पंजाब में वर्षों तक देश को तोड़ कर दूसरा देश “खालिस्तान” बनाने के नाम पर आतंकवाद चला लाखों गैर सिखों को पंजाब छोड़ कर देश के दूसरे हिस्सों में भागना पड़ा और यह देशद्रोह था क्योंकि देश को तोड़ने के लिए यह सब किया गया ।स्वर्ण मन्दिर जैसा पवित्र स्थान आतंवादियों का हेड आफिस बन गया जिसके कारण भारत सरकार को आपरेशन ब्लू स्टार चलाना पड़ा और तमाम आतंकवादी मारे गये ।इसी क्रम में इस देश की प्रधानमंत्री की सिखों द्वारा उनके आवास पर छलनी करके हत्या कर दी जाती है और पूरे देश में सिख विरोधी दंगों में हज़ारों हज़ार हताहत होते हैं ।कुछ लोगों के घृणित कुकर्म के कारण पूरे सिख समुदाय को इसका भुगतान करना पड़ता है और अपनी पहचान छुपाने के लिए पगड़ी केश दाढ़ी हटानी पड़ती है और पहनावा तक बदलना पड़ता है ।
इन घटनाओं को 32 वर्ष बाद देश लगभग भूल चुका है और कुछ ही नहीं बहुत से राष्ट्रद्रोही सिखों तक को अपना चुका है जिन्होंने हथियार छोड़कर आत्मसमर्पण कर दिया ।
परन्तु बहुमत में सिख समुदाय कांग्रेस और इन्दिरा गांधी के प्रति आज भी नफरत रखता है इसके बावजूद भी सिखों की देशभक्ति पर आज तक किसी ने सवाल नहीँ उठाया सभी सिख सुखी हैं और जहाँ भी हैं सबसे समृद्धि हैं ।।।।
अब दूसरा पक्ष देखें कि भारत में सामुहिक रूप से राष्ट्रद्रोह जैसा कृत्य मुसलमानों द्वारा कभी नहीं किया गया ।राष्ट्रद्रोह के इक दो कोई उदाहरण हैं तो वह उनके विदेशी संपर्कों के कारण या उनके अपने व्यक्तिगत कारणों से हैं यह भी ध्यान दें कि इसी भारत में प्रतिष्ठा का विषय बना दी गई एक मस्जिद को ढहा दिया गया , गुजरात मे सरकार द्वारा प्रायोजित कत्लेआम हो या हाशिमपुरा विभिन्न जगहो पर मुसलमानों को बड़े पैमाने पर काटा मारा गया और सरकारी पुलिस तक को इस कार्य मे लगाया गया वीपी सिंह द्वारा मेरठ में मस्जिद में नमाज़ पढ़ रहे लोगों पर फायरिंग कराई गई पर एक दो व्यक्तिगत घटनाओं के अतिरिक्त पूरा मुस्लिम समाज खामोश रहा और बर्दाश्त करता रहा और पंजाब के आतंकवाद की तरह संगठित होकर कभी देश के विरूद्ध सोचे या अलग राष्ट्र की मांग करे ऐसा एक उदाहरण भी नहीं है ना भविष्य में हो सकता है ।देश में अपराध की ऐसी घटनाएं जिनमे मुसलमान या कुछ मुसलमान शामिल होते हैं उसे संप्रदायिक या आतंवादी घटना करार दिया जाता है और पूरे समाज को कटघरे में खड़ा करके पाकिस्तान का रास्ता दिखाया जाता है चाहे वह कितना भी बड़ा देश भक्त ही क्युँ ना हो ।नौकरी से लेकर व्यवसाय तक में इधर कुछ वर्षों में धर्म के कारण भेदभाव स्पष्ट महसूस किया जा सकता है और यदि फेसबुक की बात करूँ तो यहां तो अपशब्दों की कोई सीमा ही नहीं है ।
यह राजनैतिज्ञों का फैलाया हुआ जहर है जो ऐसी स्थिति में धार्मिक ध्रुवीकरण करके अधिक लाभ कमा रहे हैं परन्तु इसका एक पक्ष और भी है कि बहुत बड़ी संख्या में मुसलमान इसके कारण अधिक उग्र हो रहे हैं और “अकबरुद्दीन ओवैसी” की विचारधारा से जुड़ रहे हैं जो देश के लिए ठीक नहीं है क्योंकि यह टकराव देश के लिए घातक हो सकता है इसे रोकने की आवश्यकता है और सोचने की भी कि हम इतिहास से क्यों नहीं सीखते ।
अब प्रश्न आप से है कि राष्ट्रद्रोह जैसे कृत्य करने वाले और उसका समर्थन करने वाले कुछ सिखों को आज घृणा की दृष्टि से देखा नहीँ जाता तो हम मुसलमानों को क्युँ ? याद रखें कि एक दलित भक्त “केशव आक्रोशित मन ” कल मेरी आरक्षण की पोस्ट पर एक अलग राष्ट्र “दलितस्तान” का राग अलाप चुके हैं पर वह ऐसा करके भी देशभक्त रहेंगे और हमें बिना किसी कारण के पाकिस्तान का रास्ता दिखाया जाता है ।
क्यों ?? सभ्य शब्दों में जवाब दें ।
हर एक बात गलत और भर्मित ये बिलकुल आम सोच हे जो आम मुस्लिम के बीच फैलाई जाती हे इसी कारण आम मुस्लिम मुद्दो पर सही सोच नहीं रख पाता मुसलमानो की भला सिखो या दलितों से क्या तुलना ? मुसलमान उपमहादीप में साठ करोड़ हे जिनमे से बहुत से दिल्ली और हिन्दुओ पर फिर से काबिज़ होने की सोचते हे सिख मुश्किल से ढाई करोड़ हे पंजाब में आतंकवाद था भी तो बहुत जल्द सिखो को इस मूर्खता का अहसास हो गया और उन्होंने खुद ही इसे खत्म कर डाला मुश्किल से दस साल लगे जबकि कश्मीर में तीस चालीस साल से जारी हे दलित की भी मुस्लिमो से कोई तुलना नहीं दलित दो हज़ार साल के कुचले हुए हे उनके पास सत्ता और जमीन का स्वामित्व कभी नहीं रहा जानकी मुस्लिम सत्ता में खूब रहे और जमीन का स्वामित्व भी खूब रहा जो कुछ दलितों के साथ होता हे ( जैसे हरियाणा भगाना ) वो मुसलमानो के साथ करने की कोई सपने में सोच भी नहीं सकता मुसलमानो की मुख्य समस्या मानसिक हे हम क्योकि ”शासक सिंड्रोम ” से ग्रस्त हे इसलिए जब भी हमें हिन्दुओ से कोई दुर्वयवहार झेलना पड़ता हे तो औरंगजेब ख़िलजी के ज़माने में चले जाते हे जब हमारे हिसाब से हर हिन्दू हमारे सामने हाथ जोड़े खड़े रहता था जो हमें बहुत बुरा लगता हे तब नाराज़ होकर हम मुस्लिम यूनिटी के पीछे भागते हे जो आम मुस्लिम के लिए कोई हासिल वसूल नहीं देती हे हल ये हे की हमें अधिक से अधिक आम मुस्लिम को समझाना हे की वो अपनी समस्याओ के समाधान के लिए कतई भी मुस्लिम यूनिटी के पीछे ना भागे देश में अच्छे लोगो की कोई कमी भी नहीं हे उनके साथ यूनिटी के पीछे भागे तब अच्छा रिजल्ट आएगा
आपने लिखा ”फेसबुक की बात करूँ तो यहां तो अपशब्दों की कोई सीमा ही नहीं है ” में फेस बुक पर नहीं हु मगर जानता हु की नेट पर हिन्दू कठमुल्लाओं का बहुत बोलबाला हे लेकिन इनकी बातो को इतना भी दिल पर ना ले आम हिन्दू ऐसा कतई नहीं हे नेट पर बज़रंगियो का बोलबाला इसलिए हे की इन लोगो में बेहद भड़ास भरी हुई हे भारत का मेनस्ट्रीम मिडिया पाकिस्तान के मेनस्ट्रीम मिडिया की तरह कटटरपन्तियो को अपनी भड़ास जाहिर करने की सुविधा नहीं देता हे इसलिउए नेट पर जमकर ज़हर उगलते हे आप तो ये बताते हे की मुसलमानो में पिछले बीस साल में कितना जुलुम हुआ जबकि इनके ओक साहब जैसे लेखक इन्हे पिछले एक हज़ार साल के किस्से नमक मिर्च लगाकर बताते हे इसलिए इनके बेहद भड़ास हे वाही ये निकालते हे लेकिन ये कोई अंतिम सत्य नहीं हे
मेरी आम मुस्लिम को सलाह ये हे की भूल कर भी मुस्लिम यूनिटी एकवेल्टी सुप्रियोरटी मुसलमानो पर जुलुम मुसलमानो पर अत्याचार मुसलमानो का ये मुसलमानो का वो इन शब्दों इन बातो के पीछे भूल कर भी ना भागे . इन बातो के सहारे कोई पाकिस्तान बना सकता कोई कश्मीर को स्विट्ज़र्लॅंड की तरह मुल्क बनाने के सपने देख सकता हे कोई मुलायम सिंह बहुमत पा कर यादव राज़ वो भी कुनबे का चला सकता हे होने को बहुत कुछ हो सकता हे मगर सिर्फ खासमखास लोगो ( मुस्लिम भी ) के लिए कोई अरब देशो से फंड खीच सकता हे कोई चुनाव जीत सकता हे बहुत कुछ हो सकता हे मगर आप के लिए आपके लिए एक आम मुस्लिम के लिए इन शब्दों का हासिल वसूल कुछ भी नहीं हे कुछ भी नहीं सिवाय शोषण तनाव पंगो के यकीन मानिये ये मेरी बहुत गहरी रिसर्च बोल रही हे और ये रिसर्च सिर्फ किताबो से ही नहीं बल्कि जीवन के गहरे अनुभवों से हुई हे
Commentसिकंदर हयात अपनी जानकारी सही करो .सिखों ने अफगानिस्तान तक राज किया है.हिन्दुस्तान के कुछ हिस्सों पे तुर्कों ने राज किया नाकि भारतीय मुसलमानों ने.भारतीय मुसलमान तो े हिन्दू थे जो अधिकांश पिछड़ी जातियों के गरीब लोग थे.
