by –फरीद जकारिया
पेरिस में पिछले हफ्ते चार्ली एब्दो पत्रिका के दफ्तर में कार्टूनिस्ट व पत्रकारों सहित 12 लोगों की हत्या करने के बाद आतंकियों ने चिल्लाकर कहा कि पैगंबर के अपमान का बदला ले लिया गया है। ये उन अन्य आतंकियों के नक्श-ए-कदम पर ही चले, जो अखबार के दफ्तरों में धमाके करते रहे हैं। फिल्मकार को चाकू घोंपने, लेखकों व अनुवादकों की हत्याओं की वारदातें भी हुई हैं। उन्होंने यह सब ईशनिंदा के खिलाफ किया। उन्हें लगता था कि कुरान के मुताबिक ईशनिंदा की यही सजा है।
किंतु वास्तविकता तो यह है कि ईशनिंदा के लिए कुरान में कोई सजा मुकर्रर नहीं है। इस्लामी आतंकवाद के ज्यादातर धर्मोन्मादी और हिंसक पहलुओं की तरह यह विचार भी राजनेताओं व धर्मगुरुओं की उपज है कि पैगंबर का अपमान करने का जवाब हिंसा से दिया जाना चाहिए। नेताओं व धर्मगुरुओं ने राजनीतिक एजेंडे के तहत ऐसा किया है। यह विचार इसी एजेंडे का हिस्सा रहा है।
एक पवित्र ग्रंथ का ईशनिंदा से गहरा ताल्लुक है और वह ग्रंथ है बाइबल। ओल्ड टेस्टामेंट में ईशनिंदा और ईशनिंदा करने वालों की आलोचना की गई है और उनके लिए कड़ी सजा बताई गई है। इस बारे में सबसे मशहूर अंश लेविटिकस अध्याय 24, पद 14 से है : ‘कोई भी यदि ईश्वर के नाम की निंदा करता है तो उसे मौत की सजा देनी चाहिए। उसे जनसभा में पत्थर मार-मारकर मृत्युदंड देना चाहिए। विदेशी हो या स्वदेशी यदि वे ईशनिंदा करते हैं तो उन्हें मौत की सजा मिलनी ही चाहिए।’ ऐसा स्पष्ट उल्लेख इसमें किया गया है।
इसके विपरीत कुरान में कही भी ‘ईशनिंदा’ जैसा शब्द नहीं है ( और संयोग से कुरान में कहीं भी पैगंबर साहब का चित्र बनाने से रोका नहीं गया है। हालांकि, हदीस जैसी व्याख्याएं व टिप्पणियां हैं, जो मूर्ति पूजा के खिलाफ सावधान करती हैं)। इस्लामी विद्वान मौलाना वहीदुद्दीन खान ध्यान दिलाते हैं, ‘कुरान में ऐसी 200 से ज्यादा आयतें हैं, जिनसे पता चलता है कि पैगंबर के समकालीनों ने बार-बार वह कृत्य किया है, जिसे अब ईशनिंदा कहा जाता है, लेकिन कुरान में कहीं भी कोड़े लगाने की सजा या मृत्युदंड या किसी अन्य प्रकार के दंड की बात नहीं कही गई है या उस तरह का कोई उल्लेख है।’
कई मौकों पर उनकी और उनकी शिक्षाओं की खिल्ली उड़ाने वालों के साथ पैगंबर मोहम्मद साहब ने समझ-बूझ और दयालुता का व्यवहार किया है। वहीदुद्दीन कहते हैं, ‘इस्लाम में ईशनिंदा शारीरिक सजा की बजाय बौद्धिक विचार-विमर्श का विषय रहा है।’ जाहिर है विचार-विमर्श का संबंध समझदारी से है।
