क्या संघ हैदराबाद की पार्टी मजलिस इत्तेहादुल मुसलमीन को पैसे दे रही है ? क्या उसे संघ और भाजपा का समर्थन प्राप्त है ?क्या उस के उद्भव से संघ को लाभ हो गा? क्या ये पार्टी मुल्क दुश्मन है? क्या ओवैसी बंधू के भाषण देश और राष्ट्र के लिए खतरनाक है . आज कल राजनीति में ओवैसी बंधू की पार्टी मजलिस का चर्चा बहुत जोरो पे है .महाराष्ट्र में विधान सभा में दो सीटो पे जितना और १० से अधिक सीटो पे दूसरे नंबर पर रहना और उस के बाद कारपोरेशन के चुनाव में भी अच्छा करना ने उन राजनितिक पार्टियो के होश उडा दिए है जो अभी तक मुस्लिम वोटो के कारन ऐश कर रहे थे .जब से मजलिस ने अपनी पार्टी को पुरे देश में विस्तार करने का एलान किया है तब से उन लीडरो में खलबली मच गयी है जो मुस्लिम वोटो के दावेदार है . सुशील कुमार शिंदे की बेटी ने तो इस पार्टी पर पाबन्दी लगाने की मांग की , तो लालू प्रसाद यादव ने उसे संघ का एजेंट बताया . दूसरी तरफ मुलायम के राज्य में तोगड़िया, योगी, साक्षी महाराज जहर उगल रहे है लेकिन ओवैसी बंधू को मीटिंग और जलसे करने की भी इजाजत नहीं दी जा रही है .आखिर क्या कारन है के मजलिस अचानक मुल्क दुश्मन और संघ की एजेंट हो गयी , असल में अपने आप को सेक्युलर और मुस्लिम हमदर्द कहने वाली पार्टियो को मजलिस की मक़बूलियत से दर सताने लगा है और उन्हें बदनाम करने की कोशिश की जा रही है .
इन दिनों उभरती हुई मजलिस के विरोधियो की तरफ से मजलिस और ओवैसी पे सख्त हमले किये जा रहे है .उन का विरोध करने में जहा हिन्दू पार्टिया है वही अपने आप को सेक्युलर कहने वाली पार्टिया भी शामिल है क्यों के सब से ज्यादा नुक्सान उन को ही है , उन को लगता है के कही मजलिस मुस्लिम वोटरो को न उन से छीन ले . राष्ट्रवादी कांग्रेस के शरद पवार ने इल्जाम लगाया है के भाजपा मजलिस को समर्थन कर रही है . लालू ने कहा के संघ का पूरा समर्थन मजलिस को दे रही है ताके मुस्लिम वोट बनते और हिन्दू पार्टिया सत्ता इ आये .लगभग सभी सेक्युलर पार्टिया मजलिस के उभर से दरी हुई है . आश्चर्य होता है के मजलिस भी ( UPA ) में शामिल रही है तो आज ये मुल्क दुश्मन पार्टी कैसे हो गयी .
मजलिस सिर्फ सेक्युलर पार्टियो के ही निशाने पे नहीं है बल्कि इस पर हिन्दू पार्टिया शिव सेना, भाजपा , विशव हिन्दू परिषद भी कट्टरवादी हिन्दू वोटरो को उकसाने में लगी है और ओवैसी बंधू का डर दिखा हिन्दू वोटो को अपने तरफ करने की कोशिश कर रही है .शिव सेना ने अपने अखबार सामना में लिखा है के मजलिस यहाँ इस्लामी झंडा फहराना चाहती है और महाराष्ट्र को मिनी पाकिस्तान बनाना चाहती है . परवीन तोगड़िया , आदित्यनाथ और सभी हिन्दू फायर ब्रिगेड नेता क़वाइसी बंधू के पीछे पड़े हुए है . वही ओवैसी के घर के बहार हिन्दू संगठनो ने जैम कर हंगामा मचाया अगर पुलिस मुस्तैद नहीं रहती तो कुछ भी उन के साथ हादसा हो जाता .
मजलिस के विस्तार से कांग्रेस , जनता दाल,सपा , राजद आदि क्यों परेशान है . राजनीति विशेलेकको का कहना है के मजलिस की विस्तार से सब से अधिक लाभ भाजपा को हो ग क्यों के मुस्लिम वोटो के बाँट जाने से इन पार्टियो को नुकसान हो सकता है .दूसरी तरफ कुछ लोगो का कहना है के मजलिस भी भाजपा के नक़्शे क़दम पे चल रही है और मुस्लिम वोटो को अपने तरफ खींचने की कोशिश कर रही है .मजलिस के अध्यक्ष असादुद्दीन ओवैसी का कहना है के आजादी के बाद सभी पार्ट्यो ने मुस्लमान को सिर्फ एक वोट के तौर पे इस्तेमाल के लिए किया है किसी भी पार्टी ने जो के मुस्लिम वोटो के सहारे गद्दी तक पहुंचे है कभी भी मुसलमानो के लिए कोई काम नहीं किया है इसी कारन आज हमारी स्थिति दलितों के भी पीछे है . उन्हों ने कहा के अब सभी मुस्लमान को एक हिना चाहिए . ओवैसी ने दलितों को भी अपने साथ जोड़ने की कोशिश कर रहे है क्यों के महाराष्ट्र के कारपोरेशन में दलितों को अधिक टिकट दिया है.
मजलिस ने महाराष्ट्र में कांग्रेस और उन के सहयोगी पार्टियो को काफी हद तक नुक्सान पहुँचाया है .दिल्ली चुनाव में भी उतारना चाहती थी मगर भाजपा को लाभ होता देख कर चुनाव में हिस्सा नहीं लिया . अब बिहार , बंगाल और उत्तरप्रदेश में चुनाव है मगर बंगाल और बिहार में मजलिस की उतनी सरगर्मियां नहीं है मगर उत्तरप्रदेश में मजलिस की सरगर्मियां देखि जा रही है . मुलायम सिंह की पार्टी इतना डर गयी है के ओवैसी के पार्टी के जलसों पे पाबन्दी लगा राखी है इस लिए मजलिस अदालत में जाने का विचार कर रही है .इस में कोई शक नहीं के उत्तरप्रदेश में अगर मजिलिस चुनाव में उतरती है तो मुस्लिम वोटो के बटवारे से भाजपा को लाभ हो गा, मजलिस का कहना है के हम कब तक भाजपा और संघ का खौफ दिखा कर हम इन पार्टियो को वोट देते रहे गए जिन के दौर में मुसलमानो की तरक्की नहीं हो रही है उल्टा सब से ज्यादा इसी सपा के दौर में दंगा हुए है और सब से ज्यादा मुसलमानो का क़त्ल हुआ है . हमें इस खौफ से बहार आना हो गा और मुसलमानो की तरक्की के लिए क़दम उठाना हो गा .
क्या बात हे वहाब साहब शायद पहला लेख ? बहुत बहुत मुबारकबाद ईद की भी और पहले लेख की भी बहुत बहुत बधाई और हमें तो कोई शक ही नहीं हे संघ भाजपा वाले ओवेसी को आगे करेंगे ही ताकि नितीश केजरीवाल और वाम पार्टियो को जरुरी मुस्लिम वोट समर्थन ना मिले ये तीनो ही देश को मोदी जी से छुटकारा दिलवा सकते हे
एक अच्छे लेख के लीयते वहाब चिश्ती को मुबारकबाद——————-
खबर की खबर के सभी लेखको और पाठको को इद की मुबारकबाद………………….
