कल की मेरी प्रातः की पोस्ट ” दीमापुर” के बाद लगातार कुछ नये तथ्य मिलते रहे और शाम को वहां रहने वाले मेरे एक फेसबुक मित्र के अनुसार “””घटना के दिन सभी बाजार बंद हो गए और इस घटना के बाद से दीमापुर में “नगा स्टूडेंट फेडरेशन” ने छात्रा के समर्थन में मार्च निकाला और “वी वॉन्ट जस्टिस” के नारे के साथ धीरे-धीरे ये प्रदर्शन तेज होता गया और इसने उग्र रूप धारण कर लिया भीड़ दीमापुर सेंट्रल जेल की तरफ बढ़ने लगी। शाम 4 बजे के करीब भीड़ ने सेंट्रल जेल पर कब्जा कर लिया और आरोपी को वहां से निकाल लिया 7 किमी तक नग्न कर के घुमाते हुए 10 हजार की भीड़ ने पीट पीट कर पहले तो उसकी हत्या कर दी इसके बाद उसे चौराहे पर ले जाकर फांसी पर लटका दिया।””रेप का आरोप 35 वर्षीय फरीद खान पर था। पीड़ित लड़की दीमापुर के एक कॉलेज की नागा छात्रा है।
यह तो घटना का एक सच था परंतु फेसबुक के साथ साथ समाज में इस घटना का दूसरा रूप प्रस्तुत किया गया ।मेरे मुस्लिम मित्र कल दिन भर नाक फुला फुला कर फेसबुक पर गुस्से वाले पोस्ट करते रहे और घटना में मृत फरीद खान के मुस्लिम होने के कारण इस घटना की निंदा करते रहे और कुछ मित्र समाज तोड़क घृणित पोस्ट करते रहे।दरअसल घटना निंदनीय थी और नहीं होनी चाहिए थी क्युँकि कानून टूटा संविधान खंडित हुआ ।
एक सच यह भी है कि तथाकथित राष्ट्रवादियों की दृष्टि कृपा से दूर नागालैंड,मेघालय,त्रिपुरा और आसाम के सीमावर्ती इलाकों में भारतीय कानून और संविधान का इतना असर है भी नहीं है जितना देश के अन्य हिस्सों में है बल्कि सच कहूँ तो काश्मीर से भी बुरी स्थिति है, और इसी की जड़ में छुपी है इस घटना की पृष्ठभूमि जो कि विभत्सकारी है ।
दरअसल जिस घटना को मुस्लिम विरोध का नाम दे दिया गया वह इस रूप में थी ही नहीं ।सच यह है कि 1971 की भारत-पाकिस्तान की लड़ाई में बंगलादेश से बहुत से विस्थापित भाग कर आसाम त्रिपुरा मिजोरम नागालैंड और मेघालय आ गये और यहीं रह गये , यह उस तत्कालीन इन्दिरा गांधी सरकार का निकम्मापन था कि पूर्वी पाकिस्तान जीत लेने के बाद उसे भारत में क्यों नहीं शामिल किया गया ? क्या मजबूरी थी कि बंगलादेश के नाम का अलग राष्ट्र बनाकर मान्यता दी गई जो आज तक उस क्षेत्र की मूसीबत का जड़ बना हुआ है ।सच यह है कि जिस जंग जीतने पर देश ने इन्दिरा गांधी को “दुर्गा” की उपाधि दी थी वही बंगलादेश आज भारत का कोढ़ बन गया है तो सोचना पड़ा कि क्या पूर्वी पाकिस्तान को भारत में विलय नहीं कर लेना चाहिए था ? और नहीं किया तो क्या कारण थे ? और जिस भी कारण से नहीं किया तो युध्द खत्म होने के बाद सीमा पार करके आ गये इन विस्थापितो को वापस क्युँ नहीं भेजा गया ? यही विस्थापित आज उस क्षेत्र की समस्याओं की जड़ हैं ।फरीद खान भी उसी विस्थापित परिवार के इस जनरेशन का एक व्यक्ति था ।उस पूरे क्षेत्र में यदि सेना हटा ली जाए तो कितनी अव्यवस्था फैल जाए कोई सोच भी नहीं सकता क्योंकि पूरा क्षेत्र कबीलाई सिस्टम की गिरफ्त में है और छोटे छोटे तमाम संगठनो का अलग अलग क्षेत्रों में दबदबा है जिनसे सेना सामंजस्य स्थापित करके मदद करके स्थिति को नियंत्रण में किये हुए है ।