इस्लामी राज्यों के मामलों किस हद तक गिरावट का शिकार हैं! ट्यूनीशिया से लेकर यमन, सीरिया, इराक और अफगानिस्तान तक, सभी इस्लामी दुनिया अशांत है। पाकिस्तान अपने मुद्दों के साथ एक अद्वितीय राज्य है जिसके एक हाथ में सक्रिय परमाणु हथियार तो दूसरे में दुनिया का मजबूत कश्कोल जो तोड़ने से भी न टूटे। यह वह राज्य है जो गाहे बगाहे, जोश और भाव की हालत में खुद को कट्टरता से इस्लाम का किला घोषित कर डालती है, और फिर साथ ही कश्कोल आगे कर दिया जाता है। क्या यह समस्या संस्कृति या फिर हम इतिहास के उत्पीड़न का शिकार हैं?कभी इस्लाम पर स्वर्ण दौरा था, लेकिन फिर बहुत पहले तो मंगोलों, तातारयों, सारयों, मिस्त्रियों और Phoenicians और Huns पर भी चरम का ज़माना था। क्या अतीत की महिमा धीरे के गुण गाते हुए हाल की कमजोरी या विफलता पर पर्दा डाला जा सकता है? इतिहास सभ्यताओं के उत्थान और पतन का रिकॉर्ड रखती है, लेकिन इसके साथ-साथ यह शक्तिहीन संयुक्त और पीढ़ियों के दूसरे पक्षों का समीक्षा करती है । यूरोप में अंधेरी काल ( DARK AGE )ज्ञान नशाۃ सानिया आंदोलन उभरी। ईसाई भी सुधारवादी आन्दोलन (Reformation) प्रक्रिया से बची है, तर्क राष्ट्रवाद ने मुस्तफा कमाल के नेतृत्व में नई जून बदली, आज का चीन अफीम की युद्ध और Boxer Rebellion युग का चीन नहीं है।
सवाल यह उठता है कि दनियाए इस्लाम में इस तरह की कोई आंदोलन क्यों न उभरी? पिछले पांच या छह सौ वर्षों से इसके फ़िक्री दरीचों में ताजा हवा के किसी झोंके का गुजर क्यों न हुआ? इस्लामी दुनिया ज्ञान और वैज्ञानिक प्रगति के क्षेत्र में सभ्य दुनिया से इतना पीछे क्यों रह गई? इतिहास के दोराहों पर मौजूद होने के कारण इस्लामी क्षेत्र के रूप में मध्य पूर्व, मध्य एशिया और दक्षिण पश्चिम एशिया बेहद महत्वपूर्ण हैं। उनके महत्व की एक और वजह तेल और उस पर आधारित अर्थव्यवस्था है। तेल की डालरों में होने वाली विश्व व्यापार और उससे कमाए गए डॉलर अमेरिकी टरीژी बांड के मामले में अमेरिकी अर्थव्यवस्था के लिए आसान ऋण साबित होते हैं। 1973 में किया गया समझौता, जिसके तहत तेल की कीमत अमेरिकी डालरों में होता है जबकि इसके बदले अमरीका सऊदी सरकार को सुरक्षा प्रदान करता है, वह महान विनिमय है जो अमेरिका और सऊदी अरब के संबंध का आधार बना रहा। महत्वपूर्ण बात यह है कि पीटरोडालर आधारित अर्थव्यवस्था के बिना अमेरिकी अर्थव्यवस्था कठिनाइयों के गरदाब में फंस जाती। सद्दाम हुसैन का पाप उनके ” व्यापक विनाश के हथियारों ” (जो कभी न मिल सके) की उपस्थिति नहीं बल्कि तेल की कीमत डॉलर के बजाय यूरो में करने का संकल्प था।
जरा शर्म अलशीख में अरब लीग की छतरी तले एकत्र अरब नेताओं पर एक नज़र रखना। क्या बैठक में बैठ कर उनके इस तरह विचार चिंता करने से किसी के दिल की धड़कन नाराज़ हो जाएगी? संयुक्त बल बनाने के जनरल नेतृत्व का प्रस्ताव ट्रिगर सब ज्ञान में है क्योंकि उनकी सरकार को खाड़ी देशों से भारी रकम मिल चुकी हैं। आठ वर्षीय ईरान इराक युद्ध, जो दोनों देशों को नष्ट करके रख दिया, के दौरान इन सभी देशों ने सद्दाम हुसैन को रकम दी थी, लेकिन इराकी तानाशाह ने ” धर्म ‘का बदला चुकाने के लिए कुवैत में हमला कर दिया। आधुनिक इस्लामी दुनिया की राजनीति आज भी उन्हीं पदों पर अग्रसर है। आज खाड़ी देश मध्य पूर्व में ईरान के बढ़ते प्रभाव का कारण परेशान हैं। इस क्षेत्र में ईरान के प्रभाव में वृद्धि के कारण इराक पर अमेरिकी हमले था। क्या हमले के समय उनके द्वारा कोई विरोध किया गया? विरोध छोड़, क्या अमेरिका को हल्के चिंता से अवगत कराया गया कि वह गलती करने जा रहा है? लेकिन सद्दाम हुसैन की नफरत ने अरब देशों की आंखों पर पूर्वाग्रह पट्टी बांध दी थी। आज अमेरिकी हमले का खामियाजा सबको भुगतना पड़ रहा है और ईरानी प्रभाव को कम करने के लिए उन्हें यमन में होती विद्रोहियों पर बमबारी करना पड़ रहा है क्योंकि अरब इन विद्रोहियों को ईरान के प्रॉक्सी दस्ते समझते हैं (हालांकि ऐसा नहीं है)।
