दिनांक 24 सितंबर को अबू बकर अल-बगदादी के नाम, दुनिया भर से 120 से अधिक मुस्लिम उलेमा के एक खुले पत्र में जो इस वेबसाइट पर प्रकाशित किया गया था, निम्नलिखित लिंक के अनुसार आइसिस प्रमुख पर निम्नलिखित आरोप लगाए गए हैं :
आयत 21: 107 व्याख्या में विकृत। ” और हम ने आप को सभी संसार वालों के लिए रहमत बनाकर ही भेजा है ”, ‘हम ने आप को दुनिया के लिए रहमत बनाकर (तलवार के साथ) भेजा है। ”
हजारों कैदियों की हत्या करना।
अल-ज़ोर में 600 निहत्थे कैदियों की हत्या करना।
चर्चों को नष्ट और ईसाइयों के घरों और संपत्ति की लूट कर रना।
कुछ ईसाई नागरिकों की हत्या और कई दूसरों को अपने घरों से शरीर पर सिर्फ एक कपड़े के साथ अपना जीवन बचाकर भागने पर मजबूर ना।
जिहाद के नाम पर यज़ीदयों से लड़ना, जबकि वह न तो उनसे और न ही मुसलमानों से लड़ाई कर रहे हैं।
यज़ीदयों को इस्लाम स्वीकार करने या मर जाने पर मजबूर ना।
सैकड़ों यज़ीदयों को मारकर उन्हें सामूहिक कब्रों में दफ़न करना।
अगर अमेरिका और क़र्दिस्तान हस्तक्षेप नहीं करता तो उनके दसियों हजार पुरुष, महिलाएं, बच्चे और बूढ़े मार दिए गए होते।
वे छोटे-बड़े सभी मामलों में हर व्यक्ति को अपने आज्ञापालन के लिए मजबूर कर रहे हैं यहां तक कि इन मामलों में भी, जो केवल बन्दे और खुदा के बीच हैं।
वह बच्चों को युद्ध और हत्या में शामिल कर रहे हैं। कुछ लोग हथियार उठा रहे हैं और अपने दुश्मन के सिर से खेल रहे हैं।
” क़यूद व शरायत की अनदेखी करते हुए वे शरई सीमाओं को लागू कर रहे हैं और मामूली अपराधों पर भी सीमाओं का उल्लंघन कर रहे हैं जो कि कुरान और शरई कानून के खिलाफ है।
(प्रत्यक्षदर्शियों और अपने दावों के अनुसार) वह मारपीट, हत्या, जीवित दफन कर और सिर कलम कर लोगों पर हिंसा कर रहे हैं और उन्हें आतंकित कर रहे हैं।
उन्होंने केवल लाशों को विकृत हही नहीं किया, बल्कि उनके सिर को सलाखों पर उठाया और उनके कटे हुए सिर पर गेंद की तरह पैर मारी और विश्व कप के दौरान उन्हें पूरी दुनिया में प्रसारित किया।
वह लाशों और सरों का मजाक बना रहे हैं और शाम में अपने सैनिक अड्डों से इन भयानक घटनाओं को प्रसारित कर रहे हैं।
उत्तरी पूर्वी सीरिया में 17 वीं डिवीजन के सीरियाई सैनिकों को कांटेदार तार से बांध रहे हैं, उनमें से किसी का सिर काट रहे हैं और इंटरनेट पर अपने वीडियो प्रकाशित कर रहे हैं।
लिंक:
http://www.newageislam.com/books-and-documents/muslim-scholars-from-all-over-the-world/full-text-of-muslim-theologians–open-letter-to-abu-bakr-al-baghdadi,-refuting-his-ideology-of-jihad-that-justifies-killings-of-innocent-civilians,-muslims-and-non-muslims/d/99389
आई एस आई एस के नाम पत्र जारी करने वाले सभी उलेमा इस बात पर सर्वसम्मति है कि इस्लाम के नाम पर अंजाम दिए गए उपरोक्त सभी अपराधों कुरानी एह्केमात से पूरी तरह अलग हैं। मुख्तसर मुद्दत की खिलाफत राशदा (632-660ई सवी) से, उनके जैसा होने की तो बात ही छोड़ दें, जिसने एक महान सामाजिक और विचारों की क्रांति ला कर दिया था, आई एस आई एस एक आतंकवादी संगठन है जिसने इराक में अमेरिकी हमले के बाद जन्म राजनीतिक खोला को इराक और उससे मिले क्षेत्रों में एक भौगोलिक पहचान हासिल किया है। व्यापक ऐतिहासिक दृष्टि से यह एक गलत आधार पर एक सुन्नी बहुल देश के खिलाफ एक विनाशकारी अमेरिकी युद्ध के खिलाफ कट्टरपंथियों, सुन्नी जांगजू गुटों की एक खूनी प्रतिक्रिया है। इसलिए अब यह बात स्पष्ट हो जाना चाहिए कि इस दानव की तथाकथित सफलताओं से इस्लाम का कोई संबंध नहीं है, यह विशुद्ध हाल के इतिहास की पैदावार है – यानी यह एक निष्पक्ष और साफ युद्ध के विनाशकारी प्रभाव हैं।