दीमापुर है तो नागालैंड की औद्योगिक राजधानी परन्तु कबीलाई संस्कृति से ही चलती है जहाँ 6 बजे शाम होने के बाद कानून व्यवस्था कबीलाई लोगों के हाथो में चली जाती है और इस पूरे क्षेत्र के मूल निवासी बाहरी लोगों से नफरत करते हैं और शाम होते यदि उस क्षेत्र से बाहर के लोग धोखे से दिख जाएं तो उससे लूटपाट और अपहरण कर लेते हैं ।बंगलादेश के यह विस्थापित भी रह तो 44 वर्ष से रहे हैं और भारतीय नागरिक हो चुके हैं परन्तु वहां के लोगों ने इन्हे मानसिक और सामाजिक रूप से उस क्षेत्र का आज तक स्विकार नही किया बल्कि घृणा ही करते हैं ।
बलात्कार का आरोप लगाने वाली छात्रा उस क्षेत्र के एक दबंग नागा कबीले से है और इनका धर्म अधिकतर इसाई है और मिशनरीज द्वारा कनवर्जन कराए गये हैं ।चुकि मामला कबीलाई प्रतिष्ठा से जुड गया था और आरोपी नागाओं के लिए बाहरी व्यक्ति था तो घृणा ने अपना रूप दिखाया और यह घटना घट गयी ।एक तथ्य यह भी है कि पुलिस रिपोर्ट में बलात्कार की पुष्टि नहीं हुई और मृतक के भाईयों ने कारगिल युद्ध में देश के लिए लड़ाई लड़ी थी और एक भाई शहीद भी हुआ था तथा पिता स्वयं फौज में थे , हिन्दू भाई बिना समझे बूझे फरीद खान के बंगलादेशी होने पर चिल्ल पों कर रहे हैं जबकि यहाँ इस संदर्भ में यह घटना घटी ही नहीं यह घटना तो मात्र क्षेत्रीय और बाहरी व्यक्तियों तथा कबीलाई प्रतिष्ठा से जुड़ी थी और जिसे बिला वजह हिन्दू – मुसलमान का रूप दिया गया,स्पष्ट कहूँ तो फरीद खान और उस नागा छात्रा मित्रता थी और बाद में कुछ आपसी विवाद हो गया और छात्रा ने बलात्कार का आरोप लगा दिया और देश के सख्त हो गये इस कानून ने फरीद खान को गिरफ्त में ले लिया ।
मेरे मुस्लिम मित्र स्पष्ट हो जाएं कि इस घटना का मुसलमान या इस्लाम के नाम से कोई मतलब नहीं और ना ही मारने वाली भीड़ हिन्दू भाईयों की थी , सच यह है कि समाज में फैल गये विष के कारण हम हर ऐसी घटना को हिन्दू – मुस्लिम के दृष्टि से ही देखने लगते हैं जबकि उस पूरे क्षेत्र में हिन्दू – मुस्लिम की समस्या है ही नहीं बल्कि उससे भी विकट और विभत्स समस्या है “बाहरी और स्थानीय” ।वहां के लोग वहाँ का कबीलाई समाज अपने अतिरिक्त किसी बाहरी को सहन कर ही नहीं सकता ।
इसलिये मेरे मुस्लिम मित्रों से अपील है कि तीन दिन से फेसबुक और समाज में अनाप शनाप बेतरतीब तरीके से किये जा रहे व्यवहार को बन्द कर दें और तथ्यों को परख लिया करें सुनी सुनाई बातों को लेकर अपना थुथुना ना फुलाया करें ये जाहीलियत है। और आप लोगों को तो उस आरोपी मृतक का नाम ही सही से नहीं पता और सैय्यद शरीफुद्दीन खान के नाम से पोस्ट किये जा रहे हैं जब कि सही नाम फरीद खान है तो हकीकत पता होना तो दूर की बात है।और दूसरी बात यह कि वहाँ यदि फरीद खान की जगह कोई सुरेश चंद्र भी होता तो यही होता ।
मेरे सवालों का जवाब अवश्य मित्र दे कि 1971 में पूर्वी पाकिस्तान का विलय भारत में क्यों नहीं किया गया और जंग जीत लेने के बाद भी काश्मीर पर पूरा कब्जा कर के भारत में शामिल क्युँ नहीं किया गया ? भारत के आज की सारी समस्याओं की जड़ मेरे ख्याल से यही दो मुद्दे मुख्य हैं ।तो क्या ये इन्दिरा गांधी की गलती थी या अन्तरराष्ट्रीय दबाव ? और दबाव तो युद्ध ना करने का भी रहा होगा जो हुआ तो पूरा काम क्यों नहीं हुआ ?
