कैलाश विजयवर्गीय भारतीय जनता पार्टी के महासचिव हैं और मध्य प्रदेश सरकार के बेहद मजबूत मंत्री , खाटी संघी हैं और एक हृदयविहीन व्यक्ति हैं , वैसे तो सभी संघी हृदयविहीन होते हैं परन्तु पत्रकार अक्षय सिंह की मृत्यु पर उनका किया जाने वाला अट्टहास राक्षसी प्रदर्शन था , एक व्यक्ति के हृदय में क्या इतनी भी संवेदना नहीं होनी चाहिए कि एक मृतक की श्रृद्धान्जली के लिए दो शब्द ना बोले ना सही कम से कम मजाक तो ना उड़ाए । मेयर रहे तो स्ट्रीट लाइट और फ्लाई ओवर का घोटाला किया…और फिर लोकायुक्त की जांच के बाद कार्रवाई की सिफारिश को शिवराज सरकार ने न जाने कहां छिपा दिया…महा ईमानदार शिवराज सरकार के महा ईमानदार मंत्री विजयवर्गीय की भाषा और शैली हमेशा से ही ऐसी रही है…बेईमान…भ्रष्ट…बदमिज़ाज और बेहूदे…
मैं इंदौर की जनता को दंडवत प्रणाम करता हूं कि एक ओर सुमित्रा महाजन को वोट देती है…तो दूसरी ओर कैलाश विजयवर्गीय को…क्या यही है अलग चाल चरित्र और चेहरा ? जो विभत्स है , सत्ता की मद में चूर मदमस्त हाथी की तरह का व्यवहार ? जनता का चाबुक इतना तगड़ा होता है कि एक से एक सत्तासीन पार्टियों का वजूद खत्म हो गया , ये क्युँ नहीं समझते ? एक मंगेतर का मंगलसूत्र तोड़ कर विलाप एक बहन की सिसकती आवाज़ भी इन्हे पिघला ना सकी ?
दरअसल जिनके हृदय में विष होता है वह ऐसे ही होते हैं क्युँकि विष पहले उनके हृदय में उपलब्ध ममता करुणा प्रेम संवेदना को मारता है । ज़हरीले बोल इसी विष के कारण हैं, परन्तु भारत की जनता चाहे जितनी धैर्यवान हो वह दंड देना जानती है और कांग्रेस के दंड के फलस्वरूप ही यह सत्तासीन हुऐ हैं तो घमंड ना करें क्योंकि पिछले कुछ माह मे यह उन कांग्रेसियों से भी बदतर साबित हुए हैं जिन्हे देश की जनता ने 44 सीट पर लाकर पटका है ।
इतना दंभ इतना घमंड इतनी नफरत ? दरअसल संघ का जन्म ही खूनखराबे नफरत फैलाने के आधार पर हुआ है , गांधी जी के विचारों का विरोध लोकतांत्रिक तरीके से हो यह किसी का भी अधिकार है परन्तु उनके हत्यारे नाथूराम गोडसे का महिमामंडन करना ? क्या भारत के संविधान में एक हत्यारे की भी हत्या करना कानूनन सही है ? और उसका समर्थन करना ? मंदिर बना कर पूजा करना ? मंदिर तो देवताओं के बनते हैं तो क्या सनातन धर्म का देवता एक हत्यारा हो गया ? यही है संघी चरित्र । यह ना तो सनातन धर्म के शुभचिंतक हैं ना भारत के इनको येन केन प्रकारेण सत्ता चाहिए और वह चाहे कितनी भी लाशों की कीमत पर हो । देश के दंगों के इतिहास इन्ही के खूनी कारनामों से भरे पड़े हैं , कोई यह समझे कि यह सनातन धर्म के या हिन्दूओं के खेवनहार हैं तो वह सपने से जग जाएं यह सत्ता के लिए यदि आवश्यकता पडी़ तो मुसलमानों के भी तलवे चाट सकते हैं चाट रहे हैं, पहले राष्ट्रीय स्वयंसेवक की अफ्तार पार्टी और अब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की उलेमा कांफ्रेंस जो लखनऊ में आयोजित होने जा रही है, इनको यह एहसास हो गया है कि जितने हिन्दू वोट मिल सकते थे मिल गये अब मुसलमानों के वोट के लिए प्रयास करो वर्ना हर जगह दिल्ली के परिणाम मिलेंगे, परन्तु भारतीय मुसलमान इतना मुर्ख नहीं , कुछ मीर जाफरों को खरीद कर फोटो तो खिचाई जा सकती है परन्तु सबका वोट पाना असंभव है यह संघ को पता नहीं ।