ओवसी को भाजपा और संघ समर्थन कर रही है या नही इस के बारे मे तो कुछ कहा नही जेया सकता. मगर एक बात है के भाजपा चाहे गी के ओवसी अपनी पर्त्य के उम्मीदवार हर चुनाव मे अपना कॅंडिडेट खड़ा करे ताके मुस्लिम वोट बंटे और उन को लाभ हो.
”मजलिस के अध्यक्ष असादुद्दीन ओवैसी का कहना है के आजादी के बाद सभी पार्ट्यो ने मुस्लमान को सिर्फ एक वोट के तौर पे इस्तेमाल के लिए किया है किसी भी पार्टी ने जो के मुस्लिम वोटो के सहारे गद्दी तक पहुंचे है कभी भी मुसलमानो के लिए कोई काम नहीं किया है इसी कारन आज हमारी स्थिति दलितों के भी पीछे है . उन्हों ने कहा के अब सभी मुस्लमान को एक हिना चाहिए . ओवैसी ने दलितों को भी अपने साथ जोड़ने की को ” http://khabarkikhabar.com/archives/847
ईद की बधाइयॉ के साथ-2 चिश्ती साहब को बढिया लेख की भी ढेरो बधाईया !!
यकीनन ओवैसी बन्धुओ (खासकर अकबरुद्दीन ओवेसी) की आक्रामक बयानबाजी पर् उसके खिलाफ बोलने की बजाय तुष्टिकरण की गलत केलकूलेशन के चलते मूह सिल कर बैठी लालू जी, मुलायम जी, नितिश जी, कॉंग्रेस आदि स्वयंभु सेकुलर पार्टीयो ने हिन्दुओ के काफी बड़े तबके के वोटो का बीजेपी के पक्ष मे ध्रवीकरण करवाया ऐसा हमे लगता हे (हम गलत भेी हो सकते हे)!!…
ओवेसी बन्धुओ जैसी कट्टरवाद वाली पार्टीयो के उभरने से बीजेपी , शिव्सेन जैसि पर्तियो को को फायदा बेहिसाब और नुकसान 0% होगा क्योकि ऐसी पार्टी को मिलने वाला वोट पहले भी बीजेपी को नही मिलता था….यही वजह है कि ओवेसी बन्धुओ की पार्टी बीजेपी वालो से जयदा तातिकथित सेकेलर पार्टीयो के निशाने पर जयादा है :)सेकुलर पार्टिया सब कुछ लुटा कर होश मे आने की कोशिश मे जुट गयी है
बीजेपी, शिवसेना आदि पार्टिया ओवेसी बन्धुओ का विरोध इसलिये जारी रखेंगी क्योकि इनके विरोध के चलते ही हिन्दू वोटो का ध्रवीकरण उनके पक्ष मे होता दिखा था और अपने पक्के वोट बेंक को कौन साथ नही रखना चाहेगा 🙂
ओवेसी और उनकी पार्टी ने गैर मुस्लिम अल्पसंख़्यको और बहुसंख्यक हिन्दुओ के लिये आखिर किया ही क्या है जो वे उनसे जुड़ेंगे ??
लेख प्रकाशित करने के लिए धन्यवाद . शरद और सचिन साहब ने लेख को पसंद किया इस के लिए भी शुक्रिया . उम्मीद नहीं था के इतने लोग इसे पड़े गए और लोगो के कमेंट भी आये गए . आप लोगो ने मुझे लिखने का हसला दिया है कोशिश हो गई के जल्द ही कोई लेख और लिखू .
यहाँ मुख्य सवाल ये होना चाहिए की क्या गणतांत्रिक सेकुलर देश में कोई भी पार्टी सिर्फ किसी धर्म विशेष के हितों के लिए ही होना सही है या गलत ?
मुझे आश्चर्य है की सदा तुष्टिकरण का रोना रोने वाले भी अब खुश हो रहे हैं ! वह भी इसलिए की अब मुस्लिम वोटों का भी ध्रुवीकरण हो जायेगा और उनके सबसे बड़े दुश्मन सेकुलर पार्टियों को इसका नुक्सान होगा ! वाह भाई !! लेकिन जरा सोचा है इसके लिए वो आज जिसको विरोधियों को डराने वाला मात्र एक सांड समझकर घास डाल रहे हैं वो कल इन्ही के सामने शेर बन आ जाएगा ! आखिर किस तरह की राजनीतक घटियापन की सोच है यह ? जब कोई पार्टी किसी धर्म विशेष के लिए कुछ करे तो वह तुष्टिकरण ! और कोई पूर्णत: सिर्फ और सिर्फ उसी धर्म विशेष के लिए राजनीति कर सत्ता में हिस्सेदारी ले तो उसका स्वागत ? लोगों पर जातिवादी, क्षेत्रवादी, धर्मवादी होकर वोट डालने का इल्जाम लगाने वाले महान लोग फिर ये हिसाब लगाने क्यूँ बैठ जाते हैं की किस पार्टी ने किस धर्म, जात, क्षेत्र विशेष के लिए क्या किया ? और लोग भी ऐसी उम्मीद क्या सोचकर रखते हैं ?
जारी …..
फिर भी यह तब तक भी ठीक था जब तक हर पार्टी उसने हर धर्म जाती क्षेत्र के लिए क्या किया ? इसके जवाब के लिए सिर्फ वोटो के लिए ही सही कुछ न कुछ करती थी ! लेकिन यह तो उससे भी खतरनाक है की कोई पार्टी बने ही सिर्फ किसी धर्म विशेष के लिए और इसी आधार पर वो अन्य के लिए अपनी राजनैतिक जिम्मेदारी से सीधे नकार दे ! आज ऐसी हिम्मत बी जे पी भी नहीं दिखाती ऐसा करने वाले केवल शिवसेना जैसे कुछेक क्षेत्रीय दल ही थे जिनकी केंद्र में सत्ता हासिल किये जाने के कोई संकेत न मिलने से चिंता नहीं थी ! चिंता तो ओवैसी की पार्टी से भी नहीं है असली चिंता तो यह है की अब हम विरोधियों को कमजोर करने के अपने स्वार्थ के लिए वोटरों को भी अब इसकी आदत डाल इस देश के गणतंत्र को ही दांव पर लगा रहे हैं !
ऐसे भी गणतंत्र को अपने धार्मिक राष्ट्रवाद की स्वप्नापुर्ती के लिए इस्तेमाल करना चाहने वालों की यहाँ कोई कमी नहीं है ! और उनके इस सपने की वजह से खुद के देशभक्ति पर सवाल उठाये जाने से आहत लोगों की भी यहाँ कमी नहीं है लेकिन फिर भी यही दोनों तरह के लोग अगर ऐसी पार्टियों की सफलता से खुश होते हैं तो याद रहे आगे से दोनों में से कोई भी किसी शिकायत के लिए मुंह उठाने लायक नहीं रहेगा !
सचिन जी होना क्या चाहिये से महत्वपूर्ण ये है कि उसी गणतंत्र मे असलियत मे हो क्या रहा है !! काहे की धर्मनिरपेक्षता जब मुस्लिम बहुल इलाको से कोई गैर मुस्लिम उम्मीदवार जीतता ही नही ?? एक हाथ से ताली बजाने की कोशिश कब तक हो पायेगी ??
सेकुलरिस्म अपनी स्वार्थ-सिद्धि के लिये इस्तेमाल किया जाने वाला सिर्फ एक मुखौटा भर है हकीकत मे सेकुलर-फेकुलर कुछ नही होता और राजनेताओ व पत्रकारो को छोड़ कर कोई सेकुलरवाद की बात नही करता क्योकि राजनेताओ और पत्रकारो भी इसलिये करते है क्योकि उनके अपने स्वार्थ होते है , जब देखिये एक जैसी ही खबर आती है कि फलाने ने मुसलमानो की क्रोशिए वाली मुल्ला-टोपी नही पहनी या इफ़्तार पार्टी मे नही गया और सेकुलरिस्म खतरे मे आ गया ??