खालिस्तान नामक अलगाववाद और आतंकवाद का राक्षस कुछ दशक तक रहा, और जब तक रहा, तब तक सिखो के प्रति बहुसंख्यक जनता के एक बड़े वर्ग मे नकारात्मक राय रही, फिर इसे बदलने मे भी उसी अनुपात मे समय लगा.
हिंदू-मुस्लिम संबंधो मे नकारात्मकता का इतिहास थोड़ा लंबा रहा, और मुस्लिम लीग की मेहरबानी से पाकिस्तान के निर्माण और विभाजन के समय की हिंसा, फिर उसके बाद उसके द्वारा मज़हब के नाम पे भारत मे प्रायोजित आतंकवाद और युद्धो ने इसे और बड़ा कर दिया. लेकिन यह सरलीकरण होगा की हर मुस्लिम के साथ भेदभाव है. हर क्षेत्र मे मुस्लिम महत्वपूर्ण ओहदो पे है. फिल्मी जगत, जहाँ सफलता, बहुसंख्यक आबादी के प्यार पे ही टिकी है, मुस्लिम चेहरो और नामो का बोलबाला है.
लेकिन अगर आप समग्र रूप से मुस्लिमो के पिछड़ने की बात कर रहे हैं, तो पूरी दुनिया मे ही मुस्लिम पिछड़े हैं. अरब मुल्को मे इजरायल शिक्षा और विज्ञान मे अग्रणी, और उसके चारो और बसे मुस्लिम मुल्क फिसड्डी.
सिख तो कनाडा, इंग्लेंड, आस्ट्रलिया मे भी तुलनात्मक रूप से मुस्लिमो से बहुत बेहतर है. मुस्लिमो की वैश्विक आबादी मे प्रतिशत है, लगभग 20 है, लेकिन उनका सभी क्षेत्रो ख़ासकर शिक्षा मे प्रतिनिधित्व बहुत कम.
भारत मे तो आप संघ और हिंदू कट्टरपंथियो को इसके लिए ज़िम्मेदार ठहरा सकते तो, जो एक कारक हो सकता है. लेकिन पूरी दुनिया मे मुस्लिमो के पिछड़ेपन के कारण निकालो, और वो सभी कारण भारत के मुस्लिमो के पिछड़ेपन मे भी कहीं ना कहीं मिल जाएँगे.
देखिए सम्मान और इज़्ज़त हक नही ईनाम होता है, जो कमाना पड़ता है. सिखो ने पहले इसे कमाया, फिर गँवाया, लेकिन फिर इसे कमाया.
पूरे विश्व मे मुस्लिमो के प्रति गैर मुस्लिमो की जो नकारात्मक राय है, उसका कारण एक सामाजिक और राजनैतिक असुरक्षा है. लगभग तमाम मुस्लिम बहुल मुल्क आज के दौर मे भी राजनैतिक रूप से सेकुलर नही है, इसलिए अन्य समुदायो को लगता है की इस्लाम के बढ़ते प्रभाव से उनके राजनैतिक और धार्मिक स्वतंत्रता कम हो सकती है.
इसके अतिरिक्त, विश्व की बड़े राजनैतिक विवादो मे भी राजनैतिक इस्लाम जुड़ा है. जैसे कश्मीर, इजरायल, चेचन्या. ज़्यादातर वैश्विक आतंकी संगठन भी इस्लाम के नाम का प्रयोग कर रहे हैं.
इसलिए मेरा मानना है की अरब देशो के सेक़ूलेरिज़्म की राह पे बढ़ने से ही पूरी दुनिया मे मुस्लिमो के प्रति आम राय मे सकारात्मक बदलाब आएगा. साथ ही अनेक राजनैतिक विवादो का भी हल निकलेगा. शायद विषय से कुछ हट कर बात है.
मुग्लो के सदियो तक अत्याचार , फिर देश विभाजन् औरुस विभाजन् मे भि करेीब १० लाख इन्सनो कि हत्य इस्के बाद भि समय समय पर कुच इस्लामिक् सन्सथाओ कि ओर से फिर से देश के तुकदे होने कि धम्केी ! भि सुन्ने को मिल जति है ! इस्से इस देश का बहुसन्ख्यक् समाज भय्भेीत होने लगता है !
कभी देखा है किसी सिख को किसी दूसरे देश के सिखो के लिये अपने ही देश के शहीद स्मारको को लात मारते, तोड़ते हुए ??
कभी देखा है किसी सिख को किसी दूसरे देश के आतंकवादियो के लिये अपने ही देश मे लोकल सपोर्ट तैयार करते हुए ??
सिखो से तुलना करने से पहले उनकी सोच और अपनी सोच पर नज़र तो डाल ली होती जनाब ……पंजाब मे अलगाववाद कंट्रोल हुआ आज हर कोई जाना चाहता है क्योकि पंजाबियो की सोच खुली और तरक्कीपसंद है जबकि कश्मीर मे आतंकवाल कंट्रोल होने के बाद भी कोई जाना नही चाहता ?? क्या वजह बताने की जरूरत है 🙂
एक शुद्ध सेकुलर लिबरल भारतीय मुस्लिम लेखक विचारक प्रचारक बनना दुनिया का सबसे मुश्किल काम हे क्योकि इस काम में आप पर सवालो और जिम्मेदारियों और जवाबदेही का पहाड़ टूट तो पड़ेगा मगर कोई भी कोई भी बड़ी ताकत संस्था व्यक्ति आपका सपोर्ट नहीं करेगी यकीं मानिये कोई भी नहीं ये काम रश्दी तस्लीमा आदि बनना से भी बहुत कठिन काम हे रश्दी तस्लीमा को तो फिर भी वेस्ट सपोर्ट करेंगे और जैसा की भालचंद्र नेमाडे जी ने बताया की महाविद्वान रश्दी साधरण लेखक होते हुए भी मौज़ और प्रचार पा गए लेकिन एक शुद्ध सेकुलर लिबरल भारतीय मुस्लिम को तो कोई भी सपोर्ट नहीं देने वाला हे यहाँ तक की आप जैसी नयी और प्रोग्रेसिव पार्टी भी नहीं उन्हें लगेगा की ऐसी क्योकि गैर लोकप्रिय बातो से मुस्लिम वोट छिटक जाएगा वेस्ट भी नहीं क्योकि उन्हें पता हे की कल को ये वर्ग भारत पाक दोस्ती कराकर खरबो के हथियार बाजार पर पानी फेर देगा शुद्ध सेकुलर हिन्दू बुध्दजीवी वर्ग भी नहीं क्योकि ये ऐसा दिखाता हे की जैसे भारतीय मुस्लिम बहुत ही दीन हीन और लुटे पिटे लोग हे और ये खुद उनके मुहाफ़िज़ हे ऐसा करके ये वर्ग खुद को बहुत महान समझता हे जबकि हम बताते हे की भरतीय मुस्लिम ऐसा दीन हीन और लुटे पिटे नहीं हे उसकी समस्ये और भी हे तो उन्हें हमारी टोन पसंद नहीं आती हे बज़रंगी भी हमें कतई सपोर्ट नहीं देंगे उनका फायदा हमसे नहीं मुस्लिम कटटरपन्तियो से हे क्योकि इन्ही की हरकतों से भी मोदी को पूर्ण बहुमत मिला पूंजीवादी वर्ग भी नहीं उन्हें पता हे की कल को हिन्दू मुस्लिम एकता हो गयी तो उनकी लूट पर जनता का पहले ध्यान जाएगा तो इसी सब कारणों से एक शुद्ध सेकुलर लिबरल भारतीय मुस्लिम लेखक पनप नहीं सका और इसी कारण मुस्लिम मन मानस से जुड़े मुद्दो पर ज़बरदस्त कन्फ्यूज़न हे वही कन्फ्यूज़न ज़ाहिद साहब की बातो में दीखता हे ( सिख मुस्लिम कोई तुक ही नहीं बनता ) ज़ाहिद साहब आदमी अच्छे ही हे मगर ऐसा लेख शायद वो उर्दू अखबारों में छापने वाली रिपोटों से मुतासिर होकर लिख गए कुछ उर्दू अखबारों में ऐसी ही बेकार की बाते होती हे
माफ़ी चाहूंगा एक जगह गलत टाइप हो गया हे ऊपर ;; महाविद्वान ” शब्द मेने भालचंद्र नेमाडे जी के लिए प्रयोग किया था गलती से कही और पेस्ट हो गया
हयात भाई, कहावत है कि एक विधवा तो किसी तरह शान्ति से जिंदगी जी भी लेगी मगर आसपास के विधुर ऐसा होने नही देते (राँड तो रंडापा काट भी ले पर रँडुवे ऐसा होने नही देते)….हमारी हालत भी उसी विधवा जैसी है जिसे दूसरो की वजह से मूह खोलना पड जाता है:).
