( माफ़ी चाहेंगे यहाँ बनिये शब्द से से हमारा आशय किसी धर्म जाती वर्ग विशेष से बिलकुल नहीं हे बल्कि एक साइकि से हे ये साइकि कही भी हो सकती हे किसी जाती विशेष में नहीं ) शायद ही किसी और खेल का विश्वकप इतना नीरस और बेरंग और बेमज़ा हुआ हो जितना इस बार का ऑस्ट्रेलिया न्यूज़ीलैंड में हुआ क्रिकेट वर्ल्ड कप इत्तफ़ाक़ देखिये की इसी ऑस्ट्रेलिया न्यूज़ीलैंड में पिछला वर्ल्ड ( 92 ) कप क्रिकेट इतिहास में सबसे अधिक रोमांचक और उत्तर चढ़ाव वाला हुआ था आखिर तक नहीं पता चल रहा था की कौन सी टीमें सेमीफाइनल फ़ाइनल खेलेगी और अंत में हुआ ये की जो पाकिस्तान की टीम सेमीफाइनल की दौड़ से बहुत पहले बाहर लग रही थी वो कई रोमांचक मैच खेलते हुए कूप ले गयी थी तब जीतने की सबसे बड़ी दावेदार ऑस्ट्रेलिया पहले दिन से ही संघर्ष करती दिखी और सेमीफाइनल की दौड़ से बाहर हो गयी थी जबकि इस बार सबसे बड़ी दावेदार ऑस्ट्रेलिया ही बड़ी आसानी से वर्ल्ड कप जीत गयी देखा जाए तब उस वर्ल्ड कप के अधभुत रोमांच का राज़ था उसमे सिर्फ टेस्ट टीमों का खेलना वो भी राउंड रोबिन ( सभी टीमों के आपस में एक एक मैच ) उस वर्ल्ड कप में भारत की टीम बुरी तरह हारी थी हालांकि उसके भी मैच बेहद रोमांचक ही हुए थे गौर करे तो उसी वर्ल्ड कप के बाद से क्रिकेट पर भारत का वर्चस्व बढ़ता गया ये वर्चस्व अगर अच्छे खेल का और खेल को समझने प्यार करने वालो का होता तो कोई इतना हर्ज़ नहीं था मगर ये वर्चस्व भारत के बनियो का था जो पैसे के सिवा कुछ और नहीं पहचानते खेल और उसकी कला कलातमकता उसका रोमांच उसकी सवस्थ प्रतिस्पर्धा इनके लिए पेसो के सामने सब बेमानी हे और बिलकुल बेमतलब हे ईन्ही लोगो ने धीरे धीरे पैसे के लिए गेम की ही हत्या करनी शुरू कर दी और इसी की पराकाष्ठा इस बार के क्रिकेट वर्ल्ड कप में दिखी की पुरे कप में कोई रोमांच और रोमांचक मैचों का नामोनिशान तक ना दिखा ऐसा लग रहा था की खिलाड़ियों में वर्ल्ड कप को लेकर कोई जोश ही ना था सबसे पहले तो देखे की भारत के वर्चस्व बढ़ने पर क्या किया गया की ज़बदस्ती फ़ालतू टीमों को वर्ल्ड कप में खिलाया जाने लगा एक तरफ फीफा फुटबॉल वर्ल्ड कप होता हे जिसमे 2006 में सेमीफाइनल तक खेलने वाली तुर्की जैसी टीम अगले लगातार सभी वर्ल्ड कपो से नदारद रहती हे और इधर क्रिकेट वर्ल्ड कप में फालतू टीमों की भीड़ बढ़ाई जाती रही हे ये मक्कारी ये कह कर की जाती हे की इससे क्रिकेट की लोकप्रियता नए नए देशो में बढ़ेगी और गौर करे तो ये प्रयोग 1996 से चला आ रहा हे और इन 18 सालो में क्रिकेट की नए इलाको में लोकप्रियता में ज़रा भी इजाफा नहीं हुआ हे असल में क्रिकेट ऐसा खेल ही नहीं हे जिसे पूरी दुनिया में कोई खास लोकप्रियता मिल सके इसी कारण ये ओलम्पिक एशियाड आदि बड़े खेल मेलो में कभी नहीं रहा मगर ये जरूर हे की क्रिकेट में ताकत कम मगर इस खेल की अपनी ही एक अलग कलाकारी और सुंदरता थी भले ही टाइम बर्बाद हो मगर क्रिकेट की जैसी कलातमकता अप्रत्याशित परिणाम दुनिया के किसी और खेल में नहीं हो सकते हे मगर क्रिकेट की सुंदरता रोमांच और खूबसूरती से भारत के क्रिकेट साहूकारों ने अपनी पेसो की हवस मिटाने के लिए —– सा कर डाला हे . अब इस खेल में सांस रोक देने वाले पल नहीं आते हे आते हे तो सिर्फ बल्ले के नए नए रिकॉर्ड और कुछ नहीं .
बात करे बेमज़ा वर्ल्ड कप की तो इसमें फालतू टीमों को असल में इसलिए घुसाया गया ताकि भारत की टीम के 92 99 और 2007 की तरह बाहर होने का खतरा ना रहे क्योकि क्रिकेट अब भारत के धन और दर्शको से ही चलता हे मक्कारी की ये कलाकारी सफल भी रही और भारत की टीम इस बेहद बकवास और बेहूदा फॉर्मेट के साथ तीनो बार 92 99 और 2007 की तरह बाहर नहीं हुई बल्कि सेमीफाइनल तक पहुचने में सफल रही ( 1996- 2011 – 2015 ) मगर इस कारण क्रिकेट वर्ल्ड कप का रोमांच एकदम गायब सा हो गया हे क्योकि सभी जानते ही हे की की ग्रुप मैचों का तो लगभग कोई महत्व ही नहीं हे जब तीन चौथाई मैचों का कोई महत्व ही नहीं बचा तो कैसा रोमांच ? बात इतनी बड़ी की बहुत से लोग यहाँ तक अपुष्ट आरोप लगा रहे की पिछले वर्ल्ड कप में भारत की जीत और इस बार क्वाटरफाइनल में भारत की बांलादेश पर जीत ये भारत के क्रिकेट पर छाय आर्थिक वर्चस्व के कारण ही संभव हुआ हे !