मुल्ले को दस हजार नागाओं ने जेल में से बाहर निकाल 8 किलोमीटर घसीट के बीच चौराहे पर शरीया स्टाइल में मार दिया गया | लेकिन वो लोग बहुत गलत साबित हुए , उस मुल्ले को गलत आरोप लगा के फंसाया गया और मार दिया गया और वो मुल्ला कोई मामूली मुल्ला नही था बल्कि उसका पूरा परिवार इंडियन आर्मी में अपनी सेवाएं देने वाला परिवार था !
अब इंडियन सेना में सेवा देने वाले किसी भी परिवार को रास्ट्रवादी ही कहेंगे जहां कोई मुसलमान सेना में जाने से कतराता है !
उस मृत के भाई जमालुद्दीन खान ने किसी मीडिया चैनल से कहा, ‘क्या नागालैंड सरकार जंगलराज चला रही है? जिस लड़की ने FIR दर्ज कराई वह मेरे भाई की पत्नी की रिश्तेदार थी। नागालैंड पुलिस यह कह चुकी है कि मेडिकल रिपोर्ट में बलात्कार की पुष्टि नहीं हुई है।’ वहीं रेप पीड़िता ने भी बयान दिया है कि पूरी घटना के बाद उसे शांत रहने के लिए रुपयों की पेशकश की गई।
दूसरी तरफ, जमालुद्दीन ने कहा कि मेरे परिवार से कई लोग सेना में हैं, वह उसे बांग्लादेशी कहकर कैसे मार सकते हैं?
जमालुद्दीन खान ने कहा कि वह और उनके एक और भाई, कमाल खान इस वक्त भारतीय सेना की असम रेजिमेंट में हैं। उनके एक और भाई, ईमामुद्दीन खान भी सेना में थे, और 1999 की करगिल लड़ाई में शहीद हो गए थे। उनके पिता, सैयद हुसैन खान, भारतीय वायु सेना से रिटायर हुए थे और मां अभी उनकी पेंशन ले रही हैं। जमालुद्दीन खान ने दावा किया कि उनका परिवार असम के करीमगंज जिले का रहने वाला है।
कहाँ मर गए सेकुलर लोग कहीं कोई पोस्ट या बयान तो नहीं आया
अकबरुद्दीन कसूरवार नज़र आता है न आपको ,दिल पे हाथ रख कर बोलो अगर ऐसे सैकड़ों मंज़र अकबर की नज़र में घूमता है तो वो दर्द भी न बयान करे ? बयान करे तो भड़काऊ हो जाता है ?
मीडिया भी तो आज मर चुकी है क्यूँ न्यूज़ नहीं क्या उनके पास ?
एक बेबस और बेगुनाह के क़ातिलों पर क्यों चुप्पी?
मीडिया और कानून आखिर क्यों गूंगे और बेहरे हो गए है?
कब तक ये चुप्पी ?