जाहिद साहब अगर अपने मजहब को दुनिया के सामने अमनपसंद साबित करना है तो अमन की परिभाषा आपकी नही बल्कि दुनिया वाली ही चलेगी !!
देश मे दूसरो के त्योहारो से दिक्कत…..
देश मे दूसरो के पूजा इबादत के तरीको पर आपत्ती…
देश के कानून की बजाय अपनी शरीयत की जिद…..
देश के बाकी धर्मो के साथ मिलजुल कर रहने मे समस्या…
देश के हर हिस्से मे हर मंच पर हर क्षेत्र मे मुसलमाओ के साथ नाइंसाफी का छाती-पीट स्यापा ??
हसन निसार, परवेज़ हूदबॉय, तारेक फ़तेह जैसे लोग. भारत मे भी मुजफ़्फ़र हुसैन, वहीउद्दीन ख़ान जैसे धर्म मे आस्था व्यक्त करने वाले सेकुलर और उदारवादी मुस्लिमो की भरमार है. जिनका उनके खुद के देशो के अलावा, पश्चिमी देशो के उदारवादी तबके मे बड़ी लोकप्रियता है. लेकिन इसके अतिरिक्त वफ़ा सुल्तान, रुश्दी, तस्लीमा जैसे मूर्तीद भी है, जो इस्लाम की बिना लाग-लपेट आलोचना करते हैं, उन्हे पश्चिम मे भाव मिला. एक वर्ग जावेद अख़्तर, नसिरुद्दीन शाह जैसे मुर्तिदो का भी है, जो इस्लाम या किसी अन्य मजहब मे अनास्था को किसी भी मंच पे स्वीकारने से नही डरते, लेकिन इस्लाम पे प्रहार नही करते, ऐसे लोगो की राय को भी सुर्खियाँ मिली. लेकिन हजारो मूर्तीद ऐसे हैं, जो गुमनामी मे है, जिन्हे उनका पडौसी तक नही जानता.
उनमे से कुछ इस विषय पे सक्रिय नही रहना चाहते, कुछ सक्रियता से डरते है.
पश्चिमी दुनिया, कुछ रुशदीयो या वफ़ा सुल्तानो को ही पनाह दे सकती है, जो बड़े लोग हो. बाकी आम मूर्तीद की जान की कोई सुरक्षा नही है. ऐसे लोगो को ब्लेस्फेमी के आरोप मे माईंडलेस उन्मादी भीड़ के हाथो अपनी जान गँवानी प़ड जाती है.
मेरा कहने का अर्थ यह है की हर लड़ाई के लिये बाहर से समर्थन मिल ही जाये, जरूरी नही. क्या पाकिस्तान या सौदी अरब मे इस्लाम मे यकीन ना रखने वाले, मुस्लिम अपना कोई छोटा सा भी संगठन बना सकते हैं?
अगर नही तो हम यह कैसे कह सकते हैं की यह काम आसान है. सिकंदर जी, आप जो राय रख रहे हैं, वो आप अफ़ग़ानिस्तान या पाकिस्तान जैसे कट्टरपंथि देशो मे भी थोड़ी बहुत कट्टरपंथि तत्वो की नाराजगी के साथ व्यक्त कर सकते हो. वहां सैकडो पत्रकार, मीडिया चैनलो पे आके कठमुल्लागिरि और यहाँ तक की टू नेशन थ्योरी के खिलाफ बोलते या लिखते मिल जाते हैं. लेकिन क्या वहां कोई रुश्दी या तस्लीमा की तरह बोल सकता है? यहाँ तक की रुश्दी और तस्लीमाओ को पश्चिम मे भी अंग-रक्षको के साथ रहना पड रहा है. पश्चिम मे अनेको लोगो ने इस्लाम की आलोचना की वजह से अपनी जान गंवा दी.
मेरा कहने का अर्थ यह है की तस्लीमा या वफ़ा सुल्तान भले ही सही ना हो, लेकिन वैसा होना नजम सेठी या हसन निसार होने से कई हजार गुना खतरनाक है. बाकी हसन निसार, हूदबॉय जैसे लोग (जो विशुद्द सेकुलर मुस्लिम है), को भी समर्थन मिल रहा है. आप अपनी कोशिस जारी रखिये, आशावाद बनाये रखिये. आप अकेले नही है.
में इस्लाम या किसी भी धर्म की आलोचना निंदा करने वालो के साथ नहीं हु ना में उन्हें महान समझता हु में तो मानता हु की इनके कारण शुद्ध सेकुलर लिबरल मुस्लिम वर्ग को ही बढ़ने में कठिनाइया आती हे धर्म नहीं तो संस्कर्ति नहीं संस्कर्ति नहीं तो केवल ”उपभोग संस्कर्ति ” बचती हे जो सामाजिक और प्राकर्तिक पर्यवरण का विनाश ही करती हे सच हे की पाकिस्तान में बहुत अच्छे विचारक हे लेकिन जाकिर भाई में पाकिस्तानियो की तो बात ही नहीं कर रहा हु में उनकी नहीं एक विशुद्ध सेकुलर लिबरल भारतीय मुस्लिम लेखक विचारको की बात कर रहा हु जो ना के बराबर हे क्यों हे ? वही बता रहा हु वहीदुद्दीन खान साहब बहुत ही अच्छे आदमी हे मगर वो एक धर्म प्रचारक अधिक हे विचारक नहीं जावेद अख्तर साहब नास्तिक हे में नास्तिको की नहीं शुद्ध सेकुलर मुस्लिम लेखक विचारको की बात कर रहा हु मुजफर हुसेन संघी साम्पर्दायिको से जुड़े रहे हे उनके लेख संघ के आलावा और कही नहीं दीखते हे उनके सेकुलर कैसे कहे – और बात केवल इस्लाम या मुसलमानो की ही नहीं हे और भी बहुत तार उलझे हे जो मेने ऊपर बताय ———- जारी
आपने लिखा ”पश्चिमी दुनिया, कुछ रुशदीयो या वफ़ा सुल्तानो को ही पनाह दे सकती है ” यही विडंबना बता रहा हु की मगरिबी दुनिया इन्हे तो बहुत देगी मगर मगर एक शुद्ध सेकुलर ( सेकुलर नोट नास्तिक ) लिबरल भारतीय मुस्लिमो को वो कोई खास नहीं सराहेंगे उन्हें पता हे की ये वर्ग बढ़ा भारतीय मुस्लिमो को लाइन पर ले आया तो पाकिस्तानियो की भी अक्ल ठिकाने आ जायेगी भारत पाक दोस्ती हो जायेगी और ये दोस्ती अमेरिका यूरोप चीन रूस अरब देश किसी के भी हित में नहीं होगी ———- जारी
तारेक फ़तेह, हसन निसार, नज़म सेठी, परवेज़ हूड़बॉय, जेमीमा ख़ान, वहिउद्दिन ख़ान कितने उदाहरण है, जिन्हे पश्चिम से भरपूर समर्थन मिला, क्या ये उदारवादी सेकुलर मुस्लिम नही है?
इस तरह के लोगो को जब तक ख्याति नही मिलती, ये पाकिस्तान या अफ़ग़ानिस्तान जैसी ख़तरनाक जगहो पे भी धीरे धीरे अपने प्रभाव को बढ़ाने की कोशिश करते रहते हैं.
लेकिन कल्पना कीजिए, तसलीमा या रुश्दी जैसी सोच वाले व्यक्ति की पाकिस्तान, सऊदी अरब जैसे देश मे, वो ना तो अपनी राय रख सकता, ना अपने जैसी सोच के व्यक्ति को अपने मुल्क मे ढूँढ कर संगठित प्रयास कर सकता है. पश्चिम की नज़र मे आने से पहले तो उसकी हत्या हो जाएगी.
उन लोगो की हालत यह है की वो मुसलमान नही है, लेकिन पूरी जिंदगी, ये बात किसी को बता नही सकते. उन्हे नास्तिक होकर भी, अपने को मुस्लिम बताना पड़ता है. कोई शक नही करे, इसके लिए नमाज़, रोजे भी रखने पड जाते है.
उनको समर्थन तो छोड़ो, उनकी हालत यह है की उनका जैसा व्यक्ति, उस मोहल्ले मे रह रहा हो, उसका पता तक नही कर सकते. अमेरिका या यूरोप से समर्थन तो दूर की बात है.