भारत में क्रिकेट का दोहन करने वालो ने धीरे धीरे इस खेल पर पूरा वर्चस्व पाकर इस खेल की सारी कलातमकता को खत्म सा कर दिया हे क्रिकेट खेल कहलाता गेंद और बल्ले की कड़ी टक्कर का लेकिन जैसे जैसे इस खेल पर भारत के बनियो का वर्चस्व बढ़ा उन्होंने धीरे धीरे इस खेल को बल्ले बल्ले की टक्कर का खेल बना दिया इन पेसो के पीरो को गेंदबाज़ो का वर्चस्व बिलकुल पसंद नहीं हे क्योकि इससे मैच के जल्दी खत्म होने के आसार बनते हे और मैच जल्दी खत्म होने पर टीवी एड से आने वाली कमाई काम हो जाने का खतरा रहता हे इसलिए खासकर तेज गेंदबाज़ो को तो बधिया सा कर दिया गया अब शायद ही हमें कभी वासिम अकरम एम्ब्रोस वाल्श जैसा खूंखार और खूबसूरत बॉलिंग करने वाला खिलाडी देखने को मिले शायद कभी नहीं ऐसा जानबूझ कर इसलिए कर किया गया क्योकि इस खेल में लगभग सारा पैसा भारत के बाजार के दोहन से आना था इसके लिए ये जरुरी था की भारत कुछ बेहतर तो खेले ही साथ ही भारत में इस खेल के बड़े सारे हीरो पैदा हो अब क्योकि भारत में शुरू से ही फ़ास्ट बोलेरो का अभाव रहा हे हालात ये रहे की कहते हे की भारत के पहले टेस्ट में खेले निसार मोहम्मद ही भारत के एकमात्र शुद्ध तेज़ गेंदबाज हुए हे यहाँ पर तेज़ गेंदबाज़ो का अभाव सबसे अधिक हमारी सामाजिक संरचना के कारण भी रहा हे यहाँ क्योकि मेहनत करने वालो को खून पसीना बहाने वालो को छोटा समझा जाता हे !
और खड़े खड़े बल्ला घुमाने वालो को ऊँचाऊँची जात समझा जाता हे और क्रिकेट एक ऐसा खेल हे जिसमे ले देकर फ़ास्ट बोलर ही फुटबॉल हॉकी टेनिस आदि खेलो के खिलाड़िया की तरह से कड़ी मेहनत करता हे इसी कारण भारत में खूंखार फ़ास्ट बोलेरो की परंपरा नहीं रही हे जब फ़ास्ट बोलर नहीं हुए तो नतीजा ये हुआ की अभ्यास की कमी से भारत के बेट्समेन हमेशा ही एक तेज़ पिच पर एक शुद्ध तेज़ गेंदबाज को खेलने में कभी भी सहज नहीं रहे हे आज भी ऊपर से लेकर नीचे तक सुरक्षा उपकरण होने पर भी भारतीय टीम विदेशी तेज़ पिचों पर हमेशा सरेंडर सा कर देती हे तब जब नब्बे के दशक में क्रिकेट पर भारत का प्रभाव बढ़ता गया तो ऐसा अंदाज़ा होता हे की तभी सोच समझ कर योजना बनाकर अपने फायदे के लिए धीरे धीरे इस खेल को बल्लेबाज़ों का खेल बना दिया गया जिस खेल में कभी सेंचुरी लगना तीनसो रन बनना बहुत ही बड़ी बात होती था वही भारत यानी बी सी सी आई के वर्चस्व बढ़ने के बाद के बाद इस खेल में चारो तरफ रनों के पहाड़ बनने लगे और जैसा की योजना थी ही की सब से ऊँचे पहाड़ खड़े किये भारत के बल्लेबाज़ों ने जिन्हे फायदा पहुचने वाले बहुत से काम किये गए पिचों को हमेशा ढका गया उस पर घास को जिन्दा नहीं छोड़ा गया कही बाउंसरों को बिलकुल बेन सा किया गया तो कही बल्ले में परिवर्तन किये गए कही ऊपर से नीचे तक बल्लेबाज़ों को सुरक्षित करने वाले उपकरण दे दिए गए यहाँ तक शायद ये भी किया गया की मैदान तक छोटे कर दिए गए ताकि खूब रन बने खूब चोक छक्के लगे जिन पर भारत के दर्शक अफ़ीमचियो की तरह झूमे लेकिन इसका नुकसान ये हुआ की कलाई से दिखाई जाने वाले सुन्दर बेटिंग खूबसूरत शॉट ( अज़हर विश्वनाथ ) बिलकुल खत्म हो गए उनकी जगह भरी बल्ले के आसानी से लगने वाले चोको छक्कों ने ले ली और रोज ही बल्लेबाज़ी के नए रिकॉर्ड बनने लगे ये सब हुआ होगा वर्ना कोई कारण नहीं हे की अब इस खेल में भागकर तीन रन लेना बहुत ही कम दिखाई देता हे सभी देशो में फ्लेट पिचे बनने लगी हे टेस्ट मैच में तो थोड़ा बहुत गेंदबाज़ो को माहोल मिला मगर वनडे और टी 20 में तो गेंदबाज़ो को विकेट के लिए सिर्फ किस्मत के भरोसे छोड़ दिया गया इससे ही ये हुआ की भारत के बल्लेबाज़ बेशनल हीरो बनकर रनों के पहाड़ बनाने लगे और भारतीय टीम का खेल और जीत का रेशो पहले से बेहतर हुआ लेकिन ये भी सच हे की देश की जनता की जेब से क्रिकेट के नाम पर अरबो रुपया खिलाड़ियों और बोर्ड की झोली में तो गया मगर तब भी ना तो भारत की टीम को विदेशो में कोई खास कामयाबी मिली और ना ऑस्ट्रेलिया की तरह कपो का कोई अम्बार लग पाया इस तरह से क्रिकेट की हत्या कर दी गयी हे और ऐसा नहीं था की भारत के पुराने खिलाडी खेल की खूबसूरती के साथ होने वाले इस ——- के खिलाफ आवाज़ नहीं उठा सकते थे मगर ये सब चुप रहे कारण जैसा की कुछ समय पहले खबर आई थी की ये पुराने खिलाडी बोर्ड के साथ अनुबंध करते हे जिसके तहत ये भी जम कर पैसा पीटते हे और इन्ही अनुबंधों में ये भी शर्त होती हे की ये लोग बोर्ड की नीतियों के खिलाफ कुछ भी नहीं बोलेंगे ना लिखेंगे.
