़ा मजाक यह हुआ हैं की अपने अपने राजनैतिक हितों को पूरा करने के लिए पाठ्यक्रम में मनमाने परिवर्तन किये गए जिससे की विद्यार्थियों एवं शोधार्थियों के लिए निष्पक्ष रूप से इतिहास पर अनुसन्धान करने कीसंभावना लगभग न के बराबर ही हो गयी हैं
जैसे की भारत पर आक्रमण करने वाले मुहम्मद गोरी और गजनी को महान बता कर उनकी अनुशंसा करना… वामपंथी और मुस्लिम इतिहासकारों की खास बात यह भी हैं की इतिहास में जहाँ जहाँ मुस्लिम आक्रान्ताओं ने हिन्दुओं पर विजय प्राप्त की हैं उसकी बढ़ा चढ़ा कर प्रशंसा की गयी हैं जबकि हिन्दू राजाओं द्वारा प्राप्त की गयी विजय को लगभग नकार हो दिया गया हैं. भूल चुक से वीर शिवाजी और महाराणा प्रताप का नाम अगर किसी ने ले भी लिया तो उस पर धार्मिक कट्टरवाद का आरोप लगाने में कोई पीछे नहीं रहता. इसी कड़ी में इस लेख के लेखक का नाम लेना भी कोई गलत न होगा. किसी काल में भारत के सभी मुसलमानों के पूर्वज हिन्दू ही रहे थे पर इस्लाम ग्रहण करने के कारण मर्यादा पुरुषोतम श्री राम और योगिराज श्री कृष्ण उनके लिए आदर्श नहीं रहे और हिन्दुओं पर पाशविक अत्याचार करने वाले टीपू सुल्तान और औरंगजेब उनके लिए सबसे आदर्श व्यक्तियों में से एक बन गए. भारत में इस्लामिक आक्रान्ताओं का इतिहास मूलत: उन मुस्लिम लेखकों द्वारा लिखा गया था जो उन्ही आक्रान्ताओं के वेतन भोगी कर्मचारी थे इसलिए यह स्वाभाविक ही था की वे अपने ही आकाओं के गुणों को बड़ा चड़ा कर लिखते हैं और दोषों को छुपाते हैं.
प्रसिद्द इतिहास लेखक इलिओत एंड डावसन [Eliot and DawsonThe History of India, as Told by Its Own Historians. The Muhammadan Period vol . 1 -8 1867 -1877] के अनुसार मुस्लिम लेखकों की विश्वसनीयता इसी कारण से कम ही हैं क्यूंकि उन्होंने अनेक स्थानों पर अतिश्योक्ति युक्त वर्णन अधिक किये हुए हैं.
आईये औरंगजेब की तथाकथित धर्म निरपेक्षता को इतिहास के तराजू में तोल कर उनका मूल्याँकन करे.
औरंगजेब के विषय में लेखक दुनिया के सबसे अनभिज्ञ प्राणी के समान व्यवहार करते हुए कहता हैं की औरंगजेब ने अपने फरमानों में किसी भी हिन्दू मंदिर को न तोड़ने को कहाँ था. सत्य तो इतिहास हैं और इतिहास का आंकलन अगर औरंगजेब के फरमानों से ही किया जाये तो निष्पकता उसे ही कहेंगे.
फ्रेंच इतिहासकार फ़्रन्कोइस गौटियर (Francois Gautier) ने #औरंगजेब द्वारा फारसी भाषा में जारी किये गए फरमानों को पूरे विश्व के समक्ष प्रस्तुत कर सभी सेकुलर वादियों के मुहँ पर ताला लगा दिया जिसमे हिन्दुओं को इस्लाम में दीक्षित करने और हिन्दू मंदिरों को तोड़ने की स्पष्ट आज्ञा थी. इस्लाम की स्थापना के बाद चार में से तीन खलीफा असमय मृत्यु को प्राप्त हुए और उनकी मृत्यु का कारण गैर मुस्लिम नहीं अपितु मुस्लिम ही थे, औरंगजेब भी उसी परंपरा का निरवाहन करता हुआ “आलमगीर” बनने की चाहत में अपनी सगे भाइयों की गर्दन पर छुरा चलाने से और अपने बूढ़े बाप को जेल में डालकर प्यासा मारने से नहीं चूकता तो उससे हिन्दू प्रजा की सलामती की इच्छा रखना बेईमानी होगी.
लेखक ने बनारस के विश्वनाथ मंदिर को दहाने के पीछे विशम्बर नाथ पाण्डेय (B.N.Pandey) का सन्दर्भ देते हुए यह कारण बताया हैं की औरंगजेब बंगाल जाते समय बनारस से गुजर रहा था. उसके काफिले के हिन्दू राजाओं ने उससे विनती करी की अगर बनारस में एक दिन का पड़ाव कर लिया जाये तो उनकी रानियाँ बनारस में गंगा स्नान और विश्वनाथ मंदिर में पूजा अर्चना करना चाहती हैं. औरंगजेब ने यह प्रस्ताव फ़ौरन स्वीकार कर लिया. उनकी रानियों ने गंगा स्नान भी किया और मंदिर में पूजा करने भी गयी. लेकिन एक रानी मंदिर से वापिस नहीं लौटी. औरंगजेब ने अपने बड़े अधिकारियों को मंदिर की खोज में लगाया.उन्होंने पाया की दिवार में लगी हुई मूर्ति के पीछे एक खुफियाँ रास्ता हैं और मूर्ति हटाने पर यह रास्ता एक तहखाने में जाता हैं. उन्होंने तहखाने में जाकर देखा की यहाँ रानी मौजूद हैं जिसकी इज्जत लूटी गयी और वह चिल्ला रही थी. यह तहखाना मूर्ति के ठीक नीचे बना हुआ था.राजाओं ने सख्त कार्यवाही की मांग की. औरंगजेब ने हुक्म दिया की चूँकि इस पावन स्थल की अवमानना की गयी हैं इसलिए विश्वनाथ की मूर्ति यहाँ से हटाकर कही और रख दी जाये और दोषी महंत को गिरफ्तार कर सख्त से सख्त सजा दी जाये.यह थी विश्वनाथ मंदिर तोड़ने की पृष्ठभूमि जिसे डॉक्टर पट्टाभि सीतारमैया ने अपनी पुस्तक Feather and the stones में भी लिखा हैं. आइये लेखक के इस प्रमाण की पर
चलो मान लेते है की चुनाव के कारन मंदिर मस्जिद विवाद है अगर है तो आज के मुसलमान साथ आकर जितने विवाद है उनको हल कर दे और जहाँ पर मंदिर मस्जिद विवाद है वहां मंदिर बनवाए और मैं एक हिन्दू होने के कारन आपके सभी मस्जिदों का निर्माण स्वयं करूँगा .. लेकिन ऐसा होगा नहीं क्योंकि आप जैसे जिहादी लोग जब तक जिन्दा रहेंगे ये विवाद जिन्दा रहेगा , मुसलमान वो होता है जैसे हमारे अब्दुल कलम साहब देस सेवा करते हुए अपना पूरा जीवन लगा दिया लेकिन आप लोग तो ऐसे लोगो को काफ़िर कहना सुरु कर दे ते हो .. आप लोगों की मानसिकता हमेसा वाही रहेगे जैसे की उस हरामखोर औरंगजेब की थी.