ये तस्वीरें और कम से कम 35 लोगो के चेहरे तो साफ साफ नजर आ रहे है साथ में मिडिया कर्मी भी है क्या ये सबूत काफी नहीं है इन लोगो पर जिन्हों ने देश का कानून तोडा । जेल पर हमला कर एक कैदी को छुड़ाया ।
वहां के सुरछाकर्मियों से बदतमीजी ।
अशांति फ़ैलाया ।
एक कैदी को पिट पिट कर जान से मार देने का आरोप।
और अंत्तः उसके मर जाने के बाद उसके निर्दोष होने की पुख्ता सबूत
इन्तेहा से गुजर के क्या देखा .
एक नया इम्तेहान बाकी है ।
सर कलम होंगे कल यहाँ उनके..
जिन के मुँह में ज़बाँ बाकी है ।
FROM THE WALL OF MOHAMMED OBAID RAZA MUGHAL-INDIAN MUSLIM
देखिए 71 के युद्ध के बाद इंदिरा ने पूर्वी पाकिस्तान का विलय भारत में इसिलिये नहीं किया क्योंकि यह युद्ध भारत ने पूर्वी पाकिस्तान को पाकिस्तान के नियंत्रण से बाहर करने के लिए किया पूर्वी पाकिस्तान में शेख मुजीबुर रहमान ने पूर्वी पाकिस्तान को पाकिस्तान से आजाद कराने के लिए आंदोलन किय। भारत छुपकर तब तक मुक्ति बाहिनी कि मदद करता रहाजबतक खुद युद्ध करने की स्थितिमें नहीं आ गय। इंदिरा पूरी दुनिया में घूम कर पाकिस्तान के खिलाफ माहौल बनाया और भारत पर बांग्लादेश के विस्थापितों के कारण बढते दबाव की भी बातें क। भारत ने शेख की मदद बांग्लादेश को आजाद कराने के लिए की ना कि कब्जा करने के लि। अगरव ऐसा करती तो जो इंटरनेशनल सपोर्ट मिल। रहा था खत्म हो जाता भारत को गंभीर परिणाम भुगतने पडते और बांग्लादेश दूसरा कश्मीर होता भारत के लिए क्यूंकि आजाद। मुल्क का नशा ही ऐसा होता है जो समय के साथ बढता है
कॉमेंट का ये हिस्सा सिर्फ चिश्ती साहब के लिये है–>अरे भाई चिश्ती साहब आये है और न्यूट्रल मीडिया और सेकुलर ढूंढ रहे है ?? कहा से मिलेगा साहब क्योकि इस देश मे अब ये नस्ल बहुत तेजी से खत्म होती जा रही है और वजह ?? कभी किसी चिश्ती ने किसी निर्भया का रेप होने पर इसलिये मूह नही खोला क्योकि पीडिता के रोड घुसा कर बेरहमी से हत्या करने का जिम्मेदार अपना मुस्लिम बिरादर भी था ?? जैसे आपकी जुबां चुप रही वैसे ही औरो की भी चुप हो गयी हो तो इसमे ताज्जुब जैसा क्या है ??
असल राय–>ये सच है कि खबरो को देने मे मीडिया की लापरवाही भरी जल्दबाजी की वजह से बात का बतंगड बनते देर नही लगती और सूचना क्रांति के इस दौर मे खबरो के पहुंचने की गति बेहद तेज है….ब्लॉगर ने काफी गहराई से मुद्दा सामने रखा है जिसमे काफी सचाई भी है मगर सबसे बड़ा मुद्दा ये है कि कानून हाथ मे लेने का ये उदाहरण अगर गंभीरता से हेंडल नही किया गया तो आने वाले समय मे इसके बेहद खतरनाक परिणाम देश को देखने होंगे जो अच्छे संकेत नही है….सवाल आखिर ये भी आता है की आखिर रेप केस की सुनवाई तेजी से क्यो नही हो पाती, बार-2 बात होती है मगर नतीजा वही ठाक के तीन पात ??
