नहीं स्तन रेप का कारण नहीं ही सकते. जिन छोटी छोटी बच्चियों के स्तन नहीं होते उनका भी रेप ही जाता है.
फिर तो इस वेजाइना के कारण ही रेप होते है. नहीं! child abuse के कितने केस हैं जहा लड़को(baby boy) के रेप होते है। वहा कोई वेजाइना नहीं होती.
यानि रेप पेनिस के कारण होते है.
लेकिन कई हॉस्टलस् और जेल के कितने किस्से सुने है जहा लड़को के रेप होते है। यानि जिनके पास पेनिस है उनका भी रेप होता है। और अगर रेप सिर्फ पेनिस के कारण होते तो गैंग रेप/ रेप के बाद लड़की के शरीर में सरिये कंकर कांच(दिल्ली/रोहतक की घटना,और ऐसी हज़ारो न रिपोर्ट होने वाली घटनाएं) क्यों डालते.
यानि रेप पेनिस वेजाइना (शरीर की संरचना) के कारण नहीं होते।
रेप उस मानसिकता के कारण होता है जो लड़की की शर्ट के दो बटनों के बीच के गैप से स्तन झाँकने की कोशिस करते है. जो सूट के कोने से दिख रही ब्रा की स्ट्रिप को घूरते रहते है. और औरत की स्तन का इमैजिनेशन करते है. जो स्कर्ट पहनी लड़की की टाँगे घूरते रहते है। कब थोड़ी सी स्कर्ट खिसके कब पेंटी का कलर देख सके। पेंटी न तो कुछ तो दिखे।
जो पार्क में बैठे कपल्स को देखकर सोचते है काश ये लड़की मुझे मिल जाये तो पता नहीं मैं ये करदु मैं वो करदु…
वो मानसिकता जब एक दोस्त दूसरे से कहता है – क्या तू अपनी गर्ल फ्रेंड के साथ रात में रुका और तूने कुछ नहीं किया, नामर्द है क्या.?!
रेप सिर्फ गन्दी मानसिकता के कारण होता है. जहाँ औरत सिर्फ इस्तेमाल का सामान है. इंसान कतई नहीं.
- मैं और मेरी बे-शर्म बातें”
- हर महीने मेफ्टल्सपास लू ये पॉसिबल नहीं. दर्द सहने की हिम्मत रखनी पड़ती है. वरना हर महीने पेन किलर खाने से आदत पड जाती है… लेकिन जब बहुत जरुरत पड़ती है तो टेबलेट खा लेती हूँ. पिरिड्स का पहला दिन. लोअर एब्डोमेन ,बैक पेन और पैर जैसे अकड़ने लगते है. मेट्रो में घुसी. सेंट्रल सेक्रिटेरिएट पर इतनी भीड़. सीट मिलने का कोई चांस ही नहीं. ऊपर से लेडिज कोच में भी नहीं चढ़ पायी. स्टेशन पर आते ही ट्रेन आगयी. एक लड़के को बोला एक्सक्यूज्मी प्लीज़ आप उठ जायेंगे, मेरी तबियत ठीक नहीं है. … वो साइड में बैठे दुसरे लड़के की तरफ देखने लगा.., फिर बोला मैं भी अभी बैठा हू। कई लोग सोचते है सीट लेने के लिए लडकिया बहाने बनाती है. और सीट देना कोई आसान बात नहीं है न, चाहे सत्ता की हो या मेट्रो की….फिर मैं बेशर्मी (लोगो की नज़रो में) पर उतर ही आई… भैया पीरियड्स है प्लीज़ ये सीट मुझे दे दीजिये.. इतना सा बोलते ही दोनों लड़के खड़े हो गए.. पूरे सफ़र में सीट पर बैठे दूसरे लोग मुझे घूरते रहे… जैसे जैसे स्टेशन गुजरे कुछ लोग उतरते रहे और इस तरह घूरने वाली आँखे कम होती गयी. और मेरी असहजता भी.मैं सोच रही थी जीवन भी ऐसी ही थ्योरी पर चलता है.. वक्त के साथ असहज लगने वाली सारी सही और नेचुरल बाते सहज सी लगने लगती है….कई सोच रहे होंगे कितनी बद्तमीज है, कुछ ने सोचा होगा बेशर्म है, किसी ने सोचा होगा कुछ और ही कह देती.. अब तक जब भी कॉलेज, ऑफिस, घर के मेल मेंबर, कलीग को अगर कुछ कहना होता था तो पिरिड्स की जगह बोलती थी फीवर है… अब फीवर तब ही बोलती हूँ जब फीवर होता है… अब हर महीने फीवर नहीं पीरियड्स होते है….!!!
- रेप का सीधा सम्बन्ध अगर कपड़ो से है तो मानव इस दुनिया में वस्त्रो से बहुत पहले आये थे. शरीर को ढंकना है इस बात को समझने के लिए मनुष्य का दिमाग विकसित होने में कई हजारो साल लगे थे. वस्त्रो से पहले तो पेड़ो के पत्ते और जानवरों की खाल भी मनुष्य के शरीर पर कई शताब्दियों तक विराजमान रही. उस समय प्राइवेट पार्ट्स को ढकना जरुरी नहीं था. शरीर को ढकना जरुरी था. शरीर का मतलब तो समझते होंगे ही न आप?!!! जिस हिसाब से लोग ये कहते है के छोटे कपडे रेप का कारण है उस हिसाब से उस समय हर आदमी सिर्फ रेप करने में ही व्यस्त रहता होगा. क्योकि तब न औरत के शरीर कपडे थे न आदमी के…!!!!!!
