मदर टेरेसा एक महान व्यक्तित्व, जिसका कोई सानी नहीं | चेहरे पर हमेशा ममता का भाव और मन मे हमेशा गरीबों और मज़लूमों की सहायता करने का जज़्बा | मदर टेरेसा भारत आयीं तो थी एक लोरेटो सिस्टर के रूप में लेकिन आज वो पूरी दुनिया मे ‘मदर’ यानि माँ के नाम से जानी जाती हैं | 1946 से लेकर आज तक ना जाने कितने लावारिसों , गरीबों और मज़लूमों ने इस महान विभूति मे खुद की माँ को देखा | आज मदर टेरेसा विश्व भर के लिए आदर्श हैं | भारत एक बहुत खुशनसीब मुल्क है क्यूंकी इस देवी स्वरूपा स्त्री ने इस देश को अपनी कर्मभूमि बनाया | मदर टेरेसा ने अपनी समाज सेवा उस समय शुरू की जब इस देश को उनकी सबसे ज्यादा जरूरत थी | 1946 मे कलकत्ता दंगो की आग मे झुलस रहा था तब मदर ने एक घायल हिन्दू लड़के का इलाज किया | चूंकि दंगे हिन्दू मुस्लिम के बीच मे थे और मदर टेरेसा एक हिन्दू थी इसी नाते लोरेटो हाउस मे उनकी सीनियर सिस्टर को यह लगा की कहीं मुस्लिमो में इस वजह से ये संदेश ना जाये की लोरेटो हाउस हिन्दुओ के पक्ष में है , इसीलिए उन्होने मदर को यह करने से रोका लेकिन मदर की सेवा किसी के पक्ष में नहीं थी अगर वो किसी के पक्ष मे थी तो वो था इंसानियत और मानवता का | जब मदर ने ऐसा करने से मना कर दिया तो उनकी सीनियर सिस्टर ने उन्हे कलकत्ता से बाहर किसी दूसरे केंद्र पर जाने का आदेश दिया | जब मदर रेल्वे स्टेशन पहुंची तब उन्होने वहा उस गरीब भारत को देखा जो उन्होने अपने 20 साल के भारत प्रवास में कभी नहीं देखा हर तरफ बेसहारा और मज़लूमों का मजमा था हर तरफ गरीबी थी | उसी भीड़ मे उन्हे एक बीमार आदमी दिखाई दिया जो वही जमीन पर बेसुध सोया था | जब मदर उसके पास पहुची और उसे देखा तो पाया की वह आदमी अपनी ज़िंदगी के अंत की ओर था | मदर ने उसका सर अपनी गोद मे रखा और उस आदमी ने ‘मैं प्यासा हूँ’ कह कर अपने प्राण त्याग दिये | मदर ने उस बीमार व्यक्ति में अपने आराध्य जीसस यानि येशु को देखा क्यूकी जब जीसस को सूली पर चढ़ाया जा रहा था तो उनके भी यही शब्द थे ‘I THIRST’ जिसका हिन्दी रूपान्तरण है ‘ मै प्यासा हूँ’ | उसके बाद मदर ने कलकत्ता से बाहर जाने का विचार त्याग दिया और कलकत्ता की गरीब बस्तियों मे आकर बेसहारा और गरीबों की मदद करने लगी और उस समय खुद सिस्टर अगनेस को यह पता नहीं लगा की वो मदर टेरेसा बन चुकी हैं |
लोरेटों हाउस को जब इस बात का पता चला तो उन्होने मदर को बुला कर उनसे बात की लेकिन उनकी जिद को देखते हुए उन्होने वैटिकन को मदर टेरेसा के इस काम को इजाजत देने के लिए पत्र लिखा और 1950 में वैटिकन ने मदर टेरेसा को इसकी इजाजत दे दी | मदर ने तब मिशनरीस ऑफ चेरिटी नामक संस्था की स्थापना की | उन्होने 4 महीने पटना मे रह कर दवाइयों के बारे मे जाना ताकि वो लोगो की मदद कर सके | उसके बाद मदर ने अपनी पूरी जिंदगी कलकत्ता की झुग्गियों में गरीबों को समर्पित कर दी |