कोई आतंकवादियों को यह बताना भूल गया। उन्हें नहीं बताया गया कि पवित्र ग्रंथ में ईशनिंदा जैसी कोई अवधारणा नहीं है। किंतु जेहादियों का यह वीभत्स और खूनी विश्वास मुस्लिम जगत में सामान्य है, तथाकथित मध्ममार्गी मुस्लिमों में भी कि ईशनिंदा और स्वधर्म त्याग इस्लाम के खिलाफ भयानक गुनाह है और वे भी मानते हैं कि उसकी कड़ी सजा होनी चाहिए। कई मुस्लिम देशों में ईशनिंदा और मजहब छोड़ने के खिलाफ कड़े कानून हैं और खेद है कि कई स्थानों पर उन्हें पूरी सख्ती से अमल में भी लाया जाता है।
पाकिस्तान ईशनिंदा विरोधी मुहिम के अराजक होने के उदाहरण की मिसाल है। ईशनिंदा कानूनों का वहां सबसे ज्यादा उपयोग हुआ है। अमेरिका के अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता आयोग के मुताबिक मार्च 2014 तक उस देश में 14 लोग इस अपराध के लिए मौत की सजा का सामना कर रहे थे जबकि 19 उम्रकैद की सजा भुगत रहे थे। देश के सबसे बड़े मीडिया समूह के मालिक को 26 साल कैद की सजा सुनाई गई है, क्योंकि उनके समूह के एक चैनल ने विवाह समारोह के प्रसारण में पैगंबर मोहम्मद की बेटी के प्रति भक्तिमय गीत प्रसारित किया था। और पाकिस्तान अकेला नहीं है।
बांग्लादेश, मलेशिया, मिस्र, तुर्की और सूडान इन सारे देशों ने लोगों को परेशान करने और जेल में डालने के लिए ईशनिंदा कानूनों का इस्तेमाल किया है। उदारवादी इंडोनेशिया में 2003 के बाद से ईशनिंदा के आरोप में 120 लोगों को जेल में डाल दिया गया है। सऊदी अरब में अपने इस्लाम के वहाबी स्वरूप के अलावा किसी भी धर्म के पालन की बिल्कुल इजाजत नहीं है। पाकिस्तान का मामला एक मिसाल है, क्योंकि वहां ईशनिंदा विरोधी कानून का सर्वाधिक कठोर स्वरूप है। यह तुलनात्मक रूप से ज्यादा पुरानी बात नहीं है और राजनीतिक एजेंडे की उपज है।
1970 के दशक के उत्तरार्द्ध और 1980 की शुरुआत में देश के तानाशाी शासक रहे जनरल मोहम्मद जिया उल हक लोकतांत्रिक व उदारवादी विपक्ष को हाशिये पर डालकर इस्लामी कट्टरपंथियों को गले लगाना चाहते थे, फिर वे चाहे कितने ही कट्टर क्यों न हों। यह उनका अपना राजनीतिक एजेंडा था। उन्होंने कई कानून पारित कर पाकिस्तान का इस्लामीकरण किया, जिसमें वह ईशनिंदा विरोधी कानून भी शामिल है,जिसके तहत पैगंबर मोहम्मद साहब का किसी भी तरह अपमान करने पर मौत की सजा या उम्रकैद मुकर्रर है।
जब सरकारें धर्मांध लोगों को अपने पक्ष में करने की कोशिश करती हैं, तो अंतत: धर्मांध लोग कानून अपने हाथ में ले लेते हैं। ऐसा होना अपरिहार्य है। पाकिस्तान में यही हुआ और जेहादियों ने उन दर्जनों लोगों की जान ले ली, जिन पर वे ईशनिंदा का आरोप लगाते थे। इनमें वे बहादुर नेता सलमान तासीर भी शामिल हैं, जिन्होंने ईशनिंदा कानून को ‘काला कानून’ कहने की हिम्मत दिखाई थी। ऐसे लोग ही इस कानून का निशाना बनते हैं।