शंकर शरण -छवि बिगाड़ने वाली किसी बड़े नेता के बेटे की खबर एक दिन में नियंत्रित हो जाती है। पर हिन्दू धर्म-समाज पर कीचड़ उछालने वाली अफवाह मजे से हफ्तों चलती रहती है। उसे फौरन नियंत्रित करने की चिन्ता नहीं की जाती। संभवतः नेता अपनी निजी छवि और पार्टी-हित की तुलना में सामाजिक हितों की कम परवाह करते हैं। वरना, दूसरी बात यही कि हिन्दू धर्म पर प्रहार जान-बूझ कर चलने दिया जाता है, ताकि हिन्दू प्रतिक्रिया से अंततः पार्टी को फायदा हो।
कारण जो हो, पर गंभीर राष्ट्रीय, सामाजिक मुद्दों पर भाजपा की कोई तैयारी नहीं है। वह प्रायः बहाने बनाती या ध्यान बँटाती है। वाजपेई सरकार के समय था कि पूर्ण बहुमत नहीं है, गठबंधन धर्म निभाना है, आदि आदि। चूँकि इस बार वह बहाना नहीं चल सकता, इसलिए दिखावटी काम किए जा रहे हैं। अभी काशी में गंगा नदी से विश्वनाथ मंदिर तक दो चौड़ी सड़क बनाने की कवायद इसी का एक उदाहरण है।
काशी विश्वनाथ मंदिर तक मार्ग बनाने, बल्कि उसे पर्यटन दृष्टि से चमकदार दिखाने के लिए डेढ़ सौ से अधिक मकानों, दुकानों को हटाया जा रहा है। लेकिन असली समस्या को छुआ तक नहीं गया, जो वास्तविक मंदिर के पूरे स्थान पर औरंगजेब की बनाई मस्जिद है। गूगल पर सैटेलाइट चित्र से सारी असलियत दिखती है। जिस काशी-विश्वनाथ का आदि काल से विशिष्ट महत्व है, जो द्वादश ज्योतिर्लिंगों में भी सोमनाथ की तरह अनूठा स्थान रखता है, वह है कहाँ?
उस स्थल के सैटेलाइट चित्र में आकाश से नीचे दिखती सीमा रेखाएं दर्शाती हैं कि मंदिर तो संपूर्णतः मस्जिद द्वारा कब्जाया हुआ है। मौजूदा विश्वनाथ मंदिर बमुश्किल दस-बारह मीटर लंबी और छः-सात मीटर चौड़ी जगह में संकुचित है। इस में कहीं तीन व्यक्ति भी इकट्ठे खड़े नहीं हो सकते। प्रसिद्ध मंदिरों के विशाल प्रांगण, मंडप, तोरण, सिंह द्वार, आदि तमाम पारंपरिक चीजों का तो पूर्ण लोप ही है। क्या एक महानतम ज्योतिर्लिंग मंदिर ऐसा रहा होगा? बिल्कुल नहीं। इसीलिए, चित्र देख कर रहस्य खुलता है कि उस से लगी ‘ज्ञानवापी मस्जिद’ अभी भी लगभग ढाई हजार वर्ग मीटर में खड़ी है। मस्जिद का नाम तक साफ चुगली करता है कि उसे मूल विश्वनाथ मंदिर ध्वस्त करके बनाया गया था।
अतः यदि विश्वनाथ मंदिर की चिन्ता होती तो साफ-साफ स्थानीय मुस्लिमों से बात करनी थी कि वे उस साम्राज्यवादी मस्जिद को हटाकर हिन्दुओं के सर्वाधिक महान तीर्थों में से एक के पुनर्स्थापन में सहयोग दें। यह राष्ट्रीय और सामाजिक दृष्टि से एक सब से महत्वपूर्ण कार्यभार भी है। लेकिन इस पर एक शब्द न कहा, न सुना गया।
जबकि मुस्लिम समाज में भी लोग सोचते थे कि केंद्र में भाजपा के आने पर काशी-मथुरा के महान तीर्थ इस्लामी कब्जे से छुड़ाने का काम हो सकता है। शायद कुछ मुस्लिम नेता तदनुरूप अपने पैंतरे और लेन-देन पर भी सोचते रहे हों। आखिर, मुसलमान हर कहीं मुख्यतः राजनीतिक समुदाय रहे हैं। और राजनीति में समय देख रंग बदल कर समझौते किए ही जाते हैं। यहीं उन्होंने 1857 के बाद अंग्रेजों के सामने झुक कर जितने रूप बदले, वह इसी के उदाहरण थे। अतः यह अनुमान वृथा नहीं कि किसी कटिबद्ध हिन्दू नेतृत्व के सामने वे काशी और मथुरा के महत्वपूर्ण हिन्दू तीर्थों-मंदिरों को स्वेच्छया देकर समझौता कर लेते। अच्छे राजनीतिक शतरंज की कई संभावित चालों की तरह विविध उपाय सोचे रखते हैं।
यह संभावना इसलिए और वास्तविक है क्योंकि एक तो काशी एवं मथुरा में इस्लाम का कुछ महत्वपूर्ण कहने के लिए भी नहीं है। जो है, वह आक्रमण, हिंसा और विध्वंस का। इसीलिए वहाँ इस्लामी दावे जैसा कुछ नहीं है। वैसे भी, इस्लाम में किसी भौतिक वस्तु को महत्व देने की मनाही है। इसीलिए सऊदी अरब में खुद पैगम्बर मुहम्मद से जुड़ी मस्जिदें तक बेखटके गिराई गई हैं। यानी किसी भी मस्जिद को हटाना सामान्य दुनियावी काम है।
दूसरे, अभी हाल तक भाजपा और सहयोगी संगठन काशी-मथुरा-अयोध्या की ‘मुक्ति’ का आंदोलन चलाते रहे थे। तब इस से अधिक स्वभाविक क्या कि उन के सत्तासीन होने पर मुक्ति होती? इस से जुड़ी समस्याओं के समाधान की पहल होती। मगर वह सब छोड़ हिन्दुओं को नित अपमान-बोध कराते दयनीय मंदिर तक पहुँचने का रास्ता चमकाने की कवायद हो रही है!
