महाराष्ट्र सरकार उन मदरसों को स्कूल के दायरे से बाहर करेगी जिसमें केवल इस्लामिक शिक्षा दी जाती है , स्कूल से बाहर करने का अर्थ यह है कि उनको मिल रही सरकारी सुविधाएं अथवा फंड बंद हो जाएगी तो मेरे जैसे व्यक्ति को कोई आपत्ति नहीं होगी क्योंकि इसी सुविधाओं और धन की लालच में बे वजह के और बे जरूरत के मदरसे खोले जा रहे हैं , जहाँ जरूरत नहीं वहाँ भी 10-15 कदम पर एक मदरसा अवश्य है , मदरसों में धन की बंदरबांट इतनी अधिक है कि टूटी साईकिल पर चलने वाला मौलाना कुछ दिन में ही मदरसा बनाकर लक्जरी कार से चलने लगता है । मैं तो महाराष्ट्र सरकार के इस कदम का स्वागत करूंगा क्योंकि केवल धार्मिक शिक्षा के लिए सरकारें धन दे यह उचित नहीं है चाहे किसी भी धर्म के धार्मिक शिक्षा के लिए हो यह खुद के इमान और विश्वास के उपर है खुद की जिम्मेदारी है कि अपना हलाल धन खर्च कर के दिनी या धार्मिक शिक्षा अपने बच्चों को कराई जाए ।
महाराष्ट्र सरकार के इस कदम की सराहना होनी चाहिए , परन्तु यह भी इमानदारी से हो कि सरकार किसी भी धर्म के धार्मिक शिक्षा या कार्यक्रम का ना तो आयोजन करे ना कोई धार्मिक कार्य करे । धर्म तो व्यक्तिगत विषय है इसका सरकारों से क्या लेना देना , परन्तु हाँ किसी के लिए हाँ किसी और के लिए ना जैसा पक्षपाती रवैया नहीं होना चाहिए ।
मदरसों में यह सही है कि धार्मिक शिक्षा दी जाती है परन्तु कुछ मदरसों में उच्च शिक्षा तक दी जा रही है तथा कितने तो तमाम बोर्ड से मान्यता प्राप्त हैं जहाँ 12 तक के हर विषय की शिक्षा दी जा रही है कुछ तो स्नातक परास्नातक तक की शिक्षा दे रहे हैं , यह भी सही है कि अनुपात में ऐसे मदरसे बहुत कम हैं और अनुपात में बहुत अधिक मदरसों की संख्या का कारण धार्मिक शिक्षा की बजाय धन की लालसा अधिक है जो तथाकथित कुछ मौलानाओं के लिए धंधा बन गया है ।
यहाँ तक तो महाराष्ट्र सरकार की बात से पुर्णतः सहमति है परन्तु इस निर्णय के बचाव में जो तर्क दिये जा रहे हैं वह गले के नीचे नहीं उतर रहा है , सीधे से दो लाईन का बयान उपयुक्त होता कि सरकार का काम धार्मिक शिक्षा दिलाना नहीं है जिसे लेना है अपने खर्च से ले या अपने खर्च से मदरसा या कोई और संस्थान चलाए , निश्चित ही मैं इस निर्णय का बहुत बड़ा प्रशंसक होता ।परंतु सरकार का तर्क है कि उन मदरसों में जहाँ केवल धार्मिक शिक्षा दी जाती है इस निर्णय से वहाँ भी मेनस्ट्रीम की शिक्षा दी जाएगी और इस तरह धन की लालच में सारे मदरसों में आधुनिक तकनीक की शिक्षा दी जाएगी और मदरसों से इंटर या हाईस्कूल का प्रमाणपत्र लेकर निकले युवकों को नौकरी मिलने में आसानी होगी जो कि केवल धार्मिक शिक्षा के कारण नहीं मिलती , मुझे इसमे लोचा लगता है ।
सुनने में अच्छा लगता है कि भारतीय जनता पार्टी को मुसलमानों के नौकरी रोजी रोटी की इतनी चिन्ता है परन्तु हे भाई जो करोड़ों मुसलमान आधुनिक शिक्षा की डिग्री लेकर दर दर घूम रहे हैं पहले उन्हे तो नौकरी दे दो , बाद में मदरसों में नौकरी लायक शिक्षा दिलवाना।पहले उन मुसलमानों को नौकरी दिलवा दो जिनको यह पत्र थमा दिया जाता है कि मुसलमानों के लिए नौकरी नहीं है , इसलिए आप स्कूल मानो या ना मानो यह ढोंग बंद करो , यह एक चाल मात्र है मदरसों को नियंत्रित करके अपनी मनमानी थोपने की।
डाक्टर राजेन्द्र प्रसाद देश के प्रथम राष्ट्रपति थे, कोलकाता में अपने विश्वविघालय की कक्षा में प्रवेश करने लगे तो अध्यापक ने उनको रोका कि नाम क्या है ? डाक्टर राजेन्द्र प्रसाद ने अपना नाम बताया और यह कहा कि मैने ही इस विश्वविघालय में टाप किया है , अध्यापक हैरानी से बोलते हैं कि टाप करने वाला बच्चा तो मदरसे से पढ़ा हुआ है ।डाक्टर साहब कहते हैं कि जी बिलकुल आपने सही कहा वो मैं ही हूँ ।तब मदरसों की यह स्थिति थी आज पैसे के कमाने के अड्डे बना दिये गये हैं ।
मदरसा पे महाराष्ट्र सरकार का फैसला सही लगता है अगर ईमानदारी से काम किया जाये . देखिये भारत मे सिर्फ 20 % मदरसे को हुकूमत मदद करती है और बाकी 80 % मदरसे मुसलमानो के ज़कात के पैसे से चलती है और उन्हे हुकूमत के मदद की दरकार भी नही है . मेरे शहर मे 3 मदरसे है जो सरकारी सहायता से चलती है और वो मदरसे सिर्फ पेपर पे है और टीचर सॅलरी उठा रहे है . सभी राज्य मे मदरसे बोर्ड है जिस मे भ्रष्ट्राचार है और सरकार से मिल कर पैसे लुट रहे है.