ऐसा क्यो सुनने मे नही आता कि किसी मुस्लिम ने तिलक लगवा कर या होली दिवाली मिलन आयोजित करवा कर सेकुलर होने का फ़र्ज़ अदा किया हो ?? …….राजनीति के अलावा सेकुलरिस्म का मुखौटा कही नही है
बिल्कुल सही शरत भाई, हम कब तक इस महान अवधारणा का ढोंग करते रहेंगे?
कब तक तुष्टीकरण को सेकुलरिज़्म कहते रहेंगे?
आज हर वो व्यक्ति जो खुद को सेकुलर कहता है सब से बड़ा अवसरवादी है!
तेजस भाई, हमारी मोटी बुद्धि मे तो बराबरी की एक ही परिभाषा समझ मे आती है कि हम जो आपके कहने से कर सकते है वह आपको हमारे कहने से खुशी-2 कर देना चाहिये !!….
मुसल्मान बनधु अपनी क्रोशिए वाली टोपी हमे पहनाना चाहते है दीजिये हम खुशी से पहनेंगे मगर फिर जब हम आपके माथे पर तिलक लगा कर आपको अपनी खुशी मे शामिल करे तब आप अल्ला सल्ल क़ुरान हदीस के बहाने मत बनाना ….इसी तरह कोइ मुसलमान हमारे कहने से कोई बात माने तो जब खुद निभाने की बारी आये उस समय हमे भी मुस्लिम या मलेच्छ कह कर बहाना नही बनाना चाहिये….अगर दोनो पक्षो मे इतना निभाने का “व्यक्तिगत स्तर पर” दम है तब तो मानेंगे कि वाकई धर्मनिरपेक्षता नाम की कोई चिड़िया इसी दुनिया मे रहती है…
अगर आप ऐसा नही कर पाते तो सेकुलर या धर्मनिरपेक्ष नाम का शब्द बोलने लायक आपकी औकात नही है (आपकी शब्द का मतलब हर सेकुलर से है चाहे वो हिन्दू हो , मुसलमान हो या कोई और)
शरदजी आपका सेकुलरिज्म केवल टोपी और तिलक ऐसे चुनावी जुमलों तक ही सिमित हो तो क्या किया जा सकता है ! फिर भी आपको इन चुनावी जुमलों की वजह से ही सेकुलरिज्म से शिकायत है तो आपको किसने रोका आप भी वो मत कीजिये जो मुस्लिम नहीं करते !! आपके लिए भी कोई जबरदस्ती है क्या ?? चिल्लाने दीजिये पत्रकारों को ! धार्मिक स्वतंत्रता तो सेकुलरिज्म का पहला उसूल है ! अगर आपका धर्म इजाजत नहीं देता तो आप भी क्यूँ करते हो ??
अब बताइये मुस्लिम बहुल इलाके से आपको गैरमुस्लिम उम्मीदवार जीतता हुवा क्यूँ देखना है ? उन्हें सेकुलरिज्म का सर्टिफिकेट देने के लिए या फिर वे पाकिस्तानी नहीं है ये साबित करने के लिए ?? किसी पर भी सवाल उठाने से पहले आपका मकसद मायने रखता है !!
और अभी तो आप ही कह रहे थे की सेकुलर पार्टियों ने मुस्लिमो के लिए कुछ नहीं किया , ओवैसी की पार्टी न हिन्दू या दलितों के लिए कुछ नहीं किया ! जब आप के स्तर के लोग भी इन्ही कसौटियों से उम्मीदवारों और पार्टी को तौलेंगे तो भाई वे तो फिर भी आम मुस्लमान है !!!
आप यह तो बता दें साहब की सेकुलरिज्म का सा कौन विकल्प आज आपके सामने है जो अवसरवादी नहीं ! सेकुलरिज्म का ढोंग छोड़ना मतलब एक्साक्ट्ली क्या करना ? यह बताने की भी तो हिम्मत जुटा लिया करो कभी !! जब तक बहुसंख्यक यह समझता रहेगा की वह अल्पसंख्यकों पर मेहरबानी कर रहा है तब तक उसे हर बात में तुष्टिकरण नजर आएगा ! और बहुसंख्यक होना किसी भी हक़ के स्वयंसिद्ध अधिकारी होना या फिर किसी से श्रेष्ठ होना या फिर क्वालिटी में भी उच्च होने का सर्टिफिकेट नहीं होता !
मैं बताता हूँ आप को सेकुलरो से क्या शिकायत है ! पहली बात तो आप लोगों को आपके बहुसंख्यक होने के बावजूद इस देश को अपने राष्ट्रवाद के मुताबिक़ ढालने में आई असफलता की खीज है और दुसरे सेकुलरिज्म से इस देश के बहुसंख्यको की संख्यात्मक श्रेष्ठता को चुनौती से डरे हुवे हैं लेकिन इसमें भी आपको अल्पसंख्यकों में भी सिर्फ मुस्लिम से ही समस्या है ! वहां पूरा नॉर्थ ईस्ट इसाइयों की भेंट चढ़ रहा है ! मेघालय तो कभी १०० प्रतिशत इसाई हो चूका था ! इसकी आपको वर्षो तक भनक भी नहीं लगी ! तो कैसे आप को मान लें की आप अपने एंटी सेकुलर राष्ट्रवाद के हिमायती हैं ?? आपकी खीज तो इस देश के संविधान को आपके राष्ट्रवाद के अनुसार ढालने से दूर हो सकती है ! लेकिन वहां भी आप इमानदार नहीं और उसके लिए जरुरी ३७० सीटों की कभी खुलकर मांग करते नहीं ! सिर्फ सत्ता आ जाए इतना बहुमत काफी है क्यूँ ? क्या ये अवसरवादिता नहीं ?? दूसरा संख्यात्मक श्रेष्ठता की चुनौती रखने के भी आप लायक नहीं क्यूँ की आप पहले से बहुसंख्यक होने के बावजूद और उस समय कोई सेकुलर न होने के बावजूद भी और अधिकतर शासक राजे महाराजे भी आपके ही होने के बावजूद आपका भी इतिहास गद्दारी और तुष्टिकरण से भरा हुवा है !!
जरूरी तो नही कि हमारे सारे डिस्कसन आपने देखे ही हो:) बिना किसी विषय के कुछ भी कैसे शुरु कर दे ?? लीजिये खुद अपनी आंखो से पढिये
If comment consists both Hindi & English then it’s difficult 2 post here,Sachin ji link is as below (remove the space) hope this will help to come out your “pre-determined” thought about me:)
http: //blogs. navbharattimes .indiatimes.com/theeki-tharra/entry/indian-army-s-operation-in-myanmaar-raises-questions
मैं पढूंगा ! लेकिन इसलिए कदापि नहीं की आपके लिए पूर्वाग्रही हूँ ! हमारा मुख्य मतभेद हिंदुत्ववाद के विरोध से जुडा है ! और आशा है मुझे आपकी लिंक में इससे जुड़े कुछ सवालों के जवाब मिल जाएँ ! वरना किसी को किसी भी बात का सर्टिफिकेट मैं नहीं बांटता ः)
सचिन साहब, जो बात दो और दो चार जैसेी बुनियादेी कसौतेी तक को पार ना कर पाये उस पर हमारे लिये आगे बढ़ने की बात सोचना अपना वक़्त बर्बाद करने जैसा है (आप अपनी सोच के साथ स्वतंत्र है )
एक बात और, सिकंदर मरते समय दुनिया को मेसेज देकर गया था की उसके हाथ खुले हुए है और वह काफी जमीन दौलत जेीतने के बाद भेी एक सुई तक . साथ नही ले जा पाया !!…….पिछले डिस्कसंस का बोझा लेकर चलने की बजाय हर बार नई शुरुआत मे यकीन करेंगे तो दिमाग पर बोझा कम होगा 🙂 चिश्ती साहब कई बार से हमारि असह्मति कै बार. हुई मगर क्या इसका मतलब ये हो की हमे हर हाल मे उनकी बात कातनेी हेी है ?? आज अगर उन्होने अच्छा लेख लिखा है तो उनकेी तारेीफ होनी चाहिये या नहि ??