व्यापम में 45 हिन्दू भाई ही मारे गए परन्तु मोदी , संघ , भारतीय जनता पार्टी और उसके नाजायज़ संगठन चुप हैं तो क्युँ ? दरअसल उनके लिए यह संख्या बहुत छोटी है क्योंकि यह तो तीन तीन हजार लोगों को मारकर डकार नहीं लेते तो 45 लाशों से इनपर क्या फर्क पड़ने वाला है । इनसे किसी मृतक पत्रकार के लिए ऐसी ही प्रतिक्रिया की उम्मीद है ।
यही हैं भारतीय संस्कृति सभ्यता और संस्कार के विनाशक , इनका अंत आवश्यक है ।
आरएसएस और बीजेपी के राष्ट्रवादी खांचे में मोदी भक्त, बेवकूफ, कट्टर हिन्दू और मुस्लिमों के खिलाफ आग उगलने वाले ही फिट बैठ सकते हैं। संघ और बीजेपी के का राष्ट्रवाद उन्माद के करीब की अवधारणा है। इनके राष्ट्रवाद में फिट बैठने के लिए आपको पाकिस्तान को गाली देनी होगी, मुसलमानों पर शक करना होगा, रामायण और महाभारत को इतिहास मानना होगा, वेद-पुराण को विज्ञान मानना होगा, गाय की पूजा करनी होगी और गोमूत्र को पवित्र मानना होगा। नेहरू को भला-बुरा कहना होगा, गांधी को जरूरत के हिसाब से इस्तेमाल करना होगा, गोडसे को इज्जत देनी होगी, ईसाई बच्चे को जिंदा जलाने के बाद चुप रहना होगा, मोदी राज्य में मुस्लिमों को जिंदा जलाने को सहज प्रतिक्रिया के रूप में देखना होगा, मुस्लिम को ही आतंकवादी बताना होगा, असीमानंद की दरिंदगी को देशहित में बताना होगा और प्रज्ञा ठाकुर को इज्जत देनी होगी। इस खांचे में जो फिट बैठेंगे वे महेश शर्मा के लिए राष्ट्रवादी हैं, बाकी सब देशद्रोही। आप मुसलमान हैं तो बहुत सतर्क रहना होगा। गुस्से और नाराजगी के भी धर्म होते हैं। हिन्दू नाराजगी सिस्टम को लेकर हो सकती है लेकिन मुस्लिम नाराजगी आतंकवाद और देशद्रोह की तरफ ही रुख करती है।
लेखक रजनीश
हयात भाई आपकी कई बातों को नकारा नहीं जा सकता हालांकि कुछ बातों से असहमति भी हे कोशिश करते हे कि एक एक करके अपनी बात स्पष्टता से सामने रखे
1-आरएसएस और बीजेपी के राष्ट्रवादी खांचे में मोदी भक्त, बेवकूफ, कट्टर हिन्दू और मुस्लिमों के खिलाफ आग उगलने वाले ही फिट बैठ सकते हैं—— कुछ बेवकूफ़ों कि बेसिरपेर कि अनर्गल बयानबाजी पूरी पार्टी पर भारी पद सकती हे क्योकि मुसलमान भी इस देश के उतने ही नागरिक हे जीतने हिन्दू !! हालांकि कई मुस्लिम पाकिस्तान और आई एस का समर्थन करते हे जिसे देशद्रोह ही माना जाना चाहिए
२-संघ और बीजेपी का राष्ट्रवाद उन्माद के करीब की अवधारणा है—– राष्ट्र-हित बिना उन्माद के संभव नहीं हे
३-इनके राष्ट्रवाद में फिट बैठने के लिए आपको पाकिस्तान को गाली देनी होगी—- हमारे देश मे आतंकवादी गतिविधियो को शाह देने वाले पाकिस्तान को गाली देना पूरी तरह जायज हे
४-मुसलमानों पर शक करना होगा—–सिर्फ धर्म के आधार पर किसी पर शक करना पूरी तरह गलत हे जिसका हम विरोध करते हे
५-रामायण और महाभारत को इतिहास मानना होगा—- महाभारत धार्मिक ग्रंथ नहीं हे और न ही रामायण किसी पर थोपी जानी चाहिए पर ये बात भी गौर करने लायक हे कि 80% हिन्दू आबादी वाले देश मे भी रामायण नहीं पढ़ी जाएगी तो कहा पढ़ी जाएगी ?? विश्व के कितने ही ईसाई और मुस्लिम बहुल देशो मे कुरान और बाइबल पढ़ाई जाती हे पर वह हिन्दुओ कि गीता और रामायण का कोई स्थान नहीं हे ?? हयात भाई यह एक स्वाभाविक बात हे इसे तूल नहीं देना चाहिए, कुरान पढ़ने से रोका गया हो तो नाराजगी कि वजह बनती हे अन्यथा नहीं
६-वेद-पुराण को विज्ञान मानना होगा—- जो साबित हो पाये वही विज्ञान हे !! अगर वेद-पुराण के दौर कि टेक्नोलोजी को विज्ञान कि तर्ज पर साबित किया जा सकता हे तो वह विज्ञान हे अन्यथा वेद-पुराण और विज्ञान बताने कि जिद करने वालो को खुद पर कंट्रोल रखना चाहिए ….जारेी हे….