- BBC की India’s Daughter डॉक्युमेंट्री देखने के बाद सबसे ज्यादा हैरानी इस बात से हुई कि रेपिस्ट और एक वकील की सोच एकदम एक जैसी थी। रेपिस्ट जो समाज के सबसे निचले तबके से था जहा शिक्षा नाम की कोई चीज़ ही नहीं है और दूसरा वकील साहेब जो अच्छे भले पढ़े लिखे समाज से ताल्लुक रखते है। यानि एक बात तो निश्चित है हमारी शिक्षा प्रणाली में भारी दोष है जो पढ़े लिखे लोग भी वोही मानसिकता रखते है जो अनपढ़ गवार लोग। यही नहीं पिछले कुछ समय में रेप की घटनाओ पर इन एक वकील साहेब ही नहीं संसद में बैठे कई नेताओ व यूपी में ऊँचे ओहदों पर बैठे कई पुलिस अफसरों के बयान भी इसी तरह के आये थे…
गीता यादव जी आपका और आपके विचारो का इस साइट पर बहुत बहुत स्वागत हे धन्यवाद
पहले सिनेमा नहेी था ! आज सिनेमा के अश्लेील् सन्वाद और द्रश्य भारेी मात्रा मे मौजुद है !
मन्दिर जाने वाले नमाजेी आदेी खुब मिलेन्गे !
लेकिन “दुसरो के साथ वहेी व्यव्हार करो जो अप्ने लिये भेी पसन्द आये ” यह सुत्र को आत्म्सात कर् ने वाले नहि मिल सकेगे
जब हम नहेी चाहते कि कोई हमारेी बेतेी हमारेी बहन या हमारे परिवार् केी किसेी महिला से रेप न हो तो अपना भेी पहला कर्तव्य् होता है कि हम भेी किसि से रेप करने केी भावना नहेी बनाये !
समाज मे नशे का प्रभाव भेी ज्यादा बध् रहा है वह भेी रेप का एक कारन है !
सन्युक्त परिवार बहुत कम हो रहे है!
करोदो लोग नौकरि और व्यपार के लिये अज्नबि नग्रो मे रहते है उनपर् अन्कुश समाज् व परिवार का नहेी है !
अदलतो से दन्द् देर से मिल्ते है रेपिश्तो को अजिवन कार्वास मिले और यह अपराध गैर जमानतेी हो !! उप्रोक्त् कारन् दुर होने के बाद रेप शुन्य के आस्पास रह सक्ते है !
रेप की समस्या का कोई समाधान दूर दूर तक नहीं दिख रहा हे स्वस्थ मनोरंजन की कमी से लोग और अधिक उत्तेज़ना के ही पीछे भाग रहे हे ऐसे में कब क्या हो जाए कहा नहीं जा सकता इसका कुछ लोग तालिबानी समाधान बताने लगते हे यानी औरतो मर्दो को पास पास आने ही ना दिया जाए लड़कियों पर तरह तरह की पाबंदी लगाई जाए जो की अब संभव ही नहीं हे फिलहाल यही हो सकता हे की लडकिया खुद ही मज़बूत और चौकस बने हाल में दो चर्चा में रहे केसो में गलती खुद की भी थी रात को ढाई बजे टेक्सी में शराब पीकर सो जाने की क्या तुक बनती हे भला ? निर्भया केस में भी लड़के की भयंकर भूल थी रात को लड़की के साथ गैर डी टी सी बस में चढ़ना ही नहीं था हम तो छह फुट लम्बे हट्टे कट्टे मर्द हे फिर भी फिर भी में कुछ साल पहले होली के दिन गुड़गांव से शाम के समय वापस आते हुए सुनसान सड़क पर घंटो डी टी सी बस का ही वेट करता रहा और कान के पास दिल्ली दिल्ली की हाँक लगाते संदिग्द वाहनो में बैठा ही नहीं लड़के का ये कहना भी मुझे सही नहीं लगता की कोई ऑटो वाला तैयार नहीं था जितना में जानता हु रात के समय दिल्ली के ऑटो वाले चलने से इनकार नहीं बल्कि मुंहमांगे पैसे मांगते हे तो वो देकर लड़की को सुरक्षित घर पहुचाना था पक्का नहीं पता लेकिन सूना हे की अब ये साहब बीबीसी वालो से भी डॉक्यूमेंट्री के पैसा मांग रहे थे ( कन्फर्म नहीं हु ) तो ये असावधानी बहुत गलत थी
फिर भी खुदा न खास्ता कोई हादसा हो जाता हे तो ना लड़की को और ना ही उनके घर वालो को ज़रा भी शर्मिंदा होने की कोई जरुरत नहीं हे जो दोषी हे उन्हें सजा दिलवाए और सब कुछ भूल भाल कर फिर से नयी और नार्मल जिंदगी जिए ज़रा भी दुखी या निराश होने की जरुरत नहीं हे जैसे जीवन में और भी हादसे होते हे वैसे ही इसे भी एक हादसा माने और आगे बढे जिंदगी खत्म हो गयी इज़्ज़त लूट गयी की बकवास में तो बिलकुल न पड़े राज़स्थान की उस बच्ची को और उनके घर वालो को समाज को प्रोत्साहन और पुरूस्कार देना चाहिए जो सामूहिक बलात्कार के बाद भी अगले ही दिन परीक्षा देने गयी यही सही रास्ता हे
इस तरह के फूहड़ लेख नही प्रकाशित होने चाहिये. सिकंदर हयत और अफ़ज़ल खन गलत कर रहे है . जब लड़की ऐसी लिख सकती है तो उस की चरित्र और मानसिकता पे शक होता है . हयत साह्ब के आने से खबर की खबर पोर्टल खराब होता जा रहा है .