1952 मे मदर ने अपना पहला केंद्र एक खाली हिन्दू मंदिर मे खोला जो हिन्दुओ के एक पवित्र तीर्थ कलकत्ता के काली मंदिर से बिलकुल सटा हुआ है | मदर ने इसका नाम कालीघाट , निर्मल हिर्दय रखा, यह केंद्र उन लोगो के लिए है जो लावारिस है तथा अपने जीवन के आख़री समय मे है| इस वजह से इस केंद्र को ‘होम ऑफ डाईङ्ग’ अर्थात मरने वालो का घर कहा जाता है | इस केंद्र को स्थापित करने के मुख्य वजह यह थी को जो लोग सड़कों पर तड़प तड़प कर लावारिसों की मौत मरते हैं और उन्हे कोई पूछने वाला नहीं होता उनके लिए एक जगह का होना जहा वो एक बेहतर, दर्दरहित और आत्मसम्मान की मौत मर सके | इसके बाद मदर ने कलकत्ता के टीटागढ़ में शांतिनगर (सिटी आफ पीस ) की स्थापना की यह केंद्र कुष्ठ रोगियों के लिए खोला गया जहा उनका इलाज कर उन्हे आत्मनिर्भर बनाया जाता है | मदर की संस्था की सारी 4500 सिस्टर्स और दुनिया भर के केन्द्रो के मरीज़ इन कुष्ठ रोगियों द्वारा बुनी गयी साड़ियों और कपड़ो को पहनते हैं| इन केन्द्रो पर इस्तेमाल कि जाने वाली चादरें और पर्दे भी इन्ही रोगियों द्वारा बुने और बनाए जाते हैं| मदर ने और भी कई केन्द्रो की स्थापना की जैसे प्रेम दान यहा बेसहारा , बीमार और लावारिस लोगो को रखा जाता है , यहा उनका इलाज किया जाता है और उन्हे आत्मनिर्भर बनाने की कोशिश की जाती है | प्रेम दान मे स्त्री और पुरुषों दोनों के लिए केंद्र हैं | मौजूदा समय में यहा 450-500 लोग रहते हैं | दया दान ,नबो जीबोन, शांति दान जिसे महिलाओं के लिए बनाया गया , शिशु भवन यह केंद्र नवजात लावारिस शिशुओं के लिए खोला गया है | यहाँ उन बच्चो को भी रखा जाता है असाध्य बीमारियों और शारीरिक कमजोरियों से ग्रस्त होते हैं जिनका कोई ख्याल रखने वाला नहीं होता |
मदर टेरेसा ने टीबी रोगियों केलिए कलकत्ता से 35 किलोमीटर दूर बरुईपुर मे एक टीबी केंद्र की स्थापना की| यहा कलकत्ता की म्यूनिसिपल कार्पोरेशन की मदद मिशनरीस ऑफ चरिटी के ब्रदर्स उन रोगियों का ख्याल रखते हैं | इन केन्द्रो ने आज तक लाखों लोगो की जिंदगी सँवारी है | कलकत्ता कों एक बेहतर जगह बनाने मे मदद की है |
मदर टेरेसा एक महान देवी थी गरीबों और बेसहारा लोगो के लिए भगवान और उन सभी के लिए भी जो उन्हे अपना आदर्श मानते हैं | मदर टेरसा मिशनरिस ऑफ चरिटी की 4500 सिस्टर्स , 300 ब्रदर्स और उन हजारों स्वयं सेवकों के लिए आदर्श हैं जो मदर के दुनिया भर मे फैले केन्द्रो मे लोगो की सेवा करते हैं | मदर टेरेसा को पद्म विभूषण और वरिष्ठ भारतीय नागरिक सम्मान भारत रत्न प्रदान किया गया , इसी के साथ उन्हे शांति का नोबल पुरस्कार भी दिया गया | इसी के साथ अनेक छोटे बड़े सम्मान और पदक मदर टेरेसा को दिये गए |
मदर टेरेसा तो 5 सितंबर 1997 के दिन चीरनिद्रा मे लीन हो गईं, लेकिन उनकी जलायी हुई मानवता की सेवा की अलख आज भी जागृत है | 1997 के बाद सिस्टर निर्मला जोशी ने मिशनरीस ऑफ चरिटी का कार्यभार संभाला | सिस्टर निर्मला जोशी मूल रूप से रांची की रहने वाली हैं ये जन्म से हिन्दू थी परंतु 1958 मे इनहोने ईसाई धर्म ग्रहण कर लिया और अपनी पूरी जिंदगी मानवता की सेवा मे समर्पित कर दी | सिस्टर निर्मला जोशी ने मदर टेरेसा के सम्मान मे ‘मदर’ शब्द को अपने नाम के आगे लगाने से मना कर दिया | सिस्टर निर्मला जोशी 2009 मे मिशनरीस ऑफ चरिटी के प्रमुख पद से रिटायर हो गयी | इस समय सिस्टर निर्मला का स्वस्थय ठीक नहीं है और वो गंभीर रूप से बीमार हैं | मै ईश्वर से सिस्टर निर्मला की दीर्घायू और अच्छे स्वस्थ्य की कामना करता हूँ |