जबकि यदि मई 2014 में सरकार बनाने के साथ ही सर्वोच्च नेता सीधे मुस्लिम समुदाय को संबोधित कर कहते कि काशी एवं मथुरा को अपमान से मुक्त कराना उन की राष्ट्रीय जिम्मेदारी है, अतः उस में सहयोग करें तो कोई मार्ग तुरत खुल सकता था। बशर्ते भाजपा नेतृत्व में दृढ़ता दिखती कि वे हर हाल में वह करेंगे। वह सच्चा, निष्कपट काम होता।
स्वयं संविधान में इस का मार्ग दिया हुआ है। सरकार सामाजिक हित में किसी भी संपत्ति का अधिग्रहण कर सकती है। करती रही है। अतः हिन्दू-मुस्लिम सदभाव को स्थाई आधार देने के लिए सरकार बेशक घोषित कर सकती थी कि काशी, मथुरा, अयोध्या और भोजशाला जैसे महत्वपूर्ण स्थल खुले घाव की तरह हैं, जहाँ राजनीतिक मक्खियाँ जब-तब भिनभिनाती रहती हैं। इसलिए, उन्हें भरने के लिए न्यायोचित कदम उठाया जा रहा है। जो यही होता कि प्राचीन काल से निर्विवाद जिन महान हिन्दू मंदिरों को इस्लामी हमलावरों ने घोषित रूप से तोड़कर कब्जा किया था, कम से कम उन्हें पुनर्स्थापित कर दिया जाए।
यदि यह निश्चय दर्शाया जाता तो मुस्लिम समुदाय में भी समझदार लोग सहयोग करते। यह अयोध्या आंदोलन के समय देखा भी गया है। 1988 से 1992 के बीच कई बार, कई तरह के मुस्लिम अलग-अलग तरीके से कहते थे कि ‘यदि साबित हो जाए कि अयोध्या में बाबरी मस्जिद उसी जगह बनाई गई थी, जहाँ पहले राम मंदिर था, तो वे वहाँ अपना दावा छोड़ देंगे।’ अर्थात् जानकार मुसलमान न्याय जानते हैं। वे यह भी समझते हैं कि यदि हिन्दू कटिबद्ध होकर अपने महत्वपूर्ण तीर्थ वापस लेना तय कर लें, तो सम्मानजनक समझौता कर लेना ही बुद्धिमानी है। वही सब के हित में है। साथ ही, उस में मुसलमानों के लिए कुछ अनुचित भी नहीं है।
तब काशी, मथुरा और भोजशाला के लिए तो किसी प्रमाण की भी जरूरत नहीं! उन्हें देखते ही पता चल जाता है कि कभी वहाँ इस्लामी हमलावरों ने क्या किया था। जैसा प्रसिद्ध पत्रकार सईद नकवी ने कहा भी कि काशी और मथुरा के महान स्थलों पर इस्लामी अतिक्रमण देख किसी भी हिन्दू को दुःख होगा। यह दुःख खत्म करना ही हिन्दू-मुस्लिम सदभाव बनाने का सटीक उपाय है। इस की अनदेखी करना अंदर ही अंदर दोनों समुदायों में वैर बनाए, जगाए रखना है। यह कड़वी सचाई खुले हृदय से, भ्रातृ-भाव से कहकर ही सच्चा समाधान पाया जा सकता है। किन्तु इस के बदले राजनीतिक चतुराई दिखाना नेताओं का खालीपन ही है। काशी-मथुरा को अपने हाल पर छोड़ देना वही खालीपन है जो शिक्षा और नागरिक सुरक्षा के मसलों पर भी दिखाई पड़ता है। सामान्य हिन्दू इसे समझें या नहीं, किन्तु हिन्दुओं के शत्रु जरूर समझ लेते हैं कि भाजपा असली मुद्दों से उलझने से बचती है। इस से हानि अंततः हिन्दू समाज और पूरे देश की होती है। शंकर शरण
Vivek Jha औरंगजेब को कट्टरपंथी साबित करने की कोशिश में एक बड़ा तर्क यह भी दिया जाता है कि उसने संगीत पर प्रतिबंध लगा दिया था, लेकिन यह बात भी सही नहीं है। कैथरीन बताती हैं कि सल्तनत में तो क्या संगीत पर उसके दरबार में भी प्रतिबंध नहीं था। बादशाह ने जिस दिन राजगद्दी संभाली थी, हर साल उस दिन उत्सव में खूब नाच-गाना होता था।[12] कुछ ध्रुपदों की रचना में औरंगजेब नाम शामिल है जो बताता है कि उसके शासनकाल में संगीत को संरक्षण हासिल था। कुछ ऐतिहासिक तथ्य इस बात की तरफ भी इशारा करते हैं कि वह खुद संगीत का अच्छा जानकार था। मिरात-ए-आलम में बख्तावर खान ने लिखा है कि बादशाह को संगीत विशारदों जैसा ज्ञान था। मुगल विद्वान फकीरुल्लाह ने राग दर्पण नाम के दस्तावेज में औरंगजेब के पसंदीदा गायकों और वादकों के नाम दर्ज किए हैं। औरंगजेब को अपने बेटों में आजम शाह बहुत प्रिय था और इतिहास बताता है कि शाह अपने पिता के जीवनकाल में ही निपुण संगीतकार बन चुका था।