भारत के बनियो के लगातार बढ़ते वर्चस्व से दुनिया के बाकी क्रिकेट खेलने वाले देश भी दुखी और अपमानित फील करते हे मगर सब चुप ही रहने में भलाई समझते हे वजह वही हे की इस खेल में अब पैसा कमाने के सभी रास्ते भी बी सी सी आई के थ्रू ही जाते हे पाकिस्तान जैसा क्रिकेट का समृद्ध देश का बोर्ड भारत के साथ ना खेलने के कारण बेहद पिछड़ और दिवालिया सा हो गया इसकी खिलाडी आई पी एल में पैसा न कमा पाने की कुंठा में आसानी से सट्टेबाज़ों की भेंट चढ़ने लगे पाकिस्तान का ये हाल देख कर बाकी बोर्ड खुद ही सबक लेते हे और जैसा की हमने देखा की किस तरह से खुलेआम बांग्लादेशी आई सी सी चीफ को अपमानित किया गया और किसी ने उनके लिए आवाज़ नहीं उठाई बेहतर यही होगा की हम भारतीय ही बी सी सी आई की बदमिजाजी के खिलाफ आवाज़ उठाय
आज मे पहली बार सिकंदर हयत के इस लेख से सहमत हु . क्यो के मे क्रिकेट का बहुत बड़ा फैल हु और जिस तरह आज बड़े बड़े उधौदिक घराने क्रिकेट मे रुचि ले रहे है सिर्फ दौलत कमाने और ब्लैक मनी को सफेद बनाने के लिये. जिस से क्रिकेट के अस्तित्व पे सवाल खड़ा हो गया है.
एक अच्छे लेख के लिये हयात साहब को शुक्रिया.
” आज मे पहली बार सिकंदर हयत के इस लेख से सहमत हु ”जी नहीं ये दूसरी बार हुआ हे इससे पहले भी जब हमने रश्दी तस्लीमा वाला लेख लिखा था वहाब भाई तब भी खेरियत हुई थी की आपने जूता नहीं निकाला था
”बनियो ” ने कैसे इस खेल का बेडा गर्क कर दिया हे ये आप टीवी की तो बात ही क्या अपने आस पास गली मोहल्ले मैदान में जाकर महसूस कर सकते हे नब्बे के दशक तक भी ये था की गली लोकल क्रिकेट में भी कई लोकल खूंखार फ़ास्ट बोलर होते थे जो अपनी बॉलिंग से डराते थे और उन्हें खेलना भी एक अच्छा अनुभव होता था मुझे तो क्रिकेट खेले हुए कई साल हो गए अब जब में फूटबॉल खेलता हु तो बराबर में क्रिकेट खेलते लड़को को देख कर मेने नोट किया हे आप भी गौर करे की अब लोकल खेल में, गली क्रिकेट में , कोई फ़ास्ट बोलर नाम की चीज़ ही नहीं बची हे रनप तो कोई लेता ही नहीं इसी तरह मेने देखा की बच्चे फील्डिंग में कोई दिलचस्पी नहीं लेता हे कोई खूबसूरत कैच नहीं दीखता हे यहाँ तक की वही ग्राउंड में एक बाकायदा कोच लड़को को सीखा भी रहा होता हे लेकिन हराम हे जो इनमे भी मेने किसी को तेज़ बॉलिंग करते देखा हो बस इतना हे की ये कोच बेटिंग के बाद थोड़ी बहुत फील्डिंग वो भी सिर्फ कैच की प्रेक्टिस कराता हे फ़ास्ट बॉलिंग का तो जिक्र ही नहीं हे हर बच्चा बेटिंग पर लार टपका रहा होता हे हद हो गयी हे लेकिन ये सब किया भारत के बनियो ने जिन्होंने गेम की हत्या करवाके विराट सचिन शर्मा वर्मा से बेटिंग के रिकॉर्ड बनवाए और बोलर फ़ास्ट बोलर को विलुप्त प्रजाति बना दिया ये खेल के साथ रेप से कम नहीं हे
एक आप देखे की गेम और भारतीय दर्शको को मूँड़ रहे ये क्रिकेट के बनिए किस तरह से चतुराई से काम करते हे हम भारतीय को मुर्ख बनाने में इन्होने पि एच डी की हुई हे अब ये अफीम ये सभी मिलकर बेचते हे बीसी सी आई खिलाडी पुराने खिलाडी कॉर्पोरेट मिडिया सरकार आदि ये सभी अब जब की पता ही हे की अरबो खा कर भी भारतीय टीम कोई खास प्रदर्शन नहीं कर पाती हे तो ये क्या करते हे की खिलाड़ियों के व्यक्तिगत प्रदर्शनों को खूब उछालते हे ताकि हार के बाद भी खिलाडी की ब्राड वेल्यु बानी रहे और वो भारत माता के लिए अंत तक लड़ने वाला वीर की इमेज बने रहे तो ये क्या करते हे की जब भी भारतीय टीम बुरी तरह हारती हे तो ये क्रिकेट के दलाल यानी मिडिया और पुराने खिलाडी क्या करते हे की फिर राग अलापते हे की अला ने बहुत सघर्ष किया फला ने बहुत सघर्ष की टक्कर ली ये किया वो किया ये एकदम नॉनसेंस हे जो लोग खेल खेलते हे वो जानते होंगे की कोई भी कितनी भी बढ़िया टीम क्यों ना हो एक बार मैच को अपनी मुट्ठी में कर लेने के बाद वो ढील छोड़ती हे फिर वो अपनी फूल एनर्जी और एफ्फर्ट नहीं डालती हे और इस ढील का फायदा किसी को मिल ही जाता हे तब रन बना लेना या गोल मार लेना कोई इतनी अहमियत की बात नहीं होती हे अब जब भी भी बी सी सी आई की टीम हारती हे तो भी किसी न किसी बैटस्मेन का जयकारा लगा दिया जाता हे की उसने संघर्ष किया ( जैसे अभी वर्ल्ड कप सेमीफाइनल में धोनी ने ) जबकि ये कोई संघर्ष या टक्कर लेने की बात नहीं होती हे लेकिन भरतीय मिडिया इस फालतू संगर्ष को भी खूब नंबर देता हे ताकि इन ठुल्ले क्रिकेट खिलाड़ियों की ब्रांड वेल्यु पर हार की आंच कम ही असर करे