सिस्टर निर्मला को 26 जनवरी 2009 को भारत सरकार ने मानवता की सेवा करने के लिए पद्म विभूषण के सम्मान से अलंकरत किया जो की भारत का दूसरा सबसे बड़ा भारतीय नागरिक सम्मान है | सिस्टर निर्मला जोशी के बाद संस्था की प्रमुख हैं सिस्टर मेरी प्रेमा पीएरीक्क जिनका जन्म जर्मनी मे हुआ है|
खराब स्वास्थ्य के कारण मेरी मुलाक़ात सिस्टर निर्मला से तो नहीं हुई लेकिन मै सिस्टर प्रेमा से मिलने मे सफल रहा उन्होने अपने व्यस्त समय मे कुछ समय मुझ जैसे साधारण और निक्रष्ठ मनुष्य के निकाले मै इसके लिए उनका आजीवन आभारी रहूँगा | सिस्टर प्रेमा मे मैंने मदर टेरेसा की झलक देखि , वही प्यार वही ममता देखी जो कई वर्ष पहले मदर के चेहरे पर देखि थी | कुछ सेकेंडो मे ही उन्होने मुझे अपना बना लिया इतना प्यार दिया की मै उसे जीवन भर नहीं भूल पाऊँगा |
मदर टेरेसा और उनकी संस्था पर उंगली उठाने वालो के लिए मै सिर्फ एक शब्द कहना चाहूँगा की वो मूर्ख हैं तथा सस्ती लोकप्रीयता के भूखे हैं | साथ ही यह कहना चाहूँगा की किसी के धर्म को देख कर उसके कर्म का अंदाज़ा नहीं लगाना चाहिए | मै काफी दिनो से मदर की संस्था के केन्द्रो पर स्वयं सेवा कर रहा हूँ और मैंने कभी यह महसूस नहीं किया की यहा धर्म परिवर्तन करने के लिए उकसाया या बाध्य किया जाता है | मदर हाउस मे सभी धर्मो का आदर और सम्मान किया जाता है | मै खुद एक हिन्दू हूँ और हर रोज मदर हाउस के प्रार्थना कक्ष मे प्रार्थना के लिए जाता हूँ | सिस्टर्स द्वारा गायी जाने वाली प्रार्थनाओ को सुनकर बरबस ही मेरी आंखो से आँसू आ जाते है | किसी वयक्ति का धर्म उसके कर्म का स्रोत नहीं होता | मदर टेरेसा एक महान इंसान है , वो देवी हैं उन पर उंगली उठाकर आपने कई लोगो की भावनाओ को ठेस पाहुचाई है जिनमे हिन्दू भी शामिल हैं ,क्यूकी हिन्दू धर्म मे सबका आदर और सम्मान करने की परंपरा रही है | तथा मै इसी के साथ विश्व हिन्दू परिषद तथा आरएसएस से यह विनती करना चाहूँगा की पहले वो हिन्दू धर्म के नाम पर लोगो को ठगने , उनकी भावनाओ ठेस पाहुचने वालो और इज्जत कों लूटने वाले पोंगा पंथियों और झूठे गुंडे मवाली बाबाओं पर रोक लागाए तत्पश्चात मदर टेरेसा जैसी महान विभूति पर उंगली उठाए क्यूंकी आप एक धर्म की सेवा कर रहे हैं और मदर टेरेसा ने पूरी मानवता की सेवा की है |
साथ ही मदर टेरेसा के केन्द्रो पर रोगियों की सेवा के स्तर पर उंगली उठाने वाले लोगो से भी यह कहना चाहूँगा की यह करने से पहले भारतीय सरकारी अस्पतालों पर भी नज़र डाल ले अंतर साफ पता चल जाएगा |
मदर टेरेसा एक महान विभूति हैं , सभी के लिए आदर्श मानवता की देवी | ईश्वर ने मदर टेरेसा के रूप मे अपना ही अंश भेजा है | जिसने मानवता की सेवा की और आज भी लोगों कों मानवता की सेवा के लिए प्रेरित कर रही है | मै इस महान विभूति कों शत – शत नमन करता हूँ |
मदर तेरेसा से भि ज्यादा कार्य बाबा आप्ते जि ने किया है नाग्पुर के पास वर्धा मे जिस्केी चर्चा बहुत कम होतेी है उन्कि पत्नेी जेी भेी साथ मे लगेी रहेी उन्के बेते आज् भि लगे हुये है उन्होने किसि का भेी धर्मन्तरन नहेी कर्वया जब्केी मदर तेरेसा उस्मे शमिल रहतेी थेी