हमें आतंकवाद से लड़ना होगा, लेकिन हमें समस्या के स्रोत से भी लड़ना होगा। यदि उनकी सरकारें ईशनिंदा के विचार का समर्थन करती हैं तो मुस्लिम नेताओं के लिए इतना ही काफी नहीं है कि ईशनिंदा के नाम पर हत्या करने वालों की निंदा करें। अमेरिकी धार्मिक स्वतंत्रता आयोग और संयुक्त राष्ट्र मानव अधिकार समिति दोनों ने ईशनिंदा कानून को मानव अधिकारों के खिलाफ बताया है (क्योंकि वे अभिव्यक्ति की आजादी का उल्लंघन करते हैं)। दोनों संस्थाएं बिल्कुल सही हैं।
मुस्लिम बहुल देशों में कोई इन कानूनों को वापस लेने की बात करने की हिम्मत नहीं करता। पश्चिमी देशों में कोई सहयोगी देश उनसे इन मुद्दों पर नहीं टकराता। वे इसे उनका घरेलू मामला समझते हैं। किंतु ईशनिंदा कोई विशुद्ध रूप से घरेलू मुद्दा नहीं है। केवल उन लोगों से संबंधित नहीं है, जो देश के आतंरिक मामलों को लेकर चिंतित हैं। यह इस्लामी कट्टरपंथियों और पश्चिमी समाजों के बीच प्रमुख मुद्दा बन गया है, जिसके काफी खूनी नतीजे निकले हैं। इसे अब और नहीं टाला जा सकता। पश्चिमी राजनेताओं, मुस्लिम नेताओं और दुनियाभर के बुद्धिजीवियों को ध्यान दिलाना चाहिए कि ईशनिंदा ऐसी चीज है, जिसका कुरान में कोई वजूद नहीं है और निश्चित ही अाधुनिक विश्व में भी इसका कोई स्थान नहीं होना चाहिए।
Source: http://www.bhaskar.com/news/MH-MUM-bhaskar-editorial-by-fareed-zakaria-4870920-NOR.html
URL: http://newageislam.com/hindi-section/fareed-zakaria/quran-does-not-punish-blasphemy–कुरान-में-ईशनिंदा-के-लिए-सजा-नहीं/d/100999
ईशनिंदा क़ानून बना कर जिस तरह कुश मुस्लिम देशो में इस का गलत इस्तेमाल हो रही है वो निंदनीय है . असल में इस का इस्तेमाल कुछ लोग अपनी दुश्मनी निकलना चाहते है वे दूसरे पे इल्जाम लगा कर के वे रसूल के शान में गुस्ताख़ी किया है अपना बदल लेते है . इस क़ानून का सब से गलत इस्तेमाल पाकिस्तान में हो रहा है सिर्फ गैर मुस्लिमो के खिलाफ ही नहीं बल्कि लोग मूसलमनो के खिलाफ भी इस क़ानून का इस्तेमाल करते है . इस के लिए कुछ जाहिल तरह के मौलवी जिम्मेदार हाइस तरह का क़ानून बना कर वे इस्लाम को बदनाम कर रहे है जब के इस तरह का क़ज़नून का जिक्र क़ुरआन और रसु ल के समय नहीं पाया जाता है .
क़ुरान में सिर्फ ३ चीजो के लिए क़त्ल का आर्डर दिया गया है – जैसे जमीं पर फ़ित्ना व फसाद फैलाने वालो को , बलात्कार करने वाले और हत्या करने वाले को सिर्फ इन हालत में किसी के क़त्ल का आर्डर दिया गया है वो भी पूरी क़ानूनी कवाई के बाद .
फितना – फसाद का अरोप तो किसि पर भि लगया जा सक्ता है , आज दुनिया के अधिकान्श देश हत्यरे और बलत्कारि को भि जेीने का अधिकार देति है इन अप्राधियो को भिअजिवन कारावास दिय जन चहिये स्वभविक् मौत होने तक उन्से जि तोद मेहनत करवायि जनि चाहिये !