भारत में शुद्ध तेज़ गेंदबाज़ो का अभाव भारत की आर्थिक असमानता के कारण भी रहा हे पाकिस्तान में भी भारत की तरह ही बहुत सी सामाजिक बुराइया चरम पर रही हे उंच नीच भेदभाव वह भी खूब हे मगर पाकिस्तान में हमेशा शुद्ध तेज़ गेंदबाज़ो की परंपरा रही जबकि भारत में इसका बिलकुल अकाल रहा तो एक बड़ा कारण ये भी हे की तेज़ गेंदबाज़ी बहुत ही ज़्यादा दमखम का काम हे जिसमे बॉडी के हर महत्व वाले पार्ट पर जोर पड़ता हे इस संदर्भ में तेज़गेंदबाज़ी फुटबॉल खेलने से भी कुछ अधिक मेहनत का काम हे फुटबॉल में आपके हाथ तो सलामत रहते हे जबकि तेज़ गेंदबाज़ी में पैर टांग घुटना कलाई कन्धा सबका कचूमर बनता हे इसलिए कहते हे की लिली मार्शल जैसे खिलाडी हर बॉलिंग स्पेल के बाद इलाज़ लेते थे अब भारत में क्योकि सर्वाधिक पैसा शाकाहारी समाजो के ही पास हे इस कारण भी भारत में तेज़ गेंदबाज कभी भी नहीं रहे कोई अपवाद भी नहीं ये तथ्य भारत की भयवाह आर्थिक असामनता और पैसे वालो की आरामतलबी को दर्शाता हे
इंडिया टुडे बहुत टाइम से बहुत ही खराब पत्रकारिता कर् रहा हे कभी इसमें सवपन दस गुप्त जी जैसे लोग रहे जिन्होंने इसे भाजपा टुडे तक बना दिया और अब सूना हे की सवपन दस गुप्त जी को इसका पूरा बदल मिल रहा हे और भाजपा सरकार में एक बहुत ही ऊँचे पद से नवाज़ा गया हे में कभी ये पत्रिका खरीदता नहीं बल्कि दरियागं संडे मार्किट से एक चौथाई से भी कम रेट पर ले लेता हु अब इसका एक अंक पढ़ रहा था तो देखा की सचिन ने और इस पत्रिका ने बड़ी बेशर्मी से टीम का बचाव किया और धोनी को अंत तक झुझने का क्रेडिट दिया ये अंत तक झुझने की बात कितनी बकवास हे ये हमने ऊपर बताई हे की इसे झूझना नहीं कहते थे जीत पक्की कर चुकी टीम दुआरा छोड़ी गयी ढील या दी गयी भीख कहा जाता हे जाहिर हे ये बेशर्म बचाव इसलिए हे की इन ठुल्लो की ब्रांड वेल्यु पर आंच ना आये
अब देखिये ” बनियो ” ने कैसे भारत अफ्रीका सीरीज का सत्यानाश करके रख दिया धौस ये की हमें भी तो तुम्हारे यहाँ बाउंसी पिच पर खिला कर हमारा जुलुस निकला जाता हे अब हम स्पिन पिच से तुम्हारे साथ वैसे ही करेंगे ? ये वही भारतीय मानसिकता जो हर बुराई में लिथड़ी होकर भी दुनिया को म्लेछ और खुद को महान समझती हे ? अरे अगर विदेशी ऐसा करते भी हे तो अब क्या डर हे फ़ास्ट बॉलिंग ? का जब ऊपर से लेकर निचे तक खिलाडी सुरक्षा पेक रहते हे बॉउन्सरों पर बेन हे ? फिर फ़ास्ट बॉलिंग तो फुटबॉल से भी अधिक जानतोड़ काम हे आप भी अपने यहाँ फ़ास्ट बोलर और फ़ास्ट पिच क्यों नहीं ला सकते हे जबकि सबसे अधिक पैसा आपके ही पास हे ? इस सबके बीच में — तो उसी खेल का होता हे जिसके आधे से अधिक दर्शक सिर्फ भारत में ही हे
भारत में क्रिकेट से जुड़ा सबसे बड़ा नाम भी कितनी छोटी सोच का हे पढ़े नरेंदर नाथ लिखते हे ”सचिन तेंदुलकर निर्विवाद रूप से विश्व के सबसे बेहतरीन बल्लेबाज हैं। ऐसा उनके रिकार्ड खुद बताते हैं। लेकिन एक बात के लिए उनसे सदा निराशा रही। और रिटायर करने के बाद यह निराशा और बढ़ गई है। उनसे निराशा इस बात को लेकर रही कि वे कभी लीडर नहीं बन सके। ठीक है, लीडर होना स्वाभाविक गुण होता है। हर किसी में नहीं होता,सचिन में नहीं था।लेकिन हमेशा अपने कंफर्ट जोन में रहना? अपने पूरे करियर में एक फिक्स पोजिशन के साथ खेलते हुए करियर बीता दी। जोखिम लेने से हिचकते रहे। और जब भी उनका पोजिशन बदला,या तो विवाद हुआ या वह विफल रहे। और बेचारे द्रविड़,लक्ष्मण जैसे बल्लेबाज अपने करियर के अंतिम मैच तक ऐसा कंफर्ट जोन नहीं पा सके। कहीं भी बिन पेंदी लोट के तरह एडजस्ट किये जाते रहे। खैर यह क्रिकेट की बात है। संभव है कि मैं गलत हूं।अब उन्होंने 25 साल के करियर को समेटते हुए किताब लिखी। अच्छी ब्रांडिंग हुई। अब यहां कंफर्ट जोन देखये। सचिन तेंदुलकर ने अपनी किताब में सिर्फ दो को टारगेट किया। पहले ग्रेग चैपल को,जिससे पूरा देश नफरत करता है। दूसरा कपिलदेव, जिन्हें बीसीसीआई पंसद नहीं करता। है ना कंफर्ट जोन? क्या उन्हें 25 सालों में इडियट बीसीसीआई से कभी शिकायत नहीं रही? क्सा इंडियन क्रिकेट में सब ठीक रहा? क्या आईपीएल में सब ठीक था? क्या इनसे जुड़ी कोई बुराई नहीं दिखाई दी। क्या करें, क्रिकेट का यह भगवान भी आम मिडिल क्लास की तरह बन गया जो सोचता है-क्रांति हो लेकिन पड़ोस के घर में। जोखिम लेने से डरता है। ”
ऐसी अपुष्ट खबरे आ रही हे की महान खिलाडी का महान हीरोइन से ब्रेकअप की एक वजह ये भी हे की उसने भी उस हीरोइन की सुपर फ्लॉप लगभग सौ करोड़ का शुद्ध घाटा देने वाली फिल्म में चालीस करोड़ लगाय थे शायद उसने सोचा था की लेडी भी इम्प्रेस होगी और पैसे की तो रिकवरी होगी ही लेकिन हुआ बिलकुल उल्ट सोचिये ये हाल हे ? क्रिकेट की बेहूदगी और सस्ती देशभक्ति के नाम पर इस तरह से हमारी खून पसीने की कमाई लुटाई जा रही हे याद रहे ये चालीस करोड़ तो वो लूट हे जो कानून के दायरे में हे कानून के बाहर तो किसी लूट होती होगी सोचिये इस निकम्मो और आलसियों के खेल पर टाइम खराब करने से पहले ? दूसरा ये भी सोचिये की फ़ास्ट बोलरो को ” बधिया ”करवाके जो रिकॉर्ड बना के ध्यानचंद की जगह जिसे भारत रत्न दिया गया अब दिख ही रहा हे की क्रिकेट पर भारत के और भी ज़्यादा वर्चस्व का लाभ ले लेकर उससे ज़्यादा रिकॉर्ड तो अब दूसरा खिलाडी बना देगा तब क्या उसे भी भारत रत्न दिया जाएगा ?