मै खुद मदर के केन्द्रो मे हूँ मैंने आज तक नहीं महसूस किया की यहा किसी का धर्मांतरण किया जाता है | मरने के बाद सभी की अंतिम क्रियाएँ भी उसी विधि से की जाती हैं जो विधि उस धर्म मे मान्य है | मैंने खुद 3 मुसलमान मरीजो, को सुपुर्द ए खाक किया है | 8 हिन्दू मरीजो को आग दी है | जब मरने के बाद भी उनके धर्म का सम्मान होता है तो जिंदा होने पर धर्मांतरण क्यू होगा ? सिर्फ सुनी सुनाई बातों पर भरोसा न करे खुद कलकत्ता आ कर देख ले | किस प्यार और सम्मान के साथ सभी धर्मो के लोगो को रखा और प्यार किया जाता है | मरते समय हिन्दू के मुह मे गंगाजल , मुसलमान के मुह मे आबे जम जम और ईसाई के मुह मे होली वॉटर डाला जाता है | आपसे ना जाने किसने कह दिया की धर्मांतरण होता है यहा | अगर मदर धर्मांतरण करती तो आज सारा कोलकाता ईसाई होता | मदर के नाते जाने कितनों की जिंदगी सुधार ज्ञी | इन 65 सालों मे 10 लाख से ज्यादा लोगो का इलाज और पुनर्वास कोलकाता मे मदर ने किया| मदर ईसाई थी और सभी धर्मो का सम्मान करती थी , बाबा आपटे भी एक महान व्यक्तित्व के स्वामी थे ये दोनों इस देश के हीरे हैं| लेकिन किसी के धर्म को देख कर उसके कर्म को सही गलत बताना उचित नहीं | क्या बाबा आपटे सिर्फ हिन्दुओ का इलाज करते थे सेवा करते थे , मुस्लिमो या ईसाइयो की नहीं ? जब उन्होने कभी ये नहीं किया तो मदर को बोल्न उचित नहीं |
मकान वहि गिरता है राज जि जिसकि निव कम्जोर होति है राज जि इस्लिये दुसरो को दोश देना बन्ध किजिये
वैसे भि सन्त वहि होता है जो धर्म से परे हो
क्या भारत मे सिर्फ गरेीबेी हेी है पाक्सितान बन्ग्ला देश अफ्रिकन देशो मेनहेी मदर् तेरेसा ने उन देशो मे सेवा क्यो नहि केी? वह तो इस देश् मेजन्मेी भेी नहेी थेी! फिर यहेी देश क्यो चुना ? क्योकि धर्मन्तरन् यहा सम्भव था
राज साहब मदर के केंद्र विश्व के 145 देशो मे चल रहे हैं | पाकिस्तान के लाहौर मे 3 , कराची मे 1 और अबोताबाद मे एक केंद्र है | बांग्लादेश मे 10 केंद्र हैं | साउथ अफ्रीका , इथियोपिया, पापुआ न्यू गिनी , निजीरिया , केन्या , कोंगों और न जाने कितने अफ्रीकी देशो मे मदर के केंद्र हैं | इसी के साथ अफगानिस्तान , ईरान , जापान , श्रीलंका , मलेसिया , म्यांमार , रूस , इंग्लंड , यूनाइटेड स्टेट्स ऑफ अमेरिका, मेक्सिको, चिली, इक्वाडोर, अल्जेरिया , लेबनान , इस्राइल, फ़िलस्तीन, कज़ाकिस्तान , टर्की , तुर्केमेनिस्तान , ऊक्राइने और ना जाने कितने देश | कोलकाता तो मिसनरीस ऑफ चरिटी का मुख्यालय है इस शहर मे ही 14 केंद्र हैं जिनमे कुल मिलकर 5000 से ज्यादा लोग हैं जिनमे 90% हिन्दू हैं| , भारत मे हर राज्य मे मदर के 10-12 केंद्र है | हमारे उत्तर ;प्रदेश मे ही वाराणसी , अलाहबाद , लखनऊ आदि शहरो मे है
आदर्नेीय श्रेी हर्श जेी बहुत साल पहले दिल्लेी स्थित साऊथ एक्ष पार्त – २ मे निर्मला सन्स्था थेी हम उस सन्स्था मे गये थे उन्होने बतलाया था कि इस्कि ससथापक् मदर तेरेसा है ! उस समय करेीब् ८८ जवान महिलाये{-२०-२५ साल के बेीच केी } उन्के कब्जे मे थेी वह्सभि बिहार{ आज का ज्हार्खन्द } कि थेी ! वह उस जगह के कोथियो मे काम कर्तेी थेी हम उन्मे से अनेक महिलाओ से इस् विशय पर बात्चेीत कर्ते थे ! उन्होने बत्लाय कि हम सब हिन्दु थे काम कर्ने के लिये यह हम्को लाये थि बाद मे इन्होने काम कर्न केी शर्त पर इसाई बनाया था ! गरेीबेी के करन हम इसाई बन गये थे ! उन्के लिये रैविवार और गुरुवार को अव्काश लेना अनिवार्य था क्योकिउन दो दिनो मे बाईबल् का पाथ और प्रार्थ्ना जरुरेी थेी !