औरंगजेब के शासनकाल में संगीत के फलने-फूलने की बात करते हुए कैथरीन लिखती हैं, ‘500 साल के पूरे मुगलकाल की तुलना में औरंगजेब के समय फारसी में संगीत पर सबसे ज्यादा टीका लिखी गईं।’ हालांकि यह बात सही है कि अपने जीवन के अंतिम समय में औरंगजेब ज्यादा धार्मिक हो गया था और उसने गीत-संगीत से दूरी बना ली थी। लेकिन ऊपर हमने जिन बातों का जिक्र किया है उसे देखते हुए यह माना जा सकता है कि उसने कभी अपनी निजी इच्छा को सल्तनत की आधिकारिक नीति नहीं बनाया।[13] SingChinmaya N Singh औरंगज़ेब के दरबार में इतालवी राजनयिकों और व्यापारियों का प्रवेश था। अंग्रेजों की दाल गलने में बहुत दिक्कत हुई वहां। इसके प्रतिकार में अंग्रेजी साहित्यकारों-इतिहासकारों की सुनियोजित साज़िश का शिकार हुआ औरंगज़ेब।
उसका चरित्र मर्दन किया गया। यह एक कठोर सच है, जिसे पद्मश्री गजेन्द्र बाबू ने सविस्तार बताया होगा पुस्तक में। मैं पुस्तक पढ़ नहीं सका हूँ, जल्द पढूंगा।3
धनंजय सिंहधनंजय सिंह औरंगज़ेब खुद एक उम्दा वीणा वादक थे, कुछ उनकी कट्टरता रही होगी और कुछ समकालीन इतिहासकारों की कट्टरता जिसने आलमगीर को सबसे कट्टर मुग़ल की छवि में कैद कर दिया। वैसे ही जैसे मुहम्मद बिन तुगलक जैसे दूरदर्शी सुल्तान को मूर्ख सिद्ध कर दिया गया।
Praveen Jha27 September · सुनी कहानी यह थी कि जब औरंगज़ेब ने संगीत पर पाबंदी लगाई तो सारे फ़नकार अपने बीन वगैरा लेकर जमीन में गाड़ने एक साथ निकल पड़े। औरंगज़ेब मस्जिद में थे तो पूछा कि बाहर क्या हो रहा है? सबने कहा कि संगीत की कब्र खुद रही है। तो औरंगज़ेब ने शांत भाव से कहा, “ख़ुदा! मौसिकी की रूह को जन्नत बख्शे।”
लेकिन, यह किताब इन किंवदंतियों को अलग नजरिए से देखती है, बल्कि औरंगज़ेब को फनकार कहती है। सच्चिदानंद सर ने कभी चर्चा की थी, आज मिली। बाकी बातें पढ़ने के बाद। आप भी पढ़िए यह किताब गर मौका लगे।
Praveen Jha
28 September ·
संगीत को अय्याशों या फक्कड़ों ने ही संभाला। यह मध्य-वर्गीय शौक कभी ख़ास रहा नहीं। या तो कोई नवाब-सुल्तान-महाराजा हो, या कोई साधु-संत। सूट-टाई में कहाँ संगीत हो पाता है? और इतना वक़्त किसके पास है कि रात-रात भर संगीत बजाता-सुनता रहे। इसमें जितने सात्विक हुए, उतने ही शराबी भी। खुश हुए तो अपना गहना उठा कर ईनाम दे दिया। कहीं एक गुलदस्ता गिरा, सुर टूटा तो सब बेड़ागर्क। मैं आज कह रहा था भारत की सबसे बड़ी सिगरेट कंपनी ने चालीस सालों से संगीत बचा कर रखा है, और सबसे बड़ा संगीत गुरुकुल उनका ही है। यह अनुशासन का कार्य है, जो अराजक भी नजर आता है। मैं एक बार किसी मित्र से सुनकर कह चुका हूँ कि “Music is an organised anarchy”.
अब नवाब वाजिद अली शाह जब किशोरावस्था में थे तो घूँघरू पहन कर कथक नाचते रहते थे। उनके पिता के सिपहसलारों ने कहा कि जनाब! यह लड़का तो बिगड़ गया, यह क्या नवाबी करेगा? उनके पिता ने दरबार में बुलवाया तो वह घुँघरू पहन कर ही आ गए। पिता ने वापस भेज दिया। लेकिन जब वह लौटे तो घुँघरू से आवाज ही न निकली। उनके पिता ने कहा कि जिसके पैरों में इतना अनुशासन और नियंत्रण है कि चले और घुँघरू की आवाज रोक ले, उसकी अब मुझे कोई चिंता नहीं।
#ragajourney
….