रेप के मुद्दे बेहद तेजी से सुलगते है और ऐसी घटनाये रोकने का एक ही उपाय है की रेप केस पर तीन महीनो के भीतर फैसला आ जाना चाहिये क्योकि रेपिस्ट अगर जल्दी सज़ा पायेगा तो दूसरो के लिये सबक होगा…इस केस मे भी फ़रीद के साथ गलत हुआ और अगर उसके केस मे भी फैसला जल्द आता तो या तो वो निर्दोष होता (बच जाता) या फिर गुनाहदार होकर सज़ा पाता (बच तब भी जाता क्योकि कानून से सज़ा पाये हुए के खिलाफ लोगो का गुस्सा कम हो जाता है) इस केस मे मामला ना इधर का हुआ और ना उढ़ा का और उस जगह के हालात (जैसा लेखक ने लिखा ही है) के चलते यह अप्रिय घटना घटित हो गयी.
फसेबूक और मीडिया मे इस खबर की बहुत धूम है लेकिन सब उल्टा पुलटा उआर गलत. पहली बार इस घटना पे एक अच्छा और बॅलेन्स लेख पड़ने को मिला है . बत मे सच्चाई है के लड़की के साथ रेप की पृष्टि नही हुई है लोगो ने क़ानून अपने हाथ मे लिया जो गलत है इस की निन्दा होनी चाहिये.
sharad ji
wahab ji ko chodiye. aise namune aur bewaquf log har jagah mil jaye ge.
zahid sahab ne is ghatna pe bahut hi neutral lekh likha hai .is ki tarif ki jaani chahiye.
रमेश जी रिक्वेस्ट है कि हमारे कॉमेंट को पूरा पढ़ा जाये जिसकी सिर्फ पहली चार लाइने ही चिश्ती साहब के लिये है बाकी का कॉमेंट घटना के बारे मे, ब्लॉगर की मेहनत, मीडिया की लापरवाही और न्यायपालिका के सुस्त होने पर ही लिखा गया है
ये एक शर्म्सार कर देने वलि बात है
क़ानून की धज्जियाँ उड़ा कर अन्याय के खिलाफ गुस्साई भीड़ ने एक रेप के आरोपी को पीट पीट के मार डाला. भीड़ का गुस्सा, इस वजह से ज़्यादा हो सकता है की वो आरोपी मुस्लिम हो, लेकिन अगर मुस्लिम लोग, एक रेप के आरोपी के मुस्लिम होने की वजह से इस मसले को अधिक तूल देंगे, तो वो गैर मुस्लिम समुदाय की नज़र मे मुस्लिम समुदाय के प्रति नफ़रत को बढ़ावा देंगे.
लेखक पहले इतिहास को जाने की 1971 की लड़ाई भारत और पाकिस्तान की नही थी, ये लड़ाई बंगाली अस्मिता और इसी पहचान के रूप मे नये आज़ाद देश के लिए लड़ रही मुक्ति-वाहिनी और पाकिस्तान की सेना के बीच थी, भारत ने इस युद्ध मे मुक्ति-वाहिनी का साथ दिया, क्यूंकी बांग्लादेश से लखो विस्थापित भारत पहुँच रहे थे, साथ ही इस आंदोलन के नेता मुजीबुररहमान सेकुलर सोच के व्यक्ति थे, और अलग देश, उदारवादी मुस्लिम बहुल देश बनता. ऐसा पड़ौसी देश, भारत के लिए पाकिस्तान जैसे देश की तुलना मे बेहतर होता.
बांग्लादेश, कोई हमारी बपौती नही थी, जो हमने जीती थी.
आज भी देखा जाए तो बांग्लादेश, पाकिस्तान से कहीं उदारवादी देश है, और भारत के लिए उतना बड़ा सरदर्द नही.
चिश्ती साहब, क्या आप ऐसी ही राय ब्लेस्फेमी के मुद्दे पे उन्मादी भीड़ द्वारा मार दिए लोगो पे भी रखते. वैसे ब्लेस्फेमी पे किसी की जान ले लेना तो हैवानियत ही है, लेकिन अनेक मामलो मे झूठे आरोपो पे भी लोगो ने जाने ली हैं. आपको यह उन्माद एक तरफ़ा क्यूँ नज़र आ रहा है?