७-गाय की पूजा करनी होगी और—- हिन्दू गाय को पवित्र मान कर उसकी पुजा करते हे तो इसमे गलत जैसा क्या हे ? मुसलमान हर तरह का मांस खा लेते हे पर सूअर का नहीं खाते ?? ये आस्था कि बाते हे और हिन्दू-मुस्लिमो को एक-दूसरे कि आस्था का सम्मान करना चाहिए वरना ऐसा कैसे संभव हे कि गाय पर आपत्ति हो और सूअर पर चर्चा न हो ??
८-गोमूत्र को पवित्र मानना होगा—- एकदम गलत
९-नेहरू को भला-बुरा कहना होगा—- नेहरू जी कि अच्छी बातों को अच्छा और उनकी गल्तियो को गलत कहना इसमे कौन सा खोट हे ?
१०-गांधी को जरूरत के हिसाब से इस्तेमाल करना होगा—- गांधी जी ने भी कई मौको पर देशवासियों के भरोसे को अपनी जरूरत के हिसाब से इस्तेमाल किया था, याद कीजिये विश्व युद्ध मे बेहद कमजोर हो चुके अंग्रेज़ो के पैर उखाड़ने कि बजाय हमारे सैनिको को अंग्रेज़ो के विरोध कि बजाय जापान के खिलाफ लड़वाने के पीछे गांधी जी कि ही जिद थी
११-गोडसे को इज्जत देनी होगी—- गोडसे कि देशभक्ति को गलत साबित किए बिना कोरी बयानबाजी समय कि बरबादी हे
१२-ईसाई बच्चे को जिंदा जलाने के बाद चुप रहना होगा मोदी राज्य में मुस्लिमों को जिंदा जलाने को सहज प्रतिक्रिया के रूप में देखना होगा—– जलाए तो हिन्दू भी गए हे और भी भी 59 एक साथ जबकि राज भी मोदी जी का ही था और जलाने वाले हिन्दू नहीं था
१३-मुस्लिम को ही आतंकवादी बताना होगा—- जो आतंकवादी गतिविधियो मे लिप्त पाया जाएगा उसे आतंकवादी कहने मे क्या बुराई हे चाहे मुस्लिम हो या गैर मुस्लिम ??
१४-असीमानंद की दरिंदगी को देशहित में बताना होगा और प्रज्ञा ठाकुर को इज्जत देनी होगी—– दोनों पर केस चलना आपकी बात के एकदम उलट हे
१५-इस खांचे में जो फिट बैठेंगे वे महेश शर्मा के लिए राष्ट्रवादी हैं, बाकी सब देशद्रोही—– हर् देशवासेी महेश शर्मा की सोच का गुलाम नहीं हे और न ही महेश शर्मा और किसी दूसरे को एक दूसरे के सर्टिफिकेट की जरूरत हे
http://www.bbc.com/hindi/india/2015/09/150922_intellectual_poverty_of_sangh_parivar_pm
शरद भाई, आप क्या सही मानते है, क्या नही, वो अलग मसला है. सिकंदर भाई ने संघ के राष्ट्रवाद की व्याख्या की है. संघ के प्रति आकर्षित होने के बावजूद, आप संघ के राष्ट्रवाद पे पूरे तो नही उतरे, लेकिन उसके लक्षण ज़रूर नज़र आ रहे हैं. वैसे मुस्लिम और ईसाइयो को छोड़ो, इस देश मे हिंदुओं का बहुमत तक संघ का समर्थक नही है, यानी ये तो हिंदुओं के भी प्रतिनिधि नही है.