हालांकि खबर मदरसे की है इसलिये हमारा कॉमेंट करना उचित तो नही है पर आपके लेख मे कुछ बाते इतनी बढिया और ऐसी साफगोई से लिखी गयी है कि लिखे बिना रहा नही गया , ये और बात है कि हमारी राय आपकी बातो जैसी ही है ……
१-केवल धार्मिक शिक्षा के लिए सरकारें धन दे यह उचित नहीं है चाहे किसी भी धर्म के धार्मिक शिक्षा के लिए हो
२-सरकार किसी भी धर्म के धार्मिक शिक्षा या कार्यक्रम का ना तो आयोजन करे ना कोई धार्मिक कार्य करे, किसी के लिए हाँ किसी और के लिए ना जैसा पक्षपाती रवैया नहीं होना चाहिए
३-अनुपात में बहुत अधिक मदरसों की संख्या का कारण धार्मिक शिक्षा की बजाय धन की लालसा अधिक है जो तथाकथित कुछ मौलानाओं के लिए धंधा बन गया है (यही बात अधिकतर प्राइवेट स्कूलो पर भी लागू होती है जो सिर्फ नोट बटोरने के लिये खुले हुए है)
४-किसेी भेी पार्टी को न हिन्दु और ना हेी मुसलमान के नौकरी रोजी रोटी की चिन्ता है
आपकी बाकी बातो से सहमति नही है पर कुल मिला कर एक बढिया लेख !!
बहुत सारे पहलू है, महाराष्ट्र सरकार के सियासी फाय्दे रहे होंगे. लेकिन ओवैसी और आज़म जैसे लोग, जो अपने बच्चो को पब्लिक स्कूलो मे डाल कर अंग्रज़ी, विज्ञान, गणित पढ़वाते हैं, लेकिन ग़रीब मुसलमानो को सिर्फ़ धार्मिक शिक्षा तक सीमित रहने के अधिकारो की वकालत कर रहे हैं. ये चाहते हैं, मुसलमान सिर्फ़ मुसलमान रहे. वो इंजीनियर, डॉक्टर, वकील, ब्यूरोकरेट ना बने. उसके बाद, सच्चर कमेटी की रिपोर्ट का हवाला देके मुसलमानो के पिछड़ेपन का राग भी यही अलापते हैं. बाकी जो है सो है.
एक बात मेने नेट पर नोट की हे बहुत ही दुःख की बात हे की अधिकतर मुस्लिम नए पुराने लेखको ( सोशल मिडिया के भी खासकर ) को यहाँ के मुस्लिम मन मानस से मुद्दो की कोई समझ ही नहीं हे देखा जाता हे की बात जैसे हि मदरसो की आती हे तो ये फ़ौरन” प्रेमचंद राजेन्द्र प्रसाद के नाम का का परसाद बाटना शुरू कर देते हे ” ये कोई बात हे भला ? जरूर तब मदरसो को अच्छा रोल रहा होगा लेकिन उपमहादीप में मदरसो से जुडी समस्याएं 1973 में तेल क कीमतों में आये उछाल उससे दौलत के ढेर पर बैठे शेख उनके दिए चंदे से उपमहादीप में फैला कटट्रपंथ से शुरू हुई थी परवेज़ मुशरफ जैसा लड़ाकू शासक तक टी वि पर ये सब बोल चूका हे पहले मुद्दे को तो समझे
ज़ाहिद साहब, आपकी बात सही है कि आजकल डिग्रियाँ लेने के बाद भी रोज़गार की मुश्किले हैं. लेकिन ये भी मानिए कि एक आम इंसान के दिन आधुनिक शिक्षा से ही फिरे हैं. किसी भी परिवार को उठा के देख लीजिए, अगर उसने तरक्की की है तो जमाने के मुताबिक तालीम हासिल करके ही.