शांत गदाधारी भीम शांत अमा यार वहाब भाई अब तो हद ही हो गयी अब क्या किया हे मेने ? यहाँ भी हमें ही दोषी बता रहे हो अरे भाई में साइट पर सिर्फ लेखन में हु प्रशासन में नहीं हु आज तक मेने कोई भी लेख स्वीकर्त- प्रकाशित नहीं किया हे और गीता जी स्वागत किया तो क्या गुनाह हो गया इस साइट पर कोई भी पहला लेख या कॉमेंट लिखता हे तो में अफज़ल भाई की तरफ से उसका स्वागत करता ही हु गीता जी या कोई भी और लेखक कौन हे क्या हे में तो जानता तक नहीं हु किसी से भी मेरा परिचय नहीं हे किसी से भी नहीं तो मुझ पर क्यों गुस्सा हो रहे हो दोस्त ? लेख की भाषा या शीर्षक से ऐतराज़ हो तो अफज़ल भाई को मेल करो
अफ्सोस ! एक तिप्प्देी कर्ता के रुप मे भेी श्रेी सिकन्दर जेी ने हमारा स्वागत् नहेी किया , वैसे हम्को स्वागत केी अभिलाशा भेी नहेी है !
वैसे लेखिका जेी केी पहले हेी लेख केी भाशा समाजिक कम है !
जितना मुझे याद हे अफज़ल भाई ने पहली बार में आपका स्वागत कर दिया था बाकी . लेख की भाषा पर अफज़ल भाई या लेखिका ही कुछ कह सकते हे
क्लास मे शोर कोई भेी करे सजा सोनु को हेी मिलेगेी …..इस वेब्साईत पर वहाब साहब , अपने दिल-ए-जिगर हयात भाई को सोनु बनाने के जिहाद पर निकल चुके हेः)
वहाब जी आप के कमेंट से आप की मानसिकता झलक रही है . गीता यादव ने सच बात कही है , एक लड़की के द्वारा इतना लिखना बड़ी बात है उन का स्वागत किया जाना चाहिए .
लगता है आप सिकंदर हयात के कमेंट नहीं पड़ता उन के कमेंट से आप कुछ सीखे . इस पोर्टल के लिए अफज़ल खान का धन्यवाद किया जाना चाहिए के अच्छे लेख हमें पड़ने को मिल रहे है .
संकीर्ण मानसिकता से बहार आये .
गीता यादव जी आपने जो लिखा बहुत अच्छा लिखा!
परन्तु क्या ये पूर्वाग्रह से ग्रस्त लेख नहीं है.? ये ऐसा ही है जैसा कुछ मुसलमान भाई मुसलमानो और हिन्दू भाई हिन्दुओं की तरफदारी में बस उसी पक्ष को उजागर करते हैं जो उनके अनुकूल हो!
आपने यही महिलाओं के लिए किया!
आपने मर्द जाती को एक विकृत मानसिकता का प्राणी बता दिया जबकि औरत को इसलिए खास बना दिया क्योंकि उसके पीरियड आते हैं!
क्या आपको पता है कि ८०% रेप के मामले झूठे होते हैं.? इसके लिए कौन कसूरवार है हम मर्द या हमारी मानसिकता.?
क्या आपको पता है कि दहेज़ के लिए सब से ज्यादा दवाब परिवार की महिला सदस्यों की और से ही डाला जाता है.? इसके लिए भी शायद कसूरवार हम मर्द या हमारी मानसिकता ही होगी.?
क्या आपको पता है कि महिलाओं द्वारा पुरुषों का योन शोषण पुरुषों द्वारा महिलाओं के योन शोषण से बस कुछ ही काम है! हाँ ये कभी खबर नहीं बनता, कभी शोषित पुरुष के शर्म के कारण तो कभी TRP वाला न्यूज़ न होने के कारण!
आपने शायद ये भी नहीं देखा या सुना होगा कभी की लड़कियां भी लड़कों पर गंदे कॉमेंट करती हैं!
माना की हमारा समाज पुरुष प्रधान मानसिकता वाला है परन्तु ऐसा भी नहीं है जैसा आप दिखाना चाह रही हैं!
मैंने मेट्रो में पुरुषों को महिलाओं के लिए सीट खली करते देखा है पर आज तक कभी किसी महिला या लड़की को किसी पुरुष के लिए अपनी सीट छोड़ते नहीं देखा, ये किस मानसिकता के अंतर्गत आता है.?
पुरुषों को महिलाओं के अधिकार के लिए आवाज़ उठाते तो देखा है पर कभी किसी महिला को पुरुषों के अधिकार के लिए ऐसा करते नहीं देखा!
लेख लिखिए तो निस्पक्ष हो कर पूर्वाग्रह से ग्रसित हो कर नहीं!
गीता यादव जी आपने जो लिखा बहुत अच्छा लिखा!
परन्तु क्या ये पूर्वाग्रह से ग्रस्त लेख नहीं है.? ये ऐसा ही है जैसा कुछ मुसलमान भाई मुसलमानो और हिन्दू भाई हिन्दुओं की तरफदारी में बस उसी पक्ष को उजागर करते हैं जो उनके अनुकूल हो!
आपने यही महिलाओं के लिए किया!
आपने मर्द जाती को एक विकृत मानसिकता का प्राणी बता दिया जबकि औरत को इसलिए खास बना दिया क्योंकि उसके पीरियड आते हैं!
क्या आपको पता है कि ८०% रेप के मामले झूठे होते हैं.? इसके लिए कौन कसूरवार है हम मर्द या हमारी मानसिकता.?
क्या आपको पता है कि दहेज़ के लिए सब से ज्यादा दवाब परिवार की महिला सदस्यों की और से ही डाला जाता है.? इसके लिए भी शायद कसूरवार हम मर्द या हमारी मानसिकता ही होगी.?
क्या आपको पता है कि महिलाओं द्वारा पुरुषों का योन शोषण पुरुषों द्वारा महिलाओं के योन शोषण से बस कुछ ही काम है! हाँ ये कभी खबर नहीं बनता, कभी शोषित पुरुष के शर्म के कारण तो कभी TRP वाला न्यूज़ न होने के कारण!
आपने शायद ये भी नहीं देखा या सुना होगा कभी की लड़कियां भी लड़कों पर गंदे कॉमेंट करती हैं!
माना की हमारा समाज पुरुष प्रधान मानसिकता वाला है परन्तु ऐसा भी नहीं है जैसा आप दिखाना चाह रही हैं!