बाकी आपकी बातो से जो बदबू आ रही है, उसका कारण, पाकिस्तान से प्रेम को, आई एस आई का समर्थन बताना. जनाब, मुस्लिम ही नही, हर एक संवेदनशील व्यक्ति, अपने पड़ोसी से हर स्थिति मे प्रेम और मित्रता का व्यवहार बनाए रखने की कोशिश करता है, भयंकर युद्ध की स्थिति मे भी, और इस बात के लिए सिर्फ़ मुसलमानो या कुछ मुसलमानो की बात मत कीजिए, अनेको हिंदू, ईसाई, सिख, पारसी भी ऐसी सोच रखते हैं.
सिकंदर भाई ने सही लिखा है, संघ का राष्ट्रवाद, मूलत उन्माद या उसके करीबी अवधारणा है, जो असुरक्षा और नफ़रत से ही परवान चढ़ता है.
शराबियों की क्लास लेते हुए शराब से होने वाले नुकसान के बारे मे बताते हुए एक प्रोफेसर ने शराब के गिलास मे कीड़ा डाला जो मर गया, प्रोफेसर ने पूछा “समझे कुछ” !! शराबी ने जवाब दिया कि सर जी शराब पीने से पेट के कीड़े मर जाते हेः) क्या उस प्रोफेसर के समझाने का ये मतलब था ??
जाकिर भाई मुसलमानों पर धर्म के आधार पर शक करने को हमने गलत माना, रामायण गैर हिन्दुओ पर थोपने से भी सहमति नहीं दिखाई, गाय की पुजा को भी सिर्फ हिन्दुओ तक सीमित रखा, इस सबके बाद भी आप हमे सन्घेी कहे या जंगी कहे उससे हमे कोई आपत्ति नहीं हे पर हमने वेद-पुराण को विज्ञान का दर्जा कब दिया था ?? उल्टे हम तो खुद भी इस मुद्दे पर आज तक इतिहास कि गलतफहमियों मे जीने वालो के सामने ही खड़े होते आए हे,
गलत सही की व्याख्या हम किसी दवाब मे नहीं बल्कि अपनी छोटी सी समझ से तर्को के आधार पर ही करते हे और वे तर्क हर बार सामने वाले की सहमति पा जाये ऐसी गलतफहमी हमे नहीं हे वैसे थोड़ा समय देकर कमेंट को पढ़ेंगे तो शायद बात बेहतर तरीके से समझ मे आएगी और गलतफहमी दूर हो जाएगी ऐसी आशा आपसे हम कर सकते हे…रही बात नेहरू जी और गांधी जी की तो उनके योगदान का क्रेडिट हमेशा उनको दिया गया हे मगर इससे उनकी कुछ गल्तियो पर पर्दा नहीं डाला जा सकता
आपको विज्ञान की कुछ समझ नही है, इसलिए संघियो की तरह मूर्खता की बाते कर रहे हैं.
पुष्पक विमान अगर था, और अगर ये साबित भी हो जाए तो भी ये सिर्फ़ इतिहास ही होगा. कैसे बना, वो विज्ञान होता है. इसलिए कह रहे हैं कि संघियो की अवैज्ञानिक सोच से विज्ञान की ऐसी तैसी होने ही वाली है. ये अंतर कई वर्षो बाद दिखेगा. ऐसे ही सुतियापे को जिया उल हक ने 80 के दशक मे पाकिस्तान मे मचाया था, अब वहाँ झूठी वैज्ञानिक उपलब्धियो पे सीना ठोकने वाले जाहिल रह गये है. संघी उनसे भी पुराने वाले मूरख है, बस अपनी मूर्खता को अंजाम नही दे पा रहे, बस आप जैसे लोगो को गली मोहल्ले मे कुतर्क करने के लिए छोड़ रखा है, माहौल बना के मुस्लिम देशो की तरह वैज्ञानिक सोच को दबाने के लिए.