रसूल ने भी कभी किसी को नहीं कहा के मेरी अगर कोई बुज्जती करे तो उस की हत्या कर दो – ऐसे बहुत से घटना है जिस में उस समय लोगो ने नबी का मजाक उड़ाया या उन से इत्तफ़ाक़ नहीं रखा . बहुत सी घटनाओ में में एक घटना बताता हु —-मैं घटना नकल किया था कि एक अवसर पर पानी का झगड़ा हो गया- आप (स.अ.व.) के एक प्रिय थे जिनकी जमीन पर पानी पहले आता था और बाद में किसी दूसरे के यहां जाता था- दूसरे आदमी ने आप (स.अ.व.) के सामने यह बात कही कि मेरा पानी रोक लिया जाता है। आप (सल्ल।) ने फरमाया कि एक बालशत के बराबर पानी रोक कर आगे छोड़ दिया करो- इस आदमी को आप का निर्णय पसंद नहीं आया और उसने कहा कि यह आप के प्रिय थे इसलिए आप यह फैसला कहा है। आप देखेंगे कि पवित्र (स.अ.व.) के बारे में यह बात कहना, और यह कहा गया है कि आपका चेहरा लाल हो गया- इसलिए कि यदि आप न्याय नहीं करेंगे तो और कौन करेगा। रिसालत मआब स.अ.व. के समक्ष और भी मक्का में नहीं बल्कि मदीना में यह बात कहना, इससे बड़ी सुबूत और क्या हो सकती है लेकिन यह देखते हुए कि आप (स.अ.व.) ने उस शख्स के खिलाफ न कोई कदम और न उसे सजा दी- हमारी दुर्भाग्यवश है कि घटनाओं का वर्णन करते हुए िफ़ो व दरगुज़र के इस रवैये को नजरअंदाज कर दिया जाता है
वह दोनो पक्श मुस्लिम हो सक्ते है ,
मक्का और मदेीना मे गैर मुस्लिमो का प्रवेश मुहम्मद् जेी हेी रोक गये थे जो आज तक् लागु है यह तरेीका इन्सनियत के विरुद्ध् है ,
बदर के युद्ध मे नजर बिन हरिस को मुहम्मद जेी के पक्श वले ” मिक्दाद” ने गिरफ्तार कर लिया था , बाद मे मुहम्मद जेी ने उस्का कत्ल करने का आदेश् दिया !
मिकदाद ने कहा कि या हजरत ! यह तो मेरा बन्देी है ! हजरत ने कहा — इस्का कत्ल आव्श्यक है ! यह कुरान कि प्रचेीन कथाये कहता था ! एक विद्वान पुरुश कि हत्या कर देीगयेी ! देखे तफ्सेीर मजहरि पेज ८९ लेखक – अल्लामा काजेी मुहम्मद सना उल्ला उस्मानेी
जब मुहम्मद जि कम्जोर थे तब उन्कि नेीति नरम थेी , जब वह तकत वर हो गये तब उन्केी नेीति बदल गयेी थेी !
अफज़ल भाई पेट्रो डॉलर के पैसे चंदे खा खा कर कुछ कठमुल्लाओं को बहुत चर्बी चढ़ गयी हे वही ये सब फित्ने करवाते रहते हे क्योकि पेट भर गया पैसा आ गया अब जहा से पैसा आया वहा से आता रहे हे इसके लिए वो ये दिखाना चाहते हे की देखो हम ही कितने महान मुसलमान हे पैसा भेज़ते रहो हम ही इस्लाम फैला रहे हे हम ही कन्वर्ट कर रहे हे हम ही लोगो को ज़्यादा बचे पैदा करने की सलाह दे रहे हे आदि . खासकर पाकिस्तान में . इस समस्या का अध्ययन करे तो पता चलता हे की किस तरह से इन लोगो ने गंद मचा दी हे हाल ही में जुनेद जमशेद जिन्होंने संगीत में फ्लॉप होकर कठमुल्लाशाही में कॅरियर बना लिया था तो ज़ाहिर और भी बहुत लोग हे उनकी तरह डॉक्टर शाज़िया के अनुसार किसी गरीब मुस्लिम देश में तो ये लोग झांकते भी नहीं हे सिर्फ वेस्ट और अमीर मुस्लिम देशो में ये भागे फिरते हे खेर एक प्रोग्राम में इन्होने हज़रत आयशा पर कोई टिप्पणी कर दी जिसपर बरेल्वियो ने इनके खिलाफ मोर्चा खोल दिया क्योकि ये बड़े देवबंदी तारिक जमील के चेले हे खेर देखे की ये लोग कैसे ” बिज़नेस राइवल ”की तरह वयवहार करने लगे हे ये प्रोग्राम ए आर वाई का था तो जियो के आमिर लियाकत जैसे शेतानो ने मोर्चा खोल दिया ये असल में पुराना हिसाब बराबर करने की साज़िश थी कुछ दिन पहले वीना मालिक की शादी में एक कवाली को लेकर ए आर वाई के मुबबशीर लुक़्मान जैसे मेन्टल ने जियो चेनेल पर ब्लासफेमी का आरोप लगवा दिया था किस कदर नीचता पर उतरे हुए हे ये लोग . भारत के मुस्लिमो को इनसे साफधान रहने की सख्त जरुरत हे इसलिए हम कहते हे की कैपिटलिस्ट कठमुल्लशाही ज़हर हे ज़हर ये इस्लाम इंसानियत और इण्डिया की दुश्मन हे
देखे कुरान् २/५४ जिस्मे सिर्फ बचदे कि पुजा कर्ने के कारन आपस मे हत्या कर्न एक आदेश् कुरानि अल्लह ने दिया है ! क्या इस्को मानवता कहा जायेगा ?