सभी सोच समझ विचार की सलाहियत रखने वालो लोगो को” बी सी सी आई ” की टीम की हर की बहुत बहुत मुबारकबाद खेल से कोई एतराज़ नहीं हे मगर जिस तरह से इस आलसियों के खेल राष्ट्रवाद से जोड़कर मिडिया बाजार और सट्टेबाज़ों दुआरा तांडव करवाया जाता हे और ऐसा माहौल बनाया जाता हे मनो दो चार मैच जीत कर भारत ने दुनिया जीत ली हो जबकि दुनिया क्रिकेट को जानती तक नहीं हे वो बेहद दुखद अगर भारत जीत जाता तो और दस गुना तांडव होता जिस तरह से इस पिटे हुए गेम को जो अब सिर्फ भारत के ( यानि हमारे शोषण के ) पेसो के दम पर चलता हे ( इसलिए——- ? )इसे देशभक्ति से जोड़ा जाता हे जिस तरह से अमिताभ बच्चन जैसे लोग जो किसी असली मुद्दे पर चु भी करने की हिम्मत नहीं करते हे वो टिवीटर पर सड़कछाप क्रिकेट प्रशंसक की तरह” जड़ से उखाड़ देंगे ” जैसी बेहूदा बाते करते हे वो देख देख मतली आती हे रविश जी से तो उम्मीद थी की वो इस घिनौनेपन के खिलाफ लिखेंगे लेकिन ये खेलभावना के उपदेश दे रहे हे ——-?
कल के मैच में भारत की जीत की ”आशंका ” से ही में बेहद तनाव में था जिस देश का ये हाल हे की दोसो करोड़ लोग सौ साल से सिर्फ एक आदमी ओलम्पिक गोल्ड जीते हो ( अभिनव बिंद्रा ) वो भी मेहनत नहीं एकागर्ता के खेल में उस देश के कुछ टुच्चे मक्कार लोग क्रिकेट की फालतू उपलब्घियों को ऐसे पेश करते हे प्रशंसक अफीमचियों की तरह ऐसे झूमते हे मानो दुनिया जीत ली गयी हो जबकि दुनिया क्रिकेट को जानती तक नहीं हे मरिया शारापोवा ने बिलकुल सही कहा था हु इज़ सचिन खेर खुदा न खास्ता भारत जीत जाता तो ये लोग आसमान सर पर उठा लेते अरबपति खिलाड़ियों को खरबपति बनाया जाता और ये सब हमारे शोषण का पैसा होता अपुष्ट तो कहा जाता हे की एक बड़े ग्रुप जिसके मालिक अब दो साल से जेल में हे उसके कर्मचारी तो भारत की क्रिकेट में जीत से घबराते थे क्योंकि ——— श्री सुना हे की उनकी तन्खा में से काट कर खिलाड़ियों को इनाम देते थे
mohak -to सिकंदर हयात • 23 minutes ago
you mentioned ,maria sharapova …….she just failed in a drug test…found guilty of taking steroids…and we know what thing she blends with sport,,,,, so we need not take advice from her about sachin…as far as cricket is concerned it is braveheart’s game…it needs very high level of physical and mental toughness……and as far as corruption is concerned ,journo-politicians,bookies nd industrialist spoiled the game spirit….money rules everywhere….
सिकंदर हयात to mohak • in a few seconds
मोहक भाई दुनिया न कोई भारत रत्न सचिन को जानती हे ना क्रिकेट को ये सच्चाई शारापोवा के माध्य्म से ही सही बता दी तो क्या बुरा कर दिया ? और फ़ास्ट बॉलर को छोड़ दे तो क्रिकेट सारा निकम्मो और आलसियों का खेल हे मेने भी हमेशा क्रिकेट खेला और मेरा वजन 98 हो गया था अब फुटबॉल खेल कर इस बार देल्ही हाफ मेराथन तीन घंटे आस पास दौड़ कर अब 90 किया हे इन गर्मियों में 80 करना मेरा लक्ष्य हे और क्रिकेट कितना आलसियों का खेल हे इसका पता करना हे तो ज़रा फुटबॉल के मैदान में आइये पांच मिनट में तारे दिख जाएंगे क्रिकेट में मुझे कोई मामूली चोट भी कभी नहीं लगी और अब फुटबॉल खेल कर मेरे घुटने टूट से रहे हे जांघ में दर्द रहता हे पैर का इलाज करवा चूका हे तलवे में भयंकर दर्द रहता हे रिस्ट फ्रेक्चर हो चूका हे दो सालो में बीस तिस हज़ार रूपये फिटनेस पर फुक गए हे लेकिन फिर भी अब मेरा चालीस या पचास साल की उम्र तक तो कम से कम फुटबॉल खेलना का पक्का इरादा हे ही . मोहक भाई कुछ दिन तो गुजारो फुटबॉल या हॉकी या मेराथन के मैदान में तब आपको पता चलेगा की वाकई इन खेलो में ” छक्के ” नहीं होते हे मोहक भाई आपने लिखा .money rules everywhere…. तो भाई क्या फुटबॉल हॉकी टेनिस में किसी में दम हे की वो इनके मैदान छोटे करवा दे 12 खिलाडी खिलवा दे भयानक गर्मी देख कर ब्रेक आधे घंटे का करवा दे ? हे किसी की मजाल लेकिन सिर्फ क्रिकेट में ये किया गया हे की मैदान तक छोटे करवा दिए हे ताकि सचिन विराट शर्मा वर्मा को सहूलियत हे ये खेल के साथ —- से कम नहीं हे ऐसा सिर्फ क्रिकेट में हुआ क्योकि यहाँ ”भारत के बनियो ”और अफीमची टाइप परसशंसको का राज़ चल रहा हे
खेलो में हमारी दुदर्शा और इस थके हुए खेल क्रिकेट में हमारी रूचि पर बहुत ही बढ़िया लेखक और संपादक मनोज मिश्र जी का ये लेख भी पढ़े http://khabarkikhabar.com/archives/468