इस ब्लॉग पर हमारे जो भी मेसेज है उनमे आप कौन सी बात से असहमत है ?? सिर्फ इतना बता देते तो आपका समय और एनर्जी दोनो ही बच जाते !!
ओह ! तो शरदजी आप मुझे हर हाल में आपकी बात काटने वाला समझ रहे हैं ! पता नहीं आप मुझसे उम्र में बड़े हैं या नहीं लेकिन जहा तक मैंने सिखा है जिसे लगता है की उसकी बात काटी जा रही है इसका साफ़ मतलब होता है की वह डिस्कशन को व्यक्तिगत ले रहा है ! और जहाँ कोई व्यक्तिगत होने लगा वहां डिस्कशन डिस्कशन ही नहीं रह जाता ! और मुझे कहने में कोई झिझक नहीं की शायद ये बात आपने ही मुझे समझाई है न भा टा ब्लॉग पर मेरे लेखन के शुरूआती दिनों में ! ः) लेकिन दुःख हो रहा है की आज आप उसी दोष के शिकार हैं !!
अगर आपका इशारा व्यक्तिगत विरोध से है तो जरुर हमें उस व्यक्ति को एक ब्लॉग में ही निपटा देना चाहिए ताकि पाठको का समय न नष्ट हो ! ठीक वैसे ही जैसे सामान नाम से बनी दो फिल्मे पहले का सिक्वल कहला कर भी बिलकुल भिन्न होती हैं !! लेकिन विरोध अगर मुद्दों पर हो और दिल बड़ा हो तो मेरे ख्याल से इस चर्चा को जरुर जारी रखने में कोई हर्ज नहीं होना चाहिए क्यूँ की इसमें चर्चा करने वालों से ज्यादा उसे पढने वाले प्रभावित होते हैं की अरे ? यह मुद्दा तो मेरी नजर से भी छुट गया था ! मुझे उनकी बात पर भी गौर करना पड़ेगा ! आप ही बताइये हमारी और आपकी बातों से इससे ज्यादा और क्या हो सकता है ? लेकिन हम इस बात से खुश होते हैं की वाह साहब क्या कही ! आपने तो फलां फलां की उतार के रख दी ! माफ़ करना आपकी दी लिंक पर भी मुझे ऐसा ही कुछ बड़ी मिला जिसे आपने बड़ी मासूमियत से विनम्रता से स्वीकार भी लिया !!
मेरी और से तो मैं स्पष्ट हूँ मैंने कभी किसी के मुद्दों को वो किसी के हैं इसीलिए कहीं भी विरोध नहीं किया है ! बल्कि केवल वह मुद्दे हैं और किसी की तो वजह से हैं इसीलिए विरोध किया है ! या कोई सवाल खड़ा किया है ! उन्हें समझ कर उमाकांत जी ने जो धैर्य रखने की सलाह दी उसे मानकर मैं इन्तजार भी कर रहा हूँ ! लेकिन आप बताइये की आपको मेरी कौन सी बात आपकी बात को काटने वाली लगी ? और क्यूँ ?? प्लीज !!
इस पोस्ट के लिए मैं ये जरुर कहूँगा की भारत में जिस पार्टी का जन्म ही हिन्दू राष्ट्रवाद लाने के लिए हुवा अगर उसके सिपहसलार भी ये कह रहे हैं की जब तक ३७० सीटें न हो तब तक कुछ नहीं किया जा सकता तो जब तक इस देश का संविधान है तब तक किसी हिन्दू को मुस्लिम के चुने जाने से और किसी मुस्लिम को हिंदुके चुने जाने से किसी भी बात का डर नहीं होना चाहिए ! बशर्ते वो मुसलमान पाकिस्तान की और उसके आतंकवादियों की तारीफ़ करने वाला न हो ! उनकी और झुकाव रखने वाला न हो ! और हिन्दू उसे चुपचाप सुनने और सहने वाला न हो | क्यूँ की ये देश ही देशहित और जनहित को धर्माहित से ऊपर रखने की वजह से ही पाकिस्तान से भी पहले और पाक्सितान से कहीं आगे और अच्छा बना है ! इसीलिए मेरा सबसे निवेदन है की राजनीति को भी ऐसे विभाजनकारी संकीर्ण नजरिये से बचाने के लिए कम से कम इस देश में तो धर्महित को देशहित से ऊपर उठाने की हर जिद को त्यागें !
संघ समर्थन करे या ना करे, हिंदुत्व के उभार के लिए ओवैसियो का होना ज़रूरी है. ओवैसियो के लिए तोगडियों का होना ज़रूरी है. एक पक्ष मर गया, तो दूसरा अपने आप मर जाएगा. अगर आप ओवैसी से डर के आदित्यनाथो की ओर देख रहे हैं, तो आप ओर डरिये, क्यूंकी आप ओवैसियो को मजबूत कर रहे हैं. अगर आप तोगडियो से डर के ओवैसियो की ओर आशा भरी नज़रो से देख रहे है, तो आप अपने आप को ज़्यादा असुरक्षित कर रहे हैं. ओवैसी, मुसलमानो का भला नही कर सकते, ना तोगड़िए हिंदुओं का. लेकिन इतना समझदार होना सबके बस की बात नही. इसलिए मूर्खो के बल पे ये धूर्त अपनी राजनीति चमका ही जाते हैं.
समझदार, संतुलित लोगो को कोई नही पूछता. नफ़रत के माहौल मे, हर व्यक्ति एक तरफ़ा बात सुनना चाहता है.
देखिये में ओवैसी बंधू में उन के बड़े भाई असादुद्दीन ओवैसी को बहुत पसंद करता हु उस के छोटे भाई को नहीं , असादुद्दीन बहुत ही अच्छे संसद है और अपनी आवाज़ उठाते है और बोलने के कला में माहिर है . पाकिस्तान के अमन की आशा में जिस तरह पाकिस्तानियो को उन्हों ने जवाब दिया उन के साथ मणि शंकर अय्यर और कीर्ति आजाद साथ थे , ओवैसी ने पाकिस्तानियो को बोलती बंद कर दी थी . ये वीडियो यू टुब पे देखने लाइक है . अगर लिंक मिलता है तो में डालता हु .
बिलकुल मैच फिक्स है।समर्थन है संघ व औवेशी दोनों की राजनीति चमक रही है
कैसी विडंबना है कि बीजेपी समर्थक लोगो ने सारे मुसलमानो को ओवैसी जैसो का समर्थक बता के सामान्यीकरण कर दिया. की जो हमे टोपी पहनाना चाह रहा है, वो पहले तिलक लगाए. आज बीजेपी समर्थक ये प्रचारित कर रहे हैं कि दूसरे पक्ष मे आज़म ख़ान, ओवैसी जैसे ही लोग हैं. राशिद आल्वी, तारिक़ अनवर, मुहम्मद सलीम, सलमान खुर्शीद, मीम अफ़ज़ल जैसे नेताओ के अस्तित्व को ही नकार कर, ऐसा बताया जा रहा है कि सेक़ूलेरिज़्म, तो सिर्फ़ इन हिंदुत्ववादी लोगो की एकतरफ़ा कोशिशो से कायम है. वग़ैरह.