आप्ने अनेक देशो कि लिश्त देी है सब्से ज्याद केन्द्र सिर्फ भारत मे है ऐसा क्यो ? इसाई सन्स्थाये सेवा कि आद मे धअर्मान्तरन कर्वतेी है !
राज जी मिसनरीस आफ चरिटी की काही भी कोई निर्मला संस्था नहीं है | सारी संस्थाए व केंद्र मिसनरीस आफ चरिटी के नाम से संचालित किए जाते हैं | इसीलिए आरोप लागने से पूर्वा सत्यता परख ले | एक जगह बैठ कर आरोप ना लागए खुद आ कर महसूस करे | और यदि किसी ईसाई मिशन मे भर्ती मरीज अगर हिन्दू है और उस मिशन मे ईसाई पद्धति से प्रार्थना होती है तो इसका मतलब ये नई की वहा धर्मांतरण हो रहा है | देखिये , परखिये , जानिए तब आरोप लगाइए
हम्ने जो भि कहा है वह निर्मल् सन्स्था ने जो बत्लया उस्कि बुनियाद मे कहा था !
हम करिब ३-४ बार उस सन्सथा मे गयेथे उस कर्यालय कि जो मुखिया थेी हम ने बाईबल के पाह्लेपेज पर अप्ने विचार रखे थ और् हजरत लुत् जेी ने जो अप्नेी सगेी बेतियो से दो बच्हे पैदा किये थे उन्से उन्का जवाब मन्गा था तब उन्होने कहा था कि बाईबल् के विशय् पर हमसे चर्चा मत किजिये तब से हमने जाना भि बन्द कर् दिया था
मदर टेरेसा एक भारतीय थी शायद आप नहीं जानते वो हिन्दी आप से अच्छी और बंगला किसी बंगाली से बेहतर बोलती थी मदर भारत मे 1926 से रह रही थी और उनकी मौत भी भारत मे हुई | भारत उनका देश था और सबसे पहले इंसान अपने घर को बेहतर बनाता है तब मोहल्ले को | उन्होने अपने देश मे इतने मिशन बनाए तो क्या गलत किया | क्या आप अपना घर गंदा रख कर मोहल्ले भर मे झाड़ू लगते हैं| मदर की उम्र 1926 मे 16 साल की थी
Kya m yeha rh sakti hu jo sewa hosakega m katungi
इस लेख मे एक त्रुति है | गलति से मदर टेरेसा को हिन्दू बताया लेकिन मदर हिन्दू नहीं थी ये बात उस लड़के के लिए लिखी गयी है जिसकी उन्होने मदद की| ये एक लेखन त्रुटि है इसकी लिए मई क्षमाप्रार्थी हूँ |
मदर टेरेसा जी एक ईसाई थी, और हिंदू कट्टरपंथियो को लगता है की अगर एक ईसाई, लोगो की सेवा करेगी तो उससे प्रभवित होकर, लोग अपना मज़हब बदल देंगे. क्यूंकी इनकी नज़र मे परोपकार, दयालुता, नेकानियति का ठेका, भारतीय संस्कृति ने ही ले रखा है. पश्चिम से जन्मे रिलीज़न या उसको मानने वाले कैसे ऐसे हो सकते हैं?
मदर टेरेसा पे धर्मांतरण का आरोप लगाने वाले लोग वो ही है, जो सामाजिक मुद्दे उठाने वाले आमिर ख़ान को गालियाँ बकते हैं, शाहरुख ख़ान को पाकिस्तान परस्त बोलते हैं.