जिस मुनाफकत को ये इस्लाम का दुश्मन बताते हैं, इस आतंकवाद ने कितने मुनफिक पैदा किए हैं, इसकी गिनती ही नही की जा सकती. कैसे पता किया जाए की सऊदी अरब या अफ़ग़ानिस्तान मे कितने लोग दिल से इस्लाम मे यकीन रखते हैं? कैसे अमेरिका और यूरोप, इन देशो मे रह रहे रुश्दियो और तस्लिमाओ तक पहुचे, या कैसे तसलिमाए इन देशो से निकल कर, पश्चिम मे पनाह पाए?
रुश्दी, तसलिमाए जैसे लोग चंद खुशकिस्मत लोगो मे है. वरना ज़्यादातर तो पहली बार मुँह खोलते ही राजिब हैदर की तरह मार दिए जाते हैं, बाकी जिंदगी भर मुनफिक बन कर सरवाइव करते हैं.
देखिये मेने कहा न की पाकिस्तान की बात अलग हे वहा कटट्रपंथ बेकाबू हो चूका हे उसे काबू करना हे मगर उसे पूरी तरह खत्म भी नहीं करना हे इसलिए पाकिस्तानी लिबरल बुध्दजीवियो को पूरा सपोर्ट ,मिलेगा ताकि ऐसी हिंसा ना हो जिसमे वेस्ट का नुक्सान होखासकर जानी लेकिन भारत पाक दोस्ती महासंघ पाक के मुसलमानो पर नहीं भारत के मुस्लिमो के रवैये पर निर्भर हे क्योकि पाक के छोटे बड़े सभी मुस्लिम कटरपंथी मानते हे की मानो वो मदीने के मुस्लिम हो और भारत के मानो मक्का के मुस्लिम हो वो मानते हे की भारत के मुस्लिम हिन्दू कटटरपनीतियो के निचे बुरी तरह कुचले हुए हे और सारे मुस्लिमो को फिर से लाकिले पर कब्ज़ा करके हरा झंडा लहराना हे उनकी इस ग़लतफहमी को शुद्ध सेकुलर भारतीय मुस्लिम वर्ग ही दूर कर सकता हे उनकी आँखे खोल सकता हे मगर ये वर्ग हे ही नहीं जैसा की हमने देखा की तीन हज़ार से तीन हज़ार करोड़ के मालिक बने शाहरुख़ ने परेशान किये जाने का बयान दिया जिससे पाकिस्तानी कटटरपन्तियो ने हाथोहाथ लिया शाहरुख़ ने ये बयान इसलिए दिया की उन्हें हालात और मुद्दे समझने वाला कोई भी नहीं हे अंग्रेजी में भी नहीं बिलकुल नहीं हो भी तो ज़ज़्बा नहीं हे क्योकि सभी अंग्रेजी बुद्धजीवी शोषणरहित बैकगॉउन्ड से आते हे में जो वेस्ट की साइकि बता रहा हु इसका ये मतलब बिलकुल नहीं हे की में वेस्ट का या जनता के खिलाफ नहीं ये तो शोषणकारी निजाम हे जो अपने हित में बड़ी दूर की सोच रखता हे इसलिए एक शुद्ध सेकुलर मुस्लिम भारतीय बुध्दजीवी वर्ग का पनपना नहीं हो पाया इसके ये मतलब नहीं हे की में निराश हु या हताश हु नहीं हु में तो जनता को पुरे हालात समझा रहा हु ताकि कोई और नहीं मगर सिर्फ जनता तो कल को साथ दे — जारी
रश्दी तस्लीमा राजीब और पता नहीं कौन कौन इस्लाम पे हमला करते हे यही भूल हो जाती हे मुद्दा इस्लाम नहीं हे मुद्दा कटरपंथी कठमुल्ला हे ये ही लोगो को पागल बनाते हे नमाज़ कुरान हदीस पढ़ने से कोई कटटरपंथी नहीं बनता हे मेरी अम्मी ने पिछले पचास साल से एक भी दिन मिस नहीं किया होगा मगर वो तो शुद्ध लिबरल हे हमारी पांच बहने हे किसी को भी ही कैसा भी दबाव नहीं रहा मेरे दोस्त के माथे पर सज़दे का निशान वो भी शुद्ध लिबरल बहुत उदहारण हे . कटरपंथी हमेशा किसी ना किसी के उपदेशो से लोग बनते हे मुसलमान सबसे अच्छा हे शर्त ये हे की वो कटटरपन्तियो कठमुल्लाओं से दूर रहे जहा वो इनके चक्कर में पड़ा नहीं की वाही गड़बड़ शुरू हो जाती हे ———— जारी
हर व्यक्ति की सोच अलग होती है. आपकी नज़र मे क़ुरान या हदीसो की किसी हिंसक या असहिष्णु व्याख्या संभव नही. इसी प्रकार उसी क़ुरान और हदीसो को रट कर जाकिर नायक जैसे लोग टकराव पैदा करते हैं, और हज़ारो लोग अपनी जान को जोखिम मे डाल कर उनकी समझ का जिहाद कर रहे हैं.
उसी क़ुरान या हदीसो को राजिब हैदर और तसलिमाएँ आतंकवाद के मूल मे मानती है, और इन लोगो ने भी इस्लाम की वोही व्याख्या करी है, जो जाकिर नायक और उनके लोग करते हैं.
सवाल यह नही है की इनमे कौन सही है, सवाल यह है की क्या हम विभिन्न नज़रियो को व्यक्त करने की इजाज़त देते हैं, तो उत्तर है नही.
मेरा हमेशा से मानना है की भले ही रुश्दी, तसलीमा, अली सीना और वफ़ा सुल्तानो जैसे हज़ारो लोग इस्लाम का ग़लत अर्थ निकाल कर उसकी आलोचना करे, लेकिन उन्हे अपनी बात कहने का पूरा हक होना चाहिए. और अपने को उदारवादी कहने वाले आस्तिक का भी पूरा फर्ज़ है की वो उनके इस हक के लिए भी लड़े.
समस्या यह है की आप हो या मैं, या कोई ओर्, हर व्यक्ति यही मानता है की वो जो इस्लाम की व्याख्या करता है, सिर्फ़ वोही सही है. भले ही आप विभिन्न फिरको के बीच के झगड़े का विरोध करो, लेकिन ये सोच की हम ही इस्लाम को सही समझते है, बाकी उसके पक्ष मे बोलने वाले कट्टरपंथी, और उसकी आलोचना करने वाले दोनो ही मूर्ख है, और हम ही परम ज्ञानी है सोच ग़लत है.
राजिब हैदर ने अपनी बात लिखी, लेकिन उसने इस्लाम को मानने वालो की आज़ादी और अपनी आस्था का बचाव करने के अधिकार का समर्थन किया.
बात वैसे यहाँ से निकली थी की मुस्लिम देशो मे तसलीमा बनना आसान है या हसन निसार. मेरा मानना है की हसन निसार या परवेज़ हूड़बॉय बनने की लिए हिम्मत चाहिए, लेकिन राजिब हैदर बनने के लिए उससे कहीं अधिक हिम्मत. बाकी अमेरिका और यूरोप तो इनकी जान भी सलामत नही रख सकते, उनको बढ़ावा देना तो बहुत दूर की बात है.
और विशुद्ध लिबरल सेकुलर मुस्लिमो को भेी पश्चिम जगत से भरपूर समर्थन मिल रहा है. परवेज़ हूड़बॉय, पूरी दुनिया घूमते हैं. मलाला को नोबल दिया जा रहा है. यह कहना की उदारवादी सेकुलर गैर मुस्लिम तबके से सेकुलर मुस्लिमो को समर्थन नही मिल रहा, ग़लत है.
सेकुलर जगत अगर मुर्तिदो का सहयोग करता है तो सेकुलर आस्तीको का भी. सेकूलरिज़्म का आस्था या नास्तिकता से कोई लेना देना नही.