ठीक उसी तरह ओवैसी जैसे लोग, इस देश मे दूसरे दलो को बाबरी मस्जिद, और गुजरात दंगो का दोषी ठहराते है, जैसे सारे हिंदू, संघी, बजरंगी, या भाजपाई ही हैं?
इन दोनो अतिवादियो के अतिरिक्त संतुलित और मध्यांमार्गी पार्टियो को दोनो तरफ के अतिवादी दूसरे का तुष्टिकारक प्रचारित कर रहे हैं. ओवैसी के लिए, कांग्रेस, बसपा, जनता दल हिंदूओं की पार्टी हो गयी. संघियो के लिए यही दल मुस्लिम तुष्टिकारक हो गये.
किस दिशा मे जा रहे हैं हम?
अगर मुस्लिमो को आगे बढ़ना है और भारतीय राजनीति में अपना कद बढ़ाना है तो ओवैसी को ही जितना हो गा . वरना मुस्लिम थाली के बैगन ही बने रहे गए .मुसलमानो को आँख बंद कर ओवैसी की पार्टी को समर्थन करना चाहिए , जिस तरह इस बार हिन्दुओ ने भाजपा को जिताया .
हिन्दुओ ने भा जा पा को जिताया ? और इतने वर्षो से कांग्रेस और अन्य पार्टियों को जीता रहे थे वो क्या सिर्फ मुसलमान थे ? इतनी औकात है मुसलमानों की यहाँ ?? क्यूँ आप भी हिन्दुत्ववादियों का फेंका टुकड़ा लपक रहे हो ?? और अगर इस बार भ जा पा को जिताया भी होगा तो किसी ने भी हिंदुत्व को नहीं जिताया ये बात आप भूल रहे हैं हसन खान साहब क्यों की हिंदुत्व को जिताना होता तो विभाजन के वक्त ही जिताया जा सकता था ! लेकिन उस वक्त जिन्होंने यह सोच कर की मुस्लिम थाली के बैंगन ही न बने रह जाए जिन्होंने पाकिस्तान को बनाया वहां के मुस्लिम तो आज किस थाली के बैंगन बनने लायक है जरा इसका जवाब दीजिये और आज मैं कहता हूँ आप को अगर सिर्फ मुसलमान ही बने रहना है और मुसलमानों के कद की इतनी ही फ़िक्र है तो आप पाकिस्तान चले जाइए और जिन्दा बचे तो सीरिया आदि देशों में भी आपकी जरुँरत होगी !
और आंख बंद करने का जवाब तो आपको जाकिर हुसैन जी से मिल ही गया होगा ! फिर भी कभी आँख खुल जाए तो खुद बी जे पी में भी मुस्लिम नेता है जरा इसपर भी गौर कीजियेगा !! फिर किसी पर किसी के कद का आगे न बढाने का रोना रोना | हम बी जे पी की विचारधारा से इत्तेफाक न रखते हुवे भी हमें उन मुसलमानों पे गर्व है जो बी जे पी में हैं !! आप ओवैसी की पार्टी में ऐसा उदाहरण पेश कीजिये हमें उन हिन्दुओं पर भी गर्व होगा ! और वह गर्व उनके हिन्दू मुस्लिम होने से नहीं बल्कि भारत के संविधान और उनके गणतंत्र में विश्वास के लिए होगा !
हसन साहब, यही बात, हिंदू सिर्फ़ भाजपाई या भाजपा समर्थक नही है. और आँखे बंद करने की जो बात है, वोही समाज को बर्बाद करती है. मुसलमानो की आँखे तो वैसे भी बंद पड़ी है, जिनकी खुली है, उनको भी बंद करवा दो. दिमाग़ पे भी ताले लगवा दो. फिर तरक्की का राग भी अलापो. आप जैसे लोगो की वजह से, मुसलमान सिर्फ़ मुसलमान ही होके रह जाता है. तरक्की तो तब होगी, जब वो मुसलमान होने के अलावा भी बहुत कुछ है, या हो सकता है सोचे.
इस देश को सबसे ज्यादा नुकसान इन नकली सेक्युलर पार्टीयों ने ही पहुँचाया है । मुस्लिम समाज का तुष्टीकरण कर उनका वोट लेना इनका उद्देश्य रहा है । मुस्लिमों को बहुसंख्यको का डर दिखाकर उनके मन मे मन बहुसंख्यकों के प्रति घृणा का बीज बोते हैं । सत्ता पाने के लिए ये किसी हद तक जा सकते हैं । कुछ तो आतंकवादीयों को विद्यार्थी तक कह देते हैं । ये तथाकथित सेक्युलर लोग सदा से मुस्लिम कट्टपंथियों का समर्थन और उनका पोषण करते रहे हैं। वो इन कट्टरपंथियों को अपनी चुनावी सभाओं मे बुलाते हैं , उन्हें टीकट भी देते हैं और उनसे अपने पक्ष मे फतवा भी निकलवाते हैं ।आज यही कट्टरपंथ ओवैसी के रूप मे अपनी खुद की पार्टी बना के खड़ा होकर उन्हें ही चुनौती देने लगा है तो उनके होश उड़ गए हैं । बाबरी मस्जीद प्रकरन के दिनो भजपा मे जो कट्टरता देखने को मिलती थी उसमे बाजपेयी के प्रधानमंत्री बनने पर लगातार कमी आई है । गुजरात के दंगे के अलावा इतने दिनों मे भाजपा शासीत राज्यों मे कोई बड़ा दंगा नहीं हुआ । भाजपा ये समझ रही है कि सबको साथ लेकर चलना होगा । अभी उनका नारा भी यही है । आज स्पष्ट बहुमत मिलने के बाद भी वो ऐसा कोई कदम नहीं उठा रही है जिससे मुसलमानों को डरने की जरूरत है ।
मुस्लिमो को बहुसन्ख्यको का डर दिखा कर वोट देने वालो को, तो नकलेी सेकुलर कह दिया, लेकिन हिन्दुओ को मुसल्मानो का डर दिखा कर सत्ता तक पहुच ने वालो के बारे मे क्या राय है धर्मवेीर साहब्
वाजपेयेी के युग केी कट्टरता मे कमेी नापने का कोई यन्त्र होगा आपके पास्? ऐसे तो ओवैसेी मिया भेी सत्ता केी दहलेीज के निकट कमेीनेपन से अपने को लचेीला दिखा देगे २-३ बरस पहले, किर्तेी आजाद के साथ् पाकिस्तान गये थे, वहा पे उन्होने क्या कहा, वो भेी सुन लो. सत्ता तक पहुचना हेी असल घटनाक्रम नहेी. उससे पहले जो नफरत ये दिलो मे घोल देते है, वो समाज मे पैठ कर जातेी है. ओवैसेी केी पार्टेी आज महारश्ट्र मे कोई सेीट नहेी जेीत पायेी है, लेकिन क्या उसकेी बढतेी लोकप्रियता चिन्ता का कारण नहेी. बेीजेपेी सत्ता मे बहुत देर से पहुचेी, लेकिन उससे पहले, इस देश के माहोल को पर्याप्त खराब कर चुकेी थेी. ओवैसि या अन्य मुस्लिम कट्टर्पन्थियो को पैदा करने मे बेीजेपेी और सन्घ केी बडेी भुमिका है. इस्का उल्टा भेी सहेी है
सचिन साहब बिना बुरा माने क्रप्या एक बार हमारा पहला कॉमेंट और उस पर आपके कॉमेंट्स को थोड़ा समय देकर पढिये और तब लिखिये कि आप डिस्कसन कौन से बिंदुओ पर करना चाहते है क्योकि आपके कॉमेंट्स से ऐसी खिचडी सी पकी लगती है जो हमारी समझ से फिलहाल बाहर जा रहेी है …. आप सेकुलरिस्म के विकल्पो पर हमसे जवाब चाहते है जबकि हमारी नज़र मे सेकुलरिस्म नाम की कोई चिड़िया ही नही है (जो हमने लिखा भेी हे, अब इससे स्पश्त क्या लिखा जाये) !!….क्या जवाब दे आपको 🙂
शरदजी आपका चर्चा को पूर्णविराम देने का स्टाइल अच्छा है ! जो की इसी साईट पर हम पहले भी देख चुके और आपको टोक भी चुके हैं !