अब जबकि हमले शुरू हो चुके हैं तो अरब राज्यों की बुद्धिमानी इसी में है कि वह कार्रवाई को हवाई हमले से आगे न बढ़ाएं, लेकिन अगर उन्होंने जमीनी दस्ते भेजने की गलती की तो यमन इन के अफगानिस्तान बनने जा रहा है। पाकिस्तान के लिए भी अच्छा है स्थानों मकदसह सुरक्षा और अरब की धरती पर होती वाली किसी भी आक्रमण को सहन न करने को बयानबाजी, जो हम विशेषज्ञ हैं, तक ही सीमित रखे क्योंकि हालात बताते हैं कि धरती अरब और मुक़द्दस स्थानो को कोई खतरा नहीं है। इस दिक्कत व्यावहारिक स्थिति यह है कि अरब देशों यमन पर हमला कर रहे हीं जब कह होती विद्रोहियों का कोई कदम या बयान प्रकट नहीं कर रहा कि वह हजाज़ धरती द्वारा उन्नत करना चाहते हैं, लेकिन अगर पाकिस्तान की ओर से जारी किए जाने वाले सरकारी बयान, विशेष रूप से विदेश सचिव द्वारा, जाओ तो ऐसा युद्ध समां बंधा हुआ महसूस होता है जैसे पवित्र स्थानों को गंभीर जोखिम पैदा करें और हर पाकिस्तानी सिर कफ़न बांधकर मैदान में कूद पड़ने के लिए बेचैन हो। इसमें कोई हर्ज नहीं, लेकिन बुनियादी सवाल अपनी जगह पर मौजूद है कि पवित्र स्थानों पर हमले की धमकी किसने दी है?
यह अनुमान लगाने के लिए बहुत बुद्धिमान होने की जरूरत नहीं कि पाकिस्तान उचित व्यवहार और अहतयाज की कशमकश का शिकार है। ज्यादातर पाकिस्तानी समझ कोलियत का ाृहार्करते हैं कि हमें यमन के मामलों से कोई सरोकार नहीं होना चाहिए। देशों से यूं युद्ध छेड़ने एक मूर्खता थी तो उसमें भाग लेने के लिए कूद पड़ना पाकिस्तान की महान गलती होगी। हालांकि बेफिक्र रहें, अतीत िनायात और उनका भविष्य में निरंतरता सुनिश्चित करता है कि हम सऊदी अरब का साथ नहीं छोड़ेंगे। केवल इतनी दुआ है कि सऊदी अपनी सैन्य कार्रवाई को हवाई हमले से आगे बढ़ाकर हमें परीक्षण में न डालें क्योंकि हम न अरब भाइयों को नाराज कर सकते हैं और न ही मूर्खता में कोदसकते हैं। अम्मान यमन का पड़ोसी है लेकिन वह खुद को इस दुविधा से दूर रखा हुआ है। इसकी वजह यह है कि अम्मान को पाकिस्तान की तरह सऊदी सहायता पर तकिया की जरूरत नहीं।
अगर इस्लामी दुनिया की समीक्षा तो कुछ राज्यों को छोड़कर सभी देशों बाहरी शक्तियों के हाथों में कठपुतलियों पुतलियों के समान हैं। वह अपने भाग्य के फैसले खुद करने का अधिकार नहीं है। ईरान की परमाणु डील हर किसी के हित में है, लेकिन अरब राज्य खायफ हैं कि इसके जरिए ईरानी प्रभाव में वृद्धि हो जाएगा। कई विरोधियों तोकहते हैं इजरायली परमाणु हथियारों के महीब अंबार से ानहींकोई फर्क नहीं पड़ता लिकन ईरान का परमाणु कार्यक्रम उन्हें ड्रायोने सपने की तरह दिखाई देता है। इसी तरह शाम में होने वाला अनुबंध भी दनियाए इस्लाम के उपयोगी साबित हो सकता है लेकिन इस उद्देश्य के बशर अल असद को पद से हटाए जाने की क्या ज़रूरत है?लेकिन अरब भाई असद को हटाने के लिए प्रतिबद्ध हैं और इसी तरह तुर्की के श्री ारदवान हालांकि यह स्पष्ट है कि असद को हटाए जाने से भयानक आतंकवादी समूह के रूप में अल या वैकल्पिक, ालनसरह और दाश, सराठालें करेंगे। हालांकि उस समय अरब और तुर्की के नेताओं के श्री असद को हटाने महत्वपूर्ण कोई काम नहीं, चाहे उसका कितनाही भयानक अंजाम क्यों न हो।
इसलिए बुनियादी सवाल, दनियाए इस्लाम के साथसमस्या क्या है? क्या उनका कल्चर ही इस तरह का है या वह इतिहास की विडंबना का शिकार हैं? दुनिया के अन्य भागों में विज्ञान के विकास और विकास और अन्य संयुक्त खुद को नई चुनौतियों के अनुसार ढाल कर आगे बढ़ रही हैं।मगर इस्लामी देश उस की तरफ कोई क़दम नहीं उठा रहे है . अभी भी हम अलकायदा , जवाहरी, बगदादी , बोको हराम जैसे आतंकवादी संगठनो को हीरो बनाने में तुले हुए है और पश्चिम देश भी उन्हें समर्थन कर आगे बड़ा रहा है और मुस्लिम देशो का एक भयावह चेहरा पीह कर रहा है . इस में पश्चिम देशो की भी कोई गलती नहीं है जब हमारी सोच और मानसिकता ही यही है तो और कोई कर भी क्या सकता है . जब हम खुद अपने हालात नहीं बदले गए तो कोई और कैसे आप का साथ दे सकता है.