मैंने मेट्रो में पुरुषों को महिलाओं के लिए सीट खली करते देखा है पर आज तक कभी किसी महिला या लड़की को किसी पुरुष के लिए अपनी सीट छोड़ते नहीं देखा, ये किस मानसिकता के अंतर्गत आता है.?
पुरुषों को महिलाओं के अधिकार के लिए आवाज़ उठाते तो देखा है पर कभी किसी महिला को पुरुषों के अधिकार के लिए ऐसा करते नहीं देखा!
लेख लिखिए तो निस्पक्ष हो कर पूर्वाग्रह से ग्रसित हो कर नहीं!
अभि मर्दो के खेल मे औरत क नाच लेख पर टिपण्णी करने के बाद इस लेख पर नजर पड़ी तो लगा यहाँ भ वही कॉपी पेस्ट करना पड़ेगा !
लेकिन मैं अपनी बात एक जोक से शुरू करना चाहूँगा
नीलू शालू से “ए शालू ये लडके लडके अपने ग्रुप में क्या बाते करते होंगे ?”
शालू “वाही जो हम लड़कियाँ करती हैं !!
नीलू “इई ….शी ……कितने गंदे होते है न ये लडके !
तो जनाब कुछ समझे ?
तो जनाब कुछ समझे ? अब मैं वहाब चिस्ती साहब से कहना चाहूँगा की ऊपर से सूटबुट में दिखने वाले ,हाय फाय लगने वाले सभी जब अपने हमउम्र दोस्तों के साथ होते हैं तो ऐसी ही बातें करते हैं बस उसका स्तर हर वर्ग के लिए अलग होता है ! ऐसे ही एक स्तर के लोगों की बातचीत या सोच लेखिका ने अपने लेख में शामिल की है ! इसीलिए पहले उनके खुलेपन की मैं दाद देता हूँ |आप लोग दादा कोंडके और उनकी फिल्मो से शायद परिचित होंगे , वे अपनी डबल मीनिंग फिल्मो के लिए यही दलील देते थे की वे गरीब मजदुर वर्ग के लोगों का मनोरंजन करते हैं ! ये भले ही हमे स्वीकारने में भद्दा लगे लेकिन सच्चाई यही है की जब भी एक आम आदमी अपने सांसारिक परेशानियों से थोडा रिलैक्स होना चाहता है वो अपने हम उम्रों के बिच ऐसी ही बातें करता है क्यूँ की वहां उसे यकीं होता है की ऐसी बातें करने से कोई उसकी मानसिकता और चरित्र पर उंगली नहीं उठाएगा क्यूँ की यहाँ किसी के भी चहरे पर वह दिखावटी मुखौटा नहीं है जिसे पहन हम सामजिक मर्यादा के नाम पर दोहरी जिंदगी जीतें हैं और जिसे उतारने की सहूलियत केवल भरोसे के कुछ सच्चे मित्रों में ही मिल सकती है जहाँ उसका कोई स्टिंग न कर रहा हो ! और ऐसी ही खुली बातें लेखिका ने इस मंच पर कर दी तो इसका मतलब उसका भी हमपर ये भरोसा है ! और वो भी कोई अभि मर्दो के खेल मे औरत क नाच लेख के लेखिका के आरोप की तरह चटखारे लेने के लिए या सहूलियत का फायदा उठाने के लिए नहीं लिख रही बल्कि ऐसी सच्चाई लिख रही है जिसे कोई झुठला नहीं सकता ! और वहाब साहब मानस शाश्त्र भी इसे गलत नहीं मानता उलटे उम्र के अनुसार ऐसे विचार न आने को वो चिंता का कारण बताता है | जारि…
और लेखिका तो फिर भी उसे इक्कीसवी सदी में भी होते बलात्कार जैसी समस्या के साथ लिख रही है ताकि हमें मानना पड़े की उनकी फूहड़ भाषा से कहीं अधिक फूहड़ और नंगी वो घटनाएँ है जिसे हम बड़ी सहजता से करते हैं लेकिन स्वीकारते नहीं | और बलात्कार को लेकर ये जो बड़ी बड़ी बातें और मोमबत्ती प्रदर्शन है न इससे न कभी कुछ हुवा है न आगे भी होगा क्यूँ की ये मानसिकता उन्ही लोगों में पनपती रहती है जो इसपर खुलकर कुछ कह सुन नहीं पाते और लड़कियों और औरतों को दूसरों के साथ देख देख घुटते रहते हैं ! अगर वास्तव में समाज में बलात्कार का इलाज करना हो तो शराफत की चादर ओढ़े बच्चे से लेकर एक दो दिन में मरने वाले बूढ़े तक की काउन्सेल्लिंग करवा कर उनसे उगलवाना पड़ेगा , सेक्स को लेकर कोई रहस्य या कोई अधूरी कामना की घुटन से उन्हें मुक्त कराना होगा इसे एक तरह का सेक्स एजुकेशन भी कह सकते हो ! और जब ऐसा होगा तो वाहब साहब जो सच्चाई सामने आयेगि वो सिर्फ न चौंकाने वाली होगी बल्कि सारे धर्मों की धज्जीयां उड़ाने वाली होगी ! ऐसा ही एक कोई शो बिच में टी वि पर भी चला था जिसमे सच बोलने पर पांच करोड़ तक का इनाम था और जिसे कोई जीत नहीं पाया था | क्यूँ की सेक्स से जुड़े जो जवाब उन्होंने अकेले में दिए वाही वे सबके सामने देने की हिम्मत नहीं कर पाए थे !!
तेजस साहब आप बेकार मे हि इसे औरत और मर्द कि बहस मे तब्दिल करने पर उतारु हो गये है ! आज कि तारिख मे हम दोनो मे से किसी को भी क्लीन चिट नहीं दे सकते लेकिन जब दोष देने की बारी आयेगी तो मर्द जरुर ज्यादा दोषी ठहराया जायेगा ! लेकिन इसका मतलब ये भी नहीं की इसके लिए आज के मर्द भी जिम्मेदार है !