बिलकुल में भी किसी को भी मारने के हक़ में बिलकुल नहीं हु और जैसा की फरीद जकारिया आदि विद्वानो ने बताया की इस्लाम में ब्लासफेमी की या इस्लाम त्यागने की दुनिया में कोई सजा भी नहीं हे ये तो कुछ शेतानो ने हरकते की हे ये सबसे बड़े शैतान हे ये क्या करते हे की अपने बच्चो को पढ़ने लिखने मौज़ मज़े में लगाते हे दूसरे के बच्चो खासकर गरीबो के बच्चो को इस काम में लगाते हे की अला को मार दो फला को मार दो अल्लाह की कसम अगर कभी मेरे हाथ में हुआ तो उन लोगो को तो माफ़ कर दिया जाएगा जिन्होंने भड़काए में आकर किसी की जान ली या हमला किया उन्हें तो एक बार को छोड़ दिया जाएगा क्योकि ऐसे लोगो की जिंदगी पहले ही झंड हो चुकी होती हे लेकिन असल सजा उन्हें ढूंढ ढूंढ कर उन्हें दी जायेगी जो ”भड़काते हे फिर खिसक लेते हे ” पाकिस्तान में ऐसे कई इंसानी खाल में भेड़िये हे जैसे आमिर लियाकत ओरियमक़्बूल जान अंसार अब्बासी आदि इन्होने खुले आम सलमान तासीर की हत्या का समर्थन या बचाव किया था ऐसे ही कुछ करेक्टर हैदरबाद में तस्लीमा एक महिला पर हमला कर रहे थे और वीडियो में साफ़ दिख रहा था की ये तस्लीमा के इतने पास थे की चाहते तो उसका गला भी घोट सकते थे मगर ये चतुर ऐसा करके अपनी जिंदगी थोड़े ही बर्बाद करवाने वाले थे इन्हे तो सिर्फ ये दिखना था की देखो मुसलमानो हमने तुम्हारी रोटी कपडा माकन इन्साफ बिज़ली पानी सफाई की समस्या भले ही हल ना की हो ना करेंगे मगर तुम फिर भी हमें वोट दो देखो हम कितने महान हे और आगे बात रही धर्मग्रंथो की व्याखया की तो अगर दिल में खुदगर्ज़ी का या फिर ब्लासफेमी का मैल ना हो तो हम धर्मग्रंथो की सही और समयानुकूल व्याख्या कर सकते हे एक उदहारण देता हु की एक मुस्लिम डॉक्टर ब्लॉगर अपनी व्याख्या के आधार पर लिखते हे की कोई सच्चा मुस्लिम परिवार नियोजन नहीं कर सकता तो हमने इस्लाम की अपनी व्याख्या के आधार पर कई जगह उनकी बात काटी और वो हम पर कोई ब्लासफेमी का आरोप भी नहीं लगा पाये क्योकि हमने बगैर धर्मग्रंथो की बात नकारे ही बता दिया की परिवार नियोजन आज जरुरी क्यों हे ? इसी तरह देखे की ब्रिटेन में एक श्वेत आदमी 40 बच्चे पैदा कर चूका हे और कहता हे की बाइबल में परिवार नियोजन से मना किया गया गए यहाँ हम कहते हे की बिलकुल सही ऐसा ही करो क्योकि यहाँ आबादी की अधिकता हे तो श्वेत समाज की आबादी की घटोतरी का खतरा हे तो हम दोनों जगह सही व्यख्या के आधार पर एक जगह परिवार नियोजन करने को एक जगह ना करने को कह रहे हे आप सही व्यख्या कर सकते हे बस इरादा नेक होना चाहिए अगर इरादा ही धर्म का अपमान करने का हो या धर्म के आधार पर कोई सेल्फिश मकसद साधना का हो तो ऐसे लोग ही क्लेश करवाते हे —– जारि
देखिए, मैं तो हर सेकुलर, समन्वयवादी आस्तिक, नास्तिक सबके पक्ष मे हूँ. आप जिस शोषक और शोषित के नज़रिए से बात कर रहे हैं, उसकी लड़ाई मे नास्तिक लोग नही है, ऐसा नही है.
इसी पश्चिम और अमेरिका मे मार्टिन लूथर किंग जैसा नास्तिक पैदा हुआ, जिसने वंचित लोगो के लिए आवाज़ उठाई, तो अब्राहम लिंकन जैसा आस्तिक भी हुआ, जिसने भी ग़रीबो के दुख दर्द को समझा. साहिर लुधियानवी, कैफ़ी आज़मी जैसे मुर्तिदो ने अपनी नब्जों मे समाजवाद की वकालत करी, तो गाँधी जैसे आस्तिक ने नस्लवाद और पूंजीवादी शोषण के खिलाफ. इसलिए शोषण के खिलाफ लड़ाई सिर्फ़ मज़हब की वकालत करने के ज़रिए ही लड़ी जाती है, ज़रूरी नही.
आप यह भी देखिए की मज़हब की आलोचना पे हत्या करने वाले लोग उसी विचारधारा के होते हैं, जो मज़हब को शोषण का ढाल बनाती है. जैसे बांग्लादेश मे जमात ए इस्लामी, पाकिस्तान मे मुस्लिम लीग, सौदी अरब के वंशवादी शाशक. मज़हब मे भले ही अमन का पैगाम है, लेकिन उसकी आलोचना पे प्रतिबन्ध लगाके, हमने पहली महत्त्वपूर्ण सीढ़ी आतंकवाद की ओर चढ़ ली.
आतंकवाद क्या है. किसी को अपने विचार या असहमति व्यक्त नही करने देना, उसपे उसकी हत्या कर देना, क्या यह आतंकवाद नही है? इसके कई दूरगामी परिणाम है, लोगो की सोच को डर से पनपने नही देना, मनुष्य की रचनात्मकता और सृजनशीलता को रोकता है, यही कारण है की अकूत संपदा के धनी, अरब देश शिक्षा के क्षेत्र मे फिसड्डी हैं. क्यूंकी यहाँ दिमाग़ पे ताले लगा दिए गये हैं.
आपने खुद ने एक लेख फरीद ज़कारिया के हवाले से लिखा था, जिसमे ब्लेस्फेमी पे हत्या को गैर इस्लामिक बताया था. ये एक महत्वपूर्ण मसला है, और इस मुद्दे पे हमे सहिष्णु होना ही होगा.
आप चाहे तो मज़हब की सही व्याख्या कर सकते हे .जैसे मुंबई में मेरा दोस्त साइंटिस्ट वो शादी के बाद अब फ्लेट लेना चाहता हे तो उसके लिए वो लोन लेना चाहता हे तो अभी वो बता रहा था की कुछ कठमुल्ला उसे मना कर रहे हे की ब्याज हे लोन मत लो हराम हे मेने उससे कहा की धमका दिया कर ऐसे लोगो को तेरे जैसे हाई प्रोफाइल लोग भी इन्हे कुछ नहीं कहते इसलिए इन का हौसला बढ़ता हे और ये लोगो की जिंदगी खराब करते हे मेने उसे समझया की इन लोगो से कह की इस्लाम में ब्याज हराम हे तो क्या बात बस वाही बात खत्म हो गयी इसकी व्याख्या क्या हे ? इसकी व्याख्या ये हे की ब्याज मत लो बिना ब्याज के क़र्ज़ दो तो उन लोगो से कह की मुसलमानो में कही भी कही भी पैसे वालो लोगो की कोई कमी भी नहीं हे उनसे कह कर की मुझे तीस लाख का क़र्ज़ बिना ब्याज दिलवा दो में चुकाता रहूँगा नहीं लूंगा बैंक लोन नहीं दूंगा ब्याज चाहो तो गाव की जमीं और मकान भी गिरवी रख लो दिलवा दो मुझे पैसा ज़ाहिर हे ये कोई नहीं करने वाला ना करवा सकता सब अपने मतलब के यार हे यहाँ ये स्पष्ट कर दू की ऐसे ही कभी हमारी हालात खस्ता थी तो कोई हम दस हज़ार भी देना वाला नहीं था खेर लेकिन मेरे बड़े भाई ने दुबई में जॉब के बाद दो दो बहनो की शादी के बाद और बाकी भाई बहनो की पढ़ाई लिखाई पर लाखो खर्च के बाद भी अपने दोस्त को डेढ़ लाख क़र्ज़ दिया था जिसे वो बड़ी मुश्किल से दस साल बाद चूका पाया था इस दौरान दिल्ली में सम्पत्ति की कीमत 6 गुना बढ़ गयी मगर हमें मिले वाही डेढ़ के डेढ़ लाख वो भी आठ साल बाद वो भी कई किस्तों में————– जारी
एक चीज़ से मैं ज़रूर इत्तेफ़ाक रखूँगा की भले ही इस्लाम की आलोचना करने वालो का मकसद, मज़हबी कट्टरवादिता को कम करने का हो, लेकिन ज़्यादतर केसो मे ये कारगर सिद्ध नही होता, ऐसी स्थिति मे मौजूदा परिस्थिति मे मज़हबी मान्यताओ से आम दुनिया मे आ रही अड़चनो का हवाला, एक चिंतन उत्पन्न कर सकता है. जैसा आप बता रहे हैं. मुस्लिम समुदाय के बड़े हिस्से के दिमाग़ पे जंग लग गयी है, उसे हटाना ज़रूरी है.
आम मुसलमान की धार्मिक मसले पे ना विचारधारा होती है, ना ही नॉलेज. वो अपने आस पास के मौलाना, मौलवियो या तथाकथित आलीमो से कहे अनुसार चलता रहता है.
इस वजह से अधिकांश जगहो पे आलोचना, ना तो कोई बदलाव लाती है, साथ ही जीवन का ख़तरा भी पैदा हो जाता है, क्यूंकी इस्लाम की बेहद कम जानकारी रखने वाला मुस्लिम भी असहिष्णु रवैया रखता है. लेकिन दुनिया मे असहमति और आलोचना एक स्वाभाविक मानवीय गुण है, जो की जिंदा कौमो मे मिलती है, तो इस वजह से इस असहिष्णुता को मिटाना बेहद आवश्यक है.
चूँकि मैं आशावादी हूँ, मुझे लगता है की धार्मिक कट्टरता आने वाले कुछ समय मे भले ही अपनी ऊँचाई को छुए, लेकिन इनके दिन लद रहे हैं.
आलोचना, उस तबके से संवाद स्थापित करने का ज़रिया है, जिसे ग्रंथो की जानकारियाँ बहुत है, और वो शेष दुनिया के नैतिक मापदंडो पे अपने धर्म को खरा मानते हैं.
बाकी मैने ऐसे लोग भी देखे हैं, जिन्हे बतला दिया जाए की फलाँ फलाँ किताब आपको कुए मे कूदने के लिए कहती है तो वो उस किताब को ग़लत मानने की बजाय, कुए मे कूदना बेहतर मानते हैं. ऐसी स्थिति मे आलोचको द्वारा आतंकवाद की जड़ मे धार्मिक किताबो का हवाला देने से आतंकवाद बढ़ भी सकता है. जैसे की जाकिर नलायक जी के चेले-चपाटे हैं.