इस लेख का उद्देश्य इस बात की घोषणा करना है कि खलीफा हजरत अली के नज़रियात पर आधारित इस्लाम में विश्वास रखने के अपने दावे को आई एस आई एस ने झुठला दिया है। इस दौर में एक वहशी और कट्टरपंथी समुदाय का जन्म हुआ था जिसने “ख़लीफ़ा के खिलाफ तलवार उठाई और उनके रक्त और उनके धन को वैध करार दिया और मुशारीकों के बच्चों और उनके माता पिता और दुनिया के सभी गैर मुसलमानों की हत्या को जायेज़ क़रार दिया, [1] जिसकी वजह से “इस्लाम की पहली तीन सदियों में खून की नदियां बहीं” [2]। ख़लीफ़ा हज़रत अली ने उनकी तुलना पागल कुत्तों के साथ किया और उन्हें खावारिज (जो इस्लाम के अपने दावे में झूठा साबित हो गया हो) बताया। ऐतिहासिक रूप से आई एस आई एस ने इस समुदाय के आतंकवादी विचारधारा को अपनाया है, इसलिए वह इस बात का सज़ावार है कि उसके साथ भी ऐसा ही व्यवहार किया जाए।
हम इस बात से सहमत है कि किसी भी व्यक्ति के लिए किसी मुसलमान के कलमा शहादत के औचित्य (जवाज़) को समाप्त करना संभव नहीं है, यद्यपि वह कुरान के एह्केमात के इनकार में या मानवता के खिलाफ अपराधों के लिए प्रतिबद्ध और गंभीर क्यों न हो। लेकिन एक युवा मुस्लिम समुदाय के नेता के रूप में अपने व्यक्तिगत अधिकार के आधार पर हज़रत अली भी उन्हें बागी करार देने से बाज नहीं रह सके। इसलिए, मस्जिदों के इमाम और समुदाय के नेता जैसे मुस्लिम समुदाय के वर्तमान नेता उनके इस प्रक्रिया का पालन कर सकते हैं और आई एस आई एस को एक ऐसा गिरोह करार दे सकते हैं जिसने इस्लाम के दावों को झुठला दिया है।
इससे पहले भी मैंने आतंकवाद के खिलाफ एक अंतरराष्ट्रीय फतवा का प्रस्ताव रखा था, जिसे निम्न में इस लिंक पर देखा जा सकता है [3], लेखक भी अपने इस लेख द्वारा अपनी व्यक्तिगत स्थिति के अनुसार आई एस आई एस का दामन इस्लाम से बाहर करार देता है और दुनिया के विभिन्न देशों के मुफ्तियों और विद्वानों को भी इस बात की दावत देता है की जहां कम से कम एक मस्जिद भी है वे भी उन्हें खावारिज घोषित करें और इस बात की घोषणा करें कि उनका इस्लाम के साथ कोई संबंध नहीं है, और अपने समुदाय के सभी सदस्यों को चेतावनी दें कि वह उनके इस्लामी नाम के धोखे में पड़ कर अपने दिल में उनके लिए कोई सहानुभूति न रखें।
मज़हब, इंसान और खुदा के बीच का मामला है लेकिन एक व्यक्ति को जिंदा जलाकर आई एस आई एस ने धर्म और विश्वास के सभी सीमाओं का हनन किया है यह सजा का एक ऐसा रूप है जो कुरान केवल अल्लाह के लिए ही सुरक्षित रखता है। इसलिए खाकसार लेखक के मन में कोई संदेह नहीं है कि आई एस आई एस के सिद्धांत निर्माताओं का इस्लाम से कोई संबंध नहीं है और उन लोगों ने व्यावहारिक रूप से इस धरती पर अल्लाह की तरह प्रदर्शन कर दीन ईमान के सभी सीमाओं का हनन कर दिया है।
इस खंडन लेख को आखरी रूप देने के लिए, इस बात के बावजूद कि वे इस लेख का समर्थन करते हैं या नहीं, सभी मुसलमान पाठकों के लिए एक चेतावनी के रूप में अपने एक संबंधित लेख से निम्नलिखित उद्धरण (इक़्तेबास) नकल करना चाहूँगा!