अगर शान्ति से समझो तो इसकी वजह हमारा इतिहास होगा जहाँ के तेजस के पास ऐसे कोई सवाल होने की लेशमात्र भी गुंजाइश नहीं थी जैसे आज लेखिका से पूछ रहे हो ! और किसी लेखिका के लिए ऐसा कुछ लिखने की जैसा आज गीता जी लिख रही हैं ! और ऐसा कुछ तो दूर की बात औरत तो पढ़ने लिखने के लायक ही नहीं समझी जाती थी ! कुछ समझी जाती थी तो सिर्फ मादा !!
गीता यादव जी , बहुत दुस्साहसी हैं आप , और बड़ी दिलचस्प भी … देखिये , रेप होने या हो जाने की बहुत सारी वजह हैं या हो सकती हैं … कुछ वजह तो वही हैं जो सेक्स होने की हैं , बस रेप में लडकी की मर्जी शामिल नहीं होती और यही दिक्कत हो जाती है …. एक वजह तो आदमी की फिजिकल नीड या सेक्सुअल डिजायर ही है जो अगर लडकी या ओरत से पूरी नहीं होती तो लडके या दुसरे तरीके से पूरी करने की कोशिश करता है …. वैसे कुछ रेप बदला लेने या लडकी या औरत को जलील करने के लिए भी होते हैं . लेकिन ऐसा तो आदमी के साथ भी हो सकता है जैसे शोले में गब्बर व उसकी टोली ने ठाकुर का रेप किया था ….. वैसे कुछ या बहुत से आदमियों ( और औरतों व बच्चों में भी ) दुसरे आदमियों , औरतो व बच्चों को तडपाने व तकलीफ पहुंचाने की इतनी प्रवृति होती है कि वे अलग -२ तरह से उनका इतना टॉर्चर करते या करवाते रहते हैं की वो भी रेप जैसा ही पीड़ादायक होता है . असली परेशानी यही क्रूर और हिंसक प्रवृति है जिसे दूसरो को तकलीफ पहुचाने में और उससे उसका सब कुछ छीनने में मजा आता है …..
वैसे कुछ परिस्थितिजन्य हादसे भी हो जाते है …….!!
Girraj Ved
9 hrs · औरत के शरीर की ये जो दो गांठें है ना, ये दरअसल है तो इसलिए ताकि वो अपने बच्चे को दूध पिला सके, एक नयी जिंदगी का सर्जन कर सके, लेकिन यहि गाँठ पुरुषों के दिमाग ट्यूमर है, ये गाँठ ट्यूमर की तरह हर पुरुष के दिमाग में है, फिर वो पुरुष चाहे ट्रेफिक सिग्नल पर भीख माँगता भिखारी हो, अपने एयरकंडीशनर ऑफिस में बैठा बिज़नसमैन हो, सीमा पर खड़ा जवान हो, चाहे देश के सर्वोच्च पद पर बैठा कोई व्यक्ति हो !
कुछ दिन पहले विधा बालन ने सिर्फ इतना कहा था ‘एक आर्मी जवान लगातार मेरे ब्रेस्ट को घूर रहा था’
और भक्त मंडली इसे आर्मी का अपमान बताने लगी !
इसमे आर्मी का अपमान कहाँ हो गया ?
आर्मी में जाने वाले लोग भी इसी विकृत मानसिकता वाले समाज का हिस्सा है और एक आर्मी वाले की मानसिकता एक आम सिविलियन से कहीँ ज्यादा विकृत या यूँ कहे अपोजिट जेंडर को लेकर ज्यादा कुंठित होती है !
इसके लिए भी सरकारी नीतियां हि जिम्मेदार है, एक तो लगातार घर से दूर और विषम परिस्तिथियों में रहते हुऐ आर्मी वाले मानसिक अवसाद का शिकार रहते है, और दूसरा जहाँ भी सैनिको को विशेष अधिकार मिले है वहाँ ये सबको अपना गुलाम समझते है नक्सल प्रभावित इलाके में ये लड़कियों के ब्रेस्ट दबाकर उनमें से दूध निचोड़ कर जाँच करते है की लड़की नक्सली तो नहीँ ! यहाँ आर्मी वालों द्वारा किसी भी महिला का रेप होना बिलकुल सामान्य घटना है बिलकुल ऐसे हि हालात कश्मीर और उत्तरपूर्व में है !
लगातार ऐसे माहौल में रहने की वजह से इनमें से अधिकतर का व्यवहार बिलकुल तानाशाह की तरह हो जाता है !
ऐसा भी नहीँ की सारे सैनिक ऐसे हि होते है, जैसे सारे पुरुष बलात्कारी नहीँ होते, सारे नेता चोर नहीँ होते उसी तरह सारे सैनिक भी ऐसे नहीँ होते ! लेकिन हाँ इतना जरुर है सेक्स को लेकर इनकी मानसिकता आम लोगों से कहीँ ज्यादा विकृत रहती है !
तो सेना का ये महिमामंडन बंद कीजिए, सेना को पूजना और और उसे देश और समाज से ऊपर रखना बंद कीजिए !
सेना में जाने का कारण कोई देशभक्ति नहीं बल्कि बेरोज़गारी के दौर में रोजगार और सेना की सैलरी होती है !
लिखकर रख लीजिए किसीभी आर्मी वाले को किसी दूसरे संस्थान में छोटी नौकरी भी मिल जाये तो वो तुरंत सेना को छोड़ देगा !
फर्जी देशभक्त जो सेना की पूजा करके एक घातक संस्कृति को बढ़ावा दे रहे है मैं उनको चैलेंज कर
रहा हूँ –
इनमें से कोई भी देशभक्त ट्रेन के किसी ऐसे कम्पार्टमेंट जिसमे छ में से चार सीट पर आर्मी वाले हो उसमे अपनी माँ बहन बेटी के साथ यात्रा करके बताये !