राज साहब
क़ुरआन की जिस सूरह की बात कर रहे है और बछड़ा पूजने की बात कर रहे है . ये पैगम्बर मूसा के समय की बात है जिस में ये बताया जा रहा है के मूसा के समय में भी लोग एक अल्लाह को छोड़ कर शिर्क मरने लगे थे और जानवरो को पूजने लगे थे . अल्लाह ने इस चीज से मन फ़रमाया था . इस में हत्या या क़तल का कही आदेश नहीं है
अदर्निय श्रेी अफजल जेी हम सुरह कि बात नहि कर रहे है बल्कि विशेश आयत कि बात कर रहे है
!आपकेी यह्बात सत्य है कि मुसा के जमाने कि बात है
इस आयत मे हत्या कि बात भेीशामिल है ! अल्लाह् केी बात पर न् मान्ने पर हत्या का आदेश् सहेी नहेी है !
जरा सोचिये — हत्या का आदेश देने पर भेी आज अधिकान्श दुनिया के व्यक्ति किसेी न किसेी तरह केी मुर्ति पुजा कर्ते है अब हत्या से बदा आदेश और क्या हो सक्ता है ?
कुरान से यह साबित है कि कुरानि अल्लह् ने मुसा के जमाने मे होनेवाले शिर्क के लिये आपस मे हत्या का आदेश दिया था
कई पाठक ठीक से हिंदी टाइप नहीं कर पा रहे हे तो कई रोमन में लिखते हे उनसे रिक्वेस्ट हे की यहाँ से कॉमेंट लिख कर खबर पर पेस्ट कर दिया करे शुक्रिया http://www.easyhindityping.com/
हम कम्प्युतर मे एक नादान व्यक्ति है , हम्को कापेी पेश्त् कर्ना नहेीआता है
बस थोदा बहुत इस्लाम् केी आलोचना हेी कर पाते है !
मैं पूछता हूँ आखिर किसमे क्या है ,किसमे क्या नहीं है इसपर बहस होती ही क्यों है ? सिर्फ आज क्या सही है जो हमारे सबके कल को न की केवल हिन्दू या मुस्लिम के , भी सही कर सके इसपर गौर क्यों नहीं होता ? मकसद सही हो तो झूठ बोलना भी शिर्क नहीं होता ! और
जिनमे लिखी बातों को लेकर ही संभ्रम हो ,जिसका की नतीजा भी हम देख रहे हो उन बेजान काले निशानों को सही या गलत साबित करने से क्या बदल जाएगा ? जब अंत में इंसानी विवेक पर ही सबकुछ निर्भर है और विवेक किसी किताब पर निर्भर नही लेकिन हर किताब विवेक पर ही निर्भर है तो जहर जहर है या नहीं ये बार बार साबित करने की जरुरत ही क्यों पड़ती है ? क्या उस ईश्वर ने किसी भी जीवित इंसान को इतनी मोहलत दी है की हम एक बार जहर खा के मरने के बाद इसी बात के पक्ष में भी कुछ कह सके ? की हाँ सच में यार ! जहर खाने से मौत ही होती है !! वहाँ तो किसी विवाद की किसी शक की किसी के लिए भी कोई गुंजाइश ही नहीं बचती ! जब जहर का सिर्फ एक ही मतलब है मौत ! तो हम जीते जी किसी को बार बार जहर कैसे साबित करते हैं ! और किस आधार पर झुठलाते हैं ? क्यों की जहर तो हर मौके के अंत का नाम है ! और इंसान ने कोई कल ही जन्म नहीं लिया की वह जहर को लेकर संभ्रमित हो ! आज इंसानी अस्तित्व के इतने सदियों बाद भी हम जहर क्या है यही तय न कर पा रहे हों तो उस बहस में ही क्यों पड़ो ? आप जिन्दा है ,आपके सामने वाले को जिन्दा देख रहे हो यही इस बात का सबूत है की आप अब तक जहर से दूर हो ! बस तो फिर आप और