”सांप्रदायिक हत्या, मस्जिदों और चर्चों में आत्मघाती हमले, लड़कियों के स्कूल को धमाके से उड़ाने, महिलाओं पर तेजाब फेंकने और स्कूली लड़कियों के अपहरण से लेकर यज़ीदयों, ईसाइयों और सभी विरोधी मुसलमानों को मारने तक और पत्रकारों का सिर कलम करना और इन भयानक बर्बर कृत्य का वीडियो इंटरनेट, हवाई अड्डों, सिविल अदालतों और संसद तक प्रकाशित करने जैसी आतंकवाद का चरम एवम् क्रूर चेहरा जो हमारी आंखों के सामने विभिन्न मामलों में प्रदर्शित हो रही है वह इस्लाम के चरित्र को शांति और आत्मज्ञान वेल धर्म से वहशत नाक हिंसा, ”नंगे आतंकवाद” और ”अज्ञानता” वेल धर्म में परिवर्तित करने के एक अभियान के सिवा कुछ भी नहीं है। ऐतिहासिक दृष्टि से यह इस्लाम ” मा क़ब्ल इस्लाम ” ज़माना जाहिलियत में ले जाने की एक बड़ी साजिश है और उसे असफल होना ही है इसलिए कि इतिहास को चौदह सौ वर्ष पीछे नहीं लौटा जा सकता।
Sources—- URL for this article: http://newageislam.com/hindi-section/muhammad-yunus,-new-age-islam/declare-the-isis-as-the-kharijites–आई-एस-आई-एस-को-ख्वारिज-क़रार-दिया-जाए/d/102208
आई एस आई एस को इस्लाम से खारिज करने वाली बात उसी सोच का परिचायक है, जो कभी शियाओ को कभी अहमदियो को इस्लाम के अनुरूप नही बताती, जो कभी मौसीक़ी तो कभी चित्रकारी को हराम करार देती है. इस्लाम की सबकी अपनी समझ हो सकती है. आपकी नज़र मे आई एस आई एस वाले इस्लाम को सही समझ नही रहे.
लेकिन उनकी नज़र मे वोही इस्लाम को सही समझ रहे हैं, और अपने को आपसे बेहतर मुसलमान मानते हैं.
हम अपने वर्ज़न या इस्लामी समझ को ही सही मानेंगे तो ये होगा ही. इस्लाम की ठेकेदारी और चिंता करना छोड़ दें, वरना अनेक व्याख्याओ मे टकराव होना ही है.
बाकी अपने मज़हब को सर्वश्रेष्ठ और दूसरे मज़हब को कमतर मानना भी हमे इंसान नही बनने देता.
दीन -ए -हक़ , अल्लाह का लाया हुआ मज़हब है आप उसका किसी से मुआज़ना नहीं कर सकते।
हम जैसे होते हैं, हमारा खुदा भी वैसा ही होता है. किसी के लिए 21 रुपये की प्रसादि रिश्वत से खुश होने वाला, तो किसिके लिए अपनी स्तुति को सुन प्रसन्न होने वाला या अपने चमचो से घिरा रहने वाला.
ये बात भी उतनी ही सही है की जैसा आपका खुदा है, वैसा ही उसका बंदा होगा. आई एस आई एस वालो की खुदा की जो समझ है, वैसे ही वो है.