नवाब ने अपने जीवन-काल में लगभग अस्सी किताबें लिखी और अख़्तरपिया नाम से कई बंदिशें। हाँ! उनकी नवाबी जरूर छिन गयी।
See Translation
Praveen Jha
4 October ·
पहले सामंत हाथी रखते ही थे। गाँव में जिसके पास हाथी, वह बड़ा जमींदार। हाथी बिक गया, यानी जमीन बिक गए। हमारे समय में हाथी लगभग खत्म हो रहे थे, कहानियाँ बच गयी थी। यह सुनते कि एक हाथी पाँच किलो चावल खा जाता, और खाने न दो तो उत्पात मचा देता। एक बार सोनपुर मेला गया तो वहाँ का हाथी मेला याद है। ऊँट बिक रहे थे, लेकिन हाथी नहीं। हाथी बेचने पर शायद पाबंदी थी, पर हाथी थे जरूर सजे-धजे। मेरे ख्याल से जिनके पास बच गए होंगे, वह मेले घुमाने ले आते होंगे।
एक शाहजहाँ के हाथी की कहानी पढ़ी, जो औरंगज़ेब के महल में आने से इंकार कर रहा था। औरंगज़ेब को गुस्सा आया तो हाथी को तीन दिन भूखा रख, बुलवाया। हाथी आया तो सही पर लंका-दहन की तरह पूरा महल तहस-नहस कर गया। इतना ही नहीं, महल के दरवाजे पर एक हाथी की बड़ी तस्वीर उकेरी थी। उसे लगा कि यह औरंगज़ेब का हाथी है। हाथी ने उसे मार-मार कर दीवाल ही तोड़ दी और दिल्ली बाज़ार में घूम-घूम कर उत्पात करने लगा।
आखिर औरंगज़ेब ने हार कर हाथी को शाहजहाँ के पास आगरा भिजवा दिया। हाथी वहाँ अपने कैद मालिक के पास ही रहा और उसने दम ठीक उसी दिन तोड़ा जिस दिन शाहजहाँ का इंतकाल हुआ। उस हाथी का नाम था- ख़ालिक-दाद।
#मुगलिया
Nazeer Malik14 November at 20:15 · इतिहास के अनछुए प्रसंग…… 1
रुस्तमे ज़मान का नाम सुना है आपने? वह शिवाजी के शिवाजी के 18 अंगरक्षकों के प्रमुख थे। शिवा जी के 18 अंगरक्षकों में से 12 मुस्लिम थे। ज़मान सभी में सबसे योग्य थे। इसलिए अंगरक्षक प्रमुख थे। ओह जासूसी में भी प्रवीण थे। इससे लिए वह अंगरक्षक टुकड़ी के नायक थे। बात उस समय की है जब आदिलशाही सेना के एक सेनापति अफजल खान ने वार्ता कि आड़ में शिवा जी की मौत कि साज़िश रची थी।
वार्ता में शिवा जी को निहत्था अफजल से मिलने जाना था, शिवाजी जाने को तैयार भी थे। अचानक रुस्तमे जमान उनके पास आता है और बताता है कि वार्ता के दौरान अफजल निहत्था होने के बाद भी उन (शिवाजी) पर हमला कर सकता है। जमान शिवा जी को बताता है कि अफजल खान 6 फुट का बलशाली पठान है। निहत्था होने के बाद भी आपकी गर्दन दबोच कर हमला कर दे तो आप 5 फुट के होकर उससे कैसे बच सकेंगे।
तमाम विमर्श के बाद रुस्तम ए जमान ने अफ़ज़ल खान से मिलने से पूर्व वघ नख पहन कर जाने की सलाह दी। मुलाकात में वहीं हुआ। अफजल ने गले मिलते समय शिवा जी को मारने कि कोशिश की, लेकिन उंगलियों में पहने बघनख से शिवा जी ने अफजल का पेट फाड़ डाला। इस तरह जमान की सलाह ने शिवा जी की जान बचा ली।
वंही दूसरी और अफ़ज़ल खान का अंगरक्षक/सलाहकार कृष्णा भाष्कर कुलकर्णी था, जब शिवाजी ने अफ़ज़ल खान को मारा तो कृष्णा भाष्कर कुलकर्णी ने शिवाजी पर तलवार से हमला कर दिया, लेकिन चौकन्ने शिवा जी ने उसके हमले को विफल कर दिया।
अब सवाल यह है कि शिवा जी के मुस्लिम अंगरक्षक रुस्तमे जमान ने हिन्दू राजा शिवा जी के प्राण बचाए और और अफजल खान के हिन्दू अंगरक्षक ने शिवा जी पर हमला किए तो फिर ये युद्ध हिन्दू मुसलमान का कैसे हो सकता है, जैसा कि सांप्रदायिक संगठन कहते हैं। एक और मिसाल है, शिवा जी का एक सेनापति सिद्दी मुसलमान था और औरंगज़ेब की सेना के सरदार राजा जय सिंह थे, जो युद्ध में सामने सामने रहते थे। फिर इसे किस आधार पर धर्मयुद्ध कहा जा सकता है।
तो साथियों इन सांप्रदायिक तत्वों की साज़िश को समझना होगा, ये समाज को तोड़ने और सत्ता पाने की साज़िश कर रहे हैं। ये सांप्रदायिक जमात कौन है, इसे आप भी जानते हैं। इसलिए जागो भारत वासी जागो और इन्हे बेनकाब करों।Nazeer Malik
16 November at 19:47 ·
इतिहास के अनूठे प्रसंग………… 3
मित्रों आपको प्रधानमंत्री का महाराष्ट्र दौरा याद होगा। उन्होंने कहा था कि शिवाजी महाराज ने सूरत में औरंगजेब का खजाना लूटा था।औरंगजेब का खजाना दिल्ली में रहता था या सूरत में, ये तो प्रधानमंत्री जी ही बता सकते हैं। लेकिन आदरणीय मोदी जी के इस भाषण को जब यू ट्यूब पर हाल में मैने सुना तो इतिहास का एक अनूठा प्रसंग याद आ गया। जिसे पढ़ कर आप भी शिवाजी महराज की धर्मनिरपक्षता के कायल हो जायेंगे, जिन्हें साम्प्रदायिक ताकतें मुसलमानों का दुश्मन ठहराकर आये दिन चुनाव में हिंदू मुस्लिम के बीच ध्रुवीकरण की साजिश करती रहती हैं।