उनकी नज़र मे इस देश मे कोई हीरो, महापुरुष होगा तो सनातनी. सनातनी मतलब 4-5 हज़ार साल पहले सोया हुआ व्यक्ति, जिसकी नींद अभी तक नही टूटी. बाकी सब तो **रामज़ादे या विदेशी है.
हिन्दुओ का धर्मपरिवर्तन न कोई मुद्दा हे न कोई खास ख़ुशी की बात हे न गम की बात हे हिन्दू आस्था से अधिक सांस्कर्तिक गतिविधिया हे आस्था की जहा तक बात हे हिन्दू तो कभी कही भी किसी भी किसी भी कभी आस्था में जब चाहे अड्जस्ट हो सकता हे जब चाहे बाहर निकल सकता हे ईश्वर को ना मान यहाँ तक की ब्लासफेमी करके भी हिन्दू ही रहता हे चाहे एकेश्वरवाद बहुदेववाद त्रिदेववाद हो साईं बाबा खुद को भगवन कहने वाला बाबा हो गुरु हो न हो हिन्दू के लिए कोई दिक्कत नहीं हे किसी धर्मस्थल में हाथ जोड़ना हिन्दू के लिए आम बात हे इसी का तथाकथित ” नुक्सान ”ये हे की बाकी के मुकाबले हिन्दुओ का धर्मपरिवर्तन अधिक होता हे दीखता हे वाही फायदा ये हे की दुनिया के हर कोने में हर संस्कर्ति में हिन्दू आराम से अड्जस्ट हो जाता हे हिन्दुओ का कही कोई पंगा नहीं हे फिजी में हुआ भी था तो कारण सिर्फ आर्थिक था जबकि मुसलमानो पर पाबंदी आयद हे की वो शिर्क नहीं कर सकते हे एक एक सिर्फ एक अल्लाह के सिवा किसी की इबादत नहीं कर सकते हे ( ना करेंगे क्योकि ये हम जैसा घोर सेकुलर मुस्लिम भी नहीं करता भले ही अरबो रुपया दो तब भी नहीं ) यही कारण हे की मुस्लिम दुनिया में कही भी किसी संस्कर्ति में अड्जस्ट नहीं हो पाता हे अब देखे की एक साहब हे अमेरिका के पियूष जिंदल ये सिर्फ अमेरिका में अपने राजनितिक कॅरियर को आगे बढ़ाने के लिए अपने परिवार मे अकेले ईसाई हो गए और अब खुद को अमेरकानो से भी कटटर अमेरिकन और कटटर ईसाई दिखाते हे कोई ताजुब नहीं की कल को ये चाहे तो वापस भारत आकर खुद को कटटर हिन्दू दिखा कर मोदी जी का उत्तरधिकारी बनने की कोशिश करे जबकि किसी मुस्लिम के लिए ये संभव नहीं हे खेर अल्लाह सबका भला करे इन बातो पर लड़ने झगड़ने की बजाय हम शान्ति से आम जनता को पूरी बात समझाय तो ही ”सहअस्तित्व ” का मार्ग प्रशस्त होगा और फालतू के क्लेश बंद होंगे
इस देश मे हेी कई करोद मुस्लिम दर्गहो मे जाकर शेीश ज्हुकाते है , देव बन्देी कम है, और बरेल्वेी ज्यदा है ! क्या दर्गाहो मे जाकर दुवा मान्ग्ना “शिर्क् “नहेी कहा जायेगा ! गान्धेी जि केी समाधि मे कुच् मुस्लिम नेता फुल चधाने जाते है !
अल्लाह सिर्फ मुस्लिमो का भला कर्ने का दावा कर्ता है, सब्का नहेी !
यह बात सत्य है कि आम हिन्दु हर जगह सहमत { एद्जेस्त् } हो जाता है ! क्योकि उस्कि निगाह मे कन- कन मे इश्वर् मौजुद है !
सिकंदर साहब हिन्दू किसी भी मान्यता मे अड्जस्ट कर लेता है तभी तो भारत मे धर्मनिरपेक्षता इतना प्रभावी है ! बहुलता मे होने के बावजूद हिन्दुओं ने अपने मन मफ़िक कानून नहीं बनाये ! अगर एक हिन्दू अपनी बहुलता का फायदा उठाना चहता है तो उसे रोकने कई हिन्दू आ जाते हैं ! क्या आप मुसलमानो के लिये ऐसा एग्ज़ेंपल दे सकते हैं ?