वैसे आलोचना का अर्थ, आस्था का अधिकार छीनना या नास्तिकता थोपना नही, बल्कि तथ्यो की निष्पक्ष पड़ताल की कवायद भी हो सकता है. किसी भी दृष्टिकोण पे प्रतिबंध, एक सड़ी गली परिपाटी के लिए ज़िम्मेदार हो सकता है.
कबीर ने भी कहा है की “निंदक नियरे राखिए, …………………”. मेरा तो मानना है की धर्म के आलोचक, उसी संप्रदाय की बेहतरी के लिए ज़रूरी है. इस्लाम के आलोचक, किसी ओर समुदाय को उतना अधिक लाभ नही पहुँचाएंगे, जितना मुस्लिम समुदाय को पहुचाएँगे.
आगे और इन विषयो पर बहस जारी रहेगी शुक्रिया जाकिर भाई
केवल इत्ना बताय कि हिन्दुस्तान मे हि हिन्दु – मुसल्मान कि बाते होति है बकि के पुरे विश्व मे जो मुस्लिमोन का विरोध है उस्के पिचे क्य करन है ?
बहुत सुंदर ।
डिबेट का स्टेंडर्ड बहुत अच्छा है ।
अंत मे मै सिर्फ यही कहना चाहता हूं कि अगर मुसलमान किसी और धर्म के व्यक्ति से पहले मुसलमानो के अवैध कार्यो की भर्त्सना कर दें तो यह कठमुल्लो का खेल ढीला पड जाएगा । यही सभी धर्मो मे होना चाहिए । पहली चोरी पर सजा मिले तो अगली नही होगी। अगर पहली नजरअंदाज कर दी तो चोर बनना पक्का है।
शुक्रिया और गुप्ता जी आपका इस साइट पर बहुत बहुत स्वागत हे आगे भी आते और लिखते रहिये
Zahid Baig , Khategaon, India
28 September 2017 ·
दुनिया के सभी धर्म श्रेष्ठ हैं और अपने ग्रंथों में समस्त मानवता के लिए करुणा और प्रेम का सन्देश देते हैं। लेकिन इन धर्म ग्रंथों को आम तौर पर कोई अन्य धर्मावलम्बी नहीं पढ़ता। वो इनके अनुयायियों को देखता है और उस धर्म के बारे में, उसके दूतों, अवतारों और पैगंबरों के बारे में अपनी राय क़ायम करता है। दोस्तों मेरा अपना अनुभव और मानना है की इस मामले में सिख धर्म के अनुयायी अन्य धर्मों के अनुयायियों से बेहतर सिद्ध हुए हैं। पंद्रहवीं शताब्दी में गुरु नानक देव जी द्वारा सिखी की स्थापना से ही सिखों ने सम्पूर्ण मानवता की सेवा, और राष्ट्रप्रेम के अनुपम प्रतिमान स्थापित किये हैं। यध्यपि अपने धर्म की स्थापना से ही उन्होंने ज़ुल्म/ज़्यादती और अत्याचार का दंश झेला है।
शुरुआत में मुगलों ने अपने राजनैतिक मक़सद के लिए उनका दमन किया। पार्टीशन के समय भी सबसे ज़्यादा हिंसा उन्ही के ख़िलाफ़ हुई। इंदिरा जी की हत्या से उपजे आक्रोश के फलस्वरूप उन्हें जान और माल का अपूरणीय नुक्सान हुआ। पर सलाम इस क़ौम को की उनके दिल में किसी धर्म के प्रति कटुता स्थायी रूप से जग़ह नहीं बना पाई।
व्यक्तिगत तौर पर आप किसी भी सिख से मिलिए उसकी गर्मजोशी और मृदु व्यवहार आपको इस क़ौम का क़ायल बना देगा। अपने गुरुओं की सीख को उन्होंने पूरी तरह आत्मसात किया हुआ है। खालसा एड इंटरनेशनल के सेवा कार्यों के बारे में तो अब लगभग सारी दुनिया जान ही चुकी है। आप दुनिया के किसी भी गुरूद्वारे में चले जाइये वहाँ का आत्मीय माहौल, सेवा की परम्परा और हर मज़हब के दर्शनार्थियों के लिए निरंतर चलते लंगर आपको अपना मुरीद बना लेंगे। जब तक आप दर्शन कर के बाहरआएंगे सेवादार आपके जूते चमका देंगे, आपको पता भी नहीं चलेगा की आपके जूते चमकाने वाला कौन है? हो सकता है की वो अब्रॉड का कोई अरबपति सिख हो।
मेरा सौभाग्य रहा है की मुझे हरमिंदर साहिब से लेकर हिंदी बेल्ट के अधिकाँश गुरुद्वारों में गुरुग्रंथ साहिब का दर्शन करने और उसका पाठ सुनने का शर्फ़ हासिल हुआ है। मैं जहाँ भी पर्यटन के लिए गया अगर वहाँ गुरुद्वारा है तो मेरे क़दम बेखुदी में उस और उठ ही गए। यूँ कहिये साहिबान की गुरूद्वारे मुझे अपनी ओर खींचते हैं। एक मुख़्तसर सा मेरा यात्रा वृतांत आपसे शेयर कर रहा हूँ –
जनवरी २०१० में इंदौर से सपरिवार अमृतसर,दिल्ली , आगरा,फतेहपुर सीकरी के लिए निकला। इंदौरसे पहला पड़ाव अमृतसर था। लगभग शाम के ५ बजे ट्रेन इंदौर से निकली। हमारे कूपे में सामने वाली बर्थ पर एक छोटा सा सिख परिवार बैठा था । माँ , उनका नौजवान बेटा और एक किशोरवय बेटी। उनके पिता और चाचा पकिस्तान से लरकाना साहिब में मत्था टेक कर ३ दिन बाद आने वाले थे उन्हें रिसीव करने वो अमृतसर जा रहे थे। बहुत सम्पन्न परिवार था। जैसा की अमूमन ट्रेन यात्राओं में होता है परिचय की शुरुआत आप कहाँ जा रहे हैं से हुई। जैसे ही उन्हें पता चला की हम मुस्लिम हैं और हरमिंदर साहिब दर्शन के लिए जा रहे हैं वो इतने प्रसन्न और अभिभूत हुए की उसको बयाँ करना मुश्किल है। पंजाबी अपने खाने/खिलाने के शौक के लिए पूरी दुनिया में मशहूर हैं आप यक़ीन नहीं करेंगे दोस्तों अमृतसर तक लगभग ३५ घंटों के सफर में उन्होंने हमे ३५ रूपये भी खर्च नहीं करने दिए। इतना और इतनी तरह का खाना ले कर वो चले थे की पुरे सफर के दौरान हम अपना खाना निकाल ही नहीं पाए। यही नहीं अपने परिजनों के लिए स्वर्णमंदिर परिसर के बाहर ट्रस्ट की धर्मशाला में आरक्षित ए सी कक्ष २४ घंटे के लिए हमें उपलब्ध करा दिए। अपने साथ हरमिंदर साहिब के दर्शन कराये और बाघा बार्डर ले कर गए। आज इस पोस्ट के माध्यम से मैं अपने परिवार की ज़ानिब से उस ज़िंदादिल परिवार के प्रति कृतग्यता ज्ञापित करता हूँ।
सिखी की सर्वोच्च परम्परा का एक उदाहरण और – दूसरे दिन हम स्वर्ण मंदिर परिसर में शाम को टहल रहे थे। मग़रिब की नमाज़ का वक़्त हो गया था। मैं बच्चों से थोड़ा दूर आ गया था। ज़ीशान ने मुझ से आ कर कहा-“डैडी मम्मी नमाज़ पढ़ने का बोल रही हैं। ” मैंने कहा-” ठीक है परिसर के बाहर चलते हैं।” तब तक आरिफ़ा भी आ गईं थीं। बोलीं- इतनी भीड़ है बाहर निकलने में और कमरे तक पहुँचने में एक घंटे से ज़्यादा वक़्त लग जायगा और नमाज़ कज़ा हो जायगी। ” अब में सकपकाया मुझे पता था की उन्होंने शादी के बाद अब तक शायद एक नमाज़ भी नहीं छोड़ी थी। बोलीं -“यहीं कही पढ़ लें। ” अब मैं सिखों और हमारा रक्त-रंजित इतिहास जानता था। यधपि यह भी जानता था की 1588 में गुरु अर्जन साहिब ने लाहौर के एक मुस्लिम फ़क़ीर(सूफी संत) हजरत मियां मीर जी से हर मिन्दर साहिब की नींव रखवाई थी पर यह भी सत्य है की पिछले ४२२ सालों में पंजाब की पांचो नदियों में दोनों कौमो का बहुत रक्त बह चूका था। घर से २००० किलोमीटर दूर हजारों सिखों के बीच उनके सबसे पवित्र धर्म-स्थल पर बीबी-बच्चों को नमाज़ पढ़ने का कहने की मेरी हिम्मत नहीं हुई। शायद पढ़ा-लिखा होना इंसान को पूर्वाग्रही भी बना देता है। हमारी इस उहा-पोह को वहाँ से गुजर रहे सेवादार ने ताड़ लिया हिंदी मिश्रित गुरुमुखी में बोले -“बोले क्या बात है ?” मेरे कुछ बोलने के पहले ही ज़ेनिफ़र ने उन्हें सारा माज़रा कह सुनाया।