सन 1661 से 1663 के बीच मुगल सरदार शाइस्ता खां ने शिवाजी को आर्थिक रूप से बहुत नकसान पहुंचाया था। तब शिवा जी का राज्य बहुत छोटा था। अर्थिक संसाधन बहुत कम थे। ऐसे में उन्होंने सूरत को लूटने की योजना बनाई। सूरत उस समय मुगल साम्रज्य का बेहद समृद्ध शहर था। उनके छापामार सिपाहियों की तादाद कुल चार हजार थी। यद्यपि मुगल सेना बहुत बड़ी थी, लेकिन सूरत की रक्षा के लिए सूबेदार इनायत खान के पास सेना की एक छोटी टुकड़ी ही मौजूद थी। बहरहाल शिवाजी ने सूरत रवाना होने से पहले अपने सैनिकों के बीच एक भाषण दिया। जो संभवतः दो या तीन जनवरी 1664 का दिन था।
शिवाजी ने भाषण में सैनिकों को तीन निर्देश कड़े दिये। उन्होंने कहा कि सूरत से पहले पीर बाबा की मजार पड़ेगी,, उन्हें सुरक्षित रखना और अपने कमांडर से कहा कि वहां पर जा कर उन्हें नजराना दे देना। दूसरी हिदायत यह थी कि वहां सेंट पिंटो का चर्च है, वहां किसी प्रकार की हिंसा नही होनी चाहिए। सभी उसका सम्मान करेंगे। तीसरी हिदायत थी कि उस दौरान अगर किसी को किसी भी धर्म की पुस्तक हाथ लगे तो उसे सम्मान से उस धर्म के जिम्मेदार आदमी के हाथ दे दी जाये। उसके बाद 6 जनवरी को उनकी फौज सूरत पहूंची और चार दिन तक जम कर लूट पाट की।
अब मूल सवाल यह है कि जब शिवाजी इतने सहिष्णु थे तो वो मुसलमानों के शत्रु कैसे हो सकते थे। या साम्प्रदायिक कैसे हो सकते थे। उनका युद्ध हिंदू मुस्लिम का कैसे हो सकता था। लेकिन आज फिरकापरस्त ताकतें उन्हें साम्प्रदायिक पुरोधा मानने पर तुली हुई हैं। उन्होंने बीजापुर के बादशाह की बहू गौहरबानू को गिरफ्तारी के बाद कितने सम्मान से लौटाया था और कहा था कि “ काश मेरी मां भी इतनी सुंदर होतीं” एक मुस्लिम महिला कैदी से इस तरह का व्यवहार करने वाले शिवाजी हिंदू-मुस्लिम के आधार पर कैसे लड़ सकते थे।
दरअसल यह हिंदू और मुस्लिम साम्प्रदायिक ताकतों के षडयंत्र के अलावा कुछ नही हैं। वहीं ताकतें आज भी इस षडयंत्र में लीन हैं। इसलिए जागो भारत जागो।
Nazeer Malik
18 November at 15:52 ·
इतिहास के अनूठे प्रसंग……… 4
…………………………………………
सौराष्ट्र निवासी यूसुफ हबीब मर्फानी उस समय वर्मा के बड़े व्यापारी माने जाते थे। वह वर्मा की राजधानी रंगून में कारोबार करते थे। उस समय बर्मा में उनकी वही हैसियत थी, जो भारत में बिडला की थी। 9 जुलाई 1944 को जब नेता जी सुभाष् चंद्र बोस ने आईएनए की स्थापना कर आजाद हिंद बैंक के लिए आर्थिक मदद किया तो भारत प्रेमी लोगों ने मदद देनी शूरू की।
उस दौरान उस दौरन यूसुफ मफार्नी साहब ने पहला दान एक करोड़ रूपये का दिया। इनमें नकद व घर की महिलाओं के सारे जेवरात भी थे। उन्होंने अपने कारखाने तक बेच दिये थे। उनके पास सिर्फ घर बचा था। बाकी सारी जायदाद बेच दी थी। इसके बाद नेता जी सुभाष चन्द बोस ने यूसूफ साहब को सेवक ए हिंद का खिताब दिया।
इस घटना को इतिहासकार राजमल कासलीवाल अपनी किताब ‘नेताजी आजाद हिन्द फौज एंड आफ्टर’ में बताया है की नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ने उनके इस दान पर कहा था की -‘हबीब सेठ ने आजाद हिन्द फौज की मदद करी है उनका यह योगदान हमेशा याद रखा जायेगा’ इसके अलावा वर्मा के कई इतिहासकारों ने इस पर विस्तार से प्रकाश डाला है। इसके सारे दस्तावेज आज भी मौजूद हैं।
यूसुफ साहब की यह मदद जंगे आजादी में सबसे बड़ी आर्थिक मदद थी। जो आजादी के बाद तक कायम रही। स्वतंत्र भारत में इस रिकार्ड को भी तोड़ा हैदराबादके पूर्व निजाम ने शास्त्री जी को 5 टन सोना दान कर। अब सवाल है कि उस समय संघी कहां थे? गुजरात के मौजूदा सीएम रूपानी जी के पिता जी भी उस समय वर्मा के कारोबारी थे। संघ को यह बताना चाहिए कि उन्होंने नेता जी की कितनी आर्थिक मदद की थी?
आजादी के बाद जब तत्कालीन प्रधानमंत्री जी देश से मदद मांग रहे थे तो भारत के सबसे बड़े बड़ा पूर्व रजवाड़ा की मालकिन और संघ को हर मदद देने वाली राजमाता विजया राजे सिंधिया सहित तमाम संघ समर्थित रजवाड़े क्या कर रहे थे। अगर संधियों ने ऐसे अवसरों पर देश को कुछ दिया हो तो उन्हें जरूर बताना चाहिए। ऐसे मुश्किल हालात में देश के सभी हिंदू मुस्लिम आदि सभी ने कुछ न कुछ दिया, मगर संघ और ने क्या किया?