जरा सोचिये अगर हिन्दू भी मुसलमानो की तरह कट्टर हो जाये तो क्या होगा ?
ये हरेक कंडीशन मे अड्जस्ट होना लोकतंत्र की सफलता के लिये एक आवश्यक तत्व है !
हिन्दू पिता- चाहे बाइक खुद ना चलाई पर बेटे के लिये गाड़ी का जुगाड़ हो जाये ,खुद बिजली ना देखी हो पर बेटे के पास एसी हो ,मतलब जितना संघर्ष उन्होने किया उनका बेटा को ना करना पड़े
मुस्लिम पिता-जी हम तो लडेंगे हम ना जीते तो हमारे बेटे लडेंगे वो भी ना जीते तो उनके बेटे ———
इन पर हासी भी आती है और तरस भी
एक कहावत है मूर्खो को समझना खुद के पैरो पे कुल्हाड़ी मरना है
ऐतिहासिक तौर पे हिंदू ईश्वरीय सिद्धांत पे बेहद सहिष्णु रहे, जैसा की सिकंदर भाई ने बताया, लेकिन इसका अर्थ यह नही है की ये समुदाय, सहिष्णु है, क्यूंकी इनकी असहिष्णुता नस्लवाद पे रही है, और इस मसले पे एकेश्वरवादी, बहुशवरवादी, शैव, वैष्णव कोई अपवाद नही रहा. दो सौ वर्ष पूर्व के इतिहास को देखे तो इसके खिलाफ बड़े से बड़े इनके महापुरुषो और सिद्ध्गणो ने आवाज़ तक नही उठाई. भारत इसी वजह से विश्व का सर्वाधिक नस्लवादी देश है. जहाँ किसी कॉलोनी या पड़ौस मे अनुसूचित जाति के व्यक्ति का घर होने मात्र से प्रॉपर्टी की कीमत आधी रह जाती है. धीरे धीरे इनमे सुधार हुआ है, लेकिन अंतरजातीय विवाह जो की इस स्थिति मे सुधार का सबसे सटीक पैमाना है, ये समुदाय अन्य की तुलना मे ज़्यादा पिछड़ा है. 5 हज़ार वर्ष की सड़ी गली मान्यताए धीरे धीरे ही दम तोड़ेगी. तो 1400 वर्ष पूर्व जन्मी मान्यताओ मे सुधार के लिए और इंतजार करना पड़ेगा. ऐसा नही है की सुधार नही हुआ है.
मुस्लिम समुदाय या इस्लाम कहेंगे तो बेहतर होगा की उसमे कोई नस्लवाद, या क्षेत्रवाद नही है. कट्टर से कट्टर व्याख्या मे भी गैर मुस्लिम, धर्मांतरण करने के बाद, सदियो से मुस्लिम रहे समाज मे बराबरी का हक पा सकता है, ऐसा हिंदू समुदाय मे नही है.
जाकिर भाई पुराने भेदभाव नस्लवाद तो भारत में थे ही उंच नीच जात पात काला गोरा तो खेर थे ही मगर हिन्दुओ के पढ़े लिखे वर्ग ने आदत से मज़बूर होकर भारत में एक और बहुत भयंकर नस्लवाद को न केवल जन्म दिया उसे पाला पोसा और एक बहुत बड़े शैतान में तब्दील कर दिया हे हिन्दुओ ने ” भाषाई नस्लवाद ” को भी खूब बढ़ा दिया हे आज की तारीख में अमीर गरीब दलित ब्राह्मण शिया सुन्नी अशराफ अज़लाफ शादिया प्यार अफेयर बहुत ही कम मगर दिख तो सकता हे चाहे बहुत कम दिखे . मगर ये असंभव हो चूका हे की कोई ऊँचे पब्लिक स्कूल की पढ़ी लड़की या लड़का या सरकारी या सस्ते स्कूल में पढ़े लड़के या लड़की शादी अफेयर प्यार दोस्ती कर ले नहीं ये नामुमकिन हो चूका हे . ऊँचे स्कूल वाले बिलकुल हैवानो की तरह वयवहार करने लगे हे दिली के एक ऊँचे स्कूल की प्रिंसिपल शिकायत करती हे की उनके स्कूल में उन्ही बच्चो की अंग्रेजी मामूली से वीक रह जाती हे जिनके घर में दादा दादी नाना नानी होते हे कोई ताजुब नहीं हे की ये स्कूल ” काटने ” में कसाइयो को भी बहुत पीछे छोड़ चुके हे वैसे इसमें सभी हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई सभी शामिल हे मगर इस राक्षस को असल बढ़ावा उन हिन्दुओ ने ही दिया हे जिनकी रग रग में उंच नीच भरी पड़ी हे इसका भी बहुत भयंकर अंजाम हो रहा हे इसलिए हमारे पढ़े लिखे भी कई मामलो में बिलकुल जाहिलो जैसा वयवहार करते हे