दिल और दिमाग़ को सिखी की महान शिक्षाओं से रोशन कर लीजिये साहेबान । वो निहंग सेवादार मुस्कराये और बोले-” तो इसमें क्या दिक़्क़त है?” फिर क्या था पवित्र सरोवर मेरे परिवार के लिए वज़ुख़ाना बन गया. सेवादार ने भीड़ को एक तरफ़ किया। दिशा भ्रम होने के कारण हमें बताया की मग़रिब किस तरफ़ है। अपने उत्तरीय को पवित्र सरोवर में डुबो कर नमाज़ पढ़ने के स्थान को पोंछा , जब तक बच्चे नमाज़ पढ़ते रहे वो अपनी नीली ड्रेस में चार फ़ीट लम्बी तलवार क़मर से लटकाये वहाँ खड़े रहकर नमाज़ियों के सामने से लोगों को निकलने से रोके रहा। जरा तसव्वुर कीजिये मित्रों दुनिया के सबसे पवित्र सिख धर्मस्थल पर हज़ारों सिखों के बीच में मेरा परिवार हरमिंदर साहिब में अपने रब की बारगाह में सज़दा कर रहा था।
ज़ीशान के सर पर टोपी के स्थान पर अकाल तख़्त के प्रतीक वाला भगवा सिरोपा (रुमाला) बंधा हुआ था। निहंग उनके एहतराम में तलवार बांधे खड़ा था। यह एक कल्पनातीत दृश्य था। जिसका चित्रण करना नामुमकिन है। जो संवेदनशील होंगे उन्हें दिख रहा होगा की इन नमाज़ियों, उस निहंग और वहाँ से ख़ामोशी से गुज़र रहे दर्शनार्थियों पर अल्लाह की रहमत के साथ-साथ तमाम गुरुओं और मियां मीर का आशीर्वाद भी बरस रहा था। बच्चों की नमाज़ के बाद मैंने अपनी भीग आई आँखों की कौर को पोंछा और उस मोहब्बत के फ़रिश्ते से मुसाफ़ा( दोनों हाथ मिलाना )कर उसका शुक्रिया अदा किया। वो ‘कोई नी जी कोई नी’ कहता हुआ खरामा-खरामा अपने काम में लग गया। हम भी मोहब्बत और सर्वधर्म-समभाव का एक अमिट पाठ अपने ह्रदय पर अंकित कर वहाँ से रुखसत हुए।
सतश्री अकाल दोस्तों।
हरमिंदर साहिब में हमारे साथ हमारे सिख मित्र का परिवार – शुक्रिया दार जी। वाहे गुरु जी दा खालसा-वाहे गुरु दी फ़तह।Zahid Baig
2 September 2017 ·
ईदुज़्ज़ुहा की नमाज़ पढ़ कर बदस्तूर कब्रिस्तान में अपने अज़दादों (बुज़ुर्गों) की क़ब्र पर फ़ातहा पढ़ कर घर लौट रहे थे। मस्जिद के मोड़ पर ही नगर और क्षेत्र की मशहूर और मारूफ़ शख़्सियत सर्वधर्म-समभाव के प्रतीक आयुर्वेदाचार्य पंडित विश्वनाथ जी शर्मा का निवास है। पिछले ४० सालों से पहले अपने वालिद मरहूम मिर्ज़ा हामिद बेग़ और बाद में अपने बड़े भाई मरहूम मिर्ज़ा वाज़िद बेग़ के साथ दोनों ईदों पर पंडित जी का आशीर्वाद लेता आया हूँ। पंडित जी हमेशा से ही ईद के दिन अपने घर के बाहर कुर्सी लगा कर बैठ जाते और नमाज़ पढ़ कर निकलने वाले हर मुस्लिम का इत्र लगा कर यथायोग्य स्वागत/सत्कार और दुआएं देकर बड़े खुलूस और मोहब्बत से इस्तकबाल करते रहे हैं। बस यह समझ लीजिये की हम खातेगांव के मुस्लिमों की ईद उनसे गले मिले या उनके चरण-स्पर्श किये बिना मुक़म्मल नहीं होती थी। आदत के मुताबिक जब आज उनकी कुर्सी खाली देखी तो एक धक्का सा लगा। पता चला की पंडित जी बहुत बीमार हैं चलने-फिरने से माज़ूर हैं और आजकल अपने निवास की पहली मंज़िल पर ही सिमट जाने को बाध्य हैं। अब बताओ दोस्तों उनसे आशीर्वाद लिए बिना कैसे ईद मनती ? मेरे साथ क्षेत्र के जाने-माने व्हालीबॉल खिलाडी सैयद मुर्तुजा हुसैन भी थे। हम सीढ़ियां चढ़कर ऊपर गए तो देखा की पंडित जी पलंग पर बैठे हुए थे , इत्र की शीशी उनके सिरहाने रखी हुई थी जो इस बात का प्रतीक थी की उन्हें पक्का भरोसा था की नमाज़ी उनसे ईद मिलने जरूर आएंगे। उनसे मिलने सीढ़ियां चढ़ते-उतरते लोग इस बात के गवाह थे की मुस्लिमों ने उनके भरोसे को नहीं तोड़ा। मैंने भी मुर्तुज़ा के साथ उनके चरण छूकर उनका आशीर्वाद ग्रहण किया और उनकी लम्बी उम्र और तंदरुस्ती की दुआ की। दोस्तों उम्र के आखिरी पड़ाव पर बैठे बुज़ुर्गों को जब प्यार मिलता है तो वो भावुक हो जाते हैं। मैंने जब उनसे बात की तो उनके आंसू नहीं रुक पाए अतीत को याद कर वो भावविव्हल हो गए। इस उम्र में भी उन्हें देश और नगर की गंगा जमुनी तहज़ीब को बचाने की फ़िक़्र थी। हमने उन्हें आश्वस्त किया की पंडित जी जब तक आप जैसे सनातन धर्म का पालन करने वाले लोग इस देश में मौज़ूद हैं (अल्लाह का शुक़्र है की वो हमेशा बहुमत में रहे हैं) इस देश की संस्कृति और भाई-चारे की पवित्र भावना अक्षुण्ण रहेगी। इस बार पंडित विश्वनाथ जी शर्मा जैसे करोड़ों लोगों के हवाले से आप सब को ईदुज़्ज़ुहा की दिली मुबारक़ बाद।
Ripost
Pankaj Chaturvedi added 2 new photos.
11 hrs ·
गुरु नानक देव भी काहिरा , मिस्र आये थे लेकिन आज उनकी स्मृति के कोई निशाँ नहीं हैं, सन 1519 में कर्बला, अजारा होते हुए नानक जी कैकई नामक आधुनिक शहर में रुके थे, यह मिस्र का आज का काहिरा या कायरो ही है, उस समय यहाँ का राजा सुल्तान माहिरी करू था, जो खुद गुरु जी से मिलने आया था और उन्हें अपने महल में ठहराया था, पहले विश्व युध्ध में लड़ने गयी भारतीय फौज कि सिख रेजिमेंट के २० सैनिक उस स्थान अपर गए भी थे जहां गुरु महाराज ठहरे थे,
कहते हैं कि यह स्थान आज के मशहूर पर्यटन स्थल सीटादेल के करीब मुहम्मद अली मस्जिद के पास कहीं राज महल में है, इस महल को सुरक्षा की द्रष्टि से आम लोगों के लिए बंद किया हुआ है, इसमें एक चबूतरा है जिसे – अल-वाली-नानक कहते हैं, यहीं पर गुरु नानक ने अरबी में कीर्तन और प्रवचन किया था .
यह स्थान देख नहीं पाया . काश भारत सर्कार इजिप्त सरकार से बात कर इसे सिखों के पवित्र स्थल के रूप में स्थापित करने के लिए कार्यवाही करें .