ब्रिटिश पत्रकार ने बिलकुल सही कहा जो कहा सहवाग क्योकि एक दक्षिणपंथी झुकाव वाला आदमी हे इसलिए आमतौर पर गलत और फालतू बात ही करेगा समझ इनमे इतनी हे की कप्तानी छीनने के चक्कर अपना ही कॅरियर बन्द करवा बैठे थे अब टिवीटर पर गन्द फैलाते हे टाइमपास करते हे ब्रिटिश पत्रकार की बात पर इनका और एक दूसरे दक्षिपंथी चेतन भगत का जवाब मूर्खता और ज़हालत का प्रमाण हे ब्रिटिश पत्रकार की बात के जवाब में ये क्रिकेट जैसे फालतू और फ़र्ज़ी खेल और उसकी फ़र्ज़ी भारतीय उपलब्धियों की बात करने लगे इन्हें इतना भी नहीं पता की ओलम्पिक और उसके गोल्ड के सामने क्रिकेट वर्ल्ड कप उसके पाँव की धूल भी तो नहीं हे क्रिकेट सिर्फ भारत के दम पर ज़िंदा हे जबकि ओलम्पिक पूरी दुनिया को पूरी मानवता को रिप्रेजंट करता हे इसलिए सभी खिलाडी अपना बेस्ट ओलम्पिक के लिए बचा कर रखते हे ब्रिटिश पत्रकार ने भला क्या गलत कहा हमें भले ही आदत हो गयी हो भारत में रात दिन चलने वाली मूर्खताओं की बेइंसाफीयो की मगर दुनिया तो इस पर ताज़्ज़ुब करेगी भी वो भी ब्रिटेन जैसा छोटा सा देश जिसने हैरतअंगेज़ खेल दिखाते हुए ओलम्पिक में चीन को पीछे छोड़ कर चीन जैसे खेल सुपर पावर को सन्न कर दिया अब उसका पत्रकार दो पदको को लेकर दीवाने हो रहे देश पर तंज करे तो इसमें क्या ताजुब हे —? इसका आधा जश्न भी इंग्लैंड में नहीं हो रहा होगा जो पैसा मान सम्मान अहमियत शाबाशी सारे भारत के खिलाड़ियों को मिलनी चाहिए ( उनको भी जो हारे हारने वालो का भी पूरा सम्मान और पैसा होना ही चाहिए हारने ही तो प्रैक्टिस करवा कर जीतने वालो को तैयार करते हे हारने वाले नहीं तो फिर जीतने वाले भी नहीं ) एक तो पहले ही उस पर क्रिकेट के डाकुओ लुटेरो का कब्ज़ा हे उसके अब दो ही पदक विजेताओ पर सब कुछ लुटा देने की खफ्त इरिटेटिंग तो हे ही
Pankaj K. Choudhary
23 November at 10:01 ·
जिनका खेल हैं वो खेल रहे हैं …..जिनका खेल हैं वो देख रहे हैं ..स्टेडियम में दर्शक भरे हुए हैं ..स्चूलों से जबरदस्ती बच्चों को उठा कर नहीं लाया गया है ..ताकि टीवी पर देखने में मैच अश्लील न लगे …
हमें अपनी गंगा को गन्दा और अपवित्र करने में शर्म नहीं आई तो उनके द्वारा इजाद किए गए अद्भुत खेल, जिसे हम और आप क्रिकेट के नाम से जानते हैं, को गन्दा करने में क्यूँ शर्म आएगी …
बर्बाद कर दिया है डालमियाओं, श्रीनिवासनों और बनियों ने इस तरफ के क्रिकेट को …बर्बाद कर दिया है टवेंटी२० देखने वाले दर्शकों ने क्रिकेट को..आदरणीय पंकज चौधरी सुबह पांच बजे से उठ कर एशेज देख रहा है और उम्मीद कर रहा है कि भारत क्रिकेट का पावरहाउस न रह पाए ..Pankaj K. Choudhary
23 November at 13:55 ·
भारत क्रिकेट का पावरहाउस है और तेंदुलकर मोहाली के खाली स्टेडियम में वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाता है और ऑस्ट्रेलिया के ब्रिसबेन में टेस्ट मैच देखने के लिए स्टेडियम खचाखच भर जाता है…
अगले कुछ सालों में भारत यो यो हनी सिंह की बदौलत संगीत का, दीनानाथ बत्रा की बदौलत शिक्षा का, चेतन भगत की बदौलत साहित्य का, अनुराग डीवीडी कश्यप की बदौलत सिनेमा का और रामकृष्ण यादव की बदौलत अध्यात्म और संस्कृति का पावरहाउस बन जाएगा और एक भारत, श्रेष्ठ भारत, अनेक पावरहाउस वाला भारत का ब्रांड एम्बेसडर स्मृति ईरानी बन जाएंगी…थैंक्सPankaj K. Choudhary
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भारत क्रिकेट का पावरहाउस है, क्योंकि:
वयस्कों के टेस्ट मैच देखने के लिए स्टेडियम में बच्चे आते हैं और बच्चों के ट्वेंटी20 मैच देखने के लिए वयस्क आते हैं…लेकिन क्रिकेट की नज़र में ये भी बच्चे ही हैं दाढ़ी और मूंछों वाले पुरुष बच्चे और उभारों वाली महिला बच्चियाँ….
कहने का मतलब है कि भारत में वयस्क लोग क्रिकेट देखते ही नहीं हैं, फिर भी भारत क्रिकेट का पावरहाउस है…इस सदी का सबसे महान महापुरुष दिलीप सी मंडल ने सही कहा है भारत मनोरोगियों का देश है…थैंक्स
क्रिकेट में जिन सचिन और विराट की फ़र्ज़ी कामयाबियों पर भारतीय इतराते हे रहते हे वो सब एक लूट के कारण हे और कुछ नहीं हे भारत वासियो का खून चूस कर जो पैसा आता हे उसी से क्रिकेट जिन्दा हे क्रिकेट में सारा पैसा भारत की लूट से हे अब ” जिसका बैट हे उसे तो खेलने देना ही पडेगा ” उसी से खेल के नियम बदल कर ये सचिन और विराट की फ़र्ज़ी कामयाबियां हे बी बी सी पर फारुख इंजिनियर ——————-टेस्ट मैच में एक दिन के 50 रुपए मिलते थे भारतीय टीम को
1961 में कानपुर में इंग्लैड के ख़िलाफ़ अपने करियर की शुरुआत करने वाले फ़ारुख़ के खेल की ख़ास बात थी उनकी दिलेरी और बड़े से बड़े तेज़ गेंदबाज़ को मारने की उनकी क्षमता.