नोट— (यह पोस्ट एक संघ भाई के कटु सवाल के जवाब में)
सर्वेश तिवारी कल सबरीमाला मन्दिर में दो आक्रमणकारी कुलटाएं प्रवेश कर गयीं। कई महीनों तक हमारी असंख्य माताएँ, बहनें, बेटियां मन्दिर की रक्षा के लिए डटी रहीं, पर कल पुरुष वेश में छल से घुस गयीं दोनों। इनके पास कोई पूजन सामग्री नहीं थी सो किसी को शक भी नहीं हुआ। इन्होंने कोई पूजा पाठ नहीं किया क्योंकि पूजा तो इनको करना ही नहीं था। दोनों ईसाई हैं और वामपंथी, इनका लक्ष्य था मन्दिर को भ्रष्ट करना, सो इन्होंने कर दिया।
ठीक से देखें तो पिछले सौ-दो सौ सालों में सनातन पर हुआ यह सबसे बड़ा प्रहार है। किसी युग में इसी तरह गजनवी, गोरी, सिकन्दर लोदी, बाबर, औरंगजेब या टीपू मन्दिरों को भ्रष्ट करते थे।
मन्दिर का भ्रष्ट होना कोई बड़ी चिंताजनक बात नहीं, सनातन को ऐसे असंख्य आक्रमणों का अनुभव है। हमारे किसी मंदिर पर यह प्रथम आक्रमण नहीं। हम पुनरुद्धार करना जानते हैं, हम शुद्धिकरण जानते हैं, हम सबरीमाला को भी शुद्ध कर लेंगे।
आपको पता है काशी विश्वनाथ मंदिर कितनी बार तोड़ा गया है? मेरी जानकारी के अनुसार लगभग पाँच बार… सम्भव है यह संख्या और बड़ी हो। आप जानते हैं वामपंथी इतिहासकारों द्वारा महिमामण्डित रजिया सुल्तान ने भी काशी विश्वनाथ को तोड़ा था? महादेव मंदिर बार-बार तोड़ा गया, हमनें हर बार पुनर्निर्माण किया।
आप जानते हैं मथुरा का कृष्ण जन्मभूमि मन्दिर कितनी बार तोड़ा गया? दसों बार… गजनवी ने तोड़ा, तो कुछ वर्षों बाद जिज्जी नामक एक गुमनाम व्यक्ति ने मंदिर का निर्माण कराया। फिर सिकन्दर लोदी ने तोड़ दिया, तो ओरछा नरेश बीरसिंह बुन्देला ने बनवाया। 1669 में फिर तोड़ दिया गया… फिर बना।
हम यूँ ही आज तक नहीं बचे हुये हैं। हमारे बाद जन्मी असंख्य सभ्यताएं समाप्त हो गईं। सनातन के साथ का कोई धर्म नहीं बचा है आज भूमि पर, सबको साम्प्रदयिक तलवारें लील गयीं। और कितनी आसानी से लील गयीं इसका उदाहरण देख लीजिए-
किसी युग में पारसी सबसे कुशल योद्धा हुआ करते थे, और फारस का डंका बजता था विश्व भर में। उस फारस पर सातवीं शताब्दी में अरबी आक्रमण हुआ, और मात्र सौ वर्षों में फारस से पारसी धर्म पूर्णतः समाप्त हो गया। जी हाँ! मात्र सौ वर्षों में…
यह मात्र फारस की बात नहीं! यूनान, मिश्र, मध्यएशिया की बौद्ध संस्कृति, सब समाप्त हो गए, और वह भी मात्र एक एक प्रहार में… हम हजार वर्ष की परतन्त्रता और हजार प्रहारों के बाद भी पूरी शक्ति और सम्मान के साथ स्थापित हैं।
क्यों? कैसे?
हम इसलिए स्थापित हैं क्योंकि हमारे अंदर पुनरुद्धार की जिद्द थी। हमारे अंदर बार-बार उठ खड़े होने का साहस था। वे हमारे मन्दिरों को बार-बार तोड़ते रहे, हम उन्हें बार बार खड़ा करते रहे।
हम सबरीमाला को भी शुद्ध कर लेंगे। कोई व्यय नहीं, हम मात्र पंचगव्य से धो कर शुद्धि कर सकते हैं। यह बीस हजार वर्ष पुरानी परम्परा है, दो डायनों के कुकर्म से नहीं टूटेगी।
पर इस घटना ने हमें वर्तमान की चुनौतियों का दर्शन तो करा ही दिया है। इस घटना ने बता दिया है कि हमारी स्वतन्त्रता कितनी झूठी है। पूरे केरल की सभी सनातनी स्त्रियों के विरोध के बाद भी सुप्रीम कोर्ट और केरल की वामपंथी सरकार मिल कर हमारे मन्दिर को अपवित्र कर देती है, यह है हमारी धार्मिक स्वतंत्रता…
और इसमें विधर्मी सहयोग देख लीजिए। केरल की हमारी माताएँ बहनें जब मन्दिर की रक्षा के लिए आंदोलन करती हैं और मीलों लम्बी मानव श्रृंखला बनाती हैं, तो उसके अगले दिन ही ईसाई और मुस्लिम महिलाएं मन्दिर में प्रवेश के लिए आंदोलन शुरू कर देती हैं… और इस देश का कानून उनसे यह नहीं पूछता कि हिन्दुओं के तीर्थस्थल में प्रवेश के लिए वे क्यों आन्दोलन कर रही हैं। उन आक्रमणकारी महिलाओं से यह कोई नहीं पूछता कि जब सभी सनातनी स्त्रियां स्वयं मन्दिर में प्रवेश के विरुद्ध हैं तो ये नीच विधर्मी स्त्रियां क्यों मन्दिर भ्रष्ट कर रही हैं?
भइया! सनातन पर आज भी उतने ही प्रहार हो रहे हैं जितने मध्यकाल में हो रहे थे। अंतर बस यह है कि पहले पश्चिम से आने वाले असुर थे, अब वामपंथी हैं। तब बाबर-औरंगजेब थे, अब सुप्रीम कोर्ट है।
मित्र पहचानिए समय को, पहचानिए विधर्मी षडयन्त्रों को, पहचानिए आक्रमण के नए अस्त्रों को… धर्म की रक्षा सत्ता नहीं करती, धर्म की रक्षा प्रजा करती है। इन धार्मिक आतंकवादियों से रक्षा का एक ही मन्त्र है “घृणा”, उसी से हमारी रक्षा हो सकती है। धर्मनिरपेक्षता का ढोंग छोड़िये, धर्म से निरपेक्ष नहीं हुआ जा सकता। यदि कोई धर्मनिरपेक्षता का ज्ञान लेकर आये तो पूछिये कि हमारे मन्दिर को अपवित्र करने के लिए वह विधर्मी महिलाएं क्यों आंदोलन कर रही थीं? जो ईसाई आज तक किसी स्त्री को पोप या विशप नहीं बनाए, उनकी महिलाएं किस मुह से नारीवाद बघार रही हैं?हमने तो स्त्री ही नहीं किन्नरों तक को महमण्डलेश्वर बनाया है, फिर नारीवाद के नाम पर हमपर आक्रमण क्यों हो रहा है?