परसों एक युवा मिलने आया, उसमे बताया कि उसके परबाबा सिख थे- सात फुट लम्बे- उसके बाद उनके बाबा ने इस्लाम कबूल कर लिया था लेकिन वः युवा कही से भी अरबी नहीं दिखता था- लगता था भारत पकिस्तान के पंजाब इलाके का हो . वैसे आश्चर्य लगा कि दस दिन में एक भी सिख यहाँ नहीं दिखा
पहला फोटो चबूतरा नानक वली का है जो कि सन १९२५ के आसपास एक सिख यात्री ने बनाया था . दुस्ता सिटाडेल हैPankaj Chaturvedi
https://www.youtube.com/watch?v=obTBOdq6goA
Mahfooz Ali
7 February ·
अच्छा! सिख धर्म एक ऐसा धर्म है जो कभी भी किसी इंसान से उसका धर्म और ज़ात नहीं पूछता… सिख धर्म के मानव सेवा भाव ने मुझे बहुत आकर्षित किया है… मेरा जब एक्सीडेंट हुआ था तो जिस गाँव में मेरा एक्सीडेंट हुआ था उस गाँव के हर गुरुद्वारे में मेरे नाम का अरदास चल रहा था… जब मुझे पी.जी.आई. में ब्लड की ज़रूरत थी तो कई सरदार ब्लड देने के लिए तैयार खड़े थे… और मुझे ब्लड दिया भी सरदारों ने… वो भी यह कह कर कि “तुस्सी टेंशन न लो जी”. अगर कभी धर्म चुनने की नौबत आई तो पब्लिकली सिख धर्म ही चुनुँगा… सही मायने में देखा जाए तो सिख धर्म नहीं पंथ है… मानव सेवा जिसका बेस है… सिख धर्म ही ऐसा धर्म है जिसमे कोई किस्सा-कहानी नहीं है… सिर्फ एक ईश्वर (परमात्मा) का ज़िक्र है… उस ईश्वर तक पहुँचने का रास्ता गुरु ने बताया है. गुरु वाणी ही सब कुछ है. चंडीगढ़ पी.जी.आई. में सिखों को अनजान मरीजों की सेवा करते देख मैंने भी यही डीसाइड किया है कि पूरी तरह से ठीक हो जाने पर हफ्ते में दो दिन किसी भी हॉस्पिटल में जा कर मरीजों की सेवा करूँगा… आज यहाँ पटियाला में ऐसे ही कुछ सरदार मित्रों ने मुझे पगड़ी पहना कर बिना दाढ़ी-मूंछ का सरदार बना दिया… जिसकी फोटो बिना शेयर किये नहीं रह सका…
अच्छा! चलते चलते बताता चलूँ कि लुक्स बहुत मायने रखते हैं इसलिए चालीस की उम्र के बाद हमें अपनी एक ऐसी तस्वीर ज़रूर खिंचवा कर रख लेनी चाहिए जिसे हमारे नाति-पोते या घरवाले दीवारों पर माला डाल कर टाँगने में शर्म न महसूस करें…Mahfooz Ali
https://www.ndtv.com/india-news/sikh-police-officer-saving-muslim-man-from-mob-is-hero-on-social-media-1857389
सुनील यादव
5 hrs ·
नाम: सरदार गगनदीप सिंह
पद: सब इंस्पेक्टर
संदर्भ: दो दिन पहले एक युवक को मॉब लिंचिंग का शिकार होने से बचाया
दो दिन पहले नैनीताल के गिरजा देवी मंदिर में यह युवक अपनी महिला साथी के साथ गया हुआ था! जैसे ही कुछ लोगों को पता चला कि युवक मुस्लिम है और युवती हिन्दू, लव जिहाद का रंग देकर भीड़ उस युवक को मारने के लिए हिंसक हो गयी. कुछ तो नफ़रत में युवती को भी मार डालना चाहते थे!
उस वक्त मंदिर में तैनात सब-इंस्पेक्टर गगनदीप सिंह बिना डरे, बिना अपनी जान की परवाह किये, युवक को उन्मादी भीड़ से बचाया. भीड़ के उस गुस्से में गगनदीप भी लपेटे में आ सकता था! भीड़ में से एक उन्मादी ने युवक के ऊपर शक करते हुए कई बार बोला कि “ID दिखाओ, ID”! समझिये कि ID किस सोच के तहत माँग रहा होगा वो व्यक्ति! भीड़ से एक और आवाज़ (गगनदीप के लिए) आयी कि “किस बात का प्यार दिखा रहे हो आप इसपे?” भीड़ में से कई उसे अंदर ही बिठाने की बात कर रहे थे! गगनदीप ने युवक को अपने सीने से चिपकाए रखा और युवक भी गगनदीप के सीने पे दुबका रहा फिर भी भीड़ ने कई थप्पड़ लगा दिया!
मुसलमानों के विरुद्ध ये ये उन्माद कहाँ से बढ़ा है ज़रा सोचियेगा! गगनदीप सिंह को सलाम पहुँचे कि वो इस सांप्रदायिक माहौल में लाखों लोगों के लिए एक जज़्बा
बनकर उभरे हैं! हजारों सांप्रदायिक सनकियों पर अकेला गगनदीप भारी पड़ा!
वाया- Tara ji
कवड़ियों का कार से तोड़फोड़: सिख ने कांवड़ियों से बचाया महिला को
अमनदीप सिंह, नवभारत टाइम्स | Updated:Aug 9, 2018, 09:02AM IST
TimesPoints
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कांवड़ियों ने कार तहस-नहस कर दी
हाइलाइट्स
कांवड़ियों के मोती बाग में महिला की कार पलटने पर वहां मौजूद एक सिख ने महिला को चले जाने के लिए कहा
प्रत्यक्षदर्शी ने बताया, ‘कांवड़िए मुझे देखकर कह रहे थे कि सरदार ने औरत को भगा दिया’
घटना के वक्त मौजूद रहे शख्स का कहना है कि वह 100 फीसदी विश्वास से नहीं कह सकते कि कार कांवड़िए से टच हुई थी
कार में महिला थी और पीछे एक स्कूल बैग भी था, पुलिस ने अपनी तरफ से कोई कोशिश नहीं की
नई दिल्ली
मोतीनगर में मंगलवार को कांवड़ियों के हंगामे की घटना के बारे में पता चला है कि वहां मौजूद एक सिख युवक की समझदारी से बात ज्यादा बिगड़ने से बच गई थी। इस शख्स ने पहचान छिपाने की शर्त पर बताया कि वहां क्या-क्या हुआ था। किस तरह उसने कार में मौजूद महिला से तुरंत निकल जाने का आग्रह कर उन्हें बचाया।
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शिव भ्कत है या गुंडे मे भी शिव भ्कत हु लेकिन आप भ्कती के नाम पर आम जनता को क्य परेशान करते हो बीच रोड मे छलकर , मोटर साइकल दौड़कार , रॉंग साइड से कल तीन ट्र्क एक साथ दिल्ली गुरुग…+
Praveen Chauhan
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इसके लिए युवक को कांवड़ियों का गुस्सा भी झेलना पड़ा। एनबीटी ने उस दौरान कार चला रही युवती की दोस्त से भी बात की, जिसने पुलिस के इस बयान को गलत बताया कि कार ने पहले कांवड़िये को टक्कर मारी, फिर कांवड़िये को थप्पड़ भी मारा गया। इधर, पुलिस ने अज्ञात कांवड़ियों के खिलाफ रास्ता रोकने और गाड़ी को नुकसान पहुंचाने की धाराओं में FIR दर्ज की है।
पढे़ं: पुलिस के सामने कांवड़ियों ने पहले डंडे से तोड़ी और फिर पलट दी कार
गगनदीप सिंह (बदला नाम) ने कहा,’ कहां है वो औरत…कहां है वो औरत, ढूंढो उसे… कांवड़िए लगातार कह रहे थे।’ यहां जिस कार पर कांवड़ियों के हमले के विडियो वायरल हो रहे हैं उसे एक युवती चला रही थी। जब उन्होंने कार पर बुरी तरह हमला किया तो वह युवती जान बचाने के लिए भाग गई थी। इस गुस्से भरी भीड़ से युवती को बचाने में हादसे के चश्मदीद सिख युवक ने अहम भूमिका निभाई।
गगनदीप सिंह (बदला हुआ नाम) ने बताया कि उनकी कार महिला की कार के पीछे थी। यह 100 पर्सेंट नहीं बता सकता कि कार टच हुई उसके बाद जल गिरा या नहीं। उन्होंने कहा, ‘बहस के बाद जब उन्होंने देखा कि एक कांवड़िए + ने महिला की कार के बोनट पर हाथ मारा तो वह बाहर निकलकर मदद करने के लिए आगे आए। तभी, एक नहीं, पीछे और आगे से कई कांवड़िए आ गए। सभी के हाथ में या तो हॉकी थी या तो बेसबॉल बैट। उन लोगों ने हंगामा करना शुरू कर दिया।’
group of kanwariyas vandalise a car in delhi near moti nagar metro station
पुलिसवाले देखते रहे, कांवड़िए कार तोड़ते रहे
सिंह ने बताया कि मामले को उग्र होता देख मैंने ही महिला से आग्रह किया कि वह यहां से निकल जाए। महिला काफी घबरा गई थीं। उन्होंने मेरी बात मान ली और वहां से निकल गईं। इसके बाद देखते-देखते माहौल ऐसा बन गया जो सभी ने विडियो के जरिए देखा ही होगा। सिंह ने बताया कि कार में महिला का पर्स छूट गया था जो उन्होंने पुलिसवाले को दे दिया। वहीं बैक सीट पर एक स्कूल बैग भी पड़ा हुआ था।
सिंह ने बताया, जब मैं मदद के लिए आगे बढ़ा तो कई लोगों ने बीच-बचाव करने पर मना किया। मैंने वही किया जो एक सिख को करना चाहिए।ट सिंह ने बताया का आखिर में ऐसे हालात हो गए थे कि वह लोग कहने लगे ‘सरदार ने महिला को भगा दिया।’ यह सुनकर काफी अजीब लगा। सभी कांवड़िए बौखलाए और कुछ तो मारपीट पर उतारू इधर-उधर घूम रहे थे। पुलिस + भी आई, लेकिन उनकी एक नहीं चली। वे सभी पुलिसवालों के सामने कार को बुरी तरह तोड़ते रहे।