इंजीनियर याद करते हैं, ”हमारे ज़माने में वेस हॉल सबसे तेज़ गेंदबाज़ हुआ करते थे और 100 मील प्रति घंटे की रफ़्तार से गेंद फेंकते थे. उस समय ‘बाउंसर’ और ‘बीमर’ फेंकने पर कोई रोक या ‘लिमिट’ नहीं थी. आज कल तो एक ओवर में सिर्फ़ एक ‘बाउंसर’ फेंकने की ही अनुमति है.”
”बैट भी बहुत साधारण हुआ करते थे. छक्का मारने के लिए बहुत ज़ोर लगाना पड़ता था. आज कल तो इतने अच्छे बैट बन गए हैं कि बल्ले का बाहरी किनारा लगने पर भी गेंद छक्के के लिए बाउंड्री के पार हो जाती है. हम और दुर्रानी छक्कों के स्पेशलिस्ट थे जो दर्शकों की मांग पर छक्के लगाया करते थे.”
”उस समय हमें टेस्ट खेलने के लिए बहुत कम पैसे मिलते थे, एक दिन का सिर्फ़ पचास रुपया. मुझे याद है, मैं गावस्कर के साथ टेस्ट के चौथे दिन ‘क्रीज़’ पर था. खेल ख़त्म होने में आधा घंटा बाकी थी और हमें जीतने के लिए सिर्फ़ 20 रन बनाने थे. तभी ‘ड्रेसिंग रूम’ से संदेश आया कि धीमे खेलो. अगर खेल आज ही ख़त्म हो गया तो कल के हमारे पचास रुपए मारे जाएंगे. नतीजा ये हुआ कि हमने हर गेंद को ‘ब्लॉक’ किया ताकि हमें अगले दिन के 50 रुपए मिल सके.”-
वैसे तो अल्लाह तौबा अल्लाह तौबा एक सेकण्ड के लिए क्रिकेट देख लो तो सर दर्द करने लगता हे मगर रिसर्च के लिए जिम करते हुए थोड़ी सी नज़र पड़ गयी तो वही बात की कैसे भारत के बनियो ने इस खेल के साथ रेप सा कर दिया हे तीन रन तो सवाल ही नहीं हे बल्कि दो रन लेते हुए भी नहीं दीखते हे इसका क्या मतलब हुआ की भारत के सचिन विराट जैसे फ़र्ज़ियो की सुविधा के लिए ग्राउंड ही इतना छोटा कर दिया गया हे आखिर बार तीन रन कब लिए गए थे ——— ? भारत के बनियो के हाथ में इस खेल के आने से पहले एडिलेड में पांच रन तक मुमकिन बताये जाते थे ———- ?
क्रिकेट पर भारत का हिन्दू कठमुल्लावाद बनियागर्दी छा गयी इसी कारण अब हमें कभी मार्शल अकरम एम्ब्रोस वाल्श नहीं दिखेंगे दिखेंगे———————————————– Devanshu Jha17 hrs ·क्योंकि माल्कम मार्शल एक ही था..!1999 का एक उदास दिन धीरे-धीरे ढल रहा था । बारबाडोस के सर गारफील्ड सोबर्स जिम्नैज़ियम में वेस्टइंडीज के कुछ महान क्रिकेटर चुप, गुमसुम खड़े थे । सामने ताबूत में पंजर में परिवर्तित हो चुकी एक देह चिरनिद्रा में लीन थी और पूर्व कप्तान वेस्ली हॉल कांपते स्वरों से मंत्र बुदबुदा रहे थे । विश्व क्रिकेट के लिए यकीन करना मुश्किल था कि जिसकी पदचाप से बल्लेबाजों का मन कांप उठता था,वो मार्शल अब हमेशा के लिए मौन हो चुका है ।
मात्र 41 वर्ष की उम्र में माल्कम मार्शल ने दम तोड़ दिया था और जिस वक्त वो अंतिम क्षणों को गिन रहे थे, उस वक्त उनका जिस्म हड्डियों का ढांचा भर रह गया था । पांच फुट ग्यारह इंच का कद और गठीले जिस्म का गेंदबाज़, जिसकी भुजाओं में मछलियां थीं अब मात्र पच्चीस किलो का रह गया था । 1996 में वे बीमार पड़े और जब तक उन्हें पता चला कि वे कोलन के कैंसर से पीड़ित हैं तब तक उनकी गिल्लियां उड़ चुकी थीं । मगर, इतिहास जानता है कि क्रिकेट के मैदान पर मार्शल जैसा मान मर्दन करने वाला गेंदबाज़ इक्के दुक्के ही हो सके हैं । वैसी विदग्धता और धमक विरलों की होती है और वैसा प्रभुत्व शायद ही किसी और गेंदबाज का रहा हो । बल्लेबाजों में जैसी निर्दयी प्रहार क्षमता विवियन रिचर्ड्स की थी, वैसा ही विस्मयकारी विक्षोभ मार्शल का रहा ।
तेज गेंदबाजी की शास्त्रीय परिभाषा के पार मार्शल का रन अप छोटा था, वे तिरछा दौड़ते थे और अपनी रफ्तार, उछाल और स्विंग से भय पैदा करते थे । आश्चर्यचकित कर देने की उन जैसी कला विश्व क्रिकेट में गिने चुने गेंदबाजों की रही है ।
1980 के दशक में जब हमने क्रिकेट की कमेंट्री और खेल में रुचि लेनी शुरू की तो मार्शल विश्व क्रिकेट में बवंडर का पर्याय हो चुके थे । मुझे स्मरण नहीं होता कि मार्शल जैसा भय मैंने किसी और गेंदबाज़ का देखा या सुना । बाद के दौर में एक छोटे से समय के लिए शोएब अख्तर का टेरर था ।
मार्शल का उदय ऐसे दौर में हुआ जब वेस्टइंडीज़ से भिड़ने वाली टीम के बल्लेबाज़ों को निरंतर बाणवर्षा झेलनी पड़ती थी । तेज गेंदबाजों से राहत ही नहीं मिलती थी । वहां कोई मध्यम गति का ऑफ स्पिनर नहीं होता था । होल्डिंग, एंडी रॉबर्टस, जोएअल गार्नर, कॉलिन क्राफ्ट जैसे दिग्गज किसी भी तकनीक की पांति को तितर बितर कर देते थे । परंतु तब इनमें से कुछ गेंदबाज अपनी अवसान वेला की ओर बढ़ रहे थे । अस्सी के मध्य तक आते-आते होल्डिंग और रॉबर्ट्स का जादू छीजने लगा था और मार्शल ने इकट्ठे दोनों की भरपाई कर डाली थी । यद्यपि माइकल होल्डिंग को रोल्स रोयस ऑफ दी फास्ट बोलर्स कहा जाता है। तथापि मार्शल जैसी त्वरा और आतंक उनमें नहीं था । होल्डिंग और रॉबर्ट्स सर्वकालीन महान तेज़ गेंदबाजों में से एक थे पर मार्शल हर विधा का विज्ञ था । विकेट के दोनों ओर स्विंग कराने में उन्हें महारत हासिल थी । बाउंसर के वे बेताज़ बादशाह थे और उन्होंने अपने करियर के मध्य में लेग कटर का ईजाद भी कर लिया था, जिसे बाद में इमरान ने उनसे ही सीखा ।