किताबी लाइन है ज़ाकिर जी हिन्दुस्तान मे क्योकि मुस्लिम कारीत शासन् नही है इसलिये आपको लगता है मुस्लिमो मे नस्ल भेद नही है
वयवहारिक तोर पर क्योकि एस्लाम अरबी धर्म है तो अरव और वा क्षेत्र जहा के मुस्लिम खुद को अरबी सस्कृति से जुड़ा समझते है जाहिलियत की मिसाल कायम कर रहे है और अपने ही लोगो को मार रहे
आये दिन खबर् आती रहती है फ्ला-2 देश के फ्ला-2 टाइप मुस्लिमो ने फ्ला-2 टाइप के मुस्लिमो को नमाज़ के टाइम पर बम से उड़ा दिया
शाय्द आपने ए कभी ना सुना हो की फ्ला-2 टाइप हिन्दुओ ने फ्ला-2 टाइप के हिन्दुओ को मंदिर मे ही उड़ा दिया
दरअसल, विश्व के दो शासकीय ध्र्मों की मानसिकता इतनी कुठित हो चुकी है कि वह…….धर्मिकता के नाम पर…….खून-खच्चर, हत्या-बलातकार के अतिरिक्त कुछ सोच भी नहीं सकते। क्योंकि अवतार और पैगम्बर के नाम पर……..यही सब तो हुआ है, उनके ध्र्मों मे।
पिफर वो इससे आगे……..मानवता और संवेदना की बात सोच भी कैसे सकते हैं………..
कभी यही हाल, यदूदियत और इसाईयत का भी था। पर उन्होने अपनी इस भूल को सुधरा। उसमे मूलचूक परिवर्तन किये। भले ही अब उसका स्वरूप……विलासीय और आर्थिक सामzाज्यवादी हो गया है।
लेकिन उन्होने कई कलोलकल्पित बातों को, कई भzान्तियों को समाप्त किया।
पर, हिन्दू और मुसलमान कौमें…….आज भी ध्र्म के नाम पर……..उस आदिकालीन बर्बर समाज का प्रतिनिध्त्वि कर रही हैं, जो हमारी अज्ञानता की निशानी थी।
इसलिये वो……मानवता को समर्पित, उस हर सेवाकर्मी की सेवा को……..अपने कुंठित धर्मिकता के चश्मे से देखती है।
मां टेरेसा के सांथ भी यही होता चला आ रहा है।
सिस्टर निर्मला जोशी का आज सुबह 12:05 मिनट पर देहांत हो गया । जिस वक़्त मैंने यह लेख लिखा था वो उस समय गंभीर रूप से बीमार थी । मैंने उनसे मिलने की कोशिश की परंतु उनकी खराब सेहत के चलते उनसे भेंट ना हो पायी । परंतु कल उनकी मृत्यु के पश्चात जब रात्रि 1 एक बजे मेरे पास सिस्टर प्रेमा का फोन आया ज्ञात हो की सिस्टर प्रेमा इस समय मदर की संस्था की प्रमुख हैं । और उन्होने मुझे भर्राई आवाज़ मे इस दुखद खबर की सूचना दी । मैं सुबह की फ्लाइट पकड़ कर दोपहर मे कोलकाता आ गया हूँ । यहा मुझे पता चला की मई कुछ विशिस्ट लोगो मे शामिल हूँ जिनको सिस्टर प्रेमा ने सिस्टर निर्मला की मौत की सूचना दी जिनमे पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री से लेकर पोप फ्रांसिस जैसे व्यक्ति शामिल हैं । कल सुबह सिस्टर का पार्थिव शरीर मदर हाउस लाया जाएगा जहा शाम 4 बजे उनका अंतिम संस्कार होगा । ईश्वर उनकी आत्मा को शांति दे । वो एक महान आत्मा थी । ममता की मूर्ति और मदर टेरेसा के बाद सबसे प्रिय सिस्टर । आज सैंट जॉन चर्च के बाहर गरीबों का मजमा देख बहुत आश्चश्र्य हुआ बाद मे पता चला की ये सभी अपनी बड़ी माँ को श्रद्धांजलि अर्पित कसर्ने आए हैं ।