आपके सामने वाला अबतक जैसे थे वैसे ही आगे भी जिओ ! क्या आप को किसीने इतना सक्ष्म बनाया है की आप बैठे बैठे सबकी चिंता कर सबको बचा लोगे ? फिर क्यों दूसरों के भी खुदा बनने की कोशिश होती है ? क्यों नहीं समझते की खुदा ने हमें जितनी नेकी करने का सामर्थ्य अदा किया है उतना भी हम कर लें तो बहोत है ! क्यों की अगर हमी सबकुछ कर पाते तो यही खुदा की मर्जी होती ! लेकिन नहीं हम लाख इस्लाम इस्लाम ,हिन्दू हिन्दू कर ले लेकिन किसी के भी खुदा ने ,किसी के भी ईश्वर ने हम में से किसी को भी इतनी औकात नहीं बक्शी है की हम सब के साथ नेकी या बदसलूकी भी कर सके ! इसीलिए जितना हमारे सामर्थ्य की परिधि में हैं उतना तो एक जनम में भी न कर पाएं फिर भी सारी दुनिया के दुखड़े का रोना रोये और उसका ठीकरा किसी न किसी पर फोड़ने में समय जाया करें तो ये तो सबसे बड़ी काफीरि होगी !
यही सवाल एक बार पाकिस्तान के एक टीवी शो “खरा सच” मे मुबशीर लुक़मान ने विश्व प्रसिद्ध इस्लामी विद्वान मरहूम इसरार अहमद से किया था. इसरार अहमद साहब का कहना था कि क़ुरान मे कहीं भी ऐसा ज़िक्र नही, लेकिन इस्लाम के आख़िरी पैगंबर मुहम्मद साहब की छवि खराब कर, मुसलमान और उसके रसूल के बीच जो जज्बाती रिश्ता है, उसको तोड़ने की काफ़िर कोशिश कर रहे हैं, उसकी वजह से आख़िरी रसूल की आलोचना पे हत्या बिल्कुल जायज़ है. वैसे यही इसरार मियाँ isis की तरह अहमदी (मुनाफीकॉं) की हत्या की माँग कर चुके हैं.
वैसे तो हन्नान मियाँ, इस्लाम की हिफ़ाज़त के नाम पे गैर मुस्लिमो या मुनाफीकॉं की हत्या करने वाले isis को यहूदी करार दे चुके हो. जो सही भी हो. यहूदी हवाला क़ुरान और हदीसों का ही देता है, दाढ़ी रखता है, रोज रखता है, नमाज़ी होता है, बस मुसलमान होने का ढोंग करता है. ये बिल्कुल संभव है. अब ऐसा भी तो सकता है, कि मारकाट की बात करने वाले इसरार अहमद, जाकिर नायक टाइप के लोग भी यहूदी एजेंट हो.
मैं सिर्फ़ इसलिए ऐसा कह रहा हूँ कि सच्चे मुसलमान की पहचान फिर क्या है?
अब इसरार मियाँ के तर्क पे ही गौर करते हैं कि क़ुरान मे तो ब्लेस्फेमी के लिए हत्या का आदेश नही है. लेकिन रसूल के रास्ते यानी सुन्नत पे चलने का दावा करने वाली क़ौम अगर, तौहिने रसूल पे, क़ानूनन तौर पे इस्लाम का हवाला देके हत्या करेगी, तो इससे क्या रसूल की शान मे चार चाँद लगेंगे?
इससे बदनामी किसकी होगी. आज जीतने नये मुसलमान बन रहे हैं, उससे ज़्यादा गैर मुस्लिमो मे इस्लाम के खिलाफ नफ़रत बढ़ रही है. अगर आप रसूल का हवाला देके हत्याए करेंगे, तो रसूल की शान बढ़ेगी या घटेगी? इससे इस्लाम ख़तरे मे पड़ेगा, या लोकप्रिय होगा, खुद फ़ैसला कीजिए.
इस्लाम को बदनाम कौन कर रहा है, और बदनाम करने वाले लोगो और उनके तर्क का हम क्या जवाब दे रहे हैं? हम या तो चुप है, या इस्लाम को बदनाम करने की मुहिम मे उनके साथ जुड़ गये हैं.