जाकिर भाई आपके हौंसले भरे सवाल को सलाम.
बांग्लासदेश को मिलाना तो दूर इस युद्ध के कोई खास लाभ भी नहीं लिए जा सके क्योकि अमेरिका और उसका सातवा बेडा सर पर आ चूका था उधर सोवियत संघ का भी दबाव था की उसकी वीटो करने की भी एक सीमा हे हर तरफ से दबाव था की जल्दी से जल्दी सब कुछ ओवर किया जाए . इंदिरा गांधी की कोई गलती नहीं थी बाद में युद्ध ( ६२ ६५ ७१ ) और अरब इज़राइल युद्ध ७३ के कारण बड़ी मेह्गाई से ही इंदिरा जी की कुर्सी हाथ से निकल गयी
जो हुआ बहुत बुरा हुआ दोषियों को सख्त सजा मिलनी चाहिए इस समय कहना तो नहीं चाहिए मगर अल्लाह माफ़ करे इस मुद्दे का एक और पहलु भी हे की बहुत सी जगह मुस्लिम पुरुषो के गैर मुस्लिम स्त्रियों से सम्बन्ध कुछ ना कुछ बढ़ते ही जा रहे हे इसका कारण मुझे मेरी मोटी बुद्धि से ये लगता हे की समाज में लगातार बढ़ते जाकिर नायको की फ़ौज़ बहुत सी लेडिस जाकिर नायक भी की मेहरबानी से हो ये रहा हे की गरीब या कम पढ़ी लिखी ही नहीं पढ़ी लिखी लडकिया भी हिज़ाब आदि करने लगी हे अब होता ये हे की लड़के को तो लड़की चाहिए ही चाहिए आगे चाहे जो हो लेकिन इसकी शुरुआत देखने से ही होती हे पहले नज़रे मिलती हे आकर्षण होता हे उसके बाद कुछ भी हो सकता हे हो सकता हे कुछ न हो हो सकता हे प्यार हो जाए हो सकता हे दोस्ती ही हो हो सकता हे लस्ट हो हो सकता हे प्लूटोनिक लव हो हो सकता हे शादी हो जाए हो सकता हे धोखा इलज़ाम हो जाए कुछ भी हो सकता हे मगर शुरुआत देखने से ही होती हे अगर जरुरत से अधिक मुस्लिम लडकिया कटटरपन्तियो की बात सुन कर मानकर पवित्र हुलिये में आ जाएंगी तो भला कौन लड़का उनकी तरफ आकर्षित होगा उनकी कल्पना करेगा नतीजा बहुत से मुस्लिम लड़के वहा आकर्षित होंगे जहा उन्हें कोई दिखेगी नज़रे मिलेंगी उसके बाद जैसा की मेने कहा की होने को कुछ भी हो सकता हे
बिलकुल सहेी !! घटना की पूरी ईमानदारी से जांच होकर दोषियो को सख्त सज़ा जरूर मिलनी चाहिये क्योकि अगर ऐसे ही कानून हाथ मे लेकर हर कोई जज बनने लगा तो चल चुका देश ?? और यहा सरकार और न्यायपालिका से भी निवेदन है कि वे इस घतना से सबक लेकर सोचे कि कोर्ट मे आये हर केस को ईमानदारी से कम से कम समय मे निपटाने की तरफ पूरी गंभीरता से विचार करने की अनिवार्य जरूरत है ताकि न्याय मे देरी के चलते समाज मे उबाल ना आये.