देख लीजिये की पहले आपने मेरे इस लेख पर किये कमेन्ट पर अपनी प्रतिक्रिया दी थी तब ये सिलसिला चला !! अब आगे आपकी जैसी मर्जी ! हम तो बने रहेंगे बस आप किसी मुद्दे पर अपना पेटंट मत करवा लेना ः) ! धन्यवाद !!
पूर्णविराम ?? सर जी बॉल अभी आपके कोर्ट मे ही है और आगे का डिस्कसन आपके हाथ मे है !! हमे ये जानने का हक तो है ही कि आखिर आप डिस्कसन करना किन बिंदुओ पर चाहते है ??
ये हमार कोई पहला डिस्कसन नही है सर और अलग-2 विषयो पर कई अलग-2 विद्वानो से पहले भेी कई बार काफी लंबे-2 डिस्कसन करने का सौभाग्य हमे मिला है और ऐसे डिस्कसन हमेशा मूल विषय के इर्द-गिरग ही घूमते रहे है !!…..हमारी तरफ से आपके लिये डिस्कसन का आमंत्रण अभी भी खुला हुआ है.
शरदजी मैंने पहले भी कहा है की इस पोस्ट पर मेरी टिपण्णी पर आपने पहले कमेन्ट कर के चर्चा शुरू की उसके बाद मेरे जवाब के प्रत्युत्तर में आप कमेन्ट पोस्ट करते रहे ! कमाल है आप बिना किसी बिंदु को समझे भी इतनी चर्चा कर लेते हैं !! भाई जब आपको मेरे कमेन्ट में कोई बिंदु ही नहीं मिल रहा था तो क्या टाइम पास करने के लिए जवाब दे रहे थे ? और आपकी वह लिंक देने का भी प्रयोजन हमें भी समझ में नहीं आया ! आपको कोई तो बिंदु मिला होगा जिसने आपको वह लिंक देने पर मजबूर किया ? और वह लिंक किस तरह से इस पोस्ट पर हो रही चर्चा के इर्द गिर्द था ? दूसरा वो सिकंदर का खाली हाथ जाना ! ये क्या था और क्यूँ था ये तो मेरी क्या किसी के भी समझ से बाहर है ! आप क्या समझते हैं की जो आप लिखते हैं वह पूरा का पूरा सबकी समझ में आ जाता है ? फिर भी हम बिना बाल की खाल उधेड़े आपके लिखे का कुछ तो समझ कर चर्चा में रहते हैं ! और आप उसका जवाब भी देते हैं इसीसे जाहिर है की आपको भी उसमे कोई बिंदु नजर आता है ! वरना आप टाइम पास की चीज नहीं ये तो जगजाहीर है ! फिर भी बड़ा आश्चर्य हुवा जानकार की ऐसे सधे हुवे चर्चाकार को मुझसे यह शिकायत हो की कोई बिंदु नहीं मिलता !!
तो चलिए अब बिंदु की बात करते हैं जो शायद आपकी समझ में आया और आपने उसपर जो कहा ः-
१.मेरे सेकुलरिज्म के विकल्प के सवाल पर आप तो बड़ी आसानी से ऐसी कोई चिड़िया दुनिया में न होने की बात कर के कन्नी काट गए ! फिर भी मैं आपको बचने का रास्ता नहीं दूंगा ! जब इतनी देर से आप भी लगे हुवे थे तो अब कम से कम ये तो मानोगे की सेकुलरिज्म न सही उसका ढोंग तो अस्तित्व में है ? जो इस देश में चल रहा है और आजादी से आजतक उसीसे यह देश भी चल रहा है ! ( क्यूँ की सेकुलरिज्म के अलावा किसी और व्यवस्था से तो यह देश देश कहलाने लायक भी नहीं था ! ) तो चलिए आप इस सेकुलरिज्म के ढोंग का ही सही विकल्प बता दीजिये ! और वह विकल्प विकल्प कहलाने और इस देश पर लागू किया सके ऐसा हो तो बताइये वर्ना खाली खयाली पुलाव पकाने वालों से तो सारि साईटें रंगीन हवी पड़ी है ! तो यही है आपके लिए पहला बिंदु ! जो की इससे पूर्व की चर्चा में आप जान सकें है इसका आप ही से सबुत मिलने के बाद डिस्कशन के लिए आपके सामने है !!
है भगवान :)आपके मेसेज मे बिंदु हमे नही मिला या बिंदु खुद आप भी नही ढूंढ पाये ??
सर जेी जब हम सेकुलरिस्म को ही सीधे-2 नकार चुके हो तो फिर सेकुलरिस्म जैसा, सेकुलरिस्म से मिलता-जुलता या सेकुलरिज्म के ढोंग जैसे किसी हवा-हवाई विषय पर क्या बात करे ?? हमने तो राजनीति और पत्रकारिता के रूप मे क्षेत्र भी खुल कर सामने रखे है जहा लोग अपने स्वार्थ के लिये ही सेकुलरिज्म शब्द का मुखौटे के रूप मे इस्तेमाल करते है.
फिर से रिक्वेस्ट है कि हमारे मेसेज के किसी भी शब्द मे सेकुलरिस्म के अस्तित्व या समर्थन जैसा कुछ दिखा हो तो अवश्य सामने लाइये डिस्कसन अवश्य होगा , टाइम पास करना हो तब भी निसन्कोच बताये आप निराश नही होंगे….धन्यवाद
जब इस्लाम हेी बुनियदि भुलो पर अधारित है तो उस्से निक्ले त्योहर भेी गलत है , इस्लिये कोई ईद मुबारक नहेी त्योहार किसेी भेी समुदाय् के हो शुभकाम्ना देने से मुबारक्वाद कर्ने से किसेी का भेी लेश मात्र् भला नहेी होता यह सब एक लोकाचार मात्र् है १
ओवेसि जि व उन्का दल् जब भि चुनव लदता है तब वह विकास वाद केी, रोज्गार केी सदक पानेी बिजलेी आदि कि कभेी बात नहि कर्ते सिर्फ उन्का चुनाव प्र्चार मुसलिम कब्रिस्तान इस्लाम मदर्से मस्जिद आदि कि बतो पर होता है मुसलिमो केी भव्नाये भद्का कर चुनाव जिता जाता है ! जब उन्का दल है तो उन्को भेी देश मे किसि भि जगह चुनव लद्ने, अप्नि बात रख्ने का पुरा अधिकार है !
अगर सपा कि पर्ति उन्को रोक्ति है तो बहुत गलत कर्ति है !
मुस्लिम समुदाय् को भेी चहियेकि वह भेी मुस्लिम्बाद पर वोत न देकर् विकास वाद पर् वोत दे जैसे उस्ने दिल्लि के चुनव मे केजरेी जि कि आप पर्तेी को दिया था !