अन्य समुदायो की तरह, मुस्लिम समुदाय मे भी सुधारवादी आंदोलन हुए हैं. सूफ़ीज़्म इसका एक उदाहरण है. और इसी सूफ़ीज्म ने हमे एक से बढ़कर एक कलाकार और समाज सेवी लोग दिए. अहमदी आंदोलन भी एक सुधारवाद की कोशिश ही थी. लेकिन मुस्लिम समुदाय इसको ज़्यादा लंबा इसलिए नही खींच पाया, क्यूंकी अन्य मतो मे सुधारवाद के खिलाफ कोई स्पष्ट सिद्धांत नही है, इसलिए सुधारवाद के खिलाफ कट्टरपंथी आंदोलन ज़्यादा प्रभावी नही रहता.
इसके विपरीत, इस्लाम के बुनियादी सिद्धनतो मे बहुलातावाद यानी pluralism के खिलाफ लड़ाई का संदेश है. धार्मिक आस्था की विविधता को इस्लाम मे मान्यता नही है. इसी कारण सुधारवादी आंदोलन बार बेक्फुट पे आते है.
लेकिन बदलती दुनिया के साथ मुस्लिम क़ौम की सोच भी बदल रही है अब.
” इसके विपरीत, इस्लाम के बुनियादी सिद्धनतो मे बहुलातावाद यानी pluralism के खिलाफ लड़ाई का संदेश है. धार्मिक आस्था की विविधता को इस्लाम मे मान्यता नही है. इसी कारण सुधारवादी आंदोलन बार बेक्फुट पे आते है. ” जाकिर भाई इसमें पेंच ये हे की अगर विविधता को मान्यता होती तो भला इस्लाम की जरुरत ही क्या और क्यों होती ? भला क्योकि मक्का में तब पहले ही काफी विविधता थी और यहूदी ईसाई और 360 अलग अलग खुदाओं को मानने वाले आदि साथ साथ रह ही तो रहे थे ” क्या किसी नए प्रोडेक्ट के लेवल पर आप ये लिखा होने की कल्पना भी कर सकते हे की भाई पुराने सभी प्रोडेक्ट भी बहुत बहुत अच्छे हे ” . अगर इस्लाम भी वही बात करता और , बेहद उदार बना रहता ; पैगम्बर मोहम्मद साहब एक महान और बेमिसाल सेनापति भी ना होते तो इस्लाम आता और उसी तरह पिट पीटा कर गायब हो जाता जैसे बोध धर्म अपनी ही जमी भारत से गायब हो गया था खेर ये जरूर हे की अब उदारता की जरुरत हे और इस्लाम में भी उदारता को मानयता भी दी गई हे तो हमें कटटर नहीं लिबरल ही होना चाहिए
nature मे अनेक प्रकार के फुल होते है जो अलग -२ तरिके कि सुगन्धे वातवरन मे घोलते है अगर ये सभि नस्त हो जये तोऔर एक प्रकार का फुल रहे तो कया nature कि सुन्दता भनि रहेगि उसि प्रकार शिया सुन्नि अहमदि देव्बन्दि बरेव्लि आदि इस्लाम के फुल है जो इस्लाम सुग्न्धित क रहे है अगर ये सब खतम हि जये तो इस्लाम भि वैसा हि हो जायेगा जैसा कि मरुस्थल
मुझे समझ मे नही आता के अफ़ज़ल साहब और हयात साहब सिर्फ मुसलमानो या इस्लाम के विरुद्ध क्यो लिखते है उन्हे और कोई विषय नही मिलता . पूरी दुनिया इस्लाम के खिलाफ है और अब कुछ मुस्लिम लेखक भी खिलाफ लिखने लगे है. क्या हो गा.
में तो दो दिन से संपादक नीरेंदर नागर जी के ब्लॉग पर लगातार सलमान का मुकदमा लड़ रहा हु इस चक्कर में क्रिकेट और वर्ल्ड कप पर लेख दिमाग था वो भी नहीं लिख पाया जिसका शीर्षक था ” भारत के बनियो ने किया क्रिकेट का सत्यानाश ” यहाँ में सत्यानाश की जगह कुछ और लिखना चाहता था मगर शायद वो सही नहीं होगा इसके अलावा बनिया शब्द के प्रयोग पर भी असमंजस में हु की ये शब्द प्रयोग करूर या ना करू हालांकि बाकी लोग तो खूब करते हे खेर मेरा बनिया शब्द से आशय कोई जाती विशेष नहीं बल्कि एक मानसिकता हे जो पेसो के सिवा बाकी कुछ नहीं पहचान पाती हे
वहाब चिशतेी सहब् ये जो थोड़ी बहुत इज़्ज़त बची हुई है वो अफ़ज़ल साहब और हयात साहब जैसे गिनती भर मुसलमानो की वजह से ही है अन्यथा आज के दौर मे कठमुल्लापन झेलेगा कौन ??