राजनीति से ऊपर उठिए, मोदी और राहुल, अखिलेश जैसे हजारों आये और इसी मिट्टी में मिल गए। कई हजार वर्षों पुराना राष्ट्र है यह। मोदी-राहुल महत्वपूर्ण नहीं हैं, महत्वपूर्ण है भारत, और महत्वपूर्ण है सनातन। क्योंकि भारत वहीं तक है जहाँ तक सनातन है। जहाँ से सनातन समाप्त हो जाता है वह खण्ड भारत नहीं रहता, पाकिस्तान, बंग्लादेश, अफगानिस्तान हो जाता है…
विपत्ति के इस काल मे भी यदि निरपेक्षता का ढोंग करते रहे, तो जो सभ्यता हजार वर्षों के इस्लामिक प्रहार से भी नहीं मरी वह मात्र सौ वर्ष के ईसाई प्रहार से मर जाएगी।
और हाँ! भगवान अय्यप्पा का घर पवित्र कर लेंगे हम…
सर्वेश तिवारी
गोपालगंज, बिहार।
Prashant Tandon
3 January at 13:49 ·
पाकिस्तान का अयोध्या जैसा विवाद जहां आज भी गुरुद्वारा शहीदगंज खड़ा है:
लाहौर गुरुद्वारा शहीदगंज सदियों पुराने मुस्लिम सिख विवाद, सुलह और कानून के राज की नायाब मिसाल है. पाकिस्तान आज मुस्लिम बाहुल इस्लामिक रिपब्लिक है जहां कुल 6000 के करीब सिख आबादी है (पाकिस्तान के सरकारी आंकड़ों के मुताबिक). इसके बावजूद गुरुद्वारा शहीदगंज लाहौर में मौजूद है और यहां रोज़ गुरु ग्रंथ साहिब का पाठ भी होता है.
मस्जिद पर कब्जा कर के बना था गुरुद्वारा शहीदगंज:
जहां आज ये गुरुद्वारा हैं वहां कभी अब्दुल्ला खाँ मस्जिद हुआ करती थी जिसकी तामीर शाहजहाँ के शासन के दौरान 1653 में हुई थी. अब्दुला खाँ शाहजहाँ के बड़े बेटे दारा शिकोह के खानसामा थे और बाद में वो लाहौर के कोतवाल भी बने. 18वीं शताब्दी में मुगल साम्राज्य के पंजाब के गवर्नर जकरिया खाँ ने सिखों पर बहुत ज़ुल्म ढाये. मुगलों के खिलाफ संघर्ष में सिखों के एक मददगार तरु सिंह को जकरिया खाँ के आदेश पर सारे आम प्रताड़ित कर के मार डाला गया. ये हादसा अब्दुला खाँ मस्जिद के पास ही हुआ था. सिखों ने तरु सिंह को शहीद का दर्जा दिया और उस इलाके को शहीदगंज का नाम भी दिया.
1762 में सिखों ने युद्ध में जीत हासिल कर के लाहौर पर कब्जा बना लिया और शहीदगंज की अब्दुल्ला खाँ मस्जिद में मुसलमानों की आवाजाही पर रोक लगा दी. इसी मस्जिद के आहते में तब ही एक गुरुद्वारा भी बनाया गया जिसे नाम दिया गया गुरुद्वारा शहीदगंज भाई तरु सिंह.
लंबी कानूनी लड़ाई:
ब्रिटिश राज के दौरान 1849 से 1883 तक मुस्लिम और सिखों के बीच ये मामला कई बार अदालतों में गया पर सभी अदलातों में यथाथिति बनाए रखने के ही आदेश आए – यानि गुरुद्वारा नहीं हटाया गया. शहीद गंज मस्जिद के ट्रस्टी नूर मुहम्मद सारी ज़िंदगी मस्जिद पर कब्जा हासिल करने के लिये कानूनी लड़ाई लड़ते रहे.
1935 में ये संपत्ति सिख गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी के अधीन आ गई जिसके बाद सिखों ने उस आहते में मस्जिद के अवशेष गिराने शुरू किए जिसे लेकर वहां कई बार दंगे हुए, फायरिंग हुई और कर्फ़्यू लगे. मामला एक बार फिर हाई कोर्ट पहुंचा जिस पर अदालत ने ये माना कि परिसर मस्जिद ही है लेकिन यथाथिति बनाए रखने का आदेश दिया.
आज़ादी और बटवारे के बाद 1950 में एक बार फिर ये मामला कई बार अदालतों में गया लेकिन पाकिस्तान की अदालतों ने भी पिछले आदेशों में कोई तबदीली नहीं की. 1990 के दशक में सिखों की तरफ से शहीदगंज गुरुद्वारे की मरम्मत की अर्ज़ी दी गई जिसका वहां कई मुस्लिम संगठनों ने भारी विरोध किया लेकिन स्थानीय लोग गुरुद्वारे के पक्ष में थे और आखिरकार 2004 में पाकिस्तान की सरकार की इजाज़त के बाद इस गुरुद्वारे का नवीनीकरण किया गया.
जो मिसाल पाकिस्तान की अदालतों ने और वहां की बहुसंख्य मुस्लिम आबादी ने गुरुद्वारा शहीदगंज में कायम की है भारत की अदालतों और हिन्दू समाज के लिए नज़ीर है जिसकी रौशनी में अयोध्या मसले का हल निकालना चाहिये.