सेकुलर्ता क्या है ?
बगैर मजहब कि बुनियाद पर वोत मान्गना जो आज्कल कोइ दल नहेी कर्त है !
चुनाव अयोग भेी सख्त नहेी है वर्न किसि भि चुनवि सभा मे भुल् कर्के भि इन् सब्का जिकर आने पार् उस का आजिवन चुनव लद्ने से अयोग्य कर दे !तब भुल कर्के भि कोइ भि उम्मेीद्वार इन् सब्का जिकर नहि कर सकेगा !
ओवेसेी जेी के दल् के नाम मे मुस्लिम शब्द भि शामिल है फिर ऐसे दल को मान्यता हेी क्यो देी गयेी १
जब मनय्ता मिलि है तो चुनवभि वह दल कहेी से भि लद सक्ता है !
इस देश के कई हिंदू ऐसे हैं, जो मानते हैं कि सेक़ूलेरिज़्म होना चाहिए, लेकिन है नही. जो अपने को सेकुलर कह रहे हैं, वो हक़ीकत मे मुस्लिमो का तुष्टिकरण कर रहे हैं.
वहीं अतिवादी मुस्लिमो का बस चलता, तो शरिया पूरी दुनिया मे लागू करवा दें, लेकिन हाल फिलहाल सेक़ूलेरिज़्म चल जाएगा. लेकिन जो अपने आप को सेकुलर कहते हैं, वो अतिवादी हिंदुओं का तुष्टिकरण करते है, वो मुस्लिमो की जान माल की हिफ़ाज़त नही कर पाए, क्यूंकी वो सब, हिंदुओं के वोट बॅंक से सत्ता पे काबिज हुए हैं. चूँकि हिंदू, सेकुलर नही है, इसलिए मुस्लिमो को अपनी तरक्की के लिए एक होना होगा. एक होने का मतलब, एक तरफ़ा, जुल्मो सितम देखना होगा. हर दंगो मे मुस्लिम दूध के धुले हैं, और दूसरा पक्ष उसका नाम हिंदू ही है.
सन 2002 मे जिसने बेगुनाह मुस्लिमो की जान ली, वो हिंदू ही थे. इससे पहले जिसने ट्रेन जलाई, वो मुस्लिम थे, संसद पे हमला करने वाले मुस्लिम थे. 125 करोड़ की हिंदू-मुस्लिम आबादी इन्ही दंगाइयो और आतंकवादियो से मिलके बनी है. इंसान, या तो इस तरफ है या उस तरफ, इसके अलावा, इन अंधो को कुछ नज़र नही आता.
सेकूलरिज़्म नाम की चिड़िया, होती ही नही है, इनकी नज़र मे. इस लिए, इन्हे हिंदूवादी या मुस्लिम रहनुमा चाहिए होते हैं.
ये दोनो लोग, अपने हुए उपर अत्याचारो की एक लंबी फ़ेरहिस्त आपके सामने ले आएँगे. आधी एक के पास, आधी दूसरे के पास. दोनो को मिलाने वाला तो फिर नकली सेकुलर होता है, क्यूंकी सेकुलर नाम की चिड़िया तो दुनिया मे कहीं होती ही नही है, और ना ही हमे वो चाहिए.
श्रेी जाकिर् जेी , इस देश का समाज हजारो सालो से सेकुलर रहा है और आगे भेी रहेगा ! मुस्लिम् भेी इस देश मे समान रुप से अन्य समुदायो कि तरह जन्म जात सम्मनित नाग्रिक् है
हम इस्लामिक विचारो से मत्भेद रख्ते है मुस्लिम से नहि
वह खुब तरक्कि करे हम्को इस्से खुशेी होगेी ! उन्कि तरक्कि से भेी देश केी भि तरक्कि कहेी जयेगि !
राज साहब, अगर आप नज़दीक के इतिहास पे नज़र घुमाएँगे तो एक पार्टी, जिसको सांप्रदायिक मानने से आप इसलिए बच रहे हो, क्यूंकी वो पानी, सड़क, बिजली की बाते भी करती है, भले ही उसके अंध-भक्तो के लिए, उसका हिंदुत्ववादी होना ही काफ़ी हो.
उस पार्टी ने 50 साल, सिर्फ़ धर्म, संस्कृति को ही राजनीति का मुद्दा बनाया. एक समय, इस पार्टी के लिए बाबरी मस्जिद ही देश की सबसे बड़ी समस्या थी, हज़ारो बेगुनाह हिंदू-मुस्लिम उसकी नफ़रत की राजनीति की भेंट चढ़ गये.
आज जो ये ओवैसी मियाँ, बाबरी मस्जिद का राग अलाप रहे हैं, वो आपकी उसी महान देश-भक्त पार्टी का तोहफा है, इनको. वरना ओवैसी बंधु तो पहले भी थे, लेकिन इतनी औकात नही थी, इनकी.
अपनी राजनैतिक ज़मीन को थोड़ा और मजबूत करके, ये भी अपने रुख़ मे थोड़ा लचीलापन ले आएँगे. वैसे दलितो पे डोरे डालना तो इन्होने चालू कर ही दिया.
असल बात यह है कि निष्क्रिय हिंदू और मुस्लिम इन ओवैसियो और तोगडियो को खड़ा करने मे अहम रोल निभाता है. आप जानते हुए ओवैसियो और अदित्य्नथो को तब तक नज़र अंदाज करते हो, जब तक वो आपके मज़हब का नही.
श्रेी जाकिर जेी , हमरेी समज्ह मे आज जो भाजपा को सत्ता मिलि है वह कान्ग्रेस के विरोध मे, और विकास्वाद के मुद्दे पर वोत ज्यदा मिले है न कि भजापा कत्तर हिन्दु वदि है इस्लिये !
फिर भि मोदेी जि कत्तर् हिन्दु नेताओ को बयान देने से रोकने अस्फल दिख्ते है य्ह् उन्केी कम्जोरेी भेी दिख्तेी है
ओवेसि जेी के दादा जेी और पिता जि खाक्सार पार्ति के नेता थे १ जो काफेी हिन्सा कर्ति थेी निजाम के शासन के अन्त के ब्बाद इस पर्ति ने अप्ने कुच तरिके बद्ले है और नाम भेी बद्ला है ! जहनियत उन्कि पहले वलेी हो सक्ति है !
जाकिर साहब,
मुसलमानो का भय दिखाकर हिंदुओं का वोट लेने वाले भी उतने ही दोषि हैं । लेकिन बाजपेयी या मोदी को वोट हिंदुत्व के मुद्दे पर नहीं बल्कि विकाश, राष्ट्रीय सुरक्षा और भ्रष्टाचार नियंत्रण जैसे मुद्दों पर मिला है ।साक्षि महराज वगैरह की बयानबाजी से न भाजपा न ही देश का कोई भला होगा ।
तुष्टीकरण वाले सेक्युलरिज्म का सही विकल्प वास्तविक सेक्युलरिज्म है जिसमे धर्म के नाम पर कोई पक्षपात न हो ।
साक्षी महाराज को गोली मारो. वैसे ये साक्षी महाराज, कोई बीजेपी के अपवाद स्वरूप नेता नही है, इन्हे प्रधानमंत्री का प्यार प्राप्त है. बहुत ताज्जुब होता है, जब लोग, देश के पी एम को साक्षी महाराज, गिर्राज सिंह, और आदित्यनाथ से अलग करके देखते हैं.