तुम सिर्फ ये चाते हो की इस्लाम के खिलाफ लिख के मेरा नाम हो जाए….भाई इस्लाम “अल्लाह” का बनाया हुआ मज़ब है कोई तुम्हारे जेसे writers ने नही लिखा है जो पैसे के लिए कुछ भी लिख दे..भाई ‘इस्लाम” को बदनाम करने से पहले “इस्लाम” के बारे में जान तो लो…तुम विज्ञान की बात करते हो तो सुंनो “इस्लाम” की जो किताब है “क़ुरान” उससे पढ़ो पहले फिर समज में आएगा की पूरा विज्ञान ही “क़ुरान” से निकला है…”क़ुरान” सबसे पहले लिखा है “अल्लामु लिल्लाहि रब्बिल आलमीन” मतलब है इस लाइन का की “शुक्र है उस खुद का जो सरे जहानों का मालिक है” जब विज्ञानिको ने ये लाइन पढ़ी तो उन् होने सोचा की “क़ुरान” में “जहाँन” शब्द की जगा “जहानों” क्यों आया फिर वेज्ञानिको ने खोज करी तो पाया की तारामंडल में सिर्फ एक दुनिया नहीं है हज़ारो करोड़ो दुनिया है उसमे से एक हमारी गेलेक्सि है जिसका नाम मिल्किवे है…ये “क़ुरान” बताता है…है कोई दुनिया की किताब जो “क़ुरान” से ज़्यादा बेहतर हो तो जवाब मिलेगा की नहीं है…हज़ारो बाते है विज्ञानं की जो “क़ुरान” में पढ़ने के बात ही खोज हुई है…ये बताओ की दुनिया में जितनी भी खोज हुई है सब “इस्लाम” आने के बाद क्यों हुई है उससे पहले क्यों नहीं हुई…भाई इस्लाम का इतना विरोद है पूरी दुनिया में पर एक बात जानलो की जिस चीज़ का जितना विरोद होता है वो चीज़ उतनी ही तेज़ी से बढ़ती है जेसे की “इस्लाम” बढ़ रहा है..तुम्हारे “इस्लाम’ को गलत बताने से कोनसा “इस्लाम’ गलत हो जाएगा….”क़ुरान” में लिखा है “मलिकी यौमिद्दीन” मतलब “हिसाब किताब के दिन का मालिक है अल्लाह’ ज़रा “इस्लाम” बारे में गलत लिखते टाइम उस दिन के बारे में भी सोच लिया करो की एक दिन “अल्लाह” के सामने खड़ा होना है फिर क्या होगा…तुम “इस्लाम” के खिलाफ लिखते हो दिल तो करता है तुमारी गर्दन शारीर से अलग करदू पर प्यारे “नबी सल्लाहो अलेही वसल्लम” ने ये सिखाया है की कोई तुम्हारे साथ केसा ही बर्ताव करे पर तुम उसके साथ हमेशा भलाई करो “मक्का फ़तेह” के दिन प्यारे “नबी पाक” ने सब को माफ़ कर दिया था…ये है “इस्लाम” ये शिक्छा देता है “इस्लाम”..इसलिए में तुम्हें एक तोफा देना चाता हु तुमरे इस पोस्ट के बदले वो तोफा ये है की “अल्ला” तुम्हें हिदायत दे…अमीन अमीन अमीन…भाई “अल्लाह” से माफ़ी मानगो वो बड़े माफ़ करने वाले हऐ भाई
शुक्रिया भाईजान, आपके इल्म ने आंखे खोल दी 🙂 कुछ रौशनी डालना चाहेंगे कि सारी दुनिया को विग्यान का ग्यान बांटने वाली क़ुरान को पढने वाले मुसलमानो की उपलब्धिया विग्यान के क्षेत्र मे सबसे कम क्यो है या इसमे भी अमेरिका और इज़राइल की साज़िश है:)
तसल्ली से बताइये कि एक ही अल्लाह को मानने वाले मुसलमान आपस मे ही एक दूसरे को सबसे जयादा क्यो कत्ल करते है ?? दर्जन भर बच्चे पैदा करने को आप बढना कहते हो जिनको ना शिक्षा मिल पाये ना सभ्यता सिखाई जाये तो ऐसे इस्लाम का बढना आप ही को मुबारक हो.