Mere bhai sikandar hayat tu zyada aqalmand hai ya allah ke nabi ,,khuda ki qasam insano me sabse zyada aqalmand allah ke nabi hai , zera ghor kr islam me parde ka hukm hai teri baat nhi chelegi …, ok aage soach samajh kr kahna
अरे सलमान भाई प्लीज़ खुद के वास्ते जब इतनी जरुरी बात हो रही हो तो प्लीज़ नागरी म लिखा करो ताकि एक एक पोंइट साफ़ समझ इस विषय पर मेरी डॉक्टर कज़िन से बहस हो रही थी वो भी यही कह रहा था जो आप कह रहे हे मेने फिर उससे पूछा की फिर इतने साल तुम्हारे लिए लड़कियों की खोजः रही उनमे से एक भी भी लड़की हिज़ाब वाली क्यों नहीं थी ? फिर जिस लड़की से शादी हुई यानी हमारी भाभी मेने तो उनके कभी हिज़ाब बुर्के में मैने तो कभी नहीं देखा ? आप बात नहीं समझ रहे हे जानबूझ कर नासमझ बनते हे लडकिया तो चलो ज़ाब बुर्के रह लेगी मगर लड़को को क्या किस किस को समझाओगे रोकोगे वो तो जहा लडकिया दिखेगी वहा जायेंगे और जब गैर मुस्लिम लड़कियों के पीछे जाओगे तो फिर ना होने को कुछ न हो होने को क्लेश भी हो सकता हे फिर तैयार रहो क्लेश के लिए ऐसे ही एक क्लेश के कारण ही यु पि में 73 सीटें पकार आज संघ परिवार दिल्ली में बहुमत ले बैठा हे हमने अपना रवैया नहीं बदला तो राज्यों में भी बहुमत आ जाएगा फिर रोना मत
ज़रा इन विद्वानो की भी बात सुन लो सलमान भाई http://khabarkikhabar.com/archives/174
जब तक बन्ग्ला देश स्वयम भारत् मे विलय् केी बात नहेी कर्ता तव तक कैसे भारत वह ऐसा कैसे कर सक्ता है !
जो बन्ग्ला देशेी है, वह स्वयम क्यो नहेी अप्ने देश चले जाते है !
भिद कोइ भेी क्यो न हो उस्को कभेी भेी किसेी को भि जान से मारने का अधिकार नहेी दिया जा सकता है ! भिद कभेी कानुन् नहि बन सक्तेी है !
कितने कमीने हैं हम लोग कि……..मानवीय त्रासदी पर भी, अपना-अपना अमानवीय स्वार्थ तलासते हैं।
क्या बंगला देश के आतंकियों से बचकर, किसी शरणार्थी का भारत की पनाह लेना गुनाह है……..?
क्या पाकिस्तान के आतंकियों से बचकर, किसी शरणार्थी का भारत मे पनाह लेना गुनाह है……….?
क्या शरणार्थी इन्सान नहीं होते……..?
या उन्हें, हिन्दू-मुसलमान या बंगलादेशी-पाकिस्तानी पहिचान……..मानवता का आधर है……..?
तो लानत है, ऐसी मानवता, ऐसी कबिलाई सभ्यता, ऐसे राष्टवाद, ऐसी कानून-व्यवस्था, ऐसी राजनीती को,
जो कभी भी इन्सान को इन्सान के नजरिये से नहीं देखती।
लानत है, उस छात्राा को, जिसने कबिलाई दबाव या राष्टवादी दबाव मे आकर, पफरीदखान पर झूठा आरोप लगाया और उसे मरवा दिया।
और लानत है, उस राष्टवाद पर………जो राष्ट मे रहने वाले इन्सान को…….ध्र्म, जांति, या शरणार्थी के नजरिये से देखता है।
लेकिन इस तरह की जलील हरकतों से, ना कोई मजहब जिन्दा रहता है। ना ही राष्टवाद………ना ही हम…….इस तरह की मानसिकता से, एक-दूसरे से दिल जोड सकते हैं।
पंत साहब आपकी बात मानवीय आधार पर तो सही लगती है मगर इसका दूसरा पक्ष भी है क़ी शरणार्थी मुट्ठी भर या कुछ हज़ार नही बल्कि कई करोड़ की सांख्या मे पहले ही आ चुके है और अभी भी आना रुका नही है ?? जिस देश की 60% जनसंख्या को काम-धंधा-रोजगार नही मिल पा रहा और जहा काफी बड़ी आबादी मुश्किल से एक वक़्त का पेट भर पाती हो उस देश को सबके लिये खुली धर्मशाला बनाने वाला कदम भी तो सही नही है
साथियो! इक नज़र इधर भी क्या कहते हैं युवा पत्रकार वसीम अकरम त्यागी
http://www.hamzabaan.in/2015/03/wasim-akram-tyagi-on-dimapurrape.html
अपने ब्लॉग पर आये कॉमेंट ब्लॉक कर और दबा कर बैठ जाते है युवा पत्रकार वसीम अकरम त्यागी ,हमारा अनुभव तो इनके साथ ऐसा ही रहा है.