उनके करियर की पहली सीरीज भारत के साथ थी । 1978 के दौरे पर भारत आने वाले मार्शल गेंद से निष्प्रभावी रहे थे । परंतु, 1978 की पहली श्रृंखला के बाद मार्शल ने कभी भी भारतीय बल्लेबाजों को चैन की सांस लेने का मौका नहीं दिया । भारतीय बल्लेबाजों ने उनके विरुद्ध रन तो बनाए पर कभी दबदबा कायम नहीं कर सके । गावसकर की कुछ और विश्वनाथ, वेंगसरकर की एकाधिक पारियों को छोड़कर ।
मार्शल की उपस्थिति का भान अस्सी के दशक से होता है, जब वे पहली बार विलायती बल्लेबाजों की कतार को कतरब्योंत करने लगते हैं । 1982-83 से लेकर 1985-86 के दौरान सात क्रिकेट श्रृंखलाओं में वे झंझा की तरह विकेट झाड़ते रहे । इसी दौरान 1983-84 में उन्होंने भारतीय टीम की दुर्गति कर डाली थी । इस श्रृंखला में उन्होंने 33 विकेट झटके थे । 1984 में उन्होंने जोएल गार्नर के साथ मिलकर इंग्लैंड को ध्वस्त कर डाला था । इस श्रृंखला में इंग्लैंड को 5-0 से मात खानी पड़ी थी । मार्शल का भय उनके करियर की समाप्ति तक बरकरार रहा । अपने बाउंसर्स से वो बल्लेबाजों का हौसला परखते रहे और उछाल लेती गेंदों के बीच सनसनाती स्विंगर्स से उन्हें पवेलियन वापस लौटाते रहे ।
मार्शल एक कुदरती कलाकार थे । एक पैदाइशी एथलीट । जो लंबी कद काठी और चालीस गज के रनअप वाले तेज़ गेंदबाजों से कह सके कि देखो यह है मेरा सामर्थ्य ! जो तुम इतने पापड़ बेलकर भी नही्ं कर सकते, वह मैं यूं कर लेता हूं !
वेस्टइंडीज के तेज़ गेंदबाज आपस में विकेट बांटते रहे हैं । जहां एक साथ चार-चार दिग्गज गोलंदाज हों. वहां तीन सौ का आंकड़ा का छूना लगभग असंभव ही होता है । ऊपर से ज्यादातर गेंदबाज़ साठ पैंसठ टेस्ट खेल कर विदा हो जाते थे परंतु इस मामले में मार्शल एक मिसाल हैं । उन्होंने तेरह वर्ष के अंतरराष्ट्रीय करियर में 81 टेस्ट खेले और करिश्माई स्ट्राइक रेट, औसत से 376 विकेट हासिल किये । संभवत: वे किसी दूसरी टीम में होते तो इतने ही मुकाबलों में उनकी झोली में 450 विकेट होते ।
मार्शल ने वेस्टइंडीज के महान गेंदबाजों की रीत निभाई । तूफान की तरह आए और अचानक तटस्थ हो गए । मार्शल के रिटायर हो जाने के बाद वेस्टइंडीज की टीम में एंब्रोस, वॉल्श का दौर आया । मार्शल भुलाए जाने लगे । फिर, एक दिन अचानक जब खबर मिली कि एक दशक से भी लंबे समय तक अद्वितीय निरंतरता के साथ बल्लेबाजों की नाक में दम करने वाला मार्शल मौत से हार गया, वह भी भरी जवानी में, तो मन को बहुत चोट पहुंची । इस खबर पर कई दिनों तक विश्वास न कर सका । पर, आज सोचता हूं कि कीर्ति को भला कौन सी मृत्यु लील सकती है । उसका यश:शरीर तो स्थायी है । इसलिए, जब तक विश्व क्रिकेट जिंदा है और महान गेंदबाजों की चर्चा होती है, तब तक माल्कम मार्शल खम ठोंक कर खड़े होते रहेंगे । बल्कि, मैं तो एंडी रॉबर्ट्स के इस कथन से सहमत हूं कि तेज़ गेंदबाजों का दौर बहुत पहले बीत चुका है । निश्चय ही उस दौर के अंतिम और सबसे तेजस्वी स्विंग गेंदबाज माल्कम मार्शल ही थे ।
बनियो ने कैसे इस खेल के साथ —– किया सचिनो विराटो की इस बनियागर्दी की आड़ में मिली उपलब्धिया कितनी फ़र्ज़ी हे मैदान छोटे तीन रन गायब ( छोटे मैदान के कारण ) खूंखार फ़ास्ट बॉलर उनके बाउंसर गायब जरा देखिये होल्डिंग का पेंतालिस गज का रनप ये सब गायब कर दिया गया भारत के बनियो के कारण इसी से सचिन विराट पैदा हुए और पैदा हुए उनके फ़र्ज़ी रिकॉर्ड https://www.youtube.com/watch?v=CMmKSR2Pfes
https://www.youtube.com/watch?v=AOxCf5yYwEA अख्तर की खतरनाक बॉलिंग देखिये और याद रहे की अख्तर तो उस दौर का बॉलर रहा जब बाउंसर पर प्रतिबंध लग चुके थे और विव रिचर्ड्स के दौर में उसने लिली थॉमसन इमरान अकरम आदि खतरनाक बॉलर को बिना किसी हेलमेट के और दूसरे सेफ्टी के बिना और बाउंसर पर बिना किसी प्रतिबंध के खेला और एटीट्यूड ? थॉमसन कहता था की उसे पिच पर खून देखना अच्छा लगता हे अब बताइये की रिचर्डस की फ़र्ज़ी भारत रत्न और उससे भी बड़ा फ़र्ज़ी फ्यूचर भारत रत्न कोहली की भला क्या तुलना —— ?