इन लोगों का कभी कभी जंगलों की सेना से सामना नही हुआ, कभी गडचिरोली,अहेरी, बस्तर, लालगढ की सड़कों पर 7 बजे के बाद परिवार के साथ निकलिए, जायका लीजिए कभी सेना की खातिरदारी का !
अगर ये नहीँ कर पाओ तो, राष्ट्रवाद के नाम पर गंध फैलाना बंद कीजिए ! राष्ट्रवाद की ऐसी गंध जिसमें खुदको देशभक्त साबित करने के लिए भी एक महिला का चरित्र हनन करना पड़े ! एक पीढ़ित को हो आरोपी बनाना पड़े !
आप भी इंसान है जानवर नहीँ इसलिए भेड़ बकरियों की तरह आपको संचालित करने वाले चंद गड़रियों के पीछे चलना बंद कीजिए !
नक्सली, आतंकी, पत्थरबाज किसी खेत में नहीं पैदा होते ! ना वो किसी असेम्बली लाइन वाली फैक्ट्री से ‘मॉस प्रोड्यूस’ हो के आते हैं ! सो महान देशभक्तों, सोचो कि ये हजारो लड़के, लडकियाँ, महिला, पुरुष हथियार लेके अपनी भी जान दांव पर लगा के यूं ही नहीं कूद पड़ते !
वो आते है क्योंकि तुम्हारी सेना अम्बानी, अडाणी जैसो के आदेश पर सरकार की और से, सरकारी आतंकी के तौर पर काम करती है ! उनकी लड़कियों और महिलाओं को सेक्स स्लेव समझती है और पुरूषों को गुलाम !
कभी सोचा है, क्यूं आदिवासी महिलाएँ आर्मी मुख्यालय के आगे नग्न होकर प्रदर्शन करती है और कहती है रेप अस ?
कभी सोचा है आर्मी वालों की हत्या के बाद महिला नक्सली घृणा से क्यूँ उनके लिंग काट देती है ?
कश्मीर से लेकर छत्तीसगढ़, झारखंड, असम जहाँ कहीं भी सेना को विशेषाधिकार मिले वहाँ हर घर में एक सोनी सोरी एक मकड़म हिड़मे मिलेगी !
अभी मेजर गोगोई के बचाव में खड़े हो, कौन है गोगोई ?
वहि न जिसने एक नाबालिग लड़की के बड़े भाई को आतंकी बताकर तड़पा तड़पाकर मार दिया और अपने छोटे भाई को बचाने के लिए उस नाबालिग लड़की को गोगोई के साथ होटल में आने को मजबूर होना पड़ा ! वही गोगोई जो आधी रात को जाँच के बहाने किसीके घर में भी घुस जाता है !
अन्याय की पराकाष्ठा और न्याय की कीमत चुकाने में असमर्थता से उपजी असहाय स्थिति के गर्भ में पलकर नक्सलियों और पत्थरबाजो की पैदाइश हुई है !
ये सब देख कर क्या एक कुढ़न पैदा नहीं होती ?
अगर आपमे इंसानियत जिंदा होती तो समझते की ऐसी स्तिथि में जिंदगी बोझ लगने लगती है और अपनी असहाय स्थिति का कोफ़्त भरा एहसास होता है !
ये घुटन, अत्याचार और फिर जीने के लिए गिड़गिड़ाना…
उनकी विनती कोई सुनता नहीं, न्याय
के लिए पैसे नहीं, इस सबसे घृणा पैदा होती है और उस घृणा से नक्सलियों, आतंकियों और पत्थरबाजो की पैदाइश !
अगर इस देश को बचाना है और देश को बचाने से भी बढ़कर यदि आपमे इंसानियत जिंदा है तो, सेना का महिमामंडन बंद कीजिए और हर गोगोई के विरोध में खड़े होइये !
…. बाकी मुझे देशद्रोही का सर्टिफिकेट देना चाहो तो….. गो टू हेल…. मुझे तुम्हारे सर्टिफिकेट की जरुरत नहीँ !
Megha Maitrey
3 November at 16:23 ·
ब्रेकअप के बाद डिप्रेशन के वजह से मनोचिकित्सकों के पास आने के मामले बढ़ते जा रहे हैं। इन तमाम मामलों में लड़कियों के cases में एक खास पैटर्न होता है।
अक्सर रिश्ता जब कड़ूआहट में खत्म होती है तो लड़कियाँ महसूस करती हैं कि उनको use किया गया। अगर लड़की ने शारीरिक सम्बन्ध बनाये हैं तो लगभग पक्का है कि वह यह इल्जाम लड़के पर लगायेगी ही लगायेगी।
इसका एक बड़ा सीधा सा कारण है कि लड़कियाँ सेक्स को लेकर ज्यादा भावनात्मक होती हैं। यह नैतिक ज्ञान नहीं है, मनोवैज्ञानिक तथ्य है। किसी के करीब शारीरिक रूप से जाना, उनके लिये अपने मन का एक हिस्सा देने जैसा होता है।
पर जैसा कि आधुनिकता और बराबरी की हवा में हो रहा है, हमारी मीडिया और आधुनिकता के पैरोकारों ने औरतों के मनोविज्ञान को समझे बगैर उन्हें फ्रीडम ऑफ सेक्स के नाम पर बिना जिम्मेदारी के शारीरिक रिश्ते में कूदने को प्रोत्साहित किया।
अब वे कूद तो जाती हैं, पर फिर जब औरतों वाली प्राकृतिक भावनायें हिलोड़े मारती हैं और उनके अंदर अपनाये जाने की चाह उतपन्न होती है तो लड़का बेचारा भी परेशान हो जाता है कि पहले तो सेक्स और डेट पर ही डील हुई थी, अब ज्यादा की मांग कैसे पूरी की जाये?