“बाहरी और स्थानीय” । मैं लेखक की इस बात से पूर्णतः सहमत हूँ ! बल्कि मैं तो यह भी कहूँगा की वहां बलात्कार जैसा कुछ है ही नहीं !!
“बाहरी और स्थानीय” । मैं लेखक की इस बात से पूर्णतः सहमत हूँ ! बल्कि मैं तो यह भी कहूँगा की वहां बलात्कार जैसा कुछ है ही नहीं !! और बाहरियों के लिए तो शायद कानून जैसा भी कुछ है ही नहीं | वहां आज भी गाँव बूढ़े का वह भी स्थानीय जो जाती बहुसंख्यक होगी उसका फैसला अंतिम माना जाता है । पुलिस जेल सब दिखावा है !
दीप्तिमान तिवारी, दीमापुर
गृह मंत्रालय को नागालैंड सरकार की वह रिपोर्ट मिली है जिसमें दावा किया गया है कि मृतक सैयद सरीफ खान ने महिला से रेप या यौन हमला नहीं किया था। दोनों के बीच सहमति से सेक्स हुआ था। रिपोर्ट के मुताबिक आरोपी ने पीड़िता को दो बार सेक्शुअल संबंध के बाद पांच हजार रुपए दिए थे। रिपोर्ट में बताया गया है कि निष्कर्ष मृतक के बयान पर आधारित है।
सैयद खान की सड़क पर लोगों ने पीट-पीट कर हत्या कर दी थी। नागालैंड सरकार ने कहा कि मृतक ने मरने से पहले जो बयान दिया है उसी के आधार पर रिपोर्ट बनी है। पांच मार्च को लोगों की भीड़ ने दीमापुर सेंट्रल जेल से रेप आरोपी सैयद खान उर्फ फरीद खान को अपने कब्जे में ले लिया था। भीड़ ने फरीद को नंगा परेड कराई और फिर उसकी बेरहमी से हत्या कर दी।
इससे पहले बुधवार को इस वाकये पर गुवाहाटी हाई कोर्ट की एक बेंच ने केंद्र और नागालैंड सरकार को नोटिस जारी किया है। नोटिस में कोर्ट ने सरकारों से दो हफ्ते के भीतर इस मामले में डिटेल रिपोर्ट सौंपने का निर्देश दिया गया है। कोर्ट ने नागालैंड सरकार और सेंट्रल दीमापुर जेल के आईजी को कैदियों की पुख्ता सुरक्षा मुहैया कराने का भी निर्देश दिया है। कोर्ट ने यह निर्देश राजीव कलिता की याचिका पर दिया है। राजीव ने एक पिटिशन दायर कर इस केस को सीबीआई को देने और मृतक परिवार को मुआवजा देने की मांग की थी।
पता नही सच क्या है क्योकि नाम से लेकर हालात और बयानो मे जिस तरह का घालमेल सा दिख रहा है उससे एक बात पर यकीन थोड़ा जयदा होता जा रहा है कि ना तो ये केस हिन्दू-मुस्लिम का लगता है और ना ही स्थानिया-बाहरी का और इस सब से भी उपर कम से कम रेप या जबरदस्ती अब तक की खबरो के हिसाब से तो नही ही साबित हो रही, वजह क्या थी मालूम नही मगर गुनाह साबित हुए बिना किसी की जान लेना सरासर गलत है.