संघियो और तब्लिगियो से बहस करना भैंस के आगे बीन बजाने जैसा है. समझदारी से इनका 36 का आँकड़ा है. विज्ञान से इनकी जन्मजात दुश्मनी है.
वहम का इलाज तो हाकिम लुक़मान साहब के पास भी नहीं था जाकिर भाईः) हम तो आज तक टिके हुए ही विज्ञान की वजह से हे ये और बात हे कि कुछ बाते थोड़ा डिस्कसन होने के बाद ही क्लियर हो पाती हे
गोडसे की देशभक्ति को ग़लत साबित किए बिना……
ये सही ग़लत की कोर्ट क्या नागपुर मे लगती है? इस देश की अदालत ने उसे रेयर ऑफ द रेयरेस्ट केस मे फाँसी चढ़ा दी, और आपकी नजरो मे वो देशभक्त हो गया. और उसी देश की एक अदालत के एक फ़ैसले मे फाँसी पाए व्यक्ति के जनाज़े मे उपजी कुछ हज़ार की भीड़ मे आपको गद्दार नज़र आ गये.
अरे दूसरो पे गद्दारी और देश के संविधान और क़ानून के असम्मान का आरोप लगाने वालो, खुद अपने गिरेबान मे तो झाँको.
जाकिर भाई और शरद भाई लेख मेरा नहीं हे किन्ही रजनीश साहब का हे जो उन्होंने एक दूसरे ब्लॉग पर ”अनकल्चरल मिनिस्टर ” महेश शर्मा के बयानों के विरोध में लिखा हे बाकी जाकिर भाई ” संघियो और तब्लिगियो से बहस करना भैंस के आगे बीन बजाने जैसा है. समझदारी से इनका 36 का आँकड़ा है.” आजकल तब्लीगियो के साथ खूब उठने बैठने वाले हमारे जीजा जी ने पिछले दिनों सहारनपुर में मुझे खूब लताड़ा था वो क्या बात थी मेरे क्या तर्क थे जो में वहा तो खेर नहीं कह सका क्या करे मज़बूरी थी की हे ही की ” सारी खुदाई एक तरफ सिस्टर का हस्बेंड एक तरफ ” इस विषय पर जल्द लिखूंगा
संघियो ने उछल कूद कर कर के बीफ बेन करवा ली और बेहद खुश हे उधर राज़दीप सरदेसाई का आरोप हे की इसके कारण और भी अधिक किसान बदहाल और आत्महत्या कर रहे हे की आड़े वक्त में उनके बेकार पशुओ के दाम भी नहीं मिल रहे हे उधर संघी अपना पर्वचन देते घूम रहे हे की गाय आपको लाखो कमा के दे सकती हे ( तो खुद क्यों नहीं करोड़ो कमा लेते क्यों मोदी जी को चुनाव जितने के लिए बड़े इज़ारेदारो से हज़ारो करोड़ खर्च करवाने पड़े थे जो अब हम तिगुने चौगुने ब्याज से लौटाने पर विवश हे ) सुबह सुबह सड़को पार्को में संघी दिखना पिछले दस सालो में बिलकुल खत्म हो गए थे मगर अब सड़क पर गायो और संघियो का दिखना बेहद बढ़ गया हे इससे इनके असली चरित्र का पता चलता हे
खुदा खेर करे पाठको मोदी जी फिर से अमेरिका जा रहे हे जबकि अभी पिछली अमेरका यात्रा के ही जख्म जो हम आम जनता को मिले थे वही असभ्य नहीं भरे हे अब की बार मोदी जी फिर से जाने क्या अपनी जयजयकार के बदले बख़्श आये पिछली बार अमेरिकी इसलिए इनसे खुश थे की इन्होने दवा कम्पनियो को दाम बढ़ाने की छूट दिलवा दी थी मतलब जो दवा अमेरिका यात्रा से पहले 55 की थी वो बढ़ते बढ़ते 75 की हो चुकी ये तो बहुत मामूली सा उदाहरण हे अबकी बार जाने क्या होगा उधर संघी फ़ौज़ यहाँ बेलगाम छोड़ राखी हे ताकि ये कोई ना कोई हरकत करके जनता का ध्यान शोषण से हटवा सके