उधर लड़कियाँ अक्सर उम्मीद लगा कर बैठती हैं कि शारीरिक सम्बन्ध बना है तो शादी होगी ही। वे हमारे पास आकर सुबकती हैं, बतलाती है कि कितना गलत हो गया उनके साथ।
इससे बचने का एक सीधा उपाय यही है कि औरतें बराबरी की दौड़ में यह ना भूले कि वे सिर्फ शारीरिक ही नहीं बल्कि मानसिक रूप से भी पुरुषों से अलग होती हैं। अगर आप किसी के साथ बिस्तर पर जा रही हैं मर्जी से, तो अपने निर्णय की जिम्मेदारी लीजिये। अगर शारीरिक सम्बन्ध बना कर आप शादी अनिवार्य मानती हैं तो आपको यह काम शादी के बाद ही करनी चाहिये।
क्योंकि ऐसे मामलों में जब आपसे सामने वाला शादी नहीं करेगा तो आपको #me_too महसूस होगा ही होगा।
छेड़छाड़, बलात्कार अलग चीजे हैं, पर सहमति से बनाये सम्बन्धो पर विलाप करना सिर्फ बदला लेने की भावना और खुद को जबर्दस्ती पीड़ित मानने की मानसिकता का हिस्सा है।
बलात्कार के कई झूठे केस इस प्रकार के सम्बन्धो के नतीजे के रूप में सामने आते हैं।
Pratima Tripathi is with Su Jata.
17 November at 13:01 ·
आयरलैंड में कोर्ट ने एक 27 वर्षीय रेपिस्ट को इसलिये बरी कर दिया क्योंकि 17 वर्षीय पीड़िता ने अपने कपड़ों के नीचे थांग पहना था। बलात्कार के लिए पीड़िता को ही दोषी ठहराने की मानसिकता कोई नई बात नहीं है। पिछले दिनों-
१) इटली की कोर्ट ने ये कहकर एक रेपिस्ट को इसलिये बरी कर दिया कि विक्टिम बलात्कार के दौरान चिल्लाई नहीं थी।
२) अमेरिका में एक बलात्कारी को इसलिये छोड़ दिया गया क्योंकि बलात्कारी के साथ साथ विक्टिम ने भी शराब पी हुई थी।
३) अमेरिका में ही एक अन्य मामले में एक बलात्कारी को इसलिये छोड़ दिया गया क्योंकि आरोपी ने ज्यूरी के सामने पैंट उतार कर विक्टिम से उसके पेनिस को आइडेंटीफाई करने को कहा गया। डिफेंस का कहना था कि विक्टिम द्वारा बताया गया डिस्क्रिप्शन आरोपी के पेनिस से मैच नहीं होता।
४) आयरलैंड में एक आदमी को बलात्कार के आरोप से इसलिये मुक्त कर दिया गया क्योंकि विक्टिम अपनी टेस्टिमनी के दौरान बिल्कुल नहीं घबराई थी।
५) मद्रास हाइकोर्ट ने एक आरोपी को बलात्कार की सज़ा सुनाने की बजाय विक्टिम से शादी करने की सलाह दी।
६) कनाडा में एक कोर्ट ने एक आरोपी को बलात्कार के आरोप से इसलिये मुक्त कर दिया गया क्योंकि डिफेंस ने तर्क़ दिया था कि आरोपी की महिला को नुकसान पहुँचाने की नीयत नहीं थी।
७) स्वीडन में भी एक आरोपी को ‘क्रिमिनल इंटेंट ना होने का हवाला देकर’ बलात्कार के आरोप से मुक्त कर दिया गया। जबकि कोर्ट ने महिला की ना कहने की बात को स्वीकारते हुए भी दोनों के बीच संबंध को ये कहकर बलात्कार मानने से इनकार कर दिया कि आरोपी को महिला की ना समझ नहीं आई थी।
८) आयरलैंड में एक ज्यूरी ने एक टीनएजर को उसकी क्लासमेट के साथ रेप के आरोप से इसलिये मुक्त कर दिया गया क्योंकि डिफेंस का तर्क़ था कि उस वक़्त का माहौल रोमांटिक था और आरोपी अपनी क्लासमेट को पसंद करता था।
९) स्पेन में एक कोर्ट ने एक गैंग रेप को रेप ना मानकर सेक्सुअल एब्यूज कहकर फैसला सुनाया क्योंकि विक्टिम बेहोश थी। और स्पेन के कानून में केवल धमकी और हिंसा का सहारा लेकर बनाया सम्बन्ध ही रेप माना जाता है।
१०) “क्लियरली अ ड्रंक कैन कंसेंट” कहकर कनाडा की एक अदालत ने एक आरोपी को बलात्कार के आरोप से मुक्त कर दिया। जज का कहना था कि हम ये साबित नहीं कर सकते कि विक्टिम आरोपी से मिलने से पहले बेहोश हुई थी या बाद में। हो सकता है उसने बेहोश होने से पहले आरोपी को कंसेंट दिया हो।
Pratima Tripathi
10 November at 11:05 ·
मुझे ऐसे मर्दों से सख्त चिढ़न होती है जिन्हें ये लगता है कि किसी लड़की ने उनसे फ्रेंडशिप की है तो वे उनसे कुकिंग, क्लीनिंग, ट्यूशन, सेक्स पाने के लिए एंटाइटिल्ड हो गए हैं।https://ajkalduniya.wordpress.com/2018/11/09/%E0%A4%A6%E0%A5%87%E0%A4%B5%E0%A4%B2%E0%A5%8B%E0%A4%95-%E0%A4%95%E0%A5%80-%E0%A4%85%E0%A4%A6%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A4%A4/
Shadab Salim
Yesterday at 00:36 ·
बलात्कार पर काफ़ी कुछ लिखा है।भारत बलात्कार से निपटने में पूरी तरह नाकामयाब है।कभी माना है कि बलात्कार का कारण सेक्स प्रतिबंधित समाज है,एक दफा मैंने यह भी कहा कि यह छोटे लिंग वाले लोग घनघोर बलात्कार कर रहे है बलात्कार के मामले में इन छोटे लिंग के लोगो का कोई जोड़ नहीं है।एक लिंग इनके दिमाग में है।
‘औरत की स्वतंत्र मर्ज़ी के खिलाफ पुरुष का उसके साथ सेक्स करना बलात्कार है’
बस इस वाक्य के चंद शब्दो मे बलात्कार की पूरी परिभाषा सामने आ जाती है।
एक दफा यह भी सोचा जा सकता है कि-पुरुष के साथ बलात्कार क्यों नहीं होते?उसे कोई औरत सड़क से उठाकर क्यों नही ले जाती?