फ़ायदा नही होता, तो इन लोगो को शीर्ष नेतृत्व की तरफ से प्रोत्साहित नही किया जाता? फ़ायदा नही होता, तो राम मंदिर के लिए जहर नही उगला जाता. हम तो कांग्रेस को भी नरम हिंदुत्ववादी तुष्टिकारक पार्टी मानते है. जयपुर मे मैं, पुराने शहर के इलाक़े मे रहता हूँ, जहाँ मुस्लिम अल्प संख्यक ही है, और हर 200-300 मीटर की दूरी पे आधी या उससे भी अधिक सड़क को रोके हुए मंदिरो की भरमार है. अत्यधिक घनत्व वाले इन इलाक़ो मे ट्रेफिक और पार्किंग की बड़ी समस्या है. अभी मेट्रो की वजह से मुख्य बाज़ारो के कुछ मंदिरो को बीजेपी ने हटाया तो कांग्रेस ने इसे हिंदुओं की धार्मिक भावना आहत करने का मसला बना दिया. इन मंदिरो से आए दिन रात को क़ानूनो की धज्जियाँ उड़ाते हुए, 11-12 बजे तक तेज लाऊड स्पीकर बजते हैं.
हम इनके लिए कुछ बोले तो संकीर्ण सोच के लोग हो जाते हैं. लेकिन माहौल इतना खराब हो चुका है कि मेरे हिंदू दोस्त भी इन मामलो मे कहने की हिम्मत नही जुटा पा रहे. मुस्लिमो के तुष्टिकरण के आरोप झेलने वाली पार्टी, हिंदूवादी लोगो के तुष्टिकरण मे उतर आई है, तो इससे तो यही जाहिर होता है कि हिंदू समुदाय मे भी धर्म के इतर सोचने या देखने वालो की कमी होती जा रही है.
और ये अपवाद नही कि हिंदू आतंकवाद, हाल के वर्षो मे सुर्खियाँ भी बटोर रहा है. 4 बम ब्लास्ट के केसो मे हिंदू संगठनो के करीबी लोग हैं. अगर आप मुस्लिम कट्टरपंथ का हवाला देके “इज इक्वल टू” करने वाले हैं, तो फिर आप तो “इज इक्वल टू देम” हो ही गये हैं.
” इन मंदिरो से आए दिन रात को क़ानूनो की धज्जियाँ उड़ाते हुए, 11-12 बजे तक तेज लाऊड स्पीकर बजते हैं. ”पुरे देश में मुसलमानो को गैर मुस्लिम इलाको में घर ना मिलने की बात कही जाती हे ये समस्या इसलिए भी हे की मुसलमान खुद भी इन इलाको में रहने से बचते ही हे इसका सबसे बड़ा कारण पुरे साल चलने वाले विभिन हिन्दू धार्मिक आयोजनो में होने वाला शोर और दूसरे हुड़दंग हे बताते हे की इन सब में पिछले सालो में बेहद बढ़ोतरी संघ वि एच पि की देख रेख और मार्गदर्शन में ही हुई हे हमें भी अपने ही रिश्तेदारो का सस्ते रेंट पर मिल रहा बढ़िया फ्लेट सिर्फ इसलिए लेना मुल्तवी करना पड़ा था की फ्लेट के ठीक निचे मंदिर था दिल्ली में हम जहा रहते हे यहाँ भी बगल में एक आयोजन हुआ और बेहिसाब शोर किया गया लेकिन आयोजन फ्लॉप ही रहा क्योकि ये उच्च मध्यम वर्ग का इलाक हे जो हिंदी नहीं आती की तान खूब जोर से छेड़ता हे ये भारत का वो वर्ग हे जो अब दिवाली के बाद फिर क्रिसमस के लिए अधिक उत्साह दिखाने लगा हे सो इसने कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई पंडाल खाली ही पड़ा रहा इसी कारण हमारी जान बची ( शोर से ) सो आयोजक शायद निराश होकर थोड़ी दूर पर एक निम्न मध्यमवर्गीयइलाके में चले गए जहा इतना शोर ये करते हे की फल लेते हुए मेरा पांच मिनट भी खड़े रहना कठिन होता हे और ये शोर पूरी रात किया जाता हे
उफ गुरुचेला …………………….. बचपन और दादा जि कि याद दिला दि ताइतल हि कुच्ह एसा है
बात तब कि है जब मे च्होता था उम्र थिक से याद नहि है पर ६-७ कि रहि होगि
माता पिता से तो कभि च्वन्नि मिलति नहि थि पर एक दादु हि थे जो रोज तोफि और ४थे दिन अथन्नि देते थे कभि -२ जिद करते तो अथन्नि ३सरे दिन मिल जाति थि अब अथन्नि मिलति तो मे सरपत दोद्ता क्यो भइ गुरुचेला जो खरिदना होता
अब खरिद तो लेता पर एक हि चेहरे पर दो तोपि होने से ये पता ना चलता गुरु कोन सा और चेला कोन सा ना ये हि पता चल्ता कि किधर से फाद कर खाने मे तेस्त अच्हा आता ……………
और हा जिस चिज का पता चल्ता कि ससुरा गला पकद लिया अब पियो पानि पे पानि
असदुद्दीन ओवेसी की समझदारी से सहमत होने वालो और उनकी शान मे कसीदे पढने वालो ने याकूब मेनन के बारे मे उनकी ताजा तकरीर अवश्य सुनी होगी ….अब क्या विचार है उनके बारे मे ?? वही है या कुछ बदलाव आया ??
सिर्फ विरोध करते रहने के लिए विरोध करना ठीक है । विरोध तथ्यों के आधार पर होना चाहिए । कट्टरवादी हिंदुओं का हम भी विरोध करते हैं ।लेकिन मोदी की तुलना हम आतंकी, दंगा फैलाने वाला और कट्टरवादी कैसे कह सकते हैं ? क्या कोई भी सबुत उनके खिलाफ है ? इतने सालो मे कोई भी बयान या भाषण जिसमे उन्होने मुसलमानों को मारने या उन्हें देश से चले जाने को कहा हों ? एक भी बयान जिसमे वो मुहम्मद साहब या इस्लाम को गाली दे रहे हों ? मोदी का एक भी बयान जिसमे वो अपने समर्थकों को मुसलमानो के खिलाफ भड़का रहे हों ?ओवैसी तो खुलेआम श्री राम को गाली देता है और 15 मिनट मे हिंदुओं को खत्म कर देने की बात करता है । आजम खान भारत माता को डायन कहता है । क्या इनलोगों की तुलना हमें मोदी से करनी चाहिए ? क्या ये न्याय होगा ? इस तरह तो हम किसी पर भी आरोप लगा सकते हैं ।
मोदी तो पहले सभी 5 करोड़ गुजरतीयों के विकाश की बात करते थे और अब सभी 125 करोड़ भारतियों के विकाश की बात करते हैं । हम उन्हें अतीवादी या कट्टर कैसे कह सकते हैं ? क्या सिर्फ इसलिए की उन्होंने मुस्लीम टोपी पहनने से इनकार कर दिया या फिर इसलिए कि इन्होंने कभी मुसलमानों का तुष्टीकरन नहीं किया ? मोदी अगर सच मे दोषि होते तो क्या 13 सालों मे, जिसमे कि 10 साल कांग्रेस का शासन रहा, मोदी के खिलाफ एक भी सबुत नहीं मिलता ? कांग्रेस कब का मोदी को जेल भेज चुकी होती । मीडिया जो आज इतनी सक्रीय है उसने अबतक मोदी के खिलाफ सबुत पेश कर दिया होता । आज मोदी का नाम मुसलमानों को डराने के लिए एक “हउवा” की तरह उपयोग हो रहा है ।