अल्लाह के सामने जब खड़ा होना होगा तब देखा जायेगा फिलहाल वर्तमान मे तो जी लीजिये….हम या कोई और इस्लाम को क्यो बदनाम करने लगा जबकि हकीकत सारिदुनिया के सामने है कि मुसलमान ना खुद सुकून से जीता है और ना ही दूसरो को जीने देता है ?? कोई एक गैर-मुस्लिम कौम तो बताइये जिसके साथ मुस्लिम निभा पा रहा हो ?? हर समय दूसरो की सामाजिक और धार्मिक बातो पर कमिया निकालने का फरमान आपकी कौन सी क़ुरान मे है 🙂
यासिर भाई
आप बताने का कष्ट करे गे के इस लेख मे इस्लाम के बारे मे क्या लिखा गया है .सब से पहले आप इस्लाम और मुसलमान मे फ़र्क़ समझ ले . असल मे हम लोग इस्लाम और मुसलमान को एक ही समझ लेते है .
शायेद आप अभी इस्लामी मुल्क के बादशाह को जानते नही है के वी अपनी सत्ता बचने के लिये इस्लाम का सहारा लेते है और लोगो को बेवक़ूफ़ बना ते है . अब आप देखिये सिरिया का असद ने सिर्फ अपनी गद्दी बचने के लिये लाखो लोग का क़त्ल करा दिया . ए एक मिसाल नही है बहुत है जैसे सद्दाम, गद्दाफी,मिस्र आदि .
अफज़ल भाई ये जो साइकि हे जो यहाँ गर्दन उतारने की धमकी दे रही हे आप तो खेर दुबई में रहते हे मेरे भाई भी विदेश में हे और दूसरे जो परिचित हे वो भी सुरक्षित जीवन जीते हे आम हालात के टच में कम ही रहते हे मगर हम तो यही जमीं पर ही रात दिन धक्के खाते हे तो हम तो रोज हो देखते हे की इन लोगो ने आम मुस्लिम काही सबसे अधिक जीना हराम किया हुआ हे बात मज़हब की ही नहीं हे और भी सामान्य जान जीवन में हज़ारो मसले होते हे और ये हर जगह ये पूरी शिद्दत से असहिष्णुता और लफ़डो झगड़ो में बढ़ावा देते हे हर जगह रोड रेज हो पास पडोसी हो घर हो रिश्तेदारी हर जगह ये क्लेश को बढ़ावा देते हे इस्लाम की जिन बातो को जीन गुणों को ये रात दिन बताते हे उनका जरा भी इनके अपने जीवन में कोई असर नहीं होता हे जैसे अभी कुछ तब्लीगियो के साथ कुछ बज़रंगियो ने बदसलूकी कर दी तो चलो बहुत बुरा हुआ ऐसे में आपका क्या फ़र्ज़ था की पुलिस रिपोर्ट करते और अल्लाह अल्लाह करते हुए घर आते मगर नहीं इन्होने इलाके के गिद्द नेताओ के साथ मिलकर भारी क्लेश करवा दिया निर्दोष यात्रियों को लम्पट तत्वों से पिटवाया और ये हाल तब हे जब पता हे की इसी तरह की इंटॉलरेंस का फायदा उठाकर यु पि से 80 सीटें जीत कर मोदी को बहुमत मिला अब शायद विधानसभा की बारी हे हे और संघी ऐसी हरकतों का पूरा फायदा उठाएंगे
دینی مدارس یا جہالت کے اڈے ؟
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فرقہ انسان کو تنگ نظر بنا دیتا ہے۔اسی وجہ سے قرآن نے فرقہ پرستی سے منع کیا ہے۔ارشاد خداوندی ہے۔
اس نے تمہارے لیے وہی دین مقرر کیا ہے جس کی ہدایت اس نے نوح کو فرمائی اور جس کی وحی ہم نے تمہاری طرف کی اور جس کا حکم ہم نے ابراہیم اور موسی اور عیسی کو دیا کہ اس دین کو قائم رکھواور اس میں تفرقہ پیدا نہ کرنا۔۔۔الشوری آیت ١٣
اس واضح ارشاد کے باوجود مفاد پرستوں نے دین میں فرقے بنائے۔فرقوں کو وہ دین پسند نہیں جو رسول ص سے بھی پہلے پیغمبروں کے زریعے اللہ مقرر کیا۔جس کے آخری رسول محمد ص تھے۔فرقوں نے دین کی اس روایت کو تبدیل اور مسخ کردیا جو آدم سے کر محمد ص تک تھی۔
اس تبدیل شدہ دین کا نام شیعہ سنی دیوبندی بریلوی اہل حدیث وغیرہ رکھا گیا۔اور بڑی ہی بے شرمی کا مظاہرہ کرتے ہوئے ان کے نام پر مدرسے اور مساجد قائم کی گئیں۔