अगर ऐसा होता तो पुरुष बलात्कार को एंजॉय करता है,झट से औरत के हाथों में ख़ुद को सौंप देता।
हमने शुरू से अपनी संतानों को यह शिक्षा दी है और ऐसा समाज बनाया जिसमे सेक्स को पुरुष के लिए मज़ा एंजॉयमेंट और उत्सव जैसा पेश किया है इसलिए सेक्स की मंडी में औरतें खूब बिकती है पर पुरुष नहीं बिकता।पुरुष के लिए एंजॉयमेंट मज़ा होने वाला सेक्स औरत के लिए अभिशाप, कलंक,अपमान और लगभग वह सब कुछ है जिसमे आदमी हिकारत की नज़र से देखा जा सकें।
इस ही अपमान इस ही कलंक और इस ही अभिशाप से जन्मा है -बलात्कार।यह बलात्कार की जननी है,यही जड़ है यही मूल है।
हमने औरत को सिखाया की अपनी योनि की हिफाज़त करो,यह आपकी सबसे क़ीमती चीज़ है,सेक्स आपके लिए अपमान है लज़्ज़ा है इसकी बात भी नहीं करना।हमने मर्द को सिखाया अपना लिंग लेकर सड़क पर घूमते फिरिये और जहाँ औरत नज़र आ जाए दबा डालो,लूट लो मज़े,सेक्स आपके लिए मज़ा है औरत के लिए सज़ा है।
हमने औरत के मामले में प्रकृति से सदा अन्याय किया है यह बलात्कार उस ही अन्याय का कारण है।
भोपाल की अदालत में एक दफा मुझे एक बलात्कार पीड़िता मिली।मैंने अपने जीवन मे उससे ज्यादा बेबाक और साहसी औरत कहीं नहीं देखी।उसने मुझे बताया-मुझे चार नशे में धुत लड़को ने घेरा था,मैंने चारो से कहा-तुम चारो मुझसे खेल लोगे?कितना मज़ा दोगे मुझे?चारो मुझे घूर कर देख रहे थे फिर पास ही स्टेशन कि लाज में पांचो गए और लाज मालिक से सेटिंग कर रूम लिया,उन्होंने बारी बारी से मेरे साथ सेक्स किया,दस दस मिनट में तीनों ढीले पड़ गए और चौथा सेक्स करने के पहले ही लुढ़क गया।मैंने उन्हें अपना फ़ोन नंबर दिया और उन्हें कहा जब तुम्हे ज़रूरत लगे कह दिया करिये मैं आ जाया करूँगी,मैं एंजॉयमेंट के लिए फ्री सेवा करती हूं बस आपको कंडोम लाना है।
मैं छूटते से सीधी पास के थाने गयी और चारो को बलात्कार में फंसा दिया।चारो बीस बीस वर्ष का कारावास काट रहे है।
मैं उस लड़की की बात सुनकर हैरान था,मेरी धड़कने तेज़ थी,ब्लड प्रेशर दो सौ के ऊपर हो गया होगा।मैंने उससे कहा-तुम सच में इस धरती की ही हो,उसने हंस कर कहा-जी शादाब अली मैं इस धरती की ही हूँ और आपके सामने खड़ी हूँ।उसकी हंसी में जैसे सारी दुनिया का सामर्थ और साहस समाया हुआ था।
फ़िक़्र कीजिए इस पर।जिस तरह आप मोमबत्ती लेकर फेसबुक व्हाट्सएप पर कैम्पेन चलाते है क्या आप अपने जीवन मे उस बलात्कार पीड़िता को अपनाएंगे?क्या आपकी प्रेमिका का ऐसा बलात्कार हो जाए तो आप उसे अपनायेगे?क्या आप बचपन मे बलात्कार के बाद ज़िंदा बच गयी लड़की से शादी करेंगे?क्या आप बलात्कार पीड़िता को बम कांड पीड़ित की नज़रों से देखेंगे?आप अपने मुहल्ले कॉलोनी में रहने वाली बलात्कार पीड़िता ज़िंदा बची लड़की को किस तरह देखेंगे?
यह सारे सवाल मुझे मथते है,मुझे पागल करते थे।आपके समाज के लिए ही तो वह लड़की अपनी योनि अपनी शील को बचाते हुए जान दे देती है और लड़ती है की नहीं मैं मर जाउंगी पर तुझे अपना कौमार्य नहीं दूंगी।फिर बलात्कार करने वाला मारे डर के उस लड़की को जिंदा जला देता है।हमारा समाज वही है न जो शादी के बाद लड़की की वर्जनिटी चैक करता है,ब्लड आया कि नहीं?हमारी फिल्मों ने यह खूब बताया न कि कैसे एक औरत किसी सेक्स के भूखे आदमी से जबरजस्ती सेक्स नहीं करने के कारण छटपटा रही है,भाग रही है।
हमारे ही बोये हुए पेड़ है,उसका ही फल आ रहा है।हमारा ही अन्याय है जिसे हमारी बहन बेटियां भुगत रही है।
एक मानव अपनी योनि बचाने के लिए जान दिए देता दूसरा उस लिंग को जबरजस्ती खर्च करना चाहता है,एक के लिए सज़ा एक के लिए एंजॉयमेंट यह प्रकृति ने हमे कब सिखाया!हे प्रभू।
शादाब सलीम~