جب مدرسہ جو کہ تعلیم کے لیے ہوتا تھا کی بنیاد ہی فرقے پر رکھی جاتی ہے تو اس سے فرقہ پرست اور تنگ نظر لوگ ہی تیار ہونگے۔جنہیں کی تعلیم کی بنیاد ہی اس اصول پر رکھی جاتی ہے کہ تم نے اپنے فرقے کے اکابر کی اندھی تقلید کرنی ہے۔اور ان سے اختلاف کو گناہ سمجھا جاتا ہے۔اختلاف رائے پڑھانے کا کوئی رواج نہیں۔جب تمام فرقوں کے اکابر کی کتب موجود ہیں اور فرقے ان سے اختلاف بھی نہیں کرتے تو پھر مدارس میں سات آٹھ سال ضائع کرنے کا کیا فائدہ ہے؟جن مدارس سے فرقہ پرستی تنگ نظری پھیلائی جائے وہ دینی مدارس ہیں یا جہالت کے اڈے؟
WAHID RAZA COMMENT IN URDU TRANSLATE IN HINDI FOR OUR READER
सांप्रदायिक व्यक्ति को संकीर्ण बना देता इसी कारण कुरान सांप्रदायिकता से मना किया हे.ारशाद यहोवा है।
उसने तुम्हारे लिए वही धर्म निर्धारित किया है जो निर्देशित इस नूह फ़रमाई और जो रहस्योद्घाटन हम तुम्हारी ओर और जो आदेश हम इब्राहीम और मूसा और ईसा को दिया कि इस धर्म की स्थापना रखोाोर इसमें फूट पैदा न करना … ालशवरी आयत 13
इस स्पष्ट इरशाद के बावजूद हित परस्तों धर्म में समुदाय बनाईे.फरकों वह दीन पसंद नहीं जो प्रेरित स से भी पहले पैग़म्बरों करके अल्लाह सेट कया.जस के अन्तिम दूत मुहम्मद स थे.फरकों धर्म की इस परंपरा को बदलने और विरूपण दिया जो आदम से मुहम्मद स तक थी।
इस संशोधित धर्म के नाम शिया सुन्नी देवबंदी बरेलवी अहले हदीस आदि रखा गया.ाोर बड़ी ही बेशर्मी का प्रदर्शन करते हुए उनके नाम पर मदरसे और मस्जिदें स्थापित की गईं।
जब मदरसा कि शिक्षा के लिए होता था आधार ही संप्रदाय पर रखी जाती है तो इससे सांप्रदायिक और संकीर्ण लोग ही तैयार होनगे.जनहीं शिक्षा की बुनियाद ही इस सिद्धांत पर रखी जाती है कि आप अपने समुदाय के ाकाबर की अंधी तक़लीद करनी है और उनसे असहमत को पाप माना जाता हे.ाखतलाफ राय पढ़ाने का कोई रिवाज नहीं.जब सभी समुदायों के ाकाबर की पुस्तकें हैं और समुदाय उनसे असहमत नहीं करते तो मदरसों में सात आठ साल बर्बाद करने का क्या फायदा है? जिन मदरसों से सांप्रदायिकता संकीर्ण फैलाई जाए वह दीनी मदारिस हैं या अज्ञान के अड्डे
अगर विविधता को मान्यता होती तो भला इस्लाम की जरुरत ही क्या और क्यों होती ……..
१-क्या शिया सुन्नि देवबन्दि बरेलि का अल्लाह अलग -२ है
२-अजान मे दि जाने वालि आवाज अलग्-२ है
३-अल्लाह को सज्दा करने वालि नमाज अलग्-२ है
४-क्या कुरान सबके लिये अलग-२ है
५-क्या सबके लिये कलमा अलग है
और क्या मुस्लिम के ५ मुल नियम इन सब्के लिये अलग्-२ है
अगर ये सब अलग्-२ है तो यकिनन इन्मेसे जो मोहम्मद साहेब के बतये रास्ते पर है वो हि मुस्लिम है दुसरे नहि-
अगर सब्के एक हि है तो इन सबको इन्कि आस्था के साथ मुस्लिम माना जा सक्ता है इससे समाज मे शान्ति कि स्थाप्ना हो सकति है
सिकंदर साहब, आप जो दलील दे रहे हैं, उससे तो आप मुहम्मद साहब को ही कटघरे मे ला रहे हैं. बुद्धीज्म कई जगह से चला गया, लेकिन बहुत जगह है, वहाँ मूल बुद्धीज्म से बदल गया है, और जहाँ से चला गया, वहाँ बहुत् कुछ अपना छोड़ भी गया. यहेी दुनिया का दस्तुर है. विचारो का आदान प्रदान रस्सा-कसी तो एक बात है, लेकिन इसमे बदलाव की गुंजाइश होनी ही चाहिए.
अगर आप मौलिक इस्लाम के बहुलातावाद के खिलाफ सिद्धांत को स्वीकारते हैं, तो आज उसको अप्रासंगिक कैसे करार दें, ये उलझन, सभी उदारवादी मुस्लिमो के सामने खड़ा है.
बाकी मेरा मानना है की वक्त की आँधी मे जो नही बदलने की कसम खाते हैं, वो भी दो कदम वक्त की हवा मे चल ही जाते हैं. आज रूढ़िवादी से रूढ़िवादी मुस्लिम वैसा नही रहा, जैसा 1300 साल पहले था. आज हर मज़हब, हर विचार सवालो के घेरे मे है, और इन सवालो से ही जवाब भी मिलेंगे. नास्तिकता, शायद व्यावहारिक विकल्प ना हो, लेकिन परंपरागत मज़हबी मान्यताओ के दिन भी लदते जा रहे हैं.
आपने लिखा ”लेकिन परंपरागत मज़हबी मान्यताओ के दिन भी लदते जा रहे हैं. ” मुझे ऐसा बिलकुल नहीं लगता हे बेहतर यही होगा की हम अपनी मज़हबी मान्यताओ पर अडिग रहते हुए ही कठमुल्लाशाही से लड़े नहीं तो क्या आप ओशो डेविड कोरेश रामपाल आदि सिरदर्दी चाह रहे हे क्या ? आपने कहा की बुद्धजिम चला गया दूसरी जगहों पर तो भाई ऐसे तो हज़रत ईसा के बाद ही ईसाई मत फैला मगर तब भी बात अलग ही थी क्योकि इन्हे फैलने के कही चुनौती थी तो कही और खाली मेदान भी था जहा कोई चुनौती नहीं थी जबकि इस्लाम को फैलने के लिए कोई खाली मैदान उपलब्ध नहीं था चारो तरफ बड़े बड़े और महान मज़ाहिब और सभ्ताय देश पहले से मौजूदथे जैसे आप चाह रहे हे वैसा होता तो इस्लाम अपनी जगह ही ना बना पाता यही बता रहे और ये बात मौलाना वहीदुद्दीन खान आरिफ मोहम्मद खान जैसे विद्वानो ने ही समझाई हे शायद उन्होंने ही कहा की की इस्लाम में कुछ बाते हमेशा के लिए कुछ वक्त के हिसाब से तो कुछ एक खास वक्त के लिए हे यही बता रहे थे आपकी सोच हे की की धर्म पर सवाल खड़े किये बिना काम नहीं चलेगा जब की हम बिना किसी की भी आस्था पर चोट किये बिना ही गलत लोगो पर हमले कर सकते हे आपका कहना हे की हमें कामयाबी नहीं मिलेगी हमें पूरा यकीं हे की इसी रस्ते से बेहतरी आएगी
एक ये भी हो रहा की नेट का सोशल मिडिया का सबसे अधिक फायदा हिन्दू कटरपन्तियो सम्पर्दायिको ने उठाया भी हे फिर इनमे भड़ास भी ज़्यादा भरी हे तो ये नेट पर जमकर ज़हर उगलते हे इनका काम बाकायदा संघठित हे और पेड़ भी लगता हे तो ये बहुत हावी हे इन्हे पढ़ पढ़ कर यासिर साहब जेसो का ब्लडप्रेशर बढ़ता हे फिर ये अपनी खुंदक अफज़ल भाई जैसे सेकुलर लेखको पर निकालते हे यहाँ तक की ये भी नहीं देख पाते की अफज़ल भाई अपने लेख में इस्लाम की नहीं मुस्लिम देशो और उनके के शासको की बात कर रहे हे इस सम्बन्ध एक तो ये करना चाहिए नेट पर सोशल मिडिया पर बहुत ज़्यादा गंध हे तो यहाँ वह ज़्यादा ना भटके करे कूड़े को कुरेद कुरेद कर ना देखे कुछ अच्छी साइट आदि ही पकडे और उन्हें ही देखे हर जगह जाकर अपना वक्त बर्बाद ना किया करे
यमन जैसे गरीब मुल्क पे हमला उसे और क्या कहा जाये. इस्लाम की रक्षा या अपने साम्राज्य का बडवा या अपनी शक्ति देखना और इस हमले को एक धार्मिक रूप देना के यमन के हुती ग्रूप मक्का और मदीना पे क़ब्ज़ा करना चाहता है . साउदी पूरे मुस्लिम देशो को बेवक़ूफ़ बना रहा है के मुक़द्दस जगह खतरे मे है दूसरे मुस्लिम देश इस युद्ध मे सपोर्ट करे. यही साउदी ईरान पे हमला करने के लिये अमरीका को उकसा रहा था , इन्ही लोगो ने इराक़ पे हमला कराया . ऐसा प्रतीत होता है के मुस्लिम देशो का कोई भविष्य नही है इसी तरह आपस मे गृहयुद्ध होते रहे गे और बादशाह अपनी हुकूमत करते रहे गे .
Only one solid reply of this article I am Muslim. …islam is perfect but I am….If I make a mistake plllllllllease blame it on me not on my religion.
इस्लाम के सिद्धांतो मे सिर्फ़ एकेश्वरवाद ही ऐसा सिद्धांत है, जो समय के साथ ना सिर्फ़ कायम रहेगा, बल्कि इसमे बढ़ावा भी होगा. लेकिन इस्लाम सिर्फ़ यही नही है. इस्लाम फिर मुहम्मद्पन्थ भी है, और इस पहलू का चार्म धीरे धीरे कम होगा.
जिन कठमुल्लाओ की आलोचना आप और हम कर रहे हैं, वो एकेश्वरवाद से ज़्यादा ज़ोर व्यक्तिवाद पे दे रहे हैं. इस व्यक्तिवाद को सिरे से गैर इस्लामी भी नही कहा जा सकता.
अगर दूसरे समुदाय मे जगह बनाने की बात है तो बुद्दीजम ने भी सैकड़ो-हज़ारो सालो से स्थापित मान्यताओ के बीच कुछ नया, कुछ पुराना विचार लाकर फैलाव किया था. लेकिन उसमे जड़ता का अभाव था. या यूँ कहे की पूर्ण निश्चितता के दावे की कमी, बुद्धीज्म मे थी. गौतम बुद्ध ने तो कभी ईश्वरीय प्रतिनिधि होने का दावा भी नही किया. इस अनिश्चितता की स्थिति, समाज मे लचीलापन और सवाल-जवाब का स्पेस देती है.
विचारो और मान्यताओ पे सवाल जिंदा कौमे करती है. मुर्दा कौमे, आँख मूंद अनुसरण करती है.
इस्लाम के सिद्धांतो मे सिर्फ़ एकेश्वरवाद ही ऐसा सिद्धांत है……
परन्तु आज के समय इस्लाम एक पुस्तक वादि धर्म हो गया है जिसके किसि भि आयत पर हुम तर्क वितर्क नहि कर सक्ते है जिससे कि आयत का सहि अर्थ पता हि नहि चल पाता है किसि भि धर्मग्रन्थ का अन्वाद पद्ने से उस्के वस्त्विक अर्थ का मतलभ समज्हना मुस्किल होता है और वस्त्विक अर्थ तर्क्-वितर्क के भिना तो असम्भव हो जाता है
मोह्मद साहेब कि दो शिक्साओ पर गौर फर्मैये-
१-प्रेम्, शान्ति
२-इस्लाम का विस्तार
अगर देखे तो ये दोनो हि एक दुसरे कि घोर विरोदि है क्योकि प्रेम और शान्ति से एस्लाम का विस्तार नहि हो सक्त और एस्लाम का विस्तार होने के
कारन गैर मिस्लिम प्रदेशओ मे अशान्ति
अब इन दोनो मे से शेस्थ कोन सा है इस्का चुनाव आप लोगो को हि करना है
जब इस्लाम मे प्रेम दया शन्ति कि बात होति है तो हमे मोह्मद साहेब कि बुधिया वालि कहनि यादाति है अगर ये कहनि सत्य है तो मोह्म्मद सहेब के चरित्र को का प्रयोग जब तक आप उन्के द्ववारा दि गयि शिक्साओ मे नहि करते तब तक आप लोग इस्लाम का सहि मत्लब ना तो खुद सम्ज्ह सक्ते है ना हि दुसरो को सम्ज्हा सक्ते है
यासिर साहब के मुताबिक, दुनिया की तमाम खोजे, क़ुरान के बाद हुई. यानी खेती बाड़ी, सोना, चाँदी और धातुए निकालने का काम, कपड़े बुनने का काम, आग जलाना, घर बनाना, जो की विज्ञान से जुड़े हैं, क़ुरान से पहले थे ही नही?
इसके बाद जिस मॉडर्न साइंस की बात की जा रही है, अगर ये क़ुरान से निकली है तो फिर पश्चिमी देशो के ईसाई और यहूदी तुम से बेहतर क़ुरान जानते है, क्यूंकी टेक्नॉलॉजी मे तो यही सबसे आगे है. फिर तो क़ुरान और इस्लाम की जो व्याख्या ये लोग करते है, उसे ही सही मान लो, क्यूँ, फालतू के मौलवी, मौलानाओं को इस्लाम का आलिम बोलते हो.
दुनिया मे बेवकूफी का कंपीटिशन हो तो तुम्हारे जैसे लोगो की वजह से मुस्लिम समुदाय ही विश्व मे नंबर 1 होगा.
कहते है, मूर्खो की कोई दुनिया नही होती. वो हर जगह थोड़े थोड़े मिल जाते है. लेकिन तुम्हारे जैसे मूर्ख, हिंदू और मुस्लिम समुदाय मे ही ज़्यादा पाए जाते हैं. ये महज संयोग तो नही हो सकता.
वाहिद रजा जी की माने तो चूँकि इस्लाम मे फिरके की मनाही है, इस वजह से अपने अपने फिरके के बेनर तले चल रहे स्कूल जहालत के अड्डे है. और ये बंद दिमाग़ के लोगो के हुजूम है.
लेकिन दिमाग़ पे तो ताला, उसी दिन लग गया था, जब तुमने सवाल जवाब करने ही बंद कर दिए. तुम किताब बाद मे पढ़ते हो, दिमाग़ पे ताला पहले लगाते हो. किताबी कीड़े या कहे लकीर के फकीर. सवाल जवाब से अल्लाह नाराज़ होता तो उसने ये काबिलियत इंसान को अता ही क्यूँ की?
No man ever believes that the Bible means what it says: He is always convinced that it says what he means.
————-George bernad shaw
यासिर पथान साहब, जानना चाहते है मुसलमानो के एकेश्वरवाद की असलियत ??
कराची में इस्माइली समुदाय की बस पर हमला; 47 की मौत, 24 जख्मी !!….मरने वाले और मारने वाले दोनो ही “एक ही अल्लाह” को मानने वाले …..इस घटना को प्रेम , शान्ति और भाईचारे के तराजू मे तोलने पर वजन कितने ग्राम आता है साहेब :)…..पक्के तौर पर अमेरिका और इज़राइल की साज़िश है 🙂
गनीमत है मुसलमानो मे बहुईश्वरवाद नही है क्योकि जब एक अल्लाह को मानने के नाम पर इतना खून खराबा करते है तो ईश्वर के कई रूपो को मानने पर होने वाले संभावित खून खराबे की कल्पना